मपध॰
= मासिक "मगही पत्रिका"; सम्पादक - श्री धनंजय श्रोत्रिय, नई दिल्ली/ पटना
पहिला
बारह अंक के प्रकाशन-विवरण ई प्रकार हइ -
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वर्ष अंक महीना कुल
पृष्ठ
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2001 1 जनवरी 44
2001 2 फरवरी 44
2002 3 मार्च 44
2002 4 अप्रैल 44
2002 5-6 मई-जून 52
2002 7 जुलाई 44
2002 8-9 अगस्त-सितम्बर 52
2002 10-11 अक्टूबर-नवंबर 52
2002 12 दिसंबर 44
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मार्च-अप्रैल
2011 (नवांक-1; पूर्णांक-13) से द्वैमासिक के रूप में अभी तक 'मगही पत्रिका' के नियमित प्रकाशन हो रहले ह । प्रस्तुत अंक : नवांक-9, पूर्णांक-21, जुलाई-अगस्त 2012 ।
ठेठ
मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर
पृष्ठ संख्या, चउठा कॉलम संख्या (एक्के कॉलम रहलो पर
सन्दर्भ भ्रामक नञ् रहे एकरा लगी कॉलम सं॰ 1 देल गेले ह), आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति
संख्या दर्शावऽ हइ ।
कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या (अंक 1-20 तक संकलित शब्द के
अतिरिक्त) - 189
ठेठ मगही शब्द (अ
से ह तक):
1 अँउरा (= अमड़ा; आँवला) (अँउरा के आयुर्वेद में गुण से भरल फल मानल गेल हे । भले अँउरा स्वाद में कड़ुआ आउ कसैला होवे, अँउरा विटामिन के एगो बहुत अच्छा स्रोत हे ।) (मपध॰12:21:17:1.5, 6)
2 अँफरा (पेट फूले आउ अँफरा होवे पर अमरलत्ता के बिच्चा के पानी में औंट के पीसके एकर गाढ़ा लेप पेट पर लगावे से अँफरा आउ पेटपीरी खतम हो जाहे ।) (मपध॰12:21:13:2.1, 4)
3 अकमन (अकमन के आक आउ अकौना भी कहल जा हे । एकर वृक्ष छोट आउ छत्तेदार होवऽ हइ आउ पत्ता बर के पत्ता नियन मोटा होवऽ हइ ।; अकमन से दूध भी निकलऽ हइ जे विषैला होवऽ हइ ।; अकमन के कोमल पत्ता ठंढा तेल में जलाके पोथा के सूजन पर बाँधे से सूजन दूर हो जाहे । करुआ तेल में पत्ता के जलाके गरमी के घाव पर लगावे से घाव अच्छा हो जाहे ।) (मपध॰12:21:16:1.5, 12, 23)
4 अकौना (अकमन के आक आउ अकौना भी कहल जा हे । एकर वृक्ष छोट आउ छत्तेदार होवऽ हइ आउ पत्ता बर के पत्ता नियन मोटा होवऽ हइ ।) (मपध॰12:21:16:1.5)
5 अगुआना (= आगे जाना; आगे करना) (पंडीजी के इ पतरा भी अजीब हे । कभी नछत्तर अगुआ जाहे - कभी महीना । अंग्रेजी तारीख ठीक हे । ओकर अनुसार परब आगे-पीछे न होवऽ हे । दही-चिउड़ा जब होबत त 14 जनवरी के होबत ।) (मपध॰12:21:56:1.18)
6 अत्तू-अत्तू (महादे पाँड़े शिवलिंग जी के भी भोग लगावथ । हुएँ भैरव जी के भी भोग लगे । महादे पाँड़े उ भोग लेके भोरहीं से अत्तू-अत्तू करथुन । बाकि ओहू 'निकृष्ट' भोग आम जन के कहाँ नेमान होवे । के देखलक हल रहड़ी के घी छौंकल दाल, अरबा चाउर के भात आउ तलल शाक-भाजी ।) (मपध॰12:21:55:1.32)
7 अदरा (= आर्द्रा नक्षत्र) (घाघ आउ भड्डरी कह गेला ह - "रोहन तबे मिरगिसरा तबे, कुछ-कुछ अदरा जाय ।" अभी तो अदरा आवे में देर हे । अषाढ़ आठ दिन चढ़त तब अदरा आवत ।) (मपध॰12:21:56:1.15, 16)
8 अमदुर (= अमरूद) (अमदुर स्वाद में तो लाजवाब होवे करऽ हे, स्वास्थ्य के दृष्टि से भी ई उपयोगी फल हे । अमदुर के बारे हियाँ अपने के विशेष जानकारी देल जा रहले हे ।) (मपध॰12:21:12:1.5, 7)
9 अमनियाँ (= सं॰ व्रतादि में उपयोग की सामग्री; साधु-संन्यासियों की रसोई; पक्की रसोई, अनसखरी; वि॰ शुद्ध, पवित्र) (तरकारी ~ करना = तरकारी काटना) (हुआँ तरकारी काटल न जाहे, तरकारी काटे के कहल जाहे - अमनियाँ करना । आउरो शब्द के अलग अर्थ हे हुआँ ।; जंगल राहे साधु बाबा के डाकू पकड़ लेलक आउ लगल भुजाली से बाबा के गियारी काटे । चेलवा बेचारा चिल्लात जात कि दौड़ऽ दौड़ऽ, हम्मर गुरुजी के डाकू अमनियाँ कर रहल ह । गाँव के लोगन के समझे में न आवे कि गुरुजी के अमनियाँ कौची कर रहल ह ।) (मपध॰12:21:55:1.38, 2.5, 7)
10 अमला-फइला (अप्पन-अप्पन मालिक के बड़ाई के फेटा बाँधले इ अमला-फइला जमीदारी प्रथा के अलमवरदार बनल हका । जमीदारी चलऽ हे डींग-डाँग पर ।) (मपध॰12:21:52:2.30)
11 अमूमन (= बहुधा, प्रायशः; साधारणतया) (इ तसेड़ी सब बरबाद हे । ताश के घर नाश । ताश खेलेवाला एगो देखेवाला तीन गो । ठहाका, किलकारी, बेमानी, बाताबाती अमूमन होवे । कभी-कभी पटका-पटकी, भागा-भागी भी हो जाय ।) (मपध॰12:21:55:3.13)
12 अरबा (~ चाउर) (महादे पाँड़े शिवलिंग जी के भी भोग लगावथ । हुएँ भैरव जी के भी भोग लगे । महादे पाँड़े उ भोग लेके भोरहीं से अत्तू-अत्तू करथुन । बाकि ओहू 'निकृष्ट' भोग आम जन के कहाँ नेमान होवे । के देखलक हल रहड़ी के घी छौंकल दाल, अरबा चाउर के भात आउ तलल शाक-भाजी ।) (मपध॰12:21:55:1.34)
13 आगे-पाछे (हमर पंडीजी के पतरा से परब हाथी के गोड़ नियन आगे-पाछे होते रहऽ हे । ई प्रक्रिया में एगो महीना बढ़ जाहे । भले बढ़ जाहे, लौंद के मेला के मजा तो मिलऽ हे ।) (मपध॰12:21:56:1.27)
14 आरी-अलंग (खेत-पथार, जात-पात, धरम-कुधरम, लोक-लाज सभे के आरी-अलंग बनल हे । न बाएँ डिगऽ न दहिने डिगऽ - चलल चलऽ टुकदम-टुकदम।) (मपध॰12:21:52:1.2)
15 आलस (= आलस्य) (घर में जरी सा ऊँच-नीच होल कि घरवाला तूंबा-सोंटा लेलका आ अजोध्याजी दने सिधियइला । अइसने वातावरण में अभी रेखेआवल जन जवानिये में साधु भे गेला । भोला-भाला भोनूजी के भौजाई ताना मार देलथिन - "हर जोते में तोरा आलस लगऽ हो, भैंस जादेतर बँधल रहे बाकि तों हाथ-गोड़ मोरले का जनी कौची करते रहऽ ह । माउग-मेहरी अइतो त अइसे कइसे काम चलतो । काम-काज में कोढ़िया बैल ह आउ खा ह डेढ़ पसेरी। भूँजा चहियो चाउरे के ।" खाय के उलहना सुनके भोनूजी पगहा तोड़के जे भागला जे अजोध्ये जी जाके दम लेलका ।) (मपध॰12:21:53:2.33)
16 उगाहना (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे ।) (मपध॰12:21:7:1.17)
17 उड़िस (खटिया पर पानी छीट के सुतऽ तइयो देह लहकल रहतो । खटिया के सुतरी तेलचट हो । लोग एतना तेल लगावऽ हथ कि खटिया-तकिया चिक्कन-चिक्न हे । उड़िस मारे ला चौकी तर खेर लहकावऽ, उड़िस भाग के देवाल पर जइतो । पच-पच मारऽ - हो गेलो चित्रकारी । खटिया खई में बोरल हो - का भाई । त मछली खइतो उड़िस ।) (मपध॰12:21:55:2.42, 43, 3.3)
18 उड़ी (इतिहास लेखक के ईहे तो फयदा हे । कौन मार समीक्षक आउ आलोचक हथ मगही में जे अंगुरी उठइथन । जे एक्का-दुक्का हइयो हथ उनकर की मजाल हे कि इतिहासकार से पंगा लेथन । अगला संस्करण में उड़ी कर देवल जात उनका ।) (मपध॰12:21:5:1.20)
19 उमख (= उमस) (मिरगिसरा चढ़लो । उमख बढ़लो । ... साँझ के ललटेन जलइबऽ त देखके चलऽ । लंगड़ा भइया जहाँ-तहाँ डंक उठइले छटपटाल चलऽ हो । बिल-तिल में ओकरो गरम लगऽ हइ । गोहमना भी निकले लगलो ।; सजना उमख के मारे अकासे के चद्दर ओढ़के बहरसी सतभइवा के देखते रहऽ हका ।) (मपध॰12:21:56:1.30, 42)
20 उरीद (= उड़द) (उरीद एक प्रकार के दलहन होवऽ हे । एकर पौधा लगभग एक हाथ ऊँचा होवऽ हे आउ बढ़ला पर नीचे जमीन पर तलरे लगऽ हे । भारत में हर जगह ज्वार, बजरा आउ रुई के खेत में उरीद के किसान सब उगावऽ हथ ।) (मपध॰12:21:18:1.5, 9)
21 एकन्हीं (= ये सब) (मिरगिसरा चढ़लो । उमस बढ़लो । दनादन सुरसुरी सरसराय लगलो । बिछौतिया के मजा हइ - गटागट गटकले जाहे । तीन दिन में शुद्ध प्रोटीन से एकन्हीं के देह गुलफुल हो गेल ह ।) (मपध॰12:21:56:1.33)
22 ओझई (जमीदारी आउ मंदिर, सेठई आउ पूजा, दोकनदारी आउ हुमाध, मजूरी आउ ओझई साथे चलऽ हे । वेवस्था के हरेक खाढ़ अपन आध्यात्मिक घेरा बनइले रहऽ हे ।) (मपध॰12:21:54:1.13)
23 औंरा (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.18)
24 कँटहिली (माल-मवेशी के बीच से इ विचार-चिंतन के पेंड़ कइसे फरे, कँटहिली चंपा कइसे खिले, ऊसर में रेड़बो कइसे उपजे ? अंकुरबा तो बचावे पड़तो ।) (मपध॰12:21:51:2.31)
25 कँटैला (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.18)
26 कइरा (= केला) (महादे पाँड़े कहियो-जहियो कइरा के पत्ता पर बसमतिया चाउर के 'परसाद' (भात), घी के छौंकल राहड़ के दाल आउ साग-भाजी दे देथन त लगे कौनो अलगे चीज खा रहलूँ ह ।) (मपध॰12:21:54:2.37)
27 कउनी (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।) (मपध॰12:21:7:1.20)
28 कज्जो-कज्जो (= कहीं-कहीं) (कुछ-कुछ जड़ी-बूटी के सिरिफ नामे दे रहलिअइ हे । आगे के अंक में हम ओकरा पर विशेष सामग्री उपलब्ध करइबइ । कज्जो-कज्जो अपने सब के लगतइ कि हम ऊ सब फल-फल्हेरी आउ जड़ी-बूटी के बारे में बहुत सामान्य बात लिख रहलिअइ हे त अपने से कहना हइ कि नयका पीढ़ी के बउआ सब प्रकृति से अइसन कट्टल हथिन कि उनका सामान्य से सामान्य बात भी ई संबंध में मालूम नञ् हे ।) (मपध॰12:21:7:1.28)
29 कसल (चपटल नाक, छोट-छोट आँख, चौला लिलार वाली मनउती के विद्यालय बड़ी जल्दी मान्यता बना देलक हल । किशोरी मान्यता अपन कसल देह-भुजा से आकर्षक भी लगे लगल हल ।) (मपध॰12:21:37:1.38)
30 कहरटोली (बिरहिन कभी-कभी अकाश में घनघनात जहाज देखे - घबड़ाय - "का जनी कइसन हका हम्मर रोही । न चिट्ठी न पाती । पढ़ल रहता हल त चिट्ठियो लिखता हल । अभी हम चिट्ठी पढ़तूँ हल कइसे ? उनखर परेम पाती भला पढ़इतूँ हल केकरा से ? हम्मर कहरटोली में कोई तो पढ़ल न हे । बबुआन हीं जइतूँ हल । केतना लाज लगत हल ।") (मपध॰12:21:56:1.4)
31 कालो (= कलउआ, कलेवा, खाना, भोजन) (बाबूजी हुकुम कइलका - "जिग्यसुआ रे ! आझु गुरुजी के पिंडा पर मत जइहँऽ । रोपनी के कालो लेके जाय पड़तउ । सत्तू संग पेयाज, मिरचाई, अँचार ले लिअहीं । रोपे भर तो मजूर-मजूरनी के खोशामद हे । फेर सारे कहाँ जइता ।") (मपध॰12:21:56:3.40)
32 किकुड़ाना (रोब-दाब के माजरा सब समझऽ हला । रैयत पीठ आउ माथा झुकइले रहे । लमको अदमिया किकुड़ा के नाटा हो जाय ।) (मपध॰12:21:52:3.38)
33 किरमाला (अमलतास के राजवृक्ष भी कहल जा हइ । एकर बोटेनिकल नाम केसिया फिस्टुला हइ । कहैं-कहैं एकरा किरमाला भी कहल जा हइ । एकर गाछ नञ् नटगर होवऽ हइ नञ् जादे कद के ।) (मपध॰12:21:14:1.9)
34 कुकाठ (अब तक के सौ के आसपास जे मगही विषय पर शोध होल हे ओकर लेखा-जोखा करे बैठवऽ त बीसे-तीसे के बीच अइसन शोध प्रबंध हो जेकरा पढ़के जी जुड़इतो, तोरो कुछ करे के मन करतो, बाकी के राम मीरा । लखटकिया मुसहरा के मालिक आउ ओहदेदार अइसे ऐंठ के छुलु-छुलु करथुन जैसे गाँव के कुकाठ बुतरू ढिमका पर चढ़के करऽ हे । ई गुमान ऊ शोध पर जेकर स्तर बनिऔटी में इस्तमाल होवेवला कागज भर हे ।) (मपध॰12:21:5:1.32)
35 कैता (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !) (मपध॰12:21:56:2.34)
36 कोढ़िया (~ बैल) (घर में जरी सा ऊँच-नीच होल कि घरवाला तूंबा-सोंटा लेलका आ अजोध्याजी दने सिधियइला । अइसने वातावरण में अभी रेखेआवल जन जवानिये में साधु भे गेला । भोला-भाला भोनूजी के भौजाई ताना मार देलथिन - "हर जोते में तोरा आलस लगऽ हो, भैंस जादेतर बँधल रहे बाकि तों हाथ-गोड़ मोरले का जनी कौची करते रहऽ ह । माउग-मेहरी अइतो त अइसे कइसे काम चलतो । काम-काज में कोढ़िया बैल ह आउ खा ह डेढ़ पसेरी। भूँजा चहियो चाउरे के ।" खाय के उलहना सुनके भोनूजी पगहा तोड़के जे भागला जे अजोध्ये जी जाके दम लेलका ।) (मपध॰12:21:53:2.37)
37 खई (खटिया पर पानी छीट के सुतऽ तइयो देह लहकल रहतो । खटिया के सुतरी तेलचट हो । लोग एतना तेल लगावऽ हथ कि खटिया-तकिया चिक्कन-चिक्न हे । उड़िस मारे ला चौकी तर खेर लहकावऽ, उड़िस भाग के देवाल पर जइतो । पच-पच मारऽ - हो गेलो चित्रकारी । खटिया खई में बोरल हो - का भाई । त मछली खइतो उड़िस ।) (मपध॰12:21:55:3.2)
38 खटोली (बाकि बराहिल आउ गोड़ाइत के तिलंगी उड़ते रहे । एने के बराहिल मालिक के कसीदा पढ़े में कभी चुके नञ् - "जानऽ ह, हम्मर मालिक अबरी समधियौरा में एतना बड़ा कोंहड़ा भेजवइलका कि ओकरा चार गो कहार खटोली पर टाँग के ले गेल । समूचे टोला-बिगहा के लोग उ कोंहड़ा देखके कहलका - अजगुत हइ, अजगुत हइ ।" ओने के गोड़ाइत टोकलक - "कि कहऽ हू बराहिल जी । हम्मर मालिक अपन समधियौरा में एतना बड़ा शकरकंद भेजवइलथिन जेकरा गाँता पर आठ गो कहार ले गेलइ ।") (मपध॰12:21:52:3.28)
39 खाढ़ ( जमीदारी आउ मंदिर, सेठई आउ पूजा, दोकनदारी आउ हुमाध, मजूरी आउ ओझई साथे चलऽ हे । वेवस्था के हरेक खाढ़ अपन आध्यात्मिक घेरा बनइले रहऽ हे ।) (मपध॰12:21:54:1.14)
40 खानी (दे॰ खनी) (हम रोज साँझ खानी ओकरा एक घंटा भर पढ़ा देवऽ हली ।) (मपध॰12:21:37:1.42)
41 गदपिरोड़ा (हमर एगो मित्र एगो नामी-गिरामी कंपनी से 'पुनर्नवा चूर्ण' के 100 ग्राम के पैकेट खरीदलन जेकर अंकित मूल्य 32 रुपया हल । अपने के बतावे में बड़ी अफसोस हो रहल हे कि 'पुनर्नवा' अपने के घर के आसपास टनो-टन फेंका जा हे । काहे कि अपने के जानकारी में नञ् हे कि 'गदपिरोड़ा', 'गदपोड़वा' आउ 'गदहपुरना' नाम से पुकारल जायवला ई 'छीया न पूछे गेन्हारी के साग' कहावत के चरितार्थ करेवला साग या वनौषधी ही 'पुनर्नवा' हे ।) (मपध॰12:21:7:1.12)
