मूल रूसी - मिख़ाइल
ज़ोश्शेन्को (1895-1958) मगही अनुवाद - नारायण प्रसाद
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धनी फिकिर करऽ हइ अपन चेहरा के, त गरीब अपन गेनरा के ।
धनी फिकिर करऽ हइ अपन चेहरा के, त गरीब अपन गेनरा के ।
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कोय व्यक्ति के आदर
आउ प्रशंसा करे से अद्भुत परिणाम निकलऽ हइ । एकर प्रभाव से अक्षरशः कइएक गुण आउ
विशेषता खिल्लऽ हइ, जइसे
सुबह होला पर गुलाब ।
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नगरपालिका
के हमन्हीं के फ्लैट में एगो किरायेदार के पास गाँव से ओकर बाप अइलइ ।
ओकर
आवे के कारण ई हलइ कि ओकर बेटा बेमार हलइ । अइसन नयँ होला पर शायद ऊ जिनगी भर कभी
लेनिनग्राद
(पितिरबुर्ग)
नयँ देखत हल । लेकिन चूँकि ओकर बेटा बेमार हलइ, ओहे
से ऊ अइलइ ।
ओकर
बेटा हमन्हीं के किरायेदार हलइ । आउ ऊ एगो रेस्तोराँ में बैरा के काम करऽ हलइ । ऊ
हुआँ भोजन परसऽ हलइ आउ अच्छा बेवहार के चलते लोग ओकरा मानऽ हला ।
शायद
ऊ आउ अपना के बेहतर साबित करे खातिर एक दिन अपन रात के कुछ जादहीं काम करे के चलते
बहुत गरमी महसूस कइलक,
आउ फेर जोश में बाहर गली में आ गेल, ई सोच के कि घर चल जाम, आउ
वास्तव में एकर नतीजा ई होल कि ओकरा जोर के सरदी पकड़ लेलक । सरदी
तो पहिले सिर तक सीमित रहल आउ सात दिन तक छींकते रहल । लेकिन बाद में सरदी ओकर
छाती तक फैल गेल,
आउ बोखार अचानक चढ़के 40 डिग्री सेंटीग्रेड (104 डिग्री फारेनहाइट) तक पहुँच गेल ।
एकरो
अलावे, सांस्कृतिक छुट्टी के समय गुजारे ल चाह के, ऊ पुरनका शहर पावलोस्क (लेनिनग्राद
से करीब 10
कोस दूर) गेल
राजमहल देखे लगी,
आउ हुआँ ओकर कमर में थोड़ा मोच आ गेल, अपन घरवाली के रेलगाड़ी में चढ़ावे के चक्कर में ।
ई
सब कुछ मिल्लल-जुल्लल घटना ओकर पूरा जमानिये में बेमारी के उदास तस्वीर बना देलक ।
आउ
स्वभाव से शक्की मिजाज के होवे से हमर बेचारा बैरा के दिमाग में बैठ गेल कि ऊ अब
कभियो ठीक नयँ होत,
आउ जइसन कि कहल जा हइ, अब आगे ऊ अपन ड्यूटी ठीक से नयँ कर पात । आउ
एहे कारण से एकर बाद ऊ अपन बाप के लेनिनग्राद आवे लगी कहलक, ताकि ऊ उनका से अन्तिम विदाई ले सके ।
ई
बात नयँ हलइ कि ऊ अपन बाउ के बहुत मानऽ हलइ आउ ओहे से अपन जिनगी के सूर्यास्त के
बखत कइसूँ अपन बाउ से भेंट करे ल चाहऽ हलइ, बल्कि
एकर उलटा,
चालीस साल तक ऊ अपन बाउ के खोज-खबर नयँ
