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Sunday, August 23, 2009

24. मगही के महाकवि डा. योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश का निधन

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_5702963_1.html

मगही कवि डा. योगेश्वर प्रसाद सिंह का निधन
13 Aug 2009, 12:43 am

पटना: मगही कवि डा. योगेश्वर प्रसाद सिंह 'योगेश' का निधन बुधवार की दोपहर तीन बजे पैतृक गांव नीरपुर में हो गया। वे अस्सी साल के थे। उनका अंतिम संस्कार गुरुवार को पैतृक गांव में किया जायेगा। उन्होंने मगही का प्रथम काव्य 'गौतम' समेत दो दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना की। डा. योगेश को बिहार सरकार से लोकगाथा सम्मान समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।


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महाकवि की मौत और पटना की मीडिया

Tuesday, 18 August 2009 16:01 B4M Reporter भड़ास4मीडिया - दुख-दर्द

पटना की मीडिया साहित्य का कितना मर्म समझती है, इसका पता इसी से लगता है कि 12 अगस्त को मगही के महाकवि डा. योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश का पटना के गांव नीरपुर में निधन हो गया. वहां के सबसे बड़े अखबार हिंदुस्तान ने दो लाइन की भी खबर नहीं छापी. जागरण, सहारा, प्रभात खबर ने जरूर संक्षेप में इसे जगह दी. क्या मीडिया के लोगों की संवेदना मर चुकी है? भागी हुई लड़की बरामद... जैसी खबरें स्थानीय पृष्ठों पर लीड लगी रहती हैं और वरिष्ठ साहित्यकार का निधन जगह पाने लायक खबर नहीं है?

मगही मगध क्षेत्र की भाषा है और इसका प्राचीन इतिहास भी है. खुद कवि योगेश ऐसी शख्सियत नहीं थे कि वे लोगों को जानने के लिए अखबारों के मोहताज रहें. कभी उन्होंने छपने के लिए लाबिंग नहीं की. उन्होंने मगही के प्रथम महाकाव्य 'गौतम' की 1966 में रचना की थी. उन्होंने करीब दो दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना की. डा. योगेश को बिहार सरकार से लोकगाथा सम्मान समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है.

मगही के शिखर पुरुष माने जाने वाले कवि योगेश की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगता है कि उनके छोटे से गांव में निधन की खबर फैलते ही आसपास के दो-तीन हजार लोग जुट गए. श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों का तांता 18 घंटे तक लगा रहा. इसमें बुद्धिजीवी कम, आसपास के इलाके के ग्रामीण ज्यादा थे और हर वर्ग, हर जाति के थे. लोगों के अनुरोध के कारण शव यात्रा 10 किलोमीटर तक आसपास के गांवों में घुमानी पड़ी और एक हजार से अधिक लोगों की भीड़ अनवरत साथ चलती रही. लेकिन यह सब अखबारों और उसके पत्रकारों को नहीं दिखा. यह भीड़ सिर्फ साहित्यकार या कवि होने के कारण नहीं थी. यह उनकी जनप्रियता के कारण थी. योगेश जी तो गुजर गए पर सवाल यह रहता है कि मीडिया की कसौटी क्या है? कुत्ते-बिल्ली के चोरी होने और मंत्री के छींक आने की खबर लीड क्यों बनती है और साहित्यकार की मौत खबर क्यों नहीं बनती? तो क्या मीडिया जनता से कट रही है और अपने ही बनाए मानकों से मुकरते हुए मुग्ध हो रही है?

-पटना से एक पाठक का पत्र

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