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Monday, January 21, 2013

83. "मगही पत्रिका" (वर्ष 2011: नवांक-4; पूर्णांक-16) में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द



मपध॰ = मासिक "मगही पत्रिका"; सम्पादक - श्री धनंजय श्रोत्रिय, नई दिल्ली/ पटना

पहिला बारह अंक के प्रकाशन-विवरण ई प्रकार हइ -
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वर्ष       अंक       महीना               कुल पृष्ठ
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2001    1          जनवरी              44
2001    2          फरवरी              44

2002    3          मार्च                  44
2002    4          अप्रैल                44
2002    5-6       मई-जून             52
2002    7          जुलाई               44
2002    8-9       अगस्त-सितम्बर  52
2002    10-11   अक्टूबर-नवंबर   52
2002    12        दिसंबर             44
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मार्च-अप्रैल 2011 (नवांक-1; पूर्णांक-13) से द्वैमासिक के रूप में अभी तक 'मगही पत्रिका' के नियमित प्रकाशन हो रहले ह ।

ठेठ मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर पृष्ठ संख्या, चउठा कॉलम संख्या (एक्के कॉलम रहलो पर सन्दर्भ भ्रामक नञ् रहे एकरा लगी कॉलम सं॰ 1 देल गेले ह), आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ ।

कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या (अंक 1-15 तक संकलित शब्द के अतिरिक्त) - 211

ठेठ मगही शब्द ( से तक):
1    गोड़-मुड़ (~ पड़ना) (हम तो चाहम कि अपने के हमर बात के गरान लगे आउ अपने अगले महिन्ना से 'मगही पत्रिका' से भी बढ़ियाँ तेबर-कलेवर के पत्रिका शुरू कर देथिन । बताथिन अपने, किनखर घर जाके अपन बात नञ् रखलिअइ, किनखर गोड़-मुड़ नञ् पड़लिअइ ! किनखर डर नञ् जोगैलिअइ ! अबरी कि नैना जोगिन के पेटारी लेके चलिअइ अपने के रिझावे ले !)    (मपध॰11:16:4:1.15)
2    चतरा (अबरी कि नैना जोगिन के पेटारी लेके चलिअइ अपने के रिझावे ले ! मानलिअइ कि हमरा में ढेर कमी हइ बकि अपने के चतरा जदि जरी मरखाह हन त ओकरा बथनियाँ से बेलाऽ थोड़े देलथिन ? त हम बैलो से बत्तर हिअइ !)    (मपध॰11:16:4:1.16)
3    बथानी (= बथान) (अबरी कि नैना जोगिन के पेटारी लेके चलिअइ अपने के रिझावे ले ! मानलिअइ कि हमरा में ढेर कमी हइ बकि अपने के चतरा जदि जरी मरखाह हन त ओकरा बथनियाँ से बेलाऽ थोड़े देलथिन ? त हम बैलो से बत्तर हिअइ !)    (मपध॰11:16:4:1.16)
4    बत्तर (= बदतर) (अबरी कि नैना जोगिन के पेटारी लेके चलिअइ अपने के रिझावे ले ! मानलिअइ कि हमरा में ढेर कमी हइ बकि अपने के चतरा जदि जरी मरखाह हन त ओकरा बथनियाँ से बेलाऽ थोड़े देलथिन ? त हम बैलो से बत्तर हिअइ !)    (मपध॰11:16:4:1.17)
5    दोखाड़ना (अबरी कि नैना जोगिन के पेटारी लेके चलिअइ अपने के रिझावे ले ! मानलिअइ कि हमरा में ढेर कमी हइ बकि अपने के चतरा जदि जरी मरखाह हन त ओकरा बथनियाँ से बेलाऽ थोड़े देलथिन ? त हम बैलो से बत्तर हिअइ ! जतन से पोसथिन मालिक हमरा, सँउसे खेत दोखाड़ देबन !)    (मपध॰11:16:4:1.17)
6    अरउआ (~ भांजना) (मानलिअइ कि हमरा में ढेर कमी हइ बकि अपने के चतरा जदि जरी मरखाह हन त ओकरा बथनियाँ से बेलाऽ थोड़े देलथिन ? त हम बैलो से बत्तर हिअइ ! जतन से पोसथिन मालिक हमरा, सँउसे खेत दोखाड़ देबन ! हमर सींघ से डरथिन नञ् । नञ् अरउआ भांजथिन । काहे कि मियाज कहीं बमक गेलन ने हमर त बाप-बाप करे लगथिन ... ।)    (मपध॰11:16:4:1.17)
7    मियाज (= मिजाज) (मानलिअइ कि हमरा में ढेर कमी हइ बकि अपने के चतरा जदि जरी मरखाह हन त ओकरा बथनियाँ से बेलाऽ थोड़े देलथिन ? त हम बैलो से बत्तर हिअइ ! जतन से पोसथिन मालिक हमरा, सँउसे खेत दोखाड़ देबन ! हमर सींघ से डरथिन नञ् । नञ् अरउआ भांजथिन । काहे कि मियाज कहीं बमक गेलन ने हमर त बाप-बाप करे लगथिन ... ।; हरेक भाषा में पाटी-पोलटिक्स आउ गुट-गुटबाजी रहऽ हे बकि बात जब विकास के होवऽ हे त सब लोग फुट-फुटंगर छोड़ के एक साथ आ जा हथिन बकि मगही में अभी ई संभव नञ् हो पाल हे । मिथिलेश गुट - रत्नाकर गुट, प्रियदर्शी गुट - सरयू प्रसाद गुट, रामनंदन गुट - राम प्रसाद गुट, घमंडी राम गुट - हरींद्र विद्यार्थी गुट, ने मालूम केतना गुट के बीच 'दूर के दसइयाँ' आउ 'बिचमान' बनते-बनते मियाज पस्त लग गेल हे ।)    (मपध॰11:16:4:1.18, 30)
8    फुट-फुटंगर (हरेक भाषा में पाटी-पोलटिक्स आउ गुट-गुटबाजी रहऽ हे बकि बात जब विकास के होवऽ हे त सब लोग फुट-फुटंगर छोड़ के एक साथ आ जा हथिन बकि मगही में अभी ई संभव नञ् हो पाल हे । मिथिलेश गुट - रत्नाकर गुट, प्रियदर्शी गुट - सरयू प्रसाद गुट, रामनंदन गुट - राम प्रसाद गुट, घमंडी राम गुट - हरींद्र विद्यार्थी गुट, ने मालूम केतना गुट के बीच 'दूर के दसइयाँ' आउ 'बिचमान' बनते-बनते मियाज पस्त लग गेल हे ।)    (मपध॰11:16:4:1.27)
9    जीबह (= जबह, हत्या) (एक तरफ तो लोग मगही के छद्म विकास में सन्नद्ध हथ, दोसर तरफ जदि कोय मगही के सेवा ले कमर कसके उतरऽ हे त लोग-बाग ओकर जीबह करे में लग जा हथ ।)    (मपध॰11:16:5:1.2)
10    लंगटे-उघारे (दिलीप जी से जदि 'मगही पत्रिका' के नाम छूट भी गेल हल या जान-बूझ के छोड़ भी देलन हल तब विदमान संपादक के ध्यान में ई बात कैसे नञ् आल, जबकि ओकरा में ऊ पत्रिका के भी चरचा कैल गेल हे जे एकाधे अंक निकल पाल हे आउ अपन छीन काया में लंगटे-उघारे यानी बिना कभरे के निकल रहल हल ।)    (मपध॰11:16:5:1.14)
11    मुफतिया (~ बाँटना) (इहे बीच हम 'समकालीन मगही साहित्य' के भी प्रकाशन कर चुकली हल । आदरजोग मिथिलेश दा के अध्यक्षता में आउ डॉ. ब्रजमोहन पांडेय 'नलिन' के उपस्थिति (मुख्य अतिथि) में हिसुआ में 'समकालीन मगही साहित्य' के लोकार्पण करइली । ओकरो प्रति मुफतिया बाँटली ।)    (मपध॰11:16:5:1.27)
12    चुरना-थकुचना ('मगही पत्रिका' कालकवलित । अफसोस कि धनंजय अभिमन्यु नियन छट्ठा दरवाजा पर मार देवल गेल । जेकरा मरलो पर मगही के बहुत सन महारथी अपन गदा से ढेर दिन तक चुरते-थकुचते रहलन । भगवान उनखा सद्बुद्धि दे आउ फेर कोय धनंजय रोजी-रोटी से अजुरदा नञ् होवे ।)    (मपध॰11:16:5:1.33)
13    अजुरदा ('मगही पत्रिका' कालकवलित । अफसोस कि धनंजय अभिमन्यु नियन छट्ठा दरवाजा पर मार देवल गेल । जेकरा मरलो पर मगही के बहुत सन महारथी अपन गदा से ढेर दिन तक चुरते-थकुचते रहलन । भगवान उनखा सद्बुद्धि दे आउ फेर कोय धनंजय रोजी-रोटी से अजुरदा नञ् होवे ।)    (मपध॰11:16:5:1.34)
