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Sunday, February 25, 2018

इवान मिनायेव के बिहार यात्राः 3.0 गया में


3.


गया शहर फल्गू नदी के पश्चिमी किनारा पर ब्रह्मयोनि नामक पहाड़ी के तलहटी में स्थित हइ । रस्तवे से तोहरा ई बात के पक्का विश्वास हो जइतो कि हियाँ परी सगरो से भारतीय लोग अइते जा हथिन - विभिन्न प्रकार के जनसमूह गया आवऽ हइ आउ गया से जा हइ - पैदल, एक्का *) , ऊँट पर, हाथी पर, आच्छादित पालकी में औरतानी, खुल्लल चौड़गर पालकी में ज़मींदार इत्यादि यात्री, ई सब तीर्थयात्री के जनसमूह से तोहरा भेंट होतो चाहे तोहरा साथे पूरे रस्ता चलतो । लोग गया श्राद्ध करवावे लगी जइते जा हथिन, आउ सबके चेहरा पर एतना खुशी झलकऽ हइ, मानूँ आगू कोय शोक के अनुष्ठान नयँ हइ, बल्कि त्योहार आउ मौज-मस्ती के बात हइ । ऊ लोग में से अधिकांश, जे "अपन पितर लोग के आद करे लगी" अइते जा हइ - बड़गो भौतिक संसाधन वला लोग होवऽ हइ, काहेकि गया में श्राद्ध करवावे में बहुत पैसा लगऽ हइ - साथ में ब्राह्मण लोग के निम्मन भोज भी देवे के चाही, [*215] आउ गया में एतना जादे भुक्खल ब्राह्मण हइ कि सबसे अंत में श्राद्ध के भोज पर के खरचा एगो बहुत बड़गो रकम तक पहुँच जा सकऽ हइ । कलकत्ता के एगो धनी भारतीय के जानऽ हलिअइ, जे लेखक आउ पुरातत्त्ववेत्ता (archaeologist) हलइ; ऊ ब्राह्मण जात के नयँ हलइ आउ एगो हिन्दू के अपेक्षा ईश्वरवादी (deist) अधिक हलइ - तइयो अपन सामाजिक स्थिति आउ प्रभाव बनइले रक्खे खातिर ऊ हिन्दू के सब्भे अनुष्ठान, आउ जाहिर हइ, श्राद्ध  के भी पालन करना अपन कर्तव्य समझऽ हलइ । ऊ हमरा बतइलकइ कि ऊ गया नयँ जाब करऽ हइ, हुआँ जाय के बड़ी इच्छा रहला के बावजूद, जेकर पूरा स्पष्टीकरण हलइ कुछ पुरातात्त्विक मामला - ऊ नयँ जाब करऽ हइ, ताकि खरचा नयँ करे पड़े; ऊ अपन पिता के मृत्यु पर भी श्राद्ध नयँ कइलकइ, आउ गया में अपन पितर लोग के आद करे खातिर, ओकर हैसियत के मोताबिक, ओकरा लगभग चार हजार रुपइया या चार सो पौंड स्टर्लिंग खरच करे पड़ते हल । कश्मीर के महाराजा हियाँ परी श्राद्ध पर पनरह हजार पौंड खरच कइलथिन हल । आउ नाना साहेब के बाबा (दादा) , कहल जा हइ, अइसने परिस्थिति में गया में दस हजार पौंड तक खरच कइलथिन हल । ई निर्धारित करना असान नयँ हइ कि गया के श्राद्ध में गरीब लोग चाहे बिन बड़गो संसाधन वला व्यक्ति केतना खरच करऽ हइ । वर्तमान शताब्दी के शुरुआत में एगो गरीब व्यक्ति चार पौंड में गया के सब्भे पवित्र स्थल पर भेंट देवे के खुशी प्राप्त कर ले हलइ । ऊ जमाना में गया में विभिन्न क्षेत्र से सालाना एक लाख से अधिक तीर्थयात्री एकत्र होवऽ हलइ; अंग्रेज लोग बिहार पर सत्ता हथिअइला पर दीर्घ अवधि तक विशेष कर, जेकरा तीर्थ-कर के नाम से जानल जा हलइ, समाप्त नयँ कइलकइ; गया जाय वला हरेक कोय, हुआँ रस्ता में पास खातिर सरकारी खजाना के भुगतान करऽ हलइ । ई कर ईस्ट इंडिया कंपनी के समाहर्ता (collectors) संग्रह करऽ हलइ । वर्तमान काल में ई कर समाप्त कर देल गेले ह, लेकिन तीर्थयात्री के संख्या में मोसकिल से कोय वृद्धि होले ह; काहेकि गया के सब पवित्र स्थल में भेंट देवे आउ ब्राह्मण लोग के भोज देवे के खरचा निस्संदेह अधिक हो गेलइ । गया में स्थानीय ब्राह्मण लोग हइ, जे भोला-भाला तीर्थयात्री लोग के बदौलत धनाढ्य हो गेते गेले ह; [*216] ओकन्हीं गयावाला के नाम से जानल जा हइ; गयावाला लोग के 300 परिवार तक हइ, आउ कुछ परिवार के सालाना आमदनी 5000 स्टर्लिंग पौंड तक हइ । धनाढ्य गयावाला के पूरे भारत में प्रतिनिधि (एजेंट) हइ, जेकर काम हइ विश्वास करे वलन के तीर्थ पर गया बोलाके लाना । गयावाला सब अज्ञानी होवऽ हइ आउ निकम्मा आउ असंयमी जीवन गुजारऽ हइ । ओकन्हीं के वृद्ध महंत के नियमानुसार ब्रह्मचर्य के पालन करे के चाही; लेकिन विभिन्न महंत के कइएक वंशज ई बात के प्रमाण हइ कि ई नियम के हमेशे पालन नयँ कइल जा हइ । गयावाला आउ दोसर-दोसर ब्राह्मण सब तीर्थयात्री लोग के बदौलत जीयऽ हइ आउ धनाढ्य होवऽ हइ । ई सब कुछ से ई निष्कर्ष निकासल जा सकऽ हइ कि गया में ब्राह्मण भोज में केतना पैसा खरच कइल जा हइ, आउ जाहाँ भोज हइ, हुआँ निस्संदेह अपने प्रकार के मौज-मस्ती हइ - आउ ओहे से रस्ता में जब तीर्थयात्री लोग के तरफ देखभो, त अनिच्छापूर्वक विचार अइतो कि ओकन्हीं सब कोय तो खुशी के समारोह में जाब करऽ हइ ।
गया दूरहीं से देखाय दे हइ, लगभग तीन मील से । अस्ताचलगामी सूर्य के पड़ रहल अंतिम किरण के समय जब
 

