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Tuesday, July 15, 2014

2.05 बाजी



मूल रूसी - अन्तोन चेखव (1860-1904)           मगही अनुवाद - नारायण प्रसाद

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मृत्यु दंड आउ आजीवन कारावास में कउन जादे कष्टदायक हइ, ई बात के फैसला करे खातिर दूगो व्यक्ति के बीच बाजी लगलइ । केऽ जितलइ ? जाने लगी पढ़ल जाय मशहूर रूसी कहानीकार चेखव के ई श्रेष्ठ कहानी "बाजी" (Пари) ...
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1

शरत्काल के अन्हरिया रात हलइ । वृद्ध महाजन (साहूकार) अपन अध्ययन-कक्ष में एक कोना से दोसर कोना में शतपथ कर (चक्कर मार) रहल हल । ओकरा आद आ रहल हल कि कइसे पनरह साल पहिले शरत्काल में ऊ एगो पार्टी देलक हल । ई पार्टी में कइएक गो बुद्धिमान लोग जुटला हल आउ रोचक चर्चा में तल्लीन हला । आउ सब विषय के अतिरिक्त ओकन्हीं मृत्यु दंड के बारे भी बात कर रहला हल । ऊ सब अतिथिगण, जेकरा में कइएक गो विद्वान आउ पत्रकार हलथिन, अधिकतर के विचार मृत्यु दंड के बारे नकारात्मक हलइ (अर्थात् मृत्यु दंड के अनुमोदन नयँ करऽ हलथिन) । दंड के ई विधान ओकन्हीं के पुराना आउ ख्रिस्ती प्रशासन हेतु अनुपयुक्त आउ अनैतिक लगऽ हलइ । ओकन्हीं में से कुछ लोग के विचार में, मृत्यु दंड के सर्वत्र आजीवन कारावास में परिवर्तित कर देवे के चाही ।

मालिक-साहूकार बोललइ हम तोहन्हीं सब से सहमत नयँ । हमरा न तो मृत्यु दंड के अनुभव हके, न आजीवन कारावास के । लेकिन अगर कोय पहिलहीं निर्णय कर सकऽ हइ, त हमर विचार में आजीवन कारावास के अपेक्षा मृत्यु दंड अधिक नैतिक आउ अधिक मानवोचित लगऽ हइ । मृत्यु दंड तुरते मार दे हइ, जबकि आजीवन कारावास धीरे-धीरे । कउन जल्लाद अधिक मानवीय हकइ ? की ऊ, जे तोरा कुछ मिनट में जान ले ले हको, कि ऊ, जे तोर जिनगी लगातार कइएक साल में घींचऽ हको ?”

अतिथि लोग के बीच एक व्यक्ति टिप्पणी कइलकइ - "दुनहूँ समाने रूप से अनैतिक हकइ, काहे कि दुनहूँ के एक्के उद्देश्य होवऽ हइ - जिनगी लेना । राज्य भगवान नयँ हकइ । ओकरा अइसन कुच्छो लेवे के अधिकार नयँ हइ, जेकरा खुद चाहलो पर वापिस नयँ कर सके ।"

अतिथि लोग में एगो वकील हलइ, एगो कोय पचीस बरस के नवयुवक । जब ओकर विचार पुच्छल गेलइ, त ऊ बोललइ - "मृत्यु दंड आउ आजीवन कारावास दुनहूँ समान रूप से अनैतिक हकइ, लेकिन अगर हमरा ई दुन्नु में से एगो के चयन करे के विकल्प देल जइतइ, त हम निश्चय ही दोसरका के चुनबइ । बिलकुल नयँ जीवित रहे के अपेक्षा कइसूँ जीवित रहना बेहतर हकइ ।"

एगो सजीव चर्चा चालू हो गेलइ । ऊ बखत जरी कम उमर के आउ तुनुकमिजाज (चिड़चिड़ा) साहूकार अचानक अपन आपा खो देलकइ, टेबुल पर मुक्का के प्रहार कइलकइ आउ नवयुवक वकील तरफ सम्बोधित करते चिल्ला उठलइ - "झूठ ! बीस लाख के हम बाजी लगावऽ हियो कि तूँ पाँचो बरस जेल के अन्दर नयँ रह पइबऽ ।"

