ई सन्दर्भ में पहिला संख्या संचित (cumulative) अंक संख्या; दोसर पृष्ठ संख्या, तेसर कॉलम संख्या आउ चौठा (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ । उदाहरण -
जुलाई 1995 खातिर संचित अंक संख्या = 1;
दिसम्बर 1995 खातिर संचित अंक संख्या = 6;
दिसम्बर 1996 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + 12 = 18;
दिसम्बर 2007 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2007-1995) X 12 = 6 + 12 X 12 = 150;
दिसम्बर 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2009-1995) X 12 = 6 + 14 X 12 = 174;
जनवरी 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2008-1995) X 12 + 1 = 6 + 13 X 12 + 1 = 163.
अप्रैल 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2008-1995) X 12 + 4 = 6 + 13 X 12 + 4 = 166.
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(अंक १ से अंक १८ में प्रयुक्त मगही शब्द के अतिरिक्त)
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1 अँटिआना, अँटियाना (धनमा के काट के परुइया लगैबई । बाल-बच्चे मिल-जुल के आँटी अँटिऐबई ॥) (अमा॰30:11:1.12)
2 अंटसंट (जितावन आउ परिखन दुन्नो मिल के बढ़ावन चचा के ~ आउ अनर्गल बात कह-कह के उनका भड़कावे के योजना बना लेलन) (अमा॰30:14:1.18)
3 अंधड़ (अंधड़ बतास बुन सब सहल हे जिनगी) (अमा॰22:18:2.4)
4 अइंठना (विश्वनाथ अइंठ के कहलक) (अमा॰27:6:2.1)
5 अइंठल (की अइंठल चलऽ ह अखने, एक दिन समय भी तोरो अइतो) (अमा॰23:20:1.1)
6 अउचक्के (दरोगी जी अउचक्के पानी में से निकासल मछली नियन तड़फड़ाय लगलन ।) (अमा॰29:12:2.28)
7 अकसरहाँ (ई सब अकसरहाँ मुँहजबानी (मौखिक रूप से) कहल-सुनल जाहे आउ एक कंठ से दोसर कंठ में चलइत हजारन बरस से जीवित हे) (अमा॰25:13:1:18)
8 अकिलगर (हमरा चिन्ता काहे ला जब दुलहा हम्मर अकिलगर हे । दुनिया चाहे जे भी कहे, जियरा हम्मर अलगल हे ।) (अमा॰21:10:1.30)
9 अक्किल (= अक्ल) (अमा॰27:11:1.28)
10 अक्सरहें (ऊ ~ गुरुजी के हाथ जोड़ के कहऽ हलन) (अमा॰29:11:1.23)
11 अखने (की अइंठल चलऽ ह अखने, एक दिन समय भी तोरो अइतो) (अमा॰23:20:1.1)
12 अखरी-पिपरी (अखरिन पिपरिन नियन त सब जीअ हे । तूँ जिअ त कोय इतिहास बना के जिअ ॥) (अमा॰29:15:2.3)
13 अगाड़ी (जेतना अदमी मिलइत हथ ऊ सब अभिवादन करके, तनी नेवतई देखावइत अगाड़ी बढ़ जा हथ इया पीछे छूट जा हथ) (अमा॰25:9:1.8; 28:5:1.10)
14 अगुआई (आशा करऽ ही कि देश उनकर ~ में प्रगति के राह पर चलत) (अमा॰23:4:2.1)
15 अगोरले (~ रहना) (हम तो मइया से जादे ओकरे भिर अगोरले रहऽ हली ।) (अमा॰22:16:2.21)
16 अचकल-पचकल (हम ऊ झोला झाड़ली तब ओकरा में से पुरान ~ अलमुनिया के कटोरा आउ एगो फट्टल पुरान मइल कुचइल चद्दर मिलल) (अमा॰22:16:1.11)
17 अच्छर (= अक्षर) (सोनमतिया के भी सिलेट पर ककहरा लिखा के पढ़ाबऽ । तबे न ऊ ससुरार से दू गो अच्छर हमनी के लिखत ।) (अमा॰30:15:1.7, 25)
18 अछताना-पछताना (आखिर अछता-पछता के गोलघर जाए ओला रास्ता पकड़ के चल देली) (अमा॰22:15:2.13)
19 अजगर (भ्रष्टाचार के अजगर फुफुआ रहल हे) (अमा॰22:12:1.10)
20 अजड़-अमर (= अजर-अमर) (इया ढेलमरवा बाबा जी ! एकरा अपने नियन ~ कर देहूँ कि हम्मर बाबू के अंगुरी भी न पिराय) (अमा॰22:14:1.7)
21 अजुका (डॉ॰ एच॰ बईस कहलन - 'प्राचीन बौद्ध साहित्य अर्द्धमागधी में लिखल गेल आउ अजुका पालि साहित्य ओकरे अनुवाद हे ।') (अमा॰23:10:1.2)
22 अजूबा (भारत के धर्म संस्कृति आउ सामाजिक रचना में बिधना, बिसुन आउ महादेव के कर्तव्य आउ सरसती, लक्ष्मी आउ पारवती के शक्ति के बड़ा अजूबा आउ प्रतीक के रूप मे घोल-मेल लोकऽ हे) (अमा॰25:15:2:13)
23 अटपट (असल में सुरू में एगो अटपट, फेंटुआ, अनेकरूपा, विकृति बहुल भाखा देस में परचलित हल जेकर रूप बराबर बदलइत हल) (अमा॰30:8:2.11)
24 अठमँगरा (ऊ रात हम्मर बेटी के बिआह होवे वाला हल । पिरीतीभोज के बाद अठमँगरा के रसम चल रहल हल कि हजाम हमरा पास पहुँचल आउ कहलक - 'समधी साहेब कहऽ हथुन कि दहेज में चार सौ रुपइया बाकी रह गेल हे । ऊ बकिअउटा के भुगतान भेले पर वर के दुआरपूजा होयत ।') (अमा॰28:5:1.2)
25 अदली बदली (अब कोनो मास्टर एक्के जगह साँप नियन कुंडली मार के बइठल नयँ रहत । सबके ~ होत । बहुते मौज-मस्ती काट लेलन मास्टर लोग ।) (अमा॰29:10:2.27)
26 अनचके (अनचके में देखला पर अपने के पते न चलत कि ई कोई असाधारण बेकति हे) (अमा॰25:9:1.4, 14:1.16)
27 अनर्गल (जितावन आउ परिखन दुन्नो मिल के बढ़ावन चचा के अंटसंट आउ अनर्गल बात कह-कह के उनका भड़कावे के योजना बना लेलन) (अमा॰30:14:1.18)
28 अनेरे (= व्यर्थ में) (अब पाणिनि के भी धँसोड़ के पराकृत के संस्कृत से उत्पन्न बतावे ओला कठहुज्जति लोग से कउन अनेरे माथा फोड़उअल करे ?) (अमा॰30:9:1.21)
29 अन्हारे-पन्हारे (बिहान हो गेल हल । रोज दिन के ~ चाय पीये के आदत रहे के चलते हम सीधे बिछौना पर से उठ के मुँह धोइली आउ जाके भुलेटन के दोकान पर बइठ गेली ।) (अमा॰23:16:1.1)
30 अपरमपार (= अपरम्पार) (राजगीर के महिमा अपरमपार, सुन मोरे भइया हो) (अमा॰27:20:1.3)
31 अपरेशन (= अपरेसन, ऑपरेशन) (अप्पन मरद के समझा बुझा के अपरेशन करा लिहऽ !) (अमा॰24:18:1.18)
32 अपरेसन (= ऑपरेशन) (अगर समझा के केकरो अपरेसन करावे इया गरभ निरोध के बात बतावल जाहे त झट कह देहे कि ई तो भगवान के देन हे) (अमा॰24:14:2.22, 15:1.3)
33 अमझोरा (बोखार से तलफइत बेटा के शरीर पर अंजलि अमझोरा के पानी रगड़ के कटोरी रखबे कैलक हल कि विंकटेश बोललक - 'बाबूजी कहिया अयतन माय .... ?') (अमा॰20:15:1.5)
34 अमराई (मिथिला के अमराई में भी विद्यापति के चले न वार ।) (अमा॰25:23:2.32)
35 अमीरचंद (ई सब तुम्माफेरी नयँ करतई सरकार तऽ औफिस के बाबू लोग कइसे बनतन फकीरचंद से अमीरचंद ।) (अमा॰29:12:1.12)
36 अम्बार (धरती के शृंगार धान अम्बार लगल खरिहानी में) (अमा॰22:17:2.22)
37 अरज (= अर्ज) (तुलातुल समतुल हे, ता पर मेष प्रचण्ड । खड़ा सिंहनी अरज करत हे, कुम्भ छोड़ दे कंत ॥) (अमा॰25:18:1.29)
38 अरथ (= अर्थ) (बाद में एकर लघु रूप 'पालि' रह गेल आउ एकर अरथ हो गेल बुद्ध वचन) (अमा॰23:9:2.1)
39 अरहड़ (कोमल पत्ती साग टमाटर फरवा शोभे डाली के । अरहड़ आम झकाझक फूलल स्वर कोकिल मतवाली के ।) (अमा॰22:17:2.6)
40 अर्द्धमागधी (डॉ॰ एच॰ बईस कहलन - 'प्राचीन बौद्ध साहित्य अर्द्धमागधी में लिखल गेल आउ अजुका पालि साहित्य ओकरे अनुवाद हे ।') (अमा॰23:10:1.2)
41 अलगल (हमरा चिन्ता काहे ला जब दुलहा हम्मर अकिलगर हे । दुनिया चाहे जे भी कहे, जियरा हम्मर अलगल हे ।) (अमा॰21:10:1.31)
42 अलबत्त (= क्या खूब, वाह; बेशक; किन्तु, परन्तु) (चलवे में चरखा ई बुढ़िया अलबत्त हे) (अमा॰28:16:2.25)
43 अलमुनिया (= अल्यूमिनियम) (हम ऊ झोला झाड़ली तब ओकरा में से पुरान अचकल-पचकल अलमुनिया के कटोरा आउ एगो फट्टल पुरान मइल कुचइल चद्दर मिलल) (अमा॰22:16:1.11)
44 अलसाना (चलई बसंती जब अलसवले, धमधम गाँव-गली धमकवले) (अमा॰20:7:1.15)
45 अलानी (फरत करइला खीरा शोभे लदबद फूल अलानी में) (अमा॰22:17:2.19)
46 अष्टावक्र (सबसे मुश्किल तो ई हे कि अगर लड़की पढ़ल हे त अफसरे हे आउ न पढ़ल हे त जाहिले हे । ओकरो पर से घर के काम-काज में निपुन हे कि न, मुँह समेट के रहेवाली हे कि न, बाप के गाँठ पूरा हे कि न । कहे के मतलब हे कि लड़की तो चाही सर्वगुणसम्पन्न । बाकि लड़का ? लड़का के पूछऽ मत । अष्टावक्र सूरत सकल वाला के भी स्वप्न सुन्दरी चाही ।) (अमा॰27:17:2.2)
47 असथान (= स्थान) (धरती के ऊपर जे असमान हे ओकरा में दिन में सूरज आउ रात में चान के जउन असथान हे, ओकरा से ढेर जादे ऊँचा असथान मगही साहित्य के असमान में डॉ॰ राम प्रसाद सिंह के हे) (अमा॰25:7:1.2, 3)
48 असमान (= आसमान) (धरती के ऊपर जे ~ हे ओकरा में दिन में सूरज आउ रात में चान के जउन असथान हे, ओकरा से ढेर जादे ऊँचा असथान मगही साहित्य के ~ में डॉ॰ राम प्रसाद सिंह के हे) (अमा॰25:7:1.1, 3; 28:18:1.7)
49 असाढ़ (= आषाढ़) (अमा॰30:13:1.6)
50 अहरी (अहरी पोखरी भरल नहाए भईंस पसर के पानी में) (अमा॰22:17:2.12)
51 आँटी (धनमा के काट के परुइया लगैबई । बाल-बच्चे मिल-जुल के आँटी अँटिऐबई ॥) (अमा॰30:11:1.12)
52 आँय (= आयँ) (आँय माय ! आजकल तूँ आउ बाबूजी एतना परेशान काहे रहऽ हें ?) (अमा॰23:17:2.7)
53 आचारज (= आचार्य) (अमा॰30:7:2.22)
54 आज के परिवेश में अपने के लिखल एकांकी 'दरोगा डण्डा सिंह' खूब पसन्द करल जाइत हे । बाकि 'रोवित', 'आवित' शब्द जे छपल हे से ठीक न बुझाय । ऊ 'रोवइत', 'आवइत' होवे के चाहऽ हल ।) (अमा॰24:19:2.6)
55 आझ-कल्ह (आझ-कल्ह तो सब लोग पइसा आउ पैरवी पर बतिअएबे करऽ हे । पइसा फेंकऽ, तमासा देखऽ ।) (अमा॰29:12:1.23)
56 आन्हर (= अन्धा) (दिमाग आउ आँख से आन्हर) (अमा॰24:12:2.25; 25:23:2.24)
57 आपत्ति (खाली बिगड़ल हिज्जे के सुधार कर देवे के जरूरत हे । अइसहीं अंगरेज लोग केतना शहर के हिज्जे बिगाड़ले हलन, जिनका सुधारल गेल हे । आरा, मुंगेर, हजारीबाग के नाम के सुधार पहिले भी करल गेल हे, जेकरा में किनको आपत्ति न भेल । ... अइसे देखल जाय तब 'पाटलीपुत्र' नाम पर किनको आपत्ति न हे । ) (अमा॰22:4:1.18, 22, 30)
58 आरजू-मिन्नत (बिआह के सुभ लगन टल रहल हल । ऊ घड़ी आरजू-मिन्नत आउ बहस करे के कउनो गुंजाइस न हल ।) (अमा॰28:5:1.7-8)
59 आलू (नालन्दा के धरती ला आलू के खेती के वर्णन जरूरी हे, काहे कि आलू हियाँ के जनजीवन से जुड़ल हे) (अमा॰22:11:2.25, 26, 27)
60 आलूदम (ओकर नाक में मिठाई के मिठास आउ आलूदम के सुगन्ध जाय से जी भर गेल) (अमा॰28:17:1.6)
61 आव (आव देखना न ताव) (सुगिया का जवाब देत हल, चुप्पी साधले रहल । चन्दर आव देखलक न ताव, तड़ातड़ दू थप्पड़ सुगिया के गाल पर जड़ देलक ।) (अमा॰29:14:1.20)
62 इंगुर (इंगुर के पोथा न भुलिहऽ सजनवाँ !) (अमा॰24:15:1.30)
63 इकसना (= निकलना) (भीखू जब बहिरसी इकसल त कलुआ चपरासी टोक देलक) (अमा॰21:18:2.15)
64 इजारा (कलुटनी के शादी में सब खेती इजारा-पट्टा हो गेल) (अमा॰20:15:2.1)
65 इनखा (= इनका, इनको) (अमा॰26:10:1.17; 28:11:2.9)
66 इमारत (करीब डेढ़ सो सरकारी इमारत आउ 86 गो थाना में आग लगा देवल गेल) (अमा॰26:6:2.22)
67 इसारा (= इशारा) (अमा॰30:8:2.5)
68 इस्तेमाल (साइत सबसे पहिले 'पालि' सबद के इस्तेमाल कइलन आचार्य बुद्ध घोष) (अमा॰23:9:1.9)
69 ईशरा डाक (= एक देवता, जिनके बारे में मान्यता है कि वे गाँव-घर की निगरानी करते हैं) (शक्ति ला देवी जी, बुद्धि ला सरस्वती जी, गाँव-घर के निगरानी ला गोरइया डिहवार, डाक, फूल डाक, ईशरा डाक, लहरा डाक, त घर के परिवार के रच्छा ला टिपउर, मनुस्देवा, बाबा बकतउर आउ बराहदेव हथ ।) (अमा॰22:13:1.9)
70 उखबिक्खी (~ दिमाग में हे, की ठंढा होके सोचऽ हे ऊ कुछ बात) (अमा॰23:12:2.8)
71 उख-बीख (=उख-बिख, उक्ख-बिक्ख, उखी-बिखी, उक्खि-बिक्खि, उकिल-बिकिल, उखिल-विखिल; व्याकुलता, बेचैनी, परेशानी) (बड़का भारी फेरा में फँसल हलन मास्टर दरोगी लाल जी । इसकूल में जहिया से बदली के चरचा शुरू होल हे तहिए से मन में उख-बीख समाल हल ।) (अमा॰29:10:1.3)
72 उजरका (अमा॰26:1:2.4)
73 उनउँसना (= हउँसना, हौंसना) (हुनखर बिगड़ल दशा देख के भूपती घबरा गेल आउ मलिया में तेल लेके हुनखर शरीर में उनउँसे लगल ।) (अमा॰29:12:2.18)
74 उन्हकर (= उनकर, उनखर) (अमा॰25:22:1.7)
75 उपछना (दुख के समुन्दर में अँसुअन के पानी, रात दिन उपछऽ अब भर भर के डोल) (अमा॰28:8:1.15)
76 उपास (= उपवास) (चुल्हा भिर सीझे ओली पुतरी, बेटा-बेटी आउ मरदाना ला उपास करके देह गलावे ओली औरत -) (अमा॰24:12:2.29)
77 उपासल (= उपवास किया हुआ) (अमा॰25:23:2.18)
78 उपेल (चाय पीके ऊ अप्पन 'मलाल' कविता के एक टुकड़ा सुनौलन - 'सुरता के पनसोखा बिना नागा के उगऽ हे, बाकि उपेल न कर, उल्टे झपास लगावऽ हे । ..') (अमा॰28:16:2.10)
79 उप्पर-झापर (~ से देखला पर आधुनिक छद्म भासा विग्यानी के कबो-कबो मागधी के ई गौरव-गान पूरा-पूरा अरथवाद आउ अखरेवाला लगे लगऽ हे) (अमा॰30:7:2.13)
80 उब-डुब (केतना देरी तक ऊ इहे विचार में ~ होते रहलन, पते नयँ चलल) (अमा॰29:11:2.7)
81 ऊ का (= उका) (ऊ का पीपरा के पेड़वा तर दुन्नो बेकती चिताने गिरल हथ) (अमा॰23:16:2.9)
82 ऊचारन (= उच्चारण) (अमा॰30:9:2.27)
83 ऊबना (केतना बताईं हम चिंता में डूबल ही, अइसन सरकार से एकदम ऊबल ही) (अमा॰30:12:2.20)
84 ऋचा (ऊ घर के संचलन के पूर्ण क्षमता प्राप्त करके ही बियाह कर सकऽ हल । जेकरा में प्रतिभा हल ऊ वैदिका ऋचा तक के निर्माण कर सकऽ हल, विद्वत् सभा में भाग ले सकऽ हल, ग्रन्थ के प्रणयन तक कर सकऽ हल) (अमा॰29:7:1.18)
85 एकपिठिये (अब सातो लड़की एक के बाद एक सावन-भादो नियर बढ़े लगलन । सब तो एकपिठिये हलन ।) (अमा॰27:16:1.27)
86 एहनी (= एकन्हीं) (अमा॰25:21:2.4)
87 ओइसहिं (ओइसहिं ... जइसे) (मंथरा के अभिनय करेवाली मंगतू चाची ओइसहिं कहीं छिप गेलन हल जइसे शिकारी जानवर के सिकार करे ला झाड़ी में छिप जाहे) (अमा॰20:16:1.4, 17:1.7)
88 ओखनी (= ओकन्हीं) (हमहूँ ओखनिये के पीछे-पीछे चलल जाइत हली) (अमा॰22:14:1.13; 24:16:2.11)
89 ओगैरह (= वगैरह) (कहीं-कहीं ग्रन्थ के नाम के साथे भी पालि सबद के बेवहार भेल हे, जइसे 'पाधितिय पालि', 'जातक पालि' ओगैरह) (अमा॰23:9:1.26)
90 ओजउने (= वहीं, उसी जगह) (नजदीक में पहुँचे पर देखली किदूगो महिला ओजउने बाबा के एक-एक ढेला मारलन) (अमा॰22:14:1.1)
91 ओज्जा (जेज्जा ... ओज्जे) ('पाणिनीय शिक्षा' में जेज्जा 'संस्कृत' सब्द के पहिला बार परयोग भेल हे, ओज्जे 'प्राकृत' सब्द के भी परयोग भेल हे) (अमा॰30:9:1.12)
92 ओसीकानवीस (ओसीका = वसीका, दस्तावेज, शर्तनामा का लिखित कागज, रजिस्ट्री के लिए दाखिल किया जानेवाला कागज; नवीस = लिखनेवाला) (धत् बउराहा ! दोसरा से पढ़ावे के काम न हे । एतना तो हमहूँ कर लेती । कोट कचहरी में जाही तो रजिन्दर लाल ओसीकानवीस पढ़िये दे हथ ।) (अमा॰30:14:2.27)
93 ओहनी (= ओकन्हीं) (ई ठीक हे कि ऊँचा वर्ग के लोग एकरा गँवारू समझऽ हथ बाकि ओहनीये एकरा से प्रभावित लोकऽ हथ) (अमा॰25:12:2:9, 21:2.8, 26)
94 ओहिजा (= उस जगह, वहाँ) (हम दउड़ के ओहिजा अगल बगल जेतना कल चाहे चापाकल हल सगरो देख अइली बाकि ऊ आदमी न मिलल) (अमा॰22:15:2.27)
95 औंधल (औंधल के सीधा कैलन, झाँकल के खोलि देलन) (अमा॰23:15:1.18)
96 औडर (अरे कहऽ न ! ट्रांसफर के औडर हई ?) (अमा॰21:15:2.27; 29:10:1.16, 11:1.14, 16)
97 औरत (औरत-मरद) (एगो स्थानीय मेला लगऽ हे जेकर नाम हे कोचामहादे इया कोचामठ के मेला .....औरत-मरद से तो मारे देह छीला हे ।) (अमा॰22:13:2.24)
98 कउलेज (= कॉलेज) (अमा॰26:5:2.15, 17, 25, 6:1.4)
99 कखनिये (ई ~ से दुआरी पर खड़ा हथ) (अमा॰22:8:1.28)
100 कचाक (~ से) (एक ढेला बगल से उठा के बाबा के कचाक से मार देलन) (अमा॰22:14:1.13)
101 कटनी (आयल अगहनमा त मन हरसायल । कटनी के धुन हम्मर मन में समायल ॥) (अमा॰30:11:1.2)
102 कटल-कटल (आखिर ऊ कउन गुनाह कैलक हे कि ओकरा पर कहर के दौर चालू हो गेल ? ओकर पति चन्दर भी तनी ~ रहे लगलन) (अमा॰29:13:1.7)
103 कटोरा (हम ऊ झोला झाड़ली तब ओकरा में से पुरान अचकल-पचकल अलमुनिया के कटोरा आउ एगो फट्टल पुरान मइल कुचइल चद्दर मिलल) (अमा॰22:16:1.11)
104 कठकरेजी (अदमी के दिल कठकरेजी के बनल न न हे) (अमा॰28:16:2.5)
105 कठपुतली (नारी भी तब ~ न हल । ऊ हल पूर्ण शिक्षित, ज्ञानी, सक्षम आउ पूर्ण योग्य ।) (अमा॰29:7:1.8)
106 कठहुज्जति (अब पाणिनि के भी धँसोड़ के पराकृत के संस्कृत से उत्पन्न बतावे ओला कठहुज्जति लोग से कउन अनेरे माथा फोड़उअल करे ?) (अमा॰30:9:1.20)
107 कतिकउर (कतिकउर घाम आउ राड़ के बोली न सहाय) (अमा॰25:17:2:26)
108 कनना (= कानना) (बुतरू ढेर रहला पर कोय रें रें कर रहल हे, तो कोय टें टें । कोय खाय ला कन रहल हे, त कोय दूध पीये लागी ।) (अमा॰24:15:1.7)
109 कनफुसकी (विनोबा जी निडर आदमी हथ । ई केकरो से ~ न करऽ हथ ।) (अमा॰19:12:1.20)
