विजेट आपके ब्लॉग पर

Wednesday, September 13, 2006

मगही आन्दोलन

१. बोधगया से नालन्दा तक पैदल मगही जागरण मार्च

[मगही के विकास ला हरमेशा मगहिया भाई लोग सजग रहलन हे । बाकि मगही के साहित्यकार लोग १९७८ ई० से जादे सक्रिय होलन । मगही के महातम बतावे ला 'मगही जागरण मार्च' एकरे उदाहरण हल । तब से लेके अब तक धरना-प्रदर्शन लगातार होइत रहल हे । प्रस्तुत हे शुरुआत । आगे हरेक महीना में आन्दोलन के इतिहास के झलक देखावे के प्रयास कैल जायत ।]

१६-११-१९७८ के पटना में पारिजात प्रकाशन में अखिल भारतीय मगही साहित्य सम्मेलन के कार्यकारिणी के बैठक भेल । ओकरा में निश्चय भेल कि २३-१२-१९७८ से २६-१२-१९७८ तक बोधगया से नालन्दा तक एगो अध्ययन दल पैदल जागरण मार्च करे । जतरा में मगही साहित्यकारन से सम्पर्क कैल जाय । गड़ल-छिपल साहित्यकारन के प्रगट कैल जाय । साथे-साथे लोक-साहित्य, पुरातत्त्व आउ मगही शब्दरूप आदि के संग्रह आउ टेप कैल जाय । डॉ० राम प्रसाद सिंह, रासबिहारी पाण्डेय, रामदेव मेहता, जनकनन्दन प्रसाद सिन्हा 'जनक' आउ रामनरेश प्रसाद वर्मा मिलजुल के कार्यक्रम बनौलन। प्रमुख मगही साहित्यकार लोग के नेवतल गेल ।

ई ऐतिहासिक जतरा के प्रति काफी उत्साह आउ उमंग देखल गेल । २३-१२-१९७८ के सांझ खनी मगही कवि-लेखक लोग सम्मेलन कार्यालय नयी गोदाम, गया में पहुँचे लगलन । योगेश्वर प्रसाद सिंह 'योगेश', शेषानन्द मधुकर, रामविलास 'रजकण', रामनरेश प्रसाद वर्मा, रामदेव मेहता आउ हरीन्द्र विद्यार्थी पहुँचलन । रात में राम प्रसाद सिंह के निवास पर विश्राम आउ कवि-गोष्ठी भेल । ई गोष्ठी में मगही के वर्तनी पर भी विचार कैल गेल ।

२४-१२-१९७८ के स्वर्ण किरण, रामनरेश मिश्र 'हंस', हरिदास ज्वाल, जनकनन्दन प्रसाद सिन्हा 'जनक', बलिराम पाण्डेय आउ रासबिहारी पाण्डेय भी शामिल हो गेलन । सांझ के तीन बजे बोधगया के पुरान मन्दिर आउ आज के बनल विदेशी बौद्ध स्थल के दर्शन विवेचन कैल गेल । फिनो रात में राम प्रसाद सिंह के निवास पर कवि-गोष्ठी आउ संगीत के कार्यक्रम भेल । लेखक लोग उहें विश्राम कयलन ।

२५-१२-१९७८ के सुबह ८ बजे लेखक लोग के रासबिहारी पाण्डेय हीं नास्ता भेल । गया के नागरिक लोग पत्रकार सम्मेलन कार्यालय में यात्री लोग के माला पेन्हयलन, बैज लगयलन आउ यात्रा के सफलता ला शुभकामना कयलन ।

ठीक ९ बजके १० मिनट पर गया के चौक से मगही साहित्यकार लोग के यात्रा शुरू भेल । इनकर अगुआई राम प्रसाद सिंह कयलन । ई जत्था में रामनरेश मिश्र 'हंस', योगेश्वर प्रसाद सिंह 'योगेश', रासबिहारी पाण्डेय, शेषानन्द मधुकर, रामदेव मेहता, जनकनन्दन प्रसाद सिन्हा 'जनक', हरिदास ज्वाल, रामनरेश प्रसाद वर्मा, राम विलास 'रजकण', हरीन्द्र विद्यार्थी, श्रीकान्त जैतपुरिया, शिवनारायण प्रसाद, उपेन्द्रनाथ वर्मा, बलिराम पाण्डेय, के०एन० झा आदि शामिल हलन ।

गया से चलके ई मगही अध्ययन दल १२ बजे सिंगठिया गाँव पहुँचल जहाँ श्री नरेन्द्र सिंह जी काफी स्वागत कयलन । उहें भोजन आउ विश्राम भेल । फिर संगीत आउ कवि-गोष्ठी भेल, जेकर अध्यक्षता रामाशीष सिंह कयलन । कविता पाठ वीर कवीन्द्र सिंह, चन्देश्वर सिंह, रामाशीष सिंह, रामदहीन सिंह, नागदेव सिंह, 'योगेश' जी, हरीन्द्र विद्यार्थी, रामनारायण वर्मा, रामदेव मेहता, मुकुल जैतपुरिया, 'जनक' जी, उपेन्द्र नाथ वर्मा, शिवनारायण प्रसाद आदि कयलन । डॉ० राम प्रसाद सिंह यात्रा के उद्देश्य पर प्रकाश डाललन आउ साहित्यकारन के परिचय देलन । ग्राम पंचायत के मुखिया रविनन्दन सिंह आदि वजीरगंज तक पैदल यात्रा में साथ देलन ।

जत्था ३ बजे वजीरगंज पहुँचल, जेकरा में जयराम सिंह, राधाकृष्ण राय, रामनाथ शर्मा, रामपुकार सिंह, कैलाशपति शुक्ल आदि मगही के विद्वान आउ साहित्यकार शामिल भेलन । वजीरगंज में साढ़े तीन बजे से साढ़े चार बजे तक राम पुकार सिंह के अध्यक्षता में वार्ता आउ कवि-गोष्ठी भेल । एकरा में कुर्की हाट, सीतामढ़ी आदि मगह के पौराणिक स्थान के बारे में चर्चा भेल ।
अब २९ साहित्यकारन के दल वजीरगंज से पाँच बजे चलके रात में सात बजे राजगीर पहुँचल । राजगीर के सरस्वती भवन में सांस्कृतिक कार्यक्रम आउ कवि सम्मेलन के आयोजन कैल गेल । ई जत्था में तारकेश्वर भारती, डॉ० सरयू प्रसाद, श्रीनन्दन शास्त्री, इन्द्रदेव सिंह, प्रो० लक्ष्मण प्रसाद 'चन्द', भारत भारद्वाज आदि शामिल भेलन । कुल संख्या ३७ हो गेल ।

राजगीर के सरस्वती भवन में सुरेन्द्र प्रसाद तरुण जत्था के स्वागत कयलन । इहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम आउ कवि-सम्मेलन भेल, जेकरा में भारी संख्या में स्थानीय श्रोता आउ मगही प्रेमी भाग लेलन । अध्यक्षता कैलन डॉ० सरयू प्रसाद । स्वागत भाषण में तरुण जी कहलन कि ई दल मगही के विकास, प्रचार-प्रसार आउ रचना के बढ़ावे में काफी मदद करत । मगही साहित्य के प्रकाशन ला लमहर कोष जमा करे के जरूरत हे । राम प्रसाद सिंह जतरा के कार्यक्रम आउ उद्देश्य पर प्रकाश डाललन ।

ई जतरा से मगही भासी जनता आउ साहित्यकार के बीच नया सम्बन्ध बनल । एकरा से नया चेतना आउ भाव विकसित होयल । पौराणिक स्थल के पुरातात्त्विक आउ सांस्कृतिक अध्ययन भी होयल । लोककथा, लोकगीत के सहेजे के जरूरत समझल गेल । तारकेश्वर भारती नालन्दा जिला मगही साहित्य सम्मेलन के तरफ से दल के स्वागत कैलन ।

डॉ० सरयू प्रसाद के अध्यक्षता में विचार-गोष्ठी के कार्यक्रम कवि-सम्मेलन के रूप में बदल गेल । कवि-सम्मेलन रात के ९ बजे से १२ बजे तक चलल । फिन भोजन के बाद सुबह ४ बजे तक कविता पाठ आउ विचार-विमर्श होइत रह गेल । ई कवि-सम्मेलन में श्रीनन्दन शास्त्री, 'योगेश' जी, जयराम सिंह, शेषानन्द मधुकर, राम विलास 'रजकण', श्रीकान्त जैतपुरिया, रामनरेश मिश्र 'हंस', स्वर्ण किरण, रामनरेश प्रसाद वर्मा, इन्द्रदेव सिंह, लक्ष्मण प्रसाद 'चन्द', दसईं सिंह, जनकनन्दन प्रसाद, रामदेव मेहता, हरिदास ज्वाल, शिवनारायण प्रसाद, हरीन्द्र विद्यार्थी, भारत भारद्वाज, रामनाथ शर्मा, राम पुकार सिंह, उपेन्द्र नाथ वर्मा आउ बलिराम पाण्डेय भाग लेलन । रासबिहारी पाण्डेय धन्यवाद देलन । भोजन आउ रहे के व्यवस्था तरुण जी द्वारा कैल गेल ।

२६-१२-१९७८ के सुबह में अध्ययन दल राजगीर के गर्म झरना में नहयलक । पुरान स्थल के अध्ययन कैल गेल । जैन धर्मशाला में तरुण जी नाश्ता आउ कवि-गोष्ठी के आयोजन कयलन । सुबह में मगही के वर्तनी आउ शब्दरूप पर विचार कैल गेल । ई तरह से मगध के पुरान राजधानी राजगीर में १८ घंटा रहके पुरातत्त्व तथा लोक साहित्य के अध्ययन कैल गेल । रामनरेश प्रसाद वर्मा आयोजक के आभार प्रगट कैलन ।

मगही जागरण दल १२ बजे नालन्दा के तरफ चल पड़ल । एक बजे नालन्दा पहुँच के बगल के गाँव कपटिया में प्रो० परमेश्वर दयाल हीं दल के भोजन भेल । नालन्दा के पुरान खंडहर के अध्ययन आउ परिदर्शन कैल गेल । फिनो ४ बजे लोग उहाँ से बिहार शरीफ ला रवाना भेलन । बिहार शरीफ के महत्त्वपूर्ण स्थान देखइत दल ६ बजे पटेल कॉलेज, उदन्तपुरी, बिहार शरीफ पहुँचल । इहाँ दल के भोजन आउ विश्राम के व्यवस्था प्रो० दसईं सिंह कयलन, जिनका प्रो० आनन्दी प्रसाद, जनार्दन प्रसाद सिन्हा आउ प्रो० अवधेश नारायण सिंह के विशेष सहजोग मिलल ।

बिहार शरीफ पटेल कॉलेज में रात ८ बजे से जत्था के कार्यक्रम शुरू भेल, जेकर अध्यक्षता तारकेश्वर भारती कैलन । दल के स्वागत कैलन सरयू प्रसाद । ई अवसर पर डॉ० सरयू प्रसाद मगही के ध्वनि विज्ञान आउ वर्तनी पर अप्पन विद्वत्तापूर्ण स्थापना वक्तव्य देलन । कार्यक्रम के उद्घाटन रामनरेश मिश्र 'हंस' कैलन । इहाँ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, रामचन्द्र प्रसाद 'अदीप', कमलाकान्त पाठक, अयोध्यानाथ शांडिल्य, सौरभ प्रसाद आदि शामिल हो गेलन । विचार-गोष्ठी भेल । धन्यवाद ज्ञापन रासबिहारी पाण्डेय कैलन । कवि सम्मेलन रात के १ बजे तक चलल, जेकरा में दल के पुरान कवि के अलावे लक्ष्मण प्रसाद 'चन्द', सरयू प्रसाद, डॉ० आर. ईसरी अरशद, दसईं सिंह आदि भाग लेलन ।

२७-१२-१९७८ के डॉ० सरयू प्रसाद के निवास स्थान अम्बेर, बिहार शरीफ में अध्ययन दल के समापन कार्यक्रम भेल । विषय प्रवर्त्तन करइत डॉ० सरयू प्रसाद कहलन कि हमनी १९६० में संस्थापित मगध शोध संस्थान के फिनो जियावल चाहित ही । एकर उद्देश्य आउ कार्यक्रम बड़का गो हल जे अभी तक अछूता हे । लोक-संस्कृति, बौद्ध-जैन संस्कृति, पत्रकारिता आउ ध्वनि विज्ञान जइसन विषय के स्वतन्त्र पढ़ाई कउनो विश्वविद्यालय में न हो रहल हे । ई शोध संस्थान ई अभाव के पूरा करत । ई अवसर पर बोलइत श्रीनन्दन शास्त्री कहलन कि सब क्षेत्र के संस्था के एकजुट होके काम करे के चाही । अन्त में डॉ० राम प्रसाद सिंह सब विद्वान साहित्यकारन के प्रति आभार प्रगट करइत कहलन कि आशा हे अपने लोग अइसहीं तकलीफ, कष्ट आउ दुख झेल के मगही के झण्डा बुलन्द कयले रहम ।

मगही जागरण दल पूरा जोश-खरोश के साथ अप्पन-अप्पन रास्ता नापलन ई संकल्प के साथ कि मगही भासा साहित्य के विकास आउ प्रचार-प्रसार ला हमनी सब कुछ कुर्बान कर देम । ई जतरा के तुलना स्वतन्त्रता आन्दोलन के 'डांडी मार्च' से मगही के 'डांडी मार्च' के रूप में कैल जाहे ।

--- हरीन्द्र विद्यार्थी, "अलका मागधी", सितम्बर २००६, पृ० ७-८.

२. इस्कूल-कौलेज में मगही के पढ़ाई

मगही प्रेमी साहित्यकार लोग हमेशा मगही के विकास चाहलन हे । मगही भासा आगे बढ़े, एकरा ला प्रयास होइत रहल हे । २४ मार्च १९८४ के 'अखिल भारतीय मगही भासा सम्मेलन' के तत्त्वावधान में मगही के प्रमुख साहित्यकारन के शिष्टमंडल इण्टरमीडियट शिक्षा परिषद के अध्यक्ष डॉ० शालीग्राम सिंह से मिलल आउ उनका से इण्टरमीडियट कक्षा में मगही के पढ़ाई शुरू करे के मांग कैलक । शिष्टमंडल में शामिल साहित्यकारन के नाम हे श्रीनन्दन शास्त्री, योगेश्वर प्रसाद सिंह 'योगेश', रास बिहारी पाण्डेय, रामनरेश प्रसाद वर्मा, उमेश्वर आउ प्रभात वर्मा ।

इण्टरमीडियट शिक्षा परिषद के अध्यक्ष डॉ० शालीग्राम सिंह मगही के पढ़ाई शुरू करे के संबंध में यथाशीघ्र ठोस कार्रवाई करे के आश्वासन देलन । ओकर बाद जब सिलेबस बनल, तब ओकरा में मगही के भी शामिल कर लेवल गेल । आज मगध क्षेत्र के ढेर कॉलेज में मगही के पढ़ाई हो रहल हे । अब तक सबसे जादे विद्यार्थी जउन कॉलेज से मगही विषय रखके इण्टर के परीक्षा देलन हे ओकर नाम हे पी० एन० कुशवाहा कॉलेज, अछुआ, पालीगंज, पटना । उहाँ मगही विभाग के अध्यक्ष हथ प्रो० दिलीप कुमार ।

२६ दिसम्बर १९९० के 'मगही साहित्यकार कलाकार परिवार' के तरफ से मगही के उपेक्षा पर गहरा चिन्ता प्रकट करइत महासचिव हरीन्द्र विद्यार्थी मांग कैलन कि बिहार के सभे विश्वविद्यालय में मगही के पढ़ाई शुरू कैल जाय । मगध विश्वविद्यालय, बोधगया से सम्बद्ध कौलेजन में तो बी० ए० ऑनर्स में मगही के पढ़ाई होयबे करऽ हे । ऊ मांग कैलन कि बिहार लोक सेवा आयोग के परीक्षा में भी वैकल्पिक विषय के रूप में मगही के शामिल कैल जाय ।

२२ फरवरी १९९९ के कुमारी राधा के निवास पर 'मगही साहित्यकार कलाकार परिवार' के अगुआई में मगही के विकास ला एगो बैठक भेल, जेकरा में सतीश कुमार मिश्र, घमंडी राम, हरीन्द्र विद्यार्थी, राजकुमार प्रेमी, राम गोविन्द यादव आउ डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य भाग लेलन । कुमारी राधा के अध्यक्षता में होयल ई बैठक में पटना विश्वविद्यालय में मगही के पढ़ाई शुरू करे ला संघर्ष तेज करे के निरनय लेवल गेल ।

'अखिल भारतीय मगही साहित्य सम्मेलन' के महासचिव हरीन्द्र विद्यार्थी एगो प्रेस वक्तव्य जारी कर के पटना विश्वविद्यालय में मगही के पढ़ाई शुरू करे के मांग कैलन, साथे-साथे एहु घोसना कैलन कि एकर समर्थन में २२ जून के विश्वविद्यालय के गेट पर धरना देवल जायत । फिर दिनांक २२.६.२००० ई. के पटना विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार पर धरना सह नुक्कड़ कविता पाठ के आयोजन सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य के अध्यक्षता में होयल । कविता पाठ करे ओलन प्रमुख कवियन के नाम हे - हरीन्द्र विद्यार्थी, डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य, चन्द्रप्रकाश माया, घमंडी राम आउ राजकुमार प्रेमी । ई धरना में छात्र नेता मनोज कुमार के नेतृत्व में एगो संघर्ष समिति के गठन भी कैल गेल ।

'अखिल भारतीय मगही साहित्य सम्मेलन' के तत्त्वावधान में १०.०६.२००१ ई. के मगही साहित्यकार हरीन्द्र विद्यार्थी, डॉ० सत्येन्द्र कुमार सिंह आउ गौतम विन्ध्यपुत्र के तीन सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल मगध विश्वविद्यालय के कुलपति बी० एन० रावत से मिलके एम०ए० में मगही के पढ़ाई शुरू करे ला ज्ञापन देलक । कुलपति महोदय ई मांग पर विचार करे के आश्वासन देलन ।

१९ फरवरी २००४ ई. के 'मगही बचाओ अभियान समिति' के तत्त्वावधान में पटना विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार पर दिन भर धरना देवल गेल । एगो पाँच सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल कुलपति के. के. झा से मिलके पटना विश्वविद्यालय में आई. ए. से लेके एम. ए. तक के वर्ग में मगही के पढ़ाई शुरू करे के मांग कैलक । कुलपति महोदय ओकरा पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेके आश्वासन देलन । धरना पर ३३ साहित्यकार लोग दिन भर बइठलन । प्रमुख नाम हे - हरीन्द्र विद्यार्थी, डॉ० राम प्रसाद सिंह, डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य, प्रो० दिलीप कुमार, डॉ० सत्येन्द्र कुमार सिंह, घमंडी राम, प्रभात वर्मा, डॉ० उमाशंकर सिंह, डॉ० बी. एस. लाल, चन्द्रप्रकाश माया, राम पुकार कुशवाहा, शिव प्रसाद लोहानी, राम गोविन्द यादव, लालमणि कुमारी, अरुण कुमार गौतम आउ सीताराम यादव ।

एतना मेहनत कैला के बाद भी मगध विश्वविद्यालय आउ पटना विश्वविद्यालय में तो मगही में एम. ए. के पढ़ाई शुरू न हो सकल, बाकि हरीन्द्र विद्यार्थी, घमंडी राम, डॉ० सत्येन्द्र कुमार सिंह आउ डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य के प्रयास से नालन्दा खुला विश्वविद्यालय में मगही में एम. ए. शुरू हो गेल हे । एकरा ला उहाँ के कुलपति श्री वी. एस. दूबे आउ उहाँ के को-ऑर्डिनेटर श्री पी. सी. पाण्डेय धन्यवाद के पात्र हथ ।

--- हरीन्द्र विद्यार्थी, "अलका मागधी", अक्टूबर २००६, पृ० ५.

