तिनडि॰ =
"तिनडिड़िया" (मगही कहानी संग्रह), कहानीकार - स्वर्णकिरण; प्रकाशक - मिथिलेश प्रकाशन, आरा (बिहार); शाखा: सोहसराय (नालंदा); प्रथम संस्करण – 1980 ई॰; 28
पृष्ठ । मूल्य – 2 रुपइया ।
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कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या
- 114
ई कहानी संग्रह में कुल 3 कहानी हइ ।
क्रम
सं॰
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विषय-सूची
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पृष्ठ
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0.
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मगही
कहानी - कत्ते पानी ?
(भूमिका
लेखक - योगेश्वर प्रसाद सिंह 'योगेश')
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2-5
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0.
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लेखक
के कलम से
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6,
8
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0.
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समरपन
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7
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0.
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सूची
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8
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1.
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रोसनी
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9-14
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2.
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केला
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15-22
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3.
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चूक
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23-28
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ठेठ मगही शब्द ("अ"
से "ह" तक):
1 अछुत्ता (= अछूता) (मगही साहित्त के अछुत्ता अंग के सिंगार करे ला डा॰ स्वर्णकिरण बढ़तन आउर इतिहास में मेहठा (केंद्र) बनके अप्पन पीछे अनेक कलाकार के प्रेरणा के स्रोत बनतन - अइसन हम्मर विश्वास हे ।) (तिनडि॰5.9)
2 अड़ोस-पड़ोस (नजीके में कुछ खुरखुरायल तो मकान मालिक के बहादुर लइका लाठी चलौलक । साँप के पोंछी कटके सामने लोटे लगल, अड़ोस-पड़ोस के दू-तीन लोग आ गेलन ।) (तिनडि॰13.13-14)
3 अतना (= एतना) (जब भी ई घर पहुँचऽ हलन लइकन-फइकन घेर ले हलन, सेसे इनकनी से छुटकारा पावे ला ई कुछ-न-कुछ सनेस जरूर कीन ले हलन । इनकर परिवार बड़गो हल आउ कउनो सनेस में अतना कम पइसा न लगत हल ।) (तिनडि॰15.7)
4 अनमुनाह (ई संजोग के बात कि एक दिन मकान के बहरी केला के पेड़ भिजुन एगो साँप निकल गेल । छोट खटिया पर खन्ना साहेब के लइका सूतल हल, लइकी भीतर के कमरा में हल । अनमुनाह के वजह से साँप लउकइत न हल ।) (तिनडि॰13.3)
5 अनसाना (दादी-नानी के मुँह से के न कहानी सुनलक हे ? कउन भाषा में कहानी न हे लेकिन ऊ पुरनका कहानी सुनते-सुनते जी अनसा गेल हे । आज के जुग तो मनोविज्ञान के साथ दोस्ती कइले हे ।; चपरासी के संजोग से ऊहे जगह मकान रहे । ऊ लेहाज में पड़के रोज पानी ले आ दे आउ खन्ना साहेब के काम मजे में चल जाय । बाकि जउन दिन कल न खुले, कुइयाँ से पानी लावे पड़े तो बेचारा चपरासी अनसा जाय ।) (तिनडि॰2.14; 10.12)
6 अनुभो (= अनुभव) (मूरत महतो के सामने केला वाला आयल तो उनका खुशी भेल । ई केला कीनल चाहइत हलन आउ अनुभो कइलन हल कि ट्रेन में केला सस्ता मिलऽ हे ।) (तिनडि॰15.2)
7 अन्हारा (= अन्हार; अन्धकार) (देखते-देखते डकैत आउ डकैत के आदमी सब लूट-पाट के सामान के साथे उतर गेलन आउ सामने अन्हारा में भाग गेलन ।) (तिनडि॰19.18)
8 अरद्वाय (= अरदोआय, आरदो; जीवनकाल, आयु, आयुष्य) (मकान मालिक के लइका लाठी चलाना बंद न कयलक आउ देखते-देखते साँप के देह भरता बन गेल । खन्ना साहेब के औरत के जी में जी आयल । मकान मालिक आउ मलकिनी दुन्नो हलन । मकान मालिक कहलन कि जब तक आदमी के अरद्वाय हे केहू बाल बाँका न कर सके, आदमी अप्पन सबुर खो दे हे आउ कुछ के कुछ समझे लगऽ हे ।) (तिनडि॰13.18)
9 अलमारी (= आलमारी) (सोहामन कहलक कि रजिस्ट्री लेके टेबुल पर रख देली हल । का हो गेल ? सउँसे कमरा में खोज-ढूँढ़ भेल, पता न चलल । अलमारी के एक-एक किताब देख लेल गेल बाकि लिफाफा कउनो किताब में होय तब न मिली !) (तिनडि॰27.10)
10 आन्हर (ई संजोग के बात कि खन्ना साहेब के परदेस रहे वाला बूढ़ भाई एक दिन अप्पन एकलौती बेटी पूनम के साथे अयलन आ ओही दिन ट्रक से चँपा गेलन । बेचारे के बदकिस्मती खन्ना साहेब के हियाँ ले आयल । खन्ना साहेब दुर्घटना से ढेर दुखी भेलन बाकि इनकर औरत कहली कि बूढ़ भाई आन्हर हलन कि चँपा गेलन ।) (तिनडि॰11.14)
11 आफियत (= सुविधा, आराम, राहत, सहजता) (घायल केलावाला के भी टैबलेट मिलल । लैट्रिन के सटले बाहर के कल के पानी से घायल लोग दवाई खइलन आउ कुछ आफियत महसूस कइलन ।) (तिनडि॰20.22)
12 उँचगर (ऊ समय दूर न जब डा॰ स्वर्णकिरण के कलम मगधे में न, सउँसे देश के जन-मानस में उँचगर जगह पावत ।) (तिनडि॰5.1)
13 उतरना (= फल आदि का अधिक पककर बेस्वाद होना) (अगल-बगल के लोगन के पैरवी बेकार हो गेल - अइसन ई महसूस कइलन । केला पकके उतर गेल हे बाकि मिठइयन से सस्ता हे । मिठइयन से ई शुद्ध भी हे काहे कि मिठइयन में डाल्डा के प्रयोग होवऽ हे आउ ई देह के भी नुकसान पहुँचावऽ हे ।) (तिनडि॰17.17)
14 ओझा-गुनी (इनका ढेर ओझा-गुनी से जान-पहचान हल से ई कहलन - एक काम आउ करके देखू । एक ठो पंडित हथ । उनकर तदबीर बहुत कारगर होवऽ हे । परसाल एगो औरत के लइका न होवऽ हल तो कहलन प्रदोष बरत करऽ आउ दिन भर उपवास रहके सिउ बाबा के पूजा करहू तब खाना वगैरह खाऊ ।) (तिनडि॰25.14)
15 कचकच-किचकिच (मकान मालिक के हियाँ ढेर लइका-फइका से बराबर कचकच-किचकिच । खन्ना साहेब एकरा पर ध्यान न दे हलन बाकि खन्ना साहेब के औरत बराबर कहथ कि दूसर मकान में चले के चाही ।) (तिनडि॰11.4)
16 कड़गर (मूरत महतो बइठ गेलन । मन मधुआ गेल बाकि अगल-बगल ट्रेन में बइठल लोग के दया लगल आउ लगल लोग मूरत महतो दने से पैरवी करे - "भाई, अतना रंज होवे के जरूरत न हे, केला इनको दे देहुन ।"/ "न, न !" केलावाला कड़गर आवाज में बोलल ।) (तिनडि॰15.19)
17 कबकबाना (गार्ड साहेब अप्पन डिब्बा में गेलन बाकिर फस्ट एड के बक्सा में रूआ के अलावा कउनो दवाई न हल । ... ई अप्पन मन में कबकबइलन - ट्रेन के खोले के समय ई काहे न देखलन, बिना देखे ई ट्रेन के लेके काहे चललन ।) (तिनडि॰20.10)
18 कहनाम (हम्मर श्रीमती जी के कहनाम हे कि ई नोकर न हे, अप्पन लइका के समान हे । अप्पन लइका न हे तो का भेल, कउनो बात के अफसोस न होय के चाही ।) (तिनडि॰24.22)
19 कागज-पत्तर (मूरत महतो के पास एक ठो थैला हल । ओह में कुछ कागज-पत्तर, कुछ दवा के अलावे कउनो चीज न हल आउ नकद पइसा भी ढेर न हल ।; आखिर पूरा करके फिन से सफाई करे के ठान लेल गेल आउ एक-एक कागज-पत्तर ठीक से देखे के शुरू कइल गेल । श्रीमती जी आलमारी के ऊपर देखली तो ठढ़मुरकी लग गेल । एक-दू गो किताब के साथे एगो लिफाफा रखल मिलल ।) (तिनडि॰19.2; 27.16)
20 काम-किरिया (ई संजोग के बात कि खन्ना साहेब के परदेस रहे वाला बूढ़ भाई एक दिन अप्पन एकलौती बेटी पूनम के साथे अयलन आ ओही दिन ट्रक से चँपा गेलन । ... खन्ना साहेब हनुमान जी के याद करके काम-किरिया कइलन आउ बेटी पूनम के सबूरी देलन - बेटी भगवान के इहे मरजी हल ।) (तिनडि॰11.18)
21 किफायत (खन्ना साहब पढ़ल-लिखल हलन, समझदारी से काम लेइत हलन आ ऊ जेतना कमाथ ऊ हिसाब से डेरो खोज लेथ । इनकर साथी-संग खन्ना साहब के किफायत मकान देखके दंग हो जात हलन आउ खन्ना साहब के अक्लमंदी के तारीफ करथ ।) (तिनडि॰9.9)
