सारथी॰ = मगही पत्रिका
"सारथी॰"; सम्पादक - श्री मिथिलेश, मगही मंडप, वारिसलीगंज, जि॰ नवादा, मो॰ 08084412478; जनवरी 2014, अंक-20; कुल 48 पृष्ठ ।
ठेठ मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन
वर्ष संख्या
(अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर
अंक संख्या; तेसर पृष्ठ संख्या, चौठा कॉलम संख्या,
आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ ।
कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या (‘मगही पत्रिका’ के अंक 1-21, ‘बंग मागधी’ के अंक 1-2, 'झारखंड मागधी', अंक 1 एवं सारथी, अंक-16-19 तक संकलित शब्द के अतिरिक्त) - 415
ठेठ मगही शब्द (अ से ह तक):
1 अँड़सा (छोटका अहरवा भरा के दलान बन गेल हल, धार-भार वलन के । चमरपोखरिया तऽ कहिये ने भरा गेल हल आउ पटवारी जी के खेत बन गेल हल । मिट्ठी कुइयाँ जेकरा पर सभे के दलधोय होवो हल, हमरो होल हल, के अँड़सा ऊँच हो गेल हल । हुलक के देखलूँ तऽ ओकर हरियर पानी में उखड़ा, डमरा, बलुरी, खखड़ा आउ हठुआ मनी अलखर-जलखर उपलाल हल ।) (सारथी॰14:20:23:1.20)
2 अगम-निगम (= आगम-निगम) (अरे महराज तूहूँ विष में दोख करे वाला हो । कहलहो होत कि नन्हकी हीं जाही, कुछ कहे के हो ? ऊ सब कि अगम-निगम जानऽ हला ?) (सारथी॰14:20:40:1.27)
3 अदरखिया (चनपुरा गाम राजगीर-बनगंगा मोड़ से सोझे पच्छिम पहाड़ी के तलहटी में परो हल । माटी करकी केवाल आउ खूब पैदावार हल । ... भूमिहार बरहामन के अलावे जादव, कोइरी, आउ मुसहर के आबादी । सेऽ आलू-पेआज, रस्सुन-हरदी के पैदा भी होवे । पाँच घर अदरखियो हे जे हरदी-आदी के खेती करो हे ।) (सारथी॰14:20:35:1.39)
4 अधपकुआ ("तेको छोड़िगो नाहैन । ते खौब दूध-मलाई-मुर्गा चाभले हस ।", बिलाय के टंगरी मचोर के तोड़इत बोलल आउ निम्मक-गुंडी में बोरके अधपकुए दाँत से नोचके मूड़ी कँपावइत कचरऽ लगल ।) (सारथी॰14:20:27:1.9)
5 अनइ (हम पलट के देखली । ऊ खड़ा असमान ताकइत गुलेल से एगो झिकटी छोड़लक आउ सिरकी के आगू ठाढ़ हो गेल । ऊ बोलल, "हमर अनइ तोरा अच्छा न लगलउ कारू भाय ?") (सारथी॰14:20:26:1.32)
6 अनवारी (= अलमारी; आलमारी) (भनसा भीतर के केवाड़ी सड़ गेलइ हल । दखिनवारी ओसरवा पर के अनवारी ठीक हल, जेकरा में काका के कागज-पत्तर रखल हल, रसीद-पुरजा, हनुमान चलीसा, दुर्गा सप्तशती, बजरंग बाण, विनय पत्रिका, सूरसागर, गीता, कल्याण के ढेर मनी अंक आउ एक कोना में मोहना के बुतरू वाला फोटु ।; "हम निरवंश नञ् ही ... ।" - "तउ की हऽ ? बेटा हो, पुतहू हो, पोता हो, बाकि अयलो हे एको दिन ताकहो ले ... ? हम निरवंश नञ् ही ... बड़का वंशगर ही ।" कहके कका उठला आउ निमकी के बोइयाम फिन अनवारी में रख देलका ।) (सारथी॰14:20:24:2.6, 3.22)
7 अनोग (दे॰ हनोक) (ठेल-ठाल के साथ सुतवो करिअउ तऽ खाली देहिया पर हाथा रखके घोंघर काटते रहो हीं । दूर रे गोट-गिलउना के छौंड़ा । भठवा पर रेजवन के देखके खड़े तूओ हीं रेऽ आउ हमरा भिरी अइते तोरा मिरगी आवे लगो हउ । बिहा भेला पाँच बरिस भे गेलउ । आझ अनोग एगो चुटवरियो देलहीं रेऽ कोचन-गिलउना के नाती ?) (सारथी॰14:20:36:2.13)
8 अन्हमुँहे (हमरा अन्हमुँहें भूख न लगऽ हो । एक मुट्ठी महुआ आउ बूँट उलाके ले लेलियो हे । अँचरा में बान्हल देखऽ हऽ नञ् ? निकालियो ? थोड़े-थोड़े दुन्नूँ गोटी चिबा लऽ । पनपिआय के जुगाड़ भर तऽ हइये हे ।) (सारथी॰14:20:20:3.29)
9 अपनउती (जे तरह से सोवारथ आउ अपनउती के चलन बढ़ल ओकरा से परिवार खुंडी-खुंडी होके विखंडित हो रहल हे । अब तो माउग-मरद के परिवार ही बड़गो लग रहल हे ।) (सारथी॰14:20:9:3.50)
10 अपरतछ (= अप्रत्यक्ष) (पहिले जोंक जना हल, आज तरह-तरह के जोंक उपला गेल हे, कुछ परतछ, कुछ अपरतछ । पहिले सामंती राक्षस हल, तऽ अखनी पूंजीवादी वायरस ।) (सारथी॰14:20:2:2.4)
11 अमगूरा (एकरा में एक दने साँझ-सुबह के सोहनगर परिवेश, महुआ के महक आउ आम के अमगूरा मिलऽ हे तऽ दोसर दने जरइत दुपहरी के साथे-साथे राजनीति के फइलावल फसाद भी । जब घर-दुआर के चरचा होत तऽ असठी पर बइठे वली घर के बेटी-बहू पर नजर कसइत बुढ़िया मामा आउ ओकर करगुजारी भी सामने आइए जात ।) (सारथी॰14:20:10:3.5)
12 अरंगा (= अड़ँगा) (रात भर मुखिया जी सोचइत रहलन कि केकरा उप-मुखिया बनावल जाए । जाफर के अगर बनावऽ ही तब ऊ हम्मर बात मानत कि नऽ, ई न कि कोई काम में अरंगा लगावत ।) (सारथी॰14:20:45:1.5)
13 अरिअठ (= खेत के मेड़ पर की घास) (कोय-कोय हाल से अरिअठ पार कइलूँ, अगले-बगले घास पर से बुल-बुल के । मुदा अहरा पर चढ़ते गोड़ छहरऽ लगल । बुंदा-बांदी भी होइये रहल हल, फिसिर-फिसिर । गोड़ तो गोड़ नञ्, जाँता के चकरी रहे । गोड़ पीछू पाँच-पाँच किलो माटी से कम नञ् ।) (सारथी॰14:20:40:3.39)
14 अलखर-जलखर (छोटका अहरवा भरा के दलान बन गेल हल, धार-भार वलन के । चमरपोखरिया तऽ कहिये ने भरा गेल हल आउ पटवारी जी के खेत बन गेल हल । मिट्ठी कुइयाँ जेकरा पर सभे के दलधोय होवो हल, हमरो होल हल, के अँड़सा ऊँच हो गेल हल । हुलक के देखलूँ तऽ ओकर हरियर पानी में उखड़ा, डमरा, बलुरी, खखड़ा आउ हठुआ मनी अलखर-जलखर उपलाल हल ।) (सारथी॰14:20:23:1.22)
15 अलाह ("खंती गरमावल जाय । जलील अपन हाथ पर खंती रखेगै ।" / सभा में जोरदार ताली के आवाज गूँजल । / अलाह जुटल । वहमों खंती डालल गेल । जलील के तरहत्थी पर कच्चा धागा से बान्हल पीपर के अढ़ाय पत्ता रखल गेल । शर्त हल - दस गिने के पहिले खंती गिर जात तऽ जलील के एक हजार रुपइया जुरमाना के तौर पर भरऽ पड़त ।) (सारथी॰14:20:29:1.32)
16 असिरवाद (= आशीर्वाद) (जइसहीं बस से महेश थान उतरलूँ हल, एगो चिन्हल-जानल हावा तन-मन के सिहरा देलक हल । आदतन हमर दहिना हाथ छाती से लग गेल आउ मूड़ी झुक गेल । पीपर गाछ के एगो चिन्हल डाढ़ पछिया हावा में झुकके असिरवाद देलक ।) (सारथी॰14:20:23:2.3)
17 अहड़ना (पाँच-छो महीना अहड़-अहड़ पेट लेले दौलती मर-मजूरी कइलकी मुदा सतवाँ आउ अठवाँ महीना अइते-अइते हार गेली । दू गो बेटी के जने में ओतना गंजन ऊ नञ् उठइलकी हल, जेतना ई बेटी के आखरी महीना के पेट में ढोले-ढोले ई भोगलकी ।) (सारथी॰14:20:31:2.6)
18 आँख लड़उअल ("ऊ अकसरे जा हउ दादा । ऊ हमरा कहियो अपना साथ नञ् ले जा हउ ।" - "तऽ तूँ केकरा संगे गेलहीं हल ?" - "माला भउजी साथ ।" सोनिया हकलायत बोलल । गोलू दादा दुर्वासा बनि गेलन, "खबरदार, जो कभी ऊ खधोड़ी संग गेले हें ... कुलछनी ! घाट-घाट के पानी पीले हे ऊ सुथरकी । एकरना से दोस्ती कइले हें, तऽ हडिया तोड़ि के धरि देबउ, से बूझ ले !" दादा लाल-पीयर आँख तरेरले घर में घुस गेल, "कुजात ! ससुरी ! अभी तलक नञ् आल हे । जहिरवा से आँख लड़उअल करऽ होत !") (सारथी॰14:20:21:3.53)
19 आक्-आक् (दुर्गा अपन स्वाभाविक चाल में चलल जा रहल हल । परीत के रस्ता सुनसान हल । साँझ उतरल जा रहल हल । चिरइँ-चुरगुनी हपसियान अपन-अपन खोंथा दने जल्दी-जल्दी पाँख मारले जा रहल हल । हमरा ऊपर से बगुला के पाँत आक्-आक् कइले पार करि गेल ।) (सारथी॰14:20:43:1.38-39)
20 आन्हर (मीसोसाव वली अफसोस करइत टुभकल, "अइसे जे कहो, बिलाय नञ् मारइ के चाही, पाप लिखऽ हे । ई बाघ के मौसी होवऽ हे । एकरा तो लोग सौख से पोसऽ हथिन ।" / "अजी जा जी ! तूहीं पोसिहऽ ! जानऽ हो बिलाय की मनावऽ हे ? मालिक-मालकिन आन्हर हो जाय आउ हम ओकर आगू वला खायक चट कर जाम ! हमर तऽ कत्ते दिन बनल-बनावल मास-मछली भकोस गेल हे ।" तरहत्थी पर खैनी मलइत साचो महतो बोलल ।) (सारथी॰14:20:26:3.14)
21 आरी-पगारी (रिक्शा चलल अउ एक घंटा में नरहिट पहुँच गेल । रिक्शा वाला कहलक - अब आगू तो पाँवे पैदल के रस्ता हो सरकार । हम कहलूँ - जानऽ ही भाय । तोर ससुरार नञ् हे, हमरे ससुरार हे । ई रस्ता के सब आरी-पगारी के चिन्हऽ हूँ ।) (सारथी॰14:20:40:2.49)
22 ईलाम-बकसीस (डमरूआ ठेरनी से कभी-कभी हँसलोलियो करो हल कि कलवतिया तो किसनमे के बेटी हे । ठेरनी तब अगरा के कहो हल - "तउ की हइ ? केकरो में कउनो छापा-मोहर लगल रहो हइ कीऽ ? मोछकबरा, जोऽ, ई बात किसैनियो से जाके कह दे, ईलाम-बकसीस मिलतउ तोरा । मोछकबरा के नाती, भाग मनाव कि तोरा नियन 'डमरूआ' से बिआह भे गेल आउ रस-बस गेलिअउ ।" ठेरनी एतना कहके डमरूआ के कनखी मार देय तनी । ईहे रकम माँझी-मँझिआइन में तफड़ी होते रहो हल ।) (सारथी॰14:20:35:2.13)
23 उकरूम (मलकीनी चिढ़क के बोलली - ई भैंसिया अगियान गौरी हमरा पुछिया से छतिया पर झँटार देलक । सउँसे सड़िया गोबर-गोबर हो गेल । हम कहलूँ - की करबहो, बीच रस्ते तो नहबे कैली, घरो जाके फेन से नहा लीहऽ । से तो ठीक हे, मुदा घर कैसे जाम ई गोबरे से लेटाल सड़िया पेन्हले । हम कहलूँ - हलऽ ल, ई बेगवा से लेटलहा जगहिया झाँप ल । हमरो दुनहूँ झोला-बेग लेले उकरूम लग रहल हल ।) (सारथी॰14:20:42:1.1)
24 उक्के-बुक्के (ऊ हँसुली के नोख गड़ाके चारो पट्टी घुमाके एक टुकड़ी मांस निकाललक, निम्मक में बोरके गुप दनी मुँह में ना लेलक । उक्के-बुक्के गरम टुकड़ी मुँह हिला-हिला भाफ फेंकइत चिबावऽ लगल ।) (सारथी॰14:20:27:2.32)
25 उखड़ा (छोटका अहरवा भरा के दलान बन गेल हल, धार-भार वलन के । चमरपोखरिया तऽ कहिये ने भरा गेल हल आउ पटवारी जी के खेत बन गेल हल । मिट्ठी कुइयाँ जेकरा पर सभे के दलधोय होवो हल, हमरो होल हल, के अँड़सा ऊँच हो गेल हल । हुलक के देखलूँ तऽ ओकर हरियर पानी में उखड़ा, डमरा, बलुरी, खखड़ा आउ हठुआ मनी अलखर-जलखर उपलाल हल ।) (सारथी॰14:20:23:1.22)
26 उगोहना (ई तरह मगही कहानी में सामाजिक बिखराव, मानव-जीवन से उठइत जा रहल ममता, स्नेह, प्रेम आउ समरसता के उपहनइ के सच सामने आल हे । सामाजिक-राजनीतिक, धार्मिक-साम्प्रदायिक क्षेत्र से कथ्य उगोह के मगही कहानीकार समकालीन परिवेश के चरचा करइ में पीछू नञ् हथ ।) (सारथी॰14:20:8:3.11)
27 उछरबिद्दी (हम दौड़ गेलूँ । दुर्गा के मुँह से घिघियाल आवाज निकलि रहल हल, "हे हमरा छोड़ द ! गोड़ पड़ऽ हियो ! हम तोहर बहीन दाखिल हियो !" हमर देह में उछरबिद्दी समा गेल । हमर हाल बाया जकते हो गेल । हमरा झोंगी में कुछ नञ जनाल । मकान बड़गल हल । ओकर बनावट विचित्र हल ... भूल-भुलइया जइसन ।) (सारथी॰14:20:43:1.47)
28 उजगी ("दोसरा आउ साहब में फरक हे कि नञ्", ठठाके हँसइत हम चुनउटी लेली आउ घर चलि अइली । रात भर में जगरना हल । गाड़ी में ठसाठस भीड़ । सोंचली नहा-सोना के दू कौर खा, उजगी पचाम ।) (सारथी॰14:20:26:2.3)
29 उजड़ल-पुजड़ल (हमरा तहिया दाल में कुछ काला लगल । जासूस नियन पीछू लगि गेलूँ । छुपते-छुपइते हम एगो उजड़ल-पुजड़ल कनसार के कोना में दुबकि गेलूँ । माय ढेर दिना से सब्जी काटे ले चक्कू लावे कहि रहल हल । संयोग से गनेसी के दोकान से खरीद लेलूँ हल, जे हमर हाथ में हथियार सन चमकि रहल हल ।) (सारथी॰14:20:43:1.16)
30 उपलाल (छोटका अहरवा भरा के दलान बन गेल हल, धार-भार वलन के । चमरपोखरिया तऽ कहिये ने भरा गेल हल आउ पटवारी जी के खेत बन गेल हल । मिट्ठी कुइयाँ जेकरा पर सभे के दलधोय होवो हल, हमरो होल हल, के अँड़सा ऊँच हो गेल हल । हुलक के देखलूँ तऽ ओकर हरियर पानी में उखड़ा, डमरा, बलुरी, खखड़ा आउ हठुआ मनी अलखर-जलखर उपलाल हल ।) (सारथी॰14:20:23:1.22)
31 उपहनइ (ई तरह मगही कहानी में सामाजिक बिखराव, मानव-जीवन से उठइत जा रहल ममता, स्नेह, प्रेम आउ समरसता के उपहनइ के सच सामने आल हे ।) (सारथी॰14:20:8:3.8)
32 उरेहना (सामाजिक जीवन-बोध के उरेहे में मगही कहानी मध्यवर्गीय जीवन के यथार्थ के सामने रखलक हे ।; आधुनिकता तामझाम आउ चकाचौंध भरल हे तो प्राचीनता पर धूरी-धक्कड़ चढ़ल हे । कहानी के संवेदना ई बात के उरेहे हे कि आदमी नीव के पहचान भूल रहल हे । पीढ़ीगत दूरी में दरार वला तफड़का हे ।)) (सारथी॰14:20:9:1.48, 2.18)
33 उलाना (हमरा अन्हमुँहें भूख न लगऽ हो । एक मुट्ठी महुआ आउ बूँट उलाके ले लेलियो हे । अँचरा में बान्हल देखऽ हऽ नञ् ? निकालियो ? थोड़े-थोड़े दुन्नूँ गोटी चिबा लऽ । पनपिआय के जुगाड़ भर तऽ हइये हे ।) (सारथी॰14:20:20:3.30)
34 उसार ('जहिये दाल-भात, तहिये परब, गरीब के बाल-बच्चा मत कर गरब !' गरीब ले प्रासंगिक बनले हे । हमर देश परब के देश हे । साल में नो महीना परब-परब । पांचे (नागपंचमी) पसार तऽ बिसुआ उसार ! फाँक माधे तीन महीना - बैसाख, जेठ, अषाढ़ । सावन से तऽ परब आवऽ हे गरीबन ले सांसत बनि के । दीवाली मनइलऽ ने ? कइसन मनलो ? केकरो ले छप्पन प्रकार, केकरो ले ओल ! कुलकुलइनी मेटलो ?) (सारथी॰14:20:2:2.13)
35 एकठहुए (दे॰ एकठौए) (एकरा में आयोजक लोग के का ई समझ नल कि बैनर में उल्लेखित अधिकारी आउ राजनेता नञ् आके मगही भाषी के अपमान कइलन ? एकरा बाद 82-83 लोग के एकठहुए 'योगेश शिखर सम्मान' से विभूषित कर देवल गेल ।) (सारथी॰14:20:3:1.41)
36 एकलगौरी (= लगातार) (अइसे अगुआ पर भरोसा हल कि कुछ रियायत जरूर करइतन, बकि तइयो कुछ ने कुछ खेत बेचहे पड़त । एकलगौरी चार-चार बेटी पर आँख में आँख सुजितवा भेल, ऊ भी जिरइला पर ! सब खेत तऽ तीनियों के बियाहे में बिक गेल । हमरा माय-बाप तिलकाही घर देखके बियाहलक हल से अब भतही हो गेलूँ । सुजितवा ले बचवे की करत !) (सारथी॰14:20:37:2.6)
37 ओन्नइँ (= ओनहीं, ओधरे; उसी तरफ) (हमरा झोंगी में कुछ नञ जनाल । मकान बड़गल हल । ओकर बनावट विचित्र हल ... भूल-भुलइया जइसन । हम ऊहे झोंगी में हेल गेलूँ । हमरा लगल - बामा तरफ से दुर्गा के हाय-तोबा आ रहल हे । हम ओन्नइँ बढ़ गेलूँ ।) (सारथी॰14:20:43:2.3)
38 औरतानी (~ समस्या) (ऊ तुरतमे 'वांग' गाँव पहुँच गेल । मुर्दा में भी हरकत ले आवे वली चिकनी-चुपड़ी बात से ऊ 'श्याओमी' के माय-बाप से बात कइलन आउ ओकरा औरतानी समस्या के बारे में सीखइ ले भेजे कहलन ।) (सारथी॰14:20:12:3.10)
39 कंधकी (हम कहलूँ - साँझ हो रहलो हे, लड़ते रहबो कि नाली पार करबो । आवऽ ने जल्दी घोड़की । ऊ कहलकी - अब घोड़की नञ्, सच्चे जो हाथ छूट जाय तो ? हम कहलूँ - तउ की उड़के जीबी ? ऊ कहलकी - नञ् जी, कंधकी चढ़म, बड़ी कंधा पीठ में दरद रहऽ हो, आझे खतम हो जितो । हमहूँ सोचलूँ कि ठीके हे, कंधकीये लेला से हमर झोला सुरक्षित रहत । कंधकी लेवे से पहिले अपन झोला के फीता उनखर गिआरी में लपेट देम, तनी जोड़े ने परत, मुदा सब समान तीते से बच जात ।) (सारथी॰14:20:41:2.18, 20, 21)
40 कचुआ (ऊ रौदा के मुँह चिढ़ावइत बीसो-पचीस मेहरारू धैल-धरावल लाल-पीयर झमकइले दलधोय के गीत गइले बढ़ि रहल हल । आगू-आगू सूप में दाल-चाउर-मट्टी लेले कचुआ पेन्हले लड़की पाँच गो पटपरनी से घिरल बढ़ल जा रहल हल, तेकर आगू ढोल ... डिग ... डिग ... डिग ... डिग ... ।) (सारथी॰14:20:33:1.29)
41 कजवा-कजवी ("मैं तऽ ओको न बेचिमो । अनाज बेच दीको तऽ खायगै का कट्टा । कजवा-कजवी कुनाइये खाके रहैगे कि भातो खायगै ?" - "तऽ दारू न मंगइबे ?") (सारथी॰14:20:28:1.3)
42 कठुआना ("ऊ अइतइ ... ?" - "के ... दिनमा ?" - "नञ् ... मोहना ... ? ई देखे ले कि बुढ़वा-बुढ़िया मरलइ कि बचवे करो हइ ... ?" चाची के चेहरा कठुआ गेलइ । - "तोरा तऽ हरसट्ठे मरहे के चरचा ... ") (सारथी॰14:20:24:3.11)
43 कन्हिआना (एक्के तुरी तमसबीन के बीच से ठहाका उठल । हम झेंप गेलूँ आउ राघो के पीठ पर धौल जमावइत ओकरा कन्हिअइले घर दने सोझिया गेलूँ ।) (सारथी॰14:20:29:1.51)
44 कन्हुआल (= कुपित, नाराज) (अमिकवा के विरोध में पइदा लेल जन-कुरोध अइसन ने बढ़ल कि गाँव में बन्नूक के आवाज गूँजे लगल । एक दने गरीब-गुरबा के संगठन आउ दोसर दने दबंग के कन्हुआल सिंघ उठइले घेंच ।) (सारथी॰14:20:8:1.4)
45 कमउनी (दौलती धान काटके, घास गड़के, दोसर के गाय-गोरू के सानी-पानी जइसन काम आउ कमउनी करके दिन गुजारे लगल ।) (सारथी॰14:20:31:1.44)
46 कमजोड़-मरल ("एजी, हम्मर बुतरूआ के कोय लेबऽ ? हम एकरा बेचऽ ही ।" बड़ कमजोड़-मरल अवाज में एगो औरत तीन गो एकपिठिया बुतरूअन के लेले अस्पताल मोड़ पर बोल रहल हल ।) (सारथी॰14:20:30:1.2)
47 कमीनी (= कमाने वाली औरत) (जानऽ कि डमरूआ खेती में टेंगर बाबू के पी॰ए॰ हल । ओकर मेहरारू ठेरनी भी उनखर खासमखास कमीनी हल ।) (सारथी॰14:20:35:1.9)
48 करकी (चनपुरा गाम राजगीर-बनगंगा मोड़ से सोझे पच्छिम पहाड़ी के तलहटी में परो हल । माटी करकी केवाल आउ खूब पैदावार हल ।) (सारथी॰14:20:35:1.34)
