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Friday, November 16, 2012

78. "समकालीन मगही साहित्य" (2003) में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द



समसा॰ = "समकालीन मगही साहित्य" (मगही भाषा के वैचारिक आउ साहित्यिक त्रैमासिक); वर्ष-1; अंक-1; जनवरी-मार्च 2003; सम्पादक - श्री धनंजय श्रोत्रिय, नई दिल्ली/ पटना

ठेठ मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर पृष्ठ संख्या, आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ ।

कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या  - 297

ठेठ मगही शब्द ( से तक):
1    अंधरिया     (दिन-दुनियाँ देख के आँख के आगु अब पुनियो में अमस्या के अंधरिया लौकऽ हे ।)    (समसा॰03:1:54.7)
2    अउ     (विधना के मारल रामजी चौदह बरिस तक फूल अइसन कोमल मेहरारू अउ बिजली-आग जइसन डहकइत भाय के संगे ले के जंगल अगोरलन ।)    (समसा॰03:1:49.16)
3    अकेलुआ     (धरती पर साइत भारत अकेलुआ देश हे, जहाँ बहुत्ते पराचीन काल से काल याने 'टाइम' के ठोस वैज्ञानिक दृष्टि से देखल गेल हे ।)    (समसा॰03:1:11.9)
4    अग-जग     (कवि नाम से कवि जादे प्रसन्न होवऽ हथ । मतलब नाम बहुते पेयारा होवऽ हे । एही से नाम के महिमा आउ महातम अगजग में गावल जाहे ।)    (समसा॰03:1:94.28)
5    अगोरना     (विधना के मारल रामजी चौदह बरिस तक फूल अइसन कोमल मेहरारू अउ बिजली-आग जइसन डहकइत भाय के संगे ले के जंगल अगोरलन ।)    (समसा॰03:1:49.17)
6    अगोरिया (= अगोरी करनेवाला)     (सहर के मकान किराया पर हे अउ बड़गो ताला गाम के मकान के अगोरिया हे ।)    (समसा॰03:1:54.5)
7    अछरंग     (तनि फरिया के तो कहऽ साफ-साफ । कौन लच्छन से हम लालची, आलसी आ सौखीन लगऽ ही ? ई तीन-तीन अछरंग हमरा पर लगावे में तोरा जरिक्को सरम न आयल ?; ई अछरंग न हो, बावन तोला पावस्ती आ पत्थल के डरीर हो । तोर तीनो औगुन के हिगरा-हिगरा के हम समझा दे ही ।)    (समसा॰03:1:79.9, 11)
8    अजदह     (साइत कोय बात ऊ हमरा से कहइ इया पूछइ ले चाहऽ हलइ, मुदा एगो खास तरह के जनाना संकोच हलइ जे ओकर ठोर के अजदह बनइले हलइ ।)    (समसा॰03:1:43.15)
9    अजलेम (= इल्जाम)     (तोरा पर कोई अजलेम नइखी डालइत नन्हकू ! लेकिन एतने हम अरज करइत ही तोरा से कि ओकरा दीदी समझऽ हें तो फिर मौका पर भाई के फरज अदा कर ।)    (समसा॰03:1:69.18)
10    अजाद (= आजाद)     (दुनियाँ तो निमने चलइत हे । सब लोग अजाद हइए हथ । जेकरा मन करऽ हे तेकरा उड़ा देहे । पुटपुटिया दाग देहे ।; गुंडई करे ला लाइसेंस के जरूरते न हे । रजनेता के अजदिए हे ।)    (समसा॰03:1:58.10, 12)
11    अथुह     (एक बात कहिअउ परवेज, कि ... कि तूँ मरि काहे नञ् गेलें ? काहे कि अब हम सब के सब तोहरा सन हिजड़ा से नफरत करऽ हिअउ ! हमनी के तोहरा से नफरत हउ ! अथुह !)    (समसा॰03:1:47.9)
12    अपसर (= अफसर)     (एगो अंगरेज अपसर से एक बार झंझट हो गेल । बस इ आव देखलन न ताव - दे देलन नौकरी से इस्तीफा ।)    (समसा॰03:1:100.3)
13    अब-तब (~ में होना)     (पंचइती एहीं पर खतम हो गेल । कहानी कहताहर ई कथा के थोड़ा अउर आगे ले जा हथ । ऊ सुनावऽ हथ कि दोसरके दिन साँझ होएते-होएते गाँव में आन्हीं अइसन खबर दउड़े लगल कि नन्हकुआ के बेटा अब-तब में हे । फिर इ खबर मिलल कि ओकर बेटा मर गेल ।)    (समसा॰03:1:73.7)
14    अमदनी (= आमदनी)     (अखबार-पतरिका में कहानी-कविता लिख के अउ वेतन अमदनी से ढेर बचा ले हलन, लेकिन जेकरे-सेकरे काम में जरूरी पड़े पर लगा दे हलन ।)    (समसा॰03:1:52.15)
15    अर-असीरवाद     (डॉ. नलिन के संस्कृत, पालि आउ हिंदी तीनों विषय के प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त हे । एकर अलावे ई डी.लिट्. भी हथ । ने मालूम कय दर्जन शोधार्थी इनकर अर-असीरवाद से विदमान बन के धौगल चलऽ हथ । केतना कवि कविआँठ बन के नितराल चलऽ हथ ।)    (समसा॰03:1:106.7)
16    अरदास (फा॰ अर्जदाश्त) (= नजर, भेंट, देवता को चढ़ाने की सामग्री; भेंट देकर निवेदन)     (जेकर आगु धन-सुख, अराम, सफलता, आदमीयत अरदास करऽ हल, अब ओकरे सुख हवा के कंधा पर चढ़के कौन लोक में कहाँ उड़ गेल ? गाम, टोला, जेवार में, इनका सब रुपइया के एगो झमेटगर दरखत बुझऽ हलन, जेकर छँहुरा में केतना के भलाय भेल हल ।)    (समसा॰03:1:54.26)
17    अलचार (= लाचार)     (हम तो फूटल आँख से भी तोरा जरिक्को पसंद न कैली हल । अलचार हो गेली ।)    (समसा॰03:1:78.25)
18    अलचारी (= लाचारी)     (कौस्तुभ मणि, पांचजन्य शंख पर भी तोर नजर गड़ल हल । अलचारी में ई दुन्नो रतन भी लोग तोरा देलन ।)    (समसा॰03:1:79.25)
19    अवकाद (= औकात)     (लड़िकाई में हमनी एके साथ खेलऽ-कूदऽ हली । तूँ तो अपन अवकादो भूल गेलऽ अउ बड़-बुजुर्ग से बात करे के, अदब करे के तरीको भूल गेलऽ ? कलकत्ता में चाकरी करके धनासेठ हो गेलऽ एतवर कि हमरा करजा देवे के तोर अवकाद हो गेल ?; एक तो एकर अवकाद सब के मालूम हे । एकर एतना अवकादे न हे कि अबहियों एतना बड़ रकम कोई के उधार दे सकऽ हे । दोसर बात इ, हमर अवकाद एतना छोट न हो गेल हे कि एतना छोट रकम खातिर एतना छोट अदमी के आगे हाथ पसारूँ । तइयो मान लेऊँ कि ई अपन अवकाद से कए गुना जादे हमरा रकम देलक । ई पगलाएल न हे तो एकरा पास देवे के कुछो कागजी सबूत इया कोई गोवाह तो जरूरे होएत ।)    (समसा॰03:1:71.2, 4, 72.10, 11, 12, 13)
20    आंधर (= आन्हर; अन्धा)     (अपन मन के हिन्छा जोआला केकरो नञ् बतावऽ हलन कि आखिर जात में, कुजात में, इंदर के परी से कि कोय कान-कोतर, आंधर, लूल्ह-लाँगड़ से बियाह करके कोय बड़गो आदर्श के नाम कमउतन, समाजसेवी के तमगा, साटिफिकेट लेतन ।)    (समसा॰03:1:50.6)
21    आजिज     (अच्छा ठीक हो, मत बतावऽ ! मुदा, एन्ने, एन्ने कहाँ ? - ऊ आजिज आके पुछलकइ हल ।; तू काहे ला पगलाइल हें, उ पगला से कउन पूछे । लइकन सब ओकरा लुलुआइत हलन, ओकर कपड़ा खीचैइत हलन, ओकरा लंगटे करइत हलन, थूक फेकइत हलन, पगला से आजिज हो गेलन हल ।)    (समसा॰03:1:44.16, 58.20)
22    आसकती (= असकतियाहा; आलसी)     (हमर हाल ऊ आसकती नियर हो गेल हे गरुड़, जे कुइयाँ में गिरल त उहईं बस गेल । रोज साँप के बिछौना पर सूतऽ ही, भूलल-भटकल कहियो ई जदि करवट लेलन कि हम समुन्नर के पेट में अलोपित भेली ।)    (समसा॰03:1:85.2)
23    आसन-वासन     (मंत्री जी आसन-वासन आउ सासन जमा देलन । लंबा तान के खर्राटा से बोगी के जगमगा देलन, हो गेल हमर सूतल ।)    (समसा॰03:1:89.7)
24    इनसाल (= इमसाल; वर्तमान वर्ष)     (नन्हकू भइया इनो साल न अएलन । केतना परब-तेयोहार वीतल । राहे भुला गेलन । का पता ई जिनगी में अब भेंटो होएत कि न उनकरा से ।)    (समसा॰03:1:67.6)
25    इस्स     (इस्स ! दइया गे, तूँ तऽ नजूमी नियर बात करऽ हो जी, कहाँ घर हो ? - बायाँ हाँथ पर गाल रखि के ऊ एगो खास अंदाज में मुसकइत पुछलकइ ।)    (समसा॰03:1:43.21)
26    ईमनदार (= ईमानदार)     (लेकिन अब सब भरनठ हो गेल हे । नञ् कोय ईमनदार नेता हे, नञ् सरकारी करमचारी, नञ् कोय ओइसन दारसनिक आउ समाजसेवी हे, जे देस के डूबइत नाय के बचा सके ।)    (समसा॰03:1:51.12)
27    उकटा-पुरान     (हमरा सामने तू लछमी के उकटा-पुरान तू सुनबे कैलऽ ।)    (समसा॰03:1:85.11)
28    उकीटना     (उल्लू के उकीटे से सुरुज के कुछ बिगड़ल हे ?)    (समसा॰03:1:81.25)
29    उजरका (= उजला; उजला वाला)     (कउन हलन उ ! उ पगला के सामने अप्पन हाथ फैला के खड़ा हो गेलन । उनकर देह पर भभूत हल । धरती के मट्टी हल । उजरका रेत नियन उनखर देह चाँदी नियन चमक रहल हल । पगला आवइत-आवइत रुक गेल - रुक गेल बकबक्की ओकर ।)    (समसा॰03:1:59.12)
30    उटकरिए (~ बइठना)     (अपन कान्हा पर से ललकी गमछी उतारलक अउ ओकरे पर धीरे से बइठल कि धूरी न लगे, गंदा न हो जाए । भला नया-तोहर गमछा के मोह कइसे न सतावइत ।/ बाबू साहेब टोकलन - "उटकरिए का बइठल हऽ । निहचिंत होके बइठऽ अउ सुनावऽ हुआँ के खिस्सा ।")    (समसा॰03:1:66.23)
31    उठान     (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।)    (समसा॰03:1:43.4)
32    उडंडता (= उद्दंडता)     (अबरी फिर हमर बर्थ पर सात लड़िकन बैठ गेलन । उनकर बोलचाल में कोई परिच्छा के चरचा हल, व्यवहार में उडंडता आउ जबान पर गाली-गलौज हल ।)    (समसा॰03:1:88.18)
33    उड़ियाना     (तोहर ई देसी बोली विदेशी हवा के सामने घास-फूस अइसन उड़िया जायत । नाम महिमा के बखान अइसहीं न होयल हे ।)    (समसा॰03:1:95.15)
34    उतारे (= से बढ़कर)     (होयत सौखीन केउ तोरा उतारे । ... हीरा, मोती, नीलम, मानिक आ पोखराज से तइयार कइल एगो पंचधातु के माला तोरा चही । तोर किरीट में सब तह के रतन जड़ल रहे के चही ।)    (समसा॰03:1:80.19)
35    उधारन (= उदाहरण)     (लालची होवे के आउर कोन उधारन तोरा चाही ?; एगो-दूगो उधारन हे जे तुरते सुना देल जाय ?)    (समसा॰03:1:80.6, 82.19)
36    उलार (= लहर; जो पीछे झुका हो; जिसके पिछले भाग में बोझ अधिक हो)     (जवानी में इनका में मगही सेवा के उलार उठल हल, बकि 1988 ई॰ में मगही में 'किरिया-करम' {कहानी संग्रह}करके बैठ गेलक ।)    (समसा॰03:1:64.4)
37    ऊपर-नीचू     (लमहर-लमहर साँस भरइत ओकर छाती उठ-बैठ रहलइ हल । ओकर देह एगो खास लय में ऊपर-नीचू डोल रहलइ हल ।)    (समसा॰03:1:43.10)
38    एकसर (= अकेलुआ; अकेला)     (कइसे एकसर आदमी पहाड़ पर रह के, जउन पहाड़ के कुछ ग्रंथ सब उत्तर के हिमालय पर्वत कहऽ हे, मत्स्य पुराण दक्खिन के मलय पर्वत कहऽ हे - पर रह के कोय नाव चला सकऽ हे ?)    (समसा॰03:1:10.27)
39    एकसरुआ (= अकेलुआ; अकेला)     (कइसे कोय एकसरुआ पुरुष फेर से सारी सृष्टि के रचना कर सकऽ हे ?)    (समसा॰03:1:11.1)
40    एतराज (= आपत्ति)     (पंच लोग नन्हकू से पूछलन - कोई एतराज ? ऊ कहलक - जे पंच के विचार ।)    (समसा॰03:1:73.3)
41    एतवर (दे॰ एतवड़)     (लड़िकाई में हमनी एके साथ खेलऽ-कूदऽ हली । तूँ तो अपन अवकादो भूल गेलऽ अउ बड़-बुजुर्ग से बात करे के, अदब करे के तरीको भूल गेलऽ ? कलकत्ता में चाकरी करके धनासेठ हो गेलऽ एतवर कि हमरा करजा देवे के तोर अवकाद हो गेल ?)    (समसा॰03:1:71.4)
42    एहीं (= हीएँ; यहीं)     (हमरा अइसन नासमझ आउ कमचोर के लोग समझदारी आउ जवाबदेही वाला काम दे दे हथ, एहीं गड़बड़ हो जाहे ।)    (समसा॰03:1:87.7)
43    कएदा-कानून (= कायदा-कानून)     (नन्हकू के मन भेल कि साथे बइठ के विस्तार से कलकत्ता के रंग-ढंग बताऊँ, लेकिन अपन गाँव के उठे-बइठे के कएदा-कानून ओकरा याद आएल ।)    (समसा॰03:1:66.19)
44    कचोटु     (रिसीवर हाथ से छोड़ि के भद्द-सा बइठइत, रेशमा बुक्का फाड़ि के कुछ ई तरह जार-बेजार रोबऽ लगलइ हल, जइसे अचक्के ऊ बेबा हो जाय के कचोटु बोध से भरि गेल रहे ।)    (समसा॰03:1:47.12)
45    कजइ (= कज्जो; कहीं)     (परसुँ ओकर भाय के चिट्ठी कारगिल मोरचा से अइलइ हल । कानोकान खबर मिलते मातर करीम के घर में जन्नी-मरद के अइसन हुजूम उमड़लइ कि कजइ तिल धरइ के जगह नञ् ।)    (समसा॰03:1:45.3)
46    कठमुरकी (~ मारना)     (ओकरा अएलो के बाद समझऽ एक हफ्ता तो अउ लगिए जाएत । एही बीच बिआह के दिन तय हे । टल नहिंए सके । हम तो कुकुरवाह में पड़ गेली । आजे देवे ला हल समियाना, बत्ती, पालकी, हाथी, घोड़ा खातिर पेसगी । हम करी तो का करी । कठमुरकी मारले हे हमरा तो ।; बाबू साहेब के नकार अउ गरम तेवर देख के नन्हकू के काटूँ तो खूने नऽ । ओकरा कठमुरकी मार देलक । बोलती बंद हो गेल ।)    (समसा॰03:1:69.1, 71.14)
47    कड़रुआ (~ राग)     (उनका गावे के जब धुन चढ़ऽ हे तऽ ऊ गला फार फार के गाना शुरु करतन । उनकर ई राग के देहात में लोग कड़रुआ राग कहऽ हथ ।)    (समसा॰03:1:94.22)
48    कन्नी (~ खाना)     (जानऽ हीं परवेज, सीमा पर लड़इत अगर तूँ सहीद हो जइतहीं हल, तऽ जिगर के खून से तोहर कब्र पर दीया बारतिअउ हल । मुदा अब ... अब डर से चूड़ी पेन्ह के साया में घुसि जायवला ... डर से पइजामा में पेसाब करि देबइवला तोहरा सन कायर के, कसम काली पगड़ी वला के, सौहर कहइ में कन्नी खा लेबइ के मन करऽ हउ !)    (समसा॰03:1:47.3)
49    कबुद्धी     (सिरिफ दू भाषा हिंदी-मगही के इस्तेमाल में तोर बुद्धि ओझरा जाहो । करवऽ कबुद्धी ! कउन तरह के दिमाग पइलऽ हऽ जी !)    (समसा॰03:1:6.15)
50    करजा-पैंचा     (उ अप्पन छोटकी बेटी के बियाह करके, करजा-पैंचा लेके छोटका बेटा के पढ़ाय खातिर दिल्ली भेज के आजकल अप्पन एगो परचित अमदी के साथ रहऽ हथ ।)    (समसा॰03:1:53.25)
51    करनी-धरनी     (पंचदेवी में एक ई हमर मेहरारू लछमी के करनी-धरनी तो तोरा से छिपल न हे ।)    (समसा॰03:1:77.26)
52    करिखाही (= करखाही; कारिख या कालिख से पुती हुई)     (हम तो खाली सरापे देके रह गेली । बस चलइत हल त ऊ जरलाहा के चेहरा करिखाही हँड़िया से हम पोत देती । तू मउगर आ घरघुस्सु बनके बिछौना पर पड़ल रहऽ ।)    (समसा॰03:1:83.6)
53    कलट्टर     (बाप के हिन्छा हलइ कि बेटा कलट्टर, जज, इंजीनियर, वकील चाहे एस.पी. बने, लेकिन मन के हिन्छा केकर पूरल हे ।)    (समसा॰03:1:49.11)
54    कविआँठ     (डॉ. नलिन के संस्कृत, पालि आउ हिंदी तीनों विषय के प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त हे । एकर अलावे ई डी.लिट्. भी हथ । ने मालूम कय दर्जन शोधार्थी इनकर अर-असीरवाद से विदमान बन के धौगल चलऽ हथ । केतना कवि कविआँठ बन के नितराल चलऽ हथ ।)    (समसा॰03:1:106.8)
55    कसर-मसर     (कोई महादे के भेजल इहाँ आवत, ई ओकरा बढ़मा जी के पास भेज देतन, कभी महादे के पास पेठैतन । जे लोग के दिमाग कमजोर रहऽ हे ओही नेआव करे में कसर-मसर करऽ हे !)    (समसा॰03:1:81.19)
56    कहताहर (= कहनेवाला)     (पंचइती एहीं पर खतम हो गेल । कहानी कहताहर ई कथा के थोड़ा अउर आगे ले जा हथ । ऊ सुनावऽ हथ कि दोसरके दिन साँझ होएते-होएते गाँव में आन्हीं अइसन खबर दउड़े लगल कि नन्हकुआ के बेटा अब-तब में हे । फिर इ खबर मिलल कि ओकर बेटा मर गेल ।)    (समसा॰03:1:73.5)
57    कहनइ     (हलन तो उ जात के बर्हामन, लेकिन उनकर कहनइ हल कि जलम से सब कोय सुद्दर हे, अप्पन संस्कार, करम-धरम बना-सुधार के कोय भी बर्हामन बन सकऽ हे ।)    (समसा॰03:1:49.3)
58    कहनय     (बाप ढेर कोरसिस कइलन कि उनकर बियाह उनखे मन से खूब ले-दे के धूमधाम से हो, लेकिन बाप के कहनय से उनकर कान पर जूँ नञ् रेंगलक ।)    (समसा॰03:1:50.1)
59    कहनय-सुननय     (1963 ई॰ में एकैसे बरीस के उमर में ढेर कहनय-सुननय, खींचा-तीरी से एम.ए. तो कर गेलन, लेकिन नउकरी के कोरसिस उ नञ् के बराबर करऽ हलन ।)    (समसा॰03:1:49.22)
60    कहवइया (= कहताहर; कहनेवाला)     (कहानी कहवइया आगे कहऽ हथ कि नन्हकू बेटा के लहास लेले लौटल । मंदिर के आगे रखलक अउ ओही घड़ी तमाम पंचन भिरु बदहवास दउड़-दउड़ के गिड़गिड़ाएल ।)    (समसा॰03:1:73.21)
61    कान-कोतर     (अपन मन के हिन्छा जोआला केकरो नञ् बतावऽ हलन कि आखिर जात में, कुजात में, इंदर के परी से कि कोय कान-कोतर, आंधर, लूल्ह-लाँगड़ से बियाह करके कोय बड़गो आदर्श के नाम कमउतन, समाजसेवी के तमगा, साटिफिकेट लेतन ।)    (समसा॰03:1:50.6)
62    किरिया-करम     (हमरा अचानक मरे अउ छोटकु के घर नञ् लौटे के हालत में हम्मर संस्कार, किरिया-करम नजीर करत । उ जलावे, चाहे गाड़ दे, चाहे गंगा में ले जाके फेंक दे ।)    (समसा॰03:1:55.19)
63    किहाँ (= के यहाँ)     (ओहनी के सेफारिस पर ओकरा मारवाड़ी भाई किहाँ नौकरी लग गेलई ।)    (समसा॰03:1:65.20)
64    कुकुरवाह (~ में पड़ना)     (ओकरा अएलो के बाद समझऽ एक हफ्ता तो अउ लगिए जाएत । एही बीच बिआह के दिन तय हे । टल नहिंए सके । हम तो कुकुरवाह में पड़ गेली । आजे देवे ला हल समियाना, बत्ती, पालकी, हाथी, घोड़ा खातिर पेसगी । हम करी तो का करी । कठमुरकी मारले हे हमरा तो ।)    (समसा॰03:1:68.27)
65    कोंपी (= कॉपी, नोटबुक; उत्तरपुस्तिका)     (आज तक विश्वविद्यालय में टौप करे वाला छात्र के कोंपी सार्वजनिक न करल गेल, जबकि ई माँग उठइत रहल हे । सार्वजनिक न करे के पीछे हमरा लगऽ हे कि ऊ सार्वजनिक करे के चीजो न होवे । ऊ तो धरोहर होवऽ हे से ओकरा अइसन रख देल जाहे कि हवा-बतास इया नजर-गुजर नऽ लगे ।)    (समसा॰03:1:93.17)
66    खतिहान     (हो गेल तोर खतिहान खतम कि आउ कुछ अधेयाय बाकी हे ?)    (समसा॰03:1:83.19)
67    खनय-पिनय     ("एगो मुसलमान हे - रेडीमेड के दुकान हे ओकर, जेकरा उ बचपन से खुम मानऽ हलन, इनकर बचपन के दोस्त के लड़का हे नजीर खान ।" - "अउ खनय-पिनय ?" - "सब ओकरे हीं, ओकरे बनल-छुअल-छापल ...।" कहके उ बड़ी घिरना से मुँह सिकोड़ लेलक ।)    (समसा॰03:1:54.13)
68    खम्हा (= खंभा)     (ऊ बेरा मुँह से बकार निकललवऽ हल ? लजायल बिलाई सन खम्हा नोचे के हाल भेल हल ।)    (समसा॰03:1:82.9)
69    खामोखा (= खामखाह; ख्वामख्वाह)     (आँख में अंगुरी डाल के खामोखा जब तू हमर मुँह खोलबा रहलऽ हे तब सुन लऽ ।)    (समसा॰03:1:82.1)
70    खींचा-तीरी     (1963 ई॰ में एकैसे बरीस के उमर में ढेर कहनय-सुननय, खींचा-तीरी से एम.ए. तो कर गेलन, लेकिन नउकरी के कोरसिस उ नञ् के बराबर करऽ हलन ।)    (समसा॰03:1:49.23)
71    खुम (= खूब)     (लगभग बीस बरिस के बाद 1983 के जाड़ा में अचुके उ एक दिन बोधगया के मंदिर घुमइत भेंट गेलन, साथे में एगो गोरनार, लत्तर जइसन, दुबर-पातर, बिना हाड़-मास के मेहरारू के देख के इ समझ में आ गेल कि उ एगो से दूगो हो गेलन हे । पूछे पर पता चलल कि इ एगो गरीब बर्हामन के अंगुठा छाप बेटी हे । हम देखलुँ अंदर से उ खुम खुस हलन ।; "एगो मुसलमान हे - रेडीमेड के दुकान हे ओकर, जेकरा उ बचपन से खुम मानऽ हलन, इनकर बचपन के दोस्त के लड़का हे नजीर खान ।" - "अउ खनय-पिनय ?" - "सब ओकरे हीं, ओकरे बनल-छुअल-छापल ...।" कहके उ बड़ी घिरना से मुँह सिकोड़ लेलक ।)    (समसा॰03:1:50.12, 54.11)
72    खूम (= खूब)     (सोना पर सोहागा नियन बात अशोक प्रियदर्शी जी के साथ हे । एक तो इनका में लेखन आउ अभिनय में खूमे रुचि हे, ऊपर से इनका ई दुन्नो गुन अपन आदरजोग पिता चतुर्भुज बाबू से विरासत में मिलल हे ।)    (समसा॰03:1:98.2)
73    खोजनय     (नीम के पत्ता आउ डघुरी में मिठास अउ सुरूज के आगु में चंदरमा के सीतलता खोजनय बेकुफी हे । आत्मविसवास अउ हिम्मत के बल से कोय अमदी जोर से ढेला फेंक के असमान में छेद कर सकऽ हे ।)    (समसा॰03:1:52.11)
74    गँवत (= गौत; पशु का चार)     (प्रकृति के लीला अइसन भेल कि लगले-लगले पाँच साल अकाल पड़ल । अदमी के अनाज मोहाल हो गेल, गोरू के गँवत ।)    (समसा॰03:1:65.10)
