मपध॰
= मासिक "मगही पत्रिका"; सम्पादक - श्री धनंजय श्रोत्रिय, नई दिल्ली/ पटना
पहिला
बारह अंक के प्रकाशन-विवरण ई प्रकार हइ -
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वर्ष अंक महीना कुल
पृष्ठ
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2001 1 जनवरी 44
2001 2 फरवरी 44
2002 3 मार्च 44
2002 4 अप्रैल 44
2002 5-6 मई-जून 52
2002 7 जुलाई 44
2002 8-9 अगस्त-सितम्बर 52
2002 10-11 अक्टूबर-नवंबर 52
2002 12 दिसंबर 44
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मार्च-अप्रैल
2011 (नवांक-1; पूर्णांक-13) से द्वैमासिक के रूप में अभी तक 'मगही पत्रिका' के नियमित प्रकाशन हो रहले ह । प्रस्तुत अंक : नवांक-8, पूर्णांक-20, मई-जून 2012 ।
ठेठ
मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर
पृष्ठ संख्या, चउठा कॉलम संख्या (एक्के कॉलम रहलो पर
सन्दर्भ भ्रामक नञ् रहे एकरा लगी कॉलम सं॰ 1 देल गेले ह), आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति
संख्या दर्शावऽ हइ ।
कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या (अंक 1-19 तक संकलित शब्द के
अतिरिक्त) - 552
ठेठ मगही शब्द (प
से ह तक):
310 पचरा (महादे - (चिढ़ल नजर से देखइत) नाच के चरचा के बीच में तूँहीं न बतकुच्चन आ उकटा-पुरान पसारलऽ हे ! घर-गिरस्ती के ई सब पचरा तूँ कहाँ से उठा देलऽ ! घर सम्हारे के जिमेवारी खाली हमरे न हल, तोहर भी हल ।) (मपध॰12:20:18:3.27)
311 पचल (बड़ी मैल पचल हइ एकरा में ।) (मपध॰12:20:9:2.7)
312 पछिया (टॉल्सटाय अप्पन भटकन के नाम देलका पुनर्जागरण । सच्चे इ जिनगी प्रयोगात्मक हे । लीक पीटेवाला जन-जन प्रवाही जीव हे । बिना पेंदी के लोटा, बिना गाँड़ के टेहरी, बिना पतवार के नाव, पुरवइया चले लगल त पच्छिम रुखे बहे लगलूँ, पछिया चले लगल त पूरब दने बहे लगलूँ ।) (मपध॰12:20:47:2.1)
313 पटपटाना (आधे घंटा में सब पटपटा के मर गेलइ ।; सब के मारके पटपटा देलकइ ।) (मपध॰12:20:10:1.21, 13.10)
314 पटाल (मोटूमल पटाल हलखुन, बोललखुन कि कपड़ा पेन्ह के आवऽ हिअउ ।) (मपध॰12:20:11:1.3)
315 पनकी (पनकी लग के मर गेलइ गइया, कतनो दवा-दारू करवइलिअइ, फयदा नञ् होलइ ।) (मपध॰12:20:14:1.19)
316 पन्हेतल (~ भात) (पन्हेतल भतवा में गुंडिया ना के खइलिअइ ने माय, जे पेटवा में डहडही दे रहलइ हे ।) (मपध॰12:20:14:1.1)
317 परगंगिनियाँ (< परगंगिनी/ परगंगनी + 'आ' प्रत्यय) (परगंगिनियाँ काहे ले चनचना रहले ह ?) (मपध॰12:20:11:1.22)
318 पर-पंडाल (अपने ई बात भी स्पष्ट जानऽ हथिन कि अपने जदि होता हथिन त हम यज्ञाचार्य के भूमिका में हिअइ । यज्ञ ले भिक्षाटन भी हमरे करे पड़ऽ हे आउ पर-पंडाल भी हमरे बनवावे-सजवावे पड़ऽ हे ।) (मपध॰12:20:4:1.11)
319 परवैती (= पर्व करनेवाली स्त्री) (अभी फरीचो नञ् होले हे आउ सुरूज महराज के अरग देवहुँ लगलथिन सब भुखाल परवैती लोग ।) (मपध॰12:20:15:1.21)
320 परसौत (हम जलमलूँ हल भूकंपे के कंपन से घनघोर विपदा पड़ल रात में । राजगीर से हाँफते-पाँफते लोग गाम अइला । जने देखऽ ओने टूटल घर हे । लोग चोट खाल हका । घाव-लहू के देखना पूरा महीना के परसौत ला केतना डरावना हे ।) (मपध॰12:20:47:1.22)
321 परहेज ( गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।) (मपध॰12:20:49:1.39)
322 पलानी (= झोपड़ी) ('आ मार बढ़नी रे ! भिछनी मेहरारुओ ओही लगन के । माथ पर भर चुरुआ तेल थोप देत आ सुतले-सुतले दाल-रोटी काँड़ी से पिया देत ।' सोनामति फुआ बीड़ी लेलन आ धूँक मारइत टुघरइत चल देलन अपन पलानी में ।) (मपध॰12:20:21:2.8)
323 पल्लो (= पल्लव) (आम के ~) (सरिता के सखी-सलेहर बिआह के गीत गा रहलन हल । गाड़ल हरियर बाँस, जेकर फुतुंगी पर बान्हल आम के पल्लो । गोहमाठी से छावल मड़वा, जेकरा में आम के घुँच्चा लटक रहल हल ।) (मपध॰12:20:29:1.5)
324 पव (मगही में लेख-निबंध लिकेवला भाय-बहिन भी कम-से-कम संदर्भ दे हथ आउ अगर देतन भी त कहाँ के घव आउ कहाँ के पव वला । आदमी बौंखते रहे उनकर फुटनोट में वर्णित संदर्भ ग्रंथ के खोजे में । की मजाल हे कि दस में से पाँचो संदर्भ सही निकल जाय ।) (मपध॰12:20:5:1.19)
325 पसेरी (सपूत कातिक ताँबा पैदा करऽ हथुन । ऊ अब तक के कै पसेरी ताँबा मा कइलन हे ?) (मपध॰12:20:20:1.11)
326 पहरोपा ('कहिया पहरोपा होबत, कहिया नकपाँचे होबत' इ चिंता हे छोटकू जिज्ञासु के । काहे कि पहरोपा दिन फुलौड़ी-भात, नकपाँचे दिन दूध-लावा याद आ जाहे ।) (मपध॰12:20:50:1.17, 19)
327 पाँका (= पाँको, पंक; कीचड़) (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । ... सोचलियो - अब जरा दिनमा गरमयले ह त मकर के नहान कर लूँ । बाकि डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो । कुछ क्षण ला दिमाग एकदम सुन्न हो गेलो । उठके भागते-भागते फेर पनिया आ गेलो । ऊ जे बिन पानी के गंगाजी देखलियो ओकरा से आझो दिमाग सनसना जाहे । ऊ गड्ढा, पाँका, मछली, सोंस - कुछ समझ में न आवे ।) (मपध॰12:20:46:1.3)
328 पाँड़े (पाँड़े के गाय नञ् होले हल, बलाइए होले हल ।) (मपध॰12:20:16:1.10)
329 पाँय-पाँय (चलाके देखहो ने चाहे पाँय-पाँय बोलहो, अपने डेगा-डेगी देवे लगतो ।) (मपध॰12:20:15:1.12)
330 पाटा (= पाट; जानवरों का एक रोग जिसमें शरीर से द्रव रिसता है) (~ फुटना) (बैलवन के पाटा फुट गेलो हे, सेसे टरेक्टर से खेत जोवावे पड़लो ।) (मपध॰12:20:10:2.8)
331 पाठी (महरानी मइया फूस के मड़इयो में खुश । मनकामना पूर्ण होवे त देवी माय के पाठी पड़े । पालल पाठी के देना आत्म बलिदान हे । रेल चलल त बुतरुअन गावे - झझे काली झझे काली, चल कलकत्ता देबउ पाठी ।) (मपध॰12:20:46:3.21, 24)
332 पानी-पवइया (~ नारी) (उ टैम में बाल-बुतरु जादेतर ननिहाले में पइदा होवऽ हल । एगो प्रथा हलइ कि पहिलौंठ बुतरु नानीघर में जलमे । शायत इ मातृसत्तात्मक स्मृति के पदचिह्न हल । पितृकुल मानहू अस्वाभाविक, असंगत आउर अधिकारवादी रहे पानी पवइया नारी जाति ला ।) (मपध॰12:20:46:3.9)
333 पार-घाट (चलऽ ! पार-घाट लग गेलइ । छुच्छा के राम रखबार ।) (मपध॰12:20:15:1.17)
334 पुरकस (भाषा कउनो रहे, गद्य लिखेवला से पद्य रचेवला के संख्या जादे होवे करऽ हइ बकि ऊ भाषा के साहित्य के दोसर विधा के रचनाकार के संख्या जब तक उटेरा नियन रहतइ तब तक ऊ भाषा के पुरकस विकास नञ् हो पइतइ ।) (मपध॰12:20:5:1.5)
335 पुरवइया (टॉल्सटाय अप्पन भटकन के नाम देलका पुनर्जागरण । सच्चे इ जिनगी प्रयोगात्मक हे । लीक पीटेवाला जन-जन प्रवाही जीव हे । बिना पेंदी के लोटा, बिना गाँड़ के टेहरी, बिना पतवार के नाव, पुरवइया चले लगल त पच्छिम रुखे बहे लगलूँ, पछिया चले लगल त पूरब दने बहे लगलूँ ।) (मपध॰12:20:47:1.40)
336 पुलपुलाना (बाबा के भरगर संबोधन से गेंदा पांडे पुलपुला गेला - "हाँ जजमान, अपने ठीके कहऽ हथिन । हम पढ़लिअइ कहाँ जजमान । लिख लोढ़ा पढ़ पत्थल रह गेलिअइ । अपने नियन जजमनका हइ - बाबू-माय मंदिरे में ठेका देलका - गुरुपिंडा के दरसने न भेल । आउ हकियो सरोतरी बर्हामन ।") (मपध॰12:20:46:1.40)
337 पूजा-पाहुर (गनेस के तूँ किरनिये बुझलऽ हे ? ऊ देओता लोग के विनायक हे । ओकर भाग तो देखऽ ! जग्ग-परोजन इया नया काम में हमनी के पहिले ओकरे पूजा-पाहुर सब जगह होवऽ हे ।) (मपध॰12:20:17:3.21)
338 पेउन (~ लगाना) (छोटगर किसान के जिनगी अइसन कि पेउन न छूटे । एने छेद देखाई देलक, पेउन लगइलूँ, तलगु ओने फट गेल । कहाँ-कहाँ सियल जाय ।) (मपध॰12:20:50:2.34, 35)
339 पेटकुनिएँ (एतना कहके दउड़ल तो कोहबर में पेटकुनिएँ आके तब तक सुबकइत रहल जब ले बरात लौट न गेल ।) (मपध॰12:20:23:3.40)
340 पेटकुनियाँ (~ नाधना) (सती प्रथा बंद हो गेल । दास प्रथा इतिहास के विषय बन के रह गेल । जमींदारी पेटकुनियाँ नाधले हे । सामंती प्रथा घुनसारी में झोंकल जा रहल हे । गान्ही जी अजादी दिऔलन बाकि औरत के उद्धार अब ले न होल ।) (मपध॰12:20:22:2.31)
341 पेटपीरी (गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।) (मपध॰12:20:49:1.37)
342 पेन्हना-ओढ़ना (तोरा तो न खाय के ठेकान रहऽ हे, न पेन्हे-ओढ़े के सहूर । चौबीसो घंटा भाँग खाय आ धथूर चिबावे से फुरसत रहऽ हवऽ ?) (मपध॰12:20:18:1.43)
343 पेहनना (= पेन्हना; पहनना) (इ मेलवा भी अजब बिडंबना हे । सौंसे बगइचा में अटान न हे । लाल-लाल साड़ी में जमनकिन हका - बूढ़ियन भी कम न हका, छौंहिन घंघरा-चोली में चमकल चलऽ हे, बढ़-बूढ़ा भी चमरौंधा जूता पेहनले धोती-कुर्ता, फेटा के दमकयले हकइ ।) (मपध॰12:20:49:1.3)
344 पैंचना (= मिले दानों को सूप आदि से फटककर पछोरना; अन्न के मिले दानों को छाँटना या हिगराना) (राय पैंच रहलियो हे, अभी नञ् जइबो ।) (मपध॰12:20:9:1.13)
345 पैंतरा (~ मारना) (दहनी प्रसव पीड़ा से कराह रहल हल । दरवाजा पर सास आउ ननद निहार-निहार के एने-ओने के बात कर रहल हल । दरवाजा के बाहर ओकर ससुर अप्पन भाय के साथ ताड़ी के छाँक लगावे के पैंतरा मार रहल हल ।) (मपध॰12:20:27:1.3)
346 पैंतराबाजी (सबेरे पैखाना जाय के राह में पारो महतो आउ ओकर परिवार के पैंतराबाजी के कारण जानके पारो महतो आउ ओकर माय सनिचरी पर बालक सिंह नराज होके बोलला - "चलनियाँ दुस्से हे बड़हनियाँ के । गजब के जमाना हो गेल । अरे ऊ दरद में परेसान हे आउ तोहनी, एकर पेट नञ् ओकर पेट, बोल रहलें हे । दहनी जो अप्पन माय-बाप के पास ।") (मपध॰12:20:27:2.39)
347 पोटना (= फुसलाना, बहलाना) (मिठमोहना के देखहीं, कइसे पोट रहलथुन हें, दोसर घड़ी नीम बोकरे लगथुन ।) (मपध॰12:20:14:1.21)
348 प्रातकाली (लालाजी के प्रातकाली सुनहुँ । अभी भुरुकवा उगवे कइलइ कि लालाजी पीतर के लोटा लेके खंधा से हो अइला । ई कर्म के हिंया झाड़ा फिरना, दिसा फिरना कहल जाहे । कोई-कोई कहथुन 'मैदान गेलियो हल ।' औरत कहऽ हे एकरा 'बाहर जाना ।' हिंया बुतरू सब हग्गऽ हे ।) (मपध॰12:20:51:1.5)
349 फटल-पुरान (धीरे-धीरे ओकर बाप कंजूस के धोकड़ी हो गेलन हल । एक-एक पैसा जोड़े लगलन हल । पर्व-त्योहार में भी साड़ी-साया मुहाल हो गेल हल । ओकर माय आउ ऊ फटल-पुरान पहने लगल हल । जउन काननप्रिया दिन में चार बार पाउडर आउ आलता से गोड़-हाँथ रंगऽ हल, ओकरा साबुन तक मुहाल हल ।) (मपध॰12:20:31:2.32)
350 फरल (मुँह फरल हो सेसे बोलल नञ् जा रहलो हे ।) (मपध॰12:20:8:1.3)
351 फल्हारना (जल्दी से फल्हार दे बेटा ! सब कपड़वन बोजके रख देलिअउ हे सरऽफा में ।) (मपध॰12:20:15:1.19)
352 फसली (छोटगर किसान के जिनगी अइसन कि पेउन न छूटे । एने छेद देखाई देलक, पेउन लगइलूँ, तलगु ओने फट गेल । कहाँ-कहाँ सियल जाय । रोग-बिमारी लगले रहे । आधा बुतरू सउरे मरे । पानी पइते आधा लड़कोरी मर जाय । फसली, प्लेग, शूल संघरणी, शीतल ज्वर-वेद फँकी बाँटे बाकि मौते ईश्वर के साम्राज्य रहे ।) (मपध॰12:20:50:2.38)
353 फाजिल (= अतिरिक्त) (बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।" ... मगह के तीरथ भी फाजिल में हे, सामान्य स्वाभाविक उन्मेष में न बुझा हे - मलमास मेला अधिकमास में, गया - मरे के बाद में ।) (मपध॰12:20:46:2.36)
354 फुतुंगी (सरिता के सखी-सलेहर बिआह के गीत गा रहलन हल । गाड़ल हरियर बाँस, जेकर फुतुंगी पर बान्हल आम के पल्लो । गोहमाठी से छावल मड़वा, जेकरा में आम के घुँच्चा लटक रहल हल ।) (मपध॰12:20:29:1.4)
355 फुफिया-सास (= फुफसस) ("नया-नोहर हथ । हमनी का कह सकऽ ही ? तू जाके पुछहुँ न, का बात हे ?" काननप्रिया के सास कहलन हल ।/ "तूँहीं जाके पुछहुँ । सास हहूँ । बड़-जेठ हहूँ ।" फुफिया सास कहलन हल ।) (मपध॰12:20:32:3.39)
356 फुलौड़ी-भात ('कहिया पहरोपा होबत, कहिया नकपाँचे होबत' इ चिंता हे छोटकू जिज्ञासु के । काहे कि पहरोपा दिन फुलौड़ी-भात, नकपाँचे दिन दूध-लावा याद आ जाहे ।) (मपध॰12:20:50:1.20)
357 फुसना (बिना उद्घाटन के आज फुसनो-सा काम प्रारम्भ न हो रहल हे । चाहे कोई काम सरकारी हो या गैर-सरकारी बाकि उद्घाटन जरूर हो रहल हे ।) (मपध॰12:20:41:1.7)
358 फुसुकना (उनके मेहरारू महेसरी भी आ गेल । बेना डोलावित फुसुकलक - 'तू गाँव में रेंगनी के काँट लगावइत चलइत ह । गाँव के नवही बिरबिरायल हथुन सब । ऊ सब का खा-पी के जइतइ, का पेन्ह-ओढ़ के अपन मुराद पूरवतइ एकरा से तोरा लेना-देना का !') (मपध॰12:20:21:2.12)
359 फूलल-अंकुड़ल (एक दफे नदी के पानी ला झगड़ा भेल । नीचे के बाभन सब नदी के कच्चा बाँध काटे ला कटिबद्ध रहथन । गोबार भाई हजारन के संख्या में जुटलन । ... बस फूलल-अंकुड़ल चना सब खाथन आउ डंड पेलथन । काहे ला त बाभन सब अइता । बाँध नहिये कटल । अइसे भी बाभन चूतड़-चलाँक जात । मरे-मारे से जादे उनखा लड़वावे-फँसावे में महारत हासिल हे ।) (मपध॰12:20:49:1.25)
360 फेटा (= पगड़ी) (इ मेलवा भी अजब बिडंबना हे । सौंसे बगइचा में अटान न हे । लाल-लाल साड़ी में जमनकिन हका - बूढ़ियन भी कम न हका, छौंहिन घंघरा-चोली में चमकल चलऽ हे, बढ़-बूढ़ा भी चमरौंधा जूता पेहनले धोती-कुर्ता, फेटा के दमकयले हकइ ।) (मपध॰12:20:49:1.5)
361 फैट (मार फैट के थूर देबउ ।) (मपध॰12:20:11:1.26)
362 फोकराइन (फोकराइन गमक रहलो हे दीदी, हम नञ् लेबो गोदी ।) (मपध॰12:20:14:1.16)
363 बँसेड़ी (= बसेढ़ी) (हम तो एकरा एगो मरद से बँसेड़ी तर बात करते देखलूँ हल, मुदा आझ तो साफ हो गेल कि एकर पेट हम्मर पोता के नञ् हे ।) (मपध॰12:20:27:2.12)
364 बंड-संड (काननप्रिया हँसके कहऽ हल, "हम मर जइबइ बाबूजी ।" ओकर मइया भी कहऽ हल, "मर जो न गे । असीआर होइत हहीं । इनका से कुछो न जुमइत हइन । हमनी दूनो मर जो । बंड-संड रहतथु । खूब सौख-मौज करे ला होतइन । बिआह काहे ला कइलऽ हल ।" ओकर बाप हँसके कहऽ हलन, "दूनो माय-बेटी पेर देलें । कभी साड़ी त कभी सलवार-कमीज त कभी गहना । केतना फरमाइश पूरा करी ।") (मपध॰12:20:31:2.22)