49 करगी-करगी (चउगिरदा केतना आम-अमरूद के गाछ हलइ, करगी-करगी कनेर के पेड़ हलइ, जेकरा में पियर-पियर फूल शोभो हलइ । सब खतम । खाली पान-छो गाछ आम के, दू गाछ बेल के । एकदम्म उदास लग रहलइ हल महरानी थान ।) (सारथी॰14:20:23:3.8)
50 कल्ह (माल तौलाय लगल । जहीर मियाँ अपन कागज पर मनजई टाँकऽ लगल । खतम हो गेल तऽ जहीर बोलल, "फुटगत न हउ, कल्ह लिहें ।") (सारथी॰14:20:21:2.15)
51 काँटी (दियासलाय के ~) (साहब लकड़ी के जौर कइलक आउ सूखल पत्ता में दियासलाय के काँटी फक दनी जरावइत दुआ देलक । रस-रस लकड़ी सुलगऽ लगल आउ देखते-देखते लहकऽ लगल ।) (सारथी॰14:20:26:3.44)
52 कार-उज्जर (= काला-उजला) (मगही कहानी में ग्रामीण संवेदना अपन जगह बनइले हे साथे-साथ कस्बाई आउ नगरीय भी । मगही कहानी विकासशील हे । यहमाँ वर्तमान समाज के सपना अँखुआयत मिलऽ हे, जुझइत इंसान लउकइत हे आउ दिखऽ हे कार-उज्जर सब कुछ ।) (सारथी॰14:20:2:2.24)
53 कीच-काच (एतना कहते कोय कहलक - परनाम पहुना । आज बड़ी कीच-काच में पकड़ा गेलहो । बड़ी तकलीफ होलइ ।) (सारथी॰14:20:42:1.2)
54 कुकहारो (= कोलाहल; अनेक लोगों की मिली-जुली आवाज; कुकुरघौंज) ( गोरकी जब भतार के चाल-चलित्तर बिगरते देखलक तऽ पहिले जतन कइलक कि गोरका बात से समझ जाय । बाकि लात के देवता बात से नञ् मानलक तऽ रोज रात में ओकरा घरे कुकहारो होवे लगल ।) (सारथी॰14:20:36:1.54)
55 कुदकना (= कूदना) (इनखा तो कुदकते गोड़ पिछुलल अउ गिर गेली कादो में छपाक ! हम निहुर के उनखर गिआरी से झोला निकाललूँ । हाथ से दूर छिटक के बेग कादो में गिर गेल हल ।) (सारथी॰14:20:41:2.50)
56 कुनाई (सहब्बा चहकइत बोलल, "सौ सेर मलाई पर एगो कुनाई (बिलाय) रेऽऽ योद्धा मेरा ! मर गइल अब पट्ठा ! अब तेको झौंस के खाइब हम ! चार सेर से कम नञ् होइगै । दुइ दिन खौब चलइगे मास-भात !" बोलके ऊ बिलाय के दुइयो पिछला टंगरी पकड़ि के उठइले चलि देलक अपन सिरकी दने ।) (सारथी॰14:20:26:3.26)
57 कुमानुख (सुने में तऽ आवऽ हे कि कलवतिया फेन नैहर से पलट के ससुरार नञ् आइल । माय-बाप कीतो राजगीर देने ओकर 'सगाय' करवा देलक । कलवतिया साफे कह देलक हल कि ऊ कुमनुखा के घर नञ जइबउ ।) (सारथी॰14:20:36:3.17)
58 कुम्मर थान (हम जने-जने घूम जा हलूँ ओकर इतिहास हमर आँख के आगु घूमऽ लगऽ हल, सिनेमा नियन । महरानी थान, लुल्ही थान, मांझी थान, घूरेता, कुम्मर थान, हहेबा पर, डाक थान ओगैरह । लुल्ही माय के तो रेवरा के दू-तीन छउँड़ चोरा के ले भागलइ हल ।) (सारथी॰14:20:23:2.49)
59 कुलकुलइनी ('जहिये दाल-भात, तहिये परब, गरीब के बाल-बच्चा मत कर गरब !' गरीब ले प्रासंगिक बनले हे । हमर देश परब के देश हे । साल में नो महीना परब-परब । पांचे (नागपंचमी) पसार तऽ बिसुआ उसार ! फाँक माधे तीन महीना - बैसाख, जेठ, अषाढ़ । सावन से तऽ परब आवऽ हे गरीबन ले सांसत बनि के । दीवाली मनइलऽ ने ? कइसन मनलो ? केकरो ले छप्पन प्रकार, केकरो ले ओल ! कुलकुलइनी मेटलो ?) (सारथी॰14:20:2:2.15)
60 कुलगर-खुँटगर (बाबू टेंगर सिंह चनपुरा गाम के एगो बड़गो आउ नामी किसान हला । कुलगर-खुँटगर आड़ सज के खेती करनिहार । आठ गो अरना भैंसा हर चले लेल आउ दुखना गोरखिया ।) (सारथी॰14:20:35:1.29)
61 कोचन-गिलउना (ठेल-ठाल के साथ सुतवो करिअउ तऽ खाली देहिया पर हाथा रखके घोंघर काटते रहो हीं । दूर रे गोट-गिलउना के छौंड़ा । भठवा पर रेजवन के देखके खड़े तूओ हीं रेऽ आउ हमरा भिरी अइते तोरा मिरगी आवे लगो हउ । बिहा भेला पाँच बरिस भे गेलउ । आझ अनोग एगो चुटवरियो देलहीं रेऽ कोचन-गिलउना के नाती ?) (सारथी॰14:20:36:2.14)
62 कोर-घोंट (ई बात सही हे कि मगही कहानी अपन उद्भव आउ विकास के लमहर सफर के बाद भी समकालीन हिन्दी आलोचना दृष्टि के धरातल पर नञ् पहुँचल हे । एकर कोर-कसर के चरचा शुरुए में कर देल गेल हे । जरूरत हे मगही कोर-घोंट के आधार पर एकरा देखे के ।) (सारथी॰14:20:11:3.26)
63 खँड़हू (अमर के भोर टहले के आदत हल । ईहे बहाने ऊ अपन सब खेत देखि आवऽ हल । आज लौटे में देरी हो गेल, काहे कि तीन-चार टोपरा से पानी बहि रहल हल । खँड़हू लगावइत-लगावइत देरी हो गेल । भादो के कटकटाह रौदा चुनचुनाय लगल हल ।) (सारथी॰14:20:39:3.5)
64 खंता (लहकल ~) (नट के मेट खैनी ठोकइत उठल आउ मुँह में लेके चुनियावइत बोलल, "भाय होऽऽ ! पहिले दुन्नूँ भाय सो-सो रुपिया जमा करइगै, जेको से पंच सब खयमो-पीमो ! तेको बाद दुन्नू भाय अपन-अपन बात कहैगे । फेन जे फैसला होयगै, ऊ तेको दुन्नूँ भाय के माने पड़ैगे आउ लहकल खंता हाथ में लेइ पड़ैगे । मंजूर हस तऽ बोलऽ आउ देई सो-सो रुपिया निकासके ।") (सारथी॰14:20:28:2.37)
65 खंदक-खाँड़ (मगही के जे जर-जमीन हे ओकर भाव-विभाव, लगाव-तनाव, हास-उपहास, दुख-दंद, हँसी-रोदन, आशा-निराशा, घर-दुआर, खेत-बधार, खर-खरिहान, बर-पीपर-पाँकड़, खंदक-खाँड़, टिल्हा-टाकर, परब-तेउहार, भूख-उपास, आचार-विचार-लोकाचार, स्कूल-कॉलेज, धरम-करम, वोट-बुलेट आउ टोला-टाटी सहित देस-परदेस के साथ नेउता-पेहानी के पहचाने में अपन जोर लगइलक हे ।) (सारथी॰14:20:11:3.33)
66 खखड़ा (छोटका अहरवा भरा के दलान बन गेल हल, धार-भार वलन के । चमरपोखरिया तऽ कहिये ने भरा गेल हल आउ पटवारी जी के खेत बन गेल हल । मिट्ठी कुइयाँ जेकरा पर सभे के दलधोय होवो हल, हमरो होल हल, के अँड़सा ऊँच हो गेल हल । हुलक के देखलूँ तऽ ओकर हरियर पानी में उखड़ा, डमरा, बलुरी, खखड़ा आउ हठुआ मनी अलखर-जलखर उपलाल हल ।) (सारथी॰14:20:23:1.22)
67 खतना (= खनना) (“ई सार, हमरा के बड़ बेदम कइलक हल । देखते साथ भागऽ लगल आउ एगो अलंग के बिल में घुस गेल । आधा घंटा खंती से खतला पर पकड़ाल बेट्टा चोद्दाऽऽ !”) (सारथी॰14:20:27:2.41)
68 खधोड़ी ("ऊ अकसरे जा हउ दादा । ऊ हमरा कहियो अपना साथ नञ् ले जा हउ ।" - "तऽ तूँ केकरा संगे गेलहीं हल ?" - "माला भउजी साथ ।" सोनिया हकलायत बोलल । गोलू दादा दुर्वासा बनि गेलन, "खबरदार, जो कभी ऊ खधोड़ी संग गेले हें ... कुलछनी ! घाट-घाट के पानी पीले हे ऊ सुथरकी । एकरना से दोस्ती कइले हें, तऽ हडिया तोड़ि के धरि देबउ, से बूझ ले !" दादा लाल-पीयर आँख तरेरले घर में घुस गेल, "कुजात ! ससुरी ! अभी तलक नञ् आल हे । जहिरवा से आँख लड़उअल करऽ होत !") (सारथी॰14:20:21:3.48)
69 खनमा (= खाना + 'आ' प्रत्यय, मकार आगम) (बाबा कहलथिन, "चल जो पूरब दन्ने, आउ पुरवारी टोलवन वला के तंग करहीं तउ जग्गह दे देतउ । फिन तऽ की कहिअउ बउआ ... ? पुरवारी टोलवा में कोहराम मच गेलइ । हड़िया-चरूइया में खनमा पैखाना हो जाय । रात में सुतल अहिआतन के मांग धोवा गेलइ, चूड़ियन फूट गेलइ आउ राँड़-मसोमातन के ठाढ़े-ठोप सेनूर पड़ जाय ... । बुतरुअन खेलते-कूदते मरो लगलइ ।") (सारथी॰14:20:23:2.27)
70 खपड़पोस (~ घर) (साहब के बाप दू भाय हल - लतीफ आउ जलील । ... लतीफ के छोट बेटा दुलार के बियाह जलील के बड़ बेटी कलवा के साथ होल हल । दुन्नु भाय, भलुक समधी के अप्पन दू-दू भित्तर के खपड़पोस घर आमने-सामने हल, बीच में चौड़गर रस्ता । मुनगा के गाछ धारा-धारी लगल हल, जेकर छाहुर में हम आउ साहब लट्टू खेलल करऽ हली ।) (सारथी॰14:20:27:1.41)
71 खर ( बाकि एक तो बाबू टेंगर सिंह के दुलारी कमीनी के बेटी, दोसर ओकर 'खर' सुभाव । कोय ओकरा दने ताकवो भी नञ् करे । जुआन हो गेला पर ओकर रोकसद्दी भी ठाट-बाट से हो गेल ।; गोरकी के खर सुभाव 'चिमनी' पर के सब अदमी जानो हल । कलवतिया अपन नाक पर मछियो नयँ बैठे दे हल । एक दिना कीतो गोटी बाँटे वला मुंशी ओकर अंगुरी पकड़ लेलक । बस, लछमी तुरंत काली रूप धारण कर लेलक । चटाक-चटाक चार थाप मुंशी के गाल पर ।) (सारथी॰14:20:35:3.2, 36.2)
72 खरहना (नीन देखे खरहना ! हम दलान के ओलंग खटिया पर एगो तकिया लेके लोघड़इली कि नीन दोम देलक ।) (सारथी॰14:20:26:2.4)
73 खरूसना (पंच में से एक नट उठल हल आउ खरूस के बोलल हल, "भाय होऽऽ, आज में सब दूर-दूर से लतीफ आउ जमील के पंचइती करे नट भाय जुमली हे । दुन्नूँ भाय से पुछइत ही - जे फैसला होइगै, ते दुन्नूँ भाय के माने पड़ैगै । मंजूर हस तऽ बोलऽ नञ् तऽ में सब अभिये उठके चल जाइम ।") (सारथी॰14:20:28:2.21)
74 खह-खह (उज्जर ~) ("कका ... कोय हखिन ... खड़ाम के अवाज ।" - "कोय नञ् हखिन ... । चुपचाप सुत्ते ले ने कहलिअउ ।" - "नञ् कका ... कोय हइ । उज्जर खह-खह धोती पेन्हले , चद्दर ओढ़ले, मुरेठा बान्हले ... कोय हखिन ।") (सारथी॰14:20:23:3.47)
75 खिलान-पिलान (ईहे रकम माँझी-मँझिआइन में तफड़ी होते रहो हल । बेटी के शादी में बराती के छकके खिलान-पिलान भेल । दँतैला बाघी के सालन के साथ घर के चुवावल सुच्चा महुआ के दारू । सब खरच मालिक के ।) (सारथी॰14:20:35:2.19)
76 खिसिआनी (रात में हमरा बतावल गेल कि भोरे चलना हे । हम कहलूँ - मोटरी-गेठरी हलके लीहऽ, ओने परेशानी होत । घरनी खिसिआनी बिलाय नियन गुंगरली - ओहाँ कोय लाउ-लश्कर ले जाना हे थोड़े ।) (सारथी॰14:20:40:2.5)
77 खिसोड़ैल (हम कहलूँ - तूँ तो लेटा गेवे कैली हल । बेगवा में कादो-पानी चल जितो हल तब सब कपड़ा धोवल-धावल ऐरन कैल गंधा जितो हल ने । ऊ गोसाल उठके एक लोंदा कादो हमरा पर छींट देलकी । हम कहलूँ - अरे अरे, ई की करऽ हऽ, ई सावन के पुनियाँ हे, होली के कादो नञ् । ऊ दाँत खिसोड़ैल कहलकी - लेटा गेलूँ हल, अउ तूँ साफ चकचक रहतहो हल । अब की करूँ, हम कहलूँ - हमनी दुनहूँ के अखनी जो कोय देख ले तो कहे कि मछली मार के आ रहला ह ।) (सारथी॰14:20:41:3.15)
78 खूँटना (दे॰ 'खुटना' भी) (ऊ सत्या दी के बकरी हइ । ऊ रात-दिन मेमियायत रहऽ हइ, जइसे सत्या दी के खोजि रहल हे । टोला-पड़ोस के लोग ओकरा चरे ले बधार में खूँट आवऽ हथ, आउ साँझ के लाके बान्ह दे हथ ।) (सारथी॰14:20:34:2.1)
79 खेरहा-तोड़ी (एक दिना कलवतिया 'फुलफॉर्म' में आ गेल आउ मरद से कहलक, "हम काल्ह मुखिया-सरपंच कन जइबउ । तोरा नियन पिआँक आउ जुआड़ी के साथ अब हमरा एक दिन नञ् बनतउ । चलके खेरहा-तोड़ी कर ले । तों अप्पन रस्ता जो, हम अप्पन रस्ता जाइम ।" आउ साँचो गोरकी बिहाने उठके सरपंच कन गेल आउ खेरहा-तोड़ी कर लेलक । कीतो ओनहीं से ओनहीं अपन नैहरा देने सोझो भे गेल बिला कुछ लेले-देले ।) (सारथी॰14:20:36:3.7, 10)
80 खोंचा (= नुकीली वस्तु के गड़ने जैसा पेट में दर्द, अनपचे अन्न का आमाशय में गड़ने का दर्द; कष्टदायक कथन; उसकाने या कुरेदने की क्रिया) (जातिवाद के बढ़इत प्रभाव हमर सामाजिक संबंध के झिकझोरलक हे, सामाजिक समरसता के खंड-खंड में बिहिया देलक हे । धार्मिक-साम्प्रदायिक प्रभाव से बचल-खुचल आदमी जातिवाद के खोंचा में समा रहल हे ।) (सारथी॰14:20:8:2.50)
81 खोंड़िला (देखऽ ही तऽ एगो बिलाड़ पड़ल हे । ओकर मूड़ी थकुचाल हे, मुँह फटल, जेकरा से हर-हर खून बहि रहल हे । साहब ओकर पंजड़ा में भोंकल बरछी खींचे के कोरसिस कर रहल हे । / तखनइँ मिसरी बाबा टुभकला, "बड़ निम्मन कइलें । हमर दू-तीन मुर्गी ईहे भोकसवा खा गेल हे ।" / "अजी, हमर तऽ खोंड़िलवे उजाड़ देलक । एकरे डर से हम फेन मुर्गी नञ् पोसलूँ ।" झम्मन रजक बीड़ी के अंतिम सुट्टा लेके फेंकइत बोलल ।) (सारथी॰14:20:26:3.2)
82 खोज-पुछार (रवीन्द्र कुमार के कहानी 'उपास' के मुचकुन जी पुरान स्वतंत्रता सेनानी आउ नीक लीक पर चलइ वला आदमी हथ । मुदा आज के सरकारी दफ्तर के सामने से लेके अपन घरो में 'मिसफिट' हो गेलन । कहइँ कोय खोज-पुछार नञ् । कहानीकार उनका लेल 'मिसफिट' आउ बेसुरा' शब्द के प्रयोग करके ई बतला देलन हे कि जे आज के बदलल हावा के साथ नञ् चलता ऊ अइसने होता ।) (सारथी॰14:20:8:2.30)
83 खोड़िला (ऊ अपन नरेटी सहलावइत पुछलक, "कहाँ से दू-दू कुनई मारले हस ।" / जलील मुसकुराइत बोलल, "अरे का कहीं छोटकी, जहीर मियाँ के खोड़िला में सार के भोंकली । हमरा देखके खोड़िलवे में सुटक गेल । खोड़िला अन्हार हल । टौर्च बारके देखली तऽ एकर आँख चमकल । बस फिर की, चोद्दा मेरा, में तो भोंक दिनों पंजड़ी में । चार-पाँच मुंगड़ी में तऽ ठंढे हो गेल हस ।") (सारथी॰14:20:27:3.15, 16, 17)
84 खौंत (= चिढ़, कुढ़न, रंजिश; जलन, ईर्ष्या) (सोनियो सकदम ! ओकरा अदंक पइस गेल । जान जात कि हमहीं आग लगइली हे तऽ तेरहो निनान करत । सोनिया के दादा पर खौंत बरऽ लगल , "बड़ चलल हे भलमानुख बनइ ले ! सठिया गेल हे । शरम नञ् लगलइ ! माउग मर गेलइ तऽ बेटी के खेयाल नञ् करि के गुड़ियाय लइलक । नया लाके धरमराज बनइ ले चलल हे । सतेलिये माय साथ रहत सोनिया ! कते शरीफ बनऽ हे सत्तर चूहा खाके ... हुँह !") (सारथी॰14:20:22:1.5)
85 गंगठी (चंदना घुन्नी भर फेनल बाल्टी के पानी में देके अंदाज लगइलक अलगऽ हे कि नञ् । घाठी बइठ गेल । ऊ फेन सोडा डालिके फेनऽ लगल । बरी-तिलौरी तो फेनहे के तारीफ हे । घाठी जेतने फेनइला, बरी ओतने खस्ता भेलो । जल्दीबाजी कइलऽ कि गंगठी नियन रह गेलो ... चिबावइत रहऽ ... कबाब में हड्डी ।) (सारथी॰14:20:37:1.18)
86 गंधाना (= गेन्हाना) (बेटी तो निक्के-सुक्खे अप्पन ससुराल चल गेल मुदा घर में बाप आउ बेटा दुन्नूँ में नइकी कनियाय सास आउ पुतहू में ठने लगल । दौलती गरीब घर के सुघड़ बेटी हल । छल-कपट से दूर बिर आउ दब्बू मुदा पुतहू सनसन, तितकी मिरचाई, मुँहजोर आउ मनजब्बड़ । दौलती के सौतेली कहके सतावे लगली । टोला-महल्ला गंधावे लगली ।; हम तो देखऽ हलियो कि पहिले हमरा उठावऽ हऽ कि झोलवे के । मरदाना के जात परकत होवऽ हे, पहिले झोलवे उठैलका । हम कहलूँ - तूँ तो लेटा गेवे कैली हल । बेगवा में कादो-पानी चल जितो हल तब सब कपड़ा धोवल-धावल ऐरन कैल गंधा जितो हल ने । ऊ गोसाल उठके एक लोंदा कादो हमरा पर छींट देलकी ।) (सारथी॰14:20:31:1.6, 41:3.11)
87 गइंजन (= गंजन) (निहत्था बेसहारा अदमी के ईहे सूझऽ हे । अइसनकन के इहाँ सजाइये मिलत तऽ कीऽ, जेकरा से गइंजन भोगल जन्न के घाव भर जाय ?) (सारथी॰14:20:20:2.23)
88 गजड़ा-मुराय ("ललितवा मेघ राशि हइ । जेठो में झपसी लगि सकऽ हइ । जमा-जमउअल से करो पड़इ तब ने ! खेत के सौदा करना गजड़ा-मुराय बेचना तऽ नञ् ने हइ ! एकरा में 'ले दही अउ दे दही' के फेर हइ सुघड़िन", कहि के अमर जेभी से निकालि के बीड़ी सुलगावऽ लगल ।) (सारथी॰14:20:37:1.47)
89 गजड़ा-मुराय (सब कुछ उपजऽ हे खेत में आउ उपजावऽ हे किसान-मजूर, हीरा-मोती बनि के । ऊ हैरान हे - सस्ता में तौलऽ ही आउ महरग में काहे खरीदऽ ही ? हमरा हीं हल तऽ गजड़ा-मुराय के भाव आउ ओकरा हियाँ जाके छोहाड़ा-किशमिश हो गेल !) (सारथी॰14:20:2:2.8)
90 गरमाहा (= गरम मिजाज का, चिड़चिड़ा) (ई पर महेश बा कहलखिन - "देख भयवा, एज्जा हमर बाल-बुतरू खेले-कुदे हे, तोहनी हें गरमाहा । तोरा बरदास नञ् होतउ । इहे से कहऽ हिअउ कि चल जो हियाँ से ।") (सारथी॰14:20:23:2.17)
91 गाड़ (~ सीना) (चंदना के लगल - हिम्मत हारि रहलन हे । ऊ ढाढ़स बँधावइत बोलल, "मर दुर हो ! दुनिया में एक्के गो बैंक हइ कि ओकर गाड़ सीअइ हइ ! कल्हइ तऽ हम बाजा में सुनलूँ हें कि कोय भी सरकारी बैंक छिच्छा-लोन दे सकऽ हे ।") (सारथी॰14:20:38:3.46)
92 गिद्दी (= हड्डी-गुड्डी में बचा हुआ थोड़ा-बहुत मांस) (~ खरोंचना) (कारा ! रेलवी के गैंगमैन, जे दुनिया भर के मलवा हटा के, गिद्दी खरोंच के रेल के पटरी ठीक करऽ हे, ऊ अपन मेहनत के बदले की पावऽ हइ ? आउ ओकरे में एगो कोय मेट बन जा हइ, जे करऽ हइ कुछ नञ्, सिरिफ हाजरी बनावऽ हइ आउ डाँट-फटकार करऽ हइ । मेटवा ओखनिन से जादे काहे पावऽ हइ ?) (सारथी॰14:20:21:2.35)
93 गिरनइ (मूल्य विघटन, नैतिकता के गिरनइ, आर्थिक विकास के यांत्रिक पुरजा में बदलइत आदमी, बेरथ होवइत इंसानियत आदमी के परिभाषा पर ही सवाल खड़ा कर रहल हे ।) (सारथी॰14:20:8:3.32)
94 गीरा (एक ~ हरदी) (दौलती चूल्हा में चुनल-बिछल पत्ता देके आग सुलगा रहली हल । मसाला पीसे लेल लोढ़ी-पाटी पर दू डिड़ी मिरचाय आउ एक गीरा हरदी रखल हल । छोटकी भुइयाँ में गेंदरी-चेथरी पर सुतल हल । बड़की फूटल बाल्टी में पानी लेके आ रहल हल ।) (सारथी॰14:20:32:1.7)
95 गील-पील ("हाँ रे मोछकबरा वलाऽ, हम दिन भर पैसा-पैसा जोड़े लेल भट्ठा पर खटिअइ, अपन देह तोड़िअइ आउ तों ओकरा पिआँकी आरो जूआ में उड़ाहीं । तों रोज सँझिये गील-पील होके आहीं आउ कोंचके सुअरिया नियन आके पसर जाहीं । उठइवो करिअउ तऽ चार झापड़ मारके फोंफिआय लगहीं ।") (सारथी॰14:20:36:2.4)
96 गुंगरना (रात में हमरा बतावल गेल कि भोरे चलना हे । हम कहलूँ - मोटरी-गेठरी हलके लीहऽ, ओने परेशानी होत । घरनी खिसिआनी बिलाय नियन गुंगरली - ओहाँ कोय लाउ-लश्कर ले जाना हे थोड़े ।) (सारथी॰14:20:40:2.5)
97 गुदगर (कुछ सोंचइत छोटकी मुँह में गुदगर मांस के टुकड़ी लेवइत बोलल, "ठीके हस । में देई बीस रूपइया, मुदा एकदम से फुल्ली दारू मँगइहें ।", आउ पीठ दने आड़ करिके अँचरा के गेंठी से निकालि के दस-दस के दू नोट जलील दने बढ़इलक ।) (सारथी॰14:20:28:1.30)
98 गुप दनी (ऊ हँसुली के नोख गड़ाके चारो पट्टी घुमाके एक टुकड़ी मांस निकाललक, निम्मक में बोरके गुप दनी मुँह में ना लेलक । उक्के-बुक्के गरम टुकड़ी मुँह हिला-हिला भाफ फेंकइत चिबावऽ लगल ।) (सारथी॰14:20:27:2.31)
99 गेंदरी-चेथरी (दौलती चूल्हा में चुनल-बिछल पत्ता देके आग सुलगा रहली हल । मसाला पीसे लेल लोढ़ी-पाटी पर दू डिड़ी मिरचाय आउ एक गीरा हरदी रखल हल । छोटकी भुइयाँ में गेंदरी-चेथरी पर सुतल हल । बड़की फूटल बाल्टी में पानी लेके आ रहल हल ।) (सारथी॰14:20:32:1.8)
100 गेंधाल (कवि जी सत्ता के गलियारे में अइसे ही अंगड़ाई लेते रहतन आउ ऊ आवे वाला दिन में एम.एल.सी., एम.एल.ए. मंत्री बनतन । सुशासन बाबू के नजरे इनायत से लेकिन उनखा पर ई गेंधाल दोष तो लगवे करत कि ऊ अकादमी के पद के दुरुपयोग करे में जरिको नञ् संकोच कइलन हे - समय लिखतइ उनखर भी इतिहास ।) (सारथी॰14:20:3:1.31)
101 गेन्हाल (पता नञ् तू सब ओकरा देखलऽ हे या नञ्, गदहा जइसन चेहरा, मोट-मोट ठोर, लाल मसूड़ा आउ गेन्हाल साँस ।) (सारथी॰14:20:12:3.24)
102 गोट-गिलउना (ठेल-ठाल के साथ सुतवो करिअउ तऽ खाली देहिया पर हाथा रखके घोंघर काटते रहो हीं । दूर रे गोट-गिलउना के छौंड़ा । भठवा पर रेजवन के देखके खड़े तूओ हीं रेऽ आउ हमरा भिरी अइते तोरा मिरगी आवे लगो हउ । बिहा भेला पाँच बरिस भे गेलउ । आझ अनोग एगो चुटवरियो देलहीं रेऽ कोचन-गिलउना के नाती ?) (सारथी॰14:20:36:2.9-10)
103 गोठउर (= गोठौर; गोयठा रखने का घर, जारन घर) ("दोसर कहाँ धराइल तोहके ?" छोटकी धइल कुनई दने ताकइत पुछलक । "एकरा मत कह । ई किशोरी के गोठउर वला मचान पर चूहा के फिराक में लगल हल चोद्दा मेरा । हम तऽ बेट्टाऽऽ के देख लीनो । अब कहाँ जइहों ? हम रस-रस बरछी बढ़इली आउ लादा में भोंक देली ।") (सारथी॰14:20:27:3.23)
104 गोरका (बेटी कलवतिया जहिया पाँच बरिस के हल, तहिये रेवाज के मोताबिक ओकर बिआह खजपुरा गाम में जलेसर माँझी के एकलौता बेटा कमेसरा से करवा देवल गेल हल । गोर-नार लड़की के जोग गोरका लड़का । हाँ, कमेसरा के गाम में सब गोरके नाम से जानो हल । गोरका के बाप जलेसर माँझी अपन बेटा के गोदिये में लेके बिआहे आइल हल ।)बाकि एक तो बाबू टेंगर सिंह के दुलारी कमीनी के बेटी, दोसर ओकर 'खर' सुभाव । कोय ओकरा दने ताकवो भी नञ् करे । जुआन हो गेला पर ओकर रोकसद्दी भी ठाट-बाट से हो गेल ।) (सारथी॰14:20:35:1.47, 48, 49)
105 गोरका-गोरकी (मुसहर जाति में गोर जन्नी-मरद साइते होवो हे । बाकि गोरका के तो भगमान छप्पर फारके भेज देलका हल जोड़ी । दुनहूँ माउग-मरद गोर भकभक । एगो सलमान तो दोसर रानी मुखर्जी । अब कमेसरा के साइते अदमी ओकर नाम से जानो हल । दुनो बेकत गोरका-गोरकी के नाम से जानल जा हल ।) (सारथी॰14:20:35:3.31)
106 गोलगंटा (दू दिना के बाद हम दुपहरिया के घर पहुँचली तऽ देखऽ ही हमर घर के आगू, खेत के पार, ईहे पनरह-बीस बरिस से परीत जमीन में एगो पीयर गोलगंटा सिरकी छारल हे । हम अकचकइली - लटवला जमीन के के दखल करि लेलक ?) (सारथी॰14:20:26:1.4)
107 गोलियाना (= गोलिआना) ("कहलिउ सुत्ते ले ने !" मंझला का हमर कान में फुसफुसा के कहलखिन, "बाबा महेश हखुन आउ के ... ।" अचरज से हमर आँख गोलिया गेल, करेजा के शुकधुकी बढ़ गेल, ठोल हिलल बाकि अवाज नञ् निकसल - "बाबा महेश ... !") (सारथी॰14:20:24:1.4)
108 घर-घरैना (= घर-घराना; कुल-खानदान, वंश) ("केतना बेचला से पुरतो ?" चंदना पुछलक । ऊ जानऽ हल कि घर-घरैना औकात से फाजिल के हे । अइसे अगुआ पर भरोसा हल कि कुछ रियायत जरूर करइतन, बकि तइयो कुछ ने कुछ खेत बेचहे पड़त ।) (सारथी॰14:20:37:2.3)
109 घाठी (चंदना घुन्नी भर फेनल बाल्टी के पानी में देके अंदाज लगइलक अलगऽ हे कि नञ् । घाठी बइठ गेल । ऊ फेन सोडा डालिके फेनऽ लगल । बरी-तिलौरी तो फेनहे के तारीफ हे । घाठी जेतने फेनइला, बरी ओतने खस्ता भेलो । जल्दीबाजी कइलऽ कि गंगठी नियन रह गेलो ... चिबावइत रहऽ ... कबाब में हड्डी ।) (सारथी॰14:20:37:1.15, 17)
110 घिनामन (सोमर सवाद लेके हड्डी चिबाइत कुत्ता सन फिनो माला दने ताकलक । "दू-दू बुलक तीनों कुत्तन के हवस मोछकबरा डोमना के सामने तरह-तरह से सहली । एगो के तऽ मत कह ... ! कहि नञ् सकऽ हिअउ कि मरद कते घिनामन होवऽ हे ।") (सारथी॰14:20:20:1.49)
111 घुन्नी (चंदना घुन्नी भर फेनल बाल्टी के पानी में देके अंदाज लगइलक अलगऽ हे कि नञ् । घाठी बइठ गेल । ऊ फेन सोडा डालिके फेनऽ लगल । बरी-तिलौरी तो फेनहे के तारीफ हे । घाठी जेतने फेनइला, बरी ओतने खस्ता भेलो । जल्दीबाजी कइलऽ कि गंगठी नियन रह गेलो ... चिबावइत रहऽ ... कबाब में हड्डी ।) (सारथी॰14:20:37:1.13)
112 घुरौर (साहब दरबर मारले गेल आउ पैरे पर लउटि गेल । ऊ बोलल, "बड़का बाऊ नञ् हस । ऊ खेती लेके खंधा पर गइल हस ।" / "छोड़ । अइहैं तऽ खइहैं । तू बइठ चोद्दा मेरा ।" / साहब चुक्को-मुक्को बइठ गेल आउ एक्कक लकड़ी घरौर में झोंकऽ लगल ।) (सारथी॰14:20:27:2.20)
113 घूरेता (हम जने-जने घूम जा हलूँ ओकर इतिहास हमर आँख के आगु घूमऽ लगऽ हल, सिनेमा नियन । महरानी थान, लुल्ही थान, मांझी थान, घूरेता, कुम्मर थान, हहेबा पर, डाक थान ओगैरह । लुल्ही माय के तो रेवरा के दू-तीन छउँड़ चोरा के ले भागलइ हल ।) (सारथी॰14:20:23:2.48)
114 घोंघर (ठेल-ठाल के साथ सुतवो करिअउ तऽ खाली देहिया पर हाथा रखके घोंघर काटते रहो हीं । दूर रे गोट-गिलउना के छौंड़ा । भठवा पर रेजवन के देखके खड़े तूओ हीं रेऽ आउ हमरा भिरी अइते तोरा मिरगी आवे लगो हउ । बिहा भेला पाँच बरिस भे गेलउ । आझ अनोग एगो चुटवरियो देलहीं रेऽ कोचन-गिलउना के नाती ?) (सारथी॰14:20:36:2.9)
115 चपलाना (= चप्पल से मारना या पीटना) (हम कहलूँ - अयँ जी, चपलवा हाथे में लेले हो, मथवा काना पर खट-खट चोट लगऽ हइ । हम कोय जानवर ही जे मथवा काना पर चपलैवहो, तब आगू बढ़म ? ऊ कहकी - तउ की बेचपलवे के अयली । हम कहलूँ - तनी मथवा पर से चपलवा उपरे रखहो । ऊ कहलकी - उपरे कइसे रखूँ ? एही हाथा से ने मथवा पकरले हिअइ । हम कहलूँ - हमर टीके पकरले रहऽ से बढ़ियाँ, जुट्टा तो काटले हइये हउ, मुदा चपलावइत मत रहऽ ।) (सारथी॰14:20:41:2.32, 38)
116 चमरपोखर (बड़का अहरा, जेकरा में बैशाख तक पानी झिलहेर खेलो हल, सोनी मियाँ, अलीम मियाँ ओगैरह के लग्गी दिन भर डुबल रहो हल, पूसे में सुक्खल हल । अस्पताल आउ किसान भवन के बड़गो-बड़गो बिल्डिंग शोभ रहल हल, ऊ अहरा में । छोटका अहरवा भरा के दलान बन गेल हल, धार-भार वलन के । चमरपोखरिया तऽ कहिये ने भरा गेल हल आउ पटवारी जी के खेत बन गेल हल ।) (सारथी॰14:20:23:1.17)
117 चमरौकी ("ससुरी चमरौकी काम पर निकल गेल होत । आवे तऽ दुइयो के टंगरी तोड़ऽ हियन", गोलू दादा गल्ली में खाड़ नाग नियन फुफकार रहलन हल ।) (सारथी॰14:20:21:3.30)
118 चाँक (मतरूआ ! जनु पाछिल टिकरी खइलके हे ! बरतुहारी में तऽ दसहरा के बाद से बहराय लगऽ हे । एकरा चाँक भेलइ तऽ बैसखा में । लड़कावा वला एकरा ले बइठल होतइ कि बाबू साहब अइता आउ छेंका फलदान करता ।) (सारथी॰14:20:37:1.3)
119 चाल-चलित्तर (गोरकी जब भतार के चाल-चलित्तर बिगरते देखलक तऽ पहिले जतन कइलक कि गोरका बात से समझ जाय । बाकि लात के देवता बात से नञ् मानलक तऽ रोज रात में ओकरा घरे कुकहारो होवे लगल ।) (सारथी॰14:20:36:1.50)
120 चिटकना (= कुढ़ना, चिढ़ना; लकड़ी आदि का सूखकर जगह-जगह फटना, चटकना) ( हमर जनाना के चप्पल के एक पवही तो नदिये में दहा गेल हल । मुदा दोसरकी ऊ हाथे में लेले हली । हम नदिये में कहलूँ हल कि ओहो बिग देहो, जे पयतन से पेन्हतन । ऊ चिटक के बोलली हल - दोसरे ले लगइलूँ हल दू सौ रुपइया ।) (सारथी॰14:20:40:3.49)
121 चिरईं-चुरमुनी (बिजली के खंभा पर झुलल तार चिरईं-चुरमुनी के झुलुआ बनल हे ।) (सारथी॰14:20:23:1.9)
122 चुटवारी (ठेल-ठाल के साथ सुतवो करिअउ तऽ खाली देहिया पर हाथा रखके घोंघर काटते रहो हीं । दूर रे गोट-गिलउना के छौंड़ा । भठवा पर रेजवन के देखके खड़े तूओ हीं रेऽ आउ हमरा भिरी अइते तोरा मिरगी आवे लगो हउ । बिहा भेला पाँच बरिस भे गेलउ । आझ अनोग एगो चुटवरियो देलहीं रेऽ कोचन-गिलउना के नाती ?) (सारथी॰14:20:36:2.13)
123 चुड़िया-मुड़िया (“एकलगौरी चार-चार बेटी पर आँख में आँख सुजितवा भेल, ऊ भी जिरइला पर ! सब खेत तऽ तीनियों के बियाहे में बिक गेल । हमरा माय-बाप तिलकाही घर देखके बियाहलक हल से अब भतही हो गेलूँ । सुजितवा ले बचवे की करत !” - "चुड़िया-मुड़िया बचतउ आउ कीऽ !" धुइयाँ उड़ावइत अमर बोलल, "हमरा ले चारियो बेटी बरोबर ! उनैस ने बीस । तीनियों रानी रहत आउ ललितवा बानी ?") (सारथी॰14:20:37:2.12)
124 चुनचुनाना (अमर के भोर टहले के आदत हल । ईहे बहाने ऊ अपन सब खेत देखि आवऽ हल । आज लौटे में देरी हो गेल, काहे कि तीन-चार टोपरा से पानी बहि रहल हल । खँड़हू लगावइत-लगावइत देरी हो गेल । भादो के कटकटाह रौदा चुनचुनाय लगल हल ।) (सारथी॰14:20:39:3.7)
125 चुहचुहिया (पूरब दने भुड़ुकवा उग गेल हल । बगल के नीम गाछ पर चुहचुहिया बोले लगल हल ।) (सारथी॰14:20:24:1.8)
126 चोद्दा (साहब दरबर मारले गेल आउ पैरे पर लउटि गेल । ऊ बोलल, "बड़का बाऊ नञ् हस । ऊ खेती लेके खंधा पर गइल हस ।" / "छोड़ । अइहैं तऽ खइहैं । तू बइठ चोद्दा मेरा ।" / साहब चुक्को-मुक्को बइठ गेल आउ एक्कक लकड़ी घरौर में झोंकऽ लगल ।; “ई सार, हमरा के बड़ बेदम कइलक हल । देखते साथ भागऽ लगल आउ एगो अलंग के बिल में घुस गेल । आधा घंटा खंती से खतला पर पकड़ाल बेट्टा चोद्दाऽऽ !”; ऊ अपन नरेटी सहलावइत पुछलक, "कहाँ से दू-दू कुनई मारले हस ।" / जलील मुसकुराइत बोलल, "अरे का कहीं छोटकी, जहीर मियाँ के खोड़िला में सार के भोंकली । हमरा देखके खोड़िलवे में सुटक गेल । खोड़िला अन्हार हल । टौर्च बारके देखली तऽ एकर आँख चमकल । बस फिर की, चोद्दा मेरा, में तो भोंक दिनों पंजड़ी में । चार-पाँच मुंगड़ी में तऽ ठंढे हो गेल हस ।") (सारथी॰14:20:27:2.17, 42, 3.18)
127 चौरहा ("हम जिनखा-जिनखा हियाँ खेत बेचलिए हे, बतिया लेलिअइ हे । सात मन के चौरहा पर ऊ सब खेत हमरे हियाँ रहतइ । ओकर मोरी भी गिना देलिअइ हे ।") (सारथी॰14:20:38:1.35)
128 छपर-छपर (पानी में ~ करना) (बरसात के दिन हल । सबेरे से रहि-रहि के पानी झमकि जा हल । दीया-बाती हो गेल हल । ... ईहे बीच छपर-छपर कइले सुजीत आ धमकल । / “बरसात में अन्हार-पन्हार के नञ् घूमल चली बाबू", अमर बोलला, "कने से आ रहलऽ हें?”) (सारथी॰14:20:37:3.44)
129 छप्प दनी (धन, बल, पद आदि का अभिमान; आवेश, जोश, उत्साह; तैश; उबाल, उफान) (दुर्गा दुन्नूँ हाथ से ओकरा जोम भर ठेलइ के कोशिश करि रहल हल । ओकर नजर छूरी पर पड़ि गेल । ऊ झपट के छूरी उठइलक आउ आव देखलक ने ताव, दरिंदा के 'जड़िये' छप्प दनी काट देलक । एगो भयानक चीख उठल ... 'अरे बाप !' आउ ऊ बेमत लगल गोरू जकते अपन दुन्नूँ जाँघ के बीच हाथ कइले केंचुआ सन सुकड़इत छटपटा रहल हल ।) (सारथी॰14:20:43:2.33)
130 छहरना (कोय-कोय हाल से अरिअठ पार कइलूँ, अगले-बगले घास पर से बुल-बुल के । मुदा अहरा पर चढ़ते गोड़ छहरऽ लगल । बुंदा-बांदी भी होइये रहल हल, फिसिर-फिसिर । गोड़ तो गोड़ नञ्, जाँता के चकरी रहे । गोड़ पीछू पाँच-पाँच किलो माटी से कम नञ् ।) (सारथी॰14:20:40:3.41)
131 छिपउना (तखनइँ मिसरी बाबा टुभकला, "बड़ निम्मन कइलें । हमर दू-तीन मुर्गी ईहे भोकसवा खा गेल हे ।" / "अजी, हमर तऽ खोंड़िलवे उजाड़ देलक । एकरे डर से हम फेन मुर्गी नञ् पोसलूँ ।" झम्मन रजक बीड़ी के अंतिम सुट्टा लेके फेंकइत बोलल । / "कल्हइँ तऽ हमर भरलो भगौना दूध पी गेल छिपउना उघार के", कैमावली बोलल ।) (सारथी॰14:20:26:3.7)
132 छिरियाल (तखनी जहीर मियाँ मुँह बिचका के देखऽ हल, ... खाली हाड़-हाड़, सुक्खल-बिखरल हाड़, छिरियाल हाड़, दाँत निपोरले हाड़ ... मांस के दरेस नञ् ।) (सारथी॰14:20:21:1.54)
133 छिलका (एतना कहते-कहते छिलका के पार करके, किनारा पर बैठके, उनखा उतारहीं ले चाह रहलूँ हल, कि ऊ उपरे से कूद गेली ।) (सारथी॰14:20:41:2.45)
134 छिलमिलाल ("अरे बेट्टाऽऽ ! पुरवारी भित्तर के भुड़की में हँसुली हस रेऽऽ ... ले आवऽ ... काट-काट देव", जलील बिलाड़ के टंगरी पकड़के कलटइत बोलल आउ दहिना हाथ के छिलमिलाल अँगुरी रगड़ऽ लगल ।) (सारथी॰14:20:27:2.24)
135 छुछम (मगही में आज तक भी कोय अइसन दमदार पत्रिका नञ् रहल जेकर नियमित प्रकाशन होल । एक तो छुछम, दोसर अनियमितता आउ सबसे बड़ बात ई कि ओतनइ में भाषागत आन्दोलन लेल सब कुछ ।) (सारथी॰14:20:5:2.13)
136 छुछुआयन (~ गंध) (बिलाड़ के रोइयाँ-चमड़ी झौंसाय लगल । छुछुआयन गंध वातावरण में फइल गेल । भीड़ अपन नाक-मुँह सिकुड़ावऽ लगल, बकि टसकल कोय नञ् ।) (सारथी॰14:20:26:3.49)
137 छुटपन (= बचपन) (ऊ बोलल, "हमर अनइ तोरा अच्छा न लगलउ कारू भाय ?" - "अच्छा काहे नञ् लगल ? ई तोर बाप-दादा के जद्दी हउ । हमरा खुशी भेल तब ने देखे चलि अइलूँ । ई कोना सून लगऽ हल, आबाद हो जात । फिन तूँ तऽ हमर छुटपन के साथी हें । लटखुट, कड़ाही-कुदार के जरूरत पड़तद, तऽ बोलिहें ।") (सारथी॰14:20:26:1.37)
138 छोड़न-छाड़न (दौलती के ऊहे बखत कमलवाय (पीलिया) के बेमारी धर लेलक । बड़की बेटी ललक्ष्मिनिया बगल के स्कूल से छोड़न-छाड़न जे लावे, ओकरे से तीनहूँ के भूख मिटे । रमेसरा एकदमे पगलाल कन्ने बिला गेल, कोय पता नञ् ।) (सारथी॰14:20:31:2.14)
139 छौंड़ी-माड़र (कलवतिया ढुकते अपन लूर-लच्छन देखावे लगल । सौंसे मुसहरी के चहेती बन गेल हल । रोपा में धान रोपे गेल तऽ मइये नियन फरहर । गीतो नाध गावे में मइये नियन रेघ टाने वाली । कलवतिया थोड़हीं दिना में छौंड़ी-माड़र के सरदारनी बन गेल ।) (सारथी॰14:20:35:3.16)
140 जगरना (= जागरण) ("दोसरा आउ साहब में फरक हे कि नञ्", ठठाके हँसइत हम चुनउटी लेली आउ घर चलि अइली । रात भर में जगरना हल । गाड़ी में ठसाठस भीड़ । सोंचली नहा-सोना के दू कौर खा, उजगी पचाम ।) (सारथी॰14:20:26:2.1)
141 जद्दी (= जद; पैतृक संपत्ति; बाप-दादों का स्थान, बपौती) (ऊ बोलल, "हमर अनइ तोरा अच्छा न लगलउ कारू भाय ?" - "अच्छा काहे नञ् लगल ? ई तोर बाप-दादा के जद्दी हउ । हमरा खुशी भेल तब ने देखे चलि अइलूँ । ई कोना सून लगऽ हल, आबाद हो जात । फिन तूँ तऽ हमर छुटपन के साथी हें । लटखुट, कड़ाही-कुदार के जरूरत पड़तद, तऽ बोलिहें ।") (सारथी॰14:20:26:1.35)
142 जमा-जमउअल ("ललितवा मेघ राशि हइ । जेठो में झपसी लगि सकऽ हइ । जमा-जमउअल से करो पड़इ तब ने ! खेत के सौदा करना गजड़ा-मुराय बेचना तऽ नञ् ने हइ ! एकरा में 'ले दही अउ दे दही' के फेर हइ सुघड़िन", कहि के अमर जेभी से निकालि के बीड़ी सुलगावऽ लगल ।) (सारथी॰14:20:37:1.46)
143 जरब (= चोट, आघात; बुरा प्रभाव, असर; गुणा करने की प्रक्रिया) (टिसनी कइला से पढ़ाय में जरब आ जइतउ नुनु", खैनी फाँकइत अमर बोलल । "तोहरा बोझा हो जइतो ।"; "तों चिंता मत कर बेटा ! हम अपन देह नया देबइ, बकि तोर पढ़ाय में जरब आवे नञ् देबइ । तों अपन तैयारी में लग जो, आगू के भगवान हथिन ।") (सारथी॰14:20:38:1.31, 40)
144 जरल (= जला हुआ) (हम देखलूँ, गोइठा के एगो जरी गो चिपड़ी, जे बिना जरल रह गेल हल, सुलग गेल हल आउ धुइयाँ के एगो पातर डिढ़ार ऊपर दने खिंचा गेल हल ।) (सारथी॰14:20:25:1.7)
145 जरिकनी ("की बोललहीं तों, बुतरू बेचऽ हीं ?" एगो औरत चेहाइत पुछलक । / "हाँ जी, हम दूगो के बेचऽ हिअइ", औरत फिनु कमजोड़ आउ भरभराल आवाज में दोहरइलक । / "अजी सुनलहो ई औरतिया के ? ई जरिकनिन छौंड़ी के बेचऽ हइ ।") (सारथी॰14:20:30:1.25)
146 जारन-पातन (बैठुआ दिन में सब मुसहरनी एक हाथ में टाँगी आउ दोसर में रस्सी लेके पहाड़ चढ़ जा हल आउ जंगल से लकड़ी काटके ले आवो हल । लकड़ी सुखाके साल भर अपनो जारन-पातन करो हल आउ 'बलही' बना-बना के राजगीर बाजार में बेचियो आवो हल ।) (सारथी॰14:20:35:2.38)