110 कनफुसियल (= confidential) (हाकिम के हुनखे से 'कनफुसियल' बात करे के हे) (अमा॰21:18:2.20)
111 कनिआई ("एकरा में हम्मर कउन गलती अपने के नजर आ रहली हे ? हम तो चन्दर के कनिआई से तिलक में कोई खास चीज न मिले के चर्चा करइत हली ।" - चन्दर के माय बोललथी ।) (अमा॰29:13:2.20)
112 कनिवाँ (= कनेमा) (कफन खरीदे से का फायदा ? आखिर जरहीं न जा हई ? कनिवाँ के साथे तो जतई न !) (अमा॰28:11:1.21)
113 कने (= कन्ने, किधर, कहाँ) (बसन्त बौरायल हे, फुनगी पर छितरायल हे, जड़ में घुसियाएल हे, कने-कने कहूँ, नख से शिख ले सगरो समाएल हे।) (अमा॰21:9:1.3)
114 कनेवा (= कनेमा, कन्या, बहू) (अमा॰27:7:1.13, 14:2.18)
115 कपर कूटक (हिन्दी के दृष्टिकूट मगही में दसकूटक के नाम से जानल जाहे । गाँव-गँवई के लोग एकर जटिलता आउ दुरूहता के कारण एकरा 'कपर कूटक' भी कहऽ हथ ।) (अमा॰25:18:1.21)
116 कबड़ना (ऊ एक्को लड़की के एक्को झलक देखबो न कैल कि सर्कस उहाँ से कबड़ के बम्बई चल गेल; राते फिन हम्मर खेत में से आलू कबड़ गेल) (अमा॰21:17:2.19; 28:7:1.20)
117 कबर (= कब्र) (तइयो हम एतना निलज्ज ही कि हम्मर पाँव कबर के तरफ बढ़बो न कैलक हे) (अमा॰21:18:2.5)
118 कबरना (= कबड़ना) (दुन्नो ताड़ के पेड़ जड़ से कबर के पंडित सेनापति के दुन्नो कन्धा पर आ गेल) (अमा॰23:8:2.29)
119 कम्पाउण्डरी (= कम्पोटरी) (शहर में नौकरी तलाश करे के बजाय दवाई बिक्री इया ~ के व्यवसाय में भी जुटल जा सके हे) (अमा॰29:5:2.31)
120 करइला (फरत करइला खीरा शोभे लदबद फूल अलानी में) (अमा॰22:17:2.19)
121 करनी-करतूत (इनकर ~ के खिस्सा हजारो आदमी के जबान पर हे) (अमा॰19:11:1.10)
122 करमजरू (गरीब ~ बाप रउदा ओढ़ले-ओढ़ले, फाइल में डुबल-डुबल एक-ब-एक फरफरा उठऽ हे, थरथरा उठऽ हे) (अमा॰24:11:1.16)
123 करल (एकरा पर दया करल आउ करिया कम्बल पर रंग चढ़ावल दुन्नो बराबर हे) (अमा॰28:9:1.21)
124 करीवा (~ अच्छर) (सुनऽ नगेसर आउ परमेसर ! हम जब खतिआन पढ़ाएब तो तोरे लोग से । ई हम्मर परतिगेया हो गेल, आउ ई तब पूरा होयत जब तोहनी करीवा अच्छर जान लेबऽ आउ तोहनी के आँख में इंजोर होएत ।) (अमा॰30:15:1.2, 2.21, 22)
125 कल (= पानी का हैंड पम्प) (हम दउड़ के ओहिजा अगल बगल जेतना कल चाहे चापाकल हल सगरो देख अइली बाकि ऊ आदमी न मिलल) (अमा॰22:15:2.27)
126 कलाम (मैक्समूलर के कलाम हे कि पालि 'पाटलि' या पाड़लि' से बनल हे, जे साइत पाटलिपुत्र के भाषा हल) (अमा॰23:9:2.10)
127 कसमस (कसमस-कसमस करे लगल ई, हठ छोड़ऽ धर दऽ उतार के ॥) (अमा॰23:11:1.12)
128 कस्तरी (लम्पट के हाथ से कस्तरी आउ लोटा ले ले हथ) (अमा॰22:8:1.25)
129 कहईं (हम कहईं के नऽ रहली, घरे के नऽ घाटे के) (अमा॰25:8:2.18)
130 कहउतिया (लोकवार्ता के कथावस्तु वर्तमान के न होके परम्परा से आयल रहऽ हे । अइसन अवधारण लोक-विश्वास, अंध-विश्वास, रीति-रेवाज, परदरसन, लोक-नाट्य, धरम-कथा, अवदान परम्परा, लोककथा, धरम, अनुष्ठान, प्रकृति सम्बन्धी धारणा, जादू-टोना, कहउतिया, परतूक आदि हो सकऽ हे ।) (अमा॰25:13:1:17, 17:2.4, 6)
131 कहना (कहते नयँ बनना) (दरोगी जी से कहते नयँ बनल । बस सुनते रहलन संघतियन लोग के बात-विचार ।) (अमा॰29:12:1.5)
132 कहर (आखिर ऊ कउन गुनाह कैलक हे कि ओकरा पर कहर के दौर चालू हो गेल ?) (अमा॰29:13:1.6)
133 कहल-सुनल (ई सब अकसरहाँ मुँहजबानी (मौखिक रूप से) कहल-सुनल जाहे आउ एक कंठ से दोसर कंठ में चलइत हजारन बरस से जीवित हे) (अमा॰25:13:1:18)
134 कहिनो (= कहियो, कभी, किसी दिन) (कहिनो ई छात्रावास के दाई बनल हल तो कहिनो केकरो भन्सा के सीधमाइन) (अमा॰19:13:2.26)
135 कहूँ (= कहीं) (अगर कहूँ गिर जाय छूट के, बिखर जाय सब अंग टूट के ।) (अमा॰23:11:1.14)
136 काँके (केकरो से बतकुच्चन करे घड़ी समझदार सरोता अनजान आदमी से कहऽ हथ - 'भाई ! इनका से बहस मत करऽ । ई काँके रिटरन हथ ।') (अमा॰19:11:2.14)
137 काँट-कुश (अमा॰27:5:1.13)
138 काँटी (दउड़ल-दउड़ल गेली हम पकड़े गाड़ी । गाड़ी तो पकड़ली, लेकिन -- हाथ में गड़ गेल काँटी ।) (अमा॰24:9:2.15)
139 कागज-पत्तर (अमा॰28:11:2.29-30, 12:1.2-3, 15:1.25)
140 काठ (~ मार जाना) (जहिया साँझ के सुनली कि बालेश्वर सिंह दू बरिस पहिले चल गेलन, (त) एकाएक काठ मार गेल, पैर के नीचे के धरती खिसक गेल) (अमा॰28:15:1.2)
141 कापी (हम वयस्क शिक्षा के कार्यक्रम से सब के पढ़वा देम । सिलेट, पीलसीन, कापी, किताब, लालटेन आउ दरी के साथ पढ़े के आउ सब समान मिलत ।) (अमा॰30:15:2.17)
142 काबू (फिर रोआँसी होके कहऽ हल - 'अब काबू थक गेल बउआ । मेला का जायम ? ..') (अमा॰22:16:2.3)
143 कामचोर (माधव के घरुआरी बुधिया जहिया से आयल हे, तहिया से दुन्नो बाप-बेटा आउ कामचोर हो गेलन) (अमा॰28:7:1.4)
144 काहे (पढ़ाई के सैद्धान्तिक आउ व्योहारिक पक्ष में एतना अन्तर काहे हे ?) (अमा॰24:6:1.26)
145 किरिनियाँ (बिखिया भरल देखऽ बन के नगिनियाँ, डँसे लागी हमनी के चलल किरिनियाँ; बिरीछन के पात में, कन-कन के गात में लपटल किरिनियाँ के डोर) (अमा॰22:10:1.24; 25:22:2.24)
146 किलास (= क्लास) (हुनखा इयाद हे गुरुजी के सेवा-टहल करते पढ़े वला ऊ समय । तीसरे किलास तक तो पढ़वे कयलन हल गुरुजी से कि बाबू जी गुजर गेला ।) (अमा॰24:7:1.9; 29:11:1.29)
147 किल्लत (अमा॰20:6:1.17)
148 किवाँर (= किवाड़, दरवाजा) (खुलल जइसहीं बिहान के किवाँर, दउड़-दउड़ के भौरन खोले लगलन कलियन के कंचुकी) (अमा॰21:9:1.24)
149 किसानी (बासमति के मोरी गमके लग गेल लोग किसानी में) (अमा॰22:17:2.14)
150 किस्सागोई (लेखक में ~ के भंडार भरल लोकऽ हे) (अमा॰25:15:2:4)
151 कुटाई-पिसाई (घरे-घर जाके ~ करऽ ही, तब जाके सेर भर आटा के इन्तजाम होवऽ हे) (अमा॰27:8:2.4)
152 कुली (= कूली) (ई आन्दोलन में न सिरीफ छात्र आउ बुद्धजीविए हलन, बलुक मजूर, किसान, कुली आउ भंगी सब कूद गेलन) (अमा॰26:6:1.8)
153 कुल्लम (= कुल) (ढेर-ढेर सन् बुतरू ने, बस चाही कुल्लम एक सपूत ।) (अमा॰29:20:1.1)
154 केत्ते (ई केत्ते अफसर के मेहरारू से बिना उपहारे खाली बात बना के खुश करके औफिस में महीनन के अँटकल बिल पास करैलन हे) (अमा॰19:13:2.20)
155 कैथी (लावऽ, खतिआन दऽ ! जनसेवक जी से पढ़वा लाऊँ । ओहु तो कैथी हिन्दी जानवे करऽ हथी । हिन्दी के अलावे ऊ रंगरेजीओ फुर्र-फुर्र पढ़ दे हथी ।) (अमा॰30:14:2.23)
156 कोंढ़ी (= कोंहड़ी) (बरस में एक बार जरे ओली होली, अब रोज जरऽ हे - कहियो फूल के, कहियो कोंढ़ी के ।) (अमा॰24:11:2.28)
157 कोचामठ (हमरा हीं से पच्छिमे दू किलोमीटर पर 'मेन' गाँव में बूढ़वा महादे हथ । उनका भिर हर साल फागुन तिरोस्ती के बिहानी होके एगो स्थानीय मेला लगऽ हे जेकर नाम हे कोचामहादे इया कोचामठ के मेला ।) (अमा॰22:13:2.22)
158 कोचामहादे (हमरा हीं से पच्छिमे दू किलोमीटर पर 'मेन' गाँव में बूढ़वा महादे हथ । उनका भिर हर साल फागुन तिरोस्ती के बिहानी होके एगो स्थानीय मेला लगऽ हे जेकर नाम हे कोचामहादे इया कोचामठ के मेला ।) (अमा॰22:13:2.22)
159 कोर (= कौर) (औरत बेचारी के शरम से कोरो न उठ रहल हल) (अमा॰24:17:2.15)
160 कोर-कसर ('बिहान' के स्तर ऊँचा उठावे में ऊ कउनो कोर-कसर बाकी न छोड़लन) (अमा॰28:15:1.18)
161 कोहड़ी (ठोर पर कोहड़ी अइसन मुसकान) (अमा॰19:11:1.3)
162 खखन (= छछन; तीव्र इच्छा या अभिलाषा; चाह, लालसा; इच्छा पूरी करने की उत्सुकता; चिन्ता) (बहुत खुशामद करे पर एगो लड़का वाला आवे ला तैयार होलन । ऊ अयलन त पाँच छव आदमी से । लड़की के माय-बाप खखन में उनका खुश करे ला कोई कसर न छोड़लन ।) (अमा॰27:16:2.2)
163 खखरी (हुनखर मन मितला हे - सरकारी अन्हरे नियन टोले चलऽ हे पढ़ाय में सुधार के उपाय । कोठरी में खखरी धान सुखा के का होयत ?) (अमा॰29:10:1.10)
164 खटकना (आदमी के अभाव तब खटकऽ हे, जब ऊ न रहऽ हे) (अमा॰30:6:2.1)
165 खतिआन (लावऽ, खतिआन दऽ ! जनसेवक जी से पढ़वा लाऊँ । ओहु तो कैथी हिन्दी जानवे करऽ हथी । हिन्दी के अलावे ऊ रंगरेजीओ फुर्र-फुर्र पढ़ दे हथी ।) (अमा॰30:14:2.22, 15:1.1)
166 खतीयान (= खतिआन) (तोहनी दुन्नो इसकूल में कभी न बइठे गेलऽ । कभी हम पकड़ के भेजवो कइली तो कभी घाघा में, कभी मकई आउ झलासी के झालड़ में लुका जा हलऽ ! आज हम केकरा से कहूँ आउ केकरा से रोऊँ कि तनी हम्मर खतीयन पढ़ दऽ ? ई जर-जमीन के कगज दोसरा से न देखावे के चाही ।) (अमा॰30:14:2.14)
167 खनिहार (खनिहारो लोग एतना खलथिन कि केकरो से पानी तक न पीयल गेलइन) (अमा॰27:13:1.14)
168 खरचना (= खर्च करना) (हदिआल दरोगी जी हुनखे से पूछलन - 'पइसा खरचम तो हिएँ जमल रह जाम ?') (अमा॰29:12:1.27)
169 खरियत (= खैरियत) (नसकट खटिया बतकट जोय, ताकर खरियत कभी न होय) (अमा॰25:17:2:25)
170 खरी-खोटी (~ सुनाना) (अमा॰25:21:2.6-7)
171 खरोश (= शोर) (बढ़ावन चचा लगभग चालीस बरस के हो गेलथिन हल, तइयो उनकर कदकाठी में जवानिए के जोश खरोश भरल हलइन) (अमा॰30:14:1.2)
172 खर्ची (= खरची; खर्च करने की वस्तु; भोजन बनाने की सामग्री; कच्चा सीधा, बुतात; जीवन यापन का सामान) (रहे ला घर न हे, खाय ला खर्ची न हे) (अमा॰28:8:1.25)
173 खलहल (गाड़ी जइसहीं आगरा टीसन पर रुकल तो एगो डिब्बा से सब जातरी उतर गेलन, खाली एगो बूढ़ी आउ जुवती बच गेल । खलहल पाके ओही डिब्बा में एगो जुवक घुस गेल आउ गाड़ी तुरते रफ्तार पकड़ लेलक ।) (अमा॰25:14:1:13)
174 खसरा (दे॰ खेसरा) (पटवारी की बही जिसमें गाँव के हर खेत का नंबर, रकबा, काश्तकार का नाम इत्यादि लिखे रहते हैं) (जनसेवक हरिचनर बाबू ऊ घड़ी अप्पन बही खाता के खाता नं॰, प्लौट नं॰, आउ ~ नं॰ के घुमावदार हिसाब में अझुरायल हलन) (अमा॰30:15:1.18)
175 खस्सी (ई सब देवतन के अलग-अलग तरह के भोजन हे । माँ काली ला भईंसा, देवी जी ला पठिया, सरस्वती ला फल-फूल आउ मिष्टान्न, गोरइया आउ डाक ला खस्सी-भेंड़ा, सूअर, मुर्गा, कबूतर, टिपउर ला खस्सी-भेंड़ा आउ डाक गोरइया के तो खूनो पीए से जब तरास न जाय त अलगे से तपावन (दारू) देल जाहे, तब जाके उनकर पियास बुझऽ हे ।) (अमा॰22:13:1.13, 14)
176 खिक्खिर (हिरनी, खिक्खिर, चमगुदरी के आज हे जमघट लगल उहाँ ।) (अमा॰25:23:1.25)
177 खियाना (= घिसना, घिस जाना) (खटइत-खटइत हम्मर देह खिया गेल) (अमा॰27:7:1.28)
178 खुद्दे (एकरा से साफ परगट हो जाहे कि खुद्दे पाणिनि भी पराकृत के अधिक पराचीन नऽ, त कम-से-कम संस्कृत के साथे-साथ ओकरो आद्य उत्पत्ति तो जरूरे सकारलका हे) (अमा॰30:9:1.16)
179 खुल्लमखुल्ला (अधिकतर नेता जनता के सेवक न, सेठ हथ आउ हथ ~ सत्ता के सौदागर) (अमा॰28:6:2.7)
180 खून (ई सब देवतन के अलग-अलग तरह के भोजन हे । माँ काली ला भईंसा, देवी जी ला पठिया, सरस्वती ला फल-फूल आउ मिष्टान्न, गोरइया आउ डाक ला खस्सी-भेंड़ा, सूअर, मुर्गा, कबूतर, टिपउर ला खस्सी-भेंड़ा आउ डाक गोरइया के तो खूनो पीए से जब तरास न जाय त अलगे से तपावन (दारू) देल जाहे, तब जाके उनकर पियास बुझऽ हे ।) (अमा॰22:13:1.15)
181 खेआल (= खेयाल, खयाल) (अमा॰25:22:1.17)
182 खेलउना (अमा॰19:11:1.3)
183 खेसरा (= खसरा; पटवारी की बही जिसमें गाँव के हर खेत का नंबर, रकबा, काश्तकार का नाम इत्यादि लिखे रहते हैं) (जनसेवक हरिचनर बाबू ऊ घड़ी अप्पन बही खाता के खाता नं॰, प्लौट नं॰, आउ खेसरा नं॰ के घुमावदार हिसाब में अझुरायल हलन) (अमा॰30:15:1.18)
184 खैनी (एकरा अलावे हमहूँ गाँव देहात में घरे-घर जाके, खैनी-बीड़ी खिया-पिया के कथा कहउली आउ लिखली हे, जे पूरा नाम पता के साथ 'मगध की लोक-कथाएँ : अनुशीलन एवं संचयन' में छपल हे) (अमा॰25:5:1.24)
185 खैनी-बीड़ी (एकरा अलावे हमहूँ गाँव देहात में घरे-घर जाके, खैनी-बीड़ी खिया-पिया के कथा कहउली आउ लिखली हे, जे पूरा नाम पता के साथ 'मगध की लोक-कथाएँ : अनुशीलन एवं संचयन' में छपल हे) (अमा॰25:5:1.24)
186 खैर (खैर, ऊ लोग राजपरिवार के महान लोग होवऽ हलथिन) (अमा॰27:4:1.15)
187 खोंखना (नवादा शहर से लेके देहात तक ले हम्मर डण्डा के डर से कोई खोंखबो न करऽ हलई) (अमा॰20:10:1.26)
188 खोता, खोंता (= खोंथा, घोंसला) (अमा॰25:23:2.10, 3.4; 26:8:1.25)
189 गंगा-जमुना (बसिया दीदी के चिता जल रहल हल आउ हम्मर आँख से ~ बह रहल हल) (अमा॰22:17:1.15)
190 गंदा-संदा (अमा॰29:16:1.8)
191 गड़ना (दउड़ल-दउड़ल गेली हम पकड़े गाड़ी । गाड़ी तो पकड़ली, लेकिन -- हाथ में गड़ गेल काँटी ।) (अमा॰24:9:2.15)
192 गड़ल (चूसे ला खून गड़ल नैन हे) (अमा॰26:10:2.13)
193 गदराना (गेहुम मटर बूँट जुआयल, सबके पितुहियन गदरायल) (अमा॰20:7:1.6)
194 गमगीन (अमा॰20:6:1.19, 25)
195 गरगट (= धुआँ, धूल आदि के कारण गले में होनेवाली बेचैनी; अप्रिय, बेचैन करनेवाला, जिसे त्यागने की इच्छा हो) (अब तो खाना भी गरगट हो गेल हल । बात सच्चे में भारी फिकिर के हल । जहाँ पल्ले में खाए के पैसा न हे, उहाँ चार-पान सो रुपैया केसे भरइतई ?) (अमा॰24:17:2.22)
196 गरन्थ (= ग्रन्थ) (अमा॰30:7:2.9)
197 गरभ (= गर्भ) (अगर समझा के केकरो अपरेसन करावे इया गरभ निरोध के बात बतावल जाहे त झट कह देहे कि ई तो भगवान के देन हे) (अमा॰24:14:2.23)
198 गरीबनी (अमा॰30:13:2.5)
199 गहना-गुड़िया (= गहना-गुरिया) (हम तो बरतना-बासन, कपड़ा-लत्ता, ~ के अलावे अस्सी हजार नगद दहेज में ई ला देली हल कि कोइला नियर लगइत कलुटनी चाँद नियन चमके लगत) (अमा॰20:15:2.5)
200 गारना (भईंस ~) (भईंस हम गारऽ हली, बाकि दूध हम नऽ खा हली) (अमा॰22:7:1.6)
201 गिआन (= गियान, ज्ञान) ("बस नामे के हो शहर जमनिया । ऊ तो पूरा इन्टीरियर इलाका हो ।" अप्पन गिआन बखानते कहलन भुनेसर जी - "पनियो-बिजली के समस्या हो हुआँ ।") (अमा॰29:12:1.2)
202 गिरथाइन (= गिरथइनी, गिरथैनी; महिला गृहस्थ, गृहस्थ की पत्नी; घर गृहस्थी के काम में प्रवीण स्त्री, कुशल, हाथ के फरहर) (गाँव जेवार के गिरथाइन, बेटी-भतीजी मौसी दाई बहिन सब खाली घैला बगल में दबैले टुकुर टुकुर देख रहल हे, जिरिकनी, जिरिकना सब साड़ी खींच रहल हे) (अमा॰28:7:2.9)
203 गिरना बजरना (जब केवाड़ी तोड़ल गेल त पता लगल कि भगजोगनी सचमुच माय बाप से हमेशा हमेशा ला नाता तोड़ देलक हल । बसमतिया ओइजे गिरे बजरे लगल ।) (अमा॰23:18:2.3)
204 गिलास (अमा॰21:15:2.32)
205 गुंजाइस (= गुंजाइश) (बिआह के सुभ लगन टल रहल हल । ऊ घड़ी आरजू-मिन्नत आउ बहस करे के कउनो गुंजाइस न हल ।) (अमा॰28:5:1.8)
206 गुनगर (बेटा पढ़े में गुनगर हथन । एही से उनकर माय-बापू उनका डागडर बनावे ला चाहलन ।) (अमा॰27:15:1.2; 17:1.20)
207 गेठरी-मोटरी (सब कोई अप्पन ~ लेके पैदले पटना कलटरी घाट पहुँच गेल) (अमा॰22:15:2.8)
208 गेठी (दुखिया रुपइया गेठी में से खोल के दे हे) (अमा॰21:12:1.2)
209 गेहुँआ (~ रंग) (अमा॰19:11:1.1)
210 गोंतना (= गोतना) (तोहरे अँखिया के सामने द्रौपदी के नाँगट कर देलै भरल सभा में आर तों मुरी गोंत के चुपचाप बैठल टुकुर-टुकुर देखैत हला) (अमा॰21:11:1.23)
211 गो-गो (तनी गो-गो डठवा में पियर-पियर धनमा । खेतवा में जाही त हुलसऽ हे मनमा ॥) (अमा॰30:11:1.3)
212 गोड़ (अमा॰20:9:2.20, 10:1.7)
213 गोतियारो (= गोतियारे; गोत्रीय; संगापन, सगोत्र होने का संबंध; एक मूल पुरुष के वंशज, भाई-बंधु) (हमरे गोतियारो में एगो के एक्के गो बेटी हे ।) (अमा॰27:17:1.14)
214 गोरइया डिहवार (शक्ति ला देवी जी, बुद्धि ला सरस्वती जी, गाँव-घर के निगरानी ला गोरइया डिहवार, डाक, फूल डाक, ईशरा डाक, लहरा डाक, त घर के परिवार के रच्छा ला टिपउर, मनुस्देवा, बाबा बकतउर आउ बराहदेव हथ ।) (अमा॰22:13:1.8)
215 गोस्साना (= गोसाना) ('गोस्साए के कौनो कारण ?' - हम पूछली ।) (अमा॰24:17:1.1)
216 गौनेहरी (= गौनहरी, द्विरागमन के समय ससुराल में आई वधू; द्विरागमन के अवसर पर वर पक्ष की ओर से भेजे गए वस्त्र आदि; वि॰ ~ साड़ी) (हरषई हिरदा ~ के, छलके प्यार जोगवले हल जे) (अमा॰20:7:1.17)
217 गौर (तनि एकरा पर गौर करल जाय) (अमा॰23:9:1.5)
218 ग्रुपबाजी (अमा॰25:21:2.5)
219 घटिया (बड़े-बड़े उद्योग लगा के, कुटीर उजाड़ल जाइत हे । घटिया माल डिब्बा में कस के, बढ़िया अब कहाइत हे ॥) (अमा॰26:7:2.27)