365 बउआना-ढउआना (पिरथीवी के परिकरमा में सभे देओता बउआइत-ढउआइत रह गेलन हल । बाकि हम्मर गनेस 'राम-राम' लिखके अप्पन मूसक वाहन पर बइठ के एक चक्कर लगाके सभनिन के कान काट लेलक हल ।) (मपध॰12:20:18:1.2)
366 बजंतरी (~ के पत्ता) (राजगीर में तीलसँकरात के मेला हे । सतधरवा बर्हमकुंड में नहा के मामू-ममानी आउ मौसी चेंगना-मेंगना के साथ आके बजंतरी के पत्ता पर ततले-ततले मकर के खिचड़ी के भाप से हाथ-मुँह जला रहला ह कि हड़हड़-धड़धड़ होवे लगल ।) (मपध॰12:20:45:2.10)
367 बजनियाँ (आज बारात जा रहल हे । दू गो बस, चार गो कार आउ एगो टरेक्टर के बेवस्था कइल गेल हे । बस पर नवही लोग पहिलहीं से अधिकार जमा लेलन । एगो कार पर दुल्हा दिनेश आउ सब पर हित-नाता, भववधी लोग । टरेक्टर पर बजनियाँ आउ सर-समान ।) (मपध॰12:20:22:1.9)
368 बज्जड़ (धड़धड़ी के ~) (जन्नी-मरद तो जादे बाहरे हला मुदा फलिस्ता आउ बूढ़ा-बूढ़ी काल के गाल में समा गेला । चिड़ारी पर मुरदा ला जगह घट गेल । अइसन मातम हल कि लोग कहथन एही हे भगवान महेश्वर के कोप, धड़धड़ी के बज्जड़ ।) (मपध॰12:20:45:3.8)
369 बड़-जेठ ('आय फुआ ! आगे तो बतयवे न कइलऽ । कलजुगिया चौपाल सबके दलान पर लग जायत । बड़-जेठ मुँह लुका लेतन । उधर नया-नया होरी-चइता गवाये लगत । दस बजल कि सब झूमइत अपन मेहरारू के गोड़थारी में ।' रामटहल कहइत-कहइत बेयग्गर हो गेलन ।; "नया-नोहर हथ । हमनी का कह सकऽ ही ? तू जाके पुछहुँ न, का बात हे ?" काननप्रिया के सास कहलन हल ।/ "तूँहीं जाके पुछहुँ । सास हहूँ । बड़-जेठ हहूँ ।" फुफिया सास कहलन हल ।) (मपध॰12:20:21:1.30, 32:3.38)
370 बड़-बड़कोर (आँगन में इधर-उधर दहेज में मिलल समान रखल हल - टीवी, पंखा, रेफरिजरेटर, सिलाई मशीन, धुलाई मशीन, अर्त्तन-बर्त्तन, बड़-बड़कोर, स्टील के संदूक, गोदरेज के अलमारी, सोफासेट, एक ओरे हीरो होंडा मोटर साइकिल खाड़ हल ।) (मपध॰12:20:32:2.15)
371 बढ़मा (= ब्रह्मा) (बढ़मा, बिसुन आ किसन जी तो वनमाला पेन्हऽ हथ बाकि तूँ तो मुंडमाला पेन्हबऽ ! हर घड़ी तूँ उल्टे गंगा बहावऽ हऽ !) (मपध॰12:20:18:2.3)
372 बतकही (एगो बूढ़ बोलल - 'बतकही छोड़ऽ । जयमाला के आनंद उठावऽ । लड़की पढ़ल-लिखल गुनगर हे । जयमाला के कोई नया तौर-तरीका देखावत ।') (मपध॰12:20:23:3.9)
373 बतासा-सेनुर (बड़का गोटीवाला चेचक उठे त गामे गाम शीतला माय के प्रलयंकर नाच शुरू हो जाय । मघड़ा (शीतलामाई के मंदिर) जा आउ बतासा-सेनुर चढ़ावऽ । ज्ञान-विज्ञान से कोसों दूर खेत-पथार के जिंदगी । नानी हो आन्हर एही शीतला माय के प्रकोप से ।) (मपध॰12:20:50:3.9)
374 बनच्चर (एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।") (मपध॰12:20:51:1.37)
375 बनौड़ी (= जैसे-तैसे बनाई वस्तु; दे॰ बनौरी) (गंगाजी के दखिन छोर मगह दने अपवित्र मानल जाहे । पंडीजी लोग के बनौड़ी अइसने हे । कारण हे मगह के बुद्ध-जैन दर्म से प्रभावित रहना ।) (मपध॰12:20:48:2.14)
376 बर-विचार ('मगही पत्रिका' के परचार-परसार खातिर या गोष्ठी सम्मेलन में हेल-मेल के क्रम में अपने सब जे बर-विचार दे हथिन ऊ अधार पर हमरा लगऽ हइ कि 'मगही पत्रिका परिवार' के अभियान से मगही में लिखे-पढ़े के चलन थोड़े बढ़ले हे आउ हतास कवि-लेखक में थोड़े-थाड़ जागृति अयले हे ।) (मपध॰12:20:4:1.1)
377 बराती-सराती (कोई ओन्ने से ढेला फेंक देलक तो एन्ने से ईंट-पत्थर चले लगल । देखते-देखते बराती-सराती कौरव-पांडव बन गेलन । जयमाला के जगह कुरुक्षेत्र में बदल गेल । बड़ी समझौला-बुझौला पर बराती शांत भेल ।) (मपध॰12:20:23:2.8)
378 बरियाती (= बारात) (बर के खाय के भुस्सा नञ्, बरियाती खोजे चूड़ा ।) (मपध॰12:20:16:1.5)
379 बरियारी (~ करना) (कपूतवन के संख्या जादे हे त उ बरियारी करतो आउ सपूतवन के कहतो - लंठ, कुलबोरन, अल्हड़-बिगड़ल । बिगड़ल टैम में तो जलमवे कइलूँ हल त बिगड़ल बने में नमहँसी कौची ?) (मपध॰12:20:47:2.14)
380 बरियारी (= बरिअईं) (बरियारी देखा रहलहीं हे, हमर सरीरवा में पानी बहऽ हइ ?) (मपध॰12:20:12:1.13)
381 बरेठा (= घड़का) (सुहाग सेज पर बइठल काननप्रिया एक-एक आभूषण उतार देलक हल - कंगन, पहुँची, रूपौठी, नथुनी, कनबाली, चनरहार, पाजेब, बिछिया । सब सुहाग जोड़ा में बाँध के सुहाग-सेज पर एक ओर रख देलक हल । सुहाग-दीप बुझा के बरेठा लगा के घोर अंधकार में डूब गेल हल ।) (मपध॰12:20:30:1.7)
382 बलबलाना (एतना कसके सुइया भोंक देलकइ कि खून बलबला गेलइ ।) (मपध॰12:20:8:1.14)
383 बहरसी (कैलास पहाड़ पर महादे के निवास । घर में अकेले पारबती उदास बइठल हथ । कारतिक आ गनेस बहरसी गेल हथ ।; हमरा जनकारी हे कि अप्पन इयार-दोस के हुरपेटला पर तूँ हरमेसा बहरसी ई नाच देखावऽ हऽ ।) (मपध॰12:20:17:1.3, 2.7)
384 बहिया (~ बैल) (दुनहुँ मामू बहिया बैल । गाम के बड़गर किसान बाभन भैया आउ पटवारी लालाजी कहथिन, "ई दुनहुँ कमइते-कमइते मर जइतइ । हमन्हीं चौपड़ खेलऽ ही, ई सब भिनसरवे हर लेके निकल जाहे । कमइला से धन होवऽ हे ? जेकरा लक्ष्मी देथिन उ अइसहीं उजिया जइतइ ।") (मपध॰12:20:50:3.12)
385 बाघा (हागा अगुर बाघा की ।) (मपध॰12:20:16:1.2)
386 बाबाजी (= ब्राह्मण {साधारणतः अनपढ़ ब्राह्मण के लिए प्रयुक्त}) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.13)
387 बाभनी (गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।) (मपध॰12:20:49:1.35)
388 बामन (केतनो बामन सोझा त हँसुआ नियन टेढ़ ।) (मपध॰12:20:16:1.6)
389 बाय (= कष्ट, परेशानी) (बाय आ रहलो हे ?) (मपध॰12:20:9:1.28)
390 बाहर (~ जाना) (लालाजी के प्रातकाली सुनहुँ । अभी भुरुकवा उगवे कइलइ कि लालाजी पीतर के लोटा लेके खंधा से हो अइला । ई कर्म के हिंया झाड़ा फिरना, दिसा फिरना कहल जाहे । कोई-कोई कहथुन 'मैदान गेलियो हल ।' औरत कहऽ हे एकरा 'बाहर जाना ।' हिंया बुतरू सब हग्गऽ हे ।) (मपध॰12:20:51:1.10)
391 बिंदुली (बुढ़वा भतार पर तीन टिकुली, एगो कच्ची एगो पक्की, एगो लाल बिंदुली ।) (मपध॰12:20:16:1.19)
392 बिख (= विष, जहर) (जमीन तो गोल होयवे कइल, चेहरा भी गोल, चश्मा भी गोल, मेहरारू के लुग्गा-फट्टा भी गेल । थारी में माड़-भात भी परोसायत तो बिख से भरल । बेटी आयल तो जमीन-जायदाद ला आग के टिकिया भी साथे लेते आयल ।) (मपध॰12:20:22:2.10)
393 बिछिया (सुहाग सेज पर बइठल काननप्रिया एक-एक आभूषण उतार देलक हल - कंगन, पहुँची, रूपौठी, नथुनी, कनबाली, चनरहार, पाजेब, बिछिया । सब सुहाग जोड़ा में बाँध के सुहाग-सेज पर एक ओर रख देलक हल । सुहाग-दीप बुझा के बरेठा लगा के घोर अंधकार में डूब गेल हल ।) (मपध॰12:20:30:1.4)
394 बिड़ार (खेत में कबड्डी जमल हे । दुनहूँ पाटी में बूढ़ा-जवान-उगलरेख सब सेल कबड्डी कर रहला ह । एने मुरझाल-कुम्हलाल मामू हर-बैल लेले बिड़ार जोते ला मुस्तैद हो गेला ।) (मपध॰12:20:50:1.16)
395 बिदाहना (= बीज छींटकर बीज को ढँकने के लिए हलकी जुताई करना; लगी फसल की घास साफ करने अथवा बहुत घनी फसल को छिहर करने के लिए हलकी जुताई करना) (मकई बिदाहे गेलथुन हे, साँझ के अइथुन ।) (मपध॰12:20:9:1.31)
396 बिधंस (= विध्वंस) (देओता लोग के जनम देवेवला दक्ष प्रजापति के जग्ग में तू अप्पन प्रधान गण वीरभद्र के भेज के जग्ग बिधंस करइलऽ आ ओकरे हाँथे उनकर मूड़ी छोपवा के बकरा के मूड़ी लगवइलऽ हल ।) (मपध॰12:20:19:2.42)
397 बिधुनना (सोहाग केतना अनमोल हे, केतना टुनकी हे - सात तह के भीतर सोहाग के सेनुर लुका के रखल जाहे । अपने लोग ओकरा सात तह से भी निकाल के 'बिधुन' के छोड़ देली ।) (मपध॰12:20:23:3.31)
398 बिनाना (छउँड़ी एतना जोड़ से काहे ल बिना रहले ह जी, एक घंटा से ?) (मपध॰12:20:9:1.17)
399 बिरबिरायल (उनके मेहरारू महेसरी भी आ गेल । बेना डोलावित फुसुकलक - 'तू गाँव में रेंगनी के काँट लगावइत चलइत ह । गाँव के नवही बिरबिरायल हथुन सब । ऊ सब का खा-पी के जइतइ, का पेन्ह-ओढ़ के अपन मुराद पूरवतइ एकरा से तोरा लेना-देना का !') (मपध॰12:20:21:2.14)
400 बिसबिसाना (= दाँत में हलका दर्द होना) ('ए काका !' साँच कहला पर लोग तिरमिराए लगऽ हथ ... / लछुमन के बात बीचे में काट देलन आ रामटहल कह बइठलन - 'तिरमिरी तो हमरा लगवे करत । डंक मारला पर हो बबुआ बिसबिसयबे करऽ हे आ ऊ डंक तो हमरे लगत ।') (मपध॰12:20:21:1.15)
401 बिसुखाना (गइया बिसुखा गेलइ सेसे कम दूध ममोसर होवऽ हे ।) (मपध॰12:20:8:1.17)
402 बीजे (= बिज्जे) (बराती के स्वागत-सत्कार में भी कमी रह गेल । यहाँ तक कि दुल्हा के मामू के अंगेआ भी न मंगाएल, से रात भर भूखे रह गेलन । दुल्हा के फूफा के बीजे भी न होयल से रात भर मिठाई फाँक के रह गेलन ।) (मपध॰12:20:32:1.2)
403 बुट्टा (~ कसना) (अभी ढंग चोखइवो नञ् कइलऽ हे आउ भउजी-भउजी करके बुट्टा कसे अइलऽ हे !) (मपध॰12:20:15:1.2)
404 बुनिया (~ झरवाना) (बुनिया झरवा रहलथुन हे, एक घंटा बाद अइथुन ।) (मपध॰12:20:11:1.18)
405 बुर्राक (दे॰ बुराक) (गोर ~) (मातृकुल में हम भूकंप लेले अइलूँ । अदमी हकूँ उ गुनी जलम लेलूँ । देवता होतूँ हल त अवतार लेतूँ हल । ... हम तो निखालिस मगहिया भुच्चड़ हलूँ - कार-गोर के मिलल संतति । नानी हल गोर बुर्राक आउ नाना हला कार-करइठा ।) (मपध॰12:20:46:3.35)
406 बेआपना (= बियापना) (धीरे-धीरे बोतल के नीसा चढ़इत सूरज लेखा ढले लगल । सबके चेहरा पर ढिबरी जरइत हल । तरूआठी के आग अपने आप बुझा जाहे, ओइसहीं शराब के नीसा । सबके मन में डर बेआपल हे ।) (मपध॰12:20:23:2.38)
407 बेकहन (दादी के बात उनखर कान में पड़ल कि ऊ खजूर के छड़ी फटकारथुन, "ओ, एने आवऽ, अइसन लप्पड़ मारबउ कि हग देमऽ सार । बिलकुल बेकहन हे । गुरुओजी अइसने अन्नस हका । सोचलूँ हल कि दुझरा पर बैठता त बाल-बुतरू के सँभाले रहता । ..") (मपध॰12:20:51:2.8)
408 बेकहल (महादे - ... अभी तो दुन्नो बेटा भी घर में न हथुन । हमर नाच के देखनिहार अकेले तूँहीं रहबऽ ? / पारबती - {ताना मारइत}आय हाय ! चलनी दुसलक सूप के, जेकरा में बहत्तर छेद ? दुन्नो बेटा बेकहल नियर अप्पन मरजी से जहाँ-तहाँ काम करइत रहऽ हथुन ।) (मपध॰12:20:17:2.15)
409 बेटिहा (= बेटी का पिता या अभिभावक; वधू पक्ष के लोग) (गाँव के ई पहिला बारात हे, जेकरा में खाली झार-फानुस में पच्चीस हजार रुपइया पर तितकी रख देवल गेल । बैंड-बाजा आउ नाच समियाना में जे पैसा लगावल गेल, ऊ बेटिहा के तीन कट्ठा जमीन के बंधक रखे से आयल हे ।; बेचारा बेटिहा के नीन उपह गेल हे । खेवा-खरची चलावे ला परिवार के जे थुम्ही हल ओहो भरभरा के धरती धयले हे । दस कट्ठा नफीस जमीन देखते-देखते रजिस्ट्री ऑफिस में गोल हो गेल ।; बेटिहा के पैसा कौन-कौन रूप में लुटावल जायत, नोट के गड्डी में दियासलाई से तितकी नेसल जायत, सब अन्हरकोठरी में बंद हे ।) (मपध॰12:20:22:1.14, 35, 2.15)
410 बेबोलहटा (~ के) (महादे - ठहरऽ, ठहरऽ । बड़की सउतिन के कहानी तू भुला गेलऽ हे । ऊ बेबोलहटा के जग्ग में गेलथुन हल । उहाँ आदर-सत्कार त दूर, सीधे मुँह से केउ बात भी न कइलन आ अपन देह में आग लगाके उनका जरे पड़ गेलइन हल ।) (मपध॰12:20:19:3.3)
411 बोकरना (नीम ~) (मिठमोहना के देखहीं, कइसे पोट रहलथुन हें, दोसर घड़ी नीम बोकरे लगथुन ।) (मपध॰12:20:14:1.21)
412 बोय (~ फुटना) (अब जाके बोय फुटलइ त समान सब पकड़इलइ ।) (मपध॰12:20:14:1.13)
413 बौंख (= बौंखा, बौंखी; अत्यन्त तेज हवा का झोंका, क्षणिक आँधी; धूल भरी चक्कर काटती आँधी) (हावा के ~) (सोझे खिड़की से हवा के एगो बौंख आएल आउ दिवार पर लगल भगवान के कैलेंडर पलट गेल ।) (मपध॰12:20:26:3.42)
414 बौंखना (मगही में लेख-निबंध लिकेवला भाय-बहिन भी कम-से-कम संदर्भ दे हथ आउ अगर देतन भी त कहाँ के घव आउ कहाँ के पव वला । आदमी बौंखते रहे उनकर फुटनोट में वर्णित संदर्भ ग्रंथ के खोजे में । की मजाल हे कि दस में से पाँचो संदर्भ सही निकल जाय ।) (मपध॰12:20:5:1.19)
415 बौड़म-बुड़बक (ए गेंदाजी ! तों ह भोले बाबा नियन बौड़म-बुड़बक । गंगा मइया के कोई अदना अदमी-देवता संभार सकऽ हइ । जखनी ऊ स्वर्ग से उतरलथिन तखनी हलइ केकरो दम जे कि ऊ माय के संभार सके । शिवे जी न संभरलथिन जी ।) (मपध॰12:20:46:1.29)
416 ब्यौंत (शंकर बाबा जब तांडव करे लगऽ हथिन तब केकरो कोई ब्यौंत न लगऽ हे सिवा टुकुर-टुकुर तके के चाहे कोठी के सान्ही में लुका जायके ।) (मपध॰12:20:45:1.21)
417 भटभटाना (काहे ल भटभटा रहलें ह, एक घंटा से ।) (मपध॰12:20:9:1.23)
418 भद (भद से नीचे गिर गेलइ ।) (मपध॰12:20:8:1.22)
419 भदारना (दुनहुँ भइवा के एकल्ले मार के भदार देलकइ ।) (मपध॰12:20:10:1.17)
420 भरगर (बाबा के भरगर संबोधन से गेंदा पांडे पुलपुला गेला - "हाँ जजमान, अपने ठीके कहऽ हथिन । हम पढ़लिअइ कहाँ जजमान । लिख लोढ़ा पढ़ पत्थल रह गेलिअइ । अपने नियन जजमनका हइ - बाबू-माय मंदिरे में ठेका देलका - गुरुपिंडा के दरसने न भेल । आउ हकियो सरोतरी बर्हामन ।") (मपध॰12:20:46:1.40)
421 भरठना ("कलजुग में वर्णाश्रम धर्म भरठ रहलो ह न । सब वरण अप्पन क्षण बदल देतो । बाभन भीख माँगतो । क्षत्री हर जोततो । वैश्य वीख पादतो आउ शूद्रवन तोरा अइसन के टाँग उठइतो ।" इ कहके बाबा खीं-खीं हँसला आउर गेंदाजी जय जजमान कहके दोसर दुआरी झाँके चलला ।) (मपध॰12:20:46:2.19)
422 भरता (= भुरता) (मिनट के अंदर इ हल्ला, इ तहलका कि कौन खिचड़ी खाय, कौन लुग्गा समेटे, कौन मोटरी सँभारे । गिरते-पड़ते भागल-भागल सभे जने धुनी बर दने आके ठहरला । इ तो खैर समझहु कि पहड़वा के पथलवा थोड़े-बहुत दरदरा के रह गेलइ न तो जइसन ठीक पहड़वे तले भीड़ हलइ - लोगन तो भरते हो जइता हल ।) (मपध॰12:20:45:2.21)