147 जुट्टी (काम शुरू होवे पर दुनो बेकत ईंटा पारे लगल । 'पगमेल' के माटी से ईंटा परा हल । गोरका-गोरकी के 'जुट्टी' सबसे बढ़-चढ़ के ईंटा पारे लगल । ‘खेवाल’ के गिनती 'हफ्तावारी' होवो हल आउ तहिये 'खोराकियो' मिलो हल सबके ।; मुन्ना बाबू के आँख पर भी ई जुट्टी चढ़ गेल हल । कमासुत अदमी सगरो मान पइवे करो हे ।) (सारथी॰14:20:35:3.37, 43)
148 जोगरिया (चुनाव राहुल महतो के तनी महँगा पड़ल । पसेना छूटल, परेशानी बढ़ल । लेकिन राहुल महतो जोगरिया आउ तिकड़मबाज दुन्नो हथ । ई जान गेलन कि खाली जात-पात से काम न चले के हे ।) (सारथी॰14:20:44:2.14)
149 जोड़ती (सत्ता के गलियारे में चलते-बुलते रहे वाला अकादमी अध्यक्ष से हम कोय जोड़ती नञ् करे ला चाहऽ ही ।) (सारथी॰14:20:4:2.8)
150 जोड़ियामा (हमरा अखनी ललितवा छोड़के आउ कुछ नञ् जना हउ । ओकरा निबाह लेबउ, निछक्का हो जइबउ । एकर जोड़ियामा सब तऽ ससुरार बसऽ लगल । पढ़ऽ हल से-से छुपि रहल हल । सालो पहिले पढ़ाय छूटल । अब कउन बहाना काम देत ?) (सारथी॰14:20:37:2.29)
151 जोड़ी-पाटी (जब ठेरनी के बेटी कलवतिया बारह बरिस के भेल तो ओहो अपन माय आउ जोड़ी-पाटी जौराती के साथ बनछिल्ली में जाय लगल । ईहे रंगन कलवतिया बढ़े लगल आउर रूपो-रंग में निखारो लगल ।) (सारथी॰14:20:35:2.43)
152 जोम (धन, बल, पद आदि का अभिमान; आवेश, जोश, उत्साह; तैश; उबाल, उफान) (दुर्गा दुन्नूँ हाथ से ओकरा जोम भर ठेलइ के कोशिश करि रहल हल । ओकर नजर छूरी पर पड़ि गेल । ऊ झपट के छूरी उठइलक आउ आव देखलक ने ताव, दरिंदा के 'जड़िये' छप्प दनी काट देलक । एगो भयानक चीख उठल ... 'अरे बाप !' आउ ऊ बेमत लगल गोरू जकते अपन दुन्नूँ जाँघ के बीच हाथ कइले केंचुआ सन सुकड़इत छटपटा रहल हल ।) (सारथी॰14:20:43:2.30)
153 जोरियाना ("अरे डमरूआऽ, मोरी आझे कबर गेलउ हऽ । पाँच बिघा कदवो तइयार हउ बरकरवा में । भोरे तीस गो फरहर रोपनी चला दीहें । एगो तोर ठेरनी तो हइये हउ । बकिये के ओहे अपन मन से जोरिया लेतउ ।" साँझे खनी बाबू टेंगर सिंह अपन मुँहलगुआ जन डमरू माँझी के अरहा रहला हल ।) (सारथी॰14:20:35:1.5)
154 जौराती (जब ठेरनी के बेटी कलवतिया बारह बरिस के भेल तो ओहो अपन माय आउ जोड़ी-पाटी जौराती के साथ बनछिल्ली में जाय लगल । ईहे रंगन कलवतिया बढ़े लगल आउर रूपो-रंग में निखारो लगल ।) (सारथी॰14:20:35:2.43)
155 झँटारना (मलकीनी चिढ़क के बोलली - ई भैंसिया अगियान गौरी हमरा पुछिया से छतिया पर झँटार देलक । सउँसे सड़िया गोबर-गोबर हो गेल ।) (सारथी॰14:20:41:3.49)
156 झंझेकाल (तखनइँ ढोल डिगडिगाल । रस-रस झंझेकाल गीत के रेघ नगीच आवइत गेल । हम पछियारी खिड़की खोलके ठाढ़ हो गेली ।) (सारथी॰14:20:33:1.20)
157 झज्झ (~ होके गिरना) (बाल्टी भर चुकल हल, उपर झज्झ होके पानी गिरो लगल हल बाकि हमरा होशे नञ् ।) (सारथी॰14:20:24:3.47)
158 झपसी ("ललितवा मेघ राशि हइ । जेठो में झपसी लगि सकऽ हइ । जमा-जमउअल से करो पड़इ तब ने ! खेत के सौदा करना गजड़ा-मुराय बेचना तऽ नञ् ने हइ ! एकरा में 'ले दही अउ दे दही' के फेर हइ सुघड़िन", कहि के अमर जेभी से निकालि के बीड़ी सुलगावऽ लगल ।) (सारथी॰14:20:37:1.45)
159 झपाड़ना ("तों अभी बुतरू हें । जे करऽ हें, से कर । बीच में टाँग मत अड़ाव !" माय सुजीत के झपाड़ लेलक ।) (सारथी॰14:20:37:3.5)
160 झमकना (बरसात के दिन हल । सबेरे से रहि-रहि के पानी झमकि जा हल । दीया-बाती हो गेल हल ।) (सारथी॰14:20:37:3.31)
161 झमराना ("अइसन जगह चलि गेले, जहाँ से कोय नञ् लउटऽ हे ।" ऊ बोलल । ऊ एगो लमहर सोवाँसा लेलक । ओकर चेहरा झमरा गेल । हमर मन बेअग्गर हो गेल ।) (सारथी॰14:20:34:1.4)
162 झरक (तखनइँ ढोल डिगडिगाल । रस-रस झंझेकाल गीत के रेघ नगीच आवइत गेल । हम पछियारी खिड़की खोलके ठाढ़ हो गेली । झनझन पछिया के झरक दनदनाल हमर देह से लिपटि के भुंजा करि देलक ।) (सारथी॰14:20:33:1.23)
163 झरखराना ("अगर अइसइँ दू-चार महीना तिलबढ़ के रोग जमल रहल तऽ की कहना हे भाभी !", सोनी टुभकल । - "इलाका भी तऽ मवेसियन से झरखराइये ने जात !" माला भउजी मनझान होके बोलल ।) (सारथी॰14:20:20:3.2)
164 झाड़ल-बुहारल (टेढ़-मेढ़ बकि झाड़ल-बुहारल गली पार करि के हम सत्या के झोपड़ी भिजुन पहुँच गेली । ऊ मेहरारू रुकइत बोलल, "ईहे चिमकी छारल मड़ुकी में सत्या दीदी रहऽ हल ।") (सारथी॰14:20:34:1.20)
165 झापड़ ("हाँ रे मोछकबरा वलाऽ, हम दिन भर पैसा-पैसा जोड़े लेल भट्ठा पर खटिअइ, अपन देह तोड़िअइ आउ तों ओकरा पिआँकी आरो जूआ में उड़ाहीं । तों रोज सँझिये गील-पील होके आहीं आउ कोंचके सुअरिया नियन आके पसर जाहीं । उठइवो करिअउ तऽ चार झापड़ मारके फोंफिआय लगहीं ।") (सारथी॰14:20:36:2.6)
166 झोंगी (दुर्गा अधूरा मकान भिजुन पहुँचल कि दरिंदा लगभग दउड़त पिछआड़ी से दुर्गा के बाँहि पकड़ि के अंदर झोंगी में घुसि गेल ।; हमरा झोंगी में कुछ नञ जनाल । मकान बड़गल हल । ओकर बनावट विचित्र हल ... भूल-भुलइया जइसन । हम ऊहे झोंगी में हेल गेलूँ । हमरा लगल - बामा तरफ से दुर्गा के हाय-तोबा आ रहल हे ।; आउ दुर्गा मगरमच्छ के दाढ़ से निकलल मछली जइसन झोंगी के समुंदर पार करि हमरा से लिपटि गेल ।) (सारथी॰14:20:43:1.42, 48, 2.2, 39)
167 झोंगी (लतीफ के पिछुआनी में ओकर बाप-दादा के लगावल विशाल बड़ के पेंड़ हल, जजा जलील चार-पाँच गो ताड़ के गाछ लगा देलक हल । नवपेंड़ी ताड़ के झोंगी में हम सब नुक्का-चोरी खेलल करऽ हली ।) (सारथी॰14:20:27:2.2)
168 झोलगल (= झोलंग, झोलंगा) (एक दने काठ के तराजू टंगल हल । बगल में वजनगर पत्थरन के बटखरा पड़ल हल । दोसर ठइयाँ एगो झोलगल खटिया पाड़ल हल, जेकरा पर ठेकेदार जहीर मियाँ कबीरदास के कोय पद के हड्डी-पसली एक करि रहल हल ।) (सारथी॰14:20:21:1.44)
169 झौंसाना ( बिलाड़ के रोइयाँ-चमड़ी झौंसाय लगल । छुछुआयन गंध वातावरण में फइल गेल । भीड़ अपन नाक-मुँह सिकुड़ावऽ लगल, बकि टसकल कोय नञ् ।) (सारथी॰14:20:26:3.49)
170 टाँड़-टिकुल (गाँव के किसान आउ मजदूर के बीच में एतना ने तफड़का आउ तनातनी बढ़ल कि दुन्नू दू जगह हो गेल । कारा जइसन भूमिहीन मजदूर के गाँव छोड़के टाँड़-टिकुल पर मुसहरी बसावे पड़ल ।) (सारथी॰14:20:7:3.24)
171 टाँड़-टिकुल (हमर घरनी चिटक गेली - विद्दत की, सावन-भादो में कादो-कीच रहवे करऽ हे । हमरो नैहरा भी तोरे गाँव नियन टाँड़-टिकुल हे, जे एक साल धान होल, तो तीन साल नदारथ । हम चुप्प ।) (सारथी॰14:20:42:1.6)
172 टिकरी (मतरूआ ! जनु पाछिल टिकरी खइलके हे ! बरतुहारी में तऽ दसहरा के बाद से बहराय लगऽ हे । एकरा चाँक भेलइ तऽ बैसखा में । लड़कावा वला एकरा ले बइठल होतइ कि बाबू साहब अइता आउ छेंका फलदान करता ।) (सारथी॰14:20:37:1.1)
173 टिल्हा-टाकर (मगही के जे जर-जमीन हे ओकर भाव-विभाव, लगाव-तनाव, हास-उपहास, दुख-दंद, हँसी-रोदन, आशा-निराशा, घर-दुआर, खेत-बधार, खर-खरिहान, बर-पीपर-पाँकड़, खंदक-खाँड़, टिल्हा-टाकर, परब-तेउहार, भूख-उपास, आचार-विचार-लोकाचार, स्कूल-कॉलेज, धरम-करम, वोट-बुलेट आउ टोला-टाटी सहित देस-परदेस के साथ नेउता-पेहानी के पहचाने में अपन जोर लगइलक हे ।) (सारथी॰14:20:11:3.33)
174 टुक (पाँच ~ पोशाक) (ईहे रकम माँझी-मँझिआइन में तफड़ी होते रहो हल । बेटी के शादी में बराती के छकके खिलान-पिलान भेल । दँतैला बाघी के सालन के साथ घर के चुवावल सुच्चा महुआ के दारू । सब खरच मालिक के । मानर बजवैया के की तो पाँचो टुक पोशाक देलका हल आउ उप्पर से एक सौ एक रुपइया नगदो-नरायण ।) (सारथी॰14:20:35:2.22)
175 टुप-सनी (पोखर के ऊपर मछलोकवन पंछी टुप-सनी चोंच में मछली दाबि उड़ि जा हली ।) (सारथी॰14:20:21:1.18)
176 टुभ-टुभ (पोखर के ऊपर मछलोकवन पंछी टुप-सनी चोंच में मछली दाबि उड़ि जा हली । जलमुर्गी सब उड़इत आवे आउ पानी में टुभ-टुभ गोता मारि दे ।) (सारथी॰14:20:21:1.20)
177 टेहटार ("एजी, हम्मर बुतरूआ के कोय लेबऽ ? हम एकरा बेचऽ ही ।" बड़ कमजोड़-मरल अवाज में एगो औरत तीन गो एकपिठिया बुतरूअन के लेले अस्पताल मोड़ पर बोल रहल हल । औरत के बेस से खड़ो नञ् होल जा रहले हल । एगो बुतरू गोदी में, दोसर टेहटार आउ तेसर ओकरा से बड़ सात-आठ बरिस के बगल में खाड़ हल ।; पत्रकार सोंच रहल हल - दूगो टेहटार बेटी आउ एगो दूध पीयूवाली फोहवा बेटी आउ ऊपर से पीलिया रोग से जकड़ल दौलती ... ओकर जिनगी के गाड़ी ... दौलती जी रहल हऽ ... जिन्दा हे ... !) (सारथी॰14:20:30:1.6, 32:1.44)
178 टोहा (एगो परसौती, जे छठियारियो तक खटिया पर हाड़ नञ् पाड़लक, अप्पन दू साल के टोहा नियन दोसर बेटी के लेले बाजार पहुँच गेल आउ ओकरो बेचे लगल । आझ भूख ममता पर भारी पड़ गेल हल ।; दौलती मने-मन रस्ता भर सोचले जा रहली हल कि आझ दू बेटी के बेच देम, अब हमरा में हिम्मत नञ् हे कि एकरा पालम-पोसम । जेकर घर में ई जात, ऊहाँ भूख से फिफिया तऽ नञ् होवे पड़त । भरपेट अन्न तो टोहा नियन बुतरू के मिलत ।) (सारथी॰14:20:30:3.33, 31:2.48)
179 ठोल (= ठोर; होंठ, ओष्ठ) ("कहलिउ सुत्ते ले ने !" मंझला का हमर कान में फुसफुसा के कहलखिन, "बाबा महेश हखुन आउ के ... ।" अचरज से हमर आँख गोलिया गेल, करेजा के शुकधुकी बढ़ गेल, ठोल हिलल बाकि अवाज नञ् निकसल - "बाबा महेश ... !") (सारथी॰14:20:24:1.5)
180 ठौर-चौका (तहिया जब महरानी थान से घर अइलूँ, चाची खाय पका के ठर-चौका कर रहली हल । साड़ी में जन्ने-तन्ने कारिख के दाग ... हाथ-गोड़ ठिठुर के उज्जर हो गेल हल ।) (सारथी॰14:20:24:2.2)
181 डँघुरी (शहरी चकाचौंध में अलसाल सन, गाम में ठिसुआल नियन लगे हे । महेश थान के पिपर गाछ के छितराल डँघुरी के विस्तार घट गेल हे ।) (सारथी॰14:20:23:1.5)
182 डड़बाड़ (टोला-महल्ला वाला बाप-बेटा के बाँट लेवे के सलाह देलक आउ आखिर में चार कट्ठा जमीन दू-दू कट्ठा में बँट गेल । घर में डड़बाड़ पड़ गेल । नञ् कलेसरा के बाप रमेसरा से कोय नाता आउ नञ् पुतहू सिहन्ता के सास दौलती से कोय रिश्ता ।) (सारथी॰14:20:31:1.29)
183 डबडबाल ("देखहीं ने, उकटैला पर बोरसिया धुआयँ लगलइ" कहके काका अपन आँख में ऊ डबडबाल लोर पोंछ के गमछा कंधा पर रख लेलका ।) (सारथी॰14:20:25:1.5)
184 डमरा (छोटका अहरवा भरा के दलान बन गेल हल, धार-भार वलन के । चमरपोखरिया तऽ कहिये ने भरा गेल हल आउ पटवारी जी के खेत बन गेल हल । मिट्ठी कुइयाँ जेकरा पर सभे के दलधोय होवो हल, हमरो होल हल, के अँड़सा ऊँच हो गेल हल । हुलक के देखलूँ तऽ ओकर हरियर पानी में उखड़ा, डमरा, बलुरी, खखड़ा आउ हठुआ मनी अलखर-जलखर उपलाल हल ।) (सारथी॰14:20:23:1.22)
185 डाक थान (हम जने-जने घूम जा हलूँ ओकर इतिहास हमर आँख के आगु घूमऽ लगऽ हल, सिनेमा नियन । महरानी थान, लुल्ही थान, मांझी थान, घूरेता, कुम्मर थान, हहेबा पर, डाक थान ओगैरह । लुल्ही माय के तो रेवरा के दू-तीन छउँड़ चोरा के ले भागलइ हल ।) (सारथी॰14:20:23:2.49)
186 डाढ़ (= डाल) (जइसहीं बस से महेश थान उतरलूँ हल, एगो चिन्हल-जानल हावा तन-मन के सिहरा देलक हल । आदतन हमर दहिना हाथ छाती से लग गेल आउ मूड़ी झुक गेल । पीपर गाछ के एगो चिन्हल डाढ़ पछिया हावा में झुकके असिरवाद देलक ।) (सारथी॰14:20:23:2.2)
187 डिढ़ार (= डिड़ार) (हम देखलूँ, गोइठा के एगो जरी गो चिपड़ी, जे बिना जरल रह गेल हल, सुलग गेल हल आउ धुइयाँ के एगो पातर डिढ़ार ऊपर दने खिंचा गेल हल ।) (सारथी॰14:20:25:1.8)
188 डीढ़ (= डीड़, निर्भय) (थोड़े देरी में एगो गेहुमन साँप निकसल, आउ हमर पीठ दने से घूम के पींडी पर फन काढ़ के खड़ा हो गेल । डर से हमर हालत खराब हो रहल हल, बाकि काका के इशारा पाके हम डीढ़ रहलूँ । ऊ साँप अपन फन से काड के छूलक आउ फिन जने आल हल, चल गेल ।) (सारथी॰14:20:24:1.23)
189 डुबडुबा (धारो बड़ी तीखा हलइ । हम कहलूँ, अच्छा नाप के देखऽ हियो कि केतना पानी हे । ऊ कहलकी, नञ् जी हमहूँ साथे चलम । हम कहलूँ, जो जादे पानी रहतइ तो कइसे पार करबहो । हमर भर छाती होला पर तोहरा ले डुबडुबा हो जइतो ।) (सारथी॰14:20:41:1.31)
190 ढचरा (ओने सोमर कोय गंदगी सूँघइत दुन्नूँ के बात सवादलक आउ अनजान बनल एगो उघड़ल जनावर के ढचरा भिजुन जाके खाड़ हो गेल । हड्डी चिबाइत कुत्ता गुर्राल । बचल-खुचल मांस के खुरचइत गीध के भगावे ले ऊ अपन दुन्नूँ हाथ उठइले हुस्स ... हुस्स करऽ लगल आउ फिन दुन्नूँ के गलबात सुनऽ लगल ।; "ई कहें भउजी कि हृथियार मिलतउ हल तऽ तीनियों के सुरधाम पहुँचा देतिअउ हल", सोनी आवेश में तनइत कहलक आउ ढचरा के एगो पसली लात मार के तोड़ि देलक ।) (सारथी॰14:20:20:1.26, 2.19)
191 ढुकनीवाला ("साला, सुअर के बच्चा, तों हमरा बाबाजी के घोड़ी समझ लेलहीं रेऽ । हमर भतरा के देखो हीं नञ । जइसन ओकर गोड़ा में सुरतिया हइ, ओइसन तोर मुँहो में नञ् हउ । अरे ढुकनीवाला, तों हमरा बेसी कौड़ी देके फुसलावे लेल चाहो हीं रेऽ ?") (सारथी॰14:20:36:1.12)
192 ढोंढा (हम उनखे से पुछलूँ - तूहीं बतावऽ कि की कइल जाय । ऊ कहलकी - जइसे बुतरून सब के घोड़की ले हो, ओइसहीं हमरो ले लेहो । हम कहलूँ - बुतरून तो हौला रहऽ हे । ऊ अप्पन थुलथुल देह देखे लगली । हम कहलूँ - कहीं तूँ घोड़की लटकल हो अउ तोहर हाथ से हमर ढोंढा कसा जाय तब ? ऊ कहलकी - ओतना कसके नञ् ने पकरम ।) (सारथी॰14:20:41:2.1)
193 तफड़ी (= तफरी; तफरीह; मजाक, दिलग्गी; मनबहलाव; धूमधाम, सैर-सपाटा, हवाखोरी) ( डमरूआ ठेरनी से कभी-कभी हँसलोलियो करो हल कि कलवतिया तो किसनमे के बेटी हे । ठेरनी तब अगरा के कहो हल - "तउ की हइ ? केकरो में कउनो छापा-मोहर लगल रहो हइ कीऽ ? मोछकबराऽ, जोऽ, ई बात किसैनियो से जाके कह दे, ईलाम-बकसीस मिलतउ तोरा । मोछकबरा के नाती, भाग मनाव कि तोरा नियन 'डमरूआ' से बिआह भे गेल आउ रस-बस गेलिअउ ।" ठेरनी एतना कहके डमरूआ के कनखी मार देय तनी । ईहे रकम माँझी-मँझिआइन में तफड़ी होते रहो हल ।) (सारथी॰14:20:35:2.18)
194 ताड़ा-ताड़ी (= जल्दी) (अमर पाड़ल खटिया पर कंधा से बैग उतारि के धइलक आउ कहलक, "पहिले एक गिलास पानी आउ चाह पिलावऽ ! कतनो ताड़ा-ताड़ी कराब तइयो असाढ़ चलिये जात !" चंदना उठइत कहलक, "असाढ़ में बून-पानी ... लंगो-तंगो हो जइबऽ !") (सारथी॰14:20:37:1.42)
195 तिताना (= भिंगाना) (मेढ़क के वजन से ऊ कादो-कादो रस्ता पर पसरि सन गेलन । ऊ कहलन, "उनखा देह से रगड़ खायत ठंढ भरल झिल्लीदार चमड़ी के भयानक असहनीय अहसास से ऊ मरल जा रहलन हल । 'ऊ सब हमरा मूत के तिता देलन या जनु ऊ उनखनी के वीर्य हल ।' ऊ कहलन हल ।") (सारथी॰14:20:14:2.9)
196 तिलकाही (अइसे अगुआ पर भरोसा हल कि कुछ रियायत जरूर करइतन, बकि तइयो कुछ ने कुछ खेत बेचहे पड़त । एकलगौरी चार-चार बेटी पर आँख में आँख सुजितवा भेल, ऊ भी जिरइला पर ! सब खेत तऽ तीनियों के बियाहे में बिक गेल । हमरा माय-बाप तिलकाही घर देखके बियाहलक हल से अब भतही हो गेलूँ । सुजितवा ले बचवे की करत !) (सारथी॰14:20:37:2.9)
197 तिलबढ़ (~ रोग) ("अगर अइसइँ दू-चार महीना तिलबढ़ के रोग जमल रहल तऽ की कहना हे भाभी !", सोनी टुभकल । - "इलाका भी तऽ मवेसियन से झरखराइये ने जात !" माला भउजी मनझान होके बोलल ।) (सारथी॰14:20:20:2.49)
198 तीख-तल्ख (~ तेवर) (जन-मानुस के बनइत-बिगड़इत जीवन-संबंध, बेनकाब होवइत चेहरा आउ दंसाल परिवेश के बोली-बानी देवे में मगही कहानी तीख-तल्ख तेवर के साथ आल हे ।) (सारथी॰14:20:11:1.15)
199 तुलमतूल (अगला आदमी हलइ 'यांगलिन' । अइसे तऽ ऊ 'वोग' जइसन तुलमतूल जोड़ीदार नञ् हो सकऽ हलइ, बकि आखिर में ऊ एगो अफसर हलइ आउ ई बात ओकरा बियाह ले सही उमेदवार बनावऽ हलइ ।) (सारथी॰14:20:12:1.12)
200 तोड़नइ (दुन्नूँ ननद-भउजाय मांजर के तोड़नइ नाधि देलक । गर्दन के तोड़ि के पसलियन के भीतरे करि देलक । टंगरियन के तोड़ि के अलगे बोझा बनइलक । एगो भैंसे के ताजा हड्डी दू ठो बोझा में बँटि गेल । दुन्नूँ गोटी एक दोसर के सहारा से माथा पर उठा लेलक ।) (सारथी॰14:20:20:3.9)
201 थकुचाल (देखऽ ही तऽ एगो बिलाड़ पड़ल हे । ओकर मूड़ी थकुचाल हे, मुँह फटल, जेकरा से हर-हर खून बहि रहल हे । साहब ओकर पंजड़ा में भोंकल बरछी खींचे के कोरसिस कर रहल हे ।) (सारथी॰14:20:26:2.45)
202 थक्कल ("कखनी अइलहीं ?" / जवाब माय देलक, "बेटी अभिये तऽ आल हे ।" / "थक्कल अइले होत । नस्ता-पानी कराहो ।" अमर बोलल ।) (सारथी॰14:20:39:2.11)
203 थोसा (हमर ससुरार जाय में तो बड़का-बड़का के बोखार आ जाहे, अब हम तो रहलूँ थोसा अदमी, भोरे से साँझे अपने दुआरिये पर बितावे वाला ।) (सारथी॰14:20:40:1.46)