75    गट्टा     (उ ओकर गट्टा पकड़ के पेड़ के नीचे बइठा देलन । अप्पन बड़गो कमंडल से ओकरा भर इच्छा पानी पिअइलन । पगला शांत हो गेल ।)    (समसा॰03:1:59.16)
76    गरान (= ग्लानि)     (हइ दुनियाँ में एक भी औरत जेकरा बेईमान, चोर, बलात्कारी, घोटालेबाज, कातिल आउ तोहरा सन कायर मरद के बेटा आउ सौहर कहइत गरान नञ् आबइ ?)    (समसा॰03:1:47.7)
77    गिटपिटाना     (पढ़ाई के नाम पर तऽ अंग्रेजी ठाट-बाट के कोई कमी नऽ हे । अंगरेजी रटइत हथ - सीता के सीटा आउ राम के रामा पढ़इत हथ । पापा-मम्मी नाम के जोर हे । मतलब विश्वगुरु भारत भरभराइत हे आउ हिंगलिस में गिटपिटाइत हे ।)    (समसा॰03:1:93.27)
78    गिनल-गुथल     (1963 में जोवाला जी के एम.ए. के परिच्छा देके पटना से घर लउटते घड़ी उनकर दादी के गया टीसन पर हम देखलुँ हल - दूध अइसन दप-दप उज्जर, बरफ अइसन चमकइत बतीसो दाँत, धुन्नल रुइया अइसन फह-फह माथा में गिनल-गुथल केस, 87 बरिस के उमर में भी उनकर देह-दसा, चेहरा पर चमक हल ।)    (समसा॰03:1:50.21)
79    गुन (= गुने; के कारण)     (ऊ रोगी बात के एतना पक्का हलन कि सही में कानपुर में बर्थ खाली कर देलन । रोगी के बात हल । इ गुन हम भी सीट के पानी से पोछली । चद्दर झारली आउ सोचली कि रतजग्गा तो होइए गेल । अब दू-चार घंटा दिन में सुतल जाय ।)    (समसा॰03:1:87.27)
80    गेहुमन (= गोहमन)     (तोरा से तो भइँसा, बनैआ सूअर आ गेहुमन साँप सच्चा वीर हे जे आमने-सामने वार करऽ हे ।)    (समसा॰03:1:82.13)
81    गोदानना     (जमा भीड़ फट गेल । भीड़ जउरे चचवा भुनभुनाइत जा रहल हे - तनी गो हल तो रतिया में रोजे अप्पन बप्पा से पूछऽ हल - राजा की खा होतइ हो बाबू । आझ साला अपने राजा हो गेल । अब हमनी के ऊ की गोदानतउ ?)    (समसा॰03:1:97.26)
82    गोरनार     (लगभग बीस बरिस के बाद 1983 के जाड़ा में अचुके उ एक दिन बोधगया के मंदिर घुमइत भेंट गेलन, साथे में एगो गोरनार, लत्तर जइसन, दुबर-पातर, बिना हाड़-मास के मेहरारू के देख के इ समझ में आ गेल कि उ एगो से दूगो हो गेलन हे ।)    (समसा॰03:1:50.9)
83    गोराई (= गोराय; गोरापन)     (बाबुओ साहेब के कोई कहलक कि नन्हकुआ कलकत्ता से आएल हे । देह पर चढ़ल चर्बी अउर चेहरा पर गोराई झाँकइत हइ ।)    (समसा॰03:1:65.26)
84    गोवाह (= गवाह)     (एक तो एकर अवकाद सब के मालूम हे । एकर एतना अवकादे न हे कि अबहियों एतना बड़ रकम कोई के उधार दे सकऽ हे । दोसर बात इ, हमर अवकाद एतना छोट न हो गेल हे कि एतना छोट रकम खातिर एतना छोट अदमी के आगे हाथ पसारूँ । तइयो मान लेऊँ कि ई अपन अवकाद से कए गुना जादे हमरा रकम देलक । ई पगलाएल न हे तो एकरा पास देवे के कुछो कागजी सबूत इया कोई गोवाह तो जरूरे होएत ।)    (समसा॰03:1:72.15)
85    गोवाही (= गवाही)     (अपने सभे सुन लेली न ? कोई सबूत, गोवाही नइखे इनका पास तो मामला बिसवासघात के होएल । एकरा फैसला तो उपरहींवाला कर सकऽ हे ।)    (समसा॰03:1:72.24)
86    घरघुस्सु     (हम तो खाली सरापे देके रह गेली । बस चलइत हल त ऊ जरलाहा के चेहरा करिखाही हँड़िया से हम पोत देती । तू मउगर आ घरघुस्सु बनके बिछौना पर पड़ल रहऽ ।)    (समसा॰03:1:83.7)
87    घरजमाई     (ई असार संसार में साला आ ससुर के घर सार हे । इहे से महादे हिमाले पर गेलन आ हम ई छीर सागर चुनली । बकि न ससुराल में घरजमाई बनती हल, न अइसन साँसत झेलती हल ।; जब हमरे ई हाल हे तब मिरतुलोक के घरजमाई लोग के दसा के अंदाज लगा लऽ ।)    (समसा॰03:1:77.14, 16)
88    घरफुँकनी     (हमरा रोके से ई कभी रुकलन ? घरफुँकनी बनके ई चउबीसो घंटा गाय के सींग बैल में आ आम के लस्सा बबूर में लगावइत चलऽ हथ । अइसन लछमी से निगोड़े भल हल ।)    (समसा॰03:1:78.8)
89    घिरना (= घृणा)     ("एगो मुसलमान हे - रेडीमेड के दुकान हे ओकर, जेकरा उ बचपन से खुम मानऽ हलन, इनकर बचपन के दोस्त के लड़का हे नजीर खान ।" - "अउ खनय-पिनय ?" - "सब ओकरे हीं, ओकरे बनल-छुअल-छापल ...।" कहके उ बड़ी घिरना से मुँह सिकोड़ लेलक ।)    (समसा॰03:1:54.14)
90    घुटब     (हमरा तर बइठ के बातचीत में ऊ भूलि गेलइ हल कि ऊ के हइ । तीन दिन से रात-दिन कउन पीड़ा में घुटब करऽ हलइ आउ की सोंचि के काहे ले घर से निकललइ हल ।)    (समसा॰03:1:44.27)
91    घुरमुरिया (~ मारना)     (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।)    (समसा॰03:1:43.2)
92    चद्दर-उद्दर     (दस से बेसी बज गेल हे । घरे रहऽ हली तब आठ बजे के बाद सीधे पाँच बजऽ हल । चद्दर-उद्दर झारली, तकिया फुलौली । अटैची के सिक्कड़ से बांधइतहीं हली कि एगो सज्जन बोललन ।)    (समसा॰03:1:87.15)
93    चपचपाना     (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।)    (समसा॰03:1:43.4)
94    चलनय-फिरनय     (उनकर दादी के गया टीसन पर हम देखलुँ हल ... चलनय-फिरनय देखके हमरा अप्पन जमानी पर सरम आवऽ हल ।)    (समसा॰03:1:50.23)
95    चही (= चाही; चाहिए)     (होयत सौखीन केउ तोरा उतारे । ... हीरा, मोती, नीलम, मानिक आ पोखराज से तइयार कइल एगो पंचधातु के माला तोरा चही । तोर किरीट में सब तह के रतन जड़ल रहे के चही ।)    (समसा॰03:1:80.22, 23)
96    चिंता-फिकिर     (अप्पन सौख-मौज, अउ मेहरारू के अलावे भाय-बहिन, माय-बाप के कोय चिंता-फिकिर ओकरा नञ् हे ।; ढेर देरी तक आँख फाड़ के हम बस पर के उ अमदी के देखते रह गेली अउ मन के मोर जोआला बाबू के गोड़ पर गिरके लोटपोट हो गेल, जइसे ऊ सच्छात् शंकर हथ, जेकरा अप्पन दिन-दुनियाँ, दौलत के कोय चिंता-फिकिर कहियो नञ् रहल ।)    (समसा॰03:1:53.17, 55.23)
97    चुकू-मुकू (दे॰ चुको-मुको, चुकोमुको, चुक्को-मुक्को)     (सजल-धजल दीदी के फूल अइसन चेहरा । आँख से आँख मिलल तो नन्हकू के नजर नीचे होके जमीन में गड़ गेल । चुकू-मुकू बइठ के मलकिनी के मन-मोताबिक कलकत्ता के मड़वारिन के खिस्सा सुनावे लगल - एक से एक अँटारी हे हुआँ । नीचे से नौतल्ला देखब तो माथा के टोपी गिर जाएत ।)    (समसा॰03:1:67.21)
98    चुक्को-मुक्को     (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।)    (समसा॰03:1:43.2)
99    चूड़ा-गूँड़     (नन्हकू घंटा भर मलकिनी से गप्प करइत रहल अउ मलकिनी के देल चूड़ा-गूँड़ के कटोरा साफ कएला के बादे साफ करे ला उठल ।)    (समसा॰03:1:68.11)
100    छँहुरा     (जेकर आगु धन-सुख, अराम, सफलता, आदमीयत अरदास करऽ हल, अब ओकरे सुख हवा के कंधा पर चढ़के कौन लोक में कहाँ उड़ गेल ? गाम, टोला, जेवार में, इनका सब रुपइया के एगो झमेटगर दरखत बुझऽ हलन, जेकर छँहुरा में केतना के भलाय भेल हल ।)    (समसा॰03:1:54.28)
101    छाव     (हमर एगो बेटा कामदेव हलन जे खेसारी नियर अपन छावे न छोड़लन । बेकहल आ बेमाथ के लइका अपन साढ़ू महादेजी से छेड़खानी कर देलक आ उनकरे हाथ से मारल गेल ।)    (समसा॰03:1:84.25)
102    छीछा-लेदर (= व्यर्थ का बकवास; फजीहत, बेइज्जती; दोषारोपण; दुर्दशा)     (पंचइती में जवन मकसद से बोलावल गेल हे, अपने के मालुमे होएत ? तूँ-तूँ, मैं-मैं, थूका-थूकी, छीछालेदर से का फयदा ? अपने इज्जतदार ही, मनिंदे ही जेवार के । सही बात कबूल करे में अपने के दिकते का हे ?)    (समसा॰03:1:71.27)
103    छुअल-छापल     ("एगो मुसलमान हे - रेडीमेड के दुकान हे ओकर, जेकरा उ बचपन से खुम मानऽ हलन, इनकर बचपन के दोस्त के लड़का हे नजीर खान ।" - "अउ खनय-पिनय ?" - "सब ओकरे हीं, ओकरे बनल-छुअल-छापल ...।" कहके उ बड़ी घिरना से मुँह सिकोड़ लेलक ।)    (समसा॰03:1:54.14)
104    छोटकु (= 'छोटका' का ऊनार्थक)     (सहर के मकान के किराया अउ किताब के अमदनी छोटकु के पढ़ाय में लगत अउ हम्मर मरे के बाद दुनूँ भाय सहर के मकान राजी-खुसी बाँट लेत ।; हमरा अचानक मरे अउ छोटकु के घर नञ् लौटे के हालत में हम्मर संस्कार, किरिया-करम नजीर करत । उ जलावे, चाहे गाड़ दे, चाहे गंगा में ले जाके फेंक दे ।)    (समसा॰03:1:55.16, 18)
105    छोपना     (परसुराम के समय बाप के कहला पर माय रेनुका के छन में मूड़ी छोपना, छन में जोड़ना - ई तोर कइसन लीला हल ?)    (समसा॰03:1:83.10)
106    जगत्तर     (हम करूँ त का करूँ । सारा जगत्तर हम अप्पन अवाज भेजली बाकि कोई सुनवे न करे हे । अइसन पर चेतत के ।)    (समसा॰03:1:59.24)
107    जग्गह (= जगह)     (टोरंटो आउ मेक्सिको में 'सत् सिरी अकाल' आउ 'केम छे - केम छे' हो सकल हे आउ तूँ मगहे के धरती पर फुलुसबुकनी छाँटऽ हऽ ! जग्गह देख के आचरण करऽ ! सकुन्नत मिलतो ।)    (समसा॰03:1:6.22)
108    जनगर     (त ई मनु के बारे में, हमर इतिहास के पहिल मील के पत्थर के बारे में, जान के की हमर बोल-वचन जादे जनगर, जादे जिमेवार आउ जादे संजत नञ् रहे के चाही ?)    (समसा॰03:1:11.16)
109    जन्नी-मरद     (परसुँ ओकर भाय के चिट्ठी कारगिल मोरचा से अइलइ हल । कानोकान खबर मिलते मातर करीम के घर में जन्नी-मरद के अइसन हुजूम उमड़लइ कि कजइ तिल धरइ के जगह नञ् ।)    (समसा॰03:1:45.3)
110    जब्बड़ (= निम्मन; अच्छा, बढ़िया)     (पगला बोलते रहे, ओकरा से का ? एगो ओकरे कान जब्बड़ हे । सारा जहान के लोग मूरख हइ ?)    (समसा॰03:1:60.9)
111    जरलाहा     (हम तो खाली सरापे देके रह गेली । बस चलइत हल त ऊ जरलाहा के चेहरा करिखाही हँड़िया से हम पोत देती । तू मउगर आ घरघुस्सु बनके बिछौना पर पड़ल रहऽ ।)    (समसा॰03:1:83.6)
112    जरिक्को     (हम तो फूटल आँख से भी तोरा जरिक्को पसंद न कैली हल । अलचार हो गेली ।)    (समसा॰03:1:78.25)
113    जिम्मेवारी     (अब पूरा घर के जिम्मेवारी बउआ चतुर्भुज जी के कन्हा पर पड़ल । इनकर पढ़ाई-लिखाई बंद हो गेल ।)    (समसा॰03:1:100.4)
114    जुकुत (= जुकुर; लायक)     (नन्हकू सुनावे लगल । सुनएते-सुनएते ओकरा याद आएल मईंयाँ के बात । मईंयाँ मने बाबू साहेब, बाबू साहेब मने मालिक के लड़की, जे छौ साल पहिलहीं बिआहे जुकुत हो गेल हल । जेकरा ऊ 'दीदी' कहऽ हल । पुछलक - "मालिक ! दीदी के का हाल-चाल हइन । शादी तो ... ?")    (समसा॰03:1:66.26)
115    जे हे से कि     (पंचइती एहीं पर खतम हो गेल । कहानी कहताहर ई कथा के थोड़ा अउर आगे ले जा हथ । ऊ सुनावऽ हथ कि दोसरके दिन साँझ होएते-होएते गाँव में आन्हीं अइसन खबर दउड़े लगल कि नन्हकुआ के बेटा अब-तब में हे । फिर इ खबर मिलल कि ओकर बेटा मर गेल । लहास लेके मरघटा पर चल गेलन लोग । नन्हकू के रोवइत-रोवइत हालत एकदम खराब हे । ऊ जे हे से कि 'सत्' के गरिया रहल हे । अइसने ढेर मनी अफवाह ।)    (समसा॰03:1:73.9)
116    जेकरे-सेकरे     (अखबार-पतरिका में कहानी-कविता लिख के अउ वेतन अमदनी से ढेर बचा ले हलन, लेकिन जेकरे-सेकरे काम में जरूरी पड़े पर लगा दे हलन ।)    (समसा॰03:1:52.16)
117    जेवठान (= जेठान)     (सच पूछल जाय तो तोरा अइसन आलसी सिरिष्टी में एको न मिलत । तूँ हर कातिक के जेवठान के दिन सेसनाग के बिछउना से अपन देह डोलावऽ ह । बाकी दिन बिछौने पर पड़ल रहवऽ ।)    (समसा॰03:1:80.12)
118    जेह (= जे; ~ में = जिसमें)     (हमर सवाल जइसे उठाके ओकरा ऊहे माहौल में जा पटकलकइ हल, जेह में हर तरफ से ठूल आउर ताना ओकर आतमा के बनाहे के मथि के धरि देलकइ हल ।)    (समसा॰03:1:44.29)
119    झंगरी (= झंगड़ी)     (लगल कि उ झमेटगर पेड़ के डंघुरी अइसन मुरझा गेल हे, जइसे होलइया में झोंके पर बूँट-केराय के झंगरी ।)    (समसा॰03:1:55.4)
120    झमाना     (हरिन मता देवइवला बीच दुपहरिया में परवेज के फोन पर बतियावइ ले ऊ घर से निकसि गेलइ आउ चलते-चलते परेशान, भरकोस्सा पाट वली सकरी नदी पार करइत-करइत तऽ जइसे झुलसि के मातल, कछार के महुआ गाछ तर झमा बइठलइ हल ।)    (समसा॰03:1:45.26)
121    झमेटगर (= झमेठगर, झमठगर)     (जेकर आगु धन-सुख, अराम, सफलता, आदमीयत अरदास करऽ हल, अब ओकरे सुख हवा के कंधा पर चढ़के कौन लोक में कहाँ उड़ गेल ? गाम, टोला, जेवार में, इनका सब रुपइया के एगो झमेटगर दरखत बुझऽ हलन, जेकर छँहुरा में केतना के भलाय भेल हल ।; लगल कि उ झमेटगर पेड़ के डंघुरी अइसन मुरझा गेल हे, जइसे होलइया में झोंके पर बूँट-केराय के झंगरी ।)    (समसा॰03:1:54.27, 55.3)
122    झरना (= झड़ना)     (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।)    (समसा॰03:1:43.3)
123    झलाझल     (गाम के मकान में नूनी चूअऽ हल । अप्पन सौख-मौज के गियारी दबा के, पेट काट के ओकरा केतना जतन करके उ अइँटा सिरमिट चूना-रंग से झलाझल कर देलन ।)    (समसा॰03:1:52.21)
124    झुठिआना (= झूठा साबित करना)     (मुंबई मेल पटरी के छाती उ धरती रौंदले, हवा के झूठिअउले, हवा से बात करइत, तूफान मचउले, दनादन उड़ रहल हल ।)    (समसा॰03:1:52.25)
125    टेट (= जेभी; जेब, पॉकेट) (~ गरमाना)     (छौ साल तक नौकरी कएला के बाद जब ओकर टेट गरमाएल तो याद आएल अपन गाँव, अपन माय, बेटा अउर बेटा के माय । माया-मोह एतना जगल कि अपन मालिक से बात कएलक अउर एक महिना के छुट्टी लेके गाँव चल आएल ।)    (समसा॰03:1:65.22)
126    डंघुरी (= डँहुड़ी; डाली)     (लगल कि उ झमेटगर पेड़ के डंघुरी अइसन मुरझा गेल हे, जइसे होलइया में झोंके पर बूँट-केराय के झंगरी ।)    (समसा॰03:1:55.4)
127    डरीर     (ई अछरंग न हो, बावन तोला पावस्ती आ पत्थल के डरीर हो । तोर तीनो औगुन के हिगरा-हिगरा के हम समझा दे ही ।)    (समसा॰03:1:79.12)
128    डहकना     (विधना के मारल रामजी चौदह बरिस तक फूल अइसन कोमल मेहरारू अउ बिजली-आग जइसन डहकइत भाय के संगे ले के जंगल अगोरलन ।)    (समसा॰03:1:49.16)
129    डिराड़     (राम, किसन, गौतम, सुभास के इ देस में पसु-पच्छी सब के पेयार करे के सिच्छा देल जाहे । दोस्ती में अमीर-गरीब के डिराड़ इहाँ नञ् हे । किसन-सुदामा एक्कर नमूना हथ ।)    (समसा॰03:1:51.10)
130    डेरगूह (= डरने वाला, कायर)     (मोरचा के नामे से हुनखा हद्दस समा गेलइ आउ श्रीनगर छावनी अस्पताल में भर्ती हो गेलन । हम नञ् समझऽ हलिअइ कि हमर बहनोय एत्ते कायर होतइ ।/ आउ तखनइ से लोग ओकरा ताना मारऽ लगलइ हल - तऽ, रेशमा के सइयाँ डेरगूह ! गे दइया, सब तऽ लड़ि रहलइ हे, आउ एगो ई जवान हइ कि खटिया पर टउनिक पी रहलइ हे, छी !)    (समसा॰03:1:45.18)
131    डौंघी (दे॰ डउँघी)     (ओकर बाद उ ठहाका मार के हँस्से लगल, हँस्से लगल । अवाज से असमान फट्टे लगल, गाछ के डौंघी कड़कड़ा के टूटे लगल ।)    (समसा॰03:1:60.4)
132    ढनकना     (हमरा से कोय बाप के नाम पुछतन त हम अटल बिहारी वाजपेयी थोड़े कह देम । मदर टेरेसा के माय समझम आउ अपन माय के दुआरी-दुआरी ढनके ल छोड़ देम ।)    (समसा॰03:1:7.2)
133    ढरकना     (आँख से ओकर लोर ढरक जाहे ।)    (समसा॰03:1:58.5)
134    ढूका (~ लगाना)     (एगो दरोपदी के लूगा खिंचला पर महाभारत भेल हल, बाकि तूँ तो ढूका लगा के सैकड़ों मेहरारुन के लूगा-फाटा नुकैलऽ हल ।)    (समसा॰03:1:83.8)
135    ढेढर     (अपन आँख से केकरो अपन लिलार न देखाई पड़े ! अपन ढेढर न देख के दोसर के फुल्ली लोग निहारऽ हे ।)    (समसा॰03:1:77.19)
136    ढेरेक (= बहुत-कुछ)     (डॉ. उमाशंकर सिंह 'सुमन' मगही-हिंदी में खूब पकड़ रखऽ हथ । मगही में ई अपना के रामप्रसाद स्कूल के प्रोडक्ट बतावऽ हथ । हमर नजर में इनका में लेखक के रूप में ढेरेक संभावना हे ।)    (समसा॰03:1:90.3)
137    तेलही     (भले मगहियन तोरा नियन संभ्रांत, अभिजात्य नञ् कहला रहल हे बकि अपन बाल-बच्चन ले सोन्ह मट्टी के गंध, सुगंधित हावा, संतुलित पर्यावरण तूँ जँघिया-बनियान बेच के भी नञ् जुटा सकवऽ । तेलही पकौड़ी इया चौकलेट चाउमीन जेतना खा-खिला लऽ, ताजा आउ दुद्धा-भतिया के सवाद अबरी जलम में लीहऽ ।)    (समसा॰03:1:6.6)
138    थमाना     ("सुनइत हऽ न तोहनी सब ? इ नन्हकुआ के बढ़कुआ बनल । अइसन बदमासी ! अइसन मजाक ! अरे एही करे ला हउ तो जो अपन बाप से कर, माय से कर, गैर से कर । का हो गेल दुनियाँ ? लड़िकाई से मोंछ के रेघारी आवे तक जे हमरे अनाज पर पोसाएल, हमरे निमक खएलक, वो ही परदेस से दु पइसा हाथ में लेके आएल तो थमाइते न हे ?")    (समसा॰03:1:71.12)
139    थूका-थूकी     (पंचइती में जवन मकसद से बोलावल गेल हे, अपने के मालुमे होएत ? तूँ-तूँ, मैं-मैं, थूका-थूकी, छीछालेदर से का फयदा ? अपने इज्जतदार ही, मनिंदे ही जेवार के । सही बात कबूल करे में अपने के दिकते का हे ?)    (समसा॰03:1:71.26)
140    दइया (~ गे !)     (इस्स ! दइया गे, तूँ तऽ नजूमी नियर बात करऽ हो जी, कहाँ घर हो ? - बायाँ हाँथ पर गाल रखि के ऊ एगो खास अंदाज में मुसकइत पुछलकइ ।; मोरचा के नामे से हुनखा हद्दस समा गेलइ आउ श्रीनगर छावनी अस्पताल में भर्ती हो गेलन । हम नञ् समझऽ हलिअइ कि हमर बहनोय एत्ते कायर होतइ ।/ आउ तखनइ से लोग ओकरा ताना मारऽ लगलइ हल - तऽ, रेशमा के सइयाँ डेरगूह ! गे दइया, सब तऽ लड़ि रहलइ हे, आउ एगो ई जवान हइ कि खटिया पर टउनिक पी रहलइ हे, छी !)    (समसा॰03:1:43.21, 45.18)
141    दक्क-दक्क     (तीन-चार दिन के बाद उनकर दलान पर एक मूरत आएल । उज्जर बग-बग धोती अउर दक्क-दक्क कुरता पहिनले, कान्हा पर ललका गमछा धएले अउर दोसरा कान्हा पर रेडियो लटकएले ।)    (समसा॰03:1:66.4)
142    दमाही     (फिनो खटिया से उठलन । दमाही के बैल अइसन चार-पाँच डेग गोले घुमलन अउ बिफरइत अपन खटिया पर पसर गेलन ।)    (समसा॰03:1:71.16)
143    दारोमदार (= निर्भर)     (जमींदारी बौन्ड के रुपेआ हल मिलेवाला । ओकरे पर सब दारोमदार हल ।)    (समसा॰03:1:68.24)
144    दिन-दुनियाँ     (दिन-दुनियाँ देख के आँख के आगु अब पुनियो में अमस्या के अंधरिया लौकऽ हे ।)    (समसा॰03:1:54.7)
145    दुबर-पातर     (लगभग बीस बरिस के बाद 1983 के जाड़ा में अचुके उ एक दिन बोधगया के मंदिर घुमइत भेंट गेलन, साथे में एगो गोरनार, लत्तर जइसन, दुबर-पातर, बिना हाड़-मास के मेहरारू के देख के इ समझ में आ गेल कि उ एगो से दूगो हो गेलन हे ।)    (समसा॰03:1:50.9)
146    देनय     (परोपकार पुन हे, अउ दुख देनय पाप ।)    (समसा॰03:1:51.24)
147    देहजरुआ     (सब्भे जवान सरहद पर दुसमन से लड़ि रहलइ हे । मुदा एगो हम्मर मरद हइ कि देहजरुआ हद्दस से बहाना बना के श्रीनगर सैनिक अस्पताल में बीमार पड़ल हइ ।)    (समसा॰03:1:46.4)
148    दोआ (= दुआ)     (कलकत्ता जाए से कम-से-कम एतना तो जरूरे होएल कि अपने सब के दोआ से दस-बारह हजार रुपेआ हाथ में हे ।)    (समसा॰03:1:68.18)
149    धराँव     (मगही भासा के पक्ष में ई तर्क भी न्याय सम्मत हे कि एकर ढेर साहित्य नालंदा-विक्रमशिला के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में लुटेरन द्वारा जरा देल गेल हे । बहुत से नीमन रचना छपे के अभाव में धराँव धरा गेल आउ काल-कवलित हो गेल ।)    (समसा॰03:1:31.3)
150    धुकधुकाना     (झूठमूठ के 'सौलेटरी रीपर' के पढ़ेवला लोग-बाग जदि मगध के धनरोपनी के गीत-कजरी सुन लेतन त उनकर करेजा धुकधुकाय लगत ।)    (समसा॰03:1:5.16)
