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Monday, December 08, 2014

अपराध आउ दंड - भाग – 1 ; अध्याय – 6



अपराध आउ दंड

भाग – 1

अध्याय – 6



बाद में अइसन होलइ कि रस्कोलनिकोव के कइसूँ मालूम चल गेलइ, कि खास काहे लगी ऊ फेरीवाला आउ औरतिया अपना हीं लिज़ावेता के बोलइलके हल । बात बिलकुल सधारण हलइ आउ एकरा में अइसन कुच्छो खास बात नयँ हलइ । (ई शहर में) आल आउ कंगाल होल एगो परिवार अपन समान बेच रहले हल, पोशाक वगैरह, सब कुछ औरतानी । चूँकि बजार में बेचना नफा के सौदा नयँ हलइ, ओहे से ओकन्हीं एगो दलाल औरत खोजब करऽ हलइ, आउ लिज़ावेता अइसन काम करऽ हलइ - ऊ दलाली (कमीशन) ले हलइ, काम में लग जा हलइ आउ ओकरा ई काम में महर्रत हासिल हलइ, काहेकि ऊ बहुत ईमानदार हलइ आउ हमेशे एकदम आखरी दाम बोलऽ हलइ - जे दाम एक तुरी बोल देतइ, ओहे रहतइ । साधारणतः ऊ बहुत कम बात करऽ हलइ, आउ जइसन पहिले बता देल गेले ह, ऊ नम्र आउ डरपोक हलइ ...

लेकिन रस्कोलनिकोव एन्ने कुछ समय से अंधविश्वासी हो गेले हल । अंधविश्वास के छाप बाद में लम्मा समय तक रह गेलइ, लगभग अमिट । आउ इ सब मामले में ओकरा हमेशे बाद में कोय विचित्र आउ रहस्यमय बात देखे के प्रवृत्ति हो गेलइ, मानूँ ई सब बात में कोय विशेष प्रभाव आउ संयोग काम कर रहल होवे । पिछला जाड़ा में एगो ओकर परिचित छात्र, पोकोरेव, ख़ार्कोव जइते समय, बातचीत के दौरान कइसूँ ओकरा बुढ़िया अल्योना इवानोव्ना के पता बता देलके हल, ई सोचके कि खुदा-न-खास्ते ओकरा कभी जरूरत पड़ जाय गिरवी रक्खे के । बहुत समय तक ऊ ओकरा पास नयँ गेलइ, काहेकि ओकरा टीसनी पढ़ावे के हलइ आउ कइसूँ ओकर गुजारा हो रहले हल । कोय डेढ़ महिन्ना पहिले ओकरा ऊ पता के आद पड़ गेलइ; ओकरा पास गिरवी रक्खे लायक दू वस्तु हलइ - ओकर बाप के चानी के पुरनका घड़ी आउ सोना के एगो छोट्टे गो अंगूठी, तीन लाल नग जड़ल, जे ओकरा ओकर बहिनी जुदा होवे बखत आदगार के रूप में भेंट देलके हल । ऊ अंगूठी गिरवी रक्खे खातिर ले जायके निश्चय कइलकइ; बुढ़िया के पता ढूँढ़ लेला पर, पहिलहीं नजर से, ओकरा बारे कुच्छो बिन जानलहीं, ओकरा तरफ दुर्निवार घृणा होलइ, ओकरा हीं से दू रूबल के "नोट" लेलकइ, आउ घर वापिस जइते बखत एगो घटिया किसिम के छोटगर कलाली में गेलइ । ऊ चाय मँगइलकइ, बइठ गेलइ आउ गहरा सोच में डूब गेलइ । एगो विचित्र विचार ओकर दिमाग में तैयार हो रहले हल, जइसे कि अंडा से चूजा, जेकरा में ऊ पूरा के पूरा लीन हलइ ।

लगभग ओकर बगल में दोसरा टेबुल से लगके बइठल हलइ एगो छात्र, जेकरा ऊ बिलकुल नयँ जानऽ हलइ आउ न जेकरा बारे कुछ आद हलइ, आउ एगो नौजवान अफसर । ओकन्हीं बिलियर्ड खेलके अइले हल आउ चाय पीए लगी बइठ गेले हल । अचानक ओकरा सुनाय देलकइ, कि छात्र अफसर से ऊ गिरवी रक्खे वली, अल्योना इवानोव्ना, कॉलेजिएट सेक्रेटरी, के बारे बोल रहले ह, आउ ओकरा ओकर पता दे हइ । ई बात रस्कोलनिकोव के कइसूँ अजीब लगलइ - ऊ अभिये हुआँ से अइले ह, आउ हियाँ ठीक ओकरे चर्चा होब करऽ हइ । जाहिर हइ कि ई संयोग के बात हलइ, लेकिन ओकर दिमाग पर जे बहुत असाधारण छाप पड़लइ, ओकरा ऊ कइसूँ दूर नयँ कर पा रहले हल, आउ हियाँ मानूँ कोय बिलकुल ओकरे काम कर रहले ह; ऊ छात्र अचानक अपन साथी के ई अल्योना इवानोव्ना के बारे विस्तार से बतावे लगी चालू कर दे हइ ।

"मशहूर हइ ऊ", ऊ बोललइ, "ओकरा हीं से कभी भी पइसा मिल सकऽ हइ । यहूदी जइसन अमीर हइ, एक्के तुरी में पाँच हजार रूबल दे सकऽ हइ, लेकिन एक रूबल खातिर भी गिरवी लेवे में नयँ हिचकऽ हइ । हमन्हीं कइए गो ओकरा हीं गेलिए ह । खाली ऊ भयंकर चुड़ैल हइ ..."

आउ ऊ बतावे लगलइ कि ऊ कइसन कमीनी आउ मनमौजी हइ, कि भुगतान करे में एक्को दिन देरी होलो कि गिरवी रक्खल समान गेल समझऽ । समान के जेतना कीमत होवऽ हइ ओकरा से चार गुना कमती दे हइ, लेकिन सूद तो पाँच प्रतिशत आउ सातो प्रतिशत महिन्ना के हिसाब से ले हइ, वगैरह, वगैरह । छात्र बकबक जारी रखलकइ आउ बतइलकइ, ओकरा अलावे, एहो कि बुढ़िया के एगो बहिन हकइ, लिज़ावेता, जेकरा ऊ, अइसन नटघुरनी आउ कमीनी, हमेशे मारते रहऽ हइ, आउ बिलकुल अपन दासी बनइले रहऽ हइ, एगो छोटका बुतरू नियन, जबकि लिज़ावेता कम से कम आठ विर्शोक उँचगर (अर्थात् 5 फुट 10 इंच के) [1] हइ ...

"ई तो एगो अद्भुत औरत हइ !" छात्र चिल्लइलइ आउ हँस पड़लइ ।

ओकन्हीं लिज़ावेता के बारे चर्चा करे लगलइ । छात्र ओकरा बारे एक प्रकार के विशेष मनोविनोद के लहजा में बात कर रहले हल आउ हँसते रहलइ, आउ अफसर बड़ी दिलचस्पी के साथ सुनते रहलइ आउ छात्र के कहलकइ कि जरी ई लिज़ावेता के ओकरा हीं कपड़ा के मरम्मत लगी भेज दे । रस्कोलनिकोव एक्को शब्द सुन्ने में चूक नयँ कइलकइ, आउ तुरते सब कुछ जान गेलइ । लिज़ावेता बुढ़िया के छोटकी सतेली बहिन हलइ (अलग-अलग माय से), आउ ओकर उमर पैंतीस बरस हलइ । ऊ बहिनी हीं दिन-रात काम करऽ हलइ, आउ खाना बनावे आउ कपड़ा साफ करे के अलावा पइसा लेके कपड़ा सीये के काम करऽ हलइ, पोछो-उछा लगावे के काम करऽ हलइ, आउ सब कमाय बहिनी के हाथ में दे दे हलइ । कउनो औडर, चाहे कउनो काम अपने  जिम्मे बिन बुढ़िया के इजाजत के लेवे के हिम्मत नयँ करऽ हलइ । बुढ़िया अपन वसीयतो कर चुकले हल, जे लिज़ावेता के भी मालूम हलइ, जेकरा वसीयत के मोताबिक एगो अद्धी भी नयँ मिल्ले वला हलइ, सिवाय चल सम्पत्ति, कुरसी आदि के; सब्भे पइसा एन॰ प्रान्त में एगो मठ के चल जाय वला हलइ, ओकर आत्मा के शाश्वत प्रार्थना लगी । लिज़ावेता एगो निम्न मध्यम वर्ग के औरत हलइ, कोय सरकारी कर्मचारी नयँ, गैर-शादीशुदा, आउ देखे में अजीब तरह के बेढंगी, कद में काफी उँचगर, लमगर आउ बाहर तरफ निकसल नियन गोड़, हमेशे बकरा के खाल के बन्नल फट्टल-पुरान बश्माक (जुत्ता), लेकिन खुद के साफ-सुथरा रखले । मुख्य बात, कि जेकरा से छात्र आश्चर्यचकित हलइ आउ हँस्सऽ हलइ, ई हलइ कि लिज़ावेता जब न तब दोपस्ता रहऽ हलइ ...

"लेकिन तू तो कहऽ हीं कि ऊ कुरूप हकइ ?" अफसर टिप्पणी कइलकइ ।
"हाँ, अइसे तो सामर हइ, छद्मवेश में तो पक्का सैनिक लगऽ हइ, लेकिन ई जान ल कि ऊ कुरूप बिलकुल नयँ हकइ । ओकर चेहरा आउ आँख एतना अच्छा हइ । हद से जादे । एकर सबूत हइ - ओकरा कइएक लोग पसीन करऽ हइ । ऊ एतना शांत, सीधगर, विनम्र, सहमत, सब कुछ से सहमत । आउ ओकर मुसकानो बहुत सुन्दर ।"
"त पक्का हउ कि ऊ तोरो पसीन हउ ?" अफसर हँस पड़लइ ।
"ओकर अनोखापन से । नयँ, अइकी असली बात हम बतावऽ हियो । हम तो ई मनहूस बुढ़िया के मारके दफना दिअइ, आउ तोरा विश्वास देलावऽ हियो कि हमरा एकरा से कोय पछतावा नयँ होवइ ।" छात्र बात जारी रखते जोश के साथ बोललइ ।

अफसर फेर हँस पड़लइ, जबकि रस्कोलनिकोव चौंक उठलइ । ई केतना विचित्र बात हलइ !

"ठहरऽ, हम तोरा एगो गम्भीर प्रश्न पुच्छे ल चाहऽ हकियो", छात्र जोश में आ गेलइ । "हम तो अभी, वस्तुतः, मजाक कर रहलियो हल, लेकिन देखऽ - एक तरफ तो बेवकूफ, नासमझ, निकम्मी, नीच, रोगियाही, बुढ़िया, केकरो काम के नयँ, आउ एकर उलटा, सब लगी खतरनाक, जेकरा खुद्दे नयँ मालूम, कि काहे लगी जी रहल ह, आउ जे कल्हींएँ खुद्दे मर जइतइ । समझऽ हो ? समझऽ हो ?"
"हाँ, समझऽ हिअउ ।" अफसर जवाब देलकइ, जोश में आल अपन साथी के एकटक देखते ।

"आगे सुनऽ । दोसरा तरफ, तरुण, ताजा जिनगी बिन सहारा के बेकार में बरबाद हो रहले ह, आउ ई हजारों में हइ, आउ ई सगरो हइ ! सैकड़ो, हजारो नेक काम आउ कारबार कइल आउ सुधारल जा सकऽ हइ ऊ बुढ़िया के पइसा से, जेकरा मठ के हवाले कर देल गेले ह ! सैकड़ों, शायद हजारों, लोग के सही रस्ता पर लावल जा सकऽ हइ; दसों परिवार के कंगाली से, अधोगति से, बरबादी से, बदचलनी से, यौन रोग के अस्पताल से बचावल जा सकऽ हइ - आउ ई सब कुछ ओकर (बुढ़िया के) पइसा से । मार डाल ओकरा आउ ले ले ओकर पइसा, ताकि बाद में एकर मदद से मानवता के सेवा में आउ सामान्य लोग के काम में खुद के अर्पित कर सको - तूँ की सोचऽ ह, की ई एगो बिलकुल छोटकुन्ना अपराध के, हजारों निम्मन काम से, प्रायश्चित्त नयँ कइल जा सकऽ हइ ? एक जिनगी के बदले - हजारों जिनगी, सड़े से आउ अधोगति से बच जइतइ । एक मौत आउ ओकर बदले सो जिनगी - बस, बिलकुल सरल गणित ! आउ सामान्य तराजू पे तौलके अगर देखल जाय त ई मरियल, बेवकूफ आउ दुष्ट बुढ़िया के जिनगी के की मोल हइ ? एगो ढिल्ला, चाहे इसरौरी (तिलचट्टा) के जिनगी से जादे नयँ, आउ एतनो कीमत नयँ हकइ, काहेकि बुढ़िया खतरनाक हइ । ऊ दोसर के जिनगी निगल रहले ह - हाल में ऊ लिज़ावेता के अँगुरी दँतवा से काट लेलके हल; मोसकिल से बचलइ, नयँ तो एकरा काटके अलगहीं करे पड़ते हल !"