204 दँताड़ना (“ई सार, हमरा के बड़ बेदम कइलक हल । देखते साथ भागऽ लगल आउ एगो अलंग के बिल में घुस गेल । आधा घंटा खंती से खतला पर पकड़ाल बेट्टा चोद्दाऽऽ !” बोलके लतीफ भाय के हाथ से टंगरी लेके एक टुकड़ी दँताड़ के नोचलक कि अकबकाल मुँह से उगलि के हाथ में ले लेलक आउ लोकऽ लगल ।) (सारथी॰14:20:27:2.43)
205 दँतैला ( ईहे रकम माँझी-मँझिआइन में तफड़ी होते रहो हल । बेटी के शादी में बराती के छकके खिलान-पिलान भेल । दँतैला बाघी के सालन के साथ घर के चुवावल सुच्चा महुआ के दारू । सब खरच मालिक के ।) (सारथी॰14:20:35:2.19)
206 दढ़िजारा (ननद-भउजाय घर पहुँच के भुचकुल्ली झोपड़ी में बइठल खुसुर-फुसुर बतिया रहल हल, "जानऽ हऽ भउजी, दढ़ियलवा दस के नोट फाजिल देलक ।" - "अनजान में कि जानबूझ के ?" - "भउजी वली बात ! ऊ अनजान देवे वला हो ? पाँच तुरी तऽ दढ़िजारा नोट गिनतो !") (सारथी॰14:20:21:3.22)
207 दढ़ियलवा (= दढ़ियल + 'आ' प्रत्यय) (ननद-भउजाय घर पहुँच के भुचकुल्ली झोपड़ी में बइठल खुसुर-फुसुर बतिया रहल हल, "जानऽ हऽ भउजी, दढ़ियलवा दस के नोट फाजिल देलक ।" - "अनजान में कि जानबूझ के ?" - "भउजी वली बात ! ऊ अनजान देवे वला हो ? पाँच तुरी तऽ दढ़िजारा नोट गिनतो !") (सारथी॰14:20:21:3.18)
208 दन सबर (= झट दबर) (लतीफ दन सबर खड़ा होके बोलल, "में को पंच के फैसला मंजूर होयगै ।") (सारथी॰14:20:28:2.27)
209 दफी (= दफे, बार) (हमरा लगल - दाय नञ्, हमर माय हेरा गेल । अप्पन माय तऽ जनम देके मर गेल । माय के मरम भी नञ् जानली । सत्या दाय नञ्, जनु माइये बनि के आल हल, जेकरा हम फेनो खो देली । हम एक दफी फेन टूअर बनि गेली ।) (सारथी॰14:20:34:1.16)
210 दरदराल (पारिवारिक धरातल के सच्चाई पर मिथिलेश सिंह के कहानी "दरकल खपरी" तो दरदराल परिवार के दरद ताजा कर देहे ।) (सारथी॰14:20:10:1.9)
211 दर-देवाल (तेसर बात ई कि ऊ बाप भी बन जाहे । फेर घरनी, बाल-बच्चा के साथ माय-बाप के बीच बेकार बनके जब खड़ा होवऽ हे तब घर के दर-देवाल भी ओकरा दने देखे लगऽ हे ।) (सारथी॰14:20:10:2.43)
212 दरोगा-निसपिट्टर (कानून तऽ कानून होवऽ हे । दुर्गा बहिन के इलाज चलऽ लगल, साथे-साथ दरोगा-निसपिट्टर के पूछताछ आउ तहकीकात, धर-पकड़ चलऽ लगल ।) (सारथी॰14:20:43:2.49)
213 दलधोय (छोटका अहरवा भरा के दलान बन गेल हल, धार-भार वलन के । चमरपोखरिया तऽ कहिये ने भरा गेल हल आउ पटवारी जी के खेत बन गेल हल । मिट्ठी कुइयाँ जेकरा पर सभे के दलधोय होवो हल, हमरो होल हल, के अँड़सा ऊँच हो गेल हल । हुलक के देखलूँ तऽ ओकर हरियर पानी में उखड़ा, डमरा, बलुरी, खखड़ा आउ हठुआ मनी अलखर-जलखर उपलाल हल ।) (सारथी॰14:20:23:1.19)
214 दहिने-बामे (= दाएँ-बाएँ) (सोनियाँ के ठोर पर हँसी पसरि गेल । ऊ अंगइठी लेवइत दहिने-बामे लचकि गेल आउ कहलक, "चलऽ भउजी ! अभी पूरा पहर भर के राह बाकी हो । भले हमनी के पड़ियायन नियन नहाना जरूरी न हे, बाकि टैम पर घर तऽ पहुँचना जरूरी हे !) (सारथी॰14:20:21:1.26)
215 दही (ले ~ आउ दे ~ के फेर) ("ललितवा मेघ राशि हइ । जेठो में झपसी लगि सकऽ हइ । जमा-जमउअल से करो पड़इ तब ने ! खेत के सौदा करना गजड़ा-मुराय बेचना तऽ नञ् ने हइ ! एकरा में 'ले दही अउ दे दही' के फेर हइ सुघड़िन", कहि के अमर जेभी से निकालि के बीड़ी सुलगावऽ लगल ।) (सारथी॰14:20:37:1.48)
216 दादन (= अग्रिम राशि, पेशगी) (दुनो बेकत गोरका-गोरकी के नाम से जानल जा हल । भठवो पर सब अदमी दुनो के ओहे नाम से जानो हल । काम में भी दुनो बेकत सबमें सेसर । मुन्ना बाबू से पथइया नधाय के पहिले दुनो बेकत बीस हजार 'दादन' ले लेलक । काम शुरू होवे पर दुनो बेकत ईंटा पारे लगल ।) (सारथी॰14:20:35:3.35)
217 दिना-दिनी ("अरे ! मरद के जात ! राम कसम, एकरा सो हाथ मट्टी कोड़के नीचू गाड़ देवे के चाही । सच कहऽ हीं भौजी ! अइसनकन के भय के खुट्टा से खोलके छुट्टा छोड़ देवल जाय तऽ सब मेहरारू के इज्जत-आबरू दिना-दिनी लूट ले । ई सोमरा ? जहाँ जइतउ, जनियें भिजुन लुसफुसियाइत चलतउ !") (सारथी॰14:20:20:1.19)
218 दियासलाय (साहब लकड़ी के जौर कइलक आउ सूखल पत्ता में दियासलाय के काँटी फक दनी जरावइत दुआ देलक । रस-रस लकड़ी सुलगऽ लगल आउ देखते-देखते लहकऽ लगल ।) (सारथी॰14:20:26:3.44)
219 दीया-बाती (= दीया-बत्ती) (बरसात के दिन हल । सबेरे से रहि-रहि के पानी झमकि जा हल । दीया-बाती हो गेल हल ।) (सारथी॰14:20:37:3.31)
220 दुख-दंद ( मगही के जे जर-जमीन हे ओकर भाव-विभाव, लगाव-तनाव, हास-उपहास, दुख-दंद, हँसी-रोदन, आशा-निराशा, घर-दुआर, खेत-बधार, खर-खरिहान, बर-पीपर-पाँकड़, खंदक-खाँड़, टिल्हा-टाकर, परब-तेउहार, भूख-उपास, आचार-विचार-लोकाचार, स्कूल-कॉलेज, धरम-करम, वोट-बुलेट आउ टोला-टाटी सहित देस-परदेस के साथ नेउता-पेहानी के पहचाने में अपन जोर लगइलक हे ।) (सारथी॰14:20:11:3.30)
221 दुधगर (जब गोरका-गोरकी पैसा कमाय लगल तऽ सबसे पहिले सरकारी जोजना से एगो 'कोलनी' के घर बनवौलक । सरकारी पैसा से आउ बेसी पैसा लगाके बढ़िया मकान बना लेलक । सुअर-माकर बेचके सरकारी जोजना से एगो दुधगर जर्सी गाय खरीद लेलक ।) (सारथी॰14:20:36:1.33)
222 धजा (= धाजा; ध्वजा) (मंदिर के महावीरी धजा लहकल पछिया में फर-फर उड़ि रहल हल ।) (सारथी॰14:20:33:3.34)
223 धड़फड़ाल (चंदना जल्दी से हाथ धोलक आउ धड़फड़ाल दुआरी पर चलि गेल । फाँक से देखऽ हे तऽ ओकर मरद 'अमर' डलेवर से कउची तो बतिया रहल हे ।) (सारथी॰14:20:37:1.26)
224 धड़फड़ाल (हमहूँ धड़फड़ाले तैयार हो गेलूँ । हमर घरनीयो भिनसरवे से तैयारी कर रहली हल । लंगड़ा रे घोड़ा चढ़मऽ तउ दुनहूँ टाँग अलगइले ही ।) (सारथी॰14:20:40:2.19)
225 धथपथाल (= तेजी से; हाँफे-फाँफे) (मड़ुकी के टटरी खुलल हल । लगे जइसे अभी-अभी सत्या खोल के अंदर गेल हे आउ हाँक देम तऽ धथपथाल माथा पर अँचरा झाँपइत बहरात । हमर आँख झर-झर बहऽ लगल ।) (सारथी॰14:20:34:1.26)
226 धसना (अनाज ~) ("बउआ खइलकउ ?" - "ओकरा अखने अनाज धसऽ हो ! भोरे गेलो हे से अभी तक नञ् लौटलो हे । हम चारियो बहीन राते मती मेरा लेलियो । एक्कक साल के भार चारियो बहीन उठइबे तब तऽ बउआ इंजीनियर बनत ने ।") (सारथी॰14:20:39:3.27)
227 धाकड़ (धाकड़-धाकड़ नेता के समर्थक थाना में जुट गेलथिन आउ डीएम आउ एसडीओ के फोन लगपलथिन । हालत के गंभीरता देखइत एसडीओ सीओ के दौलती के लेल बिलोक से अनाज देवे के व्यवस्था आउ डागदर बोलाके ओकर सेहत के जाँच करावे के निर्देश देलथिन ।) (सारथी॰14:20:31:3.9)
228 धार-भार (बड़का अहरा, जेकरा में बैशाख तक पानी झिलहेर खेलो हल, सोनी मियाँ, अलीम मियाँ ओगैरह के लग्गी दिन भर डुबल रहो हल, पूसे में सुक्खल हल । अस्पताल आउ किसान भवन के बड़गो-बड़गो बिल्डिंग शोभ रहल हल, ऊ अहरा में । छोटका अहरवा भरा के दलान बन गेल हल, धार-भार वलन के । चमरपोखरिया तऽ कहिये ने भरा गेल हल आउ पटवारी जी के खेत बन गेल हल ।) (सारथी॰14:20:23:1.16)
229 धिंगड़य (ईहे रंगन जब रोज मुसहर टोली में धिंगड़य होवे लगल तऽ टोला के पाँच गो बूढ़-ठेढ़ दुनो के बहुत समझौलका, बाकि नदी के दू पार नियन दुनहूँ दूरे होवइत गेल । अपन बेटी के समझावे लेल चनपुरा से डमरू माँझी के भी बोलावल गेल । ऊहो अपन बेटी आउ दमाद के सब हेंठ-उप्पर समझौलक मुदा ने बात बने के हल ने बात बनल । अब तो गोरका-गोरकी में जमके मारा-मारी भी होवे लगल ।) (सारथी॰14:20:36:2.15)
230 धिकउनी (ओकर हिस्सा में एक पेड़ जामुन आउ दू पेड़ महुआ आल हे । मुदा एक दिन ओकर हिस्सा के पेड़ भी काटे के कोरसिस हो जाहे । कमली रोकय ले चाहऽ हे मुदा ओकरो 'काम तमाम' कर देवे के न खाली धिकउनी मिलऽ हे बलुक तमाम करिए देहे ।) (सारथी॰14:20:10:1.24)
231 धूरी-धक्कड़ (आधुनिकता तामझाम आउ चकाचौंध भरल हे तो प्राचीनता पर धूरी-धक्कड़ चढ़ल हे । कहानी के संवेदना ई बात के उरेहे हे कि आदमी नीव के पहचान भूल रहल हे । पीढ़ीगत दूरी में दरार वला तफड़का हे ।) (सारथी॰14:20:9:2.17)
232 धोधकड़ा ("एगो टीसन पर सेठ नियन साँढ़ दुइयो सिपहियन के चाह-पानी करइलक, जेकर दाम ऊ धोधकड़ा सेठवा हमरा अपना उप्पर सुता के वसूललक ! हनर दशा गिधिन के बीच एगो मास के लोथड़ा बनल हल ।") (सारथी॰14:20:20:2.10)
233 धोवल-धावल (हम तो देखऽ हलियो कि पहिले हमरा उठावऽ हऽ कि झोलवे के । मरदाना के जात परकत होवऽ हे, पहिले झोलवे उठैलका । हम कहलूँ - तूँ तो लेटा गेवे कैली हल । बेगवा में कादो-पानी चल जितो हल तब सब कपड़ा धोवल-धावल ऐरन कैल गंधा जितो हल ने । ऊ गोसाल उठके एक लोंदा कादो हमरा पर छींट देलकी ।) (सारथी॰14:20:41:3.11)
234 धौंस-धाह (फेर आजादी के आस्वाद, जमींदारी प्रथा के धौंस-धाह, ओकर उन्मूलन, स्वतंत्रता के बाद शोषण-उत्पीड़न के बदलल चेहरा के लेखा-जोखा में तत्पर हिन्दी कथा-दृष्टि से मगही कहानी अप्पन कथ्य आउ संरचना लेल उधार-पैंचा, बैना-पेहानी के सरोकार रख सकऽ हल मुदा अइसन नञ् होल ।) (सारथी॰14:20:5:1.20)
235 नगद-नरायण (ईहे रकम माँझी-मँझिआइन में तफड़ी होते रहो हल । बेटी के शादी में बराती के छकके खिलान-पिलान भेल । दँतैला बाघी के सालन के साथ घर के चुवावल सुच्चा महुआ के दारू । सब खरच मालिक के । मानर बजवैया के की तो पाँचो टुक पोशाक देलका हल आउ उप्पर से एक सौ एक रुपइया नगदो-नरायण ।) (सारथी॰14:20:35:2.24)
236 नजराना (= नजर आना) ("नञ खा हिअइ, तउ हावा पिओ हिअइ की ? ई पछेवा हमरे ले तो बहो हइ ।" चाची के बुदबुदाहट में एगो झल्लाहट नजराल हमरा ।) (सारथी॰14:20:24:2.34)
237 नञ् होना (ईहे बीच छपर-छपर कइले सुजीत आ धमकल । / “बरसात में अन्हार-पन्हार के नञ् घूमल चली बाबू", अमर बोलला, "कने से आ रहलऽ हे ? जाके कपड़ा बदलि लऽ । नञ् होवो तऽ तनिक करूआ तेल देह में औंस लऽ । अइसनके में सर्दी लगे के डर रहऽ हे । घर में दूध रहो, तऽ सिरगरम करि के एक गिलास दे दहो ।" चंदना दने निहारइत कहिके हाथ के गिलास उनखा दने बढ़इलका ।) (सारथी॰14:20:37:3.49)
238 नतिनदमाद ("जानऽ हथिन, सत्या दी के यहाँ नानीघर हलइ । ओकर नाना के एक्के बेटी हलन । चाहतन हल तऽ ओकरे बसा लेतन हल, बकि ओकर बड़ बेटी के छुटपने में ले अइलन आउ जुआन जोग करके राजगीर धाम पर बियाहलन । नतिनदमाद देखे में अपरूप के सुन्नर हलन, बकि लूर के छुछुन्दर ।") (सारथी॰14:20:34:1.32-33)
239 नदिकन्हवा (खैनी ठोकइत हम मुँह में लेवे लगलूँ कि टोकलक, "काहे भयवा, हम खैनियाँ नञ् खाम ? ढेर दिना पर मिललें, खैनियो तऽ खिलाव । याद हउ, कइसन नदिकन्हवा में गुल्ली-डंडा चलऽ हलइ !") (सारथी॰14:20:26:1.42)
240 नम्मर (= नम्बर) (मंझला का एक नम्मर पूजेड़ी हलखिन महरानी के । चाची तनी मनकड़ड़ हलखिन । बाकि अब ई बुढ़ारी में उनखर मनकड़ड़इ लरमा गेलइ हल । चाचा के भी बोली में ऊ गरमी नञ् बचलइ हल ।) (सारथी॰14:20:23:3.17)
241 नवपेंड़ी (= नौ पेड़ वाला) (लतीफ के पिछुआनी में ओकर बाप-दादा के लगावल विशाल बड़ के पेंड़ हल, जजा जलील चार-पाँच गो ताड़ के गाछ लगा देलक हल । नवपेंड़ी ताड़ के झोंगी में हम सब नुक्का-चोरी खेलल करऽ हली ।) (सारथी॰14:20:27:2.2)
242 नाम गिनउअल (अपन लोककथा-धर्मी भाववादी डगर के छोड़ मगही कहानी के मुख्य धारा (यथार्थवादी) विकास के ऊ धरातल पर आ गेल हे जहाँ आंचलिकता से आगू बढ़के देस-देसावर तक के पुछार-चिन्हार करइत ओकरा से नेउता-पेहानी, सर-सौगात, रिश्ता-नाता जोड़इत अपन मंजिल पावइ के राह पर गतिशील हो गेल हे । अब एकरा पर चरचा करइ घड़ी सीधा-सपाट नाम गिनउअल से काम नञ् चलत बलुक प्रवृत्ति आउ प्रकृति के अनुरूप बात करे पड़त ।) (सारथी॰14:20:6:3.27)
243 निकासी (सीजन के आखिर में दादनी आउ खोराकी सहाके सबसे बेसी निकासी गोरके-गोरकी के भेल । जहिया 'पथइया' नयँ होवे, तहिया गोरका 'भराय' मिसतीरी के साथ 'हेल्फर' बन जाय आउ गोरकी 'रेजा' में काम करे ।) (सारथी॰14:20:35:3.46)
244 निक्के-सुक्खे (जे साल के बैसाख में दौलती के घर ढुकइलक, ओही साल अगहन में रमेसरा बेटा आउ बेटी के बिआह कर देलक । बेटी तो निक्के-सुक्खे अप्पन ससुराल चल गेल मुदा घर में बाप आउ बेटा दुन्नूँ में नइकी कनियाय सास आउ पुतहू में ठने लगल ।) (सारथी॰14:20:30:3.48)
245 निम्मक-गुंडी (बिलाड़ के रोइयाँ-चमड़ी झौंसाय लगल । छुछुआयन गंध वातावरण में फइल गेल । भीड़ अपन नाक-मुँह सिकुड़ावऽ लगल, बकि टसकल कोय नञ् । / "अरे बेट्टाऽऽ ! तनि निम्मक-गुंडी लाऊऽऽ रेऽऽ !" धुआइत लकड़ी फूकइत साहब बोलल । साहब के घरवली लपक के एगो परोर के पत्ता पर निम्मक-गुंडी लाके धर देलक ।) (सारथी॰14:20:27:1.2, 5)
246 निसाफ (= इंसाफ) (गरीबी के दंश भोगे वला पातो-चा एकर पीड़ा से अवगत हथ । ई लेल ऊ दलित के पक्ष ले हथ मुदा तखनइँ उनका याद दिला देल जाहे कि जवान बेटी हे, कहइँ जाति-बिरादरी से वार देलको तऽ कुल निसाफे निकल जइतो । एकर बाद ऊ फेर ओहे जातिवादी खोल में समा जा हथ । बेटी के सवाल पातो-चा के कमजोर आदमी के चिन्हा दे देहे ।) (सारथी॰14:20:9:3.39)
247 निस्सन (देह-समांग से ~ लड़का) (“कोय कमासुत किसान के देह-समांग से निस्सन लड़का देखि के पाँच फेर ढोल बजा दऽ । ओइसनकन भी तऽ दिल्ली-सूरत जाके कमा रहल हे आउ कोठा उठा रहल हे ।”) (सारथी॰14:20:37:2.38)
248 नेसफरमा (= टेसफरमा; ट्रांसफॉर्मर) (कई महीना से गाँव के नेसफरमा जरल हल । पूरा गाँव रोशनी विहीन होएल हल । एकरा पर कोई के ध्यान न हल । चुनाव के दस दिन पहिले राहुल महतो अपना खर्च से गाँव में नेसफरमा लगा देलन । महीनो से अंधकार में डूबल गाँव रोशनी से जगमगा गेल ।) (सारथी॰14:20:44:2.23, 26)
249 नौड़ी (= लौड़ी, दासी) (“कोय कमासुत किसान के देह-समांग से निस्सन लड़का देखि के पाँच फेर ढोल बजा दऽ । ओइसनकन भी तऽ दिल्ली-सूरत जाके कमा रहल हे आउ कोठा उठा रहल हे ।” - "तोर कहना ठीक हउ बकि ऊ तीनयों के सामने हमर ललितवा नौड़िये ने बुझात !") (सारथी॰14:20:37:2.43)
250 पंजड़ा (हमरा करेंट लग गेल, के केकरा पंजड़ा में बरछी भोंक देलक ? केक्कर मूड़ी पर फटाक-फटाक लाठी बरस रहल हे ? हम लदफदाल लुंगी सम्हारइत लपकल आवाज रूखे चल देली ।; देखऽ ही तऽ एगो बिलाड़ पड़ल हे । ओकर मूड़ी थकुचाल हे, मुँह फटल, जेकरा से हर-हर खून बहि रहल हे । साहब ओकर पंजड़ा में भोंकल बरछी खींचे के कोरसिस कर रहल हे ।) (सारथी॰14:20:26:2.36, 47)
251 पंजोठना (अफरा-तफरी में ओकर माथा में चोट लगि गेल हल । खून से ओकर पीठ पर के फराक लाल हो गेल हल । ओक्कर सलवार के नारा टूट गेल हल, जेकरा ऊ भर मुट्ठी पकड़ले हपसियान हो रहल हल । ऊ गश खाके गिर पड़ल । हम झट सनी अपन ओढ़नी ओकरा माथा में बान्हली आउ पंजोठ के कंधा पर उठइले अस्पताल दने बढ़ गेली ।) (सारथी॰14:20:43:2.46)
252 पगमेल (काम शुरू होवे पर दुनो बेकत ईंटा पारे लगल । 'पगमेल' के माटी से ईंटा परा हल । गोरका-गोरकी के 'जुट्टी' सबसे बढ़-चढ़ के ईंटा पारे लगल । 'खेवाल के गिनती 'हफ्तावारी' होवो हल आउ तहिये 'खोराकियो' मिलो हल सबके ।) (सारथी॰14:20:35:3.37)
253 पगलाल (दौलती के ऊहे बखत कमलवाय (पीलिया) के बेमारी धर लेलक । बड़की बेटी ललक्ष्मिनिया बगल के स्कूल से छोड़न-छाड़न जे लावे, ओकरे से तीनहूँ के भूख मिटे । रमेसरा एकदमे पगलाल कन्ने बिला गेल, कोय पता नञ् ।) (सारथी॰14:20:31:2.15)
254 पच्-पच् (बिलाय के टंगरी मचोर के तोड़इत बोलल आउ निम्मक-गुंडी में बोरके अधपकुए दाँत से नोचके मूड़ी कँपावइत कचरऽ लगल । देखताहर के मुँह में पानी आ गेल या घिनाके आवल थूक पच्-पच् फेंकऽ लगलन । साहब के साथ बेटा-बेटी आउ माउग भी नोच-नोच के बिलाय के मास खाय लगल ।) (सारथी॰14:20:27:1.11)
255 पछेवा (= पछुआ हवा) ("नञ खा हिअइ, तउ हावा पिओ हिअइ की ? ई पछेवा हमरे ले तो बहो हइ ।" चाची के बुदबुदाहट में एगो झल्लाहट नजराल हमरा ।) (सारथी॰14:20:24:2.33)
256 पटकनियाँ (सोनिया बवंडर में पटकनियाँ खा रहल हे । दादा थोड़के देरी बाद बहरा गेल । ओकर बिज्जी कला कान में कुछ भुनभुन्नी पड़ल हल । ऊ बमकऽ लगल, "के हलउ सोनियाँ ? की बकऽ हलउ ? बोल, बोल तऽ, कि भनभना हलउ ?") (सारथी॰14:20:22:1.10)
257 पटपरनी (ऊ रौदा के मुँह चिढ़ावइत बीसो-पचीस मेहरारू धैल-धरावल लाल-पीयर झमकइले दलधोय के गीत गइले बढ़ि रहल हल । आगू-आगू सूप में दाल-चाउर-मट्टी लेले कचुआ पेन्हले लड़की पाँच गो पटपरनी से घिरल बढ़ल जा रहल हल, तेकर आगू ढोल ... डिग ... डिग ... डिग ... डिग ... ।) (सारथी॰14:20:33:1.30)