220 घबराना (ए दरोगी भाय ! एन्ने आवऽ जी ! काहे ला घबराल हऽ ?) (अमा॰29:11:2.16)
221 घर-जेवाई (चमार के घरे हम घर-जेवाई होके रहीं ?) (अमा॰25:8:2.5)
222 घर-परिवार (सब के दिल-दिमाग में एक्के बात गूँजऽ हल कि इहाँ से हटला पर घर-परिवार के ढेरो दिक्कत के सामना करे पड़त ।) (अमा॰29:12:1.15)
223 घरैतिन (= घरवाली) (उनकर ~ जलेसरी हलन आउ उनकर दू बेटा नगेसर आउ परमेसर के साथ एगो बेटी हलइन - सोनमतिया) (अमा॰30:14:1.7)
224 घसियारिन (घसियारिन के हँसी-ठिठोली बड़वा तर दुपहरिया में) (अमा॰22:17:2.10)
225 घाघा (तोहनी दुन्नो इसकूल में कभी न बइठे गेलऽ । कभी हम पकड़ के भेजवो कइली तो कभी घाघा में, कभी मकई आउ झलासी के झालड़ में लुका जा हलऽ !) (अमा॰30:14:2.11)
226 घाम (कतिकउर घाम आउ राड़ के बोली न सहाय) (अमा॰25:17:2:26)
227 घास-पात (ऊ सब ~ खाय के चीज हे ? हम कउनो जानवर थोड़े ही कि ~ चिबाबित रहम ?) (अमा॰23:14:1.10, 11)
228 घिघियाना (झिंगुर साव घिघियाइत कहलन) (अमा॰21:7:1.8; 22:14:2.10)
229 घुट्ठी (डागडर साहेब अप्पन माय के फरमौलन कि हम ऐसन-ओयसन लड़की से बिआह न करम । तूँ ऐसन लड़की खोजऽ जेकर चकचक दूध नियर रंग, आम के फाँक नियर लमहर आँख, टूसा नियर नाक, सुग्गा के ठोर नियर लाल-लाल ओठ, बिजली नियर दाँत आउ करिया और लम्मा-लम्मा घुट्ठी छुअइत बाल होय ।) (अमा॰27:15:1.14)
230 घुन (समाज में लगल ई घुन कब आउ कइसे मिटत ?) (अमा॰29:14:1.8)
231 घुमक्कड़ी (हम्मर ~ वला पेशा में नयँ फँसे दरोगी) (अमा॰29:11:1.26)
232 घुसियाना (बसन्त बौरायल हे, फुनगी पर छितरायल हे, जड़ में घुसियाएल हे, कने-कने कहूँ, नख से शिख ले सगरो समाएल हे।) (अमा॰21:9:1.3)
233 घैला (गाँव जेवार के गिरथाइन, बेटी-भतीजी मौसी दाई बहिन सब खाली घैला बगल में दबैले टुकुर टुकुर देख रहल हे, जिरिकनी, जिरिकना सब साड़ी खींच रहल हे) (अमा॰28:7:2.11)
234 घोंटाना, घोंटा जाना (घोंटा गेल अब गला आदर्स के, आउ पूर्वज के अरमान) (अमा॰26:13:2.9)
235 घोड़कइयाँ (अमा॰25:23:2.7)
236 घोल-मेल (भारत के धर्म संस्कृति आउ सामाजिक रचना में बिधना, बिसुन आउ महादेव के कर्तव्य आउ सरसती, लक्ष्मी आउ पारवती के शक्ति के बड़ा अजूबा आउ प्रतीक के रूप मे घोल-मेल लोकऽ हे) (अमा॰25:15:2:14)
237 घोसना (= घोषणा) (लूल्हा, लंगड़ा आउ कोढ़िया भी ठेलागाड़ी में बइठ के निरगुन भजन सुना के दुनिया के निस्सारता के घोसना करऽ हे । मगर दू पइसा खातिर लुच्चा लफंगा में भी भगवान के रूप देखऽ हे ।) (अमा॰28:6:1.24)
238 चकराना (माथा ~) (आन्दोलन के उग्र रूप देख के अँग्रेज शासक के माथा चकरा गेल) (अमा॰26:6:2.26)
239 चचा (= चाचा) (बढ़ावन चचा लगभग चालीस बरस के हो गेलथिन हल, तइयो उनकर कदकाठी में जवानिए के जोश खरोश भरल हलइन) (अमा॰30:14:1.1)
240 चट (चट सनि सेठ जी के नाम धर देले) (अमा॰21:12:1.24)
241 चढ़ाना (एकरा पर दया करल आउ करिया कम्बल पर रंग चढ़ावल दुन्नो बराबर हे) (अमा॰28:9:1.22)
242 चमगुदरी (= चनगुदरी, चमगादड़) (हिरनी, खिक्खिर, चमगुदरी के आज हे जमघट लगल उहाँ ।) (अमा॰25:23:1.25)
243 चमार (जात-परजात, भुइयाँ-चमार के भेद-भाव भुला के ई सेवा में लगल रहऽ हथ; हरिजन माने भुइयाँ-चमार, डोम-दुसाध होवऽ हे, समझले ? माने कि नीच जात ।) (अमा॰19:13:2.27; 25:8:2.4; 165:7:2.2)
244 चर-चुर (~ के अवाज) (आउ ठीके में चीख से डिब्बा गूँज उठल । गाड़ी के तेज रफ्तार में ब्लाउज आउ साड़ी के फटइत चर-चुर के अवाज के साथे चीख सुने के फुर्सत केकरा हल ?) (अमा॰25:14:1:24)
245 चसका (बड़का के कौन पूछे, पइसा बटोरे के चसका अदना मामूली परिवार के भी लग गेल हे ।) (अमा॰29:14:1.7)
246 चहक्का (सजनी के शृंगार फसल के सुग्घड़ फूल कियारी में । डगर किनारा हरिअर शोभे चँवर चहक्का सारी में ।) (अमा॰22:17:2.4)
247 चहड़ना (= चढ़ना) (तोहरे रथ पर चहड़-चहड़ के पागलपन से भभक रहल हे) (अमा॰22:8:2.10)
248 चाँपना (= दाबना, दबाना) (अमा॰25:24:1.4)
249 चिठिआँव (आज से बीस बरिस पहिले राम प्रसाद भाई से हमरा परिचय भेल । ई परिचय में साले-साल नया रंग आवइत गेल हे । चिठिआँव भी होते रहल हे ।) (अमा॰25:22:1.7)
250 चिताने (चद्दर ओढ़ले खटिया पर चिताने पड़ल हलन; ऊ का पीपरा के पेड़वा तर दुन्नो बेकती चिताने गिरल हथ) (अमा॰19:13:1.1; 23:16:2.9)
251 चिथड़ा (जिनगी में लाज ढाँपे ला चिथड़ो नसीब न होलक) (अमा॰28:10:2.26)
252 चिनगी (= चिनगारी, तितकी) (मदना सतावे मोहे, चिनगी लगावे मोहे, जिनगी बेहाल भेलई, बदरा के रात में ।) (अमा॰27:8:1.27)
253 चिरईं (अमा॰25:23:2.10)
254 चिरुआ (= चुरूआ, चुरू; चुल्लू) (तब नाली के पानी ऊ चिरुआ से पी जाय) (अमा॰30:13:1.29)
255 चिलिम (तोरा जइसन देहचोर दोसर कोई हो सकऽ हे ? आधा घंटा काम करबें, तब एक घंटा चिलिम चढ़ैबें ।) (अमा॰27:9:1.3)
256 चुगला (= चुगलखोर) (सीधा सादा लोग मरइत हे, चुगला छाल्ही काट रहल हे) (अमा॰19:15:2.10)
257 चुन्नी (= चुनी; अनाज का चूर्ण या खुद्दी; किसी वस्तु का छोटा टुकड़ा) (जेतना भी कागज-पत्तर उनखा मिलल ऊ सभ के चुन्नी-चुन्नी उड़ा के अप्पन गोस्सा उतार लेलन) (अमा॰28:12:1.4)
258 चुभना (चुभइत व्यंग्य) (अमा॰25:20:2.2)
259 चूँटी (चूँटी-पिपरी; चूँटी ससरे के इया तिल रखे के भी जगह न रहे) (अमा॰19:13:1.8; 22:13:2.25)
260 चूआ (= चूआँ) (बालू के समुन्दर के चूआ के पानी कपटी अगस्त के ऊँट सोख गेल) (अमा॰28:7:2.2)
261 चेथरी (फट्टल चेथरी में कइसहूँ अप्पन इज्जत ढाँकले ही । नइहर से जे लेके अइली हल सेही पेन्हइत ही ।) (अमा॰27:10:2.2)
262 छँहुँरी (~ के छतरी बिछावऽ हो रामा) (अमा॰22:10:1.22)
263 छछकाल (= अधिकता या पर्याप्त होने का भाव; हतकाल का उलटा) (पनिआ भेल छछकाल, धान के रोपा शोभे कादो में । खेतवा पिया अँगनवा गोरिया भींगे महिनवाँ भादो में ।) (अमा॰22:17:2.15)
264 छनभंगुर (= क्षणभंगुर) (अगर कहूँ गिर जाय छूट के, बिखर जाय सब अंग टूट के । छनभंगुर एकर जीवन पर रहम करऽ कुछ तो विचार के ॥ मत छेड़ऽ सुकवार तार के ॥) (अमा॰23:11:1.16)
265 छपाय-बँधाय (किताब के जिल्द, पन्ना, छपाय-बँधाय सब्भे सुन्दर हे) (अमा॰23:10:2.18)
266 छप्पर-छानी (कोना-सान्ही में रह-रह के जे मुरझाएल हल, घर से निकस के जे छप्पर-छानी पर बइठ के छेरियाएल हल) (अमा॰21:9:1.9)
267 छरहर (गया जिला के बेलागंज के पगडंडी पर नियमित रूप से रोज सबेरे छव बजे एगो दुबर-पातर छरहर अदमी के अपने घूमइत देख सकऽ ही एगो साधारण कुर्ता-धोती में) (अमा॰25:9:1.2)
268 छान-बान्ह (आगे चलके जब मागधी व्याकरण के छान-बान्ह में पड़ गेल, तब लोक-भाषा के रूप में चलनसार बोली पालि कहाय लगल आउ ई मागधी से दिगर भाषा गिनाय लगल, बाकि मूल दुन्नो के एक्के हे) (अमा॰23:10:1.7)
269 छाल्ही (= छाली, गर्म दूध के ठंढा होने पर ऊपर जमी मलाई की परत) (सीधा सादा लोग मरइत हे, चुगला छाल्ही काट रहल हे) (अमा॰19:15:2.10)
270 छीलाना (एगो स्थानीय मेला लगऽ हे जेकर नाम हे कोचामहादे इया कोचामठ के मेला .....औरत-मरद से तो मारे देह छीला हे ।) (अमा॰22:13:2.24)
271 छेंकाना (बाँस बल्ला से सड़क भी छेंकायल हल) (अमा॰24:16:1.7)
272 छेत्र (= क्षेत्र) (वैदिक रचना के बहुत सुरूआती समय में सप्तसिन्धु छेत्र में एक तरह के बोली बोलल जा हल, तब आबादी के दोसरका छोर पर मगध में ओकरा से कुछ-कुछ भिन्न बोली बोलल जा हल) (अमा॰30:8:2.8, 30)
273 छेत्रीय (= क्षेत्रीय) (अमा॰30:9:2.25, 30)
274 छेरियाना (कोना-सान्ही में रह-रह के जे मुरझाएल हल, घर से निकस के जे छप्पर-छानी पर बइठ के छेरियाएल हल; छेरिआएल मन के गुदगुदा देलक) (अमा॰21:9:1.10, 16)
275 छो-फीटा (एक दिन थाना प्रभारी के सामने एगो स्थानीय नेता के छो-फीटा केतारी से सट्-सट् मार के कह रहलन हल) (अमा॰19:14:1.29)
276 जइसहिं (= जइसहीं) (अमा॰20:17:1.15)
277 जइसे (ओइसहिं ... जइसे) (मंथरा के अभिनय करेवाली मंगतू चाची ओइसहिं कहीं छिप गेलन हल जइसे शिकारी जानवर के सिकार करे ला झाड़ी में छिप जाहे) (अमा॰20:16:1.5, 17:1.8)
278 जइसे-तइसे (अमा॰25:21:2.6)
279 जकड़ल (बाबूजी के हम्मर शादी के चिन्ता हे जबकि भइया टीबी से जकड़ल हथ) (अमा॰23:17:2.13)
280 जजमनका (हलन तो अपने नौजवान आउ करऽ हलन अपने बाबूजी जइसन गाँव-घर में जजमनका के काम, मगर दिन माँगऽ हलन त सवे सेर आउ रात माँगऽ हलन त सवे सेर ।) (अमा॰23:7:1.4, 9)
281 जनमासा (हम रामावतार बाबू से सलाह करके आनन-फानन चार सौ रुपइया जनमासा में जाके वर के बाप के अगाड़ी में पटक देली ।) (अमा॰28:5:1.10)
282 जमानी (= जवानी) (ठुल करते हँसते कहलन जुगेसर जी -"लऽ, जमानी में तो देहाते में सुखा देलको तोरा सरकार, अब बुढ़ारी में भेज रहलो हे शहर जमनिया ।") (अमा॰29:11:2.24, 27)
283 जमावड़ा (29 अक्टूबर के हर साल अप्पन बाबूजी के इयाद में देव, औरंगाबाद में देश भर के नामी-गिरामी कवियन के जमावड़ा में भी कवि सम्मेलन के शुरुआत हम्मर मगही गीत से होवऽ हल) (अमा॰30:6:1.20)
284 जलकुम्भी (फूलल कर्मी कुमुद कमल जलकुम्भी शोभे पानी में) (अमा॰22:17:2.21)
285 जशन (= जश्न) (कोई-कोई समय अइसन घड़ी उत्पन्न हो जाहे कि अदमी के ई समझ में न आवे कि खुशी के जशन मनावल जाय कि उदासी के मातम) (अमा॰27:4:1.4, 11)
286 जात-धरम (~ के भेदभाव) (अमा॰26:10:2.3)
287 जात-परजात (जात-परजात, भुइयाँ-चमार के भेद-भाव भुला के ई सेवा में लगल रहऽ हथ; जात-परजात जान गेलन हल कि मोहन पांडे रमुनी के रख लेलन हे) (अमा॰19:13:2.27; 25:8:2.15)
288 जात-बेआदर (= जात-बेरादरी) (~ से भी गेली आउ तुहूँ न मिललें) (अमा॰25:8:2.19)
289 जातरा (= यात्रा) (अमा॰19:11:2.10)
290 जातरी (= यात्री) (गाड़ी जइसहीं आगरा टीसन पर रुकल तो एगो डिब्बा से सब जातरी उतर गेलन, खाली एगो बूढ़ी आउ जुवती बच गेल । खलहल पाके ओही डिब्बा में एगो जुवक घुस गेल आउ गाड़ी तुरते रफ्तार पकड़ लेलक ।) (अमा॰25:14:1:12)
291 जादू-टोना (लोकवार्ता के कथावस्तु वर्तमान के न होके परम्परा से आयल रहऽ हे । अइसन अवधारण लोक-विश्वास, अंध-विश्वास, रीति-रेवाज, परदरसन, लोक-नाट्य, धरम-कथा, अवदान परम्परा, लोककथा, धरम, अनुष्ठान, प्रकृति सम्बन्धी धारणा, जादू-टोना, कहउतिया, परतूक आदि हो सकऽ हे ।) (अमा॰25:13:1:17)
292 जानल-मानल (~ हिन्दी कवयित्री कुमारी राधा; नालन्दा के ~ साहित्यकार श्री शिव प्रसाद लोहानी) (अमा॰19:8:1.2; 22:11:1.1)
293 जारना, जार देना (= जलाना, जला देना) (अमा॰20:1:1.8; 24:13:1.7)
294 जाहिल (सबसे मुश्किल तो ई हे कि अगर लड़की पढ़ल हे त अफसरे हे आउ न पढ़ल हे त जाहिले हे । ओकरो पर से घर के काम-काज में निपुन हे कि न, मुँह समेट के रहेवाली हे कि न, बाप के गाँठ पूरा हे कि न । कहे के मतलब हे कि लड़की तो चाही सर्वगुणसम्पन्न । बाकि लड़का ? लड़का के पूछऽ मत । अष्टावक्र सूरत सकल वाला के भी स्वप्न सुन्दरी चाही ।) (अमा॰27:17:1.28)
295 जित्ते (जित्ते जरे के पहिले सेनुर पोंछ दे ! धनचटुआ कुत्ता के मुकुट मत पहिन !) (अमा॰24:12:1.26)
296 जिम्मे (अमा॰29:7:1.23)
297 जिरिकना (= जरिकना, छोटगर, छोटा) (जिरिकना छती में दूध खोजऽ हे) (अमा॰22:12:1.28)
298 जिरिकना (गाँव जेवार के गिरथाइन, बेटी-भतीजी मौसी दाई बहिन सब खाली घैला बगल में दबैले टुकुर टुकुर देख रहल हे, जिरिकनी, जिरिकना सब साड़ी खींच रहल हे) (अमा॰28:7:2.13)
299 जिरिकनी (गाँव जेवार के गिरथाइन, बेटी-भतीजी मौसी दाई बहिन सब खाली घैला बगल में दबैले टुकुर टुकुर देख रहल हे, जिरिकनी, जिरिकना सब साड़ी खींच रहल हे) (अमा॰28:7:2.13)
300 जीट-जाट (लइकी हथ ई पढ़ल-लिखल । जीट जाट से भरल-पुरल ॥) (अमा॰24:10:1.12)
301 जुआना (गेहुम मटर बूँट जुआयल, सबके पितुहियन गदरायल) (अमा॰20:7:1.5)
302 जुगुत (= जुकुर) (का करीं, लड़का के बिआह जुगुत एक्को मन लायक लड़कीये न मिलते हे) (अमा॰27:15:1.24)
303 जुड़वा (कहउतिया आउ परतूक में कम अंतर हे, दुन्नो लोकोक्ति साहित्य के जुड़वा बहिन हे) (अमा॰25:17:2:30)
304 जुलूस (अमा॰26:5:2.18, 19, 23, 6:1.1, 4)
305 जुवती (= युवती) (गाड़ी जइसहीं आगरा टीसन पर रुकल तो एगो डिब्बा से सब जातरी उतर गेलन, खाली एगो बूढ़ी आउ जुवती बच गेल । खलहल पाके ओही डिब्बा में एगो जुवक घुस गेल आउ गाड़ी तुरते रफ्तार पकड़ लेलक ।) (अमा॰25:14:1:13, 21)
306 जेज्जा (जेज्जा ... ओज्जे) ('पाणिनीय शिक्षा' में जेज्जा 'संस्कृत' सब्द के पहिला बार परयोग भेल हे, ओज्जे 'प्राकृत' सब्द के भी परयोग भेल हे) (अमा॰30:9:1.11)
307 जेठानी (अमा॰25:22:2.29)
308 जेहलखाना (डेग-डेग पर जेहल खाना, हाथ- हाथ में बेड़ी हे) (अमा॰26:12:2.22)
309 जोड़ना (जोड़-जाड़ के) ("केतना खरचा लग जात ?" फेनु सवाल उठयलन दरोगी जी । - "इहे कोय पच्चीस-तीस हजार ।" जोड़-जाड़ के फारे-फार समझयलन भुनेसर जी - "सबके देवे पड़ऽ हे दान-दछिना । चपरासी से लेके साहेब तक ।") (अमा॰29:12:1.33)
310 जोती (= ज्योति) (तरेगन से इंजोर के असरा कइसन ? सुरुज के जोती नियन जगमगा के जिअ ॥) (अमा॰29:15:2.10)
311 जोय (नसकट खटिया बतकट जोय, ताकर खरियत कभी न होय) (अमा॰25:17:2:25)
312 झँखना (एक साँझ खा ही त दोसर साँझ ला झँखऽ ही) (अमा॰23:16:2.24)
313 झँव (एक दू जगह लइका खोजे गेलन भी तो दहेज के फरमाइशे सुन के उनका झँव लग गेल) (अमा॰23:17:1.26)
314 झंगरी (बूँट के ~) (तनी छील के खइती हल झंगरी) (अमा॰22:7:1.16)
315 झपास (चाय पीके ऊ अप्पन 'मलाल' कविता के एक टुकड़ा सुनौलन - 'सुरता के पनसोखा बिना नागा के उगऽ हे, बाकि उपेल न कर, उल्टे झपास लगावऽ हे । ..') (अमा॰28:16:2.10)
316 झरना (= झड़ना) (ऊ हँसऽ हल त फूल झरऽ हल आउ रोवऽ हल त मोती) (अमा॰28:18:1.22)
317 झलासी (= सरपत) (तोहनी दुन्नो इसकूल में कभी न बइठे गेलऽ । कभी हम पकड़ के भेजवो कइली तो कभी घाघा में, कभी मकई आउ झलासी के झालड़ में लुका जा हलऽ !) (अमा॰30:14:2.12)
318 झाँकल (= ढँका हुआ) (औंधल के सीधा कैलन, झाँकल के खोलि देलन) (अमा॰23:15:1.18)
319 झाँझर (झाँझर कुआँ रतन फुलवारी, न बूझबें तो देबो दूगो गारी) (अमा॰25:18:1:13)
320 झाड़ू (~ मारना) (रीति-रिवाज के झाड़ू मारऽ, ई तो एक देखावा हे ।) (अमा॰26:13:2.5)
321 झालड़ (तोहनी दुन्नो इसकूल में कभी न बइठे गेलऽ । कभी हम पकड़ के भेजवो कइली तो कभी घाघा में, कभी मकई आउ झलासी के झालड़ में लुका जा हलऽ !) (अमा॰30:14:2.12)
322 झुकना (= ऊँघना) (बारह बजे दउड़ल अआवथ, दू बजे भागतन, दिन भर झुकइत रहथ थोड़ा सा पढ़यतन) (अमा॰22:7:2.28, 8:1.13, 16, 20)
323 झुनकी (बीचे-बीच सलमा-सितारा के झुनकी, आँचल में चंदा छिपाय दीहऽ, पिया हमरा के) (अमा॰24:15:1.25)
324 झुनझुन्नी (बिख उतर जाहे मगर झुनझुन्नी देर तक सतावऽ हे) (अमा॰28:15:1.30)
325 झुमका (भोजपुर के झुलनी, बनारस के झुमका, तिरहुत के काजल मँगाय दीहऽ, पिया हमरा के) (अमा॰24:15:2.23)
326 झुराना (केकर नेहिया झुरा रहल हे, केकर सिनेहिया फुला रहल हे) (अमा॰19:8:2.5)
327 झुलनी (अबकी झुलनियाँ गढ़ाय दीहऽ, पिया हमरा के) (अमा॰24:15:1.22)
328 झोलटंग (आज ले हमहूँ भला का बने के सपना न देखली - बाकि बनली कउची ? नाम के नेताजी, चमचा आउ झोलटंग ।) (अमा॰21:17:1.20)
329 झोला-झक्कर (अमा॰22:16:1.7)
330 टंटा (घर में मचल टंटा देख के ससुर जी कहलकन - "का चन्दर के माय ! तूँ सास-पुतोह मिलके हम्मर नाक कटावे के ठानले ह ! का इरादा हो तोहनी के ?"; रोज दिन के टंटा से सुगिया के जीना दुश्वार हो गेल।) (अमा॰29:13:2.15, 14:1.4)
331 टन (~ बोल जाना) (ऊ दिने दिने अंदर से अइसन टूट गेल कि दुइए महीना में ~ बोल गेल) (अमा॰21:18:1.9)
332 टनकल (एतने मे सास के टनकल अवाज आएल - "दुलहीन, कमरा में का करइत हऽ ॉ ई अराम करके कोई बखत हे ? जल्दी आवऽ, बर्तन माँजऽ, चौका पुरावऽ ।") (अमा॰29:13:1.22)
333 टरकाना, टरका देना (चन्दर के बिआह करके हम ठगा गेलूँ । दहेज में सुगिया के बाप हमरा थोड़ा नगदी देके टरका देलन ।) (अमा॰29:13:2.26)
334 टहकार (पूरनमासी के बड़का टहकार चान चमक उठल) (अमा॰25:7:1.9)
