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Monday, May 10, 2010

16. मगही उपन्यास "अलगंठवा" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

अल॰ = "अलगंठवा" (मगही उपन्यास) - बाबूलाल मधुकर; प्रथम संस्करण 2001; सीता प्रकाशन, 105, स्लम, लोहियानगर, पटना-20; मूल्य: लाइब्रेरी संस्करण - 150/- रुपये; सामान्य संस्करण - 125/- रुपये; कुल x+158 पृष्ठ ।


देल सन्दर्भ में पहिला संख्या अनुच्छेद (section), दोसर संख्या पृष्ठ, आउ तेसर संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।

(पृष्ट 1 से 8 तक)


1 अँय (नरिअर गुड़गुड़ावइत अकचका के नन्हकू पूछलक - "अँय, एने भी चेचक के सिकायत हइ का ?" -"हाँ, टभका टोय छोट-छोट बुतरूअन के पनसाही देखाय पड़लइ हे ।" बटेसर चौंकी के नीचे बइठत कहलक हल ।) (अल॰3:8.20)
2 अगम-अपार (उहें एगो बंगाली नट से मन्तर सिख के अगम-अपार बंगाल के सिध कलकत्ता से गाँव तक चेला-चुटरी के भरमार ।) (अल॰1:1.13)
3 अगिया बैताल (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।; बाप रे बाप, उ छउड़ा अगिया बैताल हइ । कुंआरी लड़की के मांग में सिनूर दे दे हइ ।) (अल॰1:2.2; 2:5.2)
4 अगे (अगे मइया, दीदी आउर नाना आ रहलथुन हे ।) (अल॰3:8.8)
5 अछरंग (जितने लोग उतने बात के अछरंग अलगंठवा पर लगऽ हल ।) (अल॰2:5.6)
6 अजलती (बाप रे बाप, कुआरी छौंड़ी के मांग में सिनूर घिस देलकइ । अइसन अजलती तऽ कोय न कर सकऽ हे ।) (अल॰1:3.23)
7 अजीज (माय-भाय आउर चचा सब अलगंठवा से अजीज । रोज-रोज बदमासी, रोज-रोज सिकाइत, रोज-रोज जूता के मार ।) (अल॰1:2.7)
8 अठन्नी (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।) (अल॰1:2.9)
9 अधवइस (येगो अधवइस मरद दिसा फिर के हाथ में लोटा आउर ओकरे में गोरकी मिट्टी, कान पर जनेऊ धरके हाथ आउर लोटा मट्टी से मटिआ रहल हल ।; येगो अधवइस अउरत जरांठी से अप्पन तरजनी अंगुरी से दाँत रगड़ रहल हल ।) (अल॰3:6.9, 13)
10 अमनिया (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.4)
11 अवलदार (येक रोज गाँव के बीच गली में येगो कुत्ता मर गेल हल । ओकरा फेके ला कोय अवलदार न हल ।) (अल॰2:5.20)
12 आँटी (अलगंठवा येगो नेवारी के आँटी के जौरी बाँट के कुत्ता के गोड़ में बाँध के खिचते-खिचते गाँव के बाहर पैन पर ले जा के रखलक, आउर घर से कुदाल ले जा के भर कमर जमीन खोद के ओकरे में कुत्ता के गाड़ देलक ।) (अल॰2:5.22)
13 आउर (फिन उ लोगन से खिस्सा-कहानी आउर गीत सुने आउर सिखे में विदुर अलगंठवा ।) (अल॰1:2.14)
14 आन्हर (सांप-बिच्छा नजर-गुजर झारे के अलावे जिन्दा सांप पकड़े के मंतर इयानी गुन से आन्हर अलगंठवा के बाबू ।) (अल॰1:1.17)
15 इंगोरा (~ धराना) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.12)
16 इतमिनान (हाँ बेटी, सब लोग ठीक हल । नन्हकू इतमिनान से चौकी पर बइठइत कहलक हल ।) (अल॰3:8.15)
17 इया (= या) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.11, 12)
18 इस्कूल (= स्कूल) (अल॰2:5.20)
19 उ (= ऊ, वह, वे) (फिन उ लोगन से खिस्सा-कहानी आउर गीत सुने आउर सिखे में विदुर अलगंठवा ।) (अल॰1:2.13, 3.2, 3)
20 उघारना (न बेटी, तूँ हदिया मत, तनिको मत डरऽ । उ सब बात कहे के बात हइ । हम इतना बुढ़बक ही, अप्पन इज्जत अपने उघारम ?) (अल॰3:7.28)
21 उच्चगर (= उँचगर, ऊँचा) (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.22)
22 उज्जर (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.22)
23 उरेहना (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.23)
24 एने (= एन्ने, इधर) (नरिअर गुड़गुड़ावइत अकचका के नन्हकू पूछलक - "अँय, एने भी चेचक के सिकायत हइ का ?" -"हाँ, टभका टोय छोट-छोट बुतरूअन के पनसाही देखाय पड़लइ हे ।" बटेसर चौंकी के नीचे बइठत कहलक हल ।) (अल॰3:8.20)
25 ओजे (= ओज्जे, उसी जगह) (पनघट पर के पनीहारिन दूनो गोटा के लिट्टी आउर अंचार खइते येक टक से देख रहल हल । कुत्ता भी ओजे बैठल हल ।; नन्हकू के खैनी लगइते देख के एगो अदमी जे ओजे बैठल हल बोल पड़ल हल ...) (अल॰3:6.30, 7.2)
26 औरत-मरद-बूढ़-पुरनिया (गाँव के ~ के आंख में गढ़ल अलगंठवा सबके दुलरूआ ।) (अल॰1:2.1)
27 कत्ती (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.23)