14    उड़ियाना (आज अदमी के जिनगी के सबसे बड़गो वडंबना ई हे कि लगभग सभे अदमी स्वारथ के अंधड़ में उड़िआइल जाहे आउ समाज आउ देश के तनिको चिंता नञ् करऽ हे ।)    (मपध॰11:16:13:2.5)
15    जान-परान (आज अदमी के जिनगी के सबसे बड़गो वडंबना ई हे कि लगभग सभे अदमी स्वारथ के अंधड़ में उड़िआइल जाहे आउ समाज आउ देश के तनिको चिंता नञ् करऽ हे । आज जादे अदमी सही के गलत आउ गलत के सही बतावे लगी जान-परान एक कर देहे ।)    (मपध॰11:16:13:2.8)
16    ओसताज (= उस्ताद) (आज के जादे नेता जनता के मूर्ख बना के अप्पन उल्लू सीधा करे में ओसताज हका । नेता सब भोग-विलास, लंद-फंद में ही सब समय बिता दे हका ।)    (मपध॰11:16:13:2.22)
17    खटाल (पटना-परसा गुमटी के पार पूरब इलाका एतवारपुर नाम से जानल जाहे । ई गुमटी के आस-पास कइगो खटाल हे । पहिले ऊ खटासपुर के नाम से प्रसिद्ध हल ।)    (मपध॰11:16:15:1.3)
18    महतवाइन (= महतमाइन) (माय घर के कामकाज देखऽ हे - सुनयना महतवाइन । राघो महतो एगो स्कूल के टीचर हथ । महतवाइन के मोहल्ला में खूब चलती हे ।; हर कोई महतवाइन के आदर-सत्कार देवे में आगु । महतवाइन जे कह देतन ऊ ब्रह्मा के लकीर । सबके पुरधाइन महतवाइन । ढोलक बजावे में, कीर्तन गावे में, बिआह-शादी में सब जगह उनकर पूछ ।)    (मपध॰11:16:15:1.16, 17, 20, 21)
19    लासा (आव न देखल न ताव, रमेसर लछमिनियाँ के अप्पन बाँह में खिंच के भर लेलक । 'कोई देखतइ त का कहतइ ए राम' एतना कहलक तो लछमिनियाँ बाकि छुई-मुई लेखा सिकुड़ के लासा बन गेल । - 'उहे मरदाना के मनमानी, कौलेजिया लड़िकन के छेड़खानी ! हुम्मा हवऽ तो गंगा नदी के धार पर कुलाँच मार के देखावऽ ।')    (मपध॰11:16:16:1.3)
20    हुम्मा (आव न देखल न ताव, रमेसर लछमिनियाँ के अप्पन बाँह में खिंच के भर लेलक । 'कोई देखतइ त का कहतइ ए राम' एतना कहलक तो लछमिनियाँ बाकि छुई-मुई लेखा सिकुड़ के लासा बन गेल । - 'उहे मरदाना के मनमानी, कौलेजिया लड़िकन के छेड़खानी ! हुम्मा हवऽ तो गंगा नदी के धार पर कुलाँच मार के देखावऽ ।')    (मपध॰11:16:16:1.5)
21    सलसलाना ('हुम्मा हवऽ तो गंगा नदी के धार पर कुलाँच मार के देखावऽ ।' लछमिनियाँ के एतना कहना हल कि रमेसर मोटरी लेखा लेके गंगा में कूद गेल । दुन्नो पइरे लगलन । पानी में सराबोर लछमिनियाँ सलसला गेल ।)    (मपध॰11:16:16:1.9)
22    उतराना (बरगद के छाँव में दुन्नो गलबात करे लगलन । रमेसर - 'जिनगी के धार में जदि इहे मनमानी आ जाय तो नाव डूबत कि उतरायत ?')    (मपध॰11:16:16:2.1)
23    सोंठल (~ लाठी) (महतवाइन सोंठल लाठी लेखा तन गेलन । महतो जी पगड़ी सँभारे में बेदम । भाइ सुरेंदर सगरे चिठिआँव-पतिआँव करे लगल । ओकर ससुरार के लोग आ गेलन । महतवाइन के नइहरा से लोग टपके लगलन ।)    (मपध॰11:16:16:3.6)
24    चिठिआँव-पतिआँव (भाई सुरेंदर सगरे चिठिआँव-पतिआँव करे लगल । ओकर ससुरार के लोग आ गेलन । महतवाइन के नइहरा से लोग टपके लगलन ।)    (मपध॰11:16:16:3.8)
25    घाठी (कोई कहे - 'घाठी दे दे ससुरी के ।' कोई कहे - 'पुनपुन में लाके गाड़ देवल जाव ।' कोई कहे - 'लड़िका ऊँच जाति के हे, कचहरी में मोकदमा ठोक देवल जाय लड़की से बलजोरी बिआह कर लेलक हे ।'; धोखा से ऊ लोग लछमिनियाँ के हरन करके कार पर बइठा के बगल के बगइचा में घाठी देवे के सरजाम में जुट गेलन ।)    (मपध॰11:16:16:3.11, 17:3.12)
26    ससुरी (कोई कहे - 'घाठी दे दे ससुरी के ।' कोई कहे - 'पुनपुन में लाके गाड़ देवल जाव ।' कोई कहे - 'लड़िका ऊँच जाति के हे, कचहरी में मोकदमा ठोक देवल जाय लड़की से बलजोरी बिआह कर लेलक हे ।')    (मपध॰11:16:16:3.11)
27    बलजोरी (= बलपूर्वक, जबरदस्ती) (कोई कहे - 'घाठी दे दे ससुरी के ।' कोई कहे - 'पुनपुन में लाके गाड़ देवल जाव ।' कोई कहे - 'लड़िका ऊँच जाति के हे, कचहरी में मोकदमा ठोक देवल जाय लड़की से बलजोरी बिआह कर लेलक हे ।')    (मपध॰11:16:16:3.16)
28    करिखाहा (= करखाहा, साँवला) (कोई कहे - 'लड़िका ऊँच जाति के हे, कचहरी में मोकदमा ठोक देवल जाय लड़की से बलजोरी बिआह कर लेलक हे ।' मामू कहलन - 'हम्मर मुँह में करखा लगा देलक । मर जाना भल, ई करिखाहा मुँह देखावल पाप ।')    (मपध॰11:16:16:3.18)
29    मनबहकु (लड़की एतना मनबहकु !! कल से कोई अप्पन लड़की के कइसे पढ़ावे ला तैयार होत ? जात बिरादर के बात रहित तो कोई बात न । ई तो 'अबरा के मउगी सबके भउजी' वला कहाउत साँच हो गेल ।)    (मपध॰11:16:16:3.26)
30    सोरही (माँगे गेली पूत, कोख गँवा के अइली । जन्ने जा, ओन्ने राम ! राम !!, छी ! छी !! सोरही के कोख में होरही जनम लेलकइ । बेटी पाप के कमाई । एही से बेटी जलमते धरती एक बीता धँस जाहे ।)    (मपध॰11:16:16:3.37)
31    होरही (माँगे गेली पूत, कोख गँवा के अइली । जन्ने जा, ओन्ने राम ! राम !!, छी ! छी !! सोरही के कोख में होरही जनम लेलकइ । बेटी पाप के कमाई । एही से बेटी जलमते धरती एक बीता धँस जाहे ।)    (मपध॰11:16:16:3.37)
32    ढकनेसर (जेकरा चले न आवे ओहो दूब बात । ढकनेसर के धोती ढील । मठजाउर के मथकपारी जोर । डराम सिंह ढनढनाइत चलइत हथ । गुलडाक गुल खिलौले हथ । भतपेलू के तोंद दू बीता ऊँचा हो गेल ।)    (मपध॰11:16:16:3.41)
33    मठजाउर (जेकरा चले न आवे ओहो दूब बात । ढकनेसर के धोती ढील । मठजाउर के मथकपारी जोर । डराम सिंह ढनढनाइत चलइत हथ । गुलडाक गुल खिलौले हथ । भतपेलू के तोंद दू बीता ऊँचा हो गेल ।)    (मपध॰11:16:16:3.41)
34    मथकपारी (जेकरा चले न आवे ओहो दूब बात । ढकनेसर के धोती ढील । मठजाउर के मथकपारी जोर । डराम सिंह ढनढनाइत चलइत हथ । गुलडाक गुल खिलौले हथ । भतपेलू के तोंद दू बीता ऊँचा हो गेल ।)    (मपध॰11:16:16:3.41)
35    भतपेलू (जेकरा चले न आवे ओहो दूब बात । ढकनेसर के धोती ढील । मठजाउर के मथकपारी जोर । डराम सिंह ढनढनाइत चलइत हथ । गुलडाक गुल खिलौले हथ । भतपेलू के तोंद दू बीता ऊँचा हो गेल ।)    (मपध॰11:16:16:3.43)
36    भुकभुकाना (बड़ी पुरधाइन बनल चलऽ हलन महतवाइन । भगजोगनी लेखा भुकभुकाइतो न हथ । सावन-भादो में करेला रोपे चललन हल - मुँह बिदुरा गेल । खरकट्टल हड़िया बनल चलइत हथ । बसिआएल भात बन गेलन ।)    (मपध॰11:16:17:1.1)
37    बिदुराना (= 'बिदोरना' का अक॰ रूप) (बड़ी पुरधाइन बनल चलऽ हलन महतवाइन । भगजोगनी लेखा भुकभुकाइतो न हथ । सावन-भादो में करेला रोपे चललन हल - मुँह बिदुरा गेल । खरकट्टल हड़िया बनल चलइत हथ । बसिआएल भात बन गेलन ।)    (मपध॰11:16:17:1.3)
