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Monday, June 03, 2019

पितिरबुर्ग से मास्को के यात्रा ; अध्याय 5. चुदोवो


[*21]                                                                चुदोवो

हम डाक झोपड़ी में घुसवे कइलिए हल कि हमरा रोड पर डाकगाड़ी के घंटी के अवाज सुनाय देलकइ, आउ कुछ मिनट के बाद झोपड़ी में घुसला हमर मित्र च[1]... हम उनका पितिरबुर्ग में छोड़लिए हल, आउ उनका हुआँ से एतना जल्दी प्रस्थान करे के इरादा नञ् हलइ । एगो असाधारण घटना दृढ़ स्वभाव के व्यक्ति के, जइसन कि हमर मित्र हलथिन, पितिरबुर्ग छोड़े के प्रेरित कइलकइ आउ अइकी हमरा ऊ सुनइलथिन ।
"तूँ प्रस्थान करे लगी तैयारे हलऽ कि हम पितिरगोफ़ लगी प्रस्थान कर गेलूँ । हम छुट्टी ओतने खुशी से गुजारलूँ जेतना कि शोरगुल आउ धुआँ में संभव हल । लेकिन अपन यात्रा के सदुपयोग चाहते हम क्रोन्स्टाट आउ सिस्टेरबेक (Kronstadt and Sisterbek) जाय के निर्णय कइलूँ, जाहाँ परी हमरा बतावल गेल कि हाल में बहुत बड़गो परिवर्तन होले ह । क्रोन्स्टाट में हम दू दिन बहुत खुशी-खुशी गुजरलिअइ, [*22] ध्यान से देखते सब्भे विदेशी जहाज दने, क्रोन्स्टाट किला के पथरीला घेरा दने, आउ तेजी से उपरे उठते बिल्डिंग सब के । नयका क्रोन्स्टाट के प्लान देखे के हमरा बड़ी उत्सुकता हलइ, आउ खुशीपूर्वक भावी बिल्डिंग के सौन्दर्य के अन्दाज लगाब करऽ हलिअइ; एक शब्द में, हमर भेंट के दोसरा दिन खुशी आउ आनन्द से गुजरलइ । रात शान्त आउ चमकीला हलइ आउ सुगंधित हवा हमर भावना में एगो विशिष्ट स्नेहशीलता भर रहले हल, जेकरा वर्णन करे के अपेक्षा अनुभव करना अधिक आसान हइ । हमर इरादा हल प्रकृति के अनुग्रह के सदुपयोग करे के, आउ जिनगी में कम से कम एक तुरी सूर्योदय के शानदार दृश्य के आनन्द लेवे के, जे हमरा पानी के समतल क्षितिज पर अभी तक कभियो नञ् देखे के अवसर मिलल हल । हम बारह चप्पू वला समुद्री नाव (12-oared marine sloop) किराया पर लेलूँ आउ S ---- लगी रवाना हो गेलूँ ।
[*23] चार विर्स्ता[2] तक सब कुछ ठीक-ठाक चललइ । चप्पू के एकसुरा अवाज से हमरा नीन आवे लगल, आउ निद्रालु आँख चप्पू के उपरे से गिर रहल पानी के क्षणिक चमक से मोसकिल से उपरे तेजी से उठ पावऽ हलइ । काव्यात्मक कल्पना हमरा पहिलहीं पाफ़ोस आउ आमाथुस[3] के रमणीय तृणभूमि (meadows) में पहुँचा देलके हल । अचानक दूर में हवा के तेज सीटी हमर नीन के दूर कर देलक, हमर निद्रालु आँख के सामने घना बादल छा गेल, जेकर करिया भार, लगऽ हलइ, ओकरा हमर सिर पर लाके प्रहार करके भयभीत करे के प्रयास करब करऽ हलइ । दर्पण सदृश पानी के सतह हिलोरा खाय लगलइ, आउ शान्ति के स्थान लहर के छपछपाहट ले लेलकइ । हम ई दृश्य से खुश हलूँ; प्रकृति के शानदार शकल देख रहलिए हल आउ बिन शेखी बघारले हम कहऽ हिअइ कि जे दोसरा के भयभीत करे लगले हल, ऊ हमरा खुशी दे रहले हल । कभी-कभी हम चिल्ला उठऽ हलिअइ, वेर्नेत नियन, ‘आह केतना सुन्दर !’[4] लेकिन धीरे-धीरे जब हवा तेज होवे लगलइ, [*24] त किनारे जाय के बारे सोचे पड़लइ । घना अपारदर्शक बादर आसमान के बिलकुल अन्हार कर देलकइ। लहर के जोरदार हिलकोरा पतवार के दिशा में विक्षेप पैदा कर देलकइ, आउ हवा के झोंका हमन्हीं के कभी जलीय सतह के शीर्ष (crests) पर पहुँचइते, त कभी उफनते समुद्र के खड़ी ढाल वला गर्त (trough) में फेंकते, खेवैया के अग्रगति के रोक देलकइ । अनिच्छा से हवा के दिशा में हमन्हीं यादृच्छिक रूप से (at random) प्रवाहित होल जाब करऽ हलिअइ । तब हमन्हीं के किनारो के बारे डर लगे लगलइ; तब ओहो, जे अनुकूल समुद्रयात्रा (sailing) हमन्हीं के सान्त्वना देते हल, अब निराश करे लगलइ । प्रकृति अभी हमन्हीं लगी ईर्ष्यालु प्रतीत हो रहले हल, आउ हमन्हीं अभी ओकरा पर गोस्सा करब करऽ हलिअइ ई बात पर कि बिजली के चमक में आउ बादर के गरज से कान के तकलीफ देते अपन भयंकर भव्यता के नञ् फैलाब करऽ हलइ । लेकिन आशा, जे असीम संकट के अवस्था में भी मनुष्य के पीछा करऽ हइ, हमन्हीं के शक्ति देलकइ, आउ हमन्हीं यथासंभव एक दोसरा के ढाढ़स देलिअइ ।
[*25] लहर से वहन कइल गेल अचानक हमन्हीं के नाव रुक गेलइ आउ टस से मस नञ् होवइ । हमन्हीं के संयुक्त प्रयास के बावजूद ऊ अपन स्थान से डिग नञ् पइलइ, जाहाँ परी ऊ फँस गेले हल । ऊ उथला पानी वला जगह (shoal) से, जइसन कि हमन्हीं ऊ जगह के समझ रहलिए हल, नाव के हटावे के कोशिश करते बखत हमन्हीं के पतो नञ् चललइ कि हवा के जोर ई दौरान लगभग पूरा शान्त पड़ चुकले हल । धीरे-धीरे आसमान के बादर छँट चुकले हल जे एकर नीला रंग पर परदा डाल देलके हल । लेकिन ऊषा के प्रकाश आनन्द लावे के बजाय हमन्हीं लगी हमन्हीं के दयनीय परिस्थिति दर्शइलकइ । हमन्हीं के ई स्पष्ट हो गेलइ कि हमन्हीं के नाव छिछला पानी के जगह पर नञ् हलइ; बल्कि दूगो बड़गो चट्टान के बीच अटक गेले हल, आउ कउनो शक्ति लगाके हुआँ से ओकरा सुरक्षित निकासल नञ् जा सकऽ हलइ । हमर मित्र, जरी हमर परिस्थिति के कल्पना करहो, हम जे कुछ काहे नञ् बतइयो, ऊ सब ओकरा अपेक्षा कम होतो जे हम अनुभव कइलिअइ । आउ अगर हम अपन सब भावना के यथेष्ट वर्णन करियो दियो, तइयो ई तोहरा में ऊ भावना पैदा करे में कमजोर सिद्ध होतो, [*26] जइसन ऊ बखत हमर आत्मा में उत्पन्न होल आउ झकझोर देलक । हमन्हीं के नाव दूगो पथरीला शृंखला के बीच अटकल पड़ल हलइ, जे S---- तक फैलल एगो सँकरी खाड़ी (arm) के जोड़ले हलइ। हम सब किनारे से डेढ़ विर्स्ता दूर हलिअइ । हमन्हीं के नाव में चारों दने से पानी घुस्से लगलइ आउ हमन्हीं के बिलकुल डुबा देवे के खतरा मँड़राय लगलइ । अन्तिम घड़ी में, जब हमन्हीं से प्रकाश समाप्त होवे लगऽ हइ आउ अनन्त दृष्टिगोचर होवे लगऽ हइ, तब मानव के बुद्धि के सब उपलब्धि गायब हो जा हइ । मानव तब खाली मानव रह जा हइः त अपन अन्त के नगीच आते देखके, हम सब ई भूल गेलिअइ कि केऽ कउन हस्ती के हलइ आउ हमन्हीं खाली खुद के बचावे के बारे सोचलिअइ, जेकरा जइसे बने ओइसे नाव से पानी निकासे में मदत करके । लेकिन एकरा से की फयदा हलइ ? जेतना पानी हमन्हीं के संयुक्त प्रयास से बाहर निकासल जाय, क्षण भर में ओतना फेर से अन्दर भर जाय । हमन्हीं के हृदय के असीम  [*27] कष्ट होलइ कि न तो दूर में, न पास में गुजरते कोय नाव या जहाज देखाय देलकइ । लेकिन ओहो, अगर हमन्हीं के सान्त्वना लगी देखाइयो दे देते हल, त हमन्हीं के निराशा बढ़ा देते हल, हमन्हीं के भाग्य के बाँटे के बदले हमन्हीं से दूर होते। आखिर हमन्हीं के नाव के कप्तान, जे बाकी सब के अपेक्षा समुद्री खतरा के अधिक अभ्यस्त हलइ, आउ जे द्वीपसमूह में गत तुर्की युद्ध[5] में विभिन्न समुद्री लड़ाई में मौत के विरक्ति से देखे लगी शायद सिक्खे लगी बाध्य हो गेले हल; निर्णय कर लेलकइ खुद के बचाके हमन्हीं के बचावे के, चाहे ई शुभ कार्य में मर जाय केः काहेकि एक्के जगह में रहके हमन्हीं के मरना निश्चित हलइ । हमन्हीं के हार्दिक प्रार्थना के साथ ऊ नाव पर से बाहर निकसके आउ एक चट्टान पर से दोसरा चट्टान पर से होते किनारा दने चल पड़लइ । शुरू-शुरू में ऊ उत्साहपूर्वक अपन रस्ता पर गेलइ, एक चट्टान पर से दोसरा चट्टान पर उछलते; जाहाँ पानी छिछला हलइ, हुआँ पार करके [*28] आउ जाहाँ परी गहरा हलइ, हुआँ पैरके । हमन्हीं के नजर ओकरा पर से नञ् हटलइ । आखिर देखलिअइ कि ओकर ताकत जवाब देवे लगलइ, काहेकि अब ऊ चट्टान सब के धीरे-धीरे पार करे लगलइ, अकसर रुकके जरी अराम करे लगलइ। हमन्हीं के लगलइ कि ऊ कभी-कभी शंका में पड़के सोचे लगऽ हलइ कि आगू के यात्रा जारी रखूँ कि नञ् । ई बात ओकर सथियन में से एगो के ओकरा पीछा करे के प्रेरित कइलकइ कि ओकरा मदत देल जाय, अगर किनारे पर पहुँचे में ओकरा अशक्त देखइ; चाहे खुद्दे हुआँ पहुँच जाय, अगर पहिलौका के ओकरा में सफलता नञ् मिल्लइ । हमन्हीं के नजर कभी एगो पर रहइ, त कभी दोसरा पर, आउ ओकन्हीं के सुरक्षा लगी हमन्हीं निष्ठापूर्वक प्रार्थना कर रहलिए हल । आखिर विधि-निर्माता (Moses) के दुन्नु अनुकरणकर्ता में से दोसरा, पानी के गहराई के, बिन कोय चमत्कार के, पैदल पार करते बखत एगो चट्टान पर स्थिर होल खड़ी रह गेलइ, जबकि पहिलौका हमन्हीं के दृष्टि से बिलकुल अगोचर हो गेलइ ।
