विजेट आपके ब्लॉग पर

Monday, September 29, 2014

अपराध आउ दंड - भाग – 1 ; अध्याय – 1



अपराध आउ दंड

भाग – 1

अध्याय – 1


जुलाई के शुरुआत में एक दिन साँझ के, जब बहुत गरमी पड़ रहले हल [1], एगो नौजवान हुआँ के निवासी से सी॰ गली में किराया पर लेल अपन तंग कोठरी से रोड पर निकसलइ, आउ के॰ पुल [2] तरफ अइसे धीरे-धीरे चले लगलइ मानूँ अनिर्णय के स्थिति में होवे ।

सिड़हिया पर मकान-मालकिन से मुठभेड़ होवे से ऊ साफ बचके निकस अइले हल । ओकर कोठरी पचमंजला घर के एकदम उपरका छत के निच्चे हलइ । कोठरी की हलइ - एगो अनवारी जइसन हलइ । मकान-मालिकन, जे ओकरा ई कोठरी देलके हल, ओकर ठीक निचलउका मंजिल पे रहऽ हलइ । ऊ ओकरा दुपहर के खाना दे हलइ, आउ कोय काम पड़े पर ओकर नौकरानी मौजूद रहऽ हलइ । हर तुरी जब ऊ बाहर आवऽ हलइ, त ओकरा भनसा भित्तर से होके निकसे पड़ऽ हलइ, जेकर दरवाजा हमेशे खुल्लल रहऽ हलइ । आउ हर तुरी गुजरते बखत ऊ नौजवान के झिझक होवऽ हलइ आउ डर सन लगऽ हलइ, जेकरा चलते शरम महसूस होवऽ हलइ आउ ओकर भौं तन जा हलइ । मकान मालकिन के ओकरा पर बड़गो करजा चढ़ल हलइ आउ ऊ ओकरा से मिलते डरऽ हलइ ।

एकर कारण ई नयँ हलइ कि ऊ कायर आउ दब्बू हलइ, बल्कि बात ठीक एकर उलटा हलइ । एद्धिर कुछ समय से ऊ चिड़चिड़ा हो गेले हल आउ बहुत तनावग्रस्त रहऽ हलइ, मानूँ ऊ हाइपोकोंड्रिया [3] से ग्रस्त होवे । ऊ अपने आप में एतना खोवल रहे लगले हल, आउ सबसे अलग-थलग रहे लगले हल, कि ओकरा केकरो से मिल्ले में डर लगऽ हलइ, ई नयँ कि खाली मकान-मालकिने से मिल्ले में । गरीबी ओकरा बिलकुल कुचलके रख देलके हल, लेकिन ई कष्टदायक परिस्थिति से भी एद्धिर कुछ समय से ओकरा परेशानी अनुभव नयँ होब करऽ हलइ । रोजमर्रा के जरूरत वला काम पे भी ऊ ध्यान देवे ल छोड़ देलके हल, ई सब पर ध्यान देहूँ लगी नयँ चाहऽ हलइ । ऊ मकान-मालकिन से, जे ओकर खिलाफ कुच्छो कर सकऽ हलइ, बिलकुल नयँ डरऽ हलइ । लेकिन सिड़हिया पर ठहरना, ओकर छोट-मोट, बेसिर-पैर के गपशप, जेकरा से ओकरा कुछ मतलब नयँ हलइ, हर बखत करजा के अदायगी के तकाजा, धमकी आउ शिकायत, आउ - ई सब बात के टाल-मटोल करना, बहाना बनाना, झूठ बोलना - नयँ, एकरा से कहीं अच्छा ऊ ई समझऽ हलइ कि बिलाय नियन चुपके से सिड़हिया से निच्चे सरक जाय आउ केकरो देखले बिना हुआँ से खिसक जाय ।

लेकिन अबरी बाहर रोड पे निकसला पर ओकरा अपन करजा देवेवली के सामना होवे के डर बहुत सतइलकइ ।

"हम कइसन काम करे लगी चाहऽ हूँ आउ साथे-साथ अइसन छोटगर-छोटगर बात से डरऽ हूँ", ऊ एगो विचित्र मुसकान के साथ सोचलकइ । "हूँ ... हाँ ... सब कुछ अदमी के हाथ में होवऽ हइ आउ ऊ अपन बुजदिली के वजह से सब कुछ गँवा दे हइ, ई बिलकुल साफ बात हइ । ई बहुत दिलचस्प बात हइ कि अदमी सबसे जादे की चीज से डरऽ हइ । ऊ सबसे जादे डरऽ हइ कोय नया कदम उठावे से, कोय नयका बात कहे से [4] ... लेकिन हम बक-बक बहुत करऽ ही । चूँकि हम बक-बक बहुत करऽ ही, ओहे से हम कुछ नयँ कर पावऽ ही । चाहे बात शायद ई हकइ - हम कुछ करऽ हूँ नयँ, ओहे से बक-बक करऽ हूँ । ई बक-बक करे लगी हम पिछलउका एक महिन्ना के दौरान सीखलूँ हँ, दिन-दिन भर एगो कोना में पड़ल-पड़ल सोचते रहके ... त्सार (राजा) गोरोख़ [5] के बारे । हम अखने काहे लगी जा रहलूँ हँ ? की हम ऊ कर पाम ? की ऊ गंभीर बात हकइ ? ऊ तो खाली हमर अपन दिल बहलावे खातिर एगो कोरी कल्पना हकइ, एगो खिलौना ! हाँ, शायद एगो खिलौने ।"