38    खरकट्टल (~ हड़िया) (बड़ी पुरधाइन बनल चलऽ हलन महतवाइन । भगजोगनी लेखा भुकभुकाइतो न हथ । सावन-भादो में करेला रोपे चललन हल - मुँह बिदुरा गेल । खरकट्टल हड़िया बनल चलइत हथ । बसिआएल भात बन गेलन ।)    (मपध॰11:16:17:1.3)
39    बिखिआना ('शिव जी के नजर टेढ़, हनुमान जी के आँख लाल-लाल । शनिचर ग्रह के आँख पर चढ़ गेलन । देवी मइया सावन में नीम के पेड़ तर के झूला छोड़के बिखिआयल चलइत हथ । कोई सही सलाह न दे रहल हे । सभे अप्पन-अप्पन खेत पटावे में परेशान ।')    (मपध॰11:16:17:1.13)
40    साग-भतुआ (रमेसर के पसेना चुए लगल । देख के लछमिनियाँ बोलल - 'अजी ! तों मरदाना घर जलम कइसे ले लेलऽ । कोनो साग-भतुआ ही हमनी कि काट के फेंक देतइ !')    (मपध॰11:16:17:1.26)
41    साथी-संघाती (हम्मर विचार कि पहिले कॉलेज के होस्टल चलऽ । उहाँ के साथी-संघाती हमनी के साथ देतन । प्रोफेसर लोग बड़ी खुश होयतन । प्रेम बिआह ऊ लोग सबसे अच्छा बतावऽ हलन ।)    (मपध॰11:16:17:1.29)
42    गँवढ़ा (दे॰ गौंढ़ा) (गाँव के गँवढ़ा में आके एगो पीपर के पेड़ के नीचे दुन्नो रुक गेलन । घर पर समाचार गेल तो सब भाला-गँड़ासा लेके तइयार । रमेसर थाना पर सूचना देके गाँव आल हल ।)    (मपध॰11:16:17:1.40)
43    माय-बाबू (माय-बाबू घर में जगह न देलन । गाँव के कुछ कॉलेजिया नवही रमेसर के मदद कैलन । फटाफट झोपड़ी बन गेल । चुल्हा-चाकी, बरतन-वासन, जरना आदि के इंतजाम भी ।)    (मपध॰11:16:17:2.6)
44    नवही (माय-बाबू घर में जगह न देलन । गाँव के कुछ कॉलेजिया नवही रमेसर के मदद कैलन । फटाफट झोपड़ी बन गेल । चुल्हा-चाकी, बरतन-वासन, जरना आदि के इंतजाम भी ।)    (मपध॰11:16:17:2.6)
45    चुल्हा-चाकी (माय-बाबू घर में जगह न देलन । गाँव के कुछ कॉलेजिया नवही रमेसर के मदद कैलन । फटाफट झोपड़ी बन गेल । चुल्हा-चाकी, बरतन-वासन, जरना आदि के इंतजाम भी ।)    (मपध॰11:16:17:2.8)
46    जरना (दे॰ जारन; जलावन; < जारन+'आ' प्रत्यय) (माय-बाबू घर में जगह न देलन । गाँव के कुछ कॉलेजिया नवही रमेसर के मदद कैलन । फटाफट झोपड़ी बन गेल । चुल्हा-चाकी, बरतन-वासन, जरना आदि के इंतजाम भी ।)    (मपध॰11:16:17:2.9)
47    निरउठ (= निरइठा) (लछमिनियाँ के रूप-रंग देख के गाँव के लड़का-लड़की सब बड़ी खुश । निरउठ चाउर लेखा शरीर, धान के बाली लेखा चमकइत चेहरा, लरकल बादर लेखा केश, महुआ के कोइन लेखा आँख, साग के टूसा लेखा नाक, आँवा के बरतन लेखा दप-दप गोर गाल-लिलार, साँप के केंचुल लेखा बाँह, सावन के बिजुरी लेखा चमकइत दाँत, पान के पात लेखा ओठ देख-देख के सब केउ निहाल ।)    (मपध॰11:16:17:2.13)
48    लरकना (= लटकना) (लछमिनियाँ के रूप-रंग देख के गाँव के लड़का-लड़की सब बड़ी खुश । निरउठ चाउर लेखा शरीर, धान के बाली लेखा चमकइत चेहरा, लरकल बादर लेखा केश, महुआ के कोइन लेखा आँख, साग के टूसा लेखा नाक, आँवा के बरतन लेखा दप-दप गोर गाल-लिलार, साँप के केंचुल लेखा बाँह, सावन के बिजुरी लेखा चमकइत दाँत, पान के पात लेखा ओठ देख-देख के सब केउ निहाल ।)    (मपध॰11:16:17:2.15)
49    कोइन (महुआ के ~) (लछमिनियाँ के रूप-रंग देख के गाँव के लड़का-लड़की सब बड़ी खुश । निरउठ चाउर लेखा शरीर, धान के बाली लेखा चमकइत चेहरा, लरकल बादर लेखा केश, महुआ के कोइन लेखा आँख, साग के टूसा लेखा नाक, आँवा के बरतन लेखा दप-दप गोर गाल-लिलार, साँप के केंचुल लेखा बाँह, सावन के बिजुरी लेखा चमकइत दाँत, पान के पात लेखा ओठ देख-देख के सब केउ निहाल ।)    (मपध॰11:16:17:2.16)
50    दप-दप (~ गोर) (लछमिनियाँ के रूप-रंग देख के गाँव के लड़का-लड़की सब बड़ी खुश । निरउठ चाउर लेखा शरीर, धान के बाली लेखा चमकइत चेहरा, लरकल बादर लेखा केश, महुआ के कोइन लेखा आँख, साग के टूसा लेखा नाक, आँवा के बरतन लेखा दप-दप गोर गाल-लिलार, साँप के केंचुल लेखा बाँह, सावन के बिजुरी लेखा चमकइत दाँत, पान के पात लेखा ओठ देख-देख के सब केउ निहाल ।)    (मपध॰11:16:17:2.17)
51    रूपगर (माय कुंती जब सुनलक तो अँचरा के कोर से लोर पोंछे लगल । सोचे लगल - 'हाय रे करम ! आँख में आँख एगो बेटा, केतना रूपगर पुतोह ।' बाकि जात-बिरादर के आगु दाँत पर दाँत चढ़ा के बइठल रहल । भादो में भित्ती जइसन भहरा भहरा के गिरे । ननद सोनाली अलगे छछन रहल हे भाभी के मुँह देखे ला बाकि समाज के रीति-रेवाज पंगु बना देलक हे ।)    (मपध॰11:16:17:2.23)
52    भहराना (माय कुंती जब सुनलक तो अँचरा के कोर से लोर पोंछे लगल । सोचे लगल - 'हाय रे करम ! आँख में आँख एगो बेटा, केतना रूपगर पुतोह ।' बाकि जात-बिरादर के आगु दाँत पर दाँत चढ़ा के बइठल रहल । भादो में भित्ती जइसन भहरा भहरा के गिरे । ननद सोनाली अलगे छछन रहल हे भाभी के मुँह देखे ला बाकि समाज के रीति-रेवाज पंगु बना देलक हे ।)    (मपध॰11:16:17:2.26)
53    सरजाम (दोसर गाँव के लोग मटुकपुर पर चढ़ाई कर देलक । पूरा गाँव सहरवे-हथियरवे दुन्नो प्रेमी-प्रेमिका के रछेया में जुट गेल । बाकि धोखा से ऊ लोग लछमिनियाँ के हरन करके कार पर बइठा के बगल के बगइचा में घाठी देवे के सरजाम में जुट गेलन ।)    (मपध॰11:16:17:3.12)
54    धावा-धाई (पूरा गाँव सहरवे-हथियरवे दुन्नो प्रेमी-प्रेमिका के रछेया में जुट गेल । बाकि धोखा से ऊ लोग लछमिनियाँ के हरन करके कार पर बइठा के बगल के बगइचा में घाठी देवे के सरजाम में जुट गेलन । थाना पर डी.एम., एस.पी. के धावा-धाई फोन कैल गेल, खबर पहुँचावल गेल । कार आउ चार गो लठैत गिरफ्तार भेलन ।)    (मपध॰11:16:17:3.13)
55    उझिलना (= उझलना) (बाकि जब ऊ दू लाख रुपइया डाक्टर के सामने उझिल देलन तो हास्पीटल के नेव काँप उठल । सुरेंदर डाक्टर से कहलक - 'डाक्टर साहब, जहर के सूई देके एकरा मुआ दऽ ।')    (मपध॰11:16:17:3.22)
56    वंश-बरखा ('बेटी से ही वंश-बरखा चलऽ हे ।' महतवाइन राघो महतो पति के जगउलक । - 'चलऽ हमरा बेटी लछमिनियाँ के मरलो मुँह देखा दऽ आ न तो हम्मर मरले मुँह देखिहऽ ।' महतवाइन फूट-फूट के रोवे लगलन ।)    (मपध॰11:16:18:1.18)
57    जलमाना (= जन्म देना, पैदा करना) ('देखऽ हम्मर छाती देखऽ, बेटी के याद में दूध चुअइत हे । केकरा पिलाऊँ ? फिनो बेटी जलमाऊँ ?' कहइत कहइत मुरछित हो गेल । महतो जी गिलपिल । बेटा बाहर बहिन के जान के गाँहक बनल अस्पताल में ।)    (मपध॰11:16:18:1.25)
58    गिलपिल ('देखऽ हम्मर छाती देखऽ, बेटी के याद में दूध चुअइत हे । केकरा पिलाऊँ ? फिनो बेटी जलमाऊँ ?' कहइत कहइत मुरछित हो गेल । महतो जी गिलपिल । बेटा बाहर बहिन के जान के गाँहक बनल अस्पताल में ।)    (मपध॰11:16:18:1.27)
