मपध॰
= मासिक "मगही पत्रिका"; सम्पादक - श्री धनंजय श्रोत्रिय, नई दिल्ली/ पटना
पहिला
बारह अंक के प्रकाशन-विवरण ई प्रकार हइ -
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वर्ष अंक महीना कुल
पृष्ठ
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2001 1 जनवरी 44
2001 2 फरवरी 44
2002 3 मार्च 44
2002 4 अप्रैल 44
2002 5-6 मई-जून 52
2002 7 जुलाई 44
2002 8-9 अगस्त-सितम्बर 52
2002 10-11 अक्टूबर-नवंबर 52
2002 12 दिसंबर 44
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मार्च-अप्रैल
2011 (नवांक-1) से
द्वैमासिक के रूप में अभी तक 'मगही पत्रिका' के नियमित प्रकाशन हो रहले ह ।
ठेठ
मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर
पृष्ठ संख्या, चउठा कॉलम संख्या (एक्के कॉलम रहलो पर
सन्दर्भ भ्रामक नञ् रहे एकरा लगी कॉलम सं॰ 1 देल गेले ह), आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति
संख्या दर्शावऽ हइ ।
ठेठ मगही शब्द
(अंक 3 तक संकलित शब्द के
अतिरिक्त):
1 अउसान (= आसान) (उनकर आभारी ही, जे पीठ पर हाँथ रखलन आउ उनकर भी, जे तातल चीज समझ के हाँथ पीछे खींच लेलन । कचउमरिया लेखक भाय के उत्साह हमर डग्गर अउसान जरूर करत, अइसन उमेद हे ।) (मपध॰02:4:4:1.8)
2 अकबारना (दीना मिंती के एतना जोर से अकबारलक कि ओकर अंग-अंग चटके लगल । आजाद होल त दीना के सीना में जल्दी-जल्दी दस-बीस धौल जमा देलक । फेर धीरे से ओकर सीना पर सिर टिका के बोलल, "अब जा हियो ।") (मपध॰02:4:25:2.31)
3 अझुराना (= ओझराना; उलझाना)(फेर रजेसर माटसा के गोड़ पर गिर पड़लन, "कका, हमरा माफ करऽ । हम तोरा बड़ी अझुरइली ।" रजेसर माटसा बिनेसर बाबू के उठयलन आउ फट पड़लन, "हमरा एकर फिकिर नञ् हे कि तूँ हमरा अझुरइलऽ,फिकिर तो ई बात के हे कि अब हमर दीना से के सादी-बियाह करत ।") (मपध॰02:4:26:2.17, 20)
4 अनेसा (पाँच मिनट में सउँसे गाँव जामा हो गेल । सब अवाक् ! रजेसर माटसा जे एगो डंटा लेले दीना के मारे ले चललन हल, अनेसा में ... । 'दीना-दीना' पुकार रहलन हल । देवदूत नियन दीना परघट भेल ।) (मपध॰02:4:26:1.33)
5 अन्हारा (= अन्हार; अंधकार, अँधेरा) ("भाय लोग, ई दीना के गाँव हे । ई गाँव के इज्जत दीना के इज्जत हे । तूँ सब रेंज में हऽ । अगर जान चाहऽ ह त अपन रस्ता नापऽ । नञ् त ... ।" कहूँ अन्हारा से अवाज आ रहल हल ।) (मपध॰02:4:26:1.24)
6 अपसोस (= अफसोस) ('मगही के मरम' स्तंभ में 'सही से भरऽ' ले, जे जबाब आल ऊ हमर उत्साह बढ़ावे वला हे । अपसोस हे कि ई बेर कोय सही उत्तर नञ् आ सकल ।) (मपध॰02:4:4:1.28)
7 अमदी (= अदमी; आदमी) (नवीन जी बिलकुल मौजी आउ फक्कड़ किसिम के कवि हलन । इनकर कविता के तेवर एक तरफ सत्ता आउ कुरसी वला के तिकतिका के रख दे हल तब दोसर तरफ आम अमदी ओकरा अप्पन कविता समझ के घुरी-घुरी गावे लगऽ हल ।) (मपध॰02:4:7:1.5)
8 अमौरी (एक दिन झोला-झोला होला पर ऊ अपन बगैचा दने से लौटल आ रहल हल । एक हाँथ में एगो किताब हल आउ दोसर हाँथ में गमछी में बन्हल दस-बीस गो अमौरी ।) (मपध॰02:4:24:1.28)
9 अराम (= आराम) (एकर जड़ी, फूल आउ बिच्चा के सेवन से पेट के रोग, कब्ज आउ आँव में अराम मिलऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:1.2)
10 असवार (= सवार) ("अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।") (मपध॰02:4:23:2.30)
11 असानी (= आसानी) (तुलसी के ई किसिम जादेतर ठंढा आउ सूखा जगह पर पावल जाहे । ई अपन तेज सुगंध आउ उज्जर छोट-छोट फूल के चलते असानी से पछानल जा सकऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:1.25)
12 अहनी (= एकन्हीं; ये लोग) (फिरंगी सब आझो एकर गली-गली में भारत के पुरान संस्कृति अउ सभ्यता देख के लोभा जा हथ । अहनी भी धोती-कुरता, चन्नन-टीका, खड़ाऊँ-चटकी अउ कंठीमाला अपना ले हथ ।) (मपध॰02:4:32:1.7)
13 आजिज (= तंग, परेशान) (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।) (मपध॰02:4:24:3.36)
14 इंजोरिया (रात झम-झम करइत हल बाबू ! झम-झम करइत हल । टह-टह चाँदनी हल । इंजोरिया पसरल । इहाँ से उहाँ तक इंजोरिया पसरल हल ।) (मपध॰02:4:20:1.3, 4)
15 इन्नर (~ के पड़ी) (कल्हीं बिनेसर बाबू कह रहलन हल - 'की हो रामपुकार भाय, मौज हइ ने ।' साला, हम समझऽ हूँ कि केतना मौज हे । ... भित्तर के मार सहदेवे जानऽ हे । फेर मेहरारू दने देख के बोललन ऊ, "आउ ऊ सब गलती थोड़े कहऽ हथ जब दु-दु गो इन्नर के पड़ी घर में रखले रहम त हंगामा करवे करतन लोग ।") (मपध॰02:4:23:3.14)
16 उछास (= उच्छ्वास, गहरी साँस) (ई अंक 'मगही के मीरा' कुमारी राधा आउ 'मगही के कबीर' मथुरा प्रसाद 'नवीन' के समर्पित हे, जिनका गमा के हमनीन के मन बिछोह रहल हे । नञ् अब 'अधरतिया के बँसुरी' सुने के मिलत, नञ् 'राहे राह अन्हरिया कटतो' । उनका सबके आगू सरधा के फूल चढ़ा के मन के उछास करगिआ रहली हे ।) (मपध॰02:4:4:1.12)
17 उनकनहिन (= उनकन्हीं) (ऊ दुनहुँ के कुछ कविता अपने के आगू रख रहली हे । जरूरी नञ् कि ई उनकनहिन के प्रतिनिधि कविता होय, बकि एकरा से अपने के उनकर रचना करम के छहँक जरूर मिलत ।; एकमात्र रस्ता हे कि उनकनहिन के निकाल बाहर कैल जाय ।) (मपध॰02:4:4:1.13, 6:3.12)
18 उप्पर (= ऊपर; अधिक; बाहरी) (साल से उप्पर से बिनेसर बाबू बहीन के बियाह करे ल सोंचले हलन बकि दीना के डर आउ गाँव-जेवार में नमहँस्सी के डर से कोय जग नञ् ठान रहलन हल । छाती पर पत्थल रख के जग नाध देलन हे ।; फेर उप्पर मन से कहलक, "नञ्, आज नञ् ।" - "आज कुछ नञ् करवो ।" दीना ओकर गोड़ बान्हलक । - "ए गो ... ।" - "नञ्, काम हे । तूँ बड़ी चलाँक हऽ । दीदी से हमर हाँथ माँगे जा हऽ आउ हमरा से 'ए गो' माँगऽ हऽ ।") (मपध॰02:4:25:1.24, 2.9)
19 उमेद (= उम्मीद) (उनकर आभारी ही, जे पीठ पर हाँथ रखलन आउ उनकर भी, जे तातल चीज समझ के हाँथ पीछे खींच लेलन । कचउमरिया लेखक भाय के उत्साह हमर डग्गर अउसान जरूर करत, अइसन उमेद हे ।) (मपध॰02:4:4:1.8)
20 एकबैक (= एकबैग; अचानक) (औरत-मरद अपन दूनो लइकन के साथे जादूघर के मुरती देखइत हलन । एकबैक लमहर 'यक्षीणी' के मुरती के पास ठहर गेलन, जे दीदारगंज पटना सिटी से मिलल हल ।; एगो गोर चमड़ी वला फिरंगी मस्त चाल से बनारस के गलियन में चलल जाइत हल । एकबैक एगो बनारसी साइकिल सवार सामने से आके ओकरा से टकरा गेल ।) (मपध॰02:4:32:1.15, 2.4)
21 एतबड़ (= एतना बड़गर; इतना बड़ा) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल । कत्ते साल से इलाका में बियाह के एतबड़ तैयारी नञ् होल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.17)
22 एन्ने-ओन्ने (= इधर-उधर) (कोय हौले से पुकार रहल हल, राह चलते - "विनीता !" केतना मिठास हे । पीछे घुर के ताकलक त दीना हल । ओकर सीना लोहार के भाथी सन चले लगल । एन्ने-ओन्ने ताक के देखलक । कोय देख तो नञ् रहल हे ।) (मपध॰02:4:25:2.6)
23 एलाउंस (= अनाउंस, announce) (आधा घंटा में गोली-बारी थम गेल । मैक से कोय एलाउंस कर रहल हल - "अपने से हमरा कोय दुसमनी नञ् हे । हमर काम फतह हो चुकल हे । अपने के कय अदमी हमर कब्जा में हथ, जिनका हम गाँव से बाहर निकलतहीं छोड़ देम । ...") (मपध॰02:4:25:3.33)
24 औरत-बानी (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।) (मपध॰02:4:24:3.32)
25 कखनी (= कब ?; कखनिओ = कभी भी) ("अपने लावऽ अपन सिकरेट । हम नहाय जा रहलूँ हें ।" - "कहाँ ?" रामपुकार बाबू मोछ तर मुसुकते बोललन । "देखऽ हीं न गे दीदी ।" मिंती बहिन दने देख के नखरा उतारे लगल । फेर मोका देख के दोसर भित्तर दने भाग गेल । "ए गे, हमरा दिमाग न हे । ... बूढ़ा होल जइतन ... बुढ़भेस लगले रहल ।" मोका देख के मरदाना दने मुँह बिचका के कखनिओ के ओल ले लेलन मिंती के दीदी ।) (मपध॰02:4:23:2.25)
26 कचउमरिया (~ लेखक) (उनकर आभारी ही, जे पीठ पर हाँथ रखलन आउ उनकर भी, जे तातल चीज समझ के हाँथ पीछे खींच लेलन । कचउमरिया लेखक भाय के उत्साह हमर डग्गर अउसान जरूर करत, अइसन उमेद हे ।) (मपध॰02:4:4:1.7)
27 कज्जो (= किसी जगह, कहीं पर) (चारो बगल हँसी-खुशी के माहौल हो गेल । कज्जो भीड़ में खड़ा कमली अँगुठा से मट्टी खोद रहल हल ।) (मपध॰02:4:26:3.19)
28 कतना (= कितना; कतनो = कितना भी) (बुतरू सब के माय-बाप कतनो पीटे बकि ऊ दीना से पिस्तौल चलवे ल सिक्खे ले हरदम लबधल रहऽ हे ।) (मपध॰02:4:25:1.17)
29 कत्ते (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल । कत्ते साल से इलाका में बियाह के एतबड़ तैयारी नञ् होल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.16)
30 कनकन्नी (हवा न चलइत हे, बाकि कनकन्नी रह-रह के सिहका देहे ।) (मपध॰02:4:21:1.10)
31 कनझप्पा (~ टोपी) (ठंढा के रात हल । दस बजिया गाड़ी से उतरली हल । इ कोस के सफर हल । हमनी दुन्नु पैंट-कोट में हली । तरे सूटर-ऊटर सब पहिनले हली । गुलबंद लपेटले हली अउर बिसेसरा कनझप्पा टोपी लगइले हल ।) (मपध॰02:4:20:1.19)
32 कन्हा (= कन्धा) (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।) (मपध॰02:4:23:1.15)
33 कर-केबाड़ी (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।) (मपध॰02:4:24:3.32)
34 करगिआना (ई अंक 'मगही के मीरा' कुमारी राधा आउ 'मगही के कबीर' मथुरा प्रसाद 'नवीन' के समर्पित हे, जिनका गमा के हमनीन के मन बिछोह रहल हे । नञ् अब 'अधरतिया के बँसुरी' सुने के मिलत, नञ् 'राहे राह अन्हरिया कटतो' । उनका सबके आगू सरधा के फूल चढ़ा के मन के उछास करगिआ रहली हे ।) (मपध॰02:4:4:1.12)
35 कल्हे (= कल) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.14)
36 काँच-कुमार ("अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।") (मपध॰02:4:23:3.2)
37 कार (= काला) (भारत में तुलसी के ई किसिम हरेक जगह पावल जा हे । एकर पहचान एकर छोटे-छोटे गुलाबी इया बैंगनी रंग के फूल आउ कार बिच्चा से कइल जा सकऽ हे । ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे ।; एकर पत्ता छोट आउ कार रंग के होवऽ हे । एकरा में उज्जर चिन्हाँ होवऽ हे आउ रुक्खड़ होवऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:2.11, 35)
38 कूप्पह (गाँव खा-पी के निचीत हल । अचानक तड़-तड़ गोली चले लगल । बम के धुआँ से कूप्पह हो गेल, बिनेसर बाबू के बंगला । चरखी-झालर जन्ने-तन्ने रस्ता में बिखर गेल ।) (मपध॰02:4:25:3.20)
39 केतना (= कितना) (कोय हौले से पुकार रहल हल, राह चलते - "विनीता !" केतना मिठास हे । पीछे घुर के ताकलक त दीना हल ।) (मपध॰02:4:25:2.3)
40 कोट (= कोटि) (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।) (मपध॰02:4:24:3.33)
41 गज-गज (~ करना = गजगजाना) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.13)
42 गते-गते (= धीरे-धीरे) (दस-बीस कदम चल के ऊ घुर गेल, अइसे कइले, जइसे ओकर कुछ गिर गेल हे, जेकरा खोजे खातिर ऊ पीछु लौटल हे । गते-गते बढ़ते-बढ़ते ऊ चोर नजर से दीना के भी निहार ले हल । दीना भी मिंती के भाँप के ओकरा भर नजर देखलक, त मिंती के रोमा-रोमा गनगना गेल ।) (मपध॰02:4:23:1.8)
43 गनगनाना (दस-बीस कदम चल के ऊ घुर गेल, अइसे कइले, जइसे ओकर कुछ गिर गेल हे, जेकरा खोजे खातिर ऊ पीछु लौटल हे । गते-गते बढ़ते-बढ़ते ऊ चोर नजर से दीना के भी निहार ले हल । दीना भी मिंती के भाँप के ओकरा भर नजर देखलक, त मिंती के रोमा-रोमा गनगना गेल ।) (मपध॰02:4:23:1.11)
44 गमछी (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।; एक दिन झोला-झोला होला पर ऊ अपन बगैचा दने से लौटल आ रहल हल । एक हाँथ में एगो किताब हल आउ दोसर हाँथ में गमछी में बन्हल दस-बीस गो अमौरी ।) (मपध॰02:4:23:1.16, 24:1.27)
45 गमाना (= गँवाना, खोना) (ई अंक 'मगही के मीरा' कुमारी राधा आउ 'मगही के कबीर' मथुरा प्रसाद 'नवीन' के समर्पित हे, जिनका गमा के हमनीन के मन बिछोह रहल हे । नञ् अब 'अधरतिया के बँसुरी' सुने के मिलत, नञ् 'राहे राह अन्हरिया कटतो' । उनका सबके आगू सरधा के फूल चढ़ा के मन के उछास करगिआ रहली हे ।) (मपध॰02:4:4:1.10)
46 गरमजरुआ (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।) (मपध॰02:4:24:3.34)
47 गहना-जेवर (सब गहना-जेवर, रुपइया-पैसा छीन-छोर के डकैत सब निकले चाह रहल हल ।) (मपध॰02:4:26:1.8)
