माकेसिं॰ = "माटी के सिंगार", लेखक - रामदास आर्य; प्रकाशकः श्यामसुन्दरी साहित्य-कला धाम, बेनीबिगहा, बिक्रम (पटना); पहिला संस्करण - 2002; मूल्य - 75 रुपये; 109+3 पृष्ठ ।
ठेठ मगही शब्द ('य' से 'ह' तक):
1007 रंथी (= अरथी) (दद्दू भइया के लाश एगो रंथी पर लादल गेल ।) (माकेसिं॰109.12)
1008 रमतरोई (= रामतरोई, रमतोड़यँ, भिंडी) (चनकी दाई घरे-बने भरल-पूरल । तीस बीघा नफीस खेत-बधार, आम-अमरूध, महुआ-जामुन, केरा-कटहर, अंवरा-पपीता के बारहमासा बाग-बगइचा, कोंहड़ा-भतुआ, लउका-नेनुआ, सीम-बरसीम, करइला से लथरल बगान, अलुआ, कोबी, टमाटर, रमतरोई, मूरई, मेथी, पालक, गाजर, राई, सरसो, तीसी, जवाइन-मंगरइला, लहसुन, पेयाज, बेदाम से लहफह - सातो बिहन । कोई चीज के कमी न ।) (माकेसिं॰64.15-16)
1009 रहता (= रस्ता, रास्ता) (चार दिन के बाद उनकर समधियाना से पूछार आयल चार गो आदमी । चँवर में ई घाँस छिलइत हलन । एगो पूछ बइठल - "ए बाबू साहेब ! चमोकन बाबू के घर जाय ला हे, कन्ने से रहता हे ?; जब रोड खराब मिल जायत तब ओकर आँख सुरूज लेखा बरे लगत । मुँह करिया झामर हो जायत । भर रहता कहइत जायत - 'ई रोडवो गिटिया ठीकदार साहेब लेले जयतन हल तब अच्छा हल । घर गेला पर बाल-बच्चन सब भकोसिए जयथिन हल । करमजरू ठीकदार ! जा तोर पेट कहियो न भरत ।') (माकेसिं॰61.13; 76.6)
1010 राड़-रेआन (असल लड़ाई ओहे लोग लड़ रहलन हे । कतनो लोग राड़-रेआन, माल-मुसहर के पार्टी कह लेवे, भगत सिंह आ चन्द्रशेखर आजाद ओहे सब हथ । हमरा लल्लो-चप्पो न सोहाये - दूध के दूध, पानी के पानी । सच के लड़ाई ओहे लोग लड़ रहल हथ ।) (माकेसिं॰35.26)
1011 रात-बिरात (रात-बिरात गाँव-जेवार में कोई बेमार पड़ल, चानमामू ओकरा लेके डागटर रामसागर ठाकुर के पास दउड़ जयतन, देखला देतन आ शर्मा जी के दोकान से दवा भी उधार ।) (माकेसिं॰33.14)
1012 राताराती (सबके खेत के खेसारी कबर गेल, धान के परूई राताराती बान्ह के पताल में खपा देवल गेल, केकरो घर में सेन्हमारी भेल, केकरो घर में डकैती, केकरो खरिहान में आग लगा देवल गेल, केकरो गोरू-डांगर खोल के सोन पार हो गेल बाकि चानमामू के एगो पत्तो न खरकल । जइसन नेत ओइसन बरक्कत ।) (माकेसिं॰31.23)
1013 रावा (जन्ने चलत ऩवरतनी फुआ गोड़ लागी सबके मुँह से आदर के ई आवाज सुन के नवरतनी फुआ गुड़ के रावा लेखा लदबद हो जायत । सबके असीरबाद देत ।) (माकेसिं॰20.29)
1014 रिचना (चानमामू चाने लेखा चनमन, चकमक, चंचल । चानमामू सबसे बतिअयतन, खूब सट सट के रिच रिच के बात बनौवतन ।; कोई कभी-कभार भूलेटन के इयाद में उनकर दुआरी पर ठार होवत तो पुतोह अइसन लोछिया के बोलत जइसे लोहचुट्टी काट लेल । .... बेटा निमक-मिरचाई लगाके अलगे बोलत - बात घोंट-घोंट के बोलत, सन के रसरी लेखा रिच-रिच के बात निकालत । सब कमाई मोरब्बे-अँचार में गँवा देलन । आज कोई पूछहूँ न आवे कि भूलेटन के बाल-बच्चा कइसे जिअइत हथ ।) (माकेसिं॰32.15; 90.17)
1015 रिसि (= ऋषि) (जन्ने जाय ओन्ने ओकरा लपक के लोग गोदी में बइठा लेवथ । कण्व रिसि के आसरम में जइसे शकुन्तला ओइसहीं रामपेआरी ।) (माकेसिं॰16.4)
1016 रीठना (= मैल बैठना, गंदगी जमना) (कटहर लेखा माथ, रीठल नादा लेखा गाल, करिया गाजर लेखा नाक, हाथी के सूँढ़ लेखा बाँह, टील्हा लेखा छाती, लोढ़ा लेखा लिलार, कनगोजर लेखा भौं, जामुन लेखा आँख, ललगुदिया अमरूध के फाँक लेखा ओठ, घुनसारी लेखा दहकइत मुँह के गलफर, अनार के दाना लेखा दाँत, माथ पर करिया बादर लेखा केस, छव फीटा जवान दद्दू भइया के देखला पर सबके मुँह से एके बकार - 'भगवान बड़ा सोच-समझ के दद्दू भइया के अप्पन हाथ से गढ़लन हे ।') (माकेसिं॰100.1)
1017 रूआ (= रूई) (कोई हाथ पसारल कि तेतरी हवाक से गोदी में । जइसे बकरी के पठरू, बिलाई, कुत्ती के बच्चा लोआ-पोआ, ओइसहीं तेतरी, जुलुर जुलुर हाथ - पैर पुलुर पुलुर आउ देह - खेसारी के निढ़ल साग लेखा, सिमर के रूआ लेखा ।; ई सब देखला पर चनकी दाई के ई खिलकट रूआ के फाह पर कोइला के ढेर लेखा बुझा हे ।; दाँत एको अभी न टूटल हे बाकि माथा के केस रूआ के फाहा लेखा शोभऽ हे जइसे बरफ जम गेला पर हिमालय पहाड़ शोभऽ हे ।) (माकेसिं॰24.23; 65.12; 66.3)
1018 रूच (= रुचि) (घीव-डलडा ओकरा ला परान के घाती । तेल में के छानल सामान ओकर जीव के गाहँक । ओकर रूच साग-पात, फर-फरहरी जादे । कुदरूम के साग, सरसो के साग, पोई के पत्ता, पालक, नोनी, करमी, ललका साग ओकरा ला तुलसी के पत्ता लेखा ।; कोई झूमर, कोई सोहर, कोई होरी, कोई चइत, जेकरा जउन रूच, सुना के सबके रिझा देवथ आ बोझा के बोझा धान, गेहुम, खेसारी, मसुरी आउ बूँट के बड़का खरिहान अलग जायत ।) (माकेसिं॰19.30; 89.31)
1019 रूचगर (= रुचिकर) (गाय के दूध, रोटी, दलपीट्टी, गुड़पीट्ठी, ढकनेसर, दारा, सतुआ उनकर रूचगर भोजन ।) (माकेसिं॰101.27)
1020 रूसना (= रूठना) (पाँच पवनियाँ पौ बारह - हजामिन, कुम्हइन, मालीन, तेलीन आ चमइन । ... पाँचो के पाँच नेग, पुरोहित के पहिले । पवनियाँ रूसल सब कुछ खरमंडल, पवनियाँ खुश सब कुछ मंगल ।) (माकेसिं॰19.18)
1021 रूह-चुह (ऑफिस में आवइते उनकर चेहरा बसन्त में बगइचा लेखा रूह-चुह हो जायत । मउरल मुखड़ा गुलाब लेखा खिल जायत ।; एक कोठरी में अपने, एगो में माय आ एगो हित-मित ला । पूरूब-पछिम रूह-चुह बाग-बगइचा, बीच में दद्दू भइया के घर आ बइठका ।) (माकेसिं॰40.6; 103.2)
1022 रेंगनी (जे जनता के सतवलक ओकरा ककड़ी-खीरा लेखा कच कच चिबावे ला सबसे अगुआन । सामंती रोब-दाब, जमीन्दारी शोषण-पीड़ा उनका ला आँख में रेंगनी के काँटा ।) (माकेसिं॰106.5)
1023 रेगनी (= रेंगनी) (~ के काँटा) (रेगनी के काँटा बड़का होवे इया छोटका - काँटा काँटा हे, फूल कभी बनिये न सकत ।) (माकेसिं॰47.24)
1024 रेघाना (देवी मइया के सब गीत ऊ ककहरा लेखा इयाद कयले हलन । अमरूध, बइर, बेल, अँचार देला पर कोई बनिहारिन तनि कह देल 'ए भूलेटन भइया, तू अँचार आ अमरूध देके लोग के ठग देवऽ हऽ । हमनी के देवी मइया के गीत सुनावऽ तब न धान, गेहूँ इया खेसारी से तोर अँकवारी भर जतवऽ ।' फिन का, ऊ खेत में पल्थी मारलन आउ रेघा रेघा के गावे लगलन -) (माकेसिं॰87.12)
1025 रेह (= क्षारयुक्त मिट्टी, खारी मिट्टी; मिट्टी की दीवाल में लगी नोनी; नोनिआह मिट्टी) (चनकी दाई तेल-साबुन से घिना हे । सालो भर रेह से लुग्गा साफ करत ।) (माकेसिं॰66.12)
1026 रोग-बलाय (झूलइत रहल देह फाटल लुगरिया, रोगवा-बलाय सब हमरे दुअरिया । करम अभाग भगवान हो ताकल काहे दुई रे नजरिया ।) (माकेसिं॰77.4)
1027 रोटी-पीट्ठा (केकरो घर में खिचड़ी खयलन, केकरो घर में मठजाउर, केकरो दुआर पर रोटी-पीट्ठा खयलन, केकरो झोपड़ी में सतुआ घोर के पी लेलन, केकरो महल-अटारी में दाल-भात तरकारी इया दूध-रोटी ।) (माकेसिं॰86.11-12)
1028 रोपाना (हम्मर बोरिंग के पानी से तोर खेत रोपायत ? हम्मर हरवाहा चरवाहा के परतुक तू करबऽ । हम्मर महलाद तोरा भोगे ला बनलऽ हे ?) (माकेसिं॰50.26)
1029 लंगटे (जदि हम कमजोर जात में रहती त दिन-दहाड़े गाँव के लोग हमरा जिन्दा जरा देइतन । घाठी दे देइतन । माथा के केस मुड़वा के चूना के टीका लगवा के गली-गली घूमइतन । पर-पैखाना हड़िया में घोर के पिअइतन । मुँह में मिरचाई ठूँसल जाइत, नाली के कीड़ा-मकोड़ा घोंटावल जाइत । लंगटे करके नचावल जाइत । गाँव भर के पंच के सामने लंगटे ठार करके किरासन तेल छिड़िक के जरावल जाइत ।) (माकेसिं॰69.30-31)
1030 लइकन-फइकन (उनकर झूमर, सोहर, होरी, चइता, कृषि गीत, निरगुन सुन के सब कोई रीझ जायत । बनिहार के लइकन-फइकन उनका अइसन घेर लेतन जइसे चूँटी गुड़ के घेर लेवऽ हे ।) (माकेसिं॰83.2)
1031 लउकना (= दिखना) (जवानी के जोश में बिआह तो करइत गेलन - सुअर-बिलाई लेखा बाल-बच्चा जलमावइत गेलन बाकिर अब अनार के दाना लेखा दाँत टूटत तब बुझायत । खिजाब लगा के उज्जर माथ के बाल करिया कयल अब लउकत - चारो तरफ अन्हार-भुच, अन्हरिया, कुच-कुच करिया दिनो में रात के तरेगने सूझ रहल हे ।) (माकेसिं॰41.24)
1032 लकवा (~ धरना) (पेन्शन के मामला उनका लेखा चिल्ह-कउआ के चोंच लेखा । लोल मारइत मारइत अतना घवाहिल कर देल, जिनगी के जोश-खरोश के खून चिभइत गेल, आ पेन्शन उनका ला अइसन लकवा के बेमारी धरलक कि सीधे सुरधाम पहुँचा के छोड़लक ।) (माकेसिं॰46.7)
1033 लगहर (~ गाय; ~ भईंस) (सालो भर एगो लगहर गाय रखत । दूध देखइते ओकरा छींक आवे लगत ।; अइसन बात न हे कि उनका खाय-पीये के दुख हे । खूँटा पर दूगो लगहर भईंस, एगो गाय हमेसे रखतन ।; दुब्भी घास पर ऊ जादे चोट करतन । ओकरा से इनकर लगहर गाय-भईंस के दूध बढ़ जाहे ।) (माकेसिं॰20.9; 55.9; 57.4)
1034 लगाव (तेतरी दीदी के पानी से जादे लगाव । नदी-नाला, झील, तालाब झरना, आहर-पोखर ओकरा चुम्बक लेखा खिंच के ले आवऽ हे ।) (माकेसिं॰26.20)
1035 लगाव-बझाव (दुश्मन से कोई लगाव-बझाव न - सीधे गोली दागऽ, आ चुपचाप रात भर फोंफ काटइत रहऽ । कोई सक-सुबहा न, कोई मउँचक न ।) (माकेसिं॰47.20)
1036 लट्ठू (= लट्टू; मुग्ध, मोहित, रीझा हुआ) (दिन भर में दू बोझा, चार बोझा धान के कमाई - भुलेटन के घर के कमाई, करम के कमाई, मौसम के कमाई, मरउअत के कमाई । उनकर सोभाव पर सब लट्ठू ।) (माकेसिं॰82.25)
1037 लड़िक-भुरभुरी (टुनमुन बउआ के लड़िक भुरभुरी अभी भी न गेल हे ।) (माकेसिं॰21.25)
1038 लथरना (चनकी दाई घरे-बने भरल-पूरल । तीस बीघा नफीस खेत-बधार, आम-अमरूध, महुआ-जामुन, केरा-कटहर, अंवरा-पपीता के बारहमासा बाग-बगइचा, कोंहड़ा-भतुआ, लउका-नेनुआ, सीम-बरसीम, करइला से लथरल बगान, अलुआ, कोबी, टमाटर, रमतरोई, मूरई, मेथी, पालक, गाजर, राई, सरसो, तीसी, जवाइन-मंगरइला, लहसुन, पेयाज, बेदाम से लहफह - सातो बिहन । कोई चीज के कमी न ।) (माकेसिं॰64.14)
1039 लदबद (जन्ने चलत ऩवरतनी फुआ गोड़ लागी सबके मुँह से आदर के ई आवाज सुन के नवरतनी फुआ गुड़ के रावा लेखा लदबद हो जायत । सबके असीरबाद देत ।) (माकेसिं॰20.29)
1040 लफार (= लफारा; लफाड़ा; तेज गति या झोंका) (नदी के ~; आग के ~) (सबके नजर नदी के लफार पर । लहर आ चकोह के मिजाज पर । खाली हाथ जइसे शिकारी जउन मुँह लेके घर लवटऽ हे, ओहे हाल सब के सामने ।; जेठ के तपिश, बालू के भुंभुरी, आग के लफार, भट्ठा के लहक, रेल इंजिन के दहक का होवऽ हे - चनकी दाई के अतमा से जानल जा सकऽ हे - ओकर हिरदा में छिपल लोर, दिमाग में भरल बिछोह, बादर के भीतर छिपल ठनक, कड़क, गड़गड़ाहट आ बिजुरी के चउँध से जानल जा सकऽ हे ।) (माकेसिं॰23.16; 67.20)
1041 लमपोर (बस, ओहे दिन से ओकरा लोग नवरतनी फुआ कहे लगलन । नवरतनिए फुआ लेखा ओकर शरीर के बनावट । ओइसने चकइठ, गोर, लमपोर, बात-बेयोहार, चाल-चलन ।; चानमामू हमेशा हँस के बतिअयतन । उनकर चेहरा भी ओइसने चान लेखा - सुभग शरीर, लमपोर छव फीट के । उज्जर बग-बग धोती, देह में कुरता, माथ पर गान्ही टोपी, कान्ह से लटकइत झोला, गरदन में गमछा, हाथ में छाता इया एगो बकुली - बस, इहे उनकर पेहनावा हे ।) (माकेसिं॰16.24; 32.27)
1042 लमरना (तेतरी दीदी के आँख से कुछो बुझा न रहल हे । पीपर के पत्ता झर गेल, बरगद ठूँठ हो गेल, पाँकड़ आ गूलर के पता भींज गेल, ढिबरा ढह गेल, चँवर के सोती सूख गेल, जामुन झँवर गेल, सिरिस आ सीसो अलगे सिसक रहल हे, केला के घउद लमर गेल, पात-पात चिहक गेल, धरती दरक गेल, अकास झुक गेल, परबत ढिमिला गेल । सउँसे प्रकृति तेतरी दीदी के बिरह में अछोधार लोर बहा रहल हे ।) (माकेसिं॰28.2)
1043 लमा (= लम्मा, लम्बा) (पुरूब में पाँच बीघा में केला के बगान, चिनिया बेदाम आउ राई-सरसो के खेती ... बीच में झलासी आ खपड़ा से छावल ... सौ फीट लमा आउ पच्चीस फीट चौड़ा एगो चउपाल ।) (माकेसिं॰102.21)
1044 लरकना (मुँह में पान इया खइनी हमेशा कोंचले रहतन जइसे परसउती चिन्हा जाहे कि लइका होवे ला हे ओइसहीं इनकर पान इया खइनी ओठ के नीचे कोंचायल रहत । ऊ पिल्की कभी फेंकथ न एही कारन हे कि मुँह खोलला पर लार जिलेबी के चासनी लेखा लरक जायत ।) (माकेसिं॰38.13)
1045 लरखराना (= लड़खड़ाना) (हम तोरा से का मजाक करब । चाम के मुँह, लरखरा गेल तब का करूँ ।) (माकेसिं॰58.20)
1046 लरबराना (मोम जइसे पिघल-पिघल के नीचे गिरऽ हे ओइसहीं बड़ाबाबू हँसतन इया मुँह खोलतन कि ओठ के दुन्नो कोर से लार टघर टघर के उनकर दाढ़ी पर लरबरा जायत ।; बलेसर तनि सोंचे लगलन - इयाद पड़ल । "चनेसर भाई, हम समझ गेली । भगवान चाम के मुँह बना देलन हे, लरखरा ही जाहे । चनेसर रोय ला लेखा मुँह बनाके कहलन - "कहूँ उहों लरबरयलऽ तब सोरहो आना पानी में । छोड़ऽ जे भाग्य में लिखल होतई तो बिआह होयबे करतई । तू अगुअई मत करऽ ।") (माकेसिं॰38.7; 59.6)
1047 ललका (= लाल रंग वाला) (~ साग) (घीव-डलडा ओकरा ला परान के घाती । तेल में के छानल सामान ओकर जीव के गाहँक । ओकर रूच साग-पात, फर-फरहरी जादे । कुदरूम के साग, सरसो के साग, पोई के पत्ता, पालक, नोनी, करमी, ललका साग ओकरा ला तुलसी के पत्ता लेखा ।; उनका का चाही - पानी डालल बासी भात आउ ललका मिरचाई के खटाई भरल अँचार ।) (माकेसिं॰20.1; 55.15)
1048 ललगुदिया (उनकर बइर आझ के फास्ट फूड के कबूतर बना देइत, ललगुदिया अमरूद, आम, टमाटर के टरका देइत । लोग के पहिचान उनकर कतना तेज ।) (माकेसिं॰85.11)
1049 लल्लो-चप्पो (असल लड़ाई ओहे लोग लड़ रहलन हे । कतनो लोग राड़-रेआन, माल-मुसहर के पार्टी कह लेवे, भगत सिंह आ चन्द्रशेखर आजाद ओहे सब हथ । हमरा लल्लो-चप्पो न सोहाये - दूध के दूध, पानी के पानी । सच के लड़ाई ओहे लोग लड़ रहल हथ ।) (माकेसिं॰35.28)
1050 लहजवान (सब ओकरा दीदी कहे लगलन । बूढ़ा-बूढ़ी के जबान, नया-नोहर के बकार, औरत-मरद के लहजवान - तेतरी दीदी सब के आँख में बस गेल । हिरदा में ढुक गेल ।) (माकेसिं॰25.24)
1051 लह-फह (इनकर ई पहिल संतान हल । खुशी से मोर लेखा नाचे लगलन । घिरनी बन गेलन । पत्थल पर दुब्भी जमल - दुब्भी लेखा हिरदा लह-फह । मलिकार सुनलन तब पइसा लुटावइत-लुटावइत जेबी खाली कर देलन ।) (माकेसिं॰15.11)
1052 लहाश (= लाश) (सउँसे रामचरितर बिगहा शमशान बन के टुकुर टुकुर ताक रहल हे । सोन के पानी लाल हो गेल, बालू के कण-कण परमाणु बम के इयाद दिला रहल हे । कतना लहाश झलासी में बूट के होरहा लेखा झोला गेल, कतना के खोपड़ी असमान में उड़ गेल, कतना बूढ़ी हबकुरिए पड़लन से पड़ले हे, कतना बुतरू माय के गोद में सटल से सटले रह गेल ।) (माकेसिं॰109.3)
1053 लाटी-लठउल (= लाठी-लठउअल) (जउन गाँव में बात-बात पर लाठी लठउल, एक बित्ता आरी-पगारी ला भाला-गड़ास, राई के तीसी आ तीसी के राई बनावेओला गाँव, होत साँझ-बिहान सातो पुरखन के नेओतहरी, छोट-छोट बात पर गिधवा-मसान - ऊ गाँव में चानमामू सब के मामू बन के रह गेलन ।) (माकेसिं॰31.19)
