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Saturday, January 05, 2013

81. कहानी संग्रह "ताड़ी आउ बीड़ी में झोंटा-झोंटी" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द



ताबीझों॰ = "ताड़ी आउ बीड़ी में झोंटा-झोंटी" (मगही कहानी संग्रह), कहानीकार मुनिलाल सिन्हा 'सीशम'; प्रकाशक - सीशम प्रकाशन; प्राप्ति स्थान - ग्रामः हरिअरपुर, पोस्टः पाई बिगहा, जिलाः जहानाबाद, बिहार; प्रथम संस्करण - 2 अक्टूबर 1996; कुल 96 पृष्ठ । मूल्य 22.50 रुपये ।

देल सन्दर्भ में पहिला संख्या पृष्ठ और बिन्दु के बाद वला संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।

कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या - 335

ई कहानी संग्रह में कुल 9 कहानी हइ ।

क्रम सं॰
विषय-सूची  
पृष्ठ
0.
'ताड़ी आउ बीड़ी में झोंटा-झोंटी' पर एगो नजर - डॉ. राम प्रसाद सिंह
v-x
0.
'झोंटा-झोंटी' के आनन्द - रामनरेश मिश्र 'हंस'
xi-xii
0.
भूमिका
xiii-xvi



1.
रमेश के पार्टी
05-11
2.
हूँचकी
12-16
3.
बूझे तऽ बाजे
17-26



4.
धोवल-धावल भइँस कादो में बोर गेल
27-34
5.
ताड़ी के रंग शिवा के संग
35-45
6.
साली से गप-शप
46-56



7.
भोनु के रहइते औरत विधवा
57-67
8.
स्वर्ण कप घोटाला प्रतियोगिता
68-89
9.
ताड़ी आउ बीड़ी में झोंटा-झोंटी
90-96

नोटः ई पुस्तक में पृष्ठ XVI के बाद सीधे पृष्ठ 5 से शुरू होवऽ हइ, अर्थात् पृष्ठ संख्या 1 से 4 लुप्त हइ । लगऽ हइ कि लेखक के चार पृष्ठ के भूमिका (पृष्ठ XIII-XVI) के पृष्ठ 1-4 सोच के अइसन कर देवल गेलइ ।
ठेठ मगही शब्द ("" से "" तक):
1    अंगेज (~ करना = सहना) (हियाँ एक दिन मान होल । दुसर दिन से लोग सोच गेलन कि ई पेटमधवा बुझा हउ । त अब इनका रूखा-सूखा भोजन मिले लगल । बाकि ई डोले के नाम न लेइत हथ । एही में एक दिन सत्तू आउ नीमक सामने परसा गेल । त ओहु अंगेज कइलन ।; इनकर तो सूर रहे कि घरे तो बचइत हे न, त हमरा उबियाय ला का हे ? लाओ भाई, जे देमें सेइ अंगेज कइले जइबउ । लेकिन घर के लोग विचारलन कि एकरा तनी सोन्हाउ, तब कहीं डोलउ तो डोलउ ।)    (ताबीझों॰32.8, 11)
2    अइँठना-उइँठना (ताड़ी फिर पैंतरा मारलक - "देख, कोई नऽ काम देतउ । तनी जोंकवा नियन हमरा सामने अइँठे-उइँठे मत ।")    (ताबीझों॰92.9)
3    अईं (= ऐं !) (से ऊ कहलन कि अईं भइया त अयोध्या के समस्या कहाँ छिपल हे ? सेकरा पर तुरंत रमेश कहलन कि एतनो न जानइत हऽ त सुनऽ । ऊ छिपल हे धर्म के ढोंग में, कुर्सी आउ सत्ता के भूख में आउ कहाँ ?; एतना सुनइते ताड़ी तलमलाइए के कहलक - "अईं गे कुतिया, तऽ हम अकेले हिअइ गे, नटिनियाँ, आउ दारू, भिस्की, रम, डिप्लोमैट्स - ई सब केकर परिवार में आवऽ हथिन गे, छतीसवा ?")    (ताबीझों॰7.25; 92.20)
4    अचरा (= अँचरा; आँचल) (एक दुगो औरत ओकर आँख से आँसू लगातार पोछइत-पोछइत अपन अचरा भी भिंगा लेलन हे ।)    (ताबीझों॰59.14)
5    अछरंग (ई दाई एकदम झूठ पलमा आउ अछरंग लगा रहल हे । ई सुनिश्चित योजना के तहत दोह हिछल गेल हे ।)    (ताबीझों॰87.13)
6    अनाधुन (= अंधाधुंध) (त एक दिन का होवऽ हे कि एगो एकरा चिट्ठी मिलल ! त चिट्ठी भी अइसन कि चिट्ठी देखइते ई आपसुखे रोवे-छटपटाय लगल, अनाधुन गिरे-बजड़े लगल ! दू-चार का कि एकर चिल्लाहट सुनके गर्राटा भीड़ लग गेल !; सब सोचइत हथ कि का जनी कउन अइसन भारी विपत्ति के पहाड़ बेचारा पर टूट पड़ल हे कि एतना, बिना कपड़ा-लत्ता के परवाह कइले, अनाधुन गिरइत-बजड़इत हे ।)    (ताबीझों॰57.15; 58.12)
7    अन्धरा (= अन्हरा, आन्हर; अन्धा) (एकरा में अपने मुँह से कहना का हे ? ई तो एकदम देखार चीज हे । अन्धरो देख सकऽ हे ।)    (ताबीझों॰80.13)
8    अन्हारहीं (~ से = सुबह से ही) (अन्हारहीं से रिपोर्ट मिल रहल हे कि शिवा लाठी भांजइत हलइ पीके । आउ ओकर मइयो समझावे वाला पर सब के बेटा-भतार खइलकइ । त ई कौन सहतउ भाई ? गाँव में तूहीं एगो रहबहीं ?)    (ताबीझों॰44.24)
9    अन्हारे (~ से = सुबह से) (ऊ बेचारी तो ओतिये घड़ी से छाती-मुक्का मार के, पछाड़ मार के रोवे लगल कि ई का होल, ई का होल । तो तुरन्ते पूरे गाँव भर में वौं-वौं हो गेल । अब अन्हारे से शिवा के माय के तितिमा देखल हइए हलन से चुप रह गेलन कि ठीक होलइ । अरे ऊ तो डइनी नियन बाहर न मिलइत त एही करवे करइत ।; तोरा आदमी से अभी भेंटे न होलउ हे । कल्ह अन्हारे से बेटा के बउड़ौले हें, औरत-मरद दूनों । आउ कोई समझावे भी जा हइ त ओकरा बिना कसूर के चार गो भोग सुनावऽ हें ।)    (ताबीझों॰40.9; 43.26)
10    अबकहीं (= अभी-अभी) (केतना टीका-टिप्पणी करे लगलन कि अबकहीं ओकरा औरतिवा-मरदनमा आउ बेटवा तीनों के आदमी से भेंट होलइ हे । गाँव में कातो कोई के समझइतो न हल । अब समझ में आ गेलइ होत कि घमण्ड हलइ कि हमरा अइसन कोई न, से अब समझ लेलक कि दुनिया में एका पर एक भाई एका पर एक ।)    (ताबीझों॰45.2)
11    अबकी (दुख के जे पहाड़ गोपाल जी पर टूट पड़ल हल, से उनकर हुचकी के तो चकनाचूर कर देलक । अबकीयो हुचकी रह जाइत हल तो दुनियाँ के आठवाँ आश्चर्य ओही होइत । उनकर हुचकी नाम के भी न रहल ।)    (ताबीझों॰15.17)
12    अबरी (अबरी तनी निकली लमहर त कुछ बचे भी हियाँ, आउ तनी देहो बन जाय । ढेर आदमी अइसन करऽ हथ, हमहीं अभी एकरा में पिछुआयल ही ।; अबरी सोचइत ही न, कि तनी अइसने निकली कि कुछ बचे । काम-धंधा के दिन हइए न हे, बइठुआ हे ।)    (ताबीझों॰27.5, 12)
13    अरजना (= अर्जित करना) (जिन्दगी भर धन तो आदमी अरजवे करऽ हे, त ओकरा ओकर सदुपयोग एकरा से बढ़ के आउ का हो सकऽ हे सरकार, अपनन्हिएँ सब बतावी ।)    (ताबीझों॰19.7)
14    अरियाते (ऊ रूखा-सूखा जे मिलल से खाके फिन रात के हुअईं ठहर गेलन । त रात के रोटी कड़ही उनका मिलल, सीधे आठ बजे के जगह पर बारह बजे । ऊ बेचारे भोरहीं अपन झोली-पोटरी लेके सोझ हो होलन, कोई अरियाते भी न गेलन ।; देखऽ हली कि उनकर आँख भी नम हो जा हल आउ ओती घड़ी अइसन लगऽ हल कि हमनी दूनो के प्राण अलग होइत खनी एक दूसरा ला कछट के रह जा हल । अइसन स्थिति हो जा हल दूनो के बिदा लेइत खनी । गाँव के बाहर तक अरियाते जरूर आवऽ हलन ।)    (ताबीझों॰33.9; 50.2)
15    असियार (= स्थान की कमी, तंग जगह, असुविधा) (रमेश रफीक के बोलौतन हल त ऊ बेचारे तुरंत चल अइतन हल । लेकिन फिन एक थाल में चार गो के खाहुँ मे तनी असियार होत हल ।)    (ताबीझों॰5.20)
16    असो (~ के) (जइसहीं हमरा नींद पड़ऽ हल तइसहीं बायाँ हाथ के पाँचो नोह पर असो के मेंहदी बड़ी कुशलता से रख दे हलन । भोरे जब नींद टूटऽ हल तब पाँचो अँगुली के नोह आउ तलहथी लाल देख के हम उनकर कुशलता के लोहा मान ले हली ।)    (ताबीझों॰48.21)
17    आपसुखे (त एक दिन का होवऽ हे कि एगो एकरा चिट्ठी मिलल ! त चिट्ठी भी अइसन कि चिट्ठी देखइते ई आपसुखे रोवे-छटपटाय लगल, अनाधुन गिरे-बजड़े लगल ! दू-चार का कि एकर चिल्लाहट सुनके गर्राटा भीड़ लग गेल !; लेकिन एकरा आपसुखे फुट-फुट के रोवे से फुर्सत कहाँ मिलइत हल कि बतावो । एक दूगो एकरा धरे-पकड़े में भी लगल हथ ! आउ ओतने ई गिरे-बजड़े ।)    (ताबीझों॰57.14, 18)
18    आरती (~ उतारना = अच्छी तरह मरम्मत करना, खूब पीटना) (बेटवे के लेके चाटहीं । लेकिन गाँव भर के गरिऔतउ त कौन बर्दाश्त करतउ भाई ? पीयऽ हउ त ओही टेकारी के राजा गोपाल शरण हो जा हउ कातो ? हमनी तो ओकरा प्रजाजन आरती उतारे ला तैयारे हो गेलिअउ हे ! बढ़िया से आरती उतार देबउ ।)    (ताबीझों॰44.13)
19    आहल (अपन संझली साली हीं जाय के विचार हो गेलइन । असल इनकर ससुरार में औरत चार बहिन हलथिन । बड़की रीता, मंझली जिनका से इनका शादी भेलइन हल से गीता, संझली जिनका से भेंट करे ला आहल हथ से संगीता आउ छोटकी अनीता हथ ।)    (ताबीझों॰46.9)
20    इतमिनान (त एही से अइसन आदमी के सांसद आउ मंत्री रूपी कवच-कुण्डल मिल जाहे ! त पूरा इतमिनान होके सड़क पर घुमऽ हथ !)    (ताबीझों॰59.6)
21    ईका (= इका) (अपन वकील साहब पर चुटकी लेइत कहलन कि ईका एगो ई हथ से दिन भर गाय के सींग भइँस में आउ भइँस के सींग गाय में लगावइत रहऽ हथ ।)    (ताबीझों॰56.7)
22    उक्कठ-काठ (= उकठ-काठ) (ई प्रसंग तो देमन मिसिर के एगो कठजीउ साबित करऽ हे तो झूठो आउ असमाजिको । सभे जानऽ हथ कि मिसिर उक्कठ काठ नञ् हला ।)    (ताबीझों॰xi.28)
23    उछटल-उछटल (रमेश एगो महाविद्यालय में दर्शनशास्त्र के व्याख्याता हो गेलन हे । उनका एने चार-पाँच दिन से न जानी काहे तो घर से तनी मन उछटल-उछटल रहइत हे, मने न काहे तो लगइत हे ।)    (ताबीझों॰46.3)
24    उजउना (= ओजउना, ओज्जा; उस जगह) (उजउना दस-बीस रहगीर भी जमा हो गेलन । काहे कि एतना स्याना लइका जार-बेजार अइसन बुरी तरह रोवे लगलन कि देखवइया के घरवइया लगइत हे ।)    (ताबीझों॰13.26)
25    उनइस (= जरा-सा कम; उन्नीस) (समधिन आउ समधी में शरीर से थोड़े मिलन होवऽ हे ? ऊ तो अइसने दुनो के प्रेमे हे कि मोहनलाल महतो वियोगी के दिवा-रात्रि के प्रेम से तनिये सा उनइस हे ।)    (ताबीझों॰29.24)
26    उबियाना (उबियाय से तो काम चलतइन न । आउ ऊ खूब समझइत हलन कि हम आझ अपनहीं बिनल जाल में फँस गेली हे । ओने बेचारन दरबारी-गण भी जौ के साथ घुने पिसाइत हथ । का करथन ?)    (ताबीझों॰23.6)
27    उसकाना (बिरनी के खोंता ~) (चचा हथिन तो दू गो । लेकिन ओखनी भी ओकर माय-बाप के चाल देख के कान बहिर आउ पीठ गहीड़ करके सब कुछ देखइत रह जा हथ । हथिन तो सब साथहीं, बाकि कौन बिरनी के खोंता उसकावे जाय ?)    (ताबीझों॰35.20)
28    एकऽ (= एकक; एक-एक) (~ गो) (कइसे तो इनका ऐन मौका पर अइसन एकऽ गो गीत भी एकक लाख के वियोपग शृंगार के ख्याल हल भाई ।)    (ताबीझों॰66.17)
29    एकक (= एक-एक) (कइसे तो इनका ऐन मौका पर अइसन एकऽ गो गीत भी एकक लाख के वियोपग शृंगार के ख्याल हल भाई ।)    (ताबीझों॰66.17)
30    एकठहुए (= एकठउए; इकट्ठा, एक साथ) (ई गेलन त सबके एकठहुए गुड मॉर्निंग करके इंगित कुर्सी पर बइठलन ।)    (ताबीझों॰70.20)
31    एकह (= एकक; एक-एक) (पाकिस्तान के प्रधान मंत्री खुश हो के ओकरा स्वर्ण कप के साथे नगद राशि आउ सब के एकह गो एटम बम भी देलन ।)    (ताबीझों॰ix.10)
32    एका पर एक (= एक से बढ़कर एक) (केतना टीका-टिप्पणी करे लगलन कि अबकहीं ओकरा औरतिवा-मरदनमा आउ बेटवा तीनों के आदमी से भेंट होलइ हे । गाँव में कातो कोई के समझइतो न हल । अब समझ में आ गेलइ होत कि घमण्ड हलइ कि हमरा अइसन कोई न, से अब समझ लेलक कि दुनिया में एका पर एक भाई एका पर एक ।; अप्पन-अप्पन रुचि के अनुसार पी के मार ढेंकर रहलन हे । फिन खाना में महनभोग, मीठा पोलाव, नमकीन पोलाव, अण्डा, अभीष, तरह-तरह के एका पर एक रंग आउ स्वाद आउ आकार के मिष्ठान, फिन बड़का, मंझिला, संझिला आउ छोटका के गुड़िया, आउ चाप आउ चिकेन, शोरबा ।)    (ताबीझों॰45.6; 70.5)
33    एखनी (= एकन्हीं; ये सब) (रहल बात जनता के तकलीफ के । तऽ एकरा भगवाने जब तकलीफ भोगे ला मृता भुवन में भेजिए देलन हे, तऽ एखनी बेचरन के तकलीफ एने बिचवा में आखिर हरऽ हे कौन ?)    (ताबीझों॰77.27)
34    एजउना (= एज्जा; इस जगह) (इनका साथे अंग्रेज सरकार के बड़ा उच्च ओहदा वालन कारिन्दा या अफसर भी शिकार करऽ हलन । आउ लोग बतावऽ हथ कि एजउना उनकर अगल-बगल के राजा इनकर रुतबा के न हलन ।; एतने में शिवा लाठी लेके भाँजे लगल कि आझ एजउना से भागिए जो न तो एक-एक लाठी में सब के गरम से नरम कर देबउ ।)    (ताबीझों॰17.12; 39.10)
35    एतबर (= एतबड़; इतना बड़ा) (ओकर दुनो बैल जब नाद में खा सकऽ हे त भगवान एके गो हथ त दुगो नाम रहे से का होत ? त एतबर गो मन्दिर इया मस्जिद हे, त ओकरा में हमनी दुनों मिलके उनकर स्मरण न कर सकऽ ही ?)    (ताबीझों॰10.16)
36    ओजउना (= ओज्जा; उस जगह) (अइसन लय आउ ढंग से गावे लगलन कि जे ओजउना हलन से सब नाचे लगलन ।; घोड़िया तो न मरतो हल बाबु, लेकिन जल के मर गेलो । घरवा में जे अगिया लगलइ न, से आउ हलइ ओजउने बान्धल, से ओही में जल के मर गेलो ।)    (ताबीझों॰11.13; 12.24)
37    ओजउने (= उसी जगह) (सब ई कहानी सुनके दाँते अंगुली काटइत हथ । आउ दुनो चचा-भतीजा घर के रास्ता लेलन भीड़ के ओजउने खुशी आउ आश्चर्य के सागर में गोता लगावे ला छोड़ के ।)    (ताबीझों॰16.10)
38    ओड़िया (दूनों एक दुसरा के ओड़िया से सौ ओड़िया सिकाइत तो रोज करऽ हलन, लेकिन पीछे में । दूनों के जहिना से होश-हवाश होल हे, ओही दिन से दूनों सब दिन एक दुसरा पर कंसइते रहलन हे ।)    (ताबीझों॰90.14)
39    ओनहीं (= उधर ही) (ओकर कमर में खोंसल पइसा कौन खींच लेलक से कोई न देखलक । सात बजे घर ओकर खबर मिलल कि शिवा ओनहीं गिरल पड़ल हे ।)    (ताबीझों॰42.16)
40    ओनहुँ (से भाई में बड़ा हलन, इनकर बेइज्जती देखके न रहल गेल से उनकर समांग भी लाठी निकाल देलन । शिवा पर सब डीठ लगौले हइए हलन, ओकरा तो कोई लाठी से, तो कोई गड़ाँसा से पूरा घायल कर देलन । ओनहुँ कुछ घायल होलन लेकिन हलके ।)    (ताबीझों॰43.5)
41    ओसाना (ओखनी के दिमाग में कूड़ा-कर्कट जे भरल हवऽ सिनका एके तुरी हमनी आँधी बन के सब के दिमाग के बानई तरी ओसा के साफ कर दऽ । एकदम कज्जल करे के जरूरत हवऽ । ई आउ केकरो से न बनतो ।)    (ताबीझों॰9.26)
42    ओहरना (अगे, त करकइ अपन के न गे, त तोहनी के कुन्दवन के कुछ करे गेलउ से बताउ तो । एखनी भी गरम तो होलन खूब, लेकिन झोंटा-झोंटी बारे न होल, काहे कि ओकरे दूरा पर हलन आउ ओकरे बेटन में होल हल से ओखनी फिर ओहर गेलन ।)    (ताबीझों॰39.9)