59    भुन-भान (महतो जी गिलपिल । बेटा बाहर बहिन के जान के गाँहक बनल अस्पताल में । टोला-पड़ोसी बिहिछन के बगइचा । रात में केकरा उठावथ केकरा पुकारथ । भुन-भान सुनके चमेली डगरीन जाग गेल । जइसे फूल में खुशबू ओइसे डगरीन के हिरदा में ममता ।)    (मपध॰11:16:18:1.30)
60    डगरीन (= चमाइन; गर्भवती स्त्री को प्रसव करानेवाली) (महतो जी गिलपिल । बेटा बाहर बहिन के जान के गाँहक बनल अस्पताल में । टोला-पड़ोसी बिहिछन के बगइचा । रात में केकरा उठावथ केकरा पुकारथ । भुन-भान सुनके चमेली डगरीन जाग गेल । जइसे फूल में खुशबू ओइसे डगरीन के हिरदा में ममता ।; चमेली कहलक - 'हम डगरीन के टरेनी लेले ही । हमरा से कोई मदद चाही तो हम सहजोग करब ।' डाक्टर डगरीन के भीतर ले जाहे । चमेली के मदद से लछमिनी के बेटा जनम लेलक ।)    (मपध॰11:16:18:1.30, 31, 2.9, 12)
61    चइतार (= चइतावर) ('पिया भेले डुमरी के फुलवा, ए रामाऽऽ पिया भेले' - सरजुग माँझी गुनगुना रहल हल । कल रात डुमरी इस्कूल में चइतार के मंडली जुटल हल जब चइता गवा हे तऽ सरजुगवा पगला जाहे ।; "रात भर जग के चइता गइमे तऽ झपकी न अइतउ तऽ का अइतउ ? चइतार के बहाने नक्सलइटवन के मीटिंग तो न हलइ !" - "न मालिक, गरी-गुरबा भला मीटिंग का करतइ ?"; एतवार के इस्कूल बंद हल । सोमार के जब मास्टर लोग अइलन तऽ डुमरी हाई स्कूल में मशाल-जुलूस आउ चइतार के चरचा जोर पकड़ले हल ।)    (मपध॰11:16:19:1.3, 11, 2.8)
62    चइता ('पिया भेले डुमरी के फुलवा, ए रामाऽऽ पिया भेले' - सरजुग माँझी गुनगुना रहल हल । कल रात डुमरी इस्कूल में चइतार के मंडली जुटल हल जब चइता गवा हे तऽ सरजुगवा पगला जाहे ।, "रात भर जग के चइता गइमे तऽ झपकी न अइतउ तऽ का अइतउ ? चइतार के बहाने नक्सलइटवन के मीटिंग तो न हलइ !" - "न मालिक, गरीब-गुरबा भला मीटिंग का करतइ ?")    (मपध॰11:16:19:1.4, 10)
63    मीटिंग-उटिंग ("रात भर जग के चइता गइमे तऽ झपकी न अइतउ तऽ का अइतउ ? चइतार के बहाने नक्सलइटवन के मीटिंग तो न हलइ !" - "न मालिक, गरीब-गुरबा भला मीटिंग का करतइ ?" - "जादे मीटिंग-उटिंग होइ तऽ इस्कुलवो बंद हो जाइ । याद हउ न, मकदुमपुर इस्कुल केतना साल बंद रहलइ हल ।")    (मपध॰11:16:19:1.16)
64    मजूरा (= मजूर; मजदूर) ("खेत मजूरा हड़ताल करत चंदर बाबू ।" - "एतना मजूरी काफी न हइ का ?" - "पोसाई न होवइ सरकार । एक-एक परिवार में ढेरसानी अदमी हइ । ओकरो दाना-पानी चाहइ कि न ?")    (मपध॰11:16:19:1.22)
65    मजूरी (= मजदूरी) ("खेत मजूरा हड़ताल करत चंदर बाबू ।" - "एतना मजूरी काफी न हइ का ?" - "पोसाई न होवइ सरकार । एक-एक परिवार में ढेरसानी अदमी हइ । ओकरो दाना-पानी चाहइ कि न ?")    (मपध॰11:16:19:1.24)
66    ढेरसानी ("खेत मजूरा हड़ताल करत चंदर बाबू ।" - "एतना मजूरी काफी न हइ का ?" - "पोसाई न होवइ सरकार । एक-एक परिवार में ढेरसानी अदमी हइ । ओकरो दाना-पानी चाहइ कि न ?")    (मपध॰11:16:19:1.26)
67    एतवार (= इतवार, रविवार; विश्वास) (एतवार के इस्कूल बंद हल । सोमार के जब मास्टर लोग अइलन तऽ डुमरी हाई स्कूल में मशाल-जुलूस आउ चइतार के चरचा जोर पकड़ले हल ।)    (मपध॰11:16:19:2.6)
68    सोमार (= सोमवार) (एतवार के इस्कूल बंद हल । सोमार के जब मास्टर लोग अइलन तऽ डुमरी हाई स्कूल में मशाल-जुलूस आउ चइतार के चरचा जोर पकड़ले हल ।)    (मपध॰11:16:19:2.6)
69    मोसहारा (= मोसहरा, मुसहरा, मासिक वेतन) (मरता का न करे दीदी जी, हमनी के जरा-सा मोसहारा मिले में दिक्कत भेल न कि झट से हड़ताल पर चल जाही । खेतो मजूरा अप्पन हक आउ अधिकार के बारे में सोचे लगल हे ।" चपरासिन कांति आंदोलन से सहानुभूति जतइते बोलल ।)    (मपध॰11:16:19:2.11)
70    चपरासिन (मरता का न करे दीदी जी, हमनी के जरा-सा मोसहारा मिले में दिक्कत भेल न कि झट से हड़ताल पर चल जाही । खेतो मजूरा अप्पन हक आउ अधिकार के बारे में सोचे लगल हे ।" चपरासिन कांति आंदोलन से सहानुभूति जतइते बोलल ।)    (मपध॰11:16:19:2.14)
71    ताकड़ (= कमी, दिक्कत) ("बेरोजगारियो तो तेजी से बढ़लइ हे । देहात में काम के ताकड़ हो गेलइ ।" बिंदु बाबू मैडम के हाँ में हाँ मिलइलन ।)    (मपध॰11:16:19:3.6)
72    लबनी (= लमनी; ताड़ी रखने का मिट्टी का घड़ा के आकार का छोटा बरतन) ("एगो समस्या रहे तब न । कुच्छे दिन के बाद टरेन में खिड़किए-खिड़की लबनी के लदना । नाक देना मुश्किल । एन्ने इस्कूल पहुँचऽ तऽ इलाका में नया तूफान खड़ा । बड़ी खराब समय आ गेल ।" बिहारी बाबू चिंता जाहिर कइलन ।)    (मपध॰11:16:19:3.9)
73    लदना (= लादने की क्रिया, लदा हुआ सामान) ("एगो समस्या रहे तब न । कुच्छे दिन के बाद टरेन में खिड़किए-खिड़की लबनी के लदना । नाक देना मुश्किल । एन्ने इस्कूल पहुँचऽ तऽ इलाका में नया तूफान खड़ा । बड़ी खराब समय आ गेल ।" बिहारी बाबू चिंता जाहिर कइलन ।)    (मपध॰11:16:19:3.9)
74    टुनटुन्नी (इस्कूल के टुनटुन्नी बजते मास्टर लोग अप्पन-अप्पन घरे दन्ने रवाना हो गेलन ।)    (मपध॰11:16:19:3.13)
75    दन्ने (= दने, तरफ) (इस्कूल के टुनटुन्नी बजते मास्टर लोग अप्पन-अप्पन घरे दन्ने रवाना हो गेलन ।)    (मपध॰11:16:19:3.14)
76    मलकीनी (= मालकिन) (सुमिता नौकर के हाँक ललगइलक - "चनपटिया, जरा बोतल में पानी भर दे ।" - "जी मलकीनी, अभी लावित ही ।")    (मपध॰11:16:20:1.7)
77    इक्का (= इका, इकी, अइकी) ("हाँ, जरा मालिक के भी खाना लगा दियहुन । हमरा देर हो रहल हे, आउ हाँ, देख तो हम्मर चसममा कन्ने हे ?" - "इक्का टेलीविजनवा पर हइ ।" - 'टीफिन कैरियरवा में नस्तवा पैक कर दे ।")    (मपध॰11:16:20:1.11)
78    थोड़िक्के (= थोड़िये; थोड़ा ही) (गाड़ी नदौल से खुल चुकल हल । थोड़िक्के देरी में 4 पी.जी. एक नंबर पलेटफारम पर आ लगल ।)    (मपध॰11:16:20:1.18)
79    कहूँ (= कहीं, कहीं भी) (ओकरा से ~ जादे) (गाड़ी नदौल से खुल चुकल हल । थोड़िक्के देरी में 4 पी.जी. एक नंबर पलेटफारम पर आ लगल । जेतना संख्या उतरेवालन के हल ओकरा से कहूँ जादे संख्या चढ़ेवालन के । अच्छा खासा धक्कम-धुक्की ।; रेलगाड़ी मोरहर नद्दी के ऊपर से गुजर रहल हल । कहूँ एक बूँद पानी नञ् । अहरी नियन फट्टल दरार । नद्दी के हिरदय-विदारक दिरिस देख फट्टल बाँस नियर सुमिता के मन मसुआ गेल ।)    (मपध॰11:16:20:1.20, 2.15)
80    भैक्कुम (= भैकम, vaccuum) (टरेन जहानेबाद से से खचाखच भरल । बड़ी मुश्किल से मैडम के सीट मिलल । गाड़ी दू-चार कदम आगे बढ़ल कि कउनो भैक्कुम खोल देलक । कउलेज भिर पहुँचते-पहुँचते गाड़ी टें बोल देलक ।)    (मपध॰11:16:20:1.24)
81    अन्नस (~ बरना/ बराना) ("अन्नस बरा के रख देलक । घरे-घरे टीसन बन गेल, तइयो इनका लोगिन के संतोस नञ् ।" एगो आउ जातरी कसमसा के बोलल ।)    (मपध॰11:16:20:1.35)