1054 लाठा (महुआ के ~ बन के जीना) (गाँव में एक से एक गवैया बजवैया महुआ के लाठा बन के जी रहल हथ । ऊ लोग के सुर, ताल, लय, गाँव गवईं के संस्कार गीत गा गा के कतना लोग पद्मश्री आ पद्मभूषण से सम्मानित हो गेलन, बाकि रामजतन चाचा के गीत गाँव में रह गेल ।) (माकेसिं॰53.30)
1055 लाठी-कोड़ा (आजादी के लड़ाई में जेहल गेली, लाठी-कोड़ा खइली, हाथ-गोड़ में हेरी-बेरी पड़ल ।) (माकेसिं॰34.27)
1056 लामा (= लम्मा; लम्बा) (पाँच फुट पाँच ईंच के शरीर हे ओकर बिलकुल नापल जोखल । लामा हाथ नोहरंगनी से रंगल नोह के अंगुरी पकल लाल मिरचाई लेखा शोभऽ हे ।) (माकेसिं॰66.6)
1057 लिच-लिच (~ पातर) (हाथ-गोड़ अइसन लिच-लिच पातर कि पुरवइया हवा में नीम के सूखल पत्ता लेखा उड़िया जयतन ।) (माकेसिं॰55.6)
1058 लिट्टी-चोखा (होत भिनसहरे पराती शुरू - बड़ाबाबू गान्धी मैदान में टहले । सुलभ शौचालय में पर-पखाना, गंगा में नेहान-धोआन - बस, कोनो दुकान पर बइठ के लिट्टी-चोखा गटक जयतन आ टगइत स्कूल के ऑफिस ।) (माकेसिं॰40.4)
1059 लुगा (नवरतनी फुआ लगबो करऽ हे फुआ लेखा । उज्जर उज्जर भुआ लेखा केस, मांग में सेन्नुर, आमछाप लुगा, नाक में छूंछी, कान में कनबाली, गोड़ में बिछिया, नोहरंगनी से रंगल गोड़, लिलार में टिकुली, भर बाँह चूड़ी ।) (माकेसिं॰20.24)
1060 लुग्गा (चनकी दाई तेल-साबुन से घिना हे । सालो भर रेह से लुग्गा साफ करत ।) (माकेसिं॰66.12)
1061 लुरगर (धनेसर लेखा बुधगर लुरगर आदमी सब जगह हथ बाकि ओइसहीं दादागिरी, हुकुमगिरी चल रहल हे जइसे हम्मर ऑफिस में बेचारा धनेसर ।) (माकेसिं॰73.27)
1062 लुर-लच्छन (पाँचो बेटा के तो न पढ़ौलन बाकि बेटी के दोसर घर जाय ला हे, लुर-लच्छन अच्छा होवे के चाही । एही सोच के ऊ तेतरी के पढ़ावे ला स्कूल में नाँव लिखौवलन बाकि तेतरी ला स्कूल पंछी के पिंजरा जइसन !) (माकेसिं॰25.10)
1063 लुर-लुर (कोई हाथ पसारल कि तेतरी हवाक से गोदी में । ... शरीर से जइसे लुर लुर, सोभाव से ओइसहीं पुल पुल ।) (माकेसिं॰24.23)
1064 लुलुआना (हम्मर सवांग आ बाल-बच्चा कमजोर रहित त ओकरो लोग लुलुआवइत रहितन । बाकि केकर माय शेर बिअयलक हे जे हमरा सामने हम्मर इज्जत पर अंगुरी उठा सकऽ हे ।) (माकेसिं॰70.2)
1065 लुल्ह (= लूला) (ऊ लाठी के एक पटकन जेकर मकज पर पड़ गेल - समुझ लऽ सीधे सुरधाम, कहुँ हाथ-गोड़ पर पड़ गेल - समुझऽ हाथ-पैर से लुल्ह, पीठ इया कमर पर पड़ गेल समुझऽ रीढ़ इया कमर के हड्डी लोहा के गाटर से कोई तोड़ देल हे ।) (माकेसिं॰101.2)
1066 लुह-फुह (लुह-फुह बंगुरल किकुरल लतरिया, महुआ लटाई गेलई आम के मोजरिया । चिरईं-चुरूंगा सनसार हो, बन्हल हँकड़े गइया रे बकरिया ।) (माकेसिं॰76.26)
1067 लूर (चमोकन के देह में आग लग गेल - "अयलऽ हे बेटा के जिआवे ला भीख माँगे आ बोले के लूर हवऽ हइए न ।") (माकेसिं॰60.29)
1068 लेंढ़ा (= बलुरी; मकई के बाल से दाना छुड़ा लेने के बाद बचा सूखा अंश; कटहल के फल का मुसड़ा) (घर में मकई के खेत में चार खंभा के मचान बन गेल हे । ई मचान पर बइठतन तइयो ढकेलयतन, नीचे रहतन तइयो ककड़ी आ मकई के लेंढ़ा माथ पर बजरबे करत ।) (माकेसिं॰41.28)
1069 लेखा (= सदृश, समान, जैसा) (चमोकन माय-बाप के एकलौता बेटा हथ । उनकर असली नाम चनेसर हल । चनेसर के रूप-रंग, चाल-ढाल अनमन चमोकने लेखा । उनकर रंग ईंटा लेखा लाल, चुक्का लेखा मुँह, बनबादुर लेखा आँख ।) (माकेसिं॰55.3, 4)
1070 लेखा (ए धनेसर, सब जगह एहे बात हऊ बउआ - घर-घर देखा एके लेखा ।) (माकेसिं॰72.30)
1071 लेदरा (= गेंदरा, गेनरा, नेनरा) (गाँव के मेहरारू केंवाड़ बन्द कर देल । बाल-बच्चा के लेदरा तर घुसेर देल - खिड़की खोल के सब खिलकट देखे लगल । बिअहुती औरत के सास कोना-सान्ही से भी झाँके ला मना कर देल । माय बिन बिआहल लड़की के गोड़ में छान-पगहा डाल देल ।) (माकेसिं॰63.7)
1072 लेमो (भूलेटन के अँचार के सवाद जर-जेवार में मशहूर - आम के अँचार, अमड़ा के अँचार, लेमो के अँचार, अँवरा के अँचार, अमरूध के अँचार, कलौंदा के अँचार, मुरई आउ मिरचाई के अँचार, कटहर, करइला के अँचार - न जाने केतना किसिम के अँचार झोरी में लेके चलतन ।) (माकेसिं॰82.13)
1073 लेहुआना (सबके हाथ लेहुआयल हे । काटे से कोई बाज न अयलक । लूट मचल हे, जतना हिच्छा हे लूट लेवे ।) (माकेसिं॰73.25)
1074 लोंघड़निया (हरवाहा जब खेत में कादो करे लग तब ई खेत में लोंघड़निया मारे लगतन । जइसे खेत जोतला पर चउकी दिआ हे ओइसहीं ई सउँसे खेत में लोंघड़निया मारे लगतन ।) (माकेसिं॰56.2, 3)
1075 लोआ-पोआ (कोई हाथ पसारल कि तेतरी हवाक से गोदी में । जइसे बकरी के पठरू, बिलाई, कुत्ती के बच्चा लोआ-पोआ, ओइसहीं तेतरी, जुलुर जुलुर हाथ - पैर पुलुर पुलुर आउ देह - खेसारी के निढ़ल साग लेखा, सिमर के रूआ लेखा ।) (माकेसिं॰24.21)
1076 लोछियाना (कोई कभी-कभार भूलेटन के इयाद में उनकर दुआरी पर ठार होवत तो पुतोह अइसन लोछिया के बोलत जइसे लोहचुट्टी काट लेल । जीवन भर कमाके का कयलन ? सब दिन भीखे माँगइत रहलन । खेते-खेते छुछुआइत चललन । न घर-दुआर बनौलन न केकरो पढ़ौलन-लिखौलन ।) (माकेसिं॰90.13)
1077 लोढ़ा-सिलउट (छवो के बाल बच्चा लोढ़ा-सिलउट लेखा बज्जर, पढ़ल-लिखल, गुनगर, सोभवगर ।) (माकेसिं॰65.10)
1078 लोर (कोई तेतरी दीदी के गोड़ छुअइत हे, कोई अँकवारी में समाइत हे, कोई ओकर लोर पोंछ रहल हे ।) (माकेसिं॰27.12)
1079 लोल (~ मारना) (पेन्शन के मामला उनका लेखा चिल्ह-कउआ के चोंच लेखा । लोल मारइत मारइत अतना घवाहिल कर देल, जिनगी के जोश-खरोश के खून चिभइत गेल, आ पेन्शन उनका ला अइसन लकवा के बेमारी धरलक कि सीधे सुरधाम पहुँचा के छोड़लक ।) (माकेसिं॰46.5)
1080 लोहचुट्टी (कोई कभी-कभार भूलेटन के इयाद में उनकर दुआरी पर ठार होवत तो पुतोह अइसन लोछिया के बोलत जइसे लोहचुट्टी काट लेल । जीवन भर कमाके का कयलन ? सब दिन भीखे माँगइत रहलन । खेते-खेते छुछुआइत चललन । न घर-दुआर बनौलन न केकरो पढ़ौलन-लिखौलन ।) (माकेसिं॰90.13)
1081 शमशान (= श्मशान) (जिन्दगी भर के सजावल-सँवारल बगइचा देखइते-देखइते एके दिन में शैतान के हविश के शमशान बन गेल ।; सउँसे रामचरितर बिगहा शमशान बन के टुकुर टुकुर ताक रहल हे ।) (माकेसिं॰98.24; 109.1)
1082 शादी-बिआह (ऊ चल गेल, छछनइत खखनइत रह गेल - कोई भर मुँह हमरा से बोलइत, कोई अंगना-दुआर पर बइठे ला आदर से पीढ़ा देवइत, शादी-बिआह, गवना तिलक, छठी-छीला में बोलावइत - राम-बिआह, शिव-बिआह के झूमर, सोहर गीत गवावइत, दुल्हा-दुल्हिन के परिछन करवावइत, चउका पर बइठल बर-कनेया के असीरबादी अच्छत छींटे ला कहइत ।) (माकेसिं॰67.7)
1083 शादी-बिआह (केकरो शादी-बिआह हे, कपड़ा-लत्ता, जूत्ता-चप्पल, सोना-चानी के गहना, मर-मसाला, डलडा-तेल, पत्तल उधार-पईंचा दिलवा देतन, तिरवेदी जी के दुकान शर्मा जी के मकान, साग-सब्जी सब सरजाम जब ले ई करवा न देतन तब ले इनकर गोड़ साइकिल बनल रहत ।) (माकेसिं॰33.16)
1084 शीतला माय (बड़की छठी मइया के मनता उतारलक । शीतला माय के मन्दिल में खोंइछा भरलक ।) (माकेसिं॰42.27)
1085 संगोरना (= संगेरना; सेंगारना; संग्रह करना) (इहे बात के अमनख हम अप्पन मन में सोंगोरले एक दिन भूलेटन के बगइचा में गेली । संजोग से उनकर बेटा आ पुतोह दून्नो मिल गेलन । उनकर नाम लेवइते ऊ बेंग लेखा कूदे लगलन, कनगोजर लेखा रेंगे लगलन ।) (माकेसिं॰90.22)
1086 संझली (उनका बेटा भेल - छोटकी औरत रजमुनियाँ के कोख से । ... बड़की औरत लछमिनियाँ दया के आगार निकलल - खूब सेवा-टहल, तेल-कूँड़ कयलक, सोंठ-बतीसा घाँट के खिलावे बाकी मंझली मंगरी आ संझली सोमरिया के सौतीन डाह न मेटल ।) (माकेसिं॰42.19)
1087 संडक (= सड़क) (जउन संडक कमर लचका लचका के गले लगावइत हल ऊ बिरह में नागिन लेखा लोटइत हे ।) (माकेसिं॰80.12)
1088 संतोख (= संतोष) (हम्मर जब ऊ बड़ाई करे लगऽ हलन तब लजा जा हली आ कहबो करऽ हली कि हम अपने के आगु कुछ न ही, समझऽ ढेला-झिटकी बाकि उनका संतोख न होवऽ हल ।) (माकेसिं॰51.19)
1089 सउँसे (घना बगइचा, आम, महुआ, लीची, अमरूध के पेड़ । बगइचा के बीच में एगो झोपड़ी, झोपड़ी के चारो तरफ गुलमोहर आ सिमर के फूल सउँसे बगइचा के धधकइत आग लेखा उगइत सुरूज के छितिज लेखा अनेर कयले ।) (माकेसिं॰15.6)
1090 सउरी (= सौरी; प्रसूति गृह, प्रसव करने का कमरा) (कोई औरत के लइका होवे ला हे, दोपस्ता सउरी में बइठ के परसउती के पीड़ा से परान ब्रह्मांड पर चढ़वले हे, जइसे भगवान के धेयान लगावल जाहे, ओइसहीं नवरतनी फुआ पर धेयान टंगल हे ।; नवरतनी फुआ आयल, नीम के पत्ता डाल के खौलावल पानी से - लाइफ बोआय से हाथ धोलक आउ सउरी में पैर डाललक ।; जेकर नार काटलक ओकर जिनगी अबाद । आझ ले केकरो ढोंढ़ न फेंकलक, सउरी में केकरो जमुहा आ हाबा-डाबा न धयलक ।) (माकेसिं॰18.5, 9, 12)
1091 सकदम (सब के परान सकदम । नाक से पसेना चूए लगल । आँख तर अन्हार । कहुँ तेतरी दीदी के थाह-पता न ।; खेत के घास-पउधा ओकर डोली तर अइसन पसर गेलन कि तेतरी दीदी पेसम पेस में । ओकर परान सकदम ।) (माकेसिं॰23.9; 27.22)
1092 सक-सुबहा (दुश्मन से कोई लगाव-बझाव न - सीधे गोली दागऽ, आ चुपचाप रात भर फोंफ काटइत रहऽ । कोई सक-सुबहा न, कोई मउँचक न ।) (माकेसिं॰47.21)
1093 सगरे (= सगरो) (ओझा पट्टी होवे इया अहीर पट्टी, कुम्हर टोली होवे इया मुसहर टोली, बभन टोली होवे इया कहर टोली - चानमामू सगरे देखाई देतन ।) (माकेसिं॰30.15)
1094 सगरो (गाँव में सगरो तेतरी दीदी के चरचा ।) (माकेसिं॰28.8)
1095 सड़ाक (घोड़ा आ बयल चुचकारे से चलऽ हे ? पहिले टिटकारऽ फिर फटकारऽ आ न तब सड़ाक ! सड़ाक !! पीठ पर चाभुक के मार फिर देखऽ कइसे काम होवऽ हे ।) (माकेसिं॰72.13)
1096 सनकना (कोई कह देत अलीगढ़ में दू हजार हिन्दू के रातोरात काट के कहवाँ खपा देवल गेल कोई पता न । ... तीसर गाँव से पागल लेखा सनकल दिमाग से भरेठ गिरावे लगत - अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर में आठ घंटा बमबारी होवइत रहल, पाँच सौ पाकिस्तानी आतंकवादी ढेर हो गेलन ।) (माकेसिं॰96.31)
1097 सनमत (ओ घड़ी गाँव में अइसन सनमत हल कि एक आवाज पर सउँसे गाँव टूट पड़ल हल ।) (माकेसिं॰22.4)
1098 सनमान (= सम्मान) (बूढ़-जवान, बाल-बुतरू सब रजिया अम्मा के आदर आउ सनमान करऽ हथ ।) (माकेसिं॰92.11)
1099 सबदगर (= स्वादिष्ट) (गाय के दूध, रोटी, दलपीट्टी, गुड़पीट्ठी, ढकनेसर, दारा, सतुआ उनकर रूचगर भोजन । कोंहड़ा, बइगन, भंटा, लउका, नेनुआँ, सीम, कटहर, ओल, आलू, कोबी, साग-पात सबदगर सब्जी ।) (माकेसिं॰101.28)
1100 समाना (= अन्दर घुसना) (धनेसर जब जंगल के बीचोबीच पातर सड़क से गुजरे लगल तब हमरा लगे कोनो खोह में सर सर समाइत जा रहली हे ।) (माकेसिं॰78.20)
1101 समिआना (= शामियाना) (गहना चढ़ावे के टेम फिन चमोकन के नाम से गारी दिआये लगल । चमोकन मड़वा से उठलन आ समिआना में आके बइठलन त झाँकियो मारे न गेलन समधी के दुआर पर ।) (माकेसिं॰59.22)
1102 समुझना (= समझना) (बड़ाबाबू ! जुग जमाना के समुझऽ । अब तोर जुग बीत गेलवऽ, नया जुग शुरू भेलवऽ पइसा के जुग, चमचागिरी के जुग, बेगारी आ खिदमतगारी के जुग, पइसा फेंकऽ तमाशा देखऽ ।; तीनो औरत के तीन चूल्हा जरे लगल । बड़की सब बात समुझ के भी चुप रहे ।) (माकेसिं॰44.13; 46.16)
1103 समुझाना (= समझाना) (रजिया अम्मा अतना थक गेल हे कि खाट पकड़ लेल । कंठ से अवाज न निकले । जे कहत से हाथ से समुझा के इया सिलेट-कागज पर लिख के ।) (माकेसिं॰97.6)
1104 सम्भारना (= सम्हारना; सँभालना) (बड़ाबाबू खुश नजर न आवित हथ । इहाँ से हटला पर घर के नौटंकी आ सर्कस के सम्भारत ? जवानी के जोश में बिआह तो करइत गेलन - सुअर-बिलाई लेखा बाल-बच्चा जलमावइत गेलन बाकिर अब अनार के दाना लेखा दाँत टूटत तब बुझायत ।) (माकेसिं॰41.21)
1105 सरंगी (= सारंगी) (ऊ गोरा रंग के, अंगरेज के मात करेवाला देह के चमड़ी । इहे चमड़ी के बल पर चार गो लड़की लोभा गेल - ऊ चार शादी कयलन - चारो चार लाख के । एगो सरंगी घोंटऽ हे त दूसरा कंसी, तीसरा मानर बजावऽ हे त चउथा पखाउज ।) (माकेसिं॰39.3)
1106 सरग (= स्वर्ग) (तरह तरह के गाछ-बिरिछ, फूल-पत्ती, झील-झरना देख के मन सरग के परिकरमा करे लगल ।) (माकेसिं॰79.8)
1107 सरगनई (सउँसे गाँव ठकुरवाड़ी में जुटल । दूबे जी के सरगनई मेंपंचइती भेल ।) (माकेसिं॰21.16)
1108 सरजाम (= व्यवस्था; किसी काम के लिए जरूरी सामान) (~ जुटना; ~ जुटाना) (पुआ-पकवान से बगइचा गमगमा उठल - दूध के तसमई, भतुआ के मिठाई - सौ किसिम के सरजाम ।; केकरो घरे मँड़वा गड़ा रहल हे । गाड़े ला बाँस, बान्हे ला मूंज के रस्सी, छावे ला झलासी, बाँह पूजे ला अइपन, सब सरजाम जुटल । गाँव घर के बाबा-भइया, दादी-चाची पहुँचल हथ बाकि नवरतनी फुआ के असरा जोहा रहल हे, सबके नजर डघ्घर पर । एतने में नवरतनी फुआ टुघुरइत टुघुरइत आ गेल ।; केकरो शादी-बिआह हे, कपड़ा-लत्ता, जूत्ता-चप्पल, सोना-चानी के गहना, मर-मसाला, डलडा-तेल, पत्तल उधार-पईंचा दिलवा देतन, तिरवेदी जी के दुकान शर्मा जी के मकान, साग-सब्जी सब सरजाम जब ले ई करवा न देतन तब ले इनकर गोड़ साइकिल बनल रहत ।) (माकेसिं॰15.15; 17.22; 33.19)
1109 सरधा-भगति (= श्रद्धा-भक्ति) (कोई पुजारी जतना सरधा-भगति से पूजा के डाली सरिआवऽ सजावऽ हे ओतने मनगर होके किसिम-किसिम के अँचार लगा के घर में रखले रहतन ।) (माकेसिं॰85.14)
1110 सरापना (= शाप देना) (उनका बेटा भेल - छोटकी औरत रजमुनियाँ के कोख से । ... बड़की औरत लछमिनियाँ दया के आगार निकलल - खूब सेवा-टहल, तेल-कूँड़ कयलक, सोंठ-बतीसा घाँट के खिलावे बाकी मंझली मंगरी आ संझली सोमरिया के सौतीन डाह न मेटल । दुन्नो के बज्जर पड़ गेल - चौबीसो घंटा कपार ठोकइत रहे - ओकर कोख के सरापइत रहे ।) (माकेसिं॰42.21)
1111 सरिआना (कोई पुजारी जतना सरधा-भगति से पूजा के डाली सरिआवऽ सजावऽ हे ओतने मनगर होके किसिम-किसिम के अँचार लगा के घर में रखले रहतन ।) (माकेसिं॰85.14)
1112 सवख (= शौक) (हमरा कोनो सवख हे कि जने चलूँ, पास में पिस्तौल लेके चलूँ । रात भर कभी हम, कभी हम्मर औरत, कभी बेटा, कभी पुतोह, मलेटरी के सिपाही लेखा बोर्डर पर घिरनी लेखा नाचइत रहऽ ही ।) (माकेसिं॰51.20)
1113 सवखीन (= शौकीन) (खाजा आ तिलकुट के सवखीन चानमामू साल में तीन चार बार सिलाव आउ गया जयतन ।; उनकर मेहरारू भी उनके लेखा साया-साड़ी आ गहना-गुड़िया के सवखीन ।; गान-बजान के ऊ अतना सवखीन हलन कि जेवार से गावे ला उनका बोलहटा आवऽ हल ।) (माकेसिं॰34.8, 12; 53.14)
