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Saturday, October 19, 2013

102. कहानी संग्रह "तिरसूल" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द



तिरसू॰ = "तिरसूल" (मगही कहानी संग्रह), कहानीकार - मोहन जी; प्रकाशक - मिथिलेश प्रकाशन, आरा (बिहार); शाखा: सोहसराय (नालंदा); प्रथम संस्करण 1980 ई॰; 24 पृष्ठ । मूल्य 2 रुपइया ।

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कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या - 74

ई कहानी संग्रह में कुल 3 कहानी हइ ।


क्रम सं॰
विषय-सूची 
पृष्ठ
0.
भूमिका - रासबिहारी पाण्डेय
2
0.
परकासक दने से
3-4
0.
अप्पन कलम से
5-6
0.
समरपन
7
0.
सूची
8



1.
नयका सुरजोदय
9-14
2.
घुन
15-17
3.
नंदिनी
18-24


ठेठ मगही शब्द ("" से "" तक):
1    अँखुआ (पुलिस, थाना आउ कचहरी के जरिये झगड़ा के फैसला से असालतन शांति कायम न हो सकऽ हे। झगड़ा के बीज, लड़ाई के अँखुआ कुछ देरी ला दब जा हे बाकि अप्पन लोगिन के जरिये, पंचइती के जरिये जे निपटारा होवऽ हे ऊ असालतन आ पोख्ता होवऽ हे आउ नेह आ सिनेह उपजावे वाला होवऽ हे ।)    (तिरसू॰13.20)
2    अगहर (भारतीय चलित्तर के सिरजे में मोहन जी दरअसल माहिर हथ आउ विश्वास हे एकरा जरिये ई मगही दुनियाँ में नाम पैदा करे में अगहर होतन ।)    (तिरसू॰4.14)
3    अपनहीं (= आप ही; स्वयं ही, खुद ही) (सुरेश, रमेश, गणेश वगैरह के बाप अड़ल हलन । लइकन के दल अप्पन जिद्द न छोड़लन । ऊ लोग जग्गन मामूँ के मिनती कइलन कि ई झगड़ा अपनहीं सझुरा सकऽ ही, अपने के बात दुन्नो परिवार के लोग मानतन, हमनी पुलिस के लौटा देम ।)    (तिरसू॰13.6)
4    असालतन (पुलिस, थाना आउ कचहरी के जरिये झगड़ा के फैसला से असालतन शांति कायम न हो सकऽ हे। झगड़ा के बीज, लड़ाई के अँखुआ कुछ देरी ला दब जा हे बाकि अप्पन लोगिन के जरिये, पंचइती के जरिये जे निपटारा होवऽ हे ऊ असालतन आ पोख्ता होवऽ हे आउ नेह आ सिनेह उपजावे वाला होवऽ हे ।)    (तिरसू॰13.19, 22)
5    एतवार (= रविवार) (एतवार के दिन हल । बड़ी शुभ दिन । ई दिन सुरुज भगवान के प्रतीक हे । एह से ऊ सुरुज भगवान के सन्मुख दुन्नो परिवार के सरदार लोग के भगवान के किरिया खिऔलन कि अब से हम झगड़ा न करम, मिलजुल के रहम, हम एक दुसरा के इज्जत से देखम आउ आपस में मधुर बेवहार रखम ।)    (तिरसू॰14.2)
6    एत्ता (ऊ दरवाजा पर धीरे से दस्तक देलक तो नवयुवती चउँक गेल । कहलक - तूँ एत्ता रात के काहे आवऽ ह, हमरा डर लगऽ हे ।)    (तिरसू॰15.20)