[*29] अभी तक तथाकथित भय से कैद हमन्हीं में से हरेक के रहस्यपूर्ण आन्तरिक आवेग अब आशा समाप्त हो जाय से बाहर आवे लगलइ । एहे दौरान नाव में पानी के स्तर उपरे चढ़ रहले हल, आउ ओकरा में से पानी बाहर निकासे के हमन्हीं के परिश्रम स्पष्ट रूप से हमन्हीं के शक्ति के क्लान्त कर रहल हल । क्रोधी आउ अधीर काठी के आदमी अपन केश नोच रहल हल, अपन अंगुरी काट रहल हल आउ अपन प्रस्थान के घड़ी के कोस रहल हल । कायर आत्मा वला आउ जे शायद लमगर समय से कष्टकारक बन्धन के भार अनुभव कइले हलइ, रोदन कर रहले हल, अपन अश्रु से ऊ बेंच के गीला करते जेकरा पर अपन चेहरा निच्चे कइले पड़ल हलइ । दोसरा अपन घर, बाल-बच्चा आउ पत्नी के आद करते जड़ीभूत होल बैठल हलइ, अपन बारे नञ् सोचते, बल्कि ओकन्हीं के माौत के बारे, काहेकि ओकन्हीं के भरण-पोषण ओकर परिश्रम के सहारे होवऽ हलइ । हमर मानसिक हालत कइसन हलइ, हमर दोस्त, खुद अनुमान लगा सकऽ ह, काहेकि तूँ हमरा निम्मन से जानऽ ह। हम तोरा खाली ई बतइबो कि हम निष्ठापूर्वक भगमान के प्रार्थना कर रहलिए हल । आखिर हमन्हीं निराशा में डूब गेलिअइ; काहेकि हमन्हीं के नाव आधा से जादे [*30] पानी से भर चुकले हल, आउ हमन्हीं टेहुना तक पानी में खड़ी हलिअइ । अकसर हमन्हीं नाव से निकसके चट्टान के शृंखला से होके पैदल किनारा पर जाय के सोचलिअइ, लेकिन एक सहयात्री के अब तक कइएक घंटा चट्टान पर रहना आउ दोसरका के हमन्हीं के नजर से ओट हो जाना हमन्हीं लगी पारगमन के खतरा वास्तव में जेतना हलइ ओकरा अपेक्षा शायद कुछ जादहीं प्रतीत होलइ । अइसन शोकमय विचार के बीच हमन्हीं सामने के किनारा के पास देखलिअइ, लेकिन हमन्हीं से कुछ दूरी पर तो हलइ जेकर पक्का निर्धारण तो हम नञ् कर सकऽ हिअइ, पानी पर दूगो कार धब्बा हलइ जे लगलइ आगू बढ़ रहले हल । हमन्हीं द्वारा देखाय दे रहल कार धब्बा, लगलइ, धीरे-धीरे साइज में बड़गर हो रहले हल; आखिर हमन्हीं के नजर में नगीच अइला पर साफ हो गेलइ कि दूगो छोटगर नाव सीधे ओधरे आब करऽ हइ, जाहाँ हमन्हीं अइसन निराशा में हलिअइ जे आशा से सो गुना से भी जादे हलइ । जइसन कि प्रकाश लगी बिलकुल अगम्य एगो अन्हार भित्तर में जब अचानक दरवाजा खुल जा हइ [*31] आउ सूर्य के किरण अन्हार के बीच झट से घुसके ओकरा दूर कर दे हइ, पूरे भित्तर में अन्तिम छोर तक फैलते; ओइसीं नाव के देखके, बचाव के आशा के किरण हम सब के आत्मा में प्रवेश कर गेलइ । निराशा हर्षातिरेक में बदल गेलइ, उदासी आनन्द में, आउ ई खतरा पैदा हो गेलइ कि हमन्हीं के खुशी के शारीरिक हलचल आउ छपछपाहट कहीं हमन्हीं के  मौत के कारण नञ् बन जाय, एकर पहिले कि हमन्हीं के खतरा से बचा लेल जाय । लेकिन हृदय में जीवन के वापिस आ रहल आशा, खतरा के बखत सुषुप्तावस्था में रहल हमन्हीं के अलग-अलग हस्ती के विचार के फेर से जागृत कर देलकइ । ई अभी लगी तो हमन्हीं खातिर सामान्य रूप से उपयोगी ठहरलइ । हम अति आनन्द के, जे हानिकारक सिद्ध हो सकऽ हलइ, नियंत्रित कर लेलूँ । थोड़े देर के बाद हमन्हीं के नगीच अइते दूगो बड़गो मत्स्य-नौका