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Friday, May 14, 2010

16.1 मगही उपन्यास "अलगंठवा" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

अल॰ = "अलगंठवा" (मगही उपन्यास) - बाबूलाल मधुकर; प्रथम संस्करण 2001; सीता प्रकाशन, 105, स्लम, लोहियानगर, पटना-20; मूल्य: लाइब्रेरी संस्करण - 150/- रुपये; सामान्य संस्करण - 125/- रुपये; कुल x+158 पृष्ठ ।


देल सन्दर्भ में पहिला संख्या अनुच्छेद (section), दोसर संख्या पृष्ठ, आउ तेसर संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।

(पृष्ठ 1 से 8 तक में कुल मगही शब्द = 212)
http://magahi-sahitya.blogspot.com/2010/05/16.html


(पृष्ठ 9 से 22 तक में अतिरिक्त कुल मगही शब्द = 216)


1 अंचरा (अलगंठवा के माय गंगा नेहा के कई गो पत्थर के मूरति पर पानी छिट-छिट के अप्पन अंचरा पकड़ के गोड़ लगलक हल ।) (अल॰6:16.8)
2 अकास (= आकाश) (चौदस के चान पछिम ओर अकास पर टहटह टहटहा रहल हल ।) (अल॰6:14.19)
3 अगहनी (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰7:20.25)
4 अटान (गाड़ी में चढ़े के अटान न हल ।) (अल॰7:21.16)
5 अदमी (= आदमी; दे॰ अमदी) (अलगंठवा अप्पन माय के साथ भीड़ में माय के हाथ पकड़ के अदमी से भरल भीड़ में गंगा दने जाय लगल हल ।) (अल॰6:15.27)
6 अनुनिया (गाँव के लोग नेहा धो के एक ठंइया खाय लगलन हल । मुदा अलगंठवा के माय आज्झ अनुनिया कइले हल । ई गुने उ फलहार के नाम पर परहवा केला जे फतुहा में खूब बिकऽ हे, ओकरे से अप्पन मुंह जुठइलक ।) (अल॰6:16.10)
7 अनेसा (अप्पन अउरत पर नजर पड़ते ही बटेसर तमतमाइत बोल पड़ल हल - "तूँ गंगा नेहाय गेलऽ हल कि पहुनइ खाय, तोरा कल ही लौटे के हलउ, फिन रात कहाँ बितउलऽ ? हमनी अनेसा में रात भर न सो सकली ।") (अल॰7:21.14)
8 अनोर(हल्ला-गुदाल सुन के गाँव के कुत्ता भी भुक-भुक के अनोर करे लगल हल ।) (अल॰7:22.27)
9 अबहिए (सब परसादी तऽ बँटिए जा हे । इ गुने हम अप्पन हिस्सा अबहिए काहे न खा लूँ ।) (अल॰4:11.15)
10 अमदी (=अदमी, आदमी) (ई बात सुन के चचा-भाय आउर भोजाय आउर टोला के कई गो अमदी के ठकमुरकी लग गेल हल ।) (अल॰4:11.26, 12.7; 6:19.17)
11 अरउआ (सुमितरी के माय हाथ में अरउआ लेके बैल आउर भैंसा के हाँक के घर ले आवल हल ।) (अल॰7:21.25)
12 अवाद (= आबाद) (बटेसर अप्पन गाँव के गोवरधन गोप से हरसज करके खेत अवाद कर रहलन हल ।) (अल॰7:21.5)
13 असनान (= स्नान) (कतकी पुनिया नेहाय ला अलगंठवा के माय आउ टोला-टाटी के कइ गो अउरत-मरद फतुहा गंगा-असनान करे ला आपस में गौर-गट्ठा करे लगल हल ।) (अल॰6:14.11, 26)
14 अहरा (अप्पन अउरत के बात सुनके बटेसर कहलक हल कि पुरवारी अहरा में मछली मरा रहल हल ।) (अल॰5:14.1)
15 अहे (अलगंठवा के माय के नजर जब सुमितरी के माय पर पड़ल तऽ अलगंठवा के माय तनी हँसइत बोललक हल - "अहे सुमितरी के माय, कपड़ा गार-गुर के इधर भी अइहऽ । तोहर नइहर के कई लोग भी गंगा नेहाय अइलथुन हे ।") (अल॰6:16.16)
16 आँय (सुमितरी के माय के रोग के बात सुनके चेहाइत अलगंठवा के माय पूछलक - आँय, उनखा कउन बीमारी होलइ हे । देखे में तऽ तनदुरूस्त हलथुन ?) (अल॰6:17.6, 22)
17 आज्झ (= आज) (चेलहवा मछली देख के सुमितरी के माय पूछलक हल - आज्झ कने जतरा बनलो कि मछली ले अइलऽ ।) (अल॰5:13.29; 6:16:10)
18 इ (= ई, यह, ये) ("अलगंठवा भी पढ़ऽ हो न भउजी ?" "हाँ, पढ़ऽ हो, इ बरिस मैट्रीक पास करतो ।" चेहायत सुमितरी के माय कहलक हल - "आँय, बबुआ मलट्री में पढ़ऽ हो ? बाह, इ लइका बड़ होनहार होतो भउजी । एही सबसे छोटका न हथुन ?") (अल॰6:17.21, 22)
19 इंजोरिया (रह रह के इंजोरिया में बसन्तपुर देखते बनऽ हल ।) (अल॰5:12.29)
20 इया (= हे!) (ई बड़ी बुधगर होतो भउजी । इया गंगा माय, हम्मर बाबू के निरोग रखिहऽ, नेहइते धोते एको केस न भंग होवे हम्मर पुतवा के ।) (अल॰6:16.27)
21 उकि (अगे मइया, सुमितरी के मइया भी गंगा नेहाय अइलथिन हे । उकि देखहीं न, नेहा के कपड़ा बदल रहलथिन हे ।) (अल॰6:16.14)
22 उगना (उगल रहना) (अलगंठवा के माय केला के चिलका फेंकइत असीरवाद देइत कहलक हल - 'दूधे-पुते उगल रहऽ ।') (अल॰6:16.21)
23 उघार (सुमितरी काली मट्टी से अप्पन माथा रगड़-रगड़ के धोवे लगल हल । काहे कि ओकर लमहर-लमहर केस लट्टियाल हल । जेकरा कठौती में पानी लेके साफ कर रहऽ हल । ओकर पीठ येकदम उघारे हल ।) (अल॰5:12.17)
24 उनखा (= उनका, उनको) (सुमितरी के माय के रोग के बात सुनके चेहाइत अलगंठवा के माय पूछलक - आँय, उनखा कउन बीमारी होलइ हे । देखे में तऽ तनदुरूस्त हलथुन ?) (अल॰6:17.6)
25 उपजना (बुढ़ल वंस कबीर के उपजल पूत कमाल ।) (अल॰4:12.13)
26 उसकाना (अलगंठवा नइका चूड़ा के साथ फतुहा के परसिध मिठाइ मिरजइ भर-भर फाँका खा ही रहल हल कि उ अप्पन माय के हाथ से उसकावइत बोलल हल ..) (अल॰6:16.13)
27 उहाँ (= वहाँ) (न बेटा, उहाँ बड़ी भीड़ रहऽ हइ । तूँ मेला-ठला में भुला जयबऽ, इया कुचला जयबऽ । न, तूँ न जा बेटा, हम तोरा ला फतुहा के परसिध मिठाई मिरजइ लेते अइबो ।) (अल॰6:14.14)
