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Saturday, March 27, 2010

14. औरत के विरोध

लघुकथाकार - डॉ॰ राज नारायण, 227/II, पंडितवाड़ी, देहरादून

'दीदी ! ई का करइत ह ? बड़का गो बढ़ियाँ फोटो हइ । ओकरा जरावइत हहूँ ?' - पड़ोसिन के बाइस साल के बेटी कमला चउखट पार करके घर में घुँसइते पुछलक ।
'बुन्नी, रख के का करवई ?' माथा पर घाव के दाग आउ चेहरा उदासी में डुबौले सुखदा कहलक । फिन बोलल, 'बुन्नी, हउ पिढ़वा के खींच के बइठऽ । ई फोटउआ आउ कागज-पत्तर के जरा के उठऽ ही ।'
'केकर हइ फोटउआ ?'
'ऊहे मुँहझौंसा के ।'
'केकरा गरिआवइत हहूँ ?'
'तोरे पहुना, आनी अप्पन पिलुअहवा भतार के ...'
'गरिआवे ला नऽ चाहऽ हवऽ ।'
'काहे न गरिअयवई । माथा फोड़ के मारलक हे लाते-घूँसे बुन्नी ! कहलक हे कि एक लाख रुपइया बप्पा से माँग के न लयमें, त इधर में गोड़ मत रखिहें । खाली हाथे अएलें, त जरा के मुआ देवउ । पइसा ला हम तोरा साथे कुच्छो कर सकऽ ही । बुन्नी, तूहीं कहऽ, ऊ रकसवा भिजुन कइसे जाएम ?' कहइत सुखदा के आँख से लोर टपक गेल ।

फोटो जरा के उठल सुखदा आउ बइठे ला कमला के पीढ़ा दे देलक । पड़ोस से अचानक सुखदा के माय सुमित्रा आ गेलन, तऽ कमला बोललक - 'परनाम चाची !'
'जीअ बुन्नी ! हँ, कल्ह हवऽ तीज परब । दिन भर निर्जला उपवास करऽ आउ परसों जाके पारन करिहऽ ।'
'चाची ! तूँ करहूँ ई परब हम्मर चाचा जी के खुसी ला । बाकि हम न करम ।' - कमला बोलल ।
'काहे ? पति के सुख ला तीज करे के चाही सब्भे औरत के । का बुन्नी, गलत कहित ही ?' - एतना कह के सुमित्रा ओकरा पर नजर गड़ा देलक ।

कमला एक मिनट सोच के कहलक - 'चाची ! जब से सुनली हे कि ऊ इंगलैंड में एगो जर्मनी के मेम के साथे रहऽ हे, तब्बे से हम ओकरा से नाता तोड़ लेली । चाची, सच कहऽ ही, अब ऊ हम्मर पति कहाँ रहल । तीन साल से कोई फोन आयल, न चिट्ठी-पतरी । जब हम ओकर कोई हइए न ही, तब ऊ हम्मर कउन हे ? सुखदा दीदी के पति मार-पीट के भगा देलक आउ हम्मर मरद कुत्ता निअर ओकरा पीछे पोंछी हिलावइत फिरे हे । अब सुनऽ ही कि रूस जाइत हे कुतवा । जेन्ने जाय के मन हउ, जो ! मर कोढ़फुट्टा ! अइसन पति ला तीज करवई कि दिन-रात सरापिते रहवई ।'

'ठीके कहइत हे कमला बुन्नी ! पति देवता रहे, तब जरूर करे के चाही तीज । मगर जब ऊ जनावर-राकस बन जाये, तब काहे ला कोई तीज करत ?' - सुखदा कहलक ।

सत्तर साल के बुढ़िया सुमित्रा अप्पन चश्मा ठीक करइत सोचे लगल कि जमाना केतना बदल गेल हे । पहिले कुटम्मस होयलो पर पति लागी तीज बरत करऽ हल औरत, ओही औरत आज विरोध करे लागी तइयार हे कमर कसके ।

[मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी", बरिस-१६, अंक-३, मार्च २०१०, पृ॰१० से साभार]

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