मपध॰
= मासिक "मगही पत्रिका"; सम्पादक - श्री धनंजय श्रोत्रिय, नई दिल्ली/ पटना
पहिला
बारह अंक के प्रकाशन-विवरण ई प्रकार हइ -
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वर्ष अंक महीना कुल
पृष्ठ
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2001 1 जनवरी 44
2001 2 फरवरी 44
2002 3 मार्च 44
2002 4 अप्रैल 44
2002 5-6 मई-जून 52
2002 7 जुलाई 44
2002 8-9 अगस्त-सितम्बर 52
2002 10-11 अक्टूबर-नवंबर 52
2002 12 दिसंबर 44
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मार्च-अप्रैल
2011 (नवांक-1; पूर्णांक-13) से द्वैमासिक के रूप में अभी तक 'मगही पत्रिका' के नियमित प्रकाशन हो रहले ह । प्रस्तुत अंक : नवांक-8, पूर्णांक-20, मई-जून 2012 ।
ठेठ
मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर
पृष्ठ संख्या, चउठा कॉलम संख्या (एक्के कॉलम रहलो पर
सन्दर्भ भ्रामक नञ् रहे एकरा लगी कॉलम सं॰ 1 देल गेले ह), आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति
संख्या दर्शावऽ हइ ।
कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या (अंक 1-19 तक संकलित शब्द के
अतिरिक्त) - 552
ठेठ मगही शब्द (अ
से न तक):
1 अँड़ुआर (= थन) (भइँसिया अँड़ुआर हार रहले हे, हम अभी देख के आ रहलिए हे ।) (मपध॰12:20:12:1.10)
2 अक्किल (= अकिल; अकल; अक्ल, बुद्धि) (कौस्तुभ मणि आउ पांचजन्य शंख भी ओही लेलन । उनकर त पाँचो अंगुरी घीउ में रहल । तोर अक्किल के ताला ऊ घड़ी काहे न खुलल हल ? काहे तूँ ऊ बेरा अगराके कालकूट जहर उठा लेलऽ हल ?) (मपध॰12:20:19:1.8)
3 अक्सरहाँ (धरती डोले के लीला बाद में जानलूँ । मुंगेर हल इ जलजला के बीच । पइन हो गेल खेत, खेत हो गेल पइन । खेत में रेत ढेर हो गेल । घर-मकान अइसे गिरल जइसे चौदह बालू आउ एक सीमेंट मिलावल सरकारी ठेकेदार के पुल-बिल्डिंग अक्सरहाँ गिरते रहऽ हे । फूस तो ऐसे उड़ियाल जइसे चैत में बर-पीपर के पत्ता उड़िया जाहे ।) (मपध॰12:20:45:2.28)
4 अगराना (= इठलाना, नखरा करना) (कौस्तुभ मणि आउ पांचजन्य शंख भी ओही लेलन । उनकर त पाँचो अंगुरी घीउ में रहल । तोर अक्किल के ताला ऊ घड़ी काहे न खुलल हल ? काहे तूँ ऊ बेरा अगराके कालकूट जहर उठा लेलऽ हल ?) (मपध॰12:20:19:1.9)
5 अगलग्गी (मजा के बात ई हइ कि जब उनका प्रमाण के बारे में कुरेदल जाहे त उनकर उत्तर होवऽ हे कि पता नञ् हो, कि मगही के सारा प्रमाण आउ ओकर साहित्य नालंदा विश्वविद्यालय के अगलग्गी में जर के खाक हो गेलइ हे । ई थेथरोलौजी हे, जे मगही से जुड़ल लोग तक तो चल सकऽ हे बकि अन्य भाषा के विद्वान के सामने नञ् ।) (मपध॰12:20:5:1.30)
6 अगारमाता (अगारमाता हो गेलन हे, एकदम से टभटभ कर रहल हे ।) (मपध॰12:20:11:1.9)
7 अगुर (= आगु; आगे, के सामने) (हागा अगुर बाघा की ।) (मपध॰12:20:16:1.2)
8 अघोरी (= अघोरी नाम की एक जाति; अघोरपंथ का अनुयायी) (सभा-चउपाल में बइठना छोड़के तूँ मुरदघट्टी में आसन जमइबऽ । सासतरो रचलऽ - मारन, बसीकरन, उच्चाटन, मोहन, आकरसन आ न जनी कउन-कउन । कानी गइया के अलगे बथान - तूँ देओता हऽ कि छुट्टल अघोरी ?) (मपध॰12:20:18:3.5)
9 अजलत (अजलत के कोकलत ।; अजलत के खिस्सा, भात पर लिट्टा ।) (मपध॰12:20:13:1.9, 16:1.23)
10 अटान (इ मेलवा भी अजब बिडंबना हे । सौंसे बगइचा में अटान न हे । लाल-लाल साड़ी में जमनकिन हका - बूढ़ियन भी कम न हका, छौंहिन घंघरा-चोली में चमकल चलऽ हे, बढ़-बूढ़ा भी चमरौंधा जूता पेहनले धोती-कुर्ता, फेटा के दमकयले हकइ ।) (मपध॰12:20:49:1.1)
11 अदमजात (दहनी जो अप्पन माय-बाप के पास । जब ऊ अइतइ तब ई सरवा के सब निसेबजिया भुला देतइ । ई सब आदमी नञ् हे, अदमजात हे ।) (मपध॰12:20:27:3.8)
12 अदमी-औरत (कहल गेल हे कि शायर, सिंह, सपूत बेलीक चलऽ हे । इ नजर से देखहू त लगतो पंद्रह आना अदमी-औरत कपूत-कपूती हे । संसार चल रहल ह एके आना से जे अप्पन इमान पर कायम हे ।) (मपध॰12:20:47:2.7)
13 अदहन (असाढ़ माह में अकास में बादर देख के किसान जतने खुश होके मोर लेखा नाचऽ हे ओतने सुखाड़ के अंदेशा से घबड़ाइत भी रहऽ हे । तिलेसरी माय के हिया हाँड़ी के अदहन लेखा खउलइत रहइत हे ।) (मपध॰12:20:22:3.34)
14 अधसीझल (सरिता बुरी तरह जर चुकल हल । अधसीझल देह, देवाल से ओठंगल हल । ओकर परान पखेरू उड़ गेल हल ।) (मपध॰12:20:29:3.15)
15 अनठीक ('संपादकीय' आउ 'अप्पन बात' के कोय-कोय टिप्पणी से अपने जदि असहमत आउ आहत होलथिन हे, तब हम प्रार्थना करबइ कि हमर एक-एक बात के पहिले पड़ताल कर लेवल जाए, ओकर बाद अपने के ठीक आउ अनठीक पता चल जइतइ ।) (मपध॰12:20:4:1.25)
16 अन्हरकोठरी (बेटिहा के पैसा कौन-कौन रूप में लुटावल जायत, नोट के गड्डी में दियासलाई से तितकी नेसल जायत, सब अन्हरकोठरी में बंद हे ।) (मपध॰12:20:22:2.18)
17 अब (~ लेबऽ कि तब लेबऽ) (एतना सुनते हम्मर चचा पर भूत सवार हो गेल । तरबा के लहर कपार - भोनुआ (नौकरवा) के हँकयलका - "लाव तो कोड़वा रे । केकरा पर फूल गेल ह, हमरा पर फूलले ह, आउ केकरा पर दू कौड़ी के गुरु सार ।" गुरुजी इ तेवर देखके अब लेबऽ कि तब लेबऽ - भागल-भागल दू कोस दूर हरसेनिये पहुँच गेला हाँफते-हाँफते । "जान बचल लाखो पइलूँ । जमींदार हीं गुरुअइ करना बाघ के जबड़ा में फँसना हे ।") (मपध॰12:20:51:2.40)
18 अम्मत (अम्मत तोड़ रहलइ हे ।) (मपध॰12:20:13:1.11)
19 अम्मोढेकार (अम्मोढेकार काने लगलइ दइया, हमरो जी हमड़े लगलइ एकदम से ।) (मपध॰12:20:14:1.9)
20 अरमायन (हम्मर बाबा हथुन पूरा पुजारी - रामजी के भक्त । अयोध्या के सीख । त्रिफट्टक चंदन लगयथुन, माला फेरथुन, रमायन पढ़थुन, अरमायन खयथुन ।) (मपध॰12:20:46:1.16)
21 अराधना (= आराधना) (मातृकुल के महिमा अपरंपार हे । सभे कुछ तो महरानी मइया के किरपा से ही हे । ... ऊ सातो मइया के अराधना बिना घर, दुआर, धिया-पूता कुछो न फले । अइसन कौनो गाम नञ् जहाँ महरानी मइया के सातो पिंडी स्थापित न रहे ।) (मपध॰12:20:46:3.16)
22 अरिछन-परिछन (अरिछन-परिछन, कोहबर के विधि-विधान के बाद दुल्हन के खीर में हाथ डाले ला आउ मुँहजूठी ला सास, ननद, जेठानी, फुफिया सास घिघिया के रह गेलन हल बाकि काननप्रिया एको कोर न खा सकल हल ।) (मपध॰12:20:32:1.24)
23 अर्त्तन-बर्त्तन (जइसे-जइसे जमाना बदलल जाइत हे, वइसे-वइसे हजार गो नखड़ा पसरल जाइत हे । पहिले खाली तिलक, कपड़ा, बर्तन दे देल जा हल आउ झमेला खतम । अब तो अर्त्तन-बर्त्तन, तिलक-पेहानी, टीवी-पंखा, फ्रीज, घड़ी, सोफा सेट, सुट-बुट, मोटर साइकिल आम बात हो गेल हे ।; कउची मिलल ? समधी हमरा हगू देलन की । फलना जगह से एतना मिलतइ हल । अर्त्तन-बर्त्तन भी सब देखउआ हे । टिकाऊ एको न हे । स्टील-फस्टील लोहा ही तो हे । हम शीतलमनिया के बरतन देली हल । सात कुरसी तक ओकरा कुछ न होत ।) (मपध॰12:20:31:3.9, 33:1.23)
24 अलचारी (= लाचारी) (जब तोर धेयान ओकरा दने तनिको न जा सकल त अलचारी में ऊ व्यास जी के किरानी बन के कलम घँसे लगल हे ।) (मपध॰12:20:17:3.16)
25 अल-बल (रोमा जल्दी से आह करीत जान बचाके बाथरूम में जाके केबाड़ी लगा ले हे आउ डर से हँफित-हँफित वही तेजाब ओला घटना के याद करके काँप रहल हे । रवि दरवाजा भिर अल-बल बकित बाथरूम के दरवाजा कुछ देर पीट के फिर जाके सुत जाहे ।) (मपध॰12:20:37:2.23)
26 असठी (= ओलती के नीचे बना चबूतरा, ओटा) (कुर्कीहार में हमर एगो बहीन बियाहल हइ । एक बेरी जब हम हुआँ गेल हलिअइ त बगल के एक अदमी चाय पर बोलइलथिन । जब हम उनखर दरवाजा पर गेलिअइ त देखलिअइ कि उनखर बथानी में जानवर के खाय ले नादी रखल हलइ । ओकर चारो तरफ दुर्लभ धरोहर के असठी बनल हलइ ।) (मपध॰12:20:6:1.30)
27 असराफ (= ऊँची श्रेणी के काश्तकार; कुलीन व्यक्ति, भला आदमी) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.7)
28 असीआर (= स्थान की कमी, तंग जगह; असुविधा, कोत्तह, कुसेदा; दे॰ असिआर, असियार) (काननप्रिया हँसके कहऽ हल, "हम मर जइबइ बाबूजी ।" ओकर मइया भी कहऽ हल, "मर जो न गे । असीआर होइत हहीं । इनका से कुछो न जुमइत हइन । हमनी दूनो मर जो । बंड-संड रहतथु । खूब सौख-मौज करे ला होतइन । बिआह काहे ला कइलऽ हल ।" ओकर बाप हँसके कहऽ हलन, "दूनो माय-बेटी पेर देलें । कभी साड़ी त कभी सलवार-कमीज त कभी गहना । केतना फरमाइश पूरा करी ।") (मपध॰12:20:31:2.20)
29 अहस (सुअरमुँहा केकरो अहस नञ् मानतो ।) (मपध॰12:20:11:1.14)
30 अहिस्ते-अहिस्ते (= आहिस्ते-आहिस्ते, धीरे-धीरे) (हम अभी चार-पाँच बच्छर के हूँ । लंगटे उठलूँ (बिस्टी सुतले में फेंका गेल) आउ हग्गे-मूते ला दौड़ल सिलाव-राजगीर सड़क पर पहुँच गेलूँ कि देखऽ हियो - बाप रे बाप ! ढेर सा जन्नी-मरद, बूढ़ा पीठ पर बुतरू लादले लबादा ओढ़ले चलल जाहे पैदले-पैदले, डोलते-डालते, अहिस्ते-अहिस्ते ।) (मपध॰12:20:48:1.28)
31 आन-जान (ठेक मेटा ले हिअइ, आन-जान के रस्ता बन जइतइ ।) (मपध॰12:20:11:1.11)
32 आन्हर-कोतर (हमहुँ सबके रंग-ढंग देख रहल ही । आन्हर-कोतर न ही । कान में ठेपी लागा के बइठल न ही ।) (मपध॰12:20:21:2.26)
33 आय ('आय फुआ ! आगे तो बतयवे न कइलऽ । कलजुगिया चौपाल सबके दलान पर लग जायत । बड़-जेठ मुँह लुका लेतन । उधर नया-नया होरी-चइता गवाये लगत । दस बजल कि सब झूमइत अपन मेहरारू के गोड़थारी में ।' रामटहल कहइत-कहइत बेयग्गर हो गेलन ।) (मपध॰12:20:21:1.28)
34 आय हाय (महादे - ... अभी तो दुन्नो बेटा भी घर में न हथुन । हमर नाच के देखनिहार अकेले तूँहीं रहबऽ ? / पारबती - {ताना मारइत}आय हाय ! चलनी दुसलक सूप के, जेकरा में बहत्तर छेद ? दुन्नो बेटा बेकहल नियर अप्पन मरजी से जहाँ-तहाँ काम करइत रहऽ हथुन ।) (मपध॰12:20:17:2.13)
35 आलता (धीरे-धीरे ओकर बाप कंजूस के धोकड़ी हो गेलन हल । एक-एक पैसा जोड़े लगलन हल । पर्व-त्योहार में भी साड़ी-साया मुहाल हो गेल हल । ओकर माय आउ ऊ फटल-पुरान पहने लगल हल । जउन काननप्रिया दिन में चार बार पाउडर आउ आलता से गोड़-हाँथ रंगऽ हल, ओकरा साबुन तक मुहाल हल ।) (मपध॰12:20:31:2.34)
36 इड़ोत (ओकर आँख से झर-झर आँसू झरे लगल । कइसे आज भाई अकेले सुतत । एक क्षण भी ऊ आँख से ओकरा इड़ोत न होते दे हल । माय-बाप के आँख के पुतली हल ।) (मपध॰12:20:30:1.17)
37 ईन (ईन घर नीन, चान घर चोरी । जम घर मरन, राज घर भोगी ॥) (मपध॰12:20:16:1.15)
38 ईर घाट (~ ... मीर घाट) (कातिक तो तोर अगिनबेटा हथुन । निछत्तर लोक में छव किरितिका लोग उनकर पालन-पोसन कइलन हल । कातिक जनमलन ईर घाट, पालल-पोसल गेलन मीर घाट आउ माय कहइली हम ।) (मपध॰12:20:17:2.39)
39 उगलरेख (बूढ़ा-जवान-~) ( खेत में कबड्डी जमल हे । दुनहूँ पाटी में बूढ़ा-जवान-उगलरेख सब सेल कबड्डी कर रहला ह । एने मुरझाल-कुम्हलाल मामू हर-बैल लेले बिड़ार जोते ला मुस्तैद हो गेला ।) (मपध॰12:20:50:1.14)
40 उटेरा (भाषा कउनो रहे, गद्य लिखेवला से पद्य रचेवला के संख्या जादे होवे करऽ हइ बकि ऊ भाषा के साहित्य के दोसर विधा के रचनाकार के संख्या जब तक उटेरा नियन रहतइ तब तक ऊ भाषा के पुरकस विकास नञ् हो पइतइ ।) (मपध॰12:20:5:1.4)
41 उठान (~ हारना; ~ आउ मुठान) (टिटकारी पारे से थोड़े उठ जइतउ ई भैंसवा, महिन्नो से उठान हार रहले हे ।; ठीक से देखे दे । उठान आउ मुठान से अदमी आउ जानवर के पहचान होवऽ हइ, ढेर हबहब नञ् कर ।) (मपध॰12:20:14:1.7, 15:1.4)
42 उदवास (मुकुल के जनम से तोर घर में जेतने खुशी हो, इ राछस के घर में ओतने गम । काहे कि तोर आठो बिगहा जमीन एखनी के दिमाग में नाचित हवऽ । एकरे चलते हमरा बड़ी उदवास कइल जा रहलो हे ।) (मपध॰12:20:29:3.33)
43 उपहना (= गायब होना) (बेचारा बेटिहा के नीन उपह गेल हे । खेवा-खरची चलावे ला परिवार के जे थुम्ही हल ओहो भरभरा के धरती धयले हे । दस कट्ठा नफीस जमीन देखते-देखते रजिस्ट्री ऑफिस में गोल हो गेल ।) (मपध॰12:20:22:1.35)
44 उफर (= कष्ट, तबाही) (~ परना) (पारबती - हम तोरा नाचे ला तनि का कहली कि तूँ तरक-बितरक के जाल बिछा देलऽ । उफर परे तोर तांडो नाच में । तू खाली दूगो बेलपत्तर से परसन्न होके भगत लोग के मुँह माँगल वरदान देइत रहऽ ।) (मपध॰12:20:19:3.41)
45 एकछितराही (ओकरा एकछितराही के कउहार में मन थोड़े लगतइ ?) (मपध॰12:20:15:1.7)
46 एकठौए (हम्मर नाना काला भुचुंग खाँटी किसान, एकठौए हर जोते वाला । कमे उमर में काल-कवलित हो गेला ।) (मपध॰12:20:50:2.31)
47 एखनी (= एकन्हीं; ये सब) (मुकुल के जनम से तोर घर में जेतने खुशी हो, इ राछस के घर में ओतने गम । काहे कि तोर आठो बिगहा जमीन एखनी के दिमाग में नाचित हवऽ । एकरे चलते हमरा बड़ी उदवास कइल जा रहलो हे ।) (मपध॰12:20:29:3.31)
48 ओइजगे (= ओज्जे; उसी जगह) (रोहित के लगन देखके नरेंद्र बाबू भी उत्साह से भर जा हलन । देर रात तक बाप-बेटा दुन्नो जगऽ हलन । गणित आउ भौतिकी के सिद्धांत आउ समस्या पर चर्चा होवऽ हल । रोहित के माए ओइजगे बइठ के झुँकइत रहऽ हल ।; अब ऊ पटना के गणित भौतिकी आउ रसायन पढ़त । ओइजगे बइठल कॉलेज के किरानी झट से टोकलन, "पटना के भूगोल आउ इतिहास तो सुनली हल नरेंद्र बाबू, ई गणित भौतिकी आउ रसायन का होवऽ हे ?") (मपध॰12:20:24:3.2, 26:1.9)
49 ओइसे (ओइसे अपने हमरा पछान न पइली । हम मुन्ना ही । विश्वविद्यालय प्रोफेसर डॉ॰ मनोहर के बेटा ।) (मपध॰12:20:25:3.14)
50 ओरना (ऊ इतरा के कहऽ हल, "तू का न हहीं ! तोरा ला सिकरी आउ पायल बनइत हउ, राते बाबूजी कहित हलथु । हम का न सुनलिअउ हल ।" मइया हँसके लजाइत एक धौल जमावऽ हल, "कन्ने गे ! कन-ओरनी । कान ओरले हलें । तूँ पहिने देमे । हथिया लेमे ।") (मपध॰12:20:31:1.10)
51 ओलना (तीसी ओल रहलियो हे, अभी देर होतो ।) (मपध॰12:20:8:1.12)
52 औसो (= अउसो) (~ के) (कातिक के गिनती देवी-दुरगा के दरजन भर भगती करेवला लोग में होवऽ हे । ओकर नस-नस में हम्मर तेज भरल हे । हमनी के नाम ऊ औसो के उजागिर करत ।) (मपध॰12:20:17:2.33)
53 कचवच (दोहाई गंगा माय के । केतना मलहवन सार नाव लेले गंगा में समा गेल । जय बाबा बैकठ ! भोला बाबा के सेवऽ हियो - एही से जान बचलो । मलाह सार कचवच खा हे, गेला सारे हाथी के गाँड़ में ।) (मपध॰12:20:46:1.10)
54 कच्चा-डहरा (कच्चा-डहरा हो गेले हे कनियाय के, जे कान रहलथुन हे ।) (मपध॰12:20:14:1.3)
55 कटकटाना (महादे - हो गेल तोर सिकायत के गठरी समापित कि कहे ला कुछ आउर बाकी हे ? / पारबती - सब बात तोरा कटकटा के काहे लगऽ हे ? उलटे हमरा आँख देखावऽ ह ?) (मपध॰12:20:19:2.23)
56 कढ़ौंसा (= कड़ौंसा) (मोटाऽ के कढ़ौंसा हो गेलइ छौंड़ी ।) (मपध॰12:20:12:1.9)
57 कतिकसन (भदवे में मड़ुआ के रोटी आउ मट्ठा चले लगल । जिनोरा के दर्रा भी चले । दाल-भात, दूध-भात कभी घटे न किसान घर । ... कतिकसन एगो झटका दे हइ । मजूर सब डेउढ़िया लेके काम चलावऽ हइ ।) (मपध॰12:20:50:2.24)
58 कन-ओरनी (ऊ इतरा के कहऽ हल, "तू का न हहीं ! तोरा ला सिकरी आउ पायल बनइत हउ, राते बाबूजी कहित हलथु । हम का न सुनलिअउ हल ।" मइया हँसके लजाइत एक धौल जमावऽ हल, "कन्ने गे ! कन-ओरनी । कान ओरले हलें । तूँ पहिने देमे । हथिया लेमे ।") (मपध॰12:20:31:1.10)
59 कपूत-कपूती (कहल गेल हे कि शायर, सिंह, सपूत बेलीक चलऽ हे । इ नजर से देखहू त लगतो पंद्रह आना अदमी-औरत कपूत-कपूती हे । संसार चल रहल ह एके आना से जे अप्पन इमान पर कायम हे ।) (मपध॰12:20:47:2.8)
60 कबकबाना (मायो झुट्ठो कबकबा रहले ह । हम कुछ कहबो नञ् कइलिए ह ।) (मपध॰12:20:10:1.26)
61 करजा-पइँचा (आखिर तिलक के गुणा-भाग एक जगह बइठ गेल हल । बाबूजी जी-जान से लग गेलन हल । जइसे-तइसे करजा-पइँचा त कुल जमा-पुँजी खरच करके तिलक पूरा होयल हल । ओकर बाप के सारा खून जइसे चुस गेल हल ।) (मपध॰12:20:31:3.30)
62 करेबर (एह ! काहे ल बोल रहलऽ हे, तोरा नियन करेबर नञ् हइ कोय ।) (मपध॰12:20:12:1.23)
63 कलसा (= कलश) (सरिता के सखी-सलेहर बिआह के गीत गा रहलन हल । गाड़ल हरियर बाँस, जेकर फुतुंगी पर बान्हल आम के पल्लो । गोहमाठी से छावल मड़वा, जेकरा में आम के घुँच्चा लटक रहल हल । अँगना में कलसा पर चम्भुक बर रहल हल ।) (मपध॰12:20:29:1.7)
64 कहिए, कहिये (= कभी का; बहुत पहले) (रोहित के पढ़ाई चरम पर हल । अगिला पख में परीक्षा हल । आई.एससी. के परीक्षा तो कहिए हो गेल हल । रोहित जी-जान लगौले हल ।) (मपध॰12:20:26:3.3)
65 काँड़ी (~ से पिलाना) ('आ मार बढ़नी रे ! भिछनी मेहरारुओ ओही लगन के । माथ पर भर चुरुआ तेल थोप देत आ सुतले-सुतले दाल-रोटी काँड़ी से पिया देत ।' सोनामति फुआ बीड़ी लेलन आ धूँक मारइत टुघरइत चल देलन अपन पलानी में ।) (मपध॰12:20:21:2.6)
66 काना-कानी (ऊ भुला गेलन अपन संस्कार आउ परंपरा । काना-कानी नवही के मालूम हो गेल, रामटहल आउ चोखलाल होटल में बइठ के कुछ चिखना के सवाद लेलन हे । फिन का ! सउँसे बारात डगमगाये लगल ।) (मपध॰12:20:22:1.23)
67 कानी (= एक आँख वाली; सबसे छोटी) (~ अंगुरी; ~ गइया के अलगे बथान) (सभा-चउपाल में बइठना छोड़के तूँ मुरदघट्टी में आसन जमइबऽ । सासतरो रचलऽ - मारन, बसीकरन, उच्चाटन, मोहन, आकरसन आ न जनी कउन-कउन । कानी गइया के अलगे बथान - तूँ देओता हऽ कि छुट्टल अघोरी ?) (मपध॰12:20:18:3.4)
68 काबिज (शालवृक्ष अप्पन दंभ के डंका पीटते रहे, ढेर सा अमरलत्ता एकरा पर चढ़ल हे । अमरलतवन तो अमरलतवन, इ गुड़ुचवन के देखहो, मजबूतन में मजबूत सखुआ के दबोचले हे । सखुआ जे, सौ साल अड़ा आउ सौ साल खड़ा त जौ भर सड़ा, पर काबिज गिलोय-गिलोय । मजबूतवो के जे घेरे ओही तो रोगी-दुखी के दवा हे । गुडुच हर रोग के दवा हे ।) (मपध॰12:20:49:3.21)
69 कार-करइठा (मातृकुल में हम भूकंप लेले अइलूँ । अदमी हकूँ उ गुनी जलम लेलूँ । देवता होतूँ हल त अवतार लेतूँ हल । ... हम तो निखालिस मगहिया भुच्चड़ हलूँ - कार-गोर के मिलल संतति । नानी हल गोर बुर्राक आउ नाना हला कार-करइठा ।) (मपध॰12:20:46:3.36)
70 कार-गोर (मातृकुल में हम भूकंप लेले अइलूँ । अदमी हकूँ उ गुनी जलम लेलूँ । देवता होतूँ हल त अवतार लेतूँ हल । ... हम तो निखालिस मगहिया भुच्चड़ हलूँ - कार-गोर के मिलल संतति । नानी हल गोर बुर्राक आउ नाना हला कार-करइठा ।) (मपध॰12:20:46:3.34)
71 किनाना (= 'कीनना' का अ॰ रूप; खरीदा जाना) (चलती में किना गेलइ, अब ओकर बस के बात नञ् हइ ।) (मपध॰12:20:11:2.1)
72 कुन्हना (सातो भइवा मिलके कुन्ह देलकइ बेचारा के । अकेलुआ के कोय बस थोड़े चललइ ।) (मपध॰12:20:15:1.8)
73 कुप्पह (कुप्पह में कुच्छो देखाय नञ् पड़लइ ।) (मपध॰12:20:12:1.1)
74 कुप्पा (कउड़ी-कउड़ी राम बटोरे, साव बटोरे कुप्पा ।) (मपध॰12:20:16:1.1)
75 कुरमी (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.9)
76 कुलबोरनी (चुप ! कुलबोरनी चारो बगली ढिंढा फुलैले चलतो आउ एहाँ आके महतमाइन बन रहल हे !) (मपध॰12:20:15:1.13)
77 कूत-कूत (कूत-कूत करके बोलइमहीं ने त दौड़ के चल अइतो ।) (मपध॰12:20:14:1.11)
78 कोंचिआना (कोंचिआहीं नञ् आवऽ हउ त साड़ी कउची पहिनमे । आव, पहिना दे हिअउ ।) (मपध॰12:20:14:1.20)
79 कोकलत (अजलत के कोकलत ।) (मपध॰12:20:13:1.9, 16:1.23)
80 कोठला (मलमास महीना आ गेल । नानी कहथुन - जानऽ हीं बउआ ! इ साल चाउर से कोठला भर जइतउ । काहे कि इ साल मेला लगतउ । पहुनमन के खिलावे ला इन्दर भगवान जरूरे बरखा करइथुन ।) (मपध॰12:20:48:2.18)
81 कोठा (~ पिटना) (कलकत्ता के कमाय से कोठा पिट देलकइ ।) (मपध॰12:20:10:2.6)
82 कोड़ाना (= 'कोड़ना' का अ॰ रूप) (सब तो अउरते हे, पढ़ल-लिखल हे । भोंदू भाव न जाने, पेट भरे से काम । मँड़वा गड़ा गेल, माटी कोड़ा गेल, कोहबर सज गेल, हरदी हाड़ में लगावल जाइत हे । बिआह के गीत केकरो याद न, कैसेट बज रहल हे ।) (मपध॰12:20:22:3.10)
83 कोयरी (दे॰ कोइरी) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.10)
84 कोयरी-कुरमी (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.11)
85 कोल (छोटे जमींदार के छोटे गाम हे बिच्छाकोल । इ नाम की विचित्रे हे । बिच्छा नाम हले पहिया, वासिंदा गड़ेरी के । कोल माने रहे के खोल, खोलिया, झोपड़ा, झोपड़ी । बिच्छा गड़ेरी के कोल (खोल) पर नाम हो गेल बिच्छाकोल । कौआ मुसहर के कोल पर नाम हो गेल कौआकोल ।) (मपध॰12:20:51:3.9)
86 खँखोरना (दे॰ खखोरना) (चंद्रकांती लगनउती कपड़ा उतार के माय के सूतीवाला साड़ी पेन्ह लेलक । सिंगार-पटार खँखोर-खँखोर क चुल्हा में डाल देलक ।) (मपध॰12:20:23:2.13)
87 खंधा (~ से हो आना) (लालाजी के प्रातकाली सुनहुँ । अभी भुरुकवा उगवे कइलइ कि लालाजी पीतर के लोटा लेके खंधा से हो अइला । ई कर्म के हिंया झाड़ा फिरना, दिसा फिरना कहल जाहे । कोई-कोई कहथुन 'मैदान गेलियो हल ।' औरत कहऽ हे एकरा 'बाहर जाना ।' हिंया बुतरू सब हग्गऽ हे ।) (मपध॰12:20:51:1.7)
88 खटपट (खटपट चल रहले हे उनकनहिन में, नञ् मालूम काहे ।) (मपध॰12:20:12:1.7)
89 खटपरूस (सोनामति फुआ गोदी में उठा लेलन । टाँग के कोहबर में ले अयलन, भीतरे से छिटकिनी लगा देलन । का जानी कउन मंतर पढ़वलन कि चंद्रकांती जयमाला मजलिस में जाय ला तइयार हो गेल । फिना से लगनउती साड़ी-लहँगा, चोली-ओढ़नी धारन करके 'खटपरूस' औरत लेखा पाँव बढ़ावित गेल ।) (मपध॰12:20:23:2.29)
90 खताना (= 'खतना' अर्थात् खनना का अ॰ रूप) (तीने दिन में कुइमा खता गेलइ ।) (मपध॰12:20:8:1.31)
91 खपखपाना (खुरपीया से कुल्ले घँसिया खपखपा लेलकइ ।) (मपध॰12:20:10:1.10)
92 खवइया (मुरगी के जान जाय, खवइया के सवादे नञ् ।) (मपध॰12:20:16:1.21)
93 खाँढ़ (एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।") (मपध॰12:20:51:1.39)
94 खाड़ (= ठाड़, ठाड़ा; खड़ा) (आँगन में इधर-उधर दहेज में मिलल समान रखल हल - टीवी, पंखा, रेफरिजरेटर, सिलाई मशीन, धुलाई मशीन, अर्त्तन-बर्त्तन, बड़-बड़कोर, स्टील के संदूक, गोदरेज के अलमारी, सोफासेट, एक ओरे हीरो होंडा मोटर साइकिल खाड़ हल ।) (मपध॰12:20:32:2.18)
95 खुटना (बकड़ी खुटेगेलो हे, अइतो त ेज देबो ।) (मपध॰12:20:11:1.1)
96 खुनना (छो महिन्ना जुतवा के खुन के पहनलिअइ तभियो नञ् फटलइ ।) (मपध॰12:20:10:2.3)
97 खेपना (राता-राती खेप लेलकइ ।) (मपध॰12:20:11:1.13)
98 खेबा (= तुरी; बार; खेप) (हमरा भौतिकी में समस्या होवऽ हल त पापा अपने के हमरा जौरे लगा देवऽ हलन । / एही से तूँ भौतिकी छोड़के डॉक्टरी पढ़ लेलऽ । / एक खेबा फिन दुन्नो हँसलन ।) (मपध॰12:20:25:3.21)
99 खेवा-खरची (बेचारा बेटिहा के नीन उपह गेल हे । खेवा-खरची चलावे ला परिवार के जे थुम्ही हल ओहो भरभरा के धरती धयले हे । दस कट्ठा नफीस जमीन देखते-देखते रजिस्ट्री ऑफिस में गोल हो गेल ।) (मपध॰12:20:22:1.36)
100 खेसारी (= खेसाड़ी) (रामटहल भी होश में न हथ । चमरौंधा जुत्ता पहिन के, खेसारी के सत्तू पी-पी के, पलानी में भइंस गार-गार के, मखनियाँ के घर टीन के टीन दूध पहुँचावे वाला, गोरस के नाम पर ताड़ी घोंकेवाला लड़कीवाला से पच्चीस लाख नगद, कार, चेन लेके ढेकारो न लेलन ।) (मपध॰12:20:23:1.23)
101 खैंक (खैंक गड़ गेलो हे गोड़ में, जे चलल नञ् जा रहलो हे ।) (मपध॰12:20:14:1.4)
102 खोफसाना (~ देना) (ओकर बाप के एक्के रट हल, "तिलक कहाँ से देमे । एगो बेटी हउ । बढ़ियाँ घर बिआहहूँ के चाही । लंगटा घर में बिआह देवऽहीं त जिनगी भर खोफसाना देतउ । रोज-रोज तोरे माथा पर सवार रहतउ ।") (मपध॰12:20:31:3.2)
103 खोल (छोटे जमींदार के छोटे गाम हे बिच्छाकोल । इ नाम की विचित्रे हे । बिच्छा नाम हले पहिया, वासिंदा गड़ेरी के । कोल माने रहे के खोल, खोलिया, झोपड़ा, झोपड़ी । बिच्छा गड़ेरी के कोल (खोल) पर नाम हो गेल बिच्छाकोल । कौआ मुसहर के कोल पर नाम हो गेल कौआकोल ।) (मपध॰12:20:51:3.10)
104 खोलिया (छोटे जमींदार के छोटे गाम हे बिच्छाकोल । इ नाम की विचित्रे हे । बिच्छा नाम हले पहिया, वासिंदा गड़ेरी के । कोल माने रहे के खोल, खोलिया, झोपड़ा, झोपड़ी । बिच्छा गड़ेरी के कोल (खोल) पर नाम हो गेल बिच्छाकोल । कौआ मुसहर के कोल पर नाम हो गेल कौआकोल ।) (मपध॰12:20:51:3.10)
105 गइया (= गाय + 'आ' प्रत्यय) (सभा-चउपाल में बइठना छोड़के तूँ मुरदघट्टी में आसन जमइबऽ । सासतरो रचलऽ - मारन, बसीकरन, उच्चाटन, मोहन, आकरसन आ न जनी कउन-कउन । कानी गइया के अलगे बथान - तूँ देओता हऽ कि छुट्टल अघोरी ?) (मपध॰12:20:18:3.4)
106 गड़ेरी (= गरेड़िया) (छोटे जमींदार के छोटे गाम हे बिच्छाकोल । इ नाम की विचित्रे हे । बिच्छा नाम हले पहिया, वासिंदा गड़ेरी के । कोल माने रहे के खोल, खोलिया, झोपड़ा, झोपड़ी । बिच्छा गड़ेरी के कोल (खोल) पर नाम हो गेल बिच्छाकोल । कौआ मुसहर के कोल पर नाम हो गेल कौआकोल ।) (मपध॰12:20:51:3.9)
107 गढ़िया (= गढ़ + 'आ' प्रत्यय) (हमरा लगऽ हे कि जेकरा राक्षसीवृत्ति कहल जाहे ओकर साक्षात् स्वरूप जमींदरवन के गढ़ में मौजूद रहे । हम घर में न रहऽ हलियो - गढ़िया में रहऽ हलियो, गढ़िया में । एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।") (मपध॰12:20:51:1.31, 33, 36, 38)
108 गमकना (= दुर्गंध करना) (फोकराइन गमक रहलो हे दीदी, हम नञ् लेबो गोदी ।; सउँसे घर गुमसाइन गमक रहलो हे, पहिले सफाय करे पड़तो ।; लोहराइन गमके के चलते मछली नञ् पसंद करऽ हियो बकि मीट-मुरगा खा हिअइ ।) (मपध॰12:20:14:1.16, 17, 18)
109 गरजू (कोई कह रहल हे - 'का समझित ह लोग । लड़किए वाला खाली गरजू हइ । ओकरा मरदाना चाही तो का तोरा लोग के औरत न चाही । केकर जिनगी बिना औरत के कटल हे, तनी हमरा समझा के कहऽ ।') (मपध॰12:20:23:3.3)
110 गर्रह (= ग्रह) (हम तो निखालिस मगहिया भुच्चड़ हलूँ - कार-गोर के मिलल संतति । नानी हल गोर बुर्राक आउ नाना हला कार-करइठा । एकदमे मगहिया संस्कृति-समागम के फलीभूत प्रतीक । कुछ तो रहवे करऽ हे - "जीन कहू, संस्कार कहू, गर्रह के प्रभाव कहू, जेकर भावी वृक्ष बनऽ हे ।") (मपध॰12:20:46:3.39)
111 गलथोथरी (= गलथेथरी) (चलऽ हम हार गेली । तोहीं बड़ा रहऽ ! हमरा गलथोथरी नञ् बोले आवे ।) (मपध॰12:20:15:1.24)
112 गाँड़ (बिना ~ के टेहरी) (चलनियाँ दुसलक बढ़नियाँ के जेकर गँड़िए जरल ।; दोहाई गंगा माय के । केतना मलहवन सार नाव लेले गंगा में समा गेल । जय बाबा बैकठ ! भोला बाबा के सेवऽ हियो - एही से जान बचलो । मलाह सार कचवच खा हे, गेला सारे हाथी के गाँड़ में ।; टॉल्सटाय अप्पन भटकन के नाम देलका पुनर्जागरण । सच्चे इ जिनगी प्रयोगात्मक हे । लीक पीटेवाला जन-जन प्रवाही जीव हे । बिना पेंदी के लोटा, बिना गाँड़ के टेहरी, बिना पतवार के नाव, पुरवइया चले लगल त पच्छिम रुखे बहे लगलूँ, पछिया चले लगल त पूरब दने बहे लगलूँ ।) (मपध॰12:20:16:1.14, 46:1.11, 47:1.39)
113 गाछी (सब्हे गछिया चर गेलउ । अब कहाँ से दे सकलिअउ हे ।) (मपध॰12:20:13:1.19)
114 गालू (राबड़ी देवी के पति गालू हथ । बड़ बोलऽ हथ ।) (मपध॰12:20:8:1.1)
115 गिरस्थी (= गिरहस्ती; गृहस्थी) (जहाँ तेरह मुँह खायवला रहत उहाँ गिरस्थी तो लड़खड़ाइए जात ।) (मपध॰12:20:18:3.42)
116 गिलोय-गिलोय (शालवृक्ष अप्पन दंभ के डंका पीटते रहे, ढेर सा अमरलत्ता एकरा पर चढ़ल हे । अमरलतवन तो अमरलतवन, इ गुड़ुचवन के देखहो, मजबूतन में मजबूत सखुआ के दबोचले हे । सखुआ जे, सौ साल अड़ा आउ सौ साल खड़ा त जौ भर सड़ा, पर काबिज गिलोय-गिलोय । मजबूतवो के जे घेरे ओही तो रोगी-दुखी के दवा हे । गुडुच हर रोग के दवा हे ।) (मपध॰12:20:49:3.21)
117 गुंडी (= चूर्ण, बुकनी; भूसी; सूत आदि का खास माप का लच्छा) (पन्हेतल भतवा में गुंडिया ना के खइलिअइ ने माय, जे पेटवा में डहडही दे रहलइ हे ।) (मपध॰12:20:14:1.1)
118 गुड़मार (= एक वनौषधि) (अपने के ई जान के हैरानी होतइ कि जउन देश में भात खाय के चलन नञ् हइ ऊ देश में डब्बाबंद माड़ बिक रहले हे । त अमरीका माड़ बेच सकले हे आउ हमनहीं गुड़मार आउ भुइआँवला जइसन औषधीय पौधा के सूख-पख जाय दे रहलिए हे ।) (मपध॰12:20:6:1.35)
119 गुड़ुच (शालवृक्ष अप्पन दंभ के डंका पीटते रहे, ढेर सा अमरलत्ता एकरा पर चढ़ल हे । अमरलतवन तो अमरलतवन, इ गुड़ुचवन के देखहो, मजबूतन में मजबूत सखुआ के दबोचले हे । सखुआ जे, सौ साल अड़ा आउ सौ साल खड़ा त जौ भर सड़ा, पर काबिज गिलोय-गिलोय । मजबूतवो के जे घेरे ओही तो रोगी-दुखी के दवा हे । गुडुच हर रोग के दवा हे ।) (मपध॰12:20:49:3.18, 23)
120 गुणा-भाग (तिलक के ~) (रात-दिन चिंता-फिकिर, जोड़-घटाव । न घर ठीक, न वर ठीक । खाली तिलक ! तिलक !! तिलक !!! तिलक ठीक तो सब ठीक । तिलक के गुणा-भाग पर ही बिआह के गुणा-भाग हल । आखिर तिलक के गुणा-भाग एक जगह बइठ गेल हल ।) (मपध॰12:20:31:3.26, 27, 28)
121 गुमसाइन (सउँसे घर गुमसाइन गमक रहलो हे, पहिले सफाय करे पड़तो ।) (मपध॰12:20:14:1.17)
122 गुरुअइ (एतना सुनते हम्मर चचा पर भूत सवार हो गेल । तरबा के लहर कपार - भोनुआ (नौकरवा) के हँकयलका - "लाव तो कोड़वा रे । केकरा पर फूल गेल ह, हमरा पर फूलले ह, आउ केकरा पर दू कौड़ी के गुरु सार ।" गुरुजी इ तेवर देखके अब लेबऽ कि तब लेबऽ - भागल-भागल दू कोस दूर हरसेनिये पहुँच गेला हाँफते-हाँफते । "जान बचल लाखो पइलूँ । जमींदार हीं गुरुअइ करना बाघ के जबड़ा में फँसना हे ।") (मपध॰12:20:51:3.3)
123 गुलगुलाना (कउची गुलगुला रहलहीं हे, ढेर देरी से सुन रहलिअउ हे ।) (मपध॰12:20:13:1.7)
124 गुह (चल ने ! बड़ पड़िआइन बने अइले हें । सुक्खल गुह बर्हामन टिक्का ।) (मपध॰12:20:15:1.26)
125 गूह (= गुह; मल) (सुक्खल गूह बर्हामन टिक्का ।; काला राम के सम्हारल, गोरा गूह के चपोतल ।) (मपध॰12:20:16:1.3, 20)
126 गेंठी (= गाँठ) (सोना जइसन रूप पर लाल सेंदूर सरिता के सुंदरता में चार चांद लगा देलक हल । दुनो के बसतर में बाँधल गेंठी दू आतमा के मिलन के बोध करा रहल हल ।) (मपध॰12:20:29:1.16)
127 गोतिया-भाई (फुफिया सास बोललन हल, "मिलतइन न, जे भाग में होतइन से मिलवे करतइन । पहिले मुँहजूठी के नेग हइ । दुल्हिन के चाही, मुँहजूठी कर लेथ । गोतिया-भाई के खिआवे में देर हो रहल हे । लोग भूखे-पिआसे हथ ।") (मपध॰12:20:32:2.1)
128 गोथार (गोथार चाँपले हइ, कसमसा रहले ह ।) (मपध॰12:20:9:1.15)
129 गोबरछत्ता (भस्मीभूत इतिहास भले बाद में प्रस्तरमूर्ति बने मुदा ई भस्मीकरण जुग-जुग के सच्चाई हे । रखवो पर गोबरछत्ता उगऽ हे - ई दोसर बात हे ।) (मपध॰12:20:45:2.2)
130 गोबार (= गोबारा; ग्वाला, गोप) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । ... ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत । गोबार के लाठी बड़ी मशहूर । एक चरूई भात पर गोबार के गोहार तैयार । मुंगेर दने के एगो खिस्सा यादव प्रोफेसर सुनइते रहऽ हला ।; एक दफे नदी के पानी ला झगड़ा भेल । नीचे के बाभन सब नदी के कच्चा बाँध काटे ला कटिबद्ध रहथन । गोबार भाई हजारन के संख्या में जुटलन । ... बस फूलल-अंकुड़ल चना सब खाथन आउ डंड पेलथन । काहे ला त बाभन सब अइता । बाँध नहिये कटल । अइसे भी बाभन चूतड़-चलाँक जात । मरे-मारे से जादे उनखा लड़वावे-फँसावे में महारत हासिल हे ।) (मपध॰12:20:49:1.15, 16, 22)
131 गोहमाठी (= गोहुमाठी; अनाज झाड़ने के बाद गेहूँ का डंठल) (सरिता के सखी-सलेहर बिआह के गीत गा रहलन हल । गाड़ल हरियर बाँस, जेकर फुतुंगी पर बान्हल आम के पल्लो । गोहमाठी से छावल मड़वा, जेकरा में आम के घुँच्चा लटक रहल हल ।) (मपध॰12:20:29:1.5)
132 गोहराना (तिलेसरी माय दिन-रात चटाई में मुँह छिपा के सिसक रहल हे । देवी-देवता के गोहरा रहल हे कि नीके-नीके बिआह पार लग जाय ।) (मपध॰12:20:22:3.30)
133 गोहार (= किसी के पक्ष में लड़ने-झगड़ने के लिए तैयार दल; शोरगुल; पुकार, दुहाई) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । ... ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत । गोबार के लाठी बड़ी मशहूर । एक चरूई भात पर गोबार के गोहार तैयार । मुंगेर दने के एगो खिस्सा यादव प्रोफेसर सुनइते रहऽ हला ।) (मपध॰12:20:49:1.16)
134 गौंठ (= लगभग भरा हुआ) (गौंठ कटोरा खिचड़ी देलिअइ हे, तभियो कहऽ हथिन कि पेटे नञ् भरल हे ।) (मपध॰12:20:13:1.3)
135 गौंत (= गौत; पशु के लिए चारा) (गाय ले गौंत लावे जा रहलिअइ हे ।) (मपध॰12:20:13:1.12)
136 घर-गिरस्ती (= घर-गृहस्थी) (का बात हे उमा ? मुँह लटकउले काहे बइठल ह ? घर-गिरस्ती के काम निपटा लेलऽ ह का ?) (मपध॰12:20:17:1.5)
137 घरघुस्सू (= घरघुसना) (महादे - दुनियाँ-जहान के भार हमर माथा पर हे । हमरा फुरसत मिलऽ हे कि हम घर-गिरस्ती दने ताकूँ ? घरघुस्सू बनूँ तब भेल काम सिद्ध !) (मपध॰12:20:18:3.14)
138 घव (मगही में लेख-निबंध लिकेवला भाय-बहिन भी कम-से-कम संदर्भ दे हथ आउ अगर देतन भी त कहाँ के घव आउ कहाँ के पव वला । आदमी बौंखते रहे उनकर फुटनोट में वर्णित संदर्भ ग्रंथ के खोजे में । की मजाल हे कि दस में से पाँचो संदर्भ सही निकल जाय ।) (मपध॰12:20:5:1.18)
139 घिढारी (= घिढ़ारी, घेढ़ारी; घृतढारी; विवाह में घी ढालकर की जानेवाली विशेष पूजा) (बलेसर घिढारी करके उठवे कइलन कि धोती के पिअरी चेहरा पर चढ़ गेल । रंगल पाँव उदास हो गेल । कान से मोबाइल लगइलन तो अइसन लगल जइसे चमगादड़ सट जाहे ।) (मपध॰12:20:22:3.36)
140 घुँच्चा (सरिता के सखी-सलेहर बिआह के गीत गा रहलन हल । गाड़ल हरियर बाँस, जेकर फुतुंगी पर बान्हल आम के पल्लो । गोहमाठी से छावल मड़वा, जेकरा में आम के घुँच्चा लटक रहल हल ।) (मपध॰12:20:29:1.6)
141 घुघतर (घर के सामने आँगन दिख रहल हल । काननप्रिया घुघतर से छिपल-छिपल नजर से देख रहल हल - आँगन में इधर-उधर दहेज में मिलल समान रखल हल ।) (मपध॰12:20:32:2.11)
142 घूर (घर जरे, घूर बुतावे ।) (मपध॰12:20:16:1.25)
143 घोंकना (रामटहल भी होश में न हथ । चमरौंधा जुत्ता पहिन के, खेसारी के सत्तू पी-पी के, पलानी में भइंस गार-गार के, मखनियाँ के घर टीन के टीन दूध पहुँचावे वाला, गोरस के नाम पर ताड़ी घोंकेवाला लड़कीवाला से पच्चीस लाख नगद, कार, चेन लेके ढेकारो न लेलन ।) (मपध॰12:20:23:1.26)
144 चकरचाल (डोमिनियाँ के लाजो-गरान नञ् लगइ, सेवायदम चकरचाल में रहऽ हइ ।) (मपध॰12:20:14:1.14)
145 चट्टन (= चटोहर) (आजकल बाहर खाये-पिये के ओकरा जादे आराम हो गेल हे । सुनइत ही कि ऊ लड्डू के चट्टन भी हो गेल । हमरा डर हे कि कहीं ओकरा चीनी के बेमारी न हो जाय ।) (मपध॰12:20:17:3.26)
146 चतुरदस (= चतुर्दशी) (चौथ चतुरदस नोम्मी रिक्ता, जे जइता से अपने सिखता ।) (मपध॰12:20:16:1.24)
147 चनचनाना (परगंगिनियाँ काहे ले चनचना रहले ह ?) (मपध॰12:20:11:1.22)
148 चनरहार (सुहाग सेज पर बइठल काननप्रिया एक-एक आभूषण उतार देलक हल - कंगन, पहुँची, रूपौठी, नथुनी, कनबाली, चनरहार, पाजेब, बिछिया । सब सुहाग जोड़ा में बाँध के सुहाग-सेज पर एक ओर रख देलक हल । सुहाग-दीप बुझा के बरेठा लगा के घोर अंधकार में डूब गेल हल ।; मइया लंबी स्वाँस लेके कहऽ हल, "तोरा तो बिआह में मिलवे करतउ । पहिनिहें न ।" / ऊ चुप्पी लगा जा हल । सपना बुने लगऽ हल - पाँव में पायल, कान में झुमका, हात में कंगन, मांग में मंगटीका, नाक में नकबेसर, गला में सोना के चनरहार - सुहाग जोड़ा में लिपटल !) (मपध॰12:20:30:1.4, 31:1.19)
149 चमकल (~ चलना) (इ मेलवा भी अजब बिडंबना हे । सौंसे बगइचा में अटान न हे । लाल-लाल साड़ी में जमनकिन हका - बूढ़ियन भी कम न हका, छौंहिन घंघरा-चोली में चमकल चलऽ हे, बढ़-बूढ़ा भी चमरौंधा जूता पेहनले धोती-कुर्ता, फेटा के दमकयले हकइ ।) (मपध॰12:20:49:1.3)
