नहीं रहे मगही कवि कारू गोप
07 Jul 2011, 08:48 pm
नवादा, नवादा कार्यालय :
मगही हम्मर नग,
मगह सब भाषा के गाछा ।
ढोल नगाड़ा खुदरक ताला,
मगही बीस बतासा ।
उक्त पंक्तियां है वैद्य मुनि कारू गोप की। वे अब नहीं रहे। उनका का निधन वारिसलीगंज स्थित अपने घर पर बुधवार की शाम में हो गया। वे 75 साल के थे। जिन्दगी का बड़ा हिस्सा शिक्षक रूप में गुजारने वाले कारू गोप हिन्दी और मगही के कवि और गायक थे। बालपन से ही गीत-संगीत से लगाव था। स्वामी सहजानन्द सरस्वती के किसान आन्दोलन के समय वे गीत मंडली के साथ कोनन्दपुर, लोदीपुर, मोसमा आदि गांव में किसान जागरण के मगही गीत गाते थे। कारू गोप बिहार मगही मंडप द्वारा शान्ति-सद्भावना के तहत आयोजित होने वाले कार्यक्रमों से जुड़े रहे और बिहार मगही मंडप कार्यसमिति के सदस्य मृत्यु के पूर्व तक बने रहे। उनकी रचना हरि संकीर्तन, ज्ञान गीत माधुरी, जय जीव ज्ञान गीत माला और फुलंगी के खोता प्रकाशित है। शिक्षा, सद्भावना, किसान और ग्राम जीवन के सत्य को साहित्य का विषय बनाया। 1959 में सेखोदेवरा आश्रम में जब भारत रत्न डा. राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति के आगमन पर आयोजित गीत-संगीत में ढोलक वादन में प्रथम पुरस्कार उन्हें प्राप्त हुआ था।
कारू गोप के निधन से बिहार मगही मंडप ने एक अभिभावक खो दिया।
बिहार मगही मंडप के अध्यक्ष रामरत्न प्रसाद सिंह रत्नाकर उनके शव यात्रा में भाग लेने के बाद भावुक मन से याद करते हुए कहते हैं कि कारू गोप ककोलत महोत्सव के मौके पर जो मगध वंदना के भावपूर्ण गीत के साथ नृत्य प्रस्तुत की उसकी सराहना वहां उपस्थित बिहार विधान के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने की थी। वे हर हालत में मंडप के सम्पन्न 81 कार्यक्रम से 75 में उपस्थित रहे हैं। प्राय: बिहार मगही मंडप के आयोजनों में कारू गोप के नृत्य गीत और कविता पर लोग झूमते थे, अब यह अध्याय समाप्त हो गया। श्री रत्नाकर के अनुसार बिहार मगही मंडप ने अपना अभिभावक खो दिया।
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