विजेट आपके ब्लॉग पर

Saturday, October 17, 2020

वेताल कथा (चान मामूँ) - 5. योग्य वर

 वेताल कथा (चान मामूँ) - 5. योग्य वर (The eligible suitor)

(चंदामामा- फरवरी 1956, पृ॰29-32; वेतालपञ्चविंशति, कथा सं॰2; बैताल पचीसी, कहानी सं॰ 2)

[29] विक्रम पेड़ पर से फेर से लाश के उतारके आउ कन्हा पर डालके श्मशान में संन्यासी तरफ चल पड़लइ। तब लाश में स्थित बेताल राजा से कहलकइ - "राजा, तोहर कइसन खराब हालत होल हको! तोर मन बहलावे खातिर हम तोरा एगो कहानी सुनावऽ हकियो। सुन्नऽ।"

यमुना नदी के किनारे ब्रह्मस्थल नामक ब्राह्मण-ग्राम में अग्निस्वामी नाम के एगो वेदपाठी रहऽ हलइ। ओकर एगो लड़की हलइ, नाम हलइ मन्दारवती। ऊ एतना सुन्दर हलइ कि अप्सरा सब के भी सौन्दर्य में मात करऽ हलइ। ऊ ओकर विवाह करे के बारे सोचिए रहले हल कि कहीं से तीन ब्राह्मण युवक अइलइ आउ तीनों ओकरा से [30] मन्दारवती के हाथ माँगे लगलइ। तीनों में से हरेक युवक कहलकइ कि अगर ऊ विवाह नञ् कर पइतइ, त आत्महत्या कर लेतइ।  

तीनों युवक शिक्षा-दीक्षा में, सौन्दर्य, चरित्र, वगैरह में एक समान हलइ। ओहे से अग्निस्वामी निर्णय नञ् कर पइलकइ कि अपन पुत्री के विवाह केकरा से करे। अगर निर्णय करियो लेते हल, त बाकी दू युवक आत्महत्या कर लेते हल। ओहे से ऊ चुप रहलइ।

एन्ने, मन्दारवती के एकाएक भयंकर ज्वर होलइ आउ ऊ थोड़हीं दिन में मर गेलइ। तीनों युवक ओकर मौत से दुखी हो गेलइ आउ ओकर लाश के श्मशान ले जाके, तीनों ओकर लाश के अन्त्येष्टि संस्कार कइलकइ। ओकन्हीं में से एगो श्मशान से वापिस नञ् अइलइ। जाहाँ परी मन्दारवती के लाश के जलावल गेले हल, हुएँ परी ऊ एगो झोपड़ी बना लेलकइ आउ ओकरे चिता के भस्म पर ऊ रहे लगलइ। कोय कुछ लाके दे दे हलइ, त ओहे खाके तसल्ली कर ले हलइ, नञ् तो ऊ हुएँ परी भुखले-पियासले पड़ल रहऽ हलइ।

दोसरा युवक, मन्दारवती के अस्थि जमा करके गंगा में परवह करे लगी निकस पड़लइ।

तेसरा युवक पूरा तरह से बैरागी बन गेलइ आउ देश-देशान्तर घुम्मे-फिरे लगलइ। ऊ घूमते-घूमते एक दिन वक्रोलक नामक गाम पहुँचलइ। हुआँ परी एगो ब्राह्मण ओकर अतिथि सत्कार कइलकइ। जब ओकन्हीं भोजन पर बैठलइ, त घर के छोटका बुतरू रोवे लगलइ। ओकर मइया भोजन परसते-परसते ओकरा बहुत मनइलकइ-समझइलकइ। लेकिन ऊ रोना बन्द नञ् कइलकइ। ओहे से ओकर मइया गोस्सा में ओकरा जलता चूल्हा में झोंक देलकइ। ऊ छोटका बुतरू देखते-देखते चूल्हा में राख हो गेलइ।

[31] ब्राह्मण युवक ई सब देख रहले हल। ऊ चिल्लइलइ - "छी! तूँ मनुष्य नञ् हकऽ, बल्कि राक्षस हकऽ। तोहर आतिथ्य स्वीकार करके हमहूँ नरक में जाम।" कहते-कहते, ऊ पत्तल छोड़के उठ गेलइ।

लेकिन मेजबान कहलकइ - "बेटा! जल्दी मत करऽ। हम राक्षस नञ् ही। अइसन बात नञ् हइ कि हम सब के अपन बुतरू पर प्रेम नञ् हइ, काहेकि ओकरा फेर से जिला देवे खातिर हम मृत संजीवनी मन्त्र जानऽ हिअइ; ओहे से हमर घरवली ओकरा चूल्हा में डाल देलकइ।"

ब्राह्मण युवक के विश्वास नञ् होलइ। ओहे से ऊ ब्राह्मण थोड़े-सुन धूरी लेलकइ, खूँटी पर टँगल एगो पुस्तक के निकासके ओकरा में से एगो मन्त्र पढ़लकइ। ऊ धूरी के चूल्हा के राख में छिड़कतहीं ऊ बुतरू फेन से जिन्दा हो गेलइ।

ब्राह्मण युवक सन्तुष्ट होके भोजन कइलकइ। लेकिन ओकर मन खूँटी पर लटकल पुस्तक पर लगल रहलइ। जब रात के सब सुत्तल हलइ, तब ऊ, ऊ पुस्तक लेलकइ, आउ बिन केकरो कुछ कहले-सुनले, ब्रह्मस्थल पहुँच गेलइ।

ऊ ब्राह्मण युवक भी, जे मन्दारवती के अस्थि के गंगा में परवह करे गेले हल, वापिस आ गेले हल। दुन्नु मिलके तेसरा युवक के पास गेलइ, जे श्मशान में रह रहले हल।

ऊ ब्राह्मण युवक, जे मृत संजीवनी मन्त्र लइलके हल, ओकरा बारे दुन्नु युवक के बतइलकइ। ऊ फेनुँ चुटकी भर धूरी लेलकइ, पुस्तक में से मन्त्र पढ़लकइ, आउ ऊ धूरी के ऊ भस्म (राख) पर डाल देलकइ, जेकरा तेसरा युवक शय्या बना लेलके हल।

तुरते मन्दारवती जिन्दा हो गेलइ, मानुँ नीन से जगले हल।

[32] तीनों ब्रह्मचारी ओकरा साथ लेके अग्निस्वामी के घर जाके कहे लगलइ - "एकर विवाह हमरा से कर दऽ। एकर विवाह हमरा से कर दऽ।" ओकन्हीं ई तरह से ओकरा तंग करे लगलइ।

"हम मृत संजीवनी मन्त्र लइलिए हल, ओहे से मन्दारवती से विवाह करे के अधिकार हम्मर बन्नऽ हइ।" एक युवक बोललइ।

"हम ओकर अस्थि ले जाके गंगा में परवह कइलिअइ, ओकर जी उठे के कारण एहो हइ। हमरे ओकरा से विवाह करे के चाही।" दोसरा युवक बोललइ।

"हमहीं ओकर राख सुरक्षित रखलिअइ, हमहीं ओकरा पर सुत्तऽ हलिअइ, ओहे से हम विवाह करबइ।" तेसरा युवक बोललइ।

अग्निस्वामी फेर दुविधा में पड़ गेलइ कि केकरा साथ लड़की के विवाह करे। ओकरा कोय रस्ता नञ् देखाय देलकइ।

वेताल ई कहानी सुनाके राजा से पुछलकइ - "राजन्! ऊ तीनों में कउन मन्दारवती के योग्य वर हलइ? ऊ, जे मृत संजीवनी मन्त्र लइलके हल? कि ऊ, जे अस्थि के गंगा में परवह कइलके हल? कि ऊ, जे ओकर चिता के राख पर सुत्तऽ हलइ? अगर तूँ जान-बूझके नञ् बतइलऽ त तोहर सिर फोड़ देबो।"

राजा उत्तर देलकइ - "मृत संजीवनी मन्त्र लावे वला युवक मन्दारवती के प्राण वापिस लइलकइ, ओहे से ऊ पिता के समान होलइ आउ अस्थि के गंगा में परवह करे वला भाय के समान। जे युवक मन्दारवती के चिता के राख पर सुत्तऽ हलइ आउ पहिले नियन ओकरा से प्रेम करऽ हलइ, ओहे ओकर पति होवे लायक हलइ।"

ई तरह राजा के मौनभंग होतहीं वेताल लाश के साथ उड़के ओहे पेड़ पर जाके फेर से लटक गेलइ।



 

No comments: