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Thursday, March 22, 2012

52. "बाबा मटोखर दास - चेला चिलम सुटाकी" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द


बामदा॰ = "बाबा मटोखर दास - चेला चिलम सुटाकी", लेखक-सह-प्रकाशक - परमेश्वरी सिंह अनपढ़ (जन्म 19-2-1939), लखीसराय-811311; प्रथम संस्करण – (?) ई॰; i + 24 पृष्ठ ।

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कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या - 378

ठेठ मगही शब्द ("" से "" तक):

1    अजुका (= आज का) (नौकरवा कहलकै - नीलमणि बाबू बोलावऽ हथिन बंगला पर पैखाना साफ करै ले । एतना सुनते मातर बाबू भुत्त हो गेलखिन । बिगड़ि को बोललखिन - नीलमनिया कहाँ से आयल हे । देखले छौड़ी समधिन रे ! अजुके बनिया कल्हु के सेठ । ओकर बेटवा से एकरा कम हिस्सा पड़तै कि जादे रे ! अप्पन पैखाना उ अपनै काहे नै साफ करै ? इ मेस्तर हिकै ? नै जैबा एजो से ... ।)    (बामदा॰21.27)
2    अतर (= इत्र) (जवानी में गदहियो सुन्नर लगऽ हइ । सुनऽ हियौ तोर मागु तो सुनरे हौ । गरमी के दिन में साँझ को मागु नहा लै होतौ, औडर-पौडर लगा को, कान में अतर के फाहा खोंसि को, माथा-चोटि बान्हि को, पलंग पर जा होतौ, त लागऽ होतौ कि हम स्वर्ग में ही, जैसे बगल में इन्नर के पड़ी सूतल हइ ।)    (बामदा॰3.22)
3    अथिया (दे॰ अथी; < अथी+'आ' प्रत्यय) (अगर बच्चा बेटा हो गेलौ, तब तो जौख-सौख में रहभीं । जो कहैं भैवा बेटी हो गेलौ तब तो एगो खोंचाहल बाँस नीचे से अथिया में हेलि जइतौ । जैसे-जैसे बेटिया बढ़तौ वैसे-वैसे उ बाँसा बढ़ल जइतौ, उपर चढ़ल जइतौ ।)    (बामदा॰3.28)
4    अथी (राधा सबसे पहिले मूरती के जल से असलान करैलक, फेर चन्दन लगैलक, फूल चढ़ा को अच्छत छींटलक, नौवेद देको पदमासन में बैठ धेयान लगैलक । बाबा देखते-देखते पागल हो गेला । उनकर धीरज जवाब दे देलक । उ अपनापन भूल गेला । उनकर जोग, ब्रह्मचर्ज उनकर अथी में घुस गेल । आव देखलका न ताव उ लड़की के छाती के उभार में पीछे से हाथ लगा देलका ।)    (बामदा॰14.23)
5    अधरात (= आधी रात) (बाबा अधरात बेला में, इ सुनट्टा राति में, इ रूप-रंग के इ भेस-भूसा में जुआन सुन्दर औरत देख के अवाक रह गेला । मुँह में आवाज नै । टुकर-टुकर ... निहारैत रहला ।; बाबा के मुँह से आवाज फूटल - तों के ? इ अधरात बेला में ? अभी तो भगवान सैन में हथ । इ पूजा से कि फल ? कुछ फायदा नै होतो ।; लड़की बोलल - तों केबाड़ तो खोलो । हम राधा ! राधा कृष्ण से अधरतिये मिलऽ हलखिन । हम विसेस पूजा करब । फल नै मिलतै सेकर फिकिर तों नै करो, हम जानवै । बाबा मन्दिर के केबाड़ खोल देलका ।)    (बामदा॰14.8, 15, 17)
6    अनबोलता (अगर बच्चा बेटा हो गेलौ, तब तो जौख-सौख में रहभीं । जो कहैं भैवा बेटी हो गेलौ तब तो एगो खोंचाहल बाँस नीचे से अथिया में हेलि जइतौ । जैसे-जैसे बेटिया बढ़तौ वैसे-वैसे उ बाँसा बढ़ल जइतौ, उपर चढ़ल जइतौ । जतना बेटी भेल जइतौ ओतना बाँस हेलल जइतौ । जब बेटिया जुआन हो जइतौ तब बाँसा मथवा में ठेकि जइतौ । जब मन बना को पलंग पर जइभीं, तब मौगी कहतौ - अजी, अबरियो कुछ नै ने सोचल्हो ? छौड़ा-पूत के बकड़ी पठरू जे घास-पात खाहे से तो मेमियाबो लगऽ हइ । बेटिया अनबोलता धन हिकै से-से ने । अगर इमान टगा दै तब कि होतइ ? तों कैसे आ गेल्हो । वैसने जरूरत तो ओकरो समझै के चाही ।)    (बामदा॰4.3)
7    अनोन (= बिना नमक का) (~ बात) (ओने से जवाब अइलै - अब एक्के बेरी ! हमर परन हो, परन तोड़ि नै सकऽ हियो । फोन रखा गेलइ । भौजी कहलखिन - सुनि ने लेल्हो बौआ ? अब हम कि करियै ? तोंहीं कहो । कहाँ बच्चा ले बेकल हलइ, आर बेला अइलै तब परन करि लेलकै । बिना मरद के बच्चा होले ह कहैं ? सुनल्हो ह ऐसन अनोन बात ।)    (बामदा॰24.1)
8    अनोमान (= अनमान, अनमन; हूबहू, बिलकुल समान) (भौजी पागल हो गेलै । एक कट्टी झूठ नै बाबा । जैसे-जैसे करो लगलै कि हमरा से नै रहल गेलै । हो बाबा ! हमहूँ भाँसि गेलियै । बाबा ! जे नै होवै के चाही से सब हो गेलै । आखिर गोड़ भारी हो गेलै । जों जों पेट बाढ़ल जाय दुरगंध फैलो लगलै । एक कान दू कान बियाबान । कोय कहै ससुरे के हिकै, कोय कहै कि कोय कि । पूरा-पूर नो महीना दस दिन में बच्चा भेलै खूब पुष्ट बेटा ! सुन्नर बेटा हइ बाबा ! अनोमान हमरे नियर, मुँह-कान आँखि नाक सिंघ माँग कदकाठी ।)    (बामदा॰24.9)
9    अन्हार (~ घुज्ज !) (ओजो से घर चललियो । तों तो देखवे कैल्हो ह । राति के बारह बज रहलै हल । गाँव, ठाँव-ठाँव कहैं कोय चिड़ियाँ-चित नै, मनुखा हित, आदमी कि जानवर के भी चाल-चुहट नै ! अन्हार घुज्ज ! राति ... खाली हवा के साँय-साँय राह में सिरिफ हम दू आदमी ! देवर-भौजाय ।)    (बामदा॰24.3)
10    अपजस (= अपयश) (साँझ भेलै कहाँ जइतै ? बाबा उठैलका, कतनो उठैलका, नै उठल । तब हाथ पकड़ि के घीचि के ओकरा बैठैलका, कहलका - के हिकी ? तों कहाँ जइबी ? साँझ भेलो, चल जा । राति को एजो औरत नै रहऽ हइ । राति को बाघ-सिंघ, साँप-बिच्छा निकलतो । कैसनो कुछ हो जाय, के जानऽ हइ ? जस दूर हइ, अपजस भीर । हमरो फँसैबी । चल जा ।)    (बामदा॰19.2)
11    अपसोच (= अफसोस) (बाबा, तोहर चिलिम सुटाकी के मागु हिकियो । हम तोर परीच्छा ले ऐलियो हल । हो गेलो तोर परीच्छा । अब काम पर परवचन नै दिहो । आर तेजी से बाहर निकल गेल । बाबा कहलका - हाय रे बाप ! हम कहैं के नै रहलों । भले तखनै जे साली के ... दौड़ला पीछे से मुदा उ जुआन छौड़ी, इ बूढ़ा - रींगि गेलन । पकड़ो नै देलकन । हरान हो को लौटि गेला । मन में भारी अपसोच ।; करमन दा पेटे-पेट मरब करऽ हइ हो बाबा ! भारी अपसोच ओकरा लगऽ हइ । जों फोन मिलते आ जइतों हल । ... हम्मर नाम पर दुर्गंध चारो तरफ फैलि गेलो । कान नै देल जाहो । लाज से गाँव के गली नै बुलऽ हियो । बाप भी कुरधल हथुन, माय भी । मागु तो कुहँचि को मारि देलको । कहलको - रे तियन चक्खा ! हम्मर कि सड़ गेलइ हल जे तों एने-ओने मुँह मारने बुलऽ हीं ।)    (बामदा॰15.3; 24.19)
12    अप्पन (कहते-कहते फेर कानो लगलइ । कानते-कानते कहलकइ - हो बाबा ! कि कहियो, कुछ कहल नै जाहो आर कहै बिना भी रहल नै जाहो ! कहै के बात नै हइ । अप्पन हारल बहु के मारल केकरा से कही ?)    (बामदा॰6.9)
13    अबरी (= इस बार; अभी तुरत; अगली बार; अबरियो = अबरी+ 'ओ' प्रत्यय, यकार आगम) (अगर बच्चा बेटा हो गेलौ, तब तो जौख-सौख में रहभीं । जो कहैं भैवा बेटी हो गेलौ तब तो एगो खोंचाहल बाँस नीचे से अथिया में हेलि जइतौ । जैसे-जैसे बेटिया बढ़तौ वैसे-वैसे उ बाँसा बढ़ल जइतौ, उपर चढ़ल जइतौ । जतना बेटी भेल जइतौ ओतना बाँस हेलल जइतौ । जब बेटिया जुआन हो जइतौ तब बाँसा मथवा में ठेकि जइतौ । जब मन बना को पलंग पर जइभीं, तब मौगी कहतौ - अजी, अबरियो कुछ नै ने सोचल्हो ? छौड़ा-पूत के बकड़ी पठरू जे घास-पात खाहे से तो मेमियाबो लगऽ हइ । बेटिया अनबोलता धन हिकै से-से ने । अगर इमान टगा दै तब कि होतइ ? तों कैसे आ गेल्हो । वैसने जरूरत तो ओकरो समझै के चाही ।; चेला अबरी साफ समझा को कहलकन - बाबा ! हमरा मागु के बच्चा होवइया हइ । से साथ में नै सटो दे हइ । कहऽ हइ, अभी कि ? बच्चा होला के बाद तीन बरीस नै । उदबासल दूध हम बच्चा के नै पियो देवइ । हम्मर बच्चा के स्वास्त खराब हो जायत ।)    (बामदा॰4.2; 15.30)
14    अमोढकार (~ कानना) (एक दिन चिलिम सुटाकी बाबा के चरण पकड़ि को अमोढकार कानो लगल । कानते कहलक - बाबा, तोहर परवचन हमरा बरबाद करि देलक । रे बाप ! कइसे बचवै हो बाबा ? बाबा पूछलखिन - कि भेलौ रे ?; बाबा खाना खाके अप्पन कुटिया में वज्रासन पर बैठल हला । चिलिम सुटाकी जाते के साथ उनकर चरण पर माथा धर के अमोढेकार कानो लगल । बाबा चुप करावैत पुछलखिन - काहे, काहे चिलम सुटाकी ? कि बात हइ ?)    (बामदा॰5.27; 15.10)
15    अलमाओछ (उनकर नौकरवा कहलकै - रमदसवा के सड़ल-महकल कुत्ता बिगै में जाति नै गेलो । एखने जाति चलि जइतो । इनकर पैखाना साफ करै में अलमाओछ हो जइतो । कामा जब उहे उठैलको तब संसार कहतो, हम कहलियो तब कि ?)    (बामदा॰21.31)
16    अलोपना (लड़की खा को हाथ-मुँह धो को ओजै ओघड़ा गेल । ओकरा आँखि में नीन कहाँ । कनमटकी मारने तरे-तरे साधू के हियावैत रहल कि कहैं भागे नै । जने जाय तने जाँव ! भागो लगे, अलोपो लगे, तब पकड़ि के गिरि जाँव, चाहे जे होय ।)    (बामदा॰18.26)
17    असकरूआ (= अकेला, एकमात्र) (गाँजा के चिलिम में सुट्टा मारइ वाला - चिलिम सुटाकी । चिलिम सुटाकी खाता-पीता परिवार के आदमी । माय-बाप के दुलारू असकरूआ बेटा । मैटरिक पास, लम्बा-तगड़ा, गोर-बुर्राक । मुदा भीतर से बहुत भावुक ।)    (बामदा॰2.27)
18    असपाट (दे॰ इसपाट) (बूढ़ा कर जोरि को कहलकै - एकरा में कि हइ सरकार ! एकरा झूठ पकड़ैवाला मशीन से जाँच करि लहो । असपाट बैठा दहो । दूध के दूध, पानी के पानी निकल जइतो ।; असपाट बैठल ! जाँच मशीन लगैलक - अच्छर हू-ब-हू चित्रगुप्त जी के निकलि गेल । अब चित्रगुप्त जी छट-पट्ट । तत्काल परभाव से जमराज उनका सेसपंज करि देलखिन ।)    (बामदा॰11.26, 30)
19    असलान (= असनान; स्नान) (सबसे पहिले उठि को दिसा-फरागत भेलियो । ओकर बाद असलान करि को, एक पीतर के थारी में पूजा के सामगृही सजैलियो - अच्छत, चन्दन, धूप, बेलपत्र, फूल, गंगाजल । मैया से कहलियो - बैठें मैया ! तोर पूजा करवौ । उ पिरथी मार के बैठ गेलो ।; राधा सबसे पहिले मूरती के जल से असलान करैलक, फेर चन्दन लगैलक, फूल चढ़ा को अच्छत छींटलक, नौवेद देको पदमासन में बैठ धेयान लगैलक ।; खिचड़ी बनि को तैयार हो गेल । बाबा सतधरवा झरना में असलान कैलका । पूजा-पाठ करके अइला । सखुआ पत्ता पर खिचड़ी सेरावै ले देलका ।)    (बामदा॰7.10; 14.20; 18.13)
20    असामी (चित्रगुप्त से बूढ़ा कहलक - सरकार ! पहिले हमरा स्वर्गे देल जाय ! नर्क तो जीवन भर हमरा लिखले हइ । स्वर्ग तनी देख लेतों हल । चित्रगुप्त जी कहलखिन - नै, ऐसन विधान तो नै हइ । ... इ सच्चा दरबार हइ । यहाँ मृतलोक वाला मकर जाल नै चलतो । उ सब भूलि जा । सीधे जे करि को अइल्हो, ओकर फल भोगहो । बस ! बेसी बहस नै । चलो नम्बर पर बहुत असामी खड़ा हइ । हमरा पास ओत्ते समय नै हो ।)    (बामदा॰10.30)
21    आँचर (~ खुलना) (हमरा करमन दा के मागु के बच्चा नै होवऽ हलै । सब ओकर नाम बाँझी धैलकै । करमन दा ओकरा छोड़ि को दोसर बियाह करै ले चाहऽ हलखिन । बाप मगरू चा रोकि देलखिन - इज्जत के बात । भगमान कुमेहर नै होथिन । हम सत धरम पर हियै, हमर वंस बुड़ि नै सकऽ हइ । बच्चा तो एकरा जते होतै कि लोग देखि को सिहा जइतै । एतना खपसूरत पुतहू, खानदानी घर के, आग्याकारी फेर दोसर होत कि नै के जानऽ हइ । अभी आँचर नै खुलले ह । खुलतै तब फेर तो बच्चा से आजिज हो जइभीं । अभी एकर उमरे कि हइ ।)    (बामदा॰23.4)
22    आगू (= आगे) (कहलको - उ मटोखरा ! ... बैठल-बैठल गुल्ली गढ़ैत रहे हइ । ओकर बाप जो ओकर माय साथे नै जइते हल, तब उ कहाँ से आयत हल परवचन करै ले ? ओकर बियाह भेलै हइ ? बाँझ जाने परसौती के पीरा । उ कि समझतै मागु के हाल ! ... आगू नाथ नै पाछू पगहा, धूर में लोटे जैसे गदहा । लाचारी के नाम साधू बाबा !)    (बामदा॰6.2)
23    आगू-पाछू (इ सुनके बाबू खूब बिगड़लखिन - आदमी हिकै ! साला गदहा ! बर्द-बैल ! अप्पन काम सूझे नै, दिन भर बिना खइने-पीने दोसरा के गूह-मूत, नाला-पमाला साफ कइने बुले । जेकरा घर के आगू-पाछू गंदगी हइ ओकरा ने साफ करइ के चाही ।)    (बामदा॰21.6)
24    आजिज (~ होना) (हमरा करमन दा के मागु के बच्चा नै होवऽ हलै । सब ओकर नाम बाँझी धैलकै । करमन दा ओकरा छोड़ि को दोसर बियाह करै ले चाहऽ हलखिन । बाप मगरू चा रोकि देलखिन - इज्जत के बात । भगमान कुमेहर नै होथिन । हम सत धरम पर हियै, हमर वंस बुड़ि नै सकऽ हइ । बच्चा तो एकरा जते होतै कि लोग देखि को सिहा जइतै । एतना खपसूरत पुतहू, खानदानी घर के, आग्याकारी फेर दोसर होत कि नै के जानऽ हइ । अभी आँचर नै खुलले ह । खुलतै तब फेर तो बच्चा से आजिज हो जइभीं । अभी एकर उमरे कि हइ ।)    (बामदा॰23.4)
25    आपिस (= ऑफिस, कार्यालय, दफ्तर) (बूढ़ा मनझान घर लौटि आयल । मन तो भगवान में लगैलक मगर लगल नैं । उट्ठे-डम्मर रहि गेल। पुन्न भी करे आर मन में तरह-तरह के चोर दरवाजा से जाय के उपाय भी सोचे । एक दिन उ बूढ़ा मरके चित्रगुप्त के आपिस पहुँचल । साथ में जमदूत ओकरा पकड़ने ।; रामदास के कुत्ता मरि गेलै । वाड कमिश्नर के कहलकै । कमिश्नर दरखास लेके आपिस में देलकै । मेस्तर के हरताल चलि रहलै हल । तीन-चार दिन बीत गेलै । लसवा सड़ि को महकि गेलै, गेन्ह तोड़ो लगलै । तब रामदास हमरा भिजुन अइलै कर जोड़ने । दादा ! कुछ उपाय करथो हल । कुतवा सड़ि को महकि गेलै ।)    (बामदा॰10.20; 21.11)
26    आय (= आज) (मइया से पूछलियै - बाबू कहाँ गेलखिन मइया ? मइया कहलकइ - खेत गेलौ हे । हम खेत चल गेलियो । देखते के साथ कहलखुन - अरे, खुरपी ने लेने अइथी हल ? इ थारी में कि नानल्ही कलौआ ! एते सबेरे हम खा हियै ? हम कहलियन - नै बाबू । हम आय तोर पूजा करवो, तनी पिरथी मार के बैठ जा । उ बैठ गेलखिन । हम जइसैं उनकर मथवा पर जला ढारै ले चाहलियै कि लोटवा हमरा हाथा से लेको एक चुरू मुड़िया पर छींट लेलखिन, बाँकी पी गेलखिन ।)    (बामदा॰7.24)
27    आय (= आज) (राह में चिलिम सुटाकी सोचने गेल । बाबा के बात लाख टका के बात । आय दिन से जब तक हम बचब परोपकार करब, चाहे जे हो जाय । आर घर आको शुरूह भी कर देलक ।)    (बामदा॰20.24)
28    आर (= आउर; और) (उ दौड़ के वहाँ पहुँचल । देखे हे, जब-जब कौआ उ बच्चा के आँख में लोल मारइ ले चाहे तब-तब उ बचवा हाथ पैर उपर देने फेंको लगे हे आर जोर-जोर से कानो लगे हे । कौआ डर से लोल मारना छोड़ दे हे ।; मौगी के इ बात लगतौ जैसे मथवा में हथौड़ा मारब करऽ हइ । तब निकलभीं बरतुहारी में । भीखमंगवा जेकरा घर भूँजी-भाँग नै, से माँगतौ एक लाख, तब बाँसा वाला खोंचा लगतौ कि मथवा फारि को निकलि जायत । जे तोरा तनी सा पसीन पड़तौ, से मँगतौ दू लाख, तीन लाख ! तखने बाँसा आर गड़ो लगतौ ।)    (बामदा॰1.20; 4.8)
29    इंजोरिया (टहपोर ~) (चिलिम सुटाकी के मागु बढ़िया से साबुन लगा को नहैलक । तौलिया से बाल सुखा के जूड़ा बनैलक । ... उपर से एक झीना नाइटी पिन्ह के, हाथ में पूजा के सामग्री एक सज्जी में लेके चलल मन्दिर । बाबा मन्दिर के छरदेवाली के फाटक खुलल हल । इ सीधे अन्दर चल गेल । देखे हे राति दिन के समान टहपोर इंजोरिया ।)    (बामदा॰14.1)
30    इतमिनान (इ कहलकै - नै, एक घंटा के रास्ते हइ । दीना-दीनी जाना, दीना-दीनी आना । को डेग हइये हइ ? काहे ले केकरे साथ लेबै । जे समय में उ मन्दिर पहुँचल से समय में चिलिम सुटाकी जारन तोड़ै ले पहाड़ पर चढ़ि गेल हल । वहाँ एक आदमी अदम जाति नै । भले गाछ पर दू चारि उछलैत-कूदैत बानर-कौआ, रूक्खी । इतमिनान से गरम जल के कुण्ड सतधरवा में नहैलक मलि मलि को ।)    (बामदा॰17.14)
31    इनकर (= इनका, इनकी) (गुरूजी के अन्तकाल हो गेला के बाद मटोखर गाँव आ गेला । गाँव के एक छोर पर झोपड़ी बना के सीता राम के मूरती पधरा के पूजा करो लगला । खुद बड़ी चरित्रवान । कुछ मंतर-तंतर भी सीख लेलका हल । साँप-बिच्छा के झार, कुछ जड़ी-गुटका, जैसे कमलवाय के इलाज, परसौती के जड़ी देना, बाता के जड़ी । सब मिल-मिला के इनकर जनता में कदर होवो लगल ।; दान से एतना आवो लगल कि सुख से इनकर दिन कटो लगल । )    (बामदा॰2.7, 9)
32    इन्नर (= इन्द्र) (~ के पड़ी) (जवानी में गदहियो सुन्नर लगऽ हइ । सुनऽ हियौ तोर मागु तो सुनरे हौ । गरमी के दिन में साँझ को मागु नहा लै होतौ, औडर-पौडर लगा को, कान में अतर के फाहा खोंसि को, माथा-चोटि बान्हि को, पलंग पर जा होतौ, त लागऽ होतौ कि हम स्वर्ग में ही, जैसे बगल में इन्नर के पड़ी सूतल हइ ।)    (बामदा॰3.24)
33    इसकूटर (= स्कूटर) (जब अगिन के सात फेरा पड़ि जइतौ, बेदी तर बैठा को सिन्नुर दान हो जइतौ, आर औरतिया गइतौ - धीया पड़लो सजन घर जी बाबा ! अबे बाबा सुतहो निचीत ... बस उ बाँसा निकलि को छट सना लड़कवा के नीचे से अथिया में हेलि जइतै । तेइयो चैन नै । तब समाद अइतौ लड़का रूसल हो इसकूटर ले । समधी रूसल हो गाय ले । तोरी बहिन के समधी ... तोरी माय के दमाद ... जैसे हमहीं जनमैलियन हे इनका ! हमरे कमा को खिलैता । रे नुनु ! भ्रूण हत्या लाचार कोय करऽ हइ ।)    (बामदा॰4.14)
34    इसतिरी (= स्त्री) (सिंघ एक जानवर हइ । उ साल में एक बेरी इसतिरी गमन करे हइ से-से सिंघ हइ । जंगल के राजा हइ । तोरा सबसे आगरह हइ कि साल में एक नै मानल जाय तब दू बेरी । ओकरा से जादा नै ।)    (बामदा॰4.30)
35    इसपाट (दे॰ असपाट) (जमदूत पकड़ि को घीचो लगल बूढ़ा के । बूढ़ा धरती पर लोटि गेल । नै नै जइवो नर्क । ओकरा इसपाट से जाँच करावो । हमरा धर्मराज से मिलावो ! हम धर्मराज यहाँ केस करवो ।)    (बामदा॰11.17)
36    उगाल (~ होना) (आवइ में राति हो गेलै । गाड़ी पर भौजी कान में सटि को कहलखिन - बौआ ! तों देवर हम भौजाय । देवर माने दोसर वर । देवर-भौजाय में कोय पाप नै । बौआ, हमर सूना गोदी भरि दा । बाँझी नाम छोड़ा दा । तोरा गोड़ परऽ हियो । दुइयो हाथ से निहोरा करऽ हियो । हम कहलियै - नै भौजी । करमन दा रहनै तब सब छपि जइतो हल । बिना उनके झाँपल नै रहतो, उगाल हो जइतो । संसार भरि गदाल हो जइतो । दुइयो के लोग थुर्ररी-थुर्ररी करतो । बाप रे बाप ! हम ऐसन काम नै करवो ।)    (बामदा॰23.21)
37    उट्ठा-डम्मर (= उट्ठा-डामर, उट्ठा-डाबर) (बूढ़ा मनझान घर लौटि आयल । मन तो भगवान में लगैलक मगर लगल नैं । उट्ठे-डम्मर रहि गेल। पुन्न भी करे आर मन में तरह-तरह के चोर दरवाजा से जाय के उपाय भी सोचे ।)    (बामदा॰10.18)
38    उढ़री (= रखैल; उपपत्नी) (गुदड़ी देवी घाट पर पहुँच के देखे हे, एक जगह झील के किनारा पर वहाँ से थोड़े दूर पाँच-सात कौआ घेरने हइ । बीच से आदमी के तुरतैं के जनमल बच्चा चेहों-चेहों चिल्हार मारि रहल हे । एकर करेजा धक्क सा रह गेल । जाने के माइयो उढ़री रात के भेल बच्चा फेंक देलक किनारा में ।)    (बामदा॰1.17)
39    उदबासल (चेला अबरी साफ समझा को कहलकन - बाबा ! हमरा मागु के बच्चा होवइया हइ । से साथ में नै सटो दे हइ । कहऽ हइ, अभी कि ? बच्चा होला के बाद तीन बरीस नै । उदबासल दूध हम बच्चा के नै पियो देवइ । हम्मर बच्चा के स्वास्त खराब हो जायत ।)    (बामदा॰15.31)
40    उपजाहुर (= उपजाऊ) (तोहर उसर खेत में काहे ले हम अप्पन हर-बैल, खाद-बीज बरबाद करों ? जब बाप मरता, सुनबो एने से मागु लेने दम-दाखिल हो जइबो । भौजी कहलखिन - अब तोहर खेत उसर नै रहलो । दवाय देको उपजाहुर बना देलियो । एतना उपजाहुर कि बीज डालते के साथ बच्चा । ऐसन हो गेलै कि बिना बीज के भी नम्हेर जनमि सकऽ हइ ।)    (बामदा॰23.29, 30)
41    उपांसी (अन्नदान संसार में सबसे बढ़ के दान हइ । गिरथानि के हथकटनी नै होय के चाही । कोय अतिथि, उपांसी, भूलल-भटकल दरवाजा पर आ जाय, ओकरा एक लोटा पानी आर दू मुट्ठी अन्न से जरूर सुआगत करइ के चाही । इहे अन्नदान गिरहस्त के सारा पाप काटि दै हइ ।)    (बामदा॰22.13)
42    एजो (= एजा, एज्जा; यहाँ) (डाकदरनी सब तरह से जाँचि को कहलकै - तोरा में कोय दोस नै हइ, तोरा साँय के बीर्ज में बच्चा दै के सकती नै हइ । ... से दिन से ओकर मरद कोय मौका नै छोड़ै । रात के कहे, दिन भी । मुदा इ भीतर-भीतर बड़ा चिन्तित । केकरा से मिलों, कहाँ मिलों ? ससुरारि परिवार भरल-पूरल । देवर-जेठ, गोतनी, सासु, ननद, जैधी, जावत । एजो देवर जौरे जो जाही तब गोतनी जाने आर कि कहत । नहिरा में दिमाग दौड़ैलक । वहाँ तो आर घमासान ।; साँझ भेलै कहाँ जइतै ? बाबा उठैलका, कतनो उठैलका, नै उठल । तब हाथ पकड़ि के घीचि के ओकरा बैठैलका, कहलका - के हिकी ? तों कहाँ जइबी ? साँझ भेलो, चल जा । राति को एजो औरत नै रहऽ हइ ।)    (बामदा॰16.32; 19.1)
43    एजो (= एजा, एज्जा; यहाँ) (नौकरवा कहलकै - नीलमणि बाबू बोलावऽ हथिन बंगला पर पैखाना साफ करै ले । एतना सुनते मातर बाबू भुत्त हो गेलखिन । बिगड़ि को बोललखिन - नीलमनिया कहाँ से आयल हे । देखले छौड़ी समधिन रे ! अजुके बनिया कल्हु के सेठ । ओकर बेटवा से एकरा कम हिस्सा पड़तै कि जादे रे ! अप्पन पैखाना उ अपनै काहे नै साफ करै ? इ मेस्तर हिकै ? नै जैबा एजो से ... ।)    (बामदा॰21.29)
44    एतना (= इतना) (दान से एतना आवो लगल कि सुख से इनकर दिन कटो लगल ।)    (बामदा॰2.9)
45    एत्ते (= यहीं; इतना) (कि करियै हो बाबा ? जेकरा रोज खाय ले मिलऽ हलइ सेकरा तीन बरीस नै । कैसे रहबै हो बाबा !  ... बाबा सब समझि को हँसो लगलखिन - हऽ हऽ ... । हँसैत-हँसैत कहलखिन - दुर पगला । इ तनी गो बात ले एत्ते चिन्ता । तीन बरीस कौन समय हइ । साधू महात्मा तो जीवन भर एकरा बिना रहि जा हइ । मन के सकत कर ।)    (बामदा॰16.6)
