विजेट आपके ब्लॉग पर

Thursday, January 10, 2013

82. "मगही पत्रिका" (वर्ष 2011: नवांक-3; पूर्णांक-15) में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द



मपध॰ = मासिक "मगही पत्रिका"; सम्पादक - श्री धनंजय श्रोत्रिय, नई दिल्ली/ पटना

पहिला बारह अंक के प्रकाशन-विवरण ई प्रकार हइ -
---------------------------------------------
वर्ष       अंक       महीना               कुल पृष्ठ
---------------------------------------------
2001    1          जनवरी              44
2001    2          फरवरी              44

2002    3          मार्च                  44
2002    4          अप्रैल                44
2002    5-6       मई-जून             52
2002    7          जुलाई               44
2002    8-9       अगस्त-सितम्बर  52
2002    10-11   अक्टूबर-नवंबर   52
2002    12        दिसंबर             44
---------------------------------------------
मार्च-अप्रैल 2011 (नवांक-1; पूर्णांक-13) से द्वैमासिक के रूप में अभी तक 'मगही पत्रिका' के नियमित प्रकाशन हो रहले ह ।

ठेठ मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर पृष्ठ संख्या, चउठा कॉलम संख्या (एक्के कॉलम रहलो पर सन्दर्भ भ्रामक नञ् रहे एकरा लगी कॉलम सं॰ 1 देल गेले ह), आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ ।

कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या (अंक 1-14 तक संकलित शब्द के अतिरिक्त) - 161

ठेठ मगही शब्द ( से तक):
1    अँतड़ी-पचौनी (रात हो जतइ, आ कोई न रहतइ तऽ सियार-कुत्ता बेचारा के अँतड़ी-पचौनी निकाल देतइ ।)    (मपध॰11:15:59:1.11)
2    अकाजल (केकरो घर पर चापाकल अपन मोटा-पातर दुनहुँ रूप में घेरवारी में सुरक्षित हो जाहे आउ कोय जरूरतमंद पानी बिन अकाजल रह जाहे ।)    (मपध॰11:15:21:1.17)
3    अगड़ी (~ जाति) (दुर्भाग्य से जनम लेलक हल ऊ शहर के एगो झोपड़पट्टी में । बाप ओकरा कुछ पढ़ा-लिखा देलक हल । ओकर जाति में अगड़ी जाति नियर तिलक-दहेज के भूत लगल हल । नऽ तऽ, ऊ भोथावा के पल्ले न पड़इत हल ।; शिवलगना ओहदा वाला अगड़ी जाति के बाप के बेटा हे तो का ? अबके शहर से आयल हे गाँव में रंगबाजी करे ।)    (मपध॰11:15:58:2.18, 3.28)
4    अगेआस (जइसन हमर जानवर ओइसन सब के । कोय जानवर बिमार रहे अउ घर में हम हाँथ धर के बैठल रहूँ तो पाप नञ् होतइ ? हमर की जाहे, कुछ पूँजी-पगहा लगऽ हइ ? अरे जड़ी-बूटी खोज-खाज के लावऽ ही, गोली-दवाय बजार से दौड़ के सब लैबे करऽ हे । तेल अगेआस करावऽ ही, हमर की, उपकार भी आउ अतमा के संतोख भी ।; हाँ, एकर मन दब हउ । जो तों, दोकनियाँ से टेरामाइसीन गोली लेले आउ एगो रोटी में खिला दीहँऽ । एकरा तनी पानी पिलाहीं हल सिरगरम करके । लाउ सींघ-माँग में तेल दे दिअउ । गरमी के दिन हे, अगेआस खराबी करत । अउ हमरा हीं अइहँऽ, एगो दवाय देबउ, जेकरा से साँझ तक ठीक हो जइतउ ।)    (मपध॰11:15:18:1.24, 2.23)
5    अगोरी (= रखवाली) (मिट्ठा घर में रहऽ हे तो बनल खाना हे । जखने मन आवे, रस घोर के पी लऽ, रोटी-रावा खा लऽ, दूध-भात भी खा लऽ, भुँजा-मिट्ठा खा लऽ, भगवान अजबे बनउलका हऽ मिट्ठा के । मुदा हाँ, अगोरी पुरजोर करे परऽ हे । नञ् तो सरवन बुतरुन सब मुँहें में पेर दे ।)    (मपध॰11:15:18:3.22)
6    अतमा (= आत्मा) (जइसन हमर जानवर ओइसन सब के । कोय जानवर बिमार रहे अउ घर में हम हाँथ धर के बैठल रहूँ तो पाप नञ् होतइ ? हमर की जाहे, कुछ पूँजी-पगहा लगऽ हइ ? अरे जड़ी-बूटी खोज-खाज के लावऽ ही, गोली-दवाय बजार से दौड़ के सब लैबे करऽ हे । तेल अगेआस करावऽ ही, हमर की, उपकार भी आउ अतमा के संतोख भी ।)    (मपध॰11:15:18:1.25)
7    अनसाना (अनसा गेल सुमित्रा त अपन घरवाला से उबियायल बोली में कहलक कि जा न इन्क्वायरी में पूछऽ न कि आज के डेट में टरेनमा अतइ कि घरे लौट जाऊँ ?)    (मपध॰11:15:25:1.21)
8    अमाइ (माय बोलली - नञ् बेटा, बूढ़ी होके एतना खाम, जेतना पचत ओतने ने । देह में अमाइये भर खाल जाहे, कहलो जाहे मूँहे माने थप्पड़ ।)    (मपध॰11:15:18:3.8)
9    अल्लो-मल्लो (अब बीच में रह गेल माय, जेकरा अभियो सब सधुआइने चाची कहऽ हथ । मुदा अब भेंट कहाँ केकरो से दोकान-दौरी उठला से । शुरू-शुरू में दुनहुँ अलग होला के बाधो दु-चार महिन्ना अल्लो-मल्लो कइलक, मुदा बाद में दुनहुँ खातिर बोझा हो गेल माय ।)    (मपध॰11:15:24:2.4)
10    असिआर (- बड़ी रात कर देलहीं हो ? - की कहिअउ माय, बचवा बड़ी असिआर में पड़ल हलइ, बड़ी जुगुत से निछड़लइ ।)    (मपध॰11:15:19:2.19)
11    आरे-आर (अइसन नञ् कि तालोबाबा सब दिन चौकिये तोड़इत रहऽ हला । जहिना से होसगर होला, खेती-गिरहस्ती जानवर-धूर करते रहला। भैंस अइसन रखथ कि पास-पड़ोस के अदमी देखे आवे । आरे-आर चरावथ, दिन भर में दू खँचिया घाँसो गढ़ के देथ ।)    (मपध॰11:15:17:1.14)
12    उघार (समीजवा खोल के ओकरे से देह तोपे के कोसिस करे लगल । एन्ने तोपे त ओन्ने उघार, ओन्ने तोपे त एन्ने उघार । तोप-तोप के भितरका बलाउज खोले के कोसिस करे लगल ।)    (मपध॰11:15:26:3.29)
13    उड़ंतु (~ नजर) (बाकि ई फैसनिया काहे सक-फक में पड़ल हइ ? सुमित्रा के शंका होय लगल । अबोध बालक अइसन उहे तमाशा जाने ला एकर मन चिलबिलाय लगल । उड़ंतु नजर से सुमित्रा ओने तकलक त देखलक कि दुन्नु सुतलकी के बीच में जगह बना के टाँग पसार के, टाँग पर टाँग चढ़ा के बइठल हे आ खैनी रगड़ रहल हे ।)    (मपध॰11:15:26:2.22)
14    उपतिया (आयोजन में जे खान-पीयन रहन-सहन के असुविधा होलइ होत ओकरा ले भी हमरा माफ कर देथिन । मीत मिथिलेश कुमार सिन्हा के अनुपस्थिति आउ डॉ. संजय जी के घरेलू परेशानी के वजह से घराती से जादे बरातिए के संख्या हो गेलइ हल । हमर लाख प्रयास के बाद भी सात दरजन डेलिगेट आउ एक-डेढ़ दरजन अतिथि के अलावा बाकि उपतिया टाइप के गतमरु सब भी कार्यक्रम के हिंस्सा बन गेलथिन हल ।)    (मपध॰11:15:4:1.13)
15    उपनाना (ढिबरी लेके कटुआ भित्तर के दुआरी पर गेला, तो चेहा गेला - अञ् ! कटुआ उघरल हइ, कैसे उपनाल कटुआ ?)    (मपध॰11:15:19:3.1)
16    उबियाना (तालोबाबा के सारा उबियावे लगला - तनी जल्दी कर गे मइयाँ, दिन छइते घर चल चलमे से ने बेस हइ । ढेर मोटरी-गेंठरी नञ् लिहँऽ, काहे कि रोड से ई कोस पैदलो चले पड़ऽ हे ।)    (मपध॰11:15:18:1.26)
17    उमिरगर (= उमरगर) (सलवार-फराक वाली के सुमित्रा बड़ा गौर से ठिकियावे लगल । का बात हे जे ई अइसन देखे में लगइत हे । तीनों में उमिरगर हे, फैसनिया हे, फरहर भी हे बाकि ऊ दुन्नु अलहदी के हे ? आ एकरा से का नाता हे ?)    (मपध॰11:15:26:1.17)
18    उलबुलाह (= अलबलाह, अलबलाहा) (रामलगन कउनो हाथ-पैर से कुरूप थोड़े हे । ... गोरा-गोरा छड़हरा स्वरूप । ... जोड़ी अच्छा हे । रामलगन आउ हेमंतीया के । ... बाकि रामलगन हे उलबुलाह ... भोथा ।)    (मपध॰11:15:58:2.6)
19    एकछित्तर (अब बूढ़ी चाची करे की ? नइहर भाग के जाय लगल तऽ सूचना मिलइत बेटन आल अउ ले गेल । घरवाली के डाँटलक, मुदा दुनहुँ के एकछित्तर रहे-खाय वली औरत के सधुआइन चाची कबाब में हड्डी समान हो जा हल ।)    (मपध॰11:15:24:2.19)
20    एकसरे (की कहियो भूलोटन बाबू, हमर घर में बाले-बच्चे नैहर चल गेलो हे, बिआह हइ भतीजा के । अखनी घर में एकसरे हियो, खाली बूढ़ी माय हे घर में ।)    (मपध॰11:15:18:2.31)
21    एसों (= इस वर्ष) (एसों भी केतारी चार कट्ठा लगाना हे । दू कट्टा-खुट्टी पहिले से हइए हे । मिट्ठा घर में रहऽ हे तो बनल खाना हे । जखने मन आवे, रस घोर के पी लऽ, रोटी-रावा खा लऽ, दूध-भात भी खा लऽ, भुँजा-मिट्ठा खा लऽ, भगवान अजबे बनउलका हऽ मिट्ठा के ।)    (मपध॰11:15:18:3.16)
22    ओंटा (मइल-कुचइल साड़ी पेन्हले, ओझरायल-ओझरायल ओंटा वाली दुन्नु मेहरी के आँख नीन से भरमइत हलक ।)    (मपध॰11:15:26:1.13)
23    ओने (= ओन्ने, ओद्धिर; उधर) (जने... ~) (खल्ली-चुन्नी भरपूर देथ, जेकरा से भैंस मोटाऽ के पलीस होल रहे । चिक्कन ढुर-ढुर, गिआरी में पंचकाड़ी घंटी आउ सींघ तेल से चपचप । जने खोल के ले जाथ ओने अदमी टुकटुक सिहाल नजर से देखे ।)    (मपध॰11:15:17:1.19)
24    ओरी (= ओर, तरफ) (वैद्यनाथ धाम जाए ला सुमित्रा टिकट-काउंटर पर महिला के लाइन में खड़ा भेल । बड़ा धक्कम-धुक्की से टिकट मिलल । टिकट कटा के अपन घरवाला चंद्रकांत के साथे झटकले गोड़े पलेटफारम के ओरी बढ़े लगल ।; एतने में फैसनिया के नजर सुमित्रा के नजर से टकरा गेल । ओकरा भाख गेल कि ई सामनेवाली हमरा सब के सवादइत हथन, त ऊ तनी सकुचा गेलन । आ तनी-तनी देर पर कनखिया के सुमित्रा ओरी देखियो लेवे ।)    (मपध॰11:15:25:1.5, 26:2.9)
25    कंझली (सधुआइन चाची पाँच गोतनी में कंझली हल, सबके जुदा होला से स्थिति खराब हो गेल हल ।)    (मपध॰11:15:23:2.19)
26    कंधा (कोठी के ~) (तालोबाबा घर अइला, ढिबरी बारलका, सगरो देखाके कोठी के कंधा पर धर देलका । माय से बोललका - सबेरे-साँझ खा ले माय ।)    (मपध॰11:15:18:2.43)
27    कइएक (दुरगाथान में पंडीजी के गुमटी भिर बाबू-भइया आउ सरबजात के जमकड़ा लगल हल । पान-कसैली, गुटका-खैनी आउ चिलिम-सुलफा के कइएक दौर चल चुकल हे ।)    (मपध॰11:15:21:2.14)
28    कखने (अञ् गे माय ! केबाड़ी कखने लगइलहीं हल ? बूढ़ी बोलली - तूँ दवइया लेवे अइलहीं हल ने ओकर बाद । तोरा साथे बिगहा पर के रोहन के बेटवा हलउ ने । - बिगहा पर तो रोहन नाम के कोय अदमीये नञ् हे ।)    (मपध॰11:15:19:3.6)
29    कटुआ (< कट्टू+'आ' प्रत्यय) (कउनो भित्तर में केबाड़ी नञ् हे । तालोबाबा के औरत बोलली - तू असथिर रहऽ । सबके एगो बक्सा में बंद करके कटुआ में घुँसिया देबइ । थारी-बरतन भी थोड़के एने छोड़के बाकी सब कटुए में घुँसिया देबइ ।)    (मपध॰11:15:18:1.36, 38)
30    कट्टा-खुट्टी (एसों भी केतारी चार कट्ठा लगाना हे । दू कट्टा-खुट्टी पहिले से हइए हे । मिट्ठा घर में रहऽ हे तो बनल खाना हे । जखने मन आवे, रस घोर के पी लऽ, रोटी-रावा खा लऽ, दूध-भात भी खा लऽ, भुँजा-मिट्ठा खा लऽ, भगवान अजबे बनउलका हऽ मिट्ठा के ।)    (मपध॰11:15:18:3.17)
31    कट्ठा-डंटा (विमलेश जी ई गाँव से मुहब्बत कइलखिन हे तब न आके यहाँ बसलखिन हे । कोय तड़का नञ् मिलले हे यहाँ आउ कट्ठा-डंटा कोय दान भी नञ् देलकइ हे । जे भी कट्ठा-डंटा हइ उनखा पास, से खरीदगी हइ ।')    (मपध॰11:15:22:1.26, 27)
32    कठमुर्गी (= कठमुरकी, ठकमुरकी) (समीजवा खोल के ओकरे से देह तोपे के कोसिस करे लगल । एन्ने तोपे त ओन्ने उघार, ओन्ने तोपे त एन्ने उघार । तोप-तोप के भितरका बलाउज खोले के कोसिस करे लगल । सुमित्रा के सोंच पकड़ लेलक, "बाप रे बाप ! ई मउगी एकदम बेलज्ज हे । ई रात भर कइसे सुतत । हे भगवान ! हम्मर टरेनमा के कने कठमुर्गी लगल हे, आतो न हे, जे हम इहाँ से भागूँ ।")    (मपध॰11:15:26:3.34)
33    कनकनी (दे॰ कनकन्नी) (पूस के रात के कनकनी अउ दिन के सरद हवा में खंडहर (खंडर) कहऽ या दलान, साठ फीट के कुइयाँ के बगल एगो पुरान चउँकी पर नंदु किशोरी के माय सधुआइन चाची अपंग जइसन कराह रहल हल ।)    (मपध॰11:15:23:1.1)
34    कनखियाना (= कनखी से देखना) (एतने में फैसनिया के नजर सुमित्रा के नजर से टकरा गेल । ओकरा भाख गेल कि ई सामनेवाली हमरा सब के सवादइत हथन, त ऊ तनी सकुचा गेलन । आ तनी-तनी देर पर कनखिया के सुमित्रा ओरी देखियो लेवे ।)    (मपध॰11:15:26:2.9)
35    कनाय (= कनियाय) (तालोबाबा के सारा बोललका - पुतहियो के जाय देहो । तालोबाबा बोललका - अञ् भाय, घर में के रहत, खाना-पानी के बनावत । माय बूढ़ी हे, हमरा से जानवर-धूर, खाय-पानी सब कैसे होवत । तालोबाबा के जनाना बोललकी - कौन मार एक दू महीना रहम । दस दिन में तो चलिये अइवइ । कनइयो के जाय देहो, ललकरल हथ ।)    (मपध॰11:15:18:1.2)
36    करकराएल (~ अवाज) (मिनट-मिनट पर बेदामवाला, अमरूदवाला, भुंजावाला के करकराएल अवाज से सुमित्रा के मन भनभनाइत हलक ।)    (मपध॰11:15:25:2.15)
37    कुट्टी-सानी (बैल भी दू गो रखथ छटछट, हर चले में सनसन, दिन भरके काम दुपहरिये भर में हो जाय । बैल के खोल देथ आरी-आरी चले ले । बैलो ले कुट्टी-सानी मोके पर सान देथ ।)    (मपध॰11:15:17:2.6)
38    कोंचाना (अखबारे पर नजर टिकौले-टिकौले तिरछिया के फेर ओन्ने तकलक त सुमित्रा के होश खराब हो गेल । ऊ औरतिया भीड़ से कोंचाएल पलेटफारमे पर अपन समीज उतारे लगल ।)    (मपध॰11:15:26:3.24)
39    खचड़ा (= बदमाश, मरखाह) (तालोबाबा जानवर-धूर के दवाइयो-दारू जानऽ हला । खचड़ा से खचड़ा गाय-भैंस के अप्पन ताकत अउ हिकमत से सुधार देथ ।)    (मपध॰11:15:17:2.9)
40    खद्धा-खंती (इनके आउ इनकर पुन-परताप से राता-राती डोब्भा आउ खद्धा-खंती तलाब बन जाहे, आरी पराठ बन जाहे । यहाँ तक कि गाँव के डेहंडल आउ डफाली भी माननीय आउ लाट बन जाहे ।)    (मपध॰11:15:21:1.19)
41    खल्ली-चुन्नी (भैंस अइसन रखथ कि पास-पड़ोस के अदमी देखे आवे । आरे-आर चरावथ, दिन भर में दू खँचिया घाँसो गढ़ के देथ । दवाय-दारू से अलगे, खल्ली-चुन्नी भरपूर देथ, जेकरा से भैंस मोटाऽ के पलीस होल रहे ।)    (मपध॰11:15:17:1.16)
42    खाऊर-खाऊर (सुमित्रा अप्पन आँख मीसे लगल, पलक झपकावे लगल ... "अरे ! ई त मरद हे ! ... बेचारा । औरत के भेष में केतना साँसत उठा रहल हे ।" कपड़ा से आजादी मिलते खाऊर-खाऊर सउँसे देह ममोरे लगल । गरमी आ पसेना से जे ओकर मन छनमनाइत हल से ओकरा शांति मिलल ।)    (मपध॰11:15:27:1.3)
43    खाय-पानी (~ बनाना) (तालोबाबा के सारा बोललका - पुतहियो के जाय देहो । तालोबाबा बोललका - अञ् भाय, घर में के रहत, खाना-पानी के बनावत । माय बूढ़ी हे, हमरा से जानवर-धूर, खाय-पानी सब कैसे होवत ।)    (मपध॰11:15:17:3.26)
44    खेर्ह (जे करे दोसरा के बल, से परे देवी के बल । हम गो-जानवर के सेवा ले गेलूँ हल अउ गाँववला हमरा से अइसन इन्साफ कइलक । हे भगवान ! अब केकरो हीं नञ् जाम अउ देखऽ ही कौन सरवा के दम हे कि हमरा जीते जी एगो खेर्हो उठा के ले जाहे ।)    (मपध॰11:15:19:3.27)
45    खोजना-खाजना (जइसन हमर जानवर ओइसन सब के । कोय जानवर बिमार रहे अउ घर में हम हाँथ धर के बैठल रहूँ तो पाप नञ् होतइ ? हमर की जाहे, कुछ पूँजी-पगहा लगऽ हइ ? अरे जड़ी-बूटी खोज-खाज के लावऽ ही, गोली-दवाय बजार से दौड़ के सब लैबे करऽ हे ।)    (मपध॰11:15:18:1.22)
46    खोराकी (अजी सब दिन तऽ चल गेल तोहर खोराकी, अब नञ् कमइबऽ तऽ तोहर बाल-बच्चा के खोराकी के पूरा करत ? ई लेल सधुअइ वला रूप छोड़ऽ आउ किसान मजूर वला रूप लावऽ !)    (मपध॰11:15:23:3.7, 8)
47    खोसी (= खुश) (एतने में कोयरी टोला से एगो अदमी आल । गोड़ लागी तालोबाबा ! तालोबाबा बोललका - खोसी रहऽ ! की हो भगेड़न, कने अइलँऽ । भगेड़न बोलल - तोहरे भिर अइलूँ हल तालोबाबा ।)    (मपध॰11:15:18:2.8)
48    गँड़ड़ा (= गँड़रा) (पंचायत के योजना पर ई सब ओइसहीं मुँह मारते रहऽ हथ, जइसे गँड़ड़ा पिल्लू गोबर पर मारे हे ।)    (मपध॰11:15:21:2.2)
49    गंडा (= चार का समूह) (हेमंतीया टोकरी में गोइठा लेले हमर पीछे खड़ी हो जाहे । ... हेमंतीया भीतर चल गेल । हम सुनली "एक रुपइया में चार गंडा ।" .... "हँ, माँ जी । चार-चार गंडा ... चालीस गंडा हे ... कुल दस रुपइया के ।")    (मपध॰11:15:58:1.20, 22)
50    गतमरु (आयोजन में जे खान-पीयन रहन-सहन के असुविधा होलइ होत ओकरा ले भी हमरा माफ कर देथिन । मीत मिथिलेश कुमार सिन्हा के अनुपस्थिति आउ डॉ. संजय जी के घरेलू परेशानी के वजह से घराती से जादे बरातिए के संख्या हो गेलइ हल । हमर लाख प्रयास के बाद भी सात दरजन डेलिगेट आउ एक-डेढ़ दरजन अतिथि के अलावा बाकि उपतिया टाइप के गतमरु सब भी कार्यक्रम के हिंस्सा बन गेलथिन हल ।)    (मपध॰11:15:4:1.13)
51    गिर-पड़ जाना (बेटा पुतहु बोलवो करे - 'रात के समय में एतना हड़बड़ा के घुमइत रहऽ हऽ ! गिर-पड़ जयवऽ तउ हाँथ-गोड़ टूट-टाट जइतो आउ फेरा हो जात ।')    (मपध॰11:15:17:1.6)
52    गुना (= गुने; कारण) (देखा-देखी दोसर-दोसर पोस्ट पर भी कमजोर जात के उम्मीदवार आ गेलन, चाहे बाबू-भइया के मदत से आवथ, चाहे सुशासन के मदत से । बकि गाँव ल ई अजगुत घटना हल । ईहे गुना खद्दरधारी जरी जादे रोसियाल हलन ।)    (मपध॰11:15:21:3.14)
53    गोड़ लागी (एतने में कोयरी टोला से एगो अदमी आल । गोड़ लागी तालोबाबा ! तालोबाबा बोललका - खोसी रहऽ ! की हो भगेड़न, कने अइलँऽ । भगेड़न बोलल - तोहरे भिर अइलूँ हल तालोबाबा ।)    (मपध॰11:15:18:2.7)
54    गोबर-गोइठा (~ करना) (बूढ़ी सास। चले-फिरे से लाचार । बेचारी सोहनी-कोड़नी करऽ हल । घाँस-भूसा लावऽ हल, गोबर-गोइठो करऽ हल ।)    (मपध॰11:15:58:2.11-12)
55    गोलंबर (सुमित्रा जौन गोलंबर पर बइठल हल ओकरा पंजरा में एगो परिवार पर ओकर नजर पड़ल त ओक्कर मन उहें ठमक गेल आ उनके पर नजर टंग गेल ।)    (मपध॰11:15:25:3.16)
56    गोलबंद (मगही अकादमी के तो ढहल ढिमका समझऽ, ढाह के फेर से दावा देवे पड़तो तभिए मगही मंदिर बन पैतो, महंथी खतम होतो । उनका अनुकूल बनावे के बस एक्के तरीका हो - 'आंदोलन' । कइसे ? एकर विचार गोलबंद होला के बादे हो सकऽ हो ।)    (मपध॰11:15:5:1.36)
57    घराती (आयोजन में जे खान-पीयन रहन-सहन के असुविधा होलइ होत ओकरा ले भी हमरा माफ कर देथिन । मीत मिथिलेश कुमार सिन्हा के अनुपस्थिति आउ डॉ. संजय जी के घरेलू परेशानी के वजह से घराती से जादे बरातिए के संख्या हो गेलइ हल ।)    (मपध॰11:15:4:1.12)
58    घाँस-भूसा (बूढ़ी सास। चले-फिरे से लाचार । बेचारी सोहनी-कोड़नी करऽ हल । घाँस-भूसा लावऽ हल, गोबर-गोइठो करऽ हल ।)    (मपध॰11:15:58:2.11)
59    घुँसियाना (= घुसाना) (कउनो भित्तर में केबाड़ी नञ् हे । तालोबाबा के औरत बोलली - तू असथिर रहऽ । सबके एगो बक्सा में बंद करके कटुआ में घुँसिया देबइ । थारी-बरतन भी थोड़के एने छोड़के बाकी सब कटुए में घुँसिया देबइ ।)    (मपध॰11:15:18:1.37, 38)
60    घोराना (खटिया ~) (तालोबाबा बैठल समय में सुतरी काटथ, चोंप बाँटथ आधा पर । सुतरी अइसन काटथ कि सब कोय आँख फाड़ के देखे, एकदम चिक्कन बरोबर, कहीं मोट पातर नञ् । गरदा-धूरी नञ्, उज्जर बगबग । चोंप भी बाँटथ तो निका-चीर के, बड़ी बढ़ियाँ । एक बेरी खटिया घोराय तो पाँच बरिस छूए के जरूरत नञ्, एहे से तो उनखर समानो बिके हे तेजे भाव में ।)    (मपध॰11:15:17:3.4)
61    चपचप (खल्ली-चुन्नी भरपूर देथ, जेकरा से भैंस मोटाऽ के पलीस होल रहे । चिक्कन ढुर-ढुर, गिआरी में पंचकाड़ी घंटी आउ सींघ तेल से चपचप ।)    (मपध॰11:15:17:1.18)
62    चलना-बुलना (समय बीतल, अब तऽ सधुआइन चाची चले-बुले से भी लाचार हो गेल हल, पैखाना भी लुग्गे-फट्टे होवे लगल हल । बड़की हीं हल ऊ, बकि जबरन सब छोटकी हीं पहुँचा देलक ।)    (मपध॰11:15:24:3.3-4)
63    चिताने (ओकरा एतना भी काबू नञ् हल कि करवट भी फेर सके, चिताने सुतल-सुतल पीठ में घाव हो गेल हल ।)    (मपध॰11:15:23:1.7)
64    चिलबिलाना (मन ~) (बाकि ई फैसनिया काहे सक-फक में पड़ल हइ ? सुमित्रा के शंका होय लगल । अबोध बालक अइसन उहे तमाशा जाने ला एकर मन चिलबिलाय लगल ।)    (मपध॰11:15:26:2.21)
65    चिलिम-सुलफा (दुरगाथान में पंडीजी के गुमटी भिर बाबू-भइया आउ सरबजात के जमकड़ा लगल हल । पान-कसैली, गुटका-खैनी आउ चिलिम-सुलफा के कइएक दौर चल चुकल हे ।)    (मपध॰11:15:21:2.13-14)
66    चोंप (तालोबाबा बैठल समय में सुतरी काटथ, चोंप बाँटथ आधा पर । सुतरी अइसन काटथ कि सब कोय आँख फाड़ के देखे, एकदम चिक्कन बरोबर, कहीं मोट पातर नञ् । गरदा-धूरी नञ्, उज्जर बगबग । चोंप भी बाँटथ तो निका-चीर के, बड़ी बढ़ियाँ । एक बेरी खटिया घोराय तो पाँच बरिस छूए के जरूरत नञ्, एहे से तो उनखर समानो बिके हे तेजे भाव में ।)    (मपध॰11:15:17:2.22, 3.2)
67    चोरखट (एतना तो भर भित्तर कटुआ हे देवाल दने सटाके रखिहऽ । आगू दुआरी दने से कटुआ लेम । से तो हमर भैंस दिन भर नेबारिए कुट्टी खाहे । पहिले चोरखट करम, नेबारिए खिलाम दस दिन । तालोबाबा के जनाना भी हामी भरलकी । बक्सा बरतन कटुआ में नुकावल गेल, सब कुछ समझा-बुझा के अपने पुतहु अउ बेटा के लेके तालोबाबा के जनाना अपन भाय के साथ नैहर चल गेली ।)    (मपध॰11:15:18:1.42)
68    छइते (= अछइते; रहते) (तालोबाबा के सारा उबियावे लगला - तनी जल्दी कर गे मइयाँ, दिन छइते घर चल चलमे से ने बेस हइ । ढेर मोटरी-गेंठरी नञ् लिहँऽ, काहे कि रोड से ई कोस पैदलो चले पड़ऽ हे ।)    (मपध॰11:15:18:1.27)
69    छटछट (बैल भी दू गो रखथ छटछट, हर चले में सनसन, दिन भरके काम दुपहरिये भर में हो जाय । बैल के खोल देथ आरी-आरी चले ले । बैलो ले कुट्टी-सानी मोके पर सान देथ ।)    (मपध॰11:15:17:2.3-4)
70    छटपट्टी (=छिटपिट्टी; छटपटाहट) (तालोबाबा बोललका - अञ् भाय, साँझ हो रहल हऽ, घर में कोय नञ् हे । आवेवला लड़का घिघिआएत बोलल - चलहो तालोबाबा बड़ी छटपटाइत हे भैंसिया । तालोबाबा के करेजा में छटपट्टी होवे लगल, जइसे भैंस के दरद उनखे में समा गेल ।)    (मपध॰11:15:19:1.1)
71    छड़हरा (= छरहरा) (रामलगन कउनो हाथ-पैर से कुरूप थोड़े हे । ... गोरा-गोरा छड़हरा स्वरूप । ... जोड़ी अच्छा हे । रामलगन आउ हेमंतीया के । ... बाकि रामलगन हे उलबुलाह ... भोथा ।)    (मपध॰11:15:58:2.4)
72    छापी (तीन ~ घाँस) (हेमंतीया तीन छापी घाँस माथा पर लाद के घर दने भागइत जा रहल हल ।)    (मपध॰11:15:58:2.26)
73    छुल-छुल (~ करना) (जरी स ठंडा परऽ हइ त छौंड़ा छुल-छुल करे लगऽ हइ । डाक्टर साहेब, कुछ दर-दबाय देहो, मिजाज नकुआ जाहे एकदम से ।)    (मपध॰11:15:60:1.4)
74    छोटजतिया (नीतीश जी के नीति से हियाँ जिला-परिषद छोटजतिया हीं चल गेल आउ पंचायत समिति महिला हीं ।)    (मपध॰11:15:21:2.20)
75    जने (= जन्ने, जेद्धिर; जिधर) (~ ... ओने) (खल्ली-चुन्नी भरपूर देथ, जेकरा से भैंस मोटाऽ के पलीस होल रहे । चिक्कन ढुर-ढुर, गिआरी में पंचकाड़ी घंटी आउ सींघ तेल से चपचप । जने खोल के ले जाथ ओने अदमी टुकटुक सिहाल नजर से देखे ।)    (मपध॰11:15:17:1.19)
76    जेठान (= देवोत्थान एकादशी का व्रत; विष्णु के शेषशय्या से जागने की तिथि जो कार्तिक शुक्ल एकादशी को पड़ती है) (एसों भी केतारी चार कट्ठा लगाना हे । ... मुदा हाँ, अगोरी पुरजोर करे परऽ हे । नञ् तो सरवन बुतरुन सब मुँहें में पेर दे । ऊ तो हमरा नियर आदमी जे कि डर से कोय छूए नञ् । हाँ जेठान में पचास डाँढ़ से कम नञ् बँटा हे । की करबउ, जेकरा नञ् हे ओकरो तो नेमान होवे के चाही ने, परब सब के हे ।)    (मपध॰11:15:18:3.25)
77    जेवर-जाठी (तालोबाबा के सारा उबियावे लगला - तनी जल्दी कर गे मइयाँ, दिन छइते घर चल चलमे से ने बेस हइ । ढेर मोटरी-गेंठरी नञ् लिहँऽ, काहे कि रोड से ई कोस पैदलो चले पड़ऽ हे । तालोबाबा के औरत बोलली - नञ् भइया, मोटरी-गेंठरी की ले जाम, कुछ कपड़ा-लत्ता से ले जाही । जेवर-जठिया पेन्हे के अब जमाना हे, सब एहइँ छोड़ जाम ।; दोसर दिन होके उनखर घरवाली, पुतहू, छोटका बेटा आल । कानलक-पीटलक । फेन सबके तालोबाबा हिम्मत देलैलका । वासन-बरतन सब खरीदाल, कुछ जेवरो-जाठी बनल ।)    (मपध॰11:15:18:1.31-32, 19:3.33)
78    झिंगा-भात ('के विदेसी हइ ? विमलेश जी विदेसी हखिन ? तोरा जलम हलउ तहिना जहिना ऊ गाँव में अइलथिन हल । आउ सुन ! एहाँ त गलती से तोर जलम हो गेलउ आउ बाहर में तूँ चलले नञ्, त गाँव में आके माननीय के साथ झिंगा-भात परोर-भात कर रहले हें ।)    (मपध॰11:15:22:1.22)
