विजेट आपके ब्लॉग पर

Thursday, November 27, 2014

अपराध आउ दंड - भाग – 1 ; अध्याय – 5



अपराध आउ दंड

भाग – 1

अध्याय – 5

"अरे हाँ, हम तो हाल में रज़ुमिख़िन के पास काम माँगे खातिर जायके सोचब करऽ हलिअइ, कि ऊ हमरा कहीं टीसनी पढ़ावे के काम दिलवा दे, चाहे आउ दोसरा कुछ ...", रस्कोलनिकोव के ध्यान में अइलइ, "लेकिन अभी हमरा ऊ कइसे मदत कर सकतइ ? मान लेल जाय कि ऊ हमरा लगी टीसनी पढ़ावे के इंतजाम कर दे हइ, मान लेल जाय कि ऊ अपन आखरी कोपेक के भी हिस्सेदार बना दे हइ, अगर ओकरा पास कोय कोपेक रहइ तो,  ताकि हम जुत्तो खरीद सकिअइ, आउ पोशाको दुरुस्त कर लिअइ ताकि हम टीसनी पढ़ावे जाय के लायक हो जइअइ ... हूँ ... ठीक हइ, लेकिन एकर आगे ? पाँच कोपेक के सिक्का से हम की करबइ ? की अखनी हमरा वास्तव में ओकर जरूरत हके ? सच में, रज़ुमिख़िन के पास जाना तो हास्यास्पद हकइ ..."

ई सवाल, कि ऊ रज़ुमिख़िन के पास काहे लगी जा रहल हल, ओकरा ओकरो से जादे परेशान करब करऽ हलइ, जेतना कि ओकरा खुद्दे आभास हलइ; बड़ी बेचैनी से ऊ एकरा में कोय खतरनाक अर्थ खोजब करऽ हलइ, हलाँकि देखे में ई बहुत सधारण बात हलइ ।

"त की वास्तव में हम खाली रज़ुमिख़िन के मदत से सब कुछ ठीक-ठाक कर लेवे ल चाहऽ हलिअइ आउ सब कुछ के समाधान रज़ुमिख़िन में पइलिए हल ?" ऊ अचरज से खुद के पुछलकइ ।
ऊ सोच रहले हल आउ अपन निरार रगड़ रहले हल, आउ विचित्र बात हलइ कि कइसूँ संयोग से, अचानक आउ अपने आप, बहुत देर सोचला के बाद, ओकर दिमाग में एगो अनोखा विचार अइलइ ।

"हूँ ... रज़ुमिख़िन के पास", ऊ अचानक बोललइ, बिलकुल शांत भाव से, मानूँ कोय अन्तिम दृढ़ निश्चय के अर्थ में, "रज़ुमिख़िन के पास तो जइबइ, ई पक्का हइ ... लेकिन - लेकिन अभी नयँ ... हम ओकरा हीं ... दोसरा दिन, ओक्कर बाद जइबइ, जब ऊ काम पूरा हो जइतइ आउ जब सब कुछ नया सिरा से चालू होतइ ..."

आउ अचानक ऊ होश में आ गेलइ ।

"ओकर बाद", ऊ बेंच पर से उछलते चिल्ला उठलइ, "लेकिन वास्तव में अइसन होतइ ? की वास्तव में संभव हइ कि अइसन होतइ ?"
ऊ बेंच छोड़के रवाना हो गेलइ, आउ लगभग दौड़ते गेलइ; ओकर इरादा वापिस घर तरफ जायके हलइ, लेकिन घर जायके नाम से ओकरा अचानक बहुत घृणा होवे लगलइ - हुआँ तो, कोनमा में, ई अनवारी में तो अइकी एक महिन्ना से पकिए रहले हल, ओहे से ऊ नाक के सीध में रवाना होलइ ।

