सारथी॰ = मगही पत्रिका
"सारथी॰"; सम्पादक - श्री मिथिलेश, मगही मंडप, वारिसलीगंज, जि॰ नवादा, मो॰ 08084412478; अगस्त 2013, अंक-19; कुल 40 पृष्ठ ।
ठेठ मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन
वर्ष संख्या
(अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर
अंक संख्या; तेसर पृष्ठ संख्या, चौठा
कॉलम संख्या, आउ
अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ ।
कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या (‘मगही पत्रिका’ के अंक 1-21, ‘बंग मागधी’ के अंक 1-2, 'झारखंड मागधी', अंक 1 एवं सारथी, अंक-16-18 तक संकलित शब्द के अतिरिक्त) - 363
ठेठ मगही शब्द (अ से ह तक):
1 अँखड़ना ( एक तुरी मंगरुआ के मइया से एगो लौकी मांगलन । ऊ बहाना कर देलन । पंडी जी के मुँह से निकलल, "ठीक हउ ! मत दे ! बकि तहूँ लौकी नेमान नहियेँ करबीं ।" ओही रात रजुआ के बिरनाम भैंसा खुट्टा से खुल गेल । लगल मंगरुआ के दुआरी पर खुरछाहीं करे ले । बगले लौकी के लुहलुह पेड़ हल । पहिले तऽ ओकरा में अँखड़ल । चोखगर सींग के एक्के झटका में पेड़ उखड़ गेल ।) (सारथी॰13:19:3:2.4)
2 अँफड़ल (सब्जी चौक पर मिलऽ हल । उतर के जाय लगलूँ तऽ पंडी जी के खड़िया पर नजर पड़ गेल । खड़िया अँफड़ल जा हल । हमरा लगल - आज पंडी जी के जतरा बनल बुझा हे ।) (सारथी॰13:19:5:2.22)
3 अंगठियाना (ई बात नञ हे कि हम्मर आवाज ओकरा तर नञ पहुँचले हल लेकिन ऊ सुनके भी अंगठिया देलक हल ।) (सारथी॰13:19:32:3.28)
4 अखरना (आज माय के जरूर अखरले होत कि शैलजा चुपचाप चाह रखके निकल गेल, बगैर कुच्छो बोलले । हम जामऽ ही लेकिन माय मुँह से कुच्छो नञ बोलक । बस अप्पन गोस्सा के जाहिर करे खातिर ऊ पियाली के ठेलके एक दने हटा देलक ।) (सारथी॰13:19:32:3.8)
5 अगलगउनी (ओकर गोड़ के महावर, हाथ के मेंहदी आउ कलाय के चूड़ी दप-दप दमक रहल हल । खुशबू माय चूड़ी भरल कलाय के उठा के पटक देलन - अगलगउनी, मंगजरउनी, चूड़ी चमचमा रहले हें । खन-खन बोलइत चूड़ी चूर-चूर होके बिखर गेल । कंगना के कलाय में गड़ल चूड़ी के टुकड़ी लहू-लुहान करि देलक ।) (सारथी॰13:19:13:3.3)
6 अचरा-कचरा (हम्मर धार राजा सगर के साठ हजार बेटन के तार देलक । हमरा सब 'माय' कहऽ हे आउ हमरे गोदिया में झाड़ा-पैखाना, थूक-खखार, अचरा-कचरा फेंकऽ हे ।) (सारथी॰13:19:25:1.6)
7 अजका (पंडी जी मोदियायन के मन जीतइ ले रोज ओकरा दुआरी पर जाथ आउ आशीर्वादी मुद्रा में गद्गद् भाव से बोलथ - "आज तीज हो जजमानी । आज करमा हो, छठ अजका छोम्मा दिन हो ... ।" अइसने बिन पुछले बोलथ आउ नजर झुकइले गली पार कर जाथ ।) (सारथी॰13:19:4:1.33)
8 अजनास (= विरल; दुर्लभ; प्रिय, प्यारा) (हम घर गेली हल । ढेर दिना पर गेला के बाद गाँव-घर, उहाँ के लोग-बाग, यार-दोस्त अजनास के लगऽ हे । से हम खइली तऽ घर में बकि हाथ सूखल बाहरे ।; झुन्नू सले-सले गेल आउ सुरंजना के देह से लगि के ओकर चिक्कन बाँह सहलावऽ लगल । सुरंजना पलटि के बोलल, "लिलकल सन काहे करऽ ह । से कि हम आज अजनास के मिललियो हे । तेकरो में बुतरू-बानर घरे में हे । देख लेतो त की कहतो ?") (सारथी॰13:19:28:1.3, 37:2.5)
9 अजमावल (हमर पुरखन पियास बुझइलन हल घइला में कंकड़ डाल के । हमहूँ ऊहे अजमावल तरीका अपनइलूँ मुदा हमर पियास न बुझल सरकार ।) (सारथी॰13:19:24:2.15)
10 अजूरी-मजूरी ("देख कारू, खाली पटइले से तऽ खेती नञ् हो जात । ओकरा ले खाद-बीज चाही, पनिऔंचा चाही, अजूरी-मजूरी चाही । ई सब के जुगाड़ कइले बिना कइसे डेग बढ़ावी ?" चन्नर अपन माथा हँसोतइत बोलल ।) (सारथी॰13:19:26:2.48)
11 अटल-पटल (बड़की मइया थपड़-थपड़ सूप उछला-उछला के ढेंकी-मूड़ी तर बइठल-बइठल कूटल चाउर फटक रहल हे । भूसा से देह अटल-पटल हे ।) (सारथी॰13:19:39:1.31)
12 अनजोक्खे (महीना दू महीना शांत रहल । एक दिन भोरउए अनजोक्खे टिसुआ के बाबा ग्रील गेट झनझनावइत हँकार देलका, "अरे शिशुआ-टिसुआ, मामा घरे हथुन रेऽऽऽ !") (सारथी॰13:19:16:1.42)
13 अनपुछ (करूआ अप्रत्याशित सवाल से तिलमिला गेल । ओकर अप्पन पीड़ा फूट पड़ल, "हमर भाय तऽ शुरुए से घर-गाँव अनपुछ कर देलको । मुश्किल से ओकर मोबाइल नम्बर नोट कैलियो । पुछलियो तऽ निठुरे नियन कह देलको, 'एक छेदमाही बचवे नञ् करऽ हउ तऽ भेजिअउ की ? हमरो हिसबा से पेट नञ् भरऽ हउ ?' की करियो, संतोख कर गेलियो । एक बात हो कि हम तोहरा नियन बइठल नञ् ही, अहल-बहल करिये रहली हे ।) (सारथी॰13:19:26:3.36)
14 अन्हर-जाल ("नञ, झूठ तो नञ बोल रहल हे, मुदा हम की करियइ । नौकरी जोगे में साँस भी लेवे के फुरसत नञ मिलऽ हो । हाय-हाय करइत सबेरे उठऽ, चूल्हा-चौका करऽ, बुतरून के खिलावऽ-पिलावऽ, फिर घरे लौटऽ त ओही अन्हर-जाल ।") (सारथी॰13:19:34:1.40)
15 अन्हरूक्खे (उनखा ले काल साँप बनके आल आउ चुटपुट ले गेल । ऊ अन्हरूक्खे दिशा-फरागत ले निकलऽ हला आउ दिन उगइत एक कोस टहल के चल आवऽ हला । तहिया अइते मातर कहलका, "हमरा कहरैनी पर साँप सूँघ लेलको ... ।" बोलते-बोलते ऊ गिर पड़ला, फेन नञ् उठला ।) (सारथी॰13:19:18:3.37)
16 अन्हरोखे (अन्हरोखे जगेसर उठल अउ चल देलक अनजान मंजिल के खोज में ।गाम के टीसन छोड़ि अगला टीसन पर रेलगाड़ी पकड़ि के गया ।) (सारथी॰13:19:20:2.43)
17 अपीसर (ईहो ननमा-ममुआँ नियन समाज में 'सर' बनके रहतइ, सुनि लऽ । ओनमा टिट्टी नञ् जानऽ हलऽ । कंपूटर सिखा देलको तऽ फुचबाबू मित्तम बनल घूमऽ हऽ । हमर नाती केकरो जुत्ती झार के नञ् जीतइ, अपीसर बनतइ ... अफीसर ... हाँ !") (सारथी॰13:19:15:3.47)
18 अफीसर (ईहो ननमा-ममुआँ नियन समाज में 'सर' बनके रहतइ, सुनि लऽ । ओनमा टिट्टी नञ् जानऽ हलऽ । कंपूटर सिखा देलको तऽ फुचबाबू मित्तम बनल घूमऽ हऽ । हमर नाती केकरो जुत्ती झार के नञ् जीतइ, अपीसर बनतइ ... अफीसर ... हाँ !") (सारथी॰13:19:15:3.48)
19 अमोढकार (मंजु के माय के अमोढकार रोदन पर भुइयाँ से अकास तलक मर्माहत । एकलौती बेटी हल ।) (सारथी॰13:19:15:1.6)
20 अरघौती (जनमभूमि के ऊ सूरत खोजला पर भी नजर नञ् आल जे ओकर मन में बसल रहे । धूरी उड़इत ऊ सड़क अब अलकतरा से पोतल चकचक करि रहल हे । ... छठ वरती लेल रतोइया नदी में पक्का घाट बन गेल हे तऽ अरघौती पोखर के काया पलट भे गेल हे ।) (सारथी॰13:19:21:2.8)
21 अलोपाना (= अलोप करना) ("फारे-फार किस्सा सुनावऽ सरकार", हम जिलेबी उठावइत कहली । आउ पंडी जी सरे नो से खिस्सा सुना देलका । हम सुन के चकड़बम रह गेली । हमरा लगल, तब तऽ पंडी जी सचकोलवा के ब्रह्म विद्या जानऽ हथ । ई तऽ शालिग्राम तक के अलोपा दे हथ ।) (सारथी॰13:19:5:2.40)
22 असमसान (= श्मशान) (मरद सब रंथी के विधान में लग गेला । मंजु के बाऊ बेचारा टुकुर-टुकुर सब कुछ ताकि रहला हल । पोरसिसिया में मंजु के इस्कुल के साथी-संगी भी आ गेलन हल । ऊ सब रंथी उठले पर पीछू-पीछू असमसान तक गेलन । बलजोबरी रोकल मरद लोकाचारी निभइलन आउ मुखाग्नि देलन ।) (सारथी॰13:19:15:2.23)
23 असालतन (साँझ तक लउटइत-लउटइत दुन्नूँ दने के लटकल खड़िया भर जा हल उनखर । किनखो हियाँ हरियर तरकरियो मिल जा हल - लउकी, नेनुआ, झींगा, सतपुतिया, साग ... । नेमानी के चूड़ा, चाउर तऽ असालतन ... पहिले पंडी जी, फिर घरइया । समाज के ईहे रेवाज हल ।) (सारथी॰13:19:3:1.18)
24 अहियाती ("से तो हइये हइ भाय साहेब ! मुदा तोहरा की कमी हो ? तूँ झुठकोलवा मन मारले हो । अब तऽ तोहर भाय भी कमौनी करऽ लगलो, तइयो कानिये रहलऽ हे । ई तऽ खिसवा वला हाल होल - 'राँड़ी काने, अहियाती काने, जउर होके सतभतरी काने ।' भला कहऽ, तों जब कानवे करवऽ तऽ हमा-सुमा की करम, जेकरा खेती के अलावे आउ कोय अवलंब नञ् हे ?") (सारथी॰13:19:26:3.6)
25 अहिल-दहिल ("एक्के तुरी एतना पानी ! तुरतमे सगरो अहिल-दहिल हो गेलइ !" नयकी ललचाल नजर से पाईप से निकलइत पानी के मोटगर धार निहारइत रहल ।) (सारथी॰13:19:22:2.39)
26 अही-बही (खरिहान के बिसुन-पिरीत तऽ जजमान काढ़के घरो पहुँचा दे हल । गाछ-बिरिछ, लत-फलहेरी के पहिल फर पंडी जी लेता । कातो ओकरा से सब गरह-गोचर कट जाहे । पंडी जी अही-बही ! कहावत हे - बुड़बक के हर पंडित जी के खेत !) (सारथी॰13:19:3:1.23)
27 अहुआ-पहुआ (उनखर सोंचे के दिशा बदलल - "ई बछिया के कउन दोष ! सब गलती बाप के हइ । मुँहजरौना के नञ् सूझले हल कि जुआन बेटी हे, अहुआ-पहुआ के दमाद बनाके घर में रख रहलूँ हें ! आउ फेटा बान्ह के घूमथ गाँव में ! आवे मुँहझौंसा मुँह में उक्का नेस दे हियन । हमरा नोट धरइ ले देलक हल कुकरमाहा कि साँप पोसइ ले देलक हल । ऊहे त कही कि कहाँ के बंक कबड़लइ ! ऊहे झोंटहा देलकइ होत । ईहो मतमरुआ बुढ़भासिये गेलइ ! तब तऽ ओतने में बेटिया के बेच ने देलकइ हल ! एगो बेटिया भार हो रहलइ हल !") (सारथी॰13:19:12:1.16)
28 आँधर ( ई बेचारी के तनि देख तऽ एकदम गउ हलन । केकरो से भर मुँह आज तक बोललन न । कुटनी-पिसनी करके बेटा के पाललन-पोसलन । मरदाना बेचारी के आँधर हलन । अपने भी एक आँख में फूला हल । कम लउकऽ हल । तइयो बेचारी दू-चार कट्ठा खेत हल, ओकरा बचाके रखलक ।; एतना तप-तपस्या करके, कुटनी-पिसनी करके एगो बेटा पोसलक ।; डोमनी के मइया हमर घर कुटनी-पिसनी करऽ हल ।) (सारथी॰13:19:38:1.22, 2.6, 3.6)
29 आऊ (= अउकी, उकी, उका) ("कनियाय ?" विधाता पुछलन । / "आऊ, ऊ भित्तर में हो कुलछनी !"/ विधाता दनदनाल भित्तर पहुँचल तऽ दंग रह गेल । कंगना जनावर नियन भुइयाँ में पटाल हल ।) (सारथी॰13:19:14:1.3)
30 आना (= आन; कोठी या बखारी का अनाज निकालने का छेद, मोहरवा; बखारी या कोठी के छेद का मूंदन) (कंगना के आँख से झर-झर लोर बहऽ लगल । माय के दुलार भरल बोली सुनके मन के बात ओइसइँ निकलऽ लगल, जइसे कोठी के आना खुलला पर सइँतल अनाज ।) (सारथी॰13:19:12:1.3)
31 आहि (दिलीप रो-रो के कहे लगल, "हम अपने हाथ से भगमान जी के हाँड़ी में रखके दुन्नूँ हाथ से झाँपले हली । पंडी जी मंतर पढ़इत हलन । पंडित जी के कहला पर निकाले ले हाथ देलूँ तऽ हइये न हथ ! आहि रे बाप, अब की होबत ?") (सारथी॰13:19:4:3.8)
32 आहि-उपाहि (दे॰ आहि-उपाय) (बेटा, एकरा जरी बढ़ियाँ डागदर से देखा दे । हमर बतावल सब आहि-उपाहि नञ् लाग ले रहलउ हे ।) (सारथी॰13:19:19:2.39)
33 उकरना (ओकरा अंदर कुछ पनप रहल हल, मुरझा गेल - "रूप से देवदूत, काम से राछछ !" कोमल आउ कठोर के द्वन्द्व में कंगना उलझ गेल हल, बकि ओकर फोटू मन के अइना में उकरि चुकल हल ।) (सारथी॰13:19:11:2.10)
34 उगरना (खुशी के दिन देखते-देखते ओरा जाहे । ऊ दिन दउड़ल आ गेल, जउन दिन मोदिआयन के हियाँ कथा होवत । हमर तिलाख, करकी ओसर बाछी के नक्सा पंडित जी के माथा में अइसन उगर गेल हल, जेकरा पर आउ कउनो बात ठहरवे न करऽ हल ।) (सारथी॰13:19:4:1.54)
35 उचकाना ( पंडित जी कहके चाणक्य नियन अपन शिखा खोल देलन आउ कहलन, "बात हमरे तोरा तक रहे के चाही ।" / सरीयत मान के ऊ अपन खड़िया उचकइलका आउ 'हरे कृष्ण ... हरे कृष्ण ...' जपइत आगू बढ़ गेलन । उनखर चाल एगो योद्धा नियन लग रहल हल, जे अगला मोर्चा फतह करइ ले तैयारी में जा रहल हे ।) (सारथी॰13:19:4:1.26)
36 उझकना (ऊ देरी तक सीमेंट के गारा से एकदम चीकट होल कपड़ा पर साबुन घिसइत रहल । झाग उठइ के नामे नञ् ले रहल हल । दू-तीन तुरी साबुन रगड़इ के बाद कपड़ा के असली रंग मैल के गाढ़ परत के नीचे से उझके लगल ।) (सारथी॰13:19:23:1.17)
37 उट्ठा-डम्मर (कमर कसलक हे तऽ चूल्हो सोझ होवऽ हे, नञ् तऽ उट्ठा-डम्मर खेती से पेट भरइवला हल । जहिया से गोंड़ी सम्हारलक हे, बाल-बच्चा के पाव-अधवा मिले हे से मिलवे करऽ हे, बाजार नापाइयो आवऽ हे ।) (सारथी॰13:19:27:1.13)
38 उड़नी-बिड़नी (सनीचरी के एकांत में डाँटो, कुछ बात नञ्, बकि दोसरा आगू डाँट गरायन नियन लगतो । चन्नर के जलल-कटल सुनइ के आदी तऽ दुआरिये लाँघते हो गेल । जब तक सास-ससुर बचलन, सनीचरी के पछ लेबइत रहलन । एक तरह से सनिचरी के ऊहे बसइलन नञ् तऽ ई कहिया उड़नी-बिड़नी लगइले रहतन हल । सहलक तऽ बसल आउ चार गो ढेना-ढेनी के पोस रहल हे ।) (सारथी॰13:19:27:1.9-10)
39 उड़ल-दहाल (“दूर जो गे कुलछनी, भतरखौनी पतुरिया । कने से उड़ल-दहाल हमर घर आ गेलें बगिया उजाड़इ ले गे डइनी ! अरे बाप रे बाप ! हम केक्कर मुँह देखके जीबइ हो दइवा ! ई रकसिनियाँ हमर सुगवा के चिबा गेलइ हो मिरवा ! हमर रजवा भर पेट एकरा देखियो नञ् पइलक कि सरंग लग गेल हो बाऊ !”) (सारथी॰13:19:13:2.47)
40 उतजोगिया (उनखर मरद देवता हलन । इलाका में परतिष्ठा हल । नामी होशियार आउ दंगली पहलमान हला । उतजोगिया अइसन कि भाय-भतीजा ले एतना अरज गेलन कि उनखनी के जिनगी में कोय चीज के कमी नञ् । अपन दुन्नूँ बेटी के भी पढ़ा-लिखा के माहटरनी बना देलका आउ निम्मन घर-वर देखके बियाह भी देलका ।) (सारथी॰13:19:18:3.30)
41 उतरे-दखिने (मंजु के लहास सड़क पर उतरे-दखिने पाड़ देल गेल । घरइया पछाड़ खा रहल हे, चिरईं-चुरगुनी सकदम ! टोल-पड़ोस के आँख लोरे-झोरे ।) (सारथी॰13:19:15:1.1)
42 उलाना-पकाना (एगो पुरनियाँ टुभकऽ हथ, "आँय हे निगमा माय ! कनइया के नइहरवा से कार कउओ नञ् अइलो ?" दोसर टुभकली, "की अइते हल बेचारा, बेटी के तऽ उला-पका के मार देलथिन ।") (सारथी॰13:19:15:2.36)
43 एकरगी (दुइयो सुटके आके गोड़ छूलन ।/ "कोय दिक्कत तऽ न भेल ?" सिरधर के लहजा में प्यार आउ सरधा घुलल हल । / "नञ् कका, दिक्कत कइसन ? सुबुक से चल अइली । अपने के घर हे भी तऽ एकरगी में । कहल-बदल हइये हल, अप्पन घर-सन चलि अइलूँ ... बस !") (सारथी॰13:19:11:1.25)
44 एकलुआ ("बात तऽ तूँ गूढ़ कहऽ हें कारू भाय ! हमरा बहराय में नञ् बनतउ, एकलुआ हिअउ । तों बपुत्तगर हें, जा सकऽ हें, बकि हमरा तोर दोसर बात जँचऽ हउ, 'खेती के ढंग बदलऽ !' ्करा बदे कुछ सोंचले हें तऽ हमरो बताव ।", चन्नर गिलास नीचू रखइत बोलल ।) (सारथी॰13:19:27:2.2)
45 एजउका (= इस जगह का) (एतना दिन हम बेटा बिन रहलूँ, अब नञ् रहम । एजउका कोठा-सोफा एकरा की काम देतइ ? अपन घर में रहत, कोड़-कमा के खात ! दलिद्दर तऽ अपन घर में । एजउका सरवस कि एकरा लिख देबहो ?") (सारथी॰13:19:15:3.34, 36)
46 एतुने (= एत्ते; यहीं पर) (आज एतुने नेहा ने ले झलफला के ! देख, कते मनी पानी एजा बहि रहलइ हे !) (सारथी॰13:19:22:3.14)
47 एनइँ-ओनइँ (साँझ के एकांत में कंगना माय अपन मरद से कहलन, "नञ् जानी हमर भाग में की लिखल हे ... । बेटा बाहरे रहऽ हे । तहू एनइँ-ओनइँ रहऽ ह । कुछ पता हो, घर में कउन गुलगुल्ला पक रहलो हल ?" - "की हलउ से हमरा बुझउअल बुझा रहले हें", गमछी से पसेना पोछइत सिरधर पुछलक ।) (सारथी॰13:19:12:1.29)
48 एन्नइँ (पन-छो गो घोड़ा पर बइठल एकलौठा छौंड़ कन्हा में रायफल लटकइले मुँह में करिया गलमोंछी बान्हले एन्नइँ आ रहल हे ।) (सारथी॰13:19:10:1.32)
49 ऐन (कारू बात के पुरान छोरी धइलक, "देखऽ भइया, जे हाल ऐन के से हाल गैन के । कहले से सब बात नञ् जानल-समझल जाहे । हमर बात तों तऽ तोहर बात हम खूब समझऽ ही । खेती करे वला के हाथ हमेशे खाली रहवे करऽ हे । धान-गहुम उपजइला से इज्जत-हुरमत बचना मुश्किल हो ।") (सारथी॰13:19:27:1.44)
50 ओजइ (घठाह नियन नाना साथ आल अदमी के चला के ठहर गेला, भुक्खल तऽ भुखले सही, जइबन तऽ देखिये के । दिन भर गाँव में बंगले-बंगले घूम अइला । जजइ गेला, ओजइ सभाखन । रात अइला तऽ समधिन झनकऽ लगली, "गाँव में कुत्ता नियन दुआरी-दुआरी चाट आल चटोरवा, कउन पेट में खात ! हमर बनाल अब कुत्ता खात आउ की ?") (सारथी॰13:19:16:3.52)
51 ओता (= वहाँ) (भयवा बैंक के बगले झोपड़ी में चाह बेचऽ हल । झुन्नू कते तुरी बैंक के साथी-साथ ओता चाह पीये आवऽ हल ।) (सारथी॰13:19:36:2.33)
52 ओराना (खुशी के दिन देखते-देखते ओरा जाहे । ऊ दिन दउड़ल आ गेल, जउन दिन मोदिआयन के हियाँ कथा होवत । हमर तिलाख, करकी ओसर बाछी के नक्सा पंडित जी के माथा में अइसन उगर गेल हल, जेकरा पर आउ कउनो बात ठहरवे न करऽ हल ।) (सारथी॰13:19:4:1.50)
53 ओसर (ब्याने के उम्र की; पहली बार गाभिन अथवा पहली ब्यान की गाय या भैंस; गाय या भैंस जो दूध नहीं दे रही और गाभिन भी नहीं है, नाठा) (हमर गाँव में एगो बनियाँ हल, धैल कंजूस । ऊ घी से निकालल मछियो चूस के फेंकऽ हल । ... ओकर एगो ओसर बाछी हल ... एकबरन कार । ऊ मखियो भी गेल हल । सब लच्छन से पूरल हल ऊ ।) (सारथी॰13:19:4:1.11)
54 औरदा (= उमर) (दिन-दिन मउसी खमसल जा हल । हमर माय के चिंता बढ़ल जा हल - "लगऽ हइ मउसी माय अब नञ् बचती । इनखा 'टौनिस' लाके दे बेटा ! औरदा छइत इनखर रंथी नञ् उठइ के चाही !"; मउसी कहे, "अब हमरा कथी ले दबाय-बीरो देहें बेटा, बल्लोपुरवली के दे । हमर बचल औरदा ओकरे दे दहो हे भगवथी माय !") (सारथी॰13:19:19:2.44, 50)
55 कंधाजोटी ("बूढ़ा हली, अभी-अभी जुआन हो गेली यार, बलुक इस्कुलिया बुतरू ।", बोलिके मगधेश ओइसइँ ठठाके हँसि पड़ल, जइसे इस्कुल में पढ़े घरी कंधाजोटी कइले खेल के मैदान में ।) (सारथी॰13:19:28:2.47)
56 कछटाना (कछटा-कछटा के मारिये देलहीं नञ् निगम !" / "ओकरा से सुत्थर-कमासुत माउग अइतउ ?" / "मत मिलइ, दोहरौनियाँ दहेज तऽ मिलतइ ने ।") (सारथी॰13:19:15:3.4)
57 कठजीव (उनखर आँख फेन बरसऽ लगल, "बेटा, हम बड़ कठजीव ही । हमर गोदी के खेलावल सब उठ गेल आउ हम कि कउआ के जी खाके अइलूँ हें कि धइल के धइले ही ! हमरा ले भगवान के एक मुट्ठी जगहो नञ् हम !"; धन्य कठजीव ही हम कि कोय तऽ जहर के एक घूँट में टन बोल जाहे, हम पाँच बरिस तक अपमान के जहर पीअइत रहली, बकि न मरली । कभी लगऽ हे - मरि जइतूँ हल, ऊहे अच्छा हल ।) (सारथी॰13:19:19:2.25, 31:1.22)
58 कनउ ("मेटाबइ के सपना भुला जा ! अब घुर के ई गली में देखलियो, तऽ नाना-नानी कनउ जाय, हम सब मार के रबूद कर देबो, सुनि लऽ ।") (सारथी॰13:19:16:1.14)
59 कन्ना-रोहट (हम बुक्काफार के कानऽ लगलूँ । हमरा लगल, "ने गंगा जल देतूँ हल, ने मउसी मरत हल ! मउसी हमरे राह देख रहलन हल ?" कन्ना-रोहट सुनके गाँव भर जुट गेलन । की जन्नी, की मरदाना ! सब के आँख में लोर ।) (सारथी॰13:19:19:3.20)
60 कमौनी ("से तो हइये हइ भाय साहेब ! मुदा तोहरा की कमी हो ? तूँ झुठकोलवा मन मारले हो । अब तऽ तोहर भाय भी कमौनी करऽ लगलो, तइयो कानिये रहलऽ हे ।) (सारथी॰13:19:26:3.4)
61 करमा (पंडी जी मोदियायन के मन जीतइ ले रोज ओकरा दुआरी पर जाथ आउ आशीर्वादी मुद्रा में गद्गद् भाव से बोलथ - "आज तीज हो जजमानी । आज करमा हो, छठ अजका छोम्मा दिन हो ... ।" अइसने बिन पुछले बोलथ आउ नजर झुकइले गली पार कर जाथ ।) (सारथी॰13:19:4:1.33)
62 कलउ (सप्ताह भर के बाद खुशबू कंगना के आँख से बहइत लोर पोछि के कसम आउ वादा के कलउ देके चलि गेल ।) (सारथी॰13:19:11:3.36)
63 कहल-बदल (दुइयो सुटके आके गोड़ छूलन ।/ "कोय दिक्कत तऽ न भेल ?" सिरधर के लहजा में प्यार आउ सरधा घुलल हल । / "नञ् कका, दिक्कत कइसन ? सुबुक से चल अइली । अपने के घर हे भी तऽ एकरगी में । कहल-बदल हइये हल, अप्पन घर-सन चलि अइलूँ ... बस !") (सारथी॰13:19:11:1.26)
64 कान कनइठी (लोग-बाग उनखा से बहस करनइ छोड़ देलन ... बाप रे बाप ! बरहामन से बहस ! ... कान कनइठी !) (सारथी॰13:19:3:1.47)
65 कानफोड़ू (बचपन के याद करऽ ही तऽ साँझ के जादे तर दोकान में लालटेन जरऽ हल । इक्का-दुक्का जगह पेट्रोमेक्स सनसना हल । अब तऽ बिजली आ गेल हे बकि उनखर दरसन दुतिया के चाने बूझऽ । कब अइथुन, कब जइथुन, अल्लोमियाँ नञ् जानऽ हथ । एक अंतर आल हे । कानफोड़ू हड़हड़ी के साथ जेनरेटर के रोशनी में बजार जरूर जगमगा हे ।) (सारथी॰13:19:28:1.14)
66 कुकरमाहा (उनखर सोंचे के दिशा बदलल - "ई बछिया के कउन दोष ! सब गलती बाप के हइ । मुँहजरौना के नञ् सूझले हल कि जुआन बेटी हे, अहुआ-पहुआ के दमाद बनाके घर में रख रहलूँ हें ! आउ फेटा बान्ह के घूमथ गाँव में ! आवे मुँहझौंसा मुँह में उक्का नेस दे हियन । हमरा नोट धरइ ले देलक हल कुकरमाहा कि साँप पोसइ ले देलक हल । ऊहे त कही कि कहाँ के बंक कबड़लइ ! ऊहे झोंटहा देलकइ होत । ईहो मतमरुआ बुढ़भासिये गेलइ ! तब तऽ ओतने में बेटिया के बेच ने देलकइ हल ! एगो बेटिया भार हो रहलइ हल !") (सारथी॰13:19:12:1.20)
67 कुटनी-पिसनी (ई बेचारी के तनि देख तऽ एकदम गउ हलन । केकरो से भर मुँह आज तक बोललन न । कुटनी-पिसनी करके बेटा के पाललन-पोसलन । मरदाना बेचारी के आँधर हलन । अपने भी एक आँख में फूला हल । कम लउकऽ हल । तइयो बेचारी दू-चार कट्ठा खेत हल, ओकरा बचाके रखलक ।) (सारथी॰13:19:38:1.20)
68 कुटल-पीसल (= कुट्टल-पीसल; कूटल-पीसल) (पुतोहिये हइ छाँटल छिनार ! एकरे कहऽ हइ - कमाय न कह न कजाय आउ चाहऽ हइ महरानी बनल । कुटल-पीसल मिले आउ खाली बइठल-बइठल गुदकाई ।) (सारथी॰13:19:38:1.36)
69 कुलबिल (बउआ, हम घर में कुलबिल तीन परानी ही । दू जीव हम आउ एगो जुआन-जहान बेटी ।) (सारथी॰13:19:10:2.20)
70 कूटना-छाँटना (कउन एकर मेहरारू के छाँट-बना के दे खाली गुदकावे ला । एही खोजऽ हइ अब एकरा से । ई कूट-छाँट के दे आउ हम खाली बनावी-खाई । ई बेचारी के अब हूब हइ कि कूट-छाँट के देई । सूख के तऽ ठठरी हो गेलइ हे ।) (सारथी॰13:19:38:1.46, 47)
71 केहनाठी (ओकर निगाह के सामने झोपड़पट्टी के एकलौता, गरीब के लोर-सन बून-बून टपकइत नल के सामने चिल्ल-पों मचावइत, पानी ले जूझइत मेहरारू के मधुमक्खी सन झुंड कौंध गेल । ऊहे भिनभिनाइत भीड़ में औरत के केहनाठी से खोंचा खाइत असहाय नयकी के मुठान, जे अलमुनियाँ के दू-तीन तसली पानी भरइ के लाचार कोशिश करइत रहऽ हे ।) (सारथी॰13:19:22:3.3)
72 कोड़ना-कमाना (एतना दिन हम बेटा बिन रहलूँ, अब नञ् रहम । एजउका कोठा-सोफा एकरा की काम देतइ ? अपन घर में रहत, कोड़-कमा के खात ! दलिद्दर तऽ अपन घर में । एजउका सरवस कि एकरा लिख देबहो ?") (सारथी॰13:19:15:3.35)
73 खंता (दे॰ खत्ता) (शिशुआ रस-रस डरल आगू आल आउ पोटली लेके सूँघइत बोलल, "सड़ल हइ नानी । एकरा के खइतइ", बोलके ऊ बगल के खंता में फेंक देलक ।) (सारथी॰13:19:15:3.28)
74 खखनल (संशय के बादर छँट गेल । संकोच के पर्दा सिहरल आउ एक दने ससरि गेल । संयम के बांध टूट गेल, लाज के देवाल ढहि गेल । रहि गेल समर्पण के दरिया में बहइत दू खखनल प्राणी ।) (सारथी॰13:19:11:3.31)
75 खखसना ("देरी मत करऽ मोदी जी, खखस के बोलऽ ।" - "भगमान के उपह जाना कोय मामूली बात हइ ?" - "एतने में कल्याण हो जाहो तऽ सस्ते बूझऽ मोदी जी !"; रिपोट पढ़ला के बाद बिसुनदेव चिंतित हो गेला । उनखा पसेना आ गेल । ऊ पहिले लक्ष्मी जी से मांग के एक गिलास पानी पीलका आउ खखस के कहलका, "तऽ एकरा रोके के उपाय भी तऽ सुझावे के चहतियो हल ।") (सारथी॰13:19:5:2.1, 25:2.47)
76 खटर-पटर (थोड़े देर खटर-पटर के बाद ढेंकी चले लगऽ हल । न तऽ कउनो दिन जादे रात रहऽ हल तऽ मइया कहऽ हल, "थोड़े देर आग ताप लऽ, डोमनी के मइया ! अभी रात हवऽ ।") (सारथी॰13:19:38:3.38)
77 खड़िया (बात आझ के न हे । ढेर दिन हो गेल । ओती घड़ी एते बेग-ऊग के सहचार न हल । तखनी के गउआँ-पाँड़े एगो खड़िया रखऽ हलन । हमरा भिर के एगो पंडी जी कान्हा पर खड़िया लेके चलऽ हला । दुन्नूँ दने कान्हा में लटकल लुग्गा के खड़िया में लटखुट समान रहवे करऽ हल । जजमान घर जे मिलल, ओकरे में रखले गेला ।; साँझ तक लउटइत-लउटइत दुन्नूँ दने के लटकल खड़िया भर जा हल उनखर ।) (सारथी॰13:19:3:1.3, 5, 6, 15)
78 खमसल (= कमजोर, दुबला) (दिन-दिन मउसी खमसल जा हल । हमर माय के चिंता बढ़ल जा हल - "लगऽ हइ मउसी माय अब नञ् बचती । इनखा 'टौनिस' लाके दे बेटा ! औरदा छइत इनखर रंथी नञ् उठइ के चाही !") (सारथी॰13:19:19:2.42)
79 खायक-पानी (शिशुआ-टिसुआ के जिनगी बाप के घर में जेहलो से बत्तर बीत रहल हल । विपत्ति दुइयो के असमय बुझनगर बना देलक हल । दुन्नूँ दिन-रात कानइत रहे । जुट्ठा-कुट्ठा खाय ले लोरे खायक-पानी हल ।) (सारथी॰13:19:16:3.18)
80 खुर-खार (= छोटा-मोटा काम; बिना काम का काम) (कभी मइया कहित हल, चाहे दीदी, "एतना भात हइ । रूनिया ला लेले जइहूँ । भूखळ होथ । हमरा घर तऽ कभी अएवे न करथुन । अब खुर-खार करे लायक हो गेलथुन हे । खुर-खार करावऽ न त वने-वने घूमे ला छोड़ दे हऽ । बेटी जात हवऽ । बकरियो-उकरियो त न हवऽ कि चरावऽ-उवऽ । का करऽ हथुन घरवा में ।") (सारथी॰13:19:39:1.43, 44)
81 खुरखुरी (ओकरा पानी से निकालल मछली नियन पलंग पर छटपटाइत बीतऽ हल । तनियों खुरखुरी सुनऽ हे कि कान खड़क जाहे - जनु आ गेलन बकि उनखा नञ् आना हल, नञ् अइलन । आल तऽ कंगना के बड़-बड़ आँख में डब-डब लोर ।) (सारथी॰13:19:13:2.3)
82 खुरछाहीं (एक तुरी मंगरुआ के मइया से एगो लौकी मांगलन । ऊ बहाना कर देलन । पंडी जी के मुँह से निकलल, "ठीक हउ ! मत दे ! बकि तहूँ लौकी नेमान नहियेँ करबीं ।" ओही रात रजुआ के बिरनाम भैंसा खुट्टा से खुल गेल । लगल मंगरुआ के दुआरी पर खुरछाहीं करे ले । बगले लौकी के लुहलुह पेड़ हल । पहिले तऽ ओकरा में अँखड़ल । चोखगर सींग के एक्के झटका में पेड़ उखड़ गेल ।) (सारथी॰13:19:3:2.3)
83 खुलखुलाना (आउ ठीक, टिसुआ के बाबा दुआरी पर जमराज नियन ठाढ़ हथ । ऊ खुलखुला के हँसइत बोलला, "तनि गेटवा खोलहो ने समधी जी ! अब तऽ जे लिखल हल, होइये गेल । हमरा-तोरा हिम्मत से काम लेवऽ पड़त ।") (सारथी॰13:19:16:1.54)
84 खोरना (हमर ध्यान चिता दने चलि गेल । लाश करीब-करीब जर चुकल हल । तीन-चार अदमी बड़का बाँस के खोरना से अधजलल लकड़ी बचल लोथड़ा पर सरिया रहलन हल ।) (सारथी॰13:19:19:1.28)
85 गउआँ-पाँड़े (बात आझ के न हे । ढेर दिन हो गेल । ओती घड़ी एते बेग-ऊग के सहचार न हल । तखनी के गउआँ-पाँड़े एगो खड़िया रखऽ हलन । हमरा भिर के एगो पंडी जी कान्हा पर खड़िया लेके चलऽ हला । दुन्नूँ दने कान्हा में लटकल लुग्गा के खड़िया में लटखुट समान रहवे करऽ हल । जजमान घर जे मिलल, ओकरे में रखले गेला ।) (सारथी॰13:19:3:1.3)
86 गनउरा (आजे इनखा खाय बिना भी तरसा देलकइ बेटा-पुतोह । देखइत हहीं न, कइसन सूख के ठठरी हो गेलइ हे, बेचारी । आज तो मंगजरउनी लुगवो तक छीन लेलकइ । गनउरा पर के बिगल चेथरी पहिन के आयल हे, बेचारी ।) (सारथी॰13:19:38:1.28)
87 गरायन (“एकरा कते तुरे समझइलूँ हें कि चाह के पहिले पानी देबइ के चाही, मुदा ई मन के टाही, काहे ले सुनतो !”/ सनीचरी कुछ कहलक तऽ नञ् बकि मने मन भनभनाल पानी लावे चल गेल । सनीचरी के एकांत में डाँटो, कुछ बात नञ्, बकि दोसरा आगू डाँट गरायन नियन लगतो ।) (सारथी॰13:19:27:1.5)
88 गहूम (दे॰ गोहूम) (नञ् भौजी, कुछ खास बात नञ् हलइ । देखऽ हिअइ सौंसे गाँव गहूम के खेत पटा रहल हे आउ दादा कान में करूआ तेल देके हाथ पर हाथ धइले बइठल हथ ।) (सारथी॰13:19:26:1.21)
89 गाजा (= मैदे की एक प्रसिद्ध मिठाई) (मोदियायन समधियाना से आयल सनेस के खाजा, लड्डू, टिकिया, गाजा भरल छिपली आगू में कर देलकी । पंडी जी भरलो छिपिया मिठाय अपन खड़िया में रखके बोलला, "जजमानी, हम डालडा में हाथो नञ् लगावऽ ही । शुद्ध घी के छानल के अलग बात हे । रख लेली, बुतरू-बानर खइतन ।") (सारथी॰13:19:4:2.14)
90 गिट्टी-छर्री (थोड़के दूर में एगो सड़क बन रहल हल । जोर-शोर से काम लगल हल । टरक के टरक गिट्टी-छर्री गिरावल जा रहल हल । कउवा ओतुने से ललकी गिट्टी ला-ला कनखा पर चढ़-चढ़ डालऽ लगल ।) (सारथी॰13:19:24:1.25)
91 गिनना-गुँथना (ई उद्वेग के झेलइत साँझ के घर पहुँचल तऽ ई उद्वेग पुनिया के चान देखि समुन्दर के जुआर जइसन जोर से उठे लगल । ऊ मजबूर भे गेल जिनगी के बीतल दिन, महीना, साल के एक-एक पल के गिनय-गुँथय लेल । सोझरावे लगल सभे पन्ना के एगो धरोहर जइसन ।) (सारथी॰13:19:20:2.15-16)
92 गुथनी (हरियर-हरियर मिरचाय के पौध में लाल-लाल डींड़ी झूल रहल हे, जबकि अंडी के बड़-बड़ गो गाछ में छोट-छोट गुथनी फर लटकल हे हरियर-हरियर ।) (सारथी॰13:19:11:1.9)
93 गुदकाई (पुतोहिये हइ छाँटल छिनार ! एकरे कहऽ हइ - कमाय न कह न कजाय आउ चाहऽ हइ महरानी बनल । कुटल-पीसल मिले आउ खाली बइठल-बइठल गुदकाई ।) (सारथी॰13:19:38:1.36)
94 गुदकाना (वाह रे महरानी ! इनका से तनि तीन सेर चाउरो न छँटाय । एही से एकर मरदाना के कउनो मजूरो न लगावे । कउन एकर मेहरारू के छाँट-बना के दे खाली गुदकावे ला ।) (सारथी॰13:19:38:1.45)
95 गुलगुल्ला (साँझ के एकांत में कंगना माय अपन मरद से कहलन, "नञ् जानी हमर भाग में की लिखल हे ... । बेटा बाहरे रहऽ हे । तहू एनइँ-ओनइँ रहऽ ह । कुछ पता हो, घर में कउन गुलगुल्ला पक रहलो हल ?" - "की हलउ से हमरा बुझउअल बुझा रहले हें", गमछी से पसेना पोछइत सिरधर पुछलक ।) (सारथी॰13:19:12:1.30)
96 गेयान (= ज्ञान) ("दुइयो के सेयान से जादे गेयान हइ । ननियाँ सोगाही जे कहतो, सेहे करतो । बप्पा के तनी बेइज्जती करइलके हे ! मुँहझौंसा, लगऽ हे कइसन सूअर नियन !") (सारथी॰13:19:16:2.47)
97 गैन (कारू बात के पुरान छोरी धइलक, "देखऽ भइया, जे हाल ऐन के से हाल गैन के । कहले से सब बात नञ् जानल-समझल जाहे । हमर बात तों तऽ तोहर बात हम खूब समझऽ ही । खेती करे वला के हाथ हमेशे खाली रहवे करऽ हे । धान-गहुम उपजइला से इज्जत-हुरमत बचना मुश्किल हो ।") (सारथी॰13:19:27:1.44)
98 गोड़ा-टाही (आउ झोल-फोल तक सिरधर भीतरे-भीतरे हँहड़इत ओजइ गोड़ा-टाही करइत रहल । अन्हार रस-रस अपन माया पसारि रहल हल ।) (सारथी॰13:19:12:2.11)
99 गोमस्तगीरी (नाना हाहे-फाफे धुरियाल पहुँच गेला । अपना साथ चार गो अदमी ले लेलका हल । यहाँ तऽ बाबा के गोमस्तगीरी नञ् हल, मामा के दरोगइ चलऽ हल । देखते मातर एकार-तोकार करऽ लगल - "कहाँ दौड़ल अइले हें ? नतियन पानी में हलउ ?") (सारथी॰13:19:16:3.31)
100 गौर-पिट्ठा (करीब चार पहर बाद मंजु के ससुरारी परिवार पहुँचल । ओकरा में मंजु के मरद भी हल । मंजु के माय-बाप तऽ बजड़ि रहल हल आउ ई सब नञ् जानु, की गौर-पिट्ठा करके आल हल, बुतरुअन के टेनिअइले घसकल जा हल ।) (सारथी॰13:19:15:1.34)
101 घटघटाना (एक घूँट लेके चन्नर पुछलक, "चाह ठीक बनलउ कारू भाय ?" / "हमरा चाह में ठीक-बेठीक कुछ नञ् बुझा हो । एत्ते ने तातल रहऽ हो कि मुँहे जर जा हो, ईहे से हम नञ् पीयऽ हियो ।", कारू गमछी से चाह के गिलास पकड़ले बोलल । / "चाह शरबत नञ् हइ कि घटघटा गेलऽ । एकरा तनि-तनि चुस्की लेके पीअइ के चाही ।", चन्नर बोलल ।; ऊ घटघटा के गिलास खाली करि देलक ।) (सारथी॰13:19:27:1.39, 36:2.1)
102 घनगर (अचक्के परेमन परघट भेल आउ सिरधर के हाथ उहाँ ले गेल, जहाँ बर-पीपर के घनगर गाछ बीच एगो अइँटा के लमहर-चौड़गर दलान बनल हल । दूर से ई मकान नजर नञ् आवऽ हल । दूर-दूर तक नरकटिया-जिनोर के खेत लहलहा रहल हल ।) (सारथी॰13:19:12:2.21)
103 घमौरी (आम के ~) (हम सब सिनुरिया गाछ तर बइठल कच्चा आम के घमौरी बना रहलूँ हल । एतने देरी में एगो सुग्गा टें-टें कइले आल आउ ऊहे गाछ पर बइठ गेल ।) (सारथी॰13:19:18:2.5)
104 घसकल (करीब चार पहर बाद मंजु के ससुरारी परिवार पहुँचल । ओकरा में मंजु के मरद भी हल । मंजु के माय-बाप तऽ बजड़ि रहल हल आउ ई सब नञ् जानु, की गौर-पिट्ठा करके आल हल, बुतरुअन के टेनिअइले घसकल जा हल ।) (सारथी॰13:19:15:1.35)
105 घुंघर (अइसन अनरूप के सुत्थर छौंड़ जिनगी में नञ् देखलूँ हे - गोर बुर्राक, लम्बा-तगड़ा, कसरती काया, तेकरो पर घुंघर भौंरा-सन कंधा तक लटकइत केश ... ! नजर पड़इत हमर कनपट्टी सनसनाय लगल ।) (सारथी॰13:19:11:2.1)
106 घुट्टी (भोर होला पर मउसी मुँह खोललन, "अब हम नञ् मरबउ बउआ ! अब कहियो मरबे नञ् करबउ । जानऽ हीं, हमर मइया हमरा अमर के घुट्टी पिलइलक हल, तब कइसे मरबइ ?") (सारथी॰13:19:19:3.4)
107 घुरती (~ साल) (हम लौटला पर पुछली, "खूब मन लगलो ने पटना में मउसी ?" तऽ ऊ ठोर बिचकाके चुप रह गेली । घुरती साल छोटकी के पोता के बियाह में कतना कोय कहलक, ऊ घुरके पटना नञ् गेली ।) (सारथी॰13:19:19:1.44)
108 घोघी (= घोंघी) ("चुप रह, सुग्गा उतारबउ", हम कहलूँ आउ रस-रस ऊपर चढ़ऽ लगलूँ । ... आउ हम सब बच्चा के गमछी इ के घोघी में बान्ह के पीठ पीछू लटकइले उतर गेलूँ ।) (सारथी॰13:19:18:2.17)
109 चइयाँ ("ओने की ताकऽ हीं चइयाँ, मइया के धोधवरवा ! गोदरेजवा में नञ् एक्को फुट्टल कौड़ी हउ, नञ् लुग्गा-फट्टा ! चेथरियो बटोर के मइये के दे अइलउ", अप्पन बड़की फूआ बिख बुनलकी ।) (सारथी॰13:19:16:2.51)
110 चनचनाल (मालिक चनचनाल अइलन आउ तड़ाक-तड़ाक धर देलन छोटका के दुन्नूँ गाल पर । छोट लइका, तिलमिला गेल । ओकरा सुबके के भी हिम्मत न पड़ल ।) (सारथी॰13:19:14:1.38)
111 चन्न (ओकर गोड़ में मच्छर काटलक । ओकर ध्यान ओने गेल कि देखऽ हे हमउमर साथी बस्ता लेले इसकुल जा रहल हे । ध्यान बँटला से पलेट हाथ से छूट गेल ... चन्न ! पलेट टुकड़ी-टुकड़ी हो बिखर गेल, साथे-साथ ओकर सपना भी ।) (सारथी॰13:19:14:1.36)
112 चरना-चुरना (ओही रात रजुआ के बिरनाम भैंसा खुट्टा से खुल गेल । लगल मंगरुआ के दुआरी पर खुरछाहीं करे ले । बगले लौकी के लुहलुह पेड़ हल । पहिले तऽ ओकरा में अँखड़ल । चोखगर सींग के एक्के झटका में पेड़ उखड़ गेल । जहाँ तक घेंच पहुँचल, चर-चुर के ठूँठ कर देलक ।) (सारथी॰13:19:3:2.7)
113 चलना-बनना ("कहाँ दौड़ल अइले हें ? नतियन पानी में हलउ ?" - "सुनलिअइ बीमार हइ, देखइ ले चलि अइलिअइ", नाना बोलला । - "आउ ई चारो बरहिला के लठैती करइ ले लेले अइलहीं हें ? यहाँ कुछ नयँ चलतउ-बनतउ, जो !") (सारथी॰13:19:16:3.39)
114 चाँच-चोंच (धान-गहुम उपजइला से इज्जत-हुरमत बचना मुश्किल हो । या तऽ खेती के ढंग बदलऽ या दुन्नूँ भाय दिल्ली चलऽ । गाँव के कते तऽ बाहर कमाइये रहल हे । दुन्नूँ के भाय पढ़-लिख के बहराल तऽ हम तों दुखछल चलऽ । ऊ बाहर कमाय ले जाहे तऽ कोय चाँच-चोंच नञ्, अनपढ़ गेलो तऽ पलायन हो गेलो ।) (सारथी॰13:19:27:1.53)
115 चाथन (अइसइँ ढेर गलबात, ढेर चौल, ढेर चाथन, ढेर चुगली । कंगना के करेजा खुंडी-खुंडी हो रहल हल । जहिया से बेचारी जोड़ा पेन्ह के आल, अँखिये में रात कटि रहल हल ।) (सारथी॰13:19:13:1.52)
116 चानी (= सिर का शीर्ष भाग) (एकरा अपन दूध में हर्रे घिसके चार घोट दहो, ठीक हो जइतो । दबयवा से जादे फइदा करतो तपहर परहेज ... पोखरिया में डुबकी लगाना छोड़ दऽ । करूआ तेल गरमा के एकरा चानी पर दहो, सर्दिया टान लेतइ ।) (सारथी॰13:19:18:3.7)
117 चाह-उह (सौंसे घर जानऽ हइ कि माय के सिरिफ मीठा चाही, चाह-उह से ओकरा कोय मतलब नञ हे ।) (सारथी॰13:19:32:2.44)
118 चिन्हाना (= पहचान कराना) (शैलजा खुद दू-तीन बार माय के साथे जाके माय के मौसी के घर वाला रास्ता चिन्हा देलक हल । अब ऊ अकेले, जब ओक्कर मन करे तब मौसी के घर पर पहुँच जाल करऽ हइ ।) (सारथी॰13:19:34:2.43)
119 चीकट (ऊ देरी तक सीमेंट के गारा से एकदम चीकट होल कपड़ा पर साबुन घिसइत रहल । झाग उठइ के नामे नञ् ले रहल हल । दू-तीन तुरी साबुन रगड़इ के बाद कपड़ा के असली रंग मैल के गाढ़ परत के नीचे से उझके लगल ।) (सारथी॰13:19:23:1.17)
120 चुटपुट (= चटपट, तुरन्त) (उनखा ले काल साँप बनके आल आउ चुटपुट ले गेल । ऊ अन्हरूक्खे दिशा-फरागत ले निकलऽ हला आउ दिन उगइत एक कोस टहल के चल आवऽ हला । तहिया अइते मातर कहलका, "हमरा कहरैनी पर साँप सूँघ लेलको ... ।" बोलते-बोलते ऊ गिर पड़ला, फेन नञ् उठला ।) (सारथी॰13:19:18:3.36)
121 चुभुर-चुभुर (हमरा लगल - हम आज के रजेसर न ही, बलुक तहिअउका हो गेली हे, जहिया डोमनी माय के छान के हम चुभुर-चुभुर दूध पी ले हली ।) (सारथी॰13:19:39:3.21)
122 चौठा-चौठारी (लगऽ हल भाय के पढ़ गेला से घर के दिन फिर जात । ओकरा जाय घरी गाड़ी चढ़ाबइ ले ओकर मोटरी माथा पर चढ़ाके जा हलूँ । सूट-बूट पेन्हले, मोटरी टाँगले कइसन लगत हल ! भौजाय निमकी-खमौनी के साथ-साथ घी के डिब्बा देबइ ले नञ् भूलऽ हल । सनीचरी कहऽ हल - गोतनी आत तऽ सहेता होवत ! खूब भेलन ! चौठा-चौठारी के बाद समान बँधाय लगल ।) (सारथी॰13:19:26:3.20)
123 छइया-मसान (छइया-मसान रोदन से असमसान घाट डेरामन लग रहल हल आउ मउसी माय के चिता धू-धू करके लहक रहल हल । बैशाख के मार से दुब्बर गंगा के लकलक धार लगे जइसे भीतरे-भीतरे हम्हड़इत गंगा के आँख से बहल लोरे रहे ।; दारोगा कागज पर कुछ लिखलक, भीड़ में से चार आदमी के दसखत लेलक आउ लाश साथ झुन्नू के थाना लेके चलऽ लगल तऽ दुइयो बुतरू छइया-मसान नियन चिल्लाय लगल, "मम्मीऽऽऽ ... ") (सारथी॰13:19:18:1.8, 37:3.10)
124 छाँटना-बनाना (वाह रे महरानी ! इनका से तनि तीन सेर चाउरो न छँटाय । एही से एकर मरदाना के कउनो मजूरो न लगावे । कउन एकर मेहरारू के छाँट-बना के दे खाली गुदकावे ला ।) (सारथी॰13:19:38:1.45)
125 छाँटल (~ छिनार) (पुतोहिये हइ छाँटल छिनार ! एकरे कहऽ हइ - कमाय न कह न कजाय आउ चाहऽ हइ महरानी बनल । कुटल-पीसल मिले आउ खाली बइठल-बइठल गुदकाई ।) (सारथी॰13:19:38:1.34)
126 छिच्छिर-छिच्छिर (दरबान मोटर चालू करि देलन होत, काहे कि प्लास्टिक के पाईप से पानी मोटगर धार छिच्छिर-छिच्छिर निकलि के नयका बनल छत पर पसरे लगल हल । मरद पाईप के एने-ओने घुमावइत छत के दहपेल करऽ लगल ।) (सारथी॰13:19:22:2.31)
127 छिट्टा (= छींटा) (पानी के ~) (कंगना के मुँह पर पानी के छिट्टा देवल गेल, नाक दाबल गेल, तब होश आल । ओकर चेहरा के रंग उज्जर हो गेल हल ।) (सारथी॰13:19:13:3.23)
128 छिपली (मोदियायन समधियाना से आयल सनेस के खाजा, लड्डू, टिकिया, गाजा भरल छिपली आगू में कर देलकी । पंडी जी भरलो छिपिया मिठाय अपन खड़िया में रखके बोलला, "जजमानी, हम डालडा में हाथो नञ् लगावऽ ही । शुद्ध घी के छानल के अलग बात हे । रख लेली, बुतरू-बानर खइतन ।") (सारथी॰13:19:4:2.14)
129 छिपिया (मोदियायन समधियाना से आयल सनेस के खाजा, लड्डू, टिकिया, गाजाभरल छिपली आगू में कर देलकी । पंडी जी भरलो छिपिया मिठाय अपन खड़िया में रखके बोलला, "जजमानी, हम डालडा में हाथो नञ् लगावऽ ही । शुद्ध घी के छानल के अलग बात हे । रख लेली, बुतरू-बानर खइतन ।") (सारथी॰13:19:4:2.15)
130 छेदमाही (करूआ अप्रत्याशित सवाल से तिलमिला गेल । ओकर अप्पन पीड़ा फूट पड़ल, "हमर भाय तऽ शुरुए से घर-गाँव अनपुछ कर देलको । मुश्किल से ओकर मोबाइल नम्बर नोट कैलियो । पुछलियो तऽ निठुरे नियन कह देलको, 'एक छेदमाही बचवे नञ् करऽ हउ तऽ भेजिअउ की ? हमरो हिसबा से पेट नञ् भरऽ हउ ?' की करियो, संतोख कर गेलियो । एक बात हो कि हम तोहरा नियन बइठल नञ् ही, अहल-बहल करिये रहली हे ।) (सारथी॰13:19:26:3.39)
131 छोरी (बात के पुरान ~ धरना) (कारू बात के पुरान छोरी धइलक, "देखऽ भइया, जे हाल ऐन के से हाल गैन के । कहले से सब बात नञ् जानल-समझल जाहे । हमर बात तों तऽ तोहर बात हम खूब समझऽ ही । खेती करे वला के हाथ हमेशे खाली रहवे करऽ हे । धान-गहुम उपजइला से इज्जत-हुरमत बचना मुश्किल हो ।") (सारथी॰13:19:27:1.43)
132 छोहाड़ा (= छुहाड़ा, छुहारा) (मउसी गाँव भर के डागदरनी हलो । केकरो कुछ संसर-बिसर होवे, मउसी भिजुन पहुँच जाय । मउसी ओकरा देशी नुस्खा बतावे - ""घी हरदी देके गरम दूध पिलावऽ, घाव पर भंगरोइया के रस गार के टपका दऽ, छोहाड़ा पका के कल्ला तर दाबऽ, कसेली जार के फक्की बनाके पीयऽ, पोदीना अरक दऽ, निम्मक चिन्नी-पानी के घोल पिलावऽ ... ।" उनखा पास सब रोग के निदान हल ।) (सारथी॰13:19:18:3.20)
133 जजइ (घठाह नियन नाना साथ आल अदमी के चला के ठहर गेला, भुक्खल तऽ भुखले सही, जइबन तऽ देखिये के । दिन भर गाँव में बंगले-बंगले घूम अइला । जजइ गेला, ओजइ सभाखन । रात अइला तऽ समधिन झनकऽ लगली, "गाँव में कुत्ता नियन दुआरी-दुआरी चाट आल चटोरवा, कउन पेट में खात ! हमर बनाल अब कुत्ता खात आउ की ?") (सारथी॰13:19:16:3.52)
134 जजमनकइ (चार गाँव के जजमनकइ हल । भोरे नहा-सोना, टिक्का-चन्नन करके निकल जा हला । घरे-घरे घूमऽ हला, "जजमानी, एकादशी परसुन हो । तरसुन पुनियाँ होतो । मंगर के सकरात पड़तो ।") (सारथी॰13:19:3:2.29)
135 जब्हा (सिरधर के सिर में चक्कर आ गेल । ओकरा लगल जइसे अब गिरलूँ कि तब गिरलूँ । ओकर मुँह सूखऽ लगल, जीह लटपटाय लगल, जुबान में जब्हा मार देलक ।) (सारथी॰13:19:10:2.10)
136 जमल-जमावल (~ गिरहस्ती) ("मन के थीर करऽ । ई सब सोचला से अब की फइदा । मइया-बाबूजी होथुन कि नञ्, ई तऽ गोसइँये जाने । जिनगी में रात-दिन एक करिके जमल-जमावल गिरहस्ती ई सब सोचला से बिखर जायत ।") (सारथी॰13:19:20:3.22)
137 जरन (जानऽ हीं, सिनेमा के हीरोइन 'कुमकुम' ईहे हुसेनाबाद के रहइवली हइ । ई सभे के एक तुरी बिना देखले जी के जरन नञ् मेटत ।) (सारथी॰13:19:20:3.48)
138 जरब (हमरा सब के तऽ राधा दीदी आके कहलन, "मइया धायँ-धायँ जरब करऽ हउ आउ तू सब सनीमा देख रहलहीं हें ।" बात ई हल कि झुन्नू आवाज तेज करि के किचन में चलि गेल हल ।) (सारथी॰13:19:37:1.47)
139 जाउत (जे घर नाती-नतिनी से बसंत बगिया नियन महकइत-खिलखिलाइत रहऽ हल, ऊ अब पीपर के ठूँठ नियन बच गेल हल । दुन्नूँ जाउत भी बाँट के अलग हो गेलन । मउसी माय आधा के हिस्सेदार हल, बकि इनखा पाँच बिगहा हिस्सा देलन ।; बड़का जाउत के बड़का बेटा-पुतहु गंगा बिसुन आउ बल्लोपुरवली नञ् छोड़लन ।) (सारथी॰13:19:19:1.10, 17)
140 जित्ता (= जिन्दा, जीवित) (दूध के दूध, पानी के पानी फैसला हो गेल । दुइयो नाना-नानी के इहाँ पात-पात निखरऽ लगल । ... नाना-नानी लेल मंजु बेटी जित्ता के जित्ते हे ।) (सारथी॰13:19:17:2.32)
141 जुआठ ("भइया, हम भाभी के माय दाखिल बूझऽ ही । हमर माय कहऽ हल कि शेखपुरवा वली तोरा गोदी में खेलइलथुन हे । हम भौजी के मंगल सूत्र बिके नञ् देम । भौजी, तूँ एकरा फेन से गियारी में पेन्हऽ । चन्नर भइया आउ हम हीरा-मोती नियन मिलके कन्हा पर जुआठ रखम ।") (सारथी॰13:19:27:2.34)
142 जोवाना (= जुआना) (मड़ई में चुनल-बिछल तरकारी के ढेर से छोटकी मइया तरकारी लाके अमगना में डोमनी के मइया भिर रख देलके हे, कहित हे, "ले ले जइहऽ डोमनी के मइया ! तरकारी हवऽ, बनाके खा जइहऽ । केतनो ध्यान देके तोड़ऽ ही, तइयो जोवा ही जाहे ।" दीदी हँसऽ हल, "बेचारी के जोवयलका तरकरिया देइत हँहीं ।" मइया कुछ लजाइत कहऽ हल, "जादे जोवायल न हइ । का होतइ, बनाके खा जइथी । बिगा ही न जइतइ ।") (सारथी॰13:19:39:1.36)
143 झमराल (मंजु के लहास सड़क पर उतरे-दखिने पाड़ देल गेल । घरइया पछाड़ खा रहल हे, चिरईं-चुरगुनी सकदम ! टोल-पड़ोस के आँख लोरे-झोरे । असमान के तरेंगन तक उदास । चान तऽ झमराल ... ठोर पर फिफरी ।) (सारथी॰13:19:15:1.5)
144 झलफलाना (आज एतुने नेहा ने ले झलफला के ! देख, कते मनी पानी एजा बहि रहलइ हे !; औरत चौथी बेर कपड़ा में साबुन लगइलक, चोटइलक आउ पाईप के तेज मोट धार के नीचू कपड़न के झलफलइलक ।) (सारथी॰13:19:22:3.15, 23:1.27)
145 झींगा (साँझ तक लउटइत-लउटइत दुन्नूँ दने के लटकल खड़िया भर जा हल उनखर । किनखो हियाँ हरियर तरकरियो मिल जा हल - लउकी, नेनुआ, झींगा, सतपुतिया, साग ... । नेमानी के चूड़ा, चाउर तऽ असालतन ... पहिले पंडी जी, फिर घरइया । समाज के ईहे रेवाज हल ।) (सारथी॰13:19:3:1.17)
146 झुठकोलवा ("से तो हइये हइ भाय साहेब ! मुदा तोहरा की कमी हो ? तूँ झुठकोलवा मन मारले हो । अब तऽ तोहर भाय भी कमौनी करऽ लगलो, तइयो कानिये रहलऽ हे ।) (सारथी॰13:19:26:3.3)
147 झोलंगल (~ खटिया) (चनरा मुसकइत पुछलक आउ पलानी के झोलंगल खटिया पर करूआ साथ बइठ गेल ।) (सारथी॰13:19:26:1.45)
148 झोल-फोल (झोल-फोल हो गेल हल । सिरधर अपन घर में बइठल राह देख रहल हे । आझे दिया तऽ कहलन हल ।) (सारथी॰13:19:10:3.49)
149 टटकोरना (अंगना में बरइत ढिबरी के ईंजोर में बेटा के साथे धनेसर खा रहल हे । रोटी के परसन दइत मेहरारू टुभकल, "भाय चार रोज से एको घड़ी घर में नञ् रहऽ हथुन । हिस्सा खातिर टोला के अदमी के टटकोरइ में तऽ नञ् लगल हथुन ?") (सारथी॰13:19:21:3.6)
150 टटरी (सफर के खरचा से बचल बेयालीस रुपइया से किराया पर ठेला लेके सब्जी अउ मौसमी फल बेचइ के रोजगार शुरू कइलका । नञ् तऽ माथा पर टटरी, नञ् सुतय लेल पटरी । ऊहे जगेसर आझ जगेसर सेठ बनल हे ।) (सारथी॰13:19:20:3.2)
151 टन-टुन (की हल, की हो गेल ! केतना शांत इलाका हल ! ... कोय रोक नञ्, कोय टोक नञ्, कोय बन्धेज नञ् । हल्ला-गोदाल होवऽ हल तऽ खेत-पथार जोतइ ले । जादे से जादे लाठी-पइना निकलऽ हल, टन-टुन होवऽ हल ।) (सारथी॰13:19:10:1.8)
152 टाही (एकरा कते तुरे समझइलूँ हें कि चाह के पहिले पानी देबइ के चाही, मुदा ई मन के टाही, काहे ले सुनतो !") (सारथी॰13:19:27:1.1)
153 टिक्का-चन्नन (चार गाँव के जजमनकइ हल । भोरे नहा-सोना, टिक्का-चन्नन करके निकल जा हला । घरे-घरे घूमऽ हला, "जजमानी, एकादशी परसुन हो । तरसुन पुनियाँ होतो । मंगर के सकरात पड़तो ।") (सारथी॰13:19:3:2.30)
154 टिसनी (हम आचार्य । वित्तरहित इस्कुल के माहटरी । कहावे के पंडित जी, बकि जेभी खाली । टिसनी करऽ हलूँ तऽ दू साँझ के चूल्हा सोझ होवऽ हल ।) (सारथी॰13:19:3:3.13)
155 टीक (= चोटी, शिखा) ("कउन काम बेटा ?" सिरधर के लगल ओकर माथ पर कोय मन भर के पत्थर पटक देलक हे । ऊ फेनो अपन टीक एगो अंगुरी से उमेठऽ लगल ।) (सारथी॰13:19:10:1.49)
156 टेनगर ("दुइयो बुतरुओ तऽ ननमे के पइसवा पर असपताल में अपरेशन से जलमलइ हल ।" / "आज तक ननमे-ननियाँ पोसले हइ कि ई सब ?" / "अब तऽ दुइयो टेनगर हो गेलइ होत । भर जी देखवो तऽ नञ कइलिअइ हे ।") (सारथी॰13:19:15:2.46)
157 टेनलग्गू (= छोटा बच्चा जो अभी चलने-फिरने लायक हो गया हो) (दुइयो बेटी पटने में घर बनाके रहि रहल हल । टेनलग्गू होला पर पढ़ाई के बहाने दुन्नूँ अपन-अपन बाल-बच्चा के उहइँ रखऽ लगल । सब अपन-अपन पाँख पसार के चारों दिशा उड़ गेल, बचली तऽ एकल्ले मउसी माय ।) (सारथी॰13:19:19:1.3)
158 टेनिअइले (करीब चार पहर बाद मंजु के ससुरारी परिवार पहुँचल । ओकरा में मंजु के मरद भी हल । मंजु के माय-बाप तऽ बजड़ि रहल हल आउ ई सब नञ् जानु, की गौर-पिट्ठा करके आल हल, बुतरुअन के टेनिअइले घसकल जा हल ।) (सारथी॰13:19:15:1.35)
159 टेबना (= टटोलना; खोजना; जाँचना) (तब तक लेल हम अप्पन महल्ला में एगो घर टेब रहलियो हे । अइसे, जहाँ ह, ऊ सस्ता हो ।) (सारथी॰13:19:36:3.10)
160 टौनिस (= टौनिक, टॉनिक) (दिन-दिन मउसी खमसल जा हल । हमर माय के चिंता बढ़ल जा हल - "लगऽ हइ मउसी माय अब नञ् बचती । इनखा 'टौनिस' लाके दे बेटा ! औरदा छइत इनखर रंथी नञ् उठइ के चाही !") (सारथी॰13:19:19:2.44)
161 ठगमुरकी (कारू अपन चाह के गिलास पकड़ले बोलल, "हम तऽ आज के जमाना पर सोंचऽ हियो तऽ ठगमुरकी लगऽ हो । समाज कन्ने जा रहलइ हे दादा ! अब केकरो पर विश्वास-भरोसा करइ के जमाना नञ् रहलइ ... ।") (सारथी॰13:19:27:1.21)
162 ठरनच (~ रचना) (पंडी जी के धाक इलाका में जम गेल । लोग-बाग उनखा से डरऽ लगला । कहल जाय तऽ ऊ गाँव-जवार लेल छुट्टा साँढ़ हो गेला । उनखर खनदानी पेशा दनादनी पर हल । ऊ जे चाहऽ हलन, लेइये के छोड़ऽ हलन । एक से एक ठरनच रचऽ हला ।) (सारथी॰13:19:3:2.28)
163 ठीक-ठिकाना (केतना दिन से बीनू, मंटू आउ तुलसी ई देख रहते गेल हऽ कि जब-जब दादी कुछ बोलऽ हइ तो मैया-बाबू जी सगर दिन उनखन बनल रहऽ हलन आउ अइसन समय में कौन डाँट सुन जइतन आउ के मार खा जइतन एक्कर कौनो ठीक-ठिकाना नञ हइ ।) (सारथी॰13:19:32:3.22)
164 डींड़ी (हरियर-हरियर मिरचाय के पौध में लाल-लाल डींड़ी झूल रहल हे, जबकि अंडी के बड़-बड़ गो गाछ में छोट-छोट गुथनी फर लटकल हे हरियर-हरियर ।) (सारथी॰13:19:11:1.9)
165 ढकढकाना (किवाड़ ~) (खूब भिनसरवे जउन घड़ी रात ही रहऽ हल ऊ दरवाजा पर चाल करऽ हल । चाल करे के पहिले किवाड़ ढकढकावऽ हल । ओकर किवाड़ ढकढकावहे से हम जान जा हली कि डोमनी के मइया आ गेल ।) (सारथी॰13:19:38:3.23, 24)
166 ढढरी (भूखल हाथी नियन जनावर तऽ दोल जाहे, ई तऽ बुतरुए हल । कानते-कानते दुइयो बीमार पड़ गेल । बोखार के नाम पर आउ दुयो के सहा देलक । दवाय के नाम पर ऊहे गरम पानी, बस ! फूल-सन बुतरू, ढढरी होके रह गेल, तइयो कसइयन के दरद नञ् बुझाल ।) (सारथी॰13:19:16:3.23)
167 ढलइया (साँझ गहराइत-गहराइत सौंसे छत पर लोहा के सरिया के जाली गारा से झाँप देवल गेल । सही आउ मजगूत ढंग से ढलइया निबटाके मजूर-मजूरिन के काफिला चलि गेल हल ।) (सारथी॰13:19:22:1.18)
168 ढेंकी (पहिले रात-रात भर अगहन-फागुन तक ढेंकी चलऽ हल । जाँता पिसा हल । गीत गावल जा हल । अब तऽ सहिये साँझ से गाँव में सन्नाटा पसर जाहे, जइसे कउनो गाँव में रहवे न करे ।; तोरा जाड़ा न लगऽ हो ? चल आवऽ हऽ भिनसरहीं । हमरो सुत्ते न दऽ । ढेंकी के धम-धम में नींद आवऽ हे ?; थोड़े देर खटर-पटर के बाद ढेंकी चले लगऽ हल । न तऽ कउनो दिन जादे रात रहऽ हल तऽ मइया कहऽ हल, "थोड़े देर आग ताप लऽ, डोमनी के मइया ! अभी रात हवऽ ।") (सारथी॰13:19:38:3.11, 31, 38)
169 ढेंकी-जाता (=ढेंकी-जाँता) (एक दिन आयल अपन घर मजूरी लेवे । चउरा हलइ तनि लाल आउ टूटल । छमक के छोड़ देलकइ । हम न लेबो अइसन चाउर जी । अपने खइहऽ । हमरा घर पर ढेंकी-जाता हे कि छाँटइत चलब ।") (सारथी॰13:19:38:1.41)
170 तखनउका (हमरा कोचवानी करइ लेल बाबूजी के कहलाम तखनउका जरूरत हल उनखर । एकरा में बाबू नञ् तखनउका समाज के ईहे चलन हल । हमर गाम में रोजी-रोजगार के ईहे एगो साधन हलइ ।) (सारथी॰13:19:20:3.31, 32)
171 तबड़क (ओकरा एतनो पर संतोख न भेलइ तऽ तीन-चार तबड़क आउ जड़इत बोललइ, "जो, बाहरे में लइकन के देखिहें आउ खेलौना खेलिहें ।) (सारथी॰13:19:14:1.45)
172 तर-तरकारी (झोला-झोली होल जा हल । बस से उतरलूँ तऽ सोंचली - "तर-तरकारी ले लेवे के चाही । घर में दू गो बुतरू हे । जइते साथ लिपटि जइतन । बोधे ले बिस्कुट ले लेम ।"; "शैंपू हइ ।" मरद अभियो हँसि रहल हल, "केस धोवइ ले ।" - "एकरा से हमर केसिया धोवइतइ ? सिरमिट-बालू से तऽ केसिया बगेरी के खोंथा नियन हो गेलइ हे । खाली पइसा के धमार ! एतना में तऽ एक साँझ के तर-तरकारी हो जइते हल ।" औरत शिकायत लहजा में कहलक, मुदा ओकर आँखि नेह से लबालब हल ।) (सारथी॰13:19:5:2.17, 22:3.43)
173 तरसुन (चार गाँव के जजमनकइ हल । भोरे नहा-सोना, टिक्का-चन्नन करके निकल जा हला । घरे-घरे घूमऽ हला, "जजमानी, एकादशी परसुन हो । तरसुन पुनियाँ होतो । मंगर के सकरात पड़तो ।") (सारथी॰13:19:3:2.32)
174 तसली (ओकर निगाह के सामने झोपड़पट्टी के एकलौता, गरीब के लोर-सन बून-बून टपकइत नल के सामने चिल्ल-पों मचावइत, पानी ले जूझइत मेहरारू के मधुमक्खी सन झुंड कौंध गेल । ऊहे भिनभिनाइत भीड़ में औरत के केहनाठी से खोंचा खाइत असहाय नयकी के मुठान, जे अलमुनियाँ के दू-तीन तसली पानी भरइ के लाचार कोशिश करइत रहऽ हे । ढेर मशक्कत के बाद ऊ कइसूँ पानी भरि पावऽ हल । दू तसली से मड़इया में खाना-पीना हो जा हल अउ एक तसली से देह भिंगा ले हल - कउआ नहान !) (सारथी॰13:19:22:3.5, 8, 9)
175 तारल-छानल-गारल ("सरकार, इस्कुल वित्तरहित हे बकि हम पेटरहित न ने ही । दू-दू विषय के आचार्य ही, बकि हमरा ऊ पन्ना मिलवे नञ् कइल, जेकरा पढ़के तूँ नित तारल-छानल-गारल खाहऽ । दोहाय मीरा के, हमरो सिखावऽ, जहमा नून-रोटी के जुगाड़ होवे ।" - हम राह चलइत कहली ।) (सारथी॰13:19:3:3.38)
176 तिरकिन (~ भीड़) (कल्ह साँझ खनी मोदी जी के दलान भिजुन तिरकिन भीड़ जुमल हल । इक्का-दुक्का जवार के अदमी भी मिंझराल हलन । सबके चेहरा पर आशंका के बादर मड़रा रहल हल ।; खुशबू के लहास जहिया गाम आल, तिरकिन भीड़ जमा होल । अर्थी के पीछू गाँव-जवार के हजारों लोग चलऽ लगला, जइसे रंगदार के नञ्, कोय शहीद के दाह-संस्कार होवइ ले जा रहल हे ।) (सारथी॰13:19:5:1.5, 13:3.36)
177 तिलाख (= तिलाक; कड़वी बात के साथ ललकार या चुनौती) (हम पंडी जी से कहली, "सरकार, अपने तऽ जे चीज पर नजर गड़ा देहऽ, लेइये के छोड़ऽ ह । तूँ जो ओकरा से ऊ बाछी ले लऽ, तऽ हम जानी कि तू असली पंडित ह, खानदानी ... पुरखन के आशीर्वाद प्राप्त ।" - "देखऽ जजमान, तिलाख मत दऽ ! हम असली बरहामन ही । हम तोरा ऊ बाछी अपन खुट्टा में बान्ह के देखा देब तऽ मानऽ ने ?" पंडित जी कहके चाणक्य नियन अपन शिखा खोल देलन आउ कहलन, "बात हमरे तोरा तक रहे के चाही ।") (सारथी॰13:19:4:1.19)
178 तीमरदारी (दिन भर आज्ञाकारी नौकर जइसन ओक्कर तीमरदारी करऽ त आखिरी समय में पचास गो रुपइया अइसन थम्हइतन जैसे कोय जमींदारी के पट्टा थम्हा रहलन हे ।) (सारथी॰13:19:33:1.38)
179 तुरतमे ("एक्के तुरी एतना पानी ! तुरतमे सगरो अहिल-दहिल हो गेलइ !" नयकी ललचाल नजर से पाईप से निकलइत पानी के मोटगर धार निहारइत रहल ।) (सारथी॰13:19:22:2.38)
180 तुरे (दे॰ तुरी) (एकरा कते तुरे समझइलूँ हें कि चाह के पहिले पानी देबइ के चाही, मुदा ई मन के टाही, काहे ले सुनतो !") (सारथी॰13:19:26:3.48)
