विजेट आपके ब्लॉग पर

Saturday, April 22, 2017

विश्वप्रसिद्ध रूसी नाटक "इंस्पेक्टर" ; अंक-2 ; दृश्य-4

दृश्य-4
(ख़्लिस्ताकोव, ओसिप आउ सराय के बैरा)
बैरा - सराय-मालिक हमरा पुच्छे लगी भेजलथिन हँ कि अपने के की चाही ।
ख़्लिस्ताकोव - स्वास्थ्य के शुभकामना, भाय ! ठीक-ठाक तो हकऽ ?
बैरा - भगमान के किरपा से ठीक-ठाक हइ ।
ख़्लिस्ताकोव - अच्छऽ, ई सराय के समाचार कइसन हइ ? सब कुछ ठीक-ठाक चल रहले ह न ?
बैरा - जी, भगमान के किरपा से सब ठीक-ठाक हइ ।
ख़्लिस्ताकोव - बहुत अतिथि ?
बैरा - जी हाँ, काफी ।
ख़्लिस्ताकोव - देखऽ, प्यारे, हियाँ अभियो तक हमरा लगी खाना नयँ आल ह, ओहे से, मेहरबानी करके जरी जल्दी करहो ताकि जल्दी से जल्दी (खाना आ जाय) - देखऽ, हमरा तुरते खाना के बाद जरूरी काम में लग्गे के हइ ।
बैरा - लेकिन मालिक कहलथिन, कि आउ कुछ नयँ देल जइतइ । ऊ तो आझ मेयर के सामने शिकायत करे लगी लगभग जाय-जाय लगी मनमनाल हलथिन ।
ख़्लिस्ताकोव - एकरा में शिकायत के की बात हइ ? खुद्दे सोचहो, प्यारे, कइसे काम चलतइ ? हमरा खाना तो जरूरी हइ । अइसे तो हम बिन खइले बिलकुल दुबरा जइबइ । हमरा कसके भूख लग्गल हके; हम मजाक नयँ कर रहलिए ह ।
बैरा - जी हाँ । ऊ कहलथिन - "हम ओकरा खाना नयँ देबइ, जब तक कि ऊ पहिलौका बिल नयँ चुकइतइ ।" एहे उनकर जवाब हलइ ।
ख़्लिस्ताकोव - त तूँ तर्क देहो, उनका समझाहो ।
बैरा - लेकिन हम उनका की कहिअइ ?
ख़्लिस्ताकोव - तूँ उनका गंभीरतापूर्वक समझाहो, कि हमरा खाना खाय के हके । पैसा के बात तो बिन कुछ कहलहीं समझल जा सकऽ हइ ... ऊ सोचऽ हइ, कि ओकरा नियन मुझीक (देहाती भुच्चड़) लगी तो कोय बात नयँ हइ, अगर दिन भर नयँ खाय, त अइसन बात दोसरो लगी लागू होवऽ हइ । ई कइसन सोच हइ !
बैरा - अच्छऽ, हम कह देबइ ।
(बैरा आउ ओसिप के प्रस्थान ।)

  
सूची            पिछला                     अगला

No comments: