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Saturday, December 19, 2020

प्रबंध काव्य: सोनपरी - सर्ग 8

 प्रबंध काव्य: सोनपरी - सर्ग 8 

रचताहर:    लालमणि विक्रान्त 

 

आठवां सर्ग: सोआगत-सत्कार

 

'जिला श्रेष्ठ सम्मान मिलल त

गाँव के लोग के मन हरसइलन।

अप्पन मुखिया के सोआगत ला

गाँव के लोग प्रोग्राम बनइलन।

तय होल होली बाद एक दिन

सोआगत समारोह सभे करबइ।

समारोह में सभे गाँव के

मुखिया जी के जरूर बोलइबइ।

होली बितते शुरू होल तैयारी

मुखिया सुबोध के लोग बतइलन।

गुरूवार दिन सोआगत होतन

मुखिया जिला जवार के अइतन।

एम0एल0ए0साहेब भी अइतन

उनको सोआगत गाँव में होतइ।

सोआगत के पुरकश तैयारी

कोय तरह के कसर न रहतइ।

तइना त सुख-सरिता बहतइ।

 

मंच बनल समियाना भी हे

अउर सजल हे वंदनवार।

तोरण द्वार बनल हे ढेरों

गाँव खड़ा करके सिंगार।

एम0एल0ए0साहेब अइलन

शुरू होल सोआगत सत्कार।

बनल गुलेटन अध्यक्ष आज

उमड़ल सौंसे गाँव-परिवार।

सोआगत गान कइल गेल पहिले

फिन होलइ सोआगत भाषण।

एकर बाद एम0एल0ए0बोललन

आज खुशी से भरल समाज।

पढ़ल लोग अगुअइतन त

सच में अइतन रामराज।

मुखिया त सभे हइए हथ

बकि सुबोध-सन होबे त 

सभे दिन सुख के नदी बहे।

गांव समाज काहे कहियो

कोय प्रकार के दुख सहे।

बनो सुबोध-सन सभे मुखिया 

सभे के तब होतइ सत्कार।

इहे परपस से बनलइ हे

गाँव-गाँव ग्राम सरकार।

बकि आज के हालत कइसन

समझो अपने मन में बात।

लगे हम्मर देश-दुनिया में 

उतरल भ्रस्टन के बरियात।

सच में होबे जे पढ़ल-लिखल

उनका में नैतिकता के ग्यान।

नैतिकता बतलाबइ हरदम

रखो रीति-नीति के ध्यान।

बकि आज त स्वार्थ में मातल

जनहित के सभे राह भुलाल।

जनता भी घर में हे दुबकल

एकरे अखने हकइ मलाल।

सभे में जनहित भाव जगे

होबे सभे के सोआगत-सत्कार।

सभे बने सुबोध -सन मुखिया 

मंजिल जेकर सुखमय संसार।

देलन सुबोध के एम0एल0ए0

अप्पन हाथ माला पहनाय।

अब माला पहनाबय के

उमड़ल भीड़ मंच पर भाय।

एकर बाद सुबोध मंच से

कइलन जनता के संबोधन।

कहलन आज सभे मिलके

देलन दायित्व के भार बढ़ाय।

हमरो पाँव रहत नञ पाछू

हमहूं विकास पथ देबइ फरछाय।

एम0एल0ए0साहेब के साथ मिलल

हाई इसकुल भी अब बन जाय।

शिक्षा के सही रूप से

संकट के पर्वत होबे राय।

 