28 कनना (रो-कन के) (येकर अलावे बकरी चरावे के सौख, दिन-रात रो-कन के चचा से येगो चितकबरी पाठी किना के पतिया-लछमिनिया, गौरी, रधिया, बुधनी, सुमिरखी, तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के साथ टाल-बधार में बकरी चरावे में मसगुल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.15)
29 कपसना (जब नन्हकू आम के पेड़ तर बैठ के खैनी लगा रहल हल तऽ कपसल जइसन होके सुमितरी नाना से कहे लगल हल - "नाना, नानी तऽ बढ़नी से मारते-मारते सउंसे देह में बाम उखाड़ देवे कइलक हे, मुदा घर पर सेनूर वाला बात सुन के मइया आउ बाबू मारते-मारते हंसीली पसली एक कर देतन ।") (अल॰3:7.22)हंसीली पसली (जब नन्हकू आम के पेड़ तर बैठ के खैनी लगा रहल हल तऽ कपसल जइसन होके सुमितरी नाना से कहे लगल हल - "नाना, नानी तऽ बढ़नी से मारते-मारते सउंसे देह में बाम उखाड़ देवे कइलक हे, मुदा घर पर सेनूर वाला बात सुन के मइया आउ बाबू मारते-मारते हंसीली पसली एक कर देतन ।") (अल॰3:7.25)
30 कबड्डी (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.23)
31 कलकतिया (कलकतिया बाबू, चटकलिया बाबू, आउर अब ओस्ताद जी के नाम से जिला-जेवार में जस-इज्जत-मान-मरिआदा में कोय कमी न ।) (अल॰1:1.15)
32 कानना (= कनना) (अलगंठवा अब तक जीमन में दू बार खूब रोबल हल, कानल हल, अप्पन माय के मरे के बाद आउर दूसर भूरी पाठी मरे के बाद ।) (अल॰1:2.27)
33 काहे कि (नन्हकू येक घंटा रात छइते ही सुमितरी के लेके घर से बहरा गेल हल । काहे कि गरमी के दिन हल । येकर अलावे फरिछ होवे पर फिन टोला-टाटी के लोग सुमितरी आउर अलगंठवा के बात के जिकिर आउर छेड़-छाड़ देत हल ।) (अल॰3:5.30)
34 किनना (= खरीदना) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.11)
35 किनाना (= खरीदवाना) (येकर अलावे बकरी चरावे के सौख, दिन-रात रो-कन के चचा से येगो चितकबरी पाठी किना के पतिया-लछमिनिया, गौरी, रधिया, बुधनी, सुमिरखी, तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के साथ टाल-बधार में बकरी चरावे में मसगुल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.15)
36 किया (= कीया; सिंदूर रखने का लकड़ी का डिब्बा) (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।) (अल॰1:2.3)
37 कोनिया (~ घर) (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।) (अल॰1:2.8)
38 कोय (= कोई) (कलकतिया बाबू, चटकलिया बाबू, आउर अब ओस्ताद जी के नाम से जिला-जेवार में जस-इज्जत-मान-मरिआदा में कोय कमी न ।) (अल॰1:1.16)
39 कोर (= कौर) (सुमितरी अभी दू कोर खइवे कइलक हल कि ओकर मुंह में आधा मिरचाई जे लिट्टी में सानल हल चल गेल हल । जेकरा से सुमितरी सी-सी करइत लिट्टी छोड़ देलक हल ।) (अल॰3:6.23)
40 कौलबच्चिया (अलगंठवा सुमितरी के हाथ पकड़ के पीठ पर जूता के उखड़ल बाम दिखवइत कहलक हल कि देखऽ सुमितरी, तोरा चलते हम्मर पीठ मारते-मारते भइया फाड़ देलन हे । सुमितरी भी अलगंठवा के हाथ पकड़ के अप्पन देह पर बड़नी के बाम देखइलक हल । फिर दूनो आपस में ~ कइलक हल कि तू नानी घर जाके पढ़ऽ आउर हम भी घर पर रह के पढ़वो ।) (अल॰1:4.9)
41 खतना (= खनना, खोदना) (उ जमाना में विनोबा जी गाँव-गाँव घूम के परवचन दे हलन कि पैखाना गाँव के बाहर फिरे तऽ सावा वित्ता जमीन खत के ओकरे में पैखाना करके मिट्टी से झांक देवे के चाही । जेकरा से गन्दगी भी न होयत आउर पैखाना खाद के काम आवत ।) (अल॰2:5.9)
42 खिचना (= खींचना) (अलगंठवा येगो नेवारी के आँटी के जौरी बाँट के कुत्ता के गोड़ में बाँध के खिचते-खिचते गाँव के बाहर पैन पर ले जा के रखलक, आउर घर से कुदाल ले जा के भर कमर जमीन खोद के ओकरे में कुत्ता के गाड़ देलक ।) (अल॰2:5.23)
43 खिस्सा-कहानी (फिन उ लोगन से खिस्सा-कहानी आउर गीत सुने आउर सिखे में विदुर अलगंठवा ।) (अल॰1:2.13)
44 खूटा (नन्हकू के घरवाली सत्तू भरल लिट्टी आउर आम के अंचार गमछी के एगो खूटा में बाँध देलक हल ।) (अल॰3:6.6)
45 गँउआ-गुदाल (साँझ पहर घर आवे पर गँउआ-गुदाल होवे पर अप्पन बड़ भाई के हाथ से चमरखानी जूता से मार खा के थेथर हो गेल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.5)
46 गंगा-गजाधर (गंगा-गजाधर सेवे के बाद दो भाई में अप्पन माय-बाप के सबसे छोट बेटा हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.19)
