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Wednesday, April 11, 2012

54. "मगही पत्रिका" (वर्ष 2002: अंक 3) में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

मपध॰ = मासिक "मगही पत्रिका"; सम्पादक - श्री धनंजय श्रोत्रिय, नई दिल्ली/ पटना

पहिला बारह अंक के प्रकाशन-विवरण ई प्रकार हइ -
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वर्ष       अंक       महीना               कुल पृष्ठ
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2001    1          जनवरी              44
2001    2          फरवरी              44

2002    3          मार्च                  44
2002    4          अप्रैल                44
2002    5-6       मई-जून             52
2002    7          जुलाई               44
2002    8-9       अगस्त-सितम्बर  52
2002    10-11   अक्टूबर-नवंबर   52
2002    12        दिसंबर             44
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मार्च-अप्रैल 2011 (नवांक-1) से द्वैमासिक के रूप में अभी तक 'मगही पत्रिका' के नियमित प्रकाशन हो रहले ह ।

ठेठ मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर पृष्ठ संख्या, चउठा कॉलम संख्या (एक्के कॉलम रहलो पर सन्दर्भ भ्रामक नञ् रहे एकरा लगी कॉलम सं॰ 1 देल गेले ह), आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ ।

ठेठ मगही शब्द (वर्ष 2001 से संकलित शब्द के अतिरिक्त):

1    अँउड़राना (काकी: मत कहऽ ए बाबू ! पनरहे दिन में घर रेहन-तेहन, राइ-छितिर हो गेलवऽ । कुल तीन महिन्ना पहिले बिआएल गाय के दूध आधा हो गेल । न घास-भुस्सा के ठेकान, न कोराई-चुन्नी के । सेवा बिना एकदम अँउड़रा गेल बेचारी ।)    (मपध॰02:3:14:3.22)
2    अईं (= अयँ, अञ्) (अईं हो रविंदर, लगऽ हवऽ कि बड़का भाई नौकरी पर से आ गेलथुन हे । कहलऽ हल कि बातचीत करम, कयलऽ का ?)    (मपध॰02:3:22:1.18)
3    अकबकाना (रमेसर: जब अंगुरिए उठ गेल तब राजनीति का कइली हो ? देखलहीं - जब पोरसिसिया करे गेली आउ उहाँ रोना सुरू कइली त जेकर परिवार मारल गेल सेउ हमर लोर पोंछे लगल । - बिंदा: अरे राम राम ! ऊ दिन तो तूँ गजबे नाटक कैलऽ । भोंकार पार के रोवे लगलऽ त हमहूँ अकबका गेली । - रमेसर: {ठहाका}हा हा हा हा ! बेलूरा ... एक्के गो नाटक में अकबका गेलें ? अब देख कि कपिलवा के हिसाब-किताब हम कइसे करऽ ही ।)    (मपध॰02:3:17:2.31, 33)
4    अख्तियार (नोकरी पर से जब चंद्रकांत मिसिर छुट्टी पर घर अएलन तब पता चलल कि छोटका भाई बाहर कमाय चल गेलन । सुन के दुख भेल बाकि कुछ अख्तियार न हल । देखलन कि भतीजा चंदनवाँ गाँव के लंपट लइकन साथ एने से ओने दिन भर घुमल चलऽ हे, कोई रोके-टोके वाला न हे ।)    (मपध॰02:3:25:3.10)
5    अजगुत (= आश्चर्यजनक) (दुनहूँ के प्रेम सब कोय ले अजगुत हल । खास करके उनका ले जे कमलेस के घरवाली कमला के हमराज हलन । कुसुम के प्रति कमलेस के प्रेम आउ कमला के प्रति मोह, सबके चकरा के रख दे हल ।)    (मपध॰02:3:20:2.23)
6    अपना जानते (कुसुम ! पंद्रह बरिस हो गेल इनखा से हमर बियाह के । एगारह बरिस से बस भी रहली हे । इनकर झूठ रोमा नञ् जारबन । गोस्सा-पित्ता में कुछ बोल देथ, ऊ अलग बात हे बकि अपना जानते कभी कुछ कमी नञ् होवे देलन ई ।)    (मपध॰02:3:19:3.3)
7    अबरी (= इस बार) ("अईं हो रविंदर, लगऽ हवऽ कि बड़का भाई नौकरी पर से आ गेलथुन हे । कहलऽ हल कि बातचीत करम, कयलऽ का ?" हाँथ के चिलिम रविंदर के धरावित कहलन, "जे भी कहना होय से अबरी साफे-साफ कहिहऽ, घिचपिच बात नऽ ... समझलऽ ?")    (मपध॰02:3:22:1.24)
8    असमान (= आसमान, आकाश) (कोय सैतिन के ई तरह के बेहवार भी हो सकऽ हे ई तो कुसुम कभी सोंच भी नञ् पइलक हल मन में । ऊ तो सोंचलक हल कि जहिया ऊ कमलेस जी के दोसर पत्नी के रूप में कमला से मिलत त ऊ असमान माथा पर उठा लेत ।)    (मपध॰02:3:19:2.20)
9    अस्सो के (= ऐसे भी) (कपिल: काका मारऽ हथु तोरा ? - काकी: {रो के} हाय हाय ! सायते कहियो नागा हो हवऽ । जब न तब धोंय-धोंय धबार देतथु । पी के जहिया अतथु, तहिया तो फजिहत हो जा हवऽ । अस्सो के मारतथु बिना कसूरो के ।)    (मपध॰02:3:15:1.14)
10    अहरा (गाम के सब किसान मिलके पटवन कर ले हल  नदी बांध के, पईन बना के, अहरा पर मट्टी देके पटवन के इंतजाम करो हल ।)    (मपध॰02:3:7:3.3)
11    आएँ (= अईं, अयँ, अञ्, आयँ) (जब घरे अएलन त देखलन कि दुआरी पर बुढ़िया माय बोरसी लेले घामा में बइठल हलन । जइसहीं भिरू गेलन बोले लगलन, "आएँ गे माय, तनिको सन काम करे न चाहउ कोय ? ...")    (मपध॰02:3:23:2.4)
12    इत्तमंत्री-वित्तमंत्री (बिंदा: ठीके कहित हऽ ! तूँ जब प्रधानमंत्री बनवऽ न, शिक्षामंत्री, रेलमंत्री, विदेसमंत्री, इत्तमंत्री-वित्तमंत्री, फलान-ढेकान मंत्री हमनिएँ न बनब ।)    (मपध॰02:3:16:3.6)
13    इहाँ (= हियाँ; यहाँ) (आज भी ई बात सही हे कि भारत गाम के देस हे । इहाँ सत्तर परतिसत अदमी गामे में रहे हे ।; कपिल: {जोर से} हैं कका । तूँ इहाँ किनारे एकदम सूनसान पेड़ तर बइठल हऽ ? - बिंदा: {जोर से} आवऽ आवऽ । तनि सुस्ता लऽ ।)    (मपध॰02:3:7:1.3, 17:3.12)
14    उरेब (~ कदम) (कमलेस के प्रतिभा के कुसुम कायल । कुसुम के सुंदरता आउ अदा के कमलेस कायल । बकि समाज के लेहाज के आगू कमलेस कभी उरेब कदम नञ् उठयलक । कली लेखा कुसुम के पंखुड़ी पर कभी हात नञ् धयलक । बकि कब तक ?)    (मपध॰02:3:20:1.37)
15    उहाँ (= हुँआ; वहाँ) (बिंदा: तब रात में बँसवारी भिर कुइआँ पर आओ ! नौ बजे हमनी जहाँ रहब । रमेसर भाई भी रहता । तोर सब सवाल के जवाब मिल जतउ । - कपिल: ऐ एगो बात भेल । ठीक हे । हम जरूर पहुँचब उहाँ ।)    (मपध॰02:3:16:1.14)
16    एकसरुआ (= अकेला) (कमलेस बचपने से मेहनती लड़का हल । एकसरुआ बाप के मदत करे में बारहे चउदह बरिस के उमर से लगल रहऽ हल । बाप लिखनाय-पढ़नाय के पेसा में हलन, इ से कमलेस भी ऊहे काम में पिल गेल ।)    (मपध॰02:3:19:3.23)
17    एजय (= एज्जइ, एज्जे; यहीं) (लगो हल पूरा जिला भर के सिपाही एजय आके जौर हो गेल हल । डी.एस.पी., एस.पी., डी.एम. से लेके जिला के सब बड़-छोट अफसर मौजूद हलन ।)    (मपध॰02:3:33:1.13)
18    एनहीं (= इधर ही) (अरे तनि चाह-नस्ता बना के बहरए लावऽ जी ! हमनी एनहीं बइठऽ ही । बइठ कपिल । ... हँ, अब सुनाओ हालचाल !)    (मपध॰02:3:15:2.8)
19    एने-ओने (= इधर-उधर) (नोकरी पर से जब चंद्रकांत मिसिर छुट्टी पर घर अएलन तब पता चलल कि छोटका भाई बाहर कमाय चल गेलन । सुन के दुख भेल बाकि कुछ अख्तियार न हल । देखलन कि भतीजा चंदनवाँ गाँव के लंपट लइकन साथ एने से ओने दिन भर घुमल चलऽ हे, कोई रोके-टोके वाला न हे ।)    (मपध॰02:3:25:3.12)
20    एही (= एहे; यही) (रमेसर: तूँ ठीक कहित हें कपिल ! कसूर हल ऊ लोग के । कसूर एही हल कि ऊ लोग हमरा नेता माने लगलन हल आउ जे लोग ऊ सब के मारलन, उनकर नेता हरिचरण हथ ।; एक दिन बाहरे से तार आएल । ओकरा पर लिखल हल, "भइया के मालूम, जल्दी आवथ ।" घर में सब कोई असमंजस में पड़ गेल कि बात का हे । जब कभी इनसान के पास अइसन घड़ी आवऽ हे तब निमन बात मन में न सोंचाए । एही हाल ओहू घर में भेल । मेहरारू, भउजाई सब्भे औरत घड़बड़ा गेलन ।)    (मपध॰02:3:16:2.24, 26:2.21)
21    एहू (= एहो; यह भी) (जेकर लास गिराएब, हमनी के जात-बिरादरी के पनरह लास ओही गिरौलक हे, एकर सबूत होए के चाही न । एकर बाद एहू देखना हे कि पनरह लास गिरावे के वजह का हल ?; एहू सोंचे पड़त कि बदला लेवे के सनक में हमनी बेकसूर लोग के लास तो न गिरावे जा रहली हे ?)    (मपध॰02:3:16:2.3, 8)
22    ओट (= वोट) (डी.एम. आँख चढ़ा के बोलल - मुदा अब त तूँ जेल के हवा खइवऽ । बिरजू डी.एम. से आँख मिलाइत बोलल - जेल में भी हम रहब तइयो कोय फरक नञ् पड़त अउ हम रिकाड तोड़ ओट से जीतम । डी.एम. चेहा के बोलल - मुदा तोरा ओट के देतो ? छाती फुलाइत बिरजू बोलल - ओट त बिन मांगले मिलत, खाली हम्मर अदमी एक बेजी पूरा इलाका घुम जात, बस ।)    (मपध॰02:3:33:2.22, 3.2)
23    ओल (~ लेना) ("सामान्य रिलेसन नञ् होला के ई मतलब थोड़े हे कि ... । हमरा नियन गांधीवादी अदमी भी दू दिन से ओल लेवे ल उताहुल हे ।" डॉ॰ राजीव थोड़े रोसिया के बोललन ।)    (मपध॰02:3:21:1.37)
24    ओसर (= अवसर) (नञ्, एकरा अपने पास रहे दऽ । ई तो उनकर देल उपहार हे तोरा हीं, जे तोर सादी के पनरहमा वरिस पूरा होवे के ओसर पर देलथुन हे ऊ ।)    (मपध॰02:3:19:1.22)
25    ओही (= ओहे; वही) (जेकर लास गिराएब, हमनी के जात-बिरादरी के पनरह लास ओही गिरौलक हे, एकर सबूत होए के चाही न । एकर बाद एहू देखना हे कि पनरह लास गिरावे के वजह का हल ?; एहू सोंचे पड़त कि बदला लेवे के सनक में हमनी बेकसूर लोग के लास तो न गिरावे जा रहली हे ?)    (मपध॰02:3:16:2.1)
26    ओहू (= ओहो; वह भी) (चलऽ, तनि खइनियाँ खा लेवे दऽ । रामदहिन भाई निपटे गेलन हे । तब तक ओहू आ जैतन ।; एक दिन बाहरे से तार आएल । ओकरा पर लिखल हल, "भइया के मालूम, जल्दी आवथ ।" घर में सब कोई असमंजस में पड़ गेल कि बात का हे । जब कभी इनसान के पास अइसन घड़ी आवऽ हे तब निमन बात मन में न सोंचाए । एही हाल ओहू घर में भेल । मेहरारू, भउजाई सब्भे औरत घड़बड़ा गेलन ।)    (मपध॰02:3:17:3.33, 26:2.21)
27    कका (= काका) (कपिल: सब ठीक हइ कका ! कहाँ गेलऽ हल तूँ ?; बात अइसन हे कका कि भइया के नौकरी हइन । फिर घर के खरचा-बरचा, भोज-बियाह, सब तो उनकरे न देखे पड़ऽ हइन । हम तो पढ़-लिख के बेरोजगार बनल बइठल ही । जहाँ तक चंदनवाँ के बात हे, त अभी तो ऊ लइका हे, सयान भेला पर नऽ सोचल जाएत ।)    (मपध॰02:3:15:2.11, 22:2.15)
28    कनहीं (= कहीं) (साँस चलऽ हइ न हो, कि खतमे हो गेलइ ? हँ, चलइत तो हइ । जो, कनहीं से पानी ले आओ । मुँह पर छींटा दे एकर ।)    (मपध॰02:3:18:2.17)
29    कने (= कन्ने; कहाँ) (का हो रविंदर, कने तो गेल हलऽ । ल पइसा, जाके गोहुँमा में खाद छिटवा द, ठीक से देख लिहऽ, दुखना हँथलप्पक भी हे । खाद बचाहुँ लेतो ।", पइसा देइत कहलन ।)    (मपध॰02:3:23:3.21)
30    कबजगार (~ जवान) (रमेसर: देख कपिल ! हमनी के जात-बिरादरी में आज तोरे जइसन कबजगार जवान लोग के जरूरत हे । बिंदा तोरा सब बात बता चुकलन हे ।)    (मपध॰02:3:16:1.18)