तब ओकरा वकील जवाब देलकइ - "अगर ई बात पर तूँ गम्भीर हकऽ, त हम बाजी लगावऽ हियो कि पाँच बरस नयँ, बल्कि पनरह बरस जेल में गुजार सकऽ ही ।"
साहूकार चिल्लइलइ - "पनरह बरस ? ठीक हको ! भद्र लोग, हम बीस लाख के बाजी लगा रहलिए ह !"
"सहमत ! तूँ बीस लाख लगावऽ, आउ हम अपन अजादी के !" वकील बोललइ ।

आउ ई अविवेचित मूर्खतापूर्ण बाजी तो वास्तव में लग गेलइ ! ऊ बखत तो ऊ गुस्ताख आउ चंचल साहूकार के केतना करोड़ अपन पास हके एकर अन्दाज नयँ हलइ, ऊ बाजी से आनन्दातिरेक में पगला गेलइ । रात्रिभोज के बखत ऊ वकील के व्यंग्यपूर्वक बोललइ अभियो चेत जा, नवयुवक, जब तक कि जादे देर नयँ होलो ह । हमरा लगी बीस लाख के कुछ महत्त्व नयँ, लेकिन तूँ अपन जिनगी के बेहतरीन तीन-चार बरस खो देबऽ । हम तीन-चार बरस बोल रहलियो ह, काहे कि एकरा से जादे तूँ जेल के जिनगी सहन नयँ कर पइबऽ । एहो बात मत भूलिहऽ, ए अभागल युवक, कि स्वयं स्वीकृत कारावास बाध्यकर कारावास के अपेक्षा जादे कष्टकर होवऽ हइ । ई विचार कि तोरा ई अधिकार हको कि कउनो पल तूँ अजाद होके जेल से निकल सकऽ ह, जेल के कोठरी तोरा अपन समुच्चे अस्तित्व के विषाक्त कर देतो । हमरा तोरा पर तरस आवऽ हको !

आउ अब साहूकार एक कोना से दोसर कोना डेग मारते ई सब बात आद कइलक आउ खुद से सवाल करे लगल - "ई बाजी से की फयदा ? ई बात के की उपयोग कि वकील अपन जिनगी के पनरह बरस खोवऽ हइ, चाहे हम दू लाख फेंक दे हूँ ? की एकरा से लोग के विश्वास हो जइतइ कि मृत्यु दंड आजीवन कारावास से बदतर चाहे बेहतर हकइ ? बिलकुल नयँ । ई सब बकवास आउ बेमतलब के चीज हइ । जहाँ तक हम्मर बात हकइ त ई एगो अघाल व्यक्ति के एगो सनक हलइ, आउ वकील के मामले में खाली पइसा के लोभ ... ।"

आउ आगे ओकरा आद आल कि ऊ शाम के पार्टी के बाद की होलइ । ई निर्णय कइल गेलइ कि वकील अपन कारावास के जिनगी साहूकार के एगो ऊ बहिर्गृह (out-house) में सख्त निगरानी में काटतइ, जे साहूकार के बाग में बनावल हकइ । ई बात में सहमति होलइ कि पनरह बरस के दौरान ऊ बहिर्गृह के दहलीज नयँ पार करतइ, कउनो जीवित अदमी से भेंट नयँ करतइ, कउनो मानव जाति के अवाज नयँ सुनतइ आउ कउनो चिट्ठी चाहे अखबार नयँ पा सकतइ । ओकरा ई बात के अनुमति देल गेलइ कि ऊ संगीत के कोय वाद्ययंत्र रख सकऽ हइ, किताब पढ़ सकऽ हइ, चिट्ठी लिख सकऽ हइ, आउ सिगरेट पी सकऽ हइ ।

शर्त के मुताबिक ऊ बाहरी दुनिया से खाली चुपचाप सम्पर्क कर सकऽ हलइ - एगो छोट्टे गो खिड़की से होके, जे खास एहे उद्देश्य से बनावल गेले हल । सब कुछ जेकर जरूरत पड़े - किताब, संगीत, शराब, इत्यादि - केतनो मात्रा में ऊ एगो पर्ची में लिखके खाली ऊ खिड़किए से होके मँगा सकऽ हलइ । समझौता में छोटगर से छोटगर ऊ सब चीज के विस्तृत विवरण के प्रावधान कइल गेले हल, जेकरा से ओकरा सख्त अकेलापन के जिनगी गुजारे के हलइ, आउ ई वकील के ठीक पनरह बरस तक रहे खातिर बाध्य कइलके हल - 14 नवम्बर 1870 के 12 बजे से लेके 14 नवम्बर 1885 के 12 बजे तक  निश्चित अवधि के पहिले वकील के तरफ से शर्त के तोड़े के एगो छोटगर से छोटगर कोशिश भी, चाहे ई दुइयो मिनट खातिर काहे नयँ रहे, साहूकार द्वारा वकील के बीस लाख के भुगतान के बाध्यता से मुक्ति देला देतइ ।

कारावास के पहिला बरस में वकील, जइसन कि ओकर छोटगर-छोटगर नोट से निष्कर्ष निकालल जा सकऽ हलइ, एकान्त जीवन आउ बोरियत से बहुत कष्ट झेललकइ । ओकर बहिर्गृह से दिन-रात लगातार पियानो के अवाज सुनाय दे हलइ । ओकरा शराब आउ सिगरेट नयँ चाही हल । ऊ लिखलके हल, "शराब इच्छा के जगावऽ हइ, आउ इच्छा एगो कैदी के पहिला दुश्मन हकइ । एकरा अलावे अकेल्ले निम्मन शराब पिए से आउ जादे बोरियत की हो सकऽ हइ, जबकि केकरो पर नजर तक नयँ पड़े । आउ सिगरेट तो ओकर बन कोठरी के हावा खराब करे वला होतइ ।

पहिला साल वकील के पास मुख्यतः साधारण विषय के पुस्तक भेजल गेलइ - क्लिष्ट प्रेम कथावस्तु के उपन्यास, अपराध आउ कल्पना से संबंधित कहानी, प्रहसन आदि । दोसरा साल बहिर्गृह में पियानो के संगीत सुनाय नयँ पड़लइ आउ वकील अपन नोट में खाली श्रेष्ठ साहित्य के माँग कइलकइ ।

पचमा साल संगीत फेर से सुनाय देलकइ आउ कैदी शराब के माँग कइलकइ । जे लोग ओकरा खिड़की से निरीक्षण कइलका, ऊ लोग बतइलका कि ऊ पूरे साल खाली खा हल, पीयऽ हल, आउ बिछौना पर पड़ल रहऽ हल । ऊ अकसर जम्हाई ले हल आउ गोस्सा में खुद से बात करते रहऽ हल । ऊ किताब नयँ पढ़ऽ हल । कभी-कभार ऊ रात में लिक्खे लगी बइठ जा हल, बहुत देरी तक लिखते रहऽ हल आउ सब्भे लिक्खल-उक्खल कागज के सुबहे फाड़-फूड़ दे हल । कइएक तुरी ओकरा कनते सुन्नल गेलइ ।

छट्ठा साल के दोसरा अर्धवर्ष में कैदी उत्साहपूर्वक भाषा, दर्शन, आउ इतिहास के अध्ययन कइलकइ । ई सब विषय के अध्ययन में ऊ एतना लगन से पिल पड़लइ कि साहूकार मोसकिल से ओकरा लगी किताब जुटा पावऽ हलइ । ओकर माँग के मोताबिक कोय छो सो ग्रन्थ के औडर देवे पड़लइ । ओकर अध्ययन के उत्साह के दौरान अन्य बात के अतिरिक्त कैदी के यहाँ से साहूकार के अइसन खत मिललइ - "प्रिय जेलर साहब ! ई पंक्तियन के हम छो भाषा में लिख रहलियो ह । एकरा विशेषज्ञ लोग के देखावल जाय । उनकन्हीं के पढ़े देल जाय । अगर उनकन्हीं कोय गलती नयँ ढूँढ़ पावऽ हथिन, त हमर निवेदन हइ कि बाग में बन्हूक से एक तुरी फायर कइल जाय । ई फायर से हम समझम कि हमर परिश्रम बेकार नयँ गेल । सब्भे युग आउ देश के प्रतिभाशाली लोग भिन्न-भिन्न भाषा में बोलते जा हका, लेकिन ऊ सब्भे में एक्के ज्वाला प्रज्वलित होवऽ हइ । काश, तूँ जान पइतऽ हल कि हमर आत्मा कइसन स्वर्गीय आनन्द के अनुभव कर रहल ह, कि हमरा ऊ सब समझ में आवऽ हके !"