335 टास (= टास्क) (ई तो हमहूँ देखइत ही कि छुट्टी के बेरा हो गेल हे ! लेकिन पहिले कल के टास तो लिख ले ।) (अमा॰30:16:1.6, 17:2.19)
336 टिकुली (एक्को संतान न रहे से इनकर हिरदय पीड़ा के भंडार बनल हे, मगर भर हाथ चूड़ी, लिलार में टिकुली आउ ठोर पर लजायल हँसी देख के कउनो कह न सकऽ हथ कि इनकर मन दुखी हे) (अमा॰19:14:1.8)
337 टिकुली-सेनुर (हुनखर आँख तर अप्पन बाबू भतु जी के फोटो नाचे लगल जे गामे-गाम घूम के टिकुली सेनुर बेच के अप्पन गुजर बसर करऽ हलन आउ हुनखा गुरसहाय गुरुजी से पढ़वावऽ हलन) (अमा॰29:11:1.21)
338 टिकोर (= टिकोरी, टिकारा, टिकोड़, टिकोढ़, टिकोला; अमौरी) (गेहुम मटर बूँट जुआयल, सबके पितुहियन गदरायल, अयते देखऽ बौरायल अमवाँ में टिकोर के ।) (अमा॰20:7:1.8)
339 टिटकारी (टिटकारी मार-मार बैलन संग झूमत किसान ले अंगड़ाई) (अमा॰27:11:2.6)
340 टिपउर (= एक देवता, जिनके बारे में मान्यता है कि वे घर के परिवार की रक्षा करते हैं) (शक्ति ला देवी जी, बुद्धि ला सरस्वती जी, गाँव-घर के निगरानी ला गोरइया डिहवार, डाक, फूल डाक, ईशरा डाक, लहरा डाक, त घर के परिवार के रच्छा ला टिपउर, मनुस्देवा, बाबा बकतउर आउ बराहदेव हथ ।) (अमा॰22:13:1.10)
341 टिप-टिपा (संयोग से शेरवा भी धोबिया के घर के पीछे गदहवन के बीच बइठल हल आउ धोबिनिया के मुँह से 'टिप-टिपा' शब्द सुन के समझलक कि हमरा से बढ़ के भी कोई टिप-टिपा हई, जेकरा से धोबिनिया भी डेरा रहल हे । शेरवा के दिल भी टिप-टिपा के नाम से दहल गेल हल ।) (अमा॰23:8:1.16, 17, 18)
342 टिप-टिपाना (तोरा डर हउ शेरवा के । एकरा से जादे डर हमरा हे टिप-टिपा (धीरे-धीरे पानी पड़े) के ।) (अमा॰23:8:1.12)
343 टिम-टाम (ऐसे त उनकर घर के हालत सदारने हल, मगर टिम-टाम जरा बेसी समझऽ) (अमा॰27:15:1.6)
344 टूसिआना (पाँकड़-पीपर टूसिआयल हिरदा अप्पन खोल के ।) (अमा॰20:7:1.13)
345 टें टें (बुतरू ढेर रहला पर कोय रें रें कर रहल हे, तो कोय टें टें । कोय खाय ला कन रहल हे, त कोय दूध पीये लागी ।) (अमा॰24:15:1.7)
346 टेम्पू (बड़ी मोसकिल से अस्पताल से चलैत-चलैत हम घरे पहुँचली हल । न रस्ता में एक्को गो खाली रिक्शा मिलल न टेम्पू । गोड़ दुखा गेल से अलगे ; हम बेटा दिया एगो रिक्सा चाहे टेम्पू बोलवा दे हियो।) (अमा॰24:16:1.3, 18:1.15, 24)
347 टैचुन (= एक प्रकार के धान) (बाँध के बोझवा हम लायम खलिहनमा । सीता मंसुरिया आउ टैचुन नगीनमा ॥) (अमा॰30:11:1.16)
348 टैम (= टाइम) (मरुआल चेहरा लेले जब दरोगी जी घरे पहुँचलन त साँझ-बत्ती के टैम हो रहल हल ।) (अमा॰29:12:2.4)
349 टोका-टोकी (जब कवि सम्मेलन खतम भेल तो विशेष करके चार-पाँच कवि के ओर से टोका-टोकी शुरुम भे गेल ।) (अमा॰25:21:2.2)
350 ठनगन (= रूठने या जिद करने की क्रिया या भाव) (सबरहीं से लड़का हम्मर 'लेख' लिखे ला ठनगन कयले हलक त का करीं ?) (अमा॰30:18:1.13)
351 ठिसपिसाना (चन्दर ठिसपिसाल बोललक -"बाबूजी ! हमरा से गलती होल । माफ कर देथी । ..") (अमा॰29:14:2.3)
352 ठिसिआना (मार ठिठोली सभे ठिसिआवे लगलन) (अमा॰27:10:1.15)
353 ठुल (~ करना) (ठुल करते हँसते कहलन जुगेसर जी -"लऽ, जमानी में तो देहाते में सुखा देलको तोरा सरकार, अब बुढ़ारी में भेज रहलो हे शहर जमनिया ।") (अमा॰29:11:2.24)
354 ठेहुना (= टेहुना) (जाके देखली कि ऊ परसौती औरत जिनका रातहीं नन्हकी होयल हल, अप्पन बिछौना पर बैठल, ठेहुना पर मूड़ी झुकैले रो रहलथिन हल) (अमा॰24:16:2.4; 30:17:2.28)
355 ठोर (= ओंठ) (ठोर पर कोहड़ी अइसन मुसकान) (अमा॰19:11:1.3, 14:1.9)
356 डराना (= डरना) (ढेर अफसर इनका से डरैबो करऽ हथ) (अमा॰19:13:2.16)
357 डलिया (जल्दी-जल्दी सब समान एगो डलिया में इकट्ठा करके चल पड़ली) (अमा॰24:16:1.14)
358 डाक (= एक देवता, जिनके बारे में मान्यता है कि वे गाँव-घर की निगरानी करते हैं) (फूल ~, ईशरा ~, लहरा ~) (शक्ति ला देवी जी, बुद्धि ला सरस्वती जी, गाँव-घर के निगरानी ला गोरइया डिहवार, डाक, फूल डाक, ईशरा डाक, लहरा डाक, त घर के परिवार के रच्छा ला टिपउर, मनुस्देवा, बाबा बकतउर आउ बराहदेव हथ ।) (अमा॰22:13:1.8)
359 डागडरी (बेटा पढ़े में गुनगर हथन । एही से उनकर माय-बापू उनका डागडर बनावे ला चाहलन । भगवान के मर्जी से उनकर नामो डागडरी में लिखा गेल ।) (अमा॰27:15:1.4)
360 डालडा (अमा॰19:15:2.6)
361 डेरा (ऊ दुन्नो के तबियत में जब सुधार होएल तब कलुटनी आउ दोआरिक अप्पन डेरा पर लेके चल अयलन) (अमा॰20:18:1.1)
362 डेराना (= डरना) (संयोग से शेरवा भी धोबिया के घर के पीछे गदहवन के बीच बइठल हल आउ धोबिनिया के मुँह से 'टिप-टिपा' शब्द सुन के समझलक कि हमरा से बढ़ के भी कोई टिप-टिपा हई, जेकरा से धोबिनिया भी डेरा रहल हे । शेरवा के दिल भी टिप-टिपा के नाम से दहल गेल हल ।; शेरवा तो डेरायल हइए हल ।) (अमा॰23:8:1.18, 29)
363 डेराना (= डराना) (धुआँ डेरावऽ हे) (अमा॰23:11:1.19)
364 डौंघी (डौंघी पर झूला रचयले मस्तमौला पोरे-पोर) (अमा॰23:19:1.7)
365 ढकना (गाड़ी पकड़े के चक्कर में, नऽ हम कइली ~ पट, भागल अइली तब तक, कानी बिल्ली कर गेल चट ।) (अमा॰24:9:2.1)
366 ढारना (ऊ दिन नाश्ता के बाद जब चाय ढारल गेल, त ऊ बिलकुल काढ़ के रंग के लगल) (अमा॰21:7:1.4)
367 ढेलमरवा (हमरा हीं एगो देवता हथ, जिनकर भोजन एगो विचित्र चीज हे । ई देवता हथ ढेलमरवा बाबा जी । से इनकर भूख मिटऽ हे दू चार ढेला खाय पर ।) (अमा॰22:13:1.21)
368 ढेला (ई देवता हथ ढेलमरवा बाबा जी । से इनकर भूख मिटऽ हे दू चार ढेला खाय पर ।; पहुँचल सन्त महात्मा सोना-चानी के मट्टी के ढेला जरूर समझऽ हथ, मगर औसत आदमी पइसा के भूखल रहऽ हे ।) (अमा॰22:13:1.22; 28:6:2.23)
369 तइसहीं (जइसहीं … तइसहीं ) (जइसहीं उनकर बेटी जवान हो चलल तइसहीं उनकर बेटा के टीबी पकड़ लेलक) (अमा॰23:17:1.19)
370 तड़कुला (= तड़कुलारिष्ट, ताड़ी) (खाली कभी-कभी जादे कड़ा धूपवा रहऽ हई, त तेज गर्मिया में थकइनी मेटावे ला तड़कुलारिष्ट से भेंट कर लेही । लोग एकरा देहाती भाषा में ताड़ी कहऽ हथ, बाकि हे ई बहुत मजेदार चीज । अगर स्वर्ग के अमृत सुरा हे त धरती के अमृत तड़कुला हे ।) (अमा॰23:14:1.21)
371 तड़कुलारिष्ट (= ताड़ी) (खाली कभी-कभी जादे कड़ा धूपवा रहऽ हई, त तेज गर्मिया में थकइनी मेटावे ला तड़कुलारिष्ट से भेंट कर लेही । लोग एकरा देहाती भाषा में ताड़ी कहऽ हथ, बाकि हे ई बहुत मजेदार चीज । अगर स्वर्ग के अमृत सुरा हे त धरती के अमृत तड़कुला हे ।) (अमा॰23:14:1.18)
372 तड़तड़ाना (किसान पसेना से तड़तड़ाएल हल) (अमा॰20:18:1.29, 2.13)
373 तनल (फहरऽ हई धजवा हम्मर बड़ी शान से, तनल हई छतिया हम्मर एकर आन से।) (अमा॰26:1:2.2)
374 तनिमनी (= तनि-मनि) (अमा॰28:5:2.9)
375 तपावन (= दारू) (ई सब देवतन के अलग-अलग तरह के भोजन हे । माँ काली ला भईंसा, देवी जी ला पठिया, सरस्वती ला फल-फूल आउ मिष्टान्न, गोरइया आउ डाक ला खस्सी-भेंड़ा, सूअर, मुर्गा, कबूतर, टिपउर ला खस्सी-भेंड़ा आउ डाक गोरइया के तो खूनो पीए से जब तरास न जाय त अलगे से तपावन (दारू) देल जाहे, तब जाके उनकर पियास बुझऽ हे ।) (अमा॰22:13:1.16)
376 तबका (समाज के हरेक तबका के ओकर संख्या के अनुरूप उचित प्रतिनिधित्व मिलत) (अमा॰26:4:1.22)
377 तबरी (तूँ फिन धरा गेले ! तबरी तोरा मारते डण्डा के होश खराब कर देली हल ।) (अमा॰20:9:2.8)
378 तमासा (= तमाशा) (आझ-कल्ह तो सब लोग पइसा आउ पैरवी पर बतिअएबे करऽ हे । पइसा फेंकऽ, तमासा देखऽ ।) (अमा॰29:12:1.24)
379 तरसों (आज बकरी पर 'लेख' लिखे ला कह देलन, त कल घोड़ा पर, परसों हाथी पर, तरसों ऊँट पर लिखे ला कह देतन ।) (अमा॰30:19:2.3)
380 तरी (= तरह) (ई तरी डॉ॰ सिंह हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, मगही आउ बिहार के अनेक बोली-भाषा के क्षेत्र में प्रकांड विद्वत्ता प्राप्त करके ..) (अमा॰25:10:1:2, 14:1.1)
381 तलफना (बोखार से तलफइत बेटा के शरीर पर अंजलि अमझोरा के पानी रगड़ के कटोरी रखबे कैलक हल कि विंकटेश बोललक - 'बाबूजी कहिया अयतन माय .... ?') (अमा॰20:15:1.4)
382 ताकतवर (~ नेता) (अमा॰28:6:2.9)
383 ताना (बिआह के मुश्किल से दू महीना बीतल होत कि सुगिया पर ओकर ससुराल के ताना बरसना सुरू हो गेल ।) (अमा॰29:13:1.2)
384 ताल-मखाना (जनता के खून बेच-बेच के, ताल मखाना खाइत हे । सीधा जनता पहचाने नऽ, जन-नेता कहलाइत हे ॥) (अमा॰26:8:1.22)
385 ताव (आव देखना न ताव) (सुगिया का जवाब देत हल, चुप्पी साधले रहल । चन्दर आव देखलक न ताव, तड़ातड़ दू थप्पड़ सुगिया के गाल पर जड़ देलक ।) (अमा॰29:14:1.20)
386 तासीर (= असर, प्रभाव) (दूध दूध के तासीर अलग अलग होवऽ हे) (अमा॰21:8:2.5)
387 तिरपित (= तृप्त) (जिभियो जर गेल आउ पेटो न भरल । हिरदा तिरपित होवे के तो सवाले न हे ।) (अमा॰27:12:2.32, 33, 34)
388 तिरसूल (= त्रिशूल) (अमा॰19:11:1.3)
389 तिरिया (= स्त्री) (अमा॰25:22:2.30)
390 तिरोस्ती (= त्रयोदशी तिथि) (हमरा हीं से पच्छिमे दू किलोमीटर पर 'मेन' गाँव में बूढ़वा महादे हथ । उनका भिर हर साल फागुन तिरोस्ती के बिहानी होके एगो स्थानीय मेला लगऽ हे जेकर नाम हे कोचामहादे इया कोचामठ के मेला ।) (अमा॰22:13:2.20)
391 तिल (चूँटी ससरे के इया तिल रखे के भी जगह न रहे) (अमा॰22:13:2.25)
392 तीनकोना (ए भइया ! जहाँगीर पोखर वाला लमका परीया में जे तीनकोनवा दसकठवा हे से नापले न गेल हे ।) (अमा॰30:14:1.23)
393 तीसमार (जब हमरा हीं तीसमार आउ शेरमार बलवान मौजूद हथ तब सोचे के बात न हे) (अमा॰23:8:2.14)
394 तुम्माफेरी (बदली के सरकारी एलान सुन के हुनखा लगऽ हे - पढ़ाय में सुधार के नाम पर ई सब 'तुम्माफेरी' के अलावे आउ कुच्छो नयँ होवेवाला हे ।; ई सब तुम्माफेरी नयँ करतई सरकार तऽ औफिस के बाबू लोग कइसे बनतन फकीरचंद से अमीरचंद ।) (अमा॰29:10:1.7, 15, 12:1.10)
395 तेबर (तब तिलक फरमैबो, औकात से दोबर-तेबर माँगबो) (अमा॰30:11:2.12)
396 तेलही (= तेल में पकाया या छाना हुआ) (जब लइकन सब चल जाहे तब बसिया दीदी दोना में तेलही जलेबी लेके हमरा भिरे आवे हे आउ बड़ी दुलार से कहऽ हे - 'ले बउआ ! एही ला न रुसल हले ।') (अमा॰22:17:1.8)
397 तैश (चन्दर चुप रहल । सुगिया के फिन छेड़ला पर बड़ा तैश में बोललक -"तोहर मैका से हम्मर कोई सौख सरधा न मिटल । तोहर बाबूजी एगो बढ़िया टी॰वी॰, स्कूटर भी न देलथू ।") (अमा॰29:13:1.15)
398 तोहरा (= तुम्हें) (अमा॰26:14:1.4)
399 त्रिपिटक (जब ऊ मूल त्रिपिटक (बुद्ध वचन) के कुछ 'पाँति' उतारलन, तब ओकरा कहलन 'पालि' । इहाँ पर इनकर मतलब भाषा से न हल, बलुक कुछ पाँत या पाँति से हल ।; 'अट्ट कथा' से त्रिपिटक के दीगर जतावे ला भी 'पालि' सबद के बेवहार करल गेल हे; त्रिपिटक के पालि आउ अशोक के शिला-लेख के पालि में अंतर देखल जाहे, ई साबित करऽ हे कि बोल-चाल के भाषा में अन्तर होइत गेल ।; त्रिपिटक के भाषा श्रीलंका में आके धरम भाषा बनके स्थिर हो गेल, बन्धा गेल) (अमा॰23:9:1.11, 20, 2.23, 26)
400 थकइनी (= थकावट) (खाली कभी-कभी जादे कड़ा धूपवा रहऽ हई, त तेज गर्मिया में थकइनी मेटावे ला तड़कुलारिष्ट से भेंट कर लेही । लोग एकरा देहाती भाषा में ताड़ी कहऽ हथ, बाकि हे ई बहुत मजेदार चीज । अगर स्वर्ग के अमृत सुरा हे त धरती के अमृत तड़कुला हे ।) (अमा॰23:14:1.17)
401 थकल-पियासल (अमा॰25:14:2:27)
402 थकल-फेदायल (थकल फेदायल शहर से अइली हे) (अमा॰22:9:2.5)
403 थमकना (कभी तो सुगिया सोचे कि अप्पन जान दे दूँ । लेकिन आत्महत्या के पाप समझ के थमक जा हल ।) (अमा॰29:14:1.10)
404 थरिया-लोटा (सगरो से देख के हम बसिया दीदी से कहली - 'ऊ ~ लेके चल गेलउ । ओकर आस छोड़ दे ।') (अमा॰22:16:1.1, 14, 16, 29)
405 दगियाना, दगिया जाना (बेरोजगार जवान भाई के छाती कुछ नऽ कर पावे के दरद से चलनी हो गेल हे, दगिया गेल हे ।) (अमा॰24:11:2.4)
406 दफ्तर (रेल्वे टीसन, डाकघर आउ सरकारी दफ्तर पर धावा बोल देल गेल) (अमा॰26:6:2.24)
407 दब (देखे में भी लड़की दब न हे) (अमा॰27:17:1.17)
408 दरम्यान (ई तरह सउँसे मगह आउ बिहार में 'अँग्रजो भारत छोड़ो' आन्दोलन के दरम्यान 134 लोग शहीद हो गेलन, 309 लोग घायल होलन आउ 14 हजार 4 सो 78 लोग गिरफ्तार होलन) (अमा॰26:6:2.17)
409 दरसन (= दर्शन) (अमा॰20:15:1.20)
410 दरी (हम वयस्क शिक्षा के कार्यक्रम से सब के पढ़वा देम । सिलेट, पीलसीन, कापी, किताब, लालटेन आउ दरी के साथ पढ़े के आउ सब समान मिलत ।) (अमा॰30:15:2.18)
411 दवा-दारू (अमा॰28:10:2.31)
412 दसकठवा (तु॰ चरकठवा) (ए भइया ! जहाँगीर पोखर वाला लमका परीया में जे तीनकोनवा दसकठवा हे से नापले न गेल हे ।) (अमा॰30:14:1.24)
413 दसकूटक (हिन्दी के दृष्टिकूट मगही में दसकूटक के नाम से जानल जाहे । गाँव-गँवई के लोग एकर जटिलता आउ दुरूहता के कारण एकरा 'कपर कूटक' भी कहऽ हथ ।) (अमा॰25:18:1.16, 19, 2.1)
414 दहिजारा (= देहजारा) (ऊ दहिजारा हम्मर बेटा-बेटी दुन्नो के पीटते होतई) (अमा॰21:14:1.34)
415 दादागिरी (दुखिया के बेटा हम्मर दुआरी पर आके लगलक दादागिरी करे । अपनहीं कहथिन दरोगा जी ! विधवा बूढ़ी माय मजूरी करे आउ ओकर जवान बेटा रंगदारी करे, ई ठीक बात हे ?) (अमा॰20:8:1.21)
416 दान-दछिना ("केतना खरचा लग जात ?" फेनु सवाल उठयलन दरोगी जी । - "इहे कोय पच्चीस-तीस हजार ।" जोड़-जाड़ के फारे-फार समझयलन भुनेसर जी - "सबके देवे पड़ऽ हे दान-दछिना । चपरासी से लेके साहेब तक ।") (अमा॰29:12:1.35)
417 दास्तान (अमा॰20:6:1.1)
418 दिक्कत (अमा॰20:6:1.16)
419 दिगर (= पृथक्) (आगे चलके जब मागधी व्याकरण के छान-बान्ह में पड़ गेल, तब लोक-भाषा के रूप में चलनसार बोली पालि कहाय लगल आउ ई मागधी से दिगर भाषा गिनाय लगल, बाकि मूल दुन्नो के एक्के हे) (अमा॰23:10:1.9)
420 दिया (= दिका, द्वारा, के माध्यम से) (कहऽ त हम अप्पन बेटा दिया तोर घर पर खबर पेठा दियो; हम बेटा दिया एगो रिक्सा चाहे टेम्पू बोलवा दे हियो) (अमा॰24:16:2.21, 18:1.15)
421 दिल-दिमाग (सब के दिल-दिमाग में एक्के बात गूँजऽ हल कि इहाँ से हटला पर घर-परिवार के ढेरो दिक्कत के सामना करे पड़त ।) (अमा॰29:12:1.15)
422 दीगर (=दिगर, पृथक्, अलग) ('अट्ट कथा' से त्रिपिटक के दीगर जतावे ला भी 'पालि' सबद के बेवहार करल गेल हे) (अमा॰23:9:1.20)
423 दुआरपूजा (ऊ रात हम्मर बेटी के बिआह होवे वाला हल । पिरीतीभोज के बाद अठमँगरा के रसम चल रहल हल कि हजाम हमरा पास पहुँचल आउ कहलक - 'समधी साहेब कहऽ हथुन कि दहेज में चार सौ रुपइया बाकी रह गेल हे । ऊ बकिअउटा के भुगतान भेले पर वर के दुआरपूजा होयत ।') (अमा॰28:5:1.6)
424 दुखाना, दुखा जाना (बड़ी मोसकिल से अस्पताल से चलैत-चलैत हम घरे पहुँचली हल । न रस्ता में एक्को गो खाली रिक्शा मिलल न टेम्पू । गोड़ दुखा गेल से अलगे ।) (अमा॰24:16:1.3)
425 दुपहरिया (जेठ के लहलह दुपहरिया में लूक लगे के भय से लोग ओइसहीं लुकाएल हलन जइसे दिन में उल्लू लुकायल रहऽ हे) (अमा॰20:15:1.1)
426 दुमहला (घर हम्मर दुमहला हे (अमा॰21:10:1.24)
427 दुरगम (= दुर्गम) (तोर गीत के धुन दुरगम हे ।) (अमा॰23:11:1.7)
428 दुरा (ई ठीक न लगइत हे कि दुरा पर अपने के पुतोह आउ बेटा खाड़ हे) (अमा॰19:16:2.7)
429 दुर्दशा (अगर औरत बेटी जनलक तो ~, बच्चा न भेल तो ~, घर के काम में चूक भेल चाहे न भेल - हर हाल में ~, उत्पीड़न, दुत्कार) (अमा॰29:8:1.15, 16, 17)
430 दुलरी (मगही मागधी के विकसित रूप - ओकर दुलरी बड़की बेटी, सभ सत्तधारिनी आउ उतराधिकारनी हे) (अमा॰30:7:1.1)
431 दुश्वार (रोज दिन के टंटा से सुगिया के जीना दुश्वार हो गेल।) (अमा॰29:14:1.4)
432 दू (दुनिया में पइसा से नफरत करे के नाटक करेवला दू तरह के आदमी होवऽ हे । एक ऊ जे धन-दौलत से भरल हे आउ दोसर ऊ जेकरा कहिनो पइसा देखे के मौका न मिलल) (अमा॰28:6:2.20; 29:13:1.1)
433 दूबर-पातर (= दुबर-पातर) (आजे हमनी जानली कि काहे हमनी सब दूबर-पातर ही, जबकि रोज गाय के दूध पीयऽ ही) (अमा॰21:8:2.2)