181 तेरही (तेरही के ठीक पनरहियाँ रोज शिशुआ-टिशुआ के बाप पाव भर लीची के पोटली लेले पहुँचल आउ अइते मातर तमक के पुछलक, "कने गेल छौंड़न ?") (सारथी॰13:19:15:3.18)
182 थकल-फेदाल (हम साँझ के थकल-फेदाल अपन इस्कुल से चलल आवऽ हली । रस्ते में पंडित जी भेंटा गेला ।) (सारथी॰13:19:3:3.25)
183 थपड़ना (बड़की मइया थपड़-थपड़ सूप उछला-उछला के ढेंकी-मूड़ी तर बइठल-बइठल कूटल चाउर फटक रहल हे । भूसा से देह अटल-पटल हे ।) (सारथी॰13:19:39:1.28)
184 थलबल (~ बाछी) (दोसर दिन हवन भी हो गेल । मोदी जी के घरइया थलबल करिया बाछी पंडी जी के गोंड़ी बन्हा गेल ।) (सारथी॰13:19:5:2.9)
185 थीह-बीह (पसेना से ~) (पसेना से थीह-बीह सिरधर साहस बटोर के बोलल, "ई काम हमरा से नञ् होतो । दोसर कोय काम कहऽ तऽ हम जरूर कर देबो, बकि ई नञ् होतो ।") (सारथी॰13:19:10:2.14)
186 थुरी-थुरी (माय भले शांत बेटी के पीठ पर हाथ फेर रहलन हल, बकि मन में आंधी चल रहल हल - "आउ कुछ से नञ्, अपन लच्छन से ऊँच बनल हलूँ, कंगना मूड़ी गोता देलक । गाँव भर बात बियोवन भे जात । सब थुरी-थुरी करत, केक्कर मुँह पकड़म !") (सारथी॰13:19:12:1.12)
187 दइवा (= दैव + 'आ' प्रत्यय) (जइसन ससुरे कइलका, ओइसन एक लोटा पानी देवइया नञ् रहलन । सोंस हइ छौंड़ा, निरबुधिया । बोलतो कुछ नञ्, अंदरे-अंदरे हम्हड़तो ! अप्पन करनी, दइवा के दोष ! कइलक ऊ, भोगतन के ? जइसन कइलका, ओइसन पइलका, दोसरा के की लेलका !) (सारथी॰13:19:16:2.13)
188 दत्ती ("आय माय ! कनिअइया तऽ बेहोश हइ । एकरा दत्ती लगल हइ ... पानी छीट", मधुरापुर वली मामा कंगना के पकड़इत बोलली ।) (सारथी॰13:19:13:3.14)
189 दनदनाना (हुकुम ~) (बाप के कामचोर, निठलुआ जइसन गारी सुनला पर ऊ बाप के आगू से हटि के आड़ भेल तऽ बाबू आँख लाल-पीअर करइत ओकर माई पर हुकुम दनदना देलक - जगेसरा के जो खाय ले देलें तऽ तोरो भूसा जइसन डेंगा देबउ ।) (सारथी॰13:19:20:2.21)
190 दनादनी (पंडी जी के धाक इलाका में जम गेल । लोग-बाग उनखा से डरऽ लगला । कहल जाय तऽ ऊ गाँव-जवार लेल छुट्टा साँढ़ हो गेला । उनखर खनदानी पेशा दनादनी पर हल । ऊ जे चाहऽ हलन, लेइये के छोड़ऽ हलन । एक से एक ठरनच रचऽ हला ।) (सारथी॰13:19:3:2.27)
191 दहपेल (दरबान मोटर चालू करि देलन होत, काहे कि प्लास्टिक के पाईप से पानी मोटगर धार छिच्छिर-छिच्छिर निकलि के नयका बनल छत पर पसरे लगल हल । मरद पाईप के एने-ओने घुमावइत छत के दहपेल करऽ लगल ।; मरद जब तक साबुन ले आवे, नयकी एक तुरी फिन सौंसे छत पानी से दहपेल करि देलक ।) (सारथी॰13:19:22:2.33, 3.27)
192 दिनकट्टन (फिन मरद ठंढा साँस लेवइत कहलन, "जन्ने देखऽ तन्ने घरे-घर ! पक्का के सुन्नर-सुन्नर घर ! एतना मनी घर में अदमी सब कते सुख से रहऽ होतन ! एगो हमनी अभागल ही ... रजिन्नर नगर के 'फलाय-ओभर' के नीचू रेलवी लैन के बगल में पलास्टिक के 'शीट' से छारल जइसन-तइसन मड़को में दिनकट्टन, ऊ भी मोहाल !") (सारथी॰13:19:22:2.9)
193 दिशा-फरागत (उनखा ले काल साँप बनके आल आउ चुटपुट ले गेल । ऊ अन्हरूक्खे दिशा-फरागत ले निकलऽ हला आउ दिन उगइत एक कोस टहल के चल आवऽ हला । तहिया अइते मातर कहलका, "हमरा कहरैनी पर साँप सूँघ लेलको ... ।" बोलते-बोलते ऊ गिर पड़ला, फेन नञ् उठला ।) (सारथी॰13:19:18:3.37)
194 दिशा-मैदान (मइये के जिद मचइले से की होबत, माय के हुआँ नञ् जाय देवे के हइ । पचहत्तर बरिस के हो गेल हे, देह-हाथ के नस ओइसहीं जनाय पड़ऽ हइ, ओकरा पर आँख से भी लाचार हइ । दिशा-मैदान के खातिर पैन दने जइतन, आउ नेहाय के खातिर ओतने दूर नदी पर जाय पड़त ।) (सारथी॰13:19:32:1.14)
195 दुखम-सुखम (ऊहे पुछलका, "कहऽ समाचार जजमान ! कइसन चल रहल हे ?" हमर जरला घर में नोन रगड़ा गेल बकि निठुरे मन से कहली, "दुखम-सुखम चलिये रहलइ हे सरकार ।" - "दुखम-सुखम काहे ? तूँ तऽ हाय इस्कुल के पंडित जी ह । बन्हल दरमाहा मिलऽ होतो ।" पंडित जी अपन कंधा बदलइत बोलला ।) (सारथी॰13:19:3:3.30, 32)
196 दुगमियाँ (~ औरत) (खुशबू के पिठिया भाय से नञ् रहल गेल, "माय, ई दुगमियाँ औरत के पिटनइ ठीक नञ् हउ", कहइत माय के पकड़ के अलग कइलक राजू ।) (सारथी॰13:19:13:3.10)
197 दुतिया (= द्वितीया) (बचपन के याद करऽ ही तऽ साँझ के जादे तर दोकान में लालटेन जरऽ हल । इक्का-दुक्का जगह पेट्रोमेक्स सनसना हल । अब तऽ बिजली आ गेल हे बकि उनखर दरसन दुतिया के चाने बूझऽ । कब अइथुन, कब जइथुन, अल्लोमियाँ नञ् जानऽ हथ । एक अंतर आल हे । कानफोड़ू हड़हड़ी के साथ जेनरेटर के रोशनी में बजार जरूर जगमगा हे ।) (सारथी॰13:19:28:1.12)
198 दुत्तरी (दे॰ दुत्तेरी, दुत्तोरी) (मरद बेफिक्री से बोलल, "दुत्तरी के ! आज दुन्नूँ परानी मन से नेहाय के सुख ले ली । निम्मन से माथा से नेहा ले आउ कपड़वो फींच ले ।") (सारथी॰13:19:22:3.47)
199 देखा पर चाही ("... रात-दिन वेद-शास्त्र उलटइत-पलटइत रहली, तब जाके एक जगह तनी आस जगल । प्रायश्चित्त के छोट सुराग हमरा जनाल ।", बोलके पंडी जी गुम हो गेला । भीड़ में सन्नाटा छा गेल - "पंडी जी कउन राह बतावऽ हथ, देखा पर चाही !") (सारथी॰13:19:5:1.30)
200 दोहरौनियाँ (कछटा-कछटा के मारिये देलहीं नञ् निगम !" / "ओकरा से सुत्थर-कमासुत माउग अइतउ ?" / "मत मिलइ, दोहरौनियाँ दहेज तऽ मिलतइ ने ।") (सारथी॰13:19:15:3.8)
201 धँसना (अनाज नञ् ~) (मोदी घिघियाल सन बोलल, "सरकार, की हुकुम होवऽ हइ । कोय राह निकालथिन मीरा, बड़ गुन गइबन । कल्ह से केकरो अनाज नञ् धँसल हे ... उबारऽ देवता !") (सारथी॰13:19:5:1.24)
202 धइल (= रखा हुआ) (संयोग से हम छो बजे पढ़ा के घर अइलूँ हल । अइते मातर माय कहलक, "देखहीं ने मउसी कइसे-कइसे दो कर रहलथुन हें ।" हम हड़बड़ाल भित्तर गेलूँ तऽ देखऽ ही मउसी के हिचकी पर हिचकी आ रहल हे । हम कटोरी में धइल गंगा जल उनखर मुँह में देलूँ कि परान टूट गेल ।) (सारथी॰13:19:19:3.16)
203 धड़फड़ाना (फिर कौन मार माय पूरा जिंदगी काटे ला जा रहले हऽ । महीना पुरते नञ पुरते हियाँ आवे लगी धड़फड़ाय लगतइ । हम जा रहलियो हे दिलो, देखियहु, माय के मन कलपे नञ !) (सारथी॰13:19:34:3.27)
204 धम-धम (ढेंकी के ~) (तोरा जाड़ा न लगऽ हो ? चल आवऽ हऽ भिनसरहीं । हमरो सुत्ते न दऽ । ढेंकी के धम-धम में नींद आवऽ हे ?) (सारथी॰13:19:38:3.31)
205 धमार ("शैंपू हइ ।" मरद अभियो हँसि रहल हल, "केस धोवइ ले ।" - "एकरा से हमर केसिया धोवइतइ ? सिरमिट-बालू से तऽ केसिया बगेरी के खोंथा नियन हो गेलइ हे । खाली पइसा के धमार ! एतना में तऽ एक साँझ के तर-तरकारी हो जइते हल ।" औरत शिकायत लहजा में कहलक, मुदा ओकर आँखि नेह से लबालब हल ।) (सारथी॰13:19:22:3.42)
206 धुरियाल (नाना हाहे-फाफे धुरियाल पहुँच गेला । अपना साथ चार गो अदमी ले लेलका हल । यहाँ तऽ बाबा के गोमस्तगीरी नञ् हल, मामा के दरोगइ चलऽ हल । देखते मातर एकार-तोकार करऽ लगल - "कहाँ दौड़ल अइले हें ? नतियन पानी में हलउ ?") (सारथी॰13:19:16:3.29)
207 धुरियाले ("छिया-छिया ! ई की बोलली फूआ ! अइसन में तऽ गाम के काँच-कुमार बिगड़ जात । अगे माय गे माय ! देव ने पित्तर, धुरियाले भित्तर !" रजौली वली फूआ से कहलकी ।) (सारथी॰13:19:13:1.46)
208 धैल बुड़बक (टका-सन जवाब सुनके ठिसुआल नीचे उतरल तऽ भनक पाके जुटल पड़ोसियन ओकरा दुरदुरावऽ लगलन - "धैल बुड़बक, बाप बुझा हऽ । पाल-पो देतो, बेटवन तऽ तोहरे कहइतो ।") (सारथी॰13:19:16:1.1)
209 धोध (हाँ, तऽ जिनखर खिस्सा कहे जा रहलियो हे, उनखर नाम हल रमेसर जी । बड़ा संस्कारी । लहलह करऽ हला । रूप से डबडब ! खाल-पीयल देह । धोध फेंकले जा हल । चलऽ हला तऽ उनखा से आगू उनखर धोधिये मटकल चलऽ हल । छाता आउ बगुली छेंड़ी तऽ उनखर कवच-कुंडल हल ।) (सारथी॰13:19:3:1.29, 30)
210 धोधवरवा ("ओने की ताकऽ हीं चइयाँ, मइया के धोधवरवा ! गोदरेजवा में नञ् एक्को फुट्टल कौड़ी हउ, नञ् लुग्गा-फट्टा ! चेथरियो बटोर के मइये के दे अइलउ", अप्पन बड़की फूआ बिख बुनलकी ।) (सारथी॰13:19:16:2.52)
211 धोधा (नयकी दुलहिन केबाड़ी के फाँक से धोधा देले हुलकि रहलन हल ।) (सारथी॰13:19:5:1.10)
212 धोवन-धावन (अब तऽ बिजली आ गेल हे बकि उनखर दरसन दुतिया के चाने बूझऽ । कब अइथुन, कब जइथुन, अल्लोमियाँ नञ् जानऽ हथ । एक अंतर आल हे । कानफोड़ू हड़हड़ी के साथ जेनरेटर के रोशनी में बजार जरूर जगमगा हे । अइसे ओकर रोशनी में भले दोकान जगमगाय तऽ जगमगाय, सड़क पर तऽ ओकर धोवने-धावन छिटकऽ हे ।) (सारथी॰13:19:28:1.17)
213 नखड़पच्ची (कामो धंधा करे जाहे तऽ ऊ राँड़ी मारऽ हइ । कहऽ हइ, "काम करे जाहे कि चाटे जाहे । जिनगी बर दूसर घर चाटले हे । अप्पन घरवा वाला नीमन न लगो ! लइकवो लेवे के डरे भागल चलऽ हे ।" / "जो कलेसरी ! ई सब ऊ छिनरी के नखड़पच्ची हइ । बेचारी के खाहीं ला देतइ हल तऽ ई दशा होतइ हल ।") (सारथी॰13:19:38:2.40)
214 नरकटिया-जिनोर (अचक्के परेमन परघट भेल आउ सिरधर के हाथ उहाँ ले गेल, जहाँ बर-पीपर के घनगर गाछ बीच एगो अइँटा के लमहर-चौड़गर दलान बनल हल । दूर से ई मकान नजर नञ् आवऽ हल । दूर-दूर तक नरकटिया-जिनोर के खेत लहलहा रहल हल ।) (सारथी॰13:19:12:2.25)
215 नरमाल (विधाता के अपनापन बोली से नरमाल सिरधर के कुरोध खुशबू के देखते मातर ओइसइँ फफा गेल, जइसे सूखल पतहुल पाके कोय बुताल जायत ठिंगोरा ।) (सारथी॰13:19:12:2.44)
216 नहइनाय (= नेहनाय; नहाना) (जब से ऊ मरद के साथ कमाय ले पटना आल हे, नदी में देरी तक नहइनाय ओकरा पिछलउकी जनम के खिस्सा-सन लगल । इहाँ पटना में इज्जत झाँप के रहना भी मोहाल हे, भला नेहाय के सरग वला सुख भोगनइ नसीब में कहाँ ममोसर हो पावऽ हे !) (सारथी॰13:19:23:1.51)
217 निट्ठुर (= निष्ठुर) ("बेचारी के गंजन करके जान ले लेलहो आउ अंतिम अगिया के देतइ ... मइये-बप्पा !" / "राम-राम ! अइसनो निट्ठुर अदमी होवऽ हे !") (सारथी॰13:19:15:1.50)
218 निठलुआ (बाप के कामचोर, निठलुआ जइसन गारी सुनला पर ऊ बाप के आगू से हटि के आड़ भेल तऽ बाबू आँख लाल-पीअर करइत ओकर माई पर हुकुम दनदना देलक - जगेसरा के जो खाय ले देलें तऽ तोरो भूसा जइसन डेंगा देबउ ।) (सारथी॰13:19:20:2.18)
219 निठुरे (~ मन से) (ऊहे पुछलका, "कहऽ समाचार जजमान ! कइसन चल रहल हे ?" हमर जरला घर में नोन रगड़ा गेल बकि निठुरे मन से कहली, "दुखम-सुखम चलिये रहलइ हे सरकार ।") (सारथी॰13:19:3:3.30)
220 निमकी-खमौनी (लगऽ हल भाय के पढ़ गेला से घर के दिन फिर जात । ओकरा जाय घरी गाड़ी चढ़ाबइ ले ओकर मोटरी माथा पर चढ़ाके जा हलूँ । सूट-बूट पेन्हले, मोटरी टाँगले कइसन लगत हल ! भौजाय निमकी-खमौनी के साथ-साथ घी के डिब्बा देबइ ले नञ् भूलऽ हल ।) (सारथी॰13:19:26:3.17)
221 निरबुधिया (जइसन ससुरे कइलका, ओइसन एक लोटा पानी देवइया नञ् रहलन । सोंस हइ छौंड़ा, निरबुधिया । बोलतो कुछ नञ्, अंदरे-अंदरे हम्हड़तो ! अप्पन करनी, दइवा के दोष ! कइलक ऊ, भोगतन के ? जइसन कइलका, ओइसन पइलका, दोसरा के की लेलका !) (सारथी॰13:19:16:2.12)
222 निरासी ("निरासी, मरमा मरल, हमर घर उजाड़के", मामा के बोली हल । / "चमड़िया नोच के देहिया ससार देबउ, नञ् तऽ सले-बले रह, खो-पी । पुरनकी मइया ने मरलउ, नयकी ला देबउ", ई हल टिसुआ बाप के बिख बुझल बोली ।) (सारथी॰13:19:16:3.2)
223 नीलामासा (मंजु माय भुइयाँ में माथा पटकि रहली हे । दाय-माय उनखा सम्हारइ में बेदम । ऊ बजड़-बजड़ के अपन देह बगल-फोर करि लेलन हे । कोय अंग बाकी नञ्, जजा नीलामासा नञ् पड़ल हे । उनखा रेकनी ले लेलक हे - 'नहिरे-ससुरे सब दिन दुखवा भोगलें गे रनियाँ !') (सारथी॰13:19:15:1.13)
224 नेमानी (साँझ तक लउटइत-लउटइत दुन्नूँ दने के लटकल खड़िया भर जा हल उनखर । किनखो हियाँ हरियर तरकरियो मिल जा हल - लउकी, नेनुआ, झींगा, सतपुतिया, साग ... । नेमानी के चूड़ा, चाउर तऽ असालतन ... पहिले पंडी जी, फिर घरइया । समाज के ईहे रेवाज हल ।) (सारथी॰13:19:3:1.17)
225 पउती (हम दूसर ड्योढ़ी में चल जा ही । हमरा बिना पुछले मइया जउन डोमनी के माय ला पुरान धोती पउती से निकालइत हल, कहे लगऽ हे, "देखइत हहीं न, डोमनी के मइया के ! बेचारी के कउन गत कर देलकइ बेटा-पुतोह । तू बड़ी कहऽ हें कि बुढ़वे-बुढ़िया बदमाश हो जा हे, बुढ़ारी में ।") (सारथी॰13:19:38:1.12)
226 पकड़ा-धकड़ी (की हल, की हो गेल ! केतना शांत इलाका हल ! ... कोय रोक नञ्, कोय टोक नञ्, कोय बन्धेज नञ् । हल्ला-गोदाल होवऽ हल तऽ खेत-पथार जोतइ ले । जादे से जादे लाठी-पइना निकलऽ हल, टन-टुन होवऽ हल । लोग-बाग जुमऽ हल, पकड़ा-धकड़ी होल, पर-पंचायत बइठल, ममला मोरत्तम !) (सारथी॰13:19:10:1.9)
227 पजावल (साहित्य के बिना विज्ञान पजावल दुधारी तलवार हो गेल हे, जेकरा से खिलवाड़ करइ वला आदमी अपने हाथ से कटइ ले तैयार हे ।) (सारथी॰13:19:25:3.11)
228 पटउनी ("भइया, आज हमर पचोतरा खंधा में हमर भिठार पटतो । लगले तोहरो खेत हो । पानी ओने भी मोर देबो । पनियौंचा के हिसाब बाद होतइ । ऊ खंधा में टमाटर फट के उपजतइ । बीहन कादिरगंज से लइबइ । नञ् होतइ तऽ पटउनी ले मटकुइयाँ खोद लेबइ ।") (सारथी॰13:19:27:2.43)
229 पतहुल (विधाता के अपनापन बोली से नरमाल सिरधर के कुरोध खुशबू के देखते मातर ओइसइँ फफा गेल, जइसे सूखल पतहुल पाके कोय बुताल जायत ठिंगोरा ।) (सारथी॰13:19:12:2.46)
230 पनडुबनी (देखहीं ने, पलियावली के फलिस्ता के खोंखी नञ् छुट रहले हे । मायो हथ भी तऽ पनडुबनी ! घंटा-घंटा पहर पोखरिया में नहा हइ । बुतरू के मायवला दूध से सर्दी धरऽ हे ।) (सारथी॰13:19:18:2.47)
231 पनसोक्खा (विश्वास हे, विश्व कथा-साहित्य के पनसोक्खा में मगही भी अपन रंग लेले छटा बिखेरवे करत ।) (सारथी॰13:19:2:2.20)
232 पनिऔंचा (दे॰ पनियौंचा) ("देख कारू, खाली पटइले से तऽ खेती नञ् हो जात । ओकरा ले खाद-बीज चाही, पनिऔंचा चाही, अजूरी-मजूरी चाही । ई सब के जुगाड़ कइले बिना कइसे डेग बढ़ावी ?" चन्नर अपन माथा हँसोतइत बोलल ।) (सारथी॰13:19:26:2.48)
233 पम्हीदार (अबकी बड़गो कमरा में दूगो बड़गर चौकी पर तोशक-चद्दर बिछल हल । एगो पर विधाता सीना तर मसनद लेले लेटल हल आउ दोसर पर चार गो पम्हीदार छौंड़ बइठल हल, जेकरा में खुशबू भी एगो हल ।) (सारथी॰13:19:12:2.39)
234 परजात ("मर दुर हो दाय ! चुक्का ने पियाली, छुच्छे कलाली ! ढोल-बाजा बजवे नञ् कइल आउ दुलहिन लगली दुआरी ! नञ् जानु कने से जात कि परजात, उठा लइलक । अइसने पुतहू पर गोड़ भुइयाँ में पड़ रहलइ हे ?" सिहमा वली बोलली ।) (सारथी॰13:19:13:1.39)
235 पर-पंचायत (की हल, की हो गेल ! केतना शांत इलाका हल ! ... कोय रोक नञ्, कोय टोक नञ्, कोय बन्धेज नञ् । हल्ला-गोदाल होवऽ हल तऽ खेत-पथार जोतइ ले । जादे से जादे लाठी-पइना निकलऽ हल, टन-टुन होवऽ हल । लोग-बाग जुमऽ हल, पकड़ा-धकड़ी होल, पर-पंचायत बइठल, ममला मोरत्तम !) (सारथी॰13:19:10:1.10)
236 परवह (देखऽ ही तऽ चिता पर खाली राख बचल हे, जेकरा सब अंजुरी-अंजुरी गंगाजी में परवह करि रहला हे ।; हम झुकलूँ आउ माथा, कंठ, छाती में भभूत लगाके बचल गंगा में परवह करि पानी में उतर गेलूँ ।) (सारथी॰13:19:19:3.36, 43)
237 परसन (अंगना में बरइत ढिबरी के ईंजोर में बेटा के साथे धनेसर खा रहल हे । रोटी के परसन दइत मेहरारू टुभकल, "भाय चार रोज से एको घड़ी घर में नञ् रहऽ हथुन । हिस्सा खातिर टोला के अदमी के टटकोरइ में तऽ नञ् लगल हथुन ?") (सारथी॰13:19:21:3.3)
238 पसोठ ("अरे ! तू केकर-केकर न दूध पीले हें । बेचारी टिमल चमइन आवथ तऽ बिना तोरा दूध पीऔले न जाथ । अब फिलौसफी बकले चलऽ हें ?" / हम सोचऽ लगऽ ही, "इस्कुल से आवे घरी टिमल के मरद लाठा चला रहल हल । गाँव के पंडित जी ओकरा छोड़ा के पहिले लाठा-बरहा, पसोठ धोलन तब अपने से चला के नहइलन हल ।") (सारथी॰13:19:39:3.6)
239 पाव-अधवा (कमर कसलक हे तऽ चूल्हो सोझ होवऽ हे, नञ् तऽ उट्ठा-डम्मर खेती से पेट भरइवला हल । जहिया से गोंड़ी सम्हारलक हे, बाल-बच्चा के पाव-अधवा मिले हे से मिलवे करऽ हे, बाजार नापाइयो आवऽ हे ।) (सारथी॰13:19:27:1.15-16)
240 पिछलउकी (जब से ऊ मरद के साथ कमाय ले पटना आल हे, नदी में देरी तक नहइनाय ओकरा पिछलउकी जनम के खिस्सा-सन लगल । इहाँ पटना में इज्जत झाँप के रहना भी मोहाल हे, भला नेहाय के सरग वला सुख भोगनइ नसीब में कहाँ ममोसर हो पावऽ हे !) (सारथी॰13:19:23:1.52)
241 पित्तर ("छिया-छिया ! ई की बोलली फूआ ! अइसन में तऽ गाम के काँच-कुमार बिगड़ जात । अगे माय गे माय ! देव ने पित्तर, धुरियाले भित्तर !" रजौली वली फूआ से कहलकी ।) (सारथी॰13:19:13:1.46)
242 पुन्नी (हम बुक्काफार के कानऽ लगलूँ । हमरा लगल, "ने गंगा जल देतूँ हल, ने मउसी मरत हल ! मउसी हमरे राह देख रहलन हल ?" कन्ना-रोहट सुनके गाँव भर जुट गेलन । की जन्नी, की मरदाना ! सब के आँख में लोर । / "मउसी पुन्नी हलथिन, शनिच्चर के पीपर में पानी पड़तइ ।") (सारथी॰13:19:19:3.22)
243 पूत-करत (= बाल-बच्चा) (बेचारी तोर माय हमरा तरहत्थी पर रखले रहऽ हे । ओकरा नहइते केश नञ् टूटइ ! सब के तऽ देलिअइ, बेचारी के कुछ नञ् देलिअइ । हे भगवान, ओकर पूत-करत पर ध्यान रखिहो !) (सारथी॰13:19:19:2.10)
244 पोथानी (खटिया के ~) ("एगो ठगनी बुढ़िया हलइ बेटा ! ऊ एगो झाँझी कुतिया पोसलकइ हल ... ", मउसी माय खटिया के पोथानी में बइठल ताड़ के पंखा हौंकइत खिस्सा सुना रहली हे ।; "आँय कारू, तोरा हमर खेती के बड़ चिंता सतइले हउ, की बात हइइ ?" चन्नर सिरहाना दने घसकइत पुछलक ।" / कोय खास बात नञ् हल भइया ! तोहरा सुगबुगाइत नञ् देखके लगल कि की बात हे, जे भइया बइठल हथ ।", करूआ पोथानी दने आमने-सामने होवइत बोलल ।) (सारथी॰13:19:18:1.34, 26:2.40)
245 फक्की (मउसी गाँव भर के डागदरनी हलो । केकरो कुछ संसर-बिसर होवे, मउसी भिजुन पहुँच जाय । मउसी ओकरा देशी नुस्खा बतावे - ""घी हरदी देके गरम दूध पिलावऽ, घाव पर भंगरोइया के रस गार के टपका दऽ, छोहाड़ा पका के कल्ला तर दाबऽ, कसेली जार के फक्की बनाके पीयऽ, पोदीना अरक दऽ, निम्मक चिन्नी-पानी के घोल पिलावऽ ... ।" उनखा पास सब रोग के निदान हल ।) (सारथी॰13:19:18:3.21)
246 फिफरी (मंजु के लहास सड़क पर उतरे-दखिने पाड़ देल गेल । घरइया पछाड़ खा रहल हे, चिरईं-चुरगुनी सकदम ! टोल-पड़ोस के आँख लोरे-झोरे । असमान के तरेंगन तक उदास । चान तऽ झमराल ... ठोर पर फिफरी ।) (सारथी॰13:19:15:1.5)
247 फुचबाबू (ईहो ननमा-ममुआँ नियन समाज में 'सर' बनके रहतइ, सुनि लऽ । ओनमा टिट्टी नञ् जानऽ हलऽ । कंपूटर सिखा देलको तऽ फुचबाबू मित्तम बनल घूमऽ हऽ । हमर नाती केकरो जुत्ती झार के नञ् जीतइ, अपीसर बनतइ ... अफीसर ... हाँ !") (सारथी॰13:19:15:3.46)
248 फुफुइया (=फुफ्फु + 'आ' प्रत्यय) ("एक बात कहिअउ मामा ?" शिशुआ सकसकायत-सकसकायत पुछलक । - "की ?" - "हमर दुइयो के हौल दिलवा नानिये के हइ ?" - "नानी के कइसन रहतउ ? तोरा दुइयो के फुफुइया देलकउ हे ।"; "मामा, हमरा दुइयो के दू दिन ले जाय दऽ । दुइयो भाय हौलदिलवा आउ कटोरवा मांग के ले अइबो ! मइयो मर गेल अउ समनमो छोड़ देम, आँय मामा ?") (सारथी॰13:19:17:1.21)
249 फुरूंगी (अंगना में धूप उतरे लगे तऽ हम बाहरे बधारी में फुरूंगी हो जाई ! घूमघाम के आवी तऽ देखी डोमनी के मइया अंगना में बइठल बासी भात, नीमक-मिचाई या मट्ठा जौरे खा रहल हे ।) (सारथी॰13:19:38:3.47)
250 फुसलउनी (मामा बुतरू के फुसलउनी में फुसला गेली आउ शिशुआ-टिशुआ भोरे नाना के साथ पिंजड़ा से निकलल सुग्गा-सन ननिहाल पहुँच गेल ।) (सारथी॰13:19:17:1.34)
251 फूल-सुंघनी (दुन्नूँ सुगवा शिशुआ-टिशुआ कइसे रहतउ गे बबुनी ! ओकरा फोकचा किन-किन के खिअइतउ गे मंजुआ । के पक्कल-पक्कल आमा ला-ला देतउ गे फूल-सुंघनी !) (सारथी॰13:19:15:1.23)
252 फोंका (= फोला) (विधाता के बोली से जगके कंगना धड़फड़ा के उठल । पछान के ओकर देह में फोंका उठल । नफरत के आग सौंसे शरीर में पसरि के आँख में सिमट आल ।) (सारथी॰13:19:14:1.14)
253 बंधेज (= बन्हेज, बंधेजी; कैदी; बन्धन में पड़ा व्यक्ति) (की हल, की हो गेल ! केतना शांत इलाका हल ! ... कोय रोक नञ्, कोय टोक नञ्, कोय बन्धेज नञ् । हल्ला-गोदाल होवऽ हल तऽ खेत-पथार जोतइ ले । जादे से जादे लाठी-पइना निकलऽ हल, टन-टुन होवऽ हल ।) (सारथी॰13:19:10:1.6)
254 बकरी-उकरी (कभी मइया कहित हल, चाहे दीदी, "एतना भात हइ । रूनिया ला लेले जइहूँ । भूखळ होथ । हमरा घर तऽ कभी अएवे न करथुन । अब खुर-खार करे लायक हो गेलथुन हे । खुर-खार करावऽ न त वने-वने घूमे ला छोड़ दे हऽ । बेटी जात हवऽ । बकरियो-उकरियो त न हवऽ कि चरावऽ-उवऽ । का करऽ हथुन घरवा में ।") (सारथी॰13:19:39:1.45)
255 बगदल ("खैरियत हो तऽ भागऽ, नञ् तऽ अभिये सब गत हो जइतो ।" मोहल्ला के बगदल रूख भाप के बाप जान लेके भागि गेल ।) (सारथी॰13:19:16:1.19)
256 बगलफोर (मंजु माय भुइयाँ में माथा पटकि रहली हे । दाय-माय उनखा सम्हारइ में बेदम । ऊ बजड़-बजड़ के अपन देह बगल-फोर करि लेलन हे ।) (सारथी॰13:19:15:1.12)
257 बध-अधार (सच कहऽ हियो बगेरी नियन खा हो । बेटवो जहिया से गेलो हे, बध-अधारे पर जिन्दा हो । हमर उजड़ल घर सम्हार दऽ समधी जी । नुनुअन के चार-आठ पहर ले जाय दऽ, पहुँचा जइबो ।) (सारथी॰13:19:16:2.32)
258 बनातरी (= बनाय तरी) (औरत दू-तीन तुरी खूब बढ़िया से साबुन लगइलक आउ अपन समुल्ले देह मल-मल के नहाल । अब ऊ बनातरी के धुल गेल हल आउ साफ-सुत्थर लगि रहल हल ।) (सारथी॰13:19:23:2.35)
259 बनाल (= बनावल) (घठाह नियन नाना साथ आल अदमी के चला के ठहर गेला, भुक्खल तऽ भुखले सही, जइबन तऽ देखिये के । दिन भर गाँव में बंगले-बंगले घूम अइला । जजइ गेला, ओजइ सभाखन । रात अइला तऽ समधिन झनकऽ लगली, "गाँव में कुत्ता नियन दुआरी-दुआरी चाट आल चटोरवा, कउन पेट में खात ! हमर बनाल अब कुत्ता खात आउ की ?") (सारथी॰13:19:17:1.1)
260 बपुत्तगर ("बात तऽ तूँ गूढ़ कहऽ हें कारू भाय ! हमरा बहराय में नञ् बनतउ, एकलुआ हिअउ । तों बपुत्तगर हें, जा सकऽ हें, बकि हमरा तोर दोसर बात जँचऽ हउ, 'खेती के ढंग बदलऽ !' ्करा बदे कुछ सोंचले हें तऽ हमरो बताव ।", चन्नर गिलास नीचू रखइत बोलल ।) (सारथी॰13:19:27:2.3)
261 बरहा (हम सोचऽ लगऽ ही, "इस्कुल से आवे घरी टिमल के मरद लाठा चला रहल हल । गाँव के पंडित जी ओकरा छोड़ा के पहिले लाठा-बरहा, पसोठ धोलन तब अपने से चला के नहइलन हल । ... ई बाबाजी तऽ एक तुरी चमरटोली में एगो के घर ढुक गेलन हल । पकड़इला पर हड़कुट्टन होल हल । माथा के टेटन आजो गवाह दे हे । आउ बरहा धोवऽ हथ । अपन कुकरम कइसे धोवऽ सरकार ?") (सारथी॰13:19:39:3.11)
262 बहिंआना (= बाँह से पकड़ना) (ओकर थोबड़ा लटकल हल । हम अकचका के पुछली, "काहे यार ! मुँह सुक्खल काहे हउ ?" आउ ओकरा बहिंअइले अंदर कर लेली ।) (सारथी॰13:19:30:2.53)
263 बिगल (आजे इनखा खाय बिना भी तरसा देलकइ बेटा-पुतोह । देखइत हहीं न, कइसन सूख के ठठरी हो गेलइ हे, बेचारी । आज तो मंगजरउनी लुगवो तक छीन लेलकइ । गनउरा पर के बिगल चेथरी पहिन के आयल हे, बेचारी ।) (सारथी॰13:19:38:1.28)
264 बिचकाना (हम लौटला पर पुछली, "खूब मन लगलो ने पटना में मउसी ?" तऽ ऊ ठोर बिचकाके चुप रह गेली । घुरती साल छोटकी के पोता के बियाह में कतना कोय कहलक, ऊ घुरके पटना नञ् गेली ।) (सारथी॰13:19:19:1.44)
265 बियोवन (माय भले शांत बेटी के पीठ पर हाथ फेर रहलन हल, बकि मन में आंधी चल रहल हल - "आउ कुछ से नञ्, अपन लच्छन से ऊँच बनल हलूँ, कंगना मूड़ी गोता देलक । गाँव भर बात बियोवन भे जात । सब थुरी-थुरी करत, केक्कर मुँह पकड़म !") (सारथी॰13:19:12:1.12)
266 बिरनाम (= बिरनामा) (एक तुरी मंगरुआ के मइया से एगो लौकी मांगलन । ऊ बहाना कर देलन । पंडी जी के मुँह से निकलल, "ठीक हउ ! मत दे ! बकि तहूँ लौकी नेमान नहियेँ करबीं ।" ओही रात रजुआ के बिरनाम भैंसा खुट्टा से खुल गेल । लगल मंगरुआ के दुआरी पर खुरछाहीं करे ले । बगले लौकी के लुहलुह पेड़ हल । पहिले तऽ ओकरा में अँखड़ल । चोखगर सींग के एक्के झटका में पेड़ उखड़ गेल ।) (सारथी॰13:19:3:2.2)
267 बिस्टी (जइसहीं हम ड्योढ़ी में आवऽ ही, वइसहीं एगो कोना में डोमनी के मइया पर हमर नजर पड़ जा हे । नंग-धड़ंग खाली एगो बिस्टी पहिनले, मानो कउनो भूतनी हे । हमरा देखके ऊ सिकुड़े-सिमटे लगऽ हे, जइसे मरइत साँप अपन देह सिकुड़ऽ हे ।) (सारथी॰13:19:38:1.4)
268 बिहनी (कउन एकर मेहरारू के छाँट-बना के दे खाली गुदकावे ला । एही खोजऽ हइ अब एकरा से । ई कूट-छाँट के दे आउ हम खाली बनावी-खाई । ई बेचारी के अब हूब हइ कि कूट-छाँट के देई । सूख के तऽ ठठरी हो गेलइ हे । बिहनी खयलो बिना मार देलकइ । न तऽ अभी कमाय-धमाय जकत न हलथी ।) (सारथी॰13:19:38:1.49)
269 बुझउअल (दे॰ बुझौअल) (साँझ के एकांत में कंगना माय अपन मरद से कहलन, "नञ् जानी हमर भाग में की लिखल हे ... । बेटा बाहरे रहऽ हे । तहू एनइँ-ओनइँ रहऽ ह । कुछ पता हो, घर में कउन गुलगुल्ला पक रहलो हल ?" - "की हलउ से हमरा बुझउअल बुझा रहले हें", गमछी से पसेना पोछइत सिरधर पुछलक ।) (सारथी॰13:19:12:1.31)
270 बुझनगर (शिशुआ-टिसुआ के जिनगी बाप के घर में जेहलो से बत्तर बीत रहल हल । विपत्ति दुइयो के असमय बुझनगर बना देलक हल ।; बेटी श्वेता तऽ तनि बुझनगर हो गेल हे । छोटुआ अभी अबोध हे ।) (सारथी॰13:19:16:3.16, 36:2.8)
271 बुढ़भासना (उनखर सोंचे के दिशा बदलल - "ई बछिया के कउन दोष ! सब गलती बाप के हइ । मुँहजरौना के नञ् सूझले हल कि जुआन बेटी हे, अहुआ-पहुआ के दमाद बनाके घर में रख रहलूँ हें ! आउ फेटा बान्ह के घूमथ गाँव में ! आवे मुँहझौंसा मुँह में उक्का नेस दे हियन । हमरा नोट धरइ ले देलक हल कुकरमाहा कि साँप पोसइ ले देलक हल । ऊहे त कही कि कहाँ के बंक कबड़लइ ! ऊहे झोंटहा देलकइ होत । ईहो मतमरुआ बुढ़भासिये गेलइ ! तब तऽ ओतने में बेटिया के बेच ने देलकइ हल ! एगो बेटिया भार हो रहलइ हल !") (सारथी॰13:19:12:1.23)
272 बेग-ऊग (बात आझ के न हे । ढेर दिन हो गेल । ओती घड़ी एते बेग-ऊग के सहचार न हल । तखनी के गउआँ-पाँड़े एगो खड़िया रखऽ हलन । हमरा भिर के एगो पंडी जी कान्हा पर खड़िया लेके चलऽ हला । दुन्नूँ दने कान्हा में लटकल लुग्गा के खड़िया में लटखुट समान रहवे करऽ हल । जजमान घर जे मिलल, ओकरे में रखले गेला ।) (सारथी॰13:19:3:1.2)