31    कब्जाना (= कब्जा करना) (आज टिकारी के किला ढहल जा रहल हे । काहे कि आज एकर कोई माय-बाप नजर न आवऽ हथ । आउ तो आउ, जे संरक्षक हथ वोही एकरा कब्जावे में लगल हथ, पर पं॰ देवन मिसिर के गुनगान ई क्षेत्र में आज भी होवऽ हे ।)    (मपध॰02:3:13:2.15)
32    कमाना-धमाना (ऊ रविंदर मिसिरवा के देखऽ, गाँव के बहकावा में पड़ गेल । कमाय के न धमाय के, दिन भर गाँजा पिअत । देखइत हहूँ, सब देह तो सुख के काँटा हो गेलइ हे ।)    (मपध॰02:3:25:2.2-3)
33    करगा (= किनारा)  (डी.एम. चेहा के बोलल - मुदा तोरा ओट के देतो ? छाती फुलाइत बिरजू बोलल - ओट त बिन मांगले मिलत, खाली हम्मर अदमी एक बेजी पूरा इलाका घुम जात, बस । - मगर इहाँ त बड़का-बड़का महारथी चुनाव में खड़ा हथ । - हमरा कोय कुछ नञ् बिगाड़त, सब अपने-आप समुंदर के फेन जइसन करगा लग जात ।)    (मपध॰02:3:33:3.11)
34    कहिया (= कब, किस दिन) (कपिल: पाँव लगी काकी ! - काकी: अरे ! कपिल बउआ खुसी रहऽ, खुसी रहऽ । आवऽ ! कहिया ऐलऽ नौकरी पर से ?; रातो में आवे के कोई ठेकान न । कहियो दस बजतवऽ, कहियो इगारह । कहियो-कहियो तो बारहो बज जतवऽ !)    (मपध॰02:3:14:1.7, 2.12, 14)
35    कहियो (= कभी) (कपिल: काका मारऽ हथु तोरा ? - काकी: {रो के} हाय हाय ! सायते कहियो नागा हो हवऽ । जब न तब धोंय-धोंय धबार देतथु । पी के जहिया अतथु, तहिया तो फजिहत हो जा हवऽ । अस्सो के मारतथु बिना कसूरो के ।)    (मपध॰02:3:15:1.11)
36    का जनी ("आएँ गे माय, तनिको सन काम करे न चाहउ कोय ? घर में एगो हमहीं हियउ ? अरे, सब दिन तो हम करबे करऽ हियउ, आज ऊ बाबू साहेब नोकरी पर से अएलथुन हे, त जा सकऽ हलथुन घोघरवा में । रूतबा हेंठ हो जएतइन हल का ?" - "लगऽ हउ कि तोरा फिर आज सब भुजफट्टन कान भरलउ हे । अरे बाबू भाई के अइसे बोलल जाहे ? ऊ बेचारा कल्हे साँझे तो आएल हे । थक्कल-मांदल होयत का जनी, आउ फिर खाद के दाम देइये देइत हउ । जाके खाली देखहीं के न हउ ।")    (मपध॰02:3:23:2.22)
37    कान (एक कान से दू कान, दू कान से बीयाबान । एक दिन ई बात के खबर डॉ॰ राजीव के हो गेल । सन्न रह गेलन डॉ॰ राजीव । दिन के चैन आउ रात के नीन उड़ गेल दुनहूँ परानी के ।)    (मपध॰02:3:21:1.8)
38    कान्हाँ (= कन्धा) (कपिल: अच्छा ! कउनो बड़का काम में लगल हथ का ? - काकी: अरे मारऽ ! बड़का काम कउची हइन ? झोलंग कुरता आउ पैजामा पहिन के कान्हाँ में झोला टाँग के इन्कलाब जिंदाबाद करित चलतथु ।)    (मपध॰02:3:14:2.20)
39    कुटूम (= कुटुम्ब; रिश्तेदार) (कहाय के तो ऊ सेयान हो गेल हे बाकी अभी भी ओकरा ओतना ऊँच-नीच सोंचे के गेयान न हइ । गाँव-जेवार आउ कुटूम लोग सुनतन तब का कहतन । हमरा तो ई समझ में न आवित हे कि ओकरा कउन बात के कमी होलइ ।)    (मपध॰02:3:24:1.19)
40    कुरचना (देखऽ ! सराबी, जुआरी नञ् मालूम की की नञ् हथ सुरेंदर जी तइयो तू उनका साथ कुरच रहलऽ हऽ । आउ ई जे सात खंडा सोना लटकल हो तोर देह में, जानित नञ् ही कि ई चोरी के माल के हे । कभी ई सब ले सुरेंदर जी के टोकलऽ तूँ ?)    (मपध॰02:3:20:3.32)
41    कुहाग (जउन बाप आगू ऊ कभी मुड़ी नञ् उठयलन, जउन माय इनका बुतरू समझ के दस बात सुना दे हलन, आज उनको इनका कुछ कहे के हिम्मत नञ् पड़ऽ हे । ... हमरा तो ई सोंच-सोंच के कुहाग लगऽ हे कि कल हम बेटी केही कहके आउ केहरा हीं बियाहम । पनरह बरिस के कइल-कइल पनरह महिन्ना में छाय हो गेल ।)    (मपध॰02:3:19:3.16)
42    केबाड़ी (हास्य रस के बदौलत देवन रानी इंद्रजीत कुँअर से 12 बिगहा जमीन पौलन । आज भी आँती अहरा के सटल इनकर एक बिगहा जमीन बचल हे । अब इनकर मकान ढहो-ढनमन हो गेल हे । दुआरी पर चंदन के केबाड़ी लगल हे ।)    (मपध॰02:3:13:3.3)
43    केहरा (= किनका) (जउन बाप आगू ऊ कभी मुड़ी नञ् उठयलन, जउन माय इनका बुतरू समझ के दस बात सुना दे हलन, आज उनको इनका कुछ कहे के हिम्मत नञ् पड़ऽ हे । ... हमरा तो ई सोंच-सोंच के कुहाग लगऽ हे कि कल हम बेटी केही कहके आउ केहरा हीं बियाहम । पनरह बरिस के कइल-कइल पनरह महिन्ना में छाय हो गेल ।)    (मपध॰02:3:19:3.18)
44    केहुना-ठेहुना (काकी: ... कुल तीन महिन्ना पहिले बिआएल गाय के दूध आधा हो गेल । न घास-भुस्सा के ठेकान, न कोराई-चुन्नी के । सेवा बिना एकदम अँउड़रा गेल बेचारी । - कपिल: काहे ? तूँ न खिआवऽ हहु ? - काकी: अरे हमरा ठेके दे हे ? अइसन मरखंड हवऽ कि दूरे से सींघ झुका के दउड़तवऽ । एक दिन अइसन धुँसिऔलक कि हम फेंका के उलट गेली । केहुना-ठेहुना दुन्नों फूट गेलवऽ । देखऽ न, अबही ले चिन्हाँ हवऽ ।)    (मपध॰02:3:14:3.29)
45    कोट-कचहरी (दीदी ! अपने उनकर ई बेहवार कइसे सह ले हथिन ? अब तो थाना पुलिस, कोट-कचहरी सब खुल्ला हे औरत ले ... काहे डरऽ ही । अप्पन चीज के कोय अपना बउसाव भर बेरान काहे होवे देत । हमनहीं गोवाही देवे ल तइयार हियो ।)    (मपध॰02:3:20:3.14)
46    कोराई-चुन्नी (काकी: मत कहऽ ए बाबू ! पनरहे दिन में घर रेहन-तेहन, राइ-छितिर हो गेलवऽ । कुल तीन महिन्ना पहिले बिआएल गाय के दूध आधा हो गेल । न घास-भुस्सा के ठेकान, न कोराई-चुन्नी के । सेवा बिना एकदम अँउड़रा गेल बेचारी ।)    (मपध॰02:3:14:3.21)
47    खरचा-पानी ("चंदनवाँ के ननिहाल में काहे छोड़ले हहीं हो ?" गाँजा के निसा अब गनौरी चचा के आँख से बाहरे झाँकइत हल । ऊ दुन्नो के बातचीत सुनके बीच में टुभकलन, "तोर भतीजवन सब बाहरहीं न पढ़इत हउ हो, आउ जहाँ तक हम्मर समझ से ओहनियों के खरचा-पानी घरहीं से जा होतउ । तब का तोर लइकवा के ओहनी सब साथे न रख सकऽ हलउ ?")    (मपध॰02:3:22:2.3)
48    खरचा-बरचा (समूचा इलाका उनकर इज्जत करऽ हे । खाली भोटे न, खरचा-बरचा ला अप्पन टेँट से उनका नोट भी दे हे ।; बात अइसन हे कका कि भइया के नौकरी हइन । फिर घर के खरचा-बरचा, भोज-बियाह, सब तो उनकरे न देखे पड़ऽ हइन । हम तो पढ़-लिख के बेरोजगार बनल बइठल ही । जहाँ तक चंदनवाँ के बात हे, त अभी तो ऊ लइका हे, सयान भेला पर नऽ सोचल जाएत ।)    (मपध॰02:3:16:3.20, 22:2.17)
49    खाता-पीता (गाँव में रहे ओलन बर्हामन सब गरीब हलन । ओही में से दु-चार घर खाता-पीता भी हलन । बाकि रमापत मिसिर के बात दूसर हल । भुमिहार लोग के जइसन तो न, तइयो करीब बीस-पच्चीस बिघा बेस जमीन हल ।)    (मपध॰02:3:22:3.1)
50    खिआना (= घिसना) (आझ देखिये रहला हे, छोटा-छोटा काम खातिर गाम के लोग के बलौक आउर जिला में दौड़ते-दौड़ते पैर के जूता खिआ जाहे ।)    (मपध॰02:3:7:3.13)
51    खुट्टक (इनकर कथा तो मत पूछऽ ! जेतना मुँह ओतना बात । स्वीकारल जाहे कि लगभग 85 बरस के उमर में इनका एगो मेहरारू से करल खुट्टक महँगा पड़ल जे लिट्टी पर हल । ओही घड़ी इनकर मिरतु हो गेल ।)    (मपध॰02:3:13:3.13)
52    खुल्ला (= खुला) (दीदी ! अपने उनकर ई बेहवार कइसे सह ले हथिन ? अब तो थाना पुलिस, कोट-कचहरी सब खुल्ला हे औरत ले ... काहे डरऽ ही । अप्पन चीज के कोय अपना बउसाव भर बेरान काहे होवे देत । हमनहीं गोवाही देवे ल तइयार हियो ।)    (मपध॰02:3:20:3.15)
53    खेती-बारी ("न ! कुछ कहऽ, आज फैसला हो जाएत, हम साथे न रहम । घर-दुआर, खेती-बारी सब बाँट द ।" रविंदर मिसिर जइसे अंतिम फैसला सुनावित कहलन ।; चंद्रकांत मिसिर के तीनो लइकन आज तीन जगह में नाम कमा रहलन हल । एगो लइका घर ही पर रह के खेती-बारी देखइत हल आउ साथे-साथे पुश्तैनी जजमनिका भी । दुसरका महटरी आउ तिसरका रेलवे के विभाग में अफसर के पद पर बहाल हल ।)    (मपध॰02:3:24:3.28, 26:1.39)
54    खोस (= खुश) (गाँव-गिराँव के लोग देख के चेहा भी रहल हल, अउ खोस भी हल कि इलाका में एस.पी., डी.एम. के साथे पाँच लाख रुपइया इलामी वाला अदमी बिरजूलाल थाना में हाजिर हल ।)    (मपध॰02:3:33:1.18)
55    गमार (= गँवार) (आज के मगही के विकास में सबसे बड़गो बाधा मगध के बुद्धिजीवी हथ । उनकर नजर में मगही अनपढ़ गमार के भाषा हे, मेहरारू के भाषा हे, भले उनका दू लाइन सही हिंदी इया अंगरेजी बोले नञ् आवे ।)    (मपध॰02:3:5:1.18)
56    गरजियन (= गार्डियन) (जेकरा कोय ठौर-ठिकाना न हे, ऊहे गरजियन अप्पन बच्चा के गाम के स्कूल में भेजो हथ । गाम के पढ़ल-लिखल अदमी गाम करीब-करीब छोड़ देलक ।)    (मपध॰02:3:8:3.28)
57    गरिआना (= गाली देना) (निठुरे मुँहे ~) (आज के मगही के विकास में सबसे बड़गो बाधा मगध के बुद्धिजीवी हथ । उनकर नजर में मगही अनपढ़ गमार के भाषा हे, मेहरारू के भाषा हे, भले उनका दू लाइन सही हिंदी इया अंगरेजी बोले नञ् आवे । ऊ बुद्धिजीवी के भाषा के कुछ नमूना एहाँ रख रहली हे - 'ऊ बोलिस कि हम नञ् आवेंगे आपके पास ।', 'चाय बन गया हो ?',  'पकपकाते काहे है ?', 'चट से मार बैठिस ।', 'निठुरे मुँहे गरिआ दिहिस ।',  'हमरा सामने उसका बकार निकलता है ?', 'बोलिस कि टीसन पर मिलेंगे ।' ई कउन हिंदी हे एकरा बारे में तो जानिसकारे लोग बता सकऽ हथ ।)    (मपध॰02:3:5:1.20)
58    गहूम (= गोहूम; गोधूम, गेहूँ) (गाम में बड़ही, हजाम, लोहार, धोबी, चमार, बर्हामन, डोम, मुसहर, दुसाध सब जात के लोग अप्पन-अप्पन पुस्तैनी काम करो हलन । किसान ओकर बदले में ओकरा गल्ला दे हल । बड़ही साल भर किसान के हर-पालो बनावो हल । किसान ओकर बदले में ओकरा धान, गहूम आउ मकई दे हल ।)    (मपध॰02:3:7:3.33)
59    गाँव-गिराँव (गाँव-गिराँव के लोग देख के चेहा भी रहल हल, अउ खोस भी हल कि इलाका में एस.पी., डी.एम. के साथे पाँच लाख रुपइया इलामी वाला अदमी बिरजूलाल थाना में हाजिर हल ।)    (मपध॰02:3:33:1.17)
60    गाँव-जेवार (कहाय के तो ऊ सेयान हो गेल हे बाकी अभी भी ओकरा ओतना ऊँच-नीच सोंचे के गेयान न हइ । गाँव-जेवार आउ कुटूम लोग सुनतन तब का कहतन । हमरा तो ई समझ में न आवित हे कि ओकरा कउन बात के कमी होलइ ।; छोड़ऽ, हमरा उनका से कोई तरह से संबंध न रखना हे । हमरा ला आज तक एहनी का कएलन से छिपल न हे । आज गाँव-जेवार के देखावे ला हम्मर लइका के बाहरे ले गेलन हे । जुदा होय के पहिले काहे न ले गेलन हल ?)    (मपध॰02:3:24:1.18, 26:1.27)
61    गाम (= गाँव) (आज भी ई बात सही हे कि भारत गाम के देस हे । इहाँ सत्तर परतिसत अदमी गामे में रहे हे ।; गाम में सब तरह के लोग रहो हलन । गाम में जात-पात के कोय भेद न हल ।; गाम के लोग चाहे ऊ कोय जात के रहथ, कोय धरम के मानथ, सब चचा, भइया के नाता रखो हलन । पते न चले कि गाम में कोय विभेद हे । एकता गाम के पहचान हल । दोसर पहचान हल गाम के पंचइती ।)    (मपध॰02:3:7:1.2, 3, 19, 21, 24, 27, 28, 29)