434 दूर-दराज (शहरी वातावरण से दूर-दराज के गाँव में अचानक जब कोई बीमार पड़ जाहे तब न तो उहाँ डाक्टर उपलब्ध होवऽ हे न दवाई) (अमा॰29:5:2.25-26)
435 देखा-देखी (कम से कम सौ लड़की देखलन तइयो उनका कोई पसन्द न आवे । कोई के रंग गोरा हे, तो नाक तनी ओछा हे, कोई के चेहरा मन माफिक हे त खैले पीले बदन हे । हाले में फिन एक जगह देखा देखी होयल ।) (अमा॰27:15:1.21-22)
436 देने (= दन्ने) (हम गेहूँ के खेत में पानी मोड़इत हली कि गाँव देने से एगो आदमी आयल आउ हमरा सुना के बोलल) (अमा॰22:15:1.4)
437 देवता (ई तो जानल बात हे कि हमरा हीं तेंतीस करोड़ देवी देवता के कल्पना करल गेल हे) (अमा॰22:13:1.2)
438 देवर (अमा॰25:22:2.29)
439 देवी (ई तो जानल बात हे कि हमरा हीं तेंतीस करोड़ देवी देवता के कल्पना करल गेल हे) (अमा॰22:13:1.1, 7)
440 देहचोर (चलनी दूसे बढ़नी के ? पहिले अप्पन चाल सुधारे नऽ ! तोरा जइसन देहचोर दोसर कोई हो सकऽ हे ?; जहिया से घीसुआ के पुतोह अलई, तहिया से आउ देहचोर हो गेलवऽ ई दुन्नो) (अमा॰27:9:1.2; 28:9:1.8)
441 दोना (जब लइकन सब चल जाहे तब बसिया दीदी दोना में तेलही जलेबी लेके हमरा भिरे आवे हे आउ बड़ी दुलार से कहऽ हे - 'ले बउआ ! एही ला न रुसल हले ।') (अमा॰22:17:1.8)
442 दोबर (तब तिलक फरमैबो, औकात से दोबर-तेबर माँगबो) (अमा॰30:11:2.12)
443 दोसाला (= दुशाला) (पूस के दिन तो होबो करऽ हे फूस नियन । सहिए साँझ रात बुझा हे । ओकरो पर ठंढ तो अप्पन रंग जमयले रहऽ हे आउ सबके दोसाला में घुसयले रहऽ हे ।) (अमा॰29:12:2.9)
444 दौर (आखिर ऊ कउन गुनाह कैलक हे कि ओकरा पर कहर के दौर चालू हो गेल ?) (अमा॰29:13:1.6)
445 धँसोड़ना (अब पाणिनि के भी धँसोड़ के पराकृत के संस्कृत से उत्पन्न बतावे ओला कठहुज्जति लोग से कउन अनेरे माथा फोड़उअल करे ?) (अमा॰30:9:1.19)
446 धड़फड़ाना (बढ़ावन चचा जनसेवक जी के निवास पर पहुँचलन आउ धड़फड़ा के जनसेवक हरिचनर बाबू के जोर से पुकारलन) (अमा॰30:15:1.16)
447 धत् (धत् बउराहा ! दोसरा से पढ़ावे के काम न हे । एतना तो हमहूँ कर लेती । कोट कचहरी में जाही तो रजिन्दर लाल ओसीकानबीस पढ़िये दे हथ ।) (अमा॰30:14:2.25)
448 धनचटुआ (जित्ते जरे के पहिले सेनुर पोंछ दे ! धनचटुआ कुत्ता के मुकुट मत पहिन !) (अमा॰24:12:1.27)
449 धन-दौलत (दुनिया में पइसा से नफरत करे के नाटक करेवला दू तरह के आदमी होवऽ हे । एक ऊ जे धन-दौलत से भरल हे आउ दोसर ऊ जेकरा कहिनो पइसा देखे के मौका न मिलल) (अमा॰28:6:2.20)
450 धमार (~ मचाना) (रजनी के छाती पर मचयलक खूबे धमार) (अमा॰21:9:1.23)
451 धराना (= पकड़ाना) (एक औरत अप्पन साल भर के लइका के हाथ में एगो ढेला धरा के गोदी में लेलहीं कहलक) (अमा॰22:14:1.3)
452 धाँधली (परीक्षा में ~) (अमा॰24:8:2.18)
453 धाजा (= ध्वजा, झंडा) (फहरऽ हई धजवा हम्मर बड़ी शान से, तनल हई छतिया हम्मर एकर आन से।) (अमा॰26:1:2.1)
454 धारमिक (= धार्मिक) (अमा॰28:6:2.1)
455 धिराना, धिरा देना (सास तो सास, इनकर बाउजियो धिरा देलथिन हल कि अबकियो अगर बेटी होतउ त ओनहीं रह जइहें) (अमा॰24:17:1.7)
456 धुआँ-धुकुर (केतना ~ हे इहाँ, चेहरा साफ न देखऽ ही) (अमा॰19:17:2.7)
457 धुकचुक (खा-पी के, देख-सुन के जे गेलन, त महीनो चुप्पी लगा गेलन । उधर लड़की वाला के धुकचुक होइत हे । बहुत पूछे-पाछे पर एगो चिट्ठी दे देतन चाहे टर्र से रुठायल नियर बोल देतन, 'अभी हमनी आउ लड़की देखम', चाहे, 'हमरा लड़की पसन्द न हे ।') (अमा॰27:16:1.2)
458 धुकधुक्की (धुकधुक्की समा गेल हुनखर मन में । ओजा से हड़बड़ाल पहुँचलन हेडसर के औफिस में आउ हाथ जोड़ के पूछलन - 'हमरा ला कउन आदेश हे सिरीमान ?') (अमा॰29:10:2.1)
459 धुमछकड़ी (देखऽ ह न भुनेसर जी के ? पगार ले हथ मास्टरी के आउ नेता बन के घूमल चलऽ हथ । इसकूल तो जइसे हुनखर बइठका हे । लड़कन के पढ़ाई जाय भाड़ में । हुनखर कउची बिगड़ेवाला हय ? अइसन में मास्टर लोग के अब धुमछकड़ी छोड़वा देत सरकार ।) (अमा॰29:11:1.5)
460 धूर (जेकरा एक्को धूर जमीन न हे उनको पचीस हजार चाहीं) (अमा॰24:6:1.4)
461 धेआन (= ध्यान) (अमा॰20:6:1.24, 15:1.17)
462 धोधा (अपने धोधा मुरुख रह के, बुतरुन के बनइलऽ बंगटा, की पर घमंड कइले ह अब तक, बुतरुन भी पछतइतो ।) (अमा॰23:20:1.12)
463 न (तोरा कउनो दिक्कत न न होतउ ?) (अमा॰30:16:1.22)
464 नगाड़ा (अमा॰25:22:2.6)
465 नगीना (= एक प्रकार के धान) (बाँध के बोझवा हम लायम खलिहनमा । सीता मंसुरिया आउ टैचुन नगीनमा ॥) (अमा॰30:11:1.16)
466 नजाइज (= नाजायज) (कम-से-कम हमनी के किसान जइसन जान-परान लगाके मेहनत तो न न करे पड़ऽ हे । हमनी के गरीबी आउ सीधई से दोसर कोई नजाइज फैदा तो नहिये उठावऽ हे ।) (अमा॰27:9:1.16)
467 नफरत (दुनिया में पइसा से नफरत करे के नाटक करेवला दू तरह के आदमी होवऽ हे । एक ऊ जे धन-दौलत से भरल हे आउ दोसर ऊ जेकरा कहिनो पइसा देखे के मौका न मिलल) (अमा॰28:6:2.19)
468 नसकट (नसकट खटिया बतकट जोय, ताकर खरियत कभी न होय) (अमा॰25:17:2:24)
469 नाँगट (= नंगा) (तोहरे अँखिया के सामने द्रौपदी के नाँगट कर देलै भरल सभा में आर तों मुरी गोंत के चुपचाप बैठल टुकुर-टुकुर देखैत हला) (अमा॰21:11:1.20)
470 नागा (= चल रहे काम या प्रक्रिया का बीच में बन्द पड़ जाना) (चाय पीके ऊ अप्पन 'मलाल' कविता के एक टुकड़ा सुनौलन - 'सुरता के पनसोखा बिना नागा के उगऽ हे, बाकि उपेल न कर, उल्टे झपास लगावऽ हे । ..') (अमा॰28:16:2.9)
471 नाती-पोता (नेताजी के स्वर्ग मिलल हे, खुश हे उनकर नाती पोता) (अमा॰26:12:2.6)
472 निकासना (= निष्कासित करना, निकालना) (दरोगी जी अउचक्के पानी में से निकासल मछली नियन तड़फड़ाय लगलन ।) (अमा॰29:12:2.28)
473 निनटाना (= निपटाना) (एक बार सरकारी काम-काज जल्दी से निनटावे ला जनसेवक लोग के मिटिंग हो रहल हल) (अमा॰19:12:1.22)
474 निन्दायल (= निनारू) (तो जरूर निन्दायल में तोरा सबके बतयले होयम) (अमा॰23:13:2.29)
475 निमकी (बसिया दीदी बजार से आयल हे, सब लइकन घेर लेलन, सबके कुछ न कुछ निमकी चाहे लकठो मिल रहल हे) (अमा॰22:17:1.6)
476 निम्मन (= नीमन) (अमा॰26:10:1.7)
477 निरनय (= निर्णय) (अमा॰20:17:1.14)
478 निरभर (= निर्भर) (अमा॰24:14:2.27, 30)
479 निरविवाद (= निर्विवाद) (अमा॰30:8:1.5)
480 निरोता (~ करके बाँधना) (अइसने एक शाम के ओढ़नी ओढ़ावल गाय लैलक आउ झाड़ में ~ करके बाँध देलक) (अमा॰21:7:2.13)
481 निलज्ज (= निर्लज्ज) (तइयो हम एतना ~ ही कि हम्मर पाँव कबर के तरफ बढ़बो न कैलक हे) (अमा॰21:18:2.4)
482 निशा (= निसा, नशा) (तब कउन चीज के निशा अपने के लग जाहे कि इसकुलिवा में आविते नीन्द में सुत जाही ?) (अमा॰23:14:1.14; 28:14:2.24)
483 निसखोर (= नशाखोर) (हम्मर बाप-माई के आँख फूटल हलई, ओही से हमरा निसखोर के बाँध देलक) (अमा॰21:14:1.24)
484 निहछल (= निश्छल) (~ बहइत गंगा) (अमा॰19:17:2.4; 25:23:2.22)
485 नेटल (= लेटल; कीचड़, धूल आदि में सना हुआ) (एक ला सुन्दर महल अटारी, बेड-रूम औ बाथ-रूम हे। एक के सुतल मुँह पर सुअर झाड़इत अपन नेटल दुम हे ॥) (अमा॰26:7:2.12)
486 नेतागिरी (= नेतृत्व) (पुनपुन हाई स्कूल के एगो टोली रामगोविन्द सिंह के नेतागिरी में पटना टीसन पर उतरल आउ सचिवालय जाए वला जुलूस में मिल गेल; नौ अगस्त के मोकामा में जगलाल चौधरी के नेतागिरी में एगो सभा आयोजित होल) (अमा॰26:6:1.3, 19)
487 नेव (= नींव) (देख बुधिया ! सच बात तो ई हे कि जहिया से तूँ हम्मर घर में अयले हें, तहिये से ई खनदान में बेवस्था के नेव पड़ल हे ।) (अमा॰27:8:2.13)
488 नौकरियाहा (नौकरियाहा लोग से नौकरी आउ वकील लोग से वकालत छोड़ देवे के अनुरोध कैलन) (अमा॰26:6:1.15)
489 पकिया (बंधन भी कच्चा सूत के न हल बलुक पकिया रेशम के धागा के ।) (अमा॰30:5:2.2)
490 पगार (= वेतन) (देखऽ ह न भुनेसर जी के ? पगार ले हथ मास्टरी के आउ नेता बन के घूमल चलऽ हथ । इसकूल तो जइसे हुनखर बइठका हे ।) (अमा॰29:11:1.1)
491 पछाहीं (= पाश्चात्य) (पछाहीं विद्वान लोग के मत भी एक न हे) (अमा॰23:9:2.8, 19)
492 पछिया (दिसम्बर के पिछला सप्ताह बीत रहल हल । ... पछिया के झोंका से दिनो में शरीर काँपित हल ।) (अमा॰22:15:1.2)
493 पट्टा (इजारा-पट्टा) (कलुटनी के शादी में सब खेती इजारा-पट्टा हो गेल) (अमा॰20:15:2.1)
494 पठिया (ई सब देवतन के अलग-अलग तरह के भोजन हे । माँ काली ला भईंसा, देवी जी ला पठिया, सरस्वती ला फल-फूल आउ मिष्टान्न, गोरइया आउ डाक ला खस्सी-भेंड़ा, सूअर, मुर्गा, कबूतर, टिपउर ला खस्सी-भेंड़ा आउ डाक गोरइया के तो खूनो पीए से जब तरास न जाय त अलगे से तपावन (दारू) देल जाहे, तब जाके उनकर पियास बुझऽ हे ।) (अमा॰22:13:1.12)
495 पड़ोरना (चन्नन से पड़ोरल तोहर इयाद) (अमा॰19:9:1.9)
496 पतरिका (= पत्रिका) (साहितिक ~) (अमा॰28:11:2.3, 7)
497 परकिरिया (= प्रक्रिया) (अमा॰26:12:2.10)
498 परगट (= प्रकट) (एकरा से साफ परगट हो जाहे कि खुद्दे पाणिनि भी पराकृत के अधिक पराचीन नऽ, त कम-से-कम संस्कृत के साथे-साथ ओकरो आद्य उत्पत्ति तो जरूरे सकारलका हे) (अमा॰30:9:1.16)
499 परचलित (= प्रचलित) (अमा॰28:6:1.30; 30:8:1.1, 3)
500 परचार (= प्रचार) (पालि के परचार श्रीलंका में कलिंग वासी लोग के परभाव वश भेल) (अमा॰23:9:2.28; 30:9:2.23)
501 परजा (= प्रजा) (कुछ दिन के बाद राज दरबार में परजा के तरफ से शिकायत आयल कि गाँव में रात में एगो शेर आवे हे) (अमा॰23:7:2.19, 22)
502 परतच्छ (= प्रत्यक्ष) (अमा॰30:7:2.21)
503 परतिगेया (सुनऽ नगेसर आउ परमेसर ! हम जब खतिआन पढ़ाएब तो तोरे लोग से । ई हम्मर परतिगेया हो गेल, आउ ई तब पूरा होयत जब तोहनी करीवा अच्छर जान लेबऽ आउ तोहनी के आँख में इंजोर होएत ।) (अमा॰30:15:1.2)
504 परभावित (= प्रभावित) (अमा॰25:22:1.25)
505 परभुताई (अमा॰25:21:2.13)
506 परमान (= प्रमाण) (अमा॰30:7:2.27)
507 परसंसा (= प्रशंसा) (ऐतरेय ब्राह्मण में ऊ लोग के गायकी के परसंसा-बड़ाई कयल गेल हे) (अमा॰30:8:2.3)
508 परसों (= परसुन, परसूँ) (अमा॰30:19:2.3)
509 परसौती (= परसउती, प्रसूति) (जाके देखली कि ऊ परसौती औरत जिनका रातहीं नन्हकी होयल हल, अप्पन बिछौना पर बैठल, ठेहुना पर मूड़ी झुकैले रो रहलथिन हल) (अमा॰24:16:2.3, 17:1.22)
510 परहे साल (= परसाल) (~ जइसन ई साल भी ढेर रचना (कविता, कहानी, लेख) आयल ) (अमा॰24:4:2.19)
511 पराकृत (= प्राकृत) (अमा॰30:9:1.3, 6)
512 पराचीनतम (= प्राचीनतम) (अमा॰30:8:1.6, 7)
513 परादेसिक (= प्रादेशिक) (अमा॰30:9:2.26, 30)
514 परान (= प्राण) (अमा॰27:5:1.19)
515 परिवरधित (= परिवर्द्धित) (अमा॰30:7:2.9)
516 परीत (मगही के हर एक विधा में मजगर रचना भेल; सबसे मजगर तो हल विजय जी के गजल - हाल अछते परीत हो गेली ।) (अमा॰26:15:2.29)
517 परुई (धनमा के काट के परुइया लगैबई । बाल-बच्चे मिल-जुल के आँटी अँटिऐबई ॥) (अमा॰30:11:1.11)
518 पलरना (हम चौड़ा अँगना में पलर के नया नया सपना बुनइत रहम आउ हम्मर माय-बाप करजदार के करज अदा करित-करित अपना के फकीर बना देतन) (अमा॰23:17:2.21)
519 पलान (= प्लान) (अक्सर बिहान होवे के पहिलहीं पलान बन जा हल कि कल का करे के हे ।; एतना बड़का पलान तो तनिके सा में बना देलऽ बाबूजी, बाकि पढ़म कइसे आउ केकरा से ?) (अमा॰28:17:1.25; 30:15:1.9)
520 पल्ले ("तऽ एतना पइसा हे कहाँ हम्मरा पल्ले ?" दरोगी जी अप्पन लचारी सुनयलन ।) (अमा॰29:12:1.37)
521 पसंगा (जउन 'पाटलीपुत्र' के बारे में ह्वेनसांग आउ फाहियान दुनिया के सबसे जादे सभ्य, सुसंस्कृत आउ सुन्दरतम नगर के रूप में बखान करलन हे, आज के पटना तो ओकर पसंगो में न हे) (अमा॰22:4:2.7)
522 पहुँचल (पहुँचल सन्त महात्मा सोना-चानी के मट्टी के ढेला जरूर समझऽ हथ, मगर औसत आदमी पइसा के भूखल रहऽ हे) (अमा॰28:6:2.22)
523 पाँकड़ (पाँकड़-पीपर टूसिआयल हिरदा अप्पन खोल के ।) (अमा॰20:7:1.13)
524 पाँजा (बूँट के ~) (लावऽ हली बूँट के पाँजा, कचहरी में रखवावऽ हल, लड़कन बुतरू देखते रह जा हल) (अमा॰22:7:1.11)
525 पान (= पाँच) (एही से तो ऊ आम रास्ता पर अप्पन आसन जमौले हथ कि हजार-पान सौ ढेला रोज मिल जात, त चलऽ अप्पन भूखल लहालोट मिजाज एकदम शांत हो जात; जहाँ पल्ले में खाए के पैसा न हे, उहाँ चार-पान सो रुपैया केसे भरइतई ?) (अमा॰22:13:2.9; 24:17:2.22)
526 पारी (लमका परीया/परिया में) (ए भइया ! जहाँगीर पोखर वाला लमका परीया में जे तीनकोनवा दसकठवा हे से नापले न गेल हे ।) (अमा॰30:14:1.24)
527 पालि (ढेर लोग के मन में मागधी भाषा आउ पालि भाषा के लेके कइएक सवाल उठऽ हे । मागधी आउ पालि में का संबंध हे ?) (अमा॰23:9:1.1, 3, 4, 9, ..., 2.1, 10, 13, 14)
528 पित-पिताल (भूखल-छछनइत आउ पित-पिताल हालत) (अमा॰22:13:2.13)
529 पितुहा (= पितुरा; छेमी या डेढ़ी/ डीड़ी जिसके दाने पुष्ट न हुए हों) (गेहुम मटर बूँट जुआयल, सबके पितुहियन गदरायल) (अमा॰20:7:1.6)
530 पिपरी (चूँटी-पिपरी; अखरी-पिपरी) (अमा॰19:13:1.8; 26:6:1.6; 29:15:2.3)
531 पियाँक (~ लोग के संख्या तो रोज रोज बढ़तहीं जा रहलई हे) (अमा॰21:14:1.3; 28:11:1.2)
532 पियाज (बुधिया मट्टी के थरिया में कुछ रोटी आउ पियाज रख के चल जाहे) (अमा॰27:8:2.22)
533 पियास (ई सब देवतन के अलग-अलग तरह के भोजन हे । माँ काली ला भईंसा, देवी जी ला पठिया, सरस्वती ला फल-फूल आउ मिष्टान्न, गोरइया आउ डाक ला खस्सी-भेंड़ा, सूअर, मुर्गा, कबूतर, टिपउर ला खस्सी-भेंड़ा आउ डाक गोरइया के तो खूनो पीए से जब तरास न जाय त अलगे से तपावन (दारू) देल जाहे, तब जाके उनकर पियास बुझऽ हे ।) (अमा॰22:13:1.17)
534 पिराना (= पीड़ा करना, दर्द होना) (इया ढेलमरवा बाबा जी ! एकरा अपने नियन ~ कर देहूँ कि हम्मर बाबू के अंगुरी भी न पिराय) (अमा॰22:14:1.8; 27:10:1.6)
535 पिरीतीभोज (= प्रीतिभोज) (ऊ रात हम्मर बेटी के बिआह होवे वाला हल । पिरीतीभोज के बाद अठमँगरा के रसम चल रहल हल कि हजाम हमरा पास पहुँचल आउ कहलक - 'समधी साहेब कहऽ हथुन कि दहेज में चार सौ रुपइया बाकी रह गेल हे । ऊ बकिअउटा के भुगतान भेले पर वर के दुआरपूजा होयत ।') (अमा॰28:5:1.2)
536 पीलसीन (= पिलसुट; पेंसिल) (हम वयस्क शिक्षा के कार्यक्रम से सब के पढ़वा देम । सिलेट, पीलसीन, कापी, किताब, लालटेन आउ दरी के साथ पढ़े के आउ सब समान मिलत ।) (अमा॰30:15:2.17)
537 पुन्न (= पुण्य) (अरे दुनिया में आदमी एतना दान-पुन्न करऽ हे । ई भी पुन्ने के काम समझ के कर देहूँ ।) (अमा॰24:18:1.9)
538 पेठाना, पेठा देना (कहऽ त हम अप्पन बेटा दिया तोर घर पर खबर पेठा दियो) (अमा॰24:16:2.22)
539 पेनी (= पेंदी) (कराही के पेनी) (अमा॰21:16:2.19)
540 पैरवी (आझ-कल्ह तो सब लोग पइसा आउ पैरवी पर बतिअएबे करऽ हे । पइसा फेंकऽ, तमासा देखऽ ।) (अमा॰29:12:1.24)
541 पोथा (इंगुर के पोथा न भुलिहऽ सजनवाँ !) (अमा॰24:15:1.30)
542 पोर (घर के काम करे में हम्मर दुखइत हे पोरे पोर) (अमा॰21:8:1.20)
543 पोरिस (विनोबा जी सैकड़न गाँव में हजारो कुइयाँ बिना कमीसन लेले खनवा देलन, सैकड़ो बोरिंग धँसवा देलन आउ काम के बदले अनाज स्कीम के तहत कहुँ रोड पास करवा देलन तो कहुँ अहरा पर भर पोरिस मटियो देवा देलन) (अमा॰19:12:1.4)
544 प्रतच्छ (= प्रत्यक्ष) (अमा॰30:7:2.23)
545 फकीरचंद (ई सब तुम्माफेरी नयँ करतई सरकार तऽ औफिस के बाबू लोग कइसे बनतन फकीरचंद से अमीरचंद ।) (अमा॰29:12:1.12)
546 फजीहत ('हम्मर घर के औरत तो भुइयाँ में बैठे हे, हमरा अफसर नऽ, घर गृहस्थी लायक बहू चाही ।' सुन के बाप तो सन्न रह गेल । बाद में बड़ी मुश्किल से फजीहत करके ऊ लड़की के बिआह होल ।) (अमा॰27:17:1.25, 2.20)
547 फटाफट (हम्मर सवाल के जवाब फटाफट दिहऽ ।) (अमा॰23:11:2.20)
548 फनइला (बदली के बाते सुन के मुँह कसइला हो जा हल उनखर, जइसे कोय उनकर मुँह में फनइला ठूस देलक होत ।) (अमा॰29:10:1.5)
549 फफकना (फफक-फफक के रोना) (अमा॰29:13:1.21)
550 फर (कोमल पत्ती साग टमाटर फरवा शोभे डाली के) (अमा॰22:17:2.5)
551 फर-फर (फर-फर बतवा करऽ हई असमान से) (अमा॰26:1:2.11)
552 फरमाइश (अमा॰20:15:1.26; 25:21:2.15)