79    टँठगर (आउ एतना भाग-दौड़ करे में ऊ समर्थ हखिन त उनकर समर्थन करहो ! लेकिन उनका से टँठगर आउ गाँव के हर सुख-दुख में आगे बढ़के भाग लेवे वला कौशल्यानंदन जी के काहे नञ् उम्मीदवार बनैलहो ।)    (मपध॰11:15:22:3.6)
80    टूट-टाट जाना (बेटा पुतहु बोलवो करे - 'रात के समय में एतना हड़बड़ा के घुमइत रहऽ हऽ ! गिर-पड़ जयवऽ तउ हाँथ-गोड़ टूट-टाट जइतो आउ फेरा हो जात ।')    (मपध॰11:15:17:1.7)
81    ठिकियाना (सलवार-फराक वाली के सुमित्रा बड़ा गौर से ठिकियावे लगल । का बात हे जे ई अइसन देखे में लगइत हे । तीनों में उमिरगर हे, फैसनिया हे, फरहर भी हे बाकि ऊ दुन्नु अलहदी के हे ? आ एकरा से का नाता हे ?)    (मपध॰11:15:26:1.16)
82    डफाली (इनके आउ इनकर पुन-परताप से राता-राती डोब्भा आउ खद्धा-खंती तलाब बन जाहे, आरी पराठ बन जाहे । यहाँ तक कि गाँव के डेहंडल आउ डफाली भी माननीय आउ लाट बन जाहे ।)    (मपध॰11:15:21:1.21)
83    डेहंडल (इनके आउ इनकर पुन-परताप से राता-राती डोब्भा आउ खद्धा-खंती तलाब बन जाहे, आरी पराठ बन जाहे । यहाँ तक कि गाँव के डेहंडल आउ डफाली भी माननीय आउ लाट बन जाहे ।)    (मपध॰11:15:21:1.21)
84    डोब्भा (इनके आउ इनकर पुन-परताप से राता-राती डोब्भा आउ खद्धा-खंती तलाब बन जाहे, आरी पराठ बन जाहे । यहाँ तक कि गाँव के डेहंडल आउ डफाली भी माननीय आउ लाट बन जाहे ।)    (मपध॰11:15:21:1.19)
85    ढुनढुन (सब कुछ समझा-बुझा के अपने पुतहु अउ बेटा के लेके तालोबाबा के जनाना अपन भाय के साथ नैहर चल गेली ।/ दिन भर घर बड़ी ढुनढुन लगे । तालोबाबा के एकदम मन नञ् लगे तउ आके ऊ बहरी दुआरी पर बैठ गेला ।)    (मपध॰11:15:18:2.4)
86    तन्नोतबाह (अब मगही में गुटबाजी, एकेश्वरवादी आउ बहसबाजी हावी हो रहल हे । हंस तन्नोतबाह हे बकि कौआ मोती चुग रहल हे ।)    (मपध॰11:15:5:1.27)
87    तित्ता (= तीता; तिक्त, तीखा) (कोय केतना कह सकऽ हे, लेमुओ जादे गारला पर तित्ता हो जाहे ।)    (मपध॰11:15:21:3.5)
88    तिरछियाना (= तिरछा करना) (अखबारे पर नजर टिकौले-टिकौले तिरछिया के फेर ओन्ने तकलक त सुमित्रा के होश खराब हो गेल । ऊ औरतिया भीड़ से कोंचाएल पलेटफारमे पर अपन समीज उतारे लगल ।)    (मपध॰11:15:26:3.22)
89    तैल-फैल (पंचायत कउनो बाबू-भइया के वसीहत में थोड़े लिखल हइ । चुनाव में कहीं से कोय जाति के उम्मीदवार खड़ा हो सकऽ हे । एकरा में एतना तैल-फैल होवे के की बात हे ।)    (मपध॰11:15:22:1.11)
90    दर-दबाय (जरी स ठंडा परऽ हइ त छौंड़ा छुल-छुल करे लगऽ हइ । डाक्टर साहेब, कुछ दर-दबाय देहो, मिजाज नकुआ जाहे एकदम से ।)    (मपध॰11:15:60:1.4)
91    दाइद (घर बँटल, खेत बँटल, साथे-साथ धंधा बँट गेल । डीलर तऽ बड़के रहल । छोटका के ईमानदारी, मील भी बड़के के दे देलक । ओकर एवज में दाइद लगल अउ मिल गेल रुपइया नंदु के । मुदा नंदु नंदुए रह गेल, किशोरी बन गेल सेठ ।)    (मपध॰11:15:24:1.41)
92    दावा (= नींव) (मगही अकादमी के तो ढहल ढिमका समझऽ, ढाह के फेर से दावा देवे पड़तो तभिए मगही मंदिर बन पैतो, महंथी खतम होतो ।)    (मपध॰11:15:5:1.35)
93    दिगर (साहित्य अकादमी पुरस्कार चाही उनका, चाहे रचना उनकर थर्डकलासी काहे नञ् रहे । हरसट्ठे अवसर ले कागचेष्टा में लगल रहऽ हथ, ई अवसरवादी लोग । नेता-राजनेता के तो बाते दिगर हे । मगहीभाषी परिवार से जुड़ल अइसन नेता जे चार लाइन भी हिंदी-अंगरेजी नञ् बोल सकऽ हथ शुद्ध से, ऊ भी विधानसभा आउ लोकसभा में मगही के बात उठावे में अपन तौहीन समझऽ हथ ।)    (मपध॰11:15:5:1.30)
94    दुरगाथान (दुरगाथान में पंडीजी के गुमटी भिर बाबू-भइया आउ सरबजात के जमकड़ा लगल हल ।)    (मपध॰11:15:21:2.11)
95    दुलरुआ (नीतीश जी के नीति से हियाँ जिला-परिषद छोटजतिया हीं चल गेल आउ पंचायत समिति महिला हीं । बस मुखिये के एगो पद हल जेकरा पर बाबू-भइया मोछ फड़का सकलन हल । अपन दुलरुआ उम्मीदवार के भेज सकलन हल, जैसे कि दस साल से भेजते अइलन हल ।)    (मपध॰11:15:21:2.23)
96    धक्कम-धुक्की (वैद्यनाथ धाम जाए ला सुमित्रा टिकट-काउंटर पर महिला के लाइन में खड़ा भेल । बड़ा धक्कम-धुक्की से टिकट मिलल । टिकट कटा के अपन घरवाला चंद्रकांत के साथे झटकले गोड़े पलेटफारम के ओरी बढ़े लगल ।)    (मपध॰11:15:25:1.3)
97    धड़धड़ी (~ के बज्जड़) (एक दिन ऊ घर से जे निकसलन जे अभी तक ले नञ् अइलन । चाची आशा देखइत-देखइत सधुआइन कहाय लगलन, तइयो रामजी के दरसन नञ् होल । अब तऽ समझऽ सधुआइन चाची पर धड़धड़ी के बज्जड़ गिर गेल हल, तीन गो तनी-तनी गो के बुतरू के खिलाना-पिलाना अउ समय माफिक कुछ पढ़ाना भी हल ।)    (मपध॰11:15:23:3.19)
98    नकुआना (मिजाज ~) (जरी स ठंडा परऽ हइ त छौंड़ा छुल-छुल करे लगऽ हइ । डाक्टर साहेब, कुछ दर-दबाय देहो, मिजाज नकुआ जाहे एकदम से ।)    (मपध॰11:15:60:1.4)
99    निका-चीर (तालोबाबा बैठल समय में सुतरी काटथ, चोंप बाँटथ आधा पर । सुतरी अइसन काटथ कि सब कोय आँख फाड़ के देखे, एकदम चिक्कन बरोबर, कहीं मोट पातर नञ् । गरदा-धूरी नञ्, उज्जर बगबग । चोंप भी बाँटथ तो निका-चीर के, बड़ी बढ़ियाँ । एक बेरी खटिया घोराय तो पाँच बरिस छूए के जरूरत नञ्, एहे से तो उनखर समानो बिके हे तेजे भाव में ।)    (मपध॰11:15:17:3.3)
100    निचित (= निचिंत; निश्चिंत) (बेटिन के सादी-बिआह से निचित, अब ने ऊधो के देना, ने माधो से लेना । हाँ कुछ खेत गिरमी रखे पड़ल हल सेकरा धीरे-धीरे करके छोड़इलका ।)    (मपध॰11:15:17:1.30)
101    निछड़ना (- बड़ी रात कर देलहीं हो ? - की कहिअउ माय, बचवा बड़ी असिआर में पड़ल हलइ, बड़ी जुगुत से निछड़लइ ।)    (मपध॰11:15:19:2.20)
102    नोचनी (= खुजली) (खैनी के चुटकी में लेके ठोर तर जाँत लेलक आ कुछ देर पथराएल अइसन बइठल रहल । एकबैग अप्पन पीठ खजुआवे लगल । कबो पेट खजुआवे त कबौ पंजरा । पीठ के नोचनी से तऽ ऊ हरे-हरान हो गेल ।)    (मपध॰11:15:26:3.13)