43    ओहरना (मिजाज ओहरे तो केकर ? दुनों के मिजाज तो हमेशे सतमा आसमान पर चढ़ल रहऽ हे तऽ उतरे तो केकर ? असल हर हालत में तो दूनों टट-उपट हथ, तऽ कउन केकर लोहा माने ला आउ सुने ला तइयार हे ?)    (ताबीझों॰91.20)
44    कंसाना (आउ ई (भारत) छोटा भाई समझ के ओकरा साथे नरमी देखा के ओकर गलती के नजर-अंदाज करके माफ भी कर दे हे, बाकि छोटका के का जनी का मिलऽ हे कि हमेशे एकरा साथे लड़े ला कंसइते रहऽ हे ।; दूनों एक दुसरा के ओड़िया से सौ ओड़िया सिकाइत तो रोज करऽ हलन, लेकिन पीछे में । दूनों के जहिना से होश-हवाश होल हे, ओही दिन से दूनों सब दिन एक दुसरा पर कंसइते रहलन हे ।; ताड़ी हमेशा चखने के चखइत रहऽ हे, तऽ बीड़ी हमेशा लहरावे ला सलाइए लेके घूमइत रहऽ हे । दूनों के कंसइत रहे के का कोई दूसर कारण हे, कि एही शाने-शौकत आउ घमण्ड हे ?)    (ताबीझों॰68.11; 90.16; 91.7)
45    कछटना (देखऽ हली कि उनकर आँख भी नम हो जा हल आउ ओती घड़ी अइसन लगऽ हल कि हमनी दूनो के प्राण अलग होइत खनी एक दूसरा ला कछट के रह जा हल । अइसन स्थिति हो जा हल दूनो के बिदा लेइत खनी ।; रमेश बेचारा आउ गप करे ला कछट के रह गेलन ।)    (ताबीझों॰50.1; 56.18)
46    कज्जल (= साफ) (ओखनी के दिमाग में कूड़ा-कर्कट जे भरल हवऽ सिनका एके तुरी हमनी आँधी बन के सब के दिमाग के बानई तरी ओसा के साफ कर दऽ । एकदम कज्जल करे के जरूरत हवऽ । ई आउ केकरो से न बनतो ।)    (ताबीझों॰9.26)
47    कनझटके (अरे हम तो बेचारी के ओही हल्दिया पोर के भाग के नुकाइते खनी तो तनी कनझटके देखवे कइली हल । सेउ मुँह-कान न, तनी हाथ-पैर देखलिअइ हल । ओकरे से लगलइ कि बेचारी बड़ी साफ रंग के हथ ।)    (ताबीझों॰29.11)
48    कनहुँ (= किधर भी, कहीं भी) (आउ बोर्ड के या मंत्री जी के भी मुँह बन्दे कइल हे, तऽ चिंता तो कनहुँ से हइए न हे ।)    (ताबीझों॰81.26)
49    कन्हुआना (एतना ई औरत-मरद बउरा गेल हे कि परिवरवा पर जइसे सोरहो घंटा कन्हुआइत रहऽ हे, तइसे हमनियो के करल चाहऽ हे । परिवार के तो सब अपन हउ, से सुनतउ, दूसर काहे सुनतउ भाई ।)    (ताबीझों॰44.16)
50    करमात (= करामात) (एने ओकर सार आन के ओकरा हीं जम गेलन तो महीना ठेका देलन । उनका घूर के घरे अइले पर सार भी टसके के नाम लेलन । ई देख के उनकर सब करमात के जरिये हिल गेल । उनकर गूड़ के नफा पिपरिये खा गेल ।)    (ताबीझों॰vii.11)
51    कलाली (ओने शिवा पाँच सौ रुपइया में बाला बेच के आउ पइसा कमर में खोंस लेलक आउ सौ रुपइया के कलाली से दारू आउ पच्चीस रुपइया के चखना हलवाइ के यहाँ से आउ होटल से माँस आउ मछली भी मंगौलक आउ खूब पीलक ।; शिवा तो कलाली से निकलइते तलमलाय लगल ।)    (ताबीझों॰42.4, 9)
52    कहती-सुनती (राजा जी के लिए डुबइत के तिनका के सहारा साबित होम । आउ उनकर आउ निकट के सहयोगी साबित हो जाम । से कहती-सुनती होइए गेल, ऊ देखऽ हथ कि मिशिर जी ओने से दु आदमी के साथ झपटल आवइत हथ ।)    (ताबीझों॰24.9)
53    कहना-सुनना (तोहरा भौजाई नहीरा गेल हल । हुअईं हैजा उठलइ । बीमार पड़ल बेचारी । ओकर बीमारी के खबर सुन के ई तोर भाई बउड़ाहा मानल हइये न, बिना कोई के कहले-सुनले दुपहरिये में सुनइते हुआँ चल देलक ।)    (ताबीझों॰15.3)
54    काइँ (= का न; शायद) (उनका कहलन कि "एतना बढ़िया-बढ़िया रसगुल्ला अब तक कने छिपा के रखले हलऽ गोपाल, हमनी के न देखे देलऽ ?" सेकरा पर गोपाल मुसकुरइते चट से कहलन कि "तोरा तो रघु भइया हिअईं रहइते हथुन तऽ काइँ मीठ न लगतो हल, तऽ हम्मर रसगुल्लो निकालल बेकार हो जाइत हल ।")    (ताबीझों॰66.12)
55    काइँ कउन (दूनों का जनी कल्पना के कउन लोक में विचरण कर रहलन हे, हियाँ से एकदम दूर कई लाख कोस दूर, काइँ कउन रस में डूबल हथ ।)    (ताबीझों॰55.5)
56    काइँ का (काइँ का मति आझ ओकर होलइ कि भोरहीं से जे खाली पीये के जे सुर धइलकइ हे से दिनो भर धइलहीं रह गेलइ । अरे अब लइका रहल न, बलिक दु लइका के बाप हो गेल हे लेकिन कोई चिन्ता न, खाली पीये के चिन्ता हे ओकरा ।; जब ओकरा गेला पर कुछ के जरूरत लगल से ऊ अपन घर दने मुड़लन से काइँ का तो मनमा में अइलइ से बेचारी सन्दुकिया दने भी देख लेवे ला चाहलन त जब जाके देखऽ हथ तो देखऽ हथ कि ताला अइसहीं बगल में टुटल रखल हे आउ बक्सा खुलल हे ।)    (ताबीझों॰38.3; 39.27)
57    काइँ काहे (बड़की मध्य विद्यालय के प्राध्यापिका हथिन आउ अनीता आई.ए. में पढ़ऽ हथ त इनका संगीता से शुरुए से काइँ काहे तो खूब पटऽ हे ।)    (ताबीझों॰46.18)
58    काइँ कैसे (कइगो तो एकर चचेरा भाई आई.ए., बी.ए. आउ एम.ए. कइले हथिन, लेकिन एही एगो अइसन बढ़िया परिवार में खोरहिया निकल गेलइ । काइँ कैसे ई एगो बेहूदा कुल-कलंकी निकल गेलइ ।)    (ताबीझों॰36.3)
59    कातो (आझ मिशिर जी के भीतर से ई खुशी आउ प्रसन्नता हल कि ओकरा शब्द में व्यक्त न करल जा सकऽ हे । ... लगे कि बाबू गोपाल शरण उनका हीं खाय ला निमंत्रण का माँगलन हल कि नौ आना राजे लिख देलन हल कातो ।; ओकर माय ओइसने चनकी हइ । तनियो ओकरा डाँटवे-दबैवे न करइ । आउ अपने का करतइ ? जब दूसर के तनी बोले पर भी चढ़िये बइठऽ हइ त ऊ खुदे आउ कातो दबाबे जतइ ।; बेटवे के लेके चाटहीं । लेकिन गाँव भर के गरिऔतउ त कौन बर्दाश्त करतउ भाई ? पीयऽ हउ त ओही टेकारी के राजा गोपाल शरण हो जा हउ कातो ? हमनी तो ओकरा प्रजाजन आरती उतारे ला तैयारे हो गेलिअउ हे ! बढ़िया से आरती उतार देबउ ।; केतना टीका-टिप्पणी करे लगलन कि अबकहीं ओकरा औरतिवा-मरदनमा आउ बेटवा तीनों के आदमी से भेंट होलइ हे । गाँव में कातो कोई के समझइतो न हल । अब समझ में आ गेलइ होत कि घमण्ड हलइ कि हमरा अइसन कोई न, से अब समझ लेलक कि दुनिया में एका पर एक भाई एका पर एक ।)    (ताबीझों॰21.8; 36.21; 44.12; 45.4)
60    किहाँ (= के यहाँ) (बड़की रीता, मंझली जिनका से इनका शादी भेलइन हल से गीता, संझली जिनका से भेंट करे ला आहल हथ से संगीता आउ छोटकी अनीता हथ । त बड़की किहाँ सोचलन कि का जाउँ, अरे रूप-रंग में तो सुन्दर हइए हथ, लेकिन उनका हीं जाय से लाभ का होत ? अरे तनी गपो-सपो करम त दाँत के सहड़े से न ।)    (ताबीझों॰46.10)
61    कुच्चा (ओही तुरते आग जुटल, दाल तो बारे के पहिलहीं से राहड़ के बनल हल त ऊ तो न बनावे पड़ल, लेकिन ओही समजीरवा के भात, आउ कद्दु, आउ भंटा के सब्जी बनल । रामतरोई के भुँजिया आउ आम के कुच्चा, आउ पापड़ घर-बंद रखले हल से भुँजायल ।)    (ताबीझों॰31.8)
62    कुतिया (कुछ गारी के प्रतीकात्मक शब्द-प्रयोग के बानगी देखल जाय - गललाही (कुष्ठ रोग के कारण जेकर शरीर गल रहल हे), सुखलाही (भोजन के अभाव में जे दुबरा गेल हे), तोंदइल (मोटापा से बदसूरत बनल), छतीसवा (जे छत्तीस प्रकार के बहाना बना के अप्पन दोष छिपावऽ हे), पतुरिया (जे छिप के व्यभिचार करऽ हे), नटिनियाँ, कुतिया, दीदा के पानी आदि अनेक शब्द जेकरा में गूढ़ अर्थ के भण्डार छिपल रहऽ हे ।; बीड़ी तनी सूखल रहे के वजह से पनकाही तो पहिलहीं से हे, तऽ जानब करऽ ही कि सूखल-साखल के नीशा तनी पहिले आवऽ हे । तऽ एही पहिले पनक के कहलक - "अगे तड़िया, तू का बढ़-चढ़ के बोलइत हें गे, तोरा हम तुरंते लहरा देबउ गे । तू कउन घमण्ड में हें गे कुतिया ?"; एतना सुनइते ताड़ी तलमलाइए के कहलक - "अईं गे कुतिया, तऽ हम अकेले हिअइ गे, नटिनियाँ, आउ दारू, भिस्की, रम, डिप्लोमैट्स - ई सब केकर परिवार में आवऽ हथिन गे, छतीसवा ?")    (ताबीझों॰x.2; 92.3, 20)
63    कुबेर (= कुबेला) (सब करइत-धरइत तनी कुबेर तो जरूर हो गेल । तब तो ई हे सरकार कि अपने सब तनी सोन्हा गेली से ठीके होल । तनी तनायत भी बेशी । त सब पेट चापले ही ठहाका लगा देलन ।)    (ताबीझों॰25.5)
64    कुरसी (गारी से तेरहो ~ के न्योतना) (एने रात भर शिवा के घर में पिपकारा होइते रहल । मारे वाला के रात भर गारी से उनकर तेरहो कुरसी के न्योतल जाइत हे ।)    (ताबीझों॰43.12)
65    कुरामिन (राजा जी कइसे उठ के देखथन, तनी उनका उठ के देखे में हलकापन झलकइत हल, से ऊ मसोसले रह गेलन । तब तक सब बाहर हलन से पहिले के घोषणा के समर्थन कयलन । राजा जी के लिए ई खबर कुरामिन के काम कयलक ।)    (ताबीझों॰24.23)
66    कूँड़ी-कुदार (काहे अइसन करऽ हें रे, एतना परिवार के सब आदमी खेती-बारी में भी चुटी-पिपरीनियन एतना लटकल रहऽ हे, बाकि ऊ छौंड़ा के कमीं तनी देहो धन हइ ? कि हाँ तनी लग के सहारा तो दिअइ । अरे, ओकरा कोई हर-फार, लाठा या कूँड़ी-कुदार करे कहऽ हलइ ? लेकिन लइका के ई शोखो का, कि तनी बैलो न घुरावे, तनी रसो-पानी खेत-बारी पर न पहुँचावे ।)    (ताबीझों॰37.1)
67    कैदुक (~ बात) (सब कोई अपन-अपन फायदा सोचऽ हे । कैदुक बात हे । मन में सब दृश्य बारी-बारी से इनकर नजर तर से सिनेमा के रील नियन घुमइत-गुजरइत हे ।)    (ताबीझों॰47.9)
68    कोलकी (= कोली) (ताड़ी फिर पैंतरा मारलक - "देख, कोई नऽ काम देतउ । तनी जोंकवा नियन हमरा सामने अइँठे-उइँठे मत । नऽ हम कहऽ हिलउ कि नऽ । तनी मुँह सम्हार के बोल, न त हम्मर ऊ अइलउ तो सीधे  चढ़ जतउ, सुन ले । तनी सम्हर जो, नऽ त सब के गरदा करके छोड़ देतउ । तू तुरंते कोलकी में घुँस जमें ।")    (ताबीझों॰92.11)
69    कोहबर (एतने नऽ, अपने के अचम्भित नऽ होवे के हे । कभी-कभी दूनों कोहबर के दृश्य में एके नेहाली तर कुछ देरी वास्ते सुत भी जा हथ ।)    (ताबीझों॰81.2)
70    खखुआना (एगो ओकर बड़ा भाई भी हे, ओहु कुछ कहे से लाचार हे बेचारा । तनी कुछ कहलको तो माय आउ बाबुजी दूनों ओकरा पर तुरन्ते खखुआय लगऽ हथ ।)    (ताबीझों॰35.12)
71    खनखनाना (सब तो जानइते हलन, नास्ता आउ भोजन सब पूरा प्रबन्ध देवने मिशिर हीं होत, त जादे खाके चले से कोई फायदा थोड़े हल, कि आखिर घाटे हल । एही से अब उनकर घर पहुँचइते-पहुँचइते सब के पेट तनी खनखना भी गेल हल ।)    (ताबीझों॰21.26)
72    खरखाँह (= खैरख्वाह) (राजा गोपालशरण अपन समय या जमाना में जइसने सुन्दर हलन, ओइसने दिलेर भी । एही से अंग्रेज सरकार के बड़ा खरखाँह हलन । अंग्रेज सरकार अगल-बगल के सब राजा से उनका जादे मानऽ हल ।)    (ताबीझों॰17.8)
73    खराना (ई हमर गरीबी पर अपने के मजाक हो जात, आउ हमर दिल पर बड़ी चोट लगत । कही, पक्का रह गेल न ? कारण मरदा-मरदी बात होइत हे । सेइ से अपने के खरा लेइत ही । कल के पक्का रह गेल न ? ई कह के ऊ राजा जी के पूरा डहिया लेलन ।; पार्टी रहत कि हाँ, पार्टी । पार्टी कि खाई त कुछ दिन इयाद भी रहे । अपने खरावइत ही सरकार, देवन मिशिर भागे वाला बेटा न हथ ।)    (ताबीझों॰18.20; 19.6)
74    खानगी (तोरो से नटिन आउ खानगी कोई होतइ गे पतुरिवा ? अरे चलनिया कातो दुसलकइ हल सूपवा के, सेकर हिसाब करऽ हीं गे छतीसवा ? अरे दूसर तो तनी बोलतइ न हल, बाकि तोर दीदा के पानी तो गिरल हउ गे । तू एको बावे जीते देमहीं ?)    (ताबीझों॰93.12)
75    खिसियाना (अपन औरत से उनकर बक्सा के कुंजी माँगलक । से ऊ खिसिअइलथिन कि हमरा हीं पइसा फरऽ हइ । कुंजी काहे ला दियो ?)    (ताबीझों॰39.21)
76    खीचड़ा-मलीदा (त मोहर्रम में उनकर खीचड़ा-मलीदा हमर लइकन खा के गदका-पटकन खेलऽ हथ । तब मौलवी आउ परोहित रोकतथिन ? रोक देथिन तो, हइन हिम्मत ? कइसे तो रोकऽ हथिन ?)    (ताबीझों॰9.19)
77    खुदा-न-खास्ते (हमरा तो अब पूरा विश्वास हो गेलो हे कि खुद राम अगर खुदा न खास्ते एती घड़ी प्रगट हो जाथ तो खुदे ऊ कहे लगथ कि भाई दुनों मिल के हमरा स्मरण एक जगह पर करऽ । रफीक कहलन कि 'जरूर' ।)    (ताबीझों॰11.1)
78    खेत-बारी (काहे अइसन करऽ हें रे, एतना परिवार के सब आदमी खेती-बारी में भी चुटी-पिपरी नियन एतना लटकल रहऽ हे, बाकि ऊ छौंड़ा के कमीं तनी देहो धन हइ ? कि हाँ तनी लग के सहारा तो दिअइ । अरे, ओकरा कोई हर-फार, लाठा या कूँड़ी-कुदार करे कहऽ हलइ ? लेकिन लइका के ई शोखो का, कि तनी बैलो न घुरावे, तनी रसो-पानी खेत-बारी पर न पहुँचावे ।)    (ताबीझों॰37.2)
79    खेती-बारी (काहे अइसन करऽ हें रे, एतना परिवार के सब आदमी खेती-बारी में भी चुटी-पिपरी नियन एतना लटकल रहऽ हे, बाकि ऊ छौंड़ा के कमीं तनी देहो धन हइ ? कि हाँ तनी लग के सहारा तो दिअइ । अरे, ओकरा कोई हर-फार, लाठा या कूँड़ी-कुदार करे कहऽ हलइ ? लेकिन लइका के ई शोखो का, कि तनी बैलो न घुरावे, तनी रसो-पानी खेत-बारी पर न पहुँचावे ।)    (ताबीझों॰36.24)
80    खैरजीतिया (= खरजीतिया < खैर+जीतिया) (बन्दर के घाव पोरसिसिए में जइतन हल । उनकर आझ जनाजा निकलले हल समझऽ तो । लेकिन खैर, उनकर माय खैरजीतिया कइलकथिन हल कि निके-निके ऊ अपन तशरीफ भारत बारे वापस ले अइलन ।)    (ताबीझों॰86.12-13)
81    खोंता (= खोंथा, घोंसला) (चचा हथिन तो दू गो । लेकिन ओखनी भी ओकर माय-बाप के चाल देख के कान बहिर आउ पीठ गहीड़ करके सब कुछ देखइत रह जा हथ । हथिन तो सब साथहीं, बाकि कौन बिरनी के खोंता उसकावे जाय ?)    (ताबीझों॰35.19)
82    खोइँछा (~ भरना) (एतने में ऊ पूरा तुफान हो गेल - कहे लगल कि अगे राँड़िन, त तोहनी के तो हम मंगिया न जरवे गेलिअउ, त तोहनी काहे ला चूड़ा के गवाही दही बन गेलहीं ? तोर बाबु के हम मइया जी के खोइँछा भर दिअउ । अगे बेटचिवउनी, त तोहनी के हमर बाबु का करे गेलउ से तिलमिलायल हँऽ गे ?)    (ताबीझों॰39.4)