22 किल्ला (डा॰ स्वर्णकिरण पत्रकारिता, निबंध, कविता, बाल-साहित्त आउ नाटक में तो अप्पन किल्ला ठोकिये देलन हे । मगही साहित्त में भी 'धरती फट गेलइ हे' कम कीमत न रखऽ हे । 'तिनडिड़िया' के तीनो कहानी मगही के धरोहर हे ।) (तिनडि॰4.16)
23 कुल्लम (घर में कुल्लम तीन परानी - हम, हम्मर श्रीमती जी आउ हम्मर एगो भतीजा राजन । राजन चल गेल तो ओकरा बदले में सोहामन हो गेल, एह से तीन के संख्या में कमी न आयल आउ कउनो बात के हरहर-पटपट न भेल । सोहामन अइसन नोकर हे जेकरा पाँच पइसा भी बच जाय तो लौटा के दे दे हे ।) (तिनडि॰25.1)
24 क्वाटर (खन्ना साहब एगो सरकारी अफसर हलन बाकि उनका सरकारी क्वाटर कबहूँ नसीब न भेल । दुश्मन लोग के वजह से कबहूँ-कबहूँ तो क्वाटर मिलके भी कट गेल ।) (तिनडि॰9.5, 6)
25 खामखाह (खन्ना साहेब सोचऽ हलन, समय-देवता सब कुछ ठीक कर देतन - खामखाह घबड़ा जाय से की फायदा ? खन्ना साहेब हनुमान जी के भगत हलन - नहाइत घड़ी हनुमान चलीसा मुँहजबानी पढ़ ले हलन आउ सबुर से काम ले हलन ।) (तिनडि॰9.20)
26 खाय (= खायक, भोजन) (बेचारी पूनम के वजह से खन्ना साहेब लइका-लइकी के देखे में, टहल-टिकोरा करे में, खाय तइयार करे में, खन्ना साहेब के औरत के बहुत सुख भेल । हनुमान बाबा के किरपा पर खन्ना साहेब दंग हलन ।) (तिनडि॰12.21)
27 खुरखुराना (मकान मालिक के लइका साँप मारल चहलक तब तक साँप लापता हो गेल । खन्ना साहेब के औरत भी अप्पन टॉर्च ले अयली । नजीके में कुछ खुरखुरायल तो मकान मालिक के बहादुर लइका लाठी चलौलक ।) (तिनडि॰13.12)
28 गँहकी (= ग्राहक) (केला वाला झक्की हल आउ कहलक कि केहू केला में हाथ न लगावऽ । केला ढेर गलकल हल आउ छूए से ओकरा टूट जाय के डर हल । एहे से ढेर गँहकी लोग चाहके भी केला न देखलन ।) (तिनडि॰15.11)
29 गलकल (= गलल; गला हुआ, बहुत ज्यादा पका हुआ) (केला वाला झक्की हल आउ कहलक कि केहू केला में हाथ न लगावऽ । केला ढेर गलकल हल आउ छूए से ओकरा टूट जाय के डर हल ।) (तिनडि॰15.10)
30 गुदगुद्दी (~ बरना) (डा॰ स्वर्णकिरण के 'तिनडिड़िया' कहानी पढ़के हमरा संतोख भेल । ई कहानी मगही साहित्त के एगो मोड़ देहे । कहानी सेंगरन के नामे एत्ते आकर्षक हे कि नाम सुनते ओकरा पढ़े ला मन में गुदगुद्दी बरे लगऽ हे ।) (तिनडि॰3.8)
31 घुराना (= घुमाना) (कहानी खाली मनोरंजन के चीज न हे, ऊ जिनगी से जुड़ल हे, ऊ जिनगी के गुदगुदावे वाला साहित्त के एगो रुचगर विधा हे । जन्ने नजर घुरावऽ, बुक-स्टौल होय, या पुस्तकालय, फुरसत के घड़ी में कहानी मन के थकनी के दूर करऽ हे, दरकल दिल के दिलासा देके दुख अउर दुविधा के दूर कर दे हे ।) (तिनडि॰2.4)
32 चँपाना (= चँपना, दबना; दबवाना) (ई संजोग के बात कि खन्ना साहेब के परदेस रहे वाला बूढ़ भाई एक दिन अप्पन एकलौती बेटी पूनम के साथे अयलन आ ओही दिन ट्रक से चँपा गेलन ।; खन्ना साहेब दुर्घटना से ढेर दुखी भेलन बाकि इनकर औरत कहली कि बूढ़ भाई आन्हर हलन कि चँपा गेलन ।) (तिनडि॰11.12, 15)
33 चाह (= चाय) (टेसन मास्टर साहेब के काम हल से ऊ अब तक चाहो मँगवा देले हलन से मेहता साहेब चाहो पीलन आउ बंडल लेके खुद अइलन ।) (तिनडि॰24.5, 6)
34 चिट्ठी-पतरी (बंडल पहिलहीं आ गेल हल बाकी चिट्ठी-पतरी में अतना समय लग गेल कि साढ़े सतरह रुपइया डिमरेज देवे पड़ गेल ।) (तिनडि॰28.7)
35 चिरौरी (ई सोचलन - केलावाला के चिरौरी करके केला कीन लेथ । अगल-बगल के लोगन के पैरवी बेकार हो गेल - अइसन ई महसूस कइलन । केला पकके उतर गेल हे बाकि मिठइयन से सस्ता हे ।; केलावाला कहलक - हम अस्पताल जा रहल ही, केला कइसे ले जायम । दू-तीन दर्जन केला जबरदस्ती चिरौरी करके मूरत महतो के देलक । मूरत महतो केला लेवे ला तैयार न हलन बाकि केलावाला के विनती मंजूर करे पड़ल ।) (तिनडि॰17.15; 22.10)
36 छिलकोइया ( मूरत महतो के केला के संबंध में दूगो घटना के याद आयल । पहिलकी घटना - मूरत महतो गाड़ी से कहूँ जाइत हलन । प्लाटफारम पर केला के छिलकोइया पड़ल हल । एगो सरदार साहेब खूब बन-ठन के गाड़ी पकड़े ला अप्पन बेग लेके दउड़लन । गाड़ी खुल गेल हल आउ लपकके सरदार साहेब गाड़ी पकड़ल चहलन बाकि उनकर पाँव केला के छिलकोइया पर पड़ल आउ गिर गेलन ।; केला के एगो मामूली छिलकोइया आउ केतना बड़ा घटना के घटा देलक ।) (तिनडि॰16.1, 4, 9)
37 जानल-मानल (हिंदी आउ भोजपुरी के जानल-मानल कवि आउ विद्वान् लेखक, विचारक डा॰ स्वर्णकिरण के 'तिनडिड़िया' कहानी पढ़के मन के तार में जिनगी के झनकार सुनाई पड़ऽ हे ।) (तिनडि॰2.7)
38 जुकुर (हम कुछ दिन से एगो नोकर रखले ही आउ ओकरा पर विश्वास करऽ ही । विश्वास करे जुकुर नोकरो हे सोझिया, ईमानदार आउ काम-काजू, नाम हे सोहामन । ई हमनी से पहिले जग जा हे, घर के काम-काज कर दे हे, सब चीजन के सजा दे हे, तब हमनी उठऽ ही ।) (तिनडि॰24.18)
39 जुल्माना (बंडल पहिलहीं आ गेल हल बाकी चिट्ठी-पतरी में अतना समय लग गेल कि साढ़े सतरह रुपइया डिमरेज देवे पड़ गेल ।/ मेहता साहेब के दोस्त कहलन - का होयत - डिमरेज के पइसा सरकार के पास गेल । अफसोस कउन बात के !/ मेहता साहेब कहलन - अफसोस कउनो खास न हे बाकि डिमरेज तो जुल्माना हे । जुल्माना काहे देम - सब काम समय पर करे के आदत हे - कउन चूक हो गेल कि काली माई सजाय दे देलन ।) (तिनडि॰28.12)
40 झकझक (उज्जर ~) ('तिनडिड़िया' के तीनो कहानी हम्मर समाज के अइना हे । समाज के सड़ल-गेन्हाल रूप में मानवता के उज्जर झकझक रूप निखरल हे । आज के कहानीकार 'रोमांस', 'सेक्स' अउर अपराध पर कलम चलावे में अपना के माहिर समझऽ हथ ।) (तिनडि॰3.21)
41 झक्की (= झक्खी; सनकी; हठी, जिद्दी; धुन या रौ में रहने वाला) (केला वाला झक्की हल आउ कहलक कि केहू केला में हाथ न लगावऽ । केला ढेर गलकल हल आउ छूए से ओकरा टूट जाय के डर हल ।) (तिनडि॰15.9)
42 टलावा (युनिवर्सिटी से चिट्ठी आयल - जल्दी बंडल देखके भेजू । हम चिट्ठी के जवाब वापसी डाक से देली - बंडल के पता न हे । चिट्ठी युनिवर्सिटी में गेल तो कंट्रोलर साहब के पास से किरानी के पास गेल । तो ऊ कहलन कि मेहता साहेब टलावा दे देलन हे ।) (तिनडि॰26.17)
43 टहल-टिकोरा (बेचारी पूनम के वजह से खन्ना साहेब लइका-लइकी के देखे में, टहल-टिकोरा करे में, खाय तइयार करे में, खन्ना साहेब के औरत के बहुत सुख भेल । हनुमान बाबा के किरपा पर खन्ना साहेब दंग हलन ।) (तिनडि॰12.20-21)
44 टेंपरोरी (= टेंपोररी, temporary; अस्थायी) (कुछ दिन के बाद खन्ना साहेब के एगो बढ़ियाँ मकान मिल गेल रोड पर - लमहर फुलवारी सामने, कल के प्रेसर बहुत तेज बाकि घर में वायरिंग टेंपरोरी । पैखाना कामचलाऊ, पीछे नद्दी । साफ-सुथरा मकान ।) (तिनडि॰12.3)
45 टेसन (= टीसन; स्टेशन) (ट्रेन देखते-देखते अगिला टेसन पर पहुँच गेल । टेसन पर ढेर भीड़ हल । केलावाला डिब्बा में ढेर लोग सवार भेल ।) (तिनडि॰18.5)
46 ठढ़मुरकी ('मगही' पत्रिका में रवींद्र कुमार आउ तारकेश्वर भारती अप्पन कहानी से सरसत्ती के अर्चना कइलन । लेकिन बाद में ई शृंखला सरासर बढ़ल न । जइसे कहानी-कला के ठढ़मुरकी लग गेल ।; आखिर पूरा करके फिन से सफाई करे के ठान लेल गेल आउ एक-एक कागज-पत्तर ठीक से देखे के शुरू कइल गेल । श्रीमती जी आलमारी के ऊपर देखली तो ठढ़मुरकी लग गेल । एक-दू गो किताब के साथे एगो लिफाफा रखल मिलल ।) (तिनडि॰2.21; 27.17)
47 डिरिआना (= डिड़ियाना) (ठेठ मगही भाषा के प्रयोग सराहे जुकुर हे । भाषा धउगल चलऽ हे । चौराहा पर बइठ के डिरिआ न हे ।) (तिनडि॰4.14)
48 डिरीर (= डिड़ारी, लाइन, पंक्ति) (तिनडिड़िया के तीन तरेगन जउन एक्के डिरीर में रहऽ हथ, रोशनी दे हथ, समय बतलावऽ हथ आउ जिनगी के भेद समझावऽ हथ, 'तिनडिड़िया' सेंगरन के कहानी अपवाद न हे ।) (तिनडि॰8.9)
49 तितकी (ऊ सोचइत हल कि ओकरा जाँघ के बगल से गोली गुजरलइ आउ केलावाला के तितकी अइसन लगलइ । ओकरा पछतावा भेल, ऊ केला भिखारी के न देलक एही से साइत ई मुसीबत अइलइ ।) (तिनडि॰18.21)
