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Monday, November 28, 2011

11. मगही शब्द-शक्ति


लेखक - श्री शिवप्रसाद लोहानी (जन्म - 1924 ई॰), नूरसराय, जिला - नालन्दा

मगही के दधीचि स्व॰ डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री मगही के सामर्थ्य-शक्ति के बारे में जब बात शुरू करऽ हला तो बहुत लोगन के अजीब लगऽ हल । मगर जब ऊ दस-बीस शब्द के उदाहरण दे हला औ कहऽ हला कि ई शब्दन के हिन्दी रूपान्तर बतावऽ तो सुनेवालन के मिट्टी-पिट्टी गुम हो जा हल । एकरा पर ऊ समझावऽ हला कि अब तोहीं बतावऽ कि ई सब मगही के शब्द अगर हिन्दी में जात तो हिन्दी के शब्द-शक्ति बढ़त कि नई । ऐसन शब्दन में फोकरायँध, ममोसर, मलगोवा, खखुआना, खख्खन, अन्नस, करीआती, फूही, अहूठ आदि के चरचा करऽ हला ।

सचमुच में देखल जाय तो ई प्रकट होवऽ हे कि हर भाषा औ बोली के कुछ ऐसन शब्द रहऽ हे जेकर प्रतिरूप दोसर भाषा औ बोली में नई मिलऽ हे । अंग्रेजी के एक शब्द हे - ओबसेसन (obsession) । एकर प्रतिरूप शायद हिन्दी में कुछ नई बुझा हे । ओही रूप में हिन्दी मगही के बहुत सा ऐसन शब्द हे जेकर रूपांतर के शब्द अंग्रेजी में नई मिलऽ हे । चटनी, घी, जंगल ऐसन शब्द हे जेकरा अंग्रेजी के रोमन लिपि में ओही रूप में लिखल जाहे ।

बात ई हे कि जे जीवित औ गतिशील भाषा रहऽ हे ऊ ओइसन शब्द के अप्पन में समाहित कर लेहे जेकर प्रतिरूप ऊ भाषा में नई मिलऽ हे । अक्सर थोड़ा सा परिवर्तित रूप में मगही में अइसन शब्दन के स्वीकार कैल गेल गेल हे । हिन्दी उर्दू के शौक शब्द मगही में सौख, टंटा टंठा, लू लूक, हिर्स हिरसी, किस्सा खिस्सा, आदमी अदमी आदि बन गेल मगर ओकर अर्थ में कोई परिवर्तन नई होल । अप्पन ई भाषा में अप्पन ढंग से रचावे पचावे के ई क्षमता हे । अप्पन जरूरत औ प्रकृति के अनुरूप दोसर भाषा के शब्द के साज-सँवार करे के शक्ति मगही में प्रभूत रूप में हे । लेकिन ई बात भी हे कि अन्तर्प्रादेशिक रूप से देश में जे कुछ शब्द स्वीकृत हो गेल ह ओकरा मगही भी ओही तरह से ग्रहण कर लेलक ह । टिकट, रेडियो, टीवी, कन्ट्रोल, साइकिल, लेट, लीड, लीडपेन आदि एकर उदाहरण हे ।

मगही में अइसन बेहिसाब शब्द हे जेकर हिन्दी में पर्यायवाची शब्द देखे सुने में नई आवऽ हे । ओइसन शब्द के ऊ लोग भी बातचीत में व्यवहार करे ला मजबूर हो जा हथ जे मगही के कट्टर विरोधी हथ । ई शब्द सब हिन्दी बोले में हिन्दिये के राहे निकल जाहे । अइसन शब्द में से कुछ के बानगी देखल जाय । उसकुन, भख्खा, छेछाहा, अन्नस, फोहवा, हड़कना, उबेरा, लुलुआना, छिनरपत आदि मगही शब्द खड़ी बोली में अनायास प्रयोग कर लेल जाहे । कोई के खिलाफ कुछ करे में ऊ ई रूप में उसकुन शब्द के प्रयोग करऽ हथ जिनका पर उसकुन कैल जाहे । जैसे 'वे मेरे विरुद्ध उसकुन कर रहे हैं' , 'श्याम का भख्खा बहुत खराब है', 'मुनिजी बहुत छेछाहा हैं', 'फोहवा को ठीक से रखना चाहिए', 'उनकी बात सुन वे हड़क गये', 'बस में बैठे-बैठे अन्नसा गये' । ई सब वाक्यन में उसकुन, भख्खा, छेछाहा, फोहवा, हड़कना, अन्नस मगही के शब्द हे । फेर भी ई शब्दन के प्रयोग मुख्य रूप से बोलचाल में कैल जाहे । स्तरीय हिन्दी लेखन में एकर प्रयोग प्रायः नई होवऽ हे । चिट्ठी पत्री आदि गाँव में व्यवहार में आवे वाला ऐसन शब्दन के खान हे जे खेती-बाड़ी औ गाँव के जिन्दगी से सम्बन्धित हे ।

