कालापानी
(साइबेरिया में जेल के जिनगी)
भाग-1; अध्याय-11: नाटक मंचन
क्रिस्मस
उत्सव के तेसरा दिन, साँझ के, हमन्हीं के थियेटर में पहिला नाटक मंचन होलइ [1] । प्रबंधन
लगी प्रारंभिक दौड़-धूप, शायद, बहुत हलइ, लेकिन अभिनेता लोग सब भार खुद पर ले लेते गेले
हल, ओहे से हमन्हीं बाकी सब्भे के एहो नयँ मालूम हलइ - मामला कउन स्थिति में हइ ? ठीक-ठीक
कउची कइल जा रहले ह ? एहो ठीक से नयँ जानऽ हलिअइ, कि कउन नाटक के मंचन होतइ । अभिनेता
ई सब दिन, काम पर बाहर गेला पर, यथासंभव जादे से जादे पोशाक संग्रह करे के प्रयास कइलके
हल । बकलूशिन, हमरा से मिलला पर, खाली खुशी से अपन अँगुरी तोड़ऽ हलइ । लगऽ हइ, मेजर
के भी ठीक मूड में पावल गेलइ । लेकिन हमन्हीं बिलकुल अनजान हलिअइ, कि ओकरा थियेटर के
बारे मालूम हइ कि नयँ । अगर जानऽ हलइ, त की ऊ औपचारिक रूप से अनुमति दे देलके हल, कि
फेर खाली चुप रहे के निर्णय कर लेलके हल, कैदी लोग के मनोरंजन के प्लान लगी अपन हाथ
लहरा देलके हल, जाहिर हइ, कि खाली ई बात के पक्का करके कि सब कुछ यथासंभव ठीक-ठाक रहइ?
हमरा लगऽ हइ, ऊ थियेटर के बारे जानऽ हलइ, अइसन नयँ हो सकऽ हइ कि नयँ जान सकऽ हलइ; लेकिन
बीच में टाँग अड़ावे लगी नयँ चाहऽ हलइ, ई सोचके, कि अगर ऊ प्रतिबंध लगावऽ हइ, त परिस्थिति
आउ बत्तर होतइ - कैदी लोग शरारत करे लगी आउ पीए लगी शुरू कर देते जइतइ, ओहे से कहीं
जादे बेहतर ई होतइ, कि ओकन्हीं के कोय चीज में व्यस्त रहे देल जाय । लेकिन हमर अनुमान
हइ कि मेजर के दिमाग में अइसन तर्क खाली ई कारण से हो सकऽ हलइ, कि ई सबसे स्वाभाविक
हइ, सबसे विश्वसनीय आउ विवेकपूर्ण हइ । एहो कहल जा सकऽ हइ - कि अगर कैदी लोग के उत्सव
के दौरान थियेटर, चाहे अइसने तरह के कउनो चीज व्यस्त रक्खे के माध्यम नयँ होते हल,
त खुद प्राधिकारी के एकरा बारे सोचे पड़ते हल । लेकिन चूँकि हमन्हीं के मेजर के सोच,
शेष मानव जाति के सोच के अपेक्षा, बिलकुल विपरीत हलइ, त ई बहुत संभव हइ, कि हम खुद
पर बड़गो पाप ले रहलिए ह, ई मानके, कि ऊ थियेटर के बारे जानऽ हलइ आउ एकर अनुमति दे देलके
हल । मेजर जइसन अदमी के सगरो केकरो न केकरो दबावे के हलइ, कुछ चीज से दूर कर देवे के,
केकरो अधिकार से वंचित कर देवे के हलइ - एक शब्द में, कहीं व्यवस्था स्थापित करे के
हलइ । इ संबंध में ऊ पूरे शहर में मशहूर हलइ । एकरा से ओकरा की मतलब हलइ, कि ठीक ई
पाबंदी के चलते जेल में कोय उपद्रव खड़ी हो सकऽ हलइ ? उपद्रव पर दंड के विधान हइ (हमन्हीं
के मेजर नियन सोचे वला लोग हइ), आउ बदमाश कैदी लोग खातिर कड़ाई आउ सतत शब्दशः कानून
के अनुपालन - बस एतने हइ, जेकर जरूरत हइ ! कानून के ई अनाड़ी निष्पादक के बिलकुल समझ
में नयँ आवऽ हइ, आउ न समझे के हालत में रहऽ हइ, कि बिन तार्किक आधार के, बिन एकर भाव
समझले, खाली एकर शब्दशः अनुपालन, सीधे अव्यवस्था पैदा करऽ हइ, आउ कभियो दोसर चीज के
कारण नयँ बनले ह । "ई तो कानून में कहल गेले ह, त आउ अधिक की चाही ?" ओकन्हीं
बोलऽ हइ आउ वास्तव में अचंभित हो जा हइ, कि ओकन्हीं से आउ कुछ के माँग कइल जा हइ, कानून
के अलावे, विवेकपूर्ण तर्कशक्ति आउ विवेकशील दिमाग । ई अंतिम वला विशेष करके ओकन्हीं में से कइएक लोग
के अनावश्यक लगऽ हइ, आउ निंदनीय विलासिता, प्रतिबंध, असहनीयता ।
लेकिन
मामला जे कुछ रहइ, वरिष्ठ सर्जेंट कैदी लोग के विरोध नयँ कइलकइ, आउ ओकन्हीं के एहे
तो चाही हल। हम तो निश्चयपूर्वक कहबइ, कि थियेटर आउ ई बात के कृतज्ञता कि एकर अनुमति
देल गेलइ - कारण हलइ, कि जेल में छुट्टी के दौरान एक्को गंभीर अव्यवस्था के घटना नयँ
होलइ - एक्को हिंसात्मक झगड़ा नयँ, एक्को चोरी-चमारी नयँ । हम खुद ई बात के गोवाह हलिअइ,
कि रंगरेली मनावे वलन चाहे झगड़ा-झंझट करे वलन के कैदी लोग खुद शांत कर देते जा हलइ,
खाली ई कारण से कि थियेटर पर प्रतिबंध लगा देल जइतइ । सर्जेंट कैदी लोग से ई वचन ले
लेलके हल, कि सब कुछ शांत रहतइ आउ लोग निम्मन से व्यवहार करतइ । ओकन्हीं खुशी से सहमत
हो गेते गेले हल आउ पवित्रतापूर्वक देल वचन के पूरा करते गेलइ; ओकन्हीं ई बात से बहुत
आनंदित भी होलइ, कि ओकन्हीं के बात पर विश्वास कइल गेलइ । तइयो ई कहल जा सकऽ हइ, कि
थियेटर के अनुमति देवे में प्राधिकारी के निश्चय ही कुछ खर्च नयँ होलइ, कोय चंदा वगैरह
नयँ । पहिलहीं से कोय जगह के छेंकल-छाकल नयँ गेलइ - कुल्लम कोय पनरह मिनट में स्टेज
बना लेवल आउ ओकरा हटा लेवल जा सकऽ हलइ । नाटक डेढ़ घंटा चललइ आउ अगर अचानक उपरे से औडर
अइते हल नाटक मंचन के बन करे लगी - त मामला एक पल में निपटा देल जइते हल । पोशाक सब
कैदी के संदूक में नुकावल हलइ । लेकिन ई बात कहे के पहिले कि थियेटर कइसे स्थापित कइल
गेलइ आउ पोशाक कउन प्रकार के हलइ, थियेटर के विज्ञापन के बारे बतावे लगी चाहबइ, मतलब
ठीक-ठीक कइसन नाटक के मंचन कइल जाय के प्रस्ताव हलइ ।
वस्तुतः
कोय लिखित विज्ञापन नयँ हलइ । दोसरा आउ तेसरा नाटक के एगो विज्ञापन, हलाँकि, निकसलइ,
जे बकलूशिन द्वारा लिक्खल गेले हल - जे भलमानुस अफसर लोग आउ साधारणतः उदार आगंतुक लगी
हलइ, जे हमन्हीं के पहिलौका नाटक के मंचन के अवसर पर अपन उपस्थिति से हमन्हीं के थियेटर
के सम्मान प्रदान करते गेलथिन हल । अर्थात् - भलमानुस लोग में से साधारणतः गार्ड अफसर
आवऽ हलइ, आउ एक तुरी खुद गार्ड के कमांडर अइले हल । एक तुरी इंजीनियर अफसर भी अइले
हल; त एहे आगंतुक लोग के आवे के संभावना के ध्यान में रखके विज्ञापन तैयार कइल गेले
हल । ई मान लेल गेले हल, कि थियेटर के कीर्ति, किला में दूर-दूर तक गुँजतइ आउ शहरो
में, विशेष करके ई कारण से कि शहर में कोय थियेटर नयँ हलइ । अफवाह हलइ, कि एक नाटक
के मंचन (शहर के) शौकिया लोग के द्वारा कइल गेले हल, आउ बस (बात एतने तक रह गेलइ) ।
कैदी लोग, बुतरू नियन, जरिक्को सनी सफलता पर खुश हो जा हलइ, घमंड भी करऽ हलइ ।
"वस्तुतः केऽ जानऽ हइ", ओकन्हीं सोचऽ हलइ आउ अपने आप से आउ आपस में बोलऽ
हलइ, "शायद, सबसे उच्च अधिकारीवर्ग के मालूम पड़तइ; त उनकन्हीं अइते जइता आउ देखता;
तखने उनकन्हीं के पता चलतइ, कि कैदी लोग कउन प्रकार के हकइ । ई साधारण सैनिक के नाटक
मंचन नयँ हइ, कोय प्रकार के हौआ के साथ, तैरते नाय के साथ, एन्ने-ओन्ने घुमते भालू
