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Monday, February 28, 2011

54. मगही कवियों का हुआ समागम

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_7383334.html
28 Feb 2011, 08:16 pm

काशीचक (नवादा) निज प्रतिनिधि :प्रखंड मुख्यालय में रविवार की देर रात अखिल भारतीय मगही मंडप के बैनर तले कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। मगही अकादमी के प्रदेश अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा उर्फ कवि जी की अध्यक्षता में आयोजित सम्मेलन में कवि मिथलेश, परमेश्वरी समेत विभिन्न जिलों से आये 40 कवियों ने अपनी कविता का सस्वर पाठ किया।

Friday, February 25, 2011

53. बिहार मगही दिवस की तैयारी शुरू

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_7356186_1.html
22 Feb 2011, 08:56 pm

काशीचक (नवादा), निज प्रतिनिधि : राज्य स्तरीय मगही दिवस के आयोजन की पृष्ठ भूमि तैयार करने को ले बिहार मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा की अध्यक्षता में काशीचक बाजार में 27 फरवरी को कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया है। जिसमें राज्य भर के मगही कवि भाग लेंगे। मगही अकादमी प्रकाशन विभाग के कवि मिथलेश ने बताया कि मगही दिवस के प्रति मगध वासियों को प्रेरित करने तथा मगधांचल के रीति-रिवाजों परिधानों के बारे में युवाओं को प्रेरित करने के उद्देश्य से कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। जनगणना में मातृभाषा कालम में मगही का उल्लेख करने का आहवान उन्होंने स्थानीय लोगों से किया तथा कार्यक्रम में भाग लेने की अपील की।

Thursday, February 24, 2011

52. 'ई मट्टी हम्मर हे' फिल्म की शूटिंग शुरू

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_7339933.html
18 Feb 2011, 10:16 pm

गया, गया कार्यालय: गया शहर के भगवान विष्णुपद मंदिर परिसर में शुक्रवार को 'ई मट्टी हम्मर हे' फिल्म की शूटिंग की गई । के. एम. मिश्रा द्वारा लिखित मगही नाटक को शिवम फिल्म्स के बैनर तले टेलिफिल्म बनाने हेतु मुहूर्त किया गया। फिल्म के पटकथा राजीव सिन्हा एवं निर्माता निदेशक शिव कुमार ने बताया कि फिल्म की शूटिंग गया जिले के गांवों एवं शहर में सम्पन्न किया जायेगा। इस फिल्म की शूटिंग दस दिनों तक अलग-अलग स्थानों पर किया जायेगा। फिल्म में मुख्य कलाकार सुनिल समिश, संजय कुमार, गिरिश सिन्हा, प्रभय ओझा, आनंद प्रकाश, अजय शंकर, विजय सिंह, प्रदीप विश्वकर्मा एवं स्त्री पात्र में पुनम राठौर, शिवानी गुप्ता, निया, अर्चना किरदार निभायेगी। राकेश कुमार मिन्टू, परमानंद प्रसाद गुप्ता, अजय शंकर, डा. पप्पु तरूण, मनोज कुमार मदेशिया, अमर कुमार, रवि प्रकाश, उमेश जी, बसंत कुमार एवं महेश प्रसाद और रूपक फिल्म निर्माण के सहयोगी होंगे।

Friday, February 18, 2011

51. मगही रचना 'अन्नदाता किसान हो' का लोकार्पण

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_7316622_1.html
13 Feb 2011, 08:37 pm

वारिसलीगंज (नवादा) निज प्रतिनिधि : हम किसान धरती के सेवक, हमर अजब कहानी हे। सब दिन माटी के देहिया, मटिए वित्तल जिन्दगानी हे। यह उद्गार था बिहार मगही मंडप के अध्यक्ष रामरतन प्रसाद सिंह रत्नाकर का। मौका था मगही संवाद के 16 वें अंक 'अन्नदाता किसान हो' के लोकार्पण का।