कैदी के इच्छा के पूर्ति कर देल गेलइ । साहूकार बाग में दू तुरी फायर करे के औडर देलकइ । बाद में दसमा साल के अन्त में वकील टेबुल के सामने बिना हिलले-डुलले बइठल रहऽ हलइ आउ खाली बाइबिल (न्यू टेस्टामेंट) पढ़ऽ हलइ । साहूकार के विचित्र प्रतीत होलइ कि जे अदमी चार साल में छो सो पाण्डित्यपूर्ण ग्रन्थ के अध्ययन कइलकइ, ऊ अब सालो भर असानी से समझे जाय वला आउ जे मोटगर भी नयँ हलइ, अइसन एक्के गो पुस्तक पढ़े में समय गुजार देलकइ । फेर बाइबिल के जगह पे धर्मशास्त्र के इतिहास आउ धर्मविज्ञान (थियोलॉजी) के पुस्तक देल गेलइ ।

कारावास के अन्तिम दू बरस कैदी विलक्षण रूप से बहुत अधिक पढ़ाय कइलकइ, बिना कउनो प्रकार के चयन कइले । कभी ऊ प्राकृतिक विज्ञान पढ़े, त कभी बायरोन चाहे शेक्सपियर के रचना के माँग करे । ओकरा हीं से अइसनो पर्ची आवइ, जेकरा में ऊ एके तुरी रसायनशास्त्र, चिकित्साशास्त्र के पाठ्यपुस्तक, उपन्यास, कउनो दर्शनशास्त्र, चाहे धर्मविज्ञान (थियोलॉजी) संबंधी पुस्तक भेजे के निवेदन करे । ओकर अध्ययन कुछ ई प्रकार के रहे मानूँ ऊ जहाज के मलबा पर पइर रहल ह, आउ अपन जिनगी बचावे खातिर कभी एक टुकड़ा पर चढ़े के कोशिश कर रहल ह, त कभी दोसरा पर !

2

वृद्ध-साहूकार ई सब आद कइलक आउ सोचलक - "बिहान 12 बजे ओकरा अजादी मिल जइतइ । आउ समझौता के मोताबिक हमरा ओकरा बीस लाख के भुगतान करे के चाही । अगर हम ओकरा भुगतान करऽ ही, त हम कहीं के नयँ रहम - हमेशे लगी बरबाद हो जाम ... ।"

पनरह साल पहिले ओकरा ई भान नयँ हल कि ओकरा पास केतना करोड़ रुपया हइ, आउ अब अपने आप के सवाल करे में डरऽ हलइ कि ओकरा पास जादे की हइ - पइसा कि करजा ? शेयर-दलाली वला जुआ, जोखिम भरल सट्टेबाजी, आउ उतावलापन, जेकरा से ऊ बुढ़ापो में छुटकारा नयँ पा सकल - ई सब से धीरे-धीरे ओकर व्यापार पर बुरा असर पड़े लगल, आउ भयहीन, आत्मविश्वास, अभिमानी धनसेठ एगो सधारन साहूकार बनके रह गेल, जे मार्केट के हरेक उतार-चढ़ाव से काँपे लगऽ हल ।

"ई अभिशप्त (cursed) बाजी !", निराशा में अपन सिर पकड़ले बुढ़उ बड़बड़ाल, "ई अदमी मरल काहे नयँ ? ओकर उमर अभी चालसे साल हकइ । ऊ हमरा से एक-एक पइसा ले लेत, बियाह करत, जिनगी में मौज करत, शेयर-दलाली करत, आउ हम एगो भिखारी नियन डाह से देखते रहम आउ रोज दिन ओकरा से एक्के बात सुन्नम - 'हम अपन खुशहाल जिनगी खातिर तोहर कृतज्ञ हकियो, हम तोरा मदत करे ल चाहऽ ही, मदत करे द !' नयँ, ई बहुत जादे हो गेल ! दिवालियापन आउ बदनामी से बच्चे के एक्के उपाय हके - ई अदमी के मौत !"

