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Monday, June 04, 2018

"त हमन्हीं के आखिर कीऽ करे के चाही ?" - अध्याय-01


त हमन्हीं के आखिर कीऽ करे के चाही ?
आउ लोग ओकरा पुछलकइ, त हमन्हीं के कीऽ करे के चाही ? आउ ऊ जवाब में कहलकइ - जेकरा पास दू पोशाक हइ, ऊ ओकरा देइ जेकरा पास नयँ हइ; आउ जेकरा पास भोजन हइ, ओहो ओहे करइ । (ल्यूक, 3.10-11)
अपना लगी पृथ्वी पर खजाना जामा नयँ करऽ, जाहाँ परी फटिंगा आउ जंग बरबाद कर दे हइ आउ जाहाँ परी चोर सब सेंध लगाके चोरा लेते जा हइ ।
बल्कि अपना लगी स्वर्ग में खजाना जामा करऽ, जाहाँ परी न फटिंगा आउ न जंग बरबाद करऽ हइ आउ जाहाँ परी चोर सब सेंध लगाके चोरा नयँ पावऽ हइ । काहेकि जाहाँ परी तोहर खजाना हको, हुएँ परी तोहर मन रहतो ।
शरीर के दीपक आँख होवऽ हइ । ओहे से अगर तोहर आँख साफ रहतो, त तोहर पूरा शरीर प्रकाशित रहतो ।
लेकिन अगर तोहर आँख खराब होतो, त पूरा शरीर अन्हार रहतो । ओहे से, अगर प्रकाश जे तोहरा में हको, अगर अन्हार होतो त कइसन अन्हार ?
(एक्के साथ) दू मालिक के कोय नयँ सेवा कर सकऽ हइ; काहेकि या तो एगो से नफरत करतइ, आउ दोसरा के प्यार, चाहे एगो लगी समर्पित रहतइ, आउ दोसरा के खियाल नयँ कर पइतइ ।  भगमान आउ धन दुन्नु के एक साथ सेवा नयँ कर सकऽ हो ।
ओहे से हम तोहरा से कहऽ हियो - अपन आत्मा के चिंतन छोड़ऽ कि तोहरा कीऽ खाय के हको आउ कीऽ पीए के, आउ न अपन देह के फिकिर करऽ कि कीऽ पेन्हे के चाही । कीऽ आत्मा भोजन से अधिक महत्त्वपूर्ण नयँ हइ आउ शरीर पोशाक से?
ओहे से चिंता मत करऽ आउ ई मत बोलऽ - हम कीऽ खाम ? चाहे हम कीऽ पीयम ? चाहे हम कीऽ पेन्हम ?
काहेकि विधर्मी लोग ई सब खोजऽ हइ; आउ काहेकि स्वर्ग में रहे वला तोहर पिता जानऽ हथुन कि तोहरा ई सब के जरूरत हको ।
ओहे से सबसे पहिले भगमान के राज्य आउ उनकर सत्य के खोज करऽ, आउ ई सब चीज तो तोरा अइसीं दे देल जइतो । (मैथ्यू, 6.19-25, 31-34)
काहेकि एगो ऊँट के सूई के छेद से होके गुजर जाना कहीं अधिक असान हइ, बनिस्पत एगो धनमान के भगमान के राज्य में प्रवेश करे के । (मैथ्यू, 19.24; ल्यूक, 18.25; मार्क, 10.25)


1.