7    ओत्ता (जेत्ता ... ~) (मगही कहानी आउ कहानी सेंगरन के जेत्ता फैलाव होवे के चाही ओत्ता फैलाव न दीखइत हे बाकि एकरा दने लोगन के झुकाव देखाई पड़इत हे, ई मगही कहानी के लोकप्रियता के निशानी हे ।)    (तिरसू॰2.2)
8    ओहिजा (जेहिजा ... ~) (ऊ चिचियाल - "जग्गन मामूँ, बचावऽ, बचावऽ । देखऽ, माय आउ बाबू जी मारे अलथू हे ।"/ कल्लू के माय आउ बाप दुन्नो घबड़ाके ओहिजा से हट गेलन । जग्गन मामूँ अब ओकरा नजदीक हलन ।; दुन्नो दने से कुछ लोग लाठी लेके एक दूसर पर टूट पड़लन । लइकन सब जग्गन मामूँ के खबर देलन । जग्गन मामूँ बीच-बचाव ला तुरंत ओहिजा पहुँच गेलन ।; जग्गन मामूँ पुलिस के आवे के बात सुनके ओहिजा जाय से इनकार कर देलन आउ कहलन कि जेहिजा पुलिस आवइत हे ओहिजा हम्मर गइल ठीक न हे । हम्मर बात माने ले केहू तैयार न होतन ।)    (तिरसू॰10.13, 11.16; 12.23; 13.2)
9    कड़गर (= कड़रगर; कड़ा) (पार्वती के पिता पार्वती के शादी एगो प्रेस के मैनेजर ठाकुर सिंह से ठीक कर देले हथ । ठाकुर सिंह विधुर हथ । उनकर पहिलकी मेहरारू से चार ठो संतान हथ । लमहर आउ चौला जुआन । गाल पचकल, मोंछ कड़गर ।)    (तिरसू॰23.21)
10    कन्हाँ (पार्वती के माय कुछ महीना पहिले हीं मर चुकल हल । सउँसे गिरहस्थी के भार ओकरे कन्हाँ पर आ गेल हे ।)    (तिरसू॰18.8)
11    कहनई (कुछ आलोचक के कहनई हे कि किस्सा-कहानी के गढ़ अमरीका हे आउ दुनिया के तमाम देसन में किस्सा-कहानी के फैलाव अमरीके से भेल हे बाकि अप्पन भारत देश के इतिहास गवाह हे कि भारत किस्सा-कहानी के गढ़ हे आउ वैदिक काल से किस्सा-कहानी के सूत्र खोजल जा सकऽ हे ।)    (तिरसू॰3.1)
12    कान्हा (पार्वती के मौसी के घर शहर में हे । ओकर घर के चौगिरदी शहरे हे । मौसी के बेटी नाइट ड्रेस पहिनऽ हे । चुस्त पैजामा आउ चुस्त कमीज । नाइलन के दुपट्टा कान्हा पर झुलऽ हे । माथा के एगो चोटी आगे दने झुलऽ हे, दुसरकी पीठ दने ।)    (तिरसू॰20.2)
13    किरिया (= कसम) (एतवार के दिन हल । बड़ी शुभ दिन । ई दिन सुरुज भगवान के प्रतीक हे । एह से ऊ सुरुज भगवान के सन्मुख दुन्नो परिवार के सरदार लोग के भगवान के किरिया खिऔलन कि अब से हम झगड़ा न करम, मिलजुल के रहम, हम एक दुसरा के इज्जत से देखम आउ आपस में मधुर बेवहार रखम ।)    (तिरसू॰14.4)
14    खेती-बारी (पार्वती के पिता घर-गिरहस्थी, खेती-बारी के सब काम करऽ हथ । पार्वती के मौसी के घर चल जाय से इनकर परेशानी बढ़ गेल हे ।)    (तिरसू॰19.8)
15    गहिड़ (= गहरा) (एक दिन कल्लू के माय कल्लू के बासी रोटी खाय ला बड़ी मार मारलक । ... कल्लू के पीठ पर चोट के गहिड़ बाम उखड़ गेल । चोट के वजह से ओकरा रोआई न निकलइत हल । ओकर घिग्घी बन्ह गेल हल ।)    (तिरसू॰9.17)