42 गदपोड़वा (हमर एगो मित्र एगो नामी-गिरामी कंपनी से 'पुनर्नवा चूर्ण' के 100 ग्राम के पैकेट खरीदलन जेकर अंकित मूल्य 32 रुपया हल । अपने के बतावे में बड़ी अफसोस हो रहल हे कि 'पुनर्नवा' अपने के घर के आसपास टनो-टन फेंका जा हे । काहे कि अपने के जानकारी में नञ् हे कि 'गदपिरोड़ा', 'गदपोड़वा' आउ 'गदहपुरना' नाम से पुकारल जायवला ई 'छीया न पूछे गेन्हारी के साग' कहावत के चरितार्थ करेवला साग या वनौषधी ही 'पुनर्नवा' हे ।) (मपध॰12:21:7:1.12)
43 गदहपुरना (हमर एगो मित्र एगो नामी-गिरामी कंपनी से 'पुनर्नवा चूर्ण' के 100 ग्राम के पैकेट खरीदलन जेकर अंकित मूल्य 32 रुपया हल । अपने के बतावे में बड़ी अफसोस हो रहल हे कि 'पुनर्नवा' अपने के घर के आसपास टनो-टन फेंका जा हे । काहे कि अपने के जानकारी में नञ् हे कि 'गदपिरोड़ा', 'गदपोड़वा' आउ 'गदहपुरना' नाम से पुकारल जायवला ई 'छीया न पूछे गेन्हारी के साग' कहावत के चरितार्थ करेवला साग या वनौषधी ही 'पुनर्नवा' हे ।) (मपध॰12:21:7:1.12)
44 गाँता (बाकि बराहिल आउ गोड़ाइत के तिलंगी उड़ते रहे । एने के बराहिल मालिक के कसीदा पढ़े में कभी चुके नञ् - "जानऽ ह, हम्मर मालिक अबरी समधियौरा में एतना बड़ा कोंहड़ा भेजवइलका कि ओकरा चार गो कहार खटोली पर टाँग के ले गेल । समूचे टोला-बिगहा के लोग उ कोंहड़ा देखके कहलका - अजगुत हइ, अजगुत हइ ।" ओने के गोड़ाइत टोकलक - "कि कहऽ हू बराहिल जी । हम्मर मालिक अपन समधियौरा में एतना बड़ा शकरकंद भेजवइलथिन जेकरा गाँता पर आठ गो कहार ले गेलइ ।"; लोग-बाग जमीदार के अदब करऽ हका - का बोलथन, का कहथन । जमीदार के बात गाँता पर चलऽ हे ।) (मपध॰12:21:52:3.34, 53:1.8)
45 गुरीच (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.18)
46 गुलफुल (मिरगिसरा चढ़लो । उमख बढ़लो । दनादन सुरसुरी सरसराय लगलो । बिछौतिया के मजा हइ - गटागट गटकले जाहे । तीन दिन में शुद्ध प्रोटीन से एकन्हीं के देह गुलफुल हो गेल ह ।) (मपध॰12:21:56:1.33)
47 गेन्हारी (= हरे पत्तों वाला एक साग) (छीया न पूछे ~ के साग) (हमर एगो मित्र एगो नामी-गिरामी कंपनी से 'पुनर्नवा चूर्ण' के 100 ग्राम के पैकेट खरीदलन जेकर अंकित मूल्य 32 रुपया हल । अपने के बतावे में बड़ी अफसोस हो रहल हे कि 'पुनर्नवा' अपने के घर के आसपास टनो-टन फेंका जा हे । काहे कि अपने के जानकारी में नञ् हे कि 'गदपिरोड़ा', 'गदपोड़वा' आउ 'गदहपुरना' नाम से पुकारल जायवला ई 'छीया न पूछे गेन्हारी के साग' कहावत के चरितार्थ करेवला साग या वनौषधी ही 'पुनर्नवा' हे ।) (मपध॰12:21:7:1.13)
48 गोखला (~ के काँटा) (हमन्हीं बुतरू सब तार के पत्ता के गोखला के काँटा छोप के गोल बनइलूँ - हवा के ऊ ले ले बलइया- गोल कहाँ से कहाँ चल गेल ।) (मपध॰12:21:55:3.26)
49 गोड़ाइत (बाकि बराहिल आउ गोड़ाइत के तिलंगी उड़ते रहे । एने के बराहिल मालिक के कसीदा पढ़े में कभी चुके नञ् - "जानऽ ह, हम्मर मालिक अबरी समधियौरा में एतना बड़ा कोंहड़ा भेजवइलका कि ओकरा चार गो कहार खटोली पर टाँग के ले गेल । समूचे टोला-बिगहा के लोग उ कोंहड़ा देखके कहलका - अजगुत हइ, अजगुत हइ ।" ओने के गोड़ाइत टोकलक - "कि कहऽ हू बराहिल जी । हम्मर मालिक अपन समधियौरा में एतना बड़ा शकरकंद भेजवइलथिन जेकरा गाँता पर आठ गो कहार ले गेलइ ।") (मपध॰12:21:52:3.23, 31)
50 गोबार-कुरमी (मगह में सोखा भगत जहाँ-तहाँ पावल जा हका । जादेतर इ राजगीर अंचल में गोबार-कुरमी में इ किसिम के भगत हका ।) (मपध॰12:21:53:1.42)
51 गोल (हमन्हीं बुतरू सब तार के पत्ता के गोखला के काँटा छोप के गोल बनइलूँ - हवा के ऊ ले ले बलइया- गोल कहाँ से कहाँ चल गेल ।) (मपध॰12:21:55:3.26, 27)
52 गोहमन (= गेहुँवन साँप) (निलामी के तलवार लटकल हे त जमीदार साहब एने जोंक धर्म छोड़के गोहमन धरम अपनावऽ हका । फुँफकारते-डँसते किसनमन के गाँड़ फाड़ले रहऽ हका । मलगुजारी तसीले में जरको मुरौअत नञ् ।) (मपध॰12:21:52:3.7)
53 गोहमना (दे॰ गोहमन) (मिरगिसरा चढ़लो । उमख बढ़लो । ... साँझ के ललटेन जलइबऽ त देखके चलऽ । लंगड़ा भइया जहाँ-तहाँ डंक उठइले छटपटाल चलऽ हो । बिल-तिल में ओकरो गरम लगऽ हइ । गोहमना भी निकले लगलो ।) (मपध॰12:21:56:1.39)
54 घड़बड़ाना (खुदगर्ज इनसान अप्पन कूट बुद्धि से नाना प्रकार के जाल बुनते रहऽ हे । निहित स्वार्थी सत्ता वर्ग सबसे जादे घड़बड़ा हे ।) (मपध॰12:21:51:3.11)
55 घनघनाना (बिरहिन कभी-कभी अकाश में घनघनात जहाज देखे - घबड़ाय - "का जनी कइसन हका हम्मर रोही । न चिट्ठी न पाती । पढ़ल रहता हल त चिट्ठियो लिखता हल ।") (मपध॰12:21:55:3.42)
56 घबराल-घबराल (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.21)
57 घर-घरनी (अजोध्याजी में वासुदेव घाट पर सरयू विहारकुंज हे । हुआँ से हम्मर गाम के डाइरेक्ट कनेक्शन बन गेल । घर-घरनी से जे रूसे ऊ हुएँ जाके ठेकाना पावे । कमाई में जेकरा फटे ऊ हुएँ जाके डंड पेले ।) (मपध॰12:21:53:3.23)
58 घुड़मुड़ियाल (बाबा हुंकारी भरथिन आउ माला फेरथिन । ई माला के घुड़मुड़ियाल लड़ी पीयर नियन झोली में रखा जाय । रोज समय से निकले - जइसे गेंडुली मारले सँपवा सँपेरा के मउनी से निकले हे ।) (मपध॰12:21:51:1.8)
59 चपटल (= चपटा) (चपटल नाक, छोट-छोट आँख, चौला लिलार वाली मनउती के विद्यालय बड़ी जल्दी मान्यता बना देलक हल । किशोरी मान्यता अपन कसल देह-भुजा से आकर्षक भी लगे लगल हल ।) (मपध॰12:21:37:1.35)
60 चीना (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।) (मपध॰12:21:7:1.20)
61 चुनचुन्नी (इतिहासे नञ्, समीक्षा, आलोचना, उपन्यास आउ लेख-निबंध के विचारधारा भी बदले पड़तइ । टाट के कपड़ा पहिन के जदि रेशम पहिनेवला के चिढ़ावे जैवे त थुड़ी-थुड़ी तो होने हइ । सो-सैंकड़ जे मगही में गंभीर लेखक बंधु हथिन उनका से हमरा आग्रह हइ कि कविता-कहानी से आगे बढ़के दोसर सब विधा के भी अपनाहो आउ अन्तरराष्ट्रीय मानक के अनुसार । मगही अपने आप तरक्की के राह पकड़ लेतइ । हमर बात के चुनचुन्नी लगो त माफ करिहऽ ।) (मपध॰12:21:5:1.38)
62 चुसाना (जमींदारी प्रथा अंगरेज सरकार के अइसन जोंकचूसन प्रणाली हल कि प्रजा के खून चुसाल जाय आउ ओकरा कुछ सुगबुगइवो न करे । जोंक मोटाके पिलंड-पिलंड हे ।; जे चुसाल ओकरा कुछो न मालूम ।) (मपध॰12:21:52:2.39, 43)
63 चौला (= चौड़ा) (चपटल नाक, छोट-छोट आँख, चौला लिलार वाली मनउती के विद्यालय बड़ी जल्दी मान्यता बना देलक हल । किशोरी मान्यता अपन कसल देह-भुजा से आकर्षक भी लगे लगल हल ।) (मपध॰12:21:37:1.36)
64 छटपटाल (~ चलना) (मिरगिसरा चढ़लो । उमस बढ़लो । ... साँझ के ललटेन जलइबऽ त देखके चलऽ । लंगड़ा भइया जहाँ-तहाँ डंक उठइले छटपटाल चलऽ हो । बिल-तिल में ओकरो गरम लगऽ हइ । गोहमना भी निकले लगलो ।) (मपध॰12:21:56:1.37)
65 छलदिवारी (= चहारदिवारी) (हम सरकारी स्कूल के मास्टरनी तो ई काम करिए न सकी । हमर कर्तव्य तो विद्यालय के छलदिवारी में दम घोंट रहल हे ।) (मपध॰12:21:38:3.12)
66 छीया (~ न पूछे गेन्हारी के साग) (हमर एगो मित्र एगो नामी-गिरामी कंपनी से 'पुनर्नवा चूर्ण' के 100 ग्राम के पैकेट खरीदलन जेकर अंकित मूल्य 32 रुपया हल । अपने के बतावे में बड़ी अफसोस हो रहल हे कि 'पुनर्नवा' अपने के घर के आसपास टनो-टन फेंका जा हे । काहे कि अपने के जानकारी में नञ् हे कि 'गदपिरोड़ा', 'गदपोड़वा' आउ 'गदहपुरना' नाम से पुकारल जायवला ई 'छीया न पूछे गेन्हारी के साग' कहावत के चरितार्थ करेवला साग या वनौषधी ही 'पुनर्नवा' हे ।) (मपध॰12:21:7:1.13)
67 छुई-मुई (= एक लतरने वाला पौधा जिसे छूने पर पत्ते और डालियाँ मुरझा सी जाती हैं, लजौनी, लाजवंती) (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.22)
68 छुलु-छुलु (अब तक के सौ के आसपास जे मगही विषय पर शोध होल हे ओकर लेखा-जोखा करे बैठवऽ त बीसे-तीसे के बीच अइसन शोध प्रबंध हो जेकरा पढ़के जी जुड़इतो, तोरो कुछ करे के मन करतो, बाकी के राम मीरा । लखटकिया मुसहरा के मालिक आउ ओहदेदार अइसे ऐंठ के छुलु-छुलु करथुन जैसे गाँव के कुकाठ बुतरू ढिमका पर चढ़के करऽ हे । ई गुमान ऊ शोध पर जेकर स्तर बनिऔटी में इस्तमाल होवेवला कागज भर हे ।) (मपध॰12:21:5:1.32)
69 जता-तता (दे॰ जज्जा-तज्जा, जेज्जा-तेज्जा) (मगध के सांस्कृतिक इतिहास कौतुहल से भरल हे । ढेर विषय धार्मिक-सांस्कृतिक किताब में हे, तो ढेर विषय जनश्रुति में लोग याद कइले हथ मुदा सबसे महत्वपूर्ण विषय पुरावशेष के रूप में जता-तता बिखरल हे ।) (मपध॰12:21:21:1.5)
70 जने-तने (= जन्ने-तन्ने) (छठ सबसे महत्वपूर्ण पर्व हके । अइसे तो मानव आकृति के सूर्यदेव के ढेर मूर्ति जने-तने पावल जाहे मुदा नवादा के छतिहर, नालंदा के सिरनामा आउ बड़गाँव में सूर्यदेव के मूर्ति हके ।) (मपध॰12:21:21:1.15-16)
71 जबरा (= जबर, बलवान) (~ हारे त हूरे, जीते त थूरे) (मइया रहथन हियाँ, बाबू रहथन हियाँ, ठकुरबाड़ी रहत हियाँ, परसाद आउ मोहनभोग रहत हियाँ, हम जाम ननिहाल । मन रोवे, पर केकरा कहे ? बुतरू के कोमल मन के हियाँ इ देश में - ई भकुआ समाज में कौन पूछनहार हे ? ... हियाँ तो बाते-बात मार ढबाढब । जबरा मारे भी आउ रोबे भी न दे ।) (मपध॰12:21:56:3.13)
72 जमीदार (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.20)
73 जरको (दे॰ जरिक्को) (निलामी के तलवार लटकल हे त जमीदार साहब एने जोंक धर्म छोड़के गोहमन धरम अपनावऽ हका । फुँफकारते-डँसते किसनमन के गाँड़ फाड़ले रहऽ हका । मलगुजारी तसीले में जरको मुरौअत नञ् ।) (मपध॰12:21:52:3.10)
74 जाँता (= चक्की) (भोरे से खड़बड़ाहट शुरू हे । जाँता के घर्र-घर्र चालू हे । सत्तू न पिसात त मोरकबरा आ रोपनी खात कउची ? हर-बैल-हरवाहा सब के किरण फुटते खेत पहुँचना हे । जने देखऽ ओने धनरोपनी हो रहल ह । मोरकबरा मोरी कबाड़ रहल ह ।) (मपध॰12:21:56:3.31)
75 जो (= जौ, यव) (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।) (मपध॰12:21:7:1.20)
76 जोंकचूसन (जमींदारी प्रथा अंगरेज सरकार के अइसन जोंकचूसन प्रणाली हल कि प्रजा के खून चुसाल जाय आउ ओकरा कुछ सुगबुगइवो न करे । जोंक मोटाके पिलंड-पिलंड हे ।) (मपध॰12:21:52:2.38)
77 झिंगनी (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !) (मपध॰12:21:56:2.33)
78 झुराना (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे । आज हरबख्ते भाग-दौड़ के कारण हमन्हीं के शरीर के अंग-अंग झुरा रहल हे ।) (मपध॰12:21:7:1.22)
79 टिकुली (= dragon-fly) (बरखा ला बहुत तरह के टोटका होवे लगऽ हे । ... गेंदाजी के घोषणा हे - "आझे हम अंडा लेले पिपरी के बड़का धारा देखलियो ह ।" / बाबा बोलला - "हाँ, अब बरखा होतउ हो - गोरइवन धूरी में लोट रहलो ह ।"/ महादे पाँड़े - "हाँ, हाँ, टिकुलिया उड़ रहलो ह।") (मपध॰12:21:56:2.14)
80 टोकनी (उ सब हथ आँख के दहिने-बाएँ टोकनी लगइले, सीधा सुरंग में चलेवाला टमटम के घोड़ा धुंधले-धुंधले चलते चलेवाला । ऐसे में तूँ मुट्ठा नेसबहो त उ घबरा के पनिआ जइता ।) (मपध॰12:21:51:3.16)
81 टोटका (बरखा ला बहुत तरह के टोटका होवे लगऽ हे । अउघड़ बाबा के प्रवचन हे - "आधी रात के हेठ खंधा में लंगटे होके अउरत सब हर जोततन तब इंदर लंपटवा बरसा करइतो । हँ, ओने कोय मरद के नञ् जाय के चाही ।"/ गेंदाजी के घोषणा हे - "आझे हम अंडा लेले पिपरी के बड़का धारा देखलियो ह ।" / बाबा बोलला - "हाँ, अब बरखा होतउ हो - गोरइवन धूरी में लोट रहलो ह ।"/ महादे पाँड़े - "हाँ, हाँ, टिकुलिया उड़ रहलो ह।") (मपध॰12:21:56:2.4)
82 टोला-बिगहा (बाकि बराहिल आउ गोड़ाइत के तिलंगी उड़ते रहे । एने के बराहिल मालिक के कसीदा पढ़े में कभी चुके नञ् - "जानऽ ह, हम्मर मालिक अबरी समधियौरा में एतना बड़ा कोंहड़ा भेजवइलका कि ओकरा चार गो कहार खटोली पर टाँग के ले गेल । समूचे टोला-बिगहा के लोग उ कोंहड़ा देखके कहलका - अजगुत हइ, अजगुत हइ ।" ओने के गोड़ाइत टोकलक - "कि कहऽ हू बराहिल जी । हम्मर मालिक अपन समधियौरा में एतना बड़ा शकरकंद भेजवइलथिन जेकरा गाँता पर आठ गो कहार ले गेलइ ।") (मपध॰12:21:52:3.29)
83 ठकमकाल (बैल-घुमनी आउ भैंसा-गाड़ी नियन इ श्रेणीबद्ध समाज हजार साल से अप्पन धुर्रा पर घुमत-घुमत नवयुग के दुआरी पर आके ठकमकाल हे । इ देहरी के चिन्हे में इनखा रतौंधी हो रहल हे । जे पंडीजी सतनरायन स्वामी के कथा के अलावे न कुछ सुनलका न कुछ पढ़लका उ भला 'मेघदूत' के का समझता !) (मपध॰12:21:52:1.14)
84 डँटाना (जहाँ लस हुआँ चूतड़-घस्स । ठकुरबाड़ी में दू-चार गो कामचोर लोग जमल रहे । घरवाली से झाड़ू खाय, माई से डँटाय, धिया-पूता से दुरदुराय, बाकि अरमायन परसाद पावे ला महादे पाँड़े के फुलझरिया बनल रहे ।) (मपध॰12:21:55:2.14)
85 डाँड़ी (उ सब हथ आँख के दहिने-बाएँ टोकनी लगइले, सीधा सुरंग में चलेवाला टमटम के घोड़ा धुंधले-धुंधले चलते चलेवाला । ऐसे में तूँ मुट्ठा नेसबहो त उ घबरा के पनिआ जइता । अँखिया चौंधिया जाय से उ आक्रामक हो जा सकऽ हका । तू तपस्यारत होलऽ, नौका डाँड़ी पर चले ला हँकइलऽ कि उनकर इन्दरासन डोलल ।) (मपध॰12:21:51:3.21)
86 ढबाढब (मइया रहथन हियाँ, बाबू रहथन हियाँ, ठकुरबाड़ी रहत हियाँ, परसाद आउ मोहनभोग रहत हियाँ, हम जाम ननिहाल । मन रोवे, पर केकरा कहे ? बुतरू के कोमल मन के हियाँ इ देश में - ई भकुआ समाज में कौन पूछनहार हे ? ... हियाँ तो बाते-बात मार ढबाढब । जबरा मारे भी आउ रोबे भी न दे ।) (मपध॰12:21:56:3.13)