46    एने-ओने (= एन्ने-ओन्ने; इधर-उधर) (हम्मर नाम पर दुर्गंध चारो तरफ फैलि गेलो । कान नै देल जाहो । लाज से गाँव के गली नै बुलऽ हियो । बाप भी कुरधल हथुन, माय भी । मागु तो कुहँचि को मारि देलको । कहलको - रे तियन चक्खा ! हम्मर कि सड़ गेलइ हल जे तों एने-ओने मुँह मारने बुलऽ हीं । हम कहियो मनो कैलियौ ? हमहूँ जो तोरे नियर तियन चाखने बुलियौ तब कि होतौ तोर पगड़िया के ? हमरा कि मरद नै ने मिलतै ?)    (बामदा॰24.23)
47    एसकर (~ में = अकेले में) (जों-जों बढ़ल जाय तों तों ओकर अप्पन बेटवा एकरा साथ नौकर वाला वेवहार करो लगल । इ माय समझ के गुदड़ी के परचारे तो उहो अपने बेटवा के पक्ष में खड़ा हो जाय । मटोखर के इ बात मन में असर करो लगलै । एसकर में कभी-कभी काने भी । हाय रे ! अप्पन माता सौतेती {? सौतेली} हो गेल ।; चिलिम सुटाकी से कहलक - अजी ! खाके बंगला पर काहे जाहो ? आर तब हमरा लैला हल काहे ले ! भले नहिरा में हलों । माय साथे सूतऽ हलों । रात भर नीन नै होवे हइ । तोर घर में एसकर डर लगे हइ । तोंहीं बतावो हम की करी ?)    (बामदा॰2.1; 5.22)
48    एसकरे (= अकेले) (चिलिम सुटाकी खा पीको एक झप्प लेलका, फेर उठला । देखै हथ लड़की सुतले हइ । खैर, फेर साँझूक खाना ले जारन-झूरी सोरियैलक । चूल्हा के चेतैलका, तेइयो औरत सूतले । बाबा मने-मन सोचो लगला - के इ घर से फाजिल औरत हइ ? एकरा कोय कहै-सुनै वाला हइ कि नै ? एसकरे इ बियाबान में एकरा डर-उर लगऽ हइ कि नै ?)    (बामदा॰18.30)
49    ऐंगना (= अँगना, आँगन) (चेला कहलकन - हो बाबा ! मागु हमरा बोढ़नी से झाँटि को भगा देलको । कहलको, तीन बरीस घर नै चढ़ो देवौ, बढ़न-झँट्टा सटो नै देवौ । बाबा पुछलखिन - से काहे ? चेला कहलकन - पानी पवइया हइ आर काहे । - पानी पवइया ? बाबा बात नै समझि सकलथिन । चेला कहलकन - हो बाबा, हमरा ऐंगना में गोड़ भारी हइ । - गोड़ भारी ? बाबा अचरज से अकबका को, डाँटि को पुछलखिन - ऐंगना में गोड़ होवऽ हइ ? अरे साफ बताव कि कहै ले चाहऽ हें ?)    (बामदा॰15.17, 18)
50    ओजै (= ओजइ, ओज्जइ; वहीं) (नगड़ू यादव कहलका - अरे ! जो चिलिम सुटकिया । काहे ले तों चूड़ा के गवाही दही बनब करें हें । उ साफ तो हमरे तीनों के देखि को बोललइ - तीन काना तऽ तीन चौपाय ! मन तो करऽ हइ कि मंचवे पर चढ़ के लगा दियै तीन लाठी बामा बगल मथवा पर बस ! ओजै सोहा ! तोरे आवइ हो चौपाय पदाहो भाय तब ला ।; लड़की खा को हाथ-मुँह धो को ओजै ओघड़ा गेल । ओकरा आँखि में नीन कहाँ । कनमटकी मारने तरे-तरे साधू के हियावैत रहल कि कहैं भागे नै ।)    (बामदा॰9.7; 18.24)
51    ओतना (= उतना) (जीवन में कौन पाप हम नै कैलों हे । कतना लड़की के साथ बलात्कार, कतना चोरी, कतना डकैती, कतना हत्या । जतना कइलों ओतना आदि भी नै हइ । अब हम कि करी बाबा ! कुछ सलाह दहो । अब हमरा रात-दिन इहे फिकिर घेरने हो ।)    (बामदा॰9.28)
52    ओत्ते (= ओतना; हुएँ; उतना; वहीं ) (पलंग पर पछाड़ि को उलटा सवारी कसि देलको, दोमते-दोमते देह तोड़ि देलको । नस-नस में दरद करऽ हो बाबा । देह बनबन टूटै हो । फेर कानो लगलै । कि करियो हो बाबा ! जबरदस्त मागु से पाला पड़ि गेलो। गाँजा के पुरिया बिगि देलको । ओत्ते बढ़ियाँ चिलिम पत्थल पर बजाड़ि को फोड़ि देलको । कहलको - अब जो गाँजा पीलें हें तब सब दशा करवौ । साल में दू नै, रोज दू मंजूर रहौ तब रहियौ, नै तब हमरा नहिरा पहुँचा दे ।; यहाँ मृतलोक वाला मकर जाल नै चलतो । उ सब भूलि जा । सीधे जे करि को अइल्हो, ओकर फल भोगहो । बस ! बेसी बहस नै । चलो नम्बर पर बहुत असामी खड़ा हइ । हमरा पास ओत्ते समय नै हो ।)    (बामदा॰6.14; 10.30)
53    ओय (~ से = ओहे से; इसलिए) (तों आम लगइभो तब बैर नै फरतै । जब फरतै तब आम ! तों बबूर लगइभो तब ओकरा में जब होतइ तब काँटा । फरतै बबुरी ! चाहे तों लाख जतन करहो । ओय से आदमी के अच्छा कर्म करै के चाही ।)    (बामदा॰9.22)
54    ओराना (ओरायल भात) (जवानी में गदहियो सुन्नर लगऽ हइ । सुनऽ हियौ तोर मागु तो सुनरे हौ । गरमी के दिन में साँझ को मागु नहा लै होतौ, औडर-पौडर लगा को, कान में अतर के फाहा खोंसि को, माथा-चोटि बान्हि को, पलंग पर जा होतौ, त लागऽ होतौ कि हम स्वर्ग में ही, जैसे बगल में इन्नर के पड़ी सूतल हइ । ... ओकर समूचे देहे रसगुल्ला सन मीठ लगऽ होतौ । लगऽ होतौ कहाँ से खाँव । जब बच्चा पर बच्चा हो जइतौ तब उहे मौगी लगो लगतौ सड़ल मछली सन । ओरायल भात नियर । मन भिनभिना जइतौ ।)    (बामदा॰3.26)
55    ओहमा-टोटका (बगल के गाँव के जुवा मागु-मरद के बियाह होले दस बच्छर हो गेलै मुदा बच्चा के दरेस नैं । साधू-महात्मा से देखा को, तमाम ओहमा-टोटका, वैदराज के जड़ी-जुटका करि को हारि गेल, कहैं कुछ नैं । पूरा परिवार बड़ी चिन्ता में । गोतनी-नैनी से जो ठोना-बादी होवै तब बाँझी कह के गरियावै ।)    (बामदा॰16.20)
56    औडर-पौडर (जवानी में गदहियो सुन्नर लगऽ हइ । सुनऽ हियौ तोर मागु तो सुनरे हौ । गरमी के दिन में साँझ को मागु नहा लै होतौ, औडर-पौडर लगा को, कान में अतर के फाहा खोंसि को, माथा-चोटि बान्हि को, पलंग पर जा होतौ, त लागऽ होतौ कि हम स्वर्ग में ही, जैसे बगल में इन्नर के पड़ी सूतल हइ ।)    (बामदा॰3.22)
57    औरत-बानी (पहिले के जमाना में औरत बानी चिकना माटी कोड़ि को लावइ हली । जे जगह से माटी कोड़ि को लावइ हली अप्पन घर नीपइ ले, माथा में लगावइ ले, या कपड़ा साफ करइ ले, उ जगह के नाम हो गेल मटिकोड़, मटिकोड़ से मटकोर, मटकोरवा, मटखोरवा, मटखोरवा से मटोखर, मटोखरा ... ।)    (बामदा॰2.18)
58    कइसौं-कइसौं (= कइसूँ-कइसूँ, कइसहूँ-कइसहूँ; किसी-किसी तरह, येन-केन-प्रकारेण) (मौगी के इ बात लगतौ जैसे मथवा में हथौड़ा मारब करऽ हइ । तब निकलभीं बरतुहारी में । भीखमंगवा जेकरा घर भूँजी-भाँग नै, से माँगतौ एक लाख, तब बाँसा वाला खोंचा लगतौ कि मथवा फारि को निकलि जायत । जे तोरा तनी सा पसीन पड़तौ, से मँगतौ दू लाख, तीन लाख ! तखने बाँसा आर गड़ो लगतौ । कइसौं कइसौं अच्छा बेजाय लड़का जब ठीक हो जइतौ तब दर्दबा कुछ कमतौ ।)    (बामदा॰4.8)
59    कचवचिया (चिराँय-चुरमुनी अप्पन खोंता से बाहर आके आहार के खोज में झुण्ड बना-बना तरह-तरह के सुर निकाल रहल हे । सब मिला को लगे हे कि जल तरंग बज रहल हे । कौआ के काँव-काँव, टिटहीं के टीं-टीं, टें-टें, महुअलि के हिप-हिप, कचवचिया के कुन-कुन कुच-कुच, मैना के चें-चें ... आदि सुर मिल-मिला के बड़ी अच्छा लग रहल हल ।)    (बामदा॰1.13)
60    कज्जल (= साफ, निर्मल) (ओकरा बगल में एक तलाब हइ पूरबे-पश्चिमे लम्बा । उ तलाब नै लगो हइ । झील कहल जाय तो ज्यादा अच्छा काहे कि ओकरा कोय नै खनैलक हे । आदि से वैसने के वैसने हइ । कज्जल पानी । पूरब ज्यादा चौड़ा । जों जों पच्छिम भेल गेलइ, ओकर पाट कमल गेल हे ।)    (बामदा॰1.5)
61    कट्टी (अन्हार घुज्ज ! राति ... खाली हवा के साँय-साँय राह में सिरिफ हम दू आदमी ! देवर-भौजाय । ... भौजी पागल हो गेलै । एक कट्टी झूठ नै बाबा । जैसे-जैसे करो लगलै कि हमरा से नै रहल गेलै । हो बाबा ! हमहूँ भाँसि गेलियै । बाबा ! जे नै होवै के चाही से सब हो गेलै । आखिर गोड़ भारी हो गेलै ।)    (बामदा॰24.5)
62    कतना (= केतना; कितना) (जीवन में कौन पाप हम नै कैलों हे । कतना लड़की के साथ बलात्कार, कतना चोरी, कतना डकैती, कतना हत्या । जतना कइलों ओतना आदि भी नै हइ । अब हम कि करी बाबा ! कुछ सलाह दहो । अब हमरा रात-दिन इहे फिकिर घेरने हो ।)    (बामदा॰9.27, 28)
63    कते (= कत्ते, केतना; कितना) (करम फल मिलना हइ । मिलै के तो तत्काल चाही । कते के तो हाथ-हाथ मिलि जा हइ । कत्ते के नै भी मिलऽ हइ । एकरा माने इ नै समझो कि करम बेकार गेलइ । मिलि को रहतै ।)    (बामदा॰9.19)
64    कत्ते (= कितना) (राह में बाबा के परवचन के तरह-तरह के बिख्यास करते लोग घर चलला । चिलम सुटाकी पूछलक अप्पन साथी से - "बिरजू दा ! सुनल्हो ? बाबा कत्ते अच्छा बात कहलखिन । सचमुच भ्रूण हत्या महापाप हइ !" बिरजू दा कहलखिन - बाबा कहलखुन फुस्सी ..., बाबा के मागु रहतन हल, बच्चा होतन हल, तब समझ में अइतन हल ।; करम फल मिलना हइ । मिलै के तो तत्काल चाही । कते के तो हाथ-हाथ मिलि जा हइ । कत्ते के नै भी मिलऽ हइ । एकरा माने इ नै समझो कि करम बेकार गेलइ । मिलि को रहतै ।; कत्ते बढ़िया जगह । स्वच्छ झरना में नहाना, भोला के पूजा करना । वहाँ अनदिना औरत जइवे नै करती, मिलती कैसे । बस ! ब्रह्मचारी के ब्रह्मचारी ।)    (बामदा॰3.16; 9.19; 16.14)
65    कनमटकी (~ मारना) (लड़की खा को हाथ-मुँह धो को ओजै ओघड़ा गेल । ओकरा आँखि में नीन कहाँ । कनमटकी मारने तरे-तरे साधू के हियावैत रहल कि कहैं भागे नै ।)    (बामदा॰18.25)
66    कबुरगाह (= कब्रगाह) (मनुस के हाथी से शिक्षा लै के चाही । मुदा आदमी हइ कि हर जीव के मार के खा जा हइ, मानो मनुस के पेट कबुरगाह हइ । ओकरा में सबके दफना दे हइ ।)    (बामदा॰3.7)
67    कमलवाय (= पीलिया रोग) (गुरूजी के अन्तकाल हो गेला के बाद मटोखर गाँव आ गेला । गाँव के एक छोर पर झोपड़ी बना के सीता राम के मूरती पधरा के पूजा करो लगला । खुद बड़ी चरित्रवान । कुछ मंतर-तंतर भी सीख लेलका हल । साँप-बिच्छा के झार, कुछ जड़ी-गुटका, जैसे कमलवाय के इलाज, परसौती के जड़ी देना, बाता के जड़ी । सब मिल-मिला के इनकर जनता में कदर होवो लगल ।)    (बामदा॰2.7)
68    कर (= करवट) (बाबा उठैलका, कतनो उठैलका, नै उठल । ... राति को एजो औरत नै रहऽ हइ । ... फेर उ कर गिरावैत कहलक - उहो अच्छे होतै बाबा ! जे तों करहो ! तोहर मरजी । जतै तड़पाबो । एतना कह के फेर वहैं कलटि गेल । बाबा मन में सोचो लगला । ओकर बोली के अरथ निकालि को सोचलका । फेर इनकर मन बारह-तेरह किसिम के होवो लगल । मन पर लगाम कासलका ।)    (बामदा॰19.3)
69    कलौआ (= कलेवा; खाना, भोजन) (मइया से पूछलियै - बाबू कहाँ गेलखिन मइया ? मइया कहलकइ - खेत गेलौ हे । हम खेत चल गेलियो । देखते के साथ कहलखुन - अरे, खुरपी ने लेने अइथी हल ? इ थारी में कि नानल्ही कलौआ ! एते सबेरे हम खा हियै ? हम कहलियन - नै बाबू । हम आय तोर पूजा करवो, तनी पिरथी मार के बैठ जा । उ बैठ गेलखिन । हम जइसैं उनकर मथवा पर जला ढारै ले चाहलियै कि लोटवा हमरा हाथा से लेको एक चुरू मुड़िया पर छींट लेलखिन, बाँकी पी गेलखिन ।)    (बामदा॰7.23)
70    कान (भौजी पागल हो गेलै । एक कट्टी झूठ नै बाबा । जैसे-जैसे करो लगलै कि हमरा से नै रहल गेलै । हो बाबा ! हमहूँ भाँसि गेलियै । बाबा ! जे नै होवै के चाही से सब हो गेलै । आखिर गोड़ भारी हो गेलै । जों जों पेट बाढ़ल जाय दुरगंध फैलो लगलै । एक कान दू कान बियाबान । कोय कहै ससुरे के हिकै, कोय कहै कि कोय कि । पूरा-पूर नो महीना दस दिन में बच्चा भेलै खूब पुष्ट बेटा ! सुन्नर बेटा हइ बाबा ! अनोमान हमरे नियर, मुँह-कान आँखि नाक सिंघ माँग कदकाठी ।)    (बामदा॰24.7)
71    कानना (= कनना; रोना) (उ दौड़ के वहाँ पहुँचल । देखे हे, जब-जब कौआ उ बच्चा के आँख में लोल मारइ ले चाहे तब-तब उ बचवा हाथ पैर उपर देने फेंको लगे हे आर जोर-जोर से कानो लगे हे । कौआ डर से लोल मारना छोड़ दे हे ।; एक दिन चिलिम सुटाकी बाबा के चरण पकड़ि को अमोढकार कानो लगल । कानते कहलक - बाबा, तोहर परवचन हमरा बरबाद करि देलक । रे बाप ! कइसे बचवै हो बाबा ? बाबा पूछलखिन - कि भेलौ रे ?; कहते-कहते फेर कानो लगलइ । कानते-कानते कहलकइ - हो बाबा ! कि कहियो, कुछ कहल नै जाहो आर कहै बिना भी रहल नै जाहो ! कहै के बात नै हइ । अप्पन हारल बहु के मारल केकरा से कही ?)    (बामदा॰1.20; 5.27; 6.8)
72    किदो (= की तो) (जल-थल-नभ में मनुस के दुश्मन कोय नै बचल, सिरिफ आदमी आदमी के शतरू हइ । यहाँ तक कि अपना पेट के बच्चा ... सुनई ही किदो मशीन से देख के बेटी रहे हइ, ओकरा मार दे हइ ।)    (बामदा॰3.9)
73    कुनकुन-कुचकुच (चिराँय-चुरमुनी अप्पन खोंता से बाहर आके आहार के खोज में झुण्ड बना-बना तरह-तरह के सुर निकाल रहल हे । सब मिला को लगे हे कि जल तरंग बज रहल हे । कौआ के काँव-काँव, टिटहीं के टीं-टीं, टें-टें, महुअलि के हिप-हिप, कचवचिया के कुन-कुन कुच-कुच, मैना के चें-चें ... आदि सुर मिल-मिला के बड़ी अच्छा लग रहल हल ।)    (बामदा॰1.13)
74    कुबन्द (पहिले के जमाना में औरत बानी चिकना माटी कोड़ि को लावइ हली । जे जगह से माटी कोड़ि को लावइ हली अप्पन घर नीपइ ले, माथा में लगावइ ले, या कपड़ा साफ करइ ले, उ जगह के नाम हो गेल मटिकोड़, मटिकोड़ से मटकोर, मटकोरवा, मटखोरवा, मटखोरवा से मटोखर, मटोखरा ... । आगे जब इ शब्द जतरा कैलकइ तब धर खनाह कोठी-कोठिला के कहल जाय लगल । ओकरो से जब आगे चलल तब धर खनाह कुबन्द आदमी के कहल जाय लगल ।)    (बामदा॰2.22)
75    कुमेहर (= निर्दय) (बाबा कहलका - नै, औरत भीतर में नै । तों बाहर सुतो । लड़की बोलल - हाय बाबा ! कत्ते कुमेहर हो गेला । संत में तो इ लच्छन नै चाही । तनिको दरेग नै लगो हो ? बाहर में जंगलिये खा जइतै । साधू के परोपकारी होवै के चाही ।; हमरा करमन दा के मागु के बच्चा नै होवऽ हलै । सब ओकर नाम बाँझी धैलकै । करमन दा ओकरा छोड़ि को दोसर बियाह करै ले चाहऽ हलखिन । बाप मगरू चा रोकि देलखिन - इज्जत के बात । भगमान कुमेहर नै होथिन । हम सत धरम पर हियै, हमर वंस बुड़ि नै सकऽ हइ ।)    (बामदा॰19.17; 23.1)
76    कुरधल-रूसल (करमन दा कुरधल-रूसल दिल्ली चल गेला । वहाँ से कमा को पैसा-वैसा घर भेज दे हथिन । तीन बच्छर से घर नै ऐलखिन हे । एक दिन भौजी हमरा कहलखिन - बौआ ! हमरा पेट में दरद करो हइ । चलो पटना, डाकदरनी से हमरा देखा दा ।)    (बामदा॰23.6)
77    कुहँचना (हम्मर नाम पर दुर्गंध चारो तरफ फैलि गेलो । कान नै देल जाहो । लाज से गाँव के गली नै बुलऽ हियो । बाप भी कुरधल हथुन, माय भी । मागु तो कुहँचि को मारि देलको । कहलको - रे तियन चक्खा ! हम्मर कि सड़ गेलइ हल जे तों एने-ओने मुँह मारने बुलऽ हीं । हम कहियो मनो कैलियौ ? हमहूँ जो तोरे नियर तियन चाखने बुलियौ तब कि होतौ तोर पगड़िया के ? हमरा कि मरद नै ने मिलतै ?)    (बामदा॰24.22)
78    केबाड़ (= केबाड़ी; किवाड़) (बाबा अधरात बेला में, इ सुनट्टा राति में, इ रूप-रंग के इ भेस-भूसा में जुआन सुन्दर औरत देख के अवाक रह गेला । मुँह में आवाज नै । टुकर-टुकर ... निहारैत रहला । ... इ औसर चूकइ के नै । इ मौका जीवन में मिलत कि नै मिलत । हाथ से नै जाय देल जाय, चाहे संसार जे कहे । मन बारह-तेरह किसिम के होवो लगल । तभी लड़की बाबा के धेयान भंग कैलक - बाबा ! मन्दिर के दरवाजा खोलो, केबाड़ खोलो, हम पूजा करब ।; लड़की बोलल - तों केबाड़ तो खोलो । हम राधा ! राधा कृष्ण से अधरतिये मिलऽ हलखिन । हम विसेस पूजा करब । फल नै मिलतै सेकर फिकिर तों नै करो, हम जानवै । बाबा मन्दिर के केबाड़ खोल देलका ।)    (बामदा॰14.13, 17, 19)
79    केबाड़ी (= किवाड़) (ऊ कहना शुरू कैलक - हे बाबा ! साँझ खा-पीको, हाथ पोछने बंगला पर जा लगलियो कि कलरवा पकड़ि को घीचि लेलको, जबरदस्त मागु ! भीतर पलंग पर सुता को केबाड़ी लगा देलको । तोहरो गारी से बिकटी करि देलको । कहलको - उ मटोखरा ! ... बैठल-बैठल गुल्ली गढ़ैत रहे हइ । ओकर बाप जो ओकर माय साथे नै जइते हल, तब उ कहाँ से आयत हल परवचन करै ले ?)    (बामदा॰5.32)
80    केराना (= केरौनी/ निरौनी/ निकौनी करना; घास-पात निकालना) (थरिवा पटकि को बिकट-बिकट गारी पढ़ो लगलखिन - तोरी पागल माय के ... काम यहाँ मिरचाय केराबै के । तऽ से नै ! इ अइला हे हम्मर पूजा करै ले । से दिन से सोचो लगलखुन - एकरा राँची के पगला गारत में पहुँचा देल जाय !)    (बामदा॰7.31)
81    कोट (= कोर्ट) (मागु जानलकन । झाँझी कुत्ती सन झुँझुआ को हुललन - दुर्रर्र ... ने ... जाय छुछुनर । तों एते दिन से बेकारे मुंशीगिरी कइनें । तोरा ठकि लेलकै एगो मिरतुलोक के मरल मुंशी । आखिर चित्रगुप्त जी अंतिम महाकाल के कोट में अपील कैलका ।)    (बामदा॰12.3)
82    कोठी-कोठिला (पहिले के जमाना में औरत बानी चिकना माटी कोड़ि को लावइ हली । जे जगह से माटी कोड़ि को लावइ हली अप्पन घर नीपइ ले, माथा में लगावइ ले, या कपड़ा साफ करइ ले, उ जगह के नाम हो गेल मटिकोड़, मटिकोड़ से मटकोर, मटकोरवा, मटखोरवा, मटखोरवा से मटोखर, मटोखरा ... । आगे जब इ शब्द जतरा कैलकइ तब धर खनाह कोठी-कोठिला के कहल जाय लगल । ओकरो से जब आगे चलल तब धर खनाह कुबन्द आदमी के कहल जाय लगल ।)    (बामदा॰2.21)
83    कोरसिस (= कोशिश) (गुरु बाबा मटोखर दास कहलखिन - तों तो कोरसिस नै ने कैल्हीं रे ? नै बाबा ! जानता भगवान ! उहे जब तंग करि देलकै तब कि करियै ? गुरु बाबा कहलखिन - तब कोय दोस नै । लड़की जब मुँह खोलि दिये तब नै कहला में दोस हइ ।)    (बामदा॰20.1)
84    खद्धा (= खद्दा, गड्ढा) (उ कहलकै - दादा ! उ हम्मर बड़ा प्यारा कुत्ता हलै । हम बहुत मानऽ हलियै । हमरा ओकरा मरला के बहुत दुख । ओकर लहास के फेंकै में बड़ी मोह लगऽ हइ । वह हो बाबा, हम नै आव देखलियै नै ताव । एगो रस्सी के ससँर-फानी बनैलियै । लकड़ी से कुतवा के मुड़िया उठा के ससँर-फनिया हेला के लकड़िये से कसि देलियै । घीचने गाँव से बाहर जाके खद्धा खनि को ओकरे में ओकरा दे को उपर से माटी भरि देलियै । समूचा गाँव शोर हो गेलै कि रमदसवा के मरल कुत्ता बिगलकै रूपैया पर ।)    (बामदा॰21.20)
85    खनाना (= स॰क्रि॰ खनवाना; अ॰क्रि॰ खनाया जाना) (शेखपुरा के बगल में कारे मटोखर गाँव हइ । उ विचित्र गाँव हइ, पहाड़े पर बसल । ... ओकरा बगल में एक तलाब हइ पूरबे-पश्चिमे लम्बा । उ तलाब नै लगो हइ । झील कहल जाय तो ज्यादा अच्छा काहे कि ओकरा कोय नै खनैलक हे ।)    (बामदा॰1.4)
86    खनाह (पहिले के जमाना में औरत बानी चिकना माटी कोड़ि को लावइ हली । जे जगह से माटी कोड़ि को लावइ हली अप्पन घर नीपइ ले, माथा में लगावइ ले, या कपड़ा साफ करइ ले, उ जगह के नाम हो गेल मटिकोड़, मटिकोड़ से मटकोर, मटकोरवा, मटखोरवा, मटखोरवा से मटोखर, मटोखरा ... । आगे जब इ शब्द जतरा कैलकइ तब धर खनाह कोठी-कोठिला के कहल जाय लगल । ओकरो से जब आगे चलल तब धर खनाह कुबन्द आदमी के कहल जाय लगल ।)    (बामदा॰2.21, 22)
87    खपसूरत (हमरा करमन दा के मागु के बच्चा नै होवऽ हलै । सब ओकर नाम बाँझी धैलकै । करमन दा ओकरा छोड़ि को दोसर बियाह करै ले चाहऽ हलखिन । बाप मगरू चा रोकि देलखिन - इज्जत के बात । भगमान कुमेहर नै होथिन । हम सत धरम पर हियै, हमर वंस बुड़ि नै सकऽ हइ । बच्चा तो एकरा जते होतै कि लोग देखि को सिहा जइतै । एतना खपसूरत पुतहू, खानदानी घर के, आग्याकारी फेर दोसर होत कि नै के जानऽ हइ । अभी आँचर नै खुलले ह । खुलतै तब फेर तो बच्चा से आजिज हो जइभीं । अभी एकर उमरे कि हइ ।)    (बामदा॰23.3)
88    खाता-पीता (~ परिवार) (गाँजा के चिलिम में सुट्टा मारइ वाला - चिलिम सुटाकी । चिलिम सुटाकी खाता-पीता परिवार के आदमी । माय-बाप के दुलारू असकरूआ बेटा । मैटरिक पास, लम्बा-तगड़ा, गोर-बुर्राक । मुदा भीतर से बहुत भावुक ।)    (बामदा॰2.27)
89    खुट्टा (= खूँटा) (गरिया को कहलखिन - तोरी बेटी के, तों अइवे नै करऽ हलहीं, तब इ कि करते हल ? खूब बढ़िया तो कैलकै । चब्बोस बेटी ... पोता हमरा गोदी में दे देलक । गाय राति भर कहैं चरे, किसान के खुट्टा पर आ जाय तो एकरा से भाग के बात कि ? कहैं से इ लाबे, पोतवा हम्मर कहायत कि दोसर के ?)    (बामदा॰24.17)
90    खुरपी (मइया से पूछलियै - बाबू कहाँ गेलखिन मइया ? मइया कहलकइ - खेत गेलौ हे । हम खेत चल गेलियो । देखते के साथ कहलखुन - अरे, खुरपी ने लेने अइथी हल ? इ थारी में कि नानल्ही कलौआ ! एते सबेरे हम खा हियै ? हम कहलियन - नै बाबू । हम आय तोर पूजा करवो, तनी पिरथी मार के बैठ जा । उ बैठ गेलखिन । हम जइसैं उनकर मथवा पर जला ढारै ले चाहलियै कि लोटवा हमरा हाथा से लेको एक चुरू मुड़िया पर छींट लेलखिन, बाँकी पी गेलखिन ।)    (बामदा॰7.22)
91    खोंचाहल (= खोंचाह, खोंचाहा) (ओकर समूचे देहे रसगुल्ला सन मीठ लगऽ होतौ । लगऽ होतौ कहाँ से खाँव । जब बच्चा पर बच्चा हो जइतौ तब उहे मौगी लगो लगतौ सड़ल मछली सन । ओरायल भात नियर । मन भिनभिना जइतौ । अगर बच्चा बेटा हो गेलौ, तब तो जौख-सौख में रहभीं । जो कहैं भैवा बेटी हो गेलौ तब तो एगो खोंचाहल बाँस नीचे से अथिया में हेलि जइतौ । जैसे-जैसे बेटिया बढ़तौ वैसे-वैसे उ बाँसा बढ़ल जइतौ, उपर चढ़ल जइतौ ।; जब अगिन के सात फेरा पड़ि जइतौ, बेदी तर बैठा को सिन्नुर दान हो जइतौ, आर औरतिया गइतौ - धीया पड़लो सजन घर जी बाबा ! अबे बाबा सुतहो निचीत ... बस उ बाँसा निकलि को छट सना लड़कवा के नीचे से अथिया में हेलि जइतै । तेइयो चैन नै । तब समाद अइतौ लड़का रूसल हो इसकूटर ले । समधी रूसल हो गाय ले । तोरी बहिन के समधी ... तोरी माय के दमाद ... जैसे हमहीं जनमैलियन हे इनका ! हमरे कमा को खिलैता ।)    (बामदा॰3.28; 4.13)
92    गड़ना (= चुभना) (मौगी के इ बात लगतौ जैसे मथवा में हथौड़ा मारब करऽ हइ । तब निकलभीं बरतुहारी में । भीखमंगवा जेकरा घर भूँजी-भाँग नै, से माँगतौ एक लाख, तब बाँसा वाला खोंचा लगतौ कि मथवा फारि को निकलि जायत । जे तोरा तनी सा पसीन पड़तौ, से मँगतौ दू लाख, तीन लाख ! तखने बाँसा आर गड़ो लगतौ ।)    (बामदा॰4.8)