*) एक्का - एक घोड़ा से घिंच्चल जाय वला स्थानीय दुचकिया, जे बहुत असुविधाजनक हइ । देसी लोग एकरा में खुशी से यात्रा करते जा हइ ।
हमन्हीं फल्गू नदी के पूर्वी किनारा पर पहुँचलिअइ, त हमन्हीं के सामने शहर दृष्टिगोचर होलइ, जे पश्चिम तरफ पवित्र पहाड़ी सब से घिरल हइ । शहर में बिन प्रवेश कइले, बलुआही किनारा पर, जाहाँ परी कहीं-कहीं तार के पेड़ देखाय दे हलइ, रस्ता में भेंटल बहुरंगी विभिन्न तरह के भीड़ अपन-अपन ऊँट, हाथी, एक्का आउ पालकी के साथ पड़ाव डालते गेलइ; कोय अराम करे लगलइ, कोय रात्रिभोजन करे लगलइ, आउ कोय प्रार्थना करे लगलइ। अपन माता-पिता आउ बाबा (दादा) के आद करे लगी आवे वला के शहर में प्रवेश के पहिलहीं, नदी के पास पहुँचला पर, अनुष्ठान शुरू कर देवे के चाही । हियाँ से आगू ओकरा पैदल जाय के चाही, जुत्ता-चप्पल खोल देवे के चाही आउ नदी के साष्टांग प्रणाम करे के चाही - गोड़, हाथ, टेहुना, सिर, छाती, मन, बोली आउ दृष्टि से  प्रणाम करे के चाही; हाथ-गोड़ धोवे के चाही; नदी के यथासंभव अर्पण करे के चाही आउ विख्यात संक्षिप्त प्रार्थना करे के चाही । नदी में स्नान करके स्वच्छ परिधान धारण कइला के बादे शहर में प्रवेश करे के निर्देश हइ । [*217] ई स्नान के साथ गया में श्राद्ध के निष्पादन के प्रारंभ होवऽ हइ - एकर पहिले ओकरा कुछ प्रारंभिक अनुष्ठान घर पर करे पड़ऽ हइ, रस्ता पर प्रस्थान करे के पहिले आउ यात्रा प्रारंभ के दिन; गया में अनुष्ठान सात दिन तक लगातार जारी रहऽ हइ, लेकिन इच्छानुसार आउ अधिक दिन तक जारी रक्खल जा सकऽ हइ । श्रद्धा शब्द के अर्थ ही होवऽ हइ "विश्वास" - पूर्वज लोग के विश्वास आउ प्रार्थना के साथ भोजन (पिंड) के अर्पण के ई शब्द से व्युत्पन्न शब्द "श्राद्ध" कहल जा हइ - ई अनुष्ठान निधन होल पूर्वज लोग के आदगारी में खाली ब्राह्मण सब के खाली भोजे देवे में निहित नयँ हइ, बल्कि वास्तव में पूर्वज लोग के भोजन), पानी  या आटा, चावल, दूध, मांस आदि से बन्नल मालपूआ आदि के अर्पण करे में भी हइ । अर्पण कइल जा हइ प्रार्थना के साथ, जेकरा में शक्ति अइसन हइ कि भोजन तुरंत परिवर्तित हो जा हइ - अगर मृत पितामह अथवा पिता अपन कइल पुण्य के बल पर देवता हो गेला ह, त हावा में उछालल मालपूआ अमृत में बदल जा हइ, आउ अगर ऊ जानवर हो गेला ह, त मालपूआ घास में बदल जा हइ, आदि आदि । श्राद्ध के निष्पादन धर्मपरायण हिन्दू खातिर सगरो आवश्यक हइ, लेकिन कोय कारण से ई मानल जा हइ कि स्मारक अनुष्ठान, जे गया में कइल जा हइ, विशेष रूप से पूर्वज लोग के प्रिय हइ, आउ एकर निष्पादन करे वला खुद बड़गो फल पावऽ हइ । साधारणतः अनुष्ठान क्लिष्ट नयँ होवऽ हइ, हलाँकि एकर निष्पादन में कइएक तरह के प्रार्थना कइल जा हइ, संस्कृत साहित्य में पूर्वज खातिर अर्पण लगी कइएक  शास्त्रीय ग्रंथ, विशाल आउ संक्षिप्त सार-ग्रंथ ऊ सब ब्राह्मण के दिशानिर्देश में रचित उपलब्ध हइ, जे पेशा के रूप में हरेक भोज में उपस्थित होते जा हथिन - दक्षिणा पर प्रार्थना के पाठ करऽ हथिन, आउ पेट भर खइवो करते जा हथिन ।
पूर्वी किनारा से शहर के दृश्य मनोहर लगऽ हइ; शंकु के आकार के मंदिर के शिखर, उँचगर-उँचगर पाषाण-गृह, जेकरा में से कइएक पहाड़ी के चोटी पर बन्नल हइ; बलुआही किनारा से बहते नदी के बहुसंख्यक घाट - [*218] ई सब बहुत प्रभावकारी तस्वीर प्रस्तुत करऽ हइ । नदी के पाँझ (उथला पाट, ford) पार करके, हम सब देसी शहर (native city) के बाहर-बाहर से गुजरते सीधे अंग्रेजी उपनगर में प्रवेश करते गेलिअइ, जेकरा में चौड़गर छायादार वृक्षवीथि (alleys), उद्यान आउ लमगर-चौड़गर ओसारा वला एकमंजिला उज्जर-उज्जर घर हलइ । गया में, भारत के अन्य कइएक बड़गर शहर नियन, यूरोपियन कवार्टर सगरो सुख-सुविधा के साथ उत्तम ढंग से बस जाय के अंग्रेज के दक्षता के वर्णन करऽ हइ; लेकिन एकर साथे-साथ अंग्रेज लोग के भारत में देसी लोग से दूर रहे के, देसी जिनगी के शोर-गुल से कहीं दूर चल जाय के, अलगे कोलोनी बसावे के सार्वत्रिक प्रयास - सबसे निम्मन तरह से ई बात के प्रमाणित करऽ हइ कि देसी आउ अंग्रेज लोग के बीच अइसन खाई हइ, जेकरा कोय नयँ पाट सकऽ हइ । अंग्रेज आउ देसी लोग अगले-बगल रहते जा हइ, लेकिन हरेक अप्पन अइसन जिनगी के साथ, जे दोसरा लगी अनजान आउ बिलकुल समझ के बाहर होवऽ हइ - सामाजिक रूप से अंग्रेज आउ देसी लोग बिलकुल एक दोसरा से विच्छेदित (disconnected) रहऽ हइ । आउ एगो सामान्य अंग्रेज आउ ओइसने देसी के बीच कउची एक नियन (common) हो सकऽ हइ ? एगो भारत में अइलइ रहे लगी आउ यथासंभव मालामाल बन्ने लगी - रोज दिन के जेतना आवश्यक ड्यूटी हइ ऊ पूरा हो जाय, ओतने ऊ भारत आउ भारतीय के बारे अध्ययन करतइ, एकरा से जादे ओकरा से माँग नयँ कइल जा सकऽ हइ; बिलकुल अलग ऐतिहासिक जीवन के परंपरा में पालित-पोषित, अंग्रेज भारत में अइसन धारणा (concepts) आउ आदत वला हइ, जे ओकरा पर पाश्चात्य सभ्यता द्वारा प्रतिरोपित हइ आउ सीधे ओकर विपरीत हइ, जे एगो भारतीय के पास हइ चाहे ऊ अपन मातृभूमि में अनुसरण करऽ हइ । ऊ अत्याचार के साथ बड़ा होलइ - पितृभूमि, ब्रिटिश सरकार, आउ अधिकांश भारतीय विदेशिए अंग्रेज से अपन मातृभूमि के सामान्य नाम "हिन्दुस्तान, इंडिया" के नाम से पुकारे लगी सिखते गेले ह, आउ अभियो तक ओकन्हीं के भाषा में "हिन्दू" शब्द (रूसी भाषा में अशुद्ध रूप में "इन्दूस") के अर्थ "भारतीय, एगो व्यक्ति जेकर पितृभूमि इंडिया हइ" नयँ होवऽ हइ, बल्कि एगो अइसन विचार अभिव्यक्त करऽ हइ [*219] जे हमन्हीं के शब्द में "Orthodox", "Catholic" से अभिव्यक्त होवऽ हइ, अर्थात्, ई शब्द के अर्थ होवऽ हइ अइसन व्यक्ति, जे एगो विशिष्ट जाति के आउ विशिष्ट धर्म के हइ । अधिकांश भारतीय बड़ा होवऽ हइ, जाति के अपेक्षा आउ कोय सामान्य धारणा के पचा नयँ पावऽ हइ; भारतीय अपन धार्मिक कर्तव्य सिक्खऽ हइ, ओकरा साथ बचपने से खाली ओकर जाते से संबंधित व्यक्ति के कर्तव्य के बारे में लोग चर्चा करते जा हइ; Patriotism (देशभक्ति) - ई शब्द संस्कृत या स्थानीय भारतीय भाषा सब में अनुवाद्य (translatable) नयँ हइ । ई तथ्य से अंग्रेज आउ देसी के बीच सबसे प्रमुख भेद अभिव्यक्त होवऽ हइ । भेद आउ अधिक हइ, हजार से अधिक छोटगर तथ्य से अभिव्यक्त होवऽ हइ, आउ एकरा चलते अंग्रेज आउ भारतीय हेतु खाली सह-अस्तित्व संभव हइ, लेकिन एक नियन जिनगी नयँ । झूठ बोलना, अधिकांश अंग्रेज के धारणानुसार, आत्महीनता हइ; निस्संदेह अइसन मामला हइ कि अंग्रेज भी झूठ बोलऽ हइ, सफलतापूर्वक झूठ बोलऽ हइ आउ दंड से बच जा हइ; लेकिन साधारणतः झूठा प्रमाणित हो गेला पर सबके दृष्टि में दोषी होवऽ हइ आउ अपमानित कइल जा हइ । सैद्धांतिक रूप से भारतीय भी सत्य के बहुत महत्त्व दे हइ आउ कठोरतापूर्वक हरेक व्यतिक्रम (deviation) के दंडित करऽ हइ; लेकिन व्यावहारिक जीवन में असत्य के प्रति दोसरे व्यवहार स्थापित हइ - असत्य, कोर्ट में घूसखोरी, मिथ्या साक्ष्य, धोखा - ई सब सैद्धांतिक रूप से गर्हणीय (condemnable), कानूनन दंडनीय हइ, लेकिन स्थानिक समाज में ई सब के पूर्णतः अनदेखी कइल जा हइ - झूठा सिद्ध होल लेकिन पश्चात्ताप नयँ करे वला, तइयो अपन जात के सदस्य बन्नल रहऽ हइ आउ कोय ओकरा से मुँह नयँ फेरऽ हइ । अंग्रेज भारत में यूरोपियन धारणा के अनुसार एगो निम्मन गृहस्थ (family man), निम्मन पति आउ पिता होवऽ हइ; ऊ एगो मिलनसार व्यक्ति होवऽ हइ, अपन घर में मित्रगण के स्वागत करऽ हइ आउ भोज (dining parties) दे हइ । एगो भारतीय के पास अगर संसाधन होवऽ हइ, त ओकरा एक नयँ, बल्कि दू गो चाहे तीन गो घरवली होवऽ हइ, आउ ऊ रखैल रक्खे में भी नयँ शरम करऽ हइ । [*220] ऊ सबसे नीच जाति के व्यक्ति के साथ भोजन करना अपवित्र आउ धार्मिक रूप से पाप मानऽ हइ, लेकिन शाम में मित्र सब के निमंत्रित करतइ आउ ओकन्हीं लगी नाच के प्रबंध करतइ, अर्थात् अपन घर में निमंत्रित करऽ हइ हुएँ, जाहाँ परी ओकर घरवली, बेटी, बेटा रहऽ हइ आउ ओहे सगा संबंधी के सामने - नर्तकी, स्पष्टतः स्वच्छंद व्यवहार करे वली औरतियन, रहऽ हइ आउ रात भर ओकन्हीं के अश्लील नाच देखतइ, ओकन्हीं के अश्लील गीत सुनतइ । अंग्रेज आउ भारतीय एक बात में समान हइ, लेकिन एहो ओकन्हीं के आउ जादहीं अलगे कर दे हइ; अंग्रेज मन में अपन देश के "पृथ्वी के लाल" (the salt of the earth) समझऽ हइ; ब्रिटिश राज्य के विश्व राज्य कहल जा सकऽ हइ; बाकी सब्भे जे ब्रिटिश नयँ हइ, ऊ बत्तर हइ, गुणवत्ता में ब्रिटिश के अपेक्षा घटिया हइ । भारतीय  अपन देश के लोग के खातिर अइसन राजनैतिक उद्देश्य के बारे नयँ सोचऽ हइ; अपन संपूर्ण दीर्घकाल के ऐतिहासिक जीवन में भारतीय लोग, विजेता नियन, अपन पितृभूमि के सीमा से कभी बाहर नयँ गेलइ; लेकिन ओकन्हीं लगी अनंत काल से पूरा विश्व "चार वर्ण" में विभाजित हलइ, उच्च जाति में, आउ विदेशी सब "म्लेच्छ", सबसे नीच जाति में । मातृभूमि में अभी भारतीय "kal-admi" (काला आदमी) आउ "sa'ablok" (सा'ब लोक) [भद्रलोक, अर्थात् यूरोपियन] जानऽ हइ । हलाँकि kal-admi तिरस्कारपूर्ण black skin (कार चमड़ी) के सूचक हइ, लेकिन "एगो नायक के अतीत दोष भर्त्सनीय नयँ होवऽ हइ" (नोटः ई एगो रूसी कहावत हइ), एगो कार अदमी हलाँकि कार होवऽ हइ, आउ तइयो उज्जर अदमी से उँचगर होवऽ हइ; कार होना एगो भारतीय के विचार से भर्त्स्नीय चाहे सुंदर नयँ होना नयँ हइ । कृष्ण, प्रेम के भारतीय देवता, सब सुंदर लोग में सबसे सुंदर हथिन, आउ ऊ कार, बल्कि सब्भे सामान्य मरणशील लोग के अपेक्षा जादे कार हथिन । गीत में गावल जा हइ - "कहूँ नयँ देखलूँ हम तोहरा नियन कार चेहरा" । आउ ई कहल जा हइ आदर्श सौंदर्य के बारे, प्रेम के देवता के बारे । उज्जर अदमी के ऊपर अपन श्रेष्ठता पर भारतीय के ई दृढ़ विश्वास कइएक धार्मिक संस्थान में व्यक्त कइल जा हइ आउ कभी-कभी भोलापन आउ विनोदपूर्ण ढंग से, अनिच्छा से, यूरोपियन लोग के साथ बातचीत के दौरान ।
आउ ई तरह से, नैतिक रूप से पृथक् होल, परस्पर घृणा करते, अंग्रेज आउ भारतीय लोग हलाँकि एक्के शहर में रहते जा हइ, [*221] लेकिन एक दोसरा से दूर-दूर; ओकन्हीं के मार्मिक हित (vital interests) नियन ओकन्हीं के घरवो एक दोसरा से दूर-दूर रहऽ हइ । भारतीय प्रश्न एगो अंग्रेज लगी ओतने हद तक मतलब रक्खऽ हइ, जेतना तक ओकर व्यक्तिगत जीवन से संबंध रहऽ हइ - बहुत अकसर ऊ सब में दिलचस्पी लाभ के परिमाण से निश्चित कइल जा हइ, आउ साधारणतः प्राचीन भारतीय जीवन के संपूर्ण प्रकृति अपरिवर्तित रहऽ हइ, ओइसने, जइसन पूरे शताब्दी पहिले हलइ; अंग्रेज द्वारा स्थापित शिक्षा कइएक शताब्दी के भारतीय अंधविश्वास के हिला नयँ पइलकइ; जाति, बहुदेववाद (polytheism) पहिलहीं नियन, अंग्रेजी शासन के पहिले जइसन, दृढ़ रहलइ; यूरोपियन शिक्षा अल्पसंख्यक लोग के बीच प्रचलित होलइ आउ जनसाधारण के स्पर्श नयँ कर पइलकइ, भारतीय जीवन में प्रवेश नयँ कर पइलकइ । आउ अलगे कहूँ नयँ, जइसन कि खाली भारत में, दू तरह के जिनगी देखे लगी मिल्लऽ हइ - एगो उपनगरीय क्षेत्र में यूरोपियन सभ्यता द्वारा उपलब्ध कइल सब्भे सुख-सुविधा के बीच लोग रहऽ हइ - घर के निर्माण, ओकर सजावट, पूरा यूरोपियन जिनगी के तरीका; कुछ मील दूर जाहो - दू चाहे तीन मील, आउ तोहरा सामने दोसरे संसार दिखतो, दोसरे प्राचीन सभ्यता, दोसरे धार्मिक विश्वास के लोग । आउ ई पुरनका जिनगी के बहुत कुछ ऊ दूर के जमाना में अइसने हलइ, जहिया नयका यूरोपियन जिनगी के प्रारंभ भी नयँ होले हल । ठीक अइसने हिंदू गया हइ, अंग्रेजी उपनगरीय क्षेत्र के बगल में ।
गया में हम एगो उदार आउ मिलनसार अंग्रेज के घर में रहलिअइ - पूरा दिन हम हिंदू शहर में गुजारऽ हलिअइ आउ मेहमाननवाज मेजबान के पास खाली खाय आउ सुत्ते लगी आवऽ हलिअइ । ई लगभग हिन्दुस्तान में हमर निवास के प्रारंभ के बात हलइ, आउ हिंदू आउ अंग्रेज के बीच भेद (contrast ) के अइसन प्रबल आउ संपूर्ण छाप गया के अतिरिक्त कहूँ से हमरा नयँ प्राप्त होलइ । गया एगो नया शहर हइ, पुरनका स्थान में बनावल; एकर अस्तित्व बुद्ध के जमाना में भी हलइ, मतलब ईसा पूर्व छट्ठी शताब्दी में । अभी हियाँ के सब्भे मंदिर आउ भवन नया हइ; लेकिन ई सब नयका भवन में पग-पग पर पुरावशेष के अवशेष देखाय दे हइ; [*222] ब्राह्मण से संबंधित पूजा-अर्चना हियाँ परी पुरनके जमाना से घर कर गेले हल; पहिलहीं नियन, अभियो तक, हियाँ परी कइएक मंदिर, छोटका-छोटका देवालय, पवित्र तालाब, शाश्वत वृक्ष आदि हइ । वास्तुकला के दृष्टि से एक्को असाधारण (remarkable) मंदिर नयँ हइ । दू गो प्रमुख पवित्र स्थल हइ - विष्णुपाद आउ सूर्य मंदिर, जे एक दोसरा के आसे-पास हइ । ओकन्हीं में से कउनो एगो में कुछ समय लगी भेंट देके तोहरा बिलकुल ठीक-ठीक अंदाज मिल जइतो कि भारत में की होवऽ हइ जनसामान्य के धर्म, प्रतीकात्मक चाहे प्रतिमापरक पूजा (symbolical or representative worship †), जइसन कि कुछ बंगाली बाबू *) अपन मूर्तिपूजा के कहते जा हथिन । पत्थल के एक प्रकार के देवता मानल जा हइ, अइसन पत्थल जे कइसहूँ परंपरागत प्रस्तुति के नयँ दर्शावऽ हइ, जे ई देवता के मामले में प्राचीन काल में निर्धारित कइल गेले हल । तीर्थयात्री के मामले में हरेक पग पर जाहाँ एक तरफ बिलकुल अज्ञानता (blind ignorance) आउ सहज विश्वास हइ - त दोसरा तरफ पवित्र कार्य करे वला (पुजारी) आउ विभिन्न फकीर के तरफ से रूक्ष आउ निर्लज्ज धोखा हइ । खुद विष्णुपाद मंदिर मौलिक सौन्दर्य से वंचित नयँ हइ, लेकिन ई एतना अलाभप्रद  रूप से स्थापित हइ आउ चारो तरफ से एतना छोटगर-छोटगर देवालय से घेरल बनावल गेले ह कि एकर बाह्य सौन्दर्य के प्रभाव कुरूप छोटकन भवन के चलते  खो जा हइ । हियाँ परी विष्णु के पदचिह्न हइ, अर्थात्, शिला में दरार हइ, जेकरा पर पवित्र से पवित्र मंदिर, अड़तीस फुट व्यास के एगो अष्टफलक मीनार हइ; मीनार के ऊँचाई सो फुट हइ; ओकरा पर 80 फुट उँचगर पिरामिड अकार के गुंबद हइ । मीनार भिर 58 फुट वर्ग  के क्षेत्रफल में स्तंभ के आठ कतार के एगो खुल्लल मंडप (mandara †) से होके पहुँचभो । [*223] मंदिर स्लेटी रंग के ग्रैनाइट से बन्नल हइ, आउ कहल जा हइ कि मराठी महारानी अहल्या बाई एकरा पर नब्बे हजार रुपइया खरच कइलथिन हल, जेकरा में से सत्तर हजार ब्राह्मण लोग के भोज में गेले हल । ई मंदिर विशाल बिलकुल नयँ हइ - कनिंघम के लेल माप के अनुसार, एकर लम्बाई 82 फुट 2 इंच से जादे नयँ हइ, आउ चौड़ाई - 54 फुट 4 इंच । मंदिर के अहाता में कइएक छोटगर-छोटगर देवालय, मंदिर, तीर्थयात्री खातिर मंडप (pavilions) हइ; अवरोक्त (latter) से विशेष करके दिलचस्प हइ - अपन आकार के अनुसार सोला-बेदी (Solabedi †); हिएँ परी बगल में हइ अक्षय-वट, शाश्वत वृक्ष, शाब्दिक अर्थानुसार कभी नयँ नष्ट होवे वला वृक्ष । मंदिर में आउ अहाता में हमेशे बहुत सारे तीर्थयात्री लोग रहऽ हइ; कुछ लोग मंडप में बैठल रहऽ हइ, त आउ कुछ लोग हिएँ परी अहाता में पूजा हेतु फूल खरीदते पावल जा हइ, कुछ लोग संस्कृत भाषा में प्रार्थना के पाठ करते ब्राह्मण के निर्देशन में मंदिर के परिक्रमा करते जा हइ । अहाता में दौड़धूप भयंकर होवऽ हइ, आउ ई हियाँ संगृहीत कइल पुरावशेष के शांति से निरीक्षण करे में बाधा डालऽ हइ, अर्थात्, बुद्ध के मूर्ति, नक्काशी (bas-reliefs), छोटगर-छोटगर स्तूप; अवरोक्त (latter), बिन अपवाद के सब्भे, वर्तमान काल में लिंगम् (शिवलिंग) के कार्य में सुधार हो रहले ह; तेल आउ गेरू से लेप कइल जा रहले ह । सूर्य मंदिर सूर्य कुंड तालाब के पास बन्नल हइ, जे पत्थल के देवाल से घेरल हइ; ई देवाल के चक्कर लगावे बखत आश्चर्यचकित हो जइबहो, केतना सारा  प्राचीन पत्थल हइ, जेकरा में नक्काशी कइल हइ, अइसन बेलबूटा आउ आकृति के साथ, जेकर अर्थ अभी ब्राह्मण लोग के मालुम नयँ, हलाँकि ओकन्हीं में से कुछ लोग कउनो प्रतिमा के बारे समझावे के परवाहो नयँ करऽ हइ । ई देवाल 292 फुट लंबा आउ 156 फुट चौला जगह छेंकऽ हइ - चारो दने से पानी तक जाय खातिर सीढ़ी के कतार बन्नल हइ । सूर्य मंदिर हिएँ परी बगल में हइ । मंदिर के ठीक गर्भगृह में, जाहाँ परी सूर्य के प्रतिमा हइ, जेकरा से कनिंघम के ग्रीक देवता अपोलो के स्मरण हो अइले हल, यूरोपियन लगी अंदर जाना वर्जित हइ - लेकिन खुल्ला दरवाजा से प्रतिमा के निम्मन से निरीक्षण कइल जा सकऽ हइ ।  हम मंदिर के अंदर गायक मंडली के देखलिअइ; [*224] ओकन्हीं फर्श पर बैठल हलइ, आउ चिल्ला-चिल्लाके धीमे गति से कउनो स्तुतिगान करब करऽ हलइ । ड्योढ़ी में, जुत्ता निकासके, मनमाना एन्ने-ओन्ने घुम्मल जा सकऽ हइ; लेकिन एगो रोचक शिलालेख के अलावा हियाँ परी कुच्छो विलक्षण नयँ हइ - ड्योढ़ी के स्तंभ के चार कतार से सजावल हइ, हरेक कतार में पाँच-पाँच स्तंभ के साथ ।
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कोष्ठक में देल ई अंग्रेजी अंश लेखक के मूल रूसी पाठ में प्रयुक्त हइ ।
*) बाबू - ओहे अर्थ हइ, जे अंग्रेजी में Mr, Sir, Esq. के होवऽ हइ । सबसे जादे अकसर बंगाली में प्रयोग होवऽ हइ । बंगाली बाबू नवीन भारत के विशेष प्रकार के व्यक्ति हथिन आउ बहुत दिलचस्प । ऊ अंग्रेजी स्कूल में शिक्षा प्राप्त कइलथिन, अर्द्धशिक्षित हथिन, अंग्रेजी बोलऽ हथिन, हमेशे सही-सही नयँ, लेकिन पक्का परिष्कृत अभिव्यक्ति के साथ । ऊ अपन सगा-संबंधी से बिछड़ गेलथिन आउ विदेशी लोग के साथ कदम मिलाके चल नयँ पइलथिन ।
दोसर-दोसर मंदिर हियाँ से *) कुछ दूरी पर हइ । शहर के बाहर कुछ पवित्र पहाड़ी हइ - ब्रह्मयोनि (450 फुट), प्रेत शिला (541 फुट), राम शिला । अंतिम दू पहाड़ी के बीच एगो निम्मन सड़क हइ । ब्रह्मयोनि के चढ़ाई बहुत तीव्र ढाल के हइ; लेकिन ग्वालियर के राजा तीर्थयात्री लोग के खातिर पत्थल के चौड़गर सीढ़ी बनवइलथिन; ई बिलकुल तलहटी से चालू होवऽ हइ, सावित्री कुंड तालाब से जादे दूर नयँ, आउ ठीक चोटी तक जा हइ । चोटी पर के फर्श के पत्थल से पाटल हइ आउ एगो बाड़ा से घेरल हइ । एगो अर्द्धध्वस्त मंदिर में हनुमान जी, बंदर रूपधारी देवता, के प्रतिमा हइ; एगो दोसरा मंदिर में, जे जरी बड़गर हइ, शक्ति, शिव आउ पार्वती के प्रतिमा हइ ।
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*) उदाहरणार्थ, महादेव के मंदिर के साथ अक्षयवट । ई वृक्ष, बाह्याकृति में, एकर आकार आउ मोटाई के आधार पर कहल जा सकऽ हइ कि बहुत पुराना नयँ हो सकऽ हइ ।



Sunday, February 18, 2018

इवान मिनायेव के बिहार यात्राः 2.0 गिरियक आउ पावापुरी में


2.

5 मार्च के हम पुरनका शहर राजगृह के छोड़ देलिअइ आउ गया के रस्ता में हमरा दू जगह के निरीक्षण करे के इरादा हलइ - गिरियक आउ पावापुरी ।
गिरियक राजगृह से पूरब में अवस्थित हइ, कुछ मील के दूरी पर । लगभग आठ बजे सुबह में हम हुआँ पहुँच चुकलिए हल, आउ ओहे दिन पावापुरी भी जाय के इच्छा करते तुरतम्मे पुरावशेष के निरीक्षण में लग गेलिअइ। हियाँ परी दू गो पुरातात्त्विक दर्शनीय स्थल हइ - पहिला - जरासंध के बैठक, आउ दोसरा - गुफा गीध-द्वार । सीधे हमर पालकी के जरासंध के सिंहासन भिर लावल गेलइ, लेकिन हम पहिले गुफा के निरीक्षण करे लगी चाहऽ हलिअइ [*212] आउ देर तक एकर निरीक्षण करते  रहलिअइ; एकर पता लगाना लेकिन बहुत असान हइ - वाहक लोग के खाली खुशामद करे के जरूरत नयँ, जेकन्हीं के हलाँकि गुफा के बारे जनकारी रहऽ हइ, लेकिन कइसूँ ओकन्हीं के समझ में नयँ आवऽ हइ कि कइसे अइसन बेकार के चीज केकरो लगी रोचक हो सकऽ हइ, खास करके सा'ब के, आउ ई आधार पर ओकन्हीं अज्ञान से इनकार करऽ हइ, ई मानते कि सा'ब कुछ तो अधिक काम के चीज खोजब करऽ हथिन । गिरियक गाँव पनचाने नदी के किनारे बस्सल हइ; सामने के पश्चिमी किनारा से दू चोटी वला खड़ा चट्टान उट्ठऽ हइ, जेकरा से पहाड़ी के दू गो समानांतर शृंखला जुड़ऽ हइ, जे गया से उत्तरी-पश्चिमी दिशा में 36 मील तक फैलल हइ । दुन्नु चोटी एगो कृत्रिम चबूतरा से जुड़ल हइ, आउ दुन्नु तरफ खंडहर हइ । हियाँ से दक्षिण-पश्चिम मुड़ला पर आउ लगभग एक मील चलते रहला पर, एगो सकेत घाटी मिलतो, जेकरा में घुमघुमौवा नदी बाणगंगा बहऽ हइ; हियाँ परी उत्तरी शृंखला के दक्षिणी ढलान पर 250 फुट के ऊँचाई पर, एगो गोल छेद दृष्टिगोचर होवऽ हइ; निच्चे से चट्टान में ई एगो छोट्टे गो दरार नियन देखाय दे हइ, लेकिन जब उपरे चढ़के जइबहो, त पइबहो कि एगो बड़गो प्रवेश गुफा में खुल्लऽ हइ, जे 10 फुट चौला आउ 17 फुट उँच्चा हइ । खुद गुफा काफी लंबा हइ । कनिंघम एकर नाप लंबाई में 98 फुट बतावऽ हइ; एकर ऊँछाई अंतिम तरफ कमती होल जा हइ, आउ मेहराब धीरे-धीरे फर्श तक झुक जा हइ । उँचगर तापक्रम, विकर्षक दुर्गन्ध, अंधकार आउ हजारो उड़ते चमगादड़ गुफा में जादे देर तक रहना असंभव कर दे हइ । उपरे से दृश्य बहुत विलक्षण लगऽ हइ आउ कइसूँ वहशी रूप से शानदार; चारो दने अनावृत्त ग्रैनाइट चट्टान उपरे उट्ठऽ हइ, निच्चे हरियाली भी विरले हइ; शांति खाली चील के चीख से भंग होवऽ हइ - हियाँ परी ऊ बहुतायत में हइ, आउ गुफा के नम्मो (नाम भी) एकरे तरफ इशारा करऽ हइ (गीध-द्वार, अर्थात् गीध के द्वार) । वापिस उतरके घाटी में अइला पर, जेकरा में पत्थल के टुकड़ा बिखरल हलइ, हम वापिस जरासंध के सिंहासन दने रवाना हो गेलिअइ । ई स्थान में, जइसन कि हम पहिलहीं बता चुकलिए ह, दू गो चोटी हइ - पश्चिमी चोटी पर जाय लगी कभी सीढ़ी हलइ; [*213] कहीं-कहीं अभियो सोपान (steps) देखल जा सकऽ हइ; हियाँ परी, बहुत संभावना हइ, कोय मठ चाहे मंदिर हलइ - अभी तक देवाल के अवशेष देखाय दे हइ आउ कहीं-कहीं ग्रैनाइट के स्तंभ, आउ पूरा आयताकार चबूतरा पर पत्थल बैठावल (paved)  हइ । चौड़गर रस्ता, दुन्नु चोटी के जोड़े वला चबूतरा के प्रकार, पूरबी चोटी पर ले जा हइ, जाहाँ परी बेलनाकार एगो स्तूप हइ, जेकरा लोग "जरासंध के सिंहासन" कहऽ हइ । ई बेलन (cylinder)14 फुट उँचगर एगो वर्गाकार आधार (pedestal) पर से उपरे जा हइ, स्तूप के बेलन के व्यास 28 फुट हइ, आउ ऊँचाई 21 फुट । हमरा लगी ई अज्ञात मठ के खंडहर के आउ अधिक ध्यान से निरीक्षण करे के चाही हल; लेकिन समय के कमी के कारण हमरा जल्दीए निच्चे उतरे पड़लइ । हियाँ के मठ आउ उपर्युक्त गुफा ऊ जमाना में शायद एक दोसरा से जुड़ल हलइ; हियाँ चोटी पर मंदिर आउ कोठरी हलइ - हियाँ परी भिक्खु लोग रहऽ हलइ, जे दैनिक बौद्ध पूजा आउ अनुष्ठान करते जा हलइ; आउ हुआँ शांत एकांत गुफा में ओकन्हीं में से ऊ सब जइते जा हलइ, जे ध्यान करऽ हलइ, चाहे आउ बाद में, तंत्र के  विकास के दौरान, आत्मा, देवता आउ बौद्धिष्टव लोग के आह्वान करते जा हलइ । ई मामले में कि गिरियक के सूनसान गुफा जइसन स्थान में बस्सल केतना आश्चर्यजनक हद तक संन्यासी लोग के कल्पना काम करऽ हलइ, ई हम सब पास विरासत में प्राप्त ढेर सारा बौद्ध किंवदन्ती से जानऽ हिअइ; ई सब किंवदन्ती आउ तांत्रिक अभिचार (witchcraft) विकसित हो सकलइ आउ अइसन वीरान, उदास आउ वहशी, हर तरह के सांसारिक हो-हल्ला से दूर बसेरा बनइलकइ । पावापुरी, जे किंवदन्ती के अनुसार अधिक प्राचीन हइ, गिरियक से उत्तर-पश्चिम में अवस्थित हइ; कइएक नयका जैन मंदिर के अलावे हियाँ परी कुच्छो अद्भुत चाहे प्राचीन नयँ हइ । मंदिर सब में ठाट-बाट के अनुसार सबसे दिलचस्प हइ ऊ, जे एगो टापू पर बन्नल हइ, एगो बड़गो झील के बीच, जे मछली से भरल हइ - झील पर से होके मंदिर तक बन्नल एगो सँकरा पुल (150 फुट लंबा) हइ; मंदिर में प्रवेश सब्भे यूरोपियन लगी  [*214] निषेध हइ, लेकिन मंदिर के पुरोहित (पुजारी)  - जैन नयँ हइ, बल्कि एगो हिन्दू आउ ब्राह्मण जात के हइ । सब्भे मंदिर धनाढ्यता आउ आंतरिक ठाट-बाट में विख्यात हइ, लेकिन सौंदर्य में नयँ । एक मंदिर के प्रवेशद्वार भिर हम लाल रंग के दू गो लिंगम् (शिवलिंग) देखलिअइ । ई शैव देवता हियाँ परी जैन आउ हिन्दू के बीच समझौता के निशानी हलइ । पावापुरी के मंदिर सब में उत्साहपूर्वक दुन्नु धर्म के लोग भेंट देते जा हइ । तीर्थयात्री लोग खातिर गृह-परिसर (premises), जे एक मंदिर के चारो दने बन्नल हइ, प्रतीयमानतः (apparently) ओकन्हीं के संख्या के ध्यान में रखके बनावल गेले ह । पावापुरी के निरीक्षण के साथ ई दिन (5 मार्च) के हम समाप्त करबइ । मिस्टर व॰ के हियाँ नवादा में रात गुजारके दोसरा दिन तड़के सुबह गया लगी प्रस्थान कर गेलिअइ ।

Friday, February 16, 2018

इवान मिनायेव के बिहार यात्राः 1.3 राजगृह में


बड़गाँव के निरीक्षण करके हम बिहार (अर्थात् बिहारशरीफ) वापिस अइलिअइ, ताकि हम गया जा सकिअइ आउ रस्ता में कुछ दोसर ऐतिहासिक स्थल के भेंट कर लिअइ । बिहार के सबसे नगीच आउ सबसे प्रसिद्ध हइ राजगृह; अनुवाद में ई नाम के अर्थ हइ "राजा के घर" या "त्सारग्राद" (राजनगर) , ग्राद के अर्थ "बाड़ा" या "छरदेवाली" समझके । हमर प्रिय मेजबान (host), बंगाली बाबू, हमरा हुआँ घोड़ा पर पहुँचावे के स्वेच्छापूर्वक सेवा प्रस्तुत कइलथिन । 2 मार्च के करीब बारह बजे, हमन्हीं बिहार से दक्षिण-पश्चिम के बड़गर रस्ता से प्रस्थान कइलिअइ । गरमी हलइ, लेकिन घोड़ागाड़ी के उपरे उठावल परदा हमन्हीं के सूरज के झुलसावे वला किरण से रक्षा कर रहले हल; रस्ता लमगर नयँ हलइ आउ इलाका बहुत सुंदर हलइ - हमन्हीं लगातार गाड़ी से जाब करऽ हलिअइ कइएक गाँव से गुजरते, जे मट्टी के झोपड़ी के समूह हलइ, छोटगर जगह में सट्टल-सट्टल, अलग-अलग झोपड़ियन के बीच सकेत गल्ली के साथ । चावल (धान) के खेत बहुतायत में देखाय दे हइ - लेकिन गाँव में कोय बड़गो संतोष नयँ देखाय दे हइ; ग्रामवासी लोग गंदा हलइ आउ प्रदेश के रिवाज के अनुसार लगभग पूरा नंगा; नंगापन के सबसे अधिक आवश्यक आवरण ओकन्हीं के हलइ - गंदा आउ फट्टल-फुट्टल । ई स्थानीय प्रदेश में [*204] एक्के फसल होवऽ हइ आउ खेतिहर वर्ग के स्थिति के बारे उपरे उल्लेख कइल थोड़े-बहुत आँकड़ा से अनुमान लगावल जा सकऽ हइ । आधा रस्ता में, सीलाव गाँव (आउ सीताव नयँ, जइसन कि साधारणतः नक्शा में पावल जा हइ) में हमन्हीं बड़गर रस्ता से दक्खिन मुँहें मुड़ गेते गेलिअइ आउ लगभग तीन बजे राजगृह पहुँच गेते गेलिअइ । ई नाम के दू गो शहर हइ - पुरनका, जे 5मी शाताब्दी में हीं खंडहर बन चुकले हल, आउ नयका, जेकरा में अभियो तक लोग रहऽ हइ, लेकिन जाहाँ परी न तो कुच्छो प्राचीन हइ आउ न रोचक । दुन्नु शहर एक दोसरा के पासे-पास अवस्थित हइ - मोसकिल से नयका शहर के बाहर होबहो कि तुरतम्मे पहड़ियन के चोटी पर पुरनका शहर के देवलियन के अवशेष दृष्टिगोचर होवे लगऽ हइ । ई बाहरी देवलियन के परिधि (circumference) लगभग आठ मील हइ; एकर मोटाई, ऊ सब जगह में, जाहाँ परी ई सुरक्षित हइ, 13 फुट तक हइ । श्वानचांग के काल में, 7मी शताब्दी तक, खंडहर बन चुकल ई सब देवलियन के पीछू अभियो कइएक अन्दरूनी हिस्सा हइ, जे बहुत निम्मन से सुरक्षित हइ । अंतिम हिस्सा में पहुँचे के पहिलहीं, घोड़ागाड़ी के छोड़ देवे पड़ऽ हइ आउ आगू पैदल जाय पड़ऽ हइ, न तो एक्को घोड़ा आउ न कइसनो चक्का ई जगह पर से होके गति के झेल सकऽ हइ, जेकरा पर एतना प्रचुरता में पुरनका अइँटा आउ हर तरह के झिटकी बिखरल हइ । सकेत रस्ता से होके देवलियन के पार करके घाटी में प्रवेश करभो, जाहाँ परी पुरनका शहर हलइ, आउ जाहाँ परी अभी कोय नयँ रहऽ हइ । बौद्ध गीत में, जेकरा में महान भारतीय शिक्षक के प्रथम क्रियाकलाप के गौरवगान कइल गेले हल, ई स्थल के गिरिब्बज्ज या बाड़ा कहल गेले ह, जे पहड़ियन से बन्नल हइ । पाँच विख्यात चोटी के साथ पहाड़ी सब हियाँ घाटी के निर्माण करऽ हइ; सबसे बड़गर घाटी पश्चिम से पूरब मुँहें हइ, आउ सबसे छोटगर उत्तर से दक्षिण मुँहें; एकर परिधि पाँच मील से जादे नयँ हइ; जब एकरा उत्तर दने से देखभो, त घाटी ढालू, हलाँकि कम उँचगर, पहाड़ी के लगातार देवाल से घिरल प्रतीत होवऽ हइ; ओकर खड़ी ढलान सब पर जाहाँ-ताहाँ विरले घास उग्गऽ हइ, आउ ओकर चोटी पर उज्जर-उज्जर नयका जैन मंदिर सब देखाय दे हइ । ठीक घाटी के समानांतर उत्तर से दक्खिन एगो छोटगर नदी सरस्वती पथरीला मार्ग से टेढ़ा-मेढ़ा होके बहऽ हइ । [*205] एकर किनारा पर अक्षरशः अइँटा, पुरनकन भवन के पत्थर बिखरल पड़ल हइ, आउ कुछ जगह पर काँटेदार झाड़ी के छोटगर-छोटगर अगम्य जंगल आउ उँचगर-उँचगर तुलसी घास हइ । अइँटा के ढेर, छोटगर-छोटगर टीला, प्राचीन स्तूप सब के अवशेष चारो बगली देखाय दे हइ । एगो छोटगर उपवन के छाया में, घाटी के उत्तरी प्रवेश के पास, हमन्हीं लगी तंबू गाड़ल गेलइ । पूरब में विपुलगिरि पहाड़ी हइ, जेकर चोटी पर उज्जर जैन मंदिर हइ, दक्षिण-पश्चिम तरफ वैभारगिरि पहाड़ी, जाहाँ परी सात गरम-गरम झरना हइ आउ महादेव के कुछ  नयका मंदिर । दक्षिण-पूरब मुँहें कुछ दूरी पर रत्नागिरि पहाड़ी देखाय दे हइ; एगो तंग घाटी, जे दूर से बिलकुल नयँ देखाय दे हइ, ओकरा उदयगिरि पहाड़ी से अलगे करऽ हइ । घाटी के दक्खिन में सोनगिरि पहाड़ी से घाटी बंद हो जा हइ ।
पुरनका शहर राजगृह एगो अइसन स्थल हइ, जे स्मरणीय आउ पवित्र भी खाली बौद्ध लोग लगी नयँ हइ । एकर इतिहास के प्रारंभ बहुत प्राचीन काल तक जा हइ; हियाँ मगध साम्राज्य के रजधानी हलइ, आउ ब्राह्मण परंपरा महान हिन्दू महाकाव्य महाभारत के कइएक आख्यान के हियाँ से जोड़लके ह । ब्राह्मण लोग के हियाँ बौद्ध लोग अइते जा हलइ आउ कहल जा हइ कि बिम्बिसार, प्रथम सम्राट्, ओकन्हीं के उपदेश (teachings)के संरक्षण करे वला, हिएँ रहऽ हलथिन - हियाँ परी भिक्षा माँगे लगी अइलथिन हल अपन पिता के घर से पलायन कइल राजकुमार गौतम । ऊ पहाड़ी पर, जाहाँ अभी महादेव के मंदिर हइ, अभियो तक प्राकृतिक गुफा देखाय दे हइ, जाहाँ परी ऊ दुपहरी के गरमी में अराम करे खातिर चल गेलथिन हल ।  अपन उपदेश के क्रियाकलाप के दौरान गौतम राजगृह कइएक तुरी वापिस अइलथिन हल; उनकर निधन के बाद उनकर अनाथ शिष्य लोग हियाँ एकत्र होते गेले हल । ई सब के पीछू कभियो ई शहर के बौद्ध जगत् में कोय विशेष महत्त्व नयँ हलइ । हियाँ निस्संदेह निम्मन से मंदिर आउ स्तूप बन्नल हलइ; हियाँ मठ भी हलइ; लेकिन ओकरा में से केकरो ओतना बड़गो नाम नयँ हलइ जेतना कि नालंदा या बनारस के मठ के हलइ । [*206] 5मी शताब्दी में शहर खंडहर बन चुकले हल; अनुमान लगावल जा सकऽ हइ कि एकर पतन के काल के प्रारंभ बहुत पहिलहीं आउ तब हो गेले हल, जब बौद्ध लोग अपन सामाजिक महत्त्व आउ धन के मामले में भारत के अन्य सब जगह में मजबूत हलइ । बौद्ध के बाद हियाँ ब्राह्मण लोग के धाक जम्मे लगलइ - आउ एकन्हीं के स्थान पर मुसलमान लोग आ गेलइ । ब्रह्मण लोग हियाँ अपन मंदिर बनइते गेलइ, मुसलमान लोग मस्जिद आउ मकबरा; आउ ई बात में आश्वस्त होवे खातिर बहुत तीक्ष्णदृष्टि के आवश्यकता नयँ हइ कि जइसे ऊ सब ओइसीं दोसरो सब बनावल आउ सुसज्जित कइल गेलइ पुरनका बौद्ध सामग्री से - ओहे मूर्ति सब के ब्राह्मण लोग खुद लगी अपनाऽ लेते गेलइ आउ ओकर पूजा करे लगलइ । आउ ओहे से, बिहार में लगभग सगरो आउ भारत के बाकी प्राचीन जगह में लगभग पूर्वसंध्या पर निर्मित भवन में बहुत प्राचीन पुरावशेष के अवशेष (remnant of ancient antiquity) प्राप्त होना लगभग बिलकुल अप्रत्याशित हइ । राजगीर में, एकरा अलावे, पुरनका बौद्ध सामग्री के जैन लोग बहुत उपयोग करते गेलइ, जे आसपास के पहाड़ी पर के चोटी पर मंदिर के निर्माण करते गेलइ । हलाँकि राजगृह वर्तमान काल में एगो पवित्र स्थल हइ, लेकिन हियाँ हम जादे तीर्थयात्री नयँ देखलिअइ - रस्तो पर हियाँ अइते ओकन्हीं के अधिक संख्या नयँ देखाय देलकइ; आउ खाली तड़के सुबह घाटी में कुछ गति दृष्टिगोचर होवऽ हइ; तीर्थयात्री भारत के दूर-दूर क्षेत्र से, विशेष करके जैन लोग, कभी-कभी मध्य पंजाब से, गरम झरना के आसपास एकत्र होवऽ हइ; चारो दने से बंद पालकी में महिला तीर्थयात्री सब के पहाड़ी के चोटी पर विभिन्न मंदिर में ले जाल जा हइ; घाटी नीरस हइ आउ दिन के बाकी समय में बिलकुल शांत रहऽ हइ, सुबह लगभग छो बजे ई कुछ समय लगी सजीव हो उठऽ हइ; गरम झरना के पास बोलचाल के स्वर सुनाय दे हइ; पहाड़ी के ढलान पर दूरहीं से स्वच्छ उज्जर वस्त्र में उद्यमशील तीर्थयात्री सब के जैन संत लोग के चमत्कारिक चरणचिह्न दने चढ़के जइते देखाय दे हइ । ई सब मंदिर में, जइसन कि हम पहिलहीं टिप्पणी कर चुकलिए ह, निश्चय ही कुछ तो आउ अधिक प्राचीन हइ, आउ ढालू पहाड़ी पर के हरेक मंदिर पर चढ़ना असान बात नयँ हइ - चढ़ाई ढालू हइ, आउ केकरो हाथ पवित्र स्थल के रस्ता के असान करे के फिकिर नयँ कइलकइ । [*207] औरतानी आउ वृद्ध लोग के साधारणतः पहाड़ी पर विशेष प्रकार के निर्मित पालकी में ले जाल जा हइ - वाहक द्वारा ई मामले में दर्शावल कला पर आश्चर्यचकित होल बेगर नयँ रहल जा सकऽ हइ, आउ पालकी में बैठल लोग के साहस पर भी; जब निच्चे से वाहक लोग के तरफ चढ़ते देखभो, त लगतो, कि या तो ओकन्हीं सवार लोग के फेंक देते जइतइ, चाहे पालकी ओकन्हीं के कन्हा पर से फिसल जइतइ आउ तीव्र ढलान पर से उड़ते निच्चे चल अइतइ । लेकिन न तो ई, न तो ऊ कभियो होवऽ हइ ।
वैभारगिरि पहाड़ी पर के गरम झरना तरफ एगो सुंदर पथरीला जीना से होके चढ़भो - पहाड़ी के तलहटी में सरस्वती नदी बहऽ हइ, आउ ठीक झरना के पास कइएक ब्राह्मण (हिन्दू) मंदिर हइ, आउ हियाँ परी  ब्राह्मण जाति से कइएक भिखारी के स्थायी अड्डा हइ - ई अर्द्ध-भिक्षुक लोग केकरो आगू नयँ जाय दे हइ, आउ यूरोपियन आउ जैन लोग से ओकन्हीं दान खातिर बार-बार आग्रह करऽ हइ, लेकिन विशेष रूप से हिन्दू तीर्थयात्री लोग से लगाव रहऽ हइ । ई सब के मिलाके ओकन्हीं के आमदनी बड़गो नयँ होवऽ हइ । ई एगो पहाड़ी के पास गरम झरना सात गो हइ; ऊ सब के नाम हइ - गंगा-यमुना-कुंड, आनंद-ऋषि, मार्कण्ड, व्यास, सतद्वार, ब्रह्मकुंड, काशीतीर्थ; पानी, जेकर तापक्रम ब्रह्मकुंड में 105° फारेनहाइट तक पहुँच जा हइ, सिंह आउ बाघ के सिर से सुसज्जित पत्थर के पाइप से होके बाहर निकसऽ हइ आउ पत्थर के हौज में एकत्र होवऽ हइ । पहिलहीं श्वानचांग पाइप के ई सब मूर्तिकला संबंधी अलंकरण के बारे उल्लेख करऽ हइ । मंदिर सब में बौद्ध विरासत के प्रचुरता आश्चर्यचकित करऽ हइ; हियाँ परी ग्रैनाइट के छोटगर-छोटगर चैत्य *) भी लिंगम् में बदलल हइ; दोसरो चीज के बहुत कुछ हियाँ परी पूर्व बौद्ध मंदिर आउ छोटका प्रार्थनागृह (chapels) से लावल गेले ह । मार्कण्ड-कुंड नामक झरना से दक्षिण-पश्चिम तरफ, 276 फुट के उँचाई पर, एगो काफी बड़गर चबूतरा हइ । ई बड़गर बिन खरादल पत्थर से बन्नल हइ [*208] आउ एकरा जरासन्ध के बैठक  कहल जा हइ, मतलब, जरासन्ध के सिंहासन; ई चबूतरा के ऊँचाई 28 फुट हइ; एकर तलहटी में कइएक गुफा हइ, छो आउ आठ फुट वर्ग के । साल के विभिन्न  समय में ई सब गुफा में  अल्पकालीन निवासी, विभिन्न  संप्रदाय के फकीर लोग होवऽ हइ । ओकन्हीं
 

*) चैत्य मतलब स्तूप; ई विभिन्न आकार के होवऽ हइ आउ हमेशे उपरे तरफ से निच्चे दने उलटा कइल चषक के आकृति के होवऽ हइ । कभी-कभी एकर पार्श्व नक्काशी से सुसज्जित रहऽ हइ; लिंगम् (phallus) - शिव या महादेव के प्रतीक हइ ।