"वास्तव में, ओकरा जीए के हक नयँ हइ ।" अफसर टिप्पणी कइलकइ, "लेकिन ई तो प्रकृति के नियम हइ ।"

"अरे, भाय, प्रकृति के तो सुधारल आउ मार्गदर्शन देल जा हइ, एकरा बेगर तो पूर्वाग्रह में डूब जाय पड़ते हल । एकरा बेगर तो एक्को गो महान पुरुष नयँ होते हल । लोग के कहना हइ - "कर्तव्य, अंतःकरण", हम कर्तव्य आउ अंतःकरण के विरुद्ध कुछ नयँ कहे लगी चाहऽ ही, लेकिन आखिर एकरा हमन्हीं समझिअइ त कइसे ? ठहरऽ, हम तोहरा एगो सवाल पुच्छऽ हियो । सुन्नऽ !"
"नयँ, तूँ ठहर; हम तोरा सवाल पुछबउ । सुन !"
"अच्छऽ !"
"अइकी तूँ अभी बकबक कर रहलँऽ हँ आउ भाषण झाड़ रहलँऽ हँ, लेकिन तूँ हमरा बताव - तूँ बुढ़िया के खुद्दे हत्या करमहीं, कि नयँ ?"
"हरगिज नयँ ! हम तो खाली न्याय खातिर ... एकरा से हमरा कोय संबंध नयँ ..."
"आ हमरा कहना हउ कि अगर तूँ खुद नयँ फैसला करमँऽ, त एकरा में कोय न्याय के बाते नयँ ! चलल जाय, एक बाजी आउ हो जाय !"

रस्कोलनिकोव बहुत चिंतित हो गेलइ । वस्तुतः ई सब कुछ बहुत सामान्य आउ बहुत अकसर होवे वला, ओकरा से पहिलहीं कइएक तुरी के सुन्नल, खाली दोसर-दोसर रूप में आउ दोसर-दोसर विषय पर, नौजवानी के बातचीत आउ विचार हलइ । लेकिन काहे ठीक अभिये ओकरा सुन्ने ल मिललइ, ठीक ओहे बातचीत आउ ओहे विचार, जब ओकर अपने दिमाग में अभी-अभी पनप रहले हल ... ठीक ओइसने विचार ? आउ काहे ठीक अभिये, जइसीं ऊ बुढ़िया हीं से अपन विचार के अंकुर लेके अइलइ, ओइसीं ओकरा ओहे बुढ़िया के बारे बातचीत सुनाय दे हइ ? ... ई संयोग ओकरा हमेशे विचित्र लगलइ । ई मामूली, कलाली के बातचीत आगे के घटना के विकास में ओकरा पर बहुत असर डललकइ - जइसे कि वास्तव में एकरा में कुछ पूर्वनिर्धारित हलइ, कुछ संकेत हलइ ...
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पुआल-मंडी से लौटला पर, ऊ सोफा पर पड़ गेलइ आउ पूरे एक घंटा तक बिना हिलले-डुलले बइठल रहलइ । एहे बीच अन्हेरा छा गेलइ; ओकरा पास मोमबत्ती नयँ हलइ, आउ ओकर दिमागो में नयँ अइलइ कि रोशनी करूँ । ओकरा कभियो ई आद नयँ पड़लइ कि ई दौरान ऊ कोय चीज के बारे सोचियो रहल हल की ? आखिर ओकरा हाल के बोखार आउ कँपकँपी के आभास होलइ, आउ ऊ राहत के साथ महसूस कइलकइ कि ऊ सोफा पर पड़ियो सकऽ हइ । जल्दीए ओकरा गहरा आउ भारी नीन आ गेलइ, मानूँ ओकरा चाँप देलकइ ।

ऊ असाधारण रूप से देरी तक सोते रहलइ आउ बिन कोय सपना देखले । अगले सुबह दस बजे ओकर भितरा में घुसला पर नस्तास्या ओकरा जबरदस्ती ढकेल के उठइलकइ । ऊ ओकरा लगी चाय आउ पावरोटी लइलकइ । चाय अबरियो दोबारा गरम करके बनावल गेले हल, आउ फेर से ओकरे अप्पन केतली में ।

"अरे, कइसन सो रहले ह !" ऊ गोस्सा से चिल्लइलइ, "आउ हमेशे सुतले रहऽ हइ !"

ऊ प्रयास करके उठलइ । ओकर माथा पिरा रहले हल; ऊ कइसूँ गोड़ पर खड़ी होलइ, अपन भित्तर में घुमलइ आउ फेर से सोफा पर पड़ गेलइ ।
"फेर से सुत्ते के !" नस्तास्या चिल्लइलइ । "बेमार हकऽ की ?"
ऊ कोय जवाब नयँ देलकइ ।
"चाय तो चाही न ?"
"बाद में", ऊ प्रयास करके बोललइ, फेर से अँखिया बन करते आउ देवलिया तरफ करवट बदलते । नस्तास्या झुकके ओकरा भिर खड़ी हो गेलइ ।
"शायद वास्तव में बेमार हका", ऊ बोललइ, मुड़लइ आउ बाहर चल गेलइ ।

ऊ फेर से दू बजे सूप (शोरबा) लेके अन्दर अइलइ । पहिलहीं नियन ऊ पड़ल हलइ । चइया ऊ छूवो नयँ कइलके हल, अइसीं पड़ल हलइ । नस्तास्या भी नराज हो गेलइ आउ गोस्सा से ओकरा ढकेलके उठावे लगलइ ।
"कुंभकर्ण नियन काहे सुत्तल हकऽ !" नफरत से ओकरा तरफ देखते ऊ चिल्लइलइ । ऊ उठके बइठ गेलइ, लेकिन ओकरा से कुछ नयँ बोललइ आउ जमीन तरफ एकटक घूरते रहलइ ।
"बेमार हकऽ की नयँ ?" नस्तास्या पुछलकइ, आउ फेनो ओकरा कोय जवाब नयँ मिललइ ।

"अच्छा होतो कि बाहर जरी हावा खा ल ।" थोड़ी देर रुकके ऊ बोललइ, "तोहरा शायद भूख लगलो होत । कुछ खइबऽ, कि नयँ ?"
"बाद में", ऊ धीरे से बोललइ, "जो !" आउ हाथ से इशारा कइलकइ ।

ऊ कुछ देर खड़ी रहलइ, सहानुभूति से ओकरा तरफ देखते रहलइ आउ फेर बाहर चल गेलइ ।
कुछ मिनट के बाद ऊ अपन पलक उठइलकइ आउ देर तक चाय आउ सूप तरफ देखते रहलइ । बाद में पावरोटी लेलकइ, चम्मच लेलकइ आउ खाय लगलइ ।