३. आकाशवाणी आउ दूरदर्शन से मगही कार्यक्रम

मगही के हर जगह उचित स्थान दिलावे ला आन्दोलन तो बहुत पहिलहीं से होते आ रहल हे, बाकि १९७८ ई० से ई जादे जोर पकड़लक । ओन्ने बोधगया से नालन्दा तक पैदल 'मगही जागरण मार्च' निकलल, एन्ने पटना में बिहार सरकार से मांग होवे लगल कि 'मगही अकादमी' के स्थापना कैल जाय ।

केन्द्रीय मगही परिषद्, पटना के सतीश कुमार मिश्र, घमंडी राम आउ 'मगही छात्र संघर्ष समिति' के हरीन्द्र विद्यार्थी, संतोष कुमार सिन्हा आदि बिहार सरकार से मांग कैलन कि बिहार सरकार दोसर भाषाई अकादमी जइसन 'मगही अकादमी' के स्थापना करे ।

ओन्ने ७ जून १९७८ के हरीन्द्र विद्यार्थी आउ श्याम नारायण पटेल के संयुक्त नेतृत्व में 'मसौढ़ी मगही परिषद्' के गठन कैल गेल, जेकरा में मगही भासा के विकास के संकल्प लेवल गेल । ई संगठन ' केन्द्रीय मगही परिषद्, पटना' के साथे मिलके केन्द्र सरकार से मांग कैलक कि मैथिली आउ भोजपुरी नियर आकाशवाणी पटना से मगही कार्यक्रम शुरू कैल जाय ।

फिर नवम्बर १९७८ में आकाशवाणी पटना में मगही कार्यक्रम के प्रसारण ला केन्द्र निदेशक के ज्ञापन देवल गेल । केन्द्र निदेशक निर्मल सिकदर से मिलेवला प्रतिनिधि मंडल में शामिल हलन सतीश कुमार मिश्र, राम सिंहासन सिंह 'विद्यार्थी' आउ शिल्पी सुरेन्द्र । फिर २० नवम्बर १९७८ के आकाशवाणी पटना के प्रवेश द्वार पर अनशन-धरना के कार्यक्रम शुरू भेल । पहिला दिन शिल्पी सुरेन्द्र दिन भर अनशन पर रहलन । उनका अलावे ढेर लोग धरना पर बइठलन ।

दुसरका दिन राम पुकार सिंह राठौर आउ तिसरका दिन निर्मल नागेन्द्र के नेतृत्व में भारी संख्या में लोग धरना पर जुटलन । अप्पन उपस्थिति से आन्दोलन के मजबूत बनावेओला में प्रमुख नेता लोग के नाम हे शंकर दयाल सिंह, रामप्रीत पासवान, गुणानन्द ठाकुर । इनका अलावे राम गोपाल शर्मा 'रुद्र', केशरी कुमार, कुमारी राधा आउ राम नरेश पाठक भी धरना में शामिल होलन ।

धरनार्थी लोग के संकल्प आउ विद्रोही तेवर से तत्कालीन प्रशासन कोई तरह के अप्रिय घटना होवे के आशंका से घबरा गेल । फिर केन्द्र निदेशक निर्मल सिकदार आउ चतुर्भुज जी के प्रयास से केन्द्रीय नेतृत्व से बातचीत हो गेल आउ आश्वासन मिलल कि अगला ४८ घंटा के अन्दर काररवाई होयत ।

आखिर २५ नवम्बर के सूचना मिल गेल कि आकाशवाणी के पटना केन्द्र से मगही कार्यक्रम 'मागधी' शुरू होयत । सतीश कुमार मिश्र के नेतृत्व में गठित संस्था 'मगही साहित्यकार कलाकार परिवार' के अथक परिश्रम के फल मिलल । कठिन परिस्थिति आउ अर्थाभाव के बावजूद मिश्र जी ई आन्दोलन के सफलतापूर्वक निर्वाह कैलन । बाद में एकर श्रेय आउ वाहवाही लूटेवला के कमी न रहल ।

बाद में एकर खुशी में पटना के सांस्कृतिक संस्था 'संगीत सुषमा' के कार्यालय में विजय गोष्ठी होयल, जेकरा में सत्यदेव नारायण अस्थाना, राम नरेश पाठक, टी०पी० नारायण शर्मा, मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश', शिल्पी सुरेन्द्र, राम पुकार सिंह राठौर, निर्मल नागेन्द्र, विजय नन्दन प्रसाद, राम सिंहासन सिंह 'विद्यार्थी', कुमारी राधा, सीताराम यादव, हरीन्द्र विद्यार्थी, विजय कुमार, पशुपति सिंह, सरयू प्रसाद, सुरेन्द्र निर्द्वन्द्व, रघुनाथ प्रसाद ‘विकल’, यदुनन्दन प्रसाद सिंह आउ रत्नेश्वर प्रसाद सम्मिलित होलन ।

१३ मार्च १९९१ के 'मगही साहित्यकार कलाकार परिवार' के तरफ से अखबार में हरीन्द्र विद्यार्थी के बेयान छपल कि पटना दूरदर्शन द्वारा मगही भासा के साथ सौतेला व्यवहार करल जाइत हे । लोकगीत के कार्यक्रम में 'जट-जट्टिन' गीत के प्रसारण 'भोजपुरी गीत' कहके कैल गेल, जे मगही भासा के साथ घोर अन्याय हे काहेकि 'जट-जट्टिन' के जउन गीत प्रसारित होयल से मगही भासा में हल ।

१२ नवम्बर १९९२ के अखबार में समाचार आयल कि पटना दूरदर्शन के द्वारा मगही भासा के साथ घोर अन्याय हो रहल हे, जे अब बरदास्त न कैल जायत । 'मगही साहित्यकार कलाकार परिवार' के तरफ से दूरदर्शन के गेट पर धरना देवे के धमकी देवल गेल ।

१५ अक्टूबर १९९३ के 'मगही साहित्य सम्मेलन, बिहार' आउ 'मगही अकादमी, गया' द्वारा संयुक्त रूप से पटना दूरदर्शन के गेट पर धरना देवल गेल । प्रमुख मांग हल कि पटना दूरदर्शन से मगही भासा में साहित्यिक आउ सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रसारित कैल जाय । एकरा अलावे पटना दूरदर्शन आउ आकाशवाणी पटना से मगही में नियमित रूप से समाचार भी प्रसारित कैल जाय । साथे-साथ कुछ आउ मांग भी रखल गेल हल, जेकरा में प्रमुख हल - विश्वविद्यालय में मगही में स्नातकोत्तर विभाग खुले, भारतीय संविधान के अठवाँ अनुसूची में मगही के शामिल कैल जाय आउ 'साहित्य अकादमी, दिल्ली' मगही के भासा के रूप में मान्यता देवे । दूरदर्शन के प्रवेश द्वार पर दिन भर धरना चलल, जेकर नेतृत्व कैलन डॉ० राम प्रसाद सिंह, हरीन्द्र विद्यार्थी, अभिमन्यु प्रसाद मौर्य, केशव प्रसाद वर्मा, महेन्द्र प्रसाद 'देहाती' आउ डॉ० सम्पत्ति अर्याणी । ई धरना में दिलीप कुमार, रामविलास 'रजकण', राम पारिख आउ हरिदास ज्वाल भी शामिल होयलन ।

सांझ के दूरदर्शन के प्रभारी निदेशक ए.के. विश्वास के एगो ज्ञापन देवल गेल । शिष्टमंडल के ऊ भरोसा दिलयलन कि उनकर मांग पर उचित काररवाई करेला केन्द्र सरकार के पास लिखल जायत । परिणाम ई भेल कि १९९३ में ही दूरदर्शन के उपनिदेशक पी.के. पटेल बिहारी लोकभासा के कवि-सम्मेलन के दूरदर्शन पर प्रसारण करवैलन, जेकरा में मगही के अलावे मैथिली आउ भोजपुरी कविता के भी स्थान देवल गेल ।

मगही आउ अन्य बिहारी लोकभासा के पटना दूरदर्शन से प्रसारण ला ३० दिसम्बर १९९८ के 'जनवादी लेखक संघ' पटना जिला शाखा के साहित्यकार लोग पटना दूरदर्शन के केन्द्र निदेशक से मिललन । शिष्टमंडल के सदस्य हरीन्द्र विद्यार्थी, डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य, राम बिनय सिंह 'विनय', राम गोविन्द यादव, राम पुकार कुशवाहा, श्रीकान्त व्यास, रश्मि गुप्ता आउ अभियन्ता ए.के. झा भाग लेलन । एगो सात सूत्री मांग पत्र देवल गेल जेकरा में प्रमुख हल - महीना में एगो कवि-गोष्ठी, लोक साहित्य के सब विधा के कार्यक्रम, मगध क्षेत्र के प्रमुख पर्यटन स्थल के दर्शन आउ सांस्कृतिक समाचार । दूरदर्शन के तरफ से मांग पर सहानुभूति पूर्वक विचार करे के आश्वासन मिलल ।

'लोकभासा विकास मंच' के महासचिव हरीन्द्र विद्यार्थी पटना दूरदर्शन द्वारा बिहार के लोकभासा के उपेक्षा के आरोप लगयलन । एकरा ला २२-१२-१९९९ के एगो प्रतिनिधि मंडल अप्पन छव-सूत्री मांग के समर्थन में पटना दूरदर्शन के उपनिदेशक प्रह्लाद पटेल से मिलल । प्रतिनिधि मंडल में महासचिव के अलावे चन्द्र प्रकाश माया, श्रीकान्त व्यास आउ घमंडी राम शामिल हलन । मांग रखल गेल कि मगही, मैथिली, भोजपुरी, अंगिका आउ बज्जिका के दूरदर्शन पर स्वतन्त्र प्रसारण कैल जाय । लोकभासा कविगोष्ठी के प्रसारण नियमित रूप से होवे । साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधि के छायांकन आउ प्रसारण होवे । लोक साहित्य के नाम पर फूहड़ सिरियल पर रोक लगे । बनावटी के जगह मौलिक चीज देखावल जाय । बिहार के पर्यटन स्थल के इतिहास के साथ छायांकन आउ प्रसारण होवे । बिहार के संस्कृति के रक्षा होवे आउ कलाकार लोग के उचित पारिश्रमिक देवल जाय ।

१९ जनवरी २००० ई. के 'लोकभासा विकास मंच' द्वारा प्रधान मंत्री, सूचना एवं प्रसारण मंत्री, दूरदर्शन महानिदेशक के पास अलग-अलग पत्र लिखके लोकभासा मगही, मैथिली, भोजपुरी, अंगिका, बज्जिका आदि के उपेक्षा से संबंधित छव-सूत्री मांग के समर्थन में ज्ञापन भेजल गेल । ज्ञापन पर हस्ताक्षर कैलन हरीन्द्र विद्यार्थी, विजय गुंजन, चन्द्र प्रकाश माया, श्रीकान्त व्यास, बी.एन. विश्वकर्मा, अमंडी राम आउ चन्द्रावती चन्दन ।

आज भी मगही भासा के विकास ला आन्दोलन जारी हे । 'अखिल भारतीय मगही साहित्य सम्मेलन' के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य ई साल भी केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री के एगो मांग पत्र भेजलन हे जेकरा में आकाशवाणी पटना आउ पटना दूरदर्शन से मगही में समाचार प्रसारित करे के मांग कैल गेल हे ।

--- हरीन्द्र विद्यार्थी, "अलका मागधी", नवम्बर २००६, पृ० ५-६.

४. संविधान में मगही के स्थान देवल जाय

दिनांक ८-२-१९९७ के विधान पार्षद नवल किशोर यादव सहित दर्जन भर शिक्षक नेता मैथिली एवं भोजपुरी के संविधान के अष्टम सूची में शामिल करेला राज्य सरकार के द्वारा सिफारिश के स्वागत कैलन आउ मगही के भी संवैधानिक अधिकार दिलावे के मांग कैलन । मूटा अध्यक्ष प्रो० ठाकुर अवनीन्द्र कुमार सिंह, प्रो० काव्यनन्दन यादव, प्रो० हृदय नारायण सिंह, प्रो० राम नारायणी प्रसाद आउ डॉ० अलख निरंजन प्रसाद भी संयुक्त बेयान पर हस्ताक्षर कैलन ।

दिनांक ९-२-१९९७ के 'मिथिला जन विकास परिषद' के नवेन्दु कुमार झा भी मगही के संविधान के अष्टम सूची में शामिल करेला पुरजोर वकालत कैलन । ऊ कहलन कि मैथिली, भोजपुरी आउ मगही तीनों भासा के मान्यता बहिन के रूप में हे ।

दिनांक १२-२-१९९७ के मुख्य मंत्री से मगही के संविधान के अष्टम सूची में शामिल करेला अनुशंसा करे के मांग करल गेल, जेकरा में हरीन्द्र विद्यार्थी आउ घमंडी राम जबरदस्त अभियान चलौलन । भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) आउ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) के तरफ से भी मगही के समर्थन में बेयान आयल । 'मगही साहित्य सम्मेलन, अछुआ, पालीगंज, पटना' के तरफ से प्रो० दिलीप कुमार भी आन्दोलन के तेज करेला संकल्प लेलन ।

'बिहार मगही मंडल, पटना' के तरफ से डॉ० रामनन्दन भी मैदान में उतर गेलन । इनकर कहना हल कि मगही के परम्परा मैथिली आउ भोजपुरी के अपेक्षा जादे समृद्ध रहल हे । मगही के धरोहर भी गौरवशाली हे । केन्द्र सरकार के भूमिका भेदभावपूर्ण आउ विषमता पैदा करेवला हे ।

'युवा जागरण मंच' के अरुण कुमार गौतम, 'अलका मागधी' के सम्पादक डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य, 'जनवादी लेखक संघ' के हरीन्द्र विद्यार्थी, घमंडी राम, डॉ० सत्येन्द्र कुमार सिंह, चन्द्र प्रकाश माया आदि आन्दोलन में तइयारी में जुट गेलन । आन्दोलनकारी लोग जगह-जगह पर नुक्कड़ सभा करके मुख्यमंत्री द्वारा अनुशंसा करे में मगही के साथ सौतेला व्यवहार के विरोध में जन-जागरण अभियान चलयलन ।

दिनांक २१-२-१९९७ के 'मगध विकास मोर्चा' के केन्द्रीय अध्यक्ष पूर्व विधायक कृष्णदेव सिंह यादव मगही के संविधान के अष्टम सूची में शामिल करेला मुख्यमंत्री से अनुशंसा करेला ज्ञापन देलन । ऊ जन आन्दोलन तेज करेला चेतावनी भी देलन । ई मामला पर 'युवा जागरण मंच' के प्रदेश अध्यक्ष अरुण कुमार गौतम मुख्यमंत्री आवास पर आत्मदाह करे के धमकी भी देलन । मगही साहित्यकारन में अइसन जोश आ गेल कि जगह जगह पर मगही क्षेत्र के नेता के घेराव होवे लगल ।

दिनांक १७-४-१९९७ के डॉ० उमाशंकर सिंह के दैनिक 'आज' में 'मगही सनेस' छपल जेकरा में ऊ राज्य सरकार के फटकारलन कि मैथिली आउ भोजपुरी के संविधान के अष्टम सूची में शामिल करेला अनुशंसा तो होवऽ हे, बाकि मगही के किनारे कर देवल जाहे । समाजिक न्याय के पहरुआ कहावेओला दुरंगिया नीति पर चल रहलन हे । मगही के अछूत समझल जा रहल हे । वाह रे न्याय !