82    बराना (अन्नस ~) ("अन्नस बरा के रख देलक । घरे-घरे टीसन बन गेल, तइयो इनका लोगिन के संतोस नञ् ।" एगो आउ जातरी कसमसा के बोलल ।)    (मपध॰11:16:20:1.35)
83    जेवारी ("अन्नस बरा के रख देलक । घरे-घरे टीसन बन गेल, तइयो इनका लोगिन के संतोस नञ् ।" एगो आउ जातरी कसमसा के बोलल । - "भाई, अप्पन गाड़ी, अप्पन टीसन" चउथा जातरी चुटकी लेलक । एगो जेवारी के ई व्यंग्य बरदास न होल से उबल पड़ल - "खाली पीजीए लाइन काहे, किउल-गया या मोकामा-पटना कउन सुधरल हे ?"; जेवारी भाई नदवाँ में उतर गेलन ।)    (मपध॰11:16:20:2.5)
84    नोचायल ("पता न एखनी के का मिलऽ हे, न पंखा न बल्ब, सब नोचायल । एन्ने सुबहे से हवा गुमसुम हे ।" एगो डेली पसिंजर पसीना पोछित बड़बड़ायल ।)    (मपध॰11:16:20:2.7)
85    नद्दी (= नदी) (रेलगाड़ी मोरहर नद्दी के ऊपर से गुजर रहल हल । कहूँ एक बूँद पानी नञ् । अहरी नियन फट्टल दरार । नद्दी के हिरदय-विदारक दिरिस देख फट्टल बाँस नियर सुमिता के मन मसुआ गेल ।)    (मपध॰11:16:20:2.14, 16)
86    फट्टल (= फटल, फाटल; फटा हुआ) (रेलगाड़ी मोरहर नद्दी के ऊपर से गुजर रहल हल । कहूँ एक बूँद पानी नञ् । अहरी नियन फट्टल दरार । नद्दी के हिरदय-विदारक दिरिस देख फट्टल बाँस नियर सुमिता के मन मसुआ गेल ।)    (मपध॰11:16:20:2.16, 17)
87    मसुआना (मन ~) (रेलगाड़ी मोरहर नद्दी के ऊपर से गुजर रहल हल । कहूँ एक बूँद पानी नञ् । अहरी नियन फट्टल दरार । नद्दी के हिरदय-विदारक दिरिस देख फट्टल बाँस नियर सुमिता के मन मसुआ गेल ।)    (मपध॰11:16:20:2.18)
88    कटास (धीरे-धीरे गाड़ी पुनपुन टीसन आ पहुँचल । कटास नियर रउदा में भी गुलमोहर के हरियर पत्ता से लदल डाँढ़ जातरी के स्वागत में अप्पन छतनार बाँह फइलइले हल ।)    (मपध॰11:16:20:3.7)
89    जातरी (= यात्री) (धीरे-धीरे गाड़ी पुनपुन टीसन आ पहुँचल । कटास नियर रउदा में भी गुलमोहर के हरियर पत्ता से लदल डाँढ़ जातरी के स्वागत में अप्पन छतनार बाँह फइलइले हल ।)    (मपध॰11:16:20:3.8)
90    छतनार (= छितनार) (धीरे-धीरे गाड़ी पुनपुन टीसन आ पहुँचल । कटास नियर रउदा में भी गुलमोहर के हरियर पत्ता से लदल डाँढ़ जातरी के स्वागत में अप्पन छतनार बाँह फइलइले हल ।)    (मपध॰11:16:20:3.9)
91    जरउँधा (= जरइँधा, जरिअइँधा; जला हुआ जैसा) (प्रकृति के पास दंड हे तो दवा भी । जरउँधा घामा में भी गुलमोहर के टुह-टुह लाल फूल सुमिता के अपना दन्ने खींच रहल हल । चिलचिलाइत धूप में निकसे से पहिले एकर ठंढा छाँह में दू पल गुजार लेना सुमिता मुनासिब समझलक ।)    (मपध॰11:16:20:3.10)
92    छउरा (= छहुरा) (जरउँधा घामा में भी गुलमोहर के टुह-टुह लाल फूल सुमिता के अपना दन्ने खींच रहल हल । चिलचिलाइत धूप में निकसे से पहिले एकर ठंढा छाँह में दू पल गुजार लेना सुमिता मुनासिब समझलक । ... छउरा के हिसाब से लोग गुलमोहर के जड़ी भिजुन बैठ गेलन ।)    (मपध॰11:16:20:3.20)
93    जड़ी (= जड़) (जरउँधा घामा में भी गुलमोहर के टुह-टुह लाल फूल सुमिता के अपना दन्ने खींच रहल हल । चिलचिलाइत धूप में निकसे से पहिले एकर ठंढा छाँह में दू पल गुजार लेना सुमिता मुनासिब समझलक । ... छउरा के हिसाब से लोग गुलमोहर के जड़ी भिजुन बैठ गेलन ।)    (मपध॰11:16:20:3.20)
94    खेते-खेत (= खेतों के बीच से होकर) (लोग खेते-खेत तिरछे राह डुमरी इस्कूल चल पड़ल । सुमिता पसीना से तर-बतर हो गेल । कबहूँ रूमाल से चेहरा पोछे, कभूँ ओकरा माथा पर रखे ।)    (मपध॰11:16:21:1.23)
95    कभूँ (= कबहूँ; कभी) (लोग खेते-खेत तिरछे राह डुमरी इस्कूल चल पड़ल । सुमिता पसीना से तर-बतर हो गेल । कबहूँ रूमाल से चेहरा पोछे, कभूँ ओकरा माथा पर रखे ।)    (मपध॰11:16:21:1.26)
96    चकचाती (प्रार्थना के बादपढ़ाई-लिखाई शुरू भेल । न बिजुरी, न पंखा । गरम पछिया अप्पन चकचाती चलाना शुरू कर चुकल हल । कोई कमरा के जंगला नदारत तऽ केकरो केवाड़ी ।)    (मपध॰11:16:21:1.31)
97    मसुरी (कोई कमरा के जंगला नदारत तऽ केकरो केवाड़ी । बगल के खलिहान में मसुरी के दउनी नधाल हल ।)    (मपध॰11:16:21:1.33)
98    नधाना (= चालू होना) (कोई कमरा के जंगला नदारत तऽ केकरो केवाड़ी । बगल के खलिहान में मसुरी के दउनी नधाल हल ।; बरसात अप्पन झंडा फहरा देलक । खेत-बधार पानी से भर गेल । फिन का हल, जन्ने देखऽ ओनहीं हर-पालो नधा गेल ।)    (मपध॰11:16:21:1.34, 2.8)
99    कोकड़ा (~ खाना) (जब-तब हवा के झोंका में भूँसा उड़के इस्कूल में दाखिल हो जाए । लइकन के तो जइसे कोकड़ा खा गेल होय ।)    (मपध॰11:16:21:1.36)
100    बोंग (= मोटगर लाठी) (ओकर अलाप साफ-साफ सुनाई पड़ रहल हल - "हमरे कमइया पर महल अटरिया, हमरा के सूअर बखोर ... ।" कान्हा पर बोंग लाठी पाड़ले । टेहुना ले धोती लटकल । कमर में कस के धोती के चुन बाँधले । अलकतरा नियर करिया देह, कार-कार मूँछ । बलिष्ठ बाँह । तागत अइसन कि बड़-बड़ असराफ के छवारिक कन्नी काटथ । अकेलहीं दुमन्ना उठा लेवे । लोग ओकरा से हिसाबे से बतियाथ ।)    (मपध॰11:16:21:1.41)
101    चुन (धोती के ~ बाँधल) (ओकर अलाप साफ-साफ सुनाई पड़ रहल हल - "हमरे कमइया पर महल अटरिया, हमरा के सूअर बखोर ... ।" कान्हा पर बोंग लाठी पाड़ले । टेहुना ले धोती लटकल । कमर में कस के धोती के चुन बाँधले । अलकतरा नियर करिया देह, कार-कार मूँछ । बलिष्ठ बाँह । तागत अइसन कि बड़-बड़ असराफ के छवारिक कन्नी काटथ । अकेलहीं दुमन्ना उठा लेवे । लोग ओकरा से हिसाबे से बतियाथ ।)    (मपध॰11:16:21:1.43)
102    असराफ (ओकर अलाप साफ-साफ सुनाई पड़ रहल हल - "हमरे कमइया पर महल अटरिया, हमरा के सूअर बखोर ... ।" कान्हा पर बोंग लाठी पाड़ले । टेहुना ले धोती लटकल । कमर में कस के धोती के चुन बाँधले । अलकतरा नियर करिया देह, कार-कार मूँछ । बलिष्ठ बाँह । तागत अइसन कि बड़-बड़ असराफ के छवारिक कन्नी काटथ । अकेलहीं दुमन्ना उठा लेवे । लोग ओकरा से हिसाबे से बतियाथ ।)    (मपध॰11:16:21:2.1)
103    दुमन्ना (~ बोरा) (ओकर अलाप साफ-साफ सुनाई पड़ रहल हल - "हमरे कमइया पर महल अटरिया, हमरा के सूअर बखोर ... ।" कान्हा पर बोंग लाठी पाड़ले । टेहुना ले धोती लटकल । कमर में कस के धोती के चुन बाँधले । अलकतरा नियर करिया देह, कार-कार मूँछ । बलिष्ठ बाँह । तागत अइसन कि बड़-बड़ असराफ के छवारिक कन्नी काटथ । अकेलहीं दुमन्ना उठा लेवे । लोग ओकरा से हिसाबे से बतियाथ ।)    (मपध॰11:16:21:2.2)