93    गदाल (= गुदाल) (~ होना) (आवइ में राति हो गेलै । गाड़ी पर भौजी कान में सटि को कहलखिन - बौआ ! तों देवर हम भौजाय । देवर माने दोसर वर । देवर-भौजाय में कोय पाप नै । बौआ, हमर सूना गोदी भरि दा । बाँझी नाम छोड़ा दा । तोरा गोड़ परऽ हियो । दुइयो हाथ से निहोरा करऽ हियो । हम कहलियै - नै भौजी । करमन दा रहनै तब सब छपि जइतो हल । बिना उनके झाँपल नै रहतो, उगाल हो जइतो । संसार भरि गदाल हो जइतो । दुइयो के लोग थुर्ररी-थुर्ररी करतो । बाप रे बाप ! हम ऐसन काम नै करवो ।)    (बामदा॰23.21)
94    गनी-गरीब (बाबा हर साँझ छः से आठ बजे तक प्रवचन करथ । बाद आरती मंगल में इनकरा गुजर करै भर पैसा आ जाय । प्रवचन सुनइ ले गाँव के गनी-गरीब औरत-मर्द सब जुटे ।)    (बामदा॰2.12)
95    गमकौआ (~ तेल) (एने चिलिम सुटाकी के मागु गरमी दिन में साँझ को नहावे, माथा में गमकौआ तेल लगावे । कान में इतर के फाहा खोंसे, जहाँ-तहाँ देह में भी अतर छींट लिये । ... इन्तजार में सजि समरि को रहे । मुदा चिलिम सुटाकी खाय आर हाथ पोंछने सहजै बंगला पर चल जाय । मागु बेचारी के सरधा में गरदा पड़ि जाय, हकासले-पियासले रहि जाय ।)    (बामदा॰5.7)
96    गरमगारी (= गर्रमगारी; गाली-गलौज) (उनकर नौकरवा कहलकै - रमदसवा के सड़ल-महकल कुत्ता बिगै में जाति नै गेलो । एखने जाति चलि जइतो । इनकर पैखाना साफ करै में अलमाओछ हो जइतो । कामा जब उहे उठैलको तब संसार कहतो, हम कहलियो तब कि ? बाबू गरमगारी करि देलखिन । भारी लड़ाय हो गेलै हो बाबा !)    (बामदा॰22.1)
97    गरियाना (= गाली देना) (बगल के गाँव के जुवा मागु-मरद के बियाह होले दस बच्छर हो गेलै मुदा बच्चा के दरेस नैं । साधू-महात्मा से देखा को, तमाम ओहमा-टोटका, वैदराज के जड़ी-जुटका करि को हारि गेल, कहैं कुछ नैं । पूरा परिवार बड़ी चिन्ता में । गोतनी-नैनी से जो ठोना-बादी होवै तब बाँझी कह के गरियावै ।)    (बामदा॰16.22)
98    गवाही (= गवाह) (नगड़ू यादव कहलका - अरे ! जो चिलिम सुटकिया । काहे ले तों चूड़ा के गवाही दही बनब करें हें । उ साफ तो हमरे तीनों के देखि को बोललइ - तीन काना तऽ तीन चौपाय ! मन तो करऽ हइ कि मंचवे पर चढ़ के लगा दियै तीन लाठी बामा बगल मथवा पर बस ! ओजै सोहा ! तोरे आवइ हो चौपाय पदाहो भाय तब ला ।)    (बामदा॰9.5)
99    गिरथानि (= गिरथाइन) (अन्नदान संसार में सबसे बढ़ के दान हइ । गिरथानि के हथकटनी नै होय के चाही । कोय अतिथि, उपांसी, भूलल-भटकल दरवाजा पर आ जाय, ओकरा एक लोटा पानी आर दू मुट्ठी अन्न से जरूर सुआगत करइ के चाही । इहे अन्नदान गिरहस्त के सारा पाप काटि दै हइ ।)    (बामदा॰22.12)
100    गिरहस्त (बाबा मटोखर दास आज कहलका - गिरहस्त धर्म सबसे बड़ा धरम हइ । गिरहस्त अप्पन कमाय से संसार के पालन करे हइ । चिराँय-चुरमुनी से लेको गाय, भैंस, बकरी, कुत्ता, बिलाय, चूहा-पेचा, सुण्डा-भुसुण्डा जतना जे जीव-जन्तु हइ ।; अन्नदान संसार में सबसे बढ़ के दान हइ । गिरथानि के हथकटनी नै होय के चाही । कोय अतिथि, उपांसी, भूलल-भटकल दरवाजा पर आ जाय, ओकरा एक लोटा पानी आर दू मुट्ठी अन्न से जरूर सुआगत करइ के चाही । इहे अन्नदान गिरहस्त के सारा पाप काटि दै हइ ।)    (बामदा॰22.9, 14)
101    गुड़ारना (= गुड़ेरना) (आँख ~) (खाना बनाना औरत के काम हइ । सेकरा ले हम हइये ही तब ? चिलिम सुटाकी आँख गुड़ार के बोलल - अरे भाय ! तों जो ने, जहाँ जायँ । हम औरत के बनायल नै खा हियै ।)    (बामदा॰18.9)
102    गुरू-पिण्डा (गुदड़ी अप्पन बेटा के जादे माने, मटोखर के कम, अपना दूध पिलावे अप्पन बेटा के, एकरा बकरी के दूध पिला के पाललक । खैर ! समय के साथ दुयो बढ़ो लगल तब गुरू पिण्डा पर पहुँचैलक । अक्षर ज्ञान भर दुइयो के हो गेलै । फेर तो घर-गिरहस्ती के काम में लग गेला ।)    (बामदा॰1.29)
103    गुरू-सिक्ख (मटोखर के इ बात मन में असर करो लगलै । एसकर में कभी-कभी काने भी । हाय रे ! अप्पन माता सौतेती {? सौतेली} हो गेल । आखिर दस बरस के उमर में भाग के अयोध्या चल गेल, गुरू सिक्ख हो गेल ।)    (बामदा॰2.2)
104    गुल्ली (बइठल-बइठल ~ गढ़ना) (ऊ कहना शुरू कैलक - हे बाबा ! साँझ खा-पीको, हाथ पोछने बंगला पर जा लगलियो कि कलरवा पकड़ि को घीचि लेलको, जबरदस्त मागु ! भीतर पलंग पर सुता को केबाड़ी लगा देलको । तोहरो गारी से बिकटी करि देलको । कहलको - उ मटोखरा ! ... बैठल-बैठल गुल्ली गढ़ैत रहे हइ । ओकर बाप जो ओकर माय साथे नै जइते हल, तब उ कहाँ से आयत हल परवचन करै ले ?)    (बामदा॰5.33)
105    गूह-मूत (इ सुनके बाबू खूब बिगड़लखिन - आदमी हिकै ! साला गदहा ! बर्द-बैल ! अप्पन काम सूझे नै, दिन भर बिना खइने-पीने दोसरा के गूह-मूत, नाला-पमाला साफ कइने बुले । जेकरा घर के आगू-पाछू गंदगी हइ ओकरा ने साफ करइ के चाही ।)    (बामदा॰21.5)
106    गेन्ह (= गन्ह; गन्ध) (~ तोड़ना) (रामदास के कुत्ता मरि गेलै । वाड कमिश्नर के कहलकै । कमिश्नर दरखास लेके आपिस में देलकै । मेस्तर के हरताल चलि रहलै हल । तीन-चार दिन बीत गेलै । लसवा सड़ि को महकि गेलै, गेन्ह तोड़ो लगलै । तब रामदास हमरा भिजुन अइलै कर जोड़ने । दादा ! कुछ उपाय करथो हल । कुतवा सड़ि को महकि गेलै ।)    (बामदा॰21.12)
107    गोटा (एक दिन बूढ़ा सलाह देलकन - महाराज ! लुरि करो लुरि ! काहे ले तों हमरा पीछे पड़ल हो । हलकान हो को मरब करै हो । चलो वह पीपर गाछ तर दूइयो गोटा आराम से गमछा बिछा को सुती । चारि दिन के रिपोटवा हइये हो । रोज ओकरे में कमवेसी करि को बहिया में लिख दहो ।)    (बामदा॰12.23)
108    गोड़ (~ भारी होना; ~ परना) (चेला कहलकन - हो बाबा ! मागु हमरा बोढ़नी से झाँटि को भगा देलको । कहलको, तीन बरीस घर नै चढ़ो देवौ, बढ़न-झँट्टा सटो नै देवौ । बाबा पुछलखिन - से काहे ? चेला कहलकन - पानी पवइया हइ आर काहे । - पानी पवइया ? बाबा बात नै समझि सकलथिन । चेला कहलकन - हो बाबा, हमरा ऐंगना में गोड़ भारी हइ । - गोड़ भारी ? बाबा अचरज से अकबका को, डाँटि को पुछलखिन - ऐंगना में गोड़ होवऽ हइ ? अरे साफ बताव कि कहै ले चाहऽ हें ?; आवइ में राति हो गेलै । गाड़ी पर भौजी कान में सटि को कहलखिन - बौआ ! तों देवर हम भौजाय । देवर माने दोसर वर । देवर-भौजाय में कोय पाप नै । बौआ, हमर सूना गोदी भरि दा । बाँझी नाम छोड़ा दा । तोरा गोड़ परऽ हियो ।; भौजी पागल हो गेलै । एक कट्टी झूठ नै बाबा । जैसे-जैसे करो लगलै कि हमरा से नै रहल गेलै । हो बाबा ! हमहूँ भाँसि गेलियै । बाबा ! जे नै होवै के चाही से सब हो गेलै । आखिर गोड़ भारी हो गेलै ।)    (बामदा॰15.15; 23.19; 24.7)
109    गोतनी (डाकदरनी सब तरह से जाँचि को कहलकै - तोरा में कोय दोस नै हइ, तोरा साँय के बीर्ज में बच्चा दै के सकती नै हइ । ... से दिन से ओकर मरद कोय मौका नै छोड़ै । रात के कहे, दिन भी । मुदा इ भीतर-भीतर बड़ा चिन्तित । केकरा से मिलों, कहाँ मिलों ? ससुरारि परिवार भरल-पूरल । देवर-जेठ, गोतनी, सासु, ननद, जैधी, जावत । एजो देवर जौरे जो जाही तब गोतनी जाने आर कि कहत । नहिरा में दिमाग दौड़ैलक । वहाँ तो आर घमासान ।)    (बामदा॰16.32)
110    गोतनी-नैनी (बगल के गाँव के जुवा मागु-मरद के बियाह होले दस बच्छर हो गेलै मुदा बच्चा के दरेस नैं । साधू-महात्मा से देखा को, तमाम ओहमा-टोटका, वैदराज के जड़ी-जुटका करि को हारि गेल, कहैं कुछ नैं । पूरा परिवार बड़ी चिन्ता में । गोतनी-नैनी से जो ठोना-बादी होवै तब बाँझी कह के गरियावै ।; बाँझी नाम नै छोड़इभो बाबा ! रात-दिन उनकरे पर टेक लगइने रहे । एक दिन ओकरा सपना भेलै कि हमरा यहाँ आव । सबेरे नहा-सोना को गंगा जल लेलक, चल देलक सिंगरी रिख । सास, ननद, गोतनी-नैनी कहलकै एसकर नै जा, केकरे साथ करि ला । इ कहलकै - नै, एक घंटा के रास्ते हइ । दीना-दीनी जाना, दीना-दीनी आना । को डेग हइये हइ ? काहे ले केकरे साथ लेबै ।)    (बामदा॰16.21; 17.7)
111    गोतिया (चित्रगुप्त से बूढ़ा कहलक - सरकार ! पहिले हमरा स्वर्गे देल जाय ! नर्क तो जीवन भर हमरा लिखले हइ । स्वर्ग तनी देख लेतों हल । चित्रगुप्त जी कहलखिन - नै, ऐसन विधान तो नै हइ । फेर बूढ़ा उनकर चरण पकड़ि को कानि को कहलकन - प्रभु, गंगो अप्पन कोर लेको बहऽ हथिन । तोरे जाति-भाय गोतिया हिकियो । कुछ तो अपनापन देखावो ।)    (बामदा॰10.26)
112    गोदी (= गोद) (आवइ में राति हो गेलै । गाड़ी पर भौजी कान में सटि को कहलखिन - बौआ ! तों देवर हम भौजाय । देवर माने दोसर वर । देवर-भौजाय में कोय पाप नै । बौआ, हमर सूना गोदी भरि दा । बाँझी नाम छोड़ा दा । तोरा गोड़ परऽ हियो ।)    (बामदा॰23.18)
113    गोर-बुर्राक (गाँजा के चिलिम में सुट्टा मारइ वाला - चिलिम सुटाकी । चिलिम सुटाकी खाता-पीता परिवार के आदमी । माय-बाप के दुलारू असकरूआ बेटा । मैटरिक पास, लम्बा-तगड़ा, गोर-बुर्राक । मुदा भीतर से बहुत भावुक ।)    (बामदा॰2.28)
114    घर-गिरहस्ती (गुदड़ी अप्पन बेटा के जादे माने, मटोखर के कम, अपना दूध पिलावे अप्पन बेटा के, एकरा बकरी के दूध पिला के पाललक । खैर ! समय के साथ दुयो बढ़ो लगल तब गुरू पिण्डा पर पहुँचैलक । अक्षर ज्ञान भर दुइयो के हो गेलै । फेर तो घर-गिरहस्ती के काम में लग गेला ।)    (बामदा॰1.30)
115    घीचना (= घींचना; खींचना) (ऊ कहना शुरू कैलक - हे बाबा ! साँझ खा-पीको, हाथ पोछने बंगला पर जा लगलियो कि कलरवा पकड़ि को घीचि लेलको, जबरदस्त मागु ! भीतर पलंग पर सुता को केबाड़ी लगा देलको । तोहरो गारी से बिकटी करि देलको । कहलको - उ मटोखरा ! ... बैठल-बैठल गुल्ली गढ़ैत रहे हइ । ओकर बाप जो ओकर माय साथे नै जइते हल, तब उ कहाँ से आयत हल परवचन करै ले ?; जमदूत से कहलखिन - हे जमदूत ! एकरा सीधे नर्क भेजो ! इ नीच हमर बही खराब करि देलक ! जमदूत पकड़ि को घीचो लगल बूढ़ा के ।; साँझ भेलै कहाँ जइतै ? बाबा उठैलका, कतनो उठैलका, नै उठल । तब हाथ पकड़ि के घीचि के ओकरा बैठैलका, कहलका - के हिकी ? तों कहाँ जइबी ? साँझ भेलो, चल जा । राति को एजो औरत नै रहऽ हइ ।)    (बामदा॰5.31; 11.16; 18.31)
116    घीचना (= घींचना; खींचना) (एगो रस्सी के ससँर-फानी बनैलियै । लकड़ी से कुतवा के मुड़िया उठा के ससँर-फनिया हेला के लकड़िये से कसि देलियै । घीचने गाँव से बाहर जाके खद्धा खनि को ओकरे में ओकरा दे को उपर से माटी भरि देलियै । समूचा गाँव शोर हो गेलै कि रमदसवा के मरल कुत्ता बिगलकै रूपैया पर ।)    (बामदा॰21.19)
117    घुज्ज (अन्हार ~ !) (ओजो से घर चललियो । तों तो देखवे कैल्हो ह । राति के बारह बज रहलै हल । गाँव, ठाँव-ठाँव कहैं कोय चिड़ियाँ-चित नै, मनुखा हित, आदमी कि जानवर के भी चाल-चुहट नै ! अन्हार घुज्ज ! राति ... खाली हवा के साँय-साँय राह में सिरिफ हम दू आदमी ! देवर-भौजाय ।)    (बामदा॰24.3)
118    घूस-घास (बूढ़ा फेर पूछलकन - बाबा ! वहाँ कुछ घूस-घास आर कुछ ... माने चोर दरवाजा से स्वर्ग जाय के उपाय नै ?)    (बामदा॰10.11)
119    घोघा (= घूघा, घुग्घा; सिर और चेहरा ढकने का आँचल का भाग) (~ तानना) (आज चिलिम सुटाकी के मागु भी परवचन सुनइ ले आ गेली । औरत के झुण्ड में घोघा तान के बैठ गेली ।)    (बामदा॰13.2)
120    चकड़ी (~ गुम) (बूढ़ा अप्पन पन्ना के अन्त में लिखल बतैलकन - स्वर्ग नै नर्क ... चित्रगुप्त के चकड़ी गुम .... फेर से पढ़लका, अच्छर के मिलान कइलका । इ हम्मर अच्छर नै हिकै ।)    (बामदा॰11.12)
121    चनकना (दिमाग ~) (तब तक बाबा के चौपाय माइक बोलल - 'पुनि प्रणवो पृथु राज समाना । पर अध सुने सहस दस काना ॥' एने तीनो गँजेड़ी काना हल । एक आँखि वाला । तीनो के दिमाग चनकल । धड़फड़ी साव कहलखिन - हमरे तीनो के देखि को इ चौपइया छोड़लकइ कि ?)    (बामदा॰8.19)
122    चमचमौआ (~ टिकुली) (चिलिम सुटाकी के मागु बढ़िया से साबुन लगा को नहैलक । तौलिया से बाल सुखा के जूड़ा बनैलक । मुँह में पावडर लगैलक, देह में, कान में, इतर के फाहा खोंसलक, जूड़ा में जूही के माला बाँधलक, ठोर रंगलक, आँखि में काजर, निरार में चमचमौआ टिकुली, नीचे एक कच्छी, उपर छाती के उभार एक चोली टैट कैलक । उपर से एक झीना नाइटी पिन्ह के, हाथ में पूजा के सामग्री एक सज्जी में लेके चलल मन्दिर ।)    (बामदा॰13.28)
123    चाल-चुहट (ओजो से घर चललियो । तों तो देखवे कैल्हो ह । राति के बारह बज रहलै हल । गाँव, ठाँव-ठाँव कहैं कोय चिड़ियाँ-चित नै, मनुखा हित, आदमी कि जानवर के भी चाल-चुहट नै ! अन्हार घुज्ज ! राति ... खाली हवा के साँय-साँय राह में सिरिफ हम दू आदमी ! देवर-भौजाय ।)    (बामदा॰24.3)
124    चावर (= चाउर, चावल) (चिलिम सुटाकी जग्गशाला में आको सलाय से आगि सुलगैलक । पत्थल के चूल्हा पर, एक्के बेरी झरना के पानी में चावर धोके चावर-दालि-नोन-मिरचाय-हरदी-मसाला डाल के खिचड़ी चढ़ा देलक ।)    (बामदा॰18.4)
125    चिड़ियाँ-चित (ओजो से घर चललियो । तों तो देखवे कैल्हो ह । राति के बारह बज रहलै हल । गाँव, ठाँव-ठाँव कहैं कोय चिड़ियाँ-चित नै, मनुखा हित, आदमी कि जानवर के भी चाल-चुहट नै ! अन्हार घुज्ज ! राति ... खाली हवा के साँय-साँय राह में सिरिफ हम दू आदमी ! देवर-भौजाय ।)    (बामदा॰24.2)
126    चिराँय-चुरमुनी (सुबह के सूरज के लाल गोल चक्का आसमान पर धीरे-धीरे चढ़ल जा रहल हे । चिराँय-चुरमुनी अप्पन खोंता से बाहर आके आहार के खोज में झुण्ड बना-बना तरह-तरह के सुर निकाल रहल हे ।; बाबा मटोखर दास आज कहलका - गिरहस्त धर्म सबसे बड़ा धरम हइ । गिरहस्त अप्पन कमाय से संसार के पालन करे हइ । चिराँय-चुरमुनी से लेको गाय, भैंस, बकरी, कुत्ता, बिलाय, चूहा-पेचा, सुण्डा-भुसुण्डा जतना जे जीव-जन्तु हइ ।)    (बामदा॰1.10; 22.10)
127    चिलिम-सुटाकी (अब चिलिम सुटाकी के बारे में बहुत कहै के जरूरत नै हइ, काहे कि इ नाम अप्पन अर्थ खुला रखने हइ । गाँजा के चिलिम में सुट्टा मारइ वाला - चिलिम सुटाकी । चिलिम सुटाकी खाता-पीता परिवार के आदमी । माय-बाप के दुलारू असकरूआ बेटा । मैटरिक पास, लम्बा-तगड़ा, गोर-बुर्राक । मुदा भीतर से बहुत भावुक ।; उ तुरत समझ गेल कि वहाँ गँजेड़ी के जमघट लगल हइ । एकरो मन चटपटा गेल । जल्दी-जल्दी भीड़ के सोरिया को वहाँ पहुँच गेल । देखे हइ वहाँ तीन गँजेड़ी बैठल हइ । गुल भी सुलगि को लाल हो गेल । अब करीब-करीब गाँजा भी लटल हइ । चिलिम में बोजइ भर के देरी ! उ एक मिनट इन्तजार कैलक कि गाँजा बोजा गेल । पहिला सुट्टा चिलिम सुटाकी ऐसन से मारलक कि चिलिम लहकि गेल ।; नगड़ू यादव कहलका - अरे ! जो चिलिम सुटकिया । काहे ले तों चूड़ा के गवाही दही बनब करें हें । उ साफ तो हमरे तीनों के देखि को बोललइ - तीन काना तऽ तीन चौपाय !)    (बामदा॰2.24, 25-26; 8.16; 9.5)
128    चुभुर-चुभुर (~ दूध पीना) (उ दौड़ के वहाँ पहुँचल । देखे हे, जब-जब कौआ उ बच्चा के आँख में लोल मारइ ले चाहे तब-तब उ बचवा हाथ पैर उपर देने फेंको लगे हे आर जोर-जोर से कानो लगे हे । कौआ डर से लोल मारना छोड़ दे हे । करीब पहुँचल । कौआ सब भागि गेल । इ हलखि को ओकरा गोदी में लेलकी । बचवा चुभुर-चुभुर दूध पियो लगल । रोना छोड़ के हँसो लगल ।)    (बामदा॰1.22)
129    चुरू (= चुल्लू) (मइया से पूछलियै - बाबू कहाँ गेलखिन मइया ? मइया कहलकइ - खेत गेलौ हे । हम खेत चल गेलियो । देखते के साथ कहलखुन - अरे, खुरपी ने लेने अइथी हल ? इ थारी में कि नानल्ही कलौआ ! एते सबेरे हम खा हियै ? हम कहलियन - नै बाबू । हम आय तोर पूजा करवो, तनी पिरथी मार के बैठ जा । उ बैठ गेलखिन । हम जइसैं उनकर मथवा पर जला ढारै ले चाहलियै कि लोटवा हमरा हाथा से लेको एक चुरू मुड़िया पर छींट लेलखिन, बाँकी पी गेलखिन ।)    (बामदा॰7.26)
130    चूड़ा (~ के गवाही दही) (नगड़ू यादव कहलका - अरे ! जो चिलिम सुटकिया । काहे ले तों चूड़ा के गवाही दही बनब करें हें । उ साफ तो हमरे तीनों के देखि को बोललइ - तीन काना तऽ तीन चौपाय ! मन तो करऽ हइ कि मंचवे पर चढ़ के लगा दियै तीन लाठी बामा बगल मथवा पर बस ! ओजै सोहा ! तोरे आवइ हो चौपाय पदाहो भाय तब ला ।)    (बामदा॰9.5)
131    चूहा-पेचा (बाबा मटोखर दास आज कहलका - गिरहस्त धर्म सबसे बड़ा धरम हइ । गिरहस्त अप्पन कमाय से संसार के पालन करे हइ । चिराँय-चुरमुनी से लेको गाय, भैंस, बकरी, कुत्ता, बिलाय, चूहा-पेचा, सुण्डा-भुसुण्डा जतना जे जीव-जन्तु हइ ।)    (बामदा॰22.11)
132    चेहों-चेहों (~ चिल्हार मारना) (गुदड़ी देवी घाट पर पहुँच के देखे हे, एक जगह झील के किनारा पर वहाँ से थोड़े दूर पाँच-सात कौआ घेरने हइ । बीच से आदमी के तुरतैं के जनमल बच्चा चेहों-चेहों चिल्हार मारि रहल हे ।)    (बामदा॰1.16)
133    छट (~ सना) (जब अगिन के सात फेरा पड़ि जइतौ, बेदी तर बैठा को सिन्नुर दान हो जइतौ, आर औरतिया गइतौ - धीया पड़लो सजन घर जी बाबा ! अबे बाबा सुतहो निचीत ... बस उ बाँसा निकलि को छट सना लड़कवा के नीचे से अथिया में हेलि जइतै । तेइयो चैन नै । तब समाद अइतौ लड़का रूसल हो इसकूटर ले । समधी रूसल हो गाय ले । तोरी बहिन के समधी ... तोरी माय के दमाद ... जैसे हमहीं जनमैलियन हे इनका ! हमरे कमा को खिलैता । रे नुनु ! भ्रूण हत्या लाचार कोय करऽ हइ ।)    (बामदा॰4.13)
134    छट-पट्ट (= छटपट) (बूढ़ा कर जोरि को कहलकै - एकरा में कि हइ सरकार ! एकरा झूठ पकड़ैवाला मशीन से जाँच करि लहो । असपाट बैठा दहो । दूध के दूध, पानी के पानी निकल जइतो । ... असपाट बैठल ! जाँच मशीन लगैलक - अच्छर हू-ब-हू चित्रगुप्त जी के निकलि गेल । अब चित्रगुप्त जी छट-पट्ट । तत्काल परभाव से जमराज उनका सेसपंज करि देलखिन ।)    (बामदा॰11.31)
135    छरदेवाली (चिलिम सुटाकी के मागु बढ़िया से साबुन लगा को नहैलक । तौलिया से बाल सुखा के जूड़ा बनैलक । ... उपर से एक झीना नाइटी पिन्ह के, हाथ में पूजा के सामग्री एक सज्जी में लेके चलल मन्दिर । बाबा मन्दिर के छरदेवाली के फाटक खुलल हल । इ सीधे अन्दर चल गेल । देखे हे राति दिन के समान टहपोर इंजोरिया ।)    (बामदा॰13.31)
136    छुछुनर (= छुछुन्नर; छुछुन्दर) (मागु जानलकन । झाँझी कुत्ती सन झुँझुआ को हुललन - दुर्रर्र ... ने ... जाय छुछुनर । तों एते दिन से बेकारे मुंशीगिरी कइनें । तोरा ठकि लेलकै एगो मिरतुलोक के मरल मुंशी । आखिर चित्रगुप्त जी अंतिम महाकाल के कोट में अपील कैलका ।)    (बामदा॰12.2)
137    छौड़ी (नौकरवा कहलकै - नीलमणि बाबू बोलावऽ हथिन बंगला पर पैखाना साफ करै ले । एतना सुनते मातर बाबू भुत्त हो गेलखिन । बिगड़ि को बोललखिन - नीलमनिया कहाँ से आयल हे । देखले छौड़ी समधिन रे ! अजुके बनिया कल्हु के सेठ । ओकर बेटवा से एकरा कम हिस्सा पड़तै कि जादे रे ! अप्पन पैखाना उ अपनै काहे नै साफ करै ? इ मेस्तर हिकै ? नै जैबा एजो से ... ।)    (बामदा॰21.27)
138    जड़ी-जुटका (बगल के गाँव के जुवा मागु-मरद के बियाह होले दस बच्छर हो गेलै मुदा बच्चा के दरेस नैं । साधू-महात्मा से देखा को, तमाम ओहमा-टोटका, वैदराज के जड़ी-जुटका करि को हारि गेल, कहैं कुछ नैं । पूरा परिवार बड़ी चिन्ता में । गोतनी-नैनी से जो ठोना-बादी होवै तब बाँझी कह के गरियावै ।)    (बामदा॰16.20)
139    जतना (= जेतना; जितना) (जीवन में कौन पाप हम नै कैलों हे । कतना लड़की के साथ बलात्कार, कतना चोरी, कतना डकैती, कतना हत्या । जतना कइलों ओतना आदि भी नै हइ । अब हम कि करी बाबा ! कुछ सलाह दहो । अब हमरा रात-दिन इहे फिकिर घेरने हो ।)    (बामदा॰9.28)
140    जत्ते (= जितना) (~ ... तत्ते = जितना ... उतना) (बाबा देखते-देखते पागल हो गेला । उनकर धीरज जवाब दे देलक । उ अपनापन भूल गेला । उनकर जोग, ब्रह्मचर्ज उनकर अथी में घुस गेल । आव देखलका न ताव उ लड़की के छाती के उभार में पीछे से हाथ लगा देलका । लड़की ठठा के हँसलन ह ... ह ... हा ... हा ... । कहलकन - बाबा धीरज धरो । हम इ बेला में इहे काम ले तो अइवे कैलों हे । इतमिनान से बिछौना पर ! जत्ते मन होतो तत्ते ... हदिया रहला हे काहे । इ भगवान के सामने ? तोहरा महात्मा के अच्छा लगै हो ?)    (बामदा॰14.26)
141    जनमना (= जलमना; जन्म लेना, पैदा होना) (गुदड़ी देवी घाट पर पहुँच के देखे हे, एक जगह झील के किनारा पर वहाँ से थोड़े दूर पाँच-सात कौआ घेरने हइ । बीच से आदमी के तुरतैं के जनमल बच्चा चेहों-चेहों चिल्हार मारि रहल हे ।)    (बामदा॰1.16)
142    जनमाना (= जलमाना; पैदा करना) (जब अगिन के सात फेरा पड़ि जइतौ, बेदी तर बैठा को सिन्नुर दान हो जइतौ, आर औरतिया गइतौ - धीया पड़लो सजन घर जी बाबा ! अबे बाबा सुतहो निचीत ... बस उ बाँसा निकलि को छट सना लड़कवा के नीचे से अथिया में हेलि जइतै । तेइयो चैन नै । तब समाद अइतौ लड़का रूसल हो इसकूटर ले । समधी रूसल हो गाय ले । तोरी बहिन के समधी ... तोरी माय के दमाद ... जैसे हमहीं जनमैलियन हे इनका ! हमरे कमा को खिलैता । रे नुनु ! भ्रूण हत्या लाचार कोय करऽ हइ ।)    (बामदा॰4.15)
143    जर-जिद्द (~ से पड़ना) (एने तीनो गँजेड़ी काना हल । एक आँखि वाला । तीनो के दिमाग चनकल । धड़फड़ी साव कहलखिन - हमरे तीनो के देखि को इ चौपइया छोड़लकइ कि ? ... बाबा तेसर चौपाय बोलला - 'मूढ़ तोहि अतिशय अभिमाना । नारि सिखावन करसि न काना ॥' मियाँ सुलेमान कहलका - इ साला ! हमरे तीनों पर जर-जिद्द से पड़ गेलइ ? ... चिलिम सुटाकी के गुरु ! निन्दा बरदास्त नै भेलइ । कहलकइ - तोरा नै कहलखुन हो । काना माने कान ।)    (बामदा॰8.30)
144    जरलाहा (भौजी कहलखिन - उ जरलाहा आदमी रहते हल, संग-परसंग करते हल, तब कि बात हलै । चलो, उतरि को लक्खीसराय में फोन करि को देखियै । उतरि को बेचारी फोन कैलकै । फोन लागि भी गेलै । ओने से करमन दा के जवाब अइलै । लछमी तोरा भिजुन आको कि करवै ?)    (बामदा॰23.23)
145    जस (= यश) (साँझ भेलै कहाँ जइतै ? बाबा उठैलका, कतनो उठैलका, नै उठल । तब हाथ पकड़ि के घीचि के ओकरा बैठैलका, कहलका - के हिकी ? तों कहाँ जइबी ? साँझ भेलो, चल जा । राति को एजो औरत नै रहऽ हइ । राति को बाघ-सिंघ, साँप-बिच्छा निकलतो । कैसनो कुछ हो जाय, के जानऽ हइ ? जस दूर हइ, अपजस भीर । हमरो फँसैबी । चल जा ।)    (बामदा॰19.2)
146    जाति-भाय (= जात-भाय) (चित्रगुप्त से बूढ़ा कहलक - सरकार ! पहिले हमरा स्वर्गे देल जाय ! नर्क तो जीवन भर हमरा लिखले हइ । स्वर्ग तनी देख लेतों हल । चित्रगुप्त जी कहलखिन - नै, ऐसन विधान तो नै हइ । फेर बूढ़ा उनकर चरण पकड़ि को कानि को कहलकन - प्रभु, गंगो अप्पन कोर लेको बहऽ हथिन । तोरे जाति-भाय गोतिया हिकियो । कुछ तो अपनापन देखावो ।)    (बामदा॰10.26)
147    जारन (= जलावन) (इ कहलकै - नै, एक घंटा के रास्ते हइ । दीना-दीनी जाना, दीना-दीनी आना । को डेग हइये हइ ? काहे ले केकरे साथ लेबै । जे समय में उ मन्दिर पहुँचल से समय में चिलिम सुटाकी जारन तोड़ै ले पहाड़ पर चढ़ि गेल हल । वहाँ एक आदमी अदम जाति नै । भले गाछ पर दू चारि उछलैत-कूदैत बानर-कौआ, रूक्खी । इतमिनान से गरम जल के कुण्ड सतधरवा में नहैलक मलि मलि को ।)    (बामदा॰17.11)
148    जारन-झूरी (चिलिम सुटाकी खा पीको एक झप्प लेलका, फेर उठला । देखै हथ लड़की सुतले हइ । खैर, फेर साँझूक खाना ले जारन-झूरी सोरियैलक । चूल्हा के चेतैलका, तेइयो औरत सूतले । बाबा मने-मन सोचो लगला - के इ घर से फाजिल औरत हइ ? एकरा कोय कहै-सुनै वाला हइ कि नै ? एसकरे इ बियाबान में एकरा डर-उर लगऽ हइ कि नै ?)    (बामदा॰18.28)
149    जावत (डाकदरनी सब तरह से जाँचि को कहलकै - तोरा में कोय दोस नै हइ, तोरा साँय के बीर्ज में बच्चा दै के सकती नै हइ । ... से दिन से ओकर मरद कोय मौका नै छोड़ै । रात के कहे, दिन भी । मुदा इ भीतर-भीतर बड़ा चिन्तित । केकरा से मिलों, कहाँ मिलों ? ससुरारि परिवार भरल-पूरल । देवर-जेठ, गोतनी, सासु, ननद, जैधी, जावत । एजो देवर जौरे जो जाही तब गोतनी जाने आर कि कहत । नहिरा में दिमाग दौड़ैलक । वहाँ तो आर घमासान ।)    (बामदा॰16.32)
150    जीह (= जीभ) (खाना बनाना औरत के काम हइ । सेकरा ले हम हइये ही तब ? चिलिम सुटाकी आँख गुड़ार के बोलल - अरे भाय ! तों जो ने, जहाँ जायँ । हम औरत के बनायल नै खा हियै । लड़की मुस्का के गुम हो गेल । मने-मन कहलक - औरत के तो तों जीह से चाटवऽ । अच्छा ठहरो, जइभो कहाँ ... पट्ठा ! कोय बचलै, जे तों बचभो !)    (बामदा॰18.11)
151    जुआन (= जवान) (अगर बच्चा बेटा हो गेलौ, तब तो जौख-सौख में रहभीं । जो कहैं भैवा बेटी हो गेलौ तब तो एगो खोंचाहल बाँस नीचे से अथिया में हेलि जइतौ । जैसे-जैसे बेटिया बढ़तौ वैसे-वैसे उ बाँसा बढ़ल जइतौ, उपर चढ़ल जइतौ । जतना बेटी भेल जइतौ ओतना बाँस हेलल जइतौ । जब बेटिया जुआन हो जइतौ तब बाँसा मथवा में ठेकि जइतौ ।; बाबा अधरात बेला में, इ सुनट्टा राति में, इ रूप-रंग के इ भेस-भूसा में जुआन सुन्दर औरत देख के अवाक रह गेला । मुँह में आवाज नै । टुकर-टुकर ... निहारैत रहला ।; बाबा, तोहर चिलिम सुटाकी के मागु हिकियो । हम तोर परीच्छा ले ऐलियो हल । हो गेलो तोर परीच्छा । अब काम पर परवचन नै दिहो । आर तेजी से बाहर निकल गेल । बाबा कहलका - हाय रे बाप ! हम कहैं के नै रहलों । भले तखनै जे साली के ... दौड़ला पीछे से मुदा उ जुआन छौड़ी, इ बूढ़ा - रींगि गेलन । पकड़ो नै देलकन । हरान हो को लौटि गेला । मन में भारी अपसोच ।)    (बामदा॰3.30; 14.8; 15.2)
152    जेकरा (~ ... सेकरा = जिसे ... उसे) (कि करियै हो बाबा ? जेकरा रोज खाय ले मिलऽ हलइ सेकरा तीन बरीस नै । कैसे रहबै हो बाबा ! अ ... हँ ... हँ ... हँ ... खायले जी ललाय । लाल पीयर देखऽ हियै तऽ मन बारह-तेरह किसिम के हो जा हइ ।)    (बामदा॰16.1)
153    जैधी (डाकदरनी सब तरह से जाँचि को कहलकै - तोरा में कोय दोस नै हइ, तोरा साँय के बीर्ज में बच्चा दै के सकती नै हइ । ... से दिन से ओकर मरद कोय मौका नै छोड़ै । रात के कहे, दिन भी । मुदा इ भीतर-भीतर बड़ा चिन्तित । केकरा से मिलों, कहाँ मिलों ? ससुरारि परिवार भरल-पूरल । देवर-जेठ, गोतनी, सासु, ननद, जैधी, जावत । एजो देवर जौरे जो जाही तब गोतनी जाने आर कि कहत । नहिरा में दिमाग दौड़ैलक । वहाँ तो आर घमासान ।)    (बामदा॰16.32)
154    जों-जों (= ज्यों-ज्यों) (गुदड़ी अप्पन बेटा के जादे माने, मटोखर के कम, अपना दूध पिलावे अप्पन बेटा के, एकरा बकरी के दूध पिला के पाललक । खैर ! समय के साथ दुयो बढ़ो लगल तब गुरू पिण्डा पर पहुँचैलक । अक्षर ज्ञान भर दुइयो के हो गेलै । फेर तो घर-गिरहस्ती के काम में लग गेला । जों-जों बढ़ल जाय तों तों ओकर अप्पन बेटवा एकरा साथ नौकर वाला वेवहार करो लगल । इ माय समझ के गुदड़ी के परचारे तो उहो अपने बेटवा के पक्ष में खड़ा हो जाय ।)    (बामदा॰1.30)
155    जोड़ (सुलेमान मियाँ लगले कहलका - एकरा बढ़िया चौपाय नै आवइ हे । बाबा श्याम दास बढ़िया बोलते हलइ । धड़फड़ी साव कहलखिन - कहाँ बाबा श्याम दास आर कहाँ ई मुरूख मटोखर दास । कोय जोड़ हइ ?)    (बामदा॰8.24)
156    जौख-सौख (ओकर समूचे देहे रसगुल्ला सन मीठ लगऽ होतौ । लगऽ होतौ कहाँ से खाँव । जब बच्चा पर बच्चा हो जइतौ तब उहे मौगी लगो लगतौ सड़ल मछली सन । ओरायल भात नियर । मन भिनभिना जइतौ । अगर बच्चा बेटा हो गेलौ, तब तो जौख-सौख में रहभीं । जो कहैं भैवा बेटी हो गेलौ तब तो एगो खोंचाहल बाँस नीचे से अथिया में हेलि जइतौ । जैसे-जैसे बेटिया बढ़तौ वैसे-वैसे उ बाँसा बढ़ल जइतौ, उपर चढ़ल जइतौ ।)    (बामदा॰3.27)
157    जौरे (= जउरे; साथ में) (डाकदरनी सब तरह से जाँचि को कहलकै - तोरा में कोय दोस नै हइ, तोरा साँय के बीर्ज में बच्चा दै के सकती नै हइ । ... से दिन से ओकर मरद कोय मौका नै छोड़ै । रात के कहे, दिन भी । मुदा इ भीतर-भीतर बड़ा चिन्तित । केकरा से मिलों, कहाँ मिलों ? ससुरारि परिवार भरल-पूरल । देवर-जेठ, गोतनी, सासु, ननद, जैधी, जावत । एजो देवर जौरे जो जाही तब गोतनी जाने आर कि कहत । नहिरा में दिमाग दौड़ैलक । वहाँ तो आर घमासान ।)    (बामदा॰16.32)
158    झाँझी (~ कुत्ती) (मागु जानलकन । झाँझी कुत्ती सन झुँझुआ को हुललन - दुर्रर्र ... ने ... जाय छुछुनर । तों एते दिन से बेकारे मुंशीगिरी कइनें । तोरा ठकि लेलकै एगो मिरतुलोक के मरल मुंशी । आखिर चित्रगुप्त जी अंतिम महाकाल के कोट में अपील कैलका ।)    (बामदा॰12.1)
159    झाँटना (बढ़नी/ बोढ़नी से ~) (चेला कहलकन - हो बाबा ! मागु हमरा बोढ़नी से झाँटि को भगा देलको । कहलको, तीन बरीस घर नै चढ़ो देवौ, बढ़न-झँट्टा सटो नै देवौ । बाबा पुछलखिन - से काहे ? चेला कहलकन - पानी पवइया हइ आर काहे ।)    (बामदा॰15.12)
160    झाँपना (= ढँकना, छिपाना) (आवइ में राति हो गेलै । गाड़ी पर भौजी कान में सटि को कहलखिन - बौआ ! तों देवर हम भौजाय । देवर माने दोसर वर । देवर-भौजाय में कोय पाप नै । बौआ, हमर सूना गोदी भरि दा । बाँझी नाम छोड़ा दा । तोरा गोड़ परऽ हियो । दुइयो हाथ से निहोरा करऽ हियो । हम कहलियै - नै भौजी । करमन दा रहनै तब सब छपि जइतो हल । बिना उनके झाँपल नै रहतो, उगाल हो जइतो । संसार भरि गदाल हो जइतो । दुइयो के लोग थुर्ररी-थुर्ररी करतो । बाप रे बाप ! हम ऐसन काम नै करवो ।)    (बामदा॰23.20)
161    झार (= झाड़) (गुरूजी के अन्तकाल हो गेला के बाद मटोखर गाँव आ गेला । गाँव के एक छोर पर झोपड़ी बना के सीता राम के मूरती पधरा के पूजा करो लगला । खुद बड़ी चरित्रवान । कुछ मंतर-तंतर भी सीख लेलका हल । साँप-बिच्छा के झार, कुछ जड़ी-गुटका, जैसे कमलवाय के इलाज, परसौती के जड़ी देना, बाता के जड़ी । सब मिल-मिला के इनकर जनता में कदर होवो लगल ।)    (बामदा॰2.6)
162    झुँझुआना (झाँझी कुत्ती सन ~) (मागु जानलकन । झाँझी कुत्ती सन झुँझुआ को हुललन - दुर्रर्र ... ने ... जाय छुछुनर । तों एते दिन से बेकारे मुंशीगिरी कइनें । तोरा ठकि लेलकै एगो मिरतुलोक के मरल मुंशी । आखिर चित्रगुप्त जी अंतिम महाकाल के कोट में अपील कैलका ।)    (बामदा॰12.1)
163    झूरी (= टहनियों के सूखे टुकड़े; सूखा काठ, डंठल आदि के छोटे खंड) (जारन-~) (चिलिम सुटाकी खा पीको एक झप्प लेलका, फेर उठला । देखै हथ लड़की सुतले हइ । खैर, फेर साँझूक खाना ले जारन-झूरी सोरियैलक । चूल्हा के चेतैलका, तेइयो औरत सूतले । बाबा मने-मन सोचो लगला - के इ घर से फाजिल औरत हइ ? एकरा कोय कहै-सुनै वाला हइ कि नै ? एसकरे इ बियाबान में एकरा डर-उर लगऽ हइ कि नै ?)    (बामदा॰18.28)
164    टहपोर (~ इंजोरिया) (चिलिम सुटाकी के मागु बढ़िया से साबुन लगा को नहैलक । तौलिया से बाल सुखा के जूड़ा बनैलक । ... उपर से एक झीना नाइटी पिन्ह के, हाथ में पूजा के सामग्री एक सज्जी में लेके चलल मन्दिर । बाबा मन्दिर के छरदेवाली के फाटक खुलल हल । इ सीधे अन्दर चल गेल । देखे हे राति दिन के समान टहपोर इंजोरिया ।)    (बामदा॰14.1)
165    टिटहीं (= टिट्टिभ; टिटहरा) (चिराँय-चुरमुनी अप्पन खोंता से बाहर आके आहार के खोज में झुण्ड बना-बना तरह-तरह के सुर निकाल रहल हे । सब मिला को लगे हे कि जल तरंग बज रहल हे । कौआ के काँव-काँव, टिटहीं के टीं-टीं, टें-टें, महुअलि के हिप-हिप, कचवचिया के कुन-कुन कुच-कुच, मैना के चें-चें ... आदि सुर मिल-मिला के बड़ी अच्छा लग रहल हल ।)    (बामदा॰1.12)
166    टुकुर-टुकुर (~ देखना) (नगड़ू जादव समेत तीनों सेली-सोंटा उठैलक घर चल गेल । चिलिम सुटाकी टुकुर-टुकुर तीनों के घर जायत देखैत रहि गेल ।)    (बामदा॰9.12)
167    टैट (= टाइट; चुस्त, कसा हुआ; तंग) (हलुआ ~ होना) (बूढ़ा स्वर्ग नर्क के बीच दौड़ लगावो लगल । चित्रगुप्त जी पीछे-पीछे, कि कहैं साला ई सुति नै जाय । आराम नै फरमावो लगे । इहो दौड़थ बेचारे । भला आराम से बैठल रहै वाला चित्रगुप्त जी ! भारी मोसकिल में फँसला । इनकर हलुआ टैट हो गेलन ।)    (बामदा॰12.21)
168    ठठा के (~ हँसना) (बाबा देखते-देखते पागल हो गेला । उनकर धीरज जवाब दे देलक । उ अपनापन भूल गेला । उनकर जोग, ब्रह्मचर्ज उनकर अथी में घुस गेल । आव देखलका न ताव उ लड़की के छाती के उभार में पीछे से हाथ लगा देलका । लड़की ठठा के हँसलन ह ... ह ... हा ... हा ... । कहलकन - बाबा धीरज धरो । हम इ बेला में इहे काम ले तो अइवे कैलों हे । इतमिनान से बिछौना पर ! जत्ते मन होतो तत्ते ... हदिया रहला हे काहे । इ भगवान के सामने ? तोहरा महात्मा के अच्छा लगै हो ?)    (बामदा॰14.24)
169    ठाँव-ठाँव (~ होना) (संजोग से चिलिम सुटाकी तीन दिन ले मामू घर न्योता पूरइ ले चल गेल हल । मागु सोचलक - इहे मौका हे । फेर मौका मिले कि नै मिले । सारा गाँव ठाँव-ठाँव हो गेल । गरमी के दिन । चिलिम सुटाकी के मागु बढ़िया से साबुन लगा को नहैलक । तौलिया से बाल सुखा के जूड़ा बनैलक । ... उपर से एक झीना नाइटी पिन्ह के, हाथ में पूजा के सामग्री एक सज्जी में लेके चलल मन्दिर । बाबा मन्दिर के छरदेवाली के फाटक खुलल हल । इ सीधे अन्दर चल गेल । देखे हे राति दिन के समान टहपोर इंजोरिया ।)    (बामदा॰13.25)
170    ठिसुआना (देखते मातर लड़की गोड़ लगलक । जय हो बाबा सिंगरी रिख । साछाते मिलि गेल्हो । चाहलक दौड़ के चरण में लिपटि जाय । मुदा चिलिम सुटाकी जे डँटावन डाँटलक कि इ ठिसुआ गेल ।)    (बामदा॰17.23)
171    ठेकना (= की सीमा तक पहुँचना) (अगर बच्चा बेटा हो गेलौ, तब तो जौख-सौख में रहभीं । जो कहैं भैवा बेटी हो गेलौ तब तो एगो खोंचाहल बाँस नीचे से अथिया में हेलि जइतौ । जैसे-जैसे बेटिया बढ़तौ वैसे-वैसे उ बाँसा बढ़ल जइतौ, उपर चढ़ल जइतौ । जतना बेटी भेल जइतौ ओतना बाँस हेलल जइतौ । जब बेटिया जुआन हो जइतौ तब बाँसा मथवा में ठेकि जइतौ ।)    (बामदा॰4.1)
172    ठोना-बादी (बगल के गाँव के जुवा मागु-मरद के बियाह होले दस बच्छर हो गेलै मुदा बच्चा के दरेस नैं । साधू-महात्मा से देखा को, तमाम ओहमा-टोटका, वैदराज के जड़ी-जुटका करि को हारि गेल, कहैं कुछ नैं । पूरा परिवार बड़ी चिन्ता में । गोतनी-नैनी से जो ठोना-बादी होवै तब बाँझी कह के गरियावै ।)    (बामदा॰16.21)
173    ठोर (= ओंठ) (चिलिम सुटाकी के मागु बढ़िया से साबुन लगा को नहैलक । तौलिया से बाल सुखा के जूड़ा बनैलक । मुँह में पावडर लगैलक, देह में, कान में, इतर के फाहा खोंसलक, जूड़ा में जूही के माला बाँधलक, ठोर रंगलक, आँखि में काजर, निरार में चमचमौआ टिकुली, नीचे एक कच्छी, उपर छाती के उभार एक चोली टैट कैलक । उपर से एक झीना नाइटी पिन्ह के, हाथ में पूजा के सामग्री एक सज्जी में लेके चलल मन्दिर ।)    (बामदा॰13.28)
174    डर-उर (चिलिम सुटाकी खा पीको एक झप्प लेलका, फेर उठला । देखै हथ लड़की सुतले हइ । खैर, फेर साँझूक खाना ले जारन-झूरी सोरियैलक । चूल्हा के चेतैलका, तेइयो औरत सूतले । बाबा मने-मन सोचो लगला - के इ घर से फाजिल औरत हइ ? एकरा कोय कहै-सुनै वाला हइ कि नै ? एसकरे इ बियाबान में एकरा डर-उर लगऽ हइ कि नै ?)    (बामदा॰18.30)
175    डाकदरनी (आखिर दुइयो जीव पटना के नामी डाकदरनी से जाँच करवैलक । डाकदरनी सब तरह से जाँचि को कहलकै - तोरा में कोय दोस नै हइ, तोरा साँय के बीर्ज में बच्चा दै के सकती नै हइ ।; मागु-मरद दुइयो गाँव लौटि रहल हल । रेलगाड़ी पर मरद पूछलकै - डकदरनियाँ कि कहलको ?; करमन दा कुरधल-रूसल दिल्ली चल गेला । वहाँ से कमा को पैसा-वैसा घर भेज दे हथिन । तीन बच्छर से घर नै ऐलखिन हे । एक दिन भौजी हमरा कहलखिन - बौआ ! हमरा पेट में दरद करो हइ । चलो पटना, डाकदरनी से हमरा देखा दा ।)    (बामदा॰16.23, 27; 23.8)
176    तखनै (= तखनइ; उसी क्षण) (बाबा, तोहर चिलिम सुटाकी के मागु हिकियो । हम तोर परीच्छा ले ऐलियो हल । हो गेलो तोर परीच्छा । अब काम पर परवचन नै दिहो । आर तेजी से बाहर निकल गेल । बाबा कहलका - हाय रे बाप ! हम कहैं के नै रहलों । भले तखनै जे साली के ... दौड़ला पीछे से मुदा उ जुआन छौड़ी, इ बूढ़ा - रींगि गेलन । पकड़ो नै देलकन । हरान हो को लौटि गेला । मन में भारी अपसोच ।)    (बामदा॰15.1)
177    तत्ते (= उतना) (जत्ते ... ~ = जितना ... उतना) (बाबा देखते-देखते पागल हो गेला । उनकर धीरज जवाब दे देलक । उ अपनापन भूल गेला । उनकर जोग, ब्रह्मचर्ज उनकर अथी में घुस गेल । आव देखलका न ताव उ लड़की के छाती के उभार में पीछे से हाथ लगा देलका । लड़की ठठा के हँसलन ह ... ह ... हा ... हा ... । कहलकन - बाबा धीरज धरो । हम इ बेला में इहे काम ले तो अइवे कैलों हे । इतमिनान से बिछौना पर ! जत्ते मन होतो तत्ते ... हदिया रहला हे काहे । इ भगवान के सामने ? तोहरा महात्मा के अच्छा लगै हो ?)    (बामदा॰14.26)
178    तनी (~ सा = जरा सा) (मौगी के इ बात लगतौ जैसे मथवा में हथौड़ा मारब करऽ हइ । तब निकलभीं बरतुहारी में । भीखमंगवा जेकरा घर भूँजी-भाँग नै, से माँगतौ एक लाख, तब बाँसा वाला खोंचा लगतौ कि मथवा फारि को निकलि जायत । जे तोरा तनी सा पसीन पड़तौ, से मँगतौ दू लाख, तीन लाख ! तखने बाँसा आर गड़ो लगतौ ।)    (बामदा॰4.7)
179    तब धर (पहिले के जमाना में औरत बानी चिकना माटी कोड़ि को लावइ हली । जे जगह से माटी कोड़ि को लावइ हली अप्पन घर नीपइ ले, माथा में लगावइ ले, या कपड़ा साफ करइ ले, उ जगह के नाम हो गेल मटिकोड़, मटिकोड़ से मटकोर, मटकोरवा, मटखोरवा, मटखोरवा से मटोखर, मटोखरा ... । आगे जब इ शब्द जतरा कैलकइ तब धर खनाह कोठी-कोठिला के कहल जाय लगल । ओकरो से जब आगे चलल तब धर खनाह कुबन्द आदमी के कहल जाय लगल ।)    (बामदा॰2.21, 22)
180    तरे-तरे (= अन्दर-अन्दर; भीतर-भीतर) (लड़की खा को हाथ-मुँह धो को ओजै ओघड़ा गेल । ओकरा आँखि में नीन कहाँ । कनमटकी मारने तरे-तरे साधू के हियावैत रहल कि कहैं भागे नै । जने जाय तने जाँव ! भागो लगे, अलोपो लगे, तब पकड़ि के गिरि जाँव, चाहे जे होय ।)    (बामदा॰18.25)
181    तियन-चक्खा (हम्मर नाम पर दुर्गंध चारो तरफ फैलि गेलो । कान नै देल जाहो । लाज से गाँव के गली नै बुलऽ हियो । बाप भी कुरधल हथुन, माय भी । मागु तो कुहँचि को मारि देलको । कहलको - रे तियन चक्खा ! हम्मर कि सड़ गेलइ हल जे तों एने-ओने मुँह मारने बुलऽ हीं । हम कहियो मनो कैलियौ ? हमहूँ जो तोरे नियर तियन चाखने बुलियौ तब कि होतौ तोर पगड़िया के ? हमरा कि मरद नै ने मिलतै ?)    (बामदा॰24.23)
182    तेइयो (= तइयो; तो भी, फिर भी) (जब अगिन के सात फेरा पड़ि जइतौ, बेदी तर बैठा को सिन्नुर दान हो जइतौ, आर औरतिया गइतौ - धीया पड़लो सजन घर जी बाबा ! अबे बाबा सुतहो निचीत ... बस उ बाँसा निकलि को छट सना लड़कवा के नीचे से अथिया में हेलि जइतै । तेइयो चैन नै । तब समाद अइतौ लड़का रूसल हो इसकूटर ले । समधी रूसल हो गाय ले । तोरी बहिन के समधी ... तोरी माय के दमाद ... जैसे हमहीं जनमैलियन हे इनका ! हमरे कमा को खिलैता । रे नुनु ! भ्रूण हत्या लाचार कोय करऽ हइ ।)    (बामदा॰4.13)
183    तों-तों (= त्यों-त्यों) (गुदड़ी अप्पन बेटा के जादे माने, मटोखर के कम, अपना दूध पिलावे अप्पन बेटा के, एकरा बकरी के दूध पिला के पाललक । खैर ! समय के साथ दुयो बढ़ो लगल तब गुरू पिण्डा पर पहुँचैलक । अक्षर ज्ञान भर दुइयो के हो गेलै । फेर तो घर-गिरहस्ती के काम में लग गेला । जों-जों बढ़ल जाय तों तों ओकर अप्पन बेटवा एकरा साथ नौकर वाला वेवहार करो लगल । इ माय समझ के गुदड़ी के परचारे तो उहो अपने बेटवा के पक्ष में खड़ा हो जाय ।)    (बामदा॰1.31)
184    तोरी (~ बहिन के !; ~ माय के ! ~ बेटी के !) (तब समाद अइतौ लड़का रूसल हो इसकूटर ले । समधी रूसल हो गाय ले । तोरी बहिन के समधी ... तोरी माय के दमाद ... जैसे हमहीं जनमैलियन हे इनका ! हमरे कमा को खिलैता ।; थरिवा पटकि को बिकट-बिकट गारी पढ़ो लगलखिन - तोरी पागल माय के ... काम यहाँ मिरचाय केराबै के । तऽ से नै ! इ अइला हे हम्मर पूजा करै ले । से दिन से सोचो लगलखुन - एकरा राँची के पगला गारत में पहुँचा देल जाय !; पूछइ - बताव केकर हिकौ ? ससुरे लगा को गरियाबै । उ बेचारी ससुर के इज्जत बचावै ले सही हम्मर नाम कहि देलकै । करमन दा कुरधल बचवे के फेंको लगलखिन । उतो बसर कही ससुर मगरू चा के । गरिया को कहलखिन - तोरी बेटी के, तों अइवे नै करऽ हलहीं, तब इ कि करते हल ? खूब बढ़िया तो कैलकै । चब्बोस बेटी ... पोता हमरा गोदी में दे देलक ।)    (बामदा॰4.14, 15; 7.32; 24.16)
185    थारी (= थाली) (मइया से पूछलियै - बाबू कहाँ गेलखिन मइया ? मइया कहलकइ - खेत गेलौ हे । हम खेत चल गेलियो । देखते के साथ कहलखुन - अरे, खुरपी ने लेने अइथी हल ? इ थारी में कि नानल्ही कलौआ ! एते सबेरे हम खा हियै ? हम कहलियन - नै बाबू । हम आय तोर पूजा करवो, तनी पिरथी मार के बैठ जा । उ बैठ गेलखिन । हम जइसैं उनकर मथवा पर जला ढारै ले चाहलियै कि लोटवा हमरा हाथा से लेको एक चुरू मुड़िया पर छींट लेलखिन, बाँकी पी गेलखिन ।; थरिवा पटकि को बिकट-बिकट गारी पढ़ो लगलखिन - तोरी पागल माय के ... काम यहाँ मिरचाय केराबै के । तऽ से नै ! इ अइला हे हम्मर पूजा करै ले । । से दिन से सोचो लगलखुन - एकरा राँची के पगला गारत में पहुँचा देल जाय !)    (बामदा॰7.22, 31)
186    थुर्ररी-थुर्ररी (~ करना) (आवइ में राति हो गेलै । गाड़ी पर भौजी कान में सटि को कहलखिन - बौआ ! तों देवर हम भौजाय । देवर माने दोसर वर । देवर-भौजाय में कोय पाप नै । बौआ, हमर सूना गोदी भरि दा । बाँझी नाम छोड़ा दा । तोरा गोड़ परऽ हियो । दुइयो हाथ से निहोरा करऽ हियो । हम कहलियै - नै भौजी । करमन दा रहनै तब सब छपि जइतो हल । बिना उनके झाँपल नै रहतो, उगाल हो जइतो । संसार भरि गदाल हो जइतो । दुइयो के लोग थुर्ररी-थुर्ररी करतो । बाप रे बाप ! हम ऐसन काम नै करवो ।)    (बामदा॰23.21)
187    दम-दाखिल (भौजी कहलखिन - उ जरलाहा आदमी रहते हल, संग-परसंग करते हल, तब कि बात हलै । चलो, उतरि को लक्खीसराय में फोन करि को देखियै । उतरि को बेचारी फोन कैलकै । फोन लागि भी गेलै । ओने से करमन दा के जवाब अइलै । लछमी तोरा भिजुन आको कि करवै ? खूब सासु ससुर के सेवा करो, पुन्न लूटो । उसर जोती करम नसाय । तोहर उसर खेत में काहे ले हम अप्पन हर-बैल, खाद-बीज बरबाद करों ? जब बाप मरता, सुनबो एने से मागु लेने दम-दाखिल हो जइबो ।)    (बामदा॰23.28)