16    गिरहस्थी (पार्वती के माय कुछ महीना पहिले हीं मर चुकल हल । सउँसे गिरहस्थी के भार ओकरे कन्हाँ पर आ गेल हे ।; पार्वती के मौसी के घर चल जाय से इनकर परेशानी बढ़ गेल हे । उधर गिरहस्थी ला एगो औरत के जरूरत महसूस करऽ हथ, जे उनका खाना बना के दे, घर के देख-रेख करे, उनकर तबीयत खराब हो जाय तो उनकर सेवा-टहल कर सके । ओकर अपन माय आउ नयकी माय के सुभाव में कउनो फरक न रहे ।)    (तिरसू॰18.7; 19.10)
17    घर-गिरहस्थी (पार्वती के पिता घर-गिरहस्थी, खेती-बारी के सब काम करऽ हथ । पार्वती के मौसी के घर चल जाय से इनकर परेशानी बढ़ गेल हे ।)    (तिरसू॰19.8)
18    घरनी (जग्गन मामूँ के माथा के एक्सरे भेल । उनकर माथा के हड्डी टू गेल हल । उनकर घरनी रोवइत हलन । माथा में पट्टी बन्हल हल ।)    (तिरसू॰12.4)
19    घिग्घी (एक दिन कल्लू के माय कल्लू के बासी रोटी खाय ला बड़ी मार मारलक । ... कल्लू के पीठ पर चोट के गहिड़ बाम उखड़ गेल । चोट के वजह से ओकरा रोआई न निकलइत हल । ओकर घिग्घी बन्ह गेल हल ।)    (तिरसू॰9.18)
20    चौगिरदी (पार्वती के मौसी के घर शहर में हे । ओकर घर के चौगिरदी शहरे हे ।)    (तिरसू॰20.1)
21    चौला (= चौड़ा) (पार्वती के पिता पार्वती के शादी एगो प्रेस के मैनेजर ठाकुर सिंह से ठीक कर देले हथ । ठाकुर सिंह विधुर हथ । उनकर पहिलकी मेहरारू से चार ठो संतान हथ । लमहर आउ चौला जुआन । गाल पचकल, मोंछ कड़गर ।)    (तिरसू॰23.20)
22    जरिया (जिनगी जीये के ढंग ओकरा मालूम न हे । आखिर देहात में मिलवे का करऽ हे । न स्कूल, न कॉलेज, न सिनेमा, न क्लब । मन बहलाव के कउनो जरिया न ।)    (तिरसू॰20.17)
23    जेत्ता (~ ... ओत्ता) (मगही कहानी आउ कहानी सेंगरन के जेत्ता फैलाव होवे के चाही ओत्ता फैलाव न दीखइत हे बाकि एकरा दने लोगन के झुकाव देखाई पड़इत हे, ई मगही कहानी के लोकप्रियता के निशानी हे ।)    (तिरसू॰2.1)
24    जेहिजा (~ ... ओहिजा) (जग्गन मामूँ पुलिस के आवे के बात सुनके ओहिजा जाय से इनकार कर देलन आउ कहलन कि जेहिजा पुलिस आवइत हे ओहिजा हम्मर गइल ठीक न हे । हम्मर बात माने ले केहू तैयार न होतन ।)    (तिरसू॰13.1)
25    टीसन (टीसन के बिजली गुल हल । टीसन-रूम में टिकट के खिड़की के भितरी से केहू के रोवे के सिसकी सुनाई पड़ल । कमरा के भीतर जरइत तेलबत्ती के धीमा रोशनी में एगो नारी रूप लउकल । कुरसी से सटले खड़ा टीसन के छोटा बाबू पांडे ओकरा कउनो बात के तसल्ली दे रहइत हल ।)    (तिरसू॰15.1, 4)