दिनांक ३-३-१९९८ के अरुण कुमार गौतम के दैनिक 'हिन्दुस्तान' में बेयान आयल कि राज्य के १८ जिला में बोलल जायवला मगही भासा के साथ घोर अन्याय हो रहल हे ।

दिनांक २२-९-१९९८ के दैनिक 'आज' के 'भाषांजलि' कॉलम में हरीन्द्र विद्यार्थी मगही से जुड़ल सवाल पर अवाज उठयलन । उनका अनुसार डॉ० ग्रियर्सन के सात गो किताब मगही से जुड़ल हे । ऊ मगही के व्याकरण भी लिखलन हल । डॉ० सुनीति कुमार चाटुर्जा (चटर्जी) लोकभासा आउ साहित्य के पक्षधर हलन । चन्दवरदाई, विद्यापति, तुलसीदास, सूरदास, कबीर दास, भूषण, रैदास, बिहारी, रसखान, घनानन्द, रहीम, दरिया साहब आउ दादू जइसन श्रेष्ठ कवि लोग लोकभासा में ही लिखलन हल । डॉ० सुनीति कुमार के अनुसार भगवान बुद्ध के उपदेश पूर्वी बोली (मागधी) में ही हल जेकर अनुवाद मध्य प्रदेश के प्राचीन साहित्यिक भासा 'पाली' में भेल । पूर्वी बोली 'मागधी' सम्राट अशोक के राजभासा हल, काहे कि एही उनकर मातृभासा भी हल । मगध जनपद के जनभासा पहिले मूल मागधी, फिन पाली, फिन मागधी प्राकृत, फिन मागधी अपभ्रंश आउ अब मगही हे । चौरासी सिद्धन में पहिला सिद्ध सरहपाद हलन । उनकर 'दोहा कोश' मगही साहित्य के अमूल्य निधि हे । सिद्ध गोरखनाथ के गीत भी मगहिये में हे । एही भासा में आल्हा, लोरिकायन, सोरठी-बृजाभार, ढोला-मारू, नयका बंजारा, कुँवर विजयमल, गोपीचन्द भरथरी, बिहुला सती, रेशमा-चुहड़मल आउ जट-जटिन के गाथा गावल जाहे ।

दिनांक १३-१०-१९९८ के दैनिक 'आज' के 'भाषांजलि' कॉलम में हरीन्द्र विद्यार्थी मगही भासा के उपेक्षा पर गम्भीर लेख लिखलन । उनका अनुसार गंगा के दक्खिन, सोन से पूरब आउ बंगाल से पच्छिम बिहार प्रान्त के सउँसे क्षेत्र के प्रमुख भासा मगहिये हे । चार करोड़ से जादे अबादी वला भासा के दुरदुरावल जाइत हे । केन्द्र सरकार आउ राज्य सरकार दुन्नो मगही के धकिआइये रहल हे । शान्तिपूर्ण धरना, घेराव, भूख हड़ताल के अनसुना कैल जा रहल हे । सम्राट् अशोक के जिनगी के आखरी आदर्श अहिंसा पर चलेवला मगही भासी जनता के दुतकारल जा रहल हे ।

दिनांक ८-३-१९९९ ई० के 'अलका मागधी कार्यालय', पुराना जक्कनपुर, पटना में 'मगही साहित्यकार कलाकार परिवार' के अगुआई में मगही के विकास ला एगो गोष्ठी भेल, जेकर अध्यक्षता सतीश कुमार मिश्र आउ संचालन हरीन्द्र विद्यार्थी कैलन । गोष्ठी में कुमारी राधा, डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य, विजय गुंजन, घमंडी राम, अरुण कुमार सिन्हा, नन्दा मौर्य, राम लखन सिंह 'मयंक', रविन्द्र कुमार सिन्हा 'रवि', रघुवंश वर्मा आउ गुरुचरण बौद्ध आदि भाग लेलन । एगो प्रस्ताव पारित करके केन्द्र आउ राज्य सरकार से मगही के संविधान के अष्टम सूची में शामिल करेला मांग करल गेल । हरीन्द्र विद्यार्थी कहलन कि कम आबादी के बावजूद सिन्धी, डोगरी, कोंकणी, नेपाली आउ मणिपुरी अष्टम सूची में शामिल हे, जबकि मगही में पाँच सौ से जादे स्तरीय किताब छप चुकल हे । घमंडी राम कहलन कि एक तरफ भारतीय संविधान समता आउ समान अवसर के बात करऽ हे, दूसर तरफ मगही के साथ सौतेला व्यवहार हो रहल हे ।

दिनांक १५-४-१९९९ के ए० एन० सिन्हा इन्स्टीच्यूट, पटना में ‘मगही अकादमी, बिहार’ द्वारा आयोजित गोष्ठी में डॉ० सम्पत्ति अर्याणी कहलन कि मगही सब भासा के जननी हे, तइयो एकर उपेक्षा हो रहल हे । मगही क्षेत्र के नालन्दा विश्वविद्यालय जला देवल गेल आउ मगही भासा के उपेक्षा लगातार जारी हे । मगध विश्वविद्यालय के कुलपति बी० एन० रावत कहलन कि गरीब के भासा के हमेशा दबावल गेल हे ।

मगही के विकास ला गोष्ठी, सभा, बैठक, धरना, जुलूस, प्रदर्शन के ताँता लग गेल । नुक्कड़ कविता पाठ, नुक्कड़ नाटक के साथ कवि, साहित्यकार, रंगकर्मी लोग जुट गेलन मगही के अलख जगावे में । ई आन्दोलन बिहार के सउँसे मगही क्षेत्र के इलाका, गाँव, पंचायत, ब्लॉक आउ जिला भर में आँधी लेखा फैलइत गेल ।

दिनांक २३-१०-१९९९ के पटना जंक्शन स्थित नेहरू गोलम्बर पर 'अखिल भारतीय मगही साहित्य सम्मेलन' के अगुआई में एगो नुक्कड़ सभा भेल, जेकरा में जहानाबाद के 'मगही विकास मंच' के टीम 'अप्पन-अप्पन लक्कड़' नाटक खेललन । ऊ नाटक के माध्यम से प्राथमिक से लेके विश्वविद्यालय स्तर तक मगही के पढ़ाई के माँग कैल गेल । डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य के अध्यक्षता में भेल ऊ सभा में वक्ता लोग मगही के संविधान के अष्टम सूची में शामिल करे के माँग कैलन । घमंडी राम, डॉ० सत्येन्द्र कुमार सिंह, विश्वजीत कुमार अलबेला, राम बिनय सिंह 'विनय', राम गोविन्द यादव 'जानकीन्दु', अरविन्द कुमार आजाँस, विजय गुंजन, श्रीकान्त व्यास, अरुण कुमार गौतम, जयनन्दन ठाकुर, डॉ० बी० एस० लाल, अजीत कुमार मिश्र, चन्द्र प्रकाश माया, मुरारी शरण पाण्डेय, राजकुमार प्रेमी, प्रवीण कुमार राजू, अरुण कुमार सिन्हा, जगत नारायण सिन्हा, देवनन्दन ठाकुर, तारीक हारुण आउ हरीन्द्र विद्यार्थी अप्पन-अप्पन कविता सुनैलन । सभा के उद्घाटन विश्वनाथ मिश्र 'पंचानन' आउ धन्यवाद ज्ञापन डॉ० बी० एन० विश्वकर्मा कैलन ।

दिनांक ३०-१०-२००० ई० के १५ सूत्री तथ्य के साथ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मानव संसाधन मंत्री आउ साहित्य अकादमी के सचिव के नाम 'अखिल भारतीय मगही साहित्य सम्मेलन' के महासचिव हरीन्द्र विद्यार्थी एगो पत्र लिखलन, जेकरा में संविधान के अष्टम सूची में शामिल करे आउ 'साहित्य अकादमी, दिल्ली' द्वारा मगही के भासा के रूप में मान्यता देवेला माँग कैलन ।


दिनांक १२-२-२००१ के 'मगध राज्य बचाओ संघर्ष मोर्चा' के अध्यक्ष लक्ष्मण ठाकुर के नेतृत्व में एगो प्रतिनिधि मंडल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री आउ नेता प्रतिपक्ष से मिलके मगध राज्य के निरमान आउ मगही भासा के संविधान के अष्टम सूची में शामिल करेला एगो ज्ञापन देलक ।

दिनांक ३-८-२००१ के 'मगही अकादमी, बिहार' के बैठक भेल जेकरा अध्यक्षता कैलन अकादमी के अध्यक्ष डॉ० राम प्रसाद सिंह । ई बैठक में मगही साहित्य के प्रकाशन आउ मगही कार्यक्रम के आयोजन करेला निदेशक राजू कुमार विद्यार्थी द्वारा बिहार सरकार से आबंटित राशि बढ़ावे के माँग कैल गेल । बैठक में उपस्थित साहित्यकार डॉ० एस० एन० पी० सिन्हा, हरि उत्पल, अनिल सुलभ, हृदय नारायण झा, के० सी० वाजपेयी, घमंडी राम, उत्तम कुमार सिंह, हरीन्द्र विद्यार्थी, डॉ० रामनन्दन, राम नरेश प्रसाद वर्मा, वैद्यनाथ यादव, प्रभात वर्मा, डॉ० भरत सिंह, लालमणि कुमारी, दिनेश दिवाकर आउ डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य मगही के संविधान के अठवाँ सूची में शामिल करे के माँग कैलन ।

दिनांक १७-८-२००३ के 'मगही भाषा विकास संघर्ष समिति' के महासचिव हरीन्द्र विद्यार्थी भारत के राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, मानव संसाधन मंत्री, रेल मंत्री, गृह मंत्री आउ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष के अलग-अलग पत्र लिखके मगही के संविधान के अठवाँ सूची में शामिल करेला, साहित्य अकादमी में भासा के दर्जा देवेला ज्ञापन देलन । माँग के समर्थन में ५७ पृष्ठ के एगो ज्ञापन भेजल गेल हल जेकरा पर ३२ गो साहित्यकार के हस्ताक्षर हल, जेकरा में प्रमुख हलन डॉ० सत्येन्द्र कुमार सिंह, घमंडी राम, चन्द्र प्रकाश माया, श्रीकान्त व्यास, बी० एन० विश्वकर्मा, डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य, सुमन्त, प्रभात वर्मा, राम गोविन्द यादव आउ अरुण कुमार गौतम । ऊ माँग पत्र में मगही के पक्ष में २३ गो तथ्यपरक आँकड़ा भी देवल गेल हल, जेकरा से मगही के दावा मजबूत हो सके ।

दिनांक २९-१२-२००३ ई० के 'अखिल भारतीय मगही साहित्य सम्मेलन' के तत्त्वावधान में 'अलका मागधी कार्यालय', पुराना जक्कनपुर, पटना में एगो बैठक भेल जेकर अध्यक्षता पं० सुदामा मिश्र आउ संचालन डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य कैलन । बैठक में मगही भासा के संविधान के अठवाँ अनुसूची में शामिल करेला आयकर गोलम्बर, पटना में १५ जनवरी के धरना देवे के निरनय कैल गेल । ई बैठक में हरीन्द्र विद्यार्थी, घमंडी राम, डॉ० सत्येन्द्र कुमार सिंह, अरुण कुमार सिन्हा, राकेश प्रियदर्शी, प्रभात वर्मा आउ नन्दा मौर्य शामिल भेलन ।

दिनांक १५-१-२००४ के 'अखिल भारतीय मगही साहित्य सम्मेलन' के तत्त्वावधान में सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य के अध्यक्षता में आयकर गोलम्बर, पटना में एगो विशाल धरना के आयोजन भेल । धरना के मुख्य माँग हल - (१) मगही भासा के संविधान के अठवाँ अनुसूची में शामिल करल जाय (२) साहित्य अकादमी, नई दिल्ली मगही के भासा के रूप में मान्यता देवे (३) संघ लोक सेवा आयोग आउ बिहार लोक सेवा आयोग के परीक्षा में मगही के एगो वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल करल जाय । ई अवसर पर 'मगही अकादमी, बिहार' के निदेशक राजू कुमार विद्यार्थी कहलन कि मगही के संविधान के अठवाँ अनुसूची में शामिल न करना चार करोड़ मगही भासी जनता के साथ घोर अन्याय हे । मगही के जनता अब जादे दिन तक ई तरह के उपेक्षा बरदास्त न करत । सांसद राम कृपाल यादव कहलन कि मगही के अष्टम सूची में शामिल करेला हम संसद भवन में अवाज उठायम । धरना के सम्बोधन करेवला प्रमुख साहित्यकार हलन डॉ० रामनन्दन, हरीन्द्र विद्यार्थी, घमंडी राम, शेखर, डॉ० बी० एस० लाल, अरुण कुमार गौतम, सिद्धेश्वर, प्रभात वर्मा, विवश बिहारी, राजकुमार प्रेमी, राम बिनय सिंह 'विनय', कुमार इन्द्रदेव, विनीत कुमार मिश्र 'अकेला', अरविन्द कुमार मिश्र, रामरतन प्रसाद सिंह 'रत्नाकर', राम गोविन्द यादव 'जानकीन्दु', अरुण कुमार सिन्हा, जयराम प्रसाद, तौहिद अख्तर, राज कपूर, सुनील कुमार, नागेन्द्र सिंह यादव, ललन मिश्र 'मुक्त', आनन्द किशोर शास्त्री, विजय गुंजन, चन्द्र प्रकाश माया, अरविन्द कुमार आजाँस, शिवचन्द्र प्रसाद गुप्ता आउ प्रो० राम बुझावन सिंह ।

दिनांक २८-१-२००४ के 'मगही अकादमी, बिहार' के तत्त्वावधान में कंकड़बाग, पटना स्थित कार्यालय में एगो बैठक भेल जेकरा में पूर्व मुख्यमंत्री राम सुन्दर दास कहलन कि मगही मगध के मूल भासा हे । मगही बोलेओलन के संख्या बिहार में सबसे जादे हे । अइसन स्थिति में मगही के संविधान के अष्टम अनुसूची में शामिल न करना सरासर अन्याय हे । पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एस० एन० पी० सिन्हा कहलन कि मगही महात्मा बुद्ध के धम्म प्रचार के भासा हल । डॉ० ग्रियर्सन अप्पन डायरी में मगही के सब क्षेत्रीय भासा के जननी स्वीकार कैलन हे । मगही अकादमी के निदेशक राजू कुमार विद्यार्थी, हरीन्द्र विद्यार्थी, सत्येन्द्र कुमार सिंह, घमंडी राम, दिलीप कुमार, राम गोविन्द यादव, अभिमन्यु मौर्य आउ योगेश्वर सिंह 'योगेश' भी मगही के जोरदार वकालत कैलन ।

दिनांक १५-२-२००४ के 'मगही विकास मंच, जहानाबाद' के तत्त्वावधान में जहानाबाद के अरवल मोड़ पर धरना देल गेल । धरना स्थल पर मगही के संविधान के अठवाँ अनुसूची में शामिल करेला हस्ताक्षर अभियान चलावल गेल । हजारन लोग उहाँ उपस्थित होके आउ अप्पन हस्ताक्षर करके ई अभियान के समर्थन कैलन ।

--- हरीन्द्र विद्यार्थी, "अलका मागधी", जनवरी २००७, पृ० १०-१२.