लेलके हल आउ अपन जिनगी के अस्तित्व के तथ्य के बारे बिलकुल लापरवाह रहले हल । लेकिन ओकर घरवाली, अपन मरदाना के ओइसन असंभव तरह के उच्चा बोखार देखके, तुरते स्वाभिमान के बात सोच के - जइसन कि कहल जा हइ कि सब लोग
अइसे करऽ हका - बाउ के टेलिग्राम भेजलकइ, ई सूचना के साथ कि लेलिनग्राद आ जाथिन, अपने के बेटा बेमार हथिन ।
आउ
जब बेटा के हालत सुधरे लगलइ, ई देखके सबके अचरज होल कि ओकर बाउ बहुत
दूर के गाँव से लेनिनग्राद पहुँच गेल, छाल के जुत्ता
(bast
shoes) पेन्हले, पीठ
पर एगो झोला लटकइले आउ एगो लाठी लेले । सच तो ई हलइ, जइसन
कि बाद में पता चललइ,
बुढ़उ के झोलवा में
बूट हलइ,
लेकिन आम तौर पे ऊ नयँ पेन्हऽ हलइ । ओकर
कहना हलइ - "धनी अपन चेहरा के फिकिर करऽ हइ, त गरीब अपन गेनरा के ।"
वास्तव
में, सब्भे आउ ओकर बेटवो ई समझलक हल कि ऊ होत बिलकुल सीधा-सादा, आउ कुछ हद तक धार्मिक विचार वला कोय सत्तर साल के बूढ़ा जे
धार्मिक बात करे वला आउ सब कुछ से डरे वला होत । लेकिन ऊ निकसल बिलकुल, कि कहल आवे, उलटा ।
मालूम
पड़ल कि बुढ़उ विरल रूप के एगो झगड़ालू हलइ, थोड़े कलहकारी, बदतमीज
आउ झूठा । एकरा अलावे,
हलाँकि ऊ क्रान्तिविरोधी तो नयँ हलइ, लेकिन ऊ राजनीति के मामले में बहुत पिछड़ा हलइ ।
जइसहीं
घर के ड्योढ़ी पर पहुँचलइ, कि ऊ चौकीदार से उलझ गेलइ आउ एगो जवान
लड़का के कान ऐंठ लेलकइ,
जे अपन चाचा के पास अतिथि के रूप में
अइले हल,
जे हियाँ बारह साल से रह रहले हल ।
बाद
में ऊ किरायेदार के दफ्तर के अध्यक्ष (चेयरमैन) से अइसन बतकुच्चन कइलक कि चेयरमैन
के ई बात के अचरज होल कि आधुनिकता के बारे कइसन-कइसन विचारधारा होवऽ हइ, आउ ऊ एकरा बारे बुढ़उ के निवास स्थान में रिपोर्ट भेजे ल चाहलक
।
ई
सब के अलावे,
ई आल बुढ़उ तुरते दफ्तर में पूछताछ कइलकइ
कि हमरा लेनिनग्राद में स्थायी रूप से रहे लगी मिल सकऽ हइ कि नयँ । ई बात से अपन
बेटा के मानूँ डराइए देलकइ ।
वास्तव
में बुढ़उ अपने आप में,
शायद, अपेक्षाकृत
भला अदमी हलइ,
लेकिन ओकरा आवे के पहिलहीं दिन से करीब
सब के सब हुआँ रहेवला के सांस्कृतिक दृष्टि से (यानी बात-बेवहार से) पिछड़ा लगलइ । ऊ
सब्भे ओकरा जरी चिढ़ावे लगलइ, ओकर मजाक उड़ावइ, जइसे
कोय मूरख होवे,
आउ ओकर गँवारू तौर-तरीका पर हँस्सइ । आउ
हरेक अदमी ओकरा से कुछ तो बकवास करइ, जइसे कि जब कभी चौकीदार से भेंट होवइ त
ऊ मुरगा के अवाज में बोलइ - "ए लड़का, कौन
सामूहिक फार्म से अइलऽ ह ?"
