विजेट आपके ब्लॉग पर

Tuesday, June 28, 2011

29. मगही शब्दचित्र "माटी के मरम" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

माकेम॰ = "माटी के मरम", लेखक - रामदास आर्य; प्रकाशकः श्यामसुन्दरी साहित्य-कला धाम, बेनीबिगहा, बिक्रम (पटना); पहिला संस्करण - 1984; मूल्य - 11 रुपये; 64 पृष्ठ ।

देल सन्दर्भ में पहिला संख्या पृष्ठ और बिन्दु के बाद वला संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।

कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या - 905

ई शब्दचित्र संग्रह में कुल 9 लेख हइ ।

क्रम सं॰
विषय-सूची 
पृष्ठ
0
अप्पन बात
05-08



1
महतो जी
11-17
2
सनीचर
18-22
3
तड़ुका दाई
23-30



4
घसेटन
31-34
5
हदरी चाची
35-42
6
मुनारिक के माय
43-50



7
कलट्टर काका
51-55
8
धक बाबा
56-60
9
जागा
61-64

ठेठ मगही शब्द ( से तक):

460    पइँचा (कहत - माय बड़ा दुख कयले हे । ऊ दिन हमरा इयाद हे - पानी पड़इत हल । चूल्हा जोर के बड़की भउजी हीं पइँचा आटा ला गेले हल । बाकी त उधर से आटा के जगह पर भर कटोरा लोर लेले अयले हल ।)    (माकेम॰41.27)
461    पइँचा-खोइँचा (एकरा घमण्ड हे - ई सब के दूध पिलवलक, सबके सोंठ-बतीसा घाँटलक । बाकी मुँह खोलके केकरो से माँगलक न । फिर काहे कोई हिनावत, काहे माथ मारत । गरीब हे त ई से का ? केकरो पइँचा-खोइँचा थोड़े पचा गेल हे ।)    (माकेम॰49.26)
462    पइन (~ उड़ाही) (आझ पइन उड़ाही हे, त कल्ह अखण्ड किरतन । रजिस्ट्री में गवाही देतन ई, ब्लौक में पैरवी करतन ई । पइन उड़ाही में अगुआन होयतन ई, अखण्ड किरतन के सारा सरजाम जुटवतन ई - इनका छुट्टी कहाँ ?)    (माकेम॰51.11, 12)
463    पइसा (~ पीटना) (जेकरा ऊ दूध पिलवलक से मुनारिके लेखा पट्ठा कमासुत निकलल । ... चमरू के तीनों बेटा तीन लाख के । तट-उपट कमाये में । तीनो कोइलवरी में पइसा पीट के धर देलक । ... नूरी के पाँच बेटा - पाँचो पाँच पाण्डव, दलान के पाँच खम्भा । बिड़िये के बिजनेस से छत पीट देल ।)    (माकेम॰43.22)
464    पउता-पेहानी (~ ढोना) (पइसा कमाये में एकरो घर गिना हे गाँव में, एने एकर तरक्की देखके लोग जरे लगलन हे । जरे के एगो आउ कारन हे । अब ई अप्पन पहिलका धन्धा छोड़ देल । गोंहड़-गोंइठा अब न करे, केकरो पउता-पेहानी अब न ढोवे । जे घर-घर के दाई हल से पुरधाइन बन गेल ।; हँ हे हदरी, अब तू ओहे हऽ । बेटा-पोता अफसर बन गेलवऽ, अब तू हमनी के पउता-पेहानी ढोयेबऽ । अब तो घरो-आँगन आयल छोड़ देलऽ ।)    (माकेम॰40.13, 16)
465    पझाना (बिआह में कण्ठ के कोने जरूरत थोड़े होवऽ हे । ओ घड़ी तो एक से एक सुरैया के तान भी पझा जाहे जइसे बरसात में ढोलक मेहरा जाहे ।)    (माकेम॰23.24)
466    पटनहिया (~ गाय) (मन में आ गेल, फस्ट क्लास के पटनहिया गाय खरीदा गेल । दुहाए लगल गाय, छनाए लगल भाँग ।)    (माकेम॰56.18)
467    पटरी (~ रहना) (सबके ला ई लड़ाकिन हे आ धनेसर सीन ला ? अइसन अदमी के ओइसने से पटरियो रहऽ हे ।; छोटका बेटा एकरा मानऽ हे जादे । छोटकी पुतोह से पटरी न रहे ।; कभी-कभी ऊ हमरो पढ़ावऽ हल - गर-गृहस्थी के बात बतिआवऽ हल । हम्मर अउरत से जादे पटरी रहऽ हल ।)    (माकेम॰41.8, 13; 50.6)
468    पढ़उनी (दूगो बेटा - दूनो कमासुत । एगो खेती-गृहस्थी में आ एगो पढ़उनी में । सात सौ अलावे टिसनी अलग । मास्टर गजटेड आफिसर, पइसा पीट रहल हे ।)    (माकेम॰40.3)
469    पढ़वनी (= पढ़उनी) (माय होवे त अइसन आ बेटा होवे त अइसन । एकरा पढ़ावे ला ऊ कउन जतन न कयलक ? जउन घड़ी ओकर मरदाना के पैंतालीस रुपया मिलवऽ हल ओकरे में खयबो-पीबो करऽ हल आ बेटा के पढ़वनियो । पेट काट के, मन जाँत के कालेज ले ठेका देल । टरेनी करवा देल ।)    (माकेम॰42.10)
470    पढ़वैया (आझ कोनो साइंस पढ़वैया हिसाब के जनकार से कोनो हिसाब पूछल जाव - पन्ना के पन्ना रंग देतन, पोथी के पोथी लिख डालतन तइयो सही उत्तर निकले में सके होयत बाकी एकर फुटेहरी ला कोई किताब-कौपी के जरूरत न, कोई कागच-पिन्सिट के आवश्यकता न ।)    (माकेम॰37.23)
471    पताखा (= पताका, ध्वजा) (सरस्वती के किरपा भेल - इनकर जस के पताखा अकास-पताल खिल गेल । बाकी लछमी का जाने काहे इनका से बिदुकल रह गेल । इनकर अरजल सम्पत्ति से एगो बछेड़ियो साल भर बइठ के मजा से पेट न भर सकऽ हे ।)    (माकेम॰13.20)
472    पत्थल (ओकरा साथे काम करे ओला के चाही पत्थल के करेजा, इस्पात के सरीर, पोरे-पोरे तेल पिआवल लाठी लेखा निसंठ मिजाज ।; ओकर कमासुत काया देखके सबके मन करऽ हे - हमरे हीं टोपड़ा पर रह जाइत, रुपया पर बँध जाइत । बाकी ओहो अइसन चमोकन हे कि जेकरा हीं सटऽ हे, छोड़े के नाम न लेवे । पत्थल लेखा जहाँ गिरल त गिरले रह जायत ।)     (माकेम॰45.13; 47.18)
473    पथरियाना (अतना पूछना हल कि उनकर बिहँसइत चेहरा मुरझा गेल । ओठ के दूनो पट बन्द हो गेल । आँख पथरिया गेल आ ढर-ढर गिरे लगल लोर ।)    (माकेम॰27.6)
474    पथलौटी (कोई जरूरी हे कि जेकरा खरीदे ला हे ओही मेला जाय ? बल्कि ऊ तो आझ ले लहठी-चूड़ी आउ टिकुली-सेन्नुर छोड़के कुछो न खरीदलक । हँ, पथलौटी जरूर खरीदत । चटनी के ऊ सौखीन जादे हे, आ पथलौटी में चटनी खराब न होवे ।)    (माकेम॰46.25, 26)
475    पनपियार (जइसने ओकर माय से रोपनी करावे ला मार होवऽ हे, ओइसने ओकरा से हर जोतावे ला । मालिक से जादे फिकिर ओकरे । किरिंग फूटइते डेयोढ़ी पर पहुँच जायत । साग-सतुआ जे आगू में पनपियार आयल, भर हीक खाके ढेकरइत कान्ह पर हर उठाके चल देत ।)    (माकेम॰47.21)
476    पनरह (= पन्द्रह) (नजरावल होवथ इया कयल, देल होवथ इया जोतल, सब के ला ऊ अच्छते देतन । दस दिन, पनरह दिन, सवा महीना, अढ़ाई महीना अच्छत खाये ला कहतन । ... नियम से खयला पर, बायमत का बायमत के बाप भी बाप-बाप करके भाग जायत ।; कोई जोतत आठ कट्ठा, कोई पनरह कट्ठा, ई बिना सवा बिगहा पर हाथ फेरले आरी पर न बइठत ।)    (माकेम॰32.28; 47.31)
477    परकिरती (= प्रकृति) (ओकरा विस्वास हल कि हमरा कोई धोखा न दे सके हे । अगर कोई धोखा दे सके हे त अपने आप के । परकिरती नेयाय करऽ हे । बाकी रहऽ हल बेचारी हरमेसा रोगिआयल । रतउँधी के बेमारी ओकरा हरमेसा रहऽ हल ।)    (माकेम॰64.2)
478    परचार (= प्रचार) (जानइथलन कि आझ के लोग ईमान पर न, पइसा पर बिकतन, कला पर न, परचार पर मरतन ।; ई तरह से ऊ अप्पन जूता के परचार करऽ हलन, जूता के बिक्री करऽ हलन ।)    (माकेम॰19.4, 30)
479    परतुक (आझो कोनो बात में परतुक दिआ हे - 'अरे, का सनीचर के जूता लेखा टाँगले चलइथ ।')    (माकेम॰22.12)
480    परना (= पड़ना) (चिताने ~) (देखली कि जागा डग्घर पर चिताने परल हथ । उनकर मुँह से गाद निकल रहल हे ।)    (माकेम॰64.13)
481    परनाम (= प्रणाम) (परनाम करके घर अइली । हमरा न रहायल, घर के लोग के बोला के पुछली - ऊ कइसे जान गेलन हमार घर के बारे में, रोग के बारे में आ बाल-बच्चा के बिसे में ।; हम्मर कोटिक परनाम हे उनकर चरन में ।)    (माकेम॰33.26; 34.20)
482    परभारी (= प्रभारी) (आलूदम के सौखीन ऊ जादे, पूड़ी-कचौड़ी में रूच उनकर अधिका, इ लेल चूल्हा के इन्चार्ज ई, भण्डार के परभारी ई । जब तक बरियात के बिदागी न हो जायत, तब तक उनका चैन न ।)    (माकेम॰12.25)
483    परमिट (कभी कोई पूछ देत - काहो कलट्टर काका, इनो साल बिजुलिया न लगतई का ? ऊ जबाब देतन - घबड़ाये से काम होवऽ हे । खम्मा गिरिए गेल हे, लाइन के परमिट बाकी हे, सेकरा ला लिखा-पढ़ी चल रहल हे ।)    (माकेम॰53.30)
484    परवरिस (= परवरिश) (एक महीना से बेचारा खाट पर पड़ले रहल बाकी धीरे-धीरे ठीक होवे लगल । ओकर समूचे परिवार के परवरिस पंडित जी चलौलन ।)    (माकेम॰64.21)
485    परसन्न (= प्रसन्न) (उनकर सोभाव से गाँव भर खुस, उनकर बेवहार से सब कोई परसन्न ।)    (माकेम॰23.11)
486    परसव (= प्रसव) (केकरो परसव भेल हे, सोंठ-बतीसा घाँटे ला पकड़ लेवल जायत । सोभावो ओकर ओइसने हे । एकरा से 'न' कहल बनवे न करे ।)    (माकेम॰49.21)
487    परसादी (केकरो हीं बरत हे, परसादी माँग के जरूर खयतन ।)    (माकेम॰27.31-32)
488    परसो (आझ दमा उपटल आ कल्ह तेवरनी के झोपड़ी में । कल्ह बोखार लगल आ परसो परसीद सीन के चापाकल पर पहुँच जायत ।)    (माकेम॰41.12)
489    परसौती (= प्रसूता; जच्चा; बच्चा जननेवाली स्त्री) (एकर हाथ में एगो बड़का जस हे । कोनो परसौती के पीड़ा हो रहलहे, एकरा छुअइते छूमंतर । एही कारन हे कि गाँव के परसौतीन दू महीना अगाते से एकरा पोल्हवले रहत ।)    (माकेम॰38.16, 17)
490    परापित (= परापत, प्राप्त) (तनी चट्टन हे भी ऊ । तीना ला ऊ घरे-घरे घूम आयत । सबके घरे के सोवाद के सौभाग एकर जीभ के परापित हे । केकरो बिबाह-सादी इया मरनी-हरनी में सबके धेयान मड़वा पर, केकरो सेजियादान पर, बाकी एकर धेयान कड़ाही पर, कड़ाही में डालल तेल-मसाला पर ।)    (माकेम॰38.25)
491    परालब्द (= परलबद, प्रारब्ध, भाग्य) (आठगो फल लिखऽ हव, दूगो खतम हो गेलवऽ, चारगो हव, दूगो आउ होतवऽ बाकी ओकर कमाई खाय के परालब्द न लिखइत हव ।)    (माकेम॰33.19)
492    परिछन (वर या वधू को बुरी नजर से बचाने का रस्म, टोटका, न्यासावर्त्त, आरती तथा निहुछने का काम; वर-वधू का आवभगत; आगे बढ़कर अभ्यर्थना) (केकरो देवपूजी हो रहल हे - आगे-आगे ओहे चलतन । हरदी-कलसा हो रहल हे - सबसे आगे ऊ बइठतन । लावा छिंटावे चलल, बर के परिछन होये चलल, ओ घड़ी तड़ुका दाई पर सबके नजर टिकल रहत ।; उनके परिछन के फल हे कि हम्मर परिवार के डउँघी-छउँकी अतना फुदक गेल हे कि लगऽ हे छाँटे परत ।)    (माकेम॰25.6; 26.16)
493    परिछना (सबसे पहिले पैरपूजी उनकर होयत - कोई एक रुपया से पूजे या सौ रुपया से, सबके बराबरे आसिरवाद देतन - उनका ला सब कोई बराबर । उनकर हाथ में बंसरोपन के बीज सैंतल हल, माली के करमात छिपल हल । ऊ जेकरा चुमवलन ओकर घर नातिए पोते भर गेल । ऊ जेकरा परिछलन सेकरा आवइते घर बस गेल । ई लेल ऊ चुमवतन सबसे आगे, परिछतन सबसे पहिले ।)    (माकेम॰25.29, 30; 26.15)
494    परीत (एने पानी मोरायल तब तक ओने बलुआही जमीन सूख गेल । एने परीत रह गेल त ओने मुआर हो गेल । खेती आ बेटी तकतेहानिए से बनऽ हे । बेटी बिना बिअहले आ खेत बिना बिदहले बर्बाद हो ही जायत ।)    (माकेम॰51.19)
495    परुई (बड़का-बड़का मरदाना के ऊ कान काट लेवऽ हे । उछँहत-उछँहत जवान ओकरा सामने हार मान जा हथ जखनी ऊ टारऽ हे धान, ढोवऽ हे बोझा । जब ले सुखदेवन हाथ लगवतन तब ले ऊ एक परुई लगा देत । जब ले ऊ पहिअवतन तब ले ऊ सोझिआ देत ।)    (माकेम॰44.24)
496    पलथी (=  पालथी, पारथी) (~ मार के बइठना) (दस गो जुटल हथ आगे पीछे आ बाबा बइठल हथ पलथी मार के, चरचा हो रहल हे धक के ।)    (माकेम॰56.20)
497    पलानी (= झोपड़ी) (उनके प्रभाव हे कि गाँव में आझ ले चोरी-चमारी न भेल । आझ ले एगो खेरो न खरकल । खेत में कोई पलानी न गिरावत, खरिहान में कोई अगोरी न करत ।)    (माकेम॰52.30)
498    पलौट (= प्लॉट) (लोभी रहितन त कतना खेत अरज लेइतन अब ले । कतना लोग बीघा के बीघा, पलौट के पलौट इनकर नाम से रजिष्ट्री कर देइत । आझ ई बड़का जमीन्दार, लमहर खेतिहर बनल रहितन । बाकी नऽ - ई अप्पन अकबद न बिगाड़े गेलन, अप्पन ईमान न बेचलन ।)    (माकेम॰34.16)
499    पवगार (खाये-पीये में सवखीन महतो जी सालो भर गाय रखतन । टटका छोड़ के बासी पर नजरो उठा के न देखथ । उनकर औरतो ई बात के पूरा धेयान रखऽ हे । उनका ला एक-से-एक पवगार बनाके रखले रहत । जब खाये लगतन तब पंखा जरूर डोलावत - हँस-हँस के खूब बतिआवत ।)    (माकेम॰14.22)
500    पवनियाँ ( (केकरो कारज-परोज के दूसरका दिन तड़कहीं हुनका हीं पहुँच जायत । देखइते सवासिन बूझ जायत आ आदर से कहत - ए हदरी चाची, तनी एसा बइठ जा। हाथ नेटल हे, धोके देहीवऽ । देखऽ न रात के तरकारी कतना बच गेलवऽ हे । सोचली कि जाय दऽ - कुछ तोरा दे देम आ कुछ तेलिनियाँ दीदी के । आ बचतई से पवनियन के दे देवल जतई ।)    (माकेम॰39.3)
501    पवित्तर (हमरा कुछ न चाही, खाली चाही अपने लोग के आसिरबाद के अछत आ बरदान के गंगाजल । अछत पा के अघा जायब आ गंगाजल पा के पवित्तर हो जायब ।)    (माकेम॰8.21)
502    पसन (= पसन्द) (घर के आगू में दू-चार गो केला के पेड़ लगवले रहत । ललका गेना के फूल किनारे-किनारे । बस, जादे जंगल झाड़ी ओकरा पसन न आवे ।)    (माकेम॰46.5)
503    पहिआना (= समूह या विस्तार में कतार बनाना; पाह लगाना; पाह पकड़ना) (बड़का-बड़का मरदाना के ऊ कान काट लेवऽ हे । उछँहत-उछँहत जवान ओकरा सामने हार मान जा हथ जखनी ऊ टारऽ हे धान, ढोवऽ हे बोझा । जब ले सुखदेवन हाथ लगवतन तब ले ऊ एक परुई लगा देत । जब ले ऊ पहिअवतन तब ले ऊ सोझिआ देत ।)    (माकेम॰44.24)
504    पहिरना (= पहनना) (कोई पहुना ... पलथी मार के बग-बग धोती-कुरता पहिरले बइठल हे ।)    (माकेम॰14.2)
505    पहिलौंठ (उनके चुमावल कनेवा के पहिलौंठ लड़िका भेल । उनके परिछल हम्मर बेटा के भगवान एगो सुन्दर बेटा देलन ।; मुनारिक के बहिन चनपतिया बिआहे लाइक हो गेल हे । आँख-में-आँख एगो बेटी - ओहो तेतर । तेतर बेटी राज बिठावे, तेतर बेटा भीख मँगावे । ई से बड़का अरमान संजोगले हे ओकर माय । पहिल पहिलौंठ बेटी के बिआह !)    (माकेम॰30.7; 48.25)
506    पहुँची (सचमुच तड़ुका दाई के देखला पर कोई कहिए न सकऽ हे कि इनका मरदाना छोड़ देल हे । पावडर लगावथ चाहे न, काजर ऊ जरूर लगवतन, माथा गुहथ चाहे न, माँग जरूर टिकतन । गेरा में हँसुली आ हाथ में पहुँची चौबीसो घण्टा डालले रहतन ।)    (माकेम॰27.17)
507    पारचुन (~ के दुकान) (जहिया काम के भीड़ जादे आ जाहे ऊ दिन तो उनकर चिलिम सेरैवे न करे । गंजेरी के दुकान पारचुन के दुकान हो जाहे । एगो आवइथे त एगो जाइथे । इनकर दलान ओइसने - पारचुन के दुकान - हमेसा चार-पाँच गो गंजेरी के बइठकी लगल रहत ।)    (माकेम॰55.1, 2)
508    पारना (= पाड़ देना, लिटा देना; ईंट, बरतन आदि बनाना) (बीच अँगना में उनका उत्तरे-दक्खिने पार देवल गेल ।; पंचायत भवन के निरमान ला ईंटा पारे के विचार भेल ।; रात में थरिया न मलायल ओकरा ला चार बात, लोटा न चमचम चमकल ओकरा ला दस गण्डा गारी । सूप खूँटी में न टँगायल, बढ़नी पार के न रखायल, चूल्हा न लिपायल, कोठ के मान न मुनायल एकरा ला बिसहन हुरकुच्चा ।)    (माकेम॰15.25; 17.12; 35.18)
509    पाह (= रोपनी-कटनी आदि में अंश या खंड करके खेत में काम करने की प्रक्रिया) (~ लगाना) (ओही हाल भादो के रोपनी में । जखनी तेतरी आ मन्दोदरी फाँड़ा खोंसे लगत तखनी ले ऊ एक पाह लगा देत । जखनी ऊ अधिआवत तखनी ई आपन पाह पुराके निसचिन्त ।)    (माकेम॰45.6, 7)
510    पिअरी (~ धोती) (जहिया केकरो बराती आ जायत तहिया उनकर पिअरी धोती गाँव-गाँव के कोने-कोने में फहर जायत, उनकर माथ के पगड़ी आ झुलंक कुरता देख के सबके मन अगरा जायत ।)    (माकेम॰12.21)
511    पिन्सिट (= पेन्सिल) (आझ कोनो साइंस पढ़वैया हिसाब के जनकार से कोनो हिसाब पूछल जाव - पन्ना के पन्ना रंग देतन, पोथी के पोथी लिख डालतन तइयो सही उत्तर निकले में सके होयत बाकी एकर फुटेहरी ला कोई किताब-कौपी के जरूरत न, कोई कागच-पिन्सिट के आवश्यकता न ।)    (माकेम॰37.26)
512    पिरपिराना (केकरो बराती आयल हे, महतो जी आलूदम छेंउके चललन कि इधर महतवाइन के नाक पिरपिराये लगत ।)    (माकेम॰14.11)
513    पिलकी (= पिरकी) ('पचाक' से मुँह के भरल पिलकी फेंक के कहे लगतन - ई देखऽ आ ऊ देखऽ । एगो हम्मर बनावल आ एगो बाटा के ।)    (माकेम॰19.19)
514    पिलुआना (सच पूछऽ त उनकर लास के अब गिंजन हे, गिंजन । लोग सरापऽ हथ - ई पिलुआके मरतन । इनकर लास के गीध कउआ नोच-नोच के खायत ।)    (माकेम॰30.21)
515    पिल्लू-कानर (हदरी चाची जब तरकारी लेके चलत तब भर रहता ओठ सिकुड़ावइत आवत । रह-रह के तोपल पत्ता उघार-उघार के देखइत चलत । केउ टोक देत त बहाना बना देत - 'न बबुआ, देखइथीक कि कुछ पिल्लू-कानर तो न पड़ गेलइ हे, अउरा तो न गेलई हे आउ का रहतवे में खाइथीक ।')    (माकेम॰39.6)
516    पीटना (पइसा ~; छत ~) (जेकरा ऊ दूध पिलवलक से मुनारिके लेखा पट्ठा कमासुत निकलल । ... चमरू के तीनों बेटा तीन लाख के । तट-उपट कमाये में । तीनो कोइलवरी में पइसा पीट के धर देलक । ... नूरी के पाँच बेटा - पाँचो पाँच पाण्डव, दलान के पाँच खम्भा । बिड़िये के बिजनेस से छत पीट देल ।)    (माकेम॰43.22, 25)
517    पीढ़ा (उनका अवइते कोई पीढ़ा लाके देत, कोई बेना, कोई बोरा बइठे ला देत, कोई चटाई ।)    (माकेम॰23.14)
518    पुआ-पकवान (आ एक खोंइछा पुआ-पकवान, टिकरी कसार उझिल देव हल ओकर अँचरा में - जइसे बेटी बिदा करे के टाइम में माय देव हे ।)    (माकेम॰64.10)
519    पुक्का (= गला, बोली) (~ फार के रोना) (एतवार दिन, सुबह 6 बजे ई दुनियाँ से अप्पन नाता तोड़ के चल देलन । जे सुनलक से धउड़ मारलक, पुक्का फार के रो उठल ।)    (माकेम॰15.21)
520    पुजाना (= पूजा करवाना) (पैर ~) (बिआहो कर लेलऽ बेटा के, हमरे जूता पेन्ह के समधी बन के पैर पुजा अयलऽ । भउजी के कहला पर बनवली हल आ तनी बुनियो न खिलवलक ।)    (माकेम॰19.26)
521    पुतोह (घरे-बने एके रंग - पुतोह होवथ चाहे गोतिनी होवथ चाहे मलिकाइन । बिना टकरैले न रहत, उठिए सुत एक ढेला गोतिनी पर फेंकत जरूर ।)    (माकेम॰35.10)
522    पुन (= पुण्य) (उनकर रंथी ढोवे में लोग पुन समझथ । उनकर कफन फारके जंतर बनावे ला रख लेवल गेल ।)    (माकेम॰29.26)
523    पुरधाइन (= प्रधान की पत्नी) (पइसा कमाये में एकरो घर गिना हे गाँव में, एने एकर तरक्की देखके लोग जरे लगलन हे । जरे के एगो आउ कारन हे । अब ई अप्पन पहिलका धन्धा छोड़ देल । गोंहड़-गोंइठा अब न करे, केकरो पउता-पेहानी अब न ढोवे । जे घर-घर के दाई हल से पुरधाइन बन गेल ।)    (माकेम॰40.13)
524    पुरनका (इनकर बाबूजी गाँव के मुखिया हलन । आज के मुखिया न, पुरनका जमाना के बिना चुनल मुखिया ।)    (माकेम॰52.12)
525    पुरौंधा (= पुरोधा) (इनकर बाबूजी गाँव के मुखिया हलन । आज के मुखिया न, पुरनका जमाना के बिना चुनल मुखिया । सर्वसम्मति से गाँव के पुरौंधा मानल जा हलन ।)    (माकेम॰52.13)
526    पूठ (= पुष्ट) (एकर पैरुख बड़ा लछनमान हे जइसन ओकर माय के दूध । माये लेखा बिसाल सरीर, पूठ भुजा, चौड़ा छाती, कसल बदन आ भरल पुट्ठा देखके लोग दाँते अँगुरी काटऽ हथ - का खिलावऽ हे एकर माय !)    (माकेम॰48.9)
527    पूड़ी-कचौड़ी (आलूदम के सौखीन ऊ जादे, पूड़ी-कचौड़ी में रूच उनकर अधिका, इ लेल चूल्हा के इन्चार्ज ई, भण्डार के परभारी ई । जब तक बरियात के बिदागी न हो जायत, तब तक उनका चैन न ।)    (माकेम॰12.24)
528    पूनमासी (= पूरनमासी; पूर्णिमा) (इँजोरा तो पूनमासी के चाने करत बाकी तइयो दूज के चाँद के महत्त्व हे, एकर अप्पन गरिमा हे ।)    (माकेम॰23.26)
529    पूरबीला (= पूर्व जन्म का) (का जनी ऊ कउन टिनोपाल लगावऽ हथ, कउन साबुन घँसऽ हथ । गोड़ के नोंह जरूर रँगतन, आसिन में मेंहदी जरूर लगवतन । लोग कहऽ हथ ई पूरबीला के इनकर चूक हे न त के कहत कि इनका मरदाना तेयागले हे ।)    (माकेम॰27.24)
530    पूरुब (= पूरब) (उनकर दलानो बड़ा रोखगर, हवादार - पहिल किरिन से नेहाय ओला, चान से गमगाये ओला - गाँव के सबसे पूरुब हे ।)    (माकेम॰13.3)
531    पेटबथी (= पेट-दर्द) (जादू हे इनकर हाथ में । काली जी के एकबाल हे इनकर भभूग {? भभूत} में । केकरो पेटबथी होवे इया उल्टी, मथपीरी होवे इया चक्कर - एकबार महतो जी के दलान पर पहुँच जा - छूमंतर !)    (माकेम॰11.9)
532    पेन्हना (= पहनना) (कुरता-धोती पेन्ह-पेन्ह के लोग जुट गेलन । एक चउकड़ी उहँऊ किरतन भेल ।; ई तरह से ऊ अप्पन जूता के परचार करऽ हलन, जूता के बिक्री करऽ हलन । जे पेन्हलक से दाम सधा के छोड़लक ।)    (माकेम॰16.4; 19.31)
533    पेन्हाना (= पहनाना) (आझ ऊ घरे-घरे माँग के खाइत चलऽ हथ । बाबा जी के नाम पर सब कोई कुछ न कुछ दे देवे, खिला देवे, पेन्हा देवे ।)    (माकेम॰58.2)
534    पेन्हावा (कतना फुरती हे सरीर में, कइसन कलाबाजी हे कमर में । कोई पेन्हावा न, कमर पर से धोती, एगो गोलगला गंजी, या या कुरता, माथ में गमछा । हँ, गमछा लाजबाब रंगीन झक-झक ।)    (माकेम॰21.12)
535    पैरपूजी (सबसे पहिले पैरपूजी उनकर होयत - कोई एक रुपया से पूजे या सौ रुपया से, सबके बराबरे आसिरवाद देतन - उनका ला सब कोई बराबर । उनकर हाथ में बंसरोपन के बीज सैंतल हल, माली के करमात छिपल हल ।)    (माकेम॰25.26)
536    पैरुख (= पौरुष; पुरुषत्व) (एकर सगुन बड़ा धारऽ हे । किरखी में उपज जादे होयत । एकर पैरुख बड़ा लछनमान हे जइसन ओकर माय के दूध ।)    (माकेम॰48.8)
537    पैरूख (= पौरा; पैरा; आने का शुभाशुभ लक्षण; किसी व्यक्ति या मवेशी के आने अथवा कोई काम या घटना के बाद एक साल के अन्दर शुभ-अशुभ लक्षण) (बेसुमार पैदा ! खलिहान देख के दुस्मन के छाती फटे । ओह ! जागा के पैरूखे अइसन हे । जेकरा हीं रहत ओकर खलिहान हिमालय पर्वत लेखा उठिए जायत ।)    (माकेम॰63.2)
538    पोजरा (केकरो आम के मोजर खराब हो रहल हे, केला के फर गउँजा रहल हे - ओकर उपाय महतो जी के दलान पर लिखके टाँगल हे - धान में हरदा, मकई में खोजरा, आलू में गोजरा, साग में पोजरा लग गेल - ओकर इलाज महतो जी के दलान पर जा के पूछ लऽ ।)    (माकेम॰12.2)
539    पोरसिसिआ (= पोरसिस; सान्त्वना या संवेदना; शोक के समय दिलासा देना; मातमपुरसी) (ऊ नाच रहल हे, घसेटन अप्पन चउकी पर चुपचाप बइठल हथ पालथी मार के । बड़ी देर ले ई खेढ़ा होइत रहल । लोग देखइत रहलन काम धन्धा छोड़ के । घण्टन बीत गेल । अन्त में लोग पोरसिसिआ करे लगलन - अउरत के बात हे, इज्जत के सवाल हे । छोड़ देवल जाव, माफ कर देवल जाव ।)    (माकेम॰32.10)
540    पोल्हवना (एकर हाथ में एगो बड़का जस हे । कोनो परसौती के पीड़ा हो रहलहे, एकरा छुअइते छूमंतर । एही कारन हे कि गाँव के परसौतीन दू महीना अगाते से एकरा पोल्हवले रहत ।)    (माकेम॰38.18)
541    फँउकना (महतो जी जनानी मनोविज्ञान के पण्डित बुझा हथ । जब ऊ छड़पे लगत, त ई पुचकारे लगतन । जब ऊ फँउके लगत, त ई सुघरावे लगतन । लगऽ हे एको संतान न होवे से ऊ बिरबिरायल रहऽ हे । काहे कि महतो जी के सामने ऊ कभी अप्पन नाक के सुनसुना न बजावे ।)    (माकेम॰14.16)
542    फँखुरी (= पँखुरा, पँखुरी, पँखौरा; बाहुमूल, कंधा और बाँह के जोड़ पर का अंग) (ई उठल चाहलन बाकी उठिए न हो आये ।सटलन से सटले रह गेलन, बइठलन से बइठले रह गेलन ओहे चउकी पर । करथ का ! कह सकऽ हलन हइए न कि हम सटल ही, फँखुरी धर के उठावऽ लोग ।)    (माकेम॰31.23)
543    फर (= फल) (रूह-चुह बगान मुरका गेल, केला के फर दुख से लरक गेल, अनार-अमरूध पिअरा गेल ।)    (माकेम॰15.22)
544    फर-फूल (लोग कहऽ हथ उनकर मुँह में अगिन के वास हल आ गोदी में गनेस के । ई लेल जेकरा आसिरबाद देलन, ऊ डाढ़े-पाते फर-फुल से लद गेल । जेकरा गोदी लेलन देहे-आँगे नीरोग हो गेल । ललक से नवचेरी अप्पन बेटा-बेटी उनकर गोदी में जरूर देत, आसिरबाद जरूर लेत ।)    (माकेम॰28.14)
545    फरौनी (= कटाई) (सिऔनी-~) (ओकर हाथ में कलागिरियो हे । ऊ सिऔनी-फरौनी खूब जानऽ हे । एक-से-एक कपड़ा के कतरन के गुड़िया, पोस्टकार्ड आ कुट के डोली, सलाई के फैक्टरी, चूड़ी के बैग, कागज के जानवर बनावे ला जानऽ हे । कुरती के एक-से-एक कटिंग सीखऽ एकरा से । मउनी-दउरी छनवावऽ एकरा से, लेदरा बइठवावऽ एकरा से ।)    (माकेम॰49.7)
546    फस्ट (= first) (मन में आ गेल, फस्ट क्लास के पटनहिया गाय खरीदा गेल । दुहाए लगल गाय, छनाए लगल भाँग ।)    (माकेम॰56.18)
547    फह-फह (~ फहरना) (धोबी हीं उनकर लुगा जाये इया न जाये बाकी बारहो मास बगुला के पाँख लेखा बग-बग झलकइत रहत, फह-फह फहरइत रहत ।)    (माकेम॰27.22)
548    फाजिल (= फालतू) (इनकर अप्पन अउरत से कभी न पटल । ओकरा नजर में ई घर के सबसे फाजिल आदमी हथ । जे अप्पन घर न देखे ऊ मरदाना का, जे अप्पन अउरत के न गदाने ऊ पुरुस का ?)    (माकेम॰54.10)
549    फारना (= फाड़ना) (उनकर रंथी ढोवे में लोग पुन समझथ । उनकर कफन फारके जंतर बनावे ला रख लेवल गेल ।)    (माकेम॰29.27)
550    फुटहा (= फुटहरा) (जखनी मन करे तखनी सूद के हिसाब, चाउर के दाम, नेवारी के कीमत पूछ लऽ । झटाझट ओकर मुँह से निकल जायत - टेलीप्रिन्टर भी फेल । ऊ एक से एक फुटहे जानऽ हे ।)    (माकेम॰37.29)
551    फुटहा (कोई मड़ुआ के रोटी खिला रहल हे, कोई नयका धान के चूड़ा फँका रहल हे । केकरो हीं भूँजा, केकरो हीं फुटहा जरूर मिलत इनका । ई सब इनकर जूता के इनाम हे, काम आउ कला के मजूरी हे ।)    (माकेम॰20.27)
552    फुटेहरी (= फुटहरा) (बइदगिरिए न, ऊ मँहटरियो जानऽ हथ । उनका से क-को करवा, ख-खो खरवा, एक से एक फुटेहरी, चौपाई के अरथ, हिन्दू-सास्तर के अनुसार धरम-विधान, सोरहो संस्कार, बिआह-सादी, मरनी-हरनी में करमकाण्ड जान लऽ - सबके ज्ञाता, पण्डित बिदमान होवे के अधिकार उनका एक साथ मिलल हे ।; आझ कोनो साइंस पढ़वैया हिसाब के जनकार से कोनो हिसाब पूछल जाव - पन्ना के पन्ना रंग देतन, पोथी के पोथी लिख डालतन तइयो सही उत्तर निकले में सके होयत बाकी एकर फुटेहरी ला कोई किताब-कौपी के जरूरत न, कोई कागच-पिन्सिट के आवश्यकता न ।)    (माकेम॰12.4; 37.25)
553    फुनफुनाहट (नाक के ~) (आझ धक बाबा दोसर के दुआरी अगोरले चलइत हथ । अब दाढ़ी बढ़ा लेलन हे । एक दिन उनकर गाल में पौडर रगड़ा हल, आझ दाढ़ी में चीलर आउ ढील पड़ गेल हे बाकी नाक के फुनफुनाहट ओतने ।)    (माकेम॰57.31)
554    फुरदुंगी (हर बनत एकर विचार से । जखनी ऊ लगना पर हाथ धरत तखनी बैल बिना टिटकारी मारलहीं फुरदुंगी हो जायत ।)    (माकेम॰47.30)
555    फुलाना (मुँह ~) (एक दिन तनी एसा सहुआइन कहूँ भुनुक देलन - 'अये, लोग जाव त जाव, हम नान्ह जात के झोपड़ी में न न जायब । हमरा भगवान बइठका न देलन हे कि ओकर झोपड़ी अगोरले रहूँ ?' आझ ले ऊ उनका से मुँह फुलौले रहऽ हे । नजरो उठाके न ताके ।)    (माकेम॰49.30)
556    फूलना (= रूसना, रूठना) (केकरो चिन्ता हे पत्तल आउ नरकोरवा ला, केकरो चीनी आउ सूजी ला - केकरो तीना तरकारी ला, केकरो गहना-जेवर ला । कोई लूगा-फाटा ला रूसल हे त कोई पूछला बिना फूलल हे । बाकी ई मस्त ! निफिकिर - गावे ला परेसान ।)    (माकेम॰25.16)
557    फोंफ (~ काटना) (जउन घड़ी माघ के मलमली में सब लोग नेहाली पर फोंफ काटऽ हथ, ऊ घड़ी ऊ बर्तन-बासन करके छुट्टी ।)    (माकेम॰45.3)
558    फोंफी (जे सुनल से पछतावे लगल - ओह हमहूँ रहिती त आझ डाइन के नाच देखिती न । अरे डाइन हल ! बाप रे ! बिलकुल अभी नवचेरिए तो हइए हल । उठल नाक, गोल-गोल गाल सेव लेखा, लाल फोंफी लेखा घेंची, ताड़ के कोआ लेखा आँख, बाँस के छउँकी लेखा कमर लचकावइत देख के, लमपोर सरीर, छरहर बदन, बैगनी रंग के साड़ी पेन्हले, माथ पर टिकुली साटले, माँग टिकले देख के लोग दाँते अँगुरी काटऽ हल - सरमा जा हल - केकर अउरत हे ई, कउन खानदान के इज्जत पर पानी फेर रहल हे ।)    (माकेम॰32.17)
559    बंसरोपन (सबसे पहिले पैरपूजी उनकर होयत - कोई एक रुपया से पूजे या सौ रुपया से, सबके बराबरे आसिरवाद देतन - उनका ला सब कोई बराबर । उनकर हाथ में बंसरोपन के बीज सैंतल हल, माली के करमात छिपल हल । ऊ जेकरा चुमवलन ओकर घर नातिए पोते भर गेल । ऊ जेकरा परिछलन सेकरा आवइते घर बस गेल । ई लेल ऊ चुमवतन सबसे आगे, परिछतन सबसे पहिले ।)    (माकेम॰25.27)
560    बइठका (= बैठक का स्थान) (महतो जी के दलान सब के दुकान । सब के बइठका - सब के अड्डा हे ।; ओकर झोपड़ी गाँव के अउरत के बइठका हे । ई बइठका न हे, समुझऽ देवी के चउरा हे, महावीर जी के चबूतरा हे ।)    (माकेम॰12.28; 46.1)
561    बइठकी (जहिया काम के भीड़ जादे आ जाहे ऊ दिन तो उनकर चिलिम सेरैवे न करे । गंजेरी के दुकान पारचुन के दुकान हो जाहे । एगो आवइथे त एगो जाइथे । इनकर दलान ओइसने - पारचुन के दुकान - हमेसा चार-पाँच गो गंजेरी के बइठकी लगल रहत ।)    (माकेम॰55.3)
562    बइदगिरी (बइदगिरिए न, ऊ मँहटरियो जानऽ हथ । उनका से क-को करवा, ख-खो खरवा, एक से एक फुटेहरी, चौपाई के अरथ, हिन्दू-सास्तर के अनुसार धरम-विधान, सोरहो संस्कार, बिआह-सादी, मरनी-हरनी में करमकाण्ड जान लऽ - सबके ज्ञाता, पण्डित बिदमान होवे के अधिकार उनका एक साथ मिलल हे ।)    (माकेम॰12.3)
563    बकडेढ़ (जइसन इनकर काम ओइसने सरीर । लमा-लमा हाथ, एक हाथ के पेट, धँसल धवना, थपुआ लेखा गोड़ के सिपुली, बड़का-बड़का आँख, ताके में बकडेढ़, एक आँख लाल सुरूका, लगऽ हे अब बाहर फेंक देत ।)    (माकेम॰34.7)
564    बकरी-छकरी (जइसन साहु जी के दोकान ओइसन महतो जी के दलान । महतो जी के के न जाने ? बकरी से लेके छकरी ले, अदमी से लेके जनावर ले, चिअई-चुरूँग, खेत-बधार, साग-पात, गाछ-बिरीछ, सजीव-निर्जीव सब इनका से परिचित हथ - जानल-पहचानल घर के कजरी बिलाई ।)    (माकेम॰11.2)
565    बकुली (आझ हम जउन रूप में ही - जउन राह पर चलइत ही - कला आउ साहित्य के राह, कल्पना आउ विचार के राह, ऊ बतावल हे परम पूज्य गुरुदेव श्री कामता सिंह के जिनकर बकुली आउ छकुनी के इयाद अभी तक भुलायल न हे ।)    (माकेम॰5.17)
566    बग-बग (कोई पहुना ... पलथी मार के बग-बग धोती-कुरता पहिरले बइठल हे ।; धोबी हीं उनकर लुगा जाये इया न जाये बाकी बारहो मास बगुला के पाँख लेखा बग-बग झलकइत रहत, फह-फह फहरइत रहत ।)    (माकेम॰14.1; 27.22)
567    बजनियाँ (कउन गीत कै कदम पर उठावल जायत, केकर दुहारी पर से सुरू कयल जायत, एकर रहस्य ओहे जानऽ हलन । बजनियाँ के गीत अलग, नउनियाँ के गारी अलग, कनुनियाँ के गीत दोसर, तेलिनियाँ के तेसर । तिलक देउआ उनकर गीत सुनके दंग, बरतिआहा भउँचक ।)    (माकेम॰25.8)
568    बटइया-तेहइया (सालो भर खूँटा पर एगो जनावर जरूर रखत । कहीं से मोल, कहीं से बटइया-तेहइया लाके पालत ।)    (माकेम॰47.9)
569    बटलोही (पहिल पहिलौंठ बेटी के बिआह !... लोटा-थारी, गिलास-कटोरा, बटलोही-बरहगुना, पीतल के कलछुल-छोलनी - सब ओकर माय धीरे-धीरे खरीद के रख लेलक हे ।)    (माकेम॰48.26)
570    बड़का (तड़ुका दाई के परिवार बहुत लमहर हे, बड़का लर-जर । बाकी इनका देह से एको बाल-बच्चा न भेल । होवो कइसे ? लोग कहऽ हथ कि ऊ नवचेरिए हलन त उनकर मरद ओझवा बाबा छोड़ देलन ।; बाकी ऊ अपने से माँगे न जायत । हूँ, हलुआ-बतीसा न मिलला पर, बड़का होवथ इया छोटका, दूस देत जरूर - 'बेटा भेलवऽ आ तनी हलुओ न खिलवलऽ, तनी बतीसो न चिखवलऽ ।'; पाँच गो पोता - बड़का के देह से तीन गो आ छोटका के दूगो । बड़का के एगो किरानी आ एगो ओभरसियर, छोटका कवलेजिया ।)    (माकेम॰26.22; 38.22; 40.8, 9)
571    बड़की (~ भउजी; ~ पुतोह) (कहत - माय बड़ा दुख कयले हे । ऊ दिन हमरा इयाद हे - पानी पड़इत हल । चूल्हा जोर के बड़की भउजी हीं पइँचा आटा ला गेले हल । बाकी त उधर से आटा के जगह पर भर कटोरा लोर लेले अयले हल ।)    (माकेम॰41.27)
572    बढ़नी (रात में थरिया न मलायल ओकरा ला चार बात, लोटा न चमचम चमकल ओकरा ला दस गण्डा गारी । सूप खूँटी में न टँगायल, बढ़नी पार के न रखायल, चूल्हा न लिपायल, कोठ के मान न मुनायल एकरा ला बिसहन हुरकुच्चा । हुरकुच्चा सुनइत-सुनइत ऊ हेहर हो गेल ।)    (माकेम॰35.18)