423 भरौंसा (= भरोसा) (अपने से देख आवऽ, दोसर पर भरौंसा नञ् करना चाही ।) (मपध॰12:20:11:2.6)
424 भववधी (आज बारात जा रहल हे । दू गो बस, चार गो कार आउ एगो टरेक्टर के बेवस्था कइल गेल हे । बस पर नवही लोग पहिलहीं से अधिकार जमा लेलन । एगो कार पर दुल्हा दिनेश आउ सब पर हित-नाता, भववधी लोग ।) (मपध॰12:20:21:2.40)
425 भागल-भागल (एतना सुनते हम्मर चचा पर भूत सवार हो गेल । तरबा के लहर कपार - भोनुआ (नौकरवा) के हँकयलका - "लाव तो कोड़वा रे । केकरा पर फूल गेल ह, हमरा पर फूलले ह, आउ केकरा पर दू कौड़ी के गुरु सार ।" गुरुजी इ तेवर देखके अब लेबऽ कि तब लेबऽ - भागल-भागल दू कोस दूर हरसेनिये पहुँच गेला हाँफते-हाँफते । "जान बचल लाखो पइलूँ । जमींदार हीं गुरुअइ करना बाघ के जबड़ा में फँसना हे ।") (मपध॰12:20:51:3.1)
426 भाट-महिन (प्रकृति हे थोड़ा अराजक । थोड़ा अराजक तो कवियन कलाकरवन के होहीं पड़ऽ हे न त उ हो जइता भाट-महिन ।) (मपध॰12:20:49:2.15)
427 भार (~ पड़ना) (पनरह दिन से बड़ी भार पड़ रहलो हे, देह टटा रहलो हे ।) (मपध॰12:20:11:1.5)
428 भाला-गड़ाँसा (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.14)
429 भुखले-पियासले (सरिता के आँख के लोर सुखवो न करऽ हल कि फिर आँसू के तूफान आ जा हल । भुखले-पियासले अपन जिनगी के बारे में सोचित दिन-रात उ घुटइत रहऽ हल ।) (मपध॰12:20:29:2.18)
430 भुखाल (= भुक्खल; भूखा) (अभी फरीचो नञ् होले हे आउ सुरूज महराज के अरग देवहुँ लगलथिन सब भुखाल परवैती लोग ।) (मपध॰12:20:15:1.21)
431 भुचुंग (= भुचंग) (करिया ~, कार ~) (हम्मर नाना काला भुचुंग खाँटी किसान, एकठौए हर जोते वाला । कमे उमर में काल-कवलित हो गेला ।) (मपध॰12:20:50:2.31)
432 भुच्चड़ (सिकंदर महान के सिंधु नदी के तलछट में रहेवाला भुच्चड़ भुजंग कृष्णवर्णी अग्रहरवन रगेद-रगेद के मारे लगलइ ।; इ मगह के भुच्चड़ प्रदेश हे । बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।"; मातृकुल में हम भूकंप लेले अइलूँ । अदमी हकूँ उ गुनी जलम लेलूँ । देवता होतूँ हल त अवतार लेतूँ हल । ... हम तो निखालिस मगहिया भुच्चड़ हलूँ - कार-गोर के मिलल संतति । नानी हल गोर बुर्राक आउ नाना हला कार-करइठा ।) (मपध॰12:20:45:1.15, 46:2.27, 3.33)
433 भुरकुंडा (सत्तू पिसइलो, चाउर भून के घी, राबा मिलाके भुरकुंडा बनलो, चूड़ा-भुँजा, चाउर, दाल, घी, तेल, मिचाई सब हे । हाड़ी-हड़ुला मिल जात त रसोई रंधा जात ।) (मपध॰12:20:48:3.33)
434 भुरकुस (मार के भुरकुस कर देबउ, जहाँ गारी देले हें त । निम्मल-दुब्बर समझ लेलहीं हे ।) (मपध॰12:20:13:1.25)
435 भुस्सा (= भूसा) (बर के खाय के भुस्सा नञ्, बरियाती खोजे चूड़ा ।) (मपध॰12:20:16:1.5)
436 भोंदू (सब तो अउरते हे, पढ़ल-लिखल हे । भोंदू भाव न जाने, पेट भरे से काम । मँड़वा गड़ा गेल, माटी कोड़ा गेल, कोहबर सज गेल, हरदी हाड़ में लगावल जाइत हे । बिआह के गीत केकरो याद न, कैसेट बज रहल हे ।) (मपध॰12:20:22:3.9)
437 भोगारना (दुलहवा लड़कीया के भोगार देलकइ ।) (मपध॰12:20:9:2.11)
438 मंगटीका (मइया लंबी स्वाँस लेके कहऽ हल, "तोरा तो बिआह में मिलवे करतउ । पहिनिहें न ।" / ऊ चुप्पी लगा जा हल । सपना बुने लगऽ हल - पाँव में पायल, कान में झुमका, हात में कंगन, मांग में मंगटीका, नाक में नकबेसर, गला में सोना के चनरहार - सुहाग जोड़ा में लिपटल !) (मपध॰12:20:31:1.18)
439 मइयो-दइयो (बस, हो गेलो मइयो-दइयो, अब गाड़ी में बइठऽ !) (मपध॰12:20:12:1.22)
440 मइला (= मैला, गूह, पाखाना) (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । ... डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो । कुछ क्षण ला दिमाग एकदम सुन्न हो गेलो । उठके भागते-भागते फेर पनिया आ गेलो । ऊ जे बिन पानी के गंगाजी देखलियो ओकरा से आझो दिमाग सनसना जाहे । ऊ गड्ढा, पाँका, मछली, सोंस - कुछ समझ में न आवे । पीठ पर पानी छलछला के पड़लो । मुँह में कादो मइला !) (मपध॰12:20:46:1.6)
441 मगह (= मगध) (मगह में बैकठपुर के शिव मंदिर प्रसिद्ध हे । फागुन अइते गेंदा पंडा आ गेला । जजमान हीं से धान, गेहूँ, धनियाँ, मिरचाई हर साल ले जा हका ।; बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।" ... मगह के तीरथ भी फाजिल में हे, सामान्य स्वाभाविक उन्मेष में न बुझा हे - मलमास मेला अधिकमास में, गया - मरे के बाद में ।; मगह के दुआरी पर आवल कुत्तो के न भगावल जा हे ।) (मपध॰12:20:45:3.13, 46:2.32, 36, 48:2.29)
442 मगहिया (बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।"; मातृकुल में हम भूकंप लेले अइलूँ । अदमी हकूँ उ गुनी जलम लेलूँ । देवता होतूँ हल त अवतार लेतूँ हल । ... हम तो निखालिस मगहिया भुच्चड़ हलूँ - कार-गोर के मिलल संतति । नानी हल गोर बुर्राक आउ नाना हला कार-करइठा ।) (मपध॰12:20:46:2.30, 3.33)
443 मघड़ा (बड़का गोटीवाला चेचक उठे त गामे गाम शीतला माय के प्रलयंकर नाच शुरू हो जाय । मघड़ा (शीतलामाई के मंदिर) जा आउ बतासा-सेनुर चढ़ावऽ । ज्ञान-विज्ञान से कोसों दूर खेत-पथार के जिंदगी । नानी हो आन्हर एही शीतला माय के प्रकोप से ।) (मपध॰12:20:50:3.8)
444 मनमनाल (बूढ़ा शादी करे ले मनमनाल हथुन ।) (मपध॰12:20:8:1.7)
445 मनरा (= मानर) (डाड़ के देउता मनरा पर ।) (मपध॰12:20:15:1.1)
446 ममा (= दादी; दे॰ मामा) (एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।") (मपध॰12:20:51:1.40)
447 ममोसर (= मयस्सर) (गइया बिसुखा गेलइ सेसे कम दूध ममोसर होवऽ हे ।) (मपध॰12:20:8:1.17)
448 मर-मजाक (सभे बराती के दुआर लगावे में परेशान । केकरो दिल-दिमाग हाँथ में नञ् । बराती हे, मर-मजाक होयवे करत ।) (मपध॰12:20:23:2.4)
449 मरहिन्ना (मरहिन्ना काटे गेलथुन हे, साँझ के अइथुन ।) (मपध॰12:20:10:1.24)
450 मलसी (एक मलसी तेल लग गेलइ ।) (मपध॰12:20:8:1.32)
451 महतमाइन (चुप ! कुलबोरनी चारो बगली ढिंढा फुलैले चलतो आउ एहाँ आके महतमाइन बन रहल हे !; ) (मपध॰12:20:15:1.13, 48:3.26)
452 माट (~ मारना) (माट नञ्मारे देबो, लेना हो त लऽ ।) (मपध॰12:20:9:1.21)
453 माड़-भात (जमीन तो गोल होयवे कइल, चेहरा भी गोल, चश्मा भी गोल, मेहरारू के लुग्गा-फट्टा भी गेल । थारी में माड़-भात भी परोसायत तो बिख से भरल । बेटी आयल तो जमीन-जायदाद ला आग के टिकिया भी साथे लेते आयल ।) (मपध॰12:20:22:2.9)
454 मातल (नीन में मातल अदमी के कउन भरोसा ।) (मपध॰12:20:10:1.6)
455 मामू-ममानी (राजगीर में तीलसँकरात के मेला हे । सतधरवा बर्हमकुंड में नहा के मामू-ममानी आउ मौसी चेंगना-मेंगना के साथ आके बजंतरी के पत्ता पर ततले-ततले मकर के खिचड़ी के भाप से हाथ-मुँह जला रहला ह कि हड़हड़-धड़धड़ होवे लगल ।) (मपध॰12:20:45:2.8)
456 मार (~ लाठी; ~ बढ़नी) ('आ मार बढ़नी रे ! भिछनी मेहरारुओ ओही लगन के । माथ पर भर चुरुआ तेल थोप देत आ सुतले-सुतले दाल-रोटी काँड़ी से पिया देत ।' सोनामति फुआ बीड़ी लेलन आ धूँक मारइत टुघरइत चल देलन अपन पलानी में ।) (मपध॰12:20:21:2.4)
457 माल-मुसहर (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।; एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।") (मपध॰12:20:49:1.11-12, 51:2.1)
458 मिठमोहना (मिठमोहना के देखहीं, कइसे पोट रहलथुन हें, दोसर घड़ी नीम बोकरे लगथुन ।) (मपध॰12:20:14:1.21)
459 मिन्नत-मनौअल (व्यापारी वर्ग के लोग से भी भरपूर मिन्नत-मनौअल करे पड़तइ काहे कि बड़ा स्तर पर कोय आंदोलन में पैसा के भी आवश्यकता होवऽ हइ ।) (मपध॰12:20:6:1.17)
460 मिरचाइ ( गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।) (मपध॰12:20:49:1.39)
461 मिरजा (माल महराज के, मिरजा खेले होली ।) (मपध॰12:20:16:1.12)
462 मीर घाट (ईर घाट ... ~) (कातिक तो तोर अगिनबेटा हथुन । निछत्तर लोक में छव किरितिका लोग उनकर पालन-पोसन कइलन हल । कातिक जनमलन ईर घाट, पालल-पोसल गेलन मीर घाट आउ माय कहइली हम ।) (मपध॰12:20:17:2.40)
463 मुँहजबानी (= मुँहजमानी) (हम बराबर (वाणावर) पहाड़ी के बारे में किताब में पढ़ली हल । कुछ लोग मुँहजबानियों एक्कर जिकिर हमरा से करित रहलन हे ।) (मपध॰12:20:43:1.2-3)
464 मुँहजूठी (अरिछन-परिछन, कोहबर के विधि-विधान के बाद दुल्हन के खीर में हाथ डाले ला आउ मुँहजूठी ला सास, ननद, जेठानी, फुफिया सास घिघिया के रह गेलन हल बाकि काननप्रिया एको कोर न खा सकल हल ।; फुफिया सास बोललन हल, "मिलतइन न, जे भाग में होतइन से मिलवे करतइन । पहिले मुँहजूठी के नेग हइ । दुल्हिन के चाही, मुँहजूठी कर लेथ । गोतिया-भाई के खिआवे में देर हो रहल हे । लोग भूखे-पिआसे हथ ।") (मपध॰12:20:32:1.26, 40, 41)
465 मुँहझँपे (बूढ़ी महतमाइन बोलला, "परसों मुँहझँपे चललियो । पंद्रह आदमी के जमात हो । एक रात चंडी ठहरलियो मउसी के बेटी हीं । आज हिंया 'सीमा' में ठहरल हियो । दूर के रिश्तेदार हला - मुदा न चिन्हलका, बगइचे ठीक हे ।") (मपध॰12:20:48:3.26)
466 मुँहदेखनी (मइया का जनी कउची खिया के भेज देलथिन हे कि भूखे न लगलइन हे । मुँहदेखनी का जानी खूब खोजइत होथुन हे, सीतलमनिया । करनफुलवा दे देहुन । नौकरिहा ननद हहूँ ।) (मपध॰12:20:32:1.35)
467 मुरझाल-कुम्हलाल (खेत में कबड्डी जमल हे । दुनहूँ पाटी में बूढ़ा-जवान-उगलरेख सब सेल कबड्डी कर रहला ह । एने मुरझाल-कुम्हलाल मामू हर-बैल लेले बिड़ार जोते ला मुस्तैद हो गेला ।) (मपध॰12:20:50:1.15-16)
468 मुलुर-मुलुर (अपसड़ के खुदाई में मिलल वराह के मूर्ति आउ सौ कोसी तलाब अपने आप में ढेर इतिहास समेटले हे । ई सब विकास के परबत्ती पहाड़ मुलुर-मुलुर देखते आल हे ।) (मपध॰12:20:6:1.2)
469 मेंही (दे॰ मेहिन) (नरेंद्र के लगइत हल कि ओही पास हएलक हे । ऊ रोहित के चाल कइलक आउ पाँच सौ रुपइया देइत कहलक कि बजार से मेंही दाना वाला निमनका लड्डू ले आवे ।) (मपध॰12:20:24:1.17)
470 रजना (खइते-खइते मन रज गेलइ ।; बस करऽ ! अब मन रज गेलो जिलेबी खइते-खइते ।) (मपध॰12:20:12:1.8, 15:1.25)
471 रदबुद (राते भर में रदबुद कर देलकइ एकदम से ।) (मपध॰12:20:12:1.12)
472 रहस (= रहस्य) (पारबती - (मुँह ऐंठ के) रहे द रहे द ! सब देओता के भितरिया रहस हम नीक तरी जानऽ ही । देवलोक में केउ दूध के धोवल न हे ।) (मपध॰12:20:19:1.28)
473 राँड़ (= विधवा) (राँड़ के बेटा साँढ़ नियन ।) (मपध॰12:20:16:1.22)
474 राँड़-मोसमात (= राँड़-मसोमात) (आ दीनानाथ ! जइसे ई राँड़-मोसमात के दहँज रहलो हे छउँड़ी, ओइसहीं एकरा धुएँ के राँड़ कर दिहऽ ।) (मपध॰12:20:15:1.15)
475 राड़ (= नीच; बात या सलाह न मानने वाला; निकम्मा) (~-भोड़; ~-रोहिया) (जमींदारी हे लठमारी तागद के खेल । गेंदा जी बाबा सामने कहथिन, या कहूँ उकसैथिन - देखऽ मालिक । राड़ जात लतियइले । छुछुंदर के माथा में चमेली के तेल लगइबऽ त ऊ आउ छुछुअइतो ।) (मपध॰12:20:51:3.35)
476 राबा (सत्तू पिसइलो, चाउर भून के घी, राबा मिलाके भुरकुंडा बनलो, चूड़ा-भुँजा, चाउर, दाल, घी, तेल, मिचाई सब हे । हाड़ी-हड़ुला मिल जात त रसोई रंधा जात ।) (मपध॰12:20:48:3.33)
477 रिक्ता (= रिक्त {तिथि}) (चौथ चतुरदस नोम्मी रिक्ता, जे जइता से अपने सिखता ।) (मपध॰12:20:16:1.24)
478 रियाह (गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।) (मपध॰12:20:49:1.37)
479 रूपौठी (सुहाग सेज पर बइठल काननप्रिया एक-एक आभूषण उतार देलक हल - कंगन, पहुँची, रूपौठी, नथुनी, कनबाली, चनरहार, पाजेब, बिछिया । सब सुहाग जोड़ा में बाँध के सुहाग-सेज पर एक ओर रख देलक हल । सुहाग-दीप बुझा के बरेठा लगा के घोर अंधकार में डूब गेल हल ।) (मपध॰12:20:30:1.3)
480 रोट (= मोटी मीठी रोटी; देवता-देवी को अर्पण करने का प्रसाद या पकवान) (रोट बन रहले हऽ, आधा घंटा में तैयार हो जइतो ।) (मपध॰12:20:9:1.11)
481 लंगटीनी (जे मरद के साथ ई पेट फुलैलके हे ओकरे घर जाय । ई लंगटीनी के घर से निकाले में फयदा हके ।) (मपध॰12:20:27:2.8)
482 लंगड़ा (= बिच्छा; बिच्छू) (देख लेलहीं हुलचुल्ली के मजा, मरलकउ ने लंगड़ा डंक ।) (मपध॰12:20:13:1.6)
483 लंठ (कपूतवन के संख्या जादे हे त उ बरियारी करतो आउ सपूतवन के कहतो - लंठ, कुलबोरन, अल्हड़-बिगड़ल । बिगड़ल टैम में तो जलमवे कइलूँ हल त बिगड़ल बने में नमहँसी कौची ?) (मपध॰12:20:47:2.15)
484 लगनउती (= बिहउती) (~ साड़ी) (चंद्रकांती लगनउती कपड़ा उतार के माय के सूतीवाला साड़ी पेन्ह लेलक । सिंगार-पटार खँखोर-खँखोर क चुल्हा में डाल देलक ।; का जानी कउन मंतर पढ़वलन कि चंद्रकांती जयमाला मजलिस में जाय ला तइयार हो गेल । फिना से लगनउती साड़ी-लहँगा, चोली-ओढ़नी धारन करके 'खटपरूस' औरत लेखा पाँव बढ़ावित गेल ।) (मपध॰12:20:23:2.11, 28)
485 लगना (= क्रि॰ मवेशियों का दूध देना; हँसी-मजाक या छेड़खानी करना; सं॰ हल की मूठ, परिहथ; भेड़ आदि के झुंड का अगुआ भेड़ - स्त्री॰ लगनी) (भारी झनझन हो, ओकरा से मत लगऽ ।) (मपध॰12:20:11:1.16)
486 लगाना-बझाना (जा, काहे ल लगा-बझा के बोल रहलऽ हे ।) (मपध॰12:20:13:1.20)
487 लछमिनियाँ (ई गाय बड़ी लछमिनियाँ हो, जब से अइलो हे दिन बदल गेलो हे ।) (मपध॰12:20:14:1.5)
488 लठमारी (जमींदारी हे लठमारी तागद के खेल । गेंदा जी बाबा सामने कहथिन, या कहूँ उकसैथिन - देखऽ मालिक । राड़ जात लतियइले । छुछुंदर के माथा में चमेली के तेल लगइबऽ त ऊ आउ छुछुअइतो ।) (मपध॰12:20:51:3.33)