50 थकनी (= थकान) (कहानी खाली मनोरंजन के चीज न हे, ऊ जिनगी से जुड़ल हे, ऊ जिनगी के गुदगुदावे वाला साहित्त के एगो रुचगर विधा हे । जन्ने नजर घुरावऽ, बुक-स्टौल होय, या पुस्तकालय, फुरसत के घड़ी में कहानी मन के थकनी के दूर करऽ हे, दरकल दिल के दिलासा देके दुख अउर दुविधा के दूर कर दे हे ।) (तिनडि॰2.5)
51 थोड़िके (थोड़िके देरी में खन्ना साहेब आ गेलन । हाथ में प्रसाद के दोना हल । कहलन - हनुमान बाबा के परसादी चढ़ाके आवइत ही ।) (तिनडि॰14.7)
52 दमगर (मगही पत्र-पत्रिका में अधिकतर कहानी में मौलिकता के अभाव हल । उदीयमान कलाकार अजयकांत शर्मा के 'सौतिन' कहानी दमगर भेल लेकिन आकार बढ़ गेल ।) (तिनडि॰3.4)
53 दरकल (कहानी खाली मनोरंजन के चीज न हे, ऊ जिनगी से जुड़ल हे, ऊ जिनगी के गुदगुदावे वाला साहित्त के एगो रुचगर विधा हे । जन्ने नजर घुरावऽ, बुक-स्टौल होय, या पुस्तकालय, फुरसत के घड़ी में कहानी मन के थकनी के दूर करऽ हे, दरकल दिल के दिलासा देके दुख अउर दुविधा के दूर कर दे हे ।) (तिनडि॰2.6)
54 देखहिसखी (= देखा-हिसकी, नकल) (चौमुखी प्रतिभा के निभाके अप्पन विभा के सगरो फइलावे में लेखक कमाल कइलक हे । देखहिसखी तो ऊ करे के कोरसिस भी न कइलक, जुग आउर जमाना उनखर देखहिसखी करके साहित्त के सेवा में अपना के धन्य समझतन ।) (तिनडि॰5.4, 5)
55 दोसरकी (मूरत महतो के केला के संबंध में दूगो घटना के याद आयल । पहिलकी घटना - मूरत महतो गाड़ी से कहूँ जाइत हलन । प्लाटफारम पर केला के छिलकोइया पड़ल हल । ... दोसरकी घटना मजेदार हे । एगो कविजी एगो इस्कूल में बोलइत हलन - कविता बनावे ला पहिले लोग ढेर पिंगल पढ़ऽ हलन, कोशन के रट्टऽ हलन, गुरु गन के पास जा हलन ।) (तिनडि॰16.10)
56 धउगल (~ चलना) (ठेठ मगही भाषा के प्रयोग सराहे जुकुर हे । भाषा धउगल चलऽ हे । चौराहा पर बइठ के डिरिआ न हे ।) (तिनडि॰4.13)
57 धूरी (= धूलि) (हिंदी में कहानी लिखे के ढेर चलनसार हे लेकिन मगही के जनकंठ से बाहर निकसला पर कहानी के जे रूप सामने आयल हे ओकर चद्दर अभी धूरी से मैल न भेल हे ।) (तिनडि॰2.18)
58 नजीक (मकान मालिक के लइका साँप मारल चहलक तब तक साँप लापता हो गेल । खन्ना साहेब के औरत भी अप्पन टॉर्च ले अयली । नजीके में कुछ खुरखुरायल तो मकान मालिक के बहादुर लइका लाठी चलौलक ।) (तिनडि॰13.11)
59 निकसना (हिंदी में कहानी लिखे के ढेर चलनसार हे लेकिन मगही के जनकंठ से बाहर निकसला पर कहानी के जे रूप सामने आयल हे ओकर चद्दर अभी धूरी से मैल न भेल हे ।) (तिनडि॰2.17)
60 निछत्तर (= नछत्तर, नक्षत्र) (साफ-सुथरा मकान । अबहीं पूरा बनल न हल । मकान में मकान मालिक अपनो ला नेहान-घर या सेफ्टी टैंक पैखाना न बनौले हलन से खन्ना साहेब सोचलन - काम चल जायत । मुदित मन अइलन बाकि अइसन निछत्तर में अइलन कि बिजली के लाइन कट-कट जाय ।) (तिनडि॰12.7)
61 नीमन (दोसर मकान पहिलका मकान से कुछ नीमन हल बाकि एकरा में संडास हल - सेफ्टी टैंक पैखाना न हल । पानी के प्रेसर कम हल, दू मिनट के काम दस मिनट में होवे ।; मकान मालिक के हियाँ ढेर लइका-फइका से बराबर कचकच-किचकिच । खन्ना साहेब एकरा पर ध्यान न दे हलन बाकि खन्ना साहेब के औरत बराबर कहथ कि दूसर मकान में चले के चाही । ई मकान नीमन न हे ।) (तिनडि॰10.17; 11.7)
62 परनाम (= प्रणाम) (मेहता साहेब एक प्याली चाय अप्पन दोस्त के दे देलन आउ एक प्याली चाय अप्पन हाथ में लेके पीये लगलन । चाय के धुआँ में मेहता साहेब डिमरेज के घटना के धुआँ अइसन उड़इत देखलन, देखे लगलन । मेहता साहेब के दोस्त चाय पीके परनाम कइलन आउ छुट्टी लेके चल देलन ।) (तिनडि॰28.24)
63 परनाम-पाती (तीन साल पहिले एक बेर आर॰आर॰ मिलल तो लेके टेसन खुद गेलन - टेसन मास्टर साहेब जानल-पहचानल हलन, आदर से परनाम-पाती कइला के बाद बइठवलन आउ आर॰आर॰ भेजके कुली से कापियन के बंडल मंगवलन ।) (तिनडि॰23.16-17)
64 परसादी (खन्ना साहेब हनुमान जी के भगत हलन - नहाइत घड़ी हनुमान चलीसा मुँहजबानी पढ़ ले हलन आउ सबुर से काम ले हलन । दफ्तर में सरकारी नौकरी मिलल तो दू किलो लड्डू हनुमान जी के परसादी चढ़ौलन ।; थोड़िके देरी में खन्ना साहेब आ गेलन । हाथ में प्रसाद के दोना हल । कहलन - हनुमान बाबा के परसादी चढ़ाके आवइत ही ।) (तिनडि॰10.2; 14.8)
65 पहिलका (दोसर मकान पहिलका मकान से कुछ नीमन हल बाकि एकरा में संडास हल - सेफ्टी टैंक पैखाना न हल । पानी के प्रेसर कम हल, दू मिनट के काम दस मिनट में होवे ।) (तिनडि॰10.17)
66 पहिलकी (मूरत महतो के केला के संबंध में दूगो घटना के याद आयल । पहिलकी घटना - मूरत महतो गाड़ी से कहूँ जाइत हलन । प्लाटफारम पर केला के छिलकोइया पड़ल हल । ... दोसरकी घटना मजेदार हे ।) (तिनडि॰15.21)
67 पहिलहीं (बंडल पहिलहीं आ गेल हल बाकी चिट्ठी-पतरी में अतना समय लग गेल कि साढ़े सतरह रुपइया डिमरेज देवे पड़ गेल ।) (तिनडि॰28.7)
68 पहिले-पहिल (खन्ना साहेब के औरत कहली - हम साथे रहम, आउ खन्ना साहेब अप्पन औरत के दिल न दुखौलन । पहिले-पहिल किराया के मकान में रहे के मौका मिलल ।) (तिनडि॰10.5)
69 पिंगल (एगो कविजी एगो इस्कूल में बोलइत हलन - कविता बनावे ला पहिले लोग ढेर पिंगल पढ़ऽ हलन, कोशन के रट्टऽ हलन, गुरु गन के पास जा हलन ।) (तिनडि॰16.11)
70 पुन्न (= पुण्य) (ट्रेन में बइठल एगो आदमी बोललक - ई राहू काल हल, बड़का खतरा टल गेल । कुछ आदमियन के पुन्न लोगन के बचा लेलक ।) (तिनडि॰21.16)
71 फोटू ('रोसनी' कहानी के खन्ना साहेब हम्मर समाज के आदमी हथ आउ हम्मर मन के बात कहऽ हथ । ई कहानी में आज के यथार्थ समाज के फोटू खींचल गेल हे । 'बिजली, पानी, कोयला, गैस, डीजल सब पर जइसे संकट आ गेल ।' ई बहटल समाज में भी खन्ना साहेब के औरत के मनुष्यता के रोसनी मिलल ।) (तिनडि॰3.10)
72 बड़का-बड़का (सउँसे इलाका में इहे एगो मकान अइसन हल कि पानी कुछ-न-कुछ मिल जा हल । बड़का-बड़का प्रोफेसर आउ डाक्टर लोग रोवइत हलन कि पानी तनिको न मिले । बिजली, पानी, कोइला, गैस, डीजल सब पर जइसे संकट आ गेल !) (तिनडि॰12.17)
73 बड़गो (जब भी ई घर पहुँचऽ हलन लइकन-फइकन घेर ले हलन, सेसे इनकनी से छुटकारा पावे ला ई कुछ-न-कुछ सनेस जरूर कीन ले हलन । इनकर परिवार बड़गो हल आउ कउनो सनेस में अतना कम पइसा न लगत हल ।) (तिनडि॰15.7)
74 बदलैन (= बदलाव, परिवर्तन) (खन्ना साहेब के औरत के दिमाग में एगो रोशनी झलकल आउ लगल एगो बदलैन आ गेल । ऊ भीतरे-भीतर महसूस कइलकी कि मकान मालिक लोग सचमुच कसाई न होवऽ हथ आउ समय पड़े पर मदद कर सकऽ हथ ।) (तिनडि॰13.22)
75 बरना (गुदगुद्दी ~) (डा॰ स्वर्णकिरण के 'तिनडिड़िया' कहानी पढ़के हमरा संतोख भेल । ई कहानी मगही साहित्त के एगो मोड़ देहे । कहानी सेंगरन के नामे एत्ते आकर्षक हे कि नाम सुनते ओकरा पढ़े ला मन में गुदगुद्दी बरे लगऽ हे ।) (तिनडि॰3.8)
76 बराबर (= अकसर, हमेशा) (मकान मालिक के हियाँ ढेर लइका-फइका से बराबर कचकच-किचकिच । खन्ना साहेब एकरा पर ध्यान न दे हलन बाकि खन्ना साहेब के औरत बराबर कहथ कि दूसर मकान में चले के चाही ।) (तिनडि॰11.6)
77 बहटल (= बहकल) ('रोसनी' कहानी के खन्ना साहेब हम्मर समाज के आदमी हथ आउ हम्मर मन के बात कहऽ हथ । ई कहानी में आज के यथार्थ समाज के फोटू खींचल गेल हे । 'बिजली, पानी, कोयला, गैस, डीजल सब पर जइसे संकट आ गेल ।' ई बहटल समाज में भी खन्ना साहेब के औरत के मनुष्यता के रोसनी मिलल ।) (तिनडि॰3.12)
78 बहरी (= बहरसी; बाहर) (ई संजोग के बात कि एक दिन मकान के बहरी केला के पेड़ भिजुन एगो साँप निकल गेल । छोट खटिया पर खन्ना साहेब के लइका सूतल हल, लइकी भीतर के कमरा में हल । अनमुनाह के वजह से साँप लउकइत न हल ।) (तिनडि॰13.1)
79 बाकिर (गार्ड साहेब अप्पन डिब्बा में गेलन बाकिर फस्ट एड के बक्सा में रूआ के अलावा कउनो दवाई न हल ।) (तिनडि॰20.7)
80 बिघिन (= विघ्न) (मेहता साहेब काली माई के भगत हलन । कउनो बिघिन होय, मेहता साहेब काली माई के गोहरावथ आउ बिघिन दूर हो जाय ।) (तिनडि॰23.1, 2)