83    खोदाई (= खुदाई) (आहर-पइन के ठीका मिलल तऽ अप्पन घाँस छीलके तीन फीट पक्का खोदाई के हिसाब से कागज जमा करके पइसा अप्पन निकाल लेल गेल । नऽ हे तो चांस देखली तो अप्पन कागजो पर चपड़ा चला देली, एकरा में लगल का हे ?)    (ताबीझों॰76.21)
84    खोरहिया (कइगो तो एकर चचेरा भाई आई.ए., बी.ए. आउ एम.ए. कइले हथिन, लेकिन एही एगो अइसन बढ़िया परिवार में खोरहिया निकल गेलइ । काइँ कैसे ई एगो बेहूदा कुल-कलंकी निकल गेलइ ।)    (ताबीझों॰36.3)
85    गड़ाँसा (से भाई में बड़ा हलन, इनकर बेइज्जती देखके न रहल गेल से उनकर समांग भी लाठी निकाल देलन । शिवा पर सब डीठ लगौले हइए हलन, ओकरा तो कोई लाठी से, तो कोई गड़ाँसा से पूरा घायल कर देलन ।)    (ताबीझों॰43.4)
86    गड़ाना (= गाड़ा जाना; गड़वाना) (दिनेश कहलन कि से तो ठीक हे, लेकिन हमनी पूजा करऽ ही त तोहनी नमाज हाजिर करऽ हऽ, हमनी मर के जलऽ ही त तोहनी गड़ा हऽ, त एक कइसे ही ?)    (ताबीझों॰7.5)
87    गतलखाता (अब भारत बीच समुद्र में लहर के थपेड़ा खाइत नाव नियन अप्पन नब्बे करोड़ के आबादी अप्पन पेट में लेलहीं एकदम डगमग-डगमग कर रहल हे । ई एती घड़ी सच पूछऽ ही तो एकदम गतलखाता के कगार पर खड़ा हे । कौन घड़ी गिरके गतलखाता में चल जात से नऽ कहल जा सकऽ हे ।)    (ताबीझों॰74.23)
88    गदका-पटकन (त मोहर्रम में उनकर खीचड़ा-मलीदा हमर लइकन खा के गदका-पटकन खेलऽ हथ । तब मौलवी आउ परोहित रोकतथिन ? रोक देथिन तो, हइन हिम्मत ? कइसे तो रोकऽ हथिन ?)    (ताबीझों॰9.20)
89    गरम (~ से नरम करना) (एतने में शिवा लाठी लेके भाँजे लगल कि आझ एजउना से भागिए जो न तो एक-एक लाठी में सब के गरम से नरम कर देबउ ।)    (ताबीझों॰39.11)
90    गर्राटा (~ भीड़) (त एक दिन का होवऽ हे कि एगो एकरा चिट्ठी मिलल ! त चिट्ठी भी अइसन कि चिट्ठी देखइते ई आपसुखे रोवे-छटपटाय लगल, अनाधुन गिरे-बजड़े लगल ! दू-चार का कि एकर चिल्लाहट सुनके गर्राटा भीड़ लग गेल !; आठ बजे सुबह सब प्रतियोगी उनकर सरकारी दफतर के परिसर में आ गेलन हे । उनखनी के संख्या तो काफी हे आउ ओतने देखताहर के गर्राटा भीड़ ।; दूनों बनाइतरी पानी-पानी होयल हथ । काहे कि दूनों के गरमी कुछ-कुछ उतर गेल हे । देखताहर के मार गर्राटा भीड़ लगले हल । खूब एखनिए के चर्चा सब के जीभ पर हे ।)    (ताबीझों॰57.16; 69.24; 96.8)
91    गललाही (कुछ गारी के प्रतीकात्मक शब्द-प्रयोग के बानगी देखल जाय - गललाही (कुष्ठ रोग के कारण जेकर शरीर गल रहल हे), सुखलाही (भोजन के अभाव में जे दुबरा गेल हे), तोंदइल (मोटापा से बदसूरत बनल), छतीसवा (जे छत्तीस प्रकार के बहाना बना के अप्पन दोष छिपावऽ हे), पतुरिया (जे छिप के व्यभिचार करऽ हे), नटिनियाँ, कुतिया, दीदा के पानी आदि अनेक शब्द जेकरा में गूढ़ अर्थ के भण्डार छिपल रहऽ हे ।)    (ताबीझों॰ix.28)
92    गवाही (= गवाह) (कुछ औरत भी हल्ला सुनके हूँआ आ गेलन । एक दुगो तनी कहलकथिन, सेउ दाँत के सहाड़ा से, कि अईं हे, त तू तो गारी बेचारन के दे देलहु, तोर बड़का बेटवा के न गरिऔलकइ हल, से ओखनी बेचारन समझावइत हलथिन त तू एखनिये पर उलटे बरस पड़लहु । एतने में ऊ पूरा तुफान हो गेल - कहे लगल कि अगे राँड़िन, त तोहनी के तो हम मंगिया न जरवे गेलिअउ, त तोहनी काहे ला चूड़ा के गवाही दही बन गेलहीं ?)    (ताबीझों॰39.3)
93    गहीड़ (= गहरा) (का करे बेचारा ? खून के घूँट पी के रह जा हे । अरे तनिये बोले में तो ओकर माय चनचनाय लगऽ हे, तब बोलऽ हे कौन ? चचा हथिन तो दू गो । लेकिन ओखनी भी ओकर माय-बाप के चाल देख के कान बहिर आउ पीठ गहीड़ करके सब कुछ देखइत रह जा हथ ।)    (ताबीझों॰35.18)
94    गिरना-बजड़ना (एतना तो, रोवे आउ गिरे-बजड़े के आगे विक्षिप्ते होइए के बेचारा गोपाल सुनइत हथ ।; त एक दिन का होवऽ हे कि एगो एकरा चिट्ठी मिलल ! त चिट्ठी भी अइसन कि चिट्ठी देखइते ई आपसुखे रोवे-छटपटाय लगल, अनाधुन गिरे-बजड़े लगल ! दू-चार का कि एकर चिल्लाहट सुनके गर्राटा भीड़ लग गेल !; लेकिन एकरा आपसुखे फुट-फुट के रोवे से फुर्सत कहाँ मिलइत हल कि बतावो । एक दूगो एकरा धरे-पकड़े में भी लगल हथ ! आउ ओतने ई गिरे-बजड़े ।; सब सोचइत हथ कि का जनी कउन अइसन भारी विपत्ति के पहाड़ बेचारा पर टूट पड़ल हे कि एतना, बिना कपड़ा-लत्ता के परवाह कइले, अनाधुन गिरइत-बजड़इत हे ।)    (ताबीझों॰15.12; 57.15, 20; 58.12)
95    गैस्टिक (एतना पर बीड़ी अपने आगि-काठी जर गेल आउ तमतमा के लाल होके नहला पर दहला देलक - "अगे, त तू मार केतना चिकन आउ दूध के धोवल हें गे ? तूहूँ तो अप्पन के गैस्टिक टी.बी. के शिकार बना के लेइए मरऽ हें गे ।")    (ताबीझों॰93.7)
96    गोतिया (तुरंत शिवा के आउ उनकर बाबुजी के, उनकर चचा आउ उनकर गोतिया टाँग के अस्पताल में ले गेलन ।)    (ताबीझों॰43.8)
97    घर-बंद (= घर-बद; घर के लिए, घर का, घर में उपलब्ध, घर-गृहस्थी के उपयोग का) (ओही तुरते आग जुटल, दाल तो बारे के पहिलहीं से राहड़ के बनल हल त ऊ तो न बनावे पड़ल, लेकिन ओही समजीरवा के भात, आउ कद्दु, आउ भंटा के सब्जी बनल । रामतरोई के भुँजिया आउ आम के कुच्चा, आउ पापड़ घर-बंद रखले हल से भुँजायल ।)    (ताबीझों॰31.8)
98    घरवइया (उजउना दस-बीस रहगीर भी जमा हो गेलन । काहे कि एतना स्याना लइका जार-बेजार अइसन बुरी तरह रोवे लगलन कि देखवइया के घरवइया लगइत हे ।)    (ताबीझों॰13.28)
99    घाघ (हुआँ पहुँचलन हे त कोई पानी लाके देलन, लेकिन खाय ला अभी पंच-पुराई न होल हे । ई पैर धोके चौकी पर पड़ल हथ । एतने में का देखऽ हथ कि एगो औरत, जे अधेड़ हल, इनके भीर धान सुख रहल हल, सेकरे चलावइत हे, आउ कहइत जाहे, इनके सुनाके, कि सुख रे धान साँझ ला, त ई अपने घाघ हलन, से ई अपन मुँह पर गमछा तान के ऊ औरत के सुनाइए के कहलन कि आओ रे नीन बिहान ला ।)    (ताबीझों॰32.26)
100    घिघियाना (= गिड़गिड़ाना) (अबरी बीड़ी उछल के वार कइलक आउ ओकरे दाव से ताड़ी के नीचे गिरौलक - "अईं गे वेशवा, तऽ ऊ बेचारी काहे ला तोर तोंदइलवा से घिघिया हलइ, कि 'अइसे तो छोड़ूँ नऽ सजनमा, पहिले तू ताड़ी पीना छोड़ दे ।' ")    (ताबीझों॰94.16)
101    घुघनी (भोरहीं एक लमना गणेशवा पसिया हीं से गोपला दिया मंगौलकइ, अपन दलनिया पर कोठरिया में बइठ के घुघनी एक कटोरा मइया से मंगौलकइ ।)    (ताबीझों॰38.9)
102    घेंटा (बेटा- ~) (अइसन बेटा से बिना बेटा के रहे में ठीक हे । ई सार बेटा हइ कि घेंटा हइ । बतावऽ, न पढ़लइ न लिखलइ आउ महामूढ़ निकललइ । )    (ताबीझों॰36.16)
103    चखना (ओने शिवा पाँच सौ रुपइया में बाला बेच के आउ पइसा कमर में खोंस लेलक आउ सौ रुपइया के कलाली से दारू आउ पच्चीस रुपइया के चखना हलवाइ के यहाँ से आउ होटल से माँस आउ मछली भी मंगौलक आउ खूब पीलक ।; लइकन कहइत हथ कि माँस-मछली के चखना मंगा के पूरा पीलक । त पीअउ न भाई । हमनी के का हउ । बलिक सब खेत-बारी बेच के पी जाउ । भीख मांगमे तू ।)    (ताबीझों॰42.5; 44.7)
104    चचानी (= चाची) (ऊ कहलन कि बाबू, हमरा रहइते तो दादी, हम्मर माय विधवा हो गेल, बहिन विधवा हो गेल, मौसी विधवा हो गेल, चचानी विधवा हो गेल, आउ ममानी विधवा हो गेल । सब विधवा हो गेलन, तऽ औरत कइसे न हो सकऽ हे ?)    (ताबीझों॰61.15)
105    चनकी (लेकिन सब एही दावा करऽ हथ कि ई एक न एक दिन मइए बाप के बुढ़ारी में भोगौतइ । ओकर माय ओइसने चनकी हइ । तनियो ओकरा डाँटवे-दबैवे न करइ ।)    (ताबीझों॰36.19)
106    चनचन (~ करना) (एतने में शिवा लाठी लेके भाँजे लगल कि आझ एजउना से भागिए जो न तो एक-एक लाठी में सब के गरम से नरम कर देबउ । न तो जेकरा भेजे के हउ तउन पहलमनमा के भेज कि आझ सीधे मंगासा फार दे हिअइ । भेज अपन-अपन पहलमनमन के, हियाँ चनचन करे अइले हें हमर दुरवा पर ?)    (ताबीझों॰39.13)
107    चनचनाना (का करे बेचारा ? खून के घूँट पी के रह जा हे । अरे तनिये बोले में तो ओकर माय चनचनाय लगऽ हे, तब बोलऽ हे कौन ?)    (ताबीझों॰35.16)
108    चपड़ा (= बड़ा फावड़ा) (आहर-पइन के ठीका मिलल तऽ अप्पन घाँस छीलके तीन फीट पक्का खोदाई के हिसाब से कागज जमा करके पइसा अप्पन निकाल लेल गेल । नऽ हे तो चांस देखली तो अप्पन कागजो पर चपड़ा चला देली, एकरा में लगल का हे ?)    (ताबीझों॰76.22)
109    चमरखानी (ऊ जादे लाव-लश्कर न लेलन । खाली दुठो धोती, दु कुर्ता आउ एगो मौका-गरमौका के लिए गमछा, एक बंडी गंजी, जे ऊ खास करके दर्जी किहाँ विशेष ढंग से, मनपसन्द सियावऽ हलन, आउ एक जोड़ी चमरखानी जूता, रेड़ी के तेल से नरम आउ करिया कयले रहऽ हलन से, एही एतना सामान आउ खाली एगो ऊपरे तनी फटल छाता धूप-पानी के लिए ले लेलन हल ।)    (ताबीझों॰27.17)
110    चही (= चाही; चाहिए) (ओखनी के बढ़-चढ़ के स्वागत तो होवहीं के चही, नऽ तो लक्ष्य के प्राप्ति आखिर होत कइसे ?)    (ताबीझों॰70.16)
111    चाँतना (= दबाना) (अइसहीं करइत-धरइत बारह बजल । कोई तो ओने पेट चाँत के सूते के पोज देइत हथ । कोई हाली-हाली कोई बहाना से बाहरे निकल के देखथन कि अइसहूँ संकट के समय कटे ।)    (ताबीझों॰23.24)
112    चातना (= दे॰ चाँतना) (अब जे सब मटिऔले पड़ल हलन, पेट चातले से ऊ भी धड़फड़ा के उठलन आउ कहलन कि आवइत हथ कि अइसहीं कहऽ हऽ जी ?)    (ताबीझों॰24.13)
113    चापना (= चाँपना, चाँतना, दबाना) (सब करइत-धरइत तनी कुबेर तो जरूर हो गेल । तब तो ई हे सरकार कि अपने सब तनी सोन्हा गेली से ठीके होल । तनी तनायत भी बेशी । त सब पेट चापले ही ठहाका लगा देलन ।)    (ताबीझों॰25.6)
114    चिन्हना (= पहचानना) (हम चिन्हइतिअइ हल कहाँ से, ऊ तो अगुए हमरा साढ़ुए चिन्हौलन हल, न त हम बेचारी के कहाँ से चिन्हइतिअइ हल ।)    (ताबीझों॰29.15, 16)
115    चिन्हा (= चिह्न, निशान) (हियाँ तो चलम त समधिनियों बेचारी जान दे देत । शदिये में कातो भगिनइया से कहइतो हलन कि तोर मामु बड़ी बढ़ियाँ आदमी हथुन । उनका बेचारी के तिलकवा में, हमरा गणेश के बाबु जी चिन्हा देलथी हल, से एक जाम हल्दी आउ तेल मिलाके सीधे कुर्ता पर फेंक देली हल, से बेचारा हँसइते भागलथिन हल ।)    (ताबीझों॰29.7)
116    चिन्हाना (= पहचान कराना) (हम चिन्हइतिअइ हल कहाँ से, ऊ तो अगुए हमरा साढ़ुए चिन्हौलन हल, न त हम बेचारी के कहाँ से चिन्हइतिअइ हल ।)    (ताबीझों॰29.16)
117    चीकन (= चिक्कन, चिकना) (एतना सुन के ताड़ी से भी नऽ रहल गेल से एहु तुरंत गरमे होके कहलक - "अगे सुखलाही, तऽ तोर गरमी के हम तुरंते ठंढा कर देवउ गे ! तू कउन चीकन हें गे, सुखलाही ?")    (ताबीझों॰92.6)
118    चुटी-पिपरी(काहे अइसन करऽ हें रे, एतना परिवार के सब आदमी खेती-बारी में भी चुटी-पिपरी नियन एतना लटकल रहऽ हे, बाकि ऊ छौंड़ा के कमीं तनी देहो धन हइ ? कि हाँ तनी लग के सहारा तो दिअइ । अरे, ओकरा कोई हर-फार, लाठा या कूँड़ी-कुदार करे कहऽ हलइ ? लेकिन लइका के ई शोखो का, कि तनी बैलो न घुरावे, तनी रसो-पानी खेत-बारी पर न पहुँचावे ।)    (ताबीझों॰36.24)
119    चूड़ा (~ के गवाही दही) (कुछ औरत भी हल्ला सुनके हूँआ आ गेलन । एक दुगो तनी कहलकथिन, सेउ दाँत के सहाड़ा से, कि अईं हे, त तू तो गारी बेचारन के दे देलहु, तोर बड़का बेटवा के न गरिऔलकइ हल, से ओखनी बेचारन समझावइत हलथिन त तू एखनिये पर उलटे बरस पड़लहु । एतने में ऊ पूरा तुफान हो गेल - कहे लगल कि अगे राँड़िन, त तोहनी के तो हम मंगिया न जरवे गेलिअउ, त तोहनी काहे ला चूड़ा के गवाही दही बन गेलहीं ?)    (ताबीझों॰39.3)
120    छतीसवा (= छतीसिया) (कुछ गारी के प्रतीकात्मक शब्द-प्रयोग के बानगी देखल जाय - गललाही (कुष्ठ रोग के कारण जेकर शरीर गल रहल हे), सुखलाही (भोजन के अभाव में जे दुबरा गेल हे), तोंदइल (मोटापा से बदसूरत बनल), छतीसवा (जे छत्तीस प्रकार के बहाना बना के अप्पन दोष छिपावऽ हे), पतुरिया (जे छिप के व्यभिचार करऽ हे), नटिनियाँ, कुतिया, दीदा के पानी आदि अनेक शब्द जेकरा में गूढ़ अर्थ के भण्डार छिपल रहऽ हे ।; एतना सुनइते ताड़ी तलमलाइए के कहलक - "अईं गे कुतिया, तऽ हम अकेले हिअइ गे, नटिनियाँ, आउ दारू, भिस्की, रम, डिप्लोमैट्स - ई सब केकर परिवार में आवऽ हथिन गे, छतीसवा ?")    (ताबीझों॰ix.30; 92.22)
121    छनकाना (= भूखे टटाना) (एही से सब घर के राय करके इनका तनी छनकावे ला सोचलन । ई से आज चौथा दिन दोपहर के इनका दतमने मिलल । त ई दुपहर के सत्तू भरदम खाके चल देवे के सोचइते हलन कि सत्तू में परसन भी माँगे पर मिलल । खइलन, खाके अपन झोला-झक्कड़ लेके अपन रास्ता लेलन ।)    (ताबीझों॰32.14)
122    छव (= छो, छौ, छह) (~ पाँच करना) (रास्ता में सोचे लगलन कि कउन हित हीं पहिले चले के चाही । ... थोड़े दूर तक छवे-पाँच करइत आँख मून्द के बढ़ल जाइत हथ । सोचलन कि दूर वाला हीं से शुरू करऽ ही त पहिलहीं दुबरा जाम ।)    (ताबीझों॰28.22)
123    छोटकी (अपन संझली साली हीं जाय के विचार हो गेलइन । असल इनकर ससुरार में औरत चार बहिन हलथिन । बड़की रीता, मंझली जिनका से इनका शादी भेलइन हल से गीता, संझली जिनका से भेंट करे ला आहल हथ से संगीता आउ छोटकी अनीता हथ ।)    (ताबीझों॰46.10)
124    जगुन (= जगह) (अदमी-अदमी सब एक हे । भेद तो पंडित आउ मुल्ला लोग कर दे हथ । से हमनी सब के चाही कि एके जगुन एक भगवान के इयाद करीं - नाम चाहे राम होय इया रहीम, गॉड होय इया गुरु साहिब, कोई फरक तो न हे ।)    (ताबीझों॰vi.1)
