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Saturday, April 27, 2013

85. "मगही पत्रिका" (वर्ष 2012: नवांक-6; पूर्णांक-18) में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द



मपध॰ = मासिक "मगही पत्रिका"; सम्पादक - श्री धनंजय श्रोत्रिय, नई दिल्ली/ पटना

पहिला बारह अंक के प्रकाशन-विवरण ई प्रकार हइ -
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वर्ष       अंक       महीना               कुल पृष्ठ
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2001    1          जनवरी              44
2001    2          फरवरी              44

2002    3          मार्च                  44
2002    4          अप्रैल                44
2002    5-6       मई-जून             52
2002    7          जुलाई               44
2002    8-9       अगस्त-सितम्बर  52
2002    10-11   अक्टूबर-नवंबर   52
2002    12        दिसंबर             44
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मार्च-अप्रैल 2011 (नवांक-1; पूर्णांक-13) से द्वैमासिक के रूप में अभी तक 'मगही पत्रिका' के नियमित प्रकाशन हो रहले ह । प्रस्तुत अंक : नवांक-6, पूर्णांक-18 जनवरी-फरवरी 2012

ठेठ मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर पृष्ठ संख्या, चउठा कॉलम संख्या (एक्के कॉलम रहलो पर सन्दर्भ भ्रामक नञ् रहे एकरा लगी कॉलम सं॰ 1 देल गेले ह), आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ ।

कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या (अंक 1-17 तक संकलित शब्द के अतिरिक्त) - 153

ठेठ मगही शब्द ( से तक):
1    अगुआय (~ करना) (उरमी महरानी नियर जड़ी-बूटी के साड़ी पेन्हले हलै । साथ में ठाकुर ऊ जुलूस के अगुआय कर रहलै हल । नहियो कुछ तो ऊ जुलूस में पाँच सौ अदमी तो जरूरे होतै ।)    (मपध॰12:18:20:3.17)
2    अग्गब (= अगबे) (अब तो ठीको-ठाक रचना आवऽ हइ, बकि शुरू-शुरू में तो हमरा पास अइसन-अइसन रचना भेजऽ हलन लेखक-लेखिका भाय-बहिन कि देखिए के रोवाय फूटऽ हल, घुरि-घुरि माथा के केस नोचे के मन करऽ हल । सोंचऽ हलूँ कउन काम शुरू कर देलूँ, केतना अच्छा हल कि हिंदी-अंगरेजी में काम करऽ हलूँ । पैसा भी मिलऽ हल, अग्गब जस भी । बकि मिट्टी के करजा जे कपार पर चढ़ल हल, ओकरा चुकैले बिना कैसे जा सकऽ हलूँ दुनियाँ से ।)    (मपध॰12:18:5:1.17)
3    अताय (साँझ के चौपाल जमऽ हल तो बूढ़-पुरनियाँ कहऽ हलन, "धीरज धर बेटा, बहुते दुनियाँ देखलूँ हे । हर अताय के एक-न-एक दिन जरूर अंत होवऽ हइ । रामन, कंस के होलै, ठाकुर धिरेन्दर सिंह के होलै, तो लहना के भी जरूर होतै । हर अति के अंत होवऽ हइ, ई परकीरति के नियम हइ ।")    (मपध॰12:18:21:3.14)
4    अरा (सूरूज  के रथ के पहिला पहिया भीजू पहुँचऽ । पहिया में आठ गो अरा बनल हे । एक पहिया एक दिन रात के बराबर मानल जाहे आउ दिन रात, आठ पहर में । हर अरा एक पहर के निसानी हे ।)    (मपध॰12:18:14:2.14, 16)
5    अलगंठे (उरमी की दलित के भोट भुना पइतक ? भोट के चुनावी गनित में ठाकुर अपने-आप के उलट देख रहल हल । पिछड़ा जात के भोट तो नहिये हइ, नयका परसीमन में तीन गाम के भोट अलगंठे दोसर पंचाइत में चल गेलै हऽ ।)    (मपध॰12:18:20:1.1)
6    अलतलाल (~ इंतजार करना) (रात के खाय के बाद हमनी सभे एगो जगह पर बैठ के बतिया रहनूँ हल । बुतरू-बानर जहाँ आवेवला कल्ह के अलतलाल इंतजार कर रहल हल आउ अपन-अपन कपड़ा के सभे से अच्छा कहे में लगल हल ...।)    (मपध॰12:18:23:1.14)
7    अलबलाहा (नगेसर के दुआरी बंद । जे ऊ रसता से गुजरे, कहे लगे - 'एकरा कटा देहो काहे नञ् ?" अब ओकरा के बुझावे कि ई एगो पीपर नञ् हे, ई लोगन के संस्कार हे । एक दिन अलबलाहा मदना उठल आउ कहलक - "हम ढेर दिन से तोरा-अर के देख रहलियो हे । सभे एमे-बीए पास हका । बेकारे गोइठवा में घी सुखइलथुन तोहनी के बाउजी । एगो पीपर से डेरा रहला हे ।")    (मपध॰12:18:29:3.34)
8    अलमारी (= आलमारी) (सुरूज उगइत गाम के सामदायिक भवन ठाकुर धिरेन्दर सिंह आउ उरमी के खून से बोथ हो गेल । कुछ दिन मामला जरूर गरम रहल, फिर ई केस के कागज दीयाँ चाटइत अलमारी में बंद हो गेल । लहना भी कुछ दिन खातिर लापता हो गेल ।)    (मपध॰12:18:21:2.23)
9    अहद (~ लेना) ("या खुदा, की सच्चे तोर घर के पैंतालीस हजार चूनागरदानी के जरूअत हल या मेहर के माय के इलाज के ?" हम एगो अहद ले लेलूँ आउ अपन घर दने चल देनूँ ।)    (मपध॰12:18:24:3.18)
10    आँय-बाँय ("देख रे मदना, जादे आँय-बाँय नञ् । तोरा की लगऽ हउ, तोरे नियन हमनी पागल हिअइ । ई बर्हम बबा के के काटतइ ? केकरा निरबंस होवे के हइ । हमर बाबा कहऽ हलथिन कि एकर जे एगो पत्ता भी छूतइ ओकरा बंस-बुनियाद से काम नञ् रहतइ ।" - कहलथिन पालो राम ।)    (मपध॰12:18:30:1.10)
11    आब-दाब (सऊँसे जेवार में बाबू मथुरा सिंह के कोई जोड़ न हल । अपन गाँव में तो ऊ एकबाली पुरुख हलन । जमीनदारी गेलो पर उनकर आब-दाब में तनिको कमी न हल ।)    (मपध॰12:18:49:1.4)
12    आहि-अल्लम (~ करना) (आखिरकार ई बुढ़वा पीपर गिरवे कैल । गिरमा गिरल बाकि नगेसरा के आहि-अल्लम कर के, चलनी में पानी भरवा के । केतना दिन से संतोष कह रहलन हल कि - "कका, ई पीपर के गिरा द, नञ् तो करतो खतरा ।")    (मपध॰12:18:29:1.3)
13    इंजोर (पहिले जब सब जगह जंगल हल, लोग अंधरिया से डेरा हलन । एही से कहल गेल - 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' । हमरा अंधरिया से इंजोरिया में ले चल । इंजोरा सूरज से होवऽ हे । सूरज के इंजोर होयला पर दुनियाँ के कारोबार सुरू हो जाहे । ई लागि बिहने उठके सूरज भगवान के लोग गोड़ लगऽ हथ ।)    (मपध॰12:18:13:3.4)
