मपध॰
= मासिक "मगही पत्रिका"; सम्पादक - श्री धनंजय श्रोत्रिय, नई दिल्ली/ पटना
पहिला
बारह अंक के प्रकाशन-विवरण ई प्रकार हइ -
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वर्ष अंक महीना कुल
पृष्ठ
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2001 1 जनवरी 44
2001 2 फरवरी 44
2002 3 मार्च 44
2002 4 अप्रैल 44
2002 5-6 मई-जून 52
2002 7 जुलाई 44
2002 8-9 अगस्त-सितम्बर 52
2002 10-11 अक्टूबर-नवंबर 52
2002 12 दिसंबर 44
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मार्च-अप्रैल
2011 (नवांक-1; पूर्णांक-13) से द्वैमासिक के रूप में अभी तक 'मगही पत्रिका' के नियमित प्रकाशन हो रहले ह ।
ठेठ
मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर
पृष्ठ संख्या, चउठा कॉलम संख्या (एक्के कॉलम रहलो पर
सन्दर्भ भ्रामक नञ् रहे एकरा लगी कॉलम सं॰ 1 देल गेले ह), आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति
संख्या दर्शावऽ हइ ।
कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या (अंक 1-13 तक संकलित शब्द के
अतिरिक्त) - 192
ठेठ मगही शब्द (अ
से ह तक):
1 अँफड़ना (ई सब सुनके रतन अँफड़ के रह जा हल । बात खाली माय के रहत हल तउ कउनो बात नञ्, बाऊजी भी कोय कसर नञ् छोड़े ले चाहऽ हला, " अरे सरिता के माय, ई अनाज के दुसमन लेल सोच-सोच के खुद के आउ काहे ले जला रहले हें ?"; चुल्हन अँफड़-अँफड़ के काने लगऽ हे । पंचाइत के पूरा माहौल गमगीन हो जाहे ।) (मपध॰11:14:25:1.13, 33:1.17)
2 अछताना-पछताना (एन्ने उमर हल कि दिन गिने लगल । अछता-पछता के ऊ एगो स्थानीय कौलेज में जोगदान कर लेलक ।) (मपध॰11:14:16:3.8)
3 अठ-नो (~ सो = आठ-नौ सौ) (एगो घोड़ा बनावे में हजारो रुपइया लगे हे । एगो डंका मिले में अठ-नो सो रुपइया लगे हे । एक तरसा बनावे में हजार-बारह सो लगे हे । तरसा के ढक्कन लोहा के होवे हे, एकरा पर चमड़ा मेढ़ल रहे हे ।) (मपध॰11:14:11:2.15)
4 अधपक्कल (ऊहो रात चाचा भुखले सुत गेला । ऐसैं रात-दिन होते चचा के दु-चार दिन पर कहियो अधपक्कल, काँच-कूच खाना मिल जाय, ईहे बहुत हल । ... अउ अंत में एक दिन पीअरे धोती पेन्हले चचा टीं बोल गेला ।) (मपध॰11:14:23:1.39)
5 अफरात (ओइसे तो सुरेस हल एकदम निठल्ला अउ जुआड़ी बकि ओकर बाप हला रिटैर मास्टर, जमीनो-जोत अच्छे हल से लेल अफरात पइसा ओकर मरदाना के बिगाड़ देलक । एहे सब अपन लूर-बुध से सँभाले लेल ई घर में सोनमतिया के लावल गेल ।) (मपध॰11:14:34:2.12)
6 अबस्स (= अवश्य) (भीड़ देख के हम भी ओजै रूक गेलूँ । हमरा लग रहल हल कि हो न हो कोय बात अबस्स हे जेसे पनियो में भीड़ टस से मस नञ् हो रहल हे ।) (मपध॰11:14:21:1.8)
7 अरिआते (= पीछे-पीछे ही, साथ-साथ ही, लगले) (रधिया खाए बान्हले कटनी खेत जाए के तइयारी कर रहल हल आउ लोग कटनी करे खेत में चल गेलन हल । घर में अकेले हल ऊ । अरिआते के बहाने से शेखर बाबू रधिया के घर तक पहुँच गेलन ।) (मपध॰11:14:19:3.5)
8 अली-गली (अब ऊ कोय काम लेल अली-गली में घुमे तउ सब हड़बड़ा के अपन घर में घुस जाय, बाल-बुतरू के नुका ले, केबाड़ी लगा ले, खिड़की लगा ले ।) (मपध॰11:14:35:1.23)
9 आरी-खंधा (मगही के जदि अब तक बचैले रहलन हे त घर आउ घेरवारी तक सुरक्षित रहेवली हमर माय-बहिन, आरी-खंधा, खेत-कोला में पसेना टपकावेवली मजदुरिन आउ दलान से दोकान तक खटेवला कम पढ़ल-लिखल तबका के लोग-बाग ।) (मपध॰11:14:28:1.2)
10 आसिन (= आश्विन; असना < आसिन+'आ' प्रत्यय) (हाँ ऊ डायन हे ... डायन ... ऊ भतरखौकी, अपन घर में हेलते अपने भतार के खा गेलइ, एहे असना में जोगिंदर बाबू के पोतवा के खा गेलइ, जगेसर माँझी के घरवाली के ... केकरा-केकरा बतइयो, एगो के बात रहइ तो कहलो जाय ... ।) (मपध॰11:14:33:1.27)
11 इचना-पोठिया (कइसहुँ करके नीमक रोटी के बेवस्था भेल । बाकि फिन संकट मुँह बयले दूरा पर केंवाड़ी खटखटा देलक जब हाइकोर्ट कदाचारमुक्त परीक्षा के फरमान जारी कर देलक । अधिकांश छात्र इचना-पोठिया नियर छना गेल ।) (मपध॰11:14:18:3.1)
12 इधिर (= इधर) (इनकर दुनहुँ हाँथ में लड्डू हल । काहे कि इधिर महेंदर जी बिआह लगी अकबकाल हला आउ उधिर बेटी के बाप तो कब्बे से फफीहाँ-फफीहाँ हलन । केकरा भिर नाक नञ् दररलन हल ।; महेंदर चा कमाय लगी बजार गेला हल । इधिर इनकर रिस्तेदार इनकर घर आके बैठ गेला ।) (मपध॰11:14:22:2.4, 10)
13 उधिर (= उधर) (इनकर दुनहुँ हाँथ में लड्डू हल । काहे कि इधिर महेंदर जी बिआह लगी अकबकाल हला आउ उधिर बेटी के बाप तो कब्बे से फफीहाँ-फफीहाँ हलन । केकरा भिर नाक नञ् दररलन हल ।) (मपध॰11:14:22:2.5)
14 उपचाप (~ करना) (प्राइवेट कौलेज के लीला भी अपरंपार हे । दस्तखत जादे पर होवे बाकि अध्यापक के मिले कम्मे । तीन सौ से पान सौ रुपइया लेके संतोस करऽ । सेकरेटरी के जउन न दबदबा रहे । उपचाप कइलऽ न कि बरखास्तगी के तलवार गरदन पर सवार ।) (मपध॰11:14:17:1.24)
15 उलार (~ मारना) (हिरदा में हिंच्छा पालले ही कि अपने के मगही के फिल्म के बारे में भी जानकारी दूँ बाकि अँगुरी पर मगही फिल्म में गिनती करे लगऽ ही त 'मोरे मन मितवा' आउ 'भइया' के साथे दोसरके अँगुरी पर गिनती रुक जाहे । मगही माय के ममता उलार मारत त साइद साल-दु-साल में ई गिनती बढ़त, अइसन आशा करऽ ही ।) (मपध॰11:14:4:1.28)
16 उलार (गाड़ी ~ होना) (जिनगी के गाड़ी के आगे बढ़े ला आसा के बनल रहना जरूरी हे वरना कब गाड़ी उलार हो जायत कहना मुस्किल हे ।) (मपध॰11:14:16:3.23)
17 एकपैरिया (ऊ रस्ता से अइते-जइते देख के अपने कुछ लोग चले लगतन आउ एकपैरिया के रस्ता लग जात । कम से कम 'मगही पत्रिका' के तो वर्तनी रहत ई । देखल जात फेर ।) (मपध॰11:14:30:3.9)
18 एकरंगा (घोड़ा के माथा आउ गरदन कूट के यानी जमावदार काफी मोटा कागज के बनल होवे हे । ओकरा घोड़ा के सकल सूरत देके चटकदार रंग से रंगल जाहे । ओकर कान एकदम खड़ी रहे हे । देखे में जानदार लगे हे, एकदम चमकदार आँख लगाल कसल ओकर धड़ बाँस के कराँची के बनल होवे हे । ओकर धड़ पर लाल एकरंगा ओढ़ावल रहे हे ।) (मपध॰11:14:11:1.19)
19 एमे (= एम.ए.)("अब का करे के विचार हइ ?" - "अब तो एक्के रस्ता बचलइ । बीए एमे करे के ।" - "काहे, बी.एड. करके मास्टरो तो हो सकऽ हे अदमी ।"; "का तो पोरफेसरवन के बड़ी पइसा मिले लगलइ ।" ठाकुर पुछलक ।/ "भाई एस्केलवा तो हइये हलइ, खाली भुगतान कम्मे होवऽ हलइ।" उत्तर देलक ।/ "अरे ई सब के दरिदरा भाग गेलइ हो ।"/ "बी.ए., एमे भी तो कइले हलइ ।") (मपध॰11:14:16:1.36, 17:3.6)
20 ओका (बुतरू केकरा नञ् प्यारा लगऽ हे ... भगमान हमरा नञ् देलका तउ की हम दोसरो बुतरू के नञ् दुलार सकऽ ही ... अउ एक दिन ओकरा गोदी उठा लेलूँ ... तउ भगमान के नञ् सोहाइल अउ ओका दुनिया से उठा लेलका ।) (मपध॰11:14:35:2.34)
21 ओजे (= ओज्जे; उसी जगह पर, वहीं) (ओकर गोड़ ऊ सत्संग दने बढ़ गेलइ जे ओकर महल्ला में हो रहल हल । अब ऊहो बैठके भक्ति में लीन हो गेलइ ।) (मपध॰11:14:36:1.4)
22 ओझराल (= उलझा हुआ) (आज जहाँ आदमी चान पर पहुँच गेल हे, ओहउँ ई सब डायन-कमाइन, झाड़-फूँक, ओझा-मंतर में ओझराल हे ।) (मपध॰11:14:33:3.22)
23 ओहाँ (= हुआँ; वहाँ) (ई पाँचो लुक-छिप के ओहाँ भीड़ में घुस गेल ।; ओहाँ जौर भीड़ एक-दोसर के मुँह देखे लगे हे ।) (मपध॰11:14:35:3.15, 28)
24 ककहरा (राबो जी बोलला - नञ्, हम देरी नञ् करबो । गहँकी घुरतै तब मालिक गोसैथिन । टैम पर दोकान खोलना हइ, बहाड़ना हइ । पैसा अइसहीं नञ् मिलो हइ । चुपचाप साथे चलहो । ककहरो में हइ, पहिले 'क' तब 'ख' । महेंदर जी सकदम हो गेला ।) (मपध॰11:14:22:3.25)
25 कमचोट्टा (मगही के तीस साल से अकादमी बनल हे बकि ओकर स्थिति कभियो नालंदा के खंडहर से बेस नञ् हो सकल । ... सड़ल सिस्टम में जे जोगाड़ी बाबू इया सुधी-विदमान एकर अध्यक्ष बनलन, भ्रष्टाचार आउ कमचोट्टा के लसाँधी लेके हीयाँ से बाहर निकललन ।) (मपध॰11:14:29:2.19)
26 करम-खउँका ("देख रहलऽ हे न, ऊ पुरान कुरता पहिनले, बाल पक्कल, बूढ़ा नियर अदमी । ई करम-खउँका कौलेज के पोरफेसर हवऽ ।" - "ओही सबन, जे एमे करके मारल-फिरल चलित हइ । एकरा से तो हमनी जहिलवन बढ़ियाँ ही । दू पइसा ठाट से कमा रहली हे ।") (मपध॰11:14:18:3.11-12)
27 कराँची (घोड़ा के माथा आउ गरदन कूट के यानी जमावदार काफी मोटा कागज के बनल होवे हे । ओकरा घोड़ा के सकल सूरत देके चटकदार रंग से रंगल जाहे । ओकर कान एकदम खड़ी रहे हे । देखे में जानदार लगे हे, एकदम चमकदार आँख लगाल कसल ओकर धड़ बाँस के कराँची के बनल होवे हे । ओकर धड़ पर लाल एकरंगा ओढ़ावल रहे हे ।) (मपध॰11:14:11:1.18)
28 कलमबंद (~ करना = लिखित रूप देना) (ई परंपरागत कला के नयका पीढ़ी सीखे ले नञ् चाहऽ हथ । संरक्षण प्रोत्साहन के कमी से एकर लोप हो रहल हे । जरूरत हे एकरा तुरंत कलमबंद करे के आउ संरक्षण करे के आउ संरक्षण-संवर्धन के ।) (मपध॰11:14:11:3.40)
29 कलाय (= कलाई) (सोहराय नृत्य-गायन के अप्पन अलगे तरीका हे । दुनु गोड़ में पैंजनी, कमर आउ कलाय में घुँघरू, दहिना हाथ में झाँझ आउ बायाँ हाथ कान पर रखके एकर गायन आउ नृत्य कइल जाहे ।) (मपध॰11:14:9:2.13)
30 कसियार (= कुश आदि घास के उपजने का स्थान; गैर उपजाऊ जमीन जिसमें कुश, कासी, सरकंडा आदि घास होती है) ("कसियारो खेत के दिन फिरे ।" समझू साहू पान के पिरकी फेंकते बोलल ।/ आखिर दुख के चकचाती केतना दिन चले ? एक न एक दिन तो एकरा अंत होने हल ।) (मपध॰11:14:17:2.18)
31 काँच-कूच (ऊहो रात चाचा भुखले सुत गेला । ऐसैं रात-दिन होते चचा के दु-चार दिन पर कहियो अधपक्कल, काँच-कूच खाना मिल जाय, ईहे बहुत हल । ... अउ अंत में एक दिन पीअरे धोती पेन्हले चचा टीं बोल गेला ।) (मपध॰11:14:23:1.39)
32 काट-खोंट ('मगही पत्रिका' के नवांक 1 (मार्च-अप्रैल 2011) अपने के बेस लगल, सुनके जी जुड़ा गेल । प्रो. बी.बी. शर्मा जी के लेख बड़ भाय नरेन जी से मिलल हल, नरेन भाय से रचना मिलला के बाद ओकरा में काट-खोंट करना मोनासिब नञ् बुझऽ ही ।) (मपध॰11:14:4:1.3)
33 कारवाही (पंचइती के कारवाही सुरू होवेवला हे । सौंसे गाम जमा हो गेल हल चौपाल में ... बकि सभे-के-सभे चुप्प, सभे तरफ सुन-सुनहटा, एगो पखेवा-पंछी के भी खर-खर नञ् । आज के मामला बड़ पेंचाहा हल ।) (मपध॰11:14:33:1.1)
34 कुदारी (खेत में ~ पारना) (एमे. पीएच.डी. करे से तो अच्छा हलउ कि खेत में कुदारी पारतें हल ।) (मपध॰11:14:18:3.38)
35 कूट (घोड़नाच भी मगहीभाषी क्षेत्र के एगो सशक्त लोकविधा हे । ... घोड़ा के माथा आउ गरदन कूट के यानी जमावदार काफी मोटा कागज के बनल होवे हे ।) (मपध॰11:14:11:1.13)
36 कोली (कोलिया दने से दू-तीन गो जन्नी जा रहल हल । मन कइलक सोनमतिया के कि जगेसरावली के बारे में पूछल जाय बकि फिनो अपन नाम के चरचा सुन के चुप रह गेल । ऊ सभे बतिअयते जा रहल हल कि सुरेसवावली डायन हे, अइसन बान मरलकै कि जगेसरावली के साँप बन के डँस लेलकै ।) (मपध॰11:14:35:1.9)
37 खंती (सोनमतिया के ई असरा ओकर मने में रह गेल, काहे कि तब तक पंचइती के फैसला के बाद लगभग सौंसे गाम लाठी, खंती, कुदार ले के ओकर घर के लेलव अउ ओकर भीतर के केबाड़ी तोड़ के सब सोनमतिया के ... राम नाम सत् ।) (मपध॰11:14:35:3.6)
38 खरदना (= खरीदना) (सड़का पर वाला धनेसरा के खेता खरदे लेल इस्कूटर से कोट जाइत ओकर मरदाना के एगो टरक मार देलक धक्का अउ एजइ से सोनमतिया हो गेल भतरखौकी अउ एजइ से सुरु हो गेल ओकर दुरदिन ।; सोनमतिया अपन मामू के गोड़लगाय में मिलल पैसा से एगो सिलाइ मिसिन खरदऽ हे अउ गामवला के कपड़ा-लत्ता सीए लगऽ हे ।) (मपध॰11:14:34:3.4, 35:1.2)
39 खामोखाही (शुरू में जब ई मगही में अपन एलबम बनइलन त भोजपुरिया लाबी इनका पर हावी हो गेल आउ खामोखाही उनकर एलबम में एक-दू गो भोजपुरी गीत भी घुसेड़ दे हल ।) (मपध॰11:14:53:3.16)
40 खींचना-खाँचना (बिहने चमटोली के लहास पर गिध अइसन पुलिस उतरल । खींच-खाँच के लहास निकालल जा रहल हल जेकरा में रधिया के लहास भी आग से जरल निकलल ।) (मपध॰11:14:20:3.13)
41 खेत-कोला (मगही के जदि अब तक बचैले रहलन हे त घर आउ घेरवारी तक सुरक्षित रहेवली हमर माय-बहिन, आरी-खंधा, खेत-कोला में पसेना टपकावेवली मजदुरिन आउ दलान से दोकान तक खटेवला कम पढ़ल-लिखल तबका के लोग-बाग ।) (मपध॰11:14:28:1.2)
42 खोसफैली (अब जे भी हित परेमी इनका से मिलथ, सबके आगू अपन खोसफैली बेआन करे में नञ् चुकथ । सबसे कहथ, "अब हमरा कोय चीज के कमी नञ् हे । भगवान सब कुछ देलका हे । खाली रसोइए बनावेवाली कोय नञ् हे । उहे से डिप्टी जाय में ढिलाय हो जाहे ।") (मपध॰11:14:22:1.1)
43 गरगद्दह (= गरगद्दा; शोर, हल्ला) (रवि बाबू (डॉ. रविशंकर शर्मा) के 'थेथर बाप' त गरगद्दह मचा देलक । हमर जयनंदन भइया जइसन कवि तो उनकर 'थेथर बाप' से प्रभावित होके घनाक्षरी छंद में हमरा अपन सद्यः लिखल कविता भी सुना देलन ।) (मपध॰11:14:4:1.14)
44 गरगराना (= चिल्लाना) (अउ आज तो हद हो गेल हल, लगइ कि सौंसे गाम ओकर केबाड़ी कबाड़ देत । गारी से बिखुन कर देलक सोनमतिया के । चुल्हन मिस्त्री गरगरा रहल हल, "अगे डइनी, खोल केबड़िया, तोरा आज नञ् छोड़बउ गे, तोरा आझे नचइबउ, नञ् तो लाव हमर बेटवा के । ... आउ केकरा-केकरा चिबइम्हीं गे भतरखौकी ... खोल केबड़िया ।") (मपध॰11:14:35:2.10)
45 गलमोछी (ओही घड़ी कुछ आदमी छानी फान में मंगरू के घर में घूँसल । ऊ सब गलमोछी लगएले हल ।) (मपध॰11:14:20:1.21)
46 गहिड़ (= गभीर; गहरा; दे॰ 'गहीड़') (ऊ एगो गहिड़ नजर रतन पर डाललका । ऊ दुनहुँ हाथ जोड़ के 'हाँ' के इंतजार में खड़ी हल ।) (मपध॰11:14:27:3.14)
47 गिरमिटिया (< ऐग्रीमेंट + 'आ' प्रत्यय) (= शर्तनामे से बँधा व्यक्ति, खास शर्त पर काम पर तैनात मजदूर; यूरोपीय जातियों द्वारा मुख्यतः उन्नीसवीं सदी में खास शर्त पर मौरिशस, बोर्नियो आदि देशों में भेजे जानेवाले भारतीय मजदूर; शर्त से बँधा) (हे बेटा ! तू सब दुनियाँ में कहैं रहऽ बकि गिरमिटिया जैसे भोजपुरी के जोगैले रखलन, जगैले रखलन, ओइसहीं तू सब भी मगही के भी जगैले रखऽ ।) (मपध॰11:14:5:1.24)
48 गुट-गुट (~ गिलना) (इनका साँइकिल निकालते देख नयकी चनकी चाची जोर से चिकरली - "देखऽ हियो, सोझिआल जा रहलहो हे । बरतनमा के मैंजतै । अयबहो तब खाली गुट-गुट गिलबहो । बरतन-बासन कर लेहो, घर बहार लेहो ।" / नयकी चनकी चाची बोलते रह गेली । ई बहिर बनके चलते रह गेला ।) (मपध॰11:14:23:1.6)
49 गेनरा (= गेंदरा) (अब ऊ कोय काम लेल अली-गली में घुमे तउ सब हड़बड़ा के अपन घर में घुस जाय, बाल-बुतरू के नुका ले, केबाड़ी लगा ले, खिड़की लगा ले । ई सब देख-देख के सोनमतिया के करेजा फटे लगे अउ घर आके अपन केबाड़ी लगा के बुतरू सन फूट-फूट के काने लगे कि ओकर लोर से गेनरा बोथ हो जाय ।) (मपध॰11:14:35:1.29)
50 गेल-गुजरल (दीदी के बात, लड़कियो गेल-गुजरल थोड़े हइ ? मोनिया नियर सुत्थर लड़की जेवार में कम्मे होतइ ।) (मपध॰11:14:17:1.7)
51 गोड़थारी (= चारपाई का पैर की तरफ पड़ने वाला छोर) (एक साल पहिले जब अपन गोड़थारी में पड़ल रहेवला (ई हम नञ् कह रहलियो हे, तोहर पोवारीवला दोसे कहऽ हथुन) के 'मगही अकादमी' में माननीय बना के भेजलहो त हमन्हीं के मन हरियाऽ गेलइ कि चलऽ जबरिया अदमी आउ ऊपर पहुँच वला अदमी 'मगही अकादमी' के अध्यक्ष बनलन हे ।) (मपध॰11:14:7:1.19)
52 गोड़लगाय (सोनमतिया अपन मामू के गोड़लगाय में मिलल पैसा से एगो सिलाइ मिसिन खरदऽ हे अउ गामवला के कपड़ा-लत्ता सीए लगऽ हे ।) (मपध॰11:14:35:1.1)
53 गोरमिन्ट (= गोवरमिन्ट; गवर्नमेंट, सरकार) (उधर गोरमिन्ट के ओर से कौलेज के अधिग्रहण पर विचार करे ला जल्दिए कमिटी गठन करे के बात अखबार के सुर्खी में आ गेल ।) (मपध॰11:14:17:3.10)
54 गोहुम (= गोधूम, गेहूँ) (कान-कान के माँजर गिरलो, छोड़ आम के डाल हो । दाना बिन रह गेलो सिसकते, गोहुम के सब बाल हो ॥) (मपध॰11:14:39:2.10)
55 घर-गिरहस्ती (= घर-गिरहस्थी) (सब्भे करमचारी आ शिक्षक के दरद एक्के किसिम के हल, से सब बैर-भाव भुला के काम पर लौट अइलन । घींच-घाँच के घर-गिरहस्ती के गाड़ी टुकदम-टुकदम पगडंडी पर चले लगल ।) (मपध॰11:14:18:2.40)
56 घर-घेरवारी (मगही के जदि अब तक बचैले रहलन हे त घर आउ घेरवारी तक सुरक्षित रहेवली हमर माय-बहिन, आरी-खंधा, खेत-कोला में पसेना टपकावेवली मजदुरिन आउ दलान से दोकान तक खटेवला कम पढ़ल-लिखल तबका के लोग-बाग । घर-घेरवारी में रहेवली त अब बूढ़-पुरनियाँ हो रहली हे । नयकी पीढ़ी त हरसट्ठे कुलाँच मार रहल हे आउ खुद के प्रूभ करे के चक्कर में फर्राटेदार हिंदी आउ अंगरेजी के अभ्यस्त हो गेल हे ।) (मपध॰11:14:28:1.3)
57 घींचना-घाँचना (घींच-घाँच के) (सब्भे करमचारी आ शिक्षक के दरद एक्के किसिम के हल, से सब बैर-भाव भुला के काम पर लौट अइलन । घींच-घाँच के घर-गिरहस्ती के गाड़ी टुकदम-टुकदम पगडंडी पर चले लगल ।) (मपध॰11:14:18:2.40)
58 घेरवारी (मगही के जदि अब तक बचैले रहलन हे त घर आउ घेरवारी तक सुरक्षित रहेवली हमर माय-बहिन, आरी-खंधा, खेत-कोला में पसेना टपकावेवली मजदुरिन आउ दलान से दोकान तक खटेवला कम पढ़ल-लिखल तबका के लोग-बाग ।) (मपध॰11:14:28:1.1)
59 घोड़नाच (घोड़नाच भी मगहीभाषी क्षेत्र के एगो सशक्त लोकविधा हे । एकरा में छो गो अदमी सरीक होवे हे । एगो अदमी घोड़ा के सवारी करे हे, दुगो तरसा या तासा बजावऽ हथ, एगो डंका या ढोल बजावऽ हथ । दुगो सिंघा बजावऽ हथ ।) (मपध॰11:14:11:1.7)
60 चकचाती ("कसियारो खेत के दिन फिरे ।" समझू साहू पान के पिरकी फेंकते बोलल ।/ आखिर दुख के चकचाती केतना दिन चले ? एक न एक दिन तो एकरा अंत होने हल ।) (मपध॰11:14:17:2.20)
61 चकल्लस (= मौज-मस्ती) (उनका गुजरते ओकर बाप एक लंबर के पियाँक निकस गेल, एकदम बेलूरा । बाप जेते कमइलका, उनकर बेटा सब धन पीए में डुबा देलका । परतूरो पड़े हे कि लछमी के ढेरो गोड़ होवे हे । सोनमतिया के बाऊ कहिया दाना-दाना के मोहताज हो गेल ओकरा खुदे पता नञ् चलल । सब चकल्लस घुस गेल ... ओकर पेट में ।) (मपध॰11:14:34:1.25)
62 चटर-पटर (बेटा जवान हल । रोज-रोज छानल-छेंउकल चटर-पटर खाना खोजो हल । कमाय-धमाय ले एकदम नञ् चाहो हल । अउ घर में फुट्टल कौड़ियो नञ् हल ।) (मपध॰11:14:21:2.1)
63 चमटोली (= चमरटोली) (अइसे तो रधिया राते में शेखर बाबू के पहचान लेलक हल पर छुटल गमछी से आउ पहचान हो गेल । मगर हिम्मत केकरा कि कुछ बोले । ई घटना से चमटोली के जवान लोग के खून खौल गेल हल ।) (मपध॰11:14:20:2.4)
64 चराय (ऊ जानवर-धूर के रोज भोरे-भोरे चरावे लगी बाध ले जा हथ । फिर साँझ बखत ओहीं से ले आवऽ हथ । परंपरा के मोताबिक पहले चराय (पशुधन चरावे के मेहताना) नञ् लेल जा हल बलुक साल में एक बार गोधन पूजा के मौका पर अपन हैसियत के मुताबिक अनाज, कपड़ा आउ नगदी दे हलन लोग ।) (मपध॰11:14:9:3.3)
65 चाँचर (सोहराय नृत्य मगहीभाषी क्षेत्र के मजगूत लोकविधा हे । सोहराय में गायन भी होवे हे आउ नृत्य भी । एकरा 'चाँचर' भी कहल जाहे ।) (मपध॰11:14:9:2.6)
66 चूड़ा-भूरा (इनकर एगारह महिन्ना के आउटपुट हो एक अंगरेजी में प्रकाशित कलेंडर आउ तीन दिन के अभ्यास वर्ग के नाम पर पोवारा पर चले वला आउ तोहर चूड़ा-भूरा पर फाँका-मस्ती से कटेवला कार्यक्रम ।) (मपध॰11:14:8:1.7)
67 चोर-उर (हमरा लग रहल हल कि हो न हो कोय बात अबस्स हे जेसे पनियो में भीड़ टस से मस नञ् हो रहल हे । मन में सोंचलूँ, हो सके हे, रतिया कोय घर में चोर-उर घुँस गेल होत आउ सेंधमारी हो गेल होत । लेकिन फिन ईहो बुझाय कि इनका हीं चोर काहे घुँसत, दु-चार सेर अनाजो तो नञ् मिलत ।) (मपध॰11:14:21:1.11)
68 छक्का-पंजावाला (ई बात कानो-कान दूर-दराज के रिस्तेदार तक चल गेल । एक दिन एगो छक्का-पंजावाला रिस्तेदार इनका हीं अयलन । हाँथ में मिठाय अउ छाती पर लटकैले मोट बड़गो-बड़गो माला ।) (मपध॰11:14:22:1.16)
69 छनाना (= छान लिया जाना) (कइसहुँ करके नीमक रोटी के बेवस्था भेल । बाकि फिन संकट मुँह बयले दूरा पर केंवाड़ी खटखटा देलक जब हाइकोर्ट कदाचारमुक्त परीक्षा के फरमान जारी कर देलक । अधिकांश छात्र इचना-पोठिया नियर छना गेल ।) (मपध॰11:14:18:3.2)
70 छानल-छेंउकल (बेटा जवान हल । रोज-रोज छानल-छेंउकल चटर-पटर खाना खोजो हल । कमाय-धमाय ले एकदम नञ् चाहो हल । अउ घर में फुट्टल कौड़ियो नञ् हल ।) (मपध॰11:14:21:2.1)
71 छानी-फान (ओही घड़ी कुछ आदमी छानी फान में मंगरू के घर में घूँसल । ऊ सब गलमोछी लगएले हल ।) (मपध॰11:14:20:1.20)
72 जमीन-जोत (ऊ जइसे-तइसे कहीं से एगो लड़का के पता लगइलक अउ शोभधाम पर ओकर हाथ धरा देलक, चकवारा के महेस ठाकुर के एकलौता बेटा सुरेस ठाकुर के हाथ में ।/ सोनमतिया के भाग एक बार फिनो चरचराल । ओइसे तो सुरेस हल एकदम निठल्ला अउ जुआड़ी बकि ओकर बाप हला रिटैर मास्टर, जमीनो-जोत अच्छे हल से लेल अफरात पइसा ओकर मरदाना के बिगाड़ देलक । एहे सब अपन लूर-बुध से सँभाले लेल ई घर में सोनमतिया के लावल गेल ।) (मपध॰11:14:34:2.12)
73 जलखै (= जलखय, जलखइ; जलपान) (चचा ढेंका चुनिअइते धड़फड़ाल निकलला - "अच्छा, राबो जी, तूँहीं हँका रहलहो हल जी । अंदर चलऽ, कुछ जलखै करऽ ।") (मपध॰11:14:22:3.21)
74 जानवर-धूर (पशुधन चरावे के काम खास तौर से यादव जात के लोग करऽ हथ । ऊ जानवर-धूर के रोज भोरे-भोरे चरावे लगी बाध ले जा हथ ।) (मपध॰11:14:9:2.23)
75 जेहल (= जेल) (शेखर बाबू बटेसरा के अपन राह के काँटा समझ रहलन हल । कुछ दिन पहिले गाँव में मडर हो गेल हल । बस ऊ मडर में बटेसरा के नाम दिया गेल । ओकरा पुलिस-दरोगा पकड़ के ले गेल । जेहल भेज देल गेल ओकरा ।) (मपध॰11:14:20:1.8)
76 जोरगर (= जोड़गर, जोड़ीदार) ("केसव बाबू के बात, लरिका के सरेख होवे में केतना दिन लगी ? पढ़ाई-लिखाई तो बादो में चल सकऽ हे बाकि लड़की, लरिका के एकदम जोरगर हे", अगुआ तर्क देवे ।) (मपध॰11:14:15:1.41)
77 जोरगर (= प्रबल, अधिक बल वाला; तेज गति या वेग का) (जब तक मगही के वजूद बचावे लऽ पुरगर कोरसिस आउ जोरगर अभियान नञ् चलावल जात, मगही के महातम घटते जात आउ घट रहल हे ।) (मपध॰11:14:29:2.9)
78 झँझुआना (केस बाबू के घरनी झँझुआय - "बतावऽ तो हम्मर फंटू के अभी उमरे का होल हे ? ई लोग के तो जइसे माथा सनक गेल हे । जरा-सा गुड़ के भनक मिलल न कि हड्डा नियर आ धमकलन ।") (मपध॰11:14:15:2.1)
79 झरङा (झरङा (छोट झाड़), परङा (आलू के केयारी आदि), धरङा (केयारी के एक धारी), वरङाही (एगो गारी), टुङ के झरँगा, परँगा, धरँगा, बरँगाही आउ टुँग, इया झरंगा, परंगा, धरंगा, बरंगाही इया टुंग नञ् लिखल जाय ।) (मपध॰11:14:31:2.3)
80 टर-टूसन (पच्चीस-छब्बीस के उमर भे गेल हे आउ आई.ए., बी.ए. करके बइठल हे । छोट बहिन टर-टूसन करके जइसे-तइसे घर के अमदनी में सहजोग कर रहल हे, बकि ई बेसरम के जरियो सरम नञ् आवइ ।) (मपध॰11:14:25:1.8)
81 टिटकोरा (~ मारना) (मगध क्षेत्र के संस्कृत के विदमान के जबान पर मगही कभी नञ् चढ़ पाल । जइसहीं ऊ मगही शब्द-भंडार में टिटकोरा मारे लगऽ हथ त मन मसुआ जाहे उनकर ।) (मपध॰11:14:28:3.27)
82 टीं (~ बोलना) (ऊहो रात चाचा भुखले सुत गेला । ऐसैं रात-दिन होते चचा के दु-चार दिन पर कहियो अधपक्कल, काँच-कूच खाना मिल जाय, ईहे बहुत हल । ... अउ अंत में एक दिन पीअरे धोती पेन्हले चचा टीं बोल गेला ।) (मपध॰11:14:23:1.42)
83 टुकदम-टुकदम (= बहुत धीमी चाल में) (सब्भे करमचारी आ शिक्षक के दरद एक्के किसिम के हल, से सब बैर-भाव भुला के काम पर लौट अइलन । घींच-घाँच के घर-गिरहस्ती के गाड़ी टुकदम-टुकदम पगडंडी पर चले लगल ।) (मपध॰11:14:18:2.40-41)
84 टुङ (झरङा (छोट झाड़), परङा (आलू के केयारी आदि), धरङा (केयारी के एक धारी), वरङाही (एगो गारी), टुङ के झरँगा, परँगा, धरँगा, बरँगाही आउ टुँग, इया झरंगा, परंगा, धरंगा, बरंगाही इया टुंग नञ् लिखल जाय ।) (मपध॰11:14:31:2.5)
85 टुन-टुनमे-टुन (ज्यादातर सामाजिक नाटक लिखलन । मगही भाषा में 'इनखर', 'बुझल दीया के मिट्टी', 'गंधारी के सराप', एगो काव्य-संकलन 'बनत-बनत बन जाए', आउर एगो उपन्यास लिखलन 'टुन-टुनमे-टुन' । राम बुझावन बाबू के 'टुन-टुनमे-टुन' एक साथ कई भाषा क्षेत्र में, विशेष कर मगह, भोजपुर, झारखंड आउ शायद मिथिला के गँवई इलाका में भी बालगीत के रूप में पसरल हे ।) (मपध॰11:14:37:2.29, 30)
86 डइनी (= डायन) (अप्पन भतार के भी बात करऽ हखो भइया, ऊ तो जनमते अपन माय-बाप के खा गेल, अपन भतार के खा गेल । ओकरा अइसहीं छोड़ देभो तो दुइए-तीन गो होलो हे, सौंसे गाम के खा जितो - ऊ डइनी ।) (मपध॰11:14:33:2.11)
87 डायन-कमाइन (आज जहाँ आदमी चान पर पहुँच गेल हे, ओहउँ ई सब डायन-कमाइन, झाड़-फूँक, ओझा-मंतर में ओझराल हे ।) (मपध॰11:14:33:3.21)
88 डेगा-डेगी (~ देना) (जब से 'मगही' में डेगा-डेगी दे रहली हे, एगो स्लोगन 'सा मागधी मूलभाषा' सुनते-सुनते कान पक गेल हे ।) (मपध॰11:14:28:1.10)
89 ढहना-ढनमनाना (गाँजा-भाँग के आदत लग गेल । बाबूजी के मरला के बाद खेत-पथार बिक गेल । घर ढह-ढनमना गेल ।) (मपध॰11:14:21:2.19)
90 ढोल-तासा (मोर-मोरनी नाच काफी लोकप्रिय विधा हे । ... ई चमार/रविदास जात के लोकविधा हे । मोर-मोरनी नाच के मौका पर ढोल-तासा बजावल जाहे ।) (मपध॰11:14:10:3.33)
91 तरसा (घोड़नाच भी मगहीभाषी क्षेत्र के एगो सशक्त लोकविधा हे । एकरा में छो गो अदमी सरीक होवे हे । एगो अदमी घोड़ा के सवारी करे हे, दुगो तरसा या तासा बजावऽ हथ, एगो डंका या ढोल बजावऽ हथ । दुगो सिंघा बजावऽ हथ ।; एक तरसा बनावे में हजार-बारह सो लगे हे । तरसा के ढक्कन लोहा के होवे हे, एकरा पर चमड़ा मेढ़ल रहे हे ।) (मपध॰11:14:11:1.10, 2.16, 17)
92 तासा (घोड़नाच भी मगहीभाषी क्षेत्र के एगो सशक्त लोकविधा हे । एकरा में छो गो अदमी सरीक होवे हे । एगो अदमी घोड़ा के सवारी करे हे, दुगो तरसा या तासा बजावऽ हथ, एगो डंका या ढोल बजावऽ हथ । दुगो सिंघा बजावऽ हथ ।) (मपध॰11:14:11:1.10)
93 तीत-मीठ (हम मन कड़ा करके तीत-मीठ के परवाह कइले बिन वर्तनी पर थोड़े सजगता बरतली ।) (मपध॰11:14:30:2.6)
94 ददिहर (= दादा का घर) (ससुरार आके सोनमतिया के आँख फटल के फटले रह जाहे । एत्ते बड़गो घर ... ई घर के दाय तो हमरो से दमगर साड़ी पेन्हऽ हे । घर की हल, ओकरा लेल महल हल । ओकरा अपन भाग पर गुमान होवे लगल ... बकि अपन ददिहर के हसर ऊ देख चुकल हल, एहे लेल ऊ ई अपन वर्तमान पर कबो नितराय तो कबो घबराय ।) (मपध॰11:14:34:2.20)
95 दम (~ दाखिल) (रात के चचा अइला । चाची दम दाखिल । जेभी टोलकी । दालमोट मिलल । फिन पुछलकी - "बिस्कुटवा नञ् हइ ?" चचा भुक्खल कुछ जवाब नञ् देलका ।) (मपध॰11:14:23:1.26)
96 दमगर (= अधिक दाम वाला, कीमती) (ससुरार आके सोनमतिया के आँख फटल के फटले रह जाहे । एत्ते बड़गो घर ... ई घर के दाय तो हमरो से दमगर साड़ी पेन्हऽ हे । घर की हल, ओकरा लेल महल हल ।) (मपध॰11:14:34:2.18)
97 दमगर (= दमखम वाला, जिसमें दम हो) (लमगोड़ा जी के 3 जनवरी 2004 के अचानक स्वर्गवास होला पर हमरा बहुत दुख बुझाइल । ... सचो अइसन रंगमंच से जुड़ल नाटककार मगही में अकेला हलन । अब तो मगही में नाटककार कई हो गेलन हे । 'लमगोड़ा' जी, लगऽ हे, 'लमढेंगा' के दोसरा रूप हलन । साढ़े छह फीट के लंबा, दमगर शरीर, बोले में निछक्का अउर चले में कुरता पैजामा पहनले तेज-तर्रार हलन ।) (मपध॰11:14:37:2.2)
98 दाय (= धाई) (ससुरार आके सोनमतिया के आँख फटल के फटले रह जाहे । एत्ते बड़गो घर ... ई घर के दाय तो हमरो से दमगर साड़ी पेन्हऽ हे । घर की हल, ओकरा लेल महल हल ।) (मपध॰11:14:34:2.18)
99 दीगर (सबनीमा गाँव के कलाकार अंबिका मिस्त्री के मुताबिक पहिले जितिया गायन के जे मंडली हल ओकरा में 50-60 अदमी रहऽ हलन । एहाँ दुसाध जात के अलावा दीगर जात के लोग भी एकरा में सरीक होवऽ हथ ।; एकरा में गाँव में बहुत-सा अदमी सरीक होके गावऽ-बजावऽ आउ नाचऽ हथ । एहाँ एगो दीगर बात ई भी हे कि नौ अदमी साड़ी पहिन के नाचऽ हथ । दू अदमी मिलके गावऽ-बजावऽ हथ ।) (मपध॰11:14:10:1.21, 2.14)
100 दुहारी (= दुआरी; द्वार, दरवाजा) (आज सौंसे गाँव के मरद-मेहरारू उनके दुहारी पर खड़ा हल । भादो के महीना हल । पानी झमाझम बरस रहल हल ।) (मपध॰11:14:21:1.2)
101 धन् (= धन्य) (धन् हल ऊ बेटी ... ई गाम के पुतहू, जे बेचारी दुनिया के सब सितम अपना पर सहल बकि दुनहूँ कुल के मरजाद जोगा के रखलक अउ तोहनी सभे ? तोहनी सभे ओकरा साथे की करते रहलऽ, की कर देलऽ ?) (मपध॰11:14:35:3.35)
102 धरङा (झरङा (छोट झाड़), परङा (आलू के केयारी आदि), धरङा (केयारी के एक धारी), वरङाही (एगो गारी), टुङ के झरँगा, परँगा, धरँगा, बरँगाही आउ टुँग, इया झरंगा, परंगा, धरंगा, बरंगाही इया टुंग नञ् लिखल जाय ।) (मपध॰11:14:31:2.4)
103 धोलइया (= धोलाई+'आ' प्रत्यय; धुलाई) (मइया गे मइया, काहे बनलें तों कसइया । कर देलें हमरा गरभे में धोलइया ॥ माय के हे पदवी, तू जग में महान । माय-बाप तो दे दे हे संतान ले जान ॥ के बनतइ बहिनियाँ, के बनतइ भइया ॥1॥) (मपध॰11:14:38:2.2)
104 ननिहार (= ननिहाल) (करीब चालीस साल पहिले लेखक सोहराय नृत्य अपन ननिहार में देखलक सुनलक हल ।) (मपध॰11:14:10:1.1)
105 ना-नुच (संस्कृत साहित्य के विदमान के ई आत्मचिंतन के जरूरत हे कि काहे तोहर भाषा लोककंठ में नञ् बस पा रहलो हे । बस, जादे ना-नुच के चलते न । देखऽ, अंगरेजी आज काहे विश्ववाणी के दरजा पा रहल हे ।) (मपध॰11:14:28:2.34)
106 नान्ह-रेआन (हमर सांस्कृतिक धरोहर लोप हो रहल हे । तइयो नान्ह-रेआन, नीच-छोट समझल जायवला जात में कुछ-कुछ लोक-संस्कृति बचल हे ।; मगहीभाषी क्षेत्र में अबहियों मौजूद ई सब लोकनृत्य में मनोरंजकता आउ मोहकता बनल हे । हालाँकि ई सब समाज के नान्ह-रेआन-नीच समझल जायवला जात में हे ।) (मपध॰11:14:9:1.9, 11:3.32)
107 निमूँहा (= बोलने में लजालु, मुँहचोर; अपनी बात स्पष्ट करने में अक्षम) (एक साल पहिले जब अपन गोड़थारी में पड़ल रहेवला (ई हम नञ् कह रहलियो हे, तोहर पोवारीवला दोसे कहऽ हथुन) के 'मगही अकादमी' में माननीय बना के भेजलहो त हमन्हीं के मन हरियाऽ गेलइ कि चलऽ जबरिया अदमी आउ ऊपर पहुँच वला अदमी 'मगही अकादमी' के अध्यक्ष बनलन हे । बकि ई, छिः, ई तो अब तक के बनावल कोय भी अध्यक्ष से भी लाचार आउ निमूँहा निकललखुन । भर जाड़ा घोषणा के बारिस करते बीत गेलो बकि अब तक स्वाती के बूँद गिर नञ् पाल ।) (मपध॰11:14:7:1.26)
108 निहुरना (सोहराय नृत्य-गायन के अप्पन अलगे तरीका हे । दुनु गोड़ में पैंजनी, कमर आउ कलाय में घुँघरू, दहिना हाथ में झाँझ आउ बायाँ हाथ कान पर रखके एकर गायन आउ नृत्य कइल जाहे । निहुर के इया नीलडाउन के हालत में होवेवला ई नृत्य आउ गायन में जब पैंजनी आउ झाँझ के अवाज के सहमेल घुँघरू से होवे हे तउ ओकर छटा निराला होवे हे ।) (मपध॰11:14:9:2.15)
109 नेटुआ (~ नाच) (नेटुआ नाच मुसहर जात के परंपरागत नाच हे । एकरा में कम से कम छो से आठ-दस अदमी सरीक होवऽ हथ । ई नाच में दू अदमी रंगीन लहँगा पहिन के नाच करऽ हथ ।) (मपध॰11:14:10:3.13)
110 नौकर-बराहिल (घर में दूध, दही, मक्खन हाँड़ी के हाँड़ी भरल रहो हल । गाय-भैंस, नौकर-बराहिल के कमी नञ् हल ।) (मपध॰11:14:21:2.11)
111 पइसगर (बाऊजी, आझ हम अपन छोट बहिन सरिता लेल एगो बड़ी सुंदर राजकुमार देखलूँ हे ... बड़ी पढ़ल-लिखल हइ, पइसगर हइ, मातबर हइ, सौभाग के बात ई हइ कि ऊ अपन सरिता के बहुत चाहऽ हइ ।) (मपध॰11:14:27:2.10)
112 पखेवा-पंछी (पंचइती के कारवाही सुरू होवेवला हे । सौंसे गाम जमा हो गेल हल चौपाल में ... बकि सभे-के-सभे चुप्प, सभे तरफ सुन-सुनहटा, एगो पखेवा-पंछी के भी खर-खर नञ् । आज के मामला बड़ पेंचाहा हल ।) (मपध॰11:14:33:1.4)
113 पम्हीं (= पम्ही, पंभी; अनाज सहित भूसे की महीन भूसी, पौंटा, भौंटा; मूँछ के प्रारंभिक मुलायम बाल, रेख) (~ रंगाना) (आउ तो आउ, हिंदी साहित्य के जीवधारी भी मोछ मुड़ा के इया पम्हीं रंगा के अंगरेजी बोकड़े लगलन । स्थिति ई हे कि हिंदी के अस्तित्व भी ई सब रंगलका सियार के चलते प्रभावित होवे लगल आउ मगही जइसन लोकभाषा त लुप्तप्राय स्थिति में पहुँचल जा रहल हे ।) (मपध॰11:14:5:1.12)
114 परङा (झरङा (छोट झाड़), परङा (आलू के केयारी आदि), धरङा (केयारी के एक धारी), वरङाही (एगो गारी), टुङ के झरँगा, परँगा, धरँगा, बरँगाही आउ टुँग, इया झरंगा, परंगा, धरंगा, बरंगाही इया टुंग नञ् लिखल जाय ।) (मपध॰11:14:31:2.3)
115 परतूर (उनका गुजरते ओकर बाप एक लंबर के पियाँक निकस गेल, एकदम बेलूरा । बाप जेते कमइलका, उनकर बेटा सब धन पीए में डुबा देलका । परतूरो पड़े हे कि लछमी के ढेरो गोड़ होवे हे । सोनमतिया के बाऊ कहिया दाना-दाना के मोहताज हो गेल ओकरा खुदे पता नञ् चलल । सब चकल्लस घुस गेल ... ओकर पेट में ।) (मपध॰11:14:34:1.21)
116 परास (एन्ने वेतन भुगतान के अइसन लकवा मारलक कि शिक्षक-करमचारी के घर में भूख से चूहा, बिछौती तक सूख के परास हो गेल ।) (मपध॰11:14:18:1.3)
117 पिछवाड़ू (ऊ घर के पिछवाड़ू पहुँच के ऊ जइसहीं दुतल्ला के खिड़की तक पहुँचल तउ ओकरा एगो कमरा में दूगो आदमी के सामने अपन छोट बहिन सरिता देखाय देलक ।) (मपध॰11:14:25:2.14)
118 पुछताहर (नयकी पीढ़ी त हरसट्ठे कुलाँच मार रहल हे आउ खुद के प्रूभ करे के चक्कर में फर्राटेदार हिंदी आउ अंगरेजी के अभ्यस्त हो गेल हे । ईहे तरह युवा पीढ़ी के लड़किन सब भी कंपीटीशन के दौर में हिंदी-अंगरेजी आउ दोसर विदेशी भाषा के रिहलसल में लगल हे । अइसन माहौल में मगही के पुछताहर बहुत कम बचलन हे ।) (मपध॰11:14:28:1.7)
119 पेंचाहा (पंचइती के कारवाही सुरू होवेवला हे । सौंसे गाम जमा हो गेल हल चौपाल में ... बकि सभे-के-सभे चुप्प, सभे तरफ सुन-सुनहटा, एगो पखेवा-पंछी के भी खर-खर नञ् । आज के मामला बड़ पेंचाहा हल ।) (मपध॰11:14:33:1.5)
120 फफीहाँ (= फिफिहा, फिफिहिया; परेशान, व्याकुल, चिंतित) (इनकर दुनहुँ हाँथ में लड्डू हल । काहे कि इधिर महेंदर जी बिआह लगी अकबकाल हला आउ उधिर बेटी के बाप तो कब्बे से फफीहाँ-फफीहाँ हलन । केकरा भिर नाक नञ् दररलन हल ।) (मपध॰11:14:22:2.5)
121 फरिआना (दे॰ फरियाना) (ई घटना से चमटोली के जवान लोग के खून खौल गेल हल । सब जवान ई जुलुम के खिलाफ सुगबुगाय लगलन हल । जुगेसरा तो अकेलहीं फरिआवे ला तइयार हल ।) (मपध॰11:14:20:2.7)
122 फाँका-मस्ती (इनकर एगारह महिन्ना के आउटपुट हो एक अंगरेजी में प्रकाशित कलेंडर आउ तीन दिन के अभ्यास वर्ग के नाम पर पोवारा पर चले वला आउ तोहर चूड़ा-भूरा पर फाँका-मस्ती से कटेवला कार्यक्रम ।) (मपध॰11:14:8:1.7)
123 फाकाकसी (= फाका, उपवास, निराहार, टापला) (बेचारा प्राध्यापक-करमचारी के घर फाकाकसी के नेऊर भुक्खे-पियासे भुइयाँ में लोटे लगल ।) (मपध॰11:14:18:1.12)
124 फारे-फार (= विस्तृत या स्पष्ट रूप से) (अब बाऊजी में भी सब बात जानइ ले ललक पैदा होवे लगल । एहे लेल ऊ रतन के बिन बिछौना के चौकी पर बइठावइत मामला के फारे-फार समझावे ले कहलका ।) (मपध॰11:14:27:3.2)
125 बकारा (= बकार) (~ न निकसना) (जब कोई इनका पोरफेसर कहके संबोधित करे त लगे, जलल पर नीमक छिड़क रहल हे । गुस्सा अइसन चढ़े कि लगे कि ओकर मुँह नोच लेथ बाकि मुँह से बकारा न निकसे ।) (मपध॰11:14:18:2.21)
126 बढ़ाना (= 'बाढ़ना' या 'बहाड़ना' का कर्मवा॰; झाड़ू से साफ किया जाना) (चनकी चाची बोले लगली - "कि खैबहो ? बरतन जुट्ठे धैल हइ । मैंज के जैतहो हल । आज घर बढ़ैबो नञ् कैले हऽ । दलमोटवा लैलहो ?") (मपध॰11:14:23:1.16)
127 बदलामी (= बदनामी) (बकि जब तक ई सिस्टम के ठीक नञ् करभो, कवि जी के ऐसहीं बदलामी के सेहरा मिलते रहतइ ।) (मपध॰11:14:8:1.17)
128 बपखौकी (सड़का पर वाला धनेसरा के खेता खरदे लेल इस्कूटर से कोट जाइत ओकर मरदाना के एगो टरक मार देलक धक्का अउ एजइ से सोनमतिया हो गेल भतरखौकी अउ एजइ से सुरु हो गेल ओकर दुरदिन । सौंसे गाम के लोग ओकरा बपखौकी अउ भतरखौकी के नाम से जाने लगल, सोनमतिया कहीं हेरा गेल ।) (मपध॰11:14:34:3.9)
129 बरबखत (आनंदपुर के आश्रम में हमन्ही के बरबखत आना-जाना होवइत रहऽ हे ।) (मपध॰11:14:36:1.18)
130 बरोहर (= बरहोर, बरोह) (आज भी इयाद हे जब बइठऽ हली छाँव में । बरगद के पेड़ भी अब रहल कहाँ गाँव में ॥ लंबा-लंबा लटकल बरोहर में झूलऽ हली । मार के पेम्हा खुशी से न फूलऽ हली ॥) (मपध॰11:14:12:1.3)
131 बहाड़ना-धोना (चनकी चाची बोले लगली - "कि खैबहो ? बरतन जुट्ठे धैल हइ । मैंज के जैतहो हल । आज घर बढ़ैबो नञ् कैले हऽ । दलमोटवा लैलहो ?" चचा करम ठोकलका अउ घर बहाड़े-धोवे में लग गेला । रात जादे हो गेल हल । खाना नञ् पकल हल । चचा ऐसैं सुत गेला ।) (मपध॰11:14:23:1.18)
132 बाउ (दे॰ बाऊ) (ई गरीबी अउ तंगेहाली से सोनमतिया के बाउ में एके बदलाव होल कि पैसा के निसा में ऊ जे नाच-गान के पंडाल से जुड़ल हल, अब ऊ निसा फटइत खुद पूजा के पंडाल घोर लगल ।) (मपध॰11:14:34:1.28)
133 बाऊ (= बापू, पिता) (उनका गुजरते ओकर बाप एक लंबर के पियाँक निकस गेल, एकदम बेलूरा । बाप जेते कमइलका, उनकर बेटा सब धन पीए में डुबा देलका । परतूरो पड़े हे कि लछमी के ढेरो गोड़ होवे हे । सोनमतिया के बाऊ कहिया दाना-दाना के मोहताज हो गेल ओकरा खुदे पता नञ् चलल । सब चकल्लस घुस गेल ... ओकर पेट में ।) (मपध॰11:14:34:1.23)
134 बाढ़ना (= झाड़ू लगाकर सफाई करना) (ई लगी घर पर अपने से खाना बना के काम पर जाना-आना सुरू कैलका । लेकिन यहाँ भी समस्या नजर आवे लगल । घर बाढ़ना, चुल्हा-चौंका करना भारी बोझ निअन लगे लगल ।) (मपध॰11:14:21:3.19)
135 बाबा (= दादा) (बाबा गेला, बाप भी चल गेला, धन-संपत्ति तो बापे साथ चल गेल । एहे लेल ई खबर सुनइत सोनमतिया के ओकर मामू ओकरा आके ले गेल, अपन घर मिठनपुरा । कुछ दिन तो ठीके बीतल बकि सोनमतिया के सनसनाल बाढ़ अब ओकर ममानी के छाती पर बोझा सन लगे लगल ।; ओकर हर हिंछा पूरा करइ ले ओकर बाबा एक गोड़ पर खड़ी अउ फिन उनकर जइते ही ओकर हालत भिखमंगनी सन । मामू घर में तो ओकर ममानी ओकरा नौकरानी बना के छोड़ देलक ।) (मपध॰11:14:34:1.40, 35:1.32)
136 बाल (= फसल या पौधों का अन्न का गुच्छा; मकई का भुट्टा) (गोहुम के ~; मकई के ~) (कान-कान के माँजर गिरलो, छोड़ आम के डाल हो । दाना बिन रह गेलो सिसकते, गोहुम के सब बाल हो ॥) (मपध॰11:14:39:2.10)
137 बिखुन (गारी से ~ करना) (अउ आज तो हद हो गेल हल, लगइ कि सौंसे गाम ओकर केबाड़ी कबाड़ देत । गारी से बिखुन कर देलक सोनमतिया के । चुल्हन मिस्त्री गरगरा रहल हल, "अगे डइनी, खोल केबड़िया, तोरा आज नञ् छोड़बउ गे, तोरा आझे नचइबउ, नञ् तो लाव हमर बेटवा के । ... आउ केकरा-केकरा चिबइम्हीं गे भतरखौकी ... खोल केबड़िया ।") (मपध॰11:14:35:2.9)
138 बिदागरी (= बिदाई) (मामू, बिदागरी बखत ममानी कहलन हल कि मरदाना घर दुलहिन के डोली जा हे अउ अरथी ही निकलऽ हे ... से हम एहाँ से जीते-जी नहिये जाम ... उनकर इयाद में सौंसे जिनगी गुजार देम ।) (मपध॰11:14:34:3.15)
139 बुतरू-बानर (इनकर कमजोरी भी सबके पता चल गेल । यहाँ तक कि गाँव के बुतरू-बानर भी इनका से मजाक करे लगलन - "चचा हो, सुनलियो चाची आवेवाली हथिन । कहिना गोड़वा रंगयबहो ।") (मपध॰11:14:22:1.11)
140 बैकवट (= बैकवर्ड, पिछड़ा) (ओकरा एक बात के संतोष हल कि मास्टर दीनानाथ से मिल के ई बैकवट गाम के कायाकलप करे लेल ऊ जे सरकार के चिट्ठी लिखलक हल ओकर जवाब एके-दू दिन में आवेवला हइ । फिन सौंसे गाम के दीदा सोनमतिया लेल बदल जात ।) (मपध॰11:14:35:2.39)
141 बोकड़ना (= बोकरना; बकना, बोलना) (आउ तो आउ, हिंदी साहित्य के जीवधारी भी मोछ मुड़ा के इया पम्हीं रंगा के अंगरेजी बोकड़े लगलन । स्थिति ई हे कि हिंदी के अस्तित्व भी ई सब रंगलका सियार के चलते प्रभावित होवे लगल आउ मगही जइसन लोकभाषा त लुप्तप्राय स्थिति में पहुँचल जा रहल हे ।) (मपध॰11:14:5:1.12)
142 बोथ (= बोत; तर, गीला) (अब ऊ कोय काम लेल अली-गली में घुमे तउ सब हड़बड़ा के अपन घर में घुस जाय, बाल-बुतरू के नुका ले, केबाड़ी लगा ले, खिड़की लगा ले । ई सब देख-देख के सोनमतिया के करेजा फटे लगे अउ घर आके अपन केबाड़ी लगा के बुतरू सन फूट-फूट के काने लगे कि ओकर लोर से गेनरा बोथ हो जाय ।) (मपध॰11:14:35:1.29)