573    बढ़ही (= बड़ही; बढ़ई) (जब एकर मकान उठइत हल तब बिसहन मजूर रोज खटऽ हलन, कउन मजूर कतना ईंटा ढोयलक, कउन कै मउनी माटी गिरवलक, राजमिस्त्री के कतना हिसाब भेल, बढ़ही-लोहार के कतना बकाया गिरल - सब ओकर अँगुरी पर ।)    (माकेम॰37.20)
574    बढ़ही-लोहार (जब एकर मकान उठइत हल तब बिसहन मजूर रोज खटऽ हलन, कउन मजूर कतना ईंटा ढोयलक, कउन कै मउनी माटी गिरवलक, राजमिस्त्री के कतना हिसाब भेल, बढ़ही-लोहार के कतना बकाया गिरल - सब ओकर अँगुरी पर ।)    (माकेम॰37.20)
575    बढ़ामन (= ब्राह्मण) (सवा सौ बढ़ामन जेवावल गेल, पाँच सौ कँगली खिलावल गेल । सेजियादान ! गऊदान !! पाँच रंग के मिठाई, बुनिया-पूड़ी सउँसे गाँव-जेवार खा के अघा गेल ।)    (माकेम॰16.28)
576    बढ़ामनी (= ब्राह्मणी) (काहे छोड़लन ओझवा बाबा इनका, ई पता आझ ले केकरो न चलल । हँ, अपना-अपना उकुत से लोग अनुमान लगावऽ हे । कोई कहऽ हे उनका पसन्दे न भेलन । कोई कहऽ हे, ओझई-गुनई में मतिए मरा जाहे । कोई कहऽ हे बढ़ामनी होके घरे-घरे, जाते-परजाते दउड़ल फिरऽ हलन ।)    (माकेम॰26.28)
577    बण्डी (जखनी ई खादी के धोती-कुरता आ ऊपर से बण्डी झार के निकलतन तखनी लगत कोनो मिनिस्टर जा रहल हे ।)    (माकेम॰55.15)
578    बतिआना (बात करे में ऊ बड़का माहिर - सट-सट के बतिआयत, घुर-घुर के बतिआयत । ओहे जगा गाँव के चनेसर सिंह सबसे मरखाहा गिना हथ । केकर मजाल हे कि उनका पर नजर उठा के ताक देत, मुँह खोल के बतिया लेत ।)    (माकेम॰40.29)
579    बतियाना (= बतिआना) (बात करे में ऊ बड़का माहिर - सट-सट के बतिआयत, घुर-घुर के बतिआयत । ओहे जगा गाँव के चनेसर सिंह सबसे मरखाहा गिना हथ । केकर मजाल हे कि उनका पर नजर उठा के ताक देत, मुँह खोल के बतिया लेत ।; डर से बकरियो देखके भाग चलऽ हे, गली में सूतल कुत्तो केंकिया के राह छोड़ देवऽ हे । बाकी ई उनको से बतिया लेत ।)    (माकेम॰41.1, 2)
580    बतीसा (भले केकरो खुसी भेल - एगो लुगा पेन्हा देल, केकरो लाज लगल - एगो झुला सिआ देल । बाकी ऊ अपने से माँगे न जायत । हूँ, हलुआ-बतीसा न मिलला पर, बड़का होवथ इया छोटका, दूस देत जरूर - 'बेटा भेलवऽ आ तनी हलुओ न खिलवलऽ, तनी बतीसो न चिखवलऽ ।')    (माकेम॰38.22, 23)
581    बदलयन (= बदलने की क्रिया) (ई तरह से ऊ अप्पन जूता के परचार करऽ हलन, जूता के बिक्री करऽ हलन । जे पेन्हलक से दाम सधा के छोड़लक । इनकर एगो आउ सिफत हल - जूता टूट गेला पर मुफ्त सिलाई, बिना पइसा के मरम्मती, गारंटी तीन साल - बीच में टूट गेला पर पइसा वापस इया जूता बदलयन ।)    (माकेम॰20.3)
582    बनभाकुर (ई तो खैर कहऽ, दूनों पुतोह मिल गेलू हे मनगर सुभवगर न त ई बिना मारले मर जयतन हल । खाहूँ-पीहूँ ला केऊ न पूछइत - बेटा बनभाकुरे आउ अउरत कराकसीने ।)    (माकेम॰54.14)
583    बन-मजूरी (खेत-बधारी एको धुर न हे बलुक घरो आम गरमजरुआ जमीन में उठावल हे । अपने बन-मजूरी, कुटौना-पिसौना करके कुछो ले आवत ।)    (माकेम॰47.13)
584    बनावल-सँवारल (प्रकृति के बनावल-सँवारल के नकल आदमी का कर सकऽ हे । जागा माटी के औलाद हल । ओतने भुच-भुच करिआ - केवाल माटी लेखा - ओतने चिक्कन विचार - कोमल हृदय ।)    (माकेम॰62.7)
585    बने-बने (बिआहे रात सास चूल्हा धरा देलन । बने-बने साथे टाँगले चललन । कुटौना-पिसौना, रोपनी-डोभनी, कटनी-पिटनी सब कइली - सब सहली ।)    (माकेम॰36.13)
586    बयना-बखरा (मउनी-दउरी, गरँउटी-सिकहर बेच के अप्पन अप्पन घरवाली के भी पेट भरे के इन्तजाम कर देलन । कहीं से कुछ सीधा-बारी मिल गेल, अँगेया-पेहानी आ गेल, कोई बयना-बखरा देल गेल - उनकर धरमपत्नी संगेर के रखत । वास्तव में ऊ संगेरनी हे भी ।)    (माकेम॰13.25)
587    बयल (= बैल) (बहिया बयल लेखा खटइत रहत तइयो चार झार मालिक के सुनहीं पड़ऽ हे ।)    (माकेम॰41.20)
588    बर (= वटवृक्ष, बरगद) (कुछ भगवानो के देन होवऽ हे । ओई जगा सहुआइन के दूधे न होवे । उनकर सब लइकन दूधकटुए रह गेलन । सटले बखोरना के माय माड़ पिअइते रह गेल, मसुरी के दाल सुड़कइते रह गेल बाकी काहे ला दूध उतरो । एने मुनारिक के माय कइसन हे - सालो भर ओकर छाती से दूध चुअइते रहऽ हे । बर के डउँघी हे, कभी सुखवे न करे ।)    (माकेम॰44.11)
589    बर (= वर, दुलहा) (केकरो देवपूजी हो रहल हे - आगे-आगे ओहे चलतन । हरदी-कलसा हो रहल हे - सबसे आगे ऊ बइठतन । लावा छिंटावे चलल, बर के परिछन होये चलल, ओ घड़ी तड़ुका दाई पर सबके नजर टिकल रहत ।)    (माकेम॰25.5)
590    बरत-तेवहार (हाथ में चूड़ी दुइए गो रहे बाकी टिकाऊ होवे के चाही - बरते-तेवहार में बदलायत ।)    (माकेम॰46.20)
591    बरतिआहा (= बरतिआ, बरतिहा; बारात के लोग) (सनीचर उठके ताल ठोके के पहिलहीं एक छलांग मार देतन, घोड़ा लेखा हिनहिनाय देतन । समियाना हिल जायत । बरतिआहा अकचका जायत - का भेल ? 'कुछो न, सनीचर के घोड़ी बेहाथ हो गेल हे' ।; उनकर बिछंछल-बिछंछल गारी सुनके समधी भड़क जायत, बरतिआहा सनक जायत - ऊ सक्ति हे इनकर गीत में, गीत के भाव में ।)    (माकेम॰21.23; 23.22)
592    बरतुहार (जहिया केकरो बराती आ जायत तहिया उनकर पिअरी धोती गाँव-गाँव के कोने-कोने में फहर जायत, उनकर माथ के पगड़ी आ झुलंक कुरता देख के सबके मन अगरा जायत । लगऽ हे इहे समधी हथ, इहे बरतुहार हथ ।; केकरो अगुआ बरतुहार आयल हे, मुनारिक के माय के तीना छेंउके ला बोलाहट हो जायत ।)    (माकेम॰12.23; 49.18)
593    बरना (= जलना) (दिआ ~) करिया भुच-भुच रीठल नादा लेखा, एक बित्ता करुआ तेल के परत जुगन से ई दिआ बरइत आ रहल हे ।)    (माकेम॰31.7)
594    बरबराना (बोलला बिना एकरा रहैबे न करे, बरबरैला बिना मनैबे न करे ।)    (माकेम॰36.2)
595    बरहगुना (= बरगुना) (सच पूछऽ त महतो जी वास्तव में बरहगुना हथ । बरहगुना के तो बारहे गुन होवऽ हे, बाकि महतो जे में एक-से-एक लूर, हुनर, इलम ।; पहिल पहिलौंठ बेटी के बिआह !... लोटा-थारी, गिलास-कटोरा, बटलोही-बरहगुना, पीतल के कलछुल-छोलनी - सब ओकर माय धीरे-धीरे खरीद के रख लेलक हे ।)    (माकेम॰11.11; 48.27)
596    बराती (= बारात) (गाँव में केकरो बिआह-सादी ठन जायत त महतो जी सबसे जादे परेसान । छेंका से लेके तिलक ले, मटकोड़वा से लेके मँड़वा-भतवान ले, बराती से लेके चउठारी ले महतो जी पसेने-पसेने ।)    (माकेम॰12.18)
597    बरिआत (= बरिआती; बारात) (उनका अगल-बगल के तो लोग कहऽ हथ कि ऊ तो रात भर सुतबे न करथ । जब ले बरिआत लवट न जायत, चउठारी खतम न हो जायत उनका आँख में नीन न । का जनी कउन गीत के अभ्यास करऽ हथ ऊ रात भर जाग के ।; 'बाप उठा के धर गेल, गरीब हल । का करित, बेटी माथ के बोझ होवऽ हे, सक्ती न हल बरिआत बोलावे के, दान-दहेज न देलक - तेलवट तो कयलक न - कहूँ निकस-पइस न न गेली' - कहइत-कहइत ढर-ढर रोवे लगत ।)    (माकेम॰25.20; 36.16)
598    बरियात (= बराती, बारात) (आलूदम के सौखीन ऊ जादे, पूड़ी-कचौड़ी में रूच उनकर अधिका, इ लेल चूल्हा के इन्चार्ज ई, भण्डार के परभारी ई । जब तक बरियात के बिदागी न हो जायत, तब तक उनका चैन न ।)    (माकेम॰12.25)
599    बसना (= छोटे मुँह का पात्र; सामान रखने की थैली; कपड़ा जिसमें कोई वस्तु रखी या लपेटी जाय) (मथपीरी, घुमरी, सूखा आ मिरगी के जड़ी-बूटी हमेसे एकर एगो बसना में छोट-छोट काट के रखल रहत ।)    (माकेम॰38.14)
600    बसना-टहरी (इनके बसावल ही हमनी । जब बिसुनदयाल सीन अप्पन घर से निकाल देहन हल तो नट-नगाड़ लेखा बसना-टहरी टाँगले चलऽ हली । ... अंत में एही धक बाबा हथ जे हमनी के जमीन देके बसवलन ।)    (माकेम॰58.6)
601    बसहा (= बिना बधिआ किया बैल; महादेव की सवारी, नंदी) (बारहो मास साग-सब्जी से लहफह किआरी, किआरी के बीच में एगो चबूतरा जेकरा पर शंकर जी के मुरती बसहा बैल के साथे विराज रहल हे ।)    (माकेम॰13.6)
602    बसेआयल (= बसिआल, बासी होल) (जेतना कदर लोग महतो जी के करऽ हथ, ओतने महतवाइन के न करथ । ... महतो जी हथ पुरान बिचार के, बसेआयल संस्कृति के माने ओला । ई लेल ऊ महतवाइन के घर से बाहर कहूँ न जाय देथ ।)    (माकेम॰14.5)
603    बहारना (= बहाड़ना; झाड़ू देना) (ई कहूँ से थकाल-फेदायल अवतन, ऊ झरुआ लेके बहारे लगत । पेन्ह-ओढ़ के कहीं जाय लगतन, मतुहायल पानी माँगतन, ऊ भरल गगरा के पानी उझिल देत ।)    (माकेम॰54.15)
604    बहिया (बहिया बयल लेखा खटइत रहत तइयो चार झार मालिक के सुनहीं पड़ऽ हे ।)    (माकेम॰41.20)
605    बहिर (= बधिर, बहरा) (रात में थरिया न मलायल ओकरा ला चार बात, लोटा न चमचम चमकल ओकरा ला दस गण्डा गारी । सूप खूँटी में न टँगायल, बढ़नी पार के न रखायल, चूल्हा न लिपायल, कोठ के मान न मुनायल एकरा ला बिसहन हुरकुच्चा । हुरकुच्चा सुनइत-सुनइत ऊ हेहर हो गेल । जान-बूझ के बहिर बनल रहत ।)    (माकेम॰35.20)
606    बाकी (= बाकि, लेकिन) (सच पूछऽ त महतो जी वास्तव में बरहगुना हथ । बरहगुना के तो बारहे गुन होवऽ हे, बाकी महतो जे में एक-से-एक लूर, हुनर, इलम । वइदगिरी सीखऽ इनका से, खेत-बधारी के बात पूछऽ इनका से । महटरी आउ गीत-गवनई के कला सीखऽ इनका से ।)    (माकेम॰11.11)
607    बाजी (= तुरी, बार) (कभी दउड़ के कभी उछिल के जूता के नमूना देखावे लगतन । अन्त में पैर से निकाल के हाथ में लेके दू बाजी फट-फट जमीन पर बजाड़ देतन, दूनों के मिलाके पट-पट बजा देतन ।; ओकर झोपड़ी गाँव के अउरत के बइठका हे । ई बइठका न हे, समुझऽ देवी के चउरा हे, महावीर जी के चबूतरा हे । दिन में चार बाजी बिना बहारले न रहत ।)    (माकेम॰19.15; 46.2)
608    बान्हना (= बाँधना) (जउन घड़ी तरकारी छेंउकायत ओ घड़ी ऊ अजबे गीत रेघवतन, अँगना में तिलक कम मिलला पर लइका के बाप इया भाई तड़ंग-फड़ंग बान्ह रहल हे, ऊ अइसन गीत ठानतन कि सबके खीस ठण्ढा - सबके क्रोध जमके बरफ हो जायत ।; उनके महिमा से सालो भर एगो लगहर दूरा पर बान्हले रहत । मट्ठा-दही से गाँव के तर कयले रहत ।)    (माकेम॰24.32; 39.24)
609    बायमत (= बामत; एक प्रकार का प्रेत जिसकी पूजा कहीं-कहीं देहात में करते हैं {इसे पूजना बुरा माना जाता है}) (~ जोतना; ~-चुड़ैल) (कयलन तो इहो ओझइये-गुनइए । कतना के घर के बायमत बान्ह देलन, देह के कीचिन उतार देलन ।; इनकर दिआ ! बाप रे, देखइते हिया काँप जाहे, डाइन के काजर धोआ जाहे, देह के बायमत भाग जाहे ।; कतना के देह के बायमत एकरा में समा गेल हे, कतना नजर-गुजर घुँसर गेल हे एकरा में ।; जे आवत सेकरा देखइत खानी दिआ पर तकवतन । जे ताकइत रह गेल समझऽ ओकर नजरावल हे - बायमत जोतल हे इया कोई-न-कोई छड़ी देह धयले हे ।; दस दिन, पनरह दिन, सवा महीना, अढ़ाई महीना अच्छत खाये ला कहतन । ... नियम से खयला पर, बायमत का बायमत के बाप भी बाप-बाप करके भाग जायत ।; चाहे लोग जे कहो, ई कतना के पीठ दाग के सुकरमांस झारले होयतन । बायमत-चुड़ैल उतार के कतना के कोख भरले होयतन ।)    (माकेम॰30.16; 31.5, 7; 32.24, 32; 33.32)
610    बाल-बच्चा (परनाम करके घर अइली । हमरा न रहायल, घर के लोग के बोला के पुछली - ऊ कइसे जान गेलन हमार घर के बारे में, रोग के बारे में आ बाल-बच्चा के बिसे में ।)    (माकेम॰33.28)
611    बिआ (= बीहन; बीज) (ई लेल जागा लच्छनमान मानल जा हल । पहिला बिआ जागा अप्पन हाथ से छीटत । सगुन अप्पन हाथ से करत । खेती-बारी के हर काम ओकर हाथ से छुआ के होयत ।)    (माकेम॰62.22)
612    बिआहना (एने पानी मोरायल तब तक ओने बलुआही जमीन सूख गेल । एने परीत रह गेल त ओने मुआर हो गेल । खेती आ बेटी तकतेहानिए से बनऽ हे । बेटी बिना बिअहले आ खेत बिना बिदहले बर्बाद हो ही जायत ।)    (माकेम॰51.20)
613    बिआह-सादी (उनकर परिवार के केउ ई काम न सिखलक । उनकर एगो बेटा हे । हरवाही करऽ हे । बाजा बजावऽ हे बिआह-सादी में ।)    (माकेम॰19.5)
614    बिगहा (= बीघा) (कोई जोतत आठ कट्ठा, कोई पनरह कट्ठा, ई बिना सवा बिगहा पर हाथ फेरले आरी पर न बइठत ।)    (माकेम॰47.31)
615    बिछंछल (~ गारी) (उनकर बिछंछल-बिछंछल गारी सुनके समधी भड़क जायत, बरतिआहा सनक जायत - ऊ सक्ति हे इनकर गीत में, गीत के भाव में ।)    (माकेम॰23.22)
616    बिजुली (कभी कोई पूछ देत - काहो कलट्टर काका, इनो साल बिजुलिया न लगतई का ? ऊ जबाब देतन - घबड़ाये से काम होवऽ हे । खम्मा गिरिए गेल हे, लाइन के परमिट बाकी हे, सेकरा ला लिखा-पढ़ी चल रहल हे ।)    (माकेम॰53.29)
617    बिढ़नी (= बिर्हनी, ततैया) (लोग कहऽ हथ, महतो जी हथ कि ओकरा निबाह कर रहलन हे, दोसरा हीं रहइत त सहिए-साँझ घाठी दे देवल जाइत । का जनी कइसे ई एगो मधुमक्खी के छत्ता में बिढ़नी समा गेल हे ।; दिआ उड़ल आ एगो मुसकाइत, बीच में बुदबुदाइत अउरत के माथ पर आके सट गेल । सटना हे कि ऊ नाचे लगल । ओकर देह में बिढ़नी बिन्हे लगल । ... ओकर नाच देख के लोग अचरज में पड़ गेलन । सुनलन हल - डाइन लुगा खोल के नाचऽ हे से आझ परतच्छ देख रहल हथ ।)    (माकेम॰14.15; 32.2)
618    बित्ता (चउकोसी इनकर नाम हे, सभतर इनकर परचार हे - परचार हे इनकर दिआ के, नाम हे इनकर अच्छत के । इनकर दिआ ! बाप रे, देखइते हिया काँप जाहे, डाइन के काजर धोआ जाहे, देह के बायमत भाग जाहे । करिया भुच-भुच रीठल नादा लेखा, एक बित्ता करुआ तेल के परत जुगन से ई दिआ बरइत आ रहल हे ।; ई तो संजोग कहऽ कि उनकर गोतिया-नइया मिल के उनकर भतीजा के नाम से खेत अलग करवा देलन बाकी ई अप्पन धक डोलावे के आन आउ गुमान के नाम पर रहे ला एक बित्ता घरो न छोड़लन ।)    (माकेम॰31.6; 57.20)
619    बिदमान (= विदमान, विद्वान) (बइदगिरिए न, ऊ मँहटरियो जानऽ हथ । उनका से क-को करवा, ख-खो खरवा, एक से एक फुटेहरी, चौपाई के अरथ, हिन्दू-सास्तर के अनुसार धरम-विधान, सोरहो संस्कार, बिआह-सादी, मरनी-हरनी में करमकाण्ड जान लऽ - सबके ज्ञाता, पण्डित बिदमान होवे के अधिकार उनका एक साथ मिलल हे ।; परिवार में एक से एक पढ़ल-लिखल बिदमान, पट्ठा पहलवान, लड़वइया, गवइया-बजवइया, नाती-पोता देखके उनकर मन अगराइत रहऽ हल ।)    (माकेम॰12.6; 28.11)
620    बिदागी (= बिदाई) (आलूदम के सौखीन ऊ जादे, पूड़ी-कचौड़ी में रूच उनकर अधिका, इ लेल चूल्हा के इन्चार्ज ई, भण्डार के परभारी ई । जब तक बरियात के बिदागी न हो जायत, तब तक उनका चैन न ।)    (माकेम॰12.25)
621    बिदाहना (एने पानी मोरायल तब तक ओने बलुआही जमीन सूख गेल । एने परीत रह गेल त ओने मुआर हो गेल । खेती आ बेटी तकतेहानिए से बनऽ हे । बेटी बिना बिअहले आ खेत बिना बिदहले बर्बाद हो ही जायत ।)    (माकेम॰51.20)
622    बिदुकना (= बिदकना) (सरस्वती के किरपा भेल - इनकर जस के पताखा अकास-पताल खिल गेल । बाकी लछमी का जाने काहे इनका से बिदुकल रह गेल । इनकर अरजल सम्पत्ति से एगो बछेड़ियो साल भर बइठ के मजा से पेट न भर सकऽ हे ।)    (माकेम॰13.21)
623    बिनवाना (मउनी बिनवावऽ इनका से, खटिया छनवावऽ इनका से । एक से एक गँरउरी, जाब, मोहरी, नाधा-जोती, सिकहर इनका से बनवा लऽ - एको पइसा खरच न - नौ नगद न तेरह उधार । महतो जी हइए हथ त एकर सवाले कहाँ उठऽ हे ?)    (माकेम॰12.11)
624    बिन्हना (= डंक मारना) (दिआ उड़ल आ एगो मुसकाइत, बीच में बुदबुदाइत अउरत के माथ पर आके सट गेल । सटना हे कि ऊ नाचे लगल । ओकर देह में बिढ़नी बिन्हे लगल । ... ओकर नाच देख के लोग अचरज में पड़ गेलन । सुनलन हल - डाइन लुगा खोल के नाचऽ हे से आझ परतच्छ देख रहल हथ ।)    (माकेम॰32.2)
625    बिरबिराना (= तेजी से बाहर आना; घबड़ाना, हड़बड़ाना; आतंकित होना) (महतो जी जनानी मनोविज्ञान के पण्डित बुझा हथ । जब ऊ छड़पे लगत, त ई पुचकारे लगतन । जब ऊ फँउके लगत, त ई सुघरावे लगतन । लगऽ हे एको संतान न होवे से ऊ बिरबिरायल रहऽ हे । काहे कि महतो जी के सामने ऊ कभी अप्पन नाक के सुनसुना न बजावे ।)    (माकेम॰14.17)