14    इंजोरा (पहिले जब सब जगह जंगल हल, लोग अंधरिया से डेरा हलन । एही से कहल गेल - 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' । हमरा अंधरिया से इंजोरिया में ले चल । इंजोरा सूरज से होवऽ हे । सूरज के इंजोर होयला पर दुनियाँ के कारोबार सुरू हो जाहे । ई लागि बिहने उठके सूरज भगवान के लोग गोड़ लगऽ हथ ।)    (मपध॰12:18:13:3.3)
15    इनजाम (= इन्तजाम) (हम कहनूँ - "तू अल्लाह तो नयँ हका, बाकि लेल ओहो भी तो कुछू ने कुछू इनजाम करिये देता हल आउ तोहर फंड भी भर देता हल, अगर अपन भलगर नीयत से अपन धरम पूरा करता हल तउ ।")    (मपध॰12:18:24:2.18)
16    इनजार (= इंतजार) (नमाज के बाद सबसे गले मिलइत आउ ईद के मोबारकबाद देबइत आउ लेबइत रहनूँ बकि हमरा इनजार हल तो साँझ के पाँच बजे के । साँझ के पाँच बजल आउ हम महजिद में हनूँ ।)    (मपध॰12:18:24:1.8)
17    उकरिन (= उरिन, उऋण, ऋणमुक्त) (खैर ! 48,600 रु. खर्च करके जौन 'मगही महोत्सव' आयोजित करबैलिअइ आउ 8,000 रु. से ऊपर साधारण अंक से अधिक खर्च करके ओकर जे विशेषांक छापली ओकर बाद करजा जे चढ़ल 34-35 हजार के ओकरा से आज लगु उकरिन नञ् हो सकलूँ हे ।)    (मपध॰12:18:8:3.3)
18    उड़ाहना (मदना सराय के एगो फालतू लड़का हल, बेकार । ऊ हरदम दोसरे के काम में मगन । छठ खातिर घाट साफ करतो मदना । टोला भर के नाली उड़ाहतो मदना ।)    (मपध॰12:18:30:1.20)
19    उमेदवार (= उम्मीदवार) (नाम वापसी के आखरी तारीख के बाद चुनाव के तैयारी सुरू हो गेल । हर तरफ चुनावी वादा के बरसात होवे लगल । सौंसे पंचइती में कुल्हे आठ गो उमेदवार खड़ा होल । 'कउन जिततै' से सब नयँ सोच रहलऽ हल, 'कउन ठाकुर के इज्जत धूरी में मिलइतै' ई सोच भले सभे के हलै । आखिर ई चुनावी रन में लहना के सेनापति बनवे लेल ठाकुर बोलाइये लेलकै ।)    (मपध॰12:18:20:1.26)
20    एकबाली (= अकबाली, भाग्यवान, भाग्यशाली) (सऊँसे जेवार में बाबू मथुरा सिंह के कोई जोड़ न हल । अपन गाँव में तो ऊ एकबाली पुरुख हलन । जमीनदारी गेलो पर उनकर आब-दाब में तनिको कमी न हल ।)    (मपध॰12:18:49:1.3)
21    एकमान (गाड़ी जइसहीं तरेगना टीसन पर आके रुकल हल, हम उतरके एगो टमम पर बैठ गेली हल । ऊ टमटम पर हमनी चार-पाँच आदमी बैठल हली । टमटम के एकमान आउ सवारी के इंतजार में टमटम रोकले हल । एतने में घुघा तानले एगो जवान लड़की ओही टमटम्मा पर आके बैठल ।)    (मपध॰12:18:32:1.5)
22    एकेलुआ (दे॰ अकेलुआ) (एक जमाना में वारिसलीगंज आउ विक्रम के तूती बोलऽ हल - मिथिलेश आउ योगेश के चलते, बकि मिथिलेश जी के गया शिफ्ट होवे आउ योगेश जी के रिटायर हो जाय के चलते ई दुनहुँ केंद्र ढहो-ढनमन नियन रहे लगल । वारिसलीगंज में एकेलुआ रत्नाकर जी की कर सकलन हल ।)    (मपध॰12:18:4:1.20)
23    एकेल्ले (अबकी दू हजार देते घड़ी ऊ हमरा से कहलन हल कि तोहर 'मगही पत्रिका' के गति देवेवला घमंडी राम पूरे मगध में एकेल्ले नञ् हथ आउ कय गो घमंडी राम मिल जैथुन ।)    (मपध॰12:18:7:3.39)
24    कखनियों (एही रूप अंत समय में ओकरा कभी विचलित कर दे हे आउ ऊ मुर्छा के प्राप्त करऽ हे, त कखनियों जीवन के नेकीवाला रूप अएला पर ओकर चेहरा के रंगत में निखार आउ तन में स्फूर्ति ला देहे ।)    (मपध॰12:18:27:2.31)
25    कड़र (= कड़ा) (हमरा पता हे कि मिरतु पर विजय कठिन हे, हम जानो ही कि जीवित रहना एगो कड़र काम अउ रगड़ा हे, तइयो हम जीअ ही, भोगऽ ही अउ सवालन के समाधान ढूँढ़े के कोसिस करऽ ही ।)    (मपध॰12:18:17:1.36)
26    कादो-पानी (आजे धोवल कुर्ता-धोती, तूफान के बाद बचल कादो-पानी में लेटा-सना गेल । कपड़ा देखके घिन बर रहल हे ।)    (मपध॰12:18:27:3.33)
27    कुल्हे (= कुल मिलाकर) (नाम वापसी के आखरी तारीख के बाद चुनाव के तैयारी सुरू हो गेल । हर तरफ चुनावी वादा के बरसात होवे लगल । सौंसे पंचइती में कुल्हे आठ गो उमेदवार खड़ा होल । 'कउन जिततै' से सब नयँ सोच रहलऽ हल, 'कउन ठाकुर के इज्जत धूरी में मिलइतै' ई सोच भले सभे के हलै । आखिर ई चुनावी रन में लहना के सेनापति बनवे लेल ठाकुर बोलाइये लेलकै ।)    (मपध॰12:18:20:1.26)
28    खइया (= खाने में प्रयुक्त हाथ, दाहिना हाथ) (ठाकुर के खइया हाथ सहना कुछ सोच के बोललक - "ठाकुर साहेब, कहीं अइसन नयँ होवे कि उरमी के चक्कर में पनरह-सोलह बरस के बनल-बनावल साख माटी में नयँ मिल जाय ।")    (मपध॰12:18:20:1.3)
29    खाँढ़ (दे॰ खाँड़) (महीना ~) (खैर ! एक साल में 'मगही पत्रिका परिवार' के निम्मन आकार मिल गेलइ । एकर वर्षगाँठ में अभी महीना खाँढ़ देरी हइ । तब तक 'मगही पत्रिका परिवार' ओइसन दिखे लगतइ जइसन पट खुलला के बाद मंगल के संझौती घड़ी बजरंगबली दिखऽ हथिन- सेनूर आउ संस्कार से डबडब, फूलमाला से अलंकृत ।)    (मपध॰12:18:4:1.29)
30    खोदड़ (= खोधड़; कोटर) (केकरो याद न हे कि ई गाछ कहिया से हे, नगेसर के बाबा भी एकरे छाहुर में दोल-पत्ता खेलो हला अउ उनखर बाबा भी एकरे तर चिलम सुटसुटावऽ हला । एकर जड़ में एगो मुरती हल जेकरा सभे बरहम बाबा कहऽ हलन । ई जगहे के नामे हल बर्हमथान । एकर खोदड़ में ढेरमनी चिरँई-चुरमुनी के परमानेंट (स्थायी) डेरा हल ।)    (मपध॰12:18:29:1.23)
31    गरमाना (= गरम होना; गरम करना) (एक दिन के बात हे कि जाड़ा के डर से मथुरा सिंह सबेरगरे नेहाली में समा गेलन । रात के आठ-नौ बजइत हल । अबहीं गोड़ गरमएबो न कएल कि दखिनवारी टोला से जनानी के अवाज उनकर कान तक पहुँच गेल ।)    (मपध॰12:18:49:1.23)
32    गहिड़ा (हर रचना के कोय-न-कोय मकसद जरूरे होवे हे । कोय दल या विचारधारा से बंधल न भेला पर भी लेखक अप्पन चउगिरदी के जनसमूह से जुड़ल होवे हे अउ ई अरथ में ओकर रचना के एगो गहिड़ा मानवीय अर्थ हे ।)    (मपध॰12:18:18:1.12)
33    गिनल-गूँथल (जब भोट पड़े में गिनल-गूँथल दिन रह गेलै तो उरमी पतिबरता आउ दया-धरम के चोला ओढ़ के गामे-गाम, टोले-टोले घूमे लगलै ।)    (मपध॰12:18:20:2.15)
34    गिरमा (~ गिरना) (आखिरकार ई बुढ़वा पीपर गिरवे कैल । गिरमा गिरल बाकि नगेसरा के आहि-अल्लम कर के, चलनी में पानी भरवा के । केतना दिन से संतोष कह रहलन हल कि - "कका, ई पीपर के गिरा द, नञ् तो करतो खतरा ।")    (मपध॰12:18:29:1.2)
35    गूढ़ी (= गुरही; grudge) (नाजीरलाल - हुजूर, हम डीलर ही । श्रीदेव के गल्ला के जरूरत हल । इ हमरा से राशन कार्ड पर गल्ला मांगलन । ओह घड़ी हम गल्ला न मंगवले हली । बाकि श्रीदेव गल्ला खातिर जिद करे लगलन । एह बात पर थोड़ा विवाद भेल हल । इ मन में एकरे गूढ़ी रखले हलन । मौका पाके लाठी से आक्रमण कैलन ।)    (मपध॰12:18:46:1.37)
36    घिन (~ बरना) (आजे धोवल कुर्ता-धोती, तूफान के बाद बचल कादो-पानी में लेटा-सना गेल । कपड़ा देखके घिन बर रहल हे ।)    (मपध॰12:18:27:3.34)
37    चउगिरदी (दे॰ चौगिरदी) (यहाँ ई बात बताना जरूरी समझम कि 'मगही पत्रिका' के चउगिरदी पहचान बनावे में 'मगही महोत्सव, राजगीर' के भी भारी जोगदान हे, जेकरा खातिर हमरा भारी परेशानी उठावे पड़ल हल ।)    (मपध॰12:18:8:1.28)
38    चकरघिन्नी (ई बात के अपराध बोध आउ मगही के मुरेठावरदार घमंडी राम के महामंत्र के प्रभाव में आके दोबारा मगही में विंडोबा बाँधली जेकर प्रभाव में आके बड़का-बड़का जरदगव भी चकरघिन्नी होवे लगतन ।)    (मपध॰12:18:7:1.35)
39    चमचमनउआ (एतना बिजी कहिया से हो गेलन, आउ होलन तो केकरा बदौलत । हवेली के आगू चमचमनउआ मारसल केकर बदौलत । लड़का डिल्ली में पढ़ऽ हइ - सब हमर बदौलत ।)    (मपध॰12:18:21:1.24)
40    चर-पाँच (= चार-पाँच) (घमंडी राम, डॉ. सच्चिदानंद प्रेमी, वीणा दी, उमेश बहादुरपुरी, कृष्ण कुमार भट्टा आउ डॉ. भरत सिंह चर-पाँच गो लेखक से अइसन अनौपचारिक रिलेशन रहल हे हम्मर कि कभियो दुख-सुख में कोय सहजोग ले कह सकलूँ हे ।)    (मपध॰12:18:8:3.23)
41    चिजोर (हलाँकि पत्रिका के स्तर सिर्फ आउ सिर्फ संपादक के बूता के चीज नञ् हे । लेखक जे 'चीज' देलन ओकरा 'चिजोर' बनाके परोसना भले एक सफल संपादक के परिचय देवेवला हे । जब चीजे नञ् त 'चिजोर' कहाँ से ?)    (मपध॰12:18:5:1.14, 15)
42    चिरँई-चुरमुनी (केकरो याद न हे कि ई गाछ कहिया से हे, नगेसर के बाबा भी एकरे छाहुर में दोल-पत्ता खेलो हला अउ उनखर बाबा भी एकरे तर चिलम सुटसुटावऽ हला । एकर जड़ में एगो मुरती हल जेकरा सभे बरहम बाबा कहऽ हलन । ई जगहे के नामे हल बर्हमथान । एकर खोदड़ में ढेरमनी चिरँई-चुरमुनी के परमानेंट (स्थायी) डेरा हल ।)    (मपध॰12:18:29:1.24)
43    चींया (जे भी हो, 'मगही पत्रिका' अपन दुनहुँ बहिन के साथ लेके चलते रहत, चाहे ओकरा केतनो दुक्खम-सुक्खम समय काटे पड़े । विश्वास कर रहली हे कि अंदर के बात के चींया लेवेवला लोग-बाग के हमर ई संस्मरण में झुठौका कहानी नञ् नजर आवत ।)    (मपध॰12:18:8:3.36)
44    चूनागरदानी (हम रसे-रसे महजिद से बाहर निकल रहनूँ हल आउ हमर कान में अब हिसाब के अवाज आ रहल हल - " ... महजिद के आमदनी - दू लाख तीस हजार रुपइया, खरच एक लाख पैंतीस हजार, जे ई तरह हे - महजिद के चूनागरदानी - पैंतालीस हजार रुपइया, महजिद के ... ।" ; "या खुदा, की सच्चे तोर घर के पैंतालीस हजार चूनागरदानी के जरूअत हल या मेहर के माय के इलाज के ?" हम एगो अहद ले लेलूँ आउ अपन घर दने चल देनूँ ।)    (मपध॰12:18:24:3.11, 16)
45    छठ (मदना सराय के एगो फालतू लड़का हल, बेकार । ऊ हरदम दोसरे के काम में मगन । छठ खातिर घाट साफ करतो मदना । टोला भर के नाली उड़ाहतो मदना ।)    (मपध॰12:18:30:1.19)
46    छठिआरी (= छट्ठी-छिल्ला) (एकर छाहुर में केतना बइठकी भेल, केतना बुतरून के मुड़ना, केतना के जनउआ, केतना के बिआह होल, केकरो पता नञ् । गाम में केकरो घर में सोहर नधइलो कि बरहम बबा जाग गेलथुन । उनखा हलुआ चढ़ाहो, छठिआरी से मुड़ना, जनउआ, बिआह-दोंगा, सभे कुछ बिना बर्हम बबा के असिरबाद के नञ् होतो ।)    (मपध॰12:18:29:2.1)
47    छिया (~ ~ गारी देना) (रासन कार्ड ला भासन देहऽ, छिया छिया सरम न आवो । हम्मर घर न कानी कौड़ी हे, भूखल छौड़ा पटोर रहल हे ।)    (मपध॰12:18:17:3.28)
48    छुतहर (~ रोग) (एड्स के बात सुनते सब लोग दंग हो गेलन हल । सबके आत्मा काँप गेल हल । उमेश के बहनोई मास्टर साहेब बोल उठलन हल । बड़ा छुतहर रोग हे भागवत बाबू ... सुनली हे कि जेकरा हो गेल ऊ गेल ई दुनियाँ से आ मुनियाँ के मरदाना तो एकर उदाहरने हे ।)    (मपध॰12:18:32:3.34)
49    जँताना (= चँपना, दबना) (सब के सब बनलका भोजनवा बाटे पड़ल भूकंप में जँताएल लोग के परिवार में । दवाई के भी ओही हाल भेल । बेमतलब के सुई देवे पड़ रहल हे घायल सब के । अइसन-अइसन दवाई तो हमनीन मंत्री के भी नसीब न होहे । जे देश कम विकसित हल ऊ सब रुपइया से मदद कइलक हे ओही कुछ हक लगल ।)    (मपध॰12:18:28:2.5)
50    जगौनी (दे॰ जगउनी) (जगौनी के जे कार्यक्रम चल रहल हल हम्मर ओकर बाद धीरे-धीरे लोग-बाग जुड़ते गेलन मगही पत्रिका से ।)    (मपध॰12:18:7:2.31)
51    जज्जा-तज्जा (= जहाँ-तहाँ) (गया पहुँचला पर गारजियन दाखिल डॉ. सच्चिदानंद प्रेमी जी दोसरका अंक के समय एगारह सौ रुपइया के टौनिक देलन, इनकर अलावे पूरे मगह में लेखक-लेखिका के दुआरिए-दुआरिए घुमला के बाद रचना आउ आर्थिक मदत के आश्वासन के अलावे जज्जा-तज्जा भिखारी के भीख नियन सो दू सो मिलल होत त ओकरो उल्लेख कहैं न कहैं करिए देम ।)    (मपध॰12:18:7:3.15)
52    जनउआ (= यज्ञोपवीत) (एकर छाहुर में केतना बइठकी भेल, केतना बुतरून के मुड़ना, केतना के जनउआ, केतना के बिआह होल, केकरो पता नञ् । गाम में केकरो घर में सोहर नधइलो कि बरहम बबा जाग गेलथुन । उनखा हलुआ चढ़ाहो, छठिआरी से मुड़ना, जनउआ, बिआह-दोंगा, सभे कुछ बिना बर्हम बबा के असिरबाद के नञ् होतो ।)    (मपध॰12:18:29:1.27, 2.1)