दृष्टिगोचर होलइ, आउ हमन्हीं भिर पहुँच गेला पर ओकरा में से एगो में अपन रक्षक के देखलिअइ, जे चट्टान के शृंखला से होके किनारा पर पहुँचके हमन्हीं के प्रत्यक्ष मौत से बचावे खातिर ई दुन्नु नाव खोजलका हल । [*32] हम सब बिन कोय देरी कइले अपन नाव से बाहर निकसलिअइ आउ आवल नाव से किनारा तक पहुँचलिअइ, अपन साथी के चट्टान पर से ले जाय के बिन भूलले, जे ओकरा पर लगभग सात घंटा गुजरलके हल । आध घंटा से जादे नञ् गुजरले होत, जब हमन्हीं के नाव, जे दू चट्टान के बीच स्थिर हलइ, अब (यात्री के) भार से मुक्त हो गेला पर उपला गेलइ आउ पूरे तरह से टूट-फूट गेलइ । जान बच गेला से आनन्द आउ हर्षातिरेक के बीच किनारा पर पहुँचते, पावेल, हमन्हीं के रक्षक सहयात्री, निम्नलिखित कहानी सुनइलका ।
हम तोहन्हीं के आसन्न (imminent) खतरा में छोड़के, चट्टान पर से जल्दी-जल्दी किनारा तरफ गेलियो । तोहन्हीं के बचावे के कामना हमरा अलौकिक शक्ति देलकः लेकिन किनारे से जब हम लगभग सो साझिन दूर रह गेलूँ हल त हमरा शक्ति जवाब देवे लग गेल, आउ हम तोहन्हीं के आउ अपन जिनगी बचावे में निराश होवे लगलूँ । लेकिन चट्टान पर आध घंटा पड़ल रहला पर हम नयका साहस से उछलके, आउ जादे बिन अराम कइले, लगभग सरकते तट तक पहुँच गेलूँ । [*33] हियाँ परी हम घास पर पसर गेलूँ आउ लगभग दस मिनट जिराके उठ गेलूँ आउ यथाशक्ति समुद्रीतट के किनारे-किनारे S —— तरफ दौड़ पड़लूँ । आउ हलाँकि बहुत थक्कल हलूँ, लेकिन तोहन्हीं के आद करके हम दौड़ते रहलूँ आउ जगह पर पहुँच गेलूँ । लग रहल हल कि भगमान तोहन्हीं के दृढ़ता आउ हमर धैर्य के परिक्षा लेब करऽ हला, काहेकि न तो समुद्रतट के किनारे आउ न खास S----- में तोहन्हीं के बचावे लगी कोय नाव मिलल । लगभग निराश होल, हम सोचलूँ कि कोय आउ बेहतर जगह खोजे के नञ् होत सिवाय हुआँ के कमांडर के हियाँ । हम ऊ घर दौड़ल गेलूँ जाहाँ ऊ रहऽ हलइ । छो से उपरे बज चुकल हल । हम बाहरी कमरा में लोकल कमांड के सर्जेंट के देखलिअइ । ओकरा संक्षेप में बताके कि काहे लगी हम अइलिए हल, आउ तोहन्हीं के परिस्थिति बताके ओकरा महाशय ... के जगावे लगी निवेदन कइलिअइ, जे अभी तक सुत्तल हलइ । सर्जेंट महोदय हमरा कहलका - "हमर दोस्त, हमरा हिम्मत नञ् पड़ऽ हको ।" - "की ? तोरा हिम्मत नञ् होवऽ हको? जब बीस लोग डूब रहले ह, तभियो तूँ हिम्मत नञ् [*34] कर सकऽ हो ओकरा जगावे के, जे ओकन्हीं के बचा सकऽ हइ? लेकिन तूँ बेकार अदमी, झूठ बोलऽ हँ, हम खुद जाम ... ।" सर्जेंट महाशय, बिन विशेष नम्रता के, हमर कन्हा पकड़के दरवाजा के बाहर कर देलका । चिढ़के हम लगभग आपा खो देलिअइ । लेकिन अपन बेइज्जती आउ प्रधान के अपन अधीनस्थ के प्रति निर्दयता से जादे तोहन्हीं के खतरा आद करके, हम गार्ड हाउस दने दौड़ पड़लिअइ, जे ई अभिशप्त घर से, जहाँ से हमरा