81 बेग (= बैग, थैला) (प्लाटफारम पर केला के छिलकोइया पड़ल हल । एगो सरदार साहेब खूब बन-ठन के गाड़ी पकड़े ला अप्पन बेग लेके दउड़लन । गाड़ी खुल गेल हल आउ लपकके सरदार साहेब गाड़ी पकड़ल चहलन बाकि उनकर पाँव केला के छिलकोइया पर पड़ल आउ गिर गेलन । पाँच हजार के नोट बेग में रहे - बेग फेंका गेल आउ पता न कउन उचक्का लेके पार कर देलक । सरदार जी जब तक सम्हर के उठलन - इनकर बेग गायब ।) (तिनडि॰16.2, 5, 7)
82 बेर-बेर (अप्पन सास से न पटल । इनकर नाक में बेर-बेर माछी समा जाय । खन्ना साहेब डाँटऽ हलन बाकि ई खन्ना साहब के दबोच दे हली ।) (तिनडि॰9.16)
83 भगत (= भक्त) (खन्ना साहेब सोचऽ हलन, समय-देवता सब कुछ ठीक कर देतन - खामखाह घबड़ा जाय से की फायदा ? खन्ना साहेब हनुमान जी के भगत हलन - नहाइत घड़ी हनुमान चलीसा मुँहजबानी पढ़ ले हलन आउ सबुर से काम ले हलन ।) (तिनडि॰9.21)
84 भरता (मकान मालिक के लइका लाठी चलाना बंद न कयलक आउ देखते-देखते साँप के देह भरता बन गेल ।) (तिनडि॰13.16)
85 भिजुन (ई संजोग के बात कि एक दिन मकान के बहरी केला के पेड़ भिजुन एगो साँप निकल गेल । छोट खटिया पर खन्ना साहेब के लइका सूतल हल, लइकी भीतर के कमरा में हल । अनमुनाह के वजह से साँप लउकइत न हल ।) (तिनडि॰13.2)
86 मंगिया-जरौना (खन्ना साहेब के औरत चिल्लयलन - साँप ! आउ लगलन अपने छाती पीटे । हम्मर बुतरू गेल । मंगिया-जरौना मकान ठीक से देखके न ले ... ।) (तिनडि॰13.6)
87 मधुआना (= उदास होना; सुस्त, निराश या थका-सा होना; शराब पीकर मत्त होना; आम के मंजर में मधुआ रोग होना) (केला बेचे वाला बिगड़ल - "तोरा ला केला दसो रुपये दर्जन न हो ।" अइसे केला डेढ़ रुपया दर्जन हल । मूरत महतो बइठ गेलन । मन मधुआ गेल बाकि अगल-बगल ट्रेन में बइठल लोग के दया लगल आउ लगल लोग मूरत महतो दने से पैरवी करे - "भाई, अतना रंज होवे के जरूरत न हे, केला इनको दे देहुन ।") (तिनडि॰15.15)
88 मलकिनी (मकान मालिक के लइका लाठी चलाना बंद न कयलक आउ देखते-देखते साँप के देह भरता बन गेल । खन्ना साहेब के औरत के जी में जी आयल । मकान मालिक आउ मलकिनी दुन्नो हलन ।) (तिनडि॰13.17)
89 माछी (नाक में ~ समाना) (अप्पन सास से न पटल । इनकर नाक में बेर-बेर माछी समा जाय । खन्ना साहेब डाँटऽ हलन बाकि ई खन्ना साहब के दबोच दे हली ।) (तिनडि॰9.16)
90 मुँहजबानी (खन्ना साहेब सोचऽ हलन, समय-देवता सब कुछ ठीक कर देतन - खामखाह घबड़ा जाय से की फायदा ? खन्ना साहेब हनुमान जी के भगत हलन - नहाइत घड़ी हनुमान चलीसा मुँहजबानी पढ़ ले हलन आउ सबुर से काम ले हलन ।) (तिनडि॰9.21)
91 मुस्टंड (देखते-देखते डकैत के पिस्तौल के गोली कम हो गेल तो बगल के एगो मुस्टंड आदमी ओकरा चुनौती देलक आउ डकैत हाथा-पाई करे पर तैयार हो गेल । मुस्टंड आदमी चाहलक कि डकैत के ट्रेन के दरवाजा से ढकेल दे बाकि डकैत अकेले न हल, ओकर संगी-साथियन सब सहारा देलन आउ मुस्टंड आदमी घबरा गेल ।) (तिनडि॰19.8, 9, 11)
92 मेहठा (= मेहटा) (मगही साहित्त के अछुत्ता अंग के सिंगार करे ला डा॰ स्वर्णकिरण बढ़तन आउर इतिहास में मेहठा (केंद्र) बनके अप्पन पीछे अनेक कलाकार के प्रेरणा के स्रोत बनतन - अइसन हम्मर विश्वास हे ।) (तिनडि॰5.10)
93 रकझक (= विवाद, झंझट, बाता-बाती, बकझक, तर्क-वितर्क) (सिपाही जी बिना पइसा के केला चाहइत हलन । केलावाला रकझक कइलक आउ सिपाही जी के लौट जाय पड़ल ।) (तिनडि॰18.4)
94 रुचगर (कहानी खाली मनोरंजन के चीज न हे, ऊ जिनगी से जुड़ल हे, ऊ जिनगी के गुदगुदावे वाला साहित्त के एगो रुचगर विधा हे ।) (तिनडि॰2.4)
95 लंगा-झारी (मूरत महतो के सामान न लूटल गेल काहे कि ई झोला देखा देलन आउ कहलन कि कागज-पत्तर के अलावे कउनो चीज न हे - अप्पन पाकिट देखा देलन आउ बोललन कि लंगा-झारी ले ले लोग ।) (तिनडि॰20.17)
96 लइकन-फइकन (जब भी ई घर पहुँचऽ हलन लइकन-फइकन घेर ले हलन, सेसे इनकनी से छुटकारा पावे ला ई कुछ-न-कुछ सनेस जरूर कीन ले हलन ।) (तिनडि॰15.5)
97 लइका-फइका (मकान मालिक के हियाँ ढेर लइका-फइका से बराबर कचकच-किचकिच । खन्ना साहेब एकरा पर ध्यान न दे हलन बाकि खन्ना साहेब के औरत बराबर कहथ कि दूसर मकान में चले के चाही ।) (तिनडि॰11.4)
98 लगल (= लगले, तुरते, तुरन्त) (खन्ना साहेब के औरत के दिमाग में एगो रोशनी झलकल आउ लगल एगो बदलैन आ गेल । ऊ भीतरे-भीतर महसूस कइलकी कि मकान मालिक लोग सचमुच कसाई न होवऽ हथ आउ समय पड़े पर मदद कर सकऽ हथ ।; (केला बेचे वाला बिगड़ल - तोरा ला केला दसो रुपये दर्जन न हो । अइसे केला डेढ़ रुपया दर्जन हल । मूरत महतो बइठ गेलन । मन मधुआ गेल बाकि अगल-बगल ट्रेन में बइठल लोग के दया लगल आउ लगल लोग मूरत महतो दने से पैरवी करे - भाई, अतना रंज होवे के जरूरत न हे, केला इनको दे देहुन ।) (तिनडि॰13.22; 15.16)
99 लगवहिये (= लगातार) (परसाल एगो औरत के लइका न होवऽ हल तो कहलन प्रदोष बरत करऽ आउ दिन भर उपवास रहके सिउ बाबा के पूजा करहू तब खाना वगैरह खाऊ । आउ नौ महीना लगवहिये बरत करे से औरत के एगो लइका हो गेल ।) (तिनडि॰25.19)
100 लमहर (कुछ दिन के बाद खन्ना साहेब के एगो बढ़ियाँ मकान मिल गेल रोड पर - लमहर फुलवारी सामने, कल के प्रेसर बहुत तेज बाकि घर में वायरिंग टेंपरोरी । पैखाना कामचलाऊ, पीछे नद्दी । साफ-सुथरा मकान ।) (तिनडि॰12.2)
101 लेहाज (चपरासी के संजोग से ऊहे जगह मकान रहे । ऊ लेहाज में पड़के रोज पानी ले आ दे आउ खन्ना साहेब के काम मजे में चल जाय । बाकि जउन दिन कल न खुले, कुइयाँ से पानी लावे पड़े तो बेचारा चपरासी अनसा जाय ।) (तिनडि॰10.9)
102 संतोख (डा॰ स्वर्णकिरण के 'तिनडिड़िया' कहानी पढ़के हमरा संतोख भेल । ई कहानी मगही साहित्त के एगो मोड़ देहे ।) (तिनडि॰3.6)
103 सगरो (चौमुखी प्रतिभा के निभाके अप्पन विभा के सगरो फइलावे में लेखक कमाल कइलक हे । देखहिसखी तो ऊ करे के कोरसिस भी न कइलक, जुग आउर जमाना उनखर देखहिसखी करके साहित्त के सेवा में अपना के धन्य समझतन ।) (तिनडि॰5.3)
104 सजाय (बंडल पहिलहीं आ गेल हल बाकी चिट्ठी-पतरी में अतना समय लग गेल कि साढ़े सतरह रुपइया डिमरेज देवे पड़ गेल ।/ मेहता साहेब के दोस्त कहलन - का होयत - डिमरेज के पइसा सरकार के पास गेल । अफसोस कउन बात के !/ मेहता साहेब कहलन - अफसोस कउनो खास न हे बाकि डिमरेज तो जुल्माना हे । जुल्माना काहे देम - सब काम समय पर करे के आदत हे - कउन चूक हो गेल कि काली माई सजाय दे देलन ।) (तिनडि॰28.13)
105 सड़ल-गेन्हाल ('तिनडिड़िया' के तीनो कहानी हम्मर समाज के अइना हे । समाज के सड़ल-गेन्हाल रूप में मानवता के उज्जर झकझक रूप निखरल हे । आज के कहानीकार 'रोमांस', 'सेक्स' अउर अपराध पर कलम चलावे में अपना के माहिर समझऽ हथ ।) (तिनडि॰3.21)
106 सनेस (जब भी ई घर पहुँचऽ हलन लइकन-फइकन घेर ले हलन, सेसे इनकनी से छुटकारा पावे ला ई कुछ-न-कुछ सनेस जरूर कीन ले हलन । इनकर परिवार बड़गो हल आउ कउनो सनेस में अतना कम पइसा न लगत हल ।) (तिनडि॰15.6, 7)
107 सबुर (= सब्र) (किराया के मकान में तकलीफ होवऽ हे, ई के न जानऽ हे, बाकि खन्ना साहब के औरत के दिल में सबुर न हल । ऊ पढ़ल-लिखल न हली बाकि रोबदाब रखे में, अइंठ देखावे में, गें-झगड़ा करे में आगे रहऽ हली ।; खन्ना साहेब सोचऽ हलन, समय-देवता सब कुछ ठीक कर देतन - खामखाह घबड़ा जाय से की फायदा ? खन्ना साहेब हनुमान जी के भगत हलन - नहाइत घड़ी हनुमान चलीसा मुँहजबानी पढ़ ले हलन आउ सबुर से काम ले हलन ।) (तिनडि॰9.2; 10.1)
108 सबूरी (ई संजोग के बात कि खन्ना साहेब के परदेस रहे वाला बूढ़ भाई एक दिन अप्पन एकलौती बेटी पूनम के साथे अयलन आ ओही दिन ट्रक से चँपा गेलन । ... खन्ना साहेब हनुमान जी के याद करके काम-किरिया कइलन आउ बेटी पूनम के सबूरी देलन - बेटी भगवान के इहे मरजी हल ।) (तिनडि॰11.19)
109 समाना (= घुसना; घुसाना) (अप्पन सास से न पटल । इनकर नाक में बेर-बेर माछी समा जाय । खन्ना साहेब डाँटऽ हलन बाकि ई खन्ना साहब के दबोच दे हली ।) (तिनडि॰9.16)
110 सम्हरना (= सँभलना) (गाड़ी खुल गेल हल आउ लपकके सरदार साहेब गाड़ी पकड़ल चहलन बाकि उनकर पाँव केला के छिलकोइया पर पड़ल आउ गिर गेलन । पाँच हजार के नोट बेग में रहे - बेग फेंका गेल आउ पता न कउन उचक्का लेके पार कर देलक । सरदार जी जब तक सम्हर के उठलन - इनकर बेग गायब ।) (तिनडि॰16.7)
