बिगुल॰ =
"बिखरइत गुलपासा" (मगही कहानी संग्रह), कहानीकार - रामचन्द्र 'अदीप'; प्रकाशक
- मागधी माँजर मंच,
बिहारशरीफ (नालन्दा); संस्करण – 1985 ई॰; 60
पृष्ठ । मूल्य – 9 रुपइया ।
देल सन्दर्भ में पहिला संख्या पृष्ठ और
बिन्दु के बाद वला संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।
कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या
- 527
ई कहानी संग्रह में कुल 16 कहानी हइ ।
क्रम
सं॰
|
विषय-सूची
|
लेखक
|
पृष्ठ
|
0.
|
कबूलऽ
ही
|
रामचन्द्र 'अदीप'
|
i
|
0.
|
--------
|
डॉ॰
ब्रजमोहन पाण्डेय 'नलिन'
|
vi
|
0.
|
नजरिया
अदीप पर
|
डॉ॰
लक्ष्मण प्रसाद चन्द
|
vii
|
0.
|
सूची
|
----
|
vvi
|
1.
|
एगो
आउ टावर
|
1-4
|
|
2.
|
मनसूबा
|
5-8
|
|
3.
|
डराफ
|
9-12
|
|
4.
|
छँहुरी
के छाँव में
|
13-15
|
|
5.
|
नावा
दिन
|
16-18
|
|
6.
|
देस-देसाबर
|
19-22
|
|
7.
|
किस्त
में बँटल जिनगी
|
23-25
|
|
8.
|
टँगल
अतीत
|
26-28
|
|
9.
|
बउँखल
बिंडोबा
|
29-31
|
|
10.
|
टूटइत
पुल
|
32-35
|
|
11.
|
दसरथ
के अँगना में
|
36-39
|
|
12.
|
उधार
पसेना के तहियाल नोट
|
40-43
|
|
13.
|
सूखइत
सोर
|
44-47
|
|
14.
|
सहेजल
सपना
|
48-51
|
|
15.
|
बिखरइत
गुलपासा
|
52-55
|
|
16.
|
राँगल
रउद
|
56-60
|
ठेठ मगही शब्द ("ध"
से "ह" तक):
277 धँउसल (तब भी बाबूजी के अपन नाम के विस्तार पर संतोख हल । गाँव वाला, ई जानके कि इनकर बेटी के बियाह बड़गो घर में होल हे, धँउसल रहऽ हल । खुब्बे गुना-भाग करके बाबूजी रीता के बियाह बड़गो घर में कइलन हल । ऊ बूझलन हल कि बेचके भी कुछ निमने चीज कीनलन हे ।) (बिगुल॰33.26)
278 धंधउरा (एक दिन धंधउरा तर मकइ के बाल सेंकइत बड़का भइया आसते से इसारा कइलका कि कब तक सब से नुका-छिपा आउ कतरब्योंत करके तोरा जेब खरचा चलइअउ । तखने ओकर आँख झरझरा गेल ।) (बिगुल॰49.31)
279 धउगना (ई सब छो-पाँच करिये रहल हल कि लछमी दरद से छटपटाय लगल । ओकरा तुरते 'मातृसदन' अस्पताल ले गेल हल । फोहवा एकदम्मे मिसरी नियन दप-दप हल । मुंसी जी ओकरा मिसरिये कहके पुकारऽ हलन । धीरे-धीरे मिसरी अइँटा से छड़ पकड़के धउगे लगल हल ।; गाड़ी त तेज भाग रहल हल, ओकरो से तेज चल रहल हल चन्दू । धउग के ऊ अपन गाँव आउ अब अपन अँगना में आ गेल हल ।) (बिगुल॰21.2; 33.14)
280 धउगा-धउगी (दिन में आदमी से जादे जानवरे नजर आवऽ हल, मुदा रात में आदमी के डर से जानवर एकदमे अलोप जा हल । रात भर आदमी के हो-हल्ला, धउगा-धउगी आउ बम-पटाका के अवाज से सउँसे महल्ला थरथराल रहऽ हल ।; डिब्बा के खिड़की-दुआरी में सहेर के सहेर औरत-मरद दूर से टंगल लग रहल हल । रेल जब खुलल त लोगबाग लटफरेम पर धउगा-धउगी करे लगलन ।; उनका हरदम अंदेसा लगल रहऽ हल कि कखने सुरताल के अवाज अँगना से आगू बढ़े लगत ! ऊ त कहऽ कि उनकर मेहरारू अपन भारी अवाज से कुछ आड़ले रहऽ हली । हाँ ! बइठका के बइठकी भी अब खतमे कर रहलन हल । चाय-पान साथे गरजा-गरजी के पीयत ? घर के बुतरुन ले खेले-कूदे के नाम पर धउगा-धउगी आउ गिलासे-कटोरा हल, जेकरा से दिनो भर नवा-नवा धुन तैयार करते रहऽ हल ।) (बिगुल॰13.24; 33.9; 39.23)
281 धकमपेल (भीड़ एतना कि आदमी आदमी के खाली चेहरे देख रहल हल । ई धकमपेल में कुसलछेम पूछे के भी आसार नञ् । अकबका के घर घुर अइलन मुदा घर में बेटन के भीतर से रेडियो आउ टेपरिकाडर पर फिल्मी गीत आउ डिस्को धुन के भारी आवाज से उनकर मगज के संतुलन बिगड़ गेल ।; बड़ी धकमपेल से पहलवान जी दिल्ली में उतरलन । कुली एक-एक समान सहित टैक्सी में बइठा देलक । ऊ डेरा के पता वला चिट्ठी डरेवर के थम्हइते संतोख के साँस लेलन ।) (बिगुल॰31.27; 46.8)
282 धकियाना (चन्दू के बुझाय लगल कि घर के सब गहमागहमी ओकरा धकियावे लगल हे । दूर बहुत दूर मद्धिम बत्ती तर मच्छरदानी से घेराल एगो फोहबा देख रहल हल ।) (बिगुल॰35.25)
283 धक्कम-धुक्की (नावा-नावा लोग ! अनजानल जगह ! कलकत्ता के बाते दोसर हल । एही धक्कम-धुक्की में बुतरु से जवान आउ जवान से अब बूढ़ी हो चलल हे ।) (बिगुल॰21.23)
284 धच्चर (मन में आल कि उँचगर दोकान खोले ताकि ओकर तंगो नञ् तउलाय । फिनु ओकरा सामने कभी कॉलेज आउ कभी बजार में दोकान के स्टूल खड़ा हो जाय । आखिर धोकड़ी के धच्चर कर-किताब आउ अखबार के दोकान खोला देलक ।) (बिगुल॰51.20)
285 धड़-सा (= झट से) (धउग के ऊ अपन गाँव आउ अब अपन अँगना में आ गेल हल । खबर त बिजली नियन पसर गेल । छोट-मोट बस्ती ओकर घरे में समा गेल हल । जे आवऽ हल ऊ धड़-सा चिट्ठिये पकड़ ले हल आउ एक्के लबज - 'रीता के लड़का होल हे ।' बाबू जी त हरिया हलुआय के दोकान सउँसे गाँव में बाँट देलन हल ।) (बिगुल॰33.16)
286 धधाना ( रोजगार से राजा बनइ के राज त नइहरे से जानऽ हली, जेकरा ससुरार में देउर सब के बीच बखानते रहऽ हली । शुरू में उनका एगो सुकून मिलऽ हल । अलगउँझा के आग कहियो धधाय नञ् दे हली ।) (बिगुल॰38.29)
287 धधाल (समता विसमता के घाट में अउघट चाल जदि देखे के होय तो अपने 'अदीप' जी के कहानी सेंगरन देख सकऽ ही । निछक्का सामाजिक दुराव, पारिवारिक विघटन अउ भौतिक चकाचौंध के पीछे बउड़ाल, धधाल अदमी के चेहरा पर जे नकली मुखौटा हे ओकरा हर मोहड़ा पर एकरा में देखल जा सकऽ हे ।) (बिगुल॰vi.21)
288 धपड़ाही (एगो घिसल चेहरा वाला नौकर आके ओकरा सिर से गोड़ तक बड़ी देरी तक देखलक हल । ओकरे से मालूम होल हल कि मेहमान आउ रीता कउनो नेउता में गेल हका । इंतजार करइत चन्दू के नजर के सामने अपन घर के गीत-नाध, गहमागहमी, आपाधापी आउ सउँसे तैयारी के नक्सा नाच गेल । ओकरा लग रहल हल कि माय-बाबू जी के उजलत, अप्पन धपड़ाही सब ठंढा गेल ।) (बिगुल॰35.23)
289 धाँगना (सच में, महल्ला की हल ! दिन भर गाय-बैल, बकरी, गदहा-गदही आउ मरियल कुत्ता-कुत्ती सउँसे महल्ला के धाँगते रहऽ हल । दूर-दराज से आवल कुत्ता 'झाँव-झाँव' करते रहऽ हल ।) (बिगुल॰13.18)
290 धाह (साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल । ऊ, बाबू जी बीच-बचाव नञ् करतन हल त एक खेर तीन खुंडी । तहिये से घर में दरार पड़ गेल जेकर दिरइँची से टोला-टाटी के बतसल बेयार पइसे लगल । गोतनिन के मुँहफुलौअल तो साधारन हल, कभी-कभी सउँसे घर गरमा जा हल जेकर धाह से गोतिया के गेनरा सूखे लगल ।) (बिगुल॰50.11)
291 धियान (= ध्यान) (बइठका में जउरे बइठल भाय लोग रघुबंस दने ताक रहलन हल । बाबूजी फिनो चुप हलन । फोटू हाथ में धरतहीं रघुबंस भीतर तक काँप गेलन आउ उनकर धियान बच्छरो-बच्छर पहिले के छानबीन आउ चुना-चुनी पर चल गेल ।) (बिगुल॰39.29)
292 धुरन्धरी (अपन राधिका के कामकाजू बनावे ले एकदम नवा नक्सा नाधे लगलन हल राधे बाबू । पढ़ाय-लिखाय आउ सटिफिकेट के मंडी में मँड़राय लगलन । कुच्छे समय में धुरन्धरी आउ पइसा के प्रभाव के जोड़-तोड़ से गियान से जादे सटिफिकेटे सरिया देलन । पसरल सटिफिकेट के देख-देख के राधिका के गियान से ओकरा तौलते मन ही मन कुछ सोचे लगऽ हलन ।) (बिगुल॰42.9)
293 धोकड़ी (= जेब) (हाथ में मोटगर-मोटगर फाइल आउ चारो धोकड़ी सरकारी पुरजा-पुरजी से भरल रहऽ हल । साहब लोगन के हर हिदायत आउ झिड़की पर भोला बाबू के मन में अप्पन अजय आउ विजय के साहब बनावे के बात आउरो मजगूत हो जा हल ।; डाकटर साहेब त बस, एक हाथ से पइसा - एक हाथ से पुरजा, एक हाथ से पइसा - एक हाथ से पुरजा ! कभी-कभी गोस्सा वला अवाज ! डाकटर साहेब भी की करतन ? कभी-कभी उटपुटांग मरीजो रहऽ हे । एक्के बात के दस बेर ! जइसे-जइसे समय बीतऽ हे, डाकटर साहेब के उपरकी धोकड़ी गदरा के गब्भिन हो जाहे, तब उनकर चेहरा के रंग आउ खिल जाहे ।; शहर में कोय मंदिर बने के हो या धरमसाला, चौबीसो घड़ी चंदा के रसीद अपन धोकड़िये में रखले रहऽ हलन । जेवार के दरजनों पुस्तकालय आउ कनिया विद्यालय में जीवन बाबू के सहजोग के चरचा कहियो बासी नञ् होवऽ हल ।) (बिगुल॰6.2; 17.24; 29.15)
294 धोखड़ल (ई सब कथा-कहानी आउ तूल-तेवर से केसो के मन असमान छूए लगल । चनेसर एम॰ए॰ में अव्वल आल हल । नोनी लगल धोखड़ल देवाल, उटंग केवाड़ी, खपड़ा के छप्पर केसो के आँख में गड़े लगल । उनके सामने किसुन आउ कैलास के घर देखते-देखते आँख में गड़े लगल ।) (बिगुल॰48.7)
295 धोबियापाट (पहिले तो पहलवान जी सोचलन कि भतीजा हमर लाठी उठावत, अखाढ़ा सम्हारत । अखाढ़ा के धूरी ओकरो लगावे लगलन । मुदा भगवान दास धोबियापाट आउ कइँचिया सीखे से जादे धियान गुरुपिंडे पर दे हल । हरदम करे-किताब के बात करऽ हल ।) (बिगुल॰45.4)
296 धोवाना (= धुलना, साफ होना; धुलाना, साफ करवाना) (पत्रिका भी निकाललक आउ किताबो छपवइलक । एकरा, ई तेवर बचावे खातिर 'टिसनिया सर' भी बने पड़ल । मुदा कुछ दिन में देखे लगल कि एकर ताव के रग्गड़ से जंगालो कलम के जंग छूटे लगल, पुरान शेरवानी धोवाय लगल । अखढ़ियन के अखर गेल । एकर सरगना होनइ के कबूले ले तइयारे नञ् ।) (बिगुल॰51.1)
297 नइका (= नया) (बियाह एगो आधुनिक सामाजिक विज्ञान हे । ढेरो बच्छर नया-नया अविस्कार आउ परयोग हो रहल हे, जेकरा से जूझे ले ढेरो ताकत आउ अभिनय के जरूरत हे । नइका धनकुबेर के सामने तो आँख-कान दुन्नो सुन्न हो जा हे । लड़का के पैसा से तउलके कीन लेल जा हे ।) (बिगुल॰3.31)
298 नकलपचीसी (अइसे तो एक से एक फूहड़ कामकाजू जन्नी के जानऽ हथ जे विचार में जिनगी भर बेचारिये बनल रहली । फिनु कामकाजू जन्नी-मरद के जिनगी के दरकइत देवाल भी नजर तर हे जेकर दिरइँची से बाहरी लोग भितरकी दशा देखऽ हथ । नकलपचीसी के पढ़ाय-लिखाय के एहे असर होवऽ हे ।; नौकरी में बनारसी बाबू के कभी भाड़ा के मकान त कभी कोलनियो में रहे पड़ल हल । भाड़ा-किराया वला मकान के जिनगी तो पास-पड़ोस से चुनचान के कटिये जा हल । मुदा कोलनी वला समय खुब्बे आपाधापी, चमक-दमक आउ नकलपचीसी में कटल हल । आधुनिक सर-समान के रोग त एकदम्मे महामारी जइसन फइलऽ हल ।; ठोस होवे लेल आर्थिक, नैतिक आउ सामाजिक जद्दोजहद के सही समझ के जरूरत हे । अधकचरा गियान त औरत के अउरो लचार आउ लिजलिजा बनावऽ हे । अइसने सोचइत ऊ अपन सास के भाषण से भाव के हिगरा रहली हल । सउँसे घर त अजबे नकलपचीसी में जी रहल हल ।) (बिगुल॰42.20; 53.1; 60.15)
299 नजकियाना (= नजदीक आना) (माय-बाबू जी चिट्ठी के छो-छो मरतबे पढ़-सुन के छोम्मा दिन निकाललन हल । समय अब एकदम्मे नजकिया गेल हल । चन्दू के एक गोड़ घर त एक गोड़ बजार !) (बिगुल॰34.28)
300 नाता-गोता (दहेज के खिलाफ जहाँ कहीं भी सभा-गोष्ठी होवऽ हल, राम बाबू सबसे आगू बइठऽ हलन । मगर सामाजिक रेवाज के आग में कूदे के तैयारी में लोक-लाज, अपना-पराया, बड़-छोट, नाता-गोता सब भूल गेलन हल ।; अजीम, सलीम आउ शबनम के विदेस बस जाय से कलीम साहब बउधा, बकरी, तोता-मैना आउ सँझउकी चाय से एकदम्मे घुल-मिल गेलन हल । कलीम साब साहब आउ उनकर बेगम के अनबेरा ले अदमिये नञ् भेंटऽ हल । नाता-गोता के त कहियो फटके देवे नञ् कइलन हल । बेटन के खत पढ़-पढ़ के समय काट दे हलन ।; बनारसी बाबू नाता-गोता आउ दूर-दराज के परिवार से हटके पूरा धियान अप्पन उम्दा परिवार पर टिकइले रहलन हल । उनकर सब जोड़-घटाव के माने हल - बेटा-बेटी आउ मेहरारू मुदा उनकर ऊ मनसूबा पर सुमन एगो काँटा रोप देलक हल, हरदम कचकच करके गड़ऽ हल ।) (बिगुल॰2.25; 11.17; 55.4)
301 नामी-गिरामी (साहित्तिक किस्त के जब जानदार सिलसिला शुरु होल त लगले लहर महानगर के एक पत्रिका के सम्पादक हो गेलन । अपन जिला-जेवार के नामी-गिरामी परिवार के लड़कन-लड़की के गीत, कहानी फोटो के साथ खुब्बे छापऽ हलन ।; लड़कन के सही विकास ले जान लगा दे हलन । ढेरो लड़कन के साहित्यकार, इंजीनियर आउ अफसर बनइलन हल । नामी-गिरामी परिवार के ढेरो लड़कन के मंसूरी, शिमला आउ देहरादून भेजाके गौरव महसूस कइलन हल ।) (बिगुल॰23.14; 24.32)
302 नावा (= नयका; नया) (मुझप्पे एक दिन साइमन सिर पर नावा-नावा टोपा आउ ढेरकुन फल-फूल लेके ससु के घर आ बड़ी अधिकार से बाहर चले ले कहलक । ओकरा तैयार होवे में की देर, की सबेर !; बस खुलते ही साइमन ससु से कहलक - "ससु ! आज हमनी के नावा दिन हे ।"; जिनगी के पचास-पचपन कोस तय कइला पर भी जीवन बाबू के थकउनी नञ् बुझा हल । अपन धुन के एकदम पक्का । जिनगी के हर बच्छर के एगो कोस बूझऽ हलन । नावा बच्छर अइते ही ऊ समझऽ हलन कि एगो आउरो कोस तय होल ।; रंगरूट सब के दादागिरी से तेहवार लेल ढेरोढेर रकम आवे लगल । बड़गो लोग दादा सब के भारी चंदा देके अपन बाकी दिन ले सुरच्छित हो जा हलन । जीवन बाबू ई नावा रंगदारी वाला वसूलल सिक्का के धक्का से एकदम तिलमिला गेलन हल । ऊ बदलल हवा आउ तूफान में समटाय लगलन तो एकदमे समटाइये गेलन ।) (बिगुल॰18.25; 29.3; 31.5)
303 निछक्का (समता विसमता के घाट में अउघट चाल जदि देखे के होय तो अपने 'अदीप' जी के कहानी सेंगरन देख सकऽ ही । निछक्का सामाजिक दुराव, पारिवारिक विघटन अउ भौतिक चकाचौंध के पीछे बउड़ाल, धधाल अदमी के चेहरा पर जे नकली मुखौटा हे ओकरा हर मोहड़ा पर एकरा में देखल जा सकऽ हे ।; निछक्का गाँव के जीवन के बेबसी, लाचारी, घुटन आउ उत्पीड़न के उघारे में जहाँ मिथलेश हथ, वहाँ खाली नेउता-पेहानी के पेन से सिआइत शहरी सम्बन्ध के बेलस बखिया बटोर के अदीप उनका से अलग खड़ा हो जा हथ, जहाँ से मगही कहानी एगो मोड़ ले लेहे युगबोध के !; दमाद विदेस में बड़गो ओहदा पर हल । बेटी के बिआह के बादे बेगम सहित एकदमे हौला महसूसे लगलन हल । सभे जिमेदारी से निछक्का ।) (बिगुल॰vi.19; vii.6; 10.29)
304 निमकउड़ी (उनका नीम तर के हवा बड़ नीमन आउ मीठ लग रहल हल । सउँसे देह खटिया पर आउ माथा नीम के जड़िये पर टिकइले हलन । नीम के तो निमकउड़ियो मीठ होवऽ हे मुदा जिनगी के मीठो फल के तीत सवाद से उनकर रोम-रोम काँप जा हल ।) (बिगुल॰53.27)
305 निमाहना (बनारसी बाबू ई बच्छर अपन बेटी के निमाहे ले ठानिये लेलन हल । सोचऽ हलन कि कुसुम के बियाह के लगले-लगल बड़ी लकधक से पोती के बियाह नाधम ।) (बिगुल॰54.31)
306 निरलय (= निर्णय) (महीना दू महीना से जब दिन आगू बढ़ल आउ पइसा मिले के कोय चाल-चपट नञ् भेल त चनेसर सहमे लगल । कॉलेज तो चल निकलल । लड़कन तराउपरी । महीनो-महीना बाद मीटिन होल आउ निरलय लेल गेल कि तीज-तेहवार में हाथ ओदा कइल जात ।) (बिगुल॰50.23)
307 निरार (= ललाट) (ई बेर फिनु टरक लाइने होटल में जाके लगल । बनारसी बाबू के लाइन होटल के अजबे-अजीब ताजा अनुभव हो रहल हल । दूध पीअइत बुतरू टरक रुकतहीं बिढ़नी नियन आदमी के घेर ले हल । टूटल जग, चनकल गिलास, मइल-कुचइल अंगा-पैंट ! पानी की पीअल जात, सउँसे निरारे से पसीना चूए लगऽ हल ।) (बिगुल॰52.5)
308 निलका (ढेरो दिन के बाद कुच्छेक हरफ के लिखल चिट्ठी भेटल हल । बस, नीला रंग के खलिए चिट्ठी से सउँसे घर हरियर ! रजगज ! लोगबाग के निलका चिट्ठी में लाल-लाल, छोट-मोट, गोल-गाल एगो बेसगर चिजोर बँधल नजर आवे लगल ।) (बिगुल॰34.22)
309 नीपना (= लीपना) (रसोइ त अँगने में बनऽ हल मुदा थरिया भितरे में परसा हल । कभी नीपे ले त कभी बाढ़े ले आउ कभी-कभी बुतरुन-बानर के चलते अँगना लड़ाय के अखाढ़ा हो गेल ।) (बिगुल॰38.5)
310 नीमन (रामबाबू आउ उनकर घरवाली बार-बार गंगा में स्नान करऽ हलन । मन एकदमे शांत हो गेल हल । दुन्नो परानी हाथ जोड़-जोड़ के नीमन दमाद के मनउती माँग रहलन हल ।) (बिगुल॰4.24)
311 नुकाना-छिपाना (एक दिन धंधउरा तर मकइ के बाल सेंकइत बड़का भइया आसते से इसारा कइलका कि कब तक सब से नुका-छिपा आउ कतरब्योंत करके तोरा जेब खरचा चलइअउ । तखने ओकर आँख झरझरा गेल ।) (बिगुल॰49.32)
312 नेउता-पेहानी (निछक्का गाँव के जीवन के बेबसी, लाचारी, घुटन आउ उत्पीड़न के उघारे में जहाँ मिथलेश हथ, वहाँ खाली नेउता-पेहानी के पेन से सिआइत शहरी सम्बन्ध के बेलस बखिया बटोर के अदीप उनका से अलग खड़ा हो जा हथ, जहाँ से मगही कहानी एगो मोड़ ले लेहे युगबोध के !; बनारसी बाबू ई सब मामला में खूब नीमन जोड़-घटाव रखऽ हलन । भोज-भात, खान-पियन के नेउता-पेहानी से महीना के शायदे दिन बचऽ हल ।) (बिगुल॰vii.8; 53.5)
313 नेसल (~ दीया) (अजीम, सलीम आउ शबनम के विदेस बस जाय से कलीम साहब बउधा, बकरी, तोता-मैना आउ सँझउकी चाय से एकदम्मे घुल-मिल गेलन हल । कलीम साहब आउ उनकर बेगम के अनबेरा ले अदमिये नञ् भेंटऽ हल । ... लड़कन ले जे नक्सा नाधलन हल, पूरा हो गेल हल । मुदा नक्सा पर नेसल दीया से बुढ़ारी में इंजोर कम आउ धूआँ जादे बुझाय लगल, जेकरा से कलीम साहब के दिमाग झनझना जा हल ।) (बिगुल॰11.28)
314 नेसाना (= 'नेसना' का कर्मवाच्य) (कहानी के सम्बन्ध में हम की कहूँ ? ई सब कहानी के दीया हमर हाजिरे-नाजिर में नेसाल हे, तब भी कह सकऽ हूँ कि ओहे कहानी कहानी कहलाय के दावा करऽ हे, जे अपने अपने रब्बऽ हे, लिखवइया आउ कहवइया से एकदम अल्लग, आलोचक के नजर के ठुनका लगला पर !) (बिगुल॰vii.15)
315 नोकसान (= नुकसान) (पढ़हीं घड़ी घर के लाचारी आउ अपनो जेब-खरच ले कुछ टिसनी करऽ हलन, जे आज तक अपन कसबा में उनका सब माटरे साहेब कहके पुकारे हे । तब भी लाचारी के लालच में कउनो नोकसान नञ् बूझऽ हलन ।) (बिगुल॰15.14)
316 नोनी (ई सब कथा-कहानी आउ तूल-तेवर से केसो के मन असमान छूए लगल । चनेसर एम॰ए॰ में अव्वल आल हल । नोनी लगल धोखड़ल देवाल, उटंग केवाड़ी, खपड़ा के छप्पर केसो के आँख में गड़े लगल । उनके सामने किसुन आउ कैलास के घर देखते-देखते आँख में गड़े लगल ।) (बिगुल॰48.7)
317 नौकरियाहा (चनेसर एम॰ए॰ में अव्वल आल हल । ... घर में परसाद-पवित्तरी अभी बँटिये रहल हल, बाबू जी के पगड़ी बँधाइये रहल हल कि पाँच गो भाय-गोतिया घेर-मेर के चनेसर के विवाह तय कर देलन । चनेसर के लाख मनाहट पर भी माय के बात आउ भोजाय सब के ठिठोलिये के ठहाका गूँज गेल आउ लगले फागुन में बियाह हो गेल । एगो नौकरियाहा बाप के पढ़ल-लिखल बेटी घर में दुल्हन बन के आ गेल ।; साल खाँड़ तक चनेसर ससुरार के चौकठ लाँघते रहल, तेकर अंजाम में ऊ बाप भी बन गेल, मुदा नौकरियाहा नञ् बन सकल ।; बाबू जी के ललोसा हल कि कम से कम छोटका बाहर निकले । खाय भर गल्ला तो उबजिये जाहे, कुछ बाहरी से आवत त घर सम्हर जात मुदा एहो तो घरे के आँटा गील करे लगल । ओन्ने नौकरियाहा बाप के कौलेजिया मेहरारू के ताव अलगे, साड़ी-सटुअन के शिकायत अलगे । गोतनिन के तनिक बोलला पर नाके पर पियाज कटाय लगल ।) (बिगुल॰49.3, 10, 23)
318 पकड़ा-पकड़ी (दमयंती अपन सहेली-मित्तिन जउरे दिन भर में अस्पताल के कत्तेक चक्कर लगावऽ हली । नर्स आउ दाय के त हिदायत करतहीं रहऽ हली । उनकर मित्तिन सब अंगुरी के पकड़ा-पकड़ी आउ पइसा के चित्त-भुद करके महौल के अउरो महीन करके चल जा हली ।) (बिगुल॰60.18)
319 पख (महीना के पहिला पख हल । अपन बटुआ से सिनेमा के तीन गो टिकट अलगे करइत राधे बाबू के हाथ में नोट थम्हइते, झटके के साथ नजर से इड़ोत हो गेली ।) (बिगुल॰43.27)
320 पटोतर (जीवन बाबू हलन त मामूली नौकरी में, मुदा बेहवार आउ विचार से अपन ओहदा से ऊँचे बुझा हलन । ऊ आजादी के आन्दोलन देखलन हल । देसपरेम त कूट-कूट के भरल हल । देस के नेतन के कुरबानी आउ विचार के पटोतर देके अपन साथी-संगी में जोश जगइते रहऽ हलन ।) (बिगुल॰29.12)
321 पठरू (पूरब आउ पच्छिम के जोड़-घटाव में ई समाज के असलिये हिसाब डगमगा गेल हे । आदमी पीढ़ा आउ आसनी छोड़के डायनिंग टेबुल पर आ जा हे मुदा भोजन के पहिले थरिया के चारो बगल पानी ढारवे करऽ हे । एक दने डाकटरी इलाज करावऽ हे आउ दोसर दने डाकबाबा पर पठरू कबूलवे करऽ हे ।; ओकरा जे पइसा मूरति बनावे में मिलऽ हल ओकरा डाकबाबा पर कबूतर आउ पठरू चढ़इवे करऽ हल ।) (बिगुल॰30.16, 25)
322 पढ़नपूत (बेटा-बेटी के अंगरेजी स्कूल में भरती कर देलन हल । लड़कन भी पढ़नपूते हल । अजीम-सलीम के खत पढ़के एक दने रखियो दे हलन मुदा बेटी शबनम के चिट्ठी हिन्दी-उर्दू करके, टोला-पड़ोस के बड़ी शान से समझावऽ हलन ।) (बिगुल॰10.9)
323 पढ़ाय-लिखाय (अपन राधिका के कामकाजू बनावे ले एकदम नवा नक्सा नाधे लगलन हल राधे बाबू । पढ़ाय-लिखाय आउ सटिफिकेट के मंडी में मँड़राय लगलन ।; अइसे तो एक से एक फूहड़ कामकाजू जन्नी के जानऽ हथ जे विचार में जिनगी भर बेचारिये बनल रहली । फिनु कामकाजू जन्नी-मरद के जिनगी के दरकइत देवाल भी नजर तर हे जेकर दिरइँची से बाहरी लोग भितरकी दशा देखऽ हथ । नकलपचीसी के पढ़ाय-लिखाय के एहे असर होवऽ हे ।) (बिगुल॰42.8, 20)
324 पनगर (कमाल के परिवार हल त बस गुप्ता साहेब के, अनकर घर के मौज-मस्ती में केतनो भिंज जाय, मगर अपन घर के ओदा करे के कसम शायदे तोड़ऽ हलन । उनका जिनगी के ई सब तामझाम में एकदमे विश्वास नञ् हल । खरचा-पानी के पनगर विचार के एकदमे ठोस बनाके सजइलन हल ।) (बिगुल॰53.9)
325 परनामी (~ के पइसा) (कभी-कभी एगो पंडी जी अपन परनामी के पइसा गिने ले आ धमकऽ हलन आउ ओकर दुन्नू हाथ पकड़के कहऽ हलन, "तोरा पियार आउ पइसा के जिनगी भर कमी नञ् होत ।") (बिगुल॰16.18)
326 परसाना (रसोइ त अँगने में बनऽ हल मुदा थरिया भितरे में परसा हल । कभी नीपे ले त कभी बाढ़े ले आउ कभी-कभी बुतरुन-बानर के चलते अँगना लड़ाय के अखाढ़ा हो गेल ।) (बिगुल॰38.4)
327 पसेना (= पसीना) (मेहनत में सूझ-बूझ फेंटफाट के एगो नावा मिसाल उरेहे ले हरदमे सोचते रहऽ हलन । अपन पसेना के पइसा आउ यार लोग के करजा-गोमाम से घर-बाहर चमकावे में पिल गेलन हल ।; रसोय घर के चुल्हा से अब राधिका के आँख झमझमाय लगल हल । बिहनउकी रोटी के जगह पर बिस्कुट आवे लगल । देर-अबेर होवे पर चाह के कप-पियाला से राधे बाबू के हाथ चोटाय लगल हल । ऊ त अपन घरनी के नोट से भी चोट खाय लगलन हल आउ पीअइ लेल गोस्से ढेर हल । ऊ राधिका के पइसा में पहिले वला पसेना के गंध खोजे लगलन ।) (बिगुल॰37.22; 43.25)
328 पहिलका (ओकरा कुछो समझ में नञ् आवे हे कि ऊ अब देस के अदमी हे कि परदेस के ! पहिलकन लोग भी तो नञ् हथ । केदार डाकटर, कमेसर मोख्तार, भट्ट जी, राधे बाबू, चुन्नी बाबू, कुमार बाबू आउ अकिल साहब यहाँ तो बस कुच्छो होवे के रहे तो ओकरे धरल जा हल ।) (बिगुल॰22.6)
329 पहिलहीं (जीवन बाबू किसुन पंडित के हाल देखलन हल । खुब्बे निमन मूरति बनावऽ हल । देवी पूजा, लक्ष्मी पूजा, सरसत्ती पूजा के महीनो-महीना पहिलहीं से भीड़ में घेराल रहऽ हलन ।) (बिगुल॰30.21)