ओकर
बैरा बेटा गवरिलोव भी बाकी सब के मनोदशा जइसने बेवहार करइ आउ दोसरा तुरी तो जानबूझ
के अखबार पढ़े के ढोंग करते, हँसी से बुढ़उ से बोललइ - "बाउ, आझ बाहर नयँ जइहऽ - लोग धूसर आउ लाल दाढ़ी-बाल वला के घेरे वला
हको ।"
निस्सन्देह
ई सब, कुछ हद तक प्रेम से आउ बिना कोय दुर्भावना के कइल
गेलइ, लेकिन तइयो, जइसन कि कहल जा हइ, शायद ई सब कुछ ऊ आवल बुढ़उ के अच्छा नयँ लगलइ, जे अब तक बहत्तर साल जी चुकले हल, आउ
शायद ऊ कुल्हे के एकट्ठा मिलइलो पर अधिक बुद्धिमान हलइ । लेकिन ऊ सब एकरा
सीधा-सादा,
मूरख आउ अनाड़ी किसान समझऽ हलइ आउ ओकरा
साथ अइसहीं बेवहार करऽ हलइ ।
आउ
स्वाभाविक हइ कि
ई सब कुछ के ओक्कर बेवहार पर नकारात्मक
असर पड़लइ ।
आउ
जेतना दिन ऊ रहलइ,
हमेशे कोय
न कोय बखेड़ा खड़ा होलइ । हो-हल्ला, गर्रम-गारी, आउ
अइसने बहुत कुछ ।
आउ
हद से जादे तो तब हो गेलइ जब आवे के सतमा दिन एगो सार्वजनिक बियर बार में पीके
मत्त हो गेलइ आउ हुआँ हंगामा मचावे लगलइ । हियाँ तक कि ओकरा सब कोय मिलिशिया [1] के सौंप देवे ल चहलकइ । लेकिन ऊ कइसूँ सबसे छिपके गल्ली में मटरगस्ती करे ल बहरा
गेलइ ।
आउ
इका ऊ गल्ली में गीत गइते जा रहल ह - एगो बुड्ढा, उज्जर
केश वला आउ गँवार वेश-भूषा में; बहुत सीधा-सपट्टा । ऊ गल्ली में जा रहल
ह, जा रहल ह आउ अचानक ओकरा मालूम होवऽ हके कि हम रस्ता भुला गेलूँ
ह ।
निस्सन्देह
ई असंगत बात हइ कि ऊ भुला गेलइ जबकि ओकरा निवास-स्थान के पता मालूम हकइ । लेकिन
पीके मत्तल रहे से ऊ डर गेलइ आउ ओकर नशो जरी उतर गेलइ ।
ऊ
एगो रहगीर के रस्ता पुछलकइ । लेकिन रहगीर के ओकर जाय वला जग्गह के बारे मालूम नयँ
हलइ । ऊ ओकरा मिलिशिया से पुच्छे लगी सलाह देलकइ ।
निस्सन्देह, हमर बुढ़उ पोस्ट पर खड़ी मिलिशिया के सिपाही के बिलकुल पास जाय
से डर गेलइ आउ चिन्ता में आउ दू-तीन महल्ला आगे चल गेलइ ।
लेकिन
आखिर ऊ पोस्ट पर तैनात एगो मिलिशिया के सिपाही भिजुन जरी सवधानी से गेलइ, ई सोचते कि ऊ सीटी बजवे ल चालू कर देत आउ हमरा पर चिल्लाय लगत
। लेकिन ऊ अन्दरूनी अनुशासन के मोताबिक आगन्तुक के साथ आदर के
साथ पेश अइलइ आउ उज्जर दस्ताना लग्गल हाथ के टोपी के चोटी तक उठाके सलाम कइलकइ ।
हंगामा
खातिर तैयार आउ एकर अभ्यस्त बुढ़उ ई अप्रत्याशित आदर-सम्मान से भौंचक्का हो गेलइ आउ
ओकर मुँह से कुछ शब्द निकललइ जेकर ई प्रसंग से कुछ लेना-देना नयँ हलइ । आउ
ड्यूटी पे तैनात सिपाही ओकरा ई पूछके कि काहाँ जायके हको, ई
बता देलकइ कि कइसे जाय के चाही आउ दोबारा ओकरा सलामी देके अप्पन काम में लग गेलइ ।
लेकिन
ई आदर आउ शिष्टाचार के छोटहीं गो संकेत, जे कभी सेनापति आउ सामन्त सब लगी
अभिप्रेत हलइ,
हमर आगन्तुक बुढ़उ पर असाधारण प्रभाव
