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Friday, February 16, 2018

इवान मिनायेव के बिहार यात्राः 1.3 राजगृह में


बड़गाँव के निरीक्षण करके हम बिहार (अर्थात् बिहारशरीफ) वापिस अइलिअइ, ताकि हम गया जा सकिअइ आउ रस्ता में कुछ दोसर ऐतिहासिक स्थल के भेंट कर लिअइ । बिहार के सबसे नगीच आउ सबसे प्रसिद्ध हइ राजगृह; अनुवाद में ई नाम के अर्थ हइ "राजा के घर" या "त्सारग्राद" (राजनगर) , ग्राद के अर्थ "बाड़ा" या "छरदेवाली" समझके । हमर प्रिय मेजबान (host), बंगाली बाबू, हमरा हुआँ घोड़ा पर पहुँचावे के स्वेच्छापूर्वक सेवा प्रस्तुत कइलथिन । 2 मार्च के करीब बारह बजे, हमन्हीं बिहार से दक्षिण-पश्चिम के बड़गर रस्ता से प्रस्थान कइलिअइ । गरमी हलइ, लेकिन घोड़ागाड़ी के उपरे उठावल परदा हमन्हीं के सूरज के झुलसावे वला किरण से रक्षा कर रहले हल; रस्ता लमगर नयँ हलइ आउ इलाका बहुत सुंदर हलइ - हमन्हीं लगातार गाड़ी से जाब करऽ हलिअइ कइएक गाँव से गुजरते, जे मट्टी के झोपड़ी के समूह हलइ, छोटगर जगह में सट्टल-सट्टल, अलग-अलग झोपड़ियन के बीच सकेत गल्ली के साथ । चावल (धान) के खेत बहुतायत में देखाय दे हइ - लेकिन गाँव में कोय बड़गो संतोष नयँ देखाय दे हइ; ग्रामवासी लोग गंदा हलइ आउ प्रदेश के रिवाज के अनुसार लगभग पूरा नंगा; नंगापन के सबसे अधिक आवश्यक आवरण ओकन्हीं के हलइ - गंदा आउ फट्टल-फुट्टल । ई स्थानीय प्रदेश में [*204] एक्के फसल होवऽ हइ आउ खेतिहर वर्ग के स्थिति के बारे उपरे उल्लेख कइल थोड़े-बहुत आँकड़ा से अनुमान लगावल जा सकऽ हइ । आधा रस्ता में, सीलाव गाँव (आउ सीताव नयँ, जइसन कि साधारणतः नक्शा में पावल जा हइ) में हमन्हीं बड़गर रस्ता से दक्खिन मुँहें मुड़ गेते गेलिअइ आउ लगभग तीन बजे राजगृह पहुँच गेते गेलिअइ । ई नाम के दू गो शहर हइ - पुरनका, जे 5मी शाताब्दी में हीं खंडहर बन चुकले हल, आउ नयका, जेकरा में अभियो तक लोग रहऽ हइ, लेकिन जाहाँ परी न तो कुच्छो प्राचीन हइ आउ न रोचक । दुन्नु शहर एक दोसरा के पासे-पास अवस्थित हइ - मोसकिल से नयका शहर के बाहर होबहो कि तुरतम्मे पहड़ियन के चोटी पर पुरनका शहर के देवलियन के अवशेष दृष्टिगोचर होवे लगऽ हइ । ई बाहरी देवलियन के परिधि (circumference) लगभग आठ मील हइ; एकर मोटाई, ऊ सब जगह में, जाहाँ परी ई सुरक्षित हइ, 13 फुट तक हइ । श्वानचांग के काल में, 7मी शताब्दी तक, खंडहर बन चुकल ई सब देवलियन के पीछू अभियो कइएक अन्दरूनी हिस्सा हइ, जे बहुत निम्मन से सुरक्षित