ऊ बिन भूख के भी थोड़े स खइलकइ, तीन-चार चम्मच, मानूँ यन्त्रवत् । अब सिरदर्द थोड़े कम हो गेले हल । खाना खतम करके ऊ फेर से सोफा पर तनके पड़ गेलइ, लेकिन ओकरा नीन नयँ आ पइलइ; आ बिन हिलले-डुलले पट्टे पड़ल रहलइ, मुँह के तकिया में घुसइले । ऊ दिवा-स्वप्न देखते रहलइ, आउ सब्भे विचित्र-विचित्र दिवा-स्वप्न; सबसे जादे अकसर ओकर कल्पना में देखाय देलकइ कि ऊ कहीं अफ्रीका में हइ, मिस्र में, कउनो मरु उद्यान (oasis) में । कारवाँ अराम कर रहले ह, ऊँट सब शांति से पड़ल हइ; चारों तरफ खजूर के पेड़ घेरा बनइले खड़ा हइ; सब कोय खाना खाब करऽ हइ । ऊ पानी पीते जा रहले ह, सीधे सोता से, जे ओकर बगले में हइ, आउ कलकल ध्वनि करते बह रहले ह । आउ एतना ठंढा हइ, आउ चमत्कारी-चमत्कारी एतना नीला पानी, ठंढा, रंग-बिरंग पत्थल आउ साफ-सुथरा सुनहरा चमकीला बालू पर से होके बह रहले ह ... अचानक ओकरा साफ-साफ देवाल-घड़ी के बज्जे के अवाज सुनाय पड़लइ । ऊ चौंकके जग गेलइ, अपन सिर उठइलकइ, खिड़की तरफ नजर डललकइ, समय के अंदाजा लगइलकइ आउ बिलकुल होश में आके, अचानक उछल पड़लइ, मानूँ कोय ओकरा सोफा पर से खींचके अलगे कर देल होवे । ऊ दबे पाँव दरवाजा बिजुन गेलइ, ओकरा बिलकुल धीरे से खोललकइ आउ ज़ीना के निच्चे तरफ अकाने लगलइ । ओकर दिल जोर से धड़क रहले हल । लेकिन ज़ीना पर बिलकुल सन्नाटा हलइ, मानूँ सब कोय सुत्तल होवे ... ओकरा भयानक आउ विचित्र प्रतीत होलइ, कि ऊ बेखबर होके कल्हिंएँ से सुत्तल हल आउ अभी तक कुछ नयँ कइलक, कुछ तैयार नयँ कइलक ... आउ एहे दौरान शायद छो बज गेल ... नीन आउ मंदबुद्धिता के स्थान पर अचानक ओकरा पर असाधारण हड़बड़ी वला आउ एक प्रकार के परेशानी वला हलचल छा गेलइ । लेकिन तैयारी कुछ जादे करे के नयँ हलइ । ऊ सारा प्रयास लगा देलकइ, कि ऊ सब कुछ ध्यान में रक्खे आउ कुच्छो नयँ भुलाय; आउ ओकर दिल लगातार धड़कते रहलइ, अइसे ठोकब करऽ हलइ कि ओकरा साँस लेना मोसकिल हो गेले हल । पहिले तो ओकरा एगो फाँस (पाश) बनावे के हलइ आउ ओवरकोट में सीये के हलइ - ई मिनट भर के काम हलइ । ऊ तकिया के निच्चे उलट-पुलट के देखलकइ, आउ ओकरा में ठुँस्सल ओकरा एगो बिलकुल फट्टल-फुट्टल, पुरनका, गर-धोवल अपन कमीज मिललइ । ऊ चिथड़ा से एगो पट्टी (टुकरी, धज्जी) फड़लकइ - एक विर्शोक चौला आउ आठ विर्शोक लम्मा (अर्थात् 1.75 इंच  x 14 इंच) [2] । ई पट्टी के ऊ तह करके दोहरइलकइ, एगो चौलगर, मजबूत, गरमी में पेन्हेवला, कोय मोटगर सूती के बन्नल अपन ओवरकोट निकसलकइ (जे ओकर एकमात्र बाहरी पोशाक हलइ) आउ पट्टी के दुन्नु छोर के कोट के बामा तरफ के सूराक के अन्दर में सीये लगलइ । सीये घड़ी ओकर हाथ कँप रहले हल, लेकिन ऊ ई समस्या पर काबू पा लेलकइ, आउ अइसन कि बाहर से कुच्छो नयँ देखाय दे हलइ, जब ऊ फेर से ओवरकोट पेन्हलकइ । सूय-डोरा ओकरा हीं बहुत पहिलहीं से तैयार हलइ, आउ कागज में लपेटल टेबुल के दराज (ड्राअर) में पड़ल हलइ । जाहाँ तक फाँस (पाश) के बात हइ, त ई ओकर खुद के कुशल आविष्कार हलइ - ई काज कुल्हाड़ी के वास्ते हलइ । हथवा में कुल्हाड़ी लेके रोडवा पर तो नयँ जाल जा सकऽ हलइ । आउ अगर कोटवा के अन्दर छिपइते हल, तइयो हथवा से तो एकरा सहारा देवे पड़ते हल, जेकरा पर केकरो नजर जा सकऽ हलइ । अब तो फाँस के मदत से खाली कुल्हाड़ी के फार के अन्दर डाल के रक्खे के जरूरत हलइ, आउ भर रस्ता ओकर काँख के अन्दर से ऊ खुद अराम से लटकल रहतइ । आउ अपन हाथ कोट के बगल के पाकिट में घुसाके, ऊ कुल्हाड़ी के बेंट के अन्तिम छोर के पकड़ले रह सकऽ हलइ, ताकि ऊ झूले नयँ; आउ चूँकि कोट बहुत चौलगर हलइ, वास्तव में एगो बोरा नियन, त कोय बाहर से नयँ देख सकऽ हलइ, कि ऊ हथवा से कोटवा के पाकिट के अन्दर कुच्छो पकड़ले हकइ । ई फाँस के ऊ दू सप्ताह पहिलहीं डिजायन बना लेलके हल ।