273 बोरिया-बिस्तर (मइया के नञ् मालूम हइ न कि कइसे बाबू जी के मरते ही बड़का बेटा माय के बोरिया-बिस्तर भी बाँध देलक हल आउ हमरा से कहलक हल - ले जो मइयो के, जहाँ ले जाय के हउ ।) (सारथी॰13:19:32:1.3)
274 भंगरोइया (मउसी गाँव भर के डागदरनी हलो । केकरो कुछ संसर-बिसर होवे, मउसी भिजुन पहुँच जाय । मउसी ओकरा देशी नुस्खा बतावे - ""घी हरदी देके गरम दूध पिलावऽ, घाव पर भंगरोइया के रस गार के टपका दऽ, छोहाड़ा पका के कल्ला तर दाबऽ, कसेली जार के फक्की बनाके पीयऽ, पोदीना अरक दऽ, निम्मक चिन्नी-पानी के घोल पिलावऽ ... ।" उनखा पास सब रोग के निदान हल ।) (सारथी॰13:19:18:3.19)
275 भतरखौनी (“दूर जो गे कुलछनी, भतरखौनी पतुरिया । कने से उड़ल-दहाल हमर घर आ गेलें बगिया उजाड़इ ले गे डइनी ! अरे बाप रे बाप ! हम केक्कर मुँह देखके जीबइ हो दइवा ! ई रकसिनियाँ हमर सुगवा के चिबा गेलइ हो मिरवा ! हमर रजवा भर पेट एकरा देखियो नञ् पइलक कि सरंग लग गेल हो बाऊ !”) (सारथी॰13:19:13:2.46)
276 भनभनाल (“एकरा कते तुरे समझइलूँ हें कि चाह के पहिले पानी देबइ के चाही, मुदा ई मन के टाही, काहे ले सुनतो !”/ सनीचरी कुछ कहलक तऽ नञ् बकि मने मन भनभनाल पानी लावे चल गेल । सनीचरी के एकांत में डाँटो, कुछ बात नञ्, बकि दोसरा आगू डाँट गरायन नियन लगतो ।) (सारथी॰13:19:27:1.3)
277 भरनाटी (हम कभियो नञ भुला पइबइ ऊ दिन के ! सप्ताह भर खातिर कचहरी बंद हो गेल हल, भरल कचहरी में शहर के नामी वकील वीरू बाबू के गुंडवन भरनाटी देखा देलक हल । अइसन बंदी होल कि कचहरी में भूत लगल हल भर सप्ताह ।) (सारथी॰13:19:33:3.45)
278 भिट्ठा (~ पटाना) (करूआ लजाल-सन बोलल, "नञ् दादा ! हम झगड़ा पसारे सोंच के नञ् अइली । हमरा लगल कि सौंसे गाँव भिट्ठा पटा रहल हे आउ तूँ काहे नञ् फटफटा रहलऽ हे ।") (सारथी॰13:19:26:1.49)
279 भिठार ("भइया, आज हमर पचोतरा खंधा में हमर भिठार पटतो । लगले तोहरो खेत हो । पानी ओने भी मोर देबो । पनियौंचा के हिसाब बाद होतइ । ऊ खंधा में टमाटर फट के उपजतइ । बीहन कादिरगंज से लइबइ । नञ् होतइ तऽ पटउनी ले मटकुइयाँ खोद लेबइ ।") (सारथी॰13:19:27:2.39)
280 भूर (= भूड़, छेद) (हियाँ के लोगन के तऽ आउर विचित्र हाल हे । जे थरिया में खइतो, ओकरे में भूर कर देतो ।) (सारथी॰13:19:25:1.3)
281 भेंट-मुलाकात ("अरे मौसी" हम भी अप्पन चेहरा पर बनावटी हँसी लाके कहलिअइ, "कखनी अइलऽ ? हमरा तो फुरसते नञ मिलऽ हो कि तोहरा से भेंट-मुलाकात करियो ! कचहरी के काम से फुरसत ही नञ मिल पावऽ हइ ।") (सारथी॰13:19:34:1.29)
282 भोगनइ (जब से ऊ मरद के साथ कमाय ले पटना आल हे, नदी में देरी तक नहइनाय ओकरा पिछलउकी जनम के खिस्सा-सन लगल । इहाँ पटना में इज्जत झाँप के रहना भी मोहाल हे, भला नेहाय के सरग वला सुख भोगनइ नसीब में कहाँ ममोसर हो पावऽ हे !) (सारथी॰13:19:23:1.54)
283 मंगर (चार गाँव के जजमनकइ हल । भोरे नहा-सोना, टिक्का-चन्नन करके निकल जा हला । घरे-घरे घूमऽ हला, "जजमानी, एकादशी परसुन हो । तरसुन पुनियाँ होतो । मंगर के सकरात पड़तो ।") (सारथी॰13:19:3:2.32)
284 मखना (= गाय-भैंस को साँढ़-भैंसा से पाल खाना, मैथुन होना) (हमर गाँव में एगो बनियाँ हल, धैल कंजूस । ऊ घी से निकालल मछियो चूस के फेंकऽ हल । ... ओकर एगो ओसर बाछी हल ... एकबरन कार । ऊ मखियो भी गेल हल । सब लच्छन से पूरल हल ऊ ।) (सारथी॰13:19:4:1.12)
285 मचमचाना (नवीन जी मचमचइले अइला । ड्राइवर के बगल में उपाध्याय जी के देखिके गिरगिट नियन रंग बदलि के बोलला, "आगू आके बइठ गेलऽ हे ... पीछू जा ! एतनो एटिकेट के पता नञ् हो कि हाकिम के बगल में कनीय के न बइठे के चाही ? ऊ जमाना गेलो उपाध्याय जी ! ढेर दिना हमनी के बगल में बइठे न देलहो हे ।") (सारथी॰13:19:30:2.26)
286 मच्च ("हमर गोंड़ी पर गाय नञ् देखवऽ तब ने जजमान", पंडी जी मुस्कुरायत बोलला आउ दाँत से जिलेबी काटलका ... मच्च !) (सारथी॰13:19:5:2.33)
287 मजूर-मजूरिन (कल सगर दिन छत पर मजूर-मजूरिन के तांता लगल हल । साँझे-साँझे एतबड़ लम्बा-चौड़ा छत एक झोंक में ढाल देवे के जद्दोजहद में लगल हलन सब ।; अपन-अपन लोहा के कड़ाही में गारा भर-भर के जल्दी-जल्दी मजूर-मजूरिन के झुंड खोंटा-पिपरी सन धारी बनाके ढो रहलन हल । साँझ गहराइत-गहराइत सौंसे छत पर लोहा के सरिया के जाली गारा से झाँप देवल गेल । सही आउ मजगूत ढंग से ढलइया निबटाके मजूर-मजूरिन के काफिला चलि गेल हल ।) (सारथी॰13:19:22:1.8, 14, 19)
288 मटकुइयाँ ("भइया, आज हमर पचोतरा खंधा में हमर भिठार पटतो । लगले तोहरो खेत हो । पानी ओने भी मोर देबो । पनियौंचा के हिसाब बाद होतइ । ऊ खंधा में टमाटर फट के उपजतइ । बीहन कादिरगंज से लइबइ । नञ् होतइ तऽ पटउनी ले मटकुइयाँ खोद लेबइ ।") (सारथी॰13:19:27:2.43)
289 मतमरुआ (उनखर सोंचे के दिशा बदलल - "ई बछिया के कउन दोष ! सब गलती बाप के हइ । मुँहजरौना के नञ् सूझले हल कि जुआन बेटी हे, अहुआ-पहुआ के दमाद बनाके घर में रख रहलूँ हें ! आउ फेटा बान्ह के घूमथ गाँव में ! आवे मुँहझौंसा मुँह में उक्का नेस दे हियन । हमरा नोट धरइ ले देलक हल कुकरमाहा कि साँप पोसइ ले देलक हल । ऊहे त कही कि कहाँ के बंक कबड़लइ ! ऊहे झोंटहा देलकइ होत । ईहो मतमरुआ बुढ़भासिये गेलइ ! तब तऽ ओतने में बेटिया के बेच ने देलकइ हल ! एगो बेटिया भार हो रहलइ हल !") (सारथी॰13:19:12:1.23)
290 मनमतंगी (ई सब न जुटबबहो तऽ हाथी मनमतंगी जंगल दने भाग जइतो ।) (सारथी॰13:19:36:3.32)
291 मर ("मर दुर हो दाय ! चुक्का ने पियाली, छुच्छे कलाली ! ढोल-बाजा बजवे नञ् कइल आउ दुलहिन लगली दुआरी ! नञ् जानु कने से जात कि परजात, उठा लइलक । अइसने पुतहू पर गोड़ भुइयाँ में पड़ रहलइ हे ?" सिहमा वली बोलली ।) (सारथी॰13:19:13:1.36)
292 मरमा (~ मरना) ("निरासी, मरमा मरल, हमर घर उजाड़के", मामा के बोली हल । / "चमड़िया नोच के देहिया ससार देबउ, नञ् तऽ सले-बले रह, खो-पी । पुरनकी मइया ने मरलउ, नयकी ला देबउ", ई हल टिसुआ बाप के बिख बुझल बोली ।) (सारथी॰13:19:16:3.2)
293 मराँछी (“दूर जो गे कुलछनी, भतरखौनी पतुरिया । कने से उड़ल-दहाल हमर घर आ गेलें बगिया उजाड़इ ले गे डइनी ! अरे बाप रे बाप ! हम केक्कर मुँह देखके जीबइ हो दइवा ! ई रकसिनियाँ हमर सुगवा के चिबा गेलइ हो मिरवा ! हमर रजवा भर पेट एकरा देखियो नञ् पइलक कि सरंग लग गेल हो बाऊ !”; “मरऽ दऽ ! भले मर जाय मराँछी । एगो के खइलक, बचत तऽ नञ् जानु आउ केकरा खात”, सास बोलइत अपन छाती पीटऽ लगल ।) (सारथी॰13:19:13:2.46, 3.16)
294 महगी (= महँगाई) (बजार में साँझ के गहमागहमी हल । दसहरा नगीच हल । केतनो महगी रहे, परब-तेहवार में तऽ पेट काट के भी खरीद-फरोख्त होने सायर हे ।) (सारथी॰13:19:28:1.27)
295 महज्जद (ऊ जिद मचइले कि हम लेइये के जाम । हमरा नञ् रहल गेल, कहलूँ, "मउसी नञ् जाय चाहऽ हइ तऽ तूँ काहे ले महज्जद मचइले हीं ।") (सारथी॰13:19:19:1.51)
296 महमह (पंडित जी के झोरी में बेटा फरऽ हल । उदार होके बाँटले चलऽ हला । ठग विधा के महिमा, घर में रोज छनर-मनर होवइत रहऽ हल ... टोला-पड़ोस महमह !) (सारथी॰13:19:3:3.11)
297 माहटरनी (= मास्टरनी, शिक्षिका) ( उतजोगिया अइसन कि भाय-भतीजा ले एतना अरज गेलन कि उनखनी के जिनगी में कोय चीज के कमी नञ् । अपन दुन्नूँ बेटी के भी पढ़ा-लिखा के माहटरनी बना देलका आउ निम्मन घर-वर देखके बियाह भी देलका ।) (सारथी॰13:19:18:3.34)
298 मिंझराल (कल्ह साँझ खनी मोदी जी के दलान भिजुन तिरकिन भीड़ जुमल हल । इक्का-दुक्का जवार के अदमी भी मिंझराल हलन । सबके चेहरा पर आशंका के बादर मड़रा रहल हल ।) (सारथी॰13:19:5:1.6)
299 मिंझाना (= बुताना; बुझाना) (हम्मर चेहरा उतर गेल मानो कोय पानी डालके धधकइत आग के मिंझा देलक ।) (सारथी॰13:19:34:3.18)
300 मुँहजरौना (उनखर सोंचे के दिशा बदलल - "ई बछिया के कउन दोष ! सब गलती बाप के हइ । मुँहजरौना के नञ् सूझले हल कि जुआन बेटी हे, अहुआ-पहुआ के दमाद बनाके घर में रख रहलूँ हें ! आउ फेटा बान्ह के घूमथ गाँव में ! आवे मुँहझौंसा मुँह में उक्का नेस दे हियन । हमरा नोट धरइ ले देलक हल कुकरमाहा कि साँप पोसइ ले देलक हल । ऊहे त कही कि कहाँ के बंक कबड़लइ ! ऊहे झोंटहा देलकइ होत । ईहो मतमरुआ बुढ़भासिये गेलइ ! तब तऽ ओतने में बेटिया के बेच ने देलकइ हल ! एगो बेटिया भार हो रहलइ हल !") (सारथी॰13:19:12:1.15)
301 मुसड़े (~ ढोल बजाना) (विद्यार्थी के पेट में रिजल्ट के बाद नामांकन के फार-कुदार कूदऽ लगऽ हे । हमर सपना हल कि साइंस कौलेज में एडमिशन हो जाय तऽ मुसड़े ढोल बजावी । न होल तब ? तऽ बीएन कौलेज में भी हो जाय । दुन्नूँ तऽ एक्के इनभरसिटी में हे ।) (सारथी॰13:19:29:2.7)
302 मोछैल ("इधिर आवऽ कका", एगो आन मोछैल बोलल, जेकर कंधा पर राइफल टंगल हल ।) (सारथी॰13:19:12:2.34)
303 मोदियायन (पंडी जी मोदियायन के मन जीतइ ले रोज ओकरा दुआरी पर जाथ आउ आशीर्वादी मुद्रा में गद्गद् भाव से बोलथ - "आज तीज हो जजमानी । आज करमा हो, छठ अजका छोम्मा दिन हो ... ।" अइसने बिन पुछले बोलथ आउ नजर झुकइले गली पार कर जाथ ।) (सारथी॰13:19:4:1.30)
304 मोरत्तम (की हल, की हो गेल ! केतना शांत इलाका हल ! ... कोय रोक नञ्, कोय टोक नञ्, कोय बन्धेज नञ् । हल्ला-गोदाल होवऽ हल तऽ खेत-पथार जोतइ ले । जादे से जादे लाठी-पइना निकलऽ हल, टन-टुन होवऽ हल । लोग-बाग जुमऽ हल, पकड़ा-धकड़ी होल, पर-पंचायत बइठल, ममला मोरत्तम !; ई बियाह बाबा के दरबार में होवत । तूँ दुइयो परानी कंगना के लेके देवघर चलि जइहऽ । एने से खुशबू के माय-बाप पहुँचतन । घंटा भर में सेनुरदान मोरत्तम !) (सारथी॰13:19:10:1.10, 13:1.8)
305 मोह-माया (तोर बाबू जी नञ रहलथुन त का उनखर पूरा जिन्दगी तो हुअईं बितले हऽ न ? अब जौन जगह से तोहर बाबू जी के ठठरी उठले हऽ, ऊ जगह खातिर तोहर माय के मन में मोह-माया तो रहवे न करतइ ।) (सारथी॰13:19:34:2.5)
306 रकसिनियाँ (= रकसीनी + 'आ' प्रत्यय) (“दूर जो गे कुलछनी, भतरखौनी पतुरिया । कने से उड़ल-दहाल हमर घर आ गेलें बगिया उजाड़इ ले गे डइनी ! अरे बाप रे बाप ! हम केक्कर मुँह देखके जीबइ हो दइवा ! ई रकसिनियाँ हमर सुगवा के चिबा गेलइ हो मिरवा ! हमर रजवा भर पेट एकरा देखियो नञ् पइलक कि सरंग लग गेल हो बाऊ !”) (सारथी॰13:19:13:2.50)
307 रतगर (आज सबेरे कुहा लगल हल, से से सनीचरी तनि विलम के जगल हल । ओकरा लगल अभी रतगर हे ।) (सारथी॰13:19:26:1.6)
308 रतजगा ("मउसी के गाँव भर बेटा-बेटी हइ ।" - "रंथी राते बंधा गेल आउ खरिहानी में रखा गेल । गाँव भर ओतुने रतजगा कइलन, निर्गुन गइलन आउ हुमाद अगरबत्ती जरइते रहलन । आउ भोरउए रंथी में कंधा लगइलन ।") (सारथी॰13:19:19:3.30)
309 रबूद (मारके ~ करना) ("मेटाबइ के सपना भुला जा ! अब घुर के ई गली में देखलियो, तऽ नाना-नानी कनउ जाय, हम सब मार के रबूद कर देबो, सुनि लऽ ।") (सारथी॰13:19:16:1.15)
310 रसमलाय (आउ दुइयो यार रामगोपाल मिठाय के दोकान में जाके भर-भर पेट रसमलाय खइलूँ हल तहिया ।) (सारथी॰13:19:29:2.2)
311 रस्ता-गोवारी (~ खाँड़) (दू कोस लमहर पहाड़ के अंचल के बसल कसबा, पहाड़ पर बनल शिवाला आगू में तलाब, चढ़इ लेल सिड़ही, भादो के पुनिया अउ शिवरात में लगइ वला मेला, किउल-गया रेलवे के टीसन, पुरवारी छोर पर पहाड़ काटि के शेरशाह के बनावल रस्ता-गोवारी खाँड़, पछिम में कोस भर लमहर मटोखर दह, दखिन आध कोस पर हुसैनाबाद नवाब के कोठी, मस्जिद अउ पोखर, मोहर्रम के तजिया ।) (सारथी॰13:19:20:3.40)
312 राँड़ी ("से तो हइये हइ भाय साहेब ! मुदा तोहरा की कमी हो ? तूँ झुठकोलवा मन मारले हो । अब तऽ तोहर भाय भी कमौनी करऽ लगलो, तइयो कानिये रहलऽ हे । ई तऽ खिसवा वला हाल होल - 'राँड़ी काने, अहियाती काने, जउर होके सतभतरी काने ।' भला कहऽ, तों जब कानवे करवऽ तऽ हमा-सुमा की करम, जेकरा खेती के अलावे आउ कोय अवलंब नञ् हे ?") (सारथी॰13:19:26:3.6)
313 राछछ (ओकरा अंदर कुछ पनप रहल हल, मुरझा गेल - "रूप से देवदूत, काम से राछछ !" कोमल आउ कठोर के द्वन्द्व में कंगना उलझ गेल हल, बकि ओकर फोटू मन के अइना में उकरि चुकल हल ।) (सारथी॰13:19:11:2.7)
314 रेकनी (मंजु माय भुइयाँ में माथा पटकि रहली हे । दाय-माय उनखा सम्हारइ में बेदम । ऊ बजड़-बजड़ के अपन देह बगल-फोर करि लेलन हे । कोय अंग बाकी नञ्, जजा नीलामासा नञ् पड़ल हे । उनखा रेकनी ले लेलक हे - 'नहिरे-ससुरे सब दिन दुखवा भोगलें गे रनियाँ !') (सारथी॰13:19:15:1.14)
315 रोवा-पिट्टी (रात के लगभग बारह बजि रहल हल । विधाता अपन खास साथी के साथ चुपके पहुँच गेलन । घर में फेन से रोवा-पिट्टी होवऽ लगल कि विधाता रोकइत बोलल, "ई खबर खिंड़इ के नञ् चाही ... चुप !") (सारथी॰13:19:13:3.52)
316 लकलक (छइया-मसान रोदन से असमसान घाट डेरामन लग रहल हल आउ मउसी माय के चिता धू-धू करके लहक रहल हल । बैशाख के मार से दुब्बर गंगा के लकलक धार लगे जइसे भीतरे-भीतरे हम्हड़इत गंगा के आँख से बहल लोरे रहे ।) (सारथी॰13:19:18:1.11)
317 लजाल (करूआ लजाल-सन बोलल, "नञ् दादा ! हम झगड़ा पसारे सोंच के नञ् अइली । हमरा लगल कि सौंसे गाँव भिट्ठा पटा रहल हे आउ तूँ काहे नञ् फटफटा रहलऽ हे ।") (सारथी॰13:19:26:1.47)
318 लटखुट (बात आझ के न हे । ढेर दिन हो गेल । ओती घड़ी एते बेग-ऊग के सहचार न हल । तखनी के गउआँ-पाँड़े एगो खड़िया रखऽ हलन । हमरा भिर के एगो पंडी जी कान्हा पर खड़िया लेके चलऽ हला । दुन्नूँ दने कान्हा में लटकल लुग्गा के खड़िया में लटखुट समान रहवे करऽ हल । जजमान घर जे मिलल, ओकरे में रखले गेला ।) (सारथी॰13:19:3:1.6)
319 लटर-पटर (हिन्दू समाज में कतनो दुख में रहो, तेरहा तक सब नियम निभावहे पड़तो । मंजु के ससुरार में गम के नाम नञ् हल, बकि मुँह के कारिख छोड़ाबइ ले लटर-पटर कइसूँ किरिया-करम चलि रहल हल ।) (सारथी॰13:19:15:2.29)
320 लटियाल (~ केश) ("हाँ बेटा, तोहरा के नञ् पछानत ! हम जतना धड़कन के पछानऽ ही, ओकरा से जादे तोहरा पछानऽ ही", लटियाल-सन सिरधर बोलल आउ अपन माथा हँसोतऽ लगल ।; शैंपू के लटियाल केश में फेन नञ् उठल ।) (सारथी॰13:19:10:1.42, 23:2.6))
321 लड़नइ (दूनू कुतवा लड़नइ छोड़के पूड़ी खाय लगल । ऊ जातरी तऽ मुँह बाके टुकुर-टुकुर ताकइत रहिये गेल । दोसरो मोसाफिर ठक ।) (सारथी॰13:19:20:1.22)
322 लत-फलहेरी (खरिहान के बिसुन-पिरीत तऽ जजमान काढ़के घरो पहुँचा दे हल । गाछ-बिरिछ, लत-फलहेरी के पहिल फर पंडी जी लेता । कातो ओकरा से सब गरह-गोचर कट जाहे । पंडी जी अही-बही ! कहावत हे - बुड़बक के हर पंडित जी के खेत !) (सारथी॰13:19:3:1.21)
323 ललकी (थोड़के दूर में एगो सड़क बन रहल हल । जोर-शोर से काम लगल हल । टरक के टरक गिट्टी-छर्री गिरावल जा रहल हल । कउवा ओतुने से ललकी गिट्टी ला-ला कनखा पर चढ़-चढ़ डालऽ लगल ।) (सारथी॰13:19:24:1.26)
324 लहना (ऊ तंग होके कहलन, "हम कुछ जानी-ऊनी न, बकि हमरा में हिम्मत हे । हम सो गो के बेटा-बेटी देही तऽ कि सब झूठे हो जात ? बेटा चाहे बेटी होवे न करत । सो में दस-बीस गो लहिये जाहे । ओही हमर परचारक बन जाहे - 'पंडित जी आगम जानइत हथ ।' ") (सारथी॰13:19:4:1.3)
325 लहलह (हाँ, तऽ जिनखर खिस्सा कहे जा रहलियो हे, उनखर नाम हल रमेसर जी । बड़ा संस्कारी । लहलह करऽ हला । रूप से डबडब ! खाल-पीयल देह । धोध फेंकले जा हल । चलऽ हला तऽ उनखा से आगू उनखर धोधिये मटकल चलऽ हल । छाता आउ बगुली छेंड़ी तऽ उनखर कवच-कुंडल हल ।; सिरधर के साँप सूँघ गेल । ऊ गोस्सा से लहलह करऽ लगल, देह कइरा के पत्ता सन काँपऽ लगल । धुनियाले ऊ विधाता से मिलइ ले चल देलक ।) (सारथी॰13:19:3:1.28, 12:1.39)
326 लाठा (= लट्ठा) (हम्मर मइया पूछऽ हल, "बाबूजी का करइत हथुन रून्ना ?" "लाठा चलावइत हलथी । बिंदेसर गउआँ के ।" रूनिआ कहऽ हल ।) (सारथी॰13:19:39:2.7)
327 लाठा-बरहा ("अरे ! तू केकर-केकर न दूध पीले हें । बेचारी टिमल चमइन आवथ तऽ बिना तोरा दूध पीऔले न जाथ । अब फिलौसफी बकले चलऽ हें ?" / हम सोचऽ लगऽ ही, "इस्कुल से आवे घरी टिमल के मरद लाठा चला रहल हल । गाँव के पंडित जी ओकरा छोड़ा के पहिले लाठा-बरहा, पसोठ धोलन तब अपने से चला के नहइलन हल ।") (सारथी॰13:19:39:3.5)
328 लुहलुह (एक तुरी मंगरुआ के मइया से एगो लौकी मांगलन । ऊ बहाना कर देलन । पंडी जी के मुँह से निकलल, "ठीक हउ ! मत दे ! बकि तहूँ लौकी नेमान नहियेँ करबीं ।" ओही रात रजुआ के बिरनाम भैंसा खुट्टा से खुल गेल । लगल मंगरुआ के दुआरी पर खुरछाहीं करे ले । बगले लौकी के लुहलुह पेड़ हल । पहिले तऽ ओकरा में अँखड़ल । चोखगर सींग के एक्के झटका में पेड़ उखड़ गेल ।) (सारथी॰13:19:3:2.4)
329 लोकाचारी (संवेदनाके मूल खुशबू के मौत से जादे कंगना के वैधव्य हल । लोकाचारी तऽ जरूरी हल । सुख सराध नञ् तऽ पाक तऽ होना हइये हल, से तेरहा गुजर गेल ।; मरद सब रंथी के विधान में लग गेला । मंजु के बाऊ बेचारा टुकुर-टुकुर सब कुछ ताकि रहला हल । पोरसिसिया में मंजु के इस्कुल के साथी-संगी भी आ गेलन हल । ऊ सब रंथी उठले पर पीछू-पीछू असमसान तक गेलन । बलजोबरी रोकल मरद लोकाचारी निभइलन आउ मुखाग्नि देलन ।) (सारथी॰13:19:13:3.42, 15:2.24)
330 विखाद (= विषाद) (तेरहा गुजर गेल । सब के विश्वास हल, विधाता जरूर अइतन, बकि उनखर अप्पन खुफिया तंत्र हल । पुलिस भी मनमनाल हल । दल-बल के साथ पहुँचल हल, बकि निराश लउटि गेल । नाता-कुटुम भी नेग निभा के चलि गेलन । घर विखाद में डूबल हल ।) (सारथी॰13:19:13:3.48)
331 विदत (एतना तप-तपस्या करके, कुटनी-पिसनी करके एगो बेटा पोसलक । पुतोह ढुकलक । जब तक देह में दम हलइ, ऊ राँड़ी के महरानी बनौले रहल । अब बुढ़ारी में विदत करइत हइ । पेट के जरला बेचारी दूसर घर कुछ मांगहू जाहे ।) (सारथी॰13:19:38:2.9)
332 विलम (= विलम्ब, देर) (छइया-मसान रोदन से असमसान घाट डेरामन लग रहल हल आउ मउसी माय के चिता धू-धू करके लहक रहल हल । ... मउसी माय के बेटी पटना से अइलन हल । उनखा आवइ में विलम देखके मुखाग्नि पड़ि गेल हल ।; आज सबेरे कुहा लगल हल, से से सनीचरी तनि विलम के जगल हल । ओकरा लगल अभी रतगर हे ।) (सारथी॰13:19:18:1.15, 26:1.5)
333 संसर-बिसर (मउसी गाँव भर के डागदरनी हलो । केकरो कुछ संसर-बिसर होवे, मउसी भिजुन पहुँच जाय । मउसी ओकरा देशी नुस्खा बतावे - ""घी हरदी देके गरम दूध पिलावऽ, घाव पर भंगरोइया के रस गार के टपका दऽ, छोहाड़ा पका के कल्ला तर दाबऽ, कसेली जार के फक्की बनाके पीयऽ, पोदीना अरक दऽ, निम्मक चिन्नी-पानी के घोल पिलावऽ ... ।" उनखा पास सब रोग के निदान हल ।) (सारथी॰13:19:18:3.17)
334 संस्कारी (हाँ, तऽ जिनखर खिस्सा कहे जा रहलियो हे, उनखर नाम हल रमेसर जी । बड़ा संस्कारी । लहलह करऽ हला । रूप से डबडब ! खाल-पीयल देह । धोध फेंकले जा हल । चलऽ हला तऽ उनखा से आगू उनखर धोधिये मटकल चलऽ हल । छाता आउ बगुली छेंड़ी तऽ उनखर कवच-कुंडल हल ।) (सारथी॰13:19:3:1.27)
335 सइँतल (= सैंतल) (कंगना के आँख से झर-झर लोर बहऽ लगल । माय के दुलार भरल बोली सुनके मन के बात ओइसइँ निकलऽ लगल, जइसे कोठी के आना खुलला पर सइँतल अनाज ।) (सारथी॰13:19:12:1.3)
336 सतपुतिया (साँझ तक लउटइत-लउटइत दुन्नूँ दने के लटकल खड़िया भर जा हल उनखर । किनखो हियाँ हरियर तरकरियो मिल जा हल - लउकी, नेनुआ, झींगा, सतपुतिया, साग ... । नेमानी के चूड़ा, चाउर तऽ असालतन ... पहिले पंडी जी, फिर घरइया । समाज के ईहे रेवाज हल ।) (सारथी॰13:19:3:1.17)
337 सभाखन (= सबाखन; पहरने के कपड़े तथा आभूषण; विवाह, बिदाई, संस्कार आदि के अवसरों पर दिए जाने वाले वस्त्र तथा जेवर) (नाना घामि गेला बदलल बोली सुनके । गेट खोलल गेल आउ यथा-जोग सभाखन होवऽ लगल । पानी से शुरू भेल आउ मर-मिठाय, चाय पर अंत भेल ।; घठाह नियन नाना साथ आल अदमी के चला के ठहर गेला, भुक्खल तऽ भुखले सही, जइबन तऽ देखिये के । दिन भर गाँव में बंगले-बंगले घूम अइला । जजइ गेला, ओजइ सभाखन ।) (सारथी॰13:19:16:2.5, 3.52)
338 सहचार (= चलन, रिवाज, प्रचार; संगत, साथ; साथी) (बात आझ के न हे । ढेर दिन हो गेल । ओती घड़ी एते बेग-ऊग के सहचार न हल । तखनी के गउआँ-पाँड़े एगो खड़िया रखऽ हलन । हमरा भिर के एगो पंडी जी कान्हा पर खड़िया लेके चलऽ हला । दुन्नूँ दने कान्हा में लटकल लुग्गा के खड़िया में लटखुट समान रहवे करऽ हल । जजमान घर जे मिलल, ओकरे में रखले गेला ।) (सारथी॰13:19:3:1.2)
339 सहदेव (हमनी नियन निमरा तऽ नाहक तबाह हो रहल हे । भीतर के मार तऽ सहदेवे जानता । अइसन चोट लगल हे कि ने हँस सकऽ ही, ने कानि सकऽ ही ।) (सारथी॰13:19:10:1.20)
340 सहल (लोग-बाग जुट गेलन तऽ कथा शुरू भेल । कथा पर बइठे ले मोदियायन के बड़ बेटा दिलीप सहल हल । ओही जजमान बनल ।) (सारथी॰13:19:4:2.24)
341 सहाना (= उपवास करवाना) (भूखल हाथी नियन जनावर तऽ दोल जाहे, ई तऽ बुतरुए हल । कानते-कानते दुइयो बीमार पड़ गेल । बोखार के नाम पर आउ दुयो के सहा देलक । दवाय के नाम पर ऊहे गरम पानी, बस ! फूल-सन बुतरू, ढढरी होके रह गेल, तइयो कसइयन के दरद नञ् बुझाल ।) (सारथी॰13:19:16:3.22)
342 सहेजना (मगही कथा लेखक से हमर निहोरा हे कि कथावस्तु ले आसपास अकानऽ । ढेर-ढेर प्लोट तोहरा ताकि रहलो हे । ओकरा तूही सहेज सकऽ ह, नञ् तऽ छूटल रहि जात !) (सारथी॰13:19:2:2.23)
343 सायर (बजार में साँझ के गहमागहमी हल । दसहरा नगीच हल । केतनो महगी रहे, परब-तेहवार में तऽ पेट काट के भी खरीद-फरोख्त होने सायर हे ।) (सारथी॰13:19:28:1.28)
344 सार (= सौर, प्रसूति-गृह) (ओने दुन्नूँ भाय जइते मातर दादी के गोड़ छूलक कि अंदर के आग भभा के निकलऽ लगल, "गोड़ की लगऽ हें । माय के खयबे कइलें, बापो के चिबा जइहें । तोरा नियन कपूत के तऽ सारे में जार देबइ के हलइ ।") (सारथी॰13:19:16:2.42)
345 सिरहाना (चन्नर बोलल, "बइठ मरदे ! पहिले चाहा पी ले, फेन जने जाय के रहउ, जो !" पीठ पर हाथ रखइत चन्नर प्यार से बोलल । करूआ आखिर आग्रह टार नञ् सकल, बइठ गेल । ओने सनीचरी चाह के ओर-बोर में लग गेल । / "आँय कारू, तोरा हमर खेती के बड़ चिंता सतइले हउ, की बात हइइ ?" चन्नर सिरहाना दने घसकइत पुछलक ।) (सारथी॰13:19:26:2.40)
346 सीधा (उनखर कहनाम हल - बरहामन आउ गाय के पेट घुमले से भरऽ हे । कउनो जजमान के एगो जनउआ देलका तऽ ऊ एगो सीधा काहे ने दे देत ? एगो सीधा माने एक अदमी के खाय भर चाउर, दाल, तरकारी कम से कम जरूर ।) (सारथी॰13:19:3:1.11, 12)
347 सुटके (दुइयो सुटके आके गोड़ छूलन । "कोय दिक्कत तऽ न भेल ?" सिरधर के लहजा में प्यार आउ सरधा घुलल हल ।) (सारथी॰13:19:11:1.21)
348 सुबुक (= आसान; हलका; सुविधाजनक) (दुइयो सुटके आके गोड़ छूलन ।/ "कोय दिक्कत तऽ न भेल ?" सिरधर के लहजा में प्यार आउ सरधा घुलल हल । / "नञ् कका, दिक्कत कइसन ? सुबुक से चल अइली । अपने के घर हे भी तऽ एकरगी में । कहल-बदल हइये हल, अप्पन घर-सन चलि अइलूँ ... बस !") (सारथी॰13:19:11:1.24)
349 सेयान ("दुइयो के सेयान से जादे गेयान हइ । ननियाँ सोगाही जे कहतो, सेहे करतो । बप्पा के तनी बेइज्जती करइलके हे ! मुँहझौंसा, लगऽ हे कइसन सूअर नियन !") (सारथी॰13:19:16:2.47)
350 स्वीकारना ("बकि हमरा एतराज हे । हम कोय हालत में फेन से सगाय न करब । एक तुरी थोपल दुलहा से मांग टिपइलूँ, सेकर तऽ ई गति भेल, फेन थोपले दुलहा हम न स्वीकारम । फेन मुड़ली बेल तर !" कड़क के कंगना बोलल ।) (सारथी॰13:19:14:3.2)
351 हँड़ला (शालिग्राम भगवान के असनान करावे ला पंचामृत में डालल गेल । हँड़ला के दिलीप दुन्नूँ हाथ से झाँपले हल आउ पंडी जी ताबड़तोड़ मंतर पढ़ि रहला हल ।) (सारथी॰13:19:4:2.27)
352 हँहड़ना (आउ झोल-फोल तक सिरधर भीतरे-भीतरे हँहड़इत ओजइ गोड़ा-टाही करइत रहल । अन्हार रस-रस अपन माया पसारि रहल हल ।) (सारथी॰13:19:12:2.11)
353 हउले-फउले ("कोय बड़गो नञ्, हउले-फउले मदद चाही ।" - "तइयप ... ", हकलायत सिरधर बोलल ।) (सारथी॰13:19:10:2.1)
354 हड्डुस (झरना-सन पानी के मोट धार औरत के माथा आउ देह पर गिरे लगल । औरत दुन्नूँ हाथ से अपन केश के रगड़इत पानी के धार अपन मुँह पर ले लेलक - आऽह ! ओकर जी जुड़ा गेल । ओकरा लगल - बछरो बाद सचकोलवा नहान नहा रहल हे ... हड्डुस ... हड्डुस !) (सारथी॰13:19:23:1.43, 44)
355 हथबत्ती (हाँ, तऽ छौंड़किन चल गेल । मउसी संझउकी देव-पितर कइलक, पिंडा बबाजी भिजुन धूप-दीप जरइलक आउ हमरा से कहलक, "हथबतिया लेके तीन गलिया टपा दिहें नुनु, पुरवारी टोला देवता के गीत गाबइ ले जइबइ ।") (सारथी॰13:19:18:2.44)
356 हदर-बदर (हम हदर-बदर रिजल्ट देखऽ लगलूँ । बिन्दु मुस्कुरा रहल हल । / "हो गेलउ ने संतोख ?" बिन्दु पुछलक । / "संतोख लायक तऽ रिजल्ट न अइलउ बिन्दु । हम उमेद करऽ हलिअउ, कम से कम दस गो प्रथम श्रेणी में जरूर निकलतन ।") (सारथी॰13:19:29:1.39)
357 हमा-सुमा ("से तो हइये हइ भाय साहेब ! मुदा तोहरा की कमी हो ? तूँ झुठकोलवा मन मारले हो । अब तऽ तोहर भाय भी कमौनी करऽ लगलो, तइयो कानिये रहलऽ हे । ई तऽ खिसवा वला हाल होल - 'राँड़ी काने, अहियाती काने, जउर होके सतभतरी काने ।' भला कहऽ, तों जब कानवे करवऽ तऽ हमा-सुमा की करम, जेकरा खेती के अलावे आउ कोय अवलंब नञ् हे ?") (सारथी॰13:19:26:3.8)
358 हरसांकर (चन्नर के ध्यान अपन छोट भाय दने चल गेल । बंगलोर में इंजीनियर हे । बाले-बच्चे उहइँ रहऽ हे । कत्ते साध लगाके पढ़इलूँ हल । ओकरे पढ़ाय में हरसांकर भी हो गेलूँ । लगऽ हल भाय के पढ़ गेला से घर के दिन फिर जात ।) (सारथी॰13:19:26:3.13)
359 हलबट्टा (= हलवाई की दुकान; हलवाइयों का टोला या मुहल्ला) (नगीच गेला पर मौखिक पाँ-लग्गी कइली आउ पुछली, "मोदी जी पर तोहर जादू चलल कि फेल ?" कनखी से चुप रहे के इशारा करइत पंडी जी हमरा हलबट्टा में ले गेलन आउ पाव-पाव भर जिलेबी लावे के हुकुम देलन । हमर मन अकुला रहल हल । फिन पुछली, "बोललऽ नञ् सरकार ?") (सारथी॰13:19:5:2.27)
360 हिंड़होरना (पंडी जी कहलका, "शालिग्राम करकी केवाल मट्टी के बनल हला, जे पंचामृत में बिलबिला गेला । जजमान खोजइ में हिंड़होर के उनका भी पंचामृत बना देलन । हम एते देरी मंतर पढ़ली कि गोराके एकबरन हो गेलन ।) (सारथी॰13:19:5:2.48)
361 हिया-हारल ("अइसन हिया-हारल काहे बोलऽ हो । उनखा जउन चीज के जरूरत रहन, हमरा कहऽ । हम माहवारी किश्त में ला देवो ।") (सारथी॰13:19:36:3.35)