626    बिरबिराना (लड़ाकिन के लड़े के नसा होवऽ हे, बोले के आदत होवऽ हे । हदरी चाची लड़ाकिन हे, आदत से लाचार हे । बिढ़नी के उसकवला पर बिर-बिरैबे करत ।)    (माकेम॰35.10)
627    बिलाई (= बिल्ली) (हुक्का से उनका बड़ा प्रेम हल - ओतने जतना चूटी के चीनी से, मधुमक्खी के मध से आउ बिलाई के मलाई से ।)    (माकेम॰23.6)
628    बिलाना (सनीचर के साथे उनकर कला भी बिला गेल, उनकर ईमान भी उपह गेल ।)    (माकेम॰22.14)
629    बिसवास (= विश्वास) (सबके बिसवास हे - हमरो बेटा मुनारिक लेखा पट्ठा पहलवान बन जायत, मुनारिके लेखा कमासुत निकलत । ... जेकरा ऊ दूध पिलवलक से मुनारिके लेखा पट्ठा कमासुत निकलल ।)    (माकेम॰43.15)
630    बिसहन (जब एकर मकान उठइत हल तब बिसहन मजूर रोज खटऽ हलन, कउन मजूर कतना ईंटा ढोयलक, कउन कै मउनी माटी गिरवलक, राजमिस्त्री के कतना हिसाब भेल, बढ़ही-लोहार के कतना बकाया गिरल - सब ओकर अँगुरी पर ।)    (माकेम॰37.19)
631    बिसहन (रात में थरिया न मलायल ओकरा ला चार बात, लोटा न चमचम चमकल ओकरा ला दस गण्डा गारी । सूप खूँटी में न टँगायल, बढ़नी पार के न रखायल, चूल्हा न लिपायल, कोठ के मान न मुनायल एकरा ला बिसहन हुरकुच्चा । हुरकुच्चा सुनइत-सुनइत ऊ हेहर हो गेल ।)    (माकेम॰35.19)
632    बिसे (= विषय) (परनाम करके घर अइली । हमरा न रहायल, घर के लोग के बोला के पुछली - ऊ कइसे जान गेलन हमार घर के बारे में, रोग के बारे में आ बाल-बच्चा के बिसे में ।; ई खोज के बिसे हे । चाहे लोग जे कहो, ई कतना के पीठ दाग के सुकरमांस झारले होयतन । बायमत-चुड़ैल उतार के कतना के कोख भरले होयतन । कोई खरचा न, कोई दाम-कउड़ी न ।)    (माकेम॰33.28, 30)
633    बिसोग (काहे छोड़लन ओझवा बाबा इनका, ई पता आझ ले केकरो न चलल । ... भगवान जानथ - डाइन के देल छड़ी हे कि सहुआइन के भरल कान - आझ ले हमनी न जान पउली उनकर पति बिसोग के कारन ।)    (माकेम॰26.33)
634    बिहरी (= किसी काम के लिए बहुत से लोगों द्वारा दिया गया धन, चंदा) (रात में गाँव भर के लोग जुट के उनकर किरिया-करम करे ला मिटिंग कयलन । चन्दा वसूलाये लगल, बिहरी छँटाये लगल । मिसिराइन दू मन आँटा पहुँचवलन त करमू तीन मन भंटा । लंगाटू साव आलू पहुँचवलन त अक्तर मियाँ साग, सहुआइन तीन टीन डलडा देलन त गंगा साव चीनी आउ पत्तल ।)    (माकेम॰16.24)
635    बीघा (लोभी रहितन त कतना खेत अरज लेइतन अब ले । कतना लोग बीघा के बीघा, पलौट के पलौट इनकर नाम से रजिष्ट्री कर देइत । आझ ई बड़का जमीन्दार, लमहर खेतिहर बनल रहितन । बाकी नऽ - ई अप्पन अकबद न बिगाड़े गेलन, अप्पन ईमान न बेचलन ।)    (माकेम॰34.16)
636    बीचवान (उनकर ईमान पर सबके विस्वास - केकरो कर्जा के लेनदेन हे, बीचवान ई बनतन, केकरो खेत लिखा रहल हे, गवाह ई बनतन ।)    (माकेम॰53.11)
637    बीता (= बित्ता) (गाँव के निकले ला चौतरफा रास्ता उनके जमाना के बनावल हे जे अब सवारथ वस हर साल एक बीता कट रहल हे ।)    (माकेम॰52.19)
638    बीम (लाल ~ सरीर; ईंटा लेखा लाल ~) (पुरनका जमाना के औरत हे, घीव दूध महले, मट्ठा-दही खयले हे । सरीरे बतावऽ हे कि जवानी में दही-दूध खयले हे । खायलो नेहायल कहीं छिपऽ हे । लाल बीम सरीर । आझ नवचेरियो ओकरा आगे फीका लगऽ हे । ओहे जगा पचकौड़ी बहू के देखऽ, कै दिन अयला भेल हे - एके लइका में लरक गेल - सूख के सिकठी हो गेल । आ, ई ? - एकरा देह से सातगो बेटी आ दूगो बेटा । तइयो सरीर देखऽ आँवा से निकालल ईंटा लेखा लाल बीम ।)    (माकेम॰37.4, 8)
639    बीसहन (= बिसहन, बीसो) (एने मुनारिक के माय कइसन हे - सालो भर ओकर छाती से दूध चुअइते रहऽ हे । बर के डउँघी हे, कभी सुखवे न करे । मुनारिक के दूध छोड़ला बीसहन बरिस हो गेल बाकी अबहियो ओइसने धार, ओइसने करामात ।)    (माकेम॰44.13)
640    बीहन (= बीज) (आझ कहाँ हर चलत, कल्ह कहाँ आरी दिआयत, एकर धेयान ओहे रखत । कउन खेत में बीहन डलायत, कहिया रोपनी लगत, कयगो लगत, कतना खाद छिटावत एकर लेखा-जोखा ओहे रखत ।)    (माकेम॰47.25)
641    बुढ़ारी (= बुढ़ापा) (छोटका बड़ा मौज से हे । ओकरे मौज से एकरो मौज हे । एकरा सब तिरिथ करा देल । सब सहर घुमा देल । सिनेमा-थियेटर देखा देल । बुढ़ारी के 'आह' न आवे देल चाहे ।; जेकरा मुँह से कहइत सुनऽ, एहे - हँ, बेटा पवलक हे त हदरी । बुढ़ारी के सब सुख भोग रहल हे ।; सरीर से टँठगर, मिजाज से दुरुस्त लगऽ हे । उमर साठ-पैंसठ के करीब होयत बाकी बुढ़ारी के लछन तनिको न आयल हे ।)    (माकेम॰41.23; 42.4; 50.3)
642    बुतना (= बुझना) (जहिया दिआ बुत जायत तहिया घसेटन खाट धर लेतन । हँ, एक बार के खेंढ़ा हे, दिआ बुतायल हल । बुतायल हल बाकी हलचल मच गेल हल ।)    (माकेम॰31.12)
643    बुतात (गाँव के लोग रोजे तीन-चार बार देख जाथ । केउ-न-केउ आके पूछ जाये । लोग खाना-बुतात पहुँचा जाथ ।)    (माकेम॰15.14)
644    बुताना (= बुतना, बुझना; बुझाना) (अचानक उनकर दिआ बुता गेल ।)    (माकेम॰31.20)
645    बुनिया (~-पूड़ी) (सवा सौ बढ़ामन जेवावल गेल, पाँच सौ कँगली खिलावल गेल । सेजियादान ! गऊदान !! पाँच रंग के मिठाई, बुनिया-पूड़ी सउँसे गाँव-जेवार खा के अघा गेल ।; बिआहो कर लेलऽ बेटा के, हमरे जूता पेन्ह के समधी बन के पैर पुजा अयलऽ । भउजी के कहला पर बनवली हल आ तनी बुनियो न खिलवलक ।)    (माकेम॰17.2; 19.27)
646    बूट (= बूँट, चना) (पहिल पहिलौंठ बेटी के बिआह ! ... रहल नगद के सवाल, त गेहूम-बूट सइंत के रखले हे । कुछ चानी के रुपइया भी गाड़के रखल हे ।)    (माकेम॰48.29)
647    बूढ़-पुरनियाँ (जउन घड़ी केकरो हीं तिलक आवे ला हे ओ घड़ी उनकर इज्जत देखऽ । बूढ़-पुरनियाँ, नवचेरी कनियाँ सब उनका गोड़ लगतन । ऊ सबके जिये ला, घर बसे ला आसिरवाद देतन ।)    (माकेम॰23.13)
648    बेटिहा (= बेटी का पिता या अभिभावक; वधू पक्ष के लोग) (बिजली के कड़क आ देवाल गिरला के आवाज होवऽ हल इनकर डंका से । खुस होके कोई नोट साटइथे, कोई इनाम गछइथे - धोती के इनाम, लुगा के इनाम । इनामे इनाम ! कतना वाह रे सनीचर !! कमाल कर देलन !!! बेटिहा चेहा जाये, कठघोड़वा के धेयान भुला जाये । अइसन नाच बाजा पर !)    (माकेम॰21.9)
649    बेदाम (= चिनिया बादाम; मूँगफली) (रामप्रसाद सिंह घोड़ा पोसलन त का पोसलन, ई तो लंगूर पोस के छुहाड़ा आउ किसमिस खिलवलन । बिलाई आउ नेउर के दूध पिलवलन । सुग्गा आउ मैना, तीतर आउ बटेर के बेदाम छील-छील के खिलवलन ।)    (माकेम॰56.8)
650    बेना (= बिन्ना; पंखा) (उनका अवइते कोई पीढ़ा लाके देत, कोई बेना, कोई बोरा बइठे ला देत, कोई चटाई ।; पचासी बरिस के हो गेल होयत बाकी हदर अभी पचीसे बरिस के । आझो हदराइते हल । चउखट पर बेना डोलावइत हल । बेना ओकर, तड़ुका दाई के गुड़गुड़ा ।)    (माकेम॰23.15; 42.15, 16)
651    बेमारी (= बीमारी) (दू साल के बाद फिर जागा के ओही बेमारी । कतना दावा-दारू भेल बाकी ई बार ऊ न बच सकल ।)    (माकेम॰64.26)
652    बेयाना (= बयाना, बियाना,बेआना; पेशगी; अग्रिम राशि) (कभी दउड़ के कभी उछिल के जूता के नमूना देखावे लगतन । अन्त में पैर से निकाल के हाथ में लेके दू बाजी फट-फट जमीन पर बजाड़ देतन, दूनों के मिलाके पट-पट बजा देतन । फिर का ? - अतना करइते चार गहँकी तइयार । पाँच गो बेयाना हाजिर ।)    (माकेम॰19.17)
653    बेरी (= बेर, समय) (चइत के महीना हल । साँझ के बेरी हल । हम कॉलेज से लौट के आवइत हली घरे मुसहरी तीली होवइत ।)    (माकेम॰64.12)
654    बेवहार (= व्यवहार) (उनकर सोभाव से गाँव भर खुस, उनकर बेवहार से सब कोई परसन्न ।)    (माकेम॰23.11)
655    बेविस्वास (मजूरी के आज तक हिसाब-किताब न, सब मलिकाइने जानऽ हलन । जे दे देलन से ले लेल । बेविस्वास कउची के, धोखा कउन बात के । ओकरा विस्वास हल कि हमरा कोई धोखा न दे सके हे । अगर कोई धोखा दे सके हे त अपने आप के ।)    (माकेम॰64.1)
656    बेहाथ (~ होना) (घोड़ा आ बेटा बिना कसले बेहाथ हो ही जाहे ।)    (माकेम॰51.7)
657    बोआरी (केकरो माथा में तेल लगावे ला जीव खखनइत होयत बाकी इनका घरे रोज इचना आ बोआरी तेल में छना हल ।)    (माकेम॰56.9)
658    बोइआम (अदउरी-तिसिअउरी, दनउरी-चरउरी हिनका हीं जरूर मिल जायत । बोइआम में रखल एक से एक अँचार - आम के, लेमो के, इमली के, मिरचाई के, कटहर आउ करइला के, आलू आउ मुरई के - इनकर अलमारी के सोभा बढ़ावइत रहऽ हे ।; दुपहर में सतुआ खेसारिए के सही बाकी साथे पिआज जरूर चाही, सूखल पकावल मिरचाई आ आम के अँचार बिना गोला घेघा से नीचे न उतरत । एकर धेयान मालिको के रहत । ओकरा ला अलग से दू-चार बोइयाम अँचार लगाके रख दिआयेत ।)    (माकेम॰13.29; 48.3)
659    बोरा (उनका अवइते कोई पीढ़ा लाके देत, कोई बेना, कोई बोरा बइठे ला देत, कोई चटाई ।)    (माकेम॰23.15)
660    बोरिंग (एसो के अकाल में गाँव में कतना इनार खना गेल, कय गो बोरिंग धँस गेल, बाकी ई ? इनका ओहो घड़ी छुट्टी न । गाँव के रोड पास करावे में बेदम, काम के बदले अनाज स्कीम सफल करे में परेसान । दूनो काम कइसे होयत ।)    (माकेम॰51.26)
661    बोलहटा (अन्त में निरनय भेल - अभी खायल-पिअल जाय, देखऽ लइका के बोलहटा आ गेल ।; केकरो बोलहटा पड़े इया न, इनका जरूर पड़त - स्पेसल अदमी भेजल जायत बोलावे ला । का जनी उनका कहाँ से अतना गीत आवऽ हे । गीत गावे के न कहूँ टरेनी कयलन न कहूँ संगीत विद्यालय में पढ़लन-लिखलन ।)    (माकेम॰21.21; 24.19)
662    बोलाहट (= बोलहटा, बुलाहट) (केकरो छेंका-तिलक में महतो जी के बोलाहट भेल, इधर एकर भोंपा बजे लगत ।; केकरो अगुआ बरतुहार आयल हे, मुनारिक के माय के तीना छेंउके ला बोलाहट हो जायत ।)    (माकेम॰14.9; 49.18-19)
663    भक-भक (गोर ~) (सरीरो हल घोड़े लेखा गठल । गोर भक-भक, रूपगर भी ओइसने ।)    (माकेम॰21.29)
664    भतवान (केकरो बिआह होवे इया गवना, छेंका होवे इया तिलक, मड़वा होवे इया भतवान - हर समय उनकर हाथ में पैना लेखा हुक्का तइयार रहऽ हल ।)    (माकेम॰23.4)
665    भभूत (कतना के कोख भर गेल, कतना के माँग जुड़ा गेल । जादू हे इनकर हाथ में । काली जी के एकबाल हे इनकर भभूग {? भभूत} में ।)    (माकेम॰11.9)
666    भाला-गँड़ास (जाय दऽ, बोलवे न करऽ ही, त ई तो औरत के सोहाग-भाग हे । हिरदा के जे साफ रहऽ हे ओहे बोलवो करऽ हे, मन में घुरची न रहे ओहे झगड़ऽ हे । कोनो मार-पीट न न करी, भाला-गँड़ास न न चलाई ।)    (माकेम॰36.22)
667    भुँसहुल (= भुसहुल; भूसा रखने का घर । कहा॰ - जे न देखऽ हल गोठहुल से देखलक भुसहुल = जिसने गोइठा घर भी न देखा हो उसे भूसा घर मिल जाय; बुरी स्थिति से अच्छी दशा में आना) (अब ई अप्पन पहिलका धन्धा छोड़ देल । गोंहड़-गोंइठा अब न करे, केकरो पउता-पेहानी अब न ढोवे । जे घर-घर के दाई हल से पुरधाइन बन गेल । जे न देखलक गोठहुल से देखलक भुँसहुल ।)    (माकेम॰40.14)
668    भुच-भुच (करिया ~) (चउकोसी इनकर नाम हे, सभतर इनकर परचार हे - परचार हे इनकर दिआ के, नाम हे इनकर अच्छत के । इनकर दिआ ! बाप रे, देखइते हिया काँप जाहे, डाइन के काजर धोआ जाहे, देह के बायमत भाग जाहे । करिया भुच-भुच रीठल नादा लेखा, एक बित्ता करुआ तेल के परत जुगन से ई दिआ बरइत आ रहल हे ।)    (माकेम॰31.6)
669    भुतही (ओही में केकरो माय आके तनी एसा भुनुक देल इया कोई साही में गवाही दे देल तब ओकरा देखऽ । भुतही कोसी नदी लेखा तूफान मचा देत, भड़कल बैल लेखा गरदा उड़ा देत - सब गुड़ गोबर, सब चिकनावल बेकार ।)    (माकेम॰38.8)
670    भुनुकना (ओही में केकरो माय आके तनी एसा भुनुक देल इया कोई साही में गवाही दे देल तब ओकरा देखऽ । भुतही कोसी नदी लेखा तूफान मचा देत, भड़कल बैल लेखा गरदा उड़ा देत - सब गुड़ गोबर, सब चिकनावल बेकार ।)    (माकेम॰38.7)
671    भूँजा (कोई मड़ुआ के रोटी खिला रहल हे, कोई नयका धान के चूड़ा फँका रहल हे । केकरो हीं भूँजा, केकरो हीं फुटहा जरूर मिलत इनका । ई सब इनकर जूता के इनाम हे, काम आउ कला के मजूरी हे ।; गाँव आयल बाकी ऊ न अयलन । दू दिन बाद लहास मिलल । जे गेल से ठहर गेल । केकरो सतुआ ओरा गेल, केकरो भूँजा खतम हो गेल ।)    (माकेम॰20.27; 29.13)
672    भूंजना (ई तेल डालल चाहऽ हे जादे, मसाला भूंजल चाहऽ हे अधिक । बाकी ओकर पुतोह हे कंजूस, सेंगरनी । कह बइठत - तोरे लेखा खा-पोंछ न न जायब । जे कमयली से खा-पोंछ गेली ।)    (माकेम॰39.14)
673    भूत (~ खेलाना) (ई देवास न लगावथ, भूत न खेलावथ - बस चउकी पर बइठ के खाली अच्छत बाँटऽ हथ - बाकी कह देतन नजरावल हे इया केकरो देल हे ।)    (माकेम॰32.26)
674    भूत-मुआ (फिर बोललन, पेट के बिमारी हवऽ, कोनो बढ़िया डाक्टर से देखावऽ - भूत-मुआ के फेरा में मत रहिहऽ ।)    (माकेम॰33.17)
675    भूसा (केकरो महिनवारी खराब हे, धाध के सिकाइत हे, ई काढ़ा आ गोली देके ठीक कर देतन । अउरत के एक रुपया में एक बोतल काढ़ा आ मरदाना के 30 गोली पनरह दिन के । बस, अतने में बेमारी भूसा ।)    (माकेम॰34.5)
676    भेंट-मुलकात (तिरिथ जाये इया न जाये, मेला-हाट जरूर जायत । जाय के चाहबे करी । मेला घूमे से अदमी अँखफोर बनऽ हे, एक-से-एक अदमी से भेंट-मुलकात होवऽ हे ।)    (माकेम॰46.22)
677    मँझउली (फिर रंथी उहाँ से उठल त छोटकी अहरा पर दे होवइत मँझउली के संडक पकड़ लेल ।)    (माकेम॰16.6)
678    मँड़वा-भतवान (गाँव में केकरो बिआह-सादी ठन जायत त महतो जी सबसे जादे परेसान । छेंका से लेके तिलक ले, मटकोड़वा से लेके मँड़वा-भतवान ले, बराती से लेके चउठारी ले महतो जी पसेने-पसेने ।)    (माकेम॰12.18)
679    मँहटरी (= माहटरी, मास्टरी) (बइदगिरिए न, ऊ मँहटरियो जानऽ हथ । उनका से क-को करवा, ख-खो खरवा, एक से एक फुटेहरी, चौपाई के अरथ, हिन्दू-सास्तर के अनुसार धरम-विधान, सोरहो संस्कार, बिआह-सादी, मरनी-हरनी में करमकाण्ड जान लऽ - सबके ज्ञाता, पण्डित बिदमान होवे के अधिकार उनका एक साथ मिलल हे ।)    (माकेम॰12.3)
680    मंजिल (= श्मशान) (रंथी गाँव के अँखाड़ा पर आ गेल । दूबे जी पहुँच गेलन । सब कोई अप्पन-अप्पन खरचा से मंजिल चले ला तइयार हो गेल ।)    (माकेम॰16.4)
681    मंजिलाहा (= मंजिल या श्मशान जाने वाले लोग) (जइसहीं मंजिलाहा लोग गाँव में पैर धयलन कि सउँसे गाँव में पिपकार मच गेल । जेकरे देखऽ सेकरे आँख डबडबायल ।)    (माकेम॰16.19)
682    मउनी (मउनी बिनवावऽ इनका से, खटिया छनवावऽ इनका से । एक से एक गँरउरी, जाब, मोहरी, नाधा-जोती, सिकहर इनका से बनवा लऽ - एको पइसा खरच न - नौ नगद न तेरह उधार । महतो जी हइए हथ त एकर सवाले कहाँ उठऽ हे ?; जब एकर मकान उठइत हल तब बिसहन मजूर रोज खटऽ हलन, कउन मजूर कतना ईंटा ढोयलक, कउन कै मउनी माटी गिरवलक, राजमिस्त्री के कतना हिसाब भेल, बढ़ही-लोहार के कतना बकाया गिरल - सब ओकर अँगुरी पर ।)    (माकेम॰12.10; 37.20)
683    मउनी-दउरी (मउनी-दउरी, गरँउटी-सिकहर बेच के अप्पन अप्पन घरवाली के भी पेट भरे के इन्तजाम कर देलन । कहीं से कुछ सीधा-बारी मिल गेल, अँगेया-पेहानी आ गेल, कोई बयना-बखरा देल गेल - उनकर धरमपत्नी संगेर के रखत । वास्तव में ऊ संगेरनी हे भी ।; मउनी-दउरी छनवावऽ एकरा से, लेदरा बइठवावऽ एकरा से ।)    (माकेम॰13.23; 49.10)
684    मखवाना (कोई चिहकल कुरती सिआवे आवइथे त कोई खोंच लगल लुगा मखवाइथे ।  कोई माथा गुहावे आयल हे त कोई ढील हेरावे ।)    (माकेम॰49.11)
685    मजूरी (मजूरी के आज तक हिसाब-किताब न, सब मलिकाइने जानऽ हलन । जे दे देलन से ले लेल ।)    (माकेम॰63.32)