ढकेलके बाहर कर देलके हल, लगभग दू विर्स्ता के दूरी पर हलइ । हम जानऽ हलिअइ कि हुआँ पर रहे वलन सैनिक लोग के पास नाव हलइ, जेकरा में खाड़ी में यात्रा करके रोड़ी (cobblestones) के संग्रह करके रोड बनावे खातिर बेचऽ हलइ, आउ अपन ई आशा में हमरा कोय गलतफहमी नञ् हलइ । हमरा ई दूगो छोटगर नाव मिल गेल आउ अभी हमर खुशी के कउन ठेकाना; तोहन्हीं सब बच गेते गेलऽ । अगर तोहन्हीं डूब जइतऽ हल, त हमहूँ पानी में खुद के छलाँग लगा देतूँ हल । एतना कहके पावेल रो पड़लइ । ओकर आँख अश्रु से भर गेलइ । एतने में हम सब तट पर पहुँच गेते गेलिअइ । नाव से उतरके हम अपन टेहुना पर गिर पड़लिअइ, अपन हाथ आकाश दने उपरे उठइलिअइ । [*35] "हे सर्वशक्तिमान पिता !", हम चिल्लइलिअइ, "ई तोर इच्छा हको कि हम जीयऽ ही, तूँ हमन्हीं के परीक्षा लेलऽ, तोर इच्छा के अनुसार होतो ।" त ई हको, हमर दोस्त, अप्रभावी वर्णन (feeble description) ऊ भावना के, जे हम अनुभव कइलियो । अन्तिम घड़ी के भय जे हमर आत्मा में प्रवेश कर गेलो हल, हम ऊ क्षण देखलियो हल जब हमर अस्तित्व समाप्त होवे वला हलो । लेकिन हम की होबो ? हमरा मालुम नञ् । भयंकर झनिश्चितता । अभी अनुभव करऽ हियो; ऊ घड़ी अइतो; हमर मौत; गति (चेष्टा), जीवन, अनुभव, विचार, सब कुछ पल भर में गायब हो जा हइ । खुद कल्पना करहो, हमर दोस्त, कब्र के छोर पर, की तूँ नञ् अनुभव करभो एगो विनाशक सिहरन अपन नस से प्रवाहित होते आउ समय से पहिलहीं जीवन के कटते? ओह हमर दोस्त! लेकिन हम अपन कहानी से भटक गेलियो । अपन प्रार्थना समाप्त कइला पर हमर हृदय में क्रोध प्रवेश कर गेलो । की ई संभव हइ, हम खुद से बात कइलिअइ, कि हमन्हीं के समय में, यूरोप में, राजधानी के बगल में, महान सम्राट् के नजर के सामने अइसन अमानवीय घटना घटे! हमरा आद पड़लइ [*36] बंगाल सुबाब के कारागार में बंद अंग्रेज लोग के ।[6]
[*37] हम अपन आत्मा के गहराई तक उच्छ्वास लेलिअइ । ई दौरान हमन्हीं S--- तक पहुँच गेलिअइ। हम सोचलिअइ कि कमांडर जगला पर अपन सर्जेंट के दंड देतइ, आउ पानी में कष्ट भोगल लोग के अराम करे के अवसर देतइ । एहे आशा के साथ हम सीधे ओकर घर दने रवाना होलिअइ । लेकिन हम ओकर अधीनस्थ के व्यवहार से एतना चिढ़ल हलिअइ कि हम अपन शब्द पर मर्यादित नञ् रख पइलिअइ । ओकरा देखके हम कहलिअइ, "महाशय ! की अपने के सूचना देल गेले ह कि कुछ घंटा पहिले बीस लोग पानी में डूबके मर जाय के खतरा में हलइ [*38] आउ अपने से मदत के माँग कइल गेले हल?" तमाकू पीते ऊ हमरा अत्यंत रूखाई से उत्तर देलकइ - "कुछ समय पहिले हमरा एकरा बारे सूचना देल गेले ह, लेकिन तखने हम सुत्तल हलिअइ ।" ई बात पर हम मानवता के क्रोध में काँपे लगलिअइ । "अगर तूँ अइसन कुंभकर्ण नियन सुत्तऽ हीं त तोरा कपार पर हथौड़ा से खुद के जगावे के आज्ञा देवे के चाही हल, जब लोग डूब रहले ह आउ तोरा से मदत माँगब करऽ हइ ।" अन्दाज लगाहो तो, हमर दोस्त, ओकर की जवाब हलइ । हम सोचलिअइ कि हम जे कुछ सुनलिअइ ओकरा से हमरा आघात लगतइ । ऊ हमरा कहलकइ - "ऊ हमर ड्यूटी नञ् हइ ।" हम धीरज खो देलिअइ । "नीच कहीं के, की तोर ड्यूटी हउ लोग के जान मारे के, आउ तूँ विशिष्टता के तमगा लगावऽ हीं, तूँ दोसरा के कमांड करऽ हीं ! ..." हम अपन बात पूरा नञ् कर पइलिअइ, लगभग ओकर मुँह पर थूक देलिअइ आउ हुआँ से निकस गेलिअइ । गोस्सा के मारे हम अपन बाल नोचब करऽ हलिअइ । हम सो तरह के प्लान बनाब करऽ हलिअइ कि कइसे ई दरिंदा कमांडर से बदला लिअइ, खुद लगी नञ् बल्कि मानवता के खातिर । लेकिन जब होश में अइलिअइ त कइएक उदाहरण के आद करके हमरा विश्वास हो गेलइ [*39]  कि हमर बदला निष्फल होतइ, कि हमरा या तो पागल नञ् तो दुर्जन समझ लेल जइतइ; (ओहे से) शान्त हो गेलिअइ ।
ई दौरान हमर लोग पुरोहित के पास गेते गेलइजे हमन्हीं के बड़ी खुशी से स्वागत कइलथिन, गरमइलथिन, भोजन करइलथिन, अराम करवइलथिन । हमन्हीं उनका हीं पूरे दिन बितइलिअइ, उनकर अतिथि सत्कार आउ खान-पान के लाभ उठइते । दोसर दिन एगो बड़गो नाव मिललइ, जेकरा से हमन्हीं कुशलपूर्वक ओरानियेनबाउम (Oranienbaum) पहुँचते गेलिअइ । पितिरबुर्ग में हम ई कहानी एक पर एक अदमी के सुनइलिअइ । सब कोय हमर खतरा पर सहानुभूति जतइलकइ, सब कोय कमामडर के निर्दयता के निंदा कइलकइ, कोय नञ् चहलकइ ओकरा ई सब के बारे आद देलावे लगी । अगर हमन्हीं डूबके मर जइतिए हल, त ऊ हमन्हीं के हत्यारा होते हल । "लेकिन ओकर ड्यूटी में ई नञ् उल्लेख हइ कि ऊ तोहर प्राण के रक्षा करे", कोय तो कहलकइ । अब हम हमेशे लगी ई शहर के अलविदा कह रहलिए ह । बाघ सब के ई माँद में हम अब कभियो नञ् । ओकन्हीं लगी एक्के आनन्द हइ - एक दोसरा के निगल जाना; [*40]  ओकन्हीं लगी आनन्द हइ, दुर्बल के अंतिम साँस तक यातना देना, आउ शासन के तलवा चाटना । आउ तूँ चाहऽ हलहो कि हम ई शहर में बस जइअइ। "नञ् हमर दोस्त", हमर कहानीकार अपन कुरसी पर से उछलते बोलला, "हम हुआँ जइबो, जाहाँ लोग नञ् जा हइ, जाहाँ लोग के मालुम नञ् कि अदमी की होवऽ हइ, जाहाँ ओकर नाम अज्ञात हइ । अलविदा !" एतना कहके ऊ किबित्का में बैठ गेलइ आउ तेजी से चल गेलइ ।




[1] हमर मित्र च... - शायद प्योत्र इवानोविच चेलिषेव (1745-1811), लाइप्त्सिग (Leipzig) में रादिषेव के सहपाठी ।
[2] 1 विर्स्ता = 1.067 कि.मी. ।
[3] पाफ़ोस आउ आमाथुस (Paphos and Amathus) - साइप्रस के दक्षिणी-पश्चिमी समुद्रतट पर सौन्दर्य आउ प्रेम के देवी (ग्रीक मिथकशास्त्र में) एफ़्रोडाइट, अथवा (रोमन मिथकशास्त्र में) वीनस के पूजा के केन्द्र ।
