समसा॰ =
"समकालीन मगही साहित्य" (मगही भाषा के वैचारिक आउ साहित्यिक
त्रैमासिक); वर्ष-1; अंक-1; जनवरी-मार्च 2003; सम्पादक - श्री धनंजय श्रोत्रिय, नई दिल्ली/ पटना
ठेठ
मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर
पृष्ठ संख्या, आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति
संख्या दर्शावऽ हइ ।
कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या - 297
ठेठ मगही शब्द (अ
से ह तक):
1 अंधरिया (दिन-दुनियाँ देख के आँख के आगु अब पुनियो में अमस्या के अंधरिया लौकऽ हे ।) (समसा॰03:1:54.7)
2 अउ (विधना के मारल रामजी चौदह बरिस तक फूल अइसन कोमल मेहरारू अउ बिजली-आग जइसन डहकइत भाय के संगे ले के जंगल अगोरलन ।) (समसा॰03:1:49.16)
3 अकेलुआ (धरती पर साइत भारत अकेलुआ देश हे, जहाँ बहुत्ते पराचीन काल से काल याने 'टाइम' के ठोस वैज्ञानिक दृष्टि से देखल गेल हे ।) (समसा॰03:1:11.9)
4 अग-जग (कवि नाम से कवि जादे प्रसन्न होवऽ हथ । मतलब नाम बहुते पेयारा होवऽ हे । एही से नाम के महिमा आउ महातम अगजग में गावल जाहे ।) (समसा॰03:1:94.28)
5 अगोरना (विधना के मारल रामजी चौदह बरिस तक फूल अइसन कोमल मेहरारू अउ बिजली-आग जइसन डहकइत भाय के संगे ले के जंगल अगोरलन ।) (समसा॰03:1:49.17)
6 अगोरिया (= अगोरी करनेवाला) (सहर के मकान किराया पर हे अउ बड़गो ताला गाम के मकान के अगोरिया हे ।) (समसा॰03:1:54.5)
7 अछरंग (तनि फरिया के तो कहऽ साफ-साफ । कौन लच्छन से हम लालची, आलसी आ सौखीन लगऽ ही ? ई तीन-तीन अछरंग हमरा पर लगावे में तोरा जरिक्को सरम न आयल ?; ई अछरंग न हो, बावन तोला पावस्ती आ पत्थल के डरीर हो । तोर तीनो औगुन के हिगरा-हिगरा के हम समझा दे ही ।) (समसा॰03:1:79.9, 11)
8 अजदह (साइत कोय बात ऊ हमरा से कहइ इया पूछइ ले चाहऽ हलइ, मुदा एगो खास तरह के जनाना संकोच हलइ जे ओकर ठोर के अजदह बनइले हलइ ।) (समसा॰03:1:43.15)
9 अजलेम (= इल्जाम) (तोरा पर कोई अजलेम नइखी डालइत नन्हकू ! लेकिन एतने हम अरज करइत ही तोरा से कि ओकरा दीदी समझऽ हें तो फिर मौका पर भाई के फरज अदा कर ।) (समसा॰03:1:69.18)
10 अजाद (= आजाद) (दुनियाँ तो निमने चलइत हे । सब लोग अजाद हइए हथ । जेकरा मन करऽ हे तेकरा उड़ा देहे । पुटपुटिया दाग देहे ।; गुंडई करे ला लाइसेंस के जरूरते न हे । रजनेता के अजदिए हे ।) (समसा॰03:1:58.10, 12)
11 अथुह (एक बात कहिअउ परवेज, कि ... कि तूँ मरि काहे नञ् गेलें ? काहे कि अब हम सब के सब तोहरा सन हिजड़ा से नफरत करऽ हिअउ ! हमनी के तोहरा से नफरत हउ ! अथुह !) (समसा॰03:1:47.9)
12 अपसर (= अफसर) (एगो अंगरेज अपसर से एक बार झंझट हो गेल । बस इ आव देखलन न ताव - दे देलन नौकरी से इस्तीफा ।) (समसा॰03:1:100.3)
13 अब-तब (~ में होना) (पंचइती एहीं पर खतम हो गेल । कहानी कहताहर ई कथा के थोड़ा अउर आगे ले जा हथ । ऊ सुनावऽ हथ कि दोसरके दिन साँझ होएते-होएते गाँव में आन्हीं अइसन खबर दउड़े लगल कि नन्हकुआ के बेटा अब-तब में हे । फिर इ खबर मिलल कि ओकर बेटा मर गेल ।) (समसा॰03:1:73.7)
14 अमदनी (= आमदनी) (अखबार-पतरिका में कहानी-कविता लिख के अउ वेतन अमदनी से ढेर बचा ले हलन, लेकिन जेकरे-सेकरे काम में जरूरी पड़े पर लगा दे हलन ।) (समसा॰03:1:52.15)
15 अर-असीरवाद (डॉ. नलिन के संस्कृत, पालि आउ हिंदी तीनों विषय के प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त हे । एकर अलावे ई डी.लिट्. भी हथ । ने मालूम कय दर्जन शोधार्थी इनकर अर-असीरवाद से विदमान बन के धौगल चलऽ हथ । केतना कवि कविआँठ बन के नितराल चलऽ हथ ।) (समसा॰03:1:106.7)
16 अरदास (फा॰ अर्जदाश्त) (= नजर, भेंट, देवता को चढ़ाने की सामग्री; भेंट देकर निवेदन) (जेकर आगु धन-सुख, अराम, सफलता, आदमीयत अरदास करऽ हल, अब ओकरे सुख हवा के कंधा पर चढ़के कौन लोक में कहाँ उड़ गेल ? गाम, टोला, जेवार में, इनका सब रुपइया के एगो झमेटगर दरखत बुझऽ हलन, जेकर छँहुरा में केतना के भलाय भेल हल ।) (समसा॰03:1:54.26)
17 अलचार (= लाचार) (हम तो फूटल आँख से भी तोरा जरिक्को पसंद न कैली हल । अलचार हो गेली ।) (समसा॰03:1:78.25)
18 अलचारी (= लाचारी) (कौस्तुभ मणि, पांचजन्य शंख पर भी तोर नजर गड़ल हल । अलचारी में ई दुन्नो रतन भी लोग तोरा देलन ।) (समसा॰03:1:79.25)
19 अवकाद (= औकात) (लड़िकाई में हमनी एके साथ खेलऽ-कूदऽ हली । तूँ तो अपन अवकादो भूल गेलऽ अउ बड़-बुजुर्ग से बात करे के, अदब करे के तरीको भूल गेलऽ ? कलकत्ता में चाकरी करके धनासेठ हो गेलऽ एतवर कि हमरा करजा देवे के तोर अवकाद हो गेल ?; एक तो एकर अवकाद सब के मालूम हे । एकर एतना अवकादे न हे कि अबहियों एतना बड़ रकम कोई के उधार दे सकऽ हे । दोसर बात इ, हमर अवकाद एतना छोट न हो गेल हे कि एतना छोट रकम खातिर एतना छोट अदमी के आगे हाथ पसारूँ । तइयो मान लेऊँ कि ई अपन अवकाद से कए गुना जादे हमरा रकम देलक । ई पगलाएल न हे तो एकरा पास देवे के कुछो कागजी सबूत इया कोई गोवाह तो जरूरे होएत ।) (समसा॰03:1:71.2, 4, 72.10, 11, 12, 13)
20 आंधर (= आन्हर; अन्धा) (अपन मन के हिन्छा जोआला केकरो नञ् बतावऽ हलन कि आखिर जात में, कुजात में, इंदर के परी से कि कोय कान-कोतर, आंधर, लूल्ह-लाँगड़ से बियाह करके कोय बड़गो आदर्श के नाम कमउतन, समाजसेवी के तमगा, साटिफिकेट लेतन ।) (समसा॰03:1:50.6)
21 आजिज (अच्छा ठीक हो, मत बतावऽ ! मुदा, एन्ने, एन्ने कहाँ ? - ऊ आजिज आके पुछलकइ हल ।; तू काहे ला पगलाइल हें, उ पगला से कउन पूछे । लइकन सब ओकरा लुलुआइत हलन, ओकर कपड़ा खीचैइत हलन, ओकरा लंगटे करइत हलन, थूक फेकइत हलन, पगला से आजिज हो गेलन हल ।) (समसा॰03:1:44.16, 58.20)
22 आसकती (= असकतियाहा; आलसी) (हमर हाल ऊ आसकती नियर हो गेल हे गरुड़, जे कुइयाँ में गिरल त उहईं बस गेल । रोज साँप के बिछौना पर सूतऽ ही, भूलल-भटकल कहियो ई जदि करवट लेलन कि हम समुन्नर के पेट में अलोपित भेली ।) (समसा॰03:1:85.2)
23 आसन-वासन (मंत्री जी आसन-वासन आउ सासन जमा देलन । लंबा तान के खर्राटा से बोगी के जगमगा देलन, हो गेल हमर सूतल ।) (समसा॰03:1:89.7)
24 इनसाल (= इमसाल; वर्तमान वर्ष) (नन्हकू भइया इनो साल न अएलन । केतना परब-तेयोहार वीतल । राहे भुला गेलन । का पता ई जिनगी में अब भेंटो होएत कि न उनकरा से ।) (समसा॰03:1:67.6)
25 इस्स (इस्स ! दइया गे, तूँ तऽ नजूमी नियर बात करऽ हो जी, कहाँ घर हो ? - बायाँ हाँथ पर गाल रखि के ऊ एगो खास अंदाज में मुसकइत पुछलकइ ।) (समसा॰03:1:43.21)
26 ईमनदार (= ईमानदार) (लेकिन अब सब भरनठ हो गेल हे । नञ् कोय ईमनदार नेता हे, नञ् सरकारी करमचारी, नञ् कोय ओइसन दारसनिक आउ समाजसेवी हे, जे देस के डूबइत नाय के बचा सके ।) (समसा॰03:1:51.12)
27 उकटा-पुरान (हमरा सामने तू लछमी के उकटा-पुरान तू सुनबे कैलऽ ।) (समसा॰03:1:85.11)
28 उकीटना (उल्लू के उकीटे से सुरुज के कुछ बिगड़ल हे ?) (समसा॰03:1:81.25)
29 उजरका (= उजला; उजला वाला) (कउन हलन उ ! उ पगला के सामने अप्पन हाथ फैला के खड़ा हो गेलन । उनकर देह पर भभूत हल । धरती के मट्टी हल । उजरका रेत नियन उनखर देह चाँदी नियन चमक रहल हल । पगला आवइत-आवइत रुक गेल - रुक गेल बकबक्की ओकर ।) (समसा॰03:1:59.12)
30 उटकरिए (~ बइठना) (अपन कान्हा पर से ललकी गमछी उतारलक अउ ओकरे पर धीरे से बइठल कि धूरी न लगे, गंदा न हो जाए । भला नया-तोहर गमछा के मोह कइसे न सतावइत ।/ बाबू साहेब टोकलन - "उटकरिए का बइठल हऽ । निहचिंत होके बइठऽ अउ सुनावऽ हुआँ के खिस्सा ।") (समसा॰03:1:66.23)
31 उठान (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।) (समसा॰03:1:43.4)
32 उडंडता (= उद्दंडता) (अबरी फिर हमर बर्थ पर सात लड़िकन बैठ गेलन । उनकर बोलचाल में कोई परिच्छा के चरचा हल, व्यवहार में उडंडता आउ जबान पर गाली-गलौज हल ।) (समसा॰03:1:88.18)
33 उड़ियाना (तोहर ई देसी बोली विदेशी हवा के सामने घास-फूस अइसन उड़िया जायत । नाम महिमा के बखान अइसहीं न होयल हे ।) (समसा॰03:1:95.15)
34 उतारे (= से बढ़कर) (होयत सौखीन केउ तोरा उतारे । ... हीरा, मोती, नीलम, मानिक आ पोखराज से तइयार कइल एगो पंचधातु के माला तोरा चही । तोर किरीट में सब तह के रतन जड़ल रहे के चही ।) (समसा॰03:1:80.19)
35 उधारन (= उदाहरण) (लालची होवे के आउर कोन उधारन तोरा चाही ?; एगो-दूगो उधारन हे जे तुरते सुना देल जाय ?) (समसा॰03:1:80.6, 82.19)
36 उलार (= लहर; जो पीछे झुका हो; जिसके पिछले भाग में बोझ अधिक हो) (जवानी में इनका में मगही सेवा के उलार उठल हल, बकि 1988 ई॰ में मगही में 'किरिया-करम' {कहानी संग्रह}करके बैठ गेलक ।) (समसा॰03:1:64.4)
37 ऊपर-नीचू (लमहर-लमहर साँस भरइत ओकर छाती उठ-बैठ रहलइ हल । ओकर देह एगो खास लय में ऊपर-नीचू डोल रहलइ हल ।) (समसा॰03:1:43.10)
38 एकसर (= अकेलुआ; अकेला) (कइसे एकसर आदमी पहाड़ पर रह के, जउन पहाड़ के कुछ ग्रंथ सब उत्तर के हिमालय पर्वत कहऽ हे, मत्स्य पुराण दक्खिन के मलय पर्वत कहऽ हे - पर रह के कोय नाव चला सकऽ हे ?) (समसा॰03:1:10.27)
39 एकसरुआ (= अकेलुआ; अकेला) (कइसे कोय एकसरुआ पुरुष फेर से सारी सृष्टि के रचना कर सकऽ हे ?) (समसा॰03:1:11.1)
40 एतराज (= आपत्ति) (पंच लोग नन्हकू से पूछलन - कोई एतराज ? ऊ कहलक - जे पंच के विचार ।) (समसा॰03:1:73.3)
41 एतवर (दे॰ एतवड़) (लड़िकाई में हमनी एके साथ खेलऽ-कूदऽ हली । तूँ तो अपन अवकादो भूल गेलऽ अउ बड़-बुजुर्ग से बात करे के, अदब करे के तरीको भूल गेलऽ ? कलकत्ता में चाकरी करके धनासेठ हो गेलऽ एतवर कि हमरा करजा देवे के तोर अवकाद हो गेल ?) (समसा॰03:1:71.4)
42 एहीं (= हीएँ; यहीं) (हमरा अइसन नासमझ आउ कमचोर के लोग समझदारी आउ जवाबदेही वाला काम दे दे हथ, एहीं गड़बड़ हो जाहे ।) (समसा॰03:1:87.7)
43 कएदा-कानून (= कायदा-कानून) (नन्हकू के मन भेल कि साथे बइठ के विस्तार से कलकत्ता के रंग-ढंग बताऊँ, लेकिन अपन गाँव के उठे-बइठे के कएदा-कानून ओकरा याद आएल ।) (समसा॰03:1:66.19)
44 कचोटु (रिसीवर हाथ से छोड़ि के भद्द-सा बइठइत, रेशमा बुक्का फाड़ि के कुछ ई तरह जार-बेजार रोबऽ लगलइ हल, जइसे अचक्के ऊ बेबा हो जाय के कचोटु बोध से भरि गेल रहे ।) (समसा॰03:1:47.12)
45 कजइ (= कज्जो; कहीं) (परसुँ ओकर भाय के चिट्ठी कारगिल मोरचा से अइलइ हल । कानोकान खबर मिलते मातर करीम के घर में जन्नी-मरद के अइसन हुजूम उमड़लइ कि कजइ तिल धरइ के जगह नञ् ।) (समसा॰03:1:45.3)
46 कठमुरकी (~ मारना) (ओकरा अएलो के बाद समझऽ एक हफ्ता तो अउ लगिए जाएत । एही बीच बिआह के दिन तय हे । टल नहिंए सके । हम तो कुकुरवाह में पड़ गेली । आजे देवे ला हल समियाना, बत्ती, पालकी, हाथी, घोड़ा खातिर पेसगी । हम करी तो का करी । कठमुरकी मारले हे हमरा तो ।; बाबू साहेब के नकार अउ गरम तेवर देख के नन्हकू के काटूँ तो खूने नऽ । ओकरा कठमुरकी मार देलक । बोलती बंद हो गेल ।) (समसा॰03:1:69.1, 71.14)
47 कड़रुआ (~ राग) (उनका गावे के जब धुन चढ़ऽ हे तऽ ऊ गला फार फार के गाना शुरु करतन । उनकर ई राग के देहात में लोग कड़रुआ राग कहऽ हथ ।) (समसा॰03:1:94.22)
48 कन्नी (~ खाना) (जानऽ हीं परवेज, सीमा पर लड़इत अगर तूँ सहीद हो जइतहीं हल, तऽ जिगर के खून से तोहर कब्र पर दीया बारतिअउ हल । मुदा अब ... अब डर से चूड़ी पेन्ह के साया में घुसि जायवला ... डर से पइजामा में पेसाब करि देबइवला तोहरा सन कायर के, कसम काली पगड़ी वला के, सौहर कहइ में कन्नी खा लेबइ के मन करऽ हउ !) (समसा॰03:1:47.3)
49 कबुद्धी (सिरिफ दू भाषा हिंदी-मगही के इस्तेमाल में तोर बुद्धि ओझरा जाहो । करवऽ कबुद्धी ! कउन तरह के दिमाग पइलऽ हऽ जी !) (समसा॰03:1:6.15)
50 करजा-पैंचा (उ अप्पन छोटकी बेटी के बियाह करके, करजा-पैंचा लेके छोटका बेटा के पढ़ाय खातिर दिल्ली भेज के आजकल अप्पन एगो परचित अमदी के साथ रहऽ हथ ।) (समसा॰03:1:53.25)
51 करनी-धरनी (पंचदेवी में एक ई हमर मेहरारू लछमी के करनी-धरनी तो तोरा से छिपल न हे ।) (समसा॰03:1:77.26)
52 करिखाही (= करखाही; कारिख या कालिख से पुती हुई) (हम तो खाली सरापे देके रह गेली । बस चलइत हल त ऊ जरलाहा के चेहरा करिखाही हँड़िया से हम पोत देती । तू मउगर आ घरघुस्सु बनके बिछौना पर पड़ल रहऽ ।) (समसा॰03:1:83.6)
53 कलट्टर (बाप के हिन्छा हलइ कि बेटा कलट्टर, जज, इंजीनियर, वकील चाहे एस.पी. बने, लेकिन मन के हिन्छा केकर पूरल हे ।) (समसा॰03:1:49.11)
54 कविआँठ (डॉ. नलिन के संस्कृत, पालि आउ हिंदी तीनों विषय के प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त हे । एकर अलावे ई डी.लिट्. भी हथ । ने मालूम कय दर्जन शोधार्थी इनकर अर-असीरवाद से विदमान बन के धौगल चलऽ हथ । केतना कवि कविआँठ बन के नितराल चलऽ हथ ।) (समसा॰03:1:106.8)
55 कसर-मसर (कोई महादे के भेजल इहाँ आवत, ई ओकरा बढ़मा जी के पास भेज देतन, कभी महादे के पास पेठैतन । जे लोग के दिमाग कमजोर रहऽ हे ओही नेआव करे में कसर-मसर करऽ हे !) (समसा॰03:1:81.19)
56 कहताहर (= कहनेवाला) (पंचइती एहीं पर खतम हो गेल । कहानी कहताहर ई कथा के थोड़ा अउर आगे ले जा हथ । ऊ सुनावऽ हथ कि दोसरके दिन साँझ होएते-होएते गाँव में आन्हीं अइसन खबर दउड़े लगल कि नन्हकुआ के बेटा अब-तब में हे । फिर इ खबर मिलल कि ओकर बेटा मर गेल ।) (समसा॰03:1:73.5)
57 कहनइ (हलन तो उ जात के बर्हामन, लेकिन उनकर कहनइ हल कि जलम से सब कोय सुद्दर हे, अप्पन संस्कार, करम-धरम बना-सुधार के कोय भी बर्हामन बन सकऽ हे ।) (समसा॰03:1:49.3)
58 कहनय (बाप ढेर कोरसिस कइलन कि उनकर बियाह उनखे मन से खूब ले-दे के धूमधाम से हो, लेकिन बाप के कहनय से उनकर कान पर जूँ नञ् रेंगलक ।) (समसा॰03:1:50.1)
59 कहनय-सुननय (1963 ई॰ में एकैसे बरीस के उमर में ढेर कहनय-सुननय, खींचा-तीरी से एम.ए. तो कर गेलन, लेकिन नउकरी के कोरसिस उ नञ् के बराबर करऽ हलन ।) (समसा॰03:1:49.22)
60 कहवइया (= कहताहर; कहनेवाला) (कहानी कहवइया आगे कहऽ हथ कि नन्हकू बेटा के लहास लेले लौटल । मंदिर के आगे रखलक अउ ओही घड़ी तमाम पंचन भिरु बदहवास दउड़-दउड़ के गिड़गिड़ाएल ।) (समसा॰03:1:73.21)
61 कान-कोतर (अपन मन के हिन्छा जोआला केकरो नञ् बतावऽ हलन कि आखिर जात में, कुजात में, इंदर के परी से कि कोय कान-कोतर, आंधर, लूल्ह-लाँगड़ से बियाह करके कोय बड़गो आदर्श के नाम कमउतन, समाजसेवी के तमगा, साटिफिकेट लेतन ।) (समसा॰03:1:50.6)
62 किरिया-करम (हमरा अचानक मरे अउ छोटकु के घर नञ् लौटे के हालत में हम्मर संस्कार, किरिया-करम नजीर करत । उ जलावे, चाहे गाड़ दे, चाहे गंगा में ले जाके फेंक दे ।) (समसा॰03:1:55.19)
63 किहाँ (= के यहाँ) (ओहनी के सेफारिस पर ओकरा मारवाड़ी भाई किहाँ नौकरी लग गेलई ।) (समसा॰03:1:65.20)
64 कुकुरवाह (~ में पड़ना) (ओकरा अएलो के बाद समझऽ एक हफ्ता तो अउ लगिए जाएत । एही बीच बिआह के दिन तय हे । टल नहिंए सके । हम तो कुकुरवाह में पड़ गेली । आजे देवे ला हल समियाना, बत्ती, पालकी, हाथी, घोड़ा खातिर पेसगी । हम करी तो का करी । कठमुरकी मारले हे हमरा तो ।) (समसा॰03:1:68.27)
65 कोंपी (= कॉपी, नोटबुक; उत्तरपुस्तिका) (आज तक विश्वविद्यालय में टौप करे वाला छात्र के कोंपी सार्वजनिक न करल गेल, जबकि ई माँग उठइत रहल हे । सार्वजनिक न करे के पीछे हमरा लगऽ हे कि ऊ सार्वजनिक करे के चीजो न होवे । ऊ तो धरोहर होवऽ हे से ओकरा अइसन रख देल जाहे कि हवा-बतास इया नजर-गुजर नऽ लगे ।) (समसा॰03:1:93.17)
66 खतिहान (हो गेल तोर खतिहान खतम कि आउ कुछ अधेयाय बाकी हे ?) (समसा॰03:1:83.19)
67 खनय-पिनय ("एगो मुसलमान हे - रेडीमेड के दुकान हे ओकर, जेकरा उ बचपन से खुम मानऽ हलन, इनकर बचपन के दोस्त के लड़का हे नजीर खान ।" - "अउ खनय-पिनय ?" - "सब ओकरे हीं, ओकरे बनल-छुअल-छापल ...।" कहके उ बड़ी घिरना से मुँह सिकोड़ लेलक ।) (समसा॰03:1:54.13)
68 खम्हा (= खंभा) (ऊ बेरा मुँह से बकार निकललवऽ हल ? लजायल बिलाई सन खम्हा नोचे के हाल भेल हल ।) (समसा॰03:1:82.9)
69 खामोखा (= खामखाह; ख्वामख्वाह) (आँख में अंगुरी डाल के खामोखा जब तू हमर मुँह खोलबा रहलऽ हे तब सुन लऽ ।) (समसा॰03:1:82.1)
70 खींचा-तीरी (1963 ई॰ में एकैसे बरीस के उमर में ढेर कहनय-सुननय, खींचा-तीरी से एम.ए. तो कर गेलन, लेकिन नउकरी के कोरसिस उ नञ् के बराबर करऽ हलन ।) (समसा॰03:1:49.23)
71 खुम (= खूब) (लगभग बीस बरिस के बाद 1983 के जाड़ा में अचुके उ एक दिन बोधगया के मंदिर घुमइत भेंट गेलन, साथे में एगो गोरनार, लत्तर जइसन, दुबर-पातर, बिना हाड़-मास के मेहरारू के देख के इ समझ में आ गेल कि उ एगो से दूगो हो गेलन हे । पूछे पर पता चलल कि इ एगो गरीब बर्हामन के अंगुठा छाप बेटी हे । हम देखलुँ अंदर से उ खुम खुस हलन ।; "एगो मुसलमान हे - रेडीमेड के दुकान हे ओकर, जेकरा उ बचपन से खुम मानऽ हलन, इनकर बचपन के दोस्त के लड़का हे नजीर खान ।" - "अउ खनय-पिनय ?" - "सब ओकरे हीं, ओकरे बनल-छुअल-छापल ...।" कहके उ बड़ी घिरना से मुँह सिकोड़ लेलक ।) (समसा॰03:1:50.12, 54.11)
72 खूम (= खूब) (सोना पर सोहागा नियन बात अशोक प्रियदर्शी जी के साथ हे । एक तो इनका में लेखन आउ अभिनय में खूमे रुचि हे, ऊपर से इनका ई दुन्नो गुन अपन आदरजोग पिता चतुर्भुज बाबू से विरासत में मिलल हे ।) (समसा॰03:1:98.2)
73 खोजनय (नीम के पत्ता आउ डघुरी में मिठास अउ सुरूज के आगु में चंदरमा के सीतलता खोजनय बेकुफी हे । आत्मविसवास अउ हिम्मत के बल से कोय अमदी जोर से ढेला फेंक के असमान में छेद कर सकऽ हे ।) (समसा॰03:1:52.11)
74 गँवत (= गौत; पशु का चार) (प्रकृति के लीला अइसन भेल कि लगले-लगले पाँच साल अकाल पड़ल । अदमी के अनाज मोहाल हो गेल, गोरू के गँवत ।) (समसा॰03:1:65.10)