खेती में पानी के जब जरूरत रहऽ हे औ कभी-कभी बुन्द-बुन्द पानी ला किसान तरस जा हका, ऐसन में थोड़ा बहुत पानी पड़ जाहे तो किसान बासों उछल पड़ऽ हका । ई हालत में कहीं पर बड़का सुराख में पानी घुस जाहे तो ओकर कष्ट के वर्णन नई कैल जा सकऽ हे । करीब-करीब ओइसने भाव के परिव्यक्त करे ला मगही में शब्द हे भंभाड़ा । कहऽ हथ कि ऊ भंभाड़ा में पानी घुस के बेकार हो गेलो । एकर छोटा रूप हे भंभाड़ी । हिन्दी में सुराख लागी बड़ा छोटा के अलग-अलग अइसने रूप नई हे । ओकरा में बड़ा या छोटा शब्द लगावे पड़त । जैसे बड़ा सुराख, छोटा सुराख । मगही के अइसन शब्दन के अप्पन इतिहास औ स्वरूप हे । मगही में कोई फल या सब्जी के पक्कल औ कच्चा के परिव्यक्त करे ला कई स्टेज के स्वरूप मिलऽ हे। जैसे बतिया, फुलबतिया, कोहड़ी, डम्भक, पक्कल, जोआल, पोखटाल अंग्रेजी में राइप (Ripe) पक्कल ला औ अनराइप (Unripe) कच्चा ला शब्द हे । लाठी शब्द के भी कई स्टेज के शब्द हे-गाभा, लाठी, चाभा, छड़ी, छकुनी, डंटा, पइना, अरउआ, सट्टी   

ग्रामीण जीवन से सम्बन्धित कुछ औ शब्दन पर ध्यान देऽल जाय- मंजाई, चौरहा, उखेल, पिछात, अगाती, मोकमास, मड़ई, करगी, दमाही, हरसज, पनियौंचा, मोरी, गाछी, धाध, ढमकोला, डीहांस,  उसरना, ऐसन-ऐसन शब्दन के संग्रह कैल जाय तो एक शब्द कोश बन जात।

जाने के चाही कि अइसन शब्दन सब मगही के ग्रामीण जीवन में रचल-पचल हे । जे भाव विचार के अभिव्यक्ति करऽ हे ओकरा ला हिन्दी में कोई विशिष्ट शब्द नई पावल जाहे । एही वजह से आधुनिक कृषि कर्म के जे किताब हिन्दी में लिखल गेल ह ओकरा में सामान्यतः अंग्रेजी के शब्दन के यथावत् रख देल गेल ह। जौन-जौन शब्द के काशी नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित प्रामाणिक हिन्दी शब्द सागर में जिकिर नई हे। एही ई बात के प्रमाण हे कि ई सब शब्दन मगही के हे।

जौन शब्दन के जिकिर पहिले कैल गेल ह ओकर पर कुछ गौर कैल जाय। मंजाई शब्द खेत के ऊपज के वजन के मिकदार ला प्रयोग कैल जाहे। जैसे ई साल के मंजाई बहुत कम होलो। मंजाई के मगही के ही पर्यायवाची शब्द दरमन भी हे। जैसे ई साल धान के दरमन बहुत कम गेलो। जानवर के वश में रखे ला पतला डोरी के एक वस्तु बनावल जाहे जेकरा नाक मुंह में लगा देल जाहे ओकरा मोकमास कहऽ हे। ताड़ के बड़ा पत्ता के ढमकोला कहल जाहे। बाढ़ के धाध भी कहल जाहे । कभी कभार दुनु शब्द मिला देल जाहे जेकरा से बाढ़ के तेजी के पता चलऽ हे- धाध-बाढ़ । धाध शब्द के प्रयोग धातुगत अर्थात्  वीर्यदोष से सम्बन्धित बीमारी ला भी कैल जाहे जेकरा में औरत या मर्द दुनु के पेशाब में उजर लसलसाल पदार्थ निकलऽ हे। डीहांस ऊ खेत के कहल जाहे जे ऊंचा नीयर जमीन हे औ ऊ गाँव के निकट रहऽ हे। जेकरा में मुख्य रूप से तरकारी, मकई, खैनी, मसाला जैसे सोंफ, धनिया, हल्दी, मिचाई आदि पैदा होवऽ हे। खेत जोते में बांये हटके जोते के भाव ओहरले से प्रकट होवऽ हे। अगारी-पगारी के थोड़ा अंश जोत लेवे के कन्हेरा कहल जाहे। आज कोओपरेटीव अर्थात् सहकारिता के लम्बा चौड़ा बात कैल जाहे मगर एकरा में सिवाय कभी-कभार कर्ज लेवे देवे के अलावे सहकारिता के व्यवहारिक स्वरूप के प्रचलित करे ला कोई कोशिश नई कैल जाहे। मगह के गाँव के जिन्दगी में सहकारिता के बहुत सा व्यावहारिक स्वरूप देखल जा सकऽ हे। ऐसन एक पद्धति हे हरसज के। हरसज शब्द ई भाव के द्योतक हे कि दू आदमी एक-एक बैल रखऽ हथ औ पारी-पारी से दुनु किसान दुनु बैल से खेत जोतऽ हका- एकरे हरसज कहल जाहे। एक प्रकार से ई सब ग्रामीण जीवन के टेकनिकल शब्द हे औ गाँव के लोग सब एकर मतलब ठीक से समझऽ हथ। 