143 बोलवइया (धीरे-धीरे मगही भाषा के बोलवइया आउ लिखवइया के संख्या में ह्रास हो रहल हे ।; अब अपनहीं सब सोंची कि मगही जे लोककंठ के भाषा हे, जेकर जादे-से-जादे बोलवइया औसत से कम पढ़ल-लिखल हथ, उनकर जबान कइसे संस्कृतनिष्ठ हो सकल हे ।) (मपध॰11:14:5:1.4, 28:3.18-19)
144 बौआ (= बउआ) (ए बौआ, उठो ने, केबाड़ी खोलो ने । जरी सा दुलहिन के मुँहमा तो देखा दा, फिन हम सब चल जैबो ।) (मपध॰11:14:21:1.16)
145 भठियारा ('भट्टा' जी के बारे में जादे बोलम त लोग भठियारा कहे लगतन, बाकि ने मालूम काहे भट्टा के लेखनी में एगो समर्थ लेखक के झलक देखाय पड़ऽ हे । उनका बारे में ई गुने नञ् बोलम कि ऊ हमर मित्र आउ पत्रिका उप-संपादक हथ, लोग कहतन कि मोटा रकम देलके होत ई गुने उछाल रहले हे ।) (मपध॰11:14:4:1.16)
146 भतरखौकी (= औरत के लिए एक गाली, भतार को खानेवाली, भतार की हत्यारी) (हाँ ऊ डायन हे ... डायन ... ऊ भतरखौकी, अपन घर में हेलते अपने भतार के खा गेलइ, एहे असना में जोगिंदर बाबू के पोतवा के खा गेलइ, जगेसर माँझी के घरवाली के ... केकरा-केकरा बतइयो, एगो के बात रहइ तो कहलो जाय ... ।; सड़का पर वाला धनेसरा के खेता खरदे लेल इस्कूटर से कोट जाइत ओकर मरदाना के एगो टरक मार देलक धक्का अउ एजइ से सोनमतिया हो गेल भतरखौकी अउ एजइ से सुरु हो गेल ओकर दुरदिन । सौंसे गाम के लोग ओकरा बपखौकी अउ भतरखौकी के नाम से जाने लगल, सोनमतिया कहीं हेरा गेल ।; चुल्हन मिस्त्री गरगरा रहल हल, "अगे डइनी, खोल केबड़िया, तोरा आज नञ् छोड़बउ गे, तोरा आझे नचइबउ, नञ् तो लाव हमर बेटवा के । ... आउ केकरा-केकरा चिबइम्हीं गे भतरखौकी ... खोल केबड़िया ।") (मपध॰11:14:33:1.26, 34:3.7, 9, 35:2.13)
147 भत्थल (= 'भथना' का भू॰कृ॰ रूप; भथा हुआ) (रात के चचा अइला । चाची दम दाखिल । जेभी टोलकी । दालमोट मिलल । फिन पुछलकी - "बिस्कुटवा नञ् हइ ?" चचा भुक्खल कुछ जवाब नञ् देलका । फिन चाची बोलली - "सुनहो काहे नञ् । बहिर हो, कान में की गेलो हे, भत्थल हो ?") (मपध॰11:14:23:1.31)
148 भरभराना (रधिया के चढ़ल जवानी, चान के लजावेवाला चेहरा देख के आ हाँथ के छुअन से शेखर बाबू के धड़कन बढ़ गेल । बोझा रधिया के माथा पर उठवो न कइल हल कि गिर परल । बोझा से भरभरा के अनाज झर गेल ।) (मपध॰11:14:19:2.3)
149 भविसवानी (= भविष्यवाणी) (लइकाइ में सरंगीवाला भरथरी ओकर हाथ देख के कहलक हल । ई लरिका बड़ा होके अफसर बनत । ऊ मुँझउसा के झोली हम चाउर से भर देली हल । ओकरो भविसवानी काम न आयल ।) (मपध॰11:14:16:2.43)
150 भेंट-घाँट (इनकर एगारह महिन्ना के आउटपुट हो एक अंगरेजी में प्रकाशित कलेंडर आउ तीन दिन के अभ्यास वर्ग के नाम पर पोवारा पर चले वला आउ तोहर चूड़ा-भूरा पर फाँका-मस्ती से कटेवला कार्यक्रम । जेकरा में हमहूँ आमंत्रित हलियो (ई गुना) । ने मालूम कउन डोर से निर्वाचित होवेवला इनकर कुछेक मेंबर से भी भेंट-घाँट होलो । ओक्कर चरचा फेर !) (मपध॰11:14:8:1.11)
151 मजगर (रोपनी खतम होवे के बाद आवे हे आसिन के महीना । एही आसिन में मनावल जाहे 'जितिया' यानी जितिया नृत्य । ई मगहीभाषी क्षेत्र के एगो मजगर नृत्य हे । नृत्य के साथ गायन-वादन होवे हे ।) (मपध॰11:14:10:1.12)
152 मडर (= मर्डर) (शेखर बाबू बटेसरा के अपन राह के काँटा समझ रहलन हल । कुछ दिन पहिले गाँव में मडर हो गेल हल । बस ऊ मडर में बटेसरा के नाम दिया गेल ।) (मपध॰11:14:20:1.6)
153 ममानी (= मामी) (बाबा गेला, बाप भी चल गेला, धन-संपत्ति तो बापे साथ चल गेल । एहे लेल ई खबर सुनइत सोनमतिया के ओकर मामू ओकरा आके ले गेल, अपन घर मिठनपुरा । कुछ दिन तो ठीके बीतल बकि सोनमतिया के सनसनाल बाढ़ अब ओकर ममानी के छाती पर बोझा सन लगे लगल ।; ओकर हर हिंछा पूरा करइ ले ओकर बाबा एक गोड़ पर खड़ी अउ फिन उनकर जइते ही ओकर हालत भिखमंगनी सन । मामू घर में तो ओकर ममानी ओकरा नौकरानी बना के छोड़ देलक ।) (मपध॰11:14:34:2.3, 35:1.35)
154 मांदर (= मानर) (दूसर इलाका में एक कलाकार नृत्य करऽ हथ आउ बाकी कलाकार गावऽ-बजावऽ हथ । लेकिन अछुआ में एक अदमी मांदर बजावऽ हथ आउ बाकी सब अदमी गायन आउ नृत्य करऽ हथ ।) (मपध॰11:14:10:2.7)
155 मातबर (= मातवर; धनी, संपन्न) (बाऊजी, आझ हम अपन छोट बहिन सरिता लेल एगो बड़ी सुंदर राजकुमार देखलूँ हे ... बड़ी पढ़ल-लिखल हइ, पइसगर हइ, मातबर हइ, सौभाग के बात ई हइ कि ऊ अपन सरिता के बहुत चाहऽ हइ ।; तब एक मास्टर दीनानाथ जी गाम के पाँच गो मातबर आदमी के लेके ओहाँ पहुँच गेला हल अउ ई तरह से मामला शांत होके पंचइती तक पहुँच गेल ।) (मपध॰11:14:27:2.10, 35:2.16)
156 मानर (जितिया में गइते-बजइते गीत के लय के साथ कलाकार एतना भावावेस में आ जा हथ कि कुछ कलाकार खड़ा हो जा हथ आउ झूम-झूम के गावे-बजावे लगऽ हथ । एकरा में हुडका, मानर, ढोल-झाल, करताल वगैरह साज बजावल जाहे ।) (मपध॰11:14:10:3.10)
157 मामू (= मामूँ; मामा) (बाबा गेला, बाप भी चल गेला, धन-संपत्ति तो बापे साथ चल गेल । एहे लेल ई खबर सुनइत सोनमतिया के ओकर मामू ओकरा आके ले गेल, अपन घर मिठनपुरा । कुछ दिन तो ठीके बीतल बकि सोनमतिया के सनसनाल बाढ़ अब ओकर ममानी के छाती पर बोझा सन लगे लगल ।) (मपध॰11:14:34:1.42)
158 मारल-फिरल (~ चलना) ("देख रहलऽ हे न, ऊ पुरान कुरता पहिनले, बाल पक्कल, बूढ़ा नियर अदमी । ई करम-खउँका कौलेज के पोरफेसर हवऽ ।" - "ओही सबन, जे एमे करके मारल-फिरल चलित हइ । एकरा से तो हमनी जहिलवन बढ़ियाँ ही । दू पइसा ठाट से कमा रहली हे ।") (मपध॰11:14:18:3.13)
159 मुँझउसा (दे॰ मुँहझौंसा) (लइकाइ में सरंगीवाला भरथरी ओकर हाथ देख के कहलक हल । ई लरिका बड़ा होके अफसर बनत । ऊ मुँझउसा के झोली हम चाउर से भर देली हल । ओकरो भविसवानी काम न आयल ।) (मपध॰11:14:16:2.42)
160 मूनना (= मूँदना, बंद करना) (कुछे देरी के बाद सब अपन आँख मून के ध्यान में लीन हो गेलन ।) (मपध॰11:14:36:1.12)
161 मैंजना (इनका साँइकिल निकालते देख नयकी चनकी चाची जोर से चिकरली - "देखऽ हियो, सोझिआल जा रहलहो हे । बरतनमा के मैंजतै । अयबहो तब खाली गुट-गुट गिलबहो । बरतन-बासन कर लेहो, घर बहार लेहो ।" / नयकी चनकी चाची बोलते रह गेली । ई बहिर बनके चलते रह गेला ।; चनकी चाची बोले लगली - "कि खैबहो ? बरतन जुट्ठे धैल हइ । मैंज के जैतहो हल । आज घर बढ़ैबो नञ् कैले हऽ । दलमोटवा लैलहो ?") (मपध॰11:14:23:1.5, 16)
162 मोर-मोरनी (~ नाच) (मोर-मोरनी नाच काफी लोकप्रिय विधा हे । ... ई चमार/रविदास जात के लोकविधा हे । मोर-मोरनी नाच के मौका पर ढोल-तासा बजावल जाहे ।) (मपध॰11:14:10:3.26, 33)
163 रविदास (= चमार) (आम तौर पर झूम-झूम के नाचे-गावे के 'झूमर' कहल जाहे । रेआन-अछूत समझल जायवला मुसहर आउ रविदास जात के लोग ई कला के माहिर हथ ।) (मपध॰11:14:11:2.26)
164 रहनाय (= रहनय, रहनइ, रहनई; रहना) (बस ई समझऽ जइसे लड़की जब तक बाप घर रहऽ हे त बाप के मरजी से रहऽ हे बकि जब ओकर रहनाय पति के पास होवऽ हे त पति जाने कि ऊ अप्पन औरत के कैसे रखत कि ऊ औगल लगत ।) (मपध॰11:14:28:2.27)
165 रिहलसल (= रेहलसल; रिहर्सल, अभ्यास, रियाज) (नयकी पीढ़ी त हरसट्ठे कुलाँच मार रहल हे आउ खुद के प्रूभ करे के चक्कर में फर्राटेदार हिंदी आउ अंगरेजी के अभ्यस्त हो गेल हे । ईहे तरह युवा पीढ़ी के लड़किन सब भी कंपीटीशन के दौर में हिंदी-अंगरेजी आउ दोसर विदेशी भाषा के रिहलसल में लगल हे ।) (मपध॰11:14:28:1.6)
166 रेआन-अछूत (आम तौर पर झूम-झूम के नाचे-गावे के 'झूमर' कहल जाहे । रेआन-अछूत समझल जायवला मुसहर आउ रविदास जात के लोग ई कला के माहिर हथ ।) (मपध॰11:14:11:2.25)
167 रोपनी (सावन-भादो के महीना में होवे हे रोपनी । रोपनी खतम होवे के बाद आवे हे आसिन के महीना । एही आसिन में मनावल जाहे 'जितिया' यानी जितिया नृत्य ।) (मपध॰11:14:10:1.8, 9)
168 रोसियाना (= रुष्ट होना; गुस्सा करना, क्रुद्ध होना) ('छिह, लखेरा नियन करवऽ ! तनिको सरम न लगऽ हवऽ ! ससुरार में का हहूँ !" रोसियाएल बोलल रधिया आउ एन्ने-ओन्ने निहारे लगल ।) (मपध॰11:14:19:2.9)
169 लंबर (= नंबर) (उनका गुजरते ओकर बाप एक लंबर के पियाँक निकस गेल, एकदम बेलूरा । बाप जेते कमइलका, उनकर बेटा सब धन पीए में डुबा देलका ।) (मपध॰11:14:34:1.18)
170 लखेरा (= लखैरा; निठल्ला, घुमक्कड़) ('छिह, लखेरा नियन करवऽ ! तनिको सरम न लगऽ हवऽ ! ससुरार में का हहूँ !" रोसियाएल बोलल रधिया आउ एन्ने-ओन्ने निहारे लगल ।) (मपध॰11:14:19:2.7)
171 लबना (= लमना) (एगो कहावत हइ - 'लबना भर धान में नीच नितराय' । इनकर दिमाग अब कुछ चढ़े लगल ।) (मपध॰11:14:21:3.23)
172 लमढेंगा (= लमछड़, लम्बा) (लमगोड़ा जी के 3 जनवरी 2004 के अचानक स्वर्गवास होला पर हमरा बहुत दुख बुझाइल । ... सचो अइसन रंगमंच से जुड़ल नाटककार मगही में अकेला हलन । अब तो मगही में नाटककार कई हो गेलन हे । 'लमगोड़ा' जी, लगऽ हे, 'लमढेंगा' के दोसरा रूप हलन । साढ़े छह फीट के लंबा, दमगर शरीर, बोले में निछक्का अउर चले में कुरता पैजामा पहनले तेज-तर्रार हलन ।) (मपध॰11:14:37:2.1)
173 लसाँधी (मगही के तीस साल से अकादमी बनल हे बकि ओकर स्थिति कभियो नालंदा के खंडहर से बेस नञ् हो सकल । ... सड़ल सिस्टम में जे जोगाड़ी बाबू इया सुधी-विदमान एकर अध्यक्ष बनलन, भ्रष्टाचार आउ कमचोट्टा के लसाँधी लेके हीयाँ से बाहर निकललन ।) (मपध॰11:14:29:2.19)
174 लिखवइया (धीरे-धीरे मगही भाषा के बोलवइया आउ लिखवइया के संख्या में ह्रास हो रहल हे ।) (मपध॰11:14:5:1.4)
175 लूर-बुध (सोनमतिया यानी सोनमति ... सोना जइसन मति, लूर-बुध ।) (मपध॰11:14:34:1.12)
176 लोरिटा (लमगोड़ा जी के 3 जनवरी 2004 के अचानक स्वर्गवास होला पर हमरा बहुत दुख बुझाइल । ... अपन प्रकाशन के नाम लोरिटा यानी लोटा-डोरी-सोंटा रखले हलन । उनकर जनम 16 अक्टूबर 1926 के जहानाबाद (गया) से सटल गंगापुर गाँव में होल हल ।) (मपध॰11:14:37:2.5)
177 वजूद (अइसन माहौल में मगही के पुछताहर बहुत कम बचलन हे । ऊपर बतावल लोग-लोगिन के बस अंगुरी पर गीनल दु-तीन तरह के तबका हे जहाँ मगही अप्पन वजूद बचैले हे ।) (मपध॰11:14:28:1.8)
178 वरङाही (झरङा (छोट झाड़), परङा (आलू के केयारी आदि), धरङा (केयारी के एक धारी), वरङाही (एगो गारी), टुङ के झरँगा, परँगा, धरँगा, बरँगाही आउ टुँग, इया झरंगा, परंगा, धरंगा, बरंगाही इया टुंग नञ् लिखल जाय ।) (मपध॰11:14:31:2.5)
179 सकसकाना (= हिचकिचाना) (पहिले भोजपुरी, फिर मैथिली ई तरफ कदम बढ़ैलक हल बकि मगही थोड़े सकसकाल हल । पिछलका कुछ बरिस में अरविंद आजाँस, मृत्युंजय शर्मा, सुनील कुमार, धनंजय श्रोत्रिय ऑडियो के क्षेत्र में काम शुरू कइलन ।) (मपध॰11:14:53:2.2)
180 सले-बले (= चुपचाप; धीमी आवाज या चाल में) (महेंदर जी बोललन - "आउ कि भइया, कोय खाना बनवेवाली मिल जात हल त हमर सब दुख दूर हो जात हल ।"/ सले-बले दुनहुँ एक दोसरा के कान में सट के बात-विचार कैलका ।) (मपध॰11:14:22:3.4)
181 साँझे-भोरे (बाऊजी के रिटैरमेन्ट के बाद रतन के घर में रहना आउ मोहाल हो गेल हल । साँझे-भोरे माय-बाप के ताना ओकर दिल-दिमाग के छलनी करइ लगल हल ।) (मपध॰11:14:25:1.3)
182 सुथरई (= सुन्दरता) (दू मजूर पहिलहीं बोझा उठा के चल देलक हल । अब बच गेल हल एगो रधिया, मगर ओकरा बोझा उठावऽ हे कउन ? रधिया के सुथरई आ जवानी शेखर बाबू के आँख में बसल हल । रधिया शेखर बाबू से बोलल - "जरी बोझवा उठा देथिन ।" शेखर बाबू तो अइसने मोका के तलाश में हइए हलन ।) (मपध॰11:14:19:1.7)
183 सुन-सुनहटा (पंचइती के कारवाही सुरू होवेवला हे । सौंसे गाम जमा हो गेल हल चौपाल में ... बकि सभे-के-सभे चुप्प, सभे तरफ सुन-सुनहटा, एगो पखेवा-पंछी के भी खर-खर नञ् । आज के मामला बड़ पेंचाहा हल ।) (मपध॰11:14:33:1.3-4)
184 सूटर-बुनाई (अपन निठल्ला, जुआड़ी अउ नसेड़ी मरदाना के सम्हारे के कोरसिस कइलूँ अउ भतरखौकी के नाम पइलूँ, जगेसर माँझी के माउग के सिलाई-कढ़ाई, सूटर-बुनाई सिखइलूँ अउ डाइन कहइलूँ ।) (मपध॰11:14:35:2.28)
185 सेंदुर (ई बात कानो-कान दूर-दराज के रिस्तेदार तक चल गेल । एक दिन एगो छक्का-पंजावाला रिस्तेदार इनका हीं अयलन । हाँथ में मिठाय अउ छाती पर लटकैले मोट बड़गो-बड़गो माला । लिलार पर सेंदुर के टह-टह टीका ।) (मपध॰11:14:22:1.19)
186 सोझिआना (इनका साँइकिल निकालते देख नयकी चनकी चाची जोर से चिकरली - "देखऽ हियो, सोझिआल जा रहलहो हे । बरतनमा के मैंजतै । अयबहो तब खाली गुट-गुट गिलबहो । बरतन-बासन कर लेहो, घर बहार लेहो ।" / नयकी चनकी चाची बोलते रह गेली । ई बहिर बनके चलते रह गेला ।) (मपध॰11:14:23:1.4)
187 सौभाग (= सौभाग्य) (बाऊजी, आझ हम अपन छोट बहिन सरिता लेल एगो बड़ी सुंदर राजकुमार देखलूँ हे ... बड़ी पढ़ल-लिखल हइ, पइसगर हइ, मातबर हइ, सौभाग के बात ई हइ कि ऊ अपन सरिता के बहुत चाहऽ हइ ।) (मपध॰11:14:27:2.11)
188 हँसुआ (= हँसिया) (रधिया उनकर हरकत देख के बगल में रखल हँसुआ उठा लेलक । शेखर बाबू रधिया के काली अइसन रूप देख के दबले पाँव लौट गेलन ।) (मपध॰11:14:19:3.13)
189 हसर (= हश्र) (ससुरार आके सोनमतिया के आँख फटल के फटले रह जाहे । एत्ते बड़गो घर ... ई घर के दाय तो हमरो से दमगर साड़ी पेन्हऽ हे । घर की हल, ओकरा लेल महल हल । ओकरा अपन भाग पर गुमान होवे लगल ... बकि अपन ददिहर के हसर ऊ देख चुकल हल, एहे लेल ऊ ई अपन वर्तमान पर कबो नितराय तो कबो घबराय ।) (मपध॰11:14:34:2.21)