104    खेत-मजूर (अब ई का, मौका देख खेत-मजूर हड़ताल कर देलक । किसान के चेहरा फक् से उड़ गेल । सरजुगवा के खूब खुशामद होल । मान-मनउअल लाड़-प्यार जे न करावे । थोड़े सा मजूरी बढ़इला पर गरीब के मन पसीज गेल ।)    (मपध॰11:16:21:2.10)
105    खेत-मजूरा (खैर, किसान आ खेत-मजूरा में समझौता होल तऽ कहीं जाके गिरहस्ती के गाड़ी आगे बढ़ल ।)    (मपध॰11:16:21:2.14)
106    गिरहस्ती (= गृहस्थी) (खैर, किसान आ खेत-मजूरा में समझौता होल तऽ कहीं जाके गिरहस्ती के गाड़ी आगे बढ़ल ।)    (मपध॰11:16:21:2.15)
107    मोरी ("मालिक, ऊ खेत में तो अब मोरिए नञ् हइ, एक बिगहा रोपे ला बाकिए रह गेलइ", सरजुगवा बोलल ।; रेलगाड़ी न होल बैलगाड़ी । जन्ने देखऽ ओनहीं किसान रेल-डब्बा में मोरी लादले जा रहल हे ।)    (मपध॰11:16:21:2.15, 27)
108    झंखार (= झंखाड़) (जे मोरहर कल्हे तक एगो झंखार बुढ़िया लेखा सुक्खल आ उदास हल, भादो अइते-अइते अल्हड़ छोकरी नियर एन्ने-ओन्ने उफान मारे लगल ।)    (मपध॰11:16:21:2.33)
109    कर्जा-उर्जा (केत्ता कर्जा-उर्जा लेके महँगा खाद खरीद के, हरियरी के ई बगइचा लगउली सेहू बिधना के मार पड़ते पानी में बिला गेल ।)    (मपध॰11:16:21:2.39)
110    लेबुल (= लेवेल, level) (पच्छिम में जमीन के लेबुल ऊँचा होवे के चलते पुनपुन्ना कुछ राहत बकसलक बाकि रेलवे लाइन के पूरब कहर बरपावे में बाज न आयल ।)    (मपध॰11:16:21:3.1)
111    टिल्हा (पच्छिम में जमीन के लेबुल ऊँचा होवे के चलते पुनपुन्ना कुछ राहत बकसलक बाकि रेलवे लाइन के पूरब कहर बरपावे में बाज न आयल । रेलजातरी बोले - "अरे गाँव हे या टिल्हा, कोस दू कोस ले पानिए-पानी, बीच में टापू लेखा गाँव ।")    (मपध॰11:16:21:3.5)
112    फजीहत (= फजहत, फजिहत) (रेलजातरी बोले - "अरे गाँव हे या टिल्हा, कोस दू कोस ले पानिए-पानी, बीच में टापू लेखा गाँव ।" - "सच्चो में बड़ा भयावह दिरिस हइ । बरसात में बड़ी फजीहत उठावऽ होतथिन ई इलाका के लोग ।")    (मपध॰11:16:21:3.8)
113    अगिलका (= अगला, अगला वाला) ("सरकार, एकरा पर तो तिल रक्खे के भी जगह नञ्, फिन अपने के साथे बिंदु बाबू भी हथ । अगिलका खेप में ...", बाँस के लग्गी थामले नाववाला बोलल ।)    (मपध॰11:16:21:3.24)
114    कींच-काँच (पुनपुन टीसन से डुमरी इस्कूल तक बनल रस्ता पानी में डूब चुकल हल । अब सुमिता मैडम के पास एक्के रस्ता बचल हल, डुमरी बजार वाला रस्ता । कींच-काँच से भरल एगो पगडंडी पच्छिम दन्ने इस्कूल तरफ जा हल ।)    (मपध॰11:16:21:3.36)
115    बढ़ही (दे॰ बड़ही) (ऐसे तो डुमरी एगो छोटहन बजार हे, तइयो खैनी, पान, बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू से लेके सब्जी तक इहाँ असानी से उपलब्ध हो जाहे । बढ़ही, लोहार भी अप्पन रोजी-रोटी के जुगाड़ कर ले हे ।)    (मपध॰11:16:21:3.41)
116    भेंट (= कुमुदिनी) ("केत्ता खूबसूरत लगऽ हइ कुमुदिनी के फुलवा ।" - "न, न, ई तो उज्जर भेंट फुलायल हइ ।" - "एत्ता पनिया में घइलवा में कउची तोड़ रहलइ हे ?" - "लगऽ हइ कि पानीवाला सिंघाड़ा तोड़ित हइ ।")    (मपध॰11:16:22:1.37)
117    आपुस (= आपस) ("केत्ता खूबसूरत लगऽ हइ कुमुदिनी के फुलवा ।" - "न, न, ई तो उज्जर भेंट फुलायल हइ ।" - "एत्ता पनिया में घइलवा में कउची तोड़ रहलइ हे ?" - "लगऽ हइ कि पानीवाला सिंघाड़ा तोड़ित हइ ।" ट्रेन में जातरी लोग आपुस में बतिआइत जा रहलन हल ।)    (मपध॰11:16:22:1.42)
118    किंचकिल (= कीचड़ भरा) (भोरहीं खूब बरखा भेलइ से रस्तवा किंचकिल हो गेलइ । ठीक डुमरी के सामने रेलवे लाइन से निच्चे उतरते सुमिता के पाँव फिसल गेल । पिछुलते देखताहर ठठा के हँस पड़ल ।)    (मपध॰11:16:22:2.1)
119    परी (= पर) (भोरहीं खूब बरखा भेलइ से रस्तवा किंचकिल हो गेलइ । ठीक डुमरी के सामने रेलवे लाइन से निच्चे उतरते सुमिता के पाँव फिसल गेल । पिछुलते देखताहर ठठा के हँस पड़ल । एक हाथ तो पूरा पाँको में, दू जगह साड़ियो में कीचड़ छिंटायल । - "हुआँ परी चापाकल हवऽ, जाके कपड़वा धो लऽ ।" बिरजू सहानुभूति जतइते हाथ से इशारा कइलक ।)    (मपध॰11:16:22:2.7)
120    माहें (= तरफ, ओर; कन्ने ~ = किस तरफ) (रवि बाबू से न रहल गेल। ऊ पुलिस पर उबल पड़लन - "आपे लोग जातरी के परेशान करते रहते हैं । कहने को तो रेल सुरक्षा गार्ड हैं बाकि दिन भर पैसा कमाने के चक्कर में लगे रहते हैं । गेट तो जाम करवा दिए, अब पसिंजर बढ़ेगा कन्ने माहें ?")    (मपध॰11:16:23:1.7)
121    भुइयाँ (= भूमि, जमीन) (रवि बाबू के मारल जाए के बात उनकर गाँव डुमरी तक पहुँचल । उनकर घरनी कुश के मूँज से मउनी बीन रहल हल । घटना के जानते हाथ के मूँज भुइयाँ में छितरा गेल ।)    (मपध॰11:16:23:1.26)
122    जुलुम (= जुल्म, अत्याचार) (सरजुगवा के चेहरा देखे लायक हल । लाल-लाल फौलादी आँख । पुलिस के ललकारित बोलल - "अब आउ जुलुम बरदास न होतो बाबू । लाश के हिसाब तो देहीं पड़तो ।")    (मपध॰11:16:23:1.44)
123    फुटानी (~ छाँटना) (रवि बाऊ के फुटानी जिला-जेवार में विख्यात हे । हो भी काहे नञ्, जमींदार घराना के बाऊ हथ । मुदा अप्पन फुटानी में बाप-दादा के कमाय चाट गेला ।; रवि बाऊ के हाल तो खस्ता हइए हल । ओकरा पर बेटी के बियाह । ऊ ई जुगत भिड़ावे के कोरसिस में लगलन कि विभा के भार भी उतर जाय आउ उनकर फुटानी छाँटे के कुछ दिन के जुगाड़ भी हो जाय ।)    (मपध॰11:16:24:1.1, 3, 3.1)
124    बेपारी (= व्यापारी) (एहे हाल हल महेश के । बगले के गाम के रहेवाला हल । विभा के गाम के तसर बेपारी के यहाँ काम करऽ हल ।)    (मपध॰11:16:24:2.12)
125    खस्ता (रवि बाऊ के हाल तो खस्ता हइए हल । ओकरा पर बेटी के बियाह । ऊ ई जुगत भिड़ावे के कोरसिस में लगलन कि विभा के भार भी उतर जाय आउ उनकर फुटानी छाँटे के कुछ दिन के जुगाड़ भी हो जाय ।)    (मपध॰11:16:24:2.20)
126    महारत (कोय करम ओकरा से छुट्टल नञ् हल । सोलहो विद्या में ओकरा महारत हासिल हल ।)    (मपध॰11:16:24:3.11)
127    मानिकस (अभी बियाह के तैयारी चल रहल हल कि थानेदार साहेब आ धमकला । लड़का के पकड़लका आउ गाड़ी में ठूँस देलका । ... ई देख के रवि बाऊ होश-हवास खो देलका । उनकर मानिकस संतुलन बिगड़ गेल ।)    (मपध॰11:16:25:1.12)
128    अभगली (= अभागिन) (ई देख के रवि बाऊ होश-हवास खो देलका । उनकर मानिकस संतुलन बिगड़ गेल । ऊ गरजे लगला - "कौन भगवान ई अभगली के गढ़लखिन हल । पहिले माय के खइलक । अब हमरा तब खाए में लगल हे । ई हमरो जान लेइये के रहत । चढ़ल भँढ़ेरी उतर गेल ।")    (मपध॰11:16:25:1.12)
129    घिन (= घृणा) (~ बरना) (ओकरा अब पता चलल कि बियाह के नाम पर ओकरा बेचल जा रहल हल । ओकरा अपने आप से घिन बरे लगल । ओकरा अइसन बाप के घर पैदा होवे के भारी शरम होवे लगल ।)    (मपध॰11:16:25:1.22)