111 साइत (= शायद) (ऊ सोचइत हल कि ओकरा जाँघ के बगल से गोली गुजरलइ आउ केलावाला के तितकी अइसन लगलइ । ओकरा पछतावा भेल, ऊ केला भिखारी के न देलक एही से साइत ई मुसीबत अइलइ ।) (तिनडि॰18.22)
112 सेसे (जब भी ई घर पहुँचऽ हलन लइकन-फइकन घेर ले हलन, सेसे इनकनी से छुटकारा पावे ला ई कुछ-न-कुछ सनेस जरूर कीन ले हलन ।) (तिनडि॰15.5)
113 हरहर-पटपट (घर में कुल्लम तीन परानी - हम, हम्मर श्रीमती जी आउ हम्मर एगो भतीजा राजन । राजन चल गेल तो ओकरा बदले में सोहामन हो गेल, एह से तीन के संख्या में कमी न आयल आउ कउनो बात के हरहर-पटपट न भेल । सोहामन अइसन नोकर हे जेकरा पाँच पइसा भी बच जाय तो लौटा के दे दे हे ।) (तिनडि॰25.4)
114 हियाँ (मकान मालिक के हियाँ ढेर लइका-फइका से बराबर कचकच-किचकिच । खन्ना साहेब एकरा पर ध्यान न दे हलन बाकि खन्ना साहेब के औरत बराबर कहथ कि दूसर मकान में चले के चाही ।; ई संजोग के बात कि खन्ना साहेब के परदेस रहे वाला बूढ़ भाई एक दिन अप्पन एकलौती बेटी पूनम के साथे अयलन आ ओही दिन ट्रक से चँपा गेलन । बेचारे के बदकिस्मती खन्ना साहेब के हियाँ ले आयल ।) (तिनडि॰11.4, 13)
2 अड़ोस-पड़ोस (नजीके में कुछ खुरखुरायल तो मकान मालिक के बहादुर लइका लाठी चलौलक । साँप के पोंछी कटके सामने लोटे लगल, अड़ोस-पड़ोस के दू-तीन लोग आ गेलन ।) (तिनडि॰13.13-14)
3 अतना (= एतना) (जब भी ई घर पहुँचऽ हलन लइकन-फइकन घेर ले हलन, सेसे इनकनी से छुटकारा पावे ला ई कुछ-न-कुछ सनेस जरूर कीन ले हलन । इनकर परिवार बड़गो हल आउ कउनो सनेस में अतना कम पइसा न लगत हल ।) (तिनडि॰15.7)
4 अनमुनाह (ई संजोग के बात कि एक दिन मकान के बहरी केला के पेड़ भिजुन एगो साँप निकल गेल । छोट खटिया पर खन्ना साहेब के लइका सूतल हल, लइकी भीतर के कमरा में हल । अनमुनाह के वजह से साँप लउकइत न हल ।) (तिनडि॰13.3)
5 अनसाना (दादी-नानी के मुँह से के न कहानी सुनलक हे ? कउन भाषा में कहानी न हे लेकिन ऊ पुरनका कहानी सुनते-सुनते जी अनसा गेल हे । आज के जुग तो मनोविज्ञान के साथ दोस्ती कइले हे ।; चपरासी के संजोग से ऊहे जगह मकान रहे । ऊ लेहाज में पड़के रोज पानी ले आ दे आउ खन्ना साहेब के काम मजे में चल जाय । बाकि जउन दिन कल न खुले, कुइयाँ से पानी लावे पड़े तो बेचारा चपरासी अनसा जाय ।) (तिनडि॰2.14; 10.12)
6 अनुभो (= अनुभव) (मूरत महतो के सामने केला वाला आयल तो उनका खुशी भेल । ई केला कीनल चाहइत हलन आउ अनुभो कइलन हल कि ट्रेन में केला सस्ता मिलऽ हे ।) (तिनडि॰15.2)
7 अन्हारा (= अन्हार; अन्धकार) (देखते-देखते डकैत आउ डकैत के आदमी सब लूट-पाट के सामान के साथे उतर गेलन आउ सामने अन्हारा में भाग गेलन ।) (तिनडि॰19.18)
8 अरद्वाय (= अरदोआय, आरदो; जीवनकाल, आयु, आयुष्य) (मकान मालिक के लइका लाठी चलाना बंद न कयलक आउ देखते-देखते साँप के देह भरता बन गेल । खन्ना साहेब के औरत के जी में जी आयल । मकान मालिक आउ मलकिनी दुन्नो हलन । मकान मालिक कहलन कि जब तक आदमी के अरद्वाय हे केहू बाल बाँका न कर सके, आदमी अप्पन सबुर खो दे हे आउ कुछ के कुछ समझे लगऽ हे ।) (तिनडि॰13.18)
9 अलमारी (= आलमारी) (सोहामन कहलक कि रजिस्ट्री लेके टेबुल पर रख देली हल । का हो गेल ? सउँसे कमरा में खोज-ढूँढ़ भेल, पता न चलल । अलमारी के एक-एक किताब देख लेल गेल बाकि लिफाफा कउनो किताब में होय तब न मिली !) (तिनडि॰27.10)
10 आन्हर (ई संजोग के बात कि खन्ना साहेब के परदेस रहे वाला बूढ़ भाई एक दिन अप्पन एकलौती बेटी पूनम के साथे अयलन आ ओही दिन ट्रक से चँपा गेलन । बेचारे के बदकिस्मती खन्ना साहेब के हियाँ ले आयल । खन्ना साहेब दुर्घटना से ढेर दुखी भेलन बाकि इनकर औरत कहली कि बूढ़ भाई आन्हर हलन कि चँपा गेलन ।) (तिनडि॰11.14)
11 आफियत (= सुविधा, आराम, राहत, सहजता) (घायल केलावाला के भी टैबलेट मिलल । लैट्रिन के सटले बाहर के कल के पानी से घायल लोग दवाई खइलन आउ कुछ आफियत महसूस कइलन ।) (तिनडि॰20.22)
12 उँचगर (ऊ समय दूर न जब डा॰ स्वर्णकिरण के कलम मगधे में न, सउँसे देश के जन-मानस में उँचगर जगह पावत ।) (तिनडि॰5.1)
13 उतरना (= फल आदि का अधिक पककर बेस्वाद होना) (अगल-बगल के लोगन के पैरवी बेकार हो गेल - अइसन ई महसूस कइलन । केला पकके उतर गेल हे बाकि मिठइयन से सस्ता हे । मिठइयन से ई शुद्ध भी हे काहे कि मिठइयन में डाल्डा के प्रयोग होवऽ हे आउ ई देह के भी नुकसान पहुँचावऽ हे ।) (तिनडि॰17.17)
14 ओझा-गुनी (इनका ढेर ओझा-गुनी से जान-पहचान हल से ई कहलन - एक काम आउ करके देखू । एक ठो पंडित हथ । उनकर तदबीर बहुत कारगर होवऽ हे । परसाल एगो औरत के लइका न होवऽ हल तो कहलन प्रदोष बरत करऽ आउ दिन भर उपवास रहके सिउ बाबा के पूजा करहू तब खाना वगैरह खाऊ ।) (तिनडि॰25.14)
15 कचकच-किचकिच (मकान मालिक के हियाँ ढेर लइका-फइका से बराबर कचकच-किचकिच । खन्ना साहेब एकरा पर ध्यान न दे हलन बाकि खन्ना साहेब के औरत बराबर कहथ कि दूसर मकान में चले के चाही ।) (तिनडि॰11.4)
16 कड़गर (मूरत महतो बइठ गेलन । मन मधुआ गेल बाकि अगल-बगल ट्रेन में बइठल लोग के दया लगल आउ लगल लोग मूरत महतो दने से पैरवी करे - "भाई, अतना रंज होवे के जरूरत न हे, केला इनको दे देहुन ।"/ "न, न !" केलावाला कड़गर आवाज में बोलल ।) (तिनडि॰15.19)
17 कबकबाना (गार्ड साहेब अप्पन डिब्बा में गेलन बाकिर फस्ट एड के बक्सा में रूआ के अलावा कउनो दवाई न हल । ... ई अप्पन मन में कबकबइलन - ट्रेन के खोले के समय ई काहे न देखलन, बिना देखे ई ट्रेन के लेके काहे चललन ।) (तिनडि॰20.10)
18 कहनाम (हम्मर श्रीमती जी के कहनाम हे कि ई नोकर न हे, अप्पन लइका के समान हे । अप्पन लइका न हे तो का भेल, कउनो बात के अफसोस न होय के चाही ।) (तिनडि॰24.22)
19 कागज-पत्तर (मूरत महतो के पास एक ठो थैला हल । ओह में कुछ कागज-पत्तर, कुछ दवा के अलावे कउनो चीज न हल आउ नकद पइसा भी ढेर न हल ।; आखिर पूरा करके फिन से सफाई करे के ठान लेल गेल आउ एक-एक कागज-पत्तर ठीक से देखे के शुरू कइल गेल । श्रीमती जी आलमारी के ऊपर देखली तो ठढ़मुरकी लग गेल । एक-दू गो किताब के साथे एगो लिफाफा रखल मिलल ।) (तिनडि॰19.2; 27.16)
20 काम-किरिया (ई संजोग के बात कि खन्ना साहेब के परदेस रहे वाला बूढ़ भाई एक दिन अप्पन एकलौती बेटी पूनम के साथे अयलन आ ओही दिन ट्रक से चँपा गेलन । ... खन्ना साहेब हनुमान जी के याद करके काम-किरिया कइलन आउ बेटी पूनम के सबूरी देलन - बेटी भगवान के इहे मरजी हल ।) (तिनडि॰11.18)
21 किफायत (खन्ना साहब पढ़ल-लिखल हलन, समझदारी से काम लेइत हलन आ ऊ जेतना कमाथ ऊ हिसाब से डेरो खोज लेथ । इनकर साथी-संग खन्ना साहब के किफायत मकान देखके दंग हो जात हलन आउ खन्ना साहब के अक्लमंदी के तारीफ करथ ।) (तिनडि॰9.9)
22 किल्ला (डा॰ स्वर्णकिरण पत्रकारिता, निबंध, कविता, बाल-साहित्त आउ नाटक में तो अप्पन किल्ला ठोकिये देलन हे । मगही साहित्त में भी 'धरती फट गेलइ हे' कम कीमत न रखऽ हे । 'तिनडिड़िया' के तीनो कहानी मगही के धरोहर हे ।) (तिनडि॰4.16)
23 कुल्लम (घर में कुल्लम तीन परानी - हम, हम्मर श्रीमती जी आउ हम्मर एगो भतीजा राजन । राजन चल गेल तो ओकरा बदले में सोहामन हो गेल, एह से तीन के संख्या में कमी न आयल आउ कउनो बात के हरहर-पटपट न भेल । सोहामन अइसन नोकर हे जेकरा पाँच पइसा भी बच जाय तो लौटा के दे दे हे ।) (तिनडि॰25.1)
24 क्वाटर (खन्ना साहब एगो सरकारी अफसर हलन बाकि उनका सरकारी क्वाटर कबहूँ नसीब न भेल । दुश्मन लोग के वजह से कबहूँ-कबहूँ तो क्वाटर मिलके भी कट गेल ।) (तिनडि॰9.5, 6)
25 खामखाह (खन्ना साहेब सोचऽ हलन, समय-देवता सब कुछ ठीक कर देतन - खामखाह घबड़ा जाय से की फायदा ? खन्ना साहेब हनुमान जी के भगत हलन - नहाइत घड़ी हनुमान चलीसा मुँहजबानी पढ़ ले हलन आउ सबुर से काम ले हलन ।) (तिनडि॰9.20)
26 खाय (= खायक, भोजन) (बेचारी पूनम के वजह से खन्ना साहेब लइका-लइकी के देखे में, टहल-टिकोरा करे में, खाय तइयार करे में, खन्ना साहेब के औरत के बहुत सुख भेल । हनुमान बाबा के किरपा पर खन्ना साहेब दंग हलन ।) (तिनडि॰12.21)