1114 सवांग (हम्मर सवांग आ बाल-बच्चा कमजोर रहित त ओकरो लोग लुलुआवइत रहितन । बाकि केकर माय शेर बिअयलक हे जे हमरा सामने हम्मर इज्जत पर अंगुरी उठा सकऽ हे । हम जिन्दा ही तब अप्पन सवांग के चलते, बाल-बच्चा, बेटा-बेटी, पोता-पोती, नाती-नतिनी के चलते ।; धनेसर हम्मर घर के सवांग, हम्मर पूरा परिवार ओकर घर के सदस्य ।) (माकेसिं॰70.1, 4; 81.11)
1115 सवाई (~ सूद = मूलधन एक पर मिश्रधन सवा अर्थात् सालाना 25 % सूद) (गाँव में सबके हाथ खाली बाकि चमोकन के हाथ में बारहो मास लछमी सदा बिराजमान । ई केकरो उधार-पईंचा न दे सकथ । जब देतन तब सवाई सूद पर ।) (माकेसिं॰56.29)
1116 ससुरार (नवरतनी फुआ के नइहर केला के बगान, ससुरार बाँस के बँसवारी । नइहर में सात गो भाई, ससुरार में सात गो देवर-भईंसुर । नइहर बहुत कम जायत । ससुरार से छुटकारा कहाँ ।; जउन घड़ी नवरतनी फुआ ससुरार में गोड़ धयलक हल, ओकर चढ़इत जवानी देख के सब कोई अगरा जा हल ।) (माकेसिं॰20.16, 17, 18, 31)
1117 सहकबउरी (= सहजबउरी; अधपगला जइसा व्यवहार) (कोई कहे देवी मइया देह धयले हथीन - कोई कहे चनकी दाई बायमत पूजऽ हथीन - कोई कहे देह पर मियाँ-बीबी आवऽ हथीन । कोई कहे डाइन कोई पिचासिन । कोई कहे मन के सहकबउरी हे - कोई कहे अधकपारी हो गेलथीन हे - कोई कहे चनकी दाई सनकी हो गेलथीन ।) (माकेसिं॰63.18)
1118 सहिजन (= सहजन; मुनगा) (नेनुआ आ झिंगुनी, सहिजन आ अदौरी ओकरा ला सोना के भण्डार । सब दिन ऊ साग भात खायत । बूट आ खेसारी के साग पर तो ओइसहीं टूट पड़ऽ हे जइसे खेत से भूखल बयल नाद में गोतल सान्ही-पानी पर ।) (माकेसिं॰20.6)
1119 सहुर (= सहूर) (चमोकन के मुँह कुम्हार के आँवा लेखा भभके लगल - "बूढ़ी हो गेलऽ बाकि बोले के सहुर न सीखलऽ ।"; हमरा बोले के सहुर अब बुढ़ारी में का आवत ।) (माकेसिं॰60.2, 6)
1120 सहूर (एही बीच में चमोकन के मुँह लाल, आँख बिरबिरावे लगलन - "हटलऽ कि एक एँड़ देऊँ । बोले के पहिले सहूर हवऽ ।) (माकेसिं॰58.17)
1121 साँझ-बिहान (जउन गाँव में बात-बात पर लाठी लठउल, एक बित्ता आरी-पगारी ला भाला-गड़ास, राई के तीसी आ तीसी के राई बनावेओला गाँव, होत साँझ-बिहान सातो पुरखन के नेओतहरी, छोट-छोट बात पर गिधवा-मसान - ऊ गाँव में चानमामू सब के मामू बन के रह गेलन ।) (माकेसिं॰31.21)
1122 साँप-बिच्छा (राह चलत तब नजर धरती मइया के गोद में । ओकरा देख के साँप-बिच्छा, सियार-बिलार भी राह छोड़ के हट जायत ।) (माकेसिं॰20.27)
1123 साछात (= छछात; साक्षात्) (तू लोग जे लिखऽ हऽ ऊ आत्मा के आवाज हे । सुरसत्ती तोरा लोग पर साछात सवार होके लिखावऽ हथ ।) (माकेसिं॰36.31)
1124 साड़ी-झूला (बिसउरी पूरल । नवरतनी फुआ के नया साड़ी-झूला, भर हाथ चूड़ी, माँग में सेन्नुर, खोंइछा में चाउर, सीधा अलग से ।) (माकेसिं॰18.13)
1125 सान्ही (कोना-~) (गाँव के मेहरारू केंवाड़ बन्द कर देल । बाल-बच्चा के लेदरा तर घुसेर देल - खिड़की खोल के सब खिलकट देखे लगल । बिअहुती औरत के सास कोना-सान्ही से भी झाँके ला मना कर देल । माय बिन बिआहल लड़की के गोड़ में छान-पगहा डाल देल ।) (माकेसिं॰63.9)
1126 सान्ही-पानी (= सानी-पानी) (~गोतना) (सब दिन ऊ साग भात खायत । बूट आ खेसारी के साग पर तो ओइसहीं टूट पड़ऽ हे जइसे खेत से भूखल बयल नाद में गोतल सान्ही-पानी पर ।; चानमामू के सब कुछ मिलल, आ जे मिलल से छप्पर फार के । ओह जमाना में जब केकरो घिरसिर ईंटा के बन जा हल त लोग देखे आवऽ हल - चानमामू के ईंटा के मकान छोड़ऽ, जब जनावर के बान्हे ला ईंटा के खरंजा लगल, सान्ही-पानी गोत के खिआवे ला सिरमिट के पक्का नाद बनल, ऊपर से हवादार खप्पर छानी बनल तब जेवार के लोग देखे अयलन ।; चानमामू जनावर के बड़ा प्रेमी । जब ले ऊ अप्पन हाथ से सान्ही-पानी न गोततन तब ले उनका मच्छर काटइत रहत आ जनावर भोंकड़इत रहत ।) (माकेसिं॰20.8; 31.31; 32.6)
1127 साहितकार (= साहित्यकार) (हम साहितकार रहती त एगो बड़का उपन्यास लिख देती ।; स्व अनुभूति, परा अनुभूति आ सहानुभूति में कतना अन्तर हे न कोई साहितकार, कलाकार बता सकऽ हे न ई समीक्षक समझ सकऽ हे ।) (माकेसिं॰43.30; 67.30)
1128 सिंगार (= शृंगार) (करुआ तेल उनकर जिनगी के सिंगार हे । नेहाये के पहिले सउँसे शरीर करुआ तेल चभोर लेतन ।) (माकेसिं॰55.21)
1129 सिंगार-पटार (हम जान के नाच न करऽ ही । हमरा सामने उनकर मूरत ठीक अधरतिया में आवत । हम्मर देह सिहरे लगत, काँपे लगत । भोर होते होते सिंगार-पटार करके हम नाचे लगऽ ही । हमरा कुछ न बुझाये ।) (माकेसिं॰69.14)
1130 सिआह (= स्याह, काला, विवर्ण) ("हित-नाता लेखा आवऽ हऽ, आवऽ जा, एकरा ला हमरा कोई अमनख न हे । बाकि तू तो पढ़ल-लिखल होके आझ बूरबक लेखा काहे बोलइत हऽ ।" हम तो सिआह बन गेली । सोंचइत घरे अइली ।) (माकेसिं॰57.14)
1131 सिकड़ी (= सिकरी) (मलकिनी कहऽ हथ - 'धनेसर अबहियो होत भिनुसहरा सिकड़ी बजावऽ हे तखनिए हम्मर नीन टूट जाहे । धनेसर देह से हमनी के बीच न हे बाकि ओकर इयादगार हम्मर पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलइत जायत ।') (माकेसिं॰81.27)
1132 सिकरी (= सिकड़ी, साँकल) (होत अनमुहान धनेसर साहेब के डेरा पर । ओन्ने मुरगा बाँग देत एन्ने धनेसर घर के सिकरी बजावे लगत । लइकन सबके उठावत, आँख पर पानी के छिंटा देत आ पढ़े ला महटगिरी करे लगत ।) (माकेसिं॰74.11)
1133 सिकरेट (= सिगरेट) (अरे रामायण गावे अयलऽ हे कि गांजा के दम लगावे, फूलचन के रामायण हे, खिंच लऽ बीड़ी-सिकरेट, थुकर ल खैनी खा खा के ।) (माकेसिं॰50.7)
1134 सिमर (= सेमल) (घना बगइचा, आम, महुआ, लीची, अमरूध के पेड़ । बगइचा के बीच में एगो झोपड़ी, झोपड़ी के चारो तरफ गुलमोहर आ सिमर के फूल सउँसे बगइचा के धधकइत आग लेखा उगइत सुरूज के छितिज लेखा अनेर कयले ।; कोई हाथ पसारल कि तेतरी हवाक से गोदी में । जइसे बकरी के पठरू, बिलाई, कुत्ती के बच्चा लोआ-पोआ, ओइसहीं तेतरी, जुलुर जुलुर हाथ - पैर पुलुर पुलुर आउ देह - खेसारी के निढ़ल साग लेखा, सिमर के रूआ लेखा ।; अतना कहइत कहइत उनकर माथ के उज्जर बार हिमालय लेखा ठार हो गेल । झुकल हलन से सोझ हो गेलन, उनकर बदन काँपे लगल, आँख सिमर के फूल लेखा लाल टेस ।) (माकेसिं॰15.6; 24.23; 36.12)
1135 सिरमिट (= सिमेंट) (चानमामू के सब कुछ मिलल, आ जे मिलल से छप्पर फार के । ओह जमाना में जब केकरो घिरसिर ईंटा के बन जा हल त लोग देखे आवऽ हल - चानमामू के ईंटा के मकान छोड़ऽ, जब जनावर के बान्हे ला ईंटा के खरंजा लगल, सान्ही-पानी गोत के खिआवे ला सिरमिट के पक्का नाद बनल, ऊपर से हवादार खप्पर छानी बनल तब जेवार के लोग देखे अयलन ।; एक किनार पर बोरिंग, बोरिंग के बगल से धामिन साँप लेखा एगो रहता घर तक पहुँचऽ हे जहाँ तीन गो सिरमिट के छत कयल पक्का कोठरी - खूब हवादार आउ रोशनदार ।) (माकेसिं॰32.1; 102.29)
1136 सिरिस (गाँव में डघ्घर पर पीपर, पांकड़, आम, जामुन, बरगद, महुआ, सीसो, सिरिस के झमाठ झमाठ पेड़ ओकर मन के पीड़ा के बखान कर रहल हथ, ओकर हिरदा के दरद बता रहल हथ ।) (माकेसिं॰66.27)
1137 सिरे (= अनुसार) (अनाज के किसिम-किसिम के दाना बना के बाग-बगइचा आ तलाब के जीव-जन्तु के बुतात टेम के सिरे दुन्नो शाम अप्पन हाथ से देइत रहत ।) (माकेसिं॰96.13)
1138 सिलेट (एही सोच के ऊ तेतरी के पढ़ावे ला स्कूल में नाँव लिखौवलन बाकि तेतरी ला स्कूल पंछी के पिंजरा जइसन ! ई फुदकेओला, कुदकेओला, चहकेओला, स्कूल में मन कहाँ से लगो, कौपी सिलेट कुईंया-तालाब में डाल देवे ।; रजिया अम्मा अतना थक गेल हे कि खाट पकड़ लेल । कंठ से अवाज न निकले । जे कहत से हाथ से समुझा के इया सिलेट-कागज पर लिख के ।) (माकेसिं॰25.14; 97.6)
1139 सींझना (नइहरा में सींझले जउरिया, ये जउरिया ये मइया । मइया ससुरा में लगले धमसिया ये मइया ॥ मइया कउनी बहनवें नइहर जाऊँ ये मइया । हथवा में लेले दूई चिपरिया ये मइया ॥) (माकेसिं॰87.23)
1140 सीज (= एक कँटीला पौधा जिसमें पत्ते नहीं होते, नागफनी) (बेचारे कुकुहारो से काँटा लेखा सीझइत गेलन आ गल गल के मोम लेखा पिघलइत गेलन । छिलइत गेलन बढ़ही के बँसुली से लकड़ी लेखा, साग के टूसा लेखा खोंटाइत गेलन । जिनगी भर सीज के काँटा पर सुतइत गेलन ।; दिन बीतइत गेल । चमोकन पोता-पोती वाला हो गेलन बाकि चमोकन नाम के पुकार उनका ला सीज के काँटा बनइत गेल । बुढ़ारी के खीस में केतना के कपार फोड़ देलन, केतना के दाँत काट लेलन ।; कोई मियाँ-बीबी ओकर देह धयले न हल । कोई जादू-टोना ऊ न जानल । बाकि अछरंग के सीज के काँट पर बिलबिला बिलबिला के मर गेल ।) (माकेसिं॰46.2; 62.2; 67.14)
1141 सीझना (बेचारे कुकुहारो से काँटा लेखा सीझइत गेलन आ गल गल के मोम लेखा पिघलइत गेलन । छिलइत गेलन बढ़ही के बँसुली से लकड़ी लेखा, साग के टूसा लेखा खोंटाइत गेलन । जिनगी भर सीज के काँटा पर सुतइत गेलन ।; वास्तव में चनकी दाई के दरद मीरा के दरद लेखा कोई समझ न सकल । चनकी दाई भात लेखा सीझल कहानी हे ।) (माकेसिं॰45.29; 70.10)
1142 सीधा (= भोजन बनाने का कच्चा सामान; पकाने या सिझाने का सामान) (बिसउरी पूरल । नवरतनी फुआ के नया साड़ी-झूला, भर हाथ चूड़ी, माँग में सेन्नुर, खोंइछा में चाउर, सीधा अलग से ।) (माकेसिं॰18.14)
1143 सीम-बरसीम (चनकी दाई घरे-बने भरल-पूरल । तीस बीघा नफीस खेत-बधार, आम-अमरूध, महुआ-जामुन, केरा-कटहर, अंवरा-पपीता के बारहमासा बाग-बगइचा, कोंहड़ा-भतुआ, लउका-नेनुआ, सीम-बरसीम, करइला से लथरल बगान, अलुआ, कोबी, टमाटर, रमतरोई, मूरई, मेथी, पालक, गाजर, राई, सरसो, तीसी, जवाइन-मंगरइला, लहसुन, पेयाज, बेदाम से लहफह - सातो बिहन । कोई चीज के कमी न ।) (माकेसिं॰64.13-14)
1144 सीसो (= शीशम) (तेतरी दीदी के आँख से कुछो बुझा न रहल हे । पीपर के पत्ता झर गेल, बरगद ठूँठ हो गेल, पाँकड़ आ गूलर के पता भींज गेल, ढिबरा ढह गेल, चँवर के सोती सूख गेल, जामुन झँवर गेल, सिरिस आ सीसो अलगे सिसक रहल हे, केला के घउद लमर गेल, पात-पात चिहक गेल, धरती दरक गेल, अकास झुक गेल, परबत ढिमिला गेल । सउँसे प्रकृति तेतरी दीदी के बिरह में अछोधार लोर बहा रहल हे ।) (माकेसिं॰28.1)
1145 सुअर-बिलाई (बड़ाबाबू खुश नजर न आवित हथ । इहाँ से हटला पर घर के नौटंकी आ सर्कस के सम्भारत ? जवानी के जोश में बिआह तो करइत गेलन - सुअर-बिलाई लेखा बाल-बच्चा जलमावइत गेलन बाकिर अब अनार के दाना लेखा दाँत टूटत तब बुझायत ।) (माकेसिं॰41.21-22)
1146 सुघ्घर (धन्य हथ चानमामू ! धन से जइसन मजगूत जन से ओइसने भरपूर, देह से जइसन सुघ्घर नेह से ओइसने सुथर ।) (माकेसिं॰31.16)
1147 सुतना-बइठना (बगइचा के एगो कोना पर बाँस के चचरी के बनावल उनका सुते-बइठे ला एगो छावल मचान बना देवल गेल हे ।) (माकेसिं॰103.16-17)
1148 सुताना (घरे अयला पर देखइत हथ सब कि मालिक ओहे अदमी हथ जे चँवर में मिललन हल । चमोकन औरत के कहलन, "सबके रोटी आ मट्ठा खिआ के सुता दऽ, बिहने बिदाई एको पइसा दीहऽन ।") (माकेसिं॰61.27)
1149 सुधुआ (= सीधा) (बड़ाबाबू के सुधुआ गाय समझ के सब कोई दुहलन । जेकर बरिसो के अँटकल फाइल रफा-दफा कर देलन, ऊ इनका देखइते मुँह फेर लेवऽ हे । जेकर बेटा के फस्ट डिविजन पास करावे में एँड़ी-चोटी के पसेना एक कर देलन आझ ऊ इनका देखला पर मुँह ढाँप लेइत हे ।) (माकेसिं॰45.10)
1150 सुननिहार (बीच में झलासी आ खपड़ा से छावल ... सौ फीट लमा आउ पच्चीस फीट चौड़ा एगो चउपाल जेकरा में दद्दू भइया होरी, चइता, आल्हा, कुँवर विजयी, चुहड़मल, रानी सुरुंगा के गीत सुननिहार लागी, ओहे में एगो मंच जेकरा पर दद्दू भइया के बइठका आ गवनिहार के आसन लगऽ हे ।) (माकेसिं॰102.23)
1151 सुनवइया (आझ लव शर्मा जब गावे लगऽ हथ तब सुनवइया आपुस में एहे कहतन - 'ई धरती बड़ा भाग्यशाली हवऽ, देखऽ रामजतन चाचा पोता के हूबहू रूप धर लेलन ।') (माकेसिं॰52.30)
1152 सुन्न (= शून्य) (चमोकन फिन मुँह चुनिअएलन, आँख बिरबिरयलन, "सुनऽ बलेसर, बिआह न होतवऽ । मकान के नेवो न दिआयल आ काग बइठे लगल ।" बलेसर के दिमाग सुन्न । "कउन असगुन के बात हो गेल ?") (माकेसिं॰59.1)
1153 सुन्नर (= सुन्दर) (उनकर जिनगी के अन्हार गोड़ी कबार देल । उनका बेटा भेल - छोटकी औरत रजमुनियाँ के कोख से ।) (माकेसिं॰42.14)
1154 सुन्ना (= सूना) (बहिन के भाई लुट गेल, पत्नी के पति हेरा गेल, माय के गोदी सुन्ना हो गेल ।) (माकेसिं॰98.4)
1155 सुरसती (= सरस्वती) (गाँव गंगा, जमुना, सुरसती के संगम, तिरवेणी के गुण, धरम सोभाव से गाँव के वातावरण में सदा शान्ति बिराजइत रहल ।) (माकेसिं॰92.5)
1156 सुरसत्ती (= सरस्वती) (तू लोग जे लिखऽ हऽ ऊ आत्मा के आवाज हे । सुरसत्ती तोरा लोग पर साछात सवार होके लिखावऽ हथ ।) (माकेसिं॰36.30)
1157 सुरुका (एक दिन धनेसर के माय धड़फड़ाइत लोटा लेले आयल । कह बइठलक - "ए बउआ चमोकन ! ... हम गाय खरीद न सकी । हम्मर बेटा के तूहीं जिअयबऽ ।" एके सुरुका में ऊ सब बात कह देलक ।) (माकेसिं॰60.27)
1158 सुरूका (= सुर्ख) (हमरा बरदाश्त न होआयत । हम्मर आँख देखइते हऽ आ जबसे एकरा निकाले ला छुड़ी घोंपल गेल, तहिया से लाल सुरूका अपने आप हो गेल । हम तनि ताकली का कि रामजतन आँख देखा देलन ।) (माकेसिं॰50.11)
1159 सुरूकिया (बरसात के महीना, कोरे कोर उपलायल नदी । बड़का बड़का चकोह, खतरनाक खतरनाक जानलेवा भँवरी आ ओकरा में तेतरी दीदी चभाक से कूद गेल आ डूबकी मारलक त एके सुरूकिया में नदी के ऊ पार ।; जइसे लोटा के लोटा दूध आ गुड़ के शरबत एके सुरूकिया में गड़गड़ाइत पेट में डाल लेतन ओइसहीं चूड़ा-दही खाय लगतन तब देखे ओला अचरज में पड़ जाहे ।) (माकेसिं॰23.5; 102.2)
1160 सुलछनी (~ बेटी) (केकरो बेटी बिना गोदी सूना हे, नवरतनी फुआ के असीरबाद से सुलछनी बेटी जलम ले लेत ।) (माकेसिं॰18.17)
1161 सूँढ़ (= सूँड़) (कटहर लेखा माथ, रीठल नादा लेखा गाल, करिया गाजर लेखा नाक, हाथी के सूँढ़ लेखा बाँह, टील्हा लेखा छाती, लोढ़ा लेखा लिलार, कनगोजर लेखा भौं, जामुन लेखा आँख, ललगुदिया अमरूध के फाँक लेखा ओठ, घुनसारी लेखा दहकइत मुँह के गलफर, अनार के दाना लेखा दाँत, माथ पर करिया बादर लेखा केस, छव फीटा जवान दद्दू भइया के देखला पर सबके मुँह से एके बकार - 'भगवान बड़ा सोच-समझ के दद्दू भइया के अप्पन हाथ से गढ़लन हे ।') (माकेसिं॰100.2)
1162 सेन्नुर (= सेनुर, सिन्दूर) (सपना में तेतरी दीदी इन्नर के परी लेखा देखाई दे रहल हे । पिअर बिअहुती साड़ी, भर हाथ चूड़ी, मांग में सेन्नुर, कान में झूमका, नाक में नथिया, आँख में काजर, पाँव में महावर, ओठ में लिपिस्टिक, बूटेदार चद्दर ओढ़ले सबके सामने ठार हे ।) (माकेसिं॰28.25)
