पंडित जी
[डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री (1923-1973) सम्बन्धित संस्मरण]
लेखक - ठाकुर रामबालक सिंह
डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री के हमनी पटनियाँ सब 'पंडित जी' के नाम से जानऽ हली । 1955 में 'मगही' मासिक पत्रिका जब छपावे के विचार होलई तब पटना यंगमेन्स एसोसिएशन के सदस्य सब के विचार होलई कि मुख्य सम्पादक पद पर भिक्खु जगदीश काश्यप इया डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री के रखल जाय ।
ई काम ला हमनी 'पंडित जी' के गाँव नारायनपुर गेलूँ । हमनी समझइत हलिअइ कि 'पंडित जी' तिनफक्का चन्नन लगउले, खड़ाऊँ पेन्हले, टीकी बढ़इले, कउनो बड़गो पुजारी होथिन । मुला जा ही त का देखऽ ही कि खद्दर के मइल-कुचइल धोती आउ फटिहर गंजी पेन्हले एगो दुब्बर-पातर अदमी आठ-दस गो लइकन के पढ़ावइत हलथिन । हमनी सलाह-मसविरा कयलियइ त ऊ 'मगही' के सम्पादन करे ला तइयार हो गेलथिन ।
ओक्कर बाद 'पंडित जी' के साथे हम बिहारशरीफ गेलूँ । बिहारशरीफ में बहुत्ते व्याख्याता आउर 'मगध संघ' के नौजवान लोग हमनी के साथ देलथिन । एकरा में सर्वश्री हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, रवीन्द्र कुमार, डॉ॰ सिद्धेश्वर प्रसाद, प्रो॰ रमाशंकर शास्त्री, महेश्वर तिवारी ओगइरह के भुलावल न जा सकऽ हइ । तय होलई कि 'मगही' 'बिहार मगही मंडल' के तत्त्वावधान में 'मगध संघ' से प्रकाशित होतई । एही बिबरन मगही में बराबर छपलई ।
फिन हमनी प्रियदर्शी आउ रवीन्द्र कुमार के साथ ले के भिक्खु जगदीश काश्यप से भेंट करे नालन्दा गेलूँ । सुरू में 'मगही' के मुख्य सम्पादक काश्यपे जी के बनावे के विचार हलई । काश्यप जी जानऽ हलथिन कि मगही भाषा ला पंडित जी हड्डी गला रहलथिन हल । ई सोंच के ऊ कहलथिन कि सम्पादक श्रीकान्त शास्त्री आउ तों (ठाकुर रामबालक सिंह) रहऽ, हमरा त्रिपिटक के हिन्दी में छपावे के काम से फुरसत न हो । प्रियदर्शी जी कहलका कि अपने मगध संघ के निर्देशक हथिन, ई मगध संघ के पत्रिका हे, एकरो निर्देशक अपने रहथिन । प्रियदर्शी जी के ऊ मानऽ हलथिन, मान गेलथिन । 'मगही' के पहिला अंक छापे ला एक सौ रुपइया भी काश्यप जी देलथिन ।
'मगही' के पहिला अंक ला पंडित जी बड़कन-बड़कन साहित्यकार के लिखलथिन । बहुत्ते लोग के सन्देस मिलल । हिन्दी के दधीचि शिव जी (आचार्य शिवपूजन सहाय) के सन्देस हल - "मगही मीठी एवं मुलायम बोली है । महिलाओं के मुख से उसमें और मिठास आ जाती है; यह बात मेरे गुरु पं॰ ईश्वरी प्रसाद शर्मा कहा करते थे ।"
पहिला अंक दू हजार छापलूँ । ओकर अइसन धूम मचल कि हो रे बस ! पटना, कलकत्ता, दिल्ली के करीब सबे अखबारन में ऊ अंक के बड़ाई छपल । फिन तो मगही के जे प्रचार भेल कि लोग मगही कार्यालय में आ-आ के 'मगही' खरीदे लगलन । बड़ी मोसकिल से दस-पाँच कौंपी बचा के रखऽ हलूँ । अब तो एक्को अंक हमरा पास न बचल हे ।