रोड पर बहुत गरमी हलइ; आउ ऊ उमस, भीड़-भाड़, पलस्तर, पाड़ (scaffolding for building), अईँटा, धूरी आउ गरमी के ऊ खास बदबू, जेकरा से पितिरबुर्ग के ऊ हरेक वाशिंदा परिचित हकइ, जे ग्रामीण इलाका में कोय घर किराया पे नयँ ले पावऽ हइ (अर्थात्, जे पितिरबुर्ग के ऊ बदबू से बचे खातिर, गरमी में हुआँ से कहीं निकस नयँ पावऽ हइ) - ई सब पहिलहीं से मानसिक तनाव से ग्रस्त ऊ नौजवान के बुरी तरह से हिला देलकइ । खास करके शहर के ई हिस्सा में बहुत अधिक पावल जाल कललियन से आ रहल बरदास के बाहर दुर्गंध, आउ निसा में धुत्त लगातार मिल रहल लोग, हलाँकि आझ काम के दिन हलइ, ई चित्र के घृणास्पद आउ उदास रंग के रहल-सहल कसर के पूरा कर देलके हल । नौजवान के सुसंस्कृत चेहरा पर एक पल लगी बहुत गहरा विरक्ति के झलक देखाय देलकइ । प्रसंगवश एहो बता देल जाय कि ऊ बहुत सुन्दर हलइ, सुन्दर कार आँख आउ गहरा सुनहरा रंग के बाल, औसत से अधिक लम्मा कद, छरहरा, गठल देह । लेकिन जल्दीए ऊ गहरा सोच में डूब गेलइ, ई कहना जादे सही होतइ कि ओकर दिमाग कउनो प्रकार के विचार से बिलकुल खाली हलइ, ई देखे बिना कि ओकर चारो तरफ की हो रहल ह, ऊ चलते रहलइ आउ ओकरा ई सब देखहूँ के फिकिर नयँ हलइ । खुद से बात करे के आदत से, जे अभी स्वीकार कइलक हल, ऊ बीच-बीच में बड़बड़ाय लगऽ हलइ । ई पल में ओकरा ई बात के आभास होवे लगले हल कि ओकर विचार कभी-कभी उलझ जा हलइ आउ ऊ बहुत कमजोर हलइ; दोसरो दिन शायदे कुछ खइलके हल ।

ऊ अइसन खराब बस्तर में हलइ कि जे अदमी के मैले-कुचैले रहे के आदत होतइ ओकरो अइसन चीथड़ा कपड़ा पेन्हके रोडवा पर निकसे में शरम बुझइते हल । लेकिन शहर के ऊ हिस्सा में कपड़ा के कउनो खामी से शायदे केकरो अचरज होते हल । पुआल मंडी [6] के नजदीकी, बदनाम अड्डा के बहुतायत, आउ पितिरबुर्ग के बीचोबीच सड़कवन आउ गलियन में करीगरन आउ दस्तकार के रेल-पेल के वजह से, अइसन भाँति-भाँति के लोग नजर आवऽ हलइ कि कोय अदमी केतनो अजीब काहे नयँ रहे, केकरो ओकरा पर अचरज नयँ होवऽ हलइ । लेकिन नौजवान के दिल में एतना कड़वाहट आउ तिरस्कार भरल हलइ कि कभी-कभी नौजवानी के तमाम नाजुकमिजाजी के बावजूद ओकरा सड़क पर अपन फटल-पुरान कपड़ा के वजह से बहुत कम चिंता हो रहले हल । हाँ, ई बात दोसर हलइ, जब कोय जान-पहचान के अदमी से, चाहे पहिले के यार-दोस्त से मोलकात हो जा हलइ, जेकरा से मिलना ओकरा साधारणतः पसीन नयँ पड़ऽ हलइ । ... तइयो जब दारू के निसा में चूर एगो अदमी, जेकरा न मालूम काहे आउ काहाँ एगो लद्दू (बोझा ढोवे वला) घोड़ा से खींचल जाल रहल एगो बड़गर गाड़ी में ले जाल जा रहल हल, अचानक ओकर पास से गुजरते बखत ओकरा तरफ अँगुरी उठाके आउ अपन गला में पूरा जोर लगाके चिल्लाल - "ए जर्मन हैट वाले !", त ऊ नौजवान ठिठक गेलइ आउ अपन काँपते हाथ से हैट पकड़ लेलकइ । ई हैट हलइ - उँचगर, गोलगंटा, त्सिमरमान [7] के बनावल, लेकिन बिलकुल घिस चुकल, एतना पुराना कि लगऽ हलइ मानूँ जंग लग गेले ह, बिलकुल फट्टल आउ जाहाँ-ताहाँ मैल के धब्बा लगल, कगार बिलकुल गायब आउ एक तरफ बेढंगा तरीका से झुक्कल । लेकिन शरम से नयँ, बल्कि भय से मिलता-जुलता एगो बिलकुल दोसर भावना ओकरा दबोच लेलके हल ।

"हम जानऽ हलूँ", ऊ बड़बड़इलइ, "हम पहिलहीं सोचऽ हलूँ ! एहे तो सबसे खराब बात हइ ! अइसने जरी सन नदानी से, एतना मामूली बात से सारा बन्नल-बनावल खेल बिगड़ सकऽ हइ ! हमर हैट तरफ सबके ध्यान जा हइ ... ई देखहीं में अइसन बेतुका हकइ कि केकरो एकरा तरफ ध्यान जइतइ ... हमर ई चेथरी के साथ एगो टोपी पेन्हे के चाही, चाहे ऊ पुराना आउ कइसनो मलपूआ नियन रहे, न कि ई भद्दा चीज । कोय अदमी अइसनका नयँ पेन्हऽ हइ, जे एक विर्स्ता [8] दूर से नजर आवऽ हइ, जे ध्यान में रह जा हइ ... मुख्य बात ई हइ कि लोग के बादो में ध्यान में रह जा हइ, जेकरा से सुराग मिल जा हइ । ई काम लगी अदमी जेतना कम नजर आवे ओतने अच्छा ... छोटगर-छोटगर बात, छोटगरे-छोटगरे बात तो मुख्य चीज होवऽ हइ ! ... अइसने छोटगर-छोटगर बात तो हमेशे सब कुछ तबाह कर दे हइ ..."