26    ठकमुरकी (जग्गन मामूँ कल्लू के पिटाई सुनके तुरंत ओकर दुआरी पर गेलन । कल्लू के देखके उनको ठकमुरकी लग गेल । ऊ फिन मन सहेज के ओकर नजीके के अस्पताल में भरती करे ला कल्लू के बाबू से निहोरा कइलन ।)    (तिरसू॰10.1)
27    तरे (= तरह) (ई ~) (जब कउनो लइका के दवाई आउ इलाज ला कुछ पइसा खरचा करे के जरूरत रहत तो पइसो लगा देतन । ई तरे ऊ लइकन के नेही आउ सिनेही मामूँ बन गेलन हल ।)    (तिरसू॰9.12)
28    दमाद (= दामाद) (पार्वती के माय कुछ महीना पहिले हीं मर चुकल हल । सउँसे गिरहस्थी के भार ओकरे कन्हाँ पर आ गेल हे । खेले आउ खाय के दिन फिकिर परेशानी में बितइत हल । ओकर माय एक दिन कहलक हल - बेटी, तोहर बियाह जरूरे कउनो ऊँच घराना में करबउ आउ दमाद एगो बड़ा आदमी होतइ ।)    (तिरसू॰18.11)
29    दुआरी (जग्गन के दुआरी लइकन के कचहरी हल । जब कउनो लइका के माय या बाबू जी पीटथ या डाँटथ तो एकर फरियाद जग्गन मामूँ भिर पहुँच जात आउ ऊ लइकन के तसल्ली देथ ।; जग्गन मामूँ कल्लू के पिटाई सुनके तुरंत ओकर दुआरी पर गेलन ।)    (तिरसू॰9.3, 20)
30    दुसरका (दुरका दिन सुबह पांडे के पिता ओकर क्वार्टर पर अइलन । क्वार्टर पहुँच के ऊ एगो हंगामा खड़ा कर देलन । उनकर लइका उनकर सलाहे के बिना नवयुवती से कोर्ट-मैरेज कर लेलके हल ।)    (तिरसू॰16.2)
31    दुसरकी (पार्वती के मौसी के घर शहर में हे । ओकर घर के चौगिरदी शहरे हे । मौसी के बेटी नाइट ड्रेस पहिनऽ हे । चुस्त पैजामा आउ चुस्त कमीज । नाइलन के दुपट्टा कान्हा पर झुलऽ हे । माथा के एगो चोटी आगे दने झुलऽ हे, दुसरकी पीठ दने ।)    (तिरसू॰20.3)
32    नजीक (जग्गन मामूँ कल्लू के पिटाई सुनके तुरंत ओकर दुआरी पर गेलन । कल्लू के देखके उनको ठकमुरकी लग गेल । ऊ फिन मन सहेज के ओकर नजीके के अस्पताल में भरती करे ला कल्लू के बाबू से निहोरा कइलन ।)    (तिरसू॰10.2)
33    नयकी (उधर गिरहस्थी ला एगो औरत के जरूरत महसूस करऽ हथ, जे उनका खाना बना के दे, घर के देख-रेख करे, उनकर तबीयत खराब हो जाय तो उनकर सेवा-टहल कर सके । ओकर अपन माय आउ नयकी माय के सुभाव में कउनो फरक न रहे ।)    (तिरसू॰19.13)
34    निहोरा (जग्गन मामूँ कल्लू के पिटाई सुनके तुरंत ओकर दुआरी पर गेलन । कल्लू के देखके उनको ठकमुरकी लग गेल । ऊ फिन मन सहेज के ओकर नजीके के अस्पताल में भरती करे ला कल्लू के बाबू से निहोरा कइलन ।)    (तिरसू॰10.3)
35    नीमन (पार्वती के पिता के तो सब बात नीमन न लगल । उनकर धेयान पार्वती दने से हटे लगल हे ।)    (तिरसू॰23.14)
