मूल तमिल - आर॰
विलिनाथन् उड़िया अनुवाद - पौरुष (मार्च 1981)
उड़िया से मगही अनुवाद - नारायण प्रसाद
हमरा
से कीऽ गलती होलइ ? हमरा नौकरी से काहे ससपिन (सस्पेंड) कइल
गेलइ ? बड़ी सोच-विचार कइलो पर हम एकर कारण ढूँढ़ न पइलूँ । अगर अपने
जान पाथिन त हमरा बतइथिन । जरी स सोचथिन ।
हम
झूठ काहे ल कहिअइ ?
चाह तइयार करते बखत जइसे ई कागज के
टुकड़ा जल रहले ह,
ठीक ओइसहीं ऊ दिन हमर दिल जले लगल हल ।
साधारणतः
हम रद्दी लिफाफा जलाके चाह तइयार करऽ हूँ । लेकिन ई दफ्तर में एक अफवाह उड़ गेल ह
कि हम चिट्ठी जलाके चाह तइयार करऽ हियइ । हम तो बारंबार कहऽ हूँ कि ई अभियोग गलत
हइ । लेकिन दोसर के नजर में ई सही हइ ।
फिर
अपने पूरा के पूरा घटने सुन लेथिन । अपने असली बात जान पइथिन ।
“न जानूँ ऊ कखने अइता”
- ई तरह के उद्वेग भरल मन लेके शायद प्रेमिका प्रेमी के बाट जोह रहल ह । एतने में
प्रेमिका लगी चिट्ठी आवऽ हइ - नाया सपना भरल संदेश लेके । नौकरी से संबंधित दौरा
पर गेल विरहविदग्ध पति शायद नाया शहर के कोय होटल के कोय कोठरी से चिट्ठी लिक्खऽ
हइ अपन प्राणप्रिया घरवली के पास । मइया के खर्चा लगी रुपइया भेजे वला बेटा के
प्यार भरल चिट्ठी आवऽ हइ । कन्या चिट्ठी दे हइ मइया के हानि-लाभ जाने ल । पदोन्नति
लगी बेअग्गर कर्मचारी चिट्ठी भेजऽ हइ अपन जानल-पहचानल कोय ऊपर वला हाकिम के पास ।
ई सब बात के अलावे नजदीकी रिश्तेदार के मिरतु के समाद लेले आवऽ हइ कोय दुःखदायक
पत्र । ई सब्भे तरह के चिट्ठी-पत्र के बाँटे के काम में लगल हकूँ हम । हम एगो
डाकिया हकूँ । हमर नाम दामोदर हके । हम अपन काम में लगल हकूँ, फल के आशा नञ् करऽ हूँ । हम जानऽ हूँ - “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।”
छोट्टे-छोट्टे
बुतरू सब के खुश करे खातिर हम जे कुछ कइलिए ह, की
ऊ गलत हइ ?
हमर समझ में ई सही हइ । लेकिन बाकी लोग
के नजर में ई गलत हइ । बियाह के बहुत दिन के बादो कोय संतान नञ् होवे के कारण हम
दोसर लोग के बुतरू के देखके खुश हो जा हलूँ । ऊ सब के ठोर पर हँस्सी लावे लगी हम
जे कुछ करऽ हलूँ,
ऊ लोग-बाग के आँख के काँटा काहे बन गेल, ई हमर समझ में नञ् आल । हम करवो करऽ हलूँ
की ? रस्ता पर कइएक रद्दी लिफाफा पड़ल रहऽ हकइ । हम ओकरा जामा करके
लावऽ हलूँ आउ ‘सिद्धिरस्तु’ नञ् जाने वला बुतरू के देखके ओकर हाथ
में एगो लिफाफा धरा दे हलूँ । कहऽ हलूँ - “ले, तोर मामूँ एगो चिट्ठी भेजलथुन ह ।”
आउ कोय बुतरू के हाथ में लिफाफा पकड़इते कहऽ हलूँ - “ले, तोर नाना ई सुन्दर चिट्ठी भेजलथुन ह ।”
बुतरू आनन्दविभोर हो जा हल । ओकन्हीं के आनन्दित देखके हमहूँ पुलकित हो उठऽ हलूँ ।
पराया
बुतरू के हमरा अइसे खुश करते देखके भगमान के शायद दया लग गेलइ । ओहे से हमर घर में
जलम होल एगो बच्ची के ।
बाकी
बुतरुअन साथ हम जइसन खेल खेलऽ हलूँ, अपन बेटियो के साथ ओइसने खेल खेले लगलूँ
। एक दिन ओकरा बोलाके कहलूँ - “ले, तोर
चिट्ठी अइलो ह ।”
-
“चिट्ठी ? हमरा चिट्ठी भेजलकइ केऽ ?” तोतराल अवाज में ऊ बोलल ।
-
“तोर दुलहवा ।”
-
“सच ?”