103    पंचकाड़ी (~ घंटी) (खल्ली-चुन्नी भरपूर देथ, जेकरा से भैंस मोटाऽ के पलीस होल रहे । चिक्कन ढुर-ढुर, गिआरी में पंचकाड़ी घंटी आउ सींघ तेल से चपचप ।)    (मपध॰11:15:17:1.18)
104    पंजरा (= ?) (सुमित्रा जौन गोलंबर पर बइठल हल ओकरा पंजरा में एगो परिवार पर ओकर नजर पड़ल त ओक्कर मन उहें ठमक गेल आ उनके पर नजर टंग गेल ।; खैनी के चुटकी में लेके ठोर तर जाँत लेलक आ कुछ देर पथराएल अइसन बइठल रहल । एकबैग अप्पन पीठ खजुआवे लगल । कबो पेट खजुआवे त कबौ पंजरा । पीठ के नोचनी से तऽ ऊ हरे-हरान हो गेल ।)    (मपध॰11:15:25:3.17, 26:3.13)
105    परसना (माय से बोललका - सबेरे-साँझ खा ले माय । माय बोलली - पहिले तूँ खा ले । तालोबाबा बोलला - नञ्, पहिले तुँहीं खा ले, अच्छा नञ् तो दुनहुँ थारी परस देहीं, माय-बेटा एक्के बेरी खा लेम ।)    (मपध॰11:15:18:3.3)
106    पराठ (इनके आउ इनकर पुन-परताप से राता-राती डोब्भा आउ खद्धा-खंती तलाब बन जाहे, आरी पराठ बन जाहे । यहाँ तक कि गाँव के डेहंडल आउ डफाली भी माननीय आउ लाट बन जाहे ।)    (मपध॰11:15:21:1.20)
107    परोर-भात ('के विदेसी हइ ? विमलेश जी विदेसी हखिन ? तोरा जलम हलउ तहिना जहिना ऊ गाँव में अइलथिन हल । आउ सुन ! एहाँ त गलती से तोर जलम हो गेलउ आउ बाहर में तूँ चलले नञ्, त गाँव में आके माननीय के साथ झिंगा-भात परोर-भात कर रहले हें ।)    (मपध॰11:15:22:1.23)
108    पलीस (भैंस अइसन रखथ कि पास-पड़ोस के अदमी देखे आवे । आरे-आर चरावथ, दिन भर में दू खँचिया घाँसो गढ़ के देथ । दवाय-दारू से अलगे, खल्ली-चुन्नी भरपूर देथ, जेकरा से भैंस मोटाऽ के पलीस होल रहे ।)    (मपध॰11:15:17:1.17)
109    पारा (~ बँधना या बँधाना) (अदमी बइठल, फैसला होल, पारा बँधा गेल, छो महीना तों, छो महीना तों । मुदा ई का, एक्के महीना में छोटकी ऊब गेल अउ भगा देलक माय के । बड़की हीं आल तऽ ई पनरहे दिन में ऊब गेल, कहलक - "जो, जेकरा हीं पारा हउ छो महीना के, खो गन ।")    (मपध॰11:15:24:2.10, 14)
110    पुन-परताप (इनके आउ इनकर पुन-परताप से राता-राती डोब्भा आउ खद्धा-खंती तलाब बन जाहे, आरी पराठ बन जाहे । यहाँ तक कि गाँव के डेहंडल आउ डफाली भी माननीय आउ लाट बन जाहे ।)    (मपध॰11:15:21:1.18)
111    पूँजी-पगहा (जइसन हमर जानवर ओइसन सब के । कोय जानवर बिमार रहे अउ घर में हम हाँथ धर के बैठल रहूँ तो पाप नञ् होतइ ? हमर की जाहे, कुछ पूँजी-पगहा लगऽ हइ ? अरे जड़ी-बूटी खोज-खाज के लावऽ ही, गोली-दवाय बजार से दौड़ के सब लैबे करऽ हे ।)    (मपध॰11:15:18:1.21-22)
112    पेरना (मिट्ठा घर में रहऽ हे तो बनल खाना हे । जखने मन आवे, रस घोर के पी लऽ, रोटी-रावा खा लऽ, दूध-भात भी खा लऽ, भुँजा-मिट्ठा खा लऽ, भगवान अजबे बनउलका हऽ मिट्ठा के । मुदा हाँ, अगोरी पुरजोर करे परऽ हे । नञ् तो सरवन बुतरुन सब मुँहें में पेर दे ।)    (मपध॰11:15:18:3.23)
113    पेराई (समय बीतल, कुछ अप्पन पूँजी कुछ मामू के मदद से रोड करगा एगो जमीन खरीद के मील बइठा देलक । सब कुछ तऽ मालूम हइए हल कि कइसे आउ केतना आँटा, धान अउ तेल पेराई में फइदा हे, बस फेन कि गाड़ी चल पड़ल ।)    (मपध॰11:15:24:1.17)
114    पोट्टा (पंचायत में जे अती हो रहले हल, गाँव में तोहनहीं दस-बीस गो पोट्टा सब मिलके जे हड़प-नरायन कर रहलहीं हल ऊ सबके पता हलइ बकि लोग गरीबी आउ परिस्थिति से मजबूर हलइ ।)    (मपध॰11:15:22:2.10)
115    फेनुस (खचड़ा से खचड़ा गाय-भैंस के अप्पन ताकत अउ हिकमत से सुधार देथ । तभिये तो साँझे-बिहने कोय ने कोय बोलावे ले अइते रहे । केकरो से कुछ फरमाइस नञ् करथ । मुदा जेकर जानवर ठीक हो जाय, गाय-भैंस ठीक से बच्चा दे दे, फेनुस गार देथ, से बोलावे फेनुस पूड़ी खाय ले ।)    (मपध॰11:15:17:2.14, 15)
116    बतरस (भीड़ बढ़ रहल हल । बतरस में सराबोर भीम सिंह बोललन - 'सव्यसाची जी, आप क्यों नहीं खड़ा हुए जो विदेसी को खड़ा किए ?')    (मपध॰11:15:22:1.15)
117    बर-बाजार (अब तऽ समझऽ सधुआइन चाची पर धड़धड़ी के बज्जड़ गिर गेल हल, तीन गो तनी-तनी गो के बुतरू के खिलाना-पिलाना अउ समय माफिक कुछ पढ़ाना भी हल । सधुआइन चाची अब अप्पन परदा वला इज्जत के परवाह कइले बिना कुछ रुपइया के जोगाड़ करके घरे में एगो दोकान खोल देलक आउ बर-बाजार से सौदा लावे लगल ।)    (मपध॰11:15:23:3.26)
118    बाध (= बाद; बाधो = बाद में भी) (अब बीच में रह गेल माय, जेकरा अभियो सब सधुआइने चाची कहऽ हथ । मुदा अब भेंट कहाँ केकरो से दोकान-दौरी उठला से । शुरू-शुरू में दुनहुँ अलग होला के बाधो दु-चार महिन्ना अल्लो-मल्लो कइलक, मुदा बाद में दुनहुँ खातिर बोझा हो गेल माय ।)    (मपध॰11:15:24:2.3)
119    बिसबरसा (विमलेश जी अइसन करथुन त हम उनखा बीच से फाड़ देवउ चाहे हमरा बिसबरसा हो जाय ।)    (मपध॰11:15:22:2.23)
120    बेलज्ज (= निर्लज्ज) (समीजवा खोल के ओकरे से देह तोपे के कोसिस करे लगल । एन्ने तोपे त ओन्ने उघार, ओन्ने तोपे त एन्ने उघार । तोप-तोप के भितरका बलाउज खोले के कोसिस करे लगल । सुमित्रा के सोंच पकड़ लेलक, "बाप रे बाप ! ई मउगी एकदम बेलज्ज हे । ई रात भर कइसे सुतत ।")    (मपध॰11:15:26:3.32)
121    बेलौस (आज मगही के भी महावीर प्रसाद द्विवेदी आउर कामता प्रसाद गुरु के जरूरत हे । हम तो धनंजय भाई के तरफ पपीहा के निय एकटक होके देखइत ही । इनकर कर्मठ, मेहनती, बेलाग आउर बेलौस सुभाव एकरा में मददगार साबित होएत ।)    (मपध॰11:15:46:1.39)
122    भनभनाना (मन ~) (मिनट-मिनट पर बेदामवाला, अमरूदवाला, भुंजावाला के करकराएल अवाज से सुमित्रा के मन भनभनाइत हलक ।)    (मपध॰11:15:25:2.15)
123    भर-हाथ (~ चूड़ी) (भर-हाथ चूड़ी आ मोती-मूंगा के चार-पाँच गो माला भी ओकरा गरदन में लटकइत हल ।)    (मपध॰11:15:26:1.1)