125    जरना (= जलना) (एतना पर बीड़ी अपने आगि-काठी जर गेल आउ तमतमा के लाल होके नहला पर दहला देलक - "अगे, त तू मार केतना चिकन आउ दूध के धोवल हें गे ? तूहूँ तो अप्पन के गैस्टिक टी.बी. के शिकार बना के लेइए मरऽ हें गे ।")    (ताबीझों॰93.5)
126    जास्ती (पूरा गाँव जानइत हउ कि हमर जास्ती हउ कि तोर ! बेटा के शोख बनौले हें त ओकर गारी या बात सुनवहीं त तू न, कि दूसर ?)    (ताबीझों॰43.20)
127    जुआन-जहान (अइसे अब न करतो, जा घरे चुपचाप । ले गेलो त कोई दूसर । तनी जुआन-जहान हइ, अभी तनी पिये-खाय के उमर हइ, त पीयऽ हइ । का करबहु, मना कर देबइ, जा अइसे अब न करतइ ।; दूनों साढ़ू में बड़ी डूब के गप-शप होल । असल दूनों तो जुआने-जहान हलन त गप के विषय के तो न कह सकऽ ही, बाकि कइलन बड़ी डूब के ।)    (ताबीझों॰41.19-20; 52.14)
128    जुदागी (= जुदाई) (कुछ दशक पहिले भारत अप्पन भाइए में जुदागी कर लेलक हे । तऽ सेउ जुदागी दुनों के दुश्मन द्वारा करावल गेल हे, ताकि दुनो लड़इत रहथ आउ उनकर दाल गलइत रहे । तऽ खैर, जुदागी तो कोई नया चीज हे नऽ । ई तो आबादी बढ़े पर स्वाभाविक हे कि नऽ बने पर अप्पन-अप्पन परिवार के लेके लोग जुदा होइए जा हथ । हियाँ असल बात हे जुदागी के बाद वाला भइसा-बैर लेले रहे के ।)    (ताबीझों॰68.1, 2, 3, 6)
129    जेठ (भरला भादो आउ सुखला ~) (तोरा ई न बुझाउ कि देखऽ हीं कि भरला भादो आउ सुखला जेठ, का रात का दिन, का दुपहरिया का अधरतिया, नऽ साँप चिन्हउ, नऽ बिच्छा, नऽ बिरनी, नऽ कनगोजर के हहास कुछ मानउ । आउ सतमा असमान पर हिलउ तइयो जान न छोड़उ आउ उतारिए लावऽ हउ । एगो उपरे चढ़ल रहऽ हउ तऽ चार गो नीचे बइठ के उपरहीं मुँहें ताकइत आउ आँख फोरले रहऽ हउ ।)    (ताबीझों॰95.2)
130    झंझोटना (एतना सुनइते ताड़ी के लहर कपार चढ़ गेल, से ऊ खीस के मारे बीड़ी के झोंटा पकड़ के खूब झंझोटे लगल आउ खीस में आपसुखे बके लगल - "अगे निसहारी बिहुनी, तू का लजयमें ? निर्लज तो हें गे ।")    (ताबीझों॰94.25)
131    झनखनाह (~ तबीयत) (महामहिम राष्ट्रपति जी के तनी तबीयत काहे तो झनखनाह हो गेल हल से ऊ हुअईं से दुख के साथ अपन असमर्थता जतावइते सब सफल आउ असफल प्रतियोगी के बधाई संदेश भेज देलन ।)    (ताबीझों॰84.26)
132    झनझनाना (इनका लगल कि काम के सैकड़ों फूल के बाण एके बार लगल से इनकर मन आउ मस्तिष्क दूनों एके बार झनझना गेल ।)    (ताबीझों॰51.20)
133    झमारना (कभी कहानि माथा उठा के ताकलो चाहऽ हे तो एक देने ओकर झोंटा पकड़ के किस्सा खींचे लगऽ हे तो दोसर देने गप्प । बेचारी कहानियो ऊ दोनो के झोंटा पकड़ के झमारे लगऽ हे खिसिया के, बिखिया के ।)    (ताबीझों॰xii.20)
134    झलकाना (गोपाल एके तुरी औरत के पीड़ा के ऐनक नियन झलका देलकथुन, तऽ आउ का खोजऽ हहू ?)    (ताबीझों॰67.1)
135    झोंटा-झोंटी (अगे, त करकइ अपन के न गे, त तोहनी के कुन्दवन के कुछ करे गेलउ से बताउ तो । एखनी भी गरम तो होलन खूब, लेकिन झोंटा-झोंटी बारे न होल, काहे कि ओकरे दूरा पर हलन आउ ओकरे बेटन में होल हल से ओखनी फिर ओहर गेलन ।)    (ताबीझों॰39.7)
136    झोला-झक्कड़ (एही से सब घर के राय करके इनका तनी छनकावे ला सोचलन । ई से आज चौथा दिन दोपहर के इनका दतमने मिलल । त ई दुपहर के सत्तू भरदम खाके चल देवे के सोचइते हलन कि सत्तू में परसन भी माँगे पर मिलल । खइलन, खाके अपन झोला-झक्कड़ लेके अपन रास्ता लेलन ।)    (ताबीझों॰32.17)
137    झोली-पोटरी (ऊ रूखा-सूखा जे मिलल से खाके फिन रात के हुअईं ठहर गेलन । त रात के रोटी कड़ही उनका मिलल, सीधे आठ बजे के जगह पर बारह बजे । ऊ बेचारे भोरहीं अपन झोली-पोटरी लेके सोझ हो होलन, कोई अरियाते भी न गेलन ।)    (ताबीझों॰33.8)
138    टक (~ से = झट से) (भगिनदमाद बारे घरे से निकलइते हलन आउ उनकर माय भी ओने से आवइत हलन थाली-लोटा लेले बाहरे, से उनकर नजर टक से पड़ गेल समधी साहेब पर । लइकवो कहलथिन कि मइया, मामुँ हथिन इँआ वाला गे, भाग न तो आ गेलथुन त देख लेथुन गे ।)    (ताबीझों॰30.18)
139    टट-उपट (आझ ताड़ी आउ बीड़ी दूनों खूब नीशा में धुत होके, अपन मौसेरी बहीने में पूरा झोंटा-झोंटी कर लेलन हे । ... एखनी दूनों के मन तो चोबिस घंटा सनासन करइत रहऽ हे । दूनों तो हमेशे नीशे में तूअइत रहऽ हे । केकरा कम आउ केकरा बेसी समझल जाय ? दूनों तो टटे-उपट हथ ।; सेई से नऽ हम पहिलहीं कहली कि दूनों टट-उपट हथ ।; मिजाज ओहरे तो केकर ? दुनों के मिजाज तो हमेशे सतमा आसमान पर चढ़ल रहऽ हे तऽ उतरे तो केकर ? असल हर हालत में तो दूनों टट-उपट हथ, तऽ कउन केकर लोहा माने ला आउ सुने ला तइयार हे ?)    (ताबीझों॰90.12, 22; 91.21)
140    टाँगले (~ चलना) (बस जादे सामान काहे ला लेथ । जादे लेके कने-कने टाँगले चलतन । एक जगह स्थायी रहे के रहइत त एगो बातो हल ।)    (ताबीझों॰27.20)
141    टाही (~ खोजना) (तू अपन जगह पर ठीक से रह, हम अपन जगह पर ठीक ही । कोई के सिंग फुटल चलइत हइ कि तोरा से टाही खोजतउ ?)    (ताबीझों॰44.20)
142    टुनकी (= टुन्नुक; नाजुक, कोमल, कमजोर) (तब रमेश के आउ बल मिलल से ऊ कहऽ हथ कि हमर धर्म जब एतना टुनकी हे कि साथे खाय मात्र से नष्ट हो जाहे, त दूरे से गोड़ लागऽ ही अइसन धर्म आउ जात के ।)    (ताबीझों॰6.8)
143    डइनी (= डाइन, डायन) (टी.बी., कैंसर लाके सब के तो चिबा के बइठ जाहें पहिली साँझ गे । तू डाइन तो हें गे । अप्पन के तू जब नऽ हें तऽ आउ केकर होइमें गे, डइनी ?")    (ताबीझों॰93.4)
144    डहियाना (ई हमर गरीबी पर अपने के मजाक हो जात, आउ हमर दिल पर बड़ी चोट लगत । कही, पक्का रह गेल न ? कारण मरदा-मरदी बात होइत हे । सेइ से अपने के खरा लेइत ही । कल के पक्का रह गेल न ? ई कह के ऊ राजा जी के पूरा डहिया लेलन ।)    (ताबीझों॰18.21)
145    डोरियाल (~ चलना/ बुलना) (अगिला प्रतियोगिता में छोट शिशु रहला पर भी सब मौसेरा भाई के साथे डोरियाल चल जायत ।)    (ताबीझों॰ix.17)
146    डोलना (= घसकना, जाना, गतिशील होना) (हियाँ एक दिन मान होल । दुसर दिन से लोग सोच गेलन कि ई पेटमधवा बुझा हउ । त अब इनका रूखा-सूखा भोजन मिले लगल । बाकि ई डोले के नाम न लेइत हथ । एही में एक दिन सत्तू आउ नीमक सामने परसा गेल । त ओहु अंगेज कइलन ।; इनकर तो सूर रहे कि घरे तो बचइत हे न, त हमरा उबियाय ला का हे ? लाओ भाई, जे देमें सेइ अंगेज कइले जइबउ । लेकिन घर के लोग विचारलन कि एकरा तनी सोन्हाउ, तब कहीं डोलउ तो डोलउ ।)    (ताबीझों॰32.6, 12)
147    ढहाना (= ढाहा जाना) (त एकाध गो मडर करके लोग गिरइते पड़इत भागऽ हल । भाग जा हल त सालो भर या दू साल या कोई दसो साल ला घर छोड़ दे हल भगवान भरोसे । फिन घर ढहाय के खबर सुनके हाजिर होवऽ हल ।)    (ताबीझों॰58.22)
148    ढाठी (तऽ एतना ढाठी से बीड़ी का भागो ? ओहु नाच के कहलक - "अगे तऽ तू हमरा अकेले का समझऽ हीं गे ? सूखल हम ही तऽ एकरा से का गे, तोरा नियन फूलल तो नऽ ही गे, पसरल-गलल तो नऽ ही नऽ गे ?")    (ताबीझों॰92.14)
149    ढेंकरना (गरमी के दिन हल से प्रतियोगी के स्वागत के रूप में खूब भर पेट पहिलहीं मार गिलासे-गिलास संतरा के, अंगूर के, आउ बिदाना के शरबत पिला देल गेल । अप्पन-अप्पन रुचि के अनुसार पी के मार ढेंकर रहलन हे ।)    (ताबीझों॰70.3)
150    ढौंसा (ताड़ी बाज आवो ? - "अगे तऽ तोरे नियन फुला के ढौंस नऽ बनइअइ गे, ढौंसवा । अरे तू तो अपने भी पसर जाहें बीच सड़क पर आउ ओकरो पसार देहीं गे । कि सब कोई देख के घिना जा हउ ।")    (ताबीझों॰93.23, 24)
151    तनाना (= खाने में बनना, खाने में आसानी होना) (सब करइत-धरइत तनी कुबेर तो जरूर हो गेल । तब तो ई हे सरकार कि अपने सब तनी सोन्हा गेली से ठीके होल । तनी तनायत भी बेशी । त सब पेट चापले ही ठहाका लगा देलन ।)    (ताबीझों॰25.6)
152    तनिये गो (का भेल कि शिवा हमरा हीं के एक उन्नीस वर्षीय युवक हे । ऊ तनी, झूठ काहे ला कहियो, मनबढ़ु लइका हे । अपन माय-बाप के मनबढ़ु कइल हे, कोई दूसर के न । झूठ कहे ला का हे ? तनिये गो से ओकरा घरे के लोग शोख बनाके धर देलन हे ।)    (ताबीझों॰35.8)
153    तर-ऊपर (सिनेमा में जे नायक-नायिका आधा-आधा घंटा मनोरंजन के बहाना लेके हजारो के बीच में अपन देह कभी दूनों आपसुखे रगड़ऽ हथ, कभी दूनों मुँह से मुँह रगड़ऽ हथ, तऽ कभी दूनों साथे सुत के देखावऽ हथ, तऽ कभी दूनों पूरा तर-ऊपर होके बड़ी दूर तक घसीटऽ आउ घसिटा हथ, तऽ कभी दूनों सीना में सटा के एक-दूसरा के चूम-चूम के प्यार से होल लाल गाल के आउ लाल रत-रत करऽ हथ, कोई कामदेव के खुश करऽ हथ, तऽ कोई रति देवी के ।)    (ताबीझों॰80.22)
154    तरकटी (भोरहीं एक लमना गणेशवा पसिया हीं से गोपला दिया मंगौलकइ, अपन दलनिया पर कोठरिया में बइठ के घुघनी एक कटोरा मइया से मंगौलकइ । पूरा प्याज दिला के छेओकौलकइ हल । से आउ ऊ और गोपला दूनो पिलकइ । एकर बाद नौ बजइत हलइ तउन घड़ी फिन कहलकइ या काइँ फिन एही पइसो देलकइ या का, से फिन एक तरकटी मंगौलकइ ।)    (ताबीझों॰38.12)
155    तरवा (~ के लहर कपार चढ़ना) (एतना सुनइते ताड़ी के लहर कपार चढ़ गेल, से ऊ खीस के मारे बीड़ी के झोंटा पकड़ के खूब झंझोटे लगल आउ खीस में आपसुखे बके लगल - "अगे निसहारी बिहुनी, तू का लजयमें ? निर्लज तो हें गे ।")    (ताबीझों॰94.24)
156    तानना (= खाना) (बतावऽ, नौ बजे से अब ग्यारह बजे जाइत हे, आउ हमनी के ई तो आझ बेश सोनाह देलन । फिन ई बात पर तनी राहत महसूस करऽ हलन कि अच्छा त भुखयला में तानबइ भी खूभ ।)    (ताबीझों॰23.1)
157    तितिमा (ऊ बेचारी तो ओतिये घड़ी से छाती-मुक्का मार के, पछाड़ मार के रोवे लगल कि ई का होल, ई का होल । तो तुरन्ते पूरे गाँव भर में वौं-वौं हो गेल । अब अन्हारे से शिवा के माय के तितिमा देखल हइए हलन से चुप रह गेलन कि ठीक होलइ । अरे ऊ तो डइनी नियन बाहर न मिलइत त एही करवे करइत ।; औरत, बेटी पर भी कसके खिसिअइलन कि तोहनी के काबू न हलउ गे, कस के पकड़ के घरवा ले जाय न, कि बाहरे तितिमा लगयमे । कोई बाहर के आदमी एती घड़ी चल आवे तो का कहे ?)    (ताबीझों॰40.9; 41.23)
158    तीता-मीठा (सुन ले कान खोलके, आझ दिन से फिन कभी गारी देलकउ या हमरा से उलझलउ तो अबरी दू-एगो न, पूरे परिवार के खाय भर दे देबउ । कि तनी याद करमे कि बेटा के सिर चढ़ावे से तीता-मीठा कइसन लगऽ हे सेकर स्वाद लेमे ।)    (ताबीझों॰43.18)
159    तूना (नीशा में ~) (आझ ताड़ी आउ बीड़ी दूनों खूब नीशा में धुत होके, अपन मौसेरी बहीने में पूरा झोंटा-झोंटी कर लेलन हे । ... एखनी दूनों के मन तो चोबिस घंटा सनासन करइत रहऽ हे । दूनों तो हमेशे नीशे में तूअइत रहऽ हे । केकरा कम आउ केकरा बेसी समझल जाय ? दूनों तो टटे-उपट हथ ।; फिन बीड़ी उड़के आउ नाच के कहलक - "हमरा भिर तनी तलमलो आउ तूअइँ मत, नऽ कहऽ हिलउ कि नऽ तनी आबउ नऽ कि जेकरा पर नाचऽ आउ तूअ हें सेकरो तोंदवा पचका देबउ । तोरा का तो तोंदइलवन पर घमण्ड हउ नऽ, तऽ तनी बोलाओ, बोलाओ कि ओखनियों के तोंदवा पचका दे हिअउ कि नऽ ।")    (ताबीझों॰90.11; 92.25)
160    तेखराना (= तेहराना, किसी बात को तीसरी बार कहना, कोई काम तीसरी बार करना, जैसे खेत की जुताई, खाद डालना, सिंचाई करना आदि) (कुछ लोग कहलन कि अरे बाबू, तनी जाके तेखराके पुछहु तो कि का कहऽ हइ ?; एतना सुनके दूगो नवयुवक जाके तेखराके पूछऽ हथ कि तोरा रहइते औरत विधवा कइसे हो जथुन ?)    (ताबीझों॰61.5, 8)
161    तोंदइल (कुछ गारी के प्रतीकात्मक शब्द-प्रयोग के बानगी देखल जाय - गललाही (कुष्ठ रोग के कारण जेकर शरीर गल रहल हे), सुखलाही (भोजन के अभाव में जे दुबरा गेल हे), तोंदइल (मोटापा से बदसूरत बनल), छतीसवा (जे छत्तीस प्रकार के बहाना बना के अप्पन दोष छिपावऽ हे), पतुरिया (जे छिप के व्यभिचार करऽ हे), नटिनियाँ, कुतिया, दीदा के पानी आदि अनेक शब्द जेकरा में गूढ़ अर्थ के भण्डार छिपल रहऽ हे ।; फिन बीड़ी उड़के आउ नाच के कहलक - "हमरा भिर तनी तलमलो आउ तूअइँ मत, नऽ कहऽ हिलउ कि नऽ तनी आबउ नऽ कि जेकरा पर नाचऽ आउ तूअ हें सेकरो तोंदवा पचका देबउ । तोरा का तो तोंदइलवन पर घमण्ड हउ नऽ, तऽ तनी बोलाओ, बोलाओ कि ओखनियों के तोंदवा पचका दे हिअउ कि नऽ ।"; तोरो से नटिन आउ खानगी कोई होतइ गे पतुरिवा ? अरे चलनिया कातो दुसलकइ हल सूपवा के, सेकर हिसाब करऽ हीं गे छतीसवा ? अरे दूसर तो तनी बोलतइ न हल, बाकि तोर दीदा के पानी तो गिरल हउ गे । तू एको बावे जीते देमहीं ?)    (ताबीझों॰ix.30; 92.25; 93.13)
162    दतमन (= दतवन, दातुन) (एही से सब घर के राय करके इनका तनी छनकावे ला सोचलन । ई से आज चौथा दिन दोपहर के इनका दतमने मिलल । त ई दुपहर के सत्तू भरदम खाके चल देवे के सोचइते हलन कि सत्तू में परसन भी माँगे पर मिलल । खइलन, खाके अपन झोला-झक्कड़ लेके अपन रास्ता लेलन ।)    (ताबीझों॰32.15)
163    दत्त तेरी (~ के) (एक बार के बात हे कि गोनु झा के मन में होल कि दत्त तेरी के, घरे में बइठल रहके घर के आँटा गिल करइत रहऽ ही, से बेकारे न ? तनी बाहर निकलती हल, त तनी निमन-चुमन खाय ला मिलइत हल, आउ घर के तनी बचवो करइत हल ।)    (ताबीझों॰27.1)
164    दनियाना (= कस के खाना) (एकर बाद सोचलन कि अपन हित मधे तो अब बहिन हीं आउ मामु हीं बचल हे, त तनी ओन्हूँ दनियाइए देवे के चही । त तीन दिन बहिन हीं रहलन ।)    (ताबीझों॰31.24)