188    दमाद (= दामाद) (जब अगिन के सात फेरा पड़ि जइतौ, बेदी तर बैठा को सिन्नुर दान हो जइतौ, आर औरतिया गइतौ - धीया पड़लो सजन घर जी बाबा ! अबे बाबा सुतहो निचीत ... बस उ बाँसा निकलि को छट सना लड़कवा के नीचे से अथिया में हेलि जइतै । तेइयो चैन नै । तब समाद अइतौ लड़का रूसल हो इसकूटर ले । समधी रूसल हो गाय ले । तोरी बहिन के समधी ... तोरी माय के दमाद ... जैसे हमहीं जनमैलियन हे इनका ! हमरे कमा को खिलैता । रे नुनु ! भ्रूण हत्या लाचार कोय करऽ हइ ।)    (बामदा॰4.15)
189    दरखास (रामदास के कुत्ता मरि गेलै । वाड कमिश्नर के कहलकै । कमिश्नर दरखास लेके आपिस में देलकै । मेस्तर के हरताल चलि रहलै हल । तीन-चार दिन बीत गेलै । लसवा सड़ि को महकि गेलै, गेन्ह तोड़ो लगलै । तब रामदास हमरा भिजुन अइलै कर जोड़ने । दादा ! कुछ उपाय करथो हल । कुतवा सड़ि को महकि गेलै ।)    (बामदा॰21.11)
190    दरेग (बाबा कहलका - नै, औरत भीतर में नै । तों बाहर सुतो । लड़की बोलल - हाय बाबा ! कत्ते कुमेहर हो गेला । संत में तो इ लच्छन नै चाही । तनिको दरेग नै लगो हो ? बाहर में जंगलिये खा जइतै । साधू के परोपकारी होवै के चाही ।)    (बामदा॰19.18)
191    दरेस (बगल के गाँव के जुवा मागु-मरद के बियाह होले दस बच्छर हो गेलै मुदा बच्चा के दरेस नैं । साधू-महात्मा से देखा को, तमाम ओहमा-टोटका, वैदराज के जड़ी-जुटका करि को हारि गेल, कहैं कुछ नैं । पूरा परिवार बड़ी चिन्ता में । गोतनी-नैनी से जो ठोना-बादी होवै तब बाँझी कह के गरियावै ।)    (बामदा॰16.19)
192    दवाय (= दवाई, दवा) (पटना के डाकदरनी तरह-तरह के जाँच करि को कहलकै तीन महीना दवाय खाय पड़तो । एक महीना के दवाय देलकै आर कहलकै महीने महीने आवो पड़तो ।; तोहर उसर खेत में काहे ले हम अप्पन हर-बैल, खाद-बीज बरबाद करों ? जब बाप मरता, सुनबो एने से मागु लेने दम-दाखिल हो जइबो । भौजी कहलखिन - अब तोहर खेत उसर नै रहलो । दवाय देको उपजाहुर बना देलियो । एतना उपजाहुर कि बीज डालते के साथ बच्चा । ऐसन हो गेलै कि बिना बीज के भी नम्हेर जनमि सकऽ हइ ।)    (बामदा॰23.12, 13, 29)
193    दान-दछिना (गुरूजी के अन्तकाल हो गेला के बाद मटोखर गाँव आ गेला । गाँव के एक छोर पर झोपड़ी बना के सीता राम के मूरती पधरा के पूजा करो लगला । खुद बड़ी चरित्रवान । कुछ मंतर-तंतर भी सीख लेलका हल । साँप-बिच्छा के झार, कुछ जड़ी-गुटका, जैसे कमलवाय के इलाज, परसौती के जड़ी देना, बाता के जड़ी । सब मिल-मिला के इनकर जनता में कदर होवो लगल । दान-दछिना अच्छा मिलो लगल ।)    (बामदा॰2.8)
194    दिसा-फरागत (सबसे पहिले उठि को दिसा-फरागत भेलियो । ओकर बाद असलान करि को, एक पीतर के थारी में पूजा के सामगृही सजैलियो - अच्छत, चन्दन, धूप, बेलपत्र, फूल, गंगाजल । मैया से कहलियो - बैठें मैया ! तोर पूजा करवौ । उ पिरथी मार के बैठ गेलो ।; सबेरे लड़की उठल, बाबा भी उठला । दिसा-फरागत होको कुण्ड में नहैलक, बाबा सिंगरी रिख के परनाम कैलक, फूल सन खिलल चेहरा लेने बाबा के चरण छू को मुसकावैत तिरछी नजर से बेधैत कहलक - आर चाही ... बाबा ! बाबा लजा गेला । सिर नीचा कर लेलका ।)    (बामदा॰7.10; 19.26)
195    दीना-दीनी (बाँझी नाम नै छोड़इभो बाबा ! रात-दिन उनकरे पर टेक लगइने रहे । एक दिन ओकरा सपना भेलै कि हमरा यहाँ आव । सबेरे नहा-सोना को गंगा जल लेलक, चल देलक सिंगरी रिख । सास, ननद, गोतनी-नैनी कहलकै एसकर नै जा, केकरे साथ करि ला । इ कहलकै - नै, एक घंटा के रास्ते हइ । दीना-दीनी जाना, दीना-दीनी आना । को डेग हइये हइ ? काहे ले केकरे साथ लेबै ।)    (बामदा॰17.9)
196    दुर (कि करियै हो बाबा ? जेकरा रोज खाय ले मिलऽ हलइ सेकरा तीन बरीस नै । कैसे रहबै हो बाबा !  ... बाबा सब समझि को हँसो लगलखिन - हऽ हऽ ... । हँसैत-हँसैत कहलखिन - दुर पगला । इ तनी गो बात ले एत्ते चिन्ता । तीन बरीस कौन समय हइ । साधू महात्मा तो जीवन भर एकरा बिना रहि जा हइ । मन के सकत कर ।)    (बामदा॰16.5)
197    दुर्रर्र (मागु जानलकन । झाँझी कुत्ती सन झुँझुआ को हुललन - दुर्रर्र ... ने ... जाय छुछुनर । तों एते दिन से बेकारे मुंशीगिरी कइनें । तोरा ठकि लेलकै एगो मिरतुलोक के मरल मुंशी । आखिर चित्रगुप्त जी अंतिम महाकाल के कोट में अपील कैलका ।)    (बामदा॰12.2)
198    देने (= दने, दन्ने; तरफ) (उ दौड़ के वहाँ पहुँचल । देखे हे, जब-जब कौआ उ बच्चा के आँख में लोल मारइ ले चाहे तब-तब उ बचवा हाथ पैर उपर देने फेंको लगे हे आर जोर-जोर से कानो लगे हे । कौआ डर से लोल मारना छोड़ दे हे ।)    (बामदा॰1.19)
199    दोमना (= दुमचना) (पलंग पर पछाड़ि को उलटा सवारी कसि देलको, दोमते-दोमते देह तोड़ि देलको । नस-नस में दरद करऽ हो बाबा । देह बनबन टूटै हो । फेर कानो लगलै । कि करियो हो बाबा ! जबरदस्त मागु से पाला पड़ि गेलो। गाँजा के पुरिया बिगि देलको । ओत्ते बढ़ियाँ चिलिम पत्थल पर बजाड़ि को फोड़ि देलको । कहलको - अब जो गाँजा पीलें हें तब सब दशा करवौ । साल में दू नै, रोज दू मंजूर रहौ तब रहियौ, नै तब हमरा नहिरा पहुँचा दे ।)    (बामदा॰6.12)
200    दोसर (= दूसरा) (हमरा करमन दा के मागु के बच्चा नै होवऽ हलै । सब ओकर नाम बाँझी धैलकै । करमन दा ओकरा छोड़ि को दोसर बियाह करै ले चाहऽ हलखिन । बाप मगरू चा रोकि देलखिन - इज्जत के बात । भगमान कुमेहर नै होथिन । हम सत धरम पर हियै, हमर वंस बुड़ि नै सकऽ हइ । बच्चा तो एकरा जते होतै कि लोग देखि को सिहा जइतै । एतना खपसूरत पुतहू, खानदानी घर के, आग्याकारी फेर दोसर होत कि नै के जानऽ हइ । अभी आँचर नै खुलले ह । खुलतै तब फेर तो बच्चा से आजिज हो जइभीं । अभी एकर उमरे कि हइ ।)    (बामदा॰22.34; 23.3)
201    धरना (= रखना) (मटोखर के इ बात मन में असर करो लगलै । एसकर में कभी-कभी काने भी । हाय रे ! अप्पन माता सौतेती हो गेल । आखिर दस बरस के उमर में भाग के अयोध्या चल गेल, गुरू सिक्ख हो गेल । गुरूजी एकर नाम धैलखिन निश्छलानन्द । इहो नाम गुरूजी तक रह गेल ।; हमरा करमन दा के मागु के बच्चा नै होवऽ हलै । सब ओकर नाम बाँझी धैलकै । करमन दा ओकरा छोड़ि को दोसर बियाह करै ले चाहऽ हलखिन ।)    (बामदा॰2.3; 22.34)
202    नम्हेर (तोहर उसर खेत में काहे ले हम अप्पन हर-बैल, खाद-बीज बरबाद करों ? जब बाप मरता, सुनबो एने से मागु लेने दम-दाखिल हो जइबो । भौजी कहलखिन - अब तोहर खेत उसर नै रहलो । दवाय देको उपजाहुर बना देलियो । एतना उपजाहुर कि बीज डालते के साथ बच्चा । ऐसन हो गेलै कि बिना बीज के भी नम्हेर जनमि सकऽ हइ ।)    (बामदा॰23.31)
203    नहाना-सोनाना (बाँझी नाम नै छोड़इभो बाबा ! रात-दिन उनकरे पर टेक लगइने रहे । एक दिन ओकरा सपना भेलै कि हमरा यहाँ आव । सबेरे नहा-सोना को गंगा जल लेलक, चल देलक सिंगरी रिख । सास, ननद, गोतनी-नैनी कहलकै एसकर नै जा, केकरे साथ करि ला । इ कहलकै - नै, एक घंटा के रास्ते हइ । दीना-दीनी जाना, दीना-दीनी आना । को डेग हइये हइ ? काहे ले केकरे साथ लेबै ।)    (बामदा॰17.6)
204    नहिरा (= नइहर) (चिलिम सुटाकी से कहलक - अजी ! खाके बंगला पर काहे जाहो ? आर तब हमरा लैला हल काहे ले ! भले नहिरा में हलों । माय साथे सूतऽ हलों । रात भर नीन नै होवे हइ । तोर घर में एसकर डर लगे हइ । तोंहीं बतावो हम की करी ?; साल में दू नै, रोज दू मंजूर रहौ तब रहियौ, नै तब हमरा नहिरा पहुँचा दे ।)    (बामदा॰5.21; 6.16)
205    नाल-पमाला (इ सुनके बाबू खूब बिगड़लखिन - आदमी हिकै ! साला गदहा ! बर्द-बैल ! अप्पन काम सूझे नै, दिन भर बिना खइने-पीने दोसरा के गूह-मूत, नाला-पमाला साफ कइने बुले । जेकरा घर के आगू-पाछू गंदगी हइ ओकरा ने साफ करइ के चाही ।)    (बामदा॰21.5)
206    निक्के-सुक्खे (फेर लड्डू के परसाद ओकरा मुँह में देलियै । अंतिम कर जोरि को असीरवाद माँगलियै । उ असीरवाद देलकै - निक्के-सुक्खे रहें बेटा ! नहाइतो केस नै तोर टूटे । एक रोइयाँ भंगन नै होय ! भगवान करथिन । फेर उठि को सुरूज भगमान से कहलकै - हमर बेटा के दिमाग ठीक करि दहो । एक्के बेटा हइ प्रभो ! आँखि में पाँख । रात भर में एकरा कि करि देल्हो ?)    (बामदा॰7.17)
207    निचीत (= निश्चिन्त) (जब अगिन के सात फेरा पड़ि जइतौ, बेदी तर बैठा को सिन्नुर दान हो जइतौ, आर औरतिया गइतौ - धीया पड़लो सजन घर जी बाबा ! अबे बाबा सुतहो निचीत ... बस उ बाँसा निकलि को छट सना लड़कवा के नीचे से अथिया में हेलि जइतै । तेइयो चैन नै । तब समाद अइतौ लड़का रूसल हो इसकूटर ले । समधी रूसल हो गाय ले । तोरी बहिन के समधी ... तोरी माय के दमाद ... जैसे हमहीं जनमैलियन हे इनका ! हमरे कमा को खिलैता । रे नुनु ! भ्रूण हत्या लाचार कोय करऽ हइ ।)    (बामदा॰4.12)
208    नियर (= नियन; सदृश, समान) (जवानी में गदहियो सुन्नर लगऽ हइ । सुनऽ हियौ तोर मागु तो सुनरे हौ । गरमी के दिन में साँझ को मागु नहा लै होतौ, औडर-पौडर लगा को, कान में अतर के फाहा खोंसि को, माथा-चोटि बान्हि को, पलंग पर जा होतौ, त लागऽ होतौ कि हम स्वर्ग में ही, जैसे बगल में इन्नर के पड़ी सूतल हइ । ... ओकर समूचे देहे रसगुल्ला सन मीठ लगऽ होतौ । लगऽ होतौ कहाँ से खाँव । जब बच्चा पर बच्चा हो जइतौ तब उहे मौगी लगो लगतौ सड़ल मछली सन । ओरायल भात नियर । मन भिनभिना जइतौ ।)    (बामदा॰3.27)
209    निरार (= ललाट) (चिलिम सुटाकी के मागु बढ़िया से साबुन लगा को नहैलक । तौलिया से बाल सुखा के जूड़ा बनैलक । मुँह में पावडर लगैलक, देह में, कान में, इतर के फाहा खोंसलक, जूड़ा में जूही के माला बाँधलक, ठोर रंगलक, आँखि में काजर, निरार में चमचमौआ टिकुली, नीचे एक कच्छी, उपर छाती के उभार एक चोली टैट कैलक । उपर से एक झीना नाइटी पिन्ह के, हाथ में पूजा के सामग्री एक सज्जी में लेके चलल मन्दिर ।)    (बामदा॰13.28)
210    नीन (= नींद) (चिलिम सुटाकी से कहलक - अजी ! खाके बंगला पर काहे जाहो ? आर तब हमरा लैला हल काहे ले ! भले नहिरा में हलों । माय साथे सूतऽ हलों । रात भर नीन नै होवे हइ । तोर घर में एसकर डर लगे हइ । तोंहीं बतावो हम की करी ?)    (बामदा॰5.21)
211    नीनभोर (बाबा मन्दिर के छरदेवाली के फाटक खुलल हल । इ सीधे अन्दर चल गेल । देखे हे राति दिन के समान टहपोर इंजोरिया । फुलकी बयार । नीनों के सुता दै वाला हवा । चारो तरफ गौर से देखलक । सूनसान साँय-साँय आवाज करैत राति । बाबा फोंफ काटि रहला हे, नीनभोर ।)    (बामदा॰14.2)
212    नीपना (= लीपना) (पहिले के जमाना में औरत बानी चिकना माटी कोड़ि को लावइ हली । जे जगह से माटी कोड़ि को लावइ हली अप्पन घर नीपइ ले, माथा में लगावइ ले, या कपड़ा साफ करइ ले, उ जगह के नाम हो गेल मटिकोड़, मटिकोड़ से मटकोर, मटकोरवा, मटखोरवा, मटखोरवा से मटोखर, मटोखरा ... ।)    (बामदा॰2.19)
213    नुनु (जब अगिन के सात फेरा पड़ि जइतौ, बेदी तर बैठा को सिन्नुर दान हो जइतौ, आर औरतिया गइतौ - धीया पड़लो सजन घर जी बाबा ! अबे बाबा सुतहो निचीत ... बस उ बाँसा निकलि को छट सना लड़कवा के नीचे से अथिया में हेलि जइतै । तेइयो चैन नै । तब समाद अइतौ लड़का रूसल हो इसकूटर ले । समधी रूसल हो गाय ले । तोरी बहिन के समधी ... तोरी माय के दमाद ... जैसे हमहीं जनमैलियन हे इनका ! हमरे कमा को खिलैता । रे नुनु ! भ्रूण हत्या लाचार कोय करऽ हइ ।)    (बामदा॰4.16)
214    ने (= न) (अगर बच्चा बेटा हो गेलौ, तब तो जौख-सौख में रहभीं । जो कहैं भैवा बेटी हो गेलौ तब तो एगो खोंचाहल बाँस नीचे से अथिया में हेलि जइतौ । जैसे-जैसे बेटिया बढ़तौ वैसे-वैसे उ बाँसा बढ़ल जइतौ, उपर चढ़ल जइतौ । जतना बेटी भेल जइतौ ओतना बाँस हेलल जइतौ । जब बेटिया जुआन हो जइतौ तब बाँसा मथवा में ठेकि जइतौ । जब मन बना को पलंग पर जइभीं, तब मौगी कहतौ - अजी, अबरियो कुछ नै ने सोचल्हो ? छौड़ा-पूत के बकड़ी पठरू जे घास-पात खाहे से तो मेमियाबो लगऽ हइ । बेटिया अनबोलता धन हिकै से-से ने । अगर इमान टगा दै तब कि होतइ ? तों कैसे आ गेल्हो । वैसने जरूरत तो ओकरो समझै के चाही ।)    (बामदा॰4.3)
215    नोक्स (= नुक्स, नुकुस; खराबी, ऐब; त्रुटि, कमी, कोर-कसर) (बस ! बेसी बहस नै । चलो नम्बर पर बहुत असामी खड़ा हइ । हमरा पास ओत्ते समय नै हो । आर पेशाब भी लगल हइ । बूढ़ा कहलकन - हाय रे बाप ! सरकार, लाख काम छोड़ि को पेशाब करै के चाही । अपने जैथिन, तब तक हम बहिया के देखऽ हियै । जो कोय नोक्स निकलि जाय । हमहूँ मामूली आदमी नै हलियै, प्रभु टाऊन थाना के मुंशी हलियै ।; चित्रगुप्त जी पेशाब करि को अइला । पूछलखिन - कोय नोक्स निकललो ?)    (बामदा॰11.2, 7, 9, 11)
216    नौवेद (= नैवेद्य) (राधा सबसे पहिले मूरती के जल से असलान करैलक, फेर चन्दन लगैलक, फूल चढ़ा को अच्छत छींटलक, नौवेद देको पदमासन में बैठ धेयान लगैलक ।)    (बामदा॰14.21)
217    पगहा (कहलको - उ मटोखरा ! ... बैठल-बैठल गुल्ली गढ़ैत रहे हइ । ओकर बाप जो ओकर माय साथे नै जइते हल, तब उ कहाँ से आयत हल परवचन करै ले ? ओकर बियाह भेलै हइ ? बाँझ जाने परसौती के पीरा । उ कि समझतै मागु के हाल ! ... आगू नाथ नै पाछू पगहा, धूर में लोटे जैसे गदहा । लाचारी के नाम साधू बाबा !)    (बामदा॰6.2)
218    पड़ी (= परी) (इन्नर के ~) (जवानी में गदहियो सुन्नर लगऽ हइ । सुनऽ हियौ तोर मागु तो सुनरे हौ । गरमी के दिन में साँझ को मागु नहा लै होतौ, औडर-पौडर लगा को, कान में अतर के फाहा खोंसि को, माथा-चोटि बान्हि को, पलंग पर जा होतौ, त लागऽ होतौ कि हम स्वर्ग में ही, जैसे बगल में इन्नर के पड़ी सूतल हइ ।)    (बामदा॰3.24)
219    पदाहो (~ भाय) (नगड़ू यादव कहलका - अरे ! जो चिलिम सुटकिया । काहे ले तों चूड़ा के गवाही दही बनब करें हें । उ साफ तो हमरे तीनों के देखि को बोललइ - तीन काना तऽ तीन चौपाय ! मन तो करऽ हइ कि मंचवे पर चढ़ के लगा दियै तीन लाठी बामा बगल मथवा पर बस ! ओजै सोहा ! तोरे आवइ हो चौपाय पदाहो भाय तब ला ।; जब ओकरा अच्छे लगऽ हइ तब तोरा काम ? इ पदाहो भाय ! महात्मा गान्धी बनल बुलै होथि । अब महात्मा गान्धी के जुग रहलै ?; तोर कसूर कि हौ, कसूर ओकर साँय के हइ ... अब पदाहो के भाय मूड़ी बजाड़ोथि, अब कि होतन । भेड़ गेल भनसा हर्रो ... हर्रो ।)    (बामदा॰9.8; 21.8; 24.33)
220    पधराना (गुरूजी के अन्तकाल हो गेला के बाद मटोखर गाँव आ गेला । गाँव के एक छोर पर झोपड़ी बना के सीता राम के मूरती पधरा के पूजा करो लगला । खुद बड़ी चरित्रवान ।)    (बामदा॰2.5)
221    परचारना (गुदड़ी अप्पन बेटा के जादे माने, मटोखर के कम, अपना दूध पिलावे अप्पन बेटा के, एकरा बकरी के दूध पिला के पाललक । खैर ! समय के साथ दुयो बढ़ो लगल तब गुरू पिण्डा पर पहुँचैलक । अक्षर ज्ञान भर दुइयो के हो गेलै । फेर तो घर-गिरहस्ती के काम में लग गेला । जों-जों बढ़ल जाय तों तों ओकर अप्पन बेटवा एकरा साथ नौकर वाला वेवहार करो लगल । इ माय समझ के गुदड़ी के परचारे तो उहो अपने बेटवा के पक्ष में खड़ा हो जाय ।)    (बामदा॰1.32)
222    परन (= प्रण) (ओने से जवाब अइलै - अब एक्के बेरी ! हमर परन हो, परन तोड़ि नै सकऽ हियो । फोन रखा गेलइ । भौजी कहलखिन - सुनि ने लेल्हो बौआ ? अब हम कि करियै ? तोंहीं कहो । कहाँ बच्चा ले बेकल हलइ, आर बेला अइलै तब परन करि लेलकै । बिना मरद के बच्चा होले ह कहैं ?)    (बामदा॰23.32, 35)
223    परना (= पड़ना) (गोड़ ~) (आवइ में राति हो गेलै । गाड़ी पर भौजी कान में सटि को कहलखिन - बौआ ! तों देवर हम भौजाय । देवर माने दोसर वर । देवर-भौजाय में कोय पाप नै । बौआ, हमर सूना गोदी भरि दा । बाँझी नाम छोड़ा दा । तोरा गोड़ परऽ हियो ।)    (बामदा॰23.19)
224    परनाम (= प्रणाम) (बाबा आज प्रवचन में कहलका - 'ईसवर अंश जीव अविनासी' । सब जीव में ईसवर के वास हइ । चाही तो सबके परनाम करै के, मुदा आदमी के सिवाय दोसर जीव हमर परनाम के समझवो नै करत । तब आदमी के जरूर परनाम करै के चाही । काहे कि आदमी धरती पर के सबसे सुन्नर आर महत्त्व के जीव हइ ।; तीन बरीस कौन समय हइ । साधू महात्मा तो जीवन भर एकरा बिना रहि जा हइ । मन के सकत कर । औरत मिले भी तो ओने नै देख । औरत के उपर देह नै देखि को ओकर गोड़ पर धेयान दे । माता समझ के परनाम कर ले । बात खतम ।; सबेरे लड़की उठल, बाबा भी उठला । दिसा-फरागत होको कुण्ड में नहैलक, बाबा सिंगरी रिख के परनाम कैलक, फूल सन खिलल चेहरा लेने बाबा के चरण छू को मुसकावैत तिरछी नजर से बेधैत कहलक - आर चाही ... बाबा ! बाबा लजा गेला । सिर नीचा कर लेलका ।)    (बामदा॰6.22, 23; 16.8; 19.27)
225    परसाद (= प्रसाद) (लड़की बोलल - बाबा ! तनी परसदा हमरो ! एतना कहके कनखी ऐसन मारलक मुसका के कि चिलिम सुटाकी के करेजा कट गेल ।; लड़की बोलल - बाबा तों खा लेता हल । जूठवा छोड़थो हल, से ने हम्मर परसाद होते हल । हम खइने हियै । एत्ते खइवै । आर निकाल ला ।)    (बामदा॰18.15, 19)
226    परसौती (=परसौतिन; प्रसूता, जच्चा, बच्चा जनने वाली स्त्री) (गुरूजी के अन्तकाल हो गेला के बाद मटोखर गाँव आ गेला । गाँव के एक छोर पर झोपड़ी बना के सीता राम के मूरती पधरा के पूजा करो लगला । खुद बड़ी चरित्रवान । कुछ मंतर-तंतर भी सीख लेलका हल । साँप-बिच्छा के झार, कुछ जड़ी-गुटका, जैसे कमलवाय के इलाज, परसौती के जड़ी देना, बाता के जड़ी । सब मिल-मिला के इनकर जनता में कदर होवो लगल ।; कहलको - उ मटोखरा ! ... बैठल-बैठल गुल्ली गढ़ैत रहे हइ । ओकर बाप जो ओकर माय साथे नै जइते हल, तब उ कहाँ से आयत हल परवचन करै ले ? ओकर बियाह भेलै हइ ? बाँझ जाने परसौती के पीरा । उ कि समझतै मागु के हाल ! ... आगू नाथ नै पाछू पगहा, धूर में लोटे जैसे गदहा । लाचारी के नाम साधू बाबा !)    (बामदा॰2.7; 6.1)
227    पसीझना (= पसीजना) (चिलिम सुटाकी मने-मन सोचे लगल - बाबा के बात लाख टका के बात ... काहे ने ब्रहमचारी रहल जाय । उ तय कैलक - बस । साल में दू । एकरा से बेसी नै । चाहे मागु लाख बजड़ि को मरि जाय । तनी सा पसीझै के काम नै चाहे जे कहे ।)    (बामदा॰5.5)
228    पसीन (= पसन्द) (मौगी के इ बात लगतौ जैसे मथवा में हथौड़ा मारब करऽ हइ । तब निकलभीं बरतुहारी में । भीखमंगवा जेकरा घर भूँजी-भाँग नै, से माँगतौ एक लाख, तब बाँसा वाला खोंचा लगतौ कि मथवा फारि को निकलि जायत । जे तोरा तनी सा पसीन पड़तौ, से मँगतौ दू लाख, तीन लाख ! तखने बाँसा आर गड़ो लगतौ ।)    (बामदा॰4.7)
229    पाँख (आँख/ आँखि में ~) (फेर लड्डू के परसाद ओकरा मुँह में देलियै । अंतिम कर जोरि को असीरवाद माँगलियै । उ असीरवाद देलकै - निक्के-सुक्खे रहें बेटा ! नहाइतो केस नै तोर टूटे । एक रोइयाँ भंगन नै होय ! भगवान करथिन । फेर उठि को सुरूज भगमान से कहलकै - हमर बेटा के दिमाग ठीक करि दहो । एक्के बेटा हइ प्रभो ! आँखि में पाँख । रात भर में एकरा कि करि देल्हो ?)    (बामदा॰7.19)
230    पानी-पवइया (चेला कहलकन - हो बाबा ! मागु हमरा बोढ़नी से झाँटि को भगा देलको । कहलको, तीन बरीस घर नै चढ़ो देवौ, बढ़न-झँट्टा सटो नै देवौ । बाबा पुछलखिन - से काहे ? चेला कहलकन - पानी पवइया हइ आर काहे । - पानी पवइया ? बाबा बात नै समझि सकलथिन ।)    (बामदा॰15.15, 16)
231    पिन्हना (= पेन्हना; पहनना) (चिलिम सुटाकी के मागु बढ़िया से साबुन लगा को नहैलक । तौलिया से बाल सुखा के जूड़ा बनैलक । मुँह में पावडर लगैलक, देह में, कान में, इतर के फाहा खोंसलक, जूड़ा में जूही के माला बाँधलक, ठोर रंगलक, आँखि में काजर, निरार में चमचमौआ टिकुली, नीचे एक कच्छी, उपर छाती के उभार एक चोली टैट कैलक । उपर से एक झीना नाइटी पिन्ह के, हाथ में पूजा के सामग्री एक सज्जी में लेके चलल मन्दिर ।)    (बामदा॰13.29)
232    पिरथी (= पालथी) (~ मार के बइठना) (सबसे पहिले उठि को दिसा-फरागत भेलियो । ओकर बाद असलान करि को, एक पीतर के थारी में पूजा के सामगृही सजैलियो - अच्छत, चन्दन, धूप, बेलपत्र, फूल, गंगाजल । मैया से कहलियो - बैठें मैया ! तोर पूजा करवौ । उ पिरथी मार के बैठ गेलो ।; देखते के साथ कहलखुन - अरे, खुरपी ने लेने अइथी हल ? इ थारी में कि नानल्ही कलौआ ! एते सबेरे हम खा हियै ? हम कहलियन - नै बाबू । हम आय तोर पूजा करवो, तनी पिरथी मार के बैठ जा । उ बैठ गेलखिन । हम जइसैं उनकर मथवा पर जला ढारै ले चाहलियै कि लोटवा हमरा हाथा से लेको एक चुरू मुड़िया पर छींट लेलखिन, बाँकी पी गेलखिन ।)    (बामदा॰7.12, 24)
233    पीछू (घर ~ = प्रति घर) (बाबा कहलखिन - गलती कैल्हीं । जे गली नाली साफ करै हल्हीं वहाँ के आदमी के,  टोला-महल्ला के, घर पीछू एक आदमी साथ करि लेथीं हल तब इ बात नै होते हल । असल में जन भावना जगइने बिना इ काम नै करे के चाही । सब समझ गेलौ तोरा मूरख ।)    (बामदा॰22.5)
234    पुनियाँ (= पूर्णिमा) (राह में सोचो लगल अब कि कैल जाय ? यहाँ तो बचना बड़ा मोसकिल । काहे नै सिगरी रिख जंगल चलल जाय । वहैं रहि को तीन साल गुजारा करि लेल जाय । हाँ, पुनियाँ के पुनियाँ वहाँ मेला लगे हे । से दिन उपर पहाड़ पर चढ़ि को गुजारि देब ।)    (बामदा॰16.12)