मगही में ऐसन शब्द भी पावल जाहे जे दोसर भाषा में पावल जाहे जरूर मगर मगही में ओकर दोसर अर्थ में भी व्यवहार कैल जाहे। ऐसन एगो शब्द मोरी हे जे नाली के पर्यायवाची हे मगर मगह में मोरी शब्द धान के बिचड़ा लागी भी प्रयोग में आवऽ हे। मलका उर्दू शब्द के हे। ई पटरानी के पर्यायवाची शब्द हे मगर मगही में मलका बिजली चमके के कहल जाहे। ओने - देखऽ न आज बड़ी मलका मार रहलो ह, लगऽ हो कि पानी पड़तो। उठना एक सामान्य हिन्दी के शब्द हे । उठे के अर्थ में मगही में ई अर्थ अर्थात् उठे के अर्थ में तो प्रयोग होवे करऽ हे, खेत जोते लायक होवऽ हे तो कहल जाहे कि खेत उठ गेलो अब जोते के चाही। एकर अलावे गाय भैंस आदि जानवर के गर्माधान के प्रबल इच्छा काल के भी द्योतन करऽ हे। जैसे कि आज गइया उठलो ह एकरा बहावे ला ले जाल जाय। 

जब मगही के लिखित औ छपाल साहित्य के अता-पता नई हल तब लोग-बाग एकर शब्द शक्ति से गाफिल हला। आज ई शब्दन के प्रदर्शन लिखित औ छप्पल साहित्य के सभे विधा कविता, कहानी, नाटक, रिपोर्ताज, संस्मरण में हो रहल ह।

ऐसन-ऐसन भावपूर्ण अभिव्यक्ति के माध्यम मगही के शब्दन से हो रहल हे कि मन बाग-बाग हो जाहे।

भावपूर्ण शब्दन के योग से ऐसन काव्य-शक्ति बन जाहे जेकरा पढ़ सुन के मन बाग-बाग हो जाहे। ऐसन पंक्ति में कभी-कभी भाव एतना गुम्फित रहऽ हे कि एकर सहज अनुवाद दोसर भाषा में कठिन हो जाहे।

मइया के काज ले गंगा उमड़ै
बाबू जी के नैना दुनु लोर हे

X         X         X

लहस उठल धरती के मन हे
लदबद फूल पलास के

मगही रचना के शीर्षक कभी-कभी एतना चोटीला औ नुकीला होवऽ हे कि शब्द के बिम्ब से मन-हृदय में सहज प्रभाव उत्पन्न हो जाहे। श्री हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के एकांकी नाटक के शीर्षक 'चिमोकन' ऐसने शब्द हे।

X                     X                     X                    X                     X

उपर्युक्त विवेचन से ई स्पष्ट हे कि शब्द के बहुत महत्व हे। शब्द के बिना भाषा नई होत और न भाषा के बिना साहित्य। शब्दे के नींव पर भाषा आउर साहित्य के महल खड़ा रहऽ हे। नींव जेतना मजबूत रहत, शब्द जेतना सशक्त रहत साहित्य ओतने शक्तिशाली होत।