330 पातर (बनारसी बाबू अपन छोट बेटन ले ओतना परेशान नञ् हलन जेतना बेटी ले । अब ऊ महसूस रहलन हल कि राजधानी में पढ़ाय-लिखाय, सुख-सुविधा के नाम पर बड़गो मकान नाधे से कइसन ओरिया गेलन हल, हाथ एकदम पातर हो गेल हल ।) (बिगुल॰54.20)
331 पिछलगुआ (राधे बाबू एही देखऽ हलन कि कामकाजू जन्नी के शोहरत के तेज रफ्तार में मरद एकदम्मे पीछू छूट जा हे या पिछलगुआ बन के रह जा हे ।) (बिगुल॰43.1)
332 पियराना (= पीला पड़ना) (छोट-मोट रोजी-रोजगार के लत्तर खुब्बे फइलइलन हल । मुदा रोजगार के लत्तर हरियर हो-हो के पियरा जा हल । तब भी मन से कहियो हार नञ् मानलन हल । एक्के जउरी से बँधल रहे के बात सोचते रहऽ हलन ।) (बिगुल॰37.25)
333 पिलखजूर (जब लछमी सँझउकी खाय बनावऽ हल त ऊ मिसरी के लेके बजार घूमे जा हल । लाय-लेमचूस आउ पिलखजूर खिलावऽ हल । कभी खाली गूँड़े पर संतोख ।) (बिगुल॰21.7)
334 पिलल (~ रहना) (साथी-संगी के घर के शादी या सराध में आठो पहर पिलल रहऽ हलन । तिलक-दहेज के बात पर बलबला जा हलन ।) (बिगुल॰29.25)
335 पिलावल (तेल ~ लाठी) (एह ! तेल पिलावल मोटगर लाठी आउ अढ़ाय-गज्जी के फेंटा बान्ह के जखनी निकलऽ हलन तो केकर मजाल कि अलीफ से बे कर दे । समुच्चे जिला-जेवार में इनकर पहलवानी के नाम हल ।) (बिगुल॰44.3)
336 पीढ़ा (पूरब आउ पच्छिम के जोड़-घटाव में ई समाज के असलिये हिसाब डगमगा गेल हे । आदमी पीढ़ा आउ आसनी छोड़के डायनिंग टेबुल पर आ जा हे मुदा भोजन के पहिले थरिया के चारो बगल पानी ढारवे करऽ हे ।) (बिगुल॰30.13)
337 पुन्न (= पुण्य) (पूजा के पहिले घंटो-घंटा विस्तार से बात करऽ हलन मुदा पूजा अइते मातर पूरा खरचा जोड़के रोमाँ सिहर जा हल आउ जतरा के कबूलल पइसा डाकघर या बैंक के हवाले करके कलकत्ता आउ काली माय के पुन्न महसूसऽ हलन ।) (बिगुल॰2.11)
338 पेउन (= पेउँद, पेवंद) (निछक्का गाँव के जीवन के बेबसी, लाचारी, घुटन आउ उत्पीड़न के उघारे में जहाँ मिथलेश हथ, वहाँ खाली नेउता-पेहानी के पेन से सिआइत शहरी सम्बन्ध के बेलस बखिया बटोर के अदीप उनका से अलग खड़ा हो जा हथ, जहाँ से मगही कहानी एगो मोड़ ले लेहे युगबोध के !) (बिगुल॰vii.8)
339 पेटकट्टू (समय सँसर रहल हल आउ चनेसर एकदम थहुआल । एक दिन हवा के झोंका आल आउ चनेसर बगले के शहर के नावा कॉलेज में पहुँच गेल । दस हजार के डोनेसन के डलिया लेके अरघ देलक तब कहीं पेटकट्टू नौकरी पइलक ।) (बिगुल॰50.17)
340 पेड़ावल (= पेरावल, पेराया हुआ) (माय त सोहर गा-गा के एक-एक समान बड़ी हिफाजत से तैयार करवा रहली हल । बतीसा-छउनी, काफर-जाफर आउ पेड़ावल सरसो के तेल । बुतरू के करुआ तेल बेर-बेर लगे के चाही ।) (बिगुल॰35.3)
341 पोसल (दमाद विदेस में बड़गो ओहदा पर हल । बेटी के बिआह के बादे बेगम सहित एकदमे हौला महसूसे लगलन हल । सभे जिमेदारी से निछक्का । तनी-मानी जिमेदारी महसूसऽ हलन त बस, पिंजड़ा में पोसल मैना-तोता आउ रंग-बिरंग चिरइँ-चिरगुन के, जे हवेली में चहचहाय ले रह गेल हल ।) (बिगुल॰10.29)
342 फगुनी (~ सिहरन) (सही जिनगी के केतना थोक आउ खुदरा तो अब यादो नञ् पड़ऽ हे । महाजन केतना तपाक से छोटका तराजू पर ओकर बड़का कंगना के जल्दी-जल्दी तौलके ठंढा हाथ में फर-फर नोट धर देलक हल । ई रुपइया कभी ओकर देह में फगुनी सिहरन दे हल । ई महाजन के बेटवा एकदमे पइसा के जलमल हे, एक्को पइसा इद्धिर-उद्धिर नञ् ।) (बिगुल॰16.4)
343 फर-फर (~ नोट) (सही जिनगी के केतना थोक आउ खुदरा तो अब यादो नञ् पड़ऽ हे । महाजन केतना तपाक से छोटका तराजू पर ओकर बड़का कंगना के जल्दी-जल्दी तौलके ठंढा हाथ में फर-फर नोट धर देलक हल ।) (बिगुल॰16.3)
344 फाँदा-फाँदी (कखनउँ भोजाय ले डगरिन, चाची ले दवाय, चाचा ले दारू त बहिन ले किताब घर से किताब से लेके परीच्छा घड़ी तक देवाल फाँदा-फाँदी से गुजरे पड़ऽ हल । आल-गेल मामू-ममानी आउ फूफा-फूआ के टिसन आउ बस अड्डा छोड़े में उनका एगो अजबे सुकून मिलऽ हल ।) (बिगुल॰37.8)
345 फिन (= फिनु, फिनो, फेनु, फेर; फिर) ( बड़गो शहर के ई सब समाचार पढ़के आम आदमी के रोम-रोम कप जा हे । महिला-प्रदर्शन, अनशन आउ दहेज विरोधी सभा के सिलसिला कुछ दिन जोड़ पकड़ ले हे, फिन सब सथा जा हे ।; तीनो गोतनी में अबोला त ढेरोढेर दिन तक चलऽ हल, जेकर हवा से भाय लोग भी नञ् बचऽ हलन । फिन चुप्पी टूटे के झगड़े-तकरार त अकेलुआ रास्ता रह गेल हल ।; तब भी मिल्लत से बनल मिलकीयत के नक्सा उनकर दिमाग से नञ् उतरऽ हल । फिन करिये की सकऽ हलन ? ने उगलते बनऽ हल ने निगलते ओलहा हल ।) (बिगुल॰1.17; 38.7, 17)
346 फिनु (= फेनु, फेन, फिर) (उनका लगऽ हे कि साइत डॉ॰ बैजनाथ वर्मा के भाषण से शहर के जकड़न टूटत आउ बड़गो शहर के शहद एही शहर में सवादल जात । परदेसी जी के ई सब काम में राधे बाबू खुलके हाथ बटावऽ हथ । फिनु परदेसी जी के प्रभाव से राधे बाबू में विचार-विस्तार के टुसा फूजल हल कि मेहरारू के कामकाजू बनावल जाय ।; राधे बाबू के लगऽ हल कि राधिका के कामकाजू होते उनकर पसेना पउडर आउ लमेंडर के लेप में लोप हो जात । मुदा फिनु राधिका के सटिफिकेटिया गियान के भंजावे ले अउनपथारी हो जा हलन ।; आज फिनु बइठका के महफिल में गजल जागल हल । चार गो चुनल औरत-मरद जुमल हल ।) (बिगुल॰42.4; 43.15, 26)
347 फिनो (बइठका में जउरे बइठल भाय लोग रघुबंस दने ताक रहलन हल । बाबूजी फिनो चुप हलन । फोटू हाथ में धरतहीं रघुबंस भीतर तक काँप गेलन आउ उनकर धियान बच्छरो-बच्छर पहिले के छानबीन आउ चुना-चुनी पर चल गेल ।) (बिगुल॰39.28)
348 फुकाफाड़ (~ के रोना) (सीटी बजल । चाची भगवान दास के हाथ में हँसुली देइत फिनु फुकाफाड़ के रोवे लगली ।) (बिगुल॰47.23)
349 फुक्काफाड़ (ढेरो-ढेर निमन बारात कत्तेक जगह गेलन हल । अजबे सोभाव हल उनकर ! विदाई घड़ी त फुक्काफाड़ के कानऽ हलन । मोखतार साहेब आउ डाकडर साहेब के घर से सम्बन्ध त पुरविले से समझऽ ।) (बिगुल॰37.12)
350 फूजना (उनका लगऽ हे कि साइत डॉ॰ बैजनाथ वर्मा के भाषण से शहर के जकड़न टूटत आउ बड़गो शहर के शहद एही शहर में सवादल जात । परदेसी जी के ई सब काम में राधे बाबू खुलके हाथ बटावऽ हथ । फिनु परदेसी जी के प्रभाव से राधे बाबू में विचार-विस्तार के टुसा फूजल हल कि मेहरारू के कामकाजू बनावल जाय ।) (बिगुल॰42.5)
351 फेंका-फेंकी (आज फिनु घर के बरतन-बासन के फेंका-फेंकी आउ घोर मगही तेवर से उकटापइँची देख-सुन के एतना ने टूट गेलन हल कि उनका राम बने के सब सपना अब चूर-चूर हो गेल हल । दशरथ जइसन बाबू जी बुढ़ारी में दरोजा पकड़ले दया जुकुर बनल हलन ।) (बिगुल॰36.1)
352 फेन (= फेनु, फिनु, फेनो, फेर; फिर) (बसीर मियाँ के बेटी आउ बंसी बाबू के बहिन त कउनो नौकरी नञ् करऽ हल, जे अदना आदमी के साथे चल गेल । फेन चौबे जी के घरवली के घटना शहर में हरदम ताजा होते रहऽ हे । लड़कन समेत चौबे जी के छोड़, सिंह साहेब के साथ चल गेली आउ सुनल जाहे कि अब कउनो कपूर साहेब के साथ हकी ।) (बिगुल॰42.26)
353 फेनू (= फेनु, फेन, फिन, फिर) (बस के भीड़ में भी भोला बाबू के धियान फेनू रह-रह के टिक जा हल, बस में लछमी जी के मूरति के नीचे लिखल वाक्य पर - "भगवान आपकी यात्रा सफल करें" आउ कनखी से देवाल पर मोट-मोट अच्छर पढ़ रहलन हल - "दो या तीन बच्चे" ।) (बिगुल॰8.29)
354 फोटू (बइठका में बइठल बरतुहार टस से मस नञ् हो रहलन हल । लड़की के फोटू बुतरुन भीतर-बाहर कर रहल हल । रघुबंस वली मुसकइत तनिकनो तर रखलकी ।) (बिगुल॰39.26)
355 फोहबा (चन्दू के बुझाय लगल कि घर के सब गहमागहमी ओकरा धकियावे लगल हे । दूर बहुत दूर मद्धिम बत्ती तर मच्छरदानी से घेराल एगो फोहबा देख रहल हल ।) (बिगुल॰35.26)
356 फोहवा (ई सब छो-पाँच करिये रहल हल कि लछमी दरद से छटपटाय लगल । ओकरा तुरते 'मातृसदन' अस्पताल ले गेल हल । फोहवा एकदम्मे मिसरी नियन दप-दप हल । मुंसी जी ओकरा मिसरिये कहके पुकारऽ हलन । धीरे-धीरे मिसरी अइँटा से छड़ पकड़के धउगे लगल हल ।) (बिगुल॰20.32)
357 बइठका (= बैठका, बैठने की जगह, दालान, दूरा) (उनका हरदम अंदेसा लगल रहऽ हल कि कखने सुरताल के अवाज अँगना से आगू बढ़े लगत ! ऊ त कहऽ कि उनकर मेहरारू अपन भारी अवाज से कुछ आड़ले रहऽ हली । हाँ ! बइठका के बइठकी भी अब खतमे कर रहलन हल । चाय-पान साथे गरजा-गरजी के पीयत ?; बइठका में बइठल बरतुहार टस से मस नञ् हो रहलन हल ।) (बिगुल॰39.21, 25)
358 बइठकी (= बइठक, बैठक, सभा) (उनका हरदम अंदेसा लगल रहऽ हल कि कखने सुरताल के अवाज अँगना से आगू बढ़े लगत ! ऊ त कहऽ कि उनकर मेहरारू अपन भारी अवाज से कुछ आड़ले रहऽ हली । हाँ ! बइठका के बइठकी भी अब खतमे कर रहलन हल । चाय-पान साथे गरजा-गरजी के पीयत ?) (बिगुल॰39.21)
359 बइठल (टरक से हटके उनकर धियान डलेवर आउ खलासी दने रह-रह के चलिये जा हल । इतमीनान से सूतल सुसता रहल हल । एगो मेहरारू ओही सब साथ बइठल दनादन सिगरेट पी रहल हल ।) (बिगुल॰52.13)
360 बइठा-बइठी (एक दिन खाय के जगह पर कालीघाट के पेड़ा आउ मिठाय से मुंसी जी के मुँह मीठा करइलक हल । मुंसी जी संतोख के साँस लेलन हल । बइठा-बइठी में ऊ दुन्नू दुतल्ला पर से सड़क के भीड़ देखते रहऽ हल ।) (बिगुल॰20.26)
361 बउँखना (रामईश्वर बाबू सालो-साल से नीमन वर ले बउँखिये रहलन हे । उनकर ढेर कुनी खरचा तो वरे ढूँढ़े में हो गेल हे ।; सम्पादक के पद उनका बड़गो परिवार में धाक जमा देलक हल । मुदा अपन माटी के मोह उनका दोसर किस्त में घरे ले आल । गीत, कहानी अकास में आउ किरन जी सड़के पर बउँखे लगलन ।) (बिगुल॰3.20; 23.16)
362 बउड़ाल (समता विसमता के घाट में अउघट चाल जदि देखे के होय तो अपने 'अदीप' जी के कहानी सेंगरन देख सकऽ ही । निछक्का सामाजिक दुराव, पारिवारिक विघटन अउ भौतिक चकाचौंध के पीछे बउड़ाल, धधाल अदमी के चेहरा पर जे नकली मुखौटा हे ओकरा हर मोहड़ा पर एकरा में देखल जा सकऽ हे ।) (बिगुल॰vi.21)
363 बउसाह (कहानी के फैलाव छोट होवऽ हे मुदा ओकरा में जीवन के ईमारत के हिला देवे के पुरजोर बउसाह होवऽ हे ।) (बिगुल॰vi.14)
364 बच्छर (खिड़की के हवा आउ मुट्ठी भर बइठे के जगह मिल जाय से लछमी के नींद आ गेल हल । कतना बच्छर पहिले ओकरा लछमी से बड़ा बजार के बड़का मकान के साइट पर भेट होल हल ।; किस्ते में भगवान के किरपा से दूगो लड़कन भी होल । पहिला किस्त में गंगा आउ छो बच्छर बाद दोसर किस्त में जमुना । गंगा के मुड़ना बनारस में आउ जमुना के इलाहाबाद में बड़ी लकधक से करइलन हल ।) (बिगुल॰19.15; 24.29)
365 बछरो-बच्छर (किस्त पर टिकल जिनगी के बोझ हल्का करे ले कभी-कभी हँसके अपन यार-दोस्त के बतावऽ हलन कि किस्ते में उनकर जिनगी के गिरहस्ती शुरु होल हल । बियाह तो उनकर लड़कपने में हो गेल हल, मुदा गउना लेल बछरो-बच्छर इंतजार करते-करते गीत-गजल के ढेर लगा देलन हल ।) (बिगुल॰24.5-6)
366 बझल (= फँसल) (लड़कन के बारे में सोचके आउरो काँप जा हलन । महल्ला के प्रभाव से लड़कन के कइसे बचावल जाय - ओकरे उपाय सोचते रहऽ हलन । कखनउँ सोचऽ हलन कि टिसनी पढ़ावे में लगा देल जाय । लड़कन बझल भी रहत आउ कुछ पइसो आ जात ।) (बिगुल॰15.9)
367 बड़ (= बहुत) (बनारसी बाबू फिनु घड़ी देखलन । सूइ घसकिये नञ् रहल हल । सड़क सुनसान आउ होटल एकदम्मे जगमगा रहल हल । उनका नीम तर के हवा बड़ नीमन आउ मीठ लग रहल हल ।) (बिगुल॰53.26)
368 बड़का ( एक दिन धंधउरा तर मकइ के बाल सेंकइत बड़का भइया आसते से इसारा कइलका कि कब तक सब से नुका-छिपा आउ कतरब्योंत करके तोरा जेब खरचा चलइअउ । तखने ओकर आँख झरझरा गेल ।; दौड़-धूप आउ पैरवी के पाया जब घसक गेल, कत्तेक जगह घूस के देलो पइसा नञ् लौटल त मंझला भइया एतनइँ तो कहलका - कर लेलऽ नौकरी ! तनी घरवली के मुँह सम्हारे ले कहऽ ! तहिये घरवली के किताब के जिल्द छोड़ा देलक हल । साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल ।) (बिगुल॰49.31; 50.7)
369 बड़की (छोटकी के एतना पढ़े-लिखे पर भी, घर-परिवार आउ महल्ला वलन 'छोटकीये' के नाम से पुकारऽ हलन । घर लेल त छोटकी कहियो बड़की नञ् भेल । 'सुनीता' इस्कूल आउ कौलेज के रजिस्टरे में लटपटा के रह गेल ।; भोला बाबू के मन के गुठली में एगो बड़गो आम के पेड़ लगल हल । अजय आउ विजय के साहब बनावे के फेरा में अपन छोटकी के बड़की हो जाय के कुदरती भेद भी भूल गेलन हल ।; घर में, बात-बात पर बाबू जी कहे लगलन कि बियाहे घड़ी ससुर नौकरी के नक्सा बतावऽ हलथुन, चेकर चोट से चनेसरवली के मुँह हप्प हो जा हल । फिनु बड़की आउ मंझली के लगे लगल कि एगो चनेसरवली ले उम्दा साड़ी काहे आवऽ हे । हमनी के दुमुहियाँ कमाय वलन मरद के ऊपर एक्कर नाज-नखरा !) (बिगुल॰5.10; 6.21; 49.16)
370 बड़गर (बड़गर शहर में लघु पत्रिका, उम्दा परकासन आउ गीता प्रेस से छपल किताब के साथ अपन दोकान पर बइठते ओकरा लग रहल हल कि सचमुच में आदमी के कुछ 'अप्पन' चीज चाही ।) (बिगुल॰51.21)
371 बड़गो (बड़गो शहर के घटना तो देस-परसिद्ध साप्ताहिक आउ मासिक पत्रिका में विस्तार से छपवे करऽ हल । राम बाबू ले देस के उन्नति-परगति से बड़गो समाचार दहेज के खबर लगऽ हल । मुदा छोटगर शहर आउ गाँव के घटना सब इलाके में कुम्हला के दम तोड़ दे हे ।; भोला बाबू के मन के गुठली में एगो बड़गो आम के पेड़ लगल हल । अजय आउ विजय के साहब बनावे के फेरा में अपन छोटकी के बड़की हो जाय के कुदरती भेद भी भूल गेलन हल ।; अजय आउ विजय के पद पर चढ़ते-चढ़ते जात के बड़गो लोग रस्ते में लोक लेलन हल । आधुनिक बहू के साथ आवल नवा-नवा समान से उनकर टूटल-फूटल घर जगमगा गेल हल । एतना दिन के नौकरी में ई सब समान एक्के साथ कउनो-कउनो साहब लोग के कोवाटर में कभी-कभी देखलन हल ।; जीवन बाबू बाहरे में वजनगर भले रहथ, घर में हौले हो गेलन हल । बेटा-बेटी जइसे-जइसे बड़गो होवऽ हल, ऊ छोटगर होवे लगलन हल ।) (बिगुल॰1.2, 4; 6.23, 28; 31.15)
372 बड़-छोट (दहेज के खिलाफ जहाँ कहीं भी सभा-गोष्ठी होवऽ हल, राम बाबू सबसे आगू बइठऽ हलन । मगर सामाजिक रेवाज के आग में कूदे के तैयारी में लोक-लाज, अपना-पराया, बड़-छोट, नाता-गोता सब भूल गेलन हल ।) (बिगुल॰2.25)
373 बतसल (चारो दने के बतसल देवाल से आँख घुमाके रघुबंस तनिकना भाय पर नजर टिका देलन हल । पियार में तनिक के तनिकना नाम बड़का होवे पर भी नञ् बदलल हल ।; साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल । ऊ, बाबू जी बीच-बचाव नञ् करतन हल त एक खेर तीन खुंडी । तहिये से घर में दरार पड़ गेल जेकर दिरइँची से टोला-टाटी के बतसल बेयार पइसे लगल ।) (बिगुल॰39.4; 50.9-10)
374 बतीसा-छउनी (माय त सोहर गा-गा के एक-एक समान बड़ी हिफाजत से तैयार करवा रहली हल । बतीसा-छउनी, काफर-जाफर आउ पेड़ावल सरसो के तेल । बुतरू के करुआ तेल बेर-बेर लगे के चाही ।) (बिगुल॰35.3)
375 बदलल (कभी-कभी बदलल हवा के धूरी अपन कपड़ा पर देखऽ हलन मुदा तुरते झाड़ दे हलन । उनका लगऽ हल कि ई नाज-नखरा नञ् रहत ।) (बिगुल॰30.31)
376 बनोबस्त (= बन्दोबस्त) (दमाद विदेस में बड़गो ओहदा पर हल । बेटी के बिआह के बादे बेगम सहित एकदमे हौला महसूसे लगलन हल । सभे जिमेदारी से निछक्का । तनी-मानी जिमेदारी महसूसऽ हलन त बस, पिंजड़ा में पोसल मैना-तोता आउ रंग-बिरंग चिरइँ-चिरगुन के, जे हवेली में चहचहाय ले रह गेल हल । गाय, बकरी, मुरगा-मुरगी त बउधा के बनोबस्त में शुरुए से शामिल हल ।; दोसरे दिन भगवान दास दुन्नू के नर्सिंग होम में भरती करा देलक । डाकडर लोग के समझा के भगवान दास दुन्नू के इलाज के बनोबस्त करइलक ।; जीप आउ टरक के बनोबस्त कइले अइलन हल । सब समान तो एक तरह से बंधले हल । बंधल समान के फिनु खोले के बात खियाल से निकाल देलन हल ।) (बिगुल॰10.32; 47.14; 55.22)
377 बरतन-बासन (आज फिनु घर के बरतन-बासन के फेंका-फेंकी आउ घोर मगही तेवर से उकटापइँची देख-सुन के एतना ने टूट गेलन हल कि उनका राम बने के सब सपना अब चूर-चूर हो गेल हल । दशरथ जइसन बाबू जी बुढ़ारी में दरोजा पकड़ले दया जुकुर बनल हलन ।) (बिगुल॰36.1)
378 बरतुहारी (रुपिया-पइसा जोड़-जोड़ के दहेज के चूल्हा में झोंकते जा रहलन हल । ई छटपटाहट में भी दुन्नू एगो कसम रखलन हल कि बरतुहारी ले निकले घड़ी हरिद्वार जरूरे हो अइतन । जरूरत भर कपड़ा-लत्ता, पइसा-कउड़ी लेके पूरा परिवार रेल में बइठ गेलन हल । बेटियन के चेहरा रेल, हवा आउ जतरा के उत्साह से एकदमे खिल गेल हल ।) (बिगुल॰4.12)
379 बर-बीमारी (लाल बाबू जब भी तीरथ-जतरा पर निकलऽ हलन तब सब कोठरी आउ अपन अलमारियो के कुंजी बेटा के जिम्मे कर दे हलन । अब लड़कन के कोठरी के साज-समान देखे के मौका केकरो बरे-बीमारी में लगऽ हल ।) (बिगुल॰28.1)
380 बरात (= बारात) (चमक त घरो से जादे अपन बेटा-बेटी में लइलन हल । बेटी ले त लड़का खरीदिये लेलन हल । बियाह में उनकर पइसा बारूद के काम कइलक हल । बरात के चमक से इलाका इंजोर हो गेल हल । मुदा बेटन के बियाह में कुले कोर-कसर निकाल लेलन हल ।) (बिगुल॰27.19)
381 बलबलाना (साथी-संगी के घर के शादी या सराध में आठो पहर पिलल रहऽ हलन । तिलक-दहेज के बात पर बलबला जा हलन ।) (बिगुल॰29.25)
382 बहकल (दिन में आदमी से जादे जानवरे नजर आवऽ हल, मुदा रात में आदमी के डर से जानवर एकदमे अलोप जा हल । रात भर आदमी के हो-हल्ला, धउगा-धउगी आउ बम-पटाका के अवाज से सउँसे महल्ला थरथराल रहऽ हल । ठामे-ठाम चिल्ला-चिल्ली, काना-फुसकी आउ बहकल बात से राह चलइत आदमी तो भीतरे से सिहर जा हल ।) (बिगुल॰13.25)
383 बात-विचार (उनका खूब याद हे, जब अस्पताल में एगो मद्रासी नर्स आल हल त उनकर मन में तमिल सीखे के इच्छा जागल हल । बात-विचार त अंगरेजी में करऽ हलन मुदा मेहरारू के लगऽ हल कि ई तमिल नञ् सीखके ओकरे हिन्दी सिखाके दम लेतन आउ तब जोरू-मरद में लगातारे मगही में ठोनावादी होवऽ हल ।; ऊ बूझे लगलन हल कि ई नावा रंगरूट के सामने देश, समाज आउ धार्मिक बात करनइ फजूल हे । अपन सामने ही उनकर बात-विचार के बखिया उघर गेल । ऊ जलसा से समटाल दरी-बिछौना जइसन समटा गेलन ।) (बिगुल॰26.11; 31.9)
384 बान्हना (= बाँधना) (भोर हो गेल हल । गाड़ी अब हवड़ा लटफरेम पर रुके ले हल । समान बान्हते-बान्हते मुसके लगलन कि अपन सउँसे जवानी किस्ते में बाँटके लड़कन के थोक बनइलन हल मुदा लड़कन सब उनका किस्ते में बाँट देलक । अब छो महीना कलकत्ता वाला बेटा के साथ रहे के हे ।) (बिगुल॰25.30)
385 बाल-बच्चन (राधे बाबू के बुझाय लगल हल कि बढ़इत महँगारी आउ बाल-बच्चन के आधुनिक विकास ले ढेरोढेर पइसा के जरूरत हे । जमाना गेल कि नगरपालिका आउ जिला परिषद के स्कूल होते कउनो आफिस के कुरसी तर पहुँचिये जा हल ।) (बिगुल॰40.4)
386 बाल-बुतरुन (पहिले ऊ चर्च के गाड़ी चलावऽ हल । डाकटर साहेब के भी बाल-बुतरुन इसाई-स्कूल में पढ़ऽ हल । जब भीड़ नञ् रहऽ हे त डाकटर साहेब ओकरा से खूब अपनउती-सन बतिया हथ - "साइमन ! अब तुम ठीक हो रहे हो ।"; साइमन के हाल पर अब ओकरा तरस आवे लगल हल । बाप रे बाप ! बाल-बुतरुन के छइते ई दुख ! चाह के दोकान में बइठते-बइठते अब दुन्नू में सलाय-बीड़ी के अदला-बदली होवे लगल हल ।) (बिगुल॰17.32; 18.12)
387 बिहनउकी (~ रोटी) (संजोग से 'राजकुमारी नर्सिंग होम' में राधिका के बिन पैरविये नौकरी मिल गेल । ... राधिका के भेस-भूसा एकदम बदल गेल आउ हाथ में अब बेग घुमावे लगली । ... रसोय घर के चुल्हा से अब राधिका के आँख झमझमाय लगल हल । बिहनउकी रोटी के जगह पर बिस्कुट आवे लगल । देर-अबेर होवे पर चाह के कप-पियाला से राधे बाबू के हाथ चोटाय लगल हल ।) (बिगुल॰43.22)
388 बुढ़ारी (आज फिनु घर के बरतन-बासन के फेंका-फेंकी आउ घोर मगही तेवर से उकटापइँची देख-सुन के एतना ने टूट गेलन हल कि उनका राम बने के सब सपना अब चूर-चूर हो गेल हल । दशरथ जइसन बाबू जी बुढ़ारी में दरोजा पकड़ले दया जुकुर बनल हलन ।) (बिगुल॰36.4)
389 बुतरू-बानर (रसोइ त अँगने में बनऽ हल मुदा थरिया भितरे में परसा हल । कभी नीपे ले त कभी बाढ़े ले आउ कभी-कभी बुतरुन-बानर के चलते अँगना लड़ाय के अखाढ़ा हो गेल ।) (बिगुल॰38.5)
390 बुतात (मुंसी जी के हाट-बजार करते-करते ओकरो बुतात साथहीं लगे लगल । अब एक्के भनसा में दुन्नो खाय लगल आउ ऊ मजूर से मेट हो गेल हल ।) (बिगुल॰20.18)
391 बेयाकरन (= व्याकरण) (रामईश्वर बाबू सालो-साल से नीमन वर ले बउँखिये रहलन हे । उनकर ढेर कुनी खरचा तो वरे ढूँढ़े में हो गेल हे । अपना कूवत के मोताबिक खरचा ले भी तैयार हका, मुदा बियाह के बेयाकरन आदमी के जे ने परेशानी में डाले ।) (बिगुल॰3.22)
392 बेयार (= बयार) (साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल । ऊ, बाबू जी बीच-बचाव नञ् करतन हल त एक खेर तीन खुंडी । तहिये से घर में दरार पड़ गेल जेकर दिरइँची से टोला-टाटी के बतसल बेयार पइसे लगल ।) (बिगुल॰50.10)
393 बेला-मोका (जिअल जिनगी के तस्वीर टाँगे में ईसा मसीह के दरद महसूसऽ हलन । मुदा कुछ अइसनो हल जेकरा बेला-मोका देखके अपन सन्दूक में रख दे हलन । अइसनका फोटू के चलते तो कभी-कभी मेहरारू से महीनो-महीना मुँहफुलौअल हो जा हल ।) (बिगुल॰26.8)
394 बेसगर (ढेरो दिन के बाद कुच्छेक हरफ के लिखल चिट्ठी भेटल हल । बस, नीला रंग के खलिए चिट्ठी से सउँसे घर हरियर ! रजगज ! लोगबाग के निलका चिट्ठी में लाल-लाल, छोट-मोट, गोल-गाल एगो बेसगर चिजोर बँधल नजर आवे लगल ।) (बिगुल॰34.22)
395 बेहवार (= व्यवहार) (ऊ सब स्कूल के इमारत, टीचर के लिबास आउ लड़कन के बेहवार देखके किरन जी के अपन स्कूल आवे के मने नञ् करऽ हल । मुदा अपन आर्थिक सीमा के अहसास से छटपाय लगऽ हलन ।; किरन जी कभी-कभी अपन स्व॰ पिता विदेसी बाबू के साथ कइल बेहवार में भुला जा हलन । भोरे उठके अपन हाथ से चाह बनाके पहिला गिलास बाबुये के दे हलन । रात के भोजन भी एक्के साथ करऽ हलन । तीज-तेहवार में किस्ते पर, मगर घर में सबसे पहिले कपड़ा-लत्ता बाबुये आउ माय लेल कीनऽ हलन ।; जीवन बाबू हलन त मामूली नौकरी में, मुदा बेहवार आउ विचार से अपन ओहदा से ऊँचे बुझा हलन ।) (बिगुल॰25.7, 24; 29.9)