आउ बकरी के साथ । हियाँ परी वास्तविक अभिनेता सब उच्चवर्गीय हास्य नाटक खेलते जा हइ;
अइसनका थियेटर शहरवो में नयँ हइ । जेनरल (सेनापति) अब्रोसिमोव के हियाँ एक तुरी, कहल
जा हइ, नाटक मंचन कइल गेले हल आउ अभियो होतइ; लेकिन शायद खाली पोशाक के मामले में ओकन्हीं
हमन्हीं से बेहतर होतइ, लेकिन संवाद (dialogue) के मामले में, अभियो केऽ जानऽ हइ, शायद
हमन्हीं बेहतर करबइ ! शायद ई बात गवर्नर तक पहुँचतइ, आउ - शैतान कउन मामले में मजाक
नयँ करऽ हइ ? - शायद, खुद्दे आके देखे लगी चाहथिन । शहर में तो कोय थियेटर नयँ हइ
..." एक शब्द में, कैदी लोग के कल्पना, विशेष करके पहिलौका सफलता के बाद, छुट्टी
के दौरान अइसन चरमोत्कर्ष तक पहुँचलइ, कि लगभग पुरस्कार चाहे कठोर श्रम के अवधि में
रियायत तक के कपोल-कल्पना करे लगते गेलइ, हलाँकि साथे-साथ खुद्दे ओकन्हीं लगभग अपने
आप पर सु-स्वाभाविक रूप से हँस्से लगलइ । एक शब्द में, एकन्हीं बुतरू हलइ, बिलकुल बुतरू,
ई बात के बावजूद, कि ई बुतरुअन में से कुछ के उमर चालीस साल के आसपास हलइ । लेकिन,
ई बात के बावजूद, कि कोय विज्ञापन (पोस्टर) नयँ हलइ, मंचन कइल जाय वला नाटक के मुख्य
रूपरेखा हमरा पहिलहीं से मालूम हलइ । पहिलौका नाटक हलइ - "फ़िलात्का आउ मिरोश्का
- दू प्रतिद्वंद्वी" [2] । बकलूशिन मंचन के एक सप्ताह पहिलहीं हमरा सामने शेखी
बघार रहले हल, कि खास फ़िलात्का के भूमिका, जे ऊ अपन उपरे लेलके हल, अइसन प्रस्तुत कइल
जइतइ, कि जइसन सांक्त-पितिरबुर्ग के थियेटर में भी कभी नयँ देखल गेले ह । ऊ बैरक सब
के चक्कर मारते रहऽ हलइ, क्रूरतापूर्वक आउ निर्लज्जतापूर्वक, लेकिन साथे-साथ बिलकुल
सुस्वाभाविकता से, आउ कभी-कभी कुछ तो "थियेटर के अनुसार" कह देइ, मतलब नाटक
में अपन भूमिका के अनुसार - आउ सब लोग हँस पड़इ, चाहे ओकर बोलल संवाद हास्यजनक रहइ,
चाहे नयँ । तइयो ई स्वीकार कइल जाल चाही, कि हियाँ भी कैदी लोग खुद के नियंत्रण में
आउ अपन गौरव के सुरक्षित रख सकऽ हलइ - बकलूशिन के हरक्कत आउ थियेटर के भविष्य के कहानी
के बारे ओहे अतिहर्षित होवऽ हलइ, जे या तो बिलकुल कम उमर के लड़कन आउ भोला-भाला लोग
हलइ, बिन कोय नियंत्रण के, चाहे कैदी लोग के बीच खाली सबसे महत्त्वपूर्ण हलइ, जेकर
रोब पूर्णतः स्थापित हलइ, जे से ओकन्हीं के सीधे अपन कइसनो संवेदना, बल्कि सबसे अधिक
सहज (मतलब, जेल के शब्दावली के मोताबिक, सबसे अनुचित) प्रकृति के काहे नयँ होवइ, अभिव्यक्त करे में भयभीत होवे लायक कुछ नयँ हलइ
। शेष लोग अफवाह आउ गपशप के चुपचाप सुन्नऽ हलइ, आउ ई सच हलइ कि ओकन्हीं न तो आक्षेप
करऽ हलइ आउ न विरोध करऽ हलइ, लेकिन यथाशक्ति थियेटर के बारे अफवाह से, भावशून्य होके
आउ आंशिक रूप से अभिमानपूर्वक भी, खुद के दूर रक्खे के प्रयास करते जा हलइ । खाली अंतिम
समय में, खास लगभग नाटक मंचन के दिन, सब कोय के रुचि होलइ - कउची होतइ ? हमन्हीं के
लोग (अभिनेता लोग) कइसन हइ ? मेजर के बारे की हाल-चाल हइ ? की ओइसीं सफलता मिलतइ, जइसन
कि पिछले साल होले हल? आदि आदि। बकलूशिन हमरा विश्वास देलइलकइ, कि सब्भे अभिनेता के
उत्तम ढंग से चुन्नल गेले ह, हरेक कोय "अपन भूमिका लगी उचित हइ" । कि परदो
होतइ । कि फ़िलात्का के दुलहिन के भूमिका सिरोत्किन अदा करतइ - "आउ अइकी अपने खुद्दे
देखथिन कि ऊ औरतानी पोशाक में कइसन लगऽ हइ !" - आँख मिचकइते आउ जीभ चटकइते (clicking) ऊ बोललइ ।
उदार ठकुराइन चुनट वला पोशाक में आउ पिलिरिनका (pelerinka) में होतइ, आउ हाथ में छतरी
होतइ, जबकि उदार ठाकुर (जमींदार) स्कंधिका (aiguilettes) सहित अफसर कोट में आउ हाथ
में छड़ी के साथ निकलतइ । ओकरा बाद दोसरका प्रभावशाली नाटक होतइ - "पेटू केद्रिल"
। ई शीर्षक में हमरा उत्सुकता पैदा होलइ; लेकिन हम केतनो ई नाटक के बारे पूछताछ कइलिअइ
- पहिलहीं कुच्छो हमरा पता नयँ चल पइलइ । खाली एतने मालूम पड़लइ, कि एकरा कोय पुस्तक
से नयँ लेल गेले ह, बल्कि एगो "पांडुलिपि" से; कि ई नाटक उपनगरीय क्षेत्र
में रहे वला कोय सेवा-निवृत्त सर्जेंट के हियाँ से मिलले हल, जे शायद खुद कभी कोय मिलिट्री
स्टेज पर एकर मंचन में भाग लेलके हल । हमन्हीं के दूर-दराज के शहर आउ गुबेर्निया (प्रांत)
में वास्तव में अइसन थियेटर के नाटक हइ, जे शायद केकरो नयँ मालूम हइ, कहूँ कभियो नयँ
छपलइ, लेकिन जे खुद्दे कहीं से तो प्रकट होलइ आउ रूस के कुछ निश्चित क्षेत्र में हरेक
लोकनाट्य के अनिवार्य अंश हइ । प्रसंगवश - हम "लोकनाट्य" के उल्लेख कइलइ
। बहुत, बहुत निम्मन होबइ, अगर हमन्हीं में से कोय शोधकर्ता नावा तरह से आउ पहिले के
अपेक्षा अधिक सावधानी से लोकनाट्य के मामले में शोध के काम में हाथ लगावइ, जे हइ, जेकर
अस्तित्व हइ आउ जे शायद बिलकुल महत्त्वहीन नयँ हइ । हम ई विश्वास नयँ करे लगी चाहऽ
हिअइ, कि बाद में जे कुछ हमन्हीं हीं, जेल के थियेटर में, देखलिअइ, ऊ सब हमन्हीं के
कैदी लोग के आविष्कार हलइ । हियाँ परंपरा के निरंतरता आवश्यक हइ, एक्के तुरी स्थापित
विधि आउ विचार लगी, जे पीढ़ी दर पीढ़ी आउ प्राचीन स्मृति के अनुसार स्थानांतरित होते
आब करऽ हइ । ई सब के खोज कइल जाय के चाही - सैनिक लोग के बीच, फैक्ट्री वला शहर में
फैक्ट्री में काम करे वलन के बीच, आउ कुछ अनजान गरीब छोटगर शहर में व्यापारी लोग के
बीच । एकरा सुरक्षित रक्खल गेले ह - गाँव आउ प्रांतीय शहर में बड़गर जायदाद के मालिक
लोग के घर में घरेलू दास लोग के बीच भी । हमर एहो विचार हइ, कि कइएक प्राचीन नाटक पांडुलिपि
के रूप में रूस भर में परिचारित आउ कोय दोसरा ढंग से नयँ, बल्कि घरेलू दास (serfs)
के माध्यम से हलइ । पहिले प्राचीन जमींदार लोग आउ मास्को के कुलीन घराना के लोग के
खुद के थियेटर हलइ, जेकरा में दास लोग अभिनेता होवऽ हलइ । आ एहे थियेटर में हमन्हीं
के लोकनाट्य कला के प्रारंभ होलइ, जेकर लक्षण अशंकनीय हइ । जाहाँ तक "पेटू केद्रिल"
के संबंध हइ, त हमरा केतनो चाहला पर पहिले ओकरा बारे कुच्छो जनकारी नयँ मिल पइलइ, सिवाय
ई बात के, कि स्टेज पर शैतान आवऽ हइ आउ केद्रिल के नरक में ले जा हइ । लेकिन केद्रिल
के की मतलब होवऽ हइ, आउ काहे केद्रिल आउ किरिल नयँ ? ई रूसी घटना हइ, कि विदेशी ?