हइ । अंतिम हिस्सा में पहुँचे के पहिलहीं, घोड़ागाड़ी के छोड़ देवे पड़ऽ हइ आउ आगू पैदल जाय पड़ऽ हइ, न तो एक्को घोड़ा आउ न कइसनो चक्का ई जगह पर से होके गति के झेल सकऽ हइ, जेकरा पर एतना प्रचुरता में पुरनका अइँटा आउ हर तरह के झिटकी बिखरल हइ । सकेत रस्ता से होके देवलियन के पार करके घाटी में प्रवेश करभो, जाहाँ परी पुरनका शहर हलइ, आउ जाहाँ परी अभी कोय नयँ रहऽ हइ । बौद्ध गीत में, जेकरा में महान भारतीय शिक्षक के प्रथम क्रियाकलाप के गौरवगान कइल गेले हल, ई स्थल के गिरिब्बज्ज या बाड़ा कहल गेले ह, जे पहड़ियन से बन्नल हइ । पाँच विख्यात चोटी के साथ पहाड़ी सब हियाँ घाटी के निर्माण करऽ हइ; सबसे बड़गर घाटी पश्चिम से पूरब मुँहें हइ, आउ सबसे छोटगर उत्तर से दक्षिण मुँहें; एकर परिधि पाँच मील से जादे नयँ हइ; जब एकरा उत्तर दने से देखभो, त घाटी ढालू, हलाँकि कम उँचगर, पहाड़ी के लगातार देवाल से घिरल प्रतीत होवऽ हइ; ओकर खड़ी ढलान सब पर जाहाँ-ताहाँ विरले घास उग्गऽ हइ, आउ ओकर चोटी पर उज्जर-उज्जर नयका जैन मंदिर सब देखाय दे हइ । ठीक घाटी के समानांतर उत्तर से दक्खिन एगो छोटगर नदी सरस्वती पथरीला मार्ग से टेढ़ा-मेढ़ा होके बहऽ हइ । [*205] एकर किनारा पर अक्षरशः अइँटा, पुरनकन भवन के पत्थर बिखरल पड़ल हइ, आउ कुछ जगह पर काँटेदार झाड़ी के छोटगर-छोटगर अगम्य जंगल आउ उँचगर-उँचगर तुलसी घास हइ । अइँटा के ढेर, छोटगर-छोटगर टीला, प्राचीन स्तूप सब के अवशेष चारो बगली देखाय दे हइ । एगो छोटगर उपवन के छाया में, घाटी के उत्तरी प्रवेश के पास, हमन्हीं लगी तंबू गाड़ल गेलइ । पूरब में विपुलगिरि पहाड़ी हइ, जेकर चोटी पर उज्जर जैन मंदिर हइ, दक्षिण-पश्चिम तरफ वैभारगिरि पहाड़ी, जाहाँ परी सात गरम-गरम झरना हइ आउ महादेव के कुछ  नयका मंदिर । दक्षिण-पूरब मुँहें कुछ दूरी पर रत्नागिरि पहाड़ी देखाय दे हइ; एगो तंग घाटी, जे दूर से बिलकुल नयँ देखाय दे हइ, ओकरा उदयगिरि पहाड़ी से अलगे करऽ हइ । घाटी के दक्खिन में सोनगिरि पहाड़ी से घाटी बंद हो जा हइ ।
पुरनका शहर राजगृह एगो अइसन स्थल हइ, जे स्मरणीय आउ पवित्र भी खाली बौद्ध लोग लगी नयँ हइ । एकर इतिहास के प्रारंभ बहुत प्राचीन काल तक जा हइ; हियाँ मगध साम्राज्य के रजधानी हलइ, आउ ब्राह्मण परंपरा महान हिन्दू महाकाव्य महाभारत के कइएक आख्यान के हियाँ से जोड़लके ह । ब्राह्मण लोग के हियाँ बौद्ध लोग अइते जा हलइ आउ कहल जा हइ कि बिम्बिसार, प्रथम सम्राट्, ओकन्हीं के उपदेश (teachings)के संरक्षण करे वला, हिएँ रहऽ हलथिन - हियाँ परी भिक्षा माँगे लगी अइलथिन हल अपन पिता के घर से पलायन कइल राजकुमार गौतम । ऊ पहाड़ी पर, जाहाँ अभी महादेव के मंदिर हइ, अभियो तक प्राकृतिक गुफा देखाय दे हइ, जाहाँ परी ऊ दुपहरी के गरमी में अराम करे खातिर चल गेलथिन हल ।  