396 भगनी (= बहन की बेटी) (शहर के मकान में उनकर सब जोड़-जमा लग गेल हल आउ बच गेल हल बेटी के बरइत समसिया, जे अब नञ् केकरो भगनी हल, नञ् केकरो भतीजी हल आउ नञ् अब केकरो बहिने रह गेल हल, हल त बस कुसुम - बनारसी बाबू के बेटी ।) (बिगुल॰55.13)
397 भगिना (ओकरा याद हे कि बक्सा में रखल मेहमान आउ भगिना के सब समान बेर-बेर देखलक हल । मगही घी के टेहरी के हिफाजत में रस्ता भर ओकरा केतना आदमी से झड़पा-झड़पी हो गेल हल । लटफरेम पर गाड़ी लगते-लगते साँझ से रात हो गेल हल ।) (बिगुल॰35.9)
398 भटकल (अंधविश्वास के अंधकार में भटकल आदमी के परकास में लावे में खुब्बे संतोष होवऽ हल।) (बिगुल॰30.9)
399 भभू (= छोटे भाई की पत्नी) (लगन-पाती के दिन अइतहीं तनिकना के बियाह के बात घरवलन के मुँह पर खुदरा-खुदरी रहऽ हल मुदा कउनो आगू बढ़इ के हिम्मत नञ् करऽ हलन । रघुबंस त भाय सब के कनिआय चुनते-चुनते ठेहिया गेलन हल । अपन भभू सब के चुनाव से अपने लजा रहलन हल ।) (बिगुल॰39.17)
400 भयचारा (= भाईचारा) (अइसन भयचारा तो अपन देसो में नञ् मिलऽ हे । सब मेहनत के माला में गुंथाल रहऽ हल । लछमी मुनिरका मुंसी के रसोय बनावऽ हल । हाजरी तो रोज बनिये जा हल । सेठ जी सनिचर के सनिचर आके मजूरी गुदारऽ हलन ।) (बिगुल॰20.4)
401 भरम (= भ्रम) (ढेरोढेर दिन पर टुनमुनइलन आउ दुर्गापूजा देखे निकललन । बिजली के चमक से उनका रातो में दिन के भरम हो रहल हल । सउँसे शहर लउडिस्पीकरे के ऊलजलूल आवाज ओढ़ले हल । कीर्तन-भजन तो अलोप गेल हल ।) (बिगुल॰31.24)
402 भितरकी (अइसे तो एक से एक फूहड़ कामकाजू जन्नी के जानऽ हथ जे विचार में जिनगी भर बेचारिये बनल रहली । फिनु कामकाजू जन्नी-मरद के जिनगी के दरकइत देवाल भी नजर तर हे जेकर दिरइँची से बाहरी लोग भितरकी दशा देखऽ हथ । नकलपचीसी के पढ़ाय-लिखाय के एहे असर होवऽ हे ।) (बिगुल॰42.19)
403 भित्तर (रसे-रसे ओसरा भी भित्तर में बदले लगल आउ रघुबंस के लाख कोरसिस के छइते भित्तर से जादे भनसे हो गेल । ठोनावादी से अँगना गरम रहे लगल ।) (बिगुल॰38.1)
404 भुंजा (गाड़ी में बइठे के जगह मिल गेल, मुदा सनेस सम्हारे में साँस फूलऽ हल । एक से एक सौगात ! केतारी, चिनियाँबेदाम, बूँट के झंगरी, गी, सत्तू आउ ताजा भुंजा के डिब्वा-डिब्बी । ई सबसे अलग उनकर घरवली के धियान हरदम हँसुली पर हल ।) (बिगुल॰46.2)
405 भूलल-भटकल (रीता के बियाह के बाद समधिअउरा के रुख बदल गेल हल । भूलल-भटकल बेजान चिट्ठी कभी-कभार मिल जा हल । वहाँ के लमहर चुप्पी से माय-बाबू के चेहरा के रंग एकदम बदरंग हो गेल हल ।) (बिगुल॰34.10-11)
406 भूसट (चन्दू के एक गोड़ घर त एक गोड़ बजार ! ई आवाजाही में ऊ छितरा गेल हल । अइते-जइते जमील दरजी के टोकते जा हल । अपना ले नावा-नावा भूसट आउ पैंट बनइलक हल । दरजी के बेर-बेर टोकऽ हल कि भूसट के धोकड़ी पर अपन कंपनी के नाम ठीक तरह से उतारे ।) (बिगुल॰34.30, 31)
407 भोज-भात (बनारसी बाबू ई सब मामला में खूब नीमन जोड़-घटाव रखऽ हलन । भोज-भात, खान-पियन के नेउता-पेहानी से महीना के शायदे दिन बचऽ हल ।) (बिगुल॰53.5)
408 भोरउकी (भोरउकी गली के चहल-पहल आउ भारी गोहार से लोग-बाग अपन दुआरी खोललक । मालूम होल कि रात भर के बम-फटाका से गली में खाली ऊ जनिये के जान गेल हे ।) (बिगुल॰15.25)
409 भोरहीं (अपन ई मनसूबा के पूआ पकावे में उनका अब घर आउ औफिस में कोय फरके नञ् रह गेल हल । भोरहीं से रात तक औफिसे तर मँड़रइते रहऽ हलन ।) (बिगुल॰6.20)
410 मंझला (दौड़-धूप आउ पैरवी के पाया जब घसक गेल, कत्तेक जगह घूस के देलो पइसा नञ् लौटल त मंझला भइया एतनइँ तो कहलका - कर लेलऽ नौकरी ! तनी घरवली के मुँह सम्हारे ले कहऽ ! तहिये घरवली के किताब के जिल्द छोड़ा देलक हल । साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल ।) (बिगुल॰50.5, 7)
411 मंझली (घर में, बात-बात पर बाबू जी कहे लगलन कि बियाहे घड़ी ससुर नौकरी के नक्सा बतावऽ हलथुन, चेकर चोट से चनेसरवली के मुँह हप्प हो जा हल । फिनु बड़की आउ मंझली के लगे लगल कि एगो चनेसरवली ले उम्दा साड़ी काहे आवऽ हे । हमनी के दुमुहियाँ कमाय वलन मरद के ऊपर एक्कर नाज-नखरा !) (बिगुल॰49.16)
412 मइल-कुचइल (ई बेर फिनु टरक लाइने होटल में जाके लगल । बनारसी बाबू के लाइन होटल के अजबे-अजीब ताजा अनुभव हो रहल हल । दूध पीअइत बुतरू टरक रुकतहीं बिढ़नी नियन आदमी के घेर ले हल । टूटल जग, चनकल गिलास, मइल-कुचइल अंगा-पैंट ! पानी की पीअल जात, सउँसे निरारे से पसीना चूए लगऽ हल ।) (बिगुल॰52.4)
413 मउगत (= मउअत; मौत) (ऊ मन ही मन सास के भाव ताड़ रहली हल आउ अपन मरद के शांत चेहरा पर छितराल अजबे बेचैनी देख रहली हल । प्रकृति के ई खेल त अपरम्पार हे मुदा जलम से मउगत तक सब खेल अदमीये के खेले पड़ऽ हे ।) (बिगुल॰60.22)
414 मगही (~ शब्द; ~ गीत; ~ कहानी; ~ मुहावरा; ~ घी; घोर ~ तेवर) ( माइये के मुँह से मगही के पहिल शब्द कान से टकराल होत आउ फिनु कंधा-घोड़की चढ़इते बाबुओ जी मारे या दुलारे में मगहिये मुहावरा से काम चलइलन होत ।; निछक्का गाँव के जीवन के बेबसी, लाचारी, घुटन आउ उत्पीड़न के उघारे में जहाँ मिथलेश हथ, वहाँ खाली नेउता-पेहानी के पेन से सिआइत शहरी सम्बन्ध के बेलस बखिया बटोर के अदीप उनका से अलग खड़ा हो जा हथ, जहाँ से मगही कहानी एगो मोड़ ले लेहे युगबोध के !; मगही गीत के धुन पर जब दोसर भाषा-भाषी भी झूमे लगऽ हल तब ऊ तो गीत के रस में एकदम सराबोर हो जा हल ।; जोरू-मरद में लगातारे मगही में ठोनावादी होवऽ हल ।; मगही घी के टेहरी के हिफाजत में रस्ता भर ओकरा केतना आदमी से झड़पा-झड़पी हो गेल हल ।; आज फिनु घर के बरतन-बासन के फेंका-फेंकी आउ घोर मगही तेवर से उकटापइँची देख-सुन के एतना ने टूट गेलन हल कि उनका राम बने के सब सपना अब चूर-चूर हो गेल हल ।) (बिगुल॰i.1; vii.10; 21.11; 26.13; 35.10; 36.1)
415 मजगूत (= मजबूत) (हाथ में मोटगर-मोटगर फाइल आउ चारो धोकड़ी सरकारी पुरजा-पुरजी से भरल रहऽ हल । साहब लोगन के हर हिदायत आउ झिड़की पर भोला बाबू के मन में अप्पन अजय आउ विजय के साहब बनावे के बात आउरो मजगूत हो जा हल ।; रात भर धमाका ! ऊ घड़ी सुभान ओकरा आउ ऊ सुभान के देखते-देखते रात काट दे हल । ऊ दुन्नू न कमजोर हल न मजगूत । सोचऽ हल कि दुन्नू सबसे कमजोर हे आउ सबसे मजगूत ।) (बिगुल॰6.5; 17.4, 5)
416 मजूर-मजूरिन (ऊ सब सोचे लगल हल कि सब मकान के बुनियाद में गारा-अइँटा के साथ मजूर-मजूरिन के मेहनत दबल रहऽ हे ।) (बिगुल॰20.30)
417 मद्धिम (रीता के बियाह त घर के चुल्हो के आँच मद्धिम कर देलक हल । आधा खेत-पथार त इंजीनियर दमाद पावे में रजिसटरी आफिस में धर अइलन हल । घर के दशा में तहिये से दखल पड़े लगल हल ।) (बिगुल॰33.22)
418 मनझान (भगवान दास दुन्नू के अपन उपरउकी कोठरी में ले गेल । फिनु गाँव-घर के समाचार पूछे लगल । पहलवान जी पूरा जोर लगाके सब हाल सुना रहलन हल । कउन खन्हा में नहर बनल, बिजली लगल । केकर बेटा की करऽ हे ? मुदा चाची तो एकदम मनझान हो रहली हल ।) (बिगुल॰46.30)
419 मनलग्गी (नया मकान तो इनका सस्ते किराया में भेट गेल हल । हल तो शहर आउ औफिसो से दूर, मुदा सोचलन हल कि किराये के कोताही पर अजुकी कमी - टी॰भी॰, फ्रिज आउ सोफा कीनल जात । बुतरु-बानर के मनलग्गी आउ शहर-सिनेमा से एकदमे फुरसत ।) (बिगुल॰13.6)
420 मने-मन (= मन ही मन) (रात-विरात में भी हारो बाबू ऊ अधेड़ उमर के जन्नी के एकदम सहज होके घूमते देखऽ हलन । हारो बाबू के दिनउकी झगड़ा आउ जानवर से कुच्छो डर नञ् लगऽ हल मुदा रात में तो आदमी के आँख से देखियो नञ् पावऽ हलन । ऊ मने-मन सोचऽ हलन कि ई जनिये टोला के वाजिब बसिंदा हे । कखनउँ-कखनउँ दिन में जब शांति के साथ हाट-बजार ले निकलऽ हलन तो ऊ जन्नी उनका मुसकइते देखऽ हल ।; ओकर धियान में महाजन के हँसमुख चेहरा नाच-नाच जा हल । हँसमुख चेहरा के तेज धार से मने-मन घबड़ा हल । मुदा हरिया के समाद से ढाढ़स बँधल हल ।; अब किरन जी शोहरत आउ सोहबत के धारा में एकदम्मे छितरा गेलन हल । मने-मन समेटे ले विचारऽ हलन, मुदा हालत आउ चखल सवाद उनका हरदम्मे परेशानी में डालले रहऽ हल ।) (बिगुल॰14.3; 21.20; 24.23)
421 महँगारी (भोला बाबू चाह पीते-पीते छोटकी के शादी के बात छेड़ देलन । दुन्नू परानी खुब्बे गौर से सुने लगलन । दुन्नू के धियान तब टूटल जब भोला बाबू पइसा-कउड़ी के बात पर अइलन । बहू तो तुरते कोठरी छोड़ देलकी । बेटा अब अपन लाचारी आउ महँगारी के बात करे लगल । भोला बाबू अजय के चेहरा पर धियान टिकउले सुनते रह गेलन । उनका लगे लगल कि अजय के साहबी पर शहरी हवा हावी हे ।; राधे बाबू के बुझाय लगल हल कि बढ़इत महँगारी आउ बाल-बच्चन के आधुनिक विकास ले ढेरोढेर पइसा के जरूरत हे । जमाना गेल कि नगरपालिका आउ जिला परिषद के स्कूल होते कउनो आफिस के कुरसी तर पहुँचिये जा हल ।) (बिगुल॰8.6; 40.4)
422 महसूसना (पूजा के पहिले घंटो-घंटा विस्तार से बात करऽ हलन मुदा पूजा अइते मातर पूरा खरचा जोड़के रोमाँ सिहर जा हल आउ जतरा के कबूलल पइसा डाकघर या बैंक के हवाले करके कलकत्ता आउ काली माय के पुन्न महसूसऽ हलन ।; दमाद विदेस में बड़गो ओहदा पर हल । बेटी के बिआह के बादे बेगम सहित एकदमे हौला महसूसे लगलन हल । सभे जिमेदारी से निछक्का । तनी-मानी जिमेदारी महसूसऽ हलन त बस, पिंजड़ा में पोसल मैना-तोता आउ रंग-बिरंग चिरइँ-चिरगुन के, जे हवेली में चहचहाय ले रह गेल हल ।; कुरसी-टेबुल आउ सोफा के अलावे एगो अइना लगल सिंगरदानी के जरूरत ढेर दिन से महसूस रहलन हल ।; किरन जी जवानी में अपन लिवास भी किस्ते में बनावऽ हलन । एक किस्त में जूता, दोसर में पैंट आउ कमीज बनइते-बनइते साइकिल के चक्कर में त उनकर सब पुराने हो जा हल । मुदा कपड़ा-लत्ता के ई सब आदत में कहियो ऊ परेशानी नञ् महसूसलन हल ।) (बिगुल॰2.11; 10.28, 29; 24.11, 20)
423 महीनो-महीना (जिअल जिनगी के तस्वीर टाँगे में ईसा मसीह के दरद महसूसऽ हलन । मुदा कुछ अइसनो हल जेकरा बेला-मोका देखके अपन सन्दूक में रख दे हलन । अइसनका फोटू के चलते तो कभी-कभी मेहरारू से महीनो-महीना मुँहफुलौअल हो जा हल ।; रिटायरो होवे पर भी महीनो-महीना उनकर गोड़ आफिसे दने बढ़ जा हल । ऊ देखऽ हलन कि उनका बिना आफिस के काम कइसे चल रहल हे ।; जीवन बाबू किसुन पंडित के हाल देखलन हल । खुब्बे निमन मूरति बनावऽ हल । देवी पूजा, लक्ष्मी पूजा, सरसत्ती पूजा के महीनो-महीना पहिलहीं से भीड़ में घेराल रहऽ हलन ।) (बिगुल॰26.8, 28; 30.20)
424 माटर (= मास्टर) (पढ़हीं घड़ी घर के लाचारी आउ अपनो जेब-खरच ले कुछ टिसनी करऽ हलन, जे आज तक अपन कसबा में उनका सब माटरे साहेब कहके पुकारे हे ।) (बिगुल॰15.13)
425 मामू-ममानी (कखनउँ भोजाय ले डगरिन, चाची ले दवाय, चाचा ले दारू त बहिन ले किताब घर से किताब से लेके परीच्छा घड़ी तक देवाल फाँदा-फाँदी से गुजरे पड़ऽ हल । आल-गेल मामू-ममानी आउ फूफा-फूआ के टिसन आउ बस अड्डा छोड़े में उनका एगो अजबे सुकून मिलऽ हल ।) (बिगुल॰37.9)
426 मिंझाना (= बुझना; बुझाना) (बड़गो शहर के, परदेसी जी भर नजर देखलन हे मुदा अपन शहर में मूड़ी गोतिये के जिनगी गुजार रहलन हे । से गुनी गोष्ठी-सभा करके अपन आँख के आग मिंझाबऽ हथ ।) (बिगुल॰42.1)
427 मित्तिन (दमयंती अपन सहेली-मित्तिन जउरे दिन भर में अस्पताल के कत्तेक चक्कर लगावऽ हली । नर्स आउ दाय के त हिदायत करतहीं रहऽ हली । उनकर मित्तिन सब अंगुरी के पकड़ा-पकड़ी आउ पइसा के चित्त-भुद करके महौल के अउरो महीन करके चल जा हली ।) (बिगुल॰60.18)
428 मिल्लत (बच गेला हल रघुबंस आउ उनकर छोट-मोट परिवार । जेहो अब ओहे हवा-पानी में पनपे लगल हल । तब भी मिल्लत से बनल मिलकीयत के नक्सा उनकर दिमाग से नञ् उतरऽ हल ।) (बिगुल॰38.16)
429 मिसमाँमीस (रेल खुलतहीं लछमी अपन चसमा आउ ऊ अपन मुँह से दाँत निकालके अलग झोला में रख लेलक । सउँसे डिब्बा में मिसमाँमीस हल, पर भीड़ से की, ऊ तो अपन जिनगी के ढेर दिन भीड़े में काटलक हे ।; जोम में टीसन पहुँच गेल । मिसमाँमीस में भी चन्दू एकदम अकेलुआ बूझ रहल हल ।) (बिगुल॰19.3-4; 33.2)
430 मीटिन (= मीटिंग) (महीना दू महीना से जब दिन आगू बढ़ल आउ पइसा मिले के कोय चाल-चपट नञ् भेल त चनेसर सहमे लगल । कॉलेज तो चल निकलल । लड़कन तराउपरी । महीनो-महीना बाद मीटिन होल आउ निरलय लेल गेल कि तीज-तेहवार में हाथ ओदा कइल जात ।) (बिगुल॰50.23)
431 मीठ (बनारसी बाबू फिनु घड़ी देखलन । सूइ घसकिये नञ् रहल हल । सड़क सुनसान आउ होटल एकदम्मे जगमगा रहल हल । उनका नीम तर के हवा बड़ नीमन आउ मीठ लग रहल हल ।; नीम के तो निमकउड़ियो मीठ होवऽ हे मुदा जिनगी के मीठो फल के तीत सवाद से उनकर रोम-रोम काँप जा हल ।) (बिगुल॰53.26, 28)
432 मुँहदेखाय (ई सबसे अलग उनकर घरवली के धियान हरदम हँसुली पर हल । पुरान ... ढेर बच्छर के पुरान हँसुली संजोगले हली । सोच के चलली हल कि ई हसरत भरल हँसुली कनिआय के मुँहदेखाय में देम ।) (बिगुल॰46.4)
433 मुँहफुलौअल (जिअल जिनगी के तस्वीर टाँगे में ईसा मसीह के दरद महसूसऽ हलन । मुदा कुछ अइसनो हल जेकरा बेला-मोका देखके अपन सन्दूक में रख दे हलन । अइसनका फोटू के चलते तो कभी-कभी मेहरारू से महीनो-महीना मुँहफुलौअल हो जा हल ।; साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल । ऊ, बाबू जी बीच-बचाव नञ् करतन हल त एक खेर तीन खुंडी । तहिये से घर में दरार पड़ गेल जेकर दिरइँची से टोला-टाटी के बतसल बेयार पइसे लगल । गोतनिन के मुँहफुलौअल तो साधारन हल, कभी-कभी सउँसे घर गरमा जा हल जेकर धाह से गोतिया के गेनरा सूखे लगल ।) (बिगुल॰26.9; 50.10)
434 मुँह-लगउअल (बिन्दा बाबू सीधा आदमी हलन । गीता, रामायण आउ हिन्दी-अंगरेजी के कहाउत उनकर ठोरे पर रहऽ हल । उनकर घरवली के छोट शहर के सिनेमा, होटल तनिको अच्छा नञ् लगऽ हल आउ जादे लोग से मुँह-लगउअल भी नञ् करऽ हली ।) (बिगुल॰53.21)
435 मुझप्पे (मुझप्पे एक दिन साइमन सिर पर नावा-नावा टोपा आउ ढेरकुन फल-फूल लेके ससु के घर आ बड़ी अधिकार से बाहर चले ले कहलक । ओकरा तैयार होवे में की देर, की सबेर !) (बिगुल॰18.25)
436 मुड़ना (किस्ते में भगवान के किरपा से दूगो लड़कन भी होल । पहिला किस्त में गंगा आउ छो बच्छर बाद दोसर किस्त में जमुना । गंगा के मुड़ना बनारस में आउ जमुना के इलाहाबाद में बड़ी लकधक से करइलन हल ।) (बिगुल॰24.29)
437 मुनाना (आँख ~) (लास के भयानक तस्वीर देखके रामबाबू के रोमाँ-रोमाँ सिहर गेल आउ गंगा के पानी अब एकदमे सथा गेल । अब उनकर सउँसे शरीर से पसीना के धार बहे लगल । दूर-दूर तक पहाड़-आकाश देखते-देखते मूड़ी गोत लेलन । आँख मुना गेल आउ उनका लगे लगल कि हरकीपौड़ी के टावर के बगले एगो अउरो टावर हे ।) (बिगुल॰4.32)
438 मुलकात (= मुलाकात) (जिनकर आदत से घालमेल करके कहानी बाते-बात में टपक पड़े, मुलकात होला पर खभेड़ तक पहुँचे के लहजा आउ दूर तक पइठे वला बिम्ब घोरल वाक्य सुनवइया के चोटा दे, त समझऽ ऊ हथ मगही कहानी के थम्हनगर मेंहटा रामचन्द्र अदीप ।) (बिगुल॰vii.2)
439 मूड़ी (~ गोतना) (लास के भयानक तस्वीर देखके रामबाबू के रोमाँ-रोमाँ सिहर गेल आउ गंगा के पानी अब एकदमे सथा गेल । अब उनकर सउँसे शरीर से पसीना के धार बहे लगल । दूर-दूर तक पहाड़-आकाश देखते-देखते मूड़ी गोत लेलन । आँख मुना गेल आउ उनका लगे लगल कि हरकीपौड़ी के टावर के बगले एगो अउरो टावर हे ।; बइठका में जउरे बइठल भाय लोग रघुबंस दने ताक रहलन हल । बाबूजी फिनो चुप हलन । फोटू हाथ में धरतहीं रघुबंस भीतर तक काँप गेलन आउ उनकर धियान बच्छरो-बच्छर पहिले के छानबीन आउ चुना-चुनी पर चल गेल । छगुनइत अपन नजर उठइलन । उनकर आँख घरनी के खिलल चेहरा पर चल गेल । बस ! तुरत मूड़ी गोत लेलन ।; बड़गो शहर के, परदेसी जी भर नजर देखलन हे मुदा अपन शहर में मूड़ी गोतिये के जिनगी गुजार रहलन हे ।) (बिगुल॰4.32; 39.31; 41.32)
440 मेंहटा (जिनकर आदत से घालमेल करके कहानी बाते-बात में टपक पड़े, मुलकात होला पर खभेड़ तक पहुँचे के लहजा आउ दूर तक पइठे वला बिम्ब घोरल वाक्य सुनवइया के चोटा दे, त समझऽ ऊ हथ मगही कहानी के थम्हनगर मेंहटा रामचन्द्र अदीप ।) (बिगुल॰vii.5)
441 मेट (मुंसी जी के हाट-बजार करते-करते ओकरो बुतात साथहीं लगे लगल । अब एक्के भनसा में दुन्नो खाय लगल आउ ऊ मजूर से मेट हो गेल हल ।) (बिगुल॰20.19)
442 मेरावल (~ जउरी) (साझा परिवार के मेरावल जउरी जब ओझरा हल तब सोझरइवे नञ् करऽ हल । तभियो रघुबंस तन-मन के गरमी के अपन आचरण से इड़ोत करते रहऽ हलन ।) (बिगुल॰37.30)
443 मेरियाना (ऊ अनुवाद उनका सबसे उमदा लगऽ हल, जेहमाँ एगो बाप पइना हिगरा-हिगरा के बेटन के तोड़े ले देलक हल । सब पइना टूट गेल, मुदा जब मेरिया के तोड़े ले कहलक त केकरो से नञ् टूटल । एही बात रघुबंस के जिनगी में खड़ा होला पर ढेर असर डाललक ।) (बिगुल॰37.19)
444 मेहनत-मजूरी (रघुबंस के 'राम' होवे ले बाबुए जी उसकइलन हल । रघुबंस के उपदेश देवे घड़ी ऊ अपन जिनगी-जुआनी के जहमत भूल जा हलन । सोचऽ हलन कि जल्दी में गद्दी देके आवे वला दिन से एकदम निछक्का हो जाम । गद्दी की हल ! बित्ता भर छप्पर के छारल छँहुरी, जे बाबूजी के मेहनत-मजूरी के लमहर लड़ाय से बनल हल ।) (बिगुल॰36.10)
445 मोट (= मोटा) (साहब लोगन के हर हिदायत आउ झिड़की पर भोला बाबू के मन में अप्पन अजय आउ विजय के साहब बनावे के बात आउरो मजगूत हो जा हल । अजय-विजय के रोज-रोज साँझे-बिहने व्यवहारिक ज्ञान देल करऽ हलन । बेटन लोग के गैरहाजरी में ओकर मोट-मोट किताब धियान से पढ़ऽ हलन । कभी-कभी देखे में लगऽ हल कि बेटन के बदले भोले बाबू परीक्षा देतन ।) (बिगुल॰6.6)
446 मोटगर (हाथ में मोटगर-मोटगर फाइल आउ चारो धोकड़ी सरकारी पुरजा-पुरजी से भरल रहऽ हल । साहब लोगन के हर हिदायत आउ झिड़की पर भोला बाबू के मन में अप्पन अजय आउ विजय के साहब बनावे के बात आउरो मजगूत हो जा हल ।; एह ! तेल पिलावल मोटगर लाठी आउ अढ़ाय-गज्जी के फेंटा बान्ह के जखनी निकलऽ हलन तो केकर मजाल कि अलीफ से बे कर दे । समुच्चे जिला-जेवार में इनकर पहलवानी के नाम हल ।) (बिगुल॰6.2; 44.3)
447 मोटरी-गेठरी (जमींदारी के बाद पहलवान जी के जिनगी गाँव में ही गुजरऽ हल ् जमींदार साहेब के रंगबाजी के एक से एक जुमला गाँव वलन के सुनावऽ हलन । अइसन खिस्सा सुनावे घड़ी उनका में अजबे जोश आ जा हल । मुदा गठिया से बेचारे एकदम मोटरी-गेठरी जइसन हो गेलन हल ।) (बिगुल॰45.19)
448 मोहड़ा (समता विसमता के घाट में अउघट चाल जदि देखे के होय तो अपने 'अदीप' जी के कहानी सेंगरन देख सकऽ ही । निछक्का सामाजिक दुराव, पारिवारिक विघटन अउ भौतिक चकाचौंध के पीछे बउड़ाल, धधाल अदमी के चेहरा पर जे नकली मुखौटा हे ओकरा हर मोहड़ा पर एकरा में देखल जा सकऽ हे ।) (बिगुल॰vi.22)
449 मोहलत (मगही गीत के धुन पर जब दोसर भाषा-भाषी भी झूमे लगऽ हल तब ऊ तो गीत के रस में एकदम सराबोर हो जा हल । लछमिये आके ऊ भीड़ के मोहलत देलावऽ हल ।) (बिगुल॰21.13)
450 रंगइया-पोतइया (मकान बनके तैयार हो गेल । मकान के रंगइया-पोतइया होते-होते अब ऊ दोसर मकान के बुनियाद में अइँटा जोड़े लगल हल ।) (बिगुल॰21.3)
451 रग्गड़ (= रगड़) (पत्रिका भी निकाललक आउ किताबो छपवइलक । एकरा, ई तेवर बचावे खातिर 'टिसनिया सर' भी बने पड़ल । मुदा कुछ दिन में देखे लगल कि एकर ताव के रग्गड़ से जंगालो कलम के जंग छूटे लगल, पुरान शेरवानी धोवाय लगल ।) (बिगुल॰50.32)
452 रजगज (ढेरो दिन के बाद कुच्छेक हरफ के लिखल चिट्ठी भेटल हल । बस, नीला रंग के खलिए चिट्ठी से सउँसे घर हरियर ! रजगज ! लोगबाग के निलका चिट्ठी में लाल-लाल, छोट-मोट, गोल-गाल एगो बेसगर चिजोर बँधल नजर आवे लगल ।) (बिगुल॰34.21)
453 रजिसटरी (= रेजिस्ट्री) (रीता के बियाह त घर के चुल्हो के आँच मद्धिम कर देलक हल । आधा खेत-पथार त इंजीनियर दमाद पावे में रजिसटरी आफिस में धर अइलन हल । घर के दशा में तहिये से दखल पड़े लगल हल ।) (बिगुल॰33.23)
454 रबना (कहानी के सम्बन्ध में हम की कहूँ ? ई सब कहानी के दीया हमर हाजिरे-नाजिर में नेसाल हे, तब भी कह सकऽ हूँ कि ओहे कहानी कहानी कहलाय के दावा करऽ हे, जे अपने अपने रब्बऽ हे, लिखवइया आउ कहवइया से एकदम अल्लग, आलोचक के नजर के ठुनका लगला पर !) (बिगुल॰vii.17)
455 रसे-रसे ( रसे-रसे चनेसर भी खेत पर गोड़ाटाही करे लगल । थकल-फिदाल जब भी आवे त घर में एगो आउरो तनाव महसूसे । बाबू जी के ललोसा हल कि कम से कम छोटका बाहर निकले ।) (बिगुल॰49.19)
456 रसोय (= रसोई) (अइसन भयचारा तो अपन देसो में नञ् मिलऽ हे । सब मेहनत के माला में गुंथाल रहऽ हल । लछमी मुनिरका मुंसी के रसोय बनावऽ हल । हाजरी तो रोज बनिये जा हल । सेठ जी सनिचर के सनिचर आके मजूरी गुदारऽ हलन ।; मुंसी लछमी के बनल रसोय सराह-सराह के खाय लगलन हल ।) (बिगुल॰20.6, 22)
457 रात-बिरात (ओही दिन से सोहना से सितबिया अलग हो गेल । हाल-समाचार कुच्छो नञ् भेटऽ हल, थोड़ा-बहुत थाना-कचहरी के बात रात-बिरात कभी-कभी सुभान ठेला वला आके सुनावऽ हल । सुभान सोहने के बारे में बात करते-करते रात काट दे हल ।) (बिगुल॰16.16)
458 रात-विरात (रात-विरात में भी हारो बाबू ऊ अधेड़ उमर के जन्नी के एकदम सहज होके घूमते देखऽ हलन ।) (बिगुल॰13.30)
459 रुस्सा-बउँसी (महीनो-महीना पर चनेसर जब घर आवऽ हल तो बाबू जी ले कुरता-धोती के साथ माय ले सड़िया भी कीन ले हल मुदा बाल-बुतरुन के छीट-रंगीन कीनइत-कीनइत धोकड़ी जवाब दे दे हल । भौजी के ताना आउ घरनी के रुस्सा-बउँसी तो चलते रहऽ हल ।) (बिगुल॰51.10)
460 रेवाज (= रिवाज) (दहेज के खिलाफ जहाँ कहीं भी सभा-गोष्ठी होवऽ हल, राम बाबू सबसे आगू बइठऽ हलन । मगर सामाजिक रेवाज के आग में कूदे के तैयारी में लोक-लाज, अपना-पराया, बड़-छोट, नाता-गोता सब भूल गेलन हल ।) (बिगुल॰2.24)
461 रोजगरिया (दमयंती के पति दिनेश बाबू शहर के सफल रोजगरिया हलन । रोजगार में दिन से रात-रात तलुक डूबले रहऽ हलन ।) (बिगुल॰57.23)
462 लंगो-तंगो (ई लंगो-तंगो आउ हथपातर हालत देखके घर से सुझाव मिलल कि बड़गो शहर हे । काहे नञ् चनेसर कोय दोसरो रोजगार करे, कॉलेज के पढ़ाय तो एकरे समय से जानल हे ।) (बिगुल॰51.11)