फिन कहलन सुबोध मुखिया जी

गाँव के दशा देख के हम्मर 

अंखियन से बरसइ हल लोर।

सोंचइत रहली कि पढ़-लिख के 

करब जरूर विकास के भोर।

कइसन होल जमाना अखने

माता मातृभूमि लोकभाषा

हो रहल शिकार हताशा के।

माय जलम देबइत हथी हमनी के

उनकरा काहे नञ रखे ख्याल।

गाँव जहाँ खेललऊँ-बढ़लऊँ

ओकरे त हइ दुखछल हाल।

लोकभाषा जे हइ हमनी के

ओकर विकास ला कहाँ मलाल।

इहे ला हम पढ़-लिखके भी

मुखिया बनइ के राह पकड़लूँ।

मुखिया बनके मातृभूमि के

सेवा ला हम राह बनइलूँ।

पढ़ल-लिखल लोग जादेतर

गाँव छोड़ शहर भागइ हथ।

गाँव के शहर बनाबइ के

सपना नञ मन में लाबइ हथ।

त बतबऽ ई कइसन शिक्षा 

मातृभूमि ला प्रेम नञ तनिको।

अप्पन सुख-सुविधा से मतलब

सुविधा जहाँ ओहइँ चलइ के।

इहे त हइ आज के शिक्षा।

पढ़-लिख के नौकरी सरकारी

सभे ला संभव हो न सकइ हे।

जनता जेतना देश में हथिन

उनकर सभे के इहे इच्छा।

शिक्षा में होबइ के चाही

स्वावलम्बन पर पुरकस जोर।

अउर अप्पन संस्कृति रक्षा ला

जगइ सभे में भाव पुरजोर।

सच बोलइ के भाव जगाबे

जनहित ला स्वारथ के त्याग।

तभिए जगतइ मानवता के

सच मानें में सच्चा भाग।

 

बनल गुलेटन अध्यक्ष जे हलन

कहलन उहो अप्पन बात।

मुखिया सुबोध के जयकारा से

उतरल खुशियन के बरियात।

जनहित जिनकर जीवन पथ हे

जनगण-मन हे उनके साथ।

अइसने लोगन के सपोट में

उठइ हे आज सभे के हाथ।

जय हो जय सुबोध मुखिया

सोनपरी के भी जय-जय।

जिनकर प्रेरणा से सुबोध 

बढ़इ हथ राह में होके अभय।

जिनकर प्रेरणा से सुबोध 

कइलन ग्राम विकास पुरजोर।

सोनपरी के संगत में 

व्यक्तित्व सुबोध के करइ इंजोर।

सोनपरी सुबोध मिलजुल के

गाँव के राह देखइलन।

अइसने के सभे कहे भगीरथ

गाँव विकास ला रहइ समर्पित।

बदलाव के अन्हाड़ बन सुबोध 

कइलन गाँव विकास अपरिमित।

हम कहइ ही विकास के सूरज

सोनपरी सुबोध बन अइलन।

गाँव के दशा-दिशा बदललइ 

खुशी गाँव में तब मुस्कइलन।

पढ़ल-लिखल के इहे मतलब

जे रोशनी के राज बनावे।

सभे खुशी त हमहूं खुशी

अइसन भाव दिल में जगाबे।

सोनपरी के संग सुबोध के

फिन से कर ला जयकारा।

हम्मर सुबोध अउ सोनपरी 

जनता के आँखियन के तारा।

होलइ समापन सत्कार सभा के

जन गण फिन कइलन जयकारा।

गेलन सभे घर अब अप्पन 

कहलन संकट से होल ओबारा।

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प्रबंध काव्य: सोनपरी - सर्ग 7

 प्रबंध काव्य: सोनपरी - सर्ग 7 

रचताहर:    लालमणि विक्रान्त 

 

सातवां सर्ग: गौरव गान

 

सोनपरी कहलन हर घर के

अंदर भी हम करब सुधार।

घर के अंदर शांति रहत नञ

तब कइसन सुखमय संसार।

दिल में होबइ निम्मन विचार

निम्मन तब होतइ आचार।

दिल में जब विचार के सूरज

उगत त सुखी होत संसार।

 

 इसकुल में होबइ पढ़ाय त

एकर मिलइ हे का परिणाम?