235    पुन्न (= पुण्य) (बूढ़ा मनझान घर लौटि आयल । मन तो भगवान में लगैलक मगर लगल नैं । उट्ठे-डम्मर रहि गेल। पुन्न भी करे आर मन में तरह-तरह के चोर दरवाजा से जाय के उपाय भी सोचे । एक दिन उ बूढ़ा मरके चित्रगुप्त के आपिस पहुँचल । साथ में जमदूत ओकरा पकड़ने । चित्रगुप्त बही निकालि को इनकर हिसाब सुनैलका - नर्के-नरक ... अंत में जे पुन्न कैलक सेकरा में थोड़ा सा अंतिम स्वर्ग ।; भौजी कहलखिन - उ जरलाहा आदमी रहते हल, संग-परसंग करते हल, तब कि बात हलै । चलो, उतरि को लक्खीसराय में फोन करि को देखियै । उतरि को बेचारी फोन कैलकै । फोन लागि भी गेलै । ओने से करमन दा के जवाब अइलै । लछमी तोरा भिजुन आको कि करवै ? खूब सासु ससुर के सेवा करो, पुन्न लूटो । उसर जोती करम नसाय । तोहर उसर खेत में काहे ले हम अप्पन हर-बैल, खाद-बीज बरबाद करों ? जब बाप मरता, सुनबो एने से मागु लेने दम-दाखिल हो जइबो ।)    (बामदा॰10.19, 21; 23.26)
236    पुरिया (= पुड़िया) (पलंग पर पछाड़ि को उलटा सवारी कसि देलको, दोमते-दोमते देह तोड़ि देलको । नस-नस में दरद करऽ हो बाबा । देह बनबन टूटै हो । फेर कानो लगलै । कि करियो हो बाबा ! जबरदस्त मागु से पाला पड़ि गेलो। गाँजा के पुरिया बिगि देलको । ओत्ते बढ़ियाँ चिलिम पत्थल पर बजाड़ि को फोड़ि देलको । कहलको - अब जो गाँजा पीलें हें तब सब दशा करवौ । साल में दू नै, रोज दू मंजूर रहौ तब रहियौ, नै तब हमरा नहिरा पहुँचा दे ।)    (बामदा॰6.13)
237    फरना (= फलना) (तों आम लगइभो तब बैर नै फरतै । जब फरतै तब आम ! तों बबूर लगइभो तब ओकरा में जब होतइ तब काँटा । फरतै बबुरी ! चाहे तों लाख जतन करहो । ओय से आदमी के अच्छा कर्म करै के चाही ।)    (बामदा॰9.20, 21)
238    फल्हरना (गुदड़ी बड़ी खुश भेल काहे कि एक बेटा ओकरा पहिलों से हल । जोड़ी लग गेल - दू बेटा । एकरा से भागमान के ? ... उ झील में फल्हरि को नहैलक । बचवो के मलि-मलि को नहा के कपड़ा-लत्ता साफ करि के घर चल गेल ।)    (बामदा॰1.24)
239    फाजिल (= फालतू, अतिरिक्त) (चिलिम सुटाकी खा पीको एक झप्प लेलका, फेर उठला । देखै हथ लड़की सुतले हइ । खैर, फेर साँझूक खाना ले जारन-झूरी सोरियैलक । चूल्हा के चेतैलका, तेइयो औरत सूतले । बाबा मने-मन सोचो लगला - के इ घर से फाजिल औरत हइ ? एकरा कोय कहै-सुनै वाला हइ कि नै ? एसकरे इ बियाबान में एकरा डर-उर लगऽ हइ कि नै ?)    (बामदा॰18.29)
240    फाहा (अतर के ~) (जवानी में गदहियो सुन्नर लगऽ हइ । सुनऽ हियौ तोर मागु तो सुनरे हौ । गरमी के दिन में साँझ को मागु नहा लै होतौ, औडर-पौडर लगा को, कान में अतर के फाहा खोंसि को, माथा-चोटि बान्हि को, पलंग पर जा होतौ, त लागऽ होतौ कि हम स्वर्ग में ही, जैसे बगल में इन्नर के पड़ी सूतल हइ ।)    (बामदा॰3.22)
241    फिकिर (= फिक्र) (बूढ़ा बाबा के बात सुनि के आर निराश हो गेल । फिकिर में डूब गेल । मुदा साहस करके फेर पूछलक - अच्छा बाबा ! इ बतावो । अतमा जब शरीर से निकलऽ हइ तब उ कहाँ जा हइ ? स्वर्ग-नरक जाय के परकिरिया की हइ ?)    (बामदा॰10.4)
242    फुलकी (~ बयार) (बाबा मन्दिर के छरदेवाली के फाटक खुलल हल । इ सीधे अन्दर चल गेल । देखे हे राति दिन के समान टहपोर इंजोरिया । फुलकी बयार । नीनों के सुता दै वाला हवा । चारो तरफ गौर से देखलक । सूनसान साँय-साँय आवाज करैत राति । बाबा फोंफ काटि रहला हे, नीनभोर ।)    (बामदा॰14.1)
243    फुस्सी (राह में बाबा के परवचन के तरह-तरह के बिख्यास करते लोग घर चलला । चिलम सुटाकी पूछलक अप्पन साथी से - "बिरजू दा ! सुनल्हो ? बाबा कत्ते अच्छा बात कहलखिन । सचमुच भ्रूण हत्या महापाप हइ !" बिरजू दा कहलखिन - बाबा कहलखुन फुस्सी ..., बाबा के मागु रहतन हल, बच्चा होतन हल, तब समझ में अइतन हल ।)    (बामदा॰3.18)
244    फेर (= फिर) (बूढ़ा बाबा के बात सुनि के आर निराश हो गेल । फिकिर में डूब गेल । मुदा साहस करके फेर पूछलक - अच्छा बाबा ! इ बतावो । अतमा जब शरीर से निकलऽ हइ तब उ कहाँ जा हइ ? स्वर्ग-नरक जाय के परकिरिया की हइ ?; बूढ़ा फेर पूछलकन - बाबा ! वहाँ कुछ घूस-घास आर कुछ ... माने चोर दरवाजा से स्वर्ग जाय के उपाय नै ?)    (बामदा॰10.5, 11)
245    फोंफ (~ काटना) (बाबा मन्दिर के छरदेवाली के फाटक खुलल हल । इ सीधे अन्दर चल गेल । देखे हे राति दिन के समान टहपोर इंजोरिया । फुलकी बयार । नीनों के सुता दै वाला हवा । चारो तरफ गौर से देखलक । सूनसान साँय-साँय आवाज करैत राति । बाबा फोंफ काटि रहला हे, नीनभोर ।)    (बामदा॰14.2)
246    बकड़ी (= बकरी) (अगर बच्चा बेटा हो गेलौ, तब तो जौख-सौख में रहभीं । जो कहैं भैवा बेटी हो गेलौ तब तो एगो खोंचाहल बाँस नीचे से अथिया में हेलि जइतौ । जैसे-जैसे बेटिया बढ़तौ वैसे-वैसे उ बाँसा बढ़ल जइतौ, उपर चढ़ल जइतौ । जतना बेटी भेल जइतौ ओतना बाँस हेलल जइतौ । जब बेटिया जुआन हो जइतौ तब बाँसा मथवा में ठेकि जइतौ । जब मन बना को पलंग पर जइभीं, तब मौगी कहतौ - अजी, अबरियो कुछ नै ने सोचल्हो ? छौड़ा-पूत के बकड़ी पठरू जे घास-पात खाहे से तो मेमियाबो लगऽ हइ । बेटिया अनबोलता धन हिकै से-से ने । अगर इमान टगा दै तब कि होतइ ? तों कैसे आ गेल्हो । वैसने जरूरत तो ओकरो समझै के चाही ।)    (बामदा॰4.2)
247    बकड़ी-पठरू (अगर बच्चा बेटा हो गेलौ, तब तो जौख-सौख में रहभीं । जो कहैं भैवा बेटी हो गेलौ तब तो एगो खोंचाहल बाँस नीचे से अथिया में हेलि जइतौ । जैसे-जैसे बेटिया बढ़तौ वैसे-वैसे उ बाँसा बढ़ल जइतौ, उपर चढ़ल जइतौ । जतना बेटी भेल जइतौ ओतना बाँस हेलल जइतौ । जब बेटिया जुआन हो जइतौ तब बाँसा मथवा में ठेकि जइतौ । जब मन बना को पलंग पर जइभीं, तब मौगी कहतौ - अजी, अबरियो कुछ नै ने सोचल्हो ? छौड़ा-पूत के बकड़ी पठरू जे घास-पात खाहे से तो मेमियाबो लगऽ हइ । बेटिया अनबोलता धन हिकै से-से ने । अगर इमान टगा दै तब कि होतइ ? तों कैसे आ गेल्हो । वैसने जरूरत तो ओकरो समझै के चाही ।)    (बामदा॰4.2)
248    बकार (कहलको - अब जो गाँजा पीलें हें तब सब दशा करवौ । ... साल में दू नै, रोज दू मंजूर रहौ तब रहियौ, नै तब हमरा नहिरा पहुँचा दे । ... फेर कानो लगलइ - कि करियै हो बाबा ! ... कैसे को ब्रहमचर्य रहियै ? एतना सुन के बाबा के मुँह में बकारे नै ।)    (बामदा॰6.18)
249    बक्क (~ सना) (कहलकन - बाबा धीरज धरो । हम इ बेला में इहे काम ले तो अइवे कैलों हे । इतमिनान से बिछौना पर ! जत्ते मन होतो तत्ते ... हदिया रहला हे काहे । इ भगवान के सामने ? तोहरा महात्मा के अच्छा लगै हो ? बाबा बक्क सना छोड़ देलका । भूत उनकर माथा पर अभी भी सवार हल । बिछौना पर आको इन्तजार करो लगला ।)    (बामदा॰14.26)
250    बच्छर (= वत्सर; वर्ष, साल) (बगल के गाँव के जुवा मागु-मरद के बियाह होले दस बच्छर हो गेलै मुदा बच्चा के दरेस नैं । साधू-महात्मा से देखा को, तमाम ओहमा-टोटका, वैदराज के जड़ी-जुटका करि को हारि गेल, कहैं कुछ नैं । पूरा परिवार बड़ी चिन्ता में । गोतनी-नैनी से जो ठोना-बादी होवै तब बाँझी कह के गरियावै ।; करमन दा कुरधल-रूसल दिल्ली चल गेला । वहाँ से कमा को पैसा-वैसा घर भेज दे हथिन । तीन बच्छर से घर नै ऐलखिन हे । एक दिन भौजी हमरा कहलखिन - बौआ ! हमरा पेट में दरद करो हइ । चलो पटना, डाकदरनी से हमरा देखा दा ।)    (बामदा॰16.19; 23.7)
251    बजड़ना (चिलिम सुटाकी मने-मन सोचे लगल - बाबा के बात लाख टका के बात ... काहे ने ब्रहमचारी रहल जाय । उ तय कैलक - बस । साल में दू । एकरा से बेसी नै । चाहे मागु लाख बजड़ि को मरि जाय । तनी सा पसीझै के काम नै चाहे जे कहे ।)    (बामदा॰5.5)
252    बजाड़ना (पलंग पर पछाड़ि को उलटा सवारी कसि देलको, दोमते-दोमते देह तोड़ि देलको । नस-नस में दरद करऽ हो बाबा । देह बनबन टूटै हो । फेर कानो लगलै । कि करियो हो बाबा ! जबरदस्त मागु से पाला पड़ि गेलो। गाँजा के पुरिया बिगि देलको । ओत्ते बढ़ियाँ चिलिम पत्थल पर बजाड़ि को फोड़ि देलको । कहलको - अब जो गाँजा पीलें हें तब सब दशा करवौ । साल में दू नै, रोज दू मंजूर रहौ तब रहियौ, नै तब हमरा नहिरा पहुँचा दे ।; तोर कसूर कि हौ, कसूर ओकर साँय के हइ ... अब पदाहो के भाय मूड़ी बजाड़ोथि, अब कि होतन । भेड़ गेल भनसा हर्रो ... हर्रो ।)    (बामदा॰6.14; 24.34)
253    बढ़न-झँट्टा (चेला कहलकन - हो बाबा ! मागु हमरा बोढ़नी से झाँटि को भगा देलको । कहलको, तीन बरीस घर नै चढ़ो देवौ, बढ़न-झँट्टा सटो नै देवौ । बाबा पुछलखिन - से काहे ? चेला कहलकन - पानी पवइया हइ आर काहे ।)    (बामदा॰15.13)
254    बनब (~ करना) (नगड़ू यादव कहलका - अरे ! जो चिलिम सुटकिया । काहे ले तों चूड़ा के गवाही दही बनब करें हें । उ साफ तो हमरे तीनों के देखि को बोललइ - तीन काना तऽ तीन चौपाय ! मन तो करऽ हइ कि मंचवे पर चढ़ के लगा दियै तीन लाठी बामा बगल मथवा पर बस ! ओजै सोहा ! तोरे आवइ हो चौपाय पदाहो भाय तब ला ।)    (बामदा॰9.5)
255    बनबन (~ टूटना) (पलंग पर पछाड़ि को उलटा सवारी कसि देलको, दोमते-दोमते देह तोड़ि देलको । नस-नस में दरद करऽ हो बाबा । देह बनबन टूटै हो । फेर कानो लगलै । कि करियो हो बाबा ! जबरदस्त मागु से पाला पड़ि गेलो। गाँजा के पुरिया बिगि देलको । ओत्ते बढ़ियाँ चिलिम पत्थल पर बजाड़ि को फोड़ि देलको । कहलको - अब जो गाँजा पीलें हें तब सब दशा करवौ । साल में दू नै, रोज दू मंजूर रहौ तब रहियौ, नै तब हमरा नहिरा पहुँचा दे ।)    (बामदा॰6.12)
256    बबुरी (तों आम लगइभो तब बैर नै फरतै । जब फरतै तब आम ! तों बबूर लगइभो तब ओकरा में जब होतइ तब काँटा । फरतै बबुरी ! चाहे तों लाख जतन करहो । ओय से आदमी के अच्छा कर्म करै के चाही ।)    (बामदा॰9.21)
257    बबूर (= बबूल) (तों आम लगइभो तब बैर नै फरतै । जब फरतै तब आम ! तों बबूर लगइभो तब ओकरा में जब होतइ तब काँटा । फरतै बबुरी ! चाहे तों लाख जतन करहो । ओय से आदमी के अच्छा कर्म करै के चाही ।)    (बामदा॰9.21)
258    बरतुहारी (मौगी के इ बात लगतौ जैसे मथवा में हथौड़ा मारब करऽ हइ । तब निकलभीं बरतुहारी में । भीखमंगवा जेकरा घर भूँजी-भाँग नै, से माँगतौ एक लाख, तब बाँसा वाला खोंचा लगतौ कि मथवा फारि को निकलि जायत ।)    (बामदा॰4.5)
259    बरियात (= बराती; बारात) (मौगी के इ बात लगतौ जैसे मथवा में हथौड़ा मारब करऽ हइ । तब निकलभीं बरतुहारी में । भीखमंगवा जेकरा घर भूँजी-भाँग नै, से माँगतौ एक लाख, तब बाँसा वाला खोंचा लगतौ कि मथवा फारि को निकलि जायत । जे तोरा तनी सा पसीन पड़तौ, से मँगतौ दू लाख, तीन लाख ! तखने बाँसा आर गड़ो लगतौ । कइसौं कइसौं अच्छा बेजाय लड़का जब ठीक हो जइतौ तब दर्दबा कुछ कमतौ । खेत बेचि, गहना बेचि सूद पर करजा लेको रूपइवा जुटा देभीं, तब फिकिर होतौ बरियात के कैसे सुआगत करियै ?)    (बामदा॰4.10)
260    बसर (पूछइ - बताव केकर हिकौ ? ससुरे लगा को गरियाबै । उ बेचारी ससुर के इज्जत बचावै ले सही हम्मर नाम कहि देलकै । करमन दा कुरधल बचवे के फेंको लगलखिन । उतो बसर कही ससुर मगरू चा के । गरिया को कहलखिन - तोरी बेटी के, तों अइवे नै करऽ हलहीं, तब इ कि करते हल ? खूब बढ़िया तो कैलकै । चब्बोस बेटी ... पोता हमरा गोदी में दे देलक ।)    (बामदा॰24.15)
261    बहिन के (तोरी ~) (जब अगिन के सात फेरा पड़ि जइतौ, बेदी तर बैठा को सिन्नुर दान हो जइतौ, आर औरतिया गइतौ - धीया पड़लो सजन घर जी बाबा ! अबे बाबा सुतहो निचीत ... बस उ बाँसा निकलि को छट सना लड़कवा के नीचे से अथिया में हेलि जइतै । तेइयो चैन नै । तब समाद अइतौ लड़का रूसल हो इसकूटर ले । समधी रूसल हो गाय ले । तोरी बहिन के समधी ... तोरी माय के दमाद ... जैसे हमहीं जनमैलियन हे इनका ! हमरे कमा को खिलैता । रे नुनु ! भ्रूण हत्या लाचार कोय करऽ हइ ।)    (बामदा॰4.14-15)
262    बाघ-सिंघ (साँझ भेलै कहाँ जइतै ? बाबा उठैलका, कतनो उठैलका, नै उठल । तब हाथ पकड़ि के घीचि के ओकरा बैठैलका, कहलका - के हिकी ? तों कहाँ जइबी ? साँझ भेलो, चल जा । राति को एजो औरत नै रहऽ हइ । राति को बाघ-सिंघ, साँप-बिच्छा निकलतो । कैसनो कुछ हो जाय, के जानऽ हइ ? जस दूर हइ, अपजस भीर । हमरो फँसैबी । चल जा ।)    (बामदा॰19.1)
263    बाता (= संधिवात, गठिया) (गुरूजी के अन्तकाल हो गेला के बाद मटोखर गाँव आ गेला । गाँव के एक छोर पर झोपड़ी बना के सीता राम के मूरती पधरा के पूजा करो लगला । खुद बड़ी चरित्रवान । कुछ मंतर-तंतर भी सीख लेलका हल । साँप-बिच्छा के झार, कुछ जड़ी-गुटका, जैसे कमलवाय के इलाज, परसौती के जड़ी देना, बाता के जड़ी । सब मिल-मिला के इनकर जनता में कदर होवो लगल ।)    (बामदा॰2.7)
264    बान्हना (= बाँधना) (जवानी में गदहियो सुन्नर लगऽ हइ । सुनऽ हियौ तोर मागु तो सुनरे हौ । गरमी के दिन में साँझ को मागु नहा लै होतौ, औडर-पौडर लगा को, कान में अतर के फाहा खोंसि को, माथा-चोटि बान्हि को, पलंग पर जा होतौ, त लागऽ होतौ कि हम स्वर्ग में ही, जैसे बगल में इन्नर के पड़ी सूतल हइ ।)    (बामदा॰3.23)
265    बामा (= बायाँ) (नगड़ू यादव कहलका - अरे ! जो चिलिम सुटकिया । काहे ले तों चूड़ा के गवाही दही बनब करें हें । उ साफ तो हमरे तीनों के देखि को बोललइ - तीन काना तऽ तीन चौपाय ! मन तो करऽ हइ कि मंचवे पर चढ़ के लगा दियै तीन लाठी बामा बगल मथवा पर बस ! ओजै सोहा ! तोरे आवइ हो चौपाय पदाहो भाय तब ला ।)    (बामदा॰9.7)
266    बारह-तेरह (मन ~ के होना) (बाबा अधरात बेला में, इ सुनट्टा राति में, इ रूप-रंग के इ भेस-भूसा में जुआन सुन्दर औरत देख के अवाक रह गेला । मुँह में आवाज नै । टुकर-टुकर ... निहारैत रहला । ... इ औसर चूकइ के नै । इ मौका जीवन में मिलत कि नै मिलत । हाथ से नै जाय देल जाय, चाहे संसार जे कहे । मन बारह-तेरह किसिम के होवो लगल । तभी लड़की बाबा के धेयान भंग कैलक - बाबा ! मन्दिर के दरवाजा खोलो, केबाड़ खोलो, हम पूजा करब ।; कि करियै हो बाबा ? जेकरा रोज खाय ले मिलऽ हलइ सेकरा तीन बरीस नै । कैसे रहबै हो बाबा ! अ ... हँ ... हँ ... हँ ... खायले जी ललाय । लाल पीयर देखऽ हियै तऽ मन बारह-तेरह किसिम के हो जा हइ ।)    (बामदा॰14.12; 15.3)
267    बिकट-बिकट (~ गारी पढ़ना) (थरिवा पटकि को बिकट-बिकट गारी पढ़ो लगलखिन - तोरी पागल माय के ... काम यहाँ मिरचाय केराबै के । तऽ से नै ! इ अइला हे हम्मर पूजा करै ले । से दिन से सोचो लगलखुन - एकरा राँची के पगला गारत में पहुँचा देल जाय !)    (बामदा॰7.31)
268    बिकटी (गारी से ~ करना) (ऊ कहना शुरू कैलक - हे बाबा ! साँझ खा-पीको, हाथ पोछने बंगला पर जा लगलियो कि कलरवा पकड़ि को घीचि लेलको, जबरदस्त मागु ! भीतर पलंग पर सुता को केबाड़ी लगा देलको । तोहरो गारी से बिकटी करि देलको । कहलको - उ मटोखरा ! ... बैठल-बैठल गुल्ली गढ़ैत रहे हइ । ओकर बाप जो ओकर माय साथे नै जइते हल, तब उ कहाँ से आयत हल परवचन करै ले ?)    (बामदा॰5.32)
269    बिख्यास (राह में बाबा के परवचन के तरह-तरह के बिख्यास करते लोग घर चलला । चिलम सुटाकी पूछलक अप्पन साथी से - "बिरजू दा ! सुनल्हो ? बाबा कत्ते अच्छा बात कहलखिन । सचमुच भ्रूण हत्या महापाप हइ !" बिरजू दा कहलखिन - बाबा कहलखुन फुस्सी ..., बाबा के मागु रहतन हल, बच्चा होतन हल, तब समझ में अइतन हल ।)    (बामदा॰3.15)
270    बिगना (= फेंकना) (पलंग पर पछाड़ि को उलटा सवारी कसि देलको, दोमते-दोमते देह तोड़ि देलको । नस-नस में दरद करऽ हो बाबा । देह बनबन टूटै हो । फेर कानो लगलै । कि करियो हो बाबा ! जबरदस्त मागु से पाला पड़ि गेलो। गाँजा के पुरिया बिगि देलको । ओत्ते बढ़ियाँ चिलिम पत्थल पर बजाड़ि को फोड़ि देलको । कहलको - अब जो गाँजा पीलें हें तब सब दशा करवौ । साल में दू नै, रोज दू मंजूर रहौ तब रहियौ, नै तब हमरा नहिरा पहुँचा दे ।; एगो रस्सी के ससँर-फानी बनैलियै । लकड़ी से कुतवा के मुड़िया उठा के ससँर-फनिया हेला के लकड़िये से कसि देलियै । घीचने गाँव से बाहर जाके खद्धा खनि को ओकरे में ओकरा दे को उपर से माटी भरि देलियै । समूचा गाँव शोर हो गेलै कि रमदसवा के मरल कुत्ता बिगलकै रूपैया पर ।; उनकर नौकरवा कहलकै - रमदसवा के सड़ल-महकल कुत्ता बिगै में जाति नै गेलो । एखने जाति चलि जइतो । इनकर पैखाना साफ करै में अलमाओछ हो जइतो । कामा जब उहे उठैलको तब संसार कहतो, हम कहलियो तब कि ?)    (बामदा॰6.14; 21.21, 30)
271    बिच्छा (गुरूजी के अन्तकाल हो गेला के बाद मटोखर गाँव आ गेला । गाँव के एक छोर पर झोपड़ी बना के सीता राम के मूरती पधरा के पूजा करो लगला । खुद बड़ी चरित्रवान । कुछ मंतर-तंतर भी सीख लेलका हल । साँप-बिच्छा के झार, कुछ जड़ी-गुटका, जैसे कमलवाय के इलाज, परसौती के जड़ी देना, बाता के जड़ी । सब मिल-मिला के इनकर जनता में कदर होवो लगल ।; साँझ भेलै कहाँ जइतै ? बाबा उठैलका, कतनो उठैलका, नै उठल । तब हाथ पकड़ि के घीचि के ओकरा बैठैलका, कहलका - के हिकी ? तों कहाँ जइबी ? साँझ भेलो, चल जा । राति को एजो औरत नै रहऽ हइ । राति को बाघ-सिंघ, साँप-बिच्छा निकलतो । कैसनो कुछ हो जाय, के जानऽ हइ ? जस दूर हइ, अपजस भीर । हमरो फँसैबी । चल जा ।)    (बामदा॰2.6; 19.1)
272    बिलाय (= बिल्ली) (बाबा मटोखर दास आज कहलका - गिरहस्त धर्म सबसे बड़ा धरम हइ । गिरहस्त अप्पन कमाय से संसार के पालन करे हइ । चिराँय-चुरमुनी से लेको गाय, भैंस, बकरी, कुत्ता, बिलाय, चूहा-पेचा, सुण्डा-भुसुण्डा जतना जे जीव-जन्तु हइ ।)    (बामदा॰22.11)
273    बुम्म (~ फार के कानना) (कहते-कहते बुम्म फारि को कानो लगलै - हमर पापी के कि होतइ बाबा ? बाबा ओकर माथा सहलावैत कहलखिन - कुछ नै होतै । इ पुन्न के काम हइ, पाप के नैं ।)    (बामदा॰24.28)
274    बुर्राक (गोर-~) (गाँजा के चिलिम में सुट्टा मारइ वाला - चिलिम सुटाकी । चिलिम सुटाकी खाता-पीता परिवार के आदमी । माय-बाप के दुलारू असकरूआ बेटा । मैटरिक पास, लम्बा-तगड़ा, गोर-बुर्राक । मुदा भीतर से बहुत भावुक ।)    (बामदा॰2.28)
275    बुलना (= चलना) (इ सुनके बाबू खूब बिगड़लखिन - आदमी हिकै ! साला गदहा ! बर्द-बैल ! अप्पन काम सूझे नै, दिन भर बिना खइने-पीने दोसरा के गूह-मूत, नाला-पमाला साफ कइने बुले । जेकरा घर के आगू-पाछू गंदगी हइ ओकरा ने साफ करइ के चाही ।; हम्मर नाम पर दुर्गंध चारो तरफ फैलि गेलो । कान नै देल जाहो । लाज से गाँव के गली नै बुलऽ हियो । बाप भी कुरधल हथुन, माय भी । मागु तो कुहँचि को मारि देलको । कहलको - रे तियन चक्खा ! हम्मर कि सड़ गेलइ हल जे तों एने-ओने मुँह मारने बुलऽ हीं । हम कहियो मनो कैलियौ ? हमहूँ जो तोरे नियर तियन चाखने बुलियौ तब कि होतौ तोर पगड़िया के ? हमरा कि मरद नै ने मिलतै ?)    (बामदा॰21.6; 24.22, 23, 24)
276    बेकल (= व्याकुल, बेचैन) (भौजी कहलखिन - सुनि ने लेल्हो बौआ ? अब हम कि करियै ? तोंहीं कहो । कहाँ बच्चा ले बेकल हलइ, आर बेला अइलै तब परन करि लेलकै । बिना मरद के बच्चा होले ह कहैं ?)    (बामदा॰23.35)
277    बेटी के (तोरी ~) (पूछइ - बताव केकर हिकौ ? ससुरे लगा को गरियाबै । उ बेचारी ससुर के इज्जत बचावै ले सही हम्मर नाम कहि देलकै । करमन दा कुरधल बचवे के फेंको लगलखिन । उतो बसर कही ससुर मगरू चा के । गरिया को कहलखिन - तोरी बेटी के, तों अइवे नै करऽ हलहीं, तब इ कि करते हल ? खूब बढ़िया तो कैलकै । चब्बोस बेटी ... पोता हमरा गोदी में दे देलक ।)    (बामदा॰24.16)
278    बेरी (= तुरी; बार) (सिंघ एक जानवर हइ । उ साल में एक बेरी इसतिरी गमन करे हइ से-से सिंघ हइ । जंगल के राजा हइ । तोरा सबसे आगरह हइ कि साल में एक नै मानल जाय तब दू बेरी । ओकरा से जादा नै ।)    (बामदा॰4.30, 31)
279    बैर (= बेर) (तों आम लगइभो तब बैर नै फरतै । जब फरतै तब आम ! तों बबूर लगइभो तब ओकरा में जब होतइ तब काँटा । फरतै बबुरी ! चाहे तों लाख जतन करहो । ओय से आदमी के अच्छा कर्म करै के चाही ।)    (बामदा॰9.20)
280    बोजना (= डालना, भरना) (चिलिम में गाँजा ~) (उ तुरत समझ गेल कि वहाँ गँजेड़ी के जमघट लगल हइ । एकरो मन चटपटा गेल । जल्दी-जल्दी भीड़ के सोरिया को वहाँ पहुँच गेल । देखे हइ वहाँ तीन गँजेड़ी बैठल हइ । गुल भी सुलगि को लाल हो गेल । अब करीब-करीब गाँजा भी लटल हइ । चिलिम में बोजइ भर के देरी ! उ एक मिनट इन्तजार कैलक कि गाँजा बोजा गेल । पहिला सुट्टा चिलिम सुटाकी ऐसन से मारलक कि चिलिम लहकि गेल ।)    (बामदा॰8.15)
281    बोजाना (उ तुरत समझ गेल कि वहाँ गँजेड़ी के जमघट लगल हइ । एकरो मन चटपटा गेल । जल्दी-जल्दी भीड़ के सोरिया को वहाँ पहुँच गेल । देखे हइ वहाँ तीन गँजेड़ी बैठल हइ । गुल भी सुलगि को लाल हो गेल । अब करीब-करीब गाँजा भी लटल हइ । चिलिम में बोजइ भर के देरी ! उ एक मिनट इन्तजार कैलक कि गाँजा बोजा गेल । पहिला सुट्टा चिलिम सुटाकी ऐसन से मारलक कि चिलिम लहकि गेल ।)    (बामदा॰8.15)
282    बोढ़नी (= बढ़नी; झाड़ू) (चेला कहलकन - हो बाबा ! मागु हमरा बोढ़नी से झाँटि को भगा देलको । कहलको, तीन बरीस घर नै चढ़ो देवौ, बढ़न-झँट्टा सटो नै देवौ । बाबा पुछलखिन - से काहे ? चेला कहलकन - पानी पवइया हइ आर काहे ।)    (बामदा॰15.12)