463 लउडिसपीकर (अपन महल्ला के ताकत, एकता आउ उत्साह तीजे-तेहवार में देखऽ हलन । एक से एक मूर्ति ! पंडाल के सजधज आउ लउडिसपीकरे से रात-रात भर गाना-बजाना !) (बिगुल॰15.16)
464 लउडिस्पीकर (ढेरोढेर दिन पर टुनमुनइलन आउ दुर्गापूजा देखे निकललन । बिजली के चमक से उनका रातो में दिन के भरम हो रहल हल । सउँसे शहर लउडिस्पीकरे के ऊलजलूल आवाज ओढ़ले हल । कीर्तन-भजन तो अलोप गेल हल ।) (बिगुल॰31.25)
465 लकधक (किस्ते में भगवान के किरपा से दूगो लड़कन भी होल । पहिला किस्त में गंगा आउ छो बच्छर बाद दोसर किस्त में जमुना । गंगा के मुड़ना बनारस में आउ जमुना के इलाहाबाद में बड़ी लकधक से करइलन हल ।; बनारसी बाबू ई बच्छर अपन बेटी के निमाहे ले ठानिये लेलन हल । सोचऽ हलन कि कुसुम के बियाह के लगले-लगल बड़ी लकधक से पोती के बियाह नाधम ।) (बिगुल॰24.30; 54.32)
466 लगबहिये (जोम में टीसन पहुँच गेल । मिसमाँमीस में भी चन्दू एकदम अकेलुआ बूझ रहल हल । अपन टीसन त ई टीसन के मिलान में एकदम्मे टीसनी हे । गाड़ी-घोड़ा सब लटफरेमे पर चल जा हे । सउँसे देश तक जाय-आवे वाली गाड़ी के खबर भोंपू से लगबहिये बोलल जा हे । आदमी के एकदम्मे चौकन्ना रहे पड़ऽ हे ।) (बिगुल॰33.5)
467 लगुआ-भगुआ (एन्ने जमींदारी हिलल तो गवइया के साथ-साथ हाथी जइसन ओहो डोल गेलन । जमींदारी के समय पहलवान जी के लगुआ-भगुआ भी दूध-दही से तरबतर रहऽ हल । तहिया ऊ डेउढ़ी-हवेली के शोभा हलन मुदा अब तो उनकर अपने शरीर लोंझ-पोंझ हो गेल हल ।) (बिगुल॰44.7)
468 लचार (= लाचार) (ठोस होवे लेल आर्थिक, नैतिक आउ सामाजिक जद्दोजहद के सही समझ के जरूरत हे । अधकचरा गियान त औरत के अउरो लचार आउ लिजलिजा बनावऽ हे । अइसने सोचइत ऊ अपन सास के भाषण से भाव के हिगरा रहली हल । सउँसे घर त अजबे नकलपचीसी में जी रहल हल ।) (बिगुल॰60.13)
469 लटफरेम (= प्लैटफॉर्म) (भोर हो गेल हल । गाड़ी अब हवड़ा लटफरेम पर रुके ले हल । समान बान्हते-बान्हते मुसके लगलन कि अपन सउँसे जवानी किस्ते में बाँटके लड़कन के थोक बनइलन हल मुदा लड़कन सब उनका किस्ते में बाँट देलक । अब छो महीना कलकत्ता वाला बेटा के साथ रहे के हे ।; जोम में टीसन पहुँच गेल । मिसमाँमीस में भी चन्दू एकदम अकेलुआ बूझ रहल हल । अपन टीसन त ई टीसन के मिलान में एकदम्मे टीसनी हे । गाड़ी-घोड़ा सब लटफरेमे पर चल जा हे ।) (बिगुल॰25.29; 33.4)
470 लड़ाय (रघुबंस के 'राम' होवे ले बाबुए जी उसकइलन हल । रघुबंस के उपदेश देवे घड़ी ऊ अपन जिनगी-जुआनी के जहमत भूल जा हलन । सोचऽ हलन कि जल्दी में गद्दी देके आवे वला दिन से एकदम निछक्का हो जाम । गद्दी की हल ! बित्ता भर छप्पर के छारल छँहुरी, जे बाबूजी के मेहनत-मजूरी के लमहर लड़ाय से बनल हल ।; रसोइ त अँगने में बनऽ हल मुदा थरिया भितरे में परसा हल । कभी नीपे ले त कभी बाढ़े ले आउ कभी-कभी बुतरुन-बानर के चलते अँगना लड़ाय के अखाढ़ा हो गेल ।) (बिगुल॰36.10; 38.6)
471 लदल (बनारसी बाबू के ई सब से मतलबे की हल ? टरक रुकतहीं अपन लदल समान के चारो दने घूर के देख ले हलन । टरक पर लदल समान उनकर सउँसे नौकरी के उतार-चढ़ाव के नक्सा पेश करऽ हल । नौकरी के बुरा-भला दिन तिरपाल से एकदमे ढँकल हल ।) (बिगुल॰52.8)
472 लबज (= लफ्ज, शब्द) (धउग के ऊ अपन गाँव आउ अब अपन अँगना में आ गेल हल । खबर त बिजली नियन पसर गेल । छोट-मोट बस्ती ओकर घरे में समा गेल हल । जे आवऽ हल ऊ धड़-सा चिट्ठिये पकड़ ले हल आउ एक्के लबज - 'रीता के लड़का होल हे ।' बाबू जी त हरिया हलुआय के दोकान सउँसे गाँव में बाँट देलन हल ।) (बिगुल॰33.17)
473 लमहर (रघुबंस के 'राम' होवे ले बाबुए जी उसकइलन हल । रघुबंस के उपदेश देवे घड़ी ऊ अपन जिनगी-जुआनी के जहमत भूल जा हलन । सोचऽ हलन कि जल्दी में गद्दी देके आवे वला दिन से एकदम निछक्का हो जाम । गद्दी की हल ! बित्ता भर छप्पर के छारल छँहुरी, जे बाबूजी के मेहनत-मजूरी के लमहर लड़ाय से बनल हल ।) (बिगुल॰36.10)
474 लम्मा (= लम्बा) (ओकर तो लम्मा इलाज हे । लाल-पियर दवाय आउ फोटू लेके ओकरा दू-चार दिन पर जाय पड़ऽ हे । कम्पोटर त ओजन आउ बुखार लेके छोड़ दे हे, पर डाकटर साहेब से बात करे ले दू पहर तक ठहरे पड़ऽ हे ।) (बिगुल॰17.26)
475 ललोसा (= लालसा) (ओकर धियान में महाजन के हँसमुख चेहरा नाच-नाच जा हल । हँसमुख चेहरा के तेज धार से मने-मन घबड़ा हल । मुदा हरिया के समाद से ढाढ़स बँधल हल । तबे तो घर आवे के ललोसा लहकल हल ।; रसे-रसे चनेसर भी खेत पर गोड़ाटाही करे लगल । थकल-फिदाल जब भी आवे त घर में एगो आउरो तनाव महसूसे । बाबू जी के ललोसा हल कि कम से कम छोटका बाहर निकले ।) (बिगुल॰21.21; 49.20)
476 लाय-लेमचूस (जब लछमी सँझउकी खाय बनावऽ हल त ऊ मिसरी के लेके बजार घूमे जा हल । लाय-लेमचूस आउ पिलखजूर खिलावऽ हल । कभी खाली गूँड़े पर संतोख ।) (बिगुल॰21.6)
477 लिजलिजा (ठोस होवे लेल आर्थिक, नैतिक आउ सामाजिक जद्दोजहद के सही समझ के जरूरत हे । अधकचरा गियान त औरत के अउरो लचार आउ लिजलिजा बनावऽ हे । अइसने सोचइत ऊ अपन सास के भाषण से भाव के हिगरा रहली हल । सउँसे घर त अजबे नकलपचीसी में जी रहल हल ।) (बिगुल॰60.13)
478 लिलकल (कलीम साहब पिंजरा के तोता-मैना, खूँटा के बँधल जानवर, दरबा के कबूतर आउ मुरगी से भी जादे बेपनाह हो गेलन हल । ई सब ले तो बउधे काफी हे । मुदा उनकर बुढ़ारी की खाली डराफ आउ सौगाते ले लिलकल हे ? ई सोच-सोच के कलीम साहब आउ उनकर बेगम के सेहत एकदमे ढह गेल । डराफ आउ तोहफा अब बउधे ढोवे लगल ।) (बिगुल॰12.3)
479 लूर-लच्छन (गाँव वलन के मुँह पर तो बस एक्के बात बस गेल हल कि केसो के दिन बहुर गेल । तीन बेटन में एगो चनेसरे दिन निमाहत । तखनइँ दोसर आदमी बात लोक ले हल - भला मेहनत कहियो दगा दे हइ ? अहो, लूर-लच्छन तो पहिले से ही गोवाही दे हलइ ।) (बिगुल॰48.5)
480 लोंझ-पोंझ (एन्ने जमींदारी हिलल तो गवइया के साथ-साथ हाथी जइसन ओहो डोल गेलन । जमींदारी के समय पहलवान जी के लगुआ-भगुआ भी दूध-दही से तरबतर रहऽ हल । तहिया ऊ डेउढ़ी-हवेली के शोभा हलन मुदा अब तो उनकर अपने शरीर लोंझ-पोंझ हो गेल हल ।) (बिगुल॰44.9)
481 लोहमान (जीवन बाबू बाहरे में वजनगर भले रहथ, घर में हौले हो गेलन हल । बेटा-बेटी जइसे-जइसे बड़गो होवऽ हल, ऊ छोटगर होवे लगलन हल । सामने कोय बोले या नञ् मुदा जेकरा जे मन में आवऽ हल करवे करऽ हल । ऊ देख रहलन हल कि उनकर हुमाद आउ लोहमान पर विदेशी इत्र के महक तेज हो रहल हल ।) (बिगुल॰31.17)
482 वजनगर (घर में बेटा-बेटी के बदलल रंग के सामने समझौता से काम चलावे लगलन । घरनी भी उनकर बात के काटे लगली । जीवन बाबू बाहरे में वजनगर भले रहथ, घर में हौले हो गेलन हल ।; ओकरा याद हे कि ई घर के बहू बने में ओकर काम-काजू होवे वली बात जादे वजनगर हल ।) (बिगुल॰31.14; 60.5)
483 वसूलल (रंगरूट सब के दादागिरी से तेहवार लेल ढेरोढेर रकम आवे लगल । बड़गो लोग दादा सब के भारी चंदा देके अपन बाकी दिन ले सुरच्छित हो जा हलन । जीवन बाबू ई नावा रंगदारी वाला वसूलल सिक्का के धक्का से एकदम तिलमिला गेलन हल । ऊ बदलल हवा आउ तूफान में समटाय लगलन तो एकदमे समटाइये गेलन ।) (बिगुल॰31.5)
484 सँझउकी (उनका कंजूस नञ् कहल जा सकऽ हल । हवेली के बनल सँझउकी चाय पीये ले आदमी के तलासवे करऽ हलन । चाय पीये घड़ी देस-विदेस आउ अपन शहरो के छोट-बड़ घटना से तरोताजा होवऽ हलन ।; जब लछमी सँझउकी खाय बनावऽ हल त ऊ मिसरी के लेके बजार घूमे जा हल । लाय-लेमचूस आउ पिलखजूर खिलावऽ हल । कभी खाली गूँड़े पर संतोख ।; सँझउकी घर पहुँचल हल । विचारलक कि बहिन-बहिनोइ से जउरे विदा लेत । ई की, साँझ से रात हो गेल मुदा अनील अभियो नञ् अइलन हल । रीता से उमर में तनिके उनइस हल ।) (बिगुल॰10.19; 21.5; 32.5)
485 संतोख (= संतोष) (जब लछमी सँझउकी खाय बनावऽ हल त ऊ मिसरी के लेके बजार घूमे जा हल । लाय-लेमचूस आउ पिलखजूर खिलावऽ हल । कभी खाली गूँड़े पर संतोख ।; नामी-गिरामी परिवार के ढेरो लड़कन के मंसूरी, शिमला आउ देहरादून भेजाके गौरव महसूस कइलन हल । कभी-कभी किरन जी के भी गरजियन के साथ मंसूरी, शिमला, मद्रास आउ दिल्ली जाय के मौका मिल जा हल । अपन शहर के लड़कन के अंगरेजी लिबास आउ बातचीत के अंगरेजी धार देखके मन ही मन संतोख के साँस ले हलन।) (बिगुल॰21.7; 25.4)
486 सउँसे (राम बाबू सउँसे अखबार में बस दहेज परथा के विरोध में बनल संगठन आउ उन्मूलन के खबर बड़ी चाव से पढ़ऽ हलन । बड़गो शहर के घटना तो देस-परसिद्ध साप्ताहिक आउ मासिक पत्रिका में विस्तार से छपवे करऽ हल । राम बाबू ले देस के उन्नति-परगति से बड़गो समाचार दहेज के खबर लगऽ हल ।; ढेरोढेर दिन पर टुनमुनइलन आउ दुर्गापूजा देखे निकललन । बिजली के चमक से उनका रातो में दिन के भरम हो रहल हल । सउँसे शहर लउडिस्पीकरे के ऊलजलूल आवाज ओढ़ले हल । कीर्तन-भजन तो अलोप गेल हल ।) (बिगुल॰1.1; 31.23)
487 सगुनल (बचपन में ऊ तीनो भाय-बहिन खुब्बे मिल-जुल के रहऽ हल । सावन के सगुनल घड़ी लेल छोटकी राखी बान्हे या भेजे लेल त महिनो-महिना से तैयारी करऽ हल । तीनों के मेल-जोल या झगड़ा में भोला बाबू आउ उनकर मेहरारू के अजबे अनंद मिलऽ हल ।) (बिगुल॰5.12)
488 सटिफिकेट (अनेकन बार तीज-त्योहार आउ साड़ी-कपड़ा लेल झगड़ा होवऽ हल मुदा उनकर घरवाली के साड़ी निछावर हो जा हल आउ राम बाबू अपन फुलपैंट रफूघर में घर के डाकघर के बचत योजना के सटिफिकेट लेके सथा जा हलन ।; अपन राधिका के कामकाजू बनावे ले एकदम नवा नक्सा नाधे लगलन हल राधे बाबू । पढ़ाय-लिखाय आउ सटिफिकेट के मंडी में मँड़राय लगलन । कुच्छे समय में धुरन्धरी आउ पइसा के प्रभाव के जोड़-तोड़ से गियान से जादे सटिफिकेटे सरिया देलन । पसरल सटिफिकेट के देख-देख के राधिका के गियान से ओकरा तौलते मन ही मन कुछ सोचे लगऽ हलन । उनका लगऽ हल कि अइसनका सटिफिकेट से संस्था सब के की कलियान होत ?) (बिगुल॰2.4; 42.8, 10, 12)
489 सटिफिकेटिया (~ गियान) (फिनु कामकाजू जन्नी-मरद के जिनगी के दरकइत देवाल भी नजर तर हे जेकर दिरइँची से बाहरी लोग भितरकी दशा देखऽ हथ । नकलपचीसी के पढ़ाय-लिखाय के एहे असर होवऽ हे । अइसन सटिफिकेटिया गियान वली कामकाजू जन्नी पर मरद के धौंस कम नञ् होवऽ हे ।; राधे बाबू के लगऽ हल कि राधिका के कामकाजू होते उनकर पसेना पउडर आउ लमेंडर के लेप में लोप हो जात । मुदा फिनु राधिका के सटिफिकेटिया गियान के भंजावे ले अउनपथारी हो जा हलन ।) (बिगुल॰42.20-21; 43.16)
490 सथाना (बड़गो शहर के ई सब समाचार पढ़के आम आदमी के रोम-रोम कप जा हे । महिला-प्रदर्शन, अनशन आउ दहेज विरोधी सभा के सिलसिला कुछ दिन जोड़ पकड़ ले हे, फिन सब सथा जा हे ।; अनेकन बार तीज-त्योहार आउ साड़ी-कपड़ा लेल झगड़ा होवऽ हल मुदा उनकर घरवाली के साड़ी निछावर हो जा हल आउ राम बाबू अपन फुलपैंट रफूघर में घर के डाकघर के बचत योजना के सटिफिकेट लेके सथा जा हलन ।; उपरकिये पन्ना पर फोटू के साथ एगो बड़गो परिवार के घटना हल । दहेज में फ्रीज बाकी रह जाय गुनी बहू के किरासन तेल से जला देवल गेल हल । लास के भयानक तस्वीर देखके रामबाबू के रोमाँ-रोमाँ सिहर गेल आउ गंगा के पानी अब एकदमे सथा गेल ।) (बिगुल॰1.17; 2.4; 4.30)
491 समटाना (= सिमट जाना) (रंगरूट सब के दादागिरी से तेहवार लेल ढेरोढेर रकम आवे लगल । बड़गो लोग दादा सब के भारी चंदा देके अपन बाकी दिन ले सुरच्छित हो जा हलन । जीवन बाबू ई नावा रंगदारी वाला वसूलल सिक्का के धक्का से एकदम तिलमिला गेलन हल । ऊ बदलल हवा आउ तूफान में समटाय लगलन तो एकदमे समटाइये गेलन । ऊ बूझे लगलन हल कि ई नावा रंगरूट के सामने देश, समाज आउ धार्मिक बात करनइ फजूल हे । अपन सामने ही उनकर बात-विचार के बखिया उघर गेल । ऊ जलसा से समटाल दरी-बिछौना जइसन समटा गेलन ।) (बिगुल॰31.7, 10)
492 समधिअउरा (रीता के बियाह के बाद समधिअउरा के रुख बदल गेल हल । भूलल-भटकल बेजान चिट्ठी कभी-कभार मिल जा हल । वहाँ के लमहर चुप्पी से माय-बाबू के चेहरा के रंग एकदम बदरंग हो गेल हल ।) (बिगुल॰34.10)
493 समाद (ओकर धियान में महाजन के हँसमुख चेहरा नाच-नाच जा हल । हँसमुख चेहरा के तेज धार से मने-मन घबड़ा हल । मुदा हरिया के समाद से ढाढ़स बँधल हल ।) (बिगुल॰21.20)
494 समुच्चे (एह ! तेल पिलावल मोटगर लाठी आउ अढ़ाय-गज्जी के फेंटा बान्ह के जखनी निकलऽ हलन तो केकर मजाल कि अलीफ से बे कर दे । समुच्चे जिला-जेवार में इनकर पहलवानी के नाम हल ।) (बिगुल॰44.5)
495 सरगीय (= स्वर्गीय) (ई सब करे पर भी करम के बात, अपन सरगीय पिता पटवारी जी के बनावल नहर तर वलन खेत बेचके अजय के डागडरी आउ विजय के इंजीनियरी कॉलेज में चंदा देके दाखिल करावे पड़ल ।) (बिगुल॰6.16)
496 सर-सगुन (अबकी बेर जब पु्ष्पा के दोसर महीना चल रहल हल, तखनिये ओकर बाँह में ताबीज बाँधल गेल त ऊ एकदम चउँक गेली हल । भूत-भभूत से नउवो महीना होते-हवाते सर-सगुन के रस्ता से अस्पताल के पेइंग वाड में पहुँचली हल । पुष्पा अस्पताल में लोघड़ल नारी मुक्ति आन्दोलन, बरोबरी के अधिकार आउ नारी जागरन के नारा के नबज टिटकोरइत अपन सास के नेतागिरी पर मन हीं मन मुसक जा हली ।) (बिगुल॰60.1)
497 सरसत्ती (= सरस्वती) (जीवन बाबू किसुन पंडित के हाल देखलन हल । खुब्बे निमन मूरति बनावऽ हल । देवी पूजा, लक्ष्मी पूजा, सरसत्ती पूजा के महीनो-महीना पहिलहीं से भीड़ में घेराल रहऽ हलन ।; सरसत्ती के किरपा से महिला कॉलेज में हिन्दी पद पर नौकरी के जुगुत-जोगाड़ बइठ गेल । नौकरी भेटतहीं पुष्पा के जिनगी से फूल जइसन महक धीरे-धीरे फइले लगल ।) (बिगुल॰30.20; 57.6)
498 सर-समान (नौकरी में बनारसी बाबू के कभी भाड़ा के मकान त कभी कोलनियो में रहे पड़ल हल । भाड़ा-किराया वला मकान के जिनगी तो पास-पड़ोस से चुनचान के कटिये जा हल । मुदा कोलनी वला समय खुब्बे आपाधापी, चमक-दमक आउ नकलपचीसी में कटल हल । आधुनिक सर-समान के रोग त एकदम्मे महामारी जइसन फइलऽ हल ।) (बिगुल॰53.1)
499 सर-सरजाम (पइसा से खाली आधुनिक सर-सरजाम, बनावटी सुविधा, विदेशी बेहवार आउ ऊँच उठइत आलीशान मकान में नीचे एकदम्मे नीचे गिरइत आदमी पावल जा सकऽ हे । बड़ शहर के बड़गो लोग के कार-करनामा के हाल पढ़के जीवन बाबू के होश-हवास उड़ जा हल ।) (बिगुल॰29.30)
500 सर-सिनेमा (टोला-पड़ोस के चमक-दमक के टुकुर-टुकुर ताकते उनकर आँख पथरा जा हल । शहरी जिनगी हल, ई लेल ठाट-बाट त गाड़ी, रिक्सा से पटल आउ सर-सिनेमा से बिखरल देखतहीं रहऽ हलन, मुदा की मजाल कि कोय सटे दे !) (बिगुल॰37.2)
501 सराध (= श्राद्ध) (साथी-संगी के घर के शादी या सराध में आठो पहर पिलल रहऽ हलन । तिलक-दहेज के बात पर बलबला जा हलन ।) (बिगुल॰29.24)
502 सलाय-बीड़ी (साइमन के हाल पर अब ओकरा तरस आवे लगल हल । बाप रे बाप ! बाल-बुतरुन के छइते ई दुख ! चाह के दोकान में बइठते-बइठते अब दुन्नू में सलाय-बीड़ी के अदला-बदली होवे लगल हल ।) (बिगुल॰18.13)
503 सवादना (उनका लगऽ हे कि साइत डॉ॰ बैजनाथ वर्मा के भाषण से शहर के जकड़न टूटत आउ बड़गो शहर के शहद एही शहर में सवादल जात ।) (बिगुल॰42.3)
504 सहेर (हियाँ तो हार-फूल, ठंढा-गरम के गहमागहमी से चन्दू के लग रहल हल कि सउँसे लटफारम कउनो काजपरोज या उत्सव के जगह हे । डिब्बा के खिड़की-दुआरी में सहेर के सहेर औरत-मरद दूर से टंगल लग रहल हल ।) (बिगुल॰33.8)
505 सहेली-मित्तिन (दमयंती अपन सहेली-मित्तिन जउरे दिन भर में अस्पताल के कत्तेक चक्कर लगावऽ हली । नर्स आउ दाय के त हिदायत करतहीं रहऽ हली । उनकर मित्तिन सब अंगुरी के पकड़ा-पकड़ी आउ पइसा के चित्त-भुद करके महौल के अउरो महीन करके चल जा हली ।) (बिगुल॰60.16)
506 साँझे-बिहने (= शाम-सुबह) (साहब लोगन के हर हिदायत आउ झिड़की पर भोला बाबू के मन में अप्पन अजय आउ विजय के साहब बनावे के बात आउरो मजगूत हो जा हल । अजय-विजय के रोज-रोज साँझे-बिहने व्यवहारिक ज्ञान देल करऽ हलन ।; हकीम साहब अनकर जगह के हवा-पानी से ताजा होवऽ हलन आउ फिनू अखाढ़े में । कलीम साहब आउ उनकर बेगम के साँझे-बिहने हवाखोरी के सुझाव सुझइलन, साथे-साथ ई उमर में दान-पुन्न के बात दोहरइलन ।) (बिगुल॰6.5; 12.12)
507 सामी (= स्वामी) (सतनारायन सामी के पूजा से तहिया सउँसे घर गजगजा गेल हल । चुरुआ भर-भर परसाद बँटल हल ।) (बिगुल॰48.1)
508 साहबी (अजय-विजय के साहबी के सामने छोटकी के भार भोला बाबू ले कहियो बड़गो नञ् बुझाल हल । शादी के कुच्छे दिन बाद पुतहू के पैतरा आउ बेटन के रंग से उनकर खियाल के चट्टान हिले लगल ।; भोला बाबू चाह पीते-पीते छोटकी के शादी के बात छेड़ देलन । दुन्नू परानी खुब्बे गौर से सुने लगलन । दुन्नू के धियान तब टूटल जब भोला बाबू पइसा-कउड़ी के बात पर अइलन । बहू तो तुरते कोठरी छोड़ देलकी । बेटा अब अपन लाचारी आउ महँगारी के बात करे लगल । भोला बाबू अजय के चेहरा पर धियान टिकउले सुनते रह गेलन । उनका लगे लगल कि अजय के साहबी पर शहरी हवा हावी हे ।) (बिगुल॰7.18; 8.8)
509 सिंगरदानी (बियाह तो उनकर लड़कपने में हो गेल हल, मुदा गउना लेल बछरो-बच्छर इंतजार करते-करते गीत-गजल के ढेर लगा देलन हल । मेहरारू के अइते, अपन घर-गिरहस्ती के शोहरत जइसन सजावे लेल सोचे लगलन हल । सबसे पहिले रमोतार मिस्तिरी के कारखाना जाय पड़ल हल । रमोतार के लड़कन उनकर स्कूल में पढ़ऽ हल । कुरसी-टेबुल आउ सोफा के अलावे एगो अइना लगल सिंगरदानी के जरूरत ढेर दिन से महसूस रहलन हल ।) (बिगुल॰24.10)
510 सीझना (मोटगर रकम के डराफ त सभे दने से लगातारे आ रहल हल । तरह-तरहके कपड़ा आउ अम्मा ले किसिम-किसिम के साड़ी-गहना ! मुदा अब ई सिलसिला के आग में मियाँ-बीबी सीझे लगलन हल । डराफ आउ सौगात से अब उनकर मन घबड़ाय लगल ।) (बिगुल॰11.25)
511 सुखाना (छोट-मोट रोजी-रोजगार के लत्तर खुब्बे फइलइलन हल । मुदा रोजगार के लत्तर हरियर हो-हो के पियरा जा हल । तब भी मन से कहियो हार नञ् मानलन हल । एक्के जउरी से बँधल रहे के बात सोचते रहऽ हलन । उनकर घरनी भी परिवार के नावा नक्सा ले ओदगर हाथ सुखइते रहऽ हली । बड़गो शहर के झमेटगर घराना से अइली हल ।) (बिगुल॰37.27)
512 सूतल (टरक से हटके उनकर धियान डलेवर आउ खलासी दने रह-रह के चलिये जा हल । इतमीनान से सूतल सुसता रहल हल । एगो मेहरारू ओही सब साथ बइठल दनादन सिगरेट पी रहल हल ।) (बिगुल॰52.12)
513 सेंगरन (ई सेंगरन आकाशवाणी, पटना आउ पत्र-पत्रिका में छितराल अदीप के कहानी सब के चुन-बिछ के सहेजलक हे ।) (बिगुल॰vii.12)
514 सेसर (घर में केतना समझावऽ हल चनेसर कि मिल्लत से मोहिम काम भी महीन हो जा हे । मुदा देखे लगल कि ओकर घरेवली सब से सेसर निकल रहल हे । केकरो बात भी भुइयाँ पड़े नञ् दे हे ।) (बिगुल॰49.27)
515 सोझराना (= सुलझना; सुलझाना) (साझा परिवार के मेरावल जउरी जब ओझरा हल तब सोझरइवे नञ् करऽ हल । तभियो रघुबंस तन-मन के गरमी के अपन आचरण से इड़ोत करते रहऽ हलन ।; दमयंती के पति दिनेश बाबू शहर के सफल रोजगरिया हलन । रोजगार में दिन से रात-रात तलुक डूबले रहऽ हलन । जउर-पगहा वेवस्था साथे घोंजरा जा हल त दमयंतीये सोझरावऽ हली ।) (बिगुल॰37.30; 57.25)
516 सोना-चानी (कपड़ा के जमल दोकानदारी हल । देश के चुनल मील के कपड़न से दोकान चकमकइते रहऽ हल । विदेसियो कपड़ा के गाँहक नञ् घुरऽ हलन । साथे-साथ सोना-चानी आउ गिरमी-गट्ठा के गढ़गर आमदनी लेल हाथ-गोड़ चलइतहीं रहऽ हलन ।) (बिगुल॰57.30)
517 सोभवगर (कॉलेज तो चल निकलल । लड़कन तराउपरी । महीनो-महीना बाद मीटिन होल आउ निरलय लेल गेल कि तीज-तेहवार में हाथ ओदा कइल जात । ई बीच चनेसर के नाम सउँसे सहर में खिंड़ गेल । उम्दा पढ़ाय आउ सोभवगर विचार से जे मिले ओकरे हो जाय ।) (बिगुल॰50.25)
518 सोह (= सोहसराय) (देस में, लछमी पुरान हो जाय पर भी सब ले नये हल मुदा अपनो शहर बसुआ ले नये लग रहल हल । भरावपर, गढ़पर, पुलपर सब नया लग रहल हल । सोह-बिहार एक्के हो गेल हे । तब टमटम से दीयाबत्ती के बाद सोह से बिहार आवे में केतना डर लगऽ हल । ऊ तो फुचिया टमटम वला के 'टीप-टीप' आउ ओकरे विरह के धुन पर चढ़के सोह से बिहार आवऽ हल ।) (बिगुल॰22.2)
519 सोह-बिहार (= सोहसराय-बिहारशरीफ) (देस में, लछमी पुरान हो जाय पर भी सब ले नये हल मुदा अपनो शहर बसुआ ले नये लग रहल हल । भरावपर, गढ़पर, पुलपर सब नया लग रहल हल । सोह-बिहार एक्के हो गेल हे । तब टमटम से दीयाबत्ती के बाद सोह से बिहार आवे में केतना डर लगऽ हल । ऊ तो फुचिया टमटम वला के 'टीप-टीप' आउ ओकरे विरह के धुन पर चढ़के सोह से बिहार आवऽ हल ।) (बिगुल॰22.1)
520 हँसुली (गाड़ी में बइठे के जगह मिल गेल, मुदा सनेस सम्हारे में साँस फूलऽ हल । एक से एक सौगात ! केतारी, चिनियाँबेदाम, बूँट के झंगरी, गी, सत्तू आउ ताजा भुंजा के डिब्वा-डिब्बी । ई सबसे अलग उनकर घरवली के धियान हरदम हँसुली पर हल ।) (बिगुल॰46.2)
521 हथपातर (ई लंगो-तंगो आउ हथपातर हालत देखके घर से सुझाव मिलल कि बड़गो शहर हे । काहे नञ् चनेसर कोय दोसरो रोजगार करे, कॉलेज के पढ़ाय तो एकरे समय से जानल हे ।) (बिगुल॰51.11)
522 हप्प (मुँह ~ हो जाना) (ओकरा समझते देर नञ् लगल कि अपन पैरवी आउ पहुँच के झाँसा देके ससुर छोटकी बेटी लेल भी लड़का तलास रहलन हे । तब घरवली आउ मुन्ना के साथे ससुरार से विदा हो गेल ।/ घर में, बात-बात पर बाबू जी कहे लगलन कि बियाहे घड़ी ससुर नौकरी के नक्सा बतावऽ हलथुन, चेकर चोट से चनेसरवली के मुँह हप्प हो जा हल ।) (बिगुल॰49.15)
523 हलुआय (= हलुआई) (धउग के ऊ अपन गाँव आउ अब अपन अँगना में आ गेल हल । खबर त बिजली नियन पसर गेल । छोट-मोट बस्ती ओकर घरे में समा गेल हल । जे आवऽ हल ऊ धड़-सा चिट्ठिये पकड़ ले हल आउ एक्के लबज - 'रीता के लड़का होल हे ।' बाबू जी त हरिया हलुआय के दोकान सउँसे गाँव में बाँट देलन हल ।) (बिगुल॰33.17)
524 हाथ-गोड़ (कपड़ा के जमल दोकानदारी हल । देश के चुनल मील के कपड़न से दोकान चकमकइते रहऽ हल । विदेसियो कपड़ा के गाँहक नञ् घुरऽ हलन । साथे-साथ सोना-चानी आउ गिरमी-गट्ठा के गढ़गर आमदनी लेल हाथ-गोड़ चलइतहीं रहऽ हलन ।) (बिगुल॰57.30)