के अइसन गंतव्य स्थान प्राचीन काल से हलइ, आउ पूरा संभावना के अनुसार हियाँ अत्यंत प्राचीन काल के बौद्ध कोठरी (cells) हइ । ई सब कोठरी में से दू गो पूरब तरफ हइ, पाँच गो उत्तर तरफ । अइसने गुफा हमरा ब्रह्मकुंड से पश्चिम तरफ देखे में अइलइ, लगभग सो डेग से कुछ अधिक; एकरा पहाड़ी के बगल में तराशके बनावल गेले ह, काफी बड़गो ऊँचाई पर । आउ पश्चिम दूर हटके पहाड़ी में एगो घुमघुमौवा चौड़गर रस्ता हइ, जेकरा में काँटेदार झाड़ी बहुत जादे बढ़ गेले ह । चबूतरा के क्षेत्रफल पचास वर्गफुट हइ; एकर पीछू तरफ एगो बड़गो गुफा हइ, जेकरा में अइँटा के बन्नल कइएक सीढ़ी निच्चे तरफ जा हइ । हमर समय में एकर अंदर घुसना असान नयँ हलइ, एतना अधिक ढहल पत्थल आउ अइँटा से ई भरल हलइ । एकर साइज लेकिन मालुम हइ - 36 फुट पूरब से पश्चिम आउ 26 फुट उत्तर से दक्खिन; ऊँचाई 18 से 20 फुट । ई गुफा में ब्रोडली के कार बसाल्ट से निर्मित बुद्ध के एगो मूर्ति मिलले हल, आउ ई खोज हम सब के ई माने पर बाध्य करऽ हइ कि ई गुफा एगो मंदिर हलइ जे ओतने परिष्कृत नयँ हलइ, जेतना कि अभियो तक निच्चे में गरम झरना (सात-द्वार) में से एगो के पास हइ आउ जेकरा सप्तर्षि के मंदिर कहल जा हइ । एहो कृत्रिम गुफा हइ, लेकिन साइज में बहुत छोटगर, आउ सप्तर्षि के मूर्ति के अतिरिक्त कइसूँ सुसज्जित नयँ हइ । गुफा के सामने चबूतरा पर, जेकर प्रवेश पूरब तरफ से हइ, मुसलमान के तीन गो मजार हइ । चोटी तरफ उपरे चढ़के, 800 फुट के ऊँचाई पर एगो दोसर चबूतरा मिलतो, जे पहिलौका से बहुत मेल खा हइ; हियाँ से 14 से 15 फुट चौड़गर देवाल के अवशेष उपरे दने जा हइ; एकर किनारे-किनारे रस्ता से होते चढ़के जैन मंदिर दने जइबहो, [*209] जे 1300 फुट के ऊँचाई पर हइ । विशेष करके अद्भुत ऊ हइ, जे दक्षिण-पश्चिम में हइ । ऊ बहुत निम्मन से सुरक्षित हइ; एकर मुख्य प्रवेश पूरब मुँहें हलइ; पनरह फुट तक स्तंभावली (colonnade)हइ, जे वर्गाकार कोठरी में प्रवेश करऽ हइ; बारह उँचगर स्तंभ अभी ढह चुकल छत के सँभालऽ हलइ, ई कोठरी से तीन सोपान उपरे दोसरका कोठरी हलइ - जे छोटगर, लेकिन अधिक उँचगर हलइ । ई कोठरी में जाय वला दरवाजा के लिंटेल नक्काशी से सुसज्जित कइल हइ, जे बहुत भद्दा हइ । दरवाजा पर बुद्ध के प्रतिमा हइ । ई उल्लेख करे के लगभग जरूरत नयँ हइ कि एतना ऊँचाई से मंदिर से एगो सुंदरतम दृश्य देखाय दे हइ - हियाँ से नयका शहर राजगृह, बिहार आउ बड़गाँव के टीला सब देखाय दे हइ ।
दक्षिण आउ दक्षिण-पश्चिम दने दू गो बौद्ध मंदिर के खंडहर हइ । वैभारगिरि पहाड़ी के चोटी पर कइएक जैन मंदिर हइ; हियाँ से, घाटी में बिन उतरले, सोनभंडार गुफा पहुँचल जा सकऽ हइ, जे पहाड़ी के दखनी ढलान पर हकइ; हम लेकिन निच्चे उतरके ई गुफा तक घाटी से होके जाना बेहतर समझलिअइ; गरम झरना से हियाँ तक एक मील से जादे दूर नयँ हइ । सोनभंडार गुफा या अनुवाद में "सोना के भंडार" सबसे अद्भुत प्राचीन अवशेष में से एक हइ, जे हम बिहार में देखलिअइ । ई अपने आप में अद्भुत हइ, बहुत प्राचीन अवशेष के स्मारक के रूप में, ऊ इतिहास पर बिन कोय ध्यान रखते, जे ओकरा साथ स्थानीय पुरातत्त्ववेत्ता लोग जोड़ते जा हथिन, आउ जे शंकास्पद से कहीं अधिक हइ । ऊ गुफा, जेकरा में, कहल जा हइ, बौद्ध लोग के पहिला सम्मेलन होले हल, पहाड़ी के दखनी ढलान पर अवस्थित हकइ । श्वानचांग, राजगृह में अपन निवास के वर्णन करते, अन्य बात के अलावे बोलऽ हइ कि ऊ एगो "बड़गो पत्थर के घर" देखलके हल आउ जाहाँ ई पहिलौका सम्मेलन होले हल आउ ई घर जे स्थान पर हलइ, ओकरा बहुत कठिनाई से तर्क देके वर्तमान गुफा के स्थल से जोड़ल जा सकऽ हइ । अगर [*210] ईसा के 7मी शताब्दी में धार्मिक पितर लोग के पहिलौका वास्तविक स्थल के स्मृति एतना धुँधला हलइ कि उनकन्हीं लगी बड़गो घर प्रदान कइल जा हइ, त की एकर ई मतलब नयँ हइ कि ऊ काल में भी गुफा के आद नयँ कइल गेलइ, आउ एकर अस्तित्व नयँ हलइ, आउ ओहे से ई अविश्वसनीय हइ कि ई गुफा के खोज 19मी शताब्दी में होलइ ।
गुफा तक जाय लगी अभी रस्ता से होके चढ़े पड़ऽ हइ, लेकिन पहिले एकरा बदले, शायद, उपरे तरफ सीढ़ी जा हलइ । गुफा के ठीक सामने चबूतरा हइ, लगभग 100 फुट वर्ग में; ई क्षेत्र के कुछ हिस्सा, शायद, आच्छादित ओसारा के साथ बन्नल हलइ, काहेकि गुफा के बाहरी देवाल पर वर्गाकार नियमित खाँच (grooves) देखाय दे हइ, जेकरा में शहतीर बैठावल हलइ । अइँटा आउ पत्थल के ढेर चबूतरा पर बिखरल हइ । गुफा के बाहरी अग्रभाग एतना चिकना आउ समतल हइ कि दूर से पालिश कइल लगऽ हइ, ई 44 फुट लंबा आउ 16 फुट ऊँचा हइ । पश्चिमी छोर से एगो चट्टान उभरल हइ, लेकिन पूरबी छोर पर पत्थर के काटके 20 गो सँकरा सोपान (steps) बनावल हइ । बिलकुल नियमित काटल दरवाजा गुफा में ले जा हइ; दरवाजा के चौड़ाई - 3½ फुट, ऊँचाई - 6 फुट 4 इंच । देवाल के मोटाई 3 फुट हइ - दरवाजा से पच्छिम एगो खिड़की हइ, जेकर चौड़ाई आउ ऊँचाई तीन फुट हइ । एहे दिशा में बिन सिर वला बुद्ध के मूर्ति हइ आउ दू पंक्ति के एगो छोटगर शिलालेख । शिलालेख के वर्णमाला ईसवी सन के प्रारंभ के मानल जा सकऽ हइ । कोय वैरदेव, जे एगो संन्यासी हलइ, अपना बारे लिक्खऽ हइ कि ऊ हियाँ परी रहऽ हलइ आउ ध्यान करऽ हलइ । गुफा के भीतरी भाग मेहराब के निच्चे 33 फुट लंबा आउ 17 फुट चौड़ा हइ । देवलियन पर कइएक अद्यतन वर्णमाला में शिलालेख हइ, लेकिन जेकरा तइयो समझना मोसकिल हइ । गुफा के अंदर में एगो चैत्य हइ, जे बुद्ध के बहुत बारीक काम (fine work) वला प्रतिमा सब से सुसज्जित हइ । ई गुफा हिंदू वास्तुकला (architecture) के प्राचीनतम नमूना हइ; कइएक अइसन नैसर्गिक गुफा श्रीलंका के टापू पर पावल जा हइ । [*211] सोनभंडार के गुफा प्राचीन बौद्ध कोठरी के नमूना हइ जे कभी, अर्थात्, "पाप स्वीकारोक्ति अनुष्ठान" (उपोसथ) के दौरान मंदिर में परिवर्तित कर देल गेलइ; ई ऊ सब कुछ से अधिक प्राचीन हइ, जे हमन्हीं के एकरा में मिल्लऽ हइ, शिलालेख होवे चाहे चैत्य; ई दोसरा सब कुछ, पूरा संभावना हइ, हियाँ बहुत हाल में लावल गेलइ ।
राजगृह में बहुत सारा विलक्षण वस्तु हइ; जइसे विपुलगिरि के पास कइएक दोसर-दोसर गरम झरना हइ । ओकरा में से एगो के हिन्दू आउ मुसलमान दुन्नु पवित्र मानते जा हथिन । उदयगिरि बिजुन एगो चबूतरा अथवा भीमसेन के सिंहासन देखइते जा हथिन । चोटी पर के लगभग सब्भे मंदिर में कुछ न कुछ अधिक प्राचीन पावल जा सकऽ हइ । ई सब्भे पुरावशेष के समान वैज्ञानिक महत्त्व नयँ हइ; लेकिन बहुत्ते चीज के बहुत पहिलहीं फोटोग्राफ के रूप में सार्वजनिक बनावल जाय के चाही हल । स्थानीय पुरावशेष के बहुत स्पष्ट वर्णन बिलकुल काफी नयँ हइ - अगर वर्णन के, जइसन कि अकसर होवऽ हइ, साथ में वर्णनीय स्थल के पछानके चीनी यात्री द्वारा उल्लेख कइल कोय मठ चाहे मंदिर से जोड़े के इच्छा भी शामिल कर लेल जाय, तब लेखक लोग दुर्भाग्यवश अनिच्छापूर्वक तनाव में पड़ जाय लगऽ हथिन आउ ई वर्णन बिलकुल सही प्रतीत नयँ होवऽ हइ ।


Sunday, February 11, 2018

इवान मिनायेव के बिहार यात्राः 1.2 बड़गाँव (नालंदा) में


पालकी में यात्रा करे में बहुत असुविधा हइ, हलाँकि थकाऊ नयँ हइ । गरमी में पालकी में दम घुट्टऽ हइ आउ धूली-धक्कड़ होवऽ हइ, तेजी से चल नयँ सकऽ हो, आउ एकरा अलावे आसपास के क्षेत्र के बहुत कम देख सकऽ हो; पालकी में पढ़ल जा सकऽ हइ, लेकिन बड़ी कठिनाई से ।
[*196] बिहार में कोय उपाय नयँ हलइ, आउ समय के फालतू बिन नष्ट कइले परिवेश के निरीक्षण खाली पालकी में हीं संभव हइ । आउ हम अइसहीं कइलिअइ । शहर से दक्षिण-पूरब छो मील दूर बड़गाँव नाम के एगो छोटगर गाँव हइ, जेकरा भिर कइएगो बड़गर कृत्रिम तालाब हइ आउ टीला के ताँता हइ, जे पहिले बौद्ध स्तूप हलइ । पुरातत्त्ववेत्ता लोग द्वारा उत्खनन शुरू करे के पहिले, आसपास के गाँव के लोग निर्दयतापूर्वक प्राचीन सामग्री आउ लुप्त पवित्र स्थान के खुद के काम लगी उपयोग करते गेलइ । अइँटा, बालुकाश्म (sandstone)से घर बनावल गेलइ, कभी-कभी तीन-तीन मंजिला; चारो दने के जमीन जोतल गेलइ, आउ साथ-साथ पावल गेल हर तरह के पुरावशेष, अगर कइसनो तरह से उपयोगी देखाय देलकइ, त काम में लगा देल गेलइ; लिंटल, कॉर्निस, स्तंभ घर में घसीटके ले जाल गेलइ, पुरनका मूर्ति  सब के नयका नाम देल गेलइ आउ पूजा के वस्तु हो गेलइ । पुरावशेष के अइसनका दोहन (exploitation) अभियो तक जारी हइ, लेकिन कनिंघम आउ ब्रोडली के उत्खनन के चलते बहुत कुछ बच गेलइ आउ बड़गाँव से बाहर ले जाल गेलइ, आउ सब्भे खंडहर के सूचीबद्ध करके शब्द में व्यक्त कर लेल गेले ह, बड़गाँव के प्राचीन नाम के पता लगा लेवल गेले ह ।
बड़गाँव में दू गो पवित्र प्रतिमा पावल गेले ह (देवी वागेश्वरी आउ अष्टशक्ति), आउ दुन्नु पर के अभिलेख (inscriptions) से प्रतीत होवऽ हइ कि दसमी शताब्दी में भी (आउ शायद बहुत बादो) ई जगह नालंदा के नाम से जानल जा हलइ । ई नाम से पश्चात् काल के बौद्ध विद्वत्ता के इतिहास जुड़ल हइ; वर्तमान ग्राम के स्थान पर एगो विशाल आउ प्रसिद्ध मठ अवस्थित हलइ, जे शायद ईसा के पचमी आउ सतमी शताब्दी के बीच अस्तित्व में अइले हल, हलाँकि जाहाँ तक ई जगह के संबंध हइ त एकरा बहुत पहिलहीं से पवित्र मानल जा हलइ, काहेकि हियाँ परी सारिपुत्र के जन्म आउ मृत्यु होले हल, जे गौतम के पहिला आउ प्रिय शिष्य लोग में से एक हलथिन; लेकिन फ़ाशियान, जे बड़गाँव या नालंदा में पचमी शताब्दी में भेंट देलके हल, ऊ बखत तक मठ के उल्लेख नयँ करऽ हइ, आउ खाली स्तूप के बारे बोलऽ हइ, जेकरा ठीक ओहे स्थान पर खड़ी कइल गेले हल जाहाँ परी सारिपुत्र के मृत्यु होले हल । दू सो से कुछ अधिक साल के बाद एगो दोसर चीनी यात्री हियाँ परी रहके अध्ययन कइलकइ [*197] - श्वानचांग नालंदा के पूरा चमक-दमक में पइलकइ । नालंदा ऊ काल में आउ लगातार कइएक शताब्दी बाद तक प्रार्थना स्थान आउ विद्वत्ता के केंद्र हलइ । ई स्थान पर हमन्हीं के विश्वविद्यालय नियन कोय तो संस्थान स्थापित कइल गेले हल; आठ सो मंदिर के पास में हियाँ परी ओतने विद्यालय हलइ, जेकर रख-रखाव के खरचा-बरचा लगी अनुदान राजा से आउ धनी लोग के तरफ से मिल्लऽ हलइ । तारानाथ एगो राजा के उल्लेख करऽ हइ, जे नालंदा के विद्यालय सब पर सो घड़ा सोना के दान देलथिन हल; दोसरा राजा हियाँ परी एगो पुस्तकालय स्थापित कइलथिन हल, जेकरा में विशाल संख्या में पांडुलिपि हलइ - कहल जा हइ, बत्तीस करोड़ अक्षर ऊ सब पर लिक्खल हलइ । नालंदा में लोग खाली अध्ययन लगी नयँ अइते जा हलइ, बल्कि बौद्ध लोग के धार्मिक सिद्धांत आउ दार्शनिक सिद्धांत के खंडन करे लगी विधर्मी (heretical)शिक्षक लोग भी प्रकट होवऽ हलइ । आर्यसंघ के अंतर्गत जब न तब विवाद होवऽ हलइ । नालंदा के विकास महायान के विकास के साथे-साथ प्रारंभ होलइ; ई काल हम सब से केतनो प्राचीन रहइ, लेकिन तत्कालीन शैक्षिक आउ मठ के जीवन के नियमावली में से कइएक आधुनिक भारत में भी जीवित हइ । बिहार लगी प्रस्थान करे के पहिले हमरा सोमनगर जाय के अवसर मिललइ । हियाँ परी गंगा नदी के किनारे, फ्रांसीसी शहर चंदरनगोर के दृष्टि में आउ सीधे दोसरा पटी, राजा टैगोर संख्या में सोल्लह तक मंदिर स्थापित कइलथिन आउ विद्यालय चालू कइलथिन, नालंदा विश्वविद्यालय के कोय छोटगर मठ के रूप में स्थापित कइलथिन । मंदिर, विद्यालय, प्रोफेसर, छात्र सब के खरच-बरच उनके खाता में जा हइ । अधिकांश मंदिर शिव के नाम समर्पित हइ, आउ खाली दू गो अपवाद हइ - एगो देवी काली के समर्पित हइ, आउ एकरा अलावे, भगवान कृष्ण के मंदिर हइ । स्वयं राजा टैगोर वैष्णव संप्रदाय से नयँ हथिन, हलाँकि कृष्ण भगवान के मंदिर स्थापित कइलथिन - उनकर विभिन्न चल संपत्ति के बीच पत्नी सहित कृष्ण के एगो बहुमूल्य मूर्ति प्राप्त होलइ आउ सोलहमा मंदिर के निर्माण के ई एगो आधार हलइ । सब्भे मंदिर गंगा के किनारे एक लाइन में हइ; ऊ सब के पीछू एक-एक भवन हइ, जाहाँ परी व्याख्यान होवऽ हइ आउ शिष्य लोग रहऽ हइ । विद्यालय में [*198] खाली ब्राह्मण ज्ञान के अध्ययन कइल जा हइ आउ सब्भे छात्र ब्राह्मण हइ । धर्म, दर्शन, व्याकरण के पुस्तक के अतिरिक्त हियाँ परी छंदशास्त्र के रचना के अध्ययन आउ टीका करते जा हइ; नालंदा में जइसन होवऽ हलइ ठीक ओइसीं पिता-संन्यासी लोग नयँ खाली निरर्थकता के बारे दार्शनिकता के रूप में प्रस्तुत कर सकऽ हलथिन, आत्मा के आह्वान कर सकऽ हलथिन, बल्कि मुखमुद्रा, नृत्य आउ संगीत के बारे विचार-विमर्श लिक्खऽ हलथिन। जे भवन में व्याख्यान देल जा हइ, ऊ बौद्ध मठ के संरचना के कइएक योजना के बारे आद देलावऽ हइ। भवन के बीचोबीच एगो विशाल सभागृह होवऽ हइ; दू बगल से एकरा से छोटगर-छोटगर सभागार (auditorium) जुड़ल रहऽ हइ, जेकरा में वस्तुतः व्याख्यान देल जा हइ । प्रोफेसर आउ शिष्य लोग फर्श पर बैठते जा हथिन, बिछावल चटाय पर; हरेक प्रोफेसर पर बहुत शिष्य नयँ होवऽ हइ, एहे पाँच-छो गो, आउ विद्यालय में कुल मिलाके पचास से अधिक नयँ । हमरा साथे कलकत्ता विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र के एगो सुप्रसिद्ध प्रोफेसर साथ में हलथिन; अइसन विख्यात भेंटकर्ता आउ प्रोफेसर के सामने छात्र लोग भी बहुत स्वाभाविक रूप से प्रसिद्ध होवे लगी आउ खुद के अत्यंत दक्ष देखावे लगी चाहऽ हलइ; एक सभागार में न्याय के स्थानीय प्रोफेसर विवाद भी चालू कइलथिन - विश्लेषण कइल जा रहल एगो पुस्तक के एक स्थान पर के आधार पर ऊ ईश्वर (अर्थात् भगवान) के अस्तित्व सिद्ध करे लगलथिन; राजधानी के विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बीच में दखल देलथिन, आउ दुर्भाग्यवश प्रादेशिक प्रोफेसर पराजित हो गेलथिन, लेकिन तइयो, बहुत लमगर अवधि के चर्चा के बाद, जे लगभग घंटा भर जारी रहलइ । रहे लगी छात्र सब के विशेष भवन देल जा हइ; हरेक के पास एगो शयन-कक्ष होवऽ हइ; सब्भे शयन-कक्ष स्वच्छ रहऽ हइ, आउ सबसे बढ़के कइसनो प्रकार के फर्नीचर के पूरा अभाव - एगो चटाय आउ एगो तकिया - बस एतने, जेकर स्थानीय छात्र के सुख-सुविधा लगी जरूरत होवऽ हइ। ओकन्हीं सब्भे छात्रवृत्तिधारी होवऽ हइ आउ ओकन्हीं के छात्रावास आउ पुस्तक के अतिरिक्त चार से पाँच रुपइया (अर्थात्, 8 से 10 शिलिंग) मासिक मिल्लऽ हइ । प्रोफेसर लोग के वेतन भी सीमित होवऽ हइ - अइसनो हथिन जिनका सोल्लह से बीस रुपइया मासिक मिल्लऽ हइ; पचास रुपइया खाली एक्के गो के मिल्लऽ हइ, [*199] खाली तर्कशास्त्र के प्रोफेसर के । ई वेतन बिलकुल कम नयँ प्रतीत होतइ, अगर ई बात पर ध्यान देल जाय कि एगो देसी व्यक्ति भारत में भोजन, वस्त्र आउ आवास पर केतना कम खरच करऽ हइ । एगो यूरोपियन के सब्भे आवश्यकता अस्तित्व में ओकरा लगी नयँ हइ; ऊ अप्पन तरह से रहऽ हइ आउ अत्यधिक कम खरच करऽ हइ । नालंदा में अइसने एगो संस्थान हलइ, जे अधिक विस्तृत पैमाना पर आउ ब्राह्मण संस्थान नयँ, बल्कि बौद्ध संस्थान हलइ । हुआँ परी बहुतायत में मंदिर के जइसने महाविद्यालय भी हलइ; लेकिन ओइसने तरीका से अध्ययन करते जा हलइ, जइसन कि आजकल के देसी विद्यालय में; ओइसीं वाद-विवाद करते जा हलइ, जइसे कि अभियो तक देसी द्वंद्ववादी लोग (dialecticians) बहस करते जा हइ ।
हमन्हीं से ऊ दूरस्थ काल में हमन्हीं लगी आधुनिक अइसन संस्थान के अपेक्षा नालंदा में, निस्संदेह, बहुत अधिक भौतिक संसाधन हलइ । एकरा अलावे, शिक्षक लोग के बीच बहुत अधिक सृजनात्मक शक्ति हलइ । केकरो संदेह नयँ हो सकऽ हइ कि हिएँ परी आखिरकार ऊ धार्मिक प्रणाली के निर्माण होले हल, जे अभी तक नेपाल, तिब्बत, चीन आउ मंगोलिया में दृढ़तापूर्वक टिक्कल हइ । लमगर अवधि तक नालंदा बौद्ध विश्वविद्यालय बौद्ध विद्वत्ता के केंद्र हलइ, आउ अभियो तक ओकर अंतिम नाश के कोय विश्वसनीय समाचार नयँ हइ; एतने ज्ञात हइ कि नालंदा कइएक तुरी नष्ट होलइ आउ फेर से एकर पुनरुद्धार होलइ; दुश्मन सब न तो एकर बाह्य चमक-दमक के छोड़लकइ, न तो वैज्ञानिक संसाधन के; मंदिर आउ दोसर-दोसर भवन के नष्ट कर देलकइ, पुस्तकालय सब के जराऽ देलकइ, वैज्ञानिक संन्यासी लोग के भगा देलकइ । नालंदा के नाश खाली मगध पर के विधर्मी आक्रमणकारी राजा के सेना ही नयँ कइलकइ - द्वेषी संप्रदाय के शिक्षक लोग नालंदा विश्वविद्यालय के आग लगा देते गेलइ । आउ एकर कइएक शताब्दी के अस्तित्व के दौरान ई एक तुरी नयँ दोहरावल गेलइ । हमन्हीं के ई मालुम हइ, उदाहरणस्वरूप, कि निजी दान के सहायता से खड़ी कइल नालंदा में एगो नयका मंदिर के अभिषेक हो रहले हल । लोग बहुत संख्या में एकत्र होलइ, आउ भिक्खु सब अतिथि लोग के स्वागत कर रहलथिन हल; अतिथि के बीच दू गो भिखारी हलइ, [*200] जे बौद्ध नयँ हलइ; श्रामणेर, अर्थात्, नयका शिष्य उनकन्हीं पर मजाक करे के सोचते गेलइ - ओकन्हीं अतिथि लोग पर कीचड़ उछललकइ, ओकन्हीं के दरवजवा में अँटका देलकइ आउ ओकन्हीं पर कुतवन के उसकाऽ देलकइ; क्रोधित भिखारी खुद लगी बदला लेलकइ; ओकन्हीं मठ में आग लगा देलकइ; मंदिर, विद्यालय, मूर्ति सब जर गेलइ; पुस्तक भंडार भी जर गेलइ । लेकिन मठ के ई अंतिम विध्वंस नयँ हलइ; एकर बाद ऊ फेर से जीवित हो उठलइ, आउ इतिहास जानऽ हइ कि ओकरा पर आक्रमण एक तुरी नयँ होलइ - ओहे से, कोय अचरज के बात नयँ हइ कि वर्तमान काल में बड़गाँव में, पूर्व नालंदा विश्वविद्यालय के स्थान पर, पहिलौका गौरव के जादे कुछ नयँ बच गेले ह; पुरावशेष के विध्वंस पर खाली काल के काम नयँ हइ, बल्कि लोग के भी, काहेकि अपन राष्ट्रीय विशेषता के रूढ़िवाद (conservatism of their national character) के बावजूद भारतीय लोग के नयँ मालुम कि पुरावशेष के कदर कइसे कइल जा हइ ।
नालंदा के खंडहर बड़गाँव ग्राम से दक्षिण-पूरब में पड़ऽ हइ; जब गाँव के नगीच पहुँचे लगबहो, उत्तर-पूरब से, त खंडहर नजर में नयँ अइतो - एतना ऊ तुच्छ हइ - आउ ओकर आसपास के कृत्रिम झील । पहिला झील, जाहाँ से हम खंडहर के निरीक्षण शुरू कइलिअइ, दीर्घ-पोखर के नाम से जानल जा हइ; ई गाँव से उत्तर-पूरब में हइ; पूरब से पश्चिम ई कम से कम एक मील फैलल हइ, आउ उत्तर से दक्षिण एक चौथाई मील; एकर चारो दने आम के पेड़ के सुंदर कुंज हइ । थोड़े सुनी दक्खिन में, खंडहर से पूरब तरफ एगो दोसर झील हइ पनसोखर-पोखर, लगभग ओतने बड़गर, जइसन कि अभी उल्लेख कइल गेलइ । खंडहर से दक्खिन तेसर बड़गो झील हइ इन्द्र-पोखर । खंडहर के चारो दने विभिन्न दिशा में कइएक छोटगर-छोटगर झील देखाय दे हइ, ई सब्भे झील कृत्रिम हइ, आउ ई सब के बारे पहिलहीं श्वानचांग बात करऽ हइ (ईसा के 7मी शताब्दी); ओकर काल में ऊ सब कमल से भरल हलइ, आउ छायादार बाग ऊ सब जगह तक फैलल हलइ, जाहाँ परी अभी उत्तर से दक्खिन तरफ चावल के समतल मैदान के बीच टीला सब के शृंखला देखाय दे हइ । [*201] पानी आउ छाया के प्रचुरता दुपहर के जलवायु में नयँ खाली विलासिता के बात हइ; दुन्नु खाली सौंदर्य लगी स्थापित नयँ हइ, बल्कि प्रथम आवश्यकता के वस्तु के रूप में भी; दक्खिन के लोग एकरा पूरा तरह से समझते जा हइ आउ पूरा तरह से छाया आउ पानी के सौंदर्य के कदर करे में जादे बुद्धिमानी देखावऽ हइ । हियाँ परी पानी आउ छायादार ठंढक के प्रचुरता में उँचगर-उँचगर मीनार, सुसज्जित मंडप बिखरल हइ, जेकरा में वाद-विवाद कइल जा हलइ आउ प्रवचन सुनाय दे हलइ; अइसन उँचगर-उँचगर भवन आउ मंदिर हलइ, जेकरा बारे श्वानचांग उत्साह से बात करऽ हइ कि "ओकर गुंबद आकाश छूअ हलइ, आउ मंदिर सब के खिड़कियन से हावा आउ बादर के प्रजनित होवे के स्थान देखाय दे हलइ; चांद आउ सूरज ओकर उँचगर छत के तल (level)  पर प्रकट होवऽ हलइ" ।
दीर्घ-पोखर झील से दक्षिण-पश्चिम दने चलते-चलते, एकर पहिले कि भूतकालीन स्तूप के शृंखला तक पहुँचल जाय, रस्ता में बौद्ध धर्म के कइएक अवशेष मिल्लऽ हइ, जेकरा बारे वर्तमान काल में लोग के बिलकुल नयँ आद आवऽ हइ आउ न किंवदन्ती के रूप में मालुम हइ । बुद्ध के मूर्ति के पास से गुजरऽ हो - उनका आसीन मुद्रा में प्रस्तुत कइल हइ, मानूँ ध्यान में मग्न हथिन; उनकर चारो दने शिष्य लोग हइ, आउ ओकन्हीं में से हरेक के सिर पर अभिलेख हइ, जेकरा से प्रतीत होवऽ हइ कि चार मूर्ति के चित्रित कइल हइ - (1) सारिपुत्र  (2) मौद्गलायन (3) मैत्रेयाणीपुत्र (4) वसुमित्र । मुख्य मूर्ति के नाक कट्टल हइ, आउ निरार पर गेरू के लेप *) कइल हइ । मूर्ति अभियो तेलिया भंडार आउ भैरवी के नाम से आस-पड़ोस के गाँव के निवासी लोग द्वारा पुज्जल जा हइ । मूर्ति के गेरू से लेप यज्ञ के दौरान कइल जा हइ । ई पक्का चिह्न हइ ई बात के, कि ई मूर्ति के पवित्र मानल जा हइ आउ अभियो तक पुज्जल जा हइ । हियाँ से थोड़हीं दूर पर धर्मवृक्ष हइ; वृक्ष एगो छोटगर चबूतरा से घेरल हइ, जेकरा पर बुद्ध के कइएक प्रतिमा क्रमबद्ध रूप से रक्खल हइ; ऊ सब्भे पर गेरू के लेप लगावल हइ, आउ लगऽ हइ, अभियो तक हिंदू लोग द्वारा ई चाहे ऊ नाम से पुज्जल जा हइ । ई पवित्र वृक्ष के पास में अइँटा के नयका देवाल से छरदेवाली करके एगो छोटगर अहाता बना देवल गेले ह; [*202] बुद्ध के कइएक प्रतिमा के एकरा में एक शृंखला में रख देवल गेले ह, आउ ऊ सब में से एगो बहुत बड़गो साइज के हइ, जे आठ फुट से कम उँचगर नयँ हइ । बुद्ध के ध्यानमग्न मुद्रा में चित्रित कइल हइ, गेरू से लेप कइल हइ आउ वर्तमान काल में तेलियाभंडार के नाम से प्रसिद्ध हइ । चारो बगली कइएक जगह में खुल्लल असमान में प्राचीन मूर्ति सब खड़ी चाहे पड़ल हइ; ओहे सब के बीच में ब्राह्मण (हिंदू) देवता सब के, उदाहरणार्थ, देवी दुर्गा के प्रतिमा, सिर के चारो तरफ बौद्ध धर्म के आस्था के चिह्न सहित (ये धर्म हेतु आदि) आउ सिर में केश सहित ध्यानमग्न बुद्ध के प्रतिमा हइ । हियाँ से थोड़हीं दूर पर स्तूप के ऊ शृंखला शुरू होवऽ हइ, जेकर उपरे हम उल्लेख कइलिए ह; ओकरा में से छो गो उत्तर से दक्खिन एक लाइन में एक के बाद दोसरा उपरे उट्ठऽ हइ । ई सब टीला के उत्खनन कइल गेलइ आउ बड़गो संख्या में मूर्ति मिललइ; ई सब मूर्ति में से कुछ अभी बिहार में हइ; कइएक अभियो स्थल पर ही देखाय दे हइ, आउ मालुम नयँ, ओकरा में से केतना गायब आउ नष्ट हो गेलइ । टीला सब में से सबसे रोचक हइ बीच वला अर्थात् उत्तरी छोर से चौठा; एकरा एतना साफ कइल जा चुकले ह कि अचूक रूप से ई निश्चित करे के अवसर दे हइ  कि हियाँ परी एगो मंदिर हलइ जेकर निचला अंश अभियो सुरक्षित हइ; ई शायद, जइसन कि सुरक्षित अंश के आधार पर निर्णय कइल जा सकऽ हइ, बुद्ध-गया के मंदिर के शैली में बनावल गेले हल आउ एकर काल दसमी शताब्दी चाहे कुछ आउ पहिले के हइ; एकरा बारे निष्कर्ष निकासल जा सकऽ हइ ऊ शिलालेख से, जे मंदिर के दरवाजा बिजुन प्राप्त होले ह । दरवाजा पूरब दिशा में हइ । न तो शिलालेख ही, न स्तंभ आउ न सजावट ही, जेकरा बारे उत्खनन करावे वला ब्रोडली बोलऽ हइ, वर्तमान समय में स्थल पर हकइ। ई मानल जा सकऽ हइ कि कुछ समय के बाद मंदिर के देवाल भी ढहाय लगइतइ, आउ बड़गाँव के खंडहर के स्मृति खाली पुरातात्त्विक निबंध में हीं रह जइतइ । जाहाँ तक मंदिर के संबंध हइ त एकरा बारे चर्चा हम नयँ करबइ, काहेकि संरचना के ई शैली के वर्णन हम बुद्ध-गया में करबइ । [*203] भौगोलिक स्थिति आउ शिलालेख ई बात के आश्वस्त करऽ हइ कि बड़गाँव के स्थल पर वस्तुतः नालंदा मठ हलइ, लेकिन उत्खनित आउ लूट-पाट कर लेल गेल टीला के बीच से 7मी शताब्दी में उल्लिखित ऊ सब भवन के चिह्न (traces) खोजे लगी कपोल-कल्पना (fantasy) के बहुत कल्पित प्रयास आवश्यक हइ । अइसन पहचान (identification) में बचकाना ढंग से विश्वास करे लगी ऊ जे कुछ जरी सुन नालंदा के इतिहास से हमन्हीं के ज्ञात हइ, ओकरा भूल जाय के चाही । तहिया से झील तो सुरक्षित रह गेले ह; अइसन संरचना के मिटाना कठिन हइ, आउ एकरा में कुछ नयँ हइ; दक्षिण में विशेष करके पानी तो हरेक कोय लगी  बहुमूल्य हइ । एकरा अलावे स्थानीय तालाब में से सूरज-तलाव, अर्थात् सूर्य के तालाब, के अभियो तक पवित्र मानल जा हइ । छठ पर्व के अवसर पर हर साल हियाँ परी स्नान खातिर दस हजार तक औरतानी सब एकत्र होवऽ हथिन ।


Thursday, February 08, 2018

इवान मिनायेव के बिहार यात्राः 1.1 बिहारशरीफ में


बिहार में (मार्च 1875)