62    गामे-ढेमे (आज जरूरत हे देवन मिसिर के कथा के जीवनी के साथे साथ किताब रूप देवे के । आज भी गामे-ढेमे इनकर नाम तो खूब हे बाकि कोई पुस्तक न होना दुखद हे ।)    (मपध॰02:3:13:3.19)
63    गाली-गुप्ता (भोट के लूट के गुंडा-बदमास सब एम.एल.ए. आउ एम.पी. बन जा रहल हे । विधान सभा आउ पारलियामेंट में मार-पीट आउ गाली-गुप्ता करके अपन रंग जमा रहल हे ।)    (मपध॰02:3:10:1.26)
64    गिरपड़ता (" ... अपने के कानूनी जानकारी भी पुरगर हे अपने जे चाही ऊ एक्सन ले सकली हे हमरा पर । हम वादा करऽ ही कि हम कोय डिफेंस नञ् लेम ।" कमलेस गिरपड़ता नियन बोलल ।)    (मपध॰02:3:21:2.18)
65    गिरह (= गाँठ, जोड़) (~ बाँधना) (न समझली हे, न समझे के जरूरत हे । बस, एतने गिरह बांध ले कि तीस गो लास गिरा देना हे ।)    (मपध॰02:3:15:3.13)
66    गे (= किसी स्त्री या लड़की को संबोधित करने हेतु प्रयुक्त) (जब घरे अएलन त देखलन कि दुआरी पर बुढ़िया माय बोरसी लेले घामा में बइठल हलन । जइसहीं भिरू गेलन बोले लगलन, "आएँ गे माय, तनिको सन काम करे न चाहउ कोय ? ...")    (मपध॰02:3:23:2.4)
67    गोतिया (पहिले एक घर में सत्यनरायन भगवान के कथा होवो हल तब गाम भर में सोर हो जा हल । अब तो बगल के आदमी के भी पता न चले कि गोतिया घर में कथा हो रहल हे । गाम के ई पहचान मिट गेल ।)    (मपध॰02:3:8:1.31)
68    गोदी (= गोद) (चुनाव के ई जंजाल एक बेरी फेर ढेर लहास गिरैलक, ढेर मांग उजड़ गेल । ढेरेक गोदी सुन्ना हो गेल ।; कमलेस के तेज दिमाग भोथर हो गेल हल । भीतरे-भीतरे मोम नियन गलते रहे । बकि विधि के विधान एक रोज फेर कुसुम कमलेस के गोदी में गिर पड़ल । भले बिचमान एगो ममेरा भाय हल, जे कुसुम के मसुआएल चेहरा नञ् देख सकल ।)    (मपध॰02:3:10:1.17, 21:3.16)
69    गोवाही (= गवाही) (दीदी ! अपने उनकर ई बेहवार कइसे सह ले हथिन ? अब तो थाना पुलिस, कोट-कचहरी सब खुल्ला हे औरत ले ... काहे डरऽ ही । अप्पन चीज के कोय अपना बउसाव भर बेरान काहे होवे देत । हमनहीं गोवाही देवे ल तइयार हियो ।)    (मपध॰02:3:20:3.22)
70    गोस्सा-पित्ता (कुसुम ! पंद्रह बरिस हो गेल इनखा से हमर बियाह के । एगारह बरिस से बस भी रहली हे । इनकर झूठ रोमा नञ् जारबन । गोस्सा-पित्ता में कुछ बोल देथ, ऊ अलग बात हे बकि अपना जानते कभी कुछ कमी नञ् होवे देलन ई ।)    (मपध॰02:3:19:3.2)
71    गोहुँम (= गोधूम; गेहूँ) (का हो रविंदर, कने तो गेल हलऽ । ल पइसा, जाके गोहुँमा में खाद छिटवा द, ठीक से देख लिहऽ, दुखना हँथलप्पक भी हे । खाद बचाहुँ लेतो ।", पइसा देइत कहलन ।; अनाज तो घर में हल बाकि ओहू बइठले-बइठल खाए से खतम होइत जाइत हल । घर में एक पइसा तो हल नऽ, तनिको काम ला चाउर इया गोहुँम बेचे पड़ऽ हल । एक दिन कुछ रुपइया उधार-पइँचा करके रविंदर मिसिर कमाय ला सूरत चल देलन ।)    (मपध॰02:3:23:3.22, 25:2.18)
72    घइला (= घड़ा) (चिकरऽ मत रमेसर कका ! तोहनी के पाप के घइला भर गेलवऽ । अब ओकरा फोरहीं में भलाई हे । तोहनी के पाप के घइला हम फोरब, हम ।)    (मपध॰02:3:18:3.11, 13)
73    घरइया (एगो बड़हन किताब पर कमलेस फरागत विदमान के साथ काम करे लगल । धीरे-धीरे दुनहूँ के घरइया सबंध हो गेल । एक दूसर के बीच घोलसार चले लगल । डॉ॰ राजीव भी कमलेस के बड़ाय करते नञ् थकथ दोस-मोहिम के बीच ।)    (मपध॰02:3:20:1.16)
74    घर-दुआर ("न ! कुछ कहऽ, आज फैसला हो जाएत, हम साथे न रहम । घर-दुआर, खेती-बारी सब बाँट द ।" रविंदर मिसिर जइसे अंतिम फैसला सुनावित कहलन ।; बँटवारा हो गेल । खेत से लेके घर-दुआर, बाग-बगइचा सबके दू भाग हो गेल । रविंदर पर सुरूए से छोटका बेटा होवे से भी माय-बाप के धेयान तनी जादे रहऽ हल । ई लेल रमापत मिसिर आउ उनकर मेहरारू छोटके बेटा दने रहे लगलन ।)    (मपध॰02:3:24:3.27-28, 25:1.24)
75    घरनी (दस तरह के लोग, दस तरह के बोली । बाकि आय-माय के राय में कुसुम आउ कमला बेकसूर हल । कमलेस दोसी हलन, पतित हलन । एक घरनी के रहते दोसर से प्रेम समाज में केकरा रास आ सकऽ हे ।)    (मपध॰02:3:20:3.3)
76    घरवाली (दुनहूँ के प्रेम सब कोय ले अजगुत हल । खास करके उनका ले जे कमलेस के घरवाली कमला के हमराज हलन । कुसुम के प्रति कमलेस के प्रेम आउ कमला के प्रति मोह, सबके चकरा के रख दे हल ।)    (मपध॰02:3:20:2.25)
77    घास-भुस्सा (काकी: मत कहऽ ए बाबू ! पनरहे दिन में घर रेहन-तेहन, राइ-छितिर हो गेलवऽ । कुल तीन महिन्ना पहिले बिआएल गाय के दूध आधा हो गेल । न घास-भुस्सा के ठेकान, न कोराई-चुन्नी के । सेवा बिना एकदम अँउड़रा गेल बेचारी ।)    (मपध॰02:3:14:3.20)
78    घिग्घी (आँख से बहित लोर आउ घिग्घी से फुटित हिचकी रोक नञ् पाएल कमला ।)    (मपध॰02:3:19:1.9)
79    घिचपिच (~ बात) ("अईं हो रविंदर, लगऽ हवऽ कि बड़का भाई नौकरी पर से आ गेलथुन हे । कहलऽ हल कि बातचीत करम, कयलऽ का ?" हाँथ के चिलिम रविंदर के धरावित कहलन, "जे भी कहना होय से अबरी साफे-साफ कहिहऽ, घिचपिच बात नऽ ... समझलऽ ?")    (मपध॰02:3:22:1.25)
80    घींच-तीर (मगही के विकास में तेसर बाधा हथ स्थानवाद, क्षेत्रवाद आउ जातिवाद के रइया-दोहइया । बैकुंठवासी मगहीसेवी के की कही, बकि जिंदा मगहीसेवी में से 90 हिस लोग ई बेमारी के सिकार हथ । किनखो नजर में उनकर प्रखंड के मगही सबसे मीठ, सबसे अच्छा हे । किनखो नजर में मगही कोय जाति के बपौती हे, त किनखो नजर में कोय जाति के । ई घींच-तीर में मगही बेहाल हे ।)    (मपध॰02:3:5:1.32)
81    घुड़ी (= घुरी; घड़ी, बार, समय) ("का कहइत हऽ बाबूजी ? रविंदरा साथे न रहत ?" - "हँ हो, हर घुड़ी के कलह से अच्छा हे कि तोहनी अलग ही हो जा ।")    (मपध॰02:3:23:3.36)
82    घोघर (चचा, चलहुँ, पापाजी बोलयलथु हे । घोघरवा में खाद छिटावे ला हवऽ, दुखना कहे आएल हलवऽ ।; आएँ गे माय, तनिको सन काम करे न चाहउ कोय ? घर में एगो हमहीं हियउ ? अरे, सब दिन तो हम करबे करऽ हियउ, आज ऊ बाबू साहेब नोकरी पर से अएलथुन हे, त जा सकऽ हलथुन घोघरवा में । रूतबा हेंठ हो जएतइन हल का ?)    (मपध॰02:3:22:2.24, 23:2.10)
83    घोलसार (एगो बड़हन किताब पर कमलेस फरागत विदमान के साथ काम करे लगल । धीरे-धीरे दुनहूँ के घरइया सबंध हो गेल । एक दूसर के बीच घोलसार चले लगल । डॉ॰ राजीव भी कमलेस के बड़ाय करते नञ् थकथ दोस-मोहिम के बीच ।)    (मपध॰02:3:20:1.18)
84    चचा (= चाचा) ("चंदनवाँ के ननिहाल में काहे छोड़ले हहीं हो ?" गाँजा के निसा अब गनौरी चचा के आँख से बाहरे झाँकइत हल । ऊ दुन्नो के बातचीत सुनके बीच में टुभकलन, "तोर भतीजवन सब बाहरहीं न पढ़इत हउ हो, आउ जहाँ तक हम्मर समझ से ओहनियों के खरचा-पानी घरहीं से जा होतउ । तब का तोर लइकवा के ओहनी सब साथे न रख सकऽ हलउ ?")    (मपध॰02:3:22:1.32)
85    चच्चा (= चाचा) (अरे कपिलवा ! दू गो अछरिया पढ़ के नौकरिया करे से तूँ बड़का भारी कानूनची हो गेलें ? बिंदा के पाठ पढ़ावे लगलें ? ई इयाद रख कि हम तोर चच्चा ही, चच्चा !)    (मपध॰02:3:15:3.34)
86    चमार (गाम में बड़ही, हजाम, लोहार, धोबी, चमार, बर्हामन, डोम, मुसहर, दुसाध सब जात के लोग अप्पन-अप्पन पुस्तैनी काम करो हलन । किसान ओकर बदले में ओकरा गल्ला दे हल ।)    (मपध॰02:3:7:3.26)
87    चाउर (= चावल) (अनाज तो घर में हल बाकि ओहू बइठले-बइठल खाए से खतम होइत जाइत हल । घर में एक पइसा तो हल नऽ, तनिको काम ला चाउर इया गोहुँम बेचे पड़ऽ हल । एक दिन कुछ रुपइया उधार-पइँचा करके रविंदर मिसिर कमाय ला सूरत चल देलन ।)    (मपध॰02:3:25:2.17)
88    चाउर-दाल ("ठीके कहइत हहीं हो रमाकांत, अब चाउर-दाल के भाव मालुम हो जइतइन", चनेसर सिंह खइनी के चुटकी से तरहथी पर मलइत बोललन ।)    (मपध॰02:3:25:2.9)
89    चाह (= चाय) (~-नस्ता) (अरे तनि चाह-नस्ता बना के बहरए लावऽ जी ! हमनी एनहीं बइठऽ ही । बइठ कपिल । ... हँ, अब सुनाओ हालचाल !)    (मपध॰02:3:15:2.7)
90    चिकरना (= चिल्लाना) (चिकरऽ मत रमेसर कका ! तोहनी के पाप के घइला भर गेलवऽ । अब ओकरा फोरहीं में भलाई हे । तोहनी के पाप के घइला हम फोरब, हम ।)    (मपध॰02:3:18:3.10)
91    चिन्हना (= पहचानना) (देखऽ, तोहनी छोड़ दऽ कपिल के ... अरे कपिल हमर भतीजा हे ... न मानवऽ त ठीक न होतवऽ हमरा से ... हम तोहनी सब के चिन्हइत ही ... तोहनी सब हरिचरन के आदमी हऽ ।)    (मपध॰02:3:18:1.28)
92    चिन्हाँ (= चिह्न) (काकी: ... कुल तीन महिन्ना पहिले बिआएल गाय के दूध आधा हो गेल । न घास-भुस्सा के ठेकान, न कोराई-चुन्नी के । सेवा बिना एकदम अँउड़रा गेल बेचारी । - कपिल: काहे ? तूँ न खिआवऽ हहु ? - काकी: अरे हमरा ठेके दे हे ? अइसन मरखंड हवऽ कि दूरे से सींघ झुका के दउड़तवऽ । एक दिन अइसन धुँसिऔलक कि हम फेंका के उलट गेली । केहुना-ठेहुना दुन्नों फूट गेलवऽ । देखऽ न, अबही ले चिन्हाँ हवऽ ।)    (मपध॰02:3:14:3.31)
93    चिरौरी (~ करना) (एक कान से दू कान, दू कान से बीयाबान । एक दिन ई बात के खबर डॉ॰ राजीव के हो गेल । सन्न रह गेलन डॉ॰ राजीव । दिन के चैन आउ रात के नीन उड़ गेल दुनहूँ परानी के । कुसुम से तरह-तरह के चिरौरी कइलन । कुसुम सब बात निडर बन के बतइते गेल । डॉ॰ राजीव के काटऽ त खून नञ् ।)    (मपध॰02:3:21:1.14)
94    चिल्लर (= चिल्लड़; चीलर, कपड़े में पाया जानेवाला जूँ) (एक बेरी देवन माई तारा देवी के मंदिर गेलन आउ मनेमन मांगलन कि मैया हमरा एगो पूत दे दऽ त तोरा दू बली देवम । समय आयल, देवी कृपा से देवन एक बेटी के बाप बन गेलन आउ जब बली के याद आयल तब होसियार देवन अप्पन नौ पर एगो ढील आउ एगो चिल्लर पुट कर देलन आउ कहलन, मैया हम तोहर मनौती उतार देली ।)    (मपध॰02:3:13:1.34)
95    छिनैती (सहर में बेकार लोग के भरमार हो गेल हे । ऊ सब अब चोरी, डकैती, छिनैती आउ ऐसने दोसर अपराध में लगल हथ ।)    (मपध॰02:3:9:3.7)
96    छीछ (= एकांत, भय आदि से निकला शब्द; चीख, चीत्कार) (~ काटना) (इनका में सेवाय ई बात के तोरा की खराबी देखाय पड़ऽ हो ? मेहनत-मजूरी से ऊ भागथ नञ्, मरदाना में पावे जाय वला सहंसर ऐब से ऊ छीछ काटथ । त एक ऐगुन ल हम उनका पर सहंसर अजलेम कइसे लगा सकऽ ही ।)    (मपध॰02:3:21:1.2)