53    जनउड़ा (साँझ के पाँच बजल आउ हम महजिद में हनूँ । ईद के वजह से गाम के लगभग सबहे लोगन के जनउड़ा लगल हल । मिटिन सुरू हो गेल ।)    (मपध॰12:18:24:1.12)
54    जरना-भुनना (बिसु महाराज के भी जान बचे के खुशी भेल बाकि करीगर के हैसियत से मन ही मन जर भुन गेलन । पुछलन कि तोर नाम का हवऽ, तोर बाप के नाम का हवऽ, कउन गाँव के ह, ई बिदिया कहाँ सिखलऽ ।)    (मपध॰12:18:15:2.24)
55    जरूअत (= जरूरत) ("या खुदा, की सच्चे तोर घर के पैंतालीस हजार चूनागरदानी के जरूअत हल या मेहर के माय के इलाज के ?" हम एगो अहद ले लेलूँ आउ अपन घर दने चल देनूँ ।)    (मपध॰12:18:24:3.16)
56    जुटान (जब तक एगो बड़गो कार्यक्रम में मगहिया भाय-बहिन में जुटान नञ् होत, ठीक तरह से परिचय-बाद नञ् होत आपस में, तब तक मगही लेखक भाय-बहिन के परिचय ठामे-ठाम सीमित रह जात ।)    (मपध॰12:18:8:1.35)
57    झुम्मर (= झूमर) ('सब गेल झुम्मर पारे, लुल्ही कहलक हमहूँ ।' सुनके थोड़े अजीब जरूर लग रहलै होत अपने सबके बकि ई बात हमरा सामने सोल्लह आना सच साबित हो रहलै हे । दिल्ली से 'मगही पत्रिका' के प्रकाशन शुरू होला के बाद हमरा नियन निबुधिया के, अपने सबसे जे मान मिललै ई कते बुधगर लोग के हजम नञ् हो रहलै हे ।)    (मपध॰12:18:5:1.1)
58    टहकार (~ चांदनी) (विसु महाराज मंदिर में बइठ के सोचित हलन कि कलस रखे में का गड़बड़ी भेल हे । टहकार चांदनी हल, कलस वला जगह से रोसनी आ रहल हल से बंद हो गेल । ऊ चौंक गेलन, विस्मित होके बाहर अइलन । करीगर लोग लड़िका के लेके विसु महाराज भीजु अयलन आउ कहलन कि एही लड़िका कलस रखवौलक हे ।)    (मपध॰12:18:15:2.17)
59    ठामे-ठाम (जब तक एगो बड़गो कार्यक्रम में मगहिया भाय-बहिन में जुटान नञ् होत, ठीक तरह से परिचय-बाद नञ् होत आपस में, तब तक मगही लेखक भाय-बहिन के परिचय ठामे-ठाम सीमित रह जात ।)    (मपध॰12:18:8:1.38)
60    डंटा-लाठी (दे॰ लाठी-डंटा) (दखिनवारी टोला से जनानी के अवाज उनकर कान तक पहुँच गेल - "बाप रे बाप ! मुझौसा जान मारलक गे मइया ! जान बचावऽ ए दादा ।" मथुरा सिंह नेहाली बिग के दन से बाहर अइलन । डंटा-लाठी खोजे लगलन । मेहरारू पर गोसएलन - दे ससुरी लाठी ।)    (मपध॰12:18:49:1.30)
61    डबडब (खैर ! एक साल में 'मगही पत्रिका परिवार' के निम्मन आकार मिल गेलइ । एकर वर्षगाँठ में अभी महीना खाँढ़ देरी हइ । तब तक 'मगही पत्रिका परिवार' ओइसन दिखे लगतइ जइसन पट खुलला के बाद मंगल के संझौती घड़ी बजरंगबली दिखऽ हथिन- सेनूर आउ संस्कार से डबडब, फूलमाला से अलंकृत ।)    (मपध॰12:18:4:1.30)
62    तफरका (~ पड़ना) (पूरा मगध में हमरा सिरिफ 66 लोग मिललन डेलीगेट्स के रूप में, हलाँकि महोत्सव में 143 लेखक-कवि के उपस्थिति हल, ई में हमर पर-परिवार के लोग शामिल नञ् हथ । इहे कार्यक्रम से हमरा डेलीगेशन फीस नञ् भरेवला माननीय कवि वृंद से तफरका पड़े लगल । फरक तो हमर उनको से हो गेलै, जिनका मंच आउ माइक के मनोरोग हइ ।)    (मपध॰12:18:8:2.32)
63    तमतमाल (गोस्सा से ~) (ठाकुर के बात पूरो नयँ होल कि लहना गोस्सा से तमतमाल गोड़ पटकइत वापस चल गेल ।)    (मपध॰12:18:21:1.42)
64    तातलब्ज (= ततलबज; तत्काल; शीघ्रता) (साहित्य, विज्ञान अउ राजनीति के तागतन से कोय माने में कम महत्वशाली न हे - भले ओकर असर तातलब्ज में न होय ।)    (मपध॰12:18:17:1.19)
65    तातलब्जी (= ततलब्जी; तत्काल; शीघ्रता) (सिरजन के समाज पर असर जरूरे होवऽ हे पर ओकर कोय तातलब्जी बदलाव कभिए-कभार हो पावऽ हे । ओकर असर जरूरे गहरा होवऽ हे, मुदा सीधे नञ्, गते-गते ।)    (मपध॰12:18:16:2.18)
66    तिकिछ (= तीखा, कड़वा; कड़वाहट) (मन के ई तिकिछ के कम करे ला मंत्रालय से वरी पदाधिकारी सब डब्बा के वी.सी.पी. पर आजे रिलीज भेल फिल्म 'अशोका' चला देल, जे हमर यात्रा के सुखमय बना के चिंतामुक्त कर देल ।)    (मपध॰12:18:27:3.15)
67    थकल-फैदाएल (दे॰ थकल-फेदायल) (जे देश कम विकसित हल ऊ सब रुपइया से मदद कइलक हे ओही कुछ हक लगल । ई बंगला ओही मदद से बनल हे । जेकरा में हम दिन भर से थकल-फैदाएल कुछ पल आराम से गुजारऽ ही ।)    (मपध॰12:18:28:2.13)
68    थिराल (मगध विश्वविद्यालय में मगही में एम.ए. के पढ़ाय शुरू होवे के चलते बोधगया/ गया मगही के गुरुत्वाकर्षण केंद्र बन गेल हे, काहे कि पटना में 'अलका मागधी' थोड़े थिराल हे आउ 'मगही अकादमी' तो हाँफी-डाँफी के बाद भी चारो कदम नञ् चल पा रहल हे ।)    (मपध॰12:18:4:1.5)
69    दखिनबारी (~ पट्टी) (दुनहुँ जगह के मगही बोले-चाले में काफी अंतर पड़ जा हइ । मन में हल कि हमरा ई खाई पाटना हइ । शुरू-शुरू में आदर जोग चतुरा जी के लेके हम पूरा दखिनबारी पट्टी घूम गेली । 'मगही महोत्सव कार्यक्रम के बाद हमरा लगऽ हे कि काफी हद तक हम ई खाई के पाट देलूँ हे ।)    (मपध॰12:18:8:2.8)
70    दन (= चिन्ता; झट) (~ से = तुरन्त, झट से) (दखिनवारी टोला से जनानी के अवाज उनकर कान तक पहुँच गेल - "बाप रे बाप ! मुझौसा जान मारलक गे मइया ! जान बचावऽ ए दादा ।" मथुरा सिंह नेहाली बिग के दन से बाहर अइलन ।)    (मपध॰12:18:49:1.29)
71    दमाही (हम त सुनलूँ हे कि अदमी चान मामू पर जाके दमाही कयलक हे । जजा तिरसंकु लटकल हथिन ओजा होटल बना रहलन हे । एगो मेहरारू सढे छो महीना  ओइजे रहके अइलन हे ।)    (मपध॰12:18:30:1.5)
72    दाना-पानी ("एकरा में फिकिर के की बात हइ भइया साहेब । सब ठीक हो जइतै । बस हमरा खातिर कुछ 'दाना' आउ 'पानी' के बेवस्था कर दिहो हल । हाँ, लगुअन-भगुअन लेल कुछ इसपीरिट भी ।")    (मपध॰12:18:20:2.8)
73    दाबा (= नींव) (संजोग बैठल आउ होतम-हवातम 9 जनवरी 2011 के मगही के महारथी घमंडी राम के जन्म दिवस के दिन 'मगही पत्रिका' के पिलिंथ दोबारा से बाँधल गेल । ओकर बाद हम बिहारशरीफ, राजगीर, हिसुआ, नवादा, वजीरगंज, वारिसलीगंज, कासीचक, शेखपुरा, शेखोपुरसराय, बरबीघा, लखीसराय, मोकामा, बाढ़, अथमलगोला, दानापुर, विक्रम, पालीगंज, मसौढ़ी, जहानाबाद, मखदुमपुर, बेलागंज, गया आउ बोधगया के पवित्र मट्टी लाके 'मगही पत्रिका' के दाबा में डालली ।)    (मपध॰12:18:7:2.17)