553 फरमाइशी (सोना में सोहागा ई भेल कि श्रोता के प्रश्न के उत्तर भी देलन आउ फरमाइशी लोकगीत भी सुनयलन) (अमा॰26:15:2.7)
554 फरमान (हाथ में आल सरकारी औडर दरोगी जी के फाँसी के फरमान बुझा रहल हल ।) (अमा॰29:11:1.15)
555 फरियाद (ऊ हुनखर घर-दुआर तो सम्हारवे कैलक, बाल-बच्चा नयँ होवे के बादो कभी कोय मान-मनौती इया फरियाद केकरो से नयँ कयलक) (अमा॰29:11:2.7)
556 फाँकाकसी (मेहनतकस के उचित मजूरी कहाँ मिलऽ हे ? दू अदमी के मेहनत के मजूरी में जमीन असमान के फरक हे । एक आदमी न अधिक सारीरिक मेहनत करऽ हे, न अदिक मानसिक, फिर भी ओकर आमदनी हर महीना लाख रुपइया हे, जबकि बिहने से साँझ तक खटे वाला मजूर के पास फाँकाकसी हे ।) (अमा॰28:6:1.1)
557 फाँय-फाँय (जब कुइयाँ के निकट अयलन त देखऽ हथ कि एगो नौजवान सब चोर के मार के अपने ~ सुतल हे) (अमा॰23:7:2.10)
558 फाग (देवरा ननदी खेलई ~, टहके रंगवा घोर के) (अमा॰20:7:1.19)
559 फाड़े-फाड़ (= फारे-फार; विस्तृत रूप से, नुक्ता-दर-नुक्ता) (हाथे पर ~ हिसाब जोड़वा दे हलन दरोगी जी) (अमा॰29:10:1.14)
560 फारे-फार ("केतना खरचा लग जात ?" फेनु सवाल उठयलन दरोगी जी । - "इहे कोय पच्चीस-तीस हजार ।" जोड़-जाड़ के फारे-फार समझयलन भुनेसर जी - "सबके देवे पड़ऽ हे दान-दछिना । चपरासी से लेके साहेब तक ।") (अमा॰29:12:1.34)
561 फिराक (गाम के लोग दिनभर खटला के बाद अप्पन-अप्पन घर में पहुँच के खाय आउ सुते के फिराक में हलन ।) (अमा॰29:12:2.6)
562 फुटल-कउड़ी (फुटलो-कउड़ी भर न सोहाना) (अमा॰28:11:2.25)
563 फुनगी (अमा॰20:15:2.10; 21:9:1.2)
564 फुफुआना (भ्रष्टाचार के अजगर फुफुआ रहल हे) (अमा॰22:12:1.11)
565 फुर्र-फुर्र (लावऽ, खतिआन दऽ ! जनसेवक जी से पढ़वा लाऊँ । ओहु तो कैथी हिन्दी जानवे करऽ हथी । हिन्दी के अलावे ऊ रंगरेजीओ फुर्र-फुर्र पढ़ दे हथी ।) (अमा॰30:14:2.24)
566 फुलझड़ी (हम्मर ठाँव तो सगरो धैल हे सावन के फुलझड़िया रे ।) (अमा॰24:1:1.3)
567 फुलाना (फरे न फुलाए, एक सूप रोज निकले ।) (अमा॰25:18:1.15)
568 फूल डाक (= एक देवता, जिनके बारे में मान्यता है कि वे गाँव-घर की निगरानी करते हैं) (शक्ति ला देवी जी, बुद्धि ला सरस्वती जी, गाँव-घर के निगरानी ला गोरइया डिहवार, डाक, फूल डाक, ईशरा डाक, लहरा डाक, त घर के परिवार के रच्छा ला टिपउर, मनुस्देवा, बाबा बकतउर आउ बराहदेव हथ ।) (अमा॰22:13:1.8)
569 फेंटुआ (घी तेल डालडा फेंटुआ बिक गेल) (अमा॰29:6:2.13; 30:8:2.11)
570 बंगटा (अपने धोधा मुरुख रह के, बुतरुन के बनइलऽ बंगटा, की पर घमंड कइले ह अब तक, बुतरुन भी पछतइतो ।) (अमा॰23:20:1.12)
571 बइठकी (पहिले पहल 14 फरवरी 1977 वाली पटना कालेज मगही बइठकी में उनकरे साते हम गेली हल) (अमा॰28:15:1.15)
572 बउराना (देख देख धनमा के मनमा बउरायल । कटनी के धुन हम्मर मन में समायल ॥) (अमा॰30:11:1.13)
573 बकतउर (बाबा ~) (= एक देवता, जिनके बारे में मान्यता है कि वे घर के परिवार की रक्षा करते हैं) (शक्ति ला देवी जी, बुद्धि ला सरस्वती जी, गाँव-घर के निगरानी ला गोरइया डिहवार, डाक, फूल डाक, ईशरा डाक, लहरा डाक, त घर के परिवार के रच्छा ला टिपउर, मनुस्देवा, बाबा बकतउर आउ बराहदेव हथ ।) (अमा॰22:13:1.10)
574 बकसना (जान ~) (दोहाई सरकार ! हम्मर जान बकस देवल जाय ।) (अमा॰21:14:1.19)
575 बकिअउटा (ऊ रात हम्मर बेटी के बिआह होवे वाला हल । पिरीतीभोज के बाद अठमँगरा के रसम चल रहल हल कि हजाम हमरा पास पहुँचल आउ कहलक - 'समधी साहेब कहऽ हथुन कि दहेज में चार सौ रुपइया बाकी रह गेल हे । ऊ बकिअउटा के भुगतान भेले पर वर के दुआरपूजा होयत ।') (अमा॰28:5:1.5)
576 बकोटना (... जइसे कउनो अगिन हम्मर करेजा बकोट रहल हे; सउँसे देहिया धरके जइसे बकोट रहल हे) (अमा॰19:9:1.11; 22:6:2.20)
577 बखानना ("बस नामे के हो शहर जमनिया । ऊ तो पूरा इन्टीरियर इलाका हो ।" अप्पन गिआन बखानते कहलन भुनेसर जी - "पनियो-बिजली के समस्या हो हुआँ ।"; जब उदवास बरदास्त से बाहर हो गेल तो सुगिया से न रहल गेल । दोसरे रोज ऊ चुपचाप मयका भाग आल आउ सब बात अप्पन माय-बाप से बखानलक ।) (अमा॰29:12:1.2, 14:1.24)
578 बखिया (~ उधेरना) (अमा॰19:12:2.4; 25:16:2.6)
579 बग-बग (बग-बग लुगवा के जइसे फहरा के, चलऽ हई कनियावाँ बल खाके, अगरा के, ओइसहीं झूमे मस्ती से लहरा के ।) (अमा॰26:1:2.8)
580 बछर (= बच्छर) (कई बछर तक महान क्रांतिकारी, समाजवादी नेता अमर शहीद जगदेव बाबू के साथ समाजवाद ला काम करे ओला ई बेकति दरअसल में डॉ॰ राम प्रसाद सिंह हथ) (अमा॰25:9:1.13, 21)
581 बजवइया (मत छेड़ऽ सुकवार तार के ॥ नया साज, लय तोर पुराना, बजवइया तूँ ह अनजाना । अहह, कील अइसे मत अइंठऽ, का पइबऽ एकरा बिगाड़ के ॥) (अमा॰23:11:1.3)
582 बतकट (नसकट खटिया बतकट जोय, ताकर खरियत कभी न होय) (अमा॰25:17:2:25)
583 बतकुच्चन (केकरो से बतकुच्चन करे घड़ी समझदार सरोता अनजान आदमी से कहऽ हथ - 'भाई ! इनका से बहस मत करऽ । ई काँके रिटरन हथ ।'; अब ई सोलह साल के उमर लेके केतना बतकुच्चन आउ माथापच्ची करल जाय) (अमा॰19:11:2.12; 27:17:2.9)
584 बतास (अंधड़ बतास बुन सब सहल हे जिनगी) (अमा॰22:18:2.4)
585 बथानी (गइया के घुँघरू, घंटी बैला के बजे बथानी में) (अमा॰22:17:2.20)
586 बदबूदार (अमा॰19:12:2.9)
587 बदलाव (दू महीना बीते के कुछ रोज पहिले तक अइसन बात तो घटित न होल । अचानक ई बदलाव कइसे आ गेल । सुगिया सोच में पड़ गेल ।) (अमा॰29:13:1.9)
588 बधार (खेत-बधार) (जब एकर मइया हमरा डाँटे लगल तब हम हार के बधार में जाके बकरी ले अइली ।) (अमा॰30:18:1.15)
589 बनरी (ई बेचारी के बनरिया नियन नचयते रहऽ हथ) (अमा॰19:13:2.25)
590 बन्हना (बन्हल) (लोक संस्कृति के जड़ी में एही तत्व बइठल मिलऽ हे जेकरा से जात, समूह इया देश एक धागा में बन्हल रहऽ हे) (अमा॰25:12:2:19)
591 बरजोर (रात भर जागल, निंदिया से मातल, अँखिया खुलल बरजोर ।) (अमा॰25:22:2.28)
592 बरबखत (बात 1985 के हे । हम ओती घड़ी एम॰ए॰ के विद्यार्थी हली । हम ओकर दू-तीन बरिस पहिलहीं से डॉ॰ राम प्रसाद सिंह के सम्पर्क में रह के मगही में लिखे-पढ़े के प्रेरणा पा रहली हल । डॉ॰ साहेब के बरबखत हमरा पर ध्यान रहऽ हल ।) (अमा॰25:21:1.5)
593 बराहदेव (= एक देवता, जिनके बारे में मान्यता है कि वे घर के परिवार की रक्षा करते हैं) (शक्ति ला देवी जी, बुद्धि ला सरस्वती जी, गाँव-घर के निगरानी ला गोरइया डिहवार, डाक, फूल डाक, ईशरा डाक, लहरा डाक, त घर के परिवार के रच्छा ला टिपउर, मनुस्देवा, बाबा बकतउर आउ बराहदेव हथ ।) (अमा॰22:13:1.10)
594 बराहिल (करऽ हल रोज तबाही, अइसन हल जमींदारी । जब बेचे जा हली तरकारी, बराहिल आके करऽ हल गोहारी ।) (अमा॰22:7:1.4)
595 बरिआर (= बरियार) (काल से बरिआर कउन होवऽ हे ! 'हिल्ले रोजी, बहाने मउअत ।') (अमा॰28:16:2.4)
596 बरियार (= बलवान, मजबूत) (तनि देखऽ ही कि मेहरारू के पाटेवला कइसन बरियार मरद हई एकर) (अमा॰21:15:2.7; 29:4:1.20)
597 बसरते (= बशर्ते) (अमा॰24:14:2.9)
598 बस्ता (माहटर: (झुकइते बोलऽ हथ) बस्ता बस्ता कउची कयले हें ? हटाव ओन्ने बस्ता !) (अमा॰22:8:1.20, 21)
599 बहिन (= बहन) (नारी उत्थान पर व्याख्यान देवे वला नेता लोग के घर के भीतर झाँकला पर पता चलऽ हे कि उनकर पत्नी आउ बहू के हालत भी ओतने दयनीय हे, जेतना एगो आम आदमी के बेटी-बहिन के; कहउतिया आउ परतूक में कम अंतर हे, दुन्नो लोकोक्ति साहित्य के जुड़वा बहिन हे (अमा॰24:4:1.21; 25:17:2:30)
600 बहिरसी (= बहरसी, बाहर) (हाकिम अप्पन चपरासी से बोललन - 'भीखू अभी बहिरसिये जाके बइठऽ ।'; भीखू जब बहिरसी इकसल त कलुआ चपरासी टोक देलक) (अमा॰21:18:2.11, 15)
601 बाँझिन (अनगिन पापियन के पापवा पखारलऽ, बाँझिन के कयलऽ लरकोर ।) (अमा॰29:9:1.20)
602 बाँस-उँस (लोग ~ भी काटइत हथिन । खाली बजार से कफन लावे ला बाकी हई ।) (अमा॰28:10:2.7)
603 बाघिन (ओकरा बाघिन, साँपिन, पैनी-छुरी, विष के बेली आदि विशेषण देके निन्दा के भागी भी बना देलक) (अमा॰29:7:2.17)
604 बाती (दीया के ~) (अमा॰30:12:2.16)
605 बाना (= भेष, पोशाक) (गोर एकहरा बदन, मोट-झोंट खादी के कुरता-धोती, पैर में सधारण चप्पल - एही उनकर बाना हल) (अमा॰28:15:1.11)
606 बापुत (ई दुन्नो बापुत के एही काम हे । मटर चाहे आलू दोसर के खेत में से कबाड़ के लयलन आउ भून-भान के खा गेलन ।) (अमा॰28:7:1.26)
607 बारना (= जलाना) (भगवान ऊपरे से टौर्च बार के देखऽ हथ कि कउन पोखरा पानी से भरल हे आउ कउन अभी बरे ला बाकी हे ।) (अमा॰23:12:1.8)
608 बाल्टी (उहाँ एगो कुइयाँ पर बाल्टी रखल देखलन तो सोचलन कि आज एक लिट्टी खा लेही) (अमा॰23:7:1.24)
609 बिआहना (बिआहल बेटी के कब तक घर में रखबऽ ?) (अमा॰20:16:1.28)
610 बिख (= विष) (बिखिया भरल देखऽ बन के नगिनियाँ, डँसे लागी हमनी के चलल किरिनियाँ) (अमा॰22:10:1.24; 28:15:1.30)
611 बिया (= बीज) (फूट के ~ डालना; जइसन बिया बुनवऽ ओइसने फसल होतो) (अमा॰19:15:2.8; 24:17:1.14)
612 बिरिछ (= वृक्ष) (अमा॰25:23:1.27)
613 बिलमना (= विराम करना) (कहाँ जइबे बूँदा पड़े पर गरमी के लहरिया रे ? तोहर ठाँव तो कहुओं न हउ कहाँ तूँ बिलममे रे ?) (अमा॰24:1:1.2)
614 बिलल्ला (= बिलेला) (अरे जौन परसौती के ई घड़ी सेवा टहल चाही, दूध हलुआ चाही, पुष्टई चाही, ऊ ई घड़ी खाए-खाए बिनु बिलल्ला हो रहलथिन हल) (अमा॰24:17:1.24)
615 बिहानी (= बिहान) (हमरा हीं से पच्छिमे दू किलोमीटर पर 'मेन' गाँव में बूढ़वा महादे हथ । उनका भिर हर साल फागुन तिरोस्ती के बिहानी होके एगो स्थानीय मेला लगऽ हे जेकर नाम हे कोचामहादे इया कोचामठ के मेला ।) (अमा॰22:13:2.21)
616 बीड़ी (एकरा अलावे हमहूँ गाँव देहात में घरे-घर जाके, खैनी-बीड़ी खिया-पिया के कथा कहउली आउ लिखली हे, जे पूरा नाम पता के साथ 'मगध की लोक-कथाएँ : अनुशीलन एवं संचयन' में छपल हे) (अमा॰25:5:1.24)
617 बीबी (अगर लड़की डाक्टर इन्जीनियर, प्रोफेसर आदि हे, तो ओकर बियाह ई आधार पर दिक्कत से होएत या न भी होएत कि घर-गृहस्थी के लायक लड़की चाही, हमरा बीबी चाही, अफसर न !) (अमा॰29:9:1.8)
618 बुझौनियाँ, बुझौनिया (डॉ॰ सिंह के इहे पुस्तक में बुझौनिया आउ दसकूटक के भी संग्रह, वर्णन आउ अनुशीलन कैल गेल हे; साँझ खनी खाके सुते के बेरा बूढ़ी इया लइकन बुझौनियाँ बुझावऽ हथ)) (अमा॰25:17:2:5, 18:1.1, 3, 5, 7, 8)
619 बुतात (कुल मिला के ई कहानी-संकलन सावधान आउ जागरूक पाठकन ला पढ़े लायक तो हइए हे, मगही कहानीकारन के उत्तरोत्तर बढ़इत ~, शिल्प के प्रटढ़ता आउ नजर के फैलाव के भी सूचित करेवला हे) (अमा॰20:6:2.3)
620 बुतायल (= बुताल, बुता हुआ) (घीसू आउ ओकर बेटा माधव बुतायल अलाव के पास बइठल हथ) (अमा॰27:11:1.3)
621 बुन (= बून, बूँद) (अंधड़ बतास बुन सब सहल हे जिनगी) (अमा॰22:18:2.4)
622 बुलाक (चेहरा गोर बुलाक, सुग्गा के ठोर नियन नाक, मृगनैनी आँख, कतरल पान जइसन ओठ, ढालल सुराही नियन गरदन, कमर तक करिया-करिया केश आउ ओकर कमर तो मुट्ठी में पकड़ा जा हल) (अमा॰28:18:1.17)
623 बूँट (~ के पाँजा) (लावऽ हली बूँट के पाँजा, कचहरी में रखवावऽ हल, लड़कन बुतरू देखते रह जा हल) (अमा॰22:7:1.11)
624 बूढ़वा महादे (हमरा हीं से पच्छिमे दू किलोमीटर पर 'मेन' गाँव में बूढ़वा महादे हथ । उनका भिर हर साल फागुन तिरोस्ती के बिहानी होके एगो स्थानीय मेला लगऽ हे जेकर नाम हे कोचामहादे इया कोचामठ के मेला ।) (अमा॰22:13:2.20)
625 बेंग-ढउसा (अमा॰26:13:1.5)
626 बेआकुल (= व्याकुल) (अमा॰20:15:1.22)
627 बेकति (= बेकती, व्यक्ति) (अनचके में देखला पर अपने के पते न चलत कि ई कोई असाधारण बेकति हे) (अमा॰25:9:1.5, 15)
628 बेटी (नारी उत्थान पर व्याख्यान देवे वला नेता लोग के घर के भीतर झाँकला पर पता चलऽ हे कि उनकर पत्नी आउ बहू के हालत भी ओतने दयनीय हे, जेतना एगो आम आदमी के बेटी-बहिन के) (अमा॰24:4:1.20)
629 बेमिसाल (अमा॰25:19:1.13)
630 बेयान (= बयान) (पहिले अप्पन बेयान लिखा दे । मुन्शी जी ! बुढ़िया के ऐफ॰आई॰आर॰ दर्ज कर लहूँ ।) (अमा॰21:11:2.19)
631 बेयोहार (= व्यवहार) (सब ~ देख रहलो तोहर, दुअरा से सब तोरो भगयतो) (अमा॰23:20:1.2)
632 बेलौस (उनका सपना में भी बिसवास नऽ हल कि रमुनी से अइसन बेलौस जवाब सुने ला मिलत) (अमा॰25:8:2.9)
633 बेस्वाद (लाही गिर के सकल फसल तो हो गेलक बरबाद । अब तो ओकर फल हो जायत एकदमें बे-स्वाद ।।) (अमा॰20:20:2.14)
634 बोंकियाना (बात अन्त के, ई बसन्त के, उहीं जाके बोंकिया देलक, मुरझाएल मन के हरिया देलक, छेरियाएल मन के गुदगुदा देलक) (अमा॰21:9:1.14)
635 बोराना (कोयलीन के मधुर कुक गीत में बोरायल ।) (अमा॰20:6:2.18)
636 बोरिंग (~ धँसवाना) (विनोबा जी सैकड़न गाँव में हजारो कुइयाँ बिना कमीसन लेले खनवा देलन, सैकड़ो बोरिंग धँसवा देलन आउ काम के बदले अनाज स्कीम के तहत कहुँ रोड पास करवा देलन तो कहुँ अहरा पर भर पोरिस मटियो देवा देलन) (अमा॰19:12:1.2)
637 बोलवाना (राजा साहेब अप्पन मंत्री के बोलवा के सलाह कैलन) (अमा॰23:7:2.24)
638 बौराना (गेहुम मटर बूँट जुआयल, सबके पितुहियन गदरायल, अयते देखऽ बौरायल अमवाँ में टिकोर के ।) (अमा॰20:7:1.7)
639 भंगी (ई आन्दोलन में न सिरीफ छात्र आउ बुद्धजीविए हलन, बलुक मजूर, किसान, कुली आउ भंगी सब कूद गेलन) (अमा॰26:6:1.8)
640 भंजाना (कोय कह रहलन हल "जउन सरकार गद्दी पर बइठल हे ऊ सबसे पहिले शिक्षा के भंजावे में लग जाहे, कोय अइसे तो कोय ओइसे ।") (अमा॰29:12:1.6)
641 भईंस (~ गारना) (भईंस हम गारऽ हली, बाकि दूध हम नऽ खा हली; अहरी पोखरी भरल नहाए भईंस पसर के पानी में) (अमा॰22:7:1.6; 17:2.12)
642 भईंसा (ई सब देवतन के अलग-अलग तरह के भोजन हे । माँ काली ला भईंसा, देवी जी ला पठिया, सरस्वती ला फल-फूल आउ मिष्टान्न, गोरइया आउ डाक ला खस्सी-भेंड़ा, सूअर, मुर्गा, कबूतर, टिपउर ला खस्सी-भेंड़ा आउ डाक गोरइया के तो खूनो पीए से जब तरास न जाय त अलगे से तपावन (दारू) देल जाहे, तब जाके उनकर पियास बुझऽ हे ।) (अमा॰22:13:1.12)
643 भउजाई (अमा॰27:6:1.12)
644 भगजोगनी (तूँ भगजोगनी बन के का करबऽ । पुनियाँ के चान नियन चमचमा के जिअ ॥) (अमा॰29:15:2.7)
645 भट्ठा (सब पइसा फुँकाइत हे भट्ठा में) (अमा॰26:11:1.4)
646 भतिया (पोसली भतिया भेल भतार) (अमा॰25:17:2:19)
647 भाँग (त एकर मतलब ई होयल कि अपने भाँग खाके इसकूल आवऽ ही ?; बेटी माँग के का करत - खाक ! घर में भूँजी भाँग रहे तब न !) (अमा॰23:14:1.8, 16:1.25)
648 भाखा (= भाषा) (बाद में तो बौद्ध धरम आउ पटना-चम्पा (भागलपुर) के बेपारी लोग के सम्पर्क भाखा के रूप में मागधी लंका, बरमा, जावा-सुमात्रा से लेके चीन, जापान, यूनान, फूनान तक दूर-दूर तक फैल गेल) (अमा॰30:8:1.2; 10:2.5)
649 भिनभिनाना (विनोबा जी के पत्नी अप्पन पति के जरूर मानऽ हथ मगर भीतर से भिनभिनायल रहऽ हथ) (अमा॰19:14:1.6)
650 भिर (= पास) (हमरा हीं से पच्छिमे दू किलोमीटर पर 'मेन' गाँव में बूढ़वा महादे हथ । उनका भिर हर साल फागुन तिरोस्ती के बिहानी होके एगो स्थानीय मेला लगऽ हे जेकर नाम हे कोचामहादे इया कोचामठ के मेला ।; हम तो मइया से जादे ओकरे भिर अगोरले रहऽ हली ।) (अमा॰22:13:2.20, 16:2.21)
651 भिरु (= भिर, पास) (अमा॰20:18:1.14)
652 भीड़-भाड़ (दशहरा के ~ आउ ओकरो पर आज दुर्गापूजा के आखरी दिन हल) (अमा॰24:16:1.5)
653 भीरे (= पास, नजदीक) (अमा॰21:11:2.23, 25; 27:11:1.23, 27)
654 भुइयाँ (= भूमि, जमीन) (खटिया पर बइठहूँ न दे हल, भुइयाँ में बइठावऽ हल; हम्मर घर के औरत तो भुइयाँ में बैठे हे, हमरा अफसर नऽ, घर गृहस्थी लायक बहू चाही ।) (अमा॰22:7:1.22; 27:17:1.23)
655 भुइयाँ (=एक जाति का नाम ) (जात-परजात, भुइयाँ-चमार के भेद-भाव भुला के ई सेवा में लगल रहऽ हथ; हरिजन माने भुइयाँ-चमार, डोम-दुसाध होवऽ हे, समझले ? माने कि नीच जात ।) (अमा॰19:13:2.27; 165:7:2.2)
656 भुइयाँ-चमार (जात-परजात, भुइयाँ-चमार के भेद-भाव भुला के ई सेवा में लगल रहऽ हथ; हरिजन माने भुइयाँ-चमार, डोम-दुसाध होवऽ हे, समझले ? माने कि नीच जात ।) (अमा॰19:13:2.27; 165:7:2.2)