ओकर घबराहट के सिहरन एक प्रकार के बोखार के रूप धारण कर लेलकइ; ओकरा कँपकँपी के भी अनुभव हो रहले हल; अइसन गरमी में ओकरा ठंढ लग रहले हल । मानूँ प्रयास करके, लगभग अनजाने में, कोय आन्तरिक आवश्यकता के कारण, ऊ अपन सामने आवे वला सब कुछ के ध्यान से देखे लगइ, मानूँ अपन ध्यान हटावे खातिर जोर लगाके कुछ ढूँढ़ रहल होवे, लेकिन एकरा में ओकरा बुरा तरह से विफलता के मुँह देखे पड़इ, आउ हरेक पल ऊ सोच में डूब जाय । आउ जब चौंकके ऊ फेर सिर उठाबइ आउ चारों तरफ नजर दौड़ाबइ, त तुरतहीं भूल जाय कि अभी ऊ की सोच रहले हल आउ एहो कि ऊ कहाँ जा रहले हल । ई तरह से ऊ पूरा वसिलेव्स्की टापू पार कर गेलइ, आउ छोटकी नेवा नद्दी पहुँच गेलइ, पुल पार कइलकइ आउ टपुअन [1] तरफ मुड़ गेलइ । हरियाली आउ ताजगी शुरू में ओकर थकल-माँदल आँख के अच्छा लगलइ, जे शहर के धूरी-गरदा, चूनापुताई, आउ बड़गर-बड़गर, संकीर्ण आउ चारों तरफ से घेरले एक प्रकार से बोझ नियन डालले मकान सब के अभ्यस्त हलइ । हियाँ न तो कोय दमघोंटू बंद-बंद वातावरण, न तो बदबू, आउ न तो कोय कलाली हलइ । लेकिन जल्दीए ई नयका, सुखद अनुभव पीड़ादायक आउ चिड़चिड़ाहट पैदा करे वला हो गेलइ । कभी ऊ हरियाली के बीच सुसज्जित दाचा (उपनगरीय या देहाती बंगला, ग्रीष्मगृह) के सामने रुक जाय, छरदेवाली के पार एकटक देखते रहइ, दूर के बालकोनी (छज्जा) आउ टेरेस (खुलल छत) पर सज्जल-धज्जल औरतियन पर नजर डालइ, आउ बाग में दौड़ते बुतरुअन पर । फूल पर ओकर ध्यान विशेष रूप से आकर्षित होवइ; ओकरा ऊ जादे देरी तक देखते रहइ । ओकरा शानदार कल्यास्का (बग्घी), घोड़ा पर सवार औरत आउ मरद से भेंट होबइ; ओकन्हीं के ऊ उत्सुकता से देखते रहइ आउ एकर पहिले कि ओकन्हीं नजर से ओझल हो जाय, ऊ ओकन्हीं के भुलियो जाय । एक तुरी ऊ रुक गेलइ आउ अपन पइसा गिन्ने लगलइ - पता चललइ कि लगभग तीस कोपेक हकइ । "बीस पुलिसवला के, तीन नस्तास्या के चिट्ठी खातिर - मतलब कि मरमेलादोव परिवार के कल्हे सनतालीस कोपेक, चाहे पचास देलिअइ", नयँ मालूम काहे लगी ऊ हिसाब करते सोचलकइ, लेकिन तुरते ऊ एहो भूल गेलइ कि जेभी से पइसा काहे लगी निकसलके हल । ओकरा एकरा बारे तब आद पड़लइ, जब ऊ एगो भोजनालय के सामने से गुजर रहले हल, जे एगो ढाबा के रूप में हलइ, आउ ओकरा लगलइ कि भूख लगल हके । ढाबा में जाके ऊ एक गिलास वोदका पिलकइ आउ एक प्रकार के समोसा खइलकइ । एकरा ऊ फेर रस्ता में चलते-चलते पूरा खइलकइ । ऊ बहुत समय के बाद वोदका पिलके हल, ओहे से तुरते ओकरा चढ़ गेलइ, हलाँकि ऊ कुल्लम एक्के गिलास पिलके हल । ओकरा गोड़ अचानक भारी लगे लगलइ, आउ ओकरा जोर से झुकनी बरे लगलइ । ऊ घर जाय लगलइ; लेकिन पित्रोव्स्की टापू तक पहुँचला पर ऊ रुक गेलइ, काहेकि ऊ पूरा थक चुकले हल, रस्ता पर से अलगे हटके झाड़ी में घुस गेलइ, घास पर पड़ गेलइ आउ पल भर में ओकरा नीन आ गेलइ ।

बेमार हालत में सपना के ई विशेषता होवऽ हइ कि एकरा में अकसर असाधारण प्रधानता, स्पष्टता आउ वास्तविकता के विलक्षण समानता दृष्टिगोचर होवऽ हइ । कभी-कभी भयानक तस्वीर बन्नऽ हइ, लेकिन एकरा में प्रस्तुतीकरण के वातावरण आउ पूरा प्रक्रिया एतना संभव लगऽ हइ, आउ विवरण एतना सूक्ष्म, अप्रत्याशित, लेकिन कला के दृष्टि से चित्र के समग्र पूर्णता के साथ सुसंगत होवऽ हइ, कि स्वप्नद्रष्टा जागरित अवस्था में ई सब के कल्पना नयँ कर सकऽ हइ, चाहे ऊ पुश्किन अथवा तुर्गेनेव [2] जइसन कलाकार काहे नयँ होवे । अइसन स्वप्न, रुग्ण स्वप्न, हमेशे दीर्घ अवधि तक स्मृति-पटल पर अंकित रहऽ हइ आउ व्यक्ति के अस्तव्यस्त आउ पहिलहीं से उत्तेजित शरीर-संरचना पर बहुत गहरा छाप छोड़ऽ हइ ।