489 लड़कोरी (छोटगर किसान के जिनगी अइसन कि पेउन न छूटे । एने छेद देखाई देलक, पेउन लगइलूँ, तलगु ओने फट गेल । कहाँ-कहाँ सियल जाय । रोग-बिमारी लगले रहे । आधा बुतरू सउरे मरे । पानी पइते आधा लड़कोरी मर जाय । फसली, प्लेग, शूल संघरणी, शीतल ज्वर-वेद फँकी बाँटे बाकि मौते ईश्वर के साम्राज्य रहे ।) (मपध॰12:20:50:2.38)
490 लपलपाना (बकड़िया कुल्ले लतिया लपलपा गेलो ।) (मपध॰12:20:8:1.9)
491 लाय (हमरा लाय बड़ अच्चा लगऽ हइ ।) (मपध॰12:20:9:2.9)
492 लिट्टा (अजलत के खिस्सा, भात पर लिट्टा ।) (मपध॰12:20:16:1.23)
493 लूर-लच्छन (न जी, कउनो खास बात न हे । हम तो तोरे लूर-लच्छन से बरमहल उदास हो जाही ।) (मपध॰12:20:17:1.10)
494 लेखा (घर-घर देखा एके ~) (माय महेसरी लोर चुआवित घिघिआयल - 'चंद्रकांती ! बाप के पगड़ी के लाज बचा लऽ । तोरे ला नफीस दस कट्ठा के पलौट पर टिकिया रख देली । जा सबके बिआह में आझ एहे देखे के मिलइत हे । घर-घर देखा एके लेखा ।') (मपध॰12:20:23:2.21)
495 लोढ़ी-सिलउटी (इहे तरह देखलिअइ कि कत्ते गोटा हीं दुर्लभ मूर्ति लोढ़ी-सिलउटी के रूप में उपयोग में आ रहले हल । ई तो बस एगो नमूना हलइ धरोहर के दुर्दशा के ।) (मपध॰12:20:6:1.32)
496 लोहराइन (लोहराइन गमके के चलते मछली नञ् पसंद करऽ हियो बकि मीट-मुरगा खा हिअइ ।) (मपध॰12:20:14:1.18)
497 लौंडा (बैंड बाजा पर सड़क के किनारे चुहो-चुटरी डांस कर रहल हे । रामटहल लौंडा के फेल कयले हथ ।) (मपध॰12:20:23:1.39)
498 लौंद (मगह के कुंभ हे लौंद ।) (मपध॰12:20:49:1.34)
499 वीख (= बिख, विष) ("कलजुग में वर्णाश्रम धर्म भरठ रहलो ह न । सब वरण अप्पन क्षण बदल देतो । बाभन भीख माँगतो । क्षत्री हर जोततो । वैश्य वीख पादतो आउ शूद्रवन तोरा अइसन के टाँग उठइतो ।" इ कहके बाबा खीं-खीं हँसला आउर गेंदाजी जय जजमान कहके दोसर दुआरी झाँके चलला ।) (मपध॰12:20:46:2.22)
500 शौख (= शौक) (ई घर में बेटा के बिआह करके एको शौख न पूरा होयल । समधी हमर एगो हीत-नाता के पैरपूजी में अच्छा कपड़ा न देलन । बराती के स्वागत-सत्कार में भी कमी रह गेल ।) (मपध॰12:20:31:3.37)
501 सँभरना (परिवार के नीक तरी चलावे के सरजाम तू कभी जुटैलऽ हे ? सब्भे लोग तोर बेढंगी गिरहत्ती के खिल्ली उड़ावऽ हथ । जेकरा से दू गो बेटा न सँभरल, ऊ आउ कउन काम कर सकऽ हे ?) (मपध॰12:20:18:1.19)
502 संघत (= संगत, संगति) (जइसन संघत में लोग बइठऽ हे, ओकर बुद्धि भी ओइसने हो जाहे । जिनगी भर तूँ एक्को लुरगर इयर-दोस रखलऽ ?) (मपध॰12:20:18:2.15)
503 सउर (= प्रसूति-गृह) (जिज्ञासु के सउर में कि डालल गेल ह कि ऊ जिनगी भर घुमक्कड़ बनल हका - भटकत रहना उनकर शगल बन गेल ह ।; छोटगर किसान के जिनगी अइसन कि पेउन न छूटे । एने छेद देखाई देलक, पेउन लगइलूँ, तलगु ओने फट गेल । कहाँ-कहाँ सियल जाय । रोग-बिमारी लगले रहे । आधा बुतरू सउरे मरे । पानी पइते आधा लड़कोरी मर जाय ।) (मपध॰12:20:47:1.30, 50:2.37)
504 सकलदीपी (= शाकद्वीप के निवासी ब्राह्मण; ब्राह्मणों का एक भेद जो चिकित्सा शास्त्र में निपुण होते हैं) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.8)
505 सगहा (~ जात) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.10)
506 सटना-पटना (चल सट-पट के सुत जाम । जाड़ा के तो दिन हइ ।) (मपध॰12:20:12:1.24)
507 सटाक-सटाक (~ मारना) (काहे ल घोंड़वा के सटाक-सटाक मार रहलहो हऽ ?) (मपध॰12:20:8:1.5)
508 सटाना (= चिपकाना, मिलाना, स्पर्श कराना; बकाया सधाना, वसूल करना) (बेटी ! मान जो ! अप्पन हठ छोड़ दे । जउन सामान हम दे चुकली ओकरा सटावे में ठीक न हे । ओकर दाम भी न मिलत ।) (मपध॰12:20:34:1.15)
509 सतुआ (~ जात) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.9)
510 सधाना (महामार काहे कर रहलहीं हे तों सब, असल के होबइ त सधा लेबइ ।) (मपध॰12:20:13:1.16)
511 समुच्चा (= समूचा) (महादे - जदि हम जहर न पीती हल तब समुच्चे संसर भसम हो जात हल । / पारबती - तब बचावे के जिमवारी न लेके समुच्चा संसार के नाश करे के काम तूँ अप्पन माथा पर काहे लादले फिरऽ ह ?) (मपध॰12:20:19:1.14)
512 समुच्चे (= समूचे) (महादे - जदि हम जहर न पीती हल तब समुच्चे संसर भसम हो जात हल । / पारबती - तब बचावे के जिमवारी न लेके समुच्चा संसार के नाश करे के काम तूँ अप्पन माथा पर काहे लादले फिरऽ ह ?) (मपध॰12:20:19:1.12)
513 समुन्नर (= समुन्दर; समुद्र) (पारबती - गाल काहे बजा रहलऽ हे ? तू तो जिनगी भर अलबलाहे रह गेलऽ । समुन्नर के मथे से जे चौदह गो रतन निकलल हल ओकरा में एक भी नीमन चीज तोरा परापित भेल ?) (मपध॰12:20:18:3.44)
514 सम्हारना (= सँभालना) (काला राम के सम्हारल, गोरा गूह के चपोतल ।) (मपध॰12:20:16:1.20)
515 सर-सामान (अब गौना में का होत ? ओकरो में बचल-खुचल तिलक पूरा करे पड़त । सर-सामान से लादे पड़त । गौना में भी अब कम नाज-नखरा न हे ।; हम्मर घर बसवे ला हम्मर बाबूजी के घर उजड़ गेल । ई गहना-गुड़िया, कपड़ा-लत्ता, सर-सामान सब बाबूजी के खून में सनल हे ।; काननप्रिया तब बोलल हल, "त सुन ल माय ! जब तक ई तिलक के सर-सामान हम्मर बाप-माय के लौटा न देबऽ, तब तक हम तोहर घर के अन्न-पानी ग्रहण न करबो, चाहे हम्मर जान काहे न चल जाय ।") (मपध॰12:20:33:1.25, 40, 3.13)
516 सरोतरी (= श्रोत्रिय) (~ बर्हामन) (बाबा के भरगर संबोधन से गेंदा पांडे पुलपुला गेला - "हाँ जजमान, अपने ठीके कहऽ हथिन । हम पढ़लिअइ कहाँ जजमान । लिख लोढ़ा पढ़ पत्थल रह गेलिअइ । अपने नियन जजमनका हइ - बाबू-माय मंदिरे में ठेका देलका - गुरुपिंडा के दरसने न भेल । आउ हकियो सरोतरी बर्हामन ।"/ बाबा के बकार फूटल - "एही तो कलजुग के परभाव हे । तूँ बर्हामन होके न पढ़लऽ । वेद के श्रुति कहल जाहे । तोहनहीं सरोतरी के माने हे जे श्रुति यानी वेद पढ़े ओही सरोतरी हे । बाकि कलजुगवा केकरो छोड़तो बाबाजी ।") (मपध॰12:20:46:2.6, 9, 11)
517 ससारना (लावऽ, ससार दे हियो, दस मिनट में ठीक हो जइबऽ ! अपने न अपना के काम दे हे ।) (मपध॰12:20:13:1.24)
518 ससुरइतिन (सरिता अब ससुरइतिन हो गेल हल । ससुरार में सरिता के खूब मान-मरजाद हल ।) (मपध॰12:20:29:1.24)
519 सानी (बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।" ठीके सानी चलावे ला श्री महतो उठथुन त हल्ला करथुन - "उठ रे ! उठ ! अरे महवा, इनरा उठ ! भुरुकवा उग गेलउ ।") (मपध॰12:20:46:2.33)
520 सान्ही (शंकर बाबा जब तांडव करे लगऽ हथिन तब केकरो कोई ब्यौंत न लगऽ हे सिवा टुकुर-टुकुर तके के चाहे कोठी के सान्ही में लुका जायके ।) (मपध॰12:20:45:1.23)
521 सायत (= शायद) (हम्मर बाबा हलन छोटे-मोटे जमींदार बाकि जमींदारी के ठस्सा कि होवऽ हे इ हम खूब जान गेलूँ । छोटे घर के हम्मर माई ई बड़का घर में का का भोगलक - इ बखाने में सायत बेचारी सरसती लजा जइथन ।) (मपध॰12:20:51:1.28)
522 सासत (चंद्रकांती के का पता माय-बाप के एतना सासत भोगे पड़ित हे । देह में हरदी के उबटन तो लगल बाकि दिल-दिमाग भी पियरा गेल । तोरी फुला रहल हे सबके आँख में ।) (मपध॰12:20:22:2.13)
523 सीटना (= डींग हाँकना) (जादे सीटे के कोरसिस नञ् कर, हम तोहनिन के बारे में सब जानऽ हिअउ ।) (मपध॰12:20:11:2.19)
524 सुक्कुर (= शुक्र ग्रह) (बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।" ठीके सानी चलावे ला श्री महतो उठथुन त हल्ला करथुन - "उठ रे ! उठ ! अरे महवा, इनरा उठ ! भुरुकवा उग गेलउ ।") (मपध॰12:20:46:2.32)
525 सुखाड़ (= अनावृष्टि) (असाढ़ माह में अकास में बादर देख के किसान जतने खुश होके मोर लेखा नाचऽ हे ओतने सुखाड़ के अंदेशा से घबड़ाइत भी रहऽ हे । तिलेसरी माय के हिया हाँड़ी के अदहन लेखा खउलइत रहइत हे ।) (मपध॰12:20:22:3.33)
526 सुटकल (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । हम गंगाजी में नहा रहलियो हल । सूरज भगवान ई जड़वो में तावे में हला । भोरे से सुटकल हलूँ । सोचलियो - अब जरा दिनमा गरमयले ह त मकर के नहान कर लूँ । बाकि डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो ।) (मपध॰12:20:45:3.23)
527 सुन्न (दिमाग ~ होना) (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । हम गंगाजी में नहा रहलियो हल । सूरज भगवान ई जड़वो में तावे में हला । भोरे से सुटकल हलूँ । सोचलियो - अब जरा दिनमा गरमयले ह त मकर के नहान कर लूँ । बाकि डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो । कुछ क्षण ला दिमाग एकदम सुन्न हो गेलो ।) (मपध॰12:20:45:3.28)
528 सुरूम (= शुरू) (तोरा तो केउ नाच सिखइबो न कइलक हे ! तूँ तो अप्पन बुद्धि से लास्य नाच सिरजलऽ आ कइलऽ हे । हम तो तंड नाम के रिसी से सीख के तांडो नाच सुरूम कइली हल ।) (मपध॰12:20:17:2.1)
529 सूखना-पखना (अपने के ई जान के हैरानी होतइ कि जउन देश में भात खाय के चलन नञ् हइ ऊ देश में डब्बाबंद माड़ बिक रहले हे । त अमरीका माड़ बेच सकले हे आउ हमनहीं गुड़मार आउ भुइआँवला जइसन औषधीय पौधा के सूख-पख जाय दे रहलिए हे ।) (मपध॰12:20:6:1.35)
530 सेल कबड्डी (खेत में कबड्डी जमल हे । दुनहूँ पाटी में बूढ़ा-जवान-उगलरेख सब सेल कबड्डी कर रहला ह । एने मुरझाल-कुम्हलाल मामू हर-बैल लेले बिड़ार जोते ला मुस्तैद हो गेला ।) (मपध॰12:20:50:1.15)
531 सेवायदम (= हमेशा) (सेवायदम बोकराती करते रहऽ हें, ई ठीक नञ् लगउ ।; डोमिनियाँ के लाजो-गरान नञ् लगइ, सेवायदम चकरचाल में रहऽ हइ ।) (मपध॰12:20:12:1.2, 14.1.14)
532 सैंताना (= 'सैंतना' का अ॰ रूप) (उधर बराती के चेहरा पर काटऽ तो खून न । सबके होश-हवाश गुम । उधम मचावल बोतल में सैंताय लगल । ऊ एकरा, ई एओकरा पर कीचड़ उछाले में मशगूल ।) (मपध॰12:20:23:2.33)
533 सोंस (= एक बड़ा जलजंतु; खर्राटा) (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । ... सोचलियो - अब जरा दिनमा गरमयले ह त मकर के नहान कर लूँ । बाकि डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो । कुछ क्षण ला दिमाग एकदम सुन्न हो गेलो । उठके भागते-भागते फेर पनिया आ गेलो । ऊ जे बिन पानी के गंगाजी देखलियो ओकरा से आझो दिमाग सनसना जाहे । ऊ गड्ढा, पाँका, मछली, सोंस - कुछ समझ में न आवे ।) (मपध॰12:20:46:1.4)
534 सोम (= सूम, कंजूस) (नड़ी सोम हो, पचासो रुपइया नञ् देतो ।) (मपध॰12:20:14:1.12)
535 स्टील-फस्टील (कउची मिलल ? समधी हमरा हगू देलन की । फलना जगह से एतना मिलतइ हल । अर्त्तन-बर्त्तन भी सब देखउआ हे । टिकाऊ एको न हे । स्टील-फस्टील लोहा ही तो हे । हम शीतलमनिया के बरतन देली हल । सात कुरसी तक ओकरा कुछ न होत ।) (मपध॰12:20:33:1.25)
536 हगना (लालाजी के प्रातकाली सुनहुँ । अभी भुरुकवा उगवे कइलइ कि लालाजी पीतर के लोटा लेके खंधा से हो अइला । ई कर्म के हिंया झाड़ा फिरना, दिसा फिरना कहल जाहे । कोई-कोई कहथुन 'मैदान गेलियो हल ।' औरत कहऽ हे एकरा 'बाहर जाना ।' हिंया बुतरू सब हग्गऽ हे ।) (मपध॰12:20:51:1.11)
537 हगना-मूतना (हम अभी चार-पाँच बच्छर के हूँ । लंगटे उठलूँ (बिस्टी सुतले में फेंका गेल) आउ हग्गे-मूते ला दौड़ल सिलाव-राजगीर सड़क पर पहुँच गेलूँ कि देखऽ हियो - बाप रे बाप ! ढेर सा जन्नी-मरद, बूढ़ा पीठ पर बुतरू लादले लबादा ओढ़ले चलल जाहे पैदले-पैदले, डोलते-डालते, अहिस्ते-अहिस्ते ।) (मपध॰12:20:48:1.23)
538 हगू (= ?) (कउची मिलल ? समधी हमरा हगू देलन की । फलना जगह से एतना मिलतइ हल । अर्त्तन-बर्त्तन भी सब देखउआ हे । टिकाऊ एको न हे । स्टील-फस्टील लोहा ही तो हे । हम शीतलमनिया के बरतन देली हल । सात कुरसी तक ओकरा कुछ न होत ।) (मपध॰12:20:33:1.23)
539 हड़हड़-धड़धड़ (राजगीर में तीलसँकरात के मेला हे । सतधरवा बर्हमकुंड में नहा के मामू-ममानी आउ मौसी चेंगना-मेंगना के साथ आके बजंतरी के पत्ता पर ततले-ततले मकर के खिचड़ी के भाप से हाथ-मुँह जला रहला ह कि हड़हड़-धड़धड़ होवे लगल ।) (मपध॰12:20:45:2.12)
540 हड़ास-हड़ास (अब रोमा के पूर्ण विश्वास हो गेल हल कि अब रवि ई जनम में न सुधरत । यही सोच के रोमा बरमदा में आके अप्पन एगो सूती साड़ी लम्बा-लम्बा दू टुकड़ा में फाड़ देल आउ रवि के पलंग में वही साड़ी से सुतले में बाँध के ओकर सिर पर मुंगड़ी से हड़ास-हड़ास प्रहार करे लगल ।) (मपध॰12:20:37:3.16)
541 हबहब (ठीक से देखे दे । उठान आउ मुठान से अदमी आउ जानवर के पहचान होवऽ हइ, ढेर हबहब नञ् कर ।) (मपध॰12:20:15:1.4)
542 हर-हरमेसा (हर-हरमेसा तोरा पर दाबा आ भरोसा करके हमरा पछताय आ सरमाय पड़ल हे ।) (मपध॰12:20:17:1.15)
543 हलकानी (= परेशानी; थकावट) (बाबूजी के हलकानी देखके, माय-बहिन के दहदही महसूस के, ऊ अब ले कोई निर्णय तक न पहुँच सकल, एकरा ला अपना के कोस रहल हे, आँसू के घूँट पी रहल हे बाकि ई जिनगी के लाश कब ले ढोयत ।) (मपध॰12:20:22:3.19)
544 हहाना (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । हम गंगाजी में नहा रहलियो हल । सूरज भगवान ई जड़वो में तावे में हला । भोरे से सुटकल हलूँ । सोचलियो - अब जरा दिनमा गरमयले ह त मकर के नहान कर लूँ । बाकि डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो । कुछ क्षण ला दिमाग एकदम सुन्न हो गेलो ।) (मपध॰12:20:45:3.25)
545 हाँक (~ सुनना) (कतनो धात-धात करते रहबो त हाँक सुनऽ हइ थोड़े ?) (मपध॰12:20:15:1.6)
546 हागा (हागा अगुर बाघा की ।) (मपध॰12:20:16:1.2)
547 हाड़ी-हड़ुला (सत्तू पिसइलो, चाउर भून के घी, राबा मिलाके भुरकुंडा बनलो, चूड़ा-भुँजा, चाउर, दाल, घी, तेल, मिचाई सब हे । हाड़ी-हड़ुला मिल जात त रसोई रंधा जात ।) (मपध॰12:20:48:3.35)
548 हाथ-समाँग (भारी लग रहलो हऽ त छोड़ दे, अभी हमर हाथ-समाँग गल्लल नञ् हे ।) (मपध॰12:20:11:1.21)