87 तसेड़ी (जेठ के दुपहरिया बड़ी परसिद्ध । सब बुतरुअन के बीतर में बंद करके दुपहरिया गँवावल जाय । जवान सब कनहूँ पेड़ तर ताश खेलथुन । गुरु-पुरोहित आउ बुजुर्ग लोग कहथुन - "इ तसेड़ी सब बरबाद हे । ताश के घर नाश । ताश खेलेवाला एगो देखेवाला तीन गो ।") (मपध॰12:21:55:3.11)
88 तिलसकरात (= मकर संक्रांति का पर्व) (दही-चिउड़ा जब होबत त 14 जनवरी के होबत । सुकरात मियाँ भइया से पुछते रहऽ हका - "बउआ, अबरी 14 जनवरी कहिया पड़तइ । दही-चूड़ा के पर्व खूब हे । ईद बकरीद सबेबरात, सबके हरावे तिलसकरात ।") (मपध॰12:21:56:1.24)
89 तोंदिअल (अनार से पेट के आसपास के चर्बी कम हो जा हइ, यानी तोंदिअल ले ई बहुत फायदेमंद हइ ।) (मपध॰12:21:11:1.12)
90 दुब्भी (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.18)
91 दुसाध-बराहिल (जमीदारी चलावे में सीधे अंगुरी घी न निकलऽ हे । दुसाध-बराहिल बिना न भाउलीवाला धान बाँटतो न मलगुजारी देतो । जब तक रैयत के गाँड़ में डंटा करके न रखभू तब तक सीधा न रहतो । बाभन-रजपूत ठीक जमीदारी चलावऽ हथ ।) (मपध॰12:21:51:1.2)
92 दोकनदारी (जमीदारी आउ मंदिर, सेठई आउ पूजा, दोकनदारी आउ हुमाध, मजूरी आउ ओझई साथे चलऽ हे । वेवस्था के हरेक खाढ़ अपन आध्यात्मिक घेरा बनइले रहऽ हे ।) (मपध॰12:21:54:1.13)
93 धारा (= धारी, पंक्ति) (बरखा ला बहुत तरह के टोटका होवे लगऽ हे । अउघड़ बाबा के प्रवचन हे - "आधी रात के हेठ खंधा में लंगटे होके अउरत सब हर जोततन तब इंदर लंपटवा बरसा करइतो । हँ, ओने कोय मरद के नञ् जाय के चाही ।"/ गेंदाजी के घोषणा हे - "आझे हम अंडा लेले पिपरी के बड़का धारा देखलियो ह ।" / बाबा बोलला - "हाँ, अब बरखा होतउ हो - गोरइवन धूरी में लोट रहलो ह ।"/ महादे पाँड़े - "हाँ, हाँ, टिकुलिया उड़ रहलो ह।") (मपध॰12:21:56:2.11)
94 नटगर (अमलतास के राजवृक्ष भी कहल जा हइ । एकर बोटेनिकल नाम केसिया फिस्टुला हइ । कहैं-कहैं एकरा किरमाला भी कहल जा हइ । एकर गाछ नञ् नटगर होवऽ हइ नञ् जादे कद के ।) (मपध॰12:21:14:1.10)
95 नैहर (= नइहर, मायका) (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.17)
96 पकावल-खाल (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.19)
97 पटका-पटकी (इ तसेड़ी सब बरबाद हे । ताश के घर नाश । ताश खेलेवाला एगो देखेवाला तीन गो । ठहाका, किलकारी, बेमानी, बाताबाती अमूमन होवे । कभी-कभी पटका-पटकी, भागा-भागी भी हो जाय ।) (मपध॰12:21:55:3.14)
98 पतरा (= सं॰ पंचांग, जंत्री; वि॰ पतला) (जे पंडित के ~ में, से पड़िआइन के अँचरा में) (पंडीजी के इ पतरा भी अजीब हे । कभी नछत्तर अगुआ जाहे - कभी महीना । अंग्रेजी तारीख ठीक हे । ओकर अनुसार परब आगे-पीछे न होवऽ हे । दही-चिउड़ा जब होबत त 14 जनवरी के होबत ।) (मपध॰12:21:56:1.17)
99 पन-छो (= पाँच-छह) (अब हम पन-छो बच्छर के हो गेलूँ हँ । भइयारे, कुटुंबी, नाता-गोता, घर में चलत ऊँच-नीच के भाव गमे लगलूँ हँ । धन-दौलतिया के खेल भी बुझे में आवे लगल ह ।) (मपध॰12:21:51:1.25)
100 पनिआना (उ सब हथ आँख के दहिने-बाएँ टोकनी लगइले, सीधा सुरंग में चलेवाला टमटम के घोड़ा धुंधले-धुंधले चलते चलेवाला । ऐसे में तूँ मुट्ठा नेसबहो त उ घबरा के पनिआ जइता ।) (मपध॰12:21:51:3.19)
101 परबाबा (= परदादा, प्रपितामह) (हम्मर परबाबा हला मातबर - दूर तक देखेवाला । साठ बिगहा देके जे जस खरीदलका ऊ जसवा बाल-बच्चा के इ तीन पीढ़ी तक सामाजिक तथा आर्थिक संबल देते रहल ।) (मपध॰12:21:54:1.1)
102 परबाबा (हम्मर परबाबा मंदिर बनवइलका हल । जमींदारी छोटे हले मुदा मंदिर के धन-संपन्नता, भव्यता, खूबसूरती जमीदारी में चार चाँद लगइले हले ।) (मपध॰12:21:53:1.20)
103 परल (एकर जनम घड़ी हम बड़ी परल रहऽ हली । तनिको मिजाज ठीक न रहऽ हल । नौ महीना दुखे-दुख ।) (मपध॰12:21:36:1.10)
104 परसाना (एने के बराहिल कहे - "हम्मर मालिक हीं घीये के दीया जलऽ हे । मजूरन के दाल में घी परसा हे । दूध-दही के नदी बहऽ हे ।") (मपध॰12:21:52:2.15)
105 परोर (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !) (मपध॰12:21:56:2.34)
106 पहर (बेरकी ~) (बेरकी पहर खेत दने भैंस-गोरू हँका गेल । लोग-बाग के अब नक्षत्र आद आवे लगल । "कहिया रोहन हेलतो ?" जे मिले, एक दोसरा से पूछे ।) (मपध॰12:21:55:3.17)
107 पाथना (ओने के बराहिल अलगे ताना मारे - "हँसली लोढ़ा करे बड़ाई, हमहूँ हकूँ महादे के भाई । लगऽ हइ कि हम तोर मालिक के जानवे न करऽ ही । अरे ! तोर मालकिन के त हम गोबर पाथते देखलियो ह । इ कह कि छिपके कमा हथुन ।") (मपध॰12:21:52:2.24)
108 पिंडा (= गुरुपिंडा) (बाबूजी हुकुम कइलका - "जिग्यसुआ रे ! आझु गुरुजी के पिंडा पर मत जइहँऽ । रोपनी के कालो लेके जाय पड़तउ । सत्तू संग पेयाज, मिरचाई, अँचार ले लिअहीं । रोपे भर तो मजूर-मजूरनी के खोशामद हे । फेर सारे कहाँ जइता ।") (मपध॰12:21:56:3.39)
109 पिपरी (बरखा ला बहुत तरह के टोटका होवे लगऽ हे । अउघड़ बाबा के प्रवचन हे - "आधी रात के हेठ खंधा में लंगटे होके अउरत सब हर जोततन तब इंदर लंपटवा बरसा करइतो । हँ, ओने कोय मरद के नञ् जाय के चाही ।"/ गेंदाजी के घोषणा हे - "आझे हम अंडा लेले पिपरी के बड़का धारा देखलियो ह ।" / बाबा बोलला - "हाँ, अब बरखा होतउ हो - गोरइवन धूरी में लोट रहलो ह ।"/ महादे पाँड़े - "हाँ, हाँ, टिकुलिया उड़ रहलो ह।") (मपध॰12:21:56:2.11)
110 पिलंड (जमींदारी प्रथा अंगरेज सरकार के अइसन जोंकचूसन प्रणाली हल कि प्रजा के खून चुसाल जाय आउ ओकरा कुछ सुगबुगइवो न करे । जोंक मोटाके पिलंड-पिलंड हे ।) (मपध॰12:21:52:2.40)
111 पिसाना (= पिसना; पिसा जाना) (भोरे से खड़बड़ाहट शुरू हे । जाँता के घर्र-घर्र चालू हे । सत्तू न पिसात त मोरकबरा आ रोपनी खात कउची ? हर-बैल-हरवाहा सब के किरण फुटते खेत पहुँचना हे । जने देखऽ ओने धनरोपनी हो रहल ह । मोरकबरा मोरी कबाड़ रहल ह ।) (मपध॰12:21:56:3.31)
112 पुतहू (= पुत्रवधू) (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.17)
113 पोपीता (= पपीता) (नियमित रूप से पोपीता खाय से शरीर में कभी विटामिन के कमी नञ् होवऽ हे । बिमारी में सेवन कइल जायवला फल में पोपीता भी शामिल हे, काहे कि एकरा में एक नञ् अनेक फायदा के तत्व भरल हे ।; पोपीता पेप्सिन नामक पाचकतत्व के एकमात्र प्राकृतिक स्रोत हे ।; पोपीता में कैल्शियम भी खूब मिलऽ हे । ई हड्डी के मजगूत बनावऽ हे ।) (मपध॰12:21:0:1.8, 10, 2.2, 3.5)
114 फटल (= फट्टल; फटा हुआ) (मलगुजारी तसीले में जरको मुरौअत नञ् । एने किसान-रैयत जीये के चतुराई रखे । मलगुजारी देवे जाय त फटल अंगा आ पेउन लगल धोती के लंगोटी लटकाके कचहरी पहुँचे । रिरियाय, गिड़गिड़ाय, गोड़ लगे, हाय-हाय करे - "इ साल मारा हो गेलइ सरकार ! कि खइबइ, कि करबइ, माल माफ कर देल जाय ।") (मपध॰12:21:52:3.12)
115 फल-फल्हेरी (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि । एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे ।; कज्जो-कज्जो अपने सब के लगतइ कि हम ऊ सब फल-फल्हेरी आउ जड़ी-बूटी के बारे में बहुत सामान्य बात लिख रहलिअइ हे त अपने से कहना हइ कि नयका पीढ़ी के बउआ सब प्रकृति से अइसन कट्टल हथिन कि उनका सामान्य से सामान्य बात भी ई संबंध में मालूम नञ् हे ।) (मपध॰12:21:7:1.18, 28)
116 फलहत (चतुर किसान होवे चाहे चतुर नारी, जदि अप्पन अंकुर बचाके न रखे त न किसान अन्न से कोठला भरत, न नारी अप्पन कोख के फलहत करत ।) (मपध॰12:21:51:3.4)
117 फेराना (बाबा हुंकारी भरथिन आउ माला फेरथिन । ई माला के घुड़मुड़ियाल लड़ी पीयर नियन झोली में रखा जाय । रोज समय से निकले - जइसे गेंडुली मारले सँपवा सँपेरा के मउनी से निकले हे । बाबा के अंगुरी पर फेराल जाय - फेराल जाय ।) (मपध॰12:21:51:1.11)
118 बउड़ाहा (= बौराहा) (छोटका महा अवारा हो गेल । दारू-ताड़ी, चरस, गाँजा सब तरह के नशा करऽ हे । बउड़ाहा नियन नशा में मातल चलऽ हे ।) (मपध॰12:21:40:2.15)
119 बकड़खेदवा (~ बारिस) (इ खेल दस-पंदरह मिनट चलल कि झमाझम के छींटा पड़े लगल । चाहे बकड़खेदवे बारिस होवे - सूखल धरती, पियासल पत्ता, मुरझाल घास आउ सबसे जादे तरसल जन एक विश्वास, एक परितृप्ति से भरे लगल ।) (मपध॰12:21:55:3.30)
120 बजरा (= बजड़ा, बाजरा) (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।) (मपध॰12:21:7:1.20)
121 बटइया-चौठइया (अपने ऐश-मौज से रहे लगलन । भाई-भतीजा के भुखमरी में बिलबिलाय ला छोड़ देलन । बेचारा तपेसर बाले-बच्चे कमाय लगलन । अपना भीर खेत तो न हल । बटइया-चौठइया करके कइसहुँ पाँच गो परिवार पाले लगलन ।) (मपध॰12:21:39:2.24-25)
122 बनबनाना (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !) (मपध॰12:21:56:2.33)
123 बनिऔटी (= बनिया का-सा व्यवहार या आचरण; हर काम में नफा-नुकसान पर विचार; कंजूसी) (अब तक के सौ के आसपास जे मगही विषय पर शोध होल हे ओकर लेखा-जोखा करे बैठवऽ त बीसे-तीसे के बीच अइसन शोध प्रबंध हो जेकरा पढ़के जी जुड़इतो, तोरो कुछ करे के मन करतो, बाकी के राम मीरा । लखटकिया मुसहरा के मालिक आउ ओहदेदार अइसे ऐंठ के छुलु-छुलु करथुन जैसे गाँव के कुकाठ बुतरू ढिमका पर चढ़के करऽ हे । ई गुमान ऊ शोध पर जेकर स्तर बनिऔटी में इस्तमाल होवेवला कागज भर हे ।) (मपध॰12:21:5:1.32)
124 बबुआन (बिरहिन कभी-कभी अकाश में घनघनात जहाज देखे - घबड़ाय - "का जनी कइसन हका हम्मर रोही । न चिट्ठी न पाती । पढ़ल रहता हल त चिट्ठियो लिखता हल । अभी हम चिट्ठी पढ़तूँ हल कइसे ? उनखर परेम पाती भला पढ़इतूँ हल केकरा से ? हम्मर कहरटोली में कोई तो पढ़ल न हे । बबुआन हीं जइतूँ हल । केतना लाज लगत हल ।") (मपध॰12:21:56:1.5)
125 बबुआनी (हम तो जादेतर समय बबुआनी छाँटे में बिता देलिअइ हल । राजगीर के पहिल महोत्सव में जे असुविधा होले हल, ओकर अहसास तक नञ् होलइ हमरा पावापुरी में ।) (मपध॰12:21:4:1.10)
126 बमबम (हियाँ ठाकुर के दरबार में सब कुछ बमबम हे । जे साधु भेष में आवे उ बमबम हे ।) (मपध॰12:21:55:1.10, 11)
127 बर-बेहबार (सबके ईहे कहलाम रहतइ कि अपना मन के काबिल समझऽ हे । बकि कवि-लेखक के उनकर रचना धर्म या बर-बेहबार के बारे में हम जे भी लिखिअइ, मगही के विरोध में कभी नञ् लिखलिअइ हे, नञ् भविष्य में लिखे के कल्पना कर सकलिअइ हे ।) (मपध॰12:21:5:1.6)
128 बसना (= पानी निकालने या रखने का मिट्टी या धातु का बरतन; छोटे मुँह का पात्र) (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.18)
129 बाभन-रजपूत (जमीदारी चलावे में सीधे अंगुरी घी न निकलऽ हे । दुसाध-बराहिल बिना न भाउलीवाला धान बाँटतो न मलगुजारी देतो । जब तक रैयत के गाँड़ में डंटा करके न रखभू तब तक सीधा न रहतो । बाभन-रजपूत ठीक जमीदारी चलावऽ हथ ।) (मपध॰12:21:51:1.5)
130 बिटनोन (= बिटनून) (आदी के टुकड़ा पर सेंधा नमक (बिटनोन) आउ लेमू डालके खाय से जीभ आउ गला साफ होवऽ हे आउ भोजन के प्रति अरुचि मिटऽ हे ।) (मपध॰12:21:9:2.1)
131 बिर्हनी (बवासीर के मस्सा पर अकमन के दूध लगावे से मस्सा खतम हो जाहे । बिर्हनी काटे पर एकर दूध लगावे से दर्द नञ् होवऽ हे ।) (मपध॰12:21:16:3.1)
132 बिल-तिल (= बिल-उल) (मिरगिसरा चढ़लो । उमख बढ़लो । ... साँझ के ललटेन जलइबऽ त देखके चलऽ । लंगड़ा भइया जहाँ-तहाँ डंक उठइले छटपटाल चलऽ हो । बिल-तिल में ओकरो गरम लगऽ हइ । गोहमना भी निकले लगलो ।) (मपध॰12:21:56:1.38)
133 बिलबिलाना (अपने ऐश-मौज से रहे लगलन । भाई-भतीजा के भुखमरी में बिलबिलाय ला छोड़ देलन । बेचारा तपेसर बाले-बच्चे कमाय लगलन । अपना भीर खेत तो न हल । बटइया-चौठइया करके कइसहुँ पाँच गो परिवार पाले लगलन ।) (मपध॰12:21:39:2.22)
134 बीया (= बीज) (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !) (मपध॰12:21:56:2.33)
135 बुतरखेल (< बुतरू + खेल) (दू दशक से भी जादे से संपादन आउ प्रकाशन से जुड़ल रहे आउ पढ़े-लिखे के रोग के कारण थोड़े-थाड़ जे ज्ञान होले हे, ऊ आधा पर कह रहलिअइ हे कि मगही में इतिहास लेखन के नाम पर बुतरखेल चल रहले हे । इतिहास लेखक अपन बात के बिना कोय तथ्य के बर्हमा के लकीर समझ के पेश करऽ हथिन । कोय भी संदर्भ कहीं से लेल गेल हे तब ओकर सही स्रोत के पड़ताल कइले बिना इतिहास के उद्धरण में पेश करना कहाँ तक जायज हइ ?) (मपध॰12:21:5:1.12)
136 बेमानी (= बेईमानी) (इ तसेड़ी सब बरबाद हे । ताश के घर नाश । ताश खेलेवाला एगो देखेवाला तीन गो । ठहाका, किलकारी, बेमानी, बाताबाती अमूमन होवे । कभी-कभी पटका-पटकी, भागा-भागी भी हो जाय ।) (मपध॰12:21:55:3.13)
137 बेरकी (~ पहर) (बेरकी पहर खेत दने भैंस-गोरू हँका गेल । लोग-बाग के अब नक्षत्र आद आवे लगल । "कहिया रोहन हेलतो ?" जे मिले, एक दोसरा से पूछे ।) (मपध॰12:21:55:3.17)
138 भंगरइया (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.17)
139 भइयारे (अब हम पन-छो बच्छर के हो गेलूँ हँ । भइयारे, कुटुंबी, नाता-गोता, घर में चलत ऊँच-नीच के भाव गमे लगलूँ हँ । धन-दौलतिया के खेल भी बुझे में आवे लगल ह ।) (मपध॰12:21:51:1.26)
140 भकुआ (मइया रहथन हियाँ, बाबू रहथन हियाँ, ठकुरबाड़ी रहत हियाँ, परसाद आउ मोहनभोग रहत हियाँ, हम जाम ननिहाल । मन रोवे, पर केकरा कहे ? बुतरू के कोमल मन के हियाँ इ देश में - ई भकुआ समाज में कौन पूछनहार हे ?) (मपध॰12:21:56:3.9)
141 भाउलीवाला (= भावलीवाला; जमीन का मालिक और रैयत के बीच खेत की उपज बाँटनेवाला) (जमीदारी चलावे में सीधे अंगुरी घी न निकलऽ हे । दुसाध-बराहिल बिना न भाउलीवाला धान बाँटतो न मलगुजारी देतो । जब तक रैयत के गाँड़ में डंटा करके न रखभू तब तक सीधा न रहतो । बाभन-रजपूत ठीक जमीदारी चलावऽ हथ ।) (मपध॰12:21:51:1.2)
142 भागा-भागी (इ तसेड़ी सब बरबाद हे । ताश के घर नाश । ताश खेलेवाला एगो देखेवाला तीन गो । ठहाका, किलकारी, बेमानी, बाताबाती अमूमन होवे । कभी-कभी पटका-पटकी, भागा-भागी भी हो जाय ।) (मपध॰12:21:55:3.14)
143 भुखमरी (अपने ऐश-मौज से रहे लगलन । भाई-भतीजा के भुखमरी में बिलबिलाय ला छोड़ देलन । बेचारा तपेसर बाले-बच्चे कमाय लगलन । अपना भीर खेत तो न हल । बटइया-चौठइया करके कइसहुँ पाँच गो परिवार पाले लगलन ।) (मपध॰12:21:39:2.22)
144 भोजाई (= भोजाय; भौजाई) (भोजाई बेचारी आत्मग्लानि में पड़ल रह गेला कि हमरे ओलहना से देवर जी साधु हो गेलन । "हम कि जानलूँ हल कि हम्मर छोटे-मोटे बात उनखा लग जात । अइसन रिसियाहा देवर भगमान केकरो न दे ।") (मपध॰12:21:53:3.10)
145 मउगी (= माउग; पत्नी) (महादे पाँड़े कहियो-जहियो कइरा के पत्ता पर बसमतिया चाउर के 'परसाद' (भात), घी के छौंकल राहड़ के दाल आउ साग-भाजी दे देथन त लगे कौनो अलगे चीज खा रहलूँ ह । घरे मिलऽ हले भाते, परंतु उसना चाउर के, दाल मसुरी-खेसाड़ी के, छौंक तीसी के तेल के । तुलने में न सवाद हे । अपन मउगी ओतना सुन्नर न लगे जेतना आन के मउगी लगे ।) (मपध॰12:21:54:2.43, 44)
146 मकय (= मकई) (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।) (मपध॰12:21:7:1.20)
147 मजूर-मजूरनी (बाबूजी हुकुम कइलका - "जिग्यसुआ रे ! आझु गुरुजी के पिंडा पर मत जइहँऽ । रोपनी के कालो लेके जाय पड़तउ । सत्तू संग पेयाज, मिरचाई, अँचार ले लिअहीं । रोपे भर तो मजूर-मजूरनी के खोशामद हे । फेर सारे कहाँ जइता ।") (मपध॰12:21:56:3.42)
148 मराल (बाबू कुँअर सिंह के सेना से निकसल बीस-पचीस गो घुड़सवार के राजगीर पहाड़ तर से जाय के खिस्सा सुने लगलूँ हँ । धान के खेत में लाठी से मराल तेंदुआ भी जेहन में हे ।) (मपध॰12:21:51:2.7)
149 मलगुजारी (= मालगुजारी) (जमीदारी चलावे में सीधे अंगुरी घी न निकलऽ हे । दुसाध-बराहिल बिना न भाउलीवाला धान बाँटतो न मलगुजारी देतो । जब तक रैयत के गाँड़ में डंटा करके न रखभू तब तक सीधा न रहतो । बाभन-रजपूत ठीक जमीदारी चलावऽ हथ ।) (मपध॰12:21:51:1.3)
150 मलफेरनी (बाबा के रामायण, मलफेरनी, लघुशंका निवारण ला पानी ले जाय के अनजान परथा, गेंदा पाँड़े के बतकही, ठकुरबाड़ी के घड़ीघंट, मिसरी के परसाद, अजोध्या जी के साधु आउ महंथ जी के असीरबादी - अनेकन चीज अब शिशु जिज्ञासु के छोटे गो कपार में धँस रहल हे ।) (मपध॰12:21:51:2.14)
151 मसुरी-खेसाड़ी (महादे पाँड़े कहियो-जहियो कइरा के पत्ता पर बसमतिया चाउर के 'परसाद' (भात), घी के छौंकल राहड़ के दाल आउ साग-भाजी दे देथन त लगे कौनो अलगे चीज खा रहलूँ ह ।) (मपध॰12:21:54:2.41)
152 महनभोग (कभी-कभी महादे पाँड़े शंख फूँकथन । इ शंख अनगुते बजऽ हले । शंख बजल माने महनभोग बँटत । महनभोग में घी चुप्पड़ करऽ हो । महनभोग के माने हे जेतना आटा ओतने घी आ ओतने शक्कर । कड़ा प्रसाद में भी महनभोगे रहऽ हे ।) (मपध॰12:21:54:2.17, 18, 20)
153 माउग-मेहरी (= पत्नी) (घर में जरी सा ऊँच-नीच होल कि घरवाला तूंबा-सोंटा लेलका आ अजोध्याजी दने सिधियइला । अइसने वातावरण में अभी रेखेआवल जन जवानिये में साधु भे गेला । भोला-भाला भोनूजी के भौजाई ताना मार देलथिन - "हर जोते में तोरा आलस लगऽ हो, भैंस जादेतर बँधल रहे बाकि तों हाथ-गोड़ मोरले का जनी कौची करते रहऽ ह । माउग-मेहरी अइतो त अइसे कइसे काम चलतो । काम-काज में कोढ़िया बैल ह आउ खा ह डेढ़ पसेरी। भूँजा चहियो चाउरे के ।" खाय के उलहना सुनके भोनूजी पगहा तोड़के जे भागला जे अजोध्ये जी जाके दम लेलका ।) (मपध॰12:21:53:2.35)
154 माट साब (= मास्टर साहब; दे॰ माटसा) (ओकरा से ओकरो नाम पुछली । - 'बुधिया' । - हँऽ । बुध के जनम होवऽ होवे ओही से मइया बुधिया नाम रख देलवऽहोवे । हम हँस के कहली । - आउ का माट साब । हमनी हीं पंडीजी आवऽ हथी नाव धरे । ओहू हँस देलक हल ।; "पइसा के चिंता न हे माट साब । मलकिनी हमरा कहलन हे कि हम सर से कहके कम करा देबुअ । तूँ मनउतिया के पढ़े ला भेजऽ ।") (मपध॰12:21:36:1.25, 2.12)
155 मिरगिसरा (= मृगशिरा नक्षत्र) (मिरगिसरा चढ़लो । उमख बढ़लो । ... साँझ के ललटेन जलइबऽ त देखके चलऽ । लंगड़ा भइया जहाँ-तहाँ डंक उठइले छटपटाल चलऽ हो । बिल-तिल में ओकरो गरम लगऽ हइ । गोहमना भी निकले लगलो ।) (मपध॰12:21:56:1.30)
156 मुड़ली (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.17)
157 मुसहरनी (एगो मुसहरनी बाला के प्रताड़ित करे के तो कई गो घटना लोग के याद हल बाकि सम्मानित करे के बात ई गाँव ला पहिला घटना हल । कहीं खुशी त कहीं गम हल । हमर बगले में एगो कनफुसकी होएल, "सरकार एखनी के मन सहकाऽ रहल हे ।") (मपध॰12:21:38:1.40)
158 मुसहरा (= वेतन) (अब तक के सौ के आसपास जे मगही विषय पर शोध होल हे ओकर लेखा-जोखा करे बैठवऽ त बीसे-तीसे के बीच अइसन शोध प्रबंध हो जेकरा पढ़के जी जुड़इतो, तोरो कुछ करे के मन करतो, बाकी के राम मीरा । लखटकिया मुसहरा के मालिक आउ ओहदेदार अइसे ऐंठ के छुलु-छुलु करथुन जैसे गाँव के कुकाठ बुतरू ढिमका पर चढ़के करऽ हे । ई गुमान ऊ शोध पर जेकर स्तर बनिऔटी में इस्तमाल होवेवला कागज भर हे ।) (मपध॰12:21:5:1.31)
159 मोरकबरा (भोरे से खड़बड़ाहट शुरू हे । जाँता के घर्र-घर्र चालू हे । सत्तू न पिसात त मोरकबरा आ रोपनी खात कउची ? हर-बैल-हरवाहा सब के किरण फुटते खेत पहुँचना हे । जने देखऽ ओने धनरोपनी हो रहल ह । मोरकबरा मोरी कबाड़ रहल ह ।) (मपध॰12:21:56:3.32, 33)
160 रमतोड़ईं (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !) (मपध॰12:21:56:2.34)
161 रिसियाहा (भोजाई बेचारी आत्मग्लानि में पड़ल रह गेला कि हमरे ओलहना से देवर जी साधु हो गेलन । "हम कि जानलूँ हल कि हम्मर छोटे-मोटे बात उनखा लग जात । अइसन रिसियाहा देवर भगमान केकरो न दे ।") (मपध॰12:21:53:3.13)
162 रेंगनी (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.18)
163 रेखेआवल (घर में जरी सा ऊँच-नीच होल कि घरवाला तूंबा-सोंटा लेलका आ अजोध्याजी दने सिधियइला । अइसने वातावरण में अभी रेखेआवल जन जवानिये में साधु भे गेला । भोला-भाला भोनूजी के भौजाई ताना मार देलथिन - "हर जोते में तोरा आलस लगऽ हो, भैंस जादेतर बँधल रहे बाकि तों हाथ-गोड़ मोरले का जनी कौची करते रहऽ ह । माउग-मेहरी अइतो त अइसे कइसे काम चलतो । काम-काज में कोढ़िया बैल ह आउ खा ह डेढ़ पसेरी। भूँजा चहियो चाउरे के ।" खाय के उलहना सुनके भोनूजी पगहा तोड़के जे भागला जे अजोध्ये जी जाके दम लेलका ।) (मपध॰12:21:53:2.30)
164 रोपा (= रोपनी, रोपाई) (बाबूजी हुकुम कइलका - "जिग्यसुआ रे ! आझु गुरुजी के पिंडा पर मत जइहँऽ । रोपनी के कालो लेके जाय पड़तउ । सत्तू संग पेयाज, मिरचाई, अँचार ले लिअहीं । रोपे भर तो मजूर-मजूरनी के खोशामद हे । फेर सारे कहाँ जइता ।") (मपध॰12:21:56:3.42)
165 लट्ठा-कुड़ी (अभी रहटो न चलऽ हे । लट्ठे-कुड़ी से काम चल रहल ह ।) (मपध॰12:21:52:1.9)
166 लमका (= लम्मा, लम्बा) (रोब-दाब के माजरा सब समझऽ हला । रैयत पीठ आउ माथा झुकइले रहे । लमको अदमिया किकुड़ा के नाटा हो जाय ।) (मपध॰12:21:52:3.38)
167 लस (जहाँ ~ हुआँ चूतड़-घस्स) (जहाँ लस हुआँ चूतड़-घस्स । ठकुरबाड़ी में दू-चार गो कामचोर लोग जमल रहे । घरवाली से झाड़ू खाय, माई से डँटाय, धिया-पूता से दुरदुराय, बाकि अरमायन परसाद पावे ला महादे पाँड़े के फुलझरिया बनल रहे ।) (मपध॰12:21:55:2.12)
168 वेवसाय (= व्यवसाय) (बड़ा भतीजा पढ़े में तेज न हल । कोय नौकरी न पौलक तब ओकरा एगो गाड़ी खरीद देलन । ऊ वेवसाय करऽ हे ।) (मपध॰12:21:40:1.34)
169 सकरात (= मकर-संक्रांति का पर्व) (ई सुन के हमर मलकिनी खुश हो गेलन आउ सकरात के बिहानी भेला ओकरा नाम लिखावे लेल स्कूल में लेके आवे ला कहलन ।) (मपध॰12:21:37:1.20)
170 सतनरायन (बैल-घुमनी आउ भैंसा-गाड़ी नियन इ श्रेणीबद्ध समाज हजार साल से अप्पन धुर्रा पर घुमत-घुमत नवयुग के दुआरी पर आके ठकमकाल हे । इ देहरी के चिन्हे में इनखा रतौंधी हो रहल हे । जे पंडीजी सतनरायन स्वामी के कथा के अलावे न कुछ सुनलका न कुछ पढ़लका उ भला 'मेघदूत' के का समझता !) (मपध॰12:21:52:1.15)
171 सतुआनी (= रब्बी अन्न के नेवान का त्योहार, जो प्रतवर्ष अधिकतर संक्रांति के अवसर पर मनाते हैं; मेष संक्रांति का पर्व जिस दिन सत्तू दान और भोजन का विधान है) (दही-चिउड़ा जब होबत त 14 जनवरी के होबत । सुकरात मियाँ भइया से पुछते रहऽ हका - "बउआ, अबरी 14 जनवरी कहिया पड़तइ । दही-चूड़ा के पर्व खूब हे । ईद बकरीद सबेबरात, सबके हरावे तिलसकरात ।" ओइसहीं सतुआनी जब होवे त चौदहे अप्रील के ।) (मपध॰12:21:56:1.25)
172 समधियौरा (बाकि बराहिल आउ गोड़ाइत के तिलंगी उड़ते रहे । एने के बराहिल मालिक के कसीदा पढ़े में कभी चुके नञ् - "जानऽ ह, हम्मर मालिक अबरी समधियौरा में एतना बड़ा कोंहड़ा भेजवइलका कि ओकरा चार गो कहार खटोली पर टाँग के ले गेल । समूचे टोला-बिगहा के लोग उ कोंहड़ा देखके कहलका - अजगुत हइ, अजगुत हइ ।" ओने के गोड़ाइत टोकलक - "कि कहऽ हू बराहिल जी । हम्मर मालिक अपन समधियौरा में एतना बड़ा शकरकंद भेजवइलथिन जेकरा गाँता पर आठ गो कहार ले गेलइ ।") (मपध॰12:21:52:3.26, 32)
173 सहकाना (एगो मुसहरनी बाला के प्रताड़ित करे के तो कई गो घटना लोग के याद हल बाकि सम्मानित करे के बात ई गाँव ला पहिला घटना हल । कहीं खुशी त कहीं गम हल । हमर बगले में एगो कनफुसकी होएल, "सरकार एखनी के मन सहकाऽ रहल हे ।") (मपध॰12:21:38:2.3)
174 सहमल-सहमल (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.18)
175 सांध (= संध, संद; छेद, दरार; युक्ति, उपाय) (हम्मर बाबा उ दुनहूँ पंडा के बात सुनके दुचित्ता हो जा हला । बाकि पाँड़े-पुरोहित के अलावे उ ठहरल मगह के आउरो कोई सांध न हले जेकरा से तनीमनी भी बाहरी हवा घुस सके ।) (मपध॰12:21:52:2.2)
176 सामा (= सावाँ) (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।) (मपध॰12:21:7:1.20)
177 सिंदुआर (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.17)
178 सिजुअन (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.17)
179 सिधियाना (= प्रस्थान करना) (घर में जरी सा ऊँच-नीच होल कि घरवाला तूंबा-सोंटा लेलका आ अजोध्याजी दने सिधियइला ।) (मपध॰12:21:53:2.29)
180 सुत्तल (= सोया हुआ) (बड़कन लोग भी लोट-पोट होके कबड्डी में भिड़ल हका । धरती लगऽ हे कि सुत्तल हल जे जगके अंगड़ाई ले रहल ह ।) (मपध॰12:21:56:2.41)
181 सेंकइया (अमरलत्ता के पानी में औंट के ओकर पानी से सूजनवला जगह के सेंकइया करे से कुछ दिन में सूजन कम हो जाहे ।) (मपध॰12:21:13:3.3)
182 सेठई (जमीदारी आउ मंदिर, सेठई आउ पूजा, दोकनदारी आउ हुमाध, मजूरी आउ ओझई साथे चलऽ हे । वेवस्था के हरेक खाढ़ अपन आध्यात्मिक घेरा बनइले रहऽ हे ।) (मपध॰12:21:54:1.12)
183 सोंठ (कच्चा आदी के अलावा एकर सुक्खल रूप 'सोंठ' के भी उपयोग में लावल जाहे । एकरा मध में मिलाके सेवन करना श्रेष्ठतम हे ।) (मपध॰12:21:9:3.2)
184 सोखा (= एक ग्राम-देवता, सोखा; झाड़-फूँक करनेवाला; इंद्रधनुष, पनसोखा) (हम्मर गाम से आध कोस दूर पर एगो गाम हे बारा । बारा माने बड़ा गाम । हुआँ सोखा-शिवनाथ के मठ हे, मंदिर हे । नाथपंथी धारा के भगत हला सोखा-शिवनाथ । मगह में सोखा भगत जहाँ-तहाँ पावल जा हका । जादेतर इ राजगीर अंचल में गोबार-कुरमी में इ किसिम के भगत हका ।) (मपध॰12:21:53:1.40)
185 सोखा-शिवनाथ ( हम्मर गाम से आध कोस दूर पर एगो गाम हे बारा । बारा माने बड़ा गाम । हुआँ सोखा-शिवनाथ के मठ हे, मंदिर हे । नाथपंथी धारा के भगत हला सोखा-शिवनाथ । मगह में सोखा भगत जहाँ-तहाँ पावल जा हका । जादेतर इ राजगीर अंचल में गोबार-कुरमी में इ किसिम के भगत हका ।) (मपध॰12:21:53:1.38, 40)
186 हरबख्ते (= हर बखत, हमेशा) (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे । आज हरबख्ते भाग-दौड़ के कारण हमन्हीं के शरीर के अंग-अंग झुरा रहल हे ।) (मपध॰12:21:7:1.21)
187 हाँड़ी-चरूइ (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.19)
188 हुमाध (= समिधा) (जमीदारी आउ मंदिर, सेठई आउ पूजा, दोकनदारी आउ हुमाध, मजूरी आउ ओझई साथे चलऽ हे । वेवस्था के हरेक खाढ़ अपन आध्यात्मिक घेरा बनइले रहऽ हे ।) (मपध॰12:21:54:1.13)
189 हेठ (बरखा ला बहुत तरह के टोटका होवे लगऽ हे । अउघड़ बाबा के प्रवचन हे - "आधी रात के हेठ खंधा में लंगटे होके अउरत सब हर जोततन तब इंदर लंपटवा बरसा करइतो । हँ, ओने कोय मरद के नञ् जाय के चाही ।") (मपध॰12:21:56:2.6)
2 अँफरा (पेट फूले आउ अँफरा होवे पर अमरलत्ता के बिच्चा के पानी में औंट के पीसके एकर गाढ़ा लेप पेट पर लगावे से अँफरा आउ पेटपीरी खतम हो जाहे ।) (मपध॰12:21:13:2.1, 4)
3 अकमन (अकमन के आक आउ अकौना भी कहल जा हे । एकर वृक्ष छोट आउ छत्तेदार होवऽ हइ आउ पत्ता बर के पत्ता नियन मोटा होवऽ हइ ।; अकमन से दूध भी निकलऽ हइ जे विषैला होवऽ हइ ।; अकमन के कोमल पत्ता ठंढा तेल में जलाके पोथा के सूजन पर बाँधे से सूजन दूर हो जाहे । करुआ तेल में पत्ता के जलाके गरमी के घाव पर लगावे से घाव अच्छा हो जाहे ।) (मपध॰12:21:16:1.5, 12, 23)
4 अकौना (अकमन के आक आउ अकौना भी कहल जा हे । एकर वृक्ष छोट आउ छत्तेदार होवऽ हइ आउ पत्ता बर के पत्ता नियन मोटा होवऽ हइ ।) (मपध॰12:21:16:1.5)
5 अगुआना (= आगे जाना; आगे करना) (पंडीजी के इ पतरा भी अजीब हे । कभी नछत्तर अगुआ जाहे - कभी महीना । अंग्रेजी तारीख ठीक हे । ओकर अनुसार परब आगे-पीछे न होवऽ हे । दही-चिउड़ा जब होबत त 14 जनवरी के होबत ।) (मपध॰12:21:56:1.18)
6 अत्तू-अत्तू (महादे पाँड़े शिवलिंग जी के भी भोग लगावथ । हुएँ भैरव जी के भी भोग लगे । महादे पाँड़े उ भोग लेके भोरहीं से अत्तू-अत्तू करथुन । बाकि ओहू 'निकृष्ट' भोग आम जन के कहाँ नेमान होवे । के देखलक हल रहड़ी के घी छौंकल दाल, अरबा चाउर के भात आउ तलल शाक-भाजी ।) (मपध॰12:21:55:1.32)
7 अदरा (= आर्द्रा नक्षत्र) (घाघ आउ भड्डरी कह गेला ह - "रोहन तबे मिरगिसरा तबे, कुछ-कुछ अदरा जाय ।" अभी तो अदरा आवे में देर हे । अषाढ़ आठ दिन चढ़त तब अदरा आवत ।) (मपध॰12:21:56:1.15, 16)
8 अमदुर (= अमरूद) (अमदुर स्वाद में तो लाजवाब होवे करऽ हे, स्वास्थ्य के दृष्टि से भी ई उपयोगी फल हे । अमदुर के बारे हियाँ अपने के विशेष जानकारी देल जा रहले हे ।) (मपध॰12:21:12:1.5, 7)
9 अमनियाँ (= सं॰ व्रतादि में उपयोग की सामग्री; साधु-संन्यासियों की रसोई; पक्की रसोई, अनसखरी; वि॰ शुद्ध, पवित्र) (तरकारी ~ करना = तरकारी काटना) (हुआँ तरकारी काटल न जाहे, तरकारी काटे के कहल जाहे - अमनियाँ करना । आउरो शब्द के अलग अर्थ हे हुआँ ।; जंगल राहे साधु बाबा के डाकू पकड़ लेलक आउ लगल भुजाली से बाबा के गियारी काटे । चेलवा बेचारा चिल्लात जात कि दौड़ऽ दौड़ऽ, हम्मर गुरुजी के डाकू अमनियाँ कर रहल ह । गाँव के लोगन के समझे में न आवे कि गुरुजी के अमनियाँ कौची कर रहल ह ।) (मपध॰12:21:55:1.38, 2.5, 7)
10 अमला-फइला (अप्पन-अप्पन मालिक के बड़ाई के फेटा बाँधले इ अमला-फइला जमीदारी प्रथा के अलमवरदार बनल हका । जमीदारी चलऽ हे डींग-डाँग पर ।) (मपध॰12:21:52:2.30)
11 अमूमन (= बहुधा, प्रायशः; साधारणतया) (इ तसेड़ी सब बरबाद हे । ताश के घर नाश । ताश खेलेवाला एगो देखेवाला तीन गो । ठहाका, किलकारी, बेमानी, बाताबाती अमूमन होवे । कभी-कभी पटका-पटकी, भागा-भागी भी हो जाय ।) (मपध॰12:21:55:3.13)
12 अरबा (~ चाउर) (महादे पाँड़े शिवलिंग जी के भी भोग लगावथ । हुएँ भैरव जी के भी भोग लगे । महादे पाँड़े उ भोग लेके भोरहीं से अत्तू-अत्तू करथुन । बाकि ओहू 'निकृष्ट' भोग आम जन के कहाँ नेमान होवे । के देखलक हल रहड़ी के घी छौंकल दाल, अरबा चाउर के भात आउ तलल शाक-भाजी ।) (मपध॰12:21:55:1.34)
13 आगे-पाछे (हमर पंडीजी के पतरा से परब हाथी के गोड़ नियन आगे-पाछे होते रहऽ हे । ई प्रक्रिया में एगो महीना बढ़ जाहे । भले बढ़ जाहे, लौंद के मेला के मजा तो मिलऽ हे ।) (मपध॰12:21:56:1.27)
14 आरी-अलंग (खेत-पथार, जात-पात, धरम-कुधरम, लोक-लाज सभे के आरी-अलंग बनल हे । न बाएँ डिगऽ न दहिने डिगऽ - चलल चलऽ टुकदम-टुकदम।) (मपध॰12:21:52:1.2)
15 आलस (= आलस्य) (घर में जरी सा ऊँच-नीच होल कि घरवाला तूंबा-सोंटा लेलका आ अजोध्याजी दने सिधियइला । अइसने वातावरण में अभी रेखेआवल जन जवानिये में साधु भे गेला । भोला-भाला भोनूजी के भौजाई ताना मार देलथिन - "हर जोते में तोरा आलस लगऽ हो, भैंस जादेतर बँधल रहे बाकि तों हाथ-गोड़ मोरले का जनी कौची करते रहऽ ह । माउग-मेहरी अइतो त अइसे कइसे काम चलतो । काम-काज में कोढ़िया बैल ह आउ खा ह डेढ़ पसेरी। भूँजा चहियो चाउरे के ।" खाय के उलहना सुनके भोनूजी पगहा तोड़के जे भागला जे अजोध्ये जी जाके दम लेलका ।) (मपध॰12:21:53:2.33)
16 उगाहना (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे ।) (मपध॰12:21:7:1.17)
17 उड़िस (खटिया पर पानी छीट के सुतऽ तइयो देह लहकल रहतो । खटिया के सुतरी तेलचट हो । लोग एतना तेल लगावऽ हथ कि खटिया-तकिया चिक्कन-चिक्न हे । उड़िस मारे ला चौकी तर खेर लहकावऽ, उड़िस भाग के देवाल पर जइतो । पच-पच मारऽ - हो गेलो चित्रकारी । खटिया खई में बोरल हो - का भाई । त मछली खइतो उड़िस ।) (मपध॰12:21:55:2.42, 43, 3.3)
18 उड़ी (इतिहास लेखक के ईहे तो फयदा हे । कौन मार समीक्षक आउ आलोचक हथ मगही में जे अंगुरी उठइथन । जे एक्का-दुक्का हइयो हथ उनकर की मजाल हे कि इतिहासकार से पंगा लेथन । अगला संस्करण में उड़ी कर देवल जात उनका ।) (मपध॰12:21:5:1.20)
19 उमख (= उमस) (मिरगिसरा चढ़लो । उमख बढ़लो । ... साँझ के ललटेन जलइबऽ त देखके चलऽ । लंगड़ा भइया जहाँ-तहाँ डंक उठइले छटपटाल चलऽ हो । बिल-तिल में ओकरो गरम लगऽ हइ । गोहमना भी निकले लगलो ।; सजना उमख के मारे अकासे के चद्दर ओढ़के बहरसी सतभइवा के देखते रहऽ हका ।) (मपध॰12:21:56:1.30, 42)
20 उरीद (= उड़द) (उरीद एक प्रकार के दलहन होवऽ हे । एकर पौधा लगभग एक हाथ ऊँचा होवऽ हे आउ बढ़ला पर नीचे जमीन पर तलरे लगऽ हे । भारत में हर जगह ज्वार, बजरा आउ रुई के खेत में उरीद के किसान सब उगावऽ हथ ।) (मपध॰12:21:18:1.5, 9)
21 एकन्हीं (= ये सब) (मिरगिसरा चढ़लो । उमस बढ़लो । दनादन सुरसुरी सरसराय लगलो । बिछौतिया के मजा हइ - गटागट गटकले जाहे । तीन दिन में शुद्ध प्रोटीन से एकन्हीं के देह गुलफुल हो गेल ह ।) (मपध॰12:21:56:1.33)
22 ओझई (जमीदारी आउ मंदिर, सेठई आउ पूजा, दोकनदारी आउ हुमाध, मजूरी आउ ओझई साथे चलऽ हे । वेवस्था के हरेक खाढ़ अपन आध्यात्मिक घेरा बनइले रहऽ हे ।) (मपध॰12:21:54:1.13)
23 औंरा (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.18)
24 कँटहिली (माल-मवेशी के बीच से इ विचार-चिंतन के पेंड़ कइसे फरे, कँटहिली चंपा कइसे खिले, ऊसर में रेड़बो कइसे उपजे ? अंकुरबा तो बचावे पड़तो ।) (मपध॰12:21:51:2.31)
25 कँटैला (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.18)
26 कइरा (= केला) (महादे पाँड़े कहियो-जहियो कइरा के पत्ता पर बसमतिया चाउर के 'परसाद' (भात), घी के छौंकल राहड़ के दाल आउ साग-भाजी दे देथन त लगे कौनो अलगे चीज खा रहलूँ ह ।) (मपध॰12:21:54:2.37)
27 कउनी (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।) (मपध॰12:21:7:1.20)
28 कज्जो-कज्जो (= कहीं-कहीं) (कुछ-कुछ जड़ी-बूटी के सिरिफ नामे दे रहलिअइ हे । आगे के अंक में हम ओकरा पर विशेष सामग्री उपलब्ध करइबइ । कज्जो-कज्जो अपने सब के लगतइ कि हम ऊ सब फल-फल्हेरी आउ जड़ी-बूटी के बारे में बहुत सामान्य बात लिख रहलिअइ हे त अपने से कहना हइ कि नयका पीढ़ी के बउआ सब प्रकृति से अइसन कट्टल हथिन कि उनका सामान्य से सामान्य बात भी ई संबंध में मालूम नञ् हे ।) (मपध॰12:21:7:1.28)
29 कसल (चपटल नाक, छोट-छोट आँख, चौला लिलार वाली मनउती के विद्यालय बड़ी जल्दी मान्यता बना देलक हल । किशोरी मान्यता अपन कसल देह-भुजा से आकर्षक भी लगे लगल हल ।) (मपध॰12:21:37:1.38)
30 कहरटोली (बिरहिन कभी-कभी अकाश में घनघनात जहाज देखे - घबड़ाय - "का जनी कइसन हका हम्मर रोही । न चिट्ठी न पाती । पढ़ल रहता हल त चिट्ठियो लिखता हल । अभी हम चिट्ठी पढ़तूँ हल कइसे ? उनखर परेम पाती भला पढ़इतूँ हल केकरा से ? हम्मर कहरटोली में कोई तो पढ़ल न हे । बबुआन हीं जइतूँ हल । केतना लाज लगत हल ।") (मपध॰12:21:56:1.4)
31 कालो (= कलउआ, कलेवा, खाना, भोजन) (बाबूजी हुकुम कइलका - "जिग्यसुआ रे ! आझु गुरुजी के पिंडा पर मत जइहँऽ । रोपनी के कालो लेके जाय पड़तउ । सत्तू संग पेयाज, मिरचाई, अँचार ले लिअहीं । रोपे भर तो मजूर-मजूरनी के खोशामद हे । फेर सारे कहाँ जइता ।") (मपध॰12:21:56:3.40)
32 किकुड़ाना (रोब-दाब के माजरा सब समझऽ हला । रैयत पीठ आउ माथा झुकइले रहे । लमको अदमिया किकुड़ा के नाटा हो जाय ।) (मपध॰12:21:52:3.38)
33 किरमाला (अमलतास के राजवृक्ष भी कहल जा हइ । एकर बोटेनिकल नाम केसिया फिस्टुला हइ । कहैं-कहैं एकरा किरमाला भी कहल जा हइ । एकर गाछ नञ् नटगर होवऽ हइ नञ् जादे कद के ।) (मपध॰12:21:14:1.9)
34 कुकाठ (अब तक के सौ के आसपास जे मगही विषय पर शोध होल हे ओकर लेखा-जोखा करे बैठवऽ त बीसे-तीसे के बीच अइसन शोध प्रबंध हो जेकरा पढ़के जी जुड़इतो, तोरो कुछ करे के मन करतो, बाकी के राम मीरा । लखटकिया मुसहरा के मालिक आउ ओहदेदार अइसे ऐंठ के छुलु-छुलु करथुन जैसे गाँव के कुकाठ बुतरू ढिमका पर चढ़के करऽ हे । ई गुमान ऊ शोध पर जेकर स्तर बनिऔटी में इस्तमाल होवेवला कागज भर हे ।) (मपध॰12:21:5:1.32)
35 कैता (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !) (मपध॰12:21:56:2.34)
36 कोढ़िया (~ बैल) (घर में जरी सा ऊँच-नीच होल कि घरवाला तूंबा-सोंटा लेलका आ अजोध्याजी दने सिधियइला । अइसने वातावरण में अभी रेखेआवल जन जवानिये में साधु भे गेला । भोला-भाला भोनूजी के भौजाई ताना मार देलथिन - "हर जोते में तोरा आलस लगऽ हो, भैंस जादेतर बँधल रहे बाकि तों हाथ-गोड़ मोरले का जनी कौची करते रहऽ ह । माउग-मेहरी अइतो त अइसे कइसे काम चलतो । काम-काज में कोढ़िया बैल ह आउ खा ह डेढ़ पसेरी। भूँजा चहियो चाउरे के ।" खाय के उलहना सुनके भोनूजी पगहा तोड़के जे भागला जे अजोध्ये जी जाके दम लेलका ।) (मपध॰12:21:53:2.37)
37 खई (खटिया पर पानी छीट के सुतऽ तइयो देह लहकल रहतो । खटिया के सुतरी तेलचट हो । लोग एतना तेल लगावऽ हथ कि खटिया-तकिया चिक्कन-चिक्न हे । उड़िस मारे ला चौकी तर खेर लहकावऽ, उड़िस भाग के देवाल पर जइतो । पच-पच मारऽ - हो गेलो चित्रकारी । खटिया खई में बोरल हो - का भाई । त मछली खइतो उड़िस ।) (मपध॰12:21:55:3.2)
38 खटोली (बाकि बराहिल आउ गोड़ाइत के तिलंगी उड़ते रहे । एने के बराहिल मालिक के कसीदा पढ़े में कभी चुके नञ् - "जानऽ ह, हम्मर मालिक अबरी समधियौरा में एतना बड़ा कोंहड़ा भेजवइलका कि ओकरा चार गो कहार खटोली पर टाँग के ले गेल । समूचे टोला-बिगहा के लोग उ कोंहड़ा देखके कहलका - अजगुत हइ, अजगुत हइ ।" ओने के गोड़ाइत टोकलक - "कि कहऽ हू बराहिल जी । हम्मर मालिक अपन समधियौरा में एतना बड़ा शकरकंद भेजवइलथिन जेकरा गाँता पर आठ गो कहार ले गेलइ ।") (मपध॰12:21:52:3.28)
39 खाढ़ ( जमीदारी आउ मंदिर, सेठई आउ पूजा, दोकनदारी आउ हुमाध, मजूरी आउ ओझई साथे चलऽ हे । वेवस्था के हरेक खाढ़ अपन आध्यात्मिक घेरा बनइले रहऽ हे ।) (मपध॰12:21:54:1.14)
40 खानी (दे॰ खनी) (हम रोज साँझ खानी ओकरा एक घंटा भर पढ़ा देवऽ हली ।) (मपध॰12:21:37:1.42)
41 गदपिरोड़ा (हमर एगो मित्र एगो नामी-गिरामी कंपनी से 'पुनर्नवा चूर्ण' के 100 ग्राम के पैकेट खरीदलन जेकर अंकित मूल्य 32 रुपया हल । अपने के बतावे में बड़ी अफसोस हो रहल हे कि 'पुनर्नवा' अपने के घर के आसपास टनो-टन फेंका जा हे । काहे कि अपने के जानकारी में नञ् हे कि 'गदपिरोड़ा', 'गदपोड़वा' आउ 'गदहपुरना' नाम से पुकारल जायवला ई 'छीया न पूछे गेन्हारी के साग' कहावत के चरितार्थ करेवला साग या वनौषधी ही 'पुनर्नवा' हे ।) (मपध॰12:21:7:1.12)
42 गदपोड़वा (हमर एगो मित्र एगो नामी-गिरामी कंपनी से 'पुनर्नवा चूर्ण' के 100 ग्राम के पैकेट खरीदलन जेकर अंकित मूल्य 32 रुपया हल । अपने के बतावे में बड़ी अफसोस हो रहल हे कि 'पुनर्नवा' अपने के घर के आसपास टनो-टन फेंका जा हे । काहे कि अपने के जानकारी में नञ् हे कि 'गदपिरोड़ा', 'गदपोड़वा' आउ 'गदहपुरना' नाम से पुकारल जायवला ई 'छीया न पूछे गेन्हारी के साग' कहावत के चरितार्थ करेवला साग या वनौषधी ही 'पुनर्नवा' हे ।) (मपध॰12:21:7:1.12)
43 गदहपुरना (हमर एगो मित्र एगो नामी-गिरामी कंपनी से 'पुनर्नवा चूर्ण' के 100 ग्राम के पैकेट खरीदलन जेकर अंकित मूल्य 32 रुपया हल । अपने के बतावे में बड़ी अफसोस हो रहल हे कि 'पुनर्नवा' अपने के घर के आसपास टनो-टन फेंका जा हे । काहे कि अपने के जानकारी में नञ् हे कि 'गदपिरोड़ा', 'गदपोड़वा' आउ 'गदहपुरना' नाम से पुकारल जायवला ई 'छीया न पूछे गेन्हारी के साग' कहावत के चरितार्थ करेवला साग या वनौषधी ही 'पुनर्नवा' हे ।) (मपध॰12:21:7:1.12)
44 गाँता (बाकि बराहिल आउ गोड़ाइत के तिलंगी उड़ते रहे । एने के बराहिल मालिक के कसीदा पढ़े में कभी चुके नञ् - "जानऽ ह, हम्मर मालिक अबरी समधियौरा में एतना बड़ा कोंहड़ा भेजवइलका कि ओकरा चार गो कहार खटोली पर टाँग के ले गेल । समूचे टोला-बिगहा के लोग उ कोंहड़ा देखके कहलका - अजगुत हइ, अजगुत हइ ।" ओने के गोड़ाइत टोकलक - "कि कहऽ हू बराहिल जी । हम्मर मालिक अपन समधियौरा में एतना बड़ा शकरकंद भेजवइलथिन जेकरा गाँता पर आठ गो कहार ले गेलइ ।"; लोग-बाग जमीदार के अदब करऽ हका - का बोलथन, का कहथन । जमीदार के बात गाँता पर चलऽ हे ।) (मपध॰12:21:52:3.34, 53:1.8)
45 गुरीच (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.18)
46 गुलफुल (मिरगिसरा चढ़लो । उमख बढ़लो । दनादन सुरसुरी सरसराय लगलो । बिछौतिया के मजा हइ - गटागट गटकले जाहे । तीन दिन में शुद्ध प्रोटीन से एकन्हीं के देह गुलफुल हो गेल ह ।) (मपध॰12:21:56:1.33)
47 गेन्हारी (= हरे पत्तों वाला एक साग) (छीया न पूछे ~ के साग) (हमर एगो मित्र एगो नामी-गिरामी कंपनी से 'पुनर्नवा चूर्ण' के 100 ग्राम के पैकेट खरीदलन जेकर अंकित मूल्य 32 रुपया हल । अपने के बतावे में बड़ी अफसोस हो रहल हे कि 'पुनर्नवा' अपने के घर के आसपास टनो-टन फेंका जा हे । काहे कि अपने के जानकारी में नञ् हे कि 'गदपिरोड़ा', 'गदपोड़वा' आउ 'गदहपुरना' नाम से पुकारल जायवला ई 'छीया न पूछे गेन्हारी के साग' कहावत के चरितार्थ करेवला साग या वनौषधी ही 'पुनर्नवा' हे ।) (मपध॰12:21:7:1.13)
48 गोखला (~ के काँटा) (हमन्हीं बुतरू सब तार के पत्ता के गोखला के काँटा छोप के गोल बनइलूँ - हवा के ऊ ले ले बलइया- गोल कहाँ से कहाँ चल गेल ।) (मपध॰12:21:55:3.26)
49 गोड़ाइत (बाकि बराहिल आउ गोड़ाइत के तिलंगी उड़ते रहे । एने के बराहिल मालिक के कसीदा पढ़े में कभी चुके नञ् - "जानऽ ह, हम्मर मालिक अबरी समधियौरा में एतना बड़ा कोंहड़ा भेजवइलका कि ओकरा चार गो कहार खटोली पर टाँग के ले गेल । समूचे टोला-बिगहा के लोग उ कोंहड़ा देखके कहलका - अजगुत हइ, अजगुत हइ ।" ओने के गोड़ाइत टोकलक - "कि कहऽ हू बराहिल जी । हम्मर मालिक अपन समधियौरा में एतना बड़ा शकरकंद भेजवइलथिन जेकरा गाँता पर आठ गो कहार ले गेलइ ।") (मपध॰12:21:52:3.23, 31)
50 गोबार-कुरमी (मगह में सोखा भगत जहाँ-तहाँ पावल जा हका । जादेतर इ राजगीर अंचल में गोबार-कुरमी में इ किसिम के भगत हका ।) (मपध॰12:21:53:1.42)
51 गोल (हमन्हीं बुतरू सब तार के पत्ता के गोखला के काँटा छोप के गोल बनइलूँ - हवा के ऊ ले ले बलइया- गोल कहाँ से कहाँ चल गेल ।) (मपध॰12:21:55:3.26, 27)
52 गोहमन (= गेहुँवन साँप) (निलामी के तलवार लटकल हे त जमीदार साहब एने जोंक धर्म छोड़के गोहमन धरम अपनावऽ हका । फुँफकारते-डँसते किसनमन के गाँड़ फाड़ले रहऽ हका । मलगुजारी तसीले में जरको मुरौअत नञ् ।) (मपध॰12:21:52:3.7)
53 गोहमना (दे॰ गोहमन) (मिरगिसरा चढ़लो । उमख बढ़लो । ... साँझ के ललटेन जलइबऽ त देखके चलऽ । लंगड़ा भइया जहाँ-तहाँ डंक उठइले छटपटाल चलऽ हो । बिल-तिल में ओकरो गरम लगऽ हइ । गोहमना भी निकले लगलो ।) (मपध॰12:21:56:1.39)
54 घड़बड़ाना (खुदगर्ज इनसान अप्पन कूट बुद्धि से नाना प्रकार के जाल बुनते रहऽ हे । निहित स्वार्थी सत्ता वर्ग सबसे जादे घड़बड़ा हे ।) (मपध॰12:21:51:3.11)
55 घनघनाना (बिरहिन कभी-कभी अकाश में घनघनात जहाज देखे - घबड़ाय - "का जनी कइसन हका हम्मर रोही । न चिट्ठी न पाती । पढ़ल रहता हल त चिट्ठियो लिखता हल ।") (मपध॰12:21:55:3.42)
56 घबराल-घबराल (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.21)
57 घर-घरनी (अजोध्याजी में वासुदेव घाट पर सरयू विहारकुंज हे । हुआँ से हम्मर गाम के डाइरेक्ट कनेक्शन बन गेल । घर-घरनी से जे रूसे ऊ हुएँ जाके ठेकाना पावे । कमाई में जेकरा फटे ऊ हुएँ जाके डंड पेले ।) (मपध॰12:21:53:3.23)
58 घुड़मुड़ियाल (बाबा हुंकारी भरथिन आउ माला फेरथिन । ई माला के घुड़मुड़ियाल लड़ी पीयर नियन झोली में रखा जाय । रोज समय से निकले - जइसे गेंडुली मारले सँपवा सँपेरा के मउनी से निकले हे ।) (मपध॰12:21:51:1.8)
59 चपटल (= चपटा) (चपटल नाक, छोट-छोट आँख, चौला लिलार वाली मनउती के विद्यालय बड़ी जल्दी मान्यता बना देलक हल । किशोरी मान्यता अपन कसल देह-भुजा से आकर्षक भी लगे लगल हल ।) (मपध॰12:21:37:1.35)
60 चीना (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।) (मपध॰12:21:7:1.20)
61 चुनचुन्नी (इतिहासे नञ्, समीक्षा, आलोचना, उपन्यास आउ लेख-निबंध के विचारधारा भी बदले पड़तइ । टाट के कपड़ा पहिन के जदि रेशम पहिनेवला के चिढ़ावे जैवे त थुड़ी-थुड़ी तो होने हइ । सो-सैंकड़ जे मगही में गंभीर लेखक बंधु हथिन उनका से हमरा आग्रह हइ कि कविता-कहानी से आगे बढ़के दोसर सब विधा के भी अपनाहो आउ अन्तरराष्ट्रीय मानक के अनुसार । मगही अपने आप तरक्की के राह पकड़ लेतइ । हमर बात के चुनचुन्नी लगो त माफ करिहऽ ।) (मपध॰12:21:5:1.38)
62 चुसाना (जमींदारी प्रथा अंगरेज सरकार के अइसन जोंकचूसन प्रणाली हल कि प्रजा के खून चुसाल जाय आउ ओकरा कुछ सुगबुगइवो न करे । जोंक मोटाके पिलंड-पिलंड हे ।; जे चुसाल ओकरा कुछो न मालूम ।) (मपध॰12:21:52:2.39, 43)
63 चौला (= चौड़ा) (चपटल नाक, छोट-छोट आँख, चौला लिलार वाली मनउती के विद्यालय बड़ी जल्दी मान्यता बना देलक हल । किशोरी मान्यता अपन कसल देह-भुजा से आकर्षक भी लगे लगल हल ।) (मपध॰12:21:37:1.36)
64 छटपटाल (~ चलना) (मिरगिसरा चढ़लो । उमस बढ़लो । ... साँझ के ललटेन जलइबऽ त देखके चलऽ । लंगड़ा भइया जहाँ-तहाँ डंक उठइले छटपटाल चलऽ हो । बिल-तिल में ओकरो गरम लगऽ हइ । गोहमना भी निकले लगलो ।) (मपध॰12:21:56:1.37)
65 छलदिवारी (= चहारदिवारी) (हम सरकारी स्कूल के मास्टरनी तो ई काम करिए न सकी । हमर कर्तव्य तो विद्यालय के छलदिवारी में दम घोंट रहल हे ।) (मपध॰12:21:38:3.12)
66 छीया (~ न पूछे गेन्हारी के साग) (हमर एगो मित्र एगो नामी-गिरामी कंपनी से 'पुनर्नवा चूर्ण' के 100 ग्राम के पैकेट खरीदलन जेकर अंकित मूल्य 32 रुपया हल । अपने के बतावे में बड़ी अफसोस हो रहल हे कि 'पुनर्नवा' अपने के घर के आसपास टनो-टन फेंका जा हे । काहे कि अपने के जानकारी में नञ् हे कि 'गदपिरोड़ा', 'गदपोड़वा' आउ 'गदहपुरना' नाम से पुकारल जायवला ई 'छीया न पूछे गेन्हारी के साग' कहावत के चरितार्थ करेवला साग या वनौषधी ही 'पुनर्नवा' हे ।) (मपध॰12:21:7:1.13)
67 छुई-मुई (= एक लतरने वाला पौधा जिसे छूने पर पत्ते और डालियाँ मुरझा सी जाती हैं, लजौनी, लाजवंती) (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.22)
68 छुलु-छुलु (अब तक के सौ के आसपास जे मगही विषय पर शोध होल हे ओकर लेखा-जोखा करे बैठवऽ त बीसे-तीसे के बीच अइसन शोध प्रबंध हो जेकरा पढ़के जी जुड़इतो, तोरो कुछ करे के मन करतो, बाकी के राम मीरा । लखटकिया मुसहरा के मालिक आउ ओहदेदार अइसे ऐंठ के छुलु-छुलु करथुन जैसे गाँव के कुकाठ बुतरू ढिमका पर चढ़के करऽ हे । ई गुमान ऊ शोध पर जेकर स्तर बनिऔटी में इस्तमाल होवेवला कागज भर हे ।) (मपध॰12:21:5:1.32)
69 जता-तता (दे॰ जज्जा-तज्जा, जेज्जा-तेज्जा) (मगध के सांस्कृतिक इतिहास कौतुहल से भरल हे । ढेर विषय धार्मिक-सांस्कृतिक किताब में हे, तो ढेर विषय जनश्रुति में लोग याद कइले हथ मुदा सबसे महत्वपूर्ण विषय पुरावशेष के रूप में जता-तता बिखरल हे ।) (मपध॰12:21:21:1.5)
70 जने-तने (= जन्ने-तन्ने) (छठ सबसे महत्वपूर्ण पर्व हके । अइसे तो मानव आकृति के सूर्यदेव के ढेर मूर्ति जने-तने पावल जाहे मुदा नवादा के छतिहर, नालंदा के सिरनामा आउ बड़गाँव में सूर्यदेव के मूर्ति हके ।) (मपध॰12:21:21:1.15-16)
71 जबरा (= जबर, बलवान) (~ हारे त हूरे, जीते त थूरे) (मइया रहथन हियाँ, बाबू रहथन हियाँ, ठकुरबाड़ी रहत हियाँ, परसाद आउ मोहनभोग रहत हियाँ, हम जाम ननिहाल । मन रोवे, पर केकरा कहे ? बुतरू के कोमल मन के हियाँ इ देश में - ई भकुआ समाज में कौन पूछनहार हे ? ... हियाँ तो बाते-बात मार ढबाढब । जबरा मारे भी आउ रोबे भी न दे ।) (मपध॰12:21:56:3.13)
72 जमीदार (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.20)
73 जरको (दे॰ जरिक्को) (निलामी के तलवार लटकल हे त जमीदार साहब एने जोंक धर्म छोड़के गोहमन धरम अपनावऽ हका । फुँफकारते-डँसते किसनमन के गाँड़ फाड़ले रहऽ हका । मलगुजारी तसीले में जरको मुरौअत नञ् ।) (मपध॰12:21:52:3.10)
74 जाँता (= चक्की) (भोरे से खड़बड़ाहट शुरू हे । जाँता के घर्र-घर्र चालू हे । सत्तू न पिसात त मोरकबरा आ रोपनी खात कउची ? हर-बैल-हरवाहा सब के किरण फुटते खेत पहुँचना हे । जने देखऽ ओने धनरोपनी हो रहल ह । मोरकबरा मोरी कबाड़ रहल ह ।) (मपध॰12:21:56:3.31)
75 जो (= जौ, यव) (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।) (मपध॰12:21:7:1.20)
76 जोंकचूसन (जमींदारी प्रथा अंगरेज सरकार के अइसन जोंकचूसन प्रणाली हल कि प्रजा के खून चुसाल जाय आउ ओकरा कुछ सुगबुगइवो न करे । जोंक मोटाके पिलंड-पिलंड हे ।) (मपध॰12:21:52:2.38)
77 झिंगनी (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !) (मपध॰12:21:56:2.33)
78 झुराना (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे । आज हरबख्ते भाग-दौड़ के कारण हमन्हीं के शरीर के अंग-अंग झुरा रहल हे ।) (मपध॰12:21:7:1.22)
79 टिकुली (= dragon-fly) (बरखा ला बहुत तरह के टोटका होवे लगऽ हे । ... गेंदाजी के घोषणा हे - "आझे हम अंडा लेले पिपरी के बड़का धारा देखलियो ह ।" / बाबा बोलला - "हाँ, अब बरखा होतउ हो - गोरइवन धूरी में लोट रहलो ह ।"/ महादे पाँड़े - "हाँ, हाँ, टिकुलिया उड़ रहलो ह।") (मपध॰12:21:56:2.14)
80 टोकनी (उ सब हथ आँख के दहिने-बाएँ टोकनी लगइले, सीधा सुरंग में चलेवाला टमटम के घोड़ा धुंधले-धुंधले चलते चलेवाला । ऐसे में तूँ मुट्ठा नेसबहो त उ घबरा के पनिआ जइता ।) (मपध॰12:21:51:3.16)
81 टोटका (बरखा ला बहुत तरह के टोटका होवे लगऽ हे । अउघड़ बाबा के प्रवचन हे - "आधी रात के हेठ खंधा में लंगटे होके अउरत सब हर जोततन तब इंदर लंपटवा बरसा करइतो । हँ, ओने कोय मरद के नञ् जाय के चाही ।"/ गेंदाजी के घोषणा हे - "आझे हम अंडा लेले पिपरी के बड़का धारा देखलियो ह ।" / बाबा बोलला - "हाँ, अब बरखा होतउ हो - गोरइवन धूरी में लोट रहलो ह ।"/ महादे पाँड़े - "हाँ, हाँ, टिकुलिया उड़ रहलो ह।") (मपध॰12:21:56:2.4)
82 टोला-बिगहा (बाकि बराहिल आउ गोड़ाइत के तिलंगी उड़ते रहे । एने के बराहिल मालिक के कसीदा पढ़े में कभी चुके नञ् - "जानऽ ह, हम्मर मालिक अबरी समधियौरा में एतना बड़ा कोंहड़ा भेजवइलका कि ओकरा चार गो कहार खटोली पर टाँग के ले गेल । समूचे टोला-बिगहा के लोग उ कोंहड़ा देखके कहलका - अजगुत हइ, अजगुत हइ ।" ओने के गोड़ाइत टोकलक - "कि कहऽ हू बराहिल जी । हम्मर मालिक अपन समधियौरा में एतना बड़ा शकरकंद भेजवइलथिन जेकरा गाँता पर आठ गो कहार ले गेलइ ।") (मपध॰12:21:52:3.29)
83 ठकमकाल (बैल-घुमनी आउ भैंसा-गाड़ी नियन इ श्रेणीबद्ध समाज हजार साल से अप्पन धुर्रा पर घुमत-घुमत नवयुग के दुआरी पर आके ठकमकाल हे । इ देहरी के चिन्हे में इनखा रतौंधी हो रहल हे । जे पंडीजी सतनरायन स्वामी के कथा के अलावे न कुछ सुनलका न कुछ पढ़लका उ भला 'मेघदूत' के का समझता !) (मपध॰12:21:52:1.14)
84 डँटाना (जहाँ लस हुआँ चूतड़-घस्स । ठकुरबाड़ी में दू-चार गो कामचोर लोग जमल रहे । घरवाली से झाड़ू खाय, माई से डँटाय, धिया-पूता से दुरदुराय, बाकि अरमायन परसाद पावे ला महादे पाँड़े के फुलझरिया बनल रहे ।) (मपध॰12:21:55:2.14)
85 डाँड़ी (उ सब हथ आँख के दहिने-बाएँ टोकनी लगइले, सीधा सुरंग में चलेवाला टमटम के घोड़ा धुंधले-धुंधले चलते चलेवाला । ऐसे में तूँ मुट्ठा नेसबहो त उ घबरा के पनिआ जइता । अँखिया चौंधिया जाय से उ आक्रामक हो जा सकऽ हका । तू तपस्यारत होलऽ, नौका डाँड़ी पर चले ला हँकइलऽ कि उनकर इन्दरासन डोलल ।) (मपध॰12:21:51:3.21)
86 ढबाढब (मइया रहथन हियाँ, बाबू रहथन हियाँ, ठकुरबाड़ी रहत हियाँ, परसाद आउ मोहनभोग रहत हियाँ, हम जाम ननिहाल । मन रोवे, पर केकरा कहे ? बुतरू के कोमल मन के हियाँ इ देश में - ई भकुआ समाज में कौन पूछनहार हे ? ... हियाँ तो बाते-बात मार ढबाढब । जबरा मारे भी आउ रोबे भी न दे ।) (मपध॰12:21:56:3.13)
87 तसेड़ी (जेठ के दुपहरिया बड़ी परसिद्ध । सब बुतरुअन के बीतर में बंद करके दुपहरिया गँवावल जाय । जवान सब कनहूँ पेड़ तर ताश खेलथुन । गुरु-पुरोहित आउ बुजुर्ग लोग कहथुन - "इ तसेड़ी सब बरबाद हे । ताश के घर नाश । ताश खेलेवाला एगो देखेवाला तीन गो ।") (मपध॰12:21:55:3.11)
88 तिलसकरात (= मकर संक्रांति का पर्व) (दही-चिउड़ा जब होबत त 14 जनवरी के होबत । सुकरात मियाँ भइया से पुछते रहऽ हका - "बउआ, अबरी 14 जनवरी कहिया पड़तइ । दही-चूड़ा के पर्व खूब हे । ईद बकरीद सबेबरात, सबके हरावे तिलसकरात ।") (मपध॰12:21:56:1.24)
89 तोंदिअल (अनार से पेट के आसपास के चर्बी कम हो जा हइ, यानी तोंदिअल ले ई बहुत फायदेमंद हइ ।) (मपध॰12:21:11:1.12)
90 दुब्भी (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.18)
91 दुसाध-बराहिल (जमीदारी चलावे में सीधे अंगुरी घी न निकलऽ हे । दुसाध-बराहिल बिना न भाउलीवाला धान बाँटतो न मलगुजारी देतो । जब तक रैयत के गाँड़ में डंटा करके न रखभू तब तक सीधा न रहतो । बाभन-रजपूत ठीक जमीदारी चलावऽ हथ ।) (मपध॰12:21:51:1.2)
92 दोकनदारी (जमीदारी आउ मंदिर, सेठई आउ पूजा, दोकनदारी आउ हुमाध, मजूरी आउ ओझई साथे चलऽ हे । वेवस्था के हरेक खाढ़ अपन आध्यात्मिक घेरा बनइले रहऽ हे ।) (मपध॰12:21:54:1.13)
93 धारा (= धारी, पंक्ति) (बरखा ला बहुत तरह के टोटका होवे लगऽ हे । अउघड़ बाबा के प्रवचन हे - "आधी रात के हेठ खंधा में लंगटे होके अउरत सब हर जोततन तब इंदर लंपटवा बरसा करइतो । हँ, ओने कोय मरद के नञ् जाय के चाही ।"/ गेंदाजी के घोषणा हे - "आझे हम अंडा लेले पिपरी के बड़का धारा देखलियो ह ।" / बाबा बोलला - "हाँ, अब बरखा होतउ हो - गोरइवन धूरी में लोट रहलो ह ।"/ महादे पाँड़े - "हाँ, हाँ, टिकुलिया उड़ रहलो ह।") (मपध॰12:21:56:2.11)
94 नटगर (अमलतास के राजवृक्ष भी कहल जा हइ । एकर बोटेनिकल नाम केसिया फिस्टुला हइ । कहैं-कहैं एकरा किरमाला भी कहल जा हइ । एकर गाछ नञ् नटगर होवऽ हइ नञ् जादे कद के ।) (मपध॰12:21:14:1.10)
95 नैहर (= नइहर, मायका) (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.17)
96 पकावल-खाल (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.19)
97 पटका-पटकी (इ तसेड़ी सब बरबाद हे । ताश के घर नाश । ताश खेलेवाला एगो देखेवाला तीन गो । ठहाका, किलकारी, बेमानी, बाताबाती अमूमन होवे । कभी-कभी पटका-पटकी, भागा-भागी भी हो जाय ।) (मपध॰12:21:55:3.14)
98 पतरा (= सं॰ पंचांग, जंत्री; वि॰ पतला) (जे पंडित के ~ में, से पड़िआइन के अँचरा में) (पंडीजी के इ पतरा भी अजीब हे । कभी नछत्तर अगुआ जाहे - कभी महीना । अंग्रेजी तारीख ठीक हे । ओकर अनुसार परब आगे-पीछे न होवऽ हे । दही-चिउड़ा जब होबत त 14 जनवरी के होबत ।) (मपध॰12:21:56:1.17)
99 पन-छो (= पाँच-छह) (अब हम पन-छो बच्छर के हो गेलूँ हँ । भइयारे, कुटुंबी, नाता-गोता, घर में चलत ऊँच-नीच के भाव गमे लगलूँ हँ । धन-दौलतिया के खेल भी बुझे में आवे लगल ह ।) (मपध॰12:21:51:1.25)
100 पनिआना (उ सब हथ आँख के दहिने-बाएँ टोकनी लगइले, सीधा सुरंग में चलेवाला टमटम के घोड़ा धुंधले-धुंधले चलते चलेवाला । ऐसे में तूँ मुट्ठा नेसबहो त उ घबरा के पनिआ जइता ।) (मपध॰12:21:51:3.19)
101 परबाबा (= परदादा, प्रपितामह) (हम्मर परबाबा हला मातबर - दूर तक देखेवाला । साठ बिगहा देके जे जस खरीदलका ऊ जसवा बाल-बच्चा के इ तीन पीढ़ी तक सामाजिक तथा आर्थिक संबल देते रहल ।) (मपध॰12:21:54:1.1)
102 परबाबा (हम्मर परबाबा मंदिर बनवइलका हल । जमींदारी छोटे हले मुदा मंदिर के धन-संपन्नता, भव्यता, खूबसूरती जमीदारी में चार चाँद लगइले हले ।) (मपध॰12:21:53:1.20)
103 परल (एकर जनम घड़ी हम बड़ी परल रहऽ हली । तनिको मिजाज ठीक न रहऽ हल । नौ महीना दुखे-दुख ।) (मपध॰12:21:36:1.10)
104 परसाना (एने के बराहिल कहे - "हम्मर मालिक हीं घीये के दीया जलऽ हे । मजूरन के दाल में घी परसा हे । दूध-दही के नदी बहऽ हे ।") (मपध॰12:21:52:2.15)
105 परोर (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !) (मपध॰12:21:56:2.34)
106 पहर (बेरकी ~) (बेरकी पहर खेत दने भैंस-गोरू हँका गेल । लोग-बाग के अब नक्षत्र आद आवे लगल । "कहिया रोहन हेलतो ?" जे मिले, एक दोसरा से पूछे ।) (मपध॰12:21:55:3.17)
107 पाथना (ओने के बराहिल अलगे ताना मारे - "हँसली लोढ़ा करे बड़ाई, हमहूँ हकूँ महादे के भाई । लगऽ हइ कि हम तोर मालिक के जानवे न करऽ ही । अरे ! तोर मालकिन के त हम गोबर पाथते देखलियो ह । इ कह कि छिपके कमा हथुन ।") (मपध॰12:21:52:2.24)
108 पिंडा (= गुरुपिंडा) (बाबूजी हुकुम कइलका - "जिग्यसुआ रे ! आझु गुरुजी के पिंडा पर मत जइहँऽ । रोपनी के कालो लेके जाय पड़तउ । सत्तू संग पेयाज, मिरचाई, अँचार ले लिअहीं । रोपे भर तो मजूर-मजूरनी के खोशामद हे । फेर सारे कहाँ जइता ।") (मपध॰12:21:56:3.39)
109 पिपरी (बरखा ला बहुत तरह के टोटका होवे लगऽ हे । अउघड़ बाबा के प्रवचन हे - "आधी रात के हेठ खंधा में लंगटे होके अउरत सब हर जोततन तब इंदर लंपटवा बरसा करइतो । हँ, ओने कोय मरद के नञ् जाय के चाही ।"/ गेंदाजी के घोषणा हे - "आझे हम अंडा लेले पिपरी के बड़का धारा देखलियो ह ।" / बाबा बोलला - "हाँ, अब बरखा होतउ हो - गोरइवन धूरी में लोट रहलो ह ।"/ महादे पाँड़े - "हाँ, हाँ, टिकुलिया उड़ रहलो ह।") (मपध॰12:21:56:2.11)
110 पिलंड (जमींदारी प्रथा अंगरेज सरकार के अइसन जोंकचूसन प्रणाली हल कि प्रजा के खून चुसाल जाय आउ ओकरा कुछ सुगबुगइवो न करे । जोंक मोटाके पिलंड-पिलंड हे ।) (मपध॰12:21:52:2.40)
111 पिसाना (= पिसना; पिसा जाना) (भोरे से खड़बड़ाहट शुरू हे । जाँता के घर्र-घर्र चालू हे । सत्तू न पिसात त मोरकबरा आ रोपनी खात कउची ? हर-बैल-हरवाहा सब के किरण फुटते खेत पहुँचना हे । जने देखऽ ओने धनरोपनी हो रहल ह । मोरकबरा मोरी कबाड़ रहल ह ।) (मपध॰12:21:56:3.31)
112 पुतहू (= पुत्रवधू) (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.17)
113 पोपीता (= पपीता) (नियमित रूप से पोपीता खाय से शरीर में कभी विटामिन के कमी नञ् होवऽ हे । बिमारी में सेवन कइल जायवला फल में पोपीता भी शामिल हे, काहे कि एकरा में एक नञ् अनेक फायदा के तत्व भरल हे ।; पोपीता पेप्सिन नामक पाचकतत्व के एकमात्र प्राकृतिक स्रोत हे ।; पोपीता में कैल्शियम भी खूब मिलऽ हे । ई हड्डी के मजगूत बनावऽ हे ।) (मपध॰12:21:0:1.8, 10, 2.2, 3.5)
114 फटल (= फट्टल; फटा हुआ) (मलगुजारी तसीले में जरको मुरौअत नञ् । एने किसान-रैयत जीये के चतुराई रखे । मलगुजारी देवे जाय त फटल अंगा आ पेउन लगल धोती के लंगोटी लटकाके कचहरी पहुँचे । रिरियाय, गिड़गिड़ाय, गोड़ लगे, हाय-हाय करे - "इ साल मारा हो गेलइ सरकार ! कि खइबइ, कि करबइ, माल माफ कर देल जाय ।") (मपध॰12:21:52:3.12)
115 फल-फल्हेरी (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि । एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे ।; कज्जो-कज्जो अपने सब के लगतइ कि हम ऊ सब फल-फल्हेरी आउ जड़ी-बूटी के बारे में बहुत सामान्य बात लिख रहलिअइ हे त अपने से कहना हइ कि नयका पीढ़ी के बउआ सब प्रकृति से अइसन कट्टल हथिन कि उनका सामान्य से सामान्य बात भी ई संबंध में मालूम नञ् हे ।) (मपध॰12:21:7:1.18, 28)
116 फलहत (चतुर किसान होवे चाहे चतुर नारी, जदि अप्पन अंकुर बचाके न रखे त न किसान अन्न से कोठला भरत, न नारी अप्पन कोख के फलहत करत ।) (मपध॰12:21:51:3.4)
117 फेराना (बाबा हुंकारी भरथिन आउ माला फेरथिन । ई माला के घुड़मुड़ियाल लड़ी पीयर नियन झोली में रखा जाय । रोज समय से निकले - जइसे गेंडुली मारले सँपवा सँपेरा के मउनी से निकले हे । बाबा के अंगुरी पर फेराल जाय - फेराल जाय ।) (मपध॰12:21:51:1.11)
118 बउड़ाहा (= बौराहा) (छोटका महा अवारा हो गेल । दारू-ताड़ी, चरस, गाँजा सब तरह के नशा करऽ हे । बउड़ाहा नियन नशा में मातल चलऽ हे ।) (मपध॰12:21:40:2.15)
119 बकड़खेदवा (~ बारिस) (इ खेल दस-पंदरह मिनट चलल कि झमाझम के छींटा पड़े लगल । चाहे बकड़खेदवे बारिस होवे - सूखल धरती, पियासल पत्ता, मुरझाल घास आउ सबसे जादे तरसल जन एक विश्वास, एक परितृप्ति से भरे लगल ।) (मपध॰12:21:55:3.30)
120 बजरा (= बजड़ा, बाजरा) (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।) (मपध॰12:21:7:1.20)
121 बटइया-चौठइया (अपने ऐश-मौज से रहे लगलन । भाई-भतीजा के भुखमरी में बिलबिलाय ला छोड़ देलन । बेचारा तपेसर बाले-बच्चे कमाय लगलन । अपना भीर खेत तो न हल । बटइया-चौठइया करके कइसहुँ पाँच गो परिवार पाले लगलन ।) (मपध॰12:21:39:2.24-25)
122 बनबनाना (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !) (मपध॰12:21:56:2.33)
123 बनिऔटी (= बनिया का-सा व्यवहार या आचरण; हर काम में नफा-नुकसान पर विचार; कंजूसी) (अब तक के सौ के आसपास जे मगही विषय पर शोध होल हे ओकर लेखा-जोखा करे बैठवऽ त बीसे-तीसे के बीच अइसन शोध प्रबंध हो जेकरा पढ़के जी जुड़इतो, तोरो कुछ करे के मन करतो, बाकी के राम मीरा । लखटकिया मुसहरा के मालिक आउ ओहदेदार अइसे ऐंठ के छुलु-छुलु करथुन जैसे गाँव के कुकाठ बुतरू ढिमका पर चढ़के करऽ हे । ई गुमान ऊ शोध पर जेकर स्तर बनिऔटी में इस्तमाल होवेवला कागज भर हे ।) (मपध॰12:21:5:1.32)
124 बबुआन (बिरहिन कभी-कभी अकाश में घनघनात जहाज देखे - घबड़ाय - "का जनी कइसन हका हम्मर रोही । न चिट्ठी न पाती । पढ़ल रहता हल त चिट्ठियो लिखता हल । अभी हम चिट्ठी पढ़तूँ हल कइसे ? उनखर परेम पाती भला पढ़इतूँ हल केकरा से ? हम्मर कहरटोली में कोई तो पढ़ल न हे । बबुआन हीं जइतूँ हल । केतना लाज लगत हल ।") (मपध॰12:21:56:1.5)
125 बबुआनी (हम तो जादेतर समय बबुआनी छाँटे में बिता देलिअइ हल । राजगीर के पहिल महोत्सव में जे असुविधा होले हल, ओकर अहसास तक नञ् होलइ हमरा पावापुरी में ।) (मपध॰12:21:4:1.10)
126 बमबम (हियाँ ठाकुर के दरबार में सब कुछ बमबम हे । जे साधु भेष में आवे उ बमबम हे ।) (मपध॰12:21:55:1.10, 11)
127 बर-बेहबार (सबके ईहे कहलाम रहतइ कि अपना मन के काबिल समझऽ हे । बकि कवि-लेखक के उनकर रचना धर्म या बर-बेहबार के बारे में हम जे भी लिखिअइ, मगही के विरोध में कभी नञ् लिखलिअइ हे, नञ् भविष्य में लिखे के कल्पना कर सकलिअइ हे ।) (मपध॰12:21:5:1.6)
128 बसना (= पानी निकालने या रखने का मिट्टी या धातु का बरतन; छोटे मुँह का पात्र) (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.18)
129 बाभन-रजपूत (जमीदारी चलावे में सीधे अंगुरी घी न निकलऽ हे । दुसाध-बराहिल बिना न भाउलीवाला धान बाँटतो न मलगुजारी देतो । जब तक रैयत के गाँड़ में डंटा करके न रखभू तब तक सीधा न रहतो । बाभन-रजपूत ठीक जमीदारी चलावऽ हथ ।) (मपध॰12:21:51:1.5)
130 बिटनोन (= बिटनून) (आदी के टुकड़ा पर सेंधा नमक (बिटनोन) आउ लेमू डालके खाय से जीभ आउ गला साफ होवऽ हे आउ भोजन के प्रति अरुचि मिटऽ हे ।) (मपध॰12:21:9:2.1)
131 बिर्हनी (बवासीर के मस्सा पर अकमन के दूध लगावे से मस्सा खतम हो जाहे । बिर्हनी काटे पर एकर दूध लगावे से दर्द नञ् होवऽ हे ।) (मपध॰12:21:16:3.1)
132 बिल-तिल (= बिल-उल) (मिरगिसरा चढ़लो । उमख बढ़लो । ... साँझ के ललटेन जलइबऽ त देखके चलऽ । लंगड़ा भइया जहाँ-तहाँ डंक उठइले छटपटाल चलऽ हो । बिल-तिल में ओकरो गरम लगऽ हइ । गोहमना भी निकले लगलो ।) (मपध॰12:21:56:1.38)
133 बिलबिलाना (अपने ऐश-मौज से रहे लगलन । भाई-भतीजा के भुखमरी में बिलबिलाय ला छोड़ देलन । बेचारा तपेसर बाले-बच्चे कमाय लगलन । अपना भीर खेत तो न हल । बटइया-चौठइया करके कइसहुँ पाँच गो परिवार पाले लगलन ।) (मपध॰12:21:39:2.22)
134 बीया (= बीज) (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !) (मपध॰12:21:56:2.33)
135 बुतरखेल (< बुतरू + खेल) (दू दशक से भी जादे से संपादन आउ प्रकाशन से जुड़ल रहे आउ पढ़े-लिखे के रोग के कारण थोड़े-थाड़ जे ज्ञान होले हे, ऊ आधा पर कह रहलिअइ हे कि मगही में इतिहास लेखन के नाम पर बुतरखेल चल रहले हे । इतिहास लेखक अपन बात के बिना कोय तथ्य के बर्हमा के लकीर समझ के पेश करऽ हथिन । कोय भी संदर्भ कहीं से लेल गेल हे तब ओकर सही स्रोत के पड़ताल कइले बिना इतिहास के उद्धरण में पेश करना कहाँ तक जायज हइ ?) (मपध॰12:21:5:1.12)
136 बेमानी (= बेईमानी) (इ तसेड़ी सब बरबाद हे । ताश के घर नाश । ताश खेलेवाला एगो देखेवाला तीन गो । ठहाका, किलकारी, बेमानी, बाताबाती अमूमन होवे । कभी-कभी पटका-पटकी, भागा-भागी भी हो जाय ।) (मपध॰12:21:55:3.13)
137 बेरकी (~ पहर) (बेरकी पहर खेत दने भैंस-गोरू हँका गेल । लोग-बाग के अब नक्षत्र आद आवे लगल । "कहिया रोहन हेलतो ?" जे मिले, एक दोसरा से पूछे ।) (मपध॰12:21:55:3.17)
138 भंगरइया (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.17)
139 भइयारे (अब हम पन-छो बच्छर के हो गेलूँ हँ । भइयारे, कुटुंबी, नाता-गोता, घर में चलत ऊँच-नीच के भाव गमे लगलूँ हँ । धन-दौलतिया के खेल भी बुझे में आवे लगल ह ।) (मपध॰12:21:51:1.26)
140 भकुआ (मइया रहथन हियाँ, बाबू रहथन हियाँ, ठकुरबाड़ी रहत हियाँ, परसाद आउ मोहनभोग रहत हियाँ, हम जाम ननिहाल । मन रोवे, पर केकरा कहे ? बुतरू के कोमल मन के हियाँ इ देश में - ई भकुआ समाज में कौन पूछनहार हे ?) (मपध॰12:21:56:3.9)
141 भाउलीवाला (= भावलीवाला; जमीन का मालिक और रैयत के बीच खेत की उपज बाँटनेवाला) (जमीदारी चलावे में सीधे अंगुरी घी न निकलऽ हे । दुसाध-बराहिल बिना न भाउलीवाला धान बाँटतो न मलगुजारी देतो । जब तक रैयत के गाँड़ में डंटा करके न रखभू तब तक सीधा न रहतो । बाभन-रजपूत ठीक जमीदारी चलावऽ हथ ।) (मपध॰12:21:51:1.2)
142 भागा-भागी (इ तसेड़ी सब बरबाद हे । ताश के घर नाश । ताश खेलेवाला एगो देखेवाला तीन गो । ठहाका, किलकारी, बेमानी, बाताबाती अमूमन होवे । कभी-कभी पटका-पटकी, भागा-भागी भी हो जाय ।) (मपध॰12:21:55:3.14)
143 भुखमरी (अपने ऐश-मौज से रहे लगलन । भाई-भतीजा के भुखमरी में बिलबिलाय ला छोड़ देलन । बेचारा तपेसर बाले-बच्चे कमाय लगलन । अपना भीर खेत तो न हल । बटइया-चौठइया करके कइसहुँ पाँच गो परिवार पाले लगलन ।) (मपध॰12:21:39:2.22)