- ई बात के हमरा बिलकुल पता नयँ चलल । आखिर में घोषणा कइल गेलइ, कि "संगीत के
साथ मूक अभिनय (pantomime)" होतइ । वास्तव में ई सब बहुत दिलचस्प हलइ । अभिनेता
कुल पनरह गो हलइ - सब्भे फुरतीला आउ बहादुर लोग । ओकन्हीं साथ में जामा होवऽ हलइ, रेहलसल
(रिहर्सल) करऽ हलइ, कभी-कभी बैरक के पीछू में, अपन बात रहस्यमय रखते जा हलइ, नुकइले
रक्खऽ हलइ । एक शब्द में, ओकन्हीं हमन्हीं सब के कुछ असाधारण आउ अप्रत्याशित से अचंभित
करे लगी चाहऽ हलइ ।
काम
के दिन जेल के जल्दीए बन कर देल जा हलइ, जइसीं रात होवे लगऽ हलइ । क्रिस्मस उत्सव के
बखत [3] अपवाद हलइ - ठीक साँझ के बिगुल बज्जे के पहिले तक गेट बन नयँ कइल जा हलइ ।
ई रियायत विशेष करके थियेटर लगी देल जा हलइ । छुट्टी के दौरान साधारणतः रोज दिन, साँझ
के पहिले, जेल से गार्ड अफसर के पास अत्यंत विनम्र निवेदन भेजल जा हलइ - "थियेटर
लगी अनुमति देल जाय आउ जेल के थोड़े आउ देर तक खुल्लल रक्खल जाय", आउ ई बात जोड़ते,
कि कल्हिंयों थियेटर हलइ आउ देर तक गेट नयँ बन कइल गेले हल, लेकिन तइयो कोय अव्यवस्था
नयँ होले हल । गार्ड अफसर अइसन तर्क कइलकइ - "अव्यवस्था तो सचमुच कल्हे नयँ हलइ;
आउ जइसन कि खुद्दे वचन देते जा हइ, कि आझो नयँ होतइ, मतलब, खुद अपनहीं ई बात के ध्यान
रखतइ, आउ ई सबसे सुरक्षित बात हइ । एकरा अलावे, अगर थियेटर के अनुमति नयँ देल जाय,
त, शायद (ओकन्हीं के केऽ जानऽ हइ ? लोग तो कैदी हइ !), जान-बूझके नफरत से कुछ न कुछ
गंदा चाल चलतइ आउ गार्ड लगी मुसीबत खड़ी करतइ" । आखिरकार, एहो - "पहरेदारी
पर खड़ी रहना बोरिंग काम हइ, आउ हियाँ थियेटर हइ, आउ खाली सैनिक के साथ नयँ, बल्कि कैदी
के साथ, आउ कैदी लोग दिलचस्प हइ - देखना खुशी के बात होतइ । आउ देखना तो गार्ड अफसर
लगी हमेशे अधिकार हइ ।"
ड्यूटी
अफसर अइतइ त पुछतइ - "गार्ड अफसर काहाँ हइ ?" - "गेला ह जेल के कैदी
के गिनती करे लगी, आउ बैरक सब के बन करे लगी", जवाब सीधा, आउ स्पष्टीकरण सीधा
। ई तरह, गार्ड अफसर रोज दिन साँझ के, छुट्टी जारी रहे के दौरान, थियेटर के अनुमति
दे देइ आउ साँझ के बिगुल बज्जे तक बैरक बन नयँ करइ । कैदी लोग भी जानऽ हलइ, कि गार्ड
के तरफ से कोय बाधा नयँ होतइ, आउ निश्चिंत हलइ ।
छो
आउ सात बजे के बीच पित्रोव हमरा लगी अइलइ, आउ हमन्हीं दुन्नु साथे नाटक लगी रवाना होलिअइ
। हमन्हीं के बैरक से लगभग सब कोय रवाना होते गेलइ, सिवाय चेर्निगोव से प्राचीन आस्था
वलन आउ पोलिस्तानी लोग के । पोलिस्तानी लोग खाली ठीक अंतिम नाटक में, चार जनवरी के,
थियेटर जाय के फैसला कइलकइ, आउ ओहो कइएक आश्वासन के बाद, कि हुआँ सब कुछ निम्मन, मनोरंजक
आउ निरापद (सुरक्षित) हइ । पोलिस्तानी लोग के नफरत से कैदी लोग बिलकुल नराज नयँ होलइ,
आउ चार जनवरी के ओकन्हीं के आदरपूर्वक स्वागत कइल गेलइ । ओकन्हीं के सबसे निम्मन स्थान
भी देल गेलइ । जाहाँ तक चेर्केस लोग (Circassians) के संबंध हइ, आउ विशेष करके इसाय
फ़ोमिच के, त ओकन्हीं लगी हमन्हीं के थियेटर वास्तविक मनोरंजन हलइ । इसाय फ़ोमिच हरेक
तुरी तीन कोपेक दे हलइ, आउ अंतिम तुरी कस्तरी पर दस कोपेक रखलकइ आउ ओकर चेहरा पर परमानंद
के झलक हलइ । अभिनेता लोग दर्शक से, जे जेतना देइ ओतना, संग्रह करे के चक्कर में हलइ,
ताकि थियेटर आउ अपन खुद के प्रबलीकरण (fortification) में खरचा के भरपाई हो सकइ । पित्रोव
आश्वासन देलकइ, कि हमरा सबसे पहिलौका में से एक स्थान देल जइतइ, चाहे थियेटर केतनो
कसमकस रहइ, ई आधार पर, कि चूँकि हम बाकी लोग के अपेक्षा जादे धनी हिअइ, ओहे से शायद
जादहीं देबइ, आउ साथे-साथ ओकन्हीं के काम के सबसे अधिक जानऽ हिअइ । ओइसीं होलइ । लेकिन
हम सबसे पहिले थियेटर हॉल आउ ओकर व्यवस्था के बारे वर्णन करऽ हिअइ ।
हमन्हीं
के मिलिट्री बैरक, जेकरा में थियेटर स्थापित कइल गेले हल, लगभग पनरह डेग लम्मा हलइ
। प्रांगण से ड्योढ़ी तक पहुँचबहो, ड्योढ़ी से बाहरी प्रवेशकक्ष, आउ प्रवेशकक्ष से बैरक
में । ई लम्मा बैरक, जइसन कि पहिलहीं हम उल्लेख कइलिअइ, विशेष रूप से व्यवस्थित हलइ
- पटरा के बिछौना सब के देवाल से सटले लगावल हलइ, जेकरा से कमरा के बीच वला हिस्सा
खाली हलइ । आधा कमरा, ड्योढ़ी से निकास के सबसे नगीच, दर्शक लगी निर्धारित कइल हलइ;
आउ दोसरा आधा, जे दोसरा बैरक से लगले हलइ, स्टेज लगी रक्खल गेले हल । सबसे पहिले हमरा
परदा से अचंभा होलइ । ई पूरे बैरक के आर-पार कोय दस डेग लम्मा हलइ। परदा अइसन शानदार
हलइ, कि सचमुच एकरा पर अचरज होवऽ हलइ । एकरा अलावे, एकरा में तैलरंग से पेंट कइल हलइ
- पेड़, लता मंडप, तलाब आउ तरिंगन के चित्र बनावल हलइ । ई पुरनका आउ नयका दुन्नु कपड़ा
के जोड़के बनावल गेले हल, जे कैदी लोग जेतना देलके हल आउ त्याग कर पइलके हल, ऊ सब पुरनकन गोड़ के लपटन (leg-wrappers) आउ कमीज
से, जेकरा सब के सीके एगो बड़गो फलक (sheet) बनाके, आउ आखिरकार, ओकर अंश, जेकरा लगी
कपड़ा पूरा नयँ पड़ पइले हल, खाली कागज जोड़ल हलइ, जेहो भिन्न-भिन्न दफ्तर आउ विभाग से
एक-एक पन्ना माँगके जुटावल गेले हल । हमन्हीं के पेंटर, जेकन्हीं बीच जेल के
"ब्र्युलोव" (Briullov), आ-व, सबसे बढ़-चढ़के हलइ, एकरा में पेंट आउ सजावट
के काम के खियाल रखलके हल। एकर प्रभाव आश्चर्यजनक हलइ । ई शान सबसे उदासीन आउ सबसे
अधिक सूक्ष्मताप्रिय कैदी लोग के भी आनंदित कर देलके हल, जे, जाहाँ तक नाटक मंचन के
बात हलइ, बिन कोय अपवाद के ओइसने बुतरू नियन प्रतीत होते गेलइ, जइसन कि ओकन्हीं में
से सबसे उत्साही आउ अधीर लोग । सब कोय बहुत खुश हलइ, हियाँ तक कि डींग हाँके के हद
तक खुश । प्रकाश लगी कइएक मेदबत्ती (tallow candles) के टुकड़ा-टुकड़ा करके जलावल गेले
हल । परदा के सामने भनसाघर से दूगो बेंच लाके रक्खल हलइ, आउ बेंच के सामने तीन-चार
गो कुरसी, जे सर्जेंट के कमरा में से मिलले हल । कुरसी रक्खल गेले हल कि शायद सबसे
उच्च वर्ग के अफसर लोग आ जाथिन । आउ बेंच सर्जेंट आउ इंजीनियरी क्लर्क, फोरमैन आउ अइसन
दोसर लोग लगी हलइ, जे हलाँकि प्रशासनिक वर्ग के रहइ, लेकिन अफसर रैंक के नयँ हइ, आउ
कहीं शायद जेल में हुलकी मार देइ । आउ अइसीं होलइ - पूरे छुट्टी के दौरान बाहरी दर्शक
के कमी नयँ होलइ; कोय शाम जादे लोग अइते गेलइ, त दोसरा शाम कमती लोग, लेकिन अंतिम रोज
के नाटक मंचन के बखत बेंच पर के एक्को जगह खाली नयँ रहलइ । आउ आखिरकार, बेंच के पीछू,
कैदी लोग हलइ, खड़ी, दर्शक लोग के आदरार्थ, बिन टोपी के, जैकेट चाहे अधकटिया कोट में,
ई बात के बावजूद कि कमरा के हावा गरम आउ दमघोंटू हलइ । वस्तुतः कैदी लोग लगी जगह बहुत
कम हलइ । लेकिन, एकरा अलावे, कि एगो शब्दशः दोसरा पर बइठल हलइ, खास करके पिछला कतार
में, पटरा के बिछौनो, आउ नेपथ्य (परदा के दहिने-बामे) भी भरल हलइ, आउ आखिरकार, अइसनो
नाटक प्रेमी हलइ, जे लगातार थियेटर में पीछू से आ रहले हल, दोसरा बैरक होके, आउ नेपथ्य
के पीछू से नाटक देखब करऽ हलइ । बैरक के पहिलौका आधा हिस्सा में भीड़ अस्वाभाविक हलइ
आउ शायद ई भीड़ आउ धक्कम-धुक्की ओकरे नियन हलइ जे हाल में हम स्नानघर में देखलिए हल
। प्रवेशकक्ष के दरवाजा खुल्लल हलइ; प्रवेशकक्ष में भी, जाहाँ परी तापमान शून्य से
बीस डिग्री (रोमर) निच्चे हलइ, लोग के भीड़ लग्गल हलइ । हमन्हीं, हमरा आउ पित्रोव, के
तुरतम्मे आगू जाय के रस्ता दे देते गेलइ, लगभग बेंच भिर, जाहाँ परी से बहुत निम्मन
से देखाय दे हलइ, बनिस्बत पिछलौका कतार से । ओकन्हीं हमरा में आंशिक रूप से एगो जज
देखाय दे हलइ, एगो विशेषज्ञ, जे खाली अइसने थियेटर नयँ देखलके हल; ओकन्हीं देखऽ हलइ,
कि बकलूशिन ई पूरे बखत हमरा से राय-मशविरा ले हलइ आउ आदरपूर्वक पेश आवऽ हलइ; त हमरा
लगी, मतलब, अभी आदर आउ स्थान दुन्नु हलइ । मान लेल जाय, कि कैदी लोग एक नंबर के अहंकारी
आउ छिछोरा हलइ, लेकिन ई सब कुछ देखावटी हलइ । कैदी लोग हमरा पर हँस सकऽ हलइ, ई देखके,
कि काम में हम खराब मददगार हलिअइ । अलमाज़ोव हमन्हीं कुलीन लोग तरफ घृणा के दृष्टि से
देख सकऽ हलइ, हमन्हीं के सामने सिलखड़ी जलावे के अपन दक्षता पर घमंड करते । लेकिन हमन्हीं
पर ओकन्हीं के अत्याचार आउ उपहास के मिश्रण के साथ एक बात आउ हलइ - हमन्हीं कभी तो
कुलीन घराना के हलिअइ; हमन्हीं ओहे वर्ग के हलिअइ, जइसन ओकर पहिलौका मालिक लोग, जेकन्हीं
बारे कोय निम्मन चीज अपन आदगारी में नयँ रख पइलके होत । लेकिन अभी, थियेटर में, ओकन्हीं
हमरा सामने रस्ता छोड़ दे हलइ । ओकन्हीं समझऽ हलइ, कि ई मामला में हम ओकन्हीं के अपेक्षा
बेहतर निर्णय कर सकऽ हिअइ, कि हम ओकन्हीं से कहीं अधिक देखलिए ह आउ जानऽ हिअइ । ओकन्हीं
में से हमरा बिलकुल पसीन नयँ करे वलन (ई बात हम जानऽ हिअइ) अब अपन थियेटर के बारे हमर
प्रशंसा के आशा करऽ हलइ आउ बिन कइसनो आत्महीनता के हमरा बेहतर स्थान देते जा हलइ ।
हमर अभी अइसन निर्णय हइ, तखने के हमर दिमाग पर के छाप के आद के आधार पर । हमरा तखनिएँ
लगऽ हलइ - हमरा ई आद पड़ऽ हइ - कि ओकन्हीं के
अपन खुद के बारे सत्य निर्णय (judgement) आत्महीनता बिलकुल नयँ हलइ, बल्कि अपन गौरव
के भावना । हमन्हीं के जनता के उच्च आउ सबसे आश्चर्यजनक विशेषता हइ - न्याय के भावना
आउ ओकर पिपासा । सब्भे स्थान पर आउ चाहे जे हो जाय, सबसे आगू रहे के, चाहे एकरा लगी
अदमी योग्य हइ कि नयँ हइ, अइसन मुर्गा के आदत सामान्य जनता में नयँ हइ । खाली बाहरी,
सतही छिलका हटावे आउ अंदर के ठीक अन्न के जरी अधिक ध्यान से, आउ नगीच से, बिन कोय पूर्वाग्रह
के, देखे के आवश्यकता हइ - आउ कोय सामान्य जनता में अइसन चीज देखतइ, जेकरा बारे कभी
प्रत्याशा नयँ कइलके होत । हमन्हीं के तत्त्ववेत्ता लोग के पास सामान्य जनता के सिखावे
लायक बहुत नयँ हइ । बल्कि एकर विपरीत हम तो दृढ़तापूर्वक कहबइ - खुद ओकन्हिंएँ के सामान्य
जनता से सिक्खे के चाही ।
पित्रोव
अनाड़ी ढंग से हमरा बतइलकइ, जखने हमन्हीं थियेटर जाय के तैयारिए कर रहलिए हल, कि हमरा
आगू के सीट एहो कारण से देल जइतइ, कि हम जादे पइसा देबइ । प्रदर्शन (शो) लगी कोय निश्चित
दर नयँ हलइ - हरेक कोय ओतने दे हलइ, जे दे सकऽ हलइ चाहे देवे लगी चाहऽ हलइ । लगभग सब
कोय कुछ न कुछ डालऽ हलइ, बल्कि एगो अद्धिए, जब कस्तरी दर्शक लोग के बीच चंदा संग्रह
करे लगी घुमावल जा हलइ । लेकिन अगर आंशिक रूप से पइसा के कारण आगू के सीट देल जा हलइ,
ई मान लेला पर, कि हम बाकी लोग के अपेक्षा जादे देबइ, तइयो एकरा में अप्पन गौरव के
भावना केतना हलइ ! "तूँ हमरा से जादे धनगर हकहो आउ आगू जाहो, आउ हलाँकि हमन्हीं
हियाँ परी सब कोय बराबर हकिअइ, लेकिन तूँ जादे देबहो - ओहे से तोहरा नियन दर्शक अभिनेता
लगी अधिक प्रिय हइ - तोरा पहिलौका स्थान मिल्लऽ हको, काहेकि हमन्हीं सब्भे हियाँ पइसा
लगी नयँ हिअइ, बल्कि आदर लगी, आउ ओहे से, हमन्हीं के खुद्दे खुद के वर्गीकृत करे के
चाही ।" केतना एकरा में वास्तविक उदार स्वाभिमान हइ ! ई पइसा लगी आदर नयँ हइ,
बल्कि अपने आप लगी आदर हइ । साधारणतः पइसा आउ संपत्ति लगी जेल में कोय विशेष आदर नयँ
हलइ, विशेष अगर बिन भेदभाव के सब कैदी पर विचार कइल जाय, एगो समुदाय के रूप में, एगो
अर्तेल (समूह) के रूप में । हमरा ओकन्हीं में से एक्को गो के आद नयँ पड़ऽ हइ, जे पइसा
के चलते गंभीरतापूर्वक खुद के नीच ठहरइलके होत, अगर ओकन्हीं पर एक-एक करके भी विचार
कइल जाय तइयो । अइसनो टुकड़खोर हलइ, जे हमरा से बार-बार पइसा माँगऽ हलइ । लेकिन ई भीख
माँगे के काम में भी जादे शरारत हलइ, धूर्तता हलइ, बनिस्बत सीधे धंधा के; जादे परिहास
हलइ, अनाड़ीपन हलइ । मालूम नयँ, कि हम स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त कर पा रहलिए ह कि नयँ
... लेकिन हम थियेटर के बारे (बहुत कुछ) भूल गेलिए ह । काम के बात पर आवल जाय ।
परदा
उट्ठे के पहिले पूरा कमरा एगो विचित्र आउ सजीव चित्र प्रस्तुत करऽ हलइ । पहिला, दर्शक
के भीड़, कोचमाकोच, ठसाठस भरल, सगरो से पैक होल, अधीरतापूर्वक आउ चेहरा पर परमानंद के
साथ नाटक के शुरू होवे के प्रतीक्षा में हलइ । पिछला कतार सब में लोग एक दोसरा पर मानूँ
चढ़ल हलइ । ओकन्हीं से कइएक लोग भनसाघर से अपन साथ (जरामन के) लकड़ी लेले अइले हल - देवाल
से कइसूँ मोटगर लकड़ी के लगाके, एक अदमी ओकरा पर चढ़ गेलइ, आउ दुन्नु हाथ से अपन सामने
वला खड़ी अदमी के कन्हा पर सहारा ले लेलकइ, आउ बिन अपन स्थिति में कोय बदलाव लइले, अइसीं
लगभग दू घंटा तक खड़ी रहलइ, खुद से आउ अपन जगह से बिलकुल खुश हलइ । कुछ लोग अपन गोड़
स्टोव के निचला सोपान (step) पर रखले हलइ, आउ अपन आगू के लोग के सहारा लेले पूरे समय
तक खड़ी रहलइ । ई देवाल के लगले सबसे पिछला कतार में हलइ । बगल में संगीतकार लोग के
उपरे पटरा के बिछौनमन पर चढ़के खड़ी होल कसमकस भीड़ भी हलइ । हुआँ परी निम्मन जगहा हलइ
। कोय पाँच अदमी ठीक स्टोव पर चढ़के ओकरा पर पड़ल हलइ आउ निच्चे तरफ देख रहले हल । ई
तो ओकन्हीं लगी परमानंद हलइ ! सामने वला देवाल के किनारे खिड़की के सिल
(window-sills) भी ओइसन लोग से ठइँचल हलइ, जेकन्हीं के आवे में देरी हो गेले हल, चाहे
निम्मन जगहा नयँ मिल पइले हल । सब कोय शांति से आउ शिष्टाचारपूर्वक आचरण कइलकइ । हरेक
कोय कुलीनवर्ग (gentry) आउ आगंतुक लोग (visitors) के साथ अपन सबसे उत्तम पक्ष देखावे
लगी चाहऽ हलइ । सब कोय शांति से आउ शिष्टाचारपूर्वक आचरण कइलकइ । हरेक कोय कुलीनवर्ग
(gentry) आउ आगंतुक लोग (visitors) के साथ अपन सबसे उत्तम पक्ष देखावे लगी चाहऽ हलइ
। सब के चेहरा पर बिलकुल अनाड़ी प्रत्याशा अभिव्यक्त हो रहले हल । गरमी आउ घुटन से सब्भे
के चेहरा लाल आउ पसेना से तर हलइ । बुतरू नियन खुशी के कइसन विचित्र आभा, प्रिय आउ
शुद्ध आनंद चमक रहले हल - ई सब लकीर खिंच्चल, अंकित (furrowed, branded) निरार आउ गाल
पर, लोग के ई नजर में, अभी तक उदास आउ खिन्न ई अँखियन में, जे कभी-कभी भयंकर अग्नि
में चमकऽ हलइ ! सब कोय बिन हैट के हलइ, आउ सबके सिर दहिना करगी हमरा हजामत कइल देखाय
देलकइ । लेकिन अइकी अब स्टेज पर शोरगुल आउ दौड़धूप सुनाय दे हइ । अब परदा उट्ठे वला
हइ । अइकी वाद्यवृंद (ऑर्किस्ट्रा) बजना चालू हो गेलइ ... ई वाद्यवृंद उल्लेखनीय हइ
। बगल में, पटरा के बिछौनमन पर कोय आठ संगीतकार हलइ - दूगो वायलिन (एगो जेल में हलइ,
दोसरका के किला में से केकरो हीं से उधार लेल गेले हल, लेकिन कलाकार हमन्हिंएँ में
से एक हलइ), तीन गो बलालाइका, सब घर में बनावल, दूगो गिटार आउ डबल बास
(double-bass) के स्थान पे एगो तंबूर (tambourine) । वायलिन के खाली चीख आउ कर्कश सुर
सुनाय देब करऽ हलइ, गिटार कोय काम के नयँ हलइ, लेकिन बलालाइका अद्भुत हलइ । तार पर
चल रहल अँगुरी के फुरती निश्चित रूप से सबसे कुशल हाथ के बराबरी कर रहले हल । लगातार
