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Friday, December 31, 2010

18. पगली

कहानीकार - वासुदेव प्रसाद

टीसन के एकांत सुनसान जगह में एगो बुढ़िया बराबर देखाई पड़ऽ हल । ऊ अपने-आप कुछ बुदबुदाइत रहऽ हल । लइकन ओकरा पर बराबर ढेला-ढुकुर फेंकित रहऽ हलन । बुढ़िया ओखनी पर झुंझुआइत लाठी लेके ओखनी के खदेड़े लगऽ हल ।

केकरो से ऊ कुच्छो न बोलऽ हल आउ न कुछ मांगबे करऽ हल । राह चलते रहगीर भले कुच्छो ओकरा दे दे हलन । कउनों-कउनों खाय के बाद बचल-खुचल जुट्ठा ओकरा देके आगे बढ़ जा हलन । हम ओकरा उहाँ बइठल देखऽ हली जरूर, बाकि हम्मर धेआन ओकरा पर जयबे न करऽ हल ।

एक दिन हम ओही राह से गुजर रहली हल । एगो दोसर अदमी हमरा से आगे-आगे चल रहल हल । बुढ़िया ओकरा देख के अप्पन मोटरी-गेठरी उठाके चले ला चाहलक । ई देख के हम्मर कान खड़कल आउ हम्मर मन में सवाल उठ खड़ा भेल । हम सोचे लगली कि का बात हे एकरा में ? बुढ़िया एकरा देख के भागल काहे चाह रहल हे ? हम ई बात के जाने ला ऊ अदमी से पूछ बइठली - 'तोरा देख के बुढ़िया भागल चाह रहल हे, का बात हे एकरा में भाई ?'

ऊ हमरा से उपेच्छा भरल बात बोलल - 'नऽ, कउनो खास बात न हे एकरा में ।'

हम्मर मन में संका उभरे लगल । हम कुतूहल से फिन पूछ देली -'एकरा में खास बात तो जरूरे बुझा रहल हे भाई ! काहे कि आउ केकरो देख के ई न भागे, बाकि तोरा देख के काहे भागल चाहऽ हे ?'

लचारी में उनखा अप्पन मुँह खोलहीं पड़ल । बड़ी (मन) मसोस के ऊ कहलन -'का कहिओ भाई साहेब ! कहे में कइसन तो लगऽ हे, बाकि अपने पूछ रहलऽ हे, त बतावहीं पड़ रहल हे । बात अइसन हे कि बुढ़िया हमरे बगले के गाँव के हे । आझो एकर भरल-पूरल परिवार हे । सभे परिवार बेस तरह से खा-पी रहलन हे । बुढ़िया के मरदाना अलख रेलवे में नोकरी करऽ हल ।'

'नोकरी करऽ हल रेलवे में !' हम जरी चकचेहा के बोलली ।

'हँ भाई, हम झूठ काहे ला बोलम । बुढ़िया उहईं रहऽ हल अलखे के साथे । ऊ घड़ी बड़ी देखनगर हल ई । बड़ी मौज-मस्ती में एकर दिन कटऽ हल । ई अप्पन मरद के साथे रेलवे पास पर देस के मुख-मुख सहर में घुमियो लेलक हे । एकर सभे लइकन उहईं पलयलन-पोसयलन । अलख चार-पाँच बरिस पहिले नोकरी से रिटयर हो गेलन । रिटायर होवे के बाद घरे चल अयलन । रिटायर होवे के बाद बेस पइसा मिलल हल । ओकरे से इनखर बेटन कारबार फैला लेलन हे आउ जरो-जमीन खरीद लेलन हे । एखनी के मकानो देखे लायक हे गाँव में । आझो कुछ कमी न हे एखनी के घर पर ।'

हम बीचहीं में टोक देली उनखा -'तऽ ई इहाँ अइसन हलत में काहे पड़ल हे ?'
'ओहे तो बता रहलिओ हे, भाई ! एकरा चार बेटा हथ । सभे मुस्तंड, कमाए धमाए ओलन । सादी-बिआहो हो गेल हे सभे के । सभे बाल-बच्चेदार हथ । चारो अब जुदा भे गेलन हे, बाकि एक बात जरूर हे एकरा में ।' दबल जबान से बोललन ऊ ।

'कउन बात ?' हम जरी जोर देके पुछली ।

'बुढ़िया के चारो पुतोह लड़ाकिन हथ । हर-हमेसे ऊ सब एकरा साथे टंटा पसारले रहऽ हलन । कउनो बेटन के धेआन नऽ हल एकरा पर । उल्टे ओखनी एकरे उल्लु-दुयू करइत रहऽ हलन, डाँट-फटकार सुनावइत रहऽ हलन । कहिनों भर-पेट खाय ला न मिलऽ हल बेचारी के । कभी-कभार डंडो खाय पड़ऽ हल । बुढ़िया के जे आधा पेंसन ओला पइसा मिलऽ हल, ओखनियें झटक ले हलन । चाहो पानी ला पइसा न रहऽ हल एकरा किहाँ ।' एक्के साँस में बोल गेल ऊ ।

'अइसन बात ! हो सकऽ हे भाई ! जमाना के अइसने हवा हे ।' हम कबीरदास के बोली में बोलली ।

ऊ आगे बतौलन - 'एक दिन सांझ के एगो ममूली बात पर बुढ़िया के बेस ठोकाई कैलन लोग । माथा में चोट आ गेल आउ दहिना कान के ऊपर ओला चमड़ा थोड़ा सा फटिओ गेल, जेकरा से खून बहे लगल । बाकि केकरा परवाह हल बुढ़िया के दसा पर । सभे अप्पन-अप्पन रंग में रंगल हलन ।

बुढ़िया कइसहूँ रात काटलक । भोरे ओकरा पर केकरो नजर नऽ पड़ल । तहिना से ई इहईं पागल होके पड़ल हे । अब एकर हालत देखइते ह अप्पन आँख से । इलाका के कउनो चीन्हल-जानल अदमी पर जब एकर नजर पड़ऽ हे, तब ई कटल चाहऽ हे ओखनी से ।' आँख में लोर भर के बोललन ऊ ।

सभे बात हम्मर समझ में आ गेल । हम अप्पन मने में सोचे लगली -'कइसन जमाना आ गेल हे कि अप्पन पेट काट-काट के, देह सुखा के अप्पन बुतरुअन के लोग पालऽ-पोसऽ हथ । ओकर ई नतीजा हे ? भविस में आउ का होयत, से एकरे से साफ जाहिर हो रहल हे । लगऽ हे कि आगे अन्हार आउ बढ़वे करत ।'

[मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी", बरिस-१६, अंक-३, मार्च २०१०, पृ॰१६-१७ से साभार]

Saturday, December 25, 2010

बिहार के प्रथम फिल्मकार और मगही फिल्म के निर्माता गिरिश रंजन

dated: 16-09-2010
[ इसी साक्षात्कार के कुछ उद्धृत अंश -

प्रश्न. आपकी पहली फिल्म कौन सी थी ?

उत्तर. मैंने पहली फिल्म बनाई मगही में जिसका नाम था “मोरे मन मितवा” l कुल मिला कर मगही में दो ही फिल्म बनी है l

प्रश्न. बिहार के सामान्य ज्ञान की किताबों में आपकी चर्चा बिहार के प्रथम फिल्मकार के रूप में है l क्या इससे आपको गर्व महसूस नहीं होता है?

उत्तर. जी, मैंने तो किताब ही नहीं देखी है, आप बता रहे हैं तो मुझे अभी पता चला l बिहार में फिल्म का इतिहास बहुत पुराना है, मैं ये क्रेडिट लेना नहीं चाहता l ऐसी बात नहीं है l राजा द्रोण ने 1934 में फिल्म बनाई, उसके बाद मैंने फिल्म बनायी l ये अलग बात है कि उनकी फिल्म और मेरी फिल्मों में आसमान जमीन का अंतर है l
..................

प्रश्न. इन दिनों बिहार में भोजपुरी फिल्में काफी बन रही हैं l उन फिल्मों की गुणवत्ता के बारे में आपकी क्या राय है ?

उत्तर. बोगस है l भोजपुरी फिल्में लोग पंजाब में, हरियाणा में देखते हैं क्योंकि उनका अपना लगाव है लेकिन इनको standardise नहीं किया जा रहा l मैंने कहीं पढ़ा है कि लगभग 200 फिल्में बनती हैं भोजपुरी भाषा में एक साल में l लेकिन अगर यही फिल्में बिहार में बने तो बिहार के कलाकार, बिहार के टेक्नीशियन सारे लोग अपनी पहचान बनाने में सक्षम होंगे l लेकिन उनका स्तर अभी बहुत ही घटिया है l अभी क्षेत्रीय फिल्मों, जैसे बांग्ला, तमिल, तेलगु का स्तर ग्रहण करने में बहुत वक्त लगेगा l]

करियर और अपनी संस्कृति को अलग नहीं कर सकता: गिरीश रंजन

Interviewer: राजेश कुमार
Interviewee: गिरीश रंजन

(15 जून, 1934 ई. को पंछी, शेखपुरा में स्व. अलख नंदन प्रसाद जी के घर बालक गिरीश रंजन का जन्म हुआ l छ: भाई-बहनों में सबसे बड़े गिरीश रंजन ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद ही फिल्मों की दुनिया को अपना कैरियर चुना l प्रसिद्ध फिल्मकार सत्यजीत रे, मृणाल सेन, तरुण मजूमदार, तपन सिन्हा आदि के साथ काम करते हुए उन्होंने सफलता की बुलंदियों को छुआ l सन् 1975 में गिरीश रंजन ने ‘डाक बंगला’ फिल्म का निर्माण एवं निर्देशन किया जिसे ‘बेलग्रेड फिल्म फेस्टिवल’ में आधिकारिक प्रविष्टि मिली l 1978 में इनकी फिल्म आई ‘कल हमारा है’ जो पूरी तरह बिहार के कलाकारों एवं तकनीशियनों के सहयोग से बनी फिल्म थी l मूलतः डाक्यूमेंट्री फ़िल्में बनाने वाले गिरीश रंजन बिहार की भूमि एवं संस्कृति को पूर्णत: समर्पित हैं l ‘वि रासत’ एवं ‘बिहार इतिहास के पन्नों में’ इनकी चर्चित डाक्यूमेंट्री फ़िल्में हैं l बिहार के प्रति इनका लगाव इस कदर है कि पैसा और ग्लैमर भी इन्हें मुंबई नहीं खींच पाया l सुधि पाठकों के समक्ष गिरीश रंजन जी से राजेश कुमार की बात-चीत प्रस्तुत हैl)

प्रश्न. आपका फ़िल्मी जीवन काफी लंबा है l जीवन के इस पड़ाव पर आप कैसा महसूस करते हैं ?