75 गट्टा (उ ओकर गट्टा पकड़ के पेड़ के नीचे बइठा देलन । अप्पन बड़गो कमंडल से ओकरा भर इच्छा पानी पिअइलन । पगला शांत हो गेल ।) (समसा॰03:1:59.16)
76 गरान (= ग्लानि) (हइ दुनियाँ में एक भी औरत जेकरा बेईमान, चोर, बलात्कारी, घोटालेबाज, कातिल आउ तोहरा सन कायर मरद के बेटा आउ सौहर कहइत गरान नञ् आबइ ?) (समसा॰03:1:47.7)
77 गिटपिटाना (पढ़ाई के नाम पर तऽ अंग्रेजी ठाट-बाट के कोई कमी नऽ हे । अंगरेजी रटइत हथ - सीता के सीटा आउ राम के रामा पढ़इत हथ । पापा-मम्मी नाम के जोर हे । मतलब विश्वगुरु भारत भरभराइत हे आउ हिंगलिस में गिटपिटाइत हे ।) (समसा॰03:1:93.27)
78 गिनल-गुथल (1963 में जोवाला जी के एम.ए. के परिच्छा देके पटना से घर लउटते घड़ी उनकर दादी के गया टीसन पर हम देखलुँ हल - दूध अइसन दप-दप उज्जर, बरफ अइसन चमकइत बतीसो दाँत, धुन्नल रुइया अइसन फह-फह माथा में गिनल-गुथल केस, 87 बरिस के उमर में भी उनकर देह-दसा, चेहरा पर चमक हल ।) (समसा॰03:1:50.21)
79 गुन (= गुने; के कारण) (ऊ रोगी बात के एतना पक्का हलन कि सही में कानपुर में बर्थ खाली कर देलन । रोगी के बात हल । इ गुन हम भी सीट के पानी से पोछली । चद्दर झारली आउ सोचली कि रतजग्गा तो होइए गेल । अब दू-चार घंटा दिन में सुतल जाय ।) (समसा॰03:1:87.27)
80 गेहुमन (= गोहमन) (तोरा से तो भइँसा, बनैआ सूअर आ गेहुमन साँप सच्चा वीर हे जे आमने-सामने वार करऽ हे ।) (समसा॰03:1:82.13)
81 गोदानना (जमा भीड़ फट गेल । भीड़ जउरे चचवा भुनभुनाइत जा रहल हे - तनी गो हल तो रतिया में रोजे अप्पन बप्पा से पूछऽ हल - राजा की खा होतइ हो बाबू । आझ साला अपने राजा हो गेल । अब हमनी के ऊ की गोदानतउ ?) (समसा॰03:1:97.26)
82 गोरनार (लगभग बीस बरिस के बाद 1983 के जाड़ा में अचुके उ एक दिन बोधगया के मंदिर घुमइत भेंट गेलन, साथे में एगो गोरनार, लत्तर जइसन, दुबर-पातर, बिना हाड़-मास के मेहरारू के देख के इ समझ में आ गेल कि उ एगो से दूगो हो गेलन हे ।) (समसा॰03:1:50.9)
83 गोराई (= गोराय; गोरापन) (बाबुओ साहेब के कोई कहलक कि नन्हकुआ कलकत्ता से आएल हे । देह पर चढ़ल चर्बी अउर चेहरा पर गोराई झाँकइत हइ ।) (समसा॰03:1:65.26)
84 गोवाह (= गवाह) (एक तो एकर अवकाद सब के मालूम हे । एकर एतना अवकादे न हे कि अबहियों एतना बड़ रकम कोई के उधार दे सकऽ हे । दोसर बात इ, हमर अवकाद एतना छोट न हो गेल हे कि एतना छोट रकम खातिर एतना छोट अदमी के आगे हाथ पसारूँ । तइयो मान लेऊँ कि ई अपन अवकाद से कए गुना जादे हमरा रकम देलक । ई पगलाएल न हे तो एकरा पास देवे के कुछो कागजी सबूत इया कोई गोवाह तो जरूरे होएत ।) (समसा॰03:1:72.15)
85 गोवाही (= गवाही) (अपने सभे सुन लेली न ? कोई सबूत, गोवाही नइखे इनका पास तो मामला बिसवासघात के होएल । एकरा फैसला तो उपरहींवाला कर सकऽ हे ।) (समसा॰03:1:72.24)
86 घरघुस्सु (हम तो खाली सरापे देके रह गेली । बस चलइत हल त ऊ जरलाहा के चेहरा करिखाही हँड़िया से हम पोत देती । तू मउगर आ घरघुस्सु बनके बिछौना पर पड़ल रहऽ ।) (समसा॰03:1:83.7)
87 घरजमाई (ई असार संसार में साला आ ससुर के घर सार हे । इहे से महादे हिमाले पर गेलन आ हम ई छीर सागर चुनली । बकि न ससुराल में घरजमाई बनती हल, न अइसन साँसत झेलती हल ।; जब हमरे ई हाल हे तब मिरतुलोक के घरजमाई लोग के दसा के अंदाज लगा लऽ ।) (समसा॰03:1:77.14, 16)
88 घरफुँकनी (हमरा रोके से ई कभी रुकलन ? घरफुँकनी बनके ई चउबीसो घंटा गाय के सींग बैल में आ आम के लस्सा बबूर में लगावइत चलऽ हथ । अइसन लछमी से निगोड़े भल हल ।) (समसा॰03:1:78.8)
89 घिरना (= घृणा) ("एगो मुसलमान हे - रेडीमेड के दुकान हे ओकर, जेकरा उ बचपन से खुम मानऽ हलन, इनकर बचपन के दोस्त के लड़का हे नजीर खान ।" - "अउ खनय-पिनय ?" - "सब ओकरे हीं, ओकरे बनल-छुअल-छापल ...।" कहके उ बड़ी घिरना से मुँह सिकोड़ लेलक ।) (समसा॰03:1:54.14)
90 घुटब (हमरा तर बइठ के बातचीत में ऊ भूलि गेलइ हल कि ऊ के हइ । तीन दिन से रात-दिन कउन पीड़ा में घुटब करऽ हलइ आउ की सोंचि के काहे ले घर से निकललइ हल ।) (समसा॰03:1:44.27)
91 घुरमुरिया (~ मारना) (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।) (समसा॰03:1:43.2)
92 चद्दर-उद्दर (दस से बेसी बज गेल हे । घरे रहऽ हली तब आठ बजे के बाद सीधे पाँच बजऽ हल । चद्दर-उद्दर झारली, तकिया फुलौली । अटैची के सिक्कड़ से बांधइतहीं हली कि एगो सज्जन बोललन ।) (समसा॰03:1:87.15)
93 चपचपाना (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।) (समसा॰03:1:43.4)
94 चलनय-फिरनय (उनकर दादी के गया टीसन पर हम देखलुँ हल ... चलनय-फिरनय देखके हमरा अप्पन जमानी पर सरम आवऽ हल ।) (समसा॰03:1:50.23)
95 चही (= चाही; चाहिए) (होयत सौखीन केउ तोरा उतारे । ... हीरा, मोती, नीलम, मानिक आ पोखराज से तइयार कइल एगो पंचधातु के माला तोरा चही । तोर किरीट में सब तह के रतन जड़ल रहे के चही ।) (समसा॰03:1:80.22, 23)
96 चिंता-फिकिर (अप्पन सौख-मौज, अउ मेहरारू के अलावे भाय-बहिन, माय-बाप के कोय चिंता-फिकिर ओकरा नञ् हे ।; ढेर देरी तक आँख फाड़ के हम बस पर के उ अमदी के देखते रह गेली अउ मन के मोर जोआला बाबू के गोड़ पर गिरके लोटपोट हो गेल, जइसे ऊ सच्छात् शंकर हथ, जेकरा अप्पन दिन-दुनियाँ, दौलत के कोय चिंता-फिकिर कहियो नञ् रहल ।) (समसा॰03:1:53.17, 55.23)
97 चुकू-मुकू (दे॰ चुको-मुको, चुकोमुको, चुक्को-मुक्को) (सजल-धजल दीदी के फूल अइसन चेहरा । आँख से आँख मिलल तो नन्हकू के नजर नीचे होके जमीन में गड़ गेल । चुकू-मुकू बइठ के मलकिनी के मन-मोताबिक कलकत्ता के मड़वारिन के खिस्सा सुनावे लगल - एक से एक अँटारी हे हुआँ । नीचे से नौतल्ला देखब तो माथा के टोपी गिर जाएत ।) (समसा॰03:1:67.21)
98 चुक्को-मुक्को (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।) (समसा॰03:1:43.2)
99 चूड़ा-गूँड़ (नन्हकू घंटा भर मलकिनी से गप्प करइत रहल अउ मलकिनी के देल चूड़ा-गूँड़ के कटोरा साफ कएला के बादे साफ करे ला उठल ।) (समसा॰03:1:68.11)
100 छँहुरा (जेकर आगु धन-सुख, अराम, सफलता, आदमीयत अरदास करऽ हल, अब ओकरे सुख हवा के कंधा पर चढ़के कौन लोक में कहाँ उड़ गेल ? गाम, टोला, जेवार में, इनका सब रुपइया के एगो झमेटगर दरखत बुझऽ हलन, जेकर छँहुरा में केतना के भलाय भेल हल ।) (समसा॰03:1:54.28)
101 छाव (हमर एगो बेटा कामदेव हलन जे खेसारी नियर अपन छावे न छोड़लन । बेकहल आ बेमाथ के लइका अपन साढ़ू महादेजी से छेड़खानी कर देलक आ उनकरे हाथ से मारल गेल ।) (समसा॰03:1:84.25)
102 छीछा-लेदर (= व्यर्थ का बकवास; फजीहत, बेइज्जती; दोषारोपण; दुर्दशा) (पंचइती में जवन मकसद से बोलावल गेल हे, अपने के मालुमे होएत ? तूँ-तूँ, मैं-मैं, थूका-थूकी, छीछालेदर से का फयदा ? अपने इज्जतदार ही, मनिंदे ही जेवार के । सही बात कबूल करे में अपने के दिकते का हे ?) (समसा॰03:1:71.27)
103 छुअल-छापल ("एगो मुसलमान हे - रेडीमेड के दुकान हे ओकर, जेकरा उ बचपन से खुम मानऽ हलन, इनकर बचपन के दोस्त के लड़का हे नजीर खान ।" - "अउ खनय-पिनय ?" - "सब ओकरे हीं, ओकरे बनल-छुअल-छापल ...।" कहके उ बड़ी घिरना से मुँह सिकोड़ लेलक ।) (समसा॰03:1:54.14)
104 छोटकु (= 'छोटका' का ऊनार्थक) (सहर के मकान के किराया अउ किताब के अमदनी छोटकु के पढ़ाय में लगत अउ हम्मर मरे के बाद दुनूँ भाय सहर के मकान राजी-खुसी बाँट लेत ।; हमरा अचानक मरे अउ छोटकु के घर नञ् लौटे के हालत में हम्मर संस्कार, किरिया-करम नजीर करत । उ जलावे, चाहे गाड़ दे, चाहे गंगा में ले जाके फेंक दे ।) (समसा॰03:1:55.16, 18)
105 छोपना (परसुराम के समय बाप के कहला पर माय रेनुका के छन में मूड़ी छोपना, छन में जोड़ना - ई तोर कइसन लीला हल ?) (समसा॰03:1:83.10)
106 जगत्तर (हम करूँ त का करूँ । सारा जगत्तर हम अप्पन अवाज भेजली बाकि कोई सुनवे न करे हे । अइसन पर चेतत के ।) (समसा॰03:1:59.24)
107 जग्गह (= जगह) (टोरंटो आउ मेक्सिको में 'सत् सिरी अकाल' आउ 'केम छे - केम छे' हो सकल हे आउ तूँ मगहे के धरती पर फुलुसबुकनी छाँटऽ हऽ ! जग्गह देख के आचरण करऽ ! सकुन्नत मिलतो ।) (समसा॰03:1:6.22)
108 जनगर (त ई मनु के बारे में, हमर इतिहास के पहिल मील के पत्थर के बारे में, जान के की हमर बोल-वचन जादे जनगर, जादे जिमेवार आउ जादे संजत नञ् रहे के चाही ?) (समसा॰03:1:11.16)
109 जन्नी-मरद (परसुँ ओकर भाय के चिट्ठी कारगिल मोरचा से अइलइ हल । कानोकान खबर मिलते मातर करीम के घर में जन्नी-मरद के अइसन हुजूम उमड़लइ कि कजइ तिल धरइ के जगह नञ् ।) (समसा॰03:1:45.3)
110 जब्बड़ (= निम्मन; अच्छा, बढ़िया) (पगला बोलते रहे, ओकरा से का ? एगो ओकरे कान जब्बड़ हे । सारा जहान के लोग मूरख हइ ?) (समसा॰03:1:60.9)
111 जरलाहा (हम तो खाली सरापे देके रह गेली । बस चलइत हल त ऊ जरलाहा के चेहरा करिखाही हँड़िया से हम पोत देती । तू मउगर आ घरघुस्सु बनके बिछौना पर पड़ल रहऽ ।) (समसा॰03:1:83.6)
112 जरिक्को (हम तो फूटल आँख से भी तोरा जरिक्को पसंद न कैली हल । अलचार हो गेली ।) (समसा॰03:1:78.25)
113 जिम्मेवारी (अब पूरा घर के जिम्मेवारी बउआ चतुर्भुज जी के कन्हा पर पड़ल । इनकर पढ़ाई-लिखाई बंद हो गेल ।) (समसा॰03:1:100.4)
114 जुकुत (= जुकुर; लायक) (नन्हकू सुनावे लगल । सुनएते-सुनएते ओकरा याद आएल मईंयाँ के बात । मईंयाँ मने बाबू साहेब, बाबू साहेब मने मालिक के लड़की, जे छौ साल पहिलहीं बिआहे जुकुत हो गेल हल । जेकरा ऊ 'दीदी' कहऽ हल । पुछलक - "मालिक ! दीदी के का हाल-चाल हइन । शादी तो ... ?") (समसा॰03:1:66.26)
115 जे हे से कि (पंचइती एहीं पर खतम हो गेल । कहानी कहताहर ई कथा के थोड़ा अउर आगे ले जा हथ । ऊ सुनावऽ हथ कि दोसरके दिन साँझ होएते-होएते गाँव में आन्हीं अइसन खबर दउड़े लगल कि नन्हकुआ के बेटा अब-तब में हे । फिर इ खबर मिलल कि ओकर बेटा मर गेल । लहास लेके मरघटा पर चल गेलन लोग । नन्हकू के रोवइत-रोवइत हालत एकदम खराब हे । ऊ जे हे से कि 'सत्' के गरिया रहल हे । अइसने ढेर मनी अफवाह ।) (समसा॰03:1:73.9)
116 जेकरे-सेकरे (अखबार-पतरिका में कहानी-कविता लिख के अउ वेतन अमदनी से ढेर बचा ले हलन, लेकिन जेकरे-सेकरे काम में जरूरी पड़े पर लगा दे हलन ।) (समसा॰03:1:52.16)
117 जेवठान (= जेठान) (सच पूछल जाय तो तोरा अइसन आलसी सिरिष्टी में एको न मिलत । तूँ हर कातिक के जेवठान के दिन सेसनाग के बिछउना से अपन देह डोलावऽ ह । बाकी दिन बिछौने पर पड़ल रहवऽ ।) (समसा॰03:1:80.12)
118 जेह (= जे; ~ में = जिसमें) (हमर सवाल जइसे उठाके ओकरा ऊहे माहौल में जा पटकलकइ हल, जेह में हर तरफ से ठूल आउर ताना ओकर आतमा के बनाहे के मथि के धरि देलकइ हल ।) (समसा॰03:1:44.29)
119 झंगरी (= झंगड़ी) (लगल कि उ झमेटगर पेड़ के डंघुरी अइसन मुरझा गेल हे, जइसे होलइया में झोंके पर बूँट-केराय के झंगरी ।) (समसा॰03:1:55.4)
120 झमाना (हरिन मता देवइवला बीच दुपहरिया में परवेज के फोन पर बतियावइ ले ऊ घर से निकसि गेलइ आउ चलते-चलते परेशान, भरकोस्सा पाट वली सकरी नदी पार करइत-करइत तऽ जइसे झुलसि के मातल, कछार के महुआ गाछ तर झमा बइठलइ हल ।) (समसा॰03:1:45.26)
121 झमेटगर (= झमेठगर, झमठगर) (जेकर आगु धन-सुख, अराम, सफलता, आदमीयत अरदास करऽ हल, अब ओकरे सुख हवा के कंधा पर चढ़के कौन लोक में कहाँ उड़ गेल ? गाम, टोला, जेवार में, इनका सब रुपइया के एगो झमेटगर दरखत बुझऽ हलन, जेकर छँहुरा में केतना के भलाय भेल हल ।; लगल कि उ झमेटगर पेड़ के डंघुरी अइसन मुरझा गेल हे, जइसे होलइया में झोंके पर बूँट-केराय के झंगरी ।) (समसा॰03:1:54.27, 55.3)
122 झरना (= झड़ना) (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।) (समसा॰03:1:43.3)
123 झलाझल (गाम के मकान में नूनी चूअऽ हल । अप्पन सौख-मौज के गियारी दबा के, पेट काट के ओकरा केतना जतन करके उ अइँटा सिरमिट चूना-रंग से झलाझल कर देलन ।) (समसा॰03:1:52.21)
124 झुठिआना (= झूठा साबित करना) (मुंबई मेल पटरी के छाती उ धरती रौंदले, हवा के झूठिअउले, हवा से बात करइत, तूफान मचउले, दनादन उड़ रहल हल ।) (समसा॰03:1:52.25)
125 टेट (= जेभी; जेब, पॉकेट) (~ गरमाना) (छौ साल तक नौकरी कएला के बाद जब ओकर टेट गरमाएल तो याद आएल अपन गाँव, अपन माय, बेटा अउर बेटा के माय । माया-मोह एतना जगल कि अपन मालिक से बात कएलक अउर एक महिना के छुट्टी लेके गाँव चल आएल ।) (समसा॰03:1:65.22)
126 डंघुरी (= डँहुड़ी; डाली) (लगल कि उ झमेटगर पेड़ के डंघुरी अइसन मुरझा गेल हे, जइसे होलइया में झोंके पर बूँट-केराय के झंगरी ।) (समसा॰03:1:55.4)
127 डरीर (ई अछरंग न हो, बावन तोला पावस्ती आ पत्थल के डरीर हो । तोर तीनो औगुन के हिगरा-हिगरा के हम समझा दे ही ।) (समसा॰03:1:79.12)
128 डहकना (विधना के मारल रामजी चौदह बरिस तक फूल अइसन कोमल मेहरारू अउ बिजली-आग जइसन डहकइत भाय के संगे ले के जंगल अगोरलन ।) (समसा॰03:1:49.16)
129 डिराड़ (राम, किसन, गौतम, सुभास के इ देस में पसु-पच्छी सब के पेयार करे के सिच्छा देल जाहे । दोस्ती में अमीर-गरीब के डिराड़ इहाँ नञ् हे । किसन-सुदामा एक्कर नमूना हथ ।) (समसा॰03:1:51.10)
130 डेरगूह (= डरने वाला, कायर) (मोरचा के नामे से हुनखा हद्दस समा गेलइ आउ श्रीनगर छावनी अस्पताल में भर्ती हो गेलन । हम नञ् समझऽ हलिअइ कि हमर बहनोय एत्ते कायर होतइ ।/ आउ तखनइ से लोग ओकरा ताना मारऽ लगलइ हल - तऽ, रेशमा के सइयाँ डेरगूह ! गे दइया, सब तऽ लड़ि रहलइ हे, आउ एगो ई जवान हइ कि खटिया पर टउनिक पी रहलइ हे, छी !) (समसा॰03:1:45.18)
131 डौंघी (दे॰ डउँघी) (ओकर बाद उ ठहाका मार के हँस्से लगल, हँस्से लगल । अवाज से असमान फट्टे लगल, गाछ के डौंघी कड़कड़ा के टूटे लगल ।) (समसा॰03:1:60.4)
132 ढनकना (हमरा से कोय बाप के नाम पुछतन त हम अटल बिहारी वाजपेयी थोड़े कह देम । मदर टेरेसा के माय समझम आउ अपन माय के दुआरी-दुआरी ढनके ल छोड़ देम ।) (समसा॰03:1:7.2)
133 ढरकना (आँख से ओकर लोर ढरक जाहे ।) (समसा॰03:1:58.5)
134 ढूका (~ लगाना) (एगो दरोपदी के लूगा खिंचला पर महाभारत भेल हल, बाकि तूँ तो ढूका लगा के सैकड़ों मेहरारुन के लूगा-फाटा नुकैलऽ हल ।) (समसा॰03:1:83.8)
135 ढेढर (अपन आँख से केकरो अपन लिलार न देखाई पड़े ! अपन ढेढर न देख के दोसर के फुल्ली लोग निहारऽ हे ।) (समसा॰03:1:77.19)
136 ढेरेक (= बहुत-कुछ) (डॉ. उमाशंकर सिंह 'सुमन' मगही-हिंदी में खूब पकड़ रखऽ हथ । मगही में ई अपना के रामप्रसाद स्कूल के प्रोडक्ट बतावऽ हथ । हमर नजर में इनका में लेखक के रूप में ढेरेक संभावना हे ।) (समसा॰03:1:90.3)
137 तेलही (भले मगहियन तोरा नियन संभ्रांत, अभिजात्य नञ् कहला रहल हे बकि अपन बाल-बच्चन ले सोन्ह मट्टी के गंध, सुगंधित हावा, संतुलित पर्यावरण तूँ जँघिया-बनियान बेच के भी नञ् जुटा सकवऽ । तेलही पकौड़ी इया चौकलेट चाउमीन जेतना खा-खिला लऽ, ताजा आउ दुद्धा-भतिया के सवाद अबरी जलम में लीहऽ ।) (समसा॰03:1:6.6)
138 थमाना ("सुनइत हऽ न तोहनी सब ? इ नन्हकुआ के बढ़कुआ बनल । अइसन बदमासी ! अइसन मजाक ! अरे एही करे ला हउ तो जो अपन बाप से कर, माय से कर, गैर से कर । का हो गेल दुनियाँ ? लड़िकाई से मोंछ के रेघारी आवे तक जे हमरे अनाज पर पोसाएल, हमरे निमक खएलक, वो ही परदेस से दु पइसा हाथ में लेके आएल तो थमाइते न हे ?") (समसा॰03:1:71.12)
139 थूका-थूकी (पंचइती में जवन मकसद से बोलावल गेल हे, अपने के मालुमे होएत ? तूँ-तूँ, मैं-मैं, थूका-थूकी, छीछालेदर से का फयदा ? अपने इज्जतदार ही, मनिंदे ही जेवार के । सही बात कबूल करे में अपने के दिकते का हे ?) (समसा॰03:1:71.26)
140 दइया (~ गे !) (इस्स ! दइया गे, तूँ तऽ नजूमी नियर बात करऽ हो जी, कहाँ घर हो ? - बायाँ हाँथ पर गाल रखि के ऊ एगो खास अंदाज में मुसकइत पुछलकइ ।; मोरचा के नामे से हुनखा हद्दस समा गेलइ आउ श्रीनगर छावनी अस्पताल में भर्ती हो गेलन । हम नञ् समझऽ हलिअइ कि हमर बहनोय एत्ते कायर होतइ ।/ आउ तखनइ से लोग ओकरा ताना मारऽ लगलइ हल - तऽ, रेशमा के सइयाँ डेरगूह ! गे दइया, सब तऽ लड़ि रहलइ हे, आउ एगो ई जवान हइ कि खटिया पर टउनिक पी रहलइ हे, छी !) (समसा॰03:1:43.21, 45.18)
141 दक्क-दक्क (तीन-चार दिन के बाद उनकर दलान पर एक मूरत आएल । उज्जर बग-बग धोती अउर दक्क-दक्क कुरता पहिनले, कान्हा पर ललका गमछा धएले अउर दोसरा कान्हा पर रेडियो लटकएले ।) (समसा॰03:1:66.4)
142 दमाही (फिनो खटिया से उठलन । दमाही के बैल अइसन चार-पाँच डेग गोले घुमलन अउ बिफरइत अपन खटिया पर पसर गेलन ।) (समसा॰03:1:71.16)
143 दारोमदार (= निर्भर) (जमींदारी बौन्ड के रुपेआ हल मिलेवाला । ओकरे पर सब दारोमदार हल ।) (समसा॰03:1:68.24)
144 दिन-दुनियाँ (दिन-दुनियाँ देख के आँख के आगु अब पुनियो में अमस्या के अंधरिया लौकऽ हे ।) (समसा॰03:1:54.7)
145 दुबर-पातर (लगभग बीस बरिस के बाद 1983 के जाड़ा में अचुके उ एक दिन बोधगया के मंदिर घुमइत भेंट गेलन, साथे में एगो गोरनार, लत्तर जइसन, दुबर-पातर, बिना हाड़-मास के मेहरारू के देख के इ समझ में आ गेल कि उ एगो से दूगो हो गेलन हे ।) (समसा॰03:1:50.9)
146 देनय (परोपकार पुन हे, अउ दुख देनय पाप ।) (समसा॰03:1:51.24)
147 देहजरुआ (सब्भे जवान सरहद पर दुसमन से लड़ि रहलइ हे । मुदा एगो हम्मर मरद हइ कि देहजरुआ हद्दस से बहाना बना के श्रीनगर सैनिक अस्पताल में बीमार पड़ल हइ ।) (समसा॰03:1:46.4)
148 दोआ (= दुआ) (कलकत्ता जाए से कम-से-कम एतना तो जरूरे होएल कि अपने सब के दोआ से दस-बारह हजार रुपेआ हाथ में हे ।) (समसा॰03:1:68.18)
149 धराँव (मगही भासा के पक्ष में ई तर्क भी न्याय सम्मत हे कि एकर ढेर साहित्य नालंदा-विक्रमशिला के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में लुटेरन द्वारा जरा देल गेल हे । बहुत से नीमन रचना छपे के अभाव में धराँव धरा गेल आउ काल-कवलित हो गेल ।) (समसा॰03:1:31.3)