151    धुन्नल (~ रुइया अइसन केश)     (1963 में जोवाला जी के एम.ए. के परिच्छा देके पटना से घर लउटते घड़ी उनकर दादी के गया टीसन पर हम देखलुँ हल - दूध अइसन दप-दप उज्जर, बरफ अइसन चमकइत बतीसो दाँत, धुन्नल रुइया अइसन फह-फह माथा में गिनल-गुथल केस, 87 बरिस के उमर में भी उनकर देह-दसा, चेहरा पर चमक हल ।)    (समसा॰03:1:50.21)
152    धुरफंद     (हमर पूजा करबे तो का पएबे ? छलबाज, कपटी, धुरफंदियन तोरा जीए न देतन, जीते के बात तो दूर के हे । धुरफंदियन के धुरफंदिए से हरा सकऽ हें । अपन बेटा लेके घर जा । बुद्धि, छल, धुरफंदी से काम निकालऽ ।)    (समसा॰03:1:73.16, 17)
153    धुरफंदी     (हमर पूजा करबे तो का पएबे ? छलबाज, कपटी, धुरफंदियन तोरा जीए न देतन, जीते के बात तो दूर के हे । धुरफंदियन के धुरफंदिए से हरा सकऽ हें । अपन बेटा लेके घर जा । बुद्धि, छल, धुरफंदी से काम निकालऽ ।)    (समसा॰03:1:73.17, 18)
154    धौगना     (डॉ. नलिन के संस्कृत, पालि आउ हिंदी तीनों विषय के प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त हे । एकर अलावे ई डी.लिट्. भी हथ । ने मालूम कय दर्जन शोधार्थी इनकर अर-असीरवाद से विदमान बन के धौगल चलऽ हथ । केतना कवि कविआँठ बन के नितराल चलऽ हथ ।)    (समसा॰03:1:106.8)
155    नक्कल (= नकल)     (उनकर की कहना जे गाँव-घर छोड़ के चल गेलन । बकि तूँ उनकर नक्कल करऽ हऽ ई बुद्धिमानी नञ् कहल जा सको ।)    (समसा॰03:1:6.25)
156    नखलउ (= लखनऊ)     (पटना में सादी-रोसकदी, बिदाय वाला काम पूरा कराके उ नखलउ लौट गेलन, अउ हम अप्पन घर राजगीर ।)    (समसा॰03:1:53.22)
157    नजर-गुजर (~ लगना)     (आज तक विश्वविद्यालय में टौप करे वाला छात्र के कोंपी सार्वजनिक न करल गेल, जबकि ई माँग उठइत रहल हे । सार्वजनिक न करे के पीछे हमरा लगऽ हे कि ऊ सार्वजनिक करे के चीजो न होवे । ऊ तो धरोहर होवऽ हे से ओकरा अइसन रख देल जाहे कि हवा-बतास इया नजर-गुजर नऽ लगे ।)    (समसा॰03:1:93.20)
158    नामी-गरामी     (ई देखल भी जा रहल हे कि कोई नामी-गरामी साहितकार के उनकर किताब इया नाम के उजागर करे में बहुते हाँथ रहल हे ।)    (समसा॰03:1:94.10)
159    नाय (= नाव)     (लेकिन अब सब भरनठ हो गेल हे । नञ् कोय ईमनदार नेता हे, नञ् सरकारी करमचारी, नञ् कोय ओइसन दारसनिक आउ समाजसेवी हे, जे देस के डूबइत नाय के बचा सके ।)    (समसा॰03:1:51.13)
160    निमोछिया     (मोंछ-दाढ़ी तोरा कभी भेल जे मरद के असली पछान हे ? मिरतूलोक में निमोछिया के खूब चिड़कावल जाहे ।; डेली पसिन्जर के संख्या सौ में होअऽ हे - से तो भारी पड़ जा हथ आउ इनकर संख्या तो हजार में हे । फिर निमोछिया ग्रुप के पास तो कोई बुद्धि न होअऽ हे । कुछ बोलना हे साढ़ेसाती के निमंत्रण देना ।)    (समसा॰03:1:83.23, 88.21)
161    निम्मन     (जब दिमाग के दरवाजा पर जवानी के उमंग पहरेदार बन के बैठ जाहे, तब कोय निम्मन बात कि, हवा भी अंदर नञ् पहुँच सकऽ हे ।)    (समसा॰03:1:53.20)
162    नीचू (= नीचे)     (हमर मुँह ताकइत ऊ गंभीर हो गेलइ हल, फिन नीचू ताकइत जमीन खुरचऽ लगलइ हल अंगुरी से ।)    (समसा॰03:1:44.20)
163    नुकाना (= छिपाना)     (एगो दरोपदी के लूगा खिंचला पर महाभारत भेल हल, बाकि तूँ तो ढूका लगा के सैकड़ों मेहरारुन के लूगा-फाटा नुकैलऽ हल ।)    (समसा॰03:1:83.9)
164    नूनी     (गाम के मकान में नूनी चूअऽ हल । अप्पन सौख-मौज के गियारी दबा के, पेट काट के ओकरा केतना जतन करके उ अइँटा सिरमिट चूना-रंग से झलाझल कर देलन ।)    (समसा॰03:1:52.20)
165    नोखगर (= नोकदार)     (बाप के हिन्छा हलइ कि बेटा कलट्टर, जज, इंजीनियर, वकील चाहे एस.पी. बने, लेकिन मन के हिन्छा केकर पूरल हे । कुछ करम के हाथ में, तो कुछ विधना के हाथ में रहऽ हे, जे उ जलमइ से पहिले केकरो लिलार में खोद के अप्पन नोखगर कलम से लिख दे हथ ।)    (समसा॰03:1:49.14)
166    पगलाना     (तू काहे ला पगलाइल हें, उ पगला से कउन पूछे । लइकन सब ओकरा लुलुआइत हलन, ओकर कपड़ा खीचैइत हलन, ओकरा लंगटे करइत हलन, थूक फेकइत हलन, पगला से आजिज हो गेलन हल ।)    (समसा॰03:1:58.18)
167    पछान     (मोंछ-दाढ़ी तोरा कभी भेल जे मरद के असली पछान हे ? मिरतूलोक में निमोछिया के खूब चिड़कावल जाहे ।)    (समसा॰03:1:83.23)
168    पड़ी (= परी) (इन्नर के ~)     (सोना के गहना पहिनले रुन-झुन करइत मड़वारी सब के मेहारू, बेटी । भगवान धनो देले हथी अउ अपने हाथे उनकर रूप-रंग गढ़ले हथ । इन्नर के पड़ी सुनऽ ही खिस्सा-कहानी में । ओही हुआँ आँख से देखली तो हम भुला गेली गाँव-घर, मेहारू-परिवार सब कुछ ।)    (समसा॰03:1:67.25)
169    पथार     (हमनी बिहार रेजिमेंट के साथी सब तीन तरफ से अप्पन ढेरो साथी से बिछुड़इत आउ दुश्मन के पथार लगावइत टायगर चोटी पर अपन झंडा फहरा के फतह हासिल करि लेलिअइ हे ।)    (समसा॰03:1:45.12)
170    परचित (= परिचित)     (उ अप्पन छोटकी बेटी के बियाह करके, करजा-पैंचा लेके छोटका बेटा के पढ़ाय खातिर दिल्ली भेज के आजकल अप्पन एगो परचित अमदी के साथ रहऽ हथ ।)    (समसा॰03:1:53.26)
171    परसुँ (= परसों)     (परसुँ ओकर भाय के चिट्ठी कारगिल मोरचा से अइलइ हल । कानोकान खबर मिलते मातर करीम के घर में जन्नी-मरद के अइसन हुजूम उमड़लइ कि कजइ तिल धरइ के जगह नञ् ।)    (समसा॰03:1:45.2)
172    पलखत     (पलखत पाके न जानी कखनी अपन माया से ई इहाँ से अलोपित हो जा हथ, से हम न जानली । एक जगह पर ई टिकबे न करथ ।)    (समसा॰03:1:78.5)
173    पसिन्जर (= पैसेन्जर; यात्री)     (डेली पसिन्जर के संख्या सौ में होअऽ हे - से तो भारी पड़ जा हथ आउ इनकर संख्या तो हजार में हे । फिर निमोछिया ग्रुप के पास तो कोई बुद्धि न होअऽ हे । कुछ बोलना हे साढ़ेसाती के निमंत्रण देना ।)    (समसा॰03:1:88.19)
174    पसिन्जरी (= पसिन्जर का काम; यात्रा)     (एगो से लड़ाई करना बिर्हनी के खोंता में नाक रगड़ना हे आउ हम भी तो डेली पसिन्जरी कइली हे । छेड़े के परिनाम जानवे करऽ ही । चुपे रहे में फयदा हे ।)    (समसा॰03:1:88.8)
175    पसीन (= म॰ पसन; हि॰ पसन्द)     ("इ बिआह अप्पन पसीन से भेल कि बाबूजी आउ माय के हिन्छा से ?" - "1964 में इ बिआह पर ममता के मूरति, दया के देवी, स्नेह के समुंदर हम्मर दादी के पसीन के मोहर लगल हल, माय-बाप के बात-विचार से नञ् !)    (समसा॰03:1:50.14, 16)
176    पहिने (= पहिले)     (ओन्ने से की बात होलइ, हमरा मालूम नञ् । मगर एन्ने से रेशमा ओकरा धिक्कार रहलइ हल । पहिने तऽ जइसे बोली में मिसरी घोरि देलकइ - अस्लाम अलइकुम परवेज ! मुदा तुरतइ अवाज बदलि देलकइ हल ... - सुनऽ हिअइ जुध बंद हो गेलइ, अब तऽ तोर मन ठीक हो जाय के चाही ?)    (समसा॰03:1:46.20)
177    पाँख-पुच्छी     (परेम बिना पाँख-पुच्छी के पंछी हे, जे अकास से उतरऽ हे, अउ अकासे में उड़के बिला जाहे । इ संसार के सबसे बड़गो दौलत हे - परेम ।)    (समसा॰03:1:54.23)
178    पातना (कान ~)     (हम बगल में दम साधि के ओकर एक-एक बात सुनइ ले कान पाति देलिअइ हल ।)    (समसा॰03:1:46.16)
179    पाप-पुन (= पाप-पुण्य)     (अच्छा, अपने तो करमकांड, पूजा-पाहुर के ढकोसला कहऽ ही तो पाप-पुन कुछ हे कि नञ् ?; पाप-पुन के बीच में बिसफिटा देवाल थोड़के हे । अठारहो पुरान, चारो वेद के सार हे कि जे करम से केकरो सरीर, दिल, दिमाग के पीड़ा हो, से पाप अउ जेकरा से मन हरखित हो से पुन हे । परोपकार पुन हे, अउ दुख देनय पाप ।)    (समसा॰03:1:51.20, 22)
180    पावस्ती     (ई अछरंग न हो, बावन तोला पावस्ती आ पत्थल के डरीर हो । तोर तीनो औगुन के हिगरा-हिगरा के हम समझा दे ही ।)    (समसा॰03:1:79.11)
181    पीढ़ा     (अंगना में मलकिनी के देखलक तो 'पाँव लागी' कएलक । मलकिनी चेहाइत नजर से देख के 'खुश रहऽ' कहलन । बरामदा में रखल पीढ़ा लाके ओकरा दने सरका देलन । नन्हकू कान्हा से गमछी उतार के पीढ़ा पर रखलक अउ बइठ गेल ।)    (समसा॰03:1:67.17, 18)
182    पुटपुटिया     (दुनियाँ तो निमने चलइत हे । सब लोग अजाद हइए हथ । जेकरा मन करऽ हे तेकरा उड़ा देहे । पुटपुटिया दाग देहे ।)    (समसा॰03:1:58.11)
183    पेसकी (= पेशगी; अग्रिम)     (जेकरा से बात तय हल ऊ पेसकी मँगलक । न देवे पर दुसरा के हाथे जमीन बेचे के धमकी देवे लगल ।)    (समसा॰03:1:70.4)
184    फटीचर     (बिना ठाट-बाट के काम कइसे चलत ? फटीचर नियर रहेवला के कोई पूछऽ हे ?)    (समसा॰03:1:81.23)
185    फरियाना     (तनि फरिया के तो कहऽ साफ-साफ । कौन लच्छन से हम लालची, आलसी आ सौखीन लगऽ ही ? ई तीन-तीन अछरंग हमरा पर लगावे में तोरा जरिक्को सरम न आयल ?)    (समसा॰03:1:79.8)
186    फलना     (इधर नेता लोग चुनाव जीते ला पार्टी के नाम कम, अपन नेता के नाम के माला जादे जपऽ हथ । कोई कहऽ हथ हम फलना के संतान ही ।; बहुते लोग के सुनली होयत कि हम तो फलना विदमान के चेला रहली हे, फलना से पढ़ली हे, फलना से तो रोजे भेंट होवऽ हल इया फलना विद्यापीठ इया विश्वविद्यालय से हम पास कइली हे । ई बात तो ठीके हे, बाकि अपने ओइसन बन पइली कि नऽ, सवाल ई हे ।)    (समसा॰03:1:92.25, 93.9, 10, 11)
187    फुटानी     (फरमाइस आ फुटानी आज तलक तोरा नियर कोई कैलक ? केतना कहूँ, मुँह दुखा गेल । सौखीनी आउ कइसन होवऽ हे ?)    (समसा॰03:1:81.3)
188    फुलुसबुकनी (~ छाँटना)     (ई कहऽ ने कि कोय बकलोल विदमान से सुन लेलऽ हऽ कि मगही दलित लोग के भाषा हे, आदिवासी सब के भाषा हे, तोर अभिजात्य जबान पर ई इहे गुने नञ् चढ़ो । बछिया के ताऊ हऽ तूँ ! टोरंटो आउ मेक्सिको में 'सत् सिरी अकाल' आउ 'केम छे - केम छे' हो सकल हे आउ तूँ मगहे के धरती पर फुलुसबुकनी छाँटऽ हऽ ! जग्गह देख के आचरण करऽ ! सकुन्नत मिलतो ।)    (समसा॰03:1:6.22)
189    फुल्ली     (अपन आँख से केकरो अपन लिलार न देखाई पड़े ! अपन ढेढर न देख के दोसर के फुल्ली लोग निहारऽ हे ।)    (समसा॰03:1:77.20)
190    बकबकाना     (कोय उ पगला के पूछे ला नञ् तैयार रहे कि उ का बकबकैले हे, जेकर अवाज असमान तक अनोर कइले हे ।; अब पगला के, के रोके, के पूछे कि तू का बकबकैले हें ।)    (समसा॰03:1:58.4, 9)
191    बकबक्की     (कउन हलन उ ! उ पगला के सामने अप्पन हाथ फैला के खड़ा हो गेलन । उनकर देह पर भभूत हल । धरती के मट्टी हल । उजरका रेत नियन उनखर देह चाँदी नियन चमक रहल हल । पगला आवइत-आवइत रुक गेल - रुक गेल बकबक्की ओकर ।)    (समसा॰03:1:59.13)
192    बकलोल (= मूर्ख)     (जबकि मगही बोलते घड़ी तो तोर चहेती भाषा अंगरेजी के बेहवार के पूरा छूट दे देलियो हे, त ई बोकराती तो करवे नञ् करऽ कि मगही बोले से हमर हिंदी बिगड़ जाहे । ई कहऽ ने कि कोय बकलोल विदमान से सुन लेलऽ हऽ कि मगही दलित लोग के भाषा हे, आदिवासी सब के भाषा हे, तोर अभिजात्य जबान पर ई इहे गुने नञ् चढ़ो ।)    (समसा॰03:1:6.18)
193    बग-बग (उज्जर ~)     (तीन-चार दिन के बाद उनकर दलान पर एक मूरत आएल । उज्जर बग-बग धोती अउर दक्क-दक्क कुरता पहिनले, कान्हा पर ललका गमछा धएले अउर दोसरा कान्हा पर रेडियो लटकएले ।)    (समसा॰03:1:66.3)
194    बड़वरगी (~ बखानना)     (नन्हकू अउर कुछ कहइत, लेकिन दीदी टोक देलकइ बीचे में - "बहुते बड़वारगी बखानइत हऽ हुँआँ के । ई बतावऽ कि हुँआँ से का लएला हे हमरा खातिर ?" नन्हकू माथा खजुअलक । फिर बोलल - "हाँ लएले ही तोरा खातिर ढाका के बनल मलमल के थान अउर बनारसी साड़ी । तोर सादी में देबवऽ दीदी ।")    (समसा॰03:1:68.2)
195    बढ़कुआ     ("सुनइत हऽ न तोहनी सब ? इ नन्हकुआ के बढ़कुआ बनल । अइसन बदमासी ! अइसन मजाक ! अरे एही करे ला हउ तो जो अपन बाप से कर, माय से कर, गैर से कर । का हो गेल दुनियाँ ? लड़िकाई से मोंछ के रेघारी आवे तक जे हमरे अनाज पर पोसाएल, हमरे निमक खएलक, वो ही परदेस से दु पइसा हाथ में लेके आएल तो थमाइते न हे ?")    (समसा॰03:1:71.9)
196    बढ़मा (= बर्हमा; ब्रह्मा)     (कोई महादे के भेजल इहाँ आवत, ई ओकरा बढ़मा जी के पास भेज देतन, कभी महादे के पास पेठैतन । जे लोग के दिमाग कमजोर रहऽ हे ओही नेआव करे में कसर-मसर करऽ हे !)    (समसा॰03:1:81.18)
197    बदराना (= बादर/ बादल छाना)     (ओकर आँखि कभी गुस्सा आउ नफरत से जलि सिकुड़ि उठऽ हलइ तऽ कभी बदराल अकास सन चुचुआल ।)    (समसा॰03:1:45.29)
198    बनाहे (~ के = बनाय के)     (हमर सवाल जइसे उठाके ओकरा ऊहे माहौल में जा पटकलकइ हल, जेह में हर तरफ से ठूल आउर ताना ओकर आतमा के बनाहे के मथि के धरि देलकइ हल ।)    (समसा॰03:1:45.1)
199    बरमहल     (सावन-भादो महीना में सुरुज के रथ पर उनकरे साथ ऊ बरमहल रहऽ हे । ऊ चवन रिसी के पिता हल ।; तोरा नियर जालिया, ठग आ बहुरुपिया आज तक कोई भेल ? जालंधर वला कांड के सराप भुला गेलऽ हे, बरमहल ओकरे गोर तर रहे पड़ऽ हवऽ ?)    (समसा॰03:1:82.24, 84.16)
200    बलाय (= बला)     (एन्ने, न ओन्ने, ई बलाय कन्ने से हमरा भिजुन आ गेलन हे ।; हमरा बलाय कहऽ ह ? जब हम बलाय हली तब समुन्नर से निकलइते लपकइत हमर हाथ काहे पकड़ लेलऽ हल ?)    (समसा॰03:1:78.10, 14, 15)
201    बहनोय (= बहनोई)     (मोरचा के नामे से हुनखा हद्दस समा गेलइ आउ श्रीनगर छावनी अस्पताल में भर्ती हो गेलन । हम नञ् समझऽ हलिअइ कि हमर बहनोय एत्ते कायर होतइ ।)    (समसा॰03:1:45.15)
202    बाभन-रजपुत     (एकदमे से बाभन-रजपुत जुकुर लगइत हे । सोकुमारी अइसन कि जरा सुकुन सींक मारला पर देह से खून टपके लगे ।)    (समसा॰03:1:65.27)
203    बारना (= जलाना)  (दीया ~)     (जानऽ हीं परवेज, सीमा पर लड़इत अगर तूँ सहीद हो जइतहीं हल, तऽ जिगर के खून से तोहर कब्र पर दीया बारतिअउ हल । मुदा अब ... अब डर से चूड़ी पेन्ह के साया में घुसि जायवला ... डर से पइजामा में पेसाब करि देबइवला तोहरा सन कायर के, कसम काली पगड़ी वला के, सौहर कहइ में कन्नी खा लेबइ के मन करऽ हउ !)    (समसा॰03:1:46.29)
204    बाह     (ठीके कहइत हऽ हो । हियाँ तो बड़-बड़ ऊँट दहलाएल जाइत हे, गदहवा के कवन बाह ? हमरे देखऽ । एके गो बेटी हे । एतना जमीन-जोत हे । बाकि बिआह के खरचा जोगाड़ कएल मोहाल हो गेल ।)    (समसा॰03:1:68.22)
205    बिर्हनी (= बिढ़नी, ततैया)     (एगो से लड़ाई करना बिर्हनी के खोंता में नाक रगड़ना हे आउ हम भी तो डेली पसिन्जरी कइली हे । छेड़े के परिनाम जानवे करऽ ही । चुपे रहे में फयदा हे ।)    (समसा॰03:1:88.7)
206    बूँट-केराय     (लगल कि उ झमेटगर पेड़ के डंघुरी अइसन मुरझा गेल हे, जइसे होलइया में झोंके पर बूँट-केराय के झंगरी ।)    (समसा॰03:1:55.4)
207    बेकहल     (हमर एगो बेटा कामदेव हलन जे खेसारी नियर अपन छावे न छोड़लन । बेकहल आ बेमाथ के लइका अपन साढ़ू महादेजी से छेड़खानी कर देलक आ उनकरे हाथ से मारल गेल ।)    (समसा॰03:1:84.25)
208    बेकुफी (दे॰ बेकूफी)     (नीम के पत्ता आउ डघुरी में मिठास अउ सुरूज के आगु में चंदरमा के सीतलता खोजनय बेकुफी हे । आत्मविसवास अउ हिम्मत के बल से कोय अमदी जोर से ढेला फेंक के असमान में छेद कर सकऽ हे ।)    (समसा॰03:1:52.11)
209    बेग (= बैग; bag)     (चद्दर झारली आउ सोचली कि रतजग्गा तो होइए गेल । अब दू-चार घंटा दिन में सुतल जाय । मुँह धोके लौटली तो देखित ही, पूरे पाँच सवारी बेग कान्हा में लटकौले सवार हथ ।)    (समसा॰03:1:88.1)
210    बेमाथ     (हमर एगो बेटा कामदेव हलन जे खेसारी नियर अपन छावे न छोड़लन । बेकहल आ बेमाथ के लइका अपन साढ़ू महादेजी से छेड़खानी कर देलक आ उनकरे हाथ से मारल गेल ।)    (समसा॰03:1:84.25)
211    बेमानी (= बेइमानी)     (अमरित के बँटवारा करे में तोर बेमानी न हल ? ऊ घरी ठसाठस भरल सभा में रछसवन के लोभावे ला सुन्नर मेहरारू के रूप तूँ धारन कैलऽ हल !)    (समसा॰03:1:79.29)
212    बेरस्ता     (चतुर्भुज जी के कहना हे कि लेखक अप्पन नाटक के चरित्र के ओएसहीं जलम देवऽ हे, जइसे एक माय अप्पन बेटा के । बाकि बेटा रस्ता से बेरस्ता हो जाय त लेखक चाहे माय-बाप का करतन ।)    (समसा॰03:1:100.24)
213    बोकराती (~ करना; ~ छाँटना)     (करवऽ कबुद्धी ! कउन तरह के दिमाग पइलऽ हऽ जी ! जबकि मगही बोलते घड़ी तो तोर चहेती भाषा अंगरेजी के बेहवार के पूरा छूट दे देलियो हे, त ई बोकराती तो करवे नञ् करऽ कि मगही बोले से हमर हिंदी बिगड़ जाहे ।)    (समसा॰03:1:6.17)
214    बोलनय     (पढ़े-लिखे बोलनय सभे में हलन उ बच्चे से अजगुत तेज-तर्रार ।)    (समसा॰03:1:49.28)
215    भंजाना (= भुनाना)     (पार्टी चुनाव में जीते के 'नाम' से सहारा लेहे । जइसे कांग्रेस आज तक इंदिरा जी के नाम भंजावे से नऽ चुकइत हे ।; बिहार में राजद भी कभी-कभी नाम लेके भोट भंजावे के कोरसिस में जगदेव बाबू के नारा आउ नाम समाज में मोहरा के रूप में फेंकऽ हे ।)    (समसा॰03:1:92.19, 22)
216    भकुआएल     ( अपन बेटा लेके घर जा । बुद्धि, छल, धुरफंदी से काम निकालऽ । कोई दिक्कत न होतवऽ । नन्हकू भकुआएल हल । सतजुग फिनो समझवलन - एकरा तूँ सज्जन-साधु लोग पर मत अजमइहऽ । खाली धुरतन पर करिहऽ । अब रोवऽ मत, घर जा बेटा लेके ।)    (समसा॰03:1:73.19)
217    भदगर (~ बात)     (न ! न ! अइसन काहे कहइत हऽ । ई सब भगवान के किरपा हे हो । जेकरा दे हथ तो छप्पर फाड़ के अउ ले हथ तो ... बाबू साहेब के भदगर बात कहे में अच्छा न लगइन । एही से कहइत-कहइत रुक गेलन, लेकिन नन्हकू पूरा कएल चाहलक तो ओकरा बीचे में रोक देलन - कहऽ, कहाँ हलऽ एतना दिन ?)    (समसा॰03:1:66.13)
218    भभूका (= लपट, ज्वाला, लौ) (चेहरा लाल ~ होना = क्रोध आदि से चेहरा लाल होना)     (रोवे लगे हे उ । फिनु छने ओकर माथा, आँख पर खून चढ़ जाहे - लाल भभूका ! लगे हे जंगल में आग लग गल ।)    (समसा॰03:1:57.13)
219    भरकोसा (= कोस भर वाला)     (नदी के भयावन भरकोसा बलुआ पाट पार करइ के थकान, लगे दम चलते जाय के ओकर साहस छीन लेलकइ हल ।)    (समसा॰03:1:43.6)
220    भरनठ     (लेकिन अब सब भरनठ हो गेल हे । नञ् कोय ईमनदार नेता हे, नञ् सरकारी करमचारी, नञ् कोय ओइसन दारसनिक आउ समाजसेवी हे, जे देस के डूबइत नाय के बचा सके ।)    (समसा॰03:1:51.12)
221    भरभराना     (पढ़ाई के नाम पर तऽ अंग्रेजी ठाट-बाट के कोई कमी नऽ हे । अंगरेजी रटइत हथ - सीता के सीटा आउ राम के रामा पढ़इत हथ । पापा-मम्मी नाम के जोर हे । मतलब विश्वगुरु भारत भरभराइत हे आउ हिंगलिस में गिटपिटाइत हे ।)    (समसा॰03:1:93.26)
222    भलाय (= भलाई)     (जेकर आगु धन-सुख, अराम, सफलता, आदमीयत अरदास करऽ हल, अब ओकरे सुख हवा के कंधा पर चढ़के कौन लोक में कहाँ उड़ गेल ? गाम, टोला, जेवार में, इनका सब रुपइया के एगो झमेटगर दरखत बुझऽ हलन, जेकर छँहुरा में केतना के भलाय भेल हल ।)    (समसा॰03:1:54.28)