ई काम पूरा कइला के बाद, ऊ अपन "तुर्की" सोफा आउ फर्श के बीच के छोटका दरार नियन जगह में अँगुरी घुसइलकइ, आउ बामा कोनमा के पास से बहुत पहिलहीं से तैयार आउ हुआँ छिपावल गिरवी के समान निकसलकइ । लेकिन ई गिरवी के समान, गिरवी के समान बिलकुल नयँ हलइ, बल्कि रंदा से चिक्कन कइल खाली एगो लकड़ी के छोटगर तख्ती (लकड़ी के टुकड़ा) हलइ, जे अकार आउ मोटाय में एगो चानी के सिगरेट-केस से बड़गर नयँ हलइ । ई तख्ती ओकरा सैर-सपाटा के दौरान एक तुरी एगो अहाता में संयोग से मिल गेले हल, जाहाँ एक कक्ष में कोय तरह के एगो करखाना हलइ । बाद में ऊ ई लकड़ी के तख्ती पर एगो लोहा के चिकना आउ पतला पत्तर जोड़ देलके हल, जे शायद कोय चीज के टुकड़ा हलइ, आउ जेहो ओहे बखत ओकरा सड़क पर मिल गेले हल । दुन्नु टुकड़ा के जोड़ देला पर, जेकरा में लोहवा के पत्तर लकड़ी के तख्ती से जरी छोट्टे हलइ, ऊ ओकरा डोरा से आड़े-तिरछे कसके बान्ह देलकइ; बाद में ओकरा एगो साफ-सुथरा उज्जर कागज से सवधानी से आउ फैशनदार रूप में लपेट देलकइ, आउ फेनुँ एगो पतरा रिबन से आड़े-तिरछे बान्ह देलकइ, आउ गाँठ अइसन देलकइ, जेकरा असानी से खोलल नयँ जा सकइ । ई बुढ़िया के ध्यान कुछ समय तक हटावे खातिर हलइ, जब ऊ गाँठ खोले के चक्कर में लग जाय, आउ ई तरह से कुछ मौका मिल जाय । लोहा के पत्तर एकरा कुछ भारी बनावे लगी जोड़ल गेले हल, ताकि बुढ़िया शुरुए में ई नयँ अंदाज लगा पावइ, कि ई "वस्तु" लकड़ी के बन्नल हकइ । ई सब कुछ तब तक सोफा के निच्चे जोगावल हलइ । जइसीं ऊ गिरवी के समान निकसलकइ, तइसीं अचानक अहाता में कहीं पर केकरो चीख सुनाय देलकइ –

"अरे, छो तो कबके बज गेलइ !"
"कबके ! हे भगमान !"

ऊ दरवाजा तरफ लपकके गेलइ, कान लगाके सुनलकइ, झट से टोप उठइलकइ आउ अपन तेरह सीढ़ी उतरे लगलइ, सवधानी से, बिन कोय अवाज कइले, बिल्ली नियन । सबसे जरूरी काम ओकरा सामने हलइ - भनसा घर से कुल्हाड़ी चुराना । काम निपटावे के कुल्हाड़िए से, ई फैसला बहुत पहिले कर लेल गेले हल । ओकरा पास बाग वला टूटदार (फोल्डिंग) चाकू हलइ; लेकिन चाकू, आउ खास करके अपन बल पर ओकरा भरोसा नयँ हलइ, ओहे से आखिर में ऊ कुल्हाड़ी इस्तेमाल करे के फैसला कइलकइ । प्रसंगवश ई सिलसिले में ओकर सब्भे आखरी लेल फैसला सब में एगो ई विशेषता ध्यान में रखल जाय । ऊ सब में एगो विचित्र गुण हलइ - जेतने आखरी ऊ सब होवऽ हलइ, ओतनहीं भद्दा, बेतुका तुरते ओकर नजर में हो जा हलइ । अपन सब आंतरिक कष्टदायक संघर्ष के बावजूद ई पूरे समय के दौरान ऊ कभियो एक्को पल खातिर अपन विचार के कार्यान्वयन (execution) पर विश्वास नयँ कर पइलके हल । आउ अगर कभी अइसनो होते हल, कि अगर ऊ सब कुछ के छोटगर से छोटगर बारीकी तक सोच-विचार कर लेते हल आउ अन्तिम निर्णय ले लेते हल, आउ कोय शंका बाकी नयँ रह जइते हल, तइयो, लगऽ हइ, कि ऊ सब कुछ के बेतुका, भयानक आउ असंभव समझ के त्याग देते हल । लेकिन कइएक अनिर्णीत बिंदु आउ शंका के पूरा खाई रह गेले हल । जाहाँ तक ई बात के संबंध हइ कि कुल्हाड़ी काहाँ से प्राप्त कइल जाय, त ई मामूली बात के ओकरा कोय फिकिर नयँ हलइ, काहेकि एकरा से आउ कोय असान काम नयँ हलइ । बात ई हलइ कि नस्तास्या, खास करके सँझिया के, हर बखत घरवा पर नयँ रहऽ हलइ - या तो ऊ पड़ोसियन के घर भाग जइतइ, चाहे कोय दुकान में, आउ दरवाजा हमेशे पूरा खुल्ला छोड़ दे हइ । मकान-मालकिन एहे से ओकरा साथ झगड़ते रहऽ हलइ । तब, खाली ई काम रह गेलइ कि दबे पाँव भनसा घर, जब मौका मिल्ले, चुपके से घुस जाय के आउ कुल्हाड़ी ले लेवे के, आउ एक घंटा के बाद (जब काम निपट जाय), फेर से घुस जाय के आउ एकरा वापिस रख देवे के । लेकिन शंको के गुंजाइश हलइ - मान लेल जाय कि ऊ एक घंटा के बाद आबइ, वापिस ओकरा रक्खे खातिर, आउ खुदा-न-खास्ते नस्तास्या तब तक वापिस आ जाय, आउ ओज्जे रहइ तब ! जाहिर हइ कि ओकरा आगे गुजर जाय पड़तइ आउ इंतजार करे पड़तइ, जब तक कि ऊ फेर से बाहर नयँ चल जा हइ । आ तब की होतइ, जब कहीं ओकरा कुल्हाड़ी के जरूरत पड़इ, आउ खोजे लगइ, नयँ पाके चिल्लाय लगइ - ई तो शंका हइ, आ नयँ तो कम से कम शंका के गुंजाइश तो हइए हइ । लेकिन ई सब बहुत मामूली बात हलइ, जेकरा बारे ऊ सोचहूँ ल चालू नयँ कइलके हल, आउ एकरा लगी ओकरा पास समइयो नयँ हलइ । ऊ मुख्य बात सोच रहले हल, आउ मामूली बात के तब तक टालते जा रहले हल, जब तक कि ऊ खुद सब कुछ के बारे दिलजमइ नयँ हो जाय । लेकिन ई अन्तिम वला बिलकुल असंभव लग रहले हल । कम से कम अइसन ओकरा खुद के बुझा रहले हल । मिसाल के तौर पर, ऊ कइसूँ कल्पना नयँ कर पा रहले हल, कि कभी ऊ सोचना बन करतइ, उठतइ आउ सीधे हुआँ चल देतइ ... अपन हाल के अजमाइशो (अर्थात् अन्तिम रूप से अच्छा तरह से जगह के जाँच कर लेवे खातिर जाना) ऊ खाली अजमाइश के प्रयासे भर कइलके हल, लेकिन असलियत से दूर, मानूँ ऊ खुद से कहलके हल, "चलऽ, चलऽ हिअइ आउ अजमाइश करके देख ले हिअइ, खाली सपनाय से की फयदा !" - आउ तुरते ओकरा सहन नयँ होलइ, थुकलकइ आउ भाग खड़ी होलइ, खुद पर झुँझलइते । आउ ई दौरान, मानूँ प्रश्न के नैतिक निर्णय के परिप्रेक्ष्य में ऊ पूरा विश्लेषण कर चुकले हल - ओकर किंकर्तव्यमीमांसा अस्तुरा (उस्तरा) नियन तेज हो गेले हल, आउ खुद्दे अपना में कोय सचेतन आपत्ति (conscious objections) नयँ खोज पइलके हल । लेकिन अन्तिम हालत में ऊ बस अपने ऊपर भरोसे करना छोड़ देलकइ, आउ जिद से, दासवत्, आउ अटकल से सगरो आपत्ति ढूँढ़ऽ हलइ, मानूँ ओकरा कोय लचार करके एकरा तरफ घींच रहले हल । ई आखरी दिन, जे अइसन अप्रत्याशित रूप से आ गेले हल आउ सब कुछ के पल भर में निर्णय कर लेलके हल, ओकरा लगभग पूरे तरह से यन्त्रवत् प्रभावित कइलके हल - जइसे ओकरा कोय हथवा से पकड़के अपना तरफ घींच लेलके हल, अत्यंत सम्मोहित करके, अंधा के तरह, पारलौकिक बल से, बिन कोय एतराज के । मानूँ पोशाक के एक छोर मशीन के पहिया में फँस गेल होवे, आउ ऊ ओकरा में घिंचाल चल जा रहल होवे ।

शुरू-शुरू में, बल्कि बहुत पहिलहीं, ऊ एक सवाल में उलझल रहऽ हलइ - काहे लगभग सब्भे अपराध एतना असानी से पता चल जा हइ आउ सामने खुलके आ जा हइ, आउ लगभग सब्भे अपराधी के अइसन स्पष्ट सुराग मिल जा हइ ? धीरे-धीरे ऊ कइएक तरह के आउ दिलचस्प निष्कर्ष पर पहुँचले हल, आउ ओकर विचार से, एकर सबसे मुख्य कारण ई बात में ओतना हद तक नयँ हइ कि अपराध के छिपाना वास्तव में असंभव हकइ, जेतना कि खुद अपराधी में; खुद अपराधी, आउ लगभग कोय भी अपराधी, अपराध करे के क्षण इच्छा-शक्ति आउ विवेक के पतन के शिकार हो जा हइ, जे असाधारण बचकाना लपरवाही में बदल जा हइ, सेहो अइसन क्षण में, जबकि सबसे जादे विवेक आउ सवधानी अनिवार्य होवऽ हइ । ओकर दृढ़ धारणा के अनुसार, ई निष्कर्ष निकसले हल कि विवेक के ई ग्रहण (eclipse), आउ इच्छा-शक्ति के पतन व्यक्ति के बेमारी नियन ग्रसित करऽ हइ, धीरे-धीरे विकसित होवऽ हइ, आउ अपराध करे के थोड़े समय पहिले चरम बिन्दु पर पहुँच जा हइ; अपराध करे के ठीक क्षण तक ओहे रूप में जारी रहऽ हइ आउ ओकर बादो कुछ समय तक, जे व्यक्ति विशेष पर निर्भर करऽ हइ; बाद में ओइसीं ठीक हो जा हइ, जइसे आउ कोय बेमारी ठीक होवऽ हइ । सवाल हइ - बेमारिए खास अपराध के जन्म दे हइ, कि अपराधे के कइसूँ विशिष्ट प्रकृति के चलते हमेशे कोय प्रकार के बेमारी साथ-साथ रहऽ हइ ? ऊ अभियो एकर निर्णय करे के क्षमता अपन अन्दर नयँ महसूस करऽ हलइ ।

अइसन निष्कर्ष पर पहुँचला पर ऊ निर्णय कइलकइ कि ओकर अपन व्यक्तिगत काम में अइसन कोय रोगजन्य उथल-पुथल नयँ हो सकऽ हइ, कि विवेक आउ इच्छा-शक्ति अखंडित रूप से सोचल प्लान के कार्यान्वयन के पूरे समय तक ओकरा साथ रहतइ, केवल ई कारण से कि ओकर सोचल प्लान "अपराध नयँ " हइ ... हम ऊ सब प्रक्रिया के चर्चा छोड़ दे हिअइ, जेकर जरिये ऊ अन्तिम निर्णय पर पहुँचले हल; एकरो बेगर हम सब बहुत आगे निकल चुकलिए ह ... खाली एतने कहे लगी चाहबइ, कि ई मामला के तथ्यात्मक, शुद्ध भौतिक कठिनाई ओकर दिमाग में बिलकुल गौण भूमिका अदा करऽ हलइ । "खाली ओकरा पर अपन पूरा इच्छा-शक्ति आउ पूरा विवेक बनइले रक्खे के जरूरत हइ, आउ समय अइला पर, ऊ सब से पार उबर जाल जइतइ, जब मामला के सब्भे विवरण के छोटगर से छोटगर बारीकी से परिचय मिल जइतइ ... " लेकिन ई मामले शुरू नयँ होब करऽ हलइ । ऊ अपन अन्तिम निर्णय पर सबसे कम विश्वास करते रहलइ, आउ जब ऊ घड़ी पहुँच गेलइ, तब सब कुछ बिलकुल ओइसे नयँ होलइ, बल्कि कोय तरह अचानक, हियाँ तक कि लगभग अप्रत्याशित ढंग से होलइ ।

ज़ीना पर उतरे से पहिलहीं एगो तुच्छ घटना ओकरा उलझन में डाल देलकइ । मकान-मालकिन के भनसा घर पहुँचला पर, जे हमेशे नियन बिलकुल खुल्ला हलइ, ऊ सवधानी से ओकर अंदर तरफ तिरछा नजर डललकइ, ताकि पहिले ई देख लेइ - कि कहीं नस्तास्या के गैरहाजिरी में खुद मकान-मालकिन तो नयँ हइ, आउ अगर नयँ रहइ, त ओकर भित्तर तरफ जाय वला दरवाजा तो अच्छा से बन हइ, ताकि ऊ कइसूँ हुआँ से नयँ देख ले, जब ऊ कुल्हाड़ी लेवे खातिर अन्दर घुसे ? लेकिन ओकरा केतना अचरज होलइ, जब ऊ अचानक देखलकइ, कि नस्तास्या न केवल अबरी घरवे पर हइ, भनसा भित्तर में, बल्कि ऊ कामो में व्यस्त हकइ - बरतन से कपड़ा निकासब करऽ हइ आउ अलगनी पर टाँग रहले ह । ओकरा देखके, ऊ कपड़ा टाँगे ल बन कर देलकइ, ओकरा तरफ मुँह करके ओकरा लगातार एकटक देखते रहलइ, जब तक ऊ सामने से गुजर रहले हल । ऊ अपन नजर हटा लेलकइ आउ आगे चलते गेलइ, मानूँ ऊ कुच्छो नयँ देखब करऽ हलइ । लेकिन किस्सा खतम हो गेले हल - कुल्हाड़ी नयँ ! ऊ बिलकुल हक्का-बक्का हो गेलइ ।