रस्कोलनिकोव एगो भयानक सपना [3] देखलकइ । ओकरा सपना में अप्पन बचपन देखाय देलकइ, जब ऊ छोटका शहर में हलइ । देखलकइ कि ओकर उमर कोय सात साल के हइ आउ त्योहार के दिन, साँझ के अप्पन बाऊ साथे उपनगरीय क्षेत्र (देहात) में घूम रहल ह । मौसम धुंधला आउ दिन उमस वला, आउ देहात बिलकुल ओइसने, जइसन ओकर स्मृति-पटल पर हलइ - बल्कि ओकर स्मृति में ऊ चित्र बहुत जादहीं मिट चुकले हल, ओकरा अपेक्षा कहीं स्पष्ट ई सपना में देखाय देब करऽ हलइ । ई छोटका शहर बिलकुल खुला हइ, मानूँ हथेली पर होवे; चारो बगल में कोय भिसा के पेड़ (willow) नयँ; कहीं तो बहुत दूर, अकास के अन्तिम छोर (अर्थात् क्षितिज) पर, एगो छोटगर जंगल के कार लाइन देखाय दे हइ । शहर के अन्तिम किचन गार्डेन (पाकशाला उद्यान) से कुछ डेग आगे एगो कलाली, बड़गर कलाली, हइ, जे हमेशे ओकरा पर बहुत अप्रिय भावना उत्पन्न करऽ हलइ, हियाँ तक कि डरो लगऽ हलइ, जब ऊ अपन बाऊ साथे टहलते ओज्जा से गुजरऽ हलइ । हुआँ हमेशे अइसन भीड़ रहऽ हलइ, एतना शोर मचावऽ हलइ, ठहाका लगावऽ हलइ, एतना भद्दा तरह से आउ भर्राल गला से गावऽ हलइ आउ एतना अकसर झगड़ते रहऽ हलइ; कलाली के आसपास हमेशे अइसन पियक्कड़ आउ भयंकर शकल वला अवारागर्दी करते रहऽ हलइ ... ओकन्हीं से भेंट हो गेला पर ऊ अपन बाऊ से कसके चिपक जा हलइ आउ ओकर पूरा देह कँप्पे लगऽ हलइ । कलाली के पास के रस्ता, जे एगो कच्चा सड़क हलइ, हमेशे धूरी-गरदा से भरल रहऽ हलइ, आउ ओकरा पर के धूरी हमेशे एतना कार-कार । ई चक्कर मारते आगे जा हइ आउ कोय तीन सो डेग के बाद दहिना तरफ मुड़के शहर के कब्रिस्तान चल जा हइ । कब्रिस्तान के बीच में हरियर रंग के गुंबद वला एगो पत्थल के गिरजाघर हलइ, जाहाँ ऊ अपन माय-बाप के साथ साल में करीब दू तुरी प्रार्थना सभा खातिर जा हलइ, जब ओकर मम्मा (दादी) के आद में विशेष प्रार्थना के आयोजन होवऽ हलइ, जे बहुत पहिलहीं मर गेले हल, आउ जेकरा ऊ कभियो नयँ देखलके हल । ई अवसर पर ओकन्हीं अपन साथ एगो उज्जर थाली में कपड़ा से लपेटके कुत्या [4] लेके जा हलइ, आ कुत्या चीनी मिलावल रहऽ हलइ, जे चाउर आउ किशमिश के बन्नल होवऽ हलइ, जेकरा में किशमिशिया के दाबके क्रॉस के अकार देल रहऽ हलइ । ओकरा बड़ी लगाव हलइ ई गिरजाघर से, आउ ओकरा में पुरनका प्रतिमा सब (icons) से, जे अधिकतर बिन फ्रेम के हलइ, आउ बुड्ढा पादरी से, जेकर सिर हिलते रहऽ हलइ । ओकर मम्मा के कबर के पास में, जेकरा पर पत्तर लगल हलइ, एगो छोटगर कबर हलइ ओकर छोटका भाय के, जे छो महिन्ना के उमर में मर गेले हल आउ जेकरा बारे ऊ कुच्छो नयँ जानऽ हलइ, आउ कुछ आद नयँ हलइ, लेकिन ऊ सुनलके हल कि ओकर एगो छोट्टे गो भाय हलइ, आउ हर तुरी, जब ऊ कब्रिस्तान जा हलइ, त बड़ी आस्था आउ श्रद्धा से कबर पर खुद के क्रॉस करऽ हलइ, ओकरा पर झुकके ओकरा चुम्मऽ हलइ । आउ अभी ऊ सपनाब करऽ हइ - ऊ अपन बाप के साथ कब्रिस्तान के सड़क पर जा रहल ह आउ कलाली बिजुन से होके गुजर रहल ह; ऊ बाप के हाथ से पकड़ले हइ आउ डर से कलाली तरफ देख रहल ह । एगो विशेष परिस्थिति ओकर ध्यान खींच ले हइ - ई समय हुआँ मानूँ कोय उत्सव हइ, रंग-बिरंग के पोशाक पेन्हले निम्न मध्यवर्गीय लोग, किसैनी, आउ ओकन्हीं के मरद सब, आउ हर तरह के लुच्चा-लफंगा लोग । सब कोय पीयल हकइ, सब कोय गा रहले ह, आउ कलाली के ड्योढ़ी के पास एगो गाड़ी खड़ी हइ, लेकिन विचित्र गाड़ी । ई ओइसनकन बड़गर गाड़ी में से एक हलइ, जेकरा में बड़गर-बड़गर ठेला के घोड़ा जोतल जा हइ आउ जेकरा में माल, चाहे दारू के पीपा ढोवल जा हइ । ओकरा अइसन बड़गर ठेला वला घोड़वन देखे में बड़ी अच्छा लगऽ हलइ, जेकर गरदन पर बड़का-बड़का बाल, आउ मोटगर-मोटगर गोड़ रहऽ हलइ, आउ जे अराम से अपन सधल चाल में मानूँ एगो पूरा पहड़वे ढोले जा हलइ, बिन कोय तनाव के, मानूँ ओकन्हीं के बिन भार के चल्ले के अपेक्षा भार के साथ चल्ले में जादे असान बुझा हलइ । लेकिन अभी, विचित्र बात हलइ, अइसन बड़का गो गाड़ी में जोतल हलइ एगो छोटगर, मरियल, हलका लाल रंग के, किसान के घोड़ी, ओइसनकन में से एक, जेकरा ऊ अकसर देखलके हल कि कइसे कभी-कभी जरामन के लकड़ी, चाहे पोवार के भारी बोझ के पूरा जोर लगाके खिंच्चऽ हइ, खास करके तब, जब गाड़ी कादो में, चाहे लीक पर अटक जा हइ, आउ अइसन हालत में किसान लोग ओकन्हीं के एतना निर्दयता से, एतना कष्टदायक रूप से, चाबुक से पिट्टऽ हइ, कभी-कभी थुथुनमो आउ अँखियो पर, आउ ओकरा ई सब देखे पर एतना तरस, एतना तरस  आवऽ हइ, कि ओकरा रोवाय छुट्टे पर हो जा हइ, आउ ओकर मइया ओकरा खिड़किया भिर से हमेशे दूर हटा ले हइ । आउ अचानक शोरगुल होवे लगऽ हइ - कलाली में से चिल्लइते, गइते, बलालाइका लेले, पीयल, जादे पीयल, बड़गर अइसनकन किसान लोग बाहर निकसऽ हइ, जे लाल आउ नीला कमीज पेन्हले आउ आर्माक (कपड़ा के बन्नल लम्मा कोट)  कन्हा पर डालले हइ । "बइठऽ, सब कोय बइठ जा !" एगो चिल्ला हइ, जे अभियो नवयुवक हइ, जेकर गरदन मोटगर आउ मांसल, गाजर नियन लाल चेहरा हइ, "सबके पहुँचइबो, बइठ जइते जा !"