ऊ हँस पड़ल ।
एहे
तरह से चल रहल हल हमर जीवन प्रवाह । एक दिन हमर बेटी हमर हाथ में एगो चिट्ठी
देके बोललक - “ई चिट्ठी के डाक में डाल दिहऽ ।”
-
“केकरा चिट्ठी भेज रहलहीं ह ?” हम
पुछलूँ ।
-
“अपन दुलहवा हीं ।” ऊ जवाब देलक ।
हम
दुनू बेकत ई बात सुनके मारे हँसी के बेदम हो गलूँ ।
बेटी
बड़ होवे लगल । ओकरा इस्कूल जाय के समय आ गेल । हम सोचलूँ कि बिद्दा तो हमर भाग
में नञ् हल,
बाकि अपन बेटी के एकरा से वंचित काहे
करूँ । कम-से-कम बी॰ ए॰ तक ओकरा जरूर
पढ़ाम ।
ऊ
दिन हम दफ्तर से छुट्टी लेके घर बइठल हलूँ । एगो चिट्ठी आल हमर बेटी लता के नाम ।
लता ऊ बखत कौलेज जा हल । चिट्ठी पाके हम सोचलूँ, ओकरा
पास चिट्ठी केऽ लिखलक होत ? जरूर ओकर कोय सहेली लिखलक होत । ई
सोचते-सोचते हम चिट्ठी खोल डाललूँ । चिट्ठी पढ़े पर हमर सर चकरा गेल ।
कौलेज
में आजकल कीऽ पढ़ावऽ हका ? खाली प्रेम से संबंधित गवेषणा चल रहले ह
कीऽ हुआँ ?
मोहन नाम के कोय युवक ई चिट्ठी भेजलक हल
। ई हल एगो प्रेमपत्र ।
पहले
तो चिट्ठी पढ़ला पर हमर सर गरम हो गेल । लेकिन बाद में हम शांतभाव से सोचे लगलूँ ।
सोचलूँ कि एकरा में गोस्सा करे के कीऽ बात हइ ? आजकल
युवक-युवती अपन भाग के फैसला खुद्दे करे के प्रयास करऽ हइ । एकरा में हमरा माँ-बाप
के हैसियत से तो ऊ सब के सहायता करना उचित हकइ । बेकार के अड़ँगा लगावे से कीऽ लाभ
? अगर ई युवक अच्छा होवे त हमरा ओकन्हीं के आगे बढ़े में मदत करे
के चाही ।
हम
गुप्त रूप से ई मोहन के बारे में विभिन्न सूत्र से खबर जामा करे लगलूँ । देखलूँ कि
ई युवक के चरित्र अच्छा नञ् । प्रेम करना ओकर एगो शौक हइ । ऊ ई तरह कइएक लड़की के
प्रेमपत्र दे हइ,
अइसन सुने में आल । ई सब कुछ हम अपन
बेटी के बता देलूँ । मोहन के विरुद्ध जे कुछ हम सुनलूँ हल, ओकर
अच्छा तरह से वर्णन करके लता के सुना देलूँ । लेकिन ई सब कइलो पर मोहन के प्रति
लता के सहानुभूति कुच्छो कम नञ् होल, बल्कि ऊ दुनहुँ के बीच घनिष्ठता बढ़ले
गेल । वस्तुतः प्रेम अन्धा होवऽ हइ, एकर सबूत हमरा मिल गेल । हम जेतना कड़ा
अनुशासन बरतऽ हलूँ,
लता ओतने अधिक मोहन से प्रेम करऽ हले ।
एक दिन सब्भे अनुशासन के पीछे छोड़ के लता मोहन के साथ कोय अनजान जगह में भाग गेल
।
ई
तरह के कोय दुर्घटना घटत, एकर आशा हमर घरवली के नञ् हल । लता के
चल जाय के दुइये दिन बाद ऊ खाट पकड़ लेलक । हृदय के असीम पीड़ा ऊ सहन न कर पइलक आउ
एक सप्ताह के अन्दरे ऊ आँख मून लेलक - हमेशे लगी । ई घटना से हम तो
अधमरू हो गेलूँ । तइयो हमर हृदय में एक क्षीण आशा शेष हले - शायद हमर लड़की जीवन
के उथल-पुथल में कटु सत्य जान पावत, शायद ऊ फिर जीवन के स्वाभाविक धारा में
वापस आ जात ... ...।
हमरा
एक तरह के अवाज सुनाय दे हले मानूँ हमर आत्मा कह रहल ह - दामोदर ! ई सब लगी तूँहीं
उत्तरदायी हँ । बुतरुअन के झूट्ठो-फुस्सो के चिट्ठी देके तूँहीं ओकन्हीं के मन में
वृथा आशा आउ अभिलाषा के सृष्टि कइलऽ हँ । ओकरे तो ई नतीजा हउ । ई तरह के घटना
केतना परिवार में घटलो होत, केऽ जानऽ हउ ?
