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Tuesday, July 02, 2013

95. "बंग मागधी" (वर्ष 2011: अंक-1) में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द



बंगमा॰ = तिमाही "बंग मागधी"; सम्पादक - श्री धनंजय श्रोत्रिय, नई दिल्ली/ पटना

अक्टूबर-दिसंबर 2011,  अंक-1 से तिमाही के रूप में ।

ठेठ मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर पृष्ठ संख्या, आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ ।

कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या (मगही पत्रिका के अंक 1-21 तक संकलित शब्द के अतिरिक्त) - 153

ठेठ मगही शब्द ( से तक):
1    अक्खड़ (दू बात पर हमरा उनका से हरदम मतभेद रहल । हमेशा लड़ते-झगड़ते रहली - "अपन 'गौतम'. 'मगही रामायण' आउ 'गीता' छपावऽ आउ बड़का से बड़का कवि-लेखक एकार-तोकार नञ् करऽ !" बकि अक्खड़ सोभाव के योगेश चा नञ् केकरो बात मानेवला हलन, नञ् मानलन।)    (बंगमा॰11:1:22.16)
2    अघाल (खाल-पीयल ~) (टोपी में लिखल हल - "मैं भी अन्ना हूँ।" एकर माने हम जेकरा से पुछऽ हलूँ, एक्के जवाब मिलऽ हल, "बुड़बक्के हें की, निठाह देहातिये हें ! अन्ना बाबा के नञ् जानऽ हें त देश-दुनियाँ के की जानमें ।"हमरा तो ठकमुरकी लग जा हल मुदा एतना बात जरूर समझ में आल कि जे कुछ हो रहल हे - शहरी आउ खाल-पीयल अघाल लोगन के परव-त्योहार नियन हे ।)    (बंगमा॰11:1:67.16)
3    अठकठवा (अभी हमर अठकठवा धनखेती में निकौनी चल रहल हे । बाले-बच्चे लगल ही । हथिया नछत्तर अगर धोखा नञ् देलको त समझिहऽ हम कुशले-कुशल ही नञ् तो तीन बरिस से कटहँसिए हँस्सी हँस रहलूँ हे ।)    (बंगमा॰11:1:67.1)
4    अधमरू (सहिये साँझ विजइयावली खाय बनइलक, अउ मरदाना के खिला-उला के, अपनउँ खा-पी के भीतर में सुत गेल । दुनहुँ छत्तीस के आँकड़ा में सुत्तल - कनमटिअइले । झुट्ठौं दुनहुँ फोंफिआय लगल । विजइया सोंच रहल हल कि जइसहीं चाटत कि मारके अधमरू कर देम ।)    (बंगमा॰11:1:46.32)
5    अनसोचल (राताराती सउँसे गैरमजरुआ जमीन पर लाल झंडा गड़ा गेल । सगरे लाल पगड़ी बाँध-बाँध के अमीर लेखा ठाड़ । हाथ में लाल झंडा । सबके ठरमुरकी, काठ मारले । ई का भेल ! अनसोचल सोच में बदलल !! अनहोनी होनी में उलिट गेल !!!)    (बंगमा॰11:1:33.4)
6    अलमुनिया (पइसा आखिर काहाँ से आयत ? पाँच रुपइया भी कोय उधार देवे ला तइयार नञ् हो हे । बन्हकी रखे ला ओकरा पास का हे ? हँड़िया में खाना बनऽ हे आउर अलमुनिया के छीपा में खा हे, अलमुनिया के लोटा में पानी पीअ हे ।)    (बंगमा॰11:1:77.26)
7    आर (= यार) (पक्की सिंह के मन में उबाल हल । पारो राम जब कलकत्ता से आवो हल, पक्की सिंह ओकर आव-भक्ति में मांस-मछली घर में बनावो हला आउ कहो हला, आर कैसूँ सदिया करा दे ।)    (बंगमा॰11:1:38.3)
8    इतमिनान (निसबद, आधी रात हो गेल । दुनहुँ में से कोय सुग-बुग नञ् कर रहल हे । विजइयावली पूरा इतमिनान हो गेल कि अब मरदाना बेखबर सुत्तल हे, पीठ चाटके देखे के चाही ।)    (बंगमा॰11:1:46.35)
9    एकमाहिए (हम दिल्ली में रिक्शा चलावेवला एगो दोस्त के मोबाइल पर नंबर डायल कइलूँ । एकमाहिए लगइते-लगइते एक तुरी धर लेलक । हैलो, हाय के बाद पुछलूँ - "सुनऽ ही, दिल्ली में अन्ना के नाम से बिंडोबा चल रहल हे । तों कुछ जानऽ हें त बताव ।")    (बंगमा॰11:1:68.10)
10    एकाक (एन्ने-ओन्ने देख के मैनी मामा बोलल - "लगे हे विजइया नञ् हइ की ?"/ "बजार गेलथिन हें, एकाक घंटा में आइये जयथुन । की कुछ काम हन उनका से ?" उत्सुक नियन बोलल विजइयावली ।)    (बंगमा॰11:1:45.13)
11    ओझा-गुनी (बिसेखी जाने हे, ई बुतरू खातिर ऊ केतना मनता मानलक, केतना बेर भुइयाँ बाबा के पूजा में भेंटी चढ़इलक, केतना ओझा-गुनी से जंतर-मंतर लेलक, तब कहीं जाके बिआह के दस बरिस बाद सात दिन पहिले ऊ बाप बनल हे ।; ऊ अपन घरवाली से पुछलक - परबती, बउआ आज दूध पीलक हे कि नञ् ? परबती मरुआयल स्वर में कहलक तनको नञ् दूध पीलक हे । कोनो ओझा-गुनी से देखावऽ ।)    (बंगमा॰11:1:76.5, 13)
12    ओरचन (कटेसर फिनो किटकिटयलन - "खोभ-खोभ के अँतड़ी निकाल के खटिया के ओरचन बनयबइ । ढोलक के सुतरी बनयबइ ।")    (बंगमा॰11:1:34.9)
13    कचराकूट (न्यूटन के 'तीसरा गति सिद्धांत' कचराकूट मचावे लगल । नफरत धधाए लगल । डोमा कमांडर के हजारन साथी जेल के भीतर । आग के लहक देखके डोमा कमांडर बिर्हनी लेखा बिखिआयल !! साथी जेल के भीतर कब तक सड़तन । अधिकांश नेता जहानाबाद जेहल में !!!)    (बंगमा॰11:1:35.1)
14    कचवनियाँ (रामखेलावन के घर पर सबके जमौड़ा । सबके मगज गरम, खून खौलइत । कटेसर आउ शिवसागर जेठ के भुंभुरी लेखा तलफइत । आपुस में चउल-मजाक, हँसी-ठिठोली में चल रहल हे । कटेसर के बात सबके कचवनियाँ लेखा मिठगर आउ मोलायम । शिवसागर बोलत न तो अरवा चाउर के बान्हल लड़ुआ लेखा पकइठ ।)    (बंगमा॰11:1:34.4)
15    कटकटाह (= कटकटाहा) (हमर गोड़ बन्हाल हल, पतिदेव के खुल्लल । हमरा छोड़ के संसार के सब लड़की के नैन-नक्श में उनका कुछ-न-कुछ अच्छाई जरूर नजर आवऽ हल, चाहे ऊ कार-खोरनाठी काहे नञ् रहे, सुक्खल सनाठी काहे नञ् रहे । बोली कटकटाह काहे नञ् रहे, बेहवार मरखाह काहे नञ् रहे ।)    (बंगमा॰11:1:66.8)
16    कटाह (= कटाहा, कटकटाहा; काटनेवाला, काट खानेवाला) (मकइ के मचान पर बैठ के टीन बजा-बजा के तोता-मैना के भगवित रहू । खोंखे से कटाह कुत्ता न भागे, लउर बजाड़े पड़त।)    (बंगमा॰11:1:32.20)
17    कठहँस्सी (अभी हमर अठकठवा धनखेती में निकौनी चल रहल हे । बाले-बच्चे लगल ही । हथिया नछत्तर अगर धोखा नञ् देलको त समझिहऽ हम कुशले-कुशल ही नञ् तो तीन बरिस से कटहँसिए हँस्सी हँस रहलूँ हे ।)    (बंगमा॰11:1:67.4)