28 एकक (= एक-एक) (फिन का हल, अलगंठवा डगर में आके, एगो पेड़ पर चढ़ के थोड़ा गड़ी, छुहाड़ा थोड़ा किसमिस आउर एकक गो केला-नारंगी, अमरुद लेके खाय लगल ।) (अल॰4:11.17)
29 एकबाघट (भइया गुस्सा में अलगंठवा के दू तमाचा जड़इत कहलक हल - "ले रे भठियारा, सब परसादी तोंही खा जो । बाप रे बाप, सब एकबाघट कर देलकइ, बेहूदा-हरमजादा ।") (अल॰4:11.29)
30 एने-ओने (सुमितरी माय-बेटी घर से चौखट पर आके एने-ओने ताके लगल हल । हल्ला-गुदाल सुन के गाँव के कुत्ता भी भुक-भुक के अनोर करे लगल हल ।) (अल॰7:22.26)
31 कउची (अगे सुमितरी, तोर पीठ में ई काला-काला बाम कउची के हउ गे ? हाय रे बाप, तोरो सितला मइया देखाय दे रहलथुन ह का गे ?) (अल॰5:12.19)
32 ककहरा (अलगंठवा जब ककहरा भी न जानऽ हल तबहिए ओकर माय हनुमान चलिसा, शिव चलिसा कंठस्थ करवा देलक हल ।) (अल॰4:10.20)
33 कचगर (गोर-गोर झुमइत धान के बाल में हम तोहर मस्ती भरल कचगर आउर दूधायल सूरत देख रहली हे ।) (अल॰6:18.27)
34 कचूर (हरिअर ~) (गाँव के चारों ओर हर तरह के पेड़-बगान हे । ई गुने वारहो मास हरिअर कचूर लउकइत रहऽ हे ।) (अल॰8:22.30)
35 कजरौटी (सुमितरी नेहा-धो के घर आयल हल तऽ ओकर माय गड़ी के तेल से मालिस कर देलक हल । आउर कंघी से माथा झार के जुरा बाँध देलक हल । कजरौटी से काजल भी लगा देलक हल ।) (अल॰5:13.12)
36 कतकी (~ पुनिया, ~ धान) (कतकी पुनिया नेहाय ला अलगंठवा के माय आउ टोला-टाटी के कइ गो अउरत-मरद फतुहा-गंगा असनान करे ला आपस में गौर-गट्ठा करे लगल हल ।; कोय-कोय किसान अप्पन कतकी धान काट रहलन हल ।) (अल॰6:14.10, 26, 18.22, 20.27)
37 कनकनी (भोर के दखिनाहा बेआर बह रहल हल । जेकरा से कनकनी महसूस होवइत हल ।) (अल॰6:14.21)
38 कने (= कन्ने, किधर) (चेलहवा मछली देख के सुमितरी के माय पूछलक हल - आज्झ कने जतरा बनलो कि मछली ले अइलऽ ।) (अल॰5:13.29)
39 करिखा (= कारिख) (सुमितरी के माय मुसकइत येगो पुरान करिखा लगल हांड़ी में मछली धोवे ला उठावइत सुमितरी से कहलक हल - "अगे बेटी, तूँ लहसून-हल्दी-धनिया-सरसो आउर मिचाइ मेहिन करके लोढ़ी-पाटी धो-धो के पीसऽ ।" माय के बात सुन के सुमितरी लोढ़ी-पाटी पर मसाला पीसे लगल हल आउ मछली के लोहरउनी से घर महके लगल हल ।) (अल॰5:14.6)
40 कातो (= कीतो) (सुनऽ ही कातो छउँड़ा पढ़े में बड़ तेज हइ, फिन ओकरा इतनो गियान न हइ कि परसादी निरैठा लावल जा हे । ठीके कहल गेल हे कि नेम न धरम, पहिले चमरवे पाखा ।) (अल॰4:12.4)
41 कादो (= कातो, कीतो) (अरे बाप रे बाप, रामदहिन पाड़े के सँढ़वा मार के पथार कर देलकइ । कादो ओकर गइया मखे ला उठलइ हल । ओकरे पगहा में बाँध के सढ़वा दने अप्पन गइया के डोरिअइते जा रहलथिन हल कि गाँव के कोय बुतरु सढ़वा के देखइत ललकारइत कह देलकइ - उन्नऽऽऽढाऽऽहेऽऽ । बास इतने में सढ़वा गइया दने आउ गइया सढ़वा दने बमकइत दौड़लइ । जेकरा से रामदहिन पाड़े के दहिना हथवा पगहवा में लटपटा गेलइ । जेकरा से पखुरबे उखड़ गेलइ । उका खटिया पर लदा के इसलामपुर हौसपिटल जा रहलथिन हे ।) (अल॰7:22.17)
42 कारीवांक (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰7:20.25)
43 खन्धा (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰7:20.26)
44 खरचा-बरचा (बेटी के जादा पढ़ा लिखा के का करवइ बेटा, खरचा-बरचा कहाँ से जुटतइ ।) (अल॰6:18.1)
45 खरहना (न गे मइया, नेवारी के विनल खटिया पर खरहने में नानी घर येक दिन सो गेलिअइल हल । ओकरे से बाम उखड़ गेल हे । नेहा के गड़ी के तेल लगा लेम, तऽ ठीक हो जायत ।) (अल॰5:12.21)
46 खेलौना (= खिलौना) (अलगंठवा भीड़ भरल मेला देख के बड़ खुस हो रहल हल । .. रंग-विरंग के खेलौना देख के माय से खरीदे ला कह रहल हल ।) (अल॰6:16.1)
47 गड़ी (हिदायत कर देल गेल हल कि परसादी के समान लेके पेसाव-पैखाना न करे के आउर न जुठखुटार होवे के चाही । बड़ी नियम-धरम से परसादी इयानी गड़ी-छोहाड़ा-किसमिस-केला-अमरुद-नारंगी परसादी लइहऽ ।; सुमितरी नेहा-धो के घर आयल हल तऽ ओकर माय गड़ी के तेल से मालिस कर देलक हल ।) (अल॰4:11.3, 16; 5:13.10)
48 गारना (अलगंठवा के माय के नजर जब सुमितरी के माय पर पड़ल तऽ अलगंठवा के माय तनी हँसइत बोललक हल - "अहे सुमितरी के माय, कपड़ा गार-गुर के इधर भी अइहऽ । तोहर नइहर के कई लोग भी गंगा नेहाय अइलथुन हे ।") (अल॰6:16.17)
49 गियान (= ज्ञान) (सुनऽ ही कातो छउँड़ा पढ़े में बड़ तेज हइ, फिन ओकरा इतनो गियान न हइ कि परसादी निरैठा लावल जा हे । ठीके कहल गेल हे कि नेम न धरम, पहिले चमरवे पाखा ।) (अल॰4:12.4)
50 गुरुपिंडा (दे॰ गुरुपींडा) (सुमितरी भी अप्पन गाँव के गुरुपिंडा पर पढ़े ला कह रहल हल ।) (अल॰4:9.9)
51 गुह (= गूह, मल, विष्ठा) (दोसर एगो अउरत बोलल - "पढ़ले सुगना गुह में डूबऽ हे ।") (अल॰4:12.7)
52 गुहना (= गूँथना) (जब माय सुमितरी के माथा गुह रहऽ हल तऽ सुमितरी कहलक हल - मइया, हमरा नानी घर में लोग गुरुपींडा पर पढ़े जाइ ला कहऽ हल ।) (अल॰5:13.16)
53 गूलर (= गुल्लड़) (पीपर-पाँकड़ वैर आउर गूलर के पोकहा चुन-चुन के कइसे खा हल सुमितरी, लइका-लइकी के साथ कइसे उछल-उछल के पोखर में नेहा हल सुमितरी आउर पानीए में छुआ-छूत खेलऽ हल सुमितरी । आज ओकर आँख में सब कुछ के फोटू देखाय पड़इत हल ।) (अल॰5:13.1)
54 गे (अगे सुमितरी, तोर पीठ में ई काला-काला बाम कउची के हउ गे ? हाय रे बाप, तोरो सितला मइया देखाय दे रहलथुन ह का गे ?) (अल॰5:12.19, 20)
55 गेठरी-मोटरी (कटहिया घाट जुमला पर गाँव के सब लोग एक जगह ~ रख के गंगा जी में नेहाय लगलन ।) (अल॰6:16.5)
56 गौर-गट्ठा (अलगंठवा के माय आउ सुमितरी के माय फतुहा धरमसाला में ठहर के भोरे के गाड़ी पकड़े ला सोच के गौर-गट्ठा कर लेलक हल ।) (अल॰6:18.14)
57 गौर-गट्ठा (कतकी पुनिया नेहाय ला अलगंठवा के माय आउ टोला-टाटी के कइ गो अउरत-मरद फतुहा गंगा-असनान करे ला आपस में गौर-गट्ठा करे लगल हल ।) (अल॰6:14.11)
58 घुरना (घुर-घुर के अलगंठवा सुमितरी के माय के देख ले हल ।) (अल॰6:20.20)
59 घोसना (तू एगो सुमितरी के नाम चिट्ठी दे दऽ । हम ओकरा दे देवइ । उ तोर नाम बराबर घोसते भी रहऽ हो ।) (अल॰6:18.8)
60 चमार (सुनऽ ही कातो छउँड़ा पढ़े में बड़ तेज हइ, फिन ओकरा इतनो गियान न हइ कि परसादी निरैठा लावल जा हे । ठीके कहल गेल हे कि नेम न धरम, पहिले चमरवे पाखा ।) (अल॰4:12.6)
61 चरखानी (~ गमछी) (बटेसर चरखानी गमछी से देह के पसीना पोछ के कमर में खोंसल खैनी-चूना निकाल के खैनी टूंग ही रहल हल कि लोटा में पानी लेके सुमितरी के माय जुम गेल हल ।) (अल॰7:21.10)
62 चान (= चाँद) (चौदस के चान पछिम ओर अकास पर टहटह टहटहा रहल हल ।) (अल॰6:14.19, 18.24, 25)
63 चानी (= चाँदी) (अँगना में छिटकइत चेलवा मछली चानी नियन चमचम चमक रहल हल ।) (अल॰5:14.3)
64 चास (बटेसर अप्पन खेत के एक चास लगा के सिरिस के पेड़ तर सुस्ता रहलन हल ।) (अल॰7:21.8)
65 चूड़ा (अलगंठवा झोला में नयका धान के अरबा चूड़ा आउर नयका गुड़ कंधा में टांग के सबसे अगाड़िए जाय ला तइयार हो गेल हल ।) (अल॰6:14.22)
66 चेलवा (= चेलहा) (अँगना में छिटकइत चेलवा मछली चानी नियन चमचम चमक रहल हल ।) (अल॰5:14.3)
67 चेलहा (चेलहवा मछली देख के सुमितरी के माय पूछलक हल - आज्झ कने जतरा बनलो कि मछली ले अइलऽ ।) (अल॰5:13.29)
68 चेहाना (सुमितरी के माय के रोग के बात सुनके चेहाइत अलगंठवा के माय पूछलक - आँय, उनखा कउन बीमारी होलइ हे । देखे में तऽ तनदुरूस्त हलथुन ?) (अल॰6:17.6)
69 चोखा (घर पहुँचे पर सुमितरी अप्पन बाबू जी के खिचड़ी चोखा आउर मट्ठा खाय ला परोसे जा ही रहल हल कि ओकर माय कहलक हल ..) (अल॰7:21.28)
70 चौकियाना (चलऽ, तूँ बैलवा-भैंसवा हाँकले चलऽ । हम हर-पालो लेके आवइत हियो । हब कल एगो चास आउर करके गेहुँ बुन के चौकिया देवइ ।) (अल॰7:21.24)
71 छुहाड़ा (= छोहाड़ा) (फिन का हल, अलगंठवा डगर में आके, एगो पेड़ पर चढ़ के थोड़ा गड़ी, छुहाड़ा थोड़ा किसमिस आउर एकक गो केला-नारंगी, अमरुद लेके खाय लगल ।) (अल॰4:11.16)
72 छोटका ("अलगंठवा भी पढ़ऽ हो न भउजी ?" "हाँ, पढ़ऽ हो, इ बरिस मैट्रीक पास करतो ।" चेहायत सुमितरी के माय कहलक हल - "आँय, बबुआ मलट्री में पढ़ऽ हो ? बाह, इ लइका बड़ होनहार होतो भउजी । एही सबसे छोटका न हथुन ?" "हाँ, बड़का तऽ बाबू जी के साथ कलकत्ते में रहऽ हे ।") (अल॰6:17.23)
73 छोहाड़ा (= छुहाड़ा) (हिदायत कर देल गेल हल कि परसादी के समान लेके पेसाव-पैखाना न करे के आउर न जुठखुटार होवे के चाही । बड़ी नियम-धरम से परसादी इयानी गड़ी-छोहाड़ा-किसमिस-केला-अमरुद-नारंगी परसादी लइहऽ ।) (अल॰4:11.3)
74 जउरे-साथे (दू घंटा रात छइते ही इसलामपुर रेलगाड़ी पकड़े ला लोग जउरे-साथे निकल गेलन हल ।) (अल॰6:14.18)
75 जतरा (~ बनना) (चेलहवा मछली देख के सुमितरी के माय पूछलक हल - आज्झ कने जतरा बनलो कि मछली ले अइलऽ ।) (अल॰5:13.30)
76 जलमना (कोय-कोय खेत में सरसो जलम के विता भर के हो गेल हल ।) (अल॰7:20.30)
77 जिनगी-मउअत (हाँ भउजी, जिनगी-मउअत के कउन भरोसा हे । ओकर बाबू के भी रोगे-बलाय लगल रहऽ हइ ।) (अल॰6:17.4)
78 जुठखुटार (= जुठकुठार) (हिदायत कर देल गेल हल कि परसादी के समान लेके पेसाव-पैखाना न करे के आउर न जुठखुटार होवे के चाही । बड़ी नियम-धरम से परसादी इयानी गड़ी-छोहाड़ा-किसमिस-केला-अमरुद-नारंगी परसादी लइहऽ ।) (अल॰4:11.2)
79 जुठाना (गाँव के लोग नेहा धो के एक ठंइया खाय लगलन हल । मुदा अलगंठवा के माय आज्झ अनुनिया कइले हल । ई गुने उ फलहार के नाम पर परहवा केला जे फतुहा में खूब बिकऽ हे, ओकरे से अप्पन मुंह जुठइलक ।) (अल॰6:16.11)
80 जुमना, जुम जाना (इस्कूल पहुँचते ही सनिचरा गुरु जी के दे देलक हल आउ सब लड़कन के साथ गोबर-मिट्टी से इस्कूल निपे में लग गेल हल । काहे कि हर सनिचर के दिन इस्कूल निपा हल । इस्कूल निपा ही रहल हल कि साइकिल पर इस्कूल इंस्पेक्टर इस्कूल में जुम गेल हल ।) (अल॰4:9.16; 6:16.4)