657 भुजफटउना (पंडित जी जब आखिरी भिक्षा माँगे गेलन, तब एगो बुढ़िया विचारलक कि ई ~ रोज भीख माँगे आवऽ हे) (अमा॰23:7:1.12)
658 भूँजना (सपना मत देख ! आगू में जे भूँजल आलू हउ से खो !; घर के भीतर ऊ प्रसव-पीड़ा से छटपटाइत हे आउ ई दुन्नो परमेसर महतो के खेत में से आलू चोरा के लयलन आउ भूँज के खाइत हथ ।) (अमा॰27:14:2.5; 28:7:1.6)
659 भूँजी (बेटी माँग के का करत - खाक ! घर में भूँजी भाँग रहे तब न !) (अमा॰23:16:1.25)
660 भूखल (भूखल लहालोट मिजाज; भूखल-छछनइत आउ पित-पिताल हालत) (एही से तो ऊ आम रास्ता पर अप्पन आसन जमौले हथ कि हजार-पान सौ ढेला रोज मिल जात, त चलऽ अप्पन भूखल लहालोट मिजाज एकदम शांत हो जात; पहुँचल सन्त महात्मा सोना-चानी के मट्टी के ढेला जरूर समझऽ हथ, मगर औसत आदमी पइसा के भूखल रहऽ हे) (अमा॰22:13:2.10, 12; 28:6:2.24)
661 भेंड़ा (ई सब देवतन के अलग-अलग तरह के भोजन हे । माँ काली ला भईंसा, देवी जी ला पठिया, सरस्वती ला फल-फूल आउ मिष्टान्न, गोरइया आउ डाक ला खस्सी-भेंड़ा, सूअर, मुर्गा, कबूतर, टिपउर ला खस्सी-भेंड़ा आउ डाक गोरइया के तो खूनो पीए से जब तरास न जाय त अलगे से तपावन (दारू) देल जाहे, तब जाके उनकर पियास बुझऽ हे ।) (अमा॰22:13:1.14)
662 भेष (अमा॰26:11:2.7)
663 मंसूरी (= एक प्रकार के धान) (बाँध के बोझवा हम लायम खलिहनमा । सीता मंसुरिया आउ टैचुन नगीनमा ॥) (अमा॰30:11:1.16)
664 मइया-दइया (घर भर मइया-दइया बाप-चचा दरजन, खँचिया भर भइया-बहिन से तोपल हे दुआर ।) (अमा॰22:6:2.21, 25)
665 मकई (~ के मोछ) (आलू के नया लत्तड़ हरियर छटा फैला रहल हे । मकई के मोछ मकरन्द मन के मोर नचा रहल हे ।) (अमा॰22:11:2.29)
666 मक्खन (ओही हमरा ला मक्खन मिश्री हल आउ हल हम्मर जशोदा मइया !) (अमा॰22:17:1.12)
667 मखाना (जनता के खून बेच-बेच के, ताल मखाना खाइत हे । सीधा जनता पहचाने नऽ, जन-नेता कहलाइत हे ॥) (अमा॰26:8:1.22)
668 मगज (आर॰सी॰चिल्डर्स उँचगर मगज के परिचय देलन) (अमा॰23:9:2.12)
669 मगन (सब अप्पन-अप्न काम करे में मगन हलन) (अमा॰28:17:1.2)
670 मजगर (मगही के हर एक विधा में मजगर रचना भेल; सबसे मजगर तो हल विजय जी के गजल - हाल अछते परीत हो गेली ।) (अमा॰25:22:1.4; 26:15:2.28)
671 मजूरिन (= मजूरनी) (गरीब मजूरिन सो रुपइया कहाँ से लावत सरकार !) (अमा॰21:11:2.30)
672 मड़सटका (नऽ वइठे ला खटिया तोरा, खाहऽ तूँ मड़सटका, जे अपने खुद बासी खाके, दिन भर काम डँटइतो ।) (अमा॰23:20:1.16)
673 मतारी (कहत मोरा लाज लगे, सुनत परे गारी । सास के पुतोह लगे, ससुर के मतारी ॥) (अमा॰25:18:1.27)
674 मनता-दनता (एगो हम्मर बाबू के दोस्त हथ । लड़का के आस में उनका लगातार सात गो लड़की हो गेल । दुन्नो औरत मरद बेहाल हो गेलन । बहुत मनता-दनता से अठवाँ में एगो बेटा भेल ।) (अमा॰27:16:1.24)
675 मनुस्देवा (= एक देवता, जिनके बारे में मान्यता है कि वे घर के परिवार की रक्षा करते हैं) (शक्ति ला देवी जी, बुद्धि ला सरस्वती जी, गाँव-घर के निगरानी ला गोरइया डिहवार, डाक, फूल डाक, ईशरा डाक, लहरा डाक, त घर के परिवार के रच्छा ला टिपउर, मनुस्देवा, बाबा बकतउर आउ बराहदेव हथ ।) (अमा॰22:13:1.10)
676 मनौती (एकर बरोबर न समुन्दर में मोती, एकरा ला हम्मर जिनगी के मनौती ।) (अमा॰26:1:2.15)
677 मरदई (= मरदानगी) (देश के खड्ड में जाय से रोकऽ, मरदई एही में मानऽ तूँ ॥) (अमा॰26:8:1.8)
678 मरवाना (राजा साहेब शेर के मरवावे के जल्दी उपाय करथ) (अमा॰23:7:2.23)
679 मरुआना (मरुआल चेहरा लेले जब दरोगी जी घरे पहुँचलन त साँझ-बत्ती के टैम हो रहल हल ।) (अमा॰29:12:2.3)
680 मरोड़ना (मूड़ी मरोड़ के दहेज लेना कोई इन्सानियत हे ?) (अमा॰29:14:1.13)
681 महपोथा (डॉ॰ राम प्रसाद सिंह मगही लोक-साहित्य के समुन्दर के थाह लगावे के जतन कैलन हे आउ लोक-साहित्य के लगभग सब विधा में महपोथा तइयार कैले हथ) (अमा॰25:4:1.18)
682 महबरा, महवरा (= मुहावरा) (पाठक के जान के अचरह होयत कि डॉ॰ सिंह मगही महबरा के भी लोकोक्ति साहित्य में ही रख देलन हे । इनकर कहनाम हे कि महबरा भी लोकजीवन में कहे के एगो उक्तिए हे ।) (अमा॰25:18:2.6, 7, 9, 11, 14, 16, 18, 24)
683 महामंतर (ई प्रकार महात्मा गाँधी के 'अँग्रेजो भारत छोड़ो' आउ 'करो या मरो' के महामंतर से अजाद हो गेल मगह जनपद आउ सुन्दर भारत देश) (अमा॰26:6:2.29)
684 महासे (= महाशय) (जुवती पूछलक - 'महासे, ई का कर रहलऽ हे ?') (अमा॰25:14:1:21)
685 माउग-मरद (~ आउ एगो बेटी के छोटहन परिवार रहे से तीनो अप्पन गरीबी में भी खुश रहऽ हलन; गामे के लोग दुन्नो ~ के किरिया करम कयलन) (अमा॰24:7:1.5; 29:12:2.34)
686 मागधी (ढेर लोग के मन में मागधी भाषा आउ पालि भाषा के लेके कइएक सवाल उठऽ हे । मागधी आउ पालि में का संबंध हे ?; बाद में तो बौद्ध धरम आउ पटना-चम्पा (भागलपुर) के बेपारी लोग के सम्पर्क भाखा के रूप में मागधी लंका, बरमा, जावा-सुमात्रा से लेके चीन, जापान, यूनान, फूनान तक दूर-दूर तक फैल गेल) (अमा॰23:9:1.1, 2, ...; 30:10:2.5)
687 माट साब (= माड़साव, माड़सा, मास्टर साहब) (जी माट साब !) (अमा॰22:8:1.9, 15, 28; 30:16:1.7)
688 माटी (= मट्टी, मिट्टी) (अमा॰25:23:3.5)
689 माथा-फोड़उअल (अब पाणिनि के भी धँसोड़ के पराकृत के संस्कृत से उत्पन्न बतावे ओला कठहुज्जति लोग से कउन अनेरे माथा फोड़उअल करे ?) (अमा॰30:9:1.21)
690 मान-मनौती (ऊ हुनखर घर-दुआर तो सम्हारवे कैलक, बाल-बच्चा नयँ होवे के बादो कभी कोय मान-मनौती इया फरियाद केकरो से नयँ कयलक) (अमा॰29:11:2.7)
691 मानवी (= मानवीय) (~ भाखा) (अमा॰30:10:1.15)
692 मानी (= मनी) (ढेर ~) (अमा॰25:16:2:21)
693 मामू (इनकर मामू सरदारी जी आउ प्रहलाद जी हम्मर गाँव झिंगुरी में हम्मर पूज्य पिता स्व॰ सूर्यमणि पाठक से हरमेसे भेंट करे आवऽ हलन; चान मामू) (अमा॰25:7:2.4; 28:16:2.24)
694 मामूली (बड़का के कौन पूछे, पइसा बटोरे के चसका अदना मामूली परिवार के भी लग गेल हे ।) (अमा॰29:14:1.7)
695 मार-गारी (विचित्र जिनगी हई दुन्नो के । करजा खाइत जाइत हे, मार-गारी भी खाइत हे, बाकि चिन्ता फिकिर के बान न हे ।) (अमा॰28:9:1.17)
696 मास्टरी (मोसकिल से साल भर आउ बचल होत मास्टरी ।; सउँसे जिनगी तो हुनखर गामे के इसकूल में मास्टरी करते बीत गेल ।) (अमा॰29:10:1.13, 18, 11:2.3)
697 माहुर (= विष, जहर) (घरे से एक सेर माहुर लाके देलक आउ पंडित जी से बोललक - 'एकरा आटा में मिला के लिट्टी-रोटी बनाके खयबऽ तो बड़ी बढ़िया लगतवऽ ।') (अमा॰23:7:1.14, 18)
698 मिंझराना (मुखिया जी आउ सरपंच साहेब अमीन साहेब के लेके हमनी के सामने साफ-साफ हिगरयले हलन, कहीं कुछ मिंझरावल न हे) (अमा॰30:14:1.29)
699 मितलाना (मन ~) (हुनखर मन मितला हे - सरकारी अन्हरे नियन टोले चलऽ हे पढ़ाय में सुधार के उपाय । कोठरी में खखरी धान सुखा के का होयत ?) (अमा॰29:10:1.9)
700 मिनती (= विनती) (हम मिनती कइली कि तूँ बाँसघाट से आवइत ह, कंठ सुखइत हवऽ, चाय पी लऽ ।) (अमा॰28:16:2.6)
701 मिरितलोक (= मृत्युलोक) (अमा॰28:16:2.2)
702 मिश्री (ओही हमरा ला मक्खन मिश्री हल आउ हल हम्मर जशोदा मइया !) (अमा॰22:17:1.12)
703 मुँहजबानी (ई सब अकसरहाँ मुँहजबानी (मौखिक रूप से) कहल-सुनल जाहे आउ एक कंठ से दोसर कंठ में चलइत हजारन बरस से जीवित हे) (अमा॰25:13:1:18)
704 मुआवजा (अमा॰25:21:2.3, 14)
705 मुड़वाना (ओही दिन ऊ दाढ़ी आउ बाल मुड़वा लेलन) (अमा॰19:14:2.13)
706 मुरी (= मूड़ी) (~ गोंतना) (तोहरे अँखिया के सामने द्रौपदी के नाँगट कर देलै भरल सभा में आर तों मुरी गोंत के चुपचाप बैठल टुकुर-टुकुर देखैत हला) (अमा॰21:11:1.23)
707 मुर्गा (ई सब देवतन के अलग-अलग तरह के भोजन हे । माँ काली ला भईंसा, देवी जी ला पठिया, सरस्वती ला फल-फूल आउ मिष्टान्न, गोरइया आउ डाक ला खस्सी-भेंड़ा, सूअर, मुर्गा, कबूतर, टिपउर ला खस्सी-भेंड़ा आउ डाक गोरइया के तो खूनो पीए से जब तरास न जाय त अलगे से तपावन (दारू) देल जाहे, तब जाके उनकर पियास बुझऽ हे ।) (अमा॰22:13:1.14)
708 मुलुक (= मुल्क) (अमा॰30:7:1.9)
709 मुहे (= तरफ) (पश्चिम मुहे चलते-चलते इधर-उधर नजरो दउड़ावइत हली) (अमा॰22:15:2.14)
710 मूँदल (देश भर में हो रहल उथल-पुथल से आँख मूँदल भी न जा सकऽ हे) (अमा॰23:4:1.3)
711 मेला (हमरा हीं से पच्छिमे दू किलोमीटर पर 'मेन' गाँव में बूढ़वा महादे हथ । उनका भिर हर साल फागुन तिरोस्ती के बिहानी होके एगो स्थानीय मेला लगऽ हे जेकर नाम हे कोचामहादे इया कोचामठ के मेला ।) (अमा॰22:13:2.21, 22, 26)
712 मेहटा (खलिहान के एगो मेहटा (बाँस) में मोटका रस्सी से बान्ध देलन) (अमा॰23:8:1.27)
713 मेहनत-मसक्कत (~ करे में ऊ दिन-रात लगल रहलन, तब जाके दिन बदलल) (अमा॰29:11:2.1)
714 मैदान (~ जाना) (हम्मर बेटा आज बिहने अंधेरे में मैदान गेलक हल । चार गो लठइत ओकरा खेते में मार के बिछा देलथिन ।) (अमा॰21:11:2.13)
715 मोछकबरा (हमरा ऊ ~ धान जइसन कूटइत हलक, तब हम जान बचा के भागल आवित ही) (अमा॰21:14:1.31)
716 मौका (अमा॰25:19:1.5)
717 रंगदार (~ के धमकी) (अमा॰19:13:2.7)
718 रंगदारी (दुखिया के बेटा हम्मर दुआरी पर आके लगलक दादागिरी करे । अपनहीं कहथिन दरोगा जी ! विधवा बूढ़ी माय मजूरी करे आउ ओकर जवान बेटा रंगदारी करे, ई ठीक बात हे ?) (अमा॰20:8:1.23; 27:6:2.2, 3)
719 रंगरेजी (= अंग्रेजी) (लावऽ, खतिआन दऽ ! जनसेवक जी से पढ़वा लाऊँ । ओहु तो कैथी हिन्दी जानवे करऽ हथी । हिन्दी के अलावे ऊ रंगरेजीओ फुर्र-फुर्र पढ़ दे हथी ।) (अमा॰30:14:2.24)
720 रकम (मुआवजा के रूप में मोट रकम के फरमाइश करना) (अमा॰25:21:2.15)
721 रखनी ('चमार के घर हम घर-हेवाई होके रहीं ?' -'तब का हम तोर रखनी होके तोरा हीं चलीं ?') (अमा॰25:8:2.6)
722 रगड़ा (उँच-नीच, भेद-भाव, जात-पात के झगड़ा, तनिके में खून के होली, बिना बात रगड़ा ।) (अमा॰19:1:1.3)
723 रब्बी (चइत महिनवाँ रब्बी काटे गोरिया पिया इंजोरिया में) (अमा॰22:17:2.9)
724 रसल-बसल (तइयो मगध के जनपद आउ लोक जीवन में मगही भासा रसल-बसल रहल) (अमा॰25:4:1.10)
725 रहल (देश भर में हो रहल उथल-पुथल से आँख मूँदल भी न जा सकऽ हे) (अमा॰23:4:1.3)
726 रहल-सहल (दिन-रात के बोली-ठोली से उनकर मन चूर-चूर हो जाहे । एक तो माय-बाप के चिन्ता से उनकर मन पर बोझ रहे हे, दूसरे आस-पड़ोस के मुँह चमकावे से बेचारी अलग परेशान, तीसरे लड़का वाला के तौर-तरीका से तो रहल-सहल मनोबल भी टूट जाहे ।) (अमा॰27:16:1.20)
727 रिक्शा (बड़ी मोसकिल से अस्पताल से चलैत-चलैत हम घरे पहुँचली हल । न रस्ता में एक्को गो खाली रिक्शा मिलल न टेम्पू । गोड़ दुखा गेल से अलगे ।) (अमा॰24:16:1.2)
728 रीति-रेवाज (लोकसाहित्य के विशाल समुन्दर लोकजीवन के लोकमानस में छिपल रहऽ हे जे ~ आउ धरम-क्रिया कलाप के समय करनी इया कथनी में परघट होइत रहऽ हे । ई विज्ञान के युग में भी परम्परा से आवइत ~ लोग के प्रभावित करइत रहऽ हे ।) (अमा॰25:12:2:5, 7, 13:1.14)
729 रुपइया (हम रामावतार बाबू से सलाह करके आनन-फानन चार सौ रुपइया जनमासा में जाके वर के बाप के अगाड़ी में पटक देली । जिनगी में पहिला बार हमरा अनुभव भेल - 'बाप बड़ा न भइया, सबसे बड़ा रुपइया' ।) (अमा॰28:5:1.10, 12)
730 रें रें (बुतरू ढेर रहला पर कोय रें रें कर रहल हे, तो कोय टें टें । कोय खाय ला कन रहल हे, त कोय दूध पीये लागी ।) (अमा॰24:15:1.6)
731 रोआँसी (फिर ~ होके कहऽ हल - 'अब काबू थक गेल बउआ । मेला का जायम ? ..') (अमा॰22:16:2.2)
732 रोजी-रोटी (अमा॰29:5:2.32)
733 रोहन (रोहन अदरा के बदरा मनभावन समय सुहावन के । पिया पलंग आउ रिमझिम वर्षा बात ने बिसरे सावन के ।) (अमा॰22:17:2.15)
734 लंगटा (काहे ला ई बेटी के जनम देलऽ हमरा अइसन लंगटा हीं ?) (अमा॰23:17:2.1)
735 लंगटा (जेकरा आझ लंगटा समझऽ ह, कल ओकरे राजा कहबऽ) (अमा॰23:20:1.4)
736 लउकना (ई सब कथा में प्रेम, सामाजिक विषमता, इतिहास के सत्य, नौकरी करे ओला के विवशता, प्रेम के पौरानिक स्वरूप आउ अन्तरजातीय विवाह आदि के चित्रण लउकऽ हे) (अमा॰25:19:1.31)
737 लगन (बिआह के सुभ लगन टल रहल हल । ऊ घड़ी आरजू-मिन्नत आउ बहस करे के कउनो गुंजाइस न हल ।) (अमा॰28:5:1.7)
738 लगी (= लागी, ला, के लिए) (रोते कलपते ऊ दुन्नो माय-बेटी टेम्पू पर चढ़ के घरे लगी चल पड़लथिन जब कि ऊ घर में लाते-घूँसा से स्वागत होवे के उम्मीद हल) (अमा॰24:18:1.25)
739 लड़वाना-कटवाना (आपस में लड़वा-कटवा के पहिनऽ तूँ कंठीमाला) (अमा॰22:20:1.10)
740 लत्तड़ (आलू के नया लत्तड़ हरियर छटा फैला रहल हे । मकई के मोछ मकरन्द मन के मोर नचा रहल हे ।) (अमा॰22:11:2.27)
741 लदबद (फरत करइला खीरा शोभे लदबद फूल अलानी में) (अमा॰22:17:2.19)
742 लमका (ए भइया ! जहाँगीर पोखर वाला लमका परीया में जे तीनकोनवा दसकठवा हे से नापले न गेल हे ।) (अमा॰30:14:1.23)
743 लरकोर (अनगिन पापियन के पापवा पखारलऽ, बाँझिन के कयलऽ लरकोर ।) (अमा॰29:9:1.20)
744 लर-जर (अइसे तो विनोबा जी के लर-जर कद्दू के नियन छितरायल हे मगर परिवार में इनकर पत्नी के छोड़ के आउ कउनो न हे) (अमा॰19:13:2.30)
745 लहरा डाक (= एक देवता, जिनके बारे में मान्यता है कि वे गाँव-घर की निगरानी करते हैं) (शक्ति ला देवी जी, बुद्धि ला सरस्वती जी, गाँव-घर के निगरानी ला गोरइया डिहवार, डाक, फूल डाक, ईशरा डाक, लहरा डाक, त घर के परिवार के रच्छा ला टिपउर, मनुस्देवा, बाबा बकतउर आउ बराहदेव हथ ।) (अमा॰22:13:1.9)
746 लहरी (गरमी के ~) (कहाँ जइबे बूँदा पड़े पर गरमी के लहरिया रे ?) (अमा॰24:1:1.1)
747 लहलह (जेठ के लहलह दुपहरिया में लूक लगे के भय से लोग ओइसहीं लुकाएल हलन जइसे दिन में उल्लू लुकायल रहऽ हे) (अमा॰20:15:1.1)
748 लहलहाना (खेतन में लहलहाल सरसों के फूल खिलल) (अमा॰20:6:2.13)
749 लहालोट (भूखल लहालोट मिजाज) (एही से तो ऊ आम रास्ता पर अप्पन आसन जमौले हथ कि हजार-पान सौ ढेला रोज मिल जात, त चलऽ अप्पन भूखल लहालोट मिजाज एकदम शांत हो जात) (अमा॰22:13:2.10)
750 लाग-लपेट ("का भाय ! कहाँ जाय के औडर तोरा देलको सरकार ?" महेसर जी दुखित होते पूछलन । -"शहर जमनिया ।" दरोगी जी बिना कोय लाग-लपेट के बता देलन ।) (अमा॰29:11:2.22-23)
751 लाही (लाही गिर के सकल फसल तो हो गेलक बरबाद) (अमा॰20:20:2.13)
752 लुतरी (भइयन संग ननदीन भी ~ हे जोर रहल ।) (अमा॰20:6:2.26)
753 लूट-पाट (अमा॰29:7:2.1, 8:1.5)
754 लूल्हा (लूल्हा, लंगड़ा आउ कोढ़िया भी ठेलागाड़ी में बइठ के निरगुन भजन सुना के दुनिया के निस्सारता के घोसना करऽ हे । मगर दू पइसा खातिर लुच्चा लफंगा में भी भगवान के रूप देखऽ हे ।) (अमा॰28:6:1.22)
755 लोककथा (लोकवार्ता के कथावस्तु वर्तमान के न होके परम्परा से आयल रहऽ हे । अइसन अवधारण लोक-विश्वास, अंध-विश्वास, रीति-रेवाज, परदरसन, लोक-नाट्य, धरम-कथा, अवदान परम्परा, लोककथा, धरम, अनुष्ठान, प्रकृति सम्बन्धी धारणा, जादू-टोना, कहउतिया, परतूक आदि हो सकऽ हे ।) (अमा॰25:13:1:16, 17:1:8, 10, 13)
756 लोकगीत (मगही लोकगीत : भूमिका, संग्रह और भाष्य' लेखक के दूसर बृहद ग्रंथ, लगभग एक हजार पृष्ठ के मुद्रणस्थ हे; सोना में सोहागा ई भेल कि श्रोता के प्रश्न के उत्तर भी देलन आउ फरमाइशी लोकगीत भी सुनयलन) (अमा॰25:17:1:16, 18, 24; 26:15:2.7)
757 लोकनाट्य ('मगही लोकनाट्य : अनुशीलन एवं संचयन' - एकरा में मगह के प्रचलित लोकनाट्य के संग्रह आउ अनुशीलन कैल गेल हे) (अमा॰25:17:1:27, 28, 29)
758 लोकवार्ता (लोकवार्ता के कथावस्तु वर्तमान के न होके परम्परा से आयल रहऽ हे । ; विश्व लोकवार्ता के विद्वान आउ भोजपुरी लोकसाहित्य-सम्राट डॉ॰ कृष्णदेव उपाध्याय डॉ॰ राम प्रसाद सिंह के भारत के एगो महान लोकवार्ताविद के रूप में प्रस्तुत कैलन हे ।) (अमा॰25:13:1:12, 17:1:1, 10)
759 लोकवार्ताविद (विश्व लोकवार्ता के विद्वान आउ भोजपुरी लोकसाहित्य-सम्राट डॉ॰ कृष्णदेव उपाध्याय डॉ॰ राम प्रसाद सिंह के भारत के एगो महान लोकवार्ताविद के रूप में प्रस्तुत कैलन हे) (अमा॰25:17:1:3)