पंडित जी के सम्पादन में मगही के दिन दोगना आउ रात चौगना रूप निखरइत रहल । मगही पत्रिका के चलते एक-से-एक बढ़ के लेखक आउ कवि के जनम भेल । एकरा में सर्वश्री सुरेश दुबे 'सरस', रामनरेश पाठक, हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, रवीन्द्र कुमार, लक्ष्मण प्रसाद दीन, योगेश, डॉ॰ रामनन्दन, डॉ॰ शिवनन्दन प्रसाद ओगइरह के नाम लेबे लायक हे । सुरेश दुबे 'सरस' के कविते-सेंगरन 'निहोरा' बिहार सरकार के पुस्तकालयन ला मंजूर भी भेल हल । रामनरेश पाठक अप्पन 'अगहन के भोर' कविता के जब मधुर सुर के साथ राँची कौलेज में परस्तुत कयलथिन तब कइठो बिदेसी लोग ओकरा टेप करके अप्पन-अप्पन देस ले गेलथिन । प्रियदर्शी के 'कहमा पिया केरा गाँव ?' टेक वाला गीत मगही गीत के नमूना बन गेल । रवीन्द्र कुमार के 'मन के पंछी' कहानी तो एत्ते चलल कि घरे-घर अउरत-बानी ओकरा रट गेलथिन । योगेश जी आउ डॉ॰ रामनन्दन के चुटकी सुन-सुन के तो आझो लोग लोट-पोट हो जा हथ । डॉ॰ शिवनन्दन प्रसाद के 'मंजर' शीर्षक निबन्ध भी बहुत चरचित भेल ।
1957 में 'पंडित जी' के गाँव नारायनपुर भिर एकंगरसराय में पहिला मगही सम्मेलन भेल । एकर सफलता लागी देस-भर से आउ बिदेस से भी, ऊ बखत के चीन के प्रधान मंत्री स्व॰ चाऊ-एन-लाइ तक के, सन्देस आयल हल । एकर उद्घाटन कयलथिन हल ऊ बखत के बिहार के शिक्षा-मंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा आउ सभापतित्व कयलथिन भिक्खु जगदीश काश्यप । बड़ी धूमधाम से ई सम्मेलन भेल आउ एकर रिपोर्ट मगही के नौवाँ अंक में छपल । ई सब एतना जे लिख रहलूँ हे, ई सभ काम पंडित जी के हाँथ से होवऽ हल । तन, मन, धन, सब कुछ पंडित जी मगही आन्दोलन ला नेछावर कइले हलन । हम तो छाया नियन खाली उनखर साथे रहऽ हलियई ।
मगही सम्मेलन में पहिले 'पंडित जी' 'बिहार मगही मंडल' के गठन कयलथिन हल, जेकर सभापति हलथिन डॉ॰ बिन्देश्वरी प्रसाद सिन्हा, उपसभापति डॉ॰ नर्मदेश्वर प्रसाद (बाद में कुलपति, मगध विश्वविद्यालय), आउ मंत्री हलथिन डॉ॰ शिवनन्दन प्रसाद । डॉ॰ शिवनन्दन प्रसाद के हिन्दी निदेशालय, नई दिल्ली, चल गेला के बाद मंत्री के काम डॉ॰ रामनन्दन (भूगोल विभाग, पटना विश्वविद्यालय) सँभारे लगलथिन । मुला जभी कोय काम होवे त 'पंडित जी' के नारायनपुर से बे अइले न होवऽ हल ।
मगही सम्मेलन के बाद हमरा राँची में नौकरी लग गेल । 'मगही' तब रुक-रुक के परकासित होवे लगल । ओकरा बाद 'पंडित जी' डॉ॰ रामनन्दन के मदद से 'बिहान' प्रकासित करे लगला । जे बखत पंडित जी 'मगही' सुरू कयलथिन हल ऊ बखत आई॰ए॰ पास हलथिन । मगही आन्दोलन, लड़िकन के विद्यालय आउ घर के पचड़ा रहे पर भी 'पंडित जी' प्रतिष्ठा के साथ बी॰ए॰ आउर एम॰ए॰ कयलथिन आउ बाद में पी-एच॰डी॰ भी । 'पंडित जी' के बेतुहार खरचा देख के पंडिताइन रंज रहऽ हलथिन । ऊ अप्पन अलगे कोठली में पूजा-पाठ, चउका-बरतन करऽ हलथिन ।