अपन उपदेश के क्रियाकलाप के दौरान गौतम राजगृह कइएक तुरी वापिस अइलथिन हल; उनकर निधन के बाद उनकर अनाथ शिष्य लोग हियाँ एकत्र होते गेले हल । ई सब के पीछू कभियो ई शहर के बौद्ध जगत् में कोय विशेष महत्त्व नयँ हलइ । हियाँ निस्संदेह निम्मन से मंदिर आउ स्तूप बन्नल हलइ; हियाँ मठ भी हलइ; लेकिन ओकरा में से केकरो ओतना बड़गो नाम नयँ हलइ जेतना कि नालंदा या बनारस के मठ के हलइ । [*206] 5मी शताब्दी में शहर खंडहर बन चुकले हल; अनुमान लगावल जा सकऽ हइ कि एकर पतन के काल के प्रारंभ बहुत पहिलहीं आउ तब हो गेले हल, जब बौद्ध लोग अपन सामाजिक महत्त्व आउ धन के मामले में भारत के अन्य सब जगह में मजबूत हलइ । बौद्ध के बाद हियाँ ब्राह्मण लोग के धाक जम्मे लगलइ - आउ एकन्हीं के स्थान पर मुसलमान लोग आ गेलइ । ब्रह्मण लोग हियाँ अपन मंदिर बनइते गेलइ, मुसलमान लोग मस्जिद आउ मकबरा; आउ ई बात में आश्वस्त होवे खातिर बहुत तीक्ष्णदृष्टि के आवश्यकता नयँ हइ कि जइसे ऊ सब ओइसीं दोसरो सब बनावल आउ सुसज्जित कइल गेलइ पुरनका बौद्ध सामग्री से - ओहे मूर्ति सब के ब्राह्मण लोग खुद लगी अपनाऽ लेते गेलइ आउ ओकर पूजा करे लगलइ । आउ ओहे से, बिहार में लगभग सगरो आउ भारत के बाकी प्राचीन जगह में लगभग पूर्वसंध्या पर निर्मित भवन में बहुत प्राचीन पुरावशेष के अवशेष (remnant of ancient antiquity) प्राप्त होना लगभग बिलकुल अप्रत्याशित हइ । राजगीर में, एकरा अलावे, पुरनका बौद्ध सामग्री के जैन लोग बहुत उपयोग करते गेलइ, जे आसपास के पहाड़ी पर के चोटी पर मंदिर के निर्माण करते गेलइ । हलाँकि राजगृह वर्तमान काल में एगो पवित्र स्थल हइ, लेकिन हियाँ हम जादे तीर्थयात्री नयँ देखलिअइ - रस्तो पर हियाँ अइते ओकन्हीं के अधिक संख्या नयँ देखाय देलकइ; आउ खाली तड़के सुबह घाटी में कुछ गति दृष्टिगोचर होवऽ हइ; तीर्थयात्री भारत के दूर-दूर क्षेत्र से, विशेष करके जैन लोग, कभी-कभी मध्य पंजाब से, गरम झरना के आसपास एकत्र होवऽ हइ; चारो दने से बंद पालकी में महिला तीर्थयात्री सब के पहाड़ी के चोटी पर विभिन्न मंदिर में ले जाल जा हइ; घाटी नीरस हइ आउ दिन के बाकी समय में बिलकुल शांत रहऽ हइ, सुबह लगभग छो बजे ई कुछ समय लगी सजीव हो उठऽ हइ; गरम झरना के पास बोलचाल के स्वर सुनाय दे हइ; पहाड़ी के ढलान पर दूरहीं से स्वच्छ उज्जर वस्त्र में उद्यमशील तीर्थयात्री सब के जैन संत लोग के चमत्कारिक चरणचिह्न दने चढ़के जइते देखाय दे हइ । ई सब मंदिर में, जइसन कि हम पहिलहीं टिप्पणी कर चुकलिए ह, निश्चय ही कुछ तो आउ अधिक प्राचीन हइ, आउ ढालू पहाड़ी पर के हरेक मंदिर पर चढ़ना असान बात नयँ हइ - चढ़ाई ढालू हइ, आउ केकरो हाथ पवित्र स्थल के रस्ता के असान करे के फिकिर नयँ कइलकइ । [*207] औरतानी आउ वृद्ध लोग के साधारणतः पहाड़ी पर विशेष प्रकार के निर्मित पालकी में ले जाल जा हइ - वाहक द्वारा ई मामले में दर्शावल कला पर आश्चर्यचकित होल बेगर नयँ रहल जा सकऽ हइ, आउ पालकी में बैठल लोग के साहस पर भी; जब निच्चे से वाहक लोग के तरफ चढ़ते देखभो, त लगतो, कि या तो ओकन्हीं सवार लोग के फेंक देते जइतइ, चाहे पालकी ओकन्हीं के कन्हा पर से फिसल जइतइ आउ तीव्र ढलान पर से उड़ते निच्चे चल अइतइ । लेकिन न तो ई, न तो ऊ कभियो होवऽ हइ ।
वैभारगिरि पहाड़ी पर के गरम झरना तरफ एगो सुंदर पथरीला जीना से होके चढ़भो - पहाड़ी के तलहटी में सरस्वती नदी बहऽ हइ, आउ ठीक झरना के पास कइएक ब्राह्मण (हिन्दू) मंदिर हइ, आउ हियाँ परी  ब्राह्मण जाति से कइएक भिखारी के स्थायी अड्डा हइ - ई अर्द्ध-भिक्षुक लोग केकरो आगू नयँ जाय दे हइ, आउ यूरोपियन आउ जैन लोग से ओकन्हीं दान खातिर बार-बार आग्रह करऽ हइ, लेकिन विशेष रूप से हिन्दू तीर्थयात्री लोग से लगाव रहऽ हइ । ई सब के मिलाके ओकन्हीं के आमदनी बड़गो नयँ होवऽ हइ । ई एगो पहाड़ी के पास गरम झरना सात गो हइ; ऊ सब के नाम हइ - गंगा-यमुना-कुंड, आनंद-ऋषि, मार्कण्ड, व्यास, सतद्वार, ब्रह्मकुंड, काशीतीर्थ; पानी, जेकर तापक्रम ब्रह्मकुंड में 105° फारेनहाइट तक पहुँच जा हइ, सिंह आउ बाघ के सिर से सुसज्जित पत्थर के पाइप से होके बाहर निकसऽ हइ आउ पत्थर के हौज में एकत्र होवऽ हइ । पहिलहीं श्वानचांग पाइप के ई सब मूर्तिकला संबंधी अलंकरण के बारे उल्लेख करऽ हइ । मंदिर सब में बौद्ध विरासत के प्रचुरता आश्चर्यचकित करऽ हइ; हियाँ परी ग्रैनाइट के छोटगर-छोटगर चैत्य *) भी लिंगम् में बदलल हइ; दोसरो चीज के बहुत कुछ हियाँ परी पूर्व बौद्ध मंदिर आउ छोटका प्रार्थनागृह (chapels) से लावल गेले ह । मार्कण्ड-कुंड नामक झरना से दक्षिण-पश्चिम तरफ, 276 फुट के उँचाई पर, एगो काफी बड़गर चबूतरा हइ । ई बड़गर बिन खरादल पत्थर से बन्नल हइ [*208] आउ एकरा जरासन्ध के बैठक  कहल जा हइ, मतलब, जरासन्ध के सिंहासन; ई चबूतरा के ऊँचाई 28 फुट हइ; एकर तलहटी में कइएक गुफा हइ, छो आउ आठ फुट वर्ग के । साल के विभिन्न  समय में ई सब गुफा में  अल्पकालीन निवासी, विभिन्न  संप्रदाय के फकीर लोग होवऽ हइ । ओकन्हीं
 