165    दिया (= द्वारा) (भोरहीं एक लमना गणेशवा पसिया हीं से गोपला दिया मंगौलकइ, अपन दलनिया पर कोठरिया में बइठ के घुघनी एक कटोरा मइया से मंगौलकइ ।; भले पानी दूसर दिया भेज देती हल, काहे तो न रहल गेल से भल हमहीं चलियो अइली ।)    (ताबीझों॰38.8; 51.2)
166    दीदा (~ के पानी गिरना) (तोरो से नटिन आउ खानगी कोई होतइ गे पतुरिवा ? अरे चलनिया कातो दुसलकइ हल सूपवा के, सेकर हिसाब करऽ हीं गे छतीसवा ? अरे दूसर तो तनी बोलतइ न हल, बाकि तोर दीदा के पानी तो गिरल हउ गे । तू एको बावे जीते देमहीं ?)    (ताबीझों॰93.14)
167    दुबराना (= दुबला होना) (रास्ता में सोचे लगलन कि कउन हित हीं पहिले चले के चाही । ... थोड़े दूर तक छवे-पाँच करइत आँख मून्द के बढ़ल जाइत हथ । सोचलन कि दूर वाला हीं से शुरू करऽ ही त पहिलहीं दुबरा जाम ।)    (ताबीझों॰28.23)
168    दुलरुआ (= दुलारा) (कितना अंग्रेज अफसर भी इनका से डरऽ हलन । ई से इनकर एक तरफ अंग्रेज इज्जत करऽ हल, त दूसर तरफ प्रजा के भी ई बड़ी दुलरुआ राजा हलन - बड़ा प्यार आउ आदर भाव हलन अपन प्रजा में भी ।)    (ताबीझों॰17.19)
169    देखवइया (उजउना दस-बीस रहगीर भी जमा हो गेलन । काहे कि एतना स्याना लइका जार-बेजार अइसन बुरी तरह रोवे लगलन कि देखवइया के घरवइया लगइत हे ।)    (ताबीझों॰13.28)
170    देखार (एकरा में अपने मुँह से कहना का हे ? ई तो एकदम देखार चीज हे । अन्धरो देख सकऽ हे ।)    (ताबीझों॰80.12)
171    देव-मून (= देव-मुनि) (ई घर-बाहर के देव-मून के नाम लेके कोई एक दिशा में चल देलन । रास्ता में सोचे लगलन कि कउन हित हीं पहिले चले के चाही ।)    (ताबीझों॰28.18)
172    दोह (ई दाई एकदम झूठ पलमा आउ अछरंग लगा रहल हे । ई सुनिश्चित योजना के तहत दोह हिछल गेल हे ।; हे भगवान, ई हमरा पर खाली दोह हिछल जा रहल हे । तूही तनी दूध के दूध आउ पानी के पानी इन्साफ करिअहु, दोहाई भगवान के, हमरा पर निराधार पलमा लगावल जा रहल हे ।)    (ताबीझों॰87.14, 17)
173    धड़ (~ से कहना = तुरंत कहना) (फिन पूछ देलन ओही हालत में कि "हमर घोड़िया ... कइसे मर ... गेलइ हो चचवा ?" तब ऊ सुधीर चा के मौका मिलल से धड़ से कहऽ हथ कि अरे ऊ तो बच्चा अभी फुट के जवाने होएवे कयल हल हो, ओकरा काल ले गेलइ बाबु ।)    (ताबीझों॰14.27)
174    धड़धड़ाना (आवइत हथ कि अइसहीं कहऽ हऽ जी ? त ऊ तसल्ली देलन कि झूठ काहे ला कहब ? बाहरे आके तूहूँ देख सकऽ हऽ । तो तीन-चार आदमी तुरन्त धड़धड़ा के उठ गेलन देखे ला ।)    (ताबीझों॰24.16)
175    धरा-पकड़ी (अब ओतना तो नहिए करे में बनत काहे कि शादी-शुदा होके अपन घर चल गेलन हे । तब तो अब भागा-भागी मान लेली कि न होत, धरा-पकड़ी न होत, लेकिन गप-शप कइसे न होत ?)    (ताबीझों॰49.1)
176    धोखारना (= धोखाड़ना; धोखरना या धोखड़ना का सक॰ रूप; वर्षा की चोट या पानी की धारा से मिट्टी काटना या परत उजाड़ना) (तऽ एक सुनियोजित षड्यंत्र के सहारा लेलक हे । ई का कइलक हे कि भारत के तरहीं से धोखारे के फेर में लग गेल हे ।)    (ताबीझों॰69.5)
177    धोवल (दूध के ~) (एतना पर बीड़ी अपने आगि-काठी जर गेल आउ तमतमा के लाल होके नहला पर दहला देलक - "अगे, त तू मार केतना चिकन आउ दूध के धोवल हें गे ? तूहूँ तो अप्पन के गैस्टिक टी.बी. के शिकार बना के लेइए मरऽ हें गे ।")    (ताबीझों॰93.7)
178    नटिन (तोरो से नटिन आउ खानगी कोई होतइ गे पतुरिवा ? अरे चलनिया कातो दुसलकइ हल सूपवा के, सेकर हिसाब करऽ हीं गे छतीसवा ? अरे दूसर तो तनी बोलतइ न हल, बाकि तोर दीदा के पानी तो गिरल हउ गे । तू एको बावे जीते देमहीं ?)    (ताबीझों॰93.12)
179    नटिनियाँ (कुछ गारी के प्रतीकात्मक शब्द-प्रयोग के बानगी देखल जाय - गललाही (कुष्ठ रोग के कारण जेकर शरीर गल रहल हे), सुखलाही (भोजन के अभाव में जे दुबरा गेल हे), तोंदइल (मोटापा से बदसूरत बनल), छतीसवा (जे छत्तीस प्रकार के बहाना बना के अप्पन दोष छिपावऽ हे), पतुरिया (जे छिप के व्यभिचार करऽ हे), नटिनियाँ, कुतिया, दीदा के पानी आदि अनेक शब्द जेकरा में गूढ़ अर्थ के भण्डार छिपल रहऽ हे ।; एतना सुनइते ताड़ी तलमलाइए के कहलक - "अईं गे कुतिया, तऽ हम अकेले हिअइ गे, नटिनियाँ, आउ दारू, भिस्की, रम, डिप्लोमैट्स - ई सब केकर परिवार में आवऽ हथिन गे, छतीसवा ?")    (ताबीझों॰x.2; 92.21)
180    नयका (ई घर-बाहर के देव-मून के नाम लेके कोई एक दिशा में चल देलन । रास्ता में सोचे लगलन कि कउन हित हीं पहिले चले के चाही । सबसे पहिले एकदम नयका हीं चली, कि पुरनका हीं चली, कि एकदम गोली गइया के बहिन जी हीं (दूर के लगाव-बझाव के हित) से शुरू करी ।)    (ताबीझों॰28.20)
181    नाश्ता-उश्ता (काम ला ओने कोई चालो करऽ हलथिन त ओने छोटकी के या कभी बड़कियो के, त कभी मंझली के विधिया के करा ले हलन, लेकिन का जनी उनका हमरा भीर का मिलऽ हलइन कि डोलवे न करऽ हलन । ओही तनी हमरे खाय-पानी या नाश्ता-उश्ता लावे में जे देर हो जा हलइन बाकि शेष समय हमरे भीर बितावऽ हलन ।)    (ताबीझों॰47.15)
182    निके-निके (= सही-सलामत) (बन्दर के घाव पोरसिसिए में जइतन हल । उनकर आझ जनाजा निकलले हल समझऽ तो । लेकिन खैर, उनकर माय खैरजीतिया कइलकथिन हल कि निके-निके ऊ अपन तशरीफ भारत बारे वापस ले अइलन ।)    (ताबीझों॰86.13)
183    निमन-चुमन (एक बार के बात हे कि गोनु झा के मन में होल कि दत्त तेरी के, घरे में बइठल रहके घर के आँटा गिल करइत रहऽ ही, से बेकारे न ? तनी बाहर निकलती हल, त तनी निमन-चुमन खाय ला मिलइत हल, आउ घर के तनी बचवो करइत हल ।)    (ताबीझों॰27.3)
184    निरवंशा (= निर्वंश, गाली के रूप में प्रयुक्त) (एतना सुनइते मइया घरवा में से निकललइ से चरखा नियन ओटे लगलइ । हमनियों सबके भोग सुनावे लगलइ कि छौड़ा-पूतन के कलेजा काहे ला फटऽ हइ । भुजफट्टन के अपन के न गरिऔलकइ कि निरवंशन के गारी देवे गेलइ ।)    (ताबीझों॰38.22)
185    निसहारी बिहुनी (एतना सुनइते ताड़ी के लहर कपार चढ़ गेल, से ऊ खीस के मारे बीड़ी के झोंटा पकड़ के खूब झंझोटे लगल आउ खीस में आपसुखे बके लगल - "अगे निसहारी बिहुनी, तू का लजयमें ? निर्लज तो हें गे ।")    (ताबीझों॰94.26)
186    नुकाना (= नुकना, छिपना; छिपाना) (कम से कम समधिन अपन चालाकी से चाहे जइसे, भर नजर समधी के देखिये ले हे । चाहे जे हो जाय, अपन काम ऊ साधिये ले हे । खाली दुनियाँ के देखावे ला बेचारी नाम के नुका हे । हाँ, लाजे या लिहाजे समधी अलबत्ता ओतना देखे के चेष्टा न करे ।)    (ताबीझों॰30.5)
187    नेहाली (= रजाई) (एतने नऽ, अपने के अचम्भित नऽ होवे के हे । कभी-कभी दूनों कोहबर के दृश्य में एके नेहाली तर कुछ देरी वास्ते सुत भी जा हथ ।)    (ताबीझों॰81.2)
188    नोह (जइसहीं हमरा नींद पड़ऽ हल तइसहीं बायाँ हाथ के पाँचो नोह पर असो के मेंहदी बड़ी कुशलता से रख दे हलन । भोरे जब नींद टूटऽ हल तब पाँचो अँगुली के नोह आउ तलहथी लाल देख के हम उनकर कुशलता के लोहा मान ले हली ।)    (ताबीझों॰48.21, 23)
189    नोहर (= नया; दुर्लभ) (नाया/ नावा नोहर = नई नवेली, नई वधु या दुलहन) (सेकरा पर एक-दूगो हामी भरइत कहलन - "हाँ जी ? एकरा ले बढ़ के धन के सदुपयोग आउ का होत भाई, कि हाकिम के एक दिन नोहर घर में जूठा गिरत ।" सब एके साथ ठहाका भी लगा देलन ।)    (ताबीझों॰19.13)
190    पंच-पुराई (एगो इनके गाँव के लड़का के फुफससुरार पड़ऽ हल । आउ ऊ गाँव हल दुइए कोस पर । से हुआँ चल देलन । हुआँ पहुँचलन हे त कोई पानी लाके देलन, लेकिन खाय ला अभी पंच-पुराई न होल हे । ई पैर धोके चौकी पर पड़ल हथ ।)    (ताबीझों॰32.23)
191    पइँचा (अपन औरत के तनी बाहरे अपन एक पड़ोसी के घर बेचारी पइँचा निमक माँगे ला गेलन तब तक छोटकी हथौड़ी से उनकर संदूक के ताला तोड़ के एगो सोना के बाला ले के गते उनका आवइते बजार सोझ हो गेल ।)    (ताबीझों॰39.23)
192    पजाना (= किसी शस्त्र, हथियार या औजार की धार को तेज करना) (मुँह ~) (जन वितरण - एकरा में माल ऊपर से उठल आउ ऊपरे से ऊपरे गायब । सब गरीब अप्पन मुँह पजौले के पजौले रह गेलन ।)    (ताबीझों॰77.22)
193    पतुरिया (कुछ गारी के प्रतीकात्मक शब्द-प्रयोग के बानगी देखल जाय - गललाही (कुष्ठ रोग के कारण जेकर शरीर गल रहल हे), सुखलाही (भोजन के अभाव में जे दुबरा गेल हे), तोंदइल (मोटापा से बदसूरत बनल), छतीसवा (जे छत्तीस प्रकार के बहाना बना के अप्पन दोष छिपावऽ हे), पतुरिया (जे छिप के व्यभिचार करऽ हे), नटिनियाँ, कुतिया, दीदा के पानी आदि अनेक शब्द जेकरा में गूढ़ अर्थ के भण्डार छिपल रहऽ हे ।)    (ताबीझों॰x.1)
194    पतुरिवा (तोरो से नटिन आउ खानगी कोई होतइ गे पतुरिवा ? अरे चलनिया कातो दुसलकइ हल सूपवा के, सेकर हिसाब करऽ हीं गे छतीसवा ? अरे दूसर तो तनी बोलतइ न हल, बाकि तोर दीदा के पानी तो गिरल हउ गे । तू एको बावे जीते देमहीं ?)    (ताबीझों॰93.12)
195    पनकना (बीड़ी तनी सूखल रहे के वजह से पनकाही तो पहिलहीं से हे, तऽ जानब करऽ ही कि सूखल-साखल के नीशा तनी पहिले आवऽ हे । तऽ एही पहिले पनक के कहलक - "अगे तड़िया, तू का बढ़-चढ़ के बोलइत हें गे, तोरा हम तुरंते लहरा देबउ गे । तू कउन घमण्ड में हें गे कुतिया ?")    (ताबीझों॰92.2)
196    पनकाही (बीड़ी तनी सूखल रहे के वजह से पनकाही तो पहिलहीं से हे, तऽ जानब करऽ ही कि सूखल-साखल के नीशा तनी पहिले आवऽ हे । तऽ एही पहिले पनक के कहलक - "अगे तड़िया, तू का बढ़-चढ़ के बोलइत हें गे, तोरा हम तुरंते लहरा देबउ गे । तू कउन घमण्ड में हें गे कुतिया ?")    (ताबीझों॰91.29)
197    परकना (= किसी अवांछित काम को करने की आदत बना लेना) (इनकर तो सूर रहे कि घरे तो बचइत हे न, त हमरा उबियाय ला का हे ? लाओ भाई, जे देमें सेइ अंगेज कइले जइबउ । लेकिन घर के लोग विचारलन कि एकरा तनी सोन्हाउ, तब कहीं डोलउ तो डोलउ । न तो परक जतउ त हमेसे तीने दिन पर आ जतउ आउ धूल उड़ाके छोड़ देतउ ।; ओने शिवा के घर में ओकर औरत पूरा पिपकार कइले हे कि हम अब हियाँ रहवे न करम, हमर सब गहने बेच देतन । अब परक गेलन हे ।)    (ताबीझों॰32.12; 41.11)
198    परसन (= कुछ खा लेने के बाद दुबारा या अधिक बार अतिरिक्त भोजन परोसा जाना) (एही से सब घर के राय करके इनका तनी छनकावे ला सोचलन । ई से आज चौथा दिन दोपहर के इनका दतमने मिलल । त ई दुपहर के सत्तू भरदम खाके चल देवे के सोचइते हलन कि सत्तू में परसन भी माँगे पर मिलल । खइलन, खाके अपन झोला-झक्कड़ लेके अपन रास्ता लेलन ।)    (ताबीझों॰32.16)
199    परसाना (= परोसा जाना, परोसने का काम होना) (पत्तल परसाइते एखनी सब के लगल कि कल्पना के दुनियाँ में उतर गेलन । लगइत हे कि छपनो प्रकार के सुस्वादु भोजन परसा गेल । सब खाइत हथ ।; जे सामने परसा गेल गेल हे सेकरा ग्रहण कयल जाय सरकार ।)    (ताबीझों॰25.24, 26; 26.6)
200    पलमा (ई दाई एकदम झूठ पलमा आउ अछरंग लगा रहल हे । ई सुनिश्चित योजना के तहत दोह हिछल गेल हे ।; हे भगवान, ई हमरा पर खाली दोह हिछल जा रहल हे । तूही तनी दूध के दूध आउ पानी के पानी इन्साफ करिअहु, दोहाई भगवान के, हमरा पर निराधार पलमा लगावल जा रहल हे ।)    (ताबीझों॰87.13, 19)
201    पवित्री (सोचलन कि दूर वाला हीं से शुरू करऽ ही त पहिलहीं दुबरा जाम । काहे कि घी के पवित्री तो मिलत न । त ई से तय कइलन कि पहिले नयका हीं चले के चही कि तनी देहो बन जात, काहे कि घी के पवित्री दाल में तो लेला इयादो न हे कि कब लेली हल ।)    (ताबीझों॰28.24, 26)
202    पहुनई (कहानी के ई शीर्षक में एगो 'पेटमधवा कामचोर' के कथा कहल गेल हे जे अप्पन घरे के अनाज बचावे ला पहुनई में निकल जा हे आउ महीना भर ला हित के हित हीं घुमइत-खाइत चलऽ हे ।)    (ताबीझों॰vii.7)
203    पिछुआयल (अबरी तनी निकली लमहर त कुछ बचे भी हियाँ, आउ तनी देहो बन जाय । ढेर आदमी अइसन करऽ हथ, हमहीं अभी एकरा में पिछुआयल ही ।)    (ताबीझों॰27.7)
204    पिपकारा (एने रात भर शिवा के घर में पिपकारा होइते रहल । मारे वाला के रात भर गारी से उनकर तेरहो कुरसी के न्योतल जाइत हे ।)    (ताबीझों॰43.11)
205    पिपरी (= पिप्पिलिका, चींटी) (गूड़ के नफा पिपरिये खाना) (एने ओकर सार आन के ओकरा हीं जम गेलन तो महीना ठेका देलन । उनका घूर के घरे अइले पर सार भी टसके के नाम लेलन । ई देख के उनकर सब करमात के जरिये हिल गेल । उनकर गूड़ के नफा पिपरिये खा गेल ।)    (ताबीझों॰vii.11)
206    पुरनका (ई घर-बाहर के देव-मून के नाम लेके कोई एक दिशा में चल देलन । रास्ता में सोचे लगलन कि कउन हित हीं पहिले चले के चाही । सबसे पहिले एकदम नयका हीं चली, कि पुरनका हीं चली, कि एकदम गोली गइया के बहिन जी हीं (दूर के लगाव-बझाव के हित) से शुरू करी ।)    (ताबीझों॰28.20)
207    पेटकुनिये (शिवा तो कलाली से निकलइते तलमलाय लगल । ऊ तो अइसन गिरल हे कि कोई होशे न हे । ऊ बेतुका सड़क के किनारे पेटकुनिये पड़ल हे । ओकरा मरल समझ के एगो कुत्ता ओने से आके ओकर कान के ऊपर एक पैर उठाके का जनी का कइलक ।)    (ताबीझों॰42.11)
208    पेट-पानी (~ करके रख देना) (विद्यालय के प्रधानाध्यापक माननीय शिवरत्न पाण्डेय जी के आउ हम अप्पन विद्यालय के प्रिय छात्र-छात्रा के विशेष अनुगृहीत ही जे शुरू से अंत तक सुन आनन्दित होवऽ हलन आउ जे पुछते-पुछते पेट-पानी करके रख देलन हे - "कहिया किताब निकल रहलइ हे श्रीमान् ? जल्दी निकलवावी न ।")    (ताबीझों॰xv.3)