ओकरा थोड़हीं दूर जाय के हलइ ; ऊ एहो जानऽ हलइ कि ओकर मकान के फाटक से ऊ जगह केतना डेग [9] दूर हकइ - ठीक सात सो तीस । एक तुरी जब ऊ सपना में खोवल हलइ, तखने ऊ एकरा गिनलके हल ।  ऊ बखत ऊ अपन सपना पर विश्वास नयँ करऽ हलइ आउ ओकर भयंकर लेकिन सम्मोहक निर्भीकता से खाली खुद के उत्तेजित कर रहले हल । अभिए, एक महिन्ना बाद, ऊ अब दोसरा तरह से देखे लगले हल, आउ अपन कमजोरी आउ अनिर्णय पर सब्भे उपहासात्मक एकालाप के बावजूद, ई "भयंकर" सपना के कइसूँ अनजाने में भी एगो व्यावहारिक योजना समझे लगले हल, हलाँकि ओकरा खुद विश्वास नयँ हलइ कि ऊ ई काम कभी पूरा कर पात । अब ऊ अपन ई योजना के रेहलसल (रिहर्सल, पूर्वाभिनय) भी करे जा रहले हल, आउ हरेक डेग के साथ ओकर बेचैनी अधिक तीव्र होल जा रहले हल ।

बइठल दिल से आउ घबराहट से काँपते ऊ एगो बड़गर घर के पास पहुँचलइ, जेकर एक तरफ तो नहर हलइ आउ दोसरा तरफ --- रोड [10] । ई पूरे घर में कइएक छोटगर-छोटगर फ्लैट हलइ, जेकरा में हर तरह के मेहनत-मजदूरी करे वलन बसल हलइ - दर्जी, फिटर, तालासाज, रसोइया, जर्मन मूल के लोग, अपने कमाय के बल पर जीये वली लड़कियन, छोट-मोट किरानी, वगैरह । ई घरवा के दुनहूँ गेट से आउ दुनहूँ अँगना से लोग के लगातार आवा-जाही बनल रहऽ हलइ । हियाँ तीन-चार दरबान पहरा दे हलइ । नौजवान ई बात से बहुत खुश हलइ कि ओकन्हीं में से केकरो से मुठभेड़ नयँ होल, आउ बिना केकरो नजर में अइले ऊ तुरते दरवजवा से दहिना तरफ के ज़ीना (सिड़ही) पर चढ़ गेलइ । ई ज़ीना हलइ अन्हार आउ सँकरा, "काला", लेकिन ऊ ई सब पहिलहीं से जानऽ हलइ आउ परिचित हलइ, आउ ई सब माहौल ओकरा पसीन हलइ - अइसन अन्हार में ओकरा लगी कौतूहल भरल नजरो खतरनाक नयँ हलइ । "अगर हम अखनिएँ एतना डरब करऽ हिअइ, त कीऽ होतइ अगर हम वास्तव में ऊ काम करे पर उतर जइअइ ?" - चौठा मंजिल पे पहुँचते-पहुँचते ऊ अनायास सोचे लगलइ । हियाँ पर ओकरा आगे बढ़े में बाधा आ गेलइ, काहे कि कुछ रिटायर सैनिक-कुली एगो फ्लैट से समान बाहर करब करऽ हलइ । ऊ पहिलहीं से जानऽ हलइ कि ई फ्लैट में परिवार सहित एगो जर्मन किरानी रहऽ हइ । "मतलब कि ई जर्मन अब हियाँ से फ्लैट छोड़के जा रहल ह, आउ, ई तरह से ई ज़ीना से होके चौठा मंजिल पर आउ ई चबूतरा (जीना के लैंडिंग, अर्थात् कोय दू लगातार मंजिल के जीना के बीच वला सपाट फर्श) पर थोड़े समय में खाली एगो बुढ़िए रह जात । ई तो निम्मन बात हके ... हर तरह से ... ", ऊ फेर सोचलकइ आउ बुढ़िया के फ्लैट के घंटी बजइलकइ । घंटिया हलके से 'टन' से अवाज कइलकइ, मानूँ ऊ टीन के बनल रहइ, तामा के नयँ । अइसनकन घर के अइसन छोटगर-छोटगर फ्लैट में करीब-करीब सब्भे घंटी के अवाज अइसने रहऽ हइ । ऊ ई घंटी के अवाज भूल चुकले हल, आउ अब ई विशिष्ट अवाज मानूँ ओकरा अचानक कोय चीज के आद देला देलकइ आउ ऊ चीज बिलकुल साफ तौर पे ओकर सामने आ गेलइ ... आउ ऊ चौंक पड़लइ, ओकर स्नायु (nerves) अब तक बहुत जादे कमजोर पड़ गेलइ । थोड़े देर बाद दरवजवा में पतरा दरार सन खुललइ - औरतिया ऊ दरार से एक अविश्वास भरल नजर से आगंतुक के देखलकइ । अन्हरवा में खाली ओकर चमकइत आँख देखाय देब करऽ हलइ । लेकिन चबूतरा पे कइएक अदमी देखके ओकरा साहस बढ़लइ आउ दरवाजा पूरा खोल देलकइ । नौजवान दहलीज पार करके अन्हार हॉल में कदम बढ़इलकइ, जेकरा एगो ओट देके  विभाजित कइल हलइ आउ जेकर पीछू में छोट्टे गो भनसा घर हलइ । बुढ़िया ओकर सामने चुपचाप खड़ी हलइ आउ सवालिया नजर से ओकरा देखब करऽ हलइ । ऊ एगो नटगर, सुक्खल-साखल करीब साठ साल के बुढ़िया हलइ, ओकर आँख कुटिल आउ द्वेष भरल, नाक छोटगर आउ नोकीला, आउ सिर खुल्लल हलइ । ओकर उज्जर, कुछ-कुछ धूसर (grey) होल केश में ढेर सन तेल हौंसल हलइ । मुरगी के टाँग नियन ओकर पतरा आउ लम्मा गरदन में बिलकुल फलालेन नियन कुछ चेथरी लपेटल हलइ, आउ गरमी के बावजूद ओकर कन्हवा पर एगो फट्टल-फुट्टल आउ बहुत पुराना होवे के चलते पीयर पड़ल, रोयाँ के कत्सवेयका (जनाना गरम जैकेट) झूल रहले हल । बुढ़िया थोड़हीं-थोड़हीं देर में खोंखऽ आउ कराहऽ हलइ । शायद नौजवान ओकरा कोय अजीब नजर से देखलके होत, काहेकि ओकर आँख में पहिलहीं जइसन फेर से अविश्वास के झलक देखाय देवे लगलइ ।