शांतिपूरम सूर्य मंदिर के सभा भवन में रविवार को आयोजित बिहार मगही मंडप के 80वां कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए श्री रत्नाकर ने सरकार से मगही को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान देने तथा चल रहे जनगणना में मातृभाषा के रूप में मगही अंकित करने पर बल दिया। कार्यक्रम में 'अन्नदाता किसान हो' नामक पुस्तक का विमोचन मगही कवि व साहित्यकार कृष्ण मुरारी सिंह किसान समेत मंडप के सचिव डा. गोविन्द जी तिवारी तथा धनंजय सरोजी ने संयुक्त रूप से किया। मौके पर उपस्थित कवियों ने समसामायिक कविता पाठ किया। जबकि मगही साहित्यकारों ने मगही भाषा के विकास पर गंभीरता से विचार विमर्श किया। श्री रत्नाकर ने अपने सम्बोधन के दौरान कहा कि भारत के किसान जागरण के इतिहास में एक नाम वारिसलीगंज का भी है। रेवरा के प्रसिद्ध किसान- जागरण के पुरोधा स्वामी सहजानंद सरस्वती, यदुनंदन शर्मा जैसे नेता एवं कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी, राहुल सांकृत्यायन ने एक साथ हल जोता था। तथा अंग्रेजों भारत छोड़ो एवं जमींदारी प्रथा का नाश हो का शंखनाद किया था। उन्होंन कहा कि हमारा उद्देश्य मगही गीत सुनाना नहीं है, बल्कि हम प्रीत जगाने में विश्वास करते हैं। कार्यक्रम में नवादा, नालंदा, शेखपुरा तथा जमुई जिले के दो दर्जन मगही कवियों ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। मौके पर उदय भारती, डा. संजय, दीनबंधु, प्रो.लालमणि विक्रांत, शिवदानी भारती, गनौरी ठाकुर जयराम देवसपुरी, डा. चतुरानन मिश्र चतुरा, डा. सुनील, रामस्वरूप सिंह दीपांश आदि कवि ने कविता पाठ किया।

50. डीएम की मातृभाषा मगही

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_7298682_1.html
09 Feb 2011, 08:08 pm

गया, जागरण प्रतिनिधि: जिलाधिकारी आवास। समय- दोपहर 12:30। जनगणना के लिए डीएम आवास पर पहुंचे कई अधिकारी व प्रगणक रूबी कुमारी। जिलाधिकारी संजय कुमार सिंह से कई सवाल प्रगणक रूबी कुमारी ने पूछा। डीएम श्री सिंह ने एक-एक कर सभ सवालों का जवाब दिया।

डीएम श्री सिंह ने अपने परिवार के सभी सदस्यों के बारे में जानकारी दी। जैसे पत्‍‌नी अल्पना सिंह की शैक्षणिक योग्यता एमए (एलएसडब्ल्यू)। पुत्र का नाम उत्कर्ष चंद्रा। पुत्री का नाम लावन्या है। अर्थशास्त्र से स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त कर चुके जिलाधिकारी श्री सिंह की मातृभाषा मगही है। वहीं पत्‍‌नी और बच्चे घर में हिन्दी में बात करते हैं। जिलाधिकारी श्री सिंह अंग्रेजी और उड़िया भाषा के न केवल जानकार हैं बल्कि दोनों भाषाओं में बात भी करते हैं। जबकि पत्‍‌नी और बच्चे हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेजी के जानकार हैं।


Thursday, February 17, 2011

20. सीपी

कहानीकार - राजेन्द्र कुमार यौधेय

सीपी के माए दाँओ-दाँओ करित रहे हे - 'एन्ने-ओन्ने अकसरे मत जाल कर ! जमाना खराब हे, सगर लुच्चा-लफंगा चक्कर मारित रहे हे ।'

बाकि ओकरा पर असर न पड़ल माए के चाँप के । घर के अँगाड़ी के बँसवारी भिजुन के परती जमीन पर घंटो बइठल रहत बेमतलब । जे ओकरा देखे हे सेई अकचका जाहे । अइसने सुत्थर हल फिन ऊ । बड़गो-बड़गो आँख, पतरा ठोर, गोरा-चिट्टा रंग, भरल गदराएल देह परी जगत लगऽ हल । साँझ के महतो के बइठका में जुआन लोग के जमएकड़ा जुटे हे तो ओकर चर्चा छिड़े हे । लोग कहे हे - 'एकर बिआह में तिलक के जरूरत न होतइ ।'

एक दिन सीपी के कान में बात आल कि ओकर बिआह ठीक करे ला ओकर बाबा घूम रहलन हे । दुपहर के बेरा हल, ठार के दिन । ऊ बँसवारी भिजुन जाके बइठल हल । घरे से माए के काने के अवाज आल त धरफड़ाल चलल, ओकर करेजा धक-धक कर रहल हल । जनु बाबा फिनो माए पर हाथ छोड़ देलन । पहिले तो ऊ अइसन न हलथिन ?