150 धुकधुकाना (झूठमूठ के 'सौलेटरी रीपर' के पढ़ेवला लोग-बाग जदि मगध के धनरोपनी के गीत-कजरी सुन लेतन त उनकर करेजा धुकधुकाय लगत ।) (समसा॰03:1:5.16)
151 धुन्नल (~ रुइया अइसन केश) (1963 में जोवाला जी के एम.ए. के परिच्छा देके पटना से घर लउटते घड़ी उनकर दादी के गया टीसन पर हम देखलुँ हल - दूध अइसन दप-दप उज्जर, बरफ अइसन चमकइत बतीसो दाँत, धुन्नल रुइया अइसन फह-फह माथा में गिनल-गुथल केस, 87 बरिस के उमर में भी उनकर देह-दसा, चेहरा पर चमक हल ।) (समसा॰03:1:50.21)
152 धुरफंद (हमर पूजा करबे तो का पएबे ? छलबाज, कपटी, धुरफंदियन तोरा जीए न देतन, जीते के बात तो दूर के हे । धुरफंदियन के धुरफंदिए से हरा सकऽ हें । अपन बेटा लेके घर जा । बुद्धि, छल, धुरफंदी से काम निकालऽ ।) (समसा॰03:1:73.16, 17)
153 धुरफंदी (हमर पूजा करबे तो का पएबे ? छलबाज, कपटी, धुरफंदियन तोरा जीए न देतन, जीते के बात तो दूर के हे । धुरफंदियन के धुरफंदिए से हरा सकऽ हें । अपन बेटा लेके घर जा । बुद्धि, छल, धुरफंदी से काम निकालऽ ।) (समसा॰03:1:73.17, 18)
154 धौगना (डॉ. नलिन के संस्कृत, पालि आउ हिंदी तीनों विषय के प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त हे । एकर अलावे ई डी.लिट्. भी हथ । ने मालूम कय दर्जन शोधार्थी इनकर अर-असीरवाद से विदमान बन के धौगल चलऽ हथ । केतना कवि कविआँठ बन के नितराल चलऽ हथ ।) (समसा॰03:1:106.8)
155 नक्कल (= नकल) (उनकर की कहना जे गाँव-घर छोड़ के चल गेलन । बकि तूँ उनकर नक्कल करऽ हऽ ई बुद्धिमानी नञ् कहल जा सको ।) (समसा॰03:1:6.25)
156 नखलउ (= लखनऊ) (पटना में सादी-रोसकदी, बिदाय वाला काम पूरा कराके उ नखलउ लौट गेलन, अउ हम अप्पन घर राजगीर ।) (समसा॰03:1:53.22)
157 नजर-गुजर (~ लगना) (आज तक विश्वविद्यालय में टौप करे वाला छात्र के कोंपी सार्वजनिक न करल गेल, जबकि ई माँग उठइत रहल हे । सार्वजनिक न करे के पीछे हमरा लगऽ हे कि ऊ सार्वजनिक करे के चीजो न होवे । ऊ तो धरोहर होवऽ हे से ओकरा अइसन रख देल जाहे कि हवा-बतास इया नजर-गुजर नऽ लगे ।) (समसा॰03:1:93.20)
158 नामी-गरामी (ई देखल भी जा रहल हे कि कोई नामी-गरामी साहितकार के उनकर किताब इया नाम के उजागर करे में बहुते हाँथ रहल हे ।) (समसा॰03:1:94.10)
159 नाय (= नाव) (लेकिन अब सब भरनठ हो गेल हे । नञ् कोय ईमनदार नेता हे, नञ् सरकारी करमचारी, नञ् कोय ओइसन दारसनिक आउ समाजसेवी हे, जे देस के डूबइत नाय के बचा सके ।) (समसा॰03:1:51.13)
160 निमोछिया (मोंछ-दाढ़ी तोरा कभी भेल जे मरद के असली पछान हे ? मिरतूलोक में निमोछिया के खूब चिड़कावल जाहे ।; डेली पसिन्जर के संख्या सौ में होअऽ हे - से तो भारी पड़ जा हथ आउ इनकर संख्या तो हजार में हे । फिर निमोछिया ग्रुप के पास तो कोई बुद्धि न होअऽ हे । कुछ बोलना हे साढ़ेसाती के निमंत्रण देना ।) (समसा॰03:1:83.23, 88.21)
161 निम्मन (जब दिमाग के दरवाजा पर जवानी के उमंग पहरेदार बन के बैठ जाहे, तब कोय निम्मन बात कि, हवा भी अंदर नञ् पहुँच सकऽ हे ।) (समसा॰03:1:53.20)
162 नीचू (= नीचे) (हमर मुँह ताकइत ऊ गंभीर हो गेलइ हल, फिन नीचू ताकइत जमीन खुरचऽ लगलइ हल अंगुरी से ।) (समसा॰03:1:44.20)
163 नुकाना (= छिपाना) (एगो दरोपदी के लूगा खिंचला पर महाभारत भेल हल, बाकि तूँ तो ढूका लगा के सैकड़ों मेहरारुन के लूगा-फाटा नुकैलऽ हल ।) (समसा॰03:1:83.9)
164 नूनी (गाम के मकान में नूनी चूअऽ हल । अप्पन सौख-मौज के गियारी दबा के, पेट काट के ओकरा केतना जतन करके उ अइँटा सिरमिट चूना-रंग से झलाझल कर देलन ।) (समसा॰03:1:52.20)
165 नोखगर (= नोकदार) (बाप के हिन्छा हलइ कि बेटा कलट्टर, जज, इंजीनियर, वकील चाहे एस.पी. बने, लेकिन मन के हिन्छा केकर पूरल हे । कुछ करम के हाथ में, तो कुछ विधना के हाथ में रहऽ हे, जे उ जलमइ से पहिले केकरो लिलार में खोद के अप्पन नोखगर कलम से लिख दे हथ ।) (समसा॰03:1:49.14)
166 पगलाना (तू काहे ला पगलाइल हें, उ पगला से कउन पूछे । लइकन सब ओकरा लुलुआइत हलन, ओकर कपड़ा खीचैइत हलन, ओकरा लंगटे करइत हलन, थूक फेकइत हलन, पगला से आजिज हो गेलन हल ।) (समसा॰03:1:58.18)
167 पछान (मोंछ-दाढ़ी तोरा कभी भेल जे मरद के असली पछान हे ? मिरतूलोक में निमोछिया के खूब चिड़कावल जाहे ।) (समसा॰03:1:83.23)
168 पड़ी (= परी) (इन्नर के ~) (सोना के गहना पहिनले रुन-झुन करइत मड़वारी सब के मेहारू, बेटी । भगवान धनो देले हथी अउ अपने हाथे उनकर रूप-रंग गढ़ले हथ । इन्नर के पड़ी सुनऽ ही खिस्सा-कहानी में । ओही हुआँ आँख से देखली तो हम भुला गेली गाँव-घर, मेहारू-परिवार सब कुछ ।) (समसा॰03:1:67.25)
169 पथार (हमनी बिहार रेजिमेंट के साथी सब तीन तरफ से अप्पन ढेरो साथी से बिछुड़इत आउ दुश्मन के पथार लगावइत टायगर चोटी पर अपन झंडा फहरा के फतह हासिल करि लेलिअइ हे ।) (समसा॰03:1:45.12)
170 परचित (= परिचित) (उ अप्पन छोटकी बेटी के बियाह करके, करजा-पैंचा लेके छोटका बेटा के पढ़ाय खातिर दिल्ली भेज के आजकल अप्पन एगो परचित अमदी के साथ रहऽ हथ ।) (समसा॰03:1:53.26)
171 परसुँ (= परसों) (परसुँ ओकर भाय के चिट्ठी कारगिल मोरचा से अइलइ हल । कानोकान खबर मिलते मातर करीम के घर में जन्नी-मरद के अइसन हुजूम उमड़लइ कि कजइ तिल धरइ के जगह नञ् ।) (समसा॰03:1:45.2)
172 पलखत (पलखत पाके न जानी कखनी अपन माया से ई इहाँ से अलोपित हो जा हथ, से हम न जानली । एक जगह पर ई टिकबे न करथ ।) (समसा॰03:1:78.5)
173 पसिन्जर (= पैसेन्जर; यात्री) (डेली पसिन्जर के संख्या सौ में होअऽ हे - से तो भारी पड़ जा हथ आउ इनकर संख्या तो हजार में हे । फिर निमोछिया ग्रुप के पास तो कोई बुद्धि न होअऽ हे । कुछ बोलना हे साढ़ेसाती के निमंत्रण देना ।) (समसा॰03:1:88.19)
174 पसिन्जरी (= पसिन्जर का काम; यात्रा) (एगो से लड़ाई करना बिर्हनी के खोंता में नाक रगड़ना हे आउ हम भी तो डेली पसिन्जरी कइली हे । छेड़े के परिनाम जानवे करऽ ही । चुपे रहे में फयदा हे ।) (समसा॰03:1:88.8)
175 पसीन (= म॰ पसन; हि॰ पसन्द) ("इ बिआह अप्पन पसीन से भेल कि बाबूजी आउ माय के हिन्छा से ?" - "1964 में इ बिआह पर ममता के मूरति, दया के देवी, स्नेह के समुंदर हम्मर दादी के पसीन के मोहर लगल हल, माय-बाप के बात-विचार से नञ् !) (समसा॰03:1:50.14, 16)
176 पहिने (= पहिले) (ओन्ने से की बात होलइ, हमरा मालूम नञ् । मगर एन्ने से रेशमा ओकरा धिक्कार रहलइ हल । पहिने तऽ जइसे बोली में मिसरी घोरि देलकइ - अस्लाम अलइकुम परवेज ! मुदा तुरतइ अवाज बदलि देलकइ हल ... - सुनऽ हिअइ जुध बंद हो गेलइ, अब तऽ तोर मन ठीक हो जाय के चाही ?) (समसा॰03:1:46.20)
177 पाँख-पुच्छी (परेम बिना पाँख-पुच्छी के पंछी हे, जे अकास से उतरऽ हे, अउ अकासे में उड़के बिला जाहे । इ संसार के सबसे बड़गो दौलत हे - परेम ।) (समसा॰03:1:54.23)
178 पातना (कान ~) (हम बगल में दम साधि के ओकर एक-एक बात सुनइ ले कान पाति देलिअइ हल ।) (समसा॰03:1:46.16)
179 पाप-पुन (= पाप-पुण्य) (अच्छा, अपने तो करमकांड, पूजा-पाहुर के ढकोसला कहऽ ही तो पाप-पुन कुछ हे कि नञ् ?; पाप-पुन के बीच में बिसफिटा देवाल थोड़के हे । अठारहो पुरान, चारो वेद के सार हे कि जे करम से केकरो सरीर, दिल, दिमाग के पीड़ा हो, से पाप अउ जेकरा से मन हरखित हो से पुन हे । परोपकार पुन हे, अउ दुख देनय पाप ।) (समसा॰03:1:51.20, 22)
180 पावस्ती (ई अछरंग न हो, बावन तोला पावस्ती आ पत्थल के डरीर हो । तोर तीनो औगुन के हिगरा-हिगरा के हम समझा दे ही ।) (समसा॰03:1:79.11)
181 पीढ़ा (अंगना में मलकिनी के देखलक तो 'पाँव लागी' कएलक । मलकिनी चेहाइत नजर से देख के 'खुश रहऽ' कहलन । बरामदा में रखल पीढ़ा लाके ओकरा दने सरका देलन । नन्हकू कान्हा से गमछी उतार के पीढ़ा पर रखलक अउ बइठ गेल ।) (समसा॰03:1:67.17, 18)
182 पुटपुटिया (दुनियाँ तो निमने चलइत हे । सब लोग अजाद हइए हथ । जेकरा मन करऽ हे तेकरा उड़ा देहे । पुटपुटिया दाग देहे ।) (समसा॰03:1:58.11)
183 पेसकी (= पेशगी; अग्रिम) (जेकरा से बात तय हल ऊ पेसकी मँगलक । न देवे पर दुसरा के हाथे जमीन बेचे के धमकी देवे लगल ।) (समसा॰03:1:70.4)
184 फटीचर (बिना ठाट-बाट के काम कइसे चलत ? फटीचर नियर रहेवला के कोई पूछऽ हे ?) (समसा॰03:1:81.23)
185 फरियाना (तनि फरिया के तो कहऽ साफ-साफ । कौन लच्छन से हम लालची, आलसी आ सौखीन लगऽ ही ? ई तीन-तीन अछरंग हमरा पर लगावे में तोरा जरिक्को सरम न आयल ?) (समसा॰03:1:79.8)
186 फलना (इधर नेता लोग चुनाव जीते ला पार्टी के नाम कम, अपन नेता के नाम के माला जादे जपऽ हथ । कोई कहऽ हथ हम फलना के संतान ही ।; बहुते लोग के सुनली होयत कि हम तो फलना विदमान के चेला रहली हे, फलना से पढ़ली हे, फलना से तो रोजे भेंट होवऽ हल इया फलना विद्यापीठ इया विश्वविद्यालय से हम पास कइली हे । ई बात तो ठीके हे, बाकि अपने ओइसन बन पइली कि नऽ, सवाल ई हे ।) (समसा॰03:1:92.25, 93.9, 10, 11)
187 फुटानी (फरमाइस आ फुटानी आज तलक तोरा नियर कोई कैलक ? केतना कहूँ, मुँह दुखा गेल । सौखीनी आउ कइसन होवऽ हे ?) (समसा॰03:1:81.3)
188 फुलुसबुकनी (~ छाँटना) (ई कहऽ ने कि कोय बकलोल विदमान से सुन लेलऽ हऽ कि मगही दलित लोग के भाषा हे, आदिवासी सब के भाषा हे, तोर अभिजात्य जबान पर ई इहे गुने नञ् चढ़ो । बछिया के ताऊ हऽ तूँ ! टोरंटो आउ मेक्सिको में 'सत् सिरी अकाल' आउ 'केम छे - केम छे' हो सकल हे आउ तूँ मगहे के धरती पर फुलुसबुकनी छाँटऽ हऽ ! जग्गह देख के आचरण करऽ ! सकुन्नत मिलतो ।) (समसा॰03:1:6.22)
189 फुल्ली (अपन आँख से केकरो अपन लिलार न देखाई पड़े ! अपन ढेढर न देख के दोसर के फुल्ली लोग निहारऽ हे ।) (समसा॰03:1:77.20)
190 बकबकाना (कोय उ पगला के पूछे ला नञ् तैयार रहे कि उ का बकबकैले हे, जेकर अवाज असमान तक अनोर कइले हे ।; अब पगला के, के रोके, के पूछे कि तू का बकबकैले हें ।) (समसा॰03:1:58.4, 9)
191 बकबक्की (कउन हलन उ ! उ पगला के सामने अप्पन हाथ फैला के खड़ा हो गेलन । उनकर देह पर भभूत हल । धरती के मट्टी हल । उजरका रेत नियन उनखर देह चाँदी नियन चमक रहल हल । पगला आवइत-आवइत रुक गेल - रुक गेल बकबक्की ओकर ।) (समसा॰03:1:59.13)
192 बकलोल (= मूर्ख) (जबकि मगही बोलते घड़ी तो तोर चहेती भाषा अंगरेजी के बेहवार के पूरा छूट दे देलियो हे, त ई बोकराती तो करवे नञ् करऽ कि मगही बोले से हमर हिंदी बिगड़ जाहे । ई कहऽ ने कि कोय बकलोल विदमान से सुन लेलऽ हऽ कि मगही दलित लोग के भाषा हे, आदिवासी सब के भाषा हे, तोर अभिजात्य जबान पर ई इहे गुने नञ् चढ़ो ।) (समसा॰03:1:6.18)
193 बग-बग (उज्जर ~) (तीन-चार दिन के बाद उनकर दलान पर एक मूरत आएल । उज्जर बग-बग धोती अउर दक्क-दक्क कुरता पहिनले, कान्हा पर ललका गमछा धएले अउर दोसरा कान्हा पर रेडियो लटकएले ।) (समसा॰03:1:66.3)
194 बड़वरगी (~ बखानना) (नन्हकू अउर कुछ कहइत, लेकिन दीदी टोक देलकइ बीचे में - "बहुते बड़वारगी बखानइत हऽ हुँआँ के । ई बतावऽ कि हुँआँ से का लएला हे हमरा खातिर ?" नन्हकू माथा खजुअलक । फिर बोलल - "हाँ लएले ही तोरा खातिर ढाका के बनल मलमल के थान अउर बनारसी साड़ी । तोर सादी में देबवऽ दीदी ।") (समसा॰03:1:68.2)
195 बढ़कुआ ("सुनइत हऽ न तोहनी सब ? इ नन्हकुआ के बढ़कुआ बनल । अइसन बदमासी ! अइसन मजाक ! अरे एही करे ला हउ तो जो अपन बाप से कर, माय से कर, गैर से कर । का हो गेल दुनियाँ ? लड़िकाई से मोंछ के रेघारी आवे तक जे हमरे अनाज पर पोसाएल, हमरे निमक खएलक, वो ही परदेस से दु पइसा हाथ में लेके आएल तो थमाइते न हे ?") (समसा॰03:1:71.9)
196 बढ़मा (= बर्हमा; ब्रह्मा) (कोई महादे के भेजल इहाँ आवत, ई ओकरा बढ़मा जी के पास भेज देतन, कभी महादे के पास पेठैतन । जे लोग के दिमाग कमजोर रहऽ हे ओही नेआव करे में कसर-मसर करऽ हे !) (समसा॰03:1:81.18)
197 बदराना (= बादर/ बादल छाना) (ओकर आँखि कभी गुस्सा आउ नफरत से जलि सिकुड़ि उठऽ हलइ तऽ कभी बदराल अकास सन चुचुआल ।) (समसा॰03:1:45.29)
198 बनाहे (~ के = बनाय के) (हमर सवाल जइसे उठाके ओकरा ऊहे माहौल में जा पटकलकइ हल, जेह में हर तरफ से ठूल आउर ताना ओकर आतमा के बनाहे के मथि के धरि देलकइ हल ।) (समसा॰03:1:45.1)
199 बरमहल (सावन-भादो महीना में सुरुज के रथ पर उनकरे साथ ऊ बरमहल रहऽ हे । ऊ चवन रिसी के पिता हल ।; तोरा नियर जालिया, ठग आ बहुरुपिया आज तक कोई भेल ? जालंधर वला कांड के सराप भुला गेलऽ हे, बरमहल ओकरे गोर तर रहे पड़ऽ हवऽ ?) (समसा॰03:1:82.24, 84.16)
200 बलाय (= बला) (एन्ने, न ओन्ने, ई बलाय कन्ने से हमरा भिजुन आ गेलन हे ।; हमरा बलाय कहऽ ह ? जब हम बलाय हली तब समुन्नर से निकलइते लपकइत हमर हाथ काहे पकड़ लेलऽ हल ?) (समसा॰03:1:78.10, 14, 15)
201 बहनोय (= बहनोई) (मोरचा के नामे से हुनखा हद्दस समा गेलइ आउ श्रीनगर छावनी अस्पताल में भर्ती हो गेलन । हम नञ् समझऽ हलिअइ कि हमर बहनोय एत्ते कायर होतइ ।) (समसा॰03:1:45.15)
202 बाभन-रजपुत (एकदमे से बाभन-रजपुत जुकुर लगइत हे । सोकुमारी अइसन कि जरा सुकुन सींक मारला पर देह से खून टपके लगे ।) (समसा॰03:1:65.27)
203 बारना (= जलाना) (दीया ~) (जानऽ हीं परवेज, सीमा पर लड़इत अगर तूँ सहीद हो जइतहीं हल, तऽ जिगर के खून से तोहर कब्र पर दीया बारतिअउ हल । मुदा अब ... अब डर से चूड़ी पेन्ह के साया में घुसि जायवला ... डर से पइजामा में पेसाब करि देबइवला तोहरा सन कायर के, कसम काली पगड़ी वला के, सौहर कहइ में कन्नी खा लेबइ के मन करऽ हउ !) (समसा॰03:1:46.29)
204 बाह (ठीके कहइत हऽ हो । हियाँ तो बड़-बड़ ऊँट दहलाएल जाइत हे, गदहवा के कवन बाह ? हमरे देखऽ । एके गो बेटी हे । एतना जमीन-जोत हे । बाकि बिआह के खरचा जोगाड़ कएल मोहाल हो गेल ।) (समसा॰03:1:68.22)
205 बिर्हनी (= बिढ़नी, ततैया) (एगो से लड़ाई करना बिर्हनी के खोंता में नाक रगड़ना हे आउ हम भी तो डेली पसिन्जरी कइली हे । छेड़े के परिनाम जानवे करऽ ही । चुपे रहे में फयदा हे ।) (समसा॰03:1:88.7)
206 बूँट-केराय (लगल कि उ झमेटगर पेड़ के डंघुरी अइसन मुरझा गेल हे, जइसे होलइया में झोंके पर बूँट-केराय के झंगरी ।) (समसा॰03:1:55.4)
207 बेकहल (हमर एगो बेटा कामदेव हलन जे खेसारी नियर अपन छावे न छोड़लन । बेकहल आ बेमाथ के लइका अपन साढ़ू महादेजी से छेड़खानी कर देलक आ उनकरे हाथ से मारल गेल ।) (समसा॰03:1:84.25)
208 बेकुफी (दे॰ बेकूफी) (नीम के पत्ता आउ डघुरी में मिठास अउ सुरूज के आगु में चंदरमा के सीतलता खोजनय बेकुफी हे । आत्मविसवास अउ हिम्मत के बल से कोय अमदी जोर से ढेला फेंक के असमान में छेद कर सकऽ हे ।) (समसा॰03:1:52.11)
209 बेग (= बैग; bag) (चद्दर झारली आउ सोचली कि रतजग्गा तो होइए गेल । अब दू-चार घंटा दिन में सुतल जाय । मुँह धोके लौटली तो देखित ही, पूरे पाँच सवारी बेग कान्हा में लटकौले सवार हथ ।) (समसा॰03:1:88.1)
210 बेमाथ (हमर एगो बेटा कामदेव हलन जे खेसारी नियर अपन छावे न छोड़लन । बेकहल आ बेमाथ के लइका अपन साढ़ू महादेजी से छेड़खानी कर देलक आ उनकरे हाथ से मारल गेल ।) (समसा॰03:1:84.25)
211 बेमानी (= बेइमानी) (अमरित के बँटवारा करे में तोर बेमानी न हल ? ऊ घरी ठसाठस भरल सभा में रछसवन के लोभावे ला सुन्नर मेहरारू के रूप तूँ धारन कैलऽ हल !) (समसा॰03:1:79.29)
212 बेरस्ता (चतुर्भुज जी के कहना हे कि लेखक अप्पन नाटक के चरित्र के ओएसहीं जलम देवऽ हे, जइसे एक माय अप्पन बेटा के । बाकि बेटा रस्ता से बेरस्ता हो जाय त लेखक चाहे माय-बाप का करतन ।) (समसा॰03:1:100.24)
213 बोकराती (~ करना; ~ छाँटना) (करवऽ कबुद्धी ! कउन तरह के दिमाग पइलऽ हऽ जी ! जबकि मगही बोलते घड़ी तो तोर चहेती भाषा अंगरेजी के बेहवार के पूरा छूट दे देलियो हे, त ई बोकराती तो करवे नञ् करऽ कि मगही बोले से हमर हिंदी बिगड़ जाहे ।) (समसा॰03:1:6.17)
214 बोलनय (पढ़े-लिखे बोलनय सभे में हलन उ बच्चे से अजगुत तेज-तर्रार ।) (समसा॰03:1:49.28)
215 भंजाना (= भुनाना) (पार्टी चुनाव में जीते के 'नाम' से सहारा लेहे । जइसे कांग्रेस आज तक इंदिरा जी के नाम भंजावे से नऽ चुकइत हे ।; बिहार में राजद भी कभी-कभी नाम लेके भोट भंजावे के कोरसिस में जगदेव बाबू के नारा आउ नाम समाज में मोहरा के रूप में फेंकऽ हे ।) (समसा॰03:1:92.19, 22)
216 भकुआएल ( अपन बेटा लेके घर जा । बुद्धि, छल, धुरफंदी से काम निकालऽ । कोई दिक्कत न होतवऽ । नन्हकू भकुआएल हल । सतजुग फिनो समझवलन - एकरा तूँ सज्जन-साधु लोग पर मत अजमइहऽ । खाली धुरतन पर करिहऽ । अब रोवऽ मत, घर जा बेटा लेके ।) (समसा॰03:1:73.19)
217 भदगर (~ बात) (न ! न ! अइसन काहे कहइत हऽ । ई सब भगवान के किरपा हे हो । जेकरा दे हथ तो छप्पर फाड़ के अउ ले हथ तो ... बाबू साहेब के भदगर बात कहे में अच्छा न लगइन । एही से कहइत-कहइत रुक गेलन, लेकिन नन्हकू पूरा कएल चाहलक तो ओकरा बीचे में रोक देलन - कहऽ, कहाँ हलऽ एतना दिन ?) (समसा॰03:1:66.13)
218 भभूका (= लपट, ज्वाला, लौ) (चेहरा लाल ~ होना = क्रोध आदि से चेहरा लाल होना) (रोवे लगे हे उ । फिनु छने ओकर माथा, आँख पर खून चढ़ जाहे - लाल भभूका ! लगे हे जंगल में आग लग गल ।) (समसा॰03:1:57.13)
219 भरकोसा (= कोस भर वाला) (नदी के भयावन भरकोसा बलुआ पाट पार करइ के थकान, लगे दम चलते जाय के ओकर साहस छीन लेलकइ हल ।) (समसा॰03:1:43.6)
220 भरनठ (लेकिन अब सब भरनठ हो गेल हे । नञ् कोय ईमनदार नेता हे, नञ् सरकारी करमचारी, नञ् कोय ओइसन दारसनिक आउ समाजसेवी हे, जे देस के डूबइत नाय के बचा सके ।) (समसा॰03:1:51.12)
221 भरभराना (पढ़ाई के नाम पर तऽ अंग्रेजी ठाट-बाट के कोई कमी नऽ हे । अंगरेजी रटइत हथ - सीता के सीटा आउ राम के रामा पढ़इत हथ । पापा-मम्मी नाम के जोर हे । मतलब विश्वगुरु भारत भरभराइत हे आउ हिंगलिस में गिटपिटाइत हे ।) (समसा॰03:1:93.26)