74    दिरिक (~ लगना, ~ मारना) (ऊ सीट अनुसूचित जाति खातिर रिजप हो गेल हल ... बकि ठाकुरो हल रजनीतिक सतरंज के पक्का खेलाड़ी । नामांकन के दिन ऊ अपन राखनी उरमी के बाजा-गाजा के साथ नामांकन करवा देलका । ओकर विरोधी के दिरिक मार देलक - "बड्डी चालबाज हइ ठाकुर ... आसानी से हार मानेवाला नयँ हइ ।")    (मपध॰12:18:19:2.6)
75    दीयाँ (= दीमक) (सुरूज उगइत गाम के सामदायिक भवन ठाकुर धिरेन्दर सिंह आउ उरमी के खून से बोथ हो गेल । कुछ दिन मामला जरूर गरम रहल, फिर ई केस के कागज दीयाँ चाटइत अलमारी में बंद हो गेल । लहना भी कुछ दिन खातिर लापता हो गेल ।)    (मपध॰12:18:21:2.23)
76    दुक्खम-सुक्खम (जे भी हो, 'मगही पत्रिका' अपन दुनहुँ बहिन के साथ लेके चलते रहत, चाहे ओकरा केतनो दुक्खम-सुक्खम समय काटे पड़े ।)    (मपध॰12:18:8:3.34)
77    दुरदुराना (ई सच हे कि जब से 'मगही पत्रिका' निकल रहल हे, बिना राग-द्वेष के सबके दुआरिए-दुआरिए गेली । लोग अपनैलन तभियो ठीक, दुरदुरैलन तभियो ठीक । हलाँकि श्रोत्रिय के सामने-सामने दुरदुरावे वला के करेजा चाही, बकि की पता, किनकर बर्हम बिगड़ जाय आउ हम ऐरा-गैरा नत्थू खैरा हो जाऊँ ।)    (मपध॰12:18:4:1.26)
78    दुराहूँ (दे॰ 'दुराहुँ' भी) (हलाँकि डॉ. भरत सिंह आउ कृष्ण कुमार भट्टा जी बिचबिचबा में थोड़े दुराहूँ चल गेलथिन हल बकि राँची के हरमू चौक पर 'झारखंड मागधी' के लोकार्पण के कार्यक्रम में भरत भाय जे शपथ लेलथिन आउ भट्टा जी जे प्रायश्चित्त करे के मन बनैलथिन 'मगही पत्रिका' ले, ई सुकून के बात हे ।)    (मपध॰12:18:5:1.27)
79    दोल-पत्ता (दे॰ डोल-पत्ता) (केकरो याद न हे कि ई गाछ कहिया से हे, नगेसर के बाबा भी एकरे छाहुर में दोल-पत्ता खेलो हला अउ उनखर बाबा भी एकरे तर चिलम सुटसुटावऽ हला ।)    (मपध॰12:18:29:1.18)
80    दोसर-तेसर (एतने नञ्, 'पइसा' 'रुपइया' में कन्वर्ट हो गेल हे - बलुक गड्डी में । कहाँ से लावे कोय रचनाधर्मी इया भाषाविद् गड्डी । हीयाँ कर-किताब छपावे तक से अजुरदा हे अदमी आउ दोसर-तेसर काम ले कहाँ से जुटावे धन आउ केकरा से जुटावे ।)    (मपध॰12:18:4:1.13)
81    धिराना (= धिरौनी देना, धमकी देना) (मलुआ गिड़गिड़ाए लगल - "न सरकार ! गोड़ पकड़इत ही । अबरी माफ करूँ ।" मथुरा सिंह माफ कर देलन । धिरा के घरे गेलन ।)    (मपध॰12:18:49:2.27)
82    धुर (= जमीन का एक माप, एक कट्ठा का बीसवाँ भाग) (महेश सिंह - बाकि श्रीदेव के दीन दसा त खराब हो रहल हे । दीअर के खेत दह के गंगा के गर्भ में दिल मिला रहल हे । / यदुवंशी सिंह - अरे भाई ! इ कहऽ कि उनका पास एको धुर जमीन न हे ।)    (मपध॰12:18:44:1.33)
83    नतनी (= नतिनी, नातिन) (बेटी रीचा हमरा आगू जेतना शुद्ध हिंदी बोकरे, बकि ससुरार जाके खाँटी मगहिया हो गेल हे । संतोष के बात हे कि नतनी योगीशा जेकरा ओकर माय-बाप 'बेबो' पुकारऽ हथिन, निरैठा मगहिया हे । निछक्का मगही बोलऽ हे ऊ - लखीसराय वली ।)    (मपध॰12:18:5:1.20)
84    निनाल (भोरे-भोरे मेहर अपन छोट-छोट हाथ से हमरा जगावयत बोले लगल - "बाऊ जी, चाय ।" निनाल आँख से ओकरा देखनूँ आउ बोलनूँ - "टेबुलवा पर रख दे ।")    (मपध॰12:18:23:1.27)
85    निबुधिया ('सब गेल झुम्मर पारे, लुल्ही कहलक हमहूँ ।' सुनके थोड़े अजीब जरूर लग रहलै होत अपने सबके बकि ई बात हमरा सामने सोल्लह आना सच साबित हो रहलै हे । दिल्ली से 'मगही पत्रिका' के प्रकाशन शुरू होला के बाद हमरा नियन निबुधिया के, अपने सबसे जे मान मिललै ई कते बुधगर लोग के हजम नञ् हो रहलै हे ।)    (मपध॰12:18:5:1.3)
86    निमन-जनुन (आदमी से अइसन अनुमान हे कि अंत घड़ी में जिंदगी से घटना, हर निमन-जनुन घटना एक-एक करके फोटो नियर मानस पटल पर उगइत जाहे ।)    (मपध॰12:18:27:2.24)
87    निरैठा (बेटी रीचा हमरा आगू जेतना शुद्ध हिंदी बोकरे, बकि ससुरार जाके खाँटी मगहिया हो गेल हे । संतोष के बात हे कि नतनी योगीशा जेकरा ओकर माय-बाप 'बेबो' पुकारऽ हथिन, निरैठा मगहिया हे । निछक्का मगही बोलऽ हे ऊ - लखीसराय वली ।)    (मपध॰12:18:5:1.21)
88    नेहाली (= रजाई) (एक दिन के बात हे कि जाड़ा के डर से मथुरा सिंह सबेरगरे नेहाली में समा गेलन । रात के आठ-नौ बजइत हल ।)    (मपध॰12:18:49:1.21)
89    नोह (= नख) (मलुआ बहू के कठमुरकी मार देलक । सिर झुका के जमीन पर आँख गड़ा देलक । गोड़ के नोह से माटी खुरचे लगल ।)    (मपध॰12:18:49:3.21)
90    पंछहरी (= पंछहुरी) (नेताजी के भतीजा जे उनका भिर पंछहरी लेखा लगल रहऽ हे, ओही उनकर एकमात्र सहारा आउ सलाहकार हे ।)    (मपध॰12:18:27:1.24)
91    परती (~ जमीन) (साँझ के एगो भोज के बेवस्था ठाकुर के परती जमीन पर तंबू गाड़के  कइल गेलै । ई भोज में एत्ते खरचा कइल गेलै जेतना ठाकुर अपन एकलौता बेटा के बियाह में नयँ कइलकै होत ।)    (मपध॰12:18:20:3.20)
92    पाटा (मलुआ धोबी पाटा से मार-मार के मेहरारू के भरता बनवइत हल ।; "साला भड़ुआ ! गलती हो गेल । देई तोरा दू पाटा हम ? देख तो जरा मजा, चाटे लगऽ हहीं कि न ?" मथुरा सिंह ओकरा पर पाटा तान देलन । मलुआ गिड़गिड़ाए लगल - "न सरकार ! गोड़ पकड़इत ही । अबरी माफ करूँ ।")    (मपध॰12:18:49:2.9, 22, 24)
93    पौरा-पाटी (दोसरका अंक के पौरा-पाटी थोड़े बेस हल । तब तक सउँसे मगध में साइदे कोय लेखक-लेखिका होतन जे नञ् जानऽ होतन कि 'मगही-पत्रिका' द्वैमासिक रूप में दिल्ली से दोबारा निकल रहल हे ।)    (मपध॰12:18:7:3.18)