150 चमरौंधा (= चमरखानी (~ जुत्ता) (रामटहल भी होश में न हथ । चमरौंधा जुत्ता पहिन के, खेसारी के सत्तू पी-पी के, पलानी में भइंस गार-गार के, मखनियाँ के घर टीन के टीन दूध पहुँचावे वाला, गोरस के नाम पर ताड़ी घोंकेवाला लड़कीवाला से पच्चीस लाख नगद, कार, चेन लेके ढेकारो न लेलन ।; इ मेलवा भी अजब बिडंबना हे । सौंसे बगइचा में अटान न हे । लाल-लाल साड़ी में जमनकिन हका - बूढ़ियन भी कम न हका, छौंहिन घंघरा-चोली में चमकल चलऽ हे, बढ़-बूढ़ा भी चमरौंधा जूता पेहनले धोती-कुर्ता, फेटा के दमकयले हकइ ।) (मपध॰12:20:23:1.23, 49:1.4)
151 चम्भुक (सरिता के सखी-सलेहर बिआह के गीत गा रहलन हल । गाड़ल हरियर बाँस, जेकर फुतुंगी पर बान्हल आम के पल्लो । गोहमाठी से छावल मड़वा, जेकरा में आम के घुँच्चा लटक रहल हल । अँगना में कलसा पर चम्भुक बर रहल हल ।) (मपध॰12:20:29:1.7)
152 चरूई (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । ... ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत । गोबार के लाठी बड़ी मशहूर । एक चरूई भात पर गोबार के गोहार तैयार । मुंगेर दने के एगो खिस्सा यादव प्रोफेसर सुनइते रहऽ हला ।) (मपध॰12:20:49:1.15)
153 चलनी (चलनियाँ दुसलक बढ़नियाँ के जेकर गँड़िए जरल ।) (मपध॰12:20:16:1.14)
154 चल्हाँक (= चलाक, चलाँक; चालाक) (तोरा से एतना भी पार न लगल कि लइकन के दूध खायला कामधेनु गाय माँग लेऊँ जे चल्हाँक इन्नर जी ले गेलन । अपना के बेर-बेर तूँ पशुपतिनाथ कहऽ ह । काहे न ऐरावत हाँथी या उच्चैस्रवा घोड़ा माँगलऽ ?) (मपध॰12:20:19:1.17)
155 चल्हाँकी (= चलाकी, चलाँकी; चालाकी) (पारबती - असल आ सच बात तो कहले जायत, केकरो अन्नस बरे या सुख बुझाय । / महादे - (चल्हाँकी से बात बदलइत) एक बात तूँ कभी सोचलऽ हे उमा ? ई हमनी के घर हवऽ कि एगो चिड़ियाखाना ! एक्के साथे बैल, मिरिग, साँप, चूहा, मोर आ हाँथी के जमघट ।) (मपध॰12:20:18:3.33)
156 चहेंटना (= खेदकर दूर भगाना; मारने को दौड़ना) (साँप गनेस के चूहा पर झपटत, कातिक के मोरे हमर साँप के चहेंटत । अइसन धमाचौकड़ी में सब के सम्हारे में तोरा नानी याद आ जत्थुन ।) (मपध॰12:20:19:3.37)
157 चाँय (चोर के जी चाँय नियन ।) (मपध॰12:20:16:1.9)
158 चिंता-फिकिर (रात-दिन चिंता-फिकिर, जोड़-घटाव । न घर ठीक, न वर ठीक । खाली तिलक ! तिलक !! तिलक !!! तिलक ठीक तो सब ठीक । तिलक के गुणा-भाग पर ही बिआह के गुणा-भाग हल । आखिर तिलक के गुणा-भाग एक जगह बइठ गेल हल ।) (मपध॰12:20:31:3.23)
159 चिख-चिख (चलऽ बैठके फरिया ल सब्भे । जादे चिख-चिख भी ठीक नञ् हे ।) (मपध॰12:20:15:1.9)
160 चिड़ारी (= चिरारी; चिता; श्मशान, मरघट) (जन्नी-मरद तो जादे बाहरे हला मुदा फलिस्ता आउ बूढ़ा-बूढ़ी काल के गाल में समा गेला । चिड़ारी पर मुरदा ला जगह घट गेल ।) (मपध॰12:20:45:3.3)
161 चूड़ा-भुँजा (सत्तू पिसइलो, चाउर भून के घी, राबा मिलाके भुरकुंडा बनलो, चूड़ा-भुँजा, चाउर, दाल, घी, तेल, मिचाई सब हे । हाड़ी-हड़ुला मिल जात त रसोई रंधा जात ।) (मपध॰12:20:48:3.34)
162 चूतड़-चलाँक (~ जात) (एक दफे नदी के पानी ला झगड़ा भेल । नीचे के बाभन सब नदी के कच्चा बाँध काटे ला कटिबद्ध रहथन । गोबार भाई हजारन के संख्या में जुटलन । ... बस फूलल-अंकुड़ल चना सब खाथन आउ डंड पेलथन । काहे ला त बाभन सब अइता । बाँध नहिये कटल । अइसे भी बाभन चूतड़-चलाँक जात । मरे-मारे से जादे उनखा लड़वावे-फँसावे में महारत हासिल हे ।) (मपध॰12:20:49:1.28)
163 चेंगना-मेंगना (राजगीर में तीलसँकरात के मेला हे । सतधरवा बर्हमकुंड में नहा के मामू-ममानी आउ मौसी चेंगना-मेंगना के साथ आके बजंतरी के पत्ता पर ततले-ततले मकर के खिचड़ी के भाप से हाथ-मुँह जला रहला ह कि हड़हड़-धड़धड़ होवे लगल ।) (मपध॰12:20:45:2.9)
164 चोखाना (अभी ढंग चोखइवो नञ् कइलऽ हे आउ भउजी-भउजी करके बुट्टा कसे अइलऽ हे !) (मपध॰12:20:15:1.2)
165 चोर-चमार (एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।") (मपध॰12:20:51:2.1)
166 चौथ (= चौठ, चतुर्थी तिथि) (चौथ चतुरदस नोम्मी रिक्ता, जे जइता से अपने सिखता ।) (मपध॰12:20:16:1.24)
167 छहंतर (एकदम से छहंतर हो छउँड़ी, तोहर बात नञ् सुनतो ।) (मपध॰12:20:11:1.7)
168 छिटकिनी (= सिटकिनी) (सोनामति फुआ गोदी में उठा लेलन । टाँग के कोहबर में ले अयलन, भीतरे से छिटकिनी लगा देलन । का जानी कउन मंतर पढ़वलन कि चंद्रकांती जयमाला मजलिस में जाय ला तइयार हो गेल । फिना से लगनउती साड़ी-लहँगा, चोली-ओढ़नी धारन करके 'खटपरूस' औरत लेखा पाँव बढ़ावित गेल ।) (मपध॰12:20:23:2.25)
169 छित्तीछाँय (दे॰ छित्ति-छाँय) (जल्दी से मनीऑडर भेजऽ । एहाँ सौ-सौ रुपिया ले छित्तीछाँय होवे पड़ रहल हे ।) (मपध॰12:20:15:1.11)
170 छिनरघात (जादे सहजा हे, जे जल्दी बुता हे । ढेर छिनरघात नञ् धरऽ ।) (मपध॰12:20:15:1.10)
171 छुच्छा (चलऽ ! पार-घाट लग गेलइ । छुच्छा के राम रखबार ।) (मपध॰12:20:15:1.17)
172 छुट्टल (सभा-चउपाल में बइठना छोड़के तूँ मुरदघट्टी में आसन जमइबऽ । सासतरो रचलऽ - मारन, बसीकरन, उच्चाटन, मोहन, आकरसन आ न जनी कउन-कउन । कानी गइया के अलगे बथान - तूँ देओता हऽ कि छुट्टल अघोरी ?; लोग तोरा झुठे न पिनाकी कहऽ हथ । तोरा नियर छुट्टल पिनाकी हम कब्बो न देखली । तूँ जहर पीलऽ कहाँ हल जी ? कंठ में रखले रह गेलऽ हल ।) (मपध॰12:20:18:3.5, 20:1.42)
173 छुतका (= सूतक) (छुतका चलते नञ् खा रहलियो हे जी, हमरा हीं तो अपने सब राबन के खनदान के हे ।) (मपध॰12:20:14:1.15)
174 छोपना (बेचारा गनेस नीमन से धेयान देके हमर दरबानी का कइलक कि तूँ ओकर मुड़िये छोप लेलऽ ।) (मपध॰12:20:17:3.4)
175 छोपवाना (देओता लोग के जनम देवेवला दक्ष प्रजापति के जग्ग में तू अप्पन प्रधान गण वीरभद्र के भेज के जग्ग बिधंस करइलऽ आ ओकरे हाँथे उनकर मूड़ी छोपवा के बकरा के मूड़ी लगवइलऽ हल ।) (मपध॰12:20:19:2.43)
176 छौंड़ा (एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।") (मपध॰12:20:51:2.2)
177 छौंड़ा-छौंड़ी (एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।") (मपध॰12:20:51:1.33)
178 छौंहिन (इ मेलवा भी अजब बिडंबना हे । सौंसे बगइचा में अटान न हे । लाल-लाल साड़ी में जमनकिन हका - बूढ़ियन भी कम न हका, छौंहिन घंघरा-चोली में चमकल चलऽ हे, बढ़-बूढ़ा भी चमरौंधा जूता पेहनले धोती-कुर्ता, फेटा के दमकयले हकइ ।) (मपध॰12:20:49:1.3)
179 जइसन (बिना पेंदी के लोटा, बिना गाँड़ के टेहरी, बिना पतवार के नाव, पुरवइया चले लगल त पच्छिम रुखे बहे लगलूँ, पछिया चले लगल त पूरब दने बहे लगलूँ । जब जइसन तब तइसन वाला इ लोग के असलीये चीज मर जाहे - ऊ हे स्वत्व, स्वाभिमान आउ जीये के आत्मानंद ।) (मपध॰12:20:47:2.2)
180 जइसन-तइसन (जे तोरा पागल कहो ओकरा तू कुछ मत कहू । आज जे तोरा जइसन तइसन समझ के धुरी उड़ाबउ हो ओही कल्ह हाथ में माला लेले तोर पिछु-पिछु फिरतो ।) (मपध॰12:20:47:3.12)
181 जकत (= समान) (एक-एक सुध, एक-एक बात आज काननप्रिया के माय से दूर होवे पर याद आवित हल । ऊ याद आज ओकरा मीठा जहर के धूरी जकत घायल कर रहल हल ।) (मपध॰12:20:30:2.9)
182 जगवारी (= जगरना; जागरण) (सास, ननद, देवरानी किवाड़ पीट-पीट के हार गेलन हल आउ ई सोच के रह गेलन हल कि चार-पाँच रात के बिआह-शादी में जगवारी के कारण बहू गहरी नींद में बेसुध हो गेल होवे ।) (मपध॰12:20:32:1.22)
183 जग्ग-परोजन (गनेस के तूँ किरनिये बुझलऽ हे ? ऊ देओता लोग के विनायक हे । ओकर भाग तो देखऽ ! जग्ग-परोजन इया नया काम में हमनी के पहिले ओकरे पूजा-पाहुर सब जगह होवऽ हे ।) (मपध॰12:20:17:3.20)
184 जजमनका (बाबा के भरगर संबोधन से गेंदा पांडे पुलपुला गेला - "हाँ जजमान, अपने ठीके कहऽ हथिन । हम पढ़लिअइ कहाँ जजमान । लिख लोढ़ा पढ़ पत्थल रह गेलिअइ । अपने नियन जजमनका हइ - बाबू-माय मंदिरे में ठेका देलका - गुरुपिंडा के दरसने न भेल । आउ हकियो सरोतरी बर्हामन ।") (मपध॰12:20:46:2.4)
185 जन्नी-मरद (जन्नी-मरद तो जादे बाहरे हला मुदा फलिस्ता आउ बूढ़ा-बूढ़ी काल के गाल में समा गेला । चिड़ारी पर मुरदा ला जगह घट गेल ।; हम अभी चार-पाँच बच्छर के हूँ । लंगटे उठलूँ (बिस्टी सुतले में फेंका गेल) आउ हग्गे-मूते ला दौड़ल सिलाव-राजगीर सड़क पर पहुँच गेलूँ कि देखऽ हियो - बाप रे बाप ! ढेर सा जन्नी-मरद, बूढ़ा पीठ पर बुतरू लादले लबादा ओढ़ले चलल जाहे पैदले-पैदले, डोलते-डालते, अहिस्ते-अहिस्ते ।) (मपध॰12:20:45:3.3, 48:1.25)
186 जबरजंग (= जबर; बरियार, बलवान, मजबूत, भारी, विशालकाय, लम्बा-चौड़ा) (अइसन जबरजंग के अग्याँ हम कब तक मानइत रहम ?) (मपध॰12:20:19:2.25)
187 जमनकी (= जवान स्त्री) (इ मेलवा भी अजब बिडंबना हे । सौंसे बगइचा में अटान न हे । लाल-लाल साड़ी में जमनकिन हका - बूढ़ियन भी कम न हका, छौंहिन घंघरा-चोली में चमकल चलऽ हे, बढ़-बूढ़ा भी चमरौंधा जूता पेहनले धोती-कुर्ता, फेटा के दमकयले हकइ ।) (मपध॰12:20:49:1.2)
188 जमा-पुँजी (= जमा-जत्था, पूरी सम्पत्ति) (आखिर तिलक के गुणा-भाग एक जगह बइठ गेल हल । बाबूजी जी-जान से लग गेलन हल । जइसे-तइसे करजा-पइँचा त कुल जमा-पुँजी खरच करके तिलक पूरा होयल हल । ओकर बाप के सारा खून जइसे चुस गेल हल ।) (मपध॰12:20:31:3.30)
189 जमीदारी (इ जमीदारी जुग हे । अंगरेज बहादुर के राज हे । इ मगह के भुच्चड़ प्रदेश हे । बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।") (मपध॰12:20:46:2.26)
190 जमोटना (जमोट के धर लेलको, अब नञ् उखड़तो ।) (मपध॰12:20:8:1.25)
191 जराको (= जरिक्को; जरा भी) (गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।) (मपध॰12:20:49:1.39)
192 जरी-जरी (~ बात में) (जरी-जरी बात में सरिता के मार-पीट होवे लगल हल । घर से चल जाय आ जिंदे जरावे के धमकी भी मिले लगल हल ।) (मपध॰12:20:29:2.10)
193 जलजला (= भूकम्प) (धरती डोले के लीला बाद में जानलूँ । मुंगेर हल इ जलजला के बीच । पइन हो गेल खेत, खेत हो गेल पइन । खेत में रेत ढेर हो गेल ।) (मपध॰12:20:45:2.24)
194 जिच (हमरा जानते कोय लोकभाषा के साहित्यिक भाषा के सरूप में आवे ले ओकरा में साहित्य के सब्भे विधा के कलमकार के होना जरूरी हइ । ई कहे में हमरा कोय हिचक नञ् हइ आउ नञ् अपने के एकरा स्वीकार करे में कोय जिच होवे के चाही ।) (मपध॰12:20:5:1.3)
195 जिनोरा (= मकई) (~ के दर्रा) (भदवे में मड़ुआ के रोटी आउ मट्ठा चले लगल । जिनोरा के दर्रा भी चले । दाल-भात, दूध-भात कभी घटे न किसान घर ।) (मपध॰12:20:50:2.21)
196 जिमवारी (दे॰ जिमेवारी) (कौस्तुभ मणि आउ पांचजन्य शंख भी ओही लेलन । उनकर त पाँचो अंगुरी घीउ में रहल । तोर अक्किल के ताला ऊ घड़ी काहे न खुलल हल ? काहे तूँ ऊ बेरा अगराके कालकूट जहर उठा लेलऽ हल ?; अपने इ सब गछले ही । राह खरचा, नास्ता-पानी के जिमवारी अपनेहीं लेली हे । आठ बजे बारात उहाव से चलत ।) (मपध॰12:20:19:1.13, 23:1.8)
197 जिमेवारी (= जिम्मेवारी; जिम्मेदारी) (महादे - (चिढ़ल नजर से देखइत) नाच के चरचा के बीच में तूँहीं न बतकुच्चन आ उकटा-पुरान पसारलऽ हे ! घर-गिरस्ती के ई सब पचरा तूँ कहाँ से उठा देलऽ ! घर सम्हारे के जिमेवारी खाली हमरे न हल, तोहर भी हल ।) (मपध॰12:20:18:3.28)
198 जुआड़ (= जुगाड़) (पारो महतो तरमन्ना में ताड़ी पी रहल हल, ओकर औरत खाना बनावे के जुआड़ में हल आउ सनिचरी दरवाजा पर बैठल हल ।) (मपध॰12:20:28:1.1)
199 जुग-जमाना (हमहुँ सबके रंग-ढंग देख रहल ही । आन्हर-कोतर न ही । कान में ठेपी लागा के बइठल न ही । हमरा ऊपर का गुजर रहल हे, का गुजरत, जुग-जमाना देख के कदम बढ़ावे के जरूरत हे । बराती ले जाय ला ह, फौज न ।) (मपध॰12:20:21:2.28)
200 जुमना (= प्रबंध या जुगाड़ हो सकना) (काननप्रिया हँसके कहऽ हल, "हम मर जइबइ बाबूजी ।" ओकर मइया भी कहऽ हल, "मर जो न गे । असीआर होइत हहीं । इनका से कुछो न जुमइत हइन । हमनी दूनो मर जो । बंड-संड रहतथु । खूब सौख-मौज करे ला होतइन । बिआह काहे ला कइलऽ हल ।" ओकर बाप हँसके कहऽ हलन, "दूनो माय-बेटी पेर देलें । कभी साड़ी त कभी सलवार-कमीज त कभी गहना । केतना फरमाइश पूरा करी ।") (मपध॰12:20:31:2.21)
201 जोवा (बासी मुँह लहसुन के चार जोवा खाना फइदा करऽ हे ।) (मपध॰12:20:9:2.1)
202 झक-झक (कॉलेज के प्रोफेसर लोग के आयरन कइल झक-झक सूट देखथ त इनकरो इच्छा प्रोफेसर बने के होवे लगे ।) (मपध॰12:20:24:2.1)
203 झझे काली (महरानी मइया फूस के मड़इयो में खुश । मनकामना पूर्ण होवे त देवी माय के पाठी पड़े । पालल पाठी के देना आत्म बलिदान हे । रेल चलल त बुतरुअन गावे - झझे काली झझे काली, चल कलकत्ता देबउ पाठी ।) (मपध॰12:20:46:3.23)
204 झमकाना (चलऽ ने ! तोरे नियन हमरा, बेटा-भतार कमा रहलइ हे, जे हम नो खंडा झमकइते रहूँ ।) (मपध॰12:20:15:1.20)
205 झमेला (= झंझट, बखेड़ा; अड़चन; उलझन; भीड़-भाड़) (जइसे-जइसे जमाना बदलल जाइत हे, वइसे-वइसे हजार गो नखड़ा पसरल जाइत हे । पहिले खाली तिलक, कपड़ा, बर्तन दे देल जा हल आउ झमेला खतम । अब तो अर्त्तन-बर्त्तन, तिलक-पेहानी, टीवी-पंखा, फ्रीज, घड़ी, सोफा सेट, सुट-बुट, मोटर साइकिल आम बात हो गेल हे ।) (मपध॰12:20:31:3.8)
206 झाल (~ बजाना) (झाल बजइते रहिहऽ, बाउ चल जइथुन त ।) (मपध॰12:20:12:1.19)
207 झुँकना (= झुकना; ऊँघना) (रोहित के लगन देखके नरेंद्र बाबू भी उत्साह से भर जा हलन । देर रात तक बाप-बेटा दुन्नो जगऽ हलन । गणित आउ भौतिकी के सिद्धांत आउ समस्या पर चर्चा होवऽ हल । रोहित के माए ओइजगे बइठ के झुँकइत रहऽ हल ।) (मपध॰12:20:24:3.3)
208 झोकरना, झोंकरना (= काला या मलीन पड़ना; बरतन के पेंदे में सटकर किसी खाद्य पदार्थ का जलना) (फरही हो, बाकि झोकरल हो, से देवे में लाज बरो ।) (मपध॰12:20:11:2.10)
209 झोलाना (एतना जोड़ से पेट झोला जाहे कि मन न करे टरेक्टर चढ़े के ।) (मपध॰12:20:10:2.10)
210 टंगरी (नित्तम दिन परक गेलउ हे, आज आवे देहीं, टंगरिया तोड़ के पाड़ देबइ ।) (मपध॰12:20:13:1.21)
211 टटाना (= मांसपेशियों में दर्द होना) (पनरह दिन से बड़ी भार पड़ रहलो हे, देह टटा रहलो हे ।) (मपध॰12:20:11:1.5)
212 टभटभ (= टभक, टभकन; रुक-रुक कर होनेवाला दर्द, टीस; घाव आदि में रह-रह कर उठनेवाली पीड़ा) (~ करना) (अगारमाता हो गेलन हे, एकदम से टभटभ कर रहल हे ।) (मपध॰12:20:11:1.9)
213 टर-टर (जादे टर-टर नञ् कर, नञ् त दू मिनट में सरिआ देबउ ।) (मपध॰12:20:13:1.1)
214 टहलाना (रोजे-रोजे बहाना बना के टहला रहले हें, बुड़बक समझऽ हीं एकदम्मे ?) (मपध॰12:20:14:1.2)
215 टाटेम (कौआ मुसहर के कोल पर नाम हो गेल कौआकोल । ओइसे गड़ेरी मुसहर टाटेम जात भी हे जेकर गणचिन्ह (टाटेम) भिन्न-भिन्न जीव-जंतु रहऽ हले ।; नाग जाति अप्पन टाटेम लेके सैकड़न बरस तक सभ्यता-संस्कृति-राजसत्ता के प्रतीक हला ।) (मपध॰12:20:51:3.14, 19)
216 टिकिया (माय महेसरी लोर चुआवित घिघिआयल - 'चंद्रकांती ! बाप के पगड़ी के लाज बचा लऽ । तोरे ला नफीस दस कट्ठा के पलौट पर टिकिया रख देली । जा सबके बिआह में आझ एहे देखे के मिलइत हे । घर-घर देखा एके लेखा ।') (मपध॰12:20:23:2.19)
217 टिक्का (= टीका) (चल ने ! बड़ पड़िआइन बने अइले हें । सुक्खल गुह बर्हामन टिक्का ।) (मपध॰12:20:15:1.26)
218 टीस (लाल ~) (एकरा से टीस लाल हलइ ।) (मपध॰12:20:8:1.16)
219 टुकदुम-टुकदुम (भगवान के भरोसा पर ई स्थिर समाज व्यवस्था आउ स्वावलंबी अर्थव्यवस्था टुकदुम-टुकदुम चल रहल हे । तलाब के पानी हे - इ कोर से उछलल त उ कोर गेल, उ कोर से उछलल त इ कोर आल ।) (मपध॰12:20:50:3.34)
220 टुनकी (सोहाग केतना अनमोल हे, केतना टुनकी हे - सात तह के भीतर सोहाग के सेनुर लुका के रखल जाहे । अपने लोग ओकरा सात तह से भी निकाल के 'बिधुन' के छोड़ देली ।) (मपध॰12:20:23:3.28)
221 ठट्ट (~ के ~) (अबकी मलमास आल त हम पाँच बरस के छौंड़ होके कुद्दल चले लगलूँ । दखिन बगइचा में अदमी-औरत के अइसन भीड़ ! ठट्ट के ठट्ट चलल आवऽ हे ।) (मपध॰12:20:48:3.21)
222 ठस्सा (= रोब, ऐंठ; दिखावा; नखड़ा) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।; हम्मर बाबा हलन छोटे-मोटे जमींदार बाकि जमींदारी के ठस्सा कि होवऽ हे इ हम खूब जान गेलूँ । छोटे घर के हम्मर माई ई बड़का घर में का का भोगलक - इ बखाने में सायत बेचारी सरसती लजा जइथन ।) (मपध॰12:20:49:1.9, 51:1.25)
223 ठेक (~ मेटाना/ छोड़ाना = रस्म अदा करना) (ठेक मेटा ले हिअइ, आन-जान के रस्ता बन जइतइ ।) (मपध॰12:20:11:1.11)
224 ठेठाना (तीनों मिलके ठेठा देलकइ ।) (मपध॰12:20:8:1.35)
225 ठेपी (हमहुँ सबके रंग-ढंग देख रहल ही । आन्हर-कोतर न ही । कान में ठेपी लागा के बइठल न ही ।) (मपध॰12:20:21:2.27)
226 डहडही (पन्हेतल भतवा में गुंडिया ना के खइलिअइ ने माय, जे पेटवा में डहडही दे रहलइ हे ।) (मपध॰12:20:14:1.1)
227 डाड़ (डाड़ के देउता मनरा पर ।) (मपध॰12:20:15:1.1)
228 डाहना (डाहके छोड़ देहो, सब गदिया नीचे बइठ जइतो घीया के ।) (मपध॰12:20:12:1.20)
229 डेउढ़िया (भदवे में मड़ुआ के रोटी आउ मट्ठा चले लगल । जिनोरा के दर्रा भी चले । दाल-भात, दूध-भात कभी घटे न किसान घर । ... कतिकसन एगो झटका दे हइ । मजूर सब डेउढ़िया लेके काम चलावऽ हइ ।) (मपध॰12:20:50:2.25)
230 डेउढ़ी (घर में भुँजी भंग नञ्, डेउढ़ी पर नाच ।) (मपध॰12:20:10:2.14)
231 डोम-चमार (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.11)
232 ढिंढा (चुप ! कुलबोरनी चारो बगली ढिंढा फुलैले चलतो आउ एहाँ आके महतमाइन बन रहल हे !) (मपध॰12:20:15:1.13)
233 ढीढ़ियाना (बवंडर, आँधी, तूफान के झेलते-झेलते आदमी ढीढ़िया गेल हे । बाढ़ में बहना-उबरना सीख गेल हे ।) (मपध॰12:20:45:2.4)