760 लोकोक्ति (एकरा अलावे पहेली, दसकूटक, लोकोक्ति, परतूक, लोकास्था आदि के संग्रह में बड़ी दिक्कत उठावे पड़ल हे जेकर वर्णन हम पुस्तक के भूमिका में कइली हे) (अमा॰25:5:1.31, 17:2.7)
761 लोटा-थरिया (काहे ला एगो अनजान आदमी के ~ दे देलऽ !) (अमा॰22:16:1.19)
762 लोहार (चार चोट सोनार के आउ एक चोट लोहार के) (अमा॰25:17:2:19)
763 वाजिब (इहाँ ओहनी के नाम धरना हम वाजिब न समझ रहली हे) (अमा॰25:21:2.17)
764 वास्ते (ई मगही साहित्य के वास्ते सामत ही तो हथ) (अमा॰25:21:2.16)
765 विदमान (= विद्वान्) (अमा॰30:10:1.24)
766 विरधी (= वृद्धि) (जनसंख्या के जेतने ~ हे, ओतने शिक्षा में कमी हे) (अमा॰24:14:1.3, 33, 15:2.11)
767 विवरन (= विवरण) (अमा॰30:8:2.6)
768 व्याकरन (= व्याकरण) (अमा॰30:8:2.31)
769 व्याकरनिक (अमा॰30:9:2.27)
770 व्योहार (= व्यवहार) (अमा॰19:1:1.7; 24:4:1.16)
771 व्योहारिक (पढ़ाई के सैद्धान्तिक आउ व्योहारिक पक्ष में एतना अन्तर काहे हे ?) (अमा॰24:6:1.25)
772 शनीचर (= शनिच्चर, शनैश्चर, शनिवार) (अमा॰23:13:2.27)
773 शहीद (ई तरह सउँसे मगह आउ बिहार में 'अँग्रजो भारत छोड़ो' आन्दोलन के दरम्यान 134 लोग शहीद हो गेलन, 309 लोग घायल होलन आउ 14 हजार 4 सो 78 लोग गिरफ्तार होलन) (अमा॰26:6:2.17)
774 शामिल (= सामिल, सम्मिलित) (अमा॰26:6:1.32)
775 शेरमार (जब हमरा हीं तीसमार आउ शेरमार बलवान मौजूद हथ तब सोचे के बात न हे) (अमा॰23:8:2.14)
776 संघत (= संगत; संगी-साथी) (दरोगी जी से कहते नयँ बनल । बस सुनते रहलन संघतियन लोग के बात-विचार ।) (अमा॰29:12:1.6)
777 संजोग (= संयोग) (अमा॰25:22:2.3)
778 सउर (जउन पुतोह के कहियो ठीक से मुँहो न देखली ओकर उघड़ल शरीर देखम ? अइसन समय में ओकरा अप्पन देहो के सउर होतई ?) (अमा॰27:11:1.31)
779 सक (= शक) (तोरा केकरो पर सक्को हउ ?) (अमा॰21:12:1.10)
780 सकारना (एकरा से साफ परगट हो जाहे कि खुद्दे पाणिनि भी पराकृत के अधिक पराचीन नऽ, त कम-से-कम संस्कृत के साथे-साथ ओकरो आद्य उत्पत्ति तो जरूरे सकारलका हे) (अमा॰30:9:1.19)
781 सखी-सलेहर (अमा॰25:14:2:25)
782 सजाना-सुजाना (बिआह से पहिले लड़की देखे के रिवाज हे । कुछ लोग तो लड़की के बिना बतयले कहीं बजारे में ओकरा देख ले हथ । मगर जादे रिवाज हे कि लड़की के गुड़िया नियर सजा-सुजा के लड़का वाला के सामने लावल जाहे ।) (अमा॰27:15:2.15)
783 सट्-सट् (~ मारना) (एक दिन थाना प्रभारी के सामने एगो स्थानीय नेता के छो-फीटा केतारी से सट्-सट् मार के कह रहलन हल) (अमा॰19:14:1.30)
784 सतवादी (गाँधीजी दुनिया के बड़गो सतवादी हलन) (अमा॰28:19:1.14)
785 सतुआ (एतने में एगो आदमी आयल आउ सतुआ खाय ला थरिया लोटा माँगलक) (अमा॰22:15:2.23)
786 सनई (~ के पीयर फूल) (अमा॰22:11:2.17)
787 सनि (= सन, से) (चट सनि) (चट सनि सेठ जी के नाम धर देले) (अमा॰21:12:1.24)
788 सनीमा (= सिनेमा) (सनीमा के रील जइसन बालेश्वर जी के बात, काम, बेओहार आँख के आगू नाचइत रहल) (अमा॰28:15:1.3)
789 सपरना (= काम करने की योजना बनाना, मंसूबा बाँधना, किसी विषय पर विचार करना, तैयार होना) (सपरते रह गेली कि उनका से सिफारिश करवा के मगही में एम॰ए॰ के पढ़ाई शुरू करवावल जाय, लेकिन के जानित हल कि ऊ हमनी मगहियन के साथ होके अनाथ कर जयतन) (अमा॰30:6:1.29)
790 सफाय (= सफाई) (अप्पन सफाय पेश कयलन हेडसर ।) (अमा॰29:11:1.12)
791 सबद (= शब्द) (साइत सबसे पहिले 'पालि' सबद के इस्तेमाल कइलन आचार्य बुद्ध घोष; 'अट्ट कथा' से त्रिपिटक के दीगर जतावे ला भी 'पालि' सबद के बेवहार करल गेल हे) (अमा॰23:9:1.9, 21, 24)
792 सबरहीं (= सबेरगरहीं) (सबरहीं से लड़का हम्मर 'लेख' लिखे ला ठनगन कयले हलक त का करीं ?) (अमा॰30:18:1.12)
793 सबहे (= सभी) (अमा॰19:11:1.14, 12:2.9)
794 सबेरगरे (= जल्दी) (रात में उनके इयाद करइत बिना खयले-पीले सबेरगरे सुत गेली) (अमा॰28:15:1.24)
795 सरमदान (= श्रमदान) (अमा॰19:13:1.5-6)
796 सरयुग (= सरयू) (सरयुग के पानी ले दउड़ऽ, ई लहकइत आग बुझावऽ राम !) (अमा॰22:8:2.26)
797 सरस्वती(शक्ति ला देवी जी, बुद्धि ला सरस्वती जी, गाँव-घर के निगरानी ला गोरइया डिहवार, डाक, फूल डाक, ईशरा डाक, लहरा डाक, त घर के परिवार के रच्छा ला टिपउर, मनुस्देवा, बाबा बकतउर आउ बराहदेव हथ ।) (अमा॰22:13:1.7, 12)
798 सराप (= शाप) (अमा॰22:18:1.4)
799 सरेक (= सरेख) (हमरा ई बतलावल जाय कि हम अप्पन लड़िकवन के अच्छर गेयान दिलावल चाहइत ही, से कइसे होयत ? ऊ सब सरेक हथ । अब तो इसकूलो में पढ़े लायक न रहलन ।) (अमा॰30:15:1.26)
800 सरेस्टता (= श्रेष्ठता) (अमा॰30:10:1.14)
801 सलमा-सितारा (बीचे-बीच सलमा-सितारा के झुनकी, आँचल में चंदा छिपाय दीहऽ, पिया हमरा के) (अमा॰24:15:1.25)
802 ससरना (चूँटी ससरे के इया तिल रखे के भी जगह न रहे) (अमा॰22:13:2.25)
803 ससुर (कहत मोरा लाज लगे, सुनत परे गारी । सास के पुतोह लगे, ससुर के मतारी ॥) (अमा॰25:18:1.27)
804 साँझ-बत्ती (मरुआल चेहरा लेले जब दरोगी जी घरे पहुँचलन त साँझ-बत्ती के टैम हो रहल हल ।) (अमा॰29:12:2.4)
805 साँझबाती, साँझवाती (अमा॰30:13:2.30)
806 साइत (साइत सबसे पहिले 'पालि' सबद के इस्तेमाल कइलन आचार्य बुद्ध घोष) (अमा॰23:9:1.9; 25:15:2.9)
807 साजिस (= साजिश) (अमा॰29:4:1.30, 32)
808 सानी-पानी (हम भी जा ही मालिक ! बैलन के सानी-पानी भी नऽ देली हे आज !) (अमा॰28:10:2.13)
809 सान्ही (कोना-सान्ही) (कोना-सान्ही में रह-रह के जे मुरझाएल हल, घर से निकस के जे छप्पर-छानी पर बइठ के छेरियाएल हल) (अमा॰21:9:1.6)
810 सामत (= शामत) (ई मगही साहित्य के वास्ते सामत ही तो हथ) (अमा॰25:21:2.16)
811 सामिल (= शामिल) (अमा॰22:15:2.7)
812 सास (कहत मोरा लाज लगे, सुनत परे गारी । सास के पुतोह लगे, ससुर के मतारी ॥) (अमा॰25:18:1.27)
813 साहना (साहल सुहल खाना खाके चट सुते चल गेलऽ, खा पी के सब जुट्ठा बर्तन सब इहें रख गेलऽ ।) (अमा॰21:8:1.21)
814 सिंघाड़ा (अमा॰21:7:1.3)
815 सिंहनी (तुलातुल समतुल हे, ता पर मेष प्रचण्ड । खड़ा सिंहनी अरज करत हे, कुम्भ छोड़ दे कंत ॥) (अमा॰25:18:1.29)
816 सिटी-पिटी (राम लल्ला बाबू हीं लइका हे तो जरूर, बाकि माँगे एतना हे उनकर कि हम्मर तो सिटियर-पिटिये गुम हो गेल हे) (अमा॰23:17:1.30)
817 सितुहा (इनकर जीवन में भारतीय समाज, संस्कृति आउ लोक-जीवन के अनुभव के समुन्दर भरल हे, जेकरा में अनमोल मोती से लेके सितुहा-सेवार तक छिपल हे) (अमा॰25:9:1.25, 2:4)
818 सितुहा-सेवार (इनकर जीवन में भारतीय समाज, संस्कृति आउ लोक-जीवन के अनुभव के समुन्दर भरल हे, जेकरा में अनमोल मोती से लेके सितुहा-सेवार तक छिपल हे) (अमा॰25:9:1.25, 2:4)
819 सिधाना (जेकर पिया परदेस सिधैतइ, जियरा ओकर धधकैत रहतइ) (अमा॰24:1:1.6)
820 सिफारिश (अमा॰29:4:1.21)
821 सिफारिस (= सिफारिश) (अमा॰29:4:2.12, 16, 18)
822 सियान (= सयाना) (सियान होइते जुगनू के माय-बाप से बेसी गाँव के लोग के ओकर बिआह के चिन्ता होवे लगल) (अमा॰24:7:1.10)
823 सिरीफ (= सिरिफ, सिर्फ) (ई आन्दोलन में न सिरीफ छात्र आउ बुद्धजीविए हलन, बलुक मजूर, किसान, कुली आउ भंगी सब कूद गेलन) (अमा॰26:6:1.7)
824 सिरीमान (= श्रीमान्) (धुकधुक्की समा गेल हुनखर मन में । ओजा से हड़बड़ाल पहुँचलन हेडसर के औफिस में आउ हाथ जोड़ के पूछलन - 'हमरा ला कउन आदेश हे सिरीमान ?') (अमा॰29:10:2.3)
825 सीझना (चुल्हा भिर सीझे ओली पुतरी, बेटा-बेटी आउ मरदाना ला उपास करके देह गलावे ओली औरत -) (अमा॰24:12:2.27; 25:9:2.20)
826 सीता (= एक प्रकार के धान) (बाँध के बोझवा हम लायम खलिहनमा । सीता मंसुरिया आउ टैचुन नगीनमा ॥) (अमा॰30:11:1.16)
827 सीधई (कम-से-कम हमनी के किसान जइसन जान-परान लगाके मेहनत तो न न करे पड़ऽ हे । हमनी के गरीबी आउ सीधई से दोसर कोई नजाइज फैदा तो नहिये उठावऽ हे ।) (अमा॰27:9:1.16)
828 सीधमाइन (कहिनो ई छात्रावास के दाई बनल हल तो कहिनो केकरो भन्सा के सीधमाइन) (अमा॰19:13:2.27)
829 सुआ (पंडितजी एगो बड़का सुआ आउर मोटका सुतरी लेके अयलन) (अमा॰23:8:1.20)
830 सुकवार (मत छेड़ऽ सुकवार तार के ॥ नया साज, लय तोर पुराना, बजवइया तूँ ह अनजाना । अहह, कील अइसे मत अइंठऽ, का पइबऽ एकरा बिगाड़ के ॥) (अमा॰23:11:1.1)
831 सुकवार (मत छेड़ऽ सुकवार तार के) (अमा॰23:11:1.1)
832 सुख-सुविधा (सुख-सुविधा के माहौल बनावे में पइसा के जबरदस्त भूमिका हे) (अमा॰28:6:2.25)
833 सुग्घड़ (= सुन्दर) (~ फूल) (अमा॰22:17:2.3)
834 सुतरी (पंडितजी एगो बड़का सुआ आउर मोटका सुतरी लेके अयलन) (अमा॰23:8:1.20)
835 सुपरसिद्ध (= सुप्रसिद्ध) (अमा॰30:7:2.8)
836 सुभ (= शुभ) (बिआह के सुभ लगन टल रहल हल । ऊ घड़ी आरजू-मिन्नत आउ बहस करे के कउनो गुंजाइस न हल ।) (अमा॰28:5:1.7)
837 सुरच्छा (= सुरक्षा) (अमा॰28:5:1.27)
838 सुरता (= सुध, याद, ध्यान, सुधबुध, चेत) (चाय पीके ऊ अप्पन 'मलाल' कविता के एक टुकड़ा सुनौलन - 'सुरता के पनसोखा बिना नागा के उगऽ हे, बाकि उपेल न कर, उल्टे झपास लगावऽ हे । ..') (अमा॰28:16:2.9)
839 सुरू (= शुरू) (बिआह के मुश्किल से दू महीना बीतल होत कि सुगिया पर ओकर ससुराल के ताना बरसना सुरू हो गेल ।) (अमा॰29:13:1.2)
840 सुरूआती (वैदिक रचना के बहुत सुरूआती समय में सप्तसिन्धु छेत्र में एक तरह के बोली बोलल जा हल, तब आबादी के दोसरका छोर पर मगध में ओकरा से कुछ-कुछ भिन्न बोली बोलल जा हल) (अमा॰30:8:2.8, 28)
841 सूअर (ई सब देवतन के अलग-अलग तरह के भोजन हे । माँ काली ला भईंसा, देवी जी ला पठिया, सरस्वती ला फल-फूल आउ मिष्टान्न, गोरइया आउ डाक ला खस्सी-भेंड़ा, सूअर, मुर्गा, कबूतर, टिपउर ला खस्सी-भेंड़ा आउ डाक गोरइया के तो खूनो पीए से जब तरास न जाय त अलगे से तपावन (दारू) देल जाहे, तब जाके उनकर पियास बुझऽ हे ।) (अमा॰22:13:1.14)
842 सूरसेनी (= शौरसेनी) (अमा॰30:10:1.7)
843 सेजिया (घरवा सजा के सेजियो सजा लऽ, आवइत परदेसिया से झुमका मँगा लऽ) (अमा॰28:19:2.23)
844 सेमर (= सिम्मर, सेमल) (अमा॰29:16:1.3)
845 सेवदना (आँख में आठो पहर नाचइत बरसात सेवदल अँचरा -- अँचरा में नइहर के रसल-बसल सुख सिसक उठऽ हे ।) (अमा॰24:11:2.21)
846 सेवा-टहल (हुनखा इयाद हे गुरुजी के ~ करते पढ़े वला ऊ समय) (अमा॰29:11:1.28)
847 सेवार (इनकर जीवन में भारतीय समाज, संस्कृति आउ लोक-जीवन के अनुभव के समुन्दर भरल हे, जेकरा में अनमोल मोती से लेके सितुहा-सेवार तक छिपल हे) (अमा॰25:9:1.25, 2:4)
848 सोंटा (मइया प्यार से कहलन सुन-सुन बेटा, बेटा गुस्सा में उठके मारे लगल सोंटा) (अमा॰26:9:2.18)
849 सोता (राजगिरि में 'सरह' लगयले नरम गरम चलइत हे सोता) (अमा॰25:23:3.2)
850 सोनचिरई (हम्मर हे एही अभिलाषा कि अलका बहिनि सोनचिरइयाँ जइसन बनल रहे सब दिन) (अमा॰22:6:2.28)
851 सोना (सोना में सोहागा ई भेल कि श्रोता के प्रश्न के उत्तर भी देलन आउ फरमाइशी लोकगीत भी सुनयलन) (अमा॰26:15:2.5)
852 सोनार (चार चोट सोनार के आउ एक चोट लोहार के) (अमा॰25:17:2:18)
853 सोभाविक (अइसन साहित्य साधक के बारे में अपने लोग के विशेष जाने के इच्छा सोभाविक रूप से होयत) (अमा॰25:9:2:24)
854 सौख-सरधा (चन्दर चुप रहल । सुगिया के फिन छेड़ला पर बड़ा तैश में बोललक -"तोहर मैका से हम्मर कोई सौख सरधा न मिटल । तोहर बाबूजी एगो बढ़िया टी॰वी॰, स्कूटर भी न देलथू ।") (अमा॰29:13:1.16)
855 हँ (हँ में हँ मिलाना) (सुगिया के ननद, देवर भी अप्पन बाप के हँ में हँ मिलैलन) (अमा॰29:13:2.29)
856 हजाम (ऊ रात हम्मर बेटी के बिआह होवे वाला हल । पिरीतीभोज के बाद अठमँगरा के रसम चल रहल हल कि हजाम हमरा पास पहुँचल आउ कहलक - 'समधी साहेब कहऽ हथुन कि दहेज में चार सौ रुपइया बाकी रह गेल हे । ऊ बकिअउटा के भुगतान भेले पर वर के दुआरपूजा होयत ।') (अमा॰28:5:1.3)
857 हड़बड़ाना (काहे फुदेना सिंह ! हड़बड़ायल काहे लउट गेलऽ ?; ओजा से हड़बड़ाल पहुँचलन हेडसर के औफिस में आउ हाथ जोड़ के पूछलन - 'हमरा ला कउन आदेश हे सिरीमान ?') (अमा॰21:15:2.9, 11; 29:10:2.2)
858 हड्डी-गुड्डी (हड्डी-गुड्डी चिबा-चिबा के बोलऽ मुँह में दाँत न हे) (अमा॰22:20:1.14)
859 हथिआना (अप्पन खरीदल आउ हथिआवल सबहे जमीन दान कर देलन) (अमा॰19:11:1.14)
860 हदिआना (हदिआल) (हदिआल दरोगी जी हुनखे से पूछलन - 'पइसा खरचम तो हिएँ जमल रह जाम ?') (अमा॰29:12:1.26)
861 हर हमेशा (= हरमेशे, हरमेसे) (हम तो तोरे कहला पर चलऽ ही । हर हमेशा कहइत रहऽ ह कि जउन दिन घर में खाय ला अनाज मौजूद हे, तउन दिन कमाये के जरूरते का हे ?) (अमा॰27:9:1.5)
862 हरगिज (आगे से अइसन हरगिज न होवे के चाही) (अमा॰30:19:2.25)
863 हरगोबिन (= हरगोविन्द) (एगो गाँव में ~ नाम के चमार रहऽ हल) (अमा॰27:5:1.1, 4)
864 हरमेशे (= हरमेसे, हमेशा) (राजतंत्र में तो अइसन समय हरमेशे आवऽ हल) (अमा॰27:4:1.1)
865 हर-हमेसे (सबके तहे दिल से समरथन देवे ला ई हर-हमेसे तइयार रहऽ हथ) (अमा॰19:14:1.16)
866 हरास (= ह्रास, कमी) (आज दुनिया के जनसंख्या अबाध गति से बढ़इत जाइत हे । एकर परिणाम ई होइत हे कि केतना किसिम के समाजिक कुरीति जलम लेवइत हे आउ नैतिक मूल्य में हरास होइत हे ।) (अमा॰29:5:1.4)
867 हरिन (= हिरनी) (अमा॰27:5:2.13)
868 हरियरका (अमा॰26:1:2.5)
869 हलफा (हलफा छुअल दुन्बो कोर हे गंगा मइया, हलफा छुअल दुन्नो कोर) (अमा॰29:9:1.17)
870 हलुक (ओन्ने टीबी से दबल लइका के देखूँ कि बेटी के भार हलुक करूँ) (अमा॰23:17:2.3, 18:1.5)
871 हाथ-गोर (= हाथ-गोड़) (बाहर से ठंढ में हाथ-गोर सिकोड़ले दरोगी जी के घर में घुसते देख के हुनखर बेकत भूपती बोरसी जराके हुनखा तर रखते पूछलक - "आज तोर तबियत ठीक नयँ हो का ? हँस-बोल नयँ रहला हे ।"; दरोगी जी के हिचकी आवे लगल आउ ऊ अप्पन हाथ-गोर खींचे लगलन ।) (अमा॰29:12:2.10, 23)
872 हार-पार के (अपने सब माय-बाप-बहिन-भाई मिलके सुगिया के जइसन उदवास देली कि बेचारी के हार-पार के इहाँ आवे पड़ गेल ।) (अमा॰29:14:2.12)
873 हाल (= जमीन की नमी जिसमें हल आदि चले) (मगही के हर एक विधा में मजगर रचना भेल; सबसे मजगर तो हल विजय जी के गजल - हाल अछते परीत हो गेली ।) (अमा॰26:15:2.29)
874 हाली (नौकरी तो हाली मिले न । एही से उलार जाके मन्दिर में प्रार्थना करल जाय ।) (अमा॰27:6:1.26)
875 हिगराना (= बेगराना, अलग-अलग करना) (मुखिया जी आउ सरपंच साहेब अमीन साहेब के लेके हमनी के सामने साफ-साफ हिगरयले हलन, कहीं कुछ मिंझरावल न हे) (अमा॰30:14:1.29)
876 हिज्जे (खाली बिगड़ल हिज्जे के सुधार कर देवे के जरूरत हे । अइसहीं अंगरेज लोग केतना शहर के हिज्जे बिगाड़ले हलन, जिनका सुधारल गेल हे । आरा, मुंगेर, हजारीबाग के नाम के सुधार पहिले भी करल गेल हे, जेकरा में किनको आपत्ति न भेल ।) (अमा॰22:4:1.18, 20)
877 हिनखर (= इनकर) (अमा॰26:10:2.19)
878 हिरनी (हिरनी, खिक्खिर, चमगुदरी के आज हे जमघट लगल उहाँ ।) (अमा॰25:23:1.25)
879 हुआँ (= वहाँ) ("बस नामे के हो शहर जमनिया । ऊ तो पूरा इन्टीरियर इलाका हो ।" अप्पन गिआन बखानते कहलन भुनेसर जी - "पनियो-बिजली के समस्या हो हुआँ ।") (अमा॰29:12:1.4)
880 हुलसना (जरा सा प्यार दुलार पाके हुलसवे कैल कि दूसर क्षण अत्याचार से संग्रस्त हो गेल) (अमा॰29:8:1.18)
881 हुहुआना (बाहर से ठंढ में हाथ-गोर सिकोड़ले दरोगी जी के घर में घुसते देख के हुनखर बेकत भूपती बोरसी जराके हुनखा तर रखते पूछलक - "आज तोर तबियत ठीक नयँ हो का ? हँस-बोल नयँ रहला हे ।" मगर दरोगी जी ओकर एक्को बात के जवाब नयँ देलन आउ चउकी पर बिछल बिछौना में घुस के हुहुआय लगलन ।) (अमा॰29:12:2.16)
882 हूर (आज तो जहाँ देखऽ ही, जेकरा देखऽ ही, सबके सब हूर के परी खोजऽ हथ । पर हाँ, खाली हूर के परि होवे से काम न चलत । साथे कुबेर के खजाना भी चाही ।) (अमा॰27:15:2.1, 2)
883 हेंकड़ी (भूल जयबऽ फिर अप्पन हेंकड़ी, तब डाँटो तोरा भयतो । की अइंठल चलऽ ह अखने, एक दिन समय भी तोरो अइतो ॥) (अमा॰23:20:1.21)
884 हेस-नेस (हे भगवान ! कुछ ~ न हो गेल होय ।) (अमा॰24:16:1.24)