हमरा राँची अइला के बाद भी ऊ अकेले मगही के गाड़ी के खींचते रहलथिन । 1964 में 'मगध संघ' के चौदहमा अधिवेसन के अवसर पर बिहारशरीफ में दोसर मगही सम्मेलन भेल । आउ भी केतना जगह पर सम्मेलन भेल । बिहारशरीफ के सम्मेलन में 'मगध शोध संस्थान' के स्थापना ला संकल्प लेल गेलई हल । ओही मगही के पहिला गैर-सरकारी अकादमी हलई । निदेसक बना के 'पंडित जी' ओकरा चलयलथिन हल । कुछ दिन तक ऊ सुभाष हाई स्कूल, इसलामपुर में शिक्षक के काम कयलथिन हल । मुला विश्वविद्यालय में तो जात-पाँत, भाई-भतीजावाद भरल हे । ईनखर पांडित्य आउ गहिरा अध्ययन के केऊ कदर न कइलकई । जूझइत-जूझइत आखिर में मगही-मगही जपइते बेचारे मगहिया अग्रदूत 1973 में 29 जुलाई के ई संसार से चल देलथिन ।
'मगही', 'बिहान' आउर बहुत्ते-मनी पत्र-पतरिका में उनखर लेख 'एगो मस्त मगहिया' के नाम से छपऽ हल । 'पंडित जी' में सबसे बड़ खूबी ई हल कि ऊ मगहिये में सोचऽ हलथिन आउ मगहिये में लिखऽ हलथिन ।
[डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री (1923-1973) सम्बन्धित संस्मरण]
लेखक - ठाकुर रामबालक सिंह
डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री के हमनी पटनियाँ सब 'पंडित जी' के नाम से जानऽ हली । 1955 में 'मगही' मासिक पत्रिका जब छपावे के विचार होलई तब पटना यंगमेन्स एसोसिएशन के सदस्य सब के विचार होलई कि मुख्य सम्पादक पद पर भिक्खु जगदीश काश्यप इया डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री के रखल जाय ।
ई काम ला हमनी 'पंडित जी' के गाँव नारायनपुर गेलूँ । हमनी समझइत हलिअइ कि 'पंडित जी' तिनफक्का चन्नन लगउले, खड़ाऊँ पेन्हले, टीकी बढ़इले, कउनो बड़गो पुजारी होथिन । मुला जा ही त का देखऽ ही कि खद्दर के मइल-कुचइल धोती आउ फटिहर गंजी पेन्हले एगो दुब्बर-पातर अदमी आठ-दस गो लइकन के पढ़ावइत हलथिन । हमनी सलाह-मसविरा कयलियइ त ऊ 'मगही' के सम्पादन करे ला तइयार हो गेलथिन ।
ओक्कर बाद 'पंडित जी' के साथे हम बिहारशरीफ गेलूँ । बिहारशरीफ में बहुत्ते व्याख्याता आउर 'मगध संघ' के नौजवान लोग हमनी के साथ देलथिन । एकरा में सर्वश्री हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, रवीन्द्र कुमार, डॉ॰ सिद्धेश्वर प्रसाद, प्रो॰ रमाशंकर शास्त्री, महेश्वर तिवारी ओगइरह के भुलावल न जा सकऽ हइ । तय होलई कि 'मगही' 'बिहार मगही मंडल' के तत्त्वावधान में 'मगध संघ' से प्रकाशित होतई । एही बिबरन मगही में बराबर छपलई ।
फिन हमनी प्रियदर्शी आउ रवीन्द्र कुमार के साथ ले के भिक्खु जगदीश काश्यप से भेंट करे नालन्दा गेलूँ । सुरू में 'मगही' के मुख्य सम्पादक काश्यपे जी के बनावे के विचार हलई । काश्यप जी जानऽ हलथिन कि मगही भाषा ला पंडित जी हड्डी गला रहलथिन हल । ई सोंच के ऊ कहलथिन कि सम्पादक श्रीकान्त शास्त्री आउ तों (ठाकुर रामबालक सिंह) रहऽ, हमरा त्रिपिटक के हिन्दी में छपावे के काम से फुरसत न हो । प्रियदर्शी जी कहलका कि अपने मगध संघ के निर्देशक हथिन, ई मगध संघ के पत्रिका हे, एकरो निर्देशक अपने रहथिन । प्रियदर्शी जी के ऊ मानऽ हलथिन, मान गेलथिन । 'मगही' के पहिला अंक छापे ला एक सौ रुपइया भी काश्यप जी देलथिन ।