नृत्य धुन बज रहले हल । नृत्य धुन के सबसे सजीव जगह पर बलालाइका वादक लोग अँगुरी के
गाँठ (knuckles) से बलालाइका के ध्वनि फलक (sound-board) पर प्रहार करब करऽ हलइ; तान
(टोन), रुचि, कार्यान्वयन, यंत्र के संचालन, सुर देवे के प्रकृति - सब कुछ अप्पन हलइ,
मौलिक, कैदी के । एक गिटारवादक भी अपन यंत्र के उत्तम ढंग से जानऽ हलइ (अर्थात् उत्तम
ढंग से बजावऽ हलइ) । ई ठीक ओहे कुलीन हलइ, जे अपन बाप के हत्या कइलके हल । जाहाँ तक
तंबूरवादक के संबंध हइ, त ऊ बस चमत्कार कर रहले हल - कभी ऊ एक अँगुरी से बजावइ, त कभी
अँगूठा से ओकर त्वचा घस्सइ, कभी तीव्र, ठनकदार आउ एक्के तरह के थाप सुनाय देइ, त कभी
अचानक ई प्रबल, स्पष्ट ध्वनि मानूँ असंख्य महीन, झनझनइते आउ फुसफुसइते स्वरकंपन
(trills) में बिखर जाइ । आखिरकार दूगो अकॉर्डियन (हार्मोनियम) भी दृष्टिगोचर होलइ ।
सच कहिअइ, त अभी तक हमरा कोय ई बात के बारे कोय अंदाज नयँ हलइ, कि ई साधारण लोकवाद्ययंत्र
से की कइल जा सकऽ हइ; विभिन्न ध्वनि के तालमेल,
समूह-कार्य, आउ मुख्य बात, जोश, संकल्पना के प्रकृति आउ सुर के ठीक सार के संप्रेषित
करना बिलकुल आश्चर्यजनक हलइ । हम पहिले तुरी तखने बिलकुल समझ गेलिअइ, कि ई रंगरेलीदार
आउ साहसी रूसी नृत्य गीत में ठीक कउची असीम रंगरेलीदार आउ साहसी हइ । आखिरकार परदा
उठलइ । सब कोय में हलचल चालू हो गेलइ, सब कोय अपन भार एक गोड़ से बदलके दोसरा पर कर
लेलकइ, पिछला कतार के लोग अपन चौआ पर खड़ी हो गेलइ; कोय लकड़ी के लट्ठा पर से गिर पड़लइ;
हरेक कोय मुँह खोल लेलकइ आउ नजर गड़ा लेलकइ, आउ बिलकुल सन्नाटा छा गेलइ ... नाटक चालू
हो गेलइ ।
अपन
सब भाय आउ सब्भे बाकी चेर्केस लोग के समूह में हमरा भिर अली खड़ी हलइ । ओकन्हीं सब्भे
भावुकतापूर्वक थियेटर से आसक्त हलइ आउ बाद में हरेक शाम के अइते गेलइ । सब मुसलमान,
तातार आदि, जइसन कि हम एक से जादे तुरी नोटिस कइलिअइ, सब तरह के तमाशा के हमेशे भावुक
प्रेमी होवऽ हइ । ओकन्हिंएँ के बगली में इसाय फ़ोमिच भी घुस्सल हलइ, जे, लगऽ हलइ, परदा
उठतहीं, बिलकुल अनाड़ी नियन चमत्कार आउ मजा के उत्सुक प्रत्याशा में कान लगाके एकटक
देखे लगलइ । तरस अइते हल, अगर ऊ अपन प्रत्याशा में निराश हो जइते हल । अली के प्यारा
चेहरा एतना बचकाना सुंदर खुशी में चमकब करऽ हलइ, कि हम स्वीकार करऽ हिअइ कि हमरा ओकरा
दने एकटक देखे में भयंकर रूप से आनंद अनुभव हो रहले हल, आउ हमरा आद पड़ऽ हइ, हर तुरी,
अभिनेता के कोय हास्यजनक आउ चतुर शरारत कइला पर, जब सामान्य रूप से ठहाका सुनाय दे
हलइ, त अनिच्छापूर्वक तुरतम्मे हम अली दने मुड़ जा हलिअइ आउ ओकर चेहरा तक्के लगऽ हलिअइ
। ऊ हमरा नयँ देखऽ हलइ; ओकरा हमरा दने ध्यान देवे के मोक्का नयँ हलइ ! हमरा भिर से
थोड़े दूर पर, बामा दने, एगो कैदी खड़ी हलइ, वइसगर, हमेशे नाक-भौं सिकोड़ले, हमेशे नाखुश
आउ बड़बड़ाय वला । ओकरो ध्यान अली पर गेलइ, आउ हम देखलिअइ, कइएक तुरी आधा मुसकान के साथ
ओकरा दने देखे लगी मुड़लइ - एतना ऊ प्यारा हलइ ! ऊ ओकरा "अली सिम्योनिच" कहके
संबोधित करऽ हलइ, हमरा मालूम नयँ काहे । "फ़िलात्का आउ मिरोश्का" से शुरू
होलइ । फ़िलात्का (बकलूशिन) वास्तव में शानदार हलइ । ऊ अपन भूमिका आश्चर्यजनक परिशुद्धता
के साथ अदा कइलकइ । स्पष्ट हलइ, कि ऊ प्रत्येक मुहावरा पर अच्छा से सोच-विचार कइलके
हल, आउ अपन प्रत्येक गति पर । हरेक सामान्य शब्द, अपन हरेक हाव-भाव के अर्थ आउ महत्त्व
देवे में ऊ सक्षम हलइ, जे ओकर अपन भूमिका के प्रकृति के बिलकुल संगत हलइ । ई प्रयास
में, ई आश्चर्यजनक अध्ययन में आउ जोड़ देथिन - निष्कपट आनंद, सरलता, स्वभाविकता, प्राकृतिकता,
आउ अगर अपने बकलूशिन के देखथिन हल, त खुद्दे बिलकुल सहमत हो जइथिन हल, कि ई वास्तविक
जन्मजात अभिनेता हइ, जेकरा में बड़गो प्रतिभा हइ । फ़िलात्का हम एक तुरी से जादहीं मास्को
आउ पितिरबुर्ग के थियेटर में देख चुकलिए हल आउ हम दृढ़तापूर्वक बोलऽ हिअइ - फ़िलात्का
के भूमिका अदा करे वलन राजधानी के अभिनेता, दुन्नु बकलूशिन से बत्तर अभिनय कइलके हल
। ओकर तुलना में ओकन्हीं पेयज़ाँ (paysans) हलइ, नयँ कि असली मुझीक (देहाती / किसान)
। ओकन्हीं के बहुत इच्छा हलइ मुझीक के अभिनय करे के । एकरा अलावे, बकलूशिन प्रतिस्पर्द्धा
से प्रेरित हलइ - सबके मालूम हलइ, कि दोसरा नाटक में केद्रिल के भूमिका, कैदी पोत्सेयकिन
अदा करे वला हइ, अइसन अभिनेता, जेकरा सब लोग, कोय कारणवश बकलूशिन से अधिक प्रतिभाशाली
समझते जा हलइ, आउ बकलूशिन एकरा चलते बुतरू नियन कष्ट अनुभव कर रहले हल । केतना तुरी
ऊ हमरा बिजुन ई अंतिम दिन में अइले हल आउ अपन भावना उँड़ेल देलके हल । नाटक शुरू होवे
के दू घंटा पहिले बुखार नियन कँप रहले हल । जब भीड़ में से ओकरा दने ठहाका मारऽ हलइ
आउ चिल्ला हलइ - "शाबाश, बकलूशिन ! शाबास !" त ओकर चेहरा खुशी से चमक उठऽ
हलइ, ओकर आँख में वास्तविक अन्तःप्रेरणा चमके लगऽ हलइ । मिरोश्का के साथ चुंबन के दृश्य,
जब फ़िलात्का ओकरा तरफ पहिलहीं चिल्ला हइ - "अपन चेहरा पोंछ !" आउ अपन चेहरा
खुद्दे पोंछऽ हइ, त ई बहुत जादे हास्यजनक हो गेलइ । सब कोय हँसते-हँसते लोट-पोट हो
गेलइ । लेकिन सबसे जादे दिलचस्प हमरा लगी दर्शक हलइ; हियाँ सब कोय अपन बोताम खोल देलके
हल । ओकन्हीं खुल्ला दिल से मजा ले रहले हल । प्रेरणा के चीख लगातार आउ अधिकाधिक अकसर
हो रहले हल । अइकी एगो अपन पड़ोसी के केहुनी से धकियावऽ हइ आउ शीघ्रतापूर्वक अपन प्रतिक्रिया
ओकरा बतावऽ हइ, एहो बिन फिकिर कइले, आउ शायद बिन देखले, कि ओकर बगली में केऽ खड़ी हइ;
दोसरा, कइसनो हास्यजनक दृश्य पर, अचानक भावोन्मत्त होके भीड़ दने मुड़ऽ हइ, तेजी से सबके
तरफ नजर डालऽ हइ, मानूँ सबके हँस्से लगी निमंत्रित करे लगी, अपन हाथ लहरावऽ हइ आउ तुरतम्मे
फेर से उत्सुकतापूर्वक स्टेज दने मुँह मोड़ ले हइ । तेसरा बस अपन जीभ कुटकुटावऽ हइ आउ
अँगुरी तोड़ऽ हइ आउ शांति से अपन जगह पर स्थिर नयँ रह पावऽ हइ; आउ चूँकि कधरो हिल नयँ
सकऽ हइ, त खाली अपन एक गोड़ के भार बदलके दोसरा पर ले जा हइ । नाटक के समाप्ति के बखत
सामान्य आनंद के मनोदशा चरमोत्कर्ष तक पहुँच गेलइ । हम कुच्छो के बढ़ा-चढ़ाके नयँ बोल
रहलिए ह । कल्पना करथिन जेल, बेड़ी, पराधीनता, आगू के लमगर उदासी भरल कइएक साल, नीरस
शरत्कालीन झिमिर-झिमिर फूही नियन एकरस जिनगी - आउ अचानक ई दलित आउ बंदी लोग के घंटा भर लगी मुक्त कर देल
जा हइ मौज करे लगी, कष्टकारी सपना भूल जाय लगी, पूरा थियेटर स्थापित करे लगी, आउ ओहो
कइसे स्थापित करे लगी - समुच्चे शहर लगी गौरव आउ अचरज लगी - मानूँ ई कहे लगी, कि देखऽ,
हमन्हीं कउन प्रकार के कैदी हिअइ ! ओकन्हीं के वस्तुतः सब कुछ में दिलचस्पी हलइ, मसलन
पोशाक में । ओकन्हीं लगी भयंकर रूप से देखे लगी उत्सुकता हलइ, उदाहरणार्थ, वानका ओतपेती,
चाहे नेत्स्वितायेव, चाहे बकलूशिन के बिलकुल दोसर पोशाक में, बनिस्बत कि एतना साल तक
रोज दिन ओकन्हीं के देखते अइले हल । "अइकी ई कैदी हइ, ओहे कैदी, जेकर बेड़ी खनखना
हइ, आउ अइकी अभी बाहर निकसऽ हइ फ़्रॉक कोट में, गोल हैट में, बरसाती में - पक्का सिविलियन
(सीधा-सादा पोशाक में) ! मोंछ आउ केश वला टोपी लगाके । देखहीं, एगो ललका रूमाल अपन
जेभी से निकसलकइ, जेकरा से हावा कर रहले ह, जमींदार के अभिनय कर रहले ह, पक्का जमींदार,
न कमती न जादे !" आउ सब कोय हर्षावेश में हइ । परोपकारी जमींदार सहायक (एडजुटेंट)