48 गहिदा (सब सुनसान । न टमटम न रिक्सा । ... बिलकुल सन्नाटा हल । ... पाँव रखे के बराबर पर त रखा जाहे गहिदा में । से हम दुन्नु टाँफे-पाँफे चलइत हली । दुन्नु गोटा आपस में बुदबुदैते-बुदबुदैते चलइत रहली ।) (मपध॰02:4:20:2.5)
49 गियारी (ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे । एकर उपयोग सरदी-खोंखी, ब्रोंकाइटिस आउ गियारी के दवाय बनावे ल कइल जा हे ।) (मपध॰02:4:28:2.15)
50 गिरल-मरल (वुिदेसी शुद्ध हिंदी में जवाब देलक - "कोई बात नहीं, ऐसा होता है ।" ओकर मुँह से निकसल बात बनारसी बाबू के अइसन लगल जइसे ओकरा कोय जोड़ से थप्पड़ मार के गारी दे देल । बनारसी बाबू गिरल-मरल सोचे लगलन - " अबहियों हमनी गुलाम ही, अंगरेजियत अउ अंगरेजी के । ..") (मपध॰02:4:32:3.4)
51 गुल्लक (= बैंक चुकड़ी) (ऊ भाय-बहिन जिनका हमर निहोरा तनिको ठीक लग रहल हे त हम कहम कि अगर अपने 365 रुपइया निकाले में समर्थ ही त तुरतम मगही ले पहल करी । जदि अपने एक बार में 365 रुपइया निकाल नञ् सकऽ ही तो आझे एगो गुल्लक खरीद लेवल जाय । जल्दीये अपने के संकल्प पूरा होयत ।) (मपध॰02:4:5:1.31)
52 गोटा (दुन्नु ~) (ठंढा के रात हल । दस बजिया गाड़ी से उतरली हल । इ कोस के सफर हल । हमनी दुन्नु पैंट-कोट में हली । ... बाकि काहे तो टीसन के ढलान पार करते-करते एकबारगी दुन्नु गोटा सिहर गेली । सब सुनसान । न टमटम न रिक्सा । ... दुन्नु गोटा के नए बिआह होवे कइल हल ।) (मपध॰02:4:20:1.21, 2.2)
53 गोलकी (= गोलमिर्च) (गोलकी के साथ एकर पान-छे पत्ता निहार मुँह सेवन करे से मधुमेह कंट्रोल में रहऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:2.21)
54 गोस्सा (= गुस्सा) (आज दीना कमली के साथ जे बेहवार कइल हल ऊ कमली ल बरदास से बाहर हल । ओकरा अंदर गोस्सा के नागिन फुँफकार छोड़े लगल ।) (मपध॰02:4:24:2.31)
55 घुरना (= लौटना; मुड़ना) (दस-बीस कदम चल के ऊ घुर गेल, अइसे कइले, जइसे ओकर कुछ गिर गेल हे, जेकरा खोजे खातिर ऊ पीछु लौटल हे ।; कोय हौले से पुकार रहल हल, राह चलते - "विनीता !" केतना मिठास हे । पीछे घुर के ताकलक त दीना हल ।) (मपध॰02:4:23:1.5, 25:2.4)
56 घुरी-घुरी (= बार-बार, तुरन्त-तुरन्त) (उनका रहते यदि खून-खराबा हो रहल हे गुजरात में, त खून के छिटका त उनखो पर भी पड़वे करत । चेहरा तो दागदार होवे करत । कतनो घुरी-घुरी चेहरा पर सफेद रूमाल फेरते रहथ ।; नवीन जी बिलकुल मौजी आउ फक्कड़ किसिम के कवि हलन । इनकर कविता के तेवर एक तरफ सत्ता आउ कुरसी वला के तिकतिका के रख दे हल तब दोसर तरफ आम अमदी ओकरा अप्पन कविता समझ के घुरी-घुरी गावे लगऽ हल ।; "अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।"; रामप्रकाश बाबू हीं तो कोय लड़की हे नञ् से-से कउलेज बंद होला पर जब से मिंती उनका हीं आल हल, ओकरे गीत-नाध में जाय पड़ऽ हे । घुरी-घुरी दुआरी दने ताक रहल हे कि कखने बोलहटा आवे ।) (मपध॰02:4:6:2.5, 7:1.5, 23:3.1, 25:1.34)
57 चउँर (हत् मरदे, तूँ तो हमरो जान ले लेमें । आधा करेजा के तो हम अमदी ही । ओहू पर तू झमदगर जवान होके अइसन बोलमें, त जाने न ले लेमे । चल चल, गोड़ झार । इहाँ की तोरा टेम्पू मिलतउ कि चउँर में चाह के दुकान । चुपचाप चलल चल अउर गोड़ पटक-पटक के चल ।; तू तो अइसन न भूगोल पढ़ावे लगलऽ कि लगे हे इ चउँर में किलमनजारो सुत गेल हे ।) (मपध॰02:4:20:3.1, 21:3.20)
58 चउहट (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।) (मपध॰02:4:16:1.9, 12)
59 चढ़ाय (= चढ़ाई) (चीख-पुकार मच रहल हल । गाँव के अदमी सोंचलक कि जरूर दीना अपन गैंग के साथ बिनेसर बाबू पर चढ़ाय कर देलक हे ।) (मपध॰02:4:25:3.31)
60 चन्नन-टीका (= चन्दन-टीका) (फिरंगी सब आझो एकर गली-गली में भारत के पुरान संस्कृति अउ सभ्यता देख के लोभा जा हथ । अहनी भी धोती-कुरता, चन्नन-टीका, खड़ाऊँ-चटकी अउ कंठीमाला अपना ले हथ ।) (मपध॰02:4:32:1.7)
61 चरखी (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.12)
62 चरखी-झालर (गाँव खा-पी के निचीत हल । अचानक तड़-तड़ गोली चले लगल । बम के धुआँ से कूप्पह हो गेल, बिनेसर बाबू के बंगला । चरखी-झालर जन्ने-तन्ने रस्ता में बिखर गेल ।) (मपध॰02:4:25:3.21)
63 चलाँक (= चालाक) (फेर उप्पर मन से कहलक, "नञ्, आज नञ् ।" - "आज कुछ नञ् करवो ।" दीना ओकर गोड़ बान्हलक । - "ए गो ... ।" - "नञ्, काम हे । तूँ बड़ी चलाँक हऽ । दीदी से हमर हाँथ माँगे जा हऽ आउ हमरा से 'ए गो' माँगऽ हऽ ।") (मपध॰02:4:25:2.14)
64 चलाँकी (मैक से कोय एलाउंस कर रहल हल - "अपने से हमरा कोय दुसमनी नञ् हे । हमर काम फतह हो चुकल हे । अपने के कय अदमी हमर कब्जा में हथ, जिनका हम गाँव से बाहर निकलतहीं छोड़ देम । रस्ता दे दी हमनी के ... । अगर कोय चलाँकी देखयतन त अपना साथ ऊ इनकनहियों के जान लेतन ।") (मपध॰02:4:26:1.6)
65 चिट्ठी-चपाती (अपने सब के नेह तभिए मिलऽ हे, जब हम अंक लेके अपने के दुआरी तक जाही । फेर अपने बिसर जाही हमरा । अच्छा लगत जब चिट्ठी-चपाती लिखते रहवऽ । अकेलुआ अदमी कहिया तक घर-घर जइते रहम ।) (मपध॰02:4:4:1.32-33)
66 चौरा (भारत भर में तुलसी पूजल जा हलन । घर-घर में तुलसी चौरा होवऽ हल । कोय पूजा-पाठ के परसाद तुलसी दल बिना पूरा नञ् मानल जा हल ।) (मपध॰02:4:27:1.29)
67 छउँड़की (= छउँड़ी) (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने । गाँव के सब छउँड़किन ओकरा से हेंठ हल । काहे कि ऊ गाँव के सबसे बड़का के बेटी हल ।; बुतरू सब के माय-बाप कतनो पीटे बकि ऊ दीना से पिस्तौल चलवे ल सिक्खे ले हरदम लबधल रहऽ हे । कोय चुलबुल छउँड़किन भले यदि दीना के रस्ता में एकेल्ले पड़ जाहे त ओकर मुँह सुख जाहे ।) (मपध॰02:4:24:2.23, 25:1.20)
68 छगुनना (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल । राह चलते मने-मन छगुने लगल ऊ, 'अइसन कइसे हो सकऽ हे ! दीना सन भला मानुस - गुंडा !') (मपध॰02:4:23:1.19)
69 छहँक (= आभास, छाया, प्रतिरूप) (ऊ दुनहुँ के कुछ कविता अपने के आगू रख रहली हे । जरूरी नञ् कि ई उनकनहिन के प्रतिनिधि कविता होय, बकि एकरा से अपने के उनकर रचना करम के छहँक जरूर मिलत ।; उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।) (मपध॰02:4:4:1.14, 23:1.18)
70 छानना (= जकड़ना) (बिसेसरा त चलते ठमक जाय । कहे, पाठक भइया, लगो हो कि गोड़वे छान लेलको । - के रे ? - का जाने, बाकि लगो हो कि गोड़बे छान लेलको ।; ढिमका पर से उठ के घर दने जाय लगल त दीना के लगल कि ओकर दुनु गोड़ कोय छानले हे ।) (मपध॰02:4:20:2.21, 24, 23:3.29)
71 छिटका (= छिंटका; छींटा) (उनका रहते यदि खून-खराबा हो रहल हे गुजरात में, त खून के छिटका त उनखो पर भी पड़वे करत । चेहरा तो दागदार होवे करत । कतनो घुरी-घुरी चेहरा पर सफेद रूमाल फेरते रहथ ।) (मपध॰02:4:6:2.3)
72 छीनना-छोरना (सब गहना-जेवर, रुपइया-पैसा छीन-छोर के डकैत सब निकले चाह रहल हल ।) (मपध॰02:4:26:1.9)
73 छो (= छे; छह) (अभी तक 'हेपेटाइटिस' रोग के छो किसिम के पुष्टि डाक्टर लोग कइलन हे - ए, बी, सी, डी, ई आउ जी ।) (मपध॰02:4:29:1.6)
74 छोट (= छोटा) (एकर पत्ता छोट आउ कार रंग के होवऽ हे । एकरा में उज्जर चिन्हाँ होवऽ हे आउ रुक्खड़ होवऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:2.35)
75 छोट-छोट (= छोटा-छोटा) (तुलसी के ई किसिम जादेतर ठंढा आउ सूखा जगह पर पावल जाहे । ई अपन तेज सुगंध आउ उज्जर छोट-छोट फूल के चलते असानी से पछानल जा सकऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:1.25)
76 छोटे-छोटे (= छोट्टे-छोट्टे; छोटा-छोटा) (भारत में तुलसी के ई किसिम हरेक जगह पावल जा हे । एकर पहचान एकर छोटे-छोटे गुलाबी इया बैंगनी रंग के फूल आउ कार बिच्चा से कइल जा सकऽ हे । ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:2.10)
77 जग (= यज्ञ; अनुष्ठान) (साल से उप्पर से बिनेसर बाबू बहीन के बियाह करे ल सोंचले हलन बकि दीना के डर आउ गाँव-जेवार में नमहँस्सी के डर से कोय जग नञ् ठान रहलन हल । छाती पर पत्थल रख के जग नाध देलन हे ।) (मपध॰02:4:25:1.27, 28)
78 जरियो (= तनिक्को; थोड़ा-सा भी) ("अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।") (मपध॰02:4:23:3.3)
79 जवार (= जेवार, क्षेत्र) (ई सब बात के साच्छी गाँव-जेवार के आम अदमी हल । ओकरा नजर में दीना अब एगो अइसन भेटनर गुंडा हल जे जवार के कउनो अदमी से नञ् बद्दऽ हल ।) (मपध॰02:4:25:1.11)
80 जाट-जटिन (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।) (मपध॰02:4:16:1.9)
81 झउँसाना (= झौंसाना) (मोदी जी ए.सी. में चले के आदी हो गेलन हे । उनका पता नञ् चले कि केकरो घर जले के धाह केतना तेज होवऽ हे । जे जर गेलन ऊ तो जरिए गेलन बकि जे बचल भी हथ ओकर जिनगी अइसन झउँसा जाहे कि ऊ जीवन भर दिन नञ् पावे ।) (मपध॰02:4:6:2.12)
82 झनझन (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने ।) (मपध॰02:4:24:2.19)
83 झम-झम (रात झम-झम करइत हल बाबू ! झम-झम करइत हल । टह-टह चाँदनी हल । इंजोरिया पसरल । इहाँ से उहाँ तक इंजोरिया पसरल हल ।) (मपध॰02:4:20:1.1, 2)
84 झमदगर (हत् मरदे, तूँ तो हमरो जान ले लेमें । आधा करेजा के तो हम अमदी ही । ओहू पर तू झमदगर जवान होके अइसन बोलमें, त जाने न ले लेमे । चल चल, गोड़ झार । इहाँ की तोरा टेम्पू मिलतउ कि चउर में चाह के दुकान । चुपचाप चलल चल अउर गोड़ पटक-पटक के चल ।) (मपध॰02:4:20:2.27)
85 झाड़ा (~ फिरना = मलत्याग करना, शौच करना, हगना) (चौधरी ताड़-फेंड़ तर ताड़ी बेचइत हल । थोड़े हट के बोतल में पानी लेले उँकड़ूँ बैठल कोई निर्लज्ज झाड़ा फिरइत हल ।) (मपध॰02:4:32:3.25)
86 झोला-झोला (एक दिन झोला-झोला होला पर ऊ अपन बगैचा दने से लौटल आ रहल हल । एक हाँथ में एगो किताब हल आउ दोसर हाँथ में गमछी में बन्हल दस-बीस गो अमौरी ।) (मपध॰02:4:24:1.24)
87 झोला-झोली (= झोलाझोली, झोराझोरी; परस्पर झकझोरने की क्रिया या भाव) (आज दीना कमली के साथ जे बेहवार कइल हल ऊ कमली ल बरदास से बाहर हल । ओकरा अंदर गोस्सा के नागिन फुँफकार छोड़े लगल । ऊ दीना के सबक सिखावे ल ठान लेलक । झोला-झोली के समय हल । अचोक्के गाँव में कोहराम मच गेल । चारो तरफ से लाठी-भाला निकले लगल ।) (मपध॰02:4:24:3.1)
88 झौंसना (पहिले गौतम के धरती बिहार खूने-खून हल, अब गाँधी के धरती गुजरात जल रहल हे । लोग जिंदा आग में झौंसल जा रहलन हे ।) (मपध॰02:4:6:1.4)
89 टह-टह (रात झम-झम करइत हल बाबू ! झम-झम करइत हल । टह-टह चाँदनी हल । इंजोरिया पसरल । इहाँ से उहाँ तक इंजोरिया पसरल हल ।) (मपध॰02:4:20:1.2)
90 टाँफे-पाँफे (सब सुनसान । न टमटम न रिक्सा । ... बिलकुल सन्नाटा हल । ... पाँव रखे के बराबर पर त रखा जाहे गहिदा में । से हम दुन्नु टाँफे-पाँफे चलइत हली । दुन्नु गोटा आपस में बुदबुदैते-बुदबुदैते चलइत रहली ।) (मपध॰02:4:20:2.12)
91 टेम्पू (हत् मरदे, तूँ तो हमरो जान ले लेमें । आधा करेजा के तो हम अमदी ही । ओहू पर तू झमदगर जवान होके अइसन बोलमें, त जाने न ले लेमे । चल चल, गोड़ झार । इहाँ की तोरा टेम्पू मिलतउ कि चउँर में चाह के दुकान । चुपचाप चलल चल अउर गोड़ पटक-पटक के चल ।; टेम्पू में बइठल जंक्शन जाइत एगो सज्जन ई नजारा देख के कहलन - ये ही जंगल राज हे ।) (मपध॰02:4:20:2.29, 32:3.26)
92 ठुनका ("अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।") (मपध॰02:4:23:3.4)
93 डंटी (= डंठल) (एकर लंबा डंटीवला पत्ता नीचे झुकल रहऽ हे आउ बिच्चा के रंग एकदम मटिया रंग होवऽ हे । बीज तिनकोनियाँ होवऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:1.8)
94 डग्गर (= डगर) (उनकर आभारी ही, जे पीठ पर हाँथ रखलन आउ उनकर भी, जे तातल चीज समझ के हाँथ पीछे खींच लेलन । कचउमरिया लेखक भाय के उत्साह हमर डग्गर अउसान जरूर करत, अइसन उमेद हे ।) (मपध॰02:4:4:1.7)
95 डोभा (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल । कभी उनकर दुनहूँ टरेक्टर के पहिला डोभा में मिले । कभी सुत के उठला पर ऊ देखथ उनकर सउँसे घर आउ बंगला के पकिया देवाल गोबर से नीपल हे ।) (मपध॰02:4:25:1.2)
96 डोमकच (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।) (मपध॰02:4:16:1.9)
97 ढिमका (चार कदम चलके मिंती थोड़े ठमक गेल । पीछू घुम के ऊ भर नजर ढिमका पर बैठल दीना के देखे लगल । फेर ओकरा अपना दने देखते देख के आगू बढ़ गेल ।; ढिमका पर से उठ के घर दने जाय लगल त दीना के लगल कि ओकर दुनु गोड़ कोय छानले हे ।) (मपध॰02:4:23:1.2, 3.27)
98 तड़-तड़ (गाँव खा-पी के निचीत हल । अचानक तड़-तड़ गोली चले लगल । बम के धुआँ से कूप्पह हो गेल, बिनेसर बाबू के बंगला । चरखी-झालर जन्ने-तन्ने रस्ता में बिखर गेल ।) (मपध॰02:4:25:3.19)
99 तहियाना (दीना के नजर कमली के बगल में खड़ा मिंती से मिलल त ओकरा लगल कि कारू के खजाना हाँथ लग गेल हे । मिंती के लग रहल हल कि ठेहुना भर तहियावल गुलाब के पँखुड़ी में धँसल जा रहल हे ।) (मपध॰02:4:26:3.24)
100 तागत (= ताकत, शक्ति) (पहिले गौतम के धरती बिहार खूने-खून हल, अब गाँधी के धरती गुजरात जल रहल हे । लोग जिंदा आग में झौंसल जा रहलन हे । हैवानियत चरम पर हे । हिंदू-मुस्लिम जउन तागत एकर पीछे लगल हे, दुनियाँ के सबसे बड़ हेमान में से एक हे ।) (मपध॰02:4:6:1.6)
101 तातल (= गरम, उष्ण) (उनकर आभारी ही, जे पीठ पर हाँथ रखलन आउ उनकर भी, जे तातल चीज समझ के हाँथ पीछे खींच लेलन । कचउमरिया लेखक भाय के उत्साह हमर डग्गर अउसान जरूर करत, अइसन उमेद हे ।) (मपध॰02:4:4:1.6)
102 तिकतिकाना (नवीन जी बिलकुल मौजी आउ फक्कड़ किसिम के कवि हलन । इनकर कविता के तेवर एक तरफ सत्ता आउ कुरसी वला के तिकतिका के रख दे हल तब दोसर तरफ आम अमदी ओकरा अप्पन कविता समझ के घुरी-घुरी गावे लगऽ हल ।) (मपध॰02:4:7:1.4)
103 तिनकोनियाँ (= तिकोना) (एकर लंबा डंटीवला पत्ता नीचे झुकल रहऽ हे आउ बिच्चा के रंग एकदम मटिया रंग होवऽ हे । बीज तिनकोनियाँ होवऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:1.10)
104 तुन्नुक (= टुन्नुक; नाजुक) ("अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।") (मपध॰02:4:23:3.3)
105 थाह-पता (ऊ दीना के सबक सिखावे ल ठान लेलक । झोला-झोली के समय हल । अचोक्के गाँव में कोहराम मच गेल । चारो तरफ से लाठी-भाला निकले लगल । दु-चार गो फायर भी हो गेल । बकि अभी कहैं कुछ थाह-पता नञ् चल रहल हल ।) (मपध॰02:4:24:3.5)
106 थीर (~ के पानी लेना) (बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल । कभी उनकर दुनहूँ टरेक्टर के पहिला डोभा में मिले । कभी सुत के उठला पर ऊ देखथ उनकर सउँसे घर आउ बंगला के पकिया देवाल गोबर से नीपल हे । सायते दिन ऊ थीर के पानी ले होतन ।) (मपध॰02:4:25:1.5)
107 थोड़के (~ देर में) (दूरा पर आके ऊ सच्चो लोठरी बंद करके पड़ रहल । थोड़के देर में ऊ सपना के दुनिया में हल ।) (मपध॰02:4:24:1.11)
108 दनी (= दबर) (पट ~; झट ~) (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।") (मपध॰02:4:23:1.27)
109 दवाय (= दवाई, दवा) (तुलसी से विदेसो में ढेर दवाय बनावल जा हे ।; ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे । एकर उपयोग सरदी-खोंखी, ब्रोंकाइटिस आउ गियारी के दवाय बनावे ल कइल जा हे ।) (मपध॰02:4:27:2.12, 28:2.15)
110 दस-बजिया (~ गाड़ी) (ठंढा के रात हल । दस बजिया गाड़ी से उतरली हल । इ कोस के सफर हल ।) (मपध॰02:4:20:1.14)
111 दावा-बीरो (जमाना 'पश्चिमीकरण' के आ गेल हे । 'पश्चिमीकरण' के चलते हमनिन के रहन-सहन से भारत के मट्टी के सुगंध उड़ते जा रहल हे । अइसे में दावा-बीरो के रूप-रंग भी बदल रहल हे ।) (मपध॰02:4:27:1.2)
112 दिन (~ नञ् पाना) (मोदी जी ए.सी. में चले के आदी हो गेलन हे । उनका पता नञ् चले कि केकरो घर जले के धाह केतना तेज होवऽ हे । जे जर गेलन ऊ तो जरिए गेलन बकि जे बचल भी हथ ओकर जिनगी अइसन झउँसा जाहे कि ऊ जीवन भर दिन नञ् पावे ।) (मपध॰02:4:6:2.13)
113 दुरा (= दूरा) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.11)
114 देवाल (= दीवाल, दीवार) (बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल । कभी उनकर दुनहूँ टरेक्टर के पहिला डोभा में मिले । कभी सुत के उठला पर ऊ देखथ उनकर सउँसे घर आउ बंगला के पकिया देवाल गोबर से नीपल हे ।) (मपध॰02:4:25:1.4)
115 दोकान (= दुकान) (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।") (मपध॰02:4:23:1.26)
116 दोम (= मध्यम श्रेणी का; साधारण, तुच्छ) (हलाँकि जइसे कोय-कोय जज तुरतम निरनय सुना दे हथ, ओइसहीं कुछ पाठक/ लेखक तुरतम अपन राय कायम कर देलन - बेस इया दोम । अच्छा लगल ।) (मपध॰02:4:4:1.4)
117 दोस (= दोस्त) (फेर धीरे से ओकर सीना पर सिर टिका के बोलल, "अब जा हियो ।" - "कहाँ जाइत हऽ ?" दीना पूछलक । - "तोर दोस हीं । उनकर बहिन के बियाह के गीत गावे ।" आँख नचा के बोलल मिंती ।) (मपध॰02:4:25:3.4)
118 धनगर (= धनवान) (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने ।) (मपध॰02:4:24:2.17)
119 धाह (= धाही; आग की गरमी, लपट) (मोदी जी ए.सी. में चले के आदी हो गेलन हे । उनका पता नञ् चले कि केकरो घर जले के धाह केतना तेज होवऽ हे । जे जर गेलन ऊ तो जरिए गेलन बकि जे बचल भी हथ ओकर जिनगी अइसन झउँसा जाहे कि ऊ जीवन भर दिन नञ् पावे ।) (मपध॰02:4:6:2.9)
120 धी-सवासिन (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.15)
121 नमहँस्सी (= नामहँसी) (साल से उप्पर से बिनेसर बाबू बहीन के बियाह करे ल सोंचले हलन बकि दीना के डर आउ गाँव-जेवार में नमहँस्सी के डर से कोय जग नञ् ठान रहलन हल । छाती पर पत्थल रख के जग नाध देलन हे ।) (मपध॰02:4:25:1.26)
122 नाया (= नया) (उनकर कविता नाया तरह के चेतना जगावे वला आउ मन के विछोहे वला दरद से सनल रहऽ हे । नाया आउ पुराना हर तरह के प्रयोग ऊ अपन कविता में करके अपन विलक्षण प्रतिभा के परिचय देलन ।) (मपध॰02:4:12:1.15, 16)
123 निचिंत (= निश्चिन्त) (ऊपर जा के रुकलन । साँस में साँस आयल । बैठलन । निचिंत होलन । फिन खड़ा होके देखलन ।) (मपध॰02:4:21:2.20)
124 निचीत (दे॰ निचिंत) (गाँव खा-पी के निचीत हल । अचानक तड़-तड़ गोली चले लगल । बम के धुआँ से कूप्पह हो गेल, बिनेसर बाबू के बंगला । चरखी-झालर जन्ने-तन्ने रस्ता में बिखर गेल ।) (मपध॰02:4:25:3.18)
125 निहार (~ मुँह) (गोलकी के साथ एकर पान-छे पत्ता निहार मुँह सेवन करे से मधुमेह कंट्रोल में रहऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:2.22)
126 पकिया (~ देवाल) (बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल । कभी उनकर दुनहूँ टरेक्टर के पहिला डोभा में मिले । कभी सुत के उठला पर ऊ देखथ उनकर सउँसे घर आउ बंगला के पकिया देवाल गोबर से नीपल हे ।) (मपध॰02:4:25:1.4)
127 पट्टी (= तरफ, ओर) (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।" - सोमर साव हीं झरल हलइ, दीदी । ऊ पट्टी से ला रहलियो हऽ । - "अच्छा ! तनी हमरो सिकरेट ला देवऽ ऊ पट्टी से ।" पिठदोबारे घर घुंसते ओकर जीजा रामपुकार जी मिंती के कनखिऐते बोललन ।) (मपध॰02:4:23:1.33, 2.2)
128 पत (= प्रत्येक) ('हेपेटाइटिस' एगो खतरनाक आउ जानलेवा बिमारी हे । पत साल लाखो अदमी के ई ग्रस ले हे ।) (मपध॰02:4:29:1.2)
129 परघट (= प्रकट) (पाँच मिनट में सउँसे गाँव जामा हो गेल । सब अवाक् ! रजेसर माटसा जे एगो डंटा लेले दीना के मारे ले चललन हल, अनेसा में ... । 'दीना-दीना' पुकार रहलन हल । देवदूत नियन दीना परघट भेल ।) (मपध॰02:4:26:1.35)
130 परसाद (= प्रसाद) (भारत भर में तुलसी पूजल जा हलन । घर-घर में तुलसी चौरा होवऽ हल । कोय पूजा-पाठ के परसाद तुलसी दल बिना पूरा नञ् मानल जा हल ।) (मपध॰02:4:27:1.30)
131 पराती (= परतकाली) (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।) (मपध॰02:4:16:1.13)
132 पहिनना (= पहनना, पेन्हना) (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।) (मपध॰02:4:23:1.14)
133 पान-छे (= पाँच-छह) (गोलकी के साथ एकर पान-छे पत्ता निहार मुँह सेवन करे से मधुमेह कंट्रोल में रहऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:2.22)
134 पिठदोबारे (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।" - सोमर साव हीं झरल हलइ, दीदी । ऊ पट्टी से ला रहलियो हऽ । - "अच्छा ! तनी हमरो सिकरेट ला देवऽ ऊ पट्टी से ।" पिठदोबारे घर घुंसते ओकर जीजा रामपुकार जी मिंती के कनखिऐते बोललन ।) (मपध॰02:4:23:2.2)
135 पेटभरन (रोटी, कपड़ा आउ मकान अदमी के उजिआय नञ् दे हे । काहे कि ई तीनों के सरूप अब बदल गेल हे । पहिले रोटी के मतलब पेट के आग बुझे से हल बकि अब एकर मतलब पेटभरन के साथ-साथ मुँहफेरन भी हो गेल हे ।) (मपध॰02:4:5:1.16)
136 पोरे-पोर (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने ।) (मपध॰02:4:24:2.19)
137 फटफटिया (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।) (मपध॰02:4:24:3.30)
138 बग-बग (उज्जर ~) (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।) (मपध॰02:4:23:1.14)
139 बगुली (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।) (मपध॰02:4:16:1.9)
140 बतिआना (अरे तू तो ढेर राजनीति बतिआवे हें । कुछ बतिऔते चल । रस्ता कटतउ । मन भी लगतउ ।) (मपध॰02:4:21:1.1)
141 बदना (= काबू या वश में आना) (ई सब बात के साच्छी गाँव-जेवार के आम अदमी हल । ओकरा नजर में दीना अब एगो अइसन भेटनर गुंडा हल जे जवार के कउनो अदमी से नञ् बद्दऽ हल ।) (मपध॰02:4:25:1.12)
142 बन्हना (= बँधना) (एक दिन झोला-झोला होला पर ऊ अपन बगैचा दने से लौटल आ रहल हल । एक हाँथ में एगो किताब हल आउ दोसर हाँथ में गमछी में बन्हल दस-बीस गो अमौरी ।) (मपध॰02:4:24:1.27)
143 बरदास (= बर्दाश्त) (आज दीना कमली के साथ जे बेहवार कइल हल ऊ कमली ल बरदास से बाहर हल । ओकरा अंदर गोस्सा के नागिन फुँफकार छोड़े लगल ।) (मपध॰02:4:24:2.30)
144 बहिन (= बहीन; बहन) (फेर धीरे से ओकर सीना पर सिर टिका के बोलल, "अब जा हियो ।" - "कहाँ जाइत हऽ ?" दीना पूछलक । - "तोर दोस हीं । उनकर बहिन के बियाह के गीत गावे ।" आँख नचा के बोलल मिंती ।; कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.4, 14)
145 बहीन (= बहिन; बहन) (साल से उप्पर से बिनेसर बाबू बहीन के बियाह करे ल सोंचले हलन बकि दीना के डर आउ गाँव-जेवार में नमहँस्सी के डर से कोय जग नञ् ठान रहलन हल । छाती पर पत्थल रख के जग नाध देलन हे ।) (मपध॰02:4:25:1.24)
146 बान्हना (= बाँधना, जकड़ना) (फेर उप्पर मन से कहलक, "नञ्, आज नञ् ।" - "आज कुछ नञ् करवो ।" दीना ओकर गोड़ बान्हलक । - "ए गो ... ।" - "नञ्, काम हे । तूँ बड़ी चलाँक हऽ । दीदी से हमर हाँथ माँगे जा हऽ आउ हमरा से 'ए गो' माँगऽ हऽ ।") (मपध॰02:4:25:2.12)
147 बिगहा (= बीघा) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.12)
148 बिच्चा (= बीज) (एकर जड़ी, फूल आउ बिच्चा के सेवन से पेट के रोग, कब्ज आउ आँव में अराम मिलऽ हे ।; एकर लंबा डंटीवला पत्ता नीचे झुकल रहऽ हे आउ बिच्चा के रंग एकदम मटिया रंग होवऽ हे । बीज तिनकोनियाँ होवऽ हे ।; भारत में तुलसी के ई किसिम हरेक जगह पावल जा हे । एकर पहचान एकर छोटे-छोटे गुलाबी इया बैंगनी रंग के फूल आउ कार बिच्चा से कइल जा सकऽ हे । ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:1.1, 9, 2.11, 12)
149 बिछोहना (ई अंक 'मगही के मीरा' कुमारी राधा आउ 'मगही के कबीर' मथुरा प्रसाद 'नवीन' के समर्पित हे, जिनका गमा के हमनीन के मन बिछोह रहल हे । नञ् अब 'अधरतिया के बँसुरी' सुने के मिलत, नञ् 'राहे राह अन्हरिया कटतो' । उनका सबके आगू सरधा के फूल चढ़ा के मन के उछास करगिआ रहली हे ।) (मपध॰02:4:4:1.10)
150 बुड़बक (सुन-सुन किलमनजारो के कथा । अफ्रीका के छत के कथा । सउँसे छत पर ग्लेसियर हल । बरफ के नदी । कहियो देखले हें बरफ के नदी, न देखले हें ? - तू देखलऽ हऽ भइया ? - भत् बुड़बक, बिना देखले कह रहली हे, सुन ।) (मपध॰02:4:21:1.18)
151 बुढ़भेस ("अपने लावऽ अपन सिकरेट । हम नहाय जा रहलूँ हें ।" - "कहाँ ?" रामपुकार बाबू मोछ तर मुसुकते बोललन । "देखऽ हीं न गे दीदी ।" मिंती बहिन दने देख के नखरा उतारे लगल । फेर मोका देख के दोसर भित्तर दने भाग गेल । "ए गे, हमरा दिमाग न हे । ... बूढ़ा होल जइतन ... बुढ़भेस लगले रहल ।" मोका देख के मरदाना दने मुँह बिचका के कखनिओ के ओल ले लेलन मिंती के दीदी ।) (मपध॰02:4:23:2.23)
152 बुताना (= बुझाना) (गोधरा के प्रतिक्रिया में जे आग भड़कल ऊ अब तक समित हो चुकल होत जदि समर्थ लोग ओकरा बुतावे के कोरसिस करतन हल ।) (मपध॰02:4:6:1.27)