उत्तर. एक लंबे दौर से फिल्म निर्माण से मैं जुड़ा हुआ हूँ और उसके बाद जिन्दगी की बात जब सोचता हूँ, खाता हूँ, पीता हूँ, तो फिल्म की ही बात सोचता हूँ, सोता हूँ तो फिल्म में ही सोता हूँ और भगवान ने अगर शक्ति दी तो और भी फ़िल्में बनाऊंगा l

प्रश्न. क्या आप अपने जीवन, अपनी फ़िल्मी कैरियर से संतुष्ट हैं ?

उत्तर. हाँ बिल्कुल, इसमें कोई दो मत नहीं है l

प्रश्न. क्या वजह थी फिल्मों के प्रति आकर्षण का ? क्या आपने ग्लैमर और पैसे की ललक में फ़िल्मी दुनिया में प्रवेश किया ?

उत्तर. नहीं ऐसी बात नहीं है l देखिये, जिस जमाने में मैंने फिल्म ज्वाइन किया था, फिल्म से मैं जुड़ा था, उस जमाने में फिल्म दो लाख की बनती थी और अच्छी फ़िल्में बनती थी l पैसे की ललक ने हमको बहुत ज्यादा आकर्षित नहीं किया l उसका कारण यह है कि देखिए मै एक अत्यंत ही भावुक किस्म का आदमी हूँ l शायद इसका कारण, मेरा पारिवारिक परिवेश भी हो सकता है; हमने अपने पिताजी को मात्र 16 वर्ष की उम्र में खो दिया l बड़ी कठिनाइयों के बावजूद पढ़ाई-लिखाई हुई l अगर एक संवेदनहीन व्यक्ति है तो वो रचनाकार हो ही नहीं सकता है l मेरे पास यही साधन है कि मैं बहुत ही संवेदनशील इंसान हूँ l और मैं एक–एक फिल्म को देख करके अत्यंत ही द्रवित होता था, रोता था सिनेमा हॉल में बैठकर के आंसू पोंछता था और तब मुझे लगता था कि मेरे अंदर की जो संवेदनाएं हैं उन्हें अंतत: अगर अभिव्यक्ति मिल सकती है तो उसका एकमात्र माध्यम सिनेमा ही है l

प्रश्न. क्या हम आपके इस तर्क से यह स्थापना दे सकते हैं कि भावना एवं कला में अन्योन्याश्रय संबंध है ?

उत्तर. जैसा कि मैंने कहा कि एक संवेदनहीन व्यक्ति है तो वह कभी कलाकार नहीं बन सकता, दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं l अब इस पर निर्भर करता है कि आप किन विधाओं में अपनी संवेदनाओं की अभिव्यक्ति करते हैं l

प्रश्न. आपने सत्यजीत रे के साथ काम किया है, जो बड़े महान फिल्मकार है, उनको ऑस्कर अवार्ड से भी नवाजा गया है l इनके अलावा आपने और किन-किन फिल्मकारों के साथ काम किया है ?

उत्तर. मेरा यह सौभाग्य रहा है कि उन दिनों के गिने- चुने topmost फिल्मकार थे उनके साथ काम किया है l सत्यजीत रे के अलावा मृणाल सेन, तपन सिन्हा, ऋषिकेश मुखर्जी, तरुण मजुमदार, राजेन्द्र दा इत्यादि महान फिल्मकारों के साथ काम करने का अवसर मिला है l

प्रश्न. आपने बहुत सारे अच्छे-अच्छे फिल्मकारों के साथ काम किया जैसे सत्यजीत रे, मृणाल सेन आदि l उस जमाने के फिल्मकार और आज के फिल्मकारों में क्या अंतर महसूस करते हैं ?

उत्तर. दृष्टीकोण का फर्क है l बांग्ला फिल्मों को छोड़े हुए एक अरसा गुजर गया लेकिन मेरी अपनी अनुभूति यह कहती है कि आज जब मैं बांग्ला फिल्मों को देखता हूँ तो बहुत ही स्तरहीन फ़िल्में दिखाई पड़ती हैं l और वह अच्छा नहीं है l क्यूँ ऐसा हो गया ? फिल्म की एक सबसे बड़ी बात यह है कि फिल्म एक बहुत ही costly मीडिया है l यह कथाकारों की तरह या चित्रकारों की तरह नहीं कि कैनवास लाया और उसे रंगों में सजा दिया l फिल्म में तो लाखों-लाख रुपया लगता है l और जब तक कि आपकी पटकथा बहुत तगड़ी और अच्छी न हो तब तक फिल्म के चलने और न चलने के बीच की जो दुविधा है वह दुविधा बरक़रार रहती है और आदमी compromise करता है और compromise करके हल्की फ़िल्में बनाता है ताकि गंभीर चिंतन की आवश्यकता दर्शकों को न हो l यही कारण है कि फिल्म का स्तर गिरता चला जाता है l

प्रश्न. साठ-सत्तर के दशक में अधिकतर कलात्मक फिल्में बना करती थीं लेकिन आज इक्कीसवी सदी में जो फिल्मे बन रही हैं उन पर तकनीक काफी हावी होता जा रहा है l आप क्या ये महसूस करते हैं कि तकनीकी विकास ने कलात्मक पक्ष को कहीं पीछे छोड़ा हैं ?

उत्तर. नहीं, मैं तो उल्टा ही कहूँगा कि तकनीकी विकास एक कलाकार की पूरी जो दृष्टि है उसे अच्छी तरह जागृत करती है l उसका कारण है l अगर तकनीक की बात करें तो आप महाभारत सीरियल को ही ले लीजिए l आज आप भले ही उसे DVD पर देख लें लेकिन जिस समय यह धारावाहिक छोटे परदे पर आ रहा था पूरा शहर वीरान हो जाता था l आज भी अच्छी फिल्में बन रही हैं जैसे अभी मैंने परसों ही देखा है ‘पीपली लाइव’ लगा कि एकदम ही सामाजिक फिल्म है l अगर आपने नहीं देखा है तो देख लीजिए कि कैसे ग्रामीण कलाकार, नए-नए लोग हैं और अच्छी फिल्म बनी है l तो विषयों का जो चुनाव है, यह दुर्भाग्य है हमारा कि हम ग्लैमरस फ़िल्में ज्यादा बनाते हैं, बनाते रहेंगे लेकिन कुछ फ़िल्में अभी भी हैं जो बढ़िया, अच्छी बन कर के आ रही हैं l तो जहाँ तक तकनीक का जो प्रश्न है, यह तकनीक अच्छी तरह से इस्तेमाल करने के बाद वह फिल्म में चार-चाँद लगा देता है l

प्रश्न. आज के फिल्मकारों में कौन फिल्मकार या कौन कौन सी फिल्मों से आप बहुत प्रभावित महसूस करते हैं ?

उत्तर. देखिए, ऐसा है कि नाम तो मै बहुत भूलता हूँ लेकिन जैसे WEDNESDAY फिल्म आई थी, आप उस फिल्म को देखें, बहुत ही अच्छी फिल्म बनाई है l इसी तरह से “रंग दे बसंती”, फिर हॉकी पर जो फिल्म बनी “चक दे इंडिया” ये सब कितनी अच्छी फिल्में हैं l इस तरह से और भी हैं l अंत में “पीपली लाइव” को देख लीजिए आप, बहुत अच्छी फिल्म बनाई है l

प्रश्न. आपकी पहली फिल्म कौन सी थी ?

उत्तर. मैंने पहली फिल्म बनाई मगही में जिसका नाम था “मोरे मन मितवा” l कुल मिला कर मगही में दो ही फिल्म बनी है l

प्रश्न. बिहार के सामान्य ज्ञान की किताबों में आपकी चर्चा बिहार के प्रथम फिल्मकार के रूप में है l क्या इससे आपको गर्व महसूस नहीं होता है?

उत्तर. जी, मैंने तो किताब ही नहीं देखी है, आप बता रहे हैं तो मुझे अभी पता चला l बिहार में फिल्म का इतिहास बहुत पुराना है, मैं ये क्रेडिट लेना नहीं चाहता l ऐसी बात नहीं है l राजा द्रोण ने 1934 में फिल्म बनाई, उसके बाद मैंने फिल्म बनायी l ये अलग बात है कि उनकी फिल्म और मेरी फिल्मों में आसमान जमीन का अंतर है l

प्रश्न. आपने डाक्यूमेंट्री फिल्में भी बनाई हैं जैसे विरासत, बिहार इतिहास के पन्नों में, आदि l इन सब में बिहार की संस्कृति पर काफी जोर दिया गया है, कोई खास वजह ?

उत्तर. बिहार मेरी जन्मभूमि है और बिहार के प्रति मेरे मन में असीम श्रद्धा है l बिहार को जानने की और सम्पूर्ण रूप से समझने की इच्छा रही है मेरी l मैं बहुत जानना चाहता हूँ लेकिन मैं फिल्मकार हूँ l मैं फिल्में बनाता हूँ ताकि अपनी भावनाओं को उसमें सामाहित कर सकूँ और दूसरे के ह्रदय में उसे प्रविष्ट करूँ l यही मेरा उद्देश्य रहा है l आज का युवा, आज का नौजवान कितना है जो बिहार की संस्कृति को जानता है l बिहार की ऐसी बहुत सारी बातें हैं, संस्कृति है जो बिहार के विद्वानों ने किताबों में लिख दी लेकिन कुछ ही लोग उस तरह की किताबें पढ़ते हैं जिनसे कि उन्हें बिहार की थोड़ी-बहुत जानकारी हो l जैसे कि दिनकर जी ने संस्कृति के ऊपर जो किताब लिखी है आप अगर उनकी इस किताब के कुछ पन्नों को रोज पढ़ें तो आप भारतीय संस्कृति को जान पायेंगे l मैंने यही प्रयास अपनी फिल्मों के माध्यम से किया है ताकि आप कम से कम समय में अपनी संस्कृति को जान सकें l

प्रश्न. आज के युवा जो मध्यमवर्गीय परिवार या जो निम्नवर्गीय परिवार से आते हैं, वो अपने करियर की समस्या से जूझ रहे हैं l ऐसे में इतिहास की, संस्कृति की क्या प्रासंगिकता है उनके लिए ?