81 जुरा (= जूरा) (सुमितरी नेहा-धो के घर आयल हल तऽ ओकर माय गड़ी के तेल से मालिस कर देलक हल । आउर कंघी से माथा झार के जुरा बाँध देलक हल । कजरौटी से काजल भी लगा देलक हल ।) (अल॰5:13.11)
82 जूठकठार (= जूठकुठार; दे॰ जुठखुटार) (भला सुनऽ तो, ओकरा भगमानों से डर-भय न लगऽ हई । बाप रे, भगमान के परसदिया जूठकठार कर देकइ, गजब के लइका हइ ई भाय ।) (अल॰4:12.9-10)
83 झकझकाना (चौदस के चान पछिम ओर अकास पर टहटह टहटहा रहल हल । जेकरा से बाग बगीचा झकझका रहल हल ।) (अल॰6:14.20)
84 झारना (माथा ~) (सुमितरी नेहा-धो के घर आयल हल तऽ ओकर माय गड़ी के तेल से मालिस कर देलक हल । आउर कंघी से माथा झार के जुरा बाँध देलक हल । कजरौटी से काजल भी लगा देलक हल ।) (अल॰5:13.11)
85 झिटकी (फिन सुमितरी झिटकी से सुपती के मैल छुड़ा-छुड़ा के नेहाय लगल हल ।) (अल॰5:12.23)
86 टहटह (लाल ~) (चौदस के चान पछिम ओर अकास पर टहटह टहटहा रहल हल ।; कतकी पुनिया के चांद पूरबओर लाल टह-टह होके आग के इंगोरा नियन इया कुम्हार के आवा से पक के लाल भिमिर हो के बड़गो घइला नियन उग रहल हल ।) (अल॰6:14.19, 18.10)
87 टहटहाना (चौदस के चान पछिम ओर अकास पर टहटह टहटहा रहल हल ।) (अल॰6:14.19)
88 टीसन (इसलामपुर टीसन पहुँचे पर फतुहा के टिकट कटावे ला सब लाइन में लग गेलन हल ।) (अल॰6:14.24, 25, 15.19)
89 ठंइया (गाँव के लोग नेहा धो के एक ठंइया खाय लगलन हल । मुदा अलगंठवा के माय आज्झ अनुनिया कइले हल ।) (अल॰6:16.9)
90 ठकमुरकी (~ लग जाना) (ई बात सुन के चचा-भाय आउर भोजाय आउर टोला के कई गो अमदी के ठकमुरकी लग गेल हल ।) (अल॰4:11.27)
91 डोरिआना (अरे बाप रे बाप, रामदहिन पाड़े के सँढ़वा मार के पथार कर देलकइ । कादो ओकर गइया मखे ला उठलइ हल । ओकरे पगहा में बाँध के सढ़वा दने अप्पन गइया के डोरिअइते जा रहलथिन हल कि गाँव के कोय बुतरु सढ़वा के देखइत ललकारइत कह देलकइ - उन्नऽऽऽढाऽऽहेऽऽ । बास इतने में सढ़वा गइया दने आउ गइया सढ़वा दने बमकइत दौड़लइ । जेकरा से रामदहिन पाड़े के दहिना हथवा पगहवा में लटपटा गेलइ । जेकरा से पखुरबे उखड़ गेलइ । उका खटिया पर लदा के इसलामपुर हौसपिटल जा रहलथिन हे ।) (अल॰7:22.18)
92 तार (= ताड़) (रह रह के इंजोरिया में बसन्तपुर देखते बनऽ हल । मदी-पोखरा, झमेठगर-झमेठगर बाँस के कोठी तार-खजूर-पीपर-पाँकड़ आउर वैर के पेड़ ओकर आँख के सामने नाच-नाच जा हल ।) (अल॰5:12.30)
93 ताव (एक ~ कागज) (अल॰6:18.18)
94 तेसर (= तीसरा) (तेसर अमदी बोलल कि जे बड़ तेज रहऽ हे उ तीन जगह मखऽ हे ।) (अल॰4:12.7)
95 दखिनाहा (= दखनाहा) (भोर के दखिनाहा बेआर बह रहल हल ।) (अल॰6:14.20)
96 दम्मा (= दमा) (हाँ, अलगंठवा के माय तोहर दम्मा के समाचार सुन के बड़ावर में कोय साधु के बारे में कोय साधु के बारे में बतइलथिन हल कि साधु जड़ी-बुटी के दवा देके जड़ से ही रोग ठीक कर दे हथिन ।) (अल॰7:22.6)
97 दवा-विरो (दू बरिस से उनखा दमा के रोग से परेसान हियो । दवा-विरो कराके थक गेलियो हे ।) (अल॰6:17.9)
98 दीया (इ दुनिया में अइसन लइका दीया लेके खोजे पर भी न मिलतइ ।) (अल॰4:12.11)
99 दुरगा (= दुर्गा) (दुरगा-सरसती-लछमी आदि इतिआदी देवी खाली मट्टी के देउता न हथ । बल्कि उ लोग तोहरे जइसन हलन जिनखर नाम-जस-गुन के चरचा आज्झ भी घर-घर में हे । सगर उ लोग के पूजा पाघुर होवऽ हे ।) (अल॰6:19.8)
100 दूधायल (गोर-गोर झुमइत धान के बाल में हम तोहर मस्ती भरल कचगर आउर दूधायल सूरत देख रहली हे ।) (अल॰6:18.27)
101 दोदर (= उखड़ल, उभरल) (अलगंठवा भी सुमितरी के हाथ पकड़ के अप्पन पीठ पर जूता के दोदर वाम दिखलइलक हल रात के बँसवेड़ी में ।) (अल॰5:12.28)
102 दोसर (= दूसरा) (दोसर एगो अउरत बोलल - "पढ़ले सुगना गुह में डूबऽ हे ।") (अल॰4:12.6)
103 धमधमाना (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰7:20.26)
104 धरमसाला (= धर्मशाला) (अलगंठवा के माय आउ सुमितरी के माय फतुहा धरमसाला में ठहर के भोरे के गाड़ी पकड़े ला सोच के गौर-गट्ठा कर लेलक हल ।) (अल॰6:18.13, 17)
105 न जानी (पाती पढ़के न जानी सुमितरी के मन में का भाव उठत ।) (अल॰6:20.22)
106 नइका (= नयका) (अलगंठवा नइका चूड़ा के साथ फतुहा के परसिध मिठाइ मिरजइ भर-भर फाँका खा ही रहल हल कि उ अप्पन माय के हाथ से उसकावइत बोलल हल ..) (अल॰6:16.12)
107 नजर (अलगंठवा के माय के नजर जब सुमितरी के माय पर पड़ल तऽ अलगंठवा के माय तनी हँसइत बोललक हल - "अहे सुमितरी के माय, कपड़ा गार-गुर के इधर भी अइहऽ । तोहर नइहर के कई लोग भी गंगा नेहाय अइलथुन हे ।") (अल॰6:16.15, 19)
108 नयका (अलगंठवा झोला में नयका धान के अरबा चूड़ा आउर नयका गुड़ कंधा में टांग के सबसे अगाड़िए जाय ला तइयार हो गेल हल ।) (अल॰6:14.22)
109 नाम-जस-गुन (दुरगा-सरसती-लछमी आदि इतिआदी देवी खाली मट्टी के देउता न हथ । बल्कि उ लोग तोहरे जइसन हलन जिनखर नाम-जस-गुन के चरचा आज्झ भी घर-घर में हे । सगर उ लोग के पूजा पाघुर होवऽ हे ।) (अल॰6:19.9-10)