'मगही' के पहिला अंक ला पंडित जी बड़कन-बड़कन साहित्यकार के लिखलथिन । बहुत्ते लोग के सन्देस मिलल । हिन्दी के दधीचि शिव जी (आचार्य शिवपूजन सहाय) के सन्देस हल - "मगही मीठी एवं मुलायम बोली है । महिलाओं के मुख से उसमें और मिठास आ जाती है; यह बात मेरे गुरु पं॰ ईश्वरी प्रसाद शर्मा कहा करते थे ।"
पहिला अंक दू हजार छापलूँ । ओकर अइसन धूम मचल कि हो रे बस ! पटना, कलकत्ता, दिल्ली के करीब सबे अखबारन में ऊ अंक के बड़ाई छपल । फिन तो मगही के जे प्रचार भेल कि लोग मगही कार्यालय में आ-आ के 'मगही' खरीदे लगलन । बड़ी मोसकिल से दस-पाँच कौंपी बचा के रखऽ हलूँ । अब तो एक्को अंक हमरा पास न बचल हे ।
पंडित जी के सम्पादन में मगही के दिन दोगना आउ रात चौगना रूप निखरइत रहल । मगही पत्रिका के चलते एक-से-एक बढ़ के लेखक आउ कवि के जनम भेल । एकरा में सर्वश्री सुरेश दुबे 'सरस', रामनरेश पाठक, हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, रवीन्द्र कुमार, लक्ष्मण प्रसाद दीन, योगेश, डॉ॰ रामनन्दन, डॉ॰ शिवनन्दन प्रसाद ओगइरह के नाम लेबे लायक हे । सुरेश दुबे 'सरस' के कविते-सेंगरन 'निहोरा' बिहार सरकार के पुस्तकालयन ला मंजूर भी भेल हल । रामनरेश पाठक अप्पन 'अगहन के भोर' कविता के जब मधुर सुर के साथ राँची कौलेज में परस्तुत कयलथिन तब कइठो बिदेसी लोग ओकरा टेप करके अप्पन-अप्पन देस ले गेलथिन । प्रियदर्शी के 'कहमा पिया केरा गाँव ?' टेक वाला गीत मगही गीत के नमूना बन गेल । रवीन्द्र कुमार के 'मन के पंछी' कहानी तो एत्ते चलल कि घरे-घर अउरत-बानी ओकरा रट गेलथिन । योगेश जी आउ डॉ॰ रामनन्दन के चुटकी सुन-सुन के तो आझो लोग लोट-पोट हो जा हथ । डॉ॰ शिवनन्दन प्रसाद के 'मंजर' शीर्षक निबन्ध भी बहुत चरचित भेल ।
1957 में 'पंडित जी' के गाँव नारायनपुर भिर एकंगरसराय में पहिला मगही सम्मेलन भेल । एकर सफलता लागी देस-भर से आउ बिदेस से भी, ऊ बखत के चीन के प्रधान मंत्री स्व॰ चाऊ-एन-लाइ तक के, सन्देस आयल हल । एकर उद्घाटन कयलथिन हल ऊ बखत के बिहार के शिक्षा-मंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा आउ सभापतित्व कयलथिन भिक्खु जगदीश काश्यप । बड़ी धूमधाम से ई सम्मेलन भेल आउ एकर रिपोर्ट मगही के नौवाँ अंक में छपल । ई सब एतना जे लिख रहलूँ हे, ई सभ काम पंडित जी के हाँथ से होवऽ हल । तन, मन, धन, सब कुछ पंडित जी मगही आन्दोलन ला नेछावर कइले हलन । हम तो छाया नियन खाली उनखर साथे रहऽ हलियई ।
मगही सम्मेलन में पहिले 'पंडित जी' 'बिहार मगही मंडल' के गठन कयलथिन हल, जेकर सभापति हलथिन डॉ॰ बिन्देश्वरी प्रसाद सिन्हा, उपसभापति डॉ॰ नर्मदेश्वर प्रसाद (बाद में कुलपति, मगध विश्वविद्यालय), आउ मंत्री हलथिन डॉ॰ शिवनन्दन प्रसाद । डॉ॰ शिवनन्दन प्रसाद के हिन्दी निदेशालय, नई दिल्ली, चल गेला के बाद मंत्री के काम डॉ॰ रामनन्दन (भूगोल विभाग, पटना विश्वविद्यालय) सँभारे लगलथिन । मुला जभी कोय काम होवे त 'पंडित जी' के नारायनपुर से बे अइले न होवऽ हल ।