47 गबड़ा (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.24)
48 गमछी (नन्हकू के घरवाली सत्तू भरल लिट्टी आउर आम के अंचार गमछी के एगो खूटा में बाँध देलक हल ।) (अल॰3:6.6)
49 गुन (= गुण) (सांप-बिच्छा नजर-गुजर झारे के अलावे जिन्दा सांप पकड़े के मंतर इयानी गुन से आन्हर अलगंठवा के बाबू ।) (अल॰1:1.17)
50 गुने (इ गुने = इसके कारण) (अल॰3:8.16)
51 गुरुपींडा (अलगंठवा गुरुपींडा जायके बदले बकरी चरावे आउर संघतिअन के साथ खेले-कूदे में ही बाउर रहऽ हल ।) (अल॰1:3.7, 30, 4.4, 19)
52 गोइठा (इसलामपुर से सटले बूढ़ा नगर पड़ऽ हल जहाँ एगो इनार पर जमान-जोग अउरत वरतन गोइठा के बानी से रगड़-रगड़ के मैंज रहल हल ।) (अल॰3:6.8)
53 गोटा (पनघट पर के पनीहारिन दूनो गोटा के लिट्टी आउर अंचार खइते येक टक से देख रहल हल । कुत्ता भी ओजे बैठल हल ।) (अल॰3:6.29)
54 गोड़ (अलगंठवा येगो नेवारी के आँटी के जौरी बाँट के कुत्ता के गोड़ में बाँध के खिचते-खिचते गाँव के बाहर पैन पर ले जा के रखलक, आउर घर से कुदाल ले जा के भर कमर जमीन खोद के ओकरे में कुत्ता के गाड़ देलक ।) (अल॰2:5.23; 3:7.19)
55 गोरकी (~ मट्टी) (येगो अधवइस मरद दिसा फिर के हाथ में लोटा आउर ओकरे में गोरकी मिट्टी, कान पर जनेऊ धरके हाथ आउर लोटा मट्टी से मटिआ रहल हल ।) (अल॰3:6.10)
56 गोहमन (~ साँप) (येक दिन गनौर सिंघ के नइकी बगीचा में जब गोहमन सांप ओकर पाठी के काट लेलक आउर अलगंठवा के सामने जब पाठी दम तोड़ देलक तऽ अलगंठवा जार-बेजार कई रोज तक रोते रहल, खोजते रहल ।) (अल॰1:2.24)
57 घइला (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.4, 5)
58 घरवाली (नन्हकू के घरवाली सत्तू भरल लिट्टी आउर आम के अंचार गमछी के एगो खूटा में बाँध देलक हल ।) (अल॰3:6.5)
59 चचा (= चाचा) (माय-भाय आउर चचा सब अलगंठवा से अजीज । रोज-रोज बदमासी, रोज-रोज सिकाइत, रोज-रोज जूता के मार ।) (अल॰1:2.6)
60 चटकल (= जूट का कारखाना) (पूरे आठ बरिस कलकत्ता गली-गली में टउआय के बाद चटकल में बोरा के सिलाय में नौकरी के जुगाड़ बैठल हल) (अल॰1:1.11)
61 चटकलिया (कलकतिया बाबू, चटकलिया बाबू, आउर अब ओस्ताद जी के नाम से जिला-जेवार में जस-इज्जत-मान-मरिआदा में कोय कमी न ।) (अल॰1:1.15)
62 चमरखानी (~ जूता) (साँझ पहर घर आवे पर गँउआ-गुदाल होवे पर अप्पन बड़ भाई के हाथ से चमरखानी जूता से मार खा के थेथर हो गेल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.5)
63 चरन्नी (= चवन्नी) (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।) (अल॰1:2.8)
64 चिकन (= चिक्कन, चिकना) (सबके बकरी से चिकन मोटा-ताजा अलगंठवा के पाठी हल । परान से भी पिआरी ।) (अल॰1:2.18)
65 चुचकारना (अलगंठवा ओकर देह पर हाथ फेर के चुचकारऽ हल ।) (अल॰1:2.23)
66 चुल्हा (= चूल्हा) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.11)
67 चेला-चुटरी (उहें एगो बंगाली नट से मन्तर सिख के अगम-अपार बंगाल के सिध कलकत्ता से गाँव तक चेला-चुटरी के भरमार ।) (अल॰1:1.13)
68 चोराना (= चुराना) (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।) (अल॰1:2.4, 9)
69 छइते (नन्हकू येक घंटा रात छइते ही सुमितरी के लेके घर से बहरा गेल हल । काहे कि गरमी के दिन हल । ) (अल॰3:5.29)
70 छहुरा (= छाया) (नाना, तनी छहुरवा में सुस्ता ल, बड़ी गरमी लग रहल हे आउ गोड़ भी जर रहल हे ।) (अल॰3:7.18)
71 छाली (~ भरल दही) (अलगंठवा चार बजे भोर के ही पढ़े ला रोज उठ जा हल । फिन फरिच्छ होवे पर नेहा-धो के छाली भरल दही आउर रोटी खाके इस्कूल चल जा हल ।) (अल॰4:8.34)
72 छोट (= छोटा) (गंगा-गजाधर सेवे के बाद दो भाई में अप्पन माय-बाप के सबसे छोट बेटा हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.19)
73 छोटकी माय (हमरा तरफ चेचक के बहुत सिकाइत हइ, अपन टोला में कई लोगन के छोटकी माय देखाय देलथिन हे ।) (अल॰3:8.17)
74 जजात (गाँव के जजात आउर घर के अनाज चोरा के अप्पन पाठी के खिलावे में दिन-रात लउलिन रहऽ हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.19)
75 जमान-जोग (इसलामपुर से सटले बूढ़ा नगर पड़ऽ हल जहाँ एगो इनार पर जमान-जोग अउरत वरतन गोइठा के बानी से रगड़-रगड़ के मैंज रहल हल ।) (अल॰3:6.7)
