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Sunday, February 25, 2018

इवान मिनायेव के बिहार यात्राः 3.0 गया में


3.


गया शहर फल्गू नदी के पश्चिमी किनारा पर ब्रह्मयोनि नामक पहाड़ी के तलहटी में स्थित हइ । रस्तवे से तोहरा ई बात के पक्का विश्वास हो जइतो कि हियाँ परी सगरो से भारतीय लोग अइते जा हथिन - विभिन्न प्रकार के जनसमूह गया आवऽ हइ आउ गया से जा हइ - पैदल, एक्का *) , ऊँट पर, हाथी पर, आच्छादित पालकी में औरतानी, खुल्लल चौड़गर पालकी में ज़मींदार इत्यादि यात्री, ई सब तीर्थयात्री के जनसमूह से तोहरा भेंट होतो चाहे तोहरा साथे पूरे रस्ता चलतो । लोग गया श्राद्ध करवावे लगी जइते जा हथिन, आउ सबके चेहरा पर एतना खुशी झलकऽ हइ, मानूँ आगू कोय शोक के अनुष्ठान नयँ हइ, बल्कि त्योहार आउ मौज-मस्ती के बात हइ । ऊ लोग में से अधिकांश, जे "अपन पितर लोग के आद करे लगी" अइते जा हइ - बड़गो भौतिक संसाधन वला लोग होवऽ हइ, काहेकि गया में श्राद्ध करवावे में बहुत पैसा लगऽ हइ - साथ में ब्राह्मण लोग के निम्मन भोज भी देवे के चाही, [*215] आउ गया में एतना जादे भुक्खल ब्राह्मण हइ कि सबसे अंत में श्राद्ध के भोज पर के खरचा एगो बहुत बड़गो रकम तक पहुँच जा सकऽ हइ । कलकत्ता के एगो धनी भारतीय के जानऽ हलिअइ, जे लेखक आउ पुरातत्त्ववेत्ता (archaeologist) हलइ; ऊ ब्राह्मण जात के नयँ हलइ आउ एगो हिन्दू के अपेक्षा ईश्वरवादी (deist) अधिक हलइ - तइयो अपन सामाजिक स्थिति आउ प्रभाव बनइले रक्खे खातिर ऊ हिन्दू के सब्भे अनुष्ठान, आउ जाहिर हइ, श्राद्ध  के भी पालन करना अपन कर्तव्य समझऽ हलइ । ऊ हमरा बतइलकइ कि ऊ गया नयँ जाब करऽ हइ, हुआँ जाय के बड़ी इच्छा रहला के बावजूद, जेकर पूरा स्पष्टीकरण हलइ कुछ पुरातात्त्विक मामला - ऊ नयँ जाब करऽ हइ, ताकि खरचा नयँ करे पड़े; ऊ अपन पिता के मृत्यु पर भी श्राद्ध नयँ कइलकइ, आउ गया में अपन पितर लोग के आद करे खातिर, ओकर हैसियत के मोताबिक, ओकरा लगभग चार हजार रुपइया या चार सो पौंड स्टर्लिंग खरच करे पड़ते हल । कश्मीर के महाराजा हियाँ परी श्राद्ध पर पनरह हजार पौंड खरच कइलथिन हल । आउ नाना साहेब के बाबा (दादा) , कहल जा हइ, अइसने परिस्थिति में गया में दस हजार पौंड तक खरच कइलथिन हल । ई निर्धारित करना असान नयँ हइ कि गया के श्राद्ध में गरीब लोग चाहे बिन बड़गो संसाधन वला व्यक्ति केतना खरच करऽ हइ । वर्तमान शताब्दी के शुरुआत में एगो गरीब व्यक्ति चार पौंड में गया के सब्भे पवित्र स्थल पर भेंट देवे के खुशी प्राप्त कर ले हलइ । ऊ जमाना में गया में विभिन्न क्षेत्र से सालाना एक लाख से अधिक तीर्थयात्री एकत्र होवऽ हलइ; अंग्रेज लोग बिहार पर सत्ता हथिअइला पर दीर्घ अवधि तक विशेष कर, जेकरा तीर्थ-कर के नाम से जानल जा हलइ, समाप्त नयँ कइलकइ; गया जाय वला हरेक कोय, हुआँ रस्ता में पास खातिर सरकारी खजाना के भुगतान करऽ हलइ । ई कर ईस्ट इंडिया कंपनी के समाहर्ता (collectors) संग्रह करऽ हलइ । वर्तमान काल में ई कर समाप्त कर देल गेले ह, लेकिन तीर्थयात्री के संख्या में मोसकिल से कोय वृद्धि होले ह; काहेकि गया के सब पवित्र स्थल में भेंट देवे आउ ब्राह्मण लोग के भोज देवे के खरचा निस्संदेह अधिक हो गेलइ । गया में स्थानीय ब्राह्मण लोग हइ, जे भोला-भाला तीर्थयात्री लोग के बदौलत धनाढ्य हो गेते गेले ह; [*216] ओकन्हीं गयावाला के नाम से जानल जा हइ; गयावाला लोग के 300 परिवार तक हइ, आउ कुछ परिवार के सालाना आमदनी 5000 स्टर्लिंग पौंड तक हइ । धनाढ्य गयावाला के पूरे भारत में प्रतिनिधि (एजेंट) हइ, जेकर काम हइ विश्वास करे वलन के तीर्थ पर गया बोलाके लाना । गयावाला सब अज्ञानी होवऽ हइ आउ निकम्मा आउ असंयमी जीवन गुजारऽ हइ । ओकन्हीं के वृद्ध महंत के नियमानुसार ब्रह्मचर्य के पालन करे के चाही; लेकिन विभिन्न महंत के कइएक वंशज ई बात के प्रमाण हइ कि ई नियम के हमेशे पालन नयँ कइल जा हइ । गयावाला आउ दोसर-दोसर ब्राह्मण सब तीर्थयात्री लोग के बदौलत जीयऽ हइ आउ धनाढ्य होवऽ हइ । ई सब कुछ से ई निष्कर्ष निकासल जा सकऽ हइ कि गया में ब्राह्मण भोज में केतना पैसा खरच कइल जा हइ, आउ जाहाँ भोज हइ, हुआँ निस्संदेह अपने प्रकार के मौज-मस्ती हइ - आउ ओहे से रस्ता में जब तीर्थयात्री लोग के तरफ देखभो, त अनिच्छापूर्वक विचार अइतो कि ओकन्हीं सब कोय तो खुशी के समारोह में जाब करऽ हइ ।
गया दूरहीं से देखाय दे हइ, लगभग तीन मील से । अस्ताचलगामी सूर्य के पड़ रहल अंतिम किरण के समय जब
 

*) एक्का - एक घोड़ा से घिंच्चल जाय वला स्थानीय दुचकिया, जे बहुत असुविधाजनक हइ । देसी लोग एकरा में खुशी से यात्रा करते जा हइ ।
हमन्हीं फल्गू नदी के पूर्वी किनारा पर पहुँचलिअइ, त हमन्हीं के सामने शहर दृष्टिगोचर होलइ, जे पश्चिम तरफ पवित्र पहाड़ी सब से घिरल हइ । शहर में बिन प्रवेश कइले, बलुआही किनारा पर, जाहाँ परी कहीं-कहीं तार के पेड़ देखाय दे हलइ, रस्ता में भेंटल बहुरंगी विभिन्न तरह के भीड़ अपन-अपन ऊँट, हाथी, एक्का आउ पालकी के साथ पड़ाव डालते गेलइ; कोय अराम करे लगलइ, कोय रात्रिभोजन करे लगलइ, आउ कोय प्रार्थना करे लगलइ। अपन माता-पिता आउ बाबा (दादा) के आद करे लगी आवे वला के शहर में प्रवेश के पहिलहीं, नदी के पास पहुँचला पर, अनुष्ठान शुरू कर देवे के चाही । हियाँ से आगू ओकरा पैदल जाय के चाही, जुत्ता-चप्पल खोल देवे के चाही आउ नदी के साष्टांग प्रणाम करे के चाही - गोड़, हाथ, टेहुना, सिर, छाती, मन, बोली आउ दृष्टि से  प्रणाम करे के चाही; हाथ-गोड़ धोवे के चाही; नदी के यथासंभव अर्पण करे के चाही आउ विख्यात संक्षिप्त प्रार्थना करे के चाही । नदी में स्नान करके स्वच्छ परिधान धारण कइला के