५. मगही आन्दोलन के संक्षिप्त इतिहास

बौद्धकाल से मौर्यकाल तक मागधी प्राकृत के राष्ट्रभाषा हल (देखल जाय बुद्ध-वचन आउ अशोक के शिलालेख) । ओही मागधी प्राकृत आठवीं सदी आवइत-आवइत मागधी अपभ्रंश इया पुरनकी मगही के रूप में विकसित हो गेल आउ तेरहवीं सदी तक साहित्य के भासा बनल रहल । फिनो लोककंठ में जाके जीवित रहल जे उनइसवीं सदी तक आज वला रूप में प्रकट होयल ।
एही घड़ी कुछ विदेसी विद्वान के ध्यान भारत के भासा देन्ने गेल जेकरा में ग्रियर्सन, केल्लॉग, कनिंघम, जॉन क्राइस्ट आउ एसियाटिक सोसाइटी, कोलकाता आउ अन्य विदेसी विद्वान के नाम आवऽ हे । भारत के दोसर भासा नियन मगही भासा के भी खोजबीन कैल गेल । एकरा में लोक-साहित्य, संस्कृति, सामाजिक जीवन आउ रीति-रेवाज के सर्वेक्षण कैल गेल । एकरा में ग्रियर्सन सबसे पहिले मगही भासा के खोज-खबर कैलन । एकर व्याकरण पर भी विचार कयलन । बिहार के खेतिहर जीवन पर भी लिखलन (Peasant Life of Bihar) । ई तरह से विदेसी विद्वान से प्रभावित होके भारतीय विद्वान भी ई दिसा में काम शुरू कयलन ।
ई सब काम के नतीजा भेल कि बीसवीं सदी में मगही लोक-साहित्य के संग्रह के साथे मगही के शिष्ट-साहित्य भी लिखाय लगल । एकरे साथे मगही आन्दोलन के स्वरूप भी सामने आयल । पहिले-पहिले नालन्दा शोध-संस्थान के विद्वान निदेशक भिक्खु जगदीश कश्यप एकरा देन्ने मुखातिब भेलन, फिनो कृष्णदेव प्रसाद मगही में रचना करे लगलन आउ प्रचार-प्रसार ला निबंध लिखे लगलन ।
एकर बाद १९४५ ई० में एकंगरसराय में मगही के एगो बड़का सम्मेलन भेल । ऊ घड़ी श्रीकान्त शास्त्री के व्यक्तित्व मगही आन्दोलन में निखर के प्रकट भेल । ऊ एगो टीम बनौलन आउ मगही ला सभा-गोष्ठी के आयोजन करे लगलन । एकर प्रचार-प्रसार ला 'मगही' पत्रिका के प्रकाशन करौलन । फिनो 'बिहार मगही मंडल' के स्थापना भेल आउ 'बिहान' पत्रिका छपे लगल । ई सब काम में श्रीकान्त शास्त्री के टीम सक्रिय रहल, जेकरा में डॉ० रामनन्दन, डॉ० सम्पत्ति अर्याणी, डॉ० बिन्देश्वरी प्रसाद, प्रो० कपिलदेव सिंह, प्रो० राम बुझावन सिंह आउ राम बालक सिंह 'बालक' आदि के महत्त्वपूर्ण योगदान रहल । ई काल के आन्दोलन के मुख्य लक्ष्य हल मगही के महत्त्व बताना आउ ओकर प्रचार-प्रसार करना । ई काल के पुरोधा हलन श्रीकान्त शास्त्री ।
'मगही साहित्य का इतिहास' में पृष्ठ १२५-१२६ पर लिखल दस्तावेज के इहाँ ज्यों के त्यों उतार देल जा रहल हे - "इस प्रकार १९७३ ई. में डॉ० श्रीकान्त शास्त्री के निधन के बाद गया में डॉ० राम प्रसाद सिंह का उदय एक महान क्रान्ति लेकर आया । उन्होंने डॉ० शास्त्री के पौरोहित्य को बड़ी सफलता के साथ सम्हाला जो आज तक मगही आन्दोलन के केन्द्रीय व्यक्तित्व के रूप में प्रतिष्ठित हैं । डॉ० शास्त्री और डॉ० सम्पत्ति अर्याणी के साथ पूर्व में मगही के कार्य करने से और राजनेता जगदेव प्रसाद के सहयोगी रहने के कारण डॉ० राम प्रसाद सिंह में अपूर्व सांगठनिक क्षमता है । साथ ही वे बहु-आयामी प्रतिभा के धनी भी हैं ।"
इतिहास आगे लिखऽ हे - "डॉ० राम प्रसाद सिंह ने पटना और पटना जिले में फैले मगही आन्दोलन को वहाँ से निकालकर सम्पूर्ण मध्य और दक्षिणी बिहार के पठारी इलाकों में फैलाया । पटना से राँची तक मगही आन्दोलन का शोर मच गया । इसकी शुरुआत इन्होंने गया से की । २ अगस्त १९७७ ई. को मगही अकादमी, गया की स्थापना की गयी जिसका कार्यालय नई गोदाम, गया में रखा गया । इसी अकादमी के तत्त्वावधान में १८ और १९ फरवरी १९७८ ई. को अखिल भारतीय मगही साहित्य सम्मेलन का विशाल आयोजन गया में किया गया । इस सम्मेलन में प्रायः सभी मगही प्रेमी और साहित्यकारों ने भाग लिया । मगहीतर भाषा-भाषी विद्वान भी उपस्थित हुए, जिसमें लोकवार्ताविद् डॉ० कृष्णदेव उपाध्याय का योगदान सराहनीय रहा । सम्मेलन की अध्यक्षता डॉ० सम्पत्ति अर्याणी ने की और स्वागताध्यक्ष तत्कालीन राजस्व मंत्री उपेन्द्र नाथ वर्मा थे । दो दिवसीय सम्मेलन का सम्पूर्ण व्यवस्थापन और संचालन डॉ० राम प्रसाद सिंह ने किया । इसमें तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर रास बिहारी पाण्डेय और कलेक्टर पी.पी.शर्मा का महत्त्वपूर्ण सहयोग मिला । कार्य व्वस्था और तैयारी में प्रो० राम नरेश प्रसाद वर्मा और राम विलास 'रजकण' की भूमिका सर्वोपरि रही । उनके अतिरिक्त गया के सभी मगही प्रेमी लेखक और पत्रकारों ने अपूर्व योगदान किया । दर्जनों साहित्यकारों को पुरस्कृत किया गया । दिवंगत साहित्यकारों के नाम पर अखंड दीप प्रज्वलित होता रहा । दो दिनों तक गया का परिवेश मगहीमय हो गया । इसमें अनेक प्रस्ताव पारित कर सरकार पर दबाव डाला गया । प्राथमिक विद्यालय से विश्वविद्यालय स्तर तक मगही की पढ़ाई हो, आकाशवाणी से मगही में प्रसारण हो, बिहार लोक सेवा आयोग में ऐच्छिक विषय के रूप में मगही को स्थान दिया जाय और भारत सरकार के संविधान की आठवीं सूची में मगही को शामिल किया जाय । ये सारे प्रस्ताव बिहार सरकार एवं केन्द्र सरकार तक प्रेषित किये गये । हजारों पत्र लिखे गये । तत्कालीन सभी पत्र-पत्रिकाओं ने उक्त सम्मेलन को समुचित स्थान देकर प्रकाशित किया । इस सम्मेलन से मगही भाषा-भाषी में एक नई चेतना जाग गयी । मगही की सभी छोटी-बड़ी संस्थाएँ और लेखक गण एकजुट होकर मगही के विकास में संलग्न हो गये ।"
सबसे पहिले मगही में एतना जादे प्रस्ताव पारित करके सब जगह भेजल गेल । ई सम्मेलन मगही आन्दोलन के माइल-स्टोन नियन हे, जे इतिहास में सोना के अक्षर में लिखल हे । एकरा से जानकारी होवऽ हे कि १८-१९ फरवरी १९७८ ई. में सबसे पहिले मगही के भारत के संविधान के आठवीं सूची में शामिल करे ला प्रस्ताव पास कैल गेल । ओकर बाद से जब भी कहिनो अखिल भारतीय मगही साहित्य सम्मेलन होयल इया मगही अकादमी के सम्मेलन होयल, ऊ सबमें ऊ सब प्रस्ताव दोहरावल जाय लगल । एकरा ला मगध के अनेक जगह पर धरना, प्रदर्शन, यात्रा आउ चिट्ठी लिखे के काम होइत रहल ।
ई सब काम में मगही के अनेक संस्था के सहयोग प्रशंसा करे जुकुर रहल हे । सब संस्था आउ ओकर सहयोगी टीम ई काम के अप्पन-अप्पन ढंग से आगे बढ़ौलन । ई काम पटना से लेके पलामू, हजारीबाग, रामगढ़, राँची तक होइत रहल, इतिहास एकर गवाह हे । बाकि पटना के कुछ लोग के काम (जइसे सतीश कुमार मिश्र, चन्द्रशेखर सिन्हा, घमंडीराम उर्फ रामदास आर्य, हरीन्द्र विद्यार्थी, केशव प्रसाद वर्मा, अभिमन्यु प्रसाद मौर्य, दिलीप कुमार आदि) मीडिया में आवे के चलते ज्ञात होइत रहल आउ दूर देहात के भारी-भरकम सभा आउ आन्दोलन के ओतना जादे प्रचार न भेल । तइयो महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिका आउ आकाशवाणी के जहाँ तक जानकारी भेल, ओकरा प्रसारित करइत गेलन । बाकि दूर गाँव-देहात आउ कसबा में मगही ला कैल गेल आन्दोलन के काम के प्रकाश में लावे के जरूरत हे, ताकि इतिहास के अज्ञात सामग्री प्रकाश में आ सके ।
इहाँ इयाद करे जुकुर हे कि पटना से राँची तक मगही के महत्त्व ला कैल गेल ऐतिहासिक काम के वर्णन 'मगही साहित्य का इतिहास' में मिलऽ हे । ई सब काम में मगही साहित्यकारन के अलावे जउन राजनेता के सबसे जादे योगदान रहल हे, उनका में उपेन्द्र नाथ वर्मा आउ जीतन राम मांझी के नाम सबसे अगाड़ी लेल जा सकऽ हे । उपेन्द्र नाथ वर्मा लगभग सब सम्मेलन में भाग लेलन हे । रामगढ़, बाँके बजार, हसपुरा, गया, मखदुमपुर, बेलागंज आदि जगह के मगही महासम्मेलन में उपेन्द्र नाथ वर्मा अगाड़ी रहलन हे । एकरा अलावे 'डॉ० राम प्रसाद सिंह साहित्य पुरस्कार समारोह' के दर्जन भर महोत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में वर्मा जी के योगदान सराहनीय रहल हे । इहाँ इयाद करे जुकुर हे कि ऊ सब आयोजन के केन्द्रबिन्दु में डॉ० राम प्रसाद सिंह के भूमिका महत्त्वपूर्ण रहल हे, जेकरा सब कोई जानऽ हथ ।
एकरा अलावे प्रो० राम नरेश प्रसाद वर्मा, डॉ० सरजू प्रसाद, हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, बाबूलाल मधुकर, डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य, घमंडी राम, आउ हरीन्द्र विद्यार्थी आदि दोसर-दोसर सैकड़ो साहित्यकारन के सहयोग के भुलावल न जा सके । ई छोटगर निबंध के सैकड़ो साहित्यकारन के नाम न गिनावल जाय से उनकर अपमान न समझे के चाही । ओहनी तो नींव के ईंट हथ जे अप्पन मजबूत कान्हा पर मगही-महल के हरमेसे उठौले रहतन ।
ई सब साहित्यकार आउ राजनेता के काम आउ प्रेरणा से मगही आज अप्पन पहचान भारत के लोकभासा में मजबूती से बना लेलक हे । डॉ० राम प्रसाद सिंह साहित्य अकादमी, दिल्ली से पुरस्कृत हो चुकलन हे । २७-२८ बरिस से आकाशवाणी पटना से प्रसारण भी हो रहल हे । एन्ने दू बरिस से नालन्दा खुला विश्वविद्यालय में मगही एम.ए. के पढ़ाई आउ परीक्षा चल रहल हे । मगध विश्वविद्यालय में भी ई साल (जुलाई २००७) से मगही एम.ए. के विभाग चले लगल । एकरा ला मगध विश्वविद्यालय के एकेडेमिक काउंसिल से मंजूरी भी मिल गेल हे । पटना विश्वविद्यालय में भी ई साल से मगही एम.ए. के पढ़ाई शुरू होवे के संभावना हे ।
अब खाली मगही के भारतीय संविधान के आठवीं सूची में लगावे के सवाल हे । एकरा ला दिल्ली तक धरना-प्रदर्शन हो चुकल हे । अब आन्दोलन के तनि आउ जादे बढ़ावे के जरूरत हे, ताकि ई साल के अन्त तक मगही भी संविधान के ८वीं सूची में जुड़ जाय । बिहार के मगहिया मुख्यमंत्री माननीय नीतीश कुमार से निहोरा हे कि ई दिसा में उचित कारवाई करथ आउ मगही के भारत के संविधान के ८वीं सूची में लगवावथ, ताकि तीन करोड़ मगही भासा-भासी के भावना के संतुष्टि हो सके आउ धरना-प्रदर्शन में बेकार में शक्ति बरबाद न होवे ।

- लालमणि कुमारी, “अलका मागधी”, अक्टूबर २००७, बरिस १३, अंक १०, पृष्ठ ५-७.

६. महाधारना के आयोजन भेल

मगही विकास मंच, जहानाबाद के तरफ से जिला मुख्यालय स्थित अरवल मोड़ के समीप पहली जनवरी के प्रातः आठ बजे से साँझ पाँच बजे तक एगो विशाल धरना देवल गेल । ई धरना के उद्देश्य हल मगही भासा के संविधान के अष्टम अनुसूची में दर्ज करावे ला सरकार के ध्यान दिलावे के । कार्यक्रम के अध्यक्षता मंच के उपाध्यक्ष मुरारी शरण पाण्डे कैलन, जबकि संचालक हलन अरविन्द कुमार 'आजाँस' । धरना के सुरुआती दौर में युवा कवि विनीत कुमार मिश्र 'अकेला कहलन कि आज मगही भासा के बोले ओला लोग के संख्या पाँच करोड़ से ऊपर हे । मगह के क्षेत्रफल ४५०० वर्ग किलोमीटर से भी ऊपर हे । तइयो एकरा साथे न्याय न करल जाइत हे, हबकि एकरा से क्षेत्रफल में कम आउ बोलताहर के भी कम संख्या ओला भासा के राजनैतिक कारणवश केन्द्रीय सरकार मान्यता दे देलक ।


पटना से आएल रामध्यान शर्मा कहलन कि आज मगही भासा तनि पिछुआएल हे, त खाली ऑडियो-विडियो कैसेट्स आउ फिल्म निर्माण के क्षेत्र में । इहाँ गीतकार, पटकथा लेखक, कलाकार लोग के कमी न हे । कमी हे त बस पूँजी के । ओहू प्रयास कैला पर मिल सकऽ हे । मगही विकास मंच, जहानाबाद लगातार ई क्षेत्र में कदम बढ़ा रहल हे, जे ऐतिहासिक प्रयास हे । डॉ॰ बी॰ एस॰ लाल कहलन कि 'अब न त कभी न', माने कि एति घड़ी जब राज्य के मुख्यमंत्री मगध क्षेत्र के हथ, तब मगही भासा के विधान सभा से पास करा के दिल्ली न भेजल जाएत, त फिर कहियो न होयत । बुजुर्ग कवि राम विनय शर्मा 'विनय' कहलन कि अगर सरकार ई धरना के माध्यम से न जागत, त फिर निर्णायक लड़ाई पटना सचिवालय के गेट पर लड़ल जाएत । ऊ तमाम मगही प्रेमी साहित्यकार भाई से निहोरा कएलन कि अब आपसी भेदभाव मिटा के मगही भासा खातिर एकजुट होवे के समय आ गेल हे ।


राम नरेश 'नीरस' कहलन कि मगही भासा हमनी के मातृभासा हे जबकि हिन्दी राष्ट्रभासा, ई लेल जब तक मगही भासा के विकास न होवत, हिन्दी के प्रसार में संदेह रहबे करत । अजीत कुमार मिश्र 'अविनाश' अप्पन उद्बोधन में दस-सूत्रीमांग पेश करइत सरकारी तंत्र के आश्वासन के पोल खोललन । विश्वजीत कुमार 'अलबेला', राम नरेश शर्मा 'गुलशन', माधव सिंह, अमर अलंकृत, उमाशंकर सिंह 'सुमन', अरविन्द कुमार मिश्र 'मगहिया', डॉ॰ राजदेव प्रसाद, डॉ॰ रविशंकर शर्मा, डॉ॰ साधना शर्मा, श्रीमती सुनैना, शिवसुन्दर प्रसाद सिन्हा, सत्येन्द्र मिश्रा, शैलेन्द्र कुमार 'शैल', सुधाकर राजेन्द्र, मनोज कुमार 'कमल' आउ गोपाल शरण सिंह जइसन दर्जनों कवि दिन भर चलल महाधरना में मगही भासा के उत्थान आउ विकास ला अप्पन विचार देलन । अंत में एगो दस-सूत्री मांग जिलाधिकारी, जहानाबाद के सौंपल गेल । ( विनीत कुमार मिश्र 'अकेला', अलका मागधी, मार्च २००८, पृ॰ १९ )

मगही नाटक एवं एकांकी

मगही नाटक

पं० चतुर्भुज (गया, निवासी) - अवधूत(फरवरी १८८३) - मासिक पत्रिका 'हरिश्चन्द्र चन्द्रिका' और 'मोहन चन्द्रिका' , उदयपुर में प्रकाशित । मूलतः हिन्दी नाटक, परन्तु इसका एक पात्र मगही भाषा का प्रयोग करता है ।

गोपीनाथ - माहुरी मंडल नाटक (यथार्थ नाटक), प्रकाशक - माहुरी मयंक कार्यालय, बिहारशरीफ (नालन्दा)


? - सुजाता के स्वागत ( )

डॉ० श्रीकान्त शास्त्री - नयका गाँव (सामाजिक ना०), प्रकाशक - बिहार मगही मंडल, पटना - ३ ।

डॉ० रामनन्दन - कौमुदी महोत्सव (ऐतिहासिक ना०) (१९६०) - पौराणिक कथा पर आधृत ।

बाबूलाल मधुकर - नयका भोर (१९६७), प्रकाशक -साहित्य भारती, कदमकुआँ, पटना ।

हरिनन्दन मिश्र 'किसलस' - अप्पन गाँव

रघुवीर प्रसाद सिंह ‘समदर्शी’ - भस्मासुर (१९७९)।

रामाधार सिंह 'आधार' - शकुन्तला

केशव प्रसाद वर्मा - कन्हइया के दरद (१९९१), निरंजना के संत (१९९८); प्रकाशक - सरस्वती प्रकाशन, मागधी ग्रंथ अकादमी, मोरियावाँ, दतियाना, पटना ।

रामनरेश प्रसाद वर्मा - नया समाज (सामाजिक) ।

बाबूराम सिंह 'लमगोड़ा' - (१) कोशा (२) गंधारी के सराप (३) बुझल दिया के मट्टी (४) बनत-बनत बन जाय

अलखदेव प्रसाद 'अचल' - बदलाव (१९९०), प्रकाशक - मगधांचल मगही मंच, पचरूखिया मोड़, औरंगाबाद


डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य - पाड़े जी के पत्रा (१९९४), प्रेम अइसने होवऽ हे (१९९६) ; प्रकाशक - मौर्य प्रकाशन, पटना - १ ।

दिलीप कुमार - बदलल समाज (१९९६) ; प्रकाशक - सुमन साहित्य संस्थान, अछुआ, पटना ।

सच्चिदानन्द प्रसाद - पढ़ल पुजारी अनपढ़ जजमान (१९९८); प्रकाशक - मगही साहित्य सम्मेलन, बिहार अछुआ, पटना ।


अप्रकाशित नाटक
कृष्ण मुरारी मिश्र - ई मट्टी हम्मर हे

सूर्यनारायण शर्मा - (१) चेला के चरित्र (२) बूढ़ा बेटा माय जवान

डॉ० राम प्रसाद सिंह - बदलाव (१९८२ में बेलखरा, जहानाबाद में मंचित) ।

राजेश्वर पाठक 'राजेश' - टोपी टोपी के मार (१९८२ में बेलखरा, जहानाबाद में मंचित) ।

रेडियो नाटक
छोटू नारायण सिंह - (१) धुरखेली (१९६१) (२) सौदा बेटा-पुतोह के

सतीश कुमार मिश्र - (१) बिजली सिंह (२) तब हम गाँव चलब (३) इलाज

बाबूलाल मधुकर - (१) खरची-बरची (२) गाँव के बटोहिया (३) घर के सफाई

रामेश्वर प्रसाद - मुनिया चाचा

डॉ० नरेश प्रसाद वर्मा - तूफान सिंह

गीतिनाट्य
श्रीकान्त शास्त्री
सुजाता

डॉ० रामनन्दन - मगध महिमा

केशव प्रसाद वर्मा - धरती के बेटा , 'पाटलि' के अंक में प्रकाशित ।

********************************

मगही एकांकी

समृद्धिकाल का प्रथम चरण (१९७३-१९८२)

तारकेश्वर भारती - जुलमाना (१९७७), श्रमण डगर पर (१९७८), इनकलाब जिन्दाबाद (१९७९)- मासिक 'बिहान' और 'मगही समाज' (गया) से प्रकाशित प्रसिद्ध एकांकी । नयनन के जल से पग धोये ('माँजर', १९८०) ।

मिथिलेश शर्मा - अप्पन के (१९७९)

कमलेश मिश्र - काहे नऽ (१९८०)

बालेश्वर सिंह - सेवा में मेवा हे (१९८०)

डॉ० रामनरेश मिश्र 'हंस' - (१) सुजाता (२) बुद्धदेव ('एकारसी' में संगृहीत)