18    कनमटिअइले (सहिये साँझ विजइयावली खाय बनइलक, अउ मरदाना के खिला-उला के, अपनउँ खा-पी के भीतर में सुत गेल । दुनहुँ छत्तीस के आँकड़ा में सुत्तल - कनमटिअइले । झुट्ठौं दुनहुँ फोंफिआय लगल ।)    (बंगमा॰11:1:46.31)
19    कबरिया (= मोरकबरा) (नया-नया सिम आवे से प्रेमी-प्रेमिका के ओही सुतार आ गेल हे जे सुतार बढ़ियाँ बरसात अएला पर किसान के खेती करे में मिलऽ हे । जहाँ धनरोपनी के घड़ी कबरिया, बोझढोआ लोगन के रोपनिन से हँसी-ठिठोली करे के सुनहला अवसर मिल जाहे ।)    (बंगमा॰11:1:80.15)
20    करिखाना (= कारीख जैसा काला होना) (घृणा आउ नफरत के पैदावार बढ़े लगल । खेत-खरिहान में कुत्ता भूँके । सावन-भादो बरसल बाकि पानी नञ् रेढ़ आउ अशांति के, कल्लह आउ विद्वेष के ज्वाला । हरिअर खेत करिखाऽ गेल ।)    (बंगमा॰11:1:34.34)
21    कल्लह (= कलह) (घृणा आउ नफरत के पैदावार बढ़े लगल । खेत-खरिहान में कुत्ता भूँके । सावन-भादो बरसल बाकि पानी नञ् रेढ़ आउ अशांति के, कल्लह आउ विद्वेष के ज्वाला । हरिअर खेत करिखाऽ गेल ।)    (बंगमा॰11:1:34.34)
22    काठ (~ मारना) (राताराती सउँसे गैरमजरुआ जमीन पर लाल झंडा गड़ा गेल । सगरे लाल पगड़ी बाँध-बाँध के अमीर लेखा ठाड़ । हाथ में लाल झंडा । सबके ठरमुरकी, काठ मारले । ई का भेल !)    (बंगमा॰11:1:33.4)
23    कार-खोरनाठी (हमर गोड़ बन्हाल हल, पतिदेव के खुल्लल । हमरा छोड़ के संसार के सब लड़की के नैन-नक्श में उनका कुछ-न-कुछ अच्छाई जरूर नजर आवऽ हल, चाहे ऊ कार-खोरनाठी काहे नञ् रहे, सुक्खल सनाठी काहे नञ् रहे ।)    (बंगमा॰11:1:66.7)
24    किकुरल (मुरगा बाँग देल । चिरईं-चुरूँगा चहचहाये लगल । सूरज के लाल किरण आज मनहूस लेखा लग रहल हे । धरती किकुरल, आकाश मटमइल, नदी-तलाब के छाती पर कोई लाल चद्दर बिछा देल । आज निरगुन आउ परभाती केकरो मुँह से सुनाई न देल ।)    (बंगमा॰11:1:32.37)
25    कुड़बुड़ाना (कोय कुड़बुड़ाइत हे, कोय सकुचाइत हे, कोय खिसिआइत हे, कोय भकुआइत हे, कोय चेहाइत हे, कोय बिड़बिड़ाइत हे, कोय चरचराइत हे, कोय बोंकिआइत हे । सबके अपन-अपन सोंच ।)    (बंगमा॰11:1:33.15)
26    केल्हुआड़ी ('हो रामनिवास भाई ! हमरो ला एगो लुकवारी बना दिहऽ !' शिवसागर भी टुभुकलन । 'चोहानी में घुसा-घुसा के मारब । जइसे केल्हुआड़ी में खदका-खदका के राबा बनावल जाहे, ओइसहीं सबके राबा बना के घोर-घोर के पिअब ।' - बोलइत-बोलइत कटेसर के घेघा बझ गेल ।)    (बंगमा॰11:1:34.12)
27    कोढ़फुट्टा ("हमरा कोढ़ी फुट्टल हइ गे डइनी !" हड़ास ... हड़ास ।/ "हाँ रे कोढ़िया ! कोढ़िया फुटल तो हइये हउ रे ... कोढ़फुट्टा ... !" कानइत विजइयावली बोल रहल हल ।)    (बंगमा॰11:1:47.6)
28    कोढ़ियाह (= कोढ़ियाहा, कोढ़ी) (विजइयावली सोंच रहल हल कि आधी रात होत त चाटके देखम कि सहिये में नुनछाह हे कि नञ् । अगर रहत त मैनी मामा के बात सहिये निकलत कि कोढ़ियाह हे इ ।)    (बंगमा॰11:1:46.34)
29    खंदक (= खाई, गहरा गड्डा) (छूटके खून के होरी खेलल गेल । संजोग से घर में बूढ़-पुरनियाँ, बाल-बुतरू के अलावे कोय जवान न मिलल । 169 लहास झंडा गाड़ेवला के, 25 लहास बी.एस.एफ. के, 80 लहास गाँव के जोतेदार किसान-भूमिपति के । घिनाके चान मुँह लुका लेल, सगरे कार नागिन के फुफकार । धरती पर सगरे ओड़हुल के लाल-लाल फूल बिछल देखके शराफत शरमा गेल । अदमियत घिकुरी मारले खंदक में छिप गेल ।)    (बंगमा॰11:1:34.22)
30    खखायल (भूमिगत सेना में नवजवान भरती होवे लगलन । टूटल खाट बिनाये लगल,  झोपड़ी छवाये लगल । लगहर गाय-भैंस के दूध नदी के धार बहा देल । खखायल पेट भकोसे लगल । दरकल दिल दोदराय लगल । राइफल-बंदूक बोझा लेखा गाड़ी पर लदाय लगल ।)    (बंगमा॰11:1:36.18)
31    खटतुरूस (रात भर बाढ़ू, सुक्खू, मंगरू, पहलाद आउ जितवाहन टोले-टोले, गाँवे-गाँवे घूम-घूम के सबके रणनीति समझावित गेलन । ... 'हम होंगे कामयाब एक दिन' में सबके विश्वास हे । खटतुरूस सबके खटाल बना देल हे । चिमकी लेखा कब ले उधिआयल चलत ।)    (बंगमा॰11:1:32.34)
32    खदकाना ('हो रामनिवास भाई ! हमरो ला एगो लुकवारी बना दिहऽ !' शिवसागर भी टुभुकलन । 'चोहानी में घुसा-घुसा के मारब । जइसे केल्हुआड़ी में खदका-खदका के राबा बनावल जाहे, ओइसहीं सबके राबा बना के घोर-घोर के पिअब ।' - बोलइत-बोलइत कटेसर के घेघा बझ गेल ।)    (बंगमा॰11:1:34.12)
33    खाल-पीयल (~ अघाल) (टोपी में लिखल हल - "मैं भी अन्ना हूँ।" एकर माने हम जेकरा से पुछऽ हलूँ, एक्के जवाब मिलऽ हल, "बुड़बक्के हें की, निठाह देहातिये हें ! अन्ना बाबा के नञ् जानऽ हें त देश-दुनियाँ के की जानमें ।"हमरा तो ठकमुरकी लग जा हल मुदा एतना बात जरूर समझ में आल कि जे कुछ हो रहल हे - शहरी आउ खाल-पीयल अघाल लोगन के परव-त्योहार नियन हे ।)    (बंगमा॰11:1:67.16)
34    खिलाना-उलाना (सहिये साँझ विजइयावली खाय बनइलक, अउ मरदाना के खिला-उला के, अपनउँ खा-पी के भीतर में सुत गेल । दुनहुँ छत्तीस के आँकड़ा में सुत्तल - कनमटिअइले । झुट्ठौं दुनहुँ फोंफिआय लगल ।)    (बंगमा॰11:1:46.30)
35    खोंटाना (एगो भयंकर बवंडर आवे के अनेसा । समय सिकुड़इत जा रहल हे । आज कतना साग खोंटायत, घड़ी के सूई के बारह बजला पर बतावत । रामखेलावन के घर पर सबके जमौड़ा ।)    (बंगमा॰11:1:34.1)
36    गलिए-कुचिए (गलिए-कुचिए चरचा । देखनिहार के घर निहार । जे सामने न आवऽ हल ऊ लाल पगड़ी बाँध के ठाड़ । सुरेंदर के पचास बिगहा, हरेंदर के सौ बिगहा, भूपेंदर के अस्सी बिगहा । रामखेलावन के पाँच सौ बिगहा । सबसे कम छोटन के छौ बिगहा । हजार एकड़ जमीन - पचास हजार गरीब-गुरबा के कब्जा में ।)    (बंगमा॰11:1:33.5)
37    गाँजना (बात के ~ गाँजना) (मकइ के मचान पर बैठ के टीन बजा-बजा के तोता-मैना के भगवित रहू । खोंखे से कटाह कुत्ता न भागे, लउर बजाड़े पड़त। ऊ सब के पास जे हथियार हे, पता लगवली हे अपने लोग ? मुसहर टोली में जाके देखू, का हो रहल हे । हमनी इहाँ बात के गाँज गाँज रहली हे, उहाँ एके 47 राइफल आउ हथगोला जुटावल जा रहल हे ।)    (बंगमा॰11:1:32.21)