234 ढेहबा-फुटौना (मार ढेहबा-फुटौना, उपरका देख रहलउ हे । निमला के मउगी सब के भौजी ।) (मपध॰12:20:13:1.17)
235 तइसन (बिना पेंदी के लोटा, बिना गाँड़ के टेहरी, बिना पतवार के नाव, पुरवइया चले लगल त पच्छिम रुखे बहे लगलूँ, पछिया चले लगल त पूरब दने बहे लगलूँ । जब जइसन तब तइसन वाला इ लोग के असलीये चीज मर जाहे - ऊ हे स्वत्व, स्वाभिमान आउ जीये के आत्मानंद ।) (मपध॰12:20:47:2.2)
236 ततले-ततले (राजगीर में तीलसँकरात के मेला हे । सतधरवा बर्हमकुंड में नहा के मामू-ममानी आउ मौसी चेंगना-मेंगना के साथ आके बजंतरी के पत्ता पर ततले-ततले मकर के खिचड़ी के भाप से हाथ-मुँह जला रहला ह कि हड़हड़-धड़धड़ होवे लगल ।) (मपध॰12:20:45:2.10)
237 तब (अब लेबऽ कि ~ लेबऽ) (एतना सुनते हम्मर चचा पर भूत सवार हो गेल । तरबा के लहर कपार - भोनुआ (नौकरवा) के हँकयलका - "लाव तो कोड़वा रे । केकरा पर फूल गेल ह, हमरा पर फूलले ह, आउ केकरा पर दू कौड़ी के गुरु सार ।" गुरुजी इ तेवर देखके अब लेबऽ कि तब लेबऽ - भागल-भागल दू कोस दूर हरसेनिये पहुँच गेला हाँफते-हाँफते । "जान बचल लाखो पइलूँ । जमींदार हीं गुरुअइ करना बाघ के जबड़ा में फँसना हे ।") (मपध॰12:20:51:3.1)
238 तरमन्ना (पारो महतो तरमन्ना में ताड़ी पी रहल हल, ओकर औरत खाना बनावे के जुआड़ में हल आउ सनिचरी दरवाजा पर बैठल हल ।) (मपध॰12:20:27:3.43)
239 तरूआठी (धीरे-धीरे बोतल के नीसा चढ़इत सूरज लेखा ढले लगल । सबके चेहरा पर ढिबरी जरइत हल । तरूआठी के आग अपने आप बुझा जाहे, ओइसहीं शराब के नीसा । सबके मन में डर बेआपल हे ।) (मपध॰12:20:23:2.36)
240 तलगु (= तब तक) (छोटगर किसान के जिनगी अइसन कि पेउन न छूटे । एने छेद देखाई देलक, पेउन लगइलूँ, तलगु ओने फट गेल । कहाँ-कहाँ सियल जाय ।) (मपध॰12:20:50:2.35)
241 तलाब (= तालाब) (भगवान के भरोसा पर ई स्थिर समाज व्यवस्था आउ स्वावलंबी अर्थव्यवस्था टुकदुम-टुकदुम चल रहल हे । तलाब के पानी हे - इ कोर से उछलल त उ कोर गेल, उ कोर से उछलल त इ कोर आल ।) (मपध॰12:20:50:3.34)
242 तागद (= ताकत) (जमींदारी हे लठमारी तागद के खेल । गेंदा जी बाबा सामने कहथिन, या कहूँ उकसैथिन - देखऽ मालिक । राड़ जात लतियइले । छुछुंदर के माथा में चमेली के तेल लगइबऽ त ऊ आउ छुछुअइतो ।) (मपध॰12:20:51:3.33)
243 तितकी (धन पर ~ रखना/ नेसना = धन का अपव्यय करना) (गाँव के ई पहिला बारात हे, जेकरा में खाली झार-फानुस में पच्चीस हजार रुपइया पर तितकी रख देवल गेल । बैंड-बाजा आउ नाच समियाना में जे पैसा लगावल गेल, ऊ बेटिहा के तीन कट्ठा जमीन के बंधक रखे से आयल हे ।) (मपध॰12:20:22:1.12)
244 तिरमिराना (= चौंधियाना, आँख के आगे अँधेरा छाना) ('ए काका !' साँच कहला पर लोग तिरमिराए लगऽ हथ ... / लछुमन के बात बीचे में काट देलन आ रामटहल कह बइठलन - 'तिरमिरी तो हमरा लगवे करत । डंक मारला पर हो बबुआ बिसबिसयबे करऽ हे आ ऊ डंक तो हमरे लगत ।') (मपध॰12:20:21:1.10)
245 तिरमिरी (= चौंधियाहट, आँख के आगे अँधेरा) ('ए काका !' साँच कहला पर लोग तिरमिराए लगऽ हथ ... / लछुमन के बात बीचे में काट देलन आ रामटहल कह बइठलन - 'तिरमिरी तो हमरा लगवे करत । डंक मारला पर हो बबुआ बिसबिसयबे करऽ हे आ ऊ डंक तो हमरे लगत ।') (मपध॰12:20:21:1.13)
246 तिलंगी (बाराती के शान-शौकत आउ बैंड-बाजा, झार-फानुस तिलंगी पर टिकल हे । बारात झुमल न तो बारात का ! कमर लचकल न तो बारात के आनंद का !!) (मपध॰12:20:22:1.32)
247 तिलक (= तिल्लक) (रात-दिन चिंता-फिकिर, जोड़-घटाव । न घर ठीक, न वर ठीक । खाली तिलक ! तिलक !! तिलक !!! तिलक ठीक तो सब ठीक । तिलक के गुणा-भाग पर ही बिआह के गुणा-भाग हल । आखिर तिलक के गुणा-भाग एक जगह बइठ गेल हल ।) (मपध॰12:20:31:3.24, 25, 26, 27)
248 तिलक-पेहानी (जइसे-जइसे जमाना बदलल जाइत हे, वइसे-वइसे हजार गो नखड़ा पसरल जाइत हे । पहिले खाली तिलक, कपड़ा, बर्तन दे देल जा हल आउ झमेला खतम । अब तो अर्त्तन-बर्त्तन, तिलक-पेहानी, टीवी-पंखा, फ्रीज, घड़ी, सोफा सेट, सुट-बुट, मोटर साइकिल आम बात हो गेल हे ।) (मपध॰12:20:31:3.8)
249 तीलसँकरात (= मकर संक्रांति के अवसर पर मनाया जानेवाला पर्व) (राजगीर में तीलसँकरात के मेला हे । सतधरवा बर्हमकुंड में नहा के मामू-ममानी आउ मौसी चेंगना-मेंगना के साथ आके बजंतरी के पत्ता पर ततले-ततले मकर के खिचड़ी के भाप से हाथ-मुँह जला रहला ह कि हड़हड़-धड़धड़ होवे लगल ।) (मपध॰12:20:45:2.7)
250 तुरते (= तुरतम्मे; तुरन्त ही) (प्रिंसिपल साहेब तो तुरते चल गेलन बाकि विजय जी ढेरे देरी तक बइठल रहलन हल ।) (मपध॰12:20:25:2.10)
251 तेसरकी (= तीसरी) (हम जदि नाच सुरू करम तब घर में लमहर कांड होवे लगत आ कोहराम मच जायत । हमर देह के भभूत तेसरकी आँख में घुस जायत आउ आग के बरखा होवे लगत । हमर तेसरकी आँख में आग, सुरुज आ चनरमा के तेज भरल हे ।) (मपध॰12:20:19:3.19, 21)
252 तोरी (= राई, छोटे पीले अथवा लाल दानों का एक प्रसिद्ध तेलहन) (चंद्रकांती के का पता माय-बाप के एतना सासत भोगे पड़ित हे । देह में हरदी के उबटन तो लगल बाकि दिल-दिमाग भी पियरा गेल । तोरी फुला रहल हे सबके आँख में ।) (मपध॰12:20:22:2.15)
253 थुम्ही (बेचारा बेटिहा के नीन उपह गेल हे । खेवा-खरची चलावे ला परिवार के जे थुम्ही हल ओहो भरभरा के धरती धयले हे । दस कट्ठा नफीस जमीन देखते-देखते रजिस्ट्री ऑफिस में गोल हो गेल ।) (मपध॰12:20:22:1.36)
254 थूरना (मार फैट के थूर देबउ ।) (मपध॰12:20:11:1.26)
255 थेथरपनी (बढ़मा जी बिसुन के बड़का मानथ, बिसुन जी तोरा । थेथरपनी तो तोहनी तिरदेवा से नहिये गेल ।) (मपध॰12:20:20:1.25)
256 थेथरोलौजी (मजा के बात ई हइ कि जब उनका प्रमाण के बारे में कुरेदल जाहे त उनकर उत्तर होवऽ हे कि पता नञ् हो, कि मगही के सारा प्रमाण आउ ओकर साहित्य नालंदा विश्वविद्यालय के अगलग्गी में जर के खाक हो गेलइ हे । ई थेथरोलौजी हे, जे मगही से जुड़ल लोग तक तो चल सकऽ हे बकि अन्य भाषा के विद्वान के सामने नञ् ।) (मपध॰12:20:5:1.31)
257 दइया (= बड़ी बहन; पिता की बड़ी बहन) (अम्मोढेकार काने लगलइ दइया, हमरो जी हमड़े लगलइ एकदम से ।) (मपध॰12:20:14:1.9)
258 दउरा-दारी (मइया साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट के कपड़ा, रीबन, ऐनक, कंघी, चूड़ी, साबुनदानी, साबुन, अनेक प्रकार के दउरा-दारी में सजावेवाला सामान इकट्ठा करे लगल हल ।) (मपध॰12:20:30:3.26)
259 दखिनौते (बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।" ... मगह के तीरथ भी फाजिल में हे, सामान्य स्वाभाविक उन्मेष में न बुझा हे - मलमास मेला अधिकमास में, गया - मरे के बाद में । एने के गंगा मइया के साड़ी के कोर जे दखिनौते हइ ओहू अपवित्र हइ । जे कह रे भाय ! चलती के नाम गाड़ी ।) (मपध॰12:20:46:2.40)
260 दप (लोग ओकरा देखइत रह गेलन हल । केतना सुंदर लगित हल । ऊ मानो कोई अप्सरा, इंद्रासन, से उतर आयल हल । दप से काननप्रिया के आँख में ओकर रूप जगमगा गेल हल ।) (मपध॰12:20:31:1.25)
261 दमखम (सिरिस्टी के परलय होवे घड़ी हम अपन दमखम से ई नाच करऽ ही । हमर नाच से दुनियाँ के कोना-कोना काँपे लगऽ हे ।) (मपध॰12:20:17:1.22)
262 दरदराना (मिनट के अंदर इ हल्ला, इ तहलका कि कौन खिचड़ी खाय, कौन लुग्गा समेटे, कौन मोटरी सँभारे । गिरते-पड़ते भागल-भागल सभे जने धुनी बर दने आके ठहरला । इ तो खैर समझहु कि पहड़वा के पथलवा थोड़े-बहुत दरदरा के रह गेलइ न तो जइसन ठीक पहड़वे तले भीड़ हलइ - लोगन तो भरते हो जइता हल ।) (मपध॰12:20:45:2.20)
263 दर्रा (= घट्ठा, मकई का भात) (भदवे में मड़ुआ के रोटी आउ मट्ठा चले लगल । जिनोरा के दर्रा भी चले । दाल-भात, दूध-भात कभी घटे न किसान घर ।) (मपध॰12:20:50:2.21)
264 दसकोसी-पँचकोसी (चरचा फैलते-फैलते दसकोसी-पँचकोसी में फैल गेल हल । लोग सुने ला, देखे ला काननप्रिया के ससुर के दरवाजा तक आवे लगलन हल ।) (मपध॰12:20:34:1.3)
265 दहँजना (= सताना, कष्ट देना) (आ दीनानाथ ! जइसे ई राँड़-मोसमात के दहँज रहलो हे छउँड़ी, ओइसहीं एकरा धुएँ के राँड़ कर दिहऽ ।) (मपध॰12:20:15:1.15)
266 दहदही (बाबूजी के हलकानी देखके, माय-बहिन के दहदही महसूस के, ऊ अब ले कोई निर्णय तक न पहुँच सकल, एकरा ला अपना के कोस रहल हे, आँसू के घूँट पी रहल हे बाकि ई जिनगी के लाश कब ले ढोयत ।) (मपध॰12:20:22:3.20)
267 दहाना (ठेहुने भर पानी में दहा देलकइ ।) (मपध॰12:20:9:2.5)
268 दाल-भात-भरता (मलमास महीना आ गेल । नानी कहथुन - जानऽ हीं बउआ ! इ साल चाउर से कोठला भर जइतउ । काहे कि इ साल मेला लगतउ । पहुनमन के खिलावे ला इन्दर भगवान जरूरे बरखा करइथुन । हम्मर गाम हउ सीमाना पर, सभे जातरी एहीं से तो गुजरऽ हउ । केकरा रोकमहीं, केकरा टोकमहीं, दाल-भात-भरता तो देहीं पड़तउ ।) (मपध॰12:20:48:2.18)
269 दिसा (~ फिरना = झाड़ा फिरना) (लालाजी के प्रातकाली सुनहुँ । अभी भुरुकवा उगवे कइलइ कि लालाजी पीतर के लोटा लेके खंधा से हो अइला । ई कर्म के हिंया झाड़ा फिरना, दिसा फिरना कहल जाहे । कोई-कोई कहथुन 'मैदान गेलियो हल ।' औरत कहऽ हे एकरा 'बाहर जाना ।' हिंया बुतरू सब हग्गऽ हे ।) (मपध॰12:20:51:1.8)
270 दुखछल (एही बीच में सोनामति फुआ लकुटी टेकइत आ गेल आउ रामटहल से एगो बीड़ी माँग लेलक - 'का दुखछल सुनाऊँ बबुआ ! दुगो बीड़ी ताखा पर धइल हलवऽ, छोटका पोतवा चोरा के फूँक देलकवऽ ।') (मपध॰12:20:21:1.19)
271 दुसाध-बेलदार (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.12)
272 दूध-लावा ('कहिया पहरोपा होबत, कहिया नकपाँचे होबत' इ चिंता हे छोटकू जिज्ञासु के । काहे कि पहरोपा दिन फुलौड़ी-भात, नकपाँचे दिन दूध-लावा याद आ जाहे ।) (मपध॰12:20:50:1.20)
273 दूसर-तीसर (इ जमीदारी जुग हे । अंगरेज बहादुर के राज हे । इ मगह के भुच्चड़ प्रदेश हे । बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।") (मपध॰12:20:46:2.29)
274 देखनगर (पारबती - तोर सब यार-दोस के अंग भी देखनगर हे । तोरा तीन गो आँख, तोर यार कुबेर के तीन गो पैर आ एगो आँख । तोरा पाँच गो मुँह, कुबेर के आठ गो दाँत ।) (मपध॰12:20:19:3.24)
275 देखा-हिंसकी, देखा-हिसकी (पारबती - ... अपन सवारी ला बैल चुने घड़ी तोर बुद्धि कहाँ भुला गेल हल ? / महादे - आ हमरे देखा-हिंसकी तूँ भी काहे जनावरे दने ताकलऽ ? ऊ भी भयंकर आदमखोर बाघ के पटा लेलऽ !; पारबती - ... देखा-हिसकी तो बेटा लोग भी कइलन । दुन्नो में एक जनावर आ दुसरका चिरईं चुन लेलथुन - एक जने चूहा, दोसर मोर ।) (मपध॰12:20:18:1.23, 29)
276 देवपूजी ('तोर तो भोंपा खुलऽ हे तो बंद होवे के नामे न लेवे । ल हम जाइत ही, बाप-बेटा मिलके नौ-छौ कर ल !' अतना कहके महेसरी देवपूजी के सरजाम में जुट गेल ।) (मपध॰12:20:21:2.35)
277 दोमचना (चढ़के दोमच देलकइ ।) (मपध॰12:20:11:2.18)
278 दोहारी (दे॰ दुहारी) (गुफा के दोहारी पर ब्राह्मी लिपि में पाँच लाइन में एगो शिलालेख हे, जे सम्राट अशोक के समय के हे ।) (मपध॰12:20:43:3.3)
279 धक-विचार (माय-बाप के पगड़ी डुबा रहले हऽ छउँड़ी, तनिको धक-विचार नञ् लगइ ।) (मपध॰12:20:15:1.14)
280 धड़धड़ी (~ के बज्जड़) (जन्नी-मरद तो जादे बाहरे हला मुदा फलिस्ता आउ बूढ़ा-बूढ़ी काल के गाल में समा गेला । चिड़ारी पर मुरदा ला जगह घट गेल । अइसन मातम हल कि लोग कहथन एही हे भगवान महेश्वर के कोप, धड़धड़ी के बज्जड़ ।) (मपध॰12:20:45:3.7)
281 धाँगना (= रौंदना, कुचलना) (कूद-कूद के धाँग देलकइ ।) (मपध॰12:20:9:1.5)
282 धात-धात (कतनो धात-धात करते रहबो त हाँक सुनऽ हइ थोड़े ?) (मपध॰12:20:15:1.6)
283 धिया-पूता (मातृकुल के महिमा अपरंपार हे । सभे कुछ तो महरानी मइया के किरपा से ही हे । ... ऊ सातो मइया के अराधना बिना घर, दुआर, धिया-पूता कुछो न फले । अइसन कौनो गाम नञ् जहाँ महरानी मइया के सातो पिंडी स्थापित न रहे ।) (मपध॰12:20:46:3.16)
284 धुंधुर (= धुँधला, धूमिल) (रोहित के आँख से लोर चू रहल हल । पनिआएल आँखे ओकरा अप्पन पापा के धुंधुर चेहरा लौक रहल हल जे गते-गते अलोप हो गेल ।) (मपध॰12:20:26:3.36)
285 धुआँ-धुंकड़ (तपस्यारत गौतम सिद्धार्थ निरन्न मरणासन्न हो गेला तइयो अंतर्मन में रसासक्ति बनले रह गेल । बरफ में गलऽ, पंचाग्नि में तपऽ, काम के जरावऽ, धुआँ-धुंकड़ रस तो जायवला हे न ।) (मपध॰12:20:49:3.40)
286 धुत्त (भाँग खाके निसा में धुत्त हलथुन ।) (मपध॰12:20:11:2.10)
287 धूँक (~ मारना) ('आ मार बढ़नी रे ! भिछनी मेहरारुओ ओही लगन के । माथ पर भर चुरुआ तेल थोप देत आ सुतले-सुतले दाल-रोटी काँड़ी से पिया देत ।' सोनामति फुआ बीड़ी लेलन आ धूँक मारइत टुघरइत चल देलन अपन पलानी में ।) (मपध॰12:20:21:2.7)
288 धोवल (= धुला हुआ) (दूध के ~ = दोष रहित, बिना ऐब का, पवित्र) (पारबती - (मुँह ऐंठ के) रहे द रहे द ! सब देओता के भितरिया रहस हम नीक तरी जानऽ ही । देवलोक में केउ दूध के धोवल न हे ।) (मपध॰12:20:19:1.28)
289 धौंस (हम्मर बाबा ओइसे तो श्रीराम जी के भक्त हला । अजोध्या धाम के शरण में तल्लीन रहऽ हला (नाम हल प्रीतम शरण), बाकि चित्त में जमींदारवाला धौंस शायदे विलीन रहऽ हले ।) (मपध॰12:20:46:1.37)
290 धौल (ऊ इतरा के कहऽ हल, "तू का न हहीं ! तोरा ला सिकरी आउ पायल बनइत हउ, राते बाबूजी कहित हलथु । हम का न सुनलिअउ हल ।" मइया हँसके लजाइत एक धौल जमावऽ हल, "कन्ने गे ! कन-ओरनी । कान ओरले हलें । तूँ पहिने देमे । हथिया लेमे ।") (मपध॰12:20:31:1.9)
291 नकपाँचे (= नागपंचमी) ('कहिया पहरोपा होबत, कहिया नकपाँचे होबत' इ चिंता हे छोटकू जिज्ञासु के । काहे कि पहरोपा दिन फुलौड़ी-भात, नकपाँचे दिन दूध-लावा याद आ जाहे ।) (मपध॰12:20:50:1.18, 20)
292 नफीस (= बढ़िया, सुन्दर) (दस कट्ठा ~ जमीन) (बेचारा बेटिहा के नीन उपह गेल हे । खेवा-खरची चलावे ला परिवार के जे थुम्ही हल ओहो भरभरा के धरती धयले हे । दस कट्ठा नफीस जमीन देखते-देखते रजिस्ट्री ऑफिस में गोल हो गेल ।) (मपध॰12:20:22:1.38)
293 नमहँसी (= नमहँस्सी) (कपूतवन के संख्या जादे हे त उ बरियारी करतो आउ सपूतवन के कहतो - लंठ, कुलबोरन, अल्हड़-बिगड़ल । बिगड़ल टैम में तो जलमवे कइलूँ हल त बिगड़ल बने में नमहँसी कौची ?) (मपध॰12:20:47:2.18)
294 नरियर ( गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।) (मपध॰12:20:49:1.35)
295 नवही-जुआन (आज गाँव के बूढ़-पुरनिया से लेके नवही-जुआन तक पर पड़ल हे । सब एक दुसरा के ललकरे में अपना के बुद्धिमान समझित हे ।) (मपध॰12:20:23:1.29)
296 नादी (कुर्कीहार में हमर एगो बहीन बियाहल हइ । एक बेरी जब हम हुआँ गेल हलिअइ त बगल के एक अदमी चाय पर बोलइलथिन । जब हम उनखर दरवाजा पर गेलिअइ त देखलिअइ कि उनखर बथानी में जानवर के खाय ले नादी रखल हलइ । ओकर चारो तरफ दुर्लभ धरोहर के असठी बनल हलइ ।) (मपध॰12:20:6:1.30)
297 नानीघर (= ननिहाल) (राजगीर से एक सवा कोस उत्तर एगो गाम हे - सीमा । हम्मर ओहीं ननिहाल हे । उ टैम में बाल-बुतरु जादेतर ननिहाले में पइदा होवऽ हल । एगो प्रथा हलइ कि पहिलौंठ बुतरु नानीघर में जलमे ।) (मपध॰12:20:46:3.6)
298 निखालिस (= निछक्का, पक्का) (मातृकुल में हम भूकंप लेले अइलूँ । अदमी हकूँ उ गुनी जलम लेलूँ । देवता होतूँ हल त अवतार लेतूँ हल । ... हम तो निखालिस मगहिया भुच्चड़ हलूँ - कार-गोर के मिलल संतति । नानी हल गोर बुर्राक आउ नाना हला कार-करइठा ।) (मपध॰12:20:46:3.33)
299 निघटाना (आवऽ मिलजुल के सब कुछ निघटा लिअइ । पत्तल पर छूटे के नञ् चाही । अन्नपूर्णा के अपमान होवऽ हे ।) (मपध॰12:20:15:1.22)
300 निबरा (= निमरा; निर्बल) ('सीमा' के लोग गोइठा, बर्तन (मट्टी के) बेचऽ हे, निबरा हे । अँचरा में दूगो पइसा आवे से केकरा मन न मचलऽ हे ।) (मपध॰12:20:48:3.38)
301 निमनका (= अच्छा वाला) (नरेंद्र के लगइत हल कि ओही पास हएलक हे । ऊ रोहित के चाल कइलक आउ पाँच सौ रुपइया देइत कहलक कि बजार से मेंही दाना वाला निमनका लड्डू ले आवे ।) (मपध॰12:20:24:1.17)
302 निम्मल-दुब्बर (= निम्मर-दुब्बर; निर्बल-दुबला) (मार के भुरकुस कर देबउ, जहाँ गारी देले हें त । निम्मल-दुब्बर समझ लेलहीं हे ।) (मपध॰12:20:13:1.25)
303 निसेबाजी (दहनी जो अप्पन माय-बाप के पास । जब ऊ अइतइ तब ई सरवा के सब निसेबजिया भुला देतइ । ई सब आदमी नञ् हे, अदमजात हे ।) (मपध॰12:20:27:3.7)
304 निहोरा-मिन्नत (आखिर जन-जागृति के मतलब भी होवऽ हइ जन-जन के जगाना हीं न ? त जन के जगावे ल या तो जननायक खुद बनहो या जनप्रतिनिधि सब से एकरा ले निहोरा-मिन्नत करहो । माननीय के मान देवे में एतराज की ? जब तक विधायक आउ सांसद के नञ् जोड़भो तब तक विधानसभा आउ लोकसभा में तोहर मगही कैसे गुंजतो आउ चिदंबरम कैसे बोलथुन - "हम अपने सब के भावना समझऽ ही " !) (मपध॰12:20:6:1.19)
305 नीके-नीके (तिलेसरी माय दिन-रात चटाई में मुँह छिपा के सिसक रहल हे । देवी-देवता के गोहरा रहल हे कि नीके-नीके बिआह पार लग जाय ।) (मपध॰12:20:22:3.30)
306 नेसना (= बारना, जलाना, प्रज्वलित करना) (बेटिहा के पैसा कौन-कौन रूप में लुटावल जायत, नोट के गड्डी में दियासलाई से तितकी नेसल जायत, सब अन्हरकोठरी में बंद हे ।) (मपध॰12:20:22:2.17)
307 नोम्मी (= नवमी तिथि) (चौथ चतुरदस नोम्मी रिक्ता, जे जइता से अपने सिखता ।) (मपध॰12:20:16:1.24)
308 नौकरिहा (= नौकरियाहा, नौकरी करनेवाला) (मइया का जनी कउची खिया के भेज देलथिन हे कि भूखे न लगलइन हे । मुँहदेखनी का जानी खूब खोजइत होथुन हे, सीतलमनिया । करनफुलवा दे देहुन । नौकरिहा ननद हहूँ ।) (मपध॰12:20:32:1.37)