686    मटकोड़वा (गाँव में केकरो बिआह-सादी ठन जायत त महतो जी सबसे जादे परेसान । छेंका से लेके तिलक ले, मटकोड़वा से लेके मँड़वा-भतवान ले, बराती से लेके चउठारी ले महतो जी पसेने-पसेने ।; केकरो मटकोड़वा सुरू भेल, ढोल बजे लगल, नाउन माथा पर दउरी लेके चलल ओ घड़ी तड़ुका दाई सबसे आगे-आगे चलतन पीछे से सब गीतहारिन ।)    (माकेम॰12.18; 25.2)
687    मटरगस्ती (केकरो खोजे ला हे, घरे न हथ, पहुँच जा महतो जी के दलान पर - पा जयबऽ महतो जी के साथे उनका मटरगस्ती करइत ।)    (माकेम॰13.1)
688    मट्टी (= मिट्टी) (जइसने घर-दुआर के सफाई ओइसने सरीर के भी । रोज नेहायत । दूर-दूर से करिक्की माटी ले आवत - ओकरे से माथा मलत । सउँसे देह में गोरकी मट्टी लगावत । खूब मल मल के नेहायत । साबुन से ओकरा घिरना हे । जेकरा फोड़ा-फुंसी हो जायत ओकरा गोरकी मट्टी लगाके नेहाये ला सलाह देत । गोरकी मट्टी चमड़ा के मुलायम रखऽ हे, ओकर छेद के साफ रखऽ हे आ सबसे बड़का काम हे एकर चमड़ा के रंग चमाचम कर देना ।)    (माकेम॰46.11, 12, 13)
689    मड़वा (= मँड़वा) (केकरो बिआह होवे इया गवना, छेंका होवे इया तिलक, मड़वा होवे इया भतवान - हर समय उनकर हाथ में पैना लेखा हुक्का तइयार रहऽ हल ।)    (माकेम॰23.4)
690    मड़वारी (= मारवाड़ी) (आने में अप्पन साहेब के पटक देलन । छोड़ देलन नौकरी, फेंक देलन कार के चाबी - चल देलन घर आ फिर कभी लौट के कलकत्ता न गेलन । मड़वारी के घर रहके खयले-पीले, पेन्हले-ओढ़ले । ऊ आदत इहाँ ले उनका बरकरार रहल ।)    (माकेम॰58.27)
691    मतवाही (= चेचक, शीतला रोग) (केकरो मतवाही हो गेल, देह में दोदरा उठ गेल हे, ओकर उपचार ई खूब जानऽ हे ।)    (माकेम॰38.15)
692    मतारी (= माँ, माता) (त अइसन हे मुनारिक के माय - सानवाला औरत, गुमानवाला मतारी ।)    (माकेम॰50.1)
693    मतुहाना (ई कहूँ से थकाल-फेदायल अवतन, ऊ झरुआ लेके बहारे लगत । पेन्ह-ओढ़ के कहीं जाय लगतन, मतुहायल पानी माँगतन, ऊ भरल गगरा के पानी उझिल देत ।)    (माकेम॰54.15)
694    मथपीरी (= सिर-दर्द) (जादू हे इनकर हाथ में । काली जी के एकबाल हे इनकर भभूग {? भभूत} में । केकरो पेटबथी होवे इया उल्टी, मथपीरी होवे इया चक्कर - एकबार महतो जी के दलान पर पहुँच जा - छूमंतर !; मथपीरी, घुमरी, सूखा आ मिरगी के जड़ी-बूटी हमेसे एकर एगो बसना में छोट-छोट काट के रखल रहत ।)    (माकेम॰11.9; 38.13)
695    मध (= मधु, शहद) (हुक्का से उनका बड़ा प्रेम हल - ओतने जतना चूटी के चीनी से, मधुमक्खी के मध से आउ बिलाई के मलाई से ।)    (माकेम॰23.6)
696    मनगर (ई तो खैर कहऽ, दूनों पुतोह मिल गेलू हे मनगर सुभवगर न त ई बिना मारले मर जयतन हल । खाहूँ-पीहूँ ला केऊ न पूछइत - बेटा बनभाकुरे आउ अउरत कराकसीने ।)    (माकेम॰54.12)
697    मनभोग (इनकर दही-दूध, जिरवानी डालल मट्ठा, जड़ी-बूटी के नोस्खा, महरानी जी के भभूत, गोरैया के सिरवानी, महबीर जी के पेड़ा, गनेस जी के लड्डू, बरहम बाबा के अच्छत, ठाकुर जी के मनभोग - इनकर एक-से-एक करामात से लोग नेहाल हो गेलन ।)    (माकेम॰11.6)
698    मनी-बटइया (कतना इनकर साथी जे दोसर के मनी-बटइया खेत लेके जीअ हलन ऊ इनकर चमचागिरी करके खेतिहर हो गेलन ।)    (माकेम॰57.12)
699    मनौती (= मन्नत) (पंडित जी के घर में मनौती उतारल जाइत हे, कथा कहावल जाइत हे । जागा के कायाकल्प हो गेल । धन हे जागा ! आ धन हथ उनकर मालिक आ मालकिन !)    (माकेम॰64.23)
700    मरखाहा (बात करे में ऊ बड़का माहिर - सट-सट के बतिआयत, घुर-घुर के बतिआयत । ओहे जगा गाँव के चनेसर सिंह सबसे मरखाहा गिना हथ । केकर मजाल हे कि उनका पर नजर उठा के ताक देत, मुँह खोल के बतिया लेत ।)    (माकेम॰40.30)
701    मरनी-हरनी (बइदगिरिए न, ऊ मँहटरियो जानऽ हथ । उनका से क-को करवा, ख-खो खरवा, एक से एक फुटेहरी, चौपाई के अरथ, हिन्दू-सास्तर के अनुसार धरम-विधान, सोरहो संस्कार, बिआह-सादी, मरनी-हरनी में करमकाण्ड जान लऽ - सबके ज्ञाता, पण्डित बिदमान होवे के अधिकार उनका एक साथ मिलल हे ।; तनी चट्टन हे भी ऊ । तीना ला ऊ घरे-घरे घूम आयत । सबके घरे के सोवाद के सौभाग एकर जीभ के परापित हे । केकरो बिबाह-सादी इया मरनी-हरनी में सबके धेयान मड़वा पर, केकरो सेजियादान पर, बाकी एकर धेयान कड़ाही पर, कड़ाही में डालल तेल-मसाला पर ।)    (माकेम॰12.5; 38.26)
702    मरम्मती (ई तरह से ऊ अप्पन जूता के परचार करऽ हलन, जूता के बिक्री करऽ हलन । जे पेन्हलक से दाम सधा के छोड़लक । इनकर एगो आउ सिफत हल - जूता टूट गेला पर मुफ्त सिलाई, बिना पइसा के मरम्मती, गारंटी तीन साल - बीच में टूट गेला पर पइसा वापस इया जूता बदलयन ।; इनकर दलानो हे बड़ा रोखनगर । हे तो पुरनका जमाना के बाकी जमीन्दारी के ठाट हल । भड़कदार मकान के भड़कदार दलानो होय के चाही । अब तो मरम्मती बिना बिगड़ रहल हे ।)    (माकेम॰20.2; 55.5)
703    मलिकाइन (घरे-बने एके रंग - पुतोह होवथ चाहे गोतिनी होवथ चाहे मलिकाइन । बिना टकरैले न रहत, उठिए सुत एक ढेला गोतिनी पर फेंकत जरूर ।; ताड़ी पिए के आदत । आ जब ऊ पी लेवऽ हल तो सीध बिचला कित्ता में पहुँच जा हल, जहाँ सब मलिकाइन ओकरा से हँस-हँस के बतिआए लगऽ हलन । आ जागा निसा में अपन मेहरारू के बात कहे लगऽ हल ।; आ जब ऊ खेत-खलिहान से लौट के आवऽ हल तब अप्पन झोली फैला के बइठ जा हल । आ ओने से बड़की मलिकाइन एक अँजुरी भूँजा आउ रामपरपन तिवारी के लावल मिठाई उझील देव हलन ।)    (माकेम॰35.11; 63.9, 25)
704    मलिकार (= मालिक) (ऊ कभी गर बैल पसन्द न कयलक । मलिकार से ऊ बिगड़ जा हल बैल खरीदे ला । खुद अपने मेला में जा हल, अप्पन पसन्द से बैल मालिक से खरिदावऽ हल जे ओकर टिटकारी पर घिरनी लेखा नाचे लगे ।)    (माकेम॰62.10)
705    मल्मरी (सेनगुप्ता धोती ई पेन्हबे कयलन । मटका आ मल्मरी के कुरता ई बनयबे कयलन ।)    (माकेम॰56.20)
706    मवस्सर (= मयस्सर) 9पइसा के लोभ, गरीबी के बोझ बेचारी के दही-मट्ठा के मवस्सर न होवे देवे ।)    (माकेम॰47.11)
707    मसुरी (= मसूर) (कुछ भगवानो के देन होवऽ हे । ओई जगा सहुआइन के दूधे न होवे । उनकर सब लइकन दूधकटुए रह गेलन । सटले बखोरना के माय माड़ पिअइते रह गेल, मसुरी के दाल सुड़कइते रह गेल बाकी काहे ला दूध उतरो । एने मुनारिक के माय कइसन हे - सालो भर ओकर छाती से दूध चुअइते रहऽ हे । बर के डउँघी हे, कभी सुखवे न करे ।)    (माकेम॰44.9)
708    महतवाइन (= महतमाइन) (जेतना कदर लोग महतो जी के करऽ हथ, ओतने महतवाइन के न करथ । ... महतो जी हथ पुरान बिचार के, बसेआयल संस्कृति के माने ओला । ई लेल ऊ महतवाइन के घर से बाहर कहूँ न जाय देथ ।)    (माकेम॰14.3, 6)
709    महतो (जइसन साहु जी के दोकान ओइसन महतो जी के दलान । महतो जी के के न जाने ?)    (माकेम॰11.1)
710    महरानी (= महारानी; चेचक की देवी; निठल्ला बैठी रहनेवाली महिला) (इनकर दही-दूध, जिरवानी डालल मट्ठा, जड़ी-बूटी के नोस्खा, महरानी जी के भभूत, गोरैया के सिरवानी, महबीर जी के पेड़ा, गनेस जी के लड्डू, बरहम बाबा के अच्छत, ठाकुर जी के मनभोग - इनकर एक-से-एक करामात से लोग नेहाल हो गेलन ।)    (माकेम॰11.5)
711    महिनवारी (= मासिक-स्राव) (केकरो महिनवारी खराब हे, धाध के सिकाइत हे, ई काढ़ा आ गोली देके ठीक कर देतन ।)    (माकेम॰34.2)
712    माँड़ना (केकरो चोरा समा गेल हे, ई झार देत । झूठा धयले हे, छोड़ा देत । केकरो अँगुरी मुरक गेल हे, माँड़ देत । लइका के गड़हन लगल हे, ठीक कर देत ।)    (माकेम॰49.17)
713    माखी (= मक्खी) (आँख धँस गेल, दाढ़ी लटा गेल पक के, माखी भिनिक रहल हे । के आवो ? गोतिया-नइया सब कोई हे बाकी ई बुझलन केकरा ? अप्पन चमचगीर के लागे, बदाम के एगो छिलको गोतिया-नइया के अंगना में फेंकले रहितन हल त इयाद रहीत ।)    (माकेम॰59.21)
714    माटी (= मट्टी, मिट्टी) (करिक्की ~; गोरकी ~) (जइसने घर-दुआर के सफाई ओइसने सरीर के भी । रोज नेहायत । दूर-दूर से करिक्की माटी ले आवत - ओकरे से माथा मलत । सउँसे देह में गोरकी मट्टी लगावत । खूब मल मल के नेहायत । साबुन से ओकरा घिरना हे । जेकरा फोड़ा-फुंसी हो जायत ओकरा गोरकी मट्टी लगाके नेहाये ला सलाह देत ।)    (माकेम॰46.10)
715    माड़ (= माँड़) (कुछ भगवानो के देन होवऽ हे । ओई जगा सहुआइन के दूधे न होवे । उनकर सब लइकन दूधकटुए रह गेलन । सटले बखोरना के माय माड़ पिअइते रह गेल, मसुरी के दाल सुड़कइते रह गेल बाकी काहे ला दूध उतरो । एने मुनारिक के माय कइसन हे - सालो भर ओकर छाती से दूध चुअइते रहऽ हे । बर के डउँघी हे, कभी सुखवे न करे ।)    (माकेम॰44.9)
716    मान (= माँद, मुँह) (रात में थरिया न मलायल ओकरा ला चार बात, लोटा न चमचम चमकल ओकरा ला दस गण्डा गारी । सूप खूँटी में न टँगायल, बढ़नी पार के न रखायल, चूल्हा न लिपायल, कोठ के मान न मुनायल एकरा ला बिसहन हुरकुच्चा । हुरकुच्चा सुनइत-सुनइत ऊ हेहर हो गेल ।)    (माकेम॰35.18)
717    मारामारी (एने दुआरी लगल खतम, ओने सनीचर परेसान । लोग जुटल हथ सट्टा लिखावे ला, बेयाना देवे ला - बाकी सब पहिलहीं से बुक । एकाधगो लगन बचइतो हे त ओकरा ला झगड़ा, मारामारी के नउबत । सनीचर केकर सट्टा लिखथ ई लेल पसेने-पसेन, गिल-पील ।)    (माकेम॰21.19)
718    मिनती (= विनती) (आरजू-~) (अन्त में लोग पोरसिसिआ करे लगलन - अउरत के बात हे, इज्जत के सवाल हे । छोड़ देवल जाव, माफ कर देवल जाव । आरजू-मिनती होये लगल । ओकर आँख से ढर-ढर लोर गिरे लगल ।)    (माकेम॰32.11)
719    मिरतुक (= मिरतु, मृत्यु) (जइसने सोभाव ओइसने भगवान उनका मिरतुको देलन ।; सतवंती अप्पन सत के जोर से स्वर्ग ध लेल । न कोई दुख भेल न कोई घटन । कइसन मिरतुक भेल । वाह रे मिरतुक ! भगवान मिरतुक देथ त अइसन । तिरिथ के मिरतुक स्वर्ग के फल । ऊ तिरिथ पर मरलन, स्वर्ग मिल गेल उनका । आझो उनकर मिरतुक के चर्चा कयल जाहे ।)    (माकेम॰28.27; 30.24, 25, 26)
720    मिसिराइन (= मिसिर या मिश्र का स्त्री॰ रूप) (रात में गाँव भर के लोग जुट के उनकर किरिया-करम करे ला मिटिंग कयलन । चन्दा वसूलाये लगल, बिहरी छँटाये लगल । मिसिराइन दू मन आँटा पहुँचवलन त करमू तीन मन भंटा । लंगाटू साव आलू पहुँचवलन त अक्तर मियाँ साग, सहुआइन तीन टीन डलडा देलन त गंगा साव चीनी आउ पत्तल ।)    (माकेम॰16.24)
721    मुँह (~ लड़ाना; ~ फुलाना) (केकरा ओतना गूदा हे खोपड़ी में, केकरा ओतना गरमी हे माथा में जे टिक पावत एकरा से मुँह लड़ावे में ।; एक दिन तनी एसा सहुआइन कहूँ भुनुक देलन - 'अये, लोग जाव त जाव, हम नान्ह जात के झोपड़ी में न न जायब । हमरा भगवान बइठका न देलन हे कि ओकर झोपड़ी अगोरले रहूँ ?' आझ ले ऊ उनका से मुँह फुलौले रहऽ हे । नजरो उठाके न ताके ।)    (माकेम॰35.7; 49.30)
722    मुँहजरी (जे तड़ुका दाई सबके हँसा-हँसा मारऽ हथ, मरद के छोड़लो पर कुलेंच मारइत रहऽ हथ, सेकरा भला रोआ देलकई । कहऽ तो भला, ऊ मुँहजरी के अइसन चाहऽ हलई ।)    (माकेम॰27.12)
723    मुआर (एने पानी मोरायल तब तक ओने बलुआही जमीन सूख गेल । एने परीत रह गेल त ओने मुआर हो गेल । खेती आ बेटी तकतेहानिए से बनऽ हे । बेटी बिना बिअहले आ खेत बिना बिदहले बर्बाद हो ही जायत ।)    (माकेम॰51.19)
724    मुखिया (इनकर बाबूजी गाँव के मुखिया हलन । आज के मुखिया न, पुरनका जमाना के बिना चुनल मुखिया ।)    (माकेम॰52.12, 13)
725    मुठान (अलगे से देखला पर लगवे न करे कि ऊ औरत हे । मुठानो कुछ ओइसने मरदाना लेखा - लमा-चौड़ा मुँह, टील्हा लेखा उठल लिलार, मुगदर लेखा मोटे-मोटे बाँह, ताड़ लेखा कमर, सिलउट लेखा छाती, लम्ब-धड़ंग छव फुट ।)    (माकेम॰44.16)
726    मुनाना (रात में थरिया न मलायल ओकरा ला चार बात, लोटा न चमचम चमकल ओकरा ला दस गण्डा गारी । सूप खूँटी में न टँगायल, बढ़नी पार के न रखायल, चूल्हा न लिपायल, कोठ के मान न मुनायल एकरा ला बिसहन हुरकुच्चा । हुरकुच्चा सुनइत-सुनइत ऊ हेहर हो गेल ।)    (माकेम॰35.19)
727    मुरई (= मूली) (अदउरी-तिसिअउरी, दनउरी-चरउरी हिनका हीं जरूर मिल जायत । बोइआम में रखल एक से एक अँचार - आम के, लेमो के, इमली के, मिरचाई के, कटहर आउ करइला के, आलू आउ मुरई के - इनकर अलमारी के सोभा बढ़ावइत रहऽ हे ।)    (माकेम॰13.30)
728    मुरकना (अँगुरी ~) (केकरो चोरा समा गेल हे, ई झार देत । झूठा धयले हे, छोड़ा देत । केकरो अँगुरी मुरक गेल हे, माँड़ देत । लइका के गड़हन लगल हे, ठीक कर देत ।)    (माकेम॰49.17)
729    मुलकात (= मुलाकात) (तिरिथ जाये इया न जाये, मेला-हाट जरूर जायत । जाय के चाहबे करी । मेला घूमे से अदमी अँखफोर बनऽ हे, एक-से-एक अदमी से भेंट-मुलकात होवऽ हे ।)    (माकेम॰46.22)
730    मुसहर (~ टोली) (हम्मर गाँव के उत्तर छोटकी अहरा से एगो डग्घर फूटल हे, जे शाहजहाँपुर पुल में जा के मिल गेल हे । ओही डग्घर पर चिचौंढ़ा गाँव के सामने मुसहर टोली हे ।;  बाकी अइसन कुछ बात हो गेल जेकरा चलते समूचा मुसहर टोली उठ के आ गेल डग्घर पर ।; जागा धन के भूखल न, मान आउ सम्मान के भूखल हल । पीढ़ा पर बइठा के ओकरा के खिलावत के ? मुसहर के खटिया पर के बइठावत ? ... पंडित जी हीं ओकरा साथे छुआछूत, ऊँच-नीच के कभी व्यवहार न भेल । ई लेल ऊ कभी उनका हीं से न टसकल ।; जागा मुसहर हल बाकी ब्राहमन हीं रहित-रहित ओकर कुछ संस्कार भी बदल गेल हल । रोज नहायत, तुलसी में जल डालत ओकरा बादे खायत ।)    (माकेम॰61.2, 4; 62.28; 63.3)
731    मुसहरी (जइसे कोई माय अप्पन बेटा के छाती से लगा के सब दूध पिला देव हे ओइसहीं ओकर झोली में उझील देवल जा हल । जागा हँसइत गाल तर मसकावइत साँझु भेला चल देव हल अप्पन मुसहरी के ओर ।)    (माकेम॰63.28)
732    मेहर-छेहर (बेचारा हरवाहा अकेले का का करो । ओकरो बाल-बच्चा हे, घर-दुआर हे, मेहर-छेहर हे । इनके लेखा दूसरा ला मरइत रहो त गुजर कइसे होयत ।)    (माकेम॰51.23)
733    मेहराना (बिआह में कण्ठ के कोने जरूरत थोड़े होवऽ हे । ओ घड़ी तो एक से एक सुरैया के तान भी पझा जाहे जइसे बरसात में ढोलक मेहरा जाहे ।)    (माकेम॰23.25)
734    मोजर (आम के ~) (केकरो आम के मोजर खराब हो रहल हे, केला के फर गउँजा रहल हे - ओकर उपाय महतो जी के दलान पर लिखके टाँगल हे - धान में हरदा, मकई में खोजरा, आलू में गोजरा, साग में पोजरा लग गेल - ओकर इलाज महतो जी के दलान पर जा के पूछ लऽ ।)    (माकेम॰11.25)
735    मोटिहा (लूगा मोटिहे के सही बाकी साफ सुथरा रहे के चाही ।)    (माकेम॰45.26)
736    मोरना (= मोड़ना) (पानी ~) (एगो हरवाहो रखले हथ त भगवान के सँवारले । बिना कमाण्डर के सिपाही डिउटी का करत । आझ पानी मोरे ला हे त कल्ह रोपनी लगावे ला । एने पानी मोरायल तब तक ओने बलुआही जमीन सूख गेल । एने परीत रह गेल त ओने मुआर हो गेल । खेती आ बेटी तकतेहानिए से बनऽ हे । बेटी बिना बिअहले आ खेत बिना बिदहले बर्बाद हो ही जायत ।)    (माकेम॰51.17)
737    मोराना (पानी ~) (एगो हरवाहो रखले हथ त भगवान के सँवारले । बिना कमाण्डर के सिपाही डिउटी का करत । आझ पानी मोरे ला हे त कल्ह रोपनी लगावे ला । एने पानी मोरायल तब तक ओने बलुआही जमीन सूख गेल । एने परीत रह गेल त ओने मुआर हो गेल । खेती आ बेटी तकतेहानिए से बनऽ हे । बेटी बिना बिअहले आ खेत बिना बिदहले बर्बाद हो ही जायत ।)    (माकेम॰51.18)
738    मोरी (~ कबारना) (हर जोते में ओइसने, मोरी कबारे में ओइसने, बोझा ढोवे में ओइसने । एही से धरती माय ऊ बेटा से बड़ी खुस रहऽ हल काहे कि सचमुच में हल ऊ माटी के औलाद ।)    (माकेम॰62.15)