1163 सेन्हमारी (सबके खेत के खेसारी कबर गेल, धान के परूई राताराती बान्ह के पताल में खपा देवल गेल, केकरो घर में सेन्हमारी भेल, केकरो घर में डकैती, केकरो खरिहान में आग लगा देवल गेल, केकरो गोरू-डांगर खोल के सोन पार हो गेल बाकि चानमामू के एगो पत्तो न खरकल । जइसन नेत ओइसन बरक्कत ।) (माकेसिं॰31.24)
1164 सेर-पसेरी (लोग सेर-पसेरी से जनता के तउलल चाहऽ हथ, अपने तो बेंग बनल हथ । ई तराजू पर से उछिल के उ तराजू पर । अपने तो तौलाए के अनुशासने न रखत आ चलऽ हथ जनता के अनुशासन के घोंटी पिआवे ।) (माकेसिं॰105.24)
1165 सेराना (= ठंढा होना) (उनकर स्मारक एके संदेश देवऽ हे - सुतऽ मत जागल रहऽ, सेरा मत तातल रहऽ, तउला मत बाँकल रहऽ, बउखा मत थाहल रहऽ ।) (माकेसिं॰109.21)
1166 सेलचू (= सेलची) (तेतरी दीदी कहुँ न कहुँ से छकुनी लेले, रस्सी लेले पहुँच जायत आ जमे लगत लइकन के खेल - कभी डोल-पत्ता, कभी चिक्का-कबड्डी, कभी सेलचू, कभी ओका-बोका-तीन-तड़ोका, कनघीच्चो, बाघ-बकरी, अत्ती-पत्ती । सब खेल में पारंगत तेतरी दीदी ।) (माकेसिं॰26.1)
1167 सेवा-खेवा (आ मुखिया ? समुझऽ गारल गिरई । एन्ने समाज सेवा ओन्ने डपोरसंखी । सेवा से जादे खेवा कहइत-कहइत उनकर मुँह आँवा से निकलल बरतन लेखा लाल हो जायत ।) (माकेसिं॰35.3)
1168 सेसर (= श्रेष्ठ) (सब खेल में पारंगत तेतरी दीदी - दउड़ के पेड़ के फुतलुंगी पर चढ़े में, चिक्का-कबड्डी में दउड़े में फरहर, अँखमुनौवल में दउड़ के छुए में, डोल-पत्ता में डंडा फेंके में आ लावे में सेसर, बाघ-बकरी में सबके मात कर देवे, सबके कान काट लेवे ।; बिसुनदेव के पढ़े ला बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में भेजल गेल । पढ़े में ऊ तेज निकलल, खेले-कूदे में ओइसने सेसर ।; धनेसर गाड़ी चलावे में सेसर । एकरा आगु आउ सब ऑफिस के डराईभर फीका ।; जिलेबी आ रसगुल्ला उनका ला सबसे सेसर मिठाई ।) (माकेसिं॰26.5; 58.10; 75.13; 102.1)
1169 सोंठ-बतीसा (उनका बेटा भेल - छोटकी औरत रजमुनियाँ के कोख से । ... बड़की औरत लछमिनियाँ दया के आगार निकलल - खूब सेवा-टहल, तेल-कूँड़ कयलक, सोंठ-बतीसा घाँट के खिलावे बाकी मंझली मंगरी आ संझली सोमरिया के सौतीन डाह न मेटल ।) (माकेसिं॰42.18)
1170 सोघराना (जनावर के देखभाल करे ला दू दू गो बराहिल, तइयो ई जब ले अप्पन हाथ से सोघरवतन न, चुचकरतन न, तब ले गोरू-डांगर आँख फाड़ के निहारइत रहत ।) (माकेसिं॰32.8)
1171 सोझ (= सीधा) (अतना कहइत कहइत उनकर माथ के उज्जर बार हिमालय लेखा ठार हो गेल । झुकल हलन से सोझ हो गेलन, उनकर बदन काँपे लगल, आँख सिमर के फूल लेखा लाल टेस ।) (माकेसिं॰36.11)
1172 सोठ (रामचन्द्र सिंह पुरनका दिन के इयाद करइत करइत परान तेयाग देलन । अब बच गेलन हे के ? बटलोही, बरहगुना, सोठ, बतीसा, कठजामुन, चुटरी, कनगोजर, कुलबोरन आ चपोरन - सब मिलके बाँस के फोंफी लेखा बज रहल हथ ।) (माकेसिं॰22.22)
1173 सोती (तेतरी दीदी के आँख से कुछो बुझा न रहल हे । पीपर के पत्ता झर गेल, बरगद ठूँठ हो गेल, पाँकड़ आ गूलर के पता भींज गेल, ढिबरा ढह गेल, चँवर के सोती सूख गेल, जामुन झँवर गेल, सिरिस आ सीसो अलगे सिसक रहल हे, केला के घउद लमर गेल, पात-पात चिहक गेल, धरती दरक गेल, अकास झुक गेल, परबत ढिमिला गेल । सउँसे प्रकृति तेतरी दीदी के बिरह में अछोधार लोर बहा रहल हे ।) (माकेसिं॰28.1)
1174 सोना-चानी (केकरो शादी-बिआह हे, कपड़ा-लत्ता, जूत्ता-चप्पल, सोना-चानी के गहना, मर-मसाला, डलडा-तेल, पत्तल उधार-पईंचा दिलवा देतन, तिरवेदी जी के दुकान शर्मा जी के मकान, साग-सब्जी सब सरजाम जब ले ई करवा न देतन तब ले इनकर गोड़ साइकिल बनल रहत ।; पढ़ऽ - एहे सोना-चानी हवऽ - एकरा कोई बाँट न सकतवऽ ।) (माकेसिं॰33.17; 74.21-22)
1175 सोभवगर (छवो के बाल बच्चा लोढ़ा-सिलउट लेखा बज्जर, पढ़ल-लिखल, गुनगर, सोभवगर ।) (माकेसिं॰65.11)
1176 सोरहिया (= युक्ति या सुराग बतानेवाला; गुप्त भेद बतानेवाला; भेद का पता लगाकर उचित मंत्रणा देनेवाला) (कोई कहे नेक्सलाइट के एरिया कमांडर, कोई कहे मलेटरी के बिरगेडियर, कोई कहे अखाड़ा के पहलवान, कोई कहे सोरहिया, कोई कहे सनकल भईंसा, कोई कहे मस्ताना साँढ़, कोई कहे पागल हाथी - किसिम-किसिम के बोल, तरह-तरह के अनुमान । दद्दू भइया कहाँ रहऽ हथ, कहाँ सुतऽ हथ, कहाँ खा हथ - आझ ले केकरो पता न चलल ।) (माकेसिं॰100.10)
1177 सोवाद (= स्वाद) (सबके जीभ चटकारे के मौका जरूर देतन । तरह-तरह के अँचार, तरह-तरह के चटकार, तरह-तरह के अँचार के सोवाद, तरह-तरह के मुँह में पानी, मलिकार खुश - बनिहार खुश - भूलेटन के पौ बारह ।) (माकेसिं॰83.5)
1178 सोहर (उनकर झूमर, सोहर, होरी, चइता, कृषि गीत, निरगुन सुन के सब कोई रीझ जायत । बनिहार के लइकन-फइकन उनका अइसन घेर लेतन जइसे चूँटी गुड़ के घेर लेवऽ हे ।) (माकेसिं॰83.1)
1179 सौतीन (~ डाह) (उनका बेटा भेल - छोटकी औरत रजमुनियाँ के कोख से । ... बड़की औरत लछमिनियाँ दया के आगार निकलल - खूब सेवा-टहल, तेल-कूँड़ कयलक, सोंठ-बतीसा घाँट के खिलावे बाकी मंझली मंगरी आ संझली सोमरिया के सौतीन डाह न मेटल ।) (माकेसिं॰42.19)
1180 स्टोनो (= स्टेनोग्राफर) (बड़ा बाबू के बेटा के बिआह, स्टोनो बाबू के घर भोज, प्रोजेक्ट ऑफिसर के बेटा के छठी-छीला, धनेसर के नाक से पसेना चुअइत रहत ।; ठीक दस बजे आना पाँच बजे जाना । सब काम टैट । मजाल हे कोई फाइल बड़ा बाबू के धोकड़ी में आ केकरो दरखास्त स्टोनो बाबू के तकिया तर रह जायत ।) (माकेसिं॰71.24; 72.10)
1181 हँकाड़ (जनावर के देखभाल करे ला दू दू गो बराहिल, तइयो ई जब ले अप्पन हाथ से सोघरवतन न, चुचकरतन न, तब ले गोरू-डांगर आँख फाड़ के निहारइत रहत । इहो ओकर दीगर के बात खूब समझऽ हथ, ओकर हँकाड़ में अप्पन पुकार बुझऽ हथ आउ आके हहरइत हँकाड़ अप्पन हाथ लगा के ओकर मन के शान्त कर देतन ।) (माकेसिं॰32.10, 11)
1182 हँड़चना (ऊ अप्पन दुश्मन के तो चकनाचूर करिए देलन । जइसे गोबर के हँड़च हँड़च के पाथल जाहे ओइसहीं दुश्मन के पाथ के छोड़ देलन ।) (माकेसिं॰47.19)
1183 हँड़िया (= धान आदि के चावल के भात से तैयार एक मादक पेय, शराब) (आज हम्मर आदिवासी भाई लोग पढ़ल न हथ - ओकर फल देखऽ - आँख के सामने सब कुछ लुटा रहल हे, ट्रक के ट्रक सब कुछ ढोआ रहल हे बाकि हमनी आँख के आन्हर । हँड़िया मिले के चाही ।) (माकेसिं॰74.18)
1184 हजामिन (= हजाम की स्त्री; नाउन) (पाँच पवनियाँ पौ बारह - हजामिन, कुम्हइन, मालीन, तेलीन आ चमइन । हजामिन के नोहछुर, कुम्हइन के हाथी आ बरतन, मालीन के मौरी आ पटमौरी, तेलीन के तेल, आ चमइन के ढोल बिना बिआह-शादी के मजा किरकिरा ।) (माकेसिं॰19.14, 15)
1185 हड़कना (खेत में बीया {मोरी} उखड़ रहल हे, ई चभर-चभर ओकरा में लोटइत रहतन । अचरज के बात ई हे कि सबके शरीर में जोंक सट जायत बाकि इनका से जोंक सात बिगहा अलगहीं से भड़क जायत । हो सकऽ हे भगवान इनकर शरीर में कोई अइसन तेजाब भर देले होयतन कि चमोकन के नामे से ऊ हड़क जा होयत ।) (माकेसिं॰56.10)
1186 हड़हड़ाना (जने चले ओन्ने गली-कुची हिलावइत चले, राहे बाटे हड़हड़ाइत चले ।) (माकेसिं॰25.26)
1187 हदबन्दी (गैर मजरूआ जमीन आ हदबन्दी से फाजिल जमीन पर जहाँ-जहाँ दद्दू भइया झण्डा गड़वा देलन, उखाड़े के केकरो बउसात न हे ।) (माकेसिं॰108.14)
1188 हन-हन (~ करना) (गाड़ी हन हन करइत सरपट दउड़इत गेल । सड़क के दुन्नो ओर तरह-तरह के गाछ-बिरिछ एक दूसरा के छाती से लगा के आपुस में गप्प-सप्प कर रहल हलन । झार-झुरकुट एक दूसरा के माथ झुका झुका के सलाम करइत हल ।) (माकेसिं॰78.21-22)
1189 हबकुरिए (फिर चभाक !! सबके ठरमुरकी मार देल । फिन सब मल्लाह ओकरा पाछे-पाचे हबकुरिए दउड़े लगल ।; कतना विश्वामित्र उनकर परिछा लेलन, सब कोई मुँह भरे गिरके हबकुरिए थोथुन रगड़े लगन ।; कतना लहाश झलासी में बूट के होरहा लेखा झोला गेल, कतना के खोपड़ी असमान में उड़ गेल, कतना बूढ़ी हबकुरिए पड़लन से पड़ले हे, कतना बुतरू माय के गोद में सटल से सटले रह गेल ।) (माकेसिं॰24.8; 31.10; 109.5)
1190 हबेख (= किसी वस्तु का उचित उपयोग, भोग, उपभोग; ~ लगना = किसी वस्तु का सही उपयोग होना) (पचपन बरिस के उमिर में उनकर घर में इंजोर भेल । ... गाँव भर के पैर चमोकन के घरे - सबके हिरदा में हुलास - आँख में माया-ममता के मोती छलक रहल हे । बाकि गोतिया-नइया के मुँह करिखा । चमोकन के धन हबेख अब न लगत । बाकि ऊपर से मुँह पुराइ - 'जीए, जागे, फरे-फुलाए, हे सुरुज भगवान, अइसने लाज सबके रखिहऽ ।') (माकेसिं॰58.2)
1191 हर-कुदार (मलिकार खेत-खरिहान के पढ़ाई पढ़लन, बनिहार हर-कुदार के कहानी समुझलन बाकि भूलेटन सबके मन के पढ़ाई पढ़लन, न कहुँ स्कूल में नाम लिखवलन न कोई डिग्री लेलन न पी-एच॰डी॰ कयलन ।) (माकेसिं॰83.22)
1192 हरदी (सब कोई कह रहल हे, फुआ ढोलवा बजाव न तोरे बिना सब काम रूकल हे । एहे बीच में भोजइतीन ढोल पूजे ला दउरी में पाँच टूकी हरदी, चाउर आ पाँच गो पइसा छिपुनी में अइपन आ सेन्नुर लेके आ गेलन ।) (माकेसिं॰17.28)
1193 हरमुनिया (= हरमुनियाँ; हारमोनियम) (ओ घड़ी जेवार में खपुरा के रामविसुन सिंह ढोलक बजावे में, मझौली के स्वयंवर मिस्त्री हरमुनिया बजावे में आ बेनीबिगहा के रामजतन चाचा झाल बजावे में नामी हलन ।) (माकेसिं॰52.2)
1194 हरमुनियाँ (ऊ जेकरा जेकरा सिखवलन, आज भी उनका गुरु के रूप में ध्यान धरऽ हथ । चरनदेव सिंह रामायण गावे के पहिले रामजतन चाचा के धेयान लगवतन, तिरजुगी शर्मा हरमुनियाँ खोले के पहिले रामजतन चाचा के गोहरवतन, सिद्धनाथ पण्डित आ रवीन्द्र शर्मा ढोलक पकड़तन तब उनकर धेयान में रामजतन चाचा के चेहरा सामने आ जायत ।) (माकेसिं॰52.16)
1195 हरवाहा (बाल्टी के बाल्टी दूध पिअली हम, छाल्ही-मक्खन खइली हम । भगवान के किरपा से चार गो हरवाहा, एगो बराहिल, गाँव में पहिला मरद हम जेकर मकान पक्का के ।) (माकेसिं॰49.21)
1196 हरिअरी (रामजतन चाचा गावे-बजावे में गुनी हइए हलन, खेतिहर भी एक नम्बर । खेत-खरिहान आझ भी उनकर इयाद में हमेशा अरिअरी से भरल-पूरल रहऽ हे ।) (माकेसिं॰53.5)
1197 हरिआना (= हरियाना; हरा होना) (ऑफिस में आवइते उनकर चेहरा बसन्त में बगइचा लेखा रूह-चुह हो जायत । मउरल मुखड़ा गुलाब लेखा खिल जायत । रोआँ-रोआँ हरिआ जायत ।) (माकेसिं॰40.7)
1198 हरिजन (समाज के बेवस्थे अइसन हे । सबसे जादे मार आदिवासी आ हरिजन पर ।; रजिया अम्मा सबके अम्मा - राजपूतो के, भूमिहारो के, तेलियो के, कानूओ के, कोइरियो के अम्मा, कुम्हारो के, ब्राह्मणो के, हरिजनो के - सब जात के अम्मा - रजिया अम्मा ।) (माकेसिं॰73.15; 93.7)
1199 हरे (= हर्रे) (जलमउती बेटा के काजर नवरतनिए फुआ पारत । कई तरह के सामग्री मिला के दीया जरा के कजरौटा में काजर पार देत । ओइसहीं पितराही थरिया पर तेल आ छोटकी हरे मिला के अंजन बना देत ।) (माकेसिं॰19.1)
1200 हवाक (~ से) (सबके मन अनुरागल, गाँव-घर, अड़ोस-पड़ोस सबके बेटी - तेतरी बेटी, दुलारी बेटी । जतने दुलार मिलल ओतने उचरुंग निकलल । कोई हाथ पसारल कि तेतरी हवाक से गोदी में ।) (माकेसिं॰24.20)
1201 हाथ-गोड़ (हाथ-गोड़ अइसन लिच-लिच पातर कि पुरवइया हवा में नीम के सूखल पत्ता लेखा उड़िया जयतन ।) (माकेसिं॰55.6)
1202 हाबा-डाबा (~ धरना) (नवरतनी फुआ के हाथ में एगो जस हे, गोरैया बाबा के असीरबाद मिलल हे ओकरा । जेकर नार काटलक ओकर जिनगी अबाद । आझ ले केकरो ढोंढ़ न फेंकलक, सउरी में केकरो जमुहा आ हाबा-डाबा न धयलक ।) (माकेसिं॰18.12)
1203 हार-दार (~ देके = हार-पार के) (चमोकन के पहिल घर से कोई बाल-बच्चा न । साठ बीघा खेत, बाग-बगइचा, कुइयाँ-तलाब, आलीसान बिल्डिंग, लाखो के बैंक बैलेंस के भोगत ? हार-दार देके ऊ दूसर बियाह कयलन बाकी मेहरारू के सलाह से ।) (माकेसिं॰57.19)
1204 हिच्छा (ऊ कोई बरत-त्योहार न करत बाकि परिवार में पोता-पोती, पुतोह के बरत-त्योहार करे में कोई रोड़ा न अँटकावत । अपने परसादी खायत खूब हिच्छा भर बाकि न केकरो परसादी बाँटत न केकरो घरे भेजत ।; सबके हाथ लेहुआयल हे । काटे से कोई बाज न अयलक । लूट मचल हे, जतना हिच्छा हे लूट लेवे ।) (माकेसिं॰66.19; 73.26)
1205 हित-नाता (इहे कमाई से सालो भर उनकर खाना-बुतात, कपड़ा-लत्ता, नेवता-पेहानी, हित-नाता, आगत-अतिथि के भाव-भगत के काम पूरा करतन ।) (माकेसिं॰84.21)
1206 हिरिन (= हिरन) (जखनी ऊ पानी पर पंवरे लगऽत तब लगत कि कोनो तितुली फूल पर फुदकइत हे, हिरिन कुलांच मारइत हे, मछरी कसरत कर रहल हे ।) (माकेसिं॰26.22)
1207 हुकुमगिरी (धनेसर लेखा बुधगर लुरगर आदमी सब जगह हथ बाकि ओइसहीं दादागिरी, हुकुमगिरी चल रहल हे जइसे हम्मर ऑफिस में बेचारा धनेसर ।) (माकेसिं॰73.28)
1208 हुड़ुकवा (दिन के छोड़ऽ, तमाशा देखे ला हे त बेर डूबइते इनकर घर पहुँच जा आ देखऽ मनभर हुड़ुकवा के नाच । कोई डोमकच के सिपही-हवलदार बनल हे त कोई नौटंकी के नगाड़ा पीट रहल हे ।) (माकेसिं॰39.6)
1209 हेराना (= गुम होना, भुल जाना, खो जाना) (बहिन के भाई लुट गेल, पत्नी के पति हेरा गेल, माय के गोदी सुन्ना हो गेल ।) (माकेसिं॰98.3)
1210 हेरी-बेरी (आजादी के लड़ाई में जेहल गेली, लाठी-कोड़ा खइली, हाथ-गोड़ में हेरी-बेरी पड़ल ।) (माकेसिं॰34.28)
1211 हैंडिल-पैडिल (तू ही हम्मर जीवन के खेवैया हऽ, हम कुछ न । हम तो हैंडिल-पैडिल थाम्हेओला तोर कहार ही ।) (माकेसिं॰75.27)
1212 हैकल (= घोड़े को गले में पहनाने का आभूषण; एक या अधिक ताबीज गूँथा हार; ताबीज) (गोड़ में गेंड़ांव, हाथ में पहुँची, गरदन में हैकल, कान में झूमका, नाक में छूंछी, महुआ लेखा गोड़ के दसो अंगुरी, अंगुरी में चानी के बिछिया, सलो भर नोह रंगले - देख के कोई भी चनकी दाई के हिरदा से सराहऽ हे ।) (माकेसिं॰66.9)
1213 होरहा (कतना लहाश झलासी में बूट के होरहा लेखा झोला गेल, कतना के खोपड़ी असमान में उड़ गेल, कतना बूढ़ी हबकुरिए पड़लन से पड़ले हे, कतना बुतरू माय के गोद में सटल से सटले रह गेल ।) (माकेसिं॰109.3)
1214 होरी (= होली) (रात भर मानर आ ढोल-झांझर बजइत रहल - अबीर गुलाल उड़इत रहल । होरी आ चइता से सउँसे बगइचा चहचहा उठल ।) (माकेसिं॰15.17)
1215 होरी-चइता (सब अप्पन-अप्पन शान में डूबल हथ । होरी-चइता गवा हे बाकि दू घर से चार घर जाइत सब अउँघे लगतन ।; चानमामू होरी-चइता के खूब सवखीन । हर हप्ता उनकर दलान पर होरी-चइता के धूमगज्जर मचत ।) (माकेसिं॰22.12; 37.3)
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कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या - 1215
ई शब्दचित्र संग्रह में कुल 11 लेख हइ ।
क्रम सं॰ | विषय-सूची | पृष्ठ |
0. | ई सिंगार पर एक नजर | iv-v |