222 भलाय (= भलाई) (जेकर आगु धन-सुख, अराम, सफलता, आदमीयत अरदास करऽ हल, अब ओकरे सुख हवा के कंधा पर चढ़के कौन लोक में कहाँ उड़ गेल ? गाम, टोला, जेवार में, इनका सब रुपइया के एगो झमेटगर दरखत बुझऽ हलन, जेकर छँहुरा में केतना के भलाय भेल हल ।) (समसा॰03:1:54.28)
223 भिरू (= भिर; पास) ("अइसन काहे कहइत ही मालिक । फटलो ही तबो पितंबरी ही ।"/ "अरे अब कहाँ नन्हकू ऊ पुरान बात । अबहीं तो हमरा आग लेसले हे । कोई मददगार नइखी देखइत । जेकरा भिरू मुँह खोलऽ, हुँवईं लचारी के बहाना । हिआँ तो बेइजत होइत देखला पर लोगन के करेजा ठंढा होवऽ हे न ।") (समसा॰03:1:69.8)
224 मईंयाँ (नन्हकू सुनावे लगल । सुनएते-सुनएते ओकरा याद आएल मईंयाँ के बात । मईंयाँ मने बाबू साहेब, बाबू साहेब मने मालिक के लड़की, जे छौ साल पहिलहीं बिआहे जुकुत हो गेल हल । जेकरा ऊ 'दीदी' कहऽ हल । पुछलक - "मालिक ! दीदी के का हाल-चाल हइन । शादी तो ... ?") (समसा॰03:1:66.25)
225 मउगर (अमरित के बँटवारा करे में तोर बेमानी न हल ? ऊ घरी ठसाठस भरल सभा में रछसवन के लोभावे ला सुन्नर मेहरारू के रूप तूँ धारन कैलऽ हल ! हम तो चकित हो गेली । मुँह तोप के खूब हँसइत रहली । ऊ घरी तोर सब लूर-लच्छन मेहरारू वला हो गेल हल । तनिको अंदाज न हल कि हमर बिआह अइसन मउगर आ बहुरुपिया से हो गेल हे !; हम तो खाली सरापे देके रह गेली । बस चलइत हल त ऊ जरलाहा के चेहरा करिखाही हँड़िया से हम पोत देती । तू मउगर आ घरघुस्सु बनके बिछौना पर पड़ल रहऽ ।) (समसा॰03:1:80.4, 83.6)
226 मउवत (= मउअत; मौत) ("हाँ मालिक ! परेसानी तो बढ़िए गेल ।" - नन्हकू बोलल ।/ "बढ़िए न गेल । ई परेसानी न हे, हमरा खातिर मउवत हे । ई चाहे तो हमर परान लेत इया फिर समझऽ समाज में, जेवार में, रिसतेदारन के बीच हमर नाक काट के छोड़त ।") (समसा॰03:1:69.3)
227 मजगर (= मजेदार) (एक बात साफ कर देइथी कि ई कोई कहानी न हे, लेकिन एकरा में कहानी हे मजगर ।) (समसा॰03:1:65.2)
228 मड़वारिन (सजल-धजल दीदी के फूल अइसन चेहरा । आँख से आँख मिलल तो नन्हकू के नजर नीचे होके जमीन में गड़ गेल । चुकू-मुकू बइठ के मलकिनी के मन-मोताबिक कलकत्ता के मड़वारिन के खिस्सा सुनावे लगल - एक से एक अँटारी हे हुआँ । नीचे से नौतल्ला देखब तो माथा के टोपी गिर जाएत ।) (समसा॰03:1:67.22)
229 मताना (हरिन मता देवइवला बीच दुपहरिया में परवेज के फोन पर बतियावइ ले ऊ घर से निकसि गेलइ आउ चलते-चलते परेशान, भरकोस्सा पाट वली सकरी नदी पार करइत-करइत तऽ जइसे झुलसि के मातल, कछार के महुआ गाछ तर झमा बइठलइ हल ।) (समसा॰03:1:45.23)
230 मरनय (हमरा बड़ अचरज-अजगुत लगल कि 102 बरिस के उमर में भी उनकर मरनय पर इ एतना दुखी हलन ।) (समसा॰03:1:51.1)
231 मसोमात (= मोसमात; विधवा) (पटना में एगो मसोमात के बेटी के बियाह अप्पन खरचा से करा रहलन हल ।) (समसा॰03:1:53.6)
232 माड़ा ("लेकिन अब सब भरनठ हो गेल हे । नञ् कोय ईमनदार नेता हे, नञ् सरकारी करमचारी, नञ् कोय ओइसन दारसनिक आउ समाजसेवी हे, जे देस के डूबइत नाय के बचा सके ।" - "अपने के आँख पर माड़ा आ गेल हे । आझो एक-से-एक लोग हथ ।") (समसा॰03:1:51.15)
233 मातल (= मत्तल) (हरिन मता देवइवला बीच दुपहरिया में परवेज के फोन पर बतियावइ ले ऊ घर से निकसि गेलइ आउ चलते-चलते परेशान, भरकोस्सा पाट वली सकरी नदी पार करइत-करइत तऽ जइसे झुलसि के मातल, कछार के महुआ गाछ तर झमा बइठलइ हल ।) (समसा॰03:1:45.25)
234 मामू (मथुरा में अपन मामू के पटक के परान लेलऽ ।) (समसा॰03:1:83.12)
235 मुँहफटय (उनकर मुँहफटय, स्वछंद खेयाल, साफगोई अउ क्रांतिकारी विचार के कारन अप्पन बाप से भी जिनगी भर सतेला बेवहार मिलल ।) (समसा॰03:1:52.16)
236 मूँड़ना (माथा ~) (पहिले 'लालू चालीसा' लिखल गेल तऽ इधर 'अटल चालीसा' भी रच देवल गेल । उधर कोई बड़हन नेता के नाम पर ट्रस्ट आउ संस्था खोल के जनता के माथा मूँड़ देल गेल ।) (समसा॰03:1:93.4)
237 मोहाल (प्रकृति के लीला अइसन भेल कि लगले-लगले पाँच साल अकाल पड़ल । अदमी के अनाज मोहाल हो गेल, गोरू के गँवत ।) (समसा॰03:1:65.10)
238 रजनेता (= राजनेता) (गुंडई करे ला लाइसेंस के जरूरते न हे । रजनेता के अजदिए हे ।) (समसा॰03:1:58.12)
239 रतजग्गा (= रात का जागरण) (इ गुन हम भी सीट के पानी से पोछली । चद्दर झारली आउ सोचली कि रतजग्गा तो होइए गेल । अब दू-चार घंटा दिन में सुतल जाय ।) (समसा॰03:1:87.28)
240 रसिया (रोज रात के एक्के सवाल । बाप की जवाब देइत होत ? तंग आके एक रात बोलल - राजा की खा होतइ - कोदो ? अरे राजा खा होतइ - रसिया आउ उप्पर से मोट छलगर दूध ।) (समसा॰03:1:97.6)
241 राड़-रेआन (खासा भीड़ अउ उ में नान्हे लोग के मुँड़ी जादे लौकल । बाबु साहेब के खाड़ देख के कए गो कानाफूसी करे लगलन । बाबू साहेब के दिमाग में तेजी आएल । सोचलन - ई सब राड़-रेआन, सिआरन के भीड़ से बाघ डेराएल तो जीने मोसकिल हे ।) (समसा॰03:1:72.4)
242 रुत-रुत (= रत-रत) (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।) (समसा॰03:1:43.3)
243 रेघारी ("सुनइत हऽ न तोहनी सब ? इ नन्हकुआ के बढ़कुआ बनल । अइसन बदमासी ! अइसन मजाक ! अरे एही करे ला हउ तो जो अपन बाप से कर, माय से कर, गैर से कर । का हो गेल दुनियाँ ? लड़िकाई से मोंछ के रेघारी आवे तक जे हमरे अनाज पर पोसाएल, हमरे निमक खएलक, वो ही परदेस से दु पइसा हाथ में लेके आएल तो थमाइते न हे ?") (समसा॰03:1:71.11)
244 रेहन (कलकत्ता जाए से कम-से-कम एतना तो जरूरे होएल कि अपने सब के दोआ से दस-बारह हजार रुपेआ हाथ में हे । हियाँ तो दू-चार हजार करजे हो जाइत । घरवो रेहन रखे पड़ जाइत ।) (समसा॰03:1:68.19)
245 लंगटे (~ करना = नंगा करना) (तू काहे ला पगलाइल हें, उ पगला से कउन पूछे । लइकन सब ओकरा लुलुआइत हलन, ओकर कपड़ा खीचैइत हलन, ओकरा लंगटे करइत हलन, थूक फेकइत हलन, पगला से आजिज हो गेलन हल ।) (समसा॰03:1:58.19)
246 लकड़दादा (जउन मनु से हमर पैदाइश के रिश्ता जुड़ गेल, जे हम सब के लकड़दादा बन गेलन । जे हमरा नाम देलन आखिर ऊ मनु हलन के ?) (समसा॰03:1:10.15)
247 लखलऊ (= लखनऊ) (लखलऊ में रह के भी दुनहूँ परानी के ठाट-बाट से रहनय नञ् बदलल हल, जइसे लखलऊ के हरियरी, ठाट-बाट, रंगीनी खुद हार के सरमा गेल हल ।) (समसा॰03:1:52.13, 14)
248 लगले-लगले (= लगातार; पास-पास, एक दूसरे से सटा-सटा) (प्रकृति के लीला अइसन भेल कि लगले-लगले पाँच साल अकाल पड़ल । अदमी के अनाज मोहाल हो गेल, गोरू के गँवत ।) (समसा॰03:1:65.9)
249 लतिआना (= लतियाना) (आ ऊ दिन तोर ई धरम आ करतब कहाँ भुला गेल हल जब एगो सधारन भिरगू रिसी घर में घुस के तोरा लतिऔलक हल ?) (समसा॰03:1:82.24)
250 ललचपना (= लालचपन) (समुन्नर से जे चउदह गो रतन निकलल ओकरा में से चार रतन तूँ अकेले हँसोत लेलऽ - ई तोर ललचपना न हल ?) (समसा॰03:1:79.14)
251 लहरी (= लहर) (एक भाव आवइत आउर एक भाव जाइत ओकर चेहरा हवा के झकोर से लहरी दर लहरी उठइत कोय तलाव के जल सतह सन हो उठलइ हल ।) (समसा॰03:1:45.27)
252 लुरगर (अपने ई कह सकऽ ही कि ऊ लुरगर होयतन, बुधगर होयतन, एही से उनका लोग लुरगरजी कहऽ होयतन । लुरगर तो एतना हथ कि दुनियाँ के जे भी समस्या हे ओकरा पर ऊ बिना पुछले भी राय देबे से बाज न अयतन ।) (समसा॰03:1:92.3, 4)
253 लुलुआना (तू काहे ला पगलाइल हें, उ पगला से कउन पूछे । लइकन सब ओकरा लुलुआइत हलन, ओकर कपड़ा खीचैइत हलन, ओकरा लंगटे करइत हलन, थूक फेकइत हलन, पगला से आजिज हो गेलन हल ।) (समसा॰03:1:58.19)
254 लूगा-फाटा (= लुग्गा-फट्टा) (एगो दरोपदी के लूगा खिंचला पर महाभारत भेल हल, बाकि तूँ तो ढूका लगा के सैकड़ों मेहरारुन के लूगा-फाटा नुकैलऽ हल ।) (समसा॰03:1:83.9)
255 लूर-लच्छन (अमरित के बँटवारा करे में तोर बेमानी न हल ? ऊ घरी ठसाठस भरल सभा में रछसवन के लोभावे ला सुन्नर मेहरारू के रूप तूँ धारन कैलऽ हल ! हम तो चकित हो गेली । मुँह तोप के खूब हँसइत रहली । ऊ घरी तोर सब लूर-लच्छन मेहरारू वला हो गेल हल । तनिको अंदाज न हल कि हमर बिआह अइसन मउगर आ बहुरुपिया से हो गेल हे !) (समसा॰03:1:80.3)
256 लूल्ह-लाँगड़ (अपन मन के हिन्छा जोआला केकरो नञ् बतावऽ हलन कि आखिर जात में, कुजात में, इंदर के परी से कि कोय कान-कोतर, आंधर, लूल्ह-लाँगड़ से बियाह करके कोय बड़गो आदर्श के नाम कमउतन, समाजसेवी के तमगा, साटिफिकेट लेतन ।) (समसा॰03:1:50.6)
257 लेरू-लइकन (फूल-पौधा तो उजड़वे करत, लेरू-लइकन भी अकाले जइता । कोइ रुक के सोचे ला, समझे ला तैयारे न हे, का करूँ ।) (समसा॰03:1:59.26)
258 लेसना (आग ~) ("अइसन काहे कहइत ही मालिक । फटलो ही तबो पितंबरी ही ।"/ "अरे अब कहाँ नन्हकू ऊ पुरान बात । अबहीं तो हमरा आग लेसले हे । कोई मददगार नइखी देखइत । जेकरा भिरू मुँह खोलऽ, हुँवईं लचारी के बहाना । हिआँ तो बेइजत होइत देखला पर लोगन के करेजा ठंढा होवऽ हे न ।") (समसा॰03:1:69.7)
259 संझउआ (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।) (समसा॰03:1:43.2)
260 सकुन्नत (टोरंटो आउ मेक्सिको में 'सत् सिरी अकाल' आउ 'केम छे - केम छे' हो सकल हे आउ तूँ मगहे के धरती पर फुलुसबुकनी छाँटऽ हऽ ! जग्गह देख के आचरण करऽ ! सकुन्नत मिलतो ।) (समसा॰03:1:6.22)
261 सजल-धजल (ओकर अवाज सुनते अपन कमरा से दीदी निकललन । नन्हकू के आँख तिरपित भेल । सजल-धजल दीदी के फूल अइसन चेहरा । आँख से आँख मिलल तो नन्हकू के नजर नीचे होके जमीन में गड़ गेल ।) (समसा॰03:1:67.20)
262 सतेला (= सौतेला) (उनकर मुँहफटय, स्वछंद खेयाल, साफगोई अउ क्रांतिकारी विचार के कारन अप्पन बाप से भी जिनगी भर सतेला बेवहार मिलल ।) (समसा॰03:1:52.18)
263 समझउनी (लाख कोरसिस-समझउनी से भी ओकर कान के परदा नञ् खुलल ।) (समसा॰03:1:53.18)
264 समुद्दर (टेम्स, वोल्गा से ओही अवाज उठ रहल हे । ओही अवाज सातो समुद्दर से ज्वार-भाटा में बदल रहल हे ।) (समसा॰03:1:57.17)
265 समुन्नर (एगो दुख रहित हल तब तो छिपा लेती, बाकि इहाँ तो दुख के समुन्नर लहरा रहल हे ।; हमरा बलाय कहऽ ह ? जब हम बलाय हली तब समुन्नर से निकलइते लपकइत हमर हाथ काहे पकड़ लेलऽ हल ?; हमर हाल ऊ आसकती नियर हो गेल हे गरुड़, जे कुइयाँ में गिरल त उहईं बस गेल । रोज साँप के बिछौना पर सूतऽ ही, भूलल-भटकल कहियो ई जदि करवट लेलन कि हम समुन्नर के पेट में अलोपित भेली ।) (समसा॰03:1:77.25, 78.15, 85.4)
266 सलेसल (= सले-सले) (तीन दिन से लगातार, जने जाय तनइ अइसने ठूल ... ताना ... सुनइत-सुनइत ओकर देह में सलेसल आगि धधकऽ लगलइ आउ आज्झ दुपहर होते पइसा निकालि के छूटल तीर सन घर से निकलि पड़लइ हल ।) (समसा॰03:1:45.21)
267 साँसत (जरूरत पड़ला पर अउरत भी बनली बाकि फिर ओही ढाक के तीन पात ! अइसन साँसत तो नाटक करवे ला लोग के भी न उठावे पड़ल होयत ।) (समसा॰03:1:85.9)
268 साकिटफिकिट (= साटिक-फिटिक; सर्टिफिकेट) (एगो सज्जन बोललन - "बाबूजी ! कैंसर के बीमारी है । जरा बैठा लूँ । बड़ी पून होगा ।" हम सोंचली कि पून लागी पूजा-पाठ तो कभी करली न । दान-धरम भी नहिएँ कइली । मोचन कला में निपुणता के साकिटफिकिट मिलले हे । यही मौका हे ।) (समसा॰03:1:87.21)
269 साढ़ू (हमर एगो बेटा कामदेव हलन जे खेसारी नियर अपन छावे न छोड़लन । बेकहल आ बेमाथ के लइका अपन साढ़ू महादेजी से छेड़खानी कर देलक आ उनकरे हाथ से मारल गेल ।) (समसा॰03:1:84.26)
270 सिक्कड़ ( दस से बेसी बज गेल हे । घरे रहऽ हली तब आठ बजे के बाद सीधे पाँच बजऽ हल । चद्दर-उद्दर झारली, तकिया फुलौली । अटैची के सिक्कड़ से बांधइतहीं हली कि एगो सज्जन बोललन ।) (समसा॰03:1:87.16)
271 सिरमिट (= सिमेंट) (गाम के मकान में नूनी चूअऽ हल । अप्पन सौख-मौज के गियारी दबा के, पेट काट के ओकरा केतना जतन करके उ अइँटा सिरमिट चूना-रंग से झलाझल कर देलन ।) (समसा॰03:1:52.21)
272 सुकुन (= सुन, सन, -सा) (एकदमे से बाभन-रजपुत जुकुर लगइत हे । सोकुमारी अइसन कि जरा सुकुन सींक मारला पर देह से खून टपके लगे ।) (समसा॰03:1:65.28)
273 सुत्तल (एगो मुसहर अप्पन बेटा, सहदेउआ जोरे सुत्तल हे । पाँच-छो बरिस के सहदेउ अप्पन बाप के मुँह नोचले हे । बाप से पुछले हे - एहो बाबू ! एहो बाबू !! राजा की खा होतइ हो बाबू ?) (समसा॰03:1:97.2)
274 सूद-मूर (दुकान पर भीड़ हे । भीड़ के लाभ ऊ सूद-मूर के साथे बसुलऽ हथ । उनका इमानदारी आउ असली समान बेचे के लेबुल जे लगल हे ।) (समसा॰03:1:95.4)
275 सेती (= से; ईहे ~ = इसीलिए) (ईहे सेती आन्हर स्वार्थ से हमरा नफरत हइ । आउ स्वार्थ से नफरत रखउ वला अदमी के घर कहाँ ?) (समसा॰03:1:44.9)
276 सेफारिस (= सिफारिश) (ओहनी के सेफारिस पर ओकरा मारवाड़ी भाई किहाँ नौकरी लग गेलई ।) (समसा॰03:1:65.20)
277 से-से (कोई किताब, लेख इया कविता के समीक्षा कउन कइलन हे - ई पर भी लोग के धेयान जादे खींचऽ हे । से-से ई रोग बढ़ल हे कि कोय तरह प्रभावशाली साहितकार के नाम जोड़ के अपन महानता सिद्ध करे के कोरसिस करतन ।) (समसा॰03:1:94.7)
278 सोकुमारी (= सुकुमारी; नाजुकता) (एकदमे से बाभन-रजपुत जुकुर लगइत हे । सोकुमारी अइसन कि जरा सुकुन सींक मारला पर देह से खून टपके लगे ।) (समसा॰03:1:65.27)
279 सोन्ह (= सोन्हा) (छोड़ऽ महराज ! भले मगहियन तोरा नियन संभ्रांत, अभिजात्य नञ् कहला रहल हे बकि अपन बाल-बच्चन ले सोन्ह मट्टी के गंध, सुगंधित हावा, संतुलित पर्यावरण तूँ जँघिया-बनियान बेच के भी नञ् जुटा सकवऽ ।) (समसा॰03:1:6.4)
280 सौखीन (= शौकीन) (हम कीचड़ न उछाली - हम तो दरपन तोरा मुँह के सामने रख रहली हे । तोरा नियर लालची, आलसी आ सौखीन अपन जिनगी में हम कहीं न देखली ।) (समसा॰03:1:79.6)
281 सौखीनी (= शौकीनी) (अब हमर सौखीनी सिद्ध करके देखावऽ जे तोरा ओर से हमरा पर लगावल अंतिम अछरंग हे ।; फरमाइस आ फुटानी आज तलक तोरा नियर कोई कैलक ? केतना कहूँ, मुँह दुखा गेल । सौखीनी आउ कइसन होवऽ हे ?) (समसा॰03:1:80.17, 81.4)
282 सौरी (= सउर; वह कमरा जिसमें कोई स्त्री प्रसव करती है) (जानऽ हीं, अम्मी की कहऽ हउ ? कहऽ हउ, अगर ई जानतिअइ हल तऽ परवेजवा के सौरिए घर में नोन चटा देतिअइ हल !) (समसा॰03:1:47.4)
283 हँसोतना (समुन्नर से जे चउदह गो रतन निकलल ओकरा में से चार रतन तूँ अकेले हँसोत लेलऽ - ई तोर ललचपना न हल ?) (समसा॰03:1:79.14)
284 हठुआ (~ मनी) (देश मगध आउ मगही के बारे में अब भी हठुआ मनी भरम पालले हे । आज भी कते विदमान के जनकारी में मगही बड़ी अहूठ भाषा हे, जे बिलकुल बकवास हे ।; इधर मगही साहित्य में इतिहास लिखाय लगल हे । ... एकरा पढ़े-देखे से हेठुआ मनी पुस्तक के सूची उपलब्ध हो जाहे ।) (समसा॰03:1:5.8, 31.14)
285 हद्दस (मोरचा के नामे से हुनखा हद्दस समा गेलइ आउ श्रीनगर छावनी अस्पताल में भर्ती हो गेलन । हम नञ् समझऽ हलिअइ कि हमर बहनोय एत्ते कायर होतइ ।; सब्भे जवान सरहद पर दुसमन से लड़ि रहलइ हे । मुदा एगो हम्मर मरद हइ कि देहजरुआ हद्दस से बहाना बना के श्रीनगर सैनिक अस्पताल में बीमार पड़ल हइ ।) (समसा॰03:1:45.14, 46.4)
286 हवा-बतास (आज तक विश्वविद्यालय में टौप करे वाला छात्र के कोंपी सार्वजनिक न करल गेल, जबकि ई माँग उठइत रहल हे । सार्वजनिक न करे के पीछे हमरा लगऽ हे कि ऊ सार्वजनिक करे के चीजो न होवे । ऊ तो धरोहर होवऽ हे से ओकरा अइसन रख देल जाहे कि हवा-बतास इया नजर-गुजर नऽ लगे ।) (समसा॰03:1:93.19)
287 हहो (= हकहो) (अच्छा, तऽ ई बात हइ ! - चुलबुल अंदाज में बिहँसि के पुछलकइ हल - मुदा जाति, कउन जाति के हहो ?) (समसा॰03:1:44.12)
288 हाट (= हार्ट; दिल) (हाट के बिमारी से मरे घड़ी जोआला जी के अप्पन लोरायल आँख लेके, उनकर हाँथ पकड़ के, कंधा पर बेटी के सादी के बोझ डाल देलन हल ।) (समसा॰03:1:53.7)
289 हिंगलिस (पढ़ाई के नाम पर तऽ अंग्रेजी ठाट-बाट के कोई कमी नऽ हे । अंगरेजी रटइत हथ - सीता के सीटा आउ राम के रामा पढ़इत हथ । पापा-मम्मी नाम के जोर हे । मतलब विश्वगुरु भारत भरभराइत हे आउ हिंगलिस में गिटपिटाइत हे ।) (समसा॰03:1:93.26)
290 हिंसाब (= हिसाब) (दलान में आएल तो बाबू साहेब छोह से बइठे ला कहलन । कान्हा से फिर गमछी उतारलक अउ भुइयाँ में हिंसाब से बइठल ।) (समसा॰03:1:68.13)
291 हिगराना (ई अछरंग न हो, बावन तोला पावस्ती आ पत्थल के डरीर हो । तोर तीनो औगुन के हिगरा-हिगरा के हम समझा दे ही ।) (समसा॰03:1:79.12)
292 हिन्छा (= इच्छा, कामना) (बाप के हिन्छा हलइ कि बेटा कलट्टर, जज, इंजीनियर, वकील चाहे एस.पी. बने, लेकिन मन के हिन्छा केकर पूरल हे ।) (समसा॰03:1:49.11, 12)
293 हिमतगर (= हिम्मत वाला) (बस से जोआला बाबू गया चल गेलन, लेकिन हम्मर मन में इ बात बारंबार बादल जइसन घुमइत हल कि इ जेतना हिमतगर, साफ कहनिहार अउ विद्रोही हथ, ओतने उनकर घरनी सांत ।) (समसा॰03:1:52.8)
294 हिलकान (~ पारना) (तोर नाम लेते लोर भर जा हलइ ओकर अँखिया में । हिलकान पारे लगऽ हल । बेस भेल तू आ गेलऽ । जाके मिल लेहू । ओकरा बड़का सरधा पूर जतइ ।) (समसा॰03:1:67.9)
295 हुँआँ (= हुआँ; वहाँ) (नन्हकू अउर कुछ कहइत, लेकिन दीदी टोक देलकइ बीचे में - "बहुते बड़वारगी बखानइत हऽ हुँआँ के । ई बतावऽ कि हुँआँ से का लएला हे हमरा खातिर ?" नन्हकू माथा खजुअलक । फिर बोलल - "हाँ लएले ही तोरा खातिर ढाका के बनल मलमल के थान अउर बनारसी साड़ी । तोर सादी में देबवऽ दीदी ।"; हुँआँ जाके पाँच-छौ बरिस में कुछो कमएले होएबा, कुछ जोगबे कएल होएबा ? गाँव में जिनगी बचावल मोसकिल हे ।) (समसा॰03:1:68.2, 15)
296 हुनखा (= म॰ उनका; हि॰ उन्हें, उनको) (मोरचा के नामे से हुनखा हद्दस समा गेलइ आउ श्रीनगर छावनी अस्पताल में भर्ती हो गेलन । हम नञ् समझऽ हलिअइ कि हमर बहनोय एत्ते कायर होतइ ।) (समसा॰03:1:45.14)