124    भाखना (एतने में फैसनिया के नजर सुमित्रा के नजर से टकरा गेल । ओकरा भाख गेल कि ई सामनेवाली हमरा सब के सवादइत हथन, त ऊ तनी सकुचा गेलन । आ तनी-तनी देर पर कनखिया के सुमित्रा ओरी देखियो लेवे ।)    (मपध॰11:15:26:2.6)
125    भुँजा-मिट्ठा (एसों भी केतारी चार कट्ठा लगाना हे । दू कट्टा-खुट्टी पहिले से हइए हे । मिट्ठा घर में रहऽ हे तो बनल खाना हे । जखने मन आवे, रस घोर के पी लऽ, रोटी-रावा खा लऽ, दूध-भात भी खा लऽ, भुँजा-मिट्ठा खा लऽ, भगवान अजबे बनउलका हऽ मिट्ठा के ।)    (मपध॰11:15:18:3.20)
126    भोथा (= भोंदू) (रामलगन कउनो हाथ-पैर से कुरूप थोड़े हे । ... गोरा-गोरा छड़हरा स्वरूप । ... जोड़ी अच्छा हे । रामलगन आउ हेमंतीया के । ... बाकि रामलगन हे उलबुलाह ... भोथा ।; बाप ओकरा कुछ पढ़ा-लिखा देलक हल । ओकर जाति में अगड़ी जाति नियर तिलक-दहेज के भूत लगल हल । नऽ तऽ, ऊ भोथावा के पल्ले न पड़इत हल ।; "शिवलगना के माथा पर बँधल पट्टी के लोग देखलन, तऽ जानइतऽ भऊजी, ऊ का कहे लगल ? ... फटफटिया से गिर पड़ली हे, भोथवा के मेहरारू के बचावे में ।" माथा पर से घाँस उतारइत रंगुआ कहलक ।)    (मपध॰11:15:58:2.6, 20, 3.22)
127    ममोरना (सुमित्रा अप्पन आँख मीसे लगल, पलक झपकावे लगल ... "अरे ! ई त मरद हे ! ... बेचारा । औरत के भेष में केतना साँसत उठा रहल हे ।" कपड़ा से आजादी मिलते खाऊर-खाऊर सउँसे देह ममोरे लगल । गरमी आ पसेना से जे ओकर मन छनमनाइत हल से ओकरा शांति मिलल ।)    (मपध॰11:15:27:1.3)
128    मार (अव्य॰) (तालोबाबा के सारा बोललका - पुतहियो के जाय देहो । तालोबाबा बोललका - अञ् भाय, घर में के रहत, खाना-पानी के बनावत । माय बूढ़ी हे, हमरा से जानवर-धूर, खाय-पानी सब कैसे होवत । तालोबाबा के जनाना बोललकी - कौन मार एक दू महीना रहम । दस दिन में तो चलिये अइवइ । कनइयो के जाय देहो, ललकरल हथ ।)    (मपध॰11:15:18:1.1)
129    मुटुर-मुटुर (= मुलुर-मुलुर) (बस मुरती सन आँख खोलले चाची मुटुर-मुटुर सबके देख रहल हल, नञ् शरीर में तनिको हलचल, नञ् मुँह से वकार निकल रहल हल, खाली निकस रहल हल तऽ घाव के पिल्लू जेकर काटे के दरद आउ चाची के जिनगी के बीतल दरद के लोर, जेकरा से ओकर दुनहुँ आँख के करगा पानी से भर गेल हल ।)    (मपध॰11:15:23:2.10)
130    मोट-पातर (तालोबाबा बैठल समय में सुतरी काटथ, चोंप बाँटथ आधा पर । सुतरी अइसन काटथ कि सब कोय आँख फाड़ के देखे, एकदम चिक्कन बरोबर, कहीं मोट पातर नञ् । गरदा-धूरी नञ्, उज्जर बगबग । चोंप भी बाँटथ तो निका-चीर के, बड़ी बढ़ियाँ । एक बेरी खटिया घोराय तो पाँच बरिस छूए के जरूरत नञ्, एहे से तो उनखर समानो बिके हे तेजे भाव में ।)    (मपध॰11:15:17:3.1)
131    मोटरी-गेंठरी (तालोबाबा के सारा उबियावे लगला - तनी जल्दी कर गे मइयाँ, दिन छइते घर चल चलमे से ने बेस हइ । ढेर मोटरी-गेंठरी नञ् लिहँऽ, काहे कि रोड से ई कोस पैदलो चले पड़ऽ हे । तालोबाबा के औरत बोलली - नञ् भइया, मोटरी-गेंठरी की ले जाम, कुछ कपड़ा-लत्ता से ले जाही । जेवर-जठिया पेन्हे के अब जमाना हे, सब एहइँ छोड़ जाम ।)    (मपध॰11:15:18:1.28, 30)
132    मोटरी-झोटरी (उड़ंतु नजर से सुमित्रा ओने तकलक त देखलक कि दुन्नु सुतलकी के बीच में जगह बना के टाँग पसार के, टाँग पर टाँग चढ़ा के बइठल हे आ खैनी रगड़ रहल हे । खैनी रगड़ते-रगड़ते अप्पन मोटरी-झोटरी, झोला-झोली, सब बिछौना के अगल-बगल खींच के सरियावइत जा रहल हे । कबो चद्दर सरिआवे त कबो सुतलकी औरतिया सब के हाँथ सरिआवे त कबो अँचरा ।)    (मपध॰11:15:26:3.4)
133    राता-राती (= रात में; रात भर में; बहुत जल्दी; overnight) (इनके आउ इनकर पुन-परताप से राता-राती डोब्भा आउ खद्धा-खंती तलाब बन जाहे, आरी पराठ बन जाहे । यहाँ तक कि गाँव के डेहंडल आउ डफाली भी माननीय आउ लाट बन जाहे ।)    (मपध॰11:15:21:1.18)
134    रोकसदी (= रोसकद्दी; रुख्सत) (एक बेरी तालोबाबा के ससुरार में सरबेटा के बिआह हल, से तालोबाबा के सारा लेताहर अइला । ... हम रोकले ही भाय, सादियो-बिआह में रोके के हे । मुदा तनी जल्दीये रोकसदी कर देहो हल । तालोबाबा के सारा बोललका - पुतहियो के जाय देहो ।)    (मपध॰11:15:17:3.22)
135    रोटी-रावा (एसों भी केतारी चार कट्ठा लगाना हे । दू कट्टा-खुट्टी पहिले से हइए हे । मिट्ठा घर में रहऽ हे तो बनल खाना हे । जखने मन आवे, रस घोर के पी लऽ, रोटी-रावा खा लऽ, दूध-भात भी खा लऽ, भुँजा-मिट्ठा खा लऽ, भगवान अजबे बनउलका हऽ मिट्ठा के ।)    (मपध॰11:15:18:3.19)
136    रोसियाल (= रुष्ट, नाराज) (देखा-देखी दोसर-दोसर पोस्ट पर भी कमजोर जात के उम्मीदवार आ गेलन, चाहे बाबू-भइया के मदत से आवथ, चाहे सुशासन के मदत से । बकि गाँव ल ई अजगुत घटना हल । ईहे गुना खद्दरधारी जरी जादे रोसियाल हलन ।)    (मपध॰11:15:21:3.15)
137    लगतरिये (= लगातार) (एकाध घंटा बीतल कि तालोबाबा अइला, चाल देलका - खोल गे मइया । बूढ़ी के तनी झप लग गेल हल । तालोबाबा फेन चाल देलका, दुअरिये से कुतवन लगतरिये भुक रहल हल । तालोबाबा डाँटलका, तइयो कुतवन भुकते रहल ।)    (मपध॰11:15:19:2.10)
138    ललकरल (तालोबाबा के सारा बोललका - पुतहियो के जाय देहो । तालोबाबा बोललका - अञ् भाय, घर में के रहत, खाना-पानी के बनावत । माय बूढ़ी हे, हमरा से जानवर-धूर, खाय-पानी सब कैसे होवत । तालोबाबा के जनाना बोललकी - कौन मार एक दू महीना रहम । दस दिन में तो चलिये अइवइ । कनइयो के जाय देहो, ललकरल हथ ।)    (मपध॰11:15:18:1.3)
139    लाज-बीज (= लाज-विज, लाज-उज) (मने-मने सोंचे लगल कि ऊ दुन्नु औरतिया के कोनो खोजे-फिकिर न हल कि के देखइत हे के न देखइत हे ... कोनो लाज-बीज भी न हे । खइलक-पीलक आ पसर के नीन मारइत हे ।)    (मपध॰11:15:26:2.17)