उत्तर. देखिए करियर अपनी जगह है l अगर सिर्फ करियर है तो फिर आप शादी-ब्याह में लोक-गीत क्यों गाते हैं ? फिर आप शादी-ब्याह या कोई भी तीज-त्यौहार हो तो आप क्यों नाक से लेकर मांग तक सिंदूर लगा करके उत्सव मनाते हैं l ये कब कहा गया कि आप अपनी संस्कृति को मत जानिए l तो कल को आप ये कहेंगे कि मैं सिर्फ मैं ही हूँ, मैं अपने बाप को क्यों जानूँ, अपने दादा को क्यों जानूँ, अपने परदादा को क्यों जानूँ ? ये तो कोई बात ही नहीं हुई l ऐसी स्थिति में अपनी संस्कृति संरक्षित करने की जरुरत है l जैसे संस्कृत लुप्तप्राय है वैसे ही संस्कृति भी लुप्त हो जायेगी l ऐसे में आज के युवा का यह दायित्व है कि वो इस बारे में जाने l हम क्या कर सकते है, हमने फिल्म बना दिया, आपके सामने रख दिया, लो देखो और जानो l

प्रश्न. आपने बिहार को ही अपनी कर्मभूमि के रूप में क्यों चुना ?

उत्तर. क्यों भाई, हर आदमी मुंबई ही चला जाये, कोई जरुरी है l मुंबई में जो करोड़ों-करोड़ की फिल्में बन रही हैं उन फिल्मों में मैं कहाँ हूँ ? मैं तो विडियो पर फिल्में बनाता हूँ जिसे लोग देखते हैं l सरकार के लिए फिल्में बनाता हूँ, सरकार जिसे PRO के माध्यम से कॉलेजो में, पंचायतों में दिखाते रहते हैं l अब इससे कौन कितना ग्रहण करता है यह तो हरेक व्यक्ति की अपनी बौद्धिकता पर निर्भर करता है l

प्रश्न. कहा जाता है कि किसी भी उद्द्योग का विकास बाजार के आस-पास होता है l फिर हिंदी फिल्मों के लिए तो बाजार बिहार और यूपी जैसे क्षेत्र हैं, किन्तु फिर भी हिंदी फिल्मों का विकास मुंबई में क्यों हुआ वह तो हिंदी-भाषी क्षेत्र भी नहीं है ?

उत्तर. दादा साहेब फाल्के ने जो फिल्म बनाई थी उन्होंने मराठी में क्यों नहीं बनाई थी, पहली फिल्म भी उन्होंने “राजा हरिश्चंद्र” हिंदी में ही बनाई थी l यह बिहार का दुर्भाग्य है, उत्तर प्रदेश का दुर्भाग्य है कि यहाँ के लोग जो भी हुआ बम्बई भाग गए और सरकार ने भी कभी भी film development corporation की स्थापना की कोशिश नहीं की l

प्रश्न. इन दिनों बिहार में भोजपुरी फिल्में काफी बन रही हैं l उन फिल्मों की गुणवत्ता के बारे में आपकी क्या राय है ?

उत्तर. बोगस है l भोजपुरी फिल्में लोग पंजाब में, हरियाणा में देखते हैं क्योंकि उनका अपना लगाव है लेकिन इनको standardise नहीं किया जा रहा l मैंने कहीं पढ़ा है कि लगभग 200 फिल्में बनती हैं भोजपुरी भाषा में एक साल में l लेकिन अगर यही फिल्में बिहार में बने तो बिहार के कलाकार, बिहार के टेक्नीशियन सारे लोग अपनी पहचान बनाने में सक्षम होंगे l लेकिन उनका स्तर अभी बहुत ही घटिया है l अभी क्षेत्रीय फिल्मों, जैसे बांग्ला, तमिल, तेलगु का स्तर ग्रहण करने में बहुत वक्त लगेगा l

प्रश्न. नब्बे के दशक में ग्लोब्लाइजेशन का दौर आया इसका बिहार की अर्थवयवस्था के साथ-साथ समाज और संस्कृति पर भी व्यापक प्रभाव पड़ा, इसे किस रूप में आप देखते हैं ? क्या ये अच्छा प्रभाव है या बुरा प्रभाव है ?

उत्तर. बिहार का जहाँ तक सवाल है- आप पर दूसरी संस्कृति का प्रभाव क्यों पड़ता है ? दूसरी संस्कृति का प्रभाव तभी आप पर पड़ता है जब आप, आपकी संस्कृति, कमजोर होती है l आज आप बांग्ला संस्कृति पर पंजाबी संस्कृति का प्रभाव नहीं देखते लेकिन बिहार में सबसे पहले देखते हैं l यहाँ शादी में भी भांगड़ा टाइप का नाच करते हैं l मुझे ये लगता है कि चुकि हम अपनी संस्कृति को नहीं जानते हैं और उसकी गहराई में पहुंचना नहीं चाहते हैं इसलिए हम छिछले हैं; हम पर दूसरी संस्कृतियाँ जो इतनी हल्की होती हैं हम पर हावी हो जाती हैं l

प्रश्न. आप हमें अपनी भावी योजनाओं के विषय में कुछ बताइए ?

उत्तर. बिहार से तो जुड़ा हुआ हूँ मैं और मेरी सारी योजनाएं भी, चाहे वो डाक्यूमेंट्री हो या फीचर फिल्म सब बिहार से जुड़ीं होती है l एक फिचर फिल्म की भी योजना मैं बना रहा हूँ l राजा राधिका रमन की कहानी पर आधारित फिल्म की पटकथा तैयार है, बस फाइंनेसर की तलाश है, मिल जाये तो काम शुरू करूँगा और उसमें यही मेरी शर्त है कि सारे कलाकार और तकनीशियन बिहार के ही हों और यह पूरी फिल्म बिहार की हो l

प्रश्न. जो युवा आज फिल्म की दुनिया में प्रवेश करना चाहते हैं उन्हें आप क्या मार्गदर्शन देना चाहेंगे ?

उत्तर. बिहार के युवा को अपनी संस्कृति का ज्ञान होना चाहिए l जब तक आप अपनी संस्कृति को नहीं जानेंगे, उसकी मर्यादा नहीं जानेंगे तब तक आप भटकते रहेंगे l इसलिए आवश्यक है कि आप अपनी संस्कृति अपने इतिहास का अध्ययन करें, आपके पास किताबें है पढ़ने के लिए, जानने-समझने के लिए l नहीं तो फिर वही होगा की दो-चार फिल्मों के बाद आपकी उर्जा समाप्त l

1. घोड़-सिम्मर मुदा घुड़सवार

लेखक - नरेन्द्र प्रसाद सिंह

बिहार से झारखंड के अलग होयला पर बासोडीह आउ सतगामा प्रखंड बनल, जे नवादा जिला के अभिन्न अंग हलइ । झारखंड के भौगोलिक संरचना पठारी हे, जहाँ वनिज आउ खनिज सम्पदा के अकूत भंडार छिपल-पड़ल हे । एकर ऐतिहासिक, सांस्कृतिक आउ पौराणिक पृष्ठभूमि भी अजूबे हे ।

नवादा जिला के छाती पर बहेवला 'सकरी' नदी झारखंड के घोरंजी गाँव से निकसल हे, जे देवरी प्रखंड में पड़ऽ हे । देवरी आउ सतगामा प्रखंड के एगो नाला विभक्त करऽ हे, जेकरा 'दरसनिया' कहल जाहे । 'किउल' मुदा 'कोयल' नदी के उद्गम-स्थल भी एजुने हे, जे 'जमुई-झाझा' से गुजरइत 'किउल-लक्खीसराय' शहर के छुअइत गंगा में मिल जाहे । ई तरह से 'सकरी' आउ 'किउल' नदी के उद्गम-स्थान आसे-पड़ोसे हे ।

'घोड़-सिम्मर' के ऐतिहासिकता पर नजर गड़यला से ढेर मानी पुरनकन बात अइना जइसन लउके लगऽ हे । पुरनकन लोग के कहनाम हे कि झारखंड के समुले दक्खिनी भाग ठाकुर अजीत सिंह के जागीर हल, जे 'गलवाती-घराना' के टिकैत हलन । तखने गलवाती-घराना के राजा के टिकैत कहल जा हल आउ हिनखर निचलौका पीढ़ी के ठाकुर । 'सतगामा-टिकैत' वंशज के टाइटिल 'देव' आउ गलवाती-टिकैत वंशज के टाइटिल 'सिंह' होवऽ हलइ । 'देव' देवत्व मुदा धरम-करम आउ 'सिंह सिंहत्व मुदा बहादुरी के प्रतीक मानल जा हलन ।

ठाकुर अजीत सिंह बड़ कुशल, वीर, बुद्धिमान, नीडर आउ धार्मिक प्रवृत्ति के मानुस हलन । हिनखा में सिंहत्व आउ देवत्व दुनहूँ गुन हल । ई शिव के अनन्य भक्त भी हलन, इहे से घंटो महादेव के अराधना में लवलीन रहऽ हलन । शंकरजी हिनखा वरदान में एगो उड़न्त-घोड़ा आउ सरिता देलन हल, जेकर नाम तखने 'शंकरी' आउ अखने 'सकरी' हे । लोग कहऽ हथ कि ई शिव के पुजला के बाद पहिले घोड़वे के खिलावऽ हलन, तब्बे अन्न-जल ग्रहण करऽ हलन । हिनखर सबसे प्रिय भोजन दूध-दही में पकल-पकावल महुआ होवऽ हलइ, जे पौष्टिकता में भरपूर मानल जाहे ।

मगह में एगो कहाउत खूबे प्रचलित हे - 'बढ़े बंस त घटे प्रीति ।' ठाकुर अजीत सिंह के साथ भी इहे होयल आउ घराना के मान-मरजादा के बचावे खातिर हिनखर वंशज अन्यत्र जाके बस गेलन । फिर कहाउत बनल - 'घटल घटवार त टिकल टिकैत’, मुदा जे टिकैत दोसर-तेसर जगह जाके बस गेलन, ऊ घटवार आउ जे टिकले रहलन, ऊ टिकैत बनल रहलन ।