समृद्धिकाल का दूसरा चरण (१९८३-१९९२)

रामाधार सिंह 'आधार' - याचना ('सारिका', पृ०२४)

सूर्यनारायण शर्मा - क्रान्ति के कारण (१९८४), बिद्रोही बेयार (१९८४)

रामेश्वर मंडल - शिक्षक

डॉ० भरत सिंह - मन के मुराद (१९८४)

शिवकुमार वर्मा - तड़पइत नारी

डॉ० राम प्रसाद सिंह (सं०) - एकारसी (११ एकांकियों का संकलन, १९८५) । यह प्रथम मगही एकांकी संकलन है ।

प्रो० उपेन्द्रनाथ वर्मा - बदलाव ('एकारसी', १९८५)

केशव प्रसाद वर्मा - सोना के सीता (एकांकी संग्रह, १९८५) --(१) सोना के सीता (२) निषाद कन्या (३) एगो आउ शान्तनु (४) सुजाता के खीर (५) प्रियदर्शी अशोक । प्रकाशक - एच०एम०प्रकाशन, काजीपुर, पटना ।

रामदास आर्य उर्फ घमण्डी राम - सोहाग के भीख (एकांकी संग्रह, १९८५) ; प्रकाशक - श्याम सुन्दरी साहित्य, कलाधाम, बेनी बिगहा, विक्रम ( पटना ) ।

डॉ० राम प्रसाद सिंह - अकबर के कसमसाहट (एकांकी संग्रह, १९९८) ; (१) लवकुश परम्परा (२) वइदराज जीवक के प्रयोगशाला (३) सिद्ध सरहपा के धरम-करम (४) अकबर के कसमसाहट । प्रकाशक - मगही अकादमी (मगही लोक), तूतवाड़ी, गया ।

प्रो० रामनरेश प्रसाद वर्मा - (१) नया समाज ('एकारसी' में संकलित) (२) जात-पात पूछे नहीं कोई (३) कबरा खड़ा बाजार में (४) गौतम (५) च्यवन (६) इंसानियत बाकी हे । सन् १९९५ में एक एकांकी संग्रह प्रकाशित हुआ है ।

रामविलास 'रजकण' - परीक्षा

अलखदेव प्रसाद 'अचल' - (१) आझ के इंतिहान (२) ऊ जमाना गेलवऽ (३) इंसाफ

सिद्धनाथ मिश्र 'राही' - दीवाना

प्रो० दशई सिंह - च्यवनाश्रम

प्रो० जयनाथ कवि - मगध सम्राट जरासंध

जनकनन्दन प्रसाद सिंह 'जनक' - वीरता के सम्मान

डॉ० ब्रजमोहन पाण्डेय 'नलिन' - अभिशाप

रमेश नीलकमल - छिटकल किरीन

द्वारिका प्रसाद - फिजूल के काम

शेखर 'व्यथित' - रासता पार

गिरीन्द्र प्रसाद - खुशी के लोर

गजानन - जोग

हरिश्चन्द्र 'प्रियदर्शी' - चिमोकन

जितेन्द्र सहाय - (१) जउन दिन बड़की दुलहिन घरे जायत (२) रकुटया (३) अगुआ लौट गेल

कृष्ण मुरारी मिश्र - ई मिट्टी हम्मर हे

डॉ० कृष्णदेव मिश्र - बाबू के पापा (१९९२)

समृद्धिकाल का तृतीय चरण (१९९३ - )

डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य एवं प्रो० सुखित वर्मा (सं०) - मगही एकांकी सरिता (आठ एकांकियों का संग्रह)। प्रकाशक - मौर्य प्रकाशन, पटना ।

प्रो० दिलीप कुमार - निसा टूट गेल

रामविलास 'रजकण' - भइया कहरवा हो

प्रो० सुखित वर्मा - दिल फट गेल

डॉ० अभिमन्यु प्रसाद मौर्य - 'सतरंग' (एकांकी संग्रह) (१९९८) । इस संग्रह में पूर्व प्रकाशित एकांकियों के अतिरिक्त कुछ नयी एकांकियाँ भी जुड़ी हैं - (१) पटना के अदमी (२) दरोगा डन्डा सिंह (३) कफन (प्रेमचन्द की कहानी का मगही रूपान्तर) (४) शम्बूक बथ (५) स्वामी जी (६) कबीर के इंसाफ

राम विनय सिंह 'विनय' - (१) मास्टर साहब ('अलका मागधी', अप्रैल-मई १९९७) (२) बकरी पर लेख ('अलका मागधी', जुलाई १९९८)

रेडियो नाटक

छोटू नारायण सिंह - (१) बेटी के बिदाई (१९५३) (२) बतासी (१९५६) --- आकाशवाणी, पटना से प्रसारित हुआ था । ये दोनों एकांकी 'मगही के दो फूल' नाम से प्रकाशित हैं ।

एस० पी० पांसुल - (१) 'गाँठ खुल गेल' (२०-१-१९९१) -- पटना रेडियो से प्रसारित (२) छोटका पाहुन

सम्प्रति मगही एकांकी और रेडियो रूपक पर्याप्त रूप से लिखे जा रहे हैं । अब इसे अपनी अस्तित्व-रक्षा के लिए प्रयास करने की जरूरत नहीं, बल्कि तेजी से विकास पथ पर बढ़ते जाने की आवश्यकता है ।

मगही उपन्यास

1. सुनीता (1927) - जयनाथ पति (मगही के प्रथम उपन्यासकार)

2. फूल बहादुर (1928; द्वितीय संस्करण अप्रैल 1974) - जयनाथ पति (मगही के प्रथम उपन्यासकार) , ग्राम - शादीपुर, पो॰ - कादिरगंज, नवादा; द्वितीय संस्करण का प्रकाशकः बिहार मगही मंडल, पटना-5

3. गदहनीत ( ? ) - जयनाथ पति (मगही के प्रथम उपन्यासकार)

4. बिसेसरा (अक्टूबर 1962) - राजेन्द्र कुमार यौधेय, यौधेय प्रकाशन, नेयामतपुर, पटना

5. आदमी ऑ देवता (1965; 'बिहान' में जून 1960 से जनवरी 1964) - डॉ० रामनन्दन, बिहार मगही मंडल, पटना-5

6. रमरतिया (1968) -- बाबूलाल मधुकर, 105, स्लम, लोहियानगर, पटना; सुषमा प्रकाशन, बड़ा दीघाघाट, पटना-11

7. मोनामिम्मा (1969; 'बिहान' में नवम्बर 1967 से मार्च 1969) - द्वारका प्रसाद, 5 गाँधी मार्ग, राँची-1; प्रकाशकः बिहार मगही मंडल, पटना-5.

8. गोदना (रचित 1967; प्रकाशित जून 1978) - डॉ० श्रीकान्त शास्त्री; प्रकाशकः बिहार मगही मंडल, पटना-5.

9. साकल्य ( ? ) - चन्द्रशेखर शर्मा

10. सिद्धार्थ ( ? ) - चन्द्रशेखर शर्मा

11. हाय रे ऊ दिन ( ? ) -- चन्द्रशेखर शर्मा

12. सँवली (1977) - शशिभूषण उपाध्याय मधुकर, काव्य साधना मंदिर, कोपा खुर्द, नौबतपुर, पटना

13. चुटकी भर सेनुर (फरवरी 1978) - सत्येन्द्र जमालपुरी; प्रकाशकः बिहार मगही मंडल, पटना-5

14. अछरंग (रचित 1980; धारावाहिक रूप से 'कसउटी' में ) - प्रो० रामनरेश प्रसाद वर्मा; मगही साहित्य संस्थान, गाँगो बिगहा, गया

15. बस एके राह (रचित 1983; प्रकाशित 1 मई 1988) - केदार 'अजेय'

16. नरक सरग धरती (अक्टूबर 1992; 'मगही समाज' में अप्रैल 1987 से) - डॉ० राम प्रसाद सिंह

17. समस्या ( 1958 ) - डॉ० राम प्रसाद सिंह, तूतबाड़ी, गया

18. बराबर के तरहटी में ( ? ) - डॉ० राम प्रसाद सिंह

19. सरद राजकुमारी ( ? ) - डॉ० राम प्रसाद सिंह

20. मेधा ( ? ) – डॉ० राम प्रसाद सिंह

21. धूमैल धोती (1995) - राम विलास 'रजकण'

22. प्राणी महासंघ (2 अक्टूबर 1995) - मुनिलाल सिन्हा 'सीसम'; सीसम प्रकाशन, हरिहरपुर माछिल, पाईबीघा, जहानाबाद

23. अलगंठवा (2001) - बाबूलाल मधुकर; सीता प्रकाशन, 105, स्लम, लोहियानगर, पटना-20

24. बबुआनी अईंठन छोड़ऽ ( मार्च 2004 ) - आचार्य सच्चिदानन्द; आनन्द प्रकाशन, ए-227, पी॰सी॰ कॉलनी, कंकड़बाग, पटना-20

25. बाबा मटोखर दास ( ? ) - परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'

26. गोचर के रंगः गोरू-गोरखियन के संग ( ? ) - मुनिलाल सिन्हा 'सीसम'

27. टुन-टुनमें टुन ( ? ) - रामबाबू सिह 'लमगोड़ा'; लारिटा प्रकाशन, मितनघाट, पटना-8

28. शालिस (2006) - परमेश्वरी; अखिल मगही मंडप, लादिया, दामोदरपुर, लखीसराय

Sunday, September 03, 2006

1. मगही के मानक रूप




मगही के मानक रूप - डॉ० राम प्रसाद सिंह

मगही आज के भासा नऽ हे बलुक 2½ हजार बरीस पहिले मागधी के रूप में भारत के जन भासा हले । येही गुने महात्मा बुद्ध येही जनभासा के अपन धरम प्रचार ला चुनलन हल । ई सिध हो चुकल हे कि ईसा के पाँच सौ बरीस पहिले त्रिपिटक के रचना मागधी भासा में भेल हल जउन भासा मगध, कोसल आउ विदेह में फैलल हल । ओकरा बाद ओकर अनुवाद पालि में भेल आउ महेन्द्र के मार्फत लंका में फैलावल गेल ।

धरम प्रचार के बाद नाटक में मागधी के प्रयोग ईसा के १ली सती से छठी सती तक भेल । छठी से १५वीं सती तक साहित्य में अपभ्रंश के प्रयोग मिलऽ हे । येही समय में सिधन के साहित्य के विकास भेल हल जेकरा में पुराना मगही के बीज रूप मिलऽ हे । येही समय में मागधी मगही बनल आउ सरहपा के क्रांतिकारी आगमन भेल । बुद्ध काल से सरह काल तक मागधी-मगही जनभासा आउ साहित्य भासा दूनो रूप में बेवहार होइत रहल ।

काल के बाद - १२वीं सती से मगही साहित्य के लगातार सिष्ट परम्परा नऽ मिलऽ हे बाकि जन जीवन में आउ जन बोली में एकर स्थान बनल रहल । जन जीवन के खाली बोलिये में नऽ बलुक लिखा-पढ़ी में भी एकर प्रयोग होइत रहल । यानि मगही खाली बोलिये के रूप में नऽ बलुक भासा के रूप में प्रतिष्ठित रहल हे ।

पुराना जमाना में मागधी भारत के केन्द्रीय भासा रहल हे - मगध, कोसल आउ विदेह एकर मुख केन्द्र रहल हे । आजो बिहार के 2½ करोड़ लोग मगही बोलऽ आउ लिखऽ पढ़ऽ हथ । गया, पटना, नालंदा, औरंगाबाद, नवादा जिलन में पूरे रूप से आउ हजारीबाग, पलामू, मुंगेर, धनबाद आउ राँची में जादेतर तथा वैसाली, पुरुलिया, असाम आउ उड़ीसा में भी तनी मानी मगही बोलल जा हे । भासा विज्ञान के अनुसार कोई भी ५-६ मील पर तनी मानी बदल जा हे - मगही में भी ई बात हे । तो सवाल हे कि कउन जगह के बोली के मगही भासा के मानक रूप मानल जाय ई बड़ा विवाद के सवाल हे ।

ई सवाल के उत्तर ला परम्परा आउ विद्वानन के सहारा लेल स्वाभाविक हे पुराना गया आउ पटना जिला के मगही बोली के सब विद्वान 'आदर्श मगही' मानइत अयलन हे आउ ई मगध राज के बीच में भी रहल हे । ई गुने इतिहास, भूगोल आउ संस्कृति के लेहाज से गया-पटना के मगही बोली आदर्श आउ मानक माने जुकुर हे । एकरा में कोई खास भिन्नता के जगह नऽ लोके । बाकि जब आज मगही के साहित्य रूप प्रतिष्ठित हो रहल हे तो जगह-जगह के बोली में भिन्नता के दूर कर के एकरूपता लावे परत नऽ तो मानक रूप के अभाव में साहित्य सिरजेन में थोड़ा बाधा होयत आउ दोसर भासा बोले ओलन के समझे में भी तनी दिक्कत होयत । ई गुने ई समय जरुरी हो गेल हे कि मगही के मानक रूप पर विचार कैल जाय ।

आज जोर से सगरो अवाज उठ रहल हे कि आखिर मगह के बोली के कौन स्थान के मानक रूप मान के साहित्य में व्यवहार कयल जाय ? एकरा पर काफी बहस-मुहाबसा चलइत रहल हे । बाकि जादेतर विद्वान गया-पटना के मगही के 'आदर्श मगही' मानलन हे । डॉ० श्रीकांत शास्त्री भी यही मानऽ हलन । एक बात विचारे के हे । पटना आउ बिहार सरीफ के बोली पर मध्य काल के फारसी-उर्दू के प्रभाव के नकारल न जा सकऽ हे । डॉ० सम्पत्ति अर्याणी भी एकरा कबूल करऽ हथ आउ डॉ० वासुदेवनंदन प्रसाद भी एकरा मानऽ हथ । बाकि गया धरम स्थान रहे के कारन अप्पन रूढ़ि से चिपकल रहे के कारन इहाँ के मगही के बिगड़े के कम मौका मिलल हे । इहाँ के मगही बोली सुद्ध रूप में मिलऽ हे । ईसे इहाँ केन्द्रीय आउ आदर्श मगही के सुद्ध मान के एकरे मगही के मानक मानल जा सकऽ हे । पहिले सब विद्वान भी ई बात के मानलन हे । हम भी समझऽ ही कि गया आउ एकर अगल-बगल के मगही के स्तरीय मान के मगही के मानक रूप निश्चित कयल जाय तो अच्छा होयत । गया के बोली के एगो उदाहरण –

"एगो बाबाजी हलन । रात मांथ तो सवे सेर आउ दिन मांगथ तो सवे सेर । से एक दिन उनकर मेहरारु कहलथिन कि एकरा से तो काम न चलतो । कुछ कुछ दोसर उपाय पत्तर करऽ तो धरम-करम चलतो । बबा जी कहलन कि का करे के चाहीं आउ का नऽ करे के चाहीं ? पड़िताइन कहलथिन कि परदेस जा के कुछ कमा-धमा । बाबा जी दोसरके दिन तड़के निकललन । कुछ दूर गेलापर पिआस लगल तो एगो इनरा पर बइठ गेलन आउ बान्हल कलेवा के खोललन तो ओकरा में सात गो लिट्टी हल । बाबाजी सोचलन कि एगो खाऊँ कि दूगो खाऊँ इया सातो ख जाऊँ ।"

उपरे के उदाहरण में एके साथ कईगो सवाल के जबाब लोकऽ हे । हिन्दी में 'क्या' सर्वनाम ला मगही में दू सब्द हे - 'का' आउ 'की' । गया में 'का' आउ राजगिर में 'की' के बेवहार होवऽ हे । मुदा ई मैथिली के प्रभाव के कारन होवऽ हे । ई मगही के प्रकृति के मोताविक नऽ हे बलुक मैथिली के प्रकृति के मोताविक हे । ई गुने मगही में 'क्या' ला 'की' से जादे 'का' के प्रयोग अच्छा हे ।

हिन्दी में 'या' आउ 'अथवा' ला मगही में 'इया' आउ 'आ' के प्रयोग मिलऽ हे । 'आ' के प्रयोग न के बराबर हे । ई गुने एकरापर विचार कइल बेकार हे । 'अथवा' आउ 'या' ला मगही में 'इया' सब्द ही रखे के चाहीं ।

'और' ला मगही में 'आउ' आउ 'अउ' दू सब्द के प्रयोग होवऽ हे । बाकि 'आउ' के व्यापक प्रयोग देख के 'और' ला 'आउ' के ही प्रयोग होवे देवे के चाहीं ।

जहाँ तक आकारांत संज्ञा के सवाल हे, जइसे हथा, गोड़ा, दला, भत्ता आदि, एकरा स्थान पर हाथ, गोड़, दाल, भात आदि अकारांत सब्द ही रहे देवे में सुन्दरता ला अच्छा हे ।

मगही में तीनों 'स' के झमेला करीब खतमे हे । तालव्य 'श' आउ मूर्धन्य 'ष' के जगह पर दन्त्य 'स' के प्रचलन न खाली मगही ला बलुक सुगमता ला भी अपनावे जुकुर हे । येही तरह टवर्ग 'ण' के प्रयोग भी खतमे हे आउ तवर्ग 'न' के प्रयोग होवे लगल हे जे ठीक हे ।

मगही में संयुक्ताक्षर के प्रयोग कम होवऽ हे बाकि अइसन नऽ कि होयबे न करे, होवऽ हे, जइसे -- कच्चा-बच्चा, चहबच्चा, बग्-बग् उज्जर घूच्च अन्हरिया आदि । मगही में कम संयुक्ताक्षर के मान के सब संयुक्ताक्षर के 'पूर्णाक्षर' में बदले लगल जाय तो अनर्थ हो जायत । जइसन हठ कभी-कभी देखल जा हे जइसे - 'संस्कृति' के 'सनसकिरति' में लिख के कहाँ तक मगही के उपकार कैल जा सकऽ हे । जहाँ संयुक्ताक्षर के पूर्णाक्षर में बदलल जाय उहाँ ई भी ध्यान रखल जरूरी हे कि ऊ सब्द मगही के प्रकृति के पार न कर जाय आउ बिगड़ के हँसी के आलंबन न बन जाय । जहाँ तक मगही के प्रकृति में ढलके संयुक्ताक्षर के 'पूर्णाक्षर' में बदलल जाय आउ ओकर अरथ में अनरथ न हो जाय तो ऊ ठीक हे । न तो अनावश्यक बिगड़ाव के कम से कम स्थान देवे के चाहीं न तो मगही के सुन्दरता बने के बजाय बिगड़ जाय तो ठेठ ध्वनि के रक्षा करे के चक्कर में ओकर ठेठपन तो खतमे हो जायत, अरथ के अनरथ भी हो जायत ।

