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Monday, March 09, 2009

5. डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री आउ तनी इतिहासो

डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री आउ तनी इतिहासो

[डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री (1923-1973) सम्बन्धित संस्मरण आउ 'मगध संघ' के स्थापना, बिहारशरीफ से 'मगही' पत्रिका के प्रकाशन एवं दूठो मगही महासम्मेलन (1957; 1964) के इतिहास]

लेखक - रवीन्द्र कुमार (12 नवम्बर 1933 - 21 मई 2006)

1952 में नालन्दा कॉलेज में विज्ञान के छात्र हली । हमनी बैडमिंटन खेलऽ हली । हमनी माने हम, हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, उमेश, अंजनी, कृष्ण स्वरूप आउ कत्ते ने लोग । एक दिन सबके राय होल, काहे न क्लब के एगो नाम देल जाय । विचार-विमर्श के बाद क्लब के नाम 'मगध संघ' देल गेल । खेले के अलावा ओकरा में साहित्यिक आउ सांस्कृतिक गतिविधियो के समावेश कइल गेल । हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी एक्कर संस्थापक मंत्री आउ हम (रवीन्द्र कुमार) संस्थापक संयुक्त मंत्री चुनल गेली ।

प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय के गरिमा प्राप्त करे के कोशिश कइल जा रहल हल । निदेशक पद पर भिक्षु जगदीश काश्यप हलन । काश्यप जी बौद्ध-दर्शन के अन्यतम विद्वान हलन । 1952 में बुद्ध के दर्शन आउ भारत के सन्देश लेके ऊ जापान गेलन हल । जापान के लौटे पर हमनी 'मगध संघ' के ओर से उनखर अभिनन्दन कइली हल । बिहारशरीफ हिन्दी पुस्तकालय के सामने के मैदान में एगो महती जनसभा के आयोजन कइल गेल हल । काश्यप जी बौद्ध-दर्शन के कुछ बात अप्पन भाषण में हमनी के बतउलन हल । एगो बात आउ कहलन हल ... ... बउआ, तोहनी सब खेलऽ ! पढ़ऽ ! मगर बातचीत मगहिए में करऽ ! ... मगही में बतियाय के ई पहिला सन्देश हल ।

कत्ते दिन बीत गेल । फिन एक दिनमा ठाकुर रामबालक सिंह एगो बुजुर्ग अदमी के साथ पटना से हम्मर दुआर पर अयलन । रामबालक सिंह जी से परिचय हल मगर बुजुर्ग अदमी के पहिला बार देख रहली हल । रामबालक जी परिचय देलन - ई श्रीकान्त शास्त्री हथ । मगही ला समर्पित अदमी । हिन्दी आउ संस्कृत के प्रकांड विद्वान हथ । मगही के अलख जगावे ला निकललन हे ।

शास्त्री जी कहलन हल - हम जानऽ ही तोहनी 'मगध संघ' से सम्बद्ध हऽ । मगही में बातचीत करऽ हऽ । सुनऽ ही हस्तलिखित पत्रिका निकालऽ हऽ । ओकरा में हिन्दी आउ मगहियो के रचना रहऽ हे । ई बड़ खोसी के बात हे । ... अब हमनी पटना से एगो मगही पत्रिका निकाले जा रहली हे । तोहनी के सहयोग जरूरी हे ।

हम चुप हली ।

फिन बोललन हल - जलमला होत तो बुतरू होल हे ! बुतरू होल हे ! - मगहिए के अमरित नियर वाणी तोर कान में पहिले गेलो होत । ... अपन बोली बोले में लजा हऽ काहे ? हिन्दी में लिखऽ हऽ, मगहिओ में लिखऽ ...

दुन्नू आगन्तुक ला एक-एक गिलास शर्बत बना के ले अयली । एही हल हम्मर अतिथि सत्कार । शायद सन् '55 अगस्त-सितम्बर के महिन्ना हल । बूँदा-बाँदी होइए रहल हल । उनखर निवेदन हल - प्रियदर्शी जी हीं संगे जाइके । ई हमरा ला पहिला आदेश हल ।

रस्ता भर सोंचइत जा रहली हल - मामूली खद्दर के कुर्ता-धोती में ई अदमी केतना मामूली लग रहलन हल । ओकरो में मामूली कद-काठी के अदमी । मगर रामबालक भाय कहऽ हथ - बड़का भारी विद्वान हथ । ....