97    छुछुरबुद्धि (= क्षुद्रबुद्धि) (सबसे अचरज के बात तो ई हे कि बगलवला घर में कोय अखिल भारतीय स्तर के संगठन चल रहल हे, भाषा ले ई बगलवला पड़ोसी के मालूम नञ् हे । संगठन के कर्ता-धर्ता के हित-कुटुम के भी मालूम नञ् हे । बस, संस्था, संस्था बनावे वला के जेभी में विराजे हे । ई छुछुरबुद्धि खतम होले बिना मगही के की विकास होत ?)    (मपध॰02:3:5:1.36)
98    छोटका (बँटवारा हो गेल । खेत से लेके घर-दुआर, बाग-बगइचा सबके दू भाग हो गेल । रविंदर पर सुरूए से छोटका बेटा होवे से भी माय-बाप के धेयान तनी जादे रहऽ हल । ई लेल रमापत मिसिर आउ उनकर मेहरारू छोटके बेटा दने रहे लगलन ।)    (मपध॰02:3:25:1.26, 29)
99    छोटकी ("बड़का बाबू, तोरो मेहरारू कोई कम न हथुन, भले दुन्नो गोतनी मुँह पर आपस में मुँहाठेठी न करऽ हथुन, बाकि पीछे में तो पड़ोस के माय से हजारो तरह के बात बेचारी छोटकी के बारे में कहऽ हथुन ।"; बूढ़ी माय जे देवताजी के दुआरी पर बइठल  छोटकी के लड़की के गोदी में लेके खेलावित हलन बीच में बोल पड़लन ।)    (मपध॰02:3:24:2.15, 17)
100    जजमनिका (तुहूँ पढ़ल-लिखल हइये ह । अरे नोकरी न मिलल त ई से का, आदमी रखऽ आउ जमके खेती करावऽ, हम्मर जजमनिका के धरऽ । भविस में खाए-पीए, रुपइया-पइसा आउ कपड़ा-लत्ता कुछो के कमी न रहतो ।; चंद्रकांत मिसिर के तीनो लइकन आज तीन जगह में नाम कमा रहलन हल । एगो लइका घर ही पर रह के खेती-बारी देखइत हल आउ साथे-साथे पुश्तैनी जजमनिका भी । दुसरका महटरी आउ तिसरका रेलवे के विभाग में अफसर के पद पर बहाल हल ।)    (मपध॰02:3:22:3.32, 26:2.1)
101    जन्ने (= जिधर) (~ ... तन्ने) (बिंदा: ठीके कहित हऽ ! तूँ जब प्रधानमंत्री बनवऽ न, शिक्षामंत्री, रेलमंत्री, विदेसमंत्री, इत्तमंत्री-वित्तमंत्री, फलान-ढेकान मंत्री हमनिएँ न बनब । तब आलीशान बंगला होएत, गाड़ी होएत, तिजोरी भरत, रुतवा रहत, जन्ने जाएब तन्ने जैकार होएत - एकरा कपिलवा बरबाद होना समझऽ हे ।)    (मपध॰02:3:16:3.10)
102    जलम-दिन (= जन्म-दिन) (आझ कुसुम के जलम दिन हल । कमला हारल मन से कुसुम के उपहार देइत हल, कमलेस के भेंट कइल घड़ी । आज ओकर अंदर के दरद कुसुम से देखल नञ् गेल ।)    (मपध॰02:3:21:3.24-25)
103    जहिना (= जहिया; जिस दिन) (देवी कृपा से देवन एक बेटी के बाप बन गेलन आउ जब बली के याद आयल तब होसियार देवन अप्पन नौ पर एगो ढील आउ एगो चिल्लर पुट कर देलन आउ कहलन, मैया हम तोहर मनौती उतार देली । देवन के ई कृत्य से देवी तारा तुरंत आगे आ गेलन आउ कहलन, जहिना तोहर जवाब कोई मेहरारू दे देलक वोही दिन तोहर अंतिम दिन होयत ।)    (मपध॰02:3:13:2.3)
104    जहिया (= जहिना; जिस दिन) (~ ... तहिया) (कपिल: काका मारऽ हथु तोरा ? - काकी: {रो के} हाय हाय ! सायते कहियो नागा हो हवऽ । जब न तब धोंय-धोंय धबार देतथु । पी के जहिया अतथु, तहिया तो फजिहत हो जा हवऽ । अस्सो के मारतथु बिना कसूरो के ।; कोय सैतिन के ई तरह के बेहवार भी हो सकऽ हे ई तो कुसुम कभी सोंच भी नञ् पइलक हल मन में । ऊ तो सोंचलक हल कि जहिया ऊ कमलेस जी के दोसर पत्नी के रूप में कमला से मिलत त ऊ असमान माथा पर उठा लेत ।)    (मपध॰02:3:15:1.13, 19:2.18)
105    जहुआना (= लंबित रहना; रोग का न छूटना; काम का बीच में अटक जाना) (छोटकी भतिजिया के एक महिन्ना से बोखारे न छूटइत हे । ओझा से झरवा-झरवा के भउजी आउ जहुआ देलथी । हम अइली त डाक्टर से कह के दवाई ले जाइत ही।)    (मपध॰02:3:17:3.28)
106    जानल-गुनल (~ जाना) (भोजपुरी अपन विस्तार के चलते, मैथिली अपन साहित्त आउ बोलताहर के चलते आउ मगही अपन लोकसाहित्त के चलते जानल-गुनल जाहे ।)    (मपध॰02:3:5:1.7)
107    जारना (= जराना; जलाना) (कुसुम ! पंद्रह बरिस हो गेल इनखा से हमर बियाह के । एगारह बरिस से बस भी रहली हे । इनकर झूठ रोमा नञ् जारबन । गोस्सा-पित्ता में कुछ बोल देथ, ऊ अलग बात हे बकि अपना जानते कभी कुछ कमी नञ् होवे देलन ई ।)    (मपध॰02:3:19:3.1)
108    जौर (= इकट्ठा, एकत्रित) (लगो हल पूरा जिला भर के सिपाही एजय आके जौर हो गेल हल । डी.एस.पी., एस.पी., डी.एम. से लेके जिला के सब बड़-छोट अफसर मौजूद हलन ।)    (मपध॰02:3:33:1.13)
109    झमाठ (= झमठगर) (पहले के पेड़ - कीकर, पांकड़, गुल्लर, कोसुम, सेमल, बड़ एतने झमाठ रहऽ हल कि ओकरा पर पच्छी के बसेरा होवऽ हल । आज के पेड़ हे - सफेदा, यूकलिप्टस जेकरा में न घनत्व हे, न मिठास, न फल । फिर कैसे पच्छी के ई सब आश्रय बनत ।)    (मपध॰02:3:32:2.37)
110    झरवाना (छोटकी भतिजिया के एक महिन्ना से बोखारे न छूटइत हे । ओझा से झरवा-झरवा के भउजी आउ जहुआ देलथी । हम अइली त डाक्टर से कह के दवाई ले जाइत ही।)    (मपध॰02:3:17:3.27)
111    झरुआना (= झड़ुआना; झाड़ू से मारना) (दीदी ! अपने उनकर ई बेहवार कइसे सह ले हथिन ? अब तो थाना पुलिस, कोट-कचहरी सब खुल्ला हे औरत ले ... काहे डरऽ ही । अप्पन चीज के कोय अपना बउसाव भर बेरान काहे होवे देत । हमनहीं गोवाही देवे ल तइयार हियो । नहिरा-ससुरा से बात करके उनका डरावऽ धमकावऽ आउ जब ऊ छिनार घर चढ़ो त झाड़ू से झरुआ दऽ ।)    (मपध॰02:3:20:3.27)
112    झोलंग (= झोलंगा) (कपिल: अच्छा ! कउनो बड़का काम में लगल हथ का ? - काकी: अरे मारऽ ! बड़का काम कउची हइन ? झोलंग कुरता आउ पैजामा पहिन के कान्हाँ में झोला टाँग के इन्कलाब जिंदाबाद करित चलतथु ।)    (मपध॰02:3:14:2.19)
113    टाँगना-टूँगना (उतरवऽ न रमेसर भइया त पेड़वे पर बइठल रहव ? आवऽ । एकरा होस में ला के टाँग-टूँग के घरे पहुँचावल जाए ।)    (मपध॰02:3:18:2.13)
114    टीसन (= स्टेशन) (आज के मगही के विकास में सबसे बड़गो बाधा मगध के बुद्धिजीवी हथ । उनकर नजर में मगही अनपढ़ गमार के भाषा हे, मेहरारू के भाषा हे, भले उनका दू लाइन सही हिंदी इया अंगरेजी बोले नञ् आवे । ऊ बुद्धिजीवी के भाषा के कुछ नमूना एहाँ रख रहली हे - 'ऊ बोलिस कि हम नञ् आवेंगे आपके पास ।', 'चाय बन गया हो ?',  'पकपकाते काहे है ?', 'चट से मार बैठिस ।', 'निठुरे मुँहे गरिआ दिहिस ।',  'हमरा सामने उसका बकार निकलता है ?', 'बोलिस कि टीसन पर मिलेंगे ।' ई कउन हिंदी हे एकरा बारे में तो जानिसकारे लोग बता सकऽ हथ ।)    (मपध॰02:3:5:1.21)
115    टुन-टान (माय एक्के हाँथे थपड़ी न बजे आउ फिर जहाँ ढेरमनी बरतन रहऽ हे उहाँ टुन-टान तो होयबे करऽ हे । हम्मर घर के बात, आउ हम जाके पड़ोस में पता करी, का हमरा तोरा पर विसवास न हे ?)    (मपध॰02:3:24:2.31)
116    टुह-टुह (लऽ, बेचारा कपिल सच्चे के बेहोस हो गेल । कइसन ताजा-ताजा लाल टुहटुह खून एकर माथा से टपकइत हे टप टप टप टपाटप ।)    (मपध॰02:3:18:2.1)
117    ठेकना (काकी: ... कुल तीन महिन्ना पहिले बिआएल गाय के दूध आधा हो गेल । न घास-भुस्सा के ठेकान, न कोराई-चुन्नी के । सेवा बिना एकदम अँउड़रा गेल बेचारी । - कपिल: काहे ? तूँ न खिआवऽ हहु ? - काकी: अरे हमरा ठेके दे हे ? अइसन मरखंड हवऽ कि दूरे से सींघ झुका के दउड़तवऽ । एक दिन अइसन धुँसिऔलक कि हम फेंका के उलट गेली । केहुना-ठेहुना दुन्नों फूट गेलवऽ । देखऽ न, अबही ले चिन्हाँ हवऽ ।)    (मपध॰02:3:14:3.25)
118    डँहुड़ी (= पतली डाली, टहनी) (दीदी ! हम अपने के पति के आजाद करऽ ही । वादा मोताबिक कमलेस भी कुसुम के डँहुड़ी में लगले रहे देलक । कमला के पियरायल चेहरा ललहुन हो गेल । मालूम नञ् 'पति' के पाके इया 'पतित' के ।)    (मपध॰02:3:21:3.34)
119    ढर्र-ढर्र (~ लोर गिरना) ("जे बात के हम सपनो में न सोचली हल से तूँ एक झटके में कइसे कह देलें भाई ?" चंद्रकांत मिसिर के आँख से लोर ढर्र-ढर्र गिरे लगल ।)    (मपध॰02:3:24:3.34)
120    ढहो-ढनमन (हास्य रस के बदौलत देवन रानी इंद्रजीत कुँअर से 12 बिगहा जमीन पौलन । आज भी आँती अहरा के सटल इनकर एक बिगहा जमीन बचल हे । अब इनकर मकान ढहो-ढनमन हो गेल हे । दुआरी पर चंदन के केबाड़ी लगल हे ।)    (मपध॰02:3:13:3.3)
121    ढील (= ढिल्ला, सिर के केश का जूँ) (एक बेरी देवन माई तारा देवी के मंदिर गेलन आउ मनेमन मांगलन कि मैया हमरा एगो पूत दे दऽ त तोरा दू बली देवम । समय आयल, देवी कृपा से देवन एक बेटी के बाप बन गेलन आउ जब बली के याद आयल तब होसियार देवन अप्पन नौ पर एगो ढील आउ एगो चिल्लर पुट कर देलन आउ कहलन, मैया हम तोहर मनौती उतार देली ।)    (मपध॰02:3:13:1.33)
122    ढेरेक (चुनाव के ई जंजाल एक बेरी फेर ढेर लहास गिरैलक, ढेर मांग उजड़ गेल । ढेरेक गोदी सुन्ना हो गेल ।)    (मपध॰02:3:10:1.17)
123    त (= तब; तो) (पहिले कहते अइली हे कि अकेलुआ अदमी के कय तरह के लचारी रहऽ हे । चाहती हल त तुरतम पत्रिका के संयुक्तांक निकाल के मेकअप कर देती हल, बकि ई हमरा ठीक नञ् लगल ।)    (मपध॰02:3:4:1.4)
124    तनि-मानी (= तनी-मनी, जरी-मनी; थोड़ा-बहुत) (काकी: वाह ! आग कनेआँ ठीक से हथ न ? - कपिल: ठीके हइ । तनि मानी नीमन-जबुन तो होइते रहऽ हे ।)    (मपध॰02:3:14:1.30)
125    तन्ने (= उधर) (जन्ने ... ~) (बिंदा: ठीके कहित हऽ ! तूँ जब प्रधानमंत्री बनवऽ न, शिक्षामंत्री, रेलमंत्री, विदेसमंत्री, इत्तमंत्री-वित्तमंत्री, फलान-ढेकान मंत्री हमनिएँ न बनब । तब आलीशान बंगला होएत, गाड़ी होएत, तिजोरी भरत, रुतवा रहत, जन्ने जाएब तन्ने जैकार होएत - एकरा कपिलवा बरबाद होना समझऽ हे ।)    (मपध॰02:3:16:3.10)
126    तहिया (= उस दिन) (जहिया ... ~) (कपिल: काका मारऽ हथु तोरा ? - काकी: {रो के} हाय हाय ! सायते कहियो नागा हो हवऽ । जब न तब धोंय-धोंय धबार देतथु । पी के जहिया अतथु, तहिया तो फजिहत हो जा हवऽ । अस्सो के मारतथु बिना कसूरो के ।)    (मपध॰02:3:15:1.13)
127    तिसरका (चंद्रकांत मिसिर के तीनो लइकन आज तीन जगह में नाम कमा रहलन हल । एगो लइका घर ही पर रह के खेती-बारी देखइत हल आउ साथे-साथे पुश्तैनी जजमनिका भी । दुसरका महटरी आउ तिसरका रेलवे के विभाग में अफसर के पद पर बहाल हल ।)    (मपध॰02:3:26:2.2)
128    तुरतम (= तुरन्त, तुरत, शीघ्र) (पहिले कहते अइली हे कि अकेलुआ अदमी के कय तरह के लचारी रहऽ हे । चाहती हल त तुरतम पत्रिका के संयुक्तांक निकाल के मेकअप कर देती हल, बकि ई हमरा ठीक नञ् लगल ।)    (मपध॰02:3:4:1.4)
129    तेहवार (= त्योहार) ( (एने जनानी सब में सादी-बियाह, मुड़ना आउ परब-तेहवार पर सामूहिक रूप से गीत गावे के प्रचलन हल । एकरा से गाम के जनानी में जान-पहचान बढ़ो हल ।)    (मपध॰02:3:8:2.35)