209    पेटमधवा (हियाँ एक दिन मान होल । दुसर दिन से लोग सोच गेलन कि ई पेटमधवा बुझा हउ । त अब इनका रूखा-सूखा भोजन मिले लगल ।)    (ताबीझों॰32.5)
210    पैतावा (= मोजा) (रमेश दूनों पैर के पैतावा निकालइत हथ आउ कहइत हथ, "अपने दिल से जानिये पराये दिल के हाल ।")    (ताबीझों॰51.9)
211    पोरसिसिआ (बन्दर के घाव ~) (बन्दर के घाव पोरसिसिए में जइतन हल । उनकर आझ जनाजा निकलले हल समझऽ तो । लेकिन खैर, उनकर माय खैरजीतिया कइलकथिन हल कि निके-निके ऊ अपन तशरीफ भारत बारे वापस ले अइलन ।)    (ताबीझों॰86.11)
212    प्रालवद (= प्रारब्ध, भाग्य) (भला ई काहे ला आयल बढ़िया में कुद के जान देवे गेलइ त जेकर बीमारी सुनके धावल दुपहरिये में गेल । ओहु पगली के तो जाके मरले मुँह तो देखलक, जिन्दा मुँह देखे के तो प्रालवद न भेलइ आउ ई अपन जान गेलइ से मुस्तिये में । त होनिहारी के बाबु कउन टाल सकऽ हे ?)    (ताबीझों॰15.8)
213    फरना (= फलना, फल आना) (अपन औरत से उनकर बक्सा के कुंजी माँगलक । से ऊ खिसिअइलथिन कि हमरा हीं पइसा फरऽ हइ । कुंजी काहे ला दियो ?)    (ताबीझों॰39.21)
214    फर-फर (~ उड़ना) (घोड़वा चढ़ल आथिन रामजी दुलहवा, से फर-फर उड़ऽ हइन चदरिया हो लाल ।)    (ताबीझों॰54.24)
215    फुफससुरार (= पत्नी या पति के फूफा का घर) (सोचइते हलन कि अब कने चले के चही कि भले ख्याल पड़ गेलइन । एगो इनके गाँव के लड़का के फुफससुरार पड़ऽ हल । आउ ऊ गाँव हल दुइए कोस पर । से हुआँ चल देलन ।)    (ताबीझों॰32.20)
216    फुललाही (= फूली हुई, मोटी-ताजी) (तऽ एतना ढाठी से बीड़ी का भागो ? ओहु नाच के कहलक - "अगे तऽ तू हमरा अकेले का समझऽ हीं गे ? सूखल हम ही तऽ एकरा से का गे, तोरा नियन फूलल तो नऽ ही गे, पसरल-गलल तो नऽ ही नऽ गे ? आउ हम का अकेले हिअउ कि भाग जबउ तोरा से गे ? हमरे परिवार में देख सिकरेट, चुरूट, गाँजा, अफीम, चरस, हिरोइन - ई सब केकर परिवार में हथिन गे फुललाही ?")    (ताबीझों॰92.19)
217    बइठुआ (अबरी सोचइत ही न, कि तनी अइसने निकली कि कुछ बचे । काम-धंधा के दिन हइए न हे, बइठुआ हे ।)    (ताबीझों॰27.13)
218    बउड़ाहा (= बौड़ाहा, बौराहा, पागल) (तोहरा भौजाई नहीरा गेल हल । हुअईं हैजा उठलइ । बीमार पड़ल बेचारी । ओकर बीमारी के खबर सुन के ई तोर भाई बउड़ाहा मानल हइये न, बिना कोई के कहले-सुनले दुपहरिये में सुनइते हुआँ चल देलक ।)    (ताबीझों॰15.2)
219    बजाप्ते (मार ~) ("किनका पाँच करोड़ वाला नगद पुरस्कार हाथ लगऽ हे । एही तो देखना हे ।" तऽ एही से मार बजाप्ते खा-पी के कुछ खाय ला लेले भी, सब हाजिर हथ ।)    (ताबीझों॰69.29)
220    बड़की (अपन संझली साली हीं जाय के विचार हो गेलइन । असल इनकर ससुरार में औरत चार बहिन हलथिन । बड़की रीता, मंझली जिनका से इनका शादी भेलइन हल से गीता, संझली जिनका से भेंट करे ला आहल हथ से संगीता आउ छोटकी अनीता हथ । त बड़की किहाँ सोचलन कि का जाउँ, अरे रूप-रंग में तो सुन्दर हइए हथ, लेकिन उनका हीं जाय से लाभ का होत ?)    (ताबीझों॰46.8, 10)
221    बदना (= काबू में आना; किसी का कहा सुनना, अनुशान में होना) (माय-बाप के लगाम एकरा पर शुरुए से ढीला रहल, लइका बिगड़ गेल आउ लगाम कुछ न पड़ल । त अब तो भरवाभूट जवान हो गेल हे, त केकरा बदत ?)    (ताबीझों॰36.6)
222    बनाइतरी (ओखनी के दिमाग में कूड़ा-कर्कट जे भरल हवऽ सिनका एके तुरी हमनी आँधी बन के सब के दिमाग के बनाइतरी ओसा के साफ कर दऽ । एकदम कज्जल करे के जरूरत हवऽ । ई आउ केकरो से न बनतो ।; नौ, नौ से सद, आउ दस से ग्यारह बजे जाइत हे, आउ देखऽ कि अभी तक मिशिर जी हुलकलन न हे । का करइत हथ । उधर सबके पेट खनखना तो गेल हल नोए बजे, अब बनाइतरी कलछुल फेरे लगल ।; एखनियों बेचारिन रोते-रोते बनाइतरी वेस्कलाल होइत हथ । कोई-कोई औरत के तो पोछइत ढेर देर हो गेल हे ।; होल हे का कि राजनीति में कीर्तिमान से विभूषित करीब सैकड़ों के संख्या में घुसखोरी बाई से फँस के अपन मुँह काला करे में बनाइतरी रेसा-रेसी लिप्त रहे लगलन ।; दूनों बनाइतरी पानी-पानी होयल हथ । काहे कि दूनों के गरमी कुछ-कुछ उतर गेल हे । देखताहर के मार गर्राटा भीड़ लगले हल । खूब एखनिए के चर्चा सब के जीभ पर हे ।)    (ताबीझों॰9.26; 22.17; 59.18; 86.24; 96.7)
223    बरियार (= शक्तिशाली, बलवान) ('बिन मारे बैरी मरै" कहल भी गेल हे, से एकदम ठीक कहल गेल हे । एही बरियार दुश्मन के मारे के सर्वोत्तम तरीका भी हे ।)    (ताबीझों॰69.13)
224    बलिक (= बल्कि) (काइँ का मति आझ ओकर होलइ कि भोरहीं से जे खाली पीये के जे सुर धइलकइ हे से दिनो भर धइलहीं रह गेलइ । अरे अब लइका रहल न, बलिक दु लइका के बाप हो गेल हे लेकिन कोई चिन्ता न, खाली पीये के चिन्ता हे ओकरा ।; लइकन कहइत हथ कि माँस-मछली के चखना मंगा के पूरा पीलक । त पीअउ न भाई । हमनी के का हउ । बलिक सब खेत-बारी बेच के पी जाउ । भीख मांगमे तू ।)    (ताबीझों॰38.5; 44.8)
225    बलुरी (मैं मरिहौं तो तरवे तर जलइहीं यार, लकड़ी अगर नहीं मिले तो बलुरिये से जलइहीं यार ।)    (ताबीझों॰95.17)
226    बहिनधी (= किसी स्त्री की बहन की बेटी) (अब तो विचार होलइन कि तनी गोली गइया के बहिनधी हीं भी होइए ले ही । ई विचार से एक कोस पर इनकर ममेरा भाई के लड़का के ममससुरार हलइ से हुआँ भी टप गेलन ।)    (ताबीझों॰32.1)
227    बहिर (= बधिर; बहिरा, बहरा) (का करे बेचारा ? खून के घूँट पी के रह जा हे । अरे तनिये बोले में तो ओकर माय चनचनाय लगऽ हे, तब बोलऽ हे कौन ? चचा हथिन तो दू गो । लेकिन ओखनी भी ओकर माय-बाप के चाल देख के कान बहिर आउ पीठ गहीड़ करके सब कुछ देखइत रह जा हथ ।)    (ताबीझों॰35.18)
228    बाँटना-चुटना (हम ई सिद्धान्त के पक्षधर ही कि "बाँट-चुट खाय, गंगा नेहाय ।")    (ताबीझों॰75.27)
229    बारे (भगिनदमाद बारे घरे से निकलइते हलन आउ उनकर माय भी ओने से आवइत हलन थाली-लोटा लेले बाहरे, से उनकर नजर टक से पड़ गेल समधी साहेब पर । लइकवो कहलथिन कि मइया, मामुँ हथिन इँआ वाला गे, भाग न तो आ गेलथुन त देख लेथुन गे ।)    (ताबीझों॰30.16)
230    बिगड़ल-सम्हरल (अरे गाँव में आदमी हइए हे त एक जगह पर रहे, पर आउ ओजउने रहे पर बिगड़ल-सम्हरल के तनी कौन न कहऽ-दवाबऽ हे ? त एकर मतलब का कि तुरंत समझावहीं वाला पर चढ़ बइठी ?)    (ताबीझों॰44.22)
231    बिच्छा (ऊ मरतन तो न हल लेकिन ऊ मर गेलन अपन बड़का लड़का के शोक में । एतना सुनइते मातर गोपाल के तो लगल कि दस हजार बिच्छा एके तुरी डंक मार देलक ।)    (ताबीझों॰14.12)
232    बिदाना (= बिजदाना, बिहदाना) (गरमी के दिन हल से प्रतियोगी के स्वागत के रूप में खूब भर पेट पहिलहीं मार गिलासे-गिलास संतरा के, अंगूर के, आउ बिदाना के शरबत पिला देल गेल ।)    (ताबीझों॰70.2)
233    बिरनी (= बिर्हनी; बिढ़नी) (चचा हथिन तो दू गो । लेकिन ओखनी भी ओकर माय-बाप के चाल देख के कान बहिर आउ पीठ गहीड़ करके सब कुछ देखइत रह जा हथ । हथिन तो सब साथहीं, बाकि कौन बिरनी के खोंता उसकावे जाय ?)    (ताबीझों॰35.19)
234    बिहने (~ पहर) (रात के तो न, लेकिन बिहने पहर नास्ता के समय आठ बजे सुबह होइत हल । आझ भल रविवार के दिन हे, से वकील साहेब के कचहरी भी बन्दे हल । त तीनों जम गेलन हे गप करे ला ।)    (ताबीझों॰52.18)
235    बीजे (दे॰ बिज्जे) (उनका राह के मारल नींद आ गेल हल । बाबु जाके उठौलन । बीजे होल । गेलन, बइठलन, परसाय पर खूब खइलन ।)    (ताबीझों॰31.10)
236    बीसबरसा (~ जेल) (त एकाध गो मडर करके लोग गिरइते पड़इत भागऽ हल । भाग जा हल त सालो भर या दू साल या कोई दसो साल ला घर छोड़ दे हल भगवान भरोसे । फिन घर ढहाय के खबर सुनके हाजिर होवऽ हल । त बड़ी तकदीर सोझ रहऽ हल त बीसबरसा लड़तम-झगड़तम जेल काटे पड़ऽ हल ।)    (ताबीझों॰58.23)
237    बुढ़ारी (= बुढ़ापा) (लेकिन सब एही दावा करऽ हथ कि ई एक न एक दिन मइए बाप के बुढ़ारी में भोगौतइ । ओकर माय ओइसने चनकी हइ । तनियो ओकरा डाँटवे-दबैवे न करइ ।)    (ताबीझों॰36.19)
238    बेकहल (गाँव के तो जे देखऽ हथ से सब दाँते अँगुली काटऽ हथ, कि बाप रे, ओइसन सुखी आउ सम्पन्न आउ बढ़िया पढ़ल-लिखल परिवार में एही एगो सार कैसे लेंढ़ा आउ बेकहल निकल गेलइ ?)    (ताबीझों॰36.13)
239    बेटखौकी (कोई कहइत हे कि हाँ बहिन, त कौन बेलज बने जइतइ काहे ला । हम तो कहऽ हियो कि एतिये घड़ी अगर कोई जाके दाँत के सहाड़ा से एतने कहइ कि शिवा के ई करे के न चाहऽ हलइ तो तुरंते देखऽ कि एही जवाब देतो कि अगे बेटचिवौनिन, त ऊ अपन के न बेचलकइ गे बेटखौकिन, कि तोहनी के बेच देलकउ गे मंगजरौनिन। तोहनी के काहे ला भार पड़इत हउ गे ?)    (ताबीझों॰41.3)
240    बेटचिवउनी (एतने में ऊ पूरा तुफान हो गेल - कहे लगल कि अगे राँड़िन, त तोहनी के तो हम मंगिया न जरवे गेलिअउ, त तोहनी काहे ला चूड़ा के गवाही दही बन गेलहीं ? तोर बाबु के हम मइया जी के खोइँछा भर दिअउ । अगे बेटचिवउनी, त तोहनी के हमर बाबु का करे गेलउ से तिलमिलायल हँऽ गे ?; कोई कहइत हे कि हाँ बहिन, त कौन बेलज बने जइतइ काहे ला । हम तो कहऽ हियो कि एतिये घड़ी अगर कोई जाके दाँत के सहाड़ा से एतने कहइ कि शिवा के ई करे के न चाहऽ हलइ तो तुरंते देखऽ कि एही जवाब देतो कि अगे बेटचिवौनिन, त ऊ अपन के न बेचलकइ गे बेटखौकिन, कि तोहनी के बेच देलकउ गे मंगजरौनिन। तोहनी के काहे ला भार पड़इत हउ गे ?)    (ताबीझों॰39.4; 41.2-3)
241    बेटा-भतार (~ खाना) (अन्हारहीं से रिपोर्ट मिल रहल हे कि शिवा लाठी भांजइत हलइ पीके । आउ ओकर मइयो समझावे वाला पर सब के बेटा-भतार खइलकइ । त ई कौन सहतउ भाई ? गाँव में तूहीं एगो रहबहीं ?)    (ताबीझों॰44.25)
242    बेलज (= बेहया, निर्लज्ज) (बनावे अब माय-बेटा में या औरत-मरद में या सास-पुतोह में । कोई कहइत हे कि हाँ बहिन, त कौन बेलज बने जइतइ काहे ला । हम तो कहऽ हियो कि एतिये घड़ी अगर कोई जाके दाँत के सहाड़ा से एतने कहइ कि शिवा के ई करे के न चाहऽ हलइ तो तुरंते देखऽ कि एही जवाब देतो कि अगे बेटचिवौनिन, त ऊ अपन के न बेचलकइ गे बेटखौकिन, कि तोहनी के बेच देलकउ गे मंगजरौनिन। तोहनी के काहे ला भार पड़इत हउ गे ?)    (ताबीझों॰40.26)
243    बोड़ा (= बोरा) (जन वितरण - एकरा में माल ऊपर से उठल आउ ऊपरे से ऊपरे गायब । सब गरीब अप्पन मुँह पजौले के पजौले रह गेलन । खाद्य वस्तु के हजारो-हजार बोड़ा गोदामे में से आकाश में उड़ा देली ।)    (ताबीझों॰77.23)
244    बोलना-बतियाना (खैर, ई तो ओही बता सकऽ हथ, लेकिन अइसन दूनो में कभी-कभी हो जा हल कि बोलइत-बतिआइत, झूठ काहे कही, हम उनकर ठुड्डी भी पकड़ ले हली, कभी चोटियो पकड़ के खींच दे हली ।)    (ताबीझों॰47.25)
245    भंटा (= गोल बैंगन) (ओही तुरते आग जुटल, दाल तो बारे के पहिलहीं से राहड़ के बनल हल त ऊ तो न बनावे पड़ल, लेकिन ओही समजीरवा के भात, आउ कद्दु, आउ भंटा के सब्जी बनल ।)    (ताबीझों॰31.7)
246    भगनी (= भगिनी; बहन की बेटी) (उ सब सोच के ऊ सबसे पहिले तय कइलन कि भगिनदमाद हीं चलऽ ही । पवित्री आउ तरकारी दुगो तो तकदीरो फुटे पर मिलत । दूसर चीज कि कपड़ा-लत्ता भी ठीके-ठाक हे । आउ भगनइया के तिलके के गेले ही ।)    (ताबीझों॰29.3)
247    भगिनदमाद (उ सब सोच के ऊ सबसे पहिले तय कइलन कि भगिनदमाद हीं चलऽ ही । पवित्री आउ तरकारी दुगो तो तकदीरो फुटे पर मिलत । दूसर चीज कि कपड़ा-लत्ता भी ठीके-ठाक हे । आउ भगनइया के तिलके के गेले ही ।; भगिनदमाद बारे घरे से निकलइते हलन आउ उनकर माय भी ओने से आवइत हलन थाली-लोटा लेले बाहरे, से उनकर नजर टक से पड़ गेल समधी साहेब पर । लइकवो कहलथिन कि मइया, मामुँ हथिन इँआ वाला गे, भाग न तो आ गेलथुन त देख लेथुन गे ।; ओही लड़का या कहऽ उनकर भगिनदमाद हाथ जोड़ के अभिवादन करके दलान में बिछावन लगा देलन ।)    (ताबीझों॰29.1; 30.16; 31.1)
248    भगिनी (= भगनी; बहन की बेटी) (हियाँ तो चलम त समधिनियों बेचारी जान दे देत । शदिये में कातो भगिनइया से कहइतो हलन कि तोर मामु बड़ी बढ़ियाँ आदमी हथुन ।)    (ताबीझों॰29.5)
249    भर (~ दिन) (सब आदमी - का औरत, का मरद, भोनुए भाई के चर्चा करइत घर लौट रहलन हे । आझ बाकि भर दिन एकरे चर्चा चलावइत हथ सब ।)    (ताबीझों॰67.20)
250    भरवाभूट (~ जवान) (माय-बाप के लगाम एकरा पर शुरुए से ढीला रहल, लइका बिगड़ गेल आउ लगाम कुछ न पड़ल । त अब तो भरवाभूट जवान हो गेल हे, त केकरा बदत ?)    (ताबीझों॰36.6)
251    भल (भले पानी दूसर दिया भेज देती हल, काहे तो न रहल गेल से भल हमहीं चलियो अइली ।)    (ताबीझों॰51.2)
252    भले (= बेहतर होता कि) (भले पानी दूसर दिया भेज देती हल, काहे तो न रहल गेल से भल हमहीं चलियो अइली ।)    (ताबीझों॰51.1)
253    भागा-भागी (अब ओतना तो नहिए करे में बनत काहे कि शादी-शुदा होके अपन घर चल गेलन हे । तब तो अब भागा-भागी मान लेली कि न होत, धरा-पकड़ी न होत, लेकिन गप-शप कइसे न होत ?)    (ताबीझों॰48.26)
254    भादो (भरला ~ आउ सुखला जेठ) (तोरा ई न बुझाउ कि देखऽ हीं कि भरला भादो आउ सुखला जेठ, का रात का दिन, का दुपहरिया का अधरतिया, नऽ साँप चिन्हउ, नऽ बिच्छा, नऽ बिरनी, नऽ कनगोजर के हहास कुछ मानउ । आउ सतमा असमान पर हिलउ तइयो जान न छोड़उ आउ उतारिए लावऽ हउ । एगो उपरे चढ़ल रहऽ हउ तऽ चार गो नीचे बइठ के उपरहीं मुँहें ताकइत आउ आँख फोरले रहऽ हउ ।)    (ताबीझों॰95.2)