223    भिरू (= भिर; पास)     ("अइसन काहे कहइत ही मालिक । फटलो ही तबो पितंबरी ही ।"/ "अरे अब कहाँ नन्हकू ऊ पुरान बात । अबहीं तो हमरा आग लेसले हे । कोई मददगार नइखी देखइत । जेकरा भिरू मुँह खोलऽ, हुँवईं लचारी के बहाना । हिआँ तो बेइजत होइत देखला पर लोगन के करेजा ठंढा होवऽ हे न ।")    (समसा॰03:1:69.8)
224    मईंयाँ     (नन्हकू सुनावे लगल । सुनएते-सुनएते ओकरा याद आएल मईंयाँ के बात । मईंयाँ मने बाबू साहेब, बाबू साहेब मने मालिक के लड़की, जे छौ साल पहिलहीं बिआहे जुकुत हो गेल हल । जेकरा ऊ 'दीदी' कहऽ हल । पुछलक - "मालिक ! दीदी के का हाल-चाल हइन । शादी तो ... ?")    (समसा॰03:1:66.25)
225    मउगर     (अमरित के बँटवारा करे में तोर बेमानी न हल ? ऊ घरी ठसाठस भरल सभा में रछसवन के लोभावे ला सुन्नर मेहरारू के रूप तूँ धारन कैलऽ हल ! हम तो चकित हो गेली । मुँह तोप के खूब हँसइत रहली । ऊ घरी तोर सब लूर-लच्छन मेहरारू वला हो गेल हल । तनिको अंदाज न हल कि हमर बिआह अइसन मउगर आ बहुरुपिया से हो गेल हे !; हम तो खाली सरापे देके रह गेली । बस चलइत हल त ऊ जरलाहा के चेहरा करिखाही हँड़िया से हम पोत देती । तू मउगर आ घरघुस्सु बनके बिछौना पर पड़ल रहऽ ।)    (समसा॰03:1:80.4, 83.6)
226    मउवत (= मउअत; मौत)     ("हाँ मालिक ! परेसानी तो बढ़िए गेल ।" - नन्हकू बोलल ।/ "बढ़िए न गेल । ई परेसानी न हे, हमरा खातिर मउवत हे । ई चाहे तो हमर परान लेत इया फिर समझऽ समाज में, जेवार में, रिसतेदारन के बीच हमर नाक काट के छोड़त ।")    (समसा॰03:1:69.3)
227    मजगर (= मजेदार)     (एक बात साफ कर देइथी कि ई कोई कहानी न हे, लेकिन एकरा में कहानी हे मजगर ।)    (समसा॰03:1:65.2)
228    मड़वारिन     (सजल-धजल दीदी के फूल अइसन चेहरा । आँख से आँख मिलल तो नन्हकू के नजर नीचे होके जमीन में गड़ गेल । चुकू-मुकू बइठ के मलकिनी के मन-मोताबिक कलकत्ता के मड़वारिन के खिस्सा सुनावे लगल - एक से एक अँटारी हे हुआँ । नीचे से नौतल्ला देखब तो माथा के टोपी गिर जाएत ।)    (समसा॰03:1:67.22)
229    मताना     (हरिन मता देवइवला बीच दुपहरिया में परवेज के फोन पर बतियावइ ले ऊ घर से निकसि गेलइ आउ चलते-चलते परेशान, भरकोस्सा पाट वली सकरी नदी पार करइत-करइत तऽ जइसे झुलसि के मातल, कछार के महुआ गाछ तर झमा बइठलइ हल ।)    (समसा॰03:1:45.23)
230    मरनय     (हमरा बड़ अचरज-अजगुत लगल कि 102 बरिस के उमर में भी उनकर मरनय पर इ एतना दुखी हलन ।)    (समसा॰03:1:51.1)
231    मसोमात (= मोसमात; विधवा)     (पटना में एगो मसोमात के बेटी के बियाह अप्पन खरचा से करा रहलन हल ।)    (समसा॰03:1:53.6)
232    माड़ा     ("लेकिन अब सब भरनठ हो गेल हे । नञ् कोय ईमनदार नेता हे, नञ् सरकारी करमचारी, नञ् कोय ओइसन दारसनिक आउ समाजसेवी हे, जे देस के डूबइत नाय के बचा सके ।" - "अपने के आँख पर माड़ा आ गेल हे । आझो एक-से-एक लोग हथ ।")    (समसा॰03:1:51.15)
233    मातल (= मत्तल)     (हरिन मता देवइवला बीच दुपहरिया में परवेज के फोन पर बतियावइ ले ऊ घर से निकसि गेलइ आउ चलते-चलते परेशान, भरकोस्सा पाट वली सकरी नदी पार करइत-करइत तऽ जइसे झुलसि के मातल, कछार के महुआ गाछ तर झमा बइठलइ हल ।)    (समसा॰03:1:45.25)
234    मामू     (मथुरा में अपन मामू के पटक के परान लेलऽ ।)    (समसा॰03:1:83.12)
235    मुँहफटय     (उनकर मुँहफटय, स्वछंद खेयाल, साफगोई अउ क्रांतिकारी विचार के कारन अप्पन बाप से भी जिनगी भर सतेला बेवहार मिलल ।)    (समसा॰03:1:52.16)
236    मूँड़ना (माथा ~)     (पहिले 'लालू चालीसा' लिखल गेल तऽ इधर 'अटल चालीसा' भी रच देवल गेल । उधर कोई बड़हन नेता के नाम पर ट्रस्ट आउ संस्था खोल के जनता के माथा मूँड़ देल गेल ।)    (समसा॰03:1:93.4)
237    मोहाल     (प्रकृति के लीला अइसन भेल कि लगले-लगले पाँच साल अकाल पड़ल । अदमी के अनाज मोहाल हो गेल, गोरू के गँवत ।)    (समसा॰03:1:65.10)
238    रजनेता (= राजनेता)     (गुंडई करे ला लाइसेंस के जरूरते न हे । रजनेता के अजदिए हे ।)    (समसा॰03:1:58.12)
239    रतजग्गा (= रात का जागरण)     (इ गुन हम भी सीट के पानी से पोछली । चद्दर झारली आउ सोचली कि रतजग्गा तो होइए गेल । अब दू-चार घंटा दिन में सुतल जाय ।)    (समसा॰03:1:87.28)
240    रसिया     (रोज रात के एक्के सवाल । बाप की जवाब देइत होत ? तंग आके एक रात बोलल - राजा की खा होतइ - कोदो ? अरे राजा खा होतइ - रसिया आउ उप्पर से मोट छलगर दूध ।)    (समसा॰03:1:97.6)
241    राड़-रेआन     (खासा भीड़ अउ उ में नान्हे लोग के मुँड़ी जादे लौकल । बाबु साहेब के खाड़ देख के कए गो कानाफूसी करे लगलन । बाबू साहेब के दिमाग में तेजी आएल । सोचलन - ई सब राड़-रेआन, सिआरन के भीड़ से बाघ डेराएल तो जीने मोसकिल हे ।)    (समसा॰03:1:72.4)
242    रुत-रुत (= रत-रत)     (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।)    (समसा॰03:1:43.3)
243    रेघारी     ("सुनइत हऽ न तोहनी सब ? इ नन्हकुआ के बढ़कुआ बनल । अइसन बदमासी ! अइसन मजाक ! अरे एही करे ला हउ तो जो अपन बाप से कर, माय से कर, गैर से कर । का हो गेल दुनियाँ ? लड़िकाई से मोंछ के रेघारी आवे तक जे हमरे अनाज पर पोसाएल, हमरे निमक खएलक, वो ही परदेस से दु पइसा हाथ में लेके आएल तो थमाइते न हे ?")    (समसा॰03:1:71.11)
244    रेहन     (कलकत्ता जाए से कम-से-कम एतना तो जरूरे होएल कि अपने सब के दोआ से दस-बारह हजार रुपेआ हाथ में हे । हियाँ तो दू-चार हजार करजे हो जाइत । घरवो रेहन रखे पड़ जाइत ।)    (समसा॰03:1:68.19)
245    लंगटे (~ करना = नंगा करना)     (तू काहे ला पगलाइल हें, उ पगला से कउन पूछे । लइकन सब ओकरा लुलुआइत हलन, ओकर कपड़ा खीचैइत हलन, ओकरा लंगटे करइत हलन, थूक फेकइत हलन, पगला से आजिज हो गेलन हल ।)    (समसा॰03:1:58.19)
246    लकड़दादा     (जउन मनु से हमर पैदाइश के रिश्ता जुड़ गेल, जे हम सब के लकड़दादा बन गेलन । जे हमरा नाम देलन आखिर ऊ मनु हलन के ?)    (समसा॰03:1:10.15)
247    लखलऊ (= लखनऊ)     (लखलऊ में रह के भी दुनहूँ परानी के ठाट-बाट से रहनय नञ् बदलल हल, जइसे लखलऊ के हरियरी, ठाट-बाट, रंगीनी खुद हार के सरमा गेल हल ।)    (समसा॰03:1:52.13, 14)
248    लगले-लगले (= लगातार; पास-पास, एक दूसरे से सटा-सटा)     (प्रकृति के लीला अइसन भेल कि लगले-लगले पाँच साल अकाल पड़ल । अदमी के अनाज मोहाल हो गेल, गोरू के गँवत ।)    (समसा॰03:1:65.9)
249    लतिआना (= लतियाना)     (आ ऊ दिन तोर ई धरम आ करतब कहाँ भुला गेल हल जब एगो सधारन भिरगू रिसी घर में घुस के तोरा लतिऔलक हल ?)    (समसा॰03:1:82.24)
250    ललचपना (= लालचपन)     (समुन्नर से जे चउदह गो रतन निकलल ओकरा में से चार रतन तूँ अकेले हँसोत लेलऽ - ई तोर ललचपना न हल ?)    (समसा॰03:1:79.14)
251    लहरी (= लहर)     (एक भाव आवइत आउर एक भाव जाइत ओकर चेहरा हवा के झकोर से लहरी दर लहरी उठइत कोय तलाव के जल सतह सन हो उठलइ हल ।)    (समसा॰03:1:45.27)
252    लुरगर     (अपने ई कह सकऽ ही कि ऊ लुरगर होयतन, बुधगर होयतन, एही से उनका लोग लुरगरजी कहऽ होयतन । लुरगर तो एतना हथ कि दुनियाँ के जे भी समस्या हे ओकरा पर ऊ बिना पुछले भी राय देबे से बाज न अयतन ।)    (समसा॰03:1:92.3, 4)
253    लुलुआना     (तू काहे ला पगलाइल हें, उ पगला से कउन पूछे । लइकन सब ओकरा लुलुआइत हलन, ओकर कपड़ा खीचैइत हलन, ओकरा लंगटे करइत हलन, थूक फेकइत हलन, पगला से आजिज हो गेलन हल ।)    (समसा॰03:1:58.19)
254    लूगा-फाटा (= लुग्गा-फट्टा)     (एगो दरोपदी के लूगा खिंचला पर महाभारत भेल हल, बाकि तूँ तो ढूका लगा के सैकड़ों मेहरारुन के लूगा-फाटा नुकैलऽ हल ।)    (समसा॰03:1:83.9)
255    लूर-लच्छन     (अमरित के बँटवारा करे में तोर बेमानी न हल ? ऊ घरी ठसाठस भरल सभा में रछसवन के लोभावे ला सुन्नर मेहरारू के रूप तूँ धारन कैलऽ हल ! हम तो चकित हो गेली । मुँह तोप के खूब हँसइत रहली । ऊ घरी तोर सब लूर-लच्छन मेहरारू वला हो गेल हल । तनिको अंदाज न हल कि हमर बिआह अइसन मउगर आ बहुरुपिया से हो गेल हे !)    (समसा॰03:1:80.3)
256    लूल्ह-लाँगड़     (अपन मन के हिन्छा जोआला केकरो नञ् बतावऽ हलन कि आखिर जात में, कुजात में, इंदर के परी से कि कोय कान-कोतर, आंधर, लूल्ह-लाँगड़ से बियाह करके कोय बड़गो आदर्श के नाम कमउतन, समाजसेवी के तमगा, साटिफिकेट लेतन ।)    (समसा॰03:1:50.6)
257    लेरू-लइकन     (फूल-पौधा तो उजड़वे करत, लेरू-लइकन भी अकाले जइता । कोइ रुक के सोचे ला, समझे ला तैयारे न हे, का करूँ ।)    (समसा॰03:1:59.26)
258    लेसना (आग ~)     ("अइसन काहे कहइत ही मालिक । फटलो ही तबो पितंबरी ही ।"/ "अरे अब कहाँ नन्हकू ऊ पुरान बात । अबहीं तो हमरा आग लेसले हे । कोई मददगार नइखी देखइत । जेकरा भिरू मुँह खोलऽ, हुँवईं लचारी के बहाना । हिआँ तो बेइजत होइत देखला पर लोगन के करेजा ठंढा होवऽ हे न ।")    (समसा॰03:1:69.7)
259    संझउआ     (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।)    (समसा॰03:1:43.2)
260    सकुन्नत     (टोरंटो आउ मेक्सिको में 'सत् सिरी अकाल' आउ 'केम छे - केम छे' हो सकल हे आउ तूँ मगहे के धरती पर फुलुसबुकनी छाँटऽ हऽ ! जग्गह देख के आचरण करऽ ! सकुन्नत मिलतो ।)    (समसा॰03:1:6.22)
261    सजल-धजल     (ओकर अवाज सुनते अपन कमरा से दीदी निकललन । नन्हकू के आँख तिरपित भेल । सजल-धजल दीदी के फूल अइसन चेहरा । आँख से आँख मिलल तो नन्हकू के नजर नीचे होके जमीन में गड़ गेल ।)    (समसा॰03:1:67.20)
262    सतेला (= सौतेला)     (उनकर मुँहफटय, स्वछंद खेयाल, साफगोई अउ क्रांतिकारी विचार के कारन अप्पन बाप से भी जिनगी भर सतेला बेवहार मिलल ।)    (समसा॰03:1:52.18)
263    समझउनी     (लाख कोरसिस-समझउनी से भी ओकर कान के परदा नञ् खुलल ।)    (समसा॰03:1:53.18)
264    समुद्दर     (टेम्स, वोल्गा से ओही अवाज उठ रहल हे । ओही अवाज सातो समुद्दर से ज्वार-भाटा में बदल रहल हे ।)    (समसा॰03:1:57.17)
265    समुन्नर     (एगो दुख रहित हल तब तो छिपा लेती, बाकि इहाँ तो दुख के समुन्नर लहरा रहल हे ।; हमरा बलाय कहऽ ह ? जब हम बलाय हली तब समुन्नर से निकलइते लपकइत हमर हाथ काहे पकड़ लेलऽ हल ?; हमर हाल ऊ आसकती नियर हो गेल हे गरुड़, जे कुइयाँ में गिरल त उहईं बस गेल । रोज साँप के बिछौना पर सूतऽ ही, भूलल-भटकल कहियो ई जदि करवट लेलन कि हम समुन्नर के पेट में अलोपित भेली ।)    (समसा॰03:1:77.25, 78.15, 85.4)
266    सलेसल (= सले-सले)     (तीन दिन से लगातार, जने जाय तनइ अइसने ठूल ... ताना ... सुनइत-सुनइत ओकर देह में सलेसल आगि धधकऽ लगलइ आउ आज्झ दुपहर होते पइसा निकालि के छूटल तीर सन घर से निकलि पड़लइ हल ।)    (समसा॰03:1:45.21)
267    साँसत     (जरूरत पड़ला पर अउरत भी बनली बाकि फिर ओही ढाक के तीन पात ! अइसन साँसत तो नाटक करवे ला लोग के भी न उठावे पड़ल होयत ।)    (समसा॰03:1:85.9)
268    साकिटफिकिट (= साटिक-फिटिक; सर्टिफिकेट)     (एगो सज्जन बोललन - "बाबूजी ! कैंसर के बीमारी है । जरा बैठा लूँ । बड़ी पून होगा ।" हम सोंचली कि पून लागी पूजा-पाठ तो कभी करली न । दान-धरम भी नहिएँ कइली । मोचन कला में निपुणता के साकिटफिकिट मिलले हे । यही मौका हे ।)    (समसा॰03:1:87.21)
269    साढ़ू     (हमर एगो बेटा कामदेव हलन जे खेसारी नियर अपन छावे न छोड़लन । बेकहल आ बेमाथ के लइका अपन साढ़ू महादेजी से छेड़खानी कर देलक आ उनकरे हाथ से मारल गेल ।)    (समसा॰03:1:84.26)
270    सिक्कड़     ( दस से बेसी बज गेल हे । घरे रहऽ हली तब आठ बजे के बाद सीधे पाँच बजऽ हल । चद्दर-उद्दर झारली, तकिया फुलौली । अटैची के सिक्कड़ से बांधइतहीं हली कि एगो सज्जन बोललन ।)    (समसा॰03:1:87.16)
271    सिरमिट (= सिमेंट)     (गाम के मकान में नूनी चूअऽ हल । अप्पन सौख-मौज के गियारी दबा के, पेट काट के ओकरा केतना जतन करके उ अइँटा सिरमिट चूना-रंग से झलाझल कर देलन ।)    (समसा॰03:1:52.21)
272    सुकुन (= सुन, सन, -सा)     (एकदमे से बाभन-रजपुत जुकुर लगइत हे । सोकुमारी अइसन कि जरा सुकुन सींक मारला पर देह से खून टपके लगे ।)    (समसा॰03:1:65.28)
273    सुत्तल     (एगो मुसहर अप्पन बेटा, सहदेउआ जोरे सुत्तल हे । पाँच-छो बरिस के सहदेउ अप्पन बाप के मुँह नोचले हे । बाप से पुछले हे - एहो बाबू ! एहो बाबू !! राजा की खा होतइ हो बाबू ?)    (समसा॰03:1:97.2)
274    सूद-मूर     (दुकान पर भीड़ हे । भीड़ के लाभ ऊ सूद-मूर के साथे बसुलऽ हथ । उनका इमानदारी आउ असली समान बेचे के लेबुल जे लगल हे ।)    (समसा॰03:1:95.4)
275    सेती (= से; ईहे ~ = इसीलिए)     (ईहे सेती आन्हर स्वार्थ से हमरा नफरत हइ । आउ स्वार्थ से नफरत रखउ वला अदमी के घर कहाँ ?)    (समसा॰03:1:44.9)
276    सेफारिस (= सिफारिश)     (ओहनी के सेफारिस पर ओकरा मारवाड़ी भाई किहाँ नौकरी लग गेलई ।)    (समसा॰03:1:65.20)
277    से-से     (कोई किताब, लेख इया कविता के समीक्षा कउन कइलन हे - ई पर भी लोग के धेयान जादे खींचऽ हे । से-से ई रोग बढ़ल हे कि कोय तरह प्रभावशाली साहितकार के नाम जोड़ के अपन महानता सिद्ध करे के कोरसिस करतन ।)    (समसा॰03:1:94.7)
278    सोकुमारी (= सुकुमारी; नाजुकता)     (एकदमे से बाभन-रजपुत जुकुर लगइत हे । सोकुमारी अइसन कि जरा सुकुन सींक मारला पर देह से खून टपके लगे ।)    (समसा॰03:1:65.27)
279    सोन्ह (= सोन्हा)     (छोड़ऽ महराज ! भले मगहियन तोरा नियन संभ्रांत, अभिजात्य नञ् कहला रहल हे बकि अपन बाल-बच्चन ले सोन्ह मट्टी के गंध, सुगंधित हावा, संतुलित पर्यावरण तूँ जँघिया-बनियान बेच के भी नञ् जुटा सकवऽ ।)    (समसा॰03:1:6.4)
280    सौखीन (= शौकीन)     (हम कीचड़ न उछाली - हम तो दरपन तोरा मुँह के सामने रख रहली हे । तोरा नियर लालची, आलसी आ सौखीन अपन जिनगी में हम कहीं न देखली ।)    (समसा॰03:1:79.6)
281    सौखीनी (= शौकीनी)     (अब हमर सौखीनी सिद्ध करके देखावऽ जे तोरा ओर से हमरा पर लगावल अंतिम अछरंग हे ।; फरमाइस आ फुटानी आज तलक तोरा नियर कोई कैलक ? केतना कहूँ, मुँह दुखा गेल । सौखीनी आउ कइसन होवऽ हे ?)    (समसा॰03:1:80.17, 81.4)
282    सौरी (= सउर; वह कमरा जिसमें कोई स्त्री प्रसव करती है)     (जानऽ हीं, अम्मी की कहऽ हउ ? कहऽ हउ, अगर ई जानतिअइ हल तऽ परवेजवा के सौरिए घर में नोन चटा देतिअइ हल !)    (समसा॰03:1:47.4)
283    हँसोतना     (समुन्नर से जे चउदह गो रतन निकलल ओकरा में से चार रतन तूँ अकेले हँसोत लेलऽ - ई तोर ललचपना न हल ?)    (समसा॰03:1:79.14)
284    हठुआ (~ मनी)     (देश मगध आउ मगही के बारे में अब भी हठुआ मनी भरम पालले हे । आज भी कते विदमान के जनकारी में मगही बड़ी अहूठ भाषा हे, जे बिलकुल बकवास हे ।; इधर मगही साहित्य में इतिहास लिखाय लगल हे । ... एकरा पढ़े-देखे से हेठुआ मनी पुस्तक के सूची उपलब्ध हो जाहे ।)    (समसा॰03:1:5.8, 31.14)
285    हद्दस     (मोरचा के नामे से हुनखा हद्दस समा गेलइ आउ श्रीनगर छावनी अस्पताल में भर्ती हो गेलन । हम नञ् समझऽ हलिअइ कि हमर बहनोय एत्ते कायर होतइ ।; सब्भे जवान सरहद पर दुसमन से लड़ि रहलइ हे । मुदा एगो हम्मर मरद हइ कि देहजरुआ हद्दस से बहाना बना के श्रीनगर सैनिक अस्पताल में बीमार पड़ल हइ ।)    (समसा॰03:1:45.14, 46.4)
286    हवा-बतास     (आज तक विश्वविद्यालय में टौप करे वाला छात्र के कोंपी सार्वजनिक न करल गेल, जबकि ई माँग उठइत रहल हे । सार्वजनिक न करे के पीछे हमरा लगऽ हे कि ऊ सार्वजनिक करे के चीजो न होवे । ऊ तो धरोहर होवऽ हे से ओकरा अइसन रख देल जाहे कि हवा-बतास इया नजर-गुजर नऽ लगे ।)    (समसा॰03:1:93.19)
287    हहो (= हकहो)     (अच्छा, तऽ ई बात हइ ! - चुलबुल अंदाज में बिहँसि के पुछलकइ हल - मुदा जाति, कउन जाति के हहो ?)    (समसा॰03:1:44.12)
288    हाट (= हार्ट; दिल)     (हाट के बिमारी से मरे घड़ी जोआला जी के अप्पन लोरायल आँख लेके, उनकर हाँथ पकड़ के, कंधा पर बेटी के सादी के बोझ डाल देलन हल ।)    (समसा॰03:1:53.7)
289    हिंगलिस     (पढ़ाई के नाम पर तऽ अंग्रेजी ठाट-बाट के कोई कमी नऽ हे । अंगरेजी रटइत हथ - सीता के सीटा आउ राम के रामा पढ़इत हथ । पापा-मम्मी नाम के जोर हे । मतलब विश्वगुरु भारत भरभराइत हे आउ हिंगलिस में गिटपिटाइत हे ।)    (समसा॰03:1:93.26)
290    हिंसाब (= हिसाब)     (दलान में आएल तो बाबू साहेब छोह से बइठे ला कहलन । कान्हा से फिर गमछी उतारलक अउ भुइयाँ में हिंसाब से बइठल ।)    (समसा॰03:1:68.13)
291    हिगराना     (ई अछरंग न हो, बावन तोला पावस्ती आ पत्थल के डरीर हो । तोर तीनो औगुन के हिगरा-हिगरा के हम समझा दे ही ।)    (समसा॰03:1:79.12)
292    हिन्छा (= इच्छा, कामना)     (बाप के हिन्छा हलइ कि बेटा कलट्टर, जज, इंजीनियर, वकील चाहे एस.पी. बने, लेकिन मन के हिन्छा केकर पूरल हे ।)    (समसा॰03:1:49.11, 12)
293    हिमतगर (= हिम्मत वाला)     (बस से जोआला बाबू गया चल गेलन, लेकिन हम्मर मन में इ बात बारंबार बादल जइसन घुमइत हल कि इ जेतना हिमतगर, साफ कहनिहार अउ विद्रोही हथ, ओतने उनकर घरनी सांत ।)    (समसा॰03:1:52.8)
294    हिलकान (~ पारना)     (तोर नाम लेते लोर भर जा हलइ ओकर अँखिया में । हिलकान पारे लगऽ हल । बेस भेल तू आ गेलऽ । जाके मिल लेहू । ओकरा बड़का सरधा पूर जतइ ।)    (समसा॰03:1:67.9)
295    हुँआँ (= हुआँ; वहाँ)     (नन्हकू अउर कुछ कहइत, लेकिन दीदी टोक देलकइ बीचे में - "बहुते बड़वारगी बखानइत हऽ हुँआँ के । ई बतावऽ कि हुँआँ से का लएला हे हमरा खातिर ?" नन्हकू माथा खजुअलक । फिर बोलल - "हाँ लएले ही तोरा खातिर ढाका के बनल मलमल के थान अउर बनारसी साड़ी । तोर सादी में देबवऽ दीदी ।"; हुँआँ जाके पाँच-छौ बरिस में कुछो कमएले होएबा, कुछ  जोगबे कएल होएबा ? गाँव में जिनगी बचावल मोसकिल हे ।)    (समसा॰03:1:68.2, 15)
296    हुनखा (= म॰ उनका; हि॰ उन्हें, उनको)     (मोरचा के नामे से हुनखा हद्दस समा गेलइ आउ श्रीनगर छावनी अस्पताल में भर्ती हो गेलन । हम नञ् समझऽ हलिअइ कि हमर बहनोय एत्ते कायर होतइ ।)    (समसा॰03:1:45.14)
297    होलइया     (लगल कि उ झमेटगर पेड़ के डंघुरी अइसन मुरझा गेल हे, जइसे होलइया में झोंके पर बूँट-केराय के झंगरी ।)    (समसा॰03:1:55.4)

Friday, November 09, 2012

77. मगही उपन्यास "अदमी ऑ देओता" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द



अदेरा॰ = "अदमी ऑ देओता" (मगही उपन्यास) - डॉ॰ रामनन्दन; प्रथम संस्करणः मई 1965;  प्रकाशकः बिहार मगही मंडल,  पटना-5; मूल्य - डेढ़ रुपइया; कुल 4 + 68 पृष्ठ । प्राप्ति-स्थानः बिहार मगही मंडल, V-34, विद्यापुरी, पटना-800 020.