लेकिन तभिए ठहाका आउ आश्चर्य के उद्गार सुनाय दे हइ -
"अइसन घोड़ी आउ पहुँचइतइ !"
"अउ तूँ मिकोल्का, तोर दिमाग ठिकाने त हउ - अइसनकी घोड़िया के अइसन गाड़ी में जोतलँऽ हँ !"
"आउ, ई ललकी करीब बीस बरस के तो हइए होतइ, भाय !"
"बइठ जइते जा, सबके पहुँचइबो !" मिकोल्का फेर से चिल्ला हइ, आउ उछलके गाड़ी में पहिले जा हइ, लगाम हाथ में ले हइ आउ गाड़ी के आगू में बिलकुल सीधा खड़ा हो जा हइ ।
"कुम्मैत (लाखी, bay) अभी-अभी मतवेय के साथ गेलो", ऊ गाड़ी से चिल्लइलइ, "आ ई घोड़िया तो, भाय जी, खाली हमर दिल चीरऽ हके - लगऽ हके कि एकरा जान से मार दिअइ, बेकार में खाली ई खा हइ । हम कह रहलियो ह, बइठ जइते जा ! हम एकरा सरपट भगइबो ! सरपट जइतो !" आउ ऊ हथवा में चाबुक ले हइ, आउ खुशी से तैयारी करऽ हइ ललकी के डेंगावे के ।

"हाँ, बइठते जा !", भीड़ में ठहाका लगऽ हइ । "सुन्नऽ हो, सरपट जइतइ !"
"अरे ई दस बरस में तो, लगऽ हइ, कभी सरपट नयँ उछललइ ।"
"उछलतइ !"
"फिकिर नयँ, भाय, हरेक जन चाबुक लेके आवऽ, तैयार हो जा !"
"त चलते चलऽ ! लगा चाबुक !"

सब कोय मिकोल्का के गाड़ी में चढ़ जा हइ - ठहाका लगइते आउ मजाक करते । करीब छो अदमी चढ़लइ, आउ अभियो खाली जग्गह हकइ बइठे लगी । ओकन्हीं अपने साथ एगो मोटगर आउ गुलाबी गाल वली देहाती औरत के चढ़ा लेते जा हइ । ऊ लाल सूती कपड़ा पेन्हले हइ, सिर पर काँच के मनका से नक्काशी कइल किचका [5], गोड़ में जुत्ती पेन्हले, नट (nut) तोड़ऽ हइ आउ खिलखिला हइ । चारों तरफ के भीड़ में भी लोग हँस रहले ह, आउ वास्तव में कइसे नयँ हँसते हल - अइसन मरियल घोड़ी आउ अइसन भारी बोझ के सरपट दौड़के ढोतइ ! गाड़ी में के दू नवयुवक तुरते कोड़ा ले ले हइ, ताकि मिकोल्का के मदत कर सकइ । "चल !" के अवाज सुनाय दे हइ, घोड़िया अपन पूरा जोर लगाके तीरऽ हइ, लेकिन सरपट दौड़े के तो बाते दूर, मोसकिल से डेगे-डेगे चल पावऽ हइ, खाली ठुमक-ठुमक के गोड़ आगे करऽ हइ, कराहऽ हइ आउ तीन चाबुक के मार से देहिया सिकोड़ ले हइ, जे ओकरा पर पत्थल (ओला) नियन पड़ रहले ह । गाड़ी आउ भीड़ में हँस्सी दोगना हो जा हइ, लेकिन मिकोल्का गोसा जा हइ आउ गोस्सा में घोड़िया के आउ जल्दी-जल्दी चाबुक से मारे लगऽ हइ, सोचऽ हइ कि ऊ वास्तव में सरपट दौड़तइ ।

"जरी हमरो आवे द भइया !" भीड़ में से एगो जोश में आल नौजवान चिल्ला हइ ।
"बइठ जइते जा ! सब कोय बइठ जइते जा !" मिकोल्का चिल्ला हइ, "सबके ले चलतो । एकरा तो हम चाबुक से पीट-पीटके जान मार देबइ !" आउ ऊ चाबुक मार रहल ह, मार रहल ह, आउ क्रोधावेश में ओकरा अब समझ में नयँ आवऽ हइ कि कउची से ओकरा डेंगावूँ ।
"बाऊ, बाऊ", ऊ अपन बाप के चिल्लाके कहऽ हइ, "बाऊ, ओकन्हीं की करब करऽ हइ ? बाऊ, बेचारी घोड़िया के पिट्टब करऽ हइ !"

"चल, चल !", बाप बोलऽ हइ, "पीयल हकइ, बेवकूफ हइ, शरारत कर रहले ह - चल, ओद्धिर मत देख !" आउ ओकरा हुआँ से दूर ले जाय ल चाहऽ हइ, लेकिन ओकर हाथ से ऊ अपना के छोड़ा ले हइ, आउ खुद के बारे बिन ध्यान देले, ऊ घोड़िया तरफ दौड़के जा हइ । लेकिन बेचारी ललकी के बुरा हालत हइ । ऊ हँफ रहले ह, रुक जा हइ, फेर तीरऽ हइ, आउ गिरते-गिरते बच्चऽ हइ ।

"एतना चाबुक लगा कि मर जाय !" मिकोल्का चिल्ला हइ, "ई एकरे काबिल हइ । मार चाबुक के मारिए देबउ हम !"
"तोरा की हो गेलो ह, ईसाई हँ, कि नयँ, शैतान कहीं के !" भीड़ में से एगो बुढ़उ चिल्लाके बोलऽ हइ ।
"कहीं कोय देखलके ह, कि एतना छोटगर घोड़ी एतना बड़का गो बोझ ढोलके ह ?" दोसरा कोय बोललइ ।
"जान मार देमहीं तूँ !" तेसरा चिल्ला हइ ।
"तूँ बीच में टाँग नयँ अड़ावऽ ! ई हमर सम्पत्ति हके ! जे हमर मन होबत, ऊ करम । आउ लोग बइठते जा ! सब कोय बइठते जा ! हम चाहऽ हिअइ कि ई बिलकुल सरपट चलइ ! ..."

अचानक एक्के साथ सबके ठहाका सुनाय दे हइ आउ दोसर सब अवाज के शांत कर दे हइ - घोड़िया त्वरित प्रहार नयँ सहन कर सकलइ आउ अपन बेजान टाँग से लेताड़ी मारे लगलइ । बुढ़उ भी अपन हँस्सी नयँ रोक पइलकइ । आउ वास्तव में - अइसन मरियल घोड़ी, आ तइयो लेताड़ी मारऽ हइ !