कहल जाहे कि दशा दसे बरिस रहऽ हे, इहे हाल ठाकुर के साथ भी होयल । तइयो ई शिव के पूजा मरते दम तक नञ् छोड़लन । एक दिन हिनखर मन में शिवलिंग स्थापित करे के प्रेरणा जगल, त बासोडीह के बगले में सकरी नदी के दक्खिनी छोर पर काला प्रस्तर के शिवलिंग स्थापित कर देलन । हिनखे पूर्वज (? वंशज) बाद में इहाँ एगो मंदिर भी बनवैलन । घुड़सवार ठाकुर अजीत सिंह दोआरा स्थापित स्थल के नाम 'घोड़-सेवार' मुदा अपभ्रंश में 'घोड़-सिम्मर' कहल जाहे, जे देखे जुकुर हे । हियाँ के पत्थल पर खुदल अति प्राचीन लिपि आज तलुक नञ् पढ़ल गेल, जेकरा से दर्शक के दरद बढ़ले जाहे । आस-पड़ोस में हजारन के संख्या में देवी-देवतन के क्षत-विक्षत मुरती गिरल-पड़ल हे, जेकरा पर गहन खोज आउ शोध होवे के चाही, तब्बे 'घोड़-सिम्मर' के समझना जादे आसान होयत ।

ठाकुर अजीत सिंह खाली शिवभक्ते नञ्, देशभक्तो हलन । ई अप्पन जागीर के बचावे खातिर आजीवन अंग्रेजवन से लोहा लेते रहलन । तइयो भला होनी के कउन टाल सकऽ हे । एक दिन अकासवानी होयल कि पूजा खातिर सकरी नदी में असनान लागी मत जा, तइयो ई चलिए गेलन आउ अंग्रेज दोआरा पसारल जाल में फँस गेलन । अंग्रेज सिपाही हिनखा सकरी के घाटे पर मौत के घाट दतार देलक आउ नदी के पानी हिनखर खून से लाल रत-रत भे गेल । तखनौ हिनखर करेजा आधा मन के हल, जेकरा देख के अंग्रेज दाँत तर अंगुरी चाँप लेलन हल । हिनखर मउअत के बाद अंग्रेज जागीर पर कब्जा कर लेलक । बहादुर घोड़सवार जेजा मारल गेलन हल, ऊ स्थान 'घोड़-सिम्मर' आझो अप्पन व्यथा कहे ला अकुला रहल हे ।

घोड़-सिम्मर में छितरायल अनगिनत पाषाण के घोराही, मुदा मथानी के अखनौं देखल जा सकऽ हे । एकरा से लगऽ हे कि तखने हियाँ के लोग के मुख्य पेशा पशुपालन हलइ, तब्बे न पत्थल के मथानी दूध से छाछ निकाले में काम आवऽ होयत । नोतन मुदा नो तन के रसरी तो जंगली लत्तर के छिलकोइया से बनावल जा होतइ, जे मथानी आउ खंभा में लपेटल जा होतइ ।

आझो शिवरात के दिन हुआँ चार दिवसीय लमहर मेला लगऽ हे, जहाँ लाखो लोग के जलाभिषेक, पुष्पाभिषेक आउ बेल-पत्र चढ़ाते देखल जा सकऽ हे । घोड़-सिम्मर के सटले 'बेला' गाँव हे जहाँ बेल के बगइचा हलइ, जे ठाकुरे साहेब लगौलन हल । लोक-मान्यता हे कि शिवरात के दिन साच्छात पारवती भी पास के देवरी पहाड़ पर चढ़ के भक्तन के कलियान करे आवऽ हथ ।

चाहे कारन जे रहे, घोड़-सवार ठाकुर अजीत सिंह दोआरा स्थापित शिवलिंग स्थल के घोड़-सिम्मर मुदा घोड़-सवार कहना तनिक्को गलत नञ् हे । एकरा पर्यटन के मानचित्र पर लावे के चाही आउ अति प्राचीन लिपि के पढ़े के चाही, तब्बे ई आलेख में उलझल रहस्य से परदा उठ सकऽ हे ।

[मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी", बरिस-१६, अंक-१, जनवरी २०१०, पृ॰७-८ से साभार]



Monday, December 20, 2010

46. मगही साहित्य के सूर्य थे मथुरा प्रसाद नवीन

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_7048671_1.html
मगही साहित्य के सूर्य थे नवीन
18 Dec 2010, 08:28 pm
बड़हिया (लखीसराय), संसू. : शनिवार को स्थानीय निरीक्षण भवन में मगही के कबीर बड़हिया निवासी मथुरा प्रसाद नवीन की नौवीं पुण्यतिथि के अवसर पर साहित्य सर्जना परिषद के तत्वावधान में स्थानीय स्तर का कवि सम्मेलन सह विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता बीएनएम कालेज के पूर्व प्राचार्य डा. सत्येन्द्र अरूण ने की जबकि मंच संचालन पूर्व नगर भाजपा अध्यक्ष रामप्रवेश कुमार ने किया। कवि सम्मेलन का उद्घाटन क्षेत्रीय विधायक विजय कुमार सिन्हा ने दीप प्रज्जवलित करके किया। कवि सम्मेलन में उपस्थित लोगों को संबोधित करते पूर्व एडीएम अवधेश नारायण सिंह ने कहा कि नवीन जी में दैवीय शक्ति थी। उनकी कविता स्वत: स्फूर्त हुआ करती थी। मौलिकता ही उनकी पहचान थी। उन्होंने तत्कालीन परिस्थिति के आधार पर अनेक कविताएं लिखी। सहित्यकार डा. सत्येन्द्र अरूण नें मथुरा प्रसाद नवीन जी को मगही साहित्य का सूर्य बताते हुए कहा कि नवीन जी ग्रामीण समस्याओं पर हमला बोलते हुए हमर गांव हो आला बबुआ हमर गांव हो आला, बेटा हो बंदूक उठइले बाप जपो हो माला..आदि कविता के माध्यम से प्रकाश डाला था। इस अवसर पर राममूरत कुमार, डा. रामानंद सिंह, महिला महाविद्यालय के प्राचार्य डा. मुरलीधर सिंह, अरूण कुमार सिंह, विभूति सिंह, सागर सिंह, सुरेन्द्र प्रसाद सिंह, शंकर कुमार, डा. शिवदानी सिंह, संजय कुमार सिंह आदि उपस्थित थे।

Saturday, December 11, 2010

45. मार्च में आयोजित होगा प्रथम मगही महोत्सव

मार्च में आयोजित होगा प्रथम मगही महोत्सव
06 Dec 2010, 10:04 pm
शेखपुरा : राज्य में मगही भाषा को उचित सम्मान दिलाया जायेगा। इसी योजना के तहत पटना में मार्च महीने में राज्य स्तर का पहला मगही महोत्सव मनाया जायेगा। यह घोषणा रविवार को जिले के शेखोपुरसराय प्रखंड के महबतपुर गांव में आयोजित मगही कवि सम्मेलन में बिहार मगही अकादमी के अध्यक्ष उमाशंकर शर्मा उर्फ कवि जी ने की। कवि जी जिला मगही मंडप द्वारा आयोजित मगही कवि सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में आये थे। समारोह की अध्यक्षता मगही कवि मिथिलेश जी ने की। इस अवसर पर प्रथम सत्र में मगही अकादमी के अध्यक्ष का नागरिक अभिनंदन किया गया तथा दूसरे सत्र में कवि सम्मेलन आयोजित की गयी। अगहन महीने की ठंड के बीच मगही कवि सम्मेलन आधी रात एक बजे तक चला। जिसमें मगही कवियों ने अपनी रचनाओं ने वर्तमान सामाजिक व्यवस्था से लेकर प्रशासन में क्रियाकलाप तथा राजनीतिक की दिशा-दशा पर प्रहार किया। इस सम्मेलन में शेखपुरा, नवादा, नालंदा, गया, पटना जिलों से आये करीब तीन दर्जन मगही कवियों ने अपनी रचना पेश की। मगही मंडप की डा.किरण कुमारी पूर्व जिप अध्यक्ष ने बताया कि 10 दिसम्बर से पटना में होने वाले पुस्तक मेले में मगही रचनाओं के लिए एक विशेष स्टाल लगाया जायेगा।

Saturday, September 18, 2010

44. मगही कवयित्री किरण देवी सम्मानित

कवयित्री किरण देवी सम्मानित
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_6725425.html

15 Sep 2010, 06:31 pm

शेखोपुरसराय (शेखपुरा), संवाद सूत्र : प्रखंड के निमी निवासी अखिल भारतीय मगही मंडप की कवयित्री डा. किरण देवी को सम्मानित किया गया। मगध विवि के कुलपति ने प्रशस्ति पत्र, शाल एवं नकद राशि देकर डा. किरण देवी को सम्मानित किया। मगध विवि परिसर में कुलपति ने कहा कि डा. किरण देवी के लिखे कविता सामाजिक, व्यावहारिक, शोषण एवं आधुनिकता का मिश्रण है। इनकी कविता अन्य महान कवियों से मिलती-जुलती है। मगही मंडप एवं मगध साहित्य परिषद के उमेश प्रसाद, शिवबालक सिंह, विनय कुमार, उदय शंकर एवं क्षेत्र के जनता ने सम्मान मिलने पर किरण देवी को बधाई दी है। वहीं किरण देवी ने कहा कि सम्मान पाकर काफी खुश हूं। उन्होंने कहा कि मगही भाषा के दिन फिरने का संदेश है यह सम्मान। सम्मान समारोह में बच्ची, राखी, नेहा, गुड़िया, सोनू एवं पुष्पा रानी ने सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान लोगों का मन मोह लिया।

Sunday, August 15, 2010

43. महिला मोर्चा बनाएगा मगही एकता मंच

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/jharkhand/4_8_6617351.html

02 Aug 2010, 12:48 am

जमशेदपुर। मगही एकता मंच के कार्यकारिणी सदस्यों की बैठक रविवार को हुई। इसमें महिला मोर्चा का शीघ्र गठन करने की बात भी कही गई, तो वृहद स्तर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने पर भी फैसला लिया गया। महासचिव उपेंद्र सिंह ने सभी प्रखंड अध्यक्ष को अपने क्षेत्र के कार्यकर्ताओं-सदस्यों के साथ बैठक कर मुख्यालय को सूचित करने को कहा। बैठक को डा. विजय कुमार पीयूष, डा. भोलेंद्र पांडेय, रामनारायण शर्मा, रियाजुद्दीन खान, कल्याणी शरण, सत्येंद्र सिंह, यशोदा देवी, अनवारुल हक, कमर सुल्ताना, दीपा देवी, चंद्रभान सिंह ने भी संबोधित किया। नसर फिरदौसी की अध्यक्षता में हुई बैठक का संचालन मो. अलाउद्दीन ने किया। इस मौके पर अध्यक्ष हाजी वसीमुल्लाह के नाती के आकस्मिक निधन पर शोक संवेदना व्यक्त की गई।

Friday, August 13, 2010

42. मगही दिवस के रूप में मनेगी महाकवि की जयंती


हिन्दुस्तान दैनिक, पटना संस्करण, 14 अगस्त 2010, पृष्ठ 8.