देल सन्दर्भ में पहिला संख्या पृष्ठ, आउ दोसर संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।

कुल शब्द-संख्या : 578

ठेठ मगही शब्द ('' से '' तक) : 

धथुरा (= धतूरा)     (महेस जी ! ई तो औघड़े बाबा हथ, पूरा बम भोला । भाँग धथुरा छान के अगड़बम्म बनल रहऽ हथ । भभुती रमौले बघछाला पर आसन मारले ध्यान में मगन हथ ।)    (अदेरा॰2.21)
धन (= धन्य)     (इ तो धन मानऽ कि हिमालय पर्वत हे जेकरा से बंगाल के खाड़ी से आवे वाली हवा रुकऽ हे, उपरे महें उठऽ हे आउ ठंढा के बरसऽ हे ।; कहलन - अपने एकदम निचिन्त रहूँ, हमनी जइते अइसन बान मारम कि परजा का, राजा के भी सब करम-धरम के तक्खड़-पक्खड़ कर देम । हमनी के धन भाग कि हमनियों के ई सेवा के मोका देल गेल ।)    (अदेरा॰2.27; 32 (ज).31)
धरम-भरठ (= धर्मभ्रष्ट)     (इहाँ पर भी जब सुरूजदेओ कोई दाओ न पइलन तो चले बेजी राजा से अइसन-अइसन फरमाइस फरमावे लगलन कि समझलन कि अब तो राजा से नहकार निकलल आउ इनका धरम-भरठ कइली ।)    (अदेरा॰35.3)
धराना (= पकड़ाना, पकड़ में आना)     (बरम्हा जी के बुझायल कि डूबइत पानी में जे केला के थुम्ही धरायल हल से पिछुल गेल आउ फिनो उजबुजाय लगलन ।)    (अदेरा॰12.22)
धाजा (= ध्वजा)     (ई खबर से बिस्नुजी खुसी से चारो दन्ने निहारे लगलन आ पुछलन कि ऊ कन्ने हथ । गरुड़ जी उनकर रथ के बसऽहिया धाजा लहराइत देखा देलन ।)    (अदेरा॰60.23)
धाबे-धुबी     (एन्ने बरम्हा जी बइठका में बइठलन, ओन्ने से तुरन्ते विष्णु जी कपड़ा सम्हारइत, आँख पोंछइत हदबदायल धाबे-धुबी अयलन ।)    (अदेरा॰11.8)
धारी (= पंक्ति)     (सूरज उगे घड़ी पूरब में सुक्खल पेड़ पर कउआ बोललो - भागऽ न, का जानी कइसन भयंकर बात होतो । दोकान सब के धारी के बीच में दू वनइया मिरिग पार हो गेलो, बड़ दुखदायी बात होतो । पच्छिम असमान में बढ़नियाँ (धूमकेतु) उगलो, सब रोजगरिया (वैस) के नास होतो ।)    (अदेरा॰44.5)
धाह     (अभी सूरज भगवान हमनी पर रुष्ट न भेलन हे । उनके धाह में कुछ पका लेली हे, न जानी अपने के सवाद लगऽ हे कि न ।)    (अदेरा॰32 (ख).17)
धिम (= धीमा)     (एतना कहके राजा फिन धिम हो गेलन आउ हाथ गिरा के सनत भाव के बोललन - अपने सब लोग के हम अगाह कर देही कि मानुष लोग के परिच्छा अबगे सुरूए होयल हे ।)    (अदेरा॰32 (घ).7)
धुरफंदी (= धूर्त, चालबाज)     (पितामह ! आज धरती पर जनता से जादे नेता हथ । गाँवे-गाँव घरे-घर नेता उपलायल चलऽ हथ । हथ इ लोग धुरफंदी, से से उलट-फेर करके समाज के, राज के, इहाँ तक कि धरम-करम के बेवस्था भी हथिया लेलन हे ।)    (अदेरा॰8.8)
धुरियाना     (सउँसे काशी छेत्र जल बिनु रकटल । जे गंगा उपलायल चलऽ हल से जइसे दुबरा के सितुहिया सोता बन गेल । खेत-खरिहान धुरिया गेल, पेंड़-बगाध सूख के ढनढना गेल ।)    (अदेरा॰1.4)
नकलपचीसी     (जइसहीं इनकर अबई से राज में सरगरमी फइलल कि राज के अमला-फयला उनका अगाह कर देलन आउ राजा सब नकलपचीसी के काट ला अपन अदमिन के सिखा-पढ़ा के गाँवे-गाँव, घरे-घर फिरा देलन कि झूठ के जंतर-मंतर, जादू-टोना के फेर में कोई न परे ।)    (अदेरा॰33.4)
नजिकाना (= नजीक या नजदीक आना)     (हाँ, हाँ । रसे-रसे हम ओही बात पर आ रहली हे । जब हमरा कोई बिसय के ग्यान होवऽ हे तब समझी कि ओही ओकर इलोह के एगो रेघी हे । जइसे जइसे ई सिरिस्टी के ग्यान बढ़इत जा हे तइसे तइसे समझी कि हम ब्रह्म के नजिकायल जा ही ।)    (अदेरा॰46.19)
नद्दी (= नदी)     (अनकर भरोसा न करके जहाँ तक हो सके आपुस में मिलजुल के जमात बना के कुआँ तलाओ निरमान कर कर के आउ जहाँ नद्दी इया सोता में पानी मिले ओकरा बान्ह-छान के पटवन आउ खेती के परबन्ध करना ।)    (अदेरा॰24.18)
नपुंसकई (= नपुंसकता)     (कुछ लोग देश छोड़ के भागे के बात करऽ हथ । बाकि अप्पन भूमि से हमरा सोना न मिले तब न ! सोना रहइत हम निकाल न सकी तो ई तो हमर नपुंसकई हे जे कहूँ दोसरा जगह जाय पर भी कायम रहत ।)    (अदेरा॰23.25)
नमंतरी     (कहथ, जगत मिथ्या हे अपरूपी बिलाय वाला, सत्त एगो बर्हम हे, सकल पदारथ के मूल । मानुष जन खाली नमंतरी हथ, काल उताहुल होय पर बिलाय वाला ।)    (अदेरा॰51.16)
नमुन्ना (= नमूना)     (गिरहस्त निष्ठा से अपन काम करइत हथ, धरम-सास्तर के अनुसार अपन आचरन बनौले सब झगड़ा-झंझट भुला के देस के नमुन्ना नागरिक बनल हथ ।)    (अदेरा॰31.21)
नाता-गोता     (अइसने गाढ़ में अप्पन-आन के होहे पहचान । अब अप्पन नाता-गोता के दूत-उत बना के भेजी तो लोग एही कहत कि अपपन चीन्हऽ हथ ।)    (अदेरा॰41.5-6)
नाय (= नाव, नौका)     (ओइसन भँउरी से निकल के अब नाय किंछार लगउली हे तो का इ छोटकुलवन लहरा से डगमगा के अइसन डेराऽ जायम ।)    (अदेरा॰32 (ग).21)
निकसना (= निकलना)     (एही हमर कसूर हो सकऽ हे कि अपने तपोबल आउ पवित्तर लच्छ के आगू देओता के टुंगना समझली । बाकि अब हम ई सब जंजाल से निकसल चाहऽ ही । अपने जइसन उपदेस दी, हम करी !)    (अदेरा॰54.18)
निकुचिया     (जहाँ पारवती तहाँ शंकर । निमोछिया निकुचिया छौंड़न-छौंड़िन से लेके उदंत बुढ़वा-बुढ़िया तक शंकर-पारवती के सुमिर-सुमिर के उभ-चुभ होइत रहऽ हथ !)    (अदेरा॰3.29)
निचिन्त (= निश्चिन्त; बेफिक्र)     (कहलन - अपने एकदम निचिन्त रहूँ, हमनी जइते अइसन बान मारम कि परजा का, राजा के भी सब करम-धरम के तक्खड़-पक्खड़ कर देम । हमनी के धन भाग कि हमनियों के ई सेवा के मोका देल गेल ।; भला एहू कहे के बात हे । अपने एकरा ला निचिंत रहू ।; ई सब काम से निचिन्त होके तीनो अपन भेस बदललन ।; उहाँ पूजा-पाहुर, भोजन-पान से निचिन्त करके राजा अपन मन के संताप कहे लगलन ।)    (अदेरा॰32 (ज).30; 40.15; 51.1; 52.16)
नित्तम (= नित्य दिन, रोज)     (राजा खुद्दे नित्तम पूजा-पाठ करऽ हथ तब अन्न-जल गरहन करऽ हथ ।; सिउजी कहलन आउ जोगिनिन उहईं से सीधे काशी जी ला आकास मारग से फराफर्र उड़ चललन । जब ला उनकर धारी आँख के सामने रहल तब ला सिउजी एकटक देखइत रहलन । इड़ोत होइते संतोष के लम्मा साँस लेलन आउ अप्पन नित्तम के करम-धरम में लग गेलन ।)    (अदेरा॰32.10; 32 (झ).4)
निधड़क (= बेधड़क)     ("बोलऽ बोलऽ, निधड़क बोलऽ ।" बरम्हा जी के आस बन्हल ।)    (अदेरा॰8.6)
निमोछिया     (जहाँ पारवती तहाँ शंकर । निमोछिया निकुचिया छौंड़न-छौंड़िन से लेके उदंत बुढ़वा-बुढ़िया तक शंकर-पारवती के सुमिर-सुमिर के उभ-चुभ होइत रहऽ हथ !)    (अदेरा॰3.29)
नियन (= सदृश, समान)     (दुस्ट लोगिन ला तो ई सुरूज नियन बन गेलन बाकि मीत लोगिन ला चान नियन ।)    (अदेरा॰25.21, 22)
निरसरा (= निराश)     (मंदराचल निवासी सिउजी जब अपन गन, अंगरच्छक आउ तारक सब से भी निरऽसरा हो गेलन तब मन में एही सोंचलन कि कासी तो अइसन समुन्दर नियर हो रहल हे जेमें जे नदी जाहे, सेई ओकरे में बिलाइये जाहे, फिन बहुरे न ।)    (अदेरा॰43.10)
निरिखना-परिखना (= निरखना-परखना)     (महजाल के गेंठी जइसे राज के अमला सब होवथ आउ तार राज के वेवस्था । गाहे-बेगाहे राजा उठथ आउ कभी राज के ई कोना तो कभी ऊ कोना के निरिख-परिख आवथ ।)    (अदेरा॰25.5)
निसबद     (राजा सामने आके हाथ जोड़ के ठाड़ होयलन तो सगरो निसबद हो गेल ।)    (अदेरा॰32 (ग).13)
निसबद्दी (= शान्ति, मौन)     (बरम्हा जी के छन मन आनन्द से गद्गद हो गेल । आदर आउ सन्मान से उपलाइत मधुर बानी में बोललन - "महामते रिपुंजय !" अइसन निसबद्दी में ई गंभीर बानी से रिपुंजय के ध्यान फट सिन् टूट गेल ।; कुछ छिन तो निसबद्दी रहल, बाद में कुछ भनभनाहट होयल, आपुस में कुछ राय-मोसवरा होयल आउ अंत में अगाड़ी से दू अदमी निकल के आगू बढ़लन । राजा उनका अपना साथे लेके अपन कक्छी में चल गेलन ।)    (अदेरा॰6.22; 16.28)
निस्सा (= नशा)     (एतना सुन के तो देओता जमात में जे खुसी के लहर दउड़ल कि सब जइसे निस्सा में होके कुलेल करइत अपन-अपन घर दने चल पड़लन ।)    (अदेरा॰32.31)
निहचय (निश्चय, पक्का)     (देहधारी जीव के मिरतु तो निहचय हे ।; जब तक हमनी परतच्छ ही तब तक तो जब न तब मानुष लोग आवइते रहतन आउ ओही लोग कुछ करे ला तंग करइत रहतन । से से आज से हम एही निहचय करऽ ही कि हम आउ सब देओता मानुष लोग के परतच्छ देखार न होयम ।)    (अदेरा॰66.28; 67.26)
निहचित (= निश्चित)     (कुछ लोग से चाहब कि पाठशाला-विद्यालय में पढ़ावे-लिखावे के कारज में लग जाथ, कुछ से चाहम कि निहचित जगह पर आसन जमा के जन में सच्चा धरम के उपदेस देथ ।; अब किरपा करके हमरा निहचित रूप से बता दी कि हमरा का करे के चाही ।)    (अदेरा॰20.5; 57.13)
निहछल (= निश्छल)     (राजा परोहित-समाज के कष्ट दूर करे के अपन जानी इच्छा परगट कइलन, परोहित लोग भी राजा के निहछल बात आउ समाज आउ देस के सच्चा बढ़न्ती करे के उनकर मनोभाव के आगू अपन हठधर्मी भुला गेलन आउ इनकर ई काम में हर हालत से मदद करे के अपन इच्छा परगट कइलन ।)    (अदेरा॰17.5)
निहुरना     (एगो बिग्यानी के परयोगसाला में एगो रेडियो अइसन जंतर रक्खल हे । कई साल के मेहनत के बाद एकर निरमान भेल हे । बिग्यानी निहुर के ओकर पेंच अइंठऽ हे ।)    (अदेरा॰68.4)
निहुराना     (एकरा बाद लाज के मारे मूड़ी निहुरौले गन लोग अगाड़ी बढ़लन तो उनको सिउजी अभयदान देलन आउ ई बात के असरा देलन कि इनखनियों के कुछ न कुछ अइसने सुमिरनी बन जायत । बाद में सच्चे ई सब गन लोग के नाम पर भी ऊ सब सिउलिंग के नाम धरा गेल, जेकर अस्थापना ई लोग कासी में रह गेला पर कइलन हल ।)    (अदेरा॰62.26)
नीन (= नींद)     (इनखर उखबिक्खी सरसती जी देखलन तो भीरी आके बड़ी मेहरायल बोली में पुछलन - "भला कउन अइसन गाढ़ परल हे अपने के कि आँख के नीन तक हर लेलक ?")    (अदेरा॰10.9)
नीमन (= निम्मन; अच्छा, बढ़िया)     (कुछ एहू सुझौलन कि राज में अब जे भी आदमी बच रहलन हे सब के जुटा के एगो नीमन मजगूत सेना तइयार करी - आउ सबसे नजीक जे धन-धान से पूर सुखी राज होय ओकरा पर धावा बोल दी ।)    (अदेरा॰22.12)
नोन-मिचाई     (परिवार में कलह के बसेरा हो गेल, गोतियारो में बैर चलल, पट्टी-पट्टी में झगड़ा ठनल, गाँव-जेवार में फरसाद के खुनुस चले लगल । अइसने में राजा के रनिवास में भी दाई-लउँड़ी के भेस में घुसल जोगिनिन ई जोतिसी जी के हाल बड़ी नोन-मिचाई लगा के पहुँचइलन ।)    (अदेरा॰44.26)
पंघत     (जेकरा हीं लछमी जी पहुँच गेलन धन-धन हो गेल । के न भुखहूँ रह के इनका मेवा-मिस्टान पवा देत । इनके चलते विष्णु के भी चलती हो जाहे । जहाँ कोई पंघत में कोर उठावे लगल तो सबसे पहिले - "जय लछमी नरायण " ।)    (अदेरा॰3.26)
पइसना (= पेसना, घुसना)     (कोई परतीत करत कि ई ओही हथ जिनकर जट्टा से तापहरनी गंगा निकसलन हे आउ सेई ताप से अइसन तपइत हथ कि हरिचन्नन के भी कोई असर न हो रहल हे । मंदिल के उपरे बरफ जम रहल हे आउ भितरे जइसे धरती के अगिन समेटा के इनकर देह में पइस गेल हे ।)    (अदेरा॰32 (च).1)
पगलपाना (= पागलपन)     (रोना बना के कोई राज पर चढ़ाई करे के बात तो एकदम पगलपाना होयत ।)    (अदेरा॰23.13)
पझाना     (का कहूँ, आज अइसन देह में लहर ओहू घड़ी न बुझा हल जउन घड़ी हलाहल पान कइली हल । अब तो चनरमा के अमरित बरसावे से भी ई लहर पझाइत न हे । जो हमर भल चाहऽ तो तत्लब्जी कोई जतन करऽ ।)    (अदेरा॰38.14)
पट्टी     (परिवार में कलह के बसेरा हो गेल, गोतियारो में बैर चलल, पट्टी-पट्टी में झगड़ा ठनल, गाँव-जेवार में फरसाद के खुनुस चले लगल ।)    (अदेरा॰44.23, 24)
पठरू     (पुजेरी-परोहित लोग के ई बात के पूरा अधिकार रहत कि अपन विचार आउ ग्यान के मोताबिक भगवान के उपासना करथ, बाकि ई न होय कि ऊ आउ लोग के ई बात पर मजबूर करथ कि गउर गणेश के सोना-चानी चढ़ावऽ न तो कारजे सुफल न होयतो, पुजेरी जी के एतना दरब से पैरपूजी करऽ न तो पिंडदान न होतो, पुरखन नरके में पड़ल रहतथू, सिउलिंग के दूध से डुबावऽ न तो बरखे न होतो, देवी मइया के नाम पर पठरू पीटऽ न तो पुतर-रतन परापिते न होतो ।)    (अदेरा॰19.16)
पढ़ताहर-लिखताहर     (पढ़ुआ लइकन तो हर साल माघ सिरी पंचमी के इनकर पूजा बड़ी हाम-हुम से करऽ हथ । बाकि हमरा तो साइते कोई जानऽ हे । कुछ पढ़ताहर लिखताहर लोग कभी काल तनी-मनी इयाद कर ले हथ ।)    (अदेरा॰4.12)
परतच्छ (= प्रत्यक्ष)     (जे परतच्छ देखइत ह ओही सत्त हे, आउ कोई ऊपरी सक्ती न हे जे मानुस के भाग के बनावे-बिगाड़े ।; जब तक हमनी परतच्छ ही तब तक तो जब न तब मानुष लोग आवइते रहतन आउ ओही लोग कुछ करे ला तंग करइत रहतन । से से आज से हम एही निहचय करऽ ही कि हम आउ सब देओता मानुष लोग के परतच्छ देखार न होयम ।)    (अदेरा॰36.1; 67.24, 27)
परतुक     (काशी के सुन्नरतई के बरोबरी करत हिमालय ! रतन-बरसी काशी, सुख-समरिधि में तीनो लोक में सेसर काशी, पापमोचनी काशी ! ओकर परतुक हे कहीं ?)    (अदेरा॰32 (छ).5)
परन (= प्रण)     (जउन दिन हम कासी छोड़ली ओही दिन उ परन ठानलन कि जब तक हम फिन कासी न बहुरऽ ही तब तक उ अन-जल न गरासतन । अब जा, आउ उनका ले आवऽ ।)    (अदेरा॰64.23)
परना (= पड़ना)     (अपने से तो ई लोग फल-फूल भी तोड़-कबार के न खा सकऽ हलन । बेचरन बड्डी फेर में परलन । मिरितलोक के ई दुरभिछ से तो तीनों लोक में हाहाकार मच गेल ।)    (अदेरा॰1.22)
परनाम (= प्रणाम)     (ई सुन के बरम्हा जी के मन तो कयलक कि झपट के गेरा में लटपटा जाऊँ बाकि उहाँ पहिलऽहीं से साँप लटपटायल देख के इनकर जोस ठंढा गेल आउ छुच्छे परनाम करके बिदा लेलन ।; गरुड़ जी उनकर रथ के बसऽहिया धाजा लहराइत देखा देलन । बिस्नुजी देखइत इहईं से परनाम कइलन ।)    (अदेरा॰13.13; 60.24)
परनाम-पाती     (बरम्हा जी विष्णु जी के दुहारी पर पहुँचलन तो केबाड़ी बंद । हाँक पारलन, सिकड़ी खटखटौलन तो ओने से आके लछमी जी केबाड़ी खोललन । ई घड़ी अनबेरा, ओकरो में कोहागल मन इनखा देख के लछमी जी घबड़ा गेलन । परनाम-पाती तो एकदम बिसरिये गेलन, छुटइते पुछलन - "हालचाल तो अच्छा हे न ?")    (अदेरा॰11.1)
परवह (~ करना)     ("राजाधिराज महराज दिवोदास की जय" के घोष से असमान अनोर करइत गेलन । बाकि पांडे-पुरोहित के गिरोह गुम्मी नाधले अइसन लौटलन जइसे अपन कोई हित-नाता के परवह करके मसान से घूरल आवइत होथ ।)    (अदेरा॰32 (घ).21)
परसन     (भोजन ला आसन लगल हल ओकरा पर राजा बइठ गेलन । ई देख के भनसारी लोग परसन लगावे ला बढ़लन तो राजा हाथ के इसारा से मना कर देलन आउ आँख मून के ध्यान लगा देलन ।)    (अदेरा॰32 (ख).23)
परसान (= परेशान)     (एत्ता दिन होयल, आज तक कबहीं हम अपने के अइसन परसान न देखली ।)    (अदेरा॰10.10)
परोगराम (= प्रोग्राम; कार्यक्रम)     (तब सिउजी अपन मन के परोगराम उघारलन - देखऽ, हम चाहऽ ही कि हमनी फिन से काशी जी के राजगद्दी हँथिआवी ।)    (अदेरा॰32 (ज).17)
परोहित (= पुरोहित)     (कक्छ में राजा आउ परोहित-समाज के अगुआ लोगिन के बीच आध घड़ी तक खूब गठ के बात भेल । राजा अपन हिरदा उघार के रख देलन, परोहित लोग भी अपने रोजी-रोटी के समस्या साफ कर देलन ।)    (अदेरा॰17.1, 2)
परोहिती     (बर्हामन घर में जलम गेलन बस उ समझ गेलन कि अब उनका दू अच्छर के पहचान के अलावे कोई काम करना न हे । पूजा-पाठ, परोहिती के बल पर बइठल-बइठावल छपनो परकार चलइते रहत, फिन मेहनत-मसक्कत करके बेकार पसेना काहे बहाऊँ !)    (अदेरा॰17.15)
पवित्तर (= पवित्र)     (एही हमर कसूर हो सकऽ हे कि अपने तपोबल आउ पवित्तर लच्छ के आगू देओता के टुंगना समझली । बाकि अब हम ई सब जंजाल से निकसल चाहऽ ही । अपने जइसन उपदेस दी, हम करी !)    (अदेरा॰54.16)
पसेना (= पसीना)     (पारवती जी छिछ काट के छटकइत बोललन - फरके, फरके, फरके !! तनि देखऽ ! पसेना से देह के भभूत तो लसिआयल हइन - सब अस्तर-बस्तर लेसारतन !)    (अदेरा॰32 (ज).3)
पहिलऽहीं (= पहले से ही)     (ई सुन के बरम्हा जी के मन तो कयलक कि झपट के गेरा में लटपटा जाऊँ बाकि उहाँ पहिलऽहीं से साँप लटपटायल देख के इनकर जोस ठंढा गेल आउ छुच्छे परनाम करके बिदा लेलन ।)    (अदेरा॰13.12)
पाई (= पाय; उपलब्ध)     (धरती के ऐस-आराम, सौख-मौज सरग में आउ मंदराचल पर कहाँ पाई ! रोज छपनो परकार के भोग, पाँड़े-पुजेरी के साँझे-बिहने-दुपहरिया के गुनानुवाद, स्तुति-वंदना, रोज हजारो मानुस लोग के खोसामद-बरामद !)    (अदेरा॰27.20)
पाछू (= पीछू; पीछे)     (काम आगे मुहें सरक चलल । एकर पाछू में ओकर लुतरी जड़ देली आउ ओकर पाछू में एकर, हो गेल बात-बात में बेटहो-पुतहो ।)    (अदेरा॰44.20)
पिचपिचाना     (गुरुजी के ई खटतुरुस बतरस से देओतन के जीउ पिचपिचा गेल । पेट में जेतना बात भर के अइलन हल सब लगल जइसे मुँह से वुलक्का मार के निकल जायत ।)    (अदेरा॰29.4)
पिछलत्ती     (पहिले के आयल लोग नियन ई लोग भी इहईं बस गेलन । अब जरिक्को देरी होय पर सिउ जी तुरते उबिया जाथ । संकुकर्न आउ महाकाल के गेला कुच्छे दिन होयल कि घंटाकर्न आउ महोदर के पीठ ठोक के चलता कइलन । बाकि ई लोग भी ओहे राह धइलन । अब सिउजी मूड़ी झाँटथ आउ कहथ कि हमर गनो सब पिछलत्ती दे देलन !)    (अदेरा॰42.1-2)
पुजेरी (= पुजारी)     ("महाराज" पुजेरी जी विरोधी भाव से बोललन, "अपने खुद्दे उनका सामने जायल जाय, आउ उनकर गोहार सुनल जाय । पूरा पुजेरी जमात के जीमन-मरन के बात हे, हिन्दू धरम के रच्छा के सवाल हे ! ऊ सब हम्मर कहल न अँगारतन । अपनऽहीं के जाहूँ के चाही ।")    (अदेरा॰15.25, 27)
पुन्न (= पुण्य)     (गनेस जी कहलन - न ! खाली करम के बल पर मुक्ति न मिल सके । हाँ, सरग के भागी औसो के होयत, बाकि सरग के सुख भोगइत भोगइत जइसहीं पुन्न ओरिआयल कि फिन ओकरो मिरितलोक में जलम धारन करे परत ।)    (अदेरा॰45.23)
पूछे-माते (बिना ~)     (एन्ने बरम्हा जी बइठका में बइठलन, ओन्ने से तुरन्ते विष्णु जी कपड़ा सम्हारइत, आँख पोंछइत हदबदायल धाबे-धुबी अयलन । ... बरम्हा जी बिना पूछे-माते असरा देखले अपन धरम संकट के बात बतौलन ।)    (अदेरा॰11.9)
पूजा-पाहुर     (एकर साथ-साथ कोई राज व्यवस्था ई भी न सह सके कि परजा में ई बात फैलावल जाय कि देवी-देओता के मनित्ता मान ल इया पूजा-पाहुर दे दऽ तो सब मनोरथ पूरा हो जयतो ।; उहाँ पूजा-पाहुर, भोजन-पान से निचिन्त करके राजा अपन मन के संताप कहे लगलन ।)    (अदेरा॰19.19; 52.15)