भीड़ में से दूगो नौजवान चाबुक लेके घोड़िया तरफ ओकरा दुन्नु बगल से मारे खातिर दौड़ऽ हइ । हरेक अपन बगल तरफ दौड़के जा हइ ।
"ओकर थुथुनमा पर आउ अँखिया पर मार, अँखिया पर !" [6] मिकोल्का चिल्ला हइ ।

"जरी कोय गाना हो जाय, भाय लोग !" गाड़ी में से कोय चिल्ला हइ, आउ गाड़ी में के सब लोग ओकरा में शामिल हो जा हइ । रंगरेली वला गीत सुनाय देवे लगऽ हइ, तंबूरा झनझनाय लगऽ हइ, आउ हरेक टेक (refrain) पर सीटी बज्जऽ हइ । देहाती औरत नट तोड़ऽ हइ आउ खिलखिला हइ ।

... ऊ घोड़िया के नगीच दौड़ रहले ह, दौड़के ओकर आगू निकस जा हइ, ऊ देखऽ हइ कि कइसे लोग ओकर अँखिया पर चोट कर रहले ह, ठीक अँखिया पर ! ऊ कन रहले ह । ओकर दिल उठके गला तक आल हइ, लोर बह रहले ह । मार के एक झटका ओकर चेहरवा पर लग्गऽ हइ; ऊ एकरा नयँ अनुभव करऽ हइ, ऊ अपन हथवा के ऐंठऽ हइ, चिल्ला हइ, ऊ उजरका बाल आउ दाढ़ी वला बुढ़उ के पास तेजी से जा हइ, जे सिर हिलाब करऽ हइ आउ ई सब कुछ के निंदा करऽ हइ । एगो औरत ओकर हाथ पकड़ ले हइ आउ ओकरा दूर ले जाय ल चाहऽ हइ; लेकिन ऊ झटकके अपन हाथ छोड़ा ले हइ आउ फेर से घोड़िया दने दौड़के जा हइ । ऊ अब आखरी साँस लेब करऽ हइ, लेकिन फेर से लेताड़ी मारे लगऽ हइ ।

"अच्छऽ शैतान के बच्ची !" मिकोल्का गोस्सा से चिल्ला हइ । ऊ चाबुक फेंक दे हइ, झुक जा हइ आउ गड़िया के निच्चे से घींचते-घींचते एगो लमगर आउ मोटगर बम [7] निकासऽ हइ, ओकर अन्तिम छोर के दुन्नु हथवा से पकड़ ले हइ आउ जोर लगाके ललकी के उपरे भाँजे लगऽ हइ ।

"अरे, हड्डी-पसली तोड़ देतइ !" चारों तरफ से लोग चिल्ला हइ ।
"अरे, मार देतइ !"
"ई हम्मर सम्पत्ति हके !" मिकोल्का चिल्ला हइ आउ पूरा घुमाके बम निच्चे छोड़ दे हइ । एगो भारी चोट के अवाज सुनाय दे हइ ।
"अरे, मार ओकरा, मार ! रुक काहे ल गेलँऽ !" भीड़ से लोग चिल्ला हइ ।

आउ मिकोल्का दोसरा तुरी भँजलकइ, आउ दोसर चोट ऊ अभागी घोड़िया के समुच्चे पीठिया पर लगलइ । ओकर पिछला दुन्नु गोड़वा निच्चे धँस जा हइ, लेकिन फेर उछलके उपरे हो जा हइ आउ ऊ घिंच्चऽ हइ, आउ अपन बचल-खुचल पूरा ताकत लगाके एद्धिर-ओद्धिर घिंच्चऽ हइ, ताकि गड़िया आगे बढ़इ; लेकिन सगरो से छो चाबुक ओकरा पर पड़ऽ हइ, आउ बम फेर से उपरे उट्ठऽ हइ आउ तेसरा तुरी ओकरा पर पड़ऽ हइ, बाद में चौठा तुरी नियमित लय के साथ । मिकोल्का गोस्सा में आ जा हइ, कि ऊ एक्के चोट में ओकरा जान मार देवे में सक्षम नयँ हइ ।

"बड़ी मजबूत हकइ !" चारों तरफ से लोग चिल्ला हइ ।
"अब ऊ पक्का पड़ जइतइ, भाय लोग, अइकी ओकर अन्त !" भीड़ में से एगो उत्साही चिल्ला हइ ।
"अरे देखऽ हँ की, एगो कुल्हाड़ी लाव ! ओकरा से एक्के तुरी में खतम कर दे !" तेसरा चिल्ला हइ ।
"ए, तोरा मच्छर खाव ! किनारे हट !" मिकोल्का उग्र होके चिल्ला हइ, बम फेंक दे हइ, फेर से गड़िया में झुक जा हइ घींचते-घींचते लोहा के एगो सब्बल (crowbar) निकासऽ हइ ।

"सावधान !" ऊ चिल्ला हइ आउ अपन पूरा ताकत लगाके एकरा घुमाके ऊ बेचारी घोड़िया पर बजाड़के स्तंभित कर दे हइ । चोट सीधे पड़लइ; घोड़िया लड़खड़इलइ, बइठ गेलइ, घिंच्चे के कोशिश कइलकइ, लेकिन सब्बल फेर से पूरा घुमावल ओकर पीठिया पर पड़ऽ हइ, आउ ऊ जमीन पर गिर जा हइ, मानूँ ओकर चारो गोड़ एक्के तुरी काट देल गेल होवे ।

"खतम कर दे !" मिकोल्का चिल्ला हइ, आउ मानूँ अपन आपा खोके, ऊ गाड़ी पर से निच्चे कुदक गेलइ । निसा में धुत्त कुछ नौजवान के, जे कुछ मिललइ, धर ले हइ - चाबुक, डंटा, बम, आउ अन्तिम साँस ले रहल घोड़िया भिर दौड़के जा हइ । मिकोल्का ओकर बगल में खड़ी हइ आउ सब्बल से गोस्सा में ओकर पीठिया पर डेंगावे लगऽ हइ । घोड़िया अपन थुथुना आगे तानऽ हइ, गहरा साँस ले हइ आउ प्राण त्याग दे हइ ।