38    गाम-जेवार (तोहर छींक से लेके खोखी तक के हिसाब-किताब रखले हे । ई बात दोसर हे कि हमर गाम-जेवार में मीडिया के ई सब साधन अभी तक नञ् पहुँचल हे । अलबत्ता यहाँ दू-चार गो रेडियो जरूर मिल जइतो, जे समाचार सुने के एकलौता साधन हे ।)    (बंगमा॰11:1:67.9)
39    गेनौरा (दे॰ गनौरा) (आदरजोग अमर दा के सुपुत्र विपुल तो आई॰आई॰टी॰ के प्रोडक्ट हइ त कलकत्ता में की गेनौरा गाँजऽ हइ ? इंजीनियरे ने होतइ । मगही में बात करऽ हे जब ऊ त करेजा जुड़ा जाहे ।)    (बंगमा॰11:1:6.25)
40    गैरमजरुआ (दे॰ गरमजरुआ) (जन्ने देखऽ ओन्ने गाँव के लोग घोंघा लेखा मुँह लटकवले । सबके मुँह सितुहा लेखा !! सबके चेहरा भतुआ के सुखौता बनल !!! राताराती सउँसे गैरमजरुआ जमीन पर लाल झंडा गड़ा गेल । सगरे लाल पगड़ी बाँध-बाँध के अमीर लेखा ठाड़ ।)    (बंगमा॰11:1:33.2)
41    गोड़पुजाय (बचपन में नवरात्रि आउ जग-परोजन में, कन्या रूप में जमते घड़ी अगर कोय गोड़पुजाय कर लेलन होत त अलग बात हे । चाहे शादी-बिआह में अगर गोड़पुजाय होल होत त आउर बात हे ।)    (बंगमा॰11:1:65.9, 10)
42    घुघटा (चार बजे भोरउए से दस-एगारह बजे रात तक खटते रहना, हमर नित्तम दिन क रूटीन हल । नैहर में सलवार-समीज में उछलल चलऽ हली, बकि ससुरार में साड़ी में गोड़ बन्हाल हल । हमेशा घुघटा में रहे पड़ऽ हल ।)    (बंगमा॰11:1:65.17)
43    घुघनी-सत्तू (आम सड़े लगल, पीपर-पाँकड़ महके लगल । धान-गेहुम उपहे लगल । महुआ के रस आउ घुघनी-सत्तू के दोस्ती हो गेल ।)    (बंगमा॰11:1:35.8)
44    चिठियाँव-पतियाँव (पूरे मगध में हम्मर जनकारी में कम से कम दु-तीन दरजन कवि साहित्यकार खड़ा कइलन ऊ । खोरठगर से खोरठगर कवि के तराशे के काम उनकर जिंदगी के अंतिम समय तक चलते रहल । केकरो जब चिठियाँव-पतियाँव करऽ हलन ऊ त सिरिफ कविता में ताकि अदमी प्रेरणा ले सके, सीख सके।)    (बंगमा॰11:1:22.19)
45    चिमकडइनी ("तों गे डइनी, हमरे से खाय ले सुरू कइलें गे, चिमकडइनी के नानी । सहिये कहलकइ मैनी मामा कि तोर घरावली डाइन हकउ, आझे खइतउ । ई तो, नञ् जागतीये हल, त हमरा ई डइनी खाइये जइतो हल ।" माउग के मारइत विजइया हँफियात बोलल ।)    (बंगमा॰11:1:47.7)
46    चिमकी (रात भर बाढ़ू, सुक्खू, मंगरू, पहलाद आउ जितवाहन टोले-टोले, गाँवे-गाँवे घूम-घूम के सबके रणनीति समझावित गेलन । ... 'हम होंगे कामयाब एक दिन' में सबके विश्वास हे । खटतुरूस सबके खटाल बना देल हे । चिमकी लेखा कब ले उधिआयल चलत ।)    (बंगमा॰11:1:32.34)
47    चिरईं-चुरूँगा (मुरगा बाँग देल । चिरईं-चुरूँगा चहचहाये लगल । सूरज के लाल किरण आज मनहूस लेखा लग रहल हे ।)    (बंगमा॰11:1:32.36)
48    चुक्का (विधायक, पार्षद, मंतरी-संतरी अप्पन राजनीति के नौटंकी शुरू कैलन । लाश पर रोटी सेंके लगलन । गाँव-गाँव में राहत कार्य शुरू हो गेल । पुलिस चौकी के सगरो चुक्का बैठा देवल गेल । टुईंया से पानी पिआवे के व्यवस्था ।)    (बंगमा॰11:1:34.28)
49    चुल्हा-चौंकी (दे॰ चुल्हा-चाकी) (एहे सब कारण से पक्की सिंह के बिआह नञ् भेल मुदा खेत बटाई करेवाला सब के साथ उनखर संबंध मधुर हल । छोटना के माउग कभी-कभार घर आके चुल्हा-चौंकी भी कर दे हल । ई बात पक्की सिंह के भाय-गोतिया के एकदम पसंद नञ् हल ।)    (बंगमा॰11:1:37.20)
50    चुहानी (जोतदार-जमींदार  नीम के पत्ता लेखा डोले लगलन। दर-दलाल, खेत-खरिहान, बाग-बगइचा, टिल्हा-टुकुर, मंदिर-मस्जिद, महल-अटारी, झोपड़ी-बथान, परबत-झरना सबके हिरदा हुलस से सराबोर। मार-काट बंद, गाली-गलौज भुस्सा, सिपाही-अरदली सुटुक, शोषण-अत्याचार भुरकुस, रोब-दाब चुहानी, पीयर बरगद किकुरल।)    (बंगमा॰11:1:36.9)
51    चूल्हा-चौकी (दे॰ चुल्हा-चौंकी, चुल्हा-चाकी) (गया राम के चार औरत हल - दूगो बिहारी आउ दू बंगालिन । बिहारी गाँव में रहके किसान घर चूल्हा-चौकी आउ खेती के काम करके गुजारा करो हल । बंगाली औरत कलकत्ता में चाय-पकौड़ी के दोकान चलाबो हल ।)    (बंगमा॰11:1:37.33)
52    चोहानी ('हो रामनिवास भाई ! हमरो ला एगो लुकवारी बना दिहऽ !' शिवसागर भी टुभुकलन । 'चोहानी में घुसा-घुसा के मारब । जइसे केल्हुआड़ी में खदका-खदका के राबा बनावल जाहे, ओइसहीं सबके राबा बना के घोर-घोर के पिअब ।' - बोलइत-बोलइत कटेसर के घेघा बझ गेल ।)    (बंगमा॰11:1:34.11)
53    छकुनी (= छेकुनी) ("की तो विजइयावली अभी तक अपन भतार से नञ् लड़ल हे, विजइया भी कहियो एक छकुनी नञ् मारलक हे ओकरा ।" मैनी मामा निसाना साधलक ।)    (बंगमा॰11:1:45.3)
54    छिनरी ("की कहलहीं ? तोरो मैनी ममा कहलकउ हल ?"/ "हाँ, उहे छिनरी तो कहलकइ कि मरदनमा के नञ् कहिहें, तोर मरदनमा के ... । हुँ ... हुँ ... ।"/  "अच्छा ! तउ अब हम समझ गेलिअउ । ई सब मैनी ममा के हमरा-तोरा लड़ावे के चाल हउ ... ।")    (बंगमा॰11:1:47.14)
55    छुक्कुम (पत्रकार, कहानीकार आउ निबंधकार (छुक्कुम ! इनकर कवि होवे के बात भूल रहली हल) रत्नाकर चा यानी रामरतन प्र. सिंह 'रत्नाकर' मगही के कद्दावर पुरोधा हथ । अक्खड़ आउ बेबाक लिखे-बोलेवला मगही के लेनिनग्राद वारिसलीगंज के टँठगर कंगरेसिया ।)    (बंगमा॰11:1:37.1)
56    जंतर-मंतर (बिसेखी जाने हे, ई बुतरू खातिर ऊ केतना मनता मानलक, केतना बेर भुइयाँ बाबा के पूजा में भेंटी चढ़इलक, केतना ओझा-गुनी से जंतर-मंतर लेलक, तब कहीं जाके बिआह के दस बरिस बाद सात दिन पहिले ऊ बाप बनल हे ।)    (बंगमा॰11:1:76.5)
57    जइसहीं (= जइसीं; जैसे ही) (सहिये साँझ विजइयावली खाय बनइलक, अउ मरदाना के खिला-उला के, अपनउँ खा-पी के भीतर में सुत गेल । दुनहुँ छत्तीस के आँकड़ा में सुत्तल - कनमटिअइले । झुट्ठौं दुनहुँ फोंफिआय लगल । विजइया सोंच रहल हल कि जइसहीं चाटत कि मारके अधमरू कर देम ।)    (बंगमा॰11:1:46.32)