153 बेटैती (अभी भी अटल जी, मोदी जी आउ संघ के कैडर चेतथ आउ जलते गुजरात के आग बुझावथ ईहे में बेटैती हे, ईहे में इनसानियत हे ।) (मपध॰02:4:6:3.33)
154 बेमारी (= बीमारी) (रोग-~) (एकर एक पत्ता के भी यदि रोज सेवन कइल जाय तो अदमी के कईएक रोग-बेमारी दूर हो जाहे ।) (मपध॰02:4:27:2.19)
155 बेस (= उत्तम, अच्छा, बढ़ियाँ, ठीक) (हलाँकि जइसे कोय-कोय जज तुरतम निरनय सुना दे हथ, ओइसहीं कुछ पाठक/ लेखक तुरतम अपन राय कायम कर देलन - बेस इया दोम । अच्छा लगल ।) (मपध॰02:4:4:1.4)
156 बोलहटा (= बुलाहट, निमंत्रण) (ई दुनहुँ किताब के पांडुलिपि भी तैयार करवा रहलन हल ऊ कि इहे बीच बीतल 4 मार्च 2002 के उनका बोलहटा आ गेल, भगमान घर से, आउ ऊ हमनी के छोड़ के सरग के रस्ता अपना लेलन ।; रामप्रकाश बाबू हीं तो कोय लड़की हे नञ् से-से कउलेज बंद होला पर जब से मिंती उनका हीं आल हल, ओकरे गीत-नाध में जाय पड़ऽ हे । घुरी-घुरी दुआरी दने ताक रहल हे कि कखने बोलहटा आवे ।) (मपध॰02:4:12:1.21, 25:1.35)
157 बौल (= बल्ब) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.13)
158 भत् (~ बुड़बक) (सुन-सुन किलमनजारो के कथा । अफ्रीका के छत के कथा । सउँसे छत पर ग्लेसियर हल । बरफ के नदी । कहियो देखले हें बरफ के नदी, न देखले हें ? - तू देखलऽ हऽ भइया ? - भत् बुड़बक, बिना देखले कह रहली हे, सुन ।) (मपध॰02:4:21:1.18)
159 भित्तर (= अन्दर का कमरा; अन्दर) ("अपने लावऽ अपन सिकरेट । हम नहाय जा रहलूँ हें ।" - "कहाँ ?" रामपुकार बाबू मोछ तर मुसुकते बोललन । "देखऽ हीं न गे दीदी ।" मिंती बहिन दने देख के नखरा उतारे लगल । फेर मोका देख के दोसर भित्तर दने भाग गेल । "ए गे, हमरा दिमाग न हे । ... बूढ़ा होल जइतन ... बुढ़भेस लगले रहल ।" मोका देख के मरदाना दने मुँह बिचका के कखनिओ के ओल ले लेलन मिंती के दीदी ।; कल्हीं बिनेसर बाबू कह रहलन हल - 'की हो रामपुकार भाय, मौज हइ ने ।' साला, हम समझऽ हूँ कि केतना मौज हे । ... भित्तर के मार सहदेवे जानऽ हे ।) (मपध॰02:4:23:2.21, 3.11)
160 भुकभुकिया (~ बौल) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.13)
161 भेटनर (ई सब बात के साच्छी गाँव-जेवार के आम अदमी हल । ओकरा नजर में दीना अब एगो अइसन भेटनर गुंडा हल जे जवार के कउनो अदमी से नञ् बद्दऽ हल ।) (मपध॰02:4:25:1.11)
162 मट्टी (= मिट्टी) (चारो बगल हँसी-खुशी के माहौल हो गेल । कज्जो भीड़ में खड़ा कमली अँगुठा से मट्टी खोद रहल हल । दीना के नजर कमली के बगल में खड़ा मिंती से मिलल त ओकरा लगल कि कारू के खजाना हाँथ लग गेल हे । मिंती के लग रहल हल कि ठेहुना भर तहियावल गुलाब के पँखुड़ी में धँसल जा रहल हे ।; जमाना 'पश्चिमीकरण' के आ गेल हे । 'पश्चिमीकरण' के चलते हमनिन के रहन-सहन से भारत के मट्टी के सुगंध उड़ते जा रहल हे । अइसे में दावा-बीरो के रूप-रंग भी बदल रहल हे ।) (मपध॰02:4:26:3.20, 27:1.2)
163 मति-गति (लोग-बाग चरचा कर रहलन हल, "मन नञ् गोवाही दे हे । दीना अइसन ।" - "काहे नञ् । मति-गति के कउन ठेकाना हे । नउजवान हल आउ सुनऽ हिअइ कि सरीर-विग्यान पढ़ऽ हलइ ।") (मपध॰02:4:24:3.14)
164 मरदे (बिसेसरा त चलते ठमक जाय । कहे, पाठक भइया, लगो हो कि गोड़वे छान लेलको । - के रे ? - का जाने, बाकि लगो हो कि गोड़बे छान लेलको । - हत् मरदे, तूँ तो हमरो जान ले लेमें । आधा करेजा के तो हम अमदी ही । ओहू पर तू झमदगर जवान होके अइसन बोलमें, त जाने न ले लेमे ।) (मपध॰02:4:20:2.25)
165 माटसा (= मास्टर साहब) (गाँव के सबसे धनी अदमी के बहिन के साथ बलात्कार के कोरसिस में गाँव के मिद्धि रजेसर माटसा के बेटा दीना के पुलिस पकड़ के ले गेल ।; रजेसर माटसा कतनो पैरवी लगा लेलन बकि बेटा के बचा नञ् सकलन ।) (मपध॰02:4:24:3.10, 20)
166 मुँहफेरन (रोटी, कपड़ा आउ मकान अदमी के उजिआय नञ् दे हे । काहे कि ई तीनों के सरूप अब बदल गेल हे । पहिले रोटी के मतलब पेट के आग बुझे से हल बकि अब एकर मतलब पेटभरन के साथ-साथ मुँहफेरन भी हो गेल हे ।) (मपध॰02:4:5:1.16)
167 मुनना (= मूनना; बंद करना) (एक दिन झोला-झोला होला पर ऊ अपन बगैचा दने से लौटल आ रहल हल । एक हाँथ में एगो किताब हल आउ दोसर हाँथ में गमछी में बन्हल दस-बीस गो अमौरी । अचोक्के कोय पीछे से आके आँख मुन लेलक ।) (मपध॰02:4:24:1.29)
168 मेहीन (दे॰ मेहिन) ('के हें । ... छोड़ । ... ' दीना डपट के पूछलक । - "पछानऽ ।" एगो मेहीन अवाज आल । - "देख कमली, तोरा केतना बेरी बोल चुकलिऔ हे कि हमरा से लग-लग नञ् कर, बाकि माने ले तैयार नञ् हें । ..." रोसिया के बोलल दीना ।) (मपध॰02:4:24:2.2)
169 मैक (= माइक) (आधा घंटा में गोली-बारी थम गेल । मैक से कोय एलाउंस कर रहल हल - "अपने से हमरा कोय दुसमनी नञ् हे । हमर काम फतह हो चुकल हे । अपनेे के कय अदमी हमर कब्जा में हथ, जिनका हम गाँव से बाहर निकलतहीं छोड़ देम । ...") (मपध॰02:4:25:3.33)
170 मोछ (= मूँछ) ("अपने लावऽ अपन सिकरेट । हम नहाय जा रहलूँ हें ।" - "कहाँ ?" रामपुकार बाबू मोछ तर मुसुकते बोललन । "देखऽ हीं न गे दीदी ।" मिंती बहिन दने देख के नखरा उतारे लगल । फेर मोका देख के दोसर भित्तर दने भाग गेल ।) (मपध॰02:4:23:2.12)
171 रभसना ('के हें । ... छोड़ । ... ' दीना डपट के पूछलक । - "पछानऽ ।" एगो मेहीन अवाज आल । - "देख कमली, तोरा केतना बेरी बोल चुकलिऔ हे कि हमरा से लग-लग नञ् कर, बाकि माने ले तैयार नञ् हें । ..." रोसिया के बोलल दीना । "लास्ट वार्निंग दे रहलिअउ हे । अगर फेर हमरा से रभसलें त अच्छा नञ् होतउ ।" कमली के हाँथ झार के चल पड़ल ऊ ।) (मपध॰02:4:24:2.14)
172 रस्ता (= रास्ता) (एकमात्र रस्ता हे कि उनकनहिन के निकाल बाहर कैल जाय ।; जेल से जब लौट के आल त दोसर अदमी हल दीना । बिनेसर बाबू के पच्छ में गोवाही देवे वला के तो जीना हराम हल । खुद बिनेसर बाबू दीना के देख के रस्ता काट ले हलन ।) (मपध॰02:4:6:3.11, 24:3.29)
173 रानना (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने ।) (मपध॰02:4:24:2.21)
174 रुक्खड़ (= रुखड़ा) (एकर पत्ता छोट आउ कार रंग के होवऽ हे । एकरा में उज्जर चिन्हाँ होवऽ हे आउ रुक्खड़ होवऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:3.2)
175 रेकड (= रेकर्ड) (रजेसर माटसा कतनो पैरवी लगा लेलन बकि बेटा के बचा नञ् सकलन । पिछला रेकड के अधार पर ओकरा साथ जज रहम कइलन आउ ओकरा सिरिफ छो महिन्ना के कड़ा सजाय मिलल ।) (मपध॰02:4:24:3.22)
176 रोग-बेमारी (रोग-~) (एकर एक पत्ता के भी यदि रोज सेवन कइल जाय तो अदमी के कईएक रोग-बेमारी दूर हो जाहे ।) (मपध॰02:4:27:2.19)
177 लग-लग (~ करना) (आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।"; 'के हें । ... छोड़ । ... ' दीना डपट के पूछलक । - "पछानऽ ।" एगो मेहीन अवाज आल । - "देख कमली, तोरा केतना बेरी बोल चुकलिऔ हे कि हमरा से लग-लग नञ् कर, बाकि माने ले तैयार नञ् हें । ..." रोसिया के बोलल दीना ।) (मपध॰02:4:23:3.1, 24:2.11)
178 लबधना (बुतरू सब के माय-बाप कतनो पीटे बकि ऊ दीना से पिस्तौल चलवे ल सिक्खे ले हरदम लबधल रहऽ हे ।) (मपध॰02:4:25:1.19)
179 लुंगी-गंजी (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।) (मपध॰02:4:23:1.14)
180 लूक (= लू) (एक्कर सुक्खल पत्ता पीस के चूरन के रूप में प्रयोग करे से उल्टी रुक जा हे । गरमी में लूक से बचाव ले एकर फूल के ठंढा पानी के साथ सेवन कइल जा हे ।) (मपध॰02:4:28:2.2)
181 लेमू (= नींबू) (बिच्छा इया साँप काटला पर भी एकर पत्ता पिस के लगावल जा हे । 'दाद' जइसन बिमारी में लेमू के रस के साथ एकर पत्ता पिस के लगावे से अराम मिलऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:2.26)
182 शानियल (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने ।) (मपध॰02:4:24:2.18)
183 सउँसे (= समूचा) (सुन-सुन किलमनजारो के कथा । अफ्रीका के छत के कथा । सउँसे छत पर ग्लेसियर हल । बरफ के नदी ।; कभी सुत के उठला पर ऊ देखथ उनकर सउँसे घर आउ बंगला के पकिया देवाल गोबर से नीपल हे ।) (मपध॰02:4:21:1.14, 25:1.3)
184 सच्चो (दूरा पर आके ऊ सच्चो लोठरी बंद करके पड़ रहल ।) (मपध॰02:4:24:1.4)
185 सजाय (= सजा, दंड) (रजेसर माटसा कतनो पैरवी लगा लेलन बकि बेटा के बचा नञ् सकलन । पिछला रेकड के अधार पर ओकरा साथ जज रहम कइलन आउ ओकरा सिरिफ छो महिन्ना के कड़ा सजाय मिलल ।) (मपध॰02:4:24:3.24)
186 सदाबरत (= सदाव्रत) (फेर मेहरारू दने देख के बोललन ऊ, "आउ ऊ सब गलती थोड़े कहऽ हथ जब दु-दु गो इन्नर के पड़ी घर में रखले रहम त हंगामा करवे करतन लोग ।" - "अच्छऽ ! ... मुँह चमका के बोललन मिंती के दीदी, "त सदाबरत बाँट द ।" फेर थोड़े रुक के बोललन, "न भाय, छउँड़ी सुत्थर भी ओतने निकलय ।") (मपध॰02:4:23:3.23)
187 सरदी-खोंखी (= सर्दी-खाँसी) (पत्ता खौला के ओकर पानी पीए से सरदी-खोंखी में आराम मिलऽ हे ।; ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे । एकर उपयोग सरदी-खोंखी, ब्रोंकाइटिस आउ गियारी के दवाय बनावे ल कइल जा हे ।) (मपध॰02:4:28:1.33, 2.14)
188 सर-समान (देखते-देखते सब कुछ बदल गेल । डकैत अपन घायल साथी के लेके भाग छुटल, सब सर-समान जहाँ के तहाँ फेंक के ।) (मपध॰02:4:26:1.28)
189 सिकरेट (= सिगरेट) (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।" - सोमर साव हीं झरल हलइ, दीदी । ऊ पट्टी से ला रहलियो हऽ । - "अच्छा ! तनी हमरो सिकरेट ला देवऽ ऊ पट्टी से ।" पिठदोबारे घर घुंसते ओकर जीजा रामपुकार जी मिंती के कनखिऐते बोललन । जीजा दने ताकलक त मिंती के करेजा धक-धक करे लगल । 'हो न हो मेहमान हमरा कोय दूरा-दलान पर बइठ के देख रहला हल ।' बकि मन कड़ा करके बोलल ऊ, "अपने लावऽ अपन सिकरेट । हम नहाय जा रहलूँ हें ।") (मपध॰02:4:23:2.1, 10)
190 सिरिफ (= सिर्फ, केवल) (रजेसर माटसा कतनो पैरवी लगा लेलन बकि बेटा के बचा नञ् सकलन । पिछला रेकड के अधार पर ओकरा साथ जज रहम कइलन आउ ओकरा सिरिफ छो महिन्ना के कड़ा सजाय मिलल ।) (मपध॰02:4:24:3.23)
191 सिहकाना (हवा न चलइत हे, बाकि कनकन्नी रह-रह के सिहका देहे ।) (मपध॰02:4:21:1.11)
192 सीता-मीता (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।) (मपध॰02:4:16:1.10)
193 सुत्थर (फेर मेहरारू दने देख के बोललन ऊ, "आउ ऊ सब गलती थोड़े कहऽ हथ जब दु-दु गो इन्नर के पड़ी घर में रखले रहम त हंगामा करवे करतन लोग ।" - "अच्छऽ ! ... मुँह चमका के बोललन मिंती के दीदी, "त सदाबरत बाँट द ।" फेर थोड़े रुक के बोललन, "न भाय, छउँड़ी सुत्थर भी ओतने निकलय ।") (मपध॰02:4:23:3.25)
194 सूटर-ऊटर (ठंढा के रात हल । दस बजिया गाड़ी से उतरली हल । इ कोस के सफर हल । हमनी दुन्नु पैंट-कोट में हली । तरे सूटर-ऊटर सब पहिनले हली ।) (मपध॰02:4:20:1.17)
195 सो-पचास (= सौ-पचास) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.12)
196 हत् (~ मरदे !) (बिसेसरा त चलते ठमक जाय । कहे, पाठक भइया, लगो हो कि गोड़वे छान लेलको । - के रे ? - का जाने, बाकि लगो हो कि गोड़बे छान लेलको । - हत् मरदे, तूँ तो हमरो जान ले लेमें । आधा करेजा के तो हम अमदी ही । ओहू पर तू झमदगर जवान होके अइसन बोलमें, त जाने न ले लेमे ।) (मपध॰02:4:20:2.25)
197 हरमुनिया (= हारमोनियम) (एक तरफ हरमुनिया आउर नगाड़ा बजावे ओला लोग रंगमंच पर बइठऽ हथ । दोसर तरफ अभिनेता तरह-तरह के पोसाक पेन्ह के रंगमंच पर आ के अभिनय करऽ हे ।) (मपध॰02:4:16:3.9)
198 हरमेसा (= हमेशा) (ओकर नजर में गाँव के सब छउँड़किन ओकरा से हेंठ हल । काहे कि ऊ गाँव के सबसे बड़का के बेटी हल । हरमेसा दीना के पीछे पड़ल रहऽ हल । पड़े भी काहे नञ्, गाँव में कउन नवजवान दीना सन सुत्थर, गठीला आउ होनहार हल ।) (मपध॰02:4:24:2.25)
199 हलसना (कल तक जे अदमी अपन बेटा के 'संघ' आउ 'शाखा' में हलस के जाय देवे लगलन हल, ऊ दौर अब फेर खतम हो गेल ।) (मपध॰02:4:6:3.24)
200 हाली-हाली (= जल्दी-जल्दी) (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।") (मपध॰02:4:23:1.27)
201 हित-कुटुम (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।; सब गहना-जेवर, रुपइया-पैसा छीन-छोर के डकैत सब निकले चाह रहल हल । बिनेसर बाबू के सब हित-कुटुम के ऊ देवाल दने मुँह करवा के हाथ उठवैले हल आउ बिनेसर बाबू, उनकर दुनहुँ बेटा आउ बियाहता कमली के अगुअइले निकल रहल हल डकैत सब ।) (मपध॰02:4:25:3.15, 26:1.10)