"समाप्त कर देलकइ !" भीड़ में लोग चिल्लइलइ ।
"आउ सरपट काहे नयँ चललइ !"
"ई हम्मर सम्पत्ति हके !" मिकोल्का चिल्ला हइ, हाथ में सब्बल लेले हइ आउ आँख में खून उतरल हइ । ऊ खड़ी हकइ, मानूँ ओकरा ई बात के दुख हइ कि आउ कोय नयँ हइ जेकरा ऊ पीट सकइ ।
"ई बात बिलकुल सच हकउ, जान ले, कि तूँ क्रिश्चियन नयँ हकँऽ !" भीड़ से कइएक लोग चिल्ला हइ ।

लेकिन बेचारा लड़का के अपना बारे कुछ खबर नयँ हइ । ऊ चीखते आउ भीड़ के चीरते ललकी तरफ जा हइ, आउ मुर्दा लहू-लुहान थुथुना के पकड़के चुम्मऽ हइ, ओकर आँख के चुम्मऽ हइ, ठोर के चुम्मऽ हइ ... बाद में अचानक ऊ उछलके खड़ी हो जा हइ आउ आवेश में अपन मुक्का बान्हके मिकोल्का तरफ टूट पड़ऽ हइ । ओहे पल ओकर बाप, जे बहुत देरी से ओकर पीछा कइले दौड़ल आब करऽ हलइ, आखिर ओकरा धर ले हइ आउ भीड़  से बाहर ले जा हइ ।

"चल ! चल !" ऊ ओकरा कहऽ हइ, "घर चल !"
"बाऊ ! काहे लगी ओकन्हीं ... बेचारी घोड़िया के .... मार देलकइ !" ऊ सिसकऽ हइ, लेकिन ऊ साँस नयँ ले पावऽ हइ, आउ शब्द ओकर संकीर्ण होल छाती से चीख के रूप में  फूट रहले ह ।
"पीयल लोग हइ, शरारत करऽ हइ, हमन्हीं के की लेना-देना, चल !" बाप बोलऽ हइ । ऊ हथवा से अपन बाऊ के देहिया लपेट ले हइ, लेकिन ओकर छाती चोक होल हइ, चोक होल हइ । ऊ साँस लेवे ल चाहऽ हइ, चिल्लाय ल चाहऽ हइ, आउ जग जा हइ ।

ऊ हँफते जगलइ, पसेना से तर-बतर, केश पसेना से भिंग्गल, आउ भय से उठ के बइठलइ ।
"भगमान के किरपा, ई खाली सपना हले !" ऊ बोललइ, एगो पेड़ के निच्चे बइठते आउ तेजी से साँस घींचते । "लेकिन ई की हइ ? कहीं हमरा बोखार तो नयँ चढ़ रहल ह ? कइसन घिनौना सपना !"

ओकर समुच्चे देह जइसे टूट गेले हल; ओकर आत्मा में अशांति आउ अन्हेरा हलइ । ऊ अपन केहुनी के टेहुना पर रख लेलकइ आउ दुन्नु हाथ पर अपन सिर के टिका देलकइ ।

"हे भगमान !" ऊ चिल्लइलइ, "की अइसन हो सकऽ हइ कि, की अइसन हो सकऽ हइ कि वास्तव में हम कुल्हाड़ी लेबइ, मथवा पर मारबइ, ओकर खोपड़ी फोड़ देबइ ... चिपचिपा गरम खून पर सरकबइ, ताला तोड़बइ, चोरी करबइ आउ थरथर कँपबइ; छिप जइबइ, पूरा खून से तर-बतर ... कुल्हाड़ी के साथ ... हे भगमान, की अइसन हो सकऽ हइ ?

ई कहते ऊ पत्ता नियन कँपब करऽ हलइ ।

"लेकिन हमरा की हो गेल ह !" ऊ सोचना जारी रखलकइ, फेर से सीधा होते आउ मानूँ गहरा अचरज में आके, "वास्तव में हम जानऽ हलूँ कि ई हम बरदास नयँ कर पाम, त फेर अभी तक खुद के काहे लगी सता रहलूँ हल ? कल्हींयों, कल्हे, जब हम करे गेलूँ हल ई ... अजमाइश, त हम कल्हींएँ बिलकुल समझ गेलूँ हल कि ई हम बरदास नयँ कर सकम ... त फेर हम काहे लगी अब ? काहे लगी हम अभियो तक दुविधा में पड़ल हलूँ ? अइकी कल्हींएँ ज़ीना पर से उतरते घड़ी, हम खुद्दे बोललूँ हल कि ई कमीनापन हइ, पाप हइ, नीचता हइ, नीचता ... खाली ई विचार से हमरा वास्तव में घिन आवऽ हले आउ हम भयभीत हो गेलूँ हल ..."

"नयँ, हम नयँ बरदास कर पाम, नयँ बरदास कर सकम ! मानियो लेल जाय, मानियो लेल जाय कि ई सब हिसाब में कोय शंका नयँ हइ, ई सब कुछ जे ई महिन्ने पक्का कइल जा चुकले ह, ऊ दिन के तरह साफ हइ, गणित के समान सच हइ । हे भगमान ! हम कइसूँ साहस नयँ कर पाम ! हमरा से बरदास नयँ होत, नयँ बरदास होत ! ... काहे लगी, काहे लगी अभियो तक ..."