शब्द के बारे में तो कुछ दार्शनिक विद्वान के कहलाम हे कि शब्द ब्रह्म के स्वरूप हे औ शब्द-ब्रह्म से जगत के उत्पत्ति होल ह। ऐसन भी लगऽ हे कि शब्दे के शक्ति से अर्थ के प्रतीति श्रोता पाठक करऽ हका। शब्द में अर्थ मिलल रहऽ हे। सच तो ई हे कि शब्द के बिना अर्थ के अनभूति नई कैल जा सकऽ हे। ई रूप में ई स्पष्ट हो जाहे कि शब्द के स्वतन्त्र अस्तित्व भी हे। भाषा औ साहित्य के शब्द के अभाव में तनिको अस्तित्व नई रह सकऽ हे।

ई निबन्ध में मगही के शब्द शक्ति के बारे में कुछ संकेत देल गेल ह। एकर अलावे भी कई ऐसन बिन्दु हे जेकरा संकेतित कैल जा सकऽ हे।

हिन्दी के कई ऐसन शब्द हे जेकरा मगही में परिवर्तित होला पर के हो जाहे। जैसे काली गाय के कारी गाय या कार गाय, जलावन के जरावन जरना, ढालना के ढारना, गाली के गारी, पाली के पारी आदि।

एक वस्तु के कई स्टेज के स्वरूप जे दोसर भाषा में नई हे- फोहबा, ओकर बाद जिरिकना, ओकर बाद बुतरु, तब लड़का

अंग्रेजी के तद्भव शब्द के प्रयोग कुछ कम नई हे- पोस्टकार्ड के पोस्काट, कार्टर के कोटर, मरडर के मडर, कलक्टर के कलट्टर, कम्पाउन्डर के कम्पोडर आदि।

संस्कृत के तत्सम शब्द के कुछ उदाहरण ई हे- विकलांग, बुद्धि, मनोकामना, प्रतीक्षा, दृष्टि, सम्मति, तिलांजलि, अन्तरिक्ष, पारदर्शी, संशय, स्नान, दोषी, क्षण, षडयन्त्र आदि।

संस्कृत के कुछ तद्भव शब्द- मौजी, अजगुत, परतीत, सच्छात, मन्तर, महतारी, सुन्न आदि।

अरबी-फारसी के तत्सम तद्भव शब्द पर भी ध्यान देल जाय- जिन्दगी, बजार, शोरगुल, अवाज, गरीब,  करीब, नजर, काफी, फोरन, जमीन, फरमाइश, कारखाना, मेहनताना, तमाशा, आहिस्ता, गलत, तलाब, कदम, तलाक, हक, लंगड़ी, मिजाज, बदजात, मुशीबत, ताकत, तमीज, जात, विरादरी आदि।

उच्चारण में भेद के कारण अरबी-फारसी के जादे शब्द मगही के उच्चारण प्रवृत्ति के अनुरूप हो गेल ह।

मगही के अप्पन औ जे मगही में रच-पच के एक हो गेल ओइसन थोड़ा सा शब्द पहिले देल गेल ह। थोड़ा सा आउर शब्द ई हे।

मसमसाना, घौदा, हरहर, खरहर, नरेटी, ठस, सुथ्थर, गिरपरता, पानी पाना (प्रसव के अर्थ में), गोड़भारी (गर्भावस्था), भभ्भड़, खनखन, अपसूइया, चमड़चीट, सल्लग, खमसल, टट-ऊपर, ऊपर-पांचो, आगरों, अलबलाहा, अलबलाही, धोकड़ी, ढीक्का, बनौरी, अनचुकारी, टभकना, कोती, नेग, धोधवर, अनठिआना, लेल्हराहा, अजलत, चन्नक, लोहपितियाल आदि।

कुछ शबदन के प्रयोग पर ध्यान देल जाय -
गिरपरता ओकरा कहल जाहे जे लाचारी में कोई के आगे समपर्ण जैसन हालत में हो जाहे। जैसे- भूख मेटावेला बेचारा गिरपरता बन गेल।

अपसूइआ ऊ कमसीन लड़की के कहल जाहे जे लड़की औ औरत के बीच के बिना बेटा बेटी होल लड़की हे। जैसे- बेचारी अपसूइये में बेवा हो गेल।

अनचुकारी ओकरा कहल जाहे जे कै नीयर हालत पैदा करऽ हे मगर जरीके सा लसलसाहट नीयर पानी कै करऽ हे।

एक-एक शब्द के वाक्य में प्रयोग करके देखावे से लेख के कलेवर बड़ा हो जात गरचे ओकरो जरूरत हे जेकरा से मगही भाषा के भावी इतिहासकार के कुछ मदद मिले औ मगही के वास्तविक शब्द शक्ति के लोग जान जाथ।
[श्री शिवप्रसाद लोहानी लिखित "गलबात" (मगही निबन्ध संग्रह) में निबन्ध "मगही शब्द शक्ति" (पृ॰61-70) से  साभार]