संस्कार बचवन में आबइ

अइसन शिक्षा के हे काम।

शिक्षा जे सबके पढ़बइ

मद्य निषेध के निम्मन पाठ।

सरकारी फरमान भी हे ई

तभियो नञ सुधरल हइ चाल।

का करतइ सरकार इहाँ 

जब ग्राम सरकार नञ धरतइ ध्यान।

 

गाँव गली नाली सुधरइ से

गाँव के हाल सुधरतइ नञ।

जब तक सुधरत नञ विचार त

असली हाल सुधरतइ नञ।

सभे तरह से बात सोंच के

ओकरा के जमीन पर लाबो।

तभिए राम राज के सपना

सही-सही धरती पर पाबो।

 

अतनइ में अइली रामपरी

रोबइत -धोबइत कपसइत अइली।

कहे लगली कि हम्मर जिनगी

अब थोड़के दिन के रहलो।

जेकरा पाल पोस हम कइलूं

आस लगइलूं छांह बनत।

भर-पेट भोजन पर भी आफत

दिन-भर बात बोली के सालन।

कइसे कटत बुढ़ारी हम्मर

अब अन्हार सूझइत हो हमरा।

इहे कि एक्का ठो बेटा 

दोसर कउन सहारा देत।

इहो हर दिन तंग करइ हो।

कहइ हे बुढ़िया मर तू जो।

अप्पन हाथ गर मौत रहइ त

इहो बात से पगड़ी हान।

कइसे कटत अउर जिनगी अब

काम करइ नञ हम्मर दिमाग।

 

कहलन मुखिया जी तू ठहरो

हम्मर जिनगी में नञ हहरो।

एकरो अब हम करब उपाय।

माय-बाप के तंग करत जे

ओकरा देबइ सजा सुनाय।

गाँव के इज्जत के सबाल हे

कइसे कोय देखत रह जाय।

माय-बाप जे जलम देबइ हथ

उनकर इज्जत जे नञ करतइ।

अइसन लोगन के समाज में 

हुक्का -पानी बंद करइबइ।

माय-बाप देवी देवता हथ।

इनकर आशीर्वाद बिना कोय

जिनगी में कइसे इज्जत पाय।

 

हम सौंसे गाँव में देबइ

अइसन बात ला ढोल पिटबाय।

माय-बाप के जे नञ सेवा करतइ

ओकरा होतइ संकट भाय।

सरकारी सुविधा से वंचित

करइ के करबइ हमें उपाय।

अनतइ में आ गेलन सोनपरी 

कहलन चलो अभी बतियाम।

तोहर बेटा अउर पुतोहु के

चलो अभी चल के समझाम।

आदमीयत नञ हे तनिको-सन

आदमी त कउन काम के।

अइसन के समाज में इज्जत 

मिलइ हे त विधि हे वाम।

कहलन सोनपरी मंगरू से

बोलो मंगरू काहे अइसन

अप्पन माय-बाप के दिक्कत

देबइ में तू का पाबइ हा।

सौंसे गाँव में कान न देल जाय

अइसन कइला से कइसन

सुख पाबइ हा तू ही बोलो।

 

हमें कहइ ही कि जिनगी में 

प्रेम भाव के रस तू घोलो।

बकि नञ सुनबा बात हम्मर त

हमरो जे करइ के करिए देबो।

तोहर माय-बाप न केवल

सभे माय-बाप के संकट

अउर तखनो जब होय बुढ़ारी

देख के तू उनकर लाचारी

उनका संकट में डालइ हो।

तोहरो बेटा त देखइत हो

तोहरो अइतो जरूर बुढ़ारी।

संकट झेलइ के तोहरो त

आबइए वाला हो पारी।

 

बाप-माय अनुभव के खजाना

संकट में उपयोग करइ के

समझो हम्मर कहल बात के

नञ तू बनो बात के अढ़री

बोलो कि कुछ समझ में अइलो।

मंगरू त भावुक हो गेलइ।

अंखियन से ढरकइत आँसू

दुन्हू गाल पर ढरक रहइ हल।

 