के वरदी में बाहर निकसलइ, सचमुच बहुत वृद्ध रूप में, स्कंधिका में, कलगी (cockade)
लगल टोपी में आउ असाधारण प्रभाव डललकइ । ई भूमिका में दू प्रतियोगी हलइ, आउ विश्वास
कइल जइतइ ? - दुन्नु, छोटकुन्ना बुतरू नियन, भयंकर रूप से एक दोसरा से झगड़ा करे लगलइ,
ई कारण से कि केकरा ई भूमिका निभाना चाही - दुन्नु के स्कंधिका (aiguillettes) सहित
अफसर के वरदी में देखाय देवे के इच्छा हलइ ! दोसर अभिनेता लोग ओकन्हीं के अलगे कइलकइ
आउ ध्वनिमत से बहुमत के साथ ई भूमिका नेत्स्वितायेव के देवे के निर्णय करते गेलइ, ई
कारण से नयँ, कि ऊ दोसरा के अपेक्षा जादे सुत्थर आउ निम्मन हलइ आउ ओहे से जमींदार नियन
बेहतर देखाय दे हलइ, बल्कि ई कारण से, कि नेत्स्वितायेव सबके आश्वस्त कइलकइ, कि ऊ छड़ी
के साथ बाहर निकसतइ आउ ओकरा अइसे लहरइतइ आउ जमीन पर रेखाचित्र बनइतइ, एगो वास्तविक
जमींदार आउ उच्च दर्जा के छैला नियन, जे वानका
ओतपेती नयँ कर सकऽ हइ, काहेकि ऊ वास्तविक कुलीन लोग के कभियो नयँ देखलके ह । आउ वास्तव
में नेत्स्वितायेव जइसीं बाहर निकसके अपन ठकुराइन (घरवली) के साथ जनता के सामने अइलइ,
ऊ खाली ई कइलकइ, कि तेजी से आउ फटाफट एगो पतरा सरकंडा के छड़ी से, जे ओकरा कहीं से मिल
गेले हल, जमीन पर चित्र बनइलकइ, शायद एकरा में ऊ सबसे उच्च कुलीनता, अत्यंत छैलापन
आउ फैशन के लक्षण समझके । शायद, कभी बचपने में, जब नंगे गोड़ वला लड़का हलइ आउ एगो घरेलू
दास के रूप में काम करऽ हलइ, त ओकरा एगो शानदार ढंग से पोशाक पेन्हले, छड़ी के साथ एगो
जमींदार के देखलके हल, आउ ओकर छड़ी फिरावे के कुशलता से मोहित हो गेले हल, आउ ई छाप
ओकर दिमाग में हमेशे लगी आउ अमिट रह गेलइ, जेकरा चलते अभी, तीस बरिस के उमर में, ओकरा
सब कुछ आद पड़ गेलइ, जइसन हलइ, जेकरा से समुच्चा जेल पूरे तरह से मोहित आउ आकृष्ट हो
गेलइ । नेत्सिवतायेव अपन काम में एतना लीन हलइ, कि ऊ न तो केकरो आउ न केधरो देखब करऽ
हलइ, बोलियो रहले हल अपन आँख बिन उपरे कइले आउ खाली ई करब करऽ हलइ, कि ध्यान खाली अपन
छड़ी तरफ आउ ओकर नोक पर कइले हलइ । परोपकारिणी ठकुराइन भी अपन तरह के अत्यंत अद्भुत
हलइ - ऊ एगो पुरनका, तार-तार होल मलमल पोशाक में अवतरित होलइ, जे बिलकुल असली चिथड़ा
लगऽ हलइ, हाथ आउ गरदन खुल्ला हलइ, चेहरा भयंकर रूप से पाउडर लगवल आउ लाल कइल, ठुड्डी
से बान्हल सूती के शयन टोपी (nightcap), एक हाथ में छतरी आउ दोसर में पेंट कइल कागज
के एगो बिन्ना, जेकरा से ऊ लगातार हावा कर रहले हल । ठकुराइन के जोरदार ठहाका से स्वागत
कइल गेलइ; आउ ठकुराइन खुद्दे कइएक तुरी अपन हँसी नयँ रोक पइलकइ । ठकुराइन के भूमिका
कैदी इवानोव अदा कइलकइ । सिरोत्किन, लड़की के वेष में, बहुत प्यारा लगऽ हलइ । द्विपदी
(व्यंग्य गीत) भी निम्मन हलइ । एक शब्द में, नाटक पूरा आउ सामान्य रूप से सब के संतुष्टि
के साथ समाप्त होलइ । कोय शिकायत नयँ होलइ, आउ होइयो नयँ सकऽ हलइ ।
संगीत
पूर्वरंग (overture) "ड्योढ़ी, हमर ड्योढ़ी" फेर से बजावल गेलइ, आउ फेर से
परदा उठलइ । ई केद्रिल हलइ । केद्रिल एक प्रकार के दोन झुआन (Don Juan) हइ; कम से कम
मालिक आउ नौकर दुन्नु के नाटक के अंत में नरक में ले जा हइ । पूरा अंक (act) प्रस्तुत
कइल गेलइ, लेकिन ई स्पष्टतः एगो खंडित अंश हलइ; प्रारंभिक आउ अंतिम अंश लुप्त हलइ ।
कोय अर्थ आउ सामंजस्य (consistency) नयँ हलइ । घटना रूस में घट्टऽ हइ, कहीं एगो सराय
में । सराय के मालिक कमरा में ओवरकोट आउ गोल सिलवटदार टोपी में एगो जमीनदार के लावऽ
हइ । ओकरा पीछू-पीछू ओकर नौकर केद्रिल एगो सूटकेस के साथ आवऽ हइ आउ एगो नीला कागज में
लपटल चिकेन (मुर्गी के मांस) लेले हइ । केद्रिल अधकटिया कोट में आउ नौकर के शंकुनुमा
टोपी में हइ । ओहे पेटू हइ । एकर भूमिका अदा कर रहले ह बकलूशिन के प्रतियोगी पोत्सेयकिन;
मालिक के भूमिका अदा कर रहले ह ओहे इवानोव, जे पहिलौका नाटक में परोपकारिणी ठकुराइन
के भूमिका अदा कइलके हल । सराय के मालिक नेत्स्वितायेव (ओकन्हीं के) सवधान करऽ हइ,
कि कमरा में शैतान सब के वास हइ, आउ (एतना कहके) गायब हो जा हइ । मालिक, उदास आउ चिंतित,
खुद के बड़बड़ा हइ, कि ऊ बहुत पहिलहीं से जानऽ हलइ, आउ केद्रिल के सब समान निकासे के
औडर दे हइ आउ रात के खाइक (खाना) बनावे लगी कहऽ हइ । केद्रिल डरपोक आउ पेटू हइ । शैतान
के बारे सुनके, ओकर चेहरा पीयर पड़ जा हइ आउ ऊ पत्ता नियन हिल्ले लगऽ हइ । ऊ भाग जइते
हल, लेकिन मालिक से डरऽ हइ । आउ, एकरा अलावे, ओकरा भूख लगल हइ । ऊ कामुक, मूर्ख, अपन
तरह के धूर्त आउ डरपोक हइ, हरेक पग पर मालिक के धोखा दे हइ, आउ साथे-साथ ओकरा से डरऽ
हइ । ई एगो अनोखा तरह के नौकर हइ, जेकरा में कइसूँ अस्पष्ट आउ दूरस्थ रूप से लेपोरेल्लो
[Leporello] के चरित्र प्रकट होवऽ हइ [4], आउ वस्तुतः आश्चर्यजनक रूप से प्रस्तुत कइल
जा हइ । पोत्सेयकिन निस्संदेह प्रतिभाशाली हइ, आउ हमर दृष्टि में, बकलूशिन के अपेक्षा
बेहतर अभिनेता हइ । जाहिर हइ, हम दोसरा दिन मिलते बखत बकलूशिन से हम अपन विचार पूरा
तरह से नयँ व्यक्त कइलिअइ - हमर ई बात से ओकरा बहुत कष्ट होते हल । मालिक के भूमिका
अदा करे वला कैदी भी अच्छा अभिनय कइलकइ । ओकर बकवास अत्यधिक भयंकर हलइ, कुच्छो से मिलता-जुलता
नयँ; लेकिन ओकर उच्चारण ठीक आउ सजीव हलइ, आउ हाव-भाव उचित । जबकि केद्रिल सूटकेस (के
खाली करे) में व्यस्त हइ, मालिक विचारमग्न मुद्रा में स्टेज पर एन्ने-ओन्ने चक्कर मार
रहले ह आउ सबके सुन्ने लायक अवाज में घोषणा करऽ हइ, कि आझ के साँझ ओकर यात्रा समाप्त
हो जइतइ । केद्रिल ओकर बात उत्सुकतापूर्वक सुन्नऽ हइ, मुँह बनावऽ हइ (grimaces), आ
पार्ते [a parte (इटैलियन) - पार्श्व में] बोलऽ हइ आउ दर्शक के हरेक शब्द पर हँसावऽ
हइ । ओकरा अपन मालिक लगी कोय अफसोस नयँ हलइ; लेकिन ऊ शैतान के बारे सुनलकइ; ओकरा जाने
के मन करऽ हइ, कि ई की होवऽ हइ, आउ ओहे से ऊ बातचीत आउ पूछताछ शुरू कर दे हइ । मालिक
आखिरकार ओकरा बतावऽ हइ, कि कभी तो कोय विपत्ति में ऊ नरक के मदत के सहारा लेलके हल
आउ शैतान लोग ओकरा मदत कइलके हल, ओकर रक्षा कइलके हल; लेकिन आझ अवधि के अंत हइ, आउ
शायद, आझे ओकन्हीं अइते जइतइ, शर्त के अनुसार, ओकर आत्मा लगी । केद्रिल बहुत डरे लगऽ
हइ । लेकिन मालिक हताश नयँ होवऽ हइ आउ ओकरा रात के भोजन तैयार करे लगी औडर दे हइ ।
भोजन के बात सुनके केद्रिल सजीव हो उठऽ हइ, चिकेन निकासऽ हइ, दारू निकासऽ हइ - आउ नयँ-नयँ
(अर्थात् बीच-बीच में, समय-समय पर), आउ खुद्दे चिकेन से एक टुकड़ा नोचके निकासऽ हइ आउ
चक्खऽ हइ । दर्शक हँस्सऽ हइ । फेर दरवाजा के चरचर अवाज आवऽ हइ, हावा झिलमिली (शटर)
पर दस्तक दे हइ; केद्रिल कँप्पे लगऽ हइ आउ तुरतम्मे, लगभग अचेतन अवस्था में, चिकेन
के एगो बड़गो टुकड़ा मुँह में ठूँस ले हइ, जेकरा ऊ निगलियो नयँ पावऽ हइ । फेर से ठहाका
लगऽ हइ । "तैयार हो गेलउ ?" मालिक चिल्ला हइ, कमरा के चक्कर लगइते । "अइकी
अभिए, सर ... हम अपने लगी ... तैयार कर दे हिअइ", केद्रिल बोलऽ हइ, खुद टेबुल
के पीछू बइठ जा हइ आउ अपन मालिक के खाना रजके खाय लगऽ हइ । दर्शक लगी, स्पष्टतः, नौकर
के फुरतीलापन आउ धूर्तता मनोरंजक हइ, आउ एहो बात कि मालिक के उल्लू बनावल जा हइ । ई
स्वीकार कइल जाल चाही, कि पोत्सेयकिन वास्तव में प्रशंसा के योग्य हलइ । "अइकी
अभिए, सर ... हम अपने लगी ... तैयार कर दे हिअइ" - ई शब्द ऊ शानदार ढंग से उच्चारण