258 पटाना (= पड़ जाना, लेट जाना) (हाथ-गोड़ धोवाल, कपड़ा-लत्ता बदलाल, अउ चाह-पानी होल, अउ जे पटइलूँ से होश तब आल, जब आगू में नस्ता आ गेल । हमर घरनी भी पटाल हली, सावन में नैहरा अइला के मजा उनखो मिल गेल हल । हलाँकि ऊ हँस-हँसे के सब से रस्ता के बात बतिया रहली हल ।) (सारथी॰14:20:42:2.3, 4)
259 पड़ियायन (दे॰ पड़िआइन) (सोनियाँ के ठोर पर हँसी पसरि गेल । ऊ अंगइठी लेवइत दहिने-बामे लचकि गेल आउ कहलक, "चलऽ भउजी ! अभी पूरा पहर भर के राह बाकी हो । भले हमनी के पड़ियायन नियन नहाना जरूरी न हे, बाकि टैम पर घर तऽ पहुँचना जरूरी हे !) (सारथी॰14:20:21:1.28)
260 पतरक्खन (पहिले सामंती राक्षस हल, तऽ अखनी पूंजीवादी वायरस । पहिले रोटी, निम्मक, प्याज पर आम आदमी के हक हल, आज ऊहो मोहाल । पतरक्खन अलुओ बाजार में मुँह चिढ़ावऽ हे ।) (सारथी॰14:20:2:2.5)
261 पथइया (= गीले पदार्थ को ठोककर ईंट, बरतन, गोइठा आदि बनाने का कार्य) (दुनो बेकत गोरका-गोरकी के नाम से जानल जा हल । भठवो पर सब अदमी दुनो के ओहे नाम से जानो हल । काम में भी दुनो बेकत सबमें सेसर । मुन्ना बाबू से पथइया नधाय के पहिले दुनो बेकत बीस हजार 'दादन' ले लेलक । काम शुरू होवे पर दुनो बेकत ईंटा पारे लगल ।; सीजन के आखिर में दादनी आउ खोराकी सहाके सबसे बेसी निकासी गोरके-गोरकी के भेल । जहिया 'पथइया' नयँ होवे, तहिया गोरका 'भराय' मिसतीरी के साथ 'हेल्फर' बन जाय आउ गोरकी 'रेजा' में काम करे ।) (सारथी॰14:20:35:3.34, 48)
262 पथिया (= पथिआ; पशुओं को चारा देने की बाँस की टोकरी, गवताही मौनी) (हम खिड़की बंद करइ ले हाथ बढ़इवे कइली हल कि हमर नजर सड़क पर गोबर के पथिया लेले जायत सत्या पर पड़ि गेल । ओकर गोड़ लतड़ा रहल हल, लगे जइसे अब गिरत कि तब गिरत ।) (सारथी॰14:20:33:1.41)
263 पनकल (= पिनकल; चिढ़ा, कुढ़ा; नशे में चूर) (एहे हे कहानी के आधार आउ एकरे पकड़के कहानीकार नरेन हुआँ पहुँचइ के सफल प्रयास कइलन हे जहाँ सामंती मानसिकता लेके आगू बढ़ल आज के दबंगन के विरोध में पनकल क्रान्तिकारी संगठन अपनहीं विडंबना के शिकार हो रहल हे ।; उमेश के कहानी "लुदबुद" अइसने जमीन पर पनकल हे जेकरा में अनुकम्पा के आधार पर मिलल नौकरी के लुदबुदाल फल गिन सके हे ।) (सारथी॰14:20:7:3.52, 9:1.10)
264 परकत (हम हाथ पकड़के कहलूँ - उठऽ ने । ऊ कहलकी - पहिले तोरा बेगवे धोवे के ताक बहकल जा हलो, पहिले हमरा ने उठइतऽ हल । हम कहलूँ - गोड़ मेंच गेलो की ? - गोड़ मेचे दुश्मन के, हम तो देखऽ हलियो कि पहिले हमरा उठावऽ हऽ कि झोलवे के । मरदाना के जात परकत होवऽ हे, पहिले झोलवे उठैलका ।) (सारथी॰14:20:41:3.8)
265 परकना (अइसे खा तऽ हमरो गेल हल कत्ते तुरी मास-मछली, दूध-दही बकि ईहे बिलड़वा खइलक, से कइसे कहल जाय । हम सोंचे लगली - जे हानि पहुँचावऽ हे, ऊ लाभो दे जाहे । चूहा कतना विधंछ करऽ हे । हमर नये सूटर काटके नाश देलक । जे घर में बिलाय परकलो, चूहा परइलो ।) (सारथी॰14:20:26:3.24)
266 परतछ (= प्रत्यक्ष) (पहिले जोंक जना हल, आज तरह-तरह के जोंक उपला गेल हे, कुछ परतछ, कुछ अपरतछ । पहिले सामंती राक्षस हल, तऽ अखनी पूंजीवादी वायरस ।) (सारथी॰14:20:2:2.3)
267 पर-पेसाब (हमहूँ थक्कल-मांदल सुत गेलिअइ । अचक्के हम्मर नीन टूटल - खट्ट-खट्ट ... खट्ट-खट्ट । हम उठके बइठ गेलूँ । लगल कि कका उठलखिन होत पर-पेसाब करे ला । बगल में हाथ से टिटकोरलिअइ, तउ काका सुतले हलखिन बाकि हम्मर छूअन से उठ गेलखिन, "की होलउ ... सुज्जो ... ।") (सारथी॰14:20:23:3.39)
268 पवही (हमर जनाना के चप्पल के एक पवही तो नदिये में दहा गेल हल । मुदा दोसरकी ऊ हाथे में लेले हली । हम नदिये में कहलूँ हल कि ओहो बिग देहो, जे पयतन से पेन्हतन । ऊ चिटक के बोलली हल - दोसरे ले लगइलूँ हल दू सौ रुपइया ।) (सारथी॰14:20:40:3.46)
269 पसार (पांचे ~ तऽ बिसुआ उसार) ('जहिये दाल-भात, तहिये परब, गरीब के बाल-बच्चा मत कर गरब !' गरीब ले प्रासंगिक बनले हे । हमर देश परब के देश हे । साल में नो महीना परब-परब । पांचे (नागपंचमी) पसार तऽ बिसुआ उसार ! फाँक माधे तीन महीना - बैसाख, जेठ, अषाढ़ । सावन से तऽ परब आवऽ हे गरीबन ले सांसत बनि के । दीवाली मनइलऽ ने ? कइसन मनलो ? केकरो ले छप्पन प्रकार, केकरो ले ओल ! कुलकुलइनी मेटलो ?) (सारथी॰14:20:2:2.13)
270 पांचे (= नागपंचमी) ('जहिये दाल-भात, तहिये परब, गरीब के बाल-बच्चा मत कर गरब !' गरीब ले प्रासंगिक बनले हे । हमर देश परब के देश हे । साल में नो महीना परब-परब । पांचे (नागपंचमी) पसार तऽ बिसुआ उसार ! फाँक माधे तीन महीना - बैसाख, जेठ, अषाढ़ । सावन से तऽ परब आवऽ हे गरीबन ले सांसत बनि के । दीवाली मनइलऽ ने ? कइसन मनलो ? केकरो ले छप्पन प्रकार, केकरो ले ओल ! कुलकुलइनी मेटलो ?) (सारथी॰14:20:2:2.13)
271 पाइह (= पाह) (रोपा के दिन में ठेरनी गाम भर में 'चंपियन' रोपनी गिना हल । हरमेसा पहिल 'पाइह' ऊहे काटऽ हल आउ 'सीराकट्ठा' पावो हल ।) (सारथी॰14:20:35:2.26)
272 पाछिल (= पिछला) (मतरूआ ! जनु पाछिल टिकरी खइलके हे ! बरतुहारी में तऽ दसहरा के बाद से बहराय लगऽ हे । एकरा चाँक भेलइ तऽ बैसखा में । लड़कावा वला एकरा ले बइठल होतइ कि बाबू साहब अइता आउ छेंका फलदान करता ।) (सारथी॰14:20:37:1.1)
273 पिआँकी ("हाँ रे मोछकबरा वलाऽ, हम दिन भर पैसा-पैसा जोड़े लेल भट्ठा पर खटिअइ, अपन देह तोड़िअइ आउ तों ओकरा पिआँकी आरो जूआ में उड़ाहीं । तों रोज सँझिये गील-पील होके आहीं आउ कोंचके सुअरिया नियन आके पसर जाहीं । उठइवो करिअउ तऽ चार झापड़ मारके फोंफिआय लगहीं ।") (सारथी॰14:20:36:2.3)
274 पिच दियाँ (= पिच दनी) (जहीर बोलल, "फुटगत न हउ, कल्ह लिहें ।" आउ ऊ ओजइ पिच दियाँ थूकइत अपन खटिया पर जा बइठल ।) (सारथी॰14:20:21:2.16)
275 पिछआड़ी (दुर्गा अधूरा मकान भिजुन पहुँचल कि दरिंदा लगभग दउड़त पिछआड़ी से दुर्गा के बाँहि पकड़ि के अंदर झोंगी में घुसि गेल ।) (सारथी॰14:20:43:1.41)
276 पिछुलना (= पिछलना) (इनखा तो कुदकते गोड़ पिछुलल अउ गिर गेली कादो में छपाक ! हम निहुर के उनखर गिआरी से झोला निकाललूँ । हाथ से दूर छिटक के बेग कादो में गिर गेल हल ।) (सारथी॰14:20:41:2.50)
277 पिठिआना (= पीठ पीछे चलना) (ऊ बिलाय के दुइयो पिछला टंगरी पकड़ि के उठइले चलि देलक अपन सिरकी दने । पीछू-पीछू ढेर लइकन-बुतरून संग चार-पाँच गो बड़कन भी पिठिअइलक । बुतरून लेल तऽ अजनास के तमाशा हल ।; ऊ अपन दुन्नु हाथ में सौदा के पोलथिन झुलइले जा रहल हल । ओकरा की पता हल कि घात लगइले शिकारी हमरा पिठिअइले हे ! नीम तर एगो अधूरा मकान हल । वहमाँ गाछ-बिरिछ उग आल हल । दुर्गा वजा पहुँचे-पहुँचे पर हल कि दरिंदा के चाल तेज हो गेल ।) (सारथी॰14:20:26:3.33, 43:1.29)
278 पुछार-चिन्हार (अपन लोककथा-धर्मी भाववादी डगर के छोड़ मगही कहानी के मुख्य धारा (यथार्थवादी) विकास के ऊ धरातल पर आ गेल हे जहाँ आंचलिकता से आगू बढ़के देस-देसावर तक के पुछार-चिन्हार करइत ओकरा से नेउता-पेहानी, सर-सौगात, रिश्ता-नाता जोड़इत अपन मंजिल पावइ के राह पर गतिशील हो गेल हे । अब एकरा पर चरचा करइ घड़ी सीधा-सपाट नाम गिनउअल से काम नञ् चलत बलुक प्रवृत्ति आउ प्रकृति के अनुरूप बात करे पड़त ।) (सारथी॰14:20:6:3.23)
279 पूजेड़ी (= पूजेरी, पुजेरी; पुजारी) (मंझला का एक नम्मर पूजेड़ी हलखिन महरानी के । चाची तनी मनकड़ड़ हलखिन । बाकि अब ई बुढ़ारी में उनखर मनकड़ड़इ लरमा गेलइ हल । चाचा के भी बोली में ऊ गरमी नञ् बचलइ हल ।) (सारथी॰14:20:23:3.17)
280 पेटकुहिया (= पेटकुनिएँ, पट करके) ("जानऽ हऽ भउजी, दढ़ियलवा दस के नोट फाजिल देलक ।" - "अनजान में कि जानबूझ के ?" - "भउजी वली बात ! ऊ अनजान देवे वला हो ? पाँच तुरी तऽ दढ़िजारा नोट गिनतो !" - "त हडिया के साथ लगऽ हउ तोरो तौल लेलकउ की ?" - "तौले तऽ चाहवे कइलन बकि सोनिया तरजुआ में अँटवे न कइलन ।" - "बच गेलें सोनी, नञ् तऽ तोरो पेटकुहिया सुतइतउ हल भंगलहवा", ठठाके हँसइत माला बोलल ।) (सारथी॰14:20:21:3.27)
281 पोहपित (= बढ़ना, विकास करना, उन्नति करना या होना) (लोक कथात्मक वाचक स्वरूप विकसित होके जब आधुनिक किस्सागोई तक पहुँचल, कहानी चाहे जउन भाषा के रहे, ओकर प्रभाव पोहपित होते गेल ।) (सारथी॰14:20:11:1.43)
282 फक दनी (साहब लकड़ी के जौर कइलक आउ सूखल पत्ता में दियासलाय के काँटी फक दनी जरावइत दुआ देलक । रस-रस लकड़ी सुलगऽ लगल आउ देखते-देखते लहकऽ लगल ।) (सारथी॰14:20:26:3.44)
283 फट से (= फट दबर, फट दनी) (जीत लेलक भाई ! जीत लेलक ! हमर मुखिया जीत गेलक ! मुखिया के नाम सुनइते नींद हम्मर टूट गेल आउ फट से केवाड़ी खोलली ।) (सारथी॰14:20:44:1.7)
284 फहाड़ा (= ?) (कलवतिया अपन ससुरार खजपुरा आ गेल । सास-ससुर के एकलौती पुतहू हल । सभे काम में फहाड़ा । रोकसद्दी होवे के पहिले गोरका 'मलमास' मेला में ओकरा साथे विमला थियेटर, अकास झूला आउ वेणुवन देख आइल हल ।) (सारथी॰14:20:35:3.6)
285 फाँक ('जहिये दाल-भात, तहिये परब, गरीब के बाल-बच्चा मत कर गरब !' गरीब ले प्रासंगिक बनले हे । हमर देश परब के देश हे । साल में नो महीना परब-परब । पांचे (नागपंचमी) पसार तऽ बिसुआ उसार ! फाँक माधे तीन महीना - बैसाख, जेठ, अषाढ़ । सावन से तऽ परब आवऽ हे गरीबन ले सांसत बनि के । दीवाली मनइलऽ ने ? कइसन मनलो ? केकरो ले छप्पन प्रकार, केकरो ले ओल ! कुलकुलइनी मेटलो ?) (सारथी॰14:20:2:2.13)
286 फिफिया (बड़ी हिम्मत जुटाके बुतरून के लेके गाँव से मुँहझपुए निकस गेली । दौलती मने-मन रस्ता भर सोचले जा रहली हल कि आझ दू बेटी के बेच देम, अब हमरा में हिम्मत नञ् हे कि एकरा पालम-पोसम । जेकर घर में ई जात, ऊहाँ भूख से फिफिया तऽ नञ् होवे पड़त । भरपेट अन्न तो टोहा नियन बुतरू के मिलत ।) (सारथी॰14:20:31:2.47)
287 फुजना (कभी व्यापक फलक पर फइलल मुदा समय के साथ सथाल मागधी जब फेर से फुज्जल तब एकदम नावा 'मगही' रूप में । ई लेल मगही कहानी के विकास भी दोसर भाषा के कथा विकास जइसन डेगा-डेगी से लेके दौड़-धूप आउ छलांग जइसन होल ।) (सारथी॰14:20:5:3.46)
288 फुटगत (= रेजकी, चिल्लर) (माल तौलाय लगल । जहीर मियाँ अपन कागज पर मनजई टाँकऽ लगल । खतम हो गेल तऽ जहीर बोलल, "फुटगत न हउ, कल्ह लिहें ।") (सारथी॰14:20:21:2.14)
289 फुल्ली (~ दारू) (कुछ सोंचइत छोटकी मुँह में गुदगर मांस के टुकड़ी लेवइत बोलल, "ठीके हस । में देई बीस रूपइया, मुदा एकदम से फुल्ली दारू मँगइहें ।", आउ पीठ दने आड़ करिके अँचरा के गेंठी से निकालि के दस-दस के दू नोट जलील दने बढ़इलक ।) (सारथी॰14:20:28:1.32)
290 फोकराना (नाक ~) (माला के दरद मिलल तमतमाल गाल पर लोर के लकीर उगरि गेल । सोनी अंदर से खौलइत, मसमसाल, नाक फोकरइले चुपचाप खाड़ रहल ।) (सारथी॰14:20:20:2.7)
291 फोटु (= फोटू; फोटो) (भनसा भीतर के केवाड़ी सड़ गेलइ हल । दखिनवारी ओसरवा पर के अनवारी ठीक हल, जेकरा में काका के कागज-पत्तर रखल हल, रसीद-पुरजा, हनुमान चलीसा, दुर्गा सप्तशती, बजरंग बाण, विनय पत्रिका, सूरसागर, गीता, कल्याण के ढेर मनी अंक आउ एक कोना में मोहना के बुतरू वाला फोटु ।) (सारथी॰14:20:24:2.11)
292 बँटल-बिहिआवल (दलगत प्रजातांत्रिक राजनीति में वंशवाद, भाय-भतीजावाद जाति, धरम, भाषा सब मिलके जन-समाज के आपसी मेल-जोल आउ एकता के तोड़ देलक । अपन बँटल-बिहिआवल चेतना से आदमी खंड-खंड में देखाय पड़े लगल ।) (सारथी॰14:20:7:1.51)
293 बखती (कोय हाथ ऊ औरत के हालत पर तरस खाके ओकर बखती तौर पर कोय उपाय निकाले लेल आगू नञ् भेल । कोय ओकर हालत पर गौर नञ् कर रहल हल, नञ् कोय ओकर भूख-पियास लेल पूछ रहल हल ।) (सारथी॰14:20:30:2.6)
294 बघुआल (~ ताकना) (हम पछियारी खिड़की खोलके ठाढ़ हो गेली । झनझन पछिया के झरक दनदनाल हमर देह से लिपटि के भुंजा करि देलक । चिलचिलायत कटकटाह रौदा खिड़की के पार से हमरा बघुआल ताकि रहल हल ।) (सारथी॰14:20:33:1.25)
295 बड़गल (हमरा झोंगी में कुछ नञ जनाल । मकान बड़गल हल । ओकर बनावट विचित्र हल ... भूल-भुलइया जइसन ।) (सारथी॰14:20:43:1.49)
296 बनछिल्ली (जब ठेरनी के बेटी कलवतिया बारह बरिस के भेल तो ओहो अपन माय आउ जोड़ी-पाटी जौराती के साथ बनछिल्ली में जाय लगल । ईहे रंगन कलवतिया बढ़े लगल आउर रूपो-रंग में निखारो लगल ।) (सारथी॰14:20:35:2.44)
297 बनल-सोनल (सोनी लौटल तऽ माला पुछलक, "ई ठठरी भैंस के हे कि बैल के ?" - "सहदान भैंस के । सींग देखऽ ! बनल-सोनल कोय मस्त भैंसे होतन । एकर मांजर हमनी दुन्नूँ से नञ् टसकि सकऽ हली", सोनी बोलल ।) (सारथी॰14:20:20:2.41)
298 बफार (~ चोंथना) (= चीखना-चिल्लाना) (हर बेरी ओकर हाथ में कोय बेंग आ जाय तऽ ऊ बफार चोंथे । फोहवा बुतरू-सन कान से चिपकल दूगो बेंग के ऊ खींचके फेंकलक तऽ ऊ अपना साथ कुछ चमड़ी भी नोंच के ले गेल ।; काका झटके से मचिया पर से उठ गेला । बोरसी उलटा गेल । चाची के आधा बफार मुँह में रह गेल । चमरखानी जुत्ता पहिरके काका मुरेठा बान्हते दुआरी दने बढ़ गेला । हम एतने सुनलूँ - "कह देहीं हल ।") (सारथी॰14:20:14:2.27, 25:3.10)
299 बरी-तिलौरी (चंदना घुन्नी भर फेनल बाल्टी के पानी में देके अंदाज लगइलक अलगऽ हे कि नञ् । घाठी बइठ गेल । ऊ फेन सोडा डालिके फेनऽ लगल । बरी-तिलौरी तो फेनहे के तारीफ हे । घाठी जेतने फेनइला, बरी ओतने खस्ता भेलो । जल्दीबाजी कइलऽ कि गंगठी नियन रह गेलो ... चिबावइत रहऽ ... कबाब में हड्डी ।) (सारथी॰14:20:37:1.16)
300 बलही (= ?) (बैठुआ दिन में सब मुसहरनी एक हाथ में टाँगी आउ दोसर में रस्सी लेके पहाड़ चढ़ जा हल आउ जंगल से लकड़ी काटके ले आवो हल । लकड़ी सुखाके साल भर अपनो जारन-पातन करो हल आउ 'बलही' बना-बना के राजगीर बाजार में बेचियो आवो हल ।) (सारथी॰14:20:35:2.38)
301 बलुरी (छोटका अहरवा भरा के दलान बन गेल हल, धार-भार वलन के । चमरपोखरिया तऽ कहिये ने भरा गेल हल आउ पटवारी जी के खेत बन गेल हल । मिट्ठी कुइयाँ जेकरा पर सभे के दलधोय होवो हल, हमरो होल हल, के अँड़सा ऊँच हो गेल हल । हुलक के देखलूँ तऽ ओकर हरियर पानी में उखड़ा, डमरा, बलुरी, खखड़ा आउ हठुआ मनी अलखर-जलखर उपलाल हल ।) (सारथी॰14:20:23:1.22)
302 बहँगी (जलील बड़ तर बनबिलाड़ के बहँगी धइलक आउ झौंसे के ओर-बोर करऽ लगल । तमसबीन में हम भी ओतुने ठाढ़ हली ।) (सारथी॰14:20:27:2.4)
303 बाजे-बाजे (= कोय-कोय) (कहलो जाहे - "कार बैल एकलौता पूत, बाजे-बाजे होय सपूत ।"से सपूत तो नहियें हल गोरका । सौंसे मुसहर टोली के 'हीरो' हल गोरका ।) (सारथी॰14:20:35:3.23)
304 बानी (= राख) (काका बोरसी के आग उकटे ले गोइठा खोज रहला हल । उनखर आँख में तलाश हल ... गोइठा के या ... । हम लपक के एगो खड़ाम खोज के बोरसी उकटे लगलूँ । मिंझाल बानी के अंदर भुस्सा के खह-खह आग हल ।) (सारथी॰14:20:24:3.53)
305 बिज्जी (सोनिया बवंडर में पटकनियाँ खा रहल हे । दादा थोड़के देरी बाद बहरा गेल । ओकर बिज्जी कला कान में कुछ भुनभुन्नी पड़ल हल । ऊ बमकऽ लगल, "के हलउ सोनियाँ ? की बकऽ हलउ ? बोल, बोल तऽ, कि भनभना हलउ ?") (सारथी॰14:20:22:1.11)
306 बिल (अरे ढुकनीवाला, तों हमरा बेसी कौड़ी देके फुसलावे लेल चाहो हीं रेऽ ? बेसी कौड़ी तूँ अपन गाँड़ में कोंच ले, चाहे मैया-बहिनी के बिल में कोंच लाव । हम हियाँ के 'रेजा' नियन चित्ती कौड़ी नञ् हिअइ रेऽ मोछमुत्ता वलाऽ ।) (सारथी॰14:20:36:1.15)
307 बिसुआ (= सतुआ-संक्रांति; बिसुआनी, सतुआनी) ('जहिये दाल-भात, तहिये परब, गरीब के बाल-बच्चा मत कर गरब !' गरीब ले प्रासंगिक बनले हे । हमर देश परब के देश हे । साल में नो महीना परब-परब । पांचे (नागपंचमी) पसार तऽ बिसुआ उसार ! फाँक माधे तीन महीना - बैसाख, जेठ, अषाढ़ । सावन से तऽ परब आवऽ हे गरीबन ले सांसत बनि के । दीवाली मनइलऽ ने ? कइसन मनलो ? केकरो ले छप्पन प्रकार, केकरो ले ओल ! कुलकुलइनी मेटलो ?) (सारथी॰14:20:2:2.13)
308 बिहा (= बिआह) (ठेल-ठाल के साथ सुतवो करिअउ तऽ खाली देहिया पर हाथा रखके घोंघर काटते रहो हीं । दूर रे गोट-गिलउना के छौंड़ा । भठवा पर रेजवन के देखके खड़े तूओ हीं रेऽ आउ हमरा भिरी अइते तोरा मिरगी आवे लगो हउ । बिहा भेला पाँच बरिस भे गेलउ । आझ अनोग एगो चुटवरियो देलहीं रेऽ कोचन-गिलउना के नाती ?) (सारथी॰14:20:36:2.12)