"हम रस्कोलनिकोव, एगो छात्र, एक महिन्ना पहिले अपने के पास अइलिए हल", नौजवान जल्दीबाजी में बोललइ, थोड़े सन झुकके, काहेकि ओकरा ध्यान में अइलइ कि जरी आउ विनम्र होवे के चाही ।
"हमरा आद हको, बउआ ! हमरा अच्छा से आद हको कि तूँ अइलऽ हल ।" बुढ़िया एक-एक शब्द साफ-साफ उच्चारण करते बोललइ, पहिलहीं जइसन ओकर चेहरा पर सवालिया नजर गड़इले ।
"जी, ओइसीं अब ... आउ फेर, ओहे काम से ..." - बुढ़िया के अविश्वास से कुछ घबराल आउ आश्चर्यचकित रस्कोलनिकोव अपन बात जारी रखते बोललइ ।
"शायद ऊ हमेशे अइसीं रहऽ होतइ, हम ऊ बखत धयान नयँ देलिए होत", ऊ चिंतित भाव से सोचलकइ ।

बुढ़िया थोड़े देर तक चुप रहलइ, मानूँ सोच में पड़ल होवे, फेनु एक तरफ हटके आउ कोठरी के तरफ इशारा करते, अतिथि के पहिले आगे जाय खातिर बोललइ -
"आवऽ बउआ !"

जेकरा में नौजवान घुसलइ, ऊ एगो छोटगर कमरा हलइ, जेकर देवाल पीयर कागज से मढ़ल, आउ खिड़कियन पर जेरैनियम (geranium) आउ मलमल के परदा लगल हलइ । डूबते सूरज के चलते ऊ कमरा में काफी इंजोर हलइ । "एकर मतलब तखनियो अइसीं सूरज चमकते रहतइ ! ...", मानूँ अप्रत्याशित रूप से रस्कोलनिकोव के दिमाग में ई विचार बिजली के तरह कौंध गेलइ, आउ समुच्चे कमरा में तेजी से निगाह दौड़इलकइ, ताकि यथासंभव सब चीज के स्थिति के जान ले आउ ध्यान में अँटइले रहे । लेकिन कमरा में कोय विशेष चीज नयँ हलइ । फ़र्नीचर (सोफ़ा, कुरसी-टेबुल आदि सज्जा-सामग्री) सब बहुत पुराना आउ पीयर लकड़ी के हलइ, ओकरा में हलइ - पीठ वला हिस्सा पीछू तरफ झुक्कल एगो बड़का गो सोफ़ा, सोफ़ा के सामने एगो गोलगंटा अंडाकार टेबुल, खिड़कियन के बीच वला जगह में अईना जड़ल एगो ड्रेसिंग-टेबुल, देवाल से लगके कुरसियन, आउ पीयर रंग के फ़्रेम में हाथ में चिरईं लेले जर्मन सुंदरियन के दर्शावल बहुत सस्ता किसिम के दू-तीन गो तस्वीर - फ़र्नीचर में बस एतने हलइ । कोना में एगो प्रतिमा के सामने दीया जल रहले हल । सब कुछ साफ-सुथरा हलइ - फ़र्नीचर आउ फर्श के रगड़के चमकदार बनावल हलइ, सब कुछ चमक रहले हल । "ई सब काम लिज़ावेता के होतइ", नौजवान सोचलकइ । समुच्चे फ्लैट में कहीं धूरी के कोय नाम-निशान नयँ हलइ । "अइसन सफाई तो ईर्ष्यालु आउ बूढ़ी विधवन के घर में होवऽ हइ", रस्कोलनिकोव सोचना जारी रखलकइ आउ उत्सुकतापूर्वक कनखियाके ऊ दरवजवा के सामने के सूती परदा तरफ देखलकइ, जेकरा से होके दोसरका छोटकुन्ना भित्तर हलइ, जेकरा में बुढ़िया के पलंग आउ दराज वला अनवारी हलइ, जेकरा पर ओकर अभी तक एक्को तुरी नजर नयँ गेले हल । समुच्चे फ्लैट में खाली एहे दूगो कमरा हलइ ।