309 नौ-छौ ('तोर तो भोंपा खुलऽ हे तो बंद होवे के नामे न लेवे । ल हम जाइत ही, बाप-बेटा मिलके नौ-छौ कर ल !' अतना कहके महेसरी देवपूजी के सरजाम में जुट गेल ।) (मपध॰12:20:21:2.34)
2 अक्किल (= अकिल; अकल; अक्ल, बुद्धि) (कौस्तुभ मणि आउ पांचजन्य शंख भी ओही लेलन । उनकर त पाँचो अंगुरी घीउ में रहल । तोर अक्किल के ताला ऊ घड़ी काहे न खुलल हल ? काहे तूँ ऊ बेरा अगराके कालकूट जहर उठा लेलऽ हल ?) (मपध॰12:20:19:1.8)
3 अक्सरहाँ (धरती डोले के लीला बाद में जानलूँ । मुंगेर हल इ जलजला के बीच । पइन हो गेल खेत, खेत हो गेल पइन । खेत में रेत ढेर हो गेल । घर-मकान अइसे गिरल जइसे चौदह बालू आउ एक सीमेंट मिलावल सरकारी ठेकेदार के पुल-बिल्डिंग अक्सरहाँ गिरते रहऽ हे । फूस तो ऐसे उड़ियाल जइसे चैत में बर-पीपर के पत्ता उड़िया जाहे ।) (मपध॰12:20:45:2.28)
4 अगराना (= इठलाना, नखरा करना) (कौस्तुभ मणि आउ पांचजन्य शंख भी ओही लेलन । उनकर त पाँचो अंगुरी घीउ में रहल । तोर अक्किल के ताला ऊ घड़ी काहे न खुलल हल ? काहे तूँ ऊ बेरा अगराके कालकूट जहर उठा लेलऽ हल ?) (मपध॰12:20:19:1.9)
5 अगलग्गी (मजा के बात ई हइ कि जब उनका प्रमाण के बारे में कुरेदल जाहे त उनकर उत्तर होवऽ हे कि पता नञ् हो, कि मगही के सारा प्रमाण आउ ओकर साहित्य नालंदा विश्वविद्यालय के अगलग्गी में जर के खाक हो गेलइ हे । ई थेथरोलौजी हे, जे मगही से जुड़ल लोग तक तो चल सकऽ हे बकि अन्य भाषा के विद्वान के सामने नञ् ।) (मपध॰12:20:5:1.30)
6 अगारमाता (अगारमाता हो गेलन हे, एकदम से टभटभ कर रहल हे ।) (मपध॰12:20:11:1.9)
7 अगुर (= आगु; आगे, के सामने) (हागा अगुर बाघा की ।) (मपध॰12:20:16:1.2)
8 अघोरी (= अघोरी नाम की एक जाति; अघोरपंथ का अनुयायी) (सभा-चउपाल में बइठना छोड़के तूँ मुरदघट्टी में आसन जमइबऽ । सासतरो रचलऽ - मारन, बसीकरन, उच्चाटन, मोहन, आकरसन आ न जनी कउन-कउन । कानी गइया के अलगे बथान - तूँ देओता हऽ कि छुट्टल अघोरी ?) (मपध॰12:20:18:3.5)
9 अजलत (अजलत के कोकलत ।; अजलत के खिस्सा, भात पर लिट्टा ।) (मपध॰12:20:13:1.9, 16:1.23)
10 अटान (इ मेलवा भी अजब बिडंबना हे । सौंसे बगइचा में अटान न हे । लाल-लाल साड़ी में जमनकिन हका - बूढ़ियन भी कम न हका, छौंहिन घंघरा-चोली में चमकल चलऽ हे, बढ़-बूढ़ा भी चमरौंधा जूता पेहनले धोती-कुर्ता, फेटा के दमकयले हकइ ।) (मपध॰12:20:49:1.1)
11 अदमजात (दहनी जो अप्पन माय-बाप के पास । जब ऊ अइतइ तब ई सरवा के सब निसेबजिया भुला देतइ । ई सब आदमी नञ् हे, अदमजात हे ।) (मपध॰12:20:27:3.8)
12 अदमी-औरत (कहल गेल हे कि शायर, सिंह, सपूत बेलीक चलऽ हे । इ नजर से देखहू त लगतो पंद्रह आना अदमी-औरत कपूत-कपूती हे । संसार चल रहल ह एके आना से जे अप्पन इमान पर कायम हे ।) (मपध॰12:20:47:2.7)
13 अदहन (असाढ़ माह में अकास में बादर देख के किसान जतने खुश होके मोर लेखा नाचऽ हे ओतने सुखाड़ के अंदेशा से घबड़ाइत भी रहऽ हे । तिलेसरी माय के हिया हाँड़ी के अदहन लेखा खउलइत रहइत हे ।) (मपध॰12:20:22:3.34)
14 अधसीझल (सरिता बुरी तरह जर चुकल हल । अधसीझल देह, देवाल से ओठंगल हल । ओकर परान पखेरू उड़ गेल हल ।) (मपध॰12:20:29:3.15)
15 अनठीक ('संपादकीय' आउ 'अप्पन बात' के कोय-कोय टिप्पणी से अपने जदि असहमत आउ आहत होलथिन हे, तब हम प्रार्थना करबइ कि हमर एक-एक बात के पहिले पड़ताल कर लेवल जाए, ओकर बाद अपने के ठीक आउ अनठीक पता चल जइतइ ।) (मपध॰12:20:4:1.25)
16 अन्हरकोठरी (बेटिहा के पैसा कौन-कौन रूप में लुटावल जायत, नोट के गड्डी में दियासलाई से तितकी नेसल जायत, सब अन्हरकोठरी में बंद हे ।) (मपध॰12:20:22:2.18)
17 अब (~ लेबऽ कि तब लेबऽ) (एतना सुनते हम्मर चचा पर भूत सवार हो गेल । तरबा के लहर कपार - भोनुआ (नौकरवा) के हँकयलका - "लाव तो कोड़वा रे । केकरा पर फूल गेल ह, हमरा पर फूलले ह, आउ केकरा पर दू कौड़ी के गुरु सार ।" गुरुजी इ तेवर देखके अब लेबऽ कि तब लेबऽ - भागल-भागल दू कोस दूर हरसेनिये पहुँच गेला हाँफते-हाँफते । "जान बचल लाखो पइलूँ । जमींदार हीं गुरुअइ करना बाघ के जबड़ा में फँसना हे ।") (मपध॰12:20:51:2.40)
18 अम्मत (अम्मत तोड़ रहलइ हे ।) (मपध॰12:20:13:1.11)
19 अम्मोढेकार (अम्मोढेकार काने लगलइ दइया, हमरो जी हमड़े लगलइ एकदम से ।) (मपध॰12:20:14:1.9)
20 अरमायन (हम्मर बाबा हथुन पूरा पुजारी - रामजी के भक्त । अयोध्या के सीख । त्रिफट्टक चंदन लगयथुन, माला फेरथुन, रमायन पढ़थुन, अरमायन खयथुन ।) (मपध॰12:20:46:1.16)
21 अराधना (= आराधना) (मातृकुल के महिमा अपरंपार हे । सभे कुछ तो महरानी मइया के किरपा से ही हे । ... ऊ सातो मइया के अराधना बिना घर, दुआर, धिया-पूता कुछो न फले । अइसन कौनो गाम नञ् जहाँ महरानी मइया के सातो पिंडी स्थापित न रहे ।) (मपध॰12:20:46:3.16)
22 अरिछन-परिछन (अरिछन-परिछन, कोहबर के विधि-विधान के बाद दुल्हन के खीर में हाथ डाले ला आउ मुँहजूठी ला सास, ननद, जेठानी, फुफिया सास घिघिया के रह गेलन हल बाकि काननप्रिया एको कोर न खा सकल हल ।) (मपध॰12:20:32:1.24)
23 अर्त्तन-बर्त्तन (जइसे-जइसे जमाना बदलल जाइत हे, वइसे-वइसे हजार गो नखड़ा पसरल जाइत हे । पहिले खाली तिलक, कपड़ा, बर्तन दे देल जा हल आउ झमेला खतम । अब तो अर्त्तन-बर्त्तन, तिलक-पेहानी, टीवी-पंखा, फ्रीज, घड़ी, सोफा सेट, सुट-बुट, मोटर साइकिल आम बात हो गेल हे ।; कउची मिलल ? समधी हमरा हगू देलन की । फलना जगह से एतना मिलतइ हल । अर्त्तन-बर्त्तन भी सब देखउआ हे । टिकाऊ एको न हे । स्टील-फस्टील लोहा ही तो हे । हम शीतलमनिया के बरतन देली हल । सात कुरसी तक ओकरा कुछ न होत ।) (मपध॰12:20:31:3.9, 33:1.23)
24 अलचारी (= लाचारी) (जब तोर धेयान ओकरा दने तनिको न जा सकल त अलचारी में ऊ व्यास जी के किरानी बन के कलम घँसे लगल हे ।) (मपध॰12:20:17:3.16)
25 अल-बल (रोमा जल्दी से आह करीत जान बचाके बाथरूम में जाके केबाड़ी लगा ले हे आउ डर से हँफित-हँफित वही तेजाब ओला घटना के याद करके काँप रहल हे । रवि दरवाजा भिर अल-बल बकित बाथरूम के दरवाजा कुछ देर पीट के फिर जाके सुत जाहे ।) (मपध॰12:20:37:2.23)
26 असठी (= ओलती के नीचे बना चबूतरा, ओटा) (कुर्कीहार में हमर एगो बहीन बियाहल हइ । एक बेरी जब हम हुआँ गेल हलिअइ त बगल के एक अदमी चाय पर बोलइलथिन । जब हम उनखर दरवाजा पर गेलिअइ त देखलिअइ कि उनखर बथानी में जानवर के खाय ले नादी रखल हलइ । ओकर चारो तरफ दुर्लभ धरोहर के असठी बनल हलइ ।) (मपध॰12:20:6:1.30)
27 असराफ (= ऊँची श्रेणी के काश्तकार; कुलीन व्यक्ति, भला आदमी) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.7)
28 असीआर (= स्थान की कमी, तंग जगह; असुविधा, कोत्तह, कुसेदा; दे॰ असिआर, असियार) (काननप्रिया हँसके कहऽ हल, "हम मर जइबइ बाबूजी ।" ओकर मइया भी कहऽ हल, "मर जो न गे । असीआर होइत हहीं । इनका से कुछो न जुमइत हइन । हमनी दूनो मर जो । बंड-संड रहतथु । खूब सौख-मौज करे ला होतइन । बिआह काहे ला कइलऽ हल ।" ओकर बाप हँसके कहऽ हलन, "दूनो माय-बेटी पेर देलें । कभी साड़ी त कभी सलवार-कमीज त कभी गहना । केतना फरमाइश पूरा करी ।") (मपध॰12:20:31:2.20)
29 अहस (सुअरमुँहा केकरो अहस नञ् मानतो ।) (मपध॰12:20:11:1.14)
30 अहिस्ते-अहिस्ते (= आहिस्ते-आहिस्ते, धीरे-धीरे) (हम अभी चार-पाँच बच्छर के हूँ । लंगटे उठलूँ (बिस्टी सुतले में फेंका गेल) आउ हग्गे-मूते ला दौड़ल सिलाव-राजगीर सड़क पर पहुँच गेलूँ कि देखऽ हियो - बाप रे बाप ! ढेर सा जन्नी-मरद, बूढ़ा पीठ पर बुतरू लादले लबादा ओढ़ले चलल जाहे पैदले-पैदले, डोलते-डालते, अहिस्ते-अहिस्ते ।) (मपध॰12:20:48:1.28)
31 आन-जान (ठेक मेटा ले हिअइ, आन-जान के रस्ता बन जइतइ ।) (मपध॰12:20:11:1.11)
32 आन्हर-कोतर (हमहुँ सबके रंग-ढंग देख रहल ही । आन्हर-कोतर न ही । कान में ठेपी लागा के बइठल न ही ।) (मपध॰12:20:21:2.26)
33 आय ('आय फुआ ! आगे तो बतयवे न कइलऽ । कलजुगिया चौपाल सबके दलान पर लग जायत । बड़-जेठ मुँह लुका लेतन । उधर नया-नया होरी-चइता गवाये लगत । दस बजल कि सब झूमइत अपन मेहरारू के गोड़थारी में ।' रामटहल कहइत-कहइत बेयग्गर हो गेलन ।) (मपध॰12:20:21:1.28)
34 आय हाय (महादे - ... अभी तो दुन्नो बेटा भी घर में न हथुन । हमर नाच के देखनिहार अकेले तूँहीं रहबऽ ? / पारबती - {ताना मारइत}आय हाय ! चलनी दुसलक सूप के, जेकरा में बहत्तर छेद ? दुन्नो बेटा बेकहल नियर अप्पन मरजी से जहाँ-तहाँ काम करइत रहऽ हथुन ।) (मपध॰12:20:17:2.13)
35 आलता (धीरे-धीरे ओकर बाप कंजूस के धोकड़ी हो गेलन हल । एक-एक पैसा जोड़े लगलन हल । पर्व-त्योहार में भी साड़ी-साया मुहाल हो गेल हल । ओकर माय आउ ऊ फटल-पुरान पहने लगल हल । जउन काननप्रिया दिन में चार बार पाउडर आउ आलता से गोड़-हाँथ रंगऽ हल, ओकरा साबुन तक मुहाल हल ।) (मपध॰12:20:31:2.34)
36 इड़ोत (ओकर आँख से झर-झर आँसू झरे लगल । कइसे आज भाई अकेले सुतत । एक क्षण भी ऊ आँख से ओकरा इड़ोत न होते दे हल । माय-बाप के आँख के पुतली हल ।) (मपध॰12:20:30:1.17)
37 ईन (ईन घर नीन, चान घर चोरी । जम घर मरन, राज घर भोगी ॥) (मपध॰12:20:16:1.15)
38 ईर घाट (~ ... मीर घाट) (कातिक तो तोर अगिनबेटा हथुन । निछत्तर लोक में छव किरितिका लोग उनकर पालन-पोसन कइलन हल । कातिक जनमलन ईर घाट, पालल-पोसल गेलन मीर घाट आउ माय कहइली हम ।) (मपध॰12:20:17:2.39)
39 उगलरेख (बूढ़ा-जवान-~) ( खेत में कबड्डी जमल हे । दुनहूँ पाटी में बूढ़ा-जवान-उगलरेख सब सेल कबड्डी कर रहला ह । एने मुरझाल-कुम्हलाल मामू हर-बैल लेले बिड़ार जोते ला मुस्तैद हो गेला ।) (मपध॰12:20:50:1.14)
40 उटेरा (भाषा कउनो रहे, गद्य लिखेवला से पद्य रचेवला के संख्या जादे होवे करऽ हइ बकि ऊ भाषा के साहित्य के दोसर विधा के रचनाकार के संख्या जब तक उटेरा नियन रहतइ तब तक ऊ भाषा के पुरकस विकास नञ् हो पइतइ ।) (मपध॰12:20:5:1.4)
41 उठान (~ हारना; ~ आउ मुठान) (टिटकारी पारे से थोड़े उठ जइतउ ई भैंसवा, महिन्नो से उठान हार रहले हे ।; ठीक से देखे दे । उठान आउ मुठान से अदमी आउ जानवर के पहचान होवऽ हइ, ढेर हबहब नञ् कर ।) (मपध॰12:20:14:1.7, 15:1.4)
42 उदवास (मुकुल के जनम से तोर घर में जेतने खुशी हो, इ राछस के घर में ओतने गम । काहे कि तोर आठो बिगहा जमीन एखनी के दिमाग में नाचित हवऽ । एकरे चलते हमरा बड़ी उदवास कइल जा रहलो हे ।) (मपध॰12:20:29:3.33)
43 उपहना (= गायब होना) (बेचारा बेटिहा के नीन उपह गेल हे । खेवा-खरची चलावे ला परिवार के जे थुम्ही हल ओहो भरभरा के धरती धयले हे । दस कट्ठा नफीस जमीन देखते-देखते रजिस्ट्री ऑफिस में गोल हो गेल ।) (मपध॰12:20:22:1.35)
44 उफर (= कष्ट, तबाही) (~ परना) (पारबती - हम तोरा नाचे ला तनि का कहली कि तूँ तरक-बितरक के जाल बिछा देलऽ । उफर परे तोर तांडो नाच में । तू खाली दूगो बेलपत्तर से परसन्न होके भगत लोग के मुँह माँगल वरदान देइत रहऽ ।) (मपध॰12:20:19:3.41)
45 एकछितराही (ओकरा एकछितराही के कउहार में मन थोड़े लगतइ ?) (मपध॰12:20:15:1.7)
46 एकठौए (हम्मर नाना काला भुचुंग खाँटी किसान, एकठौए हर जोते वाला । कमे उमर में काल-कवलित हो गेला ।) (मपध॰12:20:50:2.31)
47 एखनी (= एकन्हीं; ये सब) (मुकुल के जनम से तोर घर में जेतने खुशी हो, इ राछस के घर में ओतने गम । काहे कि तोर आठो बिगहा जमीन एखनी के दिमाग में नाचित हवऽ । एकरे चलते हमरा बड़ी उदवास कइल जा रहलो हे ।) (मपध॰12:20:29:3.31)
48 ओइजगे (= ओज्जे; उसी जगह) (रोहित के लगन देखके नरेंद्र बाबू भी उत्साह से भर जा हलन । देर रात तक बाप-बेटा दुन्नो जगऽ हलन । गणित आउ भौतिकी के सिद्धांत आउ समस्या पर चर्चा होवऽ हल । रोहित के माए ओइजगे बइठ के झुँकइत रहऽ हल ।; अब ऊ पटना के गणित भौतिकी आउ रसायन पढ़त । ओइजगे बइठल कॉलेज के किरानी झट से टोकलन, "पटना के भूगोल आउ इतिहास तो सुनली हल नरेंद्र बाबू, ई गणित भौतिकी आउ रसायन का होवऽ हे ?") (मपध॰12:20:24:3.2, 26:1.9)
49 ओइसे (ओइसे अपने हमरा पछान न पइली । हम मुन्ना ही । विश्वविद्यालय प्रोफेसर डॉ॰ मनोहर के बेटा ।) (मपध॰12:20:25:3.14)
50 ओरना (ऊ इतरा के कहऽ हल, "तू का न हहीं ! तोरा ला सिकरी आउ पायल बनइत हउ, राते बाबूजी कहित हलथु । हम का न सुनलिअउ हल ।" मइया हँसके लजाइत एक धौल जमावऽ हल, "कन्ने गे ! कन-ओरनी । कान ओरले हलें । तूँ पहिने देमे । हथिया लेमे ।") (मपध॰12:20:31:1.10)
51 ओलना (तीसी ओल रहलियो हे, अभी देर होतो ।) (मपध॰12:20:8:1.12)
52 औसो (= अउसो) (~ के) (कातिक के गिनती देवी-दुरगा के दरजन भर भगती करेवला लोग में होवऽ हे । ओकर नस-नस में हम्मर तेज भरल हे । हमनी के नाम ऊ औसो के उजागिर करत ।) (मपध॰12:20:17:2.33)
53 कचवच (दोहाई गंगा माय के । केतना मलहवन सार नाव लेले गंगा में समा गेल । जय बाबा बैकठ ! भोला बाबा के सेवऽ हियो - एही से जान बचलो । मलाह सार कचवच खा हे, गेला सारे हाथी के गाँड़ में ।) (मपध॰12:20:46:1.10)
54 कच्चा-डहरा (कच्चा-डहरा हो गेले हे कनियाय के, जे कान रहलथुन हे ।) (मपध॰12:20:14:1.3)
55 कटकटाना (महादे - हो गेल तोर सिकायत के गठरी समापित कि कहे ला कुछ आउर बाकी हे ? / पारबती - सब बात तोरा कटकटा के काहे लगऽ हे ? उलटे हमरा आँख देखावऽ ह ?) (मपध॰12:20:19:2.23)
56 कढ़ौंसा (= कड़ौंसा) (मोटाऽ के कढ़ौंसा हो गेलइ छौंड़ी ।) (मपध॰12:20:12:1.9)
57 कतिकसन (भदवे में मड़ुआ के रोटी आउ मट्ठा चले लगल । जिनोरा के दर्रा भी चले । दाल-भात, दूध-भात कभी घटे न किसान घर । ... कतिकसन एगो झटका दे हइ । मजूर सब डेउढ़िया लेके काम चलावऽ हइ ।) (मपध॰12:20:50:2.24)
58 कन-ओरनी (ऊ इतरा के कहऽ हल, "तू का न हहीं ! तोरा ला सिकरी आउ पायल बनइत हउ, राते बाबूजी कहित हलथु । हम का न सुनलिअउ हल ।" मइया हँसके लजाइत एक धौल जमावऽ हल, "कन्ने गे ! कन-ओरनी । कान ओरले हलें । तूँ पहिने देमे । हथिया लेमे ।") (मपध॰12:20:31:1.10)
59 कपूत-कपूती (कहल गेल हे कि शायर, सिंह, सपूत बेलीक चलऽ हे । इ नजर से देखहू त लगतो पंद्रह आना अदमी-औरत कपूत-कपूती हे । संसार चल रहल ह एके आना से जे अप्पन इमान पर कायम हे ।) (मपध॰12:20:47:2.8)
60 कबकबाना (मायो झुट्ठो कबकबा रहले ह । हम कुछ कहबो नञ् कइलिए ह ।) (मपध॰12:20:10:1.26)
61 करजा-पइँचा (आखिर तिलक के गुणा-भाग एक जगह बइठ गेल हल । बाबूजी जी-जान से लग गेलन हल । जइसे-तइसे करजा-पइँचा त कुल जमा-पुँजी खरच करके तिलक पूरा होयल हल । ओकर बाप के सारा खून जइसे चुस गेल हल ।) (मपध॰12:20:31:3.30)
62 करेबर (एह ! काहे ल बोल रहलऽ हे, तोरा नियन करेबर नञ् हइ कोय ।) (मपध॰12:20:12:1.23)
63 कलसा (= कलश) (सरिता के सखी-सलेहर बिआह के गीत गा रहलन हल । गाड़ल हरियर बाँस, जेकर फुतुंगी पर बान्हल आम के पल्लो । गोहमाठी से छावल मड़वा, जेकरा में आम के घुँच्चा लटक रहल हल । अँगना में कलसा पर चम्भुक बर रहल हल ।) (मपध॰12:20:29:1.7)
64 कहिए, कहिये (= कभी का; बहुत पहले) (रोहित के पढ़ाई चरम पर हल । अगिला पख में परीक्षा हल । आई.एससी. के परीक्षा तो कहिए हो गेल हल । रोहित जी-जान लगौले हल ।) (मपध॰12:20:26:3.3)
65 काँड़ी (~ से पिलाना) ('आ मार बढ़नी रे ! भिछनी मेहरारुओ ओही लगन के । माथ पर भर चुरुआ तेल थोप देत आ सुतले-सुतले दाल-रोटी काँड़ी से पिया देत ।' सोनामति फुआ बीड़ी लेलन आ धूँक मारइत टुघरइत चल देलन अपन पलानी में ।) (मपध॰12:20:21:2.6)
66 काना-कानी (ऊ भुला गेलन अपन संस्कार आउ परंपरा । काना-कानी नवही के मालूम हो गेल, रामटहल आउ चोखलाल होटल में बइठ के कुछ चिखना के सवाद लेलन हे । फिन का ! सउँसे बारात डगमगाये लगल ।) (मपध॰12:20:22:1.23)
67 कानी (= एक आँख वाली; सबसे छोटी) (~ अंगुरी; ~ गइया के अलगे बथान) (सभा-चउपाल में बइठना छोड़के तूँ मुरदघट्टी में आसन जमइबऽ । सासतरो रचलऽ - मारन, बसीकरन, उच्चाटन, मोहन, आकरसन आ न जनी कउन-कउन । कानी गइया के अलगे बथान - तूँ देओता हऽ कि छुट्टल अघोरी ?) (मपध॰12:20:18:3.4)
68 काबिज (शालवृक्ष अप्पन दंभ के डंका पीटते रहे, ढेर सा अमरलत्ता एकरा पर चढ़ल हे । अमरलतवन तो अमरलतवन, इ गुड़ुचवन के देखहो, मजबूतन में मजबूत सखुआ के दबोचले हे । सखुआ जे, सौ साल अड़ा आउ सौ साल खड़ा त जौ भर सड़ा, पर काबिज गिलोय-गिलोय । मजबूतवो के जे घेरे ओही तो रोगी-दुखी के दवा हे । गुडुच हर रोग के दवा हे ।) (मपध॰12:20:49:3.21)
69 कार-करइठा (मातृकुल में हम भूकंप लेले अइलूँ । अदमी हकूँ उ गुनी जलम लेलूँ । देवता होतूँ हल त अवतार लेतूँ हल । ... हम तो निखालिस मगहिया भुच्चड़ हलूँ - कार-गोर के मिलल संतति । नानी हल गोर बुर्राक आउ नाना हला कार-करइठा ।) (मपध॰12:20:46:3.36)
70 कार-गोर (मातृकुल में हम भूकंप लेले अइलूँ । अदमी हकूँ उ गुनी जलम लेलूँ । देवता होतूँ हल त अवतार लेतूँ हल । ... हम तो निखालिस मगहिया भुच्चड़ हलूँ - कार-गोर के मिलल संतति । नानी हल गोर बुर्राक आउ नाना हला कार-करइठा ।) (मपध॰12:20:46:3.34)
71 किनाना (= 'कीनना' का अ॰ रूप; खरीदा जाना) (चलती में किना गेलइ, अब ओकर बस के बात नञ् हइ ।) (मपध॰12:20:11:2.1)
72 कुन्हना (सातो भइवा मिलके कुन्ह देलकइ बेचारा के । अकेलुआ के कोय बस थोड़े चललइ ।) (मपध॰12:20:15:1.8)
73 कुप्पह (कुप्पह में कुच्छो देखाय नञ् पड़लइ ।) (मपध॰12:20:12:1.1)
74 कुप्पा (कउड़ी-कउड़ी राम बटोरे, साव बटोरे कुप्पा ।) (मपध॰12:20:16:1.1)
75 कुरमी (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.9)
76 कुलबोरनी (चुप ! कुलबोरनी चारो बगली ढिंढा फुलैले चलतो आउ एहाँ आके महतमाइन बन रहल हे !) (मपध॰12:20:15:1.13)
77 कूत-कूत (कूत-कूत करके बोलइमहीं ने त दौड़ के चल अइतो ।) (मपध॰12:20:14:1.11)
78 कोंचिआना (कोंचिआहीं नञ् आवऽ हउ त साड़ी कउची पहिनमे । आव, पहिना दे हिअउ ।) (मपध॰12:20:14:1.20)