उनखनी साथे हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी हीं गेली । ढेर बातचीत होल । फिन तय होल 'मगही' मगही मंडल द्वारा 'मगध संघ' के तत्त्वाधान में प्रकाशित होयत ।

मगही साहित्य के पुनर्लेखन के सिलसिला शुरू होयल । 'मगही' के पहिला अंक 1955 के नवम्बर में प्रकाशित होल । हम्मर कहानी हल - 'असमानी रंग' । तब से केत्ते ने हम्मर कहानी 'मगही' में प्रकाशित होल । 'पित्तर के पुचकारी', 'टुरवा', 'मन के पंछी', 'सब्भे स्वाहा' .... आउ केत्ते ने ।

आद पड़ऽ हे शास्त्री जी के सादगी के । कधियो रामबालक सिंह आउ कधियो अपने हम्मर डेरा लोहानीपुर, पटना आवऽ हलन । तखनी हम पटना सायंश कॉलेज के विद्यार्थी हली । शास्त्री जी के आदेश होबऽ हल - कोय स्तरीय कहानी नञ् भेटायल हे । एक सप्ताह के भीतर लिख के एगो दे दऽ । रात-रात भर जाग के एगो कहानी तइयार करऽ हली आउ दे आबऽ हली । .... हमरा मगही कहानीकार के रूप गढ़ेवाला ओही व्यक्ति हथ ।

'मगही' के प्रकाशन के पहिले हमनी भिक्षु जगदीश काश्यप जी के असिरबाद लेबे ला, नालन्दा गेली हल । काश्यप जी अपने सक्रिय समर्थन देबे ला तइयार न हलन । ऊ कहलन हल - त्रिपिटक के अनुवाद के भार, भारत सरकार द्वारा देल गेल हे । एकरा ला समय-सीमा तय हे । ...समय के अभाव में ...

हमनी उनखा निर्देशक बनके आशीर्वचन देवे ला मिनती कइली हल । मान गेलन हल । कुछ दानो-दक्षिणा देलन हल ।

फिन नालन्दा के कइ ठो भिक्षु सब से मिलली हल । कुछ भिक्षु अप्पन लेख के अंगरेजी में डिक्टेशन लेलन हल । फिन ऊ सब लेख के मगही रूपान्तर कइल गेल हल । 'मगही' में ऊ सब लेख छापल गेल हल ।

श्रीकान्त शास्त्री जी के सम्पादकीय बड़ सटीक होबऽ हल । 'एगो मस्त मगहिया' के नाम से अंगरेजी कविता के मगही कविता रूपान्तर 'मगही' में छपइत रहऽ हल । ऊ मगही एकांकी आउ कहानियो लिखइत रहऽ हलन । 'मगही' में सब प्रकाशित होयत रहऽ हल । आकाशवाणी, पटना से उनकर रचना प्रसारित होयत रहऽ हल ।

मगही भाषा के विकास ला हरसट्टे सोंचइत रहऽ हलन । सब मगहियन सब के एक ठामा जमा करे के एगो योजना बनइलन । सबसे सहयोग लेलन । एकंगरसराय में एगो बृहत् मगही सम्मेलन के आयोजन कइलन । 'बिहार मगही मंडल' आउ 'मगध संघ' के सहयोग तो हइए हल ।

6 जनवरी 1957 में ई आयोजन कइल गेल । बिहारशरीफ से हम, प्रियदर्शी, गिरीश रंजन, लल्लन, करुणेश आउ कुछ लोग गेली हल । पटना से बड़का-बड़का विद्वान जइसे डॉ॰ वी॰ पी॰ सिन्हा, डॉ॰ नर्मदेश्वर प्रसाद आउ नञ् जाने कत्ते लोग एकंगर अइलन हल । मगही के सर्वश्रेष्ठ कवि रामनरेश पाठक, रुद्र जी, रामचन्द्र शर्मा किशोर, सुरेश दूबे 'सरस' आउ नञ् जाने कत्ते लोग अयलन हल । एके मंच पर मगहियन विचारक, विद्वान, कवि, लेखक, सब जमा कर देल गेलन हल ।