हम जिनगी भर शहर में नयँ रहलूँ हल । जब हम सन् 1881 में मास्को में रहे लगी अइलूँ, त हमरा शहर के गरीबी अचरज में डाल देलक । गाँव के गरीबी से हम परिचित हकूँ; लेकिन  शहर के गरीबी हमरा लगी नावा आउ अनजान हल । मास्को में अइसन कोय रोड से नयँ गुजरल जा सकऽ हइ, जेकरा पर भिखारी से भेंट नयँ होवइ, आउ खास करके ऊ भिखारी, जे ग्रामीण भिखारी नियन नयँ रहइ । ई सब भिखारी - झोला के साथ आउ क्राइस्ट के नाम पर भीख माँगे वला भिखारी नयँ हइ, जइसन कि ग्रामीण भिखारी लोग खुद के बतइते जा हइ, बल्कि बिन झोला आउ बिन क्राइस्ट के नाम वला भिखारी हइ । मास्को के भिखारी सब न तो झोला रक्खऽ हइ आउ न भीख माँगऽ हइ । अधिकांश में ओकन्हीं, भेंट होवे बखत चाहे खुद भिर से अपने के गुजरे देवे बखत, खाली अपने के साथ आँख से आँख मिलाके भेंट करे के प्रयास करऽ हइ । आउ अपने के नजर के आधार पर ओकन्हीं माँगतइ चाहे नयँ । भद्रजन (gentry) में से अइसन एगो भिखारी के बारे हमरा मालुम हइ । बुढ़उ धीरे-धीरे चल्लऽ हइ, हरेक कदम पर झुकते । जब ओकरा अपने साथ भेंट होतइ, त ऊ अपन एक गोड़ पर झुक जइतइ आउ लगतइ कि ऊ अपने के सलाम कर रहले ह । अगर अपने रुक जा हथिन, त ऊ कॉकेड टोपी (cockaded cap) उतार लेतइ, सलाम करतइ आउ भीख माँगतइ; आउ अगर अपने नयँ रुक्कऽ हथिन, त ऊ अइसन ढोंग करतइ कि अइसन ओकर चाले हइ, आउ ऊ आगू बढ़ जइतइ, ओइसीं दोसरा कदम पर झुकते। ई मास्को के एगो पढ़ल-लिक्खल वास्तविक भिखारी हइ । पहिले हमरा नयँ मालुम हलइ कि भिखरियन सब सीधे भीख काहे नयँ माँगऽ हइ, लेकिन बाद में समझ में अइलइ कि काहे ओकन्हीं नयँ माँगऽ हइ, लेकिन तइयो ओकन्हीं के परिस्थिति के बारे हम समझ नयँ पइलिअइ ।
एक तुरी, अफ़नास्येव गली से जइते बखत हम देखलिअइ कि एगो पुलिस के सिपाही, जलोदर से सुज्जल आउ चिथड़ा पेन्हले एगो मुझीक (देहाती/ किसान) के गाड़ी में बैठाब करऽ हइ ।  हम पुछलिअइ - "काहे लगी ?"
सिपाही हमरा उत्तर देलकइ - "भीख माँगे के कारण ।"
"की वास्तव में एकर निषेध हइ ?"
"लगऽ तो हइ कि निषेध हइ", सिपाही उत्तर देलकइ ।
जलोदर पीड़ित के गाड़ी में लेके चल गेते गेलइ । हम दोसर गाड़ी कइलिअइ आउ ओकन्हीं के पिछुअइलिअइ। हमरा जाने के मन कर रहले हल कि कीऽ ई बात सच हइ कि भीख माँगना वर्जित हइ, आउ हइ त कइसे ? हम कइसूँ समझ नयँ पइलिअइ कि एगो अदमी के दोसरा से कुछ माँगे के निषेध कइसे कइल जा सकऽ हइ, आउ एकरा अलावे, ई बात के विश्वास नयँ हो रहले हल कि भीख माँगे के निषेध हलइ, ओइसन हालत में जबकि मास्को भिखारी से भरल हइ ।
हम थाना में प्रवेश कइलिअइ, जाहाँ भिखरिया के ले जाल गेले हल । थाना में तलवार आउ पिस्तौल के साथ एगो अदमी टेबुल के पीछू बैठल हलइ । हम पुछलिअइ - "ई मुझीक के काहे लगी गिरफ्तार कइल गेलइ ?"
तलवार आउ पिस्तौल वला अदमी हमरा दने कठोरतापूर्वक देखलकइ आउ बोललइ - "अपने के एकरा से कीऽ मतलब हइ ?" तइयो, ई अनुभव करते कि हमरा कुछ न कुछ स्पष्टीकरण देहीं के चाही, ऊ आगू बोललइ - "प्राधिकारी अइसन लोग के गिरफ्तार करे के ऑडर दे हथिन; मतलब, अइसन करना जरूरी हइ ।"