79 कोकलत (अजलत के कोकलत ।) (मपध॰12:20:13:1.9, 16:1.23)
80 कोठला (मलमास महीना आ गेल । नानी कहथुन - जानऽ हीं बउआ ! इ साल चाउर से कोठला भर जइतउ । काहे कि इ साल मेला लगतउ । पहुनमन के खिलावे ला इन्दर भगवान जरूरे बरखा करइथुन ।) (मपध॰12:20:48:2.18)
81 कोठा (~ पिटना) (कलकत्ता के कमाय से कोठा पिट देलकइ ।) (मपध॰12:20:10:2.6)
82 कोड़ाना (= 'कोड़ना' का अ॰ रूप) (सब तो अउरते हे, पढ़ल-लिखल हे । भोंदू भाव न जाने, पेट भरे से काम । मँड़वा गड़ा गेल, माटी कोड़ा गेल, कोहबर सज गेल, हरदी हाड़ में लगावल जाइत हे । बिआह के गीत केकरो याद न, कैसेट बज रहल हे ।) (मपध॰12:20:22:3.10)
83 कोयरी (दे॰ कोइरी) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.10)
84 कोयरी-कुरमी (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.11)
85 कोल (छोटे जमींदार के छोटे गाम हे बिच्छाकोल । इ नाम की विचित्रे हे । बिच्छा नाम हले पहिया, वासिंदा गड़ेरी के । कोल माने रहे के खोल, खोलिया, झोपड़ा, झोपड़ी । बिच्छा गड़ेरी के कोल (खोल) पर नाम हो गेल बिच्छाकोल । कौआ मुसहर के कोल पर नाम हो गेल कौआकोल ।) (मपध॰12:20:51:3.9)
86 खँखोरना (दे॰ खखोरना) (चंद्रकांती लगनउती कपड़ा उतार के माय के सूतीवाला साड़ी पेन्ह लेलक । सिंगार-पटार खँखोर-खँखोर क चुल्हा में डाल देलक ।) (मपध॰12:20:23:2.13)
87 खंधा (~ से हो आना) (लालाजी के प्रातकाली सुनहुँ । अभी भुरुकवा उगवे कइलइ कि लालाजी पीतर के लोटा लेके खंधा से हो अइला । ई कर्म के हिंया झाड़ा फिरना, दिसा फिरना कहल जाहे । कोई-कोई कहथुन 'मैदान गेलियो हल ।' औरत कहऽ हे एकरा 'बाहर जाना ।' हिंया बुतरू सब हग्गऽ हे ।) (मपध॰12:20:51:1.7)
88 खटपट (खटपट चल रहले हे उनकनहिन में, नञ् मालूम काहे ।) (मपध॰12:20:12:1.7)
89 खटपरूस (सोनामति फुआ गोदी में उठा लेलन । टाँग के कोहबर में ले अयलन, भीतरे से छिटकिनी लगा देलन । का जानी कउन मंतर पढ़वलन कि चंद्रकांती जयमाला मजलिस में जाय ला तइयार हो गेल । फिना से लगनउती साड़ी-लहँगा, चोली-ओढ़नी धारन करके 'खटपरूस' औरत लेखा पाँव बढ़ावित गेल ।) (मपध॰12:20:23:2.29)
90 खताना (= 'खतना' अर्थात् खनना का अ॰ रूप) (तीने दिन में कुइमा खता गेलइ ।) (मपध॰12:20:8:1.31)
91 खपखपाना (खुरपीया से कुल्ले घँसिया खपखपा लेलकइ ।) (मपध॰12:20:10:1.10)
92 खवइया (मुरगी के जान जाय, खवइया के सवादे नञ् ।) (मपध॰12:20:16:1.21)
93 खाँढ़ (एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।") (मपध॰12:20:51:1.39)
94 खाड़ (= ठाड़, ठाड़ा; खड़ा) (आँगन में इधर-उधर दहेज में मिलल समान रखल हल - टीवी, पंखा, रेफरिजरेटर, सिलाई मशीन, धुलाई मशीन, अर्त्तन-बर्त्तन, बड़-बड़कोर, स्टील के संदूक, गोदरेज के अलमारी, सोफासेट, एक ओरे हीरो होंडा मोटर साइकिल खाड़ हल ।) (मपध॰12:20:32:2.18)
95 खुटना (बकड़ी खुटेगेलो हे, अइतो त ेज देबो ।) (मपध॰12:20:11:1.1)
96 खुनना (छो महिन्ना जुतवा के खुन के पहनलिअइ तभियो नञ् फटलइ ।) (मपध॰12:20:10:2.3)
97 खेपना (राता-राती खेप लेलकइ ।) (मपध॰12:20:11:1.13)
98 खेबा (= तुरी; बार; खेप) (हमरा भौतिकी में समस्या होवऽ हल त पापा अपने के हमरा जौरे लगा देवऽ हलन । / एही से तूँ भौतिकी छोड़के डॉक्टरी पढ़ लेलऽ । / एक खेबा फिन दुन्नो हँसलन ।) (मपध॰12:20:25:3.21)
99 खेवा-खरची (बेचारा बेटिहा के नीन उपह गेल हे । खेवा-खरची चलावे ला परिवार के जे थुम्ही हल ओहो भरभरा के धरती धयले हे । दस कट्ठा नफीस जमीन देखते-देखते रजिस्ट्री ऑफिस में गोल हो गेल ।) (मपध॰12:20:22:1.36)
100 खेसारी (= खेसाड़ी) (रामटहल भी होश में न हथ । चमरौंधा जुत्ता पहिन के, खेसारी के सत्तू पी-पी के, पलानी में भइंस गार-गार के, मखनियाँ के घर टीन के टीन दूध पहुँचावे वाला, गोरस के नाम पर ताड़ी घोंकेवाला लड़कीवाला से पच्चीस लाख नगद, कार, चेन लेके ढेकारो न लेलन ।) (मपध॰12:20:23:1.23)
101 खैंक (खैंक गड़ गेलो हे गोड़ में, जे चलल नञ् जा रहलो हे ।) (मपध॰12:20:14:1.4)
102 खोफसाना (~ देना) (ओकर बाप के एक्के रट हल, "तिलक कहाँ से देमे । एगो बेटी हउ । बढ़ियाँ घर बिआहहूँ के चाही । लंगटा घर में बिआह देवऽहीं त जिनगी भर खोफसाना देतउ । रोज-रोज तोरे माथा पर सवार रहतउ ।") (मपध॰12:20:31:3.2)
103 खोल (छोटे जमींदार के छोटे गाम हे बिच्छाकोल । इ नाम की विचित्रे हे । बिच्छा नाम हले पहिया, वासिंदा गड़ेरी के । कोल माने रहे के खोल, खोलिया, झोपड़ा, झोपड़ी । बिच्छा गड़ेरी के कोल (खोल) पर नाम हो गेल बिच्छाकोल । कौआ मुसहर के कोल पर नाम हो गेल कौआकोल ।) (मपध॰12:20:51:3.10)
104 खोलिया (छोटे जमींदार के छोटे गाम हे बिच्छाकोल । इ नाम की विचित्रे हे । बिच्छा नाम हले पहिया, वासिंदा गड़ेरी के । कोल माने रहे के खोल, खोलिया, झोपड़ा, झोपड़ी । बिच्छा गड़ेरी के कोल (खोल) पर नाम हो गेल बिच्छाकोल । कौआ मुसहर के कोल पर नाम हो गेल कौआकोल ।) (मपध॰12:20:51:3.10)
105 गइया (= गाय + 'आ' प्रत्यय) (सभा-चउपाल में बइठना छोड़के तूँ मुरदघट्टी में आसन जमइबऽ । सासतरो रचलऽ - मारन, बसीकरन, उच्चाटन, मोहन, आकरसन आ न जनी कउन-कउन । कानी गइया के अलगे बथान - तूँ देओता हऽ कि छुट्टल अघोरी ?) (मपध॰12:20:18:3.4)
106 गड़ेरी (= गरेड़िया) (छोटे जमींदार के छोटे गाम हे बिच्छाकोल । इ नाम की विचित्रे हे । बिच्छा नाम हले पहिया, वासिंदा गड़ेरी के । कोल माने रहे के खोल, खोलिया, झोपड़ा, झोपड़ी । बिच्छा गड़ेरी के कोल (खोल) पर नाम हो गेल बिच्छाकोल । कौआ मुसहर के कोल पर नाम हो गेल कौआकोल ।) (मपध॰12:20:51:3.9)
107 गढ़िया (= गढ़ + 'आ' प्रत्यय) (हमरा लगऽ हे कि जेकरा राक्षसीवृत्ति कहल जाहे ओकर साक्षात् स्वरूप जमींदरवन के गढ़ में मौजूद रहे । हम घर में न रहऽ हलियो - गढ़िया में रहऽ हलियो, गढ़िया में । एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।") (मपध॰12:20:51:1.31, 33, 36, 38)
108 गमकना (= दुर्गंध करना) (फोकराइन गमक रहलो हे दीदी, हम नञ् लेबो गोदी ।; सउँसे घर गुमसाइन गमक रहलो हे, पहिले सफाय करे पड़तो ।; लोहराइन गमके के चलते मछली नञ् पसंद करऽ हियो बकि मीट-मुरगा खा हिअइ ।) (मपध॰12:20:14:1.16, 17, 18)
109 गरजू (कोई कह रहल हे - 'का समझित ह लोग । लड़किए वाला खाली गरजू हइ । ओकरा मरदाना चाही तो का तोरा लोग के औरत न चाही । केकर जिनगी बिना औरत के कटल हे, तनी हमरा समझा के कहऽ ।') (मपध॰12:20:23:3.3)
110 गर्रह (= ग्रह) (हम तो निखालिस मगहिया भुच्चड़ हलूँ - कार-गोर के मिलल संतति । नानी हल गोर बुर्राक आउ नाना हला कार-करइठा । एकदमे मगहिया संस्कृति-समागम के फलीभूत प्रतीक । कुछ तो रहवे करऽ हे - "जीन कहू, संस्कार कहू, गर्रह के प्रभाव कहू, जेकर भावी वृक्ष बनऽ हे ।") (मपध॰12:20:46:3.39)
111 गलथोथरी (= गलथेथरी) (चलऽ हम हार गेली । तोहीं बड़ा रहऽ ! हमरा गलथोथरी नञ् बोले आवे ।) (मपध॰12:20:15:1.24)
112 गाँड़ (बिना ~ के टेहरी) (चलनियाँ दुसलक बढ़नियाँ के जेकर गँड़िए जरल ।; दोहाई गंगा माय के । केतना मलहवन सार नाव लेले गंगा में समा गेल । जय बाबा बैकठ ! भोला बाबा के सेवऽ हियो - एही से जान बचलो । मलाह सार कचवच खा हे, गेला सारे हाथी के गाँड़ में ।; टॉल्सटाय अप्पन भटकन के नाम देलका पुनर्जागरण । सच्चे इ जिनगी प्रयोगात्मक हे । लीक पीटेवाला जन-जन प्रवाही जीव हे । बिना पेंदी के लोटा, बिना गाँड़ के टेहरी, बिना पतवार के नाव, पुरवइया चले लगल त पच्छिम रुखे बहे लगलूँ, पछिया चले लगल त पूरब दने बहे लगलूँ ।) (मपध॰12:20:16:1.14, 46:1.11, 47:1.39)
113 गाछी (सब्हे गछिया चर गेलउ । अब कहाँ से दे सकलिअउ हे ।) (मपध॰12:20:13:1.19)
114 गालू (राबड़ी देवी के पति गालू हथ । बड़ बोलऽ हथ ।) (मपध॰12:20:8:1.1)
115 गिरस्थी (= गिरहस्ती; गृहस्थी) (जहाँ तेरह मुँह खायवला रहत उहाँ गिरस्थी तो लड़खड़ाइए जात ।) (मपध॰12:20:18:3.42)
116 गिलोय-गिलोय (शालवृक्ष अप्पन दंभ के डंका पीटते रहे, ढेर सा अमरलत्ता एकरा पर चढ़ल हे । अमरलतवन तो अमरलतवन, इ गुड़ुचवन के देखहो, मजबूतन में मजबूत सखुआ के दबोचले हे । सखुआ जे, सौ साल अड़ा आउ सौ साल खड़ा त जौ भर सड़ा, पर काबिज गिलोय-गिलोय । मजबूतवो के जे घेरे ओही तो रोगी-दुखी के दवा हे । गुडुच हर रोग के दवा हे ।) (मपध॰12:20:49:3.21)
117 गुंडी (= चूर्ण, बुकनी; भूसी; सूत आदि का खास माप का लच्छा) (पन्हेतल भतवा में गुंडिया ना के खइलिअइ ने माय, जे पेटवा में डहडही दे रहलइ हे ।) (मपध॰12:20:14:1.1)
118 गुड़मार (= एक वनौषधि) (अपने के ई जान के हैरानी होतइ कि जउन देश में भात खाय के चलन नञ् हइ ऊ देश में डब्बाबंद माड़ बिक रहले हे । त अमरीका माड़ बेच सकले हे आउ हमनहीं गुड़मार आउ भुइआँवला जइसन औषधीय पौधा के सूख-पख जाय दे रहलिए हे ।) (मपध॰12:20:6:1.35)
119 गुड़ुच (शालवृक्ष अप्पन दंभ के डंका पीटते रहे, ढेर सा अमरलत्ता एकरा पर चढ़ल हे । अमरलतवन तो अमरलतवन, इ गुड़ुचवन के देखहो, मजबूतन में मजबूत सखुआ के दबोचले हे । सखुआ जे, सौ साल अड़ा आउ सौ साल खड़ा त जौ भर सड़ा, पर काबिज गिलोय-गिलोय । मजबूतवो के जे घेरे ओही तो रोगी-दुखी के दवा हे । गुडुच हर रोग के दवा हे ।) (मपध॰12:20:49:3.18, 23)
120 गुणा-भाग (तिलक के ~) (रात-दिन चिंता-फिकिर, जोड़-घटाव । न घर ठीक, न वर ठीक । खाली तिलक ! तिलक !! तिलक !!! तिलक ठीक तो सब ठीक । तिलक के गुणा-भाग पर ही बिआह के गुणा-भाग हल । आखिर तिलक के गुणा-भाग एक जगह बइठ गेल हल ।) (मपध॰12:20:31:3.26, 27, 28)
121 गुमसाइन (सउँसे घर गुमसाइन गमक रहलो हे, पहिले सफाय करे पड़तो ।) (मपध॰12:20:14:1.17)
122 गुरुअइ (एतना सुनते हम्मर चचा पर भूत सवार हो गेल । तरबा के लहर कपार - भोनुआ (नौकरवा) के हँकयलका - "लाव तो कोड़वा रे । केकरा पर फूल गेल ह, हमरा पर फूलले ह, आउ केकरा पर दू कौड़ी के गुरु सार ।" गुरुजी इ तेवर देखके अब लेबऽ कि तब लेबऽ - भागल-भागल दू कोस दूर हरसेनिये पहुँच गेला हाँफते-हाँफते । "जान बचल लाखो पइलूँ । जमींदार हीं गुरुअइ करना बाघ के जबड़ा में फँसना हे ।") (मपध॰12:20:51:3.3)
123 गुलगुलाना (कउची गुलगुला रहलहीं हे, ढेर देरी से सुन रहलिअउ हे ।) (मपध॰12:20:13:1.7)
124 गुह (चल ने ! बड़ पड़िआइन बने अइले हें । सुक्खल गुह बर्हामन टिक्का ।) (मपध॰12:20:15:1.26)
125 गूह (= गुह; मल) (सुक्खल गूह बर्हामन टिक्का ।; काला राम के सम्हारल, गोरा गूह के चपोतल ।) (मपध॰12:20:16:1.3, 20)
126 गेंठी (= गाँठ) (सोना जइसन रूप पर लाल सेंदूर सरिता के सुंदरता में चार चांद लगा देलक हल । दुनो के बसतर में बाँधल गेंठी दू आतमा के मिलन के बोध करा रहल हल ।) (मपध॰12:20:29:1.16)
127 गोतिया-भाई (फुफिया सास बोललन हल, "मिलतइन न, जे भाग में होतइन से मिलवे करतइन । पहिले मुँहजूठी के नेग हइ । दुल्हिन के चाही, मुँहजूठी कर लेथ । गोतिया-भाई के खिआवे में देर हो रहल हे । लोग भूखे-पिआसे हथ ।") (मपध॰12:20:32:2.1)
128 गोथार (गोथार चाँपले हइ, कसमसा रहले ह ।) (मपध॰12:20:9:1.15)
129 गोबरछत्ता (भस्मीभूत इतिहास भले बाद में प्रस्तरमूर्ति बने मुदा ई भस्मीकरण जुग-जुग के सच्चाई हे । रखवो पर गोबरछत्ता उगऽ हे - ई दोसर बात हे ।) (मपध॰12:20:45:2.2)
130 गोबार (= गोबारा; ग्वाला, गोप) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । ... ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत । गोबार के लाठी बड़ी मशहूर । एक चरूई भात पर गोबार के गोहार तैयार । मुंगेर दने के एगो खिस्सा यादव प्रोफेसर सुनइते रहऽ हला ।; एक दफे नदी के पानी ला झगड़ा भेल । नीचे के बाभन सब नदी के कच्चा बाँध काटे ला कटिबद्ध रहथन । गोबार भाई हजारन के संख्या में जुटलन । ... बस फूलल-अंकुड़ल चना सब खाथन आउ डंड पेलथन । काहे ला त बाभन सब अइता । बाँध नहिये कटल । अइसे भी बाभन चूतड़-चलाँक जात । मरे-मारे से जादे उनखा लड़वावे-फँसावे में महारत हासिल हे ।) (मपध॰12:20:49:1.15, 16, 22)
131 गोहमाठी (= गोहुमाठी; अनाज झाड़ने के बाद गेहूँ का डंठल) (सरिता के सखी-सलेहर बिआह के गीत गा रहलन हल । गाड़ल हरियर बाँस, जेकर फुतुंगी पर बान्हल आम के पल्लो । गोहमाठी से छावल मड़वा, जेकरा में आम के घुँच्चा लटक रहल हल ।) (मपध॰12:20:29:1.5)
132 गोहराना (तिलेसरी माय दिन-रात चटाई में मुँह छिपा के सिसक रहल हे । देवी-देवता के गोहरा रहल हे कि नीके-नीके बिआह पार लग जाय ।) (मपध॰12:20:22:3.30)
133 गोहार (= किसी के पक्ष में लड़ने-झगड़ने के लिए तैयार दल; शोरगुल; पुकार, दुहाई) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । ... ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत । गोबार के लाठी बड़ी मशहूर । एक चरूई भात पर गोबार के गोहार तैयार । मुंगेर दने के एगो खिस्सा यादव प्रोफेसर सुनइते रहऽ हला ।) (मपध॰12:20:49:1.16)
134 गौंठ (= लगभग भरा हुआ) (गौंठ कटोरा खिचड़ी देलिअइ हे, तभियो कहऽ हथिन कि पेटे नञ् भरल हे ।) (मपध॰12:20:13:1.3)
135 गौंत (= गौत; पशु के लिए चारा) (गाय ले गौंत लावे जा रहलिअइ हे ।) (मपध॰12:20:13:1.12)
136 घर-गिरस्ती (= घर-गृहस्थी) (का बात हे उमा ? मुँह लटकउले काहे बइठल ह ? घर-गिरस्ती के काम निपटा लेलऽ ह का ?) (मपध॰12:20:17:1.5)
137 घरघुस्सू (= घरघुसना) (महादे - दुनियाँ-जहान के भार हमर माथा पर हे । हमरा फुरसत मिलऽ हे कि हम घर-गिरस्ती दने ताकूँ ? घरघुस्सू बनूँ तब भेल काम सिद्ध !) (मपध॰12:20:18:3.14)
138 घव (मगही में लेख-निबंध लिकेवला भाय-बहिन भी कम-से-कम संदर्भ दे हथ आउ अगर देतन भी त कहाँ के घव आउ कहाँ के पव वला । आदमी बौंखते रहे उनकर फुटनोट में वर्णित संदर्भ ग्रंथ के खोजे में । की मजाल हे कि दस में से पाँचो संदर्भ सही निकल जाय ।) (मपध॰12:20:5:1.18)
139 घिढारी (= घिढ़ारी, घेढ़ारी; घृतढारी; विवाह में घी ढालकर की जानेवाली विशेष पूजा) (बलेसर घिढारी करके उठवे कइलन कि धोती के पिअरी चेहरा पर चढ़ गेल । रंगल पाँव उदास हो गेल । कान से मोबाइल लगइलन तो अइसन लगल जइसे चमगादड़ सट जाहे ।) (मपध॰12:20:22:3.36)
140 घुँच्चा (सरिता के सखी-सलेहर बिआह के गीत गा रहलन हल । गाड़ल हरियर बाँस, जेकर फुतुंगी पर बान्हल आम के पल्लो । गोहमाठी से छावल मड़वा, जेकरा में आम के घुँच्चा लटक रहल हल ।) (मपध॰12:20:29:1.6)
141 घुघतर (घर के सामने आँगन दिख रहल हल । काननप्रिया घुघतर से छिपल-छिपल नजर से देख रहल हल - आँगन में इधर-उधर दहेज में मिलल समान रखल हल ।) (मपध॰12:20:32:2.11)
142 घूर (घर जरे, घूर बुतावे ।) (मपध॰12:20:16:1.25)
143 घोंकना (रामटहल भी होश में न हथ । चमरौंधा जुत्ता पहिन के, खेसारी के सत्तू पी-पी के, पलानी में भइंस गार-गार के, मखनियाँ के घर टीन के टीन दूध पहुँचावे वाला, गोरस के नाम पर ताड़ी घोंकेवाला लड़कीवाला से पच्चीस लाख नगद, कार, चेन लेके ढेकारो न लेलन ।) (मपध॰12:20:23:1.26)
144 चकरचाल (डोमिनियाँ के लाजो-गरान नञ् लगइ, सेवायदम चकरचाल में रहऽ हइ ।) (मपध॰12:20:14:1.14)
145 चट्टन (= चटोहर) (आजकल बाहर खाये-पिये के ओकरा जादे आराम हो गेल हे । सुनइत ही कि ऊ लड्डू के चट्टन भी हो गेल । हमरा डर हे कि कहीं ओकरा चीनी के बेमारी न हो जाय ।) (मपध॰12:20:17:3.26)
146 चतुरदस (= चतुर्दशी) (चौथ चतुरदस नोम्मी रिक्ता, जे जइता से अपने सिखता ।) (मपध॰12:20:16:1.24)
147 चनचनाना (परगंगिनियाँ काहे ले चनचना रहले ह ?) (मपध॰12:20:11:1.22)
148 चनरहार (सुहाग सेज पर बइठल काननप्रिया एक-एक आभूषण उतार देलक हल - कंगन, पहुँची, रूपौठी, नथुनी, कनबाली, चनरहार, पाजेब, बिछिया । सब सुहाग जोड़ा में बाँध के सुहाग-सेज पर एक ओर रख देलक हल । सुहाग-दीप बुझा के बरेठा लगा के घोर अंधकार में डूब गेल हल ।; मइया लंबी स्वाँस लेके कहऽ हल, "तोरा तो बिआह में मिलवे करतउ । पहिनिहें न ।" / ऊ चुप्पी लगा जा हल । सपना बुने लगऽ हल - पाँव में पायल, कान में झुमका, हात में कंगन, मांग में मंगटीका, नाक में नकबेसर, गला में सोना के चनरहार - सुहाग जोड़ा में लिपटल !) (मपध॰12:20:30:1.4, 31:1.19)
149 चमकल (~ चलना) (इ मेलवा भी अजब बिडंबना हे । सौंसे बगइचा में अटान न हे । लाल-लाल साड़ी में जमनकिन हका - बूढ़ियन भी कम न हका, छौंहिन घंघरा-चोली में चमकल चलऽ हे, बढ़-बूढ़ा भी चमरौंधा जूता पेहनले धोती-कुर्ता, फेटा के दमकयले हकइ ।) (मपध॰12:20:49:1.3)
150 चमरौंधा (= चमरखानी (~ जुत्ता) (रामटहल भी होश में न हथ । चमरौंधा जुत्ता पहिन के, खेसारी के सत्तू पी-पी के, पलानी में भइंस गार-गार के, मखनियाँ के घर टीन के टीन दूध पहुँचावे वाला, गोरस के नाम पर ताड़ी घोंकेवाला लड़कीवाला से पच्चीस लाख नगद, कार, चेन लेके ढेकारो न लेलन ।; इ मेलवा भी अजब बिडंबना हे । सौंसे बगइचा में अटान न हे । लाल-लाल साड़ी में जमनकिन हका - बूढ़ियन भी कम न हका, छौंहिन घंघरा-चोली में चमकल चलऽ हे, बढ़-बूढ़ा भी चमरौंधा जूता पेहनले धोती-कुर्ता, फेटा के दमकयले हकइ ।) (मपध॰12:20:23:1.23, 49:1.4)
151 चम्भुक (सरिता के सखी-सलेहर बिआह के गीत गा रहलन हल । गाड़ल हरियर बाँस, जेकर फुतुंगी पर बान्हल आम के पल्लो । गोहमाठी से छावल मड़वा, जेकरा में आम के घुँच्चा लटक रहल हल । अँगना में कलसा पर चम्भुक बर रहल हल ।) (मपध॰12:20:29:1.7)
152 चरूई (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । ... ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत । गोबार के लाठी बड़ी मशहूर । एक चरूई भात पर गोबार के गोहार तैयार । मुंगेर दने के एगो खिस्सा यादव प्रोफेसर सुनइते रहऽ हला ।) (मपध॰12:20:49:1.15)