घड़ी तीन घंटा बजइलकइ । साहूकार सुन रहले हल । घर में सब कोय सुत्तल हलइ, आउ खाली सुनाय दे रहले हल खिड़की के पीछे बरफ से ढँकल पेड़ सब के सरसराहट । ऊ बिना कोय अवाज कइले कपाट से ऊ दरवाजा के कुंजी निकासलक, जेकरा पनरह साल तक खोलल नयँ गेले हल । ऊ कपड़ा पेन्हलक आउ घर से बहरसी निकलल ।

बाग में अन्हेरा आउ ठंढी हलइ । बारिश हो रहले हल । समुच्चे बाग में तेज ठंढा हावा चल रहले हल, जे गाछ-बिरिछ के शांति नयँ देब करऽ हलइ । ध्यान से नजर डाललो पर साहूकार के न तो जमीन देखाय दे हल, न उज्जर मूर्ति, न बहिर्गृह, आउ न तो कोय गाछ-बिरिछ । ऊ जगहा पे अइला पर, जाहाँ बहिर्गृह हलइ, ऊ पहरेदार के दू तुरी हँकइलक । कोय जवाब नयँ आल । शायद पहरेदार खराब मौसम के चलते कहीं आश्रय ले लेलक हल आउ खयँ तो भनसा भित्तर, खयँ उष्णगृह (hothouse, greenhouse) में सुत्तल हल ।

बुढ़उ सोचलक, "अगर हमरा अपन इरादा के पूरा करे के हिम्मत होत, त लोग के सबसे पहिले शंका जइतइ ऊ पहरेदार पर ।"

अन्हरवे में ऊ टोके सीढ़ी आउ दरवाजा तक पहुँचल आउ बहिर्गृह के डेउढ़ी में घुस्सल, फेर टोते-टाते एगो सँकरा गलियारा में पहुँचल आउ सलाय से निकालके एगो काँटी जलइलक । हुआँ कोय नयँ हल । केकरो खटिया पड़ल हलइ बिना कोय बिछौना के, आउ कोनमा में एगो लोहा के स्टोव हलइ । ऊ दरवाजा के सील सही-सलामत हलइ, जेकरा से कैदी के कोठरी में जाल जा हलइ ।

जब सलाय के काँटी (तिल्ली) बुता गेलइ, त बुढ़उ चिंता में कँपते, छोटकुन्ना खिड़की से अन्दर तरफ हुलकलइ । कैदी के भित्तर में एगो मोमबत्ती धीमे जल रहले हल । खुद कैदी टेबुल के पास बइठल हलइ । खाली ओकर पीठ, मथवा पर के बाल आउ दुन्नु हाथ देखाय देब करऽ हलइ । टेबुल, दु गो कुरसी आउ टेबुल के पास के दरी पर खुल्लल किताब सब बिखरल पड़ल हलइ ।

पाँच मिनट गुजर गेलइ, आउ कैदी जरिक्को हिल-डुल नयँ कइलकइ । पनरह साल के कैद ओकरा गतिहीन अवस्था में बइठे ल सिखा देलके हल । साहूकार खिड़की पर अँगुरी से ठकठकइलकइ, लेकिन कैदी ई ठकठक के अवाज के कउनो प्रकार से गति करके जवाब नयँ देलकइ । तब साहूकार सवधानी से दरवाजा के सील तोड़के ताला में कुंजी घुसइलकइ ।  जंगियाल ताला एगो अवाज के साथ खुल गेलइ, आउ दरवाजा चरचरइते खुललइ । साहूकार आशा कइले हलइ कि ओकरा तुरते अचरज के चीख आउ डेग बढ़ावे के अवाज सुनाय देत, लेकिन तीन मिनट गुजर गेलइ, आउ दरवाजा के पीछे सब कुछ पहिलहीं जइसन बिलकुल शांति हलइ । ऊ अन्दर घुस्से के फैसला कर लेलकइ ।