बादे शहर में प्रवेश करे के निर्देश हइ । [*217] ई स्नान के साथ गया में श्राद्ध के निष्पादन के प्रारंभ होवऽ हइ - एकर पहिले ओकरा कुछ प्रारंभिक अनुष्ठान घर पर करे पड़ऽ हइ, रस्ता पर प्रस्थान करे के पहिले आउ यात्रा प्रारंभ के दिन; गया में अनुष्ठान सात दिन तक लगातार जारी रहऽ हइ, लेकिन इच्छानुसार आउ अधिक दिन तक जारी रक्खल जा सकऽ हइ । श्रद्धा शब्द के अर्थ ही होवऽ हइ "विश्वास" - पूर्वज लोग के विश्वास आउ प्रार्थना के साथ भोजन (पिंड) के अर्पण के ई शब्द से व्युत्पन्न शब्द "श्राद्ध" कहल जा हइ - ई अनुष्ठान निधन होल पूर्वज लोग के आदगारी में खाली ब्राह्मण सब के खाली भोजे देवे में निहित नयँ हइ, बल्कि वास्तव में पूर्वज लोग के भोजन), पानी  या आटा, चावल, दूध, मांस आदि से बन्नल मालपूआ आदि के अर्पण करे में भी हइ । अर्पण कइल जा हइ प्रार्थना के साथ, जेकरा में शक्ति अइसन हइ कि भोजन तुरंत परिवर्तित हो जा हइ - अगर मृत पितामह अथवा पिता अपन कइल पुण्य के बल पर देवता हो गेला ह, त हावा में उछालल मालपूआ अमृत में बदल जा हइ, आउ अगर ऊ जानवर हो गेला ह, त मालपूआ घास में बदल जा हइ, आदि आदि । श्राद्ध के निष्पादन धर्मपरायण हिन्दू खातिर सगरो आवश्यक हइ, लेकिन कोय कारण से ई मानल जा हइ कि स्मारक अनुष्ठान, जे गया में कइल जा हइ, विशेष रूप से पूर्वज लोग के प्रिय हइ, आउ एकर निष्पादन करे वला खुद बड़गो फल पावऽ हइ । साधारणतः अनुष्ठान क्लिष्ट नयँ होवऽ हइ, हलाँकि एकर निष्पादन में कइएक तरह के प्रार्थना कइल जा हइ, संस्कृत साहित्य में पूर्वज खातिर अर्पण लगी कइएक  शास्त्रीय ग्रंथ, विशाल आउ संक्षिप्त सार-ग्रंथ ऊ सब ब्राह्मण के दिशानिर्देश में रचित उपलब्ध हइ, जे पेशा के रूप में हरेक भोज में उपस्थित होते जा हथिन - दक्षिणा पर प्रार्थना के पाठ करऽ हथिन, आउ पेट भर खइवो करते जा हथिन ।
पूर्वी किनारा से शहर के दृश्य मनोहर लगऽ हइ; शंकु के आकार के मंदिर के शिखर, उँचगर-उँचगर पाषाण-गृह, जेकरा में से कइएक पहाड़ी के चोटी पर बन्नल हइ; बलुआही किनारा से बहते नदी के बहुसंख्यक घाट - [*218] ई सब बहुत प्रभावकारी तस्वीर प्रस्तुत करऽ हइ । नदी के पाँझ (उथला पाट, ford) पार करके, हम सब देसी शहर (native city) के बाहर-बाहर से गुजरते सीधे अंग्रेजी उपनगर में प्रवेश करते गेलिअइ, जेकरा में चौड़गर छायादार वृक्षवीथि (alleys), उद्यान आउ लमगर-चौड़गर ओसारा वला एकमंजिला उज्जर-उज्जर घर हलइ । गया में, भारत के अन्य कइएक बड़गर शहर नियन, यूरोपियन कवार्टर सगरो सुख-सुविधा के साथ उत्तम ढंग से बस जाय के अंग्रेज के दक्षता के वर्णन करऽ हइ; लेकिन एकर साथे-साथ अंग्रेज लोग के भारत में देसी लोग से दूर रहे के, देसी जिनगी के शोर-गुल से कहीं दूर चल जाय के, अलगे कोलोनी बसावे के सार्वत्रिक प्रयास - सबसे निम्मन तरह से ई बात के