0. | 'माटी के सिंगार' के बारे में | vi-ix |
0. | अप्पन बात | x-xii |
1. | नवरतनी फुआ | 15-22 |
2. | तेतरी दीदी | 23-29 |
3. | चानमामू | 30-37 |
4. | बड़ाबाबू | 38-46 |
5. | रामजतन चाचा | 47-54 |
6. | चमोकन | 55-62 |
7. | चनकी दाई | 63-70 |
8. | धनेसर तांती | 71-81 |
9. | भूलेटन | 82-91 |
10. | रजिया अम्मा | 92-99 |
11. | दद्दू भइया | 100-109 |
1007 रंथी (= अरथी) (दद्दू भइया के लाश एगो रंथी पर लादल गेल ।) (माकेसिं॰109.12)
1008 रमतरोई (= रामतरोई, रमतोड़यँ, भिंडी) (चनकी दाई घरे-बने भरल-पूरल । तीस बीघा नफीस खेत-बधार, आम-अमरूध, महुआ-जामुन, केरा-कटहर, अंवरा-पपीता के बारहमासा बाग-बगइचा, कोंहड़ा-भतुआ, लउका-नेनुआ, सीम-बरसीम, करइला से लथरल बगान, अलुआ, कोबी, टमाटर, रमतरोई, मूरई, मेथी, पालक, गाजर, राई, सरसो, तीसी, जवाइन-मंगरइला, लहसुन, पेयाज, बेदाम से लहफह - सातो बिहन । कोई चीज के कमी न ।) (माकेसिं॰64.15-16)
1009 रहता (= रस्ता, रास्ता) (चार दिन के बाद उनकर समधियाना से पूछार आयल चार गो आदमी । चँवर में ई घाँस छिलइत हलन । एगो पूछ बइठल - "ए बाबू साहेब ! चमोकन बाबू के घर जाय ला हे, कन्ने से रहता हे ?; जब रोड खराब मिल जायत तब ओकर आँख सुरूज लेखा बरे लगत । मुँह करिया झामर हो जायत । भर रहता कहइत जायत - 'ई रोडवो गिटिया ठीकदार साहेब लेले जयतन हल तब अच्छा हल । घर गेला पर बाल-बच्चन सब भकोसिए जयथिन हल । करमजरू ठीकदार ! जा तोर पेट कहियो न भरत ।') (माकेसिं॰61.13; 76.6)
1010 राड़-रेआन (असल लड़ाई ओहे लोग लड़ रहलन हे । कतनो लोग राड़-रेआन, माल-मुसहर के पार्टी कह लेवे, भगत सिंह आ चन्द्रशेखर आजाद ओहे सब हथ । हमरा लल्लो-चप्पो न सोहाये - दूध के दूध, पानी के पानी । सच के लड़ाई ओहे लोग लड़ रहल हथ ।) (माकेसिं॰35.26)
1011 रात-बिरात (रात-बिरात गाँव-जेवार में कोई बेमार पड़ल, चानमामू ओकरा लेके डागटर रामसागर ठाकुर के पास दउड़ जयतन, देखला देतन आ शर्मा जी के दोकान से दवा भी उधार ।) (माकेसिं॰33.14)
1012 राताराती (सबके खेत के खेसारी कबर गेल, धान के परूई राताराती बान्ह के पताल में खपा देवल गेल, केकरो घर में सेन्हमारी भेल, केकरो घर में डकैती, केकरो खरिहान में आग लगा देवल गेल, केकरो गोरू-डांगर खोल के सोन पार हो गेल बाकि चानमामू के एगो पत्तो न खरकल । जइसन नेत ओइसन बरक्कत ।) (माकेसिं॰31.23)
1013 रावा (जन्ने चलत ऩवरतनी फुआ गोड़ लागी सबके मुँह से आदर के ई आवाज सुन के नवरतनी फुआ गुड़ के रावा लेखा लदबद हो जायत । सबके असीरबाद देत ।) (माकेसिं॰20.29)
1014 रिचना (चानमामू चाने लेखा चनमन, चकमक, चंचल । चानमामू सबसे बतिअयतन, खूब सट सट के रिच रिच के बात बनौवतन ।; कोई कभी-कभार भूलेटन के इयाद में उनकर दुआरी पर ठार होवत तो पुतोह अइसन लोछिया के बोलत जइसे लोहचुट्टी काट लेल । .... बेटा निमक-मिरचाई लगाके अलगे बोलत - बात घोंट-घोंट के बोलत, सन के रसरी लेखा रिच-रिच के बात निकालत । सब कमाई मोरब्बे-अँचार में गँवा देलन । आज कोई पूछहूँ न आवे कि भूलेटन के बाल-बच्चा कइसे जिअइत हथ ।) (माकेसिं॰32.15; 90.17)
1015 रिसि (= ऋषि) (जन्ने जाय ओन्ने ओकरा लपक के लोग गोदी में बइठा लेवथ । कण्व रिसि के आसरम में जइसे शकुन्तला ओइसहीं रामपेआरी ।) (माकेसिं॰16.4)
1016 रीठना (= मैल बैठना, गंदगी जमना) (कटहर लेखा माथ, रीठल नादा लेखा गाल, करिया गाजर लेखा नाक, हाथी के सूँढ़ लेखा बाँह, टील्हा लेखा छाती, लोढ़ा लेखा लिलार, कनगोजर लेखा भौं, जामुन लेखा आँख, ललगुदिया अमरूध के फाँक लेखा ओठ, घुनसारी लेखा दहकइत मुँह के गलफर, अनार के दाना लेखा दाँत, माथ पर करिया बादर लेखा केस, छव फीटा जवान दद्दू भइया के देखला पर सबके मुँह से एके बकार - 'भगवान बड़ा सोच-समझ के दद्दू भइया के अप्पन हाथ से गढ़लन हे ।') (माकेसिं॰100.1)
1017 रूआ (= रूई) (कोई हाथ पसारल कि तेतरी हवाक से गोदी में । जइसे बकरी के पठरू, बिलाई, कुत्ती के बच्चा लोआ-पोआ, ओइसहीं तेतरी, जुलुर जुलुर हाथ - पैर पुलुर पुलुर आउ देह - खेसारी के निढ़ल साग लेखा, सिमर के रूआ लेखा ।; ई सब देखला पर चनकी दाई के ई खिलकट रूआ के फाह पर कोइला के ढेर लेखा बुझा हे ।; दाँत एको अभी न टूटल हे बाकि माथा के केस रूआ के फाहा लेखा शोभऽ हे जइसे बरफ जम गेला पर हिमालय पहाड़ शोभऽ हे ।) (माकेसिं॰24.23; 65.12; 66.3)
1018 रूच (= रुचि) (घीव-डलडा ओकरा ला परान के घाती । तेल में के छानल सामान ओकर जीव के गाहँक । ओकर रूच साग-पात, फर-फरहरी जादे । कुदरूम के साग, सरसो के साग, पोई के पत्ता, पालक, नोनी, करमी, ललका साग ओकरा ला तुलसी के पत्ता लेखा ।; कोई झूमर, कोई सोहर, कोई होरी, कोई चइत, जेकरा जउन रूच, सुना के सबके रिझा देवथ आ बोझा के बोझा धान, गेहुम, खेसारी, मसुरी आउ बूँट के बड़का खरिहान अलग जायत ।) (माकेसिं॰19.30; 89.31)
1019 रूचगर (= रुचिकर) (गाय के दूध, रोटी, दलपीट्टी, गुड़पीट्ठी, ढकनेसर, दारा, सतुआ उनकर रूचगर भोजन ।) (माकेसिं॰101.27)
1020 रूसना (= रूठना) (पाँच पवनियाँ पौ बारह - हजामिन, कुम्हइन, मालीन, तेलीन आ चमइन । ... पाँचो के पाँच नेग, पुरोहित के पहिले । पवनियाँ रूसल सब कुछ खरमंडल, पवनियाँ खुश सब कुछ मंगल ।) (माकेसिं॰19.18)
1021 रूह-चुह (ऑफिस में आवइते उनकर चेहरा बसन्त में बगइचा लेखा रूह-चुह हो जायत । मउरल मुखड़ा गुलाब लेखा खिल जायत ।; एक कोठरी में अपने, एगो में माय आ एगो हित-मित ला । पूरूब-पछिम रूह-चुह बाग-बगइचा, बीच में दद्दू भइया के घर आ बइठका ।) (माकेसिं॰40.6; 103.2)
1022 रेंगनी (जे जनता के सतवलक ओकरा ककड़ी-खीरा लेखा कच कच चिबावे ला सबसे अगुआन । सामंती रोब-दाब, जमीन्दारी शोषण-पीड़ा उनका ला आँख में रेंगनी के काँटा ।) (माकेसिं॰106.5)
1023 रेगनी (= रेंगनी) (~ के काँटा) (रेगनी के काँटा बड़का होवे इया छोटका - काँटा काँटा हे, फूल कभी बनिये न सकत ।) (माकेसिं॰47.24)
1024 रेघाना (देवी मइया के सब गीत ऊ ककहरा लेखा इयाद कयले हलन । अमरूध, बइर, बेल, अँचार देला पर कोई बनिहारिन तनि कह देल 'ए भूलेटन भइया, तू अँचार आ अमरूध देके लोग के ठग देवऽ हऽ । हमनी के देवी मइया के गीत सुनावऽ तब न धान, गेहूँ इया खेसारी से तोर अँकवारी भर जतवऽ ।' फिन का, ऊ खेत में पल्थी मारलन आउ रेघा रेघा के गावे लगलन -) (माकेसिं॰87.12)
1025 रेह (= क्षारयुक्त मिट्टी, खारी मिट्टी; मिट्टी की दीवाल में लगी नोनी; नोनिआह मिट्टी) (चनकी दाई तेल-साबुन से घिना हे । सालो भर रेह से लुग्गा साफ करत ।) (माकेसिं॰66.12)
1026 रोग-बलाय (झूलइत रहल देह फाटल लुगरिया, रोगवा-बलाय सब हमरे दुअरिया । करम अभाग भगवान हो ताकल काहे दुई रे नजरिया ।) (माकेसिं॰77.4)
1027 रोटी-पीट्ठा (केकरो घर में खिचड़ी खयलन, केकरो घर में मठजाउर, केकरो दुआर पर रोटी-पीट्ठा खयलन, केकरो झोपड़ी में सतुआ घोर के पी लेलन, केकरो महल-अटारी में दाल-भात तरकारी इया दूध-रोटी ।) (माकेसिं॰86.11-12)
1028 रोपाना (हम्मर बोरिंग के पानी से तोर खेत रोपायत ? हम्मर हरवाहा चरवाहा के परतुक तू करबऽ । हम्मर महलाद तोरा भोगे ला बनलऽ हे ?) (माकेसिं॰50.26)
1029 लंगटे (जदि हम कमजोर जात में रहती त दिन-दहाड़े गाँव के लोग हमरा जिन्दा जरा देइतन । घाठी दे देइतन । माथा के केस मुड़वा के चूना के टीका लगवा के गली-गली घूमइतन । पर-पैखाना हड़िया में घोर के पिअइतन । मुँह में मिरचाई ठूँसल जाइत, नाली के कीड़ा-मकोड़ा घोंटावल जाइत । लंगटे करके नचावल जाइत । गाँव भर के पंच के सामने लंगटे ठार करके किरासन तेल छिड़िक के जरावल जाइत ।) (माकेसिं॰69.30-31)
1030 लइकन-फइकन (उनकर झूमर, सोहर, होरी, चइता, कृषि गीत, निरगुन सुन के सब कोई रीझ जायत । बनिहार के लइकन-फइकन उनका अइसन घेर लेतन जइसे चूँटी गुड़ के घेर लेवऽ हे ।) (माकेसिं॰83.2)
1031 लउकना (= दिखना) (जवानी के जोश में बिआह तो करइत गेलन - सुअर-बिलाई लेखा बाल-बच्चा जलमावइत गेलन बाकिर अब अनार के दाना लेखा दाँत टूटत तब बुझायत । खिजाब लगा के उज्जर माथ के बाल करिया कयल अब लउकत - चारो तरफ अन्हार-भुच, अन्हरिया, कुच-कुच करिया दिनो में रात के तरेगने सूझ रहल हे ।) (माकेसिं॰41.24)
1032 लकवा (~ धरना) (पेन्शन के मामला उनका लेखा चिल्ह-कउआ के चोंच लेखा । लोल मारइत मारइत अतना घवाहिल कर देल, जिनगी के जोश-खरोश के खून चिभइत गेल, आ पेन्शन उनका ला अइसन लकवा के बेमारी धरलक कि सीधे सुरधाम पहुँचा के छोड़लक ।) (माकेसिं॰46.7)
1033 लगहर (~ गाय; ~ भईंस) (सालो भर एगो लगहर गाय रखत । दूध देखइते ओकरा छींक आवे लगत ।; अइसन बात न हे कि उनका खाय-पीये के दुख हे । खूँटा पर दूगो लगहर भईंस, एगो गाय हमेसे रखतन ।; दुब्भी घास पर ऊ जादे चोट करतन । ओकरा से इनकर लगहर गाय-भईंस के दूध बढ़ जाहे ।) (माकेसिं॰20.9; 55.9; 57.4)
1034 लगाव (तेतरी दीदी के पानी से जादे लगाव । नदी-नाला, झील, तालाब झरना, आहर-पोखर ओकरा चुम्बक लेखा खिंच के ले आवऽ हे ।) (माकेसिं॰26.20)
1035 लगाव-बझाव (दुश्मन से कोई लगाव-बझाव न - सीधे गोली दागऽ, आ चुपचाप रात भर फोंफ काटइत रहऽ । कोई सक-सुबहा न, कोई मउँचक न ।) (माकेसिं॰47.20)
1036 लट्ठू (= लट्टू; मुग्ध, मोहित, रीझा हुआ) (दिन भर में दू बोझा, चार बोझा धान के कमाई - भुलेटन के घर के कमाई, करम के कमाई, मौसम के कमाई, मरउअत के कमाई । उनकर सोभाव पर सब लट्ठू ।) (माकेसिं॰82.25)
1037 लड़िक-भुरभुरी (टुनमुन बउआ के लड़िक भुरभुरी अभी भी न गेल हे ।) (माकेसिं॰21.25)
1038 लथरना (चनकी दाई घरे-बने भरल-पूरल । तीस बीघा नफीस खेत-बधार, आम-अमरूध, महुआ-जामुन, केरा-कटहर, अंवरा-पपीता के बारहमासा बाग-बगइचा, कोंहड़ा-भतुआ, लउका-नेनुआ, सीम-बरसीम, करइला से लथरल बगान, अलुआ, कोबी, टमाटर, रमतरोई, मूरई, मेथी, पालक, गाजर, राई, सरसो, तीसी, जवाइन-मंगरइला, लहसुन, पेयाज, बेदाम से लहफह - सातो बिहन । कोई चीज के कमी न ।) (माकेसिं॰64.14)
1039 लदबद (जन्ने चलत ऩवरतनी फुआ गोड़ लागी सबके मुँह से आदर के ई आवाज सुन के नवरतनी फुआ गुड़ के रावा लेखा लदबद हो जायत । सबके असीरबाद देत ।) (माकेसिं॰20.29)
1040 लफार (= लफारा; लफाड़ा; तेज गति या झोंका) (नदी के ~; आग के ~) (सबके नजर नदी के लफार पर । लहर आ चकोह के मिजाज पर । खाली हाथ जइसे शिकारी जउन मुँह लेके घर लवटऽ हे, ओहे हाल सब के सामने ।; जेठ के तपिश, बालू के भुंभुरी, आग के लफार, भट्ठा के लहक, रेल इंजिन के दहक का होवऽ हे - चनकी दाई के अतमा से जानल जा सकऽ हे - ओकर हिरदा में छिपल लोर, दिमाग में भरल बिछोह, बादर के भीतर छिपल ठनक, कड़क, गड़गड़ाहट आ बिजुरी के चउँध से जानल जा सकऽ हे ।) (माकेसिं॰23.16; 67.20)
1041 लमपोर (बस, ओहे दिन से ओकरा लोग नवरतनी फुआ कहे लगलन । नवरतनिए फुआ लेखा ओकर शरीर के बनावट । ओइसने चकइठ, गोर, लमपोर, बात-बेयोहार, चाल-चलन ।; चानमामू हमेशा हँस के बतिअयतन । उनकर चेहरा भी ओइसने चान लेखा - सुभग शरीर, लमपोर छव फीट के । उज्जर बग-बग धोती, देह में कुरता, माथ पर गान्ही टोपी, कान्ह से लटकइत झोला, गरदन में गमछा, हाथ में छाता इया एगो बकुली - बस, इहे उनकर पेहनावा हे ।) (माकेसिं॰16.24; 32.27)
1042 लमरना (तेतरी दीदी के आँख से कुछो बुझा न रहल हे । पीपर के पत्ता झर गेल, बरगद ठूँठ हो गेल, पाँकड़ आ गूलर के पता भींज गेल, ढिबरा ढह गेल, चँवर के सोती सूख गेल, जामुन झँवर गेल, सिरिस आ सीसो अलगे सिसक रहल हे, केला के घउद लमर गेल, पात-पात चिहक गेल, धरती दरक गेल, अकास झुक गेल, परबत ढिमिला गेल । सउँसे प्रकृति तेतरी दीदी के बिरह में अछोधार लोर बहा रहल हे ।) (माकेसिं॰28.2)
1043 लमा (= लम्मा, लम्बा) (पुरूब में पाँच बीघा में केला के बगान, चिनिया बेदाम आउ राई-सरसो के खेती ... बीच में झलासी आ खपड़ा से छावल ... सौ फीट लमा आउ पच्चीस फीट चौड़ा एगो चउपाल ।) (माकेसिं॰102.21)
1044 लरकना (मुँह में पान इया खइनी हमेशा कोंचले रहतन जइसे परसउती चिन्हा जाहे कि लइका होवे ला हे ओइसहीं इनकर पान इया खइनी ओठ के नीचे कोंचायल रहत । ऊ पिल्की कभी फेंकथ न एही कारन हे कि मुँह खोलला पर लार जिलेबी के चासनी लेखा लरक जायत ।) (माकेसिं॰38.13)
1045 लरखराना (= लड़खड़ाना) (हम तोरा से का मजाक करब । चाम के मुँह, लरखरा गेल तब का करूँ ।) (माकेसिं॰58.20)
1046 लरबराना (मोम जइसे पिघल-पिघल के नीचे गिरऽ हे ओइसहीं बड़ाबाबू हँसतन इया मुँह खोलतन कि ओठ के दुन्नो कोर से लार टघर टघर के उनकर दाढ़ी पर लरबरा जायत ।; बलेसर तनि सोंचे लगलन - इयाद पड़ल । "चनेसर भाई, हम समझ गेली । भगवान चाम के मुँह बना देलन हे, लरखरा ही जाहे । चनेसर रोय ला लेखा मुँह बनाके कहलन - "कहूँ उहों लरबरयलऽ तब सोरहो आना पानी में । छोड़ऽ जे भाग्य में लिखल होतई तो बिआह होयबे करतई । तू अगुअई मत करऽ ।") (माकेसिं॰38.7; 59.6)
1047 ललका (= लाल रंग वाला) (~ साग) (घीव-डलडा ओकरा ला परान के घाती । तेल में के छानल सामान ओकर जीव के गाहँक । ओकर रूच साग-पात, फर-फरहरी जादे । कुदरूम के साग, सरसो के साग, पोई के पत्ता, पालक, नोनी, करमी, ललका साग ओकरा ला तुलसी के पत्ता लेखा ।; उनका का चाही - पानी डालल बासी भात आउ ललका मिरचाई के खटाई भरल अँचार ।) (माकेसिं॰20.1; 55.15)
1048 ललगुदिया (उनकर बइर आझ के फास्ट फूड के कबूतर बना देइत, ललगुदिया अमरूद, आम, टमाटर के टरका देइत । लोग के पहिचान उनकर कतना तेज ।) (माकेसिं॰85.11)
1049 लल्लो-चप्पो (असल लड़ाई ओहे लोग लड़ रहलन हे । कतनो लोग राड़-रेआन, माल-मुसहर के पार्टी कह लेवे, भगत सिंह आ चन्द्रशेखर आजाद ओहे सब हथ । हमरा लल्लो-चप्पो न सोहाये - दूध के दूध, पानी के पानी । सच के लड़ाई ओहे लोग लड़ रहल हथ ।) (माकेसिं॰35.28)
1050 लहजवान (सब ओकरा दीदी कहे लगलन । बूढ़ा-बूढ़ी के जबान, नया-नोहर के बकार, औरत-मरद के लहजवान - तेतरी दीदी सब के आँख में बस गेल । हिरदा में ढुक गेल ।) (माकेसिं॰25.24)
1051 लह-फह (इनकर ई पहिल संतान हल । खुशी से मोर लेखा नाचे लगलन । घिरनी बन गेलन । पत्थल पर दुब्भी जमल - दुब्भी लेखा हिरदा लह-फह । मलिकार सुनलन तब पइसा लुटावइत-लुटावइत जेबी खाली कर देलन ।) (माकेसिं॰15.11)
1052 लहाश (= लाश) (सउँसे रामचरितर बिगहा शमशान बन के टुकुर टुकुर ताक रहल हे । सोन के पानी लाल हो गेल, बालू के कण-कण परमाणु बम के इयाद दिला रहल हे । कतना लहाश झलासी में बूट के होरहा लेखा झोला गेल, कतना के खोपड़ी असमान में उड़ गेल, कतना बूढ़ी हबकुरिए पड़लन से पड़ले हे, कतना बुतरू माय के गोद में सटल से सटले रह गेल ।) (माकेसिं॰109.3)