130    चकमुनरी (एकरा सहे के ऊ सामर्थ्य खो देलक आउ अप्पन जान गँवावे के निचय कर लेलक । झट से ऊ कमरा में हेलल आउ केबाड़ी बंद कर लेलक । अप्पन साड़ी से फाँसी के फंदा बनैलक आउ छत के चकमुनरी से ओकरा बाँध लेलक ।)    (मपध॰11:16:25:1.32)
131    घुरियाना (= घुम-फिरकर आसपास चक्कर लगाना) (ओकरा केबाड़ी बंद करते लोग सब हल्ला करे लगलन । महेश तो अगले-बगल घुरिया रहल हल । हल्ला से मौका मिलल आउ ऊ लग गेल केबाड़ी के लतियावे ।)    (मपध॰11:16:25:1.34)
132    लतियाना (ओकरा केबाड़ी बंद करते लोग सब हल्ला करे लगलन । महेश तो अगले-बगल घुरिया रहल हल । हल्ला से मौका मिलल आउ ऊ लग गेल केबाड़ी के लतियावे ।)    (मपध॰11:16:25:1.36)
133    कनना (= काँदना, रोना) ("ई अभगली के काहे बचइलऽ । हमरा मरे दऽ । अब हम्मर जीना बेकार हे । अब हम ई मुँह केकरा आउ कइसे देखैबइ ।" - विभा कनते बोलल ।)    (मपध॰11:16:25:2.2)
134    देखना-सुनना ("आ भगवान ! एक तो ऊ पहिले से टुअर हलइ । बाप हलइ भी तो लापरवाहे । पढ़ल-लिखल भी कम्मे । नञ् पइसा आउ नञ् कोय देखे-सुने वाला । ओकरो पर ई डरामा । जे सुनतइ से कइसे बियाह करतइ - कइसे एकर जिनगी गुजरतइ ।" - कलपते ओकर सबलपुरवाली चाची कहलखिन ।; शायद एकरो कोय देखे-सुन्ने वला नञ् हे, जे सो-पचास देके भी एकर चीरल-फारल देह के मुरदघट्टी तक ले जाय जुकुर भी बनवा सके ।)    (मपध॰11:16:25:2.5, 27:2.11)
135    अलंग-बाँध (विभा के कारण तो महेश पहिले से टूटल हल । ई सब बात सुन के ऊ आपा खो देलक । जइसे बाढ़ के पानी अलंग-बाँध तोड़ते निकल जाहे ओइसहीं ओकर आवाज सब लाज-गरान तोड़ के निकल गेल । ऊ तपाक से बोललक - 'हम एकरा से बियाह करबइ ।')    (मपध॰11:16:25:2.16)
136    लाज-गरान (विभा के कारण तो महेश पहिले से टूटल हल । ई सब बात सुन के ऊ आपा खो देलक । जइसे बाढ़ के पानी अलंग-बाँध तोड़ते निकल जाहे ओइसहीं ओकर आवाज सब लाज-गरान तोड़ के निकल गेल । ऊ तपाक से बोललक - 'हम एकरा से बियाह करबइ ।')    (मपध॰11:16:25:2.17)
137    खपड़ी (= खपरी) ('हम जानो हिअउ ने तोर परिवार के महेश । भौजइया चढ़े देतउ । दुअरिया पर खपड़ी से सोआगत होतउ तब तोर सब बुद्धि हवा हो जइतउ । बिना आगे-पीछे सोंचले बड़-बड़ बात नञ् करे के चाही । अइसहीं तो भगवान एकरा ई हाल करइले हखिन । आउ बोल-बोल के तोहनी सबे एकरा कौन गंजन करइमहीं ।' - सीरियस होके रघु दा बोलला ।)    (मपध॰11:16:25:2.26)
138    गंजन (~ करना/ कराना) ('हम जानो हिअउ ने तोर परिवार के महेश । भौजइया चढ़े देतउ । दुअरिया पर खपड़ी से सोआगत होतउ तब तोर सब बुद्धि हवा हो जइतउ । बिना आगे-पीछे सोंचले बड़-बड़ बात नञ् करे के चाही । अइसहीं तो भगवान एकरा ई हाल करइले हखिन । आउ बोल-बोल के तोहनी सबे एकरा कौन गंजन करइमहीं ।' - सीरियस होके रघु दा बोलला ।)    (मपध॰11:16:25:3.3)
139    विध-विधान (लोहा के तखने पीटे में लाभ हे जखने ऊ गरम हे । बिना समय गमैले विध-विधान शुरू भेल । चट मड़वा आउ पट बियाह हो गेल ।)    (मपध॰11:16:25:3.18)
140    मड़वा (लोहा के तखने पीटे में लाभ हे जखने ऊ गरम हे । बिना समय गमैले विध-विधान शुरू भेल । चट मड़वा आउ पट बियाह हो गेल ।)    (मपध॰11:16:25:3.19)
141    परिछना (एने सरकार महेश के मालिक के गाँव नेपुरा के ग्रामीण पर्यटन स्थल घोषित कर देलक हल । मालिक के साथ-साथ टीम के लोग भी महेश-विभा के परिछलका । ओकरा ले दलान के अंदर के कमरा खोल देल गेल ।)    (मपध॰11:16:26:1.14)
142    पोसमाटम (= postmortem) ("अइलइ होयत कोय लहास पोसमाटम होवे ला ।" अब हमरा समझ में आल कि ई रोडवा के नाम पोसमाटम रोड काहे हइ । पूछलूँ - "कज्जा होवऽ हइ ?" सजल जी इसतारा से बता देलका ।)    (मपध॰11:16:27:1.20, 22)
143    इसतारा (= इशारा) ("अइलइ होयत कोय लहास पोसमाटम होवे ला ।" अब हमरा समझ में आल कि ई रोडवा के नाम पोसमाटम रोड काहे हइ । पूछलूँ - "कज्जा होवऽ हइ ?" सजल जी इसतारा से बता देलका ।; पोसमाटम-रूम के गेट चरमराल, डोम बाहर निकसल । अनिल सिंह के इसतारा से बोलइलक - "चलो, निकालो ...।" - "अब कउची ?" अनिल सिंह के माथा चकराल ।)    (मपध॰11:16:27:1.24, 28:1.13)
144    अनचिन्ह (सो-पचास के भीड़ । केकरो आँख में अनचिन्ह सवाल, केकरो मन में गलानी के भाव, केकरो चेहरा पर प्रतिशोध के छाँहि ।)    (मपध॰11:16:27:2.1)
145    दँत्ती (= दत्ती, दाँती) ("अरे बेटवा, कल्हे से तोर नामा भुलैबे रे बेटवा । कन्ने गेलें रे बेटा ... ।" कहते ऊ औरत के फिन दँत्ती लग गेल ।)    (मपध॰11:16:27:2.5)
146    चीरल-फारल (शायद एकरो कोय देखे-सुन्ने वला नञ् हे, जे सो-पचास देके भी एकर चीरल-फारल देह के मुरदघट्टी तक ले जाय जुकुर भी बनवा सके ।)    (मपध॰11:16:27:2.12)
147    मुरदघट्टी (शायद एकरो कोय देखे-सुन्ने वला नञ् हे, जे सो-पचास देके भी एकर चीरल-फारल देह के मुरदघट्टी तक ले जाय जुकुर भी बनवा सके ।)    (मपध॰11:16:27:2.13)
148    उजरका (= उजला) (चउतरफा झार-झंखार, उजरका कपड़ा से घेरल, एगो पुरान-धुरान, लकड़ी के टेबुल, केबाड़ी के नाम टीन के दुआरी के बाहरे एगो सूट-बूट वला अदमी कुछ लिख-पढ़ रहला हल ।)    (मपध॰11:16:27:2.14)
149    टीन (चउतरफा झार-झंखार, उजरका कपड़ा से घेरल, एगो पुरान-धुरान, लकड़ी के टेबुल, केबाड़ी के नाम टीन के दुआरी के बाहरे एगो सूट-बूट वला अदमी कुछ लिख-पढ़ रहला हल ।)    (मपध॰11:16:27:2.16)
150    भाड़ा-भुत्ता (= भाड़ा-बुत्ता) (ओने से भट्ठा के मालिक अनिल सिंह आउ लेबर के ठीकेदार कारू आ गेला । कारू एगो के बोला के कहलक - "भाड़ा-भुत्ता में जे खरचा-बरचा होलउ हे, मलिकवा से ले लिहें ।")    (मपध॰11:16:27:3.6)
151    पोसमाटम-भित्तर (पोसमाटम-भित्तर से डोम निकसल, लगल कि सुनीता साथे इहो धरती पर अभिए लौटल हे । आँख तरेर के कहलक - "मालिक कन्ने हउ ?")    (मपध॰11:16:27:3.8)
152    गुरमंतर (चौकीदार दौड़ के आल । अनिल सिंह के कान में गुरमंतर देलक आउ अनिल सिंह बड़ी सोंचते-विचारते डोम के लेटल-पेटल हाँथ पर लमरी धर देलका । डोम अंदर चल गेल ।)    (मपध॰11:16:27:3.20)
153    लेटल-पेटल (चौकीदार दौड़ के आल । अनिल सिंह के कान में गुरमंतर देलक आउ अनिल सिंह बड़ी सोंचते-विचारते डोम के लेटल-पेटल हाँथ पर लमरी धर देलका । डोम अंदर चल गेल ।)    (मपध॰11:16:27:3.21)
154    लमरी (चौकीदार दौड़ के आल । अनिल सिंह के कान में गुरमंतर देलक आउ अनिल सिंह बड़ी सोंचते-विचारते डोम के लेटल-पेटल हाँथ पर लमरी धर देलका । डोम अंदर चल गेल ।)    (मपध॰11:16:27:3.22)