202 हेंठ (= नीचा, तबके में छोटा) (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने । … ओकर नजर में गाँव के सब छउँड़किन ओकरा से हेंठ हल । काहे कि ऊ गाँव के सबसे बड़का के बेटी हल ।) (मपध॰02:4:24:2.23)
203 हेमान (= हैवान; जानवर; पशुतुल्य व्यक्ति; नष्ट, बरबाद) (पहिले गौतम के धरती बिहार खूने-खून हल, अब गाँधी के धरती गुजरात जल रहल हे । लोग जिंदा आग में झौंसल जा रहलन हे । हैवानियत चरम पर हे । हिंदू-मुस्लिम जउन तागत एकर पीछे लगल हे, दुनियाँ के सबसे बड़ हेमान में से एक हे ।) (मपध॰02:4:6:1.7)
2 अकबारना (दीना मिंती के एतना जोर से अकबारलक कि ओकर अंग-अंग चटके लगल । आजाद होल त दीना के सीना में जल्दी-जल्दी दस-बीस धौल जमा देलक । फेर धीरे से ओकर सीना पर सिर टिका के बोलल, "अब जा हियो ।") (मपध॰02:4:25:2.31)
3 अझुराना (= ओझराना; उलझाना)(फेर रजेसर माटसा के गोड़ पर गिर पड़लन, "कका, हमरा माफ करऽ । हम तोरा बड़ी अझुरइली ।" रजेसर माटसा बिनेसर बाबू के उठयलन आउ फट पड़लन, "हमरा एकर फिकिर नञ् हे कि तूँ हमरा अझुरइलऽ,फिकिर तो ई बात के हे कि अब हमर दीना से के सादी-बियाह करत ।") (मपध॰02:4:26:2.17, 20)
4 अनेसा (पाँच मिनट में सउँसे गाँव जामा हो गेल । सब अवाक् ! रजेसर माटसा जे एगो डंटा लेले दीना के मारे ले चललन हल, अनेसा में ... । 'दीना-दीना' पुकार रहलन हल । देवदूत नियन दीना परघट भेल ।) (मपध॰02:4:26:1.33)
5 अन्हारा (= अन्हार; अंधकार, अँधेरा) ("भाय लोग, ई दीना के गाँव हे । ई गाँव के इज्जत दीना के इज्जत हे । तूँ सब रेंज में हऽ । अगर जान चाहऽ ह त अपन रस्ता नापऽ । नञ् त ... ।" कहूँ अन्हारा से अवाज आ रहल हल ।) (मपध॰02:4:26:1.24)
6 अपसोस (= अफसोस) ('मगही के मरम' स्तंभ में 'सही से भरऽ' ले, जे जबाब आल ऊ हमर उत्साह बढ़ावे वला हे । अपसोस हे कि ई बेर कोय सही उत्तर नञ् आ सकल ।) (मपध॰02:4:4:1.28)
7 अमदी (= अदमी; आदमी) (नवीन जी बिलकुल मौजी आउ फक्कड़ किसिम के कवि हलन । इनकर कविता के तेवर एक तरफ सत्ता आउ कुरसी वला के तिकतिका के रख दे हल तब दोसर तरफ आम अमदी ओकरा अप्पन कविता समझ के घुरी-घुरी गावे लगऽ हल ।) (मपध॰02:4:7:1.5)
8 अमौरी (एक दिन झोला-झोला होला पर ऊ अपन बगैचा दने से लौटल आ रहल हल । एक हाँथ में एगो किताब हल आउ दोसर हाँथ में गमछी में बन्हल दस-बीस गो अमौरी ।) (मपध॰02:4:24:1.28)
9 अराम (= आराम) (एकर जड़ी, फूल आउ बिच्चा के सेवन से पेट के रोग, कब्ज आउ आँव में अराम मिलऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:1.2)
10 असवार (= सवार) ("अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।") (मपध॰02:4:23:2.30)
11 असानी (= आसानी) (तुलसी के ई किसिम जादेतर ठंढा आउ सूखा जगह पर पावल जाहे । ई अपन तेज सुगंध आउ उज्जर छोट-छोट फूल के चलते असानी से पछानल जा सकऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:1.25)
12 अहनी (= एकन्हीं; ये लोग) (फिरंगी सब आझो एकर गली-गली में भारत के पुरान संस्कृति अउ सभ्यता देख के लोभा जा हथ । अहनी भी धोती-कुरता, चन्नन-टीका, खड़ाऊँ-चटकी अउ कंठीमाला अपना ले हथ ।) (मपध॰02:4:32:1.7)
13 आजिज (= तंग, परेशान) (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।) (मपध॰02:4:24:3.36)
14 इंजोरिया (रात झम-झम करइत हल बाबू ! झम-झम करइत हल । टह-टह चाँदनी हल । इंजोरिया पसरल । इहाँ से उहाँ तक इंजोरिया पसरल हल ।) (मपध॰02:4:20:1.3, 4)
15 इन्नर (~ के पड़ी) (कल्हीं बिनेसर बाबू कह रहलन हल - 'की हो रामपुकार भाय, मौज हइ ने ।' साला, हम समझऽ हूँ कि केतना मौज हे । ... भित्तर के मार सहदेवे जानऽ हे । फेर मेहरारू दने देख के बोललन ऊ, "आउ ऊ सब गलती थोड़े कहऽ हथ जब दु-दु गो इन्नर के पड़ी घर में रखले रहम त हंगामा करवे करतन लोग ।") (मपध॰02:4:23:3.14)
16 उछास (= उच्छ्वास, गहरी साँस) (ई अंक 'मगही के मीरा' कुमारी राधा आउ 'मगही के कबीर' मथुरा प्रसाद 'नवीन' के समर्पित हे, जिनका गमा के हमनीन के मन बिछोह रहल हे । नञ् अब 'अधरतिया के बँसुरी' सुने के मिलत, नञ् 'राहे राह अन्हरिया कटतो' । उनका सबके आगू सरधा के फूल चढ़ा के मन के उछास करगिआ रहली हे ।) (मपध॰02:4:4:1.12)
17 उनकनहिन (= उनकन्हीं) (ऊ दुनहुँ के कुछ कविता अपने के आगू रख रहली हे । जरूरी नञ् कि ई उनकनहिन के प्रतिनिधि कविता होय, बकि एकरा से अपने के उनकर रचना करम के छहँक जरूर मिलत ।; एकमात्र रस्ता हे कि उनकनहिन के निकाल बाहर कैल जाय ।) (मपध॰02:4:4:1.13, 6:3.12)
18 उप्पर (= ऊपर; अधिक; बाहरी) (साल से उप्पर से बिनेसर बाबू बहीन के बियाह करे ल सोंचले हलन बकि दीना के डर आउ गाँव-जेवार में नमहँस्सी के डर से कोय जग नञ् ठान रहलन हल । छाती पर पत्थल रख के जग नाध देलन हे ।; फेर उप्पर मन से कहलक, "नञ्, आज नञ् ।" - "आज कुछ नञ् करवो ।" दीना ओकर गोड़ बान्हलक । - "ए गो ... ।" - "नञ्, काम हे । तूँ बड़ी चलाँक हऽ । दीदी से हमर हाँथ माँगे जा हऽ आउ हमरा से 'ए गो' माँगऽ हऽ ।") (मपध॰02:4:25:1.24, 2.9)
19 उमेद (= उम्मीद) (उनकर आभारी ही, जे पीठ पर हाँथ रखलन आउ उनकर भी, जे तातल चीज समझ के हाँथ पीछे खींच लेलन । कचउमरिया लेखक भाय के उत्साह हमर डग्गर अउसान जरूर करत, अइसन उमेद हे ।) (मपध॰02:4:4:1.8)
20 एकबैक (= एकबैग; अचानक) (औरत-मरद अपन दूनो लइकन के साथे जादूघर के मुरती देखइत हलन । एकबैक लमहर 'यक्षीणी' के मुरती के पास ठहर गेलन, जे दीदारगंज पटना सिटी से मिलल हल ।; एगो गोर चमड़ी वला फिरंगी मस्त चाल से बनारस के गलियन में चलल जाइत हल । एकबैक एगो बनारसी साइकिल सवार सामने से आके ओकरा से टकरा गेल ।) (मपध॰02:4:32:1.15, 2.4)
21 एतबड़ (= एतना बड़गर; इतना बड़ा) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल । कत्ते साल से इलाका में बियाह के एतबड़ तैयारी नञ् होल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.17)
22 एन्ने-ओन्ने (= इधर-उधर) (कोय हौले से पुकार रहल हल, राह चलते - "विनीता !" केतना मिठास हे । पीछे घुर के ताकलक त दीना हल । ओकर सीना लोहार के भाथी सन चले लगल । एन्ने-ओन्ने ताक के देखलक । कोय देख तो नञ् रहल हे ।) (मपध॰02:4:25:2.6)
23 एलाउंस (= अनाउंस, announce) (आधा घंटा में गोली-बारी थम गेल । मैक से कोय एलाउंस कर रहल हल - "अपने से हमरा कोय दुसमनी नञ् हे । हमर काम फतह हो चुकल हे । अपने के कय अदमी हमर कब्जा में हथ, जिनका हम गाँव से बाहर निकलतहीं छोड़ देम । ...") (मपध॰02:4:25:3.33)
24 औरत-बानी (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।) (मपध॰02:4:24:3.32)
25 कखनी (= कब ?; कखनिओ = कभी भी) ("अपने लावऽ अपन सिकरेट । हम नहाय जा रहलूँ हें ।" - "कहाँ ?" रामपुकार बाबू मोछ तर मुसुकते बोललन । "देखऽ हीं न गे दीदी ।" मिंती बहिन दने देख के नखरा उतारे लगल । फेर मोका देख के दोसर भित्तर दने भाग गेल । "ए गे, हमरा दिमाग न हे । ... बूढ़ा होल जइतन ... बुढ़भेस लगले रहल ।" मोका देख के मरदाना दने मुँह बिचका के कखनिओ के ओल ले लेलन मिंती के दीदी ।) (मपध॰02:4:23:2.25)
26 कचउमरिया (~ लेखक) (उनकर आभारी ही, जे पीठ पर हाँथ रखलन आउ उनकर भी, जे तातल चीज समझ के हाँथ पीछे खींच लेलन । कचउमरिया लेखक भाय के उत्साह हमर डग्गर अउसान जरूर करत, अइसन उमेद हे ।) (मपध॰02:4:4:1.7)
27 कज्जो (= किसी जगह, कहीं पर) (चारो बगल हँसी-खुशी के माहौल हो गेल । कज्जो भीड़ में खड़ा कमली अँगुठा से मट्टी खोद रहल हल ।) (मपध॰02:4:26:3.19)
28 कतना (= कितना; कतनो = कितना भी) (बुतरू सब के माय-बाप कतनो पीटे बकि ऊ दीना से पिस्तौल चलवे ल सिक्खे ले हरदम लबधल रहऽ हे ।) (मपध॰02:4:25:1.17)
29 कत्ते (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल । कत्ते साल से इलाका में बियाह के एतबड़ तैयारी नञ् होल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.16)
30 कनकन्नी (हवा न चलइत हे, बाकि कनकन्नी रह-रह के सिहका देहे ।) (मपध॰02:4:21:1.10)
31 कनझप्पा (~ टोपी) (ठंढा के रात हल । दस बजिया गाड़ी से उतरली हल । इ कोस के सफर हल । हमनी दुन्नु पैंट-कोट में हली । तरे सूटर-ऊटर सब पहिनले हली । गुलबंद लपेटले हली अउर बिसेसरा कनझप्पा टोपी लगइले हल ।) (मपध॰02:4:20:1.19)
32 कन्हा (= कन्धा) (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।) (मपध॰02:4:23:1.15)
33 कर-केबाड़ी (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।) (मपध॰02:4:24:3.32)
34 करगिआना (ई अंक 'मगही के मीरा' कुमारी राधा आउ 'मगही के कबीर' मथुरा प्रसाद 'नवीन' के समर्पित हे, जिनका गमा के हमनीन के मन बिछोह रहल हे । नञ् अब 'अधरतिया के बँसुरी' सुने के मिलत, नञ् 'राहे राह अन्हरिया कटतो' । उनका सबके आगू सरधा के फूल चढ़ा के मन के उछास करगिआ रहली हे ।) (मपध॰02:4:4:1.12)
35 कल्हे (= कल) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.14)
36 काँच-कुमार ("अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।") (मपध॰02:4:23:3.2)
37 कार (= काला) (भारत में तुलसी के ई किसिम हरेक जगह पावल जा हे । एकर पहचान एकर छोटे-छोटे गुलाबी इया बैंगनी रंग के फूल आउ कार बिच्चा से कइल जा सकऽ हे । ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे ।; एकर पत्ता छोट आउ कार रंग के होवऽ हे । एकरा में उज्जर चिन्हाँ होवऽ हे आउ रुक्खड़ होवऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:2.11, 35)
38 कूप्पह (गाँव खा-पी के निचीत हल । अचानक तड़-तड़ गोली चले लगल । बम के धुआँ से कूप्पह हो गेल, बिनेसर बाबू के बंगला । चरखी-झालर जन्ने-तन्ने रस्ता में बिखर गेल ।) (मपध॰02:4:25:3.20)
39 केतना (= कितना) (कोय हौले से पुकार रहल हल, राह चलते - "विनीता !" केतना मिठास हे । पीछे घुर के ताकलक त दीना हल ।) (मपध॰02:4:25:2.3)
40 कोट (= कोटि) (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।) (मपध॰02:4:24:3.33)
41 गज-गज (~ करना = गजगजाना) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.13)
42 गते-गते (= धीरे-धीरे) (दस-बीस कदम चल के ऊ घुर गेल, अइसे कइले, जइसे ओकर कुछ गिर गेल हे, जेकरा खोजे खातिर ऊ पीछु लौटल हे । गते-गते बढ़ते-बढ़ते ऊ चोर नजर से दीना के भी निहार ले हल । दीना भी मिंती के भाँप के ओकरा भर नजर देखलक, त मिंती के रोमा-रोमा गनगना गेल ।) (मपध॰02:4:23:1.8)
43 गनगनाना (दस-बीस कदम चल के ऊ घुर गेल, अइसे कइले, जइसे ओकर कुछ गिर गेल हे, जेकरा खोजे खातिर ऊ पीछु लौटल हे । गते-गते बढ़ते-बढ़ते ऊ चोर नजर से दीना के भी निहार ले हल । दीना भी मिंती के भाँप के ओकरा भर नजर देखलक, त मिंती के रोमा-रोमा गनगना गेल ।) (मपध॰02:4:23:1.11)
44 गमछी (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।; एक दिन झोला-झोला होला पर ऊ अपन बगैचा दने से लौटल आ रहल हल । एक हाँथ में एगो किताब हल आउ दोसर हाँथ में गमछी में बन्हल दस-बीस गो अमौरी ।) (मपध॰02:4:23:1.16, 24:1.27)
45 गमाना (= गँवाना, खोना) (ई अंक 'मगही के मीरा' कुमारी राधा आउ 'मगही के कबीर' मथुरा प्रसाद 'नवीन' के समर्पित हे, जिनका गमा के हमनीन के मन बिछोह रहल हे । नञ् अब 'अधरतिया के बँसुरी' सुने के मिलत, नञ् 'राहे राह अन्हरिया कटतो' । उनका सबके आगू सरधा के फूल चढ़ा के मन के उछास करगिआ रहली हे ।) (मपध॰02:4:4:1.10)
46 गरमजरुआ (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।) (मपध॰02:4:24:3.34)
47 गहना-जेवर (सब गहना-जेवर, रुपइया-पैसा छीन-छोर के डकैत सब निकले चाह रहल हल ।) (मपध॰02:4:26:1.8)
48 गहिदा (सब सुनसान । न टमटम न रिक्सा । ... बिलकुल सन्नाटा हल । ... पाँव रखे के बराबर पर त रखा जाहे गहिदा में । से हम दुन्नु टाँफे-पाँफे चलइत हली । दुन्नु गोटा आपस में बुदबुदैते-बुदबुदैते चलइत रहली ।) (मपध॰02:4:20:2.5)
49 गियारी (ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे । एकर उपयोग सरदी-खोंखी, ब्रोंकाइटिस आउ गियारी के दवाय बनावे ल कइल जा हे ।) (मपध॰02:4:28:2.15)
50 गिरल-मरल (वुिदेसी शुद्ध हिंदी में जवाब देलक - "कोई बात नहीं, ऐसा होता है ।" ओकर मुँह से निकसल बात बनारसी बाबू के अइसन लगल जइसे ओकरा कोय जोड़ से थप्पड़ मार के गारी दे देल । बनारसी बाबू गिरल-मरल सोचे लगलन - " अबहियों हमनी गुलाम ही, अंगरेजियत अउ अंगरेजी के । ..") (मपध॰02:4:32:3.4)