76 जरना (= जलना) (नाना, तनी छहुरवा में सुस्ता ल, बड़ी गरमी लग रहल हे आउ गोड़ भी जर रहल हे ।) (अल॰3:7.19)
77 जरांठी (येगो अधवइस अउरत जरांठी से अप्पन तरजनी अंगुरी से दाँत रगड़ रहल हल ।) (अल॰3:6.13)
78 जस-इज्जत-मान-मरिआदा (कलकतिया बाबू, चटकलिया बाबू, आउर अब ओस्ताद जी के नाम से जिला-जेवार में जस-इज्जत-मान-मरिआदा में कोय कमी न ।) (अल॰1:1.16)
79 जिकिर (= जिक्र) (नन्हकू येक घंटा रात छइते ही सुमितरी के लेके घर से बहरा गेल हल । काहे कि गरमी के दिन हल । येकर अलावे फरिछ होवे पर फिन टोला-टाटी के लोग सुमितरी आउर अलगंठवा के बात के जिकिर आउर छेड़-छाड़ देत हल ।) (अल॰3:5.31)
80 जिला-जेवार (कलकतिया बाबू, चटकलिया बाबू, आउर अब ओस्ताद जी के नाम से जिला-जेवार में जस-इज्जत-मान-मरिआदा में कोय कमी न ।) (अल॰1:1.16)
81 जीभियाना (कुछ लोग कुंआ से हट के दतमन से दाँत रगड़ रहलन हल । तऽ कुछ लोग दतमन के बीच से फाड़ के जीभ के जीभिया रहलन हल ।) (अल॰3:6.13)
82 जीमन (= जीवन) (अलगंठवा अब तक जीमन में दू बार खूब रोबल हल, कानल हल, अप्पन माय के मरे के बाद आउर दूसर भूरी पाठी मरे के बाद ।) (अल॰1:2.27)
83 जीलेबी (= जलेबी) (ओकर बाद नाना-नतनी इसलामपुर बजार में दुरगाथान जाके एगो हलुआइ के दुकान पर जाके सौगात में सिनरी के रूप में पाभर बतासा खरीदलक आउर सुमितरी ला गरम-गरम जीलेबी ।) (अल॰3:7.9)
84 जोड़ापारी (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.25)
85 जौरी (~ बाँटना) (अलगंठवा येगो नेवारी के आँटी के जौरी बाँट के कुत्ता के गोड़ में बाँध के खिचते-खिचते गाँव के बाहर पैन पर ले जा के रखलक, आउर घर से कुदाल ले जा के भर कमर जमीन खोद के ओकरे में कुत्ता के गाड़ देलक ।) (अल॰2:5.22)
86 झमेठगर (कुंइआ से ठउरे येगो झमेठगर बेल के पेड़ हल । ... नन्हकू ओही झमेठगर बेल के पेड़ पर सुमितरी के बइठा के मुंह धोवे लगल हल ।) (अल॰3:6.16, 18)
87 झांकना (= ढँकना, झाँपना) (उ जमाना में विनोबा जी गाँव-गाँव घूम के परवचन दे हलन कि पैखाना गाँव के बाहर फिरे तऽ सावा वित्ता जमीन खत के ओकरे में पैखाना करके मिट्टी से झांक देवे के चाही । जेकरा से गन्दगी भी न होयत आउर पैखाना खाद के काम आवत ।) (अल॰2:5.10)
88 झारना (नजर-गुजर ~) (सांप-बिच्छा नजर-गुजर झारे के अलावे जिन्दा सांप पकड़े के मंतर इयानी गुन से आन्हर अलगंठवा के बाबू ।) (अल॰1:1.17)
89 टउआना (पूरे आठ बरिस कलकत्ता गली-गली में टउआय के बाद चटकल में बोरा के सिलाय में नौकरी के जुगाड़ बैठल हल) (अल॰1:1.11)
90 टभका टोय (नरिअर गुड़गुड़ावइत अकचका के नन्हकू पूछलक - "अँय, एने भी चेचक के सिकायत हइ का ?" -"हाँ, टभका टोय छोट-छोट बुतरूअन के पनसाही देखाय पड़लइ हे ।" बटेसर चौंकी के नीचे बइठत कहलक हल ।) (अल॰3:8.21)
91 टहकना (टहकल इंजोरिया) (अल॰1:3.9)
92 टाल-बधार (येकर अलावे बकरी चरावे के सौख, दिन-रात रो-कन के चचा से येगो चितकबरी पाठी किना के पतिया-लछमिनिया, गौरी, रधिया, बुधनी, सुमिरखी, तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के साथ टाल-बधार में बकरी चरावे में मसगुल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.17)
93 टिकिआ (~ धराना) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.12)
94 टुअर (अलगंठवा के बाबू इयानी कलकतिया बाबू, जे बारह बरिस के उमर में बूढ़ा बाप, चार बरिस के माय के टुअर भाय आउर अप्पन अउरत के नैहर में छोड़ के कलकत्ता चल गेलन हल ।) (अल॰1:1.9)
95 टुकुर-टुकुर (अलगंठवा खड़ा होके होके टुकुर-टुकुर ऊ झूंड में अप्पन चितकबरी पाठी के हिआवऽ हल / निहारऽ हल ।) (अल॰1:3.1)
96 टुह-टुह (लाल ~ सुरज) (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.3)
97 टोला-टाटी (अलगंठवा से ~ गाँव-घर के लोग ऊब चुकल हल) (अल॰1:3.11, 13; 3:8.30)
98 ठउरे (कुंइआ से ठउरे येगो झमेठगर बेल के पेड़ हल ।) (अल॰3:6.16)
99 ठाँम (नन्हकू ओही ठाँम बइठ के येगो अप्पन धोकड़ी से लसोढ़ा के दतमन निकाल के मुंह धोवे लगल हल ।) (अल॰3:6.15)
100 ठुल (~ करना) (पहिले तऽ गाँव के लोग ठुल करऽ हल, मुदा अलगंठवा के समझावे पर बूढ़ पुरनियन के बात समझ में आवे लगऽ हल ।) (अल॰2:5.15)