155    मुदरा-मोचन (= मुद्रा-मोचन, पैसा ऐंठना) (डागदर साहेब भी कुछ लिख-पढ़ के जा चुकला हल । दुनहुँ चौकीदारो अनिल सिंह से मुदरा-मोचन कर के नस्ता करे ले चल देलक ।)    (मपध॰11:16:27:3.24)
156    सुतलके में (= सुतले में; सोयी हुई अवस्था में ही) (सबके फोटू खिंचलका । सबसे पूछताछ करो लगला । एगो बतइलक - "रनजीतवा हमरे अर के साथ सुत्तल हलइ । सुतलके में के तो गोली मार देलकइ ।")    (मपध॰11:16:28:1.3)
157    हिनखा (= इनखा, इनका; इन्हें; ~ कहला से = इनके कहने से) (ऊ कुछ आउ बतायत हल मुदा बिच्चे में कारू टोक देलक - "की होतउ हिनखा कहला से ? अखबार में छप जइतउ, टीभी पर फोटू अइतउ, ओकरा से तोहनी के की मिल जइतउ ? पागल तहिं के ।")    (मपध॰11:16:28:1.6)
158    नासमान (= नाशवान) (ई नासमान सरीर ले एतना मोह काहे ? एक दन्ने हमे नरमेध के उत्सव मना रहलूँ हें, जिंदा अदमी के बाटी लगा-लगा के जसन मना रहलूँ हें । अदमी के तन्दूर में भूँज रहलूँ हें। ... दोसर दन्ने मरल लहास के चीरे में एतना मोह ।)    (मपध॰11:16:28:1.27)
159    बाटी (~ लगाना) (ई नासमान सरीर ले एतना मोह काहे ? एक दन्ने हमे नरमेध के उत्सव मना रहलूँ हें, जिंदा अदमी के बाटी लगा-लगा के जसन मना रहलूँ हें । अदमी के तन्दूर में भूँज रहलूँ हें। ... दोसर दन्ने मरल लहास के चीरे में एतना मोह ।)    (मपध॰11:16:28:1.30)
160    गईंजन (= गंजन) (रनजीतवा के माय तो बेचारी छाती पीट-पीट के कह रहली हल - "हमर बउआ के देह के गईंजन नञ् कराबो ।" अब ऊ पागल के कोय कइसे समझावे हे कि मरलो देह के गईंजन होवऽ हे कहैं ।)    (मपध॰11:16:28:1.40, 41)
161    सुताना (= सुलाना, लिटाना, पाड़ना) (कुछ अदमी अंदर गेला, लहास के उठा के लइलका अउ टरेकटर के डल्ला में सुता देलका । गौर से देखलूँ - दस-बारह बरिस के लड़का हल ।)    (मपध॰11:16:28:2.20)
162    सैंकिल (= साइकिल) (सैंकिल बँट रहल हे, डरेस बँट रहल हे, अठकोनिया भित्तर बन रहल हे ।)    (मपध॰11:16:28:2.25)
163    अठकोनिया (~ भित्तर) (सैंकिल बँट रहल हे, डरेस बँट रहल हे, अठकोनिया भित्तर बन रहल हे ।)    (मपध॰11:16:28:2.26)
164    अईंटा (= ईंट) (~ पारना) (अभियो रनजीतवा भट्ठे पर मट्टी काट रहल हे, अईंटा पार रहल हे तउ ई नौटंकी काहे ले चल रहल हे ?)    (मपध॰11:16:28:2.30)
165    पनसोटकिया (= पाँच सौ रुपये का नोट) (अनिल सिंह विस्मय में पड़ गेला । एगो पनसोटकिया निकाल के जमेदार साहेब के बढ़ैलका ।)    (मपध॰11:16:28:3.4)
166    सर-सरजाम (शहरीकरण के ई दौर में नया पीढ़ी ग्रामीण जीवन आउ ओकर संस्कृति से धीरे-धीरे कटते जा रहलन हे । खेत-खरिहान, बाग-बगैचा, तीज-तेहवार आउ घर-गिरहस्ती से जुड़ल सर-सरजाम के बारे में उनकर जानकारी आउ पहचान धीरे-धीरे खतम होते जा रहल हे ।)    (मपध॰11:16:38:1.2)
167    बँसबाड़ी (= बाँस के कोठी/ बाँस के बगैचा)     (मपध॰11:16:39:1.2)
168    छीप (= बाँस के ऊपर के पातर भाग)     (मपध॰11:16:39:1.4)
169    करची (दे॰ कराँची)     (मपध॰11:16:39:1.5)
170    कनेली (दे॰ कराँची)     (मपध॰11:16:39:1.6)
171    कराँची (= बाँस के सबसे पातर कन्नी)     (मपध॰11:16:39:1.7)
172    अगाड़ (= सुक्खल बाँस के आगे के टोना)     (मपध॰11:16:39:1.8)
173    अगाड़ा (दे॰ अगाड़)     (मपध॰11:16:39:1.8)
174    टोना (= सुक्खल बाँस के कट्टल टुकड़ा)     (मपध॰11:16:39:1.10, 40:1.12)
175    सायर (= ठोस आउ काम में आवे लायक बाँस)     (मपध॰11:16:39:1.11)
176    कउअल (= पाया के जगह पर उपयोग में आवेवला बाँस के खम्हा)    (मपध॰11:16:39:1.13)
177    खम्हा (= खंभा) (कउअल - पाया के जगह पर उपयोग में आवेवला बाँस के खम्हा)    (मपध॰11:16:39:2.2)
178    टेकठी (= दीया रखेवला बाँस के बनल स्टैंड)     (मपध॰11:16:39:2.3)
179    पच्ची (= काँटी के जगह पर उपयोग में आवेवला बाँस के काँटी नियन टुकड़ा)     (मपध॰11:16:39:2.5)
180    किल्ला (= जानवर-धूर के बाँधे ले उपयोग में आवेवला खूँटा)     (मपध॰11:16:39:2.8)
181    खुट्टा (= खूँटा)     (मपध॰11:16:39:2.10)
182    किल्ली (= जाँता में ठोके लायक छोटगर किल्ला)     (मपध॰11:16:39:2.11)
183    छेकुनी (= छोटगर छड़ी)     (मपध॰11:16:39:3.2)
184    छेंड़ी (= छड़ी)     (मपध॰11:16:39:3.3)
185    सट्टा (= पातर छड़ी)     (मपध॰11:16:39:3.4)
186    हरौठी (= शायर आउ दबिजगर पैना)     (मपध॰11:16:39:3.6)
187    दबिजगर (हरौठी - शायर आउ दबिजगर पैना)    (मपध॰11:16:39:3.6)
188    खोरनी (= चुल्हा खोरे में उपयोग में आवेवला छेकुनी, छोटगर छड़ी नियन टुकड़ा)     (मपध॰11:16:39:3.11)
189    जुन्ना (= कराँची चीर के रस्सी नियन बान्हे के उपयोग में आवेवला)     (मपध॰11:16:40:1.1)
190    कोरो (= छप्पर आदि छारे में काम आवेवला बाँस के बड़गर टोना)     (मपध॰11:16:40:1.3)
191    फट्ठी (= कच्चा/सुक्खल बाँस के फाड़ के छप्पर आदि छारे के उपयोग में आवे लायक बाँस के टुकड़ा)     (मपध॰11:16:40:1.5)
192    फराठी (दे॰ फट्ठी)     (मपध॰11:16:40:1.8)
193    सुपती (= छोटगर सूप)     (मपध॰11:16:40:1.9)
194    सीक (= अगरबत्ती बनावे, दाँत खोदे या पान-पत्ती में उपयोग में आवे लायक टुङना)     (मपध॰11:16:40:1.14)
195    खरका ( दे॰ सीक)     (मपध॰11:16:40:2.1)
196    टुङना ( दे॰ सीक)     (मपध॰11:16:40:2.1)
197    ढट्ठा (= घेरान देवे ले बनावल फट्टी के घेरा)     (मपध॰11:16:40:2.3)
198    ढट्ठी (दे॰ ढट्ठा)     (मपध॰11:16:40:2.3)
199    अलान (= लत्ती-फल्हेरी चढ़ावे ले बनावल छाजन)     (मपध॰11:16:40:2.5)
200    छानी (= छप्पर)     (मपध॰11:16:40:2.7)
201    बट्टा (= दउरी)     (मपध॰11:16:40:2.9)
202    दउरी (= समान रखे ले करची छाज के बनावल गेल बाँस के पात्र)     (मपध॰11:16:40:2.10)
203    सुपली (दे॰ सुपती)     (मपध॰11:16:40:2.14)
204    मौनी (= लावा चुमावे ले बनावल गेल सुपती से छोटा बाँस के पात्र)     (मपध॰11:16:40:2.15)
205    डाला (= कम ऊँचाई वला दउरी)     (मपध॰11:16:40:3.1)
206    दउरा (= डाला ? ; बड़गर दउरी)     (मपध॰11:16:40:3.2)
207    बहँगी (= कंधा पर दुनहुँ तरफ समान लटकावे ल जुगाड़)     (मपध॰11:16:40:3.3)
208    डगरा (= चौरस बुनल बिना ऊँचाई वला गोल बाँस के पात्र)     (मपध॰11:16:40:3.5)
209    मोढ़ा (= बइठे के स्टूल)     (मपध॰11:16:40:3.10)
210    टापी (= मछली मारे के एगो औजार)     (मपध॰11:16:40:3.11)
211    सिड़ही (= सीढ़ी)     (मपध॰11:16:40:3.12)
 

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