36    न्योता-पेहानी (पार्वती के पिता अप्पन शादी के तैयारी में लगल हथ । अप्पन नाता-रिश्ता हियाँ न्योता-पेहानी भेजइत हथ ।)    (तिरसू॰22.7)
37    पंचइती (पुलिस, थाना आउ कचहरी के जरिये झगड़ा के फैसला से असालतन शांति कायम न हो सकऽ हे। झगड़ा के बीज, लड़ाई के अँखुआ कुछ देरी ला दब जा हे बाकि अप्पन लोगिन के जरिये, पंचइती के जरिये जे निपटारा होवऽ हे ऊ असालतन आ पोख्ता होवऽ हे आउ नेह आ सिनेह उपजावे वाला होवऽ हे ।)    (तिरसू॰13.21)
38    पचकल (पार्वती के पिता पार्वती के शादी एगो प्रेस के मैनेजर ठाकुर सिंह से ठीक कर देले हथ । ठाकुर सिंह विधुर हथ । उनकर पहिलकी मेहरारू से चार ठो संतान हथ । लमहर आउ चौला जुआन । गाल पचकल, मोंछ कड़गर ।)    (तिरसू॰23.20)
39    पसन (= पसीन; पसन्द) (पार्वती चुप हे, क्लब के जिनगी ओकरा नरक लगइत हे । ऊ सोचे लगऽ हे - शहर के लइकी लोग केतना बेशरम होवऽ हथ । ... ऊ कउनो लइका के साथ प्रेम कर सकऽ हे । न, हमरा ई जिनगी पसन न हे ।; एह में जिनगी के पूर्णता न हे । अप्पन गाँव जतई आउ अप्पन पिता से कहतई । ऊ शहर के जिनगी के पसन न करत ।)    (तिरसू॰21.11, 16)
40    पहिलकी (पार्वती के पिता पार्वती के शादी एगो प्रेस के मैनेजर ठाकुर सिंह से ठीक कर देले हथ । ठाकुर सिंह विधुर हथ । उनकर पहिलकी मेहरारू से चार ठो संतान हथ । लमहर आउ चौला जुआन । गाल पचकल, मोंछ कड़गर ।)    (तिरसू॰23.19)
41    पियासल (किनारे पर फूस के झोपड़ी में अप्पन पियाज के खेत के रखवारी करइत पार्वती । इक्का-दुक्का मोसाफिर । झोपड़ी के बगल में एगो कच्चा कुआँ आउ एगो बाल्टी । पियासल लोग पानी पीके ओकरा दने देखे के तकलीफ न करऽ हथ ।)    (तिरसू॰18.4)
42    पोख्ता (= पुख्ता) (पुलिस, थाना आउ कचहरी के जरिये झगड़ा के फैसला से असालतन शांति कायम न हो सकऽ हे। झगड़ा के बीज, लड़ाई के अँखुआ कुछ देरी ला दब जा हे बाकि अप्पन लोगिन के जरिये, पंचइती के जरिये जे निपटारा होवऽ हे ऊ असालतन आ पोख्ता होवऽ हे आउ नेह आ सिनेह उपजावे वाला होवऽ हे ।)    (तिरसू॰13.22)
43    फटकल-चुनल ('तिरसूल' हम्मर फटकल-चुनल तीन मगही कहनियन के सेंगरन हे, जेकरा में आज के जिनगी के बेबसी, घुटन, पीड़न, अत्याचार वगैरह के तस्वीर रक्खल गेल हे ।)    (तिरसू॰5.12)
44    फिकिर (पार्वती के माय कुछ महीना पहिले हीं मर चुकल हल । सउँसे गिरहस्थी के भार ओकरे कन्हाँ पर आ गेल हे । खेले आउ खाय के दिन फिकिर परेशानी में बितइत हल ।)    (तिरसू॰18.8)