"कीऽ चाही ?" बुढ़िया कड़कके बोललइ, कोठरिया में अन्दर आके आउ पहिलहीं जइसन ठीक ओकर सामने खड़ी होके ताकि ओकरा नजर में नजर डालके देख सकइ ।
"जी, गिरवी रक्खे लगी लइलिए ह, अइकी हइ !" आउ ऊ धोकड़िया से एगो पुरनका चिपटा चानी के घड़ी निकसलकइ । एकर पिछलउका हिस्सा में एगो ग्लोब खुदल हलइ । चेन एकर स्टील के हलइ ।
"लेकिन पिछलउका गिरवी के मियाद पूरा हो चुकलो ह । परसुने एक महिन्ना पूरा हो गेलो ।"
"हम अपने के एक महिन्ना के सूद आउ दे देबइ; थोड़े सन मोहलत दे देथिन ।"
"लेकिन ई तो हम्मर मर्जी हइ, बबुआ, कि हम मोहलत दिअइ, चाहे तोहर गिरवी रक्खल चीज के सीधे बेच दिअइ ।"
"ई घड़िया के केतना देथिन, अल्योना इवानोव्ना ?"
"तूँ अइसन छोटगर-छोटगर चीज लेके आवऽ ह, बबुआ, कि जे कोय काम के नयँ हइ, जेकर कोय मूल्य नयँ । पिछला तुरी तोर अँगूठी के हम दू नोट [11] दे देलियो हल, जबकि अइसनका बिलकुल नयका अँगूठी जौहरी के हियाँ से खाली डेढ़ रूबल में खरीदल जा सकऽ हइ ।"
"एकरा बदले चार रूबल तो देथिन, एकरा हम फेर छोड़ा लेबइ, ई हमर बाऊ के हलइ । जल्दीए हमरा पइसा मिल्ले वला हकइ ।"
"डेढ़ रूबल, जी, आउ सूद पेशगी, अगर अपने चाहऽ हथिन ।"
"डेढ़ रूबल !" नौजवान चिल्ला उठलइ ।
"तोहर मर्जी", आउ बुढ़िया ओकर घड़ी वापिस कर देलकइ । नौजवान ले लेलकइ आउ ओकरा एतना गोस्सा अइलइ कि ऊ उठके चलहीं जाय वला हलइ, लेकिन तुरते अपन विचार बदल लेलकइ, ई आद करके कि ओकरा आउ कोय चारा नयँ हलइ, कि ऊ हियाँ आउ कोय काम से अइले हल ।
"देथिन !" ऊ अक्खड़पन से बोललइ ।

बुढ़िया जेभिया में कुंजी टटोलके निकसलकइ आउ परदा के पीछू दोसर कमरा में चल गेलइ । नौजवान ऊ कमरा में अकेल्ले रह गेलइ, आउ उत्सुकतापूर्वक कान लगाके सुनते रहलइ आउ सोचते रहलइ । ओकरा बुढ़िया के दराज वला अनवारी खोले के अवाज सुनाय दे रहले हल ।
"शायद, उपरला दराज", ऊ सोचलकइ । "कुंजिया, लगऽ हइ, अपन दहिना जेभिया में रक्खऽ हइ ... सब्भे एक्के झब्बा में, एगो स्टील रिंग में ... आउ हुआँ एक कुंजी सबसे बड़गर हकइ, बाकी सब से तीन गुना, गहरा खाँच वला; मतलब कि ई दराज वला अनवारी के नयँ हो सकऽ हइ ... मतलब, आउ कोय सन्दूक, चाहे तिजोरी होवे के चाही ... ई बात तो दिलचस्प हकइ । तिजोरी के सब्भे चाभी अइसने होवऽ हइ ... लेकिन ई सब सोचना केतना छुछुरपनइ हकइ ..."

बुढ़िया वापिस आ गेलइ ।

"ई हको, बबुआ - एक रूबल पर एक ग्रिव्ना (= 10 कोपेक) [12] फी महिन्ने के हिसाब रक्खल जाय, त डेढ़ रूबल के एक महिन्ना में पनरह कोपेक होतो, आउ ओहो पेशगी, जी । लेकिन दू रूबल जे तोहरा पहिले देलियो हल ओकरा पर एहे हिसाब से पेशगी बीस कोपेक होतो । आ कुल मिलाके पैंतीस होलो । मतलब घड़िया के बदले तोहरा मिलतो एक रूबल पनरह कोपेक । ई लऽ, जी ।"
"कीऽ ! मतलब अभी खाली एक रूबल पनरह कोपेक !"
"जी, ठीक एतने ।"

नौजवान कोय बहस नयँ कइलकइ आउ पइसवा ले लेलकइ । ऊ बुढ़िया के गौर से देखलकइ आउ जाय के कोय जल्दी नयँ मचइलकइ, शायद ओकरा आउ कुछ कहे, चाहे करे के हलइ, लेकिन मानूँ ऊ खुद्दे नयँ जानऽ हलइ कि कीऽ कहे, चाहे करे ल चाहऽ हल ....
"हम अपने के पास, अल्योना इवानोव्ना, शायद एक-दू दिन में एक आउ चीज लेके अइबइ ... चानी के ... निम्मन .... एगो सिगरेट-केस ... जइसीं हम एकरा अपन दोस्त के हियाँ से वापिस मिल जात ...", ऊ संकोच में बोललइ आउ चुप हो गेलइ ।
"त हम एकरा बारे तखनिएँ बात करबो, बबुआ ।"

"अच्छऽ, त हम चलि हइ, जी ... आ अपने घर में हमेशे अकेल्ले रहऽ हथिन, बहिनी साथे में नयँ रहऽ हथिन की ?" ड्योढ़ी में जइते ऊ यथासंभव अनमना ढंग से पूछ देलकइ ।
"आ बबुआ, ई बात से तोहरा की लेना-देना हको ?"
"नयँ, कुछ खास बात नयँ हलइ । अइसीं पूछ लेलिअइ । अपने तो अभी ... अच्छऽ, हम चलि हइ, अल्योना इवानोव्ना !"