525 हियाना (दू डैना के पंखा हियइते-हियइते पुष्पा के झपकी आ गेल । फिन जगला पर देखलक कि एकल्ले दाइये गाड़ी लेके ओकरा ले जाय ले आल हे आउ मालूम होल कि दमयंती आज केकरो से नञ् मिल रहली हे ।) (बिगुल॰60.28)
526 हुमाद (जीवन बाबू बाहरे में वजनगर भले रहथ, घर में हौले हो गेलन हल । बेटा-बेटी जइसे-जइसे बड़गो होवऽ हल, ऊ छोटगर होवे लगलन हल । सामने कोय बोले या नञ् मुदा जेकरा जे मन में आवऽ हल करवे करऽ हल । ऊ देख रहलन हल कि उनकर हुमाद आउ लोहमान पर विदेशी इत्र के महक तेज हो रहल हल ।) (बिगुल॰31.17)
527 हुलकना-बुलकना (चनेसर धिरजा बान्हलक कि ससुर उँचगर ओहदा पर हथ, कउनो जुगाड़ से नौकरी देला देता । ई लेल ओकर धियान घर से जादे ससुरारे पर लग गेल । महीना खाँड़ में हुलक-बुलक आवे ।) (बिगुल॰49.6)
278 धंधउरा (एक दिन धंधउरा तर मकइ के बाल सेंकइत बड़का भइया आसते से इसारा कइलका कि कब तक सब से नुका-छिपा आउ कतरब्योंत करके तोरा जेब खरचा चलइअउ । तखने ओकर आँख झरझरा गेल ।) (बिगुल॰49.31)
279 धउगना (ई सब छो-पाँच करिये रहल हल कि लछमी दरद से छटपटाय लगल । ओकरा तुरते 'मातृसदन' अस्पताल ले गेल हल । फोहवा एकदम्मे मिसरी नियन दप-दप हल । मुंसी जी ओकरा मिसरिये कहके पुकारऽ हलन । धीरे-धीरे मिसरी अइँटा से छड़ पकड़के धउगे लगल हल ।; गाड़ी त तेज भाग रहल हल, ओकरो से तेज चल रहल हल चन्दू । धउग के ऊ अपन गाँव आउ अब अपन अँगना में आ गेल हल ।) (बिगुल॰21.2; 33.14)
280 धउगा-धउगी (दिन में आदमी से जादे जानवरे नजर आवऽ हल, मुदा रात में आदमी के डर से जानवर एकदमे अलोप जा हल । रात भर आदमी के हो-हल्ला, धउगा-धउगी आउ बम-पटाका के अवाज से सउँसे महल्ला थरथराल रहऽ हल ।; डिब्बा के खिड़की-दुआरी में सहेर के सहेर औरत-मरद दूर से टंगल लग रहल हल । रेल जब खुलल त लोगबाग लटफरेम पर धउगा-धउगी करे लगलन ।; उनका हरदम अंदेसा लगल रहऽ हल कि कखने सुरताल के अवाज अँगना से आगू बढ़े लगत ! ऊ त कहऽ कि उनकर मेहरारू अपन भारी अवाज से कुछ आड़ले रहऽ हली । हाँ ! बइठका के बइठकी भी अब खतमे कर रहलन हल । चाय-पान साथे गरजा-गरजी के पीयत ? घर के बुतरुन ले खेले-कूदे के नाम पर धउगा-धउगी आउ गिलासे-कटोरा हल, जेकरा से दिनो भर नवा-नवा धुन तैयार करते रहऽ हल ।) (बिगुल॰13.24; 33.9; 39.23)
281 धकमपेल (भीड़ एतना कि आदमी आदमी के खाली चेहरे देख रहल हल । ई धकमपेल में कुसलछेम पूछे के भी आसार नञ् । अकबका के घर घुर अइलन मुदा घर में बेटन के भीतर से रेडियो आउ टेपरिकाडर पर फिल्मी गीत आउ डिस्को धुन के भारी आवाज से उनकर मगज के संतुलन बिगड़ गेल ।; बड़ी धकमपेल से पहलवान जी दिल्ली में उतरलन । कुली एक-एक समान सहित टैक्सी में बइठा देलक । ऊ डेरा के पता वला चिट्ठी डरेवर के थम्हइते संतोख के साँस लेलन ।) (बिगुल॰31.27; 46.8)
282 धकियाना (चन्दू के बुझाय लगल कि घर के सब गहमागहमी ओकरा धकियावे लगल हे । दूर बहुत दूर मद्धिम बत्ती तर मच्छरदानी से घेराल एगो फोहबा देख रहल हल ।) (बिगुल॰35.25)
283 धक्कम-धुक्की (नावा-नावा लोग ! अनजानल जगह ! कलकत्ता के बाते दोसर हल । एही धक्कम-धुक्की में बुतरु से जवान आउ जवान से अब बूढ़ी हो चलल हे ।) (बिगुल॰21.23)
284 धच्चर (मन में आल कि उँचगर दोकान खोले ताकि ओकर तंगो नञ् तउलाय । फिनु ओकरा सामने कभी कॉलेज आउ कभी बजार में दोकान के स्टूल खड़ा हो जाय । आखिर धोकड़ी के धच्चर कर-किताब आउ अखबार के दोकान खोला देलक ।) (बिगुल॰51.20)
285 धड़-सा (= झट से) (धउग के ऊ अपन गाँव आउ अब अपन अँगना में आ गेल हल । खबर त बिजली नियन पसर गेल । छोट-मोट बस्ती ओकर घरे में समा गेल हल । जे आवऽ हल ऊ धड़-सा चिट्ठिये पकड़ ले हल आउ एक्के लबज - 'रीता के लड़का होल हे ।' बाबू जी त हरिया हलुआय के दोकान सउँसे गाँव में बाँट देलन हल ।) (बिगुल॰33.16)
286 धधाना ( रोजगार से राजा बनइ के राज त नइहरे से जानऽ हली, जेकरा ससुरार में देउर सब के बीच बखानते रहऽ हली । शुरू में उनका एगो सुकून मिलऽ हल । अलगउँझा के आग कहियो धधाय नञ् दे हली ।) (बिगुल॰38.29)
287 धधाल (समता विसमता के घाट में अउघट चाल जदि देखे के होय तो अपने 'अदीप' जी के कहानी सेंगरन देख सकऽ ही । निछक्का सामाजिक दुराव, पारिवारिक विघटन अउ भौतिक चकाचौंध के पीछे बउड़ाल, धधाल अदमी के चेहरा पर जे नकली मुखौटा हे ओकरा हर मोहड़ा पर एकरा में देखल जा सकऽ हे ।) (बिगुल॰vi.21)
288 धपड़ाही (एगो घिसल चेहरा वाला नौकर आके ओकरा सिर से गोड़ तक बड़ी देरी तक देखलक हल । ओकरे से मालूम होल हल कि मेहमान आउ रीता कउनो नेउता में गेल हका । इंतजार करइत चन्दू के नजर के सामने अपन घर के गीत-नाध, गहमागहमी, आपाधापी आउ सउँसे तैयारी के नक्सा नाच गेल । ओकरा लग रहल हल कि माय-बाबू जी के उजलत, अप्पन धपड़ाही सब ठंढा गेल ।) (बिगुल॰35.23)
289 धाँगना (सच में, महल्ला की हल ! दिन भर गाय-बैल, बकरी, गदहा-गदही आउ मरियल कुत्ता-कुत्ती सउँसे महल्ला के धाँगते रहऽ हल । दूर-दराज से आवल कुत्ता 'झाँव-झाँव' करते रहऽ हल ।) (बिगुल॰13.18)
290 धाह (साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल । ऊ, बाबू जी बीच-बचाव नञ् करतन हल त एक खेर तीन खुंडी । तहिये से घर में दरार पड़ गेल जेकर दिरइँची से टोला-टाटी के बतसल बेयार पइसे लगल । गोतनिन के मुँहफुलौअल तो साधारन हल, कभी-कभी सउँसे घर गरमा जा हल जेकर धाह से गोतिया के गेनरा सूखे लगल ।) (बिगुल॰50.11)
291 धियान (= ध्यान) (बइठका में जउरे बइठल भाय लोग रघुबंस दने ताक रहलन हल । बाबूजी फिनो चुप हलन । फोटू हाथ में धरतहीं रघुबंस भीतर तक काँप गेलन आउ उनकर धियान बच्छरो-बच्छर पहिले के छानबीन आउ चुना-चुनी पर चल गेल ।) (बिगुल॰39.29)
292 धुरन्धरी (अपन राधिका के कामकाजू बनावे ले एकदम नवा नक्सा नाधे लगलन हल राधे बाबू । पढ़ाय-लिखाय आउ सटिफिकेट के मंडी में मँड़राय लगलन । कुच्छे समय में धुरन्धरी आउ पइसा के प्रभाव के जोड़-तोड़ से गियान से जादे सटिफिकेटे सरिया देलन । पसरल सटिफिकेट के देख-देख के राधिका के गियान से ओकरा तौलते मन ही मन कुछ सोचे लगऽ हलन ।) (बिगुल॰42.9)
293 धोकड़ी (= जेब) (हाथ में मोटगर-मोटगर फाइल आउ चारो धोकड़ी सरकारी पुरजा-पुरजी से भरल रहऽ हल । साहब लोगन के हर हिदायत आउ झिड़की पर भोला बाबू के मन में अप्पन अजय आउ विजय के साहब बनावे के बात आउरो मजगूत हो जा हल ।; डाकटर साहेब त बस, एक हाथ से पइसा - एक हाथ से पुरजा, एक हाथ से पइसा - एक हाथ से पुरजा ! कभी-कभी गोस्सा वला अवाज ! डाकटर साहेब भी की करतन ? कभी-कभी उटपुटांग मरीजो रहऽ हे । एक्के बात के दस बेर ! जइसे-जइसे समय बीतऽ हे, डाकटर साहेब के उपरकी धोकड़ी गदरा के गब्भिन हो जाहे, तब उनकर चेहरा के रंग आउ खिल जाहे ।; शहर में कोय मंदिर बने के हो या धरमसाला, चौबीसो घड़ी चंदा के रसीद अपन धोकड़िये में रखले रहऽ हलन । जेवार के दरजनों पुस्तकालय आउ कनिया विद्यालय में जीवन बाबू के सहजोग के चरचा कहियो बासी नञ् होवऽ हल ।) (बिगुल॰6.2; 17.24; 29.15)
294 धोखड़ल (ई सब कथा-कहानी आउ तूल-तेवर से केसो के मन असमान छूए लगल । चनेसर एम॰ए॰ में अव्वल आल हल । नोनी लगल धोखड़ल देवाल, उटंग केवाड़ी, खपड़ा के छप्पर केसो के आँख में गड़े लगल । उनके सामने किसुन आउ कैलास के घर देखते-देखते आँख में गड़े लगल ।) (बिगुल॰48.7)
295 धोबियापाट (पहिले तो पहलवान जी सोचलन कि भतीजा हमर लाठी उठावत, अखाढ़ा सम्हारत । अखाढ़ा के धूरी ओकरो लगावे लगलन । मुदा भगवान दास धोबियापाट आउ कइँचिया सीखे से जादे धियान गुरुपिंडे पर दे हल । हरदम करे-किताब के बात करऽ हल ।) (बिगुल॰45.4)
296 धोवाना (= धुलना, साफ होना; धुलाना, साफ करवाना) (पत्रिका भी निकाललक आउ किताबो छपवइलक । एकरा, ई तेवर बचावे खातिर 'टिसनिया सर' भी बने पड़ल । मुदा कुछ दिन में देखे लगल कि एकर ताव के रग्गड़ से जंगालो कलम के जंग छूटे लगल, पुरान शेरवानी धोवाय लगल । अखढ़ियन के अखर गेल । एकर सरगना होनइ के कबूले ले तइयारे नञ् ।) (बिगुल॰51.1)
297 नइका (= नया) (बियाह एगो आधुनिक सामाजिक विज्ञान हे । ढेरो बच्छर नया-नया अविस्कार आउ परयोग हो रहल हे, जेकरा से जूझे ले ढेरो ताकत आउ अभिनय के जरूरत हे । नइका धनकुबेर के सामने तो आँख-कान दुन्नो सुन्न हो जा हे । लड़का के पैसा से तउलके कीन लेल जा हे ।) (बिगुल॰3.31)
298 नकलपचीसी (अइसे तो एक से एक फूहड़ कामकाजू जन्नी के जानऽ हथ जे विचार में जिनगी भर बेचारिये बनल रहली । फिनु कामकाजू जन्नी-मरद के जिनगी के दरकइत देवाल भी नजर तर हे जेकर दिरइँची से बाहरी लोग भितरकी दशा देखऽ हथ । नकलपचीसी के पढ़ाय-लिखाय के एहे असर होवऽ हे ।; नौकरी में बनारसी बाबू के कभी भाड़ा के मकान त कभी कोलनियो में रहे पड़ल हल । भाड़ा-किराया वला मकान के जिनगी तो पास-पड़ोस से चुनचान के कटिये जा हल । मुदा कोलनी वला समय खुब्बे आपाधापी, चमक-दमक आउ नकलपचीसी में कटल हल । आधुनिक सर-समान के रोग त एकदम्मे महामारी जइसन फइलऽ हल ।; ठोस होवे लेल आर्थिक, नैतिक आउ सामाजिक जद्दोजहद के सही समझ के जरूरत हे । अधकचरा गियान त औरत के अउरो लचार आउ लिजलिजा बनावऽ हे । अइसने सोचइत ऊ अपन सास के भाषण से भाव के हिगरा रहली हल । सउँसे घर त अजबे नकलपचीसी में जी रहल हल ।) (बिगुल॰42.20; 53.1; 60.15)
299 नजकियाना (= नजदीक आना) (माय-बाबू जी चिट्ठी के छो-छो मरतबे पढ़-सुन के छोम्मा दिन निकाललन हल । समय अब एकदम्मे नजकिया गेल हल । चन्दू के एक गोड़ घर त एक गोड़ बजार !) (बिगुल॰34.28)
300 नाता-गोता (दहेज के खिलाफ जहाँ कहीं भी सभा-गोष्ठी होवऽ हल, राम बाबू सबसे आगू बइठऽ हलन । मगर सामाजिक रेवाज के आग में कूदे के तैयारी में लोक-लाज, अपना-पराया, बड़-छोट, नाता-गोता सब भूल गेलन हल ।; अजीम, सलीम आउ शबनम के विदेस बस जाय से कलीम साहब बउधा, बकरी, तोता-मैना आउ सँझउकी चाय से एकदम्मे घुल-मिल गेलन हल । कलीम साब साहब आउ उनकर बेगम के अनबेरा ले अदमिये नञ् भेंटऽ हल । नाता-गोता के त कहियो फटके देवे नञ् कइलन हल । बेटन के खत पढ़-पढ़ के समय काट दे हलन ।; बनारसी बाबू नाता-गोता आउ दूर-दराज के परिवार से हटके पूरा धियान अप्पन उम्दा परिवार पर टिकइले रहलन हल । उनकर सब जोड़-घटाव के माने हल - बेटा-बेटी आउ मेहरारू मुदा उनकर ऊ मनसूबा पर सुमन एगो काँटा रोप देलक हल, हरदम कचकच करके गड़ऽ हल ।) (बिगुल॰2.25; 11.17; 55.4)
301 नामी-गिरामी (साहित्तिक किस्त के जब जानदार सिलसिला शुरु होल त लगले लहर महानगर के एक पत्रिका के सम्पादक हो गेलन । अपन जिला-जेवार के नामी-गिरामी परिवार के लड़कन-लड़की के गीत, कहानी फोटो के साथ खुब्बे छापऽ हलन ।; लड़कन के सही विकास ले जान लगा दे हलन । ढेरो लड़कन के साहित्यकार, इंजीनियर आउ अफसर बनइलन हल । नामी-गिरामी परिवार के ढेरो लड़कन के मंसूरी, शिमला आउ देहरादून भेजाके गौरव महसूस कइलन हल ।) (बिगुल॰23.14; 24.32)
302 नावा (= नयका; नया) (मुझप्पे एक दिन साइमन सिर पर नावा-नावा टोपा आउ ढेरकुन फल-फूल लेके ससु के घर आ बड़ी अधिकार से बाहर चले ले कहलक । ओकरा तैयार होवे में की देर, की सबेर !; बस खुलते ही साइमन ससु से कहलक - "ससु ! आज हमनी के नावा दिन हे ।"; जिनगी के पचास-पचपन कोस तय कइला पर भी जीवन बाबू के थकउनी नञ् बुझा हल । अपन धुन के एकदम पक्का । जिनगी के हर बच्छर के एगो कोस बूझऽ हलन । नावा बच्छर अइते ही ऊ समझऽ हलन कि एगो आउरो कोस तय होल ।; रंगरूट सब के दादागिरी से तेहवार लेल ढेरोढेर रकम आवे लगल । बड़गो लोग दादा सब के भारी चंदा देके अपन बाकी दिन ले सुरच्छित हो जा हलन । जीवन बाबू ई नावा रंगदारी वाला वसूलल सिक्का के धक्का से एकदम तिलमिला गेलन हल । ऊ बदलल हवा आउ तूफान में समटाय लगलन तो एकदमे समटाइये गेलन ।) (बिगुल॰18.25; 29.3; 31.5)
303 निछक्का (समता विसमता के घाट में अउघट चाल जदि देखे के होय तो अपने 'अदीप' जी के कहानी सेंगरन देख सकऽ ही । निछक्का सामाजिक दुराव, पारिवारिक विघटन अउ भौतिक चकाचौंध के पीछे बउड़ाल, धधाल अदमी के चेहरा पर जे नकली मुखौटा हे ओकरा हर मोहड़ा पर एकरा में देखल जा सकऽ हे ।; निछक्का गाँव के जीवन के बेबसी, लाचारी, घुटन आउ उत्पीड़न के उघारे में जहाँ मिथलेश हथ, वहाँ खाली नेउता-पेहानी के पेन से सिआइत शहरी सम्बन्ध के बेलस बखिया बटोर के अदीप उनका से अलग खड़ा हो जा हथ, जहाँ से मगही कहानी एगो मोड़ ले लेहे युगबोध के !; दमाद विदेस में बड़गो ओहदा पर हल । बेटी के बिआह के बादे बेगम सहित एकदमे हौला महसूसे लगलन हल । सभे जिमेदारी से निछक्का ।) (बिगुल॰vi.19; vii.6; 10.29)
304 निमकउड़ी (उनका नीम तर के हवा बड़ नीमन आउ मीठ लग रहल हल । सउँसे देह खटिया पर आउ माथा नीम के जड़िये पर टिकइले हलन । नीम के तो निमकउड़ियो मीठ होवऽ हे मुदा जिनगी के मीठो फल के तीत सवाद से उनकर रोम-रोम काँप जा हल ।) (बिगुल॰53.27)
305 निमाहना (बनारसी बाबू ई बच्छर अपन बेटी के निमाहे ले ठानिये लेलन हल । सोचऽ हलन कि कुसुम के बियाह के लगले-लगल बड़ी लकधक से पोती के बियाह नाधम ।) (बिगुल॰54.31)
306 निरलय (= निर्णय) (महीना दू महीना से जब दिन आगू बढ़ल आउ पइसा मिले के कोय चाल-चपट नञ् भेल त चनेसर सहमे लगल । कॉलेज तो चल निकलल । लड़कन तराउपरी । महीनो-महीना बाद मीटिन होल आउ निरलय लेल गेल कि तीज-तेहवार में हाथ ओदा कइल जात ।) (बिगुल॰50.23)
307 निरार (= ललाट) (ई बेर फिनु टरक लाइने होटल में जाके लगल । बनारसी बाबू के लाइन होटल के अजबे-अजीब ताजा अनुभव हो रहल हल । दूध पीअइत बुतरू टरक रुकतहीं बिढ़नी नियन आदमी के घेर ले हल । टूटल जग, चनकल गिलास, मइल-कुचइल अंगा-पैंट ! पानी की पीअल जात, सउँसे निरारे से पसीना चूए लगऽ हल ।) (बिगुल॰52.5)
308 निलका (ढेरो दिन के बाद कुच्छेक हरफ के लिखल चिट्ठी भेटल हल । बस, नीला रंग के खलिए चिट्ठी से सउँसे घर हरियर ! रजगज ! लोगबाग के निलका चिट्ठी में लाल-लाल, छोट-मोट, गोल-गाल एगो बेसगर चिजोर बँधल नजर आवे लगल ।) (बिगुल॰34.22)
309 नीपना (= लीपना) (रसोइ त अँगने में बनऽ हल मुदा थरिया भितरे में परसा हल । कभी नीपे ले त कभी बाढ़े ले आउ कभी-कभी बुतरुन-बानर के चलते अँगना लड़ाय के अखाढ़ा हो गेल ।) (बिगुल॰38.5)
310 नीमन (रामबाबू आउ उनकर घरवाली बार-बार गंगा में स्नान करऽ हलन । मन एकदमे शांत हो गेल हल । दुन्नो परानी हाथ जोड़-जोड़ के नीमन दमाद के मनउती माँग रहलन हल ।) (बिगुल॰4.24)
311 नुकाना-छिपाना (एक दिन धंधउरा तर मकइ के बाल सेंकइत बड़का भइया आसते से इसारा कइलका कि कब तक सब से नुका-छिपा आउ कतरब्योंत करके तोरा जेब खरचा चलइअउ । तखने ओकर आँख झरझरा गेल ।) (बिगुल॰49.32)
312 नेउता-पेहानी (निछक्का गाँव के जीवन के बेबसी, लाचारी, घुटन आउ उत्पीड़न के उघारे में जहाँ मिथलेश हथ, वहाँ खाली नेउता-पेहानी के पेन से सिआइत शहरी सम्बन्ध के बेलस बखिया बटोर के अदीप उनका से अलग खड़ा हो जा हथ, जहाँ से मगही कहानी एगो मोड़ ले लेहे युगबोध के !; बनारसी बाबू ई सब मामला में खूब नीमन जोड़-घटाव रखऽ हलन । भोज-भात, खान-पियन के नेउता-पेहानी से महीना के शायदे दिन बचऽ हल ।) (बिगुल॰vii.8; 53.5)
313 नेसल (~ दीया) (अजीम, सलीम आउ शबनम के विदेस बस जाय से कलीम साहब बउधा, बकरी, तोता-मैना आउ सँझउकी चाय से एकदम्मे घुल-मिल गेलन हल । कलीम साहब आउ उनकर बेगम के अनबेरा ले अदमिये नञ् भेंटऽ हल । ... लड़कन ले जे नक्सा नाधलन हल, पूरा हो गेल हल । मुदा नक्सा पर नेसल दीया से बुढ़ारी में इंजोर कम आउ धूआँ जादे बुझाय लगल, जेकरा से कलीम साहब के दिमाग झनझना जा हल ।) (बिगुल॰11.28)
314 नेसाना (= 'नेसना' का कर्मवाच्य) (कहानी के सम्बन्ध में हम की कहूँ ? ई सब कहानी के दीया हमर हाजिरे-नाजिर में नेसाल हे, तब भी कह सकऽ हूँ कि ओहे कहानी कहानी कहलाय के दावा करऽ हे, जे अपने अपने रब्बऽ हे, लिखवइया आउ कहवइया से एकदम अल्लग, आलोचक के नजर के ठुनका लगला पर !) (बिगुल॰vii.15)
315 नोकसान (= नुकसान) (पढ़हीं घड़ी घर के लाचारी आउ अपनो जेब-खरच ले कुछ टिसनी करऽ हलन, जे आज तक अपन कसबा में उनका सब माटरे साहेब कहके पुकारे हे । तब भी लाचारी के लालच में कउनो नोकसान नञ् बूझऽ हलन ।) (बिगुल॰15.14)
316 नोनी (ई सब कथा-कहानी आउ तूल-तेवर से केसो के मन असमान छूए लगल । चनेसर एम॰ए॰ में अव्वल आल हल । नोनी लगल धोखड़ल देवाल, उटंग केवाड़ी, खपड़ा के छप्पर केसो के आँख में गड़े लगल । उनके सामने किसुन आउ कैलास के घर देखते-देखते आँख में गड़े लगल ।) (बिगुल॰48.7)
317 नौकरियाहा (चनेसर एम॰ए॰ में अव्वल आल हल । ... घर में परसाद-पवित्तरी अभी बँटिये रहल हल, बाबू जी के पगड़ी बँधाइये रहल हल कि पाँच गो भाय-गोतिया घेर-मेर के चनेसर के विवाह तय कर देलन । चनेसर के लाख मनाहट पर भी माय के बात आउ भोजाय सब के ठिठोलिये के ठहाका गूँज गेल आउ लगले फागुन में बियाह हो गेल । एगो नौकरियाहा बाप के पढ़ल-लिखल बेटी घर में दुल्हन बन के आ गेल ।; साल खाँड़ तक चनेसर ससुरार के चौकठ लाँघते रहल, तेकर अंजाम में ऊ बाप भी बन गेल, मुदा नौकरियाहा नञ् बन सकल ।; बाबू जी के ललोसा हल कि कम से कम छोटका बाहर निकले । खाय भर गल्ला तो उबजिये जाहे, कुछ बाहरी से आवत त घर सम्हर जात मुदा एहो तो घरे के आँटा गील करे लगल । ओन्ने नौकरियाहा बाप के कौलेजिया मेहरारू के ताव अलगे, साड़ी-सटुअन के शिकायत अलगे । गोतनिन के तनिक बोलला पर नाके पर पियाज कटाय लगल ।) (बिगुल॰49.3, 10, 23)
318 पकड़ा-पकड़ी (दमयंती अपन सहेली-मित्तिन जउरे दिन भर में अस्पताल के कत्तेक चक्कर लगावऽ हली । नर्स आउ दाय के त हिदायत करतहीं रहऽ हली । उनकर मित्तिन सब अंगुरी के पकड़ा-पकड़ी आउ पइसा के चित्त-भुद करके महौल के अउरो महीन करके चल जा हली ।) (बिगुल॰60.18)
319 पख (महीना के पहिला पख हल । अपन बटुआ से सिनेमा के तीन गो टिकट अलगे करइत राधे बाबू के हाथ में नोट थम्हइते, झटके के साथ नजर से इड़ोत हो गेली ।) (बिगुल॰43.27)
320 पटोतर (जीवन बाबू हलन त मामूली नौकरी में, मुदा बेहवार आउ विचार से अपन ओहदा से ऊँचे बुझा हलन । ऊ आजादी के आन्दोलन देखलन हल । देसपरेम त कूट-कूट के भरल हल । देस के नेतन के कुरबानी आउ विचार के पटोतर देके अपन साथी-संगी में जोश जगइते रहऽ हलन ।) (बिगुल॰29.12)
321 पठरू (पूरब आउ पच्छिम के जोड़-घटाव में ई समाज के असलिये हिसाब डगमगा गेल हे । आदमी पीढ़ा आउ आसनी छोड़के डायनिंग टेबुल पर आ जा हे मुदा भोजन के पहिले थरिया के चारो बगल पानी ढारवे करऽ हे । एक दने डाकटरी इलाज करावऽ हे आउ दोसर दने डाकबाबा पर पठरू कबूलवे करऽ हे ।; ओकरा जे पइसा मूरति बनावे में मिलऽ हल ओकरा डाकबाबा पर कबूतर आउ पठरू चढ़इवे करऽ हल ।) (बिगुल॰30.16, 25)
322 पढ़नपूत (बेटा-बेटी के अंगरेजी स्कूल में भरती कर देलन हल । लड़कन भी पढ़नपूते हल । अजीम-सलीम के खत पढ़के एक दने रखियो दे हलन मुदा बेटी शबनम के चिट्ठी हिन्दी-उर्दू करके, टोला-पड़ोस के बड़ी शान से समझावऽ हलन ।) (बिगुल॰10.9)
323 पढ़ाय-लिखाय (अपन राधिका के कामकाजू बनावे ले एकदम नवा नक्सा नाधे लगलन हल राधे बाबू । पढ़ाय-लिखाय आउ सटिफिकेट के मंडी में मँड़राय लगलन ।; अइसे तो एक से एक फूहड़ कामकाजू जन्नी के जानऽ हथ जे विचार में जिनगी भर बेचारिये बनल रहली । फिनु कामकाजू जन्नी-मरद के जिनगी के दरकइत देवाल भी नजर तर हे जेकर दिरइँची से बाहरी लोग भितरकी दशा देखऽ हथ । नकलपचीसी के पढ़ाय-लिखाय के एहे असर होवऽ हे ।) (बिगुल॰42.8, 20)
324 पनगर (कमाल के परिवार हल त बस गुप्ता साहेब के, अनकर घर के मौज-मस्ती में केतनो भिंज जाय, मगर अपन घर के ओदा करे के कसम शायदे तोड़ऽ हलन । उनका जिनगी के ई सब तामझाम में एकदमे विश्वास नञ् हल । खरचा-पानी के पनगर विचार के एकदमे ठोस बनाके सजइलन हल ।) (बिगुल॰53.9)
325 परनामी (~ के पइसा) (कभी-कभी एगो पंडी जी अपन परनामी के पइसा गिने ले आ धमकऽ हलन आउ ओकर दुन्नू हाथ पकड़के कहऽ हलन, "तोरा पियार आउ पइसा के जिनगी भर कमी नञ् होत ।") (बिगुल॰16.18)
326 परसाना (रसोइ त अँगने में बनऽ हल मुदा थरिया भितरे में परसा हल । कभी नीपे ले त कभी बाढ़े ले आउ कभी-कभी बुतरुन-बानर के चलते अँगना लड़ाय के अखाढ़ा हो गेल ।) (बिगुल॰38.4)
327 पसेना (= पसीना) (मेहनत में सूझ-बूझ फेंटफाट के एगो नावा मिसाल उरेहे ले हरदमे सोचते रहऽ हलन । अपन पसेना के पइसा आउ यार लोग के करजा-गोमाम से घर-बाहर चमकावे में पिल गेलन हल ।; रसोय घर के चुल्हा से अब राधिका के आँख झमझमाय लगल हल । बिहनउकी रोटी के जगह पर बिस्कुट आवे लगल । देर-अबेर होवे पर चाह के कप-पियाला से राधे बाबू के हाथ चोटाय लगल हल । ऊ त अपन घरनी के नोट से भी चोट खाय लगलन हल आउ पीअइ लेल गोस्से ढेर हल । ऊ राधिका के पइसा में पहिले वला पसेना के गंध खोजे लगलन ।) (बिगुल॰37.22; 43.25)
328 पहिलका (ओकरा कुछो समझ में नञ् आवे हे कि ऊ अब देस के अदमी हे कि परदेस के ! पहिलकन लोग भी तो नञ् हथ । केदार डाकटर, कमेसर मोख्तार, भट्ट जी, राधे बाबू, चुन्नी बाबू, कुमार बाबू आउ अकिल साहब यहाँ तो बस कुच्छो होवे के रहे तो ओकरे धरल जा हल ।) (बिगुल॰22.6)
329 पहिलहीं (जीवन बाबू किसुन पंडित के हाल देखलन हल । खुब्बे निमन मूरति बनावऽ हल । देवी पूजा, लक्ष्मी पूजा, सरसत्ती पूजा के महीनो-महीना पहिलहीं से भीड़ में घेराल रहऽ हलन ।) (बिगुल॰30.21)
330 पातर (बनारसी बाबू अपन छोट बेटन ले ओतना परेशान नञ् हलन जेतना बेटी ले । अब ऊ महसूस रहलन हल कि राजधानी में पढ़ाय-लिखाय, सुख-सुविधा के नाम पर बड़गो मकान नाधे से कइसन ओरिया गेलन हल, हाथ एकदम पातर हो गेल हल ।) (बिगुल॰54.20)
331 पिछलगुआ (राधे बाबू एही देखऽ हलन कि कामकाजू जन्नी के शोहरत के तेज रफ्तार में मरद एकदम्मे पीछू छूट जा हे या पिछलगुआ बन के रह जा हे ।) (बिगुल॰43.1)
332 पियराना (= पीला पड़ना) (छोट-मोट रोजी-रोजगार के लत्तर खुब्बे फइलइलन हल । मुदा रोजगार के लत्तर हरियर हो-हो के पियरा जा हल । तब भी मन से कहियो हार नञ् मानलन हल । एक्के जउरी से बँधल रहे के बात सोचते रहऽ हलन ।) (बिगुल॰37.25)