अब ऊ अप्पन घर के आँगन में ठार हल । ओकर माए ओसरा में बइठ के पिपकारित हल । पड़ोस के रुकमिन फुआ आके समझावे लगलन ओकर माए के - 'काहे ला तूँ टोक-टाक करऽ हहु भउजी ? घर में कारज नधाइत हवऽ, झगड़ा-झंझट करबऽ त दुनिया जहान में हिनसतई होतवऽ । केकर-केकर मुँह बन्द करबऽ । लोग कहतवऽ कि बिआह के खरचा लेके पितपिताएल हे । कारज भर मुँह सी के रहे पड़तवऽ ।'

ओकर माए चुप हो गेल । अँचरा से लोर पोंछ के बोलल - 'कहाँ ले अँगजूँ ? सहहूँ के एगो हद होवे हे ।'

रुकमिन फुआ न ठहरलन । जइते-जइते कहलन - 'हमरा जे बुझाल से कहली ।'

रुकमिन फुआ गाँव-जेवार में बदनाम हथ । लोग किसिम-किसिम के अछरंग लगावे हे उनका पर । एन्ने दस बरिस से गाँओ में बँटवारा के जुआर आल हे, पत बरिस दस-पाँच घर में बँटवारा होवे हे आउ हर बँटवारा के मूल में रुकमिन फुआ के हाथ मानल जाहे । पत बरिस गाँओ में भागा-भागी के दू-चार गो घटना होवे हे आउ हमेशा ओकरा ला रुकमिन फुआ के बदनाम कएल जाहे । पढ़े (? परहे) एगो मेढ़ानू अप्पन परेमी सँगे भागल हे आउ अभी ले ओकर अता-पता तक न हे । लोग कहऽ हथ कि ओहू रुकमिन फुआ के करतूत हे । भगमाने बता सकऽ हथ कि सच्चाई का हे ? बाकि दिन भर उनका हीं गाँव के मेढ़ानू के भीड़े लगल रहे हे ।

सीपी घरे न विनमल । फिनो बँसवरिये में पहुँच गेल । लइकन के गोली खेलते हलक से कहूँ चल गेल हल, से ऊ टुंगना लेके भुइयाँ पर डील घीचे लगल, फिनों विचार के दुनिया में भटक गेल ... ।

तिलक असमान ठेक रहल हे । पढ़साल (? परसाल) जौन-जौन आदमी बेटी बिआहलक तौन-तौन अप्पन दू बिगहा चार बिगहा खेत बेचलक, तब कहूँ दहेज के पइसा जुटा सकल । जे खेत न बेचलक से कहूँ से करजा लेलक । आउ खरचा से पीसमान होके रहल अब ओकनी के टनटनाये में जमाना लगतई ...।

सीपी चिन्ता में डूबल रहलक । साँझ के रुकमिन फुआ से गल्ली में भेंट होल त जानलक कि ओकर बिआह पूरे एक लाख पन्द्रह हजार में ठीक होल हे । वर कउलेज में पढ़ऽ हे ।

एक रोज खबर आयल कि लड़का अड़ल हे कि लड़की के फोटो देखले बेगर बिआह न हो सकऽ हे, से बाबा के साथे सीपी सहर गेल । ओकर फोटो घींचावल गेल । एक हप्ता के बाद फोटो आयल । फोटो लेके बाबा अपनहीं गेलन । घूर के अयलन तो मालूम भेल कि बिआह टूटते-टूटते रुक गेल हे । दूसर जगह के अदमी दू लाख तिल्लक देवे ला तइयार हे । घर के अदमी तो लोभ में आ गेलन हल । बाकि लड़का फोटो देख के कहलक कि हम बिआह करम त सीपीये से करम । से बात टूटते-टूटते बच गेल ।

तिलक के तइआरी शुरू हो गेल, बाबा पाले एगो कानी कौड़ी न हल । पूरा दस बिगहा खेत बेचे के बात शुरू हो गेल । माए एक रोज फिर अड़ंगा डाललन - 'एतना खेत बेच के बिआह करबऽ त फिनो खइबऽ पीबऽ का ? केकरो हीं हरवाही करबऽ ?'

जवाब में बाबा फिन हाथ छोड़लन आउ माए जार-बेजार रोवे लगलन । तखनी सीपी घरहीं हल । डबडबायल आँख लेले ऊ रुकमिन फुआ हीं जाके कहलक - 'ए फुआ ! अब हम ई तय कइलीवऽ हे कि एन्ने के सूरज चाहे ओन्ने हो जाय बाकि हम बिआह नऽ करम ।' ओकरा घिग्घी बँध गेल ।

फुआ कहलन - 'कइसन बात बोल रहले हें ? कहीं होलई हे अइसन बात ? हँ, यदि हुआँ नऽ करे ला चाहऽ हें त दूसरा जगह खोजे के चाहइन । कह तो हम जाके कह दीं । जानबे करऽ हें कि हम एही से गाँ-जेवार में खट्टा रहऽ ही । लोग घरफोरनी आउ कुटनी कहे में बाज न आवऽ हथ ।'

सीपी खाली रोवइत रहल । कुछ देर रुक के फुआ कहलन - 'हम जइते ही तोर बाबा के कहे कि दूसर जगुन लइका ढूँढ़तन । दुनिया में लइका के कोंकरा नऽ खइले हइ । बाकि तूँ ई तो बताव कि का बात लेके तूँ ऊ लइका के कट्टिस कर रहलहीं हे ?'