51 गुल्लक (= बैंक चुकड़ी) (ऊ भाय-बहिन जिनका हमर निहोरा तनिको ठीक लग रहल हे त हम कहम कि अगर अपने 365 रुपइया निकाले में समर्थ ही त तुरतम मगही ले पहल करी । जदि अपने एक बार में 365 रुपइया निकाल नञ् सकऽ ही तो आझे एगो गुल्लक खरीद लेवल जाय । जल्दीये अपने के संकल्प पूरा होयत ।) (मपध॰02:4:5:1.31)
52 गोटा (दुन्नु ~) (ठंढा के रात हल । दस बजिया गाड़ी से उतरली हल । इ कोस के सफर हल । हमनी दुन्नु पैंट-कोट में हली । ... बाकि काहे तो टीसन के ढलान पार करते-करते एकबारगी दुन्नु गोटा सिहर गेली । सब सुनसान । न टमटम न रिक्सा । ... दुन्नु गोटा के नए बिआह होवे कइल हल ।) (मपध॰02:4:20:1.21, 2.2)
53 गोलकी (= गोलमिर्च) (गोलकी के साथ एकर पान-छे पत्ता निहार मुँह सेवन करे से मधुमेह कंट्रोल में रहऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:2.21)
54 गोस्सा (= गुस्सा) (आज दीना कमली के साथ जे बेहवार कइल हल ऊ कमली ल बरदास से बाहर हल । ओकरा अंदर गोस्सा के नागिन फुँफकार छोड़े लगल ।) (मपध॰02:4:24:2.31)
55 घुरना (= लौटना; मुड़ना) (दस-बीस कदम चल के ऊ घुर गेल, अइसे कइले, जइसे ओकर कुछ गिर गेल हे, जेकरा खोजे खातिर ऊ पीछु लौटल हे ।; कोय हौले से पुकार रहल हल, राह चलते - "विनीता !" केतना मिठास हे । पीछे घुर के ताकलक त दीना हल ।) (मपध॰02:4:23:1.5, 25:2.4)
56 घुरी-घुरी (= बार-बार, तुरन्त-तुरन्त) (उनका रहते यदि खून-खराबा हो रहल हे गुजरात में, त खून के छिटका त उनखो पर भी पड़वे करत । चेहरा तो दागदार होवे करत । कतनो घुरी-घुरी चेहरा पर सफेद रूमाल फेरते रहथ ।; नवीन जी बिलकुल मौजी आउ फक्कड़ किसिम के कवि हलन । इनकर कविता के तेवर एक तरफ सत्ता आउ कुरसी वला के तिकतिका के रख दे हल तब दोसर तरफ आम अमदी ओकरा अप्पन कविता समझ के घुरी-घुरी गावे लगऽ हल ।; "अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।"; रामप्रकाश बाबू हीं तो कोय लड़की हे नञ् से-से कउलेज बंद होला पर जब से मिंती उनका हीं आल हल, ओकरे गीत-नाध में जाय पड़ऽ हे । घुरी-घुरी दुआरी दने ताक रहल हे कि कखने बोलहटा आवे ।) (मपध॰02:4:6:2.5, 7:1.5, 23:3.1, 25:1.34)
57 चउँर (हत् मरदे, तूँ तो हमरो जान ले लेमें । आधा करेजा के तो हम अमदी ही । ओहू पर तू झमदगर जवान होके अइसन बोलमें, त जाने न ले लेमे । चल चल, गोड़ झार । इहाँ की तोरा टेम्पू मिलतउ कि चउँर में चाह के दुकान । चुपचाप चलल चल अउर गोड़ पटक-पटक के चल ।; तू तो अइसन न भूगोल पढ़ावे लगलऽ कि लगे हे इ चउँर में किलमनजारो सुत गेल हे ।) (मपध॰02:4:20:3.1, 21:3.20)
58 चउहट (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।) (मपध॰02:4:16:1.9, 12)
59 चढ़ाय (= चढ़ाई) (चीख-पुकार मच रहल हल । गाँव के अदमी सोंचलक कि जरूर दीना अपन गैंग के साथ बिनेसर बाबू पर चढ़ाय कर देलक हे ।) (मपध॰02:4:25:3.31)
60 चन्नन-टीका (= चन्दन-टीका) (फिरंगी सब आझो एकर गली-गली में भारत के पुरान संस्कृति अउ सभ्यता देख के लोभा जा हथ । अहनी भी धोती-कुरता, चन्नन-टीका, खड़ाऊँ-चटकी अउ कंठीमाला अपना ले हथ ।) (मपध॰02:4:32:1.7)
61 चरखी (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.12)
62 चरखी-झालर (गाँव खा-पी के निचीत हल । अचानक तड़-तड़ गोली चले लगल । बम के धुआँ से कूप्पह हो गेल, बिनेसर बाबू के बंगला । चरखी-झालर जन्ने-तन्ने रस्ता में बिखर गेल ।) (मपध॰02:4:25:3.21)
63 चलाँक (= चालाक) (फेर उप्पर मन से कहलक, "नञ्, आज नञ् ।" - "आज कुछ नञ् करवो ।" दीना ओकर गोड़ बान्हलक । - "ए गो ... ।" - "नञ्, काम हे । तूँ बड़ी चलाँक हऽ । दीदी से हमर हाँथ माँगे जा हऽ आउ हमरा से 'ए गो' माँगऽ हऽ ।") (मपध॰02:4:25:2.14)
64 चलाँकी (मैक से कोय एलाउंस कर रहल हल - "अपने से हमरा कोय दुसमनी नञ् हे । हमर काम फतह हो चुकल हे । अपने के कय अदमी हमर कब्जा में हथ, जिनका हम गाँव से बाहर निकलतहीं छोड़ देम । रस्ता दे दी हमनी के ... । अगर कोय चलाँकी देखयतन त अपना साथ ऊ इनकनहियों के जान लेतन ।") (मपध॰02:4:26:1.6)
65 चिट्ठी-चपाती (अपने सब के नेह तभिए मिलऽ हे, जब हम अंक लेके अपने के दुआरी तक जाही । फेर अपने बिसर जाही हमरा । अच्छा लगत जब चिट्ठी-चपाती लिखते रहवऽ । अकेलुआ अदमी कहिया तक घर-घर जइते रहम ।) (मपध॰02:4:4:1.32-33)
66 चौरा (भारत भर में तुलसी पूजल जा हलन । घर-घर में तुलसी चौरा होवऽ हल । कोय पूजा-पाठ के परसाद तुलसी दल बिना पूरा नञ् मानल जा हल ।) (मपध॰02:4:27:1.29)
67 छउँड़की (= छउँड़ी) (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने । गाँव के सब छउँड़किन ओकरा से हेंठ हल । काहे कि ऊ गाँव के सबसे बड़का के बेटी हल ।; बुतरू सब के माय-बाप कतनो पीटे बकि ऊ दीना से पिस्तौल चलवे ल सिक्खे ले हरदम लबधल रहऽ हे । कोय चुलबुल छउँड़किन भले यदि दीना के रस्ता में एकेल्ले पड़ जाहे त ओकर मुँह सुख जाहे ।) (मपध॰02:4:24:2.23, 25:1.20)
68 छगुनना (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल । राह चलते मने-मन छगुने लगल ऊ, 'अइसन कइसे हो सकऽ हे ! दीना सन भला मानुस - गुंडा !') (मपध॰02:4:23:1.19)
69 छहँक (= आभास, छाया, प्रतिरूप) (ऊ दुनहुँ के कुछ कविता अपने के आगू रख रहली हे । जरूरी नञ् कि ई उनकनहिन के प्रतिनिधि कविता होय, बकि एकरा से अपने के उनकर रचना करम के छहँक जरूर मिलत ।; उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।) (मपध॰02:4:4:1.14, 23:1.18)
70 छानना (= जकड़ना) (बिसेसरा त चलते ठमक जाय । कहे, पाठक भइया, लगो हो कि गोड़वे छान लेलको । - के रे ? - का जाने, बाकि लगो हो कि गोड़बे छान लेलको ।; ढिमका पर से उठ के घर दने जाय लगल त दीना के लगल कि ओकर दुनु गोड़ कोय छानले हे ।) (मपध॰02:4:20:2.21, 24, 23:3.29)
71 छिटका (= छिंटका; छींटा) (उनका रहते यदि खून-खराबा हो रहल हे गुजरात में, त खून के छिटका त उनखो पर भी पड़वे करत । चेहरा तो दागदार होवे करत । कतनो घुरी-घुरी चेहरा पर सफेद रूमाल फेरते रहथ ।) (मपध॰02:4:6:2.3)
72 छीनना-छोरना (सब गहना-जेवर, रुपइया-पैसा छीन-छोर के डकैत सब निकले चाह रहल हल ।) (मपध॰02:4:26:1.9)
73 छो (= छे; छह) (अभी तक 'हेपेटाइटिस' रोग के छो किसिम के पुष्टि डाक्टर लोग कइलन हे - ए, बी, सी, डी, ई आउ जी ।) (मपध॰02:4:29:1.6)
74 छोट (= छोटा) (एकर पत्ता छोट आउ कार रंग के होवऽ हे । एकरा में उज्जर चिन्हाँ होवऽ हे आउ रुक्खड़ होवऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:2.35)
75 छोट-छोट (= छोटा-छोटा) (तुलसी के ई किसिम जादेतर ठंढा आउ सूखा जगह पर पावल जाहे । ई अपन तेज सुगंध आउ उज्जर छोट-छोट फूल के चलते असानी से पछानल जा सकऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:1.25)
76 छोटे-छोटे (= छोट्टे-छोट्टे; छोटा-छोटा) (भारत में तुलसी के ई किसिम हरेक जगह पावल जा हे । एकर पहचान एकर छोटे-छोटे गुलाबी इया बैंगनी रंग के फूल आउ कार बिच्चा से कइल जा सकऽ हे । ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:2.10)
77 जग (= यज्ञ; अनुष्ठान) (साल से उप्पर से बिनेसर बाबू बहीन के बियाह करे ल सोंचले हलन बकि दीना के डर आउ गाँव-जेवार में नमहँस्सी के डर से कोय जग नञ् ठान रहलन हल । छाती पर पत्थल रख के जग नाध देलन हे ।) (मपध॰02:4:25:1.27, 28)
78 जरियो (= तनिक्को; थोड़ा-सा भी) ("अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।") (मपध॰02:4:23:3.3)
79 जवार (= जेवार, क्षेत्र) (ई सब बात के साच्छी गाँव-जेवार के आम अदमी हल । ओकरा नजर में दीना अब एगो अइसन भेटनर गुंडा हल जे जवार के कउनो अदमी से नञ् बद्दऽ हल ।) (मपध॰02:4:25:1.11)
80 जाट-जटिन (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।) (मपध॰02:4:16:1.9)
81 झउँसाना (= झौंसाना) (मोदी जी ए.सी. में चले के आदी हो गेलन हे । उनका पता नञ् चले कि केकरो घर जले के धाह केतना तेज होवऽ हे । जे जर गेलन ऊ तो जरिए गेलन बकि जे बचल भी हथ ओकर जिनगी अइसन झउँसा जाहे कि ऊ जीवन भर दिन नञ् पावे ।) (मपध॰02:4:6:2.12)
82 झनझन (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने ।) (मपध॰02:4:24:2.19)
83 झम-झम (रात झम-झम करइत हल बाबू ! झम-झम करइत हल । टह-टह चाँदनी हल । इंजोरिया पसरल । इहाँ से उहाँ तक इंजोरिया पसरल हल ।) (मपध॰02:4:20:1.1, 2)
84 झमदगर (हत् मरदे, तूँ तो हमरो जान ले लेमें । आधा करेजा के तो हम अमदी ही । ओहू पर तू झमदगर जवान होके अइसन बोलमें, त जाने न ले लेमे । चल चल, गोड़ झार । इहाँ की तोरा टेम्पू मिलतउ कि चउर में चाह के दुकान । चुपचाप चलल चल अउर गोड़ पटक-पटक के चल ।) (मपध॰02:4:20:2.27)
85 झाड़ा (~ फिरना = मलत्याग करना, शौच करना, हगना) (चौधरी ताड़-फेंड़ तर ताड़ी बेचइत हल । थोड़े हट के बोतल में पानी लेले उँकड़ूँ बैठल कोई निर्लज्ज झाड़ा फिरइत हल ।) (मपध॰02:4:32:3.25)
86 झोला-झोला (एक दिन झोला-झोला होला पर ऊ अपन बगैचा दने से लौटल आ रहल हल । एक हाँथ में एगो किताब हल आउ दोसर हाँथ में गमछी में बन्हल दस-बीस गो अमौरी ।) (मपध॰02:4:24:1.24)
87 झोला-झोली (= झोलाझोली, झोराझोरी; परस्पर झकझोरने की क्रिया या भाव) (आज दीना कमली के साथ जे बेहवार कइल हल ऊ कमली ल बरदास से बाहर हल । ओकरा अंदर गोस्सा के नागिन फुँफकार छोड़े लगल । ऊ दीना के सबक सिखावे ल ठान लेलक । झोला-झोली के समय हल । अचोक्के गाँव में कोहराम मच गेल । चारो तरफ से लाठी-भाला निकले लगल ।) (मपध॰02:4:24:3.1)
88 झौंसना (पहिले गौतम के धरती बिहार खूने-खून हल, अब गाँधी के धरती गुजरात जल रहल हे । लोग जिंदा आग में झौंसल जा रहलन हे ।) (मपध॰02:4:6:1.4)
89 टह-टह (रात झम-झम करइत हल बाबू ! झम-झम करइत हल । टह-टह चाँदनी हल । इंजोरिया पसरल । इहाँ से उहाँ तक इंजोरिया पसरल हल ।) (मपध॰02:4:20:1.2)
90 टाँफे-पाँफे (सब सुनसान । न टमटम न रिक्सा । ... बिलकुल सन्नाटा हल । ... पाँव रखे के बराबर पर त रखा जाहे गहिदा में । से हम दुन्नु टाँफे-पाँफे चलइत हली । दुन्नु गोटा आपस में बुदबुदैते-बुदबुदैते चलइत रहली ।) (मपध॰02:4:20:2.12)
91 टेम्पू (हत् मरदे, तूँ तो हमरो जान ले लेमें । आधा करेजा के तो हम अमदी ही । ओहू पर तू झमदगर जवान होके अइसन बोलमें, त जाने न ले लेमे । चल चल, गोड़ झार । इहाँ की तोरा टेम्पू मिलतउ कि चउँर में चाह के दुकान । चुपचाप चलल चल अउर गोड़ पटक-पटक के चल ।; टेम्पू में बइठल जंक्शन जाइत एगो सज्जन ई नजारा देख के कहलन - ये ही जंगल राज हे ।) (मपध॰02:4:20:2.29, 32:3.26)
92 ठुनका ("अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।") (मपध॰02:4:23:3.4)
93 डंटी (= डंठल) (एकर लंबा डंटीवला पत्ता नीचे झुकल रहऽ हे आउ बिच्चा के रंग एकदम मटिया रंग होवऽ हे । बीज तिनकोनियाँ होवऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:1.8)
94 डग्गर (= डगर) (उनकर आभारी ही, जे पीठ पर हाँथ रखलन आउ उनकर भी, जे तातल चीज समझ के हाँथ पीछे खींच लेलन । कचउमरिया लेखक भाय के उत्साह हमर डग्गर अउसान जरूर करत, अइसन उमेद हे ।) (मपध॰02:4:4:1.7)
95 डोभा (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल । कभी उनकर दुनहूँ टरेक्टर के पहिला डोभा में मिले । कभी सुत के उठला पर ऊ देखथ उनकर सउँसे घर आउ बंगला के पकिया देवाल गोबर से नीपल हे ।) (मपध॰02:4:25:1.2)
96 डोमकच (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।) (मपध॰02:4:16:1.9)
97 ढिमका (चार कदम चलके मिंती थोड़े ठमक गेल । पीछू घुम के ऊ भर नजर ढिमका पर बैठल दीना के देखे लगल । फेर ओकरा अपना दने देखते देख के आगू बढ़ गेल ।; ढिमका पर से उठ के घर दने जाय लगल त दीना के लगल कि ओकर दुनु गोड़ कोय छानले हे ।) (मपध॰02:4:23:1.2, 3.27)
98 तड़-तड़ (गाँव खा-पी के निचीत हल । अचानक तड़-तड़ गोली चले लगल । बम के धुआँ से कूप्पह हो गेल, बिनेसर बाबू के बंगला । चरखी-झालर जन्ने-तन्ने रस्ता में बिखर गेल ।) (मपध॰02:4:25:3.19)
99 तहियाना (दीना के नजर कमली के बगल में खड़ा मिंती से मिलल त ओकरा लगल कि कारू के खजाना हाँथ लग गेल हे । मिंती के लग रहल हल कि ठेहुना भर तहियावल गुलाब के पँखुड़ी में धँसल जा रहल हे ।) (मपध॰02:4:26:3.24)