45    बन्हना (एक दिन कल्लू के माय कल्लू के बासी रोटी खाय ला बड़ी मार मारलक । ... कल्लू के पीठ पर चोट के गहिड़ बाम उखड़ गेल । चोट के वजह से ओकरा रोआई न निकलइत हल । ओकर घिग्घी बन्ह गेल हल ।)    (तिरसू॰9.19)
46    बन्हल (जग्गन मामूँ के माथा के एक्सरे भेल । उनकर माथा के हड्डी टू गेल हल । उनकर घरनी रोवइत हलन । माथा में पट्टी बन्हल हल ।)    (तिरसू॰12.5)
47    बरियाती (पार्वती के बरियाती बिहान आवेवाला हे । आज ओकर हरदी आउ ओबटन लगावल जा रहल हे । अँगना में रसम के भात खाय ला ढेर कुँआर लइकी सब बइठल हथ ।)    (तिरसू॰24.1)
48    बासी-तेवासी (कल्लू शांत आउ संयत बोली में बोललक, जग्गन मामूँ स्कूल में माहटर साहेब कहले हलन कि पास-पड़ोस के मुहल्लन में हैजा के बेमारी फैलल हे । ई छुआछूत वाली आउ खराब बेमारी हे । ई बेमारी से बचे ला बासी-तेवासी, सड़ल-गलल आउ माछी बइठल चीज न खाय के चाही ।)    (तिरसू॰10.22)
49    बिहने (बिहने नवयुवती परेशान हल, बेचैन हल । ऊ पांडे के कई बेर बोलाहट भेजलक । पड़ोसी के लइका के भेजलक, पोर्टर से खबर भिजवैलक, बाकि पांडे अप्पन क्वार्टर दने लौटे के नाम न लेइत हल ।)    (तिरसू॰17.1)
50    बेमार (= बीमार) (कालोनी के भीतर कबहूँ केहू लइका बेमार पड़े, तो ओकरा देखे ला जग्गन मामूँ तुरत जयतन ।)    (तिरसू॰9.7)
51    बेमारी (= बीमारी) (कल्लू शांत आउ संयत बोली में बोललक, जग्गन मामूँ स्कूल में माहटर साहेब कहले हलन कि पास-पड़ोस के मुहल्लन में हैजा के बेमारी फैलल हे । ई छुआछूत वाली आउ खराब बेमारी हे । ई बेमारी से बचे ला बासी-तेवासी, सड़ल-गलल आउ माछी बइठल चीज न खाय के चाही ।)    (तिरसू॰10.21, 22)
52    बेवहार (= व्यवहार) (कल्लू के माय-बाप के बेवहार से जग्गन मामूँ के तनिको अचरज न भेल ।/ जग्गन मामूँ के ई बढ़इत शोहरत कल्लू के माय-बाप के नीमन न लगल ।; ऊ सुरुज भगवान के सन्मुख दुन्नो परिवार के सरदार लोग के भगवान के किरिया खिऔलन कि अब से हम झगड़ा न करम, मिलजुल के रहम, हम एक दुसरा के इज्जत से देखम आउ आपस में मधुर बेवहार रखम ।)    (तिरसू॰11.9; 14.6)
53    बोलाहट (= बोलहटा) (बिहने नवयुवती परेशान हल, बेचैन हल । ऊ पांडे के कई बेर बोलाहट भेजलक । पड़ोसी के लइका के भेजलक, पोर्टर से खबर भिजवैलक, बाकि पांडे अप्पन क्वार्टर दने लौटे के नाम न लेइत हल ।)    (तिरसू॰17.2)
54    भरल-पूरल (पार्वती के घर भरल-पूरल हे । पार्वती के मउसी, पार्वती के बेटी, मामी, फूफी सब लोग आयल हथिन ।)    (तिरसू॰22.8)
55    भिजुन (= पास) (लइकन के दल के साथ सुरेश, रमेश, गणेश के बाप जग्गन मामूँ भिजुन दौड़इत अइलन आउ उनका से बीच-बचाव आउ समझौता ला चले के मिनती कइलन ।)    (तिरसू॰12.21)