जइसे ई अंसुवन के बून्द

नञ अइसन होत बात कहइ हल।

कहके चलली सोनपरी।

चेहरा उनकर तमतमाल हल।

अँखियन भी हो गेल लाल हल

रपरपाल घर जा रहली हल

मिल गेल राह में दीनू देवर।

कहलन भौजी का होलइ कि

गजब रूप हो गेल हे तोहर।

के का कहलन बोलो हमरा

कउन काम जे हम नञ करबइ।

भौजी के खातिर कुछ भी 

हम नञ केकरो से भी डरबइ।

कहलन सोनपरी देवर जी

मंगरू के घर से लौटइत ही

माय-बाप के तंग करइ हे।

ओकरे समझा लौटइत ही हम।

अउर न बात कुछ कि हम कहियो

चलो घरे सभे बात बतइबो।

 

तोहरो अब हम काम बतइबो

गाँव में अइसन जे भी करतन

 उनकर हमरा नाम बतइहा।

बूढ़ बुजुर्ग के कष्ट होबइ नञ

एकर तनी हिसाब तू रखिहा।

सभे रहथ गाँव में सुख से

इहे हो हम्मर कहनाम।

जे नञ सुनथुन बात तोहर त

 उनकर घर हम खुद से जाम।

बात होबइत घर पहुंच गेली।

डाकिया करइत हलन इन्तजार।

डाकिया चिट्ठी थमा देलन 

चललन अप्पन काम के राह।

चिट्ठी खोल पढ़इ लगलन

डी0 एम0 साहेब के चिट्ठी हल।

डी0 एम0 साहेब कहलन हल कि

मुखिया सुबोध के करब सम्मान 

जिला स्थापना दिवस के दिन।

अइसन मुखिया होबे त

जन गण ला हो जाय सुदिन।

 

स्थापना दिवस पर सजल-धजल हल

जिला मुख्यालय त पुरजोर।

होबइवला हे आज काजकरम 

सौंसे जिला में हल एकर शोर।

मुखिया सुबोध अउ सोनपरी 

दुन्नू पहुंचला समय से पहिले

घूम-घूम के देखइत हलन

तरह-तरह के हल इस्टाॅल।

बड़गो भीड़ जमल हल सगरो

अउर सजल हल बगल के माॅल।

समय से डी0एम0 साहेब अइलन

काजकरम शुरू हो गेल 

स्वागत गान शुरू हो गेलन

जइसे रहे कोकिल के तान।

सहे-सहे बढ़ल काजकरम

मुखिया सुबोध के होलन पुकार

सोनपरी भी बढ़ली सुबोध संग।

डी0एम0 साहेब कहला कि

सुबोध-सन हमरा मुखिया चाही।

होबत गाँव-गाँव में पसरल

सभे लोग के दूर तबाही।

पढ़-लिख के सुबोध जी

व्रत देलन कि बनबइ मुखिया।

अउर गाँव के लोग भी

मुखिया होबइ के मौका देलन।

मुखिया के पद पाके सुबोध

अप्पन जिला में रंग जमइलन।

अप्पन गाँव पंचायत के खातिर

अप्पन लूर अकिल अजमइलन।

 

'जिला श्रेष्ठ सम्मान ' देवइत ही

मुखिया सुबोध के हम आज।

अइसने मुखिया होबथ सभे त

सफल हो जइतन ग्राम स्वराज।

ग्राम स्वराज सफल होतइ त

अइतइ धरती पर फिन राम राज।

पढ़-लिख के भी लोग मूढ़ हथ

समझ -बूझ से रहइ न काम।

पढ़-लिख के सुबोध अपनइलन

रस्ता सुगम अउर अभिराम।

अइसने समझ होबइ सभे के

सुखमय होबइ हम्मर समाज।

अइसने लोग के सिर पर

होबइ के चाही सोना के ताज।

अइसने लोगन के गूंजत

धरती पर गौरव के गान।

अइसने लोगन के बल से

भारत फिन से बनत महान।

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