58    जबरिया (पूर्व मंत्री विजयकृष्ण बाबू जबरिया होवे के कारण इनका गारजियन दाखिल समझऽ हलन । ऊ इनका से कार्यक्रम में साथ चले कहलन तब योगेश चा भोलेपन से बतइलन कि हमरा तो कोय निमंत्रणे नञ् भेजलको हे त बिना बोलइले कइसे जइयो ?)    (बंगमा॰11:1:22.23)
59    जमौड़ा (एगो भयंकर बवंडर आवे के अनेसा । समय सिकुड़इत जा रहल हे । आज कतना साग खोंटायत, घड़ी के सूई के बारह बजला पर बतावत । रामखेलावन के घर पर सबके जमौड़ा ।)    (बंगमा॰11:1:34.2)
60    जम्हुआ (~ पकड़ना) (झगरू महतो तुरते बिसेखी के साथे चल पड़लन । घर पहुँच के ऊ बुतरू के बड़ा गौर से देखलन । देखे के बाद बतयलन, एकरा त जम्हुआ पकड़ले हे । ई हमरा से नञ् भागतो ।)    (बंगमा॰11:1:76.21)
61    जोतदार-जमींदार (जोतदार-जमींदार  नीम के पत्ता लेखा डोले लगलन। दर-दलाल, खेत-खरिहान, बाग-बगइचा, टिल्हा-टुकुर, मंदिर-मस्जिद, महल-अटारी, झोपड़ी-बथान, परबत-झरना सबके हिरदा हुलस से सराबोर। मार-काट बंद, गाली-गलौज भुस्सा, सिपाही-अरदली सुटुक, शोषण-अत्याचार भुरकुस, रोब-दाब चुहानी, पीयर बरगद किकुरल।)    (बंगमा॰11:1:36.6)
62    जोतेदार (घर में घुस-घुस के फरसा-तलवार चले लगल । छूटके खून के होरी खेलल गेल । संजोग से घर में बूढ़-पुरनियाँ, बाल-बुतरू के अलावे कोय जवान न मिलल । 169 लहास झंडा गाड़ेवला के, 25 लहास बी.एस.एफ. के, 80 लहास गाँव के जोतेदार किसान-भूमिपति के ।)    (बंगमा॰11:1:34.21)
63    झँपाना (सगरो नफरत के नाली बहे लगल । कउड़ी-कउड़ी जोड़के हिसाब लेवे ला सब एक गोड़ पर ठाड़ । देखइते-देखइते 'हरिहरगंज' खाकी बरदी से झँपा गेल । जइसे धान के फसल में से खर-पतवार उखाड़-उखाड़ के फेंकल जाहे, झंडा-पताका फेंकाये लगल ।)    (बंगमा॰11:1:34.15)
64    झुट्ठौं (= झुट्ठे, झुट्ठो) (सहिये साँझ विजइयावली खाय बनइलक, अउ मरदाना के खिला-उला के, अपनउँ खा-पी के भीतर में सुत गेल । दुनहुँ छत्तीस के आँकड़ा में सुत्तल - कनमटिअइले । झुट्ठौं दुनहुँ फोंफिआय लगल ।)    (बंगमा॰11:1:46.31)
65    टिकारी (~ मारना) (चिरईं-चुरूँगा गीत में मगन, मंगरी-झंगरी सिंगार-पटार में मस्त, ढोढ़ा-मंगरू होरी-चइता में डूबल, टोला-टाटी टिकारी मारइत, बाँस-बँसवारी सिसुकी पारइत । ओन्ने गम एन्ने खुशी, ओन्ने अमावस एन्ने पुनिया ।)    (बंगमा॰11:1:36.10)
66    टिल्हा-टुकुर (जोतदार-जमींदार  नीम के पत्ता लेखा डोले लगलन। दर-दलाल, खेत-खरिहान, बाग-बगइचा, टिल्हा-टुकुर, मंदिर-मस्जिद, महल-अटारी, झोपड़ी-बथान, परबत-झरना सबके हिरदा हुलस से सराबोर। मार-काट बंद, गाली-गलौज भुस्सा, सिपाही-अरदली सुटुक, शोषण-अत्याचार भुरकुस, रोब-दाब चुहानी, पीयर बरगद किकुरल।)    (बंगमा॰11:1:36.7)
67    ठकुरवाड़ी (मंदिर के घड़ीघंट न बजल । शिव मंदिर आउ ठकुरवाड़ी में आरती न भेल । हनुमान जी मंदिर से गायब । जन्ने देखऽ ओन्ने गाँव के लोग घोंघा लेखा मुँह लटकवले ।)    (बंगमा॰11:1:32.38)
68    डेकची (इधर किचन में चूल्हा में कोयला के आग परवान पर हल । सावित्री थोड़ा देर ले चाय के केतली उतार दे हथ आउ दूध के डेकची भी चढ़ा दे हथ ।)    (बंगमा॰11:1:44.6)
69    ढिठई ('के करवा रहल हे ई सब ! अतना ढिठई तो पहिले-पहिल देख रहली हे ?' आपुस में बतिआइत धनिक लाल फुसुकलन ।)    (बंगमा॰11:1:31.15)
70    थुका-फजीहत (चील्ह-कउआ मँड़राये लगल । कुक्कुर-सियार सगरो टाँग पसारले । हर जिला में 'हरिहरगंज' के कोहराम मच गेल । कलेक्टर, कमिश्नर, एस.पी., आई.जी., डी.आई.जी. के लालबत्ती कार के आवाजाही शुरू हो गेल । प्रशासनतंत्र फेल, सी.आई.डी. के थुका-फजीहत ।)    (बंगमा॰11:1:34.26)
71    दँतचिहारी (होवे लगल चुनाव परचार । बजे लगल भोंपू । झंडा-पताका से जर-जेवार पट गेल । भित्ती पोस्टर के लुगा पहिन के इतरा रहल हे । खोंता में घुस-घुस के भोट देवे ला दँतचिहारी ।)    (बंगमा॰11:1:36.26)
72    दखलिआना (हजार एकड़ जमीन - पचास हजार गरीब-गुरबा के कब्जा में । परती जमीन - जेकरा जइसे बनल ओइसे देखलिऔले हे ।; कोय खुश, कोय नाखुश । कोय इतराइत हे, कोय लोघड़ाइत हे । जेकर जमीन ऊ लोघड़ाइत हे, जे दखलिऔलक ऊ इतराइत हे ।)    (बंगमा॰11:1:33.8, 17)
73    दर-दलाल (जोतदार-जमींदार  नीम के पत्ता लेखा डोले लगलन। दर-दलाल, खेत-खरिहान, बाग-बगइचा, टिल्हा-टुकुर, मंदिर-मस्जिद, महल-अटारी, झोपड़ी-बथान, परबत-झरना सबके हिरदा हुलस से सराबोर। मार-काट बंद, गाली-गलौज भुस्सा, सिपाही-अरदली सुटुक, शोषण-अत्याचार भुरकुस, रोब-दाब चुहानी, पीयर बरगद किकुरल।)    (बंगमा॰11:1:36.6)
74    दिअरी (कुछ क्रांतिकारी गिरोह जुड़े लगलन । बिछुड़ल सटे लगलन । नमकहरामी फुरदुंग । गोल मटोल गोल । सभे अघा गेल । घरे-घरे दिवाली के दिअरी । भय के भूत ताखा पर ।)    (बंगमा॰11:1:36.16)
75    दे (~ लाठी = मार लाठी) (विजइया उठल अउ लाठी निकास के ले दनादन मारइत कहलक - "अगे हरमजादी, तों डाइन हें गे । बपटींगही, तोरा आज मारके धर देबउ गे !" अउ फेन दे लाठी कि दे लाठी । पड़ाक ... पड़ाक ... ।)    (बंगमा॰11:1:47.2)
76    दोदराना (= ददराना) (भूमिगत सेना में नवजवान भरती होवे लगलन । टूटल खाट बिनाये लगल,  झोपड़ी छवाये लगल । लगहर गाय-भैंस के दूध नदी के धार बहा देल । खखायल पेट भकोसे लगल । दरकल दिल दोदराय लगल । राइफल-बंदूक बोझा लेखा गाड़ी पर लदाय लगल ।)    (बंगमा॰11:1:36.18)