मगही सम्मेलन के बाद हमरा राँची में नौकरी लग गेल । 'मगही' तब रुक-रुक के परकासित होवे लगल । ओकरा बाद 'पंडित जी' डॉ॰ रामनन्दन के मदद से 'बिहान' प्रकासित करे लगला । जे बखत पंडित जी 'मगही' सुरू कयलथिन हल ऊ बखत आई॰ए॰ पास हलथिन । मगही आन्दोलन, लड़िकन के विद्यालय आउ घर के पचड़ा रहे पर भी 'पंडित जी' प्रतिष्ठा के साथ बी॰ए॰ आउर एम॰ए॰ कयलथिन आउ बाद में पी-एच॰डी॰ भी । 'पंडित जी' के बेतुहार खरचा देख के पंडिताइन रंज रहऽ हलथिन । ऊ अप्पन अलगे कोठली में पूजा-पाठ, चउका-बरतन करऽ हलथिन ।
हमरा राँची अइला के बाद भी ऊ अकेले मगही के गाड़ी के खींचते रहलथिन । 1964 में 'मगध संघ' के चौदहमा अधिवेसन के अवसर पर बिहारशरीफ में दोसर मगही सम्मेलन भेल । आउ भी केतना जगह पर सम्मेलन भेल । बिहारशरीफ के सम्मेलन में 'मगध शोध संस्थान' के स्थापना ला संकल्प लेल गेलई हल । ओही मगही के पहिला गैर-सरकारी अकादमी हलई । निदेसक बना के 'पंडित जी' ओकरा चलयलथिन हल । कुछ दिन तक ऊ सुभाष हाई स्कूल, इसलामपुर में शिक्षक के काम कयलथिन हल । मुला विश्वविद्यालय में तो जात-पाँत, भाई-भतीजावाद भरल हे । ईनखर पांडित्य आउ गहिरा अध्ययन के केऊ कदर न कइलकई । जूझइत-जूझइत आखिर में मगही-मगही जपइते बेचारे मगहिया अग्रदूत 1973 में 29 जुलाई के ई संसार से चल देलथिन ।
'मगही', 'बिहान' आउर बहुत्ते-मनी पत्र-पतरिका में उनखर लेख 'एगो मस्त मगहिया' के नाम से छपऽ हल । 'पंडित जी' में सबसे बड़ खूबी ई हल कि ऊ मगहिये में सोचऽ हलथिन आउ मगहिये में लिखऽ हलथिन ।
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भारतेन्दु जइसन कम्मे उमिर में 'पंडित जी' संसार छोड़ देलन । कुछ दिन आउर दुनिया में रहितन हल तऽ भाषा-विज्ञान में एगो नया मोड़ जरूरे अइतई हल । उप्पर जे लिखल गेलइ हे कि हमनी जब उनखर गाँव गेलूँ हल, ऊ बखत 'पंडित जी' लड़िकन के पढ़ावऽ हलथिन । सब्भे लड़िकन के बिना फीस के पढ़ावऽ हलथिन । भाषा-विज्ञान के विदमानन हियाँ जा-जा के भेंट करऽ हलथिन । हमरा एक बेर सुनीति कुमार चटर्जी हियाँ कलकत्ता ले गेलथिन । पंडिते जी के किरपा से राहुल जी के कताब 'हिन्दी साहित्य का बृहत् इतिहास' में हमनी के आउ मगही के जिकिर भेलई हे । आर॰आर॰ दिवाकर के किताब 'बिहार थ्रू दी एजेज' में मगध पर जे परिच्छेद लिखल हई ऊ पंडिते जी के लिखल हई । चम्पारण जिला, बंगरी गाँव के श्री गणेश चौबे, 'भोजपुरी' मासिक के सम्पादक श्री रघुवंश नारायण सिंह, श्री कामता प्रसाद सिंह 'काम', श्री कृष्णदेव प्रसाद एडवोकेट, ई सब के साथे तो हमनी के साहित-चरचा चलतहीं रहऽ हलई ।
['मगही पत्रिका', अंक-7, जुलाई 2002, पृ॰ 7-9; सम्पादकः धनंजय श्रोत्रिय]
1 comment:
जान खे अच्छा लगो जी बधाई हो
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