549 हिआँ-हुआँ (उ जमाना में इ नगर के सामरिक सुरक्षा लगी पाषाण घेराबंदी से परिवृत हल जेकर चिन्हा आझो राजगीर के पंच पर्वतीय क्षेत्र में हिआँ-हुआँ देखल जा सकऽ हे ।) (मपध॰12:20:38:2.17)
550 हुरपेटना (हमरा जनकारी हे कि अप्पन इयार-दोस के हुरपेटला पर तूँ हरमेसा बहरसी ई नाच देखावऽ हऽ ।) (मपध॰12:20:17:2.7)
551 हुलचुल्ली (देख लेलहीं हुलचुल्ली के मजा, मरलकउ ने लंगड़ा डंक ।) (मपध॰12:20:13:1.6)
552 होरी-चइता ('आय फुआ ! आगे तो बतयवे न कइलऽ । कलजुगिया चौपाल सबके दलान पर लग जायत । बड़-जेठ मुँह लुका लेतन । उधर नया-नया होरी-चइता गवाये लगत । दस बजल कि सब झूमइत अपन मेहरारू के गोड़थारी में ।' रामटहल कहइत-कहइत बेयग्गर हो गेलन ।) (मपध॰12:20:21:2.1)
311 पचल (बड़ी मैल पचल हइ एकरा में ।) (मपध॰12:20:9:2.7)
312 पछिया (टॉल्सटाय अप्पन भटकन के नाम देलका पुनर्जागरण । सच्चे इ जिनगी प्रयोगात्मक हे । लीक पीटेवाला जन-जन प्रवाही जीव हे । बिना पेंदी के लोटा, बिना गाँड़ के टेहरी, बिना पतवार के नाव, पुरवइया चले लगल त पच्छिम रुखे बहे लगलूँ, पछिया चले लगल त पूरब दने बहे लगलूँ ।) (मपध॰12:20:47:2.1)
313 पटपटाना (आधे घंटा में सब पटपटा के मर गेलइ ।; सब के मारके पटपटा देलकइ ।) (मपध॰12:20:10:1.21, 13.10)
314 पटाल (मोटूमल पटाल हलखुन, बोललखुन कि कपड़ा पेन्ह के आवऽ हिअउ ।) (मपध॰12:20:11:1.3)
315 पनकी (पनकी लग के मर गेलइ गइया, कतनो दवा-दारू करवइलिअइ, फयदा नञ् होलइ ।) (मपध॰12:20:14:1.19)
316 पन्हेतल (~ भात) (पन्हेतल भतवा में गुंडिया ना के खइलिअइ ने माय, जे पेटवा में डहडही दे रहलइ हे ।) (मपध॰12:20:14:1.1)
317 परगंगिनियाँ (< परगंगिनी/ परगंगनी + 'आ' प्रत्यय) (परगंगिनियाँ काहे ले चनचना रहले ह ?) (मपध॰12:20:11:1.22)
318 पर-पंडाल (अपने ई बात भी स्पष्ट जानऽ हथिन कि अपने जदि होता हथिन त हम यज्ञाचार्य के भूमिका में हिअइ । यज्ञ ले भिक्षाटन भी हमरे करे पड़ऽ हे आउ पर-पंडाल भी हमरे बनवावे-सजवावे पड़ऽ हे ।) (मपध॰12:20:4:1.11)
319 परवैती (= पर्व करनेवाली स्त्री) (अभी फरीचो नञ् होले हे आउ सुरूज महराज के अरग देवहुँ लगलथिन सब भुखाल परवैती लोग ।) (मपध॰12:20:15:1.21)
320 परसौत (हम जलमलूँ हल भूकंपे के कंपन से घनघोर विपदा पड़ल रात में । राजगीर से हाँफते-पाँफते लोग गाम अइला । जने देखऽ ओने टूटल घर हे । लोग चोट खाल हका । घाव-लहू के देखना पूरा महीना के परसौत ला केतना डरावना हे ।) (मपध॰12:20:47:1.22)
321 परहेज ( गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।) (मपध॰12:20:49:1.39)
322 पलानी (= झोपड़ी) ('आ मार बढ़नी रे ! भिछनी मेहरारुओ ओही लगन के । माथ पर भर चुरुआ तेल थोप देत आ सुतले-सुतले दाल-रोटी काँड़ी से पिया देत ।' सोनामति फुआ बीड़ी लेलन आ धूँक मारइत टुघरइत चल देलन अपन पलानी में ।) (मपध॰12:20:21:2.8)
323 पल्लो (= पल्लव) (आम के ~) (सरिता के सखी-सलेहर बिआह के गीत गा रहलन हल । गाड़ल हरियर बाँस, जेकर फुतुंगी पर बान्हल आम के पल्लो । गोहमाठी से छावल मड़वा, जेकरा में आम के घुँच्चा लटक रहल हल ।) (मपध॰12:20:29:1.5)
324 पव (मगही में लेख-निबंध लिकेवला भाय-बहिन भी कम-से-कम संदर्भ दे हथ आउ अगर देतन भी त कहाँ के घव आउ कहाँ के पव वला । आदमी बौंखते रहे उनकर फुटनोट में वर्णित संदर्भ ग्रंथ के खोजे में । की मजाल हे कि दस में से पाँचो संदर्भ सही निकल जाय ।) (मपध॰12:20:5:1.19)
325 पसेरी (सपूत कातिक ताँबा पैदा करऽ हथुन । ऊ अब तक के कै पसेरी ताँबा मा कइलन हे ?) (मपध॰12:20:20:1.11)
326 पहरोपा ('कहिया पहरोपा होबत, कहिया नकपाँचे होबत' इ चिंता हे छोटकू जिज्ञासु के । काहे कि पहरोपा दिन फुलौड़ी-भात, नकपाँचे दिन दूध-लावा याद आ जाहे ।) (मपध॰12:20:50:1.17, 19)
327 पाँका (= पाँको, पंक; कीचड़) (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । ... सोचलियो - अब जरा दिनमा गरमयले ह त मकर के नहान कर लूँ । बाकि डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो । कुछ क्षण ला दिमाग एकदम सुन्न हो गेलो । उठके भागते-भागते फेर पनिया आ गेलो । ऊ जे बिन पानी के गंगाजी देखलियो ओकरा से आझो दिमाग सनसना जाहे । ऊ गड्ढा, पाँका, मछली, सोंस - कुछ समझ में न आवे ।) (मपध॰12:20:46:1.3)
328 पाँड़े (पाँड़े के गाय नञ् होले हल, बलाइए होले हल ।) (मपध॰12:20:16:1.10)
329 पाँय-पाँय (चलाके देखहो ने चाहे पाँय-पाँय बोलहो, अपने डेगा-डेगी देवे लगतो ।) (मपध॰12:20:15:1.12)
330 पाटा (= पाट; जानवरों का एक रोग जिसमें शरीर से द्रव रिसता है) (~ फुटना) (बैलवन के पाटा फुट गेलो हे, सेसे टरेक्टर से खेत जोवावे पड़लो ।) (मपध॰12:20:10:2.8)
331 पाठी (महरानी मइया फूस के मड़इयो में खुश । मनकामना पूर्ण होवे त देवी माय के पाठी पड़े । पालल पाठी के देना आत्म बलिदान हे । रेल चलल त बुतरुअन गावे - झझे काली झझे काली, चल कलकत्ता देबउ पाठी ।) (मपध॰12:20:46:3.21, 24)
332 पानी-पवइया (~ नारी) (उ टैम में बाल-बुतरु जादेतर ननिहाले में पइदा होवऽ हल । एगो प्रथा हलइ कि पहिलौंठ बुतरु नानीघर में जलमे । शायत इ मातृसत्तात्मक स्मृति के पदचिह्न हल । पितृकुल मानहू अस्वाभाविक, असंगत आउर अधिकारवादी रहे पानी पवइया नारी जाति ला ।) (मपध॰12:20:46:3.9)
333 पार-घाट (चलऽ ! पार-घाट लग गेलइ । छुच्छा के राम रखबार ।) (मपध॰12:20:15:1.17)
334 पुरकस (भाषा कउनो रहे, गद्य लिखेवला से पद्य रचेवला के संख्या जादे होवे करऽ हइ बकि ऊ भाषा के साहित्य के दोसर विधा के रचनाकार के संख्या जब तक उटेरा नियन रहतइ तब तक ऊ भाषा के पुरकस विकास नञ् हो पइतइ ।) (मपध॰12:20:5:1.5)
335 पुरवइया (टॉल्सटाय अप्पन भटकन के नाम देलका पुनर्जागरण । सच्चे इ जिनगी प्रयोगात्मक हे । लीक पीटेवाला जन-जन प्रवाही जीव हे । बिना पेंदी के लोटा, बिना गाँड़ के टेहरी, बिना पतवार के नाव, पुरवइया चले लगल त पच्छिम रुखे बहे लगलूँ, पछिया चले लगल त पूरब दने बहे लगलूँ ।) (मपध॰12:20:47:1.40)
336 पुलपुलाना (बाबा के भरगर संबोधन से गेंदा पांडे पुलपुला गेला - "हाँ जजमान, अपने ठीके कहऽ हथिन । हम पढ़लिअइ कहाँ जजमान । लिख लोढ़ा पढ़ पत्थल रह गेलिअइ । अपने नियन जजमनका हइ - बाबू-माय मंदिरे में ठेका देलका - गुरुपिंडा के दरसने न भेल । आउ हकियो सरोतरी बर्हामन ।") (मपध॰12:20:46:1.40)
337 पूजा-पाहुर (गनेस के तूँ किरनिये बुझलऽ हे ? ऊ देओता लोग के विनायक हे । ओकर भाग तो देखऽ ! जग्ग-परोजन इया नया काम में हमनी के पहिले ओकरे पूजा-पाहुर सब जगह होवऽ हे ।) (मपध॰12:20:17:3.21)
338 पेउन (~ लगाना) (छोटगर किसान के जिनगी अइसन कि पेउन न छूटे । एने छेद देखाई देलक, पेउन लगइलूँ, तलगु ओने फट गेल । कहाँ-कहाँ सियल जाय ।) (मपध॰12:20:50:2.34, 35)
339 पेटकुनिएँ (एतना कहके दउड़ल तो कोहबर में पेटकुनिएँ आके तब तक सुबकइत रहल जब ले बरात लौट न गेल ।) (मपध॰12:20:23:3.40)
340 पेटकुनियाँ (~ नाधना) (सती प्रथा बंद हो गेल । दास प्रथा इतिहास के विषय बन के रह गेल । जमींदारी पेटकुनियाँ नाधले हे । सामंती प्रथा घुनसारी में झोंकल जा रहल हे । गान्ही जी अजादी दिऔलन बाकि औरत के उद्धार अब ले न होल ।) (मपध॰12:20:22:2.31)
341 पेटपीरी (गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।) (मपध॰12:20:49:1.37)
342 पेन्हना-ओढ़ना (तोरा तो न खाय के ठेकान रहऽ हे, न पेन्हे-ओढ़े के सहूर । चौबीसो घंटा भाँग खाय आ धथूर चिबावे से फुरसत रहऽ हवऽ ?) (मपध॰12:20:18:1.43)
343 पेहनना (= पेन्हना; पहनना) (इ मेलवा भी अजब बिडंबना हे । सौंसे बगइचा में अटान न हे । लाल-लाल साड़ी में जमनकिन हका - बूढ़ियन भी कम न हका, छौंहिन घंघरा-चोली में चमकल चलऽ हे, बढ़-बूढ़ा भी चमरौंधा जूता पेहनले धोती-कुर्ता, फेटा के दमकयले हकइ ।) (मपध॰12:20:49:1.3)
344 पैंचना (= मिले दानों को सूप आदि से फटककर पछोरना; अन्न के मिले दानों को छाँटना या हिगराना) (राय पैंच रहलियो हे, अभी नञ् जइबो ।) (मपध॰12:20:9:1.13)
345 पैंतरा (~ मारना) (दहनी प्रसव पीड़ा से कराह रहल हल । दरवाजा पर सास आउ ननद निहार-निहार के एने-ओने के बात कर रहल हल । दरवाजा के बाहर ओकर ससुर अप्पन भाय के साथ ताड़ी के छाँक लगावे के पैंतरा मार रहल हल ।) (मपध॰12:20:27:1.3)
346 पैंतराबाजी (सबेरे पैखाना जाय के राह में पारो महतो आउ ओकर परिवार के पैंतराबाजी के कारण जानके पारो महतो आउ ओकर माय सनिचरी पर बालक सिंह नराज होके बोलला - "चलनियाँ दुस्से हे बड़हनियाँ के । गजब के जमाना हो गेल । अरे ऊ दरद में परेसान हे आउ तोहनी, एकर पेट नञ् ओकर पेट, बोल रहलें हे । दहनी जो अप्पन माय-बाप के पास ।") (मपध॰12:20:27:2.39)
347 पोटना (= फुसलाना, बहलाना) (मिठमोहना के देखहीं, कइसे पोट रहलथुन हें, दोसर घड़ी नीम बोकरे लगथुन ।) (मपध॰12:20:14:1.21)
348 प्रातकाली (लालाजी के प्रातकाली सुनहुँ । अभी भुरुकवा उगवे कइलइ कि लालाजी पीतर के लोटा लेके खंधा से हो अइला । ई कर्म के हिंया झाड़ा फिरना, दिसा फिरना कहल जाहे । कोई-कोई कहथुन 'मैदान गेलियो हल ।' औरत कहऽ हे एकरा 'बाहर जाना ।' हिंया बुतरू सब हग्गऽ हे ।) (मपध॰12:20:51:1.5)
349 फटल-पुरान (धीरे-धीरे ओकर बाप कंजूस के धोकड़ी हो गेलन हल । एक-एक पैसा जोड़े लगलन हल । पर्व-त्योहार में भी साड़ी-साया मुहाल हो गेल हल । ओकर माय आउ ऊ फटल-पुरान पहने लगल हल । जउन काननप्रिया दिन में चार बार पाउडर आउ आलता से गोड़-हाँथ रंगऽ हल, ओकरा साबुन तक मुहाल हल ।) (मपध॰12:20:31:2.32)
350 फरल (मुँह फरल हो सेसे बोलल नञ् जा रहलो हे ।) (मपध॰12:20:8:1.3)
351 फल्हारना (जल्दी से फल्हार दे बेटा ! सब कपड़वन बोजके रख देलिअउ हे सरऽफा में ।) (मपध॰12:20:15:1.19)
352 फसली (छोटगर किसान के जिनगी अइसन कि पेउन न छूटे । एने छेद देखाई देलक, पेउन लगइलूँ, तलगु ओने फट गेल । कहाँ-कहाँ सियल जाय । रोग-बिमारी लगले रहे । आधा बुतरू सउरे मरे । पानी पइते आधा लड़कोरी मर जाय । फसली, प्लेग, शूल संघरणी, शीतल ज्वर-वेद फँकी बाँटे बाकि मौते ईश्वर के साम्राज्य रहे ।) (मपध॰12:20:50:2.38)
353 फाजिल (= अतिरिक्त) (बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।" ... मगह के तीरथ भी फाजिल में हे, सामान्य स्वाभाविक उन्मेष में न बुझा हे - मलमास मेला अधिकमास में, गया - मरे के बाद में ।) (मपध॰12:20:46:2.36)
354 फुतुंगी (सरिता के सखी-सलेहर बिआह के गीत गा रहलन हल । गाड़ल हरियर बाँस, जेकर फुतुंगी पर बान्हल आम के पल्लो । गोहमाठी से छावल मड़वा, जेकरा में आम के घुँच्चा लटक रहल हल ।) (मपध॰12:20:29:1.4)
355 फुफिया-सास (= फुफसस) ("नया-नोहर हथ । हमनी का कह सकऽ ही ? तू जाके पुछहुँ न, का बात हे ?" काननप्रिया के सास कहलन हल ।/ "तूँहीं जाके पुछहुँ । सास हहूँ । बड़-जेठ हहूँ ।" फुफिया सास कहलन हल ।) (मपध॰12:20:32:3.39)
356 फुलौड़ी-भात ('कहिया पहरोपा होबत, कहिया नकपाँचे होबत' इ चिंता हे छोटकू जिज्ञासु के । काहे कि पहरोपा दिन फुलौड़ी-भात, नकपाँचे दिन दूध-लावा याद आ जाहे ।) (मपध॰12:20:50:1.20)
357 फुसना (बिना उद्घाटन के आज फुसनो-सा काम प्रारम्भ न हो रहल हे । चाहे कोई काम सरकारी हो या गैर-सरकारी बाकि उद्घाटन जरूर हो रहल हे ।) (मपध॰12:20:41:1.7)
358 फुसुकना (उनके मेहरारू महेसरी भी आ गेल । बेना डोलावित फुसुकलक - 'तू गाँव में रेंगनी के काँट लगावइत चलइत ह । गाँव के नवही बिरबिरायल हथुन सब । ऊ सब का खा-पी के जइतइ, का पेन्ह-ओढ़ के अपन मुराद पूरवतइ एकरा से तोरा लेना-देना का !') (मपध॰12:20:21:2.12)
359 फूलल-अंकुड़ल (एक दफे नदी के पानी ला झगड़ा भेल । नीचे के बाभन सब नदी के कच्चा बाँध काटे ला कटिबद्ध रहथन । गोबार भाई हजारन के संख्या में जुटलन । ... बस फूलल-अंकुड़ल चना सब खाथन आउ डंड पेलथन । काहे ला त बाभन सब अइता । बाँध नहिये कटल । अइसे भी बाभन चूतड़-चलाँक जात । मरे-मारे से जादे उनखा लड़वावे-फँसावे में महारत हासिल हे ।) (मपध॰12:20:49:1.25)
360 फेटा (= पगड़ी) (इ मेलवा भी अजब बिडंबना हे । सौंसे बगइचा में अटान न हे । लाल-लाल साड़ी में जमनकिन हका - बूढ़ियन भी कम न हका, छौंहिन घंघरा-चोली में चमकल चलऽ हे, बढ़-बूढ़ा भी चमरौंधा जूता पेहनले धोती-कुर्ता, फेटा के दमकयले हकइ ।) (मपध॰12:20:49:1.5)
361 फैट (मार फैट के थूर देबउ ।) (मपध॰12:20:11:1.26)
362 फोकराइन (फोकराइन गमक रहलो हे दीदी, हम नञ् लेबो गोदी ।) (मपध॰12:20:14:1.16)
363 बँसेड़ी (= बसेढ़ी) (हम तो एकरा एगो मरद से बँसेड़ी तर बात करते देखलूँ हल, मुदा आझ तो साफ हो गेल कि एकर पेट हम्मर पोता के नञ् हे ।) (मपध॰12:20:27:2.12)
364 बंड-संड (काननप्रिया हँसके कहऽ हल, "हम मर जइबइ बाबूजी ।" ओकर मइया भी कहऽ हल, "मर जो न गे । असीआर होइत हहीं । इनका से कुछो न जुमइत हइन । हमनी दूनो मर जो । बंड-संड रहतथु । खूब सौख-मौज करे ला होतइन । बिआह काहे ला कइलऽ हल ।" ओकर बाप हँसके कहऽ हलन, "दूनो माय-बेटी पेर देलें । कभी साड़ी त कभी सलवार-कमीज त कभी गहना । केतना फरमाइश पूरा करी ।") (मपध॰12:20:31:2.22)
365 बउआना-ढउआना (पिरथीवी के परिकरमा में सभे देओता बउआइत-ढउआइत रह गेलन हल । बाकि हम्मर गनेस 'राम-राम' लिखके अप्पन मूसक वाहन पर बइठ के एक चक्कर लगाके सभनिन के कान काट लेलक हल ।) (मपध॰12:20:18:1.2)
366 बजंतरी (~ के पत्ता) (राजगीर में तीलसँकरात के मेला हे । सतधरवा बर्हमकुंड में नहा के मामू-ममानी आउ मौसी चेंगना-मेंगना के साथ आके बजंतरी के पत्ता पर ततले-ततले मकर के खिचड़ी के भाप से हाथ-मुँह जला रहला ह कि हड़हड़-धड़धड़ होवे लगल ।) (मपध॰12:20:45:2.10)