बख्तियारपुर। महाकवि योगेश की जन्मतिथि 23 अक्टूबर को प्रति वर्ष मगही दिवस के रूप में मनाया जायेगा। यह निर्णय अथमलगोला के नीरपुर में शुक्रवार को महाकवि योगेश फाउंडेशन के तत्वाधान में आयोजित दो दिवसीय अखिल भारतीय मगही भाषा सह कवि सम्मेलन के समापन मौके पर सर्वसम्मति से लिया गया। मगही एकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में कई कवियों ने अपनी कविता पाठ से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर जमकर तालियां बटोरीं। महाकवि योगेश के पुत्र पत्रकार मृत्युंजय कुमार ने कहा कि वे मगही एकादमी को 1950 के दशक का महत्वपूर्ण मगही पाण्डुलिपि उपलब्ध करायेंगे। सम्मेलन के दौरान मगही साहित्यकार रामनन्दन जी को वर्ष 2010 का योगेश शिखर सम्मान प्रदान किया गया। कवि दीनबन्धु, कारू गोप, जयराम और पंकज ने कविता पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन कवि रामाश्रय झा ने किया। इस मौके पर बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी, साहित्यकार, शिक्षाविद् आदि उपस्थित थे ।

Thursday, August 12, 2010

41. जनकवि थे 'योगेश': नंदकिशोर

प्रथम पुण्यतिथि पर पैतृक गांव में लगा साहित्यकारों, राजनेताओं और शिक्षाविदों का जमावड़ा

http://epaper.hindustandainik.com/PUBLICATIONS/HT/HP/2010/08/13/index.shtml

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http://epaper.hindustandainik.com/PUBLICATIONS/HT/HP/2010/08/13/ArticleHtmls/%C2%AAF%C2%B3FI-d%C2%BDF-%C2%B1FZ-k%C2%B9F%C3%BB%C2%A6FZVFl-%C2%B3FaQdI-VF%C3%BBS-13082010004013.shtml?Mode=1

हिन्दुस्तान दैनिक, पटना संस्करण, 13 अगस्त 2010, पृष्ठ 4.

संवाद सूत्र / निसं
बख्तियारपुर / बाढ़

मगही साहित्य के मूर्धन्य कवि डा॰ योगेश्वर प्रसाद ‘योगेश’ की प्रथम पुण्यतिथि के मौके पर उनके पैतृक गांव नीरपुर में जुटे प्रख्यात साहित्यकारों, नेताओं, शिक्षाविदों एवं आमजनों ने उन्हें याद करते हुए श्रद्धासुमन अर्पित किया । इस अवसर पर जाने-माने साहित्यकार प्रो. रामदेव शुक्ल की अध्यक्षता में स्व॰ योगेश की रचना मगही साहित्य के प्रथम महाकाव्य ‘गौतम’ एवं 'मगही रामायण' का लोकार्पण करते हुए प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री नन्दकिशोर यादव ने कहा कि ‘योगेश’ वाकई में एक जनकवि थे, जिन्होंने अपनी कविता के माध्यम से जहां आमजनों की समस्याओं को उकेरा वहीं समाज में व्याप्त कुरीतियों पर भी करारा प्रहार किया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कवि और साहित्यकार कभी मरते नहीं। उनकी अमर कृति सदैव लोगों को अंधेरे में भी राह दिखाने का काम करती है । मौके पर पूर्व सांसद विजय कृष्ण ने मगही भाषा को अष्टम अनुसूची में शामिल करने की मांग की। वहीं मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर प्रसाद ने कहा कि मगही भाषा के साथ हमेशा सौतेला व्यवहार किया गया। उन्होंने मगही भाषा के विकास के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री को धन्यवाद देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मगही क्षेत्र के राजनैतिक ध्रुवतारा हैं। श्री शंकर ने योगेश की मगही साहित्य की सेवा में उल्लेखनीय योगदान की सराहना करते हुए कहा कि स्व॰ योगेश हमेशा हमलोगों के प्रेरणास्रोत बने रहेंगे। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मगही कवि रामाश्रय झा ने कहा कि 23 अक्टूबर को स्व॰ योगेश की जन्मतिथि मगही दिवस के रूप में मनाई जाए। इससे पूर्व स्व॰ योगेश के पुत्र मृत्युंजय कुमार ने आगत अतिथियों का स्वागत किया। मौके पर नालंदा ओपन विश्वविद्यालय के कुलपति जितेन्द्र कुमार सिंह, बाढ़ के विधायक ज्ञानेन्द्र सिंह ज्ञानू , कुमार इन्द्रदेव, डा॰ अनिल राय समेत दर्जनों वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किये।

Friday, August 06, 2010

40. भाषायी अकादमियों की समितियाँ पुनर्गठित

http://epaper.hindustandainik.com/Publications/HT/HP/2010/08/07/INDEX.SHTML

हिन्दुस्तान दैनिक, पटना संस्करण, दिनांक 07 अगस्त 2010, पृष्ठ 7

भाषायी अकादमियों की समितियाँ पुनर्गठित
चारों अकादमियाँ अब भी कार्यवाहक निदेशकों के जिम्मे ही

हिन्दुस्तान ब्यूरो

पटना: राज्य सरकार ने करीब छह माह की कसरत के बाद मैथिली के साथ ही मगही, भोजपुरी और संस्कृत अकादमियों की समितियों को पुनर्गठित कर दिया है । हालाँकि चारों के निदेशकों का मनोनयन नहीं किया गया है । इस पद के प्रभारी में पूर्ववत एच॰आर॰डी॰ (मानव संसाधन विभाग) के उप-निदेशक ही रहेंगे । उधर मगही अकादमी के सदस्यों की सूची में एक नाम ऐसा भी है जो अब इस दुनिया में हैं ही नहीं । विक्रम के खोरइठा गाँव के निवासी संत रामनगीना सिंह 'मगहिया' को मानव संसाधन विभाग ने स्वर्गीय होने के बाद अकादमी का सदस्य बनाया है । 81 वर्षीय स्व॰ सिंह की मौत 1 अगस्त को हो गई पर विभाग को इसकी भनक ही नहीं लगी । सरकार के उप-सचिव और मगही अकादमी के प्रभारी निदेशक ओंकारननाथ आर्य के दस्तखत से स्व॰ सिंह की सदस्य की अधिसूचना जारी हुई है । हालाँकि इस बारे में विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि उनकी मौत की आधिकारिक सूचना नहीं मिल पाई थी । सूची सुधार ली जाएगी ।

मगही अकादमी में विभाग ने स्व॰ रामनगीना सिंह समेत कुल 11 सदस्यों को मनोनीत किया है । नालन्दा निवासी उदय शंकर शर्मा (कवि जी) अधयक्ष बनाए गए हैं । मो॰ सफी जानी, लखीसराय की परमेश्वरी, मोकामा के भाई बालेश्वर, शेखपुरा के मुनेश्वर रजक, हरनौत के एतवारी पंडित, पटना के हरीन्द्र विद्यार्थी, अरवल के राम किशोर सिन्हा, पटना के जीतेन्द्र व्यास, नवादा (हिसुआ) के उदय कुमार भारती और गया के सुमन्त सदस्य बनाए गए हैं ।

भोजपुरी अकादमी को अध्यक्ष तो नहीं दिया गया पर 11 सदस्यीय समिति की घोषणा की गई है । रोहरास के डॉ॰ गुरचरण सिं, गोपालगंज के अधिवक्ता मुश्ताक अहमद, पश्चिम चम्पारण के गंगा प्रसाद पांडेय और एन॰ तिवारी, भोजपुर के महेन्द्र सिंह और डॉ॰ लक्ष्मी नारायण चौबे, पीयू हिन्दी विभाग के प्रो॰ भृगुनन्दन त्रिपाठी, बक्सर के रामेश्वर प्रसाद सिन्हा, रोहतास के जवाहर प्रसाद सिंह, आरा के प्रो॰ गदाधर सिंह और छपरा के प्रो॰ राजेश्वर कुंवर भोजपुरी अकादमी के सदस्य मनोनीत हुए हैं ।

राज्य सरकार ने मधुबनी जिला के विट्ठो ग्राम निवासी डॉ॰ किशोर नाथ झा को बिहार राज्य संस्कृत अकादमी का अध्यक्ष बनाया गया है । बी॰आर॰ए॰ वि॰वि॰ के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ॰ सतीश चन्द्र झा और दरभंगा संस्कृत वि॰वि॰ के डॉ॰ विद्याधर मिश्र को कार्यसमिति का जबकि बेरगेनिया (सीतामढ़ी) संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ॰ महाचन्द्र ठाकुर को सामान्य समिति का सदस्य बनाया गया है ।