1.1      बिहारशरीफ में

[*187] फरवरी 1875 में नेपाल के यात्रा खातिर रवाना होते बखत हमरा बिहार अर्थात् प्राचीन मगध होके आवे के इच्छा होलइ । हमरा ई प्रान्त में रुचि हलइ, विशेष रूप से ई कारण से कि ई प्रान्त में प्राचीनता के विविधता हइ, आउ पवित्र स्थल के रूप में भी, जेकर अभी हिन्दू जन के जिनगी में कम महत्त्व नयँ हइ । हियाँ गया शहर हकइ, आउ श्रद्धालु हिन्दू के कहना हइ कि ऊ अदमी भाग्यशाली हइ जे गंगा में स्नान कइलकइ, प्रयाग (अर्थात् इलाहाबाद) में अपन केश मुंडन करवइलकइ, बनारस में मरलइ, आउ जेकरा लगी गया में श्राद्ध निष्पन्न होलइ। हरेक बरस, कउनो समय में हजारों तीर्थयात्री गया में अइते जा हका । सब्भे जात के, भारत के सब्भे हिस्सा से, राजा होवे चाहे रंक, हियाँ जुटते जा हका । प्रत्येक व्यक्ति के कर्तव्य हइ कि श्राद्ध करे, अर्थात्, ऊ पवित्र स्थल पर अपन पितर सब के आद करे, जाहाँ भगवान विष्णु के चरण-चिह्न हइ । एकर अलावे बिहार में बौद्ध धर्म स्थापित होले हल, ई कइएक शताब्दी तक फललइ-फुललइ, आउ हिएँ आझ तलुक पवित्र बोधिवृक्ष अस्तित्व में हइ, सब देश आउ सम्प्रदाय के बौद्ध लोग के तीर्थ स्थान हइ । अभियो तक ई वृक्ष के पूजा करे वलन में उत्तर में तिब्बत आउ नेपाल के, दक्षिण आउ दक्षिण-पूर्व में श्रीलंका, बर्मा आउ स्याम के बौद्ध लोग हका । [*188] लेकिन बिहार एगो पवित्र तीर्थस्थल खाली भारत से बाहर गेल बौद्ध लोग खातिर नयँ हइ; सब्भे सम्प्रदाय के खाली निष्ठावान हिन्दू लोग ही हियाँ तीर्थयात्रा पर नयँ अइते जा हका, बल्कि जैन लोग के भी मंदिर आउ तीर्थस्थल हकइ; मुसलमानो के हियाँ अपन पवित्र मकबरा हकइ । ई देश, जाहाँ बौद्ध लोग पृथ्वी के केन्द्र खोज रहला हल, सत्य के अधार पर चित्रमय स्थिति लगी प्रसिद्ध हइ, लेकिन एकर अलावे खेतिहर अबादी के गरीबी, आउ कुछ स्थान में जमीन के अनुर्वरता खातिर भी; कहीं-कहीं बिहार शहर के आसपास खाली एक्के फसल होवऽ हइ, आउ एक साल पहिले हियाँ के वासी सब के बड़गो भुखमरी के तकलीफ झेले पड़लइ ।
हम कलकत्ता से रेलगाड़ी से रवाना होलूँ आउ दोसरा दिन सुबह में बख्तियारपुर स्टेशन पहुँचलूँ, जाहाँ से हमर बिहार  के पर्यटन चालू होवे वला हल । ई प्रदेश के सुदूर दक्षिण तक जाय खातिर डब्बा से उतरके पालकी के इस्तेमाल करे के हल; बिहार (बिहारशरीफ) शहर जाय लगी आउ कोय दोसर उपाय नयँ हल । पूरे दिन हमन्हीं चलते रहलूँ ऊ सब इलाका से होके, जे चित्रण करे लायक से बहुत दूर हलइ, लगभग ओहे रस्ता से डेढ़ हजार साल पहिले चीनी तीर्थयात्री फ़ा-श्यान गेला हल; लेकिन मगध देश के अइसन खुला मैदान के संस्मरण उनकर कविसुलभ विवरण में कहीं नयँ मिल्लऽ हइ । बौद्ध-धर्म के पालना (हिंडोला), ई देश के पहिला छाप (impression) एकर काम के नयँ हलइ - गरमी, धूरी, सूर्य से दग्ध एकरूप मैदान, कहीं-कहीं दूर में पतरा-पतरा तार के पेड़, कभी-कभार देखाय देवे वला गाँव में गरीबी आउ गंदगी - ई सब कुछ तो ऊ बिलकुल नयँ हलइ, जे प्राचीन मगध के बारे, ओकर समृद्धि के बारे, घना अबादी वला शहर सब आउ धनाढ्य निवासी लोग के बारे बतावल जा हलइ । दखनी पहाड़ी हिस्सा छोड़के, समुच्चे पटना जिला में बड़गर-बड़गर मैदान हइ, कहीं-कहीं पेड़ के छोटगर-छोटगर समूह; वसन्तकाल में गाछ-वृक्ष आउ दग्ध मैदान के हालत दयनीय होवऽ हइ; मिट्टी मुख्य रूप से जलोढ़ (alluvial) हइ आउ गंगकिनारी प्रदेश [*189] विशेष रूप से उपजाऊ के रूप में मशहूर हइ । देर शाम के हमन्हीं बिहार शहर पहुँचलूँ । ई शहर में ऊ समय में एक्को यूरोपियन नयँ निवास करऽ हलइ, आउ एगो बंगाली हमरा एगो बहिर्भवन (outhouse) में शरण देलका, जे ऊ समय डिप्टी मजिस्ट्रेट के पद पर काम करऽ हला । हमरा देल गेल घर के एक कमरा के एगो स्तंभ सुन्दर बनइले हलइ, जे बालुकाश्म (sandstone) के तराश करके बनावल हलइ आउ जेकरा पर राजा स्कन्दगुप्त के अभिलेख हलइ - लेकिन खेद के बात हलइ कि ई स्तंभ उलटा तरफ करके जमीन में गड़ल हलइ, आउ अभिलेख के कुछ अंश रगड़इला से कुछ पता नयँ चलऽ हलइ । ई एक्के स्तंभ से ई अनुमान लगावल जा सकऽ हलइ, कि बिहार कउन मामला में धनी हइ । शहर के नाम (सं॰ विहार = मठ), जेकर वास्तविक अर्थ हकइ "मठ-शहर", ई निर्देशित करऽ हइ कि हियाँ कभी बौद्ध लोग हला, बौद्ध शहर हलइ, आउ वास्तव में मुसलमानी स्रोत सब से हमन्हीं के मालूम हइ, कि जब मोहम्मद बख्तियार ई शहर पर चढ़ाय करके कब्जा कइलकइ, त हियाँ ओकरा कइए गो सरमुंडन कइल ब्राह्मण (अर्थात्, बौद्ध भिक्खु), मंदिर, भरपूर मूर्ति, आउ मदरसा के व्यापक अर्थ में 'काफ़िर' (मुसलमान धर्म के नयँ माने वला) लोग के ढेर सारा किताब । ई सब विजेता के सहन नयँ होलइ - वाशिंदा लोग के कतल करके, ऊ मंदिर के तोड़-फोड़ देलकइ, कितब्बन के जरा देलकइ आउ मूर्ति सब के नष्ट कर देलकइ । लेकिन मुसलमान लोग मुस्लिम धर्म में विश्वास नयँ करे वलन के धर्म से संबंधित सब कुछ के बरबाद कर देवे के केतनो कोशिश कइलकइ, तइयो ओकरा से संबंधित स्मारक के ओकन्हीं पूरा तरह से नष्ट नयँ कर पइलकइ । ई तो मालूम नयँ, कि आझकल के बिहार प्राचीन काल में कउन प्रकार के शहर हलइ । मुसलमान काल से पहिले के पुरावशेष ई प्रमाणित करऽ हइ, कि हियाँ कभी एगो बड़गर आउ शानदार शहर हलइ । ऊ शायद पनचाने नद्दी के किनारे बसल हलइ, जे आझकल गरम वसन्त काल में बिलकुल सूख जा हइ, आउ मोटगर देवाल से घिरल हलइ, जे अभियो तक कहीं-कहीं अच्छा से सुरक्षित हकइ । प्राचीन बौद्ध मंदिर से बहुत-कुछ मुसलमान लोग सजावट लगी अपन मस्जिद आउ अपन मकबरा में लेके चल गेलइ । [*190] ऊ सब आउ दोसर-दोसर जगहवन पर बहुत अकसर स्तंभ, कॉर्निस आउ विकृत कइल बौद्ध मूर्ति पावल जा हइ । वर्तमान बिहार एगो शहर के रूप में कइसूँ न तो उल्लेखनीय हइ आउ न दिलचस्प । हियाँ के जनसंख्या कोय पैतालीस हजार हइ । नयका शहर पुरनका शहर के परिखा (moat) के पीछू में बनावल गेले ह आउ बहुत विशाल क्षेत्र में फैलल हइ । अलग-अलग मोहल्ला के बीच में मैदान आउ बाग फैलल हइ; तइयो रोड न तो चौड़गर हइ आउ न साफ-सुथरा । ऊ सब्भे में, बजार भी अपवाद नयँ हइ, पत्थल आउ अइँटा के जइसे-तइसे खड़ंजा कइल हइ । बजार के दुन्नु बगली पक्का घर के साथ-साथ अर्धध्वस्त झोपड़ी फैलल हइ । शहर के अधिकतर मस्जिद अर्धध्वस्त हइ ।
कहल जा हइ कि 1770 के अकाल आउ ओकर पहिले मराठा लोग के आक्रमण से ई शहर के वर्तमान स्थिति हो गेलइ । तब से ई सँभर नयँ पइलइ, हलाँकि अभियो तक एकर व्यापारिक महत्त्व हइ; बिहार से होके, जे नौगम्य (navigable) नदी पर नयँ बस्सल हइ आउ रेल मार्ग से दूर हइ, पटना, गया, हजारीबाग आउ मुंगेर के बीच बड़गो व्यापार होवऽ हइ । बरसात में आउ आंशिक रूप से शरत्काल में खाली बैले पर जाल जा सकऽ हइ; बैलवे पर समान के परिवहन कइल जा हइ । व्यापारी लोग के अपन माल में से कुछ के बिक्री के दौरान बिहार में रुक्के के आदत हइ। बिहार के एक चौथाई घर, अनाज के व्यापार करे वला आउ कागजी ऊतक (paper fabrics) के विक्रेता लोग के हइ । भाग्य के मारल ई शहर में, जे कइएक तुरी बरबाद हो चुकले ह आउ अभी मुख्य रास्ता से बिलकुल दूरवर्ती हइ, तइयो पुरावशेष के बल्कि छोटहीं सही, लेकिन महत्त्वपूर्ण संग्रह हइ । बिलकुल त्याग देवल गेल ई क्षेत्रीय संग्रहालय के इतिहास कुछ ई प्रकार हइ - कुछ साल पहिले हियाँ परी इंगलैंड के एगो डिप्टी मजिस्ट्रेट हलइ, जेकरा हलाँकि जादे जनकारी नयँ हलइ आउ जे प्रशिक्षित नयँ हलइ, लेकिन बड़गो उत्साही व्यक्ति हलइ। ऊ अपन खरचा से उत्खनन (खुदाई) करवइलकइ, आउ जे-जे चीज ऊ आसपास में नयँ पइलकइ, [*191] ऊ सब चीज घसीटके बिहार अपन घर में ले गेलइ । ई तरह कइएक साल गुजर गेलइ; उत्खनन से पुरावशेष के काफी कुछ संग्रह हो गेलइ, ओकर संग्रह के ई उत्साह में नयँ मालुम केतना हद तक ई शौकिया पुरातत्त्ववेत्ता के संग्रहालय विस्तार पइते हल; लेकिन अचानक ई पूरा उपयोगी क्रियाकलाप के बीच एगो अफवाह ई अंग्रेज अफसर के एगो गंभीर अपराध के दोष लगावे लगी शुरू कइलकइ; सबूत बहुत हलइ, आउ खुद के दोषी अनुभव करते, ई पुरातत्त्ववेत्ता भारत से भाग जाना बेहतर समझलकइ, नयँ मालुम काहाँ । लेकिन एकर पहिले ऊ अपन सब्भे पुरावशेष संग्रह के संरक्षण खातिर वर्तमान डिप्टी मजिस्ट्रेट के सौंप चुकले हल । जब सरकार के तरफ से ओकर प्रत्यर्पण करे के माँग शुरू होलइ, त ई अफसर पुरावशेष के प्रत्यर्पण करे से इनकार कर देलकइ, ई बात पर जोर देते कि ई पलायन कइल अभियुक्त (escaped accused) के निजी संपत्ति हइ, नयँ कि कोय दंडित अपराधी (convicted criminal) के । एकरे साथ ई मामला समाप्त हो गेलइ; एकरा चलते संग्रह के बहुत कुछ खो गेलइ । ई संग्रह खराब तरह से रक्खल हइ, आउ एकान्त स्थान में, आउ ई बात के चलते कि ई संग्रह एगो बदनाम व्यक्ति के नाम से संबंधित हइ, ई संभव हइ कि लमगर अवधि तक कोय अंग्रेज एकरा पर उचित ध्यान नयँ देतइ, जे बहुत अफसोस के बात हइ । ई संग्रह में शिलालेख, पत्थल या लकड़ी में कइल नक्काशी (bas-reliefs), स्तंभ, मूर्ति आदि हइ । बहुत कुछ अत्यंत रोचक हइ आउ सर्वोत्तम देख-रेख आउ आकस्मिक फोटो (snapshots) के प्रकाशन के योग्य हो सकऽ हइ । वर्तमान समय में सब समान के बाग में जामा कइल हइ आउ ओहे से परिवर्तनशील मौसम से प्रभावित होवऽ हइ - बारिश में भींग जा हइ, धूल-धूसरित हो जा हइ आउ धीरे-धीरे गरमी के मौसम में नष्ट हो जा हइ; कुछ साल आउ गुजरतइ, आउ निस्संदेह, संग्रह में से बहुत कुछ विज्ञान लगी हमेशे लगी खो जइतइ । अभिए अधिकांश वस्तु सब टुट्टल हइ, आउ मूर्ति के खंड, आउ अखंडित वस्तु सब के भी चोरा लेल जा हइ आउ गायब हो जा हइ । संग्रहालय के सब्भे वस्तु बिहार में संगृहीत हइ आउ बौद्ध धर्म के सबसे अंतिम युग के हइ, पौराणिकी (mythology) के तीव्रतम विकास के युग के हइ; लेकिन ई ओकर महत्त्व के कम नयँ करऽ हइ; ई सब मूर्ति के सहायता से आउ शिलालेख के अध्ययन के बाद आउ अधिक ई निश्चय करे के संभावना हइ [*192] कि बिहार में केतना अवधि तक बौद्ध धर्म टिक्कल रहलइ, आउ भारत में अपन अस्तित्व के अंतिम काल में कउन प्रकार के हलइ । कला के संबंध में पूरा संग्रह, पंजाब में पावल जाल ओइसने वस्तु सब से आउ लाहौर संग्रहालय में संगृहीत वस्तु सब से बहुत निम्नतर कोटि के हइ । भगोड़ा संग्राहक सब वस्तु के एगो विस्तृत सूचीपत्र (catalogue) छोड़ गेलइ, जे लेकिन अभी बिहार में नयँ हइ, आउ ई एगो महत्त्वपूर्ण क्षति हइ; जाहाँ तक वस्तु सब के विवरण के मामला हइ, त निस्संदेह एकरा फेर से तैयार कइल जा सकऽ हइ, लेकिन वर्तमान समय में हियाँ केकरो ई बात मालुम नयँ, कि कउन वस्तु काहाँ से लावल गेलइ, चाहे काहाँ परी कउन हालत में ऊ मिललइ । लेकिन ई संग्रहालय शहर के एगो अल्पकालिक आउ बिलकुल सांयोगिक सौन्दर्य हइ । कुछ साल आउ गुजरतइ, संग्राहक के कलंकित नाम भुला देवल जइतइ, संग्रह पर ही अधिक ध्यान देल जइतइ, आउ येन केन प्रकारेण ओकरा दोसर जगहा पर स्थानांतरित कइल जइतइ; ऊ समय तक, ई आशा कइल जा सकऽ हइ कि आखिरकार अइसन शानदार कारवाँ-सराय बनावल जइतइ, जेकर हमर समय में पैसा के बल पर बनावे लगी शुरुए कइल गेले हल, जे आंशिक रूप से जामा कइल चंदा से, आउ आंशिक रूप से  क्षेत्रीय जमींदार के दान से प्राप्त कइल गेले हल आउ ई तरह पुरावशेष के संग्रहालय के शहर से दूर हटा देलो पर बिहार लगी गौरव के बात होतइ । हाँ, बिहार से कभियो एकर परिवेश (surroundings) से वंचित नयँ कइल जा सकतइ, जे ओकर प्रदान कइल पुरातात्त्विक सामग्री के प्रचुरता के आधार पर आउ चित्रात्मक स्थिति (picturesque location) के चलते उल्लेखनीय हइ । ठीक शहर के पास में एगो छोटगर पहाड़ी हइ - एकरा पर अभी मस्जिद के खंडहर आउ मुसलमान के कुछ मजार हइ । हियाँ परी कुछ बौद्ध मूर्ति आउ छोटगर-छोटगर चैत्य प्राप्त होले ह, आउ एकर आधार पर एगो बहुत ठोस अनुमान लगावल गेलइ कि मस्जिद आउ मजार ऊ जगह लेलकइ, जाहाँ परी पहिले बौद्ध मठ चाहे मंदिर हलइ।
[*193] ई बात के बारे कि हियाँ परी कउन प्रकार के मंदिर हलइ, प्राचीन काल में ओकरा कउन नाम से पुकारल जा हलइ, पुरातत्त्ववेत्ता लोग के बीच अभियो तक विवादास्पद हइ । पहाड़ी के स्थिति पटना से दक्षिण-पूरब आउ बड़गाँव चाहे नालंदा से उत्तर-पूरब ई अनुमान के संभावना दे हइ कि ई पहाड़ी ठीक ओहे एकाकी (solitary) पहाड़ी हइ, जेकरा बारे फ़ाशियान (Faxian, परंपरागत चीनी लिपि में 法顯 , सरलीकृत रूप में 法显) पचमी शताब्दी में बात करऽ हइ । ई जगह पर, ओकर शब्द में, एगो मठ हलइ, जेकर कुछ अवशेष बिहार के संग्रहालय में संगृहीत हइ । मूर्तियन में से कुछ के, जे हियाँ परी मिलले हल, ब्रोडली द्वारा विवरण देल गेले ह आउ ऊ सब पर के समझ लेल जा चुकल शिलालेख (inscriptions) के अनुसार बहुत रोचक हइ । लेकिन ई सब शिलालेख काफी बाद के हइ ।
भारत में, देश के अंदर, रेलमार्ग आउ  राजमार्ग से दूर, साधारणतः अदमी के कन्हा द्वारा ढोवल जाल पालकी में लोग यात्रा करते जा हइ; घोड़ा सगरो नयँ मिल्लऽ हइ, आउ सीधे उपरे से पड़ रहल सूरज के किरण में हमेशे घोड़ा से कइएक घंटा तक यात्रा करना सुविधाजनक नयँ होवऽ हइ; लगभग दस बजे सूरज तेजी से जलावे लगऽ हइ, हियाँ तक कि दिसंबर आउ जनवरी में भी, मतलब शरद् ऋतु  के बीचोबीच में, आउ बाद में तो गरमी आउ जादे कष्टकारक होवऽ हइ ।
बिहार में भारवाहक (कुली) के मजदूरी बहुत जादे नयँ होवऽ हइ आउ स्थानीय प्राधिकारी द्वारा निश्चित कइल जा हइ ताकि यात्री आउ भारवाहक के बीच कोय वाद-विवाद नयँ होवे - लेकिन, भारवाहक एतना कम आग्रही होवऽ हइ कि नगण्य बख्शीश ओकन्हीं के पूरा संतुष्ट कर दे हइ, आउ एकरा खातिर अतिरिक्त सेवा करे लगी तैयार हो जा हइ । ओकन्हीं एक घंटा में तीन से चार मील तक पैदल चल्लऽ हइ; आउ जेतने जादे भारवाहक होवऽ हइ, ओतने जल्दी समान के ढुलाई होवऽ हइ । एक यात्री लगी थोड़े दूरी के यात्रा में चार चाहे छो अदमी पूरा तरह से काफी होवऽ हइ । मूलवासी लमगर दूरी के यात्रा पर भी अकसर कमहीं भारवाहक के साथ चल पड़ते जा हइ; एगो यूरोपियन के अइसन यात्रा करे लगी चाहलो पर कभी सफलता नयँ मिलतइ । बिहार में मजूर के मजूरी बहुत जादे नयँ होवऽ हइ - रोज के हिसाब से दू आना पावऽ हइ, अर्थात् ¼ शिलिंग । जमींदार के काम खातिर [*194] ओकरा एकर आधा मिल्लऽ हइ, चाहे ओकरा चावल देल जा हइ, जेकर कीमत आउ कम होवऽ हइ । पुरनका जमाना में मजदूरी आउ कमती हलइ । औरतियन के तो बहुत कम मिल्लऽ हइ ।
बिहार आउ गया के आसपास ई सब जगह के किसान के स्थिति निम्मन नयँ हइ; ओकरा पास अप्पन नाम से कोय जमीन नयँ होवऽ हइ आउ अधिकांश खाली छोटगर अवधि के किसान होवऽ हइ । अइसन अकसर होवऽ हइ कि ओकरा दस्तावेज के कोय सुरक्षा नयँ होवऽ हइ आउ कभी भी अपन पट्टा (lease) से वंचित कर देल जा सकऽ हइ ।
पट्टा लगी किसान या तो पैसा से चाहे उपज से भुगतान करऽ हइ; पहिलौका हालत में पट्टा के नकदी  कहल जा हइ, दोसरौका में भावली । पट्टा स्थायी  हो सकऽ हइ, चाहे अस्थायी, तीन से नो साल तक के । किराया पैसा के रूप में साल में दू तुरी भुगतान कइल जा हइ, फसल के कटनी के बाद; अगर किसान अपन किराया उपज के रूप में करऽ हइ, त ओकरा हरेक फसल के कटनी के बाद निकास देल जा सकऽ हइ । हलाँकि सैद्धांतिक रूप से किसान के आधा उपज मिल्ले के चाही, लेकिन वास्तव में ओकरा कभियो एक तिहाई से जादे नयँ मिल पावऽ हइ, कभी-कभी तो ओकरो से कम । साधारणतः फसल के कटनी के कुछ समय पहिले किसान के दलाल लोग भावी फासल के आकलन करऽ हइ, आउ अपन मालिक के साथ-साथ अपन खुद के लाभ के ध्यान में रखते, भावी फासल के यथासंभव जादे से जादे पैमाना पर नोट करे के प्रयास करऽ हइ; किसान ओकन्हीं के घूस देवे लगी मजबूर हो जा हइ ताकि सही आकलन नोट कइल जाय, चाहे ओकरा ऊ आधा हिस्सा से जादहीं भुगतान करे पड़ऽ हइ, जे ऊ खुद पावऽ हइ । बिहार के आसापास के जमीन के, सगरो नियन, एकर गुणवत्ता पर निर्भर करऽ हइ; सबसे निम्मन जमीन फी एकड़ 1 पौंड 4 शिलिंग (1 पौंड = 20 शिलिंग) से लेके ओतने माप लगी 4 पौंड 17 शिलिंग पर देल जा हइ; कुछ-कुछ जमीन बिहार के आसपास 6 पौंड 4 शिलिंग फी एकड़ के हिसाब से देल जा हइ, लेकिन 6 शिलिंग आउ 12 शिलिंग फी एकड़ वला भी जमीन हइ । किसान पट्टा पर 2 से 16 एकड़ तक ले हइ; औसत पट्टा साढ़े छो एकड़ से जादे नयँ होवऽ हइ आउ किसान द्वारा पट्टा पर लेल एतना जमीन काफी से अधिक समझल जा हइ । [*195] अंग्रेज अफसर लोग के हिसाब के अनुसार 1 पौंड मासिक आमदनी, ई सब जगह में, छो जन के एगो खेतिहर परिवार के गुजारा लगी पूरा तरह से सुरक्षित होवऽ हइ । पटना जिला में पट्टा चाहे बटाई पर काम करे वलन जोतदार के अलावे बहुत सारा भूमिहीन मजूर लोग हइ, आउ दिहाड़ी पर काम करे वलन मजूर भी हइ, जे दासत्व (slavery) के पहिले गरीबी तक पहुँचावल हइ । दक्षिण बिहार में बहुत अकसर अइसन होवऽ हइ कि कर्जदार खुद के चाहे अपन बाल-बुतरू के दासत्व में बेच दे हइ । ई दास (बंधुआ मजूर) लोग के, जेकर अंग्रेजी कानून द्वारा मान्यताप्राप्त नयँ हइ, अस्तित्व हइ आउ भिन्न-भिन्न नाम से जानल जा हइ - नफ्फर, लौंड़ी आउ गुलाम । स्वतंत्र मजूर के नगद के बदले उत्पन्न अनाज के रूप में (चाहे आउ कोय सुविधा के रूप में) मजूरी देल (paid in kind) जा हइ आउ निस्संदेह जादे नयँ, जइसन कि उपरे उल्लेख कइल जा चुकले ह । दास के कम नयँ मिल्लऽ हइ - ई बात के ध्यान में रखते कि ऊ विरले स्वतंत्रता खोजऽ हइ आउ अपन जिनगी एक्के जगह गुजार दे हइ, आउ जे रोजाना पाँच-छो पौंड (दू-तीन किलो) चावल में संतुष्ट रहऽ हइ ।
कमिया या हरवाहा के पूरा सीज़न खातिर रक्खल जा हइ । साधारणतः ओकन्हीं के 1 पौंड से लेके 2 पौंड तक अग्रिम देल जा हइ आउ अइसन कर्जदार होल हरवाहा ओतना समय तक काम करे लगी बाध्य होवऽ हइ, जब तक कि ऊ अपन कर्ज चुका नयँ दे हइ । मालिक ओकरा हल आउ बीज दे हइ आउ ओकरा से रोजाना जबरदस्ती लगभग नो घंटा काम करवावऽ हइ । बहुत अकसर अइसन होवऽ हइ कि कर्ज कभियो नयँ चुकावल जा हइ आउ ऊ पिता से विरासत के रूप में बेटवा पर चल जा हइ, जे ओहे गुलामी के वहन करऽ हइ । एक मामला में दास (गुलाम) के स्थिति स्वतंत्र दिहाड़ी पर काम करे वला मजूर से बेहतर होवऽ हइ - मालिक ओकरा खाली खाने नयँ, बल्कि कपड़ो दे हइ; एकरा अलावे ओकर बाल-बुतरू के शादी के खरचा उठावे के भारो खुद पर ले हइ ।