153 चलनी (चलनियाँ दुसलक बढ़नियाँ के जेकर गँड़िए जरल ।) (मपध॰12:20:16:1.14)
154 चल्हाँक (= चलाक, चलाँक; चालाक) (तोरा से एतना भी पार न लगल कि लइकन के दूध खायला कामधेनु गाय माँग लेऊँ जे चल्हाँक इन्नर जी ले गेलन । अपना के बेर-बेर तूँ पशुपतिनाथ कहऽ ह । काहे न ऐरावत हाँथी या उच्चैस्रवा घोड़ा माँगलऽ ?) (मपध॰12:20:19:1.17)
155 चल्हाँकी (= चलाकी, चलाँकी; चालाकी) (पारबती - असल आ सच बात तो कहले जायत, केकरो अन्नस बरे या सुख बुझाय । / महादे - (चल्हाँकी से बात बदलइत) एक बात तूँ कभी सोचलऽ हे उमा ? ई हमनी के घर हवऽ कि एगो चिड़ियाखाना ! एक्के साथे बैल, मिरिग, साँप, चूहा, मोर आ हाँथी के जमघट ।) (मपध॰12:20:18:3.33)
156 चहेंटना (= खेदकर दूर भगाना; मारने को दौड़ना) (साँप गनेस के चूहा पर झपटत, कातिक के मोरे हमर साँप के चहेंटत । अइसन धमाचौकड़ी में सब के सम्हारे में तोरा नानी याद आ जत्थुन ।) (मपध॰12:20:19:3.37)
157 चाँय (चोर के जी चाँय नियन ।) (मपध॰12:20:16:1.9)
158 चिंता-फिकिर (रात-दिन चिंता-फिकिर, जोड़-घटाव । न घर ठीक, न वर ठीक । खाली तिलक ! तिलक !! तिलक !!! तिलक ठीक तो सब ठीक । तिलक के गुणा-भाग पर ही बिआह के गुणा-भाग हल । आखिर तिलक के गुणा-भाग एक जगह बइठ गेल हल ।) (मपध॰12:20:31:3.23)
159 चिख-चिख (चलऽ बैठके फरिया ल सब्भे । जादे चिख-चिख भी ठीक नञ् हे ।) (मपध॰12:20:15:1.9)
160 चिड़ारी (= चिरारी; चिता; श्मशान, मरघट) (जन्नी-मरद तो जादे बाहरे हला मुदा फलिस्ता आउ बूढ़ा-बूढ़ी काल के गाल में समा गेला । चिड़ारी पर मुरदा ला जगह घट गेल ।) (मपध॰12:20:45:3.3)
161 चूड़ा-भुँजा (सत्तू पिसइलो, चाउर भून के घी, राबा मिलाके भुरकुंडा बनलो, चूड़ा-भुँजा, चाउर, दाल, घी, तेल, मिचाई सब हे । हाड़ी-हड़ुला मिल जात त रसोई रंधा जात ।) (मपध॰12:20:48:3.34)
162 चूतड़-चलाँक (~ जात) (एक दफे नदी के पानी ला झगड़ा भेल । नीचे के बाभन सब नदी के कच्चा बाँध काटे ला कटिबद्ध रहथन । गोबार भाई हजारन के संख्या में जुटलन । ... बस फूलल-अंकुड़ल चना सब खाथन आउ डंड पेलथन । काहे ला त बाभन सब अइता । बाँध नहिये कटल । अइसे भी बाभन चूतड़-चलाँक जात । मरे-मारे से जादे उनखा लड़वावे-फँसावे में महारत हासिल हे ।) (मपध॰12:20:49:1.28)
163 चेंगना-मेंगना (राजगीर में तीलसँकरात के मेला हे । सतधरवा बर्हमकुंड में नहा के मामू-ममानी आउ मौसी चेंगना-मेंगना के साथ आके बजंतरी के पत्ता पर ततले-ततले मकर के खिचड़ी के भाप से हाथ-मुँह जला रहला ह कि हड़हड़-धड़धड़ होवे लगल ।) (मपध॰12:20:45:2.9)
164 चोखाना (अभी ढंग चोखइवो नञ् कइलऽ हे आउ भउजी-भउजी करके बुट्टा कसे अइलऽ हे !) (मपध॰12:20:15:1.2)
165 चोर-चमार (एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।") (मपध॰12:20:51:2.1)
166 चौथ (= चौठ, चतुर्थी तिथि) (चौथ चतुरदस नोम्मी रिक्ता, जे जइता से अपने सिखता ।) (मपध॰12:20:16:1.24)
167 छहंतर (एकदम से छहंतर हो छउँड़ी, तोहर बात नञ् सुनतो ।) (मपध॰12:20:11:1.7)
168 छिटकिनी (= सिटकिनी) (सोनामति फुआ गोदी में उठा लेलन । टाँग के कोहबर में ले अयलन, भीतरे से छिटकिनी लगा देलन । का जानी कउन मंतर पढ़वलन कि चंद्रकांती जयमाला मजलिस में जाय ला तइयार हो गेल । फिना से लगनउती साड़ी-लहँगा, चोली-ओढ़नी धारन करके 'खटपरूस' औरत लेखा पाँव बढ़ावित गेल ।) (मपध॰12:20:23:2.25)
169 छित्तीछाँय (दे॰ छित्ति-छाँय) (जल्दी से मनीऑडर भेजऽ । एहाँ सौ-सौ रुपिया ले छित्तीछाँय होवे पड़ रहल हे ।) (मपध॰12:20:15:1.11)
170 छिनरघात (जादे सहजा हे, जे जल्दी बुता हे । ढेर छिनरघात नञ् धरऽ ।) (मपध॰12:20:15:1.10)
171 छुच्छा (चलऽ ! पार-घाट लग गेलइ । छुच्छा के राम रखबार ।) (मपध॰12:20:15:1.17)
172 छुट्टल (सभा-चउपाल में बइठना छोड़के तूँ मुरदघट्टी में आसन जमइबऽ । सासतरो रचलऽ - मारन, बसीकरन, उच्चाटन, मोहन, आकरसन आ न जनी कउन-कउन । कानी गइया के अलगे बथान - तूँ देओता हऽ कि छुट्टल अघोरी ?; लोग तोरा झुठे न पिनाकी कहऽ हथ । तोरा नियर छुट्टल पिनाकी हम कब्बो न देखली । तूँ जहर पीलऽ कहाँ हल जी ? कंठ में रखले रह गेलऽ हल ।) (मपध॰12:20:18:3.5, 20:1.42)
173 छुतका (= सूतक) (छुतका चलते नञ् खा रहलियो हे जी, हमरा हीं तो अपने सब राबन के खनदान के हे ।) (मपध॰12:20:14:1.15)
174 छोपना (बेचारा गनेस नीमन से धेयान देके हमर दरबानी का कइलक कि तूँ ओकर मुड़िये छोप लेलऽ ।) (मपध॰12:20:17:3.4)
175 छोपवाना (देओता लोग के जनम देवेवला दक्ष प्रजापति के जग्ग में तू अप्पन प्रधान गण वीरभद्र के भेज के जग्ग बिधंस करइलऽ आ ओकरे हाँथे उनकर मूड़ी छोपवा के बकरा के मूड़ी लगवइलऽ हल ।) (मपध॰12:20:19:2.43)
176 छौंड़ा (एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।") (मपध॰12:20:51:2.2)
177 छौंड़ा-छौंड़ी (एने-ओने मजूरवन के छौंड़ा-छौंड़ी साथे खेले जाऊँ त दू दने से धक्का लगे । "जा बबुआ, एने न आवऽ, गढ़िया के लड़का ह, हमन्हीं के बुतरू-बानर बनच्चर हो, मइया भइया मारथुन । चल जा बबुआ, चल जा, अप्पन गढ़िया दने खेलिहऽ ।" एने घुर के अप्पन खाँढ़ पहुँचूँ त ममा फटकारे लगथुन - "कहाँ गेलहीं हल रे ? ओने माल-मुसहर चोर-चमार दने खेले जा हँ । ई छौंड़ा बिगड़ जइतइ ।") (मपध॰12:20:51:1.33)
178 छौंहिन (इ मेलवा भी अजब बिडंबना हे । सौंसे बगइचा में अटान न हे । लाल-लाल साड़ी में जमनकिन हका - बूढ़ियन भी कम न हका, छौंहिन घंघरा-चोली में चमकल चलऽ हे, बढ़-बूढ़ा भी चमरौंधा जूता पेहनले धोती-कुर्ता, फेटा के दमकयले हकइ ।) (मपध॰12:20:49:1.3)
179 जइसन (बिना पेंदी के लोटा, बिना गाँड़ के टेहरी, बिना पतवार के नाव, पुरवइया चले लगल त पच्छिम रुखे बहे लगलूँ, पछिया चले लगल त पूरब दने बहे लगलूँ । जब जइसन तब तइसन वाला इ लोग के असलीये चीज मर जाहे - ऊ हे स्वत्व, स्वाभिमान आउ जीये के आत्मानंद ।) (मपध॰12:20:47:2.2)
180 जइसन-तइसन (जे तोरा पागल कहो ओकरा तू कुछ मत कहू । आज जे तोरा जइसन तइसन समझ के धुरी उड़ाबउ हो ओही कल्ह हाथ में माला लेले तोर पिछु-पिछु फिरतो ।) (मपध॰12:20:47:3.12)
181 जकत (= समान) (एक-एक सुध, एक-एक बात आज काननप्रिया के माय से दूर होवे पर याद आवित हल । ऊ याद आज ओकरा मीठा जहर के धूरी जकत घायल कर रहल हल ।) (मपध॰12:20:30:2.9)
182 जगवारी (= जगरना; जागरण) (सास, ननद, देवरानी किवाड़ पीट-पीट के हार गेलन हल आउ ई सोच के रह गेलन हल कि चार-पाँच रात के बिआह-शादी में जगवारी के कारण बहू गहरी नींद में बेसुध हो गेल होवे ।) (मपध॰12:20:32:1.22)
183 जग्ग-परोजन (गनेस के तूँ किरनिये बुझलऽ हे ? ऊ देओता लोग के विनायक हे । ओकर भाग तो देखऽ ! जग्ग-परोजन इया नया काम में हमनी के पहिले ओकरे पूजा-पाहुर सब जगह होवऽ हे ।) (मपध॰12:20:17:3.20)
184 जजमनका (बाबा के भरगर संबोधन से गेंदा पांडे पुलपुला गेला - "हाँ जजमान, अपने ठीके कहऽ हथिन । हम पढ़लिअइ कहाँ जजमान । लिख लोढ़ा पढ़ पत्थल रह गेलिअइ । अपने नियन जजमनका हइ - बाबू-माय मंदिरे में ठेका देलका - गुरुपिंडा के दरसने न भेल । आउ हकियो सरोतरी बर्हामन ।") (मपध॰12:20:46:2.4)
185 जन्नी-मरद (जन्नी-मरद तो जादे बाहरे हला मुदा फलिस्ता आउ बूढ़ा-बूढ़ी काल के गाल में समा गेला । चिड़ारी पर मुरदा ला जगह घट गेल ।; हम अभी चार-पाँच बच्छर के हूँ । लंगटे उठलूँ (बिस्टी सुतले में फेंका गेल) आउ हग्गे-मूते ला दौड़ल सिलाव-राजगीर सड़क पर पहुँच गेलूँ कि देखऽ हियो - बाप रे बाप ! ढेर सा जन्नी-मरद, बूढ़ा पीठ पर बुतरू लादले लबादा ओढ़ले चलल जाहे पैदले-पैदले, डोलते-डालते, अहिस्ते-अहिस्ते ।) (मपध॰12:20:45:3.3, 48:1.25)
186 जबरजंग (= जबर; बरियार, बलवान, मजबूत, भारी, विशालकाय, लम्बा-चौड़ा) (अइसन जबरजंग के अग्याँ हम कब तक मानइत रहम ?) (मपध॰12:20:19:2.25)
187 जमनकी (= जवान स्त्री) (इ मेलवा भी अजब बिडंबना हे । सौंसे बगइचा में अटान न हे । लाल-लाल साड़ी में जमनकिन हका - बूढ़ियन भी कम न हका, छौंहिन घंघरा-चोली में चमकल चलऽ हे, बढ़-बूढ़ा भी चमरौंधा जूता पेहनले धोती-कुर्ता, फेटा के दमकयले हकइ ।) (मपध॰12:20:49:1.2)
188 जमा-पुँजी (= जमा-जत्था, पूरी सम्पत्ति) (आखिर तिलक के गुणा-भाग एक जगह बइठ गेल हल । बाबूजी जी-जान से लग गेलन हल । जइसे-तइसे करजा-पइँचा त कुल जमा-पुँजी खरच करके तिलक पूरा होयल हल । ओकर बाप के सारा खून जइसे चुस गेल हल ।) (मपध॰12:20:31:3.30)
189 जमीदारी (इ जमीदारी जुग हे । अंगरेज बहादुर के राज हे । इ मगह के भुच्चड़ प्रदेश हे । बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।") (मपध॰12:20:46:2.26)
190 जमोटना (जमोट के धर लेलको, अब नञ् उखड़तो ।) (मपध॰12:20:8:1.25)
191 जराको (= जरिक्को; जरा भी) (गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।) (मपध॰12:20:49:1.39)
192 जरी-जरी (~ बात में) (जरी-जरी बात में सरिता के मार-पीट होवे लगल हल । घर से चल जाय आ जिंदे जरावे के धमकी भी मिले लगल हल ।) (मपध॰12:20:29:2.10)
193 जलजला (= भूकम्प) (धरती डोले के लीला बाद में जानलूँ । मुंगेर हल इ जलजला के बीच । पइन हो गेल खेत, खेत हो गेल पइन । खेत में रेत ढेर हो गेल ।) (मपध॰12:20:45:2.24)
194 जिच (हमरा जानते कोय लोकभाषा के साहित्यिक भाषा के सरूप में आवे ले ओकरा में साहित्य के सब्भे विधा के कलमकार के होना जरूरी हइ । ई कहे में हमरा कोय हिचक नञ् हइ आउ नञ् अपने के एकरा स्वीकार करे में कोय जिच होवे के चाही ।) (मपध॰12:20:5:1.3)
195 जिनोरा (= मकई) (~ के दर्रा) (भदवे में मड़ुआ के रोटी आउ मट्ठा चले लगल । जिनोरा के दर्रा भी चले । दाल-भात, दूध-भात कभी घटे न किसान घर ।) (मपध॰12:20:50:2.21)
196 जिमवारी (दे॰ जिमेवारी) (कौस्तुभ मणि आउ पांचजन्य शंख भी ओही लेलन । उनकर त पाँचो अंगुरी घीउ में रहल । तोर अक्किल के ताला ऊ घड़ी काहे न खुलल हल ? काहे तूँ ऊ बेरा अगराके कालकूट जहर उठा लेलऽ हल ?; अपने इ सब गछले ही । राह खरचा, नास्ता-पानी के जिमवारी अपनेहीं लेली हे । आठ बजे बारात उहाव से चलत ।) (मपध॰12:20:19:1.13, 23:1.8)
197 जिमेवारी (= जिम्मेवारी; जिम्मेदारी) (महादे - (चिढ़ल नजर से देखइत) नाच के चरचा के बीच में तूँहीं न बतकुच्चन आ उकटा-पुरान पसारलऽ हे ! घर-गिरस्ती के ई सब पचरा तूँ कहाँ से उठा देलऽ ! घर सम्हारे के जिमेवारी खाली हमरे न हल, तोहर भी हल ।) (मपध॰12:20:18:3.28)
198 जुआड़ (= जुगाड़) (पारो महतो तरमन्ना में ताड़ी पी रहल हल, ओकर औरत खाना बनावे के जुआड़ में हल आउ सनिचरी दरवाजा पर बैठल हल ।) (मपध॰12:20:28:1.1)
199 जुग-जमाना (हमहुँ सबके रंग-ढंग देख रहल ही । आन्हर-कोतर न ही । कान में ठेपी लागा के बइठल न ही । हमरा ऊपर का गुजर रहल हे, का गुजरत, जुग-जमाना देख के कदम बढ़ावे के जरूरत हे । बराती ले जाय ला ह, फौज न ।) (मपध॰12:20:21:2.28)
200 जुमना (= प्रबंध या जुगाड़ हो सकना) (काननप्रिया हँसके कहऽ हल, "हम मर जइबइ बाबूजी ।" ओकर मइया भी कहऽ हल, "मर जो न गे । असीआर होइत हहीं । इनका से कुछो न जुमइत हइन । हमनी दूनो मर जो । बंड-संड रहतथु । खूब सौख-मौज करे ला होतइन । बिआह काहे ला कइलऽ हल ।" ओकर बाप हँसके कहऽ हलन, "दूनो माय-बेटी पेर देलें । कभी साड़ी त कभी सलवार-कमीज त कभी गहना । केतना फरमाइश पूरा करी ।") (मपध॰12:20:31:2.21)
201 जोवा (बासी मुँह लहसुन के चार जोवा खाना फइदा करऽ हे ।) (मपध॰12:20:9:2.1)
202 झक-झक (कॉलेज के प्रोफेसर लोग के आयरन कइल झक-झक सूट देखथ त इनकरो इच्छा प्रोफेसर बने के होवे लगे ।) (मपध॰12:20:24:2.1)
203 झझे काली (महरानी मइया फूस के मड़इयो में खुश । मनकामना पूर्ण होवे त देवी माय के पाठी पड़े । पालल पाठी के देना आत्म बलिदान हे । रेल चलल त बुतरुअन गावे - झझे काली झझे काली, चल कलकत्ता देबउ पाठी ।) (मपध॰12:20:46:3.23)
204 झमकाना (चलऽ ने ! तोरे नियन हमरा, बेटा-भतार कमा रहलइ हे, जे हम नो खंडा झमकइते रहूँ ।) (मपध॰12:20:15:1.20)
205 झमेला (= झंझट, बखेड़ा; अड़चन; उलझन; भीड़-भाड़) (जइसे-जइसे जमाना बदलल जाइत हे, वइसे-वइसे हजार गो नखड़ा पसरल जाइत हे । पहिले खाली तिलक, कपड़ा, बर्तन दे देल जा हल आउ झमेला खतम । अब तो अर्त्तन-बर्त्तन, तिलक-पेहानी, टीवी-पंखा, फ्रीज, घड़ी, सोफा सेट, सुट-बुट, मोटर साइकिल आम बात हो गेल हे ।) (मपध॰12:20:31:3.8)
206 झाल (~ बजाना) (झाल बजइते रहिहऽ, बाउ चल जइथुन त ।) (मपध॰12:20:12:1.19)
207 झुँकना (= झुकना; ऊँघना) (रोहित के लगन देखके नरेंद्र बाबू भी उत्साह से भर जा हलन । देर रात तक बाप-बेटा दुन्नो जगऽ हलन । गणित आउ भौतिकी के सिद्धांत आउ समस्या पर चर्चा होवऽ हल । रोहित के माए ओइजगे बइठ के झुँकइत रहऽ हल ।) (मपध॰12:20:24:3.3)
208 झोकरना, झोंकरना (= काला या मलीन पड़ना; बरतन के पेंदे में सटकर किसी खाद्य पदार्थ का जलना) (फरही हो, बाकि झोकरल हो, से देवे में लाज बरो ।) (मपध॰12:20:11:2.10)
209 झोलाना (एतना जोड़ से पेट झोला जाहे कि मन न करे टरेक्टर चढ़े के ।) (मपध॰12:20:10:2.10)
210 टंगरी (नित्तम दिन परक गेलउ हे, आज आवे देहीं, टंगरिया तोड़ के पाड़ देबइ ।) (मपध॰12:20:13:1.21)
211 टटाना (= मांसपेशियों में दर्द होना) (पनरह दिन से बड़ी भार पड़ रहलो हे, देह टटा रहलो हे ।) (मपध॰12:20:11:1.5)
212 टभटभ (= टभक, टभकन; रुक-रुक कर होनेवाला दर्द, टीस; घाव आदि में रह-रह कर उठनेवाली पीड़ा) (~ करना) (अगारमाता हो गेलन हे, एकदम से टभटभ कर रहल हे ।) (मपध॰12:20:11:1.9)
213 टर-टर (जादे टर-टर नञ् कर, नञ् त दू मिनट में सरिआ देबउ ।) (मपध॰12:20:13:1.1)
214 टहलाना (रोजे-रोजे बहाना बना के टहला रहले हें, बुड़बक समझऽ हीं एकदम्मे ?) (मपध॰12:20:14:1.2)
215 टाटेम (कौआ मुसहर के कोल पर नाम हो गेल कौआकोल । ओइसे गड़ेरी मुसहर टाटेम जात भी हे जेकर गणचिन्ह (टाटेम) भिन्न-भिन्न जीव-जंतु रहऽ हले ।; नाग जाति अप्पन टाटेम लेके सैकड़न बरस तक सभ्यता-संस्कृति-राजसत्ता के प्रतीक हला ।) (मपध॰12:20:51:3.14, 19)
216 टिकिया (माय महेसरी लोर चुआवित घिघिआयल - 'चंद्रकांती ! बाप के पगड़ी के लाज बचा लऽ । तोरे ला नफीस दस कट्ठा के पलौट पर टिकिया रख देली । जा सबके बिआह में आझ एहे देखे के मिलइत हे । घर-घर देखा एके लेखा ।') (मपध॰12:20:23:2.19)
217 टिक्का (= टीका) (चल ने ! बड़ पड़िआइन बने अइले हें । सुक्खल गुह बर्हामन टिक्का ।) (मपध॰12:20:15:1.26)
218 टीस (लाल ~) (एकरा से टीस लाल हलइ ।) (मपध॰12:20:8:1.16)
219 टुकदुम-टुकदुम (भगवान के भरोसा पर ई स्थिर समाज व्यवस्था आउ स्वावलंबी अर्थव्यवस्था टुकदुम-टुकदुम चल रहल हे । तलाब के पानी हे - इ कोर से उछलल त उ कोर गेल, उ कोर से उछलल त इ कोर आल ।) (मपध॰12:20:50:3.34)
220 टुनकी (सोहाग केतना अनमोल हे, केतना टुनकी हे - सात तह के भीतर सोहाग के सेनुर लुका के रखल जाहे । अपने लोग ओकरा सात तह से भी निकाल के 'बिधुन' के छोड़ देली ।) (मपध॰12:20:23:3.28)
221 ठट्ट (~ के ~) (अबकी मलमास आल त हम पाँच बरस के छौंड़ होके कुद्दल चले लगलूँ । दखिन बगइचा में अदमी-औरत के अइसन भीड़ ! ठट्ट के ठट्ट चलल आवऽ हे ।) (मपध॰12:20:48:3.21)
222 ठस्सा (= रोब, ऐंठ; दिखावा; नखड़ा) (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।; हम्मर बाबा हलन छोटे-मोटे जमींदार बाकि जमींदारी के ठस्सा कि होवऽ हे इ हम खूब जान गेलूँ । छोटे घर के हम्मर माई ई बड़का घर में का का भोगलक - इ बखाने में सायत बेचारी सरसती लजा जइथन ।) (मपध॰12:20:49:1.9, 51:1.25)
223 ठेक (~ मेटाना/ छोड़ाना = रस्म अदा करना) (ठेक मेटा ले हिअइ, आन-जान के रस्ता बन जइतइ ।) (मपध॰12:20:11:1.11)
224 ठेठाना (तीनों मिलके ठेठा देलकइ ।) (मपध॰12:20:8:1.35)
225 ठेपी (हमहुँ सबके रंग-ढंग देख रहल ही । आन्हर-कोतर न ही । कान में ठेपी लागा के बइठल न ही ।) (मपध॰12:20:21:2.27)
226 डहडही (पन्हेतल भतवा में गुंडिया ना के खइलिअइ ने माय, जे पेटवा में डहडही दे रहलइ हे ।) (मपध॰12:20:14:1.1)
227 डाड़ (डाड़ के देउता मनरा पर ।) (मपध॰12:20:15:1.1)
228 डाहना (डाहके छोड़ देहो, सब गदिया नीचे बइठ जइतो घीया के ।) (मपध॰12:20:12:1.20)
229 डेउढ़िया (भदवे में मड़ुआ के रोटी आउ मट्ठा चले लगल । जिनोरा के दर्रा भी चले । दाल-भात, दूध-भात कभी घटे न किसान घर । ... कतिकसन एगो झटका दे हइ । मजूर सब डेउढ़िया लेके काम चलावऽ हइ ।) (मपध॰12:20:50:2.25)
230 डेउढ़ी (घर में भुँजी भंग नञ्, डेउढ़ी पर नाच ।) (मपध॰12:20:10:2.14)
231 डोम-चमार (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.11)
232 ढिंढा (चुप ! कुलबोरनी चारो बगली ढिंढा फुलैले चलतो आउ एहाँ आके महतमाइन बन रहल हे !) (मपध॰12:20:15:1.13)
233 ढीढ़ियाना (बवंडर, आँधी, तूफान के झेलते-झेलते आदमी ढीढ़िया गेल हे । बाढ़ में बहना-उबरना सीख गेल हे ।) (मपध॰12:20:45:2.4)
234 ढेहबा-फुटौना (मार ढेहबा-फुटौना, उपरका देख रहलउ हे । निमला के मउगी सब के भौजी ।) (मपध॰12:20:13:1.17)
235 तइसन (बिना पेंदी के लोटा, बिना गाँड़ के टेहरी, बिना पतवार के नाव, पुरवइया चले लगल त पच्छिम रुखे बहे लगलूँ, पछिया चले लगल त पूरब दने बहे लगलूँ । जब जइसन तब तइसन वाला इ लोग के असलीये चीज मर जाहे - ऊ हे स्वत्व, स्वाभिमान आउ जीये के आत्मानंद ।) (मपध॰12:20:47:2.2)
236 ततले-ततले (राजगीर में तीलसँकरात के मेला हे । सतधरवा बर्हमकुंड में नहा के मामू-ममानी आउ मौसी चेंगना-मेंगना के साथ आके बजंतरी के पत्ता पर ततले-ततले मकर के खिचड़ी के भाप से हाथ-मुँह जला रहला ह कि हड़हड़-धड़धड़ होवे लगल ।) (मपध॰12:20:45:2.10)