101 डर-भय (कोय कहे कि रात-रात भर बगीचवा में डोलपत्ता खेलऽ हइ । ओकरा तनिको भूत-मूंगा से डर-भय न लगऽ हइ ।) (अल॰2:5.4)
102 डोलपत्ता (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.23; 2:5.3)
103 तनी (= जरा, थोड़ा) (नाना, तनी छहुरवा में सुस्ता ल, बड़ी गरमी लग रहल हे आउ गोड़ भी जर रहल हे ।) (अल॰3:7.18)
104 तहमुल (~ करना) (गाँव के लोग ताकते रह गेल, तमासा देखते रह गेल । मुदा अलगंठवा कुत्ता के तहमुल करके, नेहा-धो के अप्पन घर आ गेल ।) (अल॰2:5.26)
105 तितइ (सुमितरी अभी दू कोर खइवे कइलक हल कि ओकर मुंह में आधा मिरचाई जे लिट्टी में सानल हल चल गेल हल । जेकरा से सुमितरी सी-सी करइत लिट्टी छोड़ देलक हल । आउर ओकर मुंह से तितइ के लार चुए लगल हल ।) (अल॰3:6.25)
106 तुका (= तुक्का; गुलेल) (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.20)
107 थेथर (साँझ पहर घर आवे पर गँउआ-गुदाल होवे पर अप्पन बड़ भाई के हाथ से चमरखानी जूता से मार खा के थेथर हो गेल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.5)
108 दतमन (= दतवन) (कुछ लोग कुंआ से हट के दतमन से दाँत रगड़ रहलन हल । तऽ कुछ लोग दतमन के बीच से फाड़ के जीभ के जीभिया रहलन हल ।) (अल॰3:6.12, 15)
109 दतादानी (= दातादानी) (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।) (अल॰1:2.10)
110 दनादन (अलगंठवा थोड़हीं दिन में किताब दनादन पढ़े लगल हल ।) (अल॰2:4.27)
111 दने (दुनों धीरे-धीरे अप्पन-अप्पन घर दने चल देलक हल) (अल॰1:4.15)
112 दिसा (~ फिरना) (येगो अधवइस मरद दिसा फिर के हाथ में लोटा आउर ओकरे में गोरकी मिट्टी, कान पर जनेऊ धरके हाथ आउर लोटा मट्टी से मटिआ रहल हल ।) (अल॰3:6.10)
113 दुरगाथान (ओकर बाद नाना-नतनी इसलामपुर बजार में दुरगाथान जाके एगो हलुआइ के दुकान पर जाके सौगात में सिनरी के रूप में पाभर बतासा खरीदलक आउर सुमितरी ला गरम-गरम जीलेबी ।) (अल॰3:7.8)
114 दूअन्नी (= दुअन्नी) (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।) (अल॰1:2.8)
115 दूनो (= दुन्नू, दोनों) (पनघट पर के पनीहारिन दूनो गोटा के लिट्टी आउर अंचार खइते येक टक से देख रहल हल । कुत्ता भी ओजे बैठल हल ।) (अल॰3:6.29)
116 दूरा-दलान (अलगंठवा आउर सुमितरी के हलचल गाँव भर में मचल हल । दूरा-दलान पर ओही दूनो के बात होवइत हल ।) (अल॰2:4.17)
117 देसी हिसाब (अलगंठवा थोड़हीं दिन में किताब दनादन पढ़े लगल हल । आउर देसी हिसाब भी फटाफट बना दे हल ।) (अल॰2:4.27)
118 धोकड़ी (नन्हकू ओही ठाँम बइठ के येगो अप्पन धोकड़ी से लसोढ़ा के दतमन निकाल के मुंह धोवे लगल हल ।) (अल॰3:6.15)
119 नजर-गुजर (~ झारना) (सांप-बिच्छा नजर-गुजर झारे के अलावे जिन्दा सांप पकड़े के मंतर इयानी गुन से आन्हर अलगंठवा के बाबू ।) (अल॰1:1.17)
120 नदी-नाहर (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.24)
121 नरिअर (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.13; 3:8.18, 20)
122 निअर (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.4)
123 नीन (सपना में रोज चितकबरी पाठी के देखऽ हल आउर नीन टूटला पर फफक फफक के रोवऽ हल) (अल॰1:3.5)
124 नेवारी (अलगंठवा येगो नेवारी के आँटी के जौरी बाँट के कुत्ता के गोड़ में बाँध के खिचते-खिचते गाँव के बाहर पैन पर ले जा के रखलक, आउर घर से कुदाल ले जा के भर कमर जमीन खोद के ओकरे में कुत्ता के गाड़ देलक ।) (अल॰2:5.22)
125 पइसा (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.11)
126 पनिहारिन (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.4)
127 पनीहारिन (= पनिहारिन) (पनघट पर के पनीहारिन दूनो गोटा के लिट्टी आउर अंचार खइते येक टक से देख रहल हल । कुत्ता भी ओजे बैठल हल ।) (अल॰3:6.29)
128 परवचन (= प्रवचन) (उ जमाना में विनोबा जी गाँव-गाँव घूम के परवचन दे हलन कि पैखाना गाँव के बाहर फिरे तऽ सावा वित्ता जमीन खत के ओकरे में पैखाना करके मिट्टी से झांक देवे के चाही । जेकरा से गन्दगी भी न होयत आउर पैखाना खाद के काम आवत ।) (अल॰2:5.8)
129 परान (= प्राण) (सबके बकरी से चिकन मोटा-ताजा अलगंठवा के पाठी हल । परान से भी पिआरी ।) (अल॰1:2.19)
