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Friday, February 27, 2009

2. मगही फिल्म

मगही फिल्म
लेखक - प्रो॰ लक्ष्मीचन्द्र प्रियदर्शी

१९६१ के बात हे । दुनिया के फिल्म-मैप पर भारत के जगह देलावे वाला महान निर्देशक सत्यजीत राय अप्पन नया फिल्म "अभिजान" के पटकथा तइयार कर रहलन हे । नायिका बिहार के कउनो गाँव के लड़की हे जेकरा एगो ट्रक-ड्राइवर कलकत्ता भगा ले गेल हे । फिल्म बंगला में हे, बाकि नायिका के पूरा संवाद, स्वाभाविकता के खातिर, बिहारी भासा में होवे के चाही । बंगला संवाद-संकेत तइयार करके राय अप्पन शिष्य आउ फिल्म के सहकारी निर्देशक गिरीश रंजन से हिन्दी संवाद लिखे ला कहऽ हथ । गिरीश रंजन के कहनाम हे, गाँव के लड़की हिन्दी बोलऽ कहाँ हे ? राय सहमत हो जा हथ कि संवाद बिहार के कोय लोकभासा में होवे के चाही । गिरीश ऊ संवाद मगही में लिखऽ हथ । पूरा फिल्म में चलइत नायिका वहीदा रहमान के मगही संवाद "अभिजान" में एगो अलगे चमक लेके आवऽ हे । फिल्म में मगही के पहिला परवेस मिल जा हे - ऊ भी सत्यजीत राय के फिल्म से ! एगो शुभारम्भ होवऽ हे ।

मगही-जगत् के तरफ से मगध संघ के मन्त्री हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी अप्पन संघ के पुरान साहित्य मन्त्री गिरीश रंजन के बधाई आउ सत्यजीत राय के धन्यवाद के पत्र लिखऽ हथ । राय के आभार-स्वीकृति-पत्र मिलऽ हे आउ मिलऽ हे कलकत्ता यूथ क्वायर के १९६३ के वार्षिक प्रदर्शन-मंच पर मगही लोक संगीत के प्रदर्शन के निमन्त्रण-पत्र । राय के अध्यक्षता आउ रूमा गुहा टकुर्ता के मन्त्रीत्व में ई संस्था हर बरस भारत के लोक कला के प्रदर्शन कलकत्ता के समुद्र कलामंच पर करऽ हे । कलामन्त्री लल्लन के नेतृत्व में मगध संघ के कलाकार दल मगही लोक संगीत के समाँ बाँध दे हे, सब के दिल जीत ले हे । कलकत्ता के बंगला-हिन्दी-अंग्रेजी अखबार के पन्ना मगही लोक संगीत के तारीफ में रंग जा हे ।

ई बीच १९६२ में भोजपुरी फिल्म "गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो" के भारी सफलता से लोकभासा सब में फिल्म निर्माण के ट्रेंड बन गेल हे । मगही में फिल्म निर्माण के पृष्ठभूमि तइयार हे ।

१९६३ में अचानक पटना में तीन मित्र मिलऽ हथ आउ फिल्म देखऽ हथ "गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो" । तीन दिमाग में एक सवाल कउँधऽ हे - की हे एकर सफलता के राज ? संगीतकार लल्लन के ऊ तत्त संगीत लगऽ हे, साहित्यकार हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी के घर के बोला के सुखद नजदीकपन, आउ फिल्मकार गिरीश रंजन ऊ में लोक के छुअन से भरल-पूरल एगो नया अभिव्यक्ति परखऽ हथ । नतीजा के रूप में सामने आवऽ हे फिल्म निर्माण आउ वितरण संस्था "मगध फिल्म्स" । श्रवण कुमार, शिवनन्दन प्रसाद, हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, गिरीश रंजन आउ तपेश्वर प्रसाद १९६३ में पाँच पार्टनर के रूप में पटना में कम्पनी के निबन्धन करावऽ हथ । पचास हजार के पूँजी हे, आगे पूँजी ला वितरक के खोज हे । सत्यजीत राय के अनेक फिल्म के निर्माता, बड़गो वितरक-प्रदर्शक, आर॰डी॰ बंसल रुचि देखावऽ हथ । कहानी सुनऽ हथ, गीत सुनऽ हथ । वितरण ला तो तइयार हइये हथ, निर्माण भी आर॰डी॰ बंसल प्रोडक्शन के विश्वविख्यात बैनर में करे के प्रस्ताव रक्खऽ हथ । काम के जिम्मेवारी तइयो "मगध फिल्म्स" यूनिट पर ही रहे के हे । प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार हो जा हे । एही "मोरे मन मितवा" के निर्माण के पृष्ठभूमि हे ।

लगभग एही समय में एगो आउ यूनिट मगही फिल्म के निर्माण में लगऽ हे । निर्माता पी॰एन॰ प्रसाद के नालन्दा चित्र-प्रतिष्ठान के बैनर में मगही फिल्म "भइया" के निर्माण होवऽ हे । "भइया" के प्रदर्शन १९६४ में होवऽ हे जबकि "मोरे मन मितवा" के १९६५ में । तेसर फिल्म मगही में अब तक न बनल हे ।

"भइया" में बड़ भाई द्वारा छोट भाई ला अप्पन आश्रित मंगेतर के तेयाग आउ छोट भाई के बहके-सम्हले के कथानक हे । कथा आउ निर्देशन फणी मजूमदार के हे, जिनका भारत के सब से जादे भासा में फिल्म बनावे के गौरव हे । पटकथा नवेन्दु घोस के आउ संवाद ब्रजकिशोर के हे । संगीत ई फिल्म के उज्ज्वल पक्ष हल, जेकर श्रेय संगीतकार चित्रगुप्त, गीतकार प्रेम धवन आउ विन्ध्यवासिनी देवी तथा गायक-गायिका मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर, आशा भोंसले आउ उषा मंगेशकर के जा हे । नया अभिनेता गोपाल नायक हे, विजया चौधरी नायिका । तरुण बोस, लता सिन्हा, रामायण तिवारी, अचला सचदेव, पद्मा खन्ना, ब्रजकिशोर, अमल सेन, भगवान सिन्हा, हेलेन आउ सुन्दर कलाकार हथ । छायाकार चन्दू, ध्वनि आलेखक मधु देशपांडे, फिल्म सम्पादक आर॰ टिपनिस, कला निर्देशक देश मुखर्जी आउ नृत्य निर्देशक सत्यनारायण फिल्म के तकनीसियन हथ । "भइया" के पहिला प्रदर्शन पटना से वीणा सिनेमा में होल हल ।

"मोरे मन मितवा" के कथा-पटकथा-संवाद आउ निर्देशन गिरीश रंजन के हल । गिरीश १९५९ के अन्त में बिहारशरीफ से कलकत्ता गेलन; ३५, दुर्गापुर लेन, कलकत्ता-२७ में बड़ भाई तपेश्वर प्रसाद हीं रह के सत्यजीत राय से फिल्मकला सिखलन आउ बंगला फिल्म में अप्पन पहिचान बनइलन हल । बिहारशरीफ में १९५७-५९ में मगध संघ के साहित्यमन्त्री के रूप में ऊ मगही आन्दोलन आउ लेखन से जुड़ चुकलन हल । उनकर लिखल "मोरे मन मितवा" में मगही मिट्टी के सोंधा गन्ध भरल हे । सामन्तवाद, तिलक-दहेज, अशिक्षा आउ पारिवारिक कलह से ढँकल मगध के एगो गाँव में जागरन के नया लहर आवे के कहानी के ऊ सही कैनवस देलन हे । बाकि फिल्म के सबसे सबल-सफल पक्ष ओकर गीत-संगीते हे ।

शंकर-जयकिशन के सहजोगी दत्ताराम के संगीत निर्देशन में फिल्म के गीत लिखलन हे हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी आउ लल्लन । प्रियदर्शी के लिखल 'कुसुम रंग लहँगा मँगा दे पियवा हो', 'मोरे मन मितवा, सुना दे ऊ गितवा' तथा गजल 'मेरे आँसुओं पे न मुस्कुरा', जेकरा क्रमशः रफी आउ आशा, मुकेश आउ सुमन कल्याणपुर तथा मुबारक बेगम गइलन हे, मगध क्षेत्र में जन-जन के कण्ठहार बन गेल आउ रेकार्ड-रेडियो से अब तक लोकप्रिय हे ।

"मोरे मन मितवा" के नायक सुधीर, नायिका नाज, कलाकार सुजीत कुमार, बेला बोस, हेलेन, सविता चटर्जी, रवि घोस, विपिन गुप्ता, पहाड़ी सान्याल, अनुभा गुप्ता, छाया देवी, वीरेन चटर्जी आउ हरबंस हथ । बिहार के सत्यवान सिन्हा, रामानन्द आउ सिद्धू के अभिनय जीवन ई फिल्म से शुरू होवऽ हे । तकनीसियन छायाकार विशु चक्रवर्ती, ध्वनि आलेखक सौमेन चटर्जी, अतुल चटर्जी आउ सुजीत सरकार, फिल्म सम्पादक वैद्यनाथ चटर्जी, कला निर्देशक रवि चटर्जी आउ नृत्य निर्देशक सत्यनारायण हथ । फिल्म बढ़ियाँ बनल हे ।

१९६५ तक के लोकभासा में बनल फिल्म के समारोह 'भोजपुरी फिल्म फेस्टिवल, १९६५' नाम से आयोजित होल । निर्णायक मंडल के अध्यक्ष नामी निर्देशक मृणाल सेन हलन । सर्वश्रेष्ठ निर्देशक सहित "मोरे मन मितवा" के ऊ फेस्टिवल में चार पुरस्कार प्राप्त होल ।

लोकभासा फिल्म के साथ नवीनता के सनातन आकर्षण, लोकभासा आउ लोकजीवन के निकट छुअन, लोकधुन के सजीवता आउ मधुरता तथा कम खर्च के सहूलियत हे । एकरे बल पर ६२-६६ में खूब जोर से एकर ट्रेंड बनल । अनेक लोकभासा में फिल्म के निर्माण होल । बाकि ६६ के बाद बन रहल फिल्म के भी पूरा न कइल जा सकल, जहाँ के तहाँ छोड़े पड़ल । कारण ? खर्च के सस्तापन के साथ चउतरफा सस्तापन वेआप जाय से, नवीनता के आकर्षण हटे के साथे साथ, सारा तामझाम एकवारगी बैठ गेल । लोकभासा फिल्म के आगे ई बड़गो चुनौती हे, सबक हे ।

१९७६ में, ठीक दस बरस बाद, भोजपुरी 'दंगल' के साथ ट्रेंड फिर पलट रहल हे । भोजपुरी के कईगो फिल्म बनल हे । अधूरा मैथिली फिल्म 'ममता गाबय गीत' के पूरा कइल जाय के खबर हे । मगही फिल्म के कोय खबर न हे । हिन्दी फिल्म में मगध के संस्कृति, कला आउ भासा के झलक छिटपुट रूप में जहाँ-तहाँ मिल जा हे ! १९७९ में तपेश्वर प्रसाद के निर्देशन में बनल हिन्दी फिल्म "छठ मइया की महिमा" में मगध के ई अप्पन पर्व के अंतरंग झाँकी पटना में छठ के विविध पक्ष के वास्तविक चित्रण आउ विन्ध्यवासिनी देवी के गावल मगही छठ-गीत मउजूद हे । अइसहीं शत्रुघ्न सिन्हा के "गौतम गोविन्दा" के संवाद में मगही के पुट हे ।

बिहार सरकार फतुहाँ में स्टुडियो बनावे आउ फिल्म के पूँजी ला वित्त के व्यवस्था करे के विचार कर रहल हे, ई चरचा हे । मगध के धरती पटना में ई सब चरचा होय आउ मगध के लोकभासा मगही में फिल्म बनावे के खेयाल कोय मन में न जागे, ई कउनो स्थिति न हे । कमी पैसा आउ प्रतिभा के न हे, साधन-संयोजन के हे । न मालूम भविष्य के ओट में की हे !
[ हिन्दी विभाग, कन्हाई लाल साहु कॉलेज, नवादा]

--- "मगही" - मगध संघ के तिमाही पत्रिका, बरीस १; अंक १; जनवरी-मार्च १९८६; सम्पादक - हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी; पृ॰ ७२-७५; प्रकाशक - मगध संघ प्रकाशन, सोहसराय (नालन्दा).

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