110 निपना (= लीपना) (इस्कूल पहुँचते ही सनिचरा गुरु जी के दे देलक हल आउ सब लड़कन के साथ गोबर-मिट्टी से इस्कूल निपे में लग गेल हल । काहे कि हर सनिचर के दिन इस्कूल निपा हल ।) (अल॰4:9.14)
111 निपाना (इस्कूल पहुँचते ही सनिचरा गुरु जी के दे देलक हल आउ सब लड़कन के साथ गोबर-मिट्टी से इस्कूल निपे में लग गेल हल । काहे कि हर सनिचर के दिन इस्कूल निपा हल । इस्कूल निपा ही रहल हल कि साइकिल पर इस्कूल इंस्पेक्टर इस्कूल में जुम गेल हल ।) (अल॰4:9.15)
112 नियन (= निअन, नियर) (अँगना में छिटकइत चेलवा मछली चानी नियन चमचम चमक रहल हल ।) (अल॰5:14.3)
113 निरैठा (= जुट्ठा नयँ कइल, निरुच्छिष्ट, पवित्र) (सुनऽ ही कातो छउँड़ा पढ़े में बड़ तेज हइ, फिन ओकरा इतनो गियान न हइ कि परसादी निरैठा लावल जा हे । ठीके कहल गेल हे कि नेम न धरम, पहिले चमरवे पाखा ।) (अल॰4:12.5)
114 निवाहना (= विवाह करना) ("तोहर सुमितरी भी तऽ सेआन हो गेलथुन होयत" - अलगंठवा के माय पूछलक हल । "हाँ भउजी, लड़की के बाढ़ भी खिंचऽ हे न, उ तऽ मिडिल पास करके घर के काम-काज भी करे लगलो हे । अगिला साल तक हीं निवाहे के विचार हई ।" - सुमितरी के माय बोललक हल । "हाँ भाय, दिन-दुनिया खराब वित रहल हे, सेआन लइकी के निवाह देवे में ही फाइदा हे ।") (अल॰6:17.1, 3)
115 निहोरा (अलगंठवा निहोरा करइत आउर जिद करइत कहलक हल -"माय हम भी तोरा साथ गंगा-असनान करे ला फतुहा चलवो ।") (अल॰6:14.12)
116 नेउता (= न्योता) (सुमितरी के विआह में नेता देबऽ तऽ जरुरे अइवो अलगंठवा के लेके ।) (अल॰6:20.16)
117 नेहाना (= नहाना) (पीपर-पाँकड़ वैर आउर गूलर के पोकहा चुन-चुन के कइसे खा हल सुमितरी, लइका-लइकी के साथ कइसे उछल-उछल के पोखर में नेहा हल सुमितरी आउर पानीए में छुआ-छूत खेलऽ हल सुमितरी । आज ओकर आँख में सब कुछ के फोटू देखाय पड़इत हल ।) (अल॰5:13.2, 10; 6:16:5, 6, 7)
118 पखुरा (अरे बाप रे बाप, रामदहिन पाड़े के सँढ़वा मार के पथार कर देलकइ । कादो ओकर गइया मखे ला उठलइ हल । ओकरे पगहा में बाँध के सढ़वा दने अप्पन गइया के डोरिअइते जा रहलथिन हल कि गाँव के कोय बुतरु सढ़वा के देखइत ललकारइत कह देलकइ - उन्नऽऽऽढाऽऽहेऽऽ । बास इतने में सढ़वा गइया दने आउ गइया सढ़वा दने बमकइत दौड़लइ । जेकरा से रामदहिन पाड़े के दहिना हथवा पगहवा में लटपटा गेलइ । जेकरा से पखुरबे उखड़ गेलइ । उका खटिया पर लदा के इसलामपुर हौसपिटल जा रहलथिन हे ।) (अल॰7:22.22)
119 पढ़ाकू (तोहरा जइसन सुथर-सुभवगर पढ़ाकू लइका तऽ आज्झ तलक हम देखवे न कइली हे । केता लूर से चिट्ठी लिखलऽ हे ।) (अल॰6:20.5)
120 पथार (मार के ~ करना) (गाँव के उत्तर गुदाल होवे लगल कि अरे बाप रे बाप, रामदहिन पाड़े के सँड़वा मार के पथार कर देलकइ ।) (अल॰7:22.17)
121 परतेक (= प्रत्येक) (परतेक पुनिया के भगमान के कथा होवऽ हल ।) (अल॰4:10.28)
122 परनाम (= प्रणाम) (सुमितरी के माय नइहर के जमाइत मीर आके सबके परनाम-पाती कइलक हल । अलगंठवा भी सुमितरी के माय के चरन छू के परनाम कइलक हल ।) (अल॰6:16.22)
123 परनाम-पाती (सुमितरी के माय नइहर के जमाइत मीर आके सबके परनाम-पाती कइलक हल । अलगंठवा भी सुमितरी के माय के चरन छू के परनाम कइलक हल ।) (अल॰6:16.22)
124 परसादी (येक वेर के केहानी हे कि अलगंठवा के माय पुनिया के सतनाराइन सामी के पूजा खातिर परसादी लावे ला अलगंठवा के रुपया देलन हल ।) (अल॰4:10.31, 11.1, 2, 3)
125 परसिध (= प्रसिद्ध) (न बेटा, उहाँ बड़ी भीड़ रहऽ हइ । तूँ मेला-ठला में भुला जयबऽ, इया कुचला जयबऽ । न, तूँ न जा बेटा, हम तोरा ला फतुहा के परसिध मिठाई मिरजइ लेते अइबो ।) (अल॰6:14.16, 16.12)
126 परहवा (गाँव के लोग नेहा धो के एक ठंइया खाय लगलन हल । मुदा अलगंठवा के माय आज्झ अनुनिया कइले हल । ई गुने उ फलहार के नाम पर परहवा केला जे फतुहा में खूब बिकऽ हे, ओकरे से अप्पन मुंह जुठइलक ।) (अल॰6:16.10)
127 परानी (= प्राणी) (हम तोहर नाना जी से भी बात करवो । उनखा बेटा तऽ हइए न हइ । खाली दूगो परानी हका । तोहर नाना आउ नानी से तोहरा पढ़े ला मदद दिलवइवो ।) (अल॰6:19.21)
128 परेसान (= परेशान) (दू बरिस से उनखा दमा के रोग से परेसान हियो । दवा-विरो कराके थक गेलियो हे ।) (अल॰6:17.9)
129 पहिले पहल (अलगंठवा पहिले पहल रेलगाड़ी चढ़ल हल ।) (अल॰6:15.1)
130 पहुनइ (अप्पन अउरत पर नजर पड़ते ही बटेसर तमतमाइत बोल पड़ल हल - "तूँ गंगा नेहाय गेलऽ हल कि पहुनइ खाय, तोरा कल ही लौटे के हलउ, फिन रात कहाँ बितउलऽ ? हमनी अनेसा में रात भर न सो सकली ।") (अल॰7:21.13)
131 पाँकड़ (=पाकड़) (रह रह के इंजोरिया में बसन्तपुर देखते बनऽ हल । मदी-पोखरा, झमेठगर-झमेठगर बाँस के कोठी तार-खजूर-पीपर-पाँकड़ आउर वैर के पेड़ ओकर आँख के सामने नाच-नाच जा हल ।) (अल॰5:12.30, 31)
132 पाऊँ लगी (सुमितरी के माय के नजर जब अलगंठवा के माय पर पड़ल हल तऽ हँसइत आउ पुलकइत पाऊँ लगी भउजी कहलक हल ।) (अल॰6:16.20)
133 पाखा (= पाख, पाक) (सुनऽ ही कातो छउँड़ा पढ़े में बड़ तेज हइ, फिन ओकरा इतनो गियान न हइ कि परसादी निरैठा लावल जा हे । ठीके कहल गेल हे कि नेम न धरम, पहिले चमरवे पाखा ।) (अल॰4:12.6)
134 पाड़े (गाँव के उत्तर गुदाल होवे लगल कि अरे बाप रे बाप, राम दहिन पाड़े के सँड़वा मार के पथार कर देलकइ ।) (अल॰7:22.16)
135 पीपर (=पिप्पर, पीपल) (रह रह के इंजोरिया में बसन्तपुर देखते बनऽ हल । मदी-पोखरा, झमेठगर-झमेठगर बाँस के कोठी तार-खजूर-पीपर-पाँकड़ आउर वैर के पेड़ ओकर आँख के सामने नाच-नाच जा हल ।) (अल॰5:12.30, 31)
136 पुट-सन (सुमितरी के माय अप्पन माथा से एगो लिख पकड़ के बाँया हाथ के अंगूठा के नाखून पर दहिना हाथ के अंगूठा से पुट-सन मारइत कहलक हल) (अल॰7:22.12)
137 पुनिया (= पूर्णिमा) (परतेक पुनिया के भगमान के कथा होवऽ हल ।) (अल॰4:10.28, 30; 6:14.10, 18.22)
138 पुरवारी (अप्पन अउरत के बात सुनके बटेसर कहलक हल कि पुरवारी अहरा में मछली मरा रहल हल ।) (अल॰5:14.1)
139 पुस्ट (=पुष्ट) (मेहिन-मेहिन चमचम दाँत, सुगिया जइसन नाक, पुस्ट-पुस्ट दूनो बाँह - ई सब के बढ़इत आकार सबके मन मोह ले हल ।) (अल॰5:13.14)
140 पूजा-पाघुर (सगर उ लोग के पूजा पाघुर होवऽ हे ।) (अल॰6:19.10)
141 पोकहा (पीपर-पाँकड़ वैर आउर गूलर के पोकहा चुन-चुन के कइसे खा हल सुमितरी, लइका-लइकी के साथ कइसे उछल-उछल के पोखर में नेहा हल सुमितरी आउर पानीए में छुआ-छूत खेलऽ हल सुमितरी । आज ओकर आँख में सब कुछ के फोटू देखाय पड़इत हल ।) (अल॰5:13.1)
142 फलहार (गाँव के लोग नेहा धो के एक ठंइया खाय लगलन हल । मुदा अलगंठवा के माय आज्झ अनुनिया कइले हल । ई गुने उ फलहार के नाम पर परहवा केला जे फतुहा में खूब बिकऽ हे, ओकरे से अप्पन मुंह जुठइलक ।) (अल॰6:16.10)
143 फाँका (अलगंठवा नइका चूड़ा के साथ फतुहा के परसिध मिठाइ मिरजइ भर-भर फाँका खा ही रहल हल कि उ अप्पन माय के हाथ से उसकावइत बोलल हल ..) (अल॰6:16.12)
144 फोटू (पीपर-पाँकड़ वैर आउर गूलर के पोकहा चुन-चुन के कइसे खा हल सुमितरी, लइका-लइकी के साथ कइसे उछल-उछल के पोखर में नेहा हल सुमितरी आउर पानीए में छुआ-छूत खेलऽ हल सुमितरी । आज ओकर आँख में सब कुछ के फोटू देखाय पड़इत हल ।) (अल॰5:13.3)
145 बँसवेड़ी (अलगंठवा भी सुमितरी के हाथ पकड़ के अप्पन पीठ पर जूता के दोदर वाम दिखलइलक हल रात के बँसवेड़ी में ।) (अल॰5:12.28)
146 बटुरी (सुमितरी के माय बटेसर के आगे केला-मिरजइ आउर मकुनदाना खजुर के पत्ता के विनल बटुरी में देइत कहलक हल -"खाय से पहिले राख-भभूत लिलार में लगा लऽ ।") (अल॰7:22.1)
147 बड़का ("अलगंठवा भी पढ़ऽ हो न भउजी ?" "हाँ, पढ़ऽ हो, इ बरिस मैट्रीक पास करतो ।" चेहायत सुमितरी के माय कहलक हल - "आँय, बबुआ मलट्री में पढ़ऽ हो ? बाह, इ लइका बड़ होनहार होतो भउजी । एही सबसे छोटका न हथुन ?" "हाँ, बड़का तऽ बाबू जी के साथ कलकत्ते में रहऽ हे ।") (अल॰6:17.23)
148 बड़ावर (देखऽ, बड़ावर में एगो साधु जी हथुन, उ जड़ी-बुटी के दवा करऽ हथिन । उनखर दवा बड़ी लहऽ हई । तूँ उनखा बड़ावर जरूर लेके जा ।) (अल॰6:17.13, 14)
149 बमकना (ओकरे पगहा में बाँध के सढ़वा दने अप्पन गइया के डोरिअइते जा रहलथिन हल कि गाँव के कोय बुतरु सढ़वा के देखइत ललकारइत कह देलकइ - उन्नऽऽऽढाऽऽहेऽऽ । बास इतने में सढ़वा गइया दने आउ गइया सढ़वा दने बमकइत दौड़लइ ।) (अल॰7:22.20)
150 बाछना (कोय-कोय खेत में सरसो जलम के विता भर के हो गेल हल जहाँ कुछ अउरत-मरद मोथा निकाल रहलन हल। कोय-कोय घना सरसों के साग के लेल बाछ रहलन हल ।) (अल॰7:21.2)
151 बाढ़ (= बढ़न्ती, शारीरिक विकास) ("तोहर सुमितरी भी तऽ सेआन हो गेलथुन होयत" - अलगंठवा के माय पूछलक हल । "हाँ भउजी, लड़की के बाढ़ भी खिंचऽ हे न, उ तऽ मिडिल पास करके घर के काम-काज भी करे लगलो हे ।") (अल॰6:16.30)
152 बिड़ार (सुमितरी के बाबू बटेसर अप्पन खेत में गेहूँ लगावे ला बिड़ार जोत रहलन हल ।) (अल॰7:21.3)
153 बुढ़ना (= बूड़ना) (बुढ़ल वंस कबीर के उपजल पूत कमाल ।) (अल॰4:12.13)
154 बुतरु (ओकरे पगहा में बाँध के सढ़वा दने अप्पन गइया के डोरिअइते जा रहलथिन हल कि गाँव के कोय बुतरु सढ़वा के देखइत ललकारइत कह देलकइ - उन्नऽऽऽढाऽऽहेऽऽ । बास इतने में सढ़वा गइया दने आउ गइया सढ़वा दने बमकइत दौड़लइ ।) (अल॰7:22.19)
155 बुधगर (ई बड़ी बुधगर होतो भउजी । इया गंगा माय, हम्मर बाबू के निरोग रखिहऽ, नेहइते धोते एको केस न भंग होवे हम्मर पुतवा के ।) (अल॰6:16.27)
156 बेआन (= बयान) (सुमितरी के माय के अप्पन पति के बेआन करइत आँख डबडबा गेल हल ।) (अल॰6:17.10)
157 बेआर (= बयार) (भोर के दखिनाहा बेआर बह रहल हल ।) (अल॰6:14.20)
158 भउजी (सुमितरी के माय के नजर जब अलगंठवा के माय पर पड़ल हल तऽ हँसइत आउ पुलकइत पाऊँ लगी भउजी कहलक हल ।) (अल॰6:16.20)
159 भगत-बनिया (दू बरिस से उनखा दमा के रोग से परेसान हियो । दवा-विरो कराके थक गेलियो हे । भगत बनिया के पीछे भी कम खरच न कइलियो हे । मुदा कुछ न लहऽ हो ।) (अल॰6:17.10)
160 भगमान (= भगवान) (घर में सतनाराइन भगमान के कथा भी होयल हल । अइसे तऽ परतेक पुनिया के भगमान के कथा होवऽ हल ।; भगमान के देखे खातिर अप्पन आँख से चारो ओर हिआवे लगल कि कहीं से भगमान जी जरुरे देखाय देतन ।) (अल॰4:10.28, 11.10, 11)
161 भठियारा (भइया गुस्सा में अलगंठवा के दू तमाचा जड़इत कहलक हल - "ले रे भठियारा, सब परसादी तोंही खा जो । बाप रे बाप, सब एकबाघट कर देलकइ, बेहूदा-हरमजादा ।") (अल॰4:11.28)
162 भाय (= भाई) (ई बात सुन के चचा-भाय आउर भोजाय आउर टोला के कई गो अमदी के ठकमुरकी लग गेल हल ।) (अल॰4:11.26)
163 भिमिर (लाल ~) (कतकी पुनिया के चांद पूरब ओर लाल टह-टह होके आग के इंगोरा नियन इया कुम्हार के आवा से पक के लाल भिमिर हो के बड़गो घइला नियन उग रहल हल ।) (अल॰6:18.11)
164 भोजाय (= भौजाई) (ई बात सुन के चचा-भाय आउर भोजाय आउर टोला के कई गो अमदी के ठकमुरकी लग गेल हल ।) (अल॰4:11.26)
165 मकुनदाना (सुमितरी के माय बटेसर के आगे केला-मिरजइ आउर मकुनदाना खजुर के पत्ता के विनल बटुरी में देइत कहलक हल -"खाय से पहिले राख-भभूत लिलार में लगा लऽ ।") (अल॰7:22.1)
166 मखना (तेसर अमदी बोलल कि जे बड़ तेज रहऽ हे उ तीन जगह मखऽ हे ।) (अल॰4:12.8)
167 मराना (अप्पन अउरत के बात सुनके बटेसर कहलक हल कि पुरवारी अहरा में मछली मरा रहल हल ।) (अल॰5:14.1)
168 मलट्री (= मैट्रिक) ("अलगंठवा भी पढ़ऽ हो न भउजी ?" "हाँ, पढ़ऽ हो, इ बरिस मैट्रीक पास करतो ।" चेहायत सुमितरी के माय कहलक हल - "आँय, बबुआ मलट्री में पढ़ऽ हो ? बाह, इ लइका बड़ होनहार होतो भउजी । एही सबसे छोटका न हथुन ?") (अल॰6:17.22)
169 मालिस (=मालिश) (सुमितरी नेहा-धो के घर आयल हल तऽ ओकर माय गड़ी के तेल से मालिस कर देलक हल । आउर कंघी से माथा झार के जुरा बाँध देलक हल । कजरौटी से काजल भी लगा देलक हल ।) (अल॰5:13.11)
170 मिचाइ (= मिरचाई) (सुमितरी के माय मुसकइत येगो पुरान करिखा लगल हांड़ी में मछली धोवे ला उठावइत सुमितरी से कहलक हल - "अगे बेटी, तूँ लहसून-हल्दी-धनिया-सरसो आउर मिचाइ मेहिन करके लोढ़ी-पाटी धो-धो के पीसऽ ।" माय के बात सुन के सुमितरी लोढ़ी-पाटी पर मसाला पीसे लगल हल आउ मछली के लोहरउनी से घर महके लगल हल ।) (अल॰5:14.6)
171 मिरजइ (न बेटा, उहाँ बड़ी भीड़ रहऽ हइ । तूँ मेला-ठला में भुला जयबऽ, इया कुचला जयबऽ । न, तूँ न जा बेटा, हम तोरा ला फतुहा के परसिध मिठाई मिरजइ लेते अइबो ।) (अल॰6:14.16, 16.12)
172 मुंह जमानी (= मुँहजबानी) (अलगंठवा से किताब के कविता-केहानी आउर हिसाब ~ पूछल गेल ।) (अल॰4:10.3)
173 मेला-ठला (न बेटा, उहाँ बड़ी भीड़ रहऽ हइ । तूँ मेला-ठला में भुला जयबऽ, इया कुचला जयबऽ । न, तूँ न जा बेटा, हम तोरा ला फतुहा के परसिध मिठाई मिरजइ लेते अइबो ।) (अल॰6:14.14)
174 मेहिन (= महीन) (मेहिन-मेहिन चमचम दाँत, सुगिया जइसन नाक, पुस्ट-पुस्ट दूनो बाँह - ई सब के बढ़इत आकार सबके मन मोह ले हल ।) (अल॰5:13.14, 14.6)
175 मोथा (कोय-कोय खेत में सरसो जलम के विता भर के हो गेल हल जहाँ कुछ अउरत-मरद मोथा निकाल रहलन हल। कोय-कोय घना सरसों के साग के लेल बाछ रहलन हल ।) (अल॰7:21.1)
176 रमुनिया (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰7:20.25)
177 राख-भभूत (सुमितरी के माय बटेसर के आगे केला-मिरजइ आउर मकुनदाना खजुर के पत्ता के विनल बटुरी में देइत कहलक हल -"खाय से पहिले राख-भभूत लिलार में लगा लऽ ।") (अल॰7:22.2)
178 लंद-फंद (टिटिआय के जाय के बाद डिब्बा में बैठल लोग कहे लगलन कि टिटिआय अप्पन धोकड़ी भरे ला लंद-फंद करइत रहऽ हे ।) (अल॰6:15.15)
179 लउकना (तोहर निखरल-निखरल चेहरा चान जइसन लउक रहली हे ।) (गोर-गोर झुमइत धान के बाल में हम तोहर मस्ती भरल कचगर आउर दूधायल सूरत देख रहली हे ।) (अल॰6:18.28)
180 लछमी (= लक्ष्मी) (दुरगा-सरसती-लछमी आदि इतिआदी देवी खाली मट्टी के देउता न हथ । बल्कि उ लोग तोहरे जइसन हलन जिनखर नाम-जस-गुन के चरचा आज्झ भी घर-घर में हे । सगर उ लोग के पूजा पाघुर होवऽ हे ।) (अल॰6:19.8)
181 लट्टियाना (सुमितरी काली मट्टी से अप्पन माथा रगड़-रगड़ के धोवे लगल हल । काहे कि ओकर लमहर-लमहर केस लट्टियाल हल । जेकरा कठौती में पानी लेके साफ कर रहऽ हल । ओकर पीठ येकदम उघारे हल ।) (अल॰5:12.16)
182 लथरना-पथरना (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰7:20.25)
183 लपकल-धपकल (बटेसर भी अप्पन जनाना भीर से उठ के भीड़ दने लपकल-धपकल चल गेल हल ।) (अल॰7:22.25)
184 लहना (दू बरिस से उनखा दमा के रोग से परेसान हियो । दवा-विरो कराके थक गेलियो हे । भगत बनिया के पीछे भी कम खरच न कइलियो हे । मुदा कुछ न लहऽ हो ।) (अल॰6:17.10, 14)
185 लाहरी ("न बेटा, उहाँ बड़ी भीड़ रहऽ हइ । तूँ मेला-ठला में भुला जयबऽ, इया कुचला जयबऽ । न, तूँ न जा बेटा, हम तोरा ला फतुहा के परसिध मिठाई मिरजइ लेते अइबो ।" आखिर अलगंठवा माय से लाहरी करके चले ला तइयार होइए गेल ।) (अल॰6:14.16)
186 लिख (= लीख) (सुमितरी के माय अप्पन माथा से एगो लिख पकड़ के बाँया हाथ के अंगूठा के नाखून पर दहिना हाथ के अंगूठा से पुट-सन मारइत कहलक हल) (अल॰7:22.12)
187 लूर (तोहरा जइसन सुथर-सुभवगर पढ़ाकू लइका तऽ आज्झ तलक हम देखवे न कइली हे । केता लूर से चिट्ठी लिखलऽ हे ।) (अल॰6:20.6)
188 लेल (= लिए; इ लेल = इसलिए) (अल॰6:19.14)
189 लोढ़ी-पाटी (सुमितरी के माय मुसकइत येगो पुरान करिखा लगल हांड़ी में मछली धोवे ला उठावइत सुमितरी से कहलक हल - "अगे बेटी, तूँ लहसून-हल्दी-धनिया-सरसो आउर मिचाइ मेहिन करके लोढ़ी-पाटी धो-धो के पीसऽ ।" माय के बात सुन के सुमितरी लोढ़ी-पाटी पर मसाला पीसे लगल हल आउ मछली के लोहरउनी से घर महके लगल हल ।) (अल॰5:14.6, 7)
190 लोहरउनी (सुमितरी के माय मुसकइत येगो पुरान करिखा लगल हांड़ी में मछली धोवे ला उठावइत सुमितरी से कहलक हल - "अगे बेटी, तूँ लहसून-हल्दी-धनिया-सरसो आउर मिचाइ मेहिन करके लोढ़ी-पाटी धो-धो के पीसऽ ।" माय के बात सुन के सुमितरी लोढ़ी-पाटी पर मसाला पीसे लगल हल आउ मछली के लोहरउनी से घर महके लगल हल ।) (अल॰5:14.8)
191 विघा (= बिगहा, बीघा) (बटेसर के तीन विघा खेत हल ।) (अल॰7:21.4)
192 विदमान (= विद्वान्) (तूँ भी पढ़-लिख के विदमान बन जा, हम येही आसीरवाद दे हियो ।) (अल॰4:9.5)
193 वैर (= बैर) (रह रह के इंजोरिया में बसन्तपुर देखते बनऽ हल । मदी-पोखरा, झमेठगर-झमेठगर बाँस के कोठी तार-खजूर-पीपर-पाँकड़ आउर वैर के पेड़ ओकर आँख के सामने नाच-नाच जा हल ।) (अल॰5:12.31)
194 संघ (= संग) (तोहर संघे गाँव में लुका-छिपी आउर अनेकन खेल खेले के इयाद हम न भूलली हे ।) (गोर-गोर झुमइत धान के बाल में हम तोहर मस्ती भरल कचगर आउर दूधायल सूरत देख रहली हे ।) (अल॰6:18.29)
195 सइंतना (सब के येगो झोला में सइंत के चले लगल तऽ अलगंठवा के मन में इयाद पड़ल कि ..) (अल॰4:11.6)
196 सतनाराइन (= सत्यनारायण) (घर में सतनाराइन भगमान के कथा भी होयल हल ।) (अल॰4:10.27, 30)
197 सपरना (सुमितरी के माय खुस होयत कहलक हल - "हम सपर के तोहरा आउर अलगंठवा के लेके अइवो ।") (अल॰6:20.17)
198 समान (= सामान) (हिदायत कर देल गेल हल कि परसादी के समान लेके पेसाव-पैखाना न करे के आउर न जुठखुटार होवे के चाही । बड़ी नियम-धरम से परसादी इयानी गड़ी-छोहाड़ा-किसमिस-केला-अमरुद-नारंगी परसादी लइहऽ ।) (अल॰4:11.1; 6:15.20)
199 सरसती (= सरस्वती) (दुरगा-सरसती-लछमी आदि इतिआदी देवी खाली मट्टी के देउता न हथ । बल्कि उ लोग तोहरे जइसन हलन जिनखर नाम-जस-गुन के चरचा आज्झ भी घर-घर में हे । सगर उ लोग के पूजा पाघुर होवऽ हे ।) (अल॰6:19.8)
200 सरिआना (इंस्पेक्टर के देखइत ही गुरुजी हप्पन बही-खाता सरिआवे लगलन हल ।) (अल॰4:9.17; 6:15.20)
201 सहजीरवा (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰7:20.26)
202 सामी (येक वेर के केहानी हे कि अलगंठवा के माय पुनिया के सतनाराइन सामी के पूजा खातिर परसादी लावे ला अलगंठवा के रुपया देलन हल ।) (अल॰4:10.30)
203 सितला माय (अगे सुमितरी, तोर पीठ में ई काला-काला बाम कउची के हउ गे ? हाय रे बाप, तोरो सितला मइया देखाय दे रहलथुन ह का गे ?) (अल॰5:12.19)
204 सिरिस (बटेसर अप्पन खेत के एक चास लगा के सिरिस के पेड़ तर सुस्ता रहलन हल ।) (अल॰7:21.8)
205 सुगबुगाना (अलगंठवा भी सुमितरी के हाथ पकड़ के अप्पन पीठ पर जूता के दोदर वाम दिखलइलक हल रात के बँसवेड़ी में । उ इयाद भी सुमितरी के सुगबुगा दे हल ।) (अल॰5:12.29)
206 सुथर (= सुत्थर) (तोहरा जइसन सुथर-सुभवगर पढ़ाकू लइका तऽ आज्झ तलक हम देखवे न कइली हे । केता लूर से चिट्ठी लिखलऽ हे ।) (अल॰6:20.5)
207 सुपती (फिन सुमितरी झिटकी से सुपती के मैल छुड़ा-छुड़ा के नेहाय लगल हल ।) (अल॰5:12.23)
208 सुभवगर (तोहरा जइसन सुथर-सुभवगर पढ़ाकू लइका तऽ आज्झ तलक हम देखवे न कइली हे । केता लूर से चिट्ठी लिखलऽ हे ।) (अल॰6:20.5)
209 सुभाविक (= स्वाभाविक) (जीमन में बिघन-बाधा तऽ आना सुभाविक हे ।) (अल॰6:19.20)
210 सेआन ("तोहर सुमितरी भी तऽ सेआन हो गेलथुन होयत" - अलगंठवा के माय पूछलक हल । "हाँ भउजी, लड़की के बाढ़ भी खिंचऽ हे न, उ तऽ मिडिल पास करके घर के काम-काज भी करे लगलो हे ।") (अल॰6:16.29)
211 हदर-बदर (गाड़ी खुले के सिटी सुन के हदर-बदर गाड़ी में घुसे लगलन हल ।) (अल॰6:14.26)
212 हर-पालो (चलऽ, तूँ बैलवा-भैंसवा हाँकले चलऽ । हम हर-पालो लेके आवइत हियो । हब कल एगो चास आउर करके गेहुँ बुन के चौकिया देवइ ।) (अल॰7:21.23, 26)
213 हरसज (बटेसर अप्पन गाँव के गोवरधन गोप से हरसज करके खेत अवाद कर रहलन हल ।) (अल॰7:21.5)
214 हरिअर (~ कचूर) (गाँव के चारों ओर हर तरह के पेड़-बगान हे । ई गुने वारहो मास हरिअर कचूर लउकइत रहऽ हे ।) (अल॰8:22.30)
215 हेलना (= घुसना) (अलगंठवा अप्पन माय के हाथ पकड़ के गाड़ी के डिब्बा में हेल गेल हल ।) (अल॰6:14.28)
216 हेस-नेस (तोहर नाना जी से बराबर तोहर हेस-नेस पूछइत रहली हे ।) अल॰6:18.30)

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