333 पिलखजूर (जब लछमी सँझउकी खाय बनावऽ हल त ऊ मिसरी के लेके बजार घूमे जा हल । लाय-लेमचूस आउ पिलखजूर खिलावऽ हल । कभी खाली गूँड़े पर संतोख ।) (बिगुल॰21.7)
334 पिलल (~ रहना) (साथी-संगी के घर के शादी या सराध में आठो पहर पिलल रहऽ हलन । तिलक-दहेज के बात पर बलबला जा हलन ।) (बिगुल॰29.25)
335 पिलावल (तेल ~ लाठी) (एह ! तेल पिलावल मोटगर लाठी आउ अढ़ाय-गज्जी के फेंटा बान्ह के जखनी निकलऽ हलन तो केकर मजाल कि अलीफ से बे कर दे । समुच्चे जिला-जेवार में इनकर पहलवानी के नाम हल ।) (बिगुल॰44.3)
336 पीढ़ा (पूरब आउ पच्छिम के जोड़-घटाव में ई समाज के असलिये हिसाब डगमगा गेल हे । आदमी पीढ़ा आउ आसनी छोड़के डायनिंग टेबुल पर आ जा हे मुदा भोजन के पहिले थरिया के चारो बगल पानी ढारवे करऽ हे ।) (बिगुल॰30.13)
337 पुन्न (= पुण्य) (पूजा के पहिले घंटो-घंटा विस्तार से बात करऽ हलन मुदा पूजा अइते मातर पूरा खरचा जोड़के रोमाँ सिहर जा हल आउ जतरा के कबूलल पइसा डाकघर या बैंक के हवाले करके कलकत्ता आउ काली माय के पुन्न महसूसऽ हलन ।) (बिगुल॰2.11)
338 पेउन (= पेउँद, पेवंद) (निछक्का गाँव के जीवन के बेबसी, लाचारी, घुटन आउ उत्पीड़न के उघारे में जहाँ मिथलेश हथ, वहाँ खाली नेउता-पेहानी के पेन से सिआइत शहरी सम्बन्ध के बेलस बखिया बटोर के अदीप उनका से अलग खड़ा हो जा हथ, जहाँ से मगही कहानी एगो मोड़ ले लेहे युगबोध के !) (बिगुल॰vii.8)
339 पेटकट्टू (समय सँसर रहल हल आउ चनेसर एकदम थहुआल । एक दिन हवा के झोंका आल आउ चनेसर बगले के शहर के नावा कॉलेज में पहुँच गेल । दस हजार के डोनेसन के डलिया लेके अरघ देलक तब कहीं पेटकट्टू नौकरी पइलक ।) (बिगुल॰50.17)
340 पेड़ावल (= पेरावल, पेराया हुआ) (माय त सोहर गा-गा के एक-एक समान बड़ी हिफाजत से तैयार करवा रहली हल । बतीसा-छउनी, काफर-जाफर आउ पेड़ावल सरसो के तेल । बुतरू के करुआ तेल बेर-बेर लगे के चाही ।) (बिगुल॰35.3)
341 पोसल (दमाद विदेस में बड़गो ओहदा पर हल । बेटी के बिआह के बादे बेगम सहित एकदमे हौला महसूसे लगलन हल । सभे जिमेदारी से निछक्का । तनी-मानी जिमेदारी महसूसऽ हलन त बस, पिंजड़ा में पोसल मैना-तोता आउ रंग-बिरंग चिरइँ-चिरगुन के, जे हवेली में चहचहाय ले रह गेल हल ।) (बिगुल॰10.29)
342 फगुनी (~ सिहरन) (सही जिनगी के केतना थोक आउ खुदरा तो अब यादो नञ् पड़ऽ हे । महाजन केतना तपाक से छोटका तराजू पर ओकर बड़का कंगना के जल्दी-जल्दी तौलके ठंढा हाथ में फर-फर नोट धर देलक हल । ई रुपइया कभी ओकर देह में फगुनी सिहरन दे हल । ई महाजन के बेटवा एकदमे पइसा के जलमल हे, एक्को पइसा इद्धिर-उद्धिर नञ् ।) (बिगुल॰16.4)
343 फर-फर (~ नोट) (सही जिनगी के केतना थोक आउ खुदरा तो अब यादो नञ् पड़ऽ हे । महाजन केतना तपाक से छोटका तराजू पर ओकर बड़का कंगना के जल्दी-जल्दी तौलके ठंढा हाथ में फर-फर नोट धर देलक हल ।) (बिगुल॰16.3)
344 फाँदा-फाँदी (कखनउँ भोजाय ले डगरिन, चाची ले दवाय, चाचा ले दारू त बहिन ले किताब घर से किताब से लेके परीच्छा घड़ी तक देवाल फाँदा-फाँदी से गुजरे पड़ऽ हल । आल-गेल मामू-ममानी आउ फूफा-फूआ के टिसन आउ बस अड्डा छोड़े में उनका एगो अजबे सुकून मिलऽ हल ।) (बिगुल॰37.8)
345 फिन (= फिनु, फिनो, फेनु, फेर; फिर) ( बड़गो शहर के ई सब समाचार पढ़के आम आदमी के रोम-रोम कप जा हे । महिला-प्रदर्शन, अनशन आउ दहेज विरोधी सभा के सिलसिला कुछ दिन जोड़ पकड़ ले हे, फिन सब सथा जा हे ।; तीनो गोतनी में अबोला त ढेरोढेर दिन तक चलऽ हल, जेकर हवा से भाय लोग भी नञ् बचऽ हलन । फिन चुप्पी टूटे के झगड़े-तकरार त अकेलुआ रास्ता रह गेल हल ।; तब भी मिल्लत से बनल मिलकीयत के नक्सा उनकर दिमाग से नञ् उतरऽ हल । फिन करिये की सकऽ हलन ? ने उगलते बनऽ हल ने निगलते ओलहा हल ।) (बिगुल॰1.17; 38.7, 17)
346 फिनु (= फेनु, फेन, फिर) (उनका लगऽ हे कि साइत डॉ॰ बैजनाथ वर्मा के भाषण से शहर के जकड़न टूटत आउ बड़गो शहर के शहद एही शहर में सवादल जात । परदेसी जी के ई सब काम में राधे बाबू खुलके हाथ बटावऽ हथ । फिनु परदेसी जी के प्रभाव से राधे बाबू में विचार-विस्तार के टुसा फूजल हल कि मेहरारू के कामकाजू बनावल जाय ।; राधे बाबू के लगऽ हल कि राधिका के कामकाजू होते उनकर पसेना पउडर आउ लमेंडर के लेप में लोप हो जात । मुदा फिनु राधिका के सटिफिकेटिया गियान के भंजावे ले अउनपथारी हो जा हलन ।; आज फिनु बइठका के महफिल में गजल जागल हल । चार गो चुनल औरत-मरद जुमल हल ।) (बिगुल॰42.4; 43.15, 26)
347 फिनो (बइठका में जउरे बइठल भाय लोग रघुबंस दने ताक रहलन हल । बाबूजी फिनो चुप हलन । फोटू हाथ में धरतहीं रघुबंस भीतर तक काँप गेलन आउ उनकर धियान बच्छरो-बच्छर पहिले के छानबीन आउ चुना-चुनी पर चल गेल ।) (बिगुल॰39.28)
348 फुकाफाड़ (~ के रोना) (सीटी बजल । चाची भगवान दास के हाथ में हँसुली देइत फिनु फुकाफाड़ के रोवे लगली ।) (बिगुल॰47.23)
349 फुक्काफाड़ (ढेरो-ढेर निमन बारात कत्तेक जगह गेलन हल । अजबे सोभाव हल उनकर ! विदाई घड़ी त फुक्काफाड़ के कानऽ हलन । मोखतार साहेब आउ डाकडर साहेब के घर से सम्बन्ध त पुरविले से समझऽ ।) (बिगुल॰37.12)
350 फूजना (उनका लगऽ हे कि साइत डॉ॰ बैजनाथ वर्मा के भाषण से शहर के जकड़न टूटत आउ बड़गो शहर के शहद एही शहर में सवादल जात । परदेसी जी के ई सब काम में राधे बाबू खुलके हाथ बटावऽ हथ । फिनु परदेसी जी के प्रभाव से राधे बाबू में विचार-विस्तार के टुसा फूजल हल कि मेहरारू के कामकाजू बनावल जाय ।) (बिगुल॰42.5)
351 फेंका-फेंकी (आज फिनु घर के बरतन-बासन के फेंका-फेंकी आउ घोर मगही तेवर से उकटापइँची देख-सुन के एतना ने टूट गेलन हल कि उनका राम बने के सब सपना अब चूर-चूर हो गेल हल । दशरथ जइसन बाबू जी बुढ़ारी में दरोजा पकड़ले दया जुकुर बनल हलन ।) (बिगुल॰36.1)
352 फेन (= फेनु, फिनु, फेनो, फेर; फिर) (बसीर मियाँ के बेटी आउ बंसी बाबू के बहिन त कउनो नौकरी नञ् करऽ हल, जे अदना आदमी के साथे चल गेल । फेन चौबे जी के घरवली के घटना शहर में हरदम ताजा होते रहऽ हे । लड़कन समेत चौबे जी के छोड़, सिंह साहेब के साथ चल गेली आउ सुनल जाहे कि अब कउनो कपूर साहेब के साथ हकी ।) (बिगुल॰42.26)
353 फेनू (= फेनु, फेन, फिन, फिर) (बस के भीड़ में भी भोला बाबू के धियान फेनू रह-रह के टिक जा हल, बस में लछमी जी के मूरति के नीचे लिखल वाक्य पर - "भगवान आपकी यात्रा सफल करें" आउ कनखी से देवाल पर मोट-मोट अच्छर पढ़ रहलन हल - "दो या तीन बच्चे" ।) (बिगुल॰8.29)
354 फोटू (बइठका में बइठल बरतुहार टस से मस नञ् हो रहलन हल । लड़की के फोटू बुतरुन भीतर-बाहर कर रहल हल । रघुबंस वली मुसकइत तनिकनो तर रखलकी ।) (बिगुल॰39.26)
355 फोहबा (चन्दू के बुझाय लगल कि घर के सब गहमागहमी ओकरा धकियावे लगल हे । दूर बहुत दूर मद्धिम बत्ती तर मच्छरदानी से घेराल एगो फोहबा देख रहल हल ।) (बिगुल॰35.26)
356 फोहवा (ई सब छो-पाँच करिये रहल हल कि लछमी दरद से छटपटाय लगल । ओकरा तुरते 'मातृसदन' अस्पताल ले गेल हल । फोहवा एकदम्मे मिसरी नियन दप-दप हल । मुंसी जी ओकरा मिसरिये कहके पुकारऽ हलन । धीरे-धीरे मिसरी अइँटा से छड़ पकड़के धउगे लगल हल ।) (बिगुल॰20.32)
357 बइठका (= बैठका, बैठने की जगह, दालान, दूरा) (उनका हरदम अंदेसा लगल रहऽ हल कि कखने सुरताल के अवाज अँगना से आगू बढ़े लगत ! ऊ त कहऽ कि उनकर मेहरारू अपन भारी अवाज से कुछ आड़ले रहऽ हली । हाँ ! बइठका के बइठकी भी अब खतमे कर रहलन हल । चाय-पान साथे गरजा-गरजी के पीयत ?; बइठका में बइठल बरतुहार टस से मस नञ् हो रहलन हल ।) (बिगुल॰39.21, 25)
358 बइठकी (= बइठक, बैठक, सभा) (उनका हरदम अंदेसा लगल रहऽ हल कि कखने सुरताल के अवाज अँगना से आगू बढ़े लगत ! ऊ त कहऽ कि उनकर मेहरारू अपन भारी अवाज से कुछ आड़ले रहऽ हली । हाँ ! बइठका के बइठकी भी अब खतमे कर रहलन हल । चाय-पान साथे गरजा-गरजी के पीयत ?) (बिगुल॰39.21)
359 बइठल (टरक से हटके उनकर धियान डलेवर आउ खलासी दने रह-रह के चलिये जा हल । इतमीनान से सूतल सुसता रहल हल । एगो मेहरारू ओही सब साथ बइठल दनादन सिगरेट पी रहल हल ।) (बिगुल॰52.13)
360 बइठा-बइठी (एक दिन खाय के जगह पर कालीघाट के पेड़ा आउ मिठाय से मुंसी जी के मुँह मीठा करइलक हल । मुंसी जी संतोख के साँस लेलन हल । बइठा-बइठी में ऊ दुन्नू दुतल्ला पर से सड़क के भीड़ देखते रहऽ हल ।) (बिगुल॰20.26)
361 बउँखना (रामईश्वर बाबू सालो-साल से नीमन वर ले बउँखिये रहलन हे । उनकर ढेर कुनी खरचा तो वरे ढूँढ़े में हो गेल हे ।; सम्पादक के पद उनका बड़गो परिवार में धाक जमा देलक हल । मुदा अपन माटी के मोह उनका दोसर किस्त में घरे ले आल । गीत, कहानी अकास में आउ किरन जी सड़के पर बउँखे लगलन ।) (बिगुल॰3.20; 23.16)
362 बउड़ाल (समता विसमता के घाट में अउघट चाल जदि देखे के होय तो अपने 'अदीप' जी के कहानी सेंगरन देख सकऽ ही । निछक्का सामाजिक दुराव, पारिवारिक विघटन अउ भौतिक चकाचौंध के पीछे बउड़ाल, धधाल अदमी के चेहरा पर जे नकली मुखौटा हे ओकरा हर मोहड़ा पर एकरा में देखल जा सकऽ हे ।) (बिगुल॰vi.21)
363 बउसाह (कहानी के फैलाव छोट होवऽ हे मुदा ओकरा में जीवन के ईमारत के हिला देवे के पुरजोर बउसाह होवऽ हे ।) (बिगुल॰vi.14)
364 बच्छर (खिड़की के हवा आउ मुट्ठी भर बइठे के जगह मिल जाय से लछमी के नींद आ गेल हल । कतना बच्छर पहिले ओकरा लछमी से बड़ा बजार के बड़का मकान के साइट पर भेट होल हल ।; किस्ते में भगवान के किरपा से दूगो लड़कन भी होल । पहिला किस्त में गंगा आउ छो बच्छर बाद दोसर किस्त में जमुना । गंगा के मुड़ना बनारस में आउ जमुना के इलाहाबाद में बड़ी लकधक से करइलन हल ।) (बिगुल॰19.15; 24.29)
365 बछरो-बच्छर (किस्त पर टिकल जिनगी के बोझ हल्का करे ले कभी-कभी हँसके अपन यार-दोस्त के बतावऽ हलन कि किस्ते में उनकर जिनगी के गिरहस्ती शुरु होल हल । बियाह तो उनकर लड़कपने में हो गेल हल, मुदा गउना लेल बछरो-बच्छर इंतजार करते-करते गीत-गजल के ढेर लगा देलन हल ।) (बिगुल॰24.5-6)
366 बझल (= फँसल) (लड़कन के बारे में सोचके आउरो काँप जा हलन । महल्ला के प्रभाव से लड़कन के कइसे बचावल जाय - ओकरे उपाय सोचते रहऽ हलन । कखनउँ सोचऽ हलन कि टिसनी पढ़ावे में लगा देल जाय । लड़कन बझल भी रहत आउ कुछ पइसो आ जात ।) (बिगुल॰15.9)
367 बड़ (= बहुत) (बनारसी बाबू फिनु घड़ी देखलन । सूइ घसकिये नञ् रहल हल । सड़क सुनसान आउ होटल एकदम्मे जगमगा रहल हल । उनका नीम तर के हवा बड़ नीमन आउ मीठ लग रहल हल ।) (बिगुल॰53.26)
368 बड़का ( एक दिन धंधउरा तर मकइ के बाल सेंकइत बड़का भइया आसते से इसारा कइलका कि कब तक सब से नुका-छिपा आउ कतरब्योंत करके तोरा जेब खरचा चलइअउ । तखने ओकर आँख झरझरा गेल ।; दौड़-धूप आउ पैरवी के पाया जब घसक गेल, कत्तेक जगह घूस के देलो पइसा नञ् लौटल त मंझला भइया एतनइँ तो कहलका - कर लेलऽ नौकरी ! तनी घरवली के मुँह सम्हारे ले कहऽ ! तहिये घरवली के किताब के जिल्द छोड़ा देलक हल । साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल ।) (बिगुल॰49.31; 50.7)
369 बड़की (छोटकी के एतना पढ़े-लिखे पर भी, घर-परिवार आउ महल्ला वलन 'छोटकीये' के नाम से पुकारऽ हलन । घर लेल त छोटकी कहियो बड़की नञ् भेल । 'सुनीता' इस्कूल आउ कौलेज के रजिस्टरे में लटपटा के रह गेल ।; भोला बाबू के मन के गुठली में एगो बड़गो आम के पेड़ लगल हल । अजय आउ विजय के साहब बनावे के फेरा में अपन छोटकी के बड़की हो जाय के कुदरती भेद भी भूल गेलन हल ।; घर में, बात-बात पर बाबू जी कहे लगलन कि बियाहे घड़ी ससुर नौकरी के नक्सा बतावऽ हलथुन, चेकर चोट से चनेसरवली के मुँह हप्प हो जा हल । फिनु बड़की आउ मंझली के लगे लगल कि एगो चनेसरवली ले उम्दा साड़ी काहे आवऽ हे । हमनी के दुमुहियाँ कमाय वलन मरद के ऊपर एक्कर नाज-नखरा !) (बिगुल॰5.10; 6.21; 49.16)
370 बड़गर (बड़गर शहर में लघु पत्रिका, उम्दा परकासन आउ गीता प्रेस से छपल किताब के साथ अपन दोकान पर बइठते ओकरा लग रहल हल कि सचमुच में आदमी के कुछ 'अप्पन' चीज चाही ।) (बिगुल॰51.21)
371 बड़गो (बड़गो शहर के घटना तो देस-परसिद्ध साप्ताहिक आउ मासिक पत्रिका में विस्तार से छपवे करऽ हल । राम बाबू ले देस के उन्नति-परगति से बड़गो समाचार दहेज के खबर लगऽ हल । मुदा छोटगर शहर आउ गाँव के घटना सब इलाके में कुम्हला के दम तोड़ दे हे ।; भोला बाबू के मन के गुठली में एगो बड़गो आम के पेड़ लगल हल । अजय आउ विजय के साहब बनावे के फेरा में अपन छोटकी के बड़की हो जाय के कुदरती भेद भी भूल गेलन हल ।; अजय आउ विजय के पद पर चढ़ते-चढ़ते जात के बड़गो लोग रस्ते में लोक लेलन हल । आधुनिक बहू के साथ आवल नवा-नवा समान से उनकर टूटल-फूटल घर जगमगा गेल हल । एतना दिन के नौकरी में ई सब समान एक्के साथ कउनो-कउनो साहब लोग के कोवाटर में कभी-कभी देखलन हल ।; जीवन बाबू बाहरे में वजनगर भले रहथ, घर में हौले हो गेलन हल । बेटा-बेटी जइसे-जइसे बड़गो होवऽ हल, ऊ छोटगर होवे लगलन हल ।) (बिगुल॰1.2, 4; 6.23, 28; 31.15)
372 बड़-छोट (दहेज के खिलाफ जहाँ कहीं भी सभा-गोष्ठी होवऽ हल, राम बाबू सबसे आगू बइठऽ हलन । मगर सामाजिक रेवाज के आग में कूदे के तैयारी में लोक-लाज, अपना-पराया, बड़-छोट, नाता-गोता सब भूल गेलन हल ।) (बिगुल॰2.25)
373 बतसल (चारो दने के बतसल देवाल से आँख घुमाके रघुबंस तनिकना भाय पर नजर टिका देलन हल । पियार में तनिक के तनिकना नाम बड़का होवे पर भी नञ् बदलल हल ।; साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल । ऊ, बाबू जी बीच-बचाव नञ् करतन हल त एक खेर तीन खुंडी । तहिये से घर में दरार पड़ गेल जेकर दिरइँची से टोला-टाटी के बतसल बेयार पइसे लगल ।) (बिगुल॰39.4; 50.9-10)
374 बतीसा-छउनी (माय त सोहर गा-गा के एक-एक समान बड़ी हिफाजत से तैयार करवा रहली हल । बतीसा-छउनी, काफर-जाफर आउ पेड़ावल सरसो के तेल । बुतरू के करुआ तेल बेर-बेर लगे के चाही ।) (बिगुल॰35.3)
375 बदलल (कभी-कभी बदलल हवा के धूरी अपन कपड़ा पर देखऽ हलन मुदा तुरते झाड़ दे हलन । उनका लगऽ हल कि ई नाज-नखरा नञ् रहत ।) (बिगुल॰30.31)
376 बनोबस्त (= बन्दोबस्त) (दमाद विदेस में बड़गो ओहदा पर हल । बेटी के बिआह के बादे बेगम सहित एकदमे हौला महसूसे लगलन हल । सभे जिमेदारी से निछक्का । तनी-मानी जिमेदारी महसूसऽ हलन त बस, पिंजड़ा में पोसल मैना-तोता आउ रंग-बिरंग चिरइँ-चिरगुन के, जे हवेली में चहचहाय ले रह गेल हल । गाय, बकरी, मुरगा-मुरगी त बउधा के बनोबस्त में शुरुए से शामिल हल ।; दोसरे दिन भगवान दास दुन्नू के नर्सिंग होम में भरती करा देलक । डाकडर लोग के समझा के भगवान दास दुन्नू के इलाज के बनोबस्त करइलक ।; जीप आउ टरक के बनोबस्त कइले अइलन हल । सब समान तो एक तरह से बंधले हल । बंधल समान के फिनु खोले के बात खियाल से निकाल देलन हल ।) (बिगुल॰10.32; 47.14; 55.22)
377 बरतन-बासन (आज फिनु घर के बरतन-बासन के फेंका-फेंकी आउ घोर मगही तेवर से उकटापइँची देख-सुन के एतना ने टूट गेलन हल कि उनका राम बने के सब सपना अब चूर-चूर हो गेल हल । दशरथ जइसन बाबू जी बुढ़ारी में दरोजा पकड़ले दया जुकुर बनल हलन ।) (बिगुल॰36.1)
378 बरतुहारी (रुपिया-पइसा जोड़-जोड़ के दहेज के चूल्हा में झोंकते जा रहलन हल । ई छटपटाहट में भी दुन्नू एगो कसम रखलन हल कि बरतुहारी ले निकले घड़ी हरिद्वार जरूरे हो अइतन । जरूरत भर कपड़ा-लत्ता, पइसा-कउड़ी लेके पूरा परिवार रेल में बइठ गेलन हल । बेटियन के चेहरा रेल, हवा आउ जतरा के उत्साह से एकदमे खिल गेल हल ।) (बिगुल॰4.12)
379 बर-बीमारी (लाल बाबू जब भी तीरथ-जतरा पर निकलऽ हलन तब सब कोठरी आउ अपन अलमारियो के कुंजी बेटा के जिम्मे कर दे हलन । अब लड़कन के कोठरी के साज-समान देखे के मौका केकरो बरे-बीमारी में लगऽ हल ।) (बिगुल॰28.1)
380 बरात (= बारात) (चमक त घरो से जादे अपन बेटा-बेटी में लइलन हल । बेटी ले त लड़का खरीदिये लेलन हल । बियाह में उनकर पइसा बारूद के काम कइलक हल । बरात के चमक से इलाका इंजोर हो गेल हल । मुदा बेटन के बियाह में कुले कोर-कसर निकाल लेलन हल ।) (बिगुल॰27.19)
381 बलबलाना (साथी-संगी के घर के शादी या सराध में आठो पहर पिलल रहऽ हलन । तिलक-दहेज के बात पर बलबला जा हलन ।) (बिगुल॰29.25)
382 बहकल (दिन में आदमी से जादे जानवरे नजर आवऽ हल, मुदा रात में आदमी के डर से जानवर एकदमे अलोप जा हल । रात भर आदमी के हो-हल्ला, धउगा-धउगी आउ बम-पटाका के अवाज से सउँसे महल्ला थरथराल रहऽ हल । ठामे-ठाम चिल्ला-चिल्ली, काना-फुसकी आउ बहकल बात से राह चलइत आदमी तो भीतरे से सिहर जा हल ।) (बिगुल॰13.25)
383 बात-विचार (उनका खूब याद हे, जब अस्पताल में एगो मद्रासी नर्स आल हल त उनकर मन में तमिल सीखे के इच्छा जागल हल । बात-विचार त अंगरेजी में करऽ हलन मुदा मेहरारू के लगऽ हल कि ई तमिल नञ् सीखके ओकरे हिन्दी सिखाके दम लेतन आउ तब जोरू-मरद में लगातारे मगही में ठोनावादी होवऽ हल ।; ऊ बूझे लगलन हल कि ई नावा रंगरूट के सामने देश, समाज आउ धार्मिक बात करनइ फजूल हे । अपन सामने ही उनकर बात-विचार के बखिया उघर गेल । ऊ जलसा से समटाल दरी-बिछौना जइसन समटा गेलन ।) (बिगुल॰26.11; 31.9)
384 बान्हना (= बाँधना) (भोर हो गेल हल । गाड़ी अब हवड़ा लटफरेम पर रुके ले हल । समान बान्हते-बान्हते मुसके लगलन कि अपन सउँसे जवानी किस्ते में बाँटके लड़कन के थोक बनइलन हल मुदा लड़कन सब उनका किस्ते में बाँट देलक । अब छो महीना कलकत्ता वाला बेटा के साथ रहे के हे ।) (बिगुल॰25.30)
385 बाल-बच्चन (राधे बाबू के बुझाय लगल हल कि बढ़इत महँगारी आउ बाल-बच्चन के आधुनिक विकास ले ढेरोढेर पइसा के जरूरत हे । जमाना गेल कि नगरपालिका आउ जिला परिषद के स्कूल होते कउनो आफिस के कुरसी तर पहुँचिये जा हल ।) (बिगुल॰40.4)
386 बाल-बुतरुन (पहिले ऊ चर्च के गाड़ी चलावऽ हल । डाकटर साहेब के भी बाल-बुतरुन इसाई-स्कूल में पढ़ऽ हल । जब भीड़ नञ् रहऽ हे त डाकटर साहेब ओकरा से खूब अपनउती-सन बतिया हथ - "साइमन ! अब तुम ठीक हो रहे हो ।"; साइमन के हाल पर अब ओकरा तरस आवे लगल हल । बाप रे बाप ! बाल-बुतरुन के छइते ई दुख ! चाह के दोकान में बइठते-बइठते अब दुन्नू में सलाय-बीड़ी के अदला-बदली होवे लगल हल ।) (बिगुल॰17.32; 18.12)
387 बिहनउकी (~ रोटी) (संजोग से 'राजकुमारी नर्सिंग होम' में राधिका के बिन पैरविये नौकरी मिल गेल । ... राधिका के भेस-भूसा एकदम बदल गेल आउ हाथ में अब बेग घुमावे लगली । ... रसोय घर के चुल्हा से अब राधिका के आँख झमझमाय लगल हल । बिहनउकी रोटी के जगह पर बिस्कुट आवे लगल । देर-अबेर होवे पर चाह के कप-पियाला से राधे बाबू के हाथ चोटाय लगल हल ।) (बिगुल॰43.22)
388 बुढ़ारी (आज फिनु घर के बरतन-बासन के फेंका-फेंकी आउ घोर मगही तेवर से उकटापइँची देख-सुन के एतना ने टूट गेलन हल कि उनका राम बने के सब सपना अब चूर-चूर हो गेल हल । दशरथ जइसन बाबू जी बुढ़ारी में दरोजा पकड़ले दया जुकुर बनल हलन ।) (बिगुल॰36.4)
389 बुतरू-बानर (रसोइ त अँगने में बनऽ हल मुदा थरिया भितरे में परसा हल । कभी नीपे ले त कभी बाढ़े ले आउ कभी-कभी बुतरुन-बानर के चलते अँगना लड़ाय के अखाढ़ा हो गेल ।) (बिगुल॰38.5)
390 बुतात (मुंसी जी के हाट-बजार करते-करते ओकरो बुतात साथहीं लगे लगल । अब एक्के भनसा में दुन्नो खाय लगल आउ ऊ मजूर से मेट हो गेल हल ।) (बिगुल॰20.18)
391 बेयाकरन (= व्याकरण) (रामईश्वर बाबू सालो-साल से नीमन वर ले बउँखिये रहलन हे । उनकर ढेर कुनी खरचा तो वरे ढूँढ़े में हो गेल हे । अपना कूवत के मोताबिक खरचा ले भी तैयार हका, मुदा बियाह के बेयाकरन आदमी के जे ने परेशानी में डाले ।) (बिगुल॰3.22)
392 बेयार (= बयार) (साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल । ऊ, बाबू जी बीच-बचाव नञ् करतन हल त एक खेर तीन खुंडी । तहिये से घर में दरार पड़ गेल जेकर दिरइँची से टोला-टाटी के बतसल बेयार पइसे लगल ।) (बिगुल॰50.10)
393 बेला-मोका (जिअल जिनगी के तस्वीर टाँगे में ईसा मसीह के दरद महसूसऽ हलन । मुदा कुछ अइसनो हल जेकरा बेला-मोका देखके अपन सन्दूक में रख दे हलन । अइसनका फोटू के चलते तो कभी-कभी मेहरारू से महीनो-महीना मुँहफुलौअल हो जा हल ।) (बिगुल॰26.8)
394 बेसगर (ढेरो दिन के बाद कुच्छेक हरफ के लिखल चिट्ठी भेटल हल । बस, नीला रंग के खलिए चिट्ठी से सउँसे घर हरियर ! रजगज ! लोगबाग के निलका चिट्ठी में लाल-लाल, छोट-मोट, गोल-गाल एगो बेसगर चिजोर बँधल नजर आवे लगल ।) (बिगुल॰34.22)
395 बेहवार (= व्यवहार) (ऊ सब स्कूल के इमारत, टीचर के लिबास आउ लड़कन के बेहवार देखके किरन जी के अपन स्कूल आवे के मने नञ् करऽ हल । मुदा अपन आर्थिक सीमा के अहसास से छटपाय लगऽ हलन ।; किरन जी कभी-कभी अपन स्व॰ पिता विदेसी बाबू के साथ कइल बेहवार में भुला जा हलन । भोरे उठके अपन हाथ से चाह बनाके पहिला गिलास बाबुये के दे हलन । रात के भोजन भी एक्के साथ करऽ हलन । तीज-तेहवार में किस्ते पर, मगर घर में सबसे पहिले कपड़ा-लत्ता बाबुये आउ माय लेल कीनऽ हलन ।; जीवन बाबू हलन त मामूली नौकरी में, मुदा बेहवार आउ विचार से अपन ओहदा से ऊँचे बुझा हलन ।) (बिगुल॰25.7, 24; 29.9)
396 भगनी (= बहन की बेटी) (शहर के मकान में उनकर सब जोड़-जमा लग गेल हल आउ बच गेल हल बेटी के बरइत समसिया, जे अब नञ् केकरो भगनी हल, नञ् केकरो भतीजी हल आउ नञ् अब केकरो बहिने रह गेल हल, हल त बस कुसुम - बनारसी बाबू के बेटी ।) (बिगुल॰55.13)
397 भगिना (ओकरा याद हे कि बक्सा में रखल मेहमान आउ भगिना के सब समान बेर-बेर देखलक हल । मगही घी के टेहरी के हिफाजत में रस्ता भर ओकरा केतना आदमी से झड़पा-झड़पी हो गेल हल । लटफरेम पर गाड़ी लगते-लगते साँझ से रात हो गेल हल ।) (बिगुल॰35.9)
398 भटकल (अंधविश्वास के अंधकार में भटकल आदमी के परकास में लावे में खुब्बे संतोष होवऽ हल।) (बिगुल॰30.9)
399 भभू (= छोटे भाई की पत्नी) (लगन-पाती के दिन अइतहीं तनिकना के बियाह के बात घरवलन के मुँह पर खुदरा-खुदरी रहऽ हल मुदा कउनो आगू बढ़इ के हिम्मत नञ् करऽ हलन । रघुबंस त भाय सब के कनिआय चुनते-चुनते ठेहिया गेलन हल । अपन भभू सब के चुनाव से अपने लजा रहलन हल ।) (बिगुल॰39.17)