प्रमाणित करऽ हइ कि देसी आउ अंग्रेज लोग के बीच अइसन खाई हइ, जेकरा कोय नयँ पाट सकऽ हइ । अंग्रेज आउ देसी लोग अगले-बगल रहते जा हइ, लेकिन हरेक अप्पन अइसन जिनगी के साथ, जे दोसरा लगी अनजान आउ बिलकुल समझ के बाहर होवऽ हइ - सामाजिक रूप से अंग्रेज आउ देसी लोग बिलकुल एक दोसरा से विच्छेदित (disconnected) रहऽ हइ । आउ एगो सामान्य अंग्रेज आउ ओइसने देसी के बीच कउची एक नियन (common) हो सकऽ हइ ? एगो भारत में अइलइ रहे लगी आउ यथासंभव मालामाल बन्ने लगी - रोज दिन के जेतना आवश्यक ड्यूटी हइ ऊ पूरा हो जाय, ओतने ऊ भारत आउ भारतीय के बारे अध्ययन करतइ, एकरा से जादे ओकरा से माँग नयँ कइल जा सकऽ हइ; बिलकुल अलग ऐतिहासिक जीवन के परंपरा में पालित-पोषित, अंग्रेज भारत में अइसन धारणा (concepts) आउ आदत वला हइ, जे ओकरा पर पाश्चात्य सभ्यता द्वारा प्रतिरोपित हइ आउ सीधे ओकर विपरीत हइ, जे एगो भारतीय के पास हइ चाहे ऊ अपन मातृभूमि में अनुसरण करऽ हइ । ऊ अत्याचार के साथ बड़ा होलइ - पितृभूमि, ब्रिटिश सरकार, आउ अधिकांश भारतीय विदेशिए अंग्रेज से अपन मातृभूमि के सामान्य नाम "हिन्दुस्तान, इंडिया" के नाम से पुकारे लगी सिखते गेले ह, आउ अभियो तक ओकन्हीं के भाषा में "हिन्दू" शब्द (रूसी भाषा में अशुद्ध रूप में "इन्दूस") के अर्थ "भारतीय, एगो व्यक्ति जेकर पितृभूमि इंडिया हइ" नयँ होवऽ हइ, बल्कि एगो अइसन विचार अभिव्यक्त करऽ हइ [*219] जे हमन्हीं के शब्द में "Orthodox", "Catholic" से अभिव्यक्त होवऽ हइ, अर्थात्, ई शब्द के अर्थ होवऽ हइ अइसन व्यक्ति, जे एगो विशिष्ट जाति के आउ विशिष्ट धर्म के हइ । अधिकांश भारतीय बड़ा होवऽ हइ, जाति के अपेक्षा आउ कोय सामान्य धारणा के पचा नयँ पावऽ हइ; भारतीय अपन धार्मिक कर्तव्य सिक्खऽ हइ, ओकरा साथ बचपने से खाली ओकर जाते से संबंधित व्यक्ति के कर्तव्य के बारे में लोग चर्चा करते जा हइ; Patriotism (देशभक्ति) - ई शब्द संस्कृत या स्थानीय भारतीय भाषा सब में अनुवाद्य (translatable) नयँ हइ । ई तथ्य से अंग्रेज आउ देसी के बीच सबसे प्रमुख भेद अभिव्यक्त होवऽ हइ । भेद आउ अधिक हइ, हजार से अधिक छोटगर तथ्य से अभिव्यक्त होवऽ हइ, आउ एकरा चलते अंग्रेज आउ भारतीय हेतु खाली सह-अस्तित्व संभव हइ, लेकिन एक नियन जिनगी नयँ । झूठ बोलना, अधिकांश अंग्रेज के धारणानुसार, आत्महीनता हइ; निस्संदेह अइसन मामला हइ कि अंग्रेज भी झूठ बोलऽ हइ, सफलतापूर्वक झूठ बोलऽ हइ आउ दंड से बच जा हइ; लेकिन साधारणतः झूठा प्रमाणित हो गेला पर सबके दृष्टि में दोषी होवऽ हइ आउ अपमानित कइल जा हइ । सैद्धांतिक रूप से भारतीय भी सत्य के बहुत महत्त्व दे हइ आउ कठोरतापूर्वक हरेक व्यतिक्रम (deviation) के दंडित करऽ हइ; लेकिन व्यावहारिक जीवन में असत्य के प्रति दोसरे व्यवहार स्थापित हइ - असत्य, कोर्ट में घूसखोरी, मिथ्या साक्ष्य, धोखा - ई सब सैद्धांतिक रूप से गर्हणीय (condemnable), कानूनन दंडनीय हइ, लेकिन स्थानिक समाज में ई सब के पूर्णतः अनदेखी कइल जा हइ - झूठा सिद्ध होल लेकिन पश्चात्ताप नयँ करे वला, तइयो अपन जात के सदस्य बन्नल रहऽ हइ आउ कोय ओकरा से मुँह नयँ फेरऽ हइ । अंग्रेज भारत में यूरोपियन धारणा के अनुसार एगो निम्मन गृहस्थ (family man), निम्मन पति आउ पिता होवऽ हइ; ऊ एगो मिलनसार व्यक्ति होवऽ हइ, अपन घर में मित्रगण के स्वागत करऽ हइ आउ भोज (dining parties) दे हइ । एगो भारतीय के पास अगर संसाधन होवऽ हइ, त ओकरा एक नयँ, बल्कि दू गो चाहे तीन गो घरवली होवऽ हइ, आउ ऊ रखैल रक्खे में भी नयँ शरम करऽ हइ । [*220] ऊ सबसे नीच जाति के व्यक्ति के साथ भोजन करना अपवित्र आउ धार्मिक रूप से पाप मानऽ हइ, लेकिन शाम में मित्र सब के निमंत्रित करतइ आउ ओकन्हीं लगी नाच के प्रबंध करतइ, अर्थात् अपन घर में निमंत्रित करऽ हइ हुएँ, जाहाँ परी ओकर घरवली, बेटी, बेटा रहऽ हइ आउ ओहे सगा संबंधी के सामने - नर्तकी, स्पष्टतः स्वच्छंद व्यवहार करे वली औरतियन, रहऽ हइ आउ रात भर ओकन्हीं के अश्लील नाच देखतइ, ओकन्हीं के अश्लील गीत सुनतइ । अंग्रेज आउ भारतीय एक बात में समान हइ, लेकिन एहो ओकन्हीं के आउ जादहीं अलगे कर दे हइ; अंग्रेज मन में अपन देश के "पृथ्वी के लाल" (the salt of the earth) समझऽ हइ; ब्रिटिश राज्य के विश्व राज्य कहल जा सकऽ हइ; बाकी सब्भे जे ब्रिटिश नयँ हइ, ऊ बत्तर हइ, गुणवत्ता में ब्रिटिश के अपेक्षा घटिया हइ । भारतीय  अपन देश के लोग के खातिर अइसन राजनैतिक उद्देश्य के बारे नयँ सोचऽ हइ; अपन संपूर्ण दीर्घकाल के ऐतिहासिक जीवन में भारतीय लोग, विजेता नियन, अपन पितृभूमि के सीमा से कभी बाहर नयँ गेलइ; लेकिन ओकन्हीं लगी अनंत काल से पूरा विश्व "चार वर्ण" में विभाजित हलइ, उच्च जाति में, आउ विदेशी सब "म्लेच्छ", सबसे नीच जाति में । मातृभूमि में अभी भारतीय "kal-admi" (काला आदमी) आउ "sa'ablok" (सा'ब लोक) [भद्रलोक, अर्थात् यूरोपियन] जानऽ हइ । हलाँकि kal-admi तिरस्कारपूर्ण black skin (कार चमड़ी) के सूचक हइ, लेकिन "एगो नायक के अतीत दोष भर्त्सनीय नयँ होवऽ हइ" (नोटः ई एगो रूसी कहावत हइ), एगो कार अदमी हलाँकि कार होवऽ हइ, आउ तइयो उज्जर अदमी से उँचगर होवऽ हइ; कार होना एगो भारतीय के विचार से भर्त्स्नीय चाहे सुंदर नयँ होना नयँ हइ । कृष्ण, प्रेम के भारतीय देवता, सब सुंदर लोग में सबसे सुंदर हथिन, आउ ऊ कार, बल्कि सब्भे सामान्य मरणशील लोग के अपेक्षा जादे कार हथिन । गीत में गावल जा हइ - "कहूँ नयँ देखलूँ हम तोहरा नियन कार चेहरा" । आउ ई कहल जा हइ आदर्श सौंदर्य के बारे, प्रेम के देवता के बारे । उज्जर अदमी के ऊपर अपन श्रेष्ठता पर भारतीय के ई दृढ़ विश्वास कइएक धार्मिक संस्थान में व्यक्त कइल जा हइ आउ कभी-कभी भोलापन आउ विनोदपूर्ण ढंग से, अनिच्छा से, यूरोपियन लोग के साथ बातचीत के दौरान ।