297 होलइया (लगल कि उ झमेटगर पेड़ के डंघुरी अइसन मुरझा गेल हे, जइसे होलइया में झोंके पर बूँट-केराय के झंगरी ।) (समसा॰03:1:55.4)
2 अउ (विधना के मारल रामजी चौदह बरिस तक फूल अइसन कोमल मेहरारू अउ बिजली-आग जइसन डहकइत भाय के संगे ले के जंगल अगोरलन ।) (समसा॰03:1:49.16)
3 अकेलुआ (धरती पर साइत भारत अकेलुआ देश हे, जहाँ बहुत्ते पराचीन काल से काल याने 'टाइम' के ठोस वैज्ञानिक दृष्टि से देखल गेल हे ।) (समसा॰03:1:11.9)
4 अग-जग (कवि नाम से कवि जादे प्रसन्न होवऽ हथ । मतलब नाम बहुते पेयारा होवऽ हे । एही से नाम के महिमा आउ महातम अगजग में गावल जाहे ।) (समसा॰03:1:94.28)
5 अगोरना (विधना के मारल रामजी चौदह बरिस तक फूल अइसन कोमल मेहरारू अउ बिजली-आग जइसन डहकइत भाय के संगे ले के जंगल अगोरलन ।) (समसा॰03:1:49.17)
6 अगोरिया (= अगोरी करनेवाला) (सहर के मकान किराया पर हे अउ बड़गो ताला गाम के मकान के अगोरिया हे ।) (समसा॰03:1:54.5)
7 अछरंग (तनि फरिया के तो कहऽ साफ-साफ । कौन लच्छन से हम लालची, आलसी आ सौखीन लगऽ ही ? ई तीन-तीन अछरंग हमरा पर लगावे में तोरा जरिक्को सरम न आयल ?; ई अछरंग न हो, बावन तोला पावस्ती आ पत्थल के डरीर हो । तोर तीनो औगुन के हिगरा-हिगरा के हम समझा दे ही ।) (समसा॰03:1:79.9, 11)
8 अजदह (साइत कोय बात ऊ हमरा से कहइ इया पूछइ ले चाहऽ हलइ, मुदा एगो खास तरह के जनाना संकोच हलइ जे ओकर ठोर के अजदह बनइले हलइ ।) (समसा॰03:1:43.15)
9 अजलेम (= इल्जाम) (तोरा पर कोई अजलेम नइखी डालइत नन्हकू ! लेकिन एतने हम अरज करइत ही तोरा से कि ओकरा दीदी समझऽ हें तो फिर मौका पर भाई के फरज अदा कर ।) (समसा॰03:1:69.18)
10 अजाद (= आजाद) (दुनियाँ तो निमने चलइत हे । सब लोग अजाद हइए हथ । जेकरा मन करऽ हे तेकरा उड़ा देहे । पुटपुटिया दाग देहे ।; गुंडई करे ला लाइसेंस के जरूरते न हे । रजनेता के अजदिए हे ।) (समसा॰03:1:58.10, 12)
11 अथुह (एक बात कहिअउ परवेज, कि ... कि तूँ मरि काहे नञ् गेलें ? काहे कि अब हम सब के सब तोहरा सन हिजड़ा से नफरत करऽ हिअउ ! हमनी के तोहरा से नफरत हउ ! अथुह !) (समसा॰03:1:47.9)
12 अपसर (= अफसर) (एगो अंगरेज अपसर से एक बार झंझट हो गेल । बस इ आव देखलन न ताव - दे देलन नौकरी से इस्तीफा ।) (समसा॰03:1:100.3)
13 अब-तब (~ में होना) (पंचइती एहीं पर खतम हो गेल । कहानी कहताहर ई कथा के थोड़ा अउर आगे ले जा हथ । ऊ सुनावऽ हथ कि दोसरके दिन साँझ होएते-होएते गाँव में आन्हीं अइसन खबर दउड़े लगल कि नन्हकुआ के बेटा अब-तब में हे । फिर इ खबर मिलल कि ओकर बेटा मर गेल ।) (समसा॰03:1:73.7)
14 अमदनी (= आमदनी) (अखबार-पतरिका में कहानी-कविता लिख के अउ वेतन अमदनी से ढेर बचा ले हलन, लेकिन जेकरे-सेकरे काम में जरूरी पड़े पर लगा दे हलन ।) (समसा॰03:1:52.15)
15 अर-असीरवाद (डॉ. नलिन के संस्कृत, पालि आउ हिंदी तीनों विषय के प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त हे । एकर अलावे ई डी.लिट्. भी हथ । ने मालूम कय दर्जन शोधार्थी इनकर अर-असीरवाद से विदमान बन के धौगल चलऽ हथ । केतना कवि कविआँठ बन के नितराल चलऽ हथ ।) (समसा॰03:1:106.7)
16 अरदास (फा॰ अर्जदाश्त) (= नजर, भेंट, देवता को चढ़ाने की सामग्री; भेंट देकर निवेदन) (जेकर आगु धन-सुख, अराम, सफलता, आदमीयत अरदास करऽ हल, अब ओकरे सुख हवा के कंधा पर चढ़के कौन लोक में कहाँ उड़ गेल ? गाम, टोला, जेवार में, इनका सब रुपइया के एगो झमेटगर दरखत बुझऽ हलन, जेकर छँहुरा में केतना के भलाय भेल हल ।) (समसा॰03:1:54.26)
17 अलचार (= लाचार) (हम तो फूटल आँख से भी तोरा जरिक्को पसंद न कैली हल । अलचार हो गेली ।) (समसा॰03:1:78.25)
18 अलचारी (= लाचारी) (कौस्तुभ मणि, पांचजन्य शंख पर भी तोर नजर गड़ल हल । अलचारी में ई दुन्नो रतन भी लोग तोरा देलन ।) (समसा॰03:1:79.25)
19 अवकाद (= औकात) (लड़िकाई में हमनी एके साथ खेलऽ-कूदऽ हली । तूँ तो अपन अवकादो भूल गेलऽ अउ बड़-बुजुर्ग से बात करे के, अदब करे के तरीको भूल गेलऽ ? कलकत्ता में चाकरी करके धनासेठ हो गेलऽ एतवर कि हमरा करजा देवे के तोर अवकाद हो गेल ?; एक तो एकर अवकाद सब के मालूम हे । एकर एतना अवकादे न हे कि अबहियों एतना बड़ रकम कोई के उधार दे सकऽ हे । दोसर बात इ, हमर अवकाद एतना छोट न हो गेल हे कि एतना छोट रकम खातिर एतना छोट अदमी के आगे हाथ पसारूँ । तइयो मान लेऊँ कि ई अपन अवकाद से कए गुना जादे हमरा रकम देलक । ई पगलाएल न हे तो एकरा पास देवे के कुछो कागजी सबूत इया कोई गोवाह तो जरूरे होएत ।) (समसा॰03:1:71.2, 4, 72.10, 11, 12, 13)
20 आंधर (= आन्हर; अन्धा) (अपन मन के हिन्छा जोआला केकरो नञ् बतावऽ हलन कि आखिर जात में, कुजात में, इंदर के परी से कि कोय कान-कोतर, आंधर, लूल्ह-लाँगड़ से बियाह करके कोय बड़गो आदर्श के नाम कमउतन, समाजसेवी के तमगा, साटिफिकेट लेतन ।) (समसा॰03:1:50.6)
21 आजिज (अच्छा ठीक हो, मत बतावऽ ! मुदा, एन्ने, एन्ने कहाँ ? - ऊ आजिज आके पुछलकइ हल ।; तू काहे ला पगलाइल हें, उ पगला से कउन पूछे । लइकन सब ओकरा लुलुआइत हलन, ओकर कपड़ा खीचैइत हलन, ओकरा लंगटे करइत हलन, थूक फेकइत हलन, पगला से आजिज हो गेलन हल ।) (समसा॰03:1:44.16, 58.20)
22 आसकती (= असकतियाहा; आलसी) (हमर हाल ऊ आसकती नियर हो गेल हे गरुड़, जे कुइयाँ में गिरल त उहईं बस गेल । रोज साँप के बिछौना पर सूतऽ ही, भूलल-भटकल कहियो ई जदि करवट लेलन कि हम समुन्नर के पेट में अलोपित भेली ।) (समसा॰03:1:85.2)
23 आसन-वासन (मंत्री जी आसन-वासन आउ सासन जमा देलन । लंबा तान के खर्राटा से बोगी के जगमगा देलन, हो गेल हमर सूतल ।) (समसा॰03:1:89.7)
24 इनसाल (= इमसाल; वर्तमान वर्ष) (नन्हकू भइया इनो साल न अएलन । केतना परब-तेयोहार वीतल । राहे भुला गेलन । का पता ई जिनगी में अब भेंटो होएत कि न उनकरा से ।) (समसा॰03:1:67.6)
25 इस्स (इस्स ! दइया गे, तूँ तऽ नजूमी नियर बात करऽ हो जी, कहाँ घर हो ? - बायाँ हाँथ पर गाल रखि के ऊ एगो खास अंदाज में मुसकइत पुछलकइ ।) (समसा॰03:1:43.21)
26 ईमनदार (= ईमानदार) (लेकिन अब सब भरनठ हो गेल हे । नञ् कोय ईमनदार नेता हे, नञ् सरकारी करमचारी, नञ् कोय ओइसन दारसनिक आउ समाजसेवी हे, जे देस के डूबइत नाय के बचा सके ।) (समसा॰03:1:51.12)
27 उकटा-पुरान (हमरा सामने तू लछमी के उकटा-पुरान तू सुनबे कैलऽ ।) (समसा॰03:1:85.11)
28 उकीटना (उल्लू के उकीटे से सुरुज के कुछ बिगड़ल हे ?) (समसा॰03:1:81.25)
29 उजरका (= उजला; उजला वाला) (कउन हलन उ ! उ पगला के सामने अप्पन हाथ फैला के खड़ा हो गेलन । उनकर देह पर भभूत हल । धरती के मट्टी हल । उजरका रेत नियन उनखर देह चाँदी नियन चमक रहल हल । पगला आवइत-आवइत रुक गेल - रुक गेल बकबक्की ओकर ।) (समसा॰03:1:59.12)
30 उटकरिए (~ बइठना) (अपन कान्हा पर से ललकी गमछी उतारलक अउ ओकरे पर धीरे से बइठल कि धूरी न लगे, गंदा न हो जाए । भला नया-तोहर गमछा के मोह कइसे न सतावइत ।/ बाबू साहेब टोकलन - "उटकरिए का बइठल हऽ । निहचिंत होके बइठऽ अउ सुनावऽ हुआँ के खिस्सा ।") (समसा॰03:1:66.23)
31 उठान (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।) (समसा॰03:1:43.4)
32 उडंडता (= उद्दंडता) (अबरी फिर हमर बर्थ पर सात लड़िकन बैठ गेलन । उनकर बोलचाल में कोई परिच्छा के चरचा हल, व्यवहार में उडंडता आउ जबान पर गाली-गलौज हल ।) (समसा॰03:1:88.18)
33 उड़ियाना (तोहर ई देसी बोली विदेशी हवा के सामने घास-फूस अइसन उड़िया जायत । नाम महिमा के बखान अइसहीं न होयल हे ।) (समसा॰03:1:95.15)
34 उतारे (= से बढ़कर) (होयत सौखीन केउ तोरा उतारे । ... हीरा, मोती, नीलम, मानिक आ पोखराज से तइयार कइल एगो पंचधातु के माला तोरा चही । तोर किरीट में सब तह के रतन जड़ल रहे के चही ।) (समसा॰03:1:80.19)
35 उधारन (= उदाहरण) (लालची होवे के आउर कोन उधारन तोरा चाही ?; एगो-दूगो उधारन हे जे तुरते सुना देल जाय ?) (समसा॰03:1:80.6, 82.19)
36 उलार (= लहर; जो पीछे झुका हो; जिसके पिछले भाग में बोझ अधिक हो) (जवानी में इनका में मगही सेवा के उलार उठल हल, बकि 1988 ई॰ में मगही में 'किरिया-करम' {कहानी संग्रह}करके बैठ गेलक ।) (समसा॰03:1:64.4)
37 ऊपर-नीचू (लमहर-लमहर साँस भरइत ओकर छाती उठ-बैठ रहलइ हल । ओकर देह एगो खास लय में ऊपर-नीचू डोल रहलइ हल ।) (समसा॰03:1:43.10)
38 एकसर (= अकेलुआ; अकेला) (कइसे एकसर आदमी पहाड़ पर रह के, जउन पहाड़ के कुछ ग्रंथ सब उत्तर के हिमालय पर्वत कहऽ हे, मत्स्य पुराण दक्खिन के मलय पर्वत कहऽ हे - पर रह के कोय नाव चला सकऽ हे ?) (समसा॰03:1:10.27)
39 एकसरुआ (= अकेलुआ; अकेला) (कइसे कोय एकसरुआ पुरुष फेर से सारी सृष्टि के रचना कर सकऽ हे ?) (समसा॰03:1:11.1)
40 एतराज (= आपत्ति) (पंच लोग नन्हकू से पूछलन - कोई एतराज ? ऊ कहलक - जे पंच के विचार ।) (समसा॰03:1:73.3)
41 एतवर (दे॰ एतवड़) (लड़िकाई में हमनी एके साथ खेलऽ-कूदऽ हली । तूँ तो अपन अवकादो भूल गेलऽ अउ बड़-बुजुर्ग से बात करे के, अदब करे के तरीको भूल गेलऽ ? कलकत्ता में चाकरी करके धनासेठ हो गेलऽ एतवर कि हमरा करजा देवे के तोर अवकाद हो गेल ?) (समसा॰03:1:71.4)
42 एहीं (= हीएँ; यहीं) (हमरा अइसन नासमझ आउ कमचोर के लोग समझदारी आउ जवाबदेही वाला काम दे दे हथ, एहीं गड़बड़ हो जाहे ।) (समसा॰03:1:87.7)
43 कएदा-कानून (= कायदा-कानून) (नन्हकू के मन भेल कि साथे बइठ के विस्तार से कलकत्ता के रंग-ढंग बताऊँ, लेकिन अपन गाँव के उठे-बइठे के कएदा-कानून ओकरा याद आएल ।) (समसा॰03:1:66.19)
44 कचोटु (रिसीवर हाथ से छोड़ि के भद्द-सा बइठइत, रेशमा बुक्का फाड़ि के कुछ ई तरह जार-बेजार रोबऽ लगलइ हल, जइसे अचक्के ऊ बेबा हो जाय के कचोटु बोध से भरि गेल रहे ।) (समसा॰03:1:47.12)
45 कजइ (= कज्जो; कहीं) (परसुँ ओकर भाय के चिट्ठी कारगिल मोरचा से अइलइ हल । कानोकान खबर मिलते मातर करीम के घर में जन्नी-मरद के अइसन हुजूम उमड़लइ कि कजइ तिल धरइ के जगह नञ् ।) (समसा॰03:1:45.3)
46 कठमुरकी (~ मारना) (ओकरा अएलो के बाद समझऽ एक हफ्ता तो अउ लगिए जाएत । एही बीच बिआह के दिन तय हे । टल नहिंए सके । हम तो कुकुरवाह में पड़ गेली । आजे देवे ला हल समियाना, बत्ती, पालकी, हाथी, घोड़ा खातिर पेसगी । हम करी तो का करी । कठमुरकी मारले हे हमरा तो ।; बाबू साहेब के नकार अउ गरम तेवर देख के नन्हकू के काटूँ तो खूने नऽ । ओकरा कठमुरकी मार देलक । बोलती बंद हो गेल ।) (समसा॰03:1:69.1, 71.14)
47 कड़रुआ (~ राग) (उनका गावे के जब धुन चढ़ऽ हे तऽ ऊ गला फार फार के गाना शुरु करतन । उनकर ई राग के देहात में लोग कड़रुआ राग कहऽ हथ ।) (समसा॰03:1:94.22)
48 कन्नी (~ खाना) (जानऽ हीं परवेज, सीमा पर लड़इत अगर तूँ सहीद हो जइतहीं हल, तऽ जिगर के खून से तोहर कब्र पर दीया बारतिअउ हल । मुदा अब ... अब डर से चूड़ी पेन्ह के साया में घुसि जायवला ... डर से पइजामा में पेसाब करि देबइवला तोहरा सन कायर के, कसम काली पगड़ी वला के, सौहर कहइ में कन्नी खा लेबइ के मन करऽ हउ !) (समसा॰03:1:47.3)
49 कबुद्धी (सिरिफ दू भाषा हिंदी-मगही के इस्तेमाल में तोर बुद्धि ओझरा जाहो । करवऽ कबुद्धी ! कउन तरह के दिमाग पइलऽ हऽ जी !) (समसा॰03:1:6.15)
50 करजा-पैंचा (उ अप्पन छोटकी बेटी के बियाह करके, करजा-पैंचा लेके छोटका बेटा के पढ़ाय खातिर दिल्ली भेज के आजकल अप्पन एगो परचित अमदी के साथ रहऽ हथ ।) (समसा॰03:1:53.25)
51 करनी-धरनी (पंचदेवी में एक ई हमर मेहरारू लछमी के करनी-धरनी तो तोरा से छिपल न हे ।) (समसा॰03:1:77.26)
52 करिखाही (= करखाही; कारिख या कालिख से पुती हुई) (हम तो खाली सरापे देके रह गेली । बस चलइत हल त ऊ जरलाहा के चेहरा करिखाही हँड़िया से हम पोत देती । तू मउगर आ घरघुस्सु बनके बिछौना पर पड़ल रहऽ ।) (समसा॰03:1:83.6)
53 कलट्टर (बाप के हिन्छा हलइ कि बेटा कलट्टर, जज, इंजीनियर, वकील चाहे एस.पी. बने, लेकिन मन के हिन्छा केकर पूरल हे ।) (समसा॰03:1:49.11)
54 कविआँठ (डॉ. नलिन के संस्कृत, पालि आउ हिंदी तीनों विषय के प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त हे । एकर अलावे ई डी.लिट्. भी हथ । ने मालूम कय दर्जन शोधार्थी इनकर अर-असीरवाद से विदमान बन के धौगल चलऽ हथ । केतना कवि कविआँठ बन के नितराल चलऽ हथ ।) (समसा॰03:1:106.8)
55 कसर-मसर (कोई महादे के भेजल इहाँ आवत, ई ओकरा बढ़मा जी के पास भेज देतन, कभी महादे के पास पेठैतन । जे लोग के दिमाग कमजोर रहऽ हे ओही नेआव करे में कसर-मसर करऽ हे !) (समसा॰03:1:81.19)
56 कहताहर (= कहनेवाला) (पंचइती एहीं पर खतम हो गेल । कहानी कहताहर ई कथा के थोड़ा अउर आगे ले जा हथ । ऊ सुनावऽ हथ कि दोसरके दिन साँझ होएते-होएते गाँव में आन्हीं अइसन खबर दउड़े लगल कि नन्हकुआ के बेटा अब-तब में हे । फिर इ खबर मिलल कि ओकर बेटा मर गेल ।) (समसा॰03:1:73.5)
57 कहनइ (हलन तो उ जात के बर्हामन, लेकिन उनकर कहनइ हल कि जलम से सब कोय सुद्दर हे, अप्पन संस्कार, करम-धरम बना-सुधार के कोय भी बर्हामन बन सकऽ हे ।) (समसा॰03:1:49.3)
58 कहनय (बाप ढेर कोरसिस कइलन कि उनकर बियाह उनखे मन से खूब ले-दे के धूमधाम से हो, लेकिन बाप के कहनय से उनकर कान पर जूँ नञ् रेंगलक ।) (समसा॰03:1:50.1)
59 कहनय-सुननय (1963 ई॰ में एकैसे बरीस के उमर में ढेर कहनय-सुननय, खींचा-तीरी से एम.ए. तो कर गेलन, लेकिन नउकरी के कोरसिस उ नञ् के बराबर करऽ हलन ।) (समसा॰03:1:49.22)
60 कहवइया (= कहताहर; कहनेवाला) (कहानी कहवइया आगे कहऽ हथ कि नन्हकू बेटा के लहास लेले लौटल । मंदिर के आगे रखलक अउ ओही घड़ी तमाम पंचन भिरु बदहवास दउड़-दउड़ के गिड़गिड़ाएल ।) (समसा॰03:1:73.21)
61 कान-कोतर (अपन मन के हिन्छा जोआला केकरो नञ् बतावऽ हलन कि आखिर जात में, कुजात में, इंदर के परी से कि कोय कान-कोतर, आंधर, लूल्ह-लाँगड़ से बियाह करके कोय बड़गो आदर्श के नाम कमउतन, समाजसेवी के तमगा, साटिफिकेट लेतन ।) (समसा॰03:1:50.6)
62 किरिया-करम (हमरा अचानक मरे अउ छोटकु के घर नञ् लौटे के हालत में हम्मर संस्कार, किरिया-करम नजीर करत । उ जलावे, चाहे गाड़ दे, चाहे गंगा में ले जाके फेंक दे ।) (समसा॰03:1:55.19)
63 किहाँ (= के यहाँ) (ओहनी के सेफारिस पर ओकरा मारवाड़ी भाई किहाँ नौकरी लग गेलई ।) (समसा॰03:1:65.20)
64 कुकुरवाह (~ में पड़ना) (ओकरा अएलो के बाद समझऽ एक हफ्ता तो अउ लगिए जाएत । एही बीच बिआह के दिन तय हे । टल नहिंए सके । हम तो कुकुरवाह में पड़ गेली । आजे देवे ला हल समियाना, बत्ती, पालकी, हाथी, घोड़ा खातिर पेसगी । हम करी तो का करी । कठमुरकी मारले हे हमरा तो ।) (समसा॰03:1:68.27)
65 कोंपी (= कॉपी, नोटबुक; उत्तरपुस्तिका) (आज तक विश्वविद्यालय में टौप करे वाला छात्र के कोंपी सार्वजनिक न करल गेल, जबकि ई माँग उठइत रहल हे । सार्वजनिक न करे के पीछे हमरा लगऽ हे कि ऊ सार्वजनिक करे के चीजो न होवे । ऊ तो धरोहर होवऽ हे से ओकरा अइसन रख देल जाहे कि हवा-बतास इया नजर-गुजर नऽ लगे ।) (समसा॰03:1:93.17)
66 खतिहान (हो गेल तोर खतिहान खतम कि आउ कुछ अधेयाय बाकी हे ?) (समसा॰03:1:83.19)
67 खनय-पिनय ("एगो मुसलमान हे - रेडीमेड के दुकान हे ओकर, जेकरा उ बचपन से खुम मानऽ हलन, इनकर बचपन के दोस्त के लड़का हे नजीर खान ।" - "अउ खनय-पिनय ?" - "सब ओकरे हीं, ओकरे बनल-छुअल-छापल ...।" कहके उ बड़ी घिरना से मुँह सिकोड़ लेलक ।) (समसा॰03:1:54.13)
68 खम्हा (= खंभा) (ऊ बेरा मुँह से बकार निकललवऽ हल ? लजायल बिलाई सन खम्हा नोचे के हाल भेल हल ।) (समसा॰03:1:82.9)
69 खामोखा (= खामखाह; ख्वामख्वाह) (आँख में अंगुरी डाल के खामोखा जब तू हमर मुँह खोलबा रहलऽ हे तब सुन लऽ ।) (समसा॰03:1:82.1)
70 खींचा-तीरी (1963 ई॰ में एकैसे बरीस के उमर में ढेर कहनय-सुननय, खींचा-तीरी से एम.ए. तो कर गेलन, लेकिन नउकरी के कोरसिस उ नञ् के बराबर करऽ हलन ।) (समसा॰03:1:49.23)
71 खुम (= खूब) (लगभग बीस बरिस के बाद 1983 के जाड़ा में अचुके उ एक दिन बोधगया के मंदिर घुमइत भेंट गेलन, साथे में एगो गोरनार, लत्तर जइसन, दुबर-पातर, बिना हाड़-मास के मेहरारू के देख के इ समझ में आ गेल कि उ एगो से दूगो हो गेलन हे । पूछे पर पता चलल कि इ एगो गरीब बर्हामन के अंगुठा छाप बेटी हे । हम देखलुँ अंदर से उ खुम खुस हलन ।; "एगो मुसलमान हे - रेडीमेड के दुकान हे ओकर, जेकरा उ बचपन से खुम मानऽ हलन, इनकर बचपन के दोस्त के लड़का हे नजीर खान ।" - "अउ खनय-पिनय ?" - "सब ओकरे हीं, ओकरे बनल-छुअल-छापल ...।" कहके उ बड़ी घिरना से मुँह सिकोड़ लेलक ।) (समसा॰03:1:50.12, 54.11)
72 खूम (= खूब) (सोना पर सोहागा नियन बात अशोक प्रियदर्शी जी के साथ हे । एक तो इनका में लेखन आउ अभिनय में खूमे रुचि हे, ऊपर से इनका ई दुन्नो गुन अपन आदरजोग पिता चतुर्भुज बाबू से विरासत में मिलल हे ।) (समसा॰03:1:98.2)
73 खोजनय (नीम के पत्ता आउ डघुरी में मिठास अउ सुरूज के आगु में चंदरमा के सीतलता खोजनय बेकुफी हे । आत्मविसवास अउ हिम्मत के बल से कोय अमदी जोर से ढेला फेंक के असमान में छेद कर सकऽ हे ।) (समसा॰03:1:52.11)
74 गँवत (= गौत; पशु का चार) (प्रकृति के लीला अइसन भेल कि लगले-लगले पाँच साल अकाल पड़ल । अदमी के अनाज मोहाल हो गेल, गोरू के गँवत ।) (समसा॰03:1:65.10)
75 गट्टा (उ ओकर गट्टा पकड़ के पेड़ के नीचे बइठा देलन । अप्पन बड़गो कमंडल से ओकरा भर इच्छा पानी पिअइलन । पगला शांत हो गेल ।) (समसा॰03:1:59.16)
76 गरान (= ग्लानि) (हइ दुनियाँ में एक भी औरत जेकरा बेईमान, चोर, बलात्कारी, घोटालेबाज, कातिल आउ तोहरा सन कायर मरद के बेटा आउ सौहर कहइत गरान नञ् आबइ ?) (समसा॰03:1:47.7)
77 गिटपिटाना (पढ़ाई के नाम पर तऽ अंग्रेजी ठाट-बाट के कोई कमी नऽ हे । अंगरेजी रटइत हथ - सीता के सीटा आउ राम के रामा पढ़इत हथ । पापा-मम्मी नाम के जोर हे । मतलब विश्वगुरु भारत भरभराइत हे आउ हिंगलिस में गिटपिटाइत हे ।) (समसा॰03:1:93.27)