56    भितरी (टीसन के बिजली गुल हल । टीसन-रूम में टिकट के खिड़की के भितरी से केहू के रोवे के सिसकी सुनाई पड़ल । कमरा के भीतर जरइत तेलबत्ती के धीमा रोशनी में एगो नारी रूप लउकल । कुरसी से सटले खड़ा टीसन के छोटा बाबू पांडे ओकरा कउनो बात के तसल्ली दे रहइत हल ।)    (तिरसू॰15.2)
57    भिर (जग्गन के दुआरी लइकन के कचहरी हल । जब कउनो लइका के माय या बाबू जी पीटथ या डाँटथ तो एकर फरियाद जग्गन मामूँ भिर पहुँच जात आउ ऊ लइकन के तसल्ली देथ ।)    (तिरसू॰9.5)
58    मधे (मौसी के बेटी पार्वती के लजालु सुभाव के देखके नाक-भौं सिकोड़ऽ हे । ऊ ओकरा निरा देहाती समझऽ हे । अप्पन बॉय फ्रेंड के मधे होके खिल्ली उड़ावऽ हे । जिनगी जीये के ढंग ओकरा मालूम न हे ।)    (तिरसू॰20.14)
59    मरजाद (पांडे के पिता बहुत समझौलन-बुझौलन कि ई से कुल के मरजाद खतम होवऽ हे । ई बाबू साहेब के रखैल हे ।; पांडे के पिता आँख में लेहू भरके बोललन कि नालायक, तूँ हम्मर कुल के मरजाद धूरी में मिला देलें, आउ चल गेलन ।)    (तिरसू॰16.8, 14)
60    माछी (कल्लू शांत आउ संयत बोली में बोललक, जग्गन मामूँ स्कूल में माहटर साहेब कहले हलन कि पास-पड़ोस के मुहल्लन में हैजा के बेमारी फैलल हे । ई छुआछूत वाली आउ खराब बेमारी हे । ई बेमारी से बचे ला बासी-तेवासी, सड़ल-गलल आउ माछी बइठल चीज न खाय के चाही ।)    (तिरसू॰11.1)
61    माहटर (= मास्टर) (कल्लू शांत आउ संयत बोली में बोललक, जग्गन मामूँ स्कूल में माहटर साहेब कहले हलन कि पास-पड़ोस के मुहल्लन में हैजा के बेमारी फैलल हे । ई छुआछूत वाली आउ खराब बेमारी हे । ई बेमारी से बचे ला बासी-तेवासी, सड़ल-गलल आउ माछी बइठल चीज न खाय के चाही ।)    (तिरसू॰10.20)
62    मिनती (= विनती) (सुरेश, रमेश, गणेश वगैरह के बाप अड़ल हलन । लइकन के दल अप्पन जिद्द न छोड़लन । ऊ लोग जग्गन मामूँ के मिनती कइलन कि ई झगड़ा अपनहीं सझुरा सकऽ ही, अपने के बात दुन्नो परिवार के लोग मानतन, हमनी पुलिस के लौटा देम ।)    (तिरसू॰13.6)
63    रुचगर (कहानी एगो रुचगर साहित्तिक विधा हे आउ शुरुए से लोग कहानी कहत-सुनत चलल आवऽ हथ ।)    (तिरसू॰5.1)
64    रोआई (एक दिन कल्लू के माय कल्लू के बासी रोटी खाय ला बड़ी मार मारलक । ... कल्लू के पीठ पर चोट के गहिड़ बाम उखड़ गेल । चोट के वजह से ओकरा रोआई न निकलइत हल । ओकर घिग्घी बन्ह गेल हल ।)    (तिरसू॰9.18)
65    लइकी (पड़ोस के गाँव में लाला दीन दयाल के लइकी सुशीला बेवा हो गेल हे । अबहीं ओकर उमर बीसे साल के हे ।)    (तिरसू॰19.17)