"हम कइसे मान लेलूँ हल", फाटक के निच्चे से जइते बखत ऊ सोचलकइ, "हम कइसे मान लेलूँ हल, कि पक्का ऊ ई क्षण घरवा पर नयँ रहतइ ? काहे, काहे, काहे हम एतना यकीन होके मान लेलेूँ हल ?" ऊ पस्त हो चुकले हल, कोय तरह अपमानित भी । गोस्सा से ओकरा लग रहले हल कि खुद पर हँस्से ... ओकर अंदरे-अंदर एगो पाशविक रोष उबल रहले हल ।

फाटक के निच्चे ऊ सोच में रुक गेलइ । सड़क पर जाना, खाली देखावा लगी टहले खातिर, ओकरा अच्छा नयँ लग रहले हल; घर लौटना - ओकरो से जादे खराब । "आउ कइसन मौका हमेशे लगी खो देलूँ !" ऊ बड़बड़इलइ, निरुद्देश्य फाटक के निच्चे खड़ी-खड़ी, दरबान के अन्हार कोठरी के ठीक सामने, सेहो खुल्लल हलइ । अचानक ऊ चौंक गेलइ । दरबान के कोठरी से, जे दुइए डेग पर हलइ, दहिना तरफ के बेंच के निच्चे से कुछ चमकते ओकरा नजर पड़लइ ... ऊ चारो तरफ नजर डललकइ - कोय नयँ हलइ । पंजा के बल ऊ दरबान के कोठरी तरफ गेलइ, दू सीढ़ी निच्चे उतरलइ आउ धीमे अवाज में दरबान के पुकरलकइ । "बिलकुल, ऊ घर पे नयँ ! लेकिन कज्जू नगीचे अहाता में होतइ, काहेकि दरवाजा बिलकुल खुल्ला हइ ।" ऊ सिर पर पैर रखके कुल्हाड़ी तरफ झपटलकइ (ई कुल्हाड़िये हलइ) आउ ओकरा बेंच के निच्चे से निकसलकइ, जाहाँ ऊ दूगो लकड़ी के कुंदा के बीच में पड़ल हलइ; तुरते बाहर निकसे के पहिलहीं ओकरा फाँस में अटका लेलकइ, दुन्नु हाथ जेभी में घुसा लेलकइ आउ दरबान के कोठरी से बाहर निकसलइ; ओकरा पर केकरो नजर नयँ पड़लइ ! "अगर विवेक नयँ काम करे, त शैतान मदत करऽ हइ !" ऊ सोचलकइ, विचित्र तरह से मने-मन मुसकइते । ई संयोग ओकरा हद से जादे प्रोत्साहन देलकइ ।

ऊ शान्त आउ गम्भीर मुद्रा में जा रहले हल, बिन हड़बड़ी कइले, ताकि केकरो शक नयँ होवे । ऊ अइते-जइते लोग पर बहुत कम्मे नजर डालऽ हलइ, एहो प्रयास कर रहले हल कि केकरो चेहरा तरफ नयँ नजर डाले आउ जाहाँ तक हो सके, ओकरा पर केकरो नजर नयँ जाय । तब अचानक ओकरा अपन टोप के ध्यान गेल । "हे भगमान ! परसुन तो हमरा पास पइसा हले, आउ एकरा बदले टोपी नयँ लेलूँ !" ओकर आत्मा से दुर्वचन फूट पड़लइ ।

संयोग से कनखी से एगो दुकान तरफ नजर गेला पर ऊ देखलकइ कि देवाल घड़ी में सात बजके दस मिनट हो चुकल ह । ओकरा जल्दी करे के हलइ आउ साथे-साथ चक्कर मारके दोसरा तरफ से घरवा में जाय के हलइ  ...

पहिले जब कभी ई सब के कल्पना करऽ हलइ, त कभी-कभी सोचऽ हलइ, कि ओकरा बहुत डर लगतइ । लेकिन अभी तो ओकरा बहुत डर नयँ लग रहले हल, बल्कि ऊ बिलकुल भयभीत नयँ हलइ । ई क्षण ऊ कुछ असंबंधित विचारो में डुब्बल हलइ, लेकिन कुछहीं देर खातिर । युसुपोव बाग से गुजरे बखत, ऊ उँचगर-उँचगर फव्वारा के निर्माण के विचारो में बहुत मग्न रहलइ आउ एकरो में, कि कइसे एकरा से सब्भे चौक के हावा में बढ़ियाँ से ताजगी अइतइ । धीरे-धीरे ओकर ई विचार ओकर धारणा में परिवर्तित होते गेलइ, कि अगर ग्रीष्म-उद्यान के मार्स के मैदान तक बढ़ा देल जाय, आउ बल्कि मिख़ायलोव्स्की महल के बाग के साथ जोड़ देल जाय, त ई समुच्चे शहर लगी उत्तम आउ बहुत उपयोगी हो जाय । अचानक ओकरा ई विषय में रुचि होलइ - आखिर काहे सब्भे बड़का शहर में लोग के कोय आवश्यकतावश केवल नयँ, बल्कि कइसूँ विशेष रूप से शहर के ठीक ओइसन भाग में रहे के प्रवृत्ति देखल जा हइ, जाहाँ कोय बाग नयँ, कोय फव्वारा नयँ, जाहाँ धूरी आउ दुर्गन्ध, आउ हर तरह के गन्दगी रहऽ हइ । एहे क्षण ओकरा पुआल-मंडी में अपन खुद के सैर के आद पड़ गेलइ, आउ कुछ पल खातिर ऊ वास्तविक दुनियाँ में आ गेलइ । "की बकवास हकइ !" ऊ सोचलकइ, "नयँ, सबसे अच्छा बिलकुल कुछ नयँ सोचे के !"

"त शायद ऊ लोग, जेकन्हीं के मृत्युदंड खातिर ले जाल जा हइ, ऊ सब्भे वस्तु तरफ विचार में डूब जा हइ, जे कुछ ओकन्हीं के रस्ता में मिल्लऽ हइ ।" ओकर दिमाग में ई विचार कौंधलइ, लेकिन ई खाली बिजली नियन कौंधलइ; ऊ खुद तुरतम्मे ऊ विचार के बुता देलकइ ... लेकिन ऊ अब नगीचे आ गेले ह, अइकी घर हकइ, अइकी फाटक । कहीं तो अचानक देवाल घड़ी एक चोट देलकइ । "ई की, साढ़े सात बज गेलइ ? ई नयँ हो सकऽ हइ, शायद, घड़िया तेज होतइ !"

भाग्यवश ओकरा फाटक पर फेर से सब कुछ ठीक-ठाक रहलइ । एतने नयँ, बल्कि भाग्यवश ठीक एहे क्षण ठीक ओकर आगू से फाटक के अन्दर पुआल के एगो भारी ट्रक घुसलइ, आउ जब तक ऊ द्वारमार्ग (gateway) से गुजरलइ, तब तक ओकरा चलते पूरा आड़ में रहलइ, आउ जइसीं ट्रक द्वारमार्ग से अहाता में घुसलइ, कि ऊ पलक मारते चुपके से दहिना तरफ घसक गेलइ । ट्रक के दोसरा तरफ कुछ लोग के चीखे आउ झगड़े के अवाज सुनाय पड़ रहले हल, लेकिन ओकरा कोय नयँ देखलकइ आउ न ओकरा सामने से अइते कोय मिललइ । ई बड़का वर्गाकार अहाता के तरफ वला कइएक गो खिड़की ई क्षण खुल्लल हलइ, लेकिन ऊ अपन सिर नयँ उठइलकइ - ओकरा हिम्मत नयँ हलइ । बुढ़िया के तरफ वला ज़ीना नगीच हलइ, फाटक के ठीक दहिना तरफ । ऊ ज़ीना पर पहुँच चुकले हल ...

लम्मा साँस लेके आउ हाथ से धड़कते दिल के दाबके, साथे-साथ कुल्हाड़ी के टटोलके ओकरा फेर से सीधा करके, ऊ सवधानी से आउ चुपचाप ज़ीना पर चढ़े लगलइ, पल-पल रुकके अकानते । लेकिन ऊ क्षण ज़ीना बिलकुल खाली हलइ; सब्भे दरवाजा बन हलइ; केकरो से ओकरा भेंट नयँ होलइ । दोसरा मंजिल पर एक खाली फ्लैट, ई बात सच हइ, कि बिलकुल खुल्ला हलइ, आउ ओकरा में पुताई करे वलन मजदूर सब काम कर रहले हल, लेकिन ओकन्हीं ओकरा तरफ देखवो नयँ कइलकइ । ऊ थोड़े देर खड़ी रहलइ, सोचते रहलइ आउ फेर आगू बढ़ गेलइ । "निस्संदेह, अच्छा होते हल, अगर ओकन्हीं हियाँ बिलकुल नयँ रहते हल, खैर ... ओकन्हीं से दू मंजिल तो उपरे हकइ ।" लेकिन ई हइ चौठा मंजिल, ई हइ दरवाजा, आउ ई सामनेवला फ्लैट; खाली । तेसरा मंजिल पर, सब लक्षण से, फ्लैट हइ, जे बुढ़िया वला के ठीक निच्चे हइ, एहो खाली हइ -  काँटी (कील) से दरवाजा में ठोकल परिचय कार्ड (visiting card) निकासल हइ - ओकन्हीं चल गेते गेलइ ! ...

ऊ हाँफ रहले हल । एक क्षण लगी ओकर दिमाग में विचार तेजी से गुजर गेलइ - "की हम वापिस चल जाँव ?" लेकिन ऊ खुद के जवाब नयँ देलकइ आउ बुढ़िया के फ्लैट में अकाने लगलइ - बिलकुल सन्नाटा । बाद में फेर से ज़ीना के निच्चे तरफ कान देलकइ, देर तक सुनलकइ, ध्यान से ... तब अन्तिम तुरी अपन चारो तरफ नजर डललकइ, खुद के सँभललकइ, तनके खड़ी हो गेलइ आउ फेर से फाँस में कुल्हाड़ी के टटोलके देखलकइ । "हमर चेहरा पीयर तो नयँ पड़ गेल ह ... बहुत ?" ओकर विचार में अइलइ, "हम कोय जादहीं चिंतित तो नयँ हकूँ ? ऊ शक्की मिजाज के हइ ... कुछ आउ इंतजार तो नयँ कर लेवे के चाही ... जब तक कि दिल के तेज धड़कन बन नयँ हो जाय ? ..."

लेकिन ओकर दिल के तेज धड़कन बन नयँ हो रहले हल । एकर विपरीत, मानूँ चिढ़ावे खातिर, आउ तीव्रतर, तीव्रतर, तीव्रतर रूप से धड़कते गेलइ ... ओकरा बरदास नयँ होलइ, धीरे-धीरे अपन हाथ घंटी तरफ बढ़इलकइ आउ बजइलकइ । आधा मिनट के बाद ऊ फेर से बजइलकइ, आउ तेजी से ।

कोय जवाब नयँ । बेकार में बजइते रहे के जरूरत नयँ हलइ, आउ ई ओकर स्वभाव से मेल नयँ खा हलइ । बुढ़िया निश्चय घरे पर हलइ, लेकिन ऊ शक्की हलइ आउ अकेल्ले हलइ । ऊ कुछ-कुछ ओकर आदत से परिचित हलइ ... आउ एक तुरी फेर से दरवाजा तरफ कान लगइलकइ । या तो ओकर इन्द्रिय बहुत तेज हलइ (जे सामान्यतः मानना जरी कठिन हइ), नयँ तो (अवाज) वस्तुतः बिलकुल सुनाय देवे लायक हलइ, लेकिन अचानक ऊ जइसे सिटकिनी पर सवधानीपूर्वक हाथ लगावे के अवाज, आउ ठीक दरवजवा के पास बस्तर के सरसराहट जइसन पहचान लेलकइ । कोय तो चुपके-चोरी सिटकिनी के पास खड़ी हलइ, ठीक ओइसीं अन्दर से छिपके सुन रहले हल, जइसे ऊ हियाँ बाहर से, आउ लगऽ हइ, ओहो दरवजवा से कान लगइले हलइ ...



ऊ जान-बूझके थोड़े सन खिसकलइ आउ जरी जोर से बड़बड़इलइ, ताकि ई नयँ लगे कि ऊ छिप्पल हकइ; बाद में ऊ तेसरा तुरी घंटी बजइलकइ, लेकिन शान्ति से, गंभीरतापूर्क आउ बिन कोय अधीरता के । एकरा बारे बाद में आद अइला पर, ई क्षण ओकर दिमाग में सजीव आउ स्पष्ट रूप से हमेशे लगी अंकित हो गेलइ - ओकरा ई नयँ समझ में अइलइ कि ओकरा में एतना धुरफनई काहाँ से आ गेलइ, खास करके जबकि कोय-कोय पल ओकर दिमाग धुंधला हो जा हलइ, आउ ओकरा अपन देहो के खबर लगभग नयँ रहऽ हलइ ... एक पल बाद सिटकिनी खुल्ले के अवाज सुनाय पड़लइ ।



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