78 गिनल-गुथल (1963 में जोवाला जी के एम.ए. के परिच्छा देके पटना से घर लउटते घड़ी उनकर दादी के गया टीसन पर हम देखलुँ हल - दूध अइसन दप-दप उज्जर, बरफ अइसन चमकइत बतीसो दाँत, धुन्नल रुइया अइसन फह-फह माथा में गिनल-गुथल केस, 87 बरिस के उमर में भी उनकर देह-दसा, चेहरा पर चमक हल ।) (समसा॰03:1:50.21)
79 गुन (= गुने; के कारण) (ऊ रोगी बात के एतना पक्का हलन कि सही में कानपुर में बर्थ खाली कर देलन । रोगी के बात हल । इ गुन हम भी सीट के पानी से पोछली । चद्दर झारली आउ सोचली कि रतजग्गा तो होइए गेल । अब दू-चार घंटा दिन में सुतल जाय ।) (समसा॰03:1:87.27)
80 गेहुमन (= गोहमन) (तोरा से तो भइँसा, बनैआ सूअर आ गेहुमन साँप सच्चा वीर हे जे आमने-सामने वार करऽ हे ।) (समसा॰03:1:82.13)
81 गोदानना (जमा भीड़ फट गेल । भीड़ जउरे चचवा भुनभुनाइत जा रहल हे - तनी गो हल तो रतिया में रोजे अप्पन बप्पा से पूछऽ हल - राजा की खा होतइ हो बाबू । आझ साला अपने राजा हो गेल । अब हमनी के ऊ की गोदानतउ ?) (समसा॰03:1:97.26)
82 गोरनार (लगभग बीस बरिस के बाद 1983 के जाड़ा में अचुके उ एक दिन बोधगया के मंदिर घुमइत भेंट गेलन, साथे में एगो गोरनार, लत्तर जइसन, दुबर-पातर, बिना हाड़-मास के मेहरारू के देख के इ समझ में आ गेल कि उ एगो से दूगो हो गेलन हे ।) (समसा॰03:1:50.9)
83 गोराई (= गोराय; गोरापन) (बाबुओ साहेब के कोई कहलक कि नन्हकुआ कलकत्ता से आएल हे । देह पर चढ़ल चर्बी अउर चेहरा पर गोराई झाँकइत हइ ।) (समसा॰03:1:65.26)
84 गोवाह (= गवाह) (एक तो एकर अवकाद सब के मालूम हे । एकर एतना अवकादे न हे कि अबहियों एतना बड़ रकम कोई के उधार दे सकऽ हे । दोसर बात इ, हमर अवकाद एतना छोट न हो गेल हे कि एतना छोट रकम खातिर एतना छोट अदमी के आगे हाथ पसारूँ । तइयो मान लेऊँ कि ई अपन अवकाद से कए गुना जादे हमरा रकम देलक । ई पगलाएल न हे तो एकरा पास देवे के कुछो कागजी सबूत इया कोई गोवाह तो जरूरे होएत ।) (समसा॰03:1:72.15)
85 गोवाही (= गवाही) (अपने सभे सुन लेली न ? कोई सबूत, गोवाही नइखे इनका पास तो मामला बिसवासघात के होएल । एकरा फैसला तो उपरहींवाला कर सकऽ हे ।) (समसा॰03:1:72.24)
86 घरघुस्सु (हम तो खाली सरापे देके रह गेली । बस चलइत हल त ऊ जरलाहा के चेहरा करिखाही हँड़िया से हम पोत देती । तू मउगर आ घरघुस्सु बनके बिछौना पर पड़ल रहऽ ।) (समसा॰03:1:83.7)
87 घरजमाई (ई असार संसार में साला आ ससुर के घर सार हे । इहे से महादे हिमाले पर गेलन आ हम ई छीर सागर चुनली । बकि न ससुराल में घरजमाई बनती हल, न अइसन साँसत झेलती हल ।; जब हमरे ई हाल हे तब मिरतुलोक के घरजमाई लोग के दसा के अंदाज लगा लऽ ।) (समसा॰03:1:77.14, 16)
88 घरफुँकनी (हमरा रोके से ई कभी रुकलन ? घरफुँकनी बनके ई चउबीसो घंटा गाय के सींग बैल में आ आम के लस्सा बबूर में लगावइत चलऽ हथ । अइसन लछमी से निगोड़े भल हल ।) (समसा॰03:1:78.8)
89 घिरना (= घृणा) ("एगो मुसलमान हे - रेडीमेड के दुकान हे ओकर, जेकरा उ बचपन से खुम मानऽ हलन, इनकर बचपन के दोस्त के लड़का हे नजीर खान ।" - "अउ खनय-पिनय ?" - "सब ओकरे हीं, ओकरे बनल-छुअल-छापल ...।" कहके उ बड़ी घिरना से मुँह सिकोड़ लेलक ।) (समसा॰03:1:54.14)
90 घुटब (हमरा तर बइठ के बातचीत में ऊ भूलि गेलइ हल कि ऊ के हइ । तीन दिन से रात-दिन कउन पीड़ा में घुटब करऽ हलइ आउ की सोंचि के काहे ले घर से निकललइ हल ।) (समसा॰03:1:44.27)
91 घुरमुरिया (~ मारना) (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।) (समसा॰03:1:43.2)
92 चद्दर-उद्दर (दस से बेसी बज गेल हे । घरे रहऽ हली तब आठ बजे के बाद सीधे पाँच बजऽ हल । चद्दर-उद्दर झारली, तकिया फुलौली । अटैची के सिक्कड़ से बांधइतहीं हली कि एगो सज्जन बोललन ।) (समसा॰03:1:87.15)
93 चपचपाना (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।) (समसा॰03:1:43.4)
94 चलनय-फिरनय (उनकर दादी के गया टीसन पर हम देखलुँ हल ... चलनय-फिरनय देखके हमरा अप्पन जमानी पर सरम आवऽ हल ।) (समसा॰03:1:50.23)
95 चही (= चाही; चाहिए) (होयत सौखीन केउ तोरा उतारे । ... हीरा, मोती, नीलम, मानिक आ पोखराज से तइयार कइल एगो पंचधातु के माला तोरा चही । तोर किरीट में सब तह के रतन जड़ल रहे के चही ।) (समसा॰03:1:80.22, 23)
96 चिंता-फिकिर (अप्पन सौख-मौज, अउ मेहरारू के अलावे भाय-बहिन, माय-बाप के कोय चिंता-फिकिर ओकरा नञ् हे ।; ढेर देरी तक आँख फाड़ के हम बस पर के उ अमदी के देखते रह गेली अउ मन के मोर जोआला बाबू के गोड़ पर गिरके लोटपोट हो गेल, जइसे ऊ सच्छात् शंकर हथ, जेकरा अप्पन दिन-दुनियाँ, दौलत के कोय चिंता-फिकिर कहियो नञ् रहल ।) (समसा॰03:1:53.17, 55.23)
97 चुकू-मुकू (दे॰ चुको-मुको, चुकोमुको, चुक्को-मुक्को) (सजल-धजल दीदी के फूल अइसन चेहरा । आँख से आँख मिलल तो नन्हकू के नजर नीचे होके जमीन में गड़ गेल । चुकू-मुकू बइठ के मलकिनी के मन-मोताबिक कलकत्ता के मड़वारिन के खिस्सा सुनावे लगल - एक से एक अँटारी हे हुआँ । नीचे से नौतल्ला देखब तो माथा के टोपी गिर जाएत ।) (समसा॰03:1:67.21)
98 चुक्को-मुक्को (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।) (समसा॰03:1:43.2)
99 चूड़ा-गूँड़ (नन्हकू घंटा भर मलकिनी से गप्प करइत रहल अउ मलकिनी के देल चूड़ा-गूँड़ के कटोरा साफ कएला के बादे साफ करे ला उठल ।) (समसा॰03:1:68.11)
100 छँहुरा (जेकर आगु धन-सुख, अराम, सफलता, आदमीयत अरदास करऽ हल, अब ओकरे सुख हवा के कंधा पर चढ़के कौन लोक में कहाँ उड़ गेल ? गाम, टोला, जेवार में, इनका सब रुपइया के एगो झमेटगर दरखत बुझऽ हलन, जेकर छँहुरा में केतना के भलाय भेल हल ।) (समसा॰03:1:54.28)
101 छाव (हमर एगो बेटा कामदेव हलन जे खेसारी नियर अपन छावे न छोड़लन । बेकहल आ बेमाथ के लइका अपन साढ़ू महादेजी से छेड़खानी कर देलक आ उनकरे हाथ से मारल गेल ।) (समसा॰03:1:84.25)
102 छीछा-लेदर (= व्यर्थ का बकवास; फजीहत, बेइज्जती; दोषारोपण; दुर्दशा) (पंचइती में जवन मकसद से बोलावल गेल हे, अपने के मालुमे होएत ? तूँ-तूँ, मैं-मैं, थूका-थूकी, छीछालेदर से का फयदा ? अपने इज्जतदार ही, मनिंदे ही जेवार के । सही बात कबूल करे में अपने के दिकते का हे ?) (समसा॰03:1:71.27)
103 छुअल-छापल ("एगो मुसलमान हे - रेडीमेड के दुकान हे ओकर, जेकरा उ बचपन से खुम मानऽ हलन, इनकर बचपन के दोस्त के लड़का हे नजीर खान ।" - "अउ खनय-पिनय ?" - "सब ओकरे हीं, ओकरे बनल-छुअल-छापल ...।" कहके उ बड़ी घिरना से मुँह सिकोड़ लेलक ।) (समसा॰03:1:54.14)
104 छोटकु (= 'छोटका' का ऊनार्थक) (सहर के मकान के किराया अउ किताब के अमदनी छोटकु के पढ़ाय में लगत अउ हम्मर मरे के बाद दुनूँ भाय सहर के मकान राजी-खुसी बाँट लेत ।; हमरा अचानक मरे अउ छोटकु के घर नञ् लौटे के हालत में हम्मर संस्कार, किरिया-करम नजीर करत । उ जलावे, चाहे गाड़ दे, चाहे गंगा में ले जाके फेंक दे ।) (समसा॰03:1:55.16, 18)
105 छोपना (परसुराम के समय बाप के कहला पर माय रेनुका के छन में मूड़ी छोपना, छन में जोड़ना - ई तोर कइसन लीला हल ?) (समसा॰03:1:83.10)
106 जगत्तर (हम करूँ त का करूँ । सारा जगत्तर हम अप्पन अवाज भेजली बाकि कोई सुनवे न करे हे । अइसन पर चेतत के ।) (समसा॰03:1:59.24)
107 जग्गह (= जगह) (टोरंटो आउ मेक्सिको में 'सत् सिरी अकाल' आउ 'केम छे - केम छे' हो सकल हे आउ तूँ मगहे के धरती पर फुलुसबुकनी छाँटऽ हऽ ! जग्गह देख के आचरण करऽ ! सकुन्नत मिलतो ।) (समसा॰03:1:6.22)
108 जनगर (त ई मनु के बारे में, हमर इतिहास के पहिल मील के पत्थर के बारे में, जान के की हमर बोल-वचन जादे जनगर, जादे जिमेवार आउ जादे संजत नञ् रहे के चाही ?) (समसा॰03:1:11.16)
109 जन्नी-मरद (परसुँ ओकर भाय के चिट्ठी कारगिल मोरचा से अइलइ हल । कानोकान खबर मिलते मातर करीम के घर में जन्नी-मरद के अइसन हुजूम उमड़लइ कि कजइ तिल धरइ के जगह नञ् ।) (समसा॰03:1:45.3)
110 जब्बड़ (= निम्मन; अच्छा, बढ़िया) (पगला बोलते रहे, ओकरा से का ? एगो ओकरे कान जब्बड़ हे । सारा जहान के लोग मूरख हइ ?) (समसा॰03:1:60.9)
111 जरलाहा (हम तो खाली सरापे देके रह गेली । बस चलइत हल त ऊ जरलाहा के चेहरा करिखाही हँड़िया से हम पोत देती । तू मउगर आ घरघुस्सु बनके बिछौना पर पड़ल रहऽ ।) (समसा॰03:1:83.6)
112 जरिक्को (हम तो फूटल आँख से भी तोरा जरिक्को पसंद न कैली हल । अलचार हो गेली ।) (समसा॰03:1:78.25)
113 जिम्मेवारी (अब पूरा घर के जिम्मेवारी बउआ चतुर्भुज जी के कन्हा पर पड़ल । इनकर पढ़ाई-लिखाई बंद हो गेल ।) (समसा॰03:1:100.4)
114 जुकुत (= जुकुर; लायक) (नन्हकू सुनावे लगल । सुनएते-सुनएते ओकरा याद आएल मईंयाँ के बात । मईंयाँ मने बाबू साहेब, बाबू साहेब मने मालिक के लड़की, जे छौ साल पहिलहीं बिआहे जुकुत हो गेल हल । जेकरा ऊ 'दीदी' कहऽ हल । पुछलक - "मालिक ! दीदी के का हाल-चाल हइन । शादी तो ... ?") (समसा॰03:1:66.26)
115 जे हे से कि (पंचइती एहीं पर खतम हो गेल । कहानी कहताहर ई कथा के थोड़ा अउर आगे ले जा हथ । ऊ सुनावऽ हथ कि दोसरके दिन साँझ होएते-होएते गाँव में आन्हीं अइसन खबर दउड़े लगल कि नन्हकुआ के बेटा अब-तब में हे । फिर इ खबर मिलल कि ओकर बेटा मर गेल । लहास लेके मरघटा पर चल गेलन लोग । नन्हकू के रोवइत-रोवइत हालत एकदम खराब हे । ऊ जे हे से कि 'सत्' के गरिया रहल हे । अइसने ढेर मनी अफवाह ।) (समसा॰03:1:73.9)
116 जेकरे-सेकरे (अखबार-पतरिका में कहानी-कविता लिख के अउ वेतन अमदनी से ढेर बचा ले हलन, लेकिन जेकरे-सेकरे काम में जरूरी पड़े पर लगा दे हलन ।) (समसा॰03:1:52.16)
117 जेवठान (= जेठान) (सच पूछल जाय तो तोरा अइसन आलसी सिरिष्टी में एको न मिलत । तूँ हर कातिक के जेवठान के दिन सेसनाग के बिछउना से अपन देह डोलावऽ ह । बाकी दिन बिछौने पर पड़ल रहवऽ ।) (समसा॰03:1:80.12)
118 जेह (= जे; ~ में = जिसमें) (हमर सवाल जइसे उठाके ओकरा ऊहे माहौल में जा पटकलकइ हल, जेह में हर तरफ से ठूल आउर ताना ओकर आतमा के बनाहे के मथि के धरि देलकइ हल ।) (समसा॰03:1:44.29)
119 झंगरी (= झंगड़ी) (लगल कि उ झमेटगर पेड़ के डंघुरी अइसन मुरझा गेल हे, जइसे होलइया में झोंके पर बूँट-केराय के झंगरी ।) (समसा॰03:1:55.4)
120 झमाना (हरिन मता देवइवला बीच दुपहरिया में परवेज के फोन पर बतियावइ ले ऊ घर से निकसि गेलइ आउ चलते-चलते परेशान, भरकोस्सा पाट वली सकरी नदी पार करइत-करइत तऽ जइसे झुलसि के मातल, कछार के महुआ गाछ तर झमा बइठलइ हल ।) (समसा॰03:1:45.26)
121 झमेटगर (= झमेठगर, झमठगर) (जेकर आगु धन-सुख, अराम, सफलता, आदमीयत अरदास करऽ हल, अब ओकरे सुख हवा के कंधा पर चढ़के कौन लोक में कहाँ उड़ गेल ? गाम, टोला, जेवार में, इनका सब रुपइया के एगो झमेटगर दरखत बुझऽ हलन, जेकर छँहुरा में केतना के भलाय भेल हल ।; लगल कि उ झमेटगर पेड़ के डंघुरी अइसन मुरझा गेल हे, जइसे होलइया में झोंके पर बूँट-केराय के झंगरी ।) (समसा॰03:1:54.27, 55.3)
122 झरना (= झड़ना) (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।) (समसा॰03:1:43.3)
123 झलाझल (गाम के मकान में नूनी चूअऽ हल । अप्पन सौख-मौज के गियारी दबा के, पेट काट के ओकरा केतना जतन करके उ अइँटा सिरमिट चूना-रंग से झलाझल कर देलन ।) (समसा॰03:1:52.21)
124 झुठिआना (= झूठा साबित करना) (मुंबई मेल पटरी के छाती उ धरती रौंदले, हवा के झूठिअउले, हवा से बात करइत, तूफान मचउले, दनादन उड़ रहल हल ।) (समसा॰03:1:52.25)
125 टेट (= जेभी; जेब, पॉकेट) (~ गरमाना) (छौ साल तक नौकरी कएला के बाद जब ओकर टेट गरमाएल तो याद आएल अपन गाँव, अपन माय, बेटा अउर बेटा के माय । माया-मोह एतना जगल कि अपन मालिक से बात कएलक अउर एक महिना के छुट्टी लेके गाँव चल आएल ।) (समसा॰03:1:65.22)
126 डंघुरी (= डँहुड़ी; डाली) (लगल कि उ झमेटगर पेड़ के डंघुरी अइसन मुरझा गेल हे, जइसे होलइया में झोंके पर बूँट-केराय के झंगरी ।) (समसा॰03:1:55.4)
127 डरीर (ई अछरंग न हो, बावन तोला पावस्ती आ पत्थल के डरीर हो । तोर तीनो औगुन के हिगरा-हिगरा के हम समझा दे ही ।) (समसा॰03:1:79.12)
128 डहकना (विधना के मारल रामजी चौदह बरिस तक फूल अइसन कोमल मेहरारू अउ बिजली-आग जइसन डहकइत भाय के संगे ले के जंगल अगोरलन ।) (समसा॰03:1:49.16)
129 डिराड़ (राम, किसन, गौतम, सुभास के इ देस में पसु-पच्छी सब के पेयार करे के सिच्छा देल जाहे । दोस्ती में अमीर-गरीब के डिराड़ इहाँ नञ् हे । किसन-सुदामा एक्कर नमूना हथ ।) (समसा॰03:1:51.10)
130 डेरगूह (= डरने वाला, कायर) (मोरचा के नामे से हुनखा हद्दस समा गेलइ आउ श्रीनगर छावनी अस्पताल में भर्ती हो गेलन । हम नञ् समझऽ हलिअइ कि हमर बहनोय एत्ते कायर होतइ ।/ आउ तखनइ से लोग ओकरा ताना मारऽ लगलइ हल - तऽ, रेशमा के सइयाँ डेरगूह ! गे दइया, सब तऽ लड़ि रहलइ हे, आउ एगो ई जवान हइ कि खटिया पर टउनिक पी रहलइ हे, छी !) (समसा॰03:1:45.18)
131 डौंघी (दे॰ डउँघी) (ओकर बाद उ ठहाका मार के हँस्से लगल, हँस्से लगल । अवाज से असमान फट्टे लगल, गाछ के डौंघी कड़कड़ा के टूटे लगल ।) (समसा॰03:1:60.4)
132 ढनकना (हमरा से कोय बाप के नाम पुछतन त हम अटल बिहारी वाजपेयी थोड़े कह देम । मदर टेरेसा के माय समझम आउ अपन माय के दुआरी-दुआरी ढनके ल छोड़ देम ।) (समसा॰03:1:7.2)
133 ढरकना (आँख से ओकर लोर ढरक जाहे ।) (समसा॰03:1:58.5)
134 ढूका (~ लगाना) (एगो दरोपदी के लूगा खिंचला पर महाभारत भेल हल, बाकि तूँ तो ढूका लगा के सैकड़ों मेहरारुन के लूगा-फाटा नुकैलऽ हल ।) (समसा॰03:1:83.8)
135 ढेढर (अपन आँख से केकरो अपन लिलार न देखाई पड़े ! अपन ढेढर न देख के दोसर के फुल्ली लोग निहारऽ हे ।) (समसा॰03:1:77.19)
136 ढेरेक (= बहुत-कुछ) (डॉ. उमाशंकर सिंह 'सुमन' मगही-हिंदी में खूब पकड़ रखऽ हथ । मगही में ई अपना के रामप्रसाद स्कूल के प्रोडक्ट बतावऽ हथ । हमर नजर में इनका में लेखक के रूप में ढेरेक संभावना हे ।) (समसा॰03:1:90.3)
137 तेलही (भले मगहियन तोरा नियन संभ्रांत, अभिजात्य नञ् कहला रहल हे बकि अपन बाल-बच्चन ले सोन्ह मट्टी के गंध, सुगंधित हावा, संतुलित पर्यावरण तूँ जँघिया-बनियान बेच के भी नञ् जुटा सकवऽ । तेलही पकौड़ी इया चौकलेट चाउमीन जेतना खा-खिला लऽ, ताजा आउ दुद्धा-भतिया के सवाद अबरी जलम में लीहऽ ।) (समसा॰03:1:6.6)
138 थमाना ("सुनइत हऽ न तोहनी सब ? इ नन्हकुआ के बढ़कुआ बनल । अइसन बदमासी ! अइसन मजाक ! अरे एही करे ला हउ तो जो अपन बाप से कर, माय से कर, गैर से कर । का हो गेल दुनियाँ ? लड़िकाई से मोंछ के रेघारी आवे तक जे हमरे अनाज पर पोसाएल, हमरे निमक खएलक, वो ही परदेस से दु पइसा हाथ में लेके आएल तो थमाइते न हे ?") (समसा॰03:1:71.12)
139 थूका-थूकी (पंचइती में जवन मकसद से बोलावल गेल हे, अपने के मालुमे होएत ? तूँ-तूँ, मैं-मैं, थूका-थूकी, छीछालेदर से का फयदा ? अपने इज्जतदार ही, मनिंदे ही जेवार के । सही बात कबूल करे में अपने के दिकते का हे ?) (समसा॰03:1:71.26)
140 दइया (~ गे !) (इस्स ! दइया गे, तूँ तऽ नजूमी नियर बात करऽ हो जी, कहाँ घर हो ? - बायाँ हाँथ पर गाल रखि के ऊ एगो खास अंदाज में मुसकइत पुछलकइ ।; मोरचा के नामे से हुनखा हद्दस समा गेलइ आउ श्रीनगर छावनी अस्पताल में भर्ती हो गेलन । हम नञ् समझऽ हलिअइ कि हमर बहनोय एत्ते कायर होतइ ।/ आउ तखनइ से लोग ओकरा ताना मारऽ लगलइ हल - तऽ, रेशमा के सइयाँ डेरगूह ! गे दइया, सब तऽ लड़ि रहलइ हे, आउ एगो ई जवान हइ कि खटिया पर टउनिक पी रहलइ हे, छी !) (समसा॰03:1:43.21, 45.18)
141 दक्क-दक्क (तीन-चार दिन के बाद उनकर दलान पर एक मूरत आएल । उज्जर बग-बग धोती अउर दक्क-दक्क कुरता पहिनले, कान्हा पर ललका गमछा धएले अउर दोसरा कान्हा पर रेडियो लटकएले ।) (समसा॰03:1:66.4)
142 दमाही (फिनो खटिया से उठलन । दमाही के बैल अइसन चार-पाँच डेग गोले घुमलन अउ बिफरइत अपन खटिया पर पसर गेलन ।) (समसा॰03:1:71.16)
143 दारोमदार (= निर्भर) (जमींदारी बौन्ड के रुपेआ हल मिलेवाला । ओकरे पर सब दारोमदार हल ।) (समसा॰03:1:68.24)
144 दिन-दुनियाँ (दिन-दुनियाँ देख के आँख के आगु अब पुनियो में अमस्या के अंधरिया लौकऽ हे ।) (समसा॰03:1:54.7)
145 दुबर-पातर (लगभग बीस बरिस के बाद 1983 के जाड़ा में अचुके उ एक दिन बोधगया के मंदिर घुमइत भेंट गेलन, साथे में एगो गोरनार, लत्तर जइसन, दुबर-पातर, बिना हाड़-मास के मेहरारू के देख के इ समझ में आ गेल कि उ एगो से दूगो हो गेलन हे ।) (समसा॰03:1:50.9)
146 देनय (परोपकार पुन हे, अउ दुख देनय पाप ।) (समसा॰03:1:51.24)
147 देहजरुआ (सब्भे जवान सरहद पर दुसमन से लड़ि रहलइ हे । मुदा एगो हम्मर मरद हइ कि देहजरुआ हद्दस से बहाना बना के श्रीनगर सैनिक अस्पताल में बीमार पड़ल हइ ।) (समसा॰03:1:46.4)
148 दोआ (= दुआ) (कलकत्ता जाए से कम-से-कम एतना तो जरूरे होएल कि अपने सब के दोआ से दस-बारह हजार रुपेआ हाथ में हे ।) (समसा॰03:1:68.18)
149 धराँव (मगही भासा के पक्ष में ई तर्क भी न्याय सम्मत हे कि एकर ढेर साहित्य नालंदा-विक्रमशिला के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में लुटेरन द्वारा जरा देल गेल हे । बहुत से नीमन रचना छपे के अभाव में धराँव धरा गेल आउ काल-कवलित हो गेल ।) (समसा॰03:1:31.3)
150 धुकधुकाना (झूठमूठ के 'सौलेटरी रीपर' के पढ़ेवला लोग-बाग जदि मगध के धनरोपनी के गीत-कजरी सुन लेतन त उनकर करेजा धुकधुकाय लगत ।) (समसा॰03:1:5.16)
151 धुन्नल (~ रुइया अइसन केश) (1963 में जोवाला जी के एम.ए. के परिच्छा देके पटना से घर लउटते घड़ी उनकर दादी के गया टीसन पर हम देखलुँ हल - दूध अइसन दप-दप उज्जर, बरफ अइसन चमकइत बतीसो दाँत, धुन्नल रुइया अइसन फह-फह माथा में गिनल-गुथल केस, 87 बरिस के उमर में भी उनकर देह-दसा, चेहरा पर चमक हल ।) (समसा॰03:1:50.21)
152 धुरफंद (हमर पूजा करबे तो का पएबे ? छलबाज, कपटी, धुरफंदियन तोरा जीए न देतन, जीते के बात तो दूर के हे । धुरफंदियन के धुरफंदिए से हरा सकऽ हें । अपन बेटा लेके घर जा । बुद्धि, छल, धुरफंदी से काम निकालऽ ।) (समसा॰03:1:73.16, 17)
153 धुरफंदी (हमर पूजा करबे तो का पएबे ? छलबाज, कपटी, धुरफंदियन तोरा जीए न देतन, जीते के बात तो दूर के हे । धुरफंदियन के धुरफंदिए से हरा सकऽ हें । अपन बेटा लेके घर जा । बुद्धि, छल, धुरफंदी से काम निकालऽ ।) (समसा॰03:1:73.17, 18)
154 धौगना (डॉ. नलिन के संस्कृत, पालि आउ हिंदी तीनों विषय के प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त हे । एकर अलावे ई डी.लिट्. भी हथ । ने मालूम कय दर्जन शोधार्थी इनकर अर-असीरवाद से विदमान बन के धौगल चलऽ हथ । केतना कवि कविआँठ बन के नितराल चलऽ हथ ।) (समसा॰03:1:106.8)
155 नक्कल (= नकल) (उनकर की कहना जे गाँव-घर छोड़ के चल गेलन । बकि तूँ उनकर नक्कल करऽ हऽ ई बुद्धिमानी नञ् कहल जा सको ।) (समसा॰03:1:6.25)
156 नखलउ (= लखनऊ) (पटना में सादी-रोसकदी, बिदाय वाला काम पूरा कराके उ नखलउ लौट गेलन, अउ हम अप्पन घर राजगीर ।) (समसा॰03:1:53.22)
157 नजर-गुजर (~ लगना) (आज तक विश्वविद्यालय में टौप करे वाला छात्र के कोंपी सार्वजनिक न करल गेल, जबकि ई माँग उठइत रहल हे । सार्वजनिक न करे के पीछे हमरा लगऽ हे कि ऊ सार्वजनिक करे के चीजो न होवे । ऊ तो धरोहर होवऽ हे से ओकरा अइसन रख देल जाहे कि हवा-बतास इया नजर-गुजर नऽ लगे ।) (समसा॰03:1:93.20)
158 नामी-गरामी (ई देखल भी जा रहल हे कि कोई नामी-गरामी साहितकार के उनकर किताब इया नाम के उजागर करे में बहुते हाँथ रहल हे ।) (समसा॰03:1:94.10)
159 नाय (= नाव) (लेकिन अब सब भरनठ हो गेल हे । नञ् कोय ईमनदार नेता हे, नञ् सरकारी करमचारी, नञ् कोय ओइसन दारसनिक आउ समाजसेवी हे, जे देस के डूबइत नाय के बचा सके ।) (समसा॰03:1:51.13)
160 निमोछिया (मोंछ-दाढ़ी तोरा कभी भेल जे मरद के असली पछान हे ? मिरतूलोक में निमोछिया के खूब चिड़कावल जाहे ।; डेली पसिन्जर के संख्या सौ में होअऽ हे - से तो भारी पड़ जा हथ आउ इनकर संख्या तो हजार में हे । फिर निमोछिया ग्रुप के पास तो कोई बुद्धि न होअऽ हे । कुछ बोलना हे साढ़ेसाती के निमंत्रण देना ।) (समसा॰03:1:83.23, 88.21)
161 निम्मन (जब दिमाग के दरवाजा पर जवानी के उमंग पहरेदार बन के बैठ जाहे, तब कोय निम्मन बात कि, हवा भी अंदर नञ् पहुँच सकऽ हे ।) (समसा॰03:1:53.20)
162 नीचू (= नीचे) (हमर मुँह ताकइत ऊ गंभीर हो गेलइ हल, फिन नीचू ताकइत जमीन खुरचऽ लगलइ हल अंगुरी से ।) (समसा॰03:1:44.20)
163 नुकाना (= छिपाना) (एगो दरोपदी के लूगा खिंचला पर महाभारत भेल हल, बाकि तूँ तो ढूका लगा के सैकड़ों मेहरारुन के लूगा-फाटा नुकैलऽ हल ।) (समसा॰03:1:83.9)
164 नूनी (गाम के मकान में नूनी चूअऽ हल । अप्पन सौख-मौज के गियारी दबा के, पेट काट के ओकरा केतना जतन करके उ अइँटा सिरमिट चूना-रंग से झलाझल कर देलन ।) (समसा॰03:1:52.20)
165 नोखगर (= नोकदार) (बाप के हिन्छा हलइ कि बेटा कलट्टर, जज, इंजीनियर, वकील चाहे एस.पी. बने, लेकिन मन के हिन्छा केकर पूरल हे । कुछ करम के हाथ में, तो कुछ विधना के हाथ में रहऽ हे, जे उ जलमइ से पहिले केकरो लिलार में खोद के अप्पन नोखगर कलम से लिख दे हथ ।) (समसा॰03:1:49.14)
166 पगलाना (तू काहे ला पगलाइल हें, उ पगला से कउन पूछे । लइकन सब ओकरा लुलुआइत हलन, ओकर कपड़ा खीचैइत हलन, ओकरा लंगटे करइत हलन, थूक फेकइत हलन, पगला से आजिज हो गेलन हल ।) (समसा॰03:1:58.18)
167 पछान (मोंछ-दाढ़ी तोरा कभी भेल जे मरद के असली पछान हे ? मिरतूलोक में निमोछिया के खूब चिड़कावल जाहे ।) (समसा॰03:1:83.23)
168 पड़ी (= परी) (इन्नर के ~) (सोना के गहना पहिनले रुन-झुन करइत मड़वारी सब के मेहारू, बेटी । भगवान धनो देले हथी अउ अपने हाथे उनकर रूप-रंग गढ़ले हथ । इन्नर के पड़ी सुनऽ ही खिस्सा-कहानी में । ओही हुआँ आँख से देखली तो हम भुला गेली गाँव-घर, मेहारू-परिवार सब कुछ ।) (समसा॰03:1:67.25)
169 पथार (हमनी बिहार रेजिमेंट के साथी सब तीन तरफ से अप्पन ढेरो साथी से बिछुड़इत आउ दुश्मन के पथार लगावइत टायगर चोटी पर अपन झंडा फहरा के फतह हासिल करि लेलिअइ हे ।) (समसा॰03:1:45.12)
170 परचित (= परिचित) (उ अप्पन छोटकी बेटी के बियाह करके, करजा-पैंचा लेके छोटका बेटा के पढ़ाय खातिर दिल्ली भेज के आजकल अप्पन एगो परचित अमदी के साथ रहऽ हथ ।) (समसा॰03:1:53.26)
171 परसुँ (= परसों) (परसुँ ओकर भाय के चिट्ठी कारगिल मोरचा से अइलइ हल । कानोकान खबर मिलते मातर करीम के घर में जन्नी-मरद के अइसन हुजूम उमड़लइ कि कजइ तिल धरइ के जगह नञ् ।) (समसा॰03:1:45.2)
172 पलखत (पलखत पाके न जानी कखनी अपन माया से ई इहाँ से अलोपित हो जा हथ, से हम न जानली । एक जगह पर ई टिकबे न करथ ।) (समसा॰03:1:78.5)
173 पसिन्जर (= पैसेन्जर; यात्री) (डेली पसिन्जर के संख्या सौ में होअऽ हे - से तो भारी पड़ जा हथ आउ इनकर संख्या तो हजार में हे । फिर निमोछिया ग्रुप के पास तो कोई बुद्धि न होअऽ हे । कुछ बोलना हे साढ़ेसाती के निमंत्रण देना ।) (समसा॰03:1:88.19)
174 पसिन्जरी (= पसिन्जर का काम; यात्रा) (एगो से लड़ाई करना बिर्हनी के खोंता में नाक रगड़ना हे आउ हम भी तो डेली पसिन्जरी कइली हे । छेड़े के परिनाम जानवे करऽ ही । चुपे रहे में फयदा हे ।) (समसा॰03:1:88.8)
175 पसीन (= म॰ पसन; हि॰ पसन्द) ("इ बिआह अप्पन पसीन से भेल कि बाबूजी आउ माय के हिन्छा से ?" - "1964 में इ बिआह पर ममता के मूरति, दया के देवी, स्नेह के समुंदर हम्मर दादी के पसीन के मोहर लगल हल, माय-बाप के बात-विचार से नञ् !) (समसा॰03:1:50.14, 16)
176 पहिने (= पहिले) (ओन्ने से की बात होलइ, हमरा मालूम नञ् । मगर एन्ने से रेशमा ओकरा धिक्कार रहलइ हल । पहिने तऽ जइसे बोली में मिसरी घोरि देलकइ - अस्लाम अलइकुम परवेज ! मुदा तुरतइ अवाज बदलि देलकइ हल ... - सुनऽ हिअइ जुध बंद हो गेलइ, अब तऽ तोर मन ठीक हो जाय के चाही ?) (समसा॰03:1:46.20)
177 पाँख-पुच्छी (परेम बिना पाँख-पुच्छी के पंछी हे, जे अकास से उतरऽ हे, अउ अकासे में उड़के बिला जाहे । इ संसार के सबसे बड़गो दौलत हे - परेम ।) (समसा॰03:1:54.23)
178 पातना (कान ~) (हम बगल में दम साधि के ओकर एक-एक बात सुनइ ले कान पाति देलिअइ हल ।) (समसा॰03:1:46.16)
179 पाप-पुन (= पाप-पुण्य) (अच्छा, अपने तो करमकांड, पूजा-पाहुर के ढकोसला कहऽ ही तो पाप-पुन कुछ हे कि नञ् ?; पाप-पुन के बीच में बिसफिटा देवाल थोड़के हे । अठारहो पुरान, चारो वेद के सार हे कि जे करम से केकरो सरीर, दिल, दिमाग के पीड़ा हो, से पाप अउ जेकरा से मन हरखित हो से पुन हे । परोपकार पुन हे, अउ दुख देनय पाप ।) (समसा॰03:1:51.20, 22)
180 पावस्ती (ई अछरंग न हो, बावन तोला पावस्ती आ पत्थल के डरीर हो । तोर तीनो औगुन के हिगरा-हिगरा के हम समझा दे ही ।) (समसा॰03:1:79.11)
181 पीढ़ा (अंगना में मलकिनी के देखलक तो 'पाँव लागी' कएलक । मलकिनी चेहाइत नजर से देख के 'खुश रहऽ' कहलन । बरामदा में रखल पीढ़ा लाके ओकरा दने सरका देलन । नन्हकू कान्हा से गमछी उतार के पीढ़ा पर रखलक अउ बइठ गेल ।) (समसा॰03:1:67.17, 18)
182 पुटपुटिया (दुनियाँ तो निमने चलइत हे । सब लोग अजाद हइए हथ । जेकरा मन करऽ हे तेकरा उड़ा देहे । पुटपुटिया दाग देहे ।) (समसा॰03:1:58.11)
183 पेसकी (= पेशगी; अग्रिम) (जेकरा से बात तय हल ऊ पेसकी मँगलक । न देवे पर दुसरा के हाथे जमीन बेचे के धमकी देवे लगल ।) (समसा॰03:1:70.4)
184 फटीचर (बिना ठाट-बाट के काम कइसे चलत ? फटीचर नियर रहेवला के कोई पूछऽ हे ?) (समसा॰03:1:81.23)
185 फरियाना (तनि फरिया के तो कहऽ साफ-साफ । कौन लच्छन से हम लालची, आलसी आ सौखीन लगऽ ही ? ई तीन-तीन अछरंग हमरा पर लगावे में तोरा जरिक्को सरम न आयल ?) (समसा॰03:1:79.8)
186 फलना (इधर नेता लोग चुनाव जीते ला पार्टी के नाम कम, अपन नेता के नाम के माला जादे जपऽ हथ । कोई कहऽ हथ हम फलना के संतान ही ।; बहुते लोग के सुनली होयत कि हम तो फलना विदमान के चेला रहली हे, फलना से पढ़ली हे, फलना से तो रोजे भेंट होवऽ हल इया फलना विद्यापीठ इया विश्वविद्यालय से हम पास कइली हे । ई बात तो ठीके हे, बाकि अपने ओइसन बन पइली कि नऽ, सवाल ई हे ।) (समसा॰03:1:92.25, 93.9, 10, 11)
187 फुटानी (फरमाइस आ फुटानी आज तलक तोरा नियर कोई कैलक ? केतना कहूँ, मुँह दुखा गेल । सौखीनी आउ कइसन होवऽ हे ?) (समसा॰03:1:81.3)
188 फुलुसबुकनी (~ छाँटना) (ई कहऽ ने कि कोय बकलोल विदमान से सुन लेलऽ हऽ कि मगही दलित लोग के भाषा हे, आदिवासी सब के भाषा हे, तोर अभिजात्य जबान पर ई इहे गुने नञ् चढ़ो । बछिया के ताऊ हऽ तूँ ! टोरंटो आउ मेक्सिको में 'सत् सिरी अकाल' आउ 'केम छे - केम छे' हो सकल हे आउ तूँ मगहे के धरती पर फुलुसबुकनी छाँटऽ हऽ ! जग्गह देख के आचरण करऽ ! सकुन्नत मिलतो ।) (समसा॰03:1:6.22)
189 फुल्ली (अपन आँख से केकरो अपन लिलार न देखाई पड़े ! अपन ढेढर न देख के दोसर के फुल्ली लोग निहारऽ हे ।) (समसा॰03:1:77.20)
190 बकबकाना (कोय उ पगला के पूछे ला नञ् तैयार रहे कि उ का बकबकैले हे, जेकर अवाज असमान तक अनोर कइले हे ।; अब पगला के, के रोके, के पूछे कि तू का बकबकैले हें ।) (समसा॰03:1:58.4, 9)
191 बकबक्की (कउन हलन उ ! उ पगला के सामने अप्पन हाथ फैला के खड़ा हो गेलन । उनकर देह पर भभूत हल । धरती के मट्टी हल । उजरका रेत नियन उनखर देह चाँदी नियन चमक रहल हल । पगला आवइत-आवइत रुक गेल - रुक गेल बकबक्की ओकर ।) (समसा॰03:1:59.13)
192 बकलोल (= मूर्ख) (जबकि मगही बोलते घड़ी तो तोर चहेती भाषा अंगरेजी के बेहवार के पूरा छूट दे देलियो हे, त ई बोकराती तो करवे नञ् करऽ कि मगही बोले से हमर हिंदी बिगड़ जाहे । ई कहऽ ने कि कोय बकलोल विदमान से सुन लेलऽ हऽ कि मगही दलित लोग के भाषा हे, आदिवासी सब के भाषा हे, तोर अभिजात्य जबान पर ई इहे गुने नञ् चढ़ो ।) (समसा॰03:1:6.18)
193 बग-बग (उज्जर ~) (तीन-चार दिन के बाद उनकर दलान पर एक मूरत आएल । उज्जर बग-बग धोती अउर दक्क-दक्क कुरता पहिनले, कान्हा पर ललका गमछा धएले अउर दोसरा कान्हा पर रेडियो लटकएले ।) (समसा॰03:1:66.3)
194 बड़वरगी (~ बखानना) (नन्हकू अउर कुछ कहइत, लेकिन दीदी टोक देलकइ बीचे में - "बहुते बड़वारगी बखानइत हऽ हुँआँ के । ई बतावऽ कि हुँआँ से का लएला हे हमरा खातिर ?" नन्हकू माथा खजुअलक । फिर बोलल - "हाँ लएले ही तोरा खातिर ढाका के बनल मलमल के थान अउर बनारसी साड़ी । तोर सादी में देबवऽ दीदी ।") (समसा॰03:1:68.2)
195 बढ़कुआ ("सुनइत हऽ न तोहनी सब ? इ नन्हकुआ के बढ़कुआ बनल । अइसन बदमासी ! अइसन मजाक ! अरे एही करे ला हउ तो जो अपन बाप से कर, माय से कर, गैर से कर । का हो गेल दुनियाँ ? लड़िकाई से मोंछ के रेघारी आवे तक जे हमरे अनाज पर पोसाएल, हमरे निमक खएलक, वो ही परदेस से दु पइसा हाथ में लेके आएल तो थमाइते न हे ?") (समसा॰03:1:71.9)
196 बढ़मा (= बर्हमा; ब्रह्मा) (कोई महादे के भेजल इहाँ आवत, ई ओकरा बढ़मा जी के पास भेज देतन, कभी महादे के पास पेठैतन । जे लोग के दिमाग कमजोर रहऽ हे ओही नेआव करे में कसर-मसर करऽ हे !) (समसा॰03:1:81.18)
197 बदराना (= बादर/ बादल छाना) (ओकर आँखि कभी गुस्सा आउ नफरत से जलि सिकुड़ि उठऽ हलइ तऽ कभी बदराल अकास सन चुचुआल ।) (समसा॰03:1:45.29)
198 बनाहे (~ के = बनाय के) (हमर सवाल जइसे उठाके ओकरा ऊहे माहौल में जा पटकलकइ हल, जेह में हर तरफ से ठूल आउर ताना ओकर आतमा के बनाहे के मथि के धरि देलकइ हल ।) (समसा॰03:1:45.1)
199 बरमहल (सावन-भादो महीना में सुरुज के रथ पर उनकरे साथ ऊ बरमहल रहऽ हे । ऊ चवन रिसी के पिता हल ।; तोरा नियर जालिया, ठग आ बहुरुपिया आज तक कोई भेल ? जालंधर वला कांड के सराप भुला गेलऽ हे, बरमहल ओकरे गोर तर रहे पड़ऽ हवऽ ?) (समसा॰03:1:82.24, 84.16)
200 बलाय (= बला) (एन्ने, न ओन्ने, ई बलाय कन्ने से हमरा भिजुन आ गेलन हे ।; हमरा बलाय कहऽ ह ? जब हम बलाय हली तब समुन्नर से निकलइते लपकइत हमर हाथ काहे पकड़ लेलऽ हल ?) (समसा॰03:1:78.10, 14, 15)
201 बहनोय (= बहनोई) (मोरचा के नामे से हुनखा हद्दस समा गेलइ आउ श्रीनगर छावनी अस्पताल में भर्ती हो गेलन । हम नञ् समझऽ हलिअइ कि हमर बहनोय एत्ते कायर होतइ ।) (समसा॰03:1:45.15)
202 बाभन-रजपुत (एकदमे से बाभन-रजपुत जुकुर लगइत हे । सोकुमारी अइसन कि जरा सुकुन सींक मारला पर देह से खून टपके लगे ।) (समसा॰03:1:65.27)
203 बारना (= जलाना) (दीया ~) (जानऽ हीं परवेज, सीमा पर लड़इत अगर तूँ सहीद हो जइतहीं हल, तऽ जिगर के खून से तोहर कब्र पर दीया बारतिअउ हल । मुदा अब ... अब डर से चूड़ी पेन्ह के साया में घुसि जायवला ... डर से पइजामा में पेसाब करि देबइवला तोहरा सन कायर के, कसम काली पगड़ी वला के, सौहर कहइ में कन्नी खा लेबइ के मन करऽ हउ !) (समसा॰03:1:46.29)
204 बाह (ठीके कहइत हऽ हो । हियाँ तो बड़-बड़ ऊँट दहलाएल जाइत हे, गदहवा के कवन बाह ? हमरे देखऽ । एके गो बेटी हे । एतना जमीन-जोत हे । बाकि बिआह के खरचा जोगाड़ कएल मोहाल हो गेल ।) (समसा॰03:1:68.22)
205 बिर्हनी (= बिढ़नी, ततैया) (एगो से लड़ाई करना बिर्हनी के खोंता में नाक रगड़ना हे आउ हम भी तो डेली पसिन्जरी कइली हे । छेड़े के परिनाम जानवे करऽ ही । चुपे रहे में फयदा हे ।) (समसा॰03:1:88.7)
206 बूँट-केराय (लगल कि उ झमेटगर पेड़ के डंघुरी अइसन मुरझा गेल हे, जइसे होलइया में झोंके पर बूँट-केराय के झंगरी ।) (समसा॰03:1:55.4)
207 बेकहल (हमर एगो बेटा कामदेव हलन जे खेसारी नियर अपन छावे न छोड़लन । बेकहल आ बेमाथ के लइका अपन साढ़ू महादेजी से छेड़खानी कर देलक आ उनकरे हाथ से मारल गेल ।) (समसा॰03:1:84.25)
208 बेकुफी (दे॰ बेकूफी) (नीम के पत्ता आउ डघुरी में मिठास अउ सुरूज के आगु में चंदरमा के सीतलता खोजनय बेकुफी हे । आत्मविसवास अउ हिम्मत के बल से कोय अमदी जोर से ढेला फेंक के असमान में छेद कर सकऽ हे ।) (समसा॰03:1:52.11)
209 बेग (= बैग; bag) (चद्दर झारली आउ सोचली कि रतजग्गा तो होइए गेल । अब दू-चार घंटा दिन में सुतल जाय । मुँह धोके लौटली तो देखित ही, पूरे पाँच सवारी बेग कान्हा में लटकौले सवार हथ ।) (समसा॰03:1:88.1)
210 बेमाथ (हमर एगो बेटा कामदेव हलन जे खेसारी नियर अपन छावे न छोड़लन । बेकहल आ बेमाथ के लइका अपन साढ़ू महादेजी से छेड़खानी कर देलक आ उनकरे हाथ से मारल गेल ।) (समसा॰03:1:84.25)
211 बेमानी (= बेइमानी) (अमरित के बँटवारा करे में तोर बेमानी न हल ? ऊ घरी ठसाठस भरल सभा में रछसवन के लोभावे ला सुन्नर मेहरारू के रूप तूँ धारन कैलऽ हल !) (समसा॰03:1:79.29)
212 बेरस्ता (चतुर्भुज जी के कहना हे कि लेखक अप्पन नाटक के चरित्र के ओएसहीं जलम देवऽ हे, जइसे एक माय अप्पन बेटा के । बाकि बेटा रस्ता से बेरस्ता हो जाय त लेखक चाहे माय-बाप का करतन ।) (समसा॰03:1:100.24)
213 बोकराती (~ करना; ~ छाँटना) (करवऽ कबुद्धी ! कउन तरह के दिमाग पइलऽ हऽ जी ! जबकि मगही बोलते घड़ी तो तोर चहेती भाषा अंगरेजी के बेहवार के पूरा छूट दे देलियो हे, त ई बोकराती तो करवे नञ् करऽ कि मगही बोले से हमर हिंदी बिगड़ जाहे ।) (समसा॰03:1:6.17)
214 बोलनय (पढ़े-लिखे बोलनय सभे में हलन उ बच्चे से अजगुत तेज-तर्रार ।) (समसा॰03:1:49.28)
215 भंजाना (= भुनाना) (पार्टी चुनाव में जीते के 'नाम' से सहारा लेहे । जइसे कांग्रेस आज तक इंदिरा जी के नाम भंजावे से नऽ चुकइत हे ।; बिहार में राजद भी कभी-कभी नाम लेके भोट भंजावे के कोरसिस में जगदेव बाबू के नारा आउ नाम समाज में मोहरा के रूप में फेंकऽ हे ।) (समसा॰03:1:92.19, 22)
216 भकुआएल ( अपन बेटा लेके घर जा । बुद्धि, छल, धुरफंदी से काम निकालऽ । कोई दिक्कत न होतवऽ । नन्हकू भकुआएल हल । सतजुग फिनो समझवलन - एकरा तूँ सज्जन-साधु लोग पर मत अजमइहऽ । खाली धुरतन पर करिहऽ । अब रोवऽ मत, घर जा बेटा लेके ।) (समसा॰03:1:73.19)
217 भदगर (~ बात) (न ! न ! अइसन काहे कहइत हऽ । ई सब भगवान के किरपा हे हो । जेकरा दे हथ तो छप्पर फाड़ के अउ ले हथ तो ... बाबू साहेब के भदगर बात कहे में अच्छा न लगइन । एही से कहइत-कहइत रुक गेलन, लेकिन नन्हकू पूरा कएल चाहलक तो ओकरा बीचे में रोक देलन - कहऽ, कहाँ हलऽ एतना दिन ?) (समसा॰03:1:66.13)
218 भभूका (= लपट, ज्वाला, लौ) (चेहरा लाल ~ होना = क्रोध आदि से चेहरा लाल होना) (रोवे लगे हे उ । फिनु छने ओकर माथा, आँख पर खून चढ़ जाहे - लाल भभूका ! लगे हे जंगल में आग लग गल ।) (समसा॰03:1:57.13)
219 भरकोसा (= कोस भर वाला) (नदी के भयावन भरकोसा बलुआ पाट पार करइ के थकान, लगे दम चलते जाय के ओकर साहस छीन लेलकइ हल ।) (समसा॰03:1:43.6)
220 भरनठ (लेकिन अब सब भरनठ हो गेल हे । नञ् कोय ईमनदार नेता हे, नञ् सरकारी करमचारी, नञ् कोय ओइसन दारसनिक आउ समाजसेवी हे, जे देस के डूबइत नाय के बचा सके ।) (समसा॰03:1:51.12)
221 भरभराना (पढ़ाई के नाम पर तऽ अंग्रेजी ठाट-बाट के कोई कमी नऽ हे । अंगरेजी रटइत हथ - सीता के सीटा आउ राम के रामा पढ़इत हथ । पापा-मम्मी नाम के जोर हे । मतलब विश्वगुरु भारत भरभराइत हे आउ हिंगलिस में गिटपिटाइत हे ।) (समसा॰03:1:93.26)
222 भलाय (= भलाई) (जेकर आगु धन-सुख, अराम, सफलता, आदमीयत अरदास करऽ हल, अब ओकरे सुख हवा के कंधा पर चढ़के कौन लोक में कहाँ उड़ गेल ? गाम, टोला, जेवार में, इनका सब रुपइया के एगो झमेटगर दरखत बुझऽ हलन, जेकर छँहुरा में केतना के भलाय भेल हल ।) (समसा॰03:1:54.28)