130 पलानी (जब पिछुआनी में फन्नू मियाँ के पलानी में मुरगा बांक दे हल आउर जयतीपुर मसजिद में भोरउआ नमाज पढ़े के अजान के अवाज सुनते ही अलगंठवा के चचा उठ के गाय-बैल के सानी देवे लगऽ हलन आउर अलगंठवा के जगा के लालटेन जला के पढ़े ला बैठा दे हलन ।) (अल॰2:4.23)
131 पाठी (येकर अलावे बकरी चरावे के सौख, दिन-रात रो-कन के चचा से येगो चितकबरी पाठी किना के पतिया-लछमिनिया, गौरी, रधिया, बुधनी, सुमिरखी, तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के साथ टाल-बधार में बकरी चरावे में मसगुल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.15, 19, 20, 21, 24, 25, 28, 29)
132 पातर (= पतला) (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.22)
133 पाभर (= पाव भर) (ओकर बाद नाना-नतनी इसलामपुर बजार में दुरगाथान जाके एगो हलुआइ के दुकान पर जाके सौगात में सिनरी के रूप में पाभर बतासा खरीदलक आउर सुमितरी ला गरम-गरम जीलेबी ।) (अल॰3:7.9)
134 पिछुआनी (जब पिछुआनी में फन्नू मियाँ के पलानी में मुरगा बांक दे हल आउर जयतीपुर मसजिद में भोरउआ नमाज पढ़े के अजान के अवाज सुनते ही अलगंठवा के चचा उठ के गाय-बैल के सानी देवे लगऽ हलन आउर अलगंठवा के जगा के लालटेन जला के पढ़े ला बैठा दे हलन ।) (अल॰2:4.23)
135 पील पड़ना (अलगंठवा भी पढ़े में पील पड़ल हल ।) (अल॰2:4.22-23)
136 पैखाना (~ फिरना, ~ करना) (उ जमाना में विनोबा जी गाँव-गाँव घूम के परवचन दे हलन कि पैखाना गाँव के बाहर फिरे तऽ सावा वित्ता जमीन खत के ओकरे में पैखाना करके मिट्टी से झांक देवे के चाही । जेकरा से गन्दगी भी न होयत आउर पैखाना खाद के काम आवत ।) (अल॰2:5.9, 10, 11)
137 पैन (अलगंठवा येगो नेवारी के आँटी के जौरी बाँट के कुत्ता के गोड़ में बाँध के खिचते-खिचते गाँव के बाहर पैन पर ले जा के रखलक, आउर घर से कुदाल ले जा के भर कमर जमीन खोद के ओकरे में कुत्ता के गाड़ देलक ।) (अल॰2:5.23)
138 फटाफट (अलगंठवा थोड़हीं दिन में किताब दनादन पढ़े लगल हल । आउर देसी हिसाब भी फटाफट बना दे हल ।) (अल॰2:4.27)
139 फरिच्छ (= फरिछ) (अलगंठवा चार बजे भोर के ही पढ़े ला रोज उठ जा हल । फिन फरिच्छ होवे पर नेहा-धो के छाली भरल दही आउर रोटी खाके इस्कूल चल जा हल ।) (अल॰4:8.33)
140 फरिछ (नन्हकू येक घंटा रात छइते ही सुमितरी के लेके घर से बहरा गेल हल । काहे कि गरमी के दिन हल । येकर अलावे फरिछ होवे पर फिन टोला-टाटी के लोग सुमितरी आउर अलगंठवा के बात के जिकिर आउर छेड़-छाड़ देत हल ।) (अल॰3:5.30)
141 फिन (फिन उ लोगन से खिस्सा-कहानी आउर गीत सुने आउर सिखे में विदुर अलगंठवा ।) (अल॰1:2.13)
142 फुसुर-फुसुर (~ बतिआना) (अल॰1:4.13)
143 बड़गो (= बड़गर, बड़ा) (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.22)
144 बढ़नी (अलगंठवा सुमितरी के हाथ पकड़ के पीठ पर जूता के उखड़ल बाम दिखवइत कहलक हल कि देखऽ सुमितरी, तोरा चलते हम्मर पीठ मारते-मारते भइया फाड़ देलन हे । सुमितरी भी अलगंठवा के हाथ पकड़ के अप्पन देह पर बड़नी के बाम देखइलक हल ।) (अल॰1:4.8)
145 बतासा (ओकर बाद नाना-नतनी इसलामपुर बजार में दुरगाथान जाके एगो हलुआइ के दुकान पर जाके सौगात में सिनरी के रूप में पाभर बतासा खरीदलक आउर सुमितरी ला गरम-गरम जीलेबी ।) (अल॰3:7.9)
146 बदनाम (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।) (अल॰1:2.4)
147 बदमासी (= बदमाशी) (माय-भाय आउर चचा सब अलगंठवा से अजीज । रोज-रोज बदमासी, रोज-रोज सिकाइत, रोज-रोज जूता के मार ।) (अल॰1:2.7)
148 बसता (= बस्ता) (कल होके अलगंठवा मखन आउ बासी रोटी खा के गंगा गुरु के गुरुपींडा पर झोला में बसता लेके सोझिया गेल हल) (अल॰1:3.30)
149 बाउर (अलगंठवा गुरुपींडा जायके बदले बकरी चरावे आउर संघतिअन के साथ खेले-कूदे में ही बाउर रहऽ हल ।) (अल॰1:3.8)
150 बानी (इसलामपुर से सटले बूढ़ा नगर पड़ऽ हल जहाँ एगो इनार पर जमान-जोग अउरत वरतन गोइठा के बानी से रगड़-रगड़ के मैंज रहल हल ।) (अल॰3:6.8)
151 बाम (अलगंठवा सुमितरी के हाथ पकड़ के पीठ पर जूता के उखड़ल बाम दिखवइत कहलक हल कि देखऽ सुमितरी, तोरा चलते हम्मर पीठ मारते-मारते भइया फाड़ देलन हे । सुमितरी भी अलगंठवा के हाथ पकड़ के अप्पन देह पर बड़नी के बाम देखइलक हल ।) (अल॰1:4.6, 9)
152 बुढ़बक (= बुड़बक) (न बेटी, तूँ हदिया मत, तनिको मत डरऽ । उ सब बात कहे के बात हइ । हम इतना बुढ़बक ही, अप्पन इज्जत अपने उघारम ?) (अल॰3:7.27)