रस्कोलनिकोव बिलकुल परेशान हालत में बाहर निकसलइ । ओकर परेशानी लगातार बढ़तहीं गेलइ । सिड़हिया पर उतरते बखत कय तुरी ऊ रुकवो कइलइ, मानूँ कोय चीज से अचानक ओकरा पर प्रहार होल होवे । आउ आखिर, रोड पे पहुँचला पर ओकर मुँह से विस्मय भरल उद्गार प्रकट हो गेलइ -
"हे भगमान ! ई सब केतना घिनौना बात हइ ! कीऽ वास्तव में, वास्तव में हम ... नयँ, ई बकवास हइ, बिलकुल ऊटपटांग !" ऊ दृढ़तापूर्वक बोललइ । "आउ अइसन खतरनाक विचार हमर दिमाग में घुस कइसे सकलइ ? कइसन-कइसन गंदगी हमर दिल में आ सकऽ हइ ! मुख्य बात हइ - ई बिलकुल घिनौना, गंदा हइ ! ... आउ हम पूरे एक महिन्ना से ..." 

ओकर मन में जे तूफान उठ रहले हल ओकरा ऊ न कोय शब्द में आउ न कोय विस्मय भरल उद्गार में व्यक्त कर पा रहले हल । तीव्र घृणा के भावना, जे ओकरा दाबे आउ सतावे ल शुरू तभिए कर देलके हल, जब ऊ बुढ़िया के हियाँ जा रहले हल, अब अइसन स्तर पर पहुँच गेले हल आउ अइसन निश्चित रूप धारण कर लेलके हल कि ओकरा ई समझ में नयँ आ रहले हल कि अपन विषाद से ऊ कइसे छुटकारा पावे । ऊ शराब के निसा में चूर अदमी नियन पादचारी मार्ग (रोड के बगल में बन्नल फुटपाथ) से होके जा रहले हल, आवे-जाय वला पर बिना ध्यान देले आउ ओकन्हीं से टकरइते, आउ ओकरा होश तब अइलइ जब ऊ अगला रोड पर पहुँच गेलइ । चारो तरफ नजर दौड़ाके ऊ देखलक कि ऊ एगो कलाली के पास खड़ी हकइ, जेकर प्रवेशद्वार पादचारी मार्ग से सिड़ही से होके निच्चे तरफ हलइ, एगो तहखाना में । ओहे बखत दरवजवा से दूगो पियक्कड़ बाहर निकसलइ आउ दुन्नु एक दोसरा के सहारा देले आउ एक दोसरा के गरिअइते, सिड़हिया चढ़के रोडवा दने आवे लगलइ । जादे देर बिना सोचले, रस्कोलनिकोव तुरतम्मे निच्चे उतर गेलइ । अभी तक कभियो ऊ कोय कलाली नयँ गेल हल, लेकिन अभी ओकर सिर में चक्कर आ रहले हल, आउ प्यास के मारे ओकर गला सूख रहले हल । ओकरा ठंढा बीयर पीये के बहुत मन कर रहले हल, ओकरा लग रहले हल कि हमरा अचानक आल कमजोरी, भुक्खल पेट रहे के चलते हके । ऊ अन्हार आउ गंदा कोना में एगो चिपचिपाहा टेबुल के पास जाके बइठ गेलइ, बीयर के ऑडर कइलकइ आउ पहिला गिलास एक्के साँस में पी गेलइ । तुरतम्मे ओकरा पूरा राहत महसूस होलइ, आउ ठीक से सोचे लगलइ । 

"ई सब कुछ बकवास हइ !" ऊ विश्वास के साथ बोललइ, "आउ एकरा बारे फिकिर करे के कोय बात नयँ हकइ ! खाली शारीरिक गिरावट हकइ ! बस खाली एक गिलास कइसनो बीयर, आउ एक टुकरी सुखल रोटी - आउ एक्के पल में दिमाग बरियार, विचार साफ, आउ इरादा पक्का ! छिः, ई सब केतना तुच्छ बात हइ ! ..."

लेकिन ई तिरस्कार भरल चिंतन के बावजूद ऊ अब खुश देखाय देब करऽ हलइ, मानूँ अचानक कोय बहुत बड़गर बोझ से ओकरा छुटकारा मिल गेल होवे, आउ हुआँ उपस्थित लोग पर मित्रतापूर्ण भाव से नजर डललकइ । लेकिन ऊ बखत ओकरा जरी सन आशंको लग रहले हल कि ई बेहतर होवे के बोध भी सामान्य नयँ हके । कलाली में ऊ बखत तक बहुत कम लोग रह गेले हल । ऊ दुन्नु पियक्कड़ के सिवाय, जेकरा से सिड़हिया पर से बाहर जइते पाला पड़ले हल, ओकन्हीं के ठीक बादे, एगो लड़की आउ अकॉर्डियन (एगो वाद्य-यंत्र) के साथ पाँच लोग के एगो पूरा दल बाहर निकस गेलइ । ओकन्हीं के गेला के बाद कमरा में सन्नाटा छा गेलइ आउ खाली-खाली लगे लगलइ । रह गेले हल - एगो पीयल, लेकिन जादे नयँ, सामने एगो बीयर के गिलास रखले बइठल, देखे में दस्तकार [13] नियन; ओकर एगो साथी, मोटगर, बड़गर, उज्जर दाढ़ी वला आउ एगो छोटगर कोट पेन्हले, नशा में धुत्त, आउ बेंच पर झुकते आउ बीच-बीच में अचानक, मानूँ, नीनारू नियन, अपन अँगुरी तोड़ते, अपन बाँह एक दोसरा से दूर फइलइले, आउ बेंचवा पर से बिना उपरे कइले अपन देहिया के उपरौला हिस्सा के हिलइते-डुलइते, साथे-साथ कुछ अंट-संट गुनगुनाब करऽ हलइ, कुछ अइसन लाइन आद करे के कोशिश करते –

पूरे बरस तक हम घरवली के कइलूँ प्यार,
पूरे ब-र-स तक हम घर-वली के कइ-लूँ प्या-र ...

चाहे अचानक जगला पर फेनु -

पोद्याचेस्की रोड पे रहलूँ हल घूम,
कि पहिलौका प्रेमिका से हो गेल भेंट ... [14]

लेकिन ओकर ई मस्ती में ओकरा कोय साथ नयँ दे रहले हल; ओकर गुमशुम साथी ई सब हरक्कत के दुर्भावना आउ अविश्वास के साथ देखब करऽ हलइ । हुआँ एगो आउ अदमी हलइ, जे देखे में रिटायर सरकारी किरानी लग रहले हल । ऊ सबसे अलगे बइठल हलइ, अपन शराब के बोतल के सामने, बीच-बीच में एका चुस्की ले ले हलइ आउ चारो तरफ निगाह डाल ले हलइ । ओहो शायद कोय चिंता से ग्रसित हलइ ।



सूची                        अगला
 

अपराध आउ दंड - उपन्यासकार के संक्षिप्त परिचय



अपराध आउ दंड

उपन्यासकार के संक्षिप्त परिचय

महान रूसी रचनाकार फ्योदोर मिख़ाइलोविच दोस्तोयेव्स्की (उच्चारित "फ़्योदर मिख़ाय-लविच दस्तऽयेव्स्की"  ( )) के नाम इटैलियन लेखक दान्ते, अंग्रेजी लेखक शेक्सपियर, स्पैनिश लेखक सेर्वान्तेस आउ जर्मन लेखक गेटे (Goethe, उच्चारित "ग्योटऽ") के साथ लेल जा हइ । उनकर जन्म 11 नवम्बर 1821 के एगो मध्यम वर्ग के परिवार में मास्को में होले हल, जाहाँ उनकर पिता एगो बहुत कम सुविधा वला क्षेत्र में गरीब लोग खातिर बनावल एगो अस्पताल में काम करऽ हला । ई मानल जा हइ कि ई क्षेत्र में उनकर पालन-पोषण के प्रभाव दस्तयेव्स्की पर बहुत पड़लइ । उनकर मइया मातदिल आउ धार्मिक विचार के हलथिन, जिनकर मौत (27 सितम्बर 1837) तपेदिक (टीबी) से फ्योदर के सोलहे बरस के उमर में  हो गेलइ । उनकर बाप के मौत (16 जून 1839) दू साल बाद हो गेलइ, नौकरवने हत्या कर देलकइ, काहेकि नौकरवन के साथ ऊ क्रूरता से पेश आवऽ हला; ऊ बखत दस्तयेव्स्की पितिरबुर्ग में सैन्य-इंजीनियरी के पढ़ाय कर रहला हल । 

सन् 1843 में इंजीनियरी के पढ़ाय पूरा कइलका, लेकिन इंजीनियर बनलो पर बचपन से पढ़े में रुचि रहे के कारण, सेना में एक साल नौकरी कइला के बाद नौकरी छोड़ देलका आउ साहित्य क्षेत्र के ही अपन पेशा चुन लेलका । सन् 1844 से साहित्य रचना चालू कर देलका आउ अगले साल उनकर पहिला लघु उपन्यास “Бедные Люди” अर्थात् "गरीब लोग" (1845) प्रकाशित होलइ [हिन्दी में "दरिद्र नारायण" (1984) शीर्षक से प्रकाशित], जेकर काफी स्वागत होलइ ।

पेत्राशेव्स्की मंडली में सम्मिलित होवे के चलते 23 अप्रैल 1849 के उनका गिरफ्तार कर लेल गेलइ आउ मौत के सजा मिललइ । ई मंडली एगो उदार आदर्शवादी लोगन के गुप्त दल हलइ, जे साहित्यिक चर्चा समूह के रूप में भी काम करऽ हलइ । दिनांक 22 दिसम्बर 1849 के उनका गोली से उड़ा देवल जाय के कुछ पल पहिलहीं त्सार निकोलाय प्रथम के अनुकंपा से उनका मौत के सजा के बदल के दस बरस के निर्वास (exile) के सजा मिललइ, जेकरा में चार बरस (1850-1854) लगी साइबेरिया के ओम्स्क में कठोर श्रम के कारावास, आउ कारावास के ठीक बाद, कज़ाख्स्तान के सिमीप्लातिंस्क शहर में सतमा लाइन बटालियन के साइबेरियाई अर्मी कोर में, सेना के अनिवार्य सेवा के बाद ऊ 1859 में पितिरबुर्ग वापिस अइला ।

पितिरबुर्ग के सेंट पीटर आउ सेंट पॉल किला में 1849 में कैदी अवस्था में ही ऊ लघु उपन्यास "Маленький Герой" अर्थात् "छोटकुन्ना हीरो" लिखलका जे 1857 में एगो जर्नल में प्रकाशित होलइ । निर्वास के दौरान सिमीप्लातिंस्क में 7 फरवरी 1857 के 29 वर्षीय विधवा मारिया द्मित्रियेव्ना इसायेवा के साथ विवाह होलइ । साइबेरिया के कठोर श्रम के कारावास के अनुभव पर आधारित उनकर प्रथम स्तरीय रचना "Записки из Мёртвого Дома" अर्थात् "मुर्दाघर के चिट्ठा" (1860), आउ फेन “Униженные и оскорблённые” अर्थात् “अपमानित आउ तिरस्कृत” (1861) प्रकाशित होलइ ।