190 हिकारत (मगहीभाषी क्षेत्र में अबहियों मौजूद ई सब लोकनृत्य में मनोरंजकता आउ मोहकता बनल हे । हालाँकि ई सब समाज के नान्ह-रेआन-नीच समझल जायवला जात में हे । ... शहरी बुद्धिजीवी आउ मध्यवर्ग के लोग इनखा हिकारत के नजर से देखऽ हथ ।) (मपध॰11:14:11:3.36)
191 हिटलरी (~ फरमान जारी करना) (यहाँ हमरा ई कहना हे कि हम कोय हिटलरी फरमान नञ् जारी कर रहली हे, मगही के वर्तनी के मानकीकरण ले ।) (मपध॰11:14:30:2.10)
192 हुडका (जितिया में गइते-बजइते गीत के लय के साथ कलाकार एतना भावावेस में आ जा हथ कि कुछ कलाकार खड़ा हो जा हथ आउ झूम-झूम के गावे-बजावे लगऽ हथ । एकरा में हुडका, मानर, ढोल-झाल, करताल वगैरह साज बजावल जाहे ।) (मपध॰11:14:10:3.9)
2 अछताना-पछताना (एन्ने उमर हल कि दिन गिने लगल । अछता-पछता के ऊ एगो स्थानीय कौलेज में जोगदान कर लेलक ।) (मपध॰11:14:16:3.8)
3 अठ-नो (~ सो = आठ-नौ सौ) (एगो घोड़ा बनावे में हजारो रुपइया लगे हे । एगो डंका मिले में अठ-नो सो रुपइया लगे हे । एक तरसा बनावे में हजार-बारह सो लगे हे । तरसा के ढक्कन लोहा के होवे हे, एकरा पर चमड़ा मेढ़ल रहे हे ।) (मपध॰11:14:11:2.15)
4 अधपक्कल (ऊहो रात चाचा भुखले सुत गेला । ऐसैं रात-दिन होते चचा के दु-चार दिन पर कहियो अधपक्कल, काँच-कूच खाना मिल जाय, ईहे बहुत हल । ... अउ अंत में एक दिन पीअरे धोती पेन्हले चचा टीं बोल गेला ।) (मपध॰11:14:23:1.39)
5 अफरात (ओइसे तो सुरेस हल एकदम निठल्ला अउ जुआड़ी बकि ओकर बाप हला रिटैर मास्टर, जमीनो-जोत अच्छे हल से लेल अफरात पइसा ओकर मरदाना के बिगाड़ देलक । एहे सब अपन लूर-बुध से सँभाले लेल ई घर में सोनमतिया के लावल गेल ।) (मपध॰11:14:34:2.12)
6 अबस्स (= अवश्य) (भीड़ देख के हम भी ओजै रूक गेलूँ । हमरा लग रहल हल कि हो न हो कोय बात अबस्स हे जेसे पनियो में भीड़ टस से मस नञ् हो रहल हे ।) (मपध॰11:14:21:1.8)
7 अरिआते (= पीछे-पीछे ही, साथ-साथ ही, लगले) (रधिया खाए बान्हले कटनी खेत जाए के तइयारी कर रहल हल आउ लोग कटनी करे खेत में चल गेलन हल । घर में अकेले हल ऊ । अरिआते के बहाने से शेखर बाबू रधिया के घर तक पहुँच गेलन ।) (मपध॰11:14:19:3.5)
8 अली-गली (अब ऊ कोय काम लेल अली-गली में घुमे तउ सब हड़बड़ा के अपन घर में घुस जाय, बाल-बुतरू के नुका ले, केबाड़ी लगा ले, खिड़की लगा ले ।) (मपध॰11:14:35:1.23)
9 आरी-खंधा (मगही के जदि अब तक बचैले रहलन हे त घर आउ घेरवारी तक सुरक्षित रहेवली हमर माय-बहिन, आरी-खंधा, खेत-कोला में पसेना टपकावेवली मजदुरिन आउ दलान से दोकान तक खटेवला कम पढ़ल-लिखल तबका के लोग-बाग ।) (मपध॰11:14:28:1.2)
10 आसिन (= आश्विन; असना < आसिन+'आ' प्रत्यय) (हाँ ऊ डायन हे ... डायन ... ऊ भतरखौकी, अपन घर में हेलते अपने भतार के खा गेलइ, एहे असना में जोगिंदर बाबू के पोतवा के खा गेलइ, जगेसर माँझी के घरवाली के ... केकरा-केकरा बतइयो, एगो के बात रहइ तो कहलो जाय ... ।) (मपध॰11:14:33:1.27)
11 इचना-पोठिया (कइसहुँ करके नीमक रोटी के बेवस्था भेल । बाकि फिन संकट मुँह बयले दूरा पर केंवाड़ी खटखटा देलक जब हाइकोर्ट कदाचारमुक्त परीक्षा के फरमान जारी कर देलक । अधिकांश छात्र इचना-पोठिया नियर छना गेल ।) (मपध॰11:14:18:3.1)
12 इधिर (= इधर) (इनकर दुनहुँ हाँथ में लड्डू हल । काहे कि इधिर महेंदर जी बिआह लगी अकबकाल हला आउ उधिर बेटी के बाप तो कब्बे से फफीहाँ-फफीहाँ हलन । केकरा भिर नाक नञ् दररलन हल ।; महेंदर चा कमाय लगी बजार गेला हल । इधिर इनकर रिस्तेदार इनकर घर आके बैठ गेला ।) (मपध॰11:14:22:2.4, 10)
13 उधिर (= उधर) (इनकर दुनहुँ हाँथ में लड्डू हल । काहे कि इधिर महेंदर जी बिआह लगी अकबकाल हला आउ उधिर बेटी के बाप तो कब्बे से फफीहाँ-फफीहाँ हलन । केकरा भिर नाक नञ् दररलन हल ।) (मपध॰11:14:22:2.5)
14 उपचाप (~ करना) (प्राइवेट कौलेज के लीला भी अपरंपार हे । दस्तखत जादे पर होवे बाकि अध्यापक के मिले कम्मे । तीन सौ से पान सौ रुपइया लेके संतोस करऽ । सेकरेटरी के जउन न दबदबा रहे । उपचाप कइलऽ न कि बरखास्तगी के तलवार गरदन पर सवार ।) (मपध॰11:14:17:1.24)
15 उलार (~ मारना) (हिरदा में हिंच्छा पालले ही कि अपने के मगही के फिल्म के बारे में भी जानकारी दूँ बाकि अँगुरी पर मगही फिल्म में गिनती करे लगऽ ही त 'मोरे मन मितवा' आउ 'भइया' के साथे दोसरके अँगुरी पर गिनती रुक जाहे । मगही माय के ममता उलार मारत त साइद साल-दु-साल में ई गिनती बढ़त, अइसन आशा करऽ ही ।) (मपध॰11:14:4:1.28)
16 उलार (गाड़ी ~ होना) (जिनगी के गाड़ी के आगे बढ़े ला आसा के बनल रहना जरूरी हे वरना कब गाड़ी उलार हो जायत कहना मुस्किल हे ।) (मपध॰11:14:16:3.23)
17 एकपैरिया (ऊ रस्ता से अइते-जइते देख के अपने कुछ लोग चले लगतन आउ एकपैरिया के रस्ता लग जात । कम से कम 'मगही पत्रिका' के तो वर्तनी रहत ई । देखल जात फेर ।) (मपध॰11:14:30:3.9)
18 एकरंगा (घोड़ा के माथा आउ गरदन कूट के यानी जमावदार काफी मोटा कागज के बनल होवे हे । ओकरा घोड़ा के सकल सूरत देके चटकदार रंग से रंगल जाहे । ओकर कान एकदम खड़ी रहे हे । देखे में जानदार लगे हे, एकदम चमकदार आँख लगाल कसल ओकर धड़ बाँस के कराँची के बनल होवे हे । ओकर धड़ पर लाल एकरंगा ओढ़ावल रहे हे ।) (मपध॰11:14:11:1.19)
19 एमे (= एम.ए.)("अब का करे के विचार हइ ?" - "अब तो एक्के रस्ता बचलइ । बीए एमे करे के ।" - "काहे, बी.एड. करके मास्टरो तो हो सकऽ हे अदमी ।"; "का तो पोरफेसरवन के बड़ी पइसा मिले लगलइ ।" ठाकुर पुछलक ।/ "भाई एस्केलवा तो हइये हलइ, खाली भुगतान कम्मे होवऽ हलइ।" उत्तर देलक ।/ "अरे ई सब के दरिदरा भाग गेलइ हो ।"/ "बी.ए., एमे भी तो कइले हलइ ।") (मपध॰11:14:16:1.36, 17:3.6)
20 ओका (बुतरू केकरा नञ् प्यारा लगऽ हे ... भगमान हमरा नञ् देलका तउ की हम दोसरो बुतरू के नञ् दुलार सकऽ ही ... अउ एक दिन ओकरा गोदी उठा लेलूँ ... तउ भगमान के नञ् सोहाइल अउ ओका दुनिया से उठा लेलका ।) (मपध॰11:14:35:2.34)
21 ओजे (= ओज्जे; उसी जगह पर, वहीं) (ओकर गोड़ ऊ सत्संग दने बढ़ गेलइ जे ओकर महल्ला में हो रहल हल । अब ऊहो बैठके भक्ति में लीन हो गेलइ ।) (मपध॰11:14:36:1.4)
22 ओझराल (= उलझा हुआ) (आज जहाँ आदमी चान पर पहुँच गेल हे, ओहउँ ई सब डायन-कमाइन, झाड़-फूँक, ओझा-मंतर में ओझराल हे ।) (मपध॰11:14:33:3.22)
23 ओहाँ (= हुआँ; वहाँ) (ई पाँचो लुक-छिप के ओहाँ भीड़ में घुस गेल ।; ओहाँ जौर भीड़ एक-दोसर के मुँह देखे लगे हे ।) (मपध॰11:14:35:3.15, 28)
24 ककहरा (राबो जी बोलला - नञ्, हम देरी नञ् करबो । गहँकी घुरतै तब मालिक गोसैथिन । टैम पर दोकान खोलना हइ, बहाड़ना हइ । पैसा अइसहीं नञ् मिलो हइ । चुपचाप साथे चलहो । ककहरो में हइ, पहिले 'क' तब 'ख' । महेंदर जी सकदम हो गेला ।) (मपध॰11:14:22:3.25)
25 कमचोट्टा (मगही के तीस साल से अकादमी बनल हे बकि ओकर स्थिति कभियो नालंदा के खंडहर से बेस नञ् हो सकल । ... सड़ल सिस्टम में जे जोगाड़ी बाबू इया सुधी-विदमान एकर अध्यक्ष बनलन, भ्रष्टाचार आउ कमचोट्टा के लसाँधी लेके हीयाँ से बाहर निकललन ।) (मपध॰11:14:29:2.19)
26 करम-खउँका ("देख रहलऽ हे न, ऊ पुरान कुरता पहिनले, बाल पक्कल, बूढ़ा नियर अदमी । ई करम-खउँका कौलेज के पोरफेसर हवऽ ।" - "ओही सबन, जे एमे करके मारल-फिरल चलित हइ । एकरा से तो हमनी जहिलवन बढ़ियाँ ही । दू पइसा ठाट से कमा रहली हे ।") (मपध॰11:14:18:3.11-12)
27 कराँची (घोड़ा के माथा आउ गरदन कूट के यानी जमावदार काफी मोटा कागज के बनल होवे हे । ओकरा घोड़ा के सकल सूरत देके चटकदार रंग से रंगल जाहे । ओकर कान एकदम खड़ी रहे हे । देखे में जानदार लगे हे, एकदम चमकदार आँख लगाल कसल ओकर धड़ बाँस के कराँची के बनल होवे हे । ओकर धड़ पर लाल एकरंगा ओढ़ावल रहे हे ।) (मपध॰11:14:11:1.18)
28 कलमबंद (~ करना = लिखित रूप देना) (ई परंपरागत कला के नयका पीढ़ी सीखे ले नञ् चाहऽ हथ । संरक्षण प्रोत्साहन के कमी से एकर लोप हो रहल हे । जरूरत हे एकरा तुरंत कलमबंद करे के आउ संरक्षण करे के आउ संरक्षण-संवर्धन के ।) (मपध॰11:14:11:3.40)
29 कलाय (= कलाई) (सोहराय नृत्य-गायन के अप्पन अलगे तरीका हे । दुनु गोड़ में पैंजनी, कमर आउ कलाय में घुँघरू, दहिना हाथ में झाँझ आउ बायाँ हाथ कान पर रखके एकर गायन आउ नृत्य कइल जाहे ।) (मपध॰11:14:9:2.13)
30 कसियार (= कुश आदि घास के उपजने का स्थान; गैर उपजाऊ जमीन जिसमें कुश, कासी, सरकंडा आदि घास होती है) ("कसियारो खेत के दिन फिरे ।" समझू साहू पान के पिरकी फेंकते बोलल ।/ आखिर दुख के चकचाती केतना दिन चले ? एक न एक दिन तो एकरा अंत होने हल ।) (मपध॰11:14:17:2.18)
31 काँच-कूच (ऊहो रात चाचा भुखले सुत गेला । ऐसैं रात-दिन होते चचा के दु-चार दिन पर कहियो अधपक्कल, काँच-कूच खाना मिल जाय, ईहे बहुत हल । ... अउ अंत में एक दिन पीअरे धोती पेन्हले चचा टीं बोल गेला ।) (मपध॰11:14:23:1.39)
32 काट-खोंट ('मगही पत्रिका' के नवांक 1 (मार्च-अप्रैल 2011) अपने के बेस लगल, सुनके जी जुड़ा गेल । प्रो. बी.बी. शर्मा जी के लेख बड़ भाय नरेन जी से मिलल हल, नरेन भाय से रचना मिलला के बाद ओकरा में काट-खोंट करना मोनासिब नञ् बुझऽ ही ।) (मपध॰11:14:4:1.3)
33 कारवाही (पंचइती के कारवाही सुरू होवेवला हे । सौंसे गाम जमा हो गेल हल चौपाल में ... बकि सभे-के-सभे चुप्प, सभे तरफ सुन-सुनहटा, एगो पखेवा-पंछी के भी खर-खर नञ् । आज के मामला बड़ पेंचाहा हल ।) (मपध॰11:14:33:1.1)
34 कुदारी (खेत में ~ पारना) (एमे. पीएच.डी. करे से तो अच्छा हलउ कि खेत में कुदारी पारतें हल ।) (मपध॰11:14:18:3.38)
35 कूट (घोड़नाच भी मगहीभाषी क्षेत्र के एगो सशक्त लोकविधा हे । ... घोड़ा के माथा आउ गरदन कूट के यानी जमावदार काफी मोटा कागज के बनल होवे हे ।) (मपध॰11:14:11:1.13)
36 कोली (कोलिया दने से दू-तीन गो जन्नी जा रहल हल । मन कइलक सोनमतिया के कि जगेसरावली के बारे में पूछल जाय बकि फिनो अपन नाम के चरचा सुन के चुप रह गेल । ऊ सभे बतिअयते जा रहल हल कि सुरेसवावली डायन हे, अइसन बान मरलकै कि जगेसरावली के साँप बन के डँस लेलकै ।) (मपध॰11:14:35:1.9)
37 खंती (सोनमतिया के ई असरा ओकर मने में रह गेल, काहे कि तब तक पंचइती के फैसला के बाद लगभग सौंसे गाम लाठी, खंती, कुदार ले के ओकर घर के लेलव अउ ओकर भीतर के केबाड़ी तोड़ के सब सोनमतिया के ... राम नाम सत् ।) (मपध॰11:14:35:3.6)
38 खरदना (= खरीदना) (सड़का पर वाला धनेसरा के खेता खरदे लेल इस्कूटर से कोट जाइत ओकर मरदाना के एगो टरक मार देलक धक्का अउ एजइ से सोनमतिया हो गेल भतरखौकी अउ एजइ से सुरु हो गेल ओकर दुरदिन ।; सोनमतिया अपन मामू के गोड़लगाय में मिलल पैसा से एगो सिलाइ मिसिन खरदऽ हे अउ गामवला के कपड़ा-लत्ता सीए लगऽ हे ।) (मपध॰11:14:34:3.4, 35:1.2)
39 खामोखाही (शुरू में जब ई मगही में अपन एलबम बनइलन त भोजपुरिया लाबी इनका पर हावी हो गेल आउ खामोखाही उनकर एलबम में एक-दू गो भोजपुरी गीत भी घुसेड़ दे हल ।) (मपध॰11:14:53:3.16)
40 खींचना-खाँचना (बिहने चमटोली के लहास पर गिध अइसन पुलिस उतरल । खींच-खाँच के लहास निकालल जा रहल हल जेकरा में रधिया के लहास भी आग से जरल निकलल ।) (मपध॰11:14:20:3.13)
41 खेत-कोला (मगही के जदि अब तक बचैले रहलन हे त घर आउ घेरवारी तक सुरक्षित रहेवली हमर माय-बहिन, आरी-खंधा, खेत-कोला में पसेना टपकावेवली मजदुरिन आउ दलान से दोकान तक खटेवला कम पढ़ल-लिखल तबका के लोग-बाग ।) (मपध॰11:14:28:1.2)
42 खोसफैली (अब जे भी हित परेमी इनका से मिलथ, सबके आगू अपन खोसफैली बेआन करे में नञ् चुकथ । सबसे कहथ, "अब हमरा कोय चीज के कमी नञ् हे । भगवान सब कुछ देलका हे । खाली रसोइए बनावेवाली कोय नञ् हे । उहे से डिप्टी जाय में ढिलाय हो जाहे ।") (मपध॰11:14:22:1.1)
43 गरगद्दह (= गरगद्दा; शोर, हल्ला) (रवि बाबू (डॉ. रविशंकर शर्मा) के 'थेथर बाप' त गरगद्दह मचा देलक । हमर जयनंदन भइया जइसन कवि तो उनकर 'थेथर बाप' से प्रभावित होके घनाक्षरी छंद में हमरा अपन सद्यः लिखल कविता भी सुना देलन ।) (मपध॰11:14:4:1.14)
44 गरगराना (= चिल्लाना) (अउ आज तो हद हो गेल हल, लगइ कि सौंसे गाम ओकर केबाड़ी कबाड़ देत । गारी से बिखुन कर देलक सोनमतिया के । चुल्हन मिस्त्री गरगरा रहल हल, "अगे डइनी, खोल केबड़िया, तोरा आज नञ् छोड़बउ गे, तोरा आझे नचइबउ, नञ् तो लाव हमर बेटवा के । ... आउ केकरा-केकरा चिबइम्हीं गे भतरखौकी ... खोल केबड़िया ।") (मपध॰11:14:35:2.10)
45 गलमोछी (ओही घड़ी कुछ आदमी छानी फान में मंगरू के घर में घूँसल । ऊ सब गलमोछी लगएले हल ।) (मपध॰11:14:20:1.21)
46 गहिड़ (= गभीर; गहरा; दे॰ 'गहीड़') (ऊ एगो गहिड़ नजर रतन पर डाललका । ऊ दुनहुँ हाथ जोड़ के 'हाँ' के इंतजार में खड़ी हल ।) (मपध॰11:14:27:3.14)
47 गिरमिटिया (< ऐग्रीमेंट + 'आ' प्रत्यय) (= शर्तनामे से बँधा व्यक्ति, खास शर्त पर काम पर तैनात मजदूर; यूरोपीय जातियों द्वारा मुख्यतः उन्नीसवीं सदी में खास शर्त पर मौरिशस, बोर्नियो आदि देशों में भेजे जानेवाले भारतीय मजदूर; शर्त से बँधा) (हे बेटा ! तू सब दुनियाँ में कहैं रहऽ बकि गिरमिटिया जैसे भोजपुरी के जोगैले रखलन, जगैले रखलन, ओइसहीं तू सब भी मगही के भी जगैले रखऽ ।) (मपध॰11:14:5:1.24)
48 गुट-गुट (~ गिलना) (इनका साँइकिल निकालते देख नयकी चनकी चाची जोर से चिकरली - "देखऽ हियो, सोझिआल जा रहलहो हे । बरतनमा के मैंजतै । अयबहो तब खाली गुट-गुट गिलबहो । बरतन-बासन कर लेहो, घर बहार लेहो ।" / नयकी चनकी चाची बोलते रह गेली । ई बहिर बनके चलते रह गेला ।) (मपध॰11:14:23:1.6)
49 गेनरा (= गेंदरा) (अब ऊ कोय काम लेल अली-गली में घुमे तउ सब हड़बड़ा के अपन घर में घुस जाय, बाल-बुतरू के नुका ले, केबाड़ी लगा ले, खिड़की लगा ले । ई सब देख-देख के सोनमतिया के करेजा फटे लगे अउ घर आके अपन केबाड़ी लगा के बुतरू सन फूट-फूट के काने लगे कि ओकर लोर से गेनरा बोथ हो जाय ।) (मपध॰11:14:35:1.29)
50 गेल-गुजरल (दीदी के बात, लड़कियो गेल-गुजरल थोड़े हइ ? मोनिया नियर सुत्थर लड़की जेवार में कम्मे होतइ ।) (मपध॰11:14:17:1.7)
51 गोड़थारी (= चारपाई का पैर की तरफ पड़ने वाला छोर) (एक साल पहिले जब अपन गोड़थारी में पड़ल रहेवला (ई हम नञ् कह रहलियो हे, तोहर पोवारीवला दोसे कहऽ हथुन) के 'मगही अकादमी' में माननीय बना के भेजलहो त हमन्हीं के मन हरियाऽ गेलइ कि चलऽ जबरिया अदमी आउ ऊपर पहुँच वला अदमी 'मगही अकादमी' के अध्यक्ष बनलन हे ।) (मपध॰11:14:7:1.19)
52 गोड़लगाय (सोनमतिया अपन मामू के गोड़लगाय में मिलल पैसा से एगो सिलाइ मिसिन खरदऽ हे अउ गामवला के कपड़ा-लत्ता सीए लगऽ हे ।) (मपध॰11:14:35:1.1)
53 गोरमिन्ट (= गोवरमिन्ट; गवर्नमेंट, सरकार) (उधर गोरमिन्ट के ओर से कौलेज के अधिग्रहण पर विचार करे ला जल्दिए कमिटी गठन करे के बात अखबार के सुर्खी में आ गेल ।) (मपध॰11:14:17:3.10)
54 गोहुम (= गोधूम, गेहूँ) (कान-कान के माँजर गिरलो, छोड़ आम के डाल हो । दाना बिन रह गेलो सिसकते, गोहुम के सब बाल हो ॥) (मपध॰11:14:39:2.10)
55 घर-गिरहस्ती (= घर-गिरहस्थी) (सब्भे करमचारी आ शिक्षक के दरद एक्के किसिम के हल, से सब बैर-भाव भुला के काम पर लौट अइलन । घींच-घाँच के घर-गिरहस्ती के गाड़ी टुकदम-टुकदम पगडंडी पर चले लगल ।) (मपध॰11:14:18:2.40)
56 घर-घेरवारी (मगही के जदि अब तक बचैले रहलन हे त घर आउ घेरवारी तक सुरक्षित रहेवली हमर माय-बहिन, आरी-खंधा, खेत-कोला में पसेना टपकावेवली मजदुरिन आउ दलान से दोकान तक खटेवला कम पढ़ल-लिखल तबका के लोग-बाग । घर-घेरवारी में रहेवली त अब बूढ़-पुरनियाँ हो रहली हे । नयकी पीढ़ी त हरसट्ठे कुलाँच मार रहल हे आउ खुद के प्रूभ करे के चक्कर में फर्राटेदार हिंदी आउ अंगरेजी के अभ्यस्त हो गेल हे ।) (मपध॰11:14:28:1.3)
57 घींचना-घाँचना (घींच-घाँच के) (सब्भे करमचारी आ शिक्षक के दरद एक्के किसिम के हल, से सब बैर-भाव भुला के काम पर लौट अइलन । घींच-घाँच के घर-गिरहस्ती के गाड़ी टुकदम-टुकदम पगडंडी पर चले लगल ।) (मपध॰11:14:18:2.40)
58 घेरवारी (मगही के जदि अब तक बचैले रहलन हे त घर आउ घेरवारी तक सुरक्षित रहेवली हमर माय-बहिन, आरी-खंधा, खेत-कोला में पसेना टपकावेवली मजदुरिन आउ दलान से दोकान तक खटेवला कम पढ़ल-लिखल तबका के लोग-बाग ।) (मपध॰11:14:28:1.1)
59 घोड़नाच (घोड़नाच भी मगहीभाषी क्षेत्र के एगो सशक्त लोकविधा हे । एकरा में छो गो अदमी सरीक होवे हे । एगो अदमी घोड़ा के सवारी करे हे, दुगो तरसा या तासा बजावऽ हथ, एगो डंका या ढोल बजावऽ हथ । दुगो सिंघा बजावऽ हथ ।) (मपध॰11:14:11:1.7)
60 चकचाती ("कसियारो खेत के दिन फिरे ।" समझू साहू पान के पिरकी फेंकते बोलल ।/ आखिर दुख के चकचाती केतना दिन चले ? एक न एक दिन तो एकरा अंत होने हल ।) (मपध॰11:14:17:2.20)
61 चकल्लस (= मौज-मस्ती) (उनका गुजरते ओकर बाप एक लंबर के पियाँक निकस गेल, एकदम बेलूरा । बाप जेते कमइलका, उनकर बेटा सब धन पीए में डुबा देलका । परतूरो पड़े हे कि लछमी के ढेरो गोड़ होवे हे । सोनमतिया के बाऊ कहिया दाना-दाना के मोहताज हो गेल ओकरा खुदे पता नञ् चलल । सब चकल्लस घुस गेल ... ओकर पेट में ।) (मपध॰11:14:34:1.25)
62 चटर-पटर (बेटा जवान हल । रोज-रोज छानल-छेंउकल चटर-पटर खाना खोजो हल । कमाय-धमाय ले एकदम नञ् चाहो हल । अउ घर में फुट्टल कौड़ियो नञ् हल ।) (मपध॰11:14:21:2.1)
63 चमटोली (= चमरटोली) (अइसे तो रधिया राते में शेखर बाबू के पहचान लेलक हल पर छुटल गमछी से आउ पहचान हो गेल । मगर हिम्मत केकरा कि कुछ बोले । ई घटना से चमटोली के जवान लोग के खून खौल गेल हल ।) (मपध॰11:14:20:2.4)
64 चराय (ऊ जानवर-धूर के रोज भोरे-भोरे चरावे लगी बाध ले जा हथ । फिर साँझ बखत ओहीं से ले आवऽ हथ । परंपरा के मोताबिक पहले चराय (पशुधन चरावे के मेहताना) नञ् लेल जा हल बलुक साल में एक बार गोधन पूजा के मौका पर अपन हैसियत के मुताबिक अनाज, कपड़ा आउ नगदी दे हलन लोग ।) (मपध॰11:14:9:3.3)
65 चाँचर (सोहराय नृत्य मगहीभाषी क्षेत्र के मजगूत लोकविधा हे । सोहराय में गायन भी होवे हे आउ नृत्य भी । एकरा 'चाँचर' भी कहल जाहे ।) (मपध॰11:14:9:2.6)
66 चूड़ा-भूरा (इनकर एगारह महिन्ना के आउटपुट हो एक अंगरेजी में प्रकाशित कलेंडर आउ तीन दिन के अभ्यास वर्ग के नाम पर पोवारा पर चले वला आउ तोहर चूड़ा-भूरा पर फाँका-मस्ती से कटेवला कार्यक्रम ।) (मपध॰11:14:8:1.7)
67 चोर-उर (हमरा लग रहल हल कि हो न हो कोय बात अबस्स हे जेसे पनियो में भीड़ टस से मस नञ् हो रहल हे । मन में सोंचलूँ, हो सके हे, रतिया कोय घर में चोर-उर घुँस गेल होत आउ सेंधमारी हो गेल होत । लेकिन फिन ईहो बुझाय कि इनका हीं चोर काहे घुँसत, दु-चार सेर अनाजो तो नञ् मिलत ।) (मपध॰11:14:21:1.11)
68 छक्का-पंजावाला (ई बात कानो-कान दूर-दराज के रिस्तेदार तक चल गेल । एक दिन एगो छक्का-पंजावाला रिस्तेदार इनका हीं अयलन । हाँथ में मिठाय अउ छाती पर लटकैले मोट बड़गो-बड़गो माला ।) (मपध॰11:14:22:1.16)
69 छनाना (= छान लिया जाना) (कइसहुँ करके नीमक रोटी के बेवस्था भेल । बाकि फिन संकट मुँह बयले दूरा पर केंवाड़ी खटखटा देलक जब हाइकोर्ट कदाचारमुक्त परीक्षा के फरमान जारी कर देलक । अधिकांश छात्र इचना-पोठिया नियर छना गेल ।) (मपध॰11:14:18:3.2)
70 छानल-छेंउकल (बेटा जवान हल । रोज-रोज छानल-छेंउकल चटर-पटर खाना खोजो हल । कमाय-धमाय ले एकदम नञ् चाहो हल । अउ घर में फुट्टल कौड़ियो नञ् हल ।) (मपध॰11:14:21:2.1)
71 छानी-फान (ओही घड़ी कुछ आदमी छानी फान में मंगरू के घर में घूँसल । ऊ सब गलमोछी लगएले हल ।) (मपध॰11:14:20:1.20)
72 जमीन-जोत (ऊ जइसे-तइसे कहीं से एगो लड़का के पता लगइलक अउ शोभधाम पर ओकर हाथ धरा देलक, चकवारा के महेस ठाकुर के एकलौता बेटा सुरेस ठाकुर के हाथ में ।/ सोनमतिया के भाग एक बार फिनो चरचराल । ओइसे तो सुरेस हल एकदम निठल्ला अउ जुआड़ी बकि ओकर बाप हला रिटैर मास्टर, जमीनो-जोत अच्छे हल से लेल अफरात पइसा ओकर मरदाना के बिगाड़ देलक । एहे सब अपन लूर-बुध से सँभाले लेल ई घर में सोनमतिया के लावल गेल ।) (मपध॰11:14:34:2.12)
73 जलखै (= जलखय, जलखइ; जलपान) (चचा ढेंका चुनिअइते धड़फड़ाल निकलला - "अच्छा, राबो जी, तूँहीं हँका रहलहो हल जी । अंदर चलऽ, कुछ जलखै करऽ ।") (मपध॰11:14:22:3.21)
74 जानवर-धूर (पशुधन चरावे के काम खास तौर से यादव जात के लोग करऽ हथ । ऊ जानवर-धूर के रोज भोरे-भोरे चरावे लगी बाध ले जा हथ ।) (मपध॰11:14:9:2.23)
75 जेहल (= जेल) (शेखर बाबू बटेसरा के अपन राह के काँटा समझ रहलन हल । कुछ दिन पहिले गाँव में मडर हो गेल हल । बस ऊ मडर में बटेसरा के नाम दिया गेल । ओकरा पुलिस-दरोगा पकड़ के ले गेल । जेहल भेज देल गेल ओकरा ।) (मपध॰11:14:20:1.8)
76 जोरगर (= जोड़गर, जोड़ीदार) ("केसव बाबू के बात, लरिका के सरेख होवे में केतना दिन लगी ? पढ़ाई-लिखाई तो बादो में चल सकऽ हे बाकि लड़की, लरिका के एकदम जोरगर हे", अगुआ तर्क देवे ।) (मपध॰11:14:15:1.41)
77 जोरगर (= प्रबल, अधिक बल वाला; तेज गति या वेग का) (जब तक मगही के वजूद बचावे लऽ पुरगर कोरसिस आउ जोरगर अभियान नञ् चलावल जात, मगही के महातम घटते जात आउ घट रहल हे ।) (मपध॰11:14:29:2.9)
78 झँझुआना (केस बाबू के घरनी झँझुआय - "बतावऽ तो हम्मर फंटू के अभी उमरे का होल हे ? ई लोग के तो जइसे माथा सनक गेल हे । जरा-सा गुड़ के भनक मिलल न कि हड्डा नियर आ धमकलन ।") (मपध॰11:14:15:2.1)
79 झरङा (झरङा (छोट झाड़), परङा (आलू के केयारी आदि), धरङा (केयारी के एक धारी), वरङाही (एगो गारी), टुङ के झरँगा, परँगा, धरँगा, बरँगाही आउ टुँग, इया झरंगा, परंगा, धरंगा, बरंगाही इया टुंग नञ् लिखल जाय ।) (मपध॰11:14:31:2.3)
80 टर-टूसन (पच्चीस-छब्बीस के उमर भे गेल हे आउ आई.ए., बी.ए. करके बइठल हे । छोट बहिन टर-टूसन करके जइसे-तइसे घर के अमदनी में सहजोग कर रहल हे, बकि ई बेसरम के जरियो सरम नञ् आवइ ।) (मपध॰11:14:25:1.8)
81 टिटकोरा (~ मारना) (मगध क्षेत्र के संस्कृत के विदमान के जबान पर मगही कभी नञ् चढ़ पाल । जइसहीं ऊ मगही शब्द-भंडार में टिटकोरा मारे लगऽ हथ त मन मसुआ जाहे उनकर ।) (मपध॰11:14:28:3.27)
82 टीं (~ बोलना) (ऊहो रात चाचा भुखले सुत गेला । ऐसैं रात-दिन होते चचा के दु-चार दिन पर कहियो अधपक्कल, काँच-कूच खाना मिल जाय, ईहे बहुत हल । ... अउ अंत में एक दिन पीअरे धोती पेन्हले चचा टीं बोल गेला ।) (मपध॰11:14:23:1.42)
83 टुकदम-टुकदम (= बहुत धीमी चाल में) (सब्भे करमचारी आ शिक्षक के दरद एक्के किसिम के हल, से सब बैर-भाव भुला के काम पर लौट अइलन । घींच-घाँच के घर-गिरहस्ती के गाड़ी टुकदम-टुकदम पगडंडी पर चले लगल ।) (मपध॰11:14:18:2.40-41)
84 टुङ (झरङा (छोट झाड़), परङा (आलू के केयारी आदि), धरङा (केयारी के एक धारी), वरङाही (एगो गारी), टुङ के झरँगा, परँगा, धरँगा, बरँगाही आउ टुँग, इया झरंगा, परंगा, धरंगा, बरंगाही इया टुंग नञ् लिखल जाय ।) (मपध॰11:14:31:2.5)
85 टुन-टुनमे-टुन (ज्यादातर सामाजिक नाटक लिखलन । मगही भाषा में 'इनखर', 'बुझल दीया के मिट्टी', 'गंधारी के सराप', एगो काव्य-संकलन 'बनत-बनत बन जाए', आउर एगो उपन्यास लिखलन 'टुन-टुनमे-टुन' । राम बुझावन बाबू के 'टुन-टुनमे-टुन' एक साथ कई भाषा क्षेत्र में, विशेष कर मगह, भोजपुर, झारखंड आउ शायद मिथिला के गँवई इलाका में भी बालगीत के रूप में पसरल हे ।) (मपध॰11:14:37:2.29, 30)
86 डइनी (= डायन) (अप्पन भतार के भी बात करऽ हखो भइया, ऊ तो जनमते अपन माय-बाप के खा गेल, अपन भतार के खा गेल । ओकरा अइसहीं छोड़ देभो तो दुइए-तीन गो होलो हे, सौंसे गाम के खा जितो - ऊ डइनी ।) (मपध॰11:14:33:2.11)
87 डायन-कमाइन (आज जहाँ आदमी चान पर पहुँच गेल हे, ओहउँ ई सब डायन-कमाइन, झाड़-फूँक, ओझा-मंतर में ओझराल हे ।) (मपध॰11:14:33:3.21)
88 डेगा-डेगी (~ देना) (जब से 'मगही' में डेगा-डेगी दे रहली हे, एगो स्लोगन 'सा मागधी मूलभाषा' सुनते-सुनते कान पक गेल हे ।) (मपध॰11:14:28:1.10)
89 ढहना-ढनमनाना (गाँजा-भाँग के आदत लग गेल । बाबूजी के मरला के बाद खेत-पथार बिक गेल । घर ढह-ढनमना गेल ।) (मपध॰11:14:21:2.19)
90 ढोल-तासा (मोर-मोरनी नाच काफी लोकप्रिय विधा हे । ... ई चमार/रविदास जात के लोकविधा हे । मोर-मोरनी नाच के मौका पर ढोल-तासा बजावल जाहे ।) (मपध॰11:14:10:3.33)
91 तरसा (घोड़नाच भी मगहीभाषी क्षेत्र के एगो सशक्त लोकविधा हे । एकरा में छो गो अदमी सरीक होवे हे । एगो अदमी घोड़ा के सवारी करे हे, दुगो तरसा या तासा बजावऽ हथ, एगो डंका या ढोल बजावऽ हथ । दुगो सिंघा बजावऽ हथ ।; एक तरसा बनावे में हजार-बारह सो लगे हे । तरसा के ढक्कन लोहा के होवे हे, एकरा पर चमड़ा मेढ़ल रहे हे ।) (मपध॰11:14:11:1.10, 2.16, 17)
92 तासा (घोड़नाच भी मगहीभाषी क्षेत्र के एगो सशक्त लोकविधा हे । एकरा में छो गो अदमी सरीक होवे हे । एगो अदमी घोड़ा के सवारी करे हे, दुगो तरसा या तासा बजावऽ हथ, एगो डंका या ढोल बजावऽ हथ । दुगो सिंघा बजावऽ हथ ।) (मपध॰11:14:11:1.10)
93 तीत-मीठ (हम मन कड़ा करके तीत-मीठ के परवाह कइले बिन वर्तनी पर थोड़े सजगता बरतली ।) (मपध॰11:14:30:2.6)
94 ददिहर (= दादा का घर) (ससुरार आके सोनमतिया के आँख फटल के फटले रह जाहे । एत्ते बड़गो घर ... ई घर के दाय तो हमरो से दमगर साड़ी पेन्हऽ हे । घर की हल, ओकरा लेल महल हल । ओकरा अपन भाग पर गुमान होवे लगल ... बकि अपन ददिहर के हसर ऊ देख चुकल हल, एहे लेल ऊ ई अपन वर्तमान पर कबो नितराय तो कबो घबराय ।) (मपध॰11:14:34:2.20)
95 दम (~ दाखिल) (रात के चचा अइला । चाची दम दाखिल । जेभी टोलकी । दालमोट मिलल । फिन पुछलकी - "बिस्कुटवा नञ् हइ ?" चचा भुक्खल कुछ जवाब नञ् देलका ।) (मपध॰11:14:23:1.26)
96 दमगर (= अधिक दाम वाला, कीमती) (ससुरार आके सोनमतिया के आँख फटल के फटले रह जाहे । एत्ते बड़गो घर ... ई घर के दाय तो हमरो से दमगर साड़ी पेन्हऽ हे । घर की हल, ओकरा लेल महल हल ।) (मपध॰11:14:34:2.18)
97 दमगर (= दमखम वाला, जिसमें दम हो) (लमगोड़ा जी के 3 जनवरी 2004 के अचानक स्वर्गवास होला पर हमरा बहुत दुख बुझाइल । ... सचो अइसन रंगमंच से जुड़ल नाटककार मगही में अकेला हलन । अब तो मगही में नाटककार कई हो गेलन हे । 'लमगोड़ा' जी, लगऽ हे, 'लमढेंगा' के दोसरा रूप हलन । साढ़े छह फीट के लंबा, दमगर शरीर, बोले में निछक्का अउर चले में कुरता पैजामा पहनले तेज-तर्रार हलन ।) (मपध॰11:14:37:2.2)
98 दाय (= धाई) (ससुरार आके सोनमतिया के आँख फटल के फटले रह जाहे । एत्ते बड़गो घर ... ई घर के दाय तो हमरो से दमगर साड़ी पेन्हऽ हे । घर की हल, ओकरा लेल महल हल ।) (मपध॰11:14:34:2.18)
99 दीगर (सबनीमा गाँव के कलाकार अंबिका मिस्त्री के मुताबिक पहिले जितिया गायन के जे मंडली हल ओकरा में 50-60 अदमी रहऽ हलन । एहाँ दुसाध जात के अलावा दीगर जात के लोग भी एकरा में सरीक होवऽ हथ ।; एकरा में गाँव में बहुत-सा अदमी सरीक होके गावऽ-बजावऽ आउ नाचऽ हथ । एहाँ एगो दीगर बात ई भी हे कि नौ अदमी साड़ी पहिन के नाचऽ हथ । दू अदमी मिलके गावऽ-बजावऽ हथ ।) (मपध॰11:14:10:1.21, 2.14)
100 दुहारी (= दुआरी; द्वार, दरवाजा) (आज सौंसे गाँव के मरद-मेहरारू उनके दुहारी पर खड़ा हल । भादो के महीना हल । पानी झमाझम बरस रहल हल ।) (मपध॰11:14:21:1.2)
101 धन् (= धन्य) (धन् हल ऊ बेटी ... ई गाम के पुतहू, जे बेचारी दुनिया के सब सितम अपना पर सहल बकि दुनहूँ कुल के मरजाद जोगा के रखलक अउ तोहनी सभे ? तोहनी सभे ओकरा साथे की करते रहलऽ, की कर देलऽ ?) (मपध॰11:14:35:3.35)
102 धरङा (झरङा (छोट झाड़), परङा (आलू के केयारी आदि), धरङा (केयारी के एक धारी), वरङाही (एगो गारी), टुङ के झरँगा, परँगा, धरँगा, बरँगाही आउ टुँग, इया झरंगा, परंगा, धरंगा, बरंगाही इया टुंग नञ् लिखल जाय ।) (मपध॰11:14:31:2.4)
103 धोलइया (= धोलाई+'आ' प्रत्यय; धुलाई) (मइया गे मइया, काहे बनलें तों कसइया । कर देलें हमरा गरभे में धोलइया ॥ माय के हे पदवी, तू जग में महान । माय-बाप तो दे दे हे संतान ले जान ॥ के बनतइ बहिनियाँ, के बनतइ भइया ॥1॥) (मपध॰11:14:38:2.2)
104 ननिहार (= ननिहाल) (करीब चालीस साल पहिले लेखक सोहराय नृत्य अपन ननिहार में देखलक सुनलक हल ।) (मपध॰11:14:10:1.1)
105 ना-नुच (संस्कृत साहित्य के विदमान के ई आत्मचिंतन के जरूरत हे कि काहे तोहर भाषा लोककंठ में नञ् बस पा रहलो हे । बस, जादे ना-नुच के चलते न । देखऽ, अंगरेजी आज काहे विश्ववाणी के दरजा पा रहल हे ।) (मपध॰11:14:28:2.34)
106 नान्ह-रेआन (हमर सांस्कृतिक धरोहर लोप हो रहल हे । तइयो नान्ह-रेआन, नीच-छोट समझल जायवला जात में कुछ-कुछ लोक-संस्कृति बचल हे ।; मगहीभाषी क्षेत्र में अबहियों मौजूद ई सब लोकनृत्य में मनोरंजकता आउ मोहकता बनल हे । हालाँकि ई सब समाज के नान्ह-रेआन-नीच समझल जायवला जात में हे ।) (मपध॰11:14:9:1.9, 11:3.32)
107 निमूँहा (= बोलने में लजालु, मुँहचोर; अपनी बात स्पष्ट करने में अक्षम) (एक साल पहिले जब अपन गोड़थारी में पड़ल रहेवला (ई हम नञ् कह रहलियो हे, तोहर पोवारीवला दोसे कहऽ हथुन) के 'मगही अकादमी' में माननीय बना के भेजलहो त हमन्हीं के मन हरियाऽ गेलइ कि चलऽ जबरिया अदमी आउ ऊपर पहुँच वला अदमी 'मगही अकादमी' के अध्यक्ष बनलन हे । बकि ई, छिः, ई तो अब तक के बनावल कोय भी अध्यक्ष से भी लाचार आउ निमूँहा निकललखुन । भर जाड़ा घोषणा के बारिस करते बीत गेलो बकि अब तक स्वाती के बूँद गिर नञ् पाल ।) (मपध॰11:14:7:1.26)
108 निहुरना (सोहराय नृत्य-गायन के अप्पन अलगे तरीका हे । दुनु गोड़ में पैंजनी, कमर आउ कलाय में घुँघरू, दहिना हाथ में झाँझ आउ बायाँ हाथ कान पर रखके एकर गायन आउ नृत्य कइल जाहे । निहुर के इया नीलडाउन के हालत में होवेवला ई नृत्य आउ गायन में जब पैंजनी आउ झाँझ के अवाज के सहमेल घुँघरू से होवे हे तउ ओकर छटा निराला होवे हे ।) (मपध॰11:14:9:2.15)
109 नेटुआ (~ नाच) (नेटुआ नाच मुसहर जात के परंपरागत नाच हे । एकरा में कम से कम छो से आठ-दस अदमी सरीक होवऽ हथ । ई नाच में दू अदमी रंगीन लहँगा पहिन के नाच करऽ हथ ।) (मपध॰11:14:10:3.13)
110 नौकर-बराहिल (घर में दूध, दही, मक्खन हाँड़ी के हाँड़ी भरल रहो हल । गाय-भैंस, नौकर-बराहिल के कमी नञ् हल ।) (मपध॰11:14:21:2.11)
111 पइसगर (बाऊजी, आझ हम अपन छोट बहिन सरिता लेल एगो बड़ी सुंदर राजकुमार देखलूँ हे ... बड़ी पढ़ल-लिखल हइ, पइसगर हइ, मातबर हइ, सौभाग के बात ई हइ कि ऊ अपन सरिता के बहुत चाहऽ हइ ।) (मपध॰11:14:27:2.10)
112 पखेवा-पंछी (पंचइती के कारवाही सुरू होवेवला हे । सौंसे गाम जमा हो गेल हल चौपाल में ... बकि सभे-के-सभे चुप्प, सभे तरफ सुन-सुनहटा, एगो पखेवा-पंछी के भी खर-खर नञ् । आज के मामला बड़ पेंचाहा हल ।) (मपध॰11:14:33:1.4)
113 पम्हीं (= पम्ही, पंभी; अनाज सहित भूसे की महीन भूसी, पौंटा, भौंटा; मूँछ के प्रारंभिक मुलायम बाल, रेख) (~ रंगाना) (आउ तो आउ, हिंदी साहित्य के जीवधारी भी मोछ मुड़ा के इया पम्हीं रंगा के अंगरेजी बोकड़े लगलन । स्थिति ई हे कि हिंदी के अस्तित्व भी ई सब रंगलका सियार के चलते प्रभावित होवे लगल आउ मगही जइसन लोकभाषा त लुप्तप्राय स्थिति में पहुँचल जा रहल हे ।) (मपध॰11:14:5:1.12)
114 परङा (झरङा (छोट झाड़), परङा (आलू के केयारी आदि), धरङा (केयारी के एक धारी), वरङाही (एगो गारी), टुङ के झरँगा, परँगा, धरँगा, बरँगाही आउ टुँग, इया झरंगा, परंगा, धरंगा, बरंगाही इया टुंग नञ् लिखल जाय ।) (मपध॰11:14:31:2.3)
115 परतूर (उनका गुजरते ओकर बाप एक लंबर के पियाँक निकस गेल, एकदम बेलूरा । बाप जेते कमइलका, उनकर बेटा सब धन पीए में डुबा देलका । परतूरो पड़े हे कि लछमी के ढेरो गोड़ होवे हे । सोनमतिया के बाऊ कहिया दाना-दाना के मोहताज हो गेल ओकरा खुदे पता नञ् चलल । सब चकल्लस घुस गेल ... ओकर पेट में ।) (मपध॰11:14:34:1.21)
116 परास (एन्ने वेतन भुगतान के अइसन लकवा मारलक कि शिक्षक-करमचारी के घर में भूख से चूहा, बिछौती तक सूख के परास हो गेल ।) (मपध॰11:14:18:1.3)
117 पिछवाड़ू (ऊ घर के पिछवाड़ू पहुँच के ऊ जइसहीं दुतल्ला के खिड़की तक पहुँचल तउ ओकरा एगो कमरा में दूगो आदमी के सामने अपन छोट बहिन सरिता देखाय देलक ।) (मपध॰11:14:25:2.14)
118 पुछताहर (नयकी पीढ़ी त हरसट्ठे कुलाँच मार रहल हे आउ खुद के प्रूभ करे के चक्कर में फर्राटेदार हिंदी आउ अंगरेजी के अभ्यस्त हो गेल हे । ईहे तरह युवा पीढ़ी के लड़किन सब भी कंपीटीशन के दौर में हिंदी-अंगरेजी आउ दोसर विदेशी भाषा के रिहलसल में लगल हे । अइसन माहौल में मगही के पुछताहर बहुत कम बचलन हे ।) (मपध॰11:14:28:1.7)
119 पेंचाहा (पंचइती के कारवाही सुरू होवेवला हे । सौंसे गाम जमा हो गेल हल चौपाल में ... बकि सभे-के-सभे चुप्प, सभे तरफ सुन-सुनहटा, एगो पखेवा-पंछी के भी खर-खर नञ् । आज के मामला बड़ पेंचाहा हल ।) (मपध॰11:14:33:1.5)
120 फफीहाँ (= फिफिहा, फिफिहिया; परेशान, व्याकुल, चिंतित) (इनकर दुनहुँ हाँथ में लड्डू हल । काहे कि इधिर महेंदर जी बिआह लगी अकबकाल हला आउ उधिर बेटी के बाप तो कब्बे से फफीहाँ-फफीहाँ हलन । केकरा भिर नाक नञ् दररलन हल ।) (मपध॰11:14:22:2.5)
121 फरिआना (दे॰ फरियाना) (ई घटना से चमटोली के जवान लोग के खून खौल गेल हल । सब जवान ई जुलुम के खिलाफ सुगबुगाय लगलन हल । जुगेसरा तो अकेलहीं फरिआवे ला तइयार हल ।) (मपध॰11:14:20:2.7)
122 फाँका-मस्ती (इनकर एगारह महिन्ना के आउटपुट हो एक अंगरेजी में प्रकाशित कलेंडर आउ तीन दिन के अभ्यास वर्ग के नाम पर पोवारा पर चले वला आउ तोहर चूड़ा-भूरा पर फाँका-मस्ती से कटेवला कार्यक्रम ।) (मपध॰11:14:8:1.7)
123 फाकाकसी (= फाका, उपवास, निराहार, टापला) (बेचारा प्राध्यापक-करमचारी के घर फाकाकसी के नेऊर भुक्खे-पियासे भुइयाँ में लोटे लगल ।) (मपध॰11:14:18:1.12)
124 फारे-फार (= विस्तृत या स्पष्ट रूप से) (अब बाऊजी में भी सब बात जानइ ले ललक पैदा होवे लगल । एहे लेल ऊ रतन के बिन बिछौना के चौकी पर बइठावइत मामला के फारे-फार समझावे ले कहलका ।) (मपध॰11:14:27:3.2)
125 बकारा (= बकार) (~ न निकसना) (जब कोई इनका पोरफेसर कहके संबोधित करे त लगे, जलल पर नीमक छिड़क रहल हे । गुस्सा अइसन चढ़े कि लगे कि ओकर मुँह नोच लेथ बाकि मुँह से बकारा न निकसे ।) (मपध॰11:14:18:2.21)
126 बढ़ाना (= 'बाढ़ना' या 'बहाड़ना' का कर्मवा॰; झाड़ू से साफ किया जाना) (चनकी चाची बोले लगली - "कि खैबहो ? बरतन जुट्ठे धैल हइ । मैंज के जैतहो हल । आज घर बढ़ैबो नञ् कैले हऽ । दलमोटवा लैलहो ?") (मपध॰11:14:23:1.16)
127 बदलामी (= बदनामी) (बकि जब तक ई सिस्टम के ठीक नञ् करभो, कवि जी के ऐसहीं बदलामी के सेहरा मिलते रहतइ ।) (मपध॰11:14:8:1.17)
128 बपखौकी (सड़का पर वाला धनेसरा के खेता खरदे लेल इस्कूटर से कोट जाइत ओकर मरदाना के एगो टरक मार देलक धक्का अउ एजइ से सोनमतिया हो गेल भतरखौकी अउ एजइ से सुरु हो गेल ओकर दुरदिन । सौंसे गाम के लोग ओकरा बपखौकी अउ भतरखौकी के नाम से जाने लगल, सोनमतिया कहीं हेरा गेल ।) (मपध॰11:14:34:3.9)
129 बरबखत (आनंदपुर के आश्रम में हमन्ही के बरबखत आना-जाना होवइत रहऽ हे ।) (मपध॰11:14:36:1.18)
130 बरोहर (= बरहोर, बरोह) (आज भी इयाद हे जब बइठऽ हली छाँव में । बरगद के पेड़ भी अब रहल कहाँ गाँव में ॥ लंबा-लंबा लटकल बरोहर में झूलऽ हली । मार के पेम्हा खुशी से न फूलऽ हली ॥) (मपध॰11:14:12:1.3)
131 बहाड़ना-धोना (चनकी चाची बोले लगली - "कि खैबहो ? बरतन जुट्ठे धैल हइ । मैंज के जैतहो हल । आज घर बढ़ैबो नञ् कैले हऽ । दलमोटवा लैलहो ?" चचा करम ठोकलका अउ घर बहाड़े-धोवे में लग गेला । रात जादे हो गेल हल । खाना नञ् पकल हल । चचा ऐसैं सुत गेला ।) (मपध॰11:14:23:1.18)
132 बाउ (दे॰ बाऊ) (ई गरीबी अउ तंगेहाली से सोनमतिया के बाउ में एके बदलाव होल कि पैसा के निसा में ऊ जे नाच-गान के पंडाल से जुड़ल हल, अब ऊ निसा फटइत खुद पूजा के पंडाल घोर लगल ।) (मपध॰11:14:34:1.28)
133 बाऊ (= बापू, पिता) (उनका गुजरते ओकर बाप एक लंबर के पियाँक निकस गेल, एकदम बेलूरा । बाप जेते कमइलका, उनकर बेटा सब धन पीए में डुबा देलका । परतूरो पड़े हे कि लछमी के ढेरो गोड़ होवे हे । सोनमतिया के बाऊ कहिया दाना-दाना के मोहताज हो गेल ओकरा खुदे पता नञ् चलल । सब चकल्लस घुस गेल ... ओकर पेट में ।) (मपध॰11:14:34:1.23)
134 बाढ़ना (= झाड़ू लगाकर सफाई करना) (ई लगी घर पर अपने से खाना बना के काम पर जाना-आना सुरू कैलका । लेकिन यहाँ भी समस्या नजर आवे लगल । घर बाढ़ना, चुल्हा-चौंका करना भारी बोझ निअन लगे लगल ।) (मपध॰11:14:21:3.19)
135 बाबा (= दादा) (बाबा गेला, बाप भी चल गेला, धन-संपत्ति तो बापे साथ चल गेल । एहे लेल ई खबर सुनइत सोनमतिया के ओकर मामू ओकरा आके ले गेल, अपन घर मिठनपुरा । कुछ दिन तो ठीके बीतल बकि सोनमतिया के सनसनाल बाढ़ अब ओकर ममानी के छाती पर बोझा सन लगे लगल ।; ओकर हर हिंछा पूरा करइ ले ओकर बाबा एक गोड़ पर खड़ी अउ फिन उनकर जइते ही ओकर हालत भिखमंगनी सन । मामू घर में तो ओकर ममानी ओकरा नौकरानी बना के छोड़ देलक ।) (मपध॰11:14:34:1.40, 35:1.32)
136 बाल (= फसल या पौधों का अन्न का गुच्छा; मकई का भुट्टा) (गोहुम के ~; मकई के ~) (कान-कान के माँजर गिरलो, छोड़ आम के डाल हो । दाना बिन रह गेलो सिसकते, गोहुम के सब बाल हो ॥) (मपध॰11:14:39:2.10)
137 बिखुन (गारी से ~ करना) (अउ आज तो हद हो गेल हल, लगइ कि सौंसे गाम ओकर केबाड़ी कबाड़ देत । गारी से बिखुन कर देलक सोनमतिया के । चुल्हन मिस्त्री गरगरा रहल हल, "अगे डइनी, खोल केबड़िया, तोरा आज नञ् छोड़बउ गे, तोरा आझे नचइबउ, नञ् तो लाव हमर बेटवा के । ... आउ केकरा-केकरा चिबइम्हीं गे भतरखौकी ... खोल केबड़िया ।") (मपध॰11:14:35:2.9)
138 बिदागरी (= बिदाई) (मामू, बिदागरी बखत ममानी कहलन हल कि मरदाना घर दुलहिन के डोली जा हे अउ अरथी ही निकलऽ हे ... से हम एहाँ से जीते-जी नहिये जाम ... उनकर इयाद में सौंसे जिनगी गुजार देम ।) (मपध॰11:14:34:3.15)
139 बुतरू-बानर (इनकर कमजोरी भी सबके पता चल गेल । यहाँ तक कि गाँव के बुतरू-बानर भी इनका से मजाक करे लगलन - "चचा हो, सुनलियो चाची आवेवाली हथिन । कहिना गोड़वा रंगयबहो ।") (मपध॰11:14:22:1.11)
140 बैकवट (= बैकवर्ड, पिछड़ा) (ओकरा एक बात के संतोष हल कि मास्टर दीनानाथ से मिल के ई बैकवट गाम के कायाकलप करे लेल ऊ जे सरकार के चिट्ठी लिखलक हल ओकर जवाब एके-दू दिन में आवेवला हइ । फिन सौंसे गाम के दीदा सोनमतिया लेल बदल जात ।) (मपध॰11:14:35:2.39)
141 बोकड़ना (= बोकरना; बकना, बोलना) (आउ तो आउ, हिंदी साहित्य के जीवधारी भी मोछ मुड़ा के इया पम्हीं रंगा के अंगरेजी बोकड़े लगलन । स्थिति ई हे कि हिंदी के अस्तित्व भी ई सब रंगलका सियार के चलते प्रभावित होवे लगल आउ मगही जइसन लोकभाषा त लुप्तप्राय स्थिति में पहुँचल जा रहल हे ।) (मपध॰11:14:5:1.12)
142 बोथ (= बोत; तर, गीला) (अब ऊ कोय काम लेल अली-गली में घुमे तउ सब हड़बड़ा के अपन घर में घुस जाय, बाल-बुतरू के नुका ले, केबाड़ी लगा ले, खिड़की लगा ले । ई सब देख-देख के सोनमतिया के करेजा फटे लगे अउ घर आके अपन केबाड़ी लगा के बुतरू सन फूट-फूट के काने लगे कि ओकर लोर से गेनरा बोथ हो जाय ।) (मपध॰11:14:35:1.29)
143 बोलवइया (धीरे-धीरे मगही भाषा के बोलवइया आउ लिखवइया के संख्या में ह्रास हो रहल हे ।; अब अपनहीं सब सोंची कि मगही जे लोककंठ के भाषा हे, जेकर जादे-से-जादे बोलवइया औसत से कम पढ़ल-लिखल हथ, उनकर जबान कइसे संस्कृतनिष्ठ हो सकल हे ।) (मपध॰11:14:5:1.4, 28:3.18-19)
144 बौआ (= बउआ) (ए बौआ, उठो ने, केबाड़ी खोलो ने । जरी सा दुलहिन के मुँहमा तो देखा दा, फिन हम सब चल जैबो ।) (मपध॰11:14:21:1.16)
145 भठियारा ('भट्टा' जी के बारे में जादे बोलम त लोग भठियारा कहे लगतन, बाकि ने मालूम काहे भट्टा के लेखनी में एगो समर्थ लेखक के झलक देखाय पड़ऽ हे । उनका बारे में ई गुने नञ् बोलम कि ऊ हमर मित्र आउ पत्रिका उप-संपादक हथ, लोग कहतन कि मोटा रकम देलके होत ई गुने उछाल रहले हे ।) (मपध॰11:14:4:1.16)
146 भतरखौकी (= औरत के लिए एक गाली, भतार को खानेवाली, भतार की हत्यारी) (हाँ ऊ डायन हे ... डायन ... ऊ भतरखौकी, अपन घर में हेलते अपने भतार के खा गेलइ, एहे असना में जोगिंदर बाबू के पोतवा के खा गेलइ, जगेसर माँझी के घरवाली के ... केकरा-केकरा बतइयो, एगो के बात रहइ तो कहलो जाय ... ।; सड़का पर वाला धनेसरा के खेता खरदे लेल इस्कूटर से कोट जाइत ओकर मरदाना के एगो टरक मार देलक धक्का अउ एजइ से सोनमतिया हो गेल भतरखौकी अउ एजइ से सुरु हो गेल ओकर दुरदिन । सौंसे गाम के लोग ओकरा बपखौकी अउ भतरखौकी के नाम से जाने लगल, सोनमतिया कहीं हेरा गेल ।; चुल्हन मिस्त्री गरगरा रहल हल, "अगे डइनी, खोल केबड़िया, तोरा आज नञ् छोड़बउ गे, तोरा आझे नचइबउ, नञ् तो लाव हमर बेटवा के । ... आउ केकरा-केकरा चिबइम्हीं गे भतरखौकी ... खोल केबड़िया ।") (मपध॰11:14:33:1.26, 34:3.7, 9, 35:2.13)
147 भत्थल (= 'भथना' का भू॰कृ॰ रूप; भथा हुआ) (रात के चचा अइला । चाची दम दाखिल । जेभी टोलकी । दालमोट मिलल । फिन पुछलकी - "बिस्कुटवा नञ् हइ ?" चचा भुक्खल कुछ जवाब नञ् देलका । फिन चाची बोलली - "सुनहो काहे नञ् । बहिर हो, कान में की गेलो हे, भत्थल हो ?") (मपध॰11:14:23:1.31)
148 भरभराना (रधिया के चढ़ल जवानी, चान के लजावेवाला चेहरा देख के आ हाँथ के छुअन से शेखर बाबू के धड़कन बढ़ गेल । बोझा रधिया के माथा पर उठवो न कइल हल कि गिर परल । बोझा से भरभरा के अनाज झर गेल ।) (मपध॰11:14:19:2.3)
149 भविसवानी (= भविष्यवाणी) (लइकाइ में सरंगीवाला भरथरी ओकर हाथ देख के कहलक हल । ई लरिका बड़ा होके अफसर बनत । ऊ मुँझउसा के झोली हम चाउर से भर देली हल । ओकरो भविसवानी काम न आयल ।) (मपध॰11:14:16:2.43)
150 भेंट-घाँट (इनकर एगारह महिन्ना के आउटपुट हो एक अंगरेजी में प्रकाशित कलेंडर आउ तीन दिन के अभ्यास वर्ग के नाम पर पोवारा पर चले वला आउ तोहर चूड़ा-भूरा पर फाँका-मस्ती से कटेवला कार्यक्रम । जेकरा में हमहूँ आमंत्रित हलियो (ई गुना) । ने मालूम कउन डोर से निर्वाचित होवेवला इनकर कुछेक मेंबर से भी भेंट-घाँट होलो । ओक्कर चरचा फेर !) (मपध॰11:14:8:1.11)
151 मजगर (रोपनी खतम होवे के बाद आवे हे आसिन के महीना । एही आसिन में मनावल जाहे 'जितिया' यानी जितिया नृत्य । ई मगहीभाषी क्षेत्र के एगो मजगर नृत्य हे । नृत्य के साथ गायन-वादन होवे हे ।) (मपध॰11:14:10:1.12)
152 मडर (= मर्डर) (शेखर बाबू बटेसरा के अपन राह के काँटा समझ रहलन हल । कुछ दिन पहिले गाँव में मडर हो गेल हल । बस ऊ मडर में बटेसरा के नाम दिया गेल ।) (मपध॰11:14:20:1.6)
153 ममानी (= मामी) (बाबा गेला, बाप भी चल गेला, धन-संपत्ति तो बापे साथ चल गेल । एहे लेल ई खबर सुनइत सोनमतिया के ओकर मामू ओकरा आके ले गेल, अपन घर मिठनपुरा । कुछ दिन तो ठीके बीतल बकि सोनमतिया के सनसनाल बाढ़ अब ओकर ममानी के छाती पर बोझा सन लगे लगल ।; ओकर हर हिंछा पूरा करइ ले ओकर बाबा एक गोड़ पर खड़ी अउ फिन उनकर जइते ही ओकर हालत भिखमंगनी सन । मामू घर में तो ओकर ममानी ओकरा नौकरानी बना के छोड़ देलक ।) (मपध॰11:14:34:2.3, 35:1.35)
154 मांदर (= मानर) (दूसर इलाका में एक कलाकार नृत्य करऽ हथ आउ बाकी कलाकार गावऽ-बजावऽ हथ । लेकिन अछुआ में एक अदमी मांदर बजावऽ हथ आउ बाकी सब अदमी गायन आउ नृत्य करऽ हथ ।) (मपध॰11:14:10:2.7)
155 मातबर (= मातवर; धनी, संपन्न) (बाऊजी, आझ हम अपन छोट बहिन सरिता लेल एगो बड़ी सुंदर राजकुमार देखलूँ हे ... बड़ी पढ़ल-लिखल हइ, पइसगर हइ, मातबर हइ, सौभाग के बात ई हइ कि ऊ अपन सरिता के बहुत चाहऽ हइ ।; तब एक मास्टर दीनानाथ जी गाम के पाँच गो मातबर आदमी के लेके ओहाँ पहुँच गेला हल अउ ई तरह से मामला शांत होके पंचइती तक पहुँच गेल ।) (मपध॰11:14:27:2.10, 35:2.16)
156 मानर (जितिया में गइते-बजइते गीत के लय के साथ कलाकार एतना भावावेस में आ जा हथ कि कुछ कलाकार खड़ा हो जा हथ आउ झूम-झूम के गावे-बजावे लगऽ हथ । एकरा में हुडका, मानर, ढोल-झाल, करताल वगैरह साज बजावल जाहे ।) (मपध॰11:14:10:3.10)
157 मामू (= मामूँ; मामा) (बाबा गेला, बाप भी चल गेला, धन-संपत्ति तो बापे साथ चल गेल । एहे लेल ई खबर सुनइत सोनमतिया के ओकर मामू ओकरा आके ले गेल, अपन घर मिठनपुरा । कुछ दिन तो ठीके बीतल बकि सोनमतिया के सनसनाल बाढ़ अब ओकर ममानी के छाती पर बोझा सन लगे लगल ।) (मपध॰11:14:34:1.42)
158 मारल-फिरल (~ चलना) ("देख रहलऽ हे न, ऊ पुरान कुरता पहिनले, बाल पक्कल, बूढ़ा नियर अदमी । ई करम-खउँका कौलेज के पोरफेसर हवऽ ।" - "ओही सबन, जे एमे करके मारल-फिरल चलित हइ । एकरा से तो हमनी जहिलवन बढ़ियाँ ही । दू पइसा ठाट से कमा रहली हे ।") (मपध॰11:14:18:3.13)
159 मुँझउसा (दे॰ मुँहझौंसा) (लइकाइ में सरंगीवाला भरथरी ओकर हाथ देख के कहलक हल । ई लरिका बड़ा होके अफसर बनत । ऊ मुँझउसा के झोली हम चाउर से भर देली हल । ओकरो भविसवानी काम न आयल ।) (मपध॰11:14:16:2.42)
160 मूनना (= मूँदना, बंद करना) (कुछे देरी के बाद सब अपन आँख मून के ध्यान में लीन हो गेलन ।) (मपध॰11:14:36:1.12)
161 मैंजना (इनका साँइकिल निकालते देख नयकी चनकी चाची जोर से चिकरली - "देखऽ हियो, सोझिआल जा रहलहो हे । बरतनमा के मैंजतै । अयबहो तब खाली गुट-गुट गिलबहो । बरतन-बासन कर लेहो, घर बहार लेहो ।" / नयकी चनकी चाची बोलते रह गेली । ई बहिर बनके चलते रह गेला ।; चनकी चाची बोले लगली - "कि खैबहो ? बरतन जुट्ठे धैल हइ । मैंज के जैतहो हल । आज घर बढ़ैबो नञ् कैले हऽ । दलमोटवा लैलहो ?") (मपध॰11:14:23:1.5, 16)
162 मोर-मोरनी (~ नाच) (मोर-मोरनी नाच काफी लोकप्रिय विधा हे । ... ई चमार/रविदास जात के लोकविधा हे । मोर-मोरनी नाच के मौका पर ढोल-तासा बजावल जाहे ।) (मपध॰11:14:10:3.26, 33)
163 रविदास (= चमार) (आम तौर पर झूम-झूम के नाचे-गावे के 'झूमर' कहल जाहे । रेआन-अछूत समझल जायवला मुसहर आउ रविदास जात के लोग ई कला के माहिर हथ ।) (मपध॰11:14:11:2.26)
164 रहनाय (= रहनय, रहनइ, रहनई; रहना) (बस ई समझऽ जइसे लड़की जब तक बाप घर रहऽ हे त बाप के मरजी से रहऽ हे बकि जब ओकर रहनाय पति के पास होवऽ हे त पति जाने कि ऊ अप्पन औरत के कैसे रखत कि ऊ औगल लगत ।) (मपध॰11:14:28:2.27)
165 रिहलसल (= रेहलसल; रिहर्सल, अभ्यास, रियाज) (नयकी पीढ़ी त हरसट्ठे कुलाँच मार रहल हे आउ खुद के प्रूभ करे के चक्कर में फर्राटेदार हिंदी आउ अंगरेजी के अभ्यस्त हो गेल हे । ईहे तरह युवा पीढ़ी के लड़किन सब भी कंपीटीशन के दौर में हिंदी-अंगरेजी आउ दोसर विदेशी भाषा के रिहलसल में लगल हे ।) (मपध॰11:14:28:1.6)
166 रेआन-अछूत (आम तौर पर झूम-झूम के नाचे-गावे के 'झूमर' कहल जाहे । रेआन-अछूत समझल जायवला मुसहर आउ रविदास जात के लोग ई कला के माहिर हथ ।) (मपध॰11:14:11:2.25)
167 रोपनी (सावन-भादो के महीना में होवे हे रोपनी । रोपनी खतम होवे के बाद आवे हे आसिन के महीना । एही आसिन में मनावल जाहे 'जितिया' यानी जितिया नृत्य ।) (मपध॰11:14:10:1.8, 9)
168 रोसियाना (= रुष्ट होना; गुस्सा करना, क्रुद्ध होना) ('छिह, लखेरा नियन करवऽ ! तनिको सरम न लगऽ हवऽ ! ससुरार में का हहूँ !" रोसियाएल बोलल रधिया आउ एन्ने-ओन्ने निहारे लगल ।) (मपध॰11:14:19:2.9)
169 लंबर (= नंबर) (उनका गुजरते ओकर बाप एक लंबर के पियाँक निकस गेल, एकदम बेलूरा । बाप जेते कमइलका, उनकर बेटा सब धन पीए में डुबा देलका ।) (मपध॰11:14:34:1.18)
170 लखेरा (= लखैरा; निठल्ला, घुमक्कड़) ('छिह, लखेरा नियन करवऽ ! तनिको सरम न लगऽ हवऽ ! ससुरार में का हहूँ !" रोसियाएल बोलल रधिया आउ एन्ने-ओन्ने निहारे लगल ।) (मपध॰11:14:19:2.7)
171 लबना (= लमना) (एगो कहावत हइ - 'लबना भर धान में नीच नितराय' । इनकर दिमाग अब कुछ चढ़े लगल ।) (मपध॰11:14:21:3.23)
172 लमढेंगा (= लमछड़, लम्बा) (लमगोड़ा जी के 3 जनवरी 2004 के अचानक स्वर्गवास होला पर हमरा बहुत दुख बुझाइल । ... सचो अइसन रंगमंच से जुड़ल नाटककार मगही में अकेला हलन । अब तो मगही में नाटककार कई हो गेलन हे । 'लमगोड़ा' जी, लगऽ हे, 'लमढेंगा' के दोसरा रूप हलन । साढ़े छह फीट के लंबा, दमगर शरीर, बोले में निछक्का अउर चले में कुरता पैजामा पहनले तेज-तर्रार हलन ।) (मपध॰11:14:37:2.1)
173 लसाँधी (मगही के तीस साल से अकादमी बनल हे बकि ओकर स्थिति कभियो नालंदा के खंडहर से बेस नञ् हो सकल । ... सड़ल सिस्टम में जे जोगाड़ी बाबू इया सुधी-विदमान एकर अध्यक्ष बनलन, भ्रष्टाचार आउ कमचोट्टा के लसाँधी लेके हीयाँ से बाहर निकललन ।) (मपध॰11:14:29:2.19)
174 लिखवइया (धीरे-धीरे मगही भाषा के बोलवइया आउ लिखवइया के संख्या में ह्रास हो रहल हे ।) (मपध॰11:14:5:1.4)
175 लूर-बुध (सोनमतिया यानी सोनमति ... सोना जइसन मति, लूर-बुध ।) (मपध॰11:14:34:1.12)
176 लोरिटा (लमगोड़ा जी के 3 जनवरी 2004 के अचानक स्वर्गवास होला पर हमरा बहुत दुख बुझाइल । ... अपन प्रकाशन के नाम लोरिटा यानी लोटा-डोरी-सोंटा रखले हलन । उनकर जनम 16 अक्टूबर 1926 के जहानाबाद (गया) से सटल गंगापुर गाँव में होल हल ।) (मपध॰11:14:37:2.5)
177 वजूद (अइसन माहौल में मगही के पुछताहर बहुत कम बचलन हे । ऊपर बतावल लोग-लोगिन के बस अंगुरी पर गीनल दु-तीन तरह के तबका हे जहाँ मगही अप्पन वजूद बचैले हे ।) (मपध॰11:14:28:1.8)
178 वरङाही (झरङा (छोट झाड़), परङा (आलू के केयारी आदि), धरङा (केयारी के एक धारी), वरङाही (एगो गारी), टुङ के झरँगा, परँगा, धरँगा, बरँगाही आउ टुँग, इया झरंगा, परंगा, धरंगा, बरंगाही इया टुंग नञ् लिखल जाय ।) (मपध॰11:14:31:2.5)
179 सकसकाना (= हिचकिचाना) (पहिले भोजपुरी, फिर मैथिली ई तरफ कदम बढ़ैलक हल बकि मगही थोड़े सकसकाल हल । पिछलका कुछ बरिस में अरविंद आजाँस, मृत्युंजय शर्मा, सुनील कुमार, धनंजय श्रोत्रिय ऑडियो के क्षेत्र में काम शुरू कइलन ।) (मपध॰11:14:53:2.2)
180 सले-बले (= चुपचाप; धीमी आवाज या चाल में) (महेंदर जी बोललन - "आउ कि भइया, कोय खाना बनवेवाली मिल जात हल त हमर सब दुख दूर हो जात हल ।"/ सले-बले दुनहुँ एक दोसरा के कान में सट के बात-विचार कैलका ।) (मपध॰11:14:22:3.4)
181 साँझे-भोरे (बाऊजी के रिटैरमेन्ट के बाद रतन के घर में रहना आउ मोहाल हो गेल हल । साँझे-भोरे माय-बाप के ताना ओकर दिल-दिमाग के छलनी करइ लगल हल ।) (मपध॰11:14:25:1.3)
182 सुथरई (= सुन्दरता) (दू मजूर पहिलहीं बोझा उठा के चल देलक हल । अब बच गेल हल एगो रधिया, मगर ओकरा बोझा उठावऽ हे कउन ? रधिया के सुथरई आ जवानी शेखर बाबू के आँख में बसल हल । रधिया शेखर बाबू से बोलल - "जरी बोझवा उठा देथिन ।" शेखर बाबू तो अइसने मोका के तलाश में हइए हलन ।) (मपध॰11:14:19:1.7)
183 सुन-सुनहटा (पंचइती के कारवाही सुरू होवेवला हे । सौंसे गाम जमा हो गेल हल चौपाल में ... बकि सभे-के-सभे चुप्प, सभे तरफ सुन-सुनहटा, एगो पखेवा-पंछी के भी खर-खर नञ् । आज के मामला बड़ पेंचाहा हल ।) (मपध॰11:14:33:1.3-4)
184 सूटर-बुनाई (अपन निठल्ला, जुआड़ी अउ नसेड़ी मरदाना के सम्हारे के कोरसिस कइलूँ अउ भतरखौकी के नाम पइलूँ, जगेसर माँझी के माउग के सिलाई-कढ़ाई, सूटर-बुनाई सिखइलूँ अउ डाइन कहइलूँ ।) (मपध॰11:14:35:2.28)
185 सेंदुर (ई बात कानो-कान दूर-दराज के रिस्तेदार तक चल गेल । एक दिन एगो छक्का-पंजावाला रिस्तेदार इनका हीं अयलन । हाँथ में मिठाय अउ छाती पर लटकैले मोट बड़गो-बड़गो माला । लिलार पर सेंदुर के टह-टह टीका ।) (मपध॰11:14:22:1.19)
186 सोझिआना (इनका साँइकिल निकालते देख नयकी चनकी चाची जोर से चिकरली - "देखऽ हियो, सोझिआल जा रहलहो हे । बरतनमा के मैंजतै । अयबहो तब खाली गुट-गुट गिलबहो । बरतन-बासन कर लेहो, घर बहार लेहो ।" / नयकी चनकी चाची बोलते रह गेली । ई बहिर बनके चलते रह गेला ।) (मपध॰11:14:23:1.4)
187 सौभाग (= सौभाग्य) (बाऊजी, आझ हम अपन छोट बहिन सरिता लेल एगो बड़ी सुंदर राजकुमार देखलूँ हे ... बड़ी पढ़ल-लिखल हइ, पइसगर हइ, मातबर हइ, सौभाग के बात ई हइ कि ऊ अपन सरिता के बहुत चाहऽ हइ ।) (मपध॰11:14:27:2.11)
188 हँसुआ (= हँसिया) (रधिया उनकर हरकत देख के बगल में रखल हँसुआ उठा लेलक । शेखर बाबू रधिया के काली अइसन रूप देख के दबले पाँव लौट गेलन ।) (मपध॰11:14:19:3.13)
189 हसर (= हश्र) (ससुरार आके सोनमतिया के आँख फटल के फटले रह जाहे । एत्ते बड़गो घर ... ई घर के दाय तो हमरो से दमगर साड़ी पेन्हऽ हे । घर की हल, ओकरा लेल महल हल । ओकरा अपन भाग पर गुमान होवे लगल ... बकि अपन ददिहर के हसर ऊ देख चुकल हल, एहे लेल ऊ ई अपन वर्तमान पर कबो नितराय तो कबो घबराय ।) (मपध॰11:14:34:2.21)
190 हिकारत (मगहीभाषी क्षेत्र में अबहियों मौजूद ई सब लोकनृत्य में मनोरंजकता आउ मोहकता बनल हे । हालाँकि ई सब समाज के नान्ह-रेआन-नीच समझल जायवला जात में हे । ... शहरी बुद्धिजीवी आउ मध्यवर्ग के लोग इनखा हिकारत के नजर से देखऽ हथ ।) (मपध॰11:14:11:3.36)
191 हिटलरी (~ फरमान जारी करना) (यहाँ हमरा ई कहना हे कि हम कोय हिटलरी फरमान नञ् जारी कर रहली हे, मगही के वर्तनी के मानकीकरण ले ।) (मपध॰11:14:30:2.10)
192 हुडका (जितिया में गइते-बजइते गीत के लय के साथ कलाकार एतना भावावेस में आ जा हथ कि कुछ कलाकार खड़ा हो जा हथ आउ झूम-झूम के गावे-बजावे लगऽ हथ । एकरा में हुडका, मानर, ढोल-झाल, करताल वगैरह साज बजावल जाहे ।) (मपध॰11:14:10:3.9)