खुला अधिवेशन में आचार्य बदरीनाथ वर्मा के लमहर भाषण होल हल । तखनी ऊ बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री हलन । दिन भर कार्यक्रम चलइत रहल हल । भोजन आउ ठहराव - सब एकंगर उच्च विद्यालय में । रात में कवि सम्मेलन होल हल । भोजपुरी आउ मैथिली कवियन के भी न्योतल गेल हल । ढेर रात तक कवि सम्मेलन चलइत रहल हल ।

मगही के अइसन सम्मेलन आझ तक नञ् देखली । बिहारशरीफ में मगही सम्मेलन के सफल आयोजन होल हल । मगर एकंगर वाला सम्मेलन के कोय जवाब नञ् हल । एकर श्रेय डॉ॰ शास्त्री जी के जा हे । साधारण कद-काठी, साधारण बस्तर पहिरेवाला शास्त्री जी भव्य मगही सम्मेलन के अंजाम देलन हल । 'मगही' के मगही सम्मेलन विशेषांक निकसल । पहिला पेज में भिक्षु जी जगदीश काश्यप के भरपेजी फोटो छपल हल । ओक्कर बाद कइठो पेज में मगही सम्मेलन उत्सव के फोटो हल । ओकर बाद देखऽ ही एगो भर पेजी फोटो हमरो छपल हे । फोटो के निच्चे छप्पल हे - मगही रथ के सारथी - श्री रवीन्द्र कुमार । अप्पन फोटो देख के मन पुलकित हो गेल । आँख से लोर चूए लगल । सोंचे लगली - हम का एत्ते कयली हे जे हमरा एतना प्रतिष्ठा देल गेल ।

राहुल सांकृत्यायन जी 'हिन्दी साहित्य का बृहत् इतिहास' लिख रहलन हल । ई कई भाग में बाँटल हल । एक्कर सोलहवाँ भाग लोकभाषा के हल । छपे पर ई अंक में मगही कहानीकार के रूप में एक अवतरण हाल हल । हम्मर कहानियो के समीक्षा हल । ... रवीन्द्र कुमार इतिहासिक पुरुष हो गेलन । .... हम जानऽ ही ई सब के कइलन ? डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री जी; आउ के ।
उनखर स्नेह आउ आशीर्वाद हम पयली; जिनगी भर नञ् भूल सकम ।

ऊ पारस हला । जे-जे उनखा से सटल, सब सोना हो गेलन । पीएच॰डी॰, डी॰लिट् सब उपाधि से विभूषित हो गेलन ।

पूर्णियाँ जिला स्कूल में हली । अखबार में उनकर निधन के समाचार पढ़ली । आँख बार-बार लोर से डबडबा उठऽ हल । उनखा हम्मर शत-शत प्रणाम !

['मगही पत्रिका', अंक-7, जुलाई 2002, पृ॰ 14-15; सम्पादकः धनंजय श्रोत्रिय]

2 comments:

Satish Chandra Satyarthi said...

रवींद्र जी,
सादर प्रणाम.
सबसे पहले तो मगही में न लिखने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. मगही भाषा में आपके बहुमूल्य योगदान की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है. पूरे मगही क्षेत्र को आप जैसे विद्वानों पर गर्व है. अपनी भाषा के संघर्ष और विकास की जीवंत गाथा सुनकर मन भावविह्वल हो गया. डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री जैसे महापुरुष सदियों में एक बार जन्म लेते हैं. उनको मेरा शत शत नमन.

Satish Chandra Satyarthi said...

रवींद्र जी,
सादर प्रणाम.
सबसे पहले तो मगही में न लिखने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. मगही भाषा में आपके बहुमूल्य योगदान की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है. पूरे मगही क्षेत्र को आप जैसे विद्वानों पर गर्व है. अपनी भाषा के संघर्ष और विकास की जीवंत गाथा सुनकर मन भावविह्वल हो गया. डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री जैसे महापुरुष सदियों में एक बार जन्म लेते हैं. उनको मेरा शत शत नमन.
इसे प्रस्तुत करने के लिए नारायण जी को कोटिशः धन्यवाद.
आप सब मगही सेवकों को होली की हार्दिक बधाई