362 हुलुक-बुलुक (संयोग से एगो घइला जनाल । ओकर उमेद बढ़ गेल । ऊ उड़ल-उड़ल आल आउ घइला के कनखा पर बइठ के हुलुक-बुलुक करऽ लगल ।) (सारथी॰13:19:24:1.9)
363 हौलदिल ("एक बात कहिअउ मामा ?" शिशुआ सकसकायत-सकसकायत पुछलक । - "की ?" - "हमर दुइयो के हौल दिलवा नानिये के हइ ?" - "नानी के कइसन रहतउ ? तोरा दुइयो के फुफुइया देलकउ हे ।"; "मामा, हमरा दुइयो के दू दिन ले जाय दऽ । दुइयो भाय हौलदिलवा आउ कटोरवा मांग के ले अइबो ! मइयो मर गेल अउ समनमो छोड़ देम, आँय मामा ?") (सारथी॰13:19:17:1.18, 28)
2 अँफड़ल (सब्जी चौक पर मिलऽ हल । उतर के जाय लगलूँ तऽ पंडी जी के खड़िया पर नजर पड़ गेल । खड़िया अँफड़ल जा हल । हमरा लगल - आज पंडी जी के जतरा बनल बुझा हे ।) (सारथी॰13:19:5:2.22)
3 अंगठियाना (ई बात नञ हे कि हम्मर आवाज ओकरा तर नञ पहुँचले हल लेकिन ऊ सुनके भी अंगठिया देलक हल ।) (सारथी॰13:19:32:3.28)
4 अखरना (आज माय के जरूर अखरले होत कि शैलजा चुपचाप चाह रखके निकल गेल, बगैर कुच्छो बोलले । हम जामऽ ही लेकिन माय मुँह से कुच्छो नञ बोलक । बस अप्पन गोस्सा के जाहिर करे खातिर ऊ पियाली के ठेलके एक दने हटा देलक ।) (सारथी॰13:19:32:3.8)
5 अगलगउनी (ओकर गोड़ के महावर, हाथ के मेंहदी आउ कलाय के चूड़ी दप-दप दमक रहल हल । खुशबू माय चूड़ी भरल कलाय के उठा के पटक देलन - अगलगउनी, मंगजरउनी, चूड़ी चमचमा रहले हें । खन-खन बोलइत चूड़ी चूर-चूर होके बिखर गेल । कंगना के कलाय में गड़ल चूड़ी के टुकड़ी लहू-लुहान करि देलक ।) (सारथी॰13:19:13:3.3)
6 अचरा-कचरा (हम्मर धार राजा सगर के साठ हजार बेटन के तार देलक । हमरा सब 'माय' कहऽ हे आउ हमरे गोदिया में झाड़ा-पैखाना, थूक-खखार, अचरा-कचरा फेंकऽ हे ।) (सारथी॰13:19:25:1.6)
7 अजका (पंडी जी मोदियायन के मन जीतइ ले रोज ओकरा दुआरी पर जाथ आउ आशीर्वादी मुद्रा में गद्गद् भाव से बोलथ - "आज तीज हो जजमानी । आज करमा हो, छठ अजका छोम्मा दिन हो ... ।" अइसने बिन पुछले बोलथ आउ नजर झुकइले गली पार कर जाथ ।) (सारथी॰13:19:4:1.33)
8 अजनास (= विरल; दुर्लभ; प्रिय, प्यारा) (हम घर गेली हल । ढेर दिना पर गेला के बाद गाँव-घर, उहाँ के लोग-बाग, यार-दोस्त अजनास के लगऽ हे । से हम खइली तऽ घर में बकि हाथ सूखल बाहरे ।; झुन्नू सले-सले गेल आउ सुरंजना के देह से लगि के ओकर चिक्कन बाँह सहलावऽ लगल । सुरंजना पलटि के बोलल, "लिलकल सन काहे करऽ ह । से कि हम आज अजनास के मिललियो हे । तेकरो में बुतरू-बानर घरे में हे । देख लेतो त की कहतो ?") (सारथी॰13:19:28:1.3, 37:2.5)
9 अजमावल (हमर पुरखन पियास बुझइलन हल घइला में कंकड़ डाल के । हमहूँ ऊहे अजमावल तरीका अपनइलूँ मुदा हमर पियास न बुझल सरकार ।) (सारथी॰13:19:24:2.15)
10 अजूरी-मजूरी ("देख कारू, खाली पटइले से तऽ खेती नञ् हो जात । ओकरा ले खाद-बीज चाही, पनिऔंचा चाही, अजूरी-मजूरी चाही । ई सब के जुगाड़ कइले बिना कइसे डेग बढ़ावी ?" चन्नर अपन माथा हँसोतइत बोलल ।) (सारथी॰13:19:26:2.48)
11 अटल-पटल (बड़की मइया थपड़-थपड़ सूप उछला-उछला के ढेंकी-मूड़ी तर बइठल-बइठल कूटल चाउर फटक रहल हे । भूसा से देह अटल-पटल हे ।) (सारथी॰13:19:39:1.31)
12 अनजोक्खे (महीना दू महीना शांत रहल । एक दिन भोरउए अनजोक्खे टिसुआ के बाबा ग्रील गेट झनझनावइत हँकार देलका, "अरे शिशुआ-टिसुआ, मामा घरे हथुन रेऽऽऽ !") (सारथी॰13:19:16:1.42)
13 अनपुछ (करूआ अप्रत्याशित सवाल से तिलमिला गेल । ओकर अप्पन पीड़ा फूट पड़ल, "हमर भाय तऽ शुरुए से घर-गाँव अनपुछ कर देलको । मुश्किल से ओकर मोबाइल नम्बर नोट कैलियो । पुछलियो तऽ निठुरे नियन कह देलको, 'एक छेदमाही बचवे नञ् करऽ हउ तऽ भेजिअउ की ? हमरो हिसबा से पेट नञ् भरऽ हउ ?' की करियो, संतोख कर गेलियो । एक बात हो कि हम तोहरा नियन बइठल नञ् ही, अहल-बहल करिये रहली हे ।) (सारथी॰13:19:26:3.36)
14 अन्हर-जाल ("नञ, झूठ तो नञ बोल रहल हे, मुदा हम की करियइ । नौकरी जोगे में साँस भी लेवे के फुरसत नञ मिलऽ हो । हाय-हाय करइत सबेरे उठऽ, चूल्हा-चौका करऽ, बुतरून के खिलावऽ-पिलावऽ, फिर घरे लौटऽ त ओही अन्हर-जाल ।") (सारथी॰13:19:34:1.40)
15 अन्हरूक्खे (उनखा ले काल साँप बनके आल आउ चुटपुट ले गेल । ऊ अन्हरूक्खे दिशा-फरागत ले निकलऽ हला आउ दिन उगइत एक कोस टहल के चल आवऽ हला । तहिया अइते मातर कहलका, "हमरा कहरैनी पर साँप सूँघ लेलको ... ।" बोलते-बोलते ऊ गिर पड़ला, फेन नञ् उठला ।) (सारथी॰13:19:18:3.37)
16 अन्हरोखे (अन्हरोखे जगेसर उठल अउ चल देलक अनजान मंजिल के खोज में ।गाम के टीसन छोड़ि अगला टीसन पर रेलगाड़ी पकड़ि के गया ।) (सारथी॰13:19:20:2.43)
17 अपीसर (ईहो ननमा-ममुआँ नियन समाज में 'सर' बनके रहतइ, सुनि लऽ । ओनमा टिट्टी नञ् जानऽ हलऽ । कंपूटर सिखा देलको तऽ फुचबाबू मित्तम बनल घूमऽ हऽ । हमर नाती केकरो जुत्ती झार के नञ् जीतइ, अपीसर बनतइ ... अफीसर ... हाँ !") (सारथी॰13:19:15:3.47)
18 अफीसर (ईहो ननमा-ममुआँ नियन समाज में 'सर' बनके रहतइ, सुनि लऽ । ओनमा टिट्टी नञ् जानऽ हलऽ । कंपूटर सिखा देलको तऽ फुचबाबू मित्तम बनल घूमऽ हऽ । हमर नाती केकरो जुत्ती झार के नञ् जीतइ, अपीसर बनतइ ... अफीसर ... हाँ !") (सारथी॰13:19:15:3.48)
19 अमोढकार (मंजु के माय के अमोढकार रोदन पर भुइयाँ से अकास तलक मर्माहत । एकलौती बेटी हल ।) (सारथी॰13:19:15:1.6)
20 अरघौती (जनमभूमि के ऊ सूरत खोजला पर भी नजर नञ् आल जे ओकर मन में बसल रहे । धूरी उड़इत ऊ सड़क अब अलकतरा से पोतल चकचक करि रहल हे । ... छठ वरती लेल रतोइया नदी में पक्का घाट बन गेल हे तऽ अरघौती पोखर के काया पलट भे गेल हे ।) (सारथी॰13:19:21:2.8)
21 अलोपाना (= अलोप करना) ("फारे-फार किस्सा सुनावऽ सरकार", हम जिलेबी उठावइत कहली । आउ पंडी जी सरे नो से खिस्सा सुना देलका । हम सुन के चकड़बम रह गेली । हमरा लगल, तब तऽ पंडी जी सचकोलवा के ब्रह्म विद्या जानऽ हथ । ई तऽ शालिग्राम तक के अलोपा दे हथ ।) (सारथी॰13:19:5:2.40)
22 असमसान (= श्मशान) (मरद सब रंथी के विधान में लग गेला । मंजु के बाऊ बेचारा टुकुर-टुकुर सब कुछ ताकि रहला हल । पोरसिसिया में मंजु के इस्कुल के साथी-संगी भी आ गेलन हल । ऊ सब रंथी उठले पर पीछू-पीछू असमसान तक गेलन । बलजोबरी रोकल मरद लोकाचारी निभइलन आउ मुखाग्नि देलन ।) (सारथी॰13:19:15:2.23)
23 असालतन (साँझ तक लउटइत-लउटइत दुन्नूँ दने के लटकल खड़िया भर जा हल उनखर । किनखो हियाँ हरियर तरकरियो मिल जा हल - लउकी, नेनुआ, झींगा, सतपुतिया, साग ... । नेमानी के चूड़ा, चाउर तऽ असालतन ... पहिले पंडी जी, फिर घरइया । समाज के ईहे रेवाज हल ।) (सारथी॰13:19:3:1.18)
24 अहियाती ("से तो हइये हइ भाय साहेब ! मुदा तोहरा की कमी हो ? तूँ झुठकोलवा मन मारले हो । अब तऽ तोहर भाय भी कमौनी करऽ लगलो, तइयो कानिये रहलऽ हे । ई तऽ खिसवा वला हाल होल - 'राँड़ी काने, अहियाती काने, जउर होके सतभतरी काने ।' भला कहऽ, तों जब कानवे करवऽ तऽ हमा-सुमा की करम, जेकरा खेती के अलावे आउ कोय अवलंब नञ् हे ?") (सारथी॰13:19:26:3.6)
25 अहिल-दहिल ("एक्के तुरी एतना पानी ! तुरतमे सगरो अहिल-दहिल हो गेलइ !" नयकी ललचाल नजर से पाईप से निकलइत पानी के मोटगर धार निहारइत रहल ।) (सारथी॰13:19:22:2.39)
26 अही-बही (खरिहान के बिसुन-पिरीत तऽ जजमान काढ़के घरो पहुँचा दे हल । गाछ-बिरिछ, लत-फलहेरी के पहिल फर पंडी जी लेता । कातो ओकरा से सब गरह-गोचर कट जाहे । पंडी जी अही-बही ! कहावत हे - बुड़बक के हर पंडित जी के खेत !) (सारथी॰13:19:3:1.23)
27 अहुआ-पहुआ (उनखर सोंचे के दिशा बदलल - "ई बछिया के कउन दोष ! सब गलती बाप के हइ । मुँहजरौना के नञ् सूझले हल कि जुआन बेटी हे, अहुआ-पहुआ के दमाद बनाके घर में रख रहलूँ हें ! आउ फेटा बान्ह के घूमथ गाँव में ! आवे मुँहझौंसा मुँह में उक्का नेस दे हियन । हमरा नोट धरइ ले देलक हल कुकरमाहा कि साँप पोसइ ले देलक हल । ऊहे त कही कि कहाँ के बंक कबड़लइ ! ऊहे झोंटहा देलकइ होत । ईहो मतमरुआ बुढ़भासिये गेलइ ! तब तऽ ओतने में बेटिया के बेच ने देलकइ हल ! एगो बेटिया भार हो रहलइ हल !") (सारथी॰13:19:12:1.16)
28 आँधर ( ई बेचारी के तनि देख तऽ एकदम गउ हलन । केकरो से भर मुँह आज तक बोललन न । कुटनी-पिसनी करके बेटा के पाललन-पोसलन । मरदाना बेचारी के आँधर हलन । अपने भी एक आँख में फूला हल । कम लउकऽ हल । तइयो बेचारी दू-चार कट्ठा खेत हल, ओकरा बचाके रखलक ।; एतना तप-तपस्या करके, कुटनी-पिसनी करके एगो बेटा पोसलक ।; डोमनी के मइया हमर घर कुटनी-पिसनी करऽ हल ।) (सारथी॰13:19:38:1.22, 2.6, 3.6)
29 आऊ (= अउकी, उकी, उका) ("कनियाय ?" विधाता पुछलन । / "आऊ, ऊ भित्तर में हो कुलछनी !"/ विधाता दनदनाल भित्तर पहुँचल तऽ दंग रह गेल । कंगना जनावर नियन भुइयाँ में पटाल हल ।) (सारथी॰13:19:14:1.3)
30 आना (= आन; कोठी या बखारी का अनाज निकालने का छेद, मोहरवा; बखारी या कोठी के छेद का मूंदन) (कंगना के आँख से झर-झर लोर बहऽ लगल । माय के दुलार भरल बोली सुनके मन के बात ओइसइँ निकलऽ लगल, जइसे कोठी के आना खुलला पर सइँतल अनाज ।) (सारथी॰13:19:12:1.3)
31 आहि (दिलीप रो-रो के कहे लगल, "हम अपने हाथ से भगमान जी के हाँड़ी में रखके दुन्नूँ हाथ से झाँपले हली । पंडी जी मंतर पढ़इत हलन । पंडित जी के कहला पर निकाले ले हाथ देलूँ तऽ हइये न हथ ! आहि रे बाप, अब की होबत ?") (सारथी॰13:19:4:3.8)
32 आहि-उपाहि (दे॰ आहि-उपाय) (बेटा, एकरा जरी बढ़ियाँ डागदर से देखा दे । हमर बतावल सब आहि-उपाहि नञ् लाग ले रहलउ हे ।) (सारथी॰13:19:19:2.39)
33 उकरना (ओकरा अंदर कुछ पनप रहल हल, मुरझा गेल - "रूप से देवदूत, काम से राछछ !" कोमल आउ कठोर के द्वन्द्व में कंगना उलझ गेल हल, बकि ओकर फोटू मन के अइना में उकरि चुकल हल ।) (सारथी॰13:19:11:2.10)
34 उगरना (खुशी के दिन देखते-देखते ओरा जाहे । ऊ दिन दउड़ल आ गेल, जउन दिन मोदिआयन के हियाँ कथा होवत । हमर तिलाख, करकी ओसर बाछी के नक्सा पंडित जी के माथा में अइसन उगर गेल हल, जेकरा पर आउ कउनो बात ठहरवे न करऽ हल ।) (सारथी॰13:19:4:1.54)
35 उचकाना ( पंडित जी कहके चाणक्य नियन अपन शिखा खोल देलन आउ कहलन, "बात हमरे तोरा तक रहे के चाही ।" / सरीयत मान के ऊ अपन खड़िया उचकइलका आउ 'हरे कृष्ण ... हरे कृष्ण ...' जपइत आगू बढ़ गेलन । उनखर चाल एगो योद्धा नियन लग रहल हल, जे अगला मोर्चा फतह करइ ले तैयारी में जा रहल हे ।) (सारथी॰13:19:4:1.26)
36 उझकना (ऊ देरी तक सीमेंट के गारा से एकदम चीकट होल कपड़ा पर साबुन घिसइत रहल । झाग उठइ के नामे नञ् ले रहल हल । दू-तीन तुरी साबुन रगड़इ के बाद कपड़ा के असली रंग मैल के गाढ़ परत के नीचे से उझके लगल ।) (सारथी॰13:19:23:1.17)
37 उट्ठा-डम्मर (कमर कसलक हे तऽ चूल्हो सोझ होवऽ हे, नञ् तऽ उट्ठा-डम्मर खेती से पेट भरइवला हल । जहिया से गोंड़ी सम्हारलक हे, बाल-बच्चा के पाव-अधवा मिले हे से मिलवे करऽ हे, बाजार नापाइयो आवऽ हे ।) (सारथी॰13:19:27:1.13)
38 उड़नी-बिड़नी (सनीचरी के एकांत में डाँटो, कुछ बात नञ्, बकि दोसरा आगू डाँट गरायन नियन लगतो । चन्नर के जलल-कटल सुनइ के आदी तऽ दुआरिये लाँघते हो गेल । जब तक सास-ससुर बचलन, सनीचरी के पछ लेबइत रहलन । एक तरह से सनिचरी के ऊहे बसइलन नञ् तऽ ई कहिया उड़नी-बिड़नी लगइले रहतन हल । सहलक तऽ बसल आउ चार गो ढेना-ढेनी के पोस रहल हे ।) (सारथी॰13:19:27:1.9-10)
39 उड़ल-दहाल (“दूर जो गे कुलछनी, भतरखौनी पतुरिया । कने से उड़ल-दहाल हमर घर आ गेलें बगिया उजाड़इ ले गे डइनी ! अरे बाप रे बाप ! हम केक्कर मुँह देखके जीबइ हो दइवा ! ई रकसिनियाँ हमर सुगवा के चिबा गेलइ हो मिरवा ! हमर रजवा भर पेट एकरा देखियो नञ् पइलक कि सरंग लग गेल हो बाऊ !”) (सारथी॰13:19:13:2.47)
40 उतजोगिया (उनखर मरद देवता हलन । इलाका में परतिष्ठा हल । नामी होशियार आउ दंगली पहलमान हला । उतजोगिया अइसन कि भाय-भतीजा ले एतना अरज गेलन कि उनखनी के जिनगी में कोय चीज के कमी नञ् । अपन दुन्नूँ बेटी के भी पढ़ा-लिखा के माहटरनी बना देलका आउ निम्मन घर-वर देखके बियाह भी देलका ।) (सारथी॰13:19:18:3.30)
41 उतरे-दखिने (मंजु के लहास सड़क पर उतरे-दखिने पाड़ देल गेल । घरइया पछाड़ खा रहल हे, चिरईं-चुरगुनी सकदम ! टोल-पड़ोस के आँख लोरे-झोरे ।) (सारथी॰13:19:15:1.1)
42 उलाना-पकाना (एगो पुरनियाँ टुभकऽ हथ, "आँय हे निगमा माय ! कनइया के नइहरवा से कार कउओ नञ् अइलो ?" दोसर टुभकली, "की अइते हल बेचारा, बेटी के तऽ उला-पका के मार देलथिन ।") (सारथी॰13:19:15:2.36)
43 एकरगी (दुइयो सुटके आके गोड़ छूलन ।/ "कोय दिक्कत तऽ न भेल ?" सिरधर के लहजा में प्यार आउ सरधा घुलल हल । / "नञ् कका, दिक्कत कइसन ? सुबुक से चल अइली । अपने के घर हे भी तऽ एकरगी में । कहल-बदल हइये हल, अप्पन घर-सन चलि अइलूँ ... बस !") (सारथी॰13:19:11:1.25)
44 एकलुआ ("बात तऽ तूँ गूढ़ कहऽ हें कारू भाय ! हमरा बहराय में नञ् बनतउ, एकलुआ हिअउ । तों बपुत्तगर हें, जा सकऽ हें, बकि हमरा तोर दोसर बात जँचऽ हउ, 'खेती के ढंग बदलऽ !' ्करा बदे कुछ सोंचले हें तऽ हमरो बताव ।", चन्नर गिलास नीचू रखइत बोलल ।) (सारथी॰13:19:27:2.2)
45 एजउका (= इस जगह का) (एतना दिन हम बेटा बिन रहलूँ, अब नञ् रहम । एजउका कोठा-सोफा एकरा की काम देतइ ? अपन घर में रहत, कोड़-कमा के खात ! दलिद्दर तऽ अपन घर में । एजउका सरवस कि एकरा लिख देबहो ?") (सारथी॰13:19:15:3.34, 36)
46 एतुने (= एत्ते; यहीं पर) (आज एतुने नेहा ने ले झलफला के ! देख, कते मनी पानी एजा बहि रहलइ हे !) (सारथी॰13:19:22:3.14)
47 एनइँ-ओनइँ (साँझ के एकांत में कंगना माय अपन मरद से कहलन, "नञ् जानी हमर भाग में की लिखल हे ... । बेटा बाहरे रहऽ हे । तहू एनइँ-ओनइँ रहऽ ह । कुछ पता हो, घर में कउन गुलगुल्ला पक रहलो हल ?" - "की हलउ से हमरा बुझउअल बुझा रहले हें", गमछी से पसेना पोछइत सिरधर पुछलक ।) (सारथी॰13:19:12:1.29)
48 एन्नइँ (पन-छो गो घोड़ा पर बइठल एकलौठा छौंड़ कन्हा में रायफल लटकइले मुँह में करिया गलमोंछी बान्हले एन्नइँ आ रहल हे ।) (सारथी॰13:19:10:1.32)
49 ऐन (कारू बात के पुरान छोरी धइलक, "देखऽ भइया, जे हाल ऐन के से हाल गैन के । कहले से सब बात नञ् जानल-समझल जाहे । हमर बात तों तऽ तोहर बात हम खूब समझऽ ही । खेती करे वला के हाथ हमेशे खाली रहवे करऽ हे । धान-गहुम उपजइला से इज्जत-हुरमत बचना मुश्किल हो ।") (सारथी॰13:19:27:1.44)
50 ओजइ (घठाह नियन नाना साथ आल अदमी के चला के ठहर गेला, भुक्खल तऽ भुखले सही, जइबन तऽ देखिये के । दिन भर गाँव में बंगले-बंगले घूम अइला । जजइ गेला, ओजइ सभाखन । रात अइला तऽ समधिन झनकऽ लगली, "गाँव में कुत्ता नियन दुआरी-दुआरी चाट आल चटोरवा, कउन पेट में खात ! हमर बनाल अब कुत्ता खात आउ की ?") (सारथी॰13:19:16:3.52)
51 ओता (= वहाँ) (भयवा बैंक के बगले झोपड़ी में चाह बेचऽ हल । झुन्नू कते तुरी बैंक के साथी-साथ ओता चाह पीये आवऽ हल ।) (सारथी॰13:19:36:2.33)
52 ओराना (खुशी के दिन देखते-देखते ओरा जाहे । ऊ दिन दउड़ल आ गेल, जउन दिन मोदिआयन के हियाँ कथा होवत । हमर तिलाख, करकी ओसर बाछी के नक्सा पंडित जी के माथा में अइसन उगर गेल हल, जेकरा पर आउ कउनो बात ठहरवे न करऽ हल ।) (सारथी॰13:19:4:1.50)
53 ओसर (ब्याने के उम्र की; पहली बार गाभिन अथवा पहली ब्यान की गाय या भैंस; गाय या भैंस जो दूध नहीं दे रही और गाभिन भी नहीं है, नाठा) (हमर गाँव में एगो बनियाँ हल, धैल कंजूस । ऊ घी से निकालल मछियो चूस के फेंकऽ हल । ... ओकर एगो ओसर बाछी हल ... एकबरन कार । ऊ मखियो भी गेल हल । सब लच्छन से पूरल हल ऊ ।) (सारथी॰13:19:4:1.11)
54 औरदा (= उमर) (दिन-दिन मउसी खमसल जा हल । हमर माय के चिंता बढ़ल जा हल - "लगऽ हइ मउसी माय अब नञ् बचती । इनखा 'टौनिस' लाके दे बेटा ! औरदा छइत इनखर रंथी नञ् उठइ के चाही !"; मउसी कहे, "अब हमरा कथी ले दबाय-बीरो देहें बेटा, बल्लोपुरवली के दे । हमर बचल औरदा ओकरे दे दहो हे भगवथी माय !") (सारथी॰13:19:19:2.44, 50)
55 कंधाजोटी ("बूढ़ा हली, अभी-अभी जुआन हो गेली यार, बलुक इस्कुलिया बुतरू ।", बोलिके मगधेश ओइसइँ ठठाके हँसि पड़ल, जइसे इस्कुल में पढ़े घरी कंधाजोटी कइले खेल के मैदान में ।) (सारथी॰13:19:28:2.47)
56 कछटाना (कछटा-कछटा के मारिये देलहीं नञ् निगम !" / "ओकरा से सुत्थर-कमासुत माउग अइतउ ?" / "मत मिलइ, दोहरौनियाँ दहेज तऽ मिलतइ ने ।") (सारथी॰13:19:15:3.4)
57 कठजीव (उनखर आँख फेन बरसऽ लगल, "बेटा, हम बड़ कठजीव ही । हमर गोदी के खेलावल सब उठ गेल आउ हम कि कउआ के जी खाके अइलूँ हें कि धइल के धइले ही ! हमरा ले भगवान के एक मुट्ठी जगहो नञ् हम !"; धन्य कठजीव ही हम कि कोय तऽ जहर के एक घूँट में टन बोल जाहे, हम पाँच बरिस तक अपमान के जहर पीअइत रहली, बकि न मरली । कभी लगऽ हे - मरि जइतूँ हल, ऊहे अच्छा हल ।) (सारथी॰13:19:19:2.25, 31:1.22)
58 कनउ ("मेटाबइ के सपना भुला जा ! अब घुर के ई गली में देखलियो, तऽ नाना-नानी कनउ जाय, हम सब मार के रबूद कर देबो, सुनि लऽ ।") (सारथी॰13:19:16:1.14)
59 कन्ना-रोहट (हम बुक्काफार के कानऽ लगलूँ । हमरा लगल, "ने गंगा जल देतूँ हल, ने मउसी मरत हल ! मउसी हमरे राह देख रहलन हल ?" कन्ना-रोहट सुनके गाँव भर जुट गेलन । की जन्नी, की मरदाना ! सब के आँख में लोर ।) (सारथी॰13:19:19:3.20)
60 कमौनी ("से तो हइये हइ भाय साहेब ! मुदा तोहरा की कमी हो ? तूँ झुठकोलवा मन मारले हो । अब तऽ तोहर भाय भी कमौनी करऽ लगलो, तइयो कानिये रहलऽ हे ।) (सारथी॰13:19:26:3.4)
61 करमा (पंडी जी मोदियायन के मन जीतइ ले रोज ओकरा दुआरी पर जाथ आउ आशीर्वादी मुद्रा में गद्गद् भाव से बोलथ - "आज तीज हो जजमानी । आज करमा हो, छठ अजका छोम्मा दिन हो ... ।" अइसने बिन पुछले बोलथ आउ नजर झुकइले गली पार कर जाथ ।) (सारथी॰13:19:4:1.33)
62 कलउ (सप्ताह भर के बाद खुशबू कंगना के आँख से बहइत लोर पोछि के कसम आउ वादा के कलउ देके चलि गेल ।) (सारथी॰13:19:11:3.36)
63 कहल-बदल (दुइयो सुटके आके गोड़ छूलन ।/ "कोय दिक्कत तऽ न भेल ?" सिरधर के लहजा में प्यार आउ सरधा घुलल हल । / "नञ् कका, दिक्कत कइसन ? सुबुक से चल अइली । अपने के घर हे भी तऽ एकरगी में । कहल-बदल हइये हल, अप्पन घर-सन चलि अइलूँ ... बस !") (सारथी॰13:19:11:1.26)
64 कान कनइठी (लोग-बाग उनखा से बहस करनइ छोड़ देलन ... बाप रे बाप ! बरहामन से बहस ! ... कान कनइठी !) (सारथी॰13:19:3:1.47)
65 कानफोड़ू (बचपन के याद करऽ ही तऽ साँझ के जादे तर दोकान में लालटेन जरऽ हल । इक्का-दुक्का जगह पेट्रोमेक्स सनसना हल । अब तऽ बिजली आ गेल हे बकि उनखर दरसन दुतिया के चाने बूझऽ । कब अइथुन, कब जइथुन, अल्लोमियाँ नञ् जानऽ हथ । एक अंतर आल हे । कानफोड़ू हड़हड़ी के साथ जेनरेटर के रोशनी में बजार जरूर जगमगा हे ।) (सारथी॰13:19:28:1.14)
66 कुकरमाहा (उनखर सोंचे के दिशा बदलल - "ई बछिया के कउन दोष ! सब गलती बाप के हइ । मुँहजरौना के नञ् सूझले हल कि जुआन बेटी हे, अहुआ-पहुआ के दमाद बनाके घर में रख रहलूँ हें ! आउ फेटा बान्ह के घूमथ गाँव में ! आवे मुँहझौंसा मुँह में उक्का नेस दे हियन । हमरा नोट धरइ ले देलक हल कुकरमाहा कि साँप पोसइ ले देलक हल । ऊहे त कही कि कहाँ के बंक कबड़लइ ! ऊहे झोंटहा देलकइ होत । ईहो मतमरुआ बुढ़भासिये गेलइ ! तब तऽ ओतने में बेटिया के बेच ने देलकइ हल ! एगो बेटिया भार हो रहलइ हल !") (सारथी॰13:19:12:1.20)
67 कुटनी-पिसनी (ई बेचारी के तनि देख तऽ एकदम गउ हलन । केकरो से भर मुँह आज तक बोललन न । कुटनी-पिसनी करके बेटा के पाललन-पोसलन । मरदाना बेचारी के आँधर हलन । अपने भी एक आँख में फूला हल । कम लउकऽ हल । तइयो बेचारी दू-चार कट्ठा खेत हल, ओकरा बचाके रखलक ।) (सारथी॰13:19:38:1.20)
68 कुटल-पीसल (= कुट्टल-पीसल; कूटल-पीसल) (पुतोहिये हइ छाँटल छिनार ! एकरे कहऽ हइ - कमाय न कह न कजाय आउ चाहऽ हइ महरानी बनल । कुटल-पीसल मिले आउ खाली बइठल-बइठल गुदकाई ।) (सारथी॰13:19:38:1.36)
69 कुलबिल (बउआ, हम घर में कुलबिल तीन परानी ही । दू जीव हम आउ एगो जुआन-जहान बेटी ।) (सारथी॰13:19:10:2.20)
70 कूटना-छाँटना (कउन एकर मेहरारू के छाँट-बना के दे खाली गुदकावे ला । एही खोजऽ हइ अब एकरा से । ई कूट-छाँट के दे आउ हम खाली बनावी-खाई । ई बेचारी के अब हूब हइ कि कूट-छाँट के देई । सूख के तऽ ठठरी हो गेलइ हे ।) (सारथी॰13:19:38:1.46, 47)
71 केहनाठी (ओकर निगाह के सामने झोपड़पट्टी के एकलौता, गरीब के लोर-सन बून-बून टपकइत नल के सामने चिल्ल-पों मचावइत, पानी ले जूझइत मेहरारू के मधुमक्खी सन झुंड कौंध गेल । ऊहे भिनभिनाइत भीड़ में औरत के केहनाठी से खोंचा खाइत असहाय नयकी के मुठान, जे अलमुनियाँ के दू-तीन तसली पानी भरइ के लाचार कोशिश करइत रहऽ हे ।) (सारथी॰13:19:22:3.3)
72 कोड़ना-कमाना (एतना दिन हम बेटा बिन रहलूँ, अब नञ् रहम । एजउका कोठा-सोफा एकरा की काम देतइ ? अपन घर में रहत, कोड़-कमा के खात ! दलिद्दर तऽ अपन घर में । एजउका सरवस कि एकरा लिख देबहो ?") (सारथी॰13:19:15:3.35)
73 खंता (दे॰ खत्ता) (शिशुआ रस-रस डरल आगू आल आउ पोटली लेके सूँघइत बोलल, "सड़ल हइ नानी । एकरा के खइतइ", बोलके ऊ बगल के खंता में फेंक देलक ।) (सारथी॰13:19:15:3.28)
74 खखनल (संशय के बादर छँट गेल । संकोच के पर्दा सिहरल आउ एक दने ससरि गेल । संयम के बांध टूट गेल, लाज के देवाल ढहि गेल । रहि गेल समर्पण के दरिया में बहइत दू खखनल प्राणी ।) (सारथी॰13:19:11:3.31)
75 खखसना ("देरी मत करऽ मोदी जी, खखस के बोलऽ ।" - "भगमान के उपह जाना कोय मामूली बात हइ ?" - "एतने में कल्याण हो जाहो तऽ सस्ते बूझऽ मोदी जी !"; रिपोट पढ़ला के बाद बिसुनदेव चिंतित हो गेला । उनखा पसेना आ गेल । ऊ पहिले लक्ष्मी जी से मांग के एक गिलास पानी पीलका आउ खखस के कहलका, "तऽ एकरा रोके के उपाय भी तऽ सुझावे के चहतियो हल ।") (सारथी॰13:19:5:2.1, 25:2.47)
76 खटर-पटर (थोड़े देर खटर-पटर के बाद ढेंकी चले लगऽ हल । न तऽ कउनो दिन जादे रात रहऽ हल तऽ मइया कहऽ हल, "थोड़े देर आग ताप लऽ, डोमनी के मइया ! अभी रात हवऽ ।") (सारथी॰13:19:38:3.38)
77 खड़िया (बात आझ के न हे । ढेर दिन हो गेल । ओती घड़ी एते बेग-ऊग के सहचार न हल । तखनी के गउआँ-पाँड़े एगो खड़िया रखऽ हलन । हमरा भिर के एगो पंडी जी कान्हा पर खड़िया लेके चलऽ हला । दुन्नूँ दने कान्हा में लटकल लुग्गा के खड़िया में लटखुट समान रहवे करऽ हल । जजमान घर जे मिलल, ओकरे में रखले गेला ।; साँझ तक लउटइत-लउटइत दुन्नूँ दने के लटकल खड़िया भर जा हल उनखर ।) (सारथी॰13:19:3:1.3, 5, 6, 15)
78 खमसल (= कमजोर, दुबला) (दिन-दिन मउसी खमसल जा हल । हमर माय के चिंता बढ़ल जा हल - "लगऽ हइ मउसी माय अब नञ् बचती । इनखा 'टौनिस' लाके दे बेटा ! औरदा छइत इनखर रंथी नञ् उठइ के चाही !") (सारथी॰13:19:19:2.42)
79 खायक-पानी (शिशुआ-टिसुआ के जिनगी बाप के घर में जेहलो से बत्तर बीत रहल हल । विपत्ति दुइयो के असमय बुझनगर बना देलक हल । दुन्नूँ दिन-रात कानइत रहे । जुट्ठा-कुट्ठा खाय ले लोरे खायक-पानी हल ।) (सारथी॰13:19:16:3.18)
80 खुर-खार (= छोटा-मोटा काम; बिना काम का काम) (कभी मइया कहित हल, चाहे दीदी, "एतना भात हइ । रूनिया ला लेले जइहूँ । भूखळ होथ । हमरा घर तऽ कभी अएवे न करथुन । अब खुर-खार करे लायक हो गेलथुन हे । खुर-खार करावऽ न त वने-वने घूमे ला छोड़ दे हऽ । बेटी जात हवऽ । बकरियो-उकरियो त न हवऽ कि चरावऽ-उवऽ । का करऽ हथुन घरवा में ।") (सारथी॰13:19:39:1.43, 44)
81 खुरखुरी (ओकरा पानी से निकालल मछली नियन पलंग पर छटपटाइत बीतऽ हल । तनियों खुरखुरी सुनऽ हे कि कान खड़क जाहे - जनु आ गेलन बकि उनखा नञ् आना हल, नञ् अइलन । आल तऽ कंगना के बड़-बड़ आँख में डब-डब लोर ।) (सारथी॰13:19:13:2.3)
82 खुरछाहीं (एक तुरी मंगरुआ के मइया से एगो लौकी मांगलन । ऊ बहाना कर देलन । पंडी जी के मुँह से निकलल, "ठीक हउ ! मत दे ! बकि तहूँ लौकी नेमान नहियेँ करबीं ।" ओही रात रजुआ के बिरनाम भैंसा खुट्टा से खुल गेल । लगल मंगरुआ के दुआरी पर खुरछाहीं करे ले । बगले लौकी के लुहलुह पेड़ हल । पहिले तऽ ओकरा में अँखड़ल । चोखगर सींग के एक्के झटका में पेड़ उखड़ गेल ।) (सारथी॰13:19:3:2.3)
83 खुलखुलाना (आउ ठीक, टिसुआ के बाबा दुआरी पर जमराज नियन ठाढ़ हथ । ऊ खुलखुला के हँसइत बोलला, "तनि गेटवा खोलहो ने समधी जी ! अब तऽ जे लिखल हल, होइये गेल । हमरा-तोरा हिम्मत से काम लेवऽ पड़त ।") (सारथी॰13:19:16:1.54)
84 खोरना (हमर ध्यान चिता दने चलि गेल । लाश करीब-करीब जर चुकल हल । तीन-चार अदमी बड़का बाँस के खोरना से अधजलल लकड़ी बचल लोथड़ा पर सरिया रहलन हल ।) (सारथी॰13:19:19:1.28)
85 गउआँ-पाँड़े (बात आझ के न हे । ढेर दिन हो गेल । ओती घड़ी एते बेग-ऊग के सहचार न हल । तखनी के गउआँ-पाँड़े एगो खड़िया रखऽ हलन । हमरा भिर के एगो पंडी जी कान्हा पर खड़िया लेके चलऽ हला । दुन्नूँ दने कान्हा में लटकल लुग्गा के खड़िया में लटखुट समान रहवे करऽ हल । जजमान घर जे मिलल, ओकरे में रखले गेला ।) (सारथी॰13:19:3:1.3)
86 गनउरा (आजे इनखा खाय बिना भी तरसा देलकइ बेटा-पुतोह । देखइत हहीं न, कइसन सूख के ठठरी हो गेलइ हे, बेचारी । आज तो मंगजरउनी लुगवो तक छीन लेलकइ । गनउरा पर के बिगल चेथरी पहिन के आयल हे, बेचारी ।) (सारथी॰13:19:38:1.28)
87 गरायन (“एकरा कते तुरे समझइलूँ हें कि चाह के पहिले पानी देबइ के चाही, मुदा ई मन के टाही, काहे ले सुनतो !”/ सनीचरी कुछ कहलक तऽ नञ् बकि मने मन भनभनाल पानी लावे चल गेल । सनीचरी के एकांत में डाँटो, कुछ बात नञ्, बकि दोसरा आगू डाँट गरायन नियन लगतो ।) (सारथी॰13:19:27:1.5)
88 गहूम (दे॰ गोहूम) (नञ् भौजी, कुछ खास बात नञ् हलइ । देखऽ हिअइ सौंसे गाँव गहूम के खेत पटा रहल हे आउ दादा कान में करूआ तेल देके हाथ पर हाथ धइले बइठल हथ ।) (सारथी॰13:19:26:1.21)
89 गाजा (= मैदे की एक प्रसिद्ध मिठाई) (मोदियायन समधियाना से आयल सनेस के खाजा, लड्डू, टिकिया, गाजा भरल छिपली आगू में कर देलकी । पंडी जी भरलो छिपिया मिठाय अपन खड़िया में रखके बोलला, "जजमानी, हम डालडा में हाथो नञ् लगावऽ ही । शुद्ध घी के छानल के अलग बात हे । रख लेली, बुतरू-बानर खइतन ।") (सारथी॰13:19:4:2.14)
90 गिट्टी-छर्री (थोड़के दूर में एगो सड़क बन रहल हल । जोर-शोर से काम लगल हल । टरक के टरक गिट्टी-छर्री गिरावल जा रहल हल । कउवा ओतुने से ललकी गिट्टी ला-ला कनखा पर चढ़-चढ़ डालऽ लगल ।) (सारथी॰13:19:24:1.25)
91 गिनना-गुँथना (ई उद्वेग के झेलइत साँझ के घर पहुँचल तऽ ई उद्वेग पुनिया के चान देखि समुन्दर के जुआर जइसन जोर से उठे लगल । ऊ मजबूर भे गेल जिनगी के बीतल दिन, महीना, साल के एक-एक पल के गिनय-गुँथय लेल । सोझरावे लगल सभे पन्ना के एगो धरोहर जइसन ।) (सारथी॰13:19:20:2.15-16)
92 गुथनी (हरियर-हरियर मिरचाय के पौध में लाल-लाल डींड़ी झूल रहल हे, जबकि अंडी के बड़-बड़ गो गाछ में छोट-छोट गुथनी फर लटकल हे हरियर-हरियर ।) (सारथी॰13:19:11:1.9)
93 गुदकाई (पुतोहिये हइ छाँटल छिनार ! एकरे कहऽ हइ - कमाय न कह न कजाय आउ चाहऽ हइ महरानी बनल । कुटल-पीसल मिले आउ खाली बइठल-बइठल गुदकाई ।) (सारथी॰13:19:38:1.36)
94 गुदकाना (वाह रे महरानी ! इनका से तनि तीन सेर चाउरो न छँटाय । एही से एकर मरदाना के कउनो मजूरो न लगावे । कउन एकर मेहरारू के छाँट-बना के दे खाली गुदकावे ला ।) (सारथी॰13:19:38:1.45)
95 गुलगुल्ला (साँझ के एकांत में कंगना माय अपन मरद से कहलन, "नञ् जानी हमर भाग में की लिखल हे ... । बेटा बाहरे रहऽ हे । तहू एनइँ-ओनइँ रहऽ ह । कुछ पता हो, घर में कउन गुलगुल्ला पक रहलो हल ?" - "की हलउ से हमरा बुझउअल बुझा रहले हें", गमछी से पसेना पोछइत सिरधर पुछलक ।) (सारथी॰13:19:12:1.30)
96 गेयान (= ज्ञान) ("दुइयो के सेयान से जादे गेयान हइ । ननियाँ सोगाही जे कहतो, सेहे करतो । बप्पा के तनी बेइज्जती करइलके हे ! मुँहझौंसा, लगऽ हे कइसन सूअर नियन !") (सारथी॰13:19:16:2.47)
97 गैन (कारू बात के पुरान छोरी धइलक, "देखऽ भइया, जे हाल ऐन के से हाल गैन के । कहले से सब बात नञ् जानल-समझल जाहे । हमर बात तों तऽ तोहर बात हम खूब समझऽ ही । खेती करे वला के हाथ हमेशे खाली रहवे करऽ हे । धान-गहुम उपजइला से इज्जत-हुरमत बचना मुश्किल हो ।") (सारथी॰13:19:27:1.44)
98 गोड़ा-टाही (आउ झोल-फोल तक सिरधर भीतरे-भीतरे हँहड़इत ओजइ गोड़ा-टाही करइत रहल । अन्हार रस-रस अपन माया पसारि रहल हल ।) (सारथी॰13:19:12:2.11)
99 गोमस्तगीरी (नाना हाहे-फाफे धुरियाल पहुँच गेला । अपना साथ चार गो अदमी ले लेलका हल । यहाँ तऽ बाबा के गोमस्तगीरी नञ् हल, मामा के दरोगइ चलऽ हल । देखते मातर एकार-तोकार करऽ लगल - "कहाँ दौड़ल अइले हें ? नतियन पानी में हलउ ?") (सारथी॰13:19:16:3.31)
100 गौर-पिट्ठा (करीब चार पहर बाद मंजु के ससुरारी परिवार पहुँचल । ओकरा में मंजु के मरद भी हल । मंजु के माय-बाप तऽ बजड़ि रहल हल आउ ई सब नञ् जानु, की गौर-पिट्ठा करके आल हल, बुतरुअन के टेनिअइले घसकल जा हल ।) (सारथी॰13:19:15:1.34)
101 घटघटाना (एक घूँट लेके चन्नर पुछलक, "चाह ठीक बनलउ कारू भाय ?" / "हमरा चाह में ठीक-बेठीक कुछ नञ् बुझा हो । एत्ते ने तातल रहऽ हो कि मुँहे जर जा हो, ईहे से हम नञ् पीयऽ हियो ।", कारू गमछी से चाह के गिलास पकड़ले बोलल । / "चाह शरबत नञ् हइ कि घटघटा गेलऽ । एकरा तनि-तनि चुस्की लेके पीअइ के चाही ।", चन्नर बोलल ।; ऊ घटघटा के गिलास खाली करि देलक ।) (सारथी॰13:19:27:1.39, 36:2.1)
102 घनगर (अचक्के परेमन परघट भेल आउ सिरधर के हाथ उहाँ ले गेल, जहाँ बर-पीपर के घनगर गाछ बीच एगो अइँटा के लमहर-चौड़गर दलान बनल हल । दूर से ई मकान नजर नञ् आवऽ हल । दूर-दूर तक नरकटिया-जिनोर के खेत लहलहा रहल हल ।) (सारथी॰13:19:12:2.21)
103 घमौरी (आम के ~) (हम सब सिनुरिया गाछ तर बइठल कच्चा आम के घमौरी बना रहलूँ हल । एतने देरी में एगो सुग्गा टें-टें कइले आल आउ ऊहे गाछ पर बइठ गेल ।) (सारथी॰13:19:18:2.5)
104 घसकल (करीब चार पहर बाद मंजु के ससुरारी परिवार पहुँचल । ओकरा में मंजु के मरद भी हल । मंजु के माय-बाप तऽ बजड़ि रहल हल आउ ई सब नञ् जानु, की गौर-पिट्ठा करके आल हल, बुतरुअन के टेनिअइले घसकल जा हल ।) (सारथी॰13:19:15:1.35)
105 घुंघर (अइसन अनरूप के सुत्थर छौंड़ जिनगी में नञ् देखलूँ हे - गोर बुर्राक, लम्बा-तगड़ा, कसरती काया, तेकरो पर घुंघर भौंरा-सन कंधा तक लटकइत केश ... ! नजर पड़इत हमर कनपट्टी सनसनाय लगल ।) (सारथी॰13:19:11:2.1)
106 घुट्टी (भोर होला पर मउसी मुँह खोललन, "अब हम नञ् मरबउ बउआ ! अब कहियो मरबे नञ् करबउ । जानऽ हीं, हमर मइया हमरा अमर के घुट्टी पिलइलक हल, तब कइसे मरबइ ?") (सारथी॰13:19:19:3.4)
107 घुरती (~ साल) (हम लौटला पर पुछली, "खूब मन लगलो ने पटना में मउसी ?" तऽ ऊ ठोर बिचकाके चुप रह गेली । घुरती साल छोटकी के पोता के बियाह में कतना कोय कहलक, ऊ घुरके पटना नञ् गेली ।) (सारथी॰13:19:19:1.44)
108 घोघी (= घोंघी) ("चुप रह, सुग्गा उतारबउ", हम कहलूँ आउ रस-रस ऊपर चढ़ऽ लगलूँ । ... आउ हम सब बच्चा के गमछी इ के घोघी में बान्ह के पीठ पीछू लटकइले उतर गेलूँ ।) (सारथी॰13:19:18:2.17)
109 चइयाँ ("ओने की ताकऽ हीं चइयाँ, मइया के धोधवरवा ! गोदरेजवा में नञ् एक्को फुट्टल कौड़ी हउ, नञ् लुग्गा-फट्टा ! चेथरियो बटोर के मइये के दे अइलउ", अप्पन बड़की फूआ बिख बुनलकी ।) (सारथी॰13:19:16:2.51)
110 चनचनाल (मालिक चनचनाल अइलन आउ तड़ाक-तड़ाक धर देलन छोटका के दुन्नूँ गाल पर । छोट लइका, तिलमिला गेल । ओकरा सुबके के भी हिम्मत न पड़ल ।) (सारथी॰13:19:14:1.38)
111 चन्न (ओकर गोड़ में मच्छर काटलक । ओकर ध्यान ओने गेल कि देखऽ हे हमउमर साथी बस्ता लेले इसकुल जा रहल हे । ध्यान बँटला से पलेट हाथ से छूट गेल ... चन्न ! पलेट टुकड़ी-टुकड़ी हो बिखर गेल, साथे-साथ ओकर सपना भी ।) (सारथी॰13:19:14:1.36)
112 चरना-चुरना (ओही रात रजुआ के बिरनाम भैंसा खुट्टा से खुल गेल । लगल मंगरुआ के दुआरी पर खुरछाहीं करे ले । बगले लौकी के लुहलुह पेड़ हल । पहिले तऽ ओकरा में अँखड़ल । चोखगर सींग के एक्के झटका में पेड़ उखड़ गेल । जहाँ तक घेंच पहुँचल, चर-चुर के ठूँठ कर देलक ।) (सारथी॰13:19:3:2.7)
113 चलना-बनना ("कहाँ दौड़ल अइले हें ? नतियन पानी में हलउ ?" - "सुनलिअइ बीमार हइ, देखइ ले चलि अइलिअइ", नाना बोलला । - "आउ ई चारो बरहिला के लठैती करइ ले लेले अइलहीं हें ? यहाँ कुछ नयँ चलतउ-बनतउ, जो !") (सारथी॰13:19:16:3.39)
114 चाँच-चोंच (धान-गहुम उपजइला से इज्जत-हुरमत बचना मुश्किल हो । या तऽ खेती के ढंग बदलऽ या दुन्नूँ भाय दिल्ली चलऽ । गाँव के कते तऽ बाहर कमाइये रहल हे । दुन्नूँ के भाय पढ़-लिख के बहराल तऽ हम तों दुखछल चलऽ । ऊ बाहर कमाय ले जाहे तऽ कोय चाँच-चोंच नञ्, अनपढ़ गेलो तऽ पलायन हो गेलो ।) (सारथी॰13:19:27:1.53)
115 चाथन (अइसइँ ढेर गलबात, ढेर चौल, ढेर चाथन, ढेर चुगली । कंगना के करेजा खुंडी-खुंडी हो रहल हल । जहिया से बेचारी जोड़ा पेन्ह के आल, अँखिये में रात कटि रहल हल ।) (सारथी॰13:19:13:1.52)
116 चानी (= सिर का शीर्ष भाग) (एकरा अपन दूध में हर्रे घिसके चार घोट दहो, ठीक हो जइतो । दबयवा से जादे फइदा करतो तपहर परहेज ... पोखरिया में डुबकी लगाना छोड़ दऽ । करूआ तेल गरमा के एकरा चानी पर दहो, सर्दिया टान लेतइ ।) (सारथी॰13:19:18:3.7)
117 चाह-उह (सौंसे घर जानऽ हइ कि माय के सिरिफ मीठा चाही, चाह-उह से ओकरा कोय मतलब नञ हे ।) (सारथी॰13:19:32:2.44)
118 चिन्हाना (= पहचान कराना) (शैलजा खुद दू-तीन बार माय के साथे जाके माय के मौसी के घर वाला रास्ता चिन्हा देलक हल । अब ऊ अकेले, जब ओक्कर मन करे तब मौसी के घर पर पहुँच जाल करऽ हइ ।) (सारथी॰13:19:34:2.43)
119 चीकट (ऊ देरी तक सीमेंट के गारा से एकदम चीकट होल कपड़ा पर साबुन घिसइत रहल । झाग उठइ के नामे नञ् ले रहल हल । दू-तीन तुरी साबुन रगड़इ के बाद कपड़ा के असली रंग मैल के गाढ़ परत के नीचे से उझके लगल ।) (सारथी॰13:19:23:1.17)
120 चुटपुट (= चटपट, तुरन्त) (उनखा ले काल साँप बनके आल आउ चुटपुट ले गेल । ऊ अन्हरूक्खे दिशा-फरागत ले निकलऽ हला आउ दिन उगइत एक कोस टहल के चल आवऽ हला । तहिया अइते मातर कहलका, "हमरा कहरैनी पर साँप सूँघ लेलको ... ।" बोलते-बोलते ऊ गिर पड़ला, फेन नञ् उठला ।) (सारथी॰13:19:18:3.36)
121 चुभुर-चुभुर (हमरा लगल - हम आज के रजेसर न ही, बलुक तहिअउका हो गेली हे, जहिया डोमनी माय के छान के हम चुभुर-चुभुर दूध पी ले हली ।) (सारथी॰13:19:39:3.21)
122 चौठा-चौठारी (लगऽ हल भाय के पढ़ गेला से घर के दिन फिर जात । ओकरा जाय घरी गाड़ी चढ़ाबइ ले ओकर मोटरी माथा पर चढ़ाके जा हलूँ । सूट-बूट पेन्हले, मोटरी टाँगले कइसन लगत हल ! भौजाय निमकी-खमौनी के साथ-साथ घी के डिब्बा देबइ ले नञ् भूलऽ हल । सनीचरी कहऽ हल - गोतनी आत तऽ सहेता होवत ! खूब भेलन ! चौठा-चौठारी के बाद समान बँधाय लगल ।) (सारथी॰13:19:26:3.20)
123 छइया-मसान (छइया-मसान रोदन से असमसान घाट डेरामन लग रहल हल आउ मउसी माय के चिता धू-धू करके लहक रहल हल । बैशाख के मार से दुब्बर गंगा के लकलक धार लगे जइसे भीतरे-भीतरे हम्हड़इत गंगा के आँख से बहल लोरे रहे ।; दारोगा कागज पर कुछ लिखलक, भीड़ में से चार आदमी के दसखत लेलक आउ लाश साथ झुन्नू के थाना लेके चलऽ लगल तऽ दुइयो बुतरू छइया-मसान नियन चिल्लाय लगल, "मम्मीऽऽऽ ... ") (सारथी॰13:19:18:1.8, 37:3.10)
124 छाँटना-बनाना (वाह रे महरानी ! इनका से तनि तीन सेर चाउरो न छँटाय । एही से एकर मरदाना के कउनो मजूरो न लगावे । कउन एकर मेहरारू के छाँट-बना के दे खाली गुदकावे ला ।) (सारथी॰13:19:38:1.45)
125 छाँटल (~ छिनार) (पुतोहिये हइ छाँटल छिनार ! एकरे कहऽ हइ - कमाय न कह न कजाय आउ चाहऽ हइ महरानी बनल । कुटल-पीसल मिले आउ खाली बइठल-बइठल गुदकाई ।) (सारथी॰13:19:38:1.34)
126 छिच्छिर-छिच्छिर (दरबान मोटर चालू करि देलन होत, काहे कि प्लास्टिक के पाईप से पानी मोटगर धार छिच्छिर-छिच्छिर निकलि के नयका बनल छत पर पसरे लगल हल । मरद पाईप के एने-ओने घुमावइत छत के दहपेल करऽ लगल ।) (सारथी॰13:19:22:2.31)
127 छिट्टा (= छींटा) (पानी के ~) (कंगना के मुँह पर पानी के छिट्टा देवल गेल, नाक दाबल गेल, तब होश आल । ओकर चेहरा के रंग उज्जर हो गेल हल ।) (सारथी॰13:19:13:3.23)
128 छिपली (मोदियायन समधियाना से आयल सनेस के खाजा, लड्डू, टिकिया, गाजा भरल छिपली आगू में कर देलकी । पंडी जी भरलो छिपिया मिठाय अपन खड़िया में रखके बोलला, "जजमानी, हम डालडा में हाथो नञ् लगावऽ ही । शुद्ध घी के छानल के अलग बात हे । रख लेली, बुतरू-बानर खइतन ।") (सारथी॰13:19:4:2.14)
129 छिपिया (मोदियायन समधियाना से आयल सनेस के खाजा, लड्डू, टिकिया, गाजाभरल छिपली आगू में कर देलकी । पंडी जी भरलो छिपिया मिठाय अपन खड़िया में रखके बोलला, "जजमानी, हम डालडा में हाथो नञ् लगावऽ ही । शुद्ध घी के छानल के अलग बात हे । रख लेली, बुतरू-बानर खइतन ।") (सारथी॰13:19:4:2.15)
130 छेदमाही (करूआ अप्रत्याशित सवाल से तिलमिला गेल । ओकर अप्पन पीड़ा फूट पड़ल, "हमर भाय तऽ शुरुए से घर-गाँव अनपुछ कर देलको । मुश्किल से ओकर मोबाइल नम्बर नोट कैलियो । पुछलियो तऽ निठुरे नियन कह देलको, 'एक छेदमाही बचवे नञ् करऽ हउ तऽ भेजिअउ की ? हमरो हिसबा से पेट नञ् भरऽ हउ ?' की करियो, संतोख कर गेलियो । एक बात हो कि हम तोहरा नियन बइठल नञ् ही, अहल-बहल करिये रहली हे ।) (सारथी॰13:19:26:3.39)
131 छोरी (बात के पुरान ~ धरना) (कारू बात के पुरान छोरी धइलक, "देखऽ भइया, जे हाल ऐन के से हाल गैन के । कहले से सब बात नञ् जानल-समझल जाहे । हमर बात तों तऽ तोहर बात हम खूब समझऽ ही । खेती करे वला के हाथ हमेशे खाली रहवे करऽ हे । धान-गहुम उपजइला से इज्जत-हुरमत बचना मुश्किल हो ।") (सारथी॰13:19:27:1.43)
132 छोहाड़ा (= छुहाड़ा, छुहारा) (मउसी गाँव भर के डागदरनी हलो । केकरो कुछ संसर-बिसर होवे, मउसी भिजुन पहुँच जाय । मउसी ओकरा देशी नुस्खा बतावे - ""घी हरदी देके गरम दूध पिलावऽ, घाव पर भंगरोइया के रस गार के टपका दऽ, छोहाड़ा पका के कल्ला तर दाबऽ, कसेली जार के फक्की बनाके पीयऽ, पोदीना अरक दऽ, निम्मक चिन्नी-पानी के घोल पिलावऽ ... ।" उनखा पास सब रोग के निदान हल ।) (सारथी॰13:19:18:3.20)
133 जजइ (घठाह नियन नाना साथ आल अदमी के चला के ठहर गेला, भुक्खल तऽ भुखले सही, जइबन तऽ देखिये के । दिन भर गाँव में बंगले-बंगले घूम अइला । जजइ गेला, ओजइ सभाखन । रात अइला तऽ समधिन झनकऽ लगली, "गाँव में कुत्ता नियन दुआरी-दुआरी चाट आल चटोरवा, कउन पेट में खात ! हमर बनाल अब कुत्ता खात आउ की ?") (सारथी॰13:19:16:3.52)
134 जजमनकइ (चार गाँव के जजमनकइ हल । भोरे नहा-सोना, टिक्का-चन्नन करके निकल जा हला । घरे-घरे घूमऽ हला, "जजमानी, एकादशी परसुन हो । तरसुन पुनियाँ होतो । मंगर के सकरात पड़तो ।") (सारथी॰13:19:3:2.29)
135 जब्हा (सिरधर के सिर में चक्कर आ गेल । ओकरा लगल जइसे अब गिरलूँ कि तब गिरलूँ । ओकर मुँह सूखऽ लगल, जीह लटपटाय लगल, जुबान में जब्हा मार देलक ।) (सारथी॰13:19:10:2.10)
136 जमल-जमावल (~ गिरहस्ती) ("मन के थीर करऽ । ई सब सोचला से अब की फइदा । मइया-बाबूजी होथुन कि नञ्, ई तऽ गोसइँये जाने । जिनगी में रात-दिन एक करिके जमल-जमावल गिरहस्ती ई सब सोचला से बिखर जायत ।") (सारथी॰13:19:20:3.22)
137 जरन (जानऽ हीं, सिनेमा के हीरोइन 'कुमकुम' ईहे हुसेनाबाद के रहइवली हइ । ई सभे के एक तुरी बिना देखले जी के जरन नञ् मेटत ।) (सारथी॰13:19:20:3.48)
138 जरब (हमरा सब के तऽ राधा दीदी आके कहलन, "मइया धायँ-धायँ जरब करऽ हउ आउ तू सब सनीमा देख रहलहीं हें ।" बात ई हल कि झुन्नू आवाज तेज करि के किचन में चलि गेल हल ।) (सारथी॰13:19:37:1.47)
139 जाउत (जे घर नाती-नतिनी से बसंत बगिया नियन महकइत-खिलखिलाइत रहऽ हल, ऊ अब पीपर के ठूँठ नियन बच गेल हल । दुन्नूँ जाउत भी बाँट के अलग हो गेलन । मउसी माय आधा के हिस्सेदार हल, बकि इनखा पाँच बिगहा हिस्सा देलन ।; बड़का जाउत के बड़का बेटा-पुतहु गंगा बिसुन आउ बल्लोपुरवली नञ् छोड़लन ।) (सारथी॰13:19:19:1.10, 17)
140 जित्ता (= जिन्दा, जीवित) (दूध के दूध, पानी के पानी फैसला हो गेल । दुइयो नाना-नानी के इहाँ पात-पात निखरऽ लगल । ... नाना-नानी लेल मंजु बेटी जित्ता के जित्ते हे ।) (सारथी॰13:19:17:2.32)
141 जुआठ ("भइया, हम भाभी के माय दाखिल बूझऽ ही । हमर माय कहऽ हल कि शेखपुरवा वली तोरा गोदी में खेलइलथुन हे । हम भौजी के मंगल सूत्र बिके नञ् देम । भौजी, तूँ एकरा फेन से गियारी में पेन्हऽ । चन्नर भइया आउ हम हीरा-मोती नियन मिलके कन्हा पर जुआठ रखम ।") (सारथी॰13:19:27:2.34)
142 जोवाना (= जुआना) (मड़ई में चुनल-बिछल तरकारी के ढेर से छोटकी मइया तरकारी लाके अमगना में डोमनी के मइया भिर रख देलके हे, कहित हे, "ले ले जइहऽ डोमनी के मइया ! तरकारी हवऽ, बनाके खा जइहऽ । केतनो ध्यान देके तोड़ऽ ही, तइयो जोवा ही जाहे ।" दीदी हँसऽ हल, "बेचारी के जोवयलका तरकरिया देइत हँहीं ।" मइया कुछ लजाइत कहऽ हल, "जादे जोवायल न हइ । का होतइ, बनाके खा जइथी । बिगा ही न जइतइ ।") (सारथी॰13:19:39:1.36)
143 झमराल (मंजु के लहास सड़क पर उतरे-दखिने पाड़ देल गेल । घरइया पछाड़ खा रहल हे, चिरईं-चुरगुनी सकदम ! टोल-पड़ोस के आँख लोरे-झोरे । असमान के तरेंगन तक उदास । चान तऽ झमराल ... ठोर पर फिफरी ।) (सारथी॰13:19:15:1.5)
144 झलफलाना (आज एतुने नेहा ने ले झलफला के ! देख, कते मनी पानी एजा बहि रहलइ हे !; औरत चौथी बेर कपड़ा में साबुन लगइलक, चोटइलक आउ पाईप के तेज मोट धार के नीचू कपड़न के झलफलइलक ।) (सारथी॰13:19:22:3.15, 23:1.27)
145 झींगा (साँझ तक लउटइत-लउटइत दुन्नूँ दने के लटकल खड़िया भर जा हल उनखर । किनखो हियाँ हरियर तरकरियो मिल जा हल - लउकी, नेनुआ, झींगा, सतपुतिया, साग ... । नेमानी के चूड़ा, चाउर तऽ असालतन ... पहिले पंडी जी, फिर घरइया । समाज के ईहे रेवाज हल ।) (सारथी॰13:19:3:1.17)
146 झुठकोलवा ("से तो हइये हइ भाय साहेब ! मुदा तोहरा की कमी हो ? तूँ झुठकोलवा मन मारले हो । अब तऽ तोहर भाय भी कमौनी करऽ लगलो, तइयो कानिये रहलऽ हे ।) (सारथी॰13:19:26:3.3)
147 झोलंगल (~ खटिया) (चनरा मुसकइत पुछलक आउ पलानी के झोलंगल खटिया पर करूआ साथ बइठ गेल ।) (सारथी॰13:19:26:1.45)
148 झोल-फोल (झोल-फोल हो गेल हल । सिरधर अपन घर में बइठल राह देख रहल हे । आझे दिया तऽ कहलन हल ।) (सारथी॰13:19:10:3.49)
149 टटकोरना (अंगना में बरइत ढिबरी के ईंजोर में बेटा के साथे धनेसर खा रहल हे । रोटी के परसन दइत मेहरारू टुभकल, "भाय चार रोज से एको घड़ी घर में नञ् रहऽ हथुन । हिस्सा खातिर टोला के अदमी के टटकोरइ में तऽ नञ् लगल हथुन ?") (सारथी॰13:19:21:3.6)
150 टटरी (सफर के खरचा से बचल बेयालीस रुपइया से किराया पर ठेला लेके सब्जी अउ मौसमी फल बेचइ के रोजगार शुरू कइलका । नञ् तऽ माथा पर टटरी, नञ् सुतय लेल पटरी । ऊहे जगेसर आझ जगेसर सेठ बनल हे ।) (सारथी॰13:19:20:3.2)
151 टन-टुन (की हल, की हो गेल ! केतना शांत इलाका हल ! ... कोय रोक नञ्, कोय टोक नञ्, कोय बन्धेज नञ् । हल्ला-गोदाल होवऽ हल तऽ खेत-पथार जोतइ ले । जादे से जादे लाठी-पइना निकलऽ हल, टन-टुन होवऽ हल ।) (सारथी॰13:19:10:1.8)
152 टाही (एकरा कते तुरे समझइलूँ हें कि चाह के पहिले पानी देबइ के चाही, मुदा ई मन के टाही, काहे ले सुनतो !") (सारथी॰13:19:27:1.1)
153 टिक्का-चन्नन (चार गाँव के जजमनकइ हल । भोरे नहा-सोना, टिक्का-चन्नन करके निकल जा हला । घरे-घरे घूमऽ हला, "जजमानी, एकादशी परसुन हो । तरसुन पुनियाँ होतो । मंगर के सकरात पड़तो ।") (सारथी॰13:19:3:2.30)
154 टिसनी (हम आचार्य । वित्तरहित इस्कुल के माहटरी । कहावे के पंडित जी, बकि जेभी खाली । टिसनी करऽ हलूँ तऽ दू साँझ के चूल्हा सोझ होवऽ हल ।) (सारथी॰13:19:3:3.13)
155 टीक (= चोटी, शिखा) ("कउन काम बेटा ?" सिरधर के लगल ओकर माथ पर कोय मन भर के पत्थर पटक देलक हे । ऊ फेनो अपन टीक एगो अंगुरी से उमेठऽ लगल ।) (सारथी॰13:19:10:1.49)
156 टेनगर ("दुइयो बुतरुओ तऽ ननमे के पइसवा पर असपताल में अपरेशन से जलमलइ हल ।" / "आज तक ननमे-ननियाँ पोसले हइ कि ई सब ?" / "अब तऽ दुइयो टेनगर हो गेलइ होत । भर जी देखवो तऽ नञ कइलिअइ हे ।") (सारथी॰13:19:15:2.46)
157 टेनलग्गू (= छोटा बच्चा जो अभी चलने-फिरने लायक हो गया हो) (दुइयो बेटी पटने में घर बनाके रहि रहल हल । टेनलग्गू होला पर पढ़ाई के बहाने दुन्नूँ अपन-अपन बाल-बच्चा के उहइँ रखऽ लगल । सब अपन-अपन पाँख पसार के चारों दिशा उड़ गेल, बचली तऽ एकल्ले मउसी माय ।) (सारथी॰13:19:19:1.3)
158 टेनिअइले (करीब चार पहर बाद मंजु के ससुरारी परिवार पहुँचल । ओकरा में मंजु के मरद भी हल । मंजु के माय-बाप तऽ बजड़ि रहल हल आउ ई सब नञ् जानु, की गौर-पिट्ठा करके आल हल, बुतरुअन के टेनिअइले घसकल जा हल ।) (सारथी॰13:19:15:1.35)
159 टेबना (= टटोलना; खोजना; जाँचना) (तब तक लेल हम अप्पन महल्ला में एगो घर टेब रहलियो हे । अइसे, जहाँ ह, ऊ सस्ता हो ।) (सारथी॰13:19:36:3.10)
160 टौनिस (= टौनिक, टॉनिक) (दिन-दिन मउसी खमसल जा हल । हमर माय के चिंता बढ़ल जा हल - "लगऽ हइ मउसी माय अब नञ् बचती । इनखा 'टौनिस' लाके दे बेटा ! औरदा छइत इनखर रंथी नञ् उठइ के चाही !") (सारथी॰13:19:19:2.44)
161 ठगमुरकी (कारू अपन चाह के गिलास पकड़ले बोलल, "हम तऽ आज के जमाना पर सोंचऽ हियो तऽ ठगमुरकी लगऽ हो । समाज कन्ने जा रहलइ हे दादा ! अब केकरो पर विश्वास-भरोसा करइ के जमाना नञ् रहलइ ... ।") (सारथी॰13:19:27:1.21)
162 ठरनच (~ रचना) (पंडी जी के धाक इलाका में जम गेल । लोग-बाग उनखा से डरऽ लगला । कहल जाय तऽ ऊ गाँव-जवार लेल छुट्टा साँढ़ हो गेला । उनखर खनदानी पेशा दनादनी पर हल । ऊ जे चाहऽ हलन, लेइये के छोड़ऽ हलन । एक से एक ठरनच रचऽ हला ।) (सारथी॰13:19:3:2.28)
163 ठीक-ठिकाना (केतना दिन से बीनू, मंटू आउ तुलसी ई देख रहते गेल हऽ कि जब-जब दादी कुछ बोलऽ हइ तो मैया-बाबू जी सगर दिन उनखन बनल रहऽ हलन आउ अइसन समय में कौन डाँट सुन जइतन आउ के मार खा जइतन एक्कर कौनो ठीक-ठिकाना नञ हइ ।) (सारथी॰13:19:32:3.22)
164 डींड़ी (हरियर-हरियर मिरचाय के पौध में लाल-लाल डींड़ी झूल रहल हे, जबकि अंडी के बड़-बड़ गो गाछ में छोट-छोट गुथनी फर लटकल हे हरियर-हरियर ।) (सारथी॰13:19:11:1.9)
165 ढकढकाना (किवाड़ ~) (खूब भिनसरवे जउन घड़ी रात ही रहऽ हल ऊ दरवाजा पर चाल करऽ हल । चाल करे के पहिले किवाड़ ढकढकावऽ हल । ओकर किवाड़ ढकढकावहे से हम जान जा हली कि डोमनी के मइया आ गेल ।) (सारथी॰13:19:38:3.23, 24)
166 ढढरी (भूखल हाथी नियन जनावर तऽ दोल जाहे, ई तऽ बुतरुए हल । कानते-कानते दुइयो बीमार पड़ गेल । बोखार के नाम पर आउ दुयो के सहा देलक । दवाय के नाम पर ऊहे गरम पानी, बस ! फूल-सन बुतरू, ढढरी होके रह गेल, तइयो कसइयन के दरद नञ् बुझाल ।) (सारथी॰13:19:16:3.23)
167 ढलइया (साँझ गहराइत-गहराइत सौंसे छत पर लोहा के सरिया के जाली गारा से झाँप देवल गेल । सही आउ मजगूत ढंग से ढलइया निबटाके मजूर-मजूरिन के काफिला चलि गेल हल ।) (सारथी॰13:19:22:1.18)
168 ढेंकी (पहिले रात-रात भर अगहन-फागुन तक ढेंकी चलऽ हल । जाँता पिसा हल । गीत गावल जा हल । अब तऽ सहिये साँझ से गाँव में सन्नाटा पसर जाहे, जइसे कउनो गाँव में रहवे न करे ।; तोरा जाड़ा न लगऽ हो ? चल आवऽ हऽ भिनसरहीं । हमरो सुत्ते न दऽ । ढेंकी के धम-धम में नींद आवऽ हे ?; थोड़े देर खटर-पटर के बाद ढेंकी चले लगऽ हल । न तऽ कउनो दिन जादे रात रहऽ हल तऽ मइया कहऽ हल, "थोड़े देर आग ताप लऽ, डोमनी के मइया ! अभी रात हवऽ ।") (सारथी॰13:19:38:3.11, 31, 38)
169 ढेंकी-जाता (=ढेंकी-जाँता) (एक दिन आयल अपन घर मजूरी लेवे । चउरा हलइ तनि लाल आउ टूटल । छमक के छोड़ देलकइ । हम न लेबो अइसन चाउर जी । अपने खइहऽ । हमरा घर पर ढेंकी-जाता हे कि छाँटइत चलब ।") (सारथी॰13:19:38:1.41)
170 तखनउका (हमरा कोचवानी करइ लेल बाबूजी के कहलाम तखनउका जरूरत हल उनखर । एकरा में बाबू नञ् तखनउका समाज के ईहे चलन हल । हमर गाम में रोजी-रोजगार के ईहे एगो साधन हलइ ।) (सारथी॰13:19:20:3.31, 32)
171 तबड़क (ओकरा एतनो पर संतोख न भेलइ तऽ तीन-चार तबड़क आउ जड़इत बोललइ, "जो, बाहरे में लइकन के देखिहें आउ खेलौना खेलिहें ।) (सारथी॰13:19:14:1.45)
172 तर-तरकारी (झोला-झोली होल जा हल । बस से उतरलूँ तऽ सोंचली - "तर-तरकारी ले लेवे के चाही । घर में दू गो बुतरू हे । जइते साथ लिपटि जइतन । बोधे ले बिस्कुट ले लेम ।"; "शैंपू हइ ।" मरद अभियो हँसि रहल हल, "केस धोवइ ले ।" - "एकरा से हमर केसिया धोवइतइ ? सिरमिट-बालू से तऽ केसिया बगेरी के खोंथा नियन हो गेलइ हे । खाली पइसा के धमार ! एतना में तऽ एक साँझ के तर-तरकारी हो जइते हल ।" औरत शिकायत लहजा में कहलक, मुदा ओकर आँखि नेह से लबालब हल ।) (सारथी॰13:19:5:2.17, 22:3.43)
173 तरसुन (चार गाँव के जजमनकइ हल । भोरे नहा-सोना, टिक्का-चन्नन करके निकल जा हला । घरे-घरे घूमऽ हला, "जजमानी, एकादशी परसुन हो । तरसुन पुनियाँ होतो । मंगर के सकरात पड़तो ।") (सारथी॰13:19:3:2.32)
174 तसली (ओकर निगाह के सामने झोपड़पट्टी के एकलौता, गरीब के लोर-सन बून-बून टपकइत नल के सामने चिल्ल-पों मचावइत, पानी ले जूझइत मेहरारू के मधुमक्खी सन झुंड कौंध गेल । ऊहे भिनभिनाइत भीड़ में औरत के केहनाठी से खोंचा खाइत असहाय नयकी के मुठान, जे अलमुनियाँ के दू-तीन तसली पानी भरइ के लाचार कोशिश करइत रहऽ हे । ढेर मशक्कत के बाद ऊ कइसूँ पानी भरि पावऽ हल । दू तसली से मड़इया में खाना-पीना हो जा हल अउ एक तसली से देह भिंगा ले हल - कउआ नहान !) (सारथी॰13:19:22:3.5, 8, 9)
175 तारल-छानल-गारल ("सरकार, इस्कुल वित्तरहित हे बकि हम पेटरहित न ने ही । दू-दू विषय के आचार्य ही, बकि हमरा ऊ पन्ना मिलवे नञ् कइल, जेकरा पढ़के तूँ नित तारल-छानल-गारल खाहऽ । दोहाय मीरा के, हमरो सिखावऽ, जहमा नून-रोटी के जुगाड़ होवे ।" - हम राह चलइत कहली ।) (सारथी॰13:19:3:3.38)
176 तिरकिन (~ भीड़) (कल्ह साँझ खनी मोदी जी के दलान भिजुन तिरकिन भीड़ जुमल हल । इक्का-दुक्का जवार के अदमी भी मिंझराल हलन । सबके चेहरा पर आशंका के बादर मड़रा रहल हल ।; खुशबू के लहास जहिया गाम आल, तिरकिन भीड़ जमा होल । अर्थी के पीछू गाँव-जवार के हजारों लोग चलऽ लगला, जइसे रंगदार के नञ्, कोय शहीद के दाह-संस्कार होवइ ले जा रहल हे ।) (सारथी॰13:19:5:1.5, 13:3.36)
177 तिलाख (= तिलाक; कड़वी बात के साथ ललकार या चुनौती) (हम पंडी जी से कहली, "सरकार, अपने तऽ जे चीज पर नजर गड़ा देहऽ, लेइये के छोड़ऽ ह । तूँ जो ओकरा से ऊ बाछी ले लऽ, तऽ हम जानी कि तू असली पंडित ह, खानदानी ... पुरखन के आशीर्वाद प्राप्त ।" - "देखऽ जजमान, तिलाख मत दऽ ! हम असली बरहामन ही । हम तोरा ऊ बाछी अपन खुट्टा में बान्ह के देखा देब तऽ मानऽ ने ?" पंडित जी कहके चाणक्य नियन अपन शिखा खोल देलन आउ कहलन, "बात हमरे तोरा तक रहे के चाही ।") (सारथी॰13:19:4:1.19)
178 तीमरदारी (दिन भर आज्ञाकारी नौकर जइसन ओक्कर तीमरदारी करऽ त आखिरी समय में पचास गो रुपइया अइसन थम्हइतन जैसे कोय जमींदारी के पट्टा थम्हा रहलन हे ।) (सारथी॰13:19:33:1.38)
179 तुरतमे ("एक्के तुरी एतना पानी ! तुरतमे सगरो अहिल-दहिल हो गेलइ !" नयकी ललचाल नजर से पाईप से निकलइत पानी के मोटगर धार निहारइत रहल ।) (सारथी॰13:19:22:2.38)
180 तुरे (दे॰ तुरी) (एकरा कते तुरे समझइलूँ हें कि चाह के पहिले पानी देबइ के चाही, मुदा ई मन के टाही, काहे ले सुनतो !") (सारथी॰13:19:26:3.48)
181 तेरही (तेरही के ठीक पनरहियाँ रोज शिशुआ-टिशुआ के बाप पाव भर लीची के पोटली लेले पहुँचल आउ अइते मातर तमक के पुछलक, "कने गेल छौंड़न ?") (सारथी॰13:19:15:3.18)
182 थकल-फेदाल (हम साँझ के थकल-फेदाल अपन इस्कुल से चलल आवऽ हली । रस्ते में पंडित जी भेंटा गेला ।) (सारथी॰13:19:3:3.25)
183 थपड़ना (बड़की मइया थपड़-थपड़ सूप उछला-उछला के ढेंकी-मूड़ी तर बइठल-बइठल कूटल चाउर फटक रहल हे । भूसा से देह अटल-पटल हे ।) (सारथी॰13:19:39:1.28)
184 थलबल (~ बाछी) (दोसर दिन हवन भी हो गेल । मोदी जी के घरइया थलबल करिया बाछी पंडी जी के गोंड़ी बन्हा गेल ।) (सारथी॰13:19:5:2.9)
185 थीह-बीह (पसेना से ~) (पसेना से थीह-बीह सिरधर साहस बटोर के बोलल, "ई काम हमरा से नञ् होतो । दोसर कोय काम कहऽ तऽ हम जरूर कर देबो, बकि ई नञ् होतो ।") (सारथी॰13:19:10:2.14)
186 थुरी-थुरी (माय भले शांत बेटी के पीठ पर हाथ फेर रहलन हल, बकि मन में आंधी चल रहल हल - "आउ कुछ से नञ्, अपन लच्छन से ऊँच बनल हलूँ, कंगना मूड़ी गोता देलक । गाँव भर बात बियोवन भे जात । सब थुरी-थुरी करत, केक्कर मुँह पकड़म !") (सारथी॰13:19:12:1.12)
187 दइवा (= दैव + 'आ' प्रत्यय) (जइसन ससुरे कइलका, ओइसन एक लोटा पानी देवइया नञ् रहलन । सोंस हइ छौंड़ा, निरबुधिया । बोलतो कुछ नञ्, अंदरे-अंदरे हम्हड़तो ! अप्पन करनी, दइवा के दोष ! कइलक ऊ, भोगतन के ? जइसन कइलका, ओइसन पइलका, दोसरा के की लेलका !) (सारथी॰13:19:16:2.13)
188 दत्ती ("आय माय ! कनिअइया तऽ बेहोश हइ । एकरा दत्ती लगल हइ ... पानी छीट", मधुरापुर वली मामा कंगना के पकड़इत बोलली ।) (सारथी॰13:19:13:3.14)
189 दनदनाना (हुकुम ~) (बाप के कामचोर, निठलुआ जइसन गारी सुनला पर ऊ बाप के आगू से हटि के आड़ भेल तऽ बाबू आँख लाल-पीअर करइत ओकर माई पर हुकुम दनदना देलक - जगेसरा के जो खाय ले देलें तऽ तोरो भूसा जइसन डेंगा देबउ ।) (सारथी॰13:19:20:2.21)
190 दनादनी (पंडी जी के धाक इलाका में जम गेल । लोग-बाग उनखा से डरऽ लगला । कहल जाय तऽ ऊ गाँव-जवार लेल छुट्टा साँढ़ हो गेला । उनखर खनदानी पेशा दनादनी पर हल । ऊ जे चाहऽ हलन, लेइये के छोड़ऽ हलन । एक से एक ठरनच रचऽ हला ।) (सारथी॰13:19:3:2.27)
191 दहपेल (दरबान मोटर चालू करि देलन होत, काहे कि प्लास्टिक के पाईप से पानी मोटगर धार छिच्छिर-छिच्छिर निकलि के नयका बनल छत पर पसरे लगल हल । मरद पाईप के एने-ओने घुमावइत छत के दहपेल करऽ लगल ।; मरद जब तक साबुन ले आवे, नयकी एक तुरी फिन सौंसे छत पानी से दहपेल करि देलक ।) (सारथी॰13:19:22:2.33, 3.27)
192 दिनकट्टन (फिन मरद ठंढा साँस लेवइत कहलन, "जन्ने देखऽ तन्ने घरे-घर ! पक्का के सुन्नर-सुन्नर घर ! एतना मनी घर में अदमी सब कते सुख से रहऽ होतन ! एगो हमनी अभागल ही ... रजिन्नर नगर के 'फलाय-ओभर' के नीचू रेलवी लैन के बगल में पलास्टिक के 'शीट' से छारल जइसन-तइसन मड़को में दिनकट्टन, ऊ भी मोहाल !") (सारथी॰13:19:22:2.9)
193 दिशा-फरागत (उनखा ले काल साँप बनके आल आउ चुटपुट ले गेल । ऊ अन्हरूक्खे दिशा-फरागत ले निकलऽ हला आउ दिन उगइत एक कोस टहल के चल आवऽ हला । तहिया अइते मातर कहलका, "हमरा कहरैनी पर साँप सूँघ लेलको ... ।" बोलते-बोलते ऊ गिर पड़ला, फेन नञ् उठला ।) (सारथी॰13:19:18:3.37)
194 दिशा-मैदान (मइये के जिद मचइले से की होबत, माय के हुआँ नञ् जाय देवे के हइ । पचहत्तर बरिस के हो गेल हे, देह-हाथ के नस ओइसहीं जनाय पड़ऽ हइ, ओकरा पर आँख से भी लाचार हइ । दिशा-मैदान के खातिर पैन दने जइतन, आउ नेहाय के खातिर ओतने दूर नदी पर जाय पड़त ।) (सारथी॰13:19:32:1.14)
195 दुखम-सुखम (ऊहे पुछलका, "कहऽ समाचार जजमान ! कइसन चल रहल हे ?" हमर जरला घर में नोन रगड़ा गेल बकि निठुरे मन से कहली, "दुखम-सुखम चलिये रहलइ हे सरकार ।" - "दुखम-सुखम काहे ? तूँ तऽ हाय इस्कुल के पंडित जी ह । बन्हल दरमाहा मिलऽ होतो ।" पंडित जी अपन कंधा बदलइत बोलला ।) (सारथी॰13:19:3:3.30, 32)
196 दुगमियाँ (~ औरत) (खुशबू के पिठिया भाय से नञ् रहल गेल, "माय, ई दुगमियाँ औरत के पिटनइ ठीक नञ् हउ", कहइत माय के पकड़ के अलग कइलक राजू ।) (सारथी॰13:19:13:3.10)
197 दुतिया (= द्वितीया) (बचपन के याद करऽ ही तऽ साँझ के जादे तर दोकान में लालटेन जरऽ हल । इक्का-दुक्का जगह पेट्रोमेक्स सनसना हल । अब तऽ बिजली आ गेल हे बकि उनखर दरसन दुतिया के चाने बूझऽ । कब अइथुन, कब जइथुन, अल्लोमियाँ नञ् जानऽ हथ । एक अंतर आल हे । कानफोड़ू हड़हड़ी के साथ जेनरेटर के रोशनी में बजार जरूर जगमगा हे ।) (सारथी॰13:19:28:1.12)
198 दुत्तरी (दे॰ दुत्तेरी, दुत्तोरी) (मरद बेफिक्री से बोलल, "दुत्तरी के ! आज दुन्नूँ परानी मन से नेहाय के सुख ले ली । निम्मन से माथा से नेहा ले आउ कपड़वो फींच ले ।") (सारथी॰13:19:22:3.47)
199 देखा पर चाही ("... रात-दिन वेद-शास्त्र उलटइत-पलटइत रहली, तब जाके एक जगह तनी आस जगल । प्रायश्चित्त के छोट सुराग हमरा जनाल ।", बोलके पंडी जी गुम हो गेला । भीड़ में सन्नाटा छा गेल - "पंडी जी कउन राह बतावऽ हथ, देखा पर चाही !") (सारथी॰13:19:5:1.30)
200 दोहरौनियाँ (कछटा-कछटा के मारिये देलहीं नञ् निगम !" / "ओकरा से सुत्थर-कमासुत माउग अइतउ ?" / "मत मिलइ, दोहरौनियाँ दहेज तऽ मिलतइ ने ।") (सारथी॰13:19:15:3.8)
201 धँसना (अनाज नञ् ~) (मोदी घिघियाल सन बोलल, "सरकार, की हुकुम होवऽ हइ । कोय राह निकालथिन मीरा, बड़ गुन गइबन । कल्ह से केकरो अनाज नञ् धँसल हे ... उबारऽ देवता !") (सारथी॰13:19:5:1.24)
202 धइल (= रखा हुआ) (संयोग से हम छो बजे पढ़ा के घर अइलूँ हल । अइते मातर माय कहलक, "देखहीं ने मउसी कइसे-कइसे दो कर रहलथुन हें ।" हम हड़बड़ाल भित्तर गेलूँ तऽ देखऽ ही मउसी के हिचकी पर हिचकी आ रहल हे । हम कटोरी में धइल गंगा जल उनखर मुँह में देलूँ कि परान टूट गेल ।) (सारथी॰13:19:19:3.16)
203 धड़फड़ाना (फिर कौन मार माय पूरा जिंदगी काटे ला जा रहले हऽ । महीना पुरते नञ पुरते हियाँ आवे लगी धड़फड़ाय लगतइ । हम जा रहलियो हे दिलो, देखियहु, माय के मन कलपे नञ !) (सारथी॰13:19:34:3.27)
204 धम-धम (ढेंकी के ~) (तोरा जाड़ा न लगऽ हो ? चल आवऽ हऽ भिनसरहीं । हमरो सुत्ते न दऽ । ढेंकी के धम-धम में नींद आवऽ हे ?) (सारथी॰13:19:38:3.31)
205 धमार ("शैंपू हइ ।" मरद अभियो हँसि रहल हल, "केस धोवइ ले ।" - "एकरा से हमर केसिया धोवइतइ ? सिरमिट-बालू से तऽ केसिया बगेरी के खोंथा नियन हो गेलइ हे । खाली पइसा के धमार ! एतना में तऽ एक साँझ के तर-तरकारी हो जइते हल ।" औरत शिकायत लहजा में कहलक, मुदा ओकर आँखि नेह से लबालब हल ।) (सारथी॰13:19:22:3.42)
206 धुरियाल (नाना हाहे-फाफे धुरियाल पहुँच गेला । अपना साथ चार गो अदमी ले लेलका हल । यहाँ तऽ बाबा के गोमस्तगीरी नञ् हल, मामा के दरोगइ चलऽ हल । देखते मातर एकार-तोकार करऽ लगल - "कहाँ दौड़ल अइले हें ? नतियन पानी में हलउ ?") (सारथी॰13:19:16:3.29)
207 धुरियाले ("छिया-छिया ! ई की बोलली फूआ ! अइसन में तऽ गाम के काँच-कुमार बिगड़ जात । अगे माय गे माय ! देव ने पित्तर, धुरियाले भित्तर !" रजौली वली फूआ से कहलकी ।) (सारथी॰13:19:13:1.46)
208 धैल बुड़बक (टका-सन जवाब सुनके ठिसुआल नीचे उतरल तऽ भनक पाके जुटल पड़ोसियन ओकरा दुरदुरावऽ लगलन - "धैल बुड़बक, बाप बुझा हऽ । पाल-पो देतो, बेटवन तऽ तोहरे कहइतो ।") (सारथी॰13:19:16:1.1)
209 धोध (हाँ, तऽ जिनखर खिस्सा कहे जा रहलियो हे, उनखर नाम हल रमेसर जी । बड़ा संस्कारी । लहलह करऽ हला । रूप से डबडब ! खाल-पीयल देह । धोध फेंकले जा हल । चलऽ हला तऽ उनखा से आगू उनखर धोधिये मटकल चलऽ हल । छाता आउ बगुली छेंड़ी तऽ उनखर कवच-कुंडल हल ।) (सारथी॰13:19:3:1.29, 30)
210 धोधवरवा ("ओने की ताकऽ हीं चइयाँ, मइया के धोधवरवा ! गोदरेजवा में नञ् एक्को फुट्टल कौड़ी हउ, नञ् लुग्गा-फट्टा ! चेथरियो बटोर के मइये के दे अइलउ", अप्पन बड़की फूआ बिख बुनलकी ।) (सारथी॰13:19:16:2.52)
211 धोधा (नयकी दुलहिन केबाड़ी के फाँक से धोधा देले हुलकि रहलन हल ।) (सारथी॰13:19:5:1.10)
212 धोवन-धावन (अब तऽ बिजली आ गेल हे बकि उनखर दरसन दुतिया के चाने बूझऽ । कब अइथुन, कब जइथुन, अल्लोमियाँ नञ् जानऽ हथ । एक अंतर आल हे । कानफोड़ू हड़हड़ी के साथ जेनरेटर के रोशनी में बजार जरूर जगमगा हे । अइसे ओकर रोशनी में भले दोकान जगमगाय तऽ जगमगाय, सड़क पर तऽ ओकर धोवने-धावन छिटकऽ हे ।) (सारथी॰13:19:28:1.17)
213 नखड़पच्ची (कामो धंधा करे जाहे तऽ ऊ राँड़ी मारऽ हइ । कहऽ हइ, "काम करे जाहे कि चाटे जाहे । जिनगी बर दूसर घर चाटले हे । अप्पन घरवा वाला नीमन न लगो ! लइकवो लेवे के डरे भागल चलऽ हे ।" / "जो कलेसरी ! ई सब ऊ छिनरी के नखड़पच्ची हइ । बेचारी के खाहीं ला देतइ हल तऽ ई दशा होतइ हल ।") (सारथी॰13:19:38:2.40)
214 नरकटिया-जिनोर (अचक्के परेमन परघट भेल आउ सिरधर के हाथ उहाँ ले गेल, जहाँ बर-पीपर के घनगर गाछ बीच एगो अइँटा के लमहर-चौड़गर दलान बनल हल । दूर से ई मकान नजर नञ् आवऽ हल । दूर-दूर तक नरकटिया-जिनोर के खेत लहलहा रहल हल ।) (सारथी॰13:19:12:2.25)
215 नरमाल (विधाता के अपनापन बोली से नरमाल सिरधर के कुरोध खुशबू के देखते मातर ओइसइँ फफा गेल, जइसे सूखल पतहुल पाके कोय बुताल जायत ठिंगोरा ।) (सारथी॰13:19:12:2.44)
216 नहइनाय (= नेहनाय; नहाना) (जब से ऊ मरद के साथ कमाय ले पटना आल हे, नदी में देरी तक नहइनाय ओकरा पिछलउकी जनम के खिस्सा-सन लगल । इहाँ पटना में इज्जत झाँप के रहना भी मोहाल हे, भला नेहाय के सरग वला सुख भोगनइ नसीब में कहाँ ममोसर हो पावऽ हे !) (सारथी॰13:19:23:1.51)
217 निट्ठुर (= निष्ठुर) ("बेचारी के गंजन करके जान ले लेलहो आउ अंतिम अगिया के देतइ ... मइये-बप्पा !" / "राम-राम ! अइसनो निट्ठुर अदमी होवऽ हे !") (सारथी॰13:19:15:1.50)
218 निठलुआ (बाप के कामचोर, निठलुआ जइसन गारी सुनला पर ऊ बाप के आगू से हटि के आड़ भेल तऽ बाबू आँख लाल-पीअर करइत ओकर माई पर हुकुम दनदना देलक - जगेसरा के जो खाय ले देलें तऽ तोरो भूसा जइसन डेंगा देबउ ।) (सारथी॰13:19:20:2.18)
219 निठुरे (~ मन से) (ऊहे पुछलका, "कहऽ समाचार जजमान ! कइसन चल रहल हे ?" हमर जरला घर में नोन रगड़ा गेल बकि निठुरे मन से कहली, "दुखम-सुखम चलिये रहलइ हे सरकार ।") (सारथी॰13:19:3:3.30)
220 निमकी-खमौनी (लगऽ हल भाय के पढ़ गेला से घर के दिन फिर जात । ओकरा जाय घरी गाड़ी चढ़ाबइ ले ओकर मोटरी माथा पर चढ़ाके जा हलूँ । सूट-बूट पेन्हले, मोटरी टाँगले कइसन लगत हल ! भौजाय निमकी-खमौनी के साथ-साथ घी के डिब्बा देबइ ले नञ् भूलऽ हल ।) (सारथी॰13:19:26:3.17)
221 निरबुधिया (जइसन ससुरे कइलका, ओइसन एक लोटा पानी देवइया नञ् रहलन । सोंस हइ छौंड़ा, निरबुधिया । बोलतो कुछ नञ्, अंदरे-अंदरे हम्हड़तो ! अप्पन करनी, दइवा के दोष ! कइलक ऊ, भोगतन के ? जइसन कइलका, ओइसन पइलका, दोसरा के की लेलका !) (सारथी॰13:19:16:2.12)
222 निरासी ("निरासी, मरमा मरल, हमर घर उजाड़के", मामा के बोली हल । / "चमड़िया नोच के देहिया ससार देबउ, नञ् तऽ सले-बले रह, खो-पी । पुरनकी मइया ने मरलउ, नयकी ला देबउ", ई हल टिसुआ बाप के बिख बुझल बोली ।) (सारथी॰13:19:16:3.2)
223 नीलामासा (मंजु माय भुइयाँ में माथा पटकि रहली हे । दाय-माय उनखा सम्हारइ में बेदम । ऊ बजड़-बजड़ के अपन देह बगल-फोर करि लेलन हे । कोय अंग बाकी नञ्, जजा नीलामासा नञ् पड़ल हे । उनखा रेकनी ले लेलक हे - 'नहिरे-ससुरे सब दिन दुखवा भोगलें गे रनियाँ !') (सारथी॰13:19:15:1.13)
224 नेमानी (साँझ तक लउटइत-लउटइत दुन्नूँ दने के लटकल खड़िया भर जा हल उनखर । किनखो हियाँ हरियर तरकरियो मिल जा हल - लउकी, नेनुआ, झींगा, सतपुतिया, साग ... । नेमानी के चूड़ा, चाउर तऽ असालतन ... पहिले पंडी जी, फिर घरइया । समाज के ईहे रेवाज हल ।) (सारथी॰13:19:3:1.17)
225 पउती (हम दूसर ड्योढ़ी में चल जा ही । हमरा बिना पुछले मइया जउन डोमनी के माय ला पुरान धोती पउती से निकालइत हल, कहे लगऽ हे, "देखइत हहीं न, डोमनी के मइया के ! बेचारी के कउन गत कर देलकइ बेटा-पुतोह । तू बड़ी कहऽ हें कि बुढ़वे-बुढ़िया बदमाश हो जा हे, बुढ़ारी में ।") (सारथी॰13:19:38:1.12)
226 पकड़ा-धकड़ी (की हल, की हो गेल ! केतना शांत इलाका हल ! ... कोय रोक नञ्, कोय टोक नञ्, कोय बन्धेज नञ् । हल्ला-गोदाल होवऽ हल तऽ खेत-पथार जोतइ ले । जादे से जादे लाठी-पइना निकलऽ हल, टन-टुन होवऽ हल । लोग-बाग जुमऽ हल, पकड़ा-धकड़ी होल, पर-पंचायत बइठल, ममला मोरत्तम !) (सारथी॰13:19:10:1.9)
227 पजावल (साहित्य के बिना विज्ञान पजावल दुधारी तलवार हो गेल हे, जेकरा से खिलवाड़ करइ वला आदमी अपने हाथ से कटइ ले तैयार हे ।) (सारथी॰13:19:25:3.11)
228 पटउनी ("भइया, आज हमर पचोतरा खंधा में हमर भिठार पटतो । लगले तोहरो खेत हो । पानी ओने भी मोर देबो । पनियौंचा के हिसाब बाद होतइ । ऊ खंधा में टमाटर फट के उपजतइ । बीहन कादिरगंज से लइबइ । नञ् होतइ तऽ पटउनी ले मटकुइयाँ खोद लेबइ ।") (सारथी॰13:19:27:2.43)
229 पतहुल (विधाता के अपनापन बोली से नरमाल सिरधर के कुरोध खुशबू के देखते मातर ओइसइँ फफा गेल, जइसे सूखल पतहुल पाके कोय बुताल जायत ठिंगोरा ।) (सारथी॰13:19:12:2.46)
230 पनडुबनी (देखहीं ने, पलियावली के फलिस्ता के खोंखी नञ् छुट रहले हे । मायो हथ भी तऽ पनडुबनी ! घंटा-घंटा पहर पोखरिया में नहा हइ । बुतरू के मायवला दूध से सर्दी धरऽ हे ।) (सारथी॰13:19:18:2.47)
231 पनसोक्खा (विश्वास हे, विश्व कथा-साहित्य के पनसोक्खा में मगही भी अपन रंग लेले छटा बिखेरवे करत ।) (सारथी॰13:19:2:2.20)
232 पनिऔंचा (दे॰ पनियौंचा) ("देख कारू, खाली पटइले से तऽ खेती नञ् हो जात । ओकरा ले खाद-बीज चाही, पनिऔंचा चाही, अजूरी-मजूरी चाही । ई सब के जुगाड़ कइले बिना कइसे डेग बढ़ावी ?" चन्नर अपन माथा हँसोतइत बोलल ।) (सारथी॰13:19:26:2.48)
233 पम्हीदार (अबकी बड़गो कमरा में दूगो बड़गर चौकी पर तोशक-चद्दर बिछल हल । एगो पर विधाता सीना तर मसनद लेले लेटल हल आउ दोसर पर चार गो पम्हीदार छौंड़ बइठल हल, जेकरा में खुशबू भी एगो हल ।) (सारथी॰13:19:12:2.39)
234 परजात ("मर दुर हो दाय ! चुक्का ने पियाली, छुच्छे कलाली ! ढोल-बाजा बजवे नञ् कइल आउ दुलहिन लगली दुआरी ! नञ् जानु कने से जात कि परजात, उठा लइलक । अइसने पुतहू पर गोड़ भुइयाँ में पड़ रहलइ हे ?" सिहमा वली बोलली ।) (सारथी॰13:19:13:1.39)
235 पर-पंचायत (की हल, की हो गेल ! केतना शांत इलाका हल ! ... कोय रोक नञ्, कोय टोक नञ्, कोय बन्धेज नञ् । हल्ला-गोदाल होवऽ हल तऽ खेत-पथार जोतइ ले । जादे से जादे लाठी-पइना निकलऽ हल, टन-टुन होवऽ हल । लोग-बाग जुमऽ हल, पकड़ा-धकड़ी होल, पर-पंचायत बइठल, ममला मोरत्तम !) (सारथी॰13:19:10:1.10)
236 परवह (देखऽ ही तऽ चिता पर खाली राख बचल हे, जेकरा सब अंजुरी-अंजुरी गंगाजी में परवह करि रहला हे ।; हम झुकलूँ आउ माथा, कंठ, छाती में भभूत लगाके बचल गंगा में परवह करि पानी में उतर गेलूँ ।) (सारथी॰13:19:19:3.36, 43)
237 परसन (अंगना में बरइत ढिबरी के ईंजोर में बेटा के साथे धनेसर खा रहल हे । रोटी के परसन दइत मेहरारू टुभकल, "भाय चार रोज से एको घड़ी घर में नञ् रहऽ हथुन । हिस्सा खातिर टोला के अदमी के टटकोरइ में तऽ नञ् लगल हथुन ?") (सारथी॰13:19:21:3.3)
238 पसोठ ("अरे ! तू केकर-केकर न दूध पीले हें । बेचारी टिमल चमइन आवथ तऽ बिना तोरा दूध पीऔले न जाथ । अब फिलौसफी बकले चलऽ हें ?" / हम सोचऽ लगऽ ही, "इस्कुल से आवे घरी टिमल के मरद लाठा चला रहल हल । गाँव के पंडित जी ओकरा छोड़ा के पहिले लाठा-बरहा, पसोठ धोलन तब अपने से चला के नहइलन हल ।") (सारथी॰13:19:39:3.6)
239 पाव-अधवा (कमर कसलक हे तऽ चूल्हो सोझ होवऽ हे, नञ् तऽ उट्ठा-डम्मर खेती से पेट भरइवला हल । जहिया से गोंड़ी सम्हारलक हे, बाल-बच्चा के पाव-अधवा मिले हे से मिलवे करऽ हे, बाजार नापाइयो आवऽ हे ।) (सारथी॰13:19:27:1.15-16)
240 पिछलउकी (जब से ऊ मरद के साथ कमाय ले पटना आल हे, नदी में देरी तक नहइनाय ओकरा पिछलउकी जनम के खिस्सा-सन लगल । इहाँ पटना में इज्जत झाँप के रहना भी मोहाल हे, भला नेहाय के सरग वला सुख भोगनइ नसीब में कहाँ ममोसर हो पावऽ हे !) (सारथी॰13:19:23:1.52)
241 पित्तर ("छिया-छिया ! ई की बोलली फूआ ! अइसन में तऽ गाम के काँच-कुमार बिगड़ जात । अगे माय गे माय ! देव ने पित्तर, धुरियाले भित्तर !" रजौली वली फूआ से कहलकी ।) (सारथी॰13:19:13:1.46)
242 पुन्नी (हम बुक्काफार के कानऽ लगलूँ । हमरा लगल, "ने गंगा जल देतूँ हल, ने मउसी मरत हल ! मउसी हमरे राह देख रहलन हल ?" कन्ना-रोहट सुनके गाँव भर जुट गेलन । की जन्नी, की मरदाना ! सब के आँख में लोर । / "मउसी पुन्नी हलथिन, शनिच्चर के पीपर में पानी पड़तइ ।") (सारथी॰13:19:19:3.22)
243 पूत-करत (= बाल-बच्चा) (बेचारी तोर माय हमरा तरहत्थी पर रखले रहऽ हे । ओकरा नहइते केश नञ् टूटइ ! सब के तऽ देलिअइ, बेचारी के कुछ नञ् देलिअइ । हे भगवान, ओकर पूत-करत पर ध्यान रखिहो !) (सारथी॰13:19:19:2.10)
244 पोथानी (खटिया के ~) ("एगो ठगनी बुढ़िया हलइ बेटा ! ऊ एगो झाँझी कुतिया पोसलकइ हल ... ", मउसी माय खटिया के पोथानी में बइठल ताड़ के पंखा हौंकइत खिस्सा सुना रहली हे ।; "आँय कारू, तोरा हमर खेती के बड़ चिंता सतइले हउ, की बात हइइ ?" चन्नर सिरहाना दने घसकइत पुछलक ।" / कोय खास बात नञ् हल भइया ! तोहरा सुगबुगाइत नञ् देखके लगल कि की बात हे, जे भइया बइठल हथ ।", करूआ पोथानी दने आमने-सामने होवइत बोलल ।) (सारथी॰13:19:18:1.34, 26:2.40)
245 फक्की (मउसी गाँव भर के डागदरनी हलो । केकरो कुछ संसर-बिसर होवे, मउसी भिजुन पहुँच जाय । मउसी ओकरा देशी नुस्खा बतावे - ""घी हरदी देके गरम दूध पिलावऽ, घाव पर भंगरोइया के रस गार के टपका दऽ, छोहाड़ा पका के कल्ला तर दाबऽ, कसेली जार के फक्की बनाके पीयऽ, पोदीना अरक दऽ, निम्मक चिन्नी-पानी के घोल पिलावऽ ... ।" उनखा पास सब रोग के निदान हल ।) (सारथी॰13:19:18:3.21)
246 फिफरी (मंजु के लहास सड़क पर उतरे-दखिने पाड़ देल गेल । घरइया पछाड़ खा रहल हे, चिरईं-चुरगुनी सकदम ! टोल-पड़ोस के आँख लोरे-झोरे । असमान के तरेंगन तक उदास । चान तऽ झमराल ... ठोर पर फिफरी ।) (सारथी॰13:19:15:1.5)
247 फुचबाबू (ईहो ननमा-ममुआँ नियन समाज में 'सर' बनके रहतइ, सुनि लऽ । ओनमा टिट्टी नञ् जानऽ हलऽ । कंपूटर सिखा देलको तऽ फुचबाबू मित्तम बनल घूमऽ हऽ । हमर नाती केकरो जुत्ती झार के नञ् जीतइ, अपीसर बनतइ ... अफीसर ... हाँ !") (सारथी॰13:19:15:3.46)
248 फुफुइया (=फुफ्फु + 'आ' प्रत्यय) ("एक बात कहिअउ मामा ?" शिशुआ सकसकायत-सकसकायत पुछलक । - "की ?" - "हमर दुइयो के हौल दिलवा नानिये के हइ ?" - "नानी के कइसन रहतउ ? तोरा दुइयो के फुफुइया देलकउ हे ।"; "मामा, हमरा दुइयो के दू दिन ले जाय दऽ । दुइयो भाय हौलदिलवा आउ कटोरवा मांग के ले अइबो ! मइयो मर गेल अउ समनमो छोड़ देम, आँय मामा ?") (सारथी॰13:19:17:1.21)
249 फुरूंगी (अंगना में धूप उतरे लगे तऽ हम बाहरे बधारी में फुरूंगी हो जाई ! घूमघाम के आवी तऽ देखी डोमनी के मइया अंगना में बइठल बासी भात, नीमक-मिचाई या मट्ठा जौरे खा रहल हे ।) (सारथी॰13:19:38:3.47)
250 फुसलउनी (मामा बुतरू के फुसलउनी में फुसला गेली आउ शिशुआ-टिशुआ भोरे नाना के साथ पिंजड़ा से निकलल सुग्गा-सन ननिहाल पहुँच गेल ।) (सारथी॰13:19:17:1.34)
251 फूल-सुंघनी (दुन्नूँ सुगवा शिशुआ-टिशुआ कइसे रहतउ गे बबुनी ! ओकरा फोकचा किन-किन के खिअइतउ गे मंजुआ । के पक्कल-पक्कल आमा ला-ला देतउ गे फूल-सुंघनी !) (सारथी॰13:19:15:1.23)
252 फोंका (= फोला) (विधाता के बोली से जगके कंगना धड़फड़ा के उठल । पछान के ओकर देह में फोंका उठल । नफरत के आग सौंसे शरीर में पसरि के आँख में सिमट आल ।) (सारथी॰13:19:14:1.14)
253 बंधेज (= बन्हेज, बंधेजी; कैदी; बन्धन में पड़ा व्यक्ति) (की हल, की हो गेल ! केतना शांत इलाका हल ! ... कोय रोक नञ्, कोय टोक नञ्, कोय बन्धेज नञ् । हल्ला-गोदाल होवऽ हल तऽ खेत-पथार जोतइ ले । जादे से जादे लाठी-पइना निकलऽ हल, टन-टुन होवऽ हल ।) (सारथी॰13:19:10:1.6)
254 बकरी-उकरी (कभी मइया कहित हल, चाहे दीदी, "एतना भात हइ । रूनिया ला लेले जइहूँ । भूखळ होथ । हमरा घर तऽ कभी अएवे न करथुन । अब खुर-खार करे लायक हो गेलथुन हे । खुर-खार करावऽ न त वने-वने घूमे ला छोड़ दे हऽ । बेटी जात हवऽ । बकरियो-उकरियो त न हवऽ कि चरावऽ-उवऽ । का करऽ हथुन घरवा में ।") (सारथी॰13:19:39:1.45)
255 बगदल ("खैरियत हो तऽ भागऽ, नञ् तऽ अभिये सब गत हो जइतो ।" मोहल्ला के बगदल रूख भाप के बाप जान लेके भागि गेल ।) (सारथी॰13:19:16:1.19)
256 बगलफोर (मंजु माय भुइयाँ में माथा पटकि रहली हे । दाय-माय उनखा सम्हारइ में बेदम । ऊ बजड़-बजड़ के अपन देह बगल-फोर करि लेलन हे ।) (सारथी॰13:19:15:1.12)
257 बध-अधार (सच कहऽ हियो बगेरी नियन खा हो । बेटवो जहिया से गेलो हे, बध-अधारे पर जिन्दा हो । हमर उजड़ल घर सम्हार दऽ समधी जी । नुनुअन के चार-आठ पहर ले जाय दऽ, पहुँचा जइबो ।) (सारथी॰13:19:16:2.32)
258 बनातरी (= बनाय तरी) (औरत दू-तीन तुरी खूब बढ़िया से साबुन लगइलक आउ अपन समुल्ले देह मल-मल के नहाल । अब ऊ बनातरी के धुल गेल हल आउ साफ-सुत्थर लगि रहल हल ।) (सारथी॰13:19:23:2.35)
259 बनाल (= बनावल) (घठाह नियन नाना साथ आल अदमी के चला के ठहर गेला, भुक्खल तऽ भुखले सही, जइबन तऽ देखिये के । दिन भर गाँव में बंगले-बंगले घूम अइला । जजइ गेला, ओजइ सभाखन । रात अइला तऽ समधिन झनकऽ लगली, "गाँव में कुत्ता नियन दुआरी-दुआरी चाट आल चटोरवा, कउन पेट में खात ! हमर बनाल अब कुत्ता खात आउ की ?") (सारथी॰13:19:17:1.1)
260 बपुत्तगर ("बात तऽ तूँ गूढ़ कहऽ हें कारू भाय ! हमरा बहराय में नञ् बनतउ, एकलुआ हिअउ । तों बपुत्तगर हें, जा सकऽ हें, बकि हमरा तोर दोसर बात जँचऽ हउ, 'खेती के ढंग बदलऽ !' ्करा बदे कुछ सोंचले हें तऽ हमरो बताव ।", चन्नर गिलास नीचू रखइत बोलल ।) (सारथी॰13:19:27:2.3)
261 बरहा (हम सोचऽ लगऽ ही, "इस्कुल से आवे घरी टिमल के मरद लाठा चला रहल हल । गाँव के पंडित जी ओकरा छोड़ा के पहिले लाठा-बरहा, पसोठ धोलन तब अपने से चला के नहइलन हल । ... ई बाबाजी तऽ एक तुरी चमरटोली में एगो के घर ढुक गेलन हल । पकड़इला पर हड़कुट्टन होल हल । माथा के टेटन आजो गवाह दे हे । आउ बरहा धोवऽ हथ । अपन कुकरम कइसे धोवऽ सरकार ?") (सारथी॰13:19:39:3.11)
262 बहिंआना (= बाँह से पकड़ना) (ओकर थोबड़ा लटकल हल । हम अकचका के पुछली, "काहे यार ! मुँह सुक्खल काहे हउ ?" आउ ओकरा बहिंअइले अंदर कर लेली ।) (सारथी॰13:19:30:2.53)
263 बिगल (आजे इनखा खाय बिना भी तरसा देलकइ बेटा-पुतोह । देखइत हहीं न, कइसन सूख के ठठरी हो गेलइ हे, बेचारी । आज तो मंगजरउनी लुगवो तक छीन लेलकइ । गनउरा पर के बिगल चेथरी पहिन के आयल हे, बेचारी ।) (सारथी॰13:19:38:1.28)
264 बिचकाना (हम लौटला पर पुछली, "खूब मन लगलो ने पटना में मउसी ?" तऽ ऊ ठोर बिचकाके चुप रह गेली । घुरती साल छोटकी के पोता के बियाह में कतना कोय कहलक, ऊ घुरके पटना नञ् गेली ।) (सारथी॰13:19:19:1.44)
265 बियोवन (माय भले शांत बेटी के पीठ पर हाथ फेर रहलन हल, बकि मन में आंधी चल रहल हल - "आउ कुछ से नञ्, अपन लच्छन से ऊँच बनल हलूँ, कंगना मूड़ी गोता देलक । गाँव भर बात बियोवन भे जात । सब थुरी-थुरी करत, केक्कर मुँह पकड़म !") (सारथी॰13:19:12:1.12)
266 बिरनाम (= बिरनामा) (एक तुरी मंगरुआ के मइया से एगो लौकी मांगलन । ऊ बहाना कर देलन । पंडी जी के मुँह से निकलल, "ठीक हउ ! मत दे ! बकि तहूँ लौकी नेमान नहियेँ करबीं ।" ओही रात रजुआ के बिरनाम भैंसा खुट्टा से खुल गेल । लगल मंगरुआ के दुआरी पर खुरछाहीं करे ले । बगले लौकी के लुहलुह पेड़ हल । पहिले तऽ ओकरा में अँखड़ल । चोखगर सींग के एक्के झटका में पेड़ उखड़ गेल ।) (सारथी॰13:19:3:2.2)
267 बिस्टी (जइसहीं हम ड्योढ़ी में आवऽ ही, वइसहीं एगो कोना में डोमनी के मइया पर हमर नजर पड़ जा हे । नंग-धड़ंग खाली एगो बिस्टी पहिनले, मानो कउनो भूतनी हे । हमरा देखके ऊ सिकुड़े-सिमटे लगऽ हे, जइसे मरइत साँप अपन देह सिकुड़ऽ हे ।) (सारथी॰13:19:38:1.4)
268 बिहनी (कउन एकर मेहरारू के छाँट-बना के दे खाली गुदकावे ला । एही खोजऽ हइ अब एकरा से । ई कूट-छाँट के दे आउ हम खाली बनावी-खाई । ई बेचारी के अब हूब हइ कि कूट-छाँट के देई । सूख के तऽ ठठरी हो गेलइ हे । बिहनी खयलो बिना मार देलकइ । न तऽ अभी कमाय-धमाय जकत न हलथी ।) (सारथी॰13:19:38:1.49)
269 बुझउअल (दे॰ बुझौअल) (साँझ के एकांत में कंगना माय अपन मरद से कहलन, "नञ् जानी हमर भाग में की लिखल हे ... । बेटा बाहरे रहऽ हे । तहू एनइँ-ओनइँ रहऽ ह । कुछ पता हो, घर में कउन गुलगुल्ला पक रहलो हल ?" - "की हलउ से हमरा बुझउअल बुझा रहले हें", गमछी से पसेना पोछइत सिरधर पुछलक ।) (सारथी॰13:19:12:1.31)
270 बुझनगर (शिशुआ-टिसुआ के जिनगी बाप के घर में जेहलो से बत्तर बीत रहल हल । विपत्ति दुइयो के असमय बुझनगर बना देलक हल ।; बेटी श्वेता तऽ तनि बुझनगर हो गेल हे । छोटुआ अभी अबोध हे ।) (सारथी॰13:19:16:3.16, 36:2.8)
271 बुढ़भासना (उनखर सोंचे के दिशा बदलल - "ई बछिया के कउन दोष ! सब गलती बाप के हइ । मुँहजरौना के नञ् सूझले हल कि जुआन बेटी हे, अहुआ-पहुआ के दमाद बनाके घर में रख रहलूँ हें ! आउ फेटा बान्ह के घूमथ गाँव में ! आवे मुँहझौंसा मुँह में उक्का नेस दे हियन । हमरा नोट धरइ ले देलक हल कुकरमाहा कि साँप पोसइ ले देलक हल । ऊहे त कही कि कहाँ के बंक कबड़लइ ! ऊहे झोंटहा देलकइ होत । ईहो मतमरुआ बुढ़भासिये गेलइ ! तब तऽ ओतने में बेटिया के बेच ने देलकइ हल ! एगो बेटिया भार हो रहलइ हल !") (सारथी॰13:19:12:1.23)
272 बेग-ऊग (बात आझ के न हे । ढेर दिन हो गेल । ओती घड़ी एते बेग-ऊग के सहचार न हल । तखनी के गउआँ-पाँड़े एगो खड़िया रखऽ हलन । हमरा भिर के एगो पंडी जी कान्हा पर खड़िया लेके चलऽ हला । दुन्नूँ दने कान्हा में लटकल लुग्गा के खड़िया में लटखुट समान रहवे करऽ हल । जजमान घर जे मिलल, ओकरे में रखले गेला ।) (सारथी॰13:19:3:1.2)
273 बोरिया-बिस्तर (मइया के नञ् मालूम हइ न कि कइसे बाबू जी के मरते ही बड़का बेटा माय के बोरिया-बिस्तर भी बाँध देलक हल आउ हमरा से कहलक हल - ले जो मइयो के, जहाँ ले जाय के हउ ।) (सारथी॰13:19:32:1.3)
274 भंगरोइया (मउसी गाँव भर के डागदरनी हलो । केकरो कुछ संसर-बिसर होवे, मउसी भिजुन पहुँच जाय । मउसी ओकरा देशी नुस्खा बतावे - ""घी हरदी देके गरम दूध पिलावऽ, घाव पर भंगरोइया के रस गार के टपका दऽ, छोहाड़ा पका के कल्ला तर दाबऽ, कसेली जार के फक्की बनाके पीयऽ, पोदीना अरक दऽ, निम्मक चिन्नी-पानी के घोल पिलावऽ ... ।" उनखा पास सब रोग के निदान हल ।) (सारथी॰13:19:18:3.19)