सीपी कहलक - 'सब खेत-बारी बेच-खोंच के घर भर भीख माँगे, अइसन बिआह काहे ला करत ?'

सीपी हुआँ से लौट के बँसवारी देने गेल आउ बइठ के देरी ले सिसकइत रहल । घड़ी दू घड़ी के बाद घरे आल । घरे टोला पड़ोस के मेढ़ारू (मेहरारू) सब के भीड़ लगल हल । जेकरा जे बुझाइत हल कहइत हल । फुआ हुआँ पर न हलन । माए कहलन - 'फुए बुनिया के बहकइले हथ । एक्के गो उनकर धन्धे हे । जहाँ कोई कुनूस देखलन कि उसका देलन ।'

कहे के तो माय कह देलन बाकि फिनो एकबैग चुप हो गेलन । तनि देर के बाद कहलन - 'समझावे-बुझावे से बुनिया फिन रहता पर आ जायत । बाकि कहूँ ई सब बात के भनक वर के माय-बाप के मिल गेल तो फिन एगो नया समस्या पैदा हो जायत ।'

तिलक भेजे के तइयारी पूरा हो चुकल हल । लड़का के कपड़ा सब तइआर होके आ चुकल हल । सीपी बँसवारी में जाके अकेले बइठल हल । लोग देरी करना उचित न समझलन । बाबा लाव-लसगर के साथ सब समान लेके बहरइलन । बँसवारी से सीपी देखलक कि लोग तिलक के समान लेके जा रहलन हे । ऊ तनि झपट के घरे पहुँचल आउ बाबा के अँगारी में जाके ठार हो गेल । बोललक - 'हम बिआह न करम । यदि जबरदस्ती होत त जान हत देम ।'

सीपी जिद धइले रहल - 'खेत न बिकत न रेहन होत । अगर खेत बिकत तो कोई कोटिम किल्ला करत, तइयो हम बिआह न करम ।'

अब का हो सकऽ हल ? जब ओकर बाबा देखलन कि समझाहूँ-बुझाहूँ से सीपिया अप्पन जिद से टस से मस नऽ हो रहल हे, त ऊ अपने जाके वर के माए-बाप से कह देलन ।

दू दिन के बाद खबर आयल कि लड़का बिना तिलको के बिआह करे ला तइआर हे । बलुक ऊ जिद धइले हई कि बिआह करम त एही लड़की से । यदि पहिले हमरा मालुम हो जाइत हल कि लड़की एत्ता सुत्थर हे तो तिलक के माँगे न करती हल ।

[मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी", बरिस-४, अंक-६, जून १९९८, पृ॰७-९ से साभार]

Wednesday, February 16, 2011

49. मातृभाषा कालम में मगही लिखने की अपील

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/westbengal/4_13_7302263.html
10 Feb 2011, 05:42 pm
कोलकाता : मगध नागरिक सेवा संघ ने नौ फरवरी से शुरू हुए जनगणना अभियान में मातृभाषा के कालम में मगही ही लिखने की अपील की है। संघ के अध्यक्ष पारस कुमार सिंह ने बताया कि सरकारी प्रावधान के अनुसार जनगणना फार्म के दसवें नंबर कालम में अपनी मातृभाषा का उल्लेख है, जहां मगधवासी मातृभाषा के रूप में मगही लिखवायें तो मगही भाषा को संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की मुहिम को बल मिलेगा। इसके साथ ही सरकार को मगहीभाषियों का सही आंकड़ा भी मिलेगा। अनजाने में बहुत से लोग मातृभाषा के कालम में हिंदी लिखा देते हैं, जो गलत है और इससे सरकार के पास मगहीभाषियों का सही आंकड़ा नहीं मिल पाता। इसलिए मगध के लोगों और मगहीभाषियों को अपनी मातृभाषा को सही पहचान दिलवाने के लिए साथ देना चाहिए।


Wednesday, February 02, 2011

48. मगही महोत्सव आयोजन को ले बैठक

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_7229467_1.html

24 Jan 2011, 08:43 pm
हिसुआ (नवादा) निज प्रतिनिधि : मगही अकादमी द्वारा आयोजित की जा रही मगही महोत्सव की सफलता को लेकर नगर के मगही कवियों की बैठक रविवार को मगही अकादमी के सदस्य उदय भारती के आवास पर हुई। बैठक की अध्यक्षता मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा उर्फ कवि जी ने की। बैठक में महोत्सव की सफलता के लिये विचार -विमर्श किया गया। जिसमें निरंजना पत्रिका का प्रकाशन व दो दिनों तक आयोजित होने वाले कई सत्रों की कवि गोष्ठी पर चर्चा हुई। बैठक में दिल्ली से प्रकाशित मगही पत्रिका के सम्पादक धनंजय क्षत्रिय, दीनबंधु सहित अन्य मगही कवि उपस्थित थे।