कीऽ
करूँ ? हमर तो ई तरह के झूठ चिट्ठी बाँटना एगो आदत बन गेल ह । ओहे से
निश्चय कइलूँ कि डाक के नौकरी छोड़ देम । 43 साल के उमर में बहुत मेहनत करके हम
मैटिक के परीक्षा देलूँ । पास कइला के बाद ऊपर के हाकिम के कह-सुनके ‘सॉर्टर’ के नौकरी पा गेलूँ ।
“पोस्टल
सॉर्टर” के रूप में हमर जनकारी बढ़े लगल । जनकारी एतना बढ़ गेल कि कोय
लिफाफा के हाथ में लेतहीं हम बता सकऽ हलूँ कि ओकर वज़न केतना होत । एकरा में
ठीक-ठाक टिकट लगल हइ कि नञ्, ई हम ओकर वज़न से जान ले हलूँ । खाली
एतने नञ्,
लिफाफा के अन्दर में कीऽ होत, एकरा बारे में ठीक-ठाक अनुमान लगाना हमरा लगी सम्भव हो गेल ।
आउ
एगो महारत हम हासिल कर लेलूँ । लिफ़ाफ़ा के देखतहीं हम भाँप ले हलूँ कि एकरा में
प्रेमपत्र होत कि नञ् । हमर ई अनुमान शत-प्रतिशत सही उतरऽ हल । ई तरह के चिट्ठी
देखतहीं हमरा अपन बेटी के घटना तरोताज़ा हो जा हल । लता जे तरह से दुर्भाग्य के
शिकार होल,
बाकी लड़की के साथ अइसन न होवे, एहे हमर आन्तरिक कामना हल । फेनुँ ई तरह के चिट्ठी देखतहीं हम
ओकरा अलगे रख दे हलूँ । ओकरा ऊ दिन के डाक में कभीयो नञ् भेजऽ हलूँ ।
अपने
सोचऽ होथिन,
हमर बेटी के कीऽ होलइ ? वस्तुतः हमरा जेकर आशंका हलइ, ओहे
होल । ऊ धूर्त बदमाश छोकरा हमर बेटी के असहाय अवस्था में छोड़ के कहीं भाग गेल । ऊ
बखत हमर बेटी दू बुतरू के माय बन चुकल हल । छो बच्छर के लम्बा अवधि के बाद अपन
बेटी के बारे में एहे ख़बर हमरा मिलल । हम ख़बर पइतहीं ओकरा ले आवे खातिर ओकर घर
गेलूँ ।
जानऽ
हथिन, बेटी हमरा कीऽ उत्तर देलकइ ? ऊ
कहलक - “ऊ दिन तोहर बात नञ् मान के हम घर छोड़ के चल अइलूँ हल । आज
तोहर बात मान के हम अगर फेर तोहर घर वापस आ जाऊँ, त
मान-इज्जत रहत तो ?