140    लात-मुक्का (सधुअइ वला रूप छोड़ऽ आउ किसान मजूर वला रूप लावऽ ! तबे बेटा अउ बेटी के पेट पलइतो नञ् तऽ हमनी सब लाते-मुक्का ने खाम । आउ आजकल लातो-मुक्का के बाद के खाय लऽ देहे ।)    (मपध॰11:15:23:3.11, 12)
141    लुरखुर (तालोबाबा अपन बूढ़ी माय के बड़ी मानथ । घर के लुरखुर काम भी करथ तो अप्पन जनाना पर बोले लगथ । ई बूढ़ी अदमी के खटावऽ हऽ, तोरो बुढ़ारी में पुतहिया अइसहीं खटयथु ।)    (मपध॰11:15:17:3.7)
142    विसीत (ई तरह तालोबाबा एकदम्मे विसीत रहथ, अपन काम में, दोसर के काम में । गाँववाला भी बड़ी माने, काहे कि केकरो कहना नञ् टारथ ।)    (मपध॰11:15:17:2.19)
143    संशा (= संशय) (जब ओकर नजर सुमित्रा पर पड़ल तऽ लजाएल अइसन मुड़ी गाड़ लेलक । ओकरा लाज से सुमित्रा के संशा बढ़े लगल ।)    (मपध॰11:15:26:3.19)
144    सक-फक (मने-मने सोंचे लगल कि ऊ दुन्नु औरतिया के कोनो खोजे-फिकिर न हल कि के देखइत हे के न देखइत हे ... कोनो लाज-बीज भी न हे । खइलक-पीलक आ पसर के नीन मारइत हे । बाकि ई फैसनिया काहे सक-फक में पड़ल हइ ? सुमित्रा के शंका होय लगल ।)    (मपध॰11:15:26:2.19)
145    सतमा (= सातवाँ) (तीनों बेटा-बेटी के कुछ पढ़ा देलक चाची, कोय सतमा,  कोय अठमा, तऽ कोय मैटरिक ।)    (मपध॰11:15:24:1.6)
146    सधुअइ (अजी सब दिन तऽ चल गेल तोहर खोराकी, अब नञ् कमइबऽ तऽ तोहर बाल-बच्चा के खोराकी के पूरा करत ? ई लेल सधुअइ वला रूप छोड़ऽ आउ किसान मजूर वला रूप लावऽ !)    (मपध॰11:15:23:3.9)
147    सनसन (बैल भी दू गो रखथ छटछट, हर चले में सनसन, दिन भरके काम दुपहरिये भर में हो जाय । बैल के खोल देथ आरी-आरी चले ले । बैलो ले कुट्टी-सानी मोके पर सान देथ ।)    (मपध॰11:15:17:2.4)
148    सरबेटा (= सारा/ साला का बेटा) (एक बेरी तालोबाबा के ससुरार में सरबेटा के बिआह हल, से तालोबाबा के सारा लेताहर अइला । परनाम-पाती भेल, नस्ता भोजन भेल, ओकर बाद सारा बोललका - मेहमान, मोहना के सादी हे, तनी मैयाँ के जाय देहो ।)    (मपध॰11:15:17:3.16)
149    सरवा (= सारा+'आ' प्रत्यय) (मिट्ठा घर में रहऽ हे तो बनल खाना हे । जखने मन आवे, रस घोर के पी लऽ, रोटी-रावा खा लऽ, दूध-भात भी खा लऽ, भुँजा-मिट्ठा खा लऽ, भगवान अजबे बनउलका हऽ मिट्ठा के । मुदा हाँ, अगोरी पुरजोर करे परऽ हे । नञ् तो सरवन बुतरुन सब मुँहें में पेर दे ।; जे करे दोसरा के बल, से परे देवी के बल । हम गो-जानवर के सेवा ले गेलूँ हल अउ गाँववला हमरा से अइसन इन्साफ कइलक । हे भगवान ! अब केकरो हीं नञ् जाम अउ देखऽ ही कौन सरवा के दम हे कि हमरा जीते जी एगो खेर्हो उठा के ले जाहे ।)    (मपध॰11:15:18:3.23, 19:3.27)
150    सवादना (एतने में फैसनिया के नजर सुमित्रा के नजर से टकरा गेल । ओकरा भाख गेल कि ई सामनेवाली हमरा सब के सवादइत हथन, त ऊ तनी सकुचा गेलन । आ तनी-तनी देर पर कनखिया के सुमित्रा ओरी देखियो लेवे ।)    (मपध॰11:15:26:2.7)
151    साँझ-संझौती (अखनी घर में एकसरे हियो, खाली बूढ़ी माय हे घर में । हलाँकि रात ले रोटी बना देलूँ हे, मुदा साँझ-संझौती देवे के चाही ने ।)    (मपध॰11:15:18:2.33)
152    साँझे-बिहने (तालोबाबा जानवर-धूर के दवाइयो-दारू जानऽ हला । खचड़ा से खचड़ा गाय-भैंस के अप्पन ताकत अउ हिकमत से सुधार देथ । तभिये तो साँझे-बिहने कोय ने कोय बोलावे ले अइते रहे ।)    (मपध॰11:15:17:2.11)
153    सिआई (= सिलाई) ("बाबा ! हम तोर सिआई के पइसा न दे सकली हे ।" धोकरी टोके आउ एन्ने-ओन्ने देखके हार-दार के ऊ युवक कहलक हल ।)    (मपध॰11:15:59:1.19)
154    सिरगरम (= गुनगुना, हलका गरम) (तालोबाबा गेला, जानवर के कान टोलका, देह छुलका, नाक के स्वाँसा भिर तरहँत्थी भिरका के देखलका अउ बोलला - हाँ, एकर मन दब हउ । जो तों, दोकनियाँ से टेरामाइसीन गोली लेले आउ एगो रोटी में खिला दीहँऽ । एकरा तनी पानी पिलाहीं हल सिरगरम करके ।)    (मपध॰11:15:18:2.21)
155    सिहाल (~ नजर से देखना) (खल्ली-चुन्नी भरपूर देथ, जेकरा से भैंस मोटाऽ के पलीस होल रहे । चिक्कन ढुर-ढुर, गिआरी में पंचकाड़ी घंटी आउ सींघ तेल से चपचप । जने खोल के ले जाथ ओने अदमी टुकटुक सिहाल नजर से देखे ।)    (मपध॰11:15:17:1.20)
156    सींघ-माँग (हाँ, एकर मन दब हउ । जो तों, दोकनियाँ से टेरामाइसीन गोली लेले आउ एगो रोटी में खिला दीहँऽ । एकरा तनी पानी पिलाहीं हल सिरगरम करके । लाउ सींघ-माँग में तेल दे दिअउ । गरमी के दिन हे, अगेआस खराबी करत । अउ हमरा हीं अइहँऽ, एगो दवाय देबउ, जेकरा से साँझ तक ठीक हो जइतउ ।)    (मपध॰11:15:18:2.22)
157    सुतलकी (= सुतल औरत; सोई हुई औरत) (बाकि ई फैसनिया काहे सक-फक में पड़ल हइ ? सुमित्रा के शंका होय लगल । अबोध बालक अइसन उहे तमाशा जाने ला एकर मन चिलबिलाय लगल । उड़ंतु नजर से सुमित्रा ओने तकलक त देखलक कि दुन्नु सुतलकी के बीच में जगह बना के टाँग पसार के, टाँग पर टाँग चढ़ा के बइठल हे आ खैनी रगड़ रहल हे ।)    (मपध॰11:15:26:2.23)
158    सोवादना (= सवादना; स्वाद लेना) (आम, अमरूद, जामुन आ इमली के पेंड़ पर चढ़के कहाँ सोवादलक हे ? अब सब कुछ जान जायत ।)    (मपध॰11:15:58:3.35)
159    सोहनी-कोड़नी (बूढ़ी सास। चले-फिरे से लाचार । बेचारी सोहनी-कोड़नी करऽ हल । घाँस-भूसा लावऽ हल, गोबर-गोइठो करऽ हल ।)    (मपध॰11:15:58:2.10)
160    हर-हेरान (खैनी के चुटकी में लेके ठोर तर जाँत लेलक आ कुछ देर पथराएल अइसन बइठल रहल । एकबैग अप्पन पीठ खजुआवे लगल । कबो पेट खजुआवे त कबौ पंजरा । पीठ के नोचनी से तऽ ऊ हरे-हरान हो गेल ।)    (मपध॰11:15:26:3.14)
161    होसगर (अइसन नञ् कि तालोबाबा सब दिन चौकिये तोड़इत रहऽ हला । जहिना से होसगर होला, खेती-गिरहस्ती जानवर-धूर करते रहला। भैंस अइसन रखथ कि पास-पड़ोस के अदमी देखे आवे ।)    (मपध॰11:15:17:1.11)
 

1 comment:

kunal said...

Great work guys.You are keeping this old langguage alive for next gen.Keep it up