1053 लाटी-लठउल (= लाठी-लठउअल) (जउन गाँव में बात-बात पर लाठी लठउल, एक बित्ता आरी-पगारी ला भाला-गड़ास, राई के तीसी आ तीसी के राई बनावेओला गाँव, होत साँझ-बिहान सातो पुरखन के नेओतहरी, छोट-छोट बात पर गिधवा-मसान - ऊ गाँव में चानमामू सब के मामू बन के रह गेलन ।) (माकेसिं॰31.19)
1054 लाठा (महुआ के ~ बन के जीना) (गाँव में एक से एक गवैया बजवैया महुआ के लाठा बन के जी रहल हथ । ऊ लोग के सुर, ताल, लय, गाँव गवईं के संस्कार गीत गा गा के कतना लोग पद्मश्री आ पद्मभूषण से सम्मानित हो गेलन, बाकि रामजतन चाचा के गीत गाँव में रह गेल ।) (माकेसिं॰53.30)
1055 लाठी-कोड़ा (आजादी के लड़ाई में जेहल गेली, लाठी-कोड़ा खइली, हाथ-गोड़ में हेरी-बेरी पड़ल ।) (माकेसिं॰34.27)
1056 लामा (= लम्मा; लम्बा) (पाँच फुट पाँच ईंच के शरीर हे ओकर बिलकुल नापल जोखल । लामा हाथ नोहरंगनी से रंगल नोह के अंगुरी पकल लाल मिरचाई लेखा शोभऽ हे ।) (माकेसिं॰66.6)
1057 लिच-लिच (~ पातर) (हाथ-गोड़ अइसन लिच-लिच पातर कि पुरवइया हवा में नीम के सूखल पत्ता लेखा उड़िया जयतन ।) (माकेसिं॰55.6)
1058 लिट्टी-चोखा (होत भिनसहरे पराती शुरू - बड़ाबाबू गान्धी मैदान में टहले । सुलभ शौचालय में पर-पखाना, गंगा में नेहान-धोआन - बस, कोनो दुकान पर बइठ के लिट्टी-चोखा गटक जयतन आ टगइत स्कूल के ऑफिस ।) (माकेसिं॰40.4)
1059 लुगा (नवरतनी फुआ लगबो करऽ हे फुआ लेखा । उज्जर उज्जर भुआ लेखा केस, मांग में सेन्नुर, आमछाप लुगा, नाक में छूंछी, कान में कनबाली, गोड़ में बिछिया, नोहरंगनी से रंगल गोड़, लिलार में टिकुली, भर बाँह चूड़ी ।) (माकेसिं॰20.24)
1060 लुग्गा (चनकी दाई तेल-साबुन से घिना हे । सालो भर रेह से लुग्गा साफ करत ।) (माकेसिं॰66.12)
1061 लुरगर (धनेसर लेखा बुधगर लुरगर आदमी सब जगह हथ बाकि ओइसहीं दादागिरी, हुकुमगिरी चल रहल हे जइसे हम्मर ऑफिस में बेचारा धनेसर ।) (माकेसिं॰73.27)
1062 लुर-लच्छन (पाँचो बेटा के तो न पढ़ौलन बाकि बेटी के दोसर घर जाय ला हे, लुर-लच्छन अच्छा होवे के चाही । एही सोच के ऊ तेतरी के पढ़ावे ला स्कूल में नाँव लिखौवलन बाकि तेतरी ला स्कूल पंछी के पिंजरा जइसन !) (माकेसिं॰25.10)
1063 लुर-लुर (कोई हाथ पसारल कि तेतरी हवाक से गोदी में । ... शरीर से जइसे लुर लुर, सोभाव से ओइसहीं पुल पुल ।) (माकेसिं॰24.23)
1064 लुलुआना (हम्मर सवांग आ बाल-बच्चा कमजोर रहित त ओकरो लोग लुलुआवइत रहितन । बाकि केकर माय शेर बिअयलक हे जे हमरा सामने हम्मर इज्जत पर अंगुरी उठा सकऽ हे ।) (माकेसिं॰70.2)
1065 लुल्ह (= लूला) (ऊ लाठी के एक पटकन जेकर मकज पर पड़ गेल - समुझ लऽ सीधे सुरधाम, कहुँ हाथ-गोड़ पर पड़ गेल - समुझऽ हाथ-पैर से लुल्ह, पीठ इया कमर पर पड़ गेल समुझऽ रीढ़ इया कमर के हड्डी लोहा के गाटर से कोई तोड़ देल हे ।) (माकेसिं॰101.2)
1066 लुह-फुह (लुह-फुह बंगुरल किकुरल लतरिया, महुआ लटाई गेलई आम के मोजरिया । चिरईं-चुरूंगा सनसार हो, बन्हल हँकड़े गइया रे बकरिया ।) (माकेसिं॰76.26)
1067 लूर (चमोकन के देह में आग लग गेल - "अयलऽ हे बेटा के जिआवे ला भीख माँगे आ बोले के लूर हवऽ हइए न ।") (माकेसिं॰60.29)
1068 लेंढ़ा (= बलुरी; मकई के बाल से दाना छुड़ा लेने के बाद बचा सूखा अंश; कटहल के फल का मुसड़ा) (घर में मकई के खेत में चार खंभा के मचान बन गेल हे । ई मचान पर बइठतन तइयो ढकेलयतन, नीचे रहतन तइयो ककड़ी आ मकई के लेंढ़ा माथ पर बजरबे करत ।) (माकेसिं॰41.28)
1069 लेखा (= सदृश, समान, जैसा) (चमोकन माय-बाप के एकलौता बेटा हथ । उनकर असली नाम चनेसर हल । चनेसर के रूप-रंग, चाल-ढाल अनमन चमोकने लेखा । उनकर रंग ईंटा लेखा लाल, चुक्का लेखा मुँह, बनबादुर लेखा आँख ।) (माकेसिं॰55.3, 4)
1070 लेखा (ए धनेसर, सब जगह एहे बात हऊ बउआ - घर-घर देखा एके लेखा ।) (माकेसिं॰72.30)
1071 लेदरा (= गेंदरा, गेनरा, नेनरा) (गाँव के मेहरारू केंवाड़ बन्द कर देल । बाल-बच्चा के लेदरा तर घुसेर देल - खिड़की खोल के सब खिलकट देखे लगल । बिअहुती औरत के सास कोना-सान्ही से भी झाँके ला मना कर देल । माय बिन बिआहल लड़की के गोड़ में छान-पगहा डाल देल ।) (माकेसिं॰63.7)
1072 लेमो (भूलेटन के अँचार के सवाद जर-जेवार में मशहूर - आम के अँचार, अमड़ा के अँचार, लेमो के अँचार, अँवरा के अँचार, अमरूध के अँचार, कलौंदा के अँचार, मुरई आउ मिरचाई के अँचार, कटहर, करइला के अँचार - न जाने केतना किसिम के अँचार झोरी में लेके चलतन ।) (माकेसिं॰82.13)
1073 लेहुआना (सबके हाथ लेहुआयल हे । काटे से कोई बाज न अयलक । लूट मचल हे, जतना हिच्छा हे लूट लेवे ।) (माकेसिं॰73.25)
1074 लोंघड़निया (हरवाहा जब खेत में कादो करे लग तब ई खेत में लोंघड़निया मारे लगतन । जइसे खेत जोतला पर चउकी दिआ हे ओइसहीं ई सउँसे खेत में लोंघड़निया मारे लगतन ।) (माकेसिं॰56.2, 3)
1075 लोआ-पोआ (कोई हाथ पसारल कि तेतरी हवाक से गोदी में । जइसे बकरी के पठरू, बिलाई, कुत्ती के बच्चा लोआ-पोआ, ओइसहीं तेतरी, जुलुर जुलुर हाथ - पैर पुलुर पुलुर आउ देह - खेसारी के निढ़ल साग लेखा, सिमर के रूआ लेखा ।) (माकेसिं॰24.21)
1076 लोछियाना (कोई कभी-कभार भूलेटन के इयाद में उनकर दुआरी पर ठार होवत तो पुतोह अइसन लोछिया के बोलत जइसे लोहचुट्टी काट लेल । जीवन भर कमाके का कयलन ? सब दिन भीखे माँगइत रहलन । खेते-खेते छुछुआइत चललन । न घर-दुआर बनौलन न केकरो पढ़ौलन-लिखौलन ।) (माकेसिं॰90.13)
1077 लोढ़ा-सिलउट (छवो के बाल बच्चा लोढ़ा-सिलउट लेखा बज्जर, पढ़ल-लिखल, गुनगर, सोभवगर ।) (माकेसिं॰65.10)
1078 लोर (कोई तेतरी दीदी के गोड़ छुअइत हे, कोई अँकवारी में समाइत हे, कोई ओकर लोर पोंछ रहल हे ।) (माकेसिं॰27.12)
1079 लोल (~ मारना) (पेन्शन के मामला उनका लेखा चिल्ह-कउआ के चोंच लेखा । लोल मारइत मारइत अतना घवाहिल कर देल, जिनगी के जोश-खरोश के खून चिभइत गेल, आ पेन्शन उनका ला अइसन लकवा के बेमारी धरलक कि सीधे सुरधाम पहुँचा के छोड़लक ।) (माकेसिं॰46.5)
1080 लोहचुट्टी (कोई कभी-कभार भूलेटन के इयाद में उनकर दुआरी पर ठार होवत तो पुतोह अइसन लोछिया के बोलत जइसे लोहचुट्टी काट लेल । जीवन भर कमाके का कयलन ? सब दिन भीखे माँगइत रहलन । खेते-खेते छुछुआइत चललन । न घर-दुआर बनौलन न केकरो पढ़ौलन-लिखौलन ।) (माकेसिं॰90.13)
1081 शमशान (= श्मशान) (जिन्दगी भर के सजावल-सँवारल बगइचा देखइते-देखइते एके दिन में शैतान के हविश के शमशान बन गेल ।; सउँसे रामचरितर बिगहा शमशान बन के टुकुर टुकुर ताक रहल हे ।) (माकेसिं॰98.24; 109.1)
1082 शादी-बिआह (ऊ चल गेल, छछनइत खखनइत रह गेल - कोई भर मुँह हमरा से बोलइत, कोई अंगना-दुआर पर बइठे ला आदर से पीढ़ा देवइत, शादी-बिआह, गवना तिलक, छठी-छीला में बोलावइत - राम-बिआह, शिव-बिआह के झूमर, सोहर गीत गवावइत, दुल्हा-दुल्हिन के परिछन करवावइत, चउका पर बइठल बर-कनेया के असीरबादी अच्छत छींटे ला कहइत ।) (माकेसिं॰67.7)
1083 शादी-बिआह (केकरो शादी-बिआह हे, कपड़ा-लत्ता, जूत्ता-चप्पल, सोना-चानी के गहना, मर-मसाला, डलडा-तेल, पत्तल उधार-पईंचा दिलवा देतन, तिरवेदी जी के दुकान शर्मा जी के मकान, साग-सब्जी सब सरजाम जब ले ई करवा न देतन तब ले इनकर गोड़ साइकिल बनल रहत ।) (माकेसिं॰33.16)
1084 शीतला माय (बड़की छठी मइया के मनता उतारलक । शीतला माय के मन्दिल में खोंइछा भरलक ।) (माकेसिं॰42.27)
1085 संगोरना (= संगेरना; सेंगारना; संग्रह करना) (इहे बात के अमनख हम अप्पन मन में सोंगोरले एक दिन भूलेटन के बगइचा में गेली । संजोग से उनकर बेटा आ पुतोह दून्नो मिल गेलन । उनकर नाम लेवइते ऊ बेंग लेखा कूदे लगलन, कनगोजर लेखा रेंगे लगलन ।) (माकेसिं॰90.22)
1086 संझली (उनका बेटा भेल - छोटकी औरत रजमुनियाँ के कोख से । ... बड़की औरत लछमिनियाँ दया के आगार निकलल - खूब सेवा-टहल, तेल-कूँड़ कयलक, सोंठ-बतीसा घाँट के खिलावे बाकी मंझली मंगरी आ संझली सोमरिया के सौतीन डाह न मेटल ।) (माकेसिं॰42.19)
1087 संडक (= सड़क) (जउन संडक कमर लचका लचका के गले लगावइत हल ऊ बिरह में नागिन लेखा लोटइत हे ।) (माकेसिं॰80.12)
1088 संतोख (= संतोष) (हम्मर जब ऊ बड़ाई करे लगऽ हलन तब लजा जा हली आ कहबो करऽ हली कि हम अपने के आगु कुछ न ही, समझऽ ढेला-झिटकी बाकि उनका संतोख न होवऽ हल ।) (माकेसिं॰51.19)
1089 सउँसे (घना बगइचा, आम, महुआ, लीची, अमरूध के पेड़ । बगइचा के बीच में एगो झोपड़ी, झोपड़ी के चारो तरफ गुलमोहर आ सिमर के फूल सउँसे बगइचा के धधकइत आग लेखा उगइत सुरूज के छितिज लेखा अनेर कयले ।) (माकेसिं॰15.6)
1090 सउरी (= सौरी; प्रसूति गृह, प्रसव करने का कमरा) (कोई औरत के लइका होवे ला हे, दोपस्ता सउरी में बइठ के परसउती के पीड़ा से परान ब्रह्मांड पर चढ़वले हे, जइसे भगवान के धेयान लगावल जाहे, ओइसहीं नवरतनी फुआ पर धेयान टंगल हे ।; नवरतनी फुआ आयल, नीम के पत्ता डाल के खौलावल पानी से - लाइफ बोआय से हाथ धोलक आउ सउरी में पैर डाललक ।; जेकर नार काटलक ओकर जिनगी अबाद । आझ ले केकरो ढोंढ़ न फेंकलक, सउरी में केकरो जमुहा आ हाबा-डाबा न धयलक ।) (माकेसिं॰18.5, 9, 12)
1091 सकदम (सब के परान सकदम । नाक से पसेना चूए लगल । आँख तर अन्हार । कहुँ तेतरी दीदी के थाह-पता न ।; खेत के घास-पउधा ओकर डोली तर अइसन पसर गेलन कि तेतरी दीदी पेसम पेस में । ओकर परान सकदम ।) (माकेसिं॰23.9; 27.22)
1092 सक-सुबहा (दुश्मन से कोई लगाव-बझाव न - सीधे गोली दागऽ, आ चुपचाप रात भर फोंफ काटइत रहऽ । कोई सक-सुबहा न, कोई मउँचक न ।) (माकेसिं॰47.21)
1093 सगरे (= सगरो) (ओझा पट्टी होवे इया अहीर पट्टी, कुम्हर टोली होवे इया मुसहर टोली, बभन टोली होवे इया कहर टोली - चानमामू सगरे देखाई देतन ।) (माकेसिं॰30.15)
1094 सगरो (गाँव में सगरो तेतरी दीदी के चरचा ।) (माकेसिं॰28.8)
1095 सड़ाक (घोड़ा आ बयल चुचकारे से चलऽ हे ? पहिले टिटकारऽ फिर फटकारऽ आ न तब सड़ाक ! सड़ाक !! पीठ पर चाभुक के मार फिर देखऽ कइसे काम होवऽ हे ।) (माकेसिं॰72.13)
1096 सनकना (कोई कह देत अलीगढ़ में दू हजार हिन्दू के रातोरात काट के कहवाँ खपा देवल गेल कोई पता न । ... तीसर गाँव से पागल लेखा सनकल दिमाग से भरेठ गिरावे लगत - अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर में आठ घंटा बमबारी होवइत रहल, पाँच सौ पाकिस्तानी आतंकवादी ढेर हो गेलन ।) (माकेसिं॰96.31)
1097 सनमत (ओ घड़ी गाँव में अइसन सनमत हल कि एक आवाज पर सउँसे गाँव टूट पड़ल हल ।) (माकेसिं॰22.4)
1098 सनमान (= सम्मान) (बूढ़-जवान, बाल-बुतरू सब रजिया अम्मा के आदर आउ सनमान करऽ हथ ।) (माकेसिं॰92.11)
1099 सबदगर (= स्वादिष्ट) (गाय के दूध, रोटी, दलपीट्टी, गुड़पीट्ठी, ढकनेसर, दारा, सतुआ उनकर रूचगर भोजन । कोंहड़ा, बइगन, भंटा, लउका, नेनुआँ, सीम, कटहर, ओल, आलू, कोबी, साग-पात सबदगर सब्जी ।) (माकेसिं॰101.28)
1100 समाना (= अन्दर घुसना) (धनेसर जब जंगल के बीचोबीच पातर सड़क से गुजरे लगल तब हमरा लगे कोनो खोह में सर सर समाइत जा रहली हे ।) (माकेसिं॰78.20)
1101 समिआना (= शामियाना) (गहना चढ़ावे के टेम फिन चमोकन के नाम से गारी दिआये लगल । चमोकन मड़वा से उठलन आ समिआना में आके बइठलन त झाँकियो मारे न गेलन समधी के दुआर पर ।) (माकेसिं॰59.22)
1102 समुझना (= समझना) (बड़ाबाबू ! जुग जमाना के समुझऽ । अब तोर जुग बीत गेलवऽ, नया जुग शुरू भेलवऽ पइसा के जुग, चमचागिरी के जुग, बेगारी आ खिदमतगारी के जुग, पइसा फेंकऽ तमाशा देखऽ ।; तीनो औरत के तीन चूल्हा जरे लगल । बड़की सब बात समुझ के भी चुप रहे ।) (माकेसिं॰44.13; 46.16)
1103 समुझाना (= समझाना) (रजिया अम्मा अतना थक गेल हे कि खाट पकड़ लेल । कंठ से अवाज न निकले । जे कहत से हाथ से समुझा के इया सिलेट-कागज पर लिख के ।) (माकेसिं॰97.6)
1104 सम्भारना (= सम्हारना; सँभालना) (बड़ाबाबू खुश नजर न आवित हथ । इहाँ से हटला पर घर के नौटंकी आ सर्कस के सम्भारत ? जवानी के जोश में बिआह तो करइत गेलन - सुअर-बिलाई लेखा बाल-बच्चा जलमावइत गेलन बाकिर अब अनार के दाना लेखा दाँत टूटत तब बुझायत ।) (माकेसिं॰41.21)
1105 सरंगी (= सारंगी) (ऊ गोरा रंग के, अंगरेज के मात करेवाला देह के चमड़ी । इहे चमड़ी के बल पर चार गो लड़की लोभा गेल - ऊ चार शादी कयलन - चारो चार लाख के । एगो सरंगी घोंटऽ हे त दूसरा कंसी, तीसरा मानर बजावऽ हे त चउथा पखाउज ।) (माकेसिं॰39.3)
1106 सरग (= स्वर्ग) (तरह तरह के गाछ-बिरिछ, फूल-पत्ती, झील-झरना देख के मन सरग के परिकरमा करे लगल ।) (माकेसिं॰79.8)
1107 सरगनई (सउँसे गाँव ठकुरवाड़ी में जुटल । दूबे जी के सरगनई मेंपंचइती भेल ।) (माकेसिं॰21.16)
1108 सरजाम (= व्यवस्था; किसी काम के लिए जरूरी सामान) (~ जुटना; ~ जुटाना) (पुआ-पकवान से बगइचा गमगमा उठल - दूध के तसमई, भतुआ के मिठाई - सौ किसिम के सरजाम ।; केकरो घरे मँड़वा गड़ा रहल हे । गाड़े ला बाँस, बान्हे ला मूंज के रस्सी, छावे ला झलासी, बाँह पूजे ला अइपन, सब सरजाम जुटल । गाँव घर के बाबा-भइया, दादी-चाची पहुँचल हथ बाकि नवरतनी फुआ के असरा जोहा रहल हे, सबके नजर डघ्घर पर । एतने में नवरतनी फुआ टुघुरइत टुघुरइत आ गेल ।; केकरो शादी-बिआह हे, कपड़ा-लत्ता, जूत्ता-चप्पल, सोना-चानी के गहना, मर-मसाला, डलडा-तेल, पत्तल उधार-पईंचा दिलवा देतन, तिरवेदी जी के दुकान शर्मा जी के मकान, साग-सब्जी सब सरजाम जब ले ई करवा न देतन तब ले इनकर गोड़ साइकिल बनल रहत ।) (माकेसिं॰15.15; 17.22; 33.19)
1109 सरधा-भगति (= श्रद्धा-भक्ति) (कोई पुजारी जतना सरधा-भगति से पूजा के डाली सरिआवऽ सजावऽ हे ओतने मनगर होके किसिम-किसिम के अँचार लगा के घर में रखले रहतन ।) (माकेसिं॰85.14)
1110 सरापना (= शाप देना) (उनका बेटा भेल - छोटकी औरत रजमुनियाँ के कोख से । ... बड़की औरत लछमिनियाँ दया के आगार निकलल - खूब सेवा-टहल, तेल-कूँड़ कयलक, सोंठ-बतीसा घाँट के खिलावे बाकी मंझली मंगरी आ संझली सोमरिया के सौतीन डाह न मेटल । दुन्नो के बज्जर पड़ गेल - चौबीसो घंटा कपार ठोकइत रहे - ओकर कोख के सरापइत रहे ।) (माकेसिं॰42.21)
1111 सरिआना (कोई पुजारी जतना सरधा-भगति से पूजा के डाली सरिआवऽ सजावऽ हे ओतने मनगर होके किसिम-किसिम के अँचार लगा के घर में रखले रहतन ।) (माकेसिं॰85.14)
1112 सवख (= शौक) (हमरा कोनो सवख हे कि जने चलूँ, पास में पिस्तौल लेके चलूँ । रात भर कभी हम, कभी हम्मर औरत, कभी बेटा, कभी पुतोह, मलेटरी के सिपाही लेखा बोर्डर पर घिरनी लेखा नाचइत रहऽ ही ।) (माकेसिं॰51.20)