टेबुल के पास में एगो अइसन अदमी बइठल हलइ, जे सामान्य लोग से बिलकुल भिन्न हलइ । ई एगो कंकाल हलइ, जेकर देह के चमड़ी हड्डी से चिपकल हलइ, केशिया औरत के नियन बहुत लमगर आउ दढ़िया जटाल हलइ । ओकर चेहरवा पीयर आउ जरी मटमैला हलइ, गलवा में गड्ढा पड़ गेले हल, पीठिया लमगर आउ पतरा हलइ आउ हथवा, जेकर सहारे अपन झोंटेदार सिर के पकड़ले हलइ, एतना नाजुक आउ खराब हलइ, कि ओकरा देखे में डर लगऽ हलइ । सिर के केश जाहाँ-ताहाँ उज्जर हो गेले हल, आउ ओकर बुढ़ाल मरियल चेहरा देखके केकरो ई विश्वास नयँ होते हल कि ऊ अभी चालसे साल के हइ । ऊ सुत्तल हलइ ... । ओकर झुक्कल सिर के सामने टेबुल पर कागज के एगो पन्ना पड़ल हलइ, जेकरा पर सुन्दर अक्षर में कुछ लिक्खल हलइ ।

साहूकार सोचलकइ - "बेचारा ! सुत्तल हकइ आउ शायद सपना में बीस लाख देखब करऽ हइ ! आउ खाली हमरा ई अधमरू अदमी के पकड़के बिछौनमा पर पटक देबे के हइ, तकिया से ओकर गला दबा देवे के, आउ दक्ष से दक्ष व्यक्ति भी हिंसात्मक मौत के कोय लक्षण नयँ पा सकतइ । लेकिन पहिले पढ़ तो लिअइ कि ऊ कीऽ लिखलके ह ।"

साहूकार टेबुल पर से ऊ पन्ना उठा लेलकइ आउ पढ़लकइ - "बिहान 12 बजे दिन में हमरा अजादी मिल जात आउ लोग से हिल्ले-मिल्ले के अधिकार । लेकिन एकरा से पहिले कि हम ई कोठरी छोड़ूँ आउ सूरज के दर्शन करूँ, हम तोहरा कुछ बतावे लगी चाहऽ हूँ । शुद्ध अन्तरात्मा से आ भगमान के सामने, जे हमरा देखब करऽ हका, हम घोषणा करऽ हियो कि हमरा अजादी, जिनगी, आउ ऊ सब कुछ से, जे तोहर कितब्बन में संसार के निम्मन चीज बतावल गेले ह, घृणा हके ।

पनरह साल तक हम ध्यानपूर्वक पार्थिव जीवन के अध्ययन कइलूँ । ई सच हइ कि हम न तो पृथ्वी के देखलूँ, न लोग के, लेकिन तोहर कितब्बन में सुरस मधु के पान कइलूँ, गीत गइलूँ, जंगल में हिरन आउ भयंकर सूअर के शिकार कइलूँ, औरतियन से प्रेम कइलूँ ... । तोर प्रतिभावान कवियन द्वारा रचल बादल जइसे उड़े वली परियन हमरा पास रात में आवऽ हल आउ हमर कनमा में फुसफुसाके विचित्र-विचित्र कथा सुनावऽ हल, जेकरा से हमर मन में मस्ती छा गेल ह । तोहर कितब्बन में हम एलबोरुस आउ मोनब्लान के चोटी पर चढ़लूँ आउ हुआँ से देखलूँ कि सूरज कइसे उदित होवऽ हइ आउ कइसे सँझिया खनी अकाश, समुन्दर आउ पहाड़ के चोटी के सुनहला बना दे हइ । हुआँ से हम देखलूँ कि कइसे बादल के चीर के बिजली हमर उपरे चमकऽ हल । हम देखलूँ हँ - हरियर-हरियर जंगल, खेत, नद्दी, झील, शहर । हम सायरन के गीत सुनलूँ, आउ गरेड़िया के बाँसुरी वादन । हम सुन्दर शैतान के डैना के स्पर्श कइलूँ हँ, जे भगमान के बारे में चर्चा करे खातिर हमरा भिर उड़के आवऽ हल ... । तोहर कितब्बन में हम अगाध पताल में कूदके गेलूँ, चमत्कार कइलूँ, हत्या कइलूँ, कइएक शहर के जला देलूँ, नयका-नयका धरम के प्रचार कइलूँ, कइए गो समुच्चे के समुच्चे राज्य जीत लेलूँ ...