कोई भी भासा में खाली ओकरे अपन सब्द -धन न रहे बलुक दोसर भासा से भी लेवल गेल सब्द भी काफी मात्रा में मिलऽ हे । मगही भासा भी एकर अपवाद नहे हो सकऽ हे । अपवाद बने पर मर जायत । तब सवाल उठऽ हे कि मगही के अलावे दोसर सब्द के हम कइसे आउ कउन रूप में अपनावीं । अभी दू तरह के विचार चल रहल हे - (१) बाहरी सब्द के तत्सम रूप में अपनावल जाय (२) ओकरा मगही करन करके अपनावल जाय । कहल जाहे कि तत्सम रूप के अपनावे पर मगही ध्वनि लुप्त होइत जायत आउ मगही के ठेठपन समाप्त होवे के डर हे । दोसर सवाल हे - दोसर भासा के सब्द के मगही करन कैल जाय । बाकि सवाल हे मगही करन इया विकृति करन ? भासा विज्ञानी कहतन विकासी करन । बाकि विकास तो कयल न जाय, होइत रहऽ हे । मगही करन भी अपने आप होइत जायत । हँऽ, हमनी कभी-कभी विकृति करन जरूर कर ले ही । आउ अरथ के अनरथ होवे लगऽ हे । तब समस्या हल कइसे होय ? बीना के तार जादे कसा हे तो टूटे के भय हे, ढीला छोड़ देल जाय तो सूरे न निकलत । तब तो मध्यम मारग ही हमनी के सहारा हे ।

बीच के रहता निकाले के पहिले बिहार के दोसर दू भासा में हो रहल प्रयोग पर विचार कइल कोई बेजाय न हे । मैथिली थोड़े पहिले धनी भेल - साहित्यिक रूप अपना लेलक, सब्द धन के बढ़ा लेलक । बाकि सब कोई जानऽ हथ कि ओकरा में सैकड़े ८० सब्द संस्कृत आउ हिन्दी के प्रयोग होवऽ हे । भोजपुरी भी ओही रहता अपनवले हे । भोजपुरी में अभी दूगो धारा चलइत हे - एगो प्रधान भोजपुरी लिखऽ हथ आउ दोसर जे ठेठ भोजपुरिया के प्रयोग करऽ हथ । उहाँ एगो तीसर ग्रुप हे - लोहा सिंह के जे खड़ी बोली आउ बिगड़ल अंगरेज के सब्द मिला के लिखऽ हथ आउ हँसी पैदा करऽ हथ । हिन्दीओ में दूगो धारा चलल हे - हजारी प्रसाद द्विवेदी के बाणभट्ट के आत्म कथा आउ प्रेमचन्द के गोदान । भासा साहित्य में अइसन तो चलते रहत ।

ई हमनी के का करेला हे ? ई भी देखेला हे कि मगही बिहार के दोसर-दोसर भासा से पीछे न पड़ जाय ? आउ आदर्श परम्परा के ढोवे में पीछे पड़ के मेटा न जाय । अभी एकर साहित्यिक रूप बन रहल हे । सब्द-धन बढ़ रहल हे तऽ हमनी के दिल खोल के बढ़े देवे के चाहीं । रूढ़-परम्परा में बन्ह के, एकर मिठास आउ ध्वनि के कायम रखे के कठघरा में पड़ के एकर विनासी प्रयास हमनी न कर बइठीं । ई गुने फिनो हमरा बिचला रहता, मध्यम मार्ग के इयाद आवऽ हे - बुद्ध के जमीन जे ठहरल ।

मध्यम मार्ग कइसे अपनावल जाय ? बात पिछु हमनी वेद इया तुलसीदास के उदाहरन दे ही । इहाँ भी तुलसीदास से रहता लोक सकऽ हे । मानस अवधी के पोथी हे बाकि ओकरा में अवधी के अपन ठेठ सब्द केतना हे ? तइयो ऊ अवधीये के मानल जा हे । गोस्वामी जी अवधी के कइसे धनी बनवलन, सब विद्वान जानऽ हथ । रामायन के भासा के सुभाव अवधी हे, ओकर प्रकृति अवधी हे, बाकि सब्द ? ओकर जादेतर सब्द संस्कृत के हे । तुलसीदास ऊ सब सब्दन के कइसे प्रयोग कयलन । प्रयोग में उनकर दूगो दृष्टिकोन लोकऽ हे - (१) पात्र के मोताविक प्रयोग (२) प्रसंग के मोताविक प्रयोग, बाकि कोई भी प्रयोग में ऊ भासा के बिगड़लन नऽ हे बलुक अवधी के जामा पहना देलन हे आउ जहाँ जरूरत न समझलन उहाँ अवधी जमो नऽ पहनवलन । रामायन में एगो-दूगो नऽ बलुक सैकड़न प्रसंग मिलत जहाँ सुद्ध तत्सम के बढ़िया प्रयोग मिलत तइयो ऊ अवधीये हे । देखीं –

पुर रम्यता राम जब देखी । हरषे अनुज समेत विसेषी ।।
बापी कूप सरित सर नाना । सलिल सुधा सम मनि सोपाना ।।
गुंजत मंजु मत्त रस भृंगा । कूजत कल बहु वरन बिहंगा ।।
बरन बरन विक से बन जाता । त्रिविध समीर सदा सुख दाता ।।
सुमन वाटिका बाग वन, विपुल विहग निवास ।
फूलत फलत सुपल्लवत, सोहत पुर चहु पास ।।


मानस के ई अत्यन्त सधारन उदाहरन हे । संस्कृत लदल प्रयोग तो रामायन के अपन विसेखता हे । उपरे के उदाहरन में अवधी के ठेठ सब्द केतना हे ? तइयो ई अवधीये मानल जायत काहे से कि एकर क्रिया सब अवधी के हे । दोहा के अन्तिम लाइन में 'फूलत', 'फलत', 'सुपल्लवत', आउ 'सोहत' सब्द के अवधी करन कर देल गेल हे । सुमन, वाटिका, वागवन, विपुल, विहंग, निवास सब सब्द सूच्चा तत्सम हथ । तत्सम सब्द के अवधी करन के कइसन कला हे !

हमनी के आज अइसने रहता के अपनावे पड़त । सब दोसर सब्द के बिगाड़ के मगही में प्रयोग करे के जरूरत नऽ हे । एकरा से खाली बिगड़ाव पैदा होयत, भासा-साहित्य के विकास न होयत । हँऽ, क्रिया पद के मगही करन जरूरी हे । क्रिया ही कोई भासा के प्रकृति के परिचय दे हे । सम्बन्ध आउ सर्वनाम ओकर सहायक होवऽ हथ । संज्ञा के भासा परिवर्तन में कोई खास महत्व न होवे । जइसे --

१. ओकरा चार गो बेटा हलनमगही
२. ओकरा चार गो बेटा रहलनसभोजपुरी
३. ओकरा चारि गोट बेटा छलेकमैथिली

ई तीनों वाक्य में "हलन, रहलनस, छलेक" क्रिया पद ही जइसन हथ जे एक दोसर से अलगाव पैदा करऽ हथ । ई गुने हमरा कहे के मतलब हे कि दोसर भासा सब्द लेइत खानी क्रिया पद के मगही करन तो जरूरी हे बाकि संज्ञा पद के बिगाड़े के जरूरत न हे । जहाँ सब्द-रूप के परिवर्तन बीना कामे नऽ चले लायक हे इया मगही के प्रकृति के एकदम खिलाफ हो जा रहल हे तबहिये सब्द रूप बदलल जाय के चाही जइसन रामायन आदि ग्रन्थ में कैल मिलऽ हे ।

- "मगही के मानक रूप" (मगही निबंध संग्रह), मगही अकादमी, तूतबाड़ी, गया, १९८७, पृष्ठ १-६.

Thursday, August 17, 2006

मगही साहित्य का संक्षिप्त इतिहास

मगही साहित्य का काल विभाग निम्न प्रकार है --
1. आदि काल (सिद्धकाल - ८ वीं से १२ वीं शती)
2. मध्य काल (लोकसाहित्य काल - १३ वीं से १८ वीं शती)
3. आधुनिक काल
१. प्रथम चरण -- अन्वेषण-सर्वेक्षण काल (१८०१-१९०० ई०)
२. द्वितीय चरण -- जागरण काल (१९०१-१९४५ ई०)
३. तृतीय चरण -- विकास काल (१९४५-१९७३ ई०)
डॉ० श्रीकान्त शास्त्री काल (८ फरवरी १९२३ - २९ जून १९७३)
४. चतुर्थ चरण -- समृद्धि काल (१९७४ से अब तक)
डॉ० राम प्रसाद सिंह काल (१० जुलाई १९३३ - ...)

मध्य काल (लोकसाहित्य काल - १३ वीं से १८ वीं शती)
सन्त धरमदास
- ये कबीर (15 वीं - 16 वीं शती) के समकालीन कहे जाते हैं जो मगध क्षेत्र में कबीर के साथ भ्रमण करने आए थे । यहाँ रहकर उन्होंने यहाँ की मगही बोली में रचनाएँ की थीं । उनकी रचनाएँ यदा-कदा साधुओं के बीच सुनी जाती है । धरमदास की एक रचना "धरमदास शब्दावली" बेल ग्रेडियर प्रेस, प्रयाग से 1923 में प्रकाशित हुई थी ।

रामसनेही दास - 18 वीं शती के अन्तिम चरण के मगही सन्त डॉ० राम प्रसाद सिंह के पूर्व पुरुष थे जिनका जन्म औरंगाबाद के भरकुंडा नामक ग्राम में हुआ था । इनके पद औरंगाबाद जिले के उत्तरी-पश्चिमी भागों में सुने जाते हैं ।

अन्वेषण-सर्वेक्षण काल (1801-1900 ई०)

1. सर्वप्रथम 1807 में अन्वेषण हेतु भारत आए Francis Buchanan ने बिहार और उड़ीसा सम्बन्धी विवरण तैयार किया जो Bihar & Orissa Research Society, Patna (1811-1813) से कई खंडों में प्रकाशित हुआ । उन्होंने प्रथम बार गया-पटना से साक्षात्कार लेकर मगही के बारे में काफी सूचना दी ।

2. A Grammar of the Hindi Language (1872; Revised edition 1893; 1938) – by Rev. S H Kellogg. Reprint: Asian Educational Services, New Delhi/ Madras., 1989; xxxiv+584 pp.  इस महत्त्वपूर्ण ग्रंथ में 14 हिन्दी की बोलियों के शब्दरूपों और धातुओं का वर्णन है । इस ग्रंथ में बिहारी बोलियों - मगही, मैथिली और भोजपुरी का भी विवरण है ।

3. Seven Grammars of the dialects and subdialects of the Bihari Language; Part III (1883) - Magadhi Dialect of South Patna and Gaya; by Sir George Abraham Grierson. Reprint: Bhartiya Publishing House, Varanasi/ Delhi, 1980.

4. Bihar Peasant Life (1885) -- by Dr Abraham Grierson. इसमें मगही कृषक शब्दावली भी है ।

इस पुस्तक को इंटरनेट पर से डाउनलोड किया जा सकता है -

5. A Comparative Dictionary of the Bihari Language (1885) -- by Hoernle, A. F. Rudolf (August Friedrich Rudolf), 1841-1918; Grierson, George Abraham, Sir, 1851-1941, joint author. इस कोश में मगही, मैथिली, भोजपुरी शब्दों का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत है ।

इस पुस्तक को इंटरनेट पर से डाउनलोड किया जा सकता है -

कमलेश जी (जन्म 1844 ई०) - मगध के कवियों में इनकी प्रामाणिक जानकारी मिलती है । इनका जन्म जहानाबाद के बेलखरा ग्राम में हुआ था । भारतेन्दुसखा कमलेश जी कृष्णभक्त कवि थे । कविता कि गेयता के कारण वे आधुनिक जयदेव कहलाते हैं । इनकी प्रकाशित पुस्तक "कमलेश विलास" में लोकधुन पर आधारित अनेक गीतियाँ संगृहीत हैं । इनकी ब्रजभाषा और मगही की रचनाएँ भी चारणों और भाटों के द्वारा सुनी जाती हैं ।

जनहरिनाथ (जन्म 1843 ई०) - जागरण काल के चर्चित कवियों में से एक । इनका जन्म जहानाबाद के पाठक बिगहा ग्राम में हुआ था । इनके गीत मगध की स्त्रियाँ बड़े प्रेम से गाती हैं । इनकी रचनाएँ "ललित भागवत" और "ललित रामायण" 1893 में प्रकाशित हुई थीं ।

जवाहिर लाल (1851-1895) - औरंगाबाद के दाउदनगर निवासी, भारतेन्दु कालीन कवि जवाहिर लाल ने प्रथमतः "मगही रामायण" की रचना की ।

जागरण काल (1901-1945)
 

महामहोपाध्याय हर प्रसाद शास्त्री (1923): "Magadhan Literature” (Being a Course of Six Lectures delivered at Patna University,  Patna in December 1920 and April 1921); Published by Patna University, Patna; Printed at Upendra Nath Bhattacharyya, HARE PRESS: 46, Bechu Chatterjee Street, Calcutta. MM Hara-Prasad Sastri (6 December 1853 – 17 November 1931), M.A., C.I.E., was Professor of Sanskrit, Dacca University, during 1921-1924.

इस पुस्तक को इंटरनेट पर से डाउनलोड किया जा सकता है -

A. Banerjee Shastri
(1932): "
Evolution of Magahi", Calcutta.


जगन्नाथ प्रसाद 'किंकर' - औरंगाबाद, देव के राजा । इनका मगही गीत संग्रह 1934 में प्रकाशित हुआ था ।

कपिल देव त्रिवेदी 'देव' की पुस्तक 'मगही सनेस', 'मगही मुकुट' का प्रकाशन भी इसी काल का है ।

मुनक्का कुँअर नाम की कवयित्री, जन्म ग्राम - मछुआ (पाली), जिला पटना में । इनके भजन पाली के इर्द-गिर्द में प्रचलित मिलते हैं । आपकी रचना 'मुनक्का कुँअर भजनावली' नाम से 1934 में यूनिवर्सिटी प्रेस, बाँकीपुर से मुद्रित हुई थी ।

कृष्णदेव प्रसाद (22 जून 1892 - 15 नवम्बर 1955) - पटना जिला के कमंगर गली में आषाढ़ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी बुधवार को । संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेज़ी, मगही, उर्दू-फ़ारसी के प्रकांड पंडित । अपनी जिन्दगी का दो हिस्सा इन्होंने मगही की सेवा में अर्पित किया । स्वयं भी लिखा और प्रेरणा देकर दूसरों से भी लिखाया । स्व० बाबू जयनाथ पति जी, श्री वैद्यनाथ बाबू और गया के दो-तीन सज्जनों के साथ जैसे इनकी टोली बन गई और सबने मगही में खूब काम किया ।

श्रीधर प्रसाद शर्मा (1898-1973) - जन्म पटना जिला के राघोपुर ग्राम में । इस काल के चर्चित और सर्वाधिक तीन दर्जन रचना करनेवाले मगही कवियों में इनका नाम सर्वोपरि है । इनकी विस्तृत जीवनी और समस्त साहित्य का परिचय 'भोर' के जनवरी 1978 अंक में उपलब्ध है ।

जयनाथ पति (मगही के प्रथम उपन्यासकार) -- नवादा के मुख्तार जयनाथ पति का जन्म ग्राम - शादीपुर, पो० - कादरीगंज, जिला - नवादा; 19 वीं शती के अन्त में । सर्वप्रथम मगही में 'सुनीता' (1927) नामक उपन्यास प्रकाशित । इसकी समीक्षा सुनीति कुमार चटर्जी ने Modern Review के अप्रैल 1928 अंक में की । लेखक का दूसरा उपन्यास 'फूल बहादुर' (अप्रैल 1928; द्वितीय संस्करण अप्रैल 1974) प्रकाशित हुआ जिसके मुखबंध में वर्णित तथ्य से पता चलता है कि 'सुनीता' की रचना और मुद्रण बड़ी जल्दी में किया गया है । "परसाल बंगला के उत्पत्ति और विकास में मासूक के लिक्खा धिक्कार पढ़ला से हम ठान लेलूं के नुकल रहला से अब बने के नै, छौ-पाँच करते-करते बेकाम कैले खतम हो जाय के हे । एहे से तीन चार दिन में 'सुनीता' लिख के छापाखाना में भेजल गेल और एतना जल्दी में ऊ छपल के पूरा तरीका से ओकर प्रूफ भी नै ठीक कैल जा सकल ।" डॉ० रामनन्दन के अनुसार इसका नामकरण बंगला के विद्वान् और प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डॉ० सुनीति कुमार चटर्जी के नाम पर किया गया है क्योंकि इसकी रचना लेखक ने उनके लेख से प्रभावित होकर किया था । इसकी मूल प्रति अब अनुपलब्ध है ।

'सुनीता' एक सामाजिक उपन्यास है जिसमें अनमेल विवाह में उत्पन्न समस्या को उजागर किया गया है । उपन्यास की नायिका सुनीता उच्च वर्गीय परिवार की कन्या है जिसका व्याह एक वृद्ध से हो जाता है । सामाजिक बन्धन को तोड़कर वह निम्न कुलोत्पन्न प्रेमी के साथ भाग जाती है । सुनीता के बिरादरी वाले कचहरी में मुकदमा दायर कर उसके प्रेमी को दंडित कराना चाहते हैं किन्तु वह अपने प्रेमी के पक्ष में दलील देकर उसे निर्दोष सिद्ध करते हुए सच्चा प्रेम का परिचय देती है ।