309 बिहियाना (जातिवाद के बढ़इत प्रभाव हमर सामाजिक संबंध के झिकझोरलक हे, सामाजिक समरसता के खंड-खंड में बिहिया देलक हे । धार्मिक-साम्प्रदायिक प्रभाव से बचल-खुचल आदमी जातिवाद के खोंचा में समा रहल हे ।) (सारथी॰14:20:8:2.48)
310 बुंदा-बांदी (कोय-कोय हाल से अरिअठ पार कइलूँ, अगले-बगले घास पर से बुल-बुल के । मुदा अहरा पर चढ़ते गोड़ छहरऽ लगल । बुंदा-बांदी भी होइये रहल हल, फिसिर-फिसिर । गोड़ तो गोड़ नञ्, जाँता के चकरी रहे । गोड़ पीछू पाँच-पाँच किलो माटी से कम नञ् ।) (सारथी॰14:20:40:3.41)
311 बुलक (सोमर सवाद लेके हड्डी चिबाइत कुत्ता सन फिनो माला दने ताकलक । "दू-दू बुलक तीनों कुत्तन के हवस मोछकबरा डोमना के सामने तरह-तरह से सहली । एगो के तऽ मत कह ... ! कहि नञ् सकऽ हिअउ कि मरद कते घिनामन होवऽ हे ।") (सारथी॰14:20:20:1.46)
312 बूढ़-ठेढ़ (ईहे रंगन जब रोज मुसहर टोली में धिंगड़य होवे लगल तऽ टोला के पाँच गो बूढ़-ठेढ़ दुनो के बहुत समझौलका, बाकि नदी के दू पार नियन दुनहूँ दूरे होवइत गेल । अपन बेटी के समझावे लेल चनपुरा से डमरू माँझी के भी बोलावल गेल । ऊहो अपन बेटी आउ दमाद के सब हेंठ-उप्पर समझौलक मुदा ने बात बने के हल ने बात बनल । अब तो गोरका-गोरकी में जमके मारा-मारी भी होवे लगल ।) (सारथी॰14:20:36:2.16)
313 बेंड़ाढ (= ?) (अब तो गोरका-गोरकी में जमके मारा-मारी भी होवे लगल । गोरका पैना उठौले हे तऽ गोरकी सुअर-बखोर के बेंड़ाढ ।) (सारथी॰14:20:36:3.2)
314 बेकछिआना (= अलग करना) (एक बात आउ कि ई मगही जनपद के लोकरस, जे कमो-बेस अउरो जगह से समानता रखऽ हे, के बेकछिआवे में पुरजोर ताकत लगइलक हे । अब आवश्यकता ई बात के हे कि मगही कहानीकार एकरा दोसर भाषा, खासके हिन्दी के कहानी के समतुल्य ले जाय के प्रयास करथ ।) (सारथी॰14:20:11:3.40)
315 बेगैरत (= निर्लज्ज, बेहया) (ऊ बेगैरत आदमी के पास कुच्छो हुनर न हल - मेजवानी करना, उपहार बाँटना, चूमा-चाटी करना आउ औरत के फुसलाना, बस !) (सारथी॰14:20:12:2.38)
316 बेचना-बिकिनना (आन नियन जो हम कम तिलक देके बेटी बियाह देती हल तऽ कुछ खेत तऽ बचत हल । आज ओकरो बेच-बिकिन के बेटा के बढ़इतूँ हल, ऊहो नञ् रखलूँ । चंदना सच कहऽ हे कि माय हमरा पाछिल टिकरी खिलइलक होत । सब कुछ लुटा के होश में अइला से की होवऽ हे !) (सारथी॰14:20:38:3.27)
317 बेमत (धन, बल, पद आदि का अभिमान; आवेश, जोश, उत्साह; तैश; उबाल, उफान) (दुर्गा दुन्नूँ हाथ से ओकरा जोम भर ठेलइ के कोशिश करि रहल हल । ओकर नजर छूरी पर पड़ि गेल । ऊ झपट के छूरी उठइलक आउ आव देखलक ने ताव, दरिंदा के 'जड़िये' छप्प दनी काट देलक । एगो भयानक चीख उठल ... 'अरे बाप !' आउ ऊ बेमत लगल गोरू जकते अपन दुन्नूँ जाँघ के बीच हाथ कइले केंचुआ सन सुकड़इत छटपटा रहल हल ।) (सारथी॰14:20:43:2.35)
318 बैठुआ (~दिन = बैठा-बैठी) (बैठुआ दिन में सब मुसहरनी एक हाथ में टाँगी आउ दोसर में रस्सी लेके पहाड़ चढ़ जा हल आउ जंगल से लकड़ी काटके ले आवो हल । लकड़ी सुखाके साल भर अपनो जारन-पातन करो हल आउ 'बलही' बना-बना के राजगीर बाजार में बेचियो आवो हल ।) (सारथी॰14:20:35:2.34)
319 बोइआम ("आझ दुन्हू बापुत साथे खाम । ढेर दिन हो गेल हे ।" कहके काका उठलखिन आउ अनवारी खोल के निमकी वला बोइआम निकसलखिन ।) (सारथी॰14:20:24:2.38)
320 भक दनी (हम दिनियाल केबाड़ी खोलली आउ लपकल बोतल खोलि के एन्ने-ओन्ने ताकइत सत्या तक पहुँच गेली । बोतल खोलि के ओकर मुँह पर पानी के छिट्टा देली । ऊ भक दनी आँख खोल देलक । हम बोतल बढ़ा के ओकर मुँह से लगा देली । कंठ में पानी गेल कि ऊ उठ बइठल आउ बोलल, "मालकिन, ई रौदवा में तूँ ...") (सारथी॰14:20:33:2.14)
321 भक सन (हम कहली, "एक बात पुछियो ? तोहर बियाह होलो हल कि नञ् ?" / ओकर आँख सपना देखऽ लगल । ओकर झुर्री भरल चेहरवा पर मुस्की उभरल कि भक सन उड़ि गेल । ऊ उदास हो गेल आउ बोलइत उठि गेल - "हमर जिनगी में अन्हारे-अन्हार लिखल हलो मालकिन ।") (सारथी॰14:20:33:2.34)
322 भतही (अइसे अगुआ पर भरोसा हल कि कुछ रियायत जरूर करइतन, बकि तइयो कुछ ने कुछ खेत बेचहे पड़त । एकलगौरी चार-चार बेटी पर आँख में आँख सुजितवा भेल, ऊ भी जिरइला पर ! सब खेत तऽ तीनियों के बियाहे में बिक गेल । हमरा माय-बाप तिलकाही घर देखके बियाहलक हल से अब भतही हो गेलूँ । सुजितवा ले बचवे की करत !) (सारथी॰14:20:37:2.10)
323 भलुक (साहब के बाप दू भाय हल - लतीफ आउ जलील । ... लतीफ के छोट बेटा दुलार के बियाह जलील के बड़ बेटी कलवा के साथ होल हल । दुन्नु भाय, भलुक समधी के अप्पन दू-दू भित्तर के खपड़पोस घर आमने-सामने हल, बीच में चौड़गर रस्ता । मुनगा के गाछ धारा-धारी लगल हल, जेकर छाहुर में हम आउ साहब लट्टू खेलल करऽ हली ।) (सारथी॰14:20:27:1.40)
324 भाफना (चंदना के सुझाव से अमर में नया उत्साह जगल । ऊ फैसला कइलक कि शहर के सब बैंक में जाके भाफम । आउ दोसर दिन सबसे पहिले एसबीआई में गेल ।) (सारथी॰14:20:39:1.4)
325 भुक्खड़ (ऊ एक टुकड़ी निम्मक में बोर के मुँह में देलक आउ भुक्खड़ सन जल्दी-जल्दी चिबा के तातले अंदर निंगल गेल । ऊ अपन नरेटी सहलावइत पुछलक, "कहाँ से दू-दू कुनई मारले हस ।") (सारथी॰14:20:27:3.10)
326 भुचकुल्ली (= बहुत छोटा) (ननद-भउजाय घर पहुँच के भुचकुल्ली झोपड़ी में बइठल खुसुर-फुसुर बतिया रहल हल, "जानऽ हऽ भउजी, दढ़ियलवा दस के नोट फाजिल देलक ।" - "अनजान में कि जानबूझ के ?" - "भउजी वली बात ! ऊ अनजान देवे वला हो ? पाँच तुरी तऽ दढ़िजारा नोट गिनतो !") (सारथी॰14:20:21:3.16)
327 भोकस (= प्रेत योनि का एक कल्पित जीव, राकस) (देखऽ ही तऽ एगो बिलाड़ पड़ल हे । ओकर मूड़ी थकुचाल हे, मुँह फटल, जेकरा से हर-हर खून बहि रहल हे । साहब ओकर पंजड़ा में भोंकल बरछी खींचे के कोरसिस कर रहल हे । / तखनइँ मिसरी बाबा टुभकला, "बड़ निम्मन कइलें । हमर दू-तीन मुर्गी ईहे भोकसवा खा गेल हे ।") (सारथी॰14:20:26:2.50)
328 मचोरना ("तेको छोड़िगो नाहैन । ते खौब दूध-मलाई-मुर्गा चाभले हस ।", बिलाय के टंगरी मचोर के तोड़इत बोलल आउ निम्मक-गुंडी में बोरके अधपकुए दाँत से नोचके मूड़ी कँपावइत कचरऽ लगल ।) (सारथी॰14:20:27:1.8)
329 मती (= मति) (~ मेराना) ("बउआ खइलकउ ?" - "ओकरा अखने अनाज धसऽ हो ! भोरे गेलो हे से अभी तक नञ् लौटलो हे । हम चारियो बहीन राते मती मेरा लेलियो । एक्कक साल के भार चारियो बहीन उठइबे तब तऽ बउआ इंजीनियर बनत ने ।") (सारथी॰14:20:39:3.29)
330 मनकड़ड़इ (मंझला का एक नम्मर पूजेड़ी हलखिन महरानी के । चाची तनी मनकड़ड़ हलखिन । बाकि अब ई बुढ़ारी में उनखर मनकड़ड़इ लरमा गेलइ हल । चाचा के भी बोली में ऊ गरमी नञ् बचलइ हल ।) (सारथी॰14:20:23:3.19)
331 मनजई (= मात्रा; तौल में कितना मन हुआ वह मात्रा) (~ टाँकना) (माल तौलाय लगल । जहीर मियाँ अपन कागज पर मनजई टाँकऽ लगल । खतम हो गेल तऽ जहीर बोलल, "फुटगत न हउ, कल्ह लिहें ।") (सारथी॰14:20:21:2.13)
332 मनजब्बड़ (जे साल के बैसाख में दौलती के घर ढुकइलक, ओही साल अगहन में रमेसरा बेटा आउ बेटी के बिआह कर देलक । बेटी तो निक्के-सुक्खे अप्पन ससुराल चल गेल मुदा घर में बाप आउ बेटा दुन्नूँ में नइकी कनियाय सास आउ पुतहू में ठने लगल । दौलती गरीब घर के सुघड़ बेटी हल । छल-कपट से दूर बिर आउ दब्बू मुदा पुतहू सनसन, तितकी मिरचाई, मुँहजोर आउ मनजब्बड़ ।) (सारथी॰14:20:31:1.5)
333 मने-मन (बड़ी हिम्मत जुटाके बुतरून के लेके गाँव से मुँहझपुए निकस गेली । दौलती मने-मन रस्ता भर सोचले जा रहली हल कि आझ दू बेटी के बेच देम, अब हमरा में हिम्मत नञ् हे कि एकरा पालम-पोसम ।) (सारथी॰14:20:31:2.44)
334 मरी (तखनइ बाध दने जायत कातिक बात सवादि के बोलइत चलि गेल, "हाड़-मरी ढोवइत-ढोवइत तऽ हमनी के हड्डी परपरा हे ! खाय ले नून-रोटी जुमे अउ दस-दस मन के मरी ! ... हुँह !") (सारथी॰14:20:20:2.47)
335 मसमसाल (माला के दरद मिलल तमतमाल गाल पर लोर के लकीर उगरि गेल । सोनी अंदर से खौलइत, मसमसाल, नाक फोकरइले चुपचाप खाड़ रहल ।) (सारथी॰14:20:20:2.6)
336 माँझी-मँझिआइन (डमरूआ ठेरनी से कभी-कभी हँसलोलियो करो हल कि कलवतिया तो किसनमे के बेटी हे । ठेरनी तब अगरा के कहो हल - "तउ की हइ ? केकरो में कउनो छापा-मोहर लगल रहो हइ कीऽ ? मोछकबराऽ, जोऽ, ई बात किसैनियो से जाके कह दे, ईलाम-बकसीस मिलतउ तोरा । मोछकबरा के नाती, भाग मनाव कि तोरा नियन 'डमरूआ' से बिआह भे गेल आउ रस-बस गेलिअउ ।" ठेरनी एतना कहके डमरूआ के कनखी मार देय तनी । ईहे रकम माँझी-मँझिआइन में तफड़ी होते रहो हल ।) (सारथी॰14:20:35:2.17)
337 मांजर (= हड्डी-गुड्डी) (भैंस के ~) (सोनी लौटल तऽ माला पुछलक, "ई ठठरी भैंस के हे कि बैल के ?" - "सहदान भैंस के । सींग देखऽ ! बनल-सोनल कोय मस्त भैंसे होतन । एकर मांजर हमनी दुन्नूँ से नञ् टसकि सकऽ हली", सोनी बोलल ।; दुन्नूँ ननद-भउजाय मांजर के तोड़नइ नाधि देलक । गर्दन के तोड़ि के पसलियन के भीतरे करि देलक । टंगरियन के तोड़ि के अलगे बोझा बनइलक । एगो भैंसे के ताजा हड्डी दू ठो बोझा में बँटि गेल । दुन्नूँ गोटी एक दोसर के सहारा से माथा पर उठा लेलक ।) (सारथी॰14:20:20:2.42, 3.8)
338 मांझी थान (हम जने-जने घूम जा हलूँ ओकर इतिहास हमर आँख के आगु घूमऽ लगऽ हल, सिनेमा नियन । महरानी थान, लुल्ही थान, मांझी थान, घूरेता, कुम्मर थान, हहेबा पर, डाक थान ओगैरह । लुल्ही माय के तो रेवरा के दू-तीन छउँड़ चोरा के ले भागलइ हल ।) (सारथी॰14:20:23:2.48)
339 मिंझरउनी (= ‘मिंझरौना' का ऊनार्थक) (माला भउजी बोलल आउ अँचरा के खूँट से महुआ-चना के मिंझरउनी आधा सोनी के खोंइछा में डाल देलक ।) (सारथी॰14:20:20:3.36)
340 मिंझाल (= बुताल; बुझा हुआ) (काका बोरसी के आग उकटे ले गोइठा खोज रहला हल । उनखर आँख में तलाश हल ... गोइठा के या ... । हम लपक के एगो खड़ाम खोज के बोरसी उकटे लगलूँ । मिंझाल बानी के अंदर भुस्सा के खह-खह आग हल ।) (सारथी॰14:20:24:3.52)
341 मिट्ठी कुइयाँ ( छोटका अहरवा भरा के दलान बन गेल हल, धार-भार वलन के । चमरपोखरिया तऽ कहिये ने भरा गेल हल आउ पटवारी जी के खेत बन गेल हल । मिट्ठी कुइयाँ जेकरा पर सभे के दलधोय होवो हल, हमरो होल हल, के अँड़सा ऊँच हो गेल हल । हुलक के देखलूँ तऽ ओकर हरियर पानी में उखड़ा, डमरा, बलुरी, खखड़ा आउ हठुआ मनी अलखर-जलखर उपलाल हल । हमरा याद पड़ गेल - गरमी में इहे कुइयाँ के पानी टोला भर के घर में जा हल । एकर उत्तर-पूरब से भरला पर पानी में दाल जल्दीए सीझ जा हलइ । ऊ मिट्ठी कुइयाँ के ई दुर्गति देखके मन हहर गेल । मिट्ठी कुइयाँ हमर पहिचान हल ! कोय पूछऽ हल कि "नीमी में कउन टोला घर हो ?" तउ जवाब दे हलूँ "मिट्ठी कुइयाँ पर" ।) (सारथी॰14:20:23:1.18-19, 27, 28, 30)
342 मुँहलगुआ ("अरे डमरूआऽ, मोरी आझे कबर गेलउ हऽ । पाँच बिघा कदवो तइयार हउ बरकरवा में । भोरे तीस गो फरहर रोपनी चला दीहें । एगो तोर ठेरनी तो हइये हउ । बकिये के ओहे अपन मन से जोरिया लेतउ ।" साँझे खनी बाबू टेंगर सिंह अपन मुँहलगुआ जन डमरू माँझी के अरहा रहला हल ।) (सारथी॰14:20:35:1.6)
343 मुक-मुक (~ करना) (तखनइँ बकरी फेन मेमियाल । हमरा लगल सत्या हमरा हँका रहलन हे । अंदर गेली तऽ देखली एगो उज्जर रंग के बकरी बन्हल हे । ओकर आँख छलछलाल, अब ढुलकल कि तब ढुलकल लगि रहल हल । हमरा देखि के ऊ मुक-मुक करइत मूड़ी धुनऽ लगल । हम आगू बढ़ि के ओकर माथा छूअइत बइठ गेली ।) (सारथी॰14:20:34:2.11)
344 मेंचना (हम हाथ पकड़के कहलूँ - उठऽ ने । ऊ कहलकी - पहिले तोरा बेगवे धोवे के ताक बहकल जा हलो, पहिले हमरा ने उठइतऽ हल । हम कहलूँ - गोड़ मेंच गेलो की ? - गोड़ मेचे दुश्मन के, हम तो देखऽ हलियो कि पहिले हमरा उठावऽ हऽ कि झोलवे के ।) (सारथी॰14:20:41:3.5, 6)
345 मेहुदाना (मतलब रस्ता बदल गेल हे आउ बुलेट मेहुदा रहल हे । ई मेहुदायल बुलेट लेके अनबुझ रघुनथवा जइसन आदमी जूझ रहल हे ।) (सारथी॰14:20:8:1.23)
346 मेहुदायल (मतलब रस्ता बदल गेल हे आउ बुलेट मेहुदा रहल हे । ई मेहुदायल बुलेट लेके अनबुझ रघुनथवा जइसन आदमी जूझ रहल हे ।) (सारथी॰14:20:8:1.23)
347 मैया-बहिनी (अरे ढुकनीवाला, तों हमरा बेसी कौड़ी देके फुसलावे लेल चाहो हीं रेऽ ? बेसी कौड़ी तूँ अपन गाँड़ में कोंच ले, चाहे मैया-बहिनी के बिल में कोंच लाव । हम हियाँ के 'रेजा' नियन चित्ती कौड़ी नञ् हिअइ रेऽ मोछमुत्ता वलाऽ ।) (सारथी॰14:20:36:1.15)
348 मोछकबरा (सोमर सवाद लेके हड्डी चिबाइत कुत्ता सन फिनो माला दने ताकलक । "दू-दू बुलक तीनों कुत्तन के हवस मोछकबरा डोमना के सामने तरह-तरह से सहली । एगो के तऽ मत कह ... ! कहि नञ् सकऽ हिअउ कि मरद कते घिनामन होवऽ हे ।"; डमरूआ ठेरनी से कभी-कभी हँसलोलियो करो हल कि कलवतिया तो किसनमे के बेटी हे । ठेरनी तब अगरा के कहो हल - "तउ की हइ ? केकरो में कउनो छापा-मोहर लगल रहो हइ कीऽ ? मोछकबराऽ, जोऽ, ई बात किसैनियो से जाके कह दे, ईलाम-बकसीस मिलतउ तोरा । मोछकबरा के नाती, भाग मनाव कि तोरा नियन 'डमरूआ' से बिआह भे गेल आउ रस-बस गेलिअउ ।" ठेरनी एतना कहके डमरूआ के कनखी मार देय तनी । ईहे रकम माँझी-मँझिआइन में तफड़ी होते रहो हल ।) (सारथी॰14:20:20:1.47; 35:2.12, 14)
349 रंग-ढंग (बियाह के रजगज घर सुन्न-सुनहट्टा हो गेल हल । तीनियों दीदी भी जा चुकल हल । भाँय-भाँय करइत घर सुजीत के काटे ले दौड़े । दिन में खा-पीके बहराय से आठ-नो बजे रात से पहिले नञ् लौटे । ओकर रंग-ढंग देखिके माय-बाप चिंता में रहे ।) (सारथी॰14:20:37:3.28)
350 रपटा (= अभ्यास, आदत) (हम टोकऽ हली तऽ ऊ कहऽ हला, "हम साथी के संगति में फँस गेलिअउ सुमी ! बैंक से निकललिअउ कि मनिज्जर के घर में बइठकी जमि गेलउ । कुछ दिन तऽ भूनल काजू खुटकइत रहलिअउ । एकाधे घूँट में अरबराय लगलिअउ । रस-रस तऽ रपटा हो गेलउ । अब तऽ लगऽ हउ मरले पर छुटतउ ।") (सारथी॰14:20:33:3.2)
351 रस्सुन-हरदी (चनपुरा गाम राजगीर-बनगंगा मोड़ से सोझे पच्छिम पहाड़ी के तलहटी में परो हल । माटी करकी केवाल आउ खूब पैदावार हल । ... भूमिहार बरहामन के अलावे जादव, कोइरी, आउ मुसहर के आबादी । सेऽ आलू-पेआज, रस्सुन-हरदी के पैदा भी होवे । पाँच घर अदरखियो हे जे हरदी-आदी के खेती करो हे ।) (सारथी॰14:20:35:1.38)
352 रूखे (= तरफ) (हमरा करेंट लग गेल, के केकरा पंजड़ा में बरछी भोंक देलक ? केक्कर मूड़ी पर फटाक-फटाक लाठी बरस रहल हे ? हम लदफदाल लुंगी सम्हारइत लपकल आवाज रूखे चल देली ।) (सारथी॰14:20:26:2.40)
353 रेजा (= राजमिस्त्री के साथ कमानेवाला, मजदूर; छोटा खंड या टुकड़ा) (सीजन के आखिर में दादनी आउ खोराकी सहाके सबसे बेसी निकासी गोरके-गोरकी के भेल । जहिया 'पथइया' नयँ होवे, तहिया गोरका 'भराय' मिसतीरी के साथ 'हेल्फर' बन जाय आउ गोरकी 'रेजा' में काम करे ।; ठेल-ठाल के साथ सुतवो करिअउ तऽ खाली देहिया पर हाथा रखके घोंघर काटते रहो हीं । दूर रे गोट गिलउना के छौंड़ा । भठवा पर रेजवन के देखके खड़े तूओ हीं रेऽ आउ हमरा भिरी अइते तोरा मिरगी आवे लगो हउ । बिहा भेला पाँच बरिस भे गेलउ । आझ अनोग एगो चुटवरियो देलहीं रेऽ कोचन गिलउना के नाती ?) (सारथी॰14:20:36:1.1, 2.10)
354 रेलवी (= रेलवे) (कारा ! रेलवी के गैंगमैन, जे दुनिया भर के मलवा हटा के, गिद्दी खरोंच के रेल के पटरी ठीक करऽ हे, ऊ अपन मेहनत के बदले की पावऽ हइ ? आउ ओकरे में एगो कोय मेट बन जा हइ, जे करऽ हइ कुछ नञ्, सिरिफ हाजरी बनावऽ हइ आउ डाँट-फटकार करऽ हइ । मेटवा ओखनिन से जादे काहे पावऽ हइ ?) (सारथी॰14:20:21:2.34)
355 रोइयाँ-चमड़ी (बिलाड़ के रोइयाँ-चमड़ी झौंसाय लगल । छुछुआयन गंध वातावरण में फइल गेल । भीड़ अपन नाक-मुँह सिकुड़ावऽ लगल, बकि टसकल कोय नञ् ।) (सारथी॰14:20:26:3.49)
356 रोकसद्दी (= रोसकद्दी; रुख्सत, गौना) (बाकि एक तो बाबू टेंगर सिंह के दुलारी कमीनी के बेटी, दोसर ओकर 'खर' सुभाव । कोय ओकरा दने ताकवो भी नञ् करे । जुआन हो गेला पर ओकर रोकसद्दी भी ठाट-बाट से हो गेल ।) (सारथी॰14:20:35:3.3)
357 लग्गू (गिलास लेवइत अमर बोलल, "बउआ अभी तक न अइलइ हे ?" - "ई बेली एने से कहिया आवऽ हइ ?" - "छौंड़ा के मन पर असर पड़ि गेलइ हे ।" - "बहिनियाँ के लग्गू हलइ ।" - "बहिनियाँ तऽ बोला रहलइ हे । काहे नञ् दस-पाँच रोज ले चलि जाय ... ! मन बहलि जइतइ !") (सारथी॰14:20:37:3.39)
358 लटवला (~ जमीन) (दू दिना के बाद हम दुपहरिया के घर पहुँचली तऽ देखऽ ही हमर घर के आगू, खेत के पार, ईहे पनरह-बीस बरिस से परीत जमीन में एगो पीयर गोलगंटा सिरकी छारल हे । हम अकचकइली - लटवला जमीन के के दखल करि लेलक ?) (सारथी॰14:20:26:1.5)