हम चल गेलिअइ । ऊ सिपाही, जे भिखरिया के लइलके हल, प्रवेश-कक्ष के खिड़की के तलशिला (windowsill) पर बैठल उदास मुद्रा में एगो नोटबुक देखब करऽ हलइ । हम ओकरा पुछलिअइ - "कीऽ ई बात सच हइ कि क्राइस्ट के नाम पर भिखमंगवन के भीख माँगे के निषेध कइल हइ ?"
सिपाही होश में अइलइ, हमरा दने तकलकइ, फेर नाक-भौं त नयँ सिकुड़लइकइ, लेकिन फेर से निनारू होवे के ढोंग कइलकइ, आउ खिड़की के तलशिला पर बैठल-बैठल कहलकइ - "प्राधिकारी के ऑडर हइ - मतलब कि ई जरूरी हइ ।" आउ ऊ फेर से अपन नोटबुक में लीन हो गेलइ ।
हम बाहर ड्योढ़ी में कोचवान के पास गेलिअइ ।
"अच्छऽ, कीऽ होलइ ? की ओकरा गिरफ्तार कइल गेलइ ?" कोचवान के भी, लगऽ हइ, ई बात में रुचि हलइ।
"हाँ, गिरफ्तार कइल गेलइ", हम जवाब देलिअइ ।
कोचवान सिर हिलइलकइ ।
"कइसे ई तोहन्हीं हीं, मास्को में, क्राइस्ट के नाम पे भीख माँगना निषेध हइ ?" हम पुछलिअइ ।
"केऽ ओकन्हीं के जानऽ हइ !" कोचवान कहलकइ ।
"ई कइसन बात हइ", हम कहलिअइ, "कंगाल तो क्राइस्ट के लोग होवऽ हइ, आउ ओकरा थाना ले जाल जा हइ ?"
"अभी तो ई बात के रोक देवल गेले ह, इजाजत नयँ देल जा हइ", कोचवान कहलकइ ।
एकर बाद हम आउ कइएक बेरी देखलिअइ कि कइसे पुलिस भिखारी सब के थाना ले जा हइ आउ बाद में यूसुपोव दरिद्रालय (workhouse) । एक तुरी म्यास्नित्स्की स्ट्रीट पर अइसन भिखारी सब के भीड़ देखलिअइ, कोय तीस लोग के । आगू आउ पीछू पुलिस जा रहले हल । हम पुछलिअइ - "काहे लगी ?"
"भीख माँगे के चलते ।"
पता चललइ कि कानून के मोताबिक मास्को में ऊ सब्भे भिखारी लगी भीख माँगना निषिद्ध हइ, जेकन्हीं में से मास्को के हरेक स्ट्रीट में कइएक लोग से भेंट होवऽ हइ आउ हरेक चर्च के पास जेकन्हीं के कतार के कतार धार्मिक कृत्य (सर्विस) के दौरान आउ खास करके दफन के दौरान खड़ी रहऽ हइ ।
लेकिन काहे कुछ लोग के पकड़ल जा हइ आउ कहीं परी बंद कर देल जा हइ, जबकि दोसर लोग के छोड़ देल जा हइ? ई बात हम समझ नयँ पइलिअइ । या तो ओकन्हीं बीच कानूनी आउ गैरकानूनी भिखारी हइ, चाहे ओकन्हीं के संख्या एतना जादे हइ कि सबके पकड़ना असंभव हइ, चाहे जइसीं कुछ लोग के पकड़ल जा हइ कि दोसर सब फेर से पैदा हो जा हइ ? मास्को में भिखारी के कइएक प्रकार हइ - अइसनो हइ जे एकरे पर जीयऽ हइ; अइसनो वास्तविक भिखारी हइ, जे कोय कारण से मास्को चल अइलइ आउ वास्तव में कंगाल हइ।
ई सब भिखारी में से अकसर सरल किसान होते जा हइ, औरत आउ मरद दुन्नु, कृषक पोशाक में । अइसन लोग से हमरा अकसर भेंट होले ह ।  ओकन्हीं में से कुछ लोग हियाँ परी बेमार पड़ गेते गेलइ आउ अस्पताल से बाहर अइला पर न तो अपन पेट पाल सकऽ हइ आउ न मास्को से निकसके बाहर जा सकऽ हइ । एकरा अलावे, ओकन्हीं में से कुछ लोग रंगरेली मनावे लगलइ (अइसने हलइ शायद ऊ जलोदर पीड़ित अदमी) । कुछ लोग बेमार तो नयँ हलइ, लेकिन जेकर सब कुछ आग में जल गेलइ, चाहे बुढ़वन हइ, या बुतरू सब के साथ में औरतियन; जबकि कुछ लोग बिलकुल स्वस्थ हलइ, काम करे में सक्षम । ई सब बिलकुल स्वस्थ मुझीक, जे भीख माँगे वला हलइ, खास करके हमर ध्यान आकृष्ट कइलकइ । ई सब स्वस्थ, काम