255    भिट्ठा (= बीरान) (ओहु पगली के तो जाके मरले मुँह तो देखलक, जिन्दा मुँह देखे के तो प्रालवद न भेलइ आउ ई अपन जान गेलइ से मुस्तिये में । त होनिहारी के बाबु कउन टाल सकऽ हे ? अब रोकर के जानो दे देवे से तो कोई न लौटतउ । समूचा घर तो भिट्ठा हो गेलउ ।)    (ताबीझों॰15.11)
256    भुजफट्टा (एतना सुनइते मइया घरवा में से निकललइ से चरखा नियन ओटे लगलइ । हमनियों सबके भोग सुनावे लगलइ कि छौड़ा-पूतन के कलेजा काहे ला फटऽ हइ । भुजफट्टन के अपन के न गरिऔलकइ कि निरवंशन के गारी देवे गेलइ ।)    (ताबीझों॰38.21)
257    भोंकार (~ पारके रोना) (सब पूछे लगलन कि काहे बाबु, काहे एतना एके तुरी भोंकार पार के रोबऽ, का दुख-तकलीफ होलो बाबु ? कुछ तो बतावऽ ।)    (ताबीझों॰57.17)
258    भोग (चार गो ~ सुनाना) (तोरा आदमी से अभी भेंटे न होलउ हे । कल्ह अन्हारे से बेटा के बउड़ौले हें, औरत-मरद दूनों । आउ कोई समझावे भी जा हइ त ओकरा बिना कसूर के चार गो भोग सुनावऽ हें ।)    (ताबीझों॰44.2)
259    भोरहीं (ऊ रूखा-सूखा जे मिलल से खाके फिन रात के हुअईं ठहर गेलन । त रात के रोटी कड़ही उनका मिलल, सीधे आठ बजे के जगह पर बारह बजे । ऊ बेचारे भोरहीं अपन झोली-पोटरी लेके सोझ हो होलन, कोई अरियाते भी न गेलन ।)    (ताबीझों॰33.8)
260    मंगजरौनी (कोई कहइत हे कि हाँ बहिन, त कौन बेलज बने जइतइ काहे ला । हम तो कहऽ हियो कि एतिये घड़ी अगर कोई जाके दाँत के सहाड़ा से एतने कहइ कि शिवा के ई करे के न चाहऽ हलइ तो तुरंते देखऽ कि एही जवाब देतो कि अगे बेटचिवौनिन, त ऊ अपन के न बेचलकइ गे बेटखौकिन, कि तोहनी के बेच देलकउ गे मंगजरौनिन। तोहनी के काहे ला भार पड़इत हउ गे ?)    (ताबीझों॰41.4)
261    मंगासा (= कपार) (~ फारना = कपार फोड़ना) (एतने में शिवा लाठी लेके भाँजे लगल कि आझ एजउना से भागिए जो न तो एक-एक लाठी में सब के गरम से नरम कर देबउ । न तो जेकरा भेजे के हउ तउन पहलमनमा के भेज कि आझ सीधे मंगासा फार दे हिअइ ।)    (ताबीझों॰39.13)
262    मंझली (अपन संझली साली हीं जाय के विचार हो गेलइन । असल इनकर ससुरार में औरत चार बहिन हलथिन । बड़की रीता, मंझली जिनका से इनका शादी भेलइन हल से गीता, संझली जिनका से भेंट करे ला आहल हथ से संगीता आउ छोटकी अनीता हथ ।)    (ताबीझों॰46.8)
263    मंझिला (= दे॰ मंझला) (अप्पन-अप्पन रुचि के अनुसार पी के मार ढेंकर रहलन हे । फिन खाना में महनभोग, मीठा पोलाव, नमकीन पोलाव, अण्डा, अभीष, तरह-तरह के एका पर एक रंग आउ स्वाद आउ आकार के मिष्ठान, फिन बड़का, मंझिला, संझिला आउ छोटका के गुड़िया, आउ चाप आउ चिकेन, शोरबा ।)    (ताबीझों॰70.6)
264    मजमा (भेज अपन-अपन पहलमनमन के, हियाँ चनचन करे अइले हें हमर दुरवा पर ? जो न तो हमर ब्रम्ह बिगड़उ तो सीधे मटर करके जेल चल जबउ । / मजमा हटे पर फिन पीये ला बइठ गेल हे ।)    (ताबीझों॰39.16)
265    मटर (= मडर; मर्डर, हत्या) (भेज अपन-अपन पहलमनमन के, हियाँ चनचन करे अइले हें हमर दुरवा पर ? जो न तो हमर ब्रम्ह बिगड़उ तो सीधे मटर करके जेल चल जबउ ।)    (ताबीझों॰39.15)
266    मधे (एकर बाद सोचलन कि अपन हित मधे तो अब बहिन हीं आउ मामु हीं बचल हे, त तनी ओन्हूँ दनियाइए देवे के चही । त तीन दिन बहिन हीं रहलन ।)    (ताबीझों॰31.23)
267    मनबढ़ु (का भेल कि शिवा हमरा हीं के एक उन्नीस वर्षीय युवक हे । ऊ तनी, झूठ काहे ला कहियो, मनबढ़ु लइका हे । अपन माय-बाप के मनबढ़ु कइल हे, कोई दूसर के न ।)    (ताबीझों॰35.7, 8)
268    ममससुरार (= पत्नी या पति के मामा का घर) (अब तो विचार होलइन कि तनी गोली गइया के बहिनधी हीं भी होइए ले ही । ई विचार से एक कोस पर इनकर ममेरा भाई के लड़का के ममससुरार हलइ से हुआँ भी टप गेलन ।)    (ताबीझों॰32.2)
269    ममानी (= मामी) (ऊ कहलन कि बाबू, हमरा रहइते तो दादी, हम्मर माय विधवा हो गेल, बहिन विधवा हो गेल, मौसी विधवा हो गेल, चचानी विधवा हो गेल, आउ ममानी विधवा हो गेल । सब विधवा हो गेलन, तऽ औरत कइसे न हो सकऽ हे ?)    (ताबीझों॰61.16)
270    मयारू (= दयालु) (एतिए घड़ी दूनों के हँफइत आउ बेशकलाल देख के देखताहर के दया आ गेल हे, से ओखनिए में से दू गो मयारू आउ दिलेर औरत आके दूनों के एकऽ गो धर के खींच के छोड़ा देलन हे, ई कहइते कि - "अरे जायँ नऽ, मार कौन चिकन हें ? दूनों तो बाबाजी के सम्हारले हें ।")    (ताबीझों॰96.1)
271    मरदा-मरदी (~ बात = मरद का मरद के साथ बात) (ई हमर गरीबी पर अपने के मजाक हो जात, आउ हमर दिल पर बड़ी चोट लगत । कही, पक्का रह गेल न ? कारण मरदा-मरदी बात होइत हे । सेइ से अपने के खरा लेइत ही । कल के पक्का रह गेल न ? ई कह के ऊ राजा जी के पूरा डहिया लेलन ।)    (ताबीझों॰18.19)
272    माड़ी (सब तो आखिर भारत माता के ही संतान हथ, जैसे कोई गोर त कोई करिया, कोई लम्बा त कोई नाटा । दिनेश कहलन कि त हमनी के दिमाग पर माड़ी नियन छौले तो हे खाली धर्म के ढोंगे, खाली अन्ध विश्वास ।)    (ताबीझों॰9.14)
273    माना (= मना) (घर के लोग माना करइत हथ लेकिन ऊ कभी उठऽ हे, त कभी गिरऽ हे । उ जेकरा गरिआवइत हे सेकरा हीं दूगो नया हित आयल हलथिन । नाम धरके गरियावे में उनका पूरा दुख लगल ।; पति नौकरी जाइत हे, औरत ओकरा माना करइत हे कि नौकरी मत जा, घरहीं रहऽ ।)    (ताबीझों॰42.23; 63.19)
274    मामु (= मामा) (एकर बाद सोचलन कि अपन हित मधे तो अब बहिन हीं आउ मामु हीं बचल हे, त तनी ओन्हूँ दनियाइए देवे के चही । त तीन दिन बहिन हीं रहलन । एकर बाद मामु हीं गेलन । त मामु-ममानी तो चलिए बसलथिन हल से हुआँ खाली ममेरा भाई आउ भतीजा बचऽ हलथिन । त हुआँ का जनी का समझ के दुइए दिन रहलन ।)    (ताबीझों॰31.23, 25)
275    मामु-ममानी (एकर बाद मामु हीं गेलन । त मामु-ममानी तो चलिए बसलथिन हल से हुआँ खाली ममेरा भाई आउ भतीजा बचऽ हलथिन । त हुआँ का जनी का समझ के दुइए दिन रहलन ।)    (ताबीझों॰31.25)
276    मार (अव्य॰) (गरमी के दिन हल से प्रतियोगी के स्वागत के रूप में खूब भर पेट पहिलहीं मार गिलासे-गिलास संतरा के, अंगूर के, आउ बिदाना के शरबत पिला देल गेल । अप्पन-अप्पन रुचि के अनुसार पी के मार ढेंकर रहलन हे ।; सब सफल प्रतियोगी भारत में वापस आवइते मार बाजा बजा के मजे के साथ अपन-अपन आनन्द आउ खुशी के धूम मचा देलन ।; )    (ताबीझों॰70.2, 3; 86.19; 93.6)
277    मुँहलगुआ (एकरा पर एक-दूगो दरबारी, जे राजा के निकट आउ मुँहलगुआ हलन से तनी हँस के देवन मिशिर पर चुटकी भी छोड़लन कि बड़ी दिन से मिशिर जी छटकलो चलइत हलन । त पार्टी रहे तनी बढ़ियाँ मिशिर जी ।)    (ताबीझों॰19.1)
278    मुतवाना (जे तोरा मुँह में लगावऽ हउ, जे तोरा चुमइत रहऽ हउ ओकरा कभी नली में पार दे हहीं, तऽ कभी बीच सड़क पर आउ औंधे मुँहें गिरा के बीच सड़क पर सब के सामने कुत्ता से मुँह पर मुतवावऽ हीं आउ तमाशा लगवा के देखऽ हीं आउ देखवावऽ हीं गे ।)    (ताबीझों॰93.10)
279    मोसल्लम (मुर्गा ~ चलना) (एकरे खुशी में रमेश आझ अपन सब साथी के दावत देइत हथ । मुर्गा मोसल्लम चलइत हे ।)    (ताबीझों॰5.7)
280    मौका-गरमौका (ऊ जादे लाव-लश्कर न लेलन । खाली दुठो धोती, दु कुर्ता आउ एगो मौका-गरमौका के लिए गमछा, एक बंडी गंजी, जे ऊ खास करके दर्जी किहाँ विशेष ढंग से, मनपसन्द सियावऽ हलन, आउ एक जोड़ी चमरखानी जूता, रेड़ी के तेल से नरम आउ करिया कयले रहऽ हलन से, एही एतना सामान आउ खाली एगो ऊपरे तनी फटल छाता धूप-पानी के लिए ले लेलन हल ।)    (ताबीझों॰27.15)
281    रत-रत (लाल ~) (सिनेमा में जे नायक-नायिका आधा-आधा घंटा मनोरंजन के बहाना लेके हजारो के बीच में अपन देह कभी दूनों आपसुखे रगड़ऽ हथ, कभी दूनों मुँह से मुँह रगड़ऽ हथ, तऽ कभी दूनों साथे सुत के देखावऽ हथ, तऽ कभी दूनों पूरा तर-ऊपर होके बड़ी दूर तक घसीटऽ आउ घसिटा हथ, तऽ कभी दूनों सीना में सटा के एक-दूसरा के चूम-चूम के प्यार से होल लाल गाल के आउ लाल रत-रत करऽ हथ, कोई कामदेव के खुश करऽ हथ, तऽ कोई रति देवी के ।)    (ताबीझों॰80.24)
282    रस-पानी (काहे अइसन करऽ हें रे, एतना परिवार के सब आदमी खेती-बारी में भी चुटी-पिपरी नियन एतना लटकल रहऽ हे, बाकि ऊ छौंड़ा के कमीं तनी देहो धन हइ ? कि हाँ तनी लग के सहारा तो दिअइ । अरे, ओकरा कोई हर-फार, लाठा या कूँड़ी-कुदार करे कहऽ हलइ ? लेकिन लइका के ई शोखो का, कि तनी बैलो न घुरावे, तनी रसो-पानी खेत-बारी पर न पहुँचावे ।)    (ताबीझों॰37.2)
283    रहगीर (= राहगीर) (उजउना दस-बीस रहगीर भी जमा हो गेलन । काहे कि एतना स्याना लइका जार-बेजार अइसन बुरी तरह रोवे लगलन कि देखवइया के घरवइया लगइत हे ।)    (ताबीझों॰13.26)
284    राँड़ी (= राँड़, विधवा; किसी औरत के लिए गाली के रूप में प्रयुक्त) (कुछ औरत भी हल्ला सुनके हूँआ आ गेलन । एक दुगो तनी कहलकथिन, सेउ दाँत के सहाड़ा से, कि अईं हे, त तू तो गारी बेचारन के दे देलहु, तोर बड़का बेटवा के न गरिऔलकइ हल, से ओखनी बेचारन समझावइत हलथिन त तू एखनिये पर उलटे बरस पड़लहु । एतने में ऊ पूरा तुफान हो गेल - कहे लगल कि अगे राँड़िन, त तोहनी के तो हम मंगिया न जरवे गेलिअउ, त तोहनी काहे ला चूड़ा के गवाही दही बन गेलहीं ?)    (ताबीझों॰39.2)
285    राहड़ (= अरहर) (ओही तुरते आग जुटल, दाल तो बारे के पहिलहीं से राहड़ के बनल हल त ऊ तो न बनावे पड़ल, लेकिन ओही समजीरवा के भात, आउ कद्दु, आउ भंटा के सब्जी बनल ।)    (ताबीझों॰31.5)
286    रेड़ी (= रेंड़ी, एरण्ड) (ऊ जादे लाव-लश्कर न लेलन । खाली दुठो धोती, दु कुर्ता आउ एगो मौका-गरमौका के लिए गमछा, एक बंडी गंजी, जे ऊ खास करके दर्जी किहाँ विशेष ढंग से, मनपसन्द सियावऽ हलन, आउ एक जोड़ी चमरखानी जूता, रेड़ी के तेल से नरम आउ करिया कयले रहऽ हलन से, एही एतना सामान आउ खाली एगो ऊपरे तनी फटल छाता धूप-पानी के लिए ले लेलन हल ।)    (ताबीझों॰27.17)
287    रेसा-रेसी (सब वापस जाके नए सिरे से अपन-अपन मोहीम में फिन अगला साल के पुरस्कार के प्रेरणा से प्रेरित होके चौगुना उत्साह से रेसा-रेसी लग गेलन हे ।; होल हे का कि राजनीति में कीर्तिमान से विभूषित करीब सैकड़ों के संख्या में घुसखोरी बाई से फँस के अपन मुँह काला करे में बनाइतरी रेसा-रेसी लिप्त रहे लगलन ।)    (ताबीझों॰86.16, 24)
288    रोनइ (उधर गोपाल के एकदम विश्वास न होइत हे । ऊ कहलन कि न चचा, तु हमर रोनइ बन्द करे ला झूठ बोलइत हऽ । हम काहे ला घर अब जयबो चचा ?; उनकर रोनइ बन्द करे में सुधीर चा के बड़ी मेहनत करे पड़ल । ऊ अन्त में कठिन कसम खइलन कि ऊ हुचकी बन्द करे ला झूठ बोलइत हलन । तब जाके केतना देर में उनकर रोनइ बन्द होल ।)    (ताबीझों॰15.27; 16.2, 5)
289    रोनई (= रोनइ) (मार छाती मुक्का मार के, दहाड़ मार के रोवइत हे ! त एगो एकर दुख आउ रोनई देखके आउ खाली रोवइत जाइत देखके, रोवे के कारण न जाने से सब देखताहर के भीड़ अजब किस्म के पेशो-पेश में पड़ल हथ !; सब उत्सुक आउ ओतने दुखी भी हथ ! दुखी तो ओकर बिलख आउ रोनई देखके हथ आउ उत्सुक ई ला कि कारण जान जइतन हल त ढाढ़स बँधावे में ढेर सहुलियत होइत हल !)    (ताबीझों॰57.21; 58.8)
290    लगले (= ठीक बाद, सटा हुआ, तुरंत) (से ऊ कहलन कि अईं भइया त अयोध्या के समस्या कहाँ छिपल हे ? सेकरा पर तुरंत रमेश कहलन कि एतनो न जानइत हऽ त सुनऽ । ऊ छिपल हे धर्म के ढोंग में, कुर्सी आउ सत्ता के भूख में आउ कहाँ ? त रफीक लगले पूछऽ हथ कि त एकर समाधान कहाँ छिपल हे ?)    (ताबीझों॰7.28)
291    लगाव-बझाव (ई घर-बाहर के देव-मून के नाम लेके कोई एक दिशा में चल देलन । रास्ता में सोचे लगलन कि कउन हित हीं पहिले चले के चाही । सबसे पहिले एकदम नयका हीं चली, कि पुरनका हीं चली, कि एकदम गोली गइया के बहिन जी हीं (दूर के लगाव-बझाव के हित) से शुरू करी ।)    (ताबीझों॰28.21)
292    लड़तम-झगड़तम (= लड़ते-झगड़ते) (त एकाध गो मडर करके लोग गिरइते पड़इत भागऽ हल । भाग जा हल त सालो भर या दू साल या कोई दसो साल ला घर छोड़ दे हल भगवान भरोसे । फिन घर ढहाय के खबर सुनके हाजिर होवऽ हल । त बड़ी तकदीर सोझ रहऽ हल त बीसबरसा लड़तम-झगड़तम जेल काटे पड़ऽ हल ।)    (ताबीझों॰58.23)
293    लमना (भोरहीं एक लमना गणेशवा पसिया हीं से गोपला दिया मंगौलकइ, अपन दलनिया पर कोठरिया में बइठ के घुघनी एक कटोरा मइया से मंगौलकइ ।)    (ताबीझों॰38.8)
294    लहराना (= जलाना) (ताड़ी हमेशा चखने के चखइत रहऽ हे, तऽ बीड़ी हमेशा लहरावे ला सलाइए लेके घूमइत रहऽ हे । दूनों के कंसइत रहे के का कोई दूसर कारण हे, कि एही शाने-शौकत आउ घमण्ड हे ?)    (ताबीझों॰91.7)
295    लाजे (~ या लिहाजे) (कम से कम समधिन अपन चालाकी से चाहे जइसे, भर नजर समधी के देखिये ले हे । चाहे जे हो जाय, अपन काम ऊ साधिये ले हे । खाली दुनियाँ के देखावे ला बेचारी नाम के नुका हे । हाँ, लाजे या लिहाजे समधी अलबत्ता ओतना देखे के चेष्टा न करे ।)    (ताबीझों॰30.5)
296    लिहाजे (लाजे या ~; लाजे-लिहाजे) (कम से कम समधिन अपन चालाकी से चाहे जइसे, भर नजर समधी के देखिये ले हे । चाहे जे हो जाय, अपन काम ऊ साधिये ले हे । खाली दुनियाँ के देखावे ला बेचारी नाम के नुका हे । हाँ, लाजे या लिहाजे समधी अलबत्ता ओतना देखे के चेष्टा न करे ।)    (ताबीझों॰30.5)