223 भिरू (= भिर; पास) ("अइसन काहे कहइत ही मालिक । फटलो ही तबो पितंबरी ही ।"/ "अरे अब कहाँ नन्हकू ऊ पुरान बात । अबहीं तो हमरा आग लेसले हे । कोई मददगार नइखी देखइत । जेकरा भिरू मुँह खोलऽ, हुँवईं लचारी के बहाना । हिआँ तो बेइजत होइत देखला पर लोगन के करेजा ठंढा होवऽ हे न ।") (समसा॰03:1:69.8)
224 मईंयाँ (नन्हकू सुनावे लगल । सुनएते-सुनएते ओकरा याद आएल मईंयाँ के बात । मईंयाँ मने बाबू साहेब, बाबू साहेब मने मालिक के लड़की, जे छौ साल पहिलहीं बिआहे जुकुत हो गेल हल । जेकरा ऊ 'दीदी' कहऽ हल । पुछलक - "मालिक ! दीदी के का हाल-चाल हइन । शादी तो ... ?") (समसा॰03:1:66.25)
225 मउगर (अमरित के बँटवारा करे में तोर बेमानी न हल ? ऊ घरी ठसाठस भरल सभा में रछसवन के लोभावे ला सुन्नर मेहरारू के रूप तूँ धारन कैलऽ हल ! हम तो चकित हो गेली । मुँह तोप के खूब हँसइत रहली । ऊ घरी तोर सब लूर-लच्छन मेहरारू वला हो गेल हल । तनिको अंदाज न हल कि हमर बिआह अइसन मउगर आ बहुरुपिया से हो गेल हे !; हम तो खाली सरापे देके रह गेली । बस चलइत हल त ऊ जरलाहा के चेहरा करिखाही हँड़िया से हम पोत देती । तू मउगर आ घरघुस्सु बनके बिछौना पर पड़ल रहऽ ।) (समसा॰03:1:80.4, 83.6)
226 मउवत (= मउअत; मौत) ("हाँ मालिक ! परेसानी तो बढ़िए गेल ।" - नन्हकू बोलल ।/ "बढ़िए न गेल । ई परेसानी न हे, हमरा खातिर मउवत हे । ई चाहे तो हमर परान लेत इया फिर समझऽ समाज में, जेवार में, रिसतेदारन के बीच हमर नाक काट के छोड़त ।") (समसा॰03:1:69.3)
227 मजगर (= मजेदार) (एक बात साफ कर देइथी कि ई कोई कहानी न हे, लेकिन एकरा में कहानी हे मजगर ।) (समसा॰03:1:65.2)
228 मड़वारिन (सजल-धजल दीदी के फूल अइसन चेहरा । आँख से आँख मिलल तो नन्हकू के नजर नीचे होके जमीन में गड़ गेल । चुकू-मुकू बइठ के मलकिनी के मन-मोताबिक कलकत्ता के मड़वारिन के खिस्सा सुनावे लगल - एक से एक अँटारी हे हुआँ । नीचे से नौतल्ला देखब तो माथा के टोपी गिर जाएत ।) (समसा॰03:1:67.22)
229 मताना (हरिन मता देवइवला बीच दुपहरिया में परवेज के फोन पर बतियावइ ले ऊ घर से निकसि गेलइ आउ चलते-चलते परेशान, भरकोस्सा पाट वली सकरी नदी पार करइत-करइत तऽ जइसे झुलसि के मातल, कछार के महुआ गाछ तर झमा बइठलइ हल ।) (समसा॰03:1:45.23)
230 मरनय (हमरा बड़ अचरज-अजगुत लगल कि 102 बरिस के उमर में भी उनकर मरनय पर इ एतना दुखी हलन ।) (समसा॰03:1:51.1)
231 मसोमात (= मोसमात; विधवा) (पटना में एगो मसोमात के बेटी के बियाह अप्पन खरचा से करा रहलन हल ।) (समसा॰03:1:53.6)
232 माड़ा ("लेकिन अब सब भरनठ हो गेल हे । नञ् कोय ईमनदार नेता हे, नञ् सरकारी करमचारी, नञ् कोय ओइसन दारसनिक आउ समाजसेवी हे, जे देस के डूबइत नाय के बचा सके ।" - "अपने के आँख पर माड़ा आ गेल हे । आझो एक-से-एक लोग हथ ।") (समसा॰03:1:51.15)
233 मातल (= मत्तल) (हरिन मता देवइवला बीच दुपहरिया में परवेज के फोन पर बतियावइ ले ऊ घर से निकसि गेलइ आउ चलते-चलते परेशान, भरकोस्सा पाट वली सकरी नदी पार करइत-करइत तऽ जइसे झुलसि के मातल, कछार के महुआ गाछ तर झमा बइठलइ हल ।) (समसा॰03:1:45.25)
234 मामू (मथुरा में अपन मामू के पटक के परान लेलऽ ।) (समसा॰03:1:83.12)
235 मुँहफटय (उनकर मुँहफटय, स्वछंद खेयाल, साफगोई अउ क्रांतिकारी विचार के कारन अप्पन बाप से भी जिनगी भर सतेला बेवहार मिलल ।) (समसा॰03:1:52.16)
236 मूँड़ना (माथा ~) (पहिले 'लालू चालीसा' लिखल गेल तऽ इधर 'अटल चालीसा' भी रच देवल गेल । उधर कोई बड़हन नेता के नाम पर ट्रस्ट आउ संस्था खोल के जनता के माथा मूँड़ देल गेल ।) (समसा॰03:1:93.4)
237 मोहाल (प्रकृति के लीला अइसन भेल कि लगले-लगले पाँच साल अकाल पड़ल । अदमी के अनाज मोहाल हो गेल, गोरू के गँवत ।) (समसा॰03:1:65.10)
238 रजनेता (= राजनेता) (गुंडई करे ला लाइसेंस के जरूरते न हे । रजनेता के अजदिए हे ।) (समसा॰03:1:58.12)
239 रतजग्गा (= रात का जागरण) (इ गुन हम भी सीट के पानी से पोछली । चद्दर झारली आउ सोचली कि रतजग्गा तो होइए गेल । अब दू-चार घंटा दिन में सुतल जाय ।) (समसा॰03:1:87.28)
240 रसिया (रोज रात के एक्के सवाल । बाप की जवाब देइत होत ? तंग आके एक रात बोलल - राजा की खा होतइ - कोदो ? अरे राजा खा होतइ - रसिया आउ उप्पर से मोट छलगर दूध ।) (समसा॰03:1:97.6)
241 राड़-रेआन (खासा भीड़ अउ उ में नान्हे लोग के मुँड़ी जादे लौकल । बाबु साहेब के खाड़ देख के कए गो कानाफूसी करे लगलन । बाबू साहेब के दिमाग में तेजी आएल । सोचलन - ई सब राड़-रेआन, सिआरन के भीड़ से बाघ डेराएल तो जीने मोसकिल हे ।) (समसा॰03:1:72.4)
242 रुत-रुत (= रत-रत) (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।) (समसा॰03:1:43.3)
243 रेघारी ("सुनइत हऽ न तोहनी सब ? इ नन्हकुआ के बढ़कुआ बनल । अइसन बदमासी ! अइसन मजाक ! अरे एही करे ला हउ तो जो अपन बाप से कर, माय से कर, गैर से कर । का हो गेल दुनियाँ ? लड़िकाई से मोंछ के रेघारी आवे तक जे हमरे अनाज पर पोसाएल, हमरे निमक खएलक, वो ही परदेस से दु पइसा हाथ में लेके आएल तो थमाइते न हे ?") (समसा॰03:1:71.11)
244 रेहन (कलकत्ता जाए से कम-से-कम एतना तो जरूरे होएल कि अपने सब के दोआ से दस-बारह हजार रुपेआ हाथ में हे । हियाँ तो दू-चार हजार करजे हो जाइत । घरवो रेहन रखे पड़ जाइत ।) (समसा॰03:1:68.19)
245 लंगटे (~ करना = नंगा करना) (तू काहे ला पगलाइल हें, उ पगला से कउन पूछे । लइकन सब ओकरा लुलुआइत हलन, ओकर कपड़ा खीचैइत हलन, ओकरा लंगटे करइत हलन, थूक फेकइत हलन, पगला से आजिज हो गेलन हल ।) (समसा॰03:1:58.19)
246 लकड़दादा (जउन मनु से हमर पैदाइश के रिश्ता जुड़ गेल, जे हम सब के लकड़दादा बन गेलन । जे हमरा नाम देलन आखिर ऊ मनु हलन के ?) (समसा॰03:1:10.15)
247 लखलऊ (= लखनऊ) (लखलऊ में रह के भी दुनहूँ परानी के ठाट-बाट से रहनय नञ् बदलल हल, जइसे लखलऊ के हरियरी, ठाट-बाट, रंगीनी खुद हार के सरमा गेल हल ।) (समसा॰03:1:52.13, 14)
248 लगले-लगले (= लगातार; पास-पास, एक दूसरे से सटा-सटा) (प्रकृति के लीला अइसन भेल कि लगले-लगले पाँच साल अकाल पड़ल । अदमी के अनाज मोहाल हो गेल, गोरू के गँवत ।) (समसा॰03:1:65.9)
249 लतिआना (= लतियाना) (आ ऊ दिन तोर ई धरम आ करतब कहाँ भुला गेल हल जब एगो सधारन भिरगू रिसी घर में घुस के तोरा लतिऔलक हल ?) (समसा॰03:1:82.24)
250 ललचपना (= लालचपन) (समुन्नर से जे चउदह गो रतन निकलल ओकरा में से चार रतन तूँ अकेले हँसोत लेलऽ - ई तोर ललचपना न हल ?) (समसा॰03:1:79.14)
251 लहरी (= लहर) (एक भाव आवइत आउर एक भाव जाइत ओकर चेहरा हवा के झकोर से लहरी दर लहरी उठइत कोय तलाव के जल सतह सन हो उठलइ हल ।) (समसा॰03:1:45.27)
252 लुरगर (अपने ई कह सकऽ ही कि ऊ लुरगर होयतन, बुधगर होयतन, एही से उनका लोग लुरगरजी कहऽ होयतन । लुरगर तो एतना हथ कि दुनियाँ के जे भी समस्या हे ओकरा पर ऊ बिना पुछले भी राय देबे से बाज न अयतन ।) (समसा॰03:1:92.3, 4)
253 लुलुआना (तू काहे ला पगलाइल हें, उ पगला से कउन पूछे । लइकन सब ओकरा लुलुआइत हलन, ओकर कपड़ा खीचैइत हलन, ओकरा लंगटे करइत हलन, थूक फेकइत हलन, पगला से आजिज हो गेलन हल ।) (समसा॰03:1:58.19)
254 लूगा-फाटा (= लुग्गा-फट्टा) (एगो दरोपदी के लूगा खिंचला पर महाभारत भेल हल, बाकि तूँ तो ढूका लगा के सैकड़ों मेहरारुन के लूगा-फाटा नुकैलऽ हल ।) (समसा॰03:1:83.9)
255 लूर-लच्छन (अमरित के बँटवारा करे में तोर बेमानी न हल ? ऊ घरी ठसाठस भरल सभा में रछसवन के लोभावे ला सुन्नर मेहरारू के रूप तूँ धारन कैलऽ हल ! हम तो चकित हो गेली । मुँह तोप के खूब हँसइत रहली । ऊ घरी तोर सब लूर-लच्छन मेहरारू वला हो गेल हल । तनिको अंदाज न हल कि हमर बिआह अइसन मउगर आ बहुरुपिया से हो गेल हे !) (समसा॰03:1:80.3)
256 लूल्ह-लाँगड़ (अपन मन के हिन्छा जोआला केकरो नञ् बतावऽ हलन कि आखिर जात में, कुजात में, इंदर के परी से कि कोय कान-कोतर, आंधर, लूल्ह-लाँगड़ से बियाह करके कोय बड़गो आदर्श के नाम कमउतन, समाजसेवी के तमगा, साटिफिकेट लेतन ।) (समसा॰03:1:50.6)
257 लेरू-लइकन (फूल-पौधा तो उजड़वे करत, लेरू-लइकन भी अकाले जइता । कोइ रुक के सोचे ला, समझे ला तैयारे न हे, का करूँ ।) (समसा॰03:1:59.26)
258 लेसना (आग ~) ("अइसन काहे कहइत ही मालिक । फटलो ही तबो पितंबरी ही ।"/ "अरे अब कहाँ नन्हकू ऊ पुरान बात । अबहीं तो हमरा आग लेसले हे । कोई मददगार नइखी देखइत । जेकरा भिरू मुँह खोलऽ, हुँवईं लचारी के बहाना । हिआँ तो बेइजत होइत देखला पर लोगन के करेजा ठंढा होवऽ हे न ।") (समसा॰03:1:69.7)
259 संझउआ (ऊ हमरा सँकरी के कछार पर मिललइ हल, जब भखरा के पहाड़ पर चुक्को-मुक्को बइठल संझउआ सुरुज सतगामा के जंगल में घुरमुरिया मारइ के साहस जुटा रहलइ हल आउ लाज से रुत-रुत ओकर गाल से झरइत कुमकुमी जोत ओकर पसीना से चपचपाल चेहरा के सिनुरिया आम आउ ओकर चोली वला उठान के केला के फूल वला सौरभ दे रहलइ हल ।) (समसा॰03:1:43.2)
260 सकुन्नत (टोरंटो आउ मेक्सिको में 'सत् सिरी अकाल' आउ 'केम छे - केम छे' हो सकल हे आउ तूँ मगहे के धरती पर फुलुसबुकनी छाँटऽ हऽ ! जग्गह देख के आचरण करऽ ! सकुन्नत मिलतो ।) (समसा॰03:1:6.22)
261 सजल-धजल (ओकर अवाज सुनते अपन कमरा से दीदी निकललन । नन्हकू के आँख तिरपित भेल । सजल-धजल दीदी के फूल अइसन चेहरा । आँख से आँख मिलल तो नन्हकू के नजर नीचे होके जमीन में गड़ गेल ।) (समसा॰03:1:67.20)
262 सतेला (= सौतेला) (उनकर मुँहफटय, स्वछंद खेयाल, साफगोई अउ क्रांतिकारी विचार के कारन अप्पन बाप से भी जिनगी भर सतेला बेवहार मिलल ।) (समसा॰03:1:52.18)
263 समझउनी (लाख कोरसिस-समझउनी से भी ओकर कान के परदा नञ् खुलल ।) (समसा॰03:1:53.18)
264 समुद्दर (टेम्स, वोल्गा से ओही अवाज उठ रहल हे । ओही अवाज सातो समुद्दर से ज्वार-भाटा में बदल रहल हे ।) (समसा॰03:1:57.17)
265 समुन्नर (एगो दुख रहित हल तब तो छिपा लेती, बाकि इहाँ तो दुख के समुन्नर लहरा रहल हे ।; हमरा बलाय कहऽ ह ? जब हम बलाय हली तब समुन्नर से निकलइते लपकइत हमर हाथ काहे पकड़ लेलऽ हल ?; हमर हाल ऊ आसकती नियर हो गेल हे गरुड़, जे कुइयाँ में गिरल त उहईं बस गेल । रोज साँप के बिछौना पर सूतऽ ही, भूलल-भटकल कहियो ई जदि करवट लेलन कि हम समुन्नर के पेट में अलोपित भेली ।) (समसा॰03:1:77.25, 78.15, 85.4)
266 सलेसल (= सले-सले) (तीन दिन से लगातार, जने जाय तनइ अइसने ठूल ... ताना ... सुनइत-सुनइत ओकर देह में सलेसल आगि धधकऽ लगलइ आउ आज्झ दुपहर होते पइसा निकालि के छूटल तीर सन घर से निकलि पड़लइ हल ।) (समसा॰03:1:45.21)
267 साँसत (जरूरत पड़ला पर अउरत भी बनली बाकि फिर ओही ढाक के तीन पात ! अइसन साँसत तो नाटक करवे ला लोग के भी न उठावे पड़ल होयत ।) (समसा॰03:1:85.9)
268 साकिटफिकिट (= साटिक-फिटिक; सर्टिफिकेट) (एगो सज्जन बोललन - "बाबूजी ! कैंसर के बीमारी है । जरा बैठा लूँ । बड़ी पून होगा ।" हम सोंचली कि पून लागी पूजा-पाठ तो कभी करली न । दान-धरम भी नहिएँ कइली । मोचन कला में निपुणता के साकिटफिकिट मिलले हे । यही मौका हे ।) (समसा॰03:1:87.21)
269 साढ़ू (हमर एगो बेटा कामदेव हलन जे खेसारी नियर अपन छावे न छोड़लन । बेकहल आ बेमाथ के लइका अपन साढ़ू महादेजी से छेड़खानी कर देलक आ उनकरे हाथ से मारल गेल ।) (समसा॰03:1:84.26)
270 सिक्कड़ ( दस से बेसी बज गेल हे । घरे रहऽ हली तब आठ बजे के बाद सीधे पाँच बजऽ हल । चद्दर-उद्दर झारली, तकिया फुलौली । अटैची के सिक्कड़ से बांधइतहीं हली कि एगो सज्जन बोललन ।) (समसा॰03:1:87.16)
271 सिरमिट (= सिमेंट) (गाम के मकान में नूनी चूअऽ हल । अप्पन सौख-मौज के गियारी दबा के, पेट काट के ओकरा केतना जतन करके उ अइँटा सिरमिट चूना-रंग से झलाझल कर देलन ।) (समसा॰03:1:52.21)
272 सुकुन (= सुन, सन, -सा) (एकदमे से बाभन-रजपुत जुकुर लगइत हे । सोकुमारी अइसन कि जरा सुकुन सींक मारला पर देह से खून टपके लगे ।) (समसा॰03:1:65.28)
273 सुत्तल (एगो मुसहर अप्पन बेटा, सहदेउआ जोरे सुत्तल हे । पाँच-छो बरिस के सहदेउ अप्पन बाप के मुँह नोचले हे । बाप से पुछले हे - एहो बाबू ! एहो बाबू !! राजा की खा होतइ हो बाबू ?) (समसा॰03:1:97.2)
274 सूद-मूर (दुकान पर भीड़ हे । भीड़ के लाभ ऊ सूद-मूर के साथे बसुलऽ हथ । उनका इमानदारी आउ असली समान बेचे के लेबुल जे लगल हे ।) (समसा॰03:1:95.4)
275 सेती (= से; ईहे ~ = इसीलिए) (ईहे सेती आन्हर स्वार्थ से हमरा नफरत हइ । आउ स्वार्थ से नफरत रखउ वला अदमी के घर कहाँ ?) (समसा॰03:1:44.9)
276 सेफारिस (= सिफारिश) (ओहनी के सेफारिस पर ओकरा मारवाड़ी भाई किहाँ नौकरी लग गेलई ।) (समसा॰03:1:65.20)
277 से-से (कोई किताब, लेख इया कविता के समीक्षा कउन कइलन हे - ई पर भी लोग के धेयान जादे खींचऽ हे । से-से ई रोग बढ़ल हे कि कोय तरह प्रभावशाली साहितकार के नाम जोड़ के अपन महानता सिद्ध करे के कोरसिस करतन ।) (समसा॰03:1:94.7)
278 सोकुमारी (= सुकुमारी; नाजुकता) (एकदमे से बाभन-रजपुत जुकुर लगइत हे । सोकुमारी अइसन कि जरा सुकुन सींक मारला पर देह से खून टपके लगे ।) (समसा॰03:1:65.27)
279 सोन्ह (= सोन्हा) (छोड़ऽ महराज ! भले मगहियन तोरा नियन संभ्रांत, अभिजात्य नञ् कहला रहल हे बकि अपन बाल-बच्चन ले सोन्ह मट्टी के गंध, सुगंधित हावा, संतुलित पर्यावरण तूँ जँघिया-बनियान बेच के भी नञ् जुटा सकवऽ ।) (समसा॰03:1:6.4)
280 सौखीन (= शौकीन) (हम कीचड़ न उछाली - हम तो दरपन तोरा मुँह के सामने रख रहली हे । तोरा नियर लालची, आलसी आ सौखीन अपन जिनगी में हम कहीं न देखली ।) (समसा॰03:1:79.6)
281 सौखीनी (= शौकीनी) (अब हमर सौखीनी सिद्ध करके देखावऽ जे तोरा ओर से हमरा पर लगावल अंतिम अछरंग हे ।; फरमाइस आ फुटानी आज तलक तोरा नियर कोई कैलक ? केतना कहूँ, मुँह दुखा गेल । सौखीनी आउ कइसन होवऽ हे ?) (समसा॰03:1:80.17, 81.4)
282 सौरी (= सउर; वह कमरा जिसमें कोई स्त्री प्रसव करती है) (जानऽ हीं, अम्मी की कहऽ हउ ? कहऽ हउ, अगर ई जानतिअइ हल तऽ परवेजवा के सौरिए घर में नोन चटा देतिअइ हल !) (समसा॰03:1:47.4)
283 हँसोतना (समुन्नर से जे चउदह गो रतन निकलल ओकरा में से चार रतन तूँ अकेले हँसोत लेलऽ - ई तोर ललचपना न हल ?) (समसा॰03:1:79.14)
284 हठुआ (~ मनी) (देश मगध आउ मगही के बारे में अब भी हठुआ मनी भरम पालले हे । आज भी कते विदमान के जनकारी में मगही बड़ी अहूठ भाषा हे, जे बिलकुल बकवास हे ।; इधर मगही साहित्य में इतिहास लिखाय लगल हे । ... एकरा पढ़े-देखे से हेठुआ मनी पुस्तक के सूची उपलब्ध हो जाहे ।) (समसा॰03:1:5.8, 31.14)
285 हद्दस (मोरचा के नामे से हुनखा हद्दस समा गेलइ आउ श्रीनगर छावनी अस्पताल में भर्ती हो गेलन । हम नञ् समझऽ हलिअइ कि हमर बहनोय एत्ते कायर होतइ ।; सब्भे जवान सरहद पर दुसमन से लड़ि रहलइ हे । मुदा एगो हम्मर मरद हइ कि देहजरुआ हद्दस से बहाना बना के श्रीनगर सैनिक अस्पताल में बीमार पड़ल हइ ।) (समसा॰03:1:45.14, 46.4)
286 हवा-बतास (आज तक विश्वविद्यालय में टौप करे वाला छात्र के कोंपी सार्वजनिक न करल गेल, जबकि ई माँग उठइत रहल हे । सार्वजनिक न करे के पीछे हमरा लगऽ हे कि ऊ सार्वजनिक करे के चीजो न होवे । ऊ तो धरोहर होवऽ हे से ओकरा अइसन रख देल जाहे कि हवा-बतास इया नजर-गुजर नऽ लगे ।) (समसा॰03:1:93.19)
287 हहो (= हकहो) (अच्छा, तऽ ई बात हइ ! - चुलबुल अंदाज में बिहँसि के पुछलकइ हल - मुदा जाति, कउन जाति के हहो ?) (समसा॰03:1:44.12)
288 हाट (= हार्ट; दिल) (हाट के बिमारी से मरे घड़ी जोआला जी के अप्पन लोरायल आँख लेके, उनकर हाँथ पकड़ के, कंधा पर बेटी के सादी के बोझ डाल देलन हल ।) (समसा॰03:1:53.7)
289 हिंगलिस (पढ़ाई के नाम पर तऽ अंग्रेजी ठाट-बाट के कोई कमी नऽ हे । अंगरेजी रटइत हथ - सीता के सीटा आउ राम के रामा पढ़इत हथ । पापा-मम्मी नाम के जोर हे । मतलब विश्वगुरु भारत भरभराइत हे आउ हिंगलिस में गिटपिटाइत हे ।) (समसा॰03:1:93.26)
290 हिंसाब (= हिसाब) (दलान में आएल तो बाबू साहेब छोह से बइठे ला कहलन । कान्हा से फिर गमछी उतारलक अउ भुइयाँ में हिंसाब से बइठल ।) (समसा॰03:1:68.13)
291 हिगराना (ई अछरंग न हो, बावन तोला पावस्ती आ पत्थल के डरीर हो । तोर तीनो औगुन के हिगरा-हिगरा के हम समझा दे ही ।) (समसा॰03:1:79.12)
292 हिन्छा (= इच्छा, कामना) (बाप के हिन्छा हलइ कि बेटा कलट्टर, जज, इंजीनियर, वकील चाहे एस.पी. बने, लेकिन मन के हिन्छा केकर पूरल हे ।) (समसा॰03:1:49.11, 12)
293 हिमतगर (= हिम्मत वाला) (बस से जोआला बाबू गया चल गेलन, लेकिन हम्मर मन में इ बात बारंबार बादल जइसन घुमइत हल कि इ जेतना हिमतगर, साफ कहनिहार अउ विद्रोही हथ, ओतने उनकर घरनी सांत ।) (समसा॰03:1:52.8)
294 हिलकान (~ पारना) (तोर नाम लेते लोर भर जा हलइ ओकर अँखिया में । हिलकान पारे लगऽ हल । बेस भेल तू आ गेलऽ । जाके मिल लेहू । ओकरा बड़का सरधा पूर जतइ ।) (समसा॰03:1:67.9)
295 हुँआँ (= हुआँ; वहाँ) (नन्हकू अउर कुछ कहइत, लेकिन दीदी टोक देलकइ बीचे में - "बहुते बड़वारगी बखानइत हऽ हुँआँ के । ई बतावऽ कि हुँआँ से का लएला हे हमरा खातिर ?" नन्हकू माथा खजुअलक । फिर बोलल - "हाँ लएले ही तोरा खातिर ढाका के बनल मलमल के थान अउर बनारसी साड़ी । तोर सादी में देबवऽ दीदी ।"; हुँआँ जाके पाँच-छौ बरिस में कुछो कमएले होएबा, कुछ जोगबे कएल होएबा ? गाँव में जिनगी बचावल मोसकिल हे ।) (समसा॰03:1:68.2, 15)
296 हुनखा (= म॰ उनका; हि॰ उन्हें, उनको) (मोरचा के नामे से हुनखा हद्दस समा गेलइ आउ श्रीनगर छावनी अस्पताल में भर्ती हो गेलन । हम नञ् समझऽ हलिअइ कि हमर बहनोय एत्ते कायर होतइ ।) (समसा॰03:1:45.14)
297 होलइया (लगल कि उ झमेटगर पेड़ के डंघुरी अइसन मुरझा गेल हे, जइसे होलइया में झोंके पर बूँट-केराय के झंगरी ।) (समसा॰03:1:55.4)
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