283    बौआ (करमन दा कुरधल-रूसल दिल्ली चल गेला । वहाँ से कमा को पैसा-वैसा घर भेज दे हथिन । तीन बच्छर से घर नै ऐलखिन हे । एक दिन भौजी हमरा कहलखिन - बौआ ! हमरा पेट में दरद करो हइ । चलो पटना, डाकदरनी से हमरा देखा दा ।; आवइ में राति हो गेलै । गाड़ी पर भौजी कान में सटि को कहलखिन - बौआ ! तों देवर हम भौजाय । देवर माने दोसर वर । देवर-भौजाय में कोय पाप नै । बौआ, हमर सूना गोदी भरि दा । बाँझी नाम छोड़ा दा । तोरा गोड़ परऽ हियो ।)    (बामदा॰23.8, 17, 18)
284    भगमान (फेर लड्डू के परसाद ओकरा मुँह में देलियै । अंतिम कर जोरि को असीरवाद माँगलियै । उ असीरवाद देलकै - निक्के-सुक्खे रहें बेटा ! नहाइतो केस नै तोर टूटे । एक रोइयाँ भंगन नै होय ! भगवान करथिन । फेर उठि को सुरूज भगमान से कहलकै - हमर बेटा के दिमाग ठीक करि दहो । एक्के बेटा हइ प्रभो ! आँखि में पाँख । रात भर में एकरा कि करि देल्हो ?; हमरा करमन दा के मागु के बच्चा नै होवऽ हलै । सब ओकर नाम बाँझी धैलकै । करमन दा ओकरा छोड़ि को दोसर बियाह करै ले चाहऽ हलखिन । बाप मगरू चा रोकि देलखिन - इज्जत के बात । भगमान कुमेहर नै होथिन । हम सत धरम पर हियै, हमर वंस बुड़ि नै सकऽ हइ ।)    (बामदा॰7.18; 23.1)
285    भनसा (तोर कसूर कि हौ, कसूर ओकर साँय के हइ ... अब पदाहो के भाय मूड़ी बजाड़ोथि, अब कि होतन । भेड़ गेल भनसा हर्रो ... हर्रो ।)    (बामदा॰24.34)
286    भविस (= भविष्य) (रे पागल आदमी ! बिना माता के कोय जीव जनमल हे ? जब तों लड़की के मार देभीं तब भविस में आवइ वाला सन्तान के रास्ता तो बन्द हो जायत ! आखिर इ संसार के कि होत ?)    (बामदा॰3.11)
287    भाग (= भाग्य) (गरिया को कहलखिन - तोरी बेटी के, तों अइवे नै करऽ हलहीं, तब इ कि करते हल ? खूब बढ़िया तो कैलकै । चब्बोस बेटी ... पोता हमरा गोदी में दे देलक । गाय राति भर कहैं चरे, किसान के खुट्टा पर आ जाय तो एकरा से भाग के बात कि ? कहैं से इ लाबे, पोतवा हम्मर कहायत कि दोसर के ?)    (बामदा॰24.18)
288    भागमान (= भाग्यवान, भाग्यशाली) (करीब पहुँचल । कौआ सब भागि गेल । इ हलखि को ओकरा गोदी में लेलकी । बचवा चुभुर-चुभुर दूध पियो लगल । रोना छोड़ के हँसो लगल । गुदड़ी बड़ी खुश भेल काहे कि एक बेटा ओकरा पहिलों से हल । जोड़ी लग गेल - दू बेटा । एकरा से भागमान के ?)    (बामदा॰1.24)
289    भाय (= अ॰ चाहे) (चेला कहलकन - हो बाबा, हमरा ऐंगना में गोड़ भारी हइ । - गोड़ भारी ? बाबा अचरज से अकबका को, डाँटि को पुछलखिन - ऐंगना में गोड़ होवऽ हइ ? अरे साफ बताव कि कहै ले चाहऽ हें ? चेला कहलकन - बाबा ! औरत रहतो हल, तब ने इ सब बात समझथो हल । शायत इहे डर से बियाह नै कैला ? भारत के नक्सा देखला कहियो, भाय नै । अब इ जनम में तो नहियें देखला, दोसरो जनम में देखवा, भाय नै । दोबारे आदमी में जनमवा तभिये नें ?)    (बामदा॰15.21, 22)
290    भिनभिनाना (मन ~) (जवानी में गदहियो सुन्नर लगऽ हइ । सुनऽ हियौ तोर मागु तो सुनरे हौ । गरमी के दिन में साँझ को मागु नहा लै होतौ, औडर-पौडर लगा को, कान में अतर के फाहा खोंसि को, माथा-चोटि बान्हि को, पलंग पर जा होतौ, त लागऽ होतौ कि हम स्वर्ग में ही, जैसे बगल में इन्नर के पड़ी सूतल हइ । ... ओकर समूचे देहे रसगुल्ला सन मीठ लगऽ होतौ । लगऽ होतौ कहाँ से खाँव । जब बच्चा पर बच्चा हो जइतौ तब उहे मौगी लगो लगतौ सड़ल मछली सन । ओरायल भात नियर । मन भिनभिना जइतौ ।)    (बामदा॰3.27)
291    भीर (= पास, नजदीक) (साँझ भेलै कहाँ जइतै ? बाबा उठैलका, कतनो उठैलका, नै उठल । तब हाथ पकड़ि के घीचि के ओकरा बैठैलका, कहलका - के हिकी ? तों कहाँ जइबी ? साँझ भेलो, चल जा । राति को एजो औरत नै रहऽ हइ । राति को बाघ-सिंघ, साँप-बिच्छा निकलतो । कैसनो कुछ हो जाय, के जानऽ हइ ? जस दूर हइ, अपजस भीर । हमरो फँसैबी । चल जा ।)    (बामदा॰19.2)
292    भुत्त (नौकरवा कहलकै - नीलमणि बाबू बोलावऽ हथिन बंगला पर पैखाना साफ करै ले । एतना सुनते मातर बाबू भुत्त हो गेलखिन । बिगड़ि को बोललखिन - नीलमनिया कहाँ से आयल हे । देखले छौड़ी समधिन रे ! अजुके बनिया कल्हु के सेठ । ओकर बेटवा से एकरा कम हिस्सा पड़तै कि जादे रे ! अप्पन पैखाना उ अपनै काहे नै साफ करै ? इ मेस्तर हिकै ? नै जैबा एजो से ... ।)    (बामदा॰21.26)
293    भूलल-भटकल (अन्नदान संसार में सबसे बढ़ के दान हइ । गिरथानि के हथकटनी नै होय के चाही । कोय अतिथि, उपांसी, भूलल-भटकल दरवाजा पर आ जाय, ओकरा एक लोटा पानी आर दू मुट्ठी अन्न से जरूर सुआगत करइ के चाही । इहे अन्नदान गिरहस्त के सारा पाप काटि दै हइ ।)    (बामदा॰22.13)
294    भेस-भूसा (= वेष-भूषा) (बाबा अधरात बेला में, इ सुनट्टा राति में, इ रूप-रंग के इ भेस-भूसा में जुआन सुन्दर औरत देख के अवाक रह गेला । मुँह में आवाज नै । टुकर-टुकर ... निहारैत रहला ।)    (बामदा॰14.8)
295    भैवा (< भाई + 'आ' प्रत्यय+ वकार आगम) (= साधारणतः छोटे भाई के लिए सम्बोधन आदि में प्रयुक्त, जबकि बड़े भाई के लिए 'भैया') (राह में बाबा के परवचन के तरह-तरह के बिख्यास करते लोग घर चलला । चिलम सुटाकी पूछलक अप्पन साथी से - "बिरजू दा ! सुनल्हो ? बाबा कत्ते अच्छा बात कहलखिन । सचमुच भ्रूण हत्या महापाप हइ !" बिरजू दा कहलखिन - बाबा कहलखुन फुस्सी ..., बाबा के मागु रहतन हल, बच्चा होतन हल, तब समझ में अइतन हल । एइसे तो एक पेट खाना, गोल-गोल बात करना, हरिभजन करना आसान काम हइ । तोरा अभी बुतरू नै ने भेलौ हे भैवा ? एखने कि कहना ? जवानी में गदहियो सुन्नर लगऽ हइ । सुनऽ हियौ तोर मागु तो सुनरे हौ । ... अगर बच्चा बेटा हो गेलौ, तब तो जौख-सौख में रहभीं । जो कहैं भैवा बेटी हो गेलौ तब तो एगो खोंचाहल बाँस नीचे से अथिया में हेलि जइतौ । जैसे-जैसे बेटिया बढ़तौ, वैसे-वैसे उ बाँसा बढ़ल जइतौ, ऊपर चढ़ल जइतौ ।)    (बामदा॰3.20, 28)
296    मंतर-तंतर (गुरूजी के अन्तकाल हो गेला के बाद मटोखर गाँव आ गेला । गाँव के एक छोर पर झोपड़ी बना के सीता राम के मूरती पधरा के पूजा करो लगला । खुद बड़ी चरित्रवान । कुछ मंतर-तंतर भी सीख लेलका हल । साँप-बिच्छा के झार, कुछ जड़ी-गुटका, जैसे कमलवाय के इलाज, परसौती के जड़ी देना, बाता के जड़ी । सब मिल-मिला के इनकर जनता में कदर होवो लगल ।)    (बामदा॰2.6)
297    मकर-जाल (चित्रगुप्त से बूढ़ा कहलक - सरकार ! पहिले हमरा स्वर्गे देल जाय ! नर्क तो जीवन भर हमरा लिखले हइ । स्वर्ग तनी देख लेतों हल । चित्रगुप्त जी कहलखिन - नै, ऐसन विधान तो नै हइ । ... इ सच्चा दरबार हइ । यहाँ मृतलोक वाला मकर जाल नै चलतो । उ सब भूलि जा । सीधे जे करि को अइल्हो, ओकर फल भोगहो ।)    (बामदा॰10.28)
298    मटकोर (पहिले के जमाना में औरत बानी चिकना माटी कोड़ि को लावइ हली । जे जगह से माटी कोड़ि को लावइ हली अप्पन घर नीपइ ले, माथा में लगावइ ले, या कपड़ा साफ करइ ले, उ जगह के नाम हो गेल मटिकोड़, मटिकोड़ से मटकोर, मटकोरवा, मटखोरवा, मटखोरवा से मटोखर, मटोखरा ... ।)    (बामदा॰2.20)
299    मटकोरवा (पहिले के जमाना में औरत बानी चिकना माटी कोड़ि को लावइ हली । जे जगह से माटी कोड़ि को लावइ हली अप्पन घर नीपइ ले, माथा में लगावइ ले, या कपड़ा साफ करइ ले, उ जगह के नाम हो गेल मटिकोड़, मटिकोड़ से मटकोर, मटकोरवा, मटखोरवा, मटखोरवा से मटोखर, मटोखरा ... ।)    (बामदा॰2.20)
300    मटखोरवा (पहिले के जमाना में औरत बानी चिकना माटी कोड़ि को लावइ हली । जे जगह से माटी कोड़ि को लावइ हली अप्पन घर नीपइ ले, माथा में लगावइ ले, या कपड़ा साफ करइ ले, उ जगह के नाम हो गेल मटिकोड़, मटिकोड़ से मटकोर, मटकोरवा, मटखोरवा, मटखोरवा से मटोखर, मटोखरा ... ।)    (बामदा॰2.20)
301    मटिकोड़ (पहिले के जमाना में औरत बानी चिकना माटी कोड़ि को लावइ हली । जे जगह से माटी कोड़ि को लावइ हली अप्पन घर नीपइ ले, माथा में लगावइ ले, या कपड़ा साफ करइ ले, उ जगह के नाम हो गेल मटिकोड़, मटिकोड़ से मटकोर, मटकोरवा, मटखोरवा, मटखोरवा से मटोखर, मटोखरा ... ।)    (बामदा॰2.20)
302    मटोखर (पहिले के जमाना में औरत बानी चिकना माटी कोड़ि को लावइ हली । जे जगह से माटी कोड़ि को लावइ हली अप्पन घर नीपइ ले, माथा में लगावइ ले, या कपड़ा साफ करइ ले, उ जगह के नाम हो गेल मटिकोड़, मटिकोड़ से मटकोर, मटकोरवा, मटखोरवा, मटखोरवा से मटोखर, मटोखरा ... ।)    (बामदा॰2.20)
303    मन (~ बारह-तेरह के होना) (बाबा अधरात बेला में, इ सुनट्टा राति में, इ रूप-रंग के इ भेस-भूसा में जुआन सुन्दर औरत देख के अवाक रह गेला । मुँह में आवाज नै । टुकर-टुकर ... निहारैत रहला । ... इ औसर चूकइ के नै । इ मौका जीवन में मिलत कि नै मिलत । हाथ से नै जाय देल जाय, चाहे संसार जे कहे । मन बारह-तेरह किसिम के होवो लगल । तभी लड़की बाबा के धेयान भंग कैलक - बाबा ! मन्दिर के दरवाजा खोलो, केबाड़ खोलो, हम पूजा करब ।; कि करियै हो बाबा ? जेकरा रोज खाय ले मिलऽ हलइ सेकरा तीन बरीस नै । कैसे रहबै हो बाबा ! अ ... हँ ... हँ ... हँ ... खायले जी ललाय । लाल पीयर देखऽ हियै तऽ मन बारह-तेरह किसिम के हो जा हइ ।; फेर उ कर गिरावैत कहलक - उहो अच्छे होतै बाबा ! जे तों करहो ! तोहर मरजी । जतै तड़पाबो । एतना कह के फेर वहैं कलटि गेल । बाबा मन में सोचो लगला । ओकर बोली के अरथ निकालि को सोचलका । फेर इनकर मन बारह-तेरह किसिम के होवो लगल । मन पर लगाम कासलका ।)    (बामदा॰14.11; 15.3; 19.6)
304    मनझान (= उदास) (चिलिम सुटाकी बोलल - देखहो, हम बाबा के बात पर ब्रहमचारी हो गेलियो । इ सूअर-बकरी नियर रोज-रोज नै, साल में दू बस ! ... हमहूँ बइसैं करों तब आदमी जानवर में कि फरक ? ... एतना कहते-कहते बंगला पर चल गेल । बेचारी के मन मनझान हो गेल । इ तरह से महीना दिन बीत गेल । सोचो लगल अब कि करी ?; बूढ़ा मनझान घर लौटि आयल । मन तो भगवान में लगैलक मगर लगल नैं । उट्ठे-डम्मर रहि गेल। पुन्न भी करे आर मन में तरह-तरह के चोर दरवाजा से जाय के उपाय भी सोचे ।)    (बामदा॰5.25; 10.18)
305    मरब (करमन दा पेटे-पेट मरब करऽ हइ हो बाबा ! भारी अपसोच ओकरा लगऽ हइ । जों फोन मिलते आ जइतों हल । ... हम्मर नाम पर दुर्गंध चारो तरफ फैलि गेलो । कान नै देल जाहो । लाज से गाँव के गली नै बुलऽ हियो । बाप भी कुरधल हथुन, माय भी । मागु तो कुहँचि को मारि देलको । कहलको - रे तियन चक्खा ! हम्मर कि सड़ गेलइ हल जे तों एने-ओने मुँह मारने बुलऽ हीं ।)    (बामदा॰24.19)
306    माइयो (= मइयो) (गुदड़ी देवी घाट पर पहुँच के देखे हे, एक जगह झील के किनारा पर वहाँ से थोड़े दूर पाँच-सात कौआ घेरने हइ । बीच से आदमी के तुरतैं के जनमल बच्चा चेहों-चेहों चिल्हार मारि रहल हे । एकर करेजा धक्क सा रह गेल । जाने के माइयो उढ़री रात के भेल बच्चा फेंक देलक किनारा में ।)    (बामदा॰1.17)
307    मागु (= मौगी, पत्नी, स्त्री) (राह में बाबा के परवचन के तरह-तरह के बिख्यास करते लोग घर चलला । चिलम सुटाकी पूछलक अप्पन साथी से - "बिरजू दा ! सुनल्हो ? बाबा कत्ते अच्छा बात कहलखिन । सचमुच भ्रूण हत्या महापाप हइ !" बिरजू दा कहलखिन - बाबा कहलखुन फुस्सी ..., बाबा के मागु रहतन हल, बच्चा होतन हल, तब समझ में अइतन हल ।; हमरा करमन दा के मागु के बच्चा नै होवऽ हलै । सब ओकर नाम बाँझी धैलकै । करमन दा ओकरा छोड़ि को दोसर बियाह करै ले चाहऽ हलखिन ।)    (बामदा॰3.18; 22.33)
308    मागु-मरद (बगल के गाँव के जुवा मागु-मरद के बियाह होले दस बच्छर हो गेलै मुदा बच्चा के दरेस नैं । साधू-महात्मा से देखा को, तमाम ओहमा-टोटका, वैदराज के जड़ी-जुटका करि को हारि गेल, कहैं कुछ नैं । पूरा परिवार बड़ी चिन्ता में । गोतनी-नैनी से जो ठोना-बादी होवै तब बाँझी कह के गरियावै ।; मागु-मरद दुइयो गाँव लौटि रहल हल । रेलगाड़ी पर मरद पूछलकै - डकदरनियाँ कि कहलको ?)    (बामदा॰16.19, 27)
309    मातर (= मात्र; देखते ~ = देखते ही) (देखते मातर लड़की गोड़ लगलक । जय हो बाबा सिंगरी रिख । साछाते मिलि गेल्हो । चाहलक दौड़ के चरण में लिपटि जाय । मुदा चिलिम सुटाकी जे डँटावन डाँटलक कि इ ठिसुआ गेल ।; नौकरवा कहलकै - नीलमणि बाबू बोलावऽ हथिन बंगला पर पैखाना साफ करै ले । एतना सुनते मातर बाबू भुत्त हो गेलखिन । बिगड़ि को बोललखिन - नीलमनिया कहाँ से आयल हे । देखले छौड़ी समधिन रे ! अजुके बनिया कल्हु के सेठ । ओकर बेटवा से एकरा कम हिस्सा पड़तै कि जादे रे ! अप्पन पैखाना उ अपनै काहे नै साफ करै ? इ मेस्तर हिकै ? नै जैबा एजो से ... ।)    (बामदा॰17.21; 21.26)
310    माय के (तोरी ~) (जब अगिन के सात फेरा पड़ि जइतौ, बेदी तर बैठा को सिन्नुर दान हो जइतौ, आर औरतिया गइतौ - धीया पड़लो सजन घर जी बाबा ! अबे बाबा सुतहो निचीत ... बस उ बाँसा निकलि को छट सना लड़कवा के नीचे से अथिया में हेलि जइतै । तेइयो चैन नै । तब समाद अइतौ लड़का रूसल हो इसकूटर ले । समधी रूसल हो गाय ले । तोरी बहिन के समधी ... तोरी माय के दमाद ... जैसे हमहीं जनमैलियन हे इनका ! हमरे कमा को खिलैता । रे नुनु ! भ्रूण हत्या लाचार कोय करऽ हइ ।; थरिवा पटकि को बिकट-बिकट गारी पढ़ो लगलखिन - तोरी पागल माय के ... काम यहाँ मिरचाय केराबै के । तऽ से नै ! इ अइला हे हम्मर पूजा करै ले । से दिन से सोचो लगलखुन - एकरा राँची के पगला गारत में पहुँचा देल जाय !)    (बामदा॰4.15; 7.32)
311    मारब (~ करना) (मौगी के इ बात लगतौ जैसे मथवा में हथौड़ा मारब करऽ हइ । तब निकलभीं बरतुहारी में । भीखमंगवा जेकरा घर भूँजी-भाँग नै, से माँगतौ एक लाख, तब बाँसा वाला खोंचा लगतौ कि मथवा फारि को निकलि जायत ।)    (बामदा॰4.5)
312    मारल (कहते-कहते फेर कानो लगलइ । कानते-कानते कहलकइ - हो बाबा ! कि कहियो, कुछ कहल नै जाहो आर कहै बिना भी रहल नै जाहो ! कहै के बात नै हइ । अप्पन हारल बहु के मारल केकरा से कही ?)    (बामदा॰6.10)
313    मीठ (= मीठा) (जवानी में गदहियो सुन्नर लगऽ हइ । सुनऽ हियौ तोर मागु तो सुनरे हौ । गरमी के दिन में साँझ को मागु नहा लै होतौ, औडर-पौडर लगा को, कान में अतर के फाहा खोंसि को, माथा-चोटि बान्हि को, पलंग पर जा होतौ, त लागऽ होतौ कि हम स्वर्ग में ही, जैसे बगल में इन्नर के पड़ी सूतल हइ । ... ओकर समूचे देहे रसगुल्ला सन मीठ लगऽ होतौ । लगऽ होतौ कहाँ से खाँव । जब बच्चा पर बच्चा हो जइतौ तब उहे मौगी लगो लगतौ सड़ल मछली सन । ओरायल भात नियर । मन भिनभिना जइतौ ।)    (बामदा॰3.25)
314    मुँह (~ मारना) (हम्मर नाम पर दुर्गंध चारो तरफ फैलि गेलो । कान नै देल जाहो । लाज से गाँव के गली नै बुलऽ हियो । बाप भी कुरधल हथुन, माय भी । मागु तो कुहँचि को मारि देलको । कहलको - रे तियन चक्खा ! हम्मर कि सड़ गेलइ हल जे तों एने-ओने मुँह मारने बुलऽ हीं । हम कहियो मनो कैलियौ ? हमहूँ जो तोरे नियर तियन चाखने बुलियौ तब कि होतौ तोर पगड़िया के ? हमरा कि मरद नै ने मिलतै ?)    (बामदा॰24.23)
315    मुड़ी (= मूड़ी; सिर) (मइया से पूछलियै - बाबू कहाँ गेलखिन मइया ? मइया कहलकइ - खेत गेलौ हे । हम खेत चल गेलियो । देखते के साथ कहलखुन - अरे, खुरपी ने लेने अइथी हल ? इ थारी में कि नानल्ही कलौआ ! एते सबेरे हम खा हियै ? हम कहलियन - नै बाबू । हम आय तोर पूजा करवो, तनी पिरथी मार के बैठ जा । उ बैठ गेलखिन । हम जइसैं उनकर मथवा पर जला ढारै ले चाहलियै कि लोटवा हमरा हाथा से लेको एक चुरू मुड़िया पर छींट लेलखिन, बाँकी पी गेलखिन ।; एगो रस्सी के ससँर-फानी बनैलियै । लकड़ी से कुतवा के मुड़िया उठा के ससँर-फनिया हेला के लकड़िये से कसि देलियै । घीचने गाँव से बाहर जाके खद्धा खनि को ओकरे में ओकरा दे को उपर से माटी भरि देलियै । समूचा गाँव शोर हो गेलै कि रमदसवा के मरल कुत्ता बिगलकै रूपैया पर ।)    (बामदा॰7.26; 21.18)
316    मूड़ी (= सिर; दे॰ मुड़ी) (~ बजाड़ना) (तोर कसूर कि हौ, कसूर ओकर साँय के हइ ... अब पदाहो के भाय मूड़ी बजाड़ोथि, अब कि होतन । भेड़ गेल भनसा हर्रो ... हर्रो ।)    (बामदा॰24.33)
317    मौगी (= पत्नी, स्त्री) (जवानी में गदहियो सुन्नर लगऽ हइ । सुनऽ हियौ तोर मागु तो सुनरे हौ । गरमी के दिन में साँझ को मागु नहा लै होतौ, औडर-पौडर लगा को, कान में अतर के फाहा खोंसि को, माथा-चोटि बान्हि को, पलंग पर जा होतौ, त लागऽ होतौ कि हम स्वर्ग में ही, जैसे बगल में इन्नर के पड़ी सूतल हइ । ... ओकर समूचे देहे रसगुल्ला सन मीठ लगऽ होतौ । लगऽ होतौ कहाँ से खाँव । जब बच्चा पर बच्चा हो जइतौ तब उहे मौगी लगो लगतौ सड़ल मछली सन । ओरायल भात नियर । मन भिनभिना जइतौ ।)    (बामदा॰3.26)
318    रिखी-मुनी (= ऋषि-मुनि) (बाबा परवचन में कहलका - आदमी के ब्रहमचर्ज रहै के चाही । तहिया के रिखी-मुनी ब्रहमचर्ज रहऽ हला, तब उनकर इच्छा मरन होवै हल ।)    (बामदा॰4.20)
319    रिजाला (= दुष्ट, नीच; धृष्ट) (चित्रगुप्त जी कहलखिन - जो रे ! ससुरा रिजाला ! हम नै जानऽ हलियौ कि मिरतुलोक में ऐसन भी लोग होवऽ हइ । अब तो उहे करो पड़त जे तों कहें ।)    (बामदा॰12.26)
320    रिपोट (= रिपोर्ट) (एक दिन बूढ़ा सलाह देलकन - महाराज ! लुरि करो लुरि ! काहे ले तों हमरा पीछे पड़ल हो । हलकान हो को मरब करै हो । चलो वह पीपर गाछ तर दूइयो गोटा आराम से गमछा बिछा को सुती । चारि दिन के रिपोटवा हइये हो । रोज ओकरे में कमवेसी करि को बहिया में लिख दहो ।)    (बामदा॰12.24)
321    रींगना (बाबा, तोहर चिलिम सुटाकी के मागु हिकियो । हम तोर परीच्छा ले ऐलियो हल । हो गेलो तोर परीच्छा । अब काम पर परवचन नै दिहो । आर तेजी से बाहर निकल गेल । बाबा कहलका - हाय रे बाप ! हम कहैं के नै रहलों । भले तखनै जे साली के ... दौड़ला पीछे से मुदा उ जुआन छौड़ी, इ बूढ़ा - रींगि गेलन । पकड़ो नै देलकन । हरान हो को लौटि गेला । मन में भारी अपसोच ।)    (बामदा॰15.2)
322    रूक्खी (= गिलहरी) (इ कहलकै - नै, एक घंटा के रास्ते हइ । दीना-दीनी जाना, दीना-दीनी आना । को डेग हइये हइ ? काहे ले केकरे साथ लेबै । जे समय में उ मन्दिर पहुँचल से समय में चिलिम सुटाकी जारन तोड़ै ले पहाड़ पर चढ़ि गेल हल । वहाँ एक आदमी अदम जाति नै । भले गाछ पर दू चारि उछलैत-कूदैत बानर-कौआ, रूक्खी । इतमिनान से गरम जल के कुण्ड सतधरवा में नहैलक मलि मलि को ।)    (बामदा॰17.14)
323    रूसना (= रूठना) (जब अगिन के सात फेरा पड़ि जइतौ, बेदी तर बैठा को सिन्नुर दान हो जइतौ, आर औरतिया गइतौ - धीया पड़लो सजन घर जी बाबा ! अबे बाबा सुतहो निचीत ... बस उ बाँसा निकलि को छट सना लड़कवा के नीचे से अथिया में हेलि जइतै । तेइयो चैन नै । तब समाद अइतौ लड़का रूसल हो इसकूटर ले । समधी रूसल हो गाय ले । तोरी बहिन के समधी ... तोरी माय के दमाद ... जैसे हमहीं जनमैलियन हे इनका ! हमरे कमा को खिलैता । रे नुनु ! भ्रूण हत्या लाचार कोय करऽ हइ ।)    (बामदा॰4.14)
324    लहास (= लाश) (हम कहलियै - तों काहे नै फेंकि दहीं ? उ कहलकै - दादा ! उ हम्मर बड़ा प्यारा कुत्ता हलै । हम बहुत मानऽ हलियै । हमरा ओकरा मरला के बहुत दुख । ओकर लहास के फेंकै में बड़ी मोह लगऽ हइ ।)    (बामदा॰21.17)
325    लुरि (= लूर) (~ करना = बुद्धि से काम लेना) (एक दिन बूढ़ा सलाह देलकन - महाराज ! लुरि करो लुरि ! काहे ले तों हमरा पीछे पड़ल हो । हलकान हो को मरब करै हो । चलो वह पीपर गाछ तर दूइयो गोटा आराम से गमछा बिछा को सुती । चारि दिन के रिपोटवा हइये हो । रोज ओकरे में कमवेसी करि को बहिया में लिख दहो ।)    (बामदा॰12.22)
326    शतरू (= शत्रु) (जल-थल-नभ में मनुस के दुश्मन कोय नै बचल, सिरिफ आदमी आदमी के शतरू हइ । यहाँ तक कि अपना पेट के बच्चा ... सुनई ही किदो मशीन से देख के बेटी रहे हइ, ओकरा मार दे हइ ।)    (बामदा॰3.9)
327    शुरूह (= शुरू) (माता-पिता-गुरु तीनो बरम्हा-विसनु-महेस लेखा इ धरती पर के सच्छात देवता हथ । उनकरा तो नित उठि को पूजा करै के चाही । जे सन्तान ऐसन करत ओकर रोज श्री वृद्धि होत । बाबा के परवचन समाप्त भेल, आरती-मंगल होको भगत लोग अप्पन-अप्पन घर चलला । राह में चिलम सुटाकी सोचो लगल - इ तो आसान काम हइ । हम काहे ने कल्हे से शुरूह करि दी आर शुरूह करि देलक ।; राह में चिलिम सुटाकी सोचने गेल । बाबा के बात लाख टका के बात । आय दिन से जब तक हम बचब परोपकार करब, चाहे जे हो जाय । आर घर आको शुरूह भी कर देलक ।)    (बामदा॰7.1, 2; 20.25)
328    संग-परसंग (~ करना) (भौजी कहलखिन - उ जरलाहा आदमी रहते हल, संग-परसंग करते हल, तब कि बात हलै । चलो, उतरि को लक्खीसराय में फोन करि को देखियै । उतरि को बेचारी फोन कैलकै । फोन लागि भी गेलै । ओने से करमन दा के जवाब अइलै । लछमी तोरा भिजुन आको कि करवै ?)    (बामदा॰23.23)
329    सकत (= सख्त, कठोर, तंग, चुस्त) (कि करियै हो बाबा ? जेकरा रोज खाय ले मिलऽ हलइ सेकरा तीन बरीस नै । कैसे रहबै हो बाबा !  ... बाबा सब समझि को हँसो लगलखिन - हऽ हऽ ... । हँसैत-हँसैत कहलखिन - दुर पगला । इ तनी गो बात ले एत्ते चिन्ता । तीन बरीस कौन समय हइ । साधू महात्मा तो जीवन भर एकरा बिना रहि जा हइ । मन के सकत कर ।)    (बामदा॰16.7)
330    सकदम्म (= सकदम, सकड़दम; घुटन, साँस रुकने या फूलने से हुई कठिनाई; परेशान, बेचैन) (वहाँ तो हो बाबा ! सब पगला मिलि के सचमुच हमरा पागल बना देतै । फेर बाबा के चरण पर माथा धर के कानो लगलै । कि करियै हो बाबा ! जान बचावो । बाबा तो सकदम्म ! कहलखिन - तोरा ले हम जाको कहबै । ऐसन नै करतै ।)    (बामदा॰8.3)