1113 सवखीन (= शौकीन) (खाजा आ तिलकुट के सवखीन चानमामू साल में तीन चार बार सिलाव आउ गया जयतन ।; उनकर मेहरारू भी उनके लेखा साया-साड़ी आ गहना-गुड़िया के सवखीन ।; गान-बजान के ऊ अतना सवखीन हलन कि जेवार से गावे ला उनका बोलहटा आवऽ हल ।) (माकेसिं॰34.8, 12; 53.14)
1114 सवांग (हम्मर सवांग आ बाल-बच्चा कमजोर रहित त ओकरो लोग लुलुआवइत रहितन । बाकि केकर माय शेर बिअयलक हे जे हमरा सामने हम्मर इज्जत पर अंगुरी उठा सकऽ हे । हम जिन्दा ही तब अप्पन सवांग के चलते, बाल-बच्चा, बेटा-बेटी, पोता-पोती, नाती-नतिनी के चलते ।; धनेसर हम्मर घर के सवांग, हम्मर पूरा परिवार ओकर घर के सदस्य ।) (माकेसिं॰70.1, 4; 81.11)
1115 सवाई (~ सूद = मूलधन एक पर मिश्रधन सवा अर्थात् सालाना 25 % सूद) (गाँव में सबके हाथ खाली बाकि चमोकन के हाथ में बारहो मास लछमी सदा बिराजमान । ई केकरो उधार-पईंचा न दे सकथ । जब देतन तब सवाई सूद पर ।) (माकेसिं॰56.29)
1116 ससुरार (नवरतनी फुआ के नइहर केला के बगान, ससुरार बाँस के बँसवारी । नइहर में सात गो भाई, ससुरार में सात गो देवर-भईंसुर । नइहर बहुत कम जायत । ससुरार से छुटकारा कहाँ ।; जउन घड़ी नवरतनी फुआ ससुरार में गोड़ धयलक हल, ओकर चढ़इत जवानी देख के सब कोई अगरा जा हल ।) (माकेसिं॰20.16, 17, 18, 31)
1117 सहकबउरी (= सहजबउरी; अधपगला जइसा व्यवहार) (कोई कहे देवी मइया देह धयले हथीन - कोई कहे चनकी दाई बायमत पूजऽ हथीन - कोई कहे देह पर मियाँ-बीबी आवऽ हथीन । कोई कहे डाइन कोई पिचासिन । कोई कहे मन के सहकबउरी हे - कोई कहे अधकपारी हो गेलथीन हे - कोई कहे चनकी दाई सनकी हो गेलथीन ।) (माकेसिं॰63.18)
1118 सहिजन (= सहजन; मुनगा) (नेनुआ आ झिंगुनी, सहिजन आ अदौरी ओकरा ला सोना के भण्डार । सब दिन ऊ साग भात खायत । बूट आ खेसारी के साग पर तो ओइसहीं टूट पड़ऽ हे जइसे खेत से भूखल बयल नाद में गोतल सान्ही-पानी पर ।) (माकेसिं॰20.6)
1119 सहुर (= सहूर) (चमोकन के मुँह कुम्हार के आँवा लेखा भभके लगल - "बूढ़ी हो गेलऽ बाकि बोले के सहुर न सीखलऽ ।"; हमरा बोले के सहुर अब बुढ़ारी में का आवत ।) (माकेसिं॰60.2, 6)
1120 सहूर (एही बीच में चमोकन के मुँह लाल, आँख बिरबिरावे लगलन - "हटलऽ कि एक एँड़ देऊँ । बोले के पहिले सहूर हवऽ ।) (माकेसिं॰58.17)
1121 साँझ-बिहान (जउन गाँव में बात-बात पर लाठी लठउल, एक बित्ता आरी-पगारी ला भाला-गड़ास, राई के तीसी आ तीसी के राई बनावेओला गाँव, होत साँझ-बिहान सातो पुरखन के नेओतहरी, छोट-छोट बात पर गिधवा-मसान - ऊ गाँव में चानमामू सब के मामू बन के रह गेलन ।) (माकेसिं॰31.21)
1122 साँप-बिच्छा (राह चलत तब नजर धरती मइया के गोद में । ओकरा देख के साँप-बिच्छा, सियार-बिलार भी राह छोड़ के हट जायत ।) (माकेसिं॰20.27)
1123 साछात (= छछात; साक्षात्) (तू लोग जे लिखऽ हऽ ऊ आत्मा के आवाज हे । सुरसत्ती तोरा लोग पर साछात सवार होके लिखावऽ हथ ।) (माकेसिं॰36.31)
1124 साड़ी-झूला (बिसउरी पूरल । नवरतनी फुआ के नया साड़ी-झूला, भर हाथ चूड़ी, माँग में सेन्नुर, खोंइछा में चाउर, सीधा अलग से ।) (माकेसिं॰18.13)
1125 सान्ही (कोना-~) (गाँव के मेहरारू केंवाड़ बन्द कर देल । बाल-बच्चा के लेदरा तर घुसेर देल - खिड़की खोल के सब खिलकट देखे लगल । बिअहुती औरत के सास कोना-सान्ही से भी झाँके ला मना कर देल । माय बिन बिआहल लड़की के गोड़ में छान-पगहा डाल देल ।) (माकेसिं॰63.9)
1126 सान्ही-पानी (= सानी-पानी) (~गोतना) (सब दिन ऊ साग भात खायत । बूट आ खेसारी के साग पर तो ओइसहीं टूट पड़ऽ हे जइसे खेत से भूखल बयल नाद में गोतल सान्ही-पानी पर ।; चानमामू के सब कुछ मिलल, आ जे मिलल से छप्पर फार के । ओह जमाना में जब केकरो घिरसिर ईंटा के बन जा हल त लोग देखे आवऽ हल - चानमामू के ईंटा के मकान छोड़ऽ, जब जनावर के बान्हे ला ईंटा के खरंजा लगल, सान्ही-पानी गोत के खिआवे ला सिरमिट के पक्का नाद बनल, ऊपर से हवादार खप्पर छानी बनल तब जेवार के लोग देखे अयलन ।; चानमामू जनावर के बड़ा प्रेमी । जब ले ऊ अप्पन हाथ से सान्ही-पानी न गोततन तब ले उनका मच्छर काटइत रहत आ जनावर भोंकड़इत रहत ।) (माकेसिं॰20.8; 31.31; 32.6)
1127 साहितकार (= साहित्यकार) (हम साहितकार रहती त एगो बड़का उपन्यास लिख देती ।; स्व अनुभूति, परा अनुभूति आ सहानुभूति में कतना अन्तर हे न कोई साहितकार, कलाकार बता सकऽ हे न ई समीक्षक समझ सकऽ हे ।) (माकेसिं॰43.30; 67.30)
1128 सिंगार (= शृंगार) (करुआ तेल उनकर जिनगी के सिंगार हे । नेहाये के पहिले सउँसे शरीर करुआ तेल चभोर लेतन ।) (माकेसिं॰55.21)
1129 सिंगार-पटार (हम जान के नाच न करऽ ही । हमरा सामने उनकर मूरत ठीक अधरतिया में आवत । हम्मर देह सिहरे लगत, काँपे लगत । भोर होते होते सिंगार-पटार करके हम नाचे लगऽ ही । हमरा कुछ न बुझाये ।) (माकेसिं॰69.14)
1130 सिआह (= स्याह, काला, विवर्ण) ("हित-नाता लेखा आवऽ हऽ, आवऽ जा, एकरा ला हमरा कोई अमनख न हे । बाकि तू तो पढ़ल-लिखल होके आझ बूरबक लेखा काहे बोलइत हऽ ।" हम तो सिआह बन गेली । सोंचइत घरे अइली ।) (माकेसिं॰57.14)
1131 सिकड़ी (= सिकरी) (मलकिनी कहऽ हथ - 'धनेसर अबहियो होत भिनुसहरा सिकड़ी बजावऽ हे तखनिए हम्मर नीन टूट जाहे । धनेसर देह से हमनी के बीच न हे बाकि ओकर इयादगार हम्मर पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलइत जायत ।') (माकेसिं॰81.27)
1132 सिकरी (= सिकड़ी, साँकल) (होत अनमुहान धनेसर साहेब के डेरा पर । ओन्ने मुरगा बाँग देत एन्ने धनेसर घर के सिकरी बजावे लगत । लइकन सबके उठावत, आँख पर पानी के छिंटा देत आ पढ़े ला महटगिरी करे लगत ।) (माकेसिं॰74.11)
1133 सिकरेट (= सिगरेट) (अरे रामायण गावे अयलऽ हे कि गांजा के दम लगावे, फूलचन के रामायण हे, खिंच लऽ बीड़ी-सिकरेट, थुकर ल खैनी खा खा के ।) (माकेसिं॰50.7)
1134 सिमर (= सेमल) (घना बगइचा, आम, महुआ, लीची, अमरूध के पेड़ । बगइचा के बीच में एगो झोपड़ी, झोपड़ी के चारो तरफ गुलमोहर आ सिमर के फूल सउँसे बगइचा के धधकइत आग लेखा उगइत सुरूज के छितिज लेखा अनेर कयले ।; कोई हाथ पसारल कि तेतरी हवाक से गोदी में । जइसे बकरी के पठरू, बिलाई, कुत्ती के बच्चा लोआ-पोआ, ओइसहीं तेतरी, जुलुर जुलुर हाथ - पैर पुलुर पुलुर आउ देह - खेसारी के निढ़ल साग लेखा, सिमर के रूआ लेखा ।; अतना कहइत कहइत उनकर माथ के उज्जर बार हिमालय लेखा ठार हो गेल । झुकल हलन से सोझ हो गेलन, उनकर बदन काँपे लगल, आँख सिमर के फूल लेखा लाल टेस ।) (माकेसिं॰15.6; 24.23; 36.12)
1135 सिरमिट (= सिमेंट) (चानमामू के सब कुछ मिलल, आ जे मिलल से छप्पर फार के । ओह जमाना में जब केकरो घिरसिर ईंटा के बन जा हल त लोग देखे आवऽ हल - चानमामू के ईंटा के मकान छोड़ऽ, जब जनावर के बान्हे ला ईंटा के खरंजा लगल, सान्ही-पानी गोत के खिआवे ला सिरमिट के पक्का नाद बनल, ऊपर से हवादार खप्पर छानी बनल तब जेवार के लोग देखे अयलन ।; एक किनार पर बोरिंग, बोरिंग के बगल से धामिन साँप लेखा एगो रहता घर तक पहुँचऽ हे जहाँ तीन गो सिरमिट के छत कयल पक्का कोठरी - खूब हवादार आउ रोशनदार ।) (माकेसिं॰32.1; 102.29)
1136 सिरिस (गाँव में डघ्घर पर पीपर, पांकड़, आम, जामुन, बरगद, महुआ, सीसो, सिरिस के झमाठ झमाठ पेड़ ओकर मन के पीड़ा के बखान कर रहल हथ, ओकर हिरदा के दरद बता रहल हथ ।) (माकेसिं॰66.27)
1137 सिरे (= अनुसार) (अनाज के किसिम-किसिम के दाना बना के बाग-बगइचा आ तलाब के जीव-जन्तु के बुतात टेम के सिरे दुन्नो शाम अप्पन हाथ से देइत रहत ।) (माकेसिं॰96.13)
1138 सिलेट (एही सोच के ऊ तेतरी के पढ़ावे ला स्कूल में नाँव लिखौवलन बाकि तेतरी ला स्कूल पंछी के पिंजरा जइसन ! ई फुदकेओला, कुदकेओला, चहकेओला, स्कूल में मन कहाँ से लगो, कौपी सिलेट कुईंया-तालाब में डाल देवे ।; रजिया अम्मा अतना थक गेल हे कि खाट पकड़ लेल । कंठ से अवाज न निकले । जे कहत से हाथ से समुझा के इया सिलेट-कागज पर लिख के ।) (माकेसिं॰25.14; 97.6)
1139 सींझना (नइहरा में सींझले जउरिया, ये जउरिया ये मइया । मइया ससुरा में लगले धमसिया ये मइया ॥ मइया कउनी बहनवें नइहर जाऊँ ये मइया । हथवा में लेले दूई चिपरिया ये मइया ॥) (माकेसिं॰87.23)
1140 सीज (= एक कँटीला पौधा जिसमें पत्ते नहीं होते, नागफनी) (बेचारे कुकुहारो से काँटा लेखा सीझइत गेलन आ गल गल के मोम लेखा पिघलइत गेलन । छिलइत गेलन बढ़ही के बँसुली से लकड़ी लेखा, साग के टूसा लेखा खोंटाइत गेलन । जिनगी भर सीज के काँटा पर सुतइत गेलन ।; दिन बीतइत गेल । चमोकन पोता-पोती वाला हो गेलन बाकि चमोकन नाम के पुकार उनका ला सीज के काँटा बनइत गेल । बुढ़ारी के खीस में केतना के कपार फोड़ देलन, केतना के दाँत काट लेलन ।; कोई मियाँ-बीबी ओकर देह धयले न हल । कोई जादू-टोना ऊ न जानल । बाकि अछरंग के सीज के काँट पर बिलबिला बिलबिला के मर गेल ।) (माकेसिं॰46.2; 62.2; 67.14)
1141 सीझना (बेचारे कुकुहारो से काँटा लेखा सीझइत गेलन आ गल गल के मोम लेखा पिघलइत गेलन । छिलइत गेलन बढ़ही के बँसुली से लकड़ी लेखा, साग के टूसा लेखा खोंटाइत गेलन । जिनगी भर सीज के काँटा पर सुतइत गेलन ।; वास्तव में चनकी दाई के दरद मीरा के दरद लेखा कोई समझ न सकल । चनकी दाई भात लेखा सीझल कहानी हे ।) (माकेसिं॰45.29; 70.10)
1142 सीधा (= भोजन बनाने का कच्चा सामान; पकाने या सिझाने का सामान) (बिसउरी पूरल । नवरतनी फुआ के नया साड़ी-झूला, भर हाथ चूड़ी, माँग में सेन्नुर, खोंइछा में चाउर, सीधा अलग से ।) (माकेसिं॰18.14)
1143 सीम-बरसीम (चनकी दाई घरे-बने भरल-पूरल । तीस बीघा नफीस खेत-बधार, आम-अमरूध, महुआ-जामुन, केरा-कटहर, अंवरा-पपीता के बारहमासा बाग-बगइचा, कोंहड़ा-भतुआ, लउका-नेनुआ, सीम-बरसीम, करइला से लथरल बगान, अलुआ, कोबी, टमाटर, रमतरोई, मूरई, मेथी, पालक, गाजर, राई, सरसो, तीसी, जवाइन-मंगरइला, लहसुन, पेयाज, बेदाम से लहफह - सातो बिहन । कोई चीज के कमी न ।) (माकेसिं॰64.13-14)
1144 सीसो (= शीशम) (तेतरी दीदी के आँख से कुछो बुझा न रहल हे । पीपर के पत्ता झर गेल, बरगद ठूँठ हो गेल, पाँकड़ आ गूलर के पता भींज गेल, ढिबरा ढह गेल, चँवर के सोती सूख गेल, जामुन झँवर गेल, सिरिस आ सीसो अलगे सिसक रहल हे, केला के घउद लमर गेल, पात-पात चिहक गेल, धरती दरक गेल, अकास झुक गेल, परबत ढिमिला गेल । सउँसे प्रकृति तेतरी दीदी के बिरह में अछोधार लोर बहा रहल हे ।) (माकेसिं॰28.1)
1145 सुअर-बिलाई (बड़ाबाबू खुश नजर न आवित हथ । इहाँ से हटला पर घर के नौटंकी आ सर्कस के सम्भारत ? जवानी के जोश में बिआह तो करइत गेलन - सुअर-बिलाई लेखा बाल-बच्चा जलमावइत गेलन बाकिर अब अनार के दाना लेखा दाँत टूटत तब बुझायत ।) (माकेसिं॰41.21-22)
1146 सुघ्घर (धन्य हथ चानमामू ! धन से जइसन मजगूत जन से ओइसने भरपूर, देह से जइसन सुघ्घर नेह से ओइसने सुथर ।) (माकेसिं॰31.16)
1147 सुतना-बइठना (बगइचा के एगो कोना पर बाँस के चचरी के बनावल उनका सुते-बइठे ला एगो छावल मचान बना देवल गेल हे ।) (माकेसिं॰103.16-17)
1148 सुताना (घरे अयला पर देखइत हथ सब कि मालिक ओहे अदमी हथ जे चँवर में मिललन हल । चमोकन औरत के कहलन, "सबके रोटी आ मट्ठा खिआ के सुता दऽ, बिहने बिदाई एको पइसा दीहऽन ।") (माकेसिं॰61.27)
1149 सुधुआ (= सीधा) (बड़ाबाबू के सुधुआ गाय समझ के सब कोई दुहलन । जेकर बरिसो के अँटकल फाइल रफा-दफा कर देलन, ऊ इनका देखइते मुँह फेर लेवऽ हे । जेकर बेटा के फस्ट डिविजन पास करावे में एँड़ी-चोटी के पसेना एक कर देलन आझ ऊ इनका देखला पर मुँह ढाँप लेइत हे ।) (माकेसिं॰45.10)
1150 सुननिहार (बीच में झलासी आ खपड़ा से छावल ... सौ फीट लमा आउ पच्चीस फीट चौड़ा एगो चउपाल जेकरा में दद्दू भइया होरी, चइता, आल्हा, कुँवर विजयी, चुहड़मल, रानी सुरुंगा के गीत सुननिहार लागी, ओहे में एगो मंच जेकरा पर दद्दू भइया के बइठका आ गवनिहार के आसन लगऽ हे ।) (माकेसिं॰102.23)
1151 सुनवइया (आझ लव शर्मा जब गावे लगऽ हथ तब सुनवइया आपुस में एहे कहतन - 'ई धरती बड़ा भाग्यशाली हवऽ, देखऽ रामजतन चाचा पोता के हूबहू रूप धर लेलन ।') (माकेसिं॰52.30)
1152 सुन्न (= शून्य) (चमोकन फिन मुँह चुनिअएलन, आँख बिरबिरयलन, "सुनऽ बलेसर, बिआह न होतवऽ । मकान के नेवो न दिआयल आ काग बइठे लगल ।" बलेसर के दिमाग सुन्न । "कउन असगुन के बात हो गेल ?") (माकेसिं॰59.1)
1153 सुन्नर (= सुन्दर) (उनकर जिनगी के अन्हार गोड़ी कबार देल । उनका बेटा भेल - छोटकी औरत रजमुनियाँ के कोख से ।) (माकेसिं॰42.14)
1154 सुन्ना (= सूना) (बहिन के भाई लुट गेल, पत्नी के पति हेरा गेल, माय के गोदी सुन्ना हो गेल ।) (माकेसिं॰98.4)
1155 सुरसती (= सरस्वती) (गाँव गंगा, जमुना, सुरसती के संगम, तिरवेणी के गुण, धरम सोभाव से गाँव के वातावरण में सदा शान्ति बिराजइत रहल ।) (माकेसिं॰92.5)
1156 सुरसत्ती (= सरस्वती) (तू लोग जे लिखऽ हऽ ऊ आत्मा के आवाज हे । सुरसत्ती तोरा लोग पर साछात सवार होके लिखावऽ हथ ।) (माकेसिं॰36.30)
1157 सुरुका (एक दिन धनेसर के माय धड़फड़ाइत लोटा लेले आयल । कह बइठलक - "ए बउआ चमोकन ! ... हम गाय खरीद न सकी । हम्मर बेटा के तूहीं जिअयबऽ ।" एके सुरुका में ऊ सब बात कह देलक ।) (माकेसिं॰60.27)
1158 सुरूका (= सुर्ख) (हमरा बरदाश्त न होआयत । हम्मर आँख देखइते हऽ आ जबसे एकरा निकाले ला छुड़ी घोंपल गेल, तहिया से लाल सुरूका अपने आप हो गेल । हम तनि ताकली का कि रामजतन आँख देखा देलन ।) (माकेसिं॰50.11)
1159 सुरूकिया (बरसात के महीना, कोरे कोर उपलायल नदी । बड़का बड़का चकोह, खतरनाक खतरनाक जानलेवा भँवरी आ ओकरा में तेतरी दीदी चभाक से कूद गेल आ डूबकी मारलक त एके सुरूकिया में नदी के ऊ पार ।; जइसे लोटा के लोटा दूध आ गुड़ के शरबत एके सुरूकिया में गड़गड़ाइत पेट में डाल लेतन ओइसहीं चूड़ा-दही खाय लगतन तब देखे ओला अचरज में पड़ जाहे ।) (माकेसिं॰23.5; 102.2)
1160 सुलछनी (~ बेटी) (केकरो बेटी बिना गोदी सूना हे, नवरतनी फुआ के असीरबाद से सुलछनी बेटी जलम ले लेत ।) (माकेसिं॰18.17)
1161 सूँढ़ (= सूँड़) (कटहर लेखा माथ, रीठल नादा लेखा गाल, करिया गाजर लेखा नाक, हाथी के सूँढ़ लेखा बाँह, टील्हा लेखा छाती, लोढ़ा लेखा लिलार, कनगोजर लेखा भौं, जामुन लेखा आँख, ललगुदिया अमरूध के फाँक लेखा ओठ, घुनसारी लेखा दहकइत मुँह के गलफर, अनार के दाना लेखा दाँत, माथ पर करिया बादर लेखा केस, छव फीटा जवान दद्दू भइया के देखला पर सबके मुँह से एके बकार - 'भगवान बड़ा सोच-समझ के दद्दू भइया के अप्पन हाथ से गढ़लन हे ।') (माकेसिं॰100.2)
1162 सेन्नुर (= सेनुर, सिन्दूर) (सपना में तेतरी दीदी इन्नर के परी लेखा देखाई दे रहल हे । पिअर बिअहुती साड़ी, भर हाथ चूड़ी, मांग में सेन्नुर, कान में झूमका, नाक में नथिया, आँख में काजर, पाँव में महावर, ओठ में लिपिस्टिक, बूटेदार चद्दर ओढ़ले सबके सामने ठार हे ।) (माकेसिं॰28.25)