'फूल बहादुर' में हास्य व्यंग्य की प्रधानता है । मुख्तारी के अनुभव पर आधार पर रचित इस उपन्यास में तत्कालीन कचहरी एवं सरकारी अधिकारी में व्याप्त भ्रष्टाचार पर करारा प्रहार किया गया है । उपन्यास का नायक रामलाल बिहारशरीफ का मुख्तार है और राय बहादुर कहलाने के लिए बेचैन है । इसके लिए वह अधिकारियों की खुशामद करता है । नवागन्तुक अनुमंडलाधिकारी को सुरा-सुन्दरी उपलब्ध कराकर वह अपनी मनोकामना पूर्ण करना चाहता है किन्तु उसे सफलता नहीं मिलती । नगर के लोग उसकी व्यग्रता देखकर राय बहादुर बनाने का एक फर्जी आदेश उसके पास भेज कर उसे बेवकूफ बनाते हैं । रायबहादुर के बदले वह फूल बहादुर बन जाता है ।

इनका तीसरा उपन्यास 'गदहनीत' भी सामाजिक कुरूपता को उजागर करता है । इसकी प्रति अनुपलब्ध है ।

जयनाथ पति ने मगही उपन्यास का लेखन उस समय प्रारम्भ किया जब हिन्दी में प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद और उनके समकालीन अन्य लेखक उपन्यास लिख रहे थे । पाठक और प्रकाशन की समस्त सुविधाओं के कारण हिन्दी अपने वर्तमान स्वरूप तक विकसित हो सकी, किन्तु रुझान और संरक्षण के अभाव में मगही की वह परम्परा कायम नहीं रही । जयनाथ पति के पश्चात् बहुत दिनों तक मगही में उपन्यास नहीं लिखे गए । पुनः स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद इस ओर लोगों का ध्यान गया ।
उपन्यास
विकास काल (1945 - 1973)
बिसेसरा
(अक्टूबर 1962) -- राजेन्द्र कुमार यौधेय । सामाजिक उपन्यास । इसकी कथावस्तु मुसहरी से ली गई है । भोला के असफल विवाह से सोबरनी के प्रेम का स्रोत "सुक्खल ठन-ठन बिन पानी वाला मोरहर" के समान हो जाता है जो बाद में अपने प्रेमी बिसेसरा से सगाई के पश्चात् उमड़ते हुए मोरहर का रूप धारण कर लेता है । हिन्दी के आंचलिक उपन्यास "मैला आँचल", "परती परिकथा", "बलचनवाँ", "लोहे के पंख", "नदी बह चली" के समान प्रसिद्धि प्राप्त "बिसेसरा" को प्रो० कपिल देव सिंह के शब्दों में मगही में वही स्थान मिलना चाहिए जो हिन्दी में जैनेन्द्र कुमार के "सुनीता" को प्राप्त है ।

आदमी ऑ देवता (1965; 'बिहान' में जून 1960 से जनवरी 1964) -- डॉ० रामनन्दन । यह एक पौराणिक उपन्यास है जिसकी विषयवस्तु का चयन स्कन्दपुराण से किया गया है, किन्तु रचना आज के ठोस धरातल पर हुआ है । आदमी अपने कर्तव्य के बल पर किस तरह लक्ष्य के उत्तुंग शिखर पर पहुँच सकता है, यह इस उपन्यास में दर्शाया गया है । इसमें दिवोदास की कथा नये भारत के निर्माण में लगे जाग्रत जन की कथा है । इसकी रचना स्वतन्त्रता प्राप्ति और उसके पश्चात् भारत की भावी योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के दृष्टिकोण से किया गया है ।

रमरतिया (1968) -- बाबूलाल मधुकर । यह एक आंचलिक, सामाजिक और प्रगतिशील उपन्यास है जिसमें अति यथार्थवाद का चित्रण किया गया है । ग्रामीण जीवन की बाँकी झाँकी प्रस्तुत उपन्यास की कथावस्तु जमीन्दारी युग से जुड़ी हुई है । उपन्यास के नायक राधे और नायिका रमरतिया में सामाजिक परिवर्तन का भाव भरा है । परम्परागत रूढ़ि को तोड़कर अन्तरजातीय विवाह की समस्या और उसका समाधान उपन्यास का लक्ष्य है । इनका कदम नवजागरण का सूचक है । इस्लामपुर अंचल के ग्रामीण संस्कृति का चित्रण उसके सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, लैंगिक तथा राजनीतिक स्वरूप के अनुरूप करके मधुकर ने लारेंस की समाधान मूलक कला का अनुसरण किया है । इसी उपन्यास पर लेखक को डॉ० रामप्रसाद सिंह साहित्य "पुरस्कार" मिल चुका है ।

मोनामिम्मा (1969; नवम्बर 1967 से मार्च 1969 तक 'बिहान' में प्रकाशित) -- द्वारका प्रसाद । यह एक मनोवैज्ञानिक उपन्यास है । फ्रायड और युंग का प्रभाव इसमें दृष्टिगोचर होता है । दोनों नारी पात्र मोना और मिम्मा के नाम पर इस उपन्यास का नाम रखा गया है । व्यक्ति जिस स्थान पर सपना सजाता है, किसी के साथ सुख-दुख का क्षण व्यतीत करता है वहाँ बिछुड़न के बाद आने पर मन की दशा विचित्र हो जाती है । उपन्यास के प्रमुख पात्र मोना की ऐसी ही मनोदशा के साथ प्रारम्भ इस उपन्यास में कौतूहल, कामकुंठा, दमित इच्छा, प्रणयसुख, ईर्ष्या, विद्रोह का सजीव चित्र प्रस्तुत करते हुए उपन्यासकार ने मध्यवर्गीय मानव मन की प्रक्रिया और प्रतिक्रिया से लोगों को परिचित कराया है ।

गोदना (प्रकाशित जून 1978) -- मगही के प्रथम पुरोधा डॉ० श्रीकान्त शास्त्री (8 फरवरी 1923 – 29 जून 1973) का आंचलिक उपन्यास है । इसमें ग्रामीण वातावरण का साफ चित्र प्रस्तुत होता है । सफेदपोश व्यक्तियों के वर्ग चरित्र को उजागर करते हुए थाना, पुलिस, नेता शोहदा सबको बेनकाब किया गया है । गनउरी डाक्टर की सहायता में निहित स्वार्थ जहाँ आज के आदमी के दोहरे व्यक्तित्व का दिग्दर्शन कराता है, वहाँ राम सोहामन, बुढ़िया नर्स, शीला का चरित्र अंधकार में प्रकाश स्तम्भ के समान पथ प्रदर्शन करता है । एकंगरसराय के आस पास के आंचलिक परिवेश को चित्रित करते हुए राष्ट्र की निराशाजनक स्थिति, भोगवादी संस्कृति और सिद्धान्तहीन राजनीतिक गठबन्धन की ओर भी इस उपन्यास में इंगित किया गया है ।

मगही मासिक 'बिहान' जुलाई 1967 के पृष्ठ 13 पर प्रकाशित सूचना के अनुसार अगले माह से इस पत्रिका में इसे धारावाहिक रूप से छपना था किन्तु उनकी अस्वस्थता और मृत्यु के कारण ऐसा न हो सका । 'बिहान' के सम्पादक डॉ० रामनन्दन के प्रयास से इसका प्रकाशन 1978 में हुआ ।

साकल्य, सिद्धार्थ और हाय रे ऊ दिन -- चन्द्रशेखर शर्मा द्वारा रचित ये मगही उपन्यास भी चर्चा में हैं । अपने वातावरण से हजारी प्रसाद द्विवेदी और रांगेय राघव के उपन्यास का स्मरण दिलाते हैं । 'साकल्य' में महर्षि साकल्य के जीवन और तत्कालीन वातावरण का चित्रण किया गया है तो 'सिद्धार्थ' में बौद्ध संस्कृति का । 'हाय रे ऊ दिन' वैदिक संस्कृति और उसमें आई विकृति से पाठक को अवगत कराता है । उपन्यासों की रचना ऐतिहासिक और पौराणिक पृष्ठभूमि पर की गई है ।
समृद्धि काल (1974 से अब तक)

सँवली (1977) - शशिभूषण उपाध्याय । इस उपन्यास में एक साथ सामाजिक समस्या, राजनीति, प्रेम, जागरण और सरकार के द्वारा समाज कल्याण के लिए किए जा रहे कार्यों पर प्रकाश डाला गया है । पाठक के मन में गुदगुदी, ओठ पर मुस्कान और बिना तिलक, दहेज और जात-पात का ख्याल किए शादी-ब्याह के लिए रुझान उत्पन्न करने वाला यह एक चर्चित उपन्यास है । इसके पात्र जेठू पंडित और नारद आभिजात्य वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं तो बसंत, सँवली और चरितर प्रगतिशील युवा वर्ग का । इसमें रूढ़ि बन्धन को तोड़कर आत्मनिर्भर बनने का संदेश ध्वनित होता है ।

चुटकी भर सेनुर (फरवरी 1978) - सत्येन्द्र जमालपुरी । इस लघु सामाजिक उपन्यास में परम्परागत समाज का कोढ़ दहेज का रचनात्मक खंडन है । नेहालपुर गाँव के निवासी रामधनी की पुत्री है परेमनी, जिसकी सेवा और स्वभाव से प्रभावित हो जाता है नानीघर आया हुआ हिरू । तिलक देने में असमर्थ रामधनी एक विधुर से उसकी शादी निश्चित करता है, लेकिन स्वागत-सत्कार में कमी के कारण बारात वापस हो जाती है । इस कारुणिक बेला में हिम्मत करता है हिरू - "परेमनी के बोलावऽ, ओकर सादी अभिये होयत ।" चंपिया सिन्होरा लाती है और हिरू तिलक-दहेज के बिना उसकी माँग में चुटकी भर सेनुर देकर इस सामाजिक समस्या के समाधान हेतु युवकों को आगे आने का संदेश देता है ।

अछरंग (रचित 1980; धारावाहिक रूप से 'कसउटी' में प्रकाशित) - प्रो० रामनरेश प्रसाद वर्मा । इस उपन्यास की चर्चा विस्तृत रूप से डॉ० राजनन्दन प्रसाद राजन ने शोध प्रबन्ध में की है ।

बस एके राह (रचित 1983; प्रकाशित 1 मई 1988) - केदार 'अजेय' । शिक्षा, धर्म, राजनीति के क्षेत्र में व्याप्त विसंगतियों एवं उत्तरोत्तर गिरावट का चित्रण करते हुए जात-पात, रिश्वत, बलात्कार, साम्प्रदायिकता, अलगाववाद, सत्ता संघर्ष से युक्त समाज व्यवस्था में परिवर्तन का एक मात्र रास्ता 'क्रान्ति' है । इसलिए इस उपन्यास का 'बस एके राह' नाम सार्थक प्रतीत होता है ।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् छिन्न-भिन्न अर्थव्यवस्था एवं राजनीतिक छलछद्म से उत्पन्न स्थिति पर आधारित इस उपन्यास की कथावस्तु सामयिक, प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण है । उपन्यास के नायक राजेश और नायिका कविता क्रान्ति के प्रतीक पात्र हैं । क्रान्तिदल के नेता के रूप में किया गया कार्य और जात-धर्म के रूढ़िगत प्रपंच से अलग हटकर उनका वैवाहिक बन्धन इसका प्रमाण है । उपन्यास का लक्ष्य 'अजेय' की निम्न पंक्तियों में अभिव्यक्त है - "महँगाई, बेकारी, भ्रष्टाचार, गरीबी अइसन सब सवाल जेकरा से वोकर घर के जीवन परभावित हे वोकरा मिटावे लेल जब सब मिलके संघर्ष करत तब जात-पात, धर्म, क्षेत्रीयता और भाषा के मतभेद भी अपने आप समाप्त हो जात ।" डॉ० दीनानाथ शरण के अनुसार यह उपन्यास यशपाल के 'दादा कामरेड' की याद दिलाता है ।

नरक सरग धरती ('मगही समाज' में अप्रैल 1987 से धारावाहिक रूप में; पुस्तक रूप में अक्टूबर 1992) - डॉ० राम प्रसाद सिंह (जन्म - 10 जुलाई 1933)। यह एक आदर्शोन्मुख यथार्थवादी उपन्यास है जिसमें थॉमस हार्डी, मार्क ट्वेन, अर्नेस्ट हेमिंग्वे, लुह सुंग, प्रेमचन्द और फणीश्वर नाथ रेणु की औपन्यासिक विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं । अतः इसे आंचलिक उपन्यास कहा जाय या ग्रामीण, यह विवाद का विषय है, सुधी आलोचक के लिए विचारणीय है ।

दो भागों में विभक्त इस उपन्यास के बृहद् कलेवर में नानी से नाती तक तीन पीढ़ियों की मनःस्थिति तथा सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक परिवेश का चित्रण सुन्दर ढंग से किया गया है । प्रेम के रागात्मक रूप के साथ-साथ क्रान्ति के हिंसात्मक और रचनात्मक स्वरूप के दर्शन इसमें होते हैं । कहीं वर्तमान समाज में जाति व्यवस्था से उत्पन्न विकृति की झलक मिलती है तो कहीं सामाजिक सद्भाव और भाईचारा का । आजादी के पूर्व और पश्चात् तक ग्रामजीवन का मर्मस्पर्शी चित्र इस उपन्यास की खास विशेषता है । लेखक ने आत्मनिवेदन में ठीक ही लिखा है - "एकर पहिला भाग पुरान संस्कृति के छोटगर कोस हे तो दूसरका भाग बदलइत संस्कृति के संकेत ।"

इस उपन्यास की प्रमुख पात्र नानी है जिसकी कहानी से इसका आरम्भ होता है । संघर्षशील, स्पष्टवादी, त्यागी और परोपकारी इस नारी के चतुर्दिक् शेष सभी पात्र चक्कर काटते हैं । इसमें शोषण-उत्पीड़न के शिकार किसान की दयनीय दशा का चित्रण सूरज महतो के माध्यम से हुआ है । रूढ़िवाद के शिकंजा में जकड़े निम्न वर्गीय समाज में ओझाओं का वर्चस्व और प्रपंच का परिचय खदेरन के घर में लगने वाले दिवास से मिलता है, जहाँ राई और मिर्चाई की बुकनी आग में झोंककर औरों को उल्लू बनाते हुए अपना उल्लू सीधा किया जाता है । जन्म के आधार पर प्राप्त प्रतिष्ठा और धर्म के नाम पर चल रहे पाखंड के पोषक परम्परावादी रमाधार मिसिर और जमींदार वर्मा के विचार और जीवन पद्धति में आया बदलाव परिवर्तन का सूचक है । काम-कुंठा से ग्रसित स्वछंद यौनसंबंध की ओर उन्मुख मिसिर-मिसिराइन; जीरवा, रग्घु, रोहन, जमुनी, तिलेसरी, बुधिया का चरित्र सामाजिक कुरूपता और कुसंस्कार को दर्शाता है तो रचनात्मक धरातल पर अंकुरित बेला और सुक्खू का स्नेह प्रणय और परिणय से अलग हटकर शाश्वत प्रेम का । नगीना-सुसमा का अन्तरजातीय विवाह और लोकसेवा के लिए समर्पण, रोझन रविदास का कर्मयोग और प्रतिनायक रग्घु का पश्चाताप लोकमन में नूतन आशा का संचार करता है ।

डॉ० राम प्रसाद सिंह के अन्य उपन्यासों में 'समस्या', 'बराबर के तरहटी में', 'सरद राजकुमारी' और 'मेधा' का नाम लिया जाता है । 'मेधा' धारावाहिक रूप से 'नवजीवन' साहित्य पत्रिका में प्रकाशित हुई । अप्राप्त 'समस्या' का जिक्र डॉ० स्वर्णकिरण ने कई जगहों पर किया है ।

धूमैल धोती (1995) - राम विलास 'रजकण' । लेखक के 'अप्पन बात' से पता चलता है कि उन्होंने अपने जीवन में जो देखा, सुना और भोगा है उसे ही रुचि, धारणा और बुद्धि के अनुसार इस उपन्यास में जगह दिया है । सच्चा साहित्य भी तो जीवन में देखा-सुना और भोगा हुआ अनुभव के आधार पर रचा जाता है तथा ऐसा ही साहित्य समाज का दर्पण होता है । गया जिले के एक खास गाँव में फैले कथानक के आधार पर उकेरा गया यह उपन्यास हिन्दुस्तान के हर गाँव की घिसी-पिटी जिन्दगी में अज्ञान, अन्धविश्वास, जातीयता, गरीबी का लगा घुन, धर्म और संस्कृति का लुप्त होता शाश्वत स्वरूप के साथ-साथ स्वार्थपरक राजनीति के कारण धूमैल हो रहे जनतन्त्र की धवल धोती की बाँकी-झाँकी प्रस्तुत करता है ।

धर्म के नाम पर दंगा-फसाद, राजनीतिक छल-प्रपंच, विकास के नाम पर लूट, पुलिस नेता गठजोड़ से आजाद भारत में बढ़ता हुआ अत्याचार, उतरती हुई इज्जत और शोषण की चक्की में पिस रहे लोगों के दुख-दर्द का चित्रण करते हुए इस यथार्थवादी उपन्यास में 'रजकण' जी ने अज्ञानता के अन्धकार से निकलकर गाँव की सड़ी-गली लुंजपुंज जड़ता को ध्वस्त करने हेतु अलख जगाने का सराहनीय कार्य किया है ।

इस उपन्यास का प्रारम्भ फल्गू नदी के बाढ़ से बर्बाद गंगापुर गाँव की कहानी से होता है और धीरे-धीरे ग्रामीण समस्या से साक्षात्कार कराते हुए शोषणविहीन, समतामूलक समाज रचना का सन्देश देकर समाप्त हो जाता है । यह उपन्यास राहत के नाम पर जीरा का फोरन, परचा के लिए रिश्वत और यौनशोषण, कल्याणकारी सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में आई विकृतियों से साक्षात्कार कराता है तो निज स्वार्थ साधन हेतु गोपाल दुबे और मजहर इमाम के द्वारा दो धर्मावलम्बियों के बीच नफरत का बीज बोना और वाम पंथ के नाम पर जनेसर यादव के द्वारा किसान-मजदूर को लड़ाकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में व्यवधान डालना कुत्सित मानसिकता और गन्दी राजनीतिक को दर्शाता है । उपन्यास के पात्र रहमत मियाँ, बलराज महतो, किसुन, रत्नेश्वर, जंगी चौधरी जिनके सद्प्रयास से लोग आपसी मतभेद को भूलकर समाज के नवनिर्माण में जुट जाते हैं । फणीश्वर नाथ रेणु के 'मैला आंचल' के समान 'धूमैल धोती' भी एक आंचलिक उपन्यास है ।