27 खुरखुराना (मकान मालिक के लइका साँप मारल चहलक तब तक साँप लापता हो गेल । खन्ना साहेब के औरत भी अप्पन टॉर्च ले अयली । नजीके में कुछ खुरखुरायल तो मकान मालिक के बहादुर लइका लाठी चलौलक ।) (तिनडि॰13.12)
28 गँहकी (= ग्राहक) (केला वाला झक्की हल आउ कहलक कि केहू केला में हाथ न लगावऽ । केला ढेर गलकल हल आउ छूए से ओकरा टूट जाय के डर हल । एहे से ढेर गँहकी लोग चाहके भी केला न देखलन ।) (तिनडि॰15.11)
29 गलकल (= गलल; गला हुआ, बहुत ज्यादा पका हुआ) (केला वाला झक्की हल आउ कहलक कि केहू केला में हाथ न लगावऽ । केला ढेर गलकल हल आउ छूए से ओकरा टूट जाय के डर हल ।) (तिनडि॰15.10)
30 गुदगुद्दी (~ बरना) (डा॰ स्वर्णकिरण के 'तिनडिड़िया' कहानी पढ़के हमरा संतोख भेल । ई कहानी मगही साहित्त के एगो मोड़ देहे । कहानी सेंगरन के नामे एत्ते आकर्षक हे कि नाम सुनते ओकरा पढ़े ला मन में गुदगुद्दी बरे लगऽ हे ।) (तिनडि॰3.8)
31 घुराना (= घुमाना) (कहानी खाली मनोरंजन के चीज न हे, ऊ जिनगी से जुड़ल हे, ऊ जिनगी के गुदगुदावे वाला साहित्त के एगो रुचगर विधा हे । जन्ने नजर घुरावऽ, बुक-स्टौल होय, या पुस्तकालय, फुरसत के घड़ी में कहानी मन के थकनी के दूर करऽ हे, दरकल दिल के दिलासा देके दुख अउर दुविधा के दूर कर दे हे ।) (तिनडि॰2.4)
32 चँपाना (= चँपना, दबना; दबवाना) (ई संजोग के बात कि खन्ना साहेब के परदेस रहे वाला बूढ़ भाई एक दिन अप्पन एकलौती बेटी पूनम के साथे अयलन आ ओही दिन ट्रक से चँपा गेलन ।; खन्ना साहेब दुर्घटना से ढेर दुखी भेलन बाकि इनकर औरत कहली कि बूढ़ भाई आन्हर हलन कि चँपा गेलन ।) (तिनडि॰11.12, 15)
33 चाह (= चाय) (टेसन मास्टर साहेब के काम हल से ऊ अब तक चाहो मँगवा देले हलन से मेहता साहेब चाहो पीलन आउ बंडल लेके खुद अइलन ।) (तिनडि॰24.5, 6)
34 चिट्ठी-पतरी (बंडल पहिलहीं आ गेल हल बाकी चिट्ठी-पतरी में अतना समय लग गेल कि साढ़े सतरह रुपइया डिमरेज देवे पड़ गेल ।) (तिनडि॰28.7)
35 चिरौरी (ई सोचलन - केलावाला के चिरौरी करके केला कीन लेथ । अगल-बगल के लोगन के पैरवी बेकार हो गेल - अइसन ई महसूस कइलन । केला पकके उतर गेल हे बाकि मिठइयन से सस्ता हे ।; केलावाला कहलक - हम अस्पताल जा रहल ही, केला कइसे ले जायम । दू-तीन दर्जन केला जबरदस्ती चिरौरी करके मूरत महतो के देलक । मूरत महतो केला लेवे ला तैयार न हलन बाकि केलावाला के विनती मंजूर करे पड़ल ।) (तिनडि॰17.15; 22.10)
36 छिलकोइया ( मूरत महतो के केला के संबंध में दूगो घटना के याद आयल । पहिलकी घटना - मूरत महतो गाड़ी से कहूँ जाइत हलन । प्लाटफारम पर केला के छिलकोइया पड़ल हल । एगो सरदार साहेब खूब बन-ठन के गाड़ी पकड़े ला अप्पन बेग लेके दउड़लन । गाड़ी खुल गेल हल आउ लपकके सरदार साहेब गाड़ी पकड़ल चहलन बाकि उनकर पाँव केला के छिलकोइया पर पड़ल आउ गिर गेलन ।; केला के एगो मामूली छिलकोइया आउ केतना बड़ा घटना के घटा देलक ।) (तिनडि॰16.1, 4, 9)
37 जानल-मानल (हिंदी आउ भोजपुरी के जानल-मानल कवि आउ विद्वान् लेखक, विचारक डा॰ स्वर्णकिरण के 'तिनडिड़िया' कहानी पढ़के मन के तार में जिनगी के झनकार सुनाई पड़ऽ हे ।) (तिनडि॰2.7)
38 जुकुर (हम कुछ दिन से एगो नोकर रखले ही आउ ओकरा पर विश्वास करऽ ही । विश्वास करे जुकुर नोकरो हे सोझिया, ईमानदार आउ काम-काजू, नाम हे सोहामन । ई हमनी से पहिले जग जा हे, घर के काम-काज कर दे हे, सब चीजन के सजा दे हे, तब हमनी उठऽ ही ।) (तिनडि॰24.18)
39 जुल्माना (बंडल पहिलहीं आ गेल हल बाकी चिट्ठी-पतरी में अतना समय लग गेल कि साढ़े सतरह रुपइया डिमरेज देवे पड़ गेल ।/ मेहता साहेब के दोस्त कहलन - का होयत - डिमरेज के पइसा सरकार के पास गेल । अफसोस कउन बात के !/ मेहता साहेब कहलन - अफसोस कउनो खास न हे बाकि डिमरेज तो जुल्माना हे । जुल्माना काहे देम - सब काम समय पर करे के आदत हे - कउन चूक हो गेल कि काली माई सजाय दे देलन ।) (तिनडि॰28.12)
40 झकझक (उज्जर ~) ('तिनडिड़िया' के तीनो कहानी हम्मर समाज के अइना हे । समाज के सड़ल-गेन्हाल रूप में मानवता के उज्जर झकझक रूप निखरल हे । आज के कहानीकार 'रोमांस', 'सेक्स' अउर अपराध पर कलम चलावे में अपना के माहिर समझऽ हथ ।) (तिनडि॰3.21)
41 झक्की (= झक्खी; सनकी; हठी, जिद्दी; धुन या रौ में रहने वाला) (केला वाला झक्की हल आउ कहलक कि केहू केला में हाथ न लगावऽ । केला ढेर गलकल हल आउ छूए से ओकरा टूट जाय के डर हल ।) (तिनडि॰15.9)
42 टलावा (युनिवर्सिटी से चिट्ठी आयल - जल्दी बंडल देखके भेजू । हम चिट्ठी के जवाब वापसी डाक से देली - बंडल के पता न हे । चिट्ठी युनिवर्सिटी में गेल तो कंट्रोलर साहब के पास से किरानी के पास गेल । तो ऊ कहलन कि मेहता साहेब टलावा दे देलन हे ।) (तिनडि॰26.17)
43 टहल-टिकोरा (बेचारी पूनम के वजह से खन्ना साहेब लइका-लइकी के देखे में, टहल-टिकोरा करे में, खाय तइयार करे में, खन्ना साहेब के औरत के बहुत सुख भेल । हनुमान बाबा के किरपा पर खन्ना साहेब दंग हलन ।) (तिनडि॰12.20-21)
44 टेंपरोरी (= टेंपोररी, temporary; अस्थायी) (कुछ दिन के बाद खन्ना साहेब के एगो बढ़ियाँ मकान मिल गेल रोड पर - लमहर फुलवारी सामने, कल के प्रेसर बहुत तेज बाकि घर में वायरिंग टेंपरोरी । पैखाना कामचलाऊ, पीछे नद्दी । साफ-सुथरा मकान ।) (तिनडि॰12.3)
45 टेसन (= टीसन; स्टेशन) (ट्रेन देखते-देखते अगिला टेसन पर पहुँच गेल । टेसन पर ढेर भीड़ हल । केलावाला डिब्बा में ढेर लोग सवार भेल ।) (तिनडि॰18.5)
46 ठढ़मुरकी ('मगही' पत्रिका में रवींद्र कुमार आउ तारकेश्वर भारती अप्पन कहानी से सरसत्ती के अर्चना कइलन । लेकिन बाद में ई शृंखला सरासर बढ़ल न । जइसे कहानी-कला के ठढ़मुरकी लग गेल ।; आखिर पूरा करके फिन से सफाई करे के ठान लेल गेल आउ एक-एक कागज-पत्तर ठीक से देखे के शुरू कइल गेल । श्रीमती जी आलमारी के ऊपर देखली तो ठढ़मुरकी लग गेल । एक-दू गो किताब के साथे एगो लिफाफा रखल मिलल ।) (तिनडि॰2.21; 27.17)
47 डिरिआना (= डिड़ियाना) (ठेठ मगही भाषा के प्रयोग सराहे जुकुर हे । भाषा धउगल चलऽ हे । चौराहा पर बइठ के डिरिआ न हे ।) (तिनडि॰4.14)
48 डिरीर (= डिड़ारी, लाइन, पंक्ति) (तिनडिड़िया के तीन तरेगन जउन एक्के डिरीर में रहऽ हथ, रोशनी दे हथ, समय बतलावऽ हथ आउ जिनगी के भेद समझावऽ हथ, 'तिनडिड़िया' सेंगरन के कहानी अपवाद न हे ।) (तिनडि॰8.9)
49 तितकी (ऊ सोचइत हल कि ओकरा जाँघ के बगल से गोली गुजरलइ आउ केलावाला के तितकी अइसन लगलइ । ओकरा पछतावा भेल, ऊ केला भिखारी के न देलक एही से साइत ई मुसीबत अइलइ ।) (तिनडि॰18.21)
50 थकनी (= थकान) (कहानी खाली मनोरंजन के चीज न हे, ऊ जिनगी से जुड़ल हे, ऊ जिनगी के गुदगुदावे वाला साहित्त के एगो रुचगर विधा हे । जन्ने नजर घुरावऽ, बुक-स्टौल होय, या पुस्तकालय, फुरसत के घड़ी में कहानी मन के थकनी के दूर करऽ हे, दरकल दिल के दिलासा देके दुख अउर दुविधा के दूर कर दे हे ।) (तिनडि॰2.5)
51 थोड़िके (थोड़िके देरी में खन्ना साहेब आ गेलन । हाथ में प्रसाद के दोना हल । कहलन - हनुमान बाबा के परसादी चढ़ाके आवइत ही ।) (तिनडि॰14.7)
52 दमगर (मगही पत्र-पत्रिका में अधिकतर कहानी में मौलिकता के अभाव हल । उदीयमान कलाकार अजयकांत शर्मा के 'सौतिन' कहानी दमगर भेल लेकिन आकार बढ़ गेल ।) (तिनडि॰3.4)
53 दरकल (कहानी खाली मनोरंजन के चीज न हे, ऊ जिनगी से जुड़ल हे, ऊ जिनगी के गुदगुदावे वाला साहित्त के एगो रुचगर विधा हे । जन्ने नजर घुरावऽ, बुक-स्टौल होय, या पुस्तकालय, फुरसत के घड़ी में कहानी मन के थकनी के दूर करऽ हे, दरकल दिल के दिलासा देके दुख अउर दुविधा के दूर कर दे हे ।) (तिनडि॰2.6)
54 देखहिसखी (= देखा-हिसकी, नकल) (चौमुखी प्रतिभा के निभाके अप्पन विभा के सगरो फइलावे में लेखक कमाल कइलक हे । देखहिसखी तो ऊ करे के कोरसिस भी न कइलक, जुग आउर जमाना उनखर देखहिसखी करके साहित्त के सेवा में अपना के धन्य समझतन ।) (तिनडि॰5.4, 5)
55 दोसरकी (मूरत महतो के केला के संबंध में दूगो घटना के याद आयल । पहिलकी घटना - मूरत महतो गाड़ी से कहूँ जाइत हलन । प्लाटफारम पर केला के छिलकोइया पड़ल हल । ... दोसरकी घटना मजेदार हे । एगो कविजी एगो इस्कूल में बोलइत हलन - कविता बनावे ला पहिले लोग ढेर पिंगल पढ़ऽ हलन, कोशन के रट्टऽ हलन, गुरु गन के पास जा हलन ।) (तिनडि॰16.10)
56 धउगल (~ चलना) (ठेठ मगही भाषा के प्रयोग सराहे जुकुर हे । भाषा धउगल चलऽ हे । चौराहा पर बइठ के डिरिआ न हे ।) (तिनडि॰4.13)
57 धूरी (= धूलि) (हिंदी में कहानी लिखे के ढेर चलनसार हे लेकिन मगही के जनकंठ से बाहर निकसला पर कहानी के जे रूप सामने आयल हे ओकर चद्दर अभी धूरी से मैल न भेल हे ।) (तिनडि॰2.18)
58 नजीक (मकान मालिक के लइका साँप मारल चहलक तब तक साँप लापता हो गेल । खन्ना साहेब के औरत भी अप्पन टॉर्च ले अयली । नजीके में कुछ खुरखुरायल तो मकान मालिक के बहादुर लइका लाठी चलौलक ।) (तिनडि॰13.11)
59 निकसना (हिंदी में कहानी लिखे के ढेर चलनसार हे लेकिन मगही के जनकंठ से बाहर निकसला पर कहानी के जे रूप सामने आयल हे ओकर चद्दर अभी धूरी से मैल न भेल हे ।) (तिनडि॰2.17)
60 निछत्तर (= नछत्तर, नक्षत्र) (साफ-सुथरा मकान । अबहीं पूरा बनल न हल । मकान में मकान मालिक अपनो ला नेहान-घर या सेफ्टी टैंक पैखाना न बनौले हलन से खन्ना साहेब सोचलन - काम चल जायत । मुदित मन अइलन बाकि अइसन निछत्तर में अइलन कि बिजली के लाइन कट-कट जाय ।) (तिनडि॰12.7)
61 नीमन (दोसर मकान पहिलका मकान से कुछ नीमन हल बाकि एकरा में संडास हल - सेफ्टी टैंक पैखाना न हल । पानी के प्रेसर कम हल, दू मिनट के काम दस मिनट में होवे ।; मकान मालिक के हियाँ ढेर लइका-फइका से बराबर कचकच-किचकिच । खन्ना साहेब एकरा पर ध्यान न दे हलन बाकि खन्ना साहेब के औरत बराबर कहथ कि दूसर मकान में चले के चाही । ई मकान नीमन न हे ।) (तिनडि॰10.17; 11.7)
62 परनाम (= प्रणाम) (मेहता साहेब एक प्याली चाय अप्पन दोस्त के दे देलन आउ एक प्याली चाय अप्पन हाथ में लेके पीये लगलन । चाय के धुआँ में मेहता साहेब डिमरेज के घटना के धुआँ अइसन उड़इत देखलन, देखे लगलन । मेहता साहेब के दोस्त चाय पीके परनाम कइलन आउ छुट्टी लेके चल देलन ।) (तिनडि॰28.24)
63 परनाम-पाती (तीन साल पहिले एक बेर आर॰आर॰ मिलल तो लेके टेसन खुद गेलन - टेसन मास्टर साहेब जानल-पहचानल हलन, आदर से परनाम-पाती कइला के बाद बइठवलन आउ आर॰आर॰ भेजके कुली से कापियन के बंडल मंगवलन ।) (तिनडि॰23.16-17)
64 परसादी (खन्ना साहेब हनुमान जी के भगत हलन - नहाइत घड़ी हनुमान चलीसा मुँहजबानी पढ़ ले हलन आउ सबुर से काम ले हलन । दफ्तर में सरकारी नौकरी मिलल तो दू किलो लड्डू हनुमान जी के परसादी चढ़ौलन ।; थोड़िके देरी में खन्ना साहेब आ गेलन । हाथ में प्रसाद के दोना हल । कहलन - हनुमान बाबा के परसादी चढ़ाके आवइत ही ।) (तिनडि॰10.2; 14.8)
65 पहिलका (दोसर मकान पहिलका मकान से कुछ नीमन हल बाकि एकरा में संडास हल - सेफ्टी टैंक पैखाना न हल । पानी के प्रेसर कम हल, दू मिनट के काम दस मिनट में होवे ।) (तिनडि॰10.17)
66 पहिलकी (मूरत महतो के केला के संबंध में दूगो घटना के याद आयल । पहिलकी घटना - मूरत महतो गाड़ी से कहूँ जाइत हलन । प्लाटफारम पर केला के छिलकोइया पड़ल हल । ... दोसरकी घटना मजेदार हे ।) (तिनडि॰15.21)
67 पहिलहीं (बंडल पहिलहीं आ गेल हल बाकी चिट्ठी-पतरी में अतना समय लग गेल कि साढ़े सतरह रुपइया डिमरेज देवे पड़ गेल ।) (तिनडि॰28.7)
68 पहिले-पहिल (खन्ना साहेब के औरत कहली - हम साथे रहम, आउ खन्ना साहेब अप्पन औरत के दिल न दुखौलन । पहिले-पहिल किराया के मकान में रहे के मौका मिलल ।) (तिनडि॰10.5)
69 पिंगल (एगो कविजी एगो इस्कूल में बोलइत हलन - कविता बनावे ला पहिले लोग ढेर पिंगल पढ़ऽ हलन, कोशन के रट्टऽ हलन, गुरु गन के पास जा हलन ।) (तिनडि॰16.11)
70 पुन्न (= पुण्य) (ट्रेन में बइठल एगो आदमी बोललक - ई राहू काल हल, बड़का खतरा टल गेल । कुछ आदमियन के पुन्न लोगन के बचा लेलक ।) (तिनडि॰21.16)
71 फोटू ('रोसनी' कहानी के खन्ना साहेब हम्मर समाज के आदमी हथ आउ हम्मर मन के बात कहऽ हथ । ई कहानी में आज के यथार्थ समाज के फोटू खींचल गेल हे । 'बिजली, पानी, कोयला, गैस, डीजल सब पर जइसे संकट आ गेल ।' ई बहटल समाज में भी खन्ना साहेब के औरत के मनुष्यता के रोसनी मिलल ।) (तिनडि॰3.10)
72 बड़का-बड़का (सउँसे इलाका में इहे एगो मकान अइसन हल कि पानी कुछ-न-कुछ मिल जा हल । बड़का-बड़का प्रोफेसर आउ डाक्टर लोग रोवइत हलन कि पानी तनिको न मिले । बिजली, पानी, कोइला, गैस, डीजल सब पर जइसे संकट आ गेल !) (तिनडि॰12.17)
73 बड़गो (जब भी ई घर पहुँचऽ हलन लइकन-फइकन घेर ले हलन, सेसे इनकनी से छुटकारा पावे ला ई कुछ-न-कुछ सनेस जरूर कीन ले हलन । इनकर परिवार बड़गो हल आउ कउनो सनेस में अतना कम पइसा न लगत हल ।) (तिनडि॰15.7)
74 बदलैन (= बदलाव, परिवर्तन) (खन्ना साहेब के औरत के दिमाग में एगो रोशनी झलकल आउ लगल एगो बदलैन आ गेल । ऊ भीतरे-भीतर महसूस कइलकी कि मकान मालिक लोग सचमुच कसाई न होवऽ हथ आउ समय पड़े पर मदद कर सकऽ हथ ।) (तिनडि॰13.22)
75 बरना (गुदगुद्दी ~) (डा॰ स्वर्णकिरण के 'तिनडिड़िया' कहानी पढ़के हमरा संतोख भेल । ई कहानी मगही साहित्त के एगो मोड़ देहे । कहानी सेंगरन के नामे एत्ते आकर्षक हे कि नाम सुनते ओकरा पढ़े ला मन में गुदगुद्दी बरे लगऽ हे ।) (तिनडि॰3.8)
76 बराबर (= अकसर, हमेशा) (मकान मालिक के हियाँ ढेर लइका-फइका से बराबर कचकच-किचकिच । खन्ना साहेब एकरा पर ध्यान न दे हलन बाकि खन्ना साहेब के औरत बराबर कहथ कि दूसर मकान में चले के चाही ।) (तिनडि॰11.6)
77 बहटल (= बहकल) ('रोसनी' कहानी के खन्ना साहेब हम्मर समाज के आदमी हथ आउ हम्मर मन के बात कहऽ हथ । ई कहानी में आज के यथार्थ समाज के फोटू खींचल गेल हे । 'बिजली, पानी, कोयला, गैस, डीजल सब पर जइसे संकट आ गेल ।' ई बहटल समाज में भी खन्ना साहेब के औरत के मनुष्यता के रोसनी मिलल ।) (तिनडि॰3.12)
78 बहरी (= बहरसी; बाहर) (ई संजोग के बात कि एक दिन मकान के बहरी केला के पेड़ भिजुन एगो साँप निकल गेल । छोट खटिया पर खन्ना साहेब के लइका सूतल हल, लइकी भीतर के कमरा में हल । अनमुनाह के वजह से साँप लउकइत न हल ।) (तिनडि॰13.1)
79 बाकिर (गार्ड साहेब अप्पन डिब्बा में गेलन बाकिर फस्ट एड के बक्सा में रूआ के अलावा कउनो दवाई न हल ।) (तिनडि॰20.7)
80 बिघिन (= विघ्न) (मेहता साहेब काली माई के भगत हलन । कउनो बिघिन होय, मेहता साहेब काली माई के गोहरावथ आउ बिघिन दूर हो जाय ।) (तिनडि॰23.1, 2)
81 बेग (= बैग, थैला) (प्लाटफारम पर केला के छिलकोइया पड़ल हल । एगो सरदार साहेब खूब बन-ठन के गाड़ी पकड़े ला अप्पन बेग लेके दउड़लन । गाड़ी खुल गेल हल आउ लपकके सरदार साहेब गाड़ी पकड़ल चहलन बाकि उनकर पाँव केला के छिलकोइया पर पड़ल आउ गिर गेलन । पाँच हजार के नोट बेग में रहे - बेग फेंका गेल आउ पता न कउन उचक्का लेके पार कर देलक । सरदार जी जब तक सम्हर के उठलन - इनकर बेग गायब ।) (तिनडि॰16.2, 5, 7)
82 बेर-बेर (अप्पन सास से न पटल । इनकर नाक में बेर-बेर माछी समा जाय । खन्ना साहेब डाँटऽ हलन बाकि ई खन्ना साहब के दबोच दे हली ।) (तिनडि॰9.16)
83 भगत (= भक्त) (खन्ना साहेब सोचऽ हलन, समय-देवता सब कुछ ठीक कर देतन - खामखाह घबड़ा जाय से की फायदा ? खन्ना साहेब हनुमान जी के भगत हलन - नहाइत घड़ी हनुमान चलीसा मुँहजबानी पढ़ ले हलन आउ सबुर से काम ले हलन ।) (तिनडि॰9.21)
84 भरता (मकान मालिक के लइका लाठी चलाना बंद न कयलक आउ देखते-देखते साँप के देह भरता बन गेल ।) (तिनडि॰13.16)
85 भिजुन (ई संजोग के बात कि एक दिन मकान के बहरी केला के पेड़ भिजुन एगो साँप निकल गेल । छोट खटिया पर खन्ना साहेब के लइका सूतल हल, लइकी भीतर के कमरा में हल । अनमुनाह के वजह से साँप लउकइत न हल ।) (तिनडि॰13.2)
86 मंगिया-जरौना (खन्ना साहेब के औरत चिल्लयलन - साँप ! आउ लगलन अपने छाती पीटे । हम्मर बुतरू गेल । मंगिया-जरौना मकान ठीक से देखके न ले ... ।) (तिनडि॰13.6)
87 मधुआना (= उदास होना; सुस्त, निराश या थका-सा होना; शराब पीकर मत्त होना; आम के मंजर में मधुआ रोग होना) (केला बेचे वाला बिगड़ल - "तोरा ला केला दसो रुपये दर्जन न हो ।" अइसे केला डेढ़ रुपया दर्जन हल । मूरत महतो बइठ गेलन । मन मधुआ गेल बाकि अगल-बगल ट्रेन में बइठल लोग के दया लगल आउ लगल लोग मूरत महतो दने से पैरवी करे - "भाई, अतना रंज होवे के जरूरत न हे, केला इनको दे देहुन ।") (तिनडि॰15.15)
88 मलकिनी (मकान मालिक के लइका लाठी चलाना बंद न कयलक आउ देखते-देखते साँप के देह भरता बन गेल । खन्ना साहेब के औरत के जी में जी आयल । मकान मालिक आउ मलकिनी दुन्नो हलन ।) (तिनडि॰13.17)
89 माछी (नाक में ~ समाना) (अप्पन सास से न पटल । इनकर नाक में बेर-बेर माछी समा जाय । खन्ना साहेब डाँटऽ हलन बाकि ई खन्ना साहब के दबोच दे हली ।) (तिनडि॰9.16)
90 मुँहजबानी (खन्ना साहेब सोचऽ हलन, समय-देवता सब कुछ ठीक कर देतन - खामखाह घबड़ा जाय से की फायदा ? खन्ना साहेब हनुमान जी के भगत हलन - नहाइत घड़ी हनुमान चलीसा मुँहजबानी पढ़ ले हलन आउ सबुर से काम ले हलन ।) (तिनडि॰9.21)
91 मुस्टंड (देखते-देखते डकैत के पिस्तौल के गोली कम हो गेल तो बगल के एगो मुस्टंड आदमी ओकरा चुनौती देलक आउ डकैत हाथा-पाई करे पर तैयार हो गेल । मुस्टंड आदमी चाहलक कि डकैत के ट्रेन के दरवाजा से ढकेल दे बाकि डकैत अकेले न हल, ओकर संगी-साथियन सब सहारा देलन आउ मुस्टंड आदमी घबरा गेल ।) (तिनडि॰19.8, 9, 11)
92 मेहठा (= मेहटा) (मगही साहित्त के अछुत्ता अंग के सिंगार करे ला डा॰ स्वर्णकिरण बढ़तन आउर इतिहास में मेहठा (केंद्र) बनके अप्पन पीछे अनेक कलाकार के प्रेरणा के स्रोत बनतन - अइसन हम्मर विश्वास हे ।) (तिनडि॰5.10)
93 रकझक (= विवाद, झंझट, बाता-बाती, बकझक, तर्क-वितर्क) (सिपाही जी बिना पइसा के केला चाहइत हलन । केलावाला रकझक कइलक आउ सिपाही जी के लौट जाय पड़ल ।) (तिनडि॰18.4)
94 रुचगर (कहानी खाली मनोरंजन के चीज न हे, ऊ जिनगी से जुड़ल हे, ऊ जिनगी के गुदगुदावे वाला साहित्त के एगो रुचगर विधा हे ।) (तिनडि॰2.4)
95 लंगा-झारी (मूरत महतो के सामान न लूटल गेल काहे कि ई झोला देखा देलन आउ कहलन कि कागज-पत्तर के अलावे कउनो चीज न हे - अप्पन पाकिट देखा देलन आउ बोललन कि लंगा-झारी ले ले लोग ।) (तिनडि॰20.17)
96 लइकन-फइकन (जब भी ई घर पहुँचऽ हलन लइकन-फइकन घेर ले हलन, सेसे इनकनी से छुटकारा पावे ला ई कुछ-न-कुछ सनेस जरूर कीन ले हलन ।) (तिनडि॰15.5)
97 लइका-फइका (मकान मालिक के हियाँ ढेर लइका-फइका से बराबर कचकच-किचकिच । खन्ना साहेब एकरा पर ध्यान न दे हलन बाकि खन्ना साहेब के औरत बराबर कहथ कि दूसर मकान में चले के चाही ।) (तिनडि॰11.4)
98 लगल (= लगले, तुरते, तुरन्त) (खन्ना साहेब के औरत के दिमाग में एगो रोशनी झलकल आउ लगल एगो बदलैन आ गेल । ऊ भीतरे-भीतर महसूस कइलकी कि मकान मालिक लोग सचमुच कसाई न होवऽ हथ आउ समय पड़े पर मदद कर सकऽ हथ ।; (केला बेचे वाला बिगड़ल - तोरा ला केला दसो रुपये दर्जन न हो । अइसे केला डेढ़ रुपया दर्जन हल । मूरत महतो बइठ गेलन । मन मधुआ गेल बाकि अगल-बगल ट्रेन में बइठल लोग के दया लगल आउ लगल लोग मूरत महतो दने से पैरवी करे - भाई, अतना रंज होवे के जरूरत न हे, केला इनको दे देहुन ।) (तिनडि॰13.22; 15.16)
99 लगवहिये (= लगातार) (परसाल एगो औरत के लइका न होवऽ हल तो कहलन प्रदोष बरत करऽ आउ दिन भर उपवास रहके सिउ बाबा के पूजा करहू तब खाना वगैरह खाऊ । आउ नौ महीना लगवहिये बरत करे से औरत के एगो लइका हो गेल ।) (तिनडि॰25.19)
100 लमहर (कुछ दिन के बाद खन्ना साहेब के एगो बढ़ियाँ मकान मिल गेल रोड पर - लमहर फुलवारी सामने, कल के प्रेसर बहुत तेज बाकि घर में वायरिंग टेंपरोरी । पैखाना कामचलाऊ, पीछे नद्दी । साफ-सुथरा मकान ।) (तिनडि॰12.2)
101 लेहाज (चपरासी के संजोग से ऊहे जगह मकान रहे । ऊ लेहाज में पड़के रोज पानी ले आ दे आउ खन्ना साहेब के काम मजे में चल जाय । बाकि जउन दिन कल न खुले, कुइयाँ से पानी लावे पड़े तो बेचारा चपरासी अनसा जाय ।) (तिनडि॰10.9)
102 संतोख (डा॰ स्वर्णकिरण के 'तिनडिड़िया' कहानी पढ़के हमरा संतोख भेल । ई कहानी मगही साहित्त के एगो मोड़ देहे ।) (तिनडि॰3.6)
103 सगरो (चौमुखी प्रतिभा के निभाके अप्पन विभा के सगरो फइलावे में लेखक कमाल कइलक हे । देखहिसखी तो ऊ करे के कोरसिस भी न कइलक, जुग आउर जमाना उनखर देखहिसखी करके साहित्त के सेवा में अपना के धन्य समझतन ।) (तिनडि॰5.3)
104 सजाय (बंडल पहिलहीं आ गेल हल बाकी चिट्ठी-पतरी में अतना समय लग गेल कि साढ़े सतरह रुपइया डिमरेज देवे पड़ गेल ।/ मेहता साहेब के दोस्त कहलन - का होयत - डिमरेज के पइसा सरकार के पास गेल । अफसोस कउन बात के !/ मेहता साहेब कहलन - अफसोस कउनो खास न हे बाकि डिमरेज तो जुल्माना हे । जुल्माना काहे देम - सब काम समय पर करे के आदत हे - कउन चूक हो गेल कि काली माई सजाय दे देलन ।) (तिनडि॰28.13)
105 सड़ल-गेन्हाल ('तिनडिड़िया' के तीनो कहानी हम्मर समाज के अइना हे । समाज के सड़ल-गेन्हाल रूप में मानवता के उज्जर झकझक रूप निखरल हे । आज के कहानीकार 'रोमांस', 'सेक्स' अउर अपराध पर कलम चलावे में अपना के माहिर समझऽ हथ ।) (तिनडि॰3.21)
106 सनेस (जब भी ई घर पहुँचऽ हलन लइकन-फइकन घेर ले हलन, सेसे इनकनी से छुटकारा पावे ला ई कुछ-न-कुछ सनेस जरूर कीन ले हलन । इनकर परिवार बड़गो हल आउ कउनो सनेस में अतना कम पइसा न लगत हल ।) (तिनडि॰15.6, 7)
107 सबुर (= सब्र) (किराया के मकान में तकलीफ होवऽ हे, ई के न जानऽ हे, बाकि खन्ना साहब के औरत के दिल में सबुर न हल । ऊ पढ़ल-लिखल न हली बाकि रोबदाब रखे में, अइंठ देखावे में, गें-झगड़ा करे में आगे रहऽ हली ।; खन्ना साहेब सोचऽ हलन, समय-देवता सब कुछ ठीक कर देतन - खामखाह घबड़ा जाय से की फायदा ? खन्ना साहेब हनुमान जी के भगत हलन - नहाइत घड़ी हनुमान चलीसा मुँहजबानी पढ़ ले हलन आउ सबुर से काम ले हलन ।) (तिनडि॰9.2; 10.1)
108 सबूरी (ई संजोग के बात कि खन्ना साहेब के परदेस रहे वाला बूढ़ भाई एक दिन अप्पन एकलौती बेटी पूनम के साथे अयलन आ ओही दिन ट्रक से चँपा गेलन । ... खन्ना साहेब हनुमान जी के याद करके काम-किरिया कइलन आउ बेटी पूनम के सबूरी देलन - बेटी भगवान के इहे मरजी हल ।) (तिनडि॰11.19)
109 समाना (= घुसना; घुसाना) (अप्पन सास से न पटल । इनकर नाक में बेर-बेर माछी समा जाय । खन्ना साहेब डाँटऽ हलन बाकि ई खन्ना साहब के दबोच दे हली ।) (तिनडि॰9.16)
110 सम्हरना (= सँभलना) (गाड़ी खुल गेल हल आउ लपकके सरदार साहेब गाड़ी पकड़ल चहलन बाकि उनकर पाँव केला के छिलकोइया पर पड़ल आउ गिर गेलन । पाँच हजार के नोट बेग में रहे - बेग फेंका गेल आउ पता न कउन उचक्का लेके पार कर देलक । सरदार जी जब तक सम्हर के उठलन - इनकर बेग गायब ।) (तिनडि॰16.7)
111 साइत (= शायद) (ऊ सोचइत हल कि ओकरा जाँघ के बगल से गोली गुजरलइ आउ केलावाला के तितकी अइसन लगलइ । ओकरा पछतावा भेल, ऊ केला भिखारी के न देलक एही से साइत ई मुसीबत अइलइ ।) (तिनडि॰18.22)
112 सेसे (जब भी ई घर पहुँचऽ हलन लइकन-फइकन घेर ले हलन, सेसे इनकनी से छुटकारा पावे ला ई कुछ-न-कुछ सनेस जरूर कीन ले हलन ।) (तिनडि॰15.5)
113 हरहर-पटपट (घर में कुल्लम तीन परानी - हम, हम्मर श्रीमती जी आउ हम्मर एगो भतीजा राजन । राजन चल गेल तो ओकरा बदले में सोहामन हो गेल, एह से तीन के संख्या में कमी न आयल आउ कउनो बात के हरहर-पटपट न भेल । सोहामन अइसन नोकर हे जेकरा पाँच पइसा भी बच जाय तो लौटा के दे दे हे ।) (तिनडि॰25.4)
114 हियाँ (मकान मालिक के हियाँ ढेर लइका-फइका से बराबर कचकच-किचकिच । खन्ना साहेब एकरा पर ध्यान न दे हलन बाकि खन्ना साहेब के औरत बराबर कहथ कि दूसर मकान में चले के चाही ।; ई संजोग के बात कि खन्ना साहेब के परदेस रहे वाला बूढ़ भाई एक दिन अप्पन एकलौती बेटी पूनम के साथे अयलन आ ओही दिन ट्रक से चँपा गेलन । बेचारे के बदकिस्मती खन्ना साहेब के हियाँ ले आयल ।) (तिनडि॰11.4, 13)
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