359 लतड़ाना (हम खिड़की बंद करइ ले हाथ बढ़इवे कइली हल कि हमर नजर सड़क पर गोबर के पथिया लेले जायत सत्या पर पड़ि गेल । ओकर गोड़ लतड़ा रहल हल, लगे जइसे अब गिरत कि तब गिरत ।) (सारथी॰14:20:33:1.42)
360 लदफदाल (हमरा करेंट लग गेल, के केकरा पंजड़ा में बरछी भोंक देलक ? केक्कर मूड़ी पर फटाक-फटाक लाठी बरस रहल हे ? हम लदफदाल लुंगी सम्हारइत लपकल आवाज रूखे चल देली ।) (सारथी॰14:20:26:2.39)
361 लमनी (हियाँ एम.एल.ए. के पद लमनी पाटी के परिणाम हे तऽ मुखिया के पद लमनी पाटी के अधिकार । मतलब ई कि चुनाव जन-मन के विचार नञ्, जन-बल आउ धन-बल रंगरूटन मुँहजोर के चीज हो गेल हे ।) (सारथी॰14:20:7:2.31, 32)
362 लरमाना (= नरमाना; नरम पड़ना) (मंझला का एक नम्मर पूजेड़ी हलखिन महरानी के । चाची तनी मनकड़ड़ हलखिन । बाकि अब ई बुढ़ारी में उनखर मनकड़ड़इ लरमा गेलइ हल । चाचा के भी बोली में ऊ गरमी नञ् बचलइ हल ।) (सारथी॰14:20:23:3.19)
363 ललाइन-कैथिन (आँख तऽ ओकर लगो हल पुरबी मैना नियन । ऊ हरदम पातर 'रेख' के काजर कइले रहो हल । बोली-चाली में लगे कि कोय ललाइन-कैथिन हे । ओकरा देख के कोय मुसहरनी नयँ कह सको हल ।) (सारथी॰14:20:35:1.13)
364 लहकी (= लहक) ("ई लहकिया में काहे ले निकलली ?" हम पुछली । / "नञ् निकलवो तऽ गोयठवा कइसे होतो ! दोपहरिये के तऽ गोबरे होवऽ हो । एक खेप अखनी, एक खेप सँझकी ।" ऊ अँचरा से लोर पोछइत बोलल ।) (सारथी॰14:20:33:2.22)
365 लिलाय (= ?) (अइसइँ भुनभुनाइत चंदना बरी पारइ ले बेसन फेनऽ लगल । ललिता लिलाय के बटरी लेले मघड़ावली भौजी घर चलि गेल हल । बियाह के निश्चित तऽ न हल, बकि अंदरे-अंदरे तइयारी चलि रहल हल ।) (सारथी॰14:20:37:1.9)
366 लुदबुदाल (उमेश के कहानी "लुदबुद" अइसने जमीन पर पनकल हे जेकरा में अनुकम्पा के आधार पर मिलल नौकरी के लुदबुदाल फल गिन सके हे ।) (सारथी॰14:20:9:1.11)
367 लुब-लुब (ऊ हमर मुँह सूँघऽ लगल । हम अपना साथ लावल टिफ़िन खोल के ओकरा रोटी खियावऽ लगली । ऊ लुब-लुब रोटी खाय लगल, ओइसइँ, जइसे सत्या कभी-कभार हमर घर में खा ले हल ।) (सारथी॰14:20:34:2.15)
368 लुल्ही थान (हम जने-जने घूम जा हलूँ ओकर इतिहास हमर आँख के आगु घूमऽ लगऽ हल, सिनेमा नियन । महरानी थान, लुल्ही थान, मांझी थान, घूरेता, कुम्मर थान, हहेबा पर, डाक थान ओगैरह । लुल्ही माय के तो रेवरा के दू-तीन छउँड़ चोरा के ले भागलइ हल ।) (सारथी॰14:20:23:2.48)
369 लुल्हुआ (ई ने कहऽ कि दुनहूँ हाथ में लड्डू । ओनहूँ से नस्ता-पानी, एनहूँ से लुल्हुआ घी में ।) (सारथी॰14:20:40:1.34)
370 लुसफुस (दुइयो लुसफुस गलबात करइत रस्ता नापऽ लगलन ।) (सारथी॰14:20:21:1.33)
371 लुसफुसियाना ("अरे ! मरद के जात ! राम कसम, एकरा सो हाथ मट्टी कोड़के नीचू गाड़ देवे के चाही । सच कहऽ हीं भौजी ! अइसनकन के भय के खुट्टा से खोलके छुट्टा छोड़ देवल जाय तऽ सब मेहरारू के इज्जत-आबरू दिना-दिनी लूट ले । ई सोमरा ? जहाँ जइतउ, जनियें भिजुन लुसफुसियाइत चलतउ !") (सारथी॰14:20:20:1.21)
372 लेटलहा (= लेटलका) (मलकीनी चिढ़क के बोलली - ई भैंसिया अगियान गौरी हमरा पुछिया से छतिया पर झँटार देलक । सउँसे सड़िया गोबर-गोबर हो गेल । हम कहलूँ - की करबहो, बीच रस्ते तो नहबे कैली, घरो जाके फेन से नहा लीहऽ । से तो ठीक हे, मुदा घर कैसे जाम ई गोबरे से लेटाल सड़िया पेन्हले । हम कहलूँ - हलऽ ल, ई बेगवा से लेटलहा जगहिया झाँप ल । हमरो दुनहूँ झोला-बेग लेले उकरूम लग रहल हल ।) (सारथी॰14:20:41:3.54)
373 लेटाना (= कीचड़ आदि से गंदा होना या करना) (ई बार भी राखी बाँधे के बोलहटा हल । हम ठाकुर जी से कहलूँ कि सूखा-सूखी में कोय बात नञ् हे । मुदा ई बरसात में तोहर गाँव जाना सात समुंदर पार जाय के बराबर हे । कनउ से जा, कपड़ा-लत्ता लेटइले बिना गुजारा नञ् ।) (सारथी॰14:20:40:1.19)
374 लोछियायल (= लोछियाल) (हिंछा भर पानी पीके दुइयो ऊपर भेल तऽ माला भउजी पुछलन, "भूख से लोछियायल अदमी के का करइ के चाही ?") (सारथी॰14:20:21:1.5)
375 वंशगर ("हम निरवंश नञ् ही ... ।" - "तउ की हऽ ? बेटा हो, पुतहू हो, पोता हो, बाकि अयलो हे एको दिन ताकहो ले ... ? हम निरवंश नञ् ही ... बड़का वंशगर ही ।" कहके कका उठला आउ निमकी के बोइयाम फिन अनवारी में रख देलका ।) (सारथी॰14:20:24:3.20)
376 विद्दत (= ?) (एतना कहते कोय कहलक - परनाम पहुना । आज बड़ी कीच-काच में पकड़ा गेलहो । बड़ी तकलीफ होलइ । हम कहलूँ - जे जे विद्दत भाग के लिखलक हे, से तो होवे ने करतइ । हमर घरनी चिटक गेली - विद्दत की, सावन-भादो में कादो-कीच रहवे करऽ हे ।) (सारथी॰14:20:42:1.3, 4)
377 विधंछ (= विध्वंस) (अइसे खा तऽ हमरो गेल हल कत्ते तुरी मास-मछली, दूध-दही बकि ईहे बिलड़वा खइलक, से कइसे कहल जाय । हम सोंचे लगली - जे हानि पहुँचावऽ हे, ऊ लाभो दे जाहे । चूहा कतना विधंछ करऽ हे । हमर नये सूटर काटके नाश देलक । जे घर में बिलाय परकलो, चूहा परइलो ।) (सारथी॰14:20:26:3.22)
378 सँझकी (= शाम में) ("ई लहकिया में काहे ले निकलली ?" हम पुछली । / "नञ् निकलवो तऽ गोयठवा कइसे होतो ! दोपहरिये के तऽ गोबरे होवऽ हो । एक खेप अखनी, एक खेप सँझकी ।" ऊ अँचरा से लोर पोछइत बोलल ।) (सारथी॰14:20:33:2.26)
379 सगरदिन्ना (जब पैसा के नया-नया बाढ़ आवो हे तऽ ओकरा में 'लालपानी' आउ किदोड़ियो आवो हे । सेऽ पैसा बढ़े के बाध गोरका के कलालियो बढ़े लगल । पहिले पिआँकी बढ़े लगल आउ बाध में जूआ सगरदिन्ना होवे लगल । भला गाम में सात-सात गो कलाली जे खुल गेल हल ।) (सारथी॰14:20:36:1.42)
380 सगाय (= दोसर बिआह) (सुने में तऽ आवऽ हे कि कलवतिया फेन नैहर से पलट के ससुरार नञ् आइल । माय-बाप कीतो राजगीर देने ओकर 'सगाय' करवा देलक ।) (सारथी॰14:20:36:3.15)
381 सच्चे-मुच्चे (कोय हाथ ऊ औरत के हालत पर तरस खाके ओकर बखती तौर पर कोय उपाय निकाले लेल आगू नञ् भेल । कोय ओकर हालत पर गौर नञ् कर रहल हल, नञ् कोय ओकर भूख-पियास लेल पूछ रहल हल । हाँ, दू-तीन औरत, जेकरा सच्चे-मुच्चे के बुतरू के जरूरत हल, ओकर गाँव आउ नाम जाने लेल सवाल दोहरा रहल हल ।) (सारथी॰14:20:30:2.10)
382 सथाना (एकरा में कुछ ही पत्रिका अइसन हे जे उठते-गिरते जाग रहल हे । कुछ तो कदम दू कदम चलके ही सथा गेल ।) (सारथी॰14:20:6:1.26)
383 सथाल (कभी व्यापक फलक पर फइलल मुदा समय के साथ सथाल मागधी जब फेर से फुज्जल तब एकदम नावा 'मगही' रूप में । ई लेल मगही कहानी के विकास भी दोसर भाषा के कथा विकास जइसन डेगा-डेगी से लेके दौड़-धूप आउ छलांग जइसन होल ।) (सारथी॰14:20:5:3.45)
384 सनद (हम जानऽ ही कि सत्ता एतना ऊँचा सुनऽ हइ कि हमनी जइसन आम जन के आवाज से ओक्कर कान पर कोय ढिल्ला नञ् बुल पइतइ, मुदा हमरा अप्पन बात कहे के हइ ... ताकि सनद जरूर रह जाय !) (सारथी॰14:20:3:1.2)
385 सपनगर (हमर सामाजिक वेवस्था अदव से वर्णवादी साँचा में रह के आप्त सूत्र के जाप करइत रहल हे । आजादी के सपनगर बेआर ढेर कुनी छोट-छिन विचार के उड़ा देलक हल ।) (सारथी॰14:20:9:1.15)
386 सर-सौगात (अपन लोककथा-धर्मी भाववादी डगर के छोड़ मगही कहानी के मुख्य धारा (यथार्थवादी) विकास के ऊ धरातल पर आ गेल हे जहाँ आंचलिकता से आगू बढ़के देस-देसावर तक के पुछार-चिन्हार करइत ओकरा से नेउता-पेहानी, सर-सौगात, रिश्ता-नाता जोड़इत अपन मंजिल पावइ के राह पर गतिशील हो गेल हे । अब एकरा पर चरचा करइ घड़ी सीधा-सपाट नाम गिनउअल से काम नञ् चलत बलुक प्रवृत्ति आउ प्रकृति के अनुरूप बात करे पड़त ।) (सारथी॰14:20:6:3.23)
387 सहदान (= पक्का, बिलकुल, निस्सन्देह) (सोनी लौटल तऽ माला पुछलक, "ई ठठरी भैंस के हे कि बैल के ?" - "सहदान भैंस के । सींग देखऽ ! बनल-सोनल कोय मस्त भैंसे होतन । एकर मांजर हमनी दुन्नूँ से नञ् टसकि सकऽ हली", सोनी बोलल ।) (सारथी॰14:20:20:2.40)
388 सहेठना (रात के दू बजइत हल । नींद सहेठ के आएल हल । मुखिया जी के विजय जुलूस नारा लगइत-लगइत हजमटोली में पहुँच गेल हल ।) (सारथी॰14:20:44:1.1)
389 साच ("लेले नञ् अइलहीं ?" - "मइया साच छठिया में अइतो" कहि के हम साहब से मिले चलि गेलूँ । ऊ हमर लंगोटिया यार हल । की जनु अब पछानत कि नञ् ।) (सारथी॰14:20:26:1.19)
390 सिरकी (= सरकंडा, झलासी; सरकंडे के ऊपरी भाग की लंबी पतली सींक जिससे चटाई, पंखा, सूप, परदा, टट्टी आदि बनाते हैं; सींक आदि से बनी चटाई जिससे खानाबदोश लोग अस्थायी घर बनाते हैं) (दू दिना के बाद हम दुपहरिया के घर पहुँचली तऽ देखऽ ही हमर घर के आगू, खेत के पार, ईहे पनरह-बीस बरिस से परीत जमीन में एगो पीयर गोलगंटा सिरकी छारल हे । हम अकचकइली - लटवला जमीन के के दखल करि लेलक ?) (सारथी॰14:20:26:1.4)
391 सीराकट्ठा (रोपा के दिन में ठेरनी गाम भर में 'चंपियन' रोपनी गिना हल । हरमेसा पहिल 'पाइह' ऊहे काटऽ हल आउ 'सीराकट्ठा' पावो हल ।) (सारथी॰14:20:35:2.26)
392 सीरा-पींडा (मइये मरे घरी कहलकइ हल कि जहिया नया घर में घरहेली करिहँऽ, तउ देव-पित्तर के जरूरे न्योतिहँऽ आउ सीरा-पींडा के मट्टी जरूर ले अइहँऽ ।) (सारथी॰14:20:23:3.32)
393 सुज्जो (= सुत जो; सो जा) (हमहूँ थक्कल-मांदल सुत गेलिअइ । अचक्के हम्मर नीन टूटल - खट्ट-खट्ट ... खट्ट-खट्ट । हम उठके बइठ गेलूँ । लगल कि कका उठलखिन होत पर-पेसाब करे ला । बगल में हाथ से टिटकोरलिअइ, तउ काका सुतले हलखिन बाकि हम्मर छूअन से उठ गेलखिन, "की होलउ ... सुज्जो ... ।") (सारथी॰14:20:23:3.42)
394 सुत्थर-मुत्थर (बेटिया के नाम हल कलवतिया आउ बेटवा के रहुलवा । बेटिया अपन मइयो से बढ़के हल सुत्थर-मुत्थर ।) (सारथी॰14:20:35:1.21)
395 सुथरकी ("ऊ अकसरे जा हउ दादा । ऊ हमरा कहियो अपना साथ नञ् ले जा हउ ।" - "तऽ तूँ केकरा संगे गेलहीं हल ?" - "माला भउजी साथ ।" सोनिया हकलायत बोलल । गोलू दादा दुर्वासा बनि गेलन, "खबरदार, जो कभी ऊ खधोड़ी संग गेले हें ... कुलछनी ! घाट-घाट के पानी पीले हे ऊ सुथरकी । एकरना से दोस्ती कइले हें, तऽ हडिया तोड़ि के धरि देबउ, से बूझ ले !" दादा लाल-पीयर आँख तरेरले घर में घुस गेल, "कुजात ! ससुरी ! अभी तलक नञ् आल हे । जहिरवा से आँख लड़उअल करऽ होत !") (सारथी॰14:20:21:3.49)
396 सुनामी (पहिले सामंती राक्षस हल, तऽ अखनी पूंजीवादी वायरस । पहिले रोटी, निम्मक, प्याज पर आम आदमी के हक हल, आज ऊहो मोहाल । पतरक्खन अलुओ बाजार में मुँह चिढ़ावऽ हे । डर पइस रहल हे आम आदमी के कि मगही के सुनामी में निमको ने उधिया जाय ।) (सारथी॰14:20:2:2.6)
397 सुन्न-सुनहट्टा (छोटी दीदी के चलि गेला से सुजीत मनझान रहऽ लगल । बियाह के रजगज घर सुन्न-सुनहट्टा हो गेल हल । तीनियों दीदी भी जा चुकल हल । भाँय-भाँय करइत घर सुजीत के काटे ले दौड़े ।) (सारथी॰14:20:37:3.24)
398 सुरफुराना (कभी-कभी ऊ उचकि के एने-ओने देखि भी ले हल फिन बीड़ी के सुट्टा मारइत खोंखि रहल हल । कोय माल लादले लौकऽ हल तऽ ऊ सुरफुरा जा हल ।) (सारथी॰14:20:21:1.50)
399 सूअर-माकर (डमरू माँझी सूअर-माकर नयँ पोसो हल । हाँ, दू गो बकड़ी भलो पोसलक हल जेकर पाठा-पाठी बेचके हाथ में दूगो पैसा हो जा हल ।; जब गोरका-गोरकी पैसा कमाय लगल तऽ सबसे पहिले सरकारी जोजना से एगो 'कोलनी' के घर बनवौलक । सरकारी पैसा से आउ बेसी पैसा लगाके बढ़िया मकान बना लेलक । सुअर-माकर बेचके सरकारी जोजना से एगो दुधगर जर्सी गाय खरीद लेलक ।) (सारथी॰14:20:35:1.24, 36:1.32)
400 सूखा-सूखी (= सुक्खा-सुक्खी) (ई बार भी राखी बाँधे के बोलहटा हल । हम ठाकुर जी से कहलूँ कि सूखा-सूखी में कोय बात नञ् हे । मुदा ई बरसात में तोहर गाँव जाना सात समुंदर पार जाय के बराबर हे । कनउ से जा, कपड़ा-लत्ता लेटइले बिना गुजारा नञ् ।) (सारथी॰14:20:40:1.16)
401 सेवा-बरदास (एगो बकड़ी रखे के तो काबुए नञ् हे, अउ ई भैंसिया के सेवा-बरदास के करत । ऊ कहलकी - एजी, तोहरा से बड़ी चीढ़ बरऽ हो । ने कुछ समझना ने बूझना, लगतरिये बोलले जा रहलऽ हऽ ।) (सारथी॰14:20:41:3.40)
402 हँसलोली (डमरू माँझी अपन बेटी कलवतिया के शादी बड़ा धूमधाम से कइलक हल । सब खरचा ओकर किसान बाबू टेंगर सिंह देलथिन हल । कलवतिया उनखर मुँहबोली बेटी जे हल । डमरूआ ठेरनी से कभी-कभी हँसलोलियो करो हल कि कलवतिया तो किसनमे के बेटी हे ।) (सारथी॰14:20:35:2.8)
403 हपसियान (दुर्गा अपन स्वाभाविक चाल में चलल जा रहल हल । परीत के रस्ता सुनसान हल । साँझ उतरल जा रहल हल । चिरइँ-चुरगुनी हपसियान अपन-अपन खोंथा दने जल्दी-जल्दी पाँख मारले जा रहल हल ।; अफरा-तफरी में ओकर माथा में चोट लगि गेल हल । खून से ओकर पीठ पर के फराक लाल हो गेल हल । ओक्कर सलवार के नारा टूट गेल हल, जेकरा ऊ भर मुट्ठी पकड़ले हपसियान हो रहल हल ।) (सारथी॰14:20:43:1.36, 2.44)
404 हर-हर (~ लोर बहना) (दुर्गा के नजर हमरा पर पड़ल कि अपन गियारी से एगो माला उतारइत भीड़ टारि के हमरा दने बढ़ल आउ हमर गियारी में माला पेन्हाके छाती से साटि लेलन । ओकरा आँख से हर-हर लोर बहि रहल हल ।) (सारथी॰14:20:43:3.18)
405 हल (तहिया के बाद सत्या पर नजर न पड़ल । हम कते तुरी अपन मरद से कहली, "तनि पता लगइतहो हल कि काहे नञ् आ रहले हे । जनु लूक अर तऽ नञ् लगि गेलइ ?" बकि उनखा फुरसत कहाँ कि पता लगावे जइता ।) (सारथी॰14:20:33:2.42)
406 हहेबा पर (हम जने-जने घूम जा हलूँ ओकर इतिहास हमर आँख के आगु घूमऽ लगऽ हल, सिनेमा नियन । महरानी थान, लुल्ही थान, मांझी थान, घूरेता, कुम्मर थान, हहेबा पर, डाक थान ओगैरह । लुल्ही माय के तो रेवरा के दू-तीन छउँड़ चोरा के ले भागलइ हल ।) (सारथी॰14:20:23:2.49)
407 हाड़-मरी (तखनइ बाध दने जायत कातिक बात सवादि के बोलइत चलि गेल, "हाड़-मरी ढोवइत-ढोवइत तऽ हमनी के हड्डी परपरा हे ! खाय ले नून-रोटी जुमे अउ दस-दस मन के मरी ! ... हुँह !") (सारथी॰14:20:20:2.45)
408 हाड़ी-चरूई (बाबा कहलथिन, "चल जो पूरब दन्ने, आउ पुरवारी टोलवन वला के तंग करहीं तउ जग्गह दे देतउ । फिन तऽ की कहिअउ बउआ ... ? पुरवारी टोलवा में कोहराम मच गेलइ । हड़िया-चरूइया में खनमा पैखाना हो जाय । रात में सुतल अहिआतन के मांग धोवा गेलइ, चूड़ियन फूट गेलइ आउ राँड़-मसोमातन के ठाढ़े-ठोप सेनूर पड़ जाय ... । बुतरुअन खेलते-कूदते मरो लगलइ ।") (सारथी॰14:20:23:2.26)
409 हाल-बेहाल (बाढ़-सुखाड़ या अइसन आपदा से हाल-बेहाल होला पर सरकारी मुआवजा के सहचार एगो जन-सरोकार आउ सहयोग के बात मान जाहे । ई संवेदनशील प्रजातंत्र के पहचान भी हे ।) (सारथी॰14:20:8:3.42)
410 हितमिल्लू (मोहना मंझला का के एकलौता बेटा हल । बचपने से लुरगर-बुधगर, समाजिक, हितमिल्लू आउ अजाद ख्याल के । कका पूजेड़ी अदमी ... भगत महरानी के ।) (सारथी॰14:20:24:1.42)
411 हुँह ( तखनइ बाध दने जायत कातिक बात सवादि के बोलइत चलि गेल, "हाड़-मरी ढोवइत-ढोवइत तऽ हमनी के हड्डी परपरा हे ! खाय ले नून-रोटी जुमे अउ दस-दस मन के मरी ! ... हुँह !") (सारथी॰14:20:20:2.48)
412 हुरकुचना ("हम ई कहाँ कहऽ हियो कि ललितवा के जग नञ् ठानऽ ! बरतुहारी ले तऽ हम हुरकुच्चइत रहऽ हलियो । हमर कहनाम एतने हो कि समय देखि के डेग बढ़ावऽ !") (सारथी॰14:20:37:2.34)
413 हुस्स (ओने सोमर कोय गंदगी सूँघइत दुन्नूँ के बात सवादलक आउ अनजान बनल एगो उघड़ल जनावर के ढचरा भिजुन जाके खाड़ हो गेल । हड्डी चिबाइत कुत्ता गुर्राल । बचल-खुचल मांस के खुरचइत गीध के भगावे ले ऊ अपन दुन्नूँ हाथ उठइले हुस्स ... हुस्स करऽ लगल आउ फिन दुन्नूँ के गलबात सुनऽ लगल ।) (सारथी॰14:20:20:1.29)
414 हेंठ-उप्पर (ईहे रंगन जब रोज मुसहर टोली में धिंगड़य होवे लगल तऽ टोला के पाँच गो बूढ़-ठेढ़ दुनो के बहुत समझौलका, बाकि नदी के दू पार नियन दुनहूँ दूरे होवइत गेल । अपन बेटी के समझावे लेल चनपुरा से डमरू माँझी के भी बोलावल गेल । ऊहो अपन बेटी आउ दमाद के सब हेंठ-उप्पर समझौलक मुदा ने बात बने के हल ने बात बनल । अब तो गोरका-गोरकी में जमके मारा-मारी भी होवे लगल ।) (सारथी॰14:20:36:2.21)
415 होनगर (= होनहार) ("सुजितवा बेटा हे । पढ़े में होनगर हे ... खेतो बेचके पढ़ाम ।" - "खेते नञ् रहतो तऽ बेचवऽ कीऽ आउ पढ़इबऽ कइसे !" चंदना के बोली तेज होल जा हल ।) (सारथी॰14:20:37:2.21)
1 comment:
bahut badhiya hakai...
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