400 भयचारा (= भाईचारा) (अइसन भयचारा तो अपन देसो में नञ् मिलऽ हे । सब मेहनत के माला में गुंथाल रहऽ हल । लछमी मुनिरका मुंसी के रसोय बनावऽ हल । हाजरी तो रोज बनिये जा हल । सेठ जी सनिचर के सनिचर आके मजूरी गुदारऽ हलन ।) (बिगुल॰20.4)
401 भरम (= भ्रम) (ढेरोढेर दिन पर टुनमुनइलन आउ दुर्गापूजा देखे निकललन । बिजली के चमक से उनका रातो में दिन के भरम हो रहल हल । सउँसे शहर लउडिस्पीकरे के ऊलजलूल आवाज ओढ़ले हल । कीर्तन-भजन तो अलोप गेल हल ।) (बिगुल॰31.24)
402 भितरकी (अइसे तो एक से एक फूहड़ कामकाजू जन्नी के जानऽ हथ जे विचार में जिनगी भर बेचारिये बनल रहली । फिनु कामकाजू जन्नी-मरद के जिनगी के दरकइत देवाल भी नजर तर हे जेकर दिरइँची से बाहरी लोग भितरकी दशा देखऽ हथ । नकलपचीसी के पढ़ाय-लिखाय के एहे असर होवऽ हे ।) (बिगुल॰42.19)
403 भित्तर (रसे-रसे ओसरा भी भित्तर में बदले लगल आउ रघुबंस के लाख कोरसिस के छइते भित्तर से जादे भनसे हो गेल । ठोनावादी से अँगना गरम रहे लगल ।) (बिगुल॰38.1)
404 भुंजा (गाड़ी में बइठे के जगह मिल गेल, मुदा सनेस सम्हारे में साँस फूलऽ हल । एक से एक सौगात ! केतारी, चिनियाँबेदाम, बूँट के झंगरी, गी, सत्तू आउ ताजा भुंजा के डिब्वा-डिब्बी । ई सबसे अलग उनकर घरवली के धियान हरदम हँसुली पर हल ।) (बिगुल॰46.2)
405 भूलल-भटकल (रीता के बियाह के बाद समधिअउरा के रुख बदल गेल हल । भूलल-भटकल बेजान चिट्ठी कभी-कभार मिल जा हल । वहाँ के लमहर चुप्पी से माय-बाबू के चेहरा के रंग एकदम बदरंग हो गेल हल ।) (बिगुल॰34.10-11)
406 भूसट (चन्दू के एक गोड़ घर त एक गोड़ बजार ! ई आवाजाही में ऊ छितरा गेल हल । अइते-जइते जमील दरजी के टोकते जा हल । अपना ले नावा-नावा भूसट आउ पैंट बनइलक हल । दरजी के बेर-बेर टोकऽ हल कि भूसट के धोकड़ी पर अपन कंपनी के नाम ठीक तरह से उतारे ।) (बिगुल॰34.30, 31)
407 भोज-भात (बनारसी बाबू ई सब मामला में खूब नीमन जोड़-घटाव रखऽ हलन । भोज-भात, खान-पियन के नेउता-पेहानी से महीना के शायदे दिन बचऽ हल ।) (बिगुल॰53.5)
408 भोरउकी (भोरउकी गली के चहल-पहल आउ भारी गोहार से लोग-बाग अपन दुआरी खोललक । मालूम होल कि रात भर के बम-फटाका से गली में खाली ऊ जनिये के जान गेल हे ।) (बिगुल॰15.25)
409 भोरहीं (अपन ई मनसूबा के पूआ पकावे में उनका अब घर आउ औफिस में कोय फरके नञ् रह गेल हल । भोरहीं से रात तक औफिसे तर मँड़रइते रहऽ हलन ।) (बिगुल॰6.20)
410 मंझला (दौड़-धूप आउ पैरवी के पाया जब घसक गेल, कत्तेक जगह घूस के देलो पइसा नञ् लौटल त मंझला भइया एतनइँ तो कहलका - कर लेलऽ नौकरी ! तनी घरवली के मुँह सम्हारे ले कहऽ ! तहिये घरवली के किताब के जिल्द छोड़ा देलक हल । साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल ।) (बिगुल॰50.5, 7)
411 मंझली (घर में, बात-बात पर बाबू जी कहे लगलन कि बियाहे घड़ी ससुर नौकरी के नक्सा बतावऽ हलथुन, चेकर चोट से चनेसरवली के मुँह हप्प हो जा हल । फिनु बड़की आउ मंझली के लगे लगल कि एगो चनेसरवली ले उम्दा साड़ी काहे आवऽ हे । हमनी के दुमुहियाँ कमाय वलन मरद के ऊपर एक्कर नाज-नखरा !) (बिगुल॰49.16)
412 मइल-कुचइल (ई बेर फिनु टरक लाइने होटल में जाके लगल । बनारसी बाबू के लाइन होटल के अजबे-अजीब ताजा अनुभव हो रहल हल । दूध पीअइत बुतरू टरक रुकतहीं बिढ़नी नियन आदमी के घेर ले हल । टूटल जग, चनकल गिलास, मइल-कुचइल अंगा-पैंट ! पानी की पीअल जात, सउँसे निरारे से पसीना चूए लगऽ हल ।) (बिगुल॰52.4)
413 मउगत (= मउअत; मौत) (ऊ मन ही मन सास के भाव ताड़ रहली हल आउ अपन मरद के शांत चेहरा पर छितराल अजबे बेचैनी देख रहली हल । प्रकृति के ई खेल त अपरम्पार हे मुदा जलम से मउगत तक सब खेल अदमीये के खेले पड़ऽ हे ।) (बिगुल॰60.22)
414 मगही (~ शब्द; ~ गीत; ~ कहानी; ~ मुहावरा; ~ घी; घोर ~ तेवर) ( माइये के मुँह से मगही के पहिल शब्द कान से टकराल होत आउ फिनु कंधा-घोड़की चढ़इते बाबुओ जी मारे या दुलारे में मगहिये मुहावरा से काम चलइलन होत ।; निछक्का गाँव के जीवन के बेबसी, लाचारी, घुटन आउ उत्पीड़न के उघारे में जहाँ मिथलेश हथ, वहाँ खाली नेउता-पेहानी के पेन से सिआइत शहरी सम्बन्ध के बेलस बखिया बटोर के अदीप उनका से अलग खड़ा हो जा हथ, जहाँ से मगही कहानी एगो मोड़ ले लेहे युगबोध के !; मगही गीत के धुन पर जब दोसर भाषा-भाषी भी झूमे लगऽ हल तब ऊ तो गीत के रस में एकदम सराबोर हो जा हल ।; जोरू-मरद में लगातारे मगही में ठोनावादी होवऽ हल ।; मगही घी के टेहरी के हिफाजत में रस्ता भर ओकरा केतना आदमी से झड़पा-झड़पी हो गेल हल ।; आज फिनु घर के बरतन-बासन के फेंका-फेंकी आउ घोर मगही तेवर से उकटापइँची देख-सुन के एतना ने टूट गेलन हल कि उनका राम बने के सब सपना अब चूर-चूर हो गेल हल ।) (बिगुल॰i.1; vii.10; 21.11; 26.13; 35.10; 36.1)
415 मजगूत (= मजबूत) (हाथ में मोटगर-मोटगर फाइल आउ चारो धोकड़ी सरकारी पुरजा-पुरजी से भरल रहऽ हल । साहब लोगन के हर हिदायत आउ झिड़की पर भोला बाबू के मन में अप्पन अजय आउ विजय के साहब बनावे के बात आउरो मजगूत हो जा हल ।; रात भर धमाका ! ऊ घड़ी सुभान ओकरा आउ ऊ सुभान के देखते-देखते रात काट दे हल । ऊ दुन्नू न कमजोर हल न मजगूत । सोचऽ हल कि दुन्नू सबसे कमजोर हे आउ सबसे मजगूत ।) (बिगुल॰6.5; 17.4, 5)
416 मजूर-मजूरिन (ऊ सब सोचे लगल हल कि सब मकान के बुनियाद में गारा-अइँटा के साथ मजूर-मजूरिन के मेहनत दबल रहऽ हे ।) (बिगुल॰20.30)
417 मद्धिम (रीता के बियाह त घर के चुल्हो के आँच मद्धिम कर देलक हल । आधा खेत-पथार त इंजीनियर दमाद पावे में रजिसटरी आफिस में धर अइलन हल । घर के दशा में तहिये से दखल पड़े लगल हल ।) (बिगुल॰33.22)
418 मनझान (भगवान दास दुन्नू के अपन उपरउकी कोठरी में ले गेल । फिनु गाँव-घर के समाचार पूछे लगल । पहलवान जी पूरा जोर लगाके सब हाल सुना रहलन हल । कउन खन्हा में नहर बनल, बिजली लगल । केकर बेटा की करऽ हे ? मुदा चाची तो एकदम मनझान हो रहली हल ।) (बिगुल॰46.30)
419 मनलग्गी (नया मकान तो इनका सस्ते किराया में भेट गेल हल । हल तो शहर आउ औफिसो से दूर, मुदा सोचलन हल कि किराये के कोताही पर अजुकी कमी - टी॰भी॰, फ्रिज आउ सोफा कीनल जात । बुतरु-बानर के मनलग्गी आउ शहर-सिनेमा से एकदमे फुरसत ।) (बिगुल॰13.6)
420 मने-मन (= मन ही मन) (रात-विरात में भी हारो बाबू ऊ अधेड़ उमर के जन्नी के एकदम सहज होके घूमते देखऽ हलन । हारो बाबू के दिनउकी झगड़ा आउ जानवर से कुच्छो डर नञ् लगऽ हल मुदा रात में तो आदमी के आँख से देखियो नञ् पावऽ हलन । ऊ मने-मन सोचऽ हलन कि ई जनिये टोला के वाजिब बसिंदा हे । कखनउँ-कखनउँ दिन में जब शांति के साथ हाट-बजार ले निकलऽ हलन तो ऊ जन्नी उनका मुसकइते देखऽ हल ।; ओकर धियान में महाजन के हँसमुख चेहरा नाच-नाच जा हल । हँसमुख चेहरा के तेज धार से मने-मन घबड़ा हल । मुदा हरिया के समाद से ढाढ़स बँधल हल ।; अब किरन जी शोहरत आउ सोहबत के धारा में एकदम्मे छितरा गेलन हल । मने-मन समेटे ले विचारऽ हलन, मुदा हालत आउ चखल सवाद उनका हरदम्मे परेशानी में डालले रहऽ हल ।) (बिगुल॰14.3; 21.20; 24.23)
421 महँगारी (भोला बाबू चाह पीते-पीते छोटकी के शादी के बात छेड़ देलन । दुन्नू परानी खुब्बे गौर से सुने लगलन । दुन्नू के धियान तब टूटल जब भोला बाबू पइसा-कउड़ी के बात पर अइलन । बहू तो तुरते कोठरी छोड़ देलकी । बेटा अब अपन लाचारी आउ महँगारी के बात करे लगल । भोला बाबू अजय के चेहरा पर धियान टिकउले सुनते रह गेलन । उनका लगे लगल कि अजय के साहबी पर शहरी हवा हावी हे ।; राधे बाबू के बुझाय लगल हल कि बढ़इत महँगारी आउ बाल-बच्चन के आधुनिक विकास ले ढेरोढेर पइसा के जरूरत हे । जमाना गेल कि नगरपालिका आउ जिला परिषद के स्कूल होते कउनो आफिस के कुरसी तर पहुँचिये जा हल ।) (बिगुल॰8.6; 40.4)
422 महसूसना (पूजा के पहिले घंटो-घंटा विस्तार से बात करऽ हलन मुदा पूजा अइते मातर पूरा खरचा जोड़के रोमाँ सिहर जा हल आउ जतरा के कबूलल पइसा डाकघर या बैंक के हवाले करके कलकत्ता आउ काली माय के पुन्न महसूसऽ हलन ।; दमाद विदेस में बड़गो ओहदा पर हल । बेटी के बिआह के बादे बेगम सहित एकदमे हौला महसूसे लगलन हल । सभे जिमेदारी से निछक्का । तनी-मानी जिमेदारी महसूसऽ हलन त बस, पिंजड़ा में पोसल मैना-तोता आउ रंग-बिरंग चिरइँ-चिरगुन के, जे हवेली में चहचहाय ले रह गेल हल ।; कुरसी-टेबुल आउ सोफा के अलावे एगो अइना लगल सिंगरदानी के जरूरत ढेर दिन से महसूस रहलन हल ।; किरन जी जवानी में अपन लिवास भी किस्ते में बनावऽ हलन । एक किस्त में जूता, दोसर में पैंट आउ कमीज बनइते-बनइते साइकिल के चक्कर में त उनकर सब पुराने हो जा हल । मुदा कपड़ा-लत्ता के ई सब आदत में कहियो ऊ परेशानी नञ् महसूसलन हल ।) (बिगुल॰2.11; 10.28, 29; 24.11, 20)
423 महीनो-महीना (जिअल जिनगी के तस्वीर टाँगे में ईसा मसीह के दरद महसूसऽ हलन । मुदा कुछ अइसनो हल जेकरा बेला-मोका देखके अपन सन्दूक में रख दे हलन । अइसनका फोटू के चलते तो कभी-कभी मेहरारू से महीनो-महीना मुँहफुलौअल हो जा हल ।; रिटायरो होवे पर भी महीनो-महीना उनकर गोड़ आफिसे दने बढ़ जा हल । ऊ देखऽ हलन कि उनका बिना आफिस के काम कइसे चल रहल हे ।; जीवन बाबू किसुन पंडित के हाल देखलन हल । खुब्बे निमन मूरति बनावऽ हल । देवी पूजा, लक्ष्मी पूजा, सरसत्ती पूजा के महीनो-महीना पहिलहीं से भीड़ में घेराल रहऽ हलन ।) (बिगुल॰26.8, 28; 30.20)
424 माटर (= मास्टर) (पढ़हीं घड़ी घर के लाचारी आउ अपनो जेब-खरच ले कुछ टिसनी करऽ हलन, जे आज तक अपन कसबा में उनका सब माटरे साहेब कहके पुकारे हे ।) (बिगुल॰15.13)
425 मामू-ममानी (कखनउँ भोजाय ले डगरिन, चाची ले दवाय, चाचा ले दारू त बहिन ले किताब घर से किताब से लेके परीच्छा घड़ी तक देवाल फाँदा-फाँदी से गुजरे पड़ऽ हल । आल-गेल मामू-ममानी आउ फूफा-फूआ के टिसन आउ बस अड्डा छोड़े में उनका एगो अजबे सुकून मिलऽ हल ।) (बिगुल॰37.9)
426 मिंझाना (= बुझना; बुझाना) (बड़गो शहर के, परदेसी जी भर नजर देखलन हे मुदा अपन शहर में मूड़ी गोतिये के जिनगी गुजार रहलन हे । से गुनी गोष्ठी-सभा करके अपन आँख के आग मिंझाबऽ हथ ।) (बिगुल॰42.1)
427 मित्तिन (दमयंती अपन सहेली-मित्तिन जउरे दिन भर में अस्पताल के कत्तेक चक्कर लगावऽ हली । नर्स आउ दाय के त हिदायत करतहीं रहऽ हली । उनकर मित्तिन सब अंगुरी के पकड़ा-पकड़ी आउ पइसा के चित्त-भुद करके महौल के अउरो महीन करके चल जा हली ।) (बिगुल॰60.18)
428 मिल्लत (बच गेला हल रघुबंस आउ उनकर छोट-मोट परिवार । जेहो अब ओहे हवा-पानी में पनपे लगल हल । तब भी मिल्लत से बनल मिलकीयत के नक्सा उनकर दिमाग से नञ् उतरऽ हल ।) (बिगुल॰38.16)
429 मिसमाँमीस (रेल खुलतहीं लछमी अपन चसमा आउ ऊ अपन मुँह से दाँत निकालके अलग झोला में रख लेलक । सउँसे डिब्बा में मिसमाँमीस हल, पर भीड़ से की, ऊ तो अपन जिनगी के ढेर दिन भीड़े में काटलक हे ।; जोम में टीसन पहुँच गेल । मिसमाँमीस में भी चन्दू एकदम अकेलुआ बूझ रहल हल ।) (बिगुल॰19.3-4; 33.2)
430 मीटिन (= मीटिंग) (महीना दू महीना से जब दिन आगू बढ़ल आउ पइसा मिले के कोय चाल-चपट नञ् भेल त चनेसर सहमे लगल । कॉलेज तो चल निकलल । लड़कन तराउपरी । महीनो-महीना बाद मीटिन होल आउ निरलय लेल गेल कि तीज-तेहवार में हाथ ओदा कइल जात ।) (बिगुल॰50.23)
431 मीठ (बनारसी बाबू फिनु घड़ी देखलन । सूइ घसकिये नञ् रहल हल । सड़क सुनसान आउ होटल एकदम्मे जगमगा रहल हल । उनका नीम तर के हवा बड़ नीमन आउ मीठ लग रहल हल ।; नीम के तो निमकउड़ियो मीठ होवऽ हे मुदा जिनगी के मीठो फल के तीत सवाद से उनकर रोम-रोम काँप जा हल ।) (बिगुल॰53.26, 28)
432 मुँहदेखाय (ई सबसे अलग उनकर घरवली के धियान हरदम हँसुली पर हल । पुरान ... ढेर बच्छर के पुरान हँसुली संजोगले हली । सोच के चलली हल कि ई हसरत भरल हँसुली कनिआय के मुँहदेखाय में देम ।) (बिगुल॰46.4)
433 मुँहफुलौअल (जिअल जिनगी के तस्वीर टाँगे में ईसा मसीह के दरद महसूसऽ हलन । मुदा कुछ अइसनो हल जेकरा बेला-मोका देखके अपन सन्दूक में रख दे हलन । अइसनका फोटू के चलते तो कभी-कभी मेहरारू से महीनो-महीना मुँहफुलौअल हो जा हल ।; साँझ के एहे बात पर बड़का आउ मंझला में ठन गेल । ऊ, बाबू जी बीच-बचाव नञ् करतन हल त एक खेर तीन खुंडी । तहिये से घर में दरार पड़ गेल जेकर दिरइँची से टोला-टाटी के बतसल बेयार पइसे लगल । गोतनिन के मुँहफुलौअल तो साधारन हल, कभी-कभी सउँसे घर गरमा जा हल जेकर धाह से गोतिया के गेनरा सूखे लगल ।) (बिगुल॰26.9; 50.10)
434 मुँह-लगउअल (बिन्दा बाबू सीधा आदमी हलन । गीता, रामायण आउ हिन्दी-अंगरेजी के कहाउत उनकर ठोरे पर रहऽ हल । उनकर घरवली के छोट शहर के सिनेमा, होटल तनिको अच्छा नञ् लगऽ हल आउ जादे लोग से मुँह-लगउअल भी नञ् करऽ हली ।) (बिगुल॰53.21)
435 मुझप्पे (मुझप्पे एक दिन साइमन सिर पर नावा-नावा टोपा आउ ढेरकुन फल-फूल लेके ससु के घर आ बड़ी अधिकार से बाहर चले ले कहलक । ओकरा तैयार होवे में की देर, की सबेर !) (बिगुल॰18.25)
436 मुड़ना (किस्ते में भगवान के किरपा से दूगो लड़कन भी होल । पहिला किस्त में गंगा आउ छो बच्छर बाद दोसर किस्त में जमुना । गंगा के मुड़ना बनारस में आउ जमुना के इलाहाबाद में बड़ी लकधक से करइलन हल ।) (बिगुल॰24.29)
437 मुनाना (आँख ~) (लास के भयानक तस्वीर देखके रामबाबू के रोमाँ-रोमाँ सिहर गेल आउ गंगा के पानी अब एकदमे सथा गेल । अब उनकर सउँसे शरीर से पसीना के धार बहे लगल । दूर-दूर तक पहाड़-आकाश देखते-देखते मूड़ी गोत लेलन । आँख मुना गेल आउ उनका लगे लगल कि हरकीपौड़ी के टावर के बगले एगो अउरो टावर हे ।) (बिगुल॰4.32)
438 मुलकात (= मुलाकात) (जिनकर आदत से घालमेल करके कहानी बाते-बात में टपक पड़े, मुलकात होला पर खभेड़ तक पहुँचे के लहजा आउ दूर तक पइठे वला बिम्ब घोरल वाक्य सुनवइया के चोटा दे, त समझऽ ऊ हथ मगही कहानी के थम्हनगर मेंहटा रामचन्द्र अदीप ।) (बिगुल॰vii.2)
439 मूड़ी (~ गोतना) (लास के भयानक तस्वीर देखके रामबाबू के रोमाँ-रोमाँ सिहर गेल आउ गंगा के पानी अब एकदमे सथा गेल । अब उनकर सउँसे शरीर से पसीना के धार बहे लगल । दूर-दूर तक पहाड़-आकाश देखते-देखते मूड़ी गोत लेलन । आँख मुना गेल आउ उनका लगे लगल कि हरकीपौड़ी के टावर के बगले एगो अउरो टावर हे ।; बइठका में जउरे बइठल भाय लोग रघुबंस दने ताक रहलन हल । बाबूजी फिनो चुप हलन । फोटू हाथ में धरतहीं रघुबंस भीतर तक काँप गेलन आउ उनकर धियान बच्छरो-बच्छर पहिले के छानबीन आउ चुना-चुनी पर चल गेल । छगुनइत अपन नजर उठइलन । उनकर आँख घरनी के खिलल चेहरा पर चल गेल । बस ! तुरत मूड़ी गोत लेलन ।; बड़गो शहर के, परदेसी जी भर नजर देखलन हे मुदा अपन शहर में मूड़ी गोतिये के जिनगी गुजार रहलन हे ।) (बिगुल॰4.32; 39.31; 41.32)
440 मेंहटा (जिनकर आदत से घालमेल करके कहानी बाते-बात में टपक पड़े, मुलकात होला पर खभेड़ तक पहुँचे के लहजा आउ दूर तक पइठे वला बिम्ब घोरल वाक्य सुनवइया के चोटा दे, त समझऽ ऊ हथ मगही कहानी के थम्हनगर मेंहटा रामचन्द्र अदीप ।) (बिगुल॰vii.5)
441 मेट (मुंसी जी के हाट-बजार करते-करते ओकरो बुतात साथहीं लगे लगल । अब एक्के भनसा में दुन्नो खाय लगल आउ ऊ मजूर से मेट हो गेल हल ।) (बिगुल॰20.19)
442 मेरावल (~ जउरी) (साझा परिवार के मेरावल जउरी जब ओझरा हल तब सोझरइवे नञ् करऽ हल । तभियो रघुबंस तन-मन के गरमी के अपन आचरण से इड़ोत करते रहऽ हलन ।) (बिगुल॰37.30)
443 मेरियाना (ऊ अनुवाद उनका सबसे उमदा लगऽ हल, जेहमाँ एगो बाप पइना हिगरा-हिगरा के बेटन के तोड़े ले देलक हल । सब पइना टूट गेल, मुदा जब मेरिया के तोड़े ले कहलक त केकरो से नञ् टूटल । एही बात रघुबंस के जिनगी में खड़ा होला पर ढेर असर डाललक ।) (बिगुल॰37.19)
444 मेहनत-मजूरी (रघुबंस के 'राम' होवे ले बाबुए जी उसकइलन हल । रघुबंस के उपदेश देवे घड़ी ऊ अपन जिनगी-जुआनी के जहमत भूल जा हलन । सोचऽ हलन कि जल्दी में गद्दी देके आवे वला दिन से एकदम निछक्का हो जाम । गद्दी की हल ! बित्ता भर छप्पर के छारल छँहुरी, जे बाबूजी के मेहनत-मजूरी के लमहर लड़ाय से बनल हल ।) (बिगुल॰36.10)
445 मोट (= मोटा) (साहब लोगन के हर हिदायत आउ झिड़की पर भोला बाबू के मन में अप्पन अजय आउ विजय के साहब बनावे के बात आउरो मजगूत हो जा हल । अजय-विजय के रोज-रोज साँझे-बिहने व्यवहारिक ज्ञान देल करऽ हलन । बेटन लोग के गैरहाजरी में ओकर मोट-मोट किताब धियान से पढ़ऽ हलन । कभी-कभी देखे में लगऽ हल कि बेटन के बदले भोले बाबू परीक्षा देतन ।) (बिगुल॰6.6)
446 मोटगर (हाथ में मोटगर-मोटगर फाइल आउ चारो धोकड़ी सरकारी पुरजा-पुरजी से भरल रहऽ हल । साहब लोगन के हर हिदायत आउ झिड़की पर भोला बाबू के मन में अप्पन अजय आउ विजय के साहब बनावे के बात आउरो मजगूत हो जा हल ।; एह ! तेल पिलावल मोटगर लाठी आउ अढ़ाय-गज्जी के फेंटा बान्ह के जखनी निकलऽ हलन तो केकर मजाल कि अलीफ से बे कर दे । समुच्चे जिला-जेवार में इनकर पहलवानी के नाम हल ।) (बिगुल॰6.2; 44.3)
447 मोटरी-गेठरी (जमींदारी के बाद पहलवान जी के जिनगी गाँव में ही गुजरऽ हल ् जमींदार साहेब के रंगबाजी के एक से एक जुमला गाँव वलन के सुनावऽ हलन । अइसन खिस्सा सुनावे घड़ी उनका में अजबे जोश आ जा हल । मुदा गठिया से बेचारे एकदम मोटरी-गेठरी जइसन हो गेलन हल ।) (बिगुल॰45.19)
448 मोहड़ा (समता विसमता के घाट में अउघट चाल जदि देखे के होय तो अपने 'अदीप' जी के कहानी सेंगरन देख सकऽ ही । निछक्का सामाजिक दुराव, पारिवारिक विघटन अउ भौतिक चकाचौंध के पीछे बउड़ाल, धधाल अदमी के चेहरा पर जे नकली मुखौटा हे ओकरा हर मोहड़ा पर एकरा में देखल जा सकऽ हे ।) (बिगुल॰vi.22)
449 मोहलत (मगही गीत के धुन पर जब दोसर भाषा-भाषी भी झूमे लगऽ हल तब ऊ तो गीत के रस में एकदम सराबोर हो जा हल । लछमिये आके ऊ भीड़ के मोहलत देलावऽ हल ।) (बिगुल॰21.13)
450 रंगइया-पोतइया (मकान बनके तैयार हो गेल । मकान के रंगइया-पोतइया होते-होते अब ऊ दोसर मकान के बुनियाद में अइँटा जोड़े लगल हल ।) (बिगुल॰21.3)
451 रग्गड़ (= रगड़) (पत्रिका भी निकाललक आउ किताबो छपवइलक । एकरा, ई तेवर बचावे खातिर 'टिसनिया सर' भी बने पड़ल । मुदा कुछ दिन में देखे लगल कि एकर ताव के रग्गड़ से जंगालो कलम के जंग छूटे लगल, पुरान शेरवानी धोवाय लगल ।) (बिगुल॰50.32)
452 रजगज (ढेरो दिन के बाद कुच्छेक हरफ के लिखल चिट्ठी भेटल हल । बस, नीला रंग के खलिए चिट्ठी से सउँसे घर हरियर ! रजगज ! लोगबाग के निलका चिट्ठी में लाल-लाल, छोट-मोट, गोल-गाल एगो बेसगर चिजोर बँधल नजर आवे लगल ।) (बिगुल॰34.21)
453 रजिसटरी (= रेजिस्ट्री) (रीता के बियाह त घर के चुल्हो के आँच मद्धिम कर देलक हल । आधा खेत-पथार त इंजीनियर दमाद पावे में रजिसटरी आफिस में धर अइलन हल । घर के दशा में तहिये से दखल पड़े लगल हल ।) (बिगुल॰33.23)
454 रबना (कहानी के सम्बन्ध में हम की कहूँ ? ई सब कहानी के दीया हमर हाजिरे-नाजिर में नेसाल हे, तब भी कह सकऽ हूँ कि ओहे कहानी कहानी कहलाय के दावा करऽ हे, जे अपने अपने रब्बऽ हे, लिखवइया आउ कहवइया से एकदम अल्लग, आलोचक के नजर के ठुनका लगला पर !) (बिगुल॰vii.17)
455 रसे-रसे ( रसे-रसे चनेसर भी खेत पर गोड़ाटाही करे लगल । थकल-फिदाल जब भी आवे त घर में एगो आउरो तनाव महसूसे । बाबू जी के ललोसा हल कि कम से कम छोटका बाहर निकले ।) (बिगुल॰49.19)
456 रसोय (= रसोई) (अइसन भयचारा तो अपन देसो में नञ् मिलऽ हे । सब मेहनत के माला में गुंथाल रहऽ हल । लछमी मुनिरका मुंसी के रसोय बनावऽ हल । हाजरी तो रोज बनिये जा हल । सेठ जी सनिचर के सनिचर आके मजूरी गुदारऽ हलन ।; मुंसी लछमी के बनल रसोय सराह-सराह के खाय लगलन हल ।) (बिगुल॰20.6, 22)
457 रात-बिरात (ओही दिन से सोहना से सितबिया अलग हो गेल । हाल-समाचार कुच्छो नञ् भेटऽ हल, थोड़ा-बहुत थाना-कचहरी के बात रात-बिरात कभी-कभी सुभान ठेला वला आके सुनावऽ हल । सुभान सोहने के बारे में बात करते-करते रात काट दे हल ।) (बिगुल॰16.16)
458 रात-विरात (रात-विरात में भी हारो बाबू ऊ अधेड़ उमर के जन्नी के एकदम सहज होके घूमते देखऽ हलन ।) (बिगुल॰13.30)
459 रुस्सा-बउँसी (महीनो-महीना पर चनेसर जब घर आवऽ हल तो बाबू जी ले कुरता-धोती के साथ माय ले सड़िया भी कीन ले हल मुदा बाल-बुतरुन के छीट-रंगीन कीनइत-कीनइत धोकड़ी जवाब दे दे हल । भौजी के ताना आउ घरनी के रुस्सा-बउँसी तो चलते रहऽ हल ।) (बिगुल॰51.10)
460 रेवाज (= रिवाज) (दहेज के खिलाफ जहाँ कहीं भी सभा-गोष्ठी होवऽ हल, राम बाबू सबसे आगू बइठऽ हलन । मगर सामाजिक रेवाज के आग में कूदे के तैयारी में लोक-लाज, अपना-पराया, बड़-छोट, नाता-गोता सब भूल गेलन हल ।) (बिगुल॰2.24)
461 रोजगरिया (दमयंती के पति दिनेश बाबू शहर के सफल रोजगरिया हलन । रोजगार में दिन से रात-रात तलुक डूबले रहऽ हलन ।) (बिगुल॰57.23)
462 लंगो-तंगो (ई लंगो-तंगो आउ हथपातर हालत देखके घर से सुझाव मिलल कि बड़गो शहर हे । काहे नञ् चनेसर कोय दोसरो रोजगार करे, कॉलेज के पढ़ाय तो एकरे समय से जानल हे ।) (बिगुल॰51.11)
463 लउडिसपीकर (अपन महल्ला के ताकत, एकता आउ उत्साह तीजे-तेहवार में देखऽ हलन । एक से एक मूर्ति ! पंडाल के सजधज आउ लउडिसपीकरे से रात-रात भर गाना-बजाना !) (बिगुल॰15.16)
464 लउडिस्पीकर (ढेरोढेर दिन पर टुनमुनइलन आउ दुर्गापूजा देखे निकललन । बिजली के चमक से उनका रातो में दिन के भरम हो रहल हल । सउँसे शहर लउडिस्पीकरे के ऊलजलूल आवाज ओढ़ले हल । कीर्तन-भजन तो अलोप गेल हल ।) (बिगुल॰31.25)
465 लकधक (किस्ते में भगवान के किरपा से दूगो लड़कन भी होल । पहिला किस्त में गंगा आउ छो बच्छर बाद दोसर किस्त में जमुना । गंगा के मुड़ना बनारस में आउ जमुना के इलाहाबाद में बड़ी लकधक से करइलन हल ।; बनारसी बाबू ई बच्छर अपन बेटी के निमाहे ले ठानिये लेलन हल । सोचऽ हलन कि कुसुम के बियाह के लगले-लगल बड़ी लकधक से पोती के बियाह नाधम ।) (बिगुल॰24.30; 54.32)