आउ ई तरह से, नैतिक रूप से पृथक् होल, परस्पर घृणा करते, अंग्रेज आउ भारतीय लोग हलाँकि एक्के शहर में रहते जा हइ, [*221] लेकिन एक दोसरा से दूर-दूर; ओकन्हीं के मार्मिक हित (vital interests) नियन ओकन्हीं के घरवो एक दोसरा से दूर-दूर रहऽ हइ । भारतीय प्रश्न एगो अंग्रेज लगी ओतने हद तक मतलब रक्खऽ हइ, जेतना तक ओकर व्यक्तिगत जीवन से संबंध रहऽ हइ - बहुत अकसर ऊ सब में दिलचस्पी लाभ के परिमाण से निश्चित कइल जा हइ, आउ साधारणतः प्राचीन भारतीय जीवन के संपूर्ण प्रकृति अपरिवर्तित रहऽ हइ, ओइसने, जइसन पूरे शताब्दी पहिले हलइ; अंग्रेज द्वारा स्थापित शिक्षा कइएक शताब्दी के भारतीय अंधविश्वास के हिला नयँ पइलकइ; जाति, बहुदेववाद (polytheism) पहिलहीं नियन, अंग्रेजी शासन के पहिले जइसन, दृढ़ रहलइ; यूरोपियन शिक्षा अल्पसंख्यक लोग के बीच प्रचलित होलइ आउ जनसाधारण के स्पर्श नयँ कर पइलकइ, भारतीय जीवन में प्रवेश नयँ कर पइलकइ । आउ अलगे कहूँ नयँ, जइसन कि खाली भारत में, दू तरह के जिनगी देखे लगी मिल्लऽ हइ - एगो उपनगरीय क्षेत्र में यूरोपियन सभ्यता द्वारा उपलब्ध कइल सब्भे सुख-सुविधा के बीच लोग रहऽ हइ - घर के निर्माण, ओकर सजावट, पूरा यूरोपियन जिनगी के तरीका; कुछ मील दूर जाहो - दू चाहे तीन मील, आउ तोहरा सामने दोसरे संसार दिखतो, दोसरे प्राचीन सभ्यता, दोसरे धार्मिक विश्वास के लोग । आउ ई पुरनका जिनगी के बहुत कुछ ऊ दूर के जमाना में अइसने हलइ, जहिया नयका यूरोपियन जिनगी के प्रारंभ भी नयँ होले हल । ठीक अइसने हिंदू गया हइ, अंग्रेजी उपनगरीय क्षेत्र के बगल में ।
गया में हम एगो उदार आउ मिलनसार अंग्रेज के घर में रहलिअइ - पूरा दिन हम हिंदू शहर में गुजारऽ हलिअइ आउ मेहमाननवाज मेजबान के पास खाली खाय आउ सुत्ते लगी आवऽ हलिअइ । ई लगभग हिन्दुस्तान में हमर निवास के प्रारंभ के बात हलइ, आउ हिंदू आउ अंग्रेज के बीच भेद (contrast ) के अइसन प्रबल आउ संपूर्ण छाप गया के अतिरिक्त कहूँ से हमरा नयँ प्राप्त होलइ । गया एगो नया शहर हइ, पुरनका स्थान में बनावल; एकर अस्तित्व बुद्ध के जमाना में भी हलइ, मतलब ईसा पूर्व छट्ठी शताब्दी में । अभी हियाँ के सब्भे मंदिर आउ भवन नया हइ; लेकिन ई सब नयका भवन में पग-पग पर पुरावशेष के अवशेष देखाय दे हइ; [*222] ब्राह्मण से संबंधित पूजा-अर्चना हियाँ परी पुरनके जमाना से घर कर गेले हल; पहिलहीं नियन, अभियो तक, हियाँ परी कइएक मंदिर, छोटका-छोटका देवालय, पवित्र तालाब, शाश्वत वृक्ष आदि हइ । वास्तुकला के दृष्टि से एक्को असाधारण (remarkable) मंदिर नयँ हइ । दू गो प्रमुख पवित्र स्थल हइ - विष्णुपाद आउ सूर्य मंदिर, जे एक दोसरा के आसे-पास हइ । ओकन्हीं में से कउनो एगो में कुछ समय लगी भेंट