130    तोड़-फान (बिरजू हँसइत बोलल - टिकट देवे लऽ त पाटी सब तोड़-फान करत, मुदा हम कोय पाटी से नञ् बलुक निरदलीये से खड़ा होम ।)    (मपध॰02:3:33:2.14)
131    थक्कल-मांदल ("आएँ गे माय, तनिको सन काम करे न चाहउ कोय ? घर में एगो हमहीं हियउ ? अरे, सब दिन तो हम करबे करऽ हियउ, आज ऊ बाबू साहेब नोकरी पर से अएलथुन हे, त जा सकऽ हलथुन घोघरवा में । रूतबा हेंठ हो जएतइन हल का ?" - "लगऽ हउ कि तोरा फिर आज सब भुजफट्टन कान भरलउ हे । अरे बाबू भाई के अइसे बोलल जाहे ? ऊ बेचारा कल्हे साँझे तो आएल हे । थक्कल-मांदल होयत का जनी, आउ फिर खाद के दाम देइये देइत हउ । जाके खाली देखहीं के न हउ ।")    (मपध॰02:3:23:2.22)
132    थमसना (चार कदम चलला पर बोझ जादे रहे पर कोय थमस जाहे । बकि अपने सुनते अयली हे - सो के लाठी एक के बोझा । हक तो नञ् हे अपने पर कि बलजोबरी कहूँ बोझ कम करे ले कहूँ ।)    (मपध॰02:3:4:1.15)
133    दने (= दन्ने; तरफ, ओर) (एगो कथा के अनुसार एक बेरी देवन पूजा करते हलन कि चारों दने घनघोर बादर छा गेल । बिजुरी कड़के लगल आउ देखते-देखते अन्हार होवे लगल ।)    (मपध॰02:3:13:1.16)
134    दब (= खराब; घटिया) (मगध प्रदेश के टिकारी राज अइसे तो कौनो तरह से कमजोर चाहे दब न हल बाकि हिआँ के राजा से जादे नाम कमयलन राज-दरबार के विदूषक 'देवन मिसिर' जिनकर कैकन गो खिस्सा-कहानी आउ कविता आझो दर-देहात से लेके सहर तक सुने ले मिलऽ हे ।)    (मपध॰02:3:12:1.18)
135    दर-देहात (मगध प्रदेश के टिकारी राज अइसे तो कौनो तरह से कमजोर चाहे दब न हल बाकि हिआँ के राजा से जादे नाम कमयलन राज-दरबार के विदूषक 'देवन मिसिर' जिनकर कैकन गो खिस्सा-कहानी आउ कविता आझो दर-देहात से लेके सहर तक सुने ले मिलऽ हे ।)    (मपध॰02:3:12:1.28)
136    दलान (= दालान) (गाँव के चउराहा । जहाँ पर रजेसर सिंह के दलान, जे बंगला के नाम से जानल जा हल, पर गंजेड़ी के बैठकी जमल हल ।)    (मपध॰02:3:22:1.2)
137    दिन-दुनियाँ (ने मालूम तोर सुंदरता पर ऊ कइसे इतना मोहित हो गेलन कि दिन-दुनियाँ सब के ताखा पर रख के तोरा से बियाह करे के ठान लेलन ।)    (मपध॰02:3:19:3.8)
138    दुआरी (हास्य रस के बदौलत देवन रानी इंद्रजीत कुँअर से 12 बिगहा जमीन पौलन । आज भी आँती अहरा के सटल इनकर एक बिगहा जमीन बचल हे । अब इनकर मकान ढहो-ढनमन हो गेल हे । दुआरी पर चंदन के केबाड़ी लगल हे ।; जब घरे अएलन त देखलन कि दुआरी पर बुढ़िया माय बोरसी लेले घामा में बइठल हलन ।)    (मपध॰02:3:13:3.3, 23:2.1)
139    दुसरका (चंद्रकांत मिसिर के तीनो लइकन आज तीन जगह में नाम कमा रहलन हल । एगो लइका घर ही पर रह के खेती-बारी देखइत हल आउ साथे-साथे पुश्तैनी जजमनिका भी । दुसरका महटरी आउ तिसरका रेलवे के विभाग में अफसर के पद पर बहाल हल ।)    (मपध॰02:3:26:2.2)
140    दुसाध (गाम में बड़ही, हजाम, लोहार, धोबी, चमार, बर्हामन, डोम, मुसहर, दुसाध सब जात के लोग अप्पन-अप्पन पुस्तैनी काम करो हलन । किसान ओकर बदले में ओकरा गल्ला दे हल ।)    (मपध॰02:3:7:3.27)
141    धबारना (कपिल: काका मारऽ हथु तोरा ? - काकी: {रो के} हाय हाय ! सायते कहियो नागा हो हवऽ । जब न तब धोंय-धोंय धबार देतथु । पी के जहिया अतथु, तहिया तो फजिहत हो जा हवऽ । अस्सो के मारतथु बिना कसूरो के ।)    (मपध॰02:3:15:1.12)
142    धराना (= सौंपना) ("अईं हो रविंदर, लगऽ हवऽ कि बड़का भाई नौकरी पर से आ गेलथुन हे । कहलऽ हल कि बातचीत करम, कयलऽ का ?" हाँथ के चिलिम रविंदर के धरावित कहलन, "जे भी कहना होय से अबरी साफे-साफ कहिहऽ, घिचपिच बात नऽ ... समझलऽ ?")    (मपध॰02:3:22:1.22)
143    धुँसिआना (काकी: ... कुल तीन महिन्ना पहिले बिआएल गाय के दूध आधा हो गेल । न घास-भुस्सा के ठेकान, न कोराई-चुन्नी के । सेवा बिना एकदम अँउड़रा गेल बेचारी । - कपिल: काहे ? तूँ न खिआवऽ हहु ? - काकी: अरे हमरा ठेके दे हे ? अइसन मरखंड हवऽ कि दूरे से सींघ झुका के दउड़तवऽ । एक दिन अइसन धुँसिऔलक कि हम फेंका के उलट गेली । केहुना-ठेहुना दुन्नों फूट गेलवऽ । देखऽ न, अबही ले चिन्हाँ हवऽ ।)    (मपध॰02:3:14:3.28)
144    धोंय-धोंय (~ धबारना) (कपिल: काका मारऽ हथु तोरा ? - काकी: {रो के} हाय हाय ! सायते कहियो नागा हो हवऽ । जब न तब धोंय-धोंय धबार देतथु । पी के जहिया अतथु, तहिया तो फजिहत हो जा हवऽ । अस्सो के मारतथु बिना कसूरो के ।)    (मपध॰02:3:15:1.12)
145    धोकड़ी (= जेभी; जेब) ("हँ हँ, लऽ उनको दे दिहून । आउ ई ल कुछ पाकिट खरचा ।", कुरता के धोकड़ी से कुछ लंबरी निकाल के हाँथ में थमएलन ।; धोकड़ी में से चुनउटी निकालइत ऊ बोललन, "ओकर मेहरारू के दवा-दारू, लइका के पढ़ाई-लिखाई सबके खरचा तो ओहनीये जुटावऽ हथिन ।")    (मपध॰02:3:23:3.31, 24:1.28)
146    नइहर (भागे के बात हल, उनकर मेहरारू भी नइहरे से रोगी मिललन हल । एकरो दोस रविंदर मिसिर बापे-माय आउ भाई के देवऽ हलन ।)    (मपध॰02:3:23:1.20)
147    नहिरा-ससुरा (दीदी ! अपने उनकर ई बेहवार कइसे सह ले हथिन ? अब तो थाना पुलिस, कोट-कचहरी सब खुल्ला हे औरत ले ... काहे डरऽ ही । अप्पन चीज के कोय अपना बउसाव भर बेरान काहे होवे देत । हमनहीं गोवाही देवे ल तइयार हियो । नहिरा-ससुरा से बात करके उनका डरावऽ धमकावऽ आउ जब ऊ छिनार घर चढ़ो त झाड़ू से झरुआ दऽ ।)    (मपध॰02:3:20:3.24)
148    नागा (कपिल: काका मारऽ हथु तोरा ? - काकी: {रो के} हाय हाय ! सायते कहियो नागा हो हवऽ । जब न तब धोंय-धोंय धबार देतथु । पी के जहिया अतथु, तहिया तो फजिहत हो जा हवऽ । अस्सो के मारतथु बिना कसूरो के ।)    (मपध॰02:3:15:1.11)
149    निठुरे मुँहे (~ गरिआना) (आज के मगही के विकास में सबसे बड़गो बाधा मगध के बुद्धिजीवी हथ । उनकर नजर में मगही अनपढ़ गमार के भाषा हे, मेहरारू के भाषा हे, भले उनका दू लाइन सही हिंदी इया अंगरेजी बोले नञ् आवे । ऊ बुद्धिजीवी के भाषा के कुछ नमूना एहाँ रख रहली हे - 'ऊ बोलिस कि हम नञ् आवेंगे आपके पास ।', 'चाय बन गया हो ?',  'पकपकाते काहे है ?', 'चट से मार बैठिस ।', 'निठुरे मुँहे गरिआ दिहिस ।',  'हमरा सामने उसका बकार निकलता है ?', 'बोलिस कि टीसन पर मिलेंगे ।' ई कउन हिंदी हे एकरा बारे में तो जानिसकारे लोग बता सकऽ हथ ।)    (मपध॰02:3:5:1.20)
150    निमन (= नीमन, निम्मन) (एक दिन बाहरे से तार आएल । ओकरा पर लिखल हल, "भइया के मालूम, जल्दी आवथ ।" घर में सब कोई असमंजस में पड़ गेल कि बात का हे । जब कभी इनसान के पास अइसन घड़ी आवऽ हे तब निमन बात मन में न सोंचाए । एही हाल ओहू घर में भेल । मेहरारू, भउजाई सब्भे औरत घड़बड़ा गेलन ।)    (मपध॰02:3:26:2.20)
151    निमहना (दुखमा-सुखमा पनरह बरिस निमह गेल उनका साथ, अब बाल-बच्चन के देखते-सुनते निमह जात ।)    (मपध॰02:3:19:2.1, 3)
152    निरार (= ललाट) (अप्पन ~ टोना) (इनका में सेवाय ई बात के तोरा की खराबी देखाय पड़ऽ हो ? मेहनत-मजूरी से ऊ भागथ नञ्, मरदाना में पावे जाय वला सहंसर ऐब से ऊ छीछ काटथ । त एक ऐगुन ल हम उनका पर सहंसर अजलेम कइसे लगा सकऽ ही । भविस में तूँ हमरा से ई सब बात कभी नञ् कहिहऽ । ... जा अप्पन निरार टोवऽ ।)    (मपध॰02:3:21:1.7)
153    निसा (= नशा) ("चंदनवाँ के ननिहाल में काहे छोड़ले हहीं हो ?" गाँजा के निसा अब गनौरी चचा के आँख से बाहरे झाँकइत हल । ऊ दुन्नो के बातचीत सुनके बीच में टुभकलन, "तोर भतीजवन सब बाहरहीं न पढ़इत हउ हो, आउ जहाँ तक हम्मर समझ से ओहनियों के खरचा-पानी घरहीं से जा होतउ । तब का तोर लइकवा के ओहनी सब साथे न रख सकऽ हलउ ?")    (मपध॰02:3:22:1.31)
154    नीन (एक कान से दू कान, दू कान से बीयाबान । एक दिन ई बात के खबर डॉ॰ राजीव के हो गेल । सन्न रह गेलन डॉ॰ राजीव । दिन के चैन आउ रात के नीन उड़ गेल दुनहूँ परानी के ।)    (मपध॰02:3:21:1.12)
155    नीमन (दे॰ निम्मन) (भोट के लूट के गुंडा-बदमास सब एम.एल.ए. आउ एम.पी. बन जा रहल हे । विधान सभा आउ पारलियामेंट में मार-पीट आउ गाली-गुप्ता करके अपन रंग जमा रहल हे । ओखनी सब के पंचायत पर कब्जा करते केतना देर लगतइ । मुखिया-परमुख ओही सब बन जात । एकरा से नीमन हलइ कि अइसन चुनावे न होतइ हल ।)    (मपध॰02:3:10:2.1)
156    नीमन-जबुन (काकी: वाह ! आग कनेआँ ठीक से हथ न ? - कपिल: ठीके हइ । तनि मानी नीमन-जबुन तो होइते रहऽ हे ।)    (मपध॰02:3:14:1.31)
157    नोंचना (कोय सैतिन के ई तरह के बेहवार भी हो सकऽ हे ई तो कुसुम कभी सोंच भी नञ् पइलक हल मन में । ऊ तो सोंचलक हल कि जहिया ऊ कमलेस जी के दोसर पत्नी के रूप में कमला से मिलत त ऊ असमान माथा पर उठा लेत । लड़ते-लड़ते ओकर चोटी पकड़ के नोंचे लगत । बकि कमला एतना बेबस आउ लचार सैतिन होत, ई बात कुसुम के कल्पना से बाहर हल ।)    (मपध॰02:3:19:2.23)
158    नौ (= नाखुन, नख) (एक बेरी देवन माई तारा देवी के मंदिर गेलन आउ मनेमन मांगलन कि मैया हमरा एगो पूत दे दऽ त तोरा दू बली देवम । समय आयल, देवी कृपा से देवन एक बेटी के बाप बन गेलन आउ जब बली के याद आयल तब होसियार देवन अप्पन नौ पर एगो ढील आउ एगो चिल्लर पुट कर देलन आउ कहलन, मैया हम तोहर मनौती उतार देली ।)    (मपध॰02:3:13:1.33)
159    पंचइती (गाम के लोग चाहे ऊ कोय जात के रहथ, कोय धरम के मानथ, सब चचा, भइया के नाता रखो हलन । पते न चले कि गाम में कोय विभेद हे । एकता गाम के पहचान हल । दोसर पहचान हल गाम के पंचइती । गाम में कैसनो झगड़ा हो, विवाद हो, सबके समाधान गाम के पंच करो हलन । थाना पुलिस में जाय के जरूरत न पड़ो हल ।)    (मपध॰02:3:7:1.30)
160    पईन (= पइन) (गाम के सब किसान मिलके पटवन कर ले हल  नदी बांध के, पईन बना के, अहरा पर मट्टी देके पटवन के इंतजाम करो हल ।)    (मपध॰02:3:7:3.3)
161    पकपकाना (आज के मगही के विकास में सबसे बड़गो बाधा मगध के बुद्धिजीवी हथ । उनकर नजर में मगही अनपढ़ गमार के भाषा हे, मेहरारू के भाषा हे, भले उनका दू लाइन सही हिंदी इया अंगरेजी बोले नञ् आवे । ऊ बुद्धिजीवी के भाषा के कुछ नमूना एहाँ रख रहली हे - 'ऊ बोलिस कि हम नञ् आवेंगे आपके पास ।', 'चाय बन गया हो ?',  'पकपकाते काहे है ?', 'चट से मार बैठिस ।', 'निठुरे मुँहे गरिआ दिहिस ।',  'हमरा सामने उसका बकार निकलता है ?', 'बोलिस कि टीसन पर मिलेंगे ।' ई कउन हिंदी हे एकरा बारे में तो जानिसकारे लोग बता सकऽ हथ ।)    (मपध॰02:3:5:1.20)