275 भतरखौनी (“दूर जो गे कुलछनी, भतरखौनी पतुरिया । कने से उड़ल-दहाल हमर घर आ गेलें बगिया उजाड़इ ले गे डइनी ! अरे बाप रे बाप ! हम केक्कर मुँह देखके जीबइ हो दइवा ! ई रकसिनियाँ हमर सुगवा के चिबा गेलइ हो मिरवा ! हमर रजवा भर पेट एकरा देखियो नञ् पइलक कि सरंग लग गेल हो बाऊ !”) (सारथी॰13:19:13:2.46)
276 भनभनाल (“एकरा कते तुरे समझइलूँ हें कि चाह के पहिले पानी देबइ के चाही, मुदा ई मन के टाही, काहे ले सुनतो !”/ सनीचरी कुछ कहलक तऽ नञ् बकि मने मन भनभनाल पानी लावे चल गेल । सनीचरी के एकांत में डाँटो, कुछ बात नञ्, बकि दोसरा आगू डाँट गरायन नियन लगतो ।) (सारथी॰13:19:27:1.3)
277 भरनाटी (हम कभियो नञ भुला पइबइ ऊ दिन के ! सप्ताह भर खातिर कचहरी बंद हो गेल हल, भरल कचहरी में शहर के नामी वकील वीरू बाबू के गुंडवन भरनाटी देखा देलक हल । अइसन बंदी होल कि कचहरी में भूत लगल हल भर सप्ताह ।) (सारथी॰13:19:33:3.45)
278 भिट्ठा (~ पटाना) (करूआ लजाल-सन बोलल, "नञ् दादा ! हम झगड़ा पसारे सोंच के नञ् अइली । हमरा लगल कि सौंसे गाँव भिट्ठा पटा रहल हे आउ तूँ काहे नञ् फटफटा रहलऽ हे ।") (सारथी॰13:19:26:1.49)
279 भिठार ("भइया, आज हमर पचोतरा खंधा में हमर भिठार पटतो । लगले तोहरो खेत हो । पानी ओने भी मोर देबो । पनियौंचा के हिसाब बाद होतइ । ऊ खंधा में टमाटर फट के उपजतइ । बीहन कादिरगंज से लइबइ । नञ् होतइ तऽ पटउनी ले मटकुइयाँ खोद लेबइ ।") (सारथी॰13:19:27:2.39)
280 भूर (= भूड़, छेद) (हियाँ के लोगन के तऽ आउर विचित्र हाल हे । जे थरिया में खइतो, ओकरे में भूर कर देतो ।) (सारथी॰13:19:25:1.3)
281 भेंट-मुलाकात ("अरे मौसी" हम भी अप्पन चेहरा पर बनावटी हँसी लाके कहलिअइ, "कखनी अइलऽ ? हमरा तो फुरसते नञ मिलऽ हो कि तोहरा से भेंट-मुलाकात करियो ! कचहरी के काम से फुरसत ही नञ मिल पावऽ हइ ।") (सारथी॰13:19:34:1.29)
282 भोगनइ (जब से ऊ मरद के साथ कमाय ले पटना आल हे, नदी में देरी तक नहइनाय ओकरा पिछलउकी जनम के खिस्सा-सन लगल । इहाँ पटना में इज्जत झाँप के रहना भी मोहाल हे, भला नेहाय के सरग वला सुख भोगनइ नसीब में कहाँ ममोसर हो पावऽ हे !) (सारथी॰13:19:23:1.54)
283 मंगर (चार गाँव के जजमनकइ हल । भोरे नहा-सोना, टिक्का-चन्नन करके निकल जा हला । घरे-घरे घूमऽ हला, "जजमानी, एकादशी परसुन हो । तरसुन पुनियाँ होतो । मंगर के सकरात पड़तो ।") (सारथी॰13:19:3:2.32)
284 मखना (= गाय-भैंस को साँढ़-भैंसा से पाल खाना, मैथुन होना) (हमर गाँव में एगो बनियाँ हल, धैल कंजूस । ऊ घी से निकालल मछियो चूस के फेंकऽ हल । ... ओकर एगो ओसर बाछी हल ... एकबरन कार । ऊ मखियो भी गेल हल । सब लच्छन से पूरल हल ऊ ।) (सारथी॰13:19:4:1.12)
285 मचमचाना (नवीन जी मचमचइले अइला । ड्राइवर के बगल में उपाध्याय जी के देखिके गिरगिट नियन रंग बदलि के बोलला, "आगू आके बइठ गेलऽ हे ... पीछू जा ! एतनो एटिकेट के पता नञ् हो कि हाकिम के बगल में कनीय के न बइठे के चाही ? ऊ जमाना गेलो उपाध्याय जी ! ढेर दिना हमनी के बगल में बइठे न देलहो हे ।") (सारथी॰13:19:30:2.26)
286 मच्च ("हमर गोंड़ी पर गाय नञ् देखवऽ तब ने जजमान", पंडी जी मुस्कुरायत बोलला आउ दाँत से जिलेबी काटलका ... मच्च !) (सारथी॰13:19:5:2.33)
287 मजूर-मजूरिन (कल सगर दिन छत पर मजूर-मजूरिन के तांता लगल हल । साँझे-साँझे एतबड़ लम्बा-चौड़ा छत एक झोंक में ढाल देवे के जद्दोजहद में लगल हलन सब ।; अपन-अपन लोहा के कड़ाही में गारा भर-भर के जल्दी-जल्दी मजूर-मजूरिन के झुंड खोंटा-पिपरी सन धारी बनाके ढो रहलन हल । साँझ गहराइत-गहराइत सौंसे छत पर लोहा के सरिया के जाली गारा से झाँप देवल गेल । सही आउ मजगूत ढंग से ढलइया निबटाके मजूर-मजूरिन के काफिला चलि गेल हल ।) (सारथी॰13:19:22:1.8, 14, 19)
288 मटकुइयाँ ("भइया, आज हमर पचोतरा खंधा में हमर भिठार पटतो । लगले तोहरो खेत हो । पानी ओने भी मोर देबो । पनियौंचा के हिसाब बाद होतइ । ऊ खंधा में टमाटर फट के उपजतइ । बीहन कादिरगंज से लइबइ । नञ् होतइ तऽ पटउनी ले मटकुइयाँ खोद लेबइ ।") (सारथी॰13:19:27:2.43)
289 मतमरुआ (उनखर सोंचे के दिशा बदलल - "ई बछिया के कउन दोष ! सब गलती बाप के हइ । मुँहजरौना के नञ् सूझले हल कि जुआन बेटी हे, अहुआ-पहुआ के दमाद बनाके घर में रख रहलूँ हें ! आउ फेटा बान्ह के घूमथ गाँव में ! आवे मुँहझौंसा मुँह में उक्का नेस दे हियन । हमरा नोट धरइ ले देलक हल कुकरमाहा कि साँप पोसइ ले देलक हल । ऊहे त कही कि कहाँ के बंक कबड़लइ ! ऊहे झोंटहा देलकइ होत । ईहो मतमरुआ बुढ़भासिये गेलइ ! तब तऽ ओतने में बेटिया के बेच ने देलकइ हल ! एगो बेटिया भार हो रहलइ हल !") (सारथी॰13:19:12:1.23)
290 मनमतंगी (ई सब न जुटबबहो तऽ हाथी मनमतंगी जंगल दने भाग जइतो ।) (सारथी॰13:19:36:3.32)
291 मर ("मर दुर हो दाय ! चुक्का ने पियाली, छुच्छे कलाली ! ढोल-बाजा बजवे नञ् कइल आउ दुलहिन लगली दुआरी ! नञ् जानु कने से जात कि परजात, उठा लइलक । अइसने पुतहू पर गोड़ भुइयाँ में पड़ रहलइ हे ?" सिहमा वली बोलली ।) (सारथी॰13:19:13:1.36)
292 मरमा (~ मरना) ("निरासी, मरमा मरल, हमर घर उजाड़के", मामा के बोली हल । / "चमड़िया नोच के देहिया ससार देबउ, नञ् तऽ सले-बले रह, खो-पी । पुरनकी मइया ने मरलउ, नयकी ला देबउ", ई हल टिसुआ बाप के बिख बुझल बोली ।) (सारथी॰13:19:16:3.2)
293 मराँछी (“दूर जो गे कुलछनी, भतरखौनी पतुरिया । कने से उड़ल-दहाल हमर घर आ गेलें बगिया उजाड़इ ले गे डइनी ! अरे बाप रे बाप ! हम केक्कर मुँह देखके जीबइ हो दइवा ! ई रकसिनियाँ हमर सुगवा के चिबा गेलइ हो मिरवा ! हमर रजवा भर पेट एकरा देखियो नञ् पइलक कि सरंग लग गेल हो बाऊ !”; “मरऽ दऽ ! भले मर जाय मराँछी । एगो के खइलक, बचत तऽ नञ् जानु आउ केकरा खात”, सास बोलइत अपन छाती पीटऽ लगल ।) (सारथी॰13:19:13:2.46, 3.16)
294 महगी (= महँगाई) (बजार में साँझ के गहमागहमी हल । दसहरा नगीच हल । केतनो महगी रहे, परब-तेहवार में तऽ पेट काट के भी खरीद-फरोख्त होने सायर हे ।) (सारथी॰13:19:28:1.27)
295 महज्जद (ऊ जिद मचइले कि हम लेइये के जाम । हमरा नञ् रहल गेल, कहलूँ, "मउसी नञ् जाय चाहऽ हइ तऽ तूँ काहे ले महज्जद मचइले हीं ।") (सारथी॰13:19:19:1.51)
296 महमह (पंडित जी के झोरी में बेटा फरऽ हल । उदार होके बाँटले चलऽ हला । ठग विधा के महिमा, घर में रोज छनर-मनर होवइत रहऽ हल ... टोला-पड़ोस महमह !) (सारथी॰13:19:3:3.11)
297 माहटरनी (= मास्टरनी, शिक्षिका) ( उतजोगिया अइसन कि भाय-भतीजा ले एतना अरज गेलन कि उनखनी के जिनगी में कोय चीज के कमी नञ् । अपन दुन्नूँ बेटी के भी पढ़ा-लिखा के माहटरनी बना देलका आउ निम्मन घर-वर देखके बियाह भी देलका ।) (सारथी॰13:19:18:3.34)
298 मिंझराल (कल्ह साँझ खनी मोदी जी के दलान भिजुन तिरकिन भीड़ जुमल हल । इक्का-दुक्का जवार के अदमी भी मिंझराल हलन । सबके चेहरा पर आशंका के बादर मड़रा रहल हल ।) (सारथी॰13:19:5:1.6)
299 मिंझाना (= बुताना; बुझाना) (हम्मर चेहरा उतर गेल मानो कोय पानी डालके धधकइत आग के मिंझा देलक ।) (सारथी॰13:19:34:3.18)
300 मुँहजरौना (उनखर सोंचे के दिशा बदलल - "ई बछिया के कउन दोष ! सब गलती बाप के हइ । मुँहजरौना के नञ् सूझले हल कि जुआन बेटी हे, अहुआ-पहुआ के दमाद बनाके घर में रख रहलूँ हें ! आउ फेटा बान्ह के घूमथ गाँव में ! आवे मुँहझौंसा मुँह में उक्का नेस दे हियन । हमरा नोट धरइ ले देलक हल कुकरमाहा कि साँप पोसइ ले देलक हल । ऊहे त कही कि कहाँ के बंक कबड़लइ ! ऊहे झोंटहा देलकइ होत । ईहो मतमरुआ बुढ़भासिये गेलइ ! तब तऽ ओतने में बेटिया के बेच ने देलकइ हल ! एगो बेटिया भार हो रहलइ हल !") (सारथी॰13:19:12:1.15)
301 मुसड़े (~ ढोल बजाना) (विद्यार्थी के पेट में रिजल्ट के बाद नामांकन के फार-कुदार कूदऽ लगऽ हे । हमर सपना हल कि साइंस कौलेज में एडमिशन हो जाय तऽ मुसड़े ढोल बजावी । न होल तब ? तऽ बीएन कौलेज में भी हो जाय । दुन्नूँ तऽ एक्के इनभरसिटी में हे ।) (सारथी॰13:19:29:2.7)
302 मोछैल ("इधिर आवऽ कका", एगो आन मोछैल बोलल, जेकर कंधा पर राइफल टंगल हल ।) (सारथी॰13:19:12:2.34)
303 मोदियायन (पंडी जी मोदियायन के मन जीतइ ले रोज ओकरा दुआरी पर जाथ आउ आशीर्वादी मुद्रा में गद्गद् भाव से बोलथ - "आज तीज हो जजमानी । आज करमा हो, छठ अजका छोम्मा दिन हो ... ।" अइसने बिन पुछले बोलथ आउ नजर झुकइले गली पार कर जाथ ।) (सारथी॰13:19:4:1.30)
304 मोरत्तम (की हल, की हो गेल ! केतना शांत इलाका हल ! ... कोय रोक नञ्, कोय टोक नञ्, कोय बन्धेज नञ् । हल्ला-गोदाल होवऽ हल तऽ खेत-पथार जोतइ ले । जादे से जादे लाठी-पइना निकलऽ हल, टन-टुन होवऽ हल । लोग-बाग जुमऽ हल, पकड़ा-धकड़ी होल, पर-पंचायत बइठल, ममला मोरत्तम !; ई बियाह बाबा के दरबार में होवत । तूँ दुइयो परानी कंगना के लेके देवघर चलि जइहऽ । एने से खुशबू के माय-बाप पहुँचतन । घंटा भर में सेनुरदान मोरत्तम !) (सारथी॰13:19:10:1.10, 13:1.8)
305 मोह-माया (तोर बाबू जी नञ रहलथुन त का उनखर पूरा जिन्दगी तो हुअईं बितले हऽ न ? अब जौन जगह से तोहर बाबू जी के ठठरी उठले हऽ, ऊ जगह खातिर तोहर माय के मन में मोह-माया तो रहवे न करतइ ।) (सारथी॰13:19:34:2.5)
306 रकसिनियाँ (= रकसीनी + 'आ' प्रत्यय) (“दूर जो गे कुलछनी, भतरखौनी पतुरिया । कने से उड़ल-दहाल हमर घर आ गेलें बगिया उजाड़इ ले गे डइनी ! अरे बाप रे बाप ! हम केक्कर मुँह देखके जीबइ हो दइवा ! ई रकसिनियाँ हमर सुगवा के चिबा गेलइ हो मिरवा ! हमर रजवा भर पेट एकरा देखियो नञ् पइलक कि सरंग लग गेल हो बाऊ !”) (सारथी॰13:19:13:2.50)
307 रतगर (आज सबेरे कुहा लगल हल, से से सनीचरी तनि विलम के जगल हल । ओकरा लगल अभी रतगर हे ।) (सारथी॰13:19:26:1.6)
308 रतजगा ("मउसी के गाँव भर बेटा-बेटी हइ ।" - "रंथी राते बंधा गेल आउ खरिहानी में रखा गेल । गाँव भर ओतुने रतजगा कइलन, निर्गुन गइलन आउ हुमाद अगरबत्ती जरइते रहलन । आउ भोरउए रंथी में कंधा लगइलन ।") (सारथी॰13:19:19:3.30)
309 रबूद (मारके ~ करना) ("मेटाबइ के सपना भुला जा ! अब घुर के ई गली में देखलियो, तऽ नाना-नानी कनउ जाय, हम सब मार के रबूद कर देबो, सुनि लऽ ।") (सारथी॰13:19:16:1.15)
310 रसमलाय (आउ दुइयो यार रामगोपाल मिठाय के दोकान में जाके भर-भर पेट रसमलाय खइलूँ हल तहिया ।) (सारथी॰13:19:29:2.2)
311 रस्ता-गोवारी (~ खाँड़) (दू कोस लमहर पहाड़ के अंचल के बसल कसबा, पहाड़ पर बनल शिवाला आगू में तलाब, चढ़इ लेल सिड़ही, भादो के पुनिया अउ शिवरात में लगइ वला मेला, किउल-गया रेलवे के टीसन, पुरवारी छोर पर पहाड़ काटि के शेरशाह के बनावल रस्ता-गोवारी खाँड़, पछिम में कोस भर लमहर मटोखर दह, दखिन आध कोस पर हुसैनाबाद नवाब के कोठी, मस्जिद अउ पोखर, मोहर्रम के तजिया ।) (सारथी॰13:19:20:3.40)
312 राँड़ी ("से तो हइये हइ भाय साहेब ! मुदा तोहरा की कमी हो ? तूँ झुठकोलवा मन मारले हो । अब तऽ तोहर भाय भी कमौनी करऽ लगलो, तइयो कानिये रहलऽ हे । ई तऽ खिसवा वला हाल होल - 'राँड़ी काने, अहियाती काने, जउर होके सतभतरी काने ।' भला कहऽ, तों जब कानवे करवऽ तऽ हमा-सुमा की करम, जेकरा खेती के अलावे आउ कोय अवलंब नञ् हे ?") (सारथी॰13:19:26:3.6)
313 राछछ (ओकरा अंदर कुछ पनप रहल हल, मुरझा गेल - "रूप से देवदूत, काम से राछछ !" कोमल आउ कठोर के द्वन्द्व में कंगना उलझ गेल हल, बकि ओकर फोटू मन के अइना में उकरि चुकल हल ।) (सारथी॰13:19:11:2.7)
314 रेकनी (मंजु माय भुइयाँ में माथा पटकि रहली हे । दाय-माय उनखा सम्हारइ में बेदम । ऊ बजड़-बजड़ के अपन देह बगल-फोर करि लेलन हे । कोय अंग बाकी नञ्, जजा नीलामासा नञ् पड़ल हे । उनखा रेकनी ले लेलक हे - 'नहिरे-ससुरे सब दिन दुखवा भोगलें गे रनियाँ !') (सारथी॰13:19:15:1.14)
315 रोवा-पिट्टी (रात के लगभग बारह बजि रहल हल । विधाता अपन खास साथी के साथ चुपके पहुँच गेलन । घर में फेन से रोवा-पिट्टी होवऽ लगल कि विधाता रोकइत बोलल, "ई खबर खिंड़इ के नञ् चाही ... चुप !") (सारथी॰13:19:13:3.52)
316 लकलक (छइया-मसान रोदन से असमसान घाट डेरामन लग रहल हल आउ मउसी माय के चिता धू-धू करके लहक रहल हल । बैशाख के मार से दुब्बर गंगा के लकलक धार लगे जइसे भीतरे-भीतरे हम्हड़इत गंगा के आँख से बहल लोरे रहे ।) (सारथी॰13:19:18:1.11)
317 लजाल (करूआ लजाल-सन बोलल, "नञ् दादा ! हम झगड़ा पसारे सोंच के नञ् अइली । हमरा लगल कि सौंसे गाँव भिट्ठा पटा रहल हे आउ तूँ काहे नञ् फटफटा रहलऽ हे ।") (सारथी॰13:19:26:1.47)
318 लटखुट (बात आझ के न हे । ढेर दिन हो गेल । ओती घड़ी एते बेग-ऊग के सहचार न हल । तखनी के गउआँ-पाँड़े एगो खड़िया रखऽ हलन । हमरा भिर के एगो पंडी जी कान्हा पर खड़िया लेके चलऽ हला । दुन्नूँ दने कान्हा में लटकल लुग्गा के खड़िया में लटखुट समान रहवे करऽ हल । जजमान घर जे मिलल, ओकरे में रखले गेला ।) (सारथी॰13:19:3:1.6)
319 लटर-पटर (हिन्दू समाज में कतनो दुख में रहो, तेरहा तक सब नियम निभावहे पड़तो । मंजु के ससुरार में गम के नाम नञ् हल, बकि मुँह के कारिख छोड़ाबइ ले लटर-पटर कइसूँ किरिया-करम चलि रहल हल ।) (सारथी॰13:19:15:2.29)
320 लटियाल (~ केश) ("हाँ बेटा, तोहरा के नञ् पछानत ! हम जतना धड़कन के पछानऽ ही, ओकरा से जादे तोहरा पछानऽ ही", लटियाल-सन सिरधर बोलल आउ अपन माथा हँसोतऽ लगल ।; शैंपू के लटियाल केश में फेन नञ् उठल ।) (सारथी॰13:19:10:1.42, 23:2.6))
321 लड़नइ (दूनू कुतवा लड़नइ छोड़के पूड़ी खाय लगल । ऊ जातरी तऽ मुँह बाके टुकुर-टुकुर ताकइत रहिये गेल । दोसरो मोसाफिर ठक ।) (सारथी॰13:19:20:1.22)
322 लत-फलहेरी (खरिहान के बिसुन-पिरीत तऽ जजमान काढ़के घरो पहुँचा दे हल । गाछ-बिरिछ, लत-फलहेरी के पहिल फर पंडी जी लेता । कातो ओकरा से सब गरह-गोचर कट जाहे । पंडी जी अही-बही ! कहावत हे - बुड़बक के हर पंडित जी के खेत !) (सारथी॰13:19:3:1.21)
323 ललकी (थोड़के दूर में एगो सड़क बन रहल हल । जोर-शोर से काम लगल हल । टरक के टरक गिट्टी-छर्री गिरावल जा रहल हल । कउवा ओतुने से ललकी गिट्टी ला-ला कनखा पर चढ़-चढ़ डालऽ लगल ।) (सारथी॰13:19:24:1.26)
324 लहना (ऊ तंग होके कहलन, "हम कुछ जानी-ऊनी न, बकि हमरा में हिम्मत हे । हम सो गो के बेटा-बेटी देही तऽ कि सब झूठे हो जात ? बेटा चाहे बेटी होवे न करत । सो में दस-बीस गो लहिये जाहे । ओही हमर परचारक बन जाहे - 'पंडित जी आगम जानइत हथ ।' ") (सारथी॰13:19:4:1.3)
325 लहलह (हाँ, तऽ जिनखर खिस्सा कहे जा रहलियो हे, उनखर नाम हल रमेसर जी । बड़ा संस्कारी । लहलह करऽ हला । रूप से डबडब ! खाल-पीयल देह । धोध फेंकले जा हल । चलऽ हला तऽ उनखा से आगू उनखर धोधिये मटकल चलऽ हल । छाता आउ बगुली छेंड़ी तऽ उनखर कवच-कुंडल हल ।; सिरधर के साँप सूँघ गेल । ऊ गोस्सा से लहलह करऽ लगल, देह कइरा के पत्ता सन काँपऽ लगल । धुनियाले ऊ विधाता से मिलइ ले चल देलक ।) (सारथी॰13:19:3:1.28, 12:1.39)
326 लाठा (= लट्ठा) (हम्मर मइया पूछऽ हल, "बाबूजी का करइत हथुन रून्ना ?" "लाठा चलावइत हलथी । बिंदेसर गउआँ के ।" रूनिआ कहऽ हल ।) (सारथी॰13:19:39:2.7)
327 लाठा-बरहा ("अरे ! तू केकर-केकर न दूध पीले हें । बेचारी टिमल चमइन आवथ तऽ बिना तोरा दूध पीऔले न जाथ । अब फिलौसफी बकले चलऽ हें ?" / हम सोचऽ लगऽ ही, "इस्कुल से आवे घरी टिमल के मरद लाठा चला रहल हल । गाँव के पंडित जी ओकरा छोड़ा के पहिले लाठा-बरहा, पसोठ धोलन तब अपने से चला के नहइलन हल ।") (सारथी॰13:19:39:3.5)
328 लुहलुह (एक तुरी मंगरुआ के मइया से एगो लौकी मांगलन । ऊ बहाना कर देलन । पंडी जी के मुँह से निकलल, "ठीक हउ ! मत दे ! बकि तहूँ लौकी नेमान नहियेँ करबीं ।" ओही रात रजुआ के बिरनाम भैंसा खुट्टा से खुल गेल । लगल मंगरुआ के दुआरी पर खुरछाहीं करे ले । बगले लौकी के लुहलुह पेड़ हल । पहिले तऽ ओकरा में अँखड़ल । चोखगर सींग के एक्के झटका में पेड़ उखड़ गेल ।) (सारथी॰13:19:3:2.4)
329 लोकाचारी (संवेदनाके मूल खुशबू के मौत से जादे कंगना के वैधव्य हल । लोकाचारी तऽ जरूरी हल । सुख सराध नञ् तऽ पाक तऽ होना हइये हल, से तेरहा गुजर गेल ।; मरद सब रंथी के विधान में लग गेला । मंजु के बाऊ बेचारा टुकुर-टुकुर सब कुछ ताकि रहला हल । पोरसिसिया में मंजु के इस्कुल के साथी-संगी भी आ गेलन हल । ऊ सब रंथी उठले पर पीछू-पीछू असमसान तक गेलन । बलजोबरी रोकल मरद लोकाचारी निभइलन आउ मुखाग्नि देलन ।) (सारथी॰13:19:13:3.42, 15:2.24)
330 विखाद (= विषाद) (तेरहा गुजर गेल । सब के विश्वास हल, विधाता जरूर अइतन, बकि उनखर अप्पन खुफिया तंत्र हल । पुलिस भी मनमनाल हल । दल-बल के साथ पहुँचल हल, बकि निराश लउटि गेल । नाता-कुटुम भी नेग निभा के चलि गेलन । घर विखाद में डूबल हल ।) (सारथी॰13:19:13:3.48)
331 विदत (एतना तप-तपस्या करके, कुटनी-पिसनी करके एगो बेटा पोसलक । पुतोह ढुकलक । जब तक देह में दम हलइ, ऊ राँड़ी के महरानी बनौले रहल । अब बुढ़ारी में विदत करइत हइ । पेट के जरला बेचारी दूसर घर कुछ मांगहू जाहे ।) (सारथी॰13:19:38:2.9)
332 विलम (= विलम्ब, देर) (छइया-मसान रोदन से असमसान घाट डेरामन लग रहल हल आउ मउसी माय के चिता धू-धू करके लहक रहल हल । ... मउसी माय के बेटी पटना से अइलन हल । उनखा आवइ में विलम देखके मुखाग्नि पड़ि गेल हल ।; आज सबेरे कुहा लगल हल, से से सनीचरी तनि विलम के जगल हल । ओकरा लगल अभी रतगर हे ।) (सारथी॰13:19:18:1.15, 26:1.5)
333 संसर-बिसर (मउसी गाँव भर के डागदरनी हलो । केकरो कुछ संसर-बिसर होवे, मउसी भिजुन पहुँच जाय । मउसी ओकरा देशी नुस्खा बतावे - ""घी हरदी देके गरम दूध पिलावऽ, घाव पर भंगरोइया के रस गार के टपका दऽ, छोहाड़ा पका के कल्ला तर दाबऽ, कसेली जार के फक्की बनाके पीयऽ, पोदीना अरक दऽ, निम्मक चिन्नी-पानी के घोल पिलावऽ ... ।" उनखा पास सब रोग के निदान हल ।) (सारथी॰13:19:18:3.17)
334 संस्कारी (हाँ, तऽ जिनखर खिस्सा कहे जा रहलियो हे, उनखर नाम हल रमेसर जी । बड़ा संस्कारी । लहलह करऽ हला । रूप से डबडब ! खाल-पीयल देह । धोध फेंकले जा हल । चलऽ हला तऽ उनखा से आगू उनखर धोधिये मटकल चलऽ हल । छाता आउ बगुली छेंड़ी तऽ उनखर कवच-कुंडल हल ।) (सारथी॰13:19:3:1.27)
335 सइँतल (= सैंतल) (कंगना के आँख से झर-झर लोर बहऽ लगल । माय के दुलार भरल बोली सुनके मन के बात ओइसइँ निकलऽ लगल, जइसे कोठी के आना खुलला पर सइँतल अनाज ।) (सारथी॰13:19:12:1.3)
336 सतपुतिया (साँझ तक लउटइत-लउटइत दुन्नूँ दने के लटकल खड़िया भर जा हल उनखर । किनखो हियाँ हरियर तरकरियो मिल जा हल - लउकी, नेनुआ, झींगा, सतपुतिया, साग ... । नेमानी के चूड़ा, चाउर तऽ असालतन ... पहिले पंडी जी, फिर घरइया । समाज के ईहे रेवाज हल ।) (सारथी॰13:19:3:1.17)
337 सभाखन (= सबाखन; पहरने के कपड़े तथा आभूषण; विवाह, बिदाई, संस्कार आदि के अवसरों पर दिए जाने वाले वस्त्र तथा जेवर) (नाना घामि गेला बदलल बोली सुनके । गेट खोलल गेल आउ यथा-जोग सभाखन होवऽ लगल । पानी से शुरू भेल आउ मर-मिठाय, चाय पर अंत भेल ।; घठाह नियन नाना साथ आल अदमी के चला के ठहर गेला, भुक्खल तऽ भुखले सही, जइबन तऽ देखिये के । दिन भर गाँव में बंगले-बंगले घूम अइला । जजइ गेला, ओजइ सभाखन ।) (सारथी॰13:19:16:2.5, 3.52)
338 सहचार (= चलन, रिवाज, प्रचार; संगत, साथ; साथी) (बात आझ के न हे । ढेर दिन हो गेल । ओती घड़ी एते बेग-ऊग के सहचार न हल । तखनी के गउआँ-पाँड़े एगो खड़िया रखऽ हलन । हमरा भिर के एगो पंडी जी कान्हा पर खड़िया लेके चलऽ हला । दुन्नूँ दने कान्हा में लटकल लुग्गा के खड़िया में लटखुट समान रहवे करऽ हल । जजमान घर जे मिलल, ओकरे में रखले गेला ।) (सारथी॰13:19:3:1.2)
339 सहदेव (हमनी नियन निमरा तऽ नाहक तबाह हो रहल हे । भीतर के मार तऽ सहदेवे जानता । अइसन चोट लगल हे कि ने हँस सकऽ ही, ने कानि सकऽ ही ।) (सारथी॰13:19:10:1.20)
340 सहल (लोग-बाग जुट गेलन तऽ कथा शुरू भेल । कथा पर बइठे ले मोदियायन के बड़ बेटा दिलीप सहल हल । ओही जजमान बनल ।) (सारथी॰13:19:4:2.24)
341 सहाना (= उपवास करवाना) (भूखल हाथी नियन जनावर तऽ दोल जाहे, ई तऽ बुतरुए हल । कानते-कानते दुइयो बीमार पड़ गेल । बोखार के नाम पर आउ दुयो के सहा देलक । दवाय के नाम पर ऊहे गरम पानी, बस ! फूल-सन बुतरू, ढढरी होके रह गेल, तइयो कसइयन के दरद नञ् बुझाल ।) (सारथी॰13:19:16:3.22)
342 सहेजना (मगही कथा लेखक से हमर निहोरा हे कि कथावस्तु ले आसपास अकानऽ । ढेर-ढेर प्लोट तोहरा ताकि रहलो हे । ओकरा तूही सहेज सकऽ ह, नञ् तऽ छूटल रहि जात !) (सारथी॰13:19:2:2.23)
343 सायर (बजार में साँझ के गहमागहमी हल । दसहरा नगीच हल । केतनो महगी रहे, परब-तेहवार में तऽ पेट काट के भी खरीद-फरोख्त होने सायर हे ।) (सारथी॰13:19:28:1.28)
344 सार (= सौर, प्रसूति-गृह) (ओने दुन्नूँ भाय जइते मातर दादी के गोड़ छूलक कि अंदर के आग भभा के निकलऽ लगल, "गोड़ की लगऽ हें । माय के खयबे कइलें, बापो के चिबा जइहें । तोरा नियन कपूत के तऽ सारे में जार देबइ के हलइ ।") (सारथी॰13:19:16:2.42)
345 सिरहाना (चन्नर बोलल, "बइठ मरदे ! पहिले चाहा पी ले, फेन जने जाय के रहउ, जो !" पीठ पर हाथ रखइत चन्नर प्यार से बोलल । करूआ आखिर आग्रह टार नञ् सकल, बइठ गेल । ओने सनीचरी चाह के ओर-बोर में लग गेल । / "आँय कारू, तोरा हमर खेती के बड़ चिंता सतइले हउ, की बात हइइ ?" चन्नर सिरहाना दने घसकइत पुछलक ।) (सारथी॰13:19:26:2.40)
346 सीधा (उनखर कहनाम हल - बरहामन आउ गाय के पेट घुमले से भरऽ हे । कउनो जजमान के एगो जनउआ देलका तऽ ऊ एगो सीधा काहे ने दे देत ? एगो सीधा माने एक अदमी के खाय भर चाउर, दाल, तरकारी कम से कम जरूर ।) (सारथी॰13:19:3:1.11, 12)
347 सुटके (दुइयो सुटके आके गोड़ छूलन । "कोय दिक्कत तऽ न भेल ?" सिरधर के लहजा में प्यार आउ सरधा घुलल हल ।) (सारथी॰13:19:11:1.21)
348 सुबुक (= आसान; हलका; सुविधाजनक) (दुइयो सुटके आके गोड़ छूलन ।/ "कोय दिक्कत तऽ न भेल ?" सिरधर के लहजा में प्यार आउ सरधा घुलल हल । / "नञ् कका, दिक्कत कइसन ? सुबुक से चल अइली । अपने के घर हे भी तऽ एकरगी में । कहल-बदल हइये हल, अप्पन घर-सन चलि अइलूँ ... बस !") (सारथी॰13:19:11:1.24)
349 सेयान ("दुइयो के सेयान से जादे गेयान हइ । ननियाँ सोगाही जे कहतो, सेहे करतो । बप्पा के तनी बेइज्जती करइलके हे ! मुँहझौंसा, लगऽ हे कइसन सूअर नियन !") (सारथी॰13:19:16:2.47)
350 स्वीकारना ("बकि हमरा एतराज हे । हम कोय हालत में फेन से सगाय न करब । एक तुरी थोपल दुलहा से मांग टिपइलूँ, सेकर तऽ ई गति भेल, फेन थोपले दुलहा हम न स्वीकारम । फेन मुड़ली बेल तर !" कड़क के कंगना बोलल ।) (सारथी॰13:19:14:3.2)
351 हँड़ला (शालिग्राम भगवान के असनान करावे ला पंचामृत में डालल गेल । हँड़ला के दिलीप दुन्नूँ हाथ से झाँपले हल आउ पंडी जी ताबड़तोड़ मंतर पढ़ि रहला हल ।) (सारथी॰13:19:4:2.27)
352 हँहड़ना (आउ झोल-फोल तक सिरधर भीतरे-भीतरे हँहड़इत ओजइ गोड़ा-टाही करइत रहल । अन्हार रस-रस अपन माया पसारि रहल हल ।) (सारथी॰13:19:12:2.11)
353 हउले-फउले ("कोय बड़गो नञ्, हउले-फउले मदद चाही ।" - "तइयप ... ", हकलायत सिरधर बोलल ।) (सारथी॰13:19:10:2.1)
354 हड्डुस (झरना-सन पानी के मोट धार औरत के माथा आउ देह पर गिरे लगल । औरत दुन्नूँ हाथ से अपन केश के रगड़इत पानी के धार अपन मुँह पर ले लेलक - आऽह ! ओकर जी जुड़ा गेल । ओकरा लगल - बछरो बाद सचकोलवा नहान नहा रहल हे ... हड्डुस ... हड्डुस !) (सारथी॰13:19:23:1.43, 44)
355 हथबत्ती (हाँ, तऽ छौंड़किन चल गेल । मउसी संझउकी देव-पितर कइलक, पिंडा बबाजी भिजुन धूप-दीप जरइलक आउ हमरा से कहलक, "हथबतिया लेके तीन गलिया टपा दिहें नुनु, पुरवारी टोला देवता के गीत गाबइ ले जइबइ ।") (सारथी॰13:19:18:2.44)
356 हदर-बदर (हम हदर-बदर रिजल्ट देखऽ लगलूँ । बिन्दु मुस्कुरा रहल हल । / "हो गेलउ ने संतोख ?" बिन्दु पुछलक । / "संतोख लायक तऽ रिजल्ट न अइलउ बिन्दु । हम उमेद करऽ हलिअउ, कम से कम दस गो प्रथम श्रेणी में जरूर निकलतन ।") (सारथी॰13:19:29:1.39)
357 हमा-सुमा ("से तो हइये हइ भाय साहेब ! मुदा तोहरा की कमी हो ? तूँ झुठकोलवा मन मारले हो । अब तऽ तोहर भाय भी कमौनी करऽ लगलो, तइयो कानिये रहलऽ हे । ई तऽ खिसवा वला हाल होल - 'राँड़ी काने, अहियाती काने, जउर होके सतभतरी काने ।' भला कहऽ, तों जब कानवे करवऽ तऽ हमा-सुमा की करम, जेकरा खेती के अलावे आउ कोय अवलंब नञ् हे ?") (सारथी॰13:19:26:3.8)
358 हरसांकर (चन्नर के ध्यान अपन छोट भाय दने चल गेल । बंगलोर में इंजीनियर हे । बाले-बच्चे उहइँ रहऽ हे । कत्ते साध लगाके पढ़इलूँ हल । ओकरे पढ़ाय में हरसांकर भी हो गेलूँ । लगऽ हल भाय के पढ़ गेला से घर के दिन फिर जात ।) (सारथी॰13:19:26:3.13)
359 हलबट्टा (= हलवाई की दुकान; हलवाइयों का टोला या मुहल्ला) (नगीच गेला पर मौखिक पाँ-लग्गी कइली आउ पुछली, "मोदी जी पर तोहर जादू चलल कि फेल ?" कनखी से चुप रहे के इशारा करइत पंडी जी हमरा हलबट्टा में ले गेलन आउ पाव-पाव भर जिलेबी लावे के हुकुम देलन । हमर मन अकुला रहल हल । फिन पुछली, "बोललऽ नञ् सरकार ?") (सारथी॰13:19:5:2.27)
360 हिंड़होरना (पंडी जी कहलका, "शालिग्राम करकी केवाल मट्टी के बनल हला, जे पंचामृत में बिलबिला गेला । जजमान खोजइ में हिंड़होर के उनका भी पंचामृत बना देलन । हम एते देरी मंतर पढ़ली कि गोराके एकबरन हो गेलन ।) (सारथी॰13:19:5:2.48)
361 हिया-हारल ("अइसन हिया-हारल काहे बोलऽ हो । उनखा जउन चीज के जरूरत रहन, हमरा कहऽ । हम माहवारी किश्त में ला देवो ।") (सारथी॰13:19:36:3.35)
362 हुलुक-बुलुक (संयोग से एगो घइला जनाल । ओकर उमेद बढ़ गेल । ऊ उड़ल-उड़ल आल आउ घइला के कनखा पर बइठ के हुलुक-बुलुक करऽ लगल ।) (सारथी॰13:19:24:1.9)
363 हौलदिल ("एक बात कहिअउ मामा ?" शिशुआ सकसकायत-सकसकायत पुछलक । - "की ?" - "हमर दुइयो के हौल दिलवा नानिये के हइ ?" - "नानी के कइसन रहतउ ? तोरा दुइयो के फुफुइया देलकउ हे ।"; "मामा, हमरा दुइयो के दू दिन ले जाय दऽ । दुइयो भाय हौलदिलवा आउ कटोरवा मांग के ले अइबो ! मइयो मर गेल अउ समनमो छोड़ देम, आँय मामा ?") (सारथी॰13:19:17:1.18, 28)
1 comment:
dhanybad sir ji.
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