दस्तयेव्सकी 7 जून 1862 के पहिले तुरी अकेल्ले विदेश यात्रा शुरू कइलका आउ जर्मनी, बेल्जियम, फ्रांस, इंग्लैंड के भ्रमण कइलका, आउ बाद में निकोलाय स्त्राखोव के साथ स्विटज़रलैंड, इटली गेला । ई विदेश यात्रा के दौरान यूरोप के बारे में अपन अवलोकन पर आधारित विचार के "Зимние заметки о летних впечатлениях" अर्थात् "ग्रीष्मकालीन छाप पर शरत्कालीन टिप्पणी" (1863) में 53 पृष्ठ के एक आठ अध्याय के लेख में अभिव्यक्त कइलका, जे खुद दस्तयेव्स्की द्वारा सम्पादित मासिक पत्रिका व्रेम्या (समय) के मार्च आउ अप्रैल अंक में प्रकाशित होलइ । अगस्त से अक्टूबर 1863 में ऊ पच्छिमी यूरोप के दोसरा तुरी यात्रा कइलका । ऊ अपन प्रेयसी पोलिना सुस्लोवा से पेरिस में भेंट कइलका आउ वीसबाडेन आउ बाडेन-बाडेन में जूआ में अपन करीब-करीब सब्भे पइसा गमा देलका । ई हालत में होटल के बिल चुकावे में भी असमर्थ होला पर कइएक दिन सुबह-शाम खाली चाय पीके रहला । पोलिना अपने तकलीफ झेलके कुछ पइसा के मदत कइलकइ ।

अगला बरस 1864 उनका लगी बड़गो विपत्ति लेके अइलइ -  15 अप्रैल के घरवली मारिया आउ जुलाई में बड़ भाय मिख़ाइल के मौत हो गेलइ, भाय के परिवार के भरण-पोषण के भार भी उनके पर आ गेलइ आउ ऊ करजा के बोझ से लद गेला ।  पोलिना सुस्लोवा उनकर विवाह के प्रस्ताव ठुकरा देलकइ, आउ जूआ के माध्यम से पइसा अर्जित करे के चक्कर में ऊ आउ करजा के दलदल में फँस गेला । महाजन सब के हमेशे उनकर पीछू पड़ल रहे से आउ करीब 43,000 रूबल के भारी करजा के दबाव से मुक्ति पावे खातिर अपन जेभी में मात्र 175 रूबल लेके सन् 1865 में फेर विदेश भाग गेला । करजा के साथ-साथ एगो आउ दबाव हलइ - पुस्तक विक्रेता फ्योदोर स्तेलोव्स्की के साथ एगो ठीका, जेकर अनुसार दस्तयेव्सकी के 1 नवम्बर 1866 तक एगो नयका उपन्यास तैयार करके देवे के चाही, नयँ तो वर्तमान आउ भावी उनकर सब्भे रचना के मालिकाना हक ऊ पुस्तक विक्रेता के हो जइतइ । 

ऊ 1866 के सितम्बर महिन्ना में वापस पितिरबुर्ग अइला । अब तक ऊ "अपराध आउ दंड" उपन्यास लिक्खे में व्यस्त रहला हल, जेकर पहिला दू भाग जनवरी आउ फरवरी में छप चुकले हल । स्तेलोव्स्की के देल वचन के मोताबिक जूआ के लत पर आधारित एगो लघु उपन्यास "जुआड़ी" लिक्खे लगी अभी ऊ शुरुओ नयँ कइलका हल । दस्तयेव्स्की के एगो मित्र मिल्युकोव उनका एगो सेक्रेटरी रक्खे के सलाह देलका । दस्तयेव्स्की पितिरबुर्ग के एगो स्टेनोग्राफर पावेल ओलखिन के संपर्क कइलका, जे ऊ अपन शिष्या आन्ना ग्रिगोरयेव्ना स्नित्किना के अनुशंसा (recommend) कइलकइ । ओकर शॉर्टहैंड के मदत से दस्तयेव्स्की "जुआड़ी" के केवल 26 दिन में तैयार करके 30 अक्टूबर के स्तेलोव्स्की के सामने प्रस्तुत कर देलका ।

त ई तरह 1864 से दस्तयेव्स्की के व्यक्तिगत विपत्ति (पत्नी मारिया आउ बड़ भाय के मौत, जूआ के लत) के दौरान उनकर कुछ उच्च स्तरीय रचना प्रकाशित होलइ - "Записки из Подполья" अर्थात् "भूमिगत चिट्ठा" (1864), “Игрокअर्थात् "जुआड़ी" (1866), “Преступлéние и наказáние” अर्थात् "अपराध आउ दंड" (1866) । दू भाग में लिक्खल "भूमिगत चिट्ठा" के दोसरा भाग मई 1864 में पूरा कइल गेले हल, जेकर प्रकाशन मारिया के मौत के दू महिन्ना बाद होलइ । कइएक लोग ई रचना के पहिला अस्तित्ववादी उपन्यास मानऽ हथिन ।



15 फरवरी 1867 के 46 वर्षीय दस्तयेव्स्की अपन 19 वर्षीय सेक्रेटरी आन्ना स्नित्किना से विवाह कइलका आउ 14 अप्रैल के हनीमून खातिर जर्मनी चल गेला । ऊ स्तरीय रचना के प्रकाशन जारी रखलका, जइसे “Идио́т” अर्थात् "मूर्ख" (1868) । सन् 1871 में वापिस रूस अइला अउ अपन लेखन जारी रखलका । रूस वापिस अइला के बाद उनकर मुख्य रचना में हइ – “Бесы” अर्थात् "दानव" अथवा "भूत" (1872), “Подросток” अर्थात् "किशोर" (1875), आउ “Братья Карамазовы” अर्थात् "करामाज़ोव-बन्धु" (1880) । कइएक लोग द्वारा उत्कृष्ट रचना मानल जाय वला "करामाज़ोव-बन्धु" के पूरा कइला के कुच्छे महिन्ना बाद 9 फरवरी 1881 के पितिर्बुर्गे में दस्तयेव्स्की के निधन हो गेलइ । "अपराध आउ दंड" के मूल रूसी पाठ के कुल 418 पृष्ठ के तुलना में सन् 1976 में प्रकाशित "करामाज़ोव-बन्धु" के मूल रूसी पाठ कुल 695 पृष्ठ के हकइ ।