कइलकइ । टेबुल भिर बइठके ऊ भुक्खड़ नियन खाय लगऽ हइ आउ मालिक के हरेक कदम पर काँप जा
हइ, ताकि ऊ ओकर हरक्कत के नोटिस नयँ कर पावइ; जइसीं ऊ (मालिक) अपन जगह से मुड़इ, कि
ऊ (नौकर) टेबुल के निच्चे झुक जाय आउ अपने साथ चिकेन घींच लेइ । आखिरकार ऊ अपन पहिला
भूख के शांत कर ले हइ; अब मालिक के बारे सोचे के समय हो गेलइ । "केद्रिल, जल्दीए
हो जइतउ न ?" मालिक चिल्ला हइ । "तैयार हइ, सर !" फुरती से केद्रिल
जवाब दे हइ, अचानक ई आद अइला पर कि मालिक लगी लगभग कुच्छो नयँ बचले ह । प्लेट पर वास्तव
में एक्के गो चिकेन के टँगरी पड़ल हइ । मालिक, उदास आउ चिंतित, बिन कुच्छो पर ध्यान
देले, टेबुल भिर बइठ जा हइ, आउ केद्रिल ओकर कुरसी के पीछू तौलिया लेले खड़ी हो जा हइ
। केद्रिल के हरेक शब्द, हरेक हाव-भाव, मुँह के विकृत कइल हरेक हरक्कत, जब ऊ दर्शक
दने मुड़ऽ हइ, त अपन मूर्ख मालिक पर सिर हिलावऽ हइ, आउ दर्शक तरफ से दुर्निवार
(irrepressible) हँसी फूट पड़ऽ हइ । लेकिन अइकी जइसीं मालिक खाना चालू करऽ हइ, कि शैतान
लोग पहुँच जा हइ । हियाँ परी कुच्छो समझल नयँ जा सकऽ हइ, आउ शैतान सब कइसूँ बिलकुल
सामान्य ढंग से नयँ आवऽ हइ - नेपथ्य के बगल में दरवाजा खुल्लऽ हइ आउ कुछ तो उज्जर रंग के अवतरित होवऽ हइ, आउ सिर के जगह पे
ललटेन आउ मोमबत्ती हइ; दोसरा भूत के सिर पे भी ललटेन हइ आउ हथवा में हँसुआ लेले हइ
। ललटेन काहे लगी, हँसुआ काहे लगी, शैतान सब उज्जर में काहे हइ ? केकरो समझ में नयँ
आवऽ हइ । लेकिन एकरा बारे कोय नयँ सोचऽ हइ । मतलब शायद अइसीं होवे के चाही । मालिक
काफी बहादुरी से शैतान सब के संबोधित करऽ हइ आउ ओकन्हीं के चिल्लाके बोलऽ हइ, कि ऊ
ओकन्हीं द्वारा ले जाय लगी तैयार हइ । लेकिन केद्रिल डरऽ हइ, खरगोश नियन; ऊ टेबुल के
निच्चे दुबक जा हइ, लेकिन अपन सब भय के बावजूद, टेबुल पर से बोतल उठावे लगी नयँ भुला
हइ । शैतान सब एक मिनट लगी गायब हो जा हइ; केद्रिल टेबुल के निच्चे से बाहर आवऽ हइ;
लेकिन जइसीं मालिक फेर से चिकेन तरफ हाथ बढ़ावऽ हइ, कि तीन शैतान कमरा में फेर से घुस
जा हइ, ओकरा पीछू से पकड़ ले हइ आउ पाताल (नरक) ले जा हइ । "केद्रिल ! हमरा बचाव
!" मालिक चिल्ला हइ । लेकिन केद्रिल ई बात पर कोय ध्यान नयँ दे हइ । ऊ अबरी बोतल,
प्लेट आउ पावरोटी भी टेबुल के निच्चे सरका लेलकइ। लेकिन अइकी ऊ अब अकेल्ले हइ, शैतान
लोग नयँ हइ, मालिक भी नयँ । केद्रिल सरकते बाहर निकसऽ हइ, चारो बगली नजर डालऽ हइ, आउ
मुसकान से ओकर चेहरा पर चमक आ जा हइ । ऊ धूर्ततापूर्वक आँख मिचकावऽ हइ, अपन मालिक के
जगह पर बइठ जा हइ, आउ दर्शक दने सिर हिलइते आधा फुसफुसाहट के अवाज में बोलऽ हइ -
"अच्छऽ, अब तो हम अकेल्ले हकूँ ... बिन मालिक के ! ..." सब कोय ओकरा तरफ
देखके हँस्सऽ हइ, कि ऊ बिन मालिक के हइ; लेकिन अइकी ऊ आउ आधा फुसफुसाहट में आगू बोलऽ
हइ, दर्शक लोग के गोपनीय रूप में आउ लगातार अधिकाधिक प्रसन्न मुद्रा में मटकी मारते
- "मालिक के तो शैतान ले गेलइ ! ..." दर्शक लोग के भावावेश असीम हइ ! एकरा
अलावे, ई बात कि मालिक के शैतान ले गेलइ, अइसन ढंग से कहल गेलइ, अइसन धूर्ततापूर्वक,
अइसन हास्यजनक रूप से जीत के मुँह बनइते, कि वास्तव में प्रशंसा नयँ करना असंभव हलइ
। लेकिन केद्रिल के खुशी थोड़हीं देर तक रहऽ हइ । ऊ अभी बोतल लेके अपना लगी गिलास में
दारू ढारके पीहीं लगी चहलकइ, कि अचानक शैतान लोग लौटके आ जा हइ, चौआ पर चुपके-चोरी
ओकर पीछू आ जा हइ, आउ बगली से ओकरा धर ले हइ । केद्रिल गला फाड़के चिल्ला हइ; कायरतावश
ऊ मुड़के देखे के साहस नयँ कर पावऽ हइ । ऊ खुद के बचाइयो नयँ पावऽ हइ - हाथ में बोतल
आउ गिलास हइ, जेकरा छोड़ना ओकर वश में नयँ हइ । दहशत से मुँह फाड़के, ऊ आधा मिनट पब्लिक
तरफ आँख फाड़ले बइठल रहऽ हइ, कायरतापूर्ण भय से अइसन मरलाह अभिव्यक्ति के साथ, कि निश्चयपूर्वक
ओकर तस्वीर बनावल जा सकऽ हलइ । आखिरकार ओकरा उठाके ले चल जा हइ; बोतल हाथ में लेलहीं,
गोड़ झाड़ते रहऽ हइ आउ चिल्ला हइ, चिल्ला हइ । ओकर चिल्लाहट नेपथ्य में भी सुनाय दे हइ
। लेकिन परदा उठ जा हइ, आउ सब लोग हँस्सऽ हइ, सब कोय आनंदातिरेक में हइ ... वाद्यवृंद
(ऑर्किस्ट्रा) कमरिंस्कया [5] के धुन शुरू कर दे हइ ।
मृदु
स्वर में शुरू कइल जा हइ, जे मोसकिल से सुनाय दे हइ, लेकिन धुन के स्वर तीव्र से तीव्रतर
होते जा हइ, ताल (tempo) आउ अधिक तेज हो जा हइ, बलालाइका के ध्वनि फलक (sound
board) पर तगड़ा चोट सुनाय दे हइ ... ई कमरिंस्कया हइ पूरे जोर पर, आउ सचमुच, बहुत अच्छा
होते हल, अगर ग्लिनका हमन्हीं के जेल में एकरा सुन पइते हल [5] । संगीत के धुन पर मूक
अभिनय चालू होवऽ हइ । कमरिंस्कया पूरे मूक अभिनय के दौरान बन नयँ होवऽ हइ । कुटीर के
अंदरूनी भाग के दृश्य हइ । स्टेज पर मिल मालिक
(चक्कीवला) आउ ओकर घरवली हइ । चक्कीवला एगो कोना में जीन के साज के दुरुस्ती कर रहले
ह, आउ दोसर कोना में ओकर घरवली सन के सुतरी काट रहले ह । घरवली के भूमिका सिरोत्किन
आउ चक्कीवला के भूमिका नेत्स्वितायेव अदा कर रहले ह ।
हियाँ
हम कहे लगी चाहबइ, कि हमन्हीं के (स्टेज के) सजावट बहुत खराब हलइ । एकरा में आउ एकर
पहिलौका नाटक में, आउ दोसरौकन में भी अपने अपन कल्पना से अधिक भरथिन, बनिस्बत कि जे
आँख से देखऽ हथिन । पिछलौका देवाल के जगह कोय प्रकार के दरी चाहे घोड़ा के कपड़ा तानल
हइ; बगल में कउनो प्रकार के खराब परदा लगल हइ । बामा बगल कुच्छो समान नयँ हलइ, ओहे
से पटरा के बिछौना देखाय दे हलइ। लेकिन दर्शक लोग आग्रही नयँ हलइ आउ वास्तविकता के
अपन कल्पना से पूरा कर ले हलइ, विशेष करके ई कारण से कि कैदी लोग ई मामला में बहुत
सक्षम हइ - "बाग बतावल गेलइ, त एकरा बागे समझहो; कमरा त कमरा, झोपड़ी त झोपड़ी
- कोय बात नयँ, जादे औपचारिकता के कुच्छो जरूरत नयँ हइ" । सिरोत्किन एगो देहाती
नवयुवती के वेष में बहुत प्यारा लगऽ हइ । कैदी लोग के बीच धीमे स्वर में कइएक प्रशंसोक्ति
सुनाय दे हइ । चक्कीवला अपन काम खतम करऽ हइ, हैट ले हइ, चाभुक ले हइ, घरवली भिर आवऽ
हइ आउ ओकरा इशारा से समझावऽ हइ, कि ओकरा जाय के हइ, लेकिन अगर ओकर अनुपस्थिति में ऊ
केकरो स्वागत करतइ, त ... आउ ऊ चाभुक देखावऽ हइ । घरवली सुन्नऽ हइ, आउ सिर हिलावऽ हइ
। ई चाभुक, शायद, ओकरा लगी बहुत जानल-पछानल हइ - ई औरत अपन मरदाना के पीछू गुलछर्रा
उड़ावऽ हइ । मरदाना चल जा हइ । जइसीं ऊ दरवाजा के आड़ हो जा हइ, कि ऊ ओकरा पीछू से अपन
मुक्का उसाहऽ हइ । लेकिन अइकी दरवाजा पर दस्तक होवऽ हइ; दरवाजा खुल्लऽ हइ, आउ फेर से
पड़ोसी नजर आवऽ हइ, ओहो चक्कीवला हइ, कफ़्तान में एगो दढ़ियल मुझीक (देहाती/ किसान) ।
ओकर हाथ में उपहार हइ - एगो लाल रूमाल । औरतिया हँस्सऽ हइ; लेकिन जइसीं पड़ोसी ओकरा
आलिंगन करे लगी चाहऽ हइ, कि दरवाजा पर फेर से दस्तक । काहाँ जाल जाय ? ऊ ओकरा फुरती
से टेबुल के निच्चे नुका दे हइ, आउ खुद फेर से सुतरी काटे (बनावे) में लग जा हइ । आवऽ
हइ दोसरा प्रेमी - ई एगो क्लर्क हइ, फौजी वेष में । अभी तक मूक अभिनय ठीक-ठाक चल रहले
हल, हाव-भाव बिन कोय गलती के सही हलइ । ई तात्कालिक अभिनेता सब के ध्यान में रखला पर
अचरज भी हो सकऽ हलइ, आउ अनिच्छापूर्वक विचार दिमाग में आ सकऽ हलइ - केतना शक्ति आउ
प्रतिभा हमन्हीं के रूस में कभी-कभी बेकार में नष्ट हो जा हइ, जेल में आउ दुख-तकलीफ