94    बंका (= बाँका) (~ बहादुर) (हम एकेश्वरवादी नञ् ही, नञ् हम खुद के बंका बहादुर समझऽ ही बकि हमर मूल मंत्र हे - क्वालिटी ! क्वालिटी !! क्वालिटी !!! हमर बाबूजी कहऽ हलथिन - 'खो त गेहूँ, रह त एहूँ' । ई गुना हमेशा से हमर प्रयास रहल हे कि 'मगही पत्रिका परिवार' जे कुछ भी दे बढ़ियाँ दे, राँड़ी-बेटखौकी नञ् ।)    (मपध॰12:18:5:1.11)
95    बंस-बुनियाद ("देख रे मदना, जादे आँय-बाँय नञ् । तोरा की लगऽ हउ, तोरे नियन हमनी पागल हिअइ । ई बर्हम बबा के के काटतइ ? केकरा निरबंस होवे के हइ । हमर बाबा कहऽ हलथिन कि एकर जे एगो पत्ता भी छूतइ ओकरा बंस-बुनियाद से काम नञ् रहतइ ।" - कहलथिन पालो राम ।)    (मपध॰12:18:30:1.15)
96    बकाठ (अदमी कहाँ से कहाँ पहुँच गेल बाकि तोहनी बर्हम के पुच्छी पकड़ले हका । हम तो हियो जाहिल, सोलह दूनी आठ बाकि तोहनियो हा बकाठ ।)    (मपध॰12:18:30:1.3)
97    बखे-बे-बखत (गुंडागर्दी आउ राजनीति एक्के सिक्का के दू दुपट्टी हइ । ई दुनहूँ के जो मेल हो जाय तो बड़का से बड़का कुरसी पर कब्जा जमवल जा सकऽ हइ । ठाकुर एहे लेल लहना के मिलइले रहऽ हलै आउ बखे-बे-बखत ओकर हर तरह के जरूअते पूरा कर दे हलै ।)    (मपध॰12:18:20:2.4)
98    बघुआना (मलुआ बहू उपरे मुड़ी कएलक तो अपन मरद के बघुआएल आँख देखलक । फिर मुड़ी गाड़ लेलक । मलुआ सवाल दागलक - "ससुरी, ऐन मौका पर कंठे न हउ फुटइत ?")    (मपध॰12:18:49:3.27)
99    बड्डी (= बड़ी; बड्ड; बहुत) (ऊ सीट अनुसूचित जाति खातिर रिजप हो गेल हल ... बकि ठाकुरो हल रजनीतिक सतरंज के पक्का खेलाड़ी । नामांकन के दिन ऊ अपन राखनी उरमी के बाजा-गाजा के साथ नामांकन करवा देलका । ओकर विरोधी के दिरिक मार देलक - "बड्डी चालबाज हइ ठाकुर ... आसानी से हार मानेवाला नयँ हइ ।"; एकरा लेल तोरा अदमी के राह से हटाना बड्डी जरूरी हउ सुरमी, ओकर मौगत ही तोर जीत हउ ।)    (मपध॰12:18:19:2.6, 3.16)
100    बद (ओकरा इहाँ के भूमि बंजर आउ इहाँ से लोग बद से बदतर नजर आवऽ हथ ।)    (मपध॰12:18:27:1.17)
101    बनल-बनावल (ठाकुर के खइया हाथ सहना कुछ सोच के बोललक - "ठाकुर साहेब, कहीं अइसन नयँ होवे कि उरमी के चक्कर में पनरह-सोलह बरस के बनल-बनावल साख माटी में नयँ मिल जाय ।")    (मपध॰12:18:20:1.6)
102    बयतुलमाल (= बतुलमाल) (अपन पहुँच आउ अमीरी के बल पर ऊ महजिद आउ बयतुलमाल आनी दान देवल पइसा के फंड के सेकरेटरी बन गेला हल ।)    (मपध॰12:18:23:2.28)
103    बरक्कत (= बरकत) (तूहूँ दुन्हूँ धर्म के राह पर चलऽ । एह से तोहनी के बरकत जरूर मिलत ।)    (मपध॰12:18:46:1.3)
104    बाता-बाती (यदुवंशी सिंह - खाली बाता-बाती भेल कि मामला आगे बढ़ गेल ? महेश सिंह - अरे भाई ! श्रीभजन मुखिया, सरपंच हरिशंकर सिंह आउ डीलर नाजीर लाल सभे मिलके श्रीदेव पर मुकदमा ठोक देलन ।)    (मपध॰12:18:46:1.22)
105    बिआह-दोंगा (एकर छाहुर में केतना बइठकी भेल, केतना बुतरून के मुड़ना, केतना के जनउआ, केतना के बिआह होल, केकरो पता नञ् । गाम में केकरो घर में सोहर नधइलो कि बरहम बबा जाग गेलथुन । उनखा हलुआ चढ़ाहो, छठिआरी से मुड़ना, जनउआ, बिआह-दोंगा, सभे कुछ बिना बर्हम बबा के असिरबाद के नञ् होतो ।)    (मपध॰12:18:29:2.1)
106    बिचबिचबा (हलाँकि डॉ. भरत सिंह आउ कृष्ण कुमार भट्टा जी बिचबिचबा में थोड़े दुराहूँ चल गेलथिन हल बकि राँची के हरमू चौक पर 'झारखंड मागधी' के लोकार्पण के कार्यक्रम में भरत भाय जे शपथ लेलथिन आउ भट्टा जी जे प्रायश्चित्त करे के मन बनैलथिन 'मगही पत्रिका' ले, ई सुकून के बात हे ।)    (मपध॰12:18:5:1.27)
107    बितनी (= बितना) (करीगर लोग कहलन कि बड़का-बड़का दह गेलन, ई बितनी पुछीत हे कतेक पानी । अरे ! विसु महाराज के कुछो बुझाइते न हइन, इहे चललन हे कलस रखे ।)    (मपध॰12:18:15:2.7)
108    बूँट (एके ~ के दाल होना) (महेश सिंह - हाँ त, यदुवंशी सिंह । उ देव आउ श्रीभजन सिंह के चर्चा पूरा करऽ । / यदुवंशी सिंह - भाई, बात इ हे कि श्रीदेव आउ मुखिया श्रीभजन एके बूँट के दाल हो गेल हथ । दुन्हूँ अब एक साथ बैठका लगावऽ हथ । / महेश सिंह - सच ! दुन्हूँ के दू राह हल । एक सही राह पर चलेवाला आउ दोसर बेइमान । / यदुवंशी सिंह - आउ न त का । कबो श्रीभजन देव हीं कबो देव श्रीभजन हीं ? शादी-बियाह से मरनी-हरनी तक दूनो में पारिवारिक हेल-मेल हे ।)    (मपध॰12:18:44:1.21)
109    बूढ़-पुरनियाँ (साँझ के चौपाल जमऽ हल तो बूढ़-पुरनियाँ कहऽ हलन, "धीरज धर बेटा, बहुते दुनियाँ देखलूँ हे । हर अताय के एक-न-एक दिन जरूर अंत होवऽ हइ । रामन, कंस के होलै, ठाकुर धिरेन्दर सिंह के होलै, तो लहना के भी जरूर होतै । हर अति के अंत होवऽ हइ, ई परकीरति के नियम हइ ।")    (मपध॰12:18:21:3.13)
110    बोली-ठोली (रंग एक होला से कौआ आउ कोयल के बोली-ठोली एक नञ् हो सकल हे । कौआ अपन करकस अवाज में कतनो काँव-काँव कर ले बकि कोयल के कूक सन ओकर काँव-काँव लोग-बाग के हिरदा में गुदगुद्दी नञ् बरा सकत ।)    (मपध॰12:18:5:1.8)
111    भलगर (हम कहनूँ - "तू अल्लाह तो नयँ हका, बाकि लेल ओहो भी तो कुछू ने कुछू इनजाम करिये देता हल आउ तोहर फंड भी भर देता हल, अगर अपन भलगर नीयत से अपन धरम पूरा करता हल तउ ।")    (मपध॰12:18:24:2.19)
112    भीजु (= भिजुन, भिर; पास) (दोसर पहिया भीजु गेला पर, दसवीं सदी में सामंती लोग के दिनचर्या का हल, एकर चित्र उकेरल हे।; ऊ बेदी भीजु बइठ के सोंचित हल कि आखिर लकस टिकीत काहे न हे ।; लड़िका सभे करीगर भीजु ठहर गेल ।; करीगर लोग लड़िका के लेके विसु महाराज भीजु अयलन आउ कहलन कि एही लड़िका कलस रखवौलक हे ।)    (मपध॰12:18:14:2.27, 15:1.17, 20, 2.21)
113    भीजू (= भिजुन, भिर; पास) (सूरूज  के रथ के पहिला पहिया भीजू पहुँचऽ । पहिया में आठ गो अरा बनल हे । एक पहिया एक दिन रात के बराबर मानल जाहे आउ दिन रात, आठ पहर में । हर अरा एक पहर के निसानी हे ।)    (मपध॰12:18:14:2.13)