ऊ उठके खड़ी हो गेलइ, अचरज से चारो बगली देखलकइ, मानूँ एहो बात के अचरज करते कि कइसे ऊ हियाँ पहुँच गेलइ, आउ ते॰ पुल तरफ रवाना हो गेलइ । ओकर चेहरा पीयर पड़ गेले हल, अँखिया में जलन हो रहले हल, ओकर सब्भे अंग में थकावट आल हलइ, लेकिन अचानक ओकरा जइसे राहत महसूस होलइ । ऊ अनुभव कइलकइ कि अपना पर से ई बड़का भार उतार फेंकलक हल, जे ओकरा लम्बे समय से दबाव डालले हलइ, आउ अचानक ओकर आत्मा के चैन आउ शांति मिललइ । "हे भगमान !" ऊ प्रार्थना कइलकइ, "हमरा हमर रस्ता देखावऽ, आउ हम ई मनहूस से नाता तोड़ लेम ... अपन सपना से !"

पुल पार करते बखत, ऊ चुपचाप आउ शांति से नेवा नद्दी तरफ, चमकते लाल सूरज के चमकीला सूर्यास्त तरफ एकटक देख रहले हल । अपन कमजोरी के बावजूद, ऊ थकावट महसूस नयँ कर रहले हल । ई मानूँ ओकर दिल में एगो फोड़ा हलइ, जे पूरे महिन्ने पक रहले हल, आउ अचानक फूट गेले हल । अजादी, अजादी ! अब ऊ अजाद हलइ ई सब मनोहरता से, जादू-टोना से, सम्मोहन से, माया से !

बाद में, जब ऊ ई समय के आद करऽ हलइ, आउ ऊ सब कुछ के, जे ओकरा साथ ऊ समय के दौरान घटले हल, एक-एक मिनट के, एक-एक बात के, एक-एक वैशिष्ट्य के, त ओकरा हमेशे अंधविश्वास के हद तक एक परिस्थिति असर डालऽ हलइ, हलाँकि वास्तव में ऊ बहुत असाधारण नयँ होवऽ हलइ, लेकिन जे हमेशे ओकरा बाद में भाग्य के कोय पूर्वनिर्णय जइसे प्रतीत होवऽ हलइ । अर्थात् - ओकरा कइसूँ ई समझ में नयँ अइलइ आउ न खुद के समझा सकलइ, कि थक्कल-माँदल होलो पर ऊ काहे पुआल-मंडी से होके घर लौटऽ हलइ, जाहाँ ओकरा जाय के बिलकुल जरूरत नयँ हलइ, जबकि सबसे छोटगर आउ सीधगर रस्ता से घर वापिस आना ओकरा लगी जादे फायदेमंद होते हल । चक्कर वला रस्ता हलाँकि लमगर नयँ हलइ, लेकिन ई स्पष्ट आउ बिलकुल अनावश्यक हलइ । निस्सन्देह, दसो तुरी ओकरा घर वापिस आवे पड़ले हल, ई बिन आद रखले कि कउन-कउन गल्ली से होके ऊ गुजरल हल । लेकिन काहे, ऊ हमेशे पुच्छऽ हलइ, कि आखिर काहे ओकरा लगी एतना महत्त्वपूर्ण, एतना निर्णायक आउ साथे-साथ उँचगर दर्जा के आकस्मिक भेंट पुआल-मंडी में (जाहाँ जाय के कोय जरूरतो नयँ हलइ) ठीक ओहे घड़ी, ओकर जिनगी में ठीक ओहे पल, होले हल, जब ओकर मनोदशा आउ ओकर परिस्थिति बिलकुल अइसन हलइ कि जेकरा में ऊ भेंट ओकर समुच्चे भाग्य पर सबसे निर्णायक आउ सबसे अन्तिम प्रभाव डाल पइलकइ । मानूँ एहे खातिर ओकर घात में लगल हलइ !

जब ऊ पुआल-मंडी से होके गुजरलइ, तब लगभग नो बजले हल । सब्भे बेपारी - चाहे टेबुल आउ ट्रे से संबंधित रहे, चाहे छोटगर आउ बड़गर दुकान के रहे, अपन-अपन दुकान बन कर रहले हल, या अपन कारोबारी समान के हटा आउ पैक कर रहले हल, आउ घर जाब करऽ हलइ, जइसे कि ओकन्हीं के गाहक सब । निचला मंजिल पर के ढाबा के पास, पुआल-मंडी के घरवन के गंदा-संदा आउ बदबूदार अहाता में, आउ विशेष करके कलाली बिजुन, कइएक तरह के आउ हर प्रकार के धंधा करे वला आउ फट्टल-चिट्टल कपड़ा पेन्हले लोग जामा हो रहले हल । रस्कोलनिकोव खास करके ई सब जग्गह पसीन करऽ हलइ, आउ ओहे तरह, मुख्य सड़क के लगले बगल वला छोटगर सड़क चाहे गल्ली सब के, जब बिना कोय खास उद्देश्य के ऊ सड़क पर बाहर आवऽ हलइ । हियाँ पर ओकर फट्टल-चिट्टल पोशाक केकरो तिरस्कार भरल दृष्टि नयँ आकृष्ट करऽ हलइ, आउ कइसनो कपड़ा पेन्हके एन्ने-ओन्ने घुम्मल जा सकऽ हलइ, केकरो खराब नयँ लगऽ हलइ । खास के॰ गल्ली के नुक्कड़ पे एगो फेरीवाला आउ एगो देहाती औरत, ओकर घरवली, मिलके दू टेबुल से अपन समान बेच रहले हल - धागा, रिब्बन, सिर के सूती स्कार्फ (शिरस्त्राण), आदि । ओकन्हिंयों घर जाय लगी उठते गेलइ, लेकिन एगो परिचित औरत के आ गेला से बातचीत करे लगलइ । ई परिचित औरत हलइ लिज़ावेता इवानोव्ना, चाहे खाली, जइसन कि सब कोय ओकरा पुकारऽ हलइ, लिज़ावेता, छोटकी बहिन ओहे बुढ़िया अल्योना इवानोव्ना के, जे कॉलेजिएट रजिस्ट्रार [8] के विधवा आउ गिरवी रक्खे के धंधा करेवली हलइ, आउ जेकरा पास कल्हे रस्कोलनिकोव गेले हल, अपन घड़िया गिरवी रक्खे लगी आउ अपन अजमाइश (trial) करे लगी ... ऊ बहुत पहिलहीं से लिज़ावेता के बारे सब कुछ जानऽ हलइ, आउ ओहो एकरा बारे थोड़ा-बहुत जानऽ हलइ । ऊ एगो उँचगर, बेडौल, डरपोक आउ नम्र, लगभग मूर्ख, पैंतीस बरस के औरत हलइ, आउ अपन बहिन के पूर्ण रूप से दासी हलइ, ओकर अधीन दिन-रात काम करऽ हलइ, ओकरा सामने थर-थर काँपऽ हलइ आउ ओकरा से मारो खा हलइ । ऊ एगो पोटरी लेले फेरीवाला आउ औरतिया के सामने सोच मुद्रा में खड़ी हलइ आउ ध्यान से ओकन्हीं के बात सुन रहले हल । ओकन्हीं विशेष जोश के साथ ओकरा कोय बात समझा रहले हल । जब रस्कोलनिकोव अचानक ओकरा देखलकइ, त एक प्रकार के विचित्र संवेदना, बड़गर अचरज जइसन, ओकरा अनुभव होलइ, हलाँकि ई भेंट में अचरज जइसन कोय बात नयँ हलइ ।