237 तब (अब लेबऽ कि ~ लेबऽ) (एतना सुनते हम्मर चचा पर भूत सवार हो गेल । तरबा के लहर कपार - भोनुआ (नौकरवा) के हँकयलका - "लाव तो कोड़वा रे । केकरा पर फूल गेल ह, हमरा पर फूलले ह, आउ केकरा पर दू कौड़ी के गुरु सार ।" गुरुजी इ तेवर देखके अब लेबऽ कि तब लेबऽ - भागल-भागल दू कोस दूर हरसेनिये पहुँच गेला हाँफते-हाँफते । "जान बचल लाखो पइलूँ । जमींदार हीं गुरुअइ करना बाघ के जबड़ा में फँसना हे ।") (मपध॰12:20:51:3.1)
238 तरमन्ना (पारो महतो तरमन्ना में ताड़ी पी रहल हल, ओकर औरत खाना बनावे के जुआड़ में हल आउ सनिचरी दरवाजा पर बैठल हल ।) (मपध॰12:20:27:3.43)
239 तरूआठी (धीरे-धीरे बोतल के नीसा चढ़इत सूरज लेखा ढले लगल । सबके चेहरा पर ढिबरी जरइत हल । तरूआठी के आग अपने आप बुझा जाहे, ओइसहीं शराब के नीसा । सबके मन में डर बेआपल हे ।) (मपध॰12:20:23:2.36)
240 तलगु (= तब तक) (छोटगर किसान के जिनगी अइसन कि पेउन न छूटे । एने छेद देखाई देलक, पेउन लगइलूँ, तलगु ओने फट गेल । कहाँ-कहाँ सियल जाय ।) (मपध॰12:20:50:2.35)
241 तलाब (= तालाब) (भगवान के भरोसा पर ई स्थिर समाज व्यवस्था आउ स्वावलंबी अर्थव्यवस्था टुकदुम-टुकदुम चल रहल हे । तलाब के पानी हे - इ कोर से उछलल त उ कोर गेल, उ कोर से उछलल त इ कोर आल ।) (मपध॰12:20:50:3.34)
242 तागद (= ताकत) (जमींदारी हे लठमारी तागद के खेल । गेंदा जी बाबा सामने कहथिन, या कहूँ उकसैथिन - देखऽ मालिक । राड़ जात लतियइले । छुछुंदर के माथा में चमेली के तेल लगइबऽ त ऊ आउ छुछुअइतो ।) (मपध॰12:20:51:3.33)
243 तितकी (धन पर ~ रखना/ नेसना = धन का अपव्यय करना) (गाँव के ई पहिला बारात हे, जेकरा में खाली झार-फानुस में पच्चीस हजार रुपइया पर तितकी रख देवल गेल । बैंड-बाजा आउ नाच समियाना में जे पैसा लगावल गेल, ऊ बेटिहा के तीन कट्ठा जमीन के बंधक रखे से आयल हे ।) (मपध॰12:20:22:1.12)
244 तिरमिराना (= चौंधियाना, आँख के आगे अँधेरा छाना) ('ए काका !' साँच कहला पर लोग तिरमिराए लगऽ हथ ... / लछुमन के बात बीचे में काट देलन आ रामटहल कह बइठलन - 'तिरमिरी तो हमरा लगवे करत । डंक मारला पर हो बबुआ बिसबिसयबे करऽ हे आ ऊ डंक तो हमरे लगत ।') (मपध॰12:20:21:1.10)
245 तिरमिरी (= चौंधियाहट, आँख के आगे अँधेरा) ('ए काका !' साँच कहला पर लोग तिरमिराए लगऽ हथ ... / लछुमन के बात बीचे में काट देलन आ रामटहल कह बइठलन - 'तिरमिरी तो हमरा लगवे करत । डंक मारला पर हो बबुआ बिसबिसयबे करऽ हे आ ऊ डंक तो हमरे लगत ।') (मपध॰12:20:21:1.13)
246 तिलंगी (बाराती के शान-शौकत आउ बैंड-बाजा, झार-फानुस तिलंगी पर टिकल हे । बारात झुमल न तो बारात का ! कमर लचकल न तो बारात के आनंद का !!) (मपध॰12:20:22:1.32)
247 तिलक (= तिल्लक) (रात-दिन चिंता-फिकिर, जोड़-घटाव । न घर ठीक, न वर ठीक । खाली तिलक ! तिलक !! तिलक !!! तिलक ठीक तो सब ठीक । तिलक के गुणा-भाग पर ही बिआह के गुणा-भाग हल । आखिर तिलक के गुणा-भाग एक जगह बइठ गेल हल ।) (मपध॰12:20:31:3.24, 25, 26, 27)
248 तिलक-पेहानी (जइसे-जइसे जमाना बदलल जाइत हे, वइसे-वइसे हजार गो नखड़ा पसरल जाइत हे । पहिले खाली तिलक, कपड़ा, बर्तन दे देल जा हल आउ झमेला खतम । अब तो अर्त्तन-बर्त्तन, तिलक-पेहानी, टीवी-पंखा, फ्रीज, घड़ी, सोफा सेट, सुट-बुट, मोटर साइकिल आम बात हो गेल हे ।) (मपध॰12:20:31:3.8)
249 तीलसँकरात (= मकर संक्रांति के अवसर पर मनाया जानेवाला पर्व) (राजगीर में तीलसँकरात के मेला हे । सतधरवा बर्हमकुंड में नहा के मामू-ममानी आउ मौसी चेंगना-मेंगना के साथ आके बजंतरी के पत्ता पर ततले-ततले मकर के खिचड़ी के भाप से हाथ-मुँह जला रहला ह कि हड़हड़-धड़धड़ होवे लगल ।) (मपध॰12:20:45:2.7)
250 तुरते (= तुरतम्मे; तुरन्त ही) (प्रिंसिपल साहेब तो तुरते चल गेलन बाकि विजय जी ढेरे देरी तक बइठल रहलन हल ।) (मपध॰12:20:25:2.10)
251 तेसरकी (= तीसरी) (हम जदि नाच सुरू करम तब घर में लमहर कांड होवे लगत आ कोहराम मच जायत । हमर देह के भभूत तेसरकी आँख में घुस जायत आउ आग के बरखा होवे लगत । हमर तेसरकी आँख में आग, सुरुज आ चनरमा के तेज भरल हे ।) (मपध॰12:20:19:3.19, 21)
252 तोरी (= राई, छोटे पीले अथवा लाल दानों का एक प्रसिद्ध तेलहन) (चंद्रकांती के का पता माय-बाप के एतना सासत भोगे पड़ित हे । देह में हरदी के उबटन तो लगल बाकि दिल-दिमाग भी पियरा गेल । तोरी फुला रहल हे सबके आँख में ।) (मपध॰12:20:22:2.15)
253 थुम्ही (बेचारा बेटिहा के नीन उपह गेल हे । खेवा-खरची चलावे ला परिवार के जे थुम्ही हल ओहो भरभरा के धरती धयले हे । दस कट्ठा नफीस जमीन देखते-देखते रजिस्ट्री ऑफिस में गोल हो गेल ।) (मपध॰12:20:22:1.36)
254 थूरना (मार फैट के थूर देबउ ।) (मपध॰12:20:11:1.26)
255 थेथरपनी (बढ़मा जी बिसुन के बड़का मानथ, बिसुन जी तोरा । थेथरपनी तो तोहनी तिरदेवा से नहिये गेल ।) (मपध॰12:20:20:1.25)
256 थेथरोलौजी (मजा के बात ई हइ कि जब उनका प्रमाण के बारे में कुरेदल जाहे त उनकर उत्तर होवऽ हे कि पता नञ् हो, कि मगही के सारा प्रमाण आउ ओकर साहित्य नालंदा विश्वविद्यालय के अगलग्गी में जर के खाक हो गेलइ हे । ई थेथरोलौजी हे, जे मगही से जुड़ल लोग तक तो चल सकऽ हे बकि अन्य भाषा के विद्वान के सामने नञ् ।) (मपध॰12:20:5:1.31)
257 दइया (= बड़ी बहन; पिता की बड़ी बहन) (अम्मोढेकार काने लगलइ दइया, हमरो जी हमड़े लगलइ एकदम से ।) (मपध॰12:20:14:1.9)
258 दउरा-दारी (मइया साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट के कपड़ा, रीबन, ऐनक, कंघी, चूड़ी, साबुनदानी, साबुन, अनेक प्रकार के दउरा-दारी में सजावेवाला सामान इकट्ठा करे लगल हल ।) (मपध॰12:20:30:3.26)
259 दखिनौते (बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।" ... मगह के तीरथ भी फाजिल में हे, सामान्य स्वाभाविक उन्मेष में न बुझा हे - मलमास मेला अधिकमास में, गया - मरे के बाद में । एने के गंगा मइया के साड़ी के कोर जे दखिनौते हइ ओहू अपवित्र हइ । जे कह रे भाय ! चलती के नाम गाड़ी ।) (मपध॰12:20:46:2.40)
260 दप (लोग ओकरा देखइत रह गेलन हल । केतना सुंदर लगित हल । ऊ मानो कोई अप्सरा, इंद्रासन, से उतर आयल हल । दप से काननप्रिया के आँख में ओकर रूप जगमगा गेल हल ।) (मपध॰12:20:31:1.25)
261 दमखम (सिरिस्टी के परलय होवे घड़ी हम अपन दमखम से ई नाच करऽ ही । हमर नाच से दुनियाँ के कोना-कोना काँपे लगऽ हे ।) (मपध॰12:20:17:1.22)
262 दरदराना (मिनट के अंदर इ हल्ला, इ तहलका कि कौन खिचड़ी खाय, कौन लुग्गा समेटे, कौन मोटरी सँभारे । गिरते-पड़ते भागल-भागल सभे जने धुनी बर दने आके ठहरला । इ तो खैर समझहु कि पहड़वा के पथलवा थोड़े-बहुत दरदरा के रह गेलइ न तो जइसन ठीक पहड़वे तले भीड़ हलइ - लोगन तो भरते हो जइता हल ।) (मपध॰12:20:45:2.20)
263 दर्रा (= घट्ठा, मकई का भात) (भदवे में मड़ुआ के रोटी आउ मट्ठा चले लगल । जिनोरा के दर्रा भी चले । दाल-भात, दूध-भात कभी घटे न किसान घर ।) (मपध॰12:20:50:2.21)
264 दसकोसी-पँचकोसी (चरचा फैलते-फैलते दसकोसी-पँचकोसी में फैल गेल हल । लोग सुने ला, देखे ला काननप्रिया के ससुर के दरवाजा तक आवे लगलन हल ।) (मपध॰12:20:34:1.3)
265 दहँजना (= सताना, कष्ट देना) (आ दीनानाथ ! जइसे ई राँड़-मोसमात के दहँज रहलो हे छउँड़ी, ओइसहीं एकरा धुएँ के राँड़ कर दिहऽ ।) (मपध॰12:20:15:1.15)
266 दहदही (बाबूजी के हलकानी देखके, माय-बहिन के दहदही महसूस के, ऊ अब ले कोई निर्णय तक न पहुँच सकल, एकरा ला अपना के कोस रहल हे, आँसू के घूँट पी रहल हे बाकि ई जिनगी के लाश कब ले ढोयत ।) (मपध॰12:20:22:3.20)
267 दहाना (ठेहुने भर पानी में दहा देलकइ ।) (मपध॰12:20:9:2.5)
268 दाल-भात-भरता (मलमास महीना आ गेल । नानी कहथुन - जानऽ हीं बउआ ! इ साल चाउर से कोठला भर जइतउ । काहे कि इ साल मेला लगतउ । पहुनमन के खिलावे ला इन्दर भगवान जरूरे बरखा करइथुन । हम्मर गाम हउ सीमाना पर, सभे जातरी एहीं से तो गुजरऽ हउ । केकरा रोकमहीं, केकरा टोकमहीं, दाल-भात-भरता तो देहीं पड़तउ ।) (मपध॰12:20:48:2.18)
269 दिसा (~ फिरना = झाड़ा फिरना) (लालाजी के प्रातकाली सुनहुँ । अभी भुरुकवा उगवे कइलइ कि लालाजी पीतर के लोटा लेके खंधा से हो अइला । ई कर्म के हिंया झाड़ा फिरना, दिसा फिरना कहल जाहे । कोई-कोई कहथुन 'मैदान गेलियो हल ।' औरत कहऽ हे एकरा 'बाहर जाना ।' हिंया बुतरू सब हग्गऽ हे ।) (मपध॰12:20:51:1.8)
270 दुखछल (एही बीच में सोनामति फुआ लकुटी टेकइत आ गेल आउ रामटहल से एगो बीड़ी माँग लेलक - 'का दुखछल सुनाऊँ बबुआ ! दुगो बीड़ी ताखा पर धइल हलवऽ, छोटका पोतवा चोरा के फूँक देलकवऽ ।') (मपध॰12:20:21:1.19)
271 दुसाध-बेलदार (गाम-घर में केतना जात-पात छूआ-छूत हे । चमरा असराफ के कुइँया पर न चढ़े । सरोतरी सकलदीपी के बनल न खाय । बभनन के इ ठस्सा कि कुरमी के कहे सतुआ जात आउ कोयरी के कहे सगहा जात । ओने कोयरी-कुरमी के गाम में डोम-चमार, माल-मुसहर, दुसाध-बेलदार के तो बाते छोड़ द, बाबाजी भी बेचारन सहमल रहथन - न जाने कब भाला-गड़ाँसा निकाल देत ।) (मपध॰12:20:49:1.12)
272 दूध-लावा ('कहिया पहरोपा होबत, कहिया नकपाँचे होबत' इ चिंता हे छोटकू जिज्ञासु के । काहे कि पहरोपा दिन फुलौड़ी-भात, नकपाँचे दिन दूध-लावा याद आ जाहे ।) (मपध॰12:20:50:1.20)
273 दूसर-तीसर (इ जमीदारी जुग हे । अंगरेज बहादुर के राज हे । इ मगह के भुच्चड़ प्रदेश हे । बाबा काशी आउ प्रयागराज के तीरथ करे दूसर-तीसर बरस जरूर जा हका । कहथुन - "हमन्हीं मगहियन के हुआँ बुड़बक समझऽ हइ हो । अजोध्या जी में महन जी कहथुन - मगह के लोग बुड़बकवा, सुक्कुर के कहे भुरुकवा ।") (मपध॰12:20:46:2.29)
274 देखनगर (पारबती - तोर सब यार-दोस के अंग भी देखनगर हे । तोरा तीन गो आँख, तोर यार कुबेर के तीन गो पैर आ एगो आँख । तोरा पाँच गो मुँह, कुबेर के आठ गो दाँत ।) (मपध॰12:20:19:3.24)
275 देखा-हिंसकी, देखा-हिसकी (पारबती - ... अपन सवारी ला बैल चुने घड़ी तोर बुद्धि कहाँ भुला गेल हल ? / महादे - आ हमरे देखा-हिंसकी तूँ भी काहे जनावरे दने ताकलऽ ? ऊ भी भयंकर आदमखोर बाघ के पटा लेलऽ !; पारबती - ... देखा-हिसकी तो बेटा लोग भी कइलन । दुन्नो में एक जनावर आ दुसरका चिरईं चुन लेलथुन - एक जने चूहा, दोसर मोर ।) (मपध॰12:20:18:1.23, 29)
276 देवपूजी ('तोर तो भोंपा खुलऽ हे तो बंद होवे के नामे न लेवे । ल हम जाइत ही, बाप-बेटा मिलके नौ-छौ कर ल !' अतना कहके महेसरी देवपूजी के सरजाम में जुट गेल ।) (मपध॰12:20:21:2.35)
277 दोमचना (चढ़के दोमच देलकइ ।) (मपध॰12:20:11:2.18)
278 दोहारी (दे॰ दुहारी) (गुफा के दोहारी पर ब्राह्मी लिपि में पाँच लाइन में एगो शिलालेख हे, जे सम्राट अशोक के समय के हे ।) (मपध॰12:20:43:3.3)
279 धक-विचार (माय-बाप के पगड़ी डुबा रहले हऽ छउँड़ी, तनिको धक-विचार नञ् लगइ ।) (मपध॰12:20:15:1.14)
280 धड़धड़ी (~ के बज्जड़) (जन्नी-मरद तो जादे बाहरे हला मुदा फलिस्ता आउ बूढ़ा-बूढ़ी काल के गाल में समा गेला । चिड़ारी पर मुरदा ला जगह घट गेल । अइसन मातम हल कि लोग कहथन एही हे भगवान महेश्वर के कोप, धड़धड़ी के बज्जड़ ।) (मपध॰12:20:45:3.7)
281 धाँगना (= रौंदना, कुचलना) (कूद-कूद के धाँग देलकइ ।) (मपध॰12:20:9:1.5)
282 धात-धात (कतनो धात-धात करते रहबो त हाँक सुनऽ हइ थोड़े ?) (मपध॰12:20:15:1.6)
283 धिया-पूता (मातृकुल के महिमा अपरंपार हे । सभे कुछ तो महरानी मइया के किरपा से ही हे । ... ऊ सातो मइया के अराधना बिना घर, दुआर, धिया-पूता कुछो न फले । अइसन कौनो गाम नञ् जहाँ महरानी मइया के सातो पिंडी स्थापित न रहे ।) (मपध॰12:20:46:3.16)
284 धुंधुर (= धुँधला, धूमिल) (रोहित के आँख से लोर चू रहल हल । पनिआएल आँखे ओकरा अप्पन पापा के धुंधुर चेहरा लौक रहल हल जे गते-गते अलोप हो गेल ।) (मपध॰12:20:26:3.36)
285 धुआँ-धुंकड़ (तपस्यारत गौतम सिद्धार्थ निरन्न मरणासन्न हो गेला तइयो अंतर्मन में रसासक्ति बनले रह गेल । बरफ में गलऽ, पंचाग्नि में तपऽ, काम के जरावऽ, धुआँ-धुंकड़ रस तो जायवला हे न ।) (मपध॰12:20:49:3.40)
286 धुत्त (भाँग खाके निसा में धुत्त हलथुन ।) (मपध॰12:20:11:2.10)
287 धूँक (~ मारना) ('आ मार बढ़नी रे ! भिछनी मेहरारुओ ओही लगन के । माथ पर भर चुरुआ तेल थोप देत आ सुतले-सुतले दाल-रोटी काँड़ी से पिया देत ।' सोनामति फुआ बीड़ी लेलन आ धूँक मारइत टुघरइत चल देलन अपन पलानी में ।) (मपध॰12:20:21:2.7)
288 धोवल (= धुला हुआ) (दूध के ~ = दोष रहित, बिना ऐब का, पवित्र) (पारबती - (मुँह ऐंठ के) रहे द रहे द ! सब देओता के भितरिया रहस हम नीक तरी जानऽ ही । देवलोक में केउ दूध के धोवल न हे ।) (मपध॰12:20:19:1.28)
289 धौंस (हम्मर बाबा ओइसे तो श्रीराम जी के भक्त हला । अजोध्या धाम के शरण में तल्लीन रहऽ हला (नाम हल प्रीतम शरण), बाकि चित्त में जमींदारवाला धौंस शायदे विलीन रहऽ हले ।) (मपध॰12:20:46:1.37)
290 धौल (ऊ इतरा के कहऽ हल, "तू का न हहीं ! तोरा ला सिकरी आउ पायल बनइत हउ, राते बाबूजी कहित हलथु । हम का न सुनलिअउ हल ।" मइया हँसके लजाइत एक धौल जमावऽ हल, "कन्ने गे ! कन-ओरनी । कान ओरले हलें । तूँ पहिने देमे । हथिया लेमे ।") (मपध॰12:20:31:1.9)
291 नकपाँचे (= नागपंचमी) ('कहिया पहरोपा होबत, कहिया नकपाँचे होबत' इ चिंता हे छोटकू जिज्ञासु के । काहे कि पहरोपा दिन फुलौड़ी-भात, नकपाँचे दिन दूध-लावा याद आ जाहे ।) (मपध॰12:20:50:1.18, 20)
292 नफीस (= बढ़िया, सुन्दर) (दस कट्ठा ~ जमीन) (बेचारा बेटिहा के नीन उपह गेल हे । खेवा-खरची चलावे ला परिवार के जे थुम्ही हल ओहो भरभरा के धरती धयले हे । दस कट्ठा नफीस जमीन देखते-देखते रजिस्ट्री ऑफिस में गोल हो गेल ।) (मपध॰12:20:22:1.38)
293 नमहँसी (= नमहँस्सी) (कपूतवन के संख्या जादे हे त उ बरियारी करतो आउ सपूतवन के कहतो - लंठ, कुलबोरन, अल्हड़-बिगड़ल । बिगड़ल टैम में तो जलमवे कइलूँ हल त बिगड़ल बने में नमहँसी कौची ?) (मपध॰12:20:47:2.18)
294 नरियर ( गोर-गोर बाभनी हथुन त नरियर भी रखले हथुन । तंबाकू पीये के प्रचलन हे । तंबाकू पीये से पेटपीरी ठीक हो जाहे । रियाह के दरद ला ठीक हे । तंबाकू पीले जा, लाल मिरचाइ खइले जा, खाय में जराको परहेज करे के जरूरत नञ् ।) (मपध॰12:20:49:1.35)
295 नवही-जुआन (आज गाँव के बूढ़-पुरनिया से लेके नवही-जुआन तक पर पड़ल हे । सब एक दुसरा के ललकरे में अपना के बुद्धिमान समझित हे ।) (मपध॰12:20:23:1.29)
296 नादी (कुर्कीहार में हमर एगो बहीन बियाहल हइ । एक बेरी जब हम हुआँ गेल हलिअइ त बगल के एक अदमी चाय पर बोलइलथिन । जब हम उनखर दरवाजा पर गेलिअइ त देखलिअइ कि उनखर बथानी में जानवर के खाय ले नादी रखल हलइ । ओकर चारो तरफ दुर्लभ धरोहर के असठी बनल हलइ ।) (मपध॰12:20:6:1.30)
297 नानीघर (= ननिहाल) (राजगीर से एक सवा कोस उत्तर एगो गाम हे - सीमा । हम्मर ओहीं ननिहाल हे । उ टैम में बाल-बुतरु जादेतर ननिहाले में पइदा होवऽ हल । एगो प्रथा हलइ कि पहिलौंठ बुतरु नानीघर में जलमे ।) (मपध॰12:20:46:3.6)
298 निखालिस (= निछक्का, पक्का) (मातृकुल में हम भूकंप लेले अइलूँ । अदमी हकूँ उ गुनी जलम लेलूँ । देवता होतूँ हल त अवतार लेतूँ हल । ... हम तो निखालिस मगहिया भुच्चड़ हलूँ - कार-गोर के मिलल संतति । नानी हल गोर बुर्राक आउ नाना हला कार-करइठा ।) (मपध॰12:20:46:3.33)
299 निघटाना (आवऽ मिलजुल के सब कुछ निघटा लिअइ । पत्तल पर छूटे के नञ् चाही । अन्नपूर्णा के अपमान होवऽ हे ।) (मपध॰12:20:15:1.22)
300 निबरा (= निमरा; निर्बल) ('सीमा' के लोग गोइठा, बर्तन (मट्टी के) बेचऽ हे, निबरा हे । अँचरा में दूगो पइसा आवे से केकरा मन न मचलऽ हे ।) (मपध॰12:20:48:3.38)
301 निमनका (= अच्छा वाला) (नरेंद्र के लगइत हल कि ओही पास हएलक हे । ऊ रोहित के चाल कइलक आउ पाँच सौ रुपइया देइत कहलक कि बजार से मेंही दाना वाला निमनका लड्डू ले आवे ।) (मपध॰12:20:24:1.17)
302 निम्मल-दुब्बर (= निम्मर-दुब्बर; निर्बल-दुबला) (मार के भुरकुस कर देबउ, जहाँ गारी देले हें त । निम्मल-दुब्बर समझ लेलहीं हे ।) (मपध॰12:20:13:1.25)
303 निसेबाजी (दहनी जो अप्पन माय-बाप के पास । जब ऊ अइतइ तब ई सरवा के सब निसेबजिया भुला देतइ । ई सब आदमी नञ् हे, अदमजात हे ।) (मपध॰12:20:27:3.7)
304 निहोरा-मिन्नत (आखिर जन-जागृति के मतलब भी होवऽ हइ जन-जन के जगाना हीं न ? त जन के जगावे ल या तो जननायक खुद बनहो या जनप्रतिनिधि सब से एकरा ले निहोरा-मिन्नत करहो । माननीय के मान देवे में एतराज की ? जब तक विधायक आउ सांसद के नञ् जोड़भो तब तक विधानसभा आउ लोकसभा में तोहर मगही कैसे गुंजतो आउ चिदंबरम कैसे बोलथुन - "हम अपने सब के भावना समझऽ ही " !) (मपध॰12:20:6:1.19)
305 नीके-नीके (तिलेसरी माय दिन-रात चटाई में मुँह छिपा के सिसक रहल हे । देवी-देवता के गोहरा रहल हे कि नीके-नीके बिआह पार लग जाय ।) (मपध॰12:20:22:3.30)
306 नेसना (= बारना, जलाना, प्रज्वलित करना) (बेटिहा के पैसा कौन-कौन रूप में लुटावल जायत, नोट के गड्डी में दियासलाई से तितकी नेसल जायत, सब अन्हरकोठरी में बंद हे ।) (मपध॰12:20:22:2.17)
307 नोम्मी (= नवमी तिथि) (चौथ चतुरदस नोम्मी रिक्ता, जे जइता से अपने सिखता ।) (मपध॰12:20:16:1.24)
308 नौकरिहा (= नौकरियाहा, नौकरी करनेवाला) (मइया का जनी कउची खिया के भेज देलथिन हे कि भूखे न लगलइन हे । मुँहदेखनी का जानी खूब खोजइत होथुन हे, सीतलमनिया । करनफुलवा दे देहुन । नौकरिहा ननद हहूँ ।) (मपध॰12:20:32:1.37)
309 नौ-छौ ('तोर तो भोंपा खुलऽ हे तो बंद होवे के नामे न लेवे । ल हम जाइत ही, बाप-बेटा मिलके नौ-छौ कर ल !' अतना कहके महेसरी देवपूजी के सरजाम में जुट गेल ।) (मपध॰12:20:21:2.34)
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