367 बजनियाँ (आज बारात जा रहल हे । दू गो बस, चार गो कार आउ एगो टरेक्टर के बेवस्था कइल गेल हे । बस पर नवही लोग पहिलहीं से अधिकार जमा लेलन । एगो कार पर दुल्हा दिनेश आउ सब पर हित-नाता, भववधी लोग । टरेक्टर पर बजनियाँ आउ सर-समान ।) (मपध॰12:20:22:1.9)
368 बज्जड़ (धड़धड़ी के ~) (जन्नी-मरद तो जादे बाहरे हला मुदा फलिस्ता आउ बूढ़ा-बूढ़ी काल के गाल में समा गेला । चिड़ारी पर मुरदा ला जगह घट गेल । अइसन मातम हल कि लोग कहथन एही हे भगवान महेश्वर के कोप, धड़धड़ी के बज्जड़ ।) (मपध॰12:20:45:3.8)
369 बड़-जेठ ('आय फुआ ! आगे तो बतयवे न कइलऽ । कलजुगिया चौपाल सबके दलान पर लग जायत । बड़-जेठ मुँह लुका लेतन । उधर नया-नया होरी-चइता गवाये लगत । दस बजल कि सब झूमइत अपन मेहरारू के गोड़थारी में ।' रामटहल कहइत-कहइत बेयग्गर हो गेलन ।; "नया-नोहर हथ । हमनी का कह सकऽ ही ? तू जाके पुछहुँ न, का बात हे ?" काननप्रिया के सास कहलन हल ।/ "तूँहीं जाके पुछहुँ । सास हहूँ । बड़-जेठ हहूँ ।" फुफिया सास कहलन हल ।) (मपध॰12:20:21:1.30, 32:3.38)
370 बड़-बड़कोर (आँगन में इधर-उधर दहेज में मिलल समान रखल हल - टीवी, पंखा, रेफरिजरेटर, सिलाई मशीन, धुलाई मशीन, अर्त्तन-बर्त्तन, बड़-बड़कोर, स्टील के संदूक, गोदरेज के अलमारी, सोफासेट, एक ओरे हीरो होंडा मोटर साइकिल खाड़ हल ।) (मपध॰12:20:32:2.15)
371 बढ़मा (= ब्रह्मा) (बढ़मा, बिसुन आ किसन जी तो वनमाला पेन्हऽ हथ बाकि तूँ तो मुंडमाला पेन्हबऽ ! हर घड़ी तूँ उल्टे गंगा बहावऽ हऽ !) (मपध॰12:20:18:2.3)
372 बतकही (एगो बूढ़ बोलल - 'बतकही छोड़ऽ । जयमाला के आनंद उठावऽ । लड़की पढ़ल-लिखल गुनगर हे । जयमाला के कोई नया तौर-तरीका देखावत ।') (मपध॰12:20:23:3.9)
373 बतासा-सेनुर (बड़का गोटीवाला चेचक उठे त गामे गाम शीतला माय के प्रलयंकर नाच शुरू हो जाय । मघड़ा (शीतलामाई के मंदिर) जा आउ बतासा-सेनुर चढ़ावऽ । ज्ञान-विज्ञान से कोसों दूर खेत-पथार के जिंदगी । नानी हो आन्हर एही शीतला माय के प्रकोप से ।) (मपध॰12:20:50:3.9)
374 बनच्चर (एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।") (मपध॰12:20:51:1.37)
375 बनौड़ी (= जैसे-तैसे बनाई वस्तु; दे॰ बनौरी) (गंगाजी के दखिन छोर मगह दने अपवित्र मानल जाहे । पंडीजी लोग के बनौड़ी अइसने हे । कारण हे मगह के बुद्ध-जैन दर्म से प्रभावित रहना ।) (मपध॰12:20:48:2.14)
376 बर-विचार ('मगही पत्रिका' के परचार-परसार खातिर या गोष्ठी सम्मेलन में हेल-मेल के क्रम में अपने सब जे बर-विचार दे हथिन ऊ अधार पर हमरा लगऽ हइ कि 'मगही पत्रिका परिवार' के अभियान से मगही में लिखे-पढ़े के चलन थोड़े बढ़ले हे आउ हतास कवि-लेखक में थोड़े-थाड़ जागृति अयले हे ।) (मपध॰12:20:4:1.1)
377 बराती-सराती (कोई ओन्ने से ढेला फेंक देलक तो एन्ने से ईंट-पत्थर चले लगल । देखते-देखते बराती-सराती कौरव-पांडव बन गेलन । जयमाला के जगह कुरुक्षेत्र में बदल गेल । बड़ी समझौला-बुझौला पर बराती शांत भेल ।) (मपध॰12:20:23:2.8)
378 बरियाती (= बारात) (बर के खाय के भुस्सा नञ्, बरियाती खोजे चूड़ा ।) (मपध॰12:20:16:1.5)
379 बरियारी (~ करना) (कपूतवन के संख्या जादे हे त उ बरियारी करतो आउ सपूतवन के कहतो - लंठ, कुलबोरन, अल्हड़-बिगड़ल । बिगड़ल टैम में तो जलमवे कइलूँ हल त बिगड़ल बने में नमहँसी कौची ?) (मपध॰12:20:47:2.14)
380 बरियारी (= बरिअईं) (बरियारी देखा रहलहीं हे, हमर सरीरवा में पानी बहऽ हइ ?) (मपध॰12:20:12:1.13)
381 बरेठा (= घड़का) (सुहाग सेज पर बइठल काननप्रिया एक-एक आभूषण उतार देलक हल - कंगन, पहुँची, रूपौठी, नथुनी, कनबाली, चनरहार, पाजेब, बिछिया । सब सुहाग जोड़ा में बाँध के सुहाग-सेज पर एक ओर रख देलक हल । सुहाग-दीप बुझा के बरेठा लगा के घोर अंधकार में डूब गेल हल ।) (मपध॰12:20:30:1.7)
382 बलबलाना (एतना कसके सुइया भोंक देलकइ कि खून बलबला गेलइ ।) (मपध॰12:20:8:1.14)
383 बहरसी (कैलास पहाड़ पर महादे के निवास । घर में अकेले पारबती उदास बइठल हथ । कारतिक आ गनेस बहरसी गेल हथ ।; हमरा जनकारी हे कि अप्पन इयार-दोस के हुरपेटला पर तूँ हरमेसा बहरसी ई नाच देखावऽ हऽ ।) (मपध॰12:20:17:1.3, 2.7)
384 बहिया (~ बैल) (दुनहुँ मामू बहिया बैल । गाम के बड़गर किसान बाभन भैया आउ पटवारी लालाजी कहथिन, "ई दुनहुँ कमइते-कमइते मर जइतइ । हमन्हीं चौपड़ खेलऽ ही, ई सब भिनसरवे हर लेके निकल जाहे । कमइला से धन होवऽ हे ? जेकरा लक्ष्मी देथिन उ अइसहीं उजिया जइतइ ।") (मपध॰12:20:50:3.12)
385 बाघा (हागा अगुर बाघा की ।) (मपध॰12:20:16:1.2)
386 बाबाजी (= ब्राह्मण {साधारणतः अनपढ़ ब्राह्मण के लिए प्रयुक्त}) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.13)
387 बाभनी (गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।) (मपध॰12:20:49:1.35)
388 बामन (केतनो बामन सोझा त हँसुआ नियन टेढ़ ।) (मपध॰12:20:16:1.6)
389 बाय (= कष्ट, परेशानी) (बाय आ रहलो हे ?) (मपध॰12:20:9:1.28)
390 बाहर (~ जाना) (लालाजी के प्रातकाली सुनहुँ । अभी भुरुकवा उगवे कइलइ कि लालाजी पीतर के लोटा लेके खंधा से हो अइला । ई कर्म के हिंया झाड़ा फिरना, दिसा फिरना कहल जाहे । कोई-कोई कहथुन 'मैदान गेलियो हल ।' औरत कहऽ हे एकरा 'बाहर जाना ।' हिंया बुतरू सब हग्गऽ हे ।) (मपध॰12:20:51:1.10)
391 बिंदुली (बुढ़वा भतार पर तीन टिकुली, एगो कच्ची एगो पक्की, एगो लाल बिंदुली ।) (मपध॰12:20:16:1.19)
392 बिख (= विष, जहर) (जमीन तो गोल होयवे कइल, चेहरा भी गोल, चश्मा भी गोल, मेहरारू के लुग्गा-फट्टा भी गेल । थारी में माड़-भात भी परोसायत तो बिख से भरल । बेटी आयल तो जमीन-जायदाद ला आग के टिकिया भी साथे लेते आयल ।) (मपध॰12:20:22:2.10)
393 बिछिया (सुहाग सेज पर बइठल काननप्रिया एक-एक आभूषण उतार देलक हल - कंगन, पहुँची, रूपौठी, नथुनी, कनबाली, चनरहार, पाजेब, बिछिया । सब सुहाग जोड़ा में बाँध के सुहाग-सेज पर एक ओर रख देलक हल । सुहाग-दीप बुझा के बरेठा लगा के घोर अंधकार में डूब गेल हल ।) (मपध॰12:20:30:1.4)
394 बिड़ार (खेत में कबड्डी जमल हे । दुनहूँ पाटी में बूढ़ा-जवान-उगलरेख सब सेल कबड्डी कर रहला ह । एने मुरझाल-कुम्हलाल मामू हर-बैल लेले बिड़ार जोते ला मुस्तैद हो गेला ।) (मपध॰12:20:50:1.16)
395 बिदाहना (= बीज छींटकर बीज को ढँकने के लिए हलकी जुताई करना; लगी फसल की घास साफ करने अथवा बहुत घनी फसल को छिहर करने के लिए हलकी जुताई करना) (मकई बिदाहे गेलथुन हे, साँझ के अइथुन ।) (मपध॰12:20:9:1.31)
396 बिधंस (= विध्वंस) (देओता लोग के जनम देवेवला दक्ष प्रजापति के जग्ग में तू अप्पन प्रधान गण वीरभद्र के भेज के जग्ग बिधंस करइलऽ आ ओकरे हाँथे उनकर मूड़ी छोपवा के बकरा के मूड़ी लगवइलऽ हल ।) (मपध॰12:20:19:2.42)
397 बिधुनना (सोहाग केतना अनमोल हे, केतना टुनकी हे - सात तह के भीतर सोहाग के सेनुर लुका के रखल जाहे । अपने लोग ओकरा सात तह से भी निकाल के 'बिधुन' के छोड़ देली ।) (मपध॰12:20:23:3.31)
398 बिनाना (छउँड़ी एतना जोड़ से काहे ल बिना रहले ह जी, एक घंटा से ?) (मपध॰12:20:9:1.17)
399 बिरबिरायल (उनके मेहरारू महेसरी भी आ गेल । बेना डोलावित फुसुकलक - 'तू गाँव में रेंगनी के काँट लगावइत चलइत ह । गाँव के नवही बिरबिरायल हथुन सब । ऊ सब का खा-पी के जइतइ, का पेन्ह-ओढ़ के अपन मुराद पूरवतइ एकरा से तोरा लेना-देना का !') (मपध॰12:20:21:2.14)
400 बिसबिसाना (= दाँत में हलका दर्द होना) ('ए काका !' साँच कहला पर लोग तिरमिराए लगऽ हथ ... / लछुमन के बात बीचे में काट देलन आ रामटहल कह बइठलन - 'तिरमिरी तो हमरा लगवे करत । डंक मारला पर हो बबुआ बिसबिसयबे करऽ हे आ ऊ डंक तो हमरे लगत ।') (मपध॰12:20:21:1.15)
401 बिसुखाना (गइया बिसुखा गेलइ सेसे कम दूध ममोसर होवऽ हे ।) (मपध॰12:20:8:1.17)
402 बीजे (= बिज्जे) (बराती के स्वागत-सत्कार में भी कमी रह गेल । यहाँ तक कि दुल्हा के मामू के अंगेआ भी न मंगाएल, से रात भर भूखे रह गेलन । दुल्हा के फूफा के बीजे भी न होयल से रात भर मिठाई फाँक के रह गेलन ।) (मपध॰12:20:32:1.2)
403 बुट्टा (~ कसना) (अभी ढंग चोखइवो नञ् कइलऽ हे आउ भउजी-भउजी करके बुट्टा कसे अइलऽ हे !) (मपध॰12:20:15:1.2)
404 बुनिया (~ झरवाना) (बुनिया झरवा रहलथुन हे, एक घंटा बाद अइथुन ।) (मपध॰12:20:11:1.18)
405 बुर्राक (दे॰ बुराक) (गोर ~) (मातृकुल में हम भूकंप लेले अइलूँ । अदमी हकूँ उ गुनी जलम लेलूँ । देवता होतूँ हल त अवतार लेतूँ हल । ... हम तो निखालिस मगहिया भुच्चड़ हलूँ - कार-गोर के मिलल संतति । नानी हल गोर बुर्राक आउ नाना हला कार-करइठा ।) (मपध॰12:20:46:3.35)
406 बेआपना (= बियापना) (धीरे-धीरे बोतल के नीसा चढ़इत सूरज लेखा ढले लगल । सबके चेहरा पर ढिबरी जरइत हल । तरूआठी के आग अपने आप बुझा जाहे, ओइसहीं शराब के नीसा । सबके मन में डर बेआपल हे ।) (मपध॰12:20:23:2.38)
407 बेकहन (दादी के बात उनखर कान में पड़ल कि ऊ खजूर के छड़ी फटकारथुन, "ओ, एने आवऽ, अइसन लप्पड़ मारबउ कि हग देमऽ सार । बिलकुल बेकहन हे । गुरुओजी अइसने अन्नस हका । सोचलूँ हल कि दुझरा पर बैठता त बाल-बुतरू के सँभाले रहता । ..") (मपध॰12:20:51:2.8)
408 बेकहल (महादे - ... अभी तो दुन्नो बेटा भी घर में न हथुन । हमर नाच के देखनिहार अकेले तूँहीं रहबऽ ? / पारबती - {ताना मारइत}आय हाय ! चलनी दुसलक सूप के, जेकरा में बहत्तर छेद ? दुन्नो बेटा बेकहल नियर अप्पन मरजी से जहाँ-तहाँ काम करइत रहऽ हथुन ।) (मपध॰12:20:17:2.15)
409 बेटिहा (= बेटी का पिता या अभिभावक; वधू पक्ष के लोग) (गाँव के ई पहिला बारात हे, जेकरा में खाली झार-फानुस में पच्चीस हजार रुपइया पर तितकी रख देवल गेल । बैंड-बाजा आउ नाच समियाना में जे पैसा लगावल गेल, ऊ बेटिहा के तीन कट्ठा जमीन के बंधक रखे से आयल हे ।; बेचारा बेटिहा के नीन उपह गेल हे । खेवा-खरची चलावे ला परिवार के जे थुम्ही हल ओहो भरभरा के धरती धयले हे । दस कट्ठा नफीस जमीन देखते-देखते रजिस्ट्री ऑफिस में गोल हो गेल ।; बेटिहा के पैसा कौन-कौन रूप में लुटावल जायत, नोट के गड्डी में दियासलाई से तितकी नेसल जायत, सब अन्हरकोठरी में बंद हे ।) (मपध॰12:20:22:1.14, 35, 2.15)
410 बेबोलहटा (~ के) (महादे - ठहरऽ, ठहरऽ । बड़की सउतिन के कहानी तू भुला गेलऽ हे । ऊ बेबोलहटा के जग्ग में गेलथुन हल । उहाँ आदर-सत्कार त दूर, सीधे मुँह से केउ बात भी न कइलन आ अपन देह में आग लगाके उनका जरे पड़ गेलइन हल ।) (मपध॰12:20:19:3.3)
411 बोकरना (नीम ~) (मिठमोहना के देखहीं, कइसे पोट रहलथुन हें, दोसर घड़ी नीम बोकरे लगथुन ।) (मपध॰12:20:14:1.21)
412 बोय (~ फुटना) (अब जाके बोय फुटलइ त समान सब पकड़इलइ ।) (मपध॰12:20:14:1.13)
413 बौंख (= बौंखा, बौंखी; अत्यन्त तेज हवा का झोंका, क्षणिक आँधी; धूल भरी चक्कर काटती आँधी) (हावा के ~) (सोझे खिड़की से हवा के एगो बौंख आएल आउ दिवार पर लगल भगवान के कैलेंडर पलट गेल ।) (मपध॰12:20:26:3.42)
414 बौंखना (मगही में लेख-निबंध लिकेवला भाय-बहिन भी कम-से-कम संदर्भ दे हथ आउ अगर देतन भी त कहाँ के घव आउ कहाँ के पव वला । आदमी बौंखते रहे उनकर फुटनोट में वर्णित संदर्भ ग्रंथ के खोजे में । की मजाल हे कि दस में से पाँचो संदर्भ सही निकल जाय ।) (मपध॰12:20:5:1.19)
415 बौड़म-बुड़बक (ए गेंदाजी ! तों ह भोले बाबा नियन बौड़म-बुड़बक । गंगा मइया के कोई अदना अदमी-देवता संभार सकऽ हइ । जखनी ऊ स्वर्ग से उतरलथिन तखनी हलइ केकरो दम जे कि ऊ माय के संभार सके । शिवे जी न संभरलथिन जी ।) (मपध॰12:20:46:1.29)
416 ब्यौंत (शंकर बाबा जब तांडव करे लगऽ हथिन तब केकरो कोई ब्यौंत न लगऽ हे सिवा टुकुर-टुकुर तके के चाहे कोठी के सान्ही में लुका जायके ।) (मपध॰12:20:45:1.21)
417 भटभटाना (काहे ल भटभटा रहलें ह, एक घंटा से ।) (मपध॰12:20:9:1.23)
418 भद (भद से नीचे गिर गेलइ ।) (मपध॰12:20:8:1.22)
419 भदारना (दुनहुँ भइवा के एकल्ले मार के भदार देलकइ ।) (मपध॰12:20:10:1.17)
420 भरगर (बाबा के भरगर संबोधन से गेंदा पांडे पुलपुला गेला - "हाँ जजमान, अपने ठीके कहऽ हथिन । हम पढ़लिअइ कहाँ जजमान । लिख लोढ़ा पढ़ पत्थल रह गेलिअइ । अपने नियन जजमनका हइ - बाबू-माय मंदिरे में ठेका देलका - गुरुपिंडा के दरसने न भेल । आउ हकियो सरोतरी बर्हामन ।") (मपध॰12:20:46:1.40)
421 भरठना ("कलजुग में वर्णाश्रम धर्म भरठ रहलो ह न । सब वरण अप्पन क्षण बदल देतो । बाभन भीख माँगतो । क्षत्री हर जोततो । वैश्य वीख पादतो आउ शूद्रवन तोरा अइसन के टाँग उठइतो ।" इ कहके बाबा खीं-खीं हँसला आउर गेंदाजी जय जजमान कहके दोसर दुआरी झाँके चलला ।) (मपध॰12:20:46:2.19)
422 भरता (= भुरता) (मिनट के अंदर इ हल्ला, इ तहलका कि कौन खिचड़ी खाय, कौन लुग्गा समेटे, कौन मोटरी सँभारे । गिरते-पड़ते भागल-भागल सभे जने धुनी बर दने आके ठहरला । इ तो खैर समझहु कि पहड़वा के पथलवा थोड़े-बहुत दरदरा के रह गेलइ न तो जइसन ठीक पहड़वे तले भीड़ हलइ - लोगन तो भरते हो जइता हल ।) (मपध॰12:20:45:2.21)
423 भरौंसा (= भरोसा) (अपने से देख आवऽ, दोसर पर भरौंसा नञ् करना चाही ।) (मपध॰12:20:11:2.6)
424 भववधी (आज बारात जा रहल हे । दू गो बस, चार गो कार आउ एगो टरेक्टर के बेवस्था कइल गेल हे । बस पर नवही लोग पहिलहीं से अधिकार जमा लेलन । एगो कार पर दुल्हा दिनेश आउ सब पर हित-नाता, भववधी लोग ।) (मपध॰12:20:21:2.40)
425 भागल-भागल (एतना सुनते हम्मर चचा पर भूत सवार हो गेल । तरबा के लहर कपार - भोनुआ (नौकरवा) के हँकयलका - "लाव तो कोड़वा रे । केकरा पर फूल गेल ह, हमरा पर फूलले ह, आउ केकरा पर दू कौड़ी के गुरु सार ।" गुरुजी इ तेवर देखके अब लेबऽ कि तब लेबऽ - भागल-भागल दू कोस दूर हरसेनिये पहुँच गेला हाँफते-हाँफते । "जान बचल लाखो पइलूँ । जमींदार हीं गुरुअइ करना बाघ के जबड़ा में फँसना हे ।") (मपध॰12:20:51:3.1)