में सक्षम मुझीक-भिखारी हमर ध्यान आउ एहो कारण से आकृष्ट कइलकइ कि मास्को आवे के बखत से कसरत खातिर गोरैया पहाड़ी (Sparrow Hills) पर ऊ दू कृषक के साथ काम करे लगी जाय के हम आदत बना लेलिअइ, जे हुआँ परी आरा से लकड़ी चीरऽ हलइ । ई दुन्नु मुझीक बिलकुल ओइसने कंगाल हलइ, जइसन कि ओकन्हीं, जेकन्हीं से स्ट्रीट सब में हमरा भेंट होवऽ हलइ । एगो तो हलइ प्योत्र, सैनिक, कलुगा से, आउ दोसरा - मुझीक, सिम्योन, व्लादिमिर से । ओकन्हीं के पास कुछ नयँ हलइ, सिवाय तन पर कपड़ा आउ हाथ के । आउ ई हाथ से ओकन्हीं बहुत कठिन काम करके रोज 40 से 45 कोपेक अर्जित करऽ हलइ, जेकरा में से दुन्नु कुछ बचा लेते जा हलइ - कलुगा के प्योत्र भेड़ के खाल के कोट खातिर बचावऽ हलइ, आउ व्लादिमिर के सिम्योन ई लगी कि गाँव वापिस जाय खातिर पैसा जामा हो जाय । ओहे से अइसनकन लोग से स्ट्रीट में भेंट होला पर हम खास करके दिलचस्पी ले हलिअइ ।
काहे ओकन्हीं काम करते जा हइ, जबकि एकन्हीं भीख माँगऽ हइ ?
अइसन मुझीक से भेंट होला पर हम साधारणतः पुच्छऽ हलिअइ कि ऊ कइसे अइसन हालत में आ गेलइ । एक तुरी हमरा एगो स्वस्थ मुझीक से भेंट होवऽ हइ जेकर दाढ़ी उज्जर होवे लगले ह । ऊ भीख माँगऽ हइ; ओकरा पुच्छऽ हिअइ कि ऊ केऽ हइ, काहाँ से हइ । ऊ बोलऽ हइ कि ऊ कलुगा से काम लगी अइलइ । शुरू में काम मिललइ - पुराना लकड़ी के जलावन खातिर चीरे के काम । एक मालिक हीं एगो साथी के साथ लकड़ी चीरे के काम पूरा कर लेलकइ; फेर दोसर काम खोजलकइ, नयँ मिललइ, साथी ओकरा छोड़ देलकइ, आउ अब अइसीं दोसरा सप्ताह संघर्ष करब करऽ हइ, जे कुछ हलइ ऊ सब खा चुकले ह - अब न तो आरा आउ न कुल्हाड़ी खरदे लगी कुछ हइ । हम आरा खरदे लगी ओकरा पैसा दे हिअइ आउ ओकरा ऊ जगह के इशारा से बतावऽ हिअइ, जाहाँ परी काम पर आवे के चाही । हम पहिलहीं प्योत्र आउ सिम्योन के साथ बात पक्का कर लेलिए हल कि ओकन्हीं एगो आउ साथी के काम पर ले लेइ आउ ओकरा लगी एगो जोड़ी खोज देइ ।
"देखिहँऽ, आ जइहँऽ । हुआँ परी बहुत काम हउ ।"
"आ जइबइ, कइसे नयँ अइबइ ! की हमरा मन करतइ कि भीख माँगिअइ । हम काम कर सकऽ हिअइ ।" ऊ बोलऽ हइ।
मुझीक कसम खा हइ कि अइतइ, आउ हमरा लगऽ हइ कि ऊ धोखा नयँ देतइ आउ आवे के ओकर इरादा हइ।
दोसरा दिन हम दुन्नु परिचित मुझीक भिर आवऽ हिअइ । पुच्छऽ हिअइ, कीऽ ऊ मुझीक अइलइ । नयँ अइलइ। आउ ई तरह से कइएक लोग हमरा धोखा देलकइ । हमरा ओइसनो लोग धोखा दे हलइ, जे बोलऽ हलइ कि ओकरा खाली टिकट लगी पैसा के जरूरत हइ ताकि घर वापिस जा सकइ, आउ एक सप्ताह के बाद फेर से स्ट्रीट में मिल जा हलइ । ओकन्हीं में से कइए गो के हम पछान लेलिअइ आउ ओकन्हिंयों हमरा पछनलकइ आउ कभी-कभी, हमरा भुला चुकला पर, ओहे धोखा फेर दोहरइलकइ, आउ कभी-कभी हमरा देखके मुड़के चल गेलइ । त हम देखलिअइ कि एहो प्रकार के कइएक धोखेबाज हइ; लेकिन एहो सब धोखेबाज पर हमरा तरस आवऽ हलइ; ई सब हलइ - अर्द्धनग्न, निर्धन, दुब्बर-पातर, रोगियाहा लोग; ई ठीक ओहे सब हलइ जे वास्तव में ठिठुरके मर जा हइ चाहे फाँसी लगा ले हइ, जइसन कि हमन्हीं के अखबार से मालुम पड़ऽ हइ ।