प्राणी महासंघ (2 अक्टूबर 1995) - मुनिलाल सिन्हा । राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की 125 वीं जयन्ती के अवसर पर प्रकाशित । इस उपन्यास में पर्यावरण प्रदूषण के कारण विनाश के कगार पर झूलते विश्व में मानव अस्तित्व पर उत्पन्न संकट और लुप्त हो रहे जीव-जन्तुओं की समस्या से चिन्तित लेखक ने लोकमंगल की भावना से इस उपन्यास की रचना की है ।

पूर्व प्रकाशित मगही उपन्यासों की लीक से हटकर इन्होंने मानवेतर प्राणियों के बीच से इसके पात्रों का चयन किया है । अरक्षित जीव-जन्तुओं का सुन्दर वन में एकत्रित होकर आत्मरक्षार्थ विचार-विमर्श करना और समस्या के समाधान हेतु संगठित होकर अहिंसात्मक आन्दोलन का निर्णय एक ओर जहाँ गाँधीवाद की प्रासंगिकता और उपयोगिता को प्रदर्शित करता है वहीं दूसरी ओर अस्तित्व रक्षा के लिए हर नागरिक को एकजुट होने का संदेश देता है ।

प्रदूषणमुक्त जल, जमीन, जंगल की सुरक्षा पर्यावरण सन्तुलन के लिए आवश्यक है । अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर इसके लिए चिन्तन और प्रयास भी हो रहे हैं । इस दिशा में जनचेतना जागृत करने में लेखक का यह प्रयास सार्थक है । इन्होंने इस उपन्यास के द्वारा केवल समस्या से साक्षात्कार ही नहीं कराया है बल्कि इसके समाधान का उपाय भी बतलाया है । अन्धाधुन्ध वृक्षों की कटाई, जीव-जन्तुओं का विनाश, जल-वायु प्रदूषण आदि से होनेवाली हानियों पर प्रकाश डालते हुए इन्होंने वृक्षारोपण, जीव-संरक्षण, भूमि-जल का सदुपयोग आदि पर विशेष बल दिया है । उपन्यास में सरल स्वाभाविक विशिष्ट मगही भाषा शैली का प्रयोग इसकी अपनी विशेषता है । यह उपन्यास एक नया प्रयोग है ।

मगध की लोककथाएँ : संचयन

मगध की लोककथाएँ : संचयन
सम्पादक - डॉ० राम प्रसाद सिंह

प्रथम संस्करण - १६ अप्रैल १९९७ ई०
प्रकाशक - मगही अकादमी, मगही लोक, तूतवाड़ी, गया

1. अलौकिक चमत्कार-कथा
1.1 नट-विद्या
1.2 पिंगल पढ़ल औरतन
1.3 मुरदा के करमात

1.4 उदन छत्री के वीरता
1.5 भूअवरा जिला के बाबू
1.6 गुरु गुड़ चेला चीनी

1.7 बड़ डर टिपटिपवा के
1.8 तीन राजकुमार
1.9 ब्राह्मण के बेटी आउ चमार के बेटा

1.10 बाँसुवे का नाव
1.11 करमजारी के भाग
1.12 बिसेसरवा

1.13 कुटनी बुढ़िया
1.14 दूगो राजकुमार
1.15 पड़िआइन के पुतोह

1.16 राजा के बहादुरी
1.17 औघड़दानी शिव-पार्वती
1.18 मुरगा में अदमी

1.19 नाग के बेटा
1.20 राजा के बेटी पंडुक
1.21 सपना के हाल

1.22 सात हंस
1.23 नाग के बेटा
1.24 सोना के अँगूठी

1.25 नाग के अँगूठी
1.26 अहेरी कुमार आउ बलकी कुमारी
1.27 दइतिन बहिन के करमात

1.28 लीलकंठ राजा
1.29 राजकुमार आउ मयनावती रानी
1.30 मुरुख लइका आउ लाल परी

1.31 गुलम पीरसिंह
1.32 हँसती परी
1.33 जैन आउ मेठ सुबरन सुन्नरी

1.34 लाल आउ हीरा
1.35 परी आउ राजा
1.36 अगरवाल के बेटा

1.37 चरवाहा से राजा
1.38 तोतवा के बेटी आउ फूलकुमारी

2. प्रेम-कथा
2.1 राजा के बेटा आउ मेहतर के बेटी
2.2 बेलमन्ती रानी
2.3 अप्पन किस्मत के कमाई

2.4 राजा, रानी आउ मोतीकुँअर
2.5 महादे(व) के किरपा
2.6 लाल, हीरा आउ राजकुमारी

2.7 चतुर राजकुमारी
2.8 संत-बसंत
2.9 दिलवर जान

2.10 राजा के बेटी आउ डोम
2.11 फूलकुमारी (बेलमन्ती रानी का रूपान्तर)
2.12 बूँटचुनवा के अउरत रानी

3. अर्थ-कथा
3.1 एक पइसा के बूँट दुनियाँ लूट
3.2 लोभ से मरन
3.3 ब्राह्मण आउ सात गो परी

3.4 साव के बेटा
3.5 लइका आउ ठग
3.6 बाघ आउ ब्राह्मण

3.7 बितनवाँ
3.8 मुरुख राजा
3.9 एगो ब्राह्मण चार गो चोर

3.10 छउँड़ा-चोर
3.11 राकस से बड़ा भोकस
3.12 बनजारा

3.13 राजा के बेटा नेउर
3.14 अंधड़ा-लंगड़ा के करमात
3.15 पंडी जी आउ वानर

3.16 पंडी जी आउ बकरी
3.17 सोना सब माटी
3.18 ओखरी तर बक चूने बाबा !

4. वर्णाश्रम-कथा (जाति-कर्म-कथा)
4.1 कोइरी, कुम्हार आउ राजा
4.2 अहीर के बेटा
4.3 बढ़ही आउ सोनार के हुनर

4.4 चमार आउ धोबी के चलाँकी
4.5 भलाई के फल
4.6 सइतिन डाह

4.7 चचा-भतीजा
4.8 अझोलवा बहिनी
4.9 करकसा पड़िआइन

4.10 राजा के बेटी
4.11 एगो ब्राह्मण के कहानी
4.12 सोना के अँगूठी

4.13 सतेली माय के करमात
4.14 पंच के बे(व)कूफी
4.15 चचा-भतीजा

4.16 कोयरी के चलाँकी
4.17 अहीर के बे(व)कूफी
4.18 पंडित जी आउ पंडिताइन

4.19 एगो धुनिया के करमात
4.20 स्वार्थी पड़िआइन
4.21 तोतराह बेटा

4.22 साधु के दसा
4.23 मेहरारू के करमात
4.24 मसमात के लचारी

4.25 छोटका भाई आउ छोटकी बहिन
4.26 मुरुख पाँड़े के ढोंग
4.27 बदला

4.28 एगो ब्राह्मण के खिस्सा
4.29 अरुना बहिन
4.30 पिताभक्त राजकुमार

4.31 कउवाहँकनी रानी
4.32 काको बहिन
4.33 पनिहारिन आउ राजा

5. नीति-कथा
5.1 खोपड़ी के मोल
5.2 कउआ, ऊँट आउ सियार
5.3 बन्दर के चलाँकी

5.4 लतीफ मियाँ के होसियारी
5.5 राजा के पहचान
5.6 खाना, हँसना आउ रोना

5.7 वजीर के बेटा
5.8 गुनमाही राजा
5.9 साँप आउ बेंग के इयारी

5.10 बेटा चार आउ हिस्सा तीन
5.11 बिआही अउरत के छोड़े के फल
5.12 राना भैंसा आउ सियार

5.13 सियार के चलाँकी
5.14 कउआ आउ गुहली
5.15 घरनी से घर चलऽ हे

5.16 चोरी के फल
5.17 क्रोध में रहस्य खोले के फल
5.18 लाख टका के बात

5.19 सियार आउ बकरी के इयारी
5.20 जेकर काम वो ही करे
5.21 सियार आउ ऊँट के इयारी

5.22 कुली आउ बकरी के इयारी
5.23 सतेली माय
5.24 भगमान जे करऽ हथिन से भले करऽ हथिन

6. धर्म कथा
6.1 मनीता के महातम
6.2 थोड़ा दान बहुत फल
6.3 राजा आउ मंत्री

6.4 जइसन करनी ओइसन फल
6.5 करतब के फल
6.6 तीज-पूजा

6.7 सच्चा साधु
6.8 ब्राह्मण आउ आउ नौकर

7. मनोरंजक कथा
7.1 गभिया
7.2 सबसे बलवान कउन ?
7.3 बुरबक लइका

7.4 बेंग रानी
7.5 सियार आउ बकरी के साझी
7.6 भुआली पुता

7.7 बीरबल बादसाह
7.8 वजीर आउ बादसाह
7.9 बानर के करतूत

7.10 अँधेर नगरी चौपट राजा
7.11 बेंगवा के संतान
7.12 एगो गप्पी

7.13 नेकी आउ बदी
7.14 महादे(व) के बचन
7.15 अलबत्ता चिरई

7.16 बतफरोस बेटा
7.17 कोकड़ा आउ बाघ
7.18 काना बेटा

7.19 बाबा जी आउ घोड़ा के अण्डा
7.20 खरहा, ऊँट आउ बाघ
7.21 गदहा से अदमी

7.22 तीन गो बेशकीमती बात

8. विविध कथा
8.1 राजकुमारी आउ गोरखिया
8.2 बाबा जी आउ पनिहारिन
8.3 लालमती के समझदारी

8.4 लेना एक न देना दू
8.5 मुरगी मेलान कायथ पहलवान
8.6 विपत के मारल राजकुमार

8.7 आगे सोचल काम न करतो
8.8 सरसती आउ लछमी
8.9 जतरा के फेरा

8.10 लाल बुझक्कड़
8.11 तदबीर से तकदीर बड़ा
8.12 राजकुमार के बहिन आउ डोम (दीहिलो बहिन)

8.13 राजा ला चोर चतुर
8.14 राजा आउ ओकर छोटका बेटा
8.15 बिसवासघाती अउरत

8.16 अनमोल मोती सुरूपा
8.17 घमघट
8.18 पैंक के करमात

8.19 अतिथि-सत्कार
8.20 ढपोरशंख

मगही भाषा और साहित्य पर शोध कार्य

पटना विश्वविद्यालय में प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध
1.1. कल्याणेश्वरी वर्मा, डॉ० - "मगही गीतों का साहित्यिक अध्ययन"
1.2. लक्ष्मण प्रसाद सिन्हा, डॉ० - "मगही की पदयोजना"
1.3. श्रीकान्त शास्त्री, डॉ० - "पटना और गया जिला में बोली जानेवाली मगही का भाषावैज्ञानिक और विश्लेषणात्मक अध्ययन"

1.4. सम्पत्ति अर्याणी, डॉ० - "मगही भाषा और साहित्य : एक अध्ययन"
1.5. सरयू प्रसाद, डॉ० - "A Descriptive Study of Magahi Phonology"

राँची विश्वविद्यालय में प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध
2.1. त्रिभुवन ओझा, डॉ० - "प्रमुख बिहारी बोलियों का तुलनात्मक अध्ययन"
2.2. शेषानन्द 'मधुकर', डॉ० - "आधुनिक कविता में बिम्ब विधान"

भागलपुर विश्वविद्यालय में प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध
3.1. नागेश्वर शर्मा, डॉ० - "मगही की लोक कथाएँ"

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध
4.1. युगेश्वर पाण्डेय, डॉ० - "मगही भाषा'

पुणे विश्वविद्यालय में प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध
 5.1. अनिल चन्द्र सिन्हा, डॉ० (1966) – “Phonology and Morphology of a Magahi Dialect”

मगध विश्वविद्यालय में प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध
6.1. अजय कुमार, डॉ० - "मगही लोकगाथाओं का सांस्कृतिक अध्ययन"
6.2. इनामुल हक़, डॉ० - "मगही लोककथाओं का साहित्यिक अनुशीलन"
6.3. इन्द्रदेव नारायण, डॉ० - "मगही दसकूटक : एक अनुशीलन"

6.4. इन्द्रदेव प्रसाद यादव, डॉ० - "मगही काव्य में विरह वर्णन"
6.5. उमाशंकर सिंह, डॉ० - "मगही एकांकी : एक अनुशीलन"

6.6. कुमार इन्द्रदेव, डॉ० - "मगही संयुक्त क्रियाओं का भाषावैज्ञानिक अध्ययन"

यह शोध-प्रबन्ध सन् 2007 में जानकी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हो चुका है । देखें - http://www.printsasia.com/BookDetails.aspx?Id=161137644


6.7. कुमार राजीव रंजन, डॉ० - "मगही की भाषावैज्ञानिक मीमांसा"
6.8. कुमारी शारदा शर्मा, डॉ० - "सूर्योपासना के परिप्रेक्ष्य में छठ गीतों का संकलन एवं मूल्यांकन"
6.9. कृष्णदेव पंडित, डॉ० - "मगही भाषा के भक्त्यात्मक गीत"

6.10. कृष्णनन्दन यादव, डॉ० - "मगही लोरकाइन का समाजशास्त्रीय अध्ययन"
6.11. जनकनन्दन प्रसाद सिंह, डॉ० - "भारतीय वाङ्मय में दंगवै साहित्य,संस्कृति और समाज"
6.12. दशई सिंह, डॉ० - "मगही ऋतु लोकगीतों का सांस्कृतिक एवं समाजशास्त्रीय अध्ययन"

6.13. देवनन्दन सिंह, डॉ० - "मगही राम-साहित्य का लोकतात्त्विक अध्ययन"
6.14. ब्रजनन्दन यादव, डॉ० - "मगही भाषा की लोकगाथाओं में लोरकाइन का स्थान"
6.15. ब्रजनन्दन सिंह, डॉ० - "मगही लोकनाट्यों का लोकतात्त्विक अध्ययन"

6.16. ब्रजमोहन पाण्डेय 'नलिन', डॉ० - "मगही का अर्थविज्ञान"
6.17. ब्रजेश कुमार राय, डॉ० - "मगही लोक साहित्य में सामासिक सांस्कृतिक तत्त्व"
6.18. राजेन्द प्रसाद, डॉ० - "मगही पहेलियों का अध्ययन"

6.19. राम प्रसाद सिंह, डॉ० - "मगही लोककथाओं का लोकतात्त्विक अध्ययन"
6.20. रामकृष्ण पाण्डेय, डॉ० - "मगही काव्य में बिम्ब योजना"
6.21. रामरतन प्रसाद, डॉ० - "मगही लोक साहित्य में लोकधर्म"

6.22. रामानुग्रह शर्मा, डॉ० - "नगही कहावतों का समाजशास्त्रीय एवं सांस्कृतिक अनुशीलन"
6.23. लालदेव प्रसाद सिंह, डॉ० - "मगही लोक साहित्यके सन्दर्भ में आर्थिक ढाँचा"
6.24. वीणा कुमारी, डॉ० - "मगही लोकगीतों में प्रेम सौन्दर्य"

6.25. शशि कुमार, डॉ० - "मगही काव्य में क्रान्ति की विचारधाराएँ"
6.26. शिवराम प्रसाद, डॉ० - "मगही पहेलियों का लोकतात्त्विक अध्ययन"
6.27. शिवशंकर पंडित, डॉ० - "पटना जिला के प्रचलित लोकगीतों का संग्रह एवं उनका सांस्कृतिक अध्ययन"

6.28. सत्यनारायण कुमार सिंह, डॉ० - "मगही लोककथाओं में जनजीवन की स्थिति"
6.29. सत्येन्द्र कुमार सिंह, डॉ० - "मगही के स्वरूप का विकासात्मक विश्लेषण"
6.30. सरोज कुमार त्रिपाठी, डॉ० - "मानक मगही का स्वरूप"

6.31. सविता कुमारी सिन्हा, डॉ० - "लोककथआओं की परम्परा में मगही लोरकाइन में व्यक्त लोकतात्त्विक मूल्य"
6.32. साधु यादव, डॉ० - "मगही लोककथाओं में राजा गोपीचन्द"

अन्य शोध कार्य
7.1. अज्ञात स्वेडेन की महिला - "मगही भाषा का अध्ययन"
7.2. अवध बिहारी पाठक, डॉ० - "मगही के विविध रूपों का भाषावैज्ञानिक अध्ययन"
7.3. उमेशचन्द्र मिश्र, डॉ० - "मगही क्रियापदों का भाषावैज्ञानिक अध्ययन"

7.4. कपिलदेव सिंह, स्वर्गीय - "मगही का आधुनिक साहित्य (प्रथम खण्ड)"
7.5. कृष्णदेव प्रसाद, स्वर्गीय - "मगही भाषा और उसका साहित्य"
7.6. कृष्णनारायण प्रसाद, डॉ० - "परिनिष्ठित मगही भाषा का वैज्ञानिक सर्वेक्षण"

7.7. कैलाश प्रसाद, डॉ० - "मगही लोककथाओं का अध्ययन"
7.8. चक्रधर शर्मा, डॉ० - "मगही सूक्तियाँ : एक अनुशीलन"
7.9. चन्द्रिका प्रसाद, डॉ० - "मगही लोकगाथाओं का अध्ययन"

7.10. जगदीश प्रसाद, डॉ० - "मगही कहावतों का विश्लेषणात्मक अध्ययन"
7.11. रामनाथ शर्मा, प्रो० - "आधुनिक मगही साहित्य"
7.12. लक्ष्मण शास्त्री, डॉ० - "मगही गीतों का समाजशास्त्रीय विश्लेषण"

7.13. शालिग्राम मिश्र 'निराला', डॉ० - "मगही लोकगीतों में अभिव्यक्त लोकजीवन"
7.14. शिवरानी, प्रो० - "मगही की कृषक एवं ग्रामोद्योग शब्दावली"