77    दोस्त-मोहिम (दे॰ दोस-मोहिम) (लोग चाहे जे कुछ सोंचथिन बकि सच ई हइ कि बंगाल में आसनसोल से लिलुआ तक, वर्धमान से लेके बोलपुर तक हमर रिश्ता-नाता आउ दोस्त-मोहिम के संख्या सो-सैंकड़ से कम नञ् हे । बकि, आज बंगाल से जुड़े के हमर कारण मगही के सेवा आउ प्रचार-प्रसार हे ।; हिंदी-अंगरेजी भाषा से जुड़ल रहके भी बीस साल तक बिहार से बाहर रहते भर में कम से कम हम, हमर परिवार आउ हमर प्रतिभावान दोस्त-मोहिम तो अपन भाषा 'मगही' नञ् भूल पइलन हे ।; हमर अपने सबसे विनती हइ कि अगर प॰ बंगाल में अपने के कोय नेह-नाता, भाय-गोतिया, दोस्त-मोहिम रह रहलथिन हे त उनखा 'बंग मागधी' के बारे में बताथिन आउ संभव होय तो कम से कम सो रुपइया के कुरबानी लेके सलाना ग्राहक भी बनाथिन ।)    (बंगमा॰11:1:5.8, 6.17, 28)
78    धधाना (न्यूटन के 'तीसरा गति सिद्धांत' कचराकूट मचावे लगल । नफरत धधाए लगल । डोमा कमांडर के हजारन साथी जेल के भीतर । आग के लहक देखके डोमा कमांडर बिर्हनी लेखा बिखिआयल !! साथी जेल के भीतर कब तक सड़तन । अधिकांश नेता जहानाबाद जेहल में !!!)    (बंगमा॰11:1:35.1)
79    धनखेती (अभी हमर अठकठवा धनखेती में निकौनी चल रहल हे । बाले-बच्चे लगल ही । हथिया नछत्तर अगर धोखा नञ् देलको त समझिहऽ हम कुशले-कुशल ही नञ् तो तीन बरिस से कटहँसिए हँस्सी हँस रहलूँ हे ।)    (बंगमा॰11:1:67.1)
80    धान-गेहुम (आम सड़े लगल, पीपर-पाँकड़ महके लगल । धान-गेहुम उपहे लगल । महुआ के रस आउ घुघनी-सत्तू के दोस्ती हो गेल ।)    (बंगमा॰11:1:35.8)
81    निकौनी (अभी हमर अठकठवा धनखेती में निकौनी चल रहल हे । बाले-बच्चे लगल ही । हथिया नछत्तर अगर धोखा नञ् देलको त समझिहऽ हम कुशले-कुशल ही नञ् तो तीन बरिस से कटहँसिए हँस्सी हँस रहलूँ हे ।)    (बंगमा॰11:1:67.1)
82    नुनछाह ("तोर मरदनमा के कोढ़ी फुटल हउ ?" तपाक से बोल बइठल ममा ।/ "झूठ ! हम नञ् जानती हल, साथे सुत्तो ही, देखती हल नञ् केनउ कोढ़ी फुटल रहत हल तउ ।" विजयावली रोसिया के जवाब देलक ।/ "आझ तों आधी रात के गंजी उघार के पीठ चाटिहें । देखम्हीं नुनछाह लगतउ, तब समझ जइहें कि कोढ़ी फुटल हउ ।"; विजइयावली सोंच रहल हल कि आधी रात होत त चाटके देखम कि सहिये में नुनछाह हे कि नञ् । अगर रहत त मैनी मामा के बात सहिये निकलत कि कोढ़ियाह हे इ ।; उठके बैठल ऊ अउ सले-सले मरदाना के गंजी उठइलक फेन पीठ चाटे ले सुरू कइलक - भर घोंट नुनछाह !)    (बंगमा॰11:1:46.7, 33, 37)
83    नेह-नाता (हमर अपने सबसे विनती हइ कि अगर प॰ बंगाल में अपने के कोय नेह-नाता, भाय-गोतिया, दोस्त-मोहिम रह रहलथिन हे त उनखा 'बंग मागधी' के बारे में बताथिन आउ संभव होय तो कम से कम सो रुपइया के कुरबानी लेके सलाना ग्राहक भी बनाथिन ।)    (बंगमा॰11:1:6.27)
84    पँच-पँच (= पाँच-पाँच) ('गीता' के अनुवाद तो ई चर-चर, पँच-पँच धुन में सुनइते रहऽ हलन ।)    (बंगमा॰11:1:21.22)
85    पकइठ (रामखेलावन के घर पर सबके जमौड़ा । सबके मगज गरम, खून खौलइत । कटेसर आउ शिवसागर जेठ के भुंभुरी लेखा तलफइत । आपुस में चउल-मजाक, हँसी-ठिठोली में चल रहल हे । कटेसर के बात सबके कचवनियाँ लेखा मिठगर आउ मोलायम । शिवसागर बोलत न तो अरवा चाउर के बान्हल लड़ुआ लेखा पकइठ ।)    (बंगमा॰11:1:34.5)
86    पझाना (= आग का मंद पड़ना, आग बुझने सा होना; प्रसव होना) ("बउआ हो, नया खून गरम हवऽ । तू लोग अभी शांत रहऽ । जरूरत पड़ला पर तोरो से मदत लेल जायत । हमनी के रणनीति हे - 'बोरसी के आग जेतना पझाये, पझाये दऽ । गरम दूध में जोरन डालल न जाय ।' " रामनिहोरा नवही सब के समझावित घोरल शरबत लेखा बोललन।)    (बंगमा॰11:1:32.4)
87    पझायल (हमनी अभिमन्यु ही, अभिमन्यु लेखा चक्रव्यूह के दरवाजा तोड़ब । अपने लोग पझायल राख ही ।)    (बंगमा॰11:1:32.19)
88    पर-पखाना (अभी तो पर-पखाना लेल लोग घर से निकलला हीं हल । गाँव के औरत जब पक्की सिंह के साथ औरत के देखलन तब हल्ला हो गेल । घर पहुँचइत-पहुँचइत कय गो औरत-मरद जमा हो गेला ।)    (बंगमा॰11:1:38.32)
89    पर-पैखाना (ओने अंधेरा के लाभ उठाके बंगाली मामा गाँव के बाहर गेली तब तक पक्की सिंह घर अइला । औरत के नञ् देखके परेशान हो गेला । पारो राम के औरत धीरज देलक कि बधार में पर-पैखाना लेल गेल होत ।)    (बंगमा॰11:1:39.20)
90    परभाती (मुरगा बाँग देल । चिरईं-चुरूँगा चहचहाये लगल । सूरज के लाल किरण आज मनहूस लेखा लग रहल हे । धरती किकुरल, आकाश मटमइल, नदी-तलाब के छाती पर कोई लाल चद्दर बिछा देल । आज निरगुन आउ परभाती केकरो मुँह से सुनाई न देल ।)    (बंगमा॰11:1:32.37)
91    परीत (दे॰ परती) (हमनी के नेता के आदेश हे, सबेर होते-होते जतना परीत जगह हे, सब पर लाल झंडा गाड़ देना हे । जे जतना दूर ले लाल निशान टाँक देवे, ऊ जमीन पर ओकर हक मानल जायत ।; न जोताइत हे, न कोड़ाइत हे - बिगहा के बिगहा परीत । जे जोतल चाहित हे जोते द, जे कुछ जोत-कोड़ के उपजावल चाहित हे उपजावे द । परीत रहल से अच्छा हे, कुछ पैदावार हो जायत, देश के उत्पादन बढ़त ।)    (बंगमा॰11:1:32.28, 33.12, 13)
92    पहिरोपा (= पहरोपा) (जब तोहर अनशन शुरू भेल हल, हमर अठकठवा में पहिरोपा हो रहल हल । दू रोज बाद हम साल्फीट लावे ल शहर गेलूँ हल, तब तोहर चरचा उठान पर देखलूँ ।)    (बंगमा॰11:1:67.11)
93    पुनिया (= पुनियाँ; पूर्णिमा) (चिरईं-चुरूँगा गीत में मगन, मंगरी-झंगरी सिंगार-पटार में मस्त, ढोढ़ा-मंगरू होरी-चइता में डूबल, टोला-टाटी टिकारी मारइत, बाँस-बँसवारी सिसुकी पारइत । ओन्ने गम एन्ने खुशी, ओन्ने अमावस एन्ने पुनिया ।)    (बंगमा॰11:1:36.11)
94    फफाना ("आज सबके होरहा लेखा होरर देबइ", कटेसर तसला के अदहन लेखा फफयलन, "बड़ी दिन हो गेल हो 'होलिया' भाँजल । आज भर ठीक भाँजब ।" रामखेलवान के बेटा रामनिवास बोलल तो सब ताली बजाके मन के गाद निकाललन ।)    (बंगमा॰11:1:34.6)
95    फाँड़ा (आज ऊ सब दिन से जादे कमाई कइलक हे । पूरा पच्चीस रुपइया ओकर फाँड़ा में खोंसल हे । ऊ फाँड़ा टोलक । रुपइया जइसे के तइसे खोंसल हल। ऊ ओठ से खइनी थूक के सेउरी में घुँस गेल । बउआ के हालत देख के बिसेखी घबरा गेल ।)    (बंगमा॰11:1:76.10)