*) चैत्य मतलब स्तूप; ई विभिन्न आकार के होवऽ हइ आउ हमेशे उपरे तरफ से निच्चे दने उलटा कइल चषक के आकृति के होवऽ हइ । कभी-कभी एकर पार्श्व नक्काशी से सुसज्जित रहऽ हइ; लिंगम् (phallus) - शिव या महादेव के प्रतीक हइ ।

के अइसन गंतव्य स्थान प्राचीन काल से हलइ, आउ पूरा संभावना के अनुसार हियाँ अत्यंत प्राचीन काल के बौद्ध कोठरी (cells) हइ । ई सब कोठरी में से दू गो पूरब तरफ हइ, पाँच गो उत्तर तरफ । अइसने गुफा हमरा ब्रह्मकुंड से पश्चिम तरफ देखे में अइलइ, लगभग सो डेग से कुछ अधिक; एकरा पहाड़ी के बगल में तराशके बनावल गेले ह, काफी बड़गो ऊँचाई पर । आउ पश्चिम दूर हटके पहाड़ी में एगो घुमघुमौवा चौड़गर रस्ता हइ, जेकरा में काँटेदार झाड़ी बहुत जादे बढ़ गेले ह । चबूतरा के क्षेत्रफल पचास वर्गफुट हइ; एकर पीछू तरफ एगो बड़गो गुफा हइ, जेकरा में अइँटा के बन्नल कइएक सीढ़ी निच्चे तरफ जा हइ । हमर समय में एकर अंदर घुसना असान नयँ हलइ, एतना अधिक ढहल पत्थल आउ अइँटा से ई भरल हलइ । एकर साइज लेकिन मालुम हइ - 36 फुट पूरब से पश्चिम आउ 26 फुट उत्तर से दक्खिन; ऊँचाई 18 से 20 फुट । ई गुफा में ब्रोडली के कार बसाल्ट से निर्मित बुद्ध के एगो मूर्ति मिलले हल, आउ ई खोज हम सब के ई माने पर बाध्य करऽ हइ कि ई गुफा एगो मंदिर हलइ जे ओतने परिष्कृत नयँ हलइ, जेतना कि अभियो तक निच्चे में गरम झरना (सात-द्वार) में से एगो के पास हइ आउ जेकरा सप्तर्षि के मंदिर कहल जा हइ । एहो कृत्रिम गुफा हइ, लेकिन साइज में बहुत छोटगर, आउ सप्तर्षि के मूर्ति के अतिरिक्त कइसूँ सुसज्जित नयँ हइ । गुफा के सामने चबूतरा पर, जेकर प्रवेश पूरब तरफ से हइ, मुसलमान के तीन गो मजार हइ । चोटी तरफ उपरे चढ़के, 800 फुट के ऊँचाई पर एगो दोसर चबूतरा मिलतो, जे पहिलौका से बहुत मेल खा हइ; हियाँ से 14 से 15 फुट चौड़गर देवाल के अवशेष उपरे दने जा हइ; एकर किनारे-किनारे रस्ता से होते चढ़के जैन मंदिर दने जइबहो, [*209] जे 1300 फुट के ऊँचाई पर हइ । विशेष करके अद्भुत ऊ हइ, जे दक्षिण-पश्चिम में हइ । ऊ बहुत निम्मन से सुरक्षित हइ; एकर मुख्य प्रवेश पूरब मुँहें हलइ; पनरह फुट तक स्तंभावली (colonnade)हइ, जे वर्गाकार कोठरी में