100 तागत (= ताकत, शक्ति) (पहिले गौतम के धरती बिहार खूने-खून हल, अब गाँधी के धरती गुजरात जल रहल हे । लोग जिंदा आग में झौंसल जा रहलन हे । हैवानियत चरम पर हे । हिंदू-मुस्लिम जउन तागत एकर पीछे लगल हे, दुनियाँ के सबसे बड़ हेमान में से एक हे ।) (मपध॰02:4:6:1.6)
101 तातल (= गरम, उष्ण) (उनकर आभारी ही, जे पीठ पर हाँथ रखलन आउ उनकर भी, जे तातल चीज समझ के हाँथ पीछे खींच लेलन । कचउमरिया लेखक भाय के उत्साह हमर डग्गर अउसान जरूर करत, अइसन उमेद हे ।) (मपध॰02:4:4:1.6)
102 तिकतिकाना (नवीन जी बिलकुल मौजी आउ फक्कड़ किसिम के कवि हलन । इनकर कविता के तेवर एक तरफ सत्ता आउ कुरसी वला के तिकतिका के रख दे हल तब दोसर तरफ आम अमदी ओकरा अप्पन कविता समझ के घुरी-घुरी गावे लगऽ हल ।) (मपध॰02:4:7:1.4)
103 तिनकोनियाँ (= तिकोना) (एकर लंबा डंटीवला पत्ता नीचे झुकल रहऽ हे आउ बिच्चा के रंग एकदम मटिया रंग होवऽ हे । बीज तिनकोनियाँ होवऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:1.10)
104 तुन्नुक (= टुन्नुक; नाजुक) ("अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।") (मपध॰02:4:23:3.3)
105 थाह-पता (ऊ दीना के सबक सिखावे ल ठान लेलक । झोला-झोली के समय हल । अचोक्के गाँव में कोहराम मच गेल । चारो तरफ से लाठी-भाला निकले लगल । दु-चार गो फायर भी हो गेल । बकि अभी कहैं कुछ थाह-पता नञ् चल रहल हल ।) (मपध॰02:4:24:3.5)
106 थीर (~ के पानी लेना) (बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल । कभी उनकर दुनहूँ टरेक्टर के पहिला डोभा में मिले । कभी सुत के उठला पर ऊ देखथ उनकर सउँसे घर आउ बंगला के पकिया देवाल गोबर से नीपल हे । सायते दिन ऊ थीर के पानी ले होतन ।) (मपध॰02:4:25:1.5)
107 थोड़के (~ देर में) (दूरा पर आके ऊ सच्चो लोठरी बंद करके पड़ रहल । थोड़के देर में ऊ सपना के दुनिया में हल ।) (मपध॰02:4:24:1.11)
108 दनी (= दबर) (पट ~; झट ~) (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।") (मपध॰02:4:23:1.27)
109 दवाय (= दवाई, दवा) (तुलसी से विदेसो में ढेर दवाय बनावल जा हे ।; ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे । एकर उपयोग सरदी-खोंखी, ब्रोंकाइटिस आउ गियारी के दवाय बनावे ल कइल जा हे ।) (मपध॰02:4:27:2.12, 28:2.15)
110 दस-बजिया (~ गाड़ी) (ठंढा के रात हल । दस बजिया गाड़ी से उतरली हल । इ कोस के सफर हल ।) (मपध॰02:4:20:1.14)
111 दावा-बीरो (जमाना 'पश्चिमीकरण' के आ गेल हे । 'पश्चिमीकरण' के चलते हमनिन के रहन-सहन से भारत के मट्टी के सुगंध उड़ते जा रहल हे । अइसे में दावा-बीरो के रूप-रंग भी बदल रहल हे ।) (मपध॰02:4:27:1.2)
112 दिन (~ नञ् पाना) (मोदी जी ए.सी. में चले के आदी हो गेलन हे । उनका पता नञ् चले कि केकरो घर जले के धाह केतना तेज होवऽ हे । जे जर गेलन ऊ तो जरिए गेलन बकि जे बचल भी हथ ओकर जिनगी अइसन झउँसा जाहे कि ऊ जीवन भर दिन नञ् पावे ।) (मपध॰02:4:6:2.13)
113 दुरा (= दूरा) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.11)
114 देवाल (= दीवाल, दीवार) (बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल । कभी उनकर दुनहूँ टरेक्टर के पहिला डोभा में मिले । कभी सुत के उठला पर ऊ देखथ उनकर सउँसे घर आउ बंगला के पकिया देवाल गोबर से नीपल हे ।) (मपध॰02:4:25:1.4)
115 दोकान (= दुकान) (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।") (मपध॰02:4:23:1.26)
116 दोम (= मध्यम श्रेणी का; साधारण, तुच्छ) (हलाँकि जइसे कोय-कोय जज तुरतम निरनय सुना दे हथ, ओइसहीं कुछ पाठक/ लेखक तुरतम अपन राय कायम कर देलन - बेस इया दोम । अच्छा लगल ।) (मपध॰02:4:4:1.4)
117 दोस (= दोस्त) (फेर धीरे से ओकर सीना पर सिर टिका के बोलल, "अब जा हियो ।" - "कहाँ जाइत हऽ ?" दीना पूछलक । - "तोर दोस हीं । उनकर बहिन के बियाह के गीत गावे ।" आँख नचा के बोलल मिंती ।) (मपध॰02:4:25:3.4)
118 धनगर (= धनवान) (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने ।) (मपध॰02:4:24:2.17)
119 धाह (= धाही; आग की गरमी, लपट) (मोदी जी ए.सी. में चले के आदी हो गेलन हे । उनका पता नञ् चले कि केकरो घर जले के धाह केतना तेज होवऽ हे । जे जर गेलन ऊ तो जरिए गेलन बकि जे बचल भी हथ ओकर जिनगी अइसन झउँसा जाहे कि ऊ जीवन भर दिन नञ् पावे ।) (मपध॰02:4:6:2.9)
120 धी-सवासिन (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.15)
121 नमहँस्सी (= नामहँसी) (साल से उप्पर से बिनेसर बाबू बहीन के बियाह करे ल सोंचले हलन बकि दीना के डर आउ गाँव-जेवार में नमहँस्सी के डर से कोय जग नञ् ठान रहलन हल । छाती पर पत्थल रख के जग नाध देलन हे ।) (मपध॰02:4:25:1.26)
122 नाया (= नया) (उनकर कविता नाया तरह के चेतना जगावे वला आउ मन के विछोहे वला दरद से सनल रहऽ हे । नाया आउ पुराना हर तरह के प्रयोग ऊ अपन कविता में करके अपन विलक्षण प्रतिभा के परिचय देलन ।) (मपध॰02:4:12:1.15, 16)
123 निचिंत (= निश्चिन्त) (ऊपर जा के रुकलन । साँस में साँस आयल । बैठलन । निचिंत होलन । फिन खड़ा होके देखलन ।) (मपध॰02:4:21:2.20)
124 निचीत (दे॰ निचिंत) (गाँव खा-पी के निचीत हल । अचानक तड़-तड़ गोली चले लगल । बम के धुआँ से कूप्पह हो गेल, बिनेसर बाबू के बंगला । चरखी-झालर जन्ने-तन्ने रस्ता में बिखर गेल ।) (मपध॰02:4:25:3.18)
125 निहार (~ मुँह) (गोलकी के साथ एकर पान-छे पत्ता निहार मुँह सेवन करे से मधुमेह कंट्रोल में रहऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:2.22)
126 पकिया (~ देवाल) (बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल । कभी उनकर दुनहूँ टरेक्टर के पहिला डोभा में मिले । कभी सुत के उठला पर ऊ देखथ उनकर सउँसे घर आउ बंगला के पकिया देवाल गोबर से नीपल हे ।) (मपध॰02:4:25:1.4)
127 पट्टी (= तरफ, ओर) (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।" - सोमर साव हीं झरल हलइ, दीदी । ऊ पट्टी से ला रहलियो हऽ । - "अच्छा ! तनी हमरो सिकरेट ला देवऽ ऊ पट्टी से ।" पिठदोबारे घर घुंसते ओकर जीजा रामपुकार जी मिंती के कनखिऐते बोललन ।) (मपध॰02:4:23:1.33, 2.2)
128 पत (= प्रत्येक) ('हेपेटाइटिस' एगो खतरनाक आउ जानलेवा बिमारी हे । पत साल लाखो अदमी के ई ग्रस ले हे ।) (मपध॰02:4:29:1.2)
129 परघट (= प्रकट) (पाँच मिनट में सउँसे गाँव जामा हो गेल । सब अवाक् ! रजेसर माटसा जे एगो डंटा लेले दीना के मारे ले चललन हल, अनेसा में ... । 'दीना-दीना' पुकार रहलन हल । देवदूत नियन दीना परघट भेल ।) (मपध॰02:4:26:1.35)
130 परसाद (= प्रसाद) (भारत भर में तुलसी पूजल जा हलन । घर-घर में तुलसी चौरा होवऽ हल । कोय पूजा-पाठ के परसाद तुलसी दल बिना पूरा नञ् मानल जा हल ।) (मपध॰02:4:27:1.30)
131 पराती (= परतकाली) (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।) (मपध॰02:4:16:1.13)
132 पहिनना (= पहनना, पेन्हना) (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।) (मपध॰02:4:23:1.14)
133 पान-छे (= पाँच-छह) (गोलकी के साथ एकर पान-छे पत्ता निहार मुँह सेवन करे से मधुमेह कंट्रोल में रहऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:2.22)
134 पिठदोबारे (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।" - सोमर साव हीं झरल हलइ, दीदी । ऊ पट्टी से ला रहलियो हऽ । - "अच्छा ! तनी हमरो सिकरेट ला देवऽ ऊ पट्टी से ।" पिठदोबारे घर घुंसते ओकर जीजा रामपुकार जी मिंती के कनखिऐते बोललन ।) (मपध॰02:4:23:2.2)
135 पेटभरन (रोटी, कपड़ा आउ मकान अदमी के उजिआय नञ् दे हे । काहे कि ई तीनों के सरूप अब बदल गेल हे । पहिले रोटी के मतलब पेट के आग बुझे से हल बकि अब एकर मतलब पेटभरन के साथ-साथ मुँहफेरन भी हो गेल हे ।) (मपध॰02:4:5:1.16)
136 पोरे-पोर (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने ।) (मपध॰02:4:24:2.19)
137 फटफटिया (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।) (मपध॰02:4:24:3.30)
138 बग-बग (उज्जर ~) (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।) (मपध॰02:4:23:1.14)
139 बगुली (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।) (मपध॰02:4:16:1.9)
140 बतिआना (अरे तू तो ढेर राजनीति बतिआवे हें । कुछ बतिऔते चल । रस्ता कटतउ । मन भी लगतउ ।) (मपध॰02:4:21:1.1)
141 बदना (= काबू या वश में आना) (ई सब बात के साच्छी गाँव-जेवार के आम अदमी हल । ओकरा नजर में दीना अब एगो अइसन भेटनर गुंडा हल जे जवार के कउनो अदमी से नञ् बद्दऽ हल ।) (मपध॰02:4:25:1.12)
142 बन्हना (= बँधना) (एक दिन झोला-झोला होला पर ऊ अपन बगैचा दने से लौटल आ रहल हल । एक हाँथ में एगो किताब हल आउ दोसर हाँथ में गमछी में बन्हल दस-बीस गो अमौरी ।) (मपध॰02:4:24:1.27)
143 बरदास (= बर्दाश्त) (आज दीना कमली के साथ जे बेहवार कइल हल ऊ कमली ल बरदास से बाहर हल । ओकरा अंदर गोस्सा के नागिन फुँफकार छोड़े लगल ।) (मपध॰02:4:24:2.30)
144 बहिन (= बहीन; बहन) (फेर धीरे से ओकर सीना पर सिर टिका के बोलल, "अब जा हियो ।" - "कहाँ जाइत हऽ ?" दीना पूछलक । - "तोर दोस हीं । उनकर बहिन के बियाह के गीत गावे ।" आँख नचा के बोलल मिंती ।; कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.4, 14)
145 बहीन (= बहिन; बहन) (साल से उप्पर से बिनेसर बाबू बहीन के बियाह करे ल सोंचले हलन बकि दीना के डर आउ गाँव-जेवार में नमहँस्सी के डर से कोय जग नञ् ठान रहलन हल । छाती पर पत्थल रख के जग नाध देलन हे ।) (मपध॰02:4:25:1.24)
146 बान्हना (= बाँधना, जकड़ना) (फेर उप्पर मन से कहलक, "नञ्, आज नञ् ।" - "आज कुछ नञ् करवो ।" दीना ओकर गोड़ बान्हलक । - "ए गो ... ।" - "नञ्, काम हे । तूँ बड़ी चलाँक हऽ । दीदी से हमर हाँथ माँगे जा हऽ आउ हमरा से 'ए गो' माँगऽ हऽ ।") (मपध॰02:4:25:2.12)
147 बिगहा (= बीघा) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.12)
148 बिच्चा (= बीज) (एकर जड़ी, फूल आउ बिच्चा के सेवन से पेट के रोग, कब्ज आउ आँव में अराम मिलऽ हे ।; एकर लंबा डंटीवला पत्ता नीचे झुकल रहऽ हे आउ बिच्चा के रंग एकदम मटिया रंग होवऽ हे । बीज तिनकोनियाँ होवऽ हे ।; भारत में तुलसी के ई किसिम हरेक जगह पावल जा हे । एकर पहचान एकर छोटे-छोटे गुलाबी इया बैंगनी रंग के फूल आउ कार बिच्चा से कइल जा सकऽ हे । ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:1.1, 9, 2.11, 12)
149 बिछोहना (ई अंक 'मगही के मीरा' कुमारी राधा आउ 'मगही के कबीर' मथुरा प्रसाद 'नवीन' के समर्पित हे, जिनका गमा के हमनीन के मन बिछोह रहल हे । नञ् अब 'अधरतिया के बँसुरी' सुने के मिलत, नञ् 'राहे राह अन्हरिया कटतो' । उनका सबके आगू सरधा के फूल चढ़ा के मन के उछास करगिआ रहली हे ।) (मपध॰02:4:4:1.10)
150 बुड़बक (सुन-सुन किलमनजारो के कथा । अफ्रीका के छत के कथा । सउँसे छत पर ग्लेसियर हल । बरफ के नदी । कहियो देखले हें बरफ के नदी, न देखले हें ? - तू देखलऽ हऽ भइया ? - भत् बुड़बक, बिना देखले कह रहली हे, सुन ।) (मपध॰02:4:21:1.18)
151 बुढ़भेस ("अपने लावऽ अपन सिकरेट । हम नहाय जा रहलूँ हें ।" - "कहाँ ?" रामपुकार बाबू मोछ तर मुसुकते बोललन । "देखऽ हीं न गे दीदी ।" मिंती बहिन दने देख के नखरा उतारे लगल । फेर मोका देख के दोसर भित्तर दने भाग गेल । "ए गे, हमरा दिमाग न हे । ... बूढ़ा होल जइतन ... बुढ़भेस लगले रहल ।" मोका देख के मरदाना दने मुँह बिचका के कखनिओ के ओल ले लेलन मिंती के दीदी ।) (मपध॰02:4:23:2.23)
152 बुताना (= बुझाना) (गोधरा के प्रतिक्रिया में जे आग भड़कल ऊ अब तक समित हो चुकल होत जदि समर्थ लोग ओकरा बुतावे के कोरसिस करतन हल ।) (मपध॰02:4:6:1.27)
153 बेटैती (अभी भी अटल जी, मोदी जी आउ संघ के कैडर चेतथ आउ जलते गुजरात के आग बुझावथ ईहे में बेटैती हे, ईहे में इनसानियत हे ।) (मपध॰02:4:6:3.33)
154 बेमारी (= बीमारी) (रोग-~) (एकर एक पत्ता के भी यदि रोज सेवन कइल जाय तो अदमी के कईएक रोग-बेमारी दूर हो जाहे ।) (मपध॰02:4:27:2.19)
155 बेस (= उत्तम, अच्छा, बढ़ियाँ, ठीक) (हलाँकि जइसे कोय-कोय जज तुरतम निरनय सुना दे हथ, ओइसहीं कुछ पाठक/ लेखक तुरतम अपन राय कायम कर देलन - बेस इया दोम । अच्छा लगल ।) (मपध॰02:4:4:1.4)