466 लगबहिये (जोम में टीसन पहुँच गेल । मिसमाँमीस में भी चन्दू एकदम अकेलुआ बूझ रहल हल । अपन टीसन त ई टीसन के मिलान में एकदम्मे टीसनी हे । गाड़ी-घोड़ा सब लटफरेमे पर चल जा हे । सउँसे देश तक जाय-आवे वाली गाड़ी के खबर भोंपू से लगबहिये बोलल जा हे । आदमी के एकदम्मे चौकन्ना रहे पड़ऽ हे ।) (बिगुल॰33.5)
467 लगुआ-भगुआ (एन्ने जमींदारी हिलल तो गवइया के साथ-साथ हाथी जइसन ओहो डोल गेलन । जमींदारी के समय पहलवान जी के लगुआ-भगुआ भी दूध-दही से तरबतर रहऽ हल । तहिया ऊ डेउढ़ी-हवेली के शोभा हलन मुदा अब तो उनकर अपने शरीर लोंझ-पोंझ हो गेल हल ।) (बिगुल॰44.7)
468 लचार (= लाचार) (ठोस होवे लेल आर्थिक, नैतिक आउ सामाजिक जद्दोजहद के सही समझ के जरूरत हे । अधकचरा गियान त औरत के अउरो लचार आउ लिजलिजा बनावऽ हे । अइसने सोचइत ऊ अपन सास के भाषण से भाव के हिगरा रहली हल । सउँसे घर त अजबे नकलपचीसी में जी रहल हल ।) (बिगुल॰60.13)
469 लटफरेम (= प्लैटफॉर्म) (भोर हो गेल हल । गाड़ी अब हवड़ा लटफरेम पर रुके ले हल । समान बान्हते-बान्हते मुसके लगलन कि अपन सउँसे जवानी किस्ते में बाँटके लड़कन के थोक बनइलन हल मुदा लड़कन सब उनका किस्ते में बाँट देलक । अब छो महीना कलकत्ता वाला बेटा के साथ रहे के हे ।; जोम में टीसन पहुँच गेल । मिसमाँमीस में भी चन्दू एकदम अकेलुआ बूझ रहल हल । अपन टीसन त ई टीसन के मिलान में एकदम्मे टीसनी हे । गाड़ी-घोड़ा सब लटफरेमे पर चल जा हे ।) (बिगुल॰25.29; 33.4)
470 लड़ाय (रघुबंस के 'राम' होवे ले बाबुए जी उसकइलन हल । रघुबंस के उपदेश देवे घड़ी ऊ अपन जिनगी-जुआनी के जहमत भूल जा हलन । सोचऽ हलन कि जल्दी में गद्दी देके आवे वला दिन से एकदम निछक्का हो जाम । गद्दी की हल ! बित्ता भर छप्पर के छारल छँहुरी, जे बाबूजी के मेहनत-मजूरी के लमहर लड़ाय से बनल हल ।; रसोइ त अँगने में बनऽ हल मुदा थरिया भितरे में परसा हल । कभी नीपे ले त कभी बाढ़े ले आउ कभी-कभी बुतरुन-बानर के चलते अँगना लड़ाय के अखाढ़ा हो गेल ।) (बिगुल॰36.10; 38.6)
471 लदल (बनारसी बाबू के ई सब से मतलबे की हल ? टरक रुकतहीं अपन लदल समान के चारो दने घूर के देख ले हलन । टरक पर लदल समान उनकर सउँसे नौकरी के उतार-चढ़ाव के नक्सा पेश करऽ हल । नौकरी के बुरा-भला दिन तिरपाल से एकदमे ढँकल हल ।) (बिगुल॰52.8)
472 लबज (= लफ्ज, शब्द) (धउग के ऊ अपन गाँव आउ अब अपन अँगना में आ गेल हल । खबर त बिजली नियन पसर गेल । छोट-मोट बस्ती ओकर घरे में समा गेल हल । जे आवऽ हल ऊ धड़-सा चिट्ठिये पकड़ ले हल आउ एक्के लबज - 'रीता के लड़का होल हे ।' बाबू जी त हरिया हलुआय के दोकान सउँसे गाँव में बाँट देलन हल ।) (बिगुल॰33.17)
473 लमहर (रघुबंस के 'राम' होवे ले बाबुए जी उसकइलन हल । रघुबंस के उपदेश देवे घड़ी ऊ अपन जिनगी-जुआनी के जहमत भूल जा हलन । सोचऽ हलन कि जल्दी में गद्दी देके आवे वला दिन से एकदम निछक्का हो जाम । गद्दी की हल ! बित्ता भर छप्पर के छारल छँहुरी, जे बाबूजी के मेहनत-मजूरी के लमहर लड़ाय से बनल हल ।) (बिगुल॰36.10)
474 लम्मा (= लम्बा) (ओकर तो लम्मा इलाज हे । लाल-पियर दवाय आउ फोटू लेके ओकरा दू-चार दिन पर जाय पड़ऽ हे । कम्पोटर त ओजन आउ बुखार लेके छोड़ दे हे, पर डाकटर साहेब से बात करे ले दू पहर तक ठहरे पड़ऽ हे ।) (बिगुल॰17.26)
475 ललोसा (= लालसा) (ओकर धियान में महाजन के हँसमुख चेहरा नाच-नाच जा हल । हँसमुख चेहरा के तेज धार से मने-मन घबड़ा हल । मुदा हरिया के समाद से ढाढ़स बँधल हल । तबे तो घर आवे के ललोसा लहकल हल ।; रसे-रसे चनेसर भी खेत पर गोड़ाटाही करे लगल । थकल-फिदाल जब भी आवे त घर में एगो आउरो तनाव महसूसे । बाबू जी के ललोसा हल कि कम से कम छोटका बाहर निकले ।) (बिगुल॰21.21; 49.20)
476 लाय-लेमचूस (जब लछमी सँझउकी खाय बनावऽ हल त ऊ मिसरी के लेके बजार घूमे जा हल । लाय-लेमचूस आउ पिलखजूर खिलावऽ हल । कभी खाली गूँड़े पर संतोख ।) (बिगुल॰21.6)
477 लिजलिजा (ठोस होवे लेल आर्थिक, नैतिक आउ सामाजिक जद्दोजहद के सही समझ के जरूरत हे । अधकचरा गियान त औरत के अउरो लचार आउ लिजलिजा बनावऽ हे । अइसने सोचइत ऊ अपन सास के भाषण से भाव के हिगरा रहली हल । सउँसे घर त अजबे नकलपचीसी में जी रहल हल ।) (बिगुल॰60.13)
478 लिलकल (कलीम साहब पिंजरा के तोता-मैना, खूँटा के बँधल जानवर, दरबा के कबूतर आउ मुरगी से भी जादे बेपनाह हो गेलन हल । ई सब ले तो बउधे काफी हे । मुदा उनकर बुढ़ारी की खाली डराफ आउ सौगाते ले लिलकल हे ? ई सोच-सोच के कलीम साहब आउ उनकर बेगम के सेहत एकदमे ढह गेल । डराफ आउ तोहफा अब बउधे ढोवे लगल ।) (बिगुल॰12.3)
479 लूर-लच्छन (गाँव वलन के मुँह पर तो बस एक्के बात बस गेल हल कि केसो के दिन बहुर गेल । तीन बेटन में एगो चनेसरे दिन निमाहत । तखनइँ दोसर आदमी बात लोक ले हल - भला मेहनत कहियो दगा दे हइ ? अहो, लूर-लच्छन तो पहिले से ही गोवाही दे हलइ ।) (बिगुल॰48.5)
480 लोंझ-पोंझ (एन्ने जमींदारी हिलल तो गवइया के साथ-साथ हाथी जइसन ओहो डोल गेलन । जमींदारी के समय पहलवान जी के लगुआ-भगुआ भी दूध-दही से तरबतर रहऽ हल । तहिया ऊ डेउढ़ी-हवेली के शोभा हलन मुदा अब तो उनकर अपने शरीर लोंझ-पोंझ हो गेल हल ।) (बिगुल॰44.9)
481 लोहमान (जीवन बाबू बाहरे में वजनगर भले रहथ, घर में हौले हो गेलन हल । बेटा-बेटी जइसे-जइसे बड़गो होवऽ हल, ऊ छोटगर होवे लगलन हल । सामने कोय बोले या नञ् मुदा जेकरा जे मन में आवऽ हल करवे करऽ हल । ऊ देख रहलन हल कि उनकर हुमाद आउ लोहमान पर विदेशी इत्र के महक तेज हो रहल हल ।) (बिगुल॰31.17)
482 वजनगर (घर में बेटा-बेटी के बदलल रंग के सामने समझौता से काम चलावे लगलन । घरनी भी उनकर बात के काटे लगली । जीवन बाबू बाहरे में वजनगर भले रहथ, घर में हौले हो गेलन हल ।; ओकरा याद हे कि ई घर के बहू बने में ओकर काम-काजू होवे वली बात जादे वजनगर हल ।) (बिगुल॰31.14; 60.5)
483 वसूलल (रंगरूट सब के दादागिरी से तेहवार लेल ढेरोढेर रकम आवे लगल । बड़गो लोग दादा सब के भारी चंदा देके अपन बाकी दिन ले सुरच्छित हो जा हलन । जीवन बाबू ई नावा रंगदारी वाला वसूलल सिक्का के धक्का से एकदम तिलमिला गेलन हल । ऊ बदलल हवा आउ तूफान में समटाय लगलन तो एकदमे समटाइये गेलन ।) (बिगुल॰31.5)
484 सँझउकी (उनका कंजूस नञ् कहल जा सकऽ हल । हवेली के बनल सँझउकी चाय पीये ले आदमी के तलासवे करऽ हलन । चाय पीये घड़ी देस-विदेस आउ अपन शहरो के छोट-बड़ घटना से तरोताजा होवऽ हलन ।; जब लछमी सँझउकी खाय बनावऽ हल त ऊ मिसरी के लेके बजार घूमे जा हल । लाय-लेमचूस आउ पिलखजूर खिलावऽ हल । कभी खाली गूँड़े पर संतोख ।; सँझउकी घर पहुँचल हल । विचारलक कि बहिन-बहिनोइ से जउरे विदा लेत । ई की, साँझ से रात हो गेल मुदा अनील अभियो नञ् अइलन हल । रीता से उमर में तनिके उनइस हल ।) (बिगुल॰10.19; 21.5; 32.5)
485 संतोख (= संतोष) (जब लछमी सँझउकी खाय बनावऽ हल त ऊ मिसरी के लेके बजार घूमे जा हल । लाय-लेमचूस आउ पिलखजूर खिलावऽ हल । कभी खाली गूँड़े पर संतोख ।; नामी-गिरामी परिवार के ढेरो लड़कन के मंसूरी, शिमला आउ देहरादून भेजाके गौरव महसूस कइलन हल । कभी-कभी किरन जी के भी गरजियन के साथ मंसूरी, शिमला, मद्रास आउ दिल्ली जाय के मौका मिल जा हल । अपन शहर के लड़कन के अंगरेजी लिबास आउ बातचीत के अंगरेजी धार देखके मन ही मन संतोख के साँस ले हलन।) (बिगुल॰21.7; 25.4)
486 सउँसे (राम बाबू सउँसे अखबार में बस दहेज परथा के विरोध में बनल संगठन आउ उन्मूलन के खबर बड़ी चाव से पढ़ऽ हलन । बड़गो शहर के घटना तो देस-परसिद्ध साप्ताहिक आउ मासिक पत्रिका में विस्तार से छपवे करऽ हल । राम बाबू ले देस के उन्नति-परगति से बड़गो समाचार दहेज के खबर लगऽ हल ।; ढेरोढेर दिन पर टुनमुनइलन आउ दुर्गापूजा देखे निकललन । बिजली के चमक से उनका रातो में दिन के भरम हो रहल हल । सउँसे शहर लउडिस्पीकरे के ऊलजलूल आवाज ओढ़ले हल । कीर्तन-भजन तो अलोप गेल हल ।) (बिगुल॰1.1; 31.23)
487 सगुनल (बचपन में ऊ तीनो भाय-बहिन खुब्बे मिल-जुल के रहऽ हल । सावन के सगुनल घड़ी लेल छोटकी राखी बान्हे या भेजे लेल त महिनो-महिना से तैयारी करऽ हल । तीनों के मेल-जोल या झगड़ा में भोला बाबू आउ उनकर मेहरारू के अजबे अनंद मिलऽ हल ।) (बिगुल॰5.12)
488 सटिफिकेट (अनेकन बार तीज-त्योहार आउ साड़ी-कपड़ा लेल झगड़ा होवऽ हल मुदा उनकर घरवाली के साड़ी निछावर हो जा हल आउ राम बाबू अपन फुलपैंट रफूघर में घर के डाकघर के बचत योजना के सटिफिकेट लेके सथा जा हलन ।; अपन राधिका के कामकाजू बनावे ले एकदम नवा नक्सा नाधे लगलन हल राधे बाबू । पढ़ाय-लिखाय आउ सटिफिकेट के मंडी में मँड़राय लगलन । कुच्छे समय में धुरन्धरी आउ पइसा के प्रभाव के जोड़-तोड़ से गियान से जादे सटिफिकेटे सरिया देलन । पसरल सटिफिकेट के देख-देख के राधिका के गियान से ओकरा तौलते मन ही मन कुछ सोचे लगऽ हलन । उनका लगऽ हल कि अइसनका सटिफिकेट से संस्था सब के की कलियान होत ?) (बिगुल॰2.4; 42.8, 10, 12)
489 सटिफिकेटिया (~ गियान) (फिनु कामकाजू जन्नी-मरद के जिनगी के दरकइत देवाल भी नजर तर हे जेकर दिरइँची से बाहरी लोग भितरकी दशा देखऽ हथ । नकलपचीसी के पढ़ाय-लिखाय के एहे असर होवऽ हे । अइसन सटिफिकेटिया गियान वली कामकाजू जन्नी पर मरद के धौंस कम नञ् होवऽ हे ।; राधे बाबू के लगऽ हल कि राधिका के कामकाजू होते उनकर पसेना पउडर आउ लमेंडर के लेप में लोप हो जात । मुदा फिनु राधिका के सटिफिकेटिया गियान के भंजावे ले अउनपथारी हो जा हलन ।) (बिगुल॰42.20-21; 43.16)
490 सथाना (बड़गो शहर के ई सब समाचार पढ़के आम आदमी के रोम-रोम कप जा हे । महिला-प्रदर्शन, अनशन आउ दहेज विरोधी सभा के सिलसिला कुछ दिन जोड़ पकड़ ले हे, फिन सब सथा जा हे ।; अनेकन बार तीज-त्योहार आउ साड़ी-कपड़ा लेल झगड़ा होवऽ हल मुदा उनकर घरवाली के साड़ी निछावर हो जा हल आउ राम बाबू अपन फुलपैंट रफूघर में घर के डाकघर के बचत योजना के सटिफिकेट लेके सथा जा हलन ।; उपरकिये पन्ना पर फोटू के साथ एगो बड़गो परिवार के घटना हल । दहेज में फ्रीज बाकी रह जाय गुनी बहू के किरासन तेल से जला देवल गेल हल । लास के भयानक तस्वीर देखके रामबाबू के रोमाँ-रोमाँ सिहर गेल आउ गंगा के पानी अब एकदमे सथा गेल ।) (बिगुल॰1.17; 2.4; 4.30)
491 समटाना (= सिमट जाना) (रंगरूट सब के दादागिरी से तेहवार लेल ढेरोढेर रकम आवे लगल । बड़गो लोग दादा सब के भारी चंदा देके अपन बाकी दिन ले सुरच्छित हो जा हलन । जीवन बाबू ई नावा रंगदारी वाला वसूलल सिक्का के धक्का से एकदम तिलमिला गेलन हल । ऊ बदलल हवा आउ तूफान में समटाय लगलन तो एकदमे समटाइये गेलन । ऊ बूझे लगलन हल कि ई नावा रंगरूट के सामने देश, समाज आउ धार्मिक बात करनइ फजूल हे । अपन सामने ही उनकर बात-विचार के बखिया उघर गेल । ऊ जलसा से समटाल दरी-बिछौना जइसन समटा गेलन ।) (बिगुल॰31.7, 10)
492 समधिअउरा (रीता के बियाह के बाद समधिअउरा के रुख बदल गेल हल । भूलल-भटकल बेजान चिट्ठी कभी-कभार मिल जा हल । वहाँ के लमहर चुप्पी से माय-बाबू के चेहरा के रंग एकदम बदरंग हो गेल हल ।) (बिगुल॰34.10)
493 समाद (ओकर धियान में महाजन के हँसमुख चेहरा नाच-नाच जा हल । हँसमुख चेहरा के तेज धार से मने-मन घबड़ा हल । मुदा हरिया के समाद से ढाढ़स बँधल हल ।) (बिगुल॰21.20)
494 समुच्चे (एह ! तेल पिलावल मोटगर लाठी आउ अढ़ाय-गज्जी के फेंटा बान्ह के जखनी निकलऽ हलन तो केकर मजाल कि अलीफ से बे कर दे । समुच्चे जिला-जेवार में इनकर पहलवानी के नाम हल ।) (बिगुल॰44.5)
495 सरगीय (= स्वर्गीय) (ई सब करे पर भी करम के बात, अपन सरगीय पिता पटवारी जी के बनावल नहर तर वलन खेत बेचके अजय के डागडरी आउ विजय के इंजीनियरी कॉलेज में चंदा देके दाखिल करावे पड़ल ।) (बिगुल॰6.16)
496 सर-सगुन (अबकी बेर जब पु्ष्पा के दोसर महीना चल रहल हल, तखनिये ओकर बाँह में ताबीज बाँधल गेल त ऊ एकदम चउँक गेली हल । भूत-भभूत से नउवो महीना होते-हवाते सर-सगुन के रस्ता से अस्पताल के पेइंग वाड में पहुँचली हल । पुष्पा अस्पताल में लोघड़ल नारी मुक्ति आन्दोलन, बरोबरी के अधिकार आउ नारी जागरन के नारा के नबज टिटकोरइत अपन सास के नेतागिरी पर मन हीं मन मुसक जा हली ।) (बिगुल॰60.1)
497 सरसत्ती (= सरस्वती) (जीवन बाबू किसुन पंडित के हाल देखलन हल । खुब्बे निमन मूरति बनावऽ हल । देवी पूजा, लक्ष्मी पूजा, सरसत्ती पूजा के महीनो-महीना पहिलहीं से भीड़ में घेराल रहऽ हलन ।; सरसत्ती के किरपा से महिला कॉलेज में हिन्दी पद पर नौकरी के जुगुत-जोगाड़ बइठ गेल । नौकरी भेटतहीं पुष्पा के जिनगी से फूल जइसन महक धीरे-धीरे फइले लगल ।) (बिगुल॰30.20; 57.6)
498 सर-समान (नौकरी में बनारसी बाबू के कभी भाड़ा के मकान त कभी कोलनियो में रहे पड़ल हल । भाड़ा-किराया वला मकान के जिनगी तो पास-पड़ोस से चुनचान के कटिये जा हल । मुदा कोलनी वला समय खुब्बे आपाधापी, चमक-दमक आउ नकलपचीसी में कटल हल । आधुनिक सर-समान के रोग त एकदम्मे महामारी जइसन फइलऽ हल ।) (बिगुल॰53.1)
499 सर-सरजाम (पइसा से खाली आधुनिक सर-सरजाम, बनावटी सुविधा, विदेशी बेहवार आउ ऊँच उठइत आलीशान मकान में नीचे एकदम्मे नीचे गिरइत आदमी पावल जा सकऽ हे । बड़ शहर के बड़गो लोग के कार-करनामा के हाल पढ़के जीवन बाबू के होश-हवास उड़ जा हल ।) (बिगुल॰29.30)
500 सर-सिनेमा (टोला-पड़ोस के चमक-दमक के टुकुर-टुकुर ताकते उनकर आँख पथरा जा हल । शहरी जिनगी हल, ई लेल ठाट-बाट त गाड़ी, रिक्सा से पटल आउ सर-सिनेमा से बिखरल देखतहीं रहऽ हलन, मुदा की मजाल कि कोय सटे दे !) (बिगुल॰37.2)
501 सराध (= श्राद्ध) (साथी-संगी के घर के शादी या सराध में आठो पहर पिलल रहऽ हलन । तिलक-दहेज के बात पर बलबला जा हलन ।) (बिगुल॰29.24)
502 सलाय-बीड़ी (साइमन के हाल पर अब ओकरा तरस आवे लगल हल । बाप रे बाप ! बाल-बुतरुन के छइते ई दुख ! चाह के दोकान में बइठते-बइठते अब दुन्नू में सलाय-बीड़ी के अदला-बदली होवे लगल हल ।) (बिगुल॰18.13)
503 सवादना (उनका लगऽ हे कि साइत डॉ॰ बैजनाथ वर्मा के भाषण से शहर के जकड़न टूटत आउ बड़गो शहर के शहद एही शहर में सवादल जात ।) (बिगुल॰42.3)
504 सहेर (हियाँ तो हार-फूल, ठंढा-गरम के गहमागहमी से चन्दू के लग रहल हल कि सउँसे लटफारम कउनो काजपरोज या उत्सव के जगह हे । डिब्बा के खिड़की-दुआरी में सहेर के सहेर औरत-मरद दूर से टंगल लग रहल हल ।) (बिगुल॰33.8)
505 सहेली-मित्तिन (दमयंती अपन सहेली-मित्तिन जउरे दिन भर में अस्पताल के कत्तेक चक्कर लगावऽ हली । नर्स आउ दाय के त हिदायत करतहीं रहऽ हली । उनकर मित्तिन सब अंगुरी के पकड़ा-पकड़ी आउ पइसा के चित्त-भुद करके महौल के अउरो महीन करके चल जा हली ।) (बिगुल॰60.16)
506 साँझे-बिहने (= शाम-सुबह) (साहब लोगन के हर हिदायत आउ झिड़की पर भोला बाबू के मन में अप्पन अजय आउ विजय के साहब बनावे के बात आउरो मजगूत हो जा हल । अजय-विजय के रोज-रोज साँझे-बिहने व्यवहारिक ज्ञान देल करऽ हलन ।; हकीम साहब अनकर जगह के हवा-पानी से ताजा होवऽ हलन आउ फिनू अखाढ़े में । कलीम साहब आउ उनकर बेगम के साँझे-बिहने हवाखोरी के सुझाव सुझइलन, साथे-साथ ई उमर में दान-पुन्न के बात दोहरइलन ।) (बिगुल॰6.5; 12.12)
507 सामी (= स्वामी) (सतनारायन सामी के पूजा से तहिया सउँसे घर गजगजा गेल हल । चुरुआ भर-भर परसाद बँटल हल ।) (बिगुल॰48.1)
508 साहबी (अजय-विजय के साहबी के सामने छोटकी के भार भोला बाबू ले कहियो बड़गो नञ् बुझाल हल । शादी के कुच्छे दिन बाद पुतहू के पैतरा आउ बेटन के रंग से उनकर खियाल के चट्टान हिले लगल ।; भोला बाबू चाह पीते-पीते छोटकी के शादी के बात छेड़ देलन । दुन्नू परानी खुब्बे गौर से सुने लगलन । दुन्नू के धियान तब टूटल जब भोला बाबू पइसा-कउड़ी के बात पर अइलन । बहू तो तुरते कोठरी छोड़ देलकी । बेटा अब अपन लाचारी आउ महँगारी के बात करे लगल । भोला बाबू अजय के चेहरा पर धियान टिकउले सुनते रह गेलन । उनका लगे लगल कि अजय के साहबी पर शहरी हवा हावी हे ।) (बिगुल॰7.18; 8.8)
509 सिंगरदानी (बियाह तो उनकर लड़कपने में हो गेल हल, मुदा गउना लेल बछरो-बच्छर इंतजार करते-करते गीत-गजल के ढेर लगा देलन हल । मेहरारू के अइते, अपन घर-गिरहस्ती के शोहरत जइसन सजावे लेल सोचे लगलन हल । सबसे पहिले रमोतार मिस्तिरी के कारखाना जाय पड़ल हल । रमोतार के लड़कन उनकर स्कूल में पढ़ऽ हल । कुरसी-टेबुल आउ सोफा के अलावे एगो अइना लगल सिंगरदानी के जरूरत ढेर दिन से महसूस रहलन हल ।) (बिगुल॰24.10)
510 सीझना (मोटगर रकम के डराफ त सभे दने से लगातारे आ रहल हल । तरह-तरहके कपड़ा आउ अम्मा ले किसिम-किसिम के साड़ी-गहना ! मुदा अब ई सिलसिला के आग में मियाँ-बीबी सीझे लगलन हल । डराफ आउ सौगात से अब उनकर मन घबड़ाय लगल ।) (बिगुल॰11.25)
511 सुखाना (छोट-मोट रोजी-रोजगार के लत्तर खुब्बे फइलइलन हल । मुदा रोजगार के लत्तर हरियर हो-हो के पियरा जा हल । तब भी मन से कहियो हार नञ् मानलन हल । एक्के जउरी से बँधल रहे के बात सोचते रहऽ हलन । उनकर घरनी भी परिवार के नावा नक्सा ले ओदगर हाथ सुखइते रहऽ हली । बड़गो शहर के झमेटगर घराना से अइली हल ।) (बिगुल॰37.27)
512 सूतल (टरक से हटके उनकर धियान डलेवर आउ खलासी दने रह-रह के चलिये जा हल । इतमीनान से सूतल सुसता रहल हल । एगो मेहरारू ओही सब साथ बइठल दनादन सिगरेट पी रहल हल ।) (बिगुल॰52.12)
513 सेंगरन (ई सेंगरन आकाशवाणी, पटना आउ पत्र-पत्रिका में छितराल अदीप के कहानी सब के चुन-बिछ के सहेजलक हे ।) (बिगुल॰vii.12)
514 सेसर (घर में केतना समझावऽ हल चनेसर कि मिल्लत से मोहिम काम भी महीन हो जा हे । मुदा देखे लगल कि ओकर घरेवली सब से सेसर निकल रहल हे । केकरो बात भी भुइयाँ पड़े नञ् दे हे ।) (बिगुल॰49.27)
515 सोझराना (= सुलझना; सुलझाना) (साझा परिवार के मेरावल जउरी जब ओझरा हल तब सोझरइवे नञ् करऽ हल । तभियो रघुबंस तन-मन के गरमी के अपन आचरण से इड़ोत करते रहऽ हलन ।; दमयंती के पति दिनेश बाबू शहर के सफल रोजगरिया हलन । रोजगार में दिन से रात-रात तलुक डूबले रहऽ हलन । जउर-पगहा वेवस्था साथे घोंजरा जा हल त दमयंतीये सोझरावऽ हली ।) (बिगुल॰37.30; 57.25)
516 सोना-चानी (कपड़ा के जमल दोकानदारी हल । देश के चुनल मील के कपड़न से दोकान चकमकइते रहऽ हल । विदेसियो कपड़ा के गाँहक नञ् घुरऽ हलन । साथे-साथ सोना-चानी आउ गिरमी-गट्ठा के गढ़गर आमदनी लेल हाथ-गोड़ चलइतहीं रहऽ हलन ।) (बिगुल॰57.30)
517 सोभवगर (कॉलेज तो चल निकलल । लड़कन तराउपरी । महीनो-महीना बाद मीटिन होल आउ निरलय लेल गेल कि तीज-तेहवार में हाथ ओदा कइल जात । ई बीच चनेसर के नाम सउँसे सहर में खिंड़ गेल । उम्दा पढ़ाय आउ सोभवगर विचार से जे मिले ओकरे हो जाय ।) (बिगुल॰50.25)
518 सोह (= सोहसराय) (देस में, लछमी पुरान हो जाय पर भी सब ले नये हल मुदा अपनो शहर बसुआ ले नये लग रहल हल । भरावपर, गढ़पर, पुलपर सब नया लग रहल हल । सोह-बिहार एक्के हो गेल हे । तब टमटम से दीयाबत्ती के बाद सोह से बिहार आवे में केतना डर लगऽ हल । ऊ तो फुचिया टमटम वला के 'टीप-टीप' आउ ओकरे विरह के धुन पर चढ़के सोह से बिहार आवऽ हल ।) (बिगुल॰22.2)
519 सोह-बिहार (= सोहसराय-बिहारशरीफ) (देस में, लछमी पुरान हो जाय पर भी सब ले नये हल मुदा अपनो शहर बसुआ ले नये लग रहल हल । भरावपर, गढ़पर, पुलपर सब नया लग रहल हल । सोह-बिहार एक्के हो गेल हे । तब टमटम से दीयाबत्ती के बाद सोह से बिहार आवे में केतना डर लगऽ हल । ऊ तो फुचिया टमटम वला के 'टीप-टीप' आउ ओकरे विरह के धुन पर चढ़के सोह से बिहार आवऽ हल ।) (बिगुल॰22.1)
520 हँसुली (गाड़ी में बइठे के जगह मिल गेल, मुदा सनेस सम्हारे में साँस फूलऽ हल । एक से एक सौगात ! केतारी, चिनियाँबेदाम, बूँट के झंगरी, गी, सत्तू आउ ताजा भुंजा के डिब्वा-डिब्बी । ई सबसे अलग उनकर घरवली के धियान हरदम हँसुली पर हल ।) (बिगुल॰46.2)
521 हथपातर (ई लंगो-तंगो आउ हथपातर हालत देखके घर से सुझाव मिलल कि बड़गो शहर हे । काहे नञ् चनेसर कोय दोसरो रोजगार करे, कॉलेज के पढ़ाय तो एकरे समय से जानल हे ।) (बिगुल॰51.11)
522 हप्प (मुँह ~ हो जाना) (ओकरा समझते देर नञ् लगल कि अपन पैरवी आउ पहुँच के झाँसा देके ससुर छोटकी बेटी लेल भी लड़का तलास रहलन हे । तब घरवली आउ मुन्ना के साथे ससुरार से विदा हो गेल ।/ घर में, बात-बात पर बाबू जी कहे लगलन कि बियाहे घड़ी ससुर नौकरी के नक्सा बतावऽ हलथुन, चेकर चोट से चनेसरवली के मुँह हप्प हो जा हल ।) (बिगुल॰49.15)
523 हलुआय (= हलुआई) (धउग के ऊ अपन गाँव आउ अब अपन अँगना में आ गेल हल । खबर त बिजली नियन पसर गेल । छोट-मोट बस्ती ओकर घरे में समा गेल हल । जे आवऽ हल ऊ धड़-सा चिट्ठिये पकड़ ले हल आउ एक्के लबज - 'रीता के लड़का होल हे ।' बाबू जी त हरिया हलुआय के दोकान सउँसे गाँव में बाँट देलन हल ।) (बिगुल॰33.17)
524 हाथ-गोड़ (कपड़ा के जमल दोकानदारी हल । देश के चुनल मील के कपड़न से दोकान चकमकइते रहऽ हल । विदेसियो कपड़ा के गाँहक नञ् घुरऽ हलन । साथे-साथ सोना-चानी आउ गिरमी-गट्ठा के गढ़गर आमदनी लेल हाथ-गोड़ चलइतहीं रहऽ हलन ।) (बिगुल॰57.30)
525 हियाना (दू डैना के पंखा हियइते-हियइते पुष्पा के झपकी आ गेल । फिन जगला पर देखलक कि एकल्ले दाइये गाड़ी लेके ओकरा ले जाय ले आल हे आउ मालूम होल कि दमयंती आज केकरो से नञ् मिल रहली हे ।) (बिगुल॰60.28)
526 हुमाद (जीवन बाबू बाहरे में वजनगर भले रहथ, घर में हौले हो गेलन हल । बेटा-बेटी जइसे-जइसे बड़गो होवऽ हल, ऊ छोटगर होवे लगलन हल । सामने कोय बोले या नञ् मुदा जेकरा जे मन में आवऽ हल करवे करऽ हल । ऊ देख रहलन हल कि उनकर हुमाद आउ लोहमान पर विदेशी इत्र के महक तेज हो रहल हल ।) (बिगुल॰31.17)
527 हुलकना-बुलकना (चनेसर धिरजा बान्हलक कि ससुर उँचगर ओहदा पर हथ, कउनो जुगाड़ से नौकरी देला देता । ई लेल ओकर धियान घर से जादे ससुरारे पर लग गेल । महीना खाँड़ में हुलक-बुलक आवे ।) (बिगुल॰49.6)
No comments:
Post a Comment