739    मोसमात (= विधवा) (एही कारन हे कि न तो घर दुआर पर ध्यान देलन न खेत-बधार पर । पाँच बीघा खेती हे, ओहो मोसमात के फुलवारिए लेखा एने मेंड़ ढहल, ओने घास जमल ।)    (माकेम॰51.15)
740    मोहरी (मउनी बिनवावऽ इनका से, खटिया छनवावऽ इनका से । एक से एक गँरउरी, जाब, मोहरी, नाधा-जोती, सिकहर इनका से बनवा लऽ - एको पइसा खरच न - नौ नगद न तेरह उधार । महतो जी हइए हथ त एकर सवाले कहाँ उठऽ हे ?)    (माकेम॰12.11)
741    रंथी (= अर्थी) (बीच अँगना में उनका उत्तरे-दक्खिने पार देवल गेल । सरधा के फूल चढ़े लगल । लोग बढ़िया से इनकर रंथी सजवलन । कफन से रंथी अलग गेल, फूल से लद गेल ।; रंथी गाँव के बीच गली से निकलल ।)    (माकेम॰15.25, 26, 30)
742    रकटा (सबेरे-सबेरे चारगो अउरत एकर दुहारी पर खाड़ रहत - कोई लोटा लेले, कोई कटोरा लेले । ई नरकटा से सबके बर्तन भर देत ।)    (माकेम॰39.28)
743    रतउँधी (ओकरा विस्वास हल कि हमरा कोई धोखा न दे सके हे । अगर कोई धोखा दे सके हे त अपने आप के । परकिरती नेयाय करऽ हे । बाकी रहऽ हल बेचारी हरमेसा रोगिआयल । रतउँधी के बेमारी ओकरा हरमेसा रहऽ हल ।)    (माकेम॰64.3)
744    रमयनिहा (महतो जी गाँव के नामी रमयनिहा । बुढ़ारियो में ओतने तान मारल चाहऽ हथ बाकी अब ऊ साँस कहाँ, ऊ करेजा कहाँ ।)    (माकेम॰40.6)
745    रहता (= रस्ता, रास्ता) (हदरी चाची जब तरकारी लेके चलत तब भर रहता ओठ सिकुड़ावइत आवत । रह-रह के तोपल पत्ता उघार-उघार के देखइत चलत । केउ टोक देत त बहाना बना देत - 'न बबुआ, देखइथीक कि कुछ पिल्लू-कानर तो न पड़ गेलइ हे, अउरा तो न गेलई हे आउ का रहतवे में खाइथीक ।')    (माकेम॰39.4, 6)
746    रहरी (= राहड़, अरहर) (~ के दाल) (बसमतिया चाउर के भात, रहरी के दाल, गाय के घीव, पाँच गो तरकारी ओह घड़ी केकर धक हल गाँव में खाय के, बाकी इनका ला रोज चउका के सोभा हल ।)    (माकेम॰57.3)
747    राताराती (कोई हँस देल - 'अरे जा, धक बाबा के कउची बात चलावइत ह, दुआर पर एगो फूटल ढोल हइए न हइन आउ ... ।' फिर का ? असपुरा रजिस्ट्री में दस कठा घिंसा गेल । राताराती हरमुनियाँ, ढोलक, सितार और बेंजो खरीदा के आ गेल ।)    (माकेम॰57.8)
748    रिचना (हम अप्पन दुलारी धिया चन्द्रावती बेटी के बहाव में बहे न देब । ओकरे सहजोग हे कि हम बेमारी के हालत में बिछौना पर पड़ल-पड़ल बोलइत गेली आ ऊ लिखइत गेल, हम सोंचइत गेली आ ऊ रिचइत गेल । हम्मर प्रेस कॉपी आ 'धक बाबा' आउ 'जागा' हाल के रचना ओकरे रिचल हे, सब कुछ ओकरे सँवारल हे ।)    (माकेम॰8.13, 14)
749    रिबिछ (= किसी खाद्य पदार्थ का बिगड़ा हुआ एक स्वाद) (खाइत जायत आ सवाद-बेसवाद पर बकइत जायत - जेकर जइसन रूच होवऽ हे ओइसने तरकारियो बनऽ हे - कोनो करम के ना, तनी रिबिछो करुआइनो-तेलाइनो न । बढ़िया मिल गेला पर खूब सिसिआयत, जीभ चटकारत आ कहत - हँ, देखऽ त ई कइसन हे ।)    (माकेम॰39.10)
750    रीचना (तिरिपती बाबू, विद्यार्थी जी, राही जी, करुनेस जी आ नगेन्दर बाबू के आसिरबाद के अछत हे, उनकर वरदान के रूप हे जे रीच-रीच के सजवलन, सहीर-सहीर के बाँचलन ।)    (माकेम॰8.2)
751    रीठना (= मैल या गंदगी जमा होना) (चउकोसी इनकर नाम हे, सभतर इनकर परचार हे - परचार हे इनकर दिआ के, नाम हे इनकर अच्छत के । इनकर दिआ ! बाप रे, देखइते हिया काँप जाहे, डाइन के काजर धोआ जाहे, देह के बायमत भाग जाहे । करिया भुच-भुच रीठल नादा लेखा, एक बित्ता करुआ तेल के परत जुगन से ई दिआ बरइत आ रहल हे ।)    (माकेम॰31.6)
752    रुआ (= रूई) (गाँव के लइकन उनकर लइकन । ई लेल उनका निकोखी होये के आह कभी न आयल । अप्पन बड़का गो परिवार देख के उनकर छाती गाँजल रुआ लेखा फूलल रहऽ हल । हरनी-मरनी में ऊ केकरो हीं न जा हलन । एकरा से उनका घिरना न हल । उनका हिरदये थमयेबे न करऽ हल । ऊ केकरो श्राद्ध देख के रोवे लगऽ हलन ।)    (माकेम॰28.23-24)
753    रूच (= रुचि) (तीना के सवाद तीन तरह से आवऽ हे - तरगर तेल, तितगर मसाला आ तरख मिजाज । तरकारी छेंउकेओला के रूच पर भी तरकारी के स्वाद आवऽ हे ।; जेकर जइसन रूच होवऽ हे ओइसने तरकारियो बनऽ हे - कोनो करम के ना, तनी रिबिछो करुआइनो-तेलाइनो न ।; बइगन-भण्टा के तरकारी में ओकर रूच जादे रहऽ हे ।)    (माकेम॰38.29; 39.9, 12)
754    रूपगर (सरीरो हल घोड़े लेखा गठल । गोर भक-भक, रूपगर भी ओइसने ।)    (माकेम॰21.29)
755    रूसना (= रूठना) (केकरो चिन्ता हे पत्तल आउ नरकोरवा ला, केकरो चीनी आउ सूजी ला - केकरो तीना तरकारी ला, केकरो गहना-जेवर ला । कोई लूगा-फाटा ला रूसल हे त कोई पूछला बिना फूलल हे । बाकी ई मस्त ! निफिकिर - गावे ला परेसान ।; केकरो साहसो न पड़े कि पूछे उनका से । एक दिन हम्मर चाची बड़ा हिम्मत बाँध के सपर के उनका से पूछ देलक - 'अयँ दाई, कतना सुघर हऽ, इतना सुन्दर गावऽ हऽ तइयो ओझवा बाबा काहे रूसल रहऽ हथु ? सुनऽ ही गेतहेरिन अउरत के मरदाना जादे मानऽ हे ।')    (माकेम॰25.16; 27.3)
756    रूह-चुह (रूह-चुह बगान मुरका गेल, केला के फर दुख से लरक गेल, अनार-अमरूध पिअरा गेल ।)    (माकेम॰15.22)
757    रेघाना (जउन घड़ी तरकारी छेंउकायत ओ घड़ी ऊ अजबे गीत रेघवतन, अँगना में तिलक कम मिलला पर लइका के बाप इया भाई तड़ंग-फड़ंग बान्ह रहल हे, ऊ अइसन गीत ठानतन कि सबके खीस ठण्ढा - सबके क्रोध जमके बरफ हो जायत ।)    (माकेम॰24.31)
758    रेयान (जेकरा जहाँ मन बइठे, कोई रोक-टोक न, कोई भेदभाव न । अपने से ई केकरो न कहतन रेयान होके काहे खटिया पर बइठ गेले । भले कोई लाजे-सरमे दुबकल दरी पर बइठ जाए बाकी ई कुछो न कहतन बल्कि मुँह से निकलिए जाएत - उपरे बइठऽ न हो ।)    (माकेम॰55.8)
759    रेसा (~ रचाना) (कान्हे-कान्हे रंथी पहुँच गेल बाँसघाट, पटना । दस मन लकड़ी, सवा मन चन्दन-धूप आउ घीव अन्तिम कपाल किरिया के सब सरजाम जुटा के रेसा रचावल गेल । अब उनका आग, मुखबत्ती के देत ? - ई सवाल पर दस गो आदमी तइयार ।)    (माकेम॰16.11)
760    रोआ (~ भरना) (आँख पथरिया गेल आ ढर-ढर गिरे लगल लोर । हम्मर चाची के तो काठ मार गेल । ऊ जगा बइठल दू-चार अउरत भउँचक हो गेल । लोग बिगड़े लगलन हम्मर चाची पर । गाँव के मालूम भेल त अउरत सब एकरा घिनावे लगलन - निसोगी काहे ला पूछलई हल । ओकरा लेखा आउ केउ उछँहत न हलई । बेचारी के रोआ भरलई कातो ।)    (माकेम॰27.10)
761    रोआना (= रुलाना) (जे तड़ुका दाई सबके हँसा-हँसा मारऽ हथ, मरद के छोड़लो पर कुलेंच मारइत रहऽ हथ, सेकरा भला रोआ देलकई । कहऽ तो भला, ऊ मुँहजरी के अइसन चाहऽ हलई ।)    (माकेम॰27.12)
762    रोखगर (उनकर दलानो बड़ा रोखगर, हवादार - पहिल किरिन से नेहाय ओला, चान से गमगाये ओला - गाँव के सबसे पूरुब हे ।)    (माकेम॰13.1)
763    रोखनगर (इनकर दलानो हे बड़ा रोखनगर । हे तो पुरनका जमाना के बाकी जमीन्दारी के ठाट हल । भड़कदार मकान के भड़कदार दलानो होय के चाही । अब तो मरम्मती बिना बिगड़ रहल हे ।)    (माकेम॰55.3)
764    रोपनी (= रोपने की क्रिया या भाव; रोपने वाली मजदूरनी; धान रोपने का काम) (ओही हाल भादो के रोपनी में । जखनी तेतरी आ मन्दोदरी फाँड़ा खोंसे लगत तखनी ले ऊ एक पाह लगा देत । जखनी ऊ अधिआवत तखनी ई आपन पाह पुराके निसचिन्त ।; जइसने ओकर माय से रोपनी करावे ला मार होवऽ हे, ओइसने ओकरा से हर जोतावे ला ।; आझ कहाँ हर चलत, कल्ह कहाँ आरी दिआयत, एकर धेयान ओहे रखत । कउन खेत में बीहन डलायत, कहिया रोपनी लगत, कयगो लगत, कतना खाद छिटावत एकर लेखा-जोखा ओहे रखत ।)    (माकेम॰45.6; 47.19, 25)
765    रोपनी-डोभनी (बिआहे रात सास चूल्हा धरा देलन । बने-बने साथे टाँगले चललन । कुटौना-पिसौना, रोपनी-डोभनी, कटनी-पिटनी सब कइली - सब सहली ।; कहाँ रोपनी-डोभनी करे ओला आझ राजगद्दी पर बइठऽ हे । दूगो बेटा - दूनो कमासुत । एगो खेती-गृहस्थी में आ एगो पढ़उनी में । सात सौ अलावे टिसनी अलग । मास्टर गजटेड आफिसर, पइसा पीट रहल हे ।)    (माकेम॰36.13; 40.1)
766    लगन (= विवाह की तिथि, समय आदि) (जखनी केकरो हीं मिलल पिअरी पहिर लेवऽ हलन तखनी उनकर रूप देखऽ । बाकी ई रूप उनकर लगने भर । आसाढ़ चढ़इते धरती माता के गोद में । ओ घड़ी देखऽ मजदूर किसान के रूप । कभी हाथ में कुदाल, कभी कान्ह पर हर ।)    (माकेम॰21.31)
767    लगना (= हल की मूठ, परिहथ) (बड़की तो उनका फुटलो आँखे न सोहाये । ओकरा दुख हे - 'एगो के लगना धरवलन आ एगो के कुरसी बइठवलन । बाकी ऊ का करी ? दोस ओकर हे थोड़े ।; हर बनत एकर विचार से । जखनी ऊ लगना पर हाथ धरत तखनी बैल बिना टिटकारी मारलहीं फुरदुंगी हो जायत ।)    (माकेम॰41.15; 47.29)
768    लगहर (उनके महिमा से सालो भर एगो लगहर दूरा पर बान्हले रहत । मट्ठा-दही से गाँव के तर कयले रहत । मट्ठा-दही ऊ न बेचे ।; का खिलावऽ हे एकर माय ! बाकी बेचारी खिलावत का ? एगो लगहर बकरियो तो खूँटा पर न रह पावे । गरीब के अरमान चिन्ता के लौ बनके रह जाहे ।)    (माकेम॰39.24; 48.11)
769    लछनमान (एकर सगुन बड़ा धारऽ हे । किरखी में उपज जादे होयत । एकर पैरुख बड़ा लछनमान हे जइसन ओकर माय के दूध ।)    (माकेम॰48.8)
770    लटाना (आँख धँस गेल, दाढ़ी लटा गेल पक के, माखी भिनिक रहल हे । के आवो ? गोतिया-नइया सब कोई हे बाकी ई बुझलन केकरा ? अप्पन चमचगीर के लागे, बदाम के एगो छिलको गोतिया-नइया के अंगना में फेंकले रहितन हल त इयाद रहीत ।)    (माकेम॰59.21)
771    लड़वइया (परिवार में एक से एक पढ़ल-लिखल बिदमान, पट्ठा पहलवान, लड़वइया, गवइया-बजवइया, नाती-पोता देखके उनकर मन अगराइत रहऽ हल ।)    (माकेम॰28.11)
772    लड़ाकिन (कभी-कभी कोनो लड़ाकिन लड़की उनका से भीड़ जायत त उ उठके चल देतन बाकी गोड़ हात पड़के बइठा लेवल जायत ।; लड़ाकिन के लड़े के नसा होवऽ हे, बोले के आदत होवऽ हे । हदरी चाची लड़ाकिन हे, आदत से लाचार हे ।)    (माकेम॰24.17; 35.8, 9)
773    लमपोर (~ सरीर) (जे सुनल से पछतावे लगल - ओह हमहूँ रहिती त आझ डाइन के नाच देखिती न । अरे डाइन हल ! बाप रे ! बिलकुल अभी नवचेरिए तो हइए हल । उठल नाक, गोल-गोल गाल सेव लेखा, लाल फोंफी लेखा घेंची, ताड़ के कोआ लेखा आँख, बाँस के छउँकी लेखा कमर लचकावइत देख के, लमपोर सरीर, छरहर बदन, बैगनी रंग के साड़ी पेन्हले, माथ पर टिकुली साटले, माँग टिकले देख के लोग दाँते अँगुरी काटऽ हल - सरमा जा हल - केकर अउरत हे ई, कउन खानदान के इज्जत पर पानी फेर रहल हे ।)    (माकेम॰32.18)
774    लमरना (लोहा के के बनल हे ? हाड़-माँस के बनल तो लमर जयबे करत । भार पड़ला पर चरमरा के ढीला होहीं जायत । ओकरा साथे काम करे ओला के चाही पत्थल के करेजा, इस्पात के सरीर, पोरे-पोरे तेल पिआवल लाठी लेखा निसंठ मिजाज ।)    (माकेम॰45.12)
775    लमहर (तड़ुका दाई के परिवार बहुत लमहर हे, बड़का लर-जर । बाकी इनका देह से एको बाल-बच्चा न भेल । होवो कइसे ? लोग कहऽ हथ कि ऊ नवचेरिए हलन त उनकर मरद ओझवा बाबा छोड़ देलन ।)    (माकेम॰26.22)
776    लमा (= लम्मा; लम्बा) (जइसन इनकर काम ओइसने सरीर । लमा-लमा हाथ, एक हाथ के पेट, धँसल धवना, थपुआ लेखा गोड़ के सिपुली, बड़का-बड़का आँख, ताके में बकडेढ़, एक आँख लाल सुरूका, लगऽ हे अब बाहर फेंक देत ।)    (माकेम॰34.6)
777    लम्ब-धड़ंग (अलगे से देखला पर लगवे न करे कि ऊ औरत हे । मुठानो कुछ ओइसने मरदाना लेखा - लमा-चौड़ा मुँह, टील्हा लेखा उठल लिलार, मुगदर लेखा मोटे-मोटे बाँह, ताड़ लेखा कमर, सिलउट लेखा छाती, लम्ब-धड़ंग छव फुट ।)    (माकेम॰44.18)
778    लरकना (= लटकना) (रूह-चुह बगान मुरका गेल, केला के फर दुख से लरक गेल, अनार-अमरूध पिअरा गेल ।)    (माकेम॰15.23)
779    लर-जर (= बाल-बच्चे, संतान; छोटे-बड़े बच्चे; पुश्त-दर-पुश्त) (तड़ुका दाई के परिवार बहुत लमहर हे, बड़का लर-जर । बाकी इनका देह से एको बाल-बच्चा न भेल । होवो कइसे ? लोग कहऽ हथ कि ऊ नवचेरिए हलन त उनकर मरद ओझवा बाबा छोड़ देलन ।)    (माकेम॰26.22)
780    ललकना (एगो नीम के पेड़ हे ऊ कमाल के पेड़ हे । ओकर छाया तर दूपहर में बइठे ला लोग ललकल रहऽ हे ।)    (माकेम॰46.6)
781    ललका (घर के आगू में दू-चार गो केला के पेड़ लगवले रहत । ललका गेना के फूल किनारे-किनारे । बस, जादे जंगल झाड़ी ओकरा पसन न आवे ।)    (माकेम॰46.4)
782    ललायिन (= लाला की स्त्री) (जेकरा ऊ दूध पिलवलक से मुनारिके लेखा पट्ठा कमासुत निकलल । ... चमरू के तीनों बेटा तीन लाख के । तट-उपट कमाये में । तीनो कोइलवरी में पइसा पीट के धर देलक । ललायिन के आँख में आँख एक बेटा । ओहो आफिसर बनके सबके कान काट रहल हे ।)    (माकेम॰43.22)
783    लहठी-चूड़ी (कोई जरूरी हे कि जेकरा खरीदे ला हे ओही मेला जाय ? बल्कि ऊ तो आझ ले लहठी-चूड़ी आउ टिकुली-सेन्नुर छोड़के कुछो न खरीदलक । हँ, पथलौटी जरूर खरीदत । चटनी के ऊ सौखीन जादे हे, आ पथलौटी में चटनी खराब न होवे ।)    (माकेम॰46.24)
784    लहना (= दाव बैठना, लाभ मिलना) (कहल जाहे कि ओझा-गुनी के बंस न चले । डाक्टर अप्पन बेटा-बेटी के इलाज न करे - लहबे न करे, धारवे न करे । माहटर अप्पन बेटा-बेटी के न पढ़ा सकऽ हे - ऊ लचार हे, मजबूर हे अप्पन करम भाग पर ।)    (माकेम॰13.14)
785    लहफह (= ताजा, गरमागरम, भाप निकलता हुआ {भोजन}) (बारहो मास साग-सब्जी से लहफह किआरी, किआरी के बीच में एगो चबूतरा जेकरा पर शंकर जी के मुरती बसहा बैल के साथे विराज रहल हे ।)    (माकेम॰13.5)
786    लहर (तरवा के ~ कपार पर चढ़ना) (ई सब देख-देख के उनकर घरनी के तरवा के लहर कपार पर चढ़ जायत । जतने ऊ कुढ़त ओतने ऊ कुढ़वतन ।)    (माकेम॰54.24)
787    लहास (= लाश) (गाँव आयल बाकी ऊ न अयलन । दू दिन बाद लहास मिलल । जे गेल से ठहर गेल । केकरो सतुआ ओरा गेल, केकरो भूँजा खतम हो गेल ।; जब लहास मिलल तब किरिया-करम करे के विचार भेल ।)    (माकेम॰29.12, 16)
788    लांघन (~ पड़ना) (एकरा पास एगो बड़का मंतर हे - टोटड़म के मंतर । केकरो लांघन पड़ गेल हे, ई ठीक कर देत । केकरो भइँस के दूध छनक गेल हे, ई उतार देत । केकरो थनइल हो गेल हे, ई झार देत ।)    (माकेम॰38.11)
789    लाइन (कभी कोई पूछ देत - काहो कलट्टर काका, इनो साल बिजुलिया न लगतई का ? ऊ जबाब देतन - घबड़ाये से काम होवऽ हे । खम्मा गिरिए गेल हे, लाइन के परमिट बाकी हे, सेकरा ला लिखा-पढ़ी चल रहल हे ।)    (माकेम॰53.30)
790    लाजे-सरमे (जेकरा जहाँ मन बइठे, कोई रोक-टोक न, कोई भेदभाव न । अपने से ई केकरो न कहतन रेयान होके काहे खटिया पर बइठ गेले । भले कोई लाजे-सरमे दुबकल दरी पर बइठ जाए बाकी ई कुछो न कहतन बल्कि मुँह से निकलिए जाएत - उपरे बइठऽ न हो ।)    (माकेम॰55.9)
791    लावा (केकरो देवपूजी हो रहल हे - आगे-आगे ओहे चलतन । हरदी-कलसा हो रहल हे - सबसे आगे ऊ बइठतन । लावा छिंटावे चलल, बर के परिछन होये चलल, ओ घड़ी तड़ुका दाई पर सबके नजर टिकल रहत ।)    (माकेम॰25.5)
792    लास (= लाश) (जा ए धक बाबा ! आझ एहे सिद्धनाथ तोर लास के गंगा घाट तक पहुँचौतन, बाकी तू इनका ला एको धूर जमीन न छोड़लऽ ।)    (माकेम॰59.6)
793    लिखा-पढ़ी (कोई बात इयाद करे में ई बड़ा तेज । कोई लिखा-पढ़ी न, कोई बही-खाता न, बाकी सब सही - सब कण्ठस्थ । केकर बिआह कहिया भेल, केकर जनम कउन महीना, कउन निछतर, कउन दिन, कै बजे भेल - सबके जलम-कुण्डली एकर माथ में ।)    (माकेम॰37.13)
794    लिसोढ़ा (= लसोढ़ा) (ओ घड़ी कोलगेट हइए न हल, लाल मंजन हल, बाकी ऊ बेचारा लाल मंजन कहाँ से देखलक । बाँस आउ लिसोढ़ा के दतुअन काफी हल ।)    (माकेम॰62.6)