"तूँ खुद्दे फैसला कर ल लिज़ावेता इवानोव्ना", फेरीवाला जोरगर अवाज में बोललइ । "बिहान छो आउ सात के बीच आ जा । ओकन्हिंयों अइते जइथुन ।"
"बिहान ?" लिज़ावेता धीरे-धीरे आउ सोचते-सोचते कहलकइ, मानूँ ऊ फैसला नयँ कर पइलके हल ।
"अरे, देखऽ, तोहरा अल्योना इवानोव्ना केतना डेराऽ देलथुन हँ !" फेरीवाला के घरवली बड़बड़इलइ । ऊ एगो फुरतीली आउ तेज औरत हलइ । "तूँ तो बिलकुल छोट्टे गो बुतरू लगऽ ह । आउ तोहर बहिनी तो सगी नयँ हथुन, बल्कि सतेली, आ देखऽ, जइसे मन होवऽ हइ, ओइसे तोरा साथ वेवहार करऽ हथुन ।"

"आउ हाँ, ई तुरी अल्योना इवानोव्ना के कुछ नयँ बतइहऽ जी", पति बीच में टोकते बोललइ, "ई हमर सलाह हको जी, आउ हमन्हीं हीं बिना पुछले-मातले आवऽ । ई काम नफा वला हको जी । बाद में तोहर बहिनियों समझ जइथुन ।"
"त हमरा आवे के चाही ?"
"छो आउ सात के बीच, बिहान; आउ ओकन्हिंयों रहथुन जी; खुद्दे फैसला कर लीहऽ जी ।"
"आउ चइयो होतइ", घरवली आगे बोललइ ।
"ठीक हको, अइबो", लिज़ावेता जवाब देलकइ, अभियो लगातार सोचते; आउ धीरे-धीरे ऊ जगह से जाय लगलइ ।

रस्कोलनिकोव ठीक अभी-अभी हुआँ से गुजरलइ आउ आगे कुछ नयँ सुन पइलकइ । ऊ धीरे-धीरे जाब करऽ हलइ, सबके नजर बचाके, अइसन प्रयास करते कि मुँह से कोय शब्द नयँ निकसे । शुरुआत के ओकर अचरज धीरे-धीरे बदलके वीभत्स होते चल गेल गेलइ, मानूँ ओकर रीढ़ से होके शीतलहर दौड़ रहले हल । ओकरा मालूम पड़लइ, ओकरा अचानक, अकस्मात् आउ बिलकुल अप्रत्याशित रूप से मालूम पड़लइ, कि बिहान, साँझ के ठीक सात बजे, लिज़ावेता, बुढ़िया के बहिन आउ एकमात्र सहवासिनी (साथ रहेवली), घर पर नयँ रहतइ, आउ जाहिर हइ कि बुढ़िया, ठीक सात बजे साँझ के, बिलकुल अकेल्ले रहतइ ।

ओकर डेरा अब कुच्छे डेग के दूरी पर हलइ । ऊ अन्दर अइसे घुसलइ, जइसे ओकरा मौत के सजा मिलले ह । ऊ कुच्छो के बारे नयँ सोच रहले हल आउ सोचे के ओकरा में बिलकुल शक्ति नयँ रह गेले हल; लेकिन रोम-रोम में अचानक अनुभव कइलकइ, कि ओकरा पास सोचे के अजादी रहिए नयँ गेले हल, आउ न इच्छा-शक्ति, आउ सब कुछ अचानक आउ आखिरी फैसला कर लेल गेले हल ।

वास्तव में, अगर बरसो-बरस ऊ उचित मौका के इंतजार में रहते हल, तइयो अपन प्लान के ध्यान में रखके ओकर सफलता के दिशा में, शायद ओइसन अधिक स्पष्ट आउ सुनिश्चित कदम के कल्पना नयँ कर सकते हल, जइसन कि अभी अचानक अपने आप आ गेले हल । कइसनो हालत में, पहिले से आउ पूरा भरोसा के साथ, अधिक सही तौर पर आउ कम जोखिम के साथ, आउ बिन कोय खतरनाक पूछताछ आउ छानबीन के, ई मालूम करना मोसकिल होते हल कि बिहान, ठीक फलना-फलना बखत, फलनी-फलनी बुढ़िया, जेकरा पर घात लगावे के तैयारी हकइ, घरवे पर रहतइ आउ ओहो बिलकुल अकेल्ले ।



पिछला                      अगला
 

Tuesday, November 25, 2014

79. मगही पत्रिका के रजत जयंती समारोह - कुछ यादगार फोटो (23-11-2014)



        (सभी फोटो फेसबुक से)






6. पार्वती पहाड़ के दृश्य-2

7. पार्वती पहाड़ के दृश्य-3

9. विरासत दुनिया - एलबम