114    मंझला (ऊ टेबुल पर चाय रखे के बाद जाय लगल तखनिये हमरा कुछ आद आ गेल आउ हम ओकरा पुछनूँ - "तोर कपड़ा बनलउ मेहर ?" - "हाँ, मंझला बाऊ बहुते सुथर फराक ला देलथीं हे ।")    (मपध॰12:18:23:2.4)
115    मजमा (= भीड़) (हुआँ पहुँचलन तो नजारा दूसर हल । आस-पड़ोस के मरद-औरत चारो तरफ से मजमा लगएले हलन । कोई मना करेवाला न हल । मलुआ धोबी पाटा से मार-मार के मेहरारू के भरता बनवइत हल ।; सउँसे मजमा मलुआ बहू के बेआन पर माथा ठोंक लेलक ।)    (मपध॰12:18:49:2.7, 3.36)
116    मजूद (= मौजूद, हाजिर, उपस्थित) (गोसा से लाल-पीयर लहन अपन अड्डा मिडिल इस्कूल पहुँच गेल, जहाँ पहिले से ही मजूद ओकर साथी हरिया, मोहन, दीनू सब ओकर राह ताक रहल हल ।)    (मपध॰12:18:21:2.13)
117    मन (~ मारना) (राजा-रानी के मंदिर बनवे के मन न हलइन बाकि राजमाता के बात टारे के औकातो न हल । मन मार के मंदिर बनवे ला एगो मंत्री सिवै सामंता के बहाल कैलन । सामंता 12 सौ करीगर विसु महाराज के देलन । 12 बरीस तक काम होवीत रह गेल ।)    (मपध॰12:18:13:3.18)
118    मन-मिजाज (खैर ! एक बात तो हिरदय से स्वीकारतन लोग-बाग कि 'मगही पत्रिका' के प्रकाशन शुरू होला के बाद आउ 'मगही पत्रिका परिवार' के गठन के बाद निश्चित रूप से मगही लिखताहर-पढ़ताहर के मन-मिजाज थोड़े हरियाल जरूर हे ।)    (मपध॰12:18:4:1.16)
119    मरनी-हरनी (महेश सिंह - हाँ त, यदुवंशी सिंह । उ देव आउ श्रीभजन सिंह के चर्चा पूरा करऽ । / यदुवंशी सिंह - भाई, बात इ हे कि श्रीदेव आउ मुखिया श्रीभजन एके बूँट के दाल हो गेल हथ । दुन्हूँ अब एक साथ बैठका लगावऽ हथ । / महेश सिंह - सच ! दुन्हूँ के दू राह हल । एक सही राह पर चलेवाला आउ दोसर बेइमान । / यदुवंशी सिंह - आउ न त का । कबो श्रीभजन देव हीं कबो देव श्रीभजन हीं ? शादी-बियाह से मरनी-हरनी तक दूनो में पारिवारिक हेल-मेल हे ।)    (मपध॰12:18:44:1.24)
120    मल्हानी (मथुरा सिंह नेहाली बिग के दन से बाहर अइलन । डंटा-लाठी खोजे लगलन । मेहरारू पर गोसएलन - दे ससुरी लाठी । गाँव में चोर-डाकू घुस गेलन हे । उनका न जवाब मिलल, न लाठी । जल्दी में नजर आएल मल्हानी (मट्ठा महेवाला) । ओही लेके दउड़ गेलन ।)    (मपध॰12:18:49:2.2)
121    मसोमात (ई मामला हमर गाम के हे, जहाँ एगो गरीब मसोमात पइसा के कमी खातिर अपन मरज के इलाज नयँ करा सकल आउ एहे महजिद के नीचे अपन मउगत के गले लगा लेलक ।)    (मपध॰12:18:24:1.29)
122    महजिद (अपन पहुँच आउ अमीरी के बल पर ऊ महजिद आउ बयतुलमाल आनी दान देवल पइसा के फंड के सेकरेटरी बन गेला हल ।; बस, एधरे से जा रहनूँ हल तउ सोचनूँ कि मिलइत चलूँ । आज साँझ पाँच बजे महजिद के एगो मिटिन हइ, जरूर अइहो ।; नमाज के बाद सबसे गले मिलइत आउ ईद के मोबारकबाद देबइत आउ लेबइत रहनूँ बकि हमरा इनजार हल तो साँझ के पाँच बजे के । साँझ के पाँच बजल आउ हम महजिद में हनूँ ।)    (मपध॰12:18:23:2.27, 3.2, 24:1.10)
123    मिटिन (= मीटिंग, बैठक) (बस, एधरे से जा रहनूँ हल तउ सोचनूँ कि मिलइत चलूँ । आज साँझ पाँच बजे महजिद के एगो मिटिन हइ, जरूर अइहो ।)    (मपध॰12:18:23:3.2)
124    मुख (= मुख्य) (19वीं सदी के अंतिम दिन में अंगरेजन के ई पर नजर पड़ल । कारीगरी के अद्भुत नमूना देखलन । मुख दरवाजा के पत्थल से बंद करवयलन त मंदिर ढहे से बचल । दसवीं सदी के ढालल लोहा के सहतीर परिसर में आझो देखल जा सके हे ।)    (मपध॰12:18:15:3.37)
125    मुझौसा (दे॰ मुझौंसा, मुँहझौंसा) (दखिनवारी टोला से जनानी के अवाज उनकर कान तक पहुँच गेल - "बाप रे बाप ! मुझौसा जान मारलक गे मइया ! जान बचावऽ ए दादा ।")    (मपध॰12:18:49:1.26)
126    मोफलिसी (ई ओहे मुखिया जी हला जिनका यहाँ मेहर के माय अपन मोफलिसी कम करे खातिर काम करऽ हल आउ जिनका बारे में सौंसे समाज मुँहचुप्प मेहर के नजायज बाप बोलऽ हलइ बकि सच बोले के तागत केकरो में नयँ हलै ।)    (मपध॰12:18:23:2.14)
127    रगड़ा (= कठिन परिश्रम; रगड़ने के बाद बना चिह्न; रगड़ने की क्रिया) (हमरा पता हे कि मिरतु पर विजय कठिन हे, हम जानो ही कि जीवित रहना एगो कड़र काम अउ रगड़ा हे, तइयो हम जीअ ही, भोगऽ ही अउ सवालन के समाधान ढूँढ़े के कोसिस करऽ ही ।)    (मपध॰12:18:17:1.36)
128    रजनीति (= राजनीति) (उरमी के मुखिया के दबेदार बनबे पर ठाकुर के लगुअन-भगुअन हैरत में पड़ गेलन । ओकरा रजनीति के 'क' 'ख' भी नयँ पता आउ ऊ मुखिया बनतै, अंगूठा .. ठेप्पा मार ।)    (मपध॰12:18:19:2.11)
129    राखनी (ऊ सीट अनुसूचित जाति खातिर रिजप हो गेल हल ... बकि ठाकुरो हल रजनीतिक सतरंज के पक्का खेलाड़ी । नामांकन के दिन ऊ अपन राखनी उरमी के बाजा-गाजा के साथ नामांकन करवा देलका । ओकर विरोधी के दिरिक मार देलक - "बड्डी चालबाज हइ ठाकुर ... आसानी से हार मानेवाला नयँ हइ ।")    (मपध॰12:18:19:2.4)
130    रामन (= रावण) (साँझ के चौपाल जमऽ हल तो बूढ़-पुरनियाँ कहऽ हलन, "धीरज धर बेटा, बहुते दुनियाँ देखलूँ हे । हर अताय के एक-न-एक दिन जरूर अंत होवऽ हइ । रामन, कंस के होलै, ठाकुर धिरेन्दर सिंह के होलै, तो लहना के भी जरूर होतै । हर अति के अंत होवऽ हइ, ई परकीरति के नियम हइ ।")    (मपध॰12:18:21:3.16)
131    रिजप (= रिजर्व्ड, आरक्षित) (ऊ सीट अनुसूचित जाति खातिर रिजप हो गेल हल ... बकि ठाकुरो हल रजनीतिक सतरंज के पक्का खेलाड़ी । नामांकन के दिन ऊ अपन राखनी उरमी के बाजा-गाजा के साथ नामांकन करवा देलका । ओकर विरोधी के दिरिक मार देलक - "बड्डी चालबाज हइ ठाकुर ... आसानी से हार मानेवाला नयँ हइ ।")    (मपध॰12:18:19:2.1)
132    रेकसा (= रिक्शा) (ओकर मरद बेचारा सोमुआ ओकर हर जरूरत कैसे पूरा करतै हल । धनरोपनिये बखत कुछ कमा हलइ, बाकि रेकसा खींचइत कैसूँ दू जन के रोटी के जोगाड़ कर पावऽ हलइ ।)    (मपध॰12:18:19:2.20)
133    लगु (= लगी; तक) (खैर ! 48,600 रु. खर्च करके जौन 'मगही महोत्सव' आयोजित करबैलिअइ आउ 8,000 रु. से ऊपर साधारण अंक से अधिक खर्च करके ओकर जे विशेषांक छापली ओकर बाद करजा जे चढ़ल 34-35 हजार के ओकरा से आज लगु उकरिन नञ् हो सकलूँ हे ।)    (मपध॰12:18:8:3.3)
134    लते-लते (महेश सिंह - बाकि श्रीदेव के दीन दसा त खराब हो रहल हे । दीअर के खेत दह के गंगा के गर्भ में दिल मिला रहल हे । / यदुवंशी सिंह - अरे भाई ! इ कहऽ कि उनका पास एको धुर जमीन न हे । / महेश सिंह - मगर इनका कुलीनता के जमीन न गिरल हे । लते-लते फट रहल हथ बाकि जमींदारी के जज्बा न फटल हे । कहल जाहे, रेशम फट जाहे बाकि इ अप्पन रसम न छोड़ऽ हे ।)    (मपध॰12:18:44:1.34)
135    लम्बर (= नम्बर) (उरमी दलित समुदाय से हल बकि काया कौनो अपसरा से कम नयँ हल । उमर चौबीस-पच्चीस के होतइ । एक लम्बर के बदचलन ।)    (मपध॰12:18:19:2.16)
136    लाठी-डंटा (अबला के रोवाई ऊ तनिको सुनिए न सकऽ हलन । कान में अवाज आएल कि उनकर पारा गरम हो जा हल  । सातो असमान सिर पर उठा ले हलन । एही से उनकर घर के लोग लाठी-डंटा सब लुका के रखऽ हलन ।)    (मपध॰12:18:49:1.17)
137    लुंज-पुंज (ई ठीक हे कि गाछ बुढ़ा गेल हे, एकर लुंज-पुंज डँहुड़ी से हमर घर-परिवार आजिज हे, टोला-पड़ोस तबाह हे बाकि एकरा कइसे हम गिरा देम ?)    (मपध॰12:18:29:1.12)
138    लुकना (= नुकना; छिपना) (विसु महराज के बोलिये न निकलल । धरम पद लुक के ई बात सुन रहल हल । बाप के स्थिति के ओकरा भान हो गेल । ऊ धीरे से कंगूरा पर चढ़ गेल, उपरे से कूद गेल आउ मर गेल ।)    (मपध॰12:18:15:3.22)
139    लुल्ही (= लूली) ('सब गेल झुम्मर पारे, लुल्ही कहलक हमहूँ ।' सुनके थोड़े अजीब जरूर लग रहलै होत अपने सबके बकि ई बात हमरा सामने सोल्लह आना सच साबित हो रहलै हे । दिल्ली से 'मगही पत्रिका' के प्रकाशन शुरू होला के बाद हमरा नियन निबुधिया के, अपने सबसे जे मान मिललै ई कते बुधगर लोग के हजम नञ् हो रहलै हे ।)    (मपध॰12:18:5:1.1)
140    लेटाना-सनाना (आजे धोवल कुर्ता-धोती, तूफान के बाद बचल कादो-पानी में लेटा-सना गेल । कपड़ा देखके घिन बर रहल हे ।)    (मपध॰12:18:27:3.33)
141    सँस्ता (= सस्ता; सँहता) (भितरिया उपेक्षा अगरचे लेखक के एक किसिम के सँस्ता प्रचार दने ले जाहे त बाहर के उपेक्षा ओकरा एक रंगन के कलावाद दने ।)    (मपध॰12:18:18:1.12)
142    संगेय (~ अपराध) (हीयाँ 'ग्लोबलाइज्ड यूनिवर्स' आउ चहुमुखी विकास करे के तमगा से विभूषित रहेवला राजा के राज में तो रिजनल भाषा के बातो करना राष्ट्रद्रोह जइसन संगेय अपराध समझल जाहे ।)    (मपध॰12:18:4:1.10)
143    संझौती (खैर ! एक साल में 'मगही पत्रिका परिवार' के निम्मन आकार मिल गेलइ । एकर वर्षगाँठ में अभी महीना खाँढ़ देरी हइ । तब तक 'मगही पत्रिका परिवार' ओइसन दिखे लगतइ जइसन पट खुलला के बाद मंगल के संझौती घड़ी बजरंगबली दिखऽ हथिन- सेनूर आउ संस्कार से डबडब, फूलमाला से अलंकृत ।)    (मपध॰12:18:4:1.30)
144    सबेरगरे (= जल्दी, सामान्य समय से पहले; सुबह-सुबह) (एक दिन के बात हे कि जाड़ा के डर से मथुरा सिंह सबेरगरे नेहाली में समा गेलन । रात के आठ-नौ बजइत हल ।)    (मपध॰12:18:49:1.21)
145    सुचगर (सुचगर लेखक हरसट्ठे सतायल लोग के पच्छधर होवो हथ ।)    (मपध॰12:18:18:1.12)
146    सुटसुटाना (चिलम ~) (केकरो याद न हे कि ई गाछ कहिया से हे, नगेसर के बाबा भी एकरे छाहुर में दोल-पत्ता खेलो हला अउ उनखर बाबा भी एकरे तर चिलम सुटसुटावऽ हला ।)    (मपध॰12:18:29:1.20)
147    सोझा (= सीधा; आगे, सामने) (श्रीभजन - श्रीदेव, तू हमरा आँख के सोझा से हँटऽ । अब हमर ब्लड-परेसर गरम हो रहल हे ।)    (मपध॰12:18:46:1.8)
148    सोलह (~ दूनी आठ) (अदमी कहाँ से कहाँ पहुँच गेल बाकि तोहनी बर्हम के पुच्छी पकड़ले हका । हम तो हियो जाहिल, सोलह दूनी आठ बाकि तोहनियो हा बकाठ ।)    (मपध॰12:18:30:1.2)
149    सोल्लह (= सोलह) ('सब गेल झुम्मर पारे, लुल्ही कहलक हमहूँ ।' सुनके थोड़े अजीब जरूर लग रहलै होत अपने सबके बकि ई बात हमरा सामने सोल्लह आना सच साबित हो रहलै हे । दिल्ली से 'मगही पत्रिका' के प्रकाशन शुरू होला के बाद हमरा नियन निबुधिया के, अपने सबसे जे मान मिललै ई कते बुधगर लोग के हजम नञ् हो रहलै हे ।)    (मपध॰12:18:5:1.2)
150    हक (~ लगना = उचित प्रयोग में आना) (बेमतलब के सुई देवे पड़ रहल हे घायल सब के । अइसन-अइसन दवाई तो हमनीन मंत्री के भी नसीब न होहे । जे देश कम विकसित हल ऊ सब रुपइया से मदद कइलक हे ओही कुछ हक लगल ।)    (मपध॰12:18:28:2.11)
151    हाँफी-डाँफी (मगध विश्वविद्यालय में मगही में एम.ए. के पढ़ाय शुरू होवे के चलते बोधगया/ गया मगही के गुरुत्वाकर्षण केंद्र बन गेल हे, काहे कि पटना में 'अलका मागधी' थोड़े थिराल हे आउ 'मगही अकादमी' तो हाँफी-डाँफी के बाद भी चारो कदम नञ् चल पा रहल हे ।)    (मपध॰12:18:4:1.6)
152    हूँह (जेतना खाव, कोय मना करेवाला नयँ । रसगुल्ला, बरफी, जिलेबी के साथ-साथ मधुरस खूब पी ... हूँह, रघुआ के बेटा अपोजीसन में बड्डी मजगूत हइ । अरे एतनो खरच करे के औकात हइ ? इलेकसन लड़तै ... जेभी में अठन्नी भी नयँ होतै, सहर से पढ़ के अइलै ह, लेकचर झाड़ऽ हइ - 'विकास लेल भोट द', ही-ही-ही !!!)    (मपध॰12:18:20:2.36)
153    होतम-हवातम (संजोग बैठल आउ होतम-हवातम 9 जनवरी 2011 के मगही के महारथी घमंडी राम के जन्म दिवस के दिन 'मगही पत्रिका' के पिलिंथ दोबारा से बाँधल गेल । ओकर बाद हम बिहारशरीफ, राजगीर, हिसुआ, नवादा, वजीरगंज, वारिसलीगंज, कासीचक, शेखपुरा, शेखोपुरसराय, बरबीघा, लखीसराय, मोकामा, बाढ़, अथमलगोला, दानापुर, विक्रम, पालीगंज, मसौढ़ी, जहानाबाद, मखदुमपुर, बेलागंज, गया आउ बोधगया के पवित्र मट्टी लाके 'मगही पत्रिका' के दाबा में डालली ।)    (मपध॰12:18:7:2.6)