भोजपुरी अकादमी के अध्यक्ष बने डॉ. रविकांत दुबे
पटना।
मानव संसाधन विकास विभाग ने डॉ. रविकांत दूबे को भोजपुरी अकादमी का अध्यक्ष बनाया है। डॉ. दूबे बक्सर में महर्षि विश्वमित्र कॉलेज में स्नातकोत्तर राजनीति शास्त्र विभाग के अध्यक्ष हैं। उन्होंने शुक्रवार को अकादमी के अध्यक्ष पद पर योगदान भी कर लिया है। मूलत: डुमरांव के लाखनडिहरा निवासी डॉ. दूबे ने कई पुस्तकें लिखी हैं । उन्हें विभिन्न संस्थाओं ने भोजपुरी रत्न सम्मान, शिक्षा पदक पुरस्कार, साहित्य गौरव पुरस्कार आदि सम्मान से सम्मानित किया है।
 

7. प्रो॰ रामनाथ शर्मा

पिता के नाम - जनेश्वर सिंह
माता के नाम - इन्द्रज्योति देवी

जन्म-तिथि - ८-१-१९३३ ई॰

जन्मस्थान आउ वर्तमान पता - अमहर, पटना-८०१११८

शिक्षा -
मैट्रिक -पटना विश्वविद्यालय, १९५१
आइ॰ए॰  -पटना विश्वविद्यालय, १९५३
बी॰ए॰ ऑनर्स (हिन्दी) -पटना विश्वविद्यालय, १९५५
एम॰ए॰ (हिन्दी) -पटना विश्वविद्यालय, १९५७

कार्यक्षेत्र - १८ जून १९५८ से ९ फरवरी १९९३ तक जी॰जे॰ कॉलेज, रामबाग, बिहटा, पटना में स्नातक आउ स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद पर काम करके सेवा-निवृत्त ।

अभिरुचि - पढ़ाई-लिखाई आउ ओजपूर्ण शैली में भाषण । एकरा अलावे शिक्षा सम्बन्धी आउ समाज कल्याण सम्बन्धी काम में योगदान ।

सम्मान-पुरस्कार -
१. अप्पन गाँ सम्बन्धी शोधस्तरीय पुस्तक 'अमहरा' पर १९८८ ई॰ में अखिल भारतीय अन्तरजनपदीय परिषद, उजियार घाट, बलिया, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रशस्ति पत्र
२. 'अमहरा' किताब पर ही १९९४ ई॰ में 'शान्ति स्थापना संघ, अमहरा, पटना' द्वारा 'गंगा शरण सिंह एवार्ड' से विभूषित
३. 'अमहरा' किताब पर ही १९९८ ई॰ में 'भगवान बुद्ध विकास सेवा समिति, पटना' द्वारा पद्मश्री डॉ॰ सी॰पी॰ ठाकुर के हाथ से 'कलाश्री' सम्मान प्राप्त

साहित्यिक कृति -
१. गद्य गौरव - सम्पादित
२. गद्य सरोवर - सम्पादित
३. अमहरा - १९७४ ई॰ में प्रकाशित, द्वितीय संस्करण २००० ई॰ में
४. बिहटा अंचल के कवि और लेखक - २००१ ई॰
५. भारतीय मुक्ति संग्राम में मनेर और बिहटा थाने की भागीदारी - १९९७ ई॰
६. मगही साहित्य का इतिहास - १९९८ ई॰ में छपल किताब के सह लेखक (एक अध्याय - मगही साहित्य का जागरण काल)
७. गंगा बाबू की याद के सह लेखक
८. डॉ॰ स्वर्ण किरण अभिनन्दन ग्रन्थ के सह लेखक
९. डॉ॰ राम प्रसाद सिंह अभिनन्दन ग्रन्थ के सह लेखक
१०. मगही भासा साहित्यिक निबन्धावली के सह लेखक
११. इंटरमीडियट मगही गद्य-पद्य संग्रह के सह लेखक
एकरा अलावे हिन्दी आउ मगही के विभिन्न पत्र-पत्रिका में इनकर लेख प्रकाशित होइत रहल हे ।
आकाशवाणी पटना के 'मागधी' कार्यक्रम में २० बरिस में लगभग ७५ वार्ता प्रसारित कर चुकलन हे ।

[मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी", बरिस-, अंक-, दिसम्बर २००२, पृ॰१८ से साभार]

Saturday, July 31, 2010

1. अटपट रोग झटपट इलाज

लेखक - डॉ॰ कृष्णकान्त पंडित, अध्यक्ष, मुंगेर होमियोपैथिक संघ

एकबैक कोय रोग होय त समझऽ हे ई रोग आकस्मिक ।
होमियोपैथी के लऽ एक बूँद, कर देतो ओकरा तुरते ठीक ॥

रक्खऽ सही दवइया भइया, जन-जन लागी जे उपकारी ।
कब-कब कहाँ लेल जात की, रक्खऽ एकर तों जनकारी ॥

लू लगे पर द ग्लोनोइन, गड़े खोरैठा ऐंटिमक्रूड
देह बरफ हो, कार्बोवेज, बिजली-घात पर कॉफियाक्रूड

एँड़ी हड्डी बढ़े ऐंटिमक्रूड, हाथ-हड्डी कैलकेरियाफॉस
ठेहुना दरद करे बायोनिया, खून-कमी होय फेरमफॉस

गठिया, पेट दरद कोलोसिथ, दाँत-दरद पर कैमोमिला
अंडकोस या कान दरद होय, दे द तब तो पलसेटिला

पेट जोंक होय दे दऽ, सिना, दस्त में चाइना, कैलकेरियाफॉस
कान के हड्डी बढ़े कोनियम, टायफायड में कालीफॉस

अतिरज ओंकी सरदी-खाँसी में द झट तों इपिकाक
वात-दरद आउ जुरपित्ती में आरटिका यूरेंस के हे धाक ॥

जूड़ी में नेट्रम मूर, चाइना, आउ प्लेग में कालीमियोर
नाक के हड्डी बढ़े त दे द एफ॰ एसिड, कैलकेरियाफुलोर

पित-पथरी में बरबरिस, चाइना, खूब मूते तब नेट्रमसल्फ
पस होवे त द साइलीसिया, पस रोकइ कैलकेरियासल्फ

बिकोलाय में द बरबरिस, हँगुरी-वात में कोलोफाइलम
काँच जब इँकसे दे द एलो, नैं तो दे द पोडोफाइलम

मूत पथरी में सरसापैरेला, प्रोस्टेट रोग सबलसेरूलेटा
खून खराब फोड़ा पाइरोजन, दम्मा में कारगर हे ब्लेटा

हाय अँगुरी बेढ़ा साइलीसिया, बाल झड़े तब सेलेनियम
रूसी-मस्सा में द थूजा, जिगर दरद होय लाइकोपोडियम

गरमी-सुजाक में मर्कसोल, थूजा आउ मुँहासा में सोरीनम
बहिरापन में मूलेन ऑयल, कान नगाड़ा थायोसियामिनम

कंठ नली जरो बेलाडोना, सुतले मूते त कॉस्टीकम
पढ़े, आँख दरद होय रूटा, कमर दरद होय मेक्रोटीनम

मूत रुके त एकोनाइट, पिलही होय त दे द चाइना
कारबंकल होय एंथासोनम, पागलपन पर सर्पेण्टाइना

मुँह आवे पर बोरैक्स दे द, बवासीर में नक्सभौमिका
टौंसिल में बैराइटा कारब, चोट-मोच में द आरनिका

चोट-मोच ला भी हे रूटा, हड्डी जोड़े हे सिमफाइटम
आँख लाल त द बेलाडोना, माथ-बुखार अरजंट नाइट्रीकम

पेसीफ्लोरा निंदिया लावइ, खून-पेशाब कैंथेरिस भगावइ ।
पायरिया भगावइ हेक्टालावा, सबके दँतियन के चमकावइ ॥

मोटापा में फाइटोलिका, नामरदी में द एसिड फॉस
काटे सरप त द तों लेकसिन, दस्त-कीड़ा होय द नेटरम फॉस

नैन जोत ला कैलकेरियाफॉस, मोतियाबिन्द ला कैलकेरियाफ्लोर
आँख में डालऽ सिनरेरिया बूँद, साफ-साफ देखबऽ तब सब ओर ॥

कुकुरखाँसी में परटूसिन, जब टाँग अकड़इ लेथारिस
फटे बिवाय द एगारिकम, जरो चाम त दऽ कैंथेरिस

तुतलावे पर स्ट्रामिनियम, खाज-खुजली में एचिनेमिया
मुँह में गड़ल इँकासइ, काँटा मछली के ऊ हे साइलीसिया

गिल्टी सूजे द आयोडम, हैजा में दे दऽ तों बेरेट्रम
ग्रंथि सूजे द बेडियागा, चाम सुन्न होय द जेलसीमियम

ठंढ रोग पर रसटक्स दे द, कंठमाल कैलकेरिया कारब
दिल के रोगी के क्रेटेगस, होय अजीर्ण त काली कारब

सभ दवाय के सार हम, रचली 'कांत' विचारि ।
आकस्मिक इलाज अब, कर लऽ सब नर-नारि ॥

[मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी", बरिस-१०, अंक-२, फरवरी २००४, पृ॰११ से साभार]

Wednesday, July 28, 2010

7. मगही भासा आउ लिपि

लेखक - शिव प्रसाद लोहानी, नूरसराय, जिला-नालन्दा

अंगरेज आइ॰सी॰एस॰ अफसर में ई खूबी हल कि सरकारी काम करते ऊ अप्पन रुचि के मोताबिक समाजिक, संस्कृतिक आउ साहित्यिक काम भी करऽ हल । जार्ज ग्रियर्सन अइसने आइ॰सी॰एस॰ अफसर हलन जे भारत के भाषायी सर्वेक्षण करके अमर हो गेलन । चूँकि ऊ जादे समय बिहार में बितयलन, बिहार के भासा, बोली के बारे में कुछ जादे काम कयलन । ऊ कहलन कि बंगला, असमी, उड़िया जइसन बिहारी भासा के प्रचलन होवे के चाही । उनइसवीं सदी के आखरी दशक में ऊ ई काम कयलन । उनखर विचार हल कि बिहारी भासा के एगो अप्पन लिपि होवे के चाही । ई क्रम में ऊ कैथी लिपि के अपनावे के वकालत कयलन । कैथी के समर्थन में ऊ एगो किताब भी अंगरेजी में लिखलन, जेकर नाम हल 'ए हैंडबुक आफ कैथी कैरक्टर' (A Handbook of Kaithi Character)