पेंड़-बगाध     (सउँसे काशी छेत्र जल बिनु रकटल । जे गंगा उपलायल चलऽ हल से जइसे दुबरा के सितुहिया सोता बन गेल । खेत-खरिहान धुरिया गेल, पेंड़-बगाध सूख के ढनढना गेल ।; सच्चे, भाषण तो इ अइसन लरछेदार देवे लगथ कि अदमी तो अदमीये, हिरना-हिरनी भी खनई-पिनई बिसर जाय, बयार जइसे चलनई भुला जाय आउ पेड़-बगाध आदर से फूल बरसावे लगे ।)    (अदेरा॰1.4; 51.14)
पेट-पोसाई     (ओइसन में ई देओतन जो बइठल-बइठल अनकर कमाई पर खाली पेट-पोसाई आउ सौख-मौज करतन हल, सेना, कानून आउ खजाना के साथे फरक फरक रजवाड़ा काबिज कइले रहतन हल तब उनका पर असर कइसन परत हल ।)    (अदेरा॰53.31)
पेन्हना (= पहनना)     (इनका तो अप्पन तन के फिकरे न हे कि का पेन्हूँ, का ओढ़ूँ, इया का खाऊँ । तो दोसर के का कहल जाओ ।)    (अदेरा॰2.24)
पैरपूजी     (पुजेरी-परोहित लोग के ई बात के पूरा अधिकार रहत कि अपन विचार आउ ग्यान के मोताबिक भगवान के उपासना करथ, बाकि ई न होय कि ऊ आउ लोग के ई बात पर मजबूर करथ कि गउर गणेश के सोना-चानी चढ़ावऽ न तो कारजे सुफल न होयतो, पुजेरी जी के एतना दरब से पैरपूजी करऽ न तो पिंडदान न होतो, पुरखन नरके में पड़ल रहतथू, सिउलिंग के दूध से डुबावऽ न तो बरखे न होतो, देवी मइया के नाम पर पठरू पीटऽ न तो पुतर-रतन परापिते न होतो ।)    (अदेरा॰19.14)
पोंछडोलवा     (जब तक ई न करम, हमनी अदमी न बनम, कुकुर नियन पोंछडोलवा बनल रहम, अपन आदमीयत न समझम, आत्मा के न चीन्हम ।)    (अदेरा॰21.1)
पोसइया (= पोषक)     (कोहियो अंग के पूरा पोसइया अगर न मिलल तो राज रूपी सरीर विकलांग हो जायत, अस्वस्थ हो जायत ।)    (अदेरा॰19.26)
पोसाई     (ई घड़ी के अकाल से तो एही बुझाइत हे कि थोड़िके दिन में धरती एकदम्मे मसान बन जायत । फिन अइसन मसान के राज से का लाभ ? ओकरा से तो देओतन के पोसाई होयत न !)    (अदेरा॰12.27)
पौंलग्गी-असिरबादी     (अपन चेला-चाटी के जमात बान्हले आवइत देखइते बिरहस्पति बूझ गेलन कि कोई पेंचदार मसला हे । पौंलग्गी-असिरबादी के बाद कुसल-छेम पुछलन तो एक देओता बोललन - "सब तो कुसल हे गुरु महराज जी, बाकि एक्के बात के बड़ी कष्ट हे । अग्याँ होय तो अरज कइल जाओ ।")    (अदेरा॰28.15)
फतंगी     (अब तो इनका बड़ी दुख आउ चिन्ता भेल कि धरम से डिगावे के जतन करके पापो के भागी बनली आउ कमियाँ-नफ्फर नियन सिउजी के डाँटो के भागी बनली । उनकर गोस्सा में परे से भल हे कि जहर पी के पर रहूँ, उनकर नजर से दूर रहला फतंगी बन जाऊँ इया सन्यास ले लूँ, का करूँ !)    (अदेरा॰37.8)
फरके (= अलग)     (पारवती जी छिछ काट के छटकइत बोललन - फरके, फरके, फरके !! तनि देखऽ ! पसेना से देह के भभूत तो लसिआयल हइन - सब अस्तर-बस्तर लेसारतन !; फरके से काशी जी पर नजर परइते सब जोगिनिन के मने हरखित हो गेल । नगर के चारो दन्ने लुहलुह हरिअर खेत-बाध देख के लगल कि उतर के ओकरे में लोट-पोट करे लगथ ।)    (अदेरा॰32 (ज).3; 32 (झ).7)
फराफर्र     (सिउजी कहलन आउ जोगिनिन उहईं से सीधे काशी जी ला आकास मारग से फराफर्र उड़ चललन ।)    (अदेरा॰32 (झ).2)
फरिछ (= फरीछ; सबेरा)     (फरिछ धपइते सुरूजदेओ कासीपुरी में हलन । एक्के दफे अपन सहस्सरो-सहस्सर किरिंग छितरा के घरे-घर, जने-जन में बेआप गेलन बाकि कनहूँ इनका ई न बुझायल कि धरम-करम में कोई खामी हे ।)    (अदेरा॰34.25)
फाजिल (= अधिक, फालतू, अतिरिक्त)     (आउ फिन अदमी के बढ़न्ती रोके के बात भी तो खूब हे । जहाँ दुरभिछ से एत्ता आदमी रोजीना मर रहल हे हुआँ ई कहना कि आदमी फाजिल हे, समस्या के उल्टा समझना हे ।)    (अदेरा॰23.21)
फिन (= फेन, फेनुँ, फिनो, फेनो; फिर)     (अदमी सब तो अप्पन-अप्पन पेट के फिकिर में हलन ओहू न हो रहल हल, फिन ई लोग के खोज-खबर के करे ? अपने से तो ई लोग फल-फूल भी तोड़-कबार के न खा सकऽ हलन ।)    (अदेरा॰1.20)
फिफिहिया     (हमर मन-परान अब ई सब जंजाल के तेयाग के सान्ती परापित करे ला फिफिहिया हो रहल हे । अब हमरा का करे के चाही सेकर उपदेस देवे के किरपा करी ।)    (अदेरा॰52.25)
फेनो (दे॰ फिन; फिर)     (तब ला राजा भी आ पहुँचलन । इनका देखइते फिनो सब नारा बुलन्द कइलन - "देवी-देओता बोलावल जाथ", "रिपुंजय राज नास हो", "धरम-करम संकट में" ।)    (अदेरा॰16.5)
फौदारी (= मारपीट, लड़ाई-झगड़ा)     (आउ फिन "जय काली, जय दुर्गा" । फौदारी करे गेलन - जय दुर्गा, चोरी करे गेलन - जय दुर्गा ! बोझा उठावइत जय दुर्गा ! खस्सी पठरु पीटइत जय दुर्गा !)    (अदेरा॰4.3)
बँसचढ़नी     (कोई परसो करावे वाली चमइन के काम धइलक तो कोई साँप निकाले वाली नट्टिन के रूप बनौलक, कोई नचनियाँ बनल तो कोई गितहारिन, कोई बँसुली, कोई बाना, कोई मिरदंग बजावे-सिखावे के बहाना कइलक, कोई बँसचढ़नी, रसचढ़नी, बतबनउनी बन के मत मारे के दाव लगैलक, कोई हाथ के रेखा देखे लगल, कोई कपार के ।)    (अदेरा॰32 (झ).25)
बइठका     (एन्ने बरम्हा जी बइठका में बइठलन, ओन्ने से तुरन्ते विष्णु जी कपड़ा सम्हारइत, आँख पोंछइत हदबदायल धाबे-धुबी अयलन ।)    (अदेरा॰11.7)
बउँसना     (हमनी मेहरारुन के तो समझल जाहे कि बस लउँड़ी हे, अइसन अइसन बेरा पर का राय मोसवरा कइल जाय ओकरा से ! आउ जब आफत परऽ हे तो गिरऽ हथ हबकुरिये । शंकर जी फुलझरिया नियन बउँसे लगलन - देखऽ, हम तो तोरा हरदम अपन देवी मानली । अरे, हमरा नियन औघड़-फक्कड़ के तोरे नियन बुधगर-गेअनगर घरनी तो जिनगी के पहिया के काम करऽ हथ ।)    (अदेरा॰32 (छ).15)
बच्छर     (घोर अकाल ! कई बच्छर से बून-पानी बिन सुखारे सुखार । सउँसे काशी छेत्र जल बिनु रकटल ।; एन्ने सिउजी के प्रान आवे आउ जाय, जाय आउ आवे । बड़ी अचम्भो में परलन कि का बात हे कि जे कासीपुरी में जाहे सेई सट जाहे । दू बच्छर से जोगिनिन गेलन, चौंसठ में एक न घुर के ताकलन ।)    (अदेरा॰1.2; 37.23)
बज्जड़ (= वज्र)     (थोड़े देर तो बरम्हा जी के एही बुझायल कि रूद्र अपन तिरसूल से, विष्णु अपन गदा से आउ इन्द्र अपन बज्जड़ से इनकर कपार पर वार करइत हथ ।)    (अदेरा॰9.21)
बड़कन     (जब बड़कन-बड़कन के ई हाल हे तो छोटकुलवन के का कहल जाओ ।)    (अदेरा॰4.31)
बड़हन     (इनकर सबसे पहिला आउ सबसे बड़हन समस्या ई हल कि लोग के दिल आउ दिमाग से देओता लोग के परभाव कइसे दूर कइल जाय ।; अइसन बड़हन जुलूस देख के इनकर मन उत्साह आउ आनन्द से लबलबा गेल । अब ई बिस्नुजी साथे सल्ले सल्ले बढ़लन आउ रथ पर सवार हो गेलन ।)    (अदेरा॰14.19; 64.12)
बड़ी (= बहुत)     (खाली बात बना सकऽ हथ, भाषण दे सकऽ हथ, भाषण दे सकऽ हथ । एकरा से तो कुछ होवे वाला हे न । बड़ी करतन तो लछमी जी के भेजतन । भला लछमी जी के मुँह देख के कोई जीयल हे ?; ई लोग बड़ी बौखलायल हलन आउ अपना में मिल के अपन बात कइसहूँ जरूर राजा भीर पहुँचावे ला सोंच लेलन हल ।)    (अदेरा॰2.18; 15.5)
बड्डी (= बड़ी, बड़, बहुत)     (अपने से तो ई लोग फल-फूल भी तोड़-कबार के न खा सकऽ हलन । बेचरन बड्डी फेर में परलन । मिरितलोक के ई दुरभिछ से तो तीनों लोक में हाहाकार मच गेल ।)    (अदेरा॰1.22)
बढ़नी (= झाड़ू; धूमकेतु)     (सूरज उगे घड़ी पूरब में सुक्खल पेड़ पर कउआ बोललो - भागऽ न, का जानी कइसन भयंकर बात होतो । दोकान सब के धारी के बीच में दू वनइया मिरिग पार हो गेलो, बड़ दुखदायी बात होतो । पच्छिम असमान में बढ़नियाँ (धूमकेतु) उगलो, सब रोजगरिया (वैस) के नास होतो ।)    (अदेरा॰44.6)
बढ़न्ती     (राजा परोहित-समाज के कष्ट दूर करे के अपन जानी इच्छा परगट कइलन, परोहित लोग भी राजा के निहछल बात आउ समाज आउ देस के सच्चा बढ़न्ती करे के उनकर मनोभाव के आगू अपन हठधर्मी भुला गेलन आउ इनकर ई काम में हर हालत से मदद करे के अपन इच्छा परगट कइलन ।; आउ फिन अदमी के बढ़न्ती रोके के बात भी तो खूब हे । जहाँ दुरभिछ से एत्ता आदमी रोजीना मर रहल हे हुआँ ई कहना कि आदमी फाजिल हे, समस्या के उल्टा समझना हे ।)    (अदेरा॰17.6; 23.19)
बतकुच्चन     (सिउजी के ई जुगती से सुरूजदेओ के मन तो न भरल, बाकि मालिक के मरजी । खिलाफी बतकुच्चन करके अपन मूड़ी कुचवाओ । माथा झुका के कहलन - जे अग्याँ, जाही । देखी, अपन बौसाओ भर तो बाज नहियें आयम ।)    (अदेरा॰34.18)
बतबनउनी     (कोई परसो करावे वाली चमइन के काम धइलक तो कोई साँप निकाले वाली नट्टिन के रूप बनौलक, कोई नचनियाँ बनल तो कोई गितहारिन, कोई बँसुली, कोई बाना, कोई मिरदंग बजावे-सिखावे के बहाना कइलक, कोई बँसचढ़नी, रसचढ़नी, बतबनउनी बन के मत मारे के दाव लगैलक, कोई हाथ के रेखा देखे लगल, कोई कपार के ।)    (अदेरा॰32 (झ).26)
बतरस     (गुरुजी के ई खटतुरुस बतरस से देओतन के जीउ पिचपिचा गेल । पेट में जेतना बात भर के अइलन हल सब लगल जइसे मुँह से वुलक्का मार के निकल जायत ।)    (अदेरा॰29.4)
बतिआना (= बतियाना, बात करना)     (बर्हामन के भेस में बर्हमा जी चभिला-चभिला के बतिआय लगलन - राजन्, ओइसे तो हम ही इहाँ के पुरान रहवइया बाकि कहाँ राज-दरबार आउ कहाँ एगो अदना बर्हामन !)    (अदेरा॰39.18)
बदे (= बारे में)     (दिवोदास के नाम आवइते सिउजी के मन गदगद हो गेल । उनका बदे आदर के भाओ से ई मने मन माथा झुका देलन ।)    (अदेरा॰67.4)
बनाना-बिगाड़ना     (पूजा-पाठ, परोहिती के बल पर बइठल-बइठावल छपनो परकार चलइते रहत, फिन मेहनत-मसक्कत करके बेकार पसेना काहे बहाऊँ ! आउ अइसन कमपढ़ आउ अग्यानी लोग के राज चलइत रहे एकरा ला सब नियम-कानून बना-बिगाड़ के समाज के हालत खराब कर देलन ।)    (अदेरा॰17.18)
बन्हना (= बँधना)     ("बोलऽ बोलऽ, निधड़क बोलऽ ।" बरम्हा जी के आस बन्हल ।)    (अदेरा॰8.6)
बफगर     (हम ! बरह्मा ! का कर सकऽ ही ? अन्न सिरजूँ कइसे, जल बनाऊँ कइसे ? बफगर हवा रोख से बहे तब न !)    (अदेरा॰3.8)
बमकना     (केतना के तो खाली एही काम हो गेल कि सोरहो सिंगार बतिसो आभरन करके सहर बजार में बिहरे आउ छौंड़-छपाटिन के उमड़ल बमकल मन के भरमावे के जतन करे ।)    (अदेरा॰32 (झ).31)
बरखा (= वर्षा)     (अकाल दुरभिछ में भी जब तक दूध रहल, लोग इनका दूध से तहाबोर करइत जाहे कि अइसहूँ औढ़रदानी ढरथ आउ बरखा देथ बाकि ई कहिया बरखा बरखौलन कि अब बरखौतन हल ।; अच्छा, इन्द्र ! कुछ कर सकतन ? ऊहुँक ! उनको से का होयत ? धरती पर के लोग तो एही समझले बइठल हथ कि इन्दरे भगवान बरखा बरखावऽ हथ, बाकि ई का बरखौतन ?)    (अदेरा॰2.27; 4.24)
बरखाना (= बरसाना)     (अकाल दुरभिछ में भी जब तक दूध रहल, लोग इनका दूध से तहाबोर करइत जाहे कि अइसहूँ औढ़रदानी ढरथ आउ बरखा देथ बाकि ई कहिया बरखा बरखौलन कि अब बरखौतन हल ।; अच्छा, इन्द्र ! कुछ कर सकतन ? ऊहुँक ! उनको से का होयत ? धरती पर के लोग तो एही समझले बइठल हथ कि इन्दरे भगवान बरखा बरखावऽ हथ, बाकि ई का बरखौतन ?)    (अदेरा॰2.27; 4.24)
बरखास (= बर्खास्त, विसर्जित, नौकरी या पद से च्युत)     (एकर बाद सभा बरखास होयल आउ सब लोग देस के जल्दी से उबारे के संकलप करके अपन-अपन इलाका के राह धइलन ।)    (अदेरा॰24.30)
बरना (= जलना, लगना, अनुभव होना) (जरनी ~; आग ~)     (सरग में तो दोसरा के देखके जरे ओला, गोतिया के गलावे ओला इन्दर हथ, धरती पर अइसन कोई न रहल जेकरा कोई के देख के जरनी बरे ।; इतिहास में पहिला तुरी इनखनी के ई तत्त के परतच्छ दरसन हो रहल हल कि हमनी भी कोई हस्ती ही, हमरो में कोई आग अइसन बरऽ हे जे देओतन से कोई माने में कम न हे, बलुक एकर लौ कुछ अधिके हे ।; जहाँ-जहाँ ऊ हथ, बुझा हे कि जोत बरइत हे आउ लोग ऊ जोत भिर जाके अपन मन के अन्हार दूर करइत हथ ।)    (अदेरा॰27.3; 28.1; 31.25)
बरम्हा (= ब्रह्मा)     (अदमी आउ देओतन सब के ई हलावत देख के सब के सिरजनहार बरम्हा जी के आसन डोलल ।)    (अदेरा॰1.25)
बरोबरी (= बराबरी)     (काशी के सुन्नरतई के बरोबरी करत हिमालय !)    (अदेरा॰32 (छ).3)
बर्हमा (= ब्रह्मा)     (ई समस्या पर विचार करे ला एक दिन कुछ देओतन जुटान कइलन । सब अप्पन-अप्पन जुकती बतौलन बाकि बर्हमा जी के देल बरदान के काट करे वाला कोई पेंच न निकलल ।; बिरहस्पति जी भी जमात के रंगत कुछ गमलन, से फिन नरमा के बोललन - "ई तो हम अप्पन मन के भओना बतइलिइयो, अब तोहनिने ई घड़ी के हलावत सोंच के बतावऽ कि का कइल जा सकऽ हे । राजा रिपुंजय के बर्हमा बरदान देलन हे, ओकर उल्लंघन न कइल जा सके ।")    (अदेरा॰28.5; 29.13)
बर्हामन (= बर्हमन; ब्राह्मण)     (बर्हामन घर में जलम गेलन बस उ समझ गेलन कि अब उनका दू अच्छर के पहचान के अलावे कोई काम करना न हे । पूजा-पाठ, परोहिती के बल पर बइठल-बइठावल छपनो परकार चलइते रहत, फिन मेहनत-मसक्कत करके बेकार पसेना काहे बहाऊँ !)    (अदेरा॰17.13)
बलुक (= बल्कि)     (दोसर बात रहल, पाँडे परोहित लोग के जीविका के । जइसे आउ अनेगा जमात सब राज रूपी सरीर के अंग हथ ओइसहीं पाँडे परोहित लोगिन भी राज के एगो बड़ी महत के अंग हथ । बलुक ओकर माथ हथ ।)    (अदेरा॰19.25)
बहरी (= बहरसी; बाहर में)     (जइसहीं जेवरिया चुनिन्दा लोग के सभा सुरु होयल तइसहीं सभा-भवन के बहरी बड़ी जोड़ से गुदाल होयल - "देवी-देओता बोलावल जाथ", "रिपुंजय राज नास हो", "धरम करम संकट में", "देवाधिदेओ उमानाथ की जय" ।)    (अदेरा॰15.9)
बहरी (= बहरसी; बाहर)     (मुँह के बोली आधा भितरी रख के आधा बहरी निकालइत सल्ले सल्ले बोललन - अन्नदाता, अपने सूरज नियन परतापी, सूरज के जितताहर, रन-पंडित ही, जो अभयदान दी तो आज के हाल कही !)    (अदेरा॰32 (ख).4)
बाँटना-चुटना (बाँट-चुट के खाना)     (काशी के व्यवस्था के ई नियम हल कि जेतना लोग कमाय जुकुर हथ से सब खेत-बाध में, नदी-तलाओ में, अहेर में मेहनत करथ आउ बाँट-चुट के खाथ ।)    (अदेरा॰9.5-6)
बाई (= बाय) (~ चमकना)     (असरा में सब देओतन राजा के हर हालत से मदद कइलन बाकि जब ऊ लोगिन के ई बिसवास हो गेल कि ऊ तो अपन मोहड़ा अइसन मजबूत कइले जाइत हथ कि उनका उखड़े के तो बात दूर, ई लोगिन के धरती पर बहुरना भी मोसकिल होयल जाइत हे, तब सब के बाई चमकल ।)    (अदेरा॰27.17)
बादर (= बादल)     (जब बादर में भाफ रहऽ हे आउ पहाड़ के ढलाओं पर उपरे ठेला के इया असमान में उपरे चढ़ के ठंढा हो हे तो पानी बन जाहे आउ बरखा के रूप में गिरे लगऽ हे, एही में इन्द्र अप्पन नाम लूट ले हथ ।)    (अदेरा॰4.24)
बान्हना (= बाँधना)     (अभी तो खाली एही जतन कयल जायत कि कइसहूँ प्रान बचे । दोसर ई कि हम चाहब कि नियम बान्ह के अपने लोग कुछ जन कारज करी ।; सब भनसारी भानस के दुअरिये पर जौर होके राजा के अगवानी ला अपन मन में ढाढ़स बान्हे लगलन । राजा ई लोग के आज के बरताव देख के दूरे से गम गेलन कि आज कोई गड़बड़ी हे ।)    (अदेरा॰20.3; 32 (क).24)
बान्हना-छानना     (सब के सब अपन चीज-बस बाँन्हे-छाने लगलन । जहाँ तक बनल अपन सब राई-रत्ती समेट के चले के तइयारी करे लगलन ।; जहाँ नद्दी इया सोता में पानी मिले ओकरा बान्ह-छान के पटवन आउ खेती के परबन्ध करना ।)    (अदेरा॰13.26; 24.19)
बामा (= बायाँ)     (ई सब बात होयला पर सिउजी बिस्नुजी के बोलाके अपन सिंहासन के बामा दने बइठइलन आउ बर्हमाजी के अपन दहिना दने ।)    (अदेरा॰61.15)
बिच्चे (~ में = बीच में; बीच में ही)     ("गुरु महराज", बिच्चे में एगो घाँखड़ देओता बात काटइत टपक पड़लन, "हम एक बात अरज कइल चाहऽ ही ।")    (अदेरा॰29.17)
बिरधा (= वृद्ध)     (राजा दिवोदास से मिले ला ई उताहुल हलन से एगो बिरधा बर्हामन के रूप धर के पहुँच गेलन दरबार में ।)    (अदेरा॰39.14)
बिलाना (= गायब हो जाना)     (मंदराचल निवासी सिउजी जब अपन गन, अंगरच्छक आउ तारक सब से भी निरऽसरा हो गेलन तब मन में एही सोंचलन कि कासी तो अइसन समुन्दर नियर हो रहल हे जेमें जे नदी जाहे, सेई ओकरे में बिलाइये जाहे, फिन बहुरे न ।; दिवोदास के नाम आवइते सिउजी के मन गदगद हो गेल । उनका बदे आदर के भाओ से ई मने मन माथा झुका देलन । उनका से बदला लेवे के जे भी भाओ हल सब सिनेह के धारा में बह के बिला गेल ।)    (अदेरा॰43.12; 67.6)
बुढ़वा-ठुढ़वा     (उनका का, उ तो गंगा में गोता मारऽ होतन आउ कासी के छपनो परकार चाभऽ होतन । मरे ढनमनाये तो ई बुढ़वा-ठुढ़वा न !)    (अदेरा॰50.14)
बुढ़ारी (= बुढ़ापा)     (कुछ लोग के विचार होयल कि जब अन्न के अइसन संकट हे तो अदमी के बढ़न्तियो रूके । एकरा ला सादी-विबाह में कमी कर देल जाय, ... कम सन्तान वालन के बुढ़ारी में इनाम देल जाय, इत्यादि ।)    (अदेरा॰22.24)
बुतरू     (सब बुतरुन गुरू पिंडा में माघ सिरी पंचमी के खल्ली छुअइत गोहरावऽ हे - "सारसत्त देहू सुमत्ती " ।)    (अदेरा॰4.9)
बुधगर-गेअनगर     (शंकर जी फुलझरिया नियन बउँसे लगलन - देखऽ, हम तो तोरा हरदम अपन देवी मानली । अरे, हमरा नियन औघड़-फक्कड़ के तोरे नियन बुधगर-गेअनगर घरनी तो जिनगी के पहिया के काम करऽ हथ ।)    (अदेरा॰32 (छ).16-17)
बुध-गेयान     (जब कोई गाढ़ परऽ हे तबऽहियें न अपना से सेसर बुध-गेयान वाला भिर जाहे ।; ई सब नया-नया बात के परचार लोगिन के भरमावे ला मानुस के बल-पराकरम आउ बुध-गेयान में अबिस्वास जगावे ला कइल जात हे, मानुस-समाज के उनती के मूले में घून लगावे के उपाय होइत हे ।)    (अदेरा॰32 (छ).18; 33.9)
बुध-बौसाओ (= बुध-बौसाव)     (निरगुन भगमान के उपासना सब के बुध-बौसाओ के बात न हे, खाली ग्यानी लोगिन के बौसाओ के बात हे ।)    (अदेरा॰29.30)
बूढ़-पुरनियाँ     (ई तरी बड़ी बात रक्खल गेल जे में भाषण में एक दिन समाप्त हो गेल । रात भर राजा ई सब सुझाओ पर गौर करइत रहलन । बिहान भेला पर कुछ बूढ़-पुरनियाँ आउ ग्यानी-मानी लोग के राय लेके एगो खाका तइयार कइलन कि कउन-कउन तरी से राजकाज चले आउ कउन-कउन काम कइसे-कइसे पूरा कइल जाय ।)    (अदेरा॰22.27)
बून-पानी     (घोर अकाल ! कई बच्छर से बून-पानी बिन सुखारे सुखार । सउँसे काशी छेत्र जल बिनु रकटल ।)    (अदेरा॰1.2)
बेअगरी (= व्यग्रता)     (अब इनकर मन दुनिये से एकदम उचट गेल आउ बड़ी बेअगरी से ऊ दिन के असरा जोहे लगलन जब कोई बर्हामन देओता आके उपदेस देतन ।)    (अदेरा॰52.10)
बेअग्गर (= व्यग्र)     (समुच्चे सभा ई जाने ला बेअग्गर हल कि राजा आउ परोहित लोग में का बातचीत होयल ।; अगर ई लोग न रहथ तो संसारी सुख परापित कइलो पर बेअग्गर रहऽ हे, जीमन के आनन्द खतम हो जाहे ।)    (अदेरा॰20.15; 55.22)
बेअल्ला (= बेआला)     (जुटइलन सब गन लोग के आउ कहलन - देखऽ, अब तोहनियें हमर असली हितलग ह । कासी बिन हमर चित कइसन बेअल्ला हे, से जानइत ह ।)    (अदेरा॰41.12)