96    फुरदुंग (कुछ क्रांतिकारी गिरोह जुड़े लगलन । बिछुड़ल सटे लगलन । नमकहरामी फुरदुंग । गोल मटोल गोल । सभे अघा गेल । घरे-घरे दिवाली के दिअरी । भय के भूत ताखा पर ।)    (बंगमा॰11:1:36.16)
97    फोंफियाना (सहिये साँझ विजइयावली खाय बनइलक, अउ मरदाना के खिला-उला के, अपनउँ खा-पी के भीतर में सुत गेल । दुनहुँ छत्तीस के आँकड़ा में सुत्तल - कनमटिअइले । झुट्ठौं दुनहुँ फोंफिआय लगल ।)    (बंगमा॰11:1:46.31)
98    बंधुक (= बन्हुक; बन्दूक) (देखइते-देखइते 'हरिहरगंज' खाकी बरदी से झँपा गेल । जइसे धान के फसल में से खर-पतवार उखाड़-उखाड़ के फेंकल जाहे, झंडा-पताका फेंकाये लगल । आधा घंटा बीतल होयत कि तड़ातड़, धायँ-धायँ राइफल-बंधुक के आवाज से दसो दिशा काँप उठल ।)    (बंगमा॰11:1:34.16-17)
99    बकलोलहा (= बकलोल, मूर्ख) (हिंदी-अंगरेजी भाषा से जुड़ल रहके भी बीस साल तक बिहार से बाहर रहते भर में कम से कम हम, हमर परिवार आउ हमर प्रतिभावान दोस्त-मोहिम तो अपन भाषा 'मगही' नञ् भूल पइलन हे । हाँ, जे बकलोलहा हे, जेकर नजर में गाँव के भाषा गँवार के भाषा हे, ई भाषा बोले से ओक्कर औलाद अवलाद बन जइतइ, जइसन सोंचवला लोग के बाते दिगर हे ।)    (बंगमा॰11:1:6.18)
100    बजाड़ना (मकइ के मचान पर बैठ के टीन बजा-बजा के तोता-मैना के भगवित रहू । खोंखे से कटाह कुत्ता न भागे, लउर बजाड़े पड़त।)    (बंगमा॰11:1:32.21)
101    बन्हकी (पइसा आखिर काहाँ से आयत ? पाँच रुपइया भी कोय उधार देवे ला तइयार नञ् हो हे । बन्हकी रखे ला ओकरा पास का हे ? हँड़िया में खाना बनऽ हे आउर अलमुनिया के छीपा में खा हे, अलमुनिया के लोटा में पानी पीअ हे ।)    (बंगमा॰11:1:77.25)
102    बन्हाल (चार बजे भोरउए से दस-एगारह बजे रात तक खटते रहना, हमर नित्तम दिन क रूटीन हल । नैहर में सलवार-समीज में उछलल चलऽ हली, बकि ससुरार में साड़ी में गोड़ बन्हाल हल । हमेशा घुघटा में रहे पड़ऽ हल ।; हमर गोड़ बन्हाल हल, पतिदेव के खुल्लल । हमरा छोड़ के संसार के सब लड़की के नैन-नक्श में उनका कुछ-न-कुछ अच्छाई जरूर नजर आवऽ हल, चाहे ऊ कार-खोरनाठी काहे नञ् रहे, सुक्खल सनाठी काहे नञ् रहे ।)    (बंगमा॰11:1:65.16, 66.6)
103    बपटींगही (विजइया उठल अउ लाठी निकास के ले दनादन मारइत कहलक - "अगे हरमजादी, तों डाइन हें गे । बपटींगही, तोरा आज मारके धर देबउ गे !" अउ फेन दे लाठी कि दे लाठी । पड़ाक ... पड़ाक ... ।)    (बंगमा॰11:1:47.1)
104    बर-बेमारी (गाँवे-गाँवे टोले-टोले पढ़े ला इस्कूल, बर-बेमारी के इलाज ला अस्पताल । खाद-बीज पानी-बिजली मुफुत । सगरे रोड बने लगल ।)    (बंगमा॰11:1:36.32)
105    बाँझ-बहिल (घृणा आउ नफरत के पैदावार बढ़े लगल । खेत-खरिहान में कुत्ता भूँके । सावन-भादो बरसल बाकि पानी नञ् रेढ़ आउ अशांति के, कल्लह आउ विद्वेष के ज्वाला । हरिअर खेत करिखाऽ गेल । बाँझ-बहिल बन गेल खेत-बधार । बिगहा के बिगहा परती ।)    (बंगमा॰11:1:34.35)
106    बाँस-बँसवारी (चिरईं-चुरूँगा गीत में मगन, मंगरी-झंगरी सिंगार-पटार में मस्त, ढोढ़ा-मंगरू होरी-चइता में डूबल, टोला-टाटी टिकारी मारइत, बाँस-बँसवारी सिसुकी पारइत । ओन्ने गम एन्ने खुशी, ओन्ने अमावस एन्ने पुनिया ।)    (बंगमा॰11:1:36.10)
107    बाले-बच्चे (= बाल-बच्चे के साथ) (अभी हमर अठकठवा धनखेती में निकौनी चल रहल हे । बाले-बच्चे लगल ही । हथिया नछत्तर अगर धोखा नञ् देलको त समझिहऽ हम कुशले-कुशल ही नञ् तो तीन बरिस से कटहँसिए हँस्सी हँस रहलूँ हे ।)    (बंगमा॰11:1:67.2)
108    बिंडोबा (हम दिल्ली में रिक्शा चलावेवला एगो दोस्त के मोबाइल पर नंबर डायल कइलूँ । एकमाहिए लगइते-लगइते एक तुरी धर लेलक । हैलो, हाय के बाद पुछलूँ - "सुनऽ ही, दिल्ली में अन्ना के नाम से बिंडोबा चल रहल हे । तों कुछ जानऽ हें त बताव ।")    (बंगमा॰11:1:68.11)
109    बिड़बिड़ाना (कोय कुड़बुड़ाइत हे, कोय सकुचाइत हे, कोय खिसिआइत हे, कोय भकुआइत हे, कोय चेहाइत हे, कोय बिड़बिड़ाइत हे, कोय चरचराइत हे, कोय बोंकिआइत हे । सबके अपन-अपन सोंच ।)    (बंगमा॰11:1:33.16)
110    बेबाक (पत्रकार, कहानीकार आउ निबंधकार (छुक्कुम ! इनकर कवि होवे के बात भूल रहली हल) रत्नाकर चा यानी रामरतन प्र. सिंह 'रत्नाकर' मगही के कद्दावर पुरोधा हथ । अक्खड़ आउ बेबाक लिखे-बोलेवला मगही के लेनिनग्राद वारिसलीगंज के टँठगर कंगरेसिया ।)    (बंगमा॰11:1:37.5)
111    बेमार (= बीमार) (ऊ सिसकइत अवाज में कहलक - हम्मर बच्चा बेमार हे । ओकर दवाई ला तू बीस रुपइया देवऽ ?; ऊ अपन पत्नी लीला के पुकारलक । लीला घर में जाँता पीसइत हल । अवाज सुनके दुआरी पर आयल त फुद्दन कहलक - पेटी में से तीस गो रुपइया निकालके ले आवऽ । बिसेखी भाई के बच्चा बेमार पड़ल हे ।)    (बंगमा॰11:1:77.34, 78.1)
112    बोंकिआना (कोय कुड़बुड़ाइत हे, कोय सकुचाइत हे, कोय खिसिआइत हे, कोय भकुआइत हे, कोय चेहाइत हे, कोय बिड़बिड़ाइत हे, कोय चरचराइत हे, कोय बोंकिआइत हे । सबके अपन-अपन सोंच ।)    (बंगमा॰11:1:33.16)
113    बोझढोआ (नया-नया सिम आवे से प्रेमी-प्रेमिका के ओही सुतार आ गेल हे जे सुतार बढ़ियाँ बरसात अएला पर किसान के खेती करे में मिलऽ हे । जहाँ धनरोपनी के घड़ी कबरिया, बोझढोआ लोगन के रोपनिन से हँसी-ठिठोली करे के सुनहला अवसर मिल जाहे ।)    (बंगमा॰11:1:80.15)
114    भाय-गोतिया (हमर अपने सबसे विनती हइ कि अगर प॰ बंगाल में अपने के कोय नेह-नाता, भाय-गोतिया, दोस्त-मोहिम रह रहलथिन हे त उनखा 'बंग मागधी' के बारे में बताथिन आउ संभव होय तो कम से कम सो रुपइया के कुरबानी लेके सलाना ग्राहक भी बनाथिन ।; एहे सब कारण से पक्की सिंह के बिआह नञ् भेल मुदा खेत बटाई करेवाला सब के साथ उनखर संबंध मधुर हल । छोटना के माउग कभी-कभार घर आके चुल्हा-चौंकी भी कर दे हल । ई बात पक्की सिंह के भाय-गोतिया के एकदम पसंद नञ् हल ।)    (बंगमा॰11:1:6.27, 37.20)
115    भुंभुरी (रामखेलावन के घर पर सबके जमौड़ा । सबके मगज गरम, खून खौलइत । कटेसर आउ शिवसागर जेठ के भुंभुरी लेखा तलफइत । आपुस में चउल-मजाक, हँसी-ठिठोली में चल रहल हे । कटेसर के बात सबके कचवनियाँ लेखा मिठगर आउ मोलायम । शिवसागर बोलत न तो अरवा चाउर के बान्हल लड़ुआ लेखा पकइठ ।)    (बंगमा॰11:1:34.3)
116    भुइयाँ बाबा (बिसेखी जाने हे, ई बुतरू खातिर ऊ केतना मनता मानलक, केतना बेर भुइयाँ बाबा के पूजा में भेंटी चढ़इलक, केतना ओझा-गुनी से जंतर-मंतर लेलक, तब कहीं जाके बिआह के दस बरिस बाद सात दिन पहिले ऊ बाप बनल हे ।; मंदिर में पहुँच के भगवान से विनती कइलक आउ मनता मानलक - हे भगवान, अगर बउआ के कुच्छो न होयत त भुइयाँ बाबा के पूजा करायम ।)    (बंगमा॰11:1:76.4, 77.29)
117    भोरउए (= भोरहीं) (भोरउए विजइया मैनी ममा के झोंटा पकड़ले पंचन के भीड़ में लाके बजाड़ देलक अउ कहलक - "ईहे कुटनी मामा सबके घर में लड़ाय करइले बुल्लो हे । कल्हे हमरा अउ हमर घरवाली के की की कहलकइ से पुछऽ सब पंच लोग ।"; चार बजे भोरउए से दस-एगारह बजे रात तक खटते रहना, हमर नित्तम दिन क रूटीन हल ।)    (बंगमा॰11:1:47.16, 65.15)
118    मंगरी-झंगरी (चिरईं-चुरूँगा गीत में मगन, मंगरी-झंगरी सिंगार-पटार में मस्त, ढोढ़ा-मंगरू होरी-चइता में डूबल, टोला-टाटी टिकारी मारइत, बाँस-बँसवारी सिसुकी पारइत । ओन्ने गम एन्ने खुशी, ओन्ने अमावस एन्ने पुनिया ।)    (बंगमा॰11:1:36.9)
119    मंतरी-संतरी (प्रशासनतंत्र फेल, सी.आई.डी. के थुका-फजीहत । विधायक, पार्षद, मंतरी-संतरी अप्पन राजनीति के नौटंकी शुरू कैलन । लाश पर रोटी सेंके लगलन ।)    (बंगमा॰11:1:34.26)
120    मनता (= मन्नत) (बिसेखी जाने हे, ई बुतरू खातिर ऊ केतना मनता मानलक, केतना बेर भुइयाँ बाबा के पूजा में भेंटी चढ़इलक, केतना ओझा-गुनी से जंतर-मंतर लेलक, तब कहीं जाके बिआह के दस बरिस बाद सात दिन पहिले ऊ बाप बनल हे ।; मंदिर में पहुँच के भगवान से विनती कइलक आउ मनता मानलक - हे भगवान, अगर बउआ के कुच्छो न होयत त भुइयाँ बाबा के पूजा करायम ।)    (बंगमा॰11:1:76.4, 77.28)
121    मया (= माया, दया) ("तोरा देखके बड़ी मया लग रहलउ हे ।"/ "कइसन मया ममा ?"/ "तोरा नञ् पता हउ ?" विजइयावली के भाँपइत ममा बोलल ।/ "कउची ममा ?/ "हमरा दिया नञ् ने बोलम्हीं ... ! कसम खो त बोलो हिअउ ।")    (बंगमा॰11:1:45.18, 19)
122    मर-मोकदमा (मर-मोकदमा में फँस-फँस के लोग कराहे लगलन । गिरफ्तार हो हो के जेल के चहारदिवारी में सबके दम फुले लगल । पेचिश, पीलिया, टी.बी. के बेमारी से केतना भगवान के प्यारा हो गेलन ।)    (बंगमा॰11:1:34.37)
123    मरुआयल (ऊ अपन घरवाली से पुछलक - परबती, बउआ आज दूध पीलक हे कि नञ् ? परबती मरुआयल स्वर में कहलक तनको नञ् दूध पीलक हे । कोनो ओझा-गुनी से देखावऽ ।)    (बंगमा॰11:1:76.12)
124    मायो ("अजी ओकरा तो दस बरिस हो गेल हे, अभी तक ले बुतरुओ नञ् होल हे, बाँझ तो हइ मायो ।" वीनो चाची ठुमकल ।)    (बंगमा॰11:1:45.5)
125    मिटिंग-सिटिंग (सुक्खु, बाढ़ू, पहलाद, जितवाहन, बहोर, मंगरू, डोमा के नीन हराम । चौकसी बढ़ गेल । गाँवे-गाँवे, टोले-टोले घूम-घूम के नया रणनीति के मोताबिक काम करे के मिटिंग-सिटिंग जोर पकड़ले ।)    (बंगमा॰11:1:36.13)
126    मुखिया-उखिया (पैसा के जोगाड़ तो हमरा से नञ् हो सकल मुदा ई चिट्ठी तोहरा तक पहुँचा देवे ल मुखिया जी से आरजू जरूर करलूँ । ऊ तो चिट्ठी लेवे से इनकार कर देलथिन । बाद में पता चललइ कि मुखिया-उखिया के पहुँच तोहरा तक हइये नञ् हे ।)    (बंगमा॰11:1:68.28)
127    मुसहर-टोली (मकइ के मचान पर बैठ के टीन बजा-बजा के तोता-मैना के भगवित रहू । खोंखे से कटाह कुत्ता न भागे, लउर बजाड़े पड़त। ऊ सब के पास जे हथियार हे, पता लगवली हे अपने लोग ? मुसहर टोली में जाके देखू, का हो रहल हे । हमनी इहाँ बात के गाँज गाँज रहली हे, उहाँ एके 47 राइफल आउ हथगोला जुटावल जा रहल हे ।)    (बंगमा॰11:1:32.21)
128    मोटिया-मजूरी (हमर गाम के ढेर अदमी दिल्ली, बंबई, चेन्नई जइसन बड़गो शहर में मोटिया-मजूरी करऽ हे या रिक्शा-ठेला चलावऽ हे । हमरा लगल कि ऊ सब तो तोहरा नीमन से जानऽ होत ।)    (बंगमा॰11:1:68.8)
129    मोलायम (= मुलायम) (रामखेलावन के घर पर सबके जमौड़ा । सबके मगज गरम, खून खौलइत । कटेसर आउ शिवसागर जेठ के भुंभुरी लेखा तलफइत । आपुस में चउल-मजाक, हँसी-ठिठोली में चल रहल हे । कटेसर के बात सबके कचवनियाँ लेखा मिठगर आउ मोलायम । शिवसागर बोलत न तो अरवा चाउर के बान्हल लड़ुआ लेखा पकइठ ।)    (बंगमा॰11:1:34.4)
130    मोलुआ (पक्की सिंह उदास होके बोलल - अरे, ई खेत-बाड़ी, घर की काम के, बाबा ठीक कहलथिन कि बिना औरत के जीवन में सुख नञ् हे से गुनी जमीन बेच के मोलुआ बिआह करे लेल चाहो ही ।)    (बंगमा॰11:1:38.12)
131    रड़मिलू (उनखर सही नाम शायदे कोय जानो हला मुदा उनखा सब पक्की सिंह के नाम से पुकारो हला । ... गाँव के लोग उनका उदंड मानो हला से गुनी उनखर बिआह नञ् भेल आउ अकेल्ले रहो हला ऊ । जब कोय बरतुहार आवो हल तब लोग बता दे हला कि लड़का उदंड हे आउ अकेले रहो हके । रड़मिलू हे । मुँह में ढेर चेचक के दाग हे ।)    (बंगमा॰11:1:37.17)
132    रहेठा (= रहैठा) (रामखेलावन के बेटा चिमनी के भट्ठी लेखा धुआँए लगल । रहेठा लेखा राइफल-बंदूक गांजे लगल ।)    (बंगमा॰11:1:33.19)
133    रेढ़ (= बैर, दुश्मनी; विरोध; झगड़ा) (घृणा आउ नफरत के पैदावार बढ़े लगल । खेत-खरिहान में कुत्ता भूँके । सावन-भादो बरसल बाकि पानी नञ् रेढ़ आउ अशांति के, कल्लह आउ विद्वेष के ज्वाला । हरिअर खेत करिखाऽ गेल ।)    (बंगमा॰11:1:34.34)