66    लमहर (पार्वती के पिता पार्वती के शादी एगो प्रेस के मैनेजर ठाकुर सिंह से ठीक कर देले हथ । ठाकुर सिंह विधुर हथ । उनकर पहिलकी मेहरारू से चार ठो संतान हथ । लमहर आउ चौला जुआन । गाल पचकल, मोंछ कड़गर ।)    (तिरसू॰23.20)
67    लहास (पार्वती के बरियाती बिहान आवेवाला हे । आज ओकर हरदी आउ ओबटन लगावल जा रहल हे । ... दुसरका दिन पार्वती के लहास उहे पियाज के खेतवाली फूस के झोपड़ी में पड़ल हल ।)    (तिरसू॰24.7)
68    सझुराना (= सोझराना; सीधा करना; समस्या का समाधान निकालना) (सुरेश, रमेश, गणेश वगैरह के बाप अड़ल हलन । लइकन के दल अप्पन जिद्द न छोड़लन । ऊ लोग जग्गन मामूँ के मिनती कइलन कि ई झगड़ा अपनहीं सझुरा सकऽ ही, अपने के बात दुन्नो परिवार के लोग मानतन, हमनी पुलिस के लौटा देम ।; ऊ कहलन कि कालोनी के परिवार के झगड़न के अब नया ढंग से सझुरावल जाय ।)    (तिरसू॰13.6, 17)
69    सटले (टीसन के बिजली गुल हल । टीसन-रूम में टिकट के खिड़की के भितरी से केहू के रोवे के सिसकी सुनाई पड़ल । कमरा के भीतर जरइत तेलबत्ती के धीमा रोशनी में एगो नारी रूप लउकल । कुरसी से सटले खड़ा टीसन के छोटा बाबू पांडे ओकरा कउनो बात के तसल्ली दे रहइत हल ।)    (तिरसू॰15.4)
70    सड़ल-गलल (कल्लू शांत आउ संयत बोली में बोललक, जग्गन मामूँ स्कूल में माहटर साहेब कहले हलन कि पास-पड़ोस के मुहल्लन में हैजा के बेमारी फैलल हे । ई छुआछूत वाली आउ खराब बेमारी हे । ई बेमारी से बचे ला बासी-तेवासी, सड़ल-गलल आउ माछी बइठल चीज न खाय के चाही ।)    (तिरसू॰10.22)
71    सरहज (पार्वती के पिता अप्पन साली से हँसी-मजाक करऽ हथ । सरहज गुलाबी रंग से भरल लोटा पार्वती के पिता पर उझील देलन । ऊ रंग से भींग गेलन हे ।)    (तिरसू॰22.14)
72    सुन्नर ('तिरसूल' हिंदी आउ भोजपुरी के साथ मगही के लेखक आउ विचारक मोहन जी के तीन ठो सुन्नर कहनियन के सेंगरन हइ ।)    (तिरसू॰4.6)
73    सुभाव (= सोभाव; स्वभाव) (उधर गिरहस्थी ला एगो औरत के जरूरत महसूस करऽ हथ, जे उनका खाना बना के दे, घर के देख-रेख करे, उनकर तबीयत खराब हो जाय तो उनकर सेवा-टहल कर सके । ओकर अपन माय आउ नयकी माय के सुभाव में कउनो फरक न रहे ।)    (तिरसू॰19.13)
74    हियाँ (पार्वती खुश न हे । ऊ अप्पन घर-देहात में ठीक हल । सोचे लगऽ हे - ओकर पिता हियाँ काहे भेजलन ?; पार्वती के पिता अप्पन शादी के तैयारी में लगल हथ । अप्पन नाता-रिश्ता हियाँ न्योता-पेहानी भेजइत हथ ।)    (तिरसू॰20.10; 22.7)
 

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