153 बेअवारा (= अवारा) (सब के माय-बाप हपन बाल-बच्चा के हिदायत कर देलक हल कि अलगंठवा के साथ कोई भी म खेले-कूदे काहे कि उ लइका बेअवारा हे, न उ अपने पढ़त आउर न केकरो पढ़े देतइ ।) (अल॰2:5.1)
154 बैताल (अगिया ~) (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।) (अल॰1:2.2)
155 बोजना (चिलिम में तम्बाकू ~) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.12)
156 बोरसी (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.11)
157 भक्सन (= भक सन) (करीब दू कोस रस्ता तय करे के बाद सुरज महराज पूरब में भक्सन लाल दिखलाई पड़लन हल ।) (अल॰3:6.2)
158 भूत-मूंगा (कोय कहे कि रात-रात भर बगीचवा में डोलपत्ता खेलऽ हइ । ओकरा तनिको भूत-मूंगा से डर-भय न लगऽ हइ ।) (अल॰2:5.4)
159 भूरकुंडा (= भुरकुंडा) (तूँ घर में माय के सत्तू के भूरकुंडा बनावे ला कह दे । रोटी तऽ बनले हइए होतइ ।) (अल॰3:8.29)
160 भोरउआ (जब पिछुआनी में फन्नू मियाँ के पलानी में मुरगा बांक दे हल आउर जयतीपुर मसजिद में भोरउआ नमाज पढ़े के अजान के अवाज सुनते ही अलगंठवा के चचा उठ के गाय-बैल के सानी देवे लगऽ हलन आउर अलगंठवा के जगा के लालटेन जला के पढ़े ला बैठा दे हलन ।) (अल॰2:4.24)
161 मटिआना (येगो अधवइस मरद दिसा फिर के हाथ में लोटा आउर ओकरे में गोरकी मिट्टी, कान पर जनेऊ धरके हाथ आउर लोटा मट्टी से मटिआ रहल हल ।) (अल॰3:6.11)
162 मट्टी (येगो अधवइस मरद दिसा फिर के हाथ में लोटा आउर ओकरे में गोरकी मिट्टी, कान पर जनेऊ धरके हाथ आउर लोटा मट्टी से मटिआ रहल हल ।) (अल॰3:6.11)
163 मसगुल (= मशगूल) (येकर अलावे बकरी चरावे के सौख, दिन-रात रो-कन के चचा से येगो चितकबरी पाठी किना के पतिया-लछमिनिया, गौरी, रधिया, बुधनी, सुमिरखी, तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के साथ टाल-बधार में बकरी चरावे में मसगुल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.17)
164 माँग (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।) (अल॰1:2.4)
165 मिरचाई (सुमितरी अभी दू कोर खइवे कइलक हल कि ओकर मुंह में आधा मिरचाई जे लिट्टी में सानल हल चल गेल हल । जेकरा से सुमितरी सी-सी करइत लिट्टी छोड़ देलक हल ।) (अल॰3:6.24)
166 मैंजना (इसलामपुर से सटले बूढ़ा नगर पड़ऽ हल जहाँ एगो इनार पर जमान-जोग अउरत वरतन गोइठा के बानी से रगड़-रगड़ के मैंज रहल हल । रगड़-रगड़ के वरतन मैंजे से उ अउरत के सँउसे देह हिल-डोल रहल हल ।) (अल॰3:6.8, 9)
167 येकन्नी (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।) (अल॰1:2.8)
168 येकर (= एक्कर, इसके) (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।) (अल॰1:2.2, 14)
169 लउलिन (गाँव के जजात आउर घर के अनाज चोरा के अप्पन पाठी के खिलावे में दिन-रात लउलिन रहऽ हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.20)
170 लमहर (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.21)
171 लसोढ़ा (नन्हकू ओही ठाँम बइठ के येगो अप्पन धोकड़ी से लसोढ़ा के दतमन निकाल के मुंह धोवे लगल हल ।) (अल॰3:6.15)
172 लहकना (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.12)
173 लिट्टी (नन्हकू के घरवाली सत्तू भरल लिट्टी आउर आम के अंचार गमछी के एगो खूटा में बाँध देलक हल ।) (अल॰3:6.6)
174 लेखा (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.21)
175 वरन (= वर्ण, रंग) (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.20)
176 विआवान (नन्हकू येक घंटा रात छइते ही सुमितरी के लेके घर से बहरा गेल हल । काहे कि गरमी के दिन हल । येकर अलावे फरिछ होवे पर फिन टोला-टाटी के लोग सुमितरी आउर अलगंठवा के बात के जिकिर आउर छेड़-छाड़ देत हल । फिन कानों-कान विआवान हो जात हल ।) (अल॰3:6.1)
177 विदुर (फिन उ लोगन से खिस्सा-कहानी आउर गीत सुने आउर सिखे में विदुर अलगंठवा ।) (अल॰1:2.14)
178 सँउसे (= सउँसे) (इसलामपुर से सटले बूढ़ा नगर पड़ऽ हल जहाँ एगो इनार पर जमान-जोग अउरत वरतन गोइठा के बानी से रगड़-रगड़ के मैंज रहल हल । रगड़-रगड़ के वरतन मैंजे से उ अउरत के सँउसे देह हिल-डोल रहल हल ।) (अल॰3:6.9)