"त हमन्हीं के आखिर कीऽ करे के चाही ?" - अनुवादक के भूमिका


त हमन्हीं के आखिर कीऽ करे के चाही ?




अनुवादक के भूमिका

"युद्ध आउ शान्ति" (1863-1868) आउ "आन्ना करेनिना" (1873-1877) जइसन विश्वप्रसिद्ध उपन्यास आउ अनेक लोकप्रिय कहानी के लेखक लेव तल्सतोय (1828-1910) के कथेतर रचना "Так что же нам делать ?" (1886) ["ताक श्त्वो झे नाम जेलच्" अर्थात् "त हमन्हीं के आखिर कीऽ करे के चाही ?"] के अंग्रेजी अनुवाद "What then must we do?" (1935) में अपन सम्पादकीय में ऐलिमर मोड (Aylmer Maude) कहलथिन हँ - "It was the first of Tolstoy's works to grip my attention, and it caused me to seek his acquaintance, which in turn led to the work I have now been engaged on for many years, namely, the preparation of the 'World's Classics' series and the Centenary Edition of his works."

त प्रस्तुत हइ कुल 40 अध्याय के उनकर ई कथेतर रचना के मगही अनुवाद "त हमन्हीं के आखिर कीऽ करे के चाही?"

5.1 रूसी कथेतर रचना: “त हमन्हीं के आखिर कीऽ करे के चाही ?”

सूची

5.1 रूसी कथेतर रचना (non-fiction): “त हमन्हीं के आखिर कीऽ करे के चाही ?”
मूल रूसी शीर्षकः Так что же нам делать ?
मूल रूसी लेखक: लेव तल्सतोय (28.8.1828 – 9.11.1910)
प्रथम प्रकाशन वर्षः 1886
मगही अनुवाद: नारायण प्रसाद


त हमन्हीं के आखिर कीऽ करे के चाही ?

            अध्याय-01
            अध्याय-02
            अध्याय-03
            अध्याय-04
            अध्याय-05
            अध्याय-06
            अध्याय-07
            अध्याय-08
            अध्याय-09
            अध्याय-10
            अध्याय-11
            अध्याय-12
            अध्याय-13
            अध्याय-14
            अध्याय-15
            अध्याय-16
            अध्याय-17
            अध्याय-18
            अध्याय-19
            अध्याय-20
            अध्याय-21
            अध्याय-22
            अध्याय-23
            अध्याय-24
            अध्याय-25
            अध्याय-26
            अध्याय-27
            अध्याय-28
            अध्याय-29
            अध्याय-30
            अध्याय-31
            अध्याय-32
            अध्याय-33
            अध्याय-34
            अध्याय-35
            अध्याय-36
            अध्याय-37
            अध्याय-38
            अध्याय-39
            अध्याय-40

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