डललकइ । बुढ़उ तो काँपे लगलइ, जब संतरी दोसरा तुरी सलामी देलकइ, आउ ई तरह से साबित होलइ कि एकरा में कोय गलतफहमी नयँ हलइ, आउ सब कुछ ओहे बात हलइ जइसन ओकरा देखे में लग रहले हल ।
आउ
तब बुढ़उ,
जइसन कि बाद में पता चललइ, फेर से दोसर संतरी बिजुन गेलइ आउ दोबारा ओकरा सलामी मिललइ, जे ओकर कमजोर दिल के आउ अधिक छू लेलकइ ।
वस्तुतः
हमरा ई मालूम नयँ कि अइसनो सम्भव हो सकऽ हइ कि अइसन छोट घटना ओकर चरित्र पर असर
कइलकइ, लेकिन सब्भे के देखे में अइलइ कि बुढ़उ घर लौटलइ एगो बहुत उँचगर
आत्मसंयमी के रूप में,
आउ चौकीदार के सामने से गुजरते बखत ओकरा
साथ हमेशे के तरह विवाद नयँ कइलकइ, आउ चुपचाप ओकरा सलाम करके अपन क्वाटर में
चल गेलइ ।
मालूम
नयँ, कि अइसनो हो सकऽ हइ कि अइसन छोट्टे गो बात आउ अइसन, वस्तुतः लगभग नगण्य, बात एतना बड़गर भूमिका अदा कर सकऽ हइ कि
चरित्रे बदल दे,
लेकिन सब्भे कोय देखलकइ कि बाप गवरिलोव
के साथ कुछ तो बहुत उच्चा दर्जा के मौलिक परिवर्तन अइलइ ।
कोय
देखलकइ कि कइसे ऊ अपन घर के पास के गल्ली के छोर पर दू तुरी मिलिशिया के सिपाही
बिजुन गेलइ आउ ओकरा साथ नम्रतापूर्वक बातचीत कइलकइ ।
आउ
कइएक मोटगर बुद्धिवाला अइसन परिवर्तन देखके ई अनुमान लगइलकइ कि ई सब ऊ डर के चलते
होलइ जे बुढ़उ ऊ बखत अनुभव कइलकइ जब ओकरा लोग घसीट के मिलिशिया के सौंपे ल सोचलका
हल । लेकिन कुछ लोग एकर दोसरे अर्थ लगइलका ।
आउ
हम्मर क्वाटर में रहे वला, मधुमेह रोग से ग्रस्त, एगो बुद्धिजीवी के ई घटना के बारे कहना हलइ - "हमर हमेशे के ई धारणा रहल ह कि कोय व्यक्ति के आदर आउ प्रशंसा
करे से अद्भुत परिणाम निकलऽ हइ । एकर प्रभाव से अक्षरशः कइएक गुण आउ विशेषता
खिल्लऽ हइ, जइसे सुबह होला पर गुलाब ।"
अधिकतर
लोग ओकरा से सहमत नयँ होलइ, आउ हमर क्वाटर में ई वाद-विवाद बिना कोय
निष्कर्ष के रह गेल ।
आउ
करीब तीन दिन के बाद बाप गवरिलोव अपन बेटा से कहलकइ कि घर के जरूरी काम होवे से
हमरा गाँव लगी प्रस्थान करे पड़त ।
हमर
क्वाटर के कुछ लोग,
जे बुढ़उ के साथ पहिले भद्दा मजाक-उजाक
कइलका हल,
ओकरा लगी बुढ़उ के सामने प्रायश्चित्त
करे के विचार से स्टेशन तक ओकरा छोड़े गेला । आउ जब गाड़ी चल पड़लइ, त बाप, जे खुल्लल दरवाजा के सामने खड़ी हलइ, सब्भे के विदाई के सलामी देलकइ । आउ सब्भे हँस पड़ला, आउ ओहो हँस देलकइ आउ अप्पन जनमभूमि चल गेलइ ।
आउ
हुआँ ऊ,
शायद, अब
अपन बेवहार में लोग के प्रति शिष्टाचार से पेश आत । आउ एकरा से ओकर जिनगी आउ अधिक
खुशहाल आउ सुखमय होत ।
[प्रथम
प्रकाशन :
1936]
नोट:
[1] मिलिशिया
- पैदल सेना, जेकरा आम जनता में से चुनके आउ थोड़े स ट्रेनिंग देके
तैयार कइल जा हइ ताकि आपातकालीन समय में नियमित सेना के पूरक के रूप में काम कर
सकइ ।
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