बेकूफी (= बेवकूफी)     (देओता लोग के इहाँ से देसनिकाला हो गेल हे, अइसन में हम इहाँ जब भेस बदल के आ गेली हे तो फिर लौट के जाना भी बेकुफिये हे ।)    (अदेरा॰37.16)
बेजी (= बखत; समय, क्षण, पल)     (इहाँ पर भी जब सुरूजदेओ कोई दाओ न पइलन तो चले बेजी राजा से अइसन-अइसन फरमाइस फरमावे लगलन कि समझलन कि अब तो राजा से नहकार निकलल आउ इनका धरम-भरठ कइली ।)    (अदेरा॰35.1)
बेटहो-पुतहो     (काम आगे मुहें सरक चलल । एकर पाछू में ओकर लुतरी जड़ देली आउ ओकर पाछू में एकर, हो गेल बात-बात में बेटहो-पुतहो ।)    (अदेरा॰44.21)
बेदुआ     (बर्हामन के रूप धरलन, बर्हमग्यानी बनलन, बेदुआ के नकल कइलन बाकि कुछ न चलल बनल ।)    (अदेरा॰36.32)
बेबिल्हम     (सिउजी के मन परसन्न हो गेल ! कहलन - बस, बेबिल्हम के सीधे कासीपुरी चल जा आउ उहाँ के राजा दिवोदास के धरम से डिगावे के जे जतन कर सकऽ, करऽ । जब तक ई न होयत, देओतन के राज धरती पर फिन न लौटत ।)    (अदेरा॰34.3)
बेहवार (= व्यवहार)     (सच्चा नेता जे उपरे से सोभाओ आउ बेहवार में रुई के फाहा नियन कोमल रहे आउ भितरे से नियम आउ चाल-चलन में नरियल नियन कठोर !)    (अदेरा॰7.29)
बैस (= वैश्य)     (सब बरन - बर्हामन, छत्री, बैस आउ सूद्र - अपन-अपन धरम पर दीढ़ होके जमल हथ ।)    (अदेरा॰31.11)
बोलहटा     (आजकल जइसे बिना तार के तार चल जाहे ओइसहीं सब जोगिनियन के खट-सिन पता चल गेल कि सिउजी के बोलहटा हे । सब जहाँ हलन तहईं से फटाफट एकाएकी आवे लगलन ।; अइसने में राजा के रनिवास में भी दाई-लउँड़ी के भेस में घुसल जोगिनिन ई जोतिसी जी के हाल बड़ी नोन-मिचाई लगा के पहुँचइलन । राजा से चुप्पे गनेस जी के रनिवास में बोलहटा भेल ।)    (अदेरा॰32 (ज).10; 44.27)
बौसाओ (= बौसाव, बउसाव)     (निरगुन भगमान के उपासना सब के बुध-बौसाओ के बात न हे, खाली ग्यानी लोगिन के बौसाओ के बात हे ।; मति भरमल न कि सब अधरम के मारग पर आ जइतन, आउ लोग के धरम के मारग छोड़ के अधरम के मारग पर आवइते राजा रिपुंजय समझ जइतन कि परजा उनकर बौसाओ के बाहर निकल गेल ।)    (अदेरा॰29.31; 32 (ज).23)
भउँरी (= भँवर)     (मरद ओही जे आफत से ढाही लेवे ला चोबिसो घंटा ठेहुना रोप के तइयार रहे । अपने लोग कइसन घनघोर संकट के भउँरी से देस के निकाल के इहाँ तक ले अइली हे, से का तुरते में बिसार देली !; ओइसन भँउरी से निकल के अब नाय किंछार लगउली हे तो का इ छोटकुलवन लहरा से डगमगा के अइसन डेराऽ जायम ।)    (अदेरा॰32 (ग).16, 21)
भओना (= भावना)     (जब ला कुछ लोग पर अपन रोब-दाब न देखावे तब ला ओकर आत्मा के संतोष न होय । सेई से सब कोई अपना से कुछ हीन लोग के खोजऽ हे जे में ओकरा सामने ई अपन बड़ाई देखा के अपन ई भओना के तिरपित करे ।; बिरहस्पति जी भी जमात के रंगत कुछ गमलन, से फिन नरमा के बोललन - "ई तो हम अप्पन मन के भओना बतइलिइयो, अब तोहनिने ई घड़ी के हलावत सोंच के बतावऽ कि का कइल जा सकऽ हे । राजा रिपुंजय के बर्हमा बरदान देलन हे, ओकर उल्लंघन न कइल जा सके ।")    (अदेरा॰27.27; 29.11)
भक्खा     (एगो बर्हामनदेओ के उपदेस से हमर आँख खुल गेल हे । उनकर भक्खा हे कि अब हमरा बस साते दिन ई लोक में रहे ला हे ।)    (अदेरा॰58.18)
भठना     (ई सब बात के नतीजा ई भेल कि धरम भठे लगल, अधरम के मन हरखित भेल । आठो सिद्धि जे आके इहाँ बसलन हल, सब एकाएकी अपन-अपन डेरा-डंडा खसकावे लगलन ।)    (अदेरा॰52.4)
भनसा (= रसोईघर)     (बिहने पहर राजा के भनसा में भनसारी लोग खाय बनावे ला आग जरावे लगलन तो ल न, उ तो तितकियो न धरे ! ई का भेल !)    (अदेरा॰32 (क).1)
भनसारी     (बिहने पहर राजा के भनसा में भनसारी लोग खाय बनावे ला आग जरावे लगलन तो ल न, उ तो तितकियो न धरे ! ई का भेल !)    (अदेरा॰32 (क).1)
भभुती (= भभूत, भस्म, राख)     (महेस जी ! ई तो औघड़े बाबा हथ, पूरा बम भोला । भाँग धथुरा छान के अगड़बम्म बनल रहऽ हथ । भभुती रमौले बघछाला पर आसन मारले ध्यान में मगन हथ ।)    (अदेरा॰2.22)
भरहठ (= भरनठ; भ्रष्ट)     (चौंसठो जोगिनी अपन पूरा जीउ-जान से ई फिराक में दिन-रात रहे लगलन कि कइसे धरती के लोगिन के मति भरहठ करी आउ राजा रिपुंजय के सासन में छेद निकाली ।)    (अदेरा॰32 (झ).34)
भिजुन (= भीरी, पास, नजदीक)     (अपने जाथ विष्णुजी भिजुन । देओतन पर जब कोई भीर परऽ हे तब ओही कुछ उपाय करऽ हथ, इया बतावऽ हथ । अभी सब सोंच-फिकिर बिसार के अपने उनके सरन में जाथ, देखथ उ का कहऽ हथ ।)    (अदेरा॰10.24)
भितरी (= भीतर, अन्दर)     (मुँह के बोली आधा भितरी रख के आधा बहरी निकालइत सल्ले सल्ले बोललन - अन्नदाता, अपने सूरज नियन परतापी, सूरज के जितताहर, रन-पंडित ही, जो अभयदान दी तो आज के हाल कही !; ऊ सब लोग के राजमहल के फाटक के भितरी आवे देवे के हुकुम देके राजा उनका से मिले ला चललन ।)    (अदेरा॰32 (ख).3; 32 (ग).7)
भितरे (~ से = अन्दर से)     (सच्चा नेता जे उपरे से सोभाओ आउ बेहवार में रुई के फाहा नियन कोमल रहे आउ भितरे से नियम आउ चाल-चलन में नरियल नियन कठोर !)    (अदेरा॰7.30)
भिर (= भीर, भीरी, भिजुन, बिजुन; पास)     (परोहितराज, अपने लोग भिर जनता के ग्यान-ध्यान के धरोहर हे, फिन ई हल्ला-गदाल, ई तूल काहे ला ?)    (अदेरा॰16.15)
भीर (= भीरी; पास, नजदीक; संकट, विपत्ति)     (अपने जाथ विष्णुजी भिजुन । देओतन पर जब कोई भीर परऽ हे तब ओही कुछ उपाय करऽ हथ, इया बतावऽ हथ । अभी सब सोंच-फिकिर बिसार के अपने उनके सरन में जाथ, देखथ उ का कहऽ हथ ।)    (अदेरा॰10.24)
भीरी (= भिर, पास, नजदीक)     (इनखर उखबिक्खी सरसती जी देखलन तो भीरी आके बड़ी मेहरायल बोली में पुछलन - "भला कउन अइसन गाढ़ परल हे अपने के कि आँख के नीन तक हर लेलक ?")    (अदेरा॰10.7)
भुक्खल (= भूखा)     (भनसारी लोग अब एकदम थरथराये लगलन । लगल जइसे भुक्खल बाघ के पंजा में दबोचा गेलन ।)    (अदेरा॰32 (ख).2)
भोरहरिये (= भोरगरिये; भोरे-भोरे; सुबह-सुबह ही)      (राजा बोललन - हम न जानइत ही कि अपने में का गुन हे ! एही ला हम आज एत्ता भोरहरिये अपने के कस्ट देली हे ।)    (अदेरा॰48.7)
मंदिल (= मंदिर)     (ई लोग तो डर के मारे अपन मंदिल से निकलवो न करथ कि कहीं भुखायल गिरोह के पाला में पर गेलन तो समझऽ कि देओतइये झर जाय ।)    (अदेरा॰5.1)
मंदिल-उंदिल     (हमरा न तो छीरे सागर मिलल हे, न कोई दूधे में डुबाबे । कोई मंदिलो-उंदिल में कोई खास परतिस्ठा न होयल ।)    (अदेरा॰3.14)
मगज     (जब पेट में भूख के अगिन धधकऽ हे तो ओकर जीभ लपलपा के गियारी पार करइत ब्रह्मांड में पहुँचऽ हे आउ मगज के सब अक्किल-ग्यान जार खोर के राख कर दे हे ।)    (अदेरा॰4.18)
मजगूत (= मजबूत)     (कुछ एहू सुझौलन कि राज में अब जे भी आदमी बच रहलन हे सब के जुटा के एगो नीमन मजगूत सेना तइयार करी - आउ सबसे नजीक जे धन-धान से पूर सुखी राज होय ओकरा पर धावा बोल दी ।)    (अदेरा॰22.12)
मत (= मति, बुद्धि) (~ मारना)     (कोई परसो करावे वाली चमइन के काम धइलक तो कोई साँप निकाले वाली नट्टिन के रूप बनौलक, कोई नचनियाँ बनल तो कोई गितहारिन, कोई बँसुली, कोई बाना, कोई मिरदंग बजावे-सिखावे के बहाना कइलक, कोई बँसचढ़नी, रसचढ़नी, बतबनउनी बन के मत मारे के दाव लगैलक, कोई हाथ के रेखा देखे लगल, कोई कपार के ।)    (अदेरा॰32 (झ).26)
मत्तोरी (~ के)     (सब जतन कर के हार गेलन तब सब के सब गरान से मरे तुल हो गेलन । अपने में लोग बतिआथ कि मत्तोरी के, एगो आदमजात के हमनी बस में न कर सकली ।)    (अदेरा॰42.30)
मनमंता (= मनमाना)     (विरोधी दल रहे से सासन करताहर फुक-फुक के डेग उठावऽ हे आउ कोई अइसन काम न करे जे में सिकाइत के मोका मिले । एकर अभाओ में ऊ एकदम निडर हो जाहे आउ मनमंता करे लगऽ हे ।)    (अदेरा॰56.8)
मनित्ता (= मन्नत)     (एकर साथ-साथ कोई राज व्यवस्था ई भी न सह सके कि परजा में ई बात फैलावल जाय कि देवी-देओता के मनित्ता मान ल इया पूजा-पाहुर दे दऽ तो सब मनोरथ पूरा हो जयतो ।)    (अदेरा॰19.18)
मर-मकान     (तब दानहीन बन के गली-कूची में परल-ढनमनायल चले लगलन ई जाँचे ला कि देखी गरीब-गुरबा के देख के लोग अपन धरम निबाहऽ हे कि न । बाकि जने जाथ तनहीं खाय-पीये, कपड़ा-लत्ता, मर-मकान, रोजी-रोजगार के परबन्ध होय लगे ।)    (अदेरा॰35.21)
मसला (= विषय)     (परनाम-पाती तो एकदम बिसरिये गेलन, छुटइते पुछलन - "हालचाल तो अच्छा हे न ?" बरम्हा जी कहलन - "हाँ अच्छे हे, तनी विष्णु जी से एगो मसला पर मोसवरा करे के हे । सूतल हथ का ?"; आउ फिन अदमी के बढ़न्ती रोके के बात भी तो खूब हे । जहाँ दुरभिछ से एत्ता आदमी रोजीना मर रहल हे हुआँ ई कहना कि आदमी फाजिल हे, समस्या के उल्टा समझना हे । हियाँ तो मसला हे कि कइसे लोग के बचावल जाय, अदमी के कमनई रोकल जाय ।)    (अदेरा॰11.3; 23.22)
मसान (= श्मशान)     (अदमी जानवर बन गेलन, जानवर खुरी रगड़ रगड़ के मरे लगलन । केतना गाँव-गिराँव तो सच्छात मसान बन गेल ।)    (अदेरा॰1.13)
महजाल (= महाजाल)     (महजाल के गेंठी जइसे राज के अमला सब होवथ आउ तार राज के वेवस्था । गाहे-बेगाहे राजा उठथ आउ कभी राज के ई कोना तो कभी ऊ कोना के निरिख-परिख आवथ ।)    (अदेरा॰25.3)
महत (= महत्त्व)     (बतावऽ, जउन राज में एतना छोटा-छोटा राज होवे आउ एकदम आजादी से राज के नियम-कानून के खिलाफ जे मन में आवे से करे तो राजा का बेवस्था करत ? ओकर बात के तो कोई कुछ महते न देत, राजा के हुकुम आउ राज के नियम-कानून के खिलाफ चलत ।)    (अदेरा॰18.10)
महराज (= महाराज)     (रहे-रहे चेला एगो सवाल टोन दे आउ संत महराज ओकरा खूब रिच-रिच के समदथ । कभी-कभी तो खड़ा होके पूरा भाषणे सुरु कर देथ ।)    (अदेरा॰51.8)
महाल     (पहिले हरेक गाँव में एगो मुखिया चुनलन । फिन कई गाँव के मुखियन मिल के महाल से एक अदमी के चुनलन आउ तब महाल के मुखियन मिल के जेवार से एक आदमी सभा में पहुँचलन ।)    (अदेरा॰14.28, 29)
महें (= माहें, मुहें; तरफ, ओर) (उपरे ~)     (इ तो धन मानऽ कि हिमालय पर्वत हे जेकरा से बंगाल के खाड़ी से आवे वाली हवा रुकऽ हे, उपरे महें उठऽ हे आउ ठंढा के बरसऽ हे ।)    (अदेरा॰2.29)
मिनती (= विनती, निवेदन)     (सभा के लोग तो बड़बड़यलन बाकि रिपुंजय सब से सान्त रहे ला मिनती कइलन ।)    (अदेरा॰15.12)
मुल्ला (= मूर्ख, नासमझ) (~ फँसना)     (सरग में तो सब देओतन एक पर एक । रूप-गुन, विद्या-बुद्धि, बल-पराकरम में अपने अपने चूर, कोई के कोई लगावे न । अइसन में उ लोग के मानुष छोड़ के आउ कउन मुल्ला फँसे अपन जमउअल ला ।)    (अदेरा॰27.29)
मुहें (= महें, माहें; तरफ, ओर)     (राजा ई बात के नीमन तरी बूझइत हलन कि परजा के सुख-समरिधि आउ राज के उन्ती-बढ़न्ती लागी घरेलू नीति आउ विदेसी नीति दुन्नों के अइसन गंगा-जमुनी बना के चलना हे कि भीतर-बाहर दुन्नों दने से सान्ती रहे आउ देस दिनोदिन आगू मुहें बढ़इत चल जाय ।; काम आगे मुहें सरक चलल । एकर पाछू में ओकर लुतरी जड़ देली आउ ओकर पाछू में एकर, हो गेल बात-बात में बेटहो-पुतहो ।)    (अदेरा॰25.12; 44.19)
मूड़ी (= सिर)     (सिउजी के ई जुगती से सुरूजदेओ के मन तो न भरल, बाकि मालिक के मरजी । खिलाफी बतकुच्चन करके अपन मूड़ी कुचवाओ । माथा झुका के कहलन - जे अग्याँ, जाही । देखी, अपन बौसाओ भर तो बाज नहियें आयम ।)    (अदेरा॰34.18)
मूनना (= बंद करना, ढँकना)     (ई सोंच के बरम्हा जी एतना दुखी भेलन कि आँख मून के माथा ठेहुना पर टेक देलन ।)    (अदेरा॰5.5)
मेहनत-मसक्कत     (पूजा-पाठ, परोहिती के बल पर बइठल-बइठावल छपनो परकार चलइते रहत, फिन मेहनत-मसक्कत करके बेकार पसेना काहे बहाऊँ ! आउ अइसन कमपढ़ आउ अग्यानी लोग के राज चलइत रहे एकरा ला सब नियम-कानून बना-बिगाड़ के समाज के हालत खराब कर देलन ।)    (अदेरा॰17.16)
मेहराना     ("हाँ हाँ !" नारद जी रोकलन आउ मोछिये तर मुसकइत बड़ी मेहरा के बोललन - "सिरजनहार, धरती के मसला हल करतन देओता ? अइसन होयल हे आज तक ?")    (अदेरा॰5.14)
मेहराना     (राजा भौं के इसारा से कहे के हुकुम देलन तो भनसारी लोगिन के सरगना मेहरायले नियन बोलल - अन्नदाता, कउन मुँह से कहूँ कि आज हमनी कुछ पका न सकली !)    (अदेरा॰32 (ख).8)
मोसवरा (= सलाह, परामर्श)     (परनाम-पाती तो एकदम बिसरिये गेलन, छुटइते पुछलन - "हालचाल तो अच्छा हे न ?" बरम्हा जी कहलन - "हाँ अच्छे हे, तनी विष्णु जी से एगो मसला पर मोसवरा करे के हे । सूतल हथ का ?")    (अदेरा॰11.4)
मोहाल (= दुर्लभ)     (अदमी मांस खाय लगलन । ओहू मोहाल भेल तो कोई जट्टा छोड़ के साधु बन गेल आउ भिच्छाटन  ला अंते के राह धयलक, कोई समुन्दर किंछारे कोई गुफा में बास कयलक, तो कोई दिआरा में घर बसौलक ।)    (अदेरा॰1.7)
रंगत     (बिरहस्पति जी भी जमात के रंगत कुछ गमलन, से फिन नरमा के बोललन - "ई तो हम अप्पन मन के भओना बतइलिइयो, अब तोहनिने ई घड़ी के हलावत सोंच के बतावऽ कि का कइल जा सकऽ हे । राजा रिपुंजय के बर्हमा बरदान देलन हे, ओकर उल्लंघन न कइल जा सके ।")    (अदेरा॰29.10)
रउदा (= रौदा; धूप)     (साथे पूरा जुलूस चलल तो धूरी उड़ के बादल नियन छा गेल आउ कटकटायल रउदा में छाता के काम कइलक ।)    (अदेरा॰64.17)
रकटल     (घोर अकाल ! कई बच्छर से बून-पानी बिन सुखारे सुखार । सउँसे काशी छेत्र जल बिनु रकटल ।)    (अदेरा॰1.3)
रसचढ़नी     (कोई परसो करावे वाली चमइन के काम धइलक तो कोई साँप निकाले वाली नट्टिन के रूप बनौलक, कोई नचनियाँ बनल तो कोई गितहारिन, कोई बँसुली, कोई बाना, कोई मिरदंग बजावे-सिखावे के बहाना कइलक, कोई बँसचढ़नी, रसचढ़नी, बतबनउनी बन के मत मारे के दाव लगैलक, कोई हाथ के रेखा देखे लगल, कोई कपार के ।)    (अदेरा॰32 (झ).25-26)
रसद-बुतात     (धरतीये के राज तो असल हे, बिना धरती के राज के हमनी के आउ दुन्नो लोक के राज भी तुच्छ हे । सब रसद-बुतात, ऐस-आराम, इज्जत-मरजाद तो धरतीये के राज पर हे ।)    (अदेरा॰12.18)
रसे-रसे (= धीरे-धीरे)     (पाँडे-पुरोहित के आदर-मान अलोप हो गेल । हवन-कुंड भस गेल, जग्ग-मंडप ढह-ढनमना गेल । देवी-देओता के भोजन छाजन कइसे चले ? सब रसे-रसे दुबराय लगलन ।)    (अदेरा॰1.19)
रस्से-रस्से (= रसे-रसे)     (देवी-देओता तो धरती छोड़ के चलियो गेलन हे, उनकर गरहाजिरी में अपन बिस्वास के अनुसार कोई घर में बइठल उनकर नाम के माला जपे इया उनका पर फूल माला चढ़ावे तो एकरा तो सिच्छा आउ परचार से रस्से-रस्से कम कइल जा सकऽ हे ।)    (अदेरा॰23.8)
रहे-रहे (= बीच-बीच में)     (रहे-रहे चेला एगो सवाल टोन दे आउ संत महराज ओकरा खूब रिच-रिच के समदथ । कभी-कभी तो खड़ा होके पूरा भाषणे सुरु कर देथ ।)    (अदेरा॰51.8)
राज-उज (~ चलाना)     (राजन्, सामरथ कई रंग के होवऽ हे, जुद्ध करे के, विद्या हासिल करे के, राज-उज चलावे के । बाकि ई घड़ी जे सामरथ चाही, लोग के मन के डोरी खींच के कर्म के मारग पर लावे के, से नेता में होवऽ हे ।)    (अदेरा॰7.27)
राय-मोसवरा     (कुछ छिन तो निसबद्दी रहल, बाद में कुछ भनभनाहट होयल, आपुस में कुछ राय-मोसवरा होयल आउ अंत में अगाड़ी से दू अदमी निकल के आगू बढ़लन । राजा उनका अपना साथे लेके अपन कक्छी में चल गेलन ।)    (अदेरा॰16.29)
रिचना     (रहे-रहे चेला एगो सवाल टोन दे आउ संत महराज ओकरा खूब रिच-रिच के समदथ । कभी-कभी तो खड़ा होके पूरा भाषणे सुरु कर देथ ।)    (अदेरा॰51.9)
रेघी (= लाइन, रेखा)     (हाँ, हाँ । रसे-रसे हम ओही बात पर आ रहली हे । जब हमरा कोई बिसय के ग्यान होवऽ हे तब समझी कि ओही ओकर इलोह के एगो रेघी हे । जइसे जइसे ई सिरिस्टी के ग्यान बढ़इत जा हे तइसे तइसे समझी कि हम ब्रह्म के नजिकायल जा ही ।)    (अदेरा॰46.18)
रोग-बेयाध     (अब अदमी लोग एही समझऽ हथ कि अगर जो कइसहूँ देओता-देवी के मना लेल जाय तो बेड़ा पार हे । कोई देओता के टीप लेलन, कुछ दिन साँझे-बिहने हाजिरी देलन, फल-फूल, सिरनी चढ़ौलन, कुछ गुनानुवाद गा देलन । बस चलऽ, बिना खरच-बरच के लइकन-फइकन के रोग-बेयाध दूर ।)    (अदेरा॰9.2)
रोजगरिया (= रोजगार करनेवाला; वैश्य)     (सूरज उगे घड़ी पूरब में सुक्खल पेड़ पर कउआ बोललो - भागऽ न, का जानी कइसन भयंकर बात होतो । दोकान सब के धारी के बीच में दू वनइया मिरिग पार हो गेलो, बड़ दुखदायी बात होतो । पच्छिम असमान में बढ़नियाँ (धूमकेतु) उगलो, सब रोजगरिया (वैस) के नास होतो ।)    (अदेरा॰44.7)
रोजीना (= रोज-रोज)     (आउ फिन अदमी के बढ़न्ती रोके के बात भी तो खूब हे । जहाँ दुरभिछ से एत्ता आदमी रोजीना मर रहल हे हुआँ ई कहना कि आदमी फाजिल हे, समस्या के उल्टा समझना हे ।)    (अदेरा॰23.20)
लँगटे (= नंगे)     (सब के मन अइसने कइलक कि आनन्द से लँगटे होके नाचे लगूँ बाकि सिउजी के अदब से मन के चाँपलन ।; कोई जो झखुरा लगौले लँगटे तिरिया के सपना देखे तो समझावथ कि तोहर घर से लछमी के विदाई हो ।)    (अदेरा॰32 (ज).28; 43.30)
लइकन-फइकन     (अब अदमी लोग एही समझऽ हथ कि अगर जो कइसहूँ देओता-देवी के मना लेल जाय तो बेड़ा पार हे । कोई देओता के टीप लेलन, कुछ दिन साँझे-बिहने हाजिरी देलन, फल-फूल, सिरनी चढ़ौलन, कुछ गुनानुवाद गा देलन । बस चलऽ, बिना खरच-बरच के लइकन-फइकन के रोग-बेयाध दूर ।)    (अदेरा॰9.2)
लमहर     (जैगीषव्य मुनि से निवटना हल कि बर्हामन लोग के एगो लमहर जमात पहुँच गेल । दूर से सिउजी के जयजयकार के गदाल जे होयल से इनकर नजर ओनहीं खिंचा गेल ।)    (अदेरा॰65.19)
लम्मा     (सिउजी कहलन आउ जोगिनिन उहईं से सीधे काशी जी ला आकास मारग से फराफर्र उड़ चललन । जब ला उनकर धारी आँख के सामने रहल तब ला सिउजी एकटक देखइत रहलन । इड़ोत होइते संतोष के लम्मा साँस लेलन आउ अप्पन नित्तम के करम-धरम में लग गेलन ।)    (अदेरा॰32 (झ).4)
लसिआना     (पारवती जी छिछ काट के छटकइत बोललन - फरके, फरके, फरके !! तनि देखऽ ! पसेना से देह के भभूत तो लसिआयल हइन - सब अस्तर-बस्तर लेसारतन !)    (अदेरा॰32 (ज).4)
लुतरी (= चुगली)     (काम आगे मुहें सरक चलल । एकर पाछू में ओकर लुतरी जड़ देली आउ ओकर पाछू में एकर, हो गेल बात-बात में बेटहो-पुतहो ।)    (अदेरा॰44.20)