देके तोहरा बिलकुल ठीक-ठीक अंदाज मिल जइतो कि भारत में की होवऽ हइ जनसामान्य के धर्म, प्रतीकात्मक चाहे प्रतिमापरक पूजा (symbolical or representative worship †), जइसन कि कुछ बंगाली बाबू *) अपन मूर्तिपूजा के कहते जा हथिन । पत्थल के एक प्रकार के देवता मानल जा हइ, अइसन पत्थल जे कइसहूँ परंपरागत प्रस्तुति के नयँ दर्शावऽ हइ, जे ई देवता के मामले में प्राचीन काल में निर्धारित कइल गेले हल । तीर्थयात्री के मामले में हरेक पग पर जाहाँ एक तरफ बिलकुल अज्ञानता (blind ignorance) आउ सहज विश्वास हइ - त दोसरा तरफ पवित्र कार्य करे वला (पुजारी) आउ विभिन्न फकीर के तरफ से रूक्ष आउ निर्लज्ज धोखा हइ । खुद विष्णुपाद मंदिर मौलिक सौन्दर्य से वंचित नयँ हइ, लेकिन ई एतना अलाभप्रद  रूप से स्थापित हइ आउ चारो तरफ से एतना छोटगर-छोटगर देवालय से घेरल बनावल गेले ह कि एकर बाह्य सौन्दर्य के प्रभाव कुरूप छोटकन भवन के चलते  खो जा हइ । हियाँ परी विष्णु के पदचिह्न हइ, अर्थात्, शिला में दरार हइ, जेकरा पर पवित्र से पवित्र मंदिर, अड़तीस फुट व्यास के एगो अष्टफलक मीनार हइ; मीनार के ऊँचाई सो फुट हइ; ओकरा पर 80 फुट उँचगर पिरामिड अकार के गुंबद हइ । मीनार भिर 58 फुट वर्ग  के क्षेत्रफल में स्तंभ के आठ कतार के एगो खुल्लल मंडप (mandara †) से होके पहुँचभो । [*223] मंदिर स्लेटी रंग के ग्रैनाइट से बन्नल हइ, आउ कहल जा हइ कि मराठी महारानी अहल्या बाई एकरा पर नब्बे हजार रुपइया खरच कइलथिन हल, जेकरा में से सत्तर हजार ब्राह्मण लोग के भोज में गेले हल । ई मंदिर विशाल बिलकुल नयँ हइ - कनिंघम के लेल माप के अनुसार, एकर लम्बाई 82 फुट 2 इंच से जादे नयँ हइ, आउ चौड़ाई - 54 फुट 4 इंच । मंदिर के अहाता में कइएक छोटगर-छोटगर देवालय, मंदिर, तीर्थयात्री खातिर मंडप (pavilions) हइ; अवरोक्त (latter) से विशेष करके दिलचस्प हइ - अपन आकार के अनुसार सोला-बेदी (Solabedi †); हिएँ परी बगल में हइ अक्षय-वट, शाश्वत वृक्ष, शाब्दिक अर्थानुसार कभी नयँ नष्ट होवे वला वृक्ष । मंदिर में आउ अहाता में हमेशे बहुत सारे तीर्थयात्री लोग रहऽ हइ; कुछ लोग मंडप में बैठल रहऽ हइ, त आउ कुछ लोग हिएँ परी अहाता में पूजा हेतु फूल खरीदते पावल जा हइ, कुछ लोग संस्कृत भाषा में प्रार्थना के पाठ करते ब्राह्मण के निर्देशन में मंदिर के परिक्रमा करते जा हइ । अहाता में दौड़धूप भयंकर होवऽ हइ, आउ ई हियाँ संगृहीत कइल पुरावशेष के शांति से निरीक्षण करे में बाधा डालऽ हइ, अर्थात्, बुद्ध के मूर्ति, नक्काशी (bas-reliefs), छोटगर-छोटगर स्तूप; अवरोक्त (latter), बिन अपवाद के सब्भे, वर्तमान काल में लिंगम् (शिवलिंग) के कार्य में सुधार हो रहले ह; तेल आउ गेरू से लेप कइल जा रहले ह । सूर्य मंदिर सूर्य कुंड तालाब के पास बन्नल हइ, जे पत्थल के देवाल से घेरल हइ; ई देवाल के चक्कर लगावे बखत आश्चर्यचकित हो जइबहो, केतना सारा  प्राचीन पत्थल हइ, जेकरा में नक्काशी कइल हइ, अइसन बेलबूटा आउ आकृति के साथ, जेकर अर्थ अभी ब्राह्मण लोग के मालुम नयँ, हलाँकि ओकन्हीं में से कुछ लोग कउनो प्रतिमा के बारे समझावे के परवाहो नयँ करऽ हइ । ई देवाल 292 फुट लंबा आउ 156 फुट चौला जगह छेंकऽ हइ - चारो दने से पानी तक जाय खातिर सीढ़ी के कतार बन्नल हइ । सूर्य मंदिर हिएँ परी बगल में हइ । मंदिर के ठीक गर्भगृह में, जाहाँ परी सूर्य के प्रतिमा हइ, जेकरा से कनिंघम के ग्रीक देवता अपोलो के स्मरण हो अइले हल, यूरोपियन लगी अंदर जाना वर्जित हइ - लेकिन खुल्ला दरवाजा से प्रतिमा के निम्मन से निरीक्षण कइल जा सकऽ हइ ।  हम मंदिर के अंदर गायक मंडली के देखलिअइ; [*224] ओकन्हीं फर्श पर बैठल हलइ, आउ चिल्ला-चिल्लाके धीमे गति से कउनो स्तुतिगान करब करऽ हलइ । ड्योढ़ी में, जुत्ता निकासके, मनमाना एन्ने-ओन्ने घुम्मल जा सकऽ हइ; लेकिन एगो रोचक शिलालेख के अलावा हियाँ परी कुच्छो विलक्षण नयँ हइ - ड्योढ़ी के स्तंभ के चार कतार से सजावल हइ, हरेक कतार में पाँच-पाँच स्तंभ के साथ ।
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कोष्ठक में देल ई अंग्रेजी अंश लेखक के मूल रूसी पाठ में प्रयुक्त हइ ।
*) बाबू - ओहे अर्थ हइ, जे अंग्रेजी में Mr, Sir, Esq. के होवऽ हइ । सबसे जादे अकसर बंगाली में प्रयोग होवऽ हइ । बंगाली बाबू नवीन भारत के विशेष प्रकार के व्यक्ति हथिन आउ बहुत दिलचस्प । ऊ अंग्रेजी स्कूल में शिक्षा प्राप्त कइलथिन, अर्द्धशिक्षित हथिन, अंग्रेजी बोलऽ हथिन, हमेशे सही-सही नयँ, लेकिन पक्का परिष्कृत अभिव्यक्ति के साथ । ऊ अपन सगा-संबंधी से बिछड़ गेलथिन आउ विदेशी लोग के साथ कदम मिलाके चल नयँ पइलथिन ।
दोसर-दोसर मंदिर हियाँ से *) कुछ दूरी पर हइ । शहर के बाहर कुछ पवित्र पहाड़ी हइ - ब्रह्मयोनि (450 फुट), प्रेत शिला (541 फुट), राम शिला । अंतिम दू पहाड़ी के बीच एगो निम्मन सड़क हइ । ब्रह्मयोनि के चढ़ाई बहुत तीव्र ढाल के हइ; लेकिन ग्वालियर के राजा तीर्थयात्री लोग के खातिर पत्थल के चौड़गर सीढ़ी बनवइलथिन; ई बिलकुल तलहटी से चालू होवऽ हइ, सावित्री कुंड तालाब से जादे दूर नयँ, आउ ठीक चोटी तक जा हइ । चोटी पर के फर्श के पत्थल से पाटल हइ आउ एगो बाड़ा से घेरल हइ । एगो अर्द्धध्वस्त मंदिर में हनुमान जी, बंदर रूपधारी देवता, के प्रतिमा हइ; एगो दोसरा मंदिर में, जे जरी बड़गर हइ, शक्ति, शिव आउ पार्वती के प्रतिमा हइ ।
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*) उदाहरणार्थ, महादेव के मंदिर के साथ अक्षयवट । ई वृक्ष, बाह्याकृति में, एकर आकार आउ मोटाई के आधार पर कहल जा सकऽ हइ कि बहुत पुराना नयँ हो सकऽ हइ ।



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