इवान मिनायेव के बिहार यात्राः लेखक के परिचय



लेखक के संक्षिप्त परिचय

ए॰पी॰ बरान्निकोव द्वारा रूसी में लिखित इवान मिनायेव के विस्तृत जीवनी के अंग्रेजी अनुवाद "Travels in and Diaries of India and Burma" में पृ॰23-39 में देखल जा सकऽ हइ ।

इवान पावलोविच मिनायेव (Иван Павлович Минаев) (1840-1890) पहिला रूसी भारतविद् हथिन जिनकर शिष्य में  सिर्गेय ओल्देनबुर्ग, फ्योदर शेरबात्स्कोय आउ द्मित्री कुद्र्याव्सकी के नाम आवऽ हइ ।

सांक्त-पितिरबुर्ग विश्विद्यालय में वसिली वसिल्येव के शिष्य इवान मिनायेव पालि साहित्य में रुचि लेलथिन आउ ब्रिटिश म्यूज़ियम आउ बिब्लियोतेक नाश्योनाल में उपलब्ध पालि हस्तलेख सब के सूची (अभियो अप्रकाशित) बनावे खातिर विदेश गेलथिन । उनकर रूसी भाषा में लिक्खल पालि व्याकरण (1872) के अनुवाद फ्रेंच (1874) आउ अंग्रेजी (1882) में प्रकाशित होले हल । मिनायेव के उत्कृष्ट रचना Buddhism: Untersuchungen und Materialien (बौद्ध-धर्म - शोध आउ सामग्री) के प्रकाशन 1887, खंड 1, में होले हल । [1]
  
"मिनायेव लगभग पहिला यूरोपीय प्राच्यविद् हलथिन ... जे ई अनुभव कइलथिन कि प्राचीन भारत के इतिहास आउ समाज लगी बौद्ध धर्म आउ पालि साहित्य के ज्ञान आवश्यक हइ ।" [2]

रूसी भौगोलिक सोसाइटी के सदस्य के रूप में ऊ भारत, सिलोन (श्रीलंका) आउ बर्मा के यात्रा 1874-75, 1880 आउ 1885-86 में कइलथिन हल । उनकर रूसी जर्नल में प्रकाशित यात्रा विवरण के अंग्रेजी अनुवाद 1958 आउ 1970 में प्रकाशित होले हल ।

इवान पावलोविच मिनायेव के जन्म तम्बोव गुबेर्निया (राज्य) के एगो कुलीन परिवार में 21 अक्तूबर 1840 में होले हल । उनकर अच्छा तरह से लालन-पालन घरे पर होलइ आउ बाद में ऊ पहिले मास्को के प्राथमिक शाला में शिक्षा ग्रहण कइलथिन, आउ फेर तम्बोव में, जाहाँ ऊ हाई स्कूल के कोर्स 1858 में पूरा कइलथिन । फेर एहे वर्ष पितिरबुर्ग यूनिवर्सिटी के प्राच्य भाषा प्रभाग में दाखिला लेलथिन, जाहाँ ऊ बखत के महान चीन-विद्या विशेषज्ञ आउ बौद्ध-धर्म के प्रसिद्ध विद्वान प्रोफेसर वी॰ पी॰ वसिल्येव आउ पितिरबुर्ग यूनिवर्सिटी के प्रथम संस्कृत प्रोफेसर के॰ ए॰ कोसोविच के मार्गदर्शन में अध्ययन कइलथिन । फरवरी 1861 में उनकर लेख "मंगोलिया के भौगोलिक अध्ययन" पर उनका स्वर्ण पदक (गोल्ड मेडल) मिललइ । सन् 1862 में चीनी-मंचूरियन प्रभाग से अपन कोर्स पूरा कइलथिन । घरे पर रहते ऊ फ्रेंच आउ जर्मन भाषा के पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कइलथिन हल । यूनिवर्सिटी में ऊ अंग्रेजी भी सिखलथिन । मिनायेव के बौद्ध-धर्म में विशेष रुचि हलइ, जेकरा से उनका संस्कृत, पालि, प्राकृत भाषा सीखे में प्रवृत्ति होलइ । बाद में ऊ कुछ आधुनिक भारतीय भाषा भी सिखलथिन     

यूनिवर्सिटी के शिक्षा समाप्त कइला पर ऊ बौद्ध-धर्म के मूल स्रोत के अध्ययन के पक्का इरादा कर लेलथिन, जेकरा लगी संस्कृत आउ पालि साहित्य के ठोस आउ गहरा ज्ञान आवश्यक हलइ । अतएव ऊ सन् 1863 में लमगर अवधि के विदेश दौरा कइलथिन आउ सबसे पहिले बेर्लिन आउ ग्योटिंगन में दू बरस के दौरान तत्कालीन प्रसिद्ध प्राच्यविद् बॉप, वेबर आउ बेनफ़ी के व्याख्यान सुनलथिन । राष्ट्रीय शिक्षा मंत्रालय से प्राच्य इतिहास के अध्यापन के खातिर तैयारी करे लगी यात्रा के प्रस्ताव मिलला पर मिनायेव अगला तीन साल स्वतंत्र रूप से पेरिस आउ लंदन में पांडुलिपि के अध्ययन कइलथिन ।

इवान मिनायेव के रचनावली के प्रकाशित अंग्रेजी अनुवाद:

प्रो॰ इवान मिनायेव के संपूर्ण Bibliography "Indian Historical Quarterly, Vol. X, 1934" (पुनर्मुद्रण 1985, दिल्ली) के पृ॰ 811-826 में प्रकाशित होले ह, जेकरा में से निम्नलिखित रचना के अभी तक अंग्रेजी अनुवाद उपलब्ध हइ ।

(1)   Pali Grammar (first published,1882)- Reprint 2010
(2)   Travels in and Diaries of India and Burma - 1958, published from Calcutta
(3)   Old India - Notes on Afanasy Nikitin's "Voyage Beyond the Three Seas", 2010
(4)   Clever Wives & Happy Idiots - Folktales from Kumaon Himalayas – 2015
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[1]. Gregory D. Alles. Religious Studies: A Global View. Routledge, 2007. Page 55.
[2]. The Indo-Asian Culture, Volume 18. Indian Council for Cultural Relations, 1969. Page 64.