426 भाट-महिन (प्रकृति हे थोड़ा अराजक । थोड़ा अराजक तो कवियन कलाकरवन के होहीं पड़ऽ हे न त उ हो जइता भाट-महिन ।) (मपध॰12:20:49:2.15)
427 भार (~ पड़ना) (पनरह दिन से बड़ी भार पड़ रहलो हे, देह टटा रहलो हे ।) (मपध॰12:20:11:1.5)
428 भाला-गड़ाँसा (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.14)
429 भुखले-पियासले (सरिता के आँख के लोर सुखवो न करऽ हल कि फिर आँसू के तूफान आ जा हल । भुखले-पियासले अपन जिनगी के बारे में सोचित दिन-रात उ घुटइत रहऽ हल ।) (मपध॰12:20:29:2.18)
430 भुखाल (= भुक्खल; भूखा) (अभी फरीचो नञ् होले हे आउ सुरूज महराज के अरग देवहुँ लगलथिन सब भुखाल परवैती लोग ।) (मपध॰12:20:15:1.21)
431 भुचुंग (= भुचंग) (करिया ~, कार ~) (हम्मर नाना काला भुचुंग खाँटी किसान, एकठौए हर जोते वाला । कमे उमर में काल-कवलित हो गेला ।) (मपध॰12:20:50:2.31)
432 भुच्चड़ (सिकंदर महान के सिंधु नदी के तलछट में रहेवाला भुच्चड़ भुजंग कृष्णवर्णी अग्रहरवन रगेद-रगेद के मारे लगलइ ।; इ मगह के भुच्चड़ प्रदेश हे । बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।"; मातृकुल में हम भूकंप लेले अइलूँ । अदमी हकूँ उ गुनी जलम लेलूँ । देवता होतूँ हल त अवतार लेतूँ हल । ... हम तो निखालिस मगहिया भुच्चड़ हलूँ - कार-गोर के मिलल संतति । नानी हल गोर बुर्राक आउ नाना हला कार-करइठा ।) (मपध॰12:20:45:1.15, 46:2.27, 3.33)
433 भुरकुंडा (सत्तू पिसइलो, चाउर भून के घी, राबा मिलाके भुरकुंडा बनलो, चूड़ा-भुँजा, चाउर, दाल, घी, तेल, मिचाई सब हे । हाड़ी-हड़ुला मिल जात त रसोई रंधा जात ।) (मपध॰12:20:48:3.33)
434 भुरकुस (मार के भुरकुस कर देबउ, जहाँ गारी देले हें त । निम्मल-दुब्बर समझ लेलहीं हे ।) (मपध॰12:20:13:1.25)
435 भुस्सा (= भूसा) (बर के खाय के भुस्सा नञ्, बरियाती खोजे चूड़ा ।) (मपध॰12:20:16:1.5)
436 भोंदू (सब तो अउरते हे, पढ़ल-लिखल हे । भोंदू भाव न जाने, पेट भरे से काम । मँड़वा गड़ा गेल, माटी कोड़ा गेल, कोहबर सज गेल, हरदी हाड़ में लगावल जाइत हे । बिआह के गीत केकरो याद न, कैसेट बज रहल हे ।) (मपध॰12:20:22:3.9)
437 भोगारना (दुलहवा लड़कीया के भोगार देलकइ ।) (मपध॰12:20:9:2.11)
438 मंगटीका (मइया लंबी स्वाँस लेके कहऽ हल, "तोरा तो बिआह में मिलवे करतउ । पहिनिहें न ।" / ऊ चुप्पी लगा जा हल । सपना बुने लगऽ हल - पाँव में पायल, कान में झुमका, हात में कंगन, मांग में मंगटीका, नाक में नकबेसर, गला में सोना के चनरहार - सुहाग जोड़ा में लिपटल !) (मपध॰12:20:31:1.18)
439 मइयो-दइयो (बस, हो गेलो मइयो-दइयो, अब गाड़ी में बइठऽ !) (मपध॰12:20:12:1.22)
440 मइला (= मैला, गूह, पाखाना) (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । ... डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो । कुछ क्षण ला दिमाग एकदम सुन्न हो गेलो । उठके भागते-भागते फेर पनिया आ गेलो । ऊ जे बिन पानी के गंगाजी देखलियो ओकरा से आझो दिमाग सनसना जाहे । ऊ गड्ढा, पाँका, मछली, सोंस - कुछ समझ में न आवे । पीठ पर पानी छलछला के पड़लो । मुँह में कादो मइला !) (मपध॰12:20:46:1.6)
441 मगह (= मगध) (मगह में बैकठपुर के शिव मंदिर प्रसिद्ध हे । फागुन अइते गेंदा पंडा आ गेला । जजमान हीं से धान, गेहूँ, धनियाँ, मिरचाई हर साल ले जा हका ।; बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।" ... मगह के तीरथ भी फाजिल में हे, सामान्य स्वाभाविक उन्मेष में न बुझा हे - मलमास मेला अधिकमास में, गया - मरे के बाद में ।; मगह के दुआरी पर आवल कुत्तो के न भगावल जा हे ।) (मपध॰12:20:45:3.13, 46:2.32, 36, 48:2.29)
442 मगहिया (बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।"; मातृकुल में हम भूकंप लेले अइलूँ । अदमी हकूँ उ गुनी जलम लेलूँ । देवता होतूँ हल त अवतार लेतूँ हल । ... हम तो निखालिस मगहिया भुच्चड़ हलूँ - कार-गोर के मिलल संतति । नानी हल गोर बुर्राक आउ नाना हला कार-करइठा ।) (मपध॰12:20:46:2.30, 3.33)
443 मघड़ा (बड़का गोटीवाला चेचक उठे त गामे गाम शीतला माय के प्रलयंकर नाच शुरू हो जाय । मघड़ा (शीतलामाई के मंदिर) जा आउ बतासा-सेनुर चढ़ावऽ । ज्ञान-विज्ञान से कोसों दूर खेत-पथार के जिंदगी । नानी हो आन्हर एही शीतला माय के प्रकोप से ।) (मपध॰12:20:50:3.8)
444 मनमनाल (बूढ़ा शादी करे ले मनमनाल हथुन ।) (मपध॰12:20:8:1.7)
445 मनरा (= मानर) (डाड़ के देउता मनरा पर ।) (मपध॰12:20:15:1.1)
446 ममा (= दादी; दे॰ मामा) (एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।") (मपध॰12:20:51:1.40)
447 ममोसर (= मयस्सर) (गइया बिसुखा गेलइ सेसे कम दूध ममोसर होवऽ हे ।) (मपध॰12:20:8:1.17)
448 मर-मजाक (सभे बराती के दुआर लगावे में परेशान । केकरो दिल-दिमाग हाँथ में नञ् । बराती हे, मर-मजाक होयवे करत ।) (मपध॰12:20:23:2.4)
449 मरहिन्ना (मरहिन्ना काटे गेलथुन हे, साँझ के अइथुन ।) (मपध॰12:20:10:1.24)
450 मलसी (एक मलसी तेल लग गेलइ ।) (मपध॰12:20:8:1.32)
451 महतमाइन (चुप ! कुलबोरनी चारो बगली ढिंढा फुलैले चलतो आउ एहाँ आके महतमाइन बन रहल हे !; ) (मपध॰12:20:15:1.13, 48:3.26)
452 माट (~ मारना) (माट नञ्मारे देबो, लेना हो त लऽ ।) (मपध॰12:20:9:1.21)
453 माड़-भात (जमीन तो गोल होयवे कइल, चेहरा भी गोल, चश्मा भी गोल, मेहरारू के लुग्गा-फट्टा भी गेल । थारी में माड़-भात भी परोसायत तो बिख से भरल । बेटी आयल तो जमीन-जायदाद ला आग के टिकिया भी साथे लेते आयल ।) (मपध॰12:20:22:2.9)
454 मातल (नीन में मातल अदमी के कउन भरोसा ।) (मपध॰12:20:10:1.6)
455 मामू-ममानी (राजगीर में तीलसँकरात के मेला हे । सतधरवा बर्हमकुंड में नहा के मामू-ममानी आउ मौसी चेंगना-मेंगना के साथ आके बजंतरी के पत्ता पर ततले-ततले मकर के खिचड़ी के भाप से हाथ-मुँह जला रहला ह कि हड़हड़-धड़धड़ होवे लगल ।) (मपध॰12:20:45:2.8)
456 मार (~ लाठी; ~ बढ़नी) ('आ मार बढ़नी रे ! भिछनी मेहरारुओ ओही लगन के । माथ पर भर चुरुआ तेल थोप देत आ सुतले-सुतले दाल-रोटी काँड़ी से पिया देत ।' सोनामति फुआ बीड़ी लेलन आ धूँक मारइत टुघरइत चल देलन अपन पलानी में ।) (मपध॰12:20:21:2.4)
457 माल-मुसहर (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।; एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।") (मपध॰12:20:49:1.11-12, 51:2.1)
458 मिठमोहना (मिठमोहना के देखहीं, कइसे पोट रहलथुन हें, दोसर घड़ी नीम बोकरे लगथुन ।) (मपध॰12:20:14:1.21)
459 मिन्नत-मनौअल (व्यापारी वर्ग के लोग से भी भरपूर मिन्नत-मनौअल करे पड़तइ काहे कि बड़ा स्तर पर कोय आंदोलन में पैसा के भी आवश्यकता होवऽ हइ ।) (मपध॰12:20:6:1.17)
460 मिरचाइ ( गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।) (मपध॰12:20:49:1.39)
461 मिरजा (माल महराज के, मिरजा खेले होली ।) (मपध॰12:20:16:1.12)
462 मीर घाट (ईर घाट ... ~) (कातिक तो तोर अगिनबेटा हथुन । निछत्तर लोक में छव किरितिका लोग उनकर पालन-पोसन कइलन हल । कातिक जनमलन ईर घाट, पालल-पोसल गेलन मीर घाट आउ माय कहइली हम ।) (मपध॰12:20:17:2.40)
463 मुँहजबानी (= मुँहजमानी) (हम बराबर (वाणावर) पहाड़ी के बारे में किताब में पढ़ली हल । कुछ लोग मुँहजबानियों एक्कर जिकिर हमरा से करित रहलन हे ।) (मपध॰12:20:43:1.2-3)
464 मुँहजूठी (अरिछन-परिछन, कोहबर के विधि-विधान के बाद दुल्हन के खीर में हाथ डाले ला आउ मुँहजूठी ला सास, ननद, जेठानी, फुफिया सास घिघिया के रह गेलन हल बाकि काननप्रिया एको कोर न खा सकल हल ।; फुफिया सास बोललन हल, "मिलतइन न, जे भाग में होतइन से मिलवे करतइन । पहिले मुँहजूठी के नेग हइ । दुल्हिन के चाही, मुँहजूठी कर लेथ । गोतिया-भाई के खिआवे में देर हो रहल हे । लोग भूखे-पिआसे हथ ।") (मपध॰12:20:32:1.26, 40, 41)
465 मुँहझँपे (बूढ़ी महतमाइन बोलला, "परसों मुँहझँपे चललियो । पंद्रह आदमी के जमात हो । एक रात चंडी ठहरलियो मउसी के बेटी हीं । आज हिंया 'सीमा' में ठहरल हियो । दूर के रिश्तेदार हला - मुदा न चिन्हलका, बगइचे ठीक हे ।") (मपध॰12:20:48:3.26)
466 मुँहदेखनी (मइया का जनी कउची खिया के भेज देलथिन हे कि भूखे न लगलइन हे । मुँहदेखनी का जानी खूब खोजइत होथुन हे, सीतलमनिया । करनफुलवा दे देहुन । नौकरिहा ननद हहूँ ।) (मपध॰12:20:32:1.35)
467 मुरझाल-कुम्हलाल (खेत में कबड्डी जमल हे । दुनहूँ पाटी में बूढ़ा-जवान-उगलरेख सब सेल कबड्डी कर रहला ह । एने मुरझाल-कुम्हलाल मामू हर-बैल लेले बिड़ार जोते ला मुस्तैद हो गेला ।) (मपध॰12:20:50:1.15-16)
468 मुलुर-मुलुर (अपसड़ के खुदाई में मिलल वराह के मूर्ति आउ सौ कोसी तलाब अपने आप में ढेर इतिहास समेटले हे । ई सब विकास के परबत्ती पहाड़ मुलुर-मुलुर देखते आल हे ।) (मपध॰12:20:6:1.2)
469 मेंही (दे॰ मेहिन) (नरेंद्र के लगइत हल कि ओही पास हएलक हे । ऊ रोहित के चाल कइलक आउ पाँच सौ रुपइया देइत कहलक कि बजार से मेंही दाना वाला निमनका लड्डू ले आवे ।) (मपध॰12:20:24:1.17)
470 रजना (खइते-खइते मन रज गेलइ ।; बस करऽ ! अब मन रज गेलो जिलेबी खइते-खइते ।) (मपध॰12:20:12:1.8, 15:1.25)
471 रदबुद (राते भर में रदबुद कर देलकइ एकदम से ।) (मपध॰12:20:12:1.12)
472 रहस (= रहस्य) (पारबती - (मुँह ऐंठ के) रहे द रहे द ! सब देओता के भितरिया रहस हम नीक तरी जानऽ ही । देवलोक में केउ दूध के धोवल न हे ।) (मपध॰12:20:19:1.28)
473 राँड़ (= विधवा) (राँड़ के बेटा साँढ़ नियन ।) (मपध॰12:20:16:1.22)
474 राँड़-मोसमात (= राँड़-मसोमात) (आ दीनानाथ ! जइसे ई राँड़-मोसमात के दहँज रहलो हे छउँड़ी, ओइसहीं एकरा धुएँ के राँड़ कर दिहऽ ।) (मपध॰12:20:15:1.15)
475 राड़ (= नीच; बात या सलाह न मानने वाला; निकम्मा) (~-भोड़; ~-रोहिया) (जमींदारी हे लठमारी तागद के खेल । गेंदा जी बाबा सामने कहथिन, या कहूँ उकसैथिन - देखऽ मालिक । राड़ जात लतियइले । छुछुंदर के माथा में चमेली के तेल लगइबऽ त ऊ आउ छुछुअइतो ।) (मपध॰12:20:51:3.35)
476 राबा (सत्तू पिसइलो, चाउर भून के घी, राबा मिलाके भुरकुंडा बनलो, चूड़ा-भुँजा, चाउर, दाल, घी, तेल, मिचाई सब हे । हाड़ी-हड़ुला मिल जात त रसोई रंधा जात ।) (मपध॰12:20:48:3.33)
477 रिक्ता (= रिक्त {तिथि}) (चौथ चतुरदस नोम्मी रिक्ता, जे जइता से अपने सिखता ।) (मपध॰12:20:16:1.24)
478 रियाह (गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।) (मपध॰12:20:49:1.37)
479 रूपौठी (सुहाग सेज पर बइठल काननप्रिया एक-एक आभूषण उतार देलक हल - कंगन, पहुँची, रूपौठी, नथुनी, कनबाली, चनरहार, पाजेब, बिछिया । सब सुहाग जोड़ा में बाँध के सुहाग-सेज पर एक ओर रख देलक हल । सुहाग-दीप बुझा के बरेठा लगा के घोर अंधकार में डूब गेल हल ।) (मपध॰12:20:30:1.3)
480 रोट (= मोटी मीठी रोटी; देवता-देवी को अर्पण करने का प्रसाद या पकवान) (रोट बन रहले हऽ, आधा घंटा में तैयार हो जइतो ।) (मपध॰12:20:9:1.11)
481 लंगटीनी (जे मरद के साथ ई पेट फुलैलके हे ओकरे घर जाय । ई लंगटीनी के घर से निकाले में फयदा हके ।) (मपध॰12:20:27:2.8)
482 लंगड़ा (= बिच्छा; बिच्छू) (देख लेलहीं हुलचुल्ली के मजा, मरलकउ ने लंगड़ा डंक ।) (मपध॰12:20:13:1.6)
483 लंठ (कपूतवन के संख्या जादे हे त उ बरियारी करतो आउ सपूतवन के कहतो - लंठ, कुलबोरन, अल्हड़-बिगड़ल । बिगड़ल टैम में तो जलमवे कइलूँ हल त बिगड़ल बने में नमहँसी कौची ?) (मपध॰12:20:47:2.15)
484 लगनउती (= बिहउती) (~ साड़ी) (चंद्रकांती लगनउती कपड़ा उतार के माय के सूतीवाला साड़ी पेन्ह लेलक । सिंगार-पटार खँखोर-खँखोर क चुल्हा में डाल देलक ।; का जानी कउन मंतर पढ़वलन कि चंद्रकांती जयमाला मजलिस में जाय ला तइयार हो गेल । फिना से लगनउती साड़ी-लहँगा, चोली-ओढ़नी धारन करके 'खटपरूस' औरत लेखा पाँव बढ़ावित गेल ।) (मपध॰12:20:23:2.11, 28)
485 लगना (= क्रि॰ मवेशियों का दूध देना; हँसी-मजाक या छेड़खानी करना; सं॰ हल की मूठ, परिहथ; भेड़ आदि के झुंड का अगुआ भेड़ - स्त्री॰ लगनी) (भारी झनझन हो, ओकरा से मत लगऽ ।) (मपध॰12:20:11:1.16)
486 लगाना-बझाना (जा, काहे ल लगा-बझा के बोल रहलऽ हे ।) (मपध॰12:20:13:1.20)
487 लछमिनियाँ (ई गाय बड़ी लछमिनियाँ हो, जब से अइलो हे दिन बदल गेलो हे ।) (मपध॰12:20:14:1.5)
488 लठमारी (जमींदारी हे लठमारी तागद के खेल । गेंदा जी बाबा सामने कहथिन, या कहूँ उकसैथिन - देखऽ मालिक । राड़ जात लतियइले । छुछुंदर के माथा में चमेली के तेल लगइबऽ त ऊ आउ छुछुअइतो ।) (मपध॰12:20:51:3.33)
489 लड़कोरी (छोटगर किसान के जिनगी अइसन कि पेउन न छूटे । एने छेद देखाई देलक, पेउन लगइलूँ, तलगु ओने फट गेल । कहाँ-कहाँ सियल जाय । रोग-बिमारी लगले रहे । आधा बुतरू सउरे मरे । पानी पइते आधा लड़कोरी मर जाय । फसली, प्लेग, शूल संघरणी, शीतल ज्वर-वेद फँकी बाँटे बाकि मौते ईश्वर के साम्राज्य रहे ।) (मपध॰12:20:50:2.38)
490 लपलपाना (बकड़िया कुल्ले लतिया लपलपा गेलो ।) (मपध॰12:20:8:1.9)
491 लाय (हमरा लाय बड़ अच्चा लगऽ हइ ।) (मपध॰12:20:9:2.9)
492 लिट्टा (अजलत के खिस्सा, भात पर लिट्टा ।) (मपध॰12:20:16:1.23)
493 लूर-लच्छन (न जी, कउनो खास बात न हे । हम तो तोरे लूर-लच्छन से बरमहल उदास हो जाही ।) (मपध॰12:20:17:1.10)
494 लेखा (घर-घर देखा एके ~) (माय महेसरी लोर चुआवित घिघिआयल - 'चंद्रकांती ! बाप के पगड़ी के लाज बचा लऽ । तोरे ला नफीस दस कट्ठा के पलौट पर टिकिया रख देली । जा सबके बिआह में आझ एहे देखे के मिलइत हे । घर-घर देखा एके लेखा ।') (मपध॰12:20:23:2.21)