तोहर कितब्बन से हमरा अकलमंदी मिल्लल । सदियन से जे अथक मानवीय विचार रचल गेले ह, ऊ सब हमर खोपड़ी में एगो छोट्टे गो पिंड (लोंदा) के रूप में संकुचित होल हकइ । हम जानऽ हूँ कि हम तोहन्हीं सब्भे से अधिक अकलमंद हकूँ । आउ हमरा तोहर कितब्बन से घृणा हके, संसार के सब सुख-सुविधा आउ बुद्धिमानी से घृणा हके । सब कुछ शून्य, अस्थायी, नाजुक, मायामय आउ मृगतृष्णा जइसन भ्रामक हके । तूँ भले अभिमानी, बुद्धिमान आउ सुन्दर होवऽ, लेकिन मृत्यु तोरा पृथ्वी के सतह से भूमिगत चुहवन नियन मेटा देतो, आउ तोहर पीढ़ी, इतिहास, तोहर प्रतिभावान लोग के अमरता - सब कुछ बरफ नियन जम जइतो, चाहे पृथ्वी के गोला के साथ-साथ जल जइतो ।

तूँ पगला गेलऽ ह आउ गलत रस्ता पर जा रहलऽ ह । झूठ के तूँ सच समझ रहलऽ ह आउ कुरूपता के सुन्दरता । तोरा अचरज होतो, अगर कउनो कारणवश बेंग आउ बिछौती अचानक सेब आउ संतरा के फल के छोड़के पेड़ पर बढ़े लगइ, चाहे गुलाब एगो पसेना से लथपथ घोड़ा नियन गन्ध देवे लगइ । ओइसीं हमरा तोरा पर अचरज हो रहल ह कि तूँ स्वर्ग के बदले में मृत्युलोक लेब करऽ ह । हम तोरा समझे लगी नयँ चाहऽ ही ।

ई वास्तव में साबित करे लगी कि हमरा तोर रहन-सहन से केतना घृणा हको, हम बीस लाख के परित्याग करऽ हियो, जेकरा हम कभी स्वर्ग नियन सुखकारी समझके ओकरा बारे सपना देखऽ हलूँ, आउ जेकरा से अभी हमरा घृणा हके । ऊ पइसा के अधिकार से अपना के वंचित करे खातिर हम नियत काल से पाँच घंटा पहिलहीं निकस के चल जइबो आउ ई तरह से कइल करार के तोड़ देबो ... "

ई सब पढ़के साहूकार पनमा के टेबुल पर रख देलकइ, ऊ विचित्र व्यक्ति के सिर पर चुम्बन लेलकइ, फेर कन्ने लगलइ आउ बहिर्गृह से बहरा गेलइ । आउ कउनो बखत, हियाँ तक कि शेयर-दलालियो में जब भारी घाटा सहे पड़ले हल, ऊ खुद्दे लगी एतना घृणा के अनुभव नयँ कइलके हल, जेतना अभी । घर पर आके ऊ बिछौना पर पड़ गेलइ, लेकिन चिंता आउ आँसू से बहुत देर तक ओकरा नीन नयँ अइलइ ।

अगले दिन पहरेदार सब, जेकर चेहरा पीयर पड़ गेले हल, ओकरा भिर दौड़ल आके सूचना देते गेलइ कि ओकन्हीं ऊ अदमी, जे बहिर्गृह में रह रहले हल, खिड़किया से होके रेंगके बगिया में घुस गेलइ, आउ गेटवा तक चल गेलइ आउ बाद में कहीं छिप गेलइ । साहूकार नौकरवन साथे तुरते बहिर्गृह में गेलइ आउ अपन कैदी के पलायन के बारे निश्चय कइलकइ । फालतू के अफवाह आउ खुसुर-फुसुर से बच्चे खातिर ऊ टेबुल पर के पन्ना उठा लेलकइ, जेकरा में बीस लाख के परित्याग के उल्लेख हलइ, आउ घर वापिस आके एगो अदाह्य (fireproof) कपाट में रखके ताला जड़ देलकइ ।

प्रथम प्रकाशित 1889

 

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