लुहलुह (= लहलह)     (फरके से काशी जी पर नजर परइते सब जोगिनिन के मने हरखित हो गेल । नगर के चारो दन्ने लुहलुह हरिअर खेत-बाध देख के लगल कि उतर के ओकरे में लोट-पोट करे लगथ ।)    (अदेरा॰32 (झ).8)
लेसना (= नेसना; जलाना, प्रज्वलित करना, सुलगाना)     (बर्हामन-समाज के असल काम तो ई हल कि एके-एक आदमी के अग्यान से अन्हार मगज में ग्यान के दीप लेस देत हल, जे से सउँसे समाज में जोत जगमगा जाइत हल ।)    (अदेरा॰18.1)
लेसारना (= लेसाड़ना; गंदा करना)     (पारवती जी छिछ काट के छटकइत बोललन - फरके, फरके, फरके !! तनि देखऽ ! पसेना से देह के भभूत तो लसिआयल हइन - सब अस्तर-बस्तर लेसारतन !)    (अदेरा॰32 (ज).4)
लेहाज (= लिहाज; संकोच; लज्जा; सम्मान करने का भाव)     (कुछ लोग के सुझाओ होयल कि जेतना अदमी हथ ऊ सब से कुछ न कुछ खेती-बारी के काम लेल जाय, एकरा में बरन, आसरम इया उमर के कोई लेहाज न कइल जाय ।)    (अदेरा॰22.6)
लोल     (तोहर मन कासी जी के दरसन ला लोल, आने कि चंचल हो गेल हल से से कासी के दक्खिन वाला निवास अस्थान के नाम लोलार्क तीर्थ रहत ।)    (अदेरा॰62.16)
वुलक्का (~ मार के निकलना)     (गुरुजी के ई खटतुरुस बतरस से देओतन के जीउ पिचपिचा गेल । पेट में जेतना बात भर के अइलन हल सब लगल जइसे मुँह से वुलक्का मार के निकल जायत ।)    (अदेरा॰29.5)
सइतना (= सैंतना, संग्रह करना)     (खेती के बीहन राज के तरफ से बाँटना, जे धनीमानी अनाज-उनाज सइतले हथ उनका से लेके राज के भुक्खे मरइत ढनमनाइत लोग में बाँटना ।)    (अदेरा॰24.20)
सउँसे (= समूचा)     (घोर अकाल ! कई बच्छर से बून-पानी बिन सुखारे सुखार । सउँसे काशी छेत्र जल बिनु रकटल ।; ई खबर सुनके सउँसे देओता समाज में खलबली मच गेल ।)    (अदेरा॰1.2; 13.23)
सगरो (= सर्वत्र, सभी जगह)     (अब के धरती के संकट-अकाल दुरभिच्छ के भागला पर सगरो खुसहाली होय से सब देओतन के मन इ बात ला चपसे लगल कि कखनी ऊ सुख के भोगे ला हुआँ पहुँचूँ ।; राजा सामने आके हाथ जोड़ के ठाड़ होयलन तो सगरो निसबद हो गेल ।)    (अदेरा॰27.18; 32 (ग).12)
सच्चे (= सचमुच)     (सच्चे, भाषण तो इ अइसन लरछेदार देवे लगथ कि अदमी तो अदमीये, हिरना-हिरनी भी खनई-पिनई बिसर जाय, बयार जइसे चलनई भुला जाय आउ पेड़-बगाध आदर से फूल बरसावे लगे ।)    (अदेरा॰51.11)
सजाय (= सजा, दंड)     (जे आदमी ई नियम के खिलाफ काम करत ऊ राज के नया नियम-कानून के मोताबिक सजाय के भागी बनत ।)    (अदेरा॰14.2)
सतरखी (= सतर्खी; सतर्कता, सावधानी)     (उनका तनी नीमन से घुरा-फिरा के हमरा से भेंट करे ला मना लेल जाय फिन तो समझी कि काम बनल हे । बड़ी सतरखी से काम करे के जरूरत हे ।)    (अदेरा॰45.7)
सनासन     (रात सनासन भागल जाइत हे । बिहनऽहीं रिपुंजय काशी में डंका पिटवा देतन कि देओतन धरती छोड़ देथ । राते भर में कोई उपाय करना हे ।)    (अदेरा॰10.4)
सनासन्न     (थोड़े देर गुम-सुम रहला पर इ एकबैक आसन से कूद परलन आउ जब तक नारद कुछ कहथ तब तक "अच्छा देखऽ का होबऽ हे" कहइत अपन हंस के सवारी ठोकलन आउ सनासन्न उड़ चलन हुआँ जहाँ रिपुंजय तपस्या करइत हलन ।)    (अदेरा॰6.11)
सनेसा (= सन्देश)     (अप्पन पालनहार तो अदमी अपने हे । तूँ जो एही सनेसा लोगन में पहुँचा दकऽ तो बड़ी बात हे ।)    (अदेरा॰7.18)
सब्भे (= सभी)     (राज-काज चलावे में जे तप के जरूरत हे ऊ अइसन कइलन कि रुद्र भी झुठा गेलन । आने कि असली देओता लोगिन में तो एकक्के गुन हल, इनका में एक्के साथे ऊ सब गुन जमा हो गेल, जइसे सब्भे देओता के ई अकेले औतार होवथ ।)    (अदेरा॰25.27)
समदना     (रहे-रहे चेला एगो सवाल टोन दे आउ संत महराज ओकरा खूब रिच-रिच के समदथ । कभी-कभी तो खड़ा होके पूरा भाषणे सुरु कर देथ ।)    (अदेरा॰51.9)
समुच्चे (= समूचा)     (समुच्चे सभा ई जाने ला बेअग्गर हल कि राजा आउ परोहित लोग में का बातचीत होयल ।)    (अदेरा॰20.15)
सम्हारना (= सँभालना, सहारा देना)     (अगर जो कोई उपाय से रिपुंजय के ई बात पर राजी कर लेल जाय कि सन्यास छोड़ के कर्म के मारग अपनावथ आउ काशी छेत्र के राज सम्हारथ तो आउ लोग के भी साथ मिल सकऽ हे आउ काशी छेत्र के ई संकट दूर हो सकऽ हे ।)    (अदेरा॰6.5)
सरकार     (एक तुरी ज्योतिसी बनलन आउ घुर-फिर के लगलन लोग के किस्मत के चिट्ठा खोले । ... एकर जवाब सगरो से एही मिलल - रहे दिहु सरकार अपन गरह-निछत्तर । ई सब ओकरे सतावऽ हथ जे कायर हथ आउ किरिया-करम, नेम-धरम के पवित्तर मारग से पिछुल गेलन हे ।)    (अदेरा॰35.28)
सरग (= स्वर्ग)     (सच्चे कहल जाहे कि मानुषी पराकरम से राजा दिवोदास एही धरती पर सरग उतार लौलन, बलुक सरगो से एकरा बढ़ियाँ बना देलन ।)    (अदेरा॰26.32)
सरगनई     (एतना समय में बर्हमा जी के सरगनई में ई जमात बड़ी जतन कइलक कि कइसहूँ राजा या परजा कोई अधरम के काम करथ, ढेर उसकी भी छोड़ल गेल बाकि अभी ऊ समय न आयल हल जेकरा सोंच के बर्हमा जी इहाँ धावा बोललन हल ।)    (अदेरा॰40.22)
सरगना     (सिउजी, जे ई लोग के सरगना होके इहाँ विराजमान हलन, उनका फिन से बोलाके परतिस्ठा कइल जाय जेमें उ लोग के मन में जे काँटा हे से निकल जाय ।)    (अदेरा॰54.20)
सल्ले-सल्ले (= सले-सले; धीरे-धीरे)     (मुँह के बोली आधा भितरी रख के आधा बहरी निकालइत सल्ले सल्ले बोललन - अन्नदाता, अपने सूरज नियन परतापी, सूरज के जितताहर, रन-पंडित ही, जो अभयदान दी तो आज के हाल कही !; अइसन बड़हन जुलूस देख के इनकर मन उत्साह आउ आनन्द से लबलबा गेल । अब ई बिस्नुजी साथे सल्ले सल्ले बढ़लन आउ रथ पर सवार हो गेलन ।)    (अदेरा॰32 (ख).4; 64.13-14)
सहियारना     (रिपुंजय इनकर मुखड़ा पर गौर कयलन कि कहीं गोसाय के छँहकी तो न हे । बाकि कोई अनेसा न पा के सहियार सहियार के समझावे लगलन ।; भेल बिहान तो आउ कोई काम-दाम सहिआरे के पहिले सिउजी अपना अगाड़ी में जोगिनी चक्र रखलन आउ चौंसठो जोगिनी के याद कइलन ।)    (अदेरा॰8.21; 32 (ज).7)
साँझे-बिहने (= सुबह-शाम)     (अब अदमी लोग एही समझऽ हथ कि अगर जो कइसहूँ देओता-देवी के मना लेल जाय तो बेड़ा पार हे । कोई देओता के टीप लेलन, कुछ दिन साँझे-बिहने हाजिरी देलन, फल-फूल, सिरनी चढ़ौलन, कुछ गुनानुवाद गा देलन । बस चलऽ, बिना खरच-बरच के लइकन-फइकन के रोग-बेयाध दूर ।)    (अदेरा॰8.28)
सिकड़ी (~ खटखटाना)     (बरम्हा जी विष्णु जी के दुहारी पर पहुँचलन तो केबाड़ी बंद । हाँक पारलन, सिकड़ी खटखटौलन तो ओने से आके लछमी जी केबाड़ी खोललन ।)    (अदेरा॰10.30)
सितुहिया     (घोर अकाल ! कई बच्छर से बून-पानी बिन सुखारे सुखार । सउँसे काशी छेत्र जल बिनु रकटल । जे गंगा उपलायल चलऽ हल से जइसे दुबरा के सितुहिया सोता बन गेल ।)    (अदेरा॰1.4)
सिन (= सन; सदृश) (खट ~; सड़ाक ~)     (आजकल जइसे बिना तार के तार चल जाहे ओइसहीं सब जोगिनियन के खट-सिन पता चल गेल कि सिउजी के बोलहटा हे । सब जहाँ हलन तहईं से फटाफट एकाएकी आवे लगलन ।; जइसे कोई गुबदी भिर आके पानी के धारा हाली सिन दउड़ के गिरऽ हे ओइसहीं चौंसठो जोगिनिन काशी के भीरी अइला पर अपन चाल तेज करके नगर के महल्ले-महल्ले उतर गेलन ।; दुनहुन सड़ाक-सिन कासीपुरी में आ गेलन आउ रूप बदल-बदल के घुरे-फिरे लगलन, लोग के बहकावे लगलन । बाकि एहू दुनो सब उपाय करके हार गेलन ।)    (अदेरा॰32 (ज).10; 32 (झ).11; 41.20)
सिन् (= सन, दबर) (फट ~)     (बरम्हा जी के छन मन आनन्द से गद्गद हो गेल । आदर आउ सन्मान से उपलाइत मधुर बानी में बोललन - "महामते रिपुंजय !" अइसन निसबद्दी में ई गंभीर बानी से रिपुंजय के ध्यान फट सिन् टूट गेल । आँख खुलइते आगू साच्छात बरम्हा जी के दरसन से गिलपिल हो गेलन आउ साष्टांग दंडवत में डंटा नियन गिर गेलन ।)    (अदेरा॰6.22)
सिरनी     ( अब अदमी लोग एही समझऽ हथ कि अगर जो कइसहूँ देओता-देवी के मना लेल जाय तो बेड़ा पार हे । कोई देओता के टीप लेलन, कुछ दिन साँझे-बिहने हाजिरी देलन, फल-फूल, सिरनी चढ़ौलन, कुछ गुनानुवाद गा देलन । बस चलऽ, बिना खरच-बरच के लइकन-फइकन के रोग-बेयाध दूर ।)    (अदेरा॰9.1)
सुक्कर (= शुक्र)     (अपने तो बुद्धि में सुक्कर अइसन, आनन्द में चनरमा अइसन, तेज में सुरुज अइसन, परताप में अगिन अइसन, ... राजनीति में सुक्र अइसन आउ संताप हरे में मेघ अइसन ही ।)    (अदेरा॰48.20)
सुखार (= सुखाड़, सूखा, अकाल)     (घोर अकाल ! कई बच्छर से बून-पानी बिन सुखारे सुखार । सउँसे काशी छेत्र जल बिनु रकटल ।)    (अदेरा॰1.2)
सुग्गुम (= सुगम, आसान)     (बस, तोर काम तो एकदम सुग्गुमे हे । सिउ जी के जाके कहऽ कि अपन वचन के पालन करथ आउ मंदराचल पर जाके ओकरो काशी के गौरव देथ ।)    (अदेरा॰11.26)
सुन (= सन, -सा) (तनी ~)     (अइसन सुख चैन हे कि कोई के मगज मारे के कोई जरूरते न हे । एही ओजह हे कि देओतन के तनी सुन उसकी में इनकर मगज के कलई जवाब दे दे हे आउ लोग ओकर फेर में पर जा हथ ।)    (अदेरा॰56.31)
सुन्नरतई (= सुन्दरता)     (काशी के सुन्नरतई के बरोबरी करत हिमालय !)    (अदेरा॰32 (छ).3)
सेई (~ से = उसी से, इसलिए)     (कैलास हिमालये के एगो चोटी हे, बस सई से लोग समझऽ हथ कि महादेव जी बरखा बरखा दे हथ ।)    (अदेरा॰3.1)
सेई (= सेहे; वही)     ("हाँ तब तो ठीक हे ।" सिउजी के जीउ में जीउ आयल । "सेई कही कि हरदम्मे ला काशी के तज देना कइसे होयत । तब तो अभी हम मंदर पर चल जाही, साथे देओतन भी चल चलतन ।")    (अदेरा॰13.5)
सेमाना (= सीमाना; सीमा)     (हमरा अइसन परतीत भेल कि दिवोदास के कथा मे अइसन सास्वत सत्त हे जे देस काल के सेमाना तोड़ के सरबव्यापी बन गेल हे ।)    (अदेरा॰क.15)
सेसर (= श्रेष्ठ)     (काशी के सुन्नरतई के बरोबरी करत हिमालय ! रतन-बरसी काशी, सुख-समरिधि में तीनो लोक में सेसर काशी, पापमोचनी काशी ! ओकर परतुक हे कहीं ?; जब कोई गाढ़ परऽ हे तबऽहियें न अपना से सेसर बुध-गेयान वाला भिर जाहे ।; एही लोग देओता से सेसर हथ, इनकरे राज-पाट में सरग से जादे सुख-समरिधि भी हे, तब इहईं रह जाऊँ ।)    (अदेरा॰32 (छ).4, 18; 43.1)
सेहू (= ओहो; वह भी)     (ई के जानो कि आखिर कोखिया में भेजऽ ही हमहीं आ सेहू अदमियन के अपने जोड़ जुगुत पर !)    (अदेरा॰3.19)
सोंचनई     (रोना बना के कोई राज पर चढ़ाई करे के बात तो एकदम पगलपाना होयत । एक तो अपन स्वारथ ला दोसर के लूट-पाट करना, राज हड़पना सरासरी अनर्थ आउ पाप के काम होयत, दोसरे अइसन राज भी होय जहाँ एतना उपज होय कि जेकर धन-धान से पूरा एगो दोसर राज के भरन-पोषण हो सके, आउ तेसरे ओइसन समरिध राज हमनी अइसन भुक्खा-कंगाला ढहित-ढनमनाइत राज से हार जाय । ई सब सोंचनइयो मगज के हिनसतई हे ।)    (अदेरा॰23.19)
सोंच-फिकिर     (अपने जाथ विष्णुजी भिजुन । देओतन पर जब कोई भीर परऽ हे तब ओही कुछ उपाय करऽ हथ, इया बतावऽ हथ । अभी सब सोंच-फिकिर बिसार के अपने उनके सरन में जाथ, देखथ उ का कहऽ हथ ।)    (अदेरा॰10.26)
सोना-चानी     (पुजेरी-परोहित लोग के ई बात के पूरा अधिकार रहत कि अपन विचार आउ ग्यान के मोताबिक भगवान के उपासना करथ, बाकि ई न होय कि ऊ आउ लोग के ई बात पर मजबूर करथ कि गउर गणेश के सोना-चानी चढ़ावऽ न तो कारजे सुफल न होयतो, पुजेरी जी के एतना दरब से पैरपूजी करऽ न तो पिंडदान न होतो, पुरखन नरके में पड़ल रहतथू, सिउलिंग के दूध से डुबावऽ न तो बरखे न होतो, देवी मइया के नाम पर पठरू पीटऽ न तो पुतर-रतन परापिते न होतो ।)    (अदेरा॰19.13)
सोभाओ (= सोभाव; स्वभाव)     (सच्चा नेता जे उपरे से सोभाओ आउ बेहवार में रुई के फाहा नियन कोमल रहे आउ भितरे से नियम आउ चाल-चलन में नरियल नियन कठोर !)    (अदेरा॰7.29)
हँथिआना (= हथियाना, अपने अधीन या वश में करना)     (तब सिउजी अपन मन के परोगराम उघारलन - देखऽ, हम चाहऽ ही कि हमनी फिन से काशी जी के राजगद्दी हँथिआवी ।)    (अदेरा॰32 (ज).18)
हदकाल     (न जानी का बात हे कि सउँसे नगर में अगिन बिन हदकाल मचल हे । लगऽ हे वैस्वानरे धरती छोड़ देलन हे ।)    (अदेरा॰32 (ख).11)
हदबदाना     (एन्ने बरम्हा जी बइठका में बइठलन, ओन्ने से तुरन्ते विष्णु जी कपड़ा सम्हारइत, आँख पोंछइत हदबदायल धाबे-धुबी अयलन ।)    (अदेरा॰11.8)
हदबद्दी     (थोड़े देर गुम-सुम रहला पर इ एकबैक आसन से कूद परलन आउ जब तक नारद कुछ कहथ तब तक "अच्छा देखऽ का होबऽ हे" कहइत अपन हंस के सवारी ठोकलन आउ सनासन्न उड़ चलन हुआँ जहाँ रिपुंजय तपस्या करइत हलन । नारद जी उनकर हदबद्दी देख के मुसकैलन आउ तानपूरा पर ठुनकी देके बोललन - "नारायण !" आउ एक दने चल देलन ।)    (अदेरा॰6.13)
हबकुरिये     (तब, हमनी मेहरारुन के तो समझल जाहे कि बस लउँड़ी हे, अइसन अइसन बेरा पर का राय मोसवरा कइल जाय ओकरा से ! आउ जब आफत परऽ हे तो गिरऽ हथ हबकुरिये ।)    (अदेरा॰32 (छ).14)
हयरा     (हथ इ लोग धुरफंदी, से से उलट-फेर करके समाज के, राज के, इहाँ तक कि धरम-करम के बेवस्था भी हथिया लेलन हे । धरती के सब बेवस्था ई तिनकउड़िया जमात चला रहल हे आउ सत्तवादी, इमनदार, चलित्तरमान लोग इ हुड़दंगी के भउँरी में पर के चाहे तो बूड़ गेलन चाहे अपन सत्त के जीवन के बचावे ला किनारा लगलन, हयरा नियन जंगल के सरन लेलन ।)    (अदेरा॰8.13)
हरखित     (फरके से काशी जी पर नजर परइते सब जोगिनिन के मने हरखित हो गेल । नगर के चारो दन्ने लुहलुह हरिअर खेत-बाध देख के लगल कि उतर के ओकरे में लोट-पोट करे लगथ ।)    (अदेरा॰32 (झ).7)
हरदम्मे (= हरदम ही; ~ ला = हमेशा के लिए ही)     ("हाँ तब तो ठीक हे ।" सिउजी के जीउ में जीउ आयल । "सेई कही कि हरदम्मे ला काशी के तज देना कइसे होयत । तब तो अभी हम मंदर पर चल जाही, साथे देओतन भी चल चलतन ।")    (अदेरा॰13.5)
हरिअर (= हरा)     (फरके से काशी जी पर नजर परइते सब जोगिनिन के मने हरखित हो गेल । नगर के चारो दन्ने लुहलुह हरिअर खेत-बाध देख के लगल कि उतर के ओकरे में लोट-पोट करे लगथ ।)    (अदेरा॰32 (झ).8)
हरिचन्नन     (कोई परतीत करत कि ई ओही हथ जिनकर जट्टा से तापहरनी गंगा निकसलन हे आउ सेई ताप से अइसन तपइत हथ कि हरिचन्नन के भी कोई असर न हो रहल हे ।)    (अदेरा॰32 (घ).32)
हलका (= छोटा सीमित क्षेत्र; किसी कर्मचारी का कार्यक्षेत्र; कई गाँव या मुहल्ला का समूह जिसकी जवाबदेही किसी व्यक्ति के जिम्मे होती है)     (एकरा ला सउँसे देस के कई हलका में बाँट के सब में एक्कगो राज के अमला के परबन्ध करना जे ऊ हलका के जनता से मिलके उनकर जरूरत के अनुसार दुरभिछ दूर करे के इंतजाम करथ आउ अभी तुरत उनकर जरूरत कूत के राजा के पास भेजथ कि ओकर अनुसार राज के तरफ से परबन्ध कइल जा सके ।)    (अदेरा॰24.9, 10)
हल्ला-गदाल     (परोहितराज, अपने लोग भिर जनता के ग्यान-ध्यान के धरोहर हे, फिन ई हल्ला-गदाल, ई तूल काहे ला ?; हमनी आपस में बातचीत करम, हमर कष्ट अपने सुनी, अपने के कष्ट हम सुनम । दुन्नों दन्ने के विचार से एगो बात तय हो जायत । एकरा में हल्ला-गदाल करे के कउन काम हे ?)    (अदेरा॰16.16, 25-26)
हाँहे-फाँफे (दे॰ हाँफे-फाँफे)     (अब रात कम हल से बिदा लेके भागलन सिउ जी देने । हाँहे-फाँफे जब सिउ जी के दुआरी पर पहुँचलन तो हुअऊँ सन्नाटा !)    (अदेरा॰12.3)
हाथ-गोड़     (मोह में परल ह रिपुंजय ? जब ला जीउ अपने से कुछ न करे, हम कुछ न कर सकी, साहारा मातर हम दे ही । जब कोई कम्मर कस्सऽ हे, हाथ-गोड़ चलवऽ हे तब हमहूँ भितरे से कुछ काबू भरऽ ही । जो कोई हाथ-गोड़ छान के घुरमुरिया लगा ले, तो बूझ ल, हम ओकरा कुछ न कर सकी ।)    (अदेरा॰7.14)
हाम-हुम (= धाम-धूम, धूम-धाम)     (पढ़ुआ लइकन तो हर साल माघ सिरी पंचमी के इनकर पूजा बड़ी हाम-हुम से करऽ हथ ।)    (अदेरा॰4.11)
हार-पार के     (दिन बीतल, हप्ता निकसल, पख भागल, महिन्ना गुदस्त भेल, साल आके ठेंकल बाकि चौंसठ में एक जोगिन के भी चित्ता तक न होयल । अब सिउजी के मन अड़ाई न भेल । हार-पार के देलन हंकारा सुरूज देओ के ।; आखिर हार-पार के एहू तय कइलन कि तब मंदराचल लौट के जाय से अच्छा एही हे कि इहईं रह के कुछ जतन करइत रही ।)    (अदेरा॰33.29; 40.26)
हाली-हाली     (ई सिउलोक हे । हम दिवोदास ही ... बात दोहरावल जाय लगल । एतने बात हाली-हाली कहे लगल ।)    (अदेरा॰68.25)
हित-नाता     ("राजाधिराज महराज दिवोदास की जय" के घोष से असमान अनोर करइत गेलन । बाकि पांडे-पुरोहित के गिरोह गुम्मी नाधले अइसन लौटलन जइसे अपन कोई हित-नाता के परवह करके मसान से घूरल आवइत होथ ।)    (अदेरा॰32 (घ).21)
हितलग     (जुटइलन सब गन लोग के आउ कहलन - देखऽ, अब तोहनियें हमर असली हितलग ह । कासी बिन हमर चित कइसन बेअल्ला हे, से जानइत ह ।)    (अदेरा॰41.12)
हिनसतई (= हिनस्तई; हीनता)     (रोना बना के कोई राज पर चढ़ाई करे के बात तो एकदम पगलपाना होयत । एक तो अपन स्वारथ ला दोसर के लूट-पाट करना, राज हड़पना सरासरी अनर्थ आउ पाप के काम होयत, दोसरे अइसन राज भी होय जहाँ एतना उपज होय कि जेकर धन-धान से पूरा एगो दोसर राज के भरन-पोषण हो सके, आउ तेसरे ओइसन समरिध राज हमनी अइसन भुक्खा-कंगाला ढहित-ढनमनाइत राज से हार जाय । ई सब सोंचनइयो मगज के हिनसतई हे ।)    (अदेरा॰23.19)
हिनस्तई     (अदमी आउ भूलोक के गिरपरता होके रहना केता हिनस्तई के बात हे, ई बात तोनी न सोचलऽ ।)    (अदेरा॰28.29)
हियाँ (= यहाँ)     (आउ फिन अदमी के बढ़न्ती रोके के बात भी तो खूब हे । जहाँ दुरभिछ से एत्ता आदमी रोजीना मर रहल हे हुआँ ई कहना कि आदमी फाजिल हे, समस्या के उल्टा समझना हे । हियाँ तो मसला हे कि कइसे लोग के बचावल जाय, अदमी के कमनई रोकल जाय ।)    (अदेरा॰23.22)
हीं (= के यहाँ)     (जंगल में तो बुझायल कि गाँवे बस गेल । केतना लोग चोरी के रोजगार उठौलक, इहाँ तक कि चोरो हीं चोर चोरी करे लगलन !)    (अदेरा॰1.11)
हुअऊँ (= हुँओं; वहाँ भी)     (अब रात कम हल से बिदा लेके भागलन सिउ जी देने । हाँहे-फाँफे जब सिउ जी के दुआरी पर पहुँचलन तो हुअऊँ सन्नाटा !)    (अदेरा॰12.3)
हुआँ (= वहाँ)     (आउ फिन अदमी के बढ़न्ती रोके के बात भी तो खूब हे । जहाँ दुरभिछ से एत्ता आदमी रोजीना मर रहल हे हुआँ ई कहना कि आदमी फाजिल हे, समस्या के उल्टा समझना हे ।)    (अदेरा॰23.21)
हुलकना     (एक मुट्ठी भर अन्न ला लोग छछने, एक चिरु जल ला केतना कुइआँ के कनेटा हुलके । चिरईं चुरगुनी भाग के जंगल में सरन लेलन, अदमी मांस खाय लगलन ।)    (अदेरा॰1.6)