ऊ बखत बिहार में मुख्य रूप से तीन लिपि प्रचलित हल - कैथी, हिन्दी आउ महाजनी । कैथी के प्रयोग जादेतर जमीन्दार के पटवारी करऽ हलन । हिन्दी आमलोग के खास लिपि हल । महाजनी व्यापारी वर्ग में चलऽ हल । ई जाने के बात हे कि हिन्दी लिपि भी हल आउ भासा भी, जइसे फारसी लिपि भी हे आउ भासा भी ।

कैथी आउ हिन्दी लिपि में बड़ी समानता हे । ई दुन्नो लिपि में ह्रस्व इकार (ि), दीर्घ उकार (ू), , श्र, क्ष, त्र, ज्ञ, , , विसर्ग (:), , , , , वर्ण आउ संयुक्ताक्षर के प्रयोग न होवऽ हे । महाजनी लिपि में तो खाली व्यञ्जने होवऽ हे, स्वर न । कहल जाहे कि एगो अदमी चिट्ठी लिखलक कि 'लल ज अजमर गय' । एकरा कुछ लोग पढ़लन 'लाला जी आज मर गये', कुछ पढ़लन 'लाला जी अजमेर गये' । जे भी होवे, बही-खाता एही लिपि में लिखल जा हल । हुण्डी (आझ के ड्राफ्ट) महाजनी में ही लोग लिखऽ हलन । ई रूप में महाजनी लिपि के अन्तर्जातीय महत्त्व हल । आझ भी कुछ लोग ई लिपि के प्रयोग करऽ हथ ।

हिन्दी-कैथी लिपि में ण आउ न वर्ण के जगह न, तीनो श, , स के बदले खाली स, श्र के जगह सरऽ, क्ष के बदले छ, त्र के बदले तर, ज्ञ के बदले गय, य के बदले ज, संयुक्ताक्षर के तोड़के 'संस्कृत' के बदले 'संसकिरित' वगैरह लिखल जा हल ।

ऊ घड़ी मगही इलाका मगही चीनी, मगही लड़का-लड़की तो कहल जा हल, मगर मगही भासा तो एकर बदले गाँव के भासा कहल जा हल । समृद्ध लोग मगही के बदले मागधी भासा कहऽ हलन । रामचन्द्र शुक्ल के लिखित 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में मगही भासा के रूप में कोई जिकिर न हे । १९२३ ई॰ में छपल गोपीचन्द गुप्त लिखल 'माहुरी मण्डल नाटक' में आधा-सुधा मगही भासा हे, मगर गुप्त जी भूमिका में लिखलन हे 'इसकी भाषा सीधी-सादी सबके समझने के लायक हे । खास करके इस नाटक में मगध प्रान्तीय ग्रामीण भाषा देने का कारण यह है कि हमारी जाति विशेषकर इसि भाषा को व्यवहार में लाती है ।'

ई नाटक के बाद के किताबन में भी कोई में बीस, कोई में पच्चीस, कोई में चालीस पचास प्रतिशत मगही भासा के प्रयोग मिलऽ हे । हमरा लगऽ हे कि ई रूप में शुरू से ही मगही कमोबेस देवनागरी लिपि के गोदी में रहल, जे निश्चित रूप से डा॰ ग्रियर्सन के किताब के विपरीत हल । शायद एही वजह से मगही के विकास के शुरुआत होतहीं देवनागरी लिपि के वर्ण श, , विसर्ग (:), श्र, क्ष, त्र, ज्ञ, , , रेफ आउ संयुक्ताक्षर विवादित बन गेल । कहीं वर्तनी के नाम पर त कहीं कुछ आउ नाम पर विवाद उठल । कुछ लोग ई भी कहे लगलन कि जब महाकवि तुलसीदास रामचरित मानस के अवधी भासा में, सूरदास, नन्ददास, रत्नाकर वगैरह ब्रजभाषा में विवादित वर्ण के प्रयोग न कयलन तो मगही के भी ओइसहीं करे के चाही ।

ई सन्दर्भ में ई विचारणीय हे कि जउन काल में ऊ सब हलन ऊ काल में हिन्दी गद्य पद्य के वर्तमान रूप प्रचलित न हल । जब देवनागरी लिपि में हिन्दी के विकास होयल आउ बोलचाल में भी अभारतीय शब्दन के जगह पर तत्सम शब्द आ गेल आउ लोग-बाग के बीच ई भासा पूरा प्रचलित हो गेल, त मगही भासा के भी चाही कि ऊ थोड़ा उदारवादी दृष्टि अपनावे ।

मगही के ख्यातिप्राप्त विदुषी डा॰ सम्पत्ति अर्याणी के ई कहना सही हे कि मगही में जउन शब्द न हे ओकरा ला तत्सम शब्द के प्रयोग करे के चाही । ऊ तत्सम शब्द प्रयोग में अइते-अइते मगही में मिल जायत ।

हम प्रमाण के आधार पर कहे के स्थिति में ही कि अवधी आउ ब्रजभाषा के बड़ा-बड़ा रचनाकार भी अप्पन रचना में तत्सम शब्द के प्रयोग कयलन हे । महाकवि तुलसी के अवधि भासा में रचित रामचरित मानस के बालकाण्ड के कुछ पाठ देखल जाय

१.जाहि दीन पर नेह, करेउ कृपा मर्दन नयन
२. सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती
३. ज्ञान भगति जसु धरे सरीरा
४. गये विभीषण पास पुनि, कहत पुत्र वर माँग

ई सब उदाहरण में कृ, र्द, दृ, ज्ञ, , ण आउ त्र के प्रयोग होयल हे ।

ब्रजभाषा में कविवर सूरदास के ई कथन देखल जाय

१. हम गयंद उतरि कहाँ गर्दभ चांद पाई
२. हम भक्तन के भक्त हमारे
३. मना रे माधो से कर प्रीति

एकरा में अनुदारवादी गर्दभ के गरदभ, भक्त के भगत, प्रीति के परीति लिखलन हल ।

कुछ बानगी नन्ददास के देखल जाय

१. कहि संदेश नन्दलाल का बहुरि मधुपुरी जाय
२. तृप्ति जे तातें होत
३. उनके छत्र चँवर सिंहासन

ई उदाहरण में अनुदारवादी लोग संदेश के संदेस, तृप्ति के तिरिपति, छत्र के छतर लिखलन हल ।

रत्नाकर के उद्धवशतक के ई कवित्त देखल जाय

प्रेम नेम छोड़ि ज्ञान छेम जो वतावत सों
कहै रत्नाकर त्रिलोक ओक मंडल में
ज्ञान गुदड़ी में अनुराग सों रतन ले
बात वृषभानु मानहुँ की जानि कीजिये ।

ई कविता में ज्ञान, त्रिलोक, वृषभानु में ज्ञ, त्र, ष के प्रयोग होयल हे ।

ब्रजभाषा के नामी-गिरामी कवियन के आखरी हस्ताक्षर में वियोगी हरि हथिन । इनखर 'वीर सतसई' अनुपम रचना हे । सतसई परम्परा के विपरीत एकरा में शृंगार के जगह पर तत्कालीन स्थिति के कथ्य हे । ई रचना पर ऊ बखत के हिन्दी के नामी पुरस्कार मंगला प्रसाद पारितोषिक मिलल हल । ई किताब में ब्रजभाषा के विकसित रूप मिलऽ हे जे बहुत महत्त्व के हे । आगे के उदाहरण से ई खुलासा हो जायत ।

रामचन्द्र शुक्ल भी ब्रजभाषा में कविता करऽ हलन । इनखर लिखल 'बुद्ध चरित' प्रबन्ध काव्य ब्रजभाषा में हे । एकर भूमिका में ऊ ब्रजभाषा के सुधार करे के बात लिखलन हल, जइसन कि 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' से जानल जाहे । मगर ई किताब के न मिले के वजह से हम इनखर विचार से पाठक के अवगत न करा सकऽ ही । मगर ऊ इतिहास में लिखलन हे - 'यदि उसे (ब्रजभाषा) इस काल में भी चलना है तो वर्तमान भावों को ग्रहण करने के साथ ही भाषा का भी कुछ परिष्कार करना होगा ।' लगऽ हे कि रामचन्द्र शुक्ल से प्रभावित होके आउ समय के अनुरूप वियोगी हरि 'वीर सतसई' में ब्रजभाषा के नया रूप देलन हे । एकरा में ऊपर लिखल करीब-करीब सब्भे विवादित वर्ण के विवाद के अन्त करके ऊ दोसर लोकभाषा के भी मार्गदर्शन कयलन हे । 'वीर सतसई' से लेल नीचे के अंश एकरा प्रमाणित करत

१. क्षत्रिय क्षत्रिय कहँतो क्षत्रिय कोय न होय
२. कहाँ प्रतिज्ञा पालिहें कपटी कायर क्रूर
३. दयानन्द आरज पथिक यतिश्रद्धानन्द
४. शत्रुता ही रणशूर मति मङ्गल मूर्ति पुनीत
५. गुण गंभीर रण शूरमा मिलतु लाख मई एक
६. दल्यो अहिंसा अरघ से दनुज दुःख करि युद्ध

ई सब उदाहरण में क्ष, त्र, ज्ञ, श्र, द्ध, , , , रेफ (र्ति), , विसर्ग (:) और संयुक्ताक्षर के प्रयोग होयल हे ।

निर्गुण धारा के संत कवि भी विवादित वर्ण के मिलल-जुलल प्रयोग कयलन हे । कबीर के ई पद देखल जाय

१. तत्वमसी इनके उपदेशा, उपनीषद कहे संदेशा
२. जानवलिक औ जनक संवादा, दत्तात्रेय बहे रस बहै रस स्वादा
३. है कोई गुरुज्ञानी जगत मह उलटि वेद बूझै

ई तीनो पद में श, , स के अलावे त्त, त्र आउ ज्ञ के प्रयोग होयल हे ।

दादूदयाल के ई पद देखल जाय

दादू पाणी लूण ज्यों एक रहे समाई ।

एकरा में ण विचारणीय हे ।

अवधी-ब्रजभाषा के कवियन आखिर में विवादित वर्ण के विरोध कम कर देलन ई गुनी नईं, बलुक ई गुनी मगही में भी विवादित वर्ण के प्रयोग करे के जरूरत हे कि ढेर मनी अइसन शब्द हे जे विवादित वर्ण के छाँटे से भाव विचार के अभिव्यक्ति में विसंगति पैदा करत, जेकरा से भासा के महत्व कम हो जायत । देखल जाय