495 लोढ़ी-सिलउटी (इहे तरह देखलिअइ कि कत्ते गोटा हीं दुर्लभ मूर्ति लोढ़ी-सिलउटी के रूप में उपयोग में आ रहले हल । ई तो बस एगो नमूना हलइ धरोहर के दुर्दशा के ।) (मपध॰12:20:6:1.32)
496 लोहराइन (लोहराइन गमके के चलते मछली नञ् पसंद करऽ हियो बकि मीट-मुरगा खा हिअइ ।) (मपध॰12:20:14:1.18)
497 लौंडा (बैंड बाजा पर सड़क के किनारे चुहो-चुटरी डांस कर रहल हे । रामटहल लौंडा के फेल कयले हथ ।) (मपध॰12:20:23:1.39)
498 लौंद (मगह के कुंभ हे लौंद ।) (मपध॰12:20:49:1.34)
499 वीख (= बिख, विष) ("कलजुग में वर्णाश्रम धर्म भरठ रहलो ह न । सब वरण अप्पन क्षण बदल देतो । बाभन भीख माँगतो । क्षत्री हर जोततो । वैश्य वीख पादतो आउ शूद्रवन तोरा अइसन के टाँग उठइतो ।" इ कहके बाबा खीं-खीं हँसला आउर गेंदाजी जय जजमान कहके दोसर दुआरी झाँके चलला ।) (मपध॰12:20:46:2.22)
500 शौख (= शौक) (ई घर में बेटा के बिआह करके एको शौख न पूरा होयल । समधी हमर एगो हीत-नाता के पैरपूजी में अच्छा कपड़ा न देलन । बराती के स्वागत-सत्कार में भी कमी रह गेल ।) (मपध॰12:20:31:3.37)
501 सँभरना (परिवार के नीक तरी चलावे के सरजाम तू कभी जुटैलऽ हे ? सब्भे लोग तोर बेढंगी गिरहत्ती के खिल्ली उड़ावऽ हथ । जेकरा से दू गो बेटा न सँभरल, ऊ आउ कउन काम कर सकऽ हे ?) (मपध॰12:20:18:1.19)
502 संघत (= संगत, संगति) (जइसन संघत में लोग बइठऽ हे, ओकर बुद्धि भी ओइसने हो जाहे । जिनगी भर तूँ एक्को लुरगर इयर-दोस रखलऽ ?) (मपध॰12:20:18:2.15)
503 सउर (= प्रसूति-गृह) (जिज्ञासु के सउर में कि डालल गेल ह कि ऊ जिनगी भर घुमक्कड़ बनल हका - भटकत रहना उनकर शगल बन गेल ह ।; छोटगर किसान के जिनगी अइसन कि पेउन न छूटे । एने छेद देखाई देलक, पेउन लगइलूँ, तलगु ओने फट गेल । कहाँ-कहाँ सियल जाय । रोग-बिमारी लगले रहे । आधा बुतरू सउरे मरे । पानी पइते आधा लड़कोरी मर जाय ।) (मपध॰12:20:47:1.30, 50:2.37)
504 सकलदीपी (= शाकद्वीप के निवासी ब्राह्मण; ब्राह्मणों का एक भेद जो चिकित्सा शास्त्र में निपुण होते हैं) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.8)
505 सगहा (~ जात) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.10)
506 सटना-पटना (चल सट-पट के सुत जाम । जाड़ा के तो दिन हइ ।) (मपध॰12:20:12:1.24)
507 सटाक-सटाक (~ मारना) (काहे ल घोंड़वा के सटाक-सटाक मार रहलहो हऽ ?) (मपध॰12:20:8:1.5)
508 सटाना (= चिपकाना, मिलाना, स्पर्श कराना; बकाया सधाना, वसूल करना) (बेटी ! मान जो ! अप्पन हठ छोड़ दे । जउन सामान हम दे चुकली ओकरा सटावे में ठीक न हे । ओकर दाम भी न मिलत ।) (मपध॰12:20:34:1.15)
509 सतुआ (~ जात) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.9)
510 सधाना (महामार काहे कर रहलहीं हे तों सब, असल के होबइ त सधा लेबइ ।) (मपध॰12:20:13:1.16)
511 समुच्चा (= समूचा) (महादे - जदि हम जहर न पीती हल तब समुच्चे संसर भसम हो जात हल । / पारबती - तब बचावे के जिमवारी न लेके समुच्चा संसार के नाश करे के काम तूँ अप्पन माथा पर काहे लादले फिरऽ ह ?) (मपध॰12:20:19:1.14)
512 समुच्चे (= समूचे) (महादे - जदि हम जहर न पीती हल तब समुच्चे संसर भसम हो जात हल । / पारबती - तब बचावे के जिमवारी न लेके समुच्चा संसार के नाश करे के काम तूँ अप्पन माथा पर काहे लादले फिरऽ ह ?) (मपध॰12:20:19:1.12)
513 समुन्नर (= समुन्दर; समुद्र) (पारबती - गाल काहे बजा रहलऽ हे ? तू तो जिनगी भर अलबलाहे रह गेलऽ । समुन्नर के मथे से जे चौदह गो रतन निकलल हल ओकरा में एक भी नीमन चीज तोरा परापित भेल ?) (मपध॰12:20:18:3.44)
514 सम्हारना (= सँभालना) (काला राम के सम्हारल, गोरा गूह के चपोतल ।) (मपध॰12:20:16:1.20)
515 सर-सामान (अब गौना में का होत ? ओकरो में बचल-खुचल तिलक पूरा करे पड़त । सर-सामान से लादे पड़त । गौना में भी अब कम नाज-नखरा न हे ।; हम्मर घर बसवे ला हम्मर बाबूजी के घर उजड़ गेल । ई गहना-गुड़िया, कपड़ा-लत्ता, सर-सामान सब बाबूजी के खून में सनल हे ।; काननप्रिया तब बोलल हल, "त सुन ल माय ! जब तक ई तिलक के सर-सामान हम्मर बाप-माय के लौटा न देबऽ, तब तक हम तोहर घर के अन्न-पानी ग्रहण न करबो, चाहे हम्मर जान काहे न चल जाय ।") (मपध॰12:20:33:1.25, 40, 3.13)
516 सरोतरी (= श्रोत्रिय) (~ बर्हामन) (बाबा के भरगर संबोधन से गेंदा पांडे पुलपुला गेला - "हाँ जजमान, अपने ठीके कहऽ हथिन । हम पढ़लिअइ कहाँ जजमान । लिख लोढ़ा पढ़ पत्थल रह गेलिअइ । अपने नियन जजमनका हइ - बाबू-माय मंदिरे में ठेका देलका - गुरुपिंडा के दरसने न भेल । आउ हकियो सरोतरी बर्हामन ।"/ बाबा के बकार फूटल - "एही तो कलजुग के परभाव हे । तूँ बर्हामन होके न पढ़लऽ । वेद के श्रुति कहल जाहे । तोहनहीं सरोतरी के माने हे जे श्रुति यानी वेद पढ़े ओही सरोतरी हे । बाकि कलजुगवा केकरो छोड़तो बाबाजी ।") (मपध॰12:20:46:2.6, 9, 11)
517 ससारना (लावऽ, ससार दे हियो, दस मिनट में ठीक हो जइबऽ ! अपने न अपना के काम दे हे ।) (मपध॰12:20:13:1.24)
518 ससुरइतिन (सरिता अब ससुरइतिन हो गेल हल । ससुरार में सरिता के खूब मान-मरजाद हल ।) (मपध॰12:20:29:1.24)
519 सानी (बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।" ठीके सानी चलावे ला श्री महतो उठथुन त हल्ला करथुन - "उठ रे ! उठ ! अरे महवा, इनरा उठ ! भुरुकवा उग गेलउ ।") (मपध॰12:20:46:2.33)
520 सान्ही (शंकर बाबा जब तांडव करे लगऽ हथिन तब केकरो कोई ब्यौंत न लगऽ हे सिवा टुकुर-टुकुर तके के चाहे कोठी के सान्ही में लुका जायके ।) (मपध॰12:20:45:1.23)
521 सायत (= शायद) (हम्मर बाबा हलन छोटे-मोटे जमींदार बाकि जमींदारी के ठस्सा कि होवऽ हे इ हम खूब जान गेलूँ । छोटे घर के हम्मर माई ई बड़का घर में का का भोगलक - इ बखाने में सायत बेचारी सरसती लजा जइथन ।) (मपध॰12:20:51:1.28)
522 सासत (चंद्रकांती के का पता माय-बाप के एतना सासत भोगे पड़ित हे । देह में हरदी के उबटन तो लगल बाकि दिल-दिमाग भी पियरा गेल । तोरी फुला रहल हे सबके आँख में ।) (मपध॰12:20:22:2.13)
523 सीटना (= डींग हाँकना) (जादे सीटे के कोरसिस नञ् कर, हम तोहनिन के बारे में सब जानऽ हिअउ ।) (मपध॰12:20:11:2.19)
524 सुक्कुर (= शुक्र ग्रह) (बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।" ठीके सानी चलावे ला श्री महतो उठथुन त हल्ला करथुन - "उठ रे ! उठ ! अरे महवा, इनरा उठ ! भुरुकवा उग गेलउ ।") (मपध॰12:20:46:2.32)
525 सुखाड़ (= अनावृष्टि) (असाढ़ माह में अकास में बादर देख के किसान जतने खुश होके मोर लेखा नाचऽ हे ओतने सुखाड़ के अंदेशा से घबड़ाइत भी रहऽ हे । तिलेसरी माय के हिया हाँड़ी के अदहन लेखा खउलइत रहइत हे ।) (मपध॰12:20:22:3.33)
526 सुटकल (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । हम गंगाजी में नहा रहलियो हल । सूरज भगवान ई जड़वो में तावे में हला । भोरे से सुटकल हलूँ । सोचलियो - अब जरा दिनमा गरमयले ह त मकर के नहान कर लूँ । बाकि डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो ।) (मपध॰12:20:45:3.23)
527 सुन्न (दिमाग ~ होना) (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । हम गंगाजी में नहा रहलियो हल । सूरज भगवान ई जड़वो में तावे में हला । भोरे से सुटकल हलूँ । सोचलियो - अब जरा दिनमा गरमयले ह त मकर के नहान कर लूँ । बाकि डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो । कुछ क्षण ला दिमाग एकदम सुन्न हो गेलो ।) (मपध॰12:20:45:3.28)
528 सुरूम (= शुरू) (तोरा तो केउ नाच सिखइबो न कइलक हे ! तूँ तो अप्पन बुद्धि से लास्य नाच सिरजलऽ आ कइलऽ हे । हम तो तंड नाम के रिसी से सीख के तांडो नाच सुरूम कइली हल ।) (मपध॰12:20:17:2.1)
529 सूखना-पखना (अपने के ई जान के हैरानी होतइ कि जउन देश में भात खाय के चलन नञ् हइ ऊ देश में डब्बाबंद माड़ बिक रहले हे । त अमरीका माड़ बेच सकले हे आउ हमनहीं गुड़मार आउ भुइआँवला जइसन औषधीय पौधा के सूख-पख जाय दे रहलिए हे ।) (मपध॰12:20:6:1.35)
530 सेल कबड्डी (खेत में कबड्डी जमल हे । दुनहूँ पाटी में बूढ़ा-जवान-उगलरेख सब सेल कबड्डी कर रहला ह । एने मुरझाल-कुम्हलाल मामू हर-बैल लेले बिड़ार जोते ला मुस्तैद हो गेला ।) (मपध॰12:20:50:1.15)
531 सेवायदम (= हमेशा) (सेवायदम बोकराती करते रहऽ हें, ई ठीक नञ् लगउ ।; डोमिनियाँ के लाजो-गरान नञ् लगइ, सेवायदम चकरचाल में रहऽ हइ ।) (मपध॰12:20:12:1.2, 14.1.14)
532 सैंताना (= 'सैंतना' का अ॰ रूप) (उधर बराती के चेहरा पर काटऽ तो खून न । सबके होश-हवाश गुम । उधम मचावल बोतल में सैंताय लगल । ऊ एकरा, ई एओकरा पर कीचड़ उछाले में मशगूल ।) (मपध॰12:20:23:2.33)
533 सोंस (= एक बड़ा जलजंतु; खर्राटा) (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । ... सोचलियो - अब जरा दिनमा गरमयले ह त मकर के नहान कर लूँ । बाकि डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो । कुछ क्षण ला दिमाग एकदम सुन्न हो गेलो । उठके भागते-भागते फेर पनिया आ गेलो । ऊ जे बिन पानी के गंगाजी देखलियो ओकरा से आझो दिमाग सनसना जाहे । ऊ गड्ढा, पाँका, मछली, सोंस - कुछ समझ में न आवे ।) (मपध॰12:20:46:1.4)
534 सोम (= सूम, कंजूस) (नड़ी सोम हो, पचासो रुपइया नञ् देतो ।) (मपध॰12:20:14:1.12)
535 स्टील-फस्टील (कउची मिलल ? समधी हमरा हगू देलन की । फलना जगह से एतना मिलतइ हल । अर्त्तन-बर्त्तन भी सब देखउआ हे । टिकाऊ एको न हे । स्टील-फस्टील लोहा ही तो हे । हम शीतलमनिया के बरतन देली हल । सात कुरसी तक ओकरा कुछ न होत ।) (मपध॰12:20:33:1.25)
536 हगना (लालाजी के प्रातकाली सुनहुँ । अभी भुरुकवा उगवे कइलइ कि लालाजी पीतर के लोटा लेके खंधा से हो अइला । ई कर्म के हिंया झाड़ा फिरना, दिसा फिरना कहल जाहे । कोई-कोई कहथुन 'मैदान गेलियो हल ।' औरत कहऽ हे एकरा 'बाहर जाना ।' हिंया बुतरू सब हग्गऽ हे ।) (मपध॰12:20:51:1.11)
537 हगना-मूतना (हम अभी चार-पाँच बच्छर के हूँ । लंगटे उठलूँ (बिस्टी सुतले में फेंका गेल) आउ हग्गे-मूते ला दौड़ल सिलाव-राजगीर सड़क पर पहुँच गेलूँ कि देखऽ हियो - बाप रे बाप ! ढेर सा जन्नी-मरद, बूढ़ा पीठ पर बुतरू लादले लबादा ओढ़ले चलल जाहे पैदले-पैदले, डोलते-डालते, अहिस्ते-अहिस्ते ।) (मपध॰12:20:48:1.23)
538 हगू (= ?) (कउची मिलल ? समधी हमरा हगू देलन की । फलना जगह से एतना मिलतइ हल । अर्त्तन-बर्त्तन भी सब देखउआ हे । टिकाऊ एको न हे । स्टील-फस्टील लोहा ही तो हे । हम शीतलमनिया के बरतन देली हल । सात कुरसी तक ओकरा कुछ न होत ।) (मपध॰12:20:33:1.23)
539 हड़हड़-धड़धड़ (राजगीर में तीलसँकरात के मेला हे । सतधरवा बर्हमकुंड में नहा के मामू-ममानी आउ मौसी चेंगना-मेंगना के साथ आके बजंतरी के पत्ता पर ततले-ततले मकर के खिचड़ी के भाप से हाथ-मुँह जला रहला ह कि हड़हड़-धड़धड़ होवे लगल ।) (मपध॰12:20:45:2.12)
540 हड़ास-हड़ास (अब रोमा के पूर्ण विश्वास हो गेल हल कि अब रवि ई जनम में न सुधरत । यही सोच के रोमा बरमदा में आके अप्पन एगो सूती साड़ी लम्बा-लम्बा दू टुकड़ा में फाड़ देल आउ रवि के पलंग में वही साड़ी से सुतले में बाँध के ओकर सिर पर मुंगड़ी से हड़ास-हड़ास प्रहार करे लगल ।) (मपध॰12:20:37:3.16)
541 हबहब (ठीक से देखे दे । उठान आउ मुठान से अदमी आउ जानवर के पहचान होवऽ हइ, ढेर हबहब नञ् कर ।) (मपध॰12:20:15:1.4)
542 हर-हरमेसा (हर-हरमेसा तोरा पर दाबा आ भरोसा करके हमरा पछताय आ सरमाय पड़ल हे ।) (मपध॰12:20:17:1.15)
543 हलकानी (= परेशानी; थकावट) (बाबूजी के हलकानी देखके, माय-बहिन के दहदही महसूस के, ऊ अब ले कोई निर्णय तक न पहुँच सकल, एकरा ला अपना के कोस रहल हे, आँसू के घूँट पी रहल हे बाकि ई जिनगी के लाश कब ले ढोयत ।) (मपध॰12:20:22:3.19)
544 हहाना (जजमान ! सच्चे अजगुत देखलियो । हम गंगाजी में नहा रहलियो हल । सूरज भगवान ई जड़वो में तावे में हला । भोरे से सुटकल हलूँ । सोचलियो - अब जरा दिनमा गरमयले ह त मकर के नहान कर लूँ । बाकि डुबकी लगइलियो कि हहा के सामने से गंगाजी गायब ! हम तो अकबका के बइठ गेलियो । कुछ क्षण ला दिमाग एकदम सुन्न हो गेलो ।) (मपध॰12:20:45:3.25)
545 हाँक (~ सुनना) (कतनो धात-धात करते रहबो त हाँक सुनऽ हइ थोड़े ?) (मपध॰12:20:15:1.6)
546 हागा (हागा अगुर बाघा की ।) (मपध॰12:20:16:1.2)
547 हाड़ी-हड़ुला (सत्तू पिसइलो, चाउर भून के घी, राबा मिलाके भुरकुंडा बनलो, चूड़ा-भुँजा, चाउर, दाल, घी, तेल, मिचाई सब हे । हाड़ी-हड़ुला मिल जात त रसोई रंधा जात ।) (मपध॰12:20:48:3.35)
548 हाथ-समाँग (भारी लग रहलो हऽ त छोड़ दे, अभी हमर हाथ-समाँग गल्लल नञ् हे ।) (मपध॰12:20:11:1.21)
549 हिआँ-हुआँ (उ जमाना में इ नगर के सामरिक सुरक्षा लगी पाषाण घेराबंदी से परिवृत हल जेकर चिन्हा आझो राजगीर के पंच पर्वतीय क्षेत्र में हिआँ-हुआँ देखल जा सकऽ हे ।) (मपध॰12:20:38:2.17)
550 हुरपेटना (हमरा जनकारी हे कि अप्पन इयार-दोस के हुरपेटला पर तूँ हरमेसा बहरसी ई नाच देखावऽ हऽ ।) (मपध॰12:20:17:2.7)
551 हुलचुल्ली (देख लेलहीं हुलचुल्ली के मजा, मरलकउ ने लंगड़ा डंक ।) (मपध॰12:20:13:1.6)
552 होरी-चइता ('आय फुआ ! आगे तो बतयवे न कइलऽ । कलजुगिया चौपाल सबके दलान पर लग जायत । बड़-जेठ मुँह लुका लेतन । उधर नया-नया होरी-चइता गवाये लगत । दस बजल कि सब झूमइत अपन मेहरारू के गोड़थारी में ।' रामटहल कहइत-कहइत बेयग्गर हो गेलन ।) (मपध॰12:20:21:2.1)
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