1163 सेन्हमारी (सबके खेत के खेसारी कबर गेल, धान के परूई राताराती बान्ह के पताल में खपा देवल गेल, केकरो घर में सेन्हमारी भेल, केकरो घर में डकैती, केकरो खरिहान में आग लगा देवल गेल, केकरो गोरू-डांगर खोल के सोन पार हो गेल बाकि चानमामू के एगो पत्तो न खरकल । जइसन नेत ओइसन बरक्कत ।) (माकेसिं॰31.24)
1164 सेर-पसेरी (लोग सेर-पसेरी से जनता के तउलल चाहऽ हथ, अपने तो बेंग बनल हथ । ई तराजू पर से उछिल के उ तराजू पर । अपने तो तौलाए के अनुशासने न रखत आ चलऽ हथ जनता के अनुशासन के घोंटी पिआवे ।) (माकेसिं॰105.24)
1165 सेराना (= ठंढा होना) (उनकर स्मारक एके संदेश देवऽ हे - सुतऽ मत जागल रहऽ, सेरा मत तातल रहऽ, तउला मत बाँकल रहऽ, बउखा मत थाहल रहऽ ।) (माकेसिं॰109.21)
1166 सेलचू (= सेलची) (तेतरी दीदी कहुँ न कहुँ से छकुनी लेले, रस्सी लेले पहुँच जायत आ जमे लगत लइकन के खेल - कभी डोल-पत्ता, कभी चिक्का-कबड्डी, कभी सेलचू, कभी ओका-बोका-तीन-तड़ोका, कनघीच्चो, बाघ-बकरी, अत्ती-पत्ती । सब खेल में पारंगत तेतरी दीदी ।) (माकेसिं॰26.1)
1167 सेवा-खेवा (आ मुखिया ? समुझऽ गारल गिरई । एन्ने समाज सेवा ओन्ने डपोरसंखी । सेवा से जादे खेवा कहइत-कहइत उनकर मुँह आँवा से निकलल बरतन लेखा लाल हो जायत ।) (माकेसिं॰35.3)
1168 सेसर (= श्रेष्ठ) (सब खेल में पारंगत तेतरी दीदी - दउड़ के पेड़ के फुतलुंगी पर चढ़े में, चिक्का-कबड्डी में दउड़े में फरहर, अँखमुनौवल में दउड़ के छुए में, डोल-पत्ता में डंडा फेंके में आ लावे में सेसर, बाघ-बकरी में सबके मात कर देवे, सबके कान काट लेवे ।; बिसुनदेव के पढ़े ला बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में भेजल गेल । पढ़े में ऊ तेज निकलल, खेले-कूदे में ओइसने सेसर ।; धनेसर गाड़ी चलावे में सेसर । एकरा आगु आउ सब ऑफिस के डराईभर फीका ।; जिलेबी आ रसगुल्ला उनका ला सबसे सेसर मिठाई ।) (माकेसिं॰26.5; 58.10; 75.13; 102.1)
1169 सोंठ-बतीसा (उनका बेटा भेल - छोटकी औरत रजमुनियाँ के कोख से । ... बड़की औरत लछमिनियाँ दया के आगार निकलल - खूब सेवा-टहल, तेल-कूँड़ कयलक, सोंठ-बतीसा घाँट के खिलावे बाकी मंझली मंगरी आ संझली सोमरिया के सौतीन डाह न मेटल ।) (माकेसिं॰42.18)
1170 सोघराना (जनावर के देखभाल करे ला दू दू गो बराहिल, तइयो ई जब ले अप्पन हाथ से सोघरवतन न, चुचकरतन न, तब ले गोरू-डांगर आँख फाड़ के निहारइत रहत ।) (माकेसिं॰32.8)
1171 सोझ (= सीधा) (अतना कहइत कहइत उनकर माथ के उज्जर बार हिमालय लेखा ठार हो गेल । झुकल हलन से सोझ हो गेलन, उनकर बदन काँपे लगल, आँख सिमर के फूल लेखा लाल टेस ।) (माकेसिं॰36.11)
1172 सोठ (रामचन्द्र सिंह पुरनका दिन के इयाद करइत करइत परान तेयाग देलन । अब बच गेलन हे के ? बटलोही, बरहगुना, सोठ, बतीसा, कठजामुन, चुटरी, कनगोजर, कुलबोरन आ चपोरन - सब मिलके बाँस के फोंफी लेखा बज रहल हथ ।) (माकेसिं॰22.22)
1173 सोती (तेतरी दीदी के आँख से कुछो बुझा न रहल हे । पीपर के पत्ता झर गेल, बरगद ठूँठ हो गेल, पाँकड़ आ गूलर के पता भींज गेल, ढिबरा ढह गेल, चँवर के सोती सूख गेल, जामुन झँवर गेल, सिरिस आ सीसो अलगे सिसक रहल हे, केला के घउद लमर गेल, पात-पात चिहक गेल, धरती दरक गेल, अकास झुक गेल, परबत ढिमिला गेल । सउँसे प्रकृति तेतरी दीदी के बिरह में अछोधार लोर बहा रहल हे ।) (माकेसिं॰28.1)
1174 सोना-चानी (केकरो शादी-बिआह हे, कपड़ा-लत्ता, जूत्ता-चप्पल, सोना-चानी के गहना, मर-मसाला, डलडा-तेल, पत्तल उधार-पईंचा दिलवा देतन, तिरवेदी जी के दुकान शर्मा जी के मकान, साग-सब्जी सब सरजाम जब ले ई करवा न देतन तब ले इनकर गोड़ साइकिल बनल रहत ।; पढ़ऽ - एहे सोना-चानी हवऽ - एकरा कोई बाँट न सकतवऽ ।) (माकेसिं॰33.17; 74.21-22)
1175 सोभवगर (छवो के बाल बच्चा लोढ़ा-सिलउट लेखा बज्जर, पढ़ल-लिखल, गुनगर, सोभवगर ।) (माकेसिं॰65.11)
1176 सोरहिया (= युक्ति या सुराग बतानेवाला; गुप्त भेद बतानेवाला; भेद का पता लगाकर उचित मंत्रणा देनेवाला) (कोई कहे नेक्सलाइट के एरिया कमांडर, कोई कहे मलेटरी के बिरगेडियर, कोई कहे अखाड़ा के पहलवान, कोई कहे सोरहिया, कोई कहे सनकल भईंसा, कोई कहे मस्ताना साँढ़, कोई कहे पागल हाथी - किसिम-किसिम के बोल, तरह-तरह के अनुमान । दद्दू भइया कहाँ रहऽ हथ, कहाँ सुतऽ हथ, कहाँ खा हथ - आझ ले केकरो पता न चलल ।) (माकेसिं॰100.10)
1177 सोवाद (= स्वाद) (सबके जीभ चटकारे के मौका जरूर देतन । तरह-तरह के अँचार, तरह-तरह के चटकार, तरह-तरह के अँचार के सोवाद, तरह-तरह के मुँह में पानी, मलिकार खुश - बनिहार खुश - भूलेटन के पौ बारह ।) (माकेसिं॰83.5)
1178 सोहर (उनकर झूमर, सोहर, होरी, चइता, कृषि गीत, निरगुन सुन के सब कोई रीझ जायत । बनिहार के लइकन-फइकन उनका अइसन घेर लेतन जइसे चूँटी गुड़ के घेर लेवऽ हे ।) (माकेसिं॰83.1)
1179 सौतीन (~ डाह) (उनका बेटा भेल - छोटकी औरत रजमुनियाँ के कोख से । ... बड़की औरत लछमिनियाँ दया के आगार निकलल - खूब सेवा-टहल, तेल-कूँड़ कयलक, सोंठ-बतीसा घाँट के खिलावे बाकी मंझली मंगरी आ संझली सोमरिया के सौतीन डाह न मेटल ।) (माकेसिं॰42.19)
1180 स्टोनो (= स्टेनोग्राफर) (बड़ा बाबू के बेटा के बिआह, स्टोनो बाबू के घर भोज, प्रोजेक्ट ऑफिसर के बेटा के छठी-छीला, धनेसर के नाक से पसेना चुअइत रहत ।; ठीक दस बजे आना पाँच बजे जाना । सब काम टैट । मजाल हे कोई फाइल बड़ा बाबू के धोकड़ी में आ केकरो दरखास्त स्टोनो बाबू के तकिया तर रह जायत ।) (माकेसिं॰71.24; 72.10)
1181 हँकाड़ (जनावर के देखभाल करे ला दू दू गो बराहिल, तइयो ई जब ले अप्पन हाथ से सोघरवतन न, चुचकरतन न, तब ले गोरू-डांगर आँख फाड़ के निहारइत रहत । इहो ओकर दीगर के बात खूब समझऽ हथ, ओकर हँकाड़ में अप्पन पुकार बुझऽ हथ आउ आके हहरइत हँकाड़ अप्पन हाथ लगा के ओकर मन के शान्त कर देतन ।) (माकेसिं॰32.10, 11)
1182 हँड़चना (ऊ अप्पन दुश्मन के तो चकनाचूर करिए देलन । जइसे गोबर के हँड़च हँड़च के पाथल जाहे ओइसहीं दुश्मन के पाथ के छोड़ देलन ।) (माकेसिं॰47.19)
1183 हँड़िया (= धान आदि के चावल के भात से तैयार एक मादक पेय, शराब) (आज हम्मर आदिवासी भाई लोग पढ़ल न हथ - ओकर फल देखऽ - आँख के सामने सब कुछ लुटा रहल हे, ट्रक के ट्रक सब कुछ ढोआ रहल हे बाकि हमनी आँख के आन्हर । हँड़िया मिले के चाही ।) (माकेसिं॰74.18)
1184 हजामिन (= हजाम की स्त्री; नाउन) (पाँच पवनियाँ पौ बारह - हजामिन, कुम्हइन, मालीन, तेलीन आ चमइन । हजामिन के नोहछुर, कुम्हइन के हाथी आ बरतन, मालीन के मौरी आ पटमौरी, तेलीन के तेल, आ चमइन के ढोल बिना बिआह-शादी के मजा किरकिरा ।) (माकेसिं॰19.14, 15)
1185 हड़कना (खेत में बीया {मोरी} उखड़ रहल हे, ई चभर-चभर ओकरा में लोटइत रहतन । अचरज के बात ई हे कि सबके शरीर में जोंक सट जायत बाकि इनका से जोंक सात बिगहा अलगहीं से भड़क जायत । हो सकऽ हे भगवान इनकर शरीर में कोई अइसन तेजाब भर देले होयतन कि चमोकन के नामे से ऊ हड़क जा होयत ।) (माकेसिं॰56.10)
1186 हड़हड़ाना (जने चले ओन्ने गली-कुची हिलावइत चले, राहे बाटे हड़हड़ाइत चले ।) (माकेसिं॰25.26)
1187 हदबन्दी (गैर मजरूआ जमीन आ हदबन्दी से फाजिल जमीन पर जहाँ-जहाँ दद्दू भइया झण्डा गड़वा देलन, उखाड़े के केकरो बउसात न हे ।) (माकेसिं॰108.14)
1188 हन-हन (~ करना) (गाड़ी हन हन करइत सरपट दउड़इत गेल । सड़क के दुन्नो ओर तरह-तरह के गाछ-बिरिछ एक दूसरा के छाती से लगा के आपुस में गप्प-सप्प कर रहल हलन । झार-झुरकुट एक दूसरा के माथ झुका झुका के सलाम करइत हल ।) (माकेसिं॰78.21-22)
1189 हबकुरिए (फिर चभाक !! सबके ठरमुरकी मार देल । फिन सब मल्लाह ओकरा पाछे-पाचे हबकुरिए दउड़े लगल ।; कतना विश्वामित्र उनकर परिछा लेलन, सब कोई मुँह भरे गिरके हबकुरिए थोथुन रगड़े लगन ।; कतना लहाश झलासी में बूट के होरहा लेखा झोला गेल, कतना के खोपड़ी असमान में उड़ गेल, कतना बूढ़ी हबकुरिए पड़लन से पड़ले हे, कतना बुतरू माय के गोद में सटल से सटले रह गेल ।) (माकेसिं॰24.8; 31.10; 109.5)
1190 हबेख (= किसी वस्तु का उचित उपयोग, भोग, उपभोग; ~ लगना = किसी वस्तु का सही उपयोग होना) (पचपन बरिस के उमिर में उनकर घर में इंजोर भेल । ... गाँव भर के पैर चमोकन के घरे - सबके हिरदा में हुलास - आँख में माया-ममता के मोती छलक रहल हे । बाकि गोतिया-नइया के मुँह करिखा । चमोकन के धन हबेख अब न लगत । बाकि ऊपर से मुँह पुराइ - 'जीए, जागे, फरे-फुलाए, हे सुरुज भगवान, अइसने लाज सबके रखिहऽ ।') (माकेसिं॰58.2)
1191 हर-कुदार (मलिकार खेत-खरिहान के पढ़ाई पढ़लन, बनिहार हर-कुदार के कहानी समुझलन बाकि भूलेटन सबके मन के पढ़ाई पढ़लन, न कहुँ स्कूल में नाम लिखवलन न कोई डिग्री लेलन न पी-एच॰डी॰ कयलन ।) (माकेसिं॰83.22)
1192 हरदी (सब कोई कह रहल हे, फुआ ढोलवा बजाव न तोरे बिना सब काम रूकल हे । एहे बीच में भोजइतीन ढोल पूजे ला दउरी में पाँच टूकी हरदी, चाउर आ पाँच गो पइसा छिपुनी में अइपन आ सेन्नुर लेके आ गेलन ।) (माकेसिं॰17.28)
1193 हरमुनिया (= हरमुनियाँ; हारमोनियम) (ओ घड़ी जेवार में खपुरा के रामविसुन सिंह ढोलक बजावे में, मझौली के स्वयंवर मिस्त्री हरमुनिया बजावे में आ बेनीबिगहा के रामजतन चाचा झाल बजावे में नामी हलन ।) (माकेसिं॰52.2)
1194 हरमुनियाँ (ऊ जेकरा जेकरा सिखवलन, आज भी उनका गुरु के रूप में ध्यान धरऽ हथ । चरनदेव सिंह रामायण गावे के पहिले रामजतन चाचा के धेयान लगवतन, तिरजुगी शर्मा हरमुनियाँ खोले के पहिले रामजतन चाचा के गोहरवतन, सिद्धनाथ पण्डित आ रवीन्द्र शर्मा ढोलक पकड़तन तब उनकर धेयान में रामजतन चाचा के चेहरा सामने आ जायत ।) (माकेसिं॰52.16)
1195 हरवाहा (बाल्टी के बाल्टी दूध पिअली हम, छाल्ही-मक्खन खइली हम । भगवान के किरपा से चार गो हरवाहा, एगो बराहिल, गाँव में पहिला मरद हम जेकर मकान पक्का के ।) (माकेसिं॰49.21)
1196 हरिअरी (रामजतन चाचा गावे-बजावे में गुनी हइए हलन, खेतिहर भी एक नम्बर । खेत-खरिहान आझ भी उनकर इयाद में हमेशा अरिअरी से भरल-पूरल रहऽ हे ।) (माकेसिं॰53.5)
1197 हरिआना (= हरियाना; हरा होना) (ऑफिस में आवइते उनकर चेहरा बसन्त में बगइचा लेखा रूह-चुह हो जायत । मउरल मुखड़ा गुलाब लेखा खिल जायत । रोआँ-रोआँ हरिआ जायत ।) (माकेसिं॰40.7)
1198 हरिजन (समाज के बेवस्थे अइसन हे । सबसे जादे मार आदिवासी आ हरिजन पर ।; रजिया अम्मा सबके अम्मा - राजपूतो के, भूमिहारो के, तेलियो के, कानूओ के, कोइरियो के अम्मा, कुम्हारो के, ब्राह्मणो के, हरिजनो के - सब जात के अम्मा - रजिया अम्मा ।) (माकेसिं॰73.15; 93.7)
1199 हरे (= हर्रे) (जलमउती बेटा के काजर नवरतनिए फुआ पारत । कई तरह के सामग्री मिला के दीया जरा के कजरौटा में काजर पार देत । ओइसहीं पितराही थरिया पर तेल आ छोटकी हरे मिला के अंजन बना देत ।) (माकेसिं॰19.1)
1200 हवाक (~ से) (सबके मन अनुरागल, गाँव-घर, अड़ोस-पड़ोस सबके बेटी - तेतरी बेटी, दुलारी बेटी । जतने दुलार मिलल ओतने उचरुंग निकलल । कोई हाथ पसारल कि तेतरी हवाक से गोदी में ।) (माकेसिं॰24.20)
1201 हाथ-गोड़ (हाथ-गोड़ अइसन लिच-लिच पातर कि पुरवइया हवा में नीम के सूखल पत्ता लेखा उड़िया जयतन ।) (माकेसिं॰55.6)
1202 हाबा-डाबा (~ धरना) (नवरतनी फुआ के हाथ में एगो जस हे, गोरैया बाबा के असीरबाद मिलल हे ओकरा । जेकर नार काटलक ओकर जिनगी अबाद । आझ ले केकरो ढोंढ़ न फेंकलक, सउरी में केकरो जमुहा आ हाबा-डाबा न धयलक ।) (माकेसिं॰18.12)
1203 हार-दार (~ देके = हार-पार के) (चमोकन के पहिल घर से कोई बाल-बच्चा न । साठ बीघा खेत, बाग-बगइचा, कुइयाँ-तलाब, आलीसान बिल्डिंग, लाखो के बैंक बैलेंस के भोगत ? हार-दार देके ऊ दूसर बियाह कयलन बाकी मेहरारू के सलाह से ।) (माकेसिं॰57.19)
1204 हिच्छा (ऊ कोई बरत-त्योहार न करत बाकि परिवार में पोता-पोती, पुतोह के बरत-त्योहार करे में कोई रोड़ा न अँटकावत । अपने परसादी खायत खूब हिच्छा भर बाकि न केकरो परसादी बाँटत न केकरो घरे भेजत ।; सबके हाथ लेहुआयल हे । काटे से कोई बाज न अयलक । लूट मचल हे, जतना हिच्छा हे लूट लेवे ।) (माकेसिं॰66.19; 73.26)
1205 हित-नाता (इहे कमाई से सालो भर उनकर खाना-बुतात, कपड़ा-लत्ता, नेवता-पेहानी, हित-नाता, आगत-अतिथि के भाव-भगत के काम पूरा करतन ।) (माकेसिं॰84.21)
1206 हिरिन (= हिरन) (जखनी ऊ पानी पर पंवरे लगऽत तब लगत कि कोनो तितुली फूल पर फुदकइत हे, हिरिन कुलांच मारइत हे, मछरी कसरत कर रहल हे ।) (माकेसिं॰26.22)
1207 हुकुमगिरी (धनेसर लेखा बुधगर लुरगर आदमी सब जगह हथ बाकि ओइसहीं दादागिरी, हुकुमगिरी चल रहल हे जइसे हम्मर ऑफिस में बेचारा धनेसर ।) (माकेसिं॰73.28)
1208 हुड़ुकवा (दिन के छोड़ऽ, तमाशा देखे ला हे त बेर डूबइते इनकर घर पहुँच जा आ देखऽ मनभर हुड़ुकवा के नाच । कोई डोमकच के सिपही-हवलदार बनल हे त कोई नौटंकी के नगाड़ा पीट रहल हे ।) (माकेसिं॰39.6)
1209 हेराना (= गुम होना, भुल जाना, खो जाना) (बहिन के भाई लुट गेल, पत्नी के पति हेरा गेल, माय के गोदी सुन्ना हो गेल ।) (माकेसिं॰98.3)
1210 हेरी-बेरी (आजादी के लड़ाई में जेहल गेली, लाठी-कोड़ा खइली, हाथ-गोड़ में हेरी-बेरी पड़ल ।) (माकेसिं॰34.28)
1211 हैंडिल-पैडिल (तू ही हम्मर जीवन के खेवैया हऽ, हम कुछ न । हम तो हैंडिल-पैडिल थाम्हेओला तोर कहार ही ।) (माकेसिं॰75.27)
1212 हैकल (= घोड़े को गले में पहनाने का आभूषण; एक या अधिक ताबीज गूँथा हार; ताबीज) (गोड़ में गेंड़ांव, हाथ में पहुँची, गरदन में हैकल, कान में झूमका, नाक में छूंछी, महुआ लेखा गोड़ के दसो अंगुरी, अंगुरी में चानी के बिछिया, सलो भर नोह रंगले - देख के कोई भी चनकी दाई के हिरदा से सराहऽ हे ।) (माकेसिं॰66.9)
1213 होरहा (कतना लहाश झलासी में बूट के होरहा लेखा झोला गेल, कतना के खोपड़ी असमान में उड़ गेल, कतना बूढ़ी हबकुरिए पड़लन से पड़ले हे, कतना बुतरू माय के गोद में सटल से सटले रह गेल ।) (माकेसिं॰109.3)
1214 होरी (= होली) (रात भर मानर आ ढोल-झांझर बजइत रहल - अबीर गुलाल उड़इत रहल । होरी आ चइता से सउँसे बगइचा चहचहा उठल ।) (माकेसिं॰15.17)
1215 होरी-चइता (सब अप्पन-अप्पन शान में डूबल हथ । होरी-चइता गवा हे बाकि दू घर से चार घर जाइत सब अउँघे लगतन ।; चानमामू होरी-चइता के खूब सवखीन । हर हप्ता उनकर दलान पर होरी-चइता के धूमगज्जर मचत ।) (माकेसिं॰22.12; 37.3)
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