[4] क्लाउड जोसेफ वेर्नेत (1714-1789), फ्रेंच समुद्री पेंटर, जेकर सबसे प्रसिद्ध पेंटिंग हइ "तूफान" । किंवदन्ती के अनुसार, एगो समुद्री तूफान के बखत ऊ खुद के जहाज के मस्तूल से बान्ह लेलके हल ताकि तूफान के बेहतर झलक मिल सके ।
[5] द्वीपसमूह में तुर्की युद्ध (Turkish War in the Archipelago) - रूस-तुर्की युद्ध (1768-1774); विशेष रूप से दू रूसी नौसेना के विजय, एक चियोस जलडमरूमध्य (Chios Strait) में 24 जून 1770 के, आउ दोसर चेस्मे खाड़ी (Chesme Bay) में 26 जून 1770 के ।
[6] अंग्रेज लोग कलकत्ता में एगो बंगाली अधिकारी के अपन शरण में ले लेलके हल, जे रिश्वत के कारण दंड से बच्चे लगी ओकन्हीं हीं भाग के अइले हल । न्यायपूर्वक क्रोधित सुबाब, सेना लेके शहर पर आक्रमण कर देलकइ, आउ ओकरा पर कब्जा कर लेलकइ । ऊ अंग्रेज दुर्गसेना के एगो तंग कारागार में डाल देलकइ, जेकरा में ओकन्हीं आधा दिन में दम घुट जाय से मर गेलइ । ओकन्हीं में से खाली तेईस लोग बचलइ । ई अभगलन गार्ड के बड़गो रकम देवे के प्रस्ताव रखलकइ ताकि ओकन्हीं के परिस्थिति के शासक के सामने प्रस्तुत कइल जाय । ओकन्हीं के क्रन्दन आउ विलाप लोग के विश्वसनीय लगलइ, ओकन्हीं लगी लोग सहानुभूति दर्शइते गेलइ; लेकिन कोय भी एकरा बारे शासक के सामने घोषित करे लगी नञ् चहलकइ । मर रहल अंग्रेज लोग के बतावल गेलइ कि ऊ सो रहले ह; आउ बंगाल में एक्को अदमी ई नञ् सोचलकइ कि डेढ़ सो अभागल के जिनगी बचावे लगी अत्याचारी शासक के पल भर खातिर नीन में बाधा डाले के चाही ।
लेकिन अत्याचारी के की मतलब होवऽ हइ ? चाहे बेहतर कहल जाय, ऊ कउन लोग हइ जे अत्याचार के जूआ (yoke) के आदी होवऽ हइ ? की ई आदर हइ, या भय, जे ओकरा झुक्के लगी बाध्य कर दे हइ ? अगर [*37] ई भय हइ, त अत्याचारी अधिक भयंकर हइ देवता लोग से भी, जेकरा सामने अदमी प्रार्थना चाहे शिकायत करऽ हइ, रात के समय चाहे दिन में हर बखत । आउ अगर ई आदर हइ, त मानव के प्रेरित कइल जा सकऽ हइ ओकर विपत्ति के लेखक के आदर देवे लगी; एगो चमत्कार, जे खाली अंधविश्वास कर सकऽ हइ । कउची हइ जे हमन्हीं के सबसे जादे आश्चर्यचकित करऽ हइ, सुत्तल नबाब के भयंकरता कि अदमी के नीचता, जे ओकरा जगा नञ् सकऽ हइ ? - रेनल, इंडिज़ के इतिहास, खंड-II (लेखक के टिप्पणी) । [cf. Guillaume-Thomas Raynal (1783): "Histoire Philosophique et Politique des Établissements et du Commerce des Européens dans les Deux Indes", Tome second, Books III and IV; xii+376+iv pp.; quoted text from Book III, ch.xxxv, pp.140-141. Raynal: "A Philosophical and Political History of the Settlements and Trade of the Europeans in the East and West Indies", in 10 Volumes; Translated from the French by J.O. Justamond, in 8 Volumes, 1783, Vol.II, pp.168-169. - Tr.]

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