179 संघतिआ (= संगतिया, संगी-साथी) (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.25, 3.8)
180 सकदम (नन्हकू ई बात सुन के सकदम हो गेल हल ।) (अल॰3:7.25)
181 सटकना (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.21)
182 सत्तू (नन्हकू के घरवाली सत्तू भरल लिट्टी आउर आम के अंचार गमछी के एगो खूटा में बाँध देलक हल ।) (अल॰3:6.5)
183 सनिचरा (आज सनिचर के दिन हल, गुरुजी के सनिचरा देवे ला माय आधा सेर गेहूँ दे देलक हल ।) (अल॰4:8.35)
184 सले-सले (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.5)
185 सांप-बिच्छा (सांप-बिच्छा नजर-गुजर झारे के अलावे जिन्दा सांप पकड़े के मंतर इयानी गुन से आन्हर अलगंठवा के बाबू ।) (अल॰1:1.16)
186 सानी (जब पिछुआनी में फन्नू मियाँ के पलानी में मुरगा बांक दे हल आउर जयतीपुर मसजिद में भोरउआ नमाज पढ़े के अजान के अवाज सुनते ही अलगंठवा के चचा उठ के गाय-बैल के सानी देवे लगऽ हलन आउर अलगंठवा के जगा के लालटेन जला के पढ़े ला बैठा दे हलन ।) (अल॰2:4.25)
187 सामर (= साँवला, श्यामल) (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.20)
188 सावा (= सवा) (उ जमाना में विनोबा जी गाँव-गाँव घूम के परवचन दे हलन कि पैखाना गाँव के बाहर फिरे तऽ सावा वित्ता जमीन खत के ओकरे में पैखाना करके मिट्टी से झांक देवे के चाही । जेकरा से गन्दगी भी न होयत आउर पैखाना खाद के काम आवत ।) (अल॰2:5.9)
189 सिकाइत (= शिकायत) (माय-भाय आउर चचा सब अलगंठवा से अजीज । रोज-रोज बदमासी, रोज-रोज सिकाइत, रोज-रोज जूता के मार ।) (अल॰1:2.7)
190 सिनरी (ओकर बाद नाना-नतनी इसलामपुर बजार में दुरगाथान जाके एगो हलुआइ के दुकान पर जाके सौगात में सिनरी के रूप में पाभर बतासा खरीदलक आउर सुमितरी ला गरम-गरम जीलेबी ।) (अल॰3:7.9)
191 सिनूर (= सेनूर, सेनुर) (बाप रे बाप, उ छउड़ा अगिया बैताल हइ । कुंआरी लड़की के मांग में सिनूर दे दे हइ ।) (अल॰2:5.3)
192 सिलाय (= सिलाई) (पूरे आठ बरिस कलकत्ता गली-गली में टउआय के बाद चटकल में बोरा के सिलाय में नौकरी के जुगाड़ बैठल हल) (अल॰1:1.11)
193 सी-सी (सुमितरी अभी दू कोर खइवे कइलक हल कि ओकर मुंह में आधा मिरचाई जे लिट्टी में सानल हल चल गेल हल । जेकरा से सुमितरी सी-सी करइत लिट्टी छोड़ देलक हल ।) (अल॰3:6.25)
194 सुस्ताना (नाना, तनी छहुरवा में सुस्ता ल, बड़ी गरमी लग रहल हे आउ गोड़ भी जर रहल हे ।) (अल॰3:7.19)
195 सेआना (मुदा हाँ बेटी, फिन अइसन काम कभी मत करिहऽ । अब तूँ सेआन होते जा रहलऽ ह ।) (अल॰3:7.30)
196 सेनुर (= सेनूर, सिनूर) (कुंआरी सुमितरी के मांग में सेनुर देवे के हउड़ा सगर मचल हल) (अल॰1:3.18)
197 सेनूर (= सेनुर, सिनूर) (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।) (अल॰1:2.3)
198 सेर (आज सनिचर के दिन हल, गुरुजी के सनिचरा देवे ला माय आधा सेर गेहूँ दे देलक हल ।) (अल॰4:8.35)
199 सोझियाना, सोझिया जाना (कल होके अलगंठवा मखन आउ बासी रोटी खा के गंगा गुरु के गुरुपींडा पर झोला में बसता लेके सोझिया गेल हल) (अल॰1:3.31; 3:8.4)
200 सौख (= शौक) (येकर अलावे बकरी चरावे के सौख, दिन-रात रो-कन के चचा से येगो चितकबरी पाठी किना के पतिया-लछमिनिया, गौरी, रधिया, बुधनी, सुमिरखी, तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के साथ टाल-बधार में बकरी चरावे में मसगुल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.15)
201 हउड़ा (= हौरा, हौड़ा, कोलाहल, सुनगुन, अफवाह) (कुंआरी सुमितरी के मांग में सेनुर देवे के हउड़ा सगर मचल हल) (अल॰1:3.18)
202 हदियाना (न बेटी, तूँ हदिया मत, तनिको मत डरऽ । उ सब बात कहे के बात हइ । हम इतना बुढ़बक ही, अप्पन इज्जत अपने उघारम ?) (अल॰3:7.26)
203 हहियाना (हवा में गरमी लग रहल हल । ओकरा में भी पछिया हवा हहिया रहल हल ।) (अल॰3:7.16)
204 हिंछा (= इच्छा) (अल॰1:3.4)
205 हिआना (अलगंठवा खड़ा होके होके टुकुर-टुकुर ऊ झूंड में अप्पन चितकबरी पाठी के हिआवऽ हल / निहारऽ हल ।) (अल॰1:3.2)
206 हिदायत (~ करना) (सब के माय-बाप हपन बाल-बच्चा के हिदायत कर देलक हल कि अलगंठवा के साथ कोई भी म खेले-कूदे काहे कि उ लइका बेअवारा हे, न उ अपने पढ़त आउर न केकरो पढ़े देतइ ।) (अल॰2:4.30)

1 comment:

कुमार राधारमण said...

बहुत श्रमसाध्य और उपयोगी जानकारी।