795    लीला (~ लगाना) (बात के डण्टा सहइत-सहइत एकर पुतोह तो ठण्ढा गेल । ऊ समझ गेल - इनका से मुँह लगावल अप्पन अकबद बिगाड़ना हे । ई से ऊ जादे चुप रहऽ हे । ई ओकरा खोदइत रहत बाकी ऊ कनघटिअवले रहत । का करो बेचारी, एक दिन के होवे तब न, रोज तो लीले लगवले रहऽ हे ।)    (माकेम॰35.16)
796    लुगा (बिजली के कड़क आ देवाल गिरला के आवाज होवऽ हल इनकर डंका से । खुस होके कोई नोट साटइथे, कोई इनाम गछइथे - धोती के इनाम, लुगा के इनाम ।; ओकर नाच देख के लोग अचरज में पड़ गेलन । सुनलन हल - डाइन लुगा खोल के नाचऽ हे से आझ परतच्छ देख रहल हथ ।)    (माकेम॰21.8; 31.5)
797    लूगा-फाटा (केकरो चिन्ता हे पत्तल आउ नरकोरवा ला, केकरो चीनी आउ सूजी ला - केकरो तीना तरकारी ला, केकरो गहना-जेवर ला । कोई लूगा-फाटा ला रूसल हे त कोई पूछला बिना फूलल हे । बाकी ई मस्त ! निफिकिर - गावे ला परेसान ।)    (माकेम॰25.16)
798    लूर (सच पूछऽ त महतो जी वास्तव में बरहगुना हथ । बरहगुना के तो बारहे गुन होवऽ हे, बाकि महतो जे में एक-से-एक लूर, हुनर, इलम ।)    (माकेम॰11.12)
799    ले (= तक) (जइसन साहु जी के दोकान ओइसन महतो जी के दलान । महतो जी के के न जाने ? बकरी से लेके छकरी ले, अदमी से लेके जनावर ले, चिअई-चुरूँग, खेत-बधार, साग-पात, गाछ-बिरीछ, सजिव-निर्जीव सब इनका से परिचित हथ - जानल-पहचानल घर के कजरी बिलाई ।)    (माकेम॰11.2)
800    लेदरा (~ बइठवाना) (मउनी-दउरी छनवावऽ एकरा से, लेदरा बइठवावऽ एकरा से ।)    (माकेम॰49.11)
801    लेमो (= नींबू) (अदउरी-तिसिअउरी, दनउरी-चरउरी हिनका हीं जरूर मिल जायत । बोइआम में रखल एक से एक अँचार - आम के, लेमो के, इमली के, मिरचाई के, कटहर आउ करइला के, आलू आउ मुरई के - इनकर अलमारी के सोभा बढ़ावइत रहऽ हे ।)    (माकेम॰13.29)
802    लोंघड़ना (सब ओकरे दूध पिलावल, ओकरे गोदी में खेलावल । कतना गिनावल जाव, कोंहड़ा के फर लेखा एक पर एक लोंघड़ल हे, सउँसे गाँव के चप्पर पर पसरल हे, दूब के जर आउ पपीता के फर लेखा गिनले न गिनाये ।)    (माकेम॰44.3)
803    लोकदिन (= मायके से वधू के साथ आई हुई दासी, परिचारिका) (केकर ठाँव-चउका न कइली ? केकर पउता-पेहानी न ढोइली ? बिआह-सादी में जूठा पत्तल उठयबे कइली, लोकदिन गेवे कइली । का छूटल हे हमरा ।)    (माकेम॰40.20)
804    लोछियाना (गाँव के अउरत कभी-कभी कह बइठऽ हे - 'हँ हे हदरी, अब तू ओहे हऽ । बेटा-पोता अफसर बन गेलवऽ, अब तू हमनी के पउता-पेहानी ढोयेबऽ । अब तो घरो-आँगन आयल छोड़ देलऽ ।' ... ई सुनके ओकर मन छिलबिला जायत । लोछिया के कहिए बइठत - 'हँ जी, त का चाहित हला - सब दिन भीखे माँगइत रहती । सब दिन तोर लोग के गोंहड़े-गोइठा करइत रहती हल । ...')    (माकेम॰40.18)
805    लोर (अतना पूछना हल कि उनकर बिहँसइत चेहरा मुरझा गेल । ओठ के दूनो पट बन्द हो गेल । आँख पथरिया गेल आ ढर-ढर गिरे लगल लोर ।)    (माकेम॰27.6)
806    वइदगिरी (सच पूछऽ त महतो जी वास्तव में बरहगुना हथ । बरहगुना के तो बारहे गुन होवऽ हे, बाकी महतो जे में एक-से-एक लूर, हुनर, इलम । वइदगिरी सीखऽ इनका से, खेत-बधारी के बात पूछऽ इनका से । महटरी आउ गीत-गवनई के कला सीखऽ इनका से ।)    (माकेम॰11.12)
807    वापुस (= वापस) (कोई इनकर जूता के सिकाइत कर देल, झट से जेबी से पइसा निकाल के कहतन - 'निकाल दऽ जूता, हई लऽ अप्पन दाम वापस ।' बाकी वापुस के लेवऽ हे - ऊ तो एगो खिलवाड़ हल, मजाक हल उनका कउँचावे ला ।)    (माकेम॰20.21)
808    वायल (आम छाप लूगा ऊ कभी न छोड़लक - भले इधर बेटा के कहे-सुने से वायल के पंजी पर धेयान कुछ चल गेल हे, तइयो बेसकीमती कपड़ा न पेन्हे ।)    (माकेम॰46.18)
809    सँइतना (= सइँतना, सैंतना) (सब मुँह के बक्सा में दिमाग के टेलीप्रिन्टर में सँइतल हे । जखनी मन करे तखनी सूद के हिसाब, चाउर के दाम, नेवारी के कीमत पूछ लऽ ।)    (माकेम॰37.27)
810    सँघतिया (उनकर माथ में चोट हल, दिमाग सुन्न हो गेल । सुन्न भेल से सुन्ने रह गेल जदपि कि उनकर सँघतिया रिक्शा पर लाद के अस्पताल में भरती करवा देलन ।)    (माकेम॰28.32)
811    सँभरना (= सँभलना) (कभी ओकर मिजाज सान्त हे, बड़ा मन से बतिआयत, सँभर-सँभर के बोलत ।)    (माकेम॰36.4)
812    संगेरनी (मउनी-दउरी, गरँउटी-सिकहर बेच के अप्पन अप्पन घरवाली के भी पेट भरे के इन्तजाम कर देलन । कहीं से कुछ सीधा-बारी मिल गेल, अँगेया-पेहानी आ गेल, कोई बयना-बखरा देल गेल - उनकर धरमपत्नी संगेर के रखत । वास्तव में ऊ संगेरनी हे भी ।)    (माकेम॰13.26)
813    संडक (= सड़क) (फिर रंथी उहाँ से उठल त छोटकी अहरा पर दे होवइत मँझउली के संडक पकड़ लेल ।)    (माकेम॰16.6)
814    सउँसे (सउँसे गाँव में लगऽ हल कि हम्मर घर के एगो सवाँगे उठ गेल जइसे अँगुठी में के नग कहूँ भुला गेल ।)    (माकेम॰16.21)
815    सक (= शक, सन्देह) (आझ कोनो साइंस पढ़वैया हिसाब के जनकार से कोनो हिसाब पूछल जाव - पन्ना के पन्ना रंग देतन, पोथी के पोथी लिख डालतन तइयो सही उत्तर निकले में सके होयत बाकी एकर फुटेहरी ला कोई किताब-कौपी के जरूरत न, कोई कागच-पिन्सिट के आवश्यकता न ।)    (माकेम॰37.24)
816    सट्टा (एने दुआरी लगल खतम, ओने सनीचर परेसान । लोग जुटल हथ सट्टा लिखावे ला, बेयाना देवे ला - बाकी सब पहिलहीं से बुक । एकाधगो लगन बचइतो हे त ओकरा ला झगड़ा, मारामारी के नउबत । सनीचर केकर सट्टा लिखथ ई लेल पसेने-पसेन, गिल-पील ।)    (माकेम॰21.17, 19)
817    सतुआ (गाँव आयल बाकी ऊ न अयलन । दू दिन बाद लहास मिलल । जे गेल से ठहर गेल । केकरो सतुआ ओरा गेल, केकरो भूँजा खतम हो गेल ।; दुपहर में सतुआ खेसारिए के सही बाकी साथे पिआज जरूर चाही, सूखल पकावल मिरचाई आ आम के अँचार बिना गोला घेघा से नीचे न उतरत । एकर धेयान मालिको के रहत । ओकरा ला अलग से दू-चार बोइयाम अँचार लगाके रख दिआयेत ।)    (माकेम॰29.13; 48.1)
818    सन (= -सा) (ढेर ~) (उनका बारे में ढेर सन जानकारी ला पूछताछ कइली ।)    (माकेम॰33.10)
819    सपरना (इनकर जूता बड़ी दूर-दूर ले जा हल - बिना विज्ञापन के, बिना कोई प्रचार के । लोग सपर के हिनका हीं जूता खरीदे आवऽ हलन ।; केकरो साहसो न पड़े कि पूछे उनका से । एक दिन हम्मर चाची बड़ा हिम्मत बाँध के सपर के उनका से पूछ देलक - 'अयँ दाई, कतना सुघर हऽ, इतना सुन्दर गावऽ हऽ तइयो ओझवा बाबा काहे रूसल रहऽ हथु ? सुनऽ ही गेतहेरिन अउरत के मरदाना जादे मानऽ हे ।'; इनका कोई अभीष्ट हे, देह पर कोई औघड़ हे जे ई सब बतावऽ हे, इनका से करवावऽ हे । एक बार हमहूँ गेली बड़ा सपर के कुछ देखावे के विचार से आ कुछ जाँचे के खेयाल से ।)    (माकेम॰18.3; 27.2; 33.2)
820    सभतर (चउकोसी इनकर नाम हे, सभतर इनकर परचार हे - परचार हे इनकर दिआ के, नाम हे इनकर अच्छत के ।)    (माकेम॰31.3)
821    समधिन (बिआह में समधी आउ समधिन जादे परेसान रहऽ हथ, बाकी उनका से कम परेसान तड़ुका दाई न रहथ । तिलक-बिआह, मड़वा आउ चउठारी के दिन ऊ सबसे जादे परेसान ।)    (माकेम॰25.12)
822    समधी (जहिया केकरो बराती आ जायत तहिया उनकर पिअरी धोती गाँव-गाँव के कोने-कोने में फहर जायत, उनकर माथ के पगड़ी आ झुलंक कुरता देख के सबके मन अगरा जायत । लगऽ हे इहे समधी हथ, इहे बरतुहार हथ ।; उनकर बिछंछल-बिछंछल गारी सुनके समधी भड़क जायत, बरतिआहा सनक जायत - ऊ सक्ति हे इनकर गीत में, गीत के भाव में ।)    (माकेम॰12.23; 23.22)
823    समसुनरी (= श्यामसुन्दरी) (हदरी चाची के नाम हे समसुनरी बाकी लोग एकर उपनाम धर देलन हे हदरी । दिन-रात हदर-हदर करइत रहऽ हे, ई लेल हो गेल हदरी चाची ।)    (माकेम॰35.23)
824    समान (= सामान) (ई सब देख-देख के उनकर घरनी के तरवा के लहर कपार पर चढ़ जायत । जतने ऊ कुढ़त ओतने ऊ कुढ़वतन । जउन समान ले हवतन सब पुतोहे के अगारू रख देतन ।)    (माकेम॰54.25)
825    समाना (= घुसना; घुसाना) (करिया भुच-भुच रीठल नादा लेखा, एक बित्ता करुआ तेल के परत जुगन से ई दिआ बरइत आ रहल हे । कतना के देह के बायमत एकरा में समा गेल हे, कतना नजर-गुजर घुँसर गेल हे एकरा में ।; केकरो चोरा समा गेल हे, ई झार देत । झूठा धयले हे, छोड़ा देत । केकरो अँगुरी मुरक गेल हे, माँड़ देत । लइका के गड़हन लगल हे, ठीक कर देत ।)    (माकेम॰31.7; 49.16)
826    समियाना (= शामियाना) (सनीचर उठके ताल ठोके के पहिलहीं एक छलांग मार देतन, घोड़ा लेखा हिनहिनाय देतन । समियाना हिल जायत । बरतिआहा अकचका जायत - का भेल ? 'कुछो न, सनीचर के घोड़ी बेहाथ हो गेल हे' ।)    (माकेम॰21.23)
827    सरजाम (~ जुटाना) (गाँव के सब लोग इनका माथ समझऽ हथ । छेंका के दिन, तिलक के सामान, सादी के सरजाम, बराती के इन्तजाम - सब कुछ इनके से पूछ के कयल जाहे ।; उनकर गुड़गुड़ा के सरजाम पहिलहीं से जुटा के रखल रहत । आवइते धड़ाधड़ टिकिया सुलग जायत, तमाकू बोझा जायत ।; पइन उड़ाही में अगुआन होयतन ई, अखण्ड किरतन के सारा सरजाम जुटवतन ई - इनका छुट्टी कहाँ ?)    (माकेम॰12.20; 23.16; 51.13)
828    सरधा-भक्ती (= श्रद्धा-भक्ति) (अइसने हलन तड़ुका दाई आउ अइसने हल लोग के हिरदा में उनका ला सरधा-भक्ती । केकरो घर में नया कनियाँ आ गेल उनका बोलाके गोड़ लगावल जायत । केकरो संतान भेल उनका बोलाके हलुआ बतीसा खिलावल जायत ।)    (माकेम॰26.19)
829    सरापना (= शाप देना) (कहल जाहे, ओहे दिन से ऊ सरापल छोड़ देलन ।; हदरी चाची गाँव के तिलंगी हे, लइकन के पतंग । लइकन एकरा खूब उड़वतन, खूब चिढ़वतन । जतने ऊ चिढ़त, लोग ओतने चिढ़ावत । खूब सरापत, खूब गरिआवत बाकी एकर अमनख केकरो न ।)    (माकेम॰28.9; 35.2)
830    सरेक (= सयान, सयाना) (ई तेल डालल चाहऽ हे जादे, मसाला भूंजल चाहऽ हे अधिक । बाकी ओकर पुतोह हे कंजूस, सेंगरनी । कह बइठत - तोरे लेखा खा-पोंछ न न जायब । जे कमयली से खा-पोंछ गेली । दुगो माथ पर बेटी सरेक हो गेल हे । तोरा अब का चिन्ता हवऽ । चिन्ता हमरा न हे । रात भर नीन न आवे ।)    (माकेम॰39.16)
831    सलाई (= दियासलाई) (ओकर हाथ में कलागिरियो हे । ऊ सिऔनी-फरौनी खूब जानऽ हे । एक-से-एक कपड़ा के कतरन के गुड़िया, पोस्टकार्ड आ कुट के डोली, सलाई के फैक्टरी, चूड़ी के बैग, कागज के जानवर बनावे ला जानऽ हे ।)    (माकेम॰49.9)
832    सवखीन (= शौकीन) (खाये-पीये में सवखीन महतो जी सालो भर गाय रखतन । टटका छोड़ के बासी पर नजरो उठा के न देखथ ।)    (माकेम॰14.22)
833    सवतिन (= सौतन) (सरस्वती आउ लछमी में सवतिन डाह होवऽ हे ।)    (माकेम॰13.19)
834    सवाँग (= समाँग; व्यक्ति) (सउँसे गाँव में लगऽ हल कि हम्मर घर के एगो सवाँगे उठ गेल जइसे अँगुठी में के नग कहूँ भुला गेल ।)    (माकेम॰16.22)
835    सवांग (मुनारिक हरवाहा न, सवांग हे सवांग - ई बात सब कोई समझऽ हे । जेह दिन ऊ जेकर देह धरत ओह दिन ओकरा हीं खूब बन-ठन के बनत । सगुन के दिन ओकरा धोती, अंगा आउ गमछा जरूर मिलत ।)    (माकेम॰48.5)
836    सवासिन (केकरो कारज-परोज के दूसरका दिन तड़कहीं हुनका हीं पहुँच जायत । देखइते सवासिन बूझ जायत आ आदर से कहत - ए हदरी चाची, तनी एसा बइठ जा। हाथ नेटल हे, धोके देहीवऽ ।)    (माकेम॰38.30)
837    सहिए-साँझ (= दिन दहाड़े) (लोग कहऽ हथ, महतो जि हथ कि ओकरा निबाह कर रहलन हे, दोसरा हीं रहइत त सहिए-साँझ घाठी दे देवल जाइत ।)    (माकेम॰14.14)
838    सहीरना (तिरिपती बाबू, विद्यार्थी जी, राही जी, करुनेस जी आ नगेन्दर बाबू के आसिरबाद के अछत हे, उनकर वरदान के रूप हे जे रीच-रीच के सजवलन, सहीर-सहीर के बाँचलन ।)    (माकेम॰8.2)
839    सहुआइन (= साहु का स्त्री॰ रूप) (रात में गाँव भर के लोग जुट के उनकर किरिया-करम करे ला मिटिंग कयलन । चन्दा वसूलाये लगल, बिहरी छँटाये लगल । मिसिराइन दू मन आँटा पहुँचवलन त करमू तीन मन भंटा । लंगाटू साव आलू पहुँचवलन त अक्तर मियाँ साग, सहुआइन तीन टीन डलडा देलन त गंगा साव चीनी आउ पत्तल ।)    (माकेम॰16.26)
840    साग-सतुआ (सुन्न भेल से सुन्ने रह गेल जदपि कि उनकर सँघतिया रिक्शा पर लाद के अस्पताल में भरती करवा देलन । गाँव पर खबर पहुँचा देल गेल । जे सुनलक से धउड़ मारलक । साग-सतुआ बान्ह के चल पड़ल बड़का अस्पताल में दाई के देखे ।; मालिक से जादे फिकिर ओकरे । किरिंग फूटइते डेयोढ़ी पर पहुँच जायत । साग-सतुआ जे आगू में पनपियार आयल, भर हीक खाके ढेकरइत कान्ह पर हर उठाके चल देत ।)    (माकेम॰29.2; 47.21)
841    सान्ही-पानी (कहनामो ओकर ठीके हे । जतना बोलऽ हे ओकरा से जादे करबो करऽ हे । सब कोई सुतलहीं रहतन, ऊ उठके भईंस के सान्ही-पानी करे लगत । पुतोह चुल्हा धरावत तब ले ऊ एक छाँपी घास गढ़ के ले आवत । बूढ़ी हो गेल हे बाकी अबहियों ओही फुरती हे एकर देह में ।; सालो भर खूँटा पर एगो जनावर जरूर रखत । कहीं से मोल, कहीं से बटइया-तेहइया लाके पालत । बड़ा मिहनत करके सान्ही-पानी देके पोसत बाकी गाभिने में बेच देत ।)    (माकेम॰36.30; 47.9)
842    सामना-सामनी (चरघरवा के आगे के टिकऽ हे । सामना सामनी ताकत के अजमाइस हो गेल । मामला हो गेल सान्त । बेचरन हरिजन के राहत मिलल । सरन मिलल डग्घर पर, हप्पन जमीन मिलल, बपौती-खन्दानी परिवार बस गेल ।)    (माकेम॰61.17)
843    सावँग (= समाँग, ताकत) (आज कइयक दिन से महतो जी खाट धइले हथ । जे गाँव-जेवार के खपड़ो-झिटकी से समाचार पूछऽ हल - आज चिताने पड़ल हे । सावँग हे त जान हे, जिनगी हे त जहान हे ।)    (माकेम॰15.2)
844    साही (ओही में केकरो माय आके तनी एसा भुनुक देल इया कोई साही में गवाही दे देल तब ओकरा देखऽ । भुतही कोसी नदी लेखा तूफान मचा देत, भड़कल बैल लेखा गरदा उड़ा देत - सब गुड़ गोबर, सब चिकनावल बेकार ।)    (माकेम॰38.8)
845    सिंगार-पटार (जब खाये लगतन तब पंखा जरूर डोलावत - हँस-हँस के खूब बतिआवत । ओ घड़ी ओकर सिंगार-पटार आउ भाव-भंगिमा देख के कोई कहिए न सकऽ हे कि ई ओहे चुड़इल हे जे महतो जी के गैरहाजिरी में खून आउ हड्डी बरसावइत हे, ई ओहे डाकिनी हे जे महतो जी के हटला पर अप्पन झाँझ बजावऽ हे ।)    (माकेम॰14.25)
846    सिऔनी (= सिलाई) (~-फरौनी) (ओकर हाथ में कलागिरियो हे । ऊ सिऔनी-फरौनी खूब जानऽ हे । एक-से-एक कपड़ा के कतरन के गुड़िया, पोस्टकार्ड आ कुट के डोली, सलाई के फैक्टरी, चूड़ी के बैग, कागज के जानवर बनावे ला जानऽ हे । कुरती के एक-से-एक कटिंग सीखऽ एकरा से । मउनी-दउरी छनवावऽ एकरा से, लेदरा बइठवावऽ एकरा से ।)    (माकेम॰49.7)
847    सिऔनी-फरौनी (ओकर हाथ में कलागिरियो हे । ऊ सिऔनी-फरौनी खूब जानऽ हे । एक-से-एक कपड़ा के कतरन के गुड़िया, पोस्टकार्ड आ कुट के डोली, सलाई के फैक्टरी, चूड़ी के बैग, कागज के जानवर बनावे ला जानऽ हे । कुरती के एक-से-एक कटिंग सीखऽ एकरा से । मउनी-दउरी छनवावऽ एकरा से, लेदरा बइठवावऽ एकरा से ।)    (माकेम॰49.7)
848    सिकठी (पुरनका जमाना के औरत हे, घीव दूध महले, मट्ठा-दही खयले हे । सरीरे बतावऽ हे कि जवानी में दही-दूध खयले हे । खायलो नेहायल कहीं छिपऽ हे । लाल बीम सरीर । आझ नवचेरियो ओकरा आगे फीका लगऽ हे । ओहे जगा पचकौड़ी बहू के देखऽ, कै दिन अयला भेल हे - एके लइका में लरक गेल - सूख के सिकठी हो गेल । आ, ई ? - एकरा देह से सातगो बेटी आ दूगो बेटा । तइयो सरीर देखऽ आँवा से निकालल ईंटा लेखा लाल बीम ।)    (माकेम॰37.6)
849    सिकहर (= सिक्का, छींका) (मउनी बिनवावऽ इनका से, खटिया छनवावऽ इनका से । एक से एक गँरउरी, जाब, मोहरी, नाधा-जोती, सिकहर इनका से बनवा लऽ - एको पइसा खरच न - नौ नगद न तेरह उधार । महतो जी हइए हथ त एकर सवाले कहाँ उठऽ हे ?)    (माकेम॰12.12)
850    सिपुली (= सुपली, सुपती; पैर का तलवा; छोटा सूप) (जइसन इनकर काम ओइसने सरीर । लमा-लमा हाथ, एक हाथ के पेट, धँसल धवना, थपुआ लेखा गोड़ के सिपुली, बड़का-बड़का आँख, ताके में बकडेढ़, एक आँख लाल सुरूका, लगऽ हे अब बाहर फेंक देत ।)    (माकेम॰34.7)
851    सिफत (= विशेषता) (ई तरह से ऊ अप्पन जूता के परचार करऽ हलन, जूता के बिक्री करऽ हलन । जे पेन्हलक से दाम सधा के छोड़लक । इनकर एगो आउ सिफत हल - जूता टूट गेला पर मुफ्त सिलाई, बिना पइसा के मरम्मती, गारंटी तीन साल - बीच में टूट गेला पर पइसा वापस इया जूता बदलयन ।)    (माकेम॰20.1)
852    सिलउट (अलगे से देखला पर लगवे न करे कि ऊ औरत हे । मुठानो कुछ ओइसने मरदाना लेखा - लमा-चौड़ा मुँह, टील्हा लेखा उठल लिलार, मुगदर लेखा मोटे-मोटे बाँह, ताड़ लेखा कमर, सिलउट लेखा छाती, लम्ब-धड़ंग छव फुट ।)    (माकेम॰44.18)
853    सिलेट (पइसा-कउड़ी के लेन-देन, बन-मजूरी के हिसाब-किताब सब एकर लिलार के सिलेट पर जोड़ायल हे ।)    (माकेम॰37.18)
854    सिसिआना (खाइत जायत आ सवाद-बेसवाद पर बकइत जायत - जेकर जइसन रूच होवऽ हे ओइसने तरकारियो बनऽ हे - कोनो करम के ना, तनी रिबिछो करुआइनो-तेलाइनो न । बढ़िया मिल गेला पर खूब सिसिआयत, जीभ चटकारत आ कहत - हँ, देखऽ त ई कइसन हे ।)    (माकेम॰39.10-11)
855    सिहरी (ओकर बोलियो ओइसने मीठ, लगऽ हे मध चुअइथे । बेचारी हमेशा दाँत के सिहरिए से बोलत ।)    (माकेम॰49.15)
856    सीधा-बारी (मउनी-दउरी, गरँउटी-सिकहर बेच के अप्पन अप्पन घरवाली के भी पेट भरे के इन्तजाम कर देलन । कहीं से कुछ सीधा-बारी मिल गेल, अँगेया-पेहानी आ गेल, कोई बयना-बखरा देल गेल - उनकर धरमपत्नी संगेर के रखत । वास्तव में ऊ संगेरनी हे भी ।)    (माकेम॰13.24)
857    सीन (= सिंह) (दू हप्ता पहिले ऊ बसावन सीन के गाँज गाँजइत हलन ।; गाँव के मुखिया बसावन सीन आ गेलन ।; कलोटन भाइए हथ, करमू इयारे । पहलाद चचे हथ, बिन्दा सीन मालिके - केकरा ठगऽथ ? - मुखिया के ? सरपंच के ?; आझ गाँव उनके किरती से जगमगा रहल हे, उनके नाम से जानल जा रहल हे । जब ऊ मरलन गाँव के नाम उनके नाम पर रखा गेल हे - बहादुरपुर । बहादुर सीन नाम हल उनकर । आझ ओहे बहादुर सीन के बेटा हथ कलट्टर सीन । बड़ा आदर के साथ लोग उनका कलट्टर काका कहऽ हथ ।)    (माकेम॰15.3, 29; 18.9; 52.23, 24)
858    सुकरमांस (~ झारना) (चाहे लोग जे कहो, ई कतना के पीठ दाग के सुकरमांस झारले होयतन । बायमत-चुड़ैल उतार के कतना के कोख भरले होयतन । कोई खरचा न, कोई दाम-कउड़ी न ।)    (माकेम॰33.31)
859    सुघर (= सुग्घड़, सुन्दर) (सबके ला ऊ मकान एगो नमूना हे । निपल-पोतल-चिकनावल अइसन सुघर लगऽ हे जइसन चर में नया कनियाँ ।)    (माकेम॰13.10)
860    सुनसुना (= मवेशियों का { खासकर बैल का}एक रोग जिसमें नाक से पानी गिरता है और 'सुन-सुन' आवाज निकलती है) (नाक के ~ बजाना) (महतो जी जनानी मनोविज्ञान के पण्डित बुझा हथ । जब ऊ छड़पे लगत, त ई पुचकारे लगतन । जब ऊ फँउके लगत, त ई सुघरावे लगतन । लगऽ हे एको संतान न होवे से ऊ बिरबिरायल रहऽ हे । काहे कि महतो जी के सामने ऊ कभी अप्पन नाक के सुनसुना न बजावे ।)    (माकेम॰14.18)
861    सुभवगर (ई तो खैर कहऽ, दूनों पुतोह मिल गेलू हे मनगर सुभवगर न त ई बिना मारले मर जयतन हल । खाहूँ-पीहूँ ला केऊ न पूछइत - बेटा बनभाकुरे आउ अउरत कराकसीने ।)    (माकेम॰54.13)
862    सुरूका (= सुर्ख; गहरा लाल) (जइसन इनकर काम ओइसने सरीर । लमा-लमा हाथ, एक हाथ के पेट, धँसल धवना, थपुआ लेखा गोड़ के सिपुली, बड़का-बड़का आँख, ताके में बकडेढ़, एक आँख लाल सुरूका, लगऽ हे अब बाहर फेंक देत ।)    (माकेम॰34.8)
863    सुसताना (तू हमरा जिए न देवऽ । अरे आवऽ तनी बइठके सुसता लऽ ।)    (माकेम॰45.16)
864    सूखा (= खाँसी जिसमें बलगम न गिरे) (मथपीरी, घुमरी, सूखा आ मिरगी के जड़ी-बूटी हमेसे एकर एगो बसना में छोट-छोट काट के रखल रहत ।)    (माकेम॰38.13)
865    सेंगरनी (ई तेल डालल चाहऽ हे जादे, मसाला भूंजल चाहऽ हे अधिक । बाकी ओकर पुतोह हे कंजूस, सेंगरनी । कह बइठत - तोरे लेखा खा-पोंछ न न जायब । जे कमयली से खा-पोंछ गेली ।)    (माकेम॰39.15)
866    सेकरा (= उसे, उसको) (जइसहीं मंजिलाहा लोग गाँव में पैर धयलन कि सउँसे गाँव में पिपकार मच गेल । जेकरे देखऽ सेकरे आँख डबडबायल ।)    (माकेम॰16.20)
867    सेजियादान (= मृतक के श्राद्ध कार्य के ग्यारहवें तथा बारहवें दिन सविधि शय्या दान करने की प्रक्रिया या प्रथा) (सवा सौ बढ़ामन जेवावल गेल, पाँच सौ कँगली खिलावल गेल । सेजियादान ! गऊदान !! पाँच रंग के मिठाई, बुनिया-पूड़ी सउँसे गाँव-जेवार खा के अघा गेल ।)    (माकेम॰17.1)
868    सेराना (= ठण्ढा होना) (ओने हदरी चाची के हदर कभी न ठण्ढाये त एने तड़ुका दाई के हुक्का कभी न सेराय ।; हदरी चाची के हदर कभी न ढण्ढाये, ओकर मिजाज कभी न सेराये ।; जहिया काम के भीड़ जादे आ जाहे ऊ दिन तो उनकर चिलिम सेरैवे न करे ।)    (माकेम॰23.3; 35.25; 54.31)
869    सैंतना (सबसे पहिले पैरपूजी उनकर होयत - कोई एक रुपया से पूजे या सौ रुपया से, सबके बराबरे आसिरवाद देतन - उनका ला सब कोई बराबर । उनकर हाथ में बंसरोपन के बीज सैंतल हल, माली के करमात छिपल हल ।)    (माकेम॰25.27)
870    सोंठ-बतीसा (केकरो परसव भेल हे, सोंठ-बतीसा घाँटे ला पकड़ लेवल जायत । सोभावो ओकर ओइसने हे । एकरा से 'न' कहल बनवे न करे ।; एकरा घमण्ड हे - ई सब के दूध पिलवलक, सबके सोंठ-बतीसा घाँटलक ।)    (माकेम॰49.21, 24)
871    सोझिआना (बड़का-बड़का मरदाना के ऊ कान काट लेवऽ हे । उछँहत-उछँहत जवान ओकरा सामने हार मान जा हथ जखनी ऊ टारऽ हे धान, ढोवऽ हे बोझा । जब ले सुखदेवन हाथ लगवतन तब ले ऊ एक परुई लगा देत । जब ले ऊ पहिअवतन तब ले ऊ सोझिआ देत ।)    (माकेम॰44.24)
872    सोन्हाना (घीव ~) (घीव ई एक नम्मर के बनावऽ हे । खूब कड़कड़ावत, सोन्हावत । एकर घीव के माँग सहर में जादे हे ।)    (माकेम॰39.18)
873    सोभाव (= स्वभाव) (उनकर सोभाव से गाँव भर खुस, उनकर बेवहार से सब कोई परसन्न ।; मुनारिक के माय के सोभावो ओइसने हे । का हित का दुसमन - ओकर नजर में सब बराबर ।)    (माकेम॰23.11; 44.5)
874    सोर्स (ई आदमी बड़का सोर्स वाला हथ । आझ जेकरा सोर्स न ऊ आदमी न । एगो कउड़ी के मोल ओकर न । इनकर सोर्स हे मिनिस्टर हिंया, अफसर आ चपरासी हिंया ।)    (माकेम॰53.18, 19)
875    सोवाद (= स्वाद) (तनी चट्टन हे भी ऊ । तीना ला ऊ घरे-घरे घूम आयत । सबके घरे के सोवाद के सौभाग एकर जीभ के परापित हे । केकरो बिबाह-सादी इया मरनी-हरनी में सबके धेयान मड़वा पर, केकरो सेजियादान पर, बाकी एकर धेयान कड़ाही पर, कड़ाही में डालल तेल-मसाला पर ।; हँ, ऊ एक चीज के सौखीन बहुत हे - साग-सब्जी आउ तीना-चटनी के । पावे भर खरीदत बाकी सब तरह के तरकारी तनी-तनी जरूर खरीदत । सबके सोवाद जरूर लेत । आम इया इमली कतनो महँगा होवे ऊ जरूर लेत ।)    (माकेम॰38.25; 46.31)
876    सोहनगर (= सुहावना, सुन्दर) (अप्पन हाथ से उठावल देवाल, छावल छप्पर, चिकनावल जमीन बड़ा सोहनगर लगऽ हे ।)    (माकेम॰13.8)
877    सोहनी (आझ कहाँ हर चलत, कल्ह कहाँ आरी दिआयत, एकर धेयान ओहे रखत । कउन खेत में बीहन डलायत, कहिया रोपनी लगत, कयगो लगत, कतना खाद छिटावत एकर लेखा-जोखा ओहे रखत । सोहनी सुरू होयत एकरा से पूछके, कटनी लगत एकरा से जानके ।)    (माकेम॰47.26)
878    सोहाग-भाग (जाय दऽ, बोलवे न करऽ ही, त ई तो औरत के सोहाग-भाग हे । हिरदा के जे साफ रहऽ हे ओहे बोलवो करऽ हे, मन में घुरची न रहे ओहे झगड़ऽ हे ।)    (माकेम॰36.20)
879    सौखीन (= शौकीन) (आलूदम के सौखीन ऊ जादे, पूड़ी-कचौड़ी में रूच उनकर अधिका, इ लेल चूल्हा के इन्चार्ज ई, भण्डार के परभारी ई । जब तक बरियात के बिदागी न हो जायत, तब तक उनका चैन न ।; ऊ तो आझ ले लहठी-चूड़ी आउ टिकुली-सेन्नुर छोड़के कुछो न खरीदलक । हँ, पथलौटी जरूर खरीदत । चटनी के ऊ सौखीन जादे हे, आ पथलौटी में चटनी खराब न होवे ।)    (माकेम॰12.24; 46.26)
880    सौभाग (= सौभाग्य) (तनी चट्टन हे भी ऊ । तीना ला ऊ घरे-घरे घूम आयत । सबके घरे के सोवाद के सौभाग एकर जीभ के परापित हे । केकरो बिबाह-सादी इया मरनी-हरनी में सबके धेयान मड़वा पर, केकरो सेजियादान पर, बाकी एकर धेयान कड़ाही पर, कड़ाही में डालल तेल-मसाला पर ।)    (माकेम॰38.25)
881    हँड़िया-पतीला (बाकी अइसन कुछ बात हो गेल जेकरा चलते समूचा मुसहर टोली उठ के आ गेल डग्घर पर । बाले-बच्चे, हँड़िया-पतीला लेले सब के सब मुसहर आके इहँई बस गेलन ।)    (माकेम॰61.5)
882    हँसुली (सचमुच तड़ुका दाई के देखला पर कोई कहिए न सकऽ हे कि इनका मरदाना छोड़ देल हे । पावडर लगावथ चाहे न, काजर ऊ जरूर लगवतन, माथा गुहथ चाहे न, माँग जरूर टिकतन । गेरा में हँसुली आ हाथ में पहुँची चौबीसो घण्टा डालले रहतन ।)    (माकेम॰27.17)
883    हदर (ओने हदरी चाची के हदर कभी न ठण्ढाये त एने तड़ुका दाई के हुक्का कभी न सेराय ।; हदरी चाची के हदर कभी न ढण्ढाये, ओकर मिजाज कभी न सेराये ।)    (माकेम॰23.2; 35.25)
884    हदर-हदर (हदरी चाची के नाम हे समसुनरी बाकी लोग एकर उपनाम धर देलन हे हदरी । दिन-रात हदर-हदर करइत रहऽ हे, ई लेल हो गेल हदरी चाची ।)    (माकेम॰35.24)
885    हदराना (अभी बचऽ हे । पचासी बरिस के हो गेल होयत बाकी हदर अभी पचीसे बरिस के । आझो हदराइते हल । चउखट पर बेना डोलावइत हल । बेना ओकर, तड़ुका दाई के गुड़गुड़ा ।)    (माकेम॰42.14)
886    हर (= हल) (जइसने ओकर माय से रोपनी करावे ला मार होवऽ हे, ओइसने ओकरा से हर जोतावे ला । मालिक से जादे फिकिर ओकरे । किरिंग फूटइते डेयोढ़ी पर पहुँच जायत । साग-सतुआ जे आगू में पनपियार आयल, भर हीक खाके ढेकरइत कान्ह पर हर उठाके चल देत ।; आझ कहाँ हर चलत, कल्ह कहाँ आरी दिआयत, एकर धेयान ओहे रखत ।; हर बनत एकर विचार से । जखनी ऊ लगना पर हाथ धरत तखनी बैल बिना टिटकारी मारलहीं फुरदुंगी हो जायत ।)    (माकेम॰47.22, 24, 29)
887    हरदा (= धान, गेहूँ आदि फसल का पीला पड़ने का एक रोग) (केकरो आम के मोजर खराब हो रहल हे, केला के फर गउँजा रहल हे - ओकर उपाय महतो जी के दलान पर लिखके टाँगल हे - धान में हरदा, मकई में खोजरा, आलू में गोजरा, साग में पोजरा लग गेल - ओकर इलाज महतो जी के दलान पर जा के पूछ लऽ ।)    (माकेम॰12.1)
888    हरदी-कलसा (केकरो देवपूजी हो रहल हे - आगे-आगे ओहे चलतन । हरदी-कलसा हो रहल हे - सबसे आगे ऊ बइठतन । लावा छिंटावे चलल, बर के परिछन होये चलल, ओ घड़ी तड़ुका दाई पर सबके नजर टिकल रहत ।; केकरो हीं हरदी-कलसा हे, सबेरहीं से हरदी पीसे में लग जायत ।)    (माकेम॰25.4-5; 49.20)
889    हरनी-मरनी (गाँव के लइकन उनकर लइकन । ई लेल उनका निकोखी होये के आह कभी न आयल । अप्पन बड़का गो परिवार देख के उनकर छाती गाँजल रुआ लेखा फूलल रहऽ हल । हरनी-मरनी में ऊ केकरो हीं न जा हलन । एकरा से उनका घिरना न हल । उनका हिरदये थमयेबे न करऽ हल । ऊ केकरो श्राद्ध देख के रोवे लगऽ हलन ।)    (माकेम॰28.23-24)
890    हरमुनियाँ (= हारमोनियम) (कोई हँस देल - 'अरे जा, धक बाबा के कउची बात चलावइत ह, दुआर पर एगो फूटल ढोल हइए न हइन आउ ... ।' फिर का ? असपुरा रजिस्ट्री में दस कठा घिंसा गेल । राताराती हरमुनियाँ, ढोलक, सितार और बेंजो खरीदा के आ गेल ।)    (माकेम॰57.9)
891    हरमेसा (= हमेशा) (ओकरा विस्वास हल कि हमरा कोई धोखा न दे सके हे । अगर कोई धोखा दे सके हे त अपने आप के । परकिरती नेयाय करऽ हे । बाकी रहऽ हल बेचारी हरमेसा रोगिआयल । रतउँधी के बेमारी ओकरा हरमेसा रहऽ हल ।)    (माकेम॰64.3)
892    हरवाहा (ओकर बेटा मुनारिक - हँ, बेटा होवे त अइसन ! हरवाहा रखे ला गाँव में झगड़ा हो जाहे । ओकर कमासुत काया देखके सबके मन करऽ हे - हमरे हीं टोपड़ा पर रह जाइत, रुपया पर बँध जाइत ।; मुनारिक हरवाहा न, सवांग हे सवांग - ई बात सब कोई समझऽ हे । जेह दिन ऊ जेकर देह धरत ओह दिन ओकरा हीं खूब बन-ठन के बनत । सगुन के दिन ओकरा धोती, अंगा आउ गमछा जरूर मिलत ।)    (माकेम॰47.15; 48.5)
893    हरवाही (उनकर परिवार के केउ ई काम न सिखलक । उनकर एगो बेटा हे । हरवाही करऽ हे । बाजा बजावऽ हे बिआह-सादी में ।)    (माकेम॰19.5)
894    हाइल-काइल (= पाबंद, उचित बात को मानने वाला; परेशान थकामाँदा; चिंतित) (महतो जी हथ पुरान बिचार के, बसेआयल संस्कृति के माने ओला । ई लेल ऊ महतवाइन के घर से बाहर कहूँ न जाय देथ । ओझा-गुनी के औरत चुड़इल होवऽ हे । ई लेल महतो जी ओकरा से हाइल-काइल होयल रहऽ हथ ।)    (माकेम॰14.7)
895    हार (= हाड़, हड्डी) (तोरे लोग भिर हार तूड़ के कमइली, जीव जात के खइली त आझ चार पइसा हाथो पर हे न । केकरो खा-पचा न न गेली । तोर लोग के दोआ से बेटा कमाइत हे ।)    (माकेम॰36.18)
896    हाली-हाली (= जल्दी-जल्दी; हबर-दबर) (हदरी चाची जब तरकारी लेके चलत तब भर रहता ओठ सिकुड़ावइत आवत । रह-रह के तोपल पत्ता उघार-उघार के देखइत चलत । ... घर आके हाली-हाली मुँह धोयत आ चिभला-चिभला, चटकार के खाये लगत ।)    (माकेम॰39.7)
897    हित (मुनारिक के माय के सोभावो ओइसने हे । का हित का दुसमन - ओकर नजर में सब बराबर ।)    (माकेम॰44.5)
898    हिनका (= इनका) (अदउरी-तिसिअउरी, दनउरी-चरउरी हिनका हीं जरूर मिल जायत । बोइआम में रखल एक से एक अँचार - आम के, लेमो के, इमली के, मिरचाई के, कटहर आउ करइला के, आलू आउ मुरई के - इनकर अलमारी के सोभा बढ़ावइत रहऽ हे ।)    (माकेम॰13.28)
899    हिनाना (केतना के बेटा देलन, केतना के नौकरी लगा देलन बाकी ऊ सरधा-भक्ति लोग उनका खातिर न दिखवलन बलिक उलटे लोग घिनावऽ हथ । इनका देखके अउरत थूक देवऽ हे । मरदाना निहसावऽ हे, बूढ़-पुरनियाँ हिनावऽ हे, लइकन चिढ़ावऽ हे ।; एकरा घमण्ड हे - ई सब के दूध पिलवलक, सबके सोंठ-बतीसा घाँटलक । बाकी मुँह खोलके केकरो से माँगलक न । फिर काहे कोई हिनावत, काहे माथ मारत । गरीब हे त ई से का ? केकरो पइँचा-खोइँचा थोड़े पचा गेल हे ।)    (माकेम॰30.19; 49.25)
900    हीं (= के यहाँ) (इनकर जूता बड़ी दूर-दूर ले जा हल - बिना विज्ञापन के, बिना कोई प्रचार के । लोग सपर के हिनका हीं जूता खरीदे आवऽ हलन ।)    (माकेम॰18.3)
901    हीक (भर ~ खाना) (जइसने ओकर माय से रोपनी करावे ला मार होवऽ हे, ओइसने ओकरा से हर जोतावे ला । मालिक से जादे फिकिर ओकरे । किरिंग फूटइते डेयोढ़ी पर पहुँच जायत । साग-सतुआ जे आगू में पनपियार आयल, भर हीक खाके ढेकरइत कान्ह पर हर उठाके चल देत ।)    (माकेम॰47.21)
902    हुरकुच्चा (रात में थरिया न मलायल ओकरा ला चार बात, लोटा न चमचम चमकल ओकरा ला दस गण्डा गारी । सूप खूँटी में न टँगायल, बढ़नी पार के न रखायल, चूल्हा न लिपायल, कोठ के मान न मुनायल एकरा ला बिसहन हुरकुच्चा । हुरकुच्चा सुनइत-सुनइत ऊ हेहर हो गेल ।)    (माकेम॰35.19)
903    हेंठ (इनकर सान के आगे सबके गुमान हेंठ । रसगुल्ला छील के खाए ओला मुहावरा ई ब्योहार में लाके देखलवलन ।)    (माकेम॰56.14)
904    हेराना (ढील ~) (कोई चिहकल कुरती सिआवे आवइथे त कोई खोंच लगल लुगा मखवाइथे ।  कोई माथा गुहावे आयल हे त कोई ढील हेरावे ।)    (माकेम॰49.13)
905    हेहर (~ हो जाना) (रात में थरिया न मलायल ओकरा ला चार बात, लोटा न चमचम चमकल ओकरा ला दस गण्डा गारी । सूप खूँटी में न टँगायल, बढ़नी पार के न रखायल, चूल्हा न लिपायल, कोठ के मान न मुनायल एकरा ला बिसहन हुरकुच्चा । हुरकुच्चा सुनइत-सुनइत ऊ हेहर हो गेल ।)    (माकेम॰35.20)
 

2 comments:

संजय said...

नारायण जी आपने बहुत ही अच काम किया है

नारायण प्रसाद said...

संजय जी, इस ब्लॉग पर भेंट देने एवं टिप्पणी के लिए धन्यवाद ।