१. कोस, कोष, कोश - कोस में अगर हरेक जगह दन्त्य स ही रहत तो बड़ी गड़बड़ हो जायत, काहे कि कोस से दू मील के दूरी, कोश से डिक्शनरी आउ कोष से खजाना के बोध होवऽ हे ।

२. बानी, वाणी - मगही में बानी गोइठा आउ लकड़ी के राख के कहल जाहे । वाणी उपदेश के अर्थ में प्रयोग होवऽ हे । अगर ण के न कैल जायत तो अर्थ में व्यवधान हो जायत ।

३. सान, शान - औजार पिजावे के पत्थर के नाम सान हे । शान से अदमी के प्रतिष्ठा ज्ञात होवऽ हे । अगर दुन्नो में स लिखल जायत तो अर्थ विकृत हो जायत ।

४. पास, पाश - पास माने नजदीक आउ उत्तीर्ण, पाश माने फंदा होवऽ हे ।

५. विकास, विकाश - विकास माने उत्थान, विकाश माने प्रकाश ।

६. किरिया, क्रिया - क्रिया (verb) के अनुदारवादी किरिया लिखलन जेकर अर्थ कसम होवऽ हे ।

७. श्रद्धा, सरधा - श्रद्धा के अनुदारवादी सरधा लिखलन । द्ध के बदले ध । डा॰ अभिमन्यु प्रसाद मौर्य के एगो कहानी के शीर्षक हे 'उद्धार' । ई हिसाब से ई 'उधार' हो जायत । स्पष्ट ही उद्धार के अर्थ त्राण आउ उधार के अर्थ बाकी होवऽ हे । 'उधार' से तो कहानी के अर्थ ही बदल जायत ।

८. बौद्ध, बौध - बौद्ध माने बुद्ध के अनुयायी आउ बौध माने मन्दबुद्धि वाला ।

एही तरह से ढेर मनी शब्द हे जेकरा अभिव्यक्ति ठीक से न होयत अगर अनुदारवादी सब के अनुशासन चलत । ई गुनी अगर विवादित वर्ण के विवाद खतम करके उदारवादी दृष्टिकोण अपनावल जाय तो जादे ठीक रहत ।

अइसन लगऽ हे कि जे डा॰ ग्रियर्सन कैथी-हिन्दी लिपि के वकालत कयलन हल, ई विवाद ओइसने विचार के परिणाम हे । कैथी-हिन्दी लिपि के आत्मा देवनागरी लिपि के देह में फिट कैल गेल हे । ज्ञात होवे के चाही कि कैथी-हिन्दी लिपि में तीनो स ष श के जगह स लिखल जाहे । श्र, क्ष, त्र, ज्ञ के प्रयोग एकदम न हे आउ संयुक्ताक्षर के तोड़ के लिखल जाहे । पिछला सदी के तीसरा-चउथा दशक के निबन्धित दस्तावेज, जमीन्दार सब के मालगुजारी के रसीद एकर प्रमाण हे । आझ भी गाहे-बगाहे पुरनका लोग सब ई लिपि के प्रयोग करऽ हथ । ई सबके देखे से सब बात साफ हो जायत । ई तरह से एक प्रकार से डा॰ ग्रियर्सन के कथन के मूर्त्त रूप देवे के प्रयास अनुदारवादी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कर रहलन हे ।

हमरा लगऽ हे कि अभी चाहे जउन रूप में मगही भासा के लिखल जाय, लिखे देवे के चाही । कालान्तर में खुद्दे ऊ अप्पन रूप अख्तियार कर लेत । इतिहास गवाह हे कि जब कभी भासा के मोड़े के प्रयास होयत हे, नया भासा के जलम हो गेल हे जेकरा से कोई लाभ न होयल ।

एक बात जरूर हे कि अनुदारवादी आउ उदारवादी दुन्नो एकमत हथ कि मगही के अप्पन शब्दन के ज्यों के त्यों प्रयोग में लावल जाय । ई सन्दर्भ में ई बात पर विचार करे के जरूरत हे कि मगही शब्दन के विशेषता के दरसावल जाय आउ ओइसन सब्द के प्रचारित कैल जाय जेकर प्रतिरूप दोसर भाषा में न हे । उदाहरण के रूप में कुछ शब्दन के बानगी देल जा रहल हे - अपसुइया, गिरपरता, गाँती, गरवइत, गोहनाना, लूर, गोझनउठा, गुमसाइंध, अनकर, मट्ठर, आगरो, नून्नी, झोंटी, सरेक, भेसलावन, भंडूल, ढोनी, मुठान, हहरना, बौंखना, भकोसना, छिपली ।

मगही में अइसन अनगिनत शब्द हे, जे मगही क्षेत्र के शुद्ध हिन्दी भाषा-भाषी भी प्रयोग में लावऽ हथ । जइसे वह बौंख गया है । वह एक तरफ पढ़ता है, दूसरी तरफ भकोस जाता है । वह मकान भंडूल लगता है । गिरपरता बनके हम वहाँ नहीं रहेंगे । उसको खाना बनाने का लूर नहीं है । वह अभी अपसुइया है ।

एकर अलावे बहुत शब्द अइसन हे जे एक चीज के भिन्न स्टेज के द्योतन करऽ हे । जइसे लाठी के भिन्न स्टेज के रूप देखल जाय - छेकुनी, छड़ी, पैना, डंटा, अरउआ, लकुटी, सोंटा, लाठी, चाभा

'छेकुनी' पतला छड़ी ला, 'छड़ी' छेकुनी से बड़ा आउ सुसज्जित भेस ला, 'पैना' आकार से थोड़ा मजबूत, 'डंटा' आउ बड़ा,'सोंटा' थोड़ा ताकतवाला मजबू, 'अरउआ' बैल-गाय हाँके ला, 'लाठी' लम्बा मोटा मजबूत ला, 'चाभा' तेल पिलावल लाठी ला प्रयोग में लावल जाहे ।

एही तरह फल, खिरा, ककड़ी के भिन्न स्टेज के नाम देखल जाय - तूज्जा, बतिया, खिच्चा, डम्हक, पक्कल, पोखटाल, जोआयल

'तूज्जा' फूल में रूप आकार ग्रहण करे बखत के नाम हे, ओकरा से जब थोड़ा बड़ा होत तो 'बतिया', ओकर बाद 'खिच्चा', तब 'डम्हक', फेन 'पक्कल', फिन खूब पक्कल के 'पोखटाल', आउ 'जोआयल' कहल जाहे ।

अइसन बात लड़का के भिन्न-भिन्न रूप के हे - फोहवा, जिरिकना, बचवा, लड़का । 'फोहवा' एकदम से जलम लेला के बाद महीना दू महीना के परिचायक हे । 'जिरिकना' ओकर बाद के स्टेज के बच्चा, 'बचवा' ओकर बाद, ओकर बाद 'लड़का'

मकर चान्दनी, भिनसार, भोर - ई तीन शब्द भोर से सम्बन्धित हे । 'मकर चान्दनी' ओकरा कहल जाहे जब भोर के भरम होवॆ हे । 'भिनसार' शब्द भोर के पहिले के स्थिति के कहल जाहे । 'भिनसार' के बाद 'भोर' होवऽ हे ।

खेती के मोतल्लिक बहुत सा तकनीकी शब्द हे जेकर प्रयोग खेतिहर सब आम तौर पर करऽ हथ । 'तरखा' ऊँचा जमीन के कहल जाहे - 'तरखा के खेती हे, से पटावे में दिक्कत हे ।' जानवर के चोरा के जब रकम लेके छोड़ऽ हे ओके 'पनहा' पर छोड़े के बात कहल जाहे । 'फाड़ल' खेती ओकरा कहल जाहे जे धान के खेत जोत के चउकी देके रोपे ला तइयार रहऽ हे ।

ई तरह से गाँव कस्बा में प्रचलित मगही शब्द के संरक्षित करे के जरूरत हे । एकरा में अनुदारवादी आउ उदारवादी दुन्नो सहमत होयतन, अइसन अनुमान हे ।

ई सन्दर्भ में लोकभासा के चर्चित विद्वान गोविन्द झा के 'मगही शब्द समस्या' शीर्षक निबन्ध पढ़े जुकुर हे । ओकर ई अंश पर ध्यान देलजाय - 'मगह में प्रचलित ऐसे ही शब्द वस्तुतः मगही के लिए सम्पदा हैं और चूँकि ये बाहरी प्रबल भाषाओं के अतिक्रमण के कारण बहुत तेजी से लुप्त होते जा रहे हैं, अतः वर्तमान युग का कर्तव्य है कि विरासत में मिली उस सम्पदा का सुरक्षित-सुजीवित रखें और यदि ऐसे शब्दों का मरण अनिवार्य हो तो कम से कम म्युजियम के रूप में उन्हें शब्दकोश में जल्द संगृहीत कर लें ताकि भविष्य में उनका नामोनिशान मिट न जाय ।'
ई गुने हम मगही के विचारक से अनुरोध करम कि ऊ तेजी से लुप्त हो रहल अइसन शब्दन के खोज करथ आउ पत्रिका-पुस्तक में रेखांकित करथ । शहरीकरण के ई युग में शहर से निकल के गाँव में खोजे से अइसन शब्द मिलत । एकरा ला पाँच सितारा संस्कृति से निकल के ग्रामीण अंचल में जाय के जरूरत हे ।

आधुनिक मगही के विकास के करीब पचास बरिस हो गेल । ई काल-खण्ड में सभ विधा पर बहुत किताब छपल हे । ऊ किताबन के आधार मान के कथित विवादित वर्ण आउ दोसर ढंग पर लेखकगण अप्पन रचना में कइसन आउ कउन रूप में लिखलन हे, ओकर लेखा-जोखा करे के जरूरत हे, जेकरा से ई जानल जाय कि मगही के रचनाकार कउन-कउन रूप में लिखलन हे । ऊ विवेचन से बहुत पुरान आउ नया रचनाकारन के विवादित वर्ण आउ ढंग के बारे में जानकारी हो जायत ।      

[मगही मासिक पत्रिका अलका मागधी, बरिस-११, अंक-२, फरवरी २००५, पृ॰५-८ से साभार ।]