हमर पति के बुद्धि भ्रष्ट हो गेल ह, त कीऽ हमहुँ बुद्धि भ्रष्ट कर लेउँ ? हम
अपने गोड़ पर खड़ा हो के ई दुनहुँ बुतरू के पालम-पोसम । एकरा से हमर पति के
कुल-रक्षा होवत । हमर चिन्ता छोड़ऽ ।”
हमर
बेटी के ई तरह के दुःसाहस दोसर लड़कियन के मन में जागे, अइसन
हम कभीयो नञ् चाहऽ हूँ । ओहे से जे चिट्ठी के बारे हमरा सन्देह होवऽ हके, ओकरा बिना पढ़ले कभीयो डाक में नञ् छोड़ऽ हूँ । दोसर के चिट्ठी
पढ़ना अच्छा बात नञ् हइ,
ई हम मानऽ हूँ । लेकिन खुफिया विभाग के
कर्मचारी अइसन चिट्ठी कइसे पढ़ऽ हका ?
हमर
आदत से अपने अच्छा तरह से अवगत हो गेलथिन होत । पहले रस्ता में पड़ल लिफ़ाफ़ा, पोसकाड आदि जामा करे के जे बुरा आदत हलइ, ऊ अभी तक गेलइ नञ् । वस्तुतः ई तरह के पोसकाड, लिफ़ाफ़ा आदि हम अभीयो जामा करऽ हूँ आउ चाह तैयार करे में ओकर
इस्तेमाल करऽ हूँ । चाह तइयार करे बखत शंकाहा पत्र के खोलके हम पढ़ लेल करऽ हूँ ।
हम
तो ई क्षेत्र में काफी महर्रत हासिल कर लेलूँ ह । ओहे से सन्देह के परिसर के अन्दर
आवे वला चिट्ठी के हम कभीयो नञ् छोड़ऽ हूँ
। एकर ई मतलब नञ् कि वास्तविक प्रेम के विरुद्ध हम अड़ँगा लगावऽ हूँ । वस्तुतः
जाहाँ सच्चा प्रेम रहऽ हइ, हुआँ हम दुनहुँ प्रेमी के विवाहसूत्र
में आबद्ध करे के चेष्टा करऽ हूँ । जाहाँ ई तरह के प्रेम के अभाव देखऽ हूँ, हुआँ हम खाली लिफ़ाफ़ा भेज के दुनहुँ प्रेमी के बीच कड़वाहट
पैदा करऽ हूँ ताकि ओकन्हीं के बियाह नञ् हो पावे ।
ई
तरह से बहुत दिन गुजर गेल । कोय पत्रप्रेषक अपन गन्तव्य स्थान में नञ् पहुँचे के
डाक विभाग में शिकायत कइलक हल । ऊ शिकायत के अर्जी पर छानबीन कइल गेलइ । हम आपिस
में लिफाफा जलाके चाह बनावऽ हियइ - ई बहुत लोग के सहन नञ् हो पावऽ हलइ । ऊ सब
अनुसंधानकारी अफ़सर के हमरा विरुद्ध कह देलकइ ।
बहुत
कर्मचारी बतइलकइ कि हमर बेटी के जीवन नष्ट हो गेला के बाद हमर सिर फिर गेले ह । हम
मानऽ हियइ,
हम दोषी हकियइ । जवाब में हम बहुत सारा
चिट्ठी ऊपर के हाकिम के सामने पेश करवइ । ऊ बखत हम मालूम करा देवइ कि जे अफसर हमरा
अपराधी साबित कइलका ह,
ओकर बेटिये के मिथ्याप्रेम के फन्दा से
हम बचइलिये ह । ऊ लड़की सर्वनाश के मुख से रक्षा पा गेले ह । अफ़सर के जब ई बात
मालूम होतइ,
ऊ बखत ऊ मन ही मन हमरा पर कृतज्ञता
प्रकट करतइ ।
अपने
पूछ सकऽ हथिन कि हम ऊ लड़की के बचइलिये ह, एकर
कीऽ प्रमाण हइ ?
अरे बाबू, अपने
जानऽ हथिन कि ई मिथ्याप्रेमी केऽ हइ ? जे धूर्त बदमाश हमर बेटी के फँसा के ओकर
जिनगी बरबाद कर देलकइ,
ओहे फेर ई अफसर के बेटी के अपन फन्दा में
फँसावे के कोरसिस कर रहले ह ।
बेचारी
अब कीऽ कर रहले होत ?
अजी साहब, अब
हमर लड़की के केकरो सहानुभूति के जरूरत नञ् । अपने बापे के तरह ओहो डाक विभाग में ‘सॉर्टर’ के रूप में काम चालू कर देलक ह ।
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