331    सच्छात (= साक्षात्) (माता-पिता-गुरु तीनो बरम्हा-विसनु-महेस लेखा इ धरती पर के सच्छात देवता हथ । उनकरा तो नित उठि को पूजा करै के चाही । जे सन्तान ऐसन करत ओकर रोज श्री वृद्धि होत । बाबा के परवचन समाप्त भेल, आरती-मंगल होको भगत लोग अप्पन-अप्पन घर चलला । राह में चिलम सुटाकी सोचो लगल - इ तो आसान काम हइ । हम काहे ने कल्हे से शुरूह करि दी आर शुरूह करि देलक ।)    (बामदा॰6.30)
332    सजना-समरना (एने चिलिम सुटाकी के मागु गरमी दिन में साँझ को नहावे, माथा में गमकौआ तेल लगावे । कान में इतर के फाहा खोंसे, जहाँ-तहाँ देह में भी अतर छींट लिये । ... इन्तजार में सजि समरि को रहे । मुदा चिलिम सुटाकी खाय आर हाथ पोंछने सहजै बंगला पर चल जाय । मागु बेचारी के सरधा में गरदा पड़ि जाय, हकासले-पियासले रहि जाय ।)    (बामदा॰5.10)
333    सजाबार (तोहरा सजाय मिललो कि तों नै नर्क में रहो नै स्वर्ग में । रात-दिन स्वर्ग नर्क के बीच में दौड़ैत रहो । चित्रगुप्त जी भी सजाबार हथिन । उनकर काम हन तोरा साथ रोज गिनती करै के कि कतना बेरी इ दौड़लै । कहैं बैठि तो नै गेलै । सुति को आराम तो नै करो लगलै । फैसला सुना को महाकाल कुर्सी से उठ गेला ।)    (बामदा॰12.16)
334    सड़ल-महकल (उनकर नौकरवा कहलकै - रमदसवा के सड़ल-महकल कुत्ता बिगै में जाति नै गेलो । एखने जाति चलि जइतो । इनकर पैखाना साफ करै में अलमाओछ हो जइतो । कामा जब उहे उठैलको तब संसार कहतो, हम कहलियो तब कि ?)    (बामदा॰21.30)
335    सतधरवा (इतमिनान से गरम जल के कुण्ड सतधरवा में नहैलक मलि मलि को । फेर कपड़ा बदलि को बाबा शिव के जल चढ़ैलक, पूजा कैलक, मूरती पर माथा पटक के वरदान माँगलक - बाँझी नाम छोड़ावो बाबा !; खिचड़ी बनि को तैयार हो गेल । बाबा सतधरवा झरना में असलान कैलका । पूजा-पाठ करके अइला । सखुआ पत्ता पर खिचड़ी सेरावै ले देलका ।)    (बामदा॰17.14; 18.13)
336    सन (= सदृश, जैसा) (रसगुल्ला ~ मीठ; सड़ल मछली ~) (जवानी में गदहियो सुन्नर लगऽ हइ । सुनऽ हियौ तोर मागु तो सुनरे हौ । गरमी के दिन में साँझ को मागु नहा लै होतौ, औडर-पौडर लगा को, कान में अतर के फाहा खोंसि को, माथा-चोटि बान्हि को, पलंग पर जा होतौ, त लागऽ होतौ कि हम स्वर्ग में ही, जैसे बगल में इन्नर के पड़ी सूतल हइ । ... ओकर समूचे देहे रसगुल्ला सन मीठ लगऽ होतौ । लगऽ होतौ कहाँ से खाँव । जब बच्चा पर बच्चा हो जइतौ तब उहे मौगी लगो लगतौ सड़ल मछली सन । ओरायल भात नियर । मन भिनभिना जइतौ ।)    (बामदा॰3.25, 26)
337    सना (= सन) (कहलकन - बाबा धीरज धरो । हम इ बेला में इहे काम ले तो अइवे कैलों हे । इतमिनान से बिछौना पर ! जत्ते मन होतो तत्ते ... हदिया रहला हे काहे । इ भगवान के सामने ? तोहरा महात्मा के अच्छा लगै हो ? बाबा बक्क सना छोड़ देलका । भूत उनकर माथा पर अभी भी सवार हल । बिछौना पर आको इन्तजार करो लगला ।)    (बामदा॰14.28)
338    समधिन (नौकरवा कहलकै - नीलमणि बाबू बोलावऽ हथिन बंगला पर पैखाना साफ करै ले । एतना सुनते मातर बाबू भुत्त हो गेलखिन । बिगड़ि को बोललखिन - नीलमनिया कहाँ से आयल हे । देखले छौड़ी समधिन रे ! अजुके बनिया कल्हु के सेठ । ओकर बेटवा से एकरा कम हिस्सा पड़तै कि जादे रे ! अप्पन पैखाना उ अपनै काहे नै साफ करै ? इ मेस्तर हिकै ? नै जैबा एजो से ... ।)    (बामदा॰21.27)
339    समाद (= समाचार; सन्देश) (जब अगिन के सात फेरा पड़ि जइतौ, बेदी तर बैठा को सिन्नुर दान हो जइतौ, आर औरतिया गइतौ - धीया पड़लो सजन घर जी बाबा ! अबे बाबा सुतहो निचीत ... बस उ बाँसा निकलि को छट सना लड़कवा के नीचे से अथिया में हेलि जइतै । तेइयो चैन नै । तब समाद अइतौ लड़का रूसल हो इसकूटर ले । समधी रूसल हो गाय ले । तोरी बहिन के समधी ... तोरी माय के दमाद ... जैसे हमहीं जनमैलियन हे इनका ! हमरे कमा को खिलैता । रे नुनु ! भ्रूण हत्या लाचार कोय करऽ हइ ।; करमन दा के दिल्ली समाद गेलै । सुनि को दौड़ल अइला । उनका शक अप्पन बापे पर । बाप के रोज गरियाथिन । मौगी के मारो लगलै । पूछइ - बताव केकर हिकौ ? ससुरे लगा को गरियाबै ।)    (बामदा॰4.14; 24.11)
340    सरकार (चित्रगुप्त से बूढ़ा कहलक - सरकार ! पहिले हमरा स्वर्गे देल जाय ! नर्क तो जीवन भर हमरा लिखले हइ । स्वर्ग तनी देख लेतों हल ।)    (बामदा॰10.23)
341    सलाय (= दियासलाई) (चिलिम सुटाकी जग्गशाला में आको सलाय से आगि सुलगैलक । पत्थल के चूल्हा पर, एक्के बेरी झरना के पानी में चावर धोके चावर-दालि-नोन-मिरचाय-हरदी-मसाला डाल के खिचड़ी चढ़ा देलक ।)    (बामदा॰18.3)
342    ससँर-फानी (= फसल-गिरही) (उ कहलकै - दादा ! उ हम्मर बड़ा प्यारा कुत्ता हलै । हम बहुत मानऽ हलियै । हमरा ओकरा मरला के बहुत दुख । ओकर लहास के फेंकै में बड़ी मोह लगऽ हइ । वह हो बाबा, हम नै आव देखलियै नै ताव । एगो रस्सी के ससँर-फानी बनैलियै । लकड़ी से कुतवा के मुड़िया उठा के ससँर-फनिया हेला के लकड़िये से कसि देलियै । घीचने गाँव से बाहर जाके खद्धा खनि को ओकरे में ओकरा दे को उपर से माटी भरि देलियै । समूचा गाँव शोर हो गेलै कि रमदसवा के मरल कुत्ता बिगलकै रूपैया पर ।)    (बामदा॰21.18, 19)
343    ससुरा (चित्रगुप्त जी कहलखिन - जो रे ! ससुरा रिजाला ! हम नै जानऽ हलियौ कि मिरतुलोक में ऐसन भी लोग होवऽ हइ । अब तो उहे करो पड़त जे तों कहें ।)    (बामदा॰12.26)
344    साँझूक (चिलिम सुटाकी खा पीको एक झप्प लेलका, फेर उठला । देखै हथ लड़की सुतले हइ । खैर, फेर साँझूक खाना ले जारन-झूरी सोरियैलक । चूल्हा के चेतैलका, तेइयो औरत सूतले । बाबा मने-मन सोचो लगला - के इ घर से फाजिल औरत हइ ? एकरा कोय कहै-सुनै वाला हइ कि नै ? एसकरे इ बियाबान में एकरा डर-उर लगऽ हइ कि नै ?)    (बामदा॰18.28)
345    साँप-बिच्छा (गुरूजी के अन्तकाल हो गेला के बाद मटोखर गाँव आ गेला । गाँव के एक छोर पर झोपड़ी बना के सीता राम के मूरती पधरा के पूजा करो लगला । खुद बड़ी चरित्रवान । कुछ मंतर-तंतर भी सीख लेलका हल । साँप-बिच्छा के झार, कुछ जड़ी-गुटका, जैसे कमलवाय के इलाज, परसौती के जड़ी देना, बाता के जड़ी । सब मिल-मिला के इनकर जनता में कदर होवो लगल ।; साँझ भेलै कहाँ जइतै ? बाबा उठैलका, कतनो उठैलका, नै उठल । तब हाथ पकड़ि के घीचि के ओकरा बैठैलका, कहलका - के हिकी ? तों कहाँ जइबी ? साँझ भेलो, चल जा । राति को एजो औरत नै रहऽ हइ । राति को बाघ-सिंघ, साँप-बिच्छा निकलतो । कैसनो कुछ हो जाय, के जानऽ हइ ? जस दूर हइ, अपजस भीर । हमरो फँसैबी । चल जा ।)    (बामदा॰2.6; 19.1)
346    सारा (= साला) (बाबा कुरोधि गेलखिन - सारा ! हम्मर जनम होतै कुत्ता-बिलाय में आर सूअरि के जनम माँगियै ? पापी कहीं का ! हमरा मुकती मिलतै कि फेर संसार के पाप कुण्ड में अइवै डुबकी लगावै ले !)    (बामदा॰15.27)
347    सिंघ (= सिंह) (सिंघ एक जानवर हइ । उ साल में एक बेरी इसतिरी गमन करे हइ से-से सिंघ हइ । जंगल के राजा हइ । तोरा सबसे आगरह हइ कि साल में एक नै मानल जाय तब दू बेरी । ओकरा से जादा नै ।)    (बामदा॰4.30)
348    सिकिन (= सेकेन्ड; पल) (महाकाल धेयान से इनकर बात सुनि को बूढ़ा से पूछलखिन - तोर कि कहना हो ? बूढ़ा कहलकन - हजूर ! उ लाइन के वइसे नै, अइसे पढ़ल जाय - स्वर्ग, नै नरक । तब हम नियाय पर पहुँचवै । ओकरा आधार पर हमरा स्वर्ग मिलै के चाही । एक सिकिन नर्क नै ।)    (बामदा॰12.9)
349    सिन्नुर (= सेनुर, सिन्दूर) (जब अगिन के सात फेरा पड़ि जइतौ, बेदी तर बैठा को सिन्नुर दान हो जइतौ, आर औरतिया गइतौ - धीया पड़लो सजन घर जी बाबा ! अबे बाबा सुतहो निचीत ... बस उ बाँसा निकलि को छट सना लड़कवा के नीचे से अथिया में हेलि जइतै । तेइयो चैन नै । तब समाद अइतौ लड़का रूसल हो इसकूटर ले । समधी रूसल हो गाय ले । तोरी बहिन के समधी ... तोरी माय के दमाद ... जैसे हमहीं जनमैलियन हे इनका ! हमरे कमा को खिलैता । रे नुनु ! भ्रूण हत्या लाचार कोय करऽ हइ ।)    (बामदा॰4.11)
350    सिरिफ (= सिर्फ) (जल-थल-नभ में मनुस के दुश्मन कोय नै बचल, सिरिफ आदमी आदमी के शतरू हइ । यहाँ तक कि अपना पेट के बच्चा ... सुनई ही किदो मशीन से देख के बेटी रहे हइ, ओकरा मार दे हइ ।)    (बामदा॰3.8)
351    सुआगत (= स्वागत) (मौगी के इ बात लगतौ जैसे मथवा में हथौड़ा मारब करऽ हइ । तब निकलभीं बरतुहारी में । भीखमंगवा जेकरा घर भूँजी-भाँग नै, से माँगतौ एक लाख, तब बाँसा वाला खोंचा लगतौ कि मथवा फारि को निकलि जायत । जे तोरा तनी सा पसीन पड़तौ, से मँगतौ दू लाख, तीन लाख ! तखने बाँसा आर गड़ो लगतौ । कइसौं कइसौं अच्छा बेजाय लड़का जब ठीक हो जइतौ तब दर्दबा कुछ कमतौ । खेत बेचि, गहना बेचि सूद पर करजा लेको रूपइवा जुटा देभीं, तब फिकिर होतौ बरियात के कैसे सुआगत करियै ?)    (बामदा॰4.10)
352    सुट्टा (~ मारना) ((अब चिलिम सुटाकी के बारे में बहुत कहै के जरूरत नै हइ, काहे कि इ नाम अप्पन अर्थ खुला रखने हइ । गाँजा के चिलिम में सुट्टा मारइ वाला - चिलिम सुटाकी । चिलिम सुटाकी खाता-पीता परिवार के आदमी । माय-बाप के दुलारू असकरूआ बेटा । मैटरिक पास, लम्बा-तगड़ा, गोर-बुर्राक । मुदा भीतर से बहुत भावुक ।; उ तुरत समझ गेल कि वहाँ गँजेड़ी के जमघट लगल हइ । एकरो मन चटपटा गेल । जल्दी-जल्दी भीड़ के सोरिया को वहाँ पहुँच गेल । देखे हइ वहाँ तीन गँजेड़ी बैठल हइ । गुल भी सुलगि को लाल हो गेल । अब करीब-करीब गाँजा भी लटल हइ । चिलिम में बोजइ भर के देरी ! उ एक मिनट इन्तजार कैलक कि गाँजा बोजा गेल । पहिला सुट्टा चिलिम सुटाकी ऐसन से मारलक कि चिलिम लहकि गेल ।)    (बामदा॰2.25; 8.16)
353    सुण्डा-भुसुण्डा (बाबा मटोखर दास आज कहलका - गिरहस्त धर्म सबसे बड़ा धरम हइ । गिरहस्त अप्पन कमाय से संसार के पालन करे हइ । चिराँय-चुरमुनी से लेको गाय, भैंस, बकरी, कुत्ता, बिलाय, चूहा-पेचा, सुण्डा-भुसुण्डा जतना जे जीव-जन्तु हइ ।)    (बामदा॰22.11)
354    सुतना (= सूतना, सोना) (जब अगिन के सात फेरा पड़ि जइतौ, बेदी तर बैठा को सिन्नुर दान हो जइतौ, आर औरतिया गइतौ - धीया पड़लो सजन घर जी बाबा ! अबे बाबा सुतहो निचीत ... बस उ बाँसा निकलि को छट सना लड़कवा के नीचे से अथिया में हेलि जइतै । तेइयो चैन नै । तब समाद अइतौ लड़का रूसल हो इसकूटर ले । समधी रूसल हो गाय ले । तोरी बहिन के समधी ... तोरी माय के दमाद ... जैसे हमहीं जनमैलियन हे इनका ! हमरे कमा को खिलैता । रे नुनु ! भ्रूण हत्या लाचार कोय करऽ हइ ।; चित्रगुप्त जी भी सजाबार हथिन । उनकर काम हन तोरा साथ रोज गिनती करै के कि कतना बेरी इ दौड़लै । कहैं बैठि तो नै गेलै । सुति को आराम तो नै करो लगलै । फैसला सुना को महाकाल कुर्सी से उठ गेला ।; बाबा कहलका - नै, औरत भीतर में नै । तों बाहर सुतो ।)    (बामदा॰4.12; 12.17; 19.16)
355    सुताना (= सुलाना) (ऊ कहना शुरू कैलक - हे बाबा ! साँझ खा-पीको, हाथ पोछने बंगला पर जा लगलियो कि कलरवा पकड़ि को घीचि लेलको, जबरदस्त मागु ! भीतर पलंग पर सुता को केबाड़ी लगा देलको । तोहरो गारी से बिकटी करि देलको । कहलको - उ मटोखरा ! ... बैठल-बैठल गुल्ली गढ़ैत रहे हइ । ओकर बाप जो ओकर माय साथे नै जइते हल, तब उ कहाँ से आयत हल परवचन करै ले ?; बाबा मन्दिर के छरदेवाली के फाटक खुलल हल । इ सीधे अन्दर चल गेल । देखे हे राति दिन के समान टहपोर इंजोरिया । फुलकी बयार । नीनों के सुता दै वाला हवा । चारो तरफ गौर से देखलक । सूनसान साँय-साँय आवाज करैत राति । बाबा फोंफ काटि रहला हे, नीनभोर ।)    (बामदा॰5.31; 14.1)
356    सुनट्टा (= सन्नाटा) (बाबा अधरात बेला में, इ सुनट्टा राति में, इ रूप-रंग के इ भेस-भूसा में जुआन सुन्दर औरत देख के अवाक रह गेला । मुँह में आवाज नै । टुकर-टुकर ... निहारैत रहला ।)    (बामदा॰14.8)
357    सुन्नर (= सुन्दर) (तोरा अभी बुतरू नै ने भेलौ हे भैवा ? एखने कि कहना ? जवानी में गदहियो सुन्नर लगऽ हइ । सुनऽ हियौ तोर मागु तो सुनरे हौ ।; बाबा आज प्रवचन में कहलका - 'ईसवर अंश जीव अविनासी' । सब जीव में ईसवर के वास हइ । चाही तो सबके परनाम करै के, मुदा आदमी के सिवाय दोसर जीव हमर परनाम के समझवो नै करत । तब आदमी के जरूर परनाम करै के चाही । काहे कि आदमी धरती पर के सबसे सुन्नर आर महत्त्व के जीव हइ ।)    (बामदा॰3.21; 6.24)
358    सूतना (= सोना) (जवानी में गदहियो सुन्नर लगऽ हइ । सुनऽ हियौ तोर मागु तो सुनरे हौ । गरमी के दिन में साँझ को मागु नहा लै होतौ, औडर-पौडर लगा को, कान में अतर के फाहा खोंसि को, माथा-चोटि बान्हि को, पलंग पर जा होतौ, त लागऽ होतौ कि हम स्वर्ग में ही, जैसे बगल में इन्नर के पड़ी सूतल हइ ।; चिलिम सुटाकी से कहलक - अजी ! खाके बंगला पर काहे जाहो ? आर तब हमरा लैला हल काहे ले ! भले नहिरा में हलों । माय साथे सूतऽ हलों । रात भर नीन नै होवे हइ । तोर घर में एसकर डर लगे हइ । तोंहीं बतावो हम की करी ?)    (बामदा॰3.24; 5.21)
359    सेकरा (जेकरा ... ~  = जिसे ... उसे) (कि करियै हो बाबा ? जेकरा रोज खाय ले मिलऽ हलइ सेकरा तीन बरीस नै । कैसे रहबै हो बाबा ! अ ... हँ ... हँ ... हँ ... खायले जी ललाय । लाल पीयर देखऽ हियै तऽ मन बारह-तेरह किसिम के हो जा हइ ।)    (बामदा॰16.2)
360    सेराना (= ठंढा होना) (खिचड़ी बनि को तैयार हो गेल । बाबा सतधरवा झरना में असलान कैलका । पूजा-पाठ करके अइला । सखुआ पत्ता पर खिचड़ी सेरावै ले देलका ।)    (बामदा॰18.11)
361    सेली-सोंटा (नगड़ू जादव समेत तीनों सेली-सोंटा उठैलक घर चल गेल । चिलिम सुटाकी टुकुर-टुकुर तीनों के घर जायत देखैत रहि गेल ।; एक दिन उ घर से सेली-सोंटा लेको कलौ बतौ सत्तू आँटा, चावल, दालि, नोन, मिरचाय, तसला, बटलोही, कम्बल, टाँगी आदि जीवन जियै के सामगीरही लेको चल देलक सिंगरी रिख जंगल । वहाँ गेट लगल जग्ग शाला में जाको धुनी रमा देलक ।)    (बामदा॰9.11; 16.16)
362    सेसपंज (= ससपिन; सस्पेंड, निलम्बित) (बूढ़ा कर जोरि को कहलकै - एकरा में कि हइ सरकार ! एकरा झूठ पकड़ैवाला मशीन से जाँच करि लहो । असपाट बैठा दहो । दूध के दूध, पानी के पानी निकल जइतो । ... असपाट बैठल ! जाँच मशीन लगैलक - अच्छर हू-ब-हू चित्रगुप्त जी के निकलि गेल । अब चित्रगुप्त जी छट-पट्ट । तत्काल परभाव से जमराज उनका सेसपंज करि देलखिन ।)    (बामदा॰11.31)
363    से-से (= इसलिए) (अगर बच्चा बेटा हो गेलौ, तब तो जौख-सौख में रहभीं । जो कहैं भैवा बेटी हो गेलौ तब तो एगो खोंचाहल बाँस नीचे से अथिया में हेलि जइतौ । जैसे-जैसे बेटिया बढ़तौ वैसे-वैसे उ बाँसा बढ़ल जइतौ, उपर चढ़ल जइतौ । जतना बेटी भेल जइतौ ओतना बाँस हेलल जइतौ । जब बेटिया जुआन हो जइतौ तब बाँसा मथवा में ठेकि जइतौ । जब मन बना को पलंग पर जइभीं, तब मौगी कहतौ - अजी, अबरियो कुछ नै ने सोचल्हो ? छौड़ा-पूत के बकड़ी पठरू जे घास-पात खाहे से तो मेमियाबो लगऽ हइ । बेटिया अनबोलता धन हिकै से-से ने । अगर इमान टगा दै तब कि होतइ ? तों कैसे आ गेल्हो । वैसने जरूरत तो ओकरो समझै के चाही ।)    (बामदा॰4.3)
364    सैन (= शयन) (बाबा के मुँह से आवाज फूटल - तों के ? इ अधरात बेला में ? अभी तो भगवान सैन में हथ । इ पूजा से कि फल ? कुछ फायदा नै होतो ।)    (बामदा॰14.15)
365    सोरियाना (चिलिम सुटाकी ... खड़ा लोग के बैठावो लगल कि तभी ओकरा भीड़ से अलग उठ रहल धुँइया पर नजर पड़ल । उ तुरत समझ गेल कि वहाँ गँजेड़ी के जमघट लगल हइ । एकरो मन चटपटा गेल । जल्दी-जल्दी भीड़ के सोरिया को वहाँ पहुँच गेल । देखे हइ वहाँ तीन गँजेड़ी बैठल हइ ।)    (बामदा॰8.13)
366    सोहा (= स्वाहा; समाप्त) (नगड़ू यादव कहलका - अरे ! जो चिलिम सुटकिया । काहे ले तों चूड़ा के गवाही दही बनब करें हें । उ साफ तो हमरे तीनों के देखि को बोललइ - तीन काना तऽ तीन चौपाय ! मन तो करऽ हइ कि मंचवे पर चढ़ के लगा दियै तीन लाठी बामा बगल मथवा पर बस ! ओजै सोहा ! तोरे आवइ हो चौपाय पदाहो भाय तब ला ।)    (बामदा॰9.8)
367    सौतेती (= सौतेली) (जों-जों बढ़ल जाय तों तों ओकर अप्पन बेटवा एकरा साथ नौकर वाला वेवहार करो लगल । इ माय समझ के गुदड़ी के परचारे तो उहो अपने बेटवा के पक्ष में खड़ा हो जाय । मटोखर के इ बात मन में असर करो लगलै । एसकर में कभी-कभी काने भी । हाय रे ! अप्पन माता सौतेती हो गेल ।)    (बामदा॰2.2)
368    स्वास्त (= स्वास्थ्य) (चेला अबरी साफ समझा को कहलकन - बाबा ! हमरा मागु के बच्चा होवइया हइ । से साथ में नै सटो दे हइ । कहऽ हइ, अभी कि ? बच्चा होला के बाद तीन बरीस नै । उदबासल दूध हम बच्चा के नै पियो देवइ । हम्मर बच्चा के स्वास्त खराब हो जायत ।)    (बामदा॰15.32)
369    हकासल (अगिला जनम बाबा सूअरि के, घोड़ा के माँगि ला, तब रोज मौज । जो मच्छड़ में जनम हो गेलो तब हकासले परान ।)    (बामदा॰15.24)
370    हकासले-पियासले (एने चिलिम सुटाकी के मागु गरमी दिन में साँझ को नहावे, माथा में गमकौआ तेल लगावे । कान में इतर के फाहा खोंसे, जहाँ-तहाँ देह में भी अतर छींट लिये । ... इन्तजार में सजि समरि को रहे । मुदा चिलिम सुटाकी खाय आर हाथ पोंछने सहजै बंगला पर चल जाय । मागु बेचारी के सरधा में गरदा पड़ि जाय, हकासले-पियासले रहि जाय ।)    (बामदा॰5.12)
371    हड़फा-सड़फा (~ समेटना) (सबेरे लड़की उठल, बाबा भी उठला । दिसा-फरागत होको कुण्ड में नहैलक, बाबा सिंगरी रिख के परनाम कैलक, फूल सन खिलल चेहरा लेने बाबा के चरण छू को मुसकावैत तिरछी नजर से बेधैत कहलक - आर चाही ... बाबा ! बाबा लजा गेला । सिर नीचा कर लेलका । लड़की खुशी-खुशी घर गेल । बाबा भी हड़फा-सड़फा समेट के आको गुरु के चरण में लिपटि को कानो लगला - बाबा हो ! जंगलो में सुरच्छित नै रहलियै ।)    (बामदा॰19.29)
372    हलुआ (~ टैट होना) (बूढ़ा स्वर्ग नर्क के बीच दौड़ लगावो लगल । चित्रगुप्त जी पीछे-पीछे, कि कहैं साला ई सुति नै जाय । आराम नै फरमावो लगे । इहो दौड़थ बेचारे । भला आराम से बैठल रहै वाला चित्रगुप्त जी ! भारी मोसकिल में फँसला । इनकर हलुआ टैट हो गेलन ।; चिलिम सुटाकी के मागु बढ़िया से साबुन लगा को नहैलक । तौलिया से बाल सुखा के जूड़ा बनैलक । मुँह में पावडर लगैलक, देह में, कान में, इतर के फाहा खोंसलक, जूड़ा में जूही के माला बाँधलक, ठोर रंगलक, आँखि में काजर, निरार में चमचमौआ टिकुली, नीचे एक कच्छी, उपर छाती के उभार एक चोली टैट कैलक । उपर से एक झीना नाइटी पिन्ह के, हाथ में पूजा के सामग्री एक सज्जी में लेके चलल मन्दिर ।)    (बामदा॰12.21; 13.29)
373    हारल (कहते-कहते फेर कानो लगलइ । कानते-कानते कहलकइ - हो बाबा ! कि कहियो, कुछ कहल नै जाहो आर कहै बिना भी रहल नै जाहो ! कहै के बात नै हइ । अप्पन हारल बहु के मारल केकरा से कही ?)    (बामदा॰6.9)
374    हिप-हिप (चिराँय-चुरमुनी अप्पन खोंता से बाहर आके आहार के खोज में झुण्ड बना-बना तरह-तरह के सुर निकाल रहल हे । सब मिला को लगे हे कि जल तरंग बज रहल हे । कौआ के काँव-काँव, टिटहीं के टीं-टीं, टें-टें, महुअलि के हिप-हिप, कचवचिया के कुन-कुन कुच-कुच, मैना के चें-चें ... आदि सुर मिल-मिला के बड़ी अच्छा लग रहल हल ।)    (बामदा॰1.12)
375    हियाना (= ध्यान देकर देखना) (लड़की खा को हाथ-मुँह धो को ओजै ओघड़ा गेल । ओकरा आँखि में नीन कहाँ । कनमटकी मारने तरे-तरे साधू के हियावैत रहल कि कहैं भागे नै ।; मुसका के कहलक - बाबा परसदा हमरो । बाबा आँखि तरेर के हियैलका । मगर ओकर फूल सन मुसकावैत चेहरा देख के बाबा के गोस्सा हवा हो गेल ।)    (बामदा॰18.25; 19.10)
376    हुलना (झाँझी कुत्ती सन ~) (मागु जानलकन । झाँझी कुत्ती सन झुँझुआ को हुललन - दुर्रर्र ... ने ... जाय छुछुनर । तों एते दिन से बेकारे मुंशीगिरी कइनें । तोरा ठकि लेलकै एगो मिरतुलोक के मरल मुंशी । आखिर चित्रगुप्त जी अंतिम महाकाल के कोट में अपील कैलका ।)    (बामदा॰12.1)
377    हेलना (= घुसना) (अगर बच्चा बेटा हो गेलौ, तब तो जौख-सौख में रहभीं । जो कहैं भैवा बेटी हो गेलौ तब तो एगो खोंचाहल बाँस नीचे से अथिया में हेलि जइतौ । जैसे-जैसे बेटिया बढ़तौ वैसे-वैसे उ बाँसा बढ़ल जइतौ, उपर चढ़ल जइतौ । जतना बेटी भेल जइतौ ओतना बाँस हेलल जइतौ । जब बेटिया जुआन हो जइतौ तब बाँसा मथवा में ठेकि जइतौ ।)    (बामदा॰3.28, 30)
378    हेलाना (= घुसाना) (उ कहलकै - दादा ! उ हम्मर बड़ा प्यारा कुत्ता हलै । हम बहुत मानऽ हलियै । हमरा ओकरा मरला के बहुत दुख । ओकर लहास के फेंकै में बड़ी मोह लगऽ हइ । वह हो बाबा, हम नै आव देखलियै नै ताव । एगो रस्सी के ससँर-फानी बनैलियै । लकड़ी से कुतवा के मुड़िया उठा के ससँर-फनिया हेला के लकड़िये से कसि देलियै । घीचने गाँव से बाहर जाके खद्धा खनि को ओकरे में ओकरा दे को उपर से माटी भरि देलियै । समूचा गाँव शोर हो गेलै कि रमदसवा के मरल कुत्ता बिगलकै रूपैया पर ।)    (बामदा॰21.19)
 

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