लघुकथाकार - अरुण कुमार सिन्हा
हाकिम अप्पन चपरासी से बोललन - 'भीखू, अभी बहिरसिये जाके बइठऽ ।'
भीखू पूछलक - 'की बात हे, हुजूर ?'
हाकिम बतइलका - 'राम बाबू अभिये आवे वला हथ । हुनखे से हमरा 'कनफिडेंशियल' बात करे के हे ।'
भीखू जब बहिरसी इकसल त कलुआ चपरासी टोक देलक - 'आझ जलदिये बहिरा गेलें, भीखू ! हाकिम नञ हथुन की ?'
भीखू बतइलक - 'बात ई नञ हे, कल्लू भाय ! हाकिम तो आल हथ । राम बाबू नेताजी आवे वला हथ । हाकिम के हुनखे से 'कनफुसियल' बात करे के हे ।'
भीखू के अंगरेजी बोले न अइलइ बाकि ओकर मगही अनुवाद करे से कलुआ चपरासी के ओतना बात समझ में आ गेल जेतना हाकिम समझावल चाहऽ हलथिन ।
[मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी", बरिस-३, अंक-३, मार्च १९९७, पृ॰१८ से साभार]
2 comments:
aapka kam sarahniye hai aur mera aapko pranam is kam ke liye
धन्यवाद । अपने तो अप्पन इ-मेल पता देवे नयँ कइलथिन कि आगे कोय बात कइल जाय ।
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