144 भोजाई (= भोजाय; भौजाई) (भोजाई बेचारी आत्मग्लानि में पड़ल रह गेला कि हमरे ओलहना से देवर जी साधु हो गेलन । "हम कि जानलूँ हल कि हम्मर छोटे-मोटे बात उनखा लग जात । अइसन रिसियाहा देवर भगमान केकरो न दे ।") (मपध॰12:21:53:3.10)
145 मउगी (= माउग; पत्नी) (महादे पाँड़े कहियो-जहियो कइरा के पत्ता पर बसमतिया चाउर के 'परसाद' (भात), घी के छौंकल राहड़ के दाल आउ साग-भाजी दे देथन त लगे कौनो अलगे चीज खा रहलूँ ह । घरे मिलऽ हले भाते, परंतु उसना चाउर के, दाल मसुरी-खेसाड़ी के, छौंक तीसी के तेल के । तुलने में न सवाद हे । अपन मउगी ओतना सुन्नर न लगे जेतना आन के मउगी लगे ।) (मपध॰12:21:54:2.43, 44)
146 मकय (= मकई) (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।) (मपध॰12:21:7:1.20)
147 मजूर-मजूरनी (बाबूजी हुकुम कइलका - "जिग्यसुआ रे ! आझु गुरुजी के पिंडा पर मत जइहँऽ । रोपनी के कालो लेके जाय पड़तउ । सत्तू संग पेयाज, मिरचाई, अँचार ले लिअहीं । रोपे भर तो मजूर-मजूरनी के खोशामद हे । फेर सारे कहाँ जइता ।") (मपध॰12:21:56:3.42)
148 मराल (बाबू कुँअर सिंह के सेना से निकसल बीस-पचीस गो घुड़सवार के राजगीर पहाड़ तर से जाय के खिस्सा सुने लगलूँ हँ । धान के खेत में लाठी से मराल तेंदुआ भी जेहन में हे ।) (मपध॰12:21:51:2.7)
149 मलगुजारी (= मालगुजारी) (जमीदारी चलावे में सीधे अंगुरी घी न निकलऽ हे । दुसाध-बराहिल बिना न भाउलीवाला धान बाँटतो न मलगुजारी देतो । जब तक रैयत के गाँड़ में डंटा करके न रखभू तब तक सीधा न रहतो । बाभन-रजपूत ठीक जमीदारी चलावऽ हथ ।) (मपध॰12:21:51:1.3)
150 मलफेरनी (बाबा के रामायण, मलफेरनी, लघुशंका निवारण ला पानी ले जाय के अनजान परथा, गेंदा पाँड़े के बतकही, ठकुरबाड़ी के घड़ीघंट, मिसरी के परसाद, अजोध्या जी के साधु आउ महंथ जी के असीरबादी - अनेकन चीज अब शिशु जिज्ञासु के छोटे गो कपार में धँस रहल हे ।) (मपध॰12:21:51:2.14)
151 मसुरी-खेसाड़ी (महादे पाँड़े कहियो-जहियो कइरा के पत्ता पर बसमतिया चाउर के 'परसाद' (भात), घी के छौंकल राहड़ के दाल आउ साग-भाजी दे देथन त लगे कौनो अलगे चीज खा रहलूँ ह ।) (मपध॰12:21:54:2.41)
152 महनभोग (कभी-कभी महादे पाँड़े शंख फूँकथन । इ शंख अनगुते बजऽ हले । शंख बजल माने महनभोग बँटत । महनभोग में घी चुप्पड़ करऽ हो । महनभोग के माने हे जेतना आटा ओतने घी आ ओतने शक्कर । कड़ा प्रसाद में भी महनभोगे रहऽ हे ।) (मपध॰12:21:54:2.17, 18, 20)
153 माउग-मेहरी (= पत्नी) (घर में जरी सा ऊँच-नीच होल कि घरवाला तूंबा-सोंटा लेलका आ अजोध्याजी दने सिधियइला । अइसने वातावरण में अभी रेखेआवल जन जवानिये में साधु भे गेला । भोला-भाला भोनूजी के भौजाई ताना मार देलथिन - "हर जोते में तोरा आलस लगऽ हो, भैंस जादेतर बँधल रहे बाकि तों हाथ-गोड़ मोरले का जनी कौची करते रहऽ ह । माउग-मेहरी अइतो त अइसे कइसे काम चलतो । काम-काज में कोढ़िया बैल ह आउ खा ह डेढ़ पसेरी। भूँजा चहियो चाउरे के ।" खाय के उलहना सुनके भोनूजी पगहा तोड़के जे भागला जे अजोध्ये जी जाके दम लेलका ।) (मपध॰12:21:53:2.35)
154 माट साब (= मास्टर साहब; दे॰ माटसा) (ओकरा से ओकरो नाम पुछली । - 'बुधिया' । - हँऽ । बुध के जनम होवऽ होवे ओही से मइया बुधिया नाम रख देलवऽहोवे । हम हँस के कहली । - आउ का माट साब । हमनी हीं पंडीजी आवऽ हथी नाव धरे । ओहू हँस देलक हल ।; "पइसा के चिंता न हे माट साब । मलकिनी हमरा कहलन हे कि हम सर से कहके कम करा देबुअ । तूँ मनउतिया के पढ़े ला भेजऽ ।") (मपध॰12:21:36:1.25, 2.12)
155 मिरगिसरा (= मृगशिरा नक्षत्र) (मिरगिसरा चढ़लो । उमख बढ़लो । ... साँझ के ललटेन जलइबऽ त देखके चलऽ । लंगड़ा भइया जहाँ-तहाँ डंक उठइले छटपटाल चलऽ हो । बिल-तिल में ओकरो गरम लगऽ हइ । गोहमना भी निकले लगलो ।) (मपध॰12:21:56:1.30)
156 मुड़ली (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.17)
157 मुसहरनी (एगो मुसहरनी बाला के प्रताड़ित करे के तो कई गो घटना लोग के याद हल बाकि सम्मानित करे के बात ई गाँव ला पहिला घटना हल । कहीं खुशी त कहीं गम हल । हमर बगले में एगो कनफुसकी होएल, "सरकार एखनी के मन सहकाऽ रहल हे ।") (मपध॰12:21:38:1.40)
158 मुसहरा (= वेतन) (अब तक के सौ के आसपास जे मगही विषय पर शोध होल हे ओकर लेखा-जोखा करे बैठवऽ त बीसे-तीसे के बीच अइसन शोध प्रबंध हो जेकरा पढ़के जी जुड़इतो, तोरो कुछ करे के मन करतो, बाकी के राम मीरा । लखटकिया मुसहरा के मालिक आउ ओहदेदार अइसे ऐंठ के छुलु-छुलु करथुन जैसे गाँव के कुकाठ बुतरू ढिमका पर चढ़के करऽ हे । ई गुमान ऊ शोध पर जेकर स्तर बनिऔटी में इस्तमाल होवेवला कागज भर हे ।) (मपध॰12:21:5:1.31)
159 मोरकबरा (भोरे से खड़बड़ाहट शुरू हे । जाँता के घर्र-घर्र चालू हे । सत्तू न पिसात त मोरकबरा आ रोपनी खात कउची ? हर-बैल-हरवाहा सब के किरण फुटते खेत पहुँचना हे । जने देखऽ ओने धनरोपनी हो रहल ह । मोरकबरा मोरी कबाड़ रहल ह ।) (मपध॰12:21:56:3.32, 33)
160 रमतोड़ईं (पहिल बारिस में हम खूब नहइलूँ - खूब कूदलूँ । बनबना के बीया जलमल । झिंगनी, परोर, करैला, कैता, कद्दू, रमतोड़ईं, खीरा कुदरूम कौची-कौची छिटलन हँ माय-चचानी !) (मपध॰12:21:56:2.34)
161 रिसियाहा (भोजाई बेचारी आत्मग्लानि में पड़ल रह गेला कि हमरे ओलहना से देवर जी साधु हो गेलन । "हम कि जानलूँ हल कि हम्मर छोटे-मोटे बात उनखा लग जात । अइसन रिसियाहा देवर भगमान केकरो न दे ।") (मपध॰12:21:53:3.13)
162 रेंगनी (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.18)
163 रेखेआवल (घर में जरी सा ऊँच-नीच होल कि घरवाला तूंबा-सोंटा लेलका आ अजोध्याजी दने सिधियइला । अइसने वातावरण में अभी रेखेआवल जन जवानिये में साधु भे गेला । भोला-भाला भोनूजी के भौजाई ताना मार देलथिन - "हर जोते में तोरा आलस लगऽ हो, भैंस जादेतर बँधल रहे बाकि तों हाथ-गोड़ मोरले का जनी कौची करते रहऽ ह । माउग-मेहरी अइतो त अइसे कइसे काम चलतो । काम-काज में कोढ़िया बैल ह आउ खा ह डेढ़ पसेरी। भूँजा चहियो चाउरे के ।" खाय के उलहना सुनके भोनूजी पगहा तोड़के जे भागला जे अजोध्ये जी जाके दम लेलका ।) (मपध॰12:21:53:2.30)
164 रोपा (= रोपनी, रोपाई) (बाबूजी हुकुम कइलका - "जिग्यसुआ रे ! आझु गुरुजी के पिंडा पर मत जइहँऽ । रोपनी के कालो लेके जाय पड़तउ । सत्तू संग पेयाज, मिरचाई, अँचार ले लिअहीं । रोपे भर तो मजूर-मजूरनी के खोशामद हे । फेर सारे कहाँ जइता ।") (मपध॰12:21:56:3.42)
165 लट्ठा-कुड़ी (अभी रहटो न चलऽ हे । लट्ठे-कुड़ी से काम चल रहल ह ।) (मपध॰12:21:52:1.9)
166 लमका (= लम्मा, लम्बा) (रोब-दाब के माजरा सब समझऽ हला । रैयत पीठ आउ माथा झुकइले रहे । लमको अदमिया किकुड़ा के नाटा हो जाय ।) (मपध॰12:21:52:3.38)
167 लस (जहाँ ~ हुआँ चूतड़-घस्स) (जहाँ लस हुआँ चूतड़-घस्स । ठकुरबाड़ी में दू-चार गो कामचोर लोग जमल रहे । घरवाली से झाड़ू खाय, माई से डँटाय, धिया-पूता से दुरदुराय, बाकि अरमायन परसाद पावे ला महादे पाँड़े के फुलझरिया बनल रहे ।) (मपध॰12:21:55:2.12)
168 वेवसाय (= व्यवसाय) (बड़ा भतीजा पढ़े में तेज न हल । कोय नौकरी न पौलक तब ओकरा एगो गाड़ी खरीद देलन । ऊ वेवसाय करऽ हे ।) (मपध॰12:21:40:1.34)
169 सकरात (= मकर-संक्रांति का पर्व) (ई सुन के हमर मलकिनी खुश हो गेलन आउ सकरात के बिहानी भेला ओकरा नाम लिखावे लेल स्कूल में लेके आवे ला कहलन ।) (मपध॰12:21:37:1.20)
170 सतनरायन (बैल-घुमनी आउ भैंसा-गाड़ी नियन इ श्रेणीबद्ध समाज हजार साल से अप्पन धुर्रा पर घुमत-घुमत नवयुग के दुआरी पर आके ठकमकाल हे । इ देहरी के चिन्हे में इनखा रतौंधी हो रहल हे । जे पंडीजी सतनरायन स्वामी के कथा के अलावे न कुछ सुनलका न कुछ पढ़लका उ भला 'मेघदूत' के का समझता !) (मपध॰12:21:52:1.15)
171 सतुआनी (= रब्बी अन्न के नेवान का त्योहार, जो प्रतवर्ष अधिकतर संक्रांति के अवसर पर मनाते हैं; मेष संक्रांति का पर्व जिस दिन सत्तू दान और भोजन का विधान है) (दही-चिउड़ा जब होबत त 14 जनवरी के होबत । सुकरात मियाँ भइया से पुछते रहऽ हका - "बउआ, अबरी 14 जनवरी कहिया पड़तइ । दही-चूड़ा के पर्व खूब हे । ईद बकरीद सबेबरात, सबके हरावे तिलसकरात ।" ओइसहीं सतुआनी जब होवे त चौदहे अप्रील के ।) (मपध॰12:21:56:1.25)
172 समधियौरा (बाकि बराहिल आउ गोड़ाइत के तिलंगी उड़ते रहे । एने के बराहिल मालिक के कसीदा पढ़े में कभी चुके नञ् - "जानऽ ह, हम्मर मालिक अबरी समधियौरा में एतना बड़ा कोंहड़ा भेजवइलका कि ओकरा चार गो कहार खटोली पर टाँग के ले गेल । समूचे टोला-बिगहा के लोग उ कोंहड़ा देखके कहलका - अजगुत हइ, अजगुत हइ ।" ओने के गोड़ाइत टोकलक - "कि कहऽ हू बराहिल जी । हम्मर मालिक अपन समधियौरा में एतना बड़ा शकरकंद भेजवइलथिन जेकरा गाँता पर आठ गो कहार ले गेलइ ।") (मपध॰12:21:52:3.26, 32)
173 सहकाना (एगो मुसहरनी बाला के प्रताड़ित करे के तो कई गो घटना लोग के याद हल बाकि सम्मानित करे के बात ई गाँव ला पहिला घटना हल । कहीं खुशी त कहीं गम हल । हमर बगले में एगो कनफुसकी होएल, "सरकार एखनी के मन सहकाऽ रहल हे ।") (मपध॰12:21:38:2.3)
174 सहमल-सहमल (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.18)
175 सांध (= संध, संद; छेद, दरार; युक्ति, उपाय) (हम्मर बाबा उ दुनहूँ पंडा के बात सुनके दुचित्ता हो जा हला । बाकि पाँड़े-पुरोहित के अलावे उ ठहरल मगह के आउरो कोई सांध न हले जेकरा से तनीमनी भी बाहरी हवा घुस सके ।) (मपध॰12:21:52:2.2)
176 सामा (= सावाँ) (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे ।) (मपध॰12:21:7:1.20)
177 सिंदुआर (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.17)
178 सिजुअन (बात खाली 'पुनर्नवा' तक ही सीमित नञ् हे, अपने के आसपास, गाँव-गिराँव में हजारों जड़ी-बूटी उपेक्षित पड़ल हे, जेकरा अपने सब पहचानते भी उपयोग नञ् कर रहलथिन हें, जबकि जड़ी-बूटी वला आउ आयुर्वेदिक दवा कंपनी एकरा से करोड़ों उगाह रहले हे । एकाध दरजन जड़ी-बूटी के उदाहरण दे रहलिअइ हे - भंगरइया, मुड़ली, सिंदुआर, सिजुअन, दुब्भी, तुलसी, औंरा, कँटैला, रेंगनी आदि ।) (मपध॰12:21:7:1.17)
179 सिधियाना (= प्रस्थान करना) (घर में जरी सा ऊँच-नीच होल कि घरवाला तूंबा-सोंटा लेलका आ अजोध्याजी दने सिधियइला ।) (मपध॰12:21:53:2.29)
180 सुत्तल (= सोया हुआ) (बड़कन लोग भी लोट-पोट होके कबड्डी में भिड़ल हका । धरती लगऽ हे कि सुत्तल हल जे जगके अंगड़ाई ले रहल ह ।) (मपध॰12:21:56:2.41)
181 सेंकइया (अमरलत्ता के पानी में औंट के ओकर पानी से सूजनवला जगह के सेंकइया करे से कुछ दिन में सूजन कम हो जाहे ।) (मपध॰12:21:13:3.3)
182 सेठई (जमीदारी आउ मंदिर, सेठई आउ पूजा, दोकनदारी आउ हुमाध, मजूरी आउ ओझई साथे चलऽ हे । वेवस्था के हरेक खाढ़ अपन आध्यात्मिक घेरा बनइले रहऽ हे ।) (मपध॰12:21:54:1.12)
183 सोंठ (कच्चा आदी के अलावा एकर सुक्खल रूप 'सोंठ' के भी उपयोग में लावल जाहे । एकरा मध में मिलाके सेवन करना श्रेष्ठतम हे ।) (मपध॰12:21:9:3.2)
184 सोखा (= एक ग्राम-देवता, सोखा; झाड़-फूँक करनेवाला; इंद्रधनुष, पनसोखा) (हम्मर गाम से आध कोस दूर पर एगो गाम हे बारा । बारा माने बड़ा गाम । हुआँ सोखा-शिवनाथ के मठ हे, मंदिर हे । नाथपंथी धारा के भगत हला सोखा-शिवनाथ । मगह में सोखा भगत जहाँ-तहाँ पावल जा हका । जादेतर इ राजगीर अंचल में गोबार-कुरमी में इ किसिम के भगत हका ।) (मपध॰12:21:53:1.40)
185 सोखा-शिवनाथ ( हम्मर गाम से आध कोस दूर पर एगो गाम हे बारा । बारा माने बड़ा गाम । हुआँ सोखा-शिवनाथ के मठ हे, मंदिर हे । नाथपंथी धारा के भगत हला सोखा-शिवनाथ । मगह में सोखा भगत जहाँ-तहाँ पावल जा हका । जादेतर इ राजगीर अंचल में गोबार-कुरमी में इ किसिम के भगत हका ।) (मपध॰12:21:53:1.38, 40)
186 हरबख्ते (= हर बखत, हमेशा) (एकर अलावे सबसे दुखद बात हे कि अपने सब फल-फल्हेरी तो कम उपयोग करऽ हथिन आउ अनाज के जादे । इहे तरह जो, मकय, कउनी, सामा, चीना आउ बजरा जइसन मोटा अनाज के आटा के चलन भी उठते जा रहल हे, जे से हमन्हीं के शरीर में फाइबर (रेशा) के साथ-साथ अनेक पोषकतत्व के कमी हो रहले हे । आज हरबख्ते भाग-दौड़ के कारण हमन्हीं के शरीर के अंग-अंग झुरा रहल हे ।) (मपध॰12:21:7:1.21)
187 हाँड़ी-चरूइ (हम्मर माई छोटे नैहर घर के पुतहू - सहमल-सहमल रहे । बसना में पानी पीयल, हाँड़ी-चरूइ में पकावल-खाल, पीतर के बरतन के खाली देखल - हम्मर माई जमीदार घर के चकाचौंध से घबराल-घबराल । कनियाइ अयला - छुई-मुई रहला । दिन में मरद के मुँहों न देखलका ।) (मपध॰12:21:51:1.19)
188 हुमाध (= समिधा) (जमीदारी आउ मंदिर, सेठई आउ पूजा, दोकनदारी आउ हुमाध, मजूरी आउ ओझई साथे चलऽ हे । वेवस्था के हरेक खाढ़ अपन आध्यात्मिक घेरा बनइले रहऽ हे ।) (मपध॰12:21:54:1.13)
189 हेठ (बरखा ला बहुत तरह के टोटका होवे लगऽ हे । अउघड़ बाबा के प्रवचन हे - "आधी रात के हेठ खंधा में लंगटे होके अउरत सब हर जोततन तब इंदर लंपटवा बरसा करइतो । हँ, ओने कोय मरद के नञ् जाय के चाही ।") (मपध॰12:21:56:2.6)