156 बोलहटा (= बुलाहट, निमंत्रण) (ई दुनहुँ किताब के पांडुलिपि भी तैयार करवा रहलन हल ऊ कि इहे बीच बीतल 4 मार्च 2002 के उनका बोलहटा आ गेल, भगमान घर से, आउ ऊ हमनी के छोड़ के सरग के रस्ता अपना लेलन ।; रामप्रकाश बाबू हीं तो कोय लड़की हे नञ् से-से कउलेज बंद होला पर जब से मिंती उनका हीं आल हल, ओकरे गीत-नाध में जाय पड़ऽ हे । घुरी-घुरी दुआरी दने ताक रहल हे कि कखने बोलहटा आवे ।) (मपध॰02:4:12:1.21, 25:1.35)
157 बौल (= बल्ब) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.13)
158 भत् (~ बुड़बक) (सुन-सुन किलमनजारो के कथा । अफ्रीका के छत के कथा । सउँसे छत पर ग्लेसियर हल । बरफ के नदी । कहियो देखले हें बरफ के नदी, न देखले हें ? - तू देखलऽ हऽ भइया ? - भत् बुड़बक, बिना देखले कह रहली हे, सुन ।) (मपध॰02:4:21:1.18)
159 भित्तर (= अन्दर का कमरा; अन्दर) ("अपने लावऽ अपन सिकरेट । हम नहाय जा रहलूँ हें ।" - "कहाँ ?" रामपुकार बाबू मोछ तर मुसुकते बोललन । "देखऽ हीं न गे दीदी ।" मिंती बहिन दने देख के नखरा उतारे लगल । फेर मोका देख के दोसर भित्तर दने भाग गेल । "ए गे, हमरा दिमाग न हे । ... बूढ़ा होल जइतन ... बुढ़भेस लगले रहल ।" मोका देख के मरदाना दने मुँह बिचका के कखनिओ के ओल ले लेलन मिंती के दीदी ।; कल्हीं बिनेसर बाबू कह रहलन हल - 'की हो रामपुकार भाय, मौज हइ ने ।' साला, हम समझऽ हूँ कि केतना मौज हे । ... भित्तर के मार सहदेवे जानऽ हे ।) (मपध॰02:4:23:2.21, 3.11)
160 भुकभुकिया (~ बौल) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.13)
161 भेटनर (ई सब बात के साच्छी गाँव-जेवार के आम अदमी हल । ओकरा नजर में दीना अब एगो अइसन भेटनर गुंडा हल जे जवार के कउनो अदमी से नञ् बद्दऽ हल ।) (मपध॰02:4:25:1.11)
162 मट्टी (= मिट्टी) (चारो बगल हँसी-खुशी के माहौल हो गेल । कज्जो भीड़ में खड़ा कमली अँगुठा से मट्टी खोद रहल हल । दीना के नजर कमली के बगल में खड़ा मिंती से मिलल त ओकरा लगल कि कारू के खजाना हाँथ लग गेल हे । मिंती के लग रहल हल कि ठेहुना भर तहियावल गुलाब के पँखुड़ी में धँसल जा रहल हे ।; जमाना 'पश्चिमीकरण' के आ गेल हे । 'पश्चिमीकरण' के चलते हमनिन के रहन-सहन से भारत के मट्टी के सुगंध उड़ते जा रहल हे । अइसे में दावा-बीरो के रूप-रंग भी बदल रहल हे ।) (मपध॰02:4:26:3.20, 27:1.2)
163 मति-गति (लोग-बाग चरचा कर रहलन हल, "मन नञ् गोवाही दे हे । दीना अइसन ।" - "काहे नञ् । मति-गति के कउन ठेकाना हे । नउजवान हल आउ सुनऽ हिअइ कि सरीर-विग्यान पढ़ऽ हलइ ।") (मपध॰02:4:24:3.14)
164 मरदे (बिसेसरा त चलते ठमक जाय । कहे, पाठक भइया, लगो हो कि गोड़वे छान लेलको । - के रे ? - का जाने, बाकि लगो हो कि गोड़बे छान लेलको । - हत् मरदे, तूँ तो हमरो जान ले लेमें । आधा करेजा के तो हम अमदी ही । ओहू पर तू झमदगर जवान होके अइसन बोलमें, त जाने न ले लेमे ।) (मपध॰02:4:20:2.25)
165 माटसा (= मास्टर साहब) (गाँव के सबसे धनी अदमी के बहिन के साथ बलात्कार के कोरसिस में गाँव के मिद्धि रजेसर माटसा के बेटा दीना के पुलिस पकड़ के ले गेल ।; रजेसर माटसा कतनो पैरवी लगा लेलन बकि बेटा के बचा नञ् सकलन ।) (मपध॰02:4:24:3.10, 20)
166 मुँहफेरन (रोटी, कपड़ा आउ मकान अदमी के उजिआय नञ् दे हे । काहे कि ई तीनों के सरूप अब बदल गेल हे । पहिले रोटी के मतलब पेट के आग बुझे से हल बकि अब एकर मतलब पेटभरन के साथ-साथ मुँहफेरन भी हो गेल हे ।) (मपध॰02:4:5:1.16)
167 मुनना (= मूनना; बंद करना) (एक दिन झोला-झोला होला पर ऊ अपन बगैचा दने से लौटल आ रहल हल । एक हाँथ में एगो किताब हल आउ दोसर हाँथ में गमछी में बन्हल दस-बीस गो अमौरी । अचोक्के कोय पीछे से आके आँख मुन लेलक ।) (मपध॰02:4:24:1.29)
168 मेहीन (दे॰ मेहिन) ('के हें । ... छोड़ । ... ' दीना डपट के पूछलक । - "पछानऽ ।" एगो मेहीन अवाज आल । - "देख कमली, तोरा केतना बेरी बोल चुकलिऔ हे कि हमरा से लग-लग नञ् कर, बाकि माने ले तैयार नञ् हें । ..." रोसिया के बोलल दीना ।) (मपध॰02:4:24:2.2)
169 मैक (= माइक) (आधा घंटा में गोली-बारी थम गेल । मैक से कोय एलाउंस कर रहल हल - "अपने से हमरा कोय दुसमनी नञ् हे । हमर काम फतह हो चुकल हे । अपनेे के कय अदमी हमर कब्जा में हथ, जिनका हम गाँव से बाहर निकलतहीं छोड़ देम । ...") (मपध॰02:4:25:3.33)
170 मोछ (= मूँछ) ("अपने लावऽ अपन सिकरेट । हम नहाय जा रहलूँ हें ।" - "कहाँ ?" रामपुकार बाबू मोछ तर मुसुकते बोललन । "देखऽ हीं न गे दीदी ।" मिंती बहिन दने देख के नखरा उतारे लगल । फेर मोका देख के दोसर भित्तर दने भाग गेल ।) (मपध॰02:4:23:2.12)
171 रभसना ('के हें । ... छोड़ । ... ' दीना डपट के पूछलक । - "पछानऽ ।" एगो मेहीन अवाज आल । - "देख कमली, तोरा केतना बेरी बोल चुकलिऔ हे कि हमरा से लग-लग नञ् कर, बाकि माने ले तैयार नञ् हें । ..." रोसिया के बोलल दीना । "लास्ट वार्निंग दे रहलिअउ हे । अगर फेर हमरा से रभसलें त अच्छा नञ् होतउ ।" कमली के हाँथ झार के चल पड़ल ऊ ।) (मपध॰02:4:24:2.14)
172 रस्ता (= रास्ता) (एकमात्र रस्ता हे कि उनकनहिन के निकाल बाहर कैल जाय ।; जेल से जब लौट के आल त दोसर अदमी हल दीना । बिनेसर बाबू के पच्छ में गोवाही देवे वला के तो जीना हराम हल । खुद बिनेसर बाबू दीना के देख के रस्ता काट ले हलन ।) (मपध॰02:4:6:3.11, 24:3.29)
173 रानना (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने ।) (मपध॰02:4:24:2.21)
174 रुक्खड़ (= रुखड़ा) (एकर पत्ता छोट आउ कार रंग के होवऽ हे । एकरा में उज्जर चिन्हाँ होवऽ हे आउ रुक्खड़ होवऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:3.2)
175 रेकड (= रेकर्ड) (रजेसर माटसा कतनो पैरवी लगा लेलन बकि बेटा के बचा नञ् सकलन । पिछला रेकड के अधार पर ओकरा साथ जज रहम कइलन आउ ओकरा सिरिफ छो महिन्ना के कड़ा सजाय मिलल ।) (मपध॰02:4:24:3.22)
176 रोग-बेमारी (रोग-~) (एकर एक पत्ता के भी यदि रोज सेवन कइल जाय तो अदमी के कईएक रोग-बेमारी दूर हो जाहे ।) (मपध॰02:4:27:2.19)
177 लग-लग (~ करना) (आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।"; 'के हें । ... छोड़ । ... ' दीना डपट के पूछलक । - "पछानऽ ।" एगो मेहीन अवाज आल । - "देख कमली, तोरा केतना बेरी बोल चुकलिऔ हे कि हमरा से लग-लग नञ् कर, बाकि माने ले तैयार नञ् हें । ..." रोसिया के बोलल दीना ।) (मपध॰02:4:23:3.1, 24:2.11)
178 लबधना (बुतरू सब के माय-बाप कतनो पीटे बकि ऊ दीना से पिस्तौल चलवे ल सिक्खे ले हरदम लबधल रहऽ हे ।) (मपध॰02:4:25:1.19)
179 लुंगी-गंजी (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।) (मपध॰02:4:23:1.14)
180 लूक (= लू) (एक्कर सुक्खल पत्ता पीस के चूरन के रूप में प्रयोग करे से उल्टी रुक जा हे । गरमी में लूक से बचाव ले एकर फूल के ठंढा पानी के साथ सेवन कइल जा हे ।) (मपध॰02:4:28:2.2)
181 लेमू (= नींबू) (बिच्छा इया साँप काटला पर भी एकर पत्ता पिस के लगावल जा हे । 'दाद' जइसन बिमारी में लेमू के रस के साथ एकर पत्ता पिस के लगावे से अराम मिलऽ हे ।) (मपध॰02:4:28:2.26)
182 शानियल (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने ।) (मपध॰02:4:24:2.18)
183 सउँसे (= समूचा) (सुन-सुन किलमनजारो के कथा । अफ्रीका के छत के कथा । सउँसे छत पर ग्लेसियर हल । बरफ के नदी ।; कभी सुत के उठला पर ऊ देखथ उनकर सउँसे घर आउ बंगला के पकिया देवाल गोबर से नीपल हे ।) (मपध॰02:4:21:1.14, 25:1.3)
184 सच्चो (दूरा पर आके ऊ सच्चो लोठरी बंद करके पड़ रहल ।) (मपध॰02:4:24:1.4)
185 सजाय (= सजा, दंड) (रजेसर माटसा कतनो पैरवी लगा लेलन बकि बेटा के बचा नञ् सकलन । पिछला रेकड के अधार पर ओकरा साथ जज रहम कइलन आउ ओकरा सिरिफ छो महिन्ना के कड़ा सजाय मिलल ।) (मपध॰02:4:24:3.24)
186 सदाबरत (= सदाव्रत) (फेर मेहरारू दने देख के बोललन ऊ, "आउ ऊ सब गलती थोड़े कहऽ हथ जब दु-दु गो इन्नर के पड़ी घर में रखले रहम त हंगामा करवे करतन लोग ।" - "अच्छऽ ! ... मुँह चमका के बोललन मिंती के दीदी, "त सदाबरत बाँट द ।" फेर थोड़े रुक के बोललन, "न भाय, छउँड़ी सुत्थर भी ओतने निकलय ।") (मपध॰02:4:23:3.23)
187 सरदी-खोंखी (= सर्दी-खाँसी) (पत्ता खौला के ओकर पानी पीए से सरदी-खोंखी में आराम मिलऽ हे ।; ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे । एकर उपयोग सरदी-खोंखी, ब्रोंकाइटिस आउ गियारी के दवाय बनावे ल कइल जा हे ।) (मपध॰02:4:28:1.33, 2.14)
188 सर-समान (देखते-देखते सब कुछ बदल गेल । डकैत अपन घायल साथी के लेके भाग छुटल, सब सर-समान जहाँ के तहाँ फेंक के ।) (मपध॰02:4:26:1.28)
189 सिकरेट (= सिगरेट) (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।" - सोमर साव हीं झरल हलइ, दीदी । ऊ पट्टी से ला रहलियो हऽ । - "अच्छा ! तनी हमरो सिकरेट ला देवऽ ऊ पट्टी से ।" पिठदोबारे घर घुंसते ओकर जीजा रामपुकार जी मिंती के कनखिऐते बोललन । जीजा दने ताकलक त मिंती के करेजा धक-धक करे लगल । 'हो न हो मेहमान हमरा कोय दूरा-दलान पर बइठ के देख रहला हल ।' बकि मन कड़ा करके बोलल ऊ, "अपने लावऽ अपन सिकरेट । हम नहाय जा रहलूँ हें ।") (मपध॰02:4:23:2.1, 10)
190 सिरिफ (= सिर्फ, केवल) (रजेसर माटसा कतनो पैरवी लगा लेलन बकि बेटा के बचा नञ् सकलन । पिछला रेकड के अधार पर ओकरा साथ जज रहम कइलन आउ ओकरा सिरिफ छो महिन्ना के कड़ा सजाय मिलल ।) (मपध॰02:4:24:3.23)
191 सिहकाना (हवा न चलइत हे, बाकि कनकन्नी रह-रह के सिहका देहे ।) (मपध॰02:4:21:1.11)
192 सीता-मीता (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।) (मपध॰02:4:16:1.10)
193 सुत्थर (फेर मेहरारू दने देख के बोललन ऊ, "आउ ऊ सब गलती थोड़े कहऽ हथ जब दु-दु गो इन्नर के पड़ी घर में रखले रहम त हंगामा करवे करतन लोग ।" - "अच्छऽ ! ... मुँह चमका के बोललन मिंती के दीदी, "त सदाबरत बाँट द ।" फेर थोड़े रुक के बोललन, "न भाय, छउँड़ी सुत्थर भी ओतने निकलय ।") (मपध॰02:4:23:3.25)
194 सूटर-ऊटर (ठंढा के रात हल । दस बजिया गाड़ी से उतरली हल । इ कोस के सफर हल । हमनी दुन्नु पैंट-कोट में हली । तरे सूटर-ऊटर सब पहिनले हली ।) (मपध॰02:4:20:1.17)
195 सो-पचास (= सौ-पचास) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।) (मपध॰02:4:25:3.12)
196 हत् (~ मरदे !) (बिसेसरा त चलते ठमक जाय । कहे, पाठक भइया, लगो हो कि गोड़वे छान लेलको । - के रे ? - का जाने, बाकि लगो हो कि गोड़बे छान लेलको । - हत् मरदे, तूँ तो हमरो जान ले लेमें । आधा करेजा के तो हम अमदी ही । ओहू पर तू झमदगर जवान होके अइसन बोलमें, त जाने न ले लेमे ।) (मपध॰02:4:20:2.25)
197 हरमुनिया (= हारमोनियम) (एक तरफ हरमुनिया आउर नगाड़ा बजावे ओला लोग रंगमंच पर बइठऽ हथ । दोसर तरफ अभिनेता तरह-तरह के पोसाक पेन्ह के रंगमंच पर आ के अभिनय करऽ हे ।) (मपध॰02:4:16:3.9)
198 हरमेसा (= हमेशा) (ओकर नजर में गाँव के सब छउँड़किन ओकरा से हेंठ हल । काहे कि ऊ गाँव के सबसे बड़का के बेटी हल । हरमेसा दीना के पीछे पड़ल रहऽ हल । पड़े भी काहे नञ्, गाँव में कउन नवजवान दीना सन सुत्थर, गठीला आउ होनहार हल ।) (मपध॰02:4:24:2.25)
199 हलसना (कल तक जे अदमी अपन बेटा के 'संघ' आउ 'शाखा' में हलस के जाय देवे लगलन हल, ऊ दौर अब फेर खतम हो गेल ।) (मपध॰02:4:6:3.24)
200 हाली-हाली (= जल्दी-जल्दी) (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।") (मपध॰02:4:23:1.27)
201 हित-कुटुम (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।; सब गहना-जेवर, रुपइया-पैसा छीन-छोर के डकैत सब निकले चाह रहल हल । बिनेसर बाबू के सब हित-कुटुम के ऊ देवाल दने मुँह करवा के हाथ उठवैले हल आउ बिनेसर बाबू, उनकर दुनहुँ बेटा आउ बियाहता कमली के अगुअइले निकल रहल हल डकैत सब ।) (मपध॰02:4:25:3.15, 26:1.10)
202 हेंठ (= नीचा, तबके में छोटा) (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने । … ओकर नजर में गाँव के सब छउँड़किन ओकरा से हेंठ हल । काहे कि ऊ गाँव के सबसे बड़का के बेटी हल ।) (मपध॰02:4:24:2.23)
203 हेमान (= हैवान; जानवर; पशुतुल्य व्यक्ति; नष्ट, बरबाद) (पहिले गौतम के धरती बिहार खूने-खून हल, अब गाँधी के धरती गुजरात जल रहल हे । लोग जिंदा आग में झौंसल जा रहलन हे । हैवानियत चरम पर हे । हिंदू-मुस्लिम जउन तागत एकर पीछे लगल हे, दुनियाँ के सबसे बड़ हेमान में से एक हे ।) (मपध॰02:4:6:1.7)
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