162    पढ़ल-गुनल (~ जाना) (मैथिली विद्यापति जइसन सपूत के कारण देस-विदेस में पढ़ल-गुनल जाहे । नेपाल में ई अपन खास जगहा बनावे में सफल रहल हे ।)    (मपध॰02:3:5:1.7)
163    पढ़ल-लिखल (जेकरा कोय ठौर-ठिकाना न हे, ऊहे गरजियन अप्पन बच्चा के गाम के स्कूल में भेजो हथ । गाम के पढ़ल-लिखल अदमी गाम करीब-करीब छोड़ देलक ।)    (मपध॰02:3:8:3.30)
164    पढ़ाय (= पढ़ाई) (पढ़ाय पूरा करतहीं कमलेस नोकरी के जोगाड़ में दिल्ली आ गेल ।)    (मपध॰02:3:20:1.2)
165    पढ़ाय-लिखाय (= पढ़ाई-लिखाई) (इनकर सुरुआती पढ़ाय-लिखाय तो घरे पर होयल पर बाद में ई ग्यान आउ विद्या के नगरी काशी जाके भी पढ़ाय कयलन ।)    (मपध॰02:3:12:3.9)
166    पनीपिआर (= पनपिआर, पनपियाड़; नाश्ता) (काकी: अरे रुकऽ ! कुछ पनीपिआर तो कर लऽ । - कपिल: न काकी ! अभी कुछ न ...।)    (मपध॰02:3:15:1.30)
167    परब (= पर्व, त्योहार) (हमनी सब के याद हे कि होली, दसहरा जैसन परब में गाम के सब नौजवान मिलके भजन, कीर्तन, नाटक आउ होली में होली हुड़दंग, बुढ़वा होली जैसन कार्यक्रम के आयोजन करो हलन ।)    (मपध॰02:3:8:1.34)
168    परब-तेहवार (= पर्व-त्योहार) (एने जनानी सब में सादी-बियाह, मुड़ना आउ परब-तेहवार पर सामूहिक रूप से गीत गावे के प्रचलन हल । एकरा से गाम के जनानी में जान-पहचान बढ़ो हल ।)    (मपध॰02:3:8:2.35)
169    परसुन (= परसूँ, परसों) (कपिल: अरे वाह ! माने कि नेतागिरी करइत हथ । - काकी: बस बस, ठीक समझलऽ । परसुन हमर बहिन बेटा आएल हल । ओहू एही बोलल - नेतागिरी । एकदम ठीक कहइत हऽ ।)    (मपध॰02:3:14:2.27)
170    परानी (= प्राणी) (एक कान से दू कान, दू कान से बीयाबान । एक दिन ई बात के खबर डॉ॰ राजीव के हो गेल । सन्न रह गेलन डॉ॰ राजीव । दिन के चैन आउ रात के नीन उड़ गेल दुनहूँ परानी के ।)    (मपध॰02:3:21:1.13)
171    पहिलउका (= पहिलका) (बिहार के पहिलउका रीति-रिवाज के चलते सोलहे बरिस में कमलेस के बियाह हो गेल ।)    (मपध॰02:3:19:3.28)
172    पिंगिल (~ छाँटना = बकबक करना, कुतर्क करना) (बिंदा: ठीक कैलऽ रमेसर भइया । बड़ी पिंगिल छाँटले हलवऽ ई । - कपिल: {टूटइत आवाज} तूँ ... तूँ हमरा पर ... गोली चलौलऽ रमेसर कका ... गोली हमर छाती ... आउ ... गरदन में लगल हे ।)    (मपध॰02:3:18:3.21)
173    पिछुआना (= स॰क्रि॰ पीछा करना; अ॰क्रि॰ पीछे पड़ जाना, पिछड़ा होना) (देस के दोसर राज मार-काट आउ लूट-पाट में भले बिहार से पिछुआएल रहे बकि रुपया के फुंकाय ईहे तरह होवऽ हे ।)    (मपध॰02:3:10:1.7)
174    पियराना (= पीला पड़ना) (दीदी ! हम अपने के पति के आजाद करऽ ही । वादा मोताबिक कमलेस भी कुसुम के डँहुड़ी में लगले रहे देलक । कमला के पियरायल चेहरा ललहुन हो गेल । मालूम नञ् 'पति' के पाके इया 'पतित' के ।)    (मपध॰02:3:21:3.36)
175    पोरसिसिया (रमेसर: जब अंगुरिए उठ गेल तब राजनीति का कइली हो ? देखलहीं - जब पोरसिसिया करे गेली आउ उहाँ रोना सुरू कइली त जेकर परिवार मारल गेल सेउ हमर लोर पोंछे लगल । - बिंदा: अरे राम राम ! ऊ दिन तो तूँ गजबे नाटक कैलऽ । भोंकार पार के रोवे लगलऽ त हमहूँ अकबका गेली ।)    (मपध॰02:3:17:2.26)
176    पौनिया (गाम में बड़ही, हजाम, लोहार, धोबी, चमार, बर्हामन, डोम, मुसहर, दुसाध सब जात के लोग अप्पन-अप्पन पुस्तैनी काम करो हलन । किसान ओकर बदले में ओकरा गल्ला दे हल । बड़ही साल भर किसान के हर-पालो बनावो हल । किसान ओकर बदले में ओकरा धान, गहूम आउ मकई दे हल । ओकरा से किसान के खेती के काम भी हो जा हल आउ पौनिया के पालन-पोसन भी हो जा हल ।)    (मपध॰02:3:8:1.2)
177    फजिहत (= फजीहत) (जहिया ... ~) (कपिल: काका मारऽ हथु तोरा ? - काकी: {रो के} हाय हाय ! सायते कहियो नागा हो हवऽ । जब न तब धोंय-धोंय धबार देतथु । पी के जहिया अतथु, तहिया तो फजिहत हो जा हवऽ । अस्सो के मारतथु बिना कसूरो के ।)    (मपध॰02:3:15:1.14)
178    फरागत (~ विदमान) (बाद में लिखे-पढ़े के सउख कमलेस के मीडिया लाइन दने ले गेल । भगवान भी फलिहँत देलन । कमलेस के अच्छा जोगाड़ हो गेल ई लाइन में । एगो बड़हन किताब पर कमलेस फरागत विदमान के साथ काम करे लगल ।)    (मपध॰02:3:20:1.12)
179    फलान-ढेकान (बिंदा: ठीके कहित हऽ ! तूँ जब प्रधानमंत्री बनवऽ न, शिक्षामंत्री, रेलमंत्री, विदेसमंत्री, इत्तमंत्री-वित्तमंत्री, फलान-ढेकान मंत्री हमनिएँ न बनब ।)    (मपध॰02:3:16:3.7)
180    फलिहँत (बाद में लिखे-पढ़े के सउख कमलेस के मीडिया लाइन दने ले गेल । भगवान भी फलिहँत देलन । कमलेस के अच्छा जोगाड़ हो गेल ई लाइन में । एगो बड़हन किताब पर कमलेस फरागत विदमान के साथ काम करे लगल ।)    (मपध॰02:3:20:1.9)
181    फानना (= फाँदना) (मगही समइया तक नकारल गेल । बुद्धिजीवी लोग सुरू से एकरा प्रति नाक सिकोड़ते रहलन हे । हाँ, बीतल पचास बरीस में एकर कुछ सपूत के अन्दर जागृति आल आउ मगही कुछ गौरव भरल डेग फानलक ।)    (मपध॰02:3:5:1.12)
182    फिफहिया (= फिफिहिया; परेशान, व्याकुल, चिंतित) (कपिल: ... काका के न देखइत ही । कहीं गेल हथ का ? - काकी: अरे मत पूछऽ बउआ ! पनरहियन से फिफहिया भेल हथु । - कपिल: काहे ला ? कउची में ? - काकी: घर के सब काम-धाम छोड़ के दिन-दिन भर रमेसर के पीछे-पीछे डोलइत रहतथु । रातो में आवे के कोई ठेकान न ।)    (मपध॰02:3:14:2.7)
183    फुंकाय (भारी मार-काट आउ बूथ लुट्टम-लुट्टी के बाद बिहार में पंचायती चुनाव हो गेल । अरबो रुपया फुकाएल । देस के दोसर राज मार-काट आउ लूट-पाट में भले बिहार से पिछुआएल रहे बकि रुपया के फुंकाय ईहे तरह होवऽ हे ।)    (मपध॰02:3:10:1.8)
184    फुकाना (= 'फूँकना' का अक॰ रूप; बरबाद होना) (भारी मार-काट आउ बूथ लुट्टम-लुट्टी के बाद बिहार में पंचायती चुनाव हो गेल । अरबो रुपया फुकाएल ।)    (मपध॰02:3:10:1.3)
185    बँसवारी (= बँसवाड़ी) (बिंदा: तब रात में बँसवारी भिर कुइआँ पर आओ ! नौ बजे हमनी जहाँ रहब । रमेसर भाई भी रहता । तोर सब सवाल के जवाब मिल जतउ । - कपिल: ऐ एगो बात भेल । ठीक हे । हम जरूर पहुँचब उहाँ ।)    (मपध॰02:3:16:1.8)
186    बइसक्खा (= वैशाख) (कुछ रितु रंग आउर प्राकृतिक छटा के चित्र देइत हे । जैसे - होली, बइसक्खा, बरखा आदि ।)    (मपध॰02:3:31:1.33)
187    बउसाव (दीदी ! अपने उनकर ई बेहवार कइसे सह ले हथिन ? अब तो थाना पुलिस, कोट-कचहरी सब खुल्ला हे औरत ले ... काहे डरऽ ही । अप्पन चीज के कोय अपना बउसाव भर बेरान काहे होवे देत । हमनहीं गोवाही देवे ल तइयार हियो ।)    (मपध॰02:3:20:3.19)
188    बड़का (= बड़ा) (कपिल: अच्छा ! कउनो बड़का काम में लगल हथ का ? - काकी: अरे मारऽ ! बड़का काम कउची हइन ? झोलंग कुरता आउ पैजामा पहिन के कान्हाँ में झोला टाँग के इन्कलाब जिंदाबाद करित चलतथु ।; बड़का बाबू, तोरो मेहरारू कोई कम न हथुन, भले दुन्नो गोतनी मुँह पर आपस में मुँहाठेठी न करऽ हथुन, बाकि पीछे में तो पड़ोस के माय से हजारो तरह के बात बेचारी छोटकी के बारे में कहऽ हथुन ।)    (मपध॰02:3:14:2.16, 24:2.10)
189    बड़हन (बाद में लिखे-पढ़े के सउख कमलेस के मीडिया लाइन दने ले गेल । भगवान भी फलिहँत देलन । कमलेस के अच्छा जोगाड़ हो गेल ई लाइन में । एगो बड़हन किताब पर कमलेस फरागत विदमान के साथ काम करे लगल ।)    (मपध॰02:3:20:1.11)
190    बड़ही (= बढ़ई) (गाम में बड़ही, हजाम, लोहार, धोबी, चमार, बर्हामन, डोम, मुसहर, दुसाध सब जात के लोग अप्पन-अप्पन पुस्तैनी काम करो हलन । किसान ओकर बदले में ओकरा गल्ला दे हल । बड़ही साल भर किसान के हर-पालो बनावो हल । किसान ओकर बदले में ओकरा धान, गहूम आउ मकई दे हल ।)    (मपध॰02:3:7:3.25, 30)
191    बड़ाय (= बड़ाई) (महारानी के बड़ाय में इनकर लिखल एगो कहानी के अंतिम दू पंक्ति जे कविता रूप में हे, पढ़े लायक हे ।; एगो बड़हन किताब पर कमलेस फरागत विदमान के साथ काम करे लगल । धीरे-धीरे दुनहूँ के घरइया सबंध हो गेल । एक दूसर के बीच घोलसार चले लगल । डॉ॰ राजीव भी कमलेस के बड़ाय करते नञ् थकथ दोस-मोहिम के बीच ।)    (मपध॰02:3:12:3.29, 20:1.21)
192    बरखा (= वर्षा) (कुछ रितु रंग आउर प्राकृतिक छटा के चित्र देइत हे । जैसे - होली, बइसक्खा, बरखा आदि ।)    (मपध॰02:3:31:1.33)
193    बरमहल (मिसिर जी बड़का विदमान भी हलन, जेकरा चलते उनका दूर-दराज से बरमहले बोलाहट आवित रहऽ हल । घर छोड़ के एही के चलते उनका महिनन बहरे रहे पड़ जा हल ।; संझा मइया के कसम बाबू, बेचारी जो दुइयो चार दिन लागी आवऽ हइ त ठीक से न बोलऽ हथुन । बरमहले लाल-पियर मुँह कयले रहऽ हथुन । हमरा पर विसवास न हवऽ त जाके पड़ोस में पता लगा लऽ ।)    (मपध॰02:3:22:3.13, 24:2.22)
194    बर्हामन (= ब्राह्मण) (गाम में बड़ही, हजाम, लोहार, धोबी, चमार, बर्हामन, डोम, मुसहर, दुसाध सब जात के लोग अप्पन-अप्पन पुस्तैनी काम करो हलन । किसान ओकर बदले में ओकरा गल्ला दे हल ।; गाँव में रहे ओलन बर्हामन सब गरीब हलन । ओही में से दु-चार घर खाता-पीता भी हलन । बाकि रमापत मिसिर के बात दूसर हल । भुमिहार लोग के जइसन तो न, तइयो करीब बीस-पच्चीस बिघा बेस जमीन हल ।)    (मपध॰02:3:7:3.26, 22:2.34)
195    बलजोबरी (= जबर्दस्ती, बलपूर्वक) (चार कदम चलला पर बोझ जादे रहे पर कोय थमस जाहे । बकि अपने सुनते अयली हे - सो के लाठी एक के बोझा । हक तो नञ् हे अपने पर कि बलजोबरी कहूँ बोझ कम करे ले कहूँ ।)    (मपध॰02:3:4:1.17)
196    बाग-बगइचा (बँटवारा हो गेल । खेत से लेके घर-दुआर, बाग-बगइचा सबके दू भाग हो गेल । रविंदर पर सुरूए से छोटका बेटा होवे से भी माय-बाप के धेयान तनी जादे रहऽ हल । ई लेल रमापत मिसिर आउ उनकर मेहरारू छोटके बेटा दने रहे लगलन ।)    (मपध॰02:3:25:1.24)
197    बात (दस ~ सुनाना) (जउन बाप आगू ऊ कभी मुड़ी नञ् उठयलन, जउन माय इनका बुतरू समझ के दस बात सुना दे हलन, आज उनको इनका कुछ कहे के हिम्मत नञ् पड़ऽ हे ।)    (मपध॰02:3:19:3.13)
198    बादर (= बादल) (एगो कथा के अनुसार एक बेरी देवन पूजा करते हलन कि चारों दने घनघोर बादर छा गेल । बिजुरी कड़के लगल आउ देखते-देखते अन्हार होवे लगल ।)    (मपध॰02:3:13:1.16)
199    बाप-माय (भागे के बात हल, उनकर मेहरारू भी नइहरे से रोगी मिललन हल । एकरो दोस रविंदर मिसिर बापे-माय आउ भाई के देवऽ हलन ।)    (मपध॰02:3:23:1.22)
200    बिचमान (कमलेस के तेज दिमाग भोथर हो गेल हल । भीतरे-भीतरे मोम नियन गलते रहे । बकि विधि के विधान एक रोज फेर कुसुम कमलेस के गोदी में गिर पड़ल । भले बिचमान एगो ममेरा भाय हल, जे कुसुम के मसुआएल चेहरा नञ् देख सकल ।)    (मपध॰02:3:21:3.17)
201    बीयाबान (एक कान से दू कान, दू कान से बीयाबान । एक दिन ई बात के खबर डॉ॰ राजीव के हो गेल । सन्न रह गेलन डॉ॰ राजीव । दिन के चैन आउ रात के नीन उड़ गेल दुनहूँ परानी के ।)    (मपध॰02:3:21:1.9)
202    बुढ़वा होली (हमनी सब के याद हे कि होली, दसहरा जैसन परब में गाम के सब नौजवान मिलके भजन, कीर्तन, नाटक आउ होली में होली हुड़दंग, बुढ़वा होली जैसन कार्यक्रम के आयोजन करो हलन ।)    (मपध॰02:3:8:2.1)
203    बुढ़ारी (= बुढ़ापा) (देखऽ माय, अब तोहनी दुन्नो परानी के बुढ़ारी अयलो । अरे, कोई के पच्छ से दोसर के कुछ बिगड़े न, बाकि पहचान हो जाहे । माय एक्के हाँथे थपड़ी न बजे आउ फिर जहाँ ढेरमनी बरतन रहऽ हे उहाँ टुन-टान तो होयबे करऽ हे । हम्मर घर के बात, आउ हम जाके पड़ोस में पता करी, का हमरा तोरा पर विसवास न हे ?; ऊ सोंचऽ हलन, "कुछो रहे, बँटली त का, आखिर एहनी सब अपने न परिवार हथ । बुढ़ारी में माय-बाप के सेवा करना सब अदमी के मोअस्सर न होवऽ हे ।" जब भी बूढ़ा-बूढ़ी पड़थ, दवाई-बीरो में ऊ तनिको न चुकथ ।)    (मपध॰02:3:24:2.27, 26:1.3)
204    बूढ़ (= बूढ़ा, वृद्ध) (गाँव में लइका से लेके बूढ़ तक, करी-करीब सब्भे लोग गाँजा के सौकीन हलन । एकर असर इनको पर आएल । जहाँ भी बैठकी लगे उहाँ जाए लगलन । कभी-कभी तो घरे इगारहो बजे रात के आवथ ।)    (मपध॰02:3:23:1.29)
205    बेजी (= बेरी, बार)  (डी.एम. चेहा के बोलल - मुदा तोरा ओट के देतो ? छाती फुलाइत बिरजू बोलल - ओट त बिन मांगले मिलत, खाली हम्मर अदमी एक बेजी पूरा इलाका घुम जात, बस ।)    (मपध॰02:3:33:3.5)
206    बेरान (= तितर-बितर; बरबाद) (दीदी ! अपने उनकर ई बेहवार कइसे सह ले हथिन ? अब तो थाना पुलिस, कोट-कचहरी सब खुल्ला हे औरत ले ... काहे डरऽ ही । अप्पन चीज के कोय अपना बउसाव भर बेरान काहे होवे देत । हमनहीं गोवाही देवे ल तइयार हियो ।)    (मपध॰02:3:20:3.20)
207    बेरी (= तुरी; बेर; बार) (चुनाव के ई जंजाल एक बेरी फेर ढेर लहास गिरैलक, ढेर मांग उजड़ गेल । ढेरेक गोदी सुन्ना हो गेल ।; "डॉ॰ साहब, ई सच नञ् हे !" कमलेस धीरज से बोलल । "हम पच्चीस बेरी कहली होत कि कुसुम से हमर सामान्य रिलेसन नञ् हे ।")    (मपध॰02:3:10:1.9, 21:1.32, 3.16)
208    बेलूरा (= बिना लूर या बुद्धि वाला) (रमेसर: जब अंगुरिए उठ गेल तब राजनीति का कइली हो ? देखलहीं - जब पोरसिसिया करे गेली आउ उहाँ रोना सुरू कइली त जेकर परिवार मारल गेल सेउ हमर लोर पोंछे लगल । - बिंदा: अरे राम राम ! ऊ दिन तो तूँ गजबे नाटक कैलऽ । भोंकार पार के रोवे लगलऽ त हमहूँ अकबका गेली । - रमेसर: {ठहाका}हा हा हा हा ! बेलूरा ... एक्के गो नाटक में अकबका गेलें ? अब देख कि कपिलवा के हिसाब-किताब हम कइसे करऽ ही ।)    (मपध॰02:3:17:2.33)
209    बैठकी (गाँव के चउराहा । जहाँ पर रजेसर सिंह के दलान, जे बंगला के नाम से जानल जा हल, पर गंजेड़ी के बैठकी जमल हल ।; गाँव में लइका से लेके बूढ़ तक, करी-करीब सब्भे लोग गाँजा के सौकीन हलन । एकर असर इनको पर आएल । जहाँ भी बैठकी लगे उहाँ जाए लगलन । कभी-कभी तो घरे इगारहो बजे रात के आवथ ।)    (मपध॰02:3:22:1.4, 23:1.32)
210    बोखार (= बुखार) (छोटकी भतिजिया के एक महिन्ना से बोखारे न छूटइत हे । ओझा से झरवा-झरवा के भउजी आउ जहुआ देलथी । हम अइली त डाक्टर से कह के दवाई ले जाइत ही।)    (मपध॰02:3:17:3.26)
211    बोजाना (रजेसर सिंह के दलान, जे बंगला के नाम से जानल जा हल, पर गंजेड़ी के बैठकी जमल हल । एक चिलिम ठंढा न हो पाए कि दोसर बोजा जाय । खुदे रजेसर सिंह पक्का गँजेड़ी हलन ।)    (मपध॰02:3:22:1.6)
212    बोझा (= बोझ) (चार कदम चलला पर बोझ जादे रहे पर कोय थमस जाहे । बकि अपने सुनते अयली हे - सो के लाठी एक के बोझा । हक तो नञ् हे अपने पर कि बलजोबरी कहूँ बोझ कम करे ले कहूँ ।)    (मपध॰02:3:4:1.16)
213    बोरसी (जब घरे अएलन त देखलन कि दुआरी पर बुढ़िया माय बोरसी लेले घामा में बइठल हलन ।)    (मपध॰02:3:23:2.2)
214    बोला-चाली (करीब छव महिना बाद होली घड़ी सूरत से लउट के रविंदर मिसिर अएलन । सब हाल-चाल मालूम भेल । तइयो उनकर पहिलका सोभाव में कमी तनिको न आएल । भाई-भउजाई से बोला-चाली बहुते कम रखथ । गाँव के लोग भीर जाके फिर से बइठका लगावे लगलन ।)    (मपध॰02:3:26:1.12-13)
215    भविस (= भविष्य) (इनका में सेवाय ई बात के तोरा की खराबी देखाय पड़ऽ हो ? मेहनत-मजूरी से ऊ भागथ नञ्, मरदाना में पावे जाय वला सहंसर ऐब से ऊ छीछ काटथ । त एक ऐगुन ल हम उनका पर सहंसर अजलेम कइसे लगा सकऽ ही । भविस में तूँ हमरा से ई सब बात कभी नञ् कहिहऽ । ... जा अप्पन निरार टोवऽ ।; तुहूँ पढ़ल-लिखल हइये ह । अरे नोकरी न मिलल त ई से का, आदमी रखऽ आउ जमके खेती करावऽ, हम्मर जजमनिका के धरऽ । भविस में खाए-पीए, रुपइया-पइसा आउ कपड़ा-लत्ता कुछो के कमी न रहतो ।; चंदनवाँ आज पढ़इत-लिखइत हे, हो सकऽ हे पढ़ के भविस में अच्छा भी करे ।)    (मपध॰02:3:21:1.5, 22:3.32, 26:1.21)
216    भाय (= भाई) (कमलेस के तेज दिमाग भोथर हो गेल हल । भीतरे-भीतरे मोम नियन गलते रहे । बकि विधि के विधान एक रोज फेर कुसुम कमलेस के गोदी में गिर पड़ल । भले बिचमान एगो ममेरा भाय हल, जे कुसुम के मसुआएल चेहरा नञ् देख सकल ।)    (मपध॰02:3:21:3.18)
217    भिर (= पास, नजदीक) (बिंदा: तब रात में बँसवारी भिर कुइआँ पर आओ ! नौ बजे हमनी जहाँ रहब । रमेसर भाई भी रहता । तोर सब सवाल के जवाब मिल जतउ । - कपिल: ऐ एगो बात भेल । ठीक हे । हम जरूर पहुँचब उहाँ ।)    (मपध॰02:3:16:1.8)
218    भिरू (= भिर; पास, नजदीक) (जब घरे अएलन त देखलन कि दुआरी पर बुढ़िया माय बोरसी लेले घामा में बइठल हलन । जइसहीं भिरू गेलन बोले लगलन, "आएँ गे माय, तनिको सन काम करे न चाहउ कोय ? ...")    (मपध॰02:3:23:2.3)
219    भुजफट्टा ("आएँ गे माय, तनिको सन काम करे न चाहउ कोय ? घर में एगो हमहीं हियउ ? अरे, सब दिन तो हम करबे करऽ हियउ, आज ऊ बाबू साहेब नोकरी पर से अएलथुन हे, त जा सकऽ हलथुन घोघरवा में । रूतबा हेंठ हो जएतइन हल का ?" - "लगऽ हउ कि तोरा फिर आज सब भुजफट्टन कान भरलउ हे । अरे बाबू भाई के अइसे बोलल जाहे ? ऊ बेचारा कल्हे साँझे तो आएल हे । थक्कल-मांदल होयत का जनी, आउ फिर खाद के दाम देइये देइत हउ । जाके खाली देखहीं के न हउ ।")    (मपध॰02:3:23:2.13)
220    भुमिहार (गाँव में रहे ओलन बर्हामन सब गरीब हलन । ओही में से दु-चार घर खाता-पीता भी हलन । बाकि रमापत मिसिर के बात दूसर हल । भुमिहार लोग के जइसन तो न, तइयो करीब बीस-पच्चीस बिघा बेस जमीन हल ।)    (मपध॰02:3:22:3.3)
221    भोंकार (~ पार के रोना) (रमेसर: जब अंगुरिए उठ गेल तब राजनीति का कइली हो ? देखलहीं - जब पोरसिसिया करे गेली आउ उहाँ रोना सुरू कइली त जेकर परिवार मारल गेल सेउ हमर लोर पोंछे लगल । - बिंदा: अरे राम राम ! ऊ दिन तो तूँ गजबे नाटक कैलऽ । भोंकार पार के रोवे लगलऽ त हमहूँ अकबका गेली ।)    (मपध॰02:3:17:2.31)
222    भोथर (कमलेस के तेज दिमाग भोथर हो गेल हल । भीतरे-भीतरे मोम नियन गलते रहे । बकि विधि के विधान एक रोज फेर कुसुम कमलेस के गोदी में गिर पड़ल । भले बिचमान एगो ममेरा भाय हल, जे कुसुम के मसुआएल चेहरा नञ् देख सकल ।)    (मपध॰02:3:21:3.13)
223    ममला (= मामला) (डॉ॰ राजीव पूछलन, "अपने तो हमर प्रिय मित्र हली, फेर हमरा साथ एतना बड़ा धोखा काहे, कुसुम के ममला में ।")    (मपध॰02:3:21:1.29)
224    मरखंड (काकी: ... कुल तीन महिन्ना पहिले बिआएल गाय के दूध आधा हो गेल । न घास-भुस्सा के ठेकान, न कोराई-चुन्नी के । सेवा बिना एकदम अँउड़रा गेल बेचारी । - कपिल: काहे ? तूँ न खिआवऽ हहु ? - काकी: अरे हमरा ठेके दे हे ? अइसन मरखंड हवऽ कि दूरे से सींघ झुका के दउड़तवऽ । एक दिन अइसन धुँसिऔलक कि हम फेंका के उलट गेली । केहुना-ठेहुना दुन्नों फूट गेलवऽ । देखऽ न, अबही ले चिन्हाँ हवऽ । - कपिल: त एकरा बेंच के दोसर खरीद लऽ ! अकेलुआ घर में मरखंड जानवर से गुजारा होतइ ? - काकी: कउची-कउची बेंचबइ बाबू ? गइया के तो बेंच देब, काका के का करबवऽ ? ई कम मारऽ हथु हमरा ?)    (मपध॰02:3:14:3.26, 15:1.2)
225    महटरी (= मास्टरी) (चंद्रकांत मिसिर के तीनो लइकन आज तीन जगह में नाम कमा रहलन हल । एगो लइका घर ही पर रह के खेती-बारी देखइत हल आउ साथे-साथे पुश्तैनी जजमनिका भी । दुसरका महटरी आउ तिसरका रेलवे के विभाग में अफसर के पद पर बहाल हल ।)    (मपध॰02:3:26:2.2)
226    माय-बाप (बिहार के पहिलउका रीति-रिवाज के चलते सोलहे बरिस में कमलेस के बियाह हो गेल । बीस बरिस पुरते-पुरते ओकर मेहरारू बसे लगलन । सब कुछ ठीक ! सब कोय खुस । माय-बाप, भाय-बहिन सब ।)    (मपध॰02:3:20:1.1)
227    मुँहाठेठी (= बकझक, वाद-विवाद) (~ करना) (बड़का बाबू, तोरो मेहरारू कोई कम न हथुन, भले दुन्नो गोतनी मुँह पर आपस में मुँहाठेठी न करऽ हथुन, बाकि पीछे में तो पड़ोस के माय से हजारो तरह के बात बेचारी छोटकी के बारे में कहऽ हथुन ।)    (मपध॰02:3:24:2.12)
228    मुड़ना (= मुंडन) (एने जनानी सब में सादी-बियाह, मुड़ना आउ परब-तेहवार पर सामूहिक रूप से गीत गावे के प्रचलन हल । एकरा से गाम के जनानी में जान-पहचान बढ़ो हल ।)    (मपध॰02:3:8:2.35)
229    मुड़ी (= सिर) (~ नञ् उठाना) (जउन बाप आगू ऊ कभी मुड़ी नञ् उठयलन, जउन माय इनका बुतरू समझ के दस बात सुना दे हलन, आज उनको इनका कुछ कहे के हिम्मत नञ् पड़ऽ हे ।)    (मपध॰02:3:19:3.11)
230    मुसहर (गाम में बड़ही, हजाम, लोहार, धोबी, चमार, बर्हामन, डोम, मुसहर, दुसाध सब जात के लोग अप्पन-अप्पन पुस्तैनी काम करो हलन । किसान ओकर बदले में ओकरा गल्ला दे हल ।)    (मपध॰02:3:7:3.26)
231    मेहरारू (= औरत, पत्नी) (एक दिन बाहरे से तार आएल । ओकरा पर लिखल हल, "भइया के मालूम, जल्दी आवथ ।" घर में सब कोई असमंजस में पड़ गेल कि बात का हे । जब कभी इनसान के पास अइसन घड़ी आवऽ हे तब निमन बात मन में न सोंचाए । एही हाल ओहू घर में भेल । मेहरारू, भउजाई सब्भे औरत घड़बड़ा गेलन ।)    (मपध॰02:3:26:2.22)
232    मोअस्सर (= ममोसर; मयस्सर) (एक जगहा पर रहे से चंद्रकांत मिसिर के उनकरो परिवार के देखभाल करहीं पड़े । ऊ सोंचऽ हलन, "कुछो रहे, बँटली त का, आखिर एहनी सब अपने न परिवार हथ । बुढ़ारी में माय-बाप के सेवा करना सब अदमी के मोअस्सर न होवऽ हे ।" जब भी बूढ़ा-बूढ़ी पड़थ, दवाई-बीरो में ऊ तनिको न चुकथ ।)    (मपध॰02:3:26:1.3)
233    रइया-दोहइया (मगही के विकास में तेसर बाधा हथ स्थानवाद, क्षेत्रवाद आउ जातिवाद के रइया-दोहइया । बैकुंठवासी मगहीसेवी के की कही, बकि जिंदा मगहीसेवी में से 90 हिस लोग ई बेमारी के सिकार हथ । किनखो नजर में उनकर प्रखंड के मगही सबसे मीठ, सबसे अच्छा हे । किनखो नजर में मगही कोय जाति के बपौती हे, त किनखो नजर में कोय जाति के । ई घींच-तीर में मगही बेहाल हे ।)    (मपध॰02:3:5:1.29)
234    राइ-छितिर (= राय-छित्तिर) (काकी: मत कहऽ ए बाबू ! पनरहे दिन में घर रेहन-तेहन, राइ-छितिर हो गेलवऽ । कुल तीन महिन्ना पहिले बिआएल गाय के दूध आधा हो गेल । न घास-भुस्सा के ठेकान, न कोराई-चुन्नी के । सेवा बिना एकदम अँउड़रा गेल बेचारी ।)    (मपध॰02:3:14:3.18)
235    रितु (= ऋतु) (कुछ रितु रंग आउर प्राकृतिक छटा के चित्र देइत हे । जैसे - होली, बइसक्खा, बरखा आदि ।)    (मपध॰02:3:31:1.31)
236    रुजुक (= मर्जी) (दुखमा-सुखमा पनरह बरिस निमह गेल उनका साथ, अब बाल-बच्चन के देखते-सुनते निमह जात । भगवान के जे रुजुक ।)    (मपध॰02:3:19:2.4)
237    रेहन-तेहन (काकी: मत कहऽ ए बाबू ! पनरहे दिन में घर रेहन-तेहन, राइ-छितिर हो गेलवऽ । कुल तीन महिन्ना पहिले बिआएल गाय के दूध आधा हो गेल । न घास-भुस्सा के ठेकान, न कोराई-चुन्नी के । सेवा बिना एकदम अँउड़रा गेल बेचारी ।)    (मपध॰02:3:14:3.17)
238    लंबरी ("हँ हँ, लऽ उनको दे दिहून । आउ ई ल कुछ पाकिट खरचा ।", कुरता के धोकड़ी से कुछ लंबरी निकाल के हाँथ में थमएलन ।)    (मपध॰02:3:23:3.31)
239    लचार (= लाचार) (कोय सैतिन के ई तरह के बेहवार भी हो सकऽ हे ई तो कुसुम कभी सोंच भी नञ् पइलक हल मन में । ऊ तो सोंचलक हल कि जहिया ऊ कमलेस जी के दोसर पत्नी के रूप में कमला से मिलत त ऊ असमान माथा पर उठा लेत । लड़ते-लड़ते ओकर चोटी पकड़ के नोंचे लगत । बकि कमला एतना बेबस आउ लचार सैतिन होत, ई बात कुसुम के कल्पना से बाहर हल ।)    (मपध॰02:3:19:2.24)
240    लचारी (= लाचारी) (पहिले कहते अइली हे कि अकेलुआ अदमी के कय तरह के लचारी रहऽ हे । चाहती हल त तुरतम पत्रिका के संयुक्तांक निकाल के मेकअप कर देती हल, बकि ई हमरा ठीक नञ् लगल ।)    (मपध॰02:3:4:1.4)
241    ललहुन (दीदी ! हम अपने के पति के आजाद करऽ ही । वादा मोताबिक कमलेस भी कुसुम के डँहुड़ी में लगले रहे देलक । कमला के पियरायल चेहरा ललहुन हो गेल । मालूम नञ् 'पति' के पाके इया 'पतित' के ।)    (मपध॰02:3:21:3.36)
242    लहास (= लाश) (चुनाव के ई जंजाल एक बेरी फेर ढेर लहास गिरैलक, ढेर मांग उजड़ गेल । ढेरेक गोदी सुन्ना हो गेल ।)    (मपध॰02:3:10:1.10)
243    लाल-पियर (संझा मइया के कसम बाबू, बेचारी जो दुइयो चार दिन लागी आवऽ हइ त ठीक से न बोलऽ हथुन । बरमहले लाल-पियर मुँह कयले रहऽ हथुन । हमरा पर विसवास न हवऽ त जाके पड़ोस में पता लगा लऽ ।)    (मपध॰02:3:24:2.23)
244    लिलकना (बिंदा: खाली एतने समझा देना हे कि जेकर मइया खीर पकावे सेकरे पूता लिलके ? वोट हमनी के आउ राज करत आन बिरादरी के हरिचरण ? काहे रमेसर भइया ? - रमेसर: एकदम ठीक ।)    (मपध॰02:3:17:1.10)
245    लुट्टम-लुट्टी (भारी मार-काट आउ बूथ लुट्टम-लुट्टी के बाद बिहार में पंचायती चुनाव हो गेल । अरबो रुपया फुकाएल ।)    (मपध॰02:3:10:1.2)
246    लोग-बाग (डॉ॰ राजीव भी कमलेस के बड़ाय करते नञ् थकथ दोस-मोहिम के बीच । आउ कमलेस भी लोग-बाग के बीच डॉ॰ राजीव के प्रकांड बतावे में कोय कोर-कसर नञ् छोड़े ।)    (मपध॰02:3:20:1.23)
247    सक्खी-मित्तिन (= सखी-सहेली) (सिवाय डॉ॰ राजीव के जादेतर लोग-बाग कुसुम के कमलेस के प्रेमिका इया पत्नी के रूप में पहचाने लगलन हल । कुसुम के हित-नाता आउ सक्खी-मित्तिन भी ।)    (मपध॰02:3:20:2.36)
248    सयान (बात अइसन हे कका कि भइया के नौकरी हइन । फिर घर के खरचा-बरचा, भोज-बियाह, सब तो उनकरे न देखे पड़ऽ हइन । हम तो पढ़-लिख के बेरोजगार बनल बइठल ही । जहाँ तक चंदनवाँ के बात हे, त अभी तो ऊ लइका हे, सयान भेला पर नऽ सोचल जाएत ।)    (मपध॰02:3:22:2.21)
249    सर-सिकायत (हम पहिले भी लेखते-कहते अयली हे कि सलाना गाँहक के नाम-पता छापल नञ् जात । ई ले जे भाय लोग सलाना गाँहक बनलन ऊ कोय तरह के सर-सिकायत नञ् रखथ 'मगही पत्रिका' के प्रति ।)    (मपध॰02:3:4:1.24)
250    सल (= साल, वर्ष) (डॉ॰ राजीव के काटऽ त खून नञ् । हार के कमलेस के घर आवे के बाट जोहे लगलन । सल-सल भर के दिन-रात कट गेल डॉ॰ राजीव के । एक रोज बादे कमलेस डॉ॰ राजीव के घर अयलन ।)    (मपध॰02:3:21:1.18)
251    साइते (दे॰ सायते) (गोस्सा-पित्ता में कुछ बोल देथ, ऊ अलग बात हे बकि अपना जानते कभी कुछ कमी नञ् होवे देलन ई । एतना प्रेम मोहब्बत साइते कोय मरदाना दे होत ।)    (मपध॰02:3:19:3.5)
252    सायते (= शायद ही) (कपिल: काका मारऽ हथु तोरा ? - काकी: {रो के} हाय हाय ! सायते कहियो नागा हो हवऽ । जब न तब धोंय-धोंय धबार देतथु । पी के जहिया अतथु, तहिया तो फजिहत हो जा हवऽ । अस्सो के मारतथु बिना कसूरो के ।)    (मपध॰02:3:15:1.11)
253    सींघ (= सींग) (काकी: ... कुल तीन महिन्ना पहिले बिआएल गाय के दूध आधा हो गेल । न घास-भुस्सा के ठेकान, न कोराई-चुन्नी के । सेवा बिना एकदम अँउड़रा गेल बेचारी । - कपिल: काहे ? तूँ न खिआवऽ हहु ? - काकी: अरे हमरा ठेके दे हे ? अइसन मरखंड हवऽ कि दूरे से सींघ झुका के दउड़तवऽ । एक दिन अइसन धुँसिऔलक कि हम फेंका के उलट गेली । केहुना-ठेहुना दुन्नों फूट गेलवऽ । देखऽ न, अबही ले चिन्हाँ हवऽ ।)    (मपध॰02:3:14:3.26)
254    सुन्ना (= शून्य) (चुनाव के ई जंजाल एक बेरी फेर ढेर लहास गिरैलक, ढेर मांग उजड़ गेल । ढेरेक गोदी सुन्ना हो गेल ।)    (मपध॰02:3:10:1.17)
255    सुस्ताना (= आराम करना) (कपिल: {जोर से} हैं कका । तूँ इहाँ किनारे एकदम सूनसान पेड़ तर बइठल हऽ ? - बिंदा: {जोर से} आवऽ आवऽ । तनि सुस्ता लऽ ।)    (मपध॰02:3:17:3.15)
256    सेवाय (= सिवाय) (इनका में सेवाय ई बात के तोरा की खराबी देखाय पड़ऽ हो ? मेहनत-मजूरी से ऊ भागथ नञ्, मरदाना में पावे जाय वला सहंसर ऐब से ऊ छीछ काटथ । त एक ऐगुन ल हम उनका पर सहंसर अजलेम कइसे लगा सकऽ ही ।)    (मपध॰02:3:20:3.36)
257    सैतिन (= सौतन) (कोय सैतिन के ई तरह के बेहवार भी हो सकऽ हे ई तो कुसुम कभी सोंच भी नञ् पइलक हल मन में । ऊ तो सोंचलक हल कि जहिया ऊ कमलेस जी के दोसर पत्नी के रूप में कमला से मिलत त ऊ असमान माथा पर उठा लेत ।)    (मपध॰02:3:19:2.6)
258    सो (= सौ) (चार कदम चलला पर बोझ जादे रहे पर कोय थमस जाहे । बकि अपने सुनते अयली हे - सो के लाठी एक के बोझा । हक तो नञ् हे अपने पर कि बलजोबरी कहूँ बोझ कम करे ले कहूँ ।)    (मपध॰02:3:4:1.15)
259    हँथलप्पक (का हो रविंदर, कने तो गेल हलऽ । ल पइसा, जाके गोहुँमा में खाद छिटवा द, ठीक से देख लिहऽ, दुखना हँथलप्पक भी हे । खाद बचाहुँ लेतो ।", पइसा देइत कहलन ।)    (मपध॰02:3:23:3.24)
260    हरघुड़ी (= हमेशा) ("का कहइत हऽ बाबूजी ? रविंदरा साथे न रहत ?" - "हँ हो, हरघुड़ी के कलह से अच्छा हे कि तोहनी अलग ही हो जा ।")    (मपध॰02:3:23:3.36)
261    हर-पालो (गाम में बड़ही, हजाम, लोहार, धोबी, चमार, बर्हामन, डोम, मुसहर, दुसाध सब जात के लोग अप्पन-अप्पन पुस्तैनी काम करो हलन । किसान ओकर बदले में ओकरा गल्ला दे हल । बड़ही साल भर किसान के हर-पालो बनावो हल । किसान ओकर बदले में ओकरा धान, गहूम आउ मकई दे हल ।)    (मपध॰02:3:7:3.33)
262    हित-नाता (सिवाय डॉ॰ राजीव के जादेतर लोग-बाग कुसुम के कमलेस के प्रेमिका इया पत्नी के रूप में पहचाने लगलन हल । कुसुम के हित-नाता आउ सक्खी-मित्तिन भी ।)    (मपध॰02:3:20:2.35)
263    हिस (= प्रतिशत) (मगही के विकास में तेसर बाधा हथ स्थानवाद, क्षेत्रवाद आउ जातिवाद के रइया-दोहइया । बैकुंठवासी मगहीसेवी के की कही, बकि जिंदा मगहीसेवी में से 90 हिस लोग ई बेमारी के सिकार हथ । किनखो नजर में उनकर प्रखंड के मगही सबसे मीठ, सबसे अच्छा हे । किनखो नजर में मगही कोय जाति के बपौती हे, त किनखो नजर में कोय जाति के । ई घींच-तीर में मगही बेहाल हे ।)    (मपध॰02:3:5:1.30)
264    हीं (=  के यहाँ) (जउन बाप आगू ऊ कभी मुड़ी नञ् उठयलन, जउन माय इनका बुतरू समझ के दस बात सुना दे हलन, आज उनको इनका कुछ कहे के हिम्मत नञ् पड़ऽ हे । ... हमरा तो ई सोंच-सोंच के कुहाग लगऽ हे कि कल हम बेटी केही कहके आउ केहरा हीं बियाहम । पनरह बरिस के कइल-कइल पनरह महिन्ना में छाय हो गेल ।)    (मपध॰02:3:19:3.18)
265    हेंठ (आएँ गे माय, तनिको सन काम करे न चाहउ कोय ? घर में एगो हमहीं हियउ ? अरे, सब दिन तो हम करबे करऽ हियउ, आज ऊ बाबू साहेब नोकरी पर से अएलथुन हे, त जा सकऽ हलथुन घोघरवा में । रूतबा हेंठ हो जएतइन हल का ?)    (मपध॰02:3:23:2.10)
266    हो (= उम्र में छोटे, विशेष रूप से लड़के, को सम्बोधित करने हेतु प्रयुक्त शब्द) (आज के मगही के विकास में सबसे बड़गो बाधा मगध के बुद्धिजीवी हथ । उनकर नजर में मगही अनपढ़ गमार के भाषा हे, मेहरारू के भाषा हे, भले उनका दू लाइन सही हिंदी इया अंगरेजी बोले नञ् आवे । ऊ बुद्धिजीवी के भाषा के कुछ नमूना एहाँ रख रहली हे - 'ऊ बोलिस कि हम नञ् आवेंगे आपके पास ।', 'चाय बन गया हो ?',  'पकपकाते काहे है ?', 'चट से मार बैठिस ।', 'निठुरे मुँहे गरिआ दिहिस ।',  'हमरा सामने उसका बकार निकलता है ?', 'बोलिस कि टीसन पर मिलेंगे ।' ई कउन हिंदी हे एकरा बारे में तो जानिसकारे लोग बता सकऽ हथ ।; साँस चलऽ हइ न हो, कि खतमे हो गेलइ ? हँ, चलइत तो हइ । जो, कनहीं से पानी ले आओ । मुँह पर छींटा दे एकर ।; चंदनवाँ के ननिहाल में काहे छोड़ले हहीं हो ?; तोर भतीजवन सब बाहरहीं न पढ़इत हउ हो ?)    (मपध॰02:3:5:1.20, 18:2.15, 22:1.31, 2.2)

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