प्रवेश करऽ हइ; बारह उँचगर स्तंभ अभी ढह चुकल छत के सँभालऽ हलइ, ई कोठरी से तीन सोपान उपरे दोसरका कोठरी हलइ - जे छोटगर, लेकिन अधिक उँचगर हलइ । ई कोठरी में जाय वला दरवाजा के लिंटेल नक्काशी से सुसज्जित कइल हइ, जे बहुत भद्दा हइ । दरवाजा पर बुद्ध के प्रतिमा हइ । ई उल्लेख करे के लगभग जरूरत नयँ हइ कि एतना ऊँचाई से मंदिर से एगो सुंदरतम दृश्य देखाय दे हइ - हियाँ से नयका शहर राजगृह, बिहार आउ बड़गाँव के टीला सब देखाय दे हइ ।
दक्षिण आउ दक्षिण-पश्चिम दने दू गो बौद्ध मंदिर के खंडहर हइ । वैभारगिरि पहाड़ी के चोटी पर कइएक जैन मंदिर हइ; हियाँ से, घाटी में बिन उतरले, सोनभंडार गुफा पहुँचल जा सकऽ हइ, जे पहाड़ी के दखनी ढलान पर हकइ; हम लेकिन निच्चे उतरके ई गुफा तक घाटी से होके जाना बेहतर समझलिअइ; गरम झरना से हियाँ तक एक मील से जादे दूर नयँ हइ । सोनभंडार गुफा या अनुवाद में "सोना के भंडार" सबसे अद्भुत प्राचीन अवशेष में से एक हइ, जे हम बिहार में देखलिअइ । ई अपने आप में अद्भुत हइ, बहुत प्राचीन अवशेष के स्मारक के रूप में, ऊ इतिहास पर बिन कोय ध्यान रखते, जे ओकरा साथ स्थानीय पुरातत्त्ववेत्ता लोग जोड़ते जा हथिन, आउ जे शंकास्पद से कहीं अधिक हइ । ऊ गुफा, जेकरा में, कहल जा हइ, बौद्ध लोग के पहिला सम्मेलन होले हल, पहाड़ी के दखनी ढलान पर अवस्थित हकइ । श्वानचांग, राजगृह में अपन निवास के वर्णन करते, अन्य बात के अलावे बोलऽ हइ कि ऊ एगो "बड़गो पत्थर के घर" देखलके हल आउ जाहाँ ई पहिलौका सम्मेलन होले हल आउ ई घर जे स्थान पर हलइ, ओकरा बहुत कठिनाई से तर्क देके वर्तमान गुफा के स्थल से जोड़ल जा सकऽ हइ । अगर [*210] ईसा के 7मी शताब्दी में धार्मिक पितर लोग के पहिलौका वास्तविक स्थल के स्मृति एतना धुँधला हलइ कि उनकन्हीं लगी बड़गो घर प्रदान कइल जा हइ, त की एकर ई मतलब नयँ हइ कि ऊ काल में भी गुफा के आद नयँ कइल गेलइ, आउ एकर अस्तित्व नयँ हलइ, आउ ओहे से ई अविश्वसनीय हइ कि ई गुफा के खोज 19मी शताब्दी में होलइ ।
गुफा तक जाय लगी अभी रस्ता से होके चढ़े पड़ऽ हइ, लेकिन पहिले एकरा बदले, शायद, उपरे तरफ सीढ़ी जा हलइ । गुफा के ठीक सामने चबूतरा हइ, लगभग 100 फुट वर्ग में; ई क्षेत्र के कुछ हिस्सा, शायद, आच्छादित ओसारा के साथ बन्नल हलइ, काहेकि गुफा के बाहरी देवाल पर वर्गाकार नियमित खाँच (grooves) देखाय दे हइ, जेकरा में शहतीर बैठावल हलइ । अइँटा आउ पत्थल के ढेर चबूतरा पर बिखरल हइ । गुफा के बाहरी अग्रभाग एतना चिकना आउ समतल