134    लउर (= लाठी; लंबी मोटी लाठी) (मकइ के मचान पर बैठ के टीन बजा-बजा के तोता-मैना के भगवित रहू । खोंखे से कटाह कुत्ता न भागे, लउर बजाड़े पड़त।)    (बंगमा॰11:1:32.21)
135    लहक (न्यूटन के 'तीसरा गति सिद्धांत' कचराकूट मचावे लगल । नफरत धधाए लगल । डोमा कमांडर के हजारन साथी जेल के भीतर । आग के लहक देखके डोमा कमांडर बिर्हनी लेखा बिखिआयल !! साथी जेल के भीतर कब तक सड़तन । अधिकांश नेता जहानाबाद जेहल में !!!)    (बंगमा॰11:1:35.2)
136    लुकवारी ('हो रामनिवास भाई ! हमरो ला एगो लुकवारी बना दिहऽ !' शिवसागर भी टुभुकलन । 'चोहानी में घुसा-घुसा के मारब । जइसे केल्हुआड़ी में खदका-खदका के राबा बनावल जाहे, ओइसहीं सबके राबा बना के घोर-घोर के पिअब ।' - बोलइत-बोलइत कटेसर के घेघा बझ गेल ।)    (बंगमा॰11:1:34.11)
137    लोहचुट्टी (मगही में उनकर पहिल पुस्तक 'लोहचुट्टी' हे जे संभवतः मगही के पहिल व्यंग्य रचना हे, जेकरा में 'हम पढ़ल-लिखल मेहरारू ही', 'हम पंडीजी कहलावऽ ही', 'हम तो इस्कूल निसपिट्टर ही' जइसन लोछिया देवेवला आउ कटु सत्य के उजागर करेवला अनेक व्यंग्य रचना छपल, जे आज तक लोग-बाग के जेहन से हट नञ् पाल हे, लेकिन मन के गुदगुदावेवला गीत भी ऊ कम नञ् लिखलन ।)    (बंगमा॰11:1:21.9)
138    संझउत (दिन भर गोली-बारूद बरसइत रहल । संझउत के बेरा आयल । घर में घुस-घुस के फरसा-तलवार चले लगल । छूटके खून के होरी खेलल गेल ।)    (बंगमा॰11:1:34.18)
139    सउरी (= सउर) (तपइत दुपहरी में पसेना से तरबतर हर-पालो लेले बिसेखी घर लौटल । सबसे पहिले ओकर मन भेल कि सउरी में जाके अपन नवजात बउआ के देख ले ।)    (बंगमा॰11:1:76.2)
140    सकदम ("तोर कनियाय डाइन हकउ ?" तपाक से बोल बैठल मैनी ममा । विजइया चुप । सकदम । सोंचे लगल विजइया कि ई ममा की कह रहल हे ।)    (बंगमा॰11:1:46.25)
141    सनाठी (हमर गोड़ बन्हाल हल, पतिदेव के खुल्लल । हमरा छोड़ के संसार के सब लड़की के नैन-नक्श में उनका कुछ-न-कुछ अच्छाई जरूर नजर आवऽ हल, चाहे ऊ कार-खोरनाठी काहे नञ् रहे, सुक्खल सनाठी काहे नञ् रहे ।)    (बंगमा॰11:1:66.7)
142    सलाना (= सालाना) (हमर अपने सबसे विनती हइ कि अगर प॰ बंगाल में अपने के कोय नेह-नाता, भाय-गोतिया, दोस्त-मोहिम रह रहलथिन हे त उनखा 'बंग मागधी' के बारे में बताथिन आउ संभव होय तो कम से कम सो रुपइया के कुरबानी लेके सलाना ग्राहक भी बनाथिन ।)    (बंगमा॰11:1:6.29)
143    साल्फीट (= अमोनियम सल्फेट खाद) (जब तोहर अनशन शुरू भेल हल, हमर अठकठवा में पहिरोपा हो रहल हल । दू रोज बाद हम साल्फीट लावे ल शहर गेलूँ हल, तब तोहर चरचा उठान पर देखलूँ ।)    (बंगमा॰11:1:67.12)
144    सिसुकी (~ पारना) (चिरईं-चुरूँगा गीत में मगन, मंगरी-झंगरी सिंगार-पटार में मस्त, ढोढ़ा-मंगरू होरी-चइता में डूबल, टोला-टाटी टिकारी मारइत, बाँस-बँसवारी सिसुकी पारइत । ओन्ने गम एन्ने खुशी, ओन्ने अमावस एन्ने पुनिया ।)    (बंगमा॰11:1:36.10)
145    सुखौता (जन्ने देखऽ ओन्ने गाँव के लोग घोंघा लेखा मुँह लटकवले । सबके मुँह सितुहा लेखा !! सबके चेहरा भतुआ के सुखौता बनल !!! राताराती सउँसे गैरमजरुआ जमीन पर लाल झंडा गड़ा गेल । सगरे लाल पगड़ी बाँध-बाँध के अमीर लेखा ठाड़ ।)    (बंगमा॰11:1:33.2)
146    सुघराना (= सहलाना, तलहथी से हलका स्पर्श कर रगड़ना) ("देखऽ बउआ, श्रीकृष्ण महाभारत रोके के कोरसिस बहुत कइलन बाकि दुर्योधन के जिद के आगे केकरो कुछ न चलल । आ फल जानइते ह । कौरव वंश के नाश हों हीं के रहल ।" रामनिहोरा शिव सागर के बोला के अपना बगल में बैठा के ओकर पीठ सुघरावे लगलन ।)    (बंगमा॰11:1:32.10)
147    सेउरी (= सउर, सउरी) (आज ऊ सब दिन से जादे कमाई कइलक हे । पूरा पच्चीस रुपइया ओकर फाँड़ा में खोंसल हे । ऊ फाँड़ा टोलक । रुपइया जइसे के तइसे खोंसल हल। ऊ ओठ से खइनी थूक के सेउरी में घुँस गेल । बउआ के हालत देख के बिसेखी घबरा गेल ।)    (बंगमा॰11:1:76.11)
148    हँफियाना ("तों गे डइनी, हमरे से खाय ले सुरू कइलें गे, चिमकडइनी के नानी । सहिये कहलकइ मैनी मामा कि तोर घरावली डाइन हकउ, आझे खइतउ । ई तो, नञ् जागतीये हल, त हमरा ई डइनी खाइये जइतो हल ।" माउग के मारइत विजइया हँफियात बोलल ।)    (बंगमा॰11:1:47.9)
149    हक-हकूक (बंगाल के लाल पानी बिहार में कइसे घुस गेल ! ... जन्ने देखऽ ओन्ने नुक्कड़ सभा, गोष्ठी, गाँव-गाँव में बैठकी, जुलूस, प्रदर्शन - एगो अजीब आंदोलन ! हक-हकूक के लड़ाई !! जिये-मरे के बाजार गरम !!!)    (बंगमा॰11:1:31.10)
150    हथिया (~ नछत्तर = हस्त नक्षत्र) (अभी हमर अठकठवा धनखेती में निकौनी चल रहल हे । बाले-बच्चे लगल ही । हथिया नछत्तर अगर धोखा नञ् देलको त समझिहऽ हम कुशले-कुशल ही नञ् तो तीन बरिस से कटहँसिए हँस्सी हँस रहलूँ हे ।)    (बंगमा॰11:1:67.2)
151    हार-पार (~ के) (पैसा के जोगाड़ तो हमरा से नञ् हो सकल मुदा ई चिट्ठी तोहरा तक पहुँचा देवे ल मुखिया जी से आरजू जरूर करलूँ । ऊ तो चिट्ठी लेवे से इनकार कर देलथिन । बाद में पता चललइ कि मुखिया-उखिया के पहुँच तोहरा तक हइये नञ् हे । हार-पार के हम ई चिट्ठी 'बंग मागधी' के पहिल अंक में छापे खातिर भेज रहलूँ हे ।)    (बंगमा॰11:1:68.28-29)
152    होररना ("आज सबके होरहा लेखा होरर देबइ", कटेसर तसला के अदहन लेखा फफयलन, "बड़ी दिन हो गेल हो 'होलिया' भाँजल । आज भर ठीक भाँजब ।" रामखेलवान के बेटा रामनिवास बोलल तो सब ताली बजाके मन के गाद निकाललन ।)    (बंगमा॰11:1:34.6)
153    होरहा ("आज सबके होरहा लेखा होरर देबइ", कटेसर तसला के अदहन लेखा फफयलन, "बड़ी दिन हो गेल हो 'होलिया' भाँजल । आज भर ठीक भाँजब ।" रामखेलवान के बेटा रामनिवास बोलल तो सब ताली बजाके मन के गाद निकाललन ।)    (बंगमा॰11:1:34.6)
 

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