297    लुकबुकाना (मन ~) (खैर, ई दावत में भीतर से जाय के तो इनकर सब रानी के भी मन लुकबुकाइत हल, लेकिन हुआँ ओखनी के रहे के उत्तम प्रबन्ध साइत न हो सकऽ हल, सेइ से ओखनी अपन मुँह में आयल पानी पी के कल्पना कर लेलन कि देवन मिशिर जी छपनो प्रकार के भोजन करा के अपने हाथ से पानी पिलावइत हथ, सेइ पीयइत ही ।)    (ताबीझों॰21.14)
298    लुसफुसाना (ई सब दोस्त देश के नाम पर दीवाना के टोली बना के घूमे लगलन । लेखक के मन भी लुसफुसायल तो ऊ भी देश-दीवाना के टोली में घुस के एकता के मदिरा पी लेलन आउ छक के पीलन तो पूरा टोली निछुक्का आदमी के टोली बन गेल - धरम, जात आउ फिरकापरस्ती से दूर हल ।)    (ताबीझों॰vi.4)
299    लेंढ़ा (गाँव के तो जे देखऽ हथ से सब दाँते अँगुली काटऽ हथ, कि बाप रे, ओइसन सुखी आउ सम्पन्न आउ बढ़िया पढ़ल-लिखल परिवार में एही एगो सार कैसे लेंढ़ा आउ बेकहल निकल गेलइ ?)    (ताबीझों॰36.13)
300    लोक-लिहाज (अभिनेता आउ नेता के अर्थ एही नऽ होत कि अभिनय में आगे रास्ता बतावे से अभिनेता आउ अपन समाज में व्यवहार, लोक-लिहाज, दुनियादारी में सामाजिक, धार्मिक मामला में, राजनीति में जे सब के आगे-आगे चलके रास्ता बतावे से नेता ।)    (ताबीझों॰82.12)
301    लोरे-झोरे (दू-चार गो औरत एकर हाथो धर के पुछइत हथ, आउ लोरे-झोरे पूरा अपने भी होयल हथ, कि का होलो बाबु, कुछ हमनियों के बतावऽ बेटा, अरे हमनी तोर दुश्मन न न हियो बेटा ।)    (ताबीझों॰59.11)
302    विधुआयल (सुरेश भी रमेश के साथ रहइत-रहइत प्रौढ़ मस्तिष्क के हो गेलन हे से ओहु अब साथ ही खा हथ । ... लेकिन रफीक बेचारे अभी ई सब में विधुआयल हथ । रफीक ला तो कोई बाते न हल, लेकिन ऊ तनी हिचकऽ हथ कि कोई लोग के अच्छा लगे, न लगे, से ऊ तनी एही सोच के हिचकऽ हथ ।)    (ताबीझों॰5.14)
303    वेशवा (= वेश्या) (अबरी बीड़ी उछल के वार कइलक आउ ओकरे दाव से ताड़ी के नीचे गिरौलक - "अईं गे वेशवा, तऽ ऊ बेचारी काहे ला तोर तोंदइलवा से घिघिया हलइ, कि 'अइसे तो छोड़ूँ नऽ सजनमा, पहिले तू ताड़ी पीना छोड़ दे ।' ")    (ताबीझों॰94.15)
304    वेस्कलाल (= ?) (एखनियों बेचारिन रोते-रोते बनाइतरी वेस्कलाल होइत हथ । कोई-कोई औरत के तो पोछइत ढेर देर हो गेल हे ।)    (ताबीझों॰59.18)
305    वौं-वौं (ऊ बेचारी तो ओतिये घड़ी से छाती-मुक्का मार के, पछाड़ मार के रोवे लगल कि ई का होल, ई का होल । तो तुरन्ते पूरे गाँव भर में वौं-वौं हो गेल । अब अन्हारे से शिवा के माय के तितिमा देखल हइए हलन से चुप रह गेलन कि ठीक होलइ । अरे ऊ तो डइनी नियन बाहर न मिलइत त एही करवे करइत ।)    (ताबीझों॰40.8)
306    संझली (अपन संझली साली हीं जाय के विचार हो गेलइन । असल इनकर ससुरार में औरत चार बहिन हलथिन । बड़की रीता, मंझली जिनका से इनका शादी भेलइन हल से गीता, संझली जिनका से भेंट करे ला आहल हथ से संगीता आउ छोटकी अनीता हथ ।)    (ताबीझों॰46.6, 9)
307    संझिला (दे॰ संझला) (अप्पन-अप्पन रुचि के अनुसार पी के मार ढेंकर रहलन हे । फिन खाना में महनभोग, मीठा पोलाव, नमकीन पोलाव, अण्डा, अभीष, तरह-तरह के एका पर एक रंग आउ स्वाद आउ आकार के मिष्ठान, फिन बड़का, मंझिला, संझिला आउ छोटका के गुड़िया, आउ चाप आउ चिकेन, शोरबा ।)    (ताबीझों॰70.6)
308    सटाइन (शिवा के भाई आउ चचा आउ बाबुजी खोजे ला निकललन हे, सब उठा के लौलन हे । लेकिन घर पहुँचइते ऊ गाँव के कोई के नाम धर के गारी देवे लगल । ऊ कहे लगल कि हमरा में सटमें त सटाइन हो जतउ रे, तोरा हम कुछ न समझइत हिअउ रे सार । हाँ, हमहीं टेकारी के राजा गोपाल शरण हिअउ रे । नोट से सबके जरा देबउ रे ।)    (ताबीझों॰42.21)
309    सठियाना (रमेश फिन खाना छोड़ के कहे लगलन कि ऊ का रोकतन, हो ? ई तो हमनी जानऽ ही, बूढ़ा के दिमाग सठिया जाहे । हमनी अपना नियन खोजवहु त ओखनी से उम्मीद मत रखऽ ।)    (ताबीझों॰9.23)
310    सतमा (= सातवाँ) (मिजाज ओहरे तो केकर ? दुनों के मिजाज तो हमेशे सतमा आसमान पर चढ़ल रहऽ हे तऽ उतरे तो केकर ? असल हर हालत में तो दूनों टट-उपट हथ, तऽ कउन केकर लोहा माने ला आउ सुने ला तइयार हे ?)    (ताबीझों॰91.20)
311    सनासन (मन ~ करना) (आझ ताड़ी आउ बीड़ी दूनों खूब नीशा में धुत होके, अपन मौसेरी बहीने में पूरा झोंटा-झोंटी कर लेलन हे । ... एखनी दूनों के मन तो चोबिस घंटा सनासन करइत रहऽ हे । दूनों तो हमेशे नीशे में तूअइत रहऽ हे । केकरा कम आउ केकरा बेसी समझल जाय ? दूनों तो टटे-उपट हथ ।)    (ताबीझों॰90.11)
312    समंगर (= समंगगर, समांग वाला; परिवार में कइएक सदस्य वाला; ताकतवर) (घर के लोग माना करइत हथ लेकिन ऊ कभी उठऽ हे, त कभी गिरऽ हे । उ जेकरा गरिआवइत हे सेकरा हीं दूगो नया हित आयल हलथिन । नाम धरके गरियावे में उनका पूरा दुख लगल । से ऊ गरम दल के आउ संमगर हइए हलन, तुरंत आठ आदमी लाठी लेले अइलन आउ दस गारी देलन शिवा के बाबुजी के ।)    (ताबीझों॰42.26)
313    समजीरा (ओही तुरते आग जुटल, दाल तो बारे के पहिलहीं से राहड़ के बनल हल त ऊ तो न बनावे पड़ल, लेकिन ओही समजीरवा के भात, आउ कद्दु, आउ भंटा के सब्जी बनल ।)    (ताबीझों॰31.6)
314    समधिन (हियाँ तो चलम त समधिनियों बेचारी जान दे देत । शदिये में कातो भगिनइया से कहइतो हलन कि तोर मामु बड़ी बढ़ियाँ आदमी हथुन ।)    (ताबीझों॰29.4)
315    समांग (से भाई में बड़ा हलन, इनकर बेइज्जती देखके न रहल गेल से उनकर समांग भी लाठी निकाल देलन । शिवा पर सब डीठ लगौले हइए हलन, ओकरा तो कोई लाठी से, तो कोई गड़ाँसा से पूरा घायल कर देलन ।)    (ताबीझों॰43.2)
316    सम्हरना (ताड़ी फिर पैंतरा मारलक - "देख, कोई नऽ काम देतउ । तनी जोंकवा नियन हमरा सामने अइँठे-उइँठे मत । नऽ हम कहऽ हिलउ कि नऽ । तनी मुँह सम्हार के बोल, न त हम्मर ऊ अइलउ तो सीधे  चढ़ जतउ, सुन ले । तनी सम्हर जो, नऽ त सब के गरदा करके छोड़ देतउ ।")    (ताबीझों॰92.11)
317    सम्हारना (ताड़ी फिर पैंतरा मारलक - "देख, कोई नऽ काम देतउ । तनी जोंकवा नियन हमरा सामने अइँठे-उइँठे मत । नऽ हम कहऽ हलिअउ कि नऽ । तनी मुँह सम्हार के बोल, न त हम्मर ऊ अइलउ तो सीधे  चढ़ जतउ, सुन ले । तनी सम्हर जो, नऽ त सब के गरदा करके छोड़ देतउ ।")    (ताबीझों॰92.10)
318    सलाई (= दियासलाई, माचिस) (ताड़ी हमेशा चखने के चखइत रहऽ हे, तऽ बीड़ी हमेशा लहरावे ला सलाइए लेके घूमइत रहऽ हे । दूनों के कंसइत रहे के का कोई दूसर कारण हे, कि एही शाने-शौकत आउ घमण्ड हे ?; दूनों के भल साथ रहे वाली एकऽ गो सहेली भी तो मिलल हे, बीड़ी के सहेली सलाई तऽ ताड़ी के सहेली घुघनी ।)    (ताबीझों॰91.7, 18)
319    ससुरी (अरे एही सब हमनी कइसे जानती हल ? ई तो ससुरी सी.बी.आई., जे बाई जी के दाई हल, से नऽ सब भेद खोल के एके तुरी चौका देलक ।)    (ताबीझों॰86.28)
320    सहाड़ा (कुछ औरत भी हल्ला सुनके हूँआ आ गेलन । एक दुगो तनी कहलकथिन, सेउ दाँत के सहाड़ा से, कि अईं हे, त तू तो गारी बेचारन के दे देलहु, तोर बड़का बेटवा के न गरिऔलकइ हल, से ओखनी बेचारन समझावइत हलथिन त तू एखनिये पर उलटे बरस पड़लहु ।; कोई कहइत हे कि हाँ बहिन, त कौन बेलज बने जइतइ काहे ला । हम तो कहऽ हियो कि एतिये घड़ी अगर कोई जाके दाँत के सहाड़ा से एतने कहइ कि शिवा के ई करे के न चाहऽ हलइ तो तुरंते देखऽ कि एही जवाब देतो कि अगे बेटचिवौनिन, त ऊ अपन के न बेचलकइ गे बेटखौकिन, कि तोहनी के बेच देलकउ गे मंगजरौनिन। तोहनी के काहे ला भार पड़इत हउ गे ?; बड़की रीता, मंझली जिनका से इनका शादी भेलइन हल से गीता, संझली जिनका से भेंट करे ला आहल हथ से संगीता आउ छोटकी अनीता हथ । त बड़की किहाँ सोचलन कि का जाउँ, अरे रूप-रंग में तो सुन्दर हइए हथ, लेकिन उनका हीं जाय से लाभ का होत ? अरे तनी गपो-सपो करम त दाँत के सहड़े से न ।)    (ताबीझों॰38.24; 41.1; 46.12)
321    सहियारना (ई दरवाजा पर पहुँचइत झुकके अप्पन दाहिना हाथ उठाके तीन बार दरबारनुमा सलाम के संकेत देके फिन निर्धारित कुर्सी पर इशारा पाके बइठ के झूल सहियारलन ।)    (ताबीझों॰74.6)
322    साढ़ू (अब ऊ सोचलन कि तनी साढ़ू के घर चले के चाही काहे कि इनका साली बड़ी मानऽ हलथिन । से तीन दिन हिआँ भी रह के अपन देह बनौलन ।)    (ताबीझों॰31.19)
323    साथहीं (= साथ में ही) (चचा हथिन तो दू गो । लेकिन ओखनी भी ओकर माय-बाप के चाल देख के कान बहिर आउ पीठ गहीड़ करके सब कुछ देखइत रह जा हथ । हथिन तो सब साथहीं, बाकि कौन बिरनी के खोंता उसकावे जाय ?)    (ताबीझों॰35.19)
324    सिनका (जिनका ... ~) (ओखनी के दिमाग में कूड़ा-कर्कट जे भरल हवऽ सिनका एके तुरी हमनी आँधी बन के सब के दिमाग के बानई तरी ओसा के साफ कर दऽ । एकदम कज्जल करे के जरूरत हवऽ । ई आउ केकरो से न बनतो ।)    (ताबीझों॰9.25)
325    सियान (= सयाना; प्रौढ़) (जब सियान आउ सोहागिन होलन, तब से दूनों एक-दूसरा के फुटलो नजर नऽ देखल चाहथ । असल दूनों तो अपन-अपन प्रेमी के साथ हमेशा जशन मनाइए रहलन हे ।)    (ताबीझों॰90.17)
326    सिहरी (खाली अपन ~ देखना) (दिनेश कहलन, ये भाई, हमरा लगऽ हवऽ कि अगर अंग्रेज फिन आ जाओ, भगवान न करे कभी फिर अइसन होवे, तो एखनियो फिन जमीनदार बनके पक्का दलाल बन जाथुन आउ भारत माता के अपन हाथ से बेड़ी पहना देथुन, ददा । एखनी खाली अपन सिहरी देखऽ हथ । देश आउ राष्ट्र से एखनी के कोई मतलब न हवऽ ।)    (ताबीझों॰10.9)
327    सुखलाही (कुछ गारी के प्रतीकात्मक शब्द-प्रयोग के बानगी देखल जाय - गललाही (कुष्ठ रोग के कारण जेकर शरीर गल रहल हे), सुखलाही (भोजन के अभाव में जे दुबरा गेल हे), तोंदइल (मोटापा से बदसूरत बनल), छतीसवा (जे छत्तीस प्रकार के बहाना बना के अप्पन दोष छिपावऽ हे), पतुरिया (जे छिप के व्यभिचार करऽ हे), नटिनियाँ, कुतिया, दीदा के पानी आदि अनेक शब्द जेकरा में गूढ़ अर्थ के भण्डार छिपल रहऽ हे ।; एतना सुन के ताड़ी से भी नऽ रहल गेल से एहु तुरंत गरमे होके कहलक - "अगे सुखलाही, तऽ तोर गरमी के हम तुरंते ठंढा कर देवउ गे ! तू कउन चीकन हें गे, सुखलाही ?"; अबरी फिन ताड़ी गरम होके कहलक - "अगे सुखलाही कुतिया, तू तो अप्पन प्रेमी के हइए नऽ हें गे । जे तोरा हमेशे मुँह में लगौले रहऽ हउ, चुमइत रहऽ हउ, ओकरो तो तू चिबा जा हें गे ।")    (ताबीझों॰ix.29; 92.5, 6, 29)
328    सोन्हाना (बतावऽ, नौ बजे से अब ग्यारह बजे जाइत हे, आउ हमनी के ई तो आझ बेश सोन्हा देलन । फिन ई बात पर तनी राहत महसूस करऽ हलन कि अच्छा त भुखयला में तानबइ भी खूब ।; सब करइत-धरइत तनी कुबेर तो जरूर हो गेल । तब तो ई हे सरकार कि अपने सब तनी सोन्हा गेली से ठीके होल । तनी तनायत भी बेशी । त सब पेट चापले ही ठहाका लगा देलन ।; दुसर दिन से लोग सोच गेलन कि ई पेटमधवा बुझा हउ । त अब इनका रूखा-सूखा भोजन मिले लगल । बाकि ई डोले के नाम न लेइत हथ । एही में एक दिन सत्तू आउ नीमक सामने परसा गेल । त ओहु अंगेज कइलन । ... इनकर तो सूर रहे कि घरे तो बचइत हे न, त हमरा उबियाय ला का हे ? लाओ भाई, जे देमें सेइ अंगेज कइले जइबउ । लेकिन घर के लोग विचारलन कि एकरा तनी सोन्हाउ, तब कहीं डोलउ तो डोलउ ।)    (ताबीझों॰22.26; 25.5; 32.12)
329    स्याना (= सयाना) (उजउना दस-बीस रहगीर भी जमा हो गेलन । काहे कि एतना स्याना लइका जार-बेजार अइसन बुरी तरह रोवे लगलन कि देखवइया के घरवइया लगइत हे ।)    (ताबीझों॰13.27)
330    हर-फार (काहे अइसन करऽ हें रे, एतना परिवार के सब आदमी खेती-बारी में भी चुटी-पिपरी नियन एतना लटकल रहऽ हे, बाकि ऊ छौंड़ा के कमीं तनी देहो धन हइ ? कि हाँ तनी लग के सहारा तो दिअइ । अरे, ओकरा कोई हर-फार, लाठा या कूँड़ी-कुदार करे कहऽ हलइ ? लेकिन लइका के ई शोखो का, कि तनी बैलो न घुरावे, तनी रसो-पानी खेत-बारी पर न पहुँचावे ।)    (ताबीझों॰36.26)
331    हहास (तोरा ई न बुझाउ कि देखऽ हीं कि भरला भादो आउ सुखला जेठ, का रात का दिन, का दुपहरिया का अधरतिया, नऽ साँप चिन्हउ, नऽ बिच्छा, नऽ बिरनी, नऽ कनगोजर के हहास कुछ मानउ । आउ सतमा असमान पर हिलउ तइयो जान न छोड़उ आउ उतारिए लावऽ हउ । एगो उपरे चढ़ल रहऽ हउ तऽ चार गो नीचे बइठ के उपरहीं मुँहें ताकइत आउ आँख फोरले रहऽ हउ ।)    (ताबीझों॰95.4)
332    हिछलना (ई दाई एकदम झूठ पलमा आउ अछरंग लगा रहल हे । ई सुनिश्चित योजना के तहत दोह हिछल गेल हे ।; हे भगवान, ई हमरा पर खाली दोह हिछल जा रहल हे । तूही तनी दूध के दूध आउ पानी के पानी इन्साफ करिअहु, दोहाई भगवान के, हमरा पर निराधार पलमा लगावल जा रहल हे ।)    (ताबीझों॰87.14, 18)
333    हुअईं (= हुएँ; वहीं) (महामहिम राष्ट्रपति जी के तनी तबीयत काहे तो झनखनाह हो गेल हल से ऊ हुअईं से दुख के साथ अपन असमर्थता जतावइते सब सफल आउ असफल प्रतियोगी के बधाई संदेश भेज देलन ।)    (ताबीझों॰85.1)
334    हुचकी (= हिचकी) (ओतिये घड़ी उनकर गाँव के चचा, सुधीर चा मिल गेलथिन । तो संयोग अइसन देखऽ कि ठीक एही घड़ी उनका हुचकी आ गेल । आउ हुचकियो जो आयल तो अइसन ओइसन न । ऊ हुचकी अइसन कस के आयल कि गोपाल जी के हालत एतना खराब हो गेल कि सुधीर चा के अभिवादन भी बढ़िया से करे के हालत में न हलन ।)    (ताबीझों॰12.4, 5)
335    होनिहारी (भला ई काहे ला आयल बढ़िया में कुद के जान देवे गेलइ त जेकर बीमारी सुनके धावल दुपहरिये में गेल । ओहु पगली के तो जाके मरले मुँह तो देखलक, जिन्दा मुँह देखे के तो प्रालवद न भेलइ आउ ई अपन जान गेलइ से मुस्तिये में । त होनिहारी के बाबु कउन टाल सकऽ हे ?)    (ताबीझों॰15.9)
 

1 comment:

santoshgupta said...

बहुते अच्छा लीखल हो भईया