हइ कि दूर से पालिश कइल लगऽ हइ, ई 44 फुट लंबा आउ 16 फुट ऊँचा हइ । पश्चिमी छोर से एगो चट्टान उभरल हइ, लेकिन पूरबी छोर पर पत्थर के काटके 20 गो सँकरा सोपान (steps) बनावल हइ । बिलकुल नियमित काटल दरवाजा गुफा में ले जा हइ; दरवाजा के चौड़ाई - 3½ फुट, ऊँचाई - 6 फुट 4 इंच । देवाल के मोटाई 3 फुट हइ - दरवाजा से पच्छिम एगो खिड़की हइ, जेकर चौड़ाई आउ ऊँचाई तीन फुट हइ । एहे दिशा में बिन सिर वला बुद्ध के मूर्ति हइ आउ दू पंक्ति के एगो छोटगर शिलालेख । शिलालेख के वर्णमाला ईसवी सन के प्रारंभ के मानल जा सकऽ हइ । कोय वैरदेव, जे एगो संन्यासी हलइ, अपना बारे लिक्खऽ हइ कि ऊ हियाँ परी रहऽ हलइ आउ ध्यान करऽ हलइ । गुफा के भीतरी भाग मेहराब के निच्चे 33 फुट लंबा आउ 17 फुट चौड़ा हइ । देवलियन पर कइएक अद्यतन वर्णमाला में शिलालेख हइ, लेकिन जेकरा तइयो समझना मोसकिल हइ । गुफा के अंदर में एगो चैत्य हइ, जे बुद्ध के बहुत बारीक काम (fine work) वला प्रतिमा सब से सुसज्जित हइ । ई गुफा हिंदू वास्तुकला (architecture) के प्राचीनतम नमूना हइ; कइएक अइसन नैसर्गिक गुफा श्रीलंका के टापू पर पावल जा हइ । [*211] सोनभंडार के गुफा प्राचीन बौद्ध कोठरी के नमूना हइ जे कभी, अर्थात्, "पाप स्वीकारोक्ति अनुष्ठान" (उपोसथ) के दौरान मंदिर में परिवर्तित कर देल गेलइ; ई ऊ सब कुछ से अधिक प्राचीन हइ, जे हमन्हीं के एकरा में मिल्लऽ हइ, शिलालेख होवे चाहे चैत्य; ई दोसरा सब कुछ, पूरा संभावना हइ, हियाँ बहुत हाल में लावल गेलइ ।
राजगृह में बहुत सारा विलक्षण वस्तु हइ; जइसे विपुलगिरि के पास कइएक दोसर-दोसर गरम झरना हइ । ओकरा में से एगो के हिन्दू आउ मुसलमान दुन्नु पवित्र मानते जा हथिन । उदयगिरि बिजुन एगो चबूतरा अथवा भीमसेन के सिंहासन देखइते जा हथिन । चोटी पर के लगभग सब्भे मंदिर में कुछ न कुछ अधिक प्राचीन पावल जा सकऽ हइ । ई सब्भे पुरावशेष के समान वैज्ञानिक महत्त्व नयँ हइ; लेकिन बहुत्ते चीज के बहुत पहिलहीं फोटोग्राफ के रूप में सार्वजनिक बनावल जाय के चाही हल । स्थानीय पुरावशेष के बहुत स्पष्ट वर्णन बिलकुल काफी नयँ हइ - अगर वर्णन के, जइसन कि अकसर होवऽ हइ, साथ में वर्णनीय स्थल के पछानके चीनी यात्री द्वारा उल्लेख कइल कोय मठ चाहे मंदिर से जोड़े के इच्छा भी शामिल कर लेल जाय, तब लेखक लोग दुर्भाग्यवश अनिच्छापूर्वक तनाव में पड़ जाय लगऽ हथिन आउ ई वर्णन बिलकुल सही प्रतीत नयँ होवऽ हइ ।


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