में ! लेकिन ऊ कैदी, जे क्लर्क के भूमिका अदा कइलकइ, शायद कभी प्रांतीय चाहे घरेलू
थियेटर में हलइ, आउ ओकरा लगऽ हलइ, कि हमन्हीं के अभिनेता, एक-एक करके सब्भे, समझ नयँ
पावऽ हइ कि ओकन्हीं की कर रहले ह आउ स्टेज पर जइसे चल्ले के चाही ओइसे नयँ चल्लऽ हइ
। आउ अइकी ऊ अइसे अभिनय करऽ हइ, जइसन कि कहल जा हइ, प्राचीन काल में थियेटर में अभिजात
नायक (classical heroes) अभिनय करते जा हलइ - लम्मा डेग भरऽ हइ, आउ दोसरा गोड़ बिन हिलइले,
अचानक रुक जा हइ, पूरा देह आउ सिर पीछू मुँहें मोड़ ले हइ, चारो तरफ घमंड से नजर दौड़ावऽ
हइ आउ फेर दोसरा डेग बढ़ावऽ हइ । अगर अइसन चाल अभिजात अभिनेता में हास्यास्पद हलइ, त
फौजी क्लर्क में, हास्यजनक दृश्य में, आउ जादे हास्यास्पद हलइ । लेकिन हमन्हीं के पब्लिक
के सोचना हलइ, कि शायद, हियाँ परी अइसीं होवे के चाही, आउ लम्बू क्लर्क के लम्मा डेग
के निष्पादित तथ्य (accomplished fact) के रूप में स्वीकार कर लेलकइ, बिन कोय आलोचना
के । मोसकिल से क्लर्क स्टेज के बीच पहुँच पइले हल, कि एक तुरी आउ दस्तक सुनाय देलकइ
- मालकिन फेर से हलचल में आ गेलइ । क्लर्क के काहाँ रक्खल जाय ? संदूक में, काहेकि
खुल्लल हइ । क्लर्क सरकके संदूक में चल जा हइ, आउ औरतिया ओकर ढक्कन बन कर दे हइ । अबरी
एगो विशिष्ट अतिथि आवऽ हइ, सेहो प्रेमी हइ, लेकिन विशेष प्रकार के । ई एगो ब्राह्मण
हइ आउ अपन पोशाक में भी । दुर्निवार हँसी दर्शक लोग के बीच सुनाय पड़ऽ हइ । ब्राह्मण
के भूमिका कोश्किन करऽ हइ, आउ उत्तम अभिनय करऽ हइ । ऊ ब्राह्मण नियन लगवो करऽ हइ ।
हाव-भाव से ऊ अपन प्रेम के पूर्ण रूप से अभिव्यक्त करऽ हइ । ऊ अपन हाथ आकाश दने उठावऽ
हइ, फेर ओकरा अपन छाती पर रक्खऽ हइ, अपन दिल पर; लेकिन जइसीं ओकरा अपन भावना के दर्शावे
के मौका मिललइ, कि दरवाजा पर जोर के प्रहार सुनाय दे हइ । प्रहार से सुनाय पड़ऽ हइ,
कि ऊ मकान मालिक हइ । भयभीत घरवली अपन आपा खो दे हइ, ब्राह्मण एन्ने-ओन्ने होवे लगऽ
हइ आउ नुकावे लगी प्रार्थना करे लगऽ हइ । फुरती से ऊ ओकरा अलमारी के पीछू रख दे हइ,
आउ खुद दरवाजा खोले लगी भूलके, लपकल अपन सुतरी काटे के काम में लग जा हइ, आउ सुतरी
काटऽ हइ, सुतरी काटऽ हइ, अपन मरदाना के दरवाजा पर के दस्तक पर कोय ध्यान बिन देले,
भय से सुतरी के ऐंठते, जे ओकर हाथ में हइए नयँ हइ आउ डेरा के घुमावऽ हइ, जेकरा वस्तुतः
फर्श पर से उठावे लगी भूल गेले हल । सिरोत्किन ई भय के बहुत निम्मन से आउ सफलतापूर्वक
अभिनय कइलकइ । लेकिन मालिक गोड़ से धक्का देके दरवजवा के खोल ले हइ आउ चाभुक के साथ
अपन घरवली भिर आवऽ हइ । ऊ सब कुछ नोटिस कर लेलके हल आउ जासूसी कइलके हल आउ सीधे ओकरा
अँगुरी से देखावऽ हइ, कि ओकरा भिर तीन गो नुक्कल हइ । तब ऊ नुक्कल सब के खोजऽ हइ ।
खोजला पर सबसे पहिले ओकरा पड़ोसी मिल्लऽ हइ, जेकरा ऊ मुकियाके कमरा से बाहर करऽ हइ ।
डेरगूह क्लर्क भागे लगी चहलकइ, सिर से ढक्कन के उपरे कर देलकइ आउ जेकरा से ऊ खुद्दे
अपन चेहरा देखा देलकइ । मालिक ओकरा चाभुक से पिट्टऽ हइ आउ अबरी प्रेमी क्लर्क बिलकुल
अनभिजात तरीका से (non-classical style) उछले लगऽ हइ । अब ब्राह्मण रह जा हइ; मालिक
ओकरा देर तक ढूँढ़ऽ हइ, आखिरकार अलमारी के पीछू कोना में पावऽ हइ, आदरपूर्वक ओकरा नमस्कार
करऽ हइ आउ दाढ़ी पकड़के घींचले-घींचले स्टेज के बिच्चे में लावऽ हइ । ब्राह्मण खुद के
बचावे के प्रयास करऽ हइ, चिल्ला हइ - "अभिशप्त, अभिशप्त !" (मूक अभिनय में
एकमात्र बोलल शब्द), लेकिन मरद नयँ सुन्नऽ हइ आउ ओकरा अपने तरह से दछना (दक्षिणा) दे
हइ । घरवली, ई देखके कि मामला अब ओकरा तक पहुँच जइतइ, सुतरी आउ डेरा फेंक दे हइ आउ
कमरा से भाग जा हइ; सुतरी काटे लगी प्रयुक्त स्टूल जमीन पर उलट जा हइ, कैदी लोग ठहाका
मारऽ हइ । अली, हमरा दने बिन देखले, हमर हथवा पकड़के हिलइते चिल्ला हइ - "देखहो
! ब्राह्मण, ब्राह्मण !" - आउ खुद ऊ हँसी बरदास नयँ कर पावऽ हइ । परदा गिरऽ हइ
। दोसरा दृश्य शुरू होवऽ हइ ...
लेकिन
सब्भे दृश्य के वर्णन करे के जरूरत नयँ । आउ दू-तीन (दृश्य) हलइ । ऊ सब्भे हास्यजनक
आउ वास्तव में विनोदपूर्ण हलइ । अगर कैदी लोग खुद्दे ऊ सब के नयँ लिखलके हल, त कम से
कम हरेक में ओकन्हीं अपन खुद के हिस्सा घुसेड़ देलके हल । लगभग हरेक अभिनेता अपना तरफ
से तात्कालिक रूप से कुछ न कुछ घुसेड़ऽ हलइ, ओहे से अगलौका सँझियन के एक्के आउ ओहे अभिनेता
एक्के आउ ओहे भूमिका कुछ दोसरा तरह से अदा करऽ हलइ । अगला मूक अभिनय, जे अनूठा प्रकृति
के हलइ, बैले (ballet) नृत्य के साथ समाप्त
होलइ । एगो लाश के दफनावल जा रहले हल । ब्राह्मण अपन कइएक सहायक के साथ ताबूत पर तरह-तरह
के मंत्रोच्चारण करऽ हइ, लेकिन कोय फयदा नयँ होवऽ हइ । आखिरकार अवाज सुनाय दे हइ -
"सूर्यास्त हो रहले ह", मरल अदमी जीवित हो जा हइ, आउ सब कोय आनंद से नच्चे
लगऽ हइ । ब्राह्मण भी मरलका अदमिया के साथ नच्चऽ हइ, आउ बिलकुल विशेष ढंग से नच्चऽ
हइ, ब्राह्मण रीति के अनुसार । आउ एकरे साथ थियेटर समाप्त हो जा हइ, अगला साँझ तक ।
हमन्हीं के सब लोग तितर-बितर हो जइते जा हइ - खुश, संतुष्ट, अभिनेता लोग के प्रशंसा
करऽ हइ, सर्जेंट के धन्यवाद दे हइ । झगड़ा-उगड़ा नयँ सुनाय दे हइ । सब कोय कइसूँ असाधारण
रूप से संतुष्ट हइ, हियाँ तक कि मानूँ भाग्यशाली हइ, आउ हमेशे नियन नयँ सुत्तऽ हइ,
बल्कि लगभग शांति से - आउ अइसन काहे हो सकऽ हइ, अपने के की लगऽ हइ ? आउ तइयो ई हमर
कल्पना के सपना नयँ हइ । ई सत्य हइ, वास्तविकता हइ। ई गरीब लोग के खाली थोड़े पल लगी
स्वच्छंद रूप से रहे देल गेलइ, दोसर सामान्य लोग नियन खुशी मनावे लगी, बल्कि एक्के
घंटा लगी कारागार से भिन्न जीवन जीए लगी - आउ अदमी नैतिक रूप से बदल जा हइ, चाहे ई
कुच्छे मिनट खातिर काहे नयँ होवइ ... लेकिन अभी देर रात हो चुकले ह । हम संयोगवश चौंक
जा हिअइ आउ हमर नीन खुल जा हइ - बुढ़उ अभियो तक स्टोव पर प्रार्थना कर रहले ह आउ सुबहे
तक प्रार्थना करते रहतइ; अली शांति से हमर बगली में सुत्तल हइ । हमरा आद पड़ऽ हइ, कि
सुतहूँ घड़ी तक ऊ हँसिए रहले हल, थियेटर के बारे अपन भइवन से गपशप करते, आउ ओकर शांत
बचकाना चेहरा में अनजाने हम खो जा हिअइ । धीरे-धीरे हमरा सब कुछ आद पड़ते जा हइ - पिछला
दिन, उत्सव, ई पूरा महिन्ना ... भय से हम सिर उठावऽ हिअइ आउ छो दमड़ी के जेल के मोमबत्ती
के कंपायमान धुँधला प्रकाश में अपन सुत्तल साथी सब पर नजर फेरऽ हिअइ । हम ओकन्हीं के
पीयर चेहरा दने तक्कऽ हिअइ, ओकन्हीं के दयनीय बिछावन दने, पूरा ई बिलकुल नंगा आउ कंगाल
दने - हम ध्यान से देखऽ हिअइ - आउ जइसे हमरा खुद के आश्वस्त करे के मन करऽ हइ, कि ई
सब कुछ कुरूप सपना जारी नयँ हइ, बल्कि वास्तविक सच्चाई हइ । लेकिन ई सच हइ - अइकी केकरो
कराह सुनाय पड़ऽ हइ; कोय तो मोसकिल से अपन हाथ हिलइलकइ आउ ओकर बेड़ी खनखनइलइ । दोसरा
नीन में चौंक उठलइ आउ बोले लगलइ, आउ बाबा स्टोव पर सब्भे "पारंपरिक ईसाई"
खातिर प्रार्थना कर रहला ह, आउ उनकर शांतिपूर्ण, मृदु, लंबा "ईश्वर यीशु क्राइस्ट,
हमन्हीं पर दया करऽ ! ..." सुनाय दे हइ ।
"हमेशे
लगी हम हियाँ नयँ हकूँ, बल्कि कुच्छे साल तलक !" हम